के दुख का अधिकार

Jul 11, 2024

के दुख का अधिकार

समाज में आर्थिक महत्व

  • हमारे समाज में आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति को महत्व दिया जाता है।
  • गरीब लोगों की अवहेलना की जाती है।
  • हमें उनके दुख-दर्द और तकलीफों से कोई सरोकार नहीं होता।

समाज की संकीर्ण मानसिकता

  • यशपाल द्वारा रचित कहानी इस मानसिकता को उजागर करती है।
  • मनुष्यों की पोशाक से उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बांटा जाता है।
  • पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और दर्जा तय करती है।

पोशाक की अड़चन

  • परिस्थितियों में पोशाक अड़चन बन जाती है।
  • जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को गिरने नहीं देतीं, वैसे ही पोशाक हमें गिरने से रोकती है।

बाजार की घटना

  • फुटपाथ पर खरबूजे बिक रहे थे।
  • एक अधेड़ उम्र की औरत खरबूजों के पास बैठी रो रही थी।
  • लोग उसके रोने का कारण जानने के उपाय ढूंढ़ते थे।
  • लेखक की पोशाक ही उसे औरत के पास बैठने से रोक रही थी।

पड़ोसियों की बातें

  • एक आदमी का कहना था कि जवान बेटे की मौत पर सूतक होता है।
  • लालाजी ने कहा कि किसी के धर्म ईमान का ख्याल करना चाहिए।
  • पड़ोस की दुकानों से पता चला कि औरत का जवान लड़का मर गया था।

औरत की दुर्दशा

  • बेटे की मौत सांप के काटने से हुई थी।
  • झाड़-फूंक, पूजा-पाठ में सारा पैसा खर्च हो गया।
  • घर में खाने को कुछ नहीं बचा था।
  • बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे।
  • औरत ने बाजार में खरबूजे बेचने का साहस किया।
  • परन्तु वह सिर पर चादर लपेटे रो रही थी।

सामाजिक तुलना

  • लेखक ने पुत्र के शोक में डूबी संभ्रांत महिला की बात सोची।
  • संभ्रांत महिला पुत्र वियोग से मूर्छित हो जाती थी।
  • लोग उसके दुख में सहभागी थे।

निष्कर्ष

  • गरीबों के दुख को समाज में महत्व नहीं दिया जाता।
  • दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।