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मोदी जी की रशिया यात्रा और उसके प्रभाव

मोदी जी हाल ही में रशिया की यात्रा पर गए थे पुतिन साहब से मिले थे बढ़िया सम्मान लिए थे रूस का सबसे बड़ा सम्मान लिया था लेकिन उस सम्मान के साथ दो लोग नाराज हुए थे उनमें एक थे बाइड और दूसरे थे जेलेंस्की यानी कि यूक्रेन राष्ट्रपति और अमेरिकी राष्ट्रपति दो लोग नाराज थे लेकिन क्या अब इनको मनाने की बारी आ चुकी है ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं क्योंकि अल्टीमेटली जब प्रधानमंत्री वहां गए थे तो प्रधानमंत्री के जाते ही रशिया यात्रा के बाद ही भारत को धमकियां मिलना शुरू हो गया था धमकी में अमेरिका ने हमसे कहा था कि अगर आप वहां जाएंगे तो आपकी बैंक्स को अगले एक महीने के अंदर-अंदर हम लोग सीज कर देंगे किस तरह से कि अगर आपने रशियन मिलिट्री के साथ कोई भी डील की तो हम आपकी ऐसी स्थिति में यूएस फाइनेंशियल सिस्टम्स के साथ कनेक्टेड जो आपका बैंकिंग सिस्टम है उसे हम नुकसान पहुंचा देंगे इस तरह की जब बात इनके द्वारा कही गई तो निश्चित ही भारत के लिए एक चिंता की बात निकल कर आई यह सेशन हमने आपको 25 जुलाई के दिन ही बताया था कि भारत को अमेरिका की धमकी किस तरह से मिली है व धमकी के अंदर एक महीने की मोहलत है एक महीना अगर 25 जुलाई की खबर हमने ली है तो यह न्यूज़ लगभग जो रही होगी यह लगभग 23 24 जुलाई के आसपास की रही होगी ऐसी स्थिति में भारत ने इस धमकी का काउंटर ढूंढ लिया है काउंटर किस तरह से ढूंढ लिया है कि आप नाराज हैं कि आपको लगता है कि हम रशिया की यात्रा पर गए थे सुर्खी निकल कर आती है कि भारत रूस को बैलेंस करने के लिए यूक्रेन की यात्रा पर जा रहा है और दो और विदन वन मंथ के उस टाइम फ्रेम में जा रहा है जिस महीने में हमें धमकी दी गई थी कि अगर एक महीने में ऐसा नहीं किया गया तो यूएस फाइनेंशियल सिस्टम से बाहर निकाल दिया जाएगा भारत बैलेंस करते हुए सुरखी आती है कि प्रधानमंत्री 23 अगस्त को यूक्रेन जा सकते हैं चूंकि यूक्रेन का एयर स्पेस क्लोज है तो वाया पोलैंड होकर के यूक्रेन की यात्रा पर जा सकते हैं यहां पर आप खबर देखते हैं कि मोदी जी के द्वारा जो पुतिन साहब को हक किया गया था उसको अब बैलेंस करने के लिए मोदी यूक्रेन जा रहे हैं तो बड़ा सवाल यह बनता है हम इनको बैलेंस करने के लिए जा रहे हैं या फिर हम लोग डर गए हैं अमेरिका से या कोई और कारण है जिसकी वजह से हम जा रहे हैं आज के सेशन में हम इन सारी बातों का विस्तार पूर्वक विश्लेषण करेंगे सबसे पहले शुरुआत करते हैं जेलेंस्की और भारत के रिश्तों की यूक्रेन और भारत के रिश्तों की और किस प्रकार से यूक्रेन भारत के प्रति बड़ी उम्मीद से देखता है अगर आपको याद हो 22 में जब से 2022 से जब से दोनों के बीच में यह कंफ्लेक्स तब से भारत के प्रधानमंत्री और जेलेंस्की दो बार इन पर्सन मिल चुके हैं जी से की लाइंस पर ही मिल चुके हैं और उसी दौरान भारत के प्रधानमंत्री को जेलेंस्की के द्वारा इन्विटेशन भी दिया गया था कि सर जब आपको समय मिले आप पधारें अगर आपको याद हो तो हमने इस पर कई सेशंस किए हैं कि मोदी मोदी जी को पुतिन और यूक्रेन के जो जेलेंस की दोनों ने ही इनवाइट किया हुआ है कि आप हमारे देश पधारिए अब ऐसी स्थिति में 23 तारीख की बात निकल के कैसे आती है तो इसके पीछे की कहानी यह है कि हमारे विदेश मंत्री उनके विदेश मंत्री से फोन पर वार्ता करते हैं बातचीत होती है कि किस तरह से दोनों लोग आगे बढ़ सकते हैं इसके बाद में फिर टेलीफोन जब संवाद हो जाता है तो फिर हमारे जयशंकर साहब द्वारा कहा जाता है कि हम लोग फर्द बायलट रिलेशंस को बढ़ाने के ऊपर काम कर रहे हैं ऐसी स्थिति में भारत जो हमेशा से कहता आया है डिप्लोमेसी डायलॉग एंड पीस उसी को बढ़ाते हुए भारत ने इनके साथ डायलॉग और डिप्लोमेसी को ही आगे बढ़ाया है इसी वजह से इंडिया इन के यहां पर ट्रेवल कर रहा है हालांकि इसके और भी बहुत सारे कारण हैं उन बहुत से कारणों में अमेरिकी डर कितना हावी है या फिर भारत की अपनी कोई मजबूरी है ये दोनों बातें अब आपको समझाते हैं देखिए भारत के द्वारा पहले भी इन दोनों देशों से कहा गया है कि आप लोग झगड़ा मत करिए आप लोगों को सेटल करने के लिए हम पूरी तरह से प्रयास करेंगे दोनों को समझाएंगे हम लोग पीसमेकर बनकर आएंगे दोनों को समझाएंगे कि वो युद्ध ना करें हमने g7 की लाइन पर जब जापान में मिले या फिर हम लोग इनसे इटली में मिले दोनों ही जगह हमने कहा कि आप चिंता मत करिए भारत रशिया से भी बात करेगा कि यूक्रेन के साथ किस तरह से शांति स्थापित की जा सकती है ओबवियस सी बात है कि जब दो देशों के बीच में कोई कॉमन कंट्री होता है उसी से उम्मीदें होती हैं अदर वाइज दुनिया तो ऑलरेडी बटी हुई है या तो यूक्रेन की तरफ खड़ी है या फिर रशिया की तरफ खड़ी है भारत हुआ तुर्की हुआ चाइना हुआ यही कुछ ऐसे देश हैं जो दोनों के साथ अपने रिश्ते बरकरार करके चल रहे हैं इसलिए यह दोनों ही जगह दोनों ही देश या फिर ये सारे सारे देश जो दोनों को मेंटेन करके के चल रहे हैं इनके ऊपर एक मोरल रिस्पांसिबिलिटी आ जाती है कि चलो भाई इन दोनों को बिठा कर के टेबल टॉक कराते हैं प्रधानमंत्री की रशिया यात्रा हुई थी बढ़िया सम्मान मिला था बढ़िया सम्मान मिला इसी बीच में एक जानकारी निकल कर आती है और वह जानकारी क्या है कि भारत की जो नेवी है ना वो इन दिनों बड़ा ही हादसों का शिकार हो रही है हादसों के शिकार पर मैंने हाल ही में एक सेशन किया था हो सके तो आप इसी चैनल पर डला हुआ है जाकर देखिएगा हमारी जो नौसेना के जहाज हैं कभी उनके अंदर मेंटेनेंस का इशू आ रहा है कभी मेंटेनेंस के नाम पर रख रखाव के नाम पर कोई ऐसा इशू आ रहा है जिसके चलते हमारे जहाजों में क्षति हो रही है नेवी की क्षति से यूक्रेन का क्या लेना देना है आज के सेशन में सबसे बड़ा की पॉइंट यही है असल में जो भारतीय नौसेना के लड़ाकू जहाज है ना पानी वाले जिन्हे आप फ्रीगेट कहते हैं जो लड़ने के लिए तीव्र गति से कहीं भी पहुंच कर पहुंच जाते हैं उन फ्रीगेट्स में अधिकांश में यूक्रेनियन गैस टरबाइन लगा हुआ है यानी यह समझिए कि यह जो जहाज चल रहा है ना इसका ढांचा इतना इंपॉर्टेंट नहीं है जितना इसके अंदर लगा हुआ यह मशीन इंपॉर्टेंट है यह बिल्कुल वैसे है कि एक बढ़िया गाड़ी आपने बना ली बिना इंजन के उसका कोई मतलब नहीं रहेगा इंजन ही असल में उस गाड़ी की रियल खूबसूरती है इन जहाजों में जो गैस टरमाइट है ना वह यूक्रेनियन लगा हुआ है भारत की मजबूरी क्या है कि भारत लंबे समय से सोवियत रूस के काल से जुड़ा रहा है सोवियत रूस से जुड़ा रहा है सोवियत रूस का अर्थ हुआ यूएसएसआर जो कि 1991 तक यूक्रेन को भी अपने साथ रखता था तो रूस को भी अपने साथ रखता था साथ ही साथ सेंट्रल एशियन जो कजाकिस्तान किर्गिस्तान उज्बेकिस्तान यह सारे जो देश है कुल मिलाकर 15 देशों का समूह होता था यूएसएसआर कब तक 1991 तक भारत 1997 से 1991 तक यूएसएसआर से अपनी बढ़िया डीलिंग रखता था 1991 में जब यूएसएसआर टूटा तो बहुत से ऐसे इंडस्ट्रियल हब जिन जिन देशों में थे वो वहीं रह गए मान लीजिए कि क्रेन के अंदर यूएसएसआर का वो हब था जो गैस टरबाइन बनाता था तो वो हब यूक्रेन में ही रह गया कोई चीज कजाकिस्तान में थी तो कजाकिस्तान में रह गई कोई चीज रशिया में थी तो वो रशिया में रह गई आज की स्थिति क्या है आज भारत यूएसएसआर के स्थान पर रशिया से दोस्ती रखता है लेकिन यूएसएसआर का हिस्सा तो यूक्रेन भी था तो यूक्रेन के समय के हमारे पास बहुत सारे गैस टरबाइन हमारे इन फ्रीगेट्स में हमारे नौसेना के बहुत सारे पानी के लड़ाकू जहाजों में लगे हुए हुए हैं है यह सोवियत रूस के काल के लेकिन जब सोवियत रूस की बाद में लीगेसी फॉलो की गई तो हम यूक्रेन से इन चीजों को मंगाते रहे कि भाई देखो हमारे पास में लंबे समय से सोवियत रूस के दौर के फ्रीगेट्स भी हैं लड़ाकू जहाज भी हैं एक काम कीजिए कि यह कंटिन्यू रखिए और हमने क्या किया कि इनसे इस प्रकार के यह जो इंजन है जो गैस टर्बाइंस हैं यह मंगा मंगा करके हम अपने जहाजों में लगाते रहे आज हमारे बहुत सारे पानी के जहाजों में इन्हीं का गैस टरबाइन लगा हुआ है यही कारण है कि न्यू न्यूज बनती है कि यूक्रेन पावर्स इंडियन नेवी ब्लू वाटर एंबिशन ओबवियस सी बात है हमारी नेवी का असली ताकत यूक्रेन इंजन है असल में वो यूक्रेन इंजन कहने से अच्छा है सोवियत रूस का इंजन है लेकिन जब सोवियत रूस नहीं बचा तो यूक्रेन बचा तो यूक्रेन का इंजन हमारी सबसे बड़ी अब मजबूरी कह लीजिए कि वह हमारी जरूरत भी है ऐसी स्थिति में मोदी जी की जो कीव विजिट हो रही है जिसको लेकर के अब हम लोग चर्चा कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री अमेरिका के डर से वहां जा रहे हैं क्या नहीं असल में हमारी नेवी को जो इन दिनों चैलेंज देखने पड़ रहे हैं कौन से चैलेंज हमारे जो जहाज लुड़क पड़ रहे हैं ना उन चैलेंज में जहां हमारी नेवी को चैलेंज आ रहे हैं उन चैलेंज को दूर करने के लिए उस परेशानी से निजात पाने के लिए यहां पर प्रधानमंत्री की जाना यात्रा कंपलसरी कंडीशन है अगर भारत की यूक्रेन के साथ किसी भी प्रकार की अनबन रहती है और हमारे पास में इनके द्वारा दिया जाने वाला गैस टरबाइन अब आप पूछेंगे ऑलरेडी आ गया तो हमें चिंता किस बात की है चिंता इस बात की कि उसकी मरम्मत का सामान भी वहीं से आएगा तो ऐसी स्थिति में हम यूक्रेन से लंबे समय तक झगड़ नहीं सकते लेकिन क्या भारत 2022 के बाद से एक बार भी इस चीज को लेकर चिंतित नहीं हुआ क्या कि यार यूक्रेन में गैस टरबाइन बन रहा है फिर भी हम रशिया के साथ खड़े हैं किसी ने ये नहीं समझाया क्या यूक्रेन को भड़काया नहीं क्या कि देखो इंडिया को अगर टिकाना है इंडिया को झुकाना है तो ऐसी स्थिति में यूक्रेन वालों कह दो कि हम तुम्हें इंजन नहीं देंगे या तुम्हारे जहाजों को रिपेयर नहीं करेंगे तो क्या ऐसी स्थिति में आपको नहीं लगता कि भारत यूक्रेन का भी समर्थक हो जाता नहीं भारत ने इस बीच में एक बहुत जबरदस्त दिमाग का काम किया क्या काम किया अब उस तक मैं आपको लेकर चलता हूं देखो तो फिलहाल के लिए मैंने आपको जानकारी बताई कि हमारा गैस टरबाइन इनके पास से बनकर आता है अब मैं थोड़ा सा आपको इतिहास की तरफ लेकर चलता हूं और भारत की समझदारी दिखाता हूं वर्ष 2016 में भारत और रशिया के बीच में बात शुरू हुई कि हमें तीन गाइडेड मिसाइल फ्रिग बनाकर दो रूस और भारत के बीच में प्लानिंग हुई कि और फ्रीगेट बनाते हैं जो गाइडेड मिसाइल की गाइडेड मिसाइल चला सके कुछ इस प्रकार की फ्रीगेट बनाते हैं ठीक है दोनों के बीच में थोड़ी बातें और बढ़ने लगी समय निकला तो डिसाइड यह हुआ कि चलो चार बनाते हैं चार में दो को बनाएंगे रशिया के अंदर और दो को बनाएंगे इंडिया में ठीक है साहब रशिया में दो फ्रिट बनाई जाएंगी और दो इंडिया में इंडिया में कहां बनाएंगे तो बोले इंडिया के अंदर जो गोवा शिपयार्ड लिमिटेड है वहां पर इंडिया के अंदर फ्रीगेट बनाएंगे और जो दूसरे शहर के अंदर यानी कि रशिया के अंदर जहां फ्रीगेट बनेगी वो रूस का एक शहर है कैलिन ग्राड बोले वहां पर बनाएंगे तो दोनों ने अपने-अपने स्तर पर डिसाइड कर लिया लेकिन इंटरेस्टिंग बात सुनिए 2016 में यह डिसाइड हो रखा है 2014 में जब रूस ने यूक्रेन के एक हिस्से के ऊपर कब्जा किया था अगर आपको याद हो तो आपको हम लोग कई बार क्रीमिया संकट के बारे में चर्चा करते हैं तो वो जो हिस्सा जब रशिया ने ऑक्यूपाइड ने रशिया से कह दिया था कि बेटा तुम्हें हम अब कुछ भी नहीं देंगे अब आप पूछेंगे कुछ भी नहीं देंगे का क्या मतलब है जो फ्रीगेट हम चाहते हैं उस फ्रीगेट में जिसे हम रशिया से 2016 में चाहते हैं उसके लिए हमें यूक्रेन के इंजन की जरूरत थी यूक्रेन और रशिया लड़कर बैठे थे कि भाई साहब इंजन नहीं देंगे तुमको हम अब यूक्रेन और रशिया लड़कर बैठे हैं इंडिया को रशिया से फ्र ट तो चाहिए लेकिन उसमें इंजन यूक्रेन का चाहिए यह दोनों 20144 से झगड़ा करके बैठे हमारा क्या हाल होगा विचार कीजिए तो भारत ने प्यार से यूक्रेन को मनाया और कहा कि देखो यार तुम्हारी लड़ाई अपनी जगह है एक काम करो तुम रशिया को नहीं दोगे समझ में आया हमें तो इंजन दे सकते हो ना बोले हां आपको दे सकते हैं तो बोले एक काम करो दो गैस टरबाइन इंजन पैक कर दो हमने दो इंजन पैक करवाए अपने गोवा के लिए और दो पैक करवाए रशिया के लिए कुल मिलाकर चार इंजन हो गए चार इंजन में से दो इंजन हमने रशिया को पकड़ा दिए इस पूरे प्रोसीजर को होते हुए काफी टाइम लगा मतलब समय इतना लगा कि हम लोग मान रहे थे कि 2024 तक हमारे पास फ्रीगेट आ जाएगी इस बीच में 2022 से युद्ध शुरू हो गया अब जब ये युद्ध शुरू हुआ तो यह बड़ी दिक्कत आई कि यूक्रेन से हमारे पास इंजन कैसे आए और क्या यूक्रेन यह जानते हुए भी कि यह फ्रीगेट भारत को पहुंचेगी रशिया बनाक देगा रशिया को इससे बिलियंस ऑफ डॉलर का फायदा होगा तो क्या यूक्रेन इस काम को देगा देखिए तमाम संकटों के बीच में भारत और यूक्रेन ने बढ़िया से अपनी बातों को बरकरार रखा और बरकरार रखते हुए इनसे उस इंजन को प्राप्त करने में कामयाब हुए मतलब इंटरेस्टिंग बात देखिए भारत की कूटनीति देखिए कि एक तरफ रशिया यूक्रेन झगड़ रहे हैं हम यूक्रेन से उनका इंजन लेते हैं और इंजन लेकर के रशिया को पकड़ा देते हैं कि सर यह लीजिए यूक्रेन इंजन है उस फ्रीगेट में लगाकर हमें दे दीजिएगा मतलब युद्ध के दौर में भी हमने इंजन खरीद करके यूक्रेन से रशिया को पकड़ाया है इतनी बात समझ में आ गई हमने अपनी तरफ से इनको पकड़ा दिया ऐसी स्थिति में यह जो टाइमिंग खींचने लगा उसमें थोड़ा सा समय लगने लगा कि यार टाइम लगेगा इंजन देने में और फ्रीगेट देने में इसके पीछे का कारण क्या है जिस दौर में हम इंजन मांग रहे थे उस दौर में इन लोगों के बीच में झगड़े शुरू हो चुके थे झगड़ों में ऐसा था कि रशिया के द्वारा उस फैक्ट्री को जो यह इंजन बनाती है उस फैक्ट्री का नाम है जोरिया कंपनी का नाम है जो यह बनाती है इंजन उसका नाम है जोरिया मास्टर ये क्या बोलते हैं जोरिया मैश रॉकेट जोरिया मैश रॉकेट का जो मिकल वाई के अंदर ऑफिस है उसके अंदर इन्होंने धमाका कर दिया तो रशिया ने बकायदा उस फैक्ट्री को हमला किया जिससे इंजन बनते थे तो हमें लगा कि भाई और डिले हो जाएगा लेकिन बाद में पता चला कि इंडिया इस हमले से पहले ही प्रोक्योर करने में कामयाब हो गया था इंजन पहले ही हम लोग ले चुके थे कोई बात नहीं साहब ऐसी स्थिति में भारत ने युद्ध के दौर में बड़ा ही स्मार्टनेस से उस इंजन को रशिया को पकड़ा करर यह तय कर लिया कि पहला फ्रीगेट इसी साल में सितंबर में भारत को मिल जाएगा और दूसरा फ्रीगेट फरवरी 2025 में भारत को मिल जाएगा जो फ्रीगेट यानी पानी का लड़ाकू जहाज हमें सितंबर में मिल रहा है उसका नाम तुशल है और जो 2025 में मिल रहा है उसका नाम तमाल है तुशी और तमाल तलवार क्लास की फ्रीगेट है ऑलरेडी तलवार क्लास की फ्रीगेट में छह हमारे पास अपने रखी हुई हैं उसके अलावा दो और हमें अब मिलने वाली हैं इस बीच में जो गोवा में निर्माण चल रहा था वह भी संपन्न हो गया तो देखिए तुशी और तमाल तो आप यहां पर याद रखिए इसी बीच में त्रिपु करके जो भारत में बन रहा फ्रीगेट था वो हमने बनाकर तैयार कर लिया तो देखिए त्रिपु क्लास फ्रीगेट तो देखिए यहां पर क्या हुआ तुशी और तमाल एक तो सितंबर में आएगा एक फरवरी में आएगा इसी बीच में भारत ने त्रिपु को लॉन्च भी कर लिया गोवा यार्ड में बना कर के खबर देखते हैं 24 जुलाई की 24 जुलाई को हमारे पास त्रिपु मिल जाता है यह तलवार क्लास का फगेट है याद करो चार बनने थे चार में से दो शिपयार्ड गोवा में बनने थे और दो वहां पर बनने थे अभी जो सूचनाएं हैं ना मार्केट में वो इन तीन की ही हैं न्यूज़ में कहीं एक बार बीच में चार की जानकारी आई थी इसीलिए नाम भी अभी तक तीन के ही उपलब्ध हैं एक का त्रिपु उपलब्ध है एक का नाम तुशी है और एक का नाम तमाल है तुशी और तमाल रशिया से आने वाले हैं और जो त्रिपु है वह ऑलरेडी हमको 24 जुलाई को आज से 5-7 दिन पहले ही गोवा में बनाकर भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है इसका मतलब समझिए कि हमारे लिए यूक्रेन से मिलने वाला गैस टरबाइन इस युद्ध के काल में भी इतना इंपॉर्टेंट था अदर वाइज हमारा जो इंजना इजेशन का प्रोग्राम है यह अटक जाता आपके दिमाग में कुछ प्रश्न आने लगेंगे कि सर क्या यह इंजन हम नहीं बना सकते क्या बिल्कुल बना सकते हैं फिर तो आप के इंजन है यही उनकी सबसे बड़ी पावर है जितना भी टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट दुनिया में हुआ है इंजंस को रिफाइन बनाने में ही हुआ है यूक्रेन के पास वो कैपेसिटी है यूएसएसआर काल की जिसकी वजह से वह गैस टरबाइन वाले इंजन बनाकर दे रहा है इन इंजन से होता क्या है फ्रीगेट जो तेजी से थ्रस्ट लेती है वो इस पर्टिकुलर इंजन से होता है और फ्रीगेट जो टर्न करती है यानी कि मुड़ती है उसमें भी इस गैस टरबाइन का बहुत यूज होता है इसलिए यह हमारे लिए बहुत मायने रखता है हमारे पास छह जो ऑलरेडी इस प्रकार की शिप्स हैं जो फ्रिग हैं उनमें आईएनएस तलवार आईएनएस त्रिशूल आईएनएस ताबर आईएनएस तेज आईएनएस तरकश और आईएनएस त्रिका ऑलरेडी छह हमारे पास हैं जिनमें इसी प्रकार का गैस टरबाइन लगा हुआ है अब आप विचार कर सकते हैं कि भारत के लिए यह कितना मायने रखता है यह जो इंजन है यह कितना मायने रखता है अब यह कौन सा इंजन है जोरिया मैश रॉकेट लेकिन इसी बीच में भारत को यह समझ में आया कि यार देखो रशिया यूक्रेन की वजह से दुनिया में बड़े संकट होंगे और जब बहुत संकट होंगे तो इसके कहीं ऐसा ना हो कि भारत के रिश्तों के यूक्रेन से खटास में चलते हुए हम जोरिया मैश रॉकेट से इंजन प्राप्त करने में नाकामयाब हो जाएं भारत ने अपनी भारत सरकार ने अपनी एक कंपनी को मोटिवेट किया कि बेटा सुनो यह जो इंजन का पार्ट है ना गैस टरबाइन हमें चाहिए कि आप इस इसे नहीं बना सकते तो जाकर खरीद लो बोले किसको खरीद ले बोले कंपनी ही खरीद लो और हुआ भी यह साथियों भारत की तरफ से भारत की ही एक कंपनी ने जिसका नाम भारत फोर्ज है भारत फोर्ज नामक कंपनी ने इस गैस टरबाइन को जो कि फिगेड को चलाने में सबसे महत्त्वपूर्ण रोल प्ले करती है इसे जाकर खरीद लिया मतलब यह समझिए कि इंडिया ने इस युद्ध के दौर में टरबाइन प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के लिए जो जोरिया मैश रॉकेट नाम की कंपनी है ना इसे ही भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स की जो सहायक कंपनी है भारत फोर्ज भारत इलेक्ट्रिकल्स तो सरकारी कंपनी हो गई भारत फोर्ज जो कि कल्याणी ग्रुप की कंपनी है उससे कहा कि जाकर के आप इस जोरिया मैप रॉकेट को खरीद लीजिए और साथियों जानकर आश्चर्य होगा कि इंडिया ने इसके मेजॉरिटी स्टेक परचेज कर लिए कि कल को बेटा यूक्रेन वालों यह मत कह देना कि हम आपको रॉकेट के हमारे फ्रीगेट का इंजन नहीं देंगे तो भारत की कूटनीति को हल्के में नहीं लेने का है आप यह खबर देख रहे हैं जनवरी 8224 की जिस दौर में हमें ये सबसे बड़ा टेंशन था कि कहीं ऐसा ना हो कि यूक्रेन हमारे साथ में कुछ धोखा कर दे और यह कहे कि जाइए अब मैं आपके फ्रीगेट्स के लिए इंजन नहीं दूंगा भारत की कंपनी ने जाकर के उनके मेजॉरिटी शेयर खरीद लिए और उस कंपनी को ही अपने अंडर में ले लिया यूक्रेनियन इंजन फर्म यूक्रेन वार होल्ड्स अप इंडियन नेवी वारशिप सुरखी बनकर आपके सामने ये आ गई तो भारत फोर्ज के द्वारा कल्याणी स्ट्रेटेजिक सिस्टम्स जो कि एक पुली पूरी तरह से सब्सिडियरी है इस कंपनी की उसने इसके 51 पर शेयर्स को परचेज करके अपने पास मिला ली तो एक तरह से यह समझिए कि अगर आपके मन में अब तक कोई डर बना कि यदि इस कंपनी ने बंद कर दिया तो हमारी नेवी का क्या होगा हमारी नेवी ऑलरेडी पैसे खर्च करके नेवी तो नहीं प्राइवेट कंपनी है जिसने पैसे खर्च करके उस रॉकेट के इंजन को ही पकड़ लिया उस उस इस गैस टरबाइन को ही पकड़ लिया कि बेटा अब हम दुनिया को भी हम ही बेचकर पैसे कमाएंगे नंबर एक लेकिन केवल एक से काम नहीं चल रहा था दूसरा था क्या दूसरा था साथियों हमारा ए 32 फ्लीट यूएसएसआर काल के हमारे कुछ ऐसे इंडियन एयरफोर्स में एक 10 एन 32 यूएसएसआर के 1984 से 91 में लिए हुए कैरियर्स हैं इंडियन एयरफोर्स के पास ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट हैं जिसमें भी यूक्रेन का ही इंजन लगा हुआ है मतलब 1984 से 91 में 91 तक यूएसएसआर एक ही था उस समय यह जो नेवी भारतीय एयरफोर्स का ए 32 नाम का जो ट्रांसपोर्टर है जो कि सैनिकों को इधर से उधर ले जाने के काम में आता है लगभग 110 हमने 1984 से इ 91 में यूएसएसआर से खरीदे अब इतना समय बीत चुका है 1991 के बाद में 25 से साल ऊपर निकल चुके हैं ऐसी स्थिति में इनको फिर से अपडेट करना है अपडेट करना है इंजंस को इन अपडेट करने का जो काम है यह यूक्रेन ही कर रहा है यूक्रेन अब तक 40 को अपग्रेड कर चुका है इंजंस में नवाचार ला चुका है अगर हम यूक्रेन से बनकर नहीं रहते तो हमारी एयरफोर्स के इंजनों को भी बहुत नुकसान पहुंच सकता है ऐसी स्थिति में भी हमें यूक्रेन के साथ में बनकर रहना है अब एक बात समझो यूक्रेन ताजा-ताजा अमेरिका की गोदी में बैठा है इंडिया इस बात को बहुत पहले से जानता था यही कारण है कि पंडित नेहरू जी के कालक्रम में ही जब दुनिया शीत युद्ध लड़ रही थी तब भारत ने गुट निरपेक्ष नीति की पालना कर ली थी कि हम किसी के साथ नहीं हैं हम किसी के ग्रुप में नहीं है ना तो हम अमेरिका के साथ हैं ना हम यूएसएसआर के साथ हैं हम दोनों के साथ अपने हितों का ख्याल रखते हैं आज की इस बात से यह समझ आता है कि नेहरू जी के काल में जब हम किसी के ग्रुप में नहीं बैठते थे सबके साथ मित्रता रखते थे आज भी हम उसी बात को मानते हैं यही कारण है कि हम पुतिन के साथ भी वार्ता करते हैं तो हम यूक्रेन के साथ भी वार्ता करते हैं यानी जिस प्रकार से भारत इन दोनों को बैलेंस कर रहा है यह जिओ पॉलिटिक्स का एक नया आयाम है अर्थात पुतिन से मित्रता हमारी है तो जेलेंस्की से हमारी जरूरत है जेलेंस्की से जरूरत है यह जरूरत हमें अमेरिका की नजर में यह स्थापित करेगी कि भारत इन दोनों देशों में से किसी एक के साथ युद्ध को बढ़ावा देने वाला देश नहीं है वो केवल अपनी जरूरतों के लिए जियोपोलिटिकल रिलेशन रखता है भारत बार-बार दुनिया के सामने एक ही बात कहते आया है कि हम युद्ध के समर्थक नहीं हैं और हमारी यात्राओं से यह कंक्लूजन किया जाए कि हम युद्ध को बढ़ावा देने के लिए पुतिन के पास गए थे नहीं हमारी जरूरत थी पुतिन के पास जाना क्योंकि हमारे जो भी मिलिट्री जो इंस्ट्रूमेंट्स यहां पर लगे हैं हैं उनके लिए रशिया की हमें जरूरत है तेल की जरूरत पूर्ति के लिए हमें रूस की जरूरत है और इसी जरूरत की पूर्ति में अगर हमें यूक्रेन की यात्रा भी करनी पड़ रही है तो हम वह भी करेंगे उम्मीद है कि आप सभी साथियों को अब यह जानकारी बहुत अच्छे से समझ में आ गई हो बाकी आप इस विषय पर क्या सोचते हैं अपनी राय जरूर रखें मैं आपके साथ एक अच्छी खबर साझा कर देता हूं और खबर है पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए खबर यह है कि जो भी साथी मेरे साथ एनसीआरटी बैच में एडमिशन लेना चाहते हैं जिन्हो ने पिछले एक महीने तक प्रयास किया लेकिन एडमिशंस हमारे क्लोज थे एक महीने में एक ही बार ओपन होते हैं जून अंत में हमने बैच ओपन किया था अब अगस्त 1 से आपके लिए एनसीआरटी बैच में एडमिशंस ओपन किए जा रहे हैं यह वही बैच है जिसमें आपको ज्योग्राफी पॉलिटी इकोनॉमी और हिस्ट्री क्लास छह से लेकर 12 की एनसीआरटी से पढ़ाई जाती है बायलैंड रूप में पढ़ाई जाती है कोर्स की वैलिडिटी एक साल होती है क्लास को आप पूरी तरह इसी तरह से देख पाते हैं आप इसे आज से ही एक्सेस कर कर सकते हैं आज ही जाकर के आप इसमें एडमिशन लें इसमें ईएमआई ऑप्शंस भी उपलब्ध हैं आप अपनी दो किस्तों में भी इसमें एडमिशंस ले सकते हैं ठीक है ये ओपन हो चुका है यह बताने के लिए और कहां पर मिलेगा अपनी पाठशाला एप्लीकेशन पर जिसका लिंक कमेंट बॉक्स में लगा दिया गया है जिन्हें हमारा जीए फाउंडेशन बैच रिकॉर्डेड फॉर्म में चाहिए वो भी अपनी पाठशाला एप्लीकेशन पर उपलब्ध है आप ले सकते हैं साथ ही साथ बहुत सारी टेस्ट सीरीज जो हमने अपनी pathshala.com वेबसाइट पर उपलब्ध कराई हैं जैसे आरओ ए आरओ की वेबसाइट टेस्ट सीरीज जिसमें बहुत सारे 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