अभ्यास और होश का संतुलन

Aug 2, 2024

पिछले जन्म के संस्कार और आदतें

  • पिछले जन्म के संस्कार इस जन्म में आदत बनते हैं।
  • इस जन्म की आदतें अगले जन्म में संस्कार बन जाएंगी।
  • अंत:
    • यह समझना कि तुम संस्कार या आदत नहीं हो।
    • तुम प्रतिक हैं, तुम होश में हो।

क्रोध और आदतें

  • क्रोध एक आदत बन जाती है।
  • जब तुम क्रोध करते हो, तो यह रोज़ का अभ्यास बन जाता है।
  • किसी ने उकसाया तो क्रोध बाहर आ जाता है।
  • आदतें गहरी होती जाती हैं।

मालिकियत और गुलामी

  • तुम अपने कर्म के मालिक हो।
  • क्रिया: तुम मालिक हो।
  • प्रतिक्रिया: दूसरा मालिक होता है।
  • क्रिया मुक्त करती है, जबकि प्रतिक्रिया बंधन बनाती है।
  • जो अपनी आदतों के मालिक हैं, वे स्वतंत्र रहते हैं।

आदतें और उनकी प्रकृति

  • बुरी या अच्छी आदतें एक समान हैं।
  • आदतें यदि मालिक बन जाएं तो वे बुरी होती हैं।
  • मालिकियत खोना हानिकारक है।
  • कैसे?
    • एक व्यक्ति को सिगरेट की आदत होती है, और दूसरे को पूजा करने की।
    • दोनों ही गुलाम हैं।

होश और आदतें

  • आदतें होश में रखना जरूरी है।
  • मालिकियत बनाए रखना आवश्यक है।
  • जब तुम होश में रहते हो, तब आदतें तुम्हारे अनुकूल होती हैं।

साधना का अर्थ

  • साधना का अर्थ है कि तुम मालिक रहो।
  • साधना से तुम अपने आपको समझ सकते हो।
  • आदतें जीवन को सुगम बनाती हैं, अगर वे मालिक नहीं बन जाएं।

होशपूर्वक जीना

  • हर क्रिया को होशपूर्वक करना जरूरी है।
  • आदतें अगर होश में होती हैं, तो वे तुम्हारी मदद करती हैं।
  • जीवन में सिर्फ आदतें रह जाने से आत्मा खो जाती है।

अंत में

  • होश साधना सबसे महत्वपूर्ण है।
  • जो होश साधता है, वह अपने जीवन में सार्थक चीज़ें बनाए रखता है।
  • आदतें स्वयं छूट जाती हैं जब तुम होश में होते हो।
  • एक सकारात्मक जीवन जीने के लिए होश का होना बहुत आवश्यक है।

निष्कर्ष:

  • आदतें जीवन का एक हिस्सा हैं, लेकिन हमें उन्हें अपने ऊपर सवार नहीं होने देना चाहिए।
  • होश में रहकर ही हम अपनी असली पहचान को जान सकते हैं।