Civil cases की अगर बात की जाय तो, हमारे देश में आदे से भी जादे civil cases, land या property matters को लेकर होते हैं. बाकी family matters, money recovery, IPR और भी दुसरे matters होते हैं. Civil case में हम अपने सामने वाली party, यानि defendant से अपना हक पाना चाते हैं, या फिर हम उससे compensation की मांग करते हैं.
यहां हमारा मकसद defendant को सजा दिलवाना नहीं होता, इसलिए यहां हम FIA नहीं करते, सिदा कोई पाना चाते हैं. पर हमारे देश में सीविल सूट फाइल करने का एक प्रोसेस है अगर हम वो प्रोसेस को फॉलो नहीं करते हैं तो हमारा सीविल सूट डिस्मिस भी हो सकता है तो चलिए जानते हैं कि किस तरीके से एक सीविल सूट फाइल किया जाता है सीविल सूट फाइल करने का क्या प्रोसेस है हम इस वीडियो में सीविल कोट का पूरा प्रोसीजर तो चलिए शुरू से शुरुवात करते हैं एक पार्टी क्लेम करती है कि उसे किसी दूसरे पार्टी की किसी एक्शन के वज़े से नुकसान हुआ है और वो पार्टी कोट में सूट फाइल करके प्लेंट फाइल करके रिलिफ की मांग करती है। जो के हमें CPC के order 7 में दी गई है plaintiff को plan, affirm या notary करवा कर proper court fee के साथ court के filing department में file करनी होती है अगर सारी चीज़े properly होती है तो ही court definites के against summon या notice issue करके definite को court में बुलवाता है पर यहां मैं summon से पहले आप लोगों को एक बहुत ही चोटा सा departmental process बता दू जो के जब आप correct टेक्टिकल एक सूट फाइल करने जाओगे तब आपको बहुत ही काम आएगा जैसे ही हम प्लेंट फाइलिंग डिपार्टमेंट में फाइल करते हैं तभी कोट कलक अपने रजिस्टर में इंट्री करके हमें लॉजिंग नंबर स्टैम नंबर देता है जिसके बाद हमारा प्लेंट चेकिंग डिपार्टमेंट में दे दिया जाता है जहां चेकिंग ऑफिसर यह चेक करता है कि जो फाइल किया गया है उसका फाइल करने का टाइम लिमिट खत्म हुई है कि नहीं सूट सही कोट में फाइल किया गया है कि नहीं प्रॉपर कोट फी पे की गई है की नहीं, सूट बार्ड बाई लो है की नहीं, और भी ऐसे चीजों को अच्छे से चेक किया जाता है, अगर कुछ गल्दिया निकलती है तो ओफिस ओब्जेक्शन निकाला जाता है, पर अगर कोई ओब्जेक्शन ना हो तो रजिस्टार या यहां हमारा काम बस इतना होता है कि अगर कोई objection निकलता है तो सारे objection को remove करना और department से हमारे matter का suit number, first hearing date कुछी है, किस courtroom number में हमारा matter चलेगा यानि courtroom number ये पता लगवाना. अगर सारी चीज़े प्रॉपरली है तो हमारा case court record में आ जाने के बाद court defendants के again summon या notice issue करता है ताकि defendants को भी पता चले. कि उसके अगेंड सिविल प्रोसेडिंग शुरू की गई है और वो कोट में आकर अपना डिफेंस करें सम्मन हम इन में से किसी भी मोट के जरिये डिफेंडेंट को सर्फ कर सकते है कहीं बार ऐसा होता है कि अगर हमारे पास डिफेंडेंट का एडरेस या फिर कॉंटेक्ट नंबर ना हो तो कोट से परमिशन लेकर सम्मन या नोटिस को न्यूसपेपर की थूरू भी पब्लिश कर सकते है सम्मन या नोटिस सर्फ हो जाने के बाद अब यहां दो चीजे हो सकती है या तो सम्मन मिल जाने पर defendant court की fix की गई हुई date में court में हाजिर हो जाता है या फिर defendant सम्मन मिल जाने पर भी court में हाजिर नहीं होता अगर defendant सम्मन मिल जाने के बावजूद भी court में हाजिर नहीं हो रहा है तो ऐसे case में ex-party proceeding शुरू की जाती है जहां plaintiff के evidence record किये जाते है plaintiff के argument को सुना जाता है और फिर judgment और decree देती जाती है ये तो हमने देखा ex-party process पर अगर सम्मन सर्फ हो जाने पर डिफाइनेट कोट में आ जाता है अपियर हो जाता है तो डिफाइनेट को कोट में रिटेन स्टेट्मेंट फाइल करनी होती है। रिटेन स्टेट्मेंट प्लेंट का रिप्लाई होता है जो कि डिफाइनेट को सम्मन या नोटिस मिल जाने के 30 दिनों के अंदर ही फाइल करनी होती है। प्लेंट के बेस्ट पर ही अपना डिसिजन ले सकता है रेटन स्टेटमेंट में डिफैनेट अपने साइट का फैक्ट रख कर अपना डिफैंस करता है अगर डिफैनेट प्लेंट में लिखी हुई किसी भी बातों को स्पेसिफिकली डिनाई नहीं करता है चलता है कि defendant उस चीज़ को admit कर रहा है written statement के जरिये defendant set of या फिर counter claim भी कर सकता है मान लिजि defendant अपना written statement में set of या counter claim का दावा करता है तो ऐसे case में plaintiff को court में reapplication file करना होता है application जो कि written statement का reply होता है जो कि plaintiff की तरफ से court में file किया जाता है यहां मैं आपको बता दू application इन तीन situation में ही file किया जा सकता है फिर दोनों ही parties को अपनी pleading और submission को और strong करने के लिए यहाँ court parties को ये भी मौका देता है कि वो court में अपने अपने तरीके से अपने case के related documents court में produce और file करें यहाँ ये ज़रूरी होता है कि जो भी documents parties court में produce कर रही है वो original हो और उस document की copy opposite party को भी दे दी जाए और जो भी documents कोट में file या produce नहीं किये गए है तो उन documents पर आगे जाकर कोई arguments नहीं किया जा सकता यहां दोनों ही parties एक दुसरे के file की हुए हर एक एक documents को या तो admit करते है या फिर deny यह हो जाने के बाद कोट issue frame करता है suit की dispute को ध्यान में रखते हुए ही issue frame किये जाते है फिर कोट में दोनों ही पार्टिस अपने अपने गवाहों की लिस्ट कोट में सब्मिट करते हैं जहां पार्टिस जो भी विटनेसेस को कोट में प्रोडूस करना चाते हैं वो कर सकते हैं यहां पार्टिस खुद ही विटनेसेस को बुला सकती है या फिर कोट संबंद देकर विटनेसेस को बुलाता है और फिर जो भी विटनेसेस कोट में प्रोडूस किये जाते हैं उनका क्रॉस एक्जामिनेशन होता है और फिर defendant को जो भी evidence file किये गए है उस पर cross examination करने का मौका दिया जाता है फिर ठीक उसी तरीके से defendant को भी मौका दिया जाता है कि वो अपने और अपने witnesses का evidence court में file करें और फिर plaintiff की तरफ से cross examination दिया जाता है सारे witnesses की गवाई हो जाने के बाद matter को final hearing के लिए रख दिया जाता है जहां दोनों ही parties की बीच argument होता है पहले plaintiff के तरफ से argument किया जाता है और फिर डिफाइनेट की तरफ से अर्ग्यूमेंट होता है अगर पाटी चाहे तो वो रिटन अर्ग्यूमेंट भी कोड के सामने पेश कर सकती है कोड दोनों ही पाटीस को अपने अपनी बात रखने का पूरा मोका देता है और फिर क्या पाटीस के बिच फाइनल अर्ग्यूमेंट हो जाने के बाद अधालत तमम गवाओ के बायानात और सबूतों को मध्य नज़र रखते हुए कोड अपना फैसला सुना कर जज्मेंट और डिक्री पास करता है यहां मैं आपको बता दूँ फाइनल अर्ग्यूमेंट हो जाने के 30 दिनों के अंदर ही कोड को अपना जज्मेंट देना होता है जहां जज्मेंट डिटेल में होता है जज्मेंट में कोड जो भी सूट का इशू होता है उसे अंसर करता है रिजन के साथ तो वही डिक्री में पाटी को क्या अधिकार, रिलिफ मिला है वो दिया होता है जिस पाटी के फेवर में कोड अपना फैसला देता है उसे डिक्री होल्डर कहा जाता है और जिस पाटी के अगेंट्स कोड अपना फैसला देता है उसे जज्मिन डेटर कहा जाता है अगर जज्मेंड डेटर कोट की डिक्री को नहीं मानता है या फिर उसका पालन नहीं करता है तो ऐसे में डिक्री होल्टर Execution of Degree का Application Court में फाइल कर सकता है। अगर कोई भी Concerned Party कोट के फैसले से Satisfy नहीं है तो वो Review, Revision या फिर Appeal भी कर सकती है। Review के लिए Parties सेम कोट में अपलाई कर सकती है और वही Revision और Appeal के लिए Higher Court में अपलाई किया जाता है। यह Civil Procedure पुरा हो जाने के लिए कहीं बार सालों साल बिच जाते हैं लेकिन Suit File होते ही हम कहीं सारे Motion या Application कोट में Move करते हैं जैसे की कोट से Stay Order पाने के लिए, Code Receiver अपाइंड करने के लिए, Code Commissioner अपाइंड करने के लिए, Arrest या Property Attest करने के लिए और भी कहीं सारे Application हम कोट में Move करते हैं यहां मैं आपको एक चीज़ बता दूं, यह Proceeding के चलते हैं, Plaintiff चाहे तो suit को withdraw भी कर सकता है या फिर parties अपस में settlement compromise भी कर सकती है और court में consent term भी file कर सकती है तो हमने देखा पुरा civil process step by step next video में हम जानने की कोशिश करेगे कि किस तरीके से step by step 138 negotiable instrument act के matter court में चलाए जाते है और checks bonds हो जाने पर drawee को क्या करना चाहिए और किस तरीके से 138 negotiable instrument act के matter कोट में फाइल किये जाते हैं तो हम फिर मिलेगे एक नए वीडियो में एक नए लीगल टॉपि