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अभ्यास और होश का संतुलन
Aug 2, 2024
पिछले जन्म के संस्कार और आदतें
पिछले जन्म के संस्कार इस जन्म में आदत बनते हैं।
इस जन्म की आदतें अगले जन्म में संस्कार बन जाएंगी।
अंत
:
यह समझना कि तुम संस्कार या आदत नहीं हो।
तुम प्रतिक हैं, तुम होश में हो।
क्रोध और आदतें
क्रोध एक आदत बन जाती है।
जब तुम क्रोध करते हो, तो यह रोज़ का अभ्यास बन जाता है।
किसी ने उकसाया तो क्रोध बाहर आ जाता है।
आदतें गहरी होती जाती हैं।
मालिकियत और गुलामी
तुम अपने कर्म के मालिक हो।
क्रिया
: तुम मालिक हो।
प्रतिक्रिया
: दूसरा मालिक होता है।
क्रिया मुक्त करती है, जबकि प्रतिक्रिया बंधन बनाती है।
जो अपनी आदतों के मालिक हैं, वे स्वतंत्र रहते हैं।
आदतें और उनकी प्रकृति
बुरी या अच्छी आदतें एक समान हैं।
आदतें यदि मालिक बन जाएं तो वे बुरी होती हैं।
मालिकियत खोना हानिकारक है।
कैसे?
एक व्यक्ति को सिगरेट की आदत होती है, और दूसरे को पूजा करने की।
दोनों ही गुलाम हैं।
होश और आदतें
आदतें होश में रखना जरूरी है।
मालिकियत बनाए रखना आवश्यक है।
जब तुम होश में रहते हो, तब आदतें तुम्हारे अनुकूल होती हैं।
साधना का अर्थ
साधना का अर्थ है कि तुम मालिक रहो।
साधना से तुम अपने आपको समझ सकते हो।
आदतें जीवन को सुगम बनाती हैं, अगर वे मालिक नहीं बन जाएं।
होशपूर्वक जीना
हर क्रिया को होशपूर्वक करना जरूरी है।
आदतें अगर होश में होती हैं, तो वे तुम्हारी मदद करती हैं।
जीवन में सिर्फ आदतें रह जाने से आत्मा खो जाती है।
अंत में
होश साधना सबसे महत्वपूर्ण है।
जो होश साधता है, वह अपने जीवन में सार्थक चीज़ें बनाए रखता है।
आदतें स्वयं छूट जाती हैं जब तुम होश में होते हो।
एक सकारात्मक जीवन जीने के लिए होश का होना बहुत आवश्यक है।
निष्कर्ष
:
आदतें जीवन का एक हिस्सा हैं, लेकिन हमें उन्हें अपने ऊपर सवार नहीं होने देना चाहिए।
होश में रहकर ही हम अपनी असली पहचान को जान सकते हैं।
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