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भगवान विष्णु का अंतिम अवतार कल्की

जब भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्की का जन्म संभाला में होने ही वाला था तो उससे कुछ दिन पहले ही व्यास और परशुराम जी ने सारे चिरंजीविस भाला में आने का निमंत्रण और उनके जन्म की खबर भेज चुके थे अंजनी पुत्र हनुमान जी इस पृथ्वी पर सशर लगभग 9 लाख वर्षों से मौजूद है माता सीता और राम जी के सेवा के कारण उनको उनसे कलयुग के अंत तक धर्म की रक्षा करने के लिए अमरता का वरदान और एक कर्तव्य कार्य मिला हुआ है 4 लाख वर्षों से केसरी नंदन हनुमान अवतार कल्की के लिए पृथ्वी पर घूमते हुए समाधि में रहकर समय गुजा रहे हैं लेकिन अब 13 28000 वर्ष इंतजार करने के बाद उनके आखिरी कार्य का संदेश उनके पास आ रहा है व्यास जी और परशुराम का संदेश हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तरी दिशा में मौजूद गंध माधन नामक पर्वत इलाके में बैठे हनुमान के पास पहुंचता है उस जादुई गोले के द्वारा भेजे गए संदेश को हनुमान देखकर संभाला पहुंचने के लिए तैयार हो जाते फिर हनुमान एक उद्देश्य से भरे मन के साथ उस जादुई गोले के रास्ते उसके पीछे पीछे वहां से निकल जाते हैं दूसरा संदेश हम देखते हैं लंका की ओर जाते हुए यहां हम मिलते हैं विभीषण जी से जो लंकापति रावण के भाई है और उन आठ चिरंजीविस काल के अंत में अयोध्या छोड़ने वाले थे तो उन्होंने विष्णु का असली रूप धारण किया और विभीषण को पृथ्वी पर पर रहने और लोगों की सेवा करने और उन्हें सत्य और धर्म के मार्ग पर मार्गदर्शन करने का आदेश दिया इसलिए विभीषण जी भी अनंत काल तक अमर है और कल्की के लिए एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे गोला सातवें आयाम में लंका महल में गहरे ध्यान में बैठे विभीषण के पास पहुंचता है उसकी चमक के वजह से उनको महसूस होते ही आंखें खोलते हैं और उस गोले के संदेश को सुनते हैं जिसे समझकर विभीषण यात्रा के लिए तैयार हो जाते हैं तीसरे संदेश के द्वारा हम मिलते हैं कौरवों और पांडवों के गुरु और अश्वथामा के मामा गुरु कृपाचार्य जी से पुराणों के अनुसार कृपाचार्य महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़ते हुए भी अंतिम तक दुर्योधन को समझाते रहे कि वे पांडवों से संधि कर ले इस स्थिरता के कारण उन्हें श्री कृष्ण के द्वारा चिरंजीवी होने का वरदान मिला जादुई गोला ठी कृपाचार्य जी के सामने जाकर चमकने लगता है कृपाचार्य उसकी जांच करते ही उनको उसे संदेश मिलता है उसके बाद तुरंत वहां से गोले के पीछे-पीछे संभाला की तरफ रवाना हो जाते हैं चौथे संदेश के द्वारा हम मिलते हैं राक्षस राजा महाबली से पौराणिक कथाओं के अनुसार महाबली विष्णु भक्त प्रहलाद के वंशज है और उनको अमरता का वरदान विष्णु के अवतार वामन मूर्ति के द्वारा भक्ति के प्रति मिला था उस समय से आज भी राजा महाबली पाताल लोक में वहां के राजा के रूप में मौजूद है अब हम देखते संदेश गोला पाताल लोक में सीधा राजा के समक्ष जाकर सबके सामने चमकने लगता है गोले को जांच करने पर उसे दिव्य आवाज के रूप में परशुराम जी के परिचय बताने के बाद उनको संभाला आने का आदेश मिलता है पांचवा गोला पहुंचता है चिरंजीवी महर्षि मार्कंडेय जी के पास महर्षि मार्कंडेय को 16 वर्ष में अपने मृत्यु के अंतिम समय में शिव जी के द्वारा उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सदा सर्वदा के लिए काल मुक्त होने का वरदान मिला था जादुई गोला उनके पवित्र स्थान उत्तराखंड के घाटी में जहां महर्षि वर्षों से ध्यान में बैठे हैं उनके पास पहुंचता है गोला इतनी तेज प्रकाश करने लगता है जिसकी चमक से ऋषि ध्यान से उठ जाते हैं मार्कंडेय गोले के आगमन को समझकर बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और उसके साथ यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं आखिरी संदेश जाता है अंधेरे जंगल की गहराई में जहां महाभारत का समय आज भी मौजूद है यह योद्धा अमर वरदान से नहीं बल्कि अमर है श्राप से मिलिए द्रोणाचार्य पुत्र अश्वत्थामा जी से महाभारत के युद्ध के दौरान जब इनके पिता आचार्य द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया तो इन्होंने गुस्से में उत्तरा की कोख में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र चलाकर पांडवों का अंश खत्म करने की कोशिश की यह देख भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम कलयुग के अंत तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और उनके सिर की मणि भी उनसे छीन ली गई तब से लेकर आज तक अश्वत्थामा अपने श्राप का बोझ चोटिल अवस्था में ही धो रहे हैं अब जादुई गोला अश्वत्थामा के गुफा में उनके सामने पहुंच जाता है जिससे अश्वत्थामा जी चौक करर अपनी आंखें खोलकर उसे जांच है गोले में से व्यास जी की आवाज आती है कि संभाला की पवित्र भूमि में आपकी उपस्थिति की जरूरत है और जल्दी आपकी मुक्ति निकट है हमारा भेजा हुआ संदेश आपको हमारा मार्गदर्शन करेगा जल्दी यहां पहुंच जाए संदेश सुनते ही अश्वत्थामा क्रोध में आ जाते हैं और पवित्र गोले से परशुराम और व्यास जी के सामने प्रकट होते हैं अश्वत्थामा दर्द भरी आवाज में कहते हैं परशुराम व्यास अब आप मेरी सहायता चाहते हैं वह भी उसे नारायण के कहने पर जिसने मुझे दर्द में भटकने का श्राप दिया उसके लिए मैं सहायता करो इतने समय से आप दोनों कहां थे जब मैं हजारों वर्षों से दर्द में भटक रहा हूं एक बार भी मेरी सहायता करने का नहीं सोचा तभी परशुराम जी कहते हैं अश्वत्थामा आपका दर्द हम जानते हैं लेकिन यह अतीत के शिकायत का समय नहीं है एक बड़ा उद्देश्य हम सभी का इंतजार कर रहा है आपकी पीड़ा का अर्थ मिल सकता है आइए हम सब मिलकर अतीत के घाव को ठीक करें और हां आपकी महत्त्वपूर्ण वस्तु वापस धारण कर लें इतना सुनते ही अश्वत्थामा जी का हृदय के क्रोध और नेति के उस पुकार की भावना के बीच अटक जाता है और उनके आंखें आंसुओं से भर आते हैं और सोचने लगते हैं मैं संभाला जाऊंगा पर क्षमा मांगने के लिए नहीं बल्कि यह देखने के लिए संभाला जाऊंगा कि क्या सच में मेरी पीड़ा का कोई बड़ा उद्देश्य है लेकिन मैं इस श्राप को आसानी से नहीं भूलूंगा सबको देखने के बाद परशुराम कहते हैं अश्वत्थामा कहां है इधर संभाला में कल्की बिल्कुल कृष्ण की ही तरह कम उम्र से ही अपने दिव्य लक्षण वहां के लोगों के सामने प्रदर्शित करके सबके लिए प्रिय बन रहे हैं जैसे-जैसे कल्की बड़े होते जा रहे हैं उनके माता-पिता उनकी असाधारण क्षमताओं को समझते जा रहे हैं अब कल्की के माता-पिता उसके भाग्य के महत्व को जानते हुए विष्णु जी के आज्ञा के अनुसार उसे शिक्षा प्राप्त करने और युद्ध के तरीके सीखने के लिए वहां के महान ऋषि गुरु के गुरुकुल में भेजने का फैसला करते हैं अगले सुबह भरे हुए मन से पर यह जानते हुए कि यह रास्ता उसके लिए और आने वाले समय के लिए आवश्यक है तो दृढ संकल्प के साथ कल्की के माता-पिता उसे गुरुकुल भेजने को तैयार करते हैं और आशीर्वाद के साथ विदाई दे देते हैं एक लंबी और कठिन यात्रा के बाद कल की आखिरकार गुरुकुल पहुंचते हैं गुरु गुकुल का भव्य प्रवेश द्वार देखकर कल्कि सोचते हैं यह उनके जीवन का एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है जो शायद कठोर परिस्थितियों से भरा रहने वाला है जैसे ही कल्की गुरुकुल के अंदर प्रवेश करते हैं सामने उनको एक साधु के वेष में योद्धा खड़े दिखाई देते हैं उनको प्रणाम करने पर पता चलता है यह योद्धा कोई और नहीं बल्कि विष्णु अवतार अमर योद्धा परशुराम जी है जो कल्कि को अपना विशाल ज्ञान और कौशल प्रदान करने के लिए तैयार खड़े हैं तैयार है एक ऐसा योद्धा का निर्माण करने के लिए जो जो प्रशिक्षण ज्ञान कौशल से भरपूर होने वाला है जो दुनिया में संतुलन लाने के लिए जरूरी है अब परशुराम जी सबसे पहले कल्की को युद्ध कला से परे वेदों का गहन ज्ञान प्रदान करवाना शुरू करते हैं कल्की को आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ शारीरिक कौशल को संतुलित करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं कल्की को ज्ञान और शक्ति के बीच समय के साथ गहरे संबंध समझ आने लगता है अब परशुराम जी विभिन्न दिव्य उन्नत तकनीक के हथियारों का उपयोग करके कल्की को दिखाते हैं कि कैसे प्रत्येक हथियार शक्ति उसे चलाने वाले की आध्यात्मिक शक्ति और वेदों के ज्ञान से बढ़ती है लेकिन दिव्य हथियारों को चलाने से पहले कल की धनुष बान तलवार और गदा जैसे पारंपरिक हथियारों को और मार्शल आर्ट जैसी युद्ध कला को सीख लेते हैं अब कल की परशुराम के मार्गदर्शन में उन्नत दिव्य शक्तियों वाले हथियार चलाना सीखते हैं अब सबसे अंतिम ज्ञान परशुराम देते हुए सिखाते हैं कि अपने युद्ध क्षमताओं को बढ़ा के लिए अपने आंतरिक शक्ति और वैदिक ज्ञान का उपयोग कैसे करते हैं देखते ही देखते कल की सारे वेदों के शास्त्रों के ज्ञाता हर अस्त्र शस्त्र और युद्ध की रणनीति में कौशल हो जाते हैं अब कल की ज्ञान ग्रहण करने के बाद पर परशुराम से विदाई लेने से पहले कहते हैं आपने जिस मिशन के लिए मुझे तैयार किया है उसके लिए मुझे कुछ दिवे जैसी चीजें चाहिए परशुराम जी कहते हैं तुम जाओ उस प्राचीन शिव मंदिर में और भगवान शिव से अपनी इच्छा पूरी करो कलकी बताए गए उस स्थान पर स्थित भगवान शिव को समर्पित सुंदर प्राचीन मंदिर में पहुंच जाते हैं वहां पहुंचते ही कल्की शिवजी को खुश करने के लिए उनकी पूजा करना शुरू कर देते हैं काफी दिन तक लगातार पूजा करने पर उनकी भक्ति देखकर शिव जीी कल्की से प्रसन्न हो जाते हैं अचानक से शिवलिंग में से शिवजी प्रकट होते हैं और जैसा शिवजी ने विष्णु से वादा किया था कि वह इस धर्म युद्ध में कल्की अवतार के मिशन में मदद करेंगे उसे वादे के मुताबिक शिवजी आशीर्वाद के रूप में कल्की को तीन महत्त्वपूर्ण उपहार देते हैं सबसे पहले शिवजी रत्न मारु नमक दिव्य तलवार प्रकट करते हैं भगवान शिव कल्की को बताते हैं यह तलवार देवीय शक्ति से युक्त है और यह तलवार आगे चलकर कलकी का प्रतीक बनेगा इस तलवार को ना कोई तोड़ सकता है ना तुम्हारे सिवा कोई और उठा सकता है दूसरे उपहार के रूप में भगवान शिव कल्की को देवदत्त नामक एक दिव्य घोड़ा देते हैं और बताते हैं यह घोड़ा केवल समय से तेज और शक्तिशाली है बल्कि एक योद्धा के रूप में तुम्हारा साथी है जो तुम्हारे साथ बुराई को हराने और धार्मिकता का बहाल करने के लिए दुनिया के हर कोने की यात्रा करेगा तीसरी उपहार में शिवजी कल्की को सलाहकार और साथी के रूप में एक बुद्धिमान तोता देते हैं और कहते हैं यह तोता ज्ञान संचार और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का प्रतीक है यह तोता सिर्फ तुम्हारा साथी ही नहीं बल्कि तुम्हें अत दृष्टि प्रदान करेगा और तुम्हारे लिए बुद्धिमानी निर्णय लेने में मदद करेगा अब कलकी अपनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद शिव से उपहार लेने के बाद घर की ओर रवाना होने की तैयारी करते हैं तभी उनका तोता उनसे कहता है घर जाने से पहले आपको एक शुभ कार्य करना है आपको सिंहल द्वीप जाकर उस कन्या से विवाह करना है जिन्हें शिवजी से वरदान मिला है कि उनका विवाह उस पुरुष से होगा जो उनको वासना की दृष्टि से नहीं देखेगा कलक यह बात सुनते ही अपने घोड़े पर सवार होकर सुंदर नगरी सिंहल दीप के लिए निकल पड़ते हैं सिंहल दीप पहुंचकर तालाब के किनारे रुककर एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए लेटते हैं थोड़ी ही देर बाद संयोग से पद्मा जी उन्हीं के रास्ते से गुजर रही होती है तभी उनकी नजर कलकी जी पर पड़ती है उनको देखते ही पद्मा उनकी सुंदरता में मंत्र मुग्ध हो जाती है और मन में सोचती है काश उनका विवाह उसी महापुरुष से हो तभी पद्मा जी ना चाहते हुए भी उनके कदम कल्की जी के पास पहुंच जाते हैं और के पास बैठकर अपना परिचय बताती है फिर कहती है मुझे पता चल गया आप ही हो मेरे वर क्योंकि शिव जी के द्वारा वासना दृष्टि से आप औरत नहीं बने आखिर आप कौन हैं कल्की जी परिचय अवतार विष्णु के रूप में बताते हैं कहते हैं मैं ही हूं राम मैं ही हूं कृष्ण मैं ही कलयुग का संहारक और मैं ही हूं सृष्टि पद्मा जी विष्णु के दर्शन पाकर बहुत खुश हो जाती है और कहती है मेरा सौभाग्य है मेरा नाम आपके साथ जुड़ रहा है एक और जहां पद्मा जी और कल्की का विवाह होता है उधर अश्वथामा जी से कली पुरुष मिलने पहुंचता है अगली वीडियो में हम देखेंगे कली ने अश्वथामा से क्या कहा क्या अश्वथामा कली पुरुष का साथ देंगे या आएंगे संभाला और देखेंगे कली और कल्की के बीच महायुद्ध