Coconote
AI notes
AI voice & video notes
Export note
Try for free
के दुख का अधिकार
Jul 11, 2024
🤓
Take quiz
के दुख का अधिकार
समाज में आर्थिक महत्व
हमारे समाज में आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति को महत्व दिया जाता है।
गरीब लोगों की अवहेलना की जाती है।
हमें उनके दुख-दर्द और तकलीफों से कोई सरोकार नहीं होता।
समाज की संकीर्ण मानसिकता
यशपाल द्वारा रचित कहानी इस मानसिकता को उजागर करती है।
मनुष्यों की पोशाक से उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बांटा जाता है।
पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और दर्जा तय करती है।
पोशाक की अड़चन
परिस्थितियों में पोशाक अड़चन बन जाती है।
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को गिरने नहीं देतीं, वैसे ही पोशाक हमें गिरने से रोकती है।
बाजार की घटना
फुटपाथ पर खरबूजे बिक रहे थे।
एक अधेड़ उम्र की औरत खरबूजों के पास बैठी रो रही थी।
लोग उसके रोने का कारण जानने के उपाय ढूंढ़ते थे।
लेखक की पोशाक ही उसे औरत के पास बैठने से रोक रही थी।
पड़ोसियों की बातें
एक आदमी का कहना था कि जवान बेटे की मौत पर सूतक होता है।
लालाजी ने कहा कि किसी के धर्म ईमान का ख्याल करना चाहिए।
पड़ोस की दुकानों से पता चला कि औरत का जवान लड़का मर गया था।
औरत की दुर्दशा
बेटे की मौत सांप के काटने से हुई थी।
झाड़-फूंक, पूजा-पाठ में सारा पैसा खर्च हो गया।
घर में खाने को कुछ नहीं बचा था।
बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे।
औरत ने बाजार में खरबूजे बेचने का साहस किया।
परन्तु वह सिर पर चादर लपेटे रो रही थी।
सामाजिक तुलना
लेखक ने पुत्र के शोक में डूबी संभ्रांत महिला की बात सोची।
संभ्रांत महिला पुत्र वियोग से मूर्छित हो जाती थी।
लोग उसके दुख में सहभागी थे।
निष्कर्ष
गरीबों के दुख को समाज में महत्व नहीं दिया जाता।
दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
📄
Full transcript