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हिंदू लॉ के स्रोत और विकास
Sep 18, 2024
फैमिली लॉ में सोर्सेज और स्कूल्स ऑफ हिंदू लॉ
शुरूति और श्मृति
शुरूति
चार वेद: रिगवेद, यजुरवेद, सामवेद, अथरवेद
शुरूति का अर्थ: 'सुन-सुन के जाना'
इन वेदों में कानून नहीं, धर्म का कॉन्सेप्ट है
समाज का ढांचा दिखाया गया: हर परिवार एक यूनिट है
परिवार का हेड: ग्रीपती (Oldest Living Ascendant)
श्मृति
तीन प्रमुख श्मृतियाँ:
मनु श्मृति
यजनवल्क श्मृति
नारद श्मृति
श्मृति का अर्थ: 'याद की जाने वाली'
श्मृति का लेखन एक लेखक द्वारा होता है
मनु श्मृति: ब्राह्मण्स को उच्च स्थान, महिलाओं और शुद्रों के लिए अधिकार नहीं
यजनवल्क श्मृति: बुद्ध और विक्रमादित्य के समय में, महिलाओं और शुद्रों को बेहतर अधिकार
नारद श्मृति: विधवाओं के पुनर्विवाह का अधिकार, महिलाओं को संपत्ति के अधिकार दिए
टिप्पणियाँ और डाइजेस्ट
मिताक्षरा
: विजनानेश्वर द्वारा 11वीं सदी में दी गई टिप्पणी
दया भागा
: जिमुतवहन द्वारा 12वीं सदी में दी गई टिप्पणी
मिताक्षरा और दया भागा में मुख्य अंतर:
मिताक्षरा: अधिक पुरुष प्रधान दृष्टिकोण
दया भागा: महिलाओं को अधिक अधिकार
हिंदू लॉ के स्कूल
स्कूलों का विकास 11वीं सदी में हुआ
चार प्रमुख स्कूल:
मिताक्षरा (चार स्कूल्स)
बेंगाल स्कूल (दया भागा)
अंग्रेजों का प्रभाव
अंग्रेजों ने न्यायिक निर्णय और विधान के माध्यम से विकास किया
महत्वपूर्ण कानून: हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह का अधिकार, विशेष विवाह अधिनियम
आधुनिक विधान
1944 में हिंदू लॉ समिति का गठन
सर्व समावेशी कोड बनाने का प्रयास, जिसमें अम्बेडकर का विरोध
चार प्रमुख अधिनियम: हिंदू माइनरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट, हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट
अन्य स्रोत
न्याय, समानता और अच्छे विवेक के नियम
: न्यायिक निर्णयों में उपयोग होते हैं
कस्टम्स
: क्षेत्रीय, स्थानीय कस्टम्स महत्वपूर्ण हैं
निष्कर्ष
हिंदू लॉ का विकास एक जटिल प्रक्रिया थी जिसमें समय के साथ विभिन्न स्रोतों और दृष्टिकोणों का समावेश हुआ।
यह लॉ विभिन्न सामाजिक और वैधानिक संदर्भों के आधार पर विकसित हुआ।
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