अवाज पाकिस्तान तमाम अंदरूनी और बरूनी चैलेंज और खतरा से निपटने की भरपूर सलाहियत रखती हैं चाहे वह रवायत जंग हो चाहे गैर र वायती चाहे हॉट स्टार्ट हो कोल्ड स्टार्ट हम तैयार है यह 2016 की शुरू की बात है लोग एपी और सफूरा गट के साने भूलते जा रहे थे जरबे अजब और कराची ऑपरेशन की कामयाबी ने राहिल शरीफ को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था कुछ लोग तो उन्हें डिफैक्टो प्राइम मिनिस्टर भी कहने लगे [संगीत] थे दहशतगर्दी में मरने वालों की अयादत से लेकर मुशी फैसलों तक राहील शरीफ हर जगह नजर आ रहे थे थ्री टाइम वजीर आजम नवाज शरीफ एक फोर स्टार जनरल राहिल शरीफ के साय में कहीं घुम होते जा रहे [प्रशंसा] थे क्या कराची क्या लाहौर क्या पिशा और तो और सोशल मीडिया पर भी हर किसी की जबान पर शुक्रिया राहिल शरीफ था मगर फिर एक ऐसी गैर मुत ब्रेकिंग न्यूज चली कि सब हैरान रह गए आर्मी चीफ जनरल राहील शरीफ ने दो टोक अल्फाज में अपनी मुकरा मुद्दत पर रिटायर होने का ऐलान कर दिया कहते हैं पाक फौज एक अजीम पर यकीन नहीं रखता हर जगह बहस छड़ गई अभी तो आर्मी चीफ की मुलाजमत में पूरे 11 महीने बाकी थे तो फिर अभी से यह ऐलान करने की क्या जरूरत थी शहर में त शरी मुहिम के जरिए फौजी सरब से फैसला बदलने की इल्तजा की जा रही है आर्मी लीडर की हमें जरूरत है आपके मुल्क को जो नुकसान पहुंचाया सियासत दानों ने पहुंचाया जनलो ने नहीं पहुंचाया सारे मीडिया पर शोर था अभी यही परेशानी कम थी कि नवाज शरीफ की जाती जिंदगी में भी एक मुसीबत सर उठाने लगी उनका दिल जवाब देने लगा पहले तो उन्हें आराम का मशवरा दिया गया लेकिन जब आराम से भी बात नहीं बनी तो वह हार्ट सर्जरी के लिए लंदन चले गए अब मुल्क में सिर्फ एक शरीफ का राज था मगर नवाज शरीफ भी पुराने खिलाड़ी थे जुलाई 2016 में जब सेहत आब होकर लाहौर से इस्लामाबाद की फ्लाइट पर बैठे तो जहाज से ही एक ऐसी तस्वीर रिलीज की गई जिसने सबको क्लियर पैगाम दे दिया चश्मा लगाए धूप सेकते नवाज शरीफ जीएच कू की एक फाइल खोले मुल्क के नए आर्मी चीफ के नामों पर गौर कर रहे थे और इन्हीं नामों में से एक नाम था जनरल कमर जावेद बाजवा [संगीत] का वैसे तो कहा जाता है कि जनरल राहिल शरीफ के सिर्फ आगे नहीं पीछे भी एक बाजवा था मगर इस बाजवा का जिक्र फिर कभी आज बात होगी उस बाजवा की जिसने अपनी मुलाजमत के दौरान एक नहीं दो नहीं तीन नहीं चार नहीं बल्कि पूरे पांच वजीर आजम भुगता करर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया है जिस पर मरहूम अयूब खान भी रश करते होंगे वो बाजवा जिन्हें कभी सबसे बड़ा डेमोक्रेट कहा गया तो कभी मीर जाफर और मीर सादिक के अल्का बाज से नवाजा गया बाजवा डॉक्ट्रा इन के खालिक हाइब्रिड निजाम के मौज च साब तशरीफ लाए पैर ंप रहे थे पसीने माथे पे थे जनरल बाजवा जनरल बाजवा सुपर किंग था जनरल बाजवा जनरल बाजवा क सुपर किंग है वहां बैठे हुए बाजवा मीर जाफर और मीर सादिक कि वो कौन था वो कौन था सच यह है कि जनरल बाजवा के इतने रूप हैं कि एक डॉक्यूमेंट्री में इन सब पर बात करना मुश्किल है मगर आसान काम हम रफ्तार वालों के नसीब में कहा चलिए आपको सुनाते हैं असली बाजवा की कहानी मगर पहले चैनल को लाइक और सब कर ले कोई फर्द इदार से और कोई इरा कौम से मुकदम नहीं बकल हजरत अल्लामा इकबाल फर्द कायम र मिल्लत से है तन्हा कुछ नहीं मौज है दरिया में पैरून दरिया कुछ नहीं नवंबर 1960 का जमाना था इंकलाब अक्टूबर को दो साल गुजर चुके थे अयूब खान की इदार पर ग्रिफ्ट तो मजबूत थी लेकिन वो फिर भी किसी किस्म का रिस्क लेने के मूड में नहीं थे एक-एक करके तमाम लूज एंड्स बंद किए जा रहे थे अभी एक हफ्ते पहले ही गुजरात में लियाकत अली खान के कातिल सैयद अकबर को गोलियां मारने वाले सब इंस्पेक्टर मोहम्मद शाह को भी ना मालूम अफराद ने कुल्हाड़ी मारकर कत्ल कर दिया था गक्कड़ मंडी के लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद इकबाल उन दिनों कराची पोस्टेड थे जब उनके घर एक और बेटी की विलादत हुई यह बच्चा कर्नल इकबाल के आंगन का पांचवां आखिरी बच्चा था कौन जानता था कि अयूब की डिक्टेटरशिप में एक लेफ्टनंट कर्नल के घर आंख खोलने वाला यह बच्चा एक दिन अयूब के रिकॉर्ड्स भी तोड़ देगा बच्चे का नाम कमर जावेद रखा गया लेकिन आगे जाकर मुल्क के ताकतवर तरीन ओहदे की कुर्सी पर 6 साल तक बैठने वाले इस बच्चे की जिंदगी का आगाज आसान नहीं था अभी कमर सिर्फ 7 साल के ही थे कि कर्नल इकबाल अल्लाह को प्यारे हो गए उनकी वालिदा ने पांच छोटे बहन भाइयों की अकेले परवरिश की 18 साल की उम्र में पाकिस्तान मिलिट्री अकेडमी काकल में भर्ती हो गए करियर का आगाज 16 बलोच रिचमंड से हुआ यह वही यूनिट थी जिसकी कमान उनके मरहूम वालिद 60 की दहाई में कर चुके थे 1992 में जनरल बाजवा ने जम्मू और कश्मीर में पांचवी नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री रेजीमेंट में बतौर मेजर खिदमा अंजाम दी उसके बाद उन्होंने टन कोर में पहले कर्नल और फिर ब्रिगेडियर के तौर पर चीफ ऑफ स्टाफ की हैसियत से काम किया फॉर्मेशन कमांडर के तौर पर नॉर्दर्न एरियाज की एक डिवीजन कमांड की और फिर 2007 में कांगो में अकवाबा के अमन मिशन का भी हिस्सा रहे यह वही पोस्टिंग थी जहां उनकी कारक दगी इंडियन आर्मी चीफ को भी बहुत पसंद आई थी जनरल कयानी का दौर बाजवा के लिए बहुत मुबारक साबित हुआ 2009 में मेजर जनरल बने और फिर जाते-जाते कयानी उन्हें अगस्त 2013 में थ्री स्टार जनरल भी बना गए लेफ्टिनेंट जनरल बनने के बाद बाजवा की पोस्टिंग एक बार फिर उनकी फेवरेट टन कोर में हो गई अगले तीन सालों में मुख्तलिफ हदों पर घूमते घुमाते जनरल बाजवा सितंबर 2015 में बिलख जीएच क्यू पहुंच गए और फिर रिटायर होकर ही वहां से निकले एक इंटरेस्टिंग बात बताऊ क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान की तारीख में सबसे ज्यादा आर्मी चीफ किस वजीर आजम ने लगाए हैं पिछले 50 सालों में असलम बेग जहांगीर करामत और इशफाक कयानी को छोड़कर जितने भी आर्मी चीफ आए सब के सब नवाज शरीफ की आशीर्वाद से ही आए अब यह बात अलग है कि उनमें से किसी भी आर्मी चीफ से नवाज शरीफ की कभी नहीं भनी शायद यही वजह थी कि वोह राहिल शरीफ की रुखसती से रिलीफ तो महसूस कर रहे थे लेकिन साथ ही उन्हें उनका अपना ट्रैक रिकॉर्ड परेशान भी कर रहा था उनके सामने चार अफसरा के नाम थे सबसे पहला नाम था सबसे सीनियर लेफ्टिनेंट जनरल जुबैर महमूद का जनरल जुबैर महमूद का ताल्लुक आर्टिलरी से था और उस वक्त वो जीएच क्यू में चीफ ऑफ जनरल स्टाफ की हैसियत से काम कर रहे थे वो इससे पहले जोहरी अस सासों को डील करने वाले स्ट्रेटेजिक प्लांस डिवीजन में भी काम कर चुके थे और आमतौर पर ऐसा बहुत कम होता है कि कोई जनरल एसपीडी में पोस्ट होने के बाद वापस आर्मी में बुलाया जाए लेकिन एसपीडी से सिर्फ डेढ़ साल में वापसी और फिर सीजीएस की अहम पोस्टिंग को राहिल शरीफ की जानिब से उनकी बतौर फोर स्टार जनरल प्रमोशन का एक वाज इशारा भी समझा जा रहा था उसके बाद नंबर था मरहूम जनरल इशफाक नदीम का राहिल शरीफ को तो सारा पाकिस्तान जानता है लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि राहिल शरीफ के तमाम ऑपरेशंस का असल मास्टरमाइंड जनरल अशफाक नदीम थे उन्हें एक सीधा-साधा ब्लंट और टेक्स्ट बुक ऑफिसर समझा जाता था लेकिन ब हैसियत डीजी मिलिट्री ऑपरेशंस वो कई बार पीएम हाउस की ब्रीफिंग्स में कुछ ऐसी बातें कर गए थे कि नवाज शरीफ उन्हें बहुत ज्यादा पसंद नहीं करते थे तीसरा नंबर था जनरल रमे का शहीद ब्रिगेडियर अनवारुल हक रमे के भाई जनरल रमे के खानदान का ताल्लुक नून लीग से बताया जाता था और कई लोगों का ख्याल था कि ये कनेक्शन उनकी प्रमोशन के चांसेस को काफी हद तक खराब कर सकता है और चौथा और आखिरी नंबर था जनरल कमर जावेद बाजवा का जिनके मिलिट्री करियर के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं आइंस्टाइन ने कहा था कि बार-बार एक ही काम करके मुख्तलिफ नताइवस्क्रिप्ट करके जनरल बाजवा को आर्मी चीफ बना दिया मैं समझता हूं कि बुनियादी उनका यह ख्याल था कि एक तो रिश्तेदारी तालुकात थे दूसरा उनका जहन में यह था कि यह हार्मलेस बंदा है हमें कुछ नहीं कहेगा मगर ये तकरी इतनी आसान नहीं थी तीन हजरात जनरल रा शरीफ ने पाक फौज की कमान बाबता तौर पर चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल कमर जावेद बाज जनरल बाजवा के आर्मी चीफ बनने से कुछ दिन पहले उनके खिलाफ एक अकलियत गिरोह से ताल्लुकात का इल्जाम लगाकर एक भरपूर मुहिम चलाई गई बिल्कुल वैसी ही मुहिम जो अक्सर सियासत दानों के खिलाफ एक मख सूस अंदाज में एक मखू हल्के की जानिब से कई दहाई हों से चलाई जाती रही है नूनन लीग के इत्तेहाद प्रोफेसर साजिद मीर ने तो एक बयान भी दाग दिया पाकिस्तान की फौज दुनिया में सबसे बड़ी इस्लामी फौज है और इस इस्लामी फौज का सरब कोई गैर मुस्लिम नहीं हो सकता जो नाम इस वक्त आरमी चीफ के लिए जेरे गौर है तलात के मुताबिक उनमें से एक के खानदान का ताल्लुक ऐसे लोगों से है जिनका खत्म नबूवत के बारे में अकीदा गैर इस्लामी [संगीत] है बाजवा भी अच्छी तरह जानते थे कि साजिद मीर की डोर कहां से हिलाई जा रही हैं इसीलिए बजहर नरम मिजाज और बे जरर नजर आने वाले बाजवा ने कमांड संभालते ही सख्त फैसले शुरू कर दिए दो हफ्तों के अंदर उस वक्त के डीजी आईएसआई जनरल रिजवान अख्तर को उनके ओहदे से हटा दिया गया और फिर चंद माह बाद ही जनरल रिजवान अपना टेनोर खत्म होने से काफी अर्से पहले अर्ली रिटायरमेंट लेकर घर चले गए मगर सिर्फ जनरल रिजवान नहीं जनरल बाजवा अपने सर से जनरल राहिल शरीफ का साया भी हटाना चाहते थे और इस काम के लिए उन्हें जरूरत थी एक स्पिन डॉक्टर की एक ऐसे मीडिया मैनेजर की जो लोगों के जनों से राहिल शरीफ का जिक्र मिटाकर उन्हें बाजवा का दीवाना बना दे इसीलिए सिर्फ दो हफ्तों बाद ही जनरल आसिफ गफूर ने जनरल आसिम से बाजवा को रिप्लेस कर दिया मगर सिर्फ मीडिया मैनेजर ही काफी नहीं था उन्हें पुरानी दहशतगर्दी के खिलाफ एक नए ऑपरेशन की भी जरूरत थी के ऑपरेशन जरबे अजब के बाद रद्द उल फसाद ऑपरेशन जरबे अज किस तरह रद्द उल फसाद में तब्दील हुआ मुल्क भर में पाक फौज का नया ऑपरेशन रद्द उल फसाद के दौरान 47 बड़े और 1 लाख से जायद छोटे ऑपरेशंस किए गए पाक अफगान बॉर्डर के 1000 किमी से ज्यादा हिस्से की फेंसिंग भी की गई रद्द उल फसाद का शोर न्यूज़ चैनल्स पर तो बहुत था लेकिन शायद दहशतगर्दी चैनल्स नहीं देखते इसीलिए बाजवा दौर को पाकिस्तान में दहशत गर्दों की वापसी का दौर भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा बाजवा के 6 सालों में 1500 से जायद दहशतगर्दी में 00 से जयद पाकिस्तानी शहीद हुए और 2023 तो सिक्योरिटी फोर्सेस के लिए पिछले आठ सालों में बदतर साल साबित हुआ जहां मुख्तलिफ हमलों में 400 से जायद जवान अपनी जानों से हाथ धो बैठे रद्द उल फसाद का आगाज तो जनवरी 2017 में हुआ था लेकिन ये किसी को नहीं मालूम शायद जनरल बाजवा दूसरे मसाइल में इतने उलझ गए कि उन्हें दहशत गर्दों की खबर लेना याद ही नहीं रहा कुछ लोग तो कहते हैं कि बाजवा हैड मेनी थिंग्स ऑन हिज माइंड बट टेररिज्म वाज नॉट वन ऑफ देम मेनी थिंग से याद आया बाजवा डॉक्ट्रा इन का जिक्र तो आपने न्यूज़ चैनल्स पर सुना ही होगा डॉक्ट्रिन ये है बाजवा डॉक्ट्रा बाजवा डॉक्ट्रा बाजवा डॉक्ट्रा बाजवा डॉक्ट्रिन मुशर्रफ की इनलाइटें मरेशन डॉक्ट्रा इन तो आप सबको याद ही होगी मगर शायद यह मुल्की तारीख में पहला मौका था कि एक नॉन मार्शल लॉ आर्मी चीफ मुल्क के लिए एक नेशनल पॉलिसी बना रहा था तो अगर आप इस पूरे डॉक्ट्रिन को देखें तो उसका मकसद यह है टू गेट अ नॉर्मलाइज पाकिस्तान जैसा कि पाकिस्तान 91 से पहले था या फर्स्ट अफगान बार से पहले था कि कोई वेपनाइजेशन नहीं थी पाकिस्तान में कोई सुसाइड बमिंग नहीं होती थी कोई टेररिज्म नहीं था तो इस डॉक्ट्रिन का जो बुनियादी मकसद है वो पाकिस्तान को उस अमन की तरफ लेकर जाना है जो कि यहां पर पहले होता था बजहर तो इस डॉक्ट्रा इन का मकसद सिक्योरिटी रिलेटेड बताया जा रहा था मगर मिर्जा गालिब का वो शेर याद है ना कि हैं कवाक कुछ नजर आते हैं कुछ देते हैं धोखा य बाजी करर खुला बस ऐसा ही कुछ हाल यहां भी था प्लीज अलाव मी टू स्पीक फ्रॉम हियर बिकॉज दैट रस्टम इज टू स्मल फॉर मी सिर्फ रोस्ट्रम ही नहीं आर्मी चीफ का ओहदा भी शायद जनरल बाजवा के लिए थोड़ा छोटा था क्योंकि उनके अजाइम बहुत बड़े थे थे जनरल बाजवा मुल्की तारीख पर ऐसे नकश छोड़ना चाहते थे जो दहाई हों बाद भी मिटाए ना जा सके वह सियासत सिफारिश मशत सब कुछ बदलना चाहते थे यह सब करने के लिए सिर्फ मिलिट्री नहीं पॉलिटिकल स्पेस की भी जरूरत थी और नवाज शरीफ के होते हुए यह स्पेस मिलना नामुमकिन था नवाज शरीफ बहुत ही कीना परवर आदमी यह जान नहीं छोड़ता अगर इसके यानी कौमी वफा तो बड़ी दूर की बात है वो अपनी पार्टी का भी मुफद को नहीं सोचेगा जहां उसके अपने जहन में है अब उसके जहन में था कि मुशर्रफ को मैंने सजा दिलवा नहीं है हालांकि मुशर्रफ ने उसके साथ बहुत सारी नेकी मुशर्रफ चाहता तो उसको फांसी लगवा देता अब इन हालात में जब एक आदमी इतना नजर आए कि वो इस तरह का कीना परवर है और फिर उसकी हिस्ट्री हो कि जहांगीर करामत के साथ उसने क्या किया है उसकी हिस्ट्री हों के वह वक्त फक्त आर्मी के बारे में बड़ा गंद बोलता रहा तो उसकी एक्सेप्टेबिलिटी आर्मी में कतन नहीं थी चुनांचे जनरल बाजवा के जहन में यह था गाबन कि इसी फैमिली में अगर जैसे भी शहबाज शरीफ है उसको प्राइम मिनिस्टर बना दिया जाए इमरान खान को दरह कीक शहबाज शरीफ ने प्राइम मिनिस्टर बनवाया इस वजह से कि जब बन रहा था वो खुद तो अपने भाई की वजह से वो उसने इंकार कर दिया अदालतों से पै दर पे फैसले नवाज शरीफ के खिलाफ आने लगे नवाज शरीफ ना अहल हो गए कहते हैं ना कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है जनरल बाजवा ने भी अपनी उम्मीदें इमरान खान से वाबस्ता कर ली सेनेट इंतखाब में अक्सर अत नून लीग की थी मगर चेयरमैन सेनेट अपोजिशन का बन गया इलेक्शंस करीब आते ही पाकिस्तानी सियासत के राजा गत जिन्हें आम जबान में इलेक्टबज भी कहा जाता है वफादार आं बदल-बदल कर पीटीआई में शामिल होने लगे और फिर इलेक्शन से कुछ महीनों पहले बाजवा डॉक्ट आइन का बजाबला ऐलान हो [संगीत] गया यहां एक दिलचस्प बात बताता हूं मीडिया स्ट्रेटेजी और पब्लिसिटी में राहिल शरीफ का कोई मुकाबिल नहीं लेकिन अजीब बात है कि जनरल राहिल शरीफ खुद बराह रास्त शाज और नादिर ही मीडिया से डायरेक्टली इंटरेक्ट करते नजर आते थे जनरल बाजवा ने यह पॉलिसी भी बदल दी बराह रास्त बे हिजाब मुलाकातों का सिलसिला शुरू कर दिया जनवरी 2018 की ऐसी ही एक मुलाकात में जनरल बाजवा ने चंद सफिया के सामने अपना डॉक्ट्रिन पेश कर दिया मैं भी उस मीटिंग में शामिल था मुझे भी कहा गया कि बाजवा डॉक्ट्रा पर आप भी कुछ लिख ले तो मैंने कहा कि बुनियादी तौर पर तो आप यह कह रहे हैं कि मैं सिविलियन उमू में फौज की बरा रास्त मुदा की हिमायत में कुछ लिखूं कोई डॉक्ट्रिन वगैरह था नहीं कुछ नहीं यह एक पर्सनल प्रमोशन वाली कहानी थी और किसी को सूट करती थी उसने य एक आर्टिकल लिखा जिसमें उन्होंने इस चीज को हाईलाइट किया डॉक्ट्रिन जो है बेस्ड ऑन प्रिंसिपल होता है यहां तो असूल और प्रिंसिपल नजर ही नहीं आए इस डॉक्ट्रा इन में भारत के साथ ताल्लुकात की नॉर्मलाइजेशन 18वीं तरमीम की वापसी मशत की बहाली इंतहा पसंदी के खात्मे और फिफ्थ जनरेशन वर फेयर जैसे मौजू आत पर बात की गई मीटिंग में बैठे बाज सहाफी हैरान और परेशान थे कि यह सब एक आर्मी चीफ बगैर मार्शल लॉ लगाए कैसे कर सकता है मगर बाजवा के पास सिर्फ विजन नहीं इस विजन पर अमल करवाने का पूरा प्लान भी मौजूद था और इस प्लान का नाम था हाइब्रिड निजाम एक ऐसा निजाम जहां एक आर्मी चीफ तमाम मुल्की मामलात में सिविलियन वजीर आजम का बराबर का पार्टनर होगा अब बाजवा को गए जमाना हो गया लेकिन पाकिस्तान में इस वक्त भी वही हाइब्रिड निजाम कायम है जिसकी बुनियाद जनरल बाजवा ने रखी बस जनरल बाजवा से एक गलती हो गई उन्होंने इस हाइब्रिड निजाम के लिए पहले पार्टनर का इंतखाब ठीक नहीं किया मैंने अपने अपने कानों से अपने कानों से पाकिस्तान के सबसे बड़े पावरफुल इंसान की जुमला सुना है वी डोंट वांट इमरान खान एक्सपेरिमेंट टू फेल आप जुमले की ताकत को एक्सपेरिमेंट यू नो व द वर्ड गर करें ना वर्ड वी डोंट वांट इमरान खान एक्सपेरिमेंट टू फेल व्ट डज इट मीन वी डोंट वांट इमरान खान एक्सपेरिमेंट टू फेल इन देयर माइंड इट है फेल्ड या तो व फेल हुआ या तो वो फेल हुआ या वो इतना सक्सेसफुल हो गया कि उनको खतरा लग गया देखिए ना दो दो चीज होती है ना या तो आप फेल हो गए एक तो फेल हो गया दूसरा व उन्होंने देखा कि यार यह आदमी तो इतना सक्सेसफुल हो गया है कि वोह कल को हमें मार देगा देखि एक लेबोरेटरी लेबोरेटरी में बंदा बैठा हुआ एक्सपेरिमेंट कर रहा है उस लेबोरेटरी के अंदर से एक जिन निकल आया उसके अंदर से तो वो कभी नहीं चाहेगा कि वो जिन निकल के उसे मारे तो अब अब मैं इस तारीख का गवा तारीख का तालम होते हुए ये कह रहा हूं या तो उनके दिमाग में ये था कि एक्सपे ये फेल हो गया हमारा एक्चुअली फेल हो गया या एक्सपेरिमेंट में जो बंदा हमने बंदा बनाया वो इतना ताकतवर हो गया कि वो कल हमें हाथ डाल देगा इसलिए उन्होंने कहा कि हम स्टेज [संगीत] करें आजादी का महीना था और तब्दीली आ नहीं रही थी तब्दीली आ चुकी थी हल्फ उठाने के अगले चंद हफ्तों में हमने सिविल मिलिट्री पार्टनरशिप का ऐसा मुजहरा देखा जो पहले कभी नहीं देखा गया था इमरान खान से बाजवा की पहली मुलाकात 27 अगस्त को हुई जब आर्मी चीफ न्यूली इलेक्टेड पीएम को मुबारकबाद देने वजीर आजम हाउस आए चंद ही दिनों बाद 30 अगस्त को इमरान खान जीएच क्यू पहुंच गए जहां उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया और फर्दन फर्दन आर्मी की टॉप ब्रास से मुलाकात भी करवाई गई उसी दिन इमरान खान को जीएच क्यू में सात घंटों की एक ब्रीफिंग भी दी [संगीत] गई 3 सितंबर को जनरल बाजवा एक एक बार फिर पीएम हाउस में इमरान खान के साथ बैठे नजर आए और फिर वह हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था तकरीब थी यौमे दिफाई गेस्ट थे वजीर आजम पाकिस्तान इमरान [संगीत] खान लोग हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है जीएच क्यू का फंक्शन और सिविलियन पीएम मेहमान खुसूसी उनकी हैरानी दुरुस्त भी थी क्योंकि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था इस तकरीब का चीफ गेस्ट और मेन स्पीकर हमेशा आर्मी चीफ हुआ करता था और फिर जो मनाजिर सामने आए उन्होंने देखने वालों को और भी हैरान कर दिया एक हाथ में छड़ी पकड़े बाजवा दूसरे हाथ से इमरान खान को मेन स्टेज का रास्ता दिखाते नजर आ रहे थे फौजियों के झुरमुट हाथ हिला रहे थे आज पहली बार जीएचक्यू की किसी तकरीब में मरकज निगाह सेंटर ऑफ स्टेज मैन ऑफ द मूमेंट एक फोर स्टार जनरल नहीं बल्कि एक सुपरस्टार सियासत दन था अभी लोगों के जनों में डिफेंस डे की खबर ताजा ही थी कि इमरान खान चंद दिनों बाद आप पारा पहुंच गए जहां एक बार फिर उनको वेलकम किया आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा और डीजी आईएसआई नवेद मुख्तार ने सिविल मिलिट्री ताल्लुकात की एक नई तारीख रकम हो रही थी और तारीख के इस चैप्टर का नाम था द सेम पेज बाजवा की नजरों में इमरान खान के लिए मोहब्बत ही मोहब्बत थी और इमरान खान की तकरीरों में बाजवा के लिए तारीफें ही तारीफें ये जनरल बाजवा एक सुलझे हुए आदमी है एक वो उसके अंदर ठहराव है इसलिए वो बर्दाश्त कर रहे हैं ये क्योंकि वो बिलीव करते हैं डेमोक्रेसी के अंदर कराची में मदद की कोरोना के अंदर पूरी तरह मदद की मुल्क प पास पैसा नहीं था 2 साल पाकिस्तान की फौज ने असल में अपने डिफेंस एक्सपेंडिचर पे काट लिया क्योंकि उनको फिक्र थी कि पाकिस्तान के पास पैसा नहीं है पाकिस्तान की फौज और ज बाजवा हमारे साथ खड़े रहे हैं यह तकरीर तो अक्टूबर 2020 की है मगर सच यह है कि इमरान बाजवा लव स्टोरी में चंद महीनों बाद ही दरार पढना शुरू हो चुकी थी और इस दरार की वजह थी एक अजीबो गरीब डेवलपमेंट 16 जून 2019 को खबर आई कि डीजी आईएसआई जनरल आसिम मुनीर का तबादला हो गया है और जनरल फैज पाकिस्तान के नए स्पाई मास्टर होंगे लोग हैरान थे कि डीजी आईएसआई की तकरी तो 3 साल की होती है तो फिर सिर्फ 10 महीनों में ऐसा क्या हुआ कि डीजी आईएसआई को बदल दिया गया बात आई गई हो गई लेकिन अगर आज देखा जाए तो शायद यह इमरान खान की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी लेकिन शायद इमरान खान को भी इस गलती और अपनी हुकूमत के लिए बाजवा की सपोर्ट की जरूरत का एहसास हो चुका था इसीलिए आर्मी चीफ की टर्म मुकम्मल होने से 4 महीने पहले ही वजीर आजम हाउस से 19 अगस्त को आर्मी चीफ की एक्सटेंशन का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया लेकिन नवाज शरीफ को घर भेजने वाले जनरल बाजवा इमरान खान को अच्छी तरह समझ चुके थे व जान चुके थे कि इमरान खान को मैनेज करना इतना आसान नहीं होगा वो जान चुके थे कि सारे अंडे इमरान की बास्केट में डालने से बहुत नुकसान हो सकता है बैकअप प्लान पर काम शुरू हो गया उधर जेल में बैठे-बैठे नवाज शरीफ भी तंग आ चुके थे प्यासा कुएं के पास आ गया अब यहां प्यासा कौन था और कुआं कौन यह आप फैसला कर ले राते बहाल हो गए बात बनने लगी और तबीयत बिगड़ने लगी और फिर 19 नवंबर को नवाज शरीफ लंदन रवाना हो ग बाहर जाने में इन्होंने मुकम्मल तौर पर फैसिलिटेट किया उसमें ख्वाजा आसिफ ने इस पर बिल्कुल वाज तौर पर बयानात दिए हुए हैं जावेद लतीफ ने कहा हुआ है मोहम्मद जुबैर साहब ने अपने इंटरव्यूज में कहाया कि बिल्कुल जनरल बाजवा ने मुकम्मल तौर पर सहूल करकारी की नवाज शरीफ के बाहर जाने में अब तो इस परे मेरा ख्याल है कोई दो आरा नहीं [संगीत] है इमरान खान के देखते ही देखते उनका एनिमी नंबर वन नवाज शरीफ उन्हीं की हुकूमत में तमाम कवानी को अपने पैरों तले रोता हुआ जहाज पर बैठा और उड़ गया इमरान खान को भी अंदाजा हो चुका था कि पसे पर्दा वह किरदार कौन है जिसने नवाज शरीफ को निकाला और फिर इस सिविल मिलिट्री गेम ऑफ थ्रोन में एक तीसरा फरीक कूद पड़ा 26 नवंबर को जनरल बाजवा के दूसरे टम का आगाज होने से चंद दिन पहले इस्लामाबाद में एक ऐसी डेवलपमेंट हुई जिससे पिंडी में जलजला आ गया चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट ने आर्मी चीफ की एक्सटेंशन का नोटिफिकेशन मातल कर दिया तीन दिनों में दो बार वजीर आजम हाउस से नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया लेकिन हर बार कोई ना कोई गलती हो जाती या कर दी जाती लेकिन बाजवा कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं थे रातों रात इस्लामाबाद में पिंडी के सफीर फरोग नसीम को विफा की काबीना से निकालकर अपना वकील बनाया और सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया गया बताया जाता है कि बिलखिरिया जब कहीं जाकर बात बनी तीन दिन केस चला और फिर सुप्रीम कोर्ट ने जनरल बाजवा को छ माह की आरजी तौसी देते हुए हुकूमत को नई कानून साजी का हुक्म दे दिया और फिर नवाज शरीफ को लंदन भेजकर जो अंडे बाजवा ने नून लीग की बास्केट में रखे थे उनके हैच होने का वक्त आ गया जब कानून साजी हुई तो सब के सब चूचू करते जनरल बाजवा की गोद में जा बैठे इसका मतलब है कि एक अंडरस्टैंडिंग थी और मेरे नॉलेज में है कि हमारे इंटेलिजेंस के लोग किस तरह वहां पे कांटेक्ट करके तो नवाज शरीफ को टेकिंग देते रहे सो इन चीजों में आप देख ले कि अपनी जात आ गई कभी मुझे एक्सटेंशन मिल जाए तो ठीक है मैं यह कर दूंगा लिहाजा यहां पर आके जो नवाज शरीफ वाला फैक्टर है वह इस्तेमाल हुआ अपने जाती मफा के लिए चुनांचे इमरान खान की जो सोच थी उसको सैक्रिफाइस किया गया इमरान खान के हाथ से नवाज शरीफ तो निकल ही चुके थे अब बाजवा भी स्लिप होते जा रहे थे इमरान खान पब्लिकली अब भी बाजवा को मुकम्मल सपोर्ट देते नजर आ रहे थे मगर फिर सेनेट इंतखाब का वक्त आ गया और खुफिया रायशुमारी में हफीज शेख की शिकस्त के बाद इमरान बाजवा कोल्ड वॉर हॉट हो गई वी आर वर्किंग फॉर पीस एंड स्टेबिलिटी इन अफ डोंट वरी एवरीथिंग ड बी ओके उधर काबुल में जनरल फैज सबको बता रहे थे कि डोंट वरी एवरीथिंग विल बी ओके बट एवरीथिंग वाज नॉट ओके बिटवीन पिंडी एंड इस्लामाबाद इसी महीने जनरल बाजवा ने एक इंतहा बोल्ड मूव की इमरान खान से करीब समझे जाने वाले जनरल फैज से डीजीआईपीआर डीजी अपनी तीन साला टर्म मुकम्मल किए बगैर तब्दील कर दिया गया बजहर इस मूव का मकसद तो जनरल फैज के आर्मी चीफ बनने की रिक्वायरमेंट्स पूरा करना था जो फैज हमीद को हटाया गया वहां से वह फैज हमीद के अपने कहने प हटाए ग फैज हमीद ने फैज हमीद यह बताता है कि मैंने जनरल बाजवा को रिक्वेस्ट किया कि मैंने अभी तक कोर कमांड नहीं की हुई क्योंकि चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनने के के लिए कोर की कमांड करना जरूरी है तो वो उसने कहा कि जी मुझे यहां से निकाले ताकि मैं कुछ वक्त कोर कमांड कर लूं और फिर जब आपकी रिटायरमेंट पे ये किस्सा आए सामने तो मैं कम से कम क्वालीफाई नजर आऊं मुझे बनाता है कोई या नहीं बनाता वो तो बाद की बात है लेकिन इमरान खान बगैर मुशा वत आप पारा में इस अहम तरीन तब्दीली का असल मकसद अच्छी तरह समझ चुके थे उन्होंने मजा हमत भी की और तारीख में पहली बार डीजीआईएस के इंटरव्यूज भी किए गए लेकिन इत्तेहाद यों की बेशाख यों पर खड़ी पीटीआई हुकूमत के पास बाजवा के नामजद जीडीजी को नॉमिनेट करने के सिवा कोई चारा नहीं था इस तब्दीली के साथ ही पीडीएम के गुब्बारे में फिर से हवा भरने लगी जनवरी 2022 में लॉन्ग मार्च का ऐलान हुआ अगर मैं गवर्नमेंट से बाहर निकल गया मैं आपके लिए ज्यादा खतरनाक हूं अभी तक तो मैं चुप करके य ऑफिस में बैठा होता हूं और तमाशे देख रहा होता हूं मैं अगर सड़कों पर निकला आया ना तो आपके लिए छुपने की जगह नहीं होगी [संगीत] इमरान खान ने खतरनाक होने की धमकी भी लगाई मगर फैसला हो चुका था इमरान को तो जाना होगा मार्च 2022 में बिलावल जरदारी आसिफ जरदारी शहबाज शरीफ और कुछ और लोग थे उनके साथ एक डिनर मीटिंग थी इनकी और उस डिनर मीटिंग में फैसला हुआ कि इमरान खान के खिलाफ अदम एतमाद का वोट लाया जाएगा 2022 को अदम एतमाद का वोट की तहरीक पेश की गई हालांकि उस वक्त मुल्क में कोई ना तो इक्त सादी इमरजेंसी थी ना कोई जंग की ससी सूरते हाल थी जिसके बायस अदम एतमाद का वोट लाया जाता तो भरपूर तरीके से इन्होंने उसमें सहूल करकारी की आप जितनी मर्जी वो कसमें उठा ले जो पार्लियामेंट में जब वोट हुआ यूनानिमिटी [संगीत] [संगीत] कि कुछ वक्त में इमरान खान को फार कर दिया जाएगा आपको याद होगा आपने खवाजा असफ का इंटरव्यू सुने होंगे मरियम के राना सनाला बेशुमार लोगों के हां वो बार-बार कहते हैं कि नो कॉन्फिडेंस नो ऑप्शन क्योंकि अगर नो कॉन्फिडेंस लाना हो तो कामयाबी सिर्फ उस वक्त होगी जब हमें फौज सपोर्ट करेगी उसके बगैर नहीं हो सकता सो रना तो यह ऑप्शन मौजूद थी पहले दिन से वह करते लेकिन किसी ने इसको एक्ससाइज नहीं किया इसका मतलब यह है कि यह नो कॉन्फिडेंस का आईडिया यहां से चला जब बाजवा साहब को एक्सटेंशन पार्लियामेंट के थ्रू मिली लेकिन मजे की बात यह है कि अपोजिशन से पींगे बढ़ाते बाजवा इमरान खान को अब भी अपनी हिमायत का यकीन दिला रहे थे मैं उस कमरे में मौजूद था जब यह मीटिंग के लिए आए प्राइम मिनिस्टर के साथ और बड़ा उन्होंने ऐसे गर्म जोशी से हाथ पलाया फिक्र ना करें कुछ भी नहीं हो रहा ये वो पाच दिन पहले तो मैंने खा साहब से पूछा कभी ऐसे हाद उन्होंने आपसे पहले ऐसे मिलाया उने कहा नहीं ऐसे कभी नहीं मिलाया मैं कहा टेल्स यू अ लॉट लेकिन जब इमरान खान ने तोपों का रुख अमरीका की तरफ मोड़ा तो बाजवा खुलकर अमरका की हिमायत में सामने आ गए लीर ल ी ऑफ एक्सलेंट एंड स्ट्रेटेजिक रिलेशनशिप वि नाइड स्टेट सडली द रश इनवेजन अगेंस्ट यूक्रेन इज वेरी अनफॉर्च्युनाते [संगीत] अब ग्लव्स उतर चुके थे पहले इलेक्टबज और फिर एक-एक करके इत्तेहाद भी इमरान खान का साथ छोड़ गए और फिर एक तारीखी अंदाज में शुरू होने वाली पार्टनरशिप एक तारीखी अंदाज में खत्म हो गई पाकिस्तान में पहली बार किसी वजीर आजम को तहरीक अदम एतमाद के जरिए घर भेज दिया गया इमरान घर तो चले गए लेकिन फिर आगाज हुआ इमरान बाजवा दुश्मनी के एक नए दौर का जिसकी मिसाल पहले नहीं मिलती अमेरिकी साजिश का हिस्सा बनके एक 22 करोड़ पाकिस्तानियों की मुंत हुकूमत को साजिश के तहत हटाया और इनके साथ शामिल थे यहां के मीर जाफर और मीर सादिक सेम पेज की हांडी चौराहे पर फोड़ी जा रही थी अब इसे इमरान खान का भोल पन कहे ना तजब कारी या मफा परस्ती वो शायद जनरल बाजवा पर जरूरत से ज्यादा तकिया भी करने लगे थे वो हमें सपोर्ट करते थे बल्कि मैं तो यह कहता हूं वो बाज जगह ओवर बोर्ड आए जिसकी जो शायद नहीं होना चाहिए था क्योंकि वो उनका काम नहीं था मगर उन्होंने किया और इमरान खान ने उसको एक्सेप्ट किया कोई आदमी अगर यह कहता है कि इमरान खान की गवर्नमेंट कमस कम जब तक मैं वहां था उसका कोई इख्तिलाफ बाजवा साहब के साथ था तो वो सही नहीं कहता एटलीस्ट मैं उस टाइम तक कहता हूं मैं मिडिल ईस्टन मिडिल ईस्ट के सरब के साथ बैठा हुआ शाह महमूद मेरे पास बैठा हुआ था वो मिडिल ईस्ट का सरफरा मुझे कहता है क्या तुम्हें पता है कि बाजवा तुम्हारे खिलाफ हो गया एक साल पहले मैं हैरान हम तो एक पेज पे हैं उसने कहा नहीं वो अब तुम्हारे साथ नहीं है इमरान खान भी इस लिहाज से बड़े सादा लॉ साबित हुए कि जो उनको कहा जाता था वो आके कह देते थे और कानों के जरा कच्चे हैं पेट के हल्के हैं उसमें बहुत सारी बातें जो होती है बतौर वजीर आजम आपको अपने पास ही रखनी पड़ती है वह कह देते थे और जो कुछ उन्हें कहा गया वह पब्लिक में लोगों के साथ आप शेयर कर लेते थे सब अपने अपने अंदाजे लगा रहे थे कि यह पेज फटा कैसे मैं वाकत प नहीं जाता मैं लॉजिक प जाता हूं कि क्या बाजवा साहब चाहते थे कि वो गवर्नमेंट गिर जाए या बाजवा साहब को किसी ने मजबूर किया कि वह इस इस पोजीशन पर लेकर आए बाजवा साहब छोड़ दे बाजवा साहब रंग वर्ड एस्टेब्लिशमेंट की ख्वाहिश थी कि इमरान खान जाए नहीं रहे या यह किसी ने बाजवा साहब को उस जगह पर कडर पर खड़ा कर दिया लाकर के आपने करना है मैं पहली बात से एग्री नहीं करता कि बाजवा साहब की या स ख्वाहिश थी कि इमरान खान जाए मैं आप लोग नहीं मानते लोग नहीं मानते यह बैरून ताकतों ने मजबूर किया फौज को एस्टेब्लिशमेंट को कि इमरान खान को पाकिस्तान का वजीर आजम नहीं रहना चाहिए 14 अगस्त 2021 को काबुल में तालिबान आए तो इमरान खान का जो बयान था वह शायद फौज को भी कबूल नहीं था और शायद वो बात व वो बयान शायद अमेरिका को भी कबूल नहीं था जो अभी अफगानिस्तान में गुलामी की जंजीरें तो तोड़ दी उन्होंने और तारीखे इंसानियत और तारीख इस्लाम और तारीख मुल्कों का रहा है हालत वो यह रही है के हालात और आपके असब आपके जो साथ उठने बैठने वाले हैं वह ऐसी पोजीशन में आपको लाकर खड़ा कर देते हैं कि आपके पास जगह चलने की नहीं होती मेरा जाती ख्याल अभी भी यह है अभी भी आज भी यह है कि आखरी वक्त में अगर इमरान खान साहब बाजवा साहब को जाती दर मिलते य मसला हल हो सकता लेकिन शायद इस बात का जवाब जनरल बाजवा ने सहाफ को बहुत साल पहले ही दे दिया था और मजे की बात थी कि जब हम उनसे मार्च 2018 में मुलाकात हुई जीएच क्यू के ऑडिटोरियम में तो उन्होंने शुरू में यह कहा कि मैंने आपको इसलिए जहमत दी है कि लोग कहते हैं कि मैं किसी का हूं किसी ने मुझे यहां पर पहुंचाया लेकिन मैं आपको बता दूं कि इस कुर्सी में ऐसे उन्होंने कहा कि इस कुर्सी में जो कोई आ जाता है वो फिर किसी का नहीं रहता सिवाय पाक पाकिस्तान के और फौज के विजारत खजा पर हमेशा से पाक फौज का बड़ा इन्फ्लुएंस रहा है इसलिए दुनिया भर में मौजूद पाकिस्तानी सफीर की बड़ी तादाद भी रिटायर्ड फौजी अफसरा पर मुश्त मिल है लेकिन फिर भी जनरल बाजवा सिफारिश लॉ में भी नहीं मिलती चले नजर डालते हैं एंबेसडर जनरल बाजवा की बरूनी दौरे किए वो छ सालों में छह बार सऊदी अरब पांच बार अफगानिस्तान चार बार चीन और दो बार अमेरिका भी गए लेकिन खास बात यह है कि बतौर आर्मी चीफ उन्होंने आखिरी सलाम भी अमेरिका को ही पेश किया लेकिन भाजपा सिर्फ घूमते ही नहीं रहे रावलपिंडी में बैठे-बैठे भी उन्होंने फॉरेन डिप्लोमेट से 300 के करीब मुलाकातें की जानते हैं 300 में सबसे ज्यादा मीटिंग्स किस मुल्क के नुमाइंदे से थी गेस करें एक हिंट देता हूं वो पड़ोसी मुल्क नहीं है जी हां उनकी 300 मीटिंग्स में से 50 के करीब मुलाकातें अमेरिकी डिप्लोमेट्स के साथ थी अब अमेरिकियों से इतनी सारी मुलाकातों का कोई तो असर आना था चल अब आपको एक और चार्ट दिखाता हूं यह डूबता ग्राफ पाकिस्तानी मशत का नहीं बल्कि google2 सर्चस का हिस्टोरिक ट्रेंड है वो जो पहाड़ नजर आ रहा है वो नवंबर 2016 है राहिल शरीफ का बतौर आर्मी चीफ आखिरी महीना और उसके बाद से सीपैक का ग्राफ सिर्फ नीचे ही की तरफ जाता रहा हमारा हमारा काबा जो है वह ज्यादातर अमेरिका से मिलता है मगरिब से मिलता है चीन से नहीं लिहाजा हमें हम अमेरिका को यह बताते हैं कि हम आपके ज्यादा करीब हैं नजरिया तौर पर तो उसकी जो अमली मेनिफेस्टेशन थी अमली इजहार उसका यही था कि उन्होंने आहिस्ता आहिस्ता पाकिस्तान को चीन से अमेरिका के की तरफ हम मैं उसको कह दूं कि एक पाकिस्तान का जो जहाज है उसका रख उन्होंने चीन से अमेरिका की तरफ मोड़ दिया कोई तवाज़ुन नहीं रखा जिसकी वजह से चीनी कयादत और पाकिस्तान की फौज और सियासत दानों के दरमियान कुछ अरसे के लिए काफी बद घुमानी भी पैदा हुई और उसमें काफी वक्त लगा उसको दुरुस्त करने में सीपैक रोल बैक तो नहीं हुआ लेकिन रोल फॉरवर्ड भी नहीं हो सका करियर का बड़ा हिस्सा कश्मीर से जुड़ी न कोर में गुजारने की वजह से जनरल बाजवा को कश्मीर अफेयर पर एक अथॉरिटी समझा जाता था लेकिन अजीब इत्तेफाक है कि जनरल बाजवा ही के दौर में कश्मीर हमेशा के लिए पाकिस्तान के हाथ से निकल गया भारत के साथ भी सोच उनकी मैं कहूंगा इस लिहाज से प्रैक्टिकल थी जनरल बाजवा की कि उन्होंने यह कहा कि मेरे अपने ख्याल में हमें भारत के साथ तालुकात अच्छे करने चाहिए कि जब भी बाजवा साहब से मीटिंग होती है तो वो यह कश्मीर के मामले में उनकी सोच जो है वह बहुत ही मनफी टाइप है इंडिया के साथ हमने बहुत लंबे वक्त के लिए वक्त तक य से कहानिया कर ली अब हमें वक्ति तौर पर व जो पिछला पास्ट है उसको अ हमें भूल जाना चाहिए 10 15 20 साल के लिए हम चुप रहे उस परे और एक अच्छा तालुक बना के तो कारोबार वगैरह करना चाहिए साथ में उनका यह भी कहना था कि हम कोई फलस्तीन के मामे तो नहीं लगते हम इस लियों के साथ तालुकात क्यों कायम नहीं कर सकते और उनको इस बात का बड़ा गिला था कि जनाब उन्होंने मोदी को लाने का इंतजाम किया और यहां पर इमरान खान गवर्नमेंट ने उसको इंकार कर दिया या रिजेक्ट कर दिया लेकिन मसला जहां शुरू होता है वह है दोगले पन का आया पब्लिक में फिर आप जब जाते हैं उस सोच पर कायम रहते हैं कि नहीं इमरान खान को जो एडवाइस मिली जो मशवरे मिले हमारी एस्टेब्लिशमेंट सेय कि आप चढ़ाई कर दें ये जो है अ खाना खुद को प्रेजेंट कर रहे थे एक फक्ता के तौर पर अमन के अलम बदार के तौर पर बाजवा पाच घंटे तकरीबन बात करते रहे और हम सुनते रहे लेकिन उसमें जो तीन बातें हमें नजर आई वह पहली बात यह थी कि मिया नवाज शरीफ करप्ट नहीं है दूसरी चीज उन्होंने कही के चाइना हमारे मसाइल हल नहीं कर सका अब हमें अमरका की तरफ रुजू करना चाहिए गैर मुल्की सीर से भी जब मिलते थे तो ने कहते कि मैं तो बड़ा अमन पसंद हूं हमारा वजीर आजम जो है बड़ा सख्त गीर है और यह वह सोच थी जिसका हां अमेरिका भी है जनरल अयूब से लेकर जनरल बाजवा तक तमाम आर्मी चीफ का अमेरिका बहादुर से बड़ा करीबी ताल्लुक रहा है और शायद बाजवा इमरान ब्रेकअप की बड़ी वजह भी इमरान की अमेरिका के खिलाफ मुसलसल बयानबाजी थी एब्सलूट नॉ देर नो वेनी ऑ पाकिस्तानी ट अफगानिस्तान एसल न और फिर रूस यूक्रेन जंग में न्यूट्रल मौक ने तो अमेरका के सब का पैमाना लबरे ही कर दिया व कटेड पाकिस्तान आ पो गार्डिंग र फदर न्य इजन ऑ यन हमारी तव यह थी कि जनरल बाजवा बतौर आर्मी चीफ वजीर आजम की तकर के बाद खासतौर परक यूक्रेन में हालात खराब हो रहे थे वह आएंगे नहीं लेकिन जनाब व आए उन्होंने तकरीर की तकरीर में उन्होंने बाकायदा रूस की मजम्मत की उन्होंने चीन के हवाले से बद जबानी की साथ में उन्होंने यह भी कहा कि रूस की जायत की वजह से यूक्रेन में हजारों अफराद मर चुके हैं 100 200 लोग मारे गए होंगे इन्होंने अपने बाकायदा लिखे हुए बयान में कहा कि हजारों लोग रूसी जरीयत की वजह से मर चुके हैं ऑफ पीपल हैव बीन किल्ड मिलियंस बेड रिफ्यूजी एंड हाफ ऑफ यूक्रेन डिस्ट्रॉयड यानी आप देखिए किस तरह खुद को अमेरिका के करीब करने के लिए अमेरिक पॉलिसी के साथ अलाइन करने के लिए इन्होंने वहां बैठ के भी झूठ बोला उससे फिर बाहर से हमें लोगों ने फोन किए कि पाकिस्तान में क्या हो रहा है वजीर आजम कुछ कह रहा है और फौज का सररा कुछ कह रहा है यूं लगता था कि हुकूमत अपनी एक फॉरेन पॉलिसी लेकर चल रही है और बाजवा साहब अपनी पैरेलल फॉरेन पॉलिसी चला रहे हैं मसलन जो बैकडोर डिप्लोमेसी वो हुकूमत पाकिस्तान ने तो स्पनर नहीं की हुई थी इनका दुबई में मिलना मैं मेरे पास सबूत नहीं लेकिन लोग कहते हैं कि अजीत दोल से ये मीटिंग करते रहे क्यों अगर हुकूमत की पॉलिसी नहीं है तो आप कौन है करने वाले इस बात में कोई शक नहीं कि बाजवा के मिडिल ईस्टर्न लीडर्स के साथ बहुत अच्छे ताल्लुकात थे और इन ताल्लुकात की वजह से ही यूएई और सऊदिया के लीडर ना सिर्फ पाकिस्तान आए बल्कि इंतिहा मुश्किल वक्त में फाइनेंशियल एड पैकेज देकर पाकिस्तान को डिफॉल्ट होने से बचाया इस करीबी ताल्लुक का राफ एमबीएस और शेख नाहि यान ने 2022 में जनरल बाजवा को अपने मुल्कों के सबसे बड़े मेडल्स देकर भी किया आपने वतन अजीज की आबरू को ललकार वाली हर आवाज का ताक किया है तारीख जब आपका जिक्र करेगी तो आपका नाम दुनिया की मुश्किल तरीन जंग लड़ने वाले सिपा सलार में लिखा जाएगा यह था जीएच क्यू में होने वाली अलविदाई त रीब में जनरल बाजवा का तारुफ लेकिन हकीकत शायद इससे कुछ मुख्तलिफ है इनको यह याद रखना चाहिए कि तारीख आपको आपकी कसमों की बुनियाद पर नहीं बल्कि उन वाकत की बुनियाद पर उन आमाल की बुनियाद पर जज करेगी जो आपके दौर में आपकी नाक के नीचे हुए हैं लोग सोच रहे थे कि 6 लाख फौज की 6 साल तक कमान करने के बाद जनरल बाजवा शायद थक चुके होंगे लेकिन नहीं उन्होंने तो जाते-जाते एक और महास खोल दिया मजरीन फौज का बुनियादी काम मुल्की जोग्राफिया सर्दों की हिफाजत है लेकिन पाक फौज हमेशा अपनी तादाद से बढ़कर कौम की खिदमत में मसरूफ रहती है रिक्को डिक का मामला हो या कार के का जुर्माना फाट के नुकसान हो या मुल्क को वाइटलिस्ट से मिलाना या फाटा के इंजमाम करना बॉर्डर पर बाढ लगाना कतर से सस्ती गैस मुहैया कराना या दोस्त मुल्कों से कर्ज का इजरा कोविड का मुकाबला हो या टडी दल का खात्मा सैलाब के दौरान इमदादी कारवाई हो फौज ने हमेशा अपने मेंडेट से बढ़कर कौम की खिदमत की है और इंशाल्लाह करती रहेगी इसलिए पिछले साल फरवरी में फौज ने बड़ी सोच और विचार के बाद फैसला किया कि आइंदा फौज किसी सियासी मामले में मुदा फलत नहीं करेगी नहीं करगी अब इसे बाजवा की सादगी कहिए या नेक नियती उन्होंने जीएच क्यू में सबके सामने खड़े होकर इख्तियार से तजावल और सियासत में मदाखू एतरा कर लिया और शायद सबसे बड़ा मसला भी यही है कि हर आर्मी चीफ यही सोचकर अपने इख्तियार से तजावल करता है कि कौमी मफा को उससे बढ़कर कोई नहीं समझता लेकिन सच यह है कि 77 सालों में बराह रास्त या इनडायरेक्टली पाकिस्तान के तमाम मामलात में सबसे बड़ा किरदार आर्मी चीफ का ही रहा है और आज मुल्क के हालात देखकर मीर का वही शेर याद आता है मीर क्या सादे हैं बीमार हुए जिसके सबब उसी अत्तार के लड़के से दवा लेते हैं मैं काफी सालों से इस बात पर गौर कर रहा था कि दुनिया में सबसे ज्यादा इंसानी हकूक की पामारी यानी कि ह्यूमन राइट्स की वायलेशन हिंदुस्तानी फौज करती है मगर इनके आवाम कमो बेश ही इनको तन कीद का निशाना बनाते हैं इसके बरक्स हमारी फौज जो दिन रात कौम की खिदमत में मसरूफ रहती है गाए बगाए तन कीद का निशाना बनती है हमारी फौज बहुत बहादुरी से लड़ी और बेमिसाल कुर्बानियां पेश की जिसका तरा खुद इंडियन आर्मी चीफ फील्ड मार्शल मानिक शाह ने भी किया है इन बहादर गाजियो और शहीदों की कुर्बानियों का आज तक कौम ने तराज नहीं किया जो कि एक बहुत बड़ी ज्यादती [संगीत] है वैसे हो सकता है कि जनरल बाजवा का यह शिकवा भी दुरुस्त हो कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ तो अच्छे थे बस उन्हें कौम ठीक नहीं मिली खैर फौज के हर ऑफिसर की तरह जनरल बाजवा ने भी एक हल्फ उठाया था वो हल्फ जिसमें उन्होंने वादा किया था किसी किस्म की सियासी सरगर्मी में हिस्सा नहीं लेंगे लेकिन शायद जनरल के लेवल तक पहुंचते पहुंचते इतना वक्त गुजर चुका होता है कि यह हलफ ठीक से याद नहीं रहता तो मैं भी अन करीब गोना में चला जाऊंगा लेकिन मेरा रूहानी राबता हमेशा फौज से कायम रहेगा रुखसत होते हुए जनरल बाजवा ने गुमनामी में जाने की ख्वाहिश का इजहार तो किया लेकिन काश उन्होंने अपना छ साला दौर भी ऐसे ही गुजारा होता काश उन्हें भुलाना इतना आसान होता काश उन्हें जेब में कुरान रखकर नहीं घूमना पड़ता उन्होंने कहा कि भाई मैं कुरान जेब से निकाल लिया जो वो कह रहे थे उन्होंने कुरान को गवाह बना लिया कि भाई मैं हमने कोई साजिश नहीं की इमरान खान के खिलाफ और कोई अमेरिका इसके अंदर इवॉल्व नहीं था [संगीत] c