[संगीत] स्टडी इक इस अब तैयारी हुई अफॉर्डेबल वेलकम तू स्टडी इक मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों आज हम मॉडर्न इंडियन हिस्ट्री की मैराथन वीडियो शुरू करने जा रहे हैं जिसमें आंटियों मॉडर्न इंडियन हिस्ट्री के जीएस सिलेबस को कर किया जाएगा ये वीडियो तीन पार्ट्स में डिवाइड है सबसे पहले पार्टी में हम मेंस्ट्रीम इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल को कर करेंगे उसके बाद पार्ट बी में ब्रिटिश गवर्नेंस सिस्टम को डिटेल में जानेंगे और पार्ट्स सी ने मेंस्ट्रीम फ्रीडम स्ट्रगल के साथ चलती कुछ इंपॉर्टेंट पैरेलल मूवमेंट की बात करेंगे तो आई शुरू करते हैं पार्टी यानी इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल से एडवेंचर इन इंडिया आते हैं और अल्टीमेटली एक पॉलीटिकल पावर बनकर अपना अंपायर एस्टेब्लिश करते हैं लेकिन ब्रिटिश के अलावा और भी कुछ यूरोपियन कंपनी ट्रेड करने के लिए इंडिया आई हैं पर उनके बड़े में बात करने से पहले हम यह जानेंगे की ऐसी क्या कंडीशन थी की यूरोपीय कंपनी ने इंडिया का रुख किया वही डिड यूरोपियन कंपनी कम तू इंडिया दोस्तों असिएंट टाइम से ही इंडिया और यूरोप के अच्छे ट्रेड रिलेशंस थे इंडिया के कॉटन सिल्क टैक्सटाइल्स और स्पाइसेज की यूरोप की मार्केट में काफी हाय डिमांड रहती थी मिडिल एज में स्ट्रीट की एजेंट पार्ट को अब मरचेंट्स और मेडिटरेनियन और यूरोपीय पार्ट को इटालियन डील करते थे क्योंकि अभी तक वाला रूट डिस्कवर नहीं हुआ था तो ट्रेड कांस्टेंटिनॉपल यानी प्रेजेंट दे इस्तांबुल होकर किया जाता था लेकिन जब ओटोमन टर्म्स एशिया माइनर पर कंट्रोल एस्टेब्लिश करते हैं और 1453 में कांस्टेंटिनॉपल को कैप्चर कर लिया जाता है तब ईस्ट और वेस्ट के बीच के ओल्ड ट्रेड रूट भी इनके कंट्रोल में ए जाते हैं उसके अलावा वेनिस और जेनोवा के मर्चेंट कांस्टेंटिनॉपल के पास लोकेटेड होने का फायदा उठाकर यूरोप और एशिया के बीच ट्रेड पर अपनी मोनोपोली एस्टेब्लिश कर लेते हैं और वो किसी नए यूरोपियन नेशन स्टेट को इसमें शेर नहीं देना चाहते थे नतीजतन वेस्ट यूरोपीय स्टेटस और मरचेंट्स नए और सिर्फ ट्रेड रूट को सर्च करते हैं इसमें सबसे पहले स्टेप्स लेने वाले थे पुर्तगाल और स्पेन यहां की गवर्नमेंट मरचेंट्स की सी वॉयस को स्पॉन्सर करती हैं साथ ही साइंटिफिक डिस्कवरी जैसे की मरीनारा कंपास और लॉन्ग डिस्टेंस शिप का इन्वेंशन भी इसमें हेल्प करता है इन्हें अवार्ड की वजह से 1492 में स्पेन के क्रिस्टोफर कोलंबस बॉयज पर निकलते हैं पर वो इंडिया पहुंचने की जगह अमेरिका पहुंच जाते हैं फाइनली 1498 में पॉसिबल के वास्को डा गम यूरोप से इंडिया पहुंचने के लिए एक नए सी रूठ गायब कैप ऑफ गुड होप की डिस्कवरी करते हैं तो चलिए डिटेल में जानते हैं इनके बड़े में पहुंच चुकी 98 को साउथ वेस्ट इंडिया के एक इंपॉर्टेंट कालीकट पहुंच थे उनका स्वागत करते हैं और ट्रेड को प्रमोट करने के लिए उन्हें कुछ प्रिविलेज भी ग्रैंड करते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रेड लवी लोकल रोलर के लिए इनकम का एक इंपॉर्टेंट सॉस था इंडिया में 3 महीने रहने के बाद वास्को डा गम एक रिच कार्गो के साथ यूरोप वापस लोट जाते हैं इस कार्गो को वो यूरोप की मार्केट में बहुत हाय रेट पर सेल करते हैं कहा जाता है की उनकी पुरी यात्रा की कॉस्ट का 60 टाइम्स रिटर्न उन्हें मिलता है सेल से वास्को डा गम 1501 एड में फिर से इंडिया फैक्ट्री सेटअप करते हैं यहां से इंडिया और पुर्तगाल के बीच ट्रेड लिंक की शुरुआत होती है और कालीकट ट्रेडिंग सेंटर्स बनकर उभरते हैं पुर्तगीज की बढ़नी हुई पावर्स और उनकी अनफेयर ट्रेड डिमांड्स जैसे की अरब सी में मोनोपोली की कोशिश उनके और लोकल रोलर जमोरेन के बीच हॉस्टल डेज बड़ा देती हैं पुर्तगीज ट्रेडर्स डिमांड रखते हैं की जानवरोनिन अपने एरिया में से मुस्लिम ट्रेडर्स को बाहर कर दें जमोरेन उनकी डिमांड को नहीं मानते और दोनों के बीच इसी बात को लेकर एक मिलिट्री फेस ऑफ होता है जिसमें जमीरन हर जाते हैं और पुर्तगीज के मिलिट्री सुपीरियर एस्टेब्लिश हो जाति है इसके बाद से पुर्तगीज पावर का राइस होना शुरू होता है आई जानते हैं कैसे राइस ऑफ पुर्तगीज पावर इन इंडिया आते हैं इनकी पॉलिसी थी इंडियन ओसियन पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश करना इसलिए इनकी पॉलिसी को ब्लू वाटर पॉलिसी भी बोला जाता है बिल्कुल ट्रेड लाइसेंस या पास होता था जो पुर्तगीज कंपनी से बाकी सभी इंडियन और एशिया ट्रेडर्स को इंडियन ओसियन में ट्रेड करने के लिए लेना होता था साथ ही लंबे रूट के शिप जो पुर्तगीज के कंट्रोल किया हुए पोर्ट्स पर रुकते हुए स्ट्रेट ऑफ मलका की तरफ जाते थे उन्हें भी ये कार्टेज लेना होता था जिनके पास ये पास नहीं होता था उनकी शिप और कार्गो को पुर्तगीज अपने कब्जे में ले लेते थे इसे इंप्लीमेंट करने के लिए पहुंचोगी अपने मिलिट्री शिप और कैनंस को ट्रेडिंग शिप के साथ रखते थे 15980 में अलमेडा को रिप्लेस करके अल्फाजों अल्बाकर की गवर्नर बनते हैं यह 1580 में बीजापुर के सुल्तान से गोवा को कैप्चर करते हैं इनको ही इंडिया में पुर्तगीज पावर का रियल फाउंडर बोला जाता है और कालीकट बनवेट हैं इनके बाद गवर्नर बनते हैं इंडियन कैपिटल को कोचीन से गोवा शिफ्ट करते हैं और वैसे अखबार कर लेते हैं और 1559 एड में दमन को भी पुर्तगीज का पोस्ट एरियाज पर कंट्रोल और उनकी सुपीरियर लेवल पावर उनको बहुत हेल्प करती है और 16 सेंचुरी का और होते होते पुर्तगीज एन केवल गोवा दमन दिउ और सेल सेट पर कैप्चर कर लेते हैं बल्कि इंडियन कास्ट के अलोंग एक बड़े एरिया पर उनका कंट्रोल होता है लेकिन फिर 16th सेंचुरी के बाद से इनकी पावर का डिक्लिन शुरू होता है 1631 में पहुंच चुकी इस मुगल एंपरर शाहजहां के नोबल कासिम खान के हाथों हुगली को देते हैं फिर 1661 में पुर्तगाल के किंग बॉम्बे डोरी के रूप में इंग्लैंड के चार्ल्स डी सेकंड को दे देते हैं और वैसे मराठा जीत लेते हैं इस तरह पुर्तगीज की पावर काफी कम र जाति है लेकिन इसके बाद भी गोवा डू और दमन पर 1961 तक इनका कंट्रोल बना राहत है फेमस जैसी फ्रांसिस्को जेवियर पुर्तगीज गवर्नर सजा के साथ 1542 में इंडिया आते हैं इन्हें आज भी इंडिया की कैथोलिक क्रिश्चियन बहुत मानते हैं तंबाकू टोमेटो पोटैटो और चिलीज का कल्टीवेशन भी पहुंचोगी इसने ही इंडिया में इंट्रोड्यूस किया था 1556 एड में इन्होंने इंडिया का फर्स्ट प्रिंटिंग प्रेस एस्टेब्लिश किया था गोवा में दोस्तों ये तो बात हुई इंडिया में ट्रेड करने के लिए आने वाली फर्स्ट यूरोपीय पावर की आई अब जानते हैं इनको फॉलो करने वाली नेक्स्ट ट्रेडिंग कंपनी यानी की डक के बड़े में देश में रहने वाले लोगों को डक कहा जाता है है इस कंपनी को 21 सालों तक इंडिया और ईस्ट के देश के साथ ट्रेड इनवेजन और कॉक्वेस्ट करने का राइट भी पार्लियामेंट ने दिया था यह इंडिया में आकर पुर्तगीज की मोनोपोली को खत्म करते हैं डक अपनी पहले फैक्ट्री 165 में आंध्र प्रदेश के मसूलिपटनम में बनाते हैं उसके बाद और भी जगह अपनी फैक्टरीज को एस्टेब्लिश करते हैं जैसे की 1610 में पुलीकट 16-16 में सूरत 1653 में चिनसुरा 1659 में पटना बालेश्वर नागपट्टनम कराईकाल कासिम बाजार और 1663 में कोचिंग में इनका हेड क्वार्टर तमिलनाडु के पुलीकट में था 17th सेंचुरी में इंडिया से होने वाले स्पाइस यानी मसाले के व्यापार पर डक अपनी मोनोपोली एस्टेब्लिश करने में कामयाब होते हैं इसके अलावा कॉटन टैक्सटाइल्स इंडिगो सिल्क ओपियो में सत्र का भी एक्सपोर्ट टच इंडिया से करते थे इंग्लिश कंपनी शुरू हो जाता है जिसमें डक को हर का सामना करना पड़ता है इस बैटल को बैटल ऑफ चिंचूड़ा या बैटल ऑफ हुगली भी कहा जाता है फाइनली डच ईस्ट इंडिया कंपनी को 1798 में लिक्विड कर दिया जाता है दोस्तों बात करते हैं सबसे ज्यादा सफल ट्रेडिंग कंपनी की यानी की इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की अराइवल ऑफ इंग्लिश इंडिया कंपनी पुर्तगीज और डक ट्रेडर्स की सक्सेस से इंप्रेस होकर इंग्लैंड के मरचेंट्स के मर्चेंट एडवेंचर्स नाम के ग्रुप में 1599 में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एस्टेब्लिश किया था कंपनी का पूरा नाम डी गवर्नर और कंपनी ऑफ मर्चेंट ऑफ ट्रेडिंग इन तू डी ईस्ट इंडीज था 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड की क्वीन एलिजाबेथ डी फर्स्ट 15 सालों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्वी ट्रेड का चार्ट ब्रांड करती हैं जिसका मतलब यह था की इस कंपनी को ईस्ट के साथ ट्रेड करने की मोनोपोली होगी इंग्लैंड से और कोई भी कंपनी यहां ट्रेड नहीं कैप्टन विलियम हॉकिंस को मुगल एंपरर जहांगीर के दरबार में भेजती है उनका मकसद जहांगीर से रॉयल फरमान हासिल करना था जिससे वो सूरत में अपनी ट्रेडिंग फैक्ट्री जहांगीर के कोर्ट से वापस जाना पड़ता है अंग्रेज समझ जाते हैं की पुर्तगीज के रहते उनका ट्रेड करना मुश्किल है इसलिए 1600 लेवल में सूरत के पास वाली होल में एक लेवल बैटल में पहुंचेगी इसको अंग्रेज हर देते हैं इससे जहांगीर को भी अंग्रेजन की पावर का यकीन हो जाता है और फिर 1613 में जहांगीर उन्हें इंडिया के वेस्ट कास्ट पर फैक्ट्री एस्टेब्लिश करने की परमिशन भी दे देते हैं तब अंग्रेज 1613 में सूरत में अपनी पहले फैक्ट्री एस्टेब्लिश करते हैं और वो कंपनी को रॉयल चार्ट ग्रैंड करते हैं जिससे कंपनी को मुगल टेरिटरी में कहानी भी व्यापार करने और फैक्ट्री एस्टेब्लिश करने की आजादी मिल जाति है इसके बाद कंपनी इंडिया में अलग-अलग जगह फैक्टरीज एस्टेब्लिश करती है जैसे की मसूलिपटनम आगरा अहमदाबाद उड़ीसा के बालेश्वर और हरिहरपुर ईटीसी 1639 में कंपनी को मद्रास की लेज मिलती है और यहां फोर्ट सनहोजे बनाया जाता है और 1668 में कंपनी को चार्ल्स डी सेकंड से बॉम्बे लेज पर मिल जाता है जो चार्ल्स डी सेकंड को पुर्तगीज डोरी में मिला था जैसा की हम पहले देख चुके हैं 1698 99 में बंगाल के सूबेदार आजम और शान की परमिशन से सिर्फ ₹1200 देने पर कंपनी को सुतानती गोविंदपुर और कलिकता की जमींदारी मिल जाति है यहां पर ही 1700 में फोर्ट विलियम की स्थापना होती है इसके बाद 1771 में मुगल एंपरर फारुख सियार फरमान जारी करके कंपनी को और भी ज्यादा राइट्स दे देते हैं जैसे की उन्हें सिर्फ ₹3000 वार्षिक कर के बदले में बंगाल में ड्यूटी फ्री व्यापार करने का अधिकार मिलता है कोलकाता के आसपास की जमीन खरीदने की परमिशन भी दी जाति है इसके अलावा कंपनी द्वारा मुंबई में इशू किया गए कोइंस को पूरे मुगल राज्य में चलने की अनुमति भी मिलती है इसलिए इस फरमान को कंपनी का मैग्ना भी कहते हैं इसके बाद कंपनी की पावर बढ़नी ही जाति है और फाइनली पहले बार बंगाल में कंपनी अपने अंपायर की शुरुआत करती है जिसके बड़े में हम अपनी नेक्स्ट वीडियो में डिटेल से डिस्कस करेंगे अब चलते हैं अगली यूरोपीय कंपनी की तरफ डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 में हुई थी इस कंपनी ने 16-20 में तमिलनाडु के ट्रक व्यापार और 1676 में बंगाल के सिरमपुर में अपनी फैक्टरीस्टैब्लिश की थी सेरंपोर इनका इंर्पोटेंस सेंटर और हैडक्वाटर था लेकिन ये खुद को इंडिया में ज्यादा स्ट्रांग नहीं बना पे और 1845 में अपनी सभी सेटलमेंट ब्रिटिश कंपनी को बेचकर यहां से चले गए दोस्तों अब बात करते हैं इंडिया में सबसे लास्ट में आने वाली यूरोपियन कंपनी की फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा फॉर्म किया गया सूरत में अपनी पहले फैक्ट्री एस्टेब्लिश करती है उसके बाद 1669 में गोलकुंडा के सुल्तान से परमिशन लेकर यह अपनी दूसरी फैक्ट्री नाम का एक गांव प्राप्त किया जो बाद में पांडिचेरी के नाम से फेमस हुआ 1692 में बंगाल के मुगल सूबेदार शाइस्ता खान की अनुमति से फ्रेंच कंपनी ने चंद्रनगर में फैक्ट्री की स्थापना की उसके बाद फ्रेंच 1724 में मालाबार में माही को कैप्चर कर लेते हैं और 1739 में तमिलनाडु में कराईकाल को 1724 में ही फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स इंडिया आते हैं और उनके साथ ही शुरुआत होती है कहानी एंग्लो फ्रेंच वर्स की जिन्हें कार्नेटिक वज भी कहते हैं कार्नेटिक वज इंग्लिश और फ्रेंच कंपनी के बीच हुए थे जिनके बड़े में हम अलग वीडियो में डिटेल से चर्चा करेंगे कंक्लुजन तो दोस्तों हमने देखा की कैसे इंडिया और यूरोप के बीच होने वाले ट्रेड का फायदा उठाने के लिए अलग-अलग यूरोपियन कंपनी इंडिया आई हैं जैसे की मोनोपोली फोर्स का इस्तेमाल नेवी का उसे करने में भी पीछे नहीं रहती इन सभी कंपनी के बीच आपस में पावर के लिए स्ट्रगल चला है जिसमें फाइनली इंग्लिश कंपनी को सक्सेस मिलती है इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी कैसे एक ट्रेडिंग कंपनी से शुरू होकर इंडिया में अपना अंपायर खड़ा करती है यह हम अपनी आने वाली वीडियो में देखेंगे राइस ऑफ रीजनल पावर्स आफ्टर मुग़ल दोस्तों पिछले वीडियो में हमने देखा की कैसे डी माटी मुगल अंपायर का डिक्लिन हुआ हमने देखा की किस तरह औरंगज़ेब के री के दौरान डिक्लिन स्टार्ट हुआ और इन कंबटेंट सक्सेस के करण ये अंपायर पुरी तरह से खत्म हो गया लोकल और रीजनल पॉलीटिकल फोर्सेस हुआ और उन्होंने खुद को असर्ट करना शुरू कर दिया यानी लेट 17थ सेंचुरी में ही पॉलिटिक्स में मेजर चेंज देखने को मिले 18थ सेंचुरी के दौरान कई इंडिपेंडेंस और सेमी इंडिपेंडेंस पावर्स का राइस हुआ जैसे बंगाल अवध हैदराबाद मैसूर और मराठा किंग्डम्स यही वो पावर्स थी जिन्होंने मुगल अंपायर की डिक्लिन के बाद पॉलीटिकल किया और इन्हीं पावर्स का सामना करके ब्रिटिश को इंडिया में अपनी सुप्रीमेसी सेटअप कुर्मी थी दोस्तों आज हम इन्हीं रीजनल पावर्स के बड़े में डिस्कस करेंगे जो मुगल अंपायर के बाद राइस हुई क्लासिफिकेशन से और देखते हैं इन स्टेटस के फीचर्स क्या थे क्लासिफिकेशन ऑफ स्टेटस मुगल अंपायर की डिक्लिन होते ही जो रीजनल पावर उभरकर आएं उनको तीन कैटिगरीज में डिवाइड किया जा सकता है पहले सक्सेशन स्टेटस यानी ऐसे स्टेटस जहां की मुगल प्रोविंस के गवर्नर में असर्ट करना शुरू किया जैसे बंगाल अवध और हैदराबाद दूसरी न्यू स्टेटस यानी ऐसी स्टेटस जहां पे रिबेलीयन के चलते लोकल चीफ़्टंस जमींदारा और पेज्जंस ने अपना स्टेट सेटअप किया जैसे मराठा अफगान जाट और पंजाब और तीसरी इंडिपेंडेंस स्टेटस यानी ऐसे स्टेटस जहां मुगल इन्फ्लुएंस का बिल्कुल भी पेनिट्रेशन नहीं था और मुगल अंपायर की डिश स्टेबलाइजर होते ही इन स्टेटस ने ऑटोनॉमी अनाउंस कर दी इसमें मेली साउथ वेस्ट और साउथ ईस्ट कास्ट और नॉर्थ ईस्ट इंडिया के स्टेटस इंक्लूड थे जैसे मैसूर केरला राजपूत होम्स शुरू करते हैं हैदराबाद और कर्नाटक स्टेट के डिस्कशन से हैदराबाद और डी कर्नाटक हैदराबाद स्टेट को निजामुद्दीन 1724 में एस्टेब्लिश किया उनको क्लीक खान के नाम से भी जाना जाता है निजामुद्दीन औरंगज़ेब के एरा के बाद के लीडिंग नोबल्स में से एक थे 17-20 में उनको डेक्कन की वायसरॉयल भी मिली 1720 से 1722 के बीच उन्होंने 22 रॉयल्टी के सभी दावेदारों को डिफीट किया 1722 से 1724 के बीच वो मुगल अंपायर के वजीर थे एंपरर मोहम्मद शाह की इन कैपेसिटी से फ्रस्ट्रेटेड होकर उन्होंने डेक्कन में वापस लौट का फैसला किया जहां वो अपनी सुप्रीमेसी मेंटेन कर सकते थे यही पर उन्होंने हैदराबाद स्टेट का फाउंडेशन रखा उन्होंने कभी भी अपनी इंडिपेंडेंस को ओपनली अनाउंस नहीं किया लेकिन प्रैक्टिस में वह एक इंडिपेंडेंस रोलर की तरह ही रूल करते रहे उन्होंने हिंदू की तरफ टोलरेंट पॉलिसी को अपनाया एग्जांपल के तोर पर उन्होंने एक हिंदू पुरानचंद को अपना दीवान बनाया उन्होंने मुगल पैटर्न पर जागीरदार सिस्टम को इंप्लीमेंट करके डेक्कन में एक ऑर्डरली एडमिनिस्ट्रेशन को एस्टेब्लिश किया और अपनी पावर को कंसोलिडेटेड किया इसी के साथ उन्होंने पावरफुल मराठस को भी अपने डोमिनियन से बाहर ही रखा 1748 में निजामुल मुल्क की डेथ के बाद हैदराबाद फिर से डिसइंटीग्रेट हो गया कर्नाटक की बात करें तो ये रीजन मुग़ल का एक सुबह था और हैदराबाद के निजाम की अथॉरिटी के अंदर आता था कर्नाटक रीजन आज के तमिलनाडु और सदन आंध्र प्रदेश में पूर्वी घाट और बे का बंगाल के बीच का पेनिनसुलर रीजन था जी तरह निजाम ने खुद को दिल्ली से अलग किया वैसे ही कर्नाटक की डिप्टी गवर्नर ने खुद को डेक्कन के इन्फ्लुएंस से इंडिपेंडेंस कर दिया जिसके चलते वह नवाब कर्नाटक कहे जान लगे और ये ऑफिस भी कर्नाटक की पहले नवाब बने और उन्होंने बिना निजाम की परमिशन के 1732 में अपने नेफ्यू दोस्त अली को अपना सक्सेसर अनाउंस कर दिया इंटरनल स्ट्रगलर होने लगी जिसका फायदा यूरोपियन ट्रेडिंग कंपनी ने उठाया और अब वो इंटरनल पॉलिटिक्स में डायरेक्टली इंटरफेयर करने लगे अब आगे बढ़ते हैं और देखते हैं बंगाल के राइस के बड़े में बंगाल सेंट्रल अथॉरिटी की वीकनेस की चलते एक्सेप्शनल एबिलिटी के दो लोगों ने बंगाल को एक विरुअली इंडिपेंडेंस स्टेट बना दिया और ये दो लोग थे मुर्शीद कोली खान और अली वर्दी खान 1717 में मुर्शीद काली खान बंगाल के गवर्नर बने उन्होंने बंगाल को इंटरनल और एक्सटर्नल डेंजरस से फ्री करके शांति की स्थापना की बंगाल को जमींदारा के द्वारा होने वाली एप्प्राइजिंग से फ्री कर दिया सर बनाया गया मुर्शीद कुली खान ने बंगाल में रिवेन्यू फार्मिंग के सिस्टम को इंट्रोड्यूस किया दोस्तों रिवेन्यू फार्मिंग एक रिवेन्यू कलेक्शन का तरीका था जिसमें स्टेट रिवेन्यू ऑफिशल प्रेजेंस से रिवेन्यू कलेक्ट करता था और एक फिक्स्ड अमाउंट स्टेट को देता था खान ने लोकल जमींदारा और मर्चेंट बैंकर्स से रिवेन्यू फार्मर्स को रिक्रूट किया उन्होंने डिस्ट्रेस में जी रहे पुर कल्टीवेटर के लिए एग्रीकल्चर लोन का प्रोविजन भी रखा जिसको टिकावी कहा जाता था मुर्शीद खान और उनकी सक्सेस ने हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही एंप्लॉयमेंट की इक्वल ऑपच्यरुनिटीज दी हाईएस्ट सिविल और मिलिट्री पोस्ट को बंगाली से फाइल किया गया इंग्लिश और फ्रेंच को कोलकाता और चंद्रनगर की फैक्टरीज को 45 करने की परमिशन नहीं दी लेकिन बंगाल के साबित हुए उन्होंने इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़नी टेंडेंसी को इफेक्टिवली और नहीं किया अंडरस्टीमेट किया जिसका उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा 175657 में अली वर्दी के सक्सेसर सिराजुद्दौला पर जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने वार डिक्लेअर किया तब एक स्ट्रांग आर्मी की अब्सेंस के चलते ब्रिटिशर्स की विक्ट्री हुई अब देखते हैं अवध स्टेट के बड़े में अवध अवध की इंडिपेंडेंस प्रिंसिपल एट के फाउंडर थे सादात खान बरहन अल मुल्क जिनको 1722 में अवध का गवर्नर बनाया गया था उनके अपॉइंटमेंट के दौरान अवध प्रोविंस में कई जमींदारा ने रिबेलीयन कर दिया था कई सालों तक सादात खान को उनसे वार करना पड़ा फाइनली और बड़ी जमींदारा को सरप्राइज करने में वो सक्सेसफुल रहे 1723 में उन्होंने एक नया रिवेन्यू सेटलमेंट किया उन्होंने रिवेन्यू को इंट्रोड्यूस करके प्रेजेंस की कंडीशन में सुधार किया इसी के साथ उन्होंने पैसों को बड़े जमींदारा की ऑपरेशन से भी प्रोटेक्शन प्रोवाइड की बंगाल नवाब की तरह उनके नेफ्यू सफदरजंग ने फिर उनको सकसीड किया सफदरजंग को 1748 में मुगल अंपायर का वजीर बनाया और उनको इलाहाबाद का प्रोविंस भी ग्रैंड किया गया 1754 में उनकी डेथ हुई अपनी डेथ की पहले उन्होंने अवध और इलाहाबाद में पीस इस्टैबलिश्ड किया उन्होंने मराठा सरदार से भी एलियंस किया जिससे मराठा इन कर्जन से बच्चा जा सके राजपूत चीफ़्टंस की लॉयल्टी भी उन्होंने हासिल की सफदरजंग ने एक एक्विटेबल जस्टिस सिस्टम को भी एस्टेब्लिश किया आगे बढ़ते हैं और देखते हैं मैसूर स्टेट के बड़े में मैसूर दोस्तों साउथ इंडिया में हैदराबाद के अलावा एक और इंपॉर्टेंट पावर यानी मैसूर का राइस हैदर अली के अंदर 18 सेंचुरी में हुआ विजयनगर अंपायर के और होने के बाद से ही मैसूर स्टेट ने अपना इंडिपेंडेंस बनाए रखा मुगल अंपायर का वह सिर्फ नॉमिनल पार्ट था 1721 में पैदा हुए हैदर अली ने अपने करियर की शुरुआत मैसूर आर्मी में एक छोटे से अवसर के रूप में की वो एक ब्रिलियंट कमांडर थे उन्होंने वेस्टर्न मिलिट्री ट्रेनिंग की इंर्पोटेंस को समझा और इसे अपने ट्रूप्स में लागू किया मैसूर के रोलर नाजराज को उन्होंने 1761 में ओवरथ्रो कर दिया और अपनी अथॉरिटी एस्टेब्लिश की मंजू राज वोदिया डायनेस्टी से बिलॉन्ग करते थे सभी रिबेल्स को उन्होंने कंट्रोल में किया और जल्द ही विद्नूर सुंडा शेर कनाडा और मालाबार को कैप्चर किया उन्होंने भी रिलिजियस टोलरेंस की पॉलिसी को अपनाया वो लगातार मराठा सरदार निजाम और ब्रिटिश के साथ वार में इंगेज्ड रहे 1782 में उनकी डेथ हुई और उनकी बेटे टीपू सुल्तान ने उनको सकसीड किया टीपू सुल्तान ने नए कैलेंडर कॉइन सिस्टम और वीड्स और मेजर के स्किल को भी इंट्रोड्यूस किया इस्तेमाल किया जाता था जो की यूरोपियन फैशन में बनाए जाते थे और मैसूर में ही मैन्युफैक्चरर किया जाते थे 1796 में उन्होंने एक मॉडल नेवी को बनाने का भी एफर्ट किया मैसूर वार में उनकी डेथ हो गई है अब बढ़ते हैं केरल की तरफ केरला 18th सेंचुरी की शुरुआत में केरला बड़े नंबर ऑफ फैऊदल चिप्स और राजस में डिवाइडेड था किंग मार्तंड वर्मा ने त्रवंकोर किंगडम को 1729 के बाद इस एस्टेब्लिश किया उनके अंपायर की बाउंड्रीज कन्याकुमारी से कोचिंग तक एक स्टैंड करती थी उन्होंने वेस्टर्न मॉडल पर बेस्ड एक स्ट्रांग आर्मी ऑर्गेनाइजर की और मॉडर्न वेपंस का उसे किया उन्होंने कई इरिगेशन वर्क करवाएं रोड्स बनवाएं और कम्युनिकेशन के लिए कनाल बनवाई यहां तक सेंचुरी में मलयालम लिटरेचर का रिमरकेबल रिवाइवल देखने को मिला यह रिवाइवल केरला के राजा और के के करण हुआ की कैपिटल थी संस्कृत स्कॉलरशिप के एक फेमस सेंटर के रूप में उभर कर आया मार्तंड वर्मा को राम वर्मा ने सकसीड किया और दोनों ने मिलकर त्रवंकोर किंगडम में लंबे समय तक पीस और प्रोग्रेसिव माहौल बनाए रखा दोस्तों बात करते हैं दिल्ली के आसपास के एरियाज के बड़े में और देखते हैं मुगल अंपायर की डिक्लिन के बाद इनमें क्या डेवलपमेंट हुए सबसे पहले बात करेगी राजपूत की राजपूत दोस्तों मुगल अंपायर की बढ़नी वीकनेस के चलते राजपूत स्टेटस ने भी अपने आप को वर्चुअल फ्री करने की कोशिश की और साथ ही बाकी के अंपायर में अपने इन्फ्लुएंस को बढ़ाने की भी कोशिश की राजपूताना स्टेज अभी भी आपस में डिवाइडेड थे लगभग सभी बड़े राजपूत स्टेटस के बीच सिविल वर्स होते ही रहते थे मुगल कोर्ट की तरह यहां भी करप्शन धोखाधड़ी फैली हुई थी इसी के चलते मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को उनके ही बेटे ने 1724 में मार दिया जो वहां के बिगड़ने हालातो का गवाह है 18th सेंचुरी के सबसे आउटस्टैंडिंग राजपूत रोलर थे राजा सवाई जयसिंह ऑफ अंबे जिन्होंने 1699 से 1743 डी रोल किया वो एक डिस्टिंग्विश स्टेटमेंट लव में घर और थे वो सिटी के फाउंडर थे और उसको साइंस और आठ का एक ग्रेट सेंटर बनाया जयपुर उज्जैन वाराणसी और मथुरा में एस्टॉनोमिकल ऑब्जर्वेट्रीज बनवाई दिल्ली के जंतर मंत्र को तो हम सब जानते ही हैं वो एक सोशल रिफॉर्मर भी थे अपनी बेटियों की शादी में होने वाले लैविश एक्सपेंडिचर को कम करने के लिए उन्होंने एक डॉ को पास किया क्योंकि इस प्रैक्टिस ने फीमेल इन्फैंटिसाइड जैसी प्रैक्टिस को बढ़ावा दिया दोस्तों अब बात करते हैं जाट के बड़े में जाट जाट एक एग्रीकल्चर इस क्लास थी जो दिल्ली मथुरा और आगरा के आसपास के रीजन में रहती थी 1669 में औरंगज़ेब के रूल में मथुरा रीजन के जाट पेजयंस ने रिवॉल्ट किया और ऐसा ही एक और रिवॉल्ट 1688 में दोबारा हुआ इन रिवॉल्ट्स को कृष तो कर दिया गया लेकिन यह एरिया डिस्टर्ब ही रहा औरंगज़ेब की डेथ के बाद दिल्ली के रीजन में वो लगातार डिस्टरबेंस इस क्रिएट करते रहे भरतपुर एक जाट स्टेट था जिसको चूड़ा मां और बदन सिंह ने सेटअप किया था जो की आज पूर्वी राजस्थान के भरतपुर जिला में है सूरजमल के अंदर जाट पावर अपने पीठ पर पहुंची जिन्होंने 1756 से 1763 तक रूल किया उनकी अथॉरिटी लिस्ट में गंगा से लेकर साउथ में चंबल तक और वेस्ट आगरा सुबह से लेकर दिल्ली के सुबह तक फैली हुई थी उनके स्टेट में आगरा मथुरा मेरठ अलीगढ़ इंक्लूड थे 1763 में उनकी डेथ के बाद जाट स्टेट डिक्लिन हो गया और पेटीसमींदर्स में स्प्लिट हो गया दोस्तों अब आगे बढ़ते हैं और देखते हैं बंगश पत्थंस और रोहिलास के बड़े में बंगश पठान और रोहिलास मोहम्मद खान बंगश ने मुगल एंपरर फारुख सियार और मोहम्मद शाह के री के दौरान फर्रुखाबाद के आसपास की टेरिटरी में 17-13 में एक अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश किया यही से बंगश पत्थंस की शुरुआत हुई इवेशन के दौरान अली मोहम्मद खान ने रोहिलखंड नाम से एक अलग प्रिंसिपल किया रुहुहिलखंड हिमालय के फुट हिल्स में था यानी साउथ में गंगा और नॉर्थ में कुमाऊं हिल्स के बीच ही किंगडम था अब देखते हैं एक इंपॉर्टेंट रीजनल पावर सिक्स के बड़े में सिक्स दोस्तों टेंथ और लास्ट सिख गुरु गुरु गोविंद सिंह ने मुगल की रिपीटेड एट्रोसिटी से बचाने के लिए सिक्स को एक मिलिटेंट सेट में ट्रांसफॉर्म किया उनकी लीडरशिप में सिख कम्युनिटी एक पॉलीटिकल और मिलिट्री फोर्स बने बांदा बहादुर जिन्होंने 17008 में लीडरशिप असम की ने 8 साल तक मुगल आर्मी के अगेंस्ट स्ट्रगल किया और पैजांस और लोअर कास्ट लोगों के साथ मार्च किया 1715 में उनको कैप्चर कर लिया गया और मार दिया गया नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली के लगातार इन विजंस और पंजाब एडमिनिस्ट्रेशन के फेल होने से सिक्स को एक बार फिर से राइस होने का मौका मिला 1765 से 1800 के बीच सिक्स ने पंजाब और जम्मू को अपने कंट्रोल में ले लिया 18th सेंचुरी के और में शुगर चकिया मिशन के के रंजीत सिंह प्रॉमिनेंस में आए थे और एक एफिशिएंट एडमिनिस्ट्रेटर पंजाब के स्ट्रांग किंगडम को सेटअप करने का श्री रंजीत सिंह को ही जाता है उनके किंगडम में सतलज से लेकर झेलम तक एरिया इंक्लूड था उन्होंने अपनी आर्मी को यूरोपीय की मदद से मॉडर्नाइज्ड किया ऐसा बताया जाता है की इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद एशिया की सबसे पावरफुल आर्मी उन्हें के पास थी उनके रेन के अंतिम समय में ब्रिटिश ने उनको 1838 में त्रिपाठी एक 3d साइन करवाई जिसमें उन्होंने ब्रिटिश आर्मी को पंजाब से काबुल की तरफ पास होने की परमिशन दी इसके बाद फर्स्ट एंग्लो-अफगानवर हुआ जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी और रंजीत सिंह ने कुछ हद तक कॉर्पोरेट भी किया 1839 में उनकी डेथ हुई और उनके सक्सेस स्टेट को इंटैक्ट नहीं रख पे और जल्द ही ब्रिटिश ने उसे पर कब्जा कर लिया अब बात करते हैं लास्ट और एक इंपॉर्टेंट रीजनल पावर यानी मराठस के राइस और फल के बड़े में मुगल अंपायर के सामने सबसे बड़ा चैलेंज मराठा किंगडम की तरफ से आया बल्कि यह कहा जा सकता है की सिर्फ मराठा किंगडम ही मुगल अंपायर को रिप्लेस करने की स्ट्रैंथ रखना था लेकिन मराठा सर्ड्स में यूनिटी की कमी थी और एक जो इंडिया अंपायर को सेटअप करने के लिए जरूरी आउटलुक और विजन लॉकिंग था छत्रपति शिवाजी महाराज के ग्रैंडसन शाहू 1689 से ही औरंगज़ेब के प्रिजनर थे 177 में औरंगज़ेब की डेथ के बाद उनको रिलीज कर दिया गया और जल्द ही सतारा के शाहू और कोल्हापुर की ताराबाई के बीच एक सिविल वार छिड़ गई मराठा सरदार में एक फेक्शनलिज्म क्रिएट हो गया इस कनफ्लिक्ट के बीच बालाजी विश्वनाथ की लीडरशिप में मराठा गवर्नमेंट में एक नए तरह का सिस्टम में वाल्व हुआ ये पीरियड पेशवा डोमिनेशन का पीरियड था जिसमें मराठा स्टेट एक अंपायर में ट्रांसफॉर्म हुआ विश्वनाथ 1713 में पेशवा यानी के मिनिस्टर बने स्टेट की साड़ी पावर पेशवा के पास होने लगी यानी पेशवा एक तरह से मराठा अंपायर का फंक्शन फारुख सियार को ओवरथ्रो करने में सैयद ब्रदर्स की भी मदद की यहां से उनको मुगल अंपायर की वीकनेस का पता चला और अब वो नॉर्थ में एक्सपेंड करने के लिए तैयार हुए करने के लिए फोर्स किया गया मराठस के बड़े में हम डिटेल में अपनी नेक्स्ट वीडियो में देखेंगे अब आते हैं कंक्लुजन पर कंक्लुजन तो दोस्तों हमने देखा की किस तरह मुगल अंपायर की डिक्लिन के बाद रीजनल स्टेज का राइस हुआ औरंगज़ेब के री के दौरान ही मुगल अंपायर का डिक्लिन स्टार्ट हुआ उनकी कंट्रोवर्शियल रिलिजियस पॉलिसी की चलती रीजनल स्टेज में रिबेलीयन होने लगे और जब सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन में वीक रुलर्स आने लगे तो ये प्रोसेस और भी फास्ट हो गया वीक सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन के चलते रीजनल पावर्स उभर कर आने लगी और उन्होंने ऑटोनॉमी डिक्लेअर कर दी जल्द ही इंडिया में अंपायर एस्टेब्लिश करने की स्ट्रगल स्टार्ट हुई इसी बीच ब्रिटिशर्स लगातार अपना स्ट्रांग हॉल बढ़ाने लगे और ग्रैजुअली इंटरनल पॉलिटिक्स में इंटरफेयर करने लगे और आगे चलकर इन्हीं रीजनल पावर्स और इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच स्ट्रगल स्टार्ट हुआ जिसकी कहानी हम आगे चलकर देखेंगे दोस्तों हमने पिछली वीडियो में डिस्कस किया था की कैसे इंडिया में ट्रेड करने के लिए अलग-अलग यूरोपियन कंपनी आई हैं आज हम उन्हें में से दो कंपनी इंग्लिश और फ्रेंच के बीच की रायबरेली को डिस्कस करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों वैसे तो ब्रिटिश और फ्रेंच ट्रेड करने के लिए इंडिया आते हैं लेकिन बाद में यह दोनों इंडिया के पॉलिटिक्स में इंवॉल्व हो जाते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि ये दोनों ही कंपनी मर्चेंडाइज्म में यकीन करती थी जिसके अकॉर्डिंग प्रॉफिट को मैक्सिमाइज करने के लिए ट्रेड में मोनोपोली होना जरूरी माना जाता था दोनों पावर्स इंडिया में कमर्शियल मोनोपोली जाति थी इसलिए दोनों पॉलीटिकल पावर इस एस्टेब्लिश करने में ग जाते हैं तो दोनों के बीच रायबरेली होना भी नेचुरल था इसके साथ ही वर्ल्ड हिस्ट्री में पहले से चली ए रही ट्रेडिशनल एंग्लो फ्रेंच रिवॉल्री का रिफ्लेक्शन भी इंडिया में देखने को मिलता है तो आई एक-एक करके जानते हैं तीनों कार्नेटिक वज के बड़े में 1748 बैकग्राउंड कोरोमंडल कास्ट और उसके आसपास के एरिया को यूरोपीय ने कर्नाटक नाम दिया था इंग्लिश और फ्रेंच के बीच इंडिया में हुए सभी शब्द जनरली इसी एरिया में हुए थे इसीलिए इन्हें कर्नाटक में हुए ऑस्ट्रिया वार ऑफ सक्सेशन का इंडिया में एक्सटेंशन था 1740 यूरोप की ड्राइवरी इंडिया में पहुंच जाति है फर्स्ट कार्नेटिक वार के रूप में फर्स्ट कार्नेटिक वार के दौरान मद्रास में 1746 में बैटल ऑफ सिंह थॉमस होता है जिसमें कर्नाटक के नवाब अनवारुद्दीन और फ्रेंच फोर्सेस आमने-सामने होते हैं आई जानते हैं ऐसा क्यों होता है जब 1745 में इंग्लिश नेवी कोमोडोर कर्टिस बनते की लीडरशिप में कुछ फ्रेंडशिप कर लेती है इसका बदला लेने के लिए फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स मॉरीशस से एक फ्रेंच फ्रीज अंग्रेजन की मद्रास फैक्ट्री पर अटैक करती है और आसानी से मद्रास को जीत लिया जाता है लेकिन इसी बीच कर्नाटक के नवाब अनवारुद्दीन खान फ्रेंच से कहते हैं की उनकी टेरिटरी में वो इस तरह फाइट नहीं कर सकते और तुरंत मद्रास से वापस जान का ऑर्डर देते हैं और फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स उन्हें यह कहकर शांत कर देते हैं की मद्रास को जितने के बाद वो उसे नवाब को गिफ्ट कर देंगे जब फ्रेंच मद्रास जितने के बाद भी नवाब से किया हुआ अपना प्रॉमिस नहीं पूरा करते तो अंदर उद्दीन अपने बेटे महफूज खान की कमांड में 10000 सोल्जर की एक आर्मी मद्रास को कैप्चर करने के लिए भेज देते हैं फिर फ्रेंच की आर्मी के साथ का सामना होता है सन थॉमस नाम की जगह पर जो रिवर आद्यार के बैंक पर लोकेटेड आर्मी आसानी से एक बड़ी इंडियन आर्मी को हर शक्ति है क्योंकि इस बैटल में फ्रेंच साइड से 20030 यूरोपीय और 700 इंडियन सोल्जर मिलकर नेटिव आदमी की 10000 की फोर्स को हर देते हैं उसके अलावा डेक्कन में चल रहे एंग्लो फ्रेंच कनफ्लिक्ट में लेवल फोर्स की इंर्पोटेंस भी इस वार के बाद बहुत क्लियर हो जाति है दोस्तों बेल की संधि से फर्स्ट कार्नेटिक वार का एंड तो हो गया लेकिन इनके आपस में रिश्ते इससे फ्रेंडली नहीं बनते हैं इनकी रिवरी कंटिन्यू रहती है और जन्म देती है सेकंड कर्नाटक वार को आई अब उसके बड़े में जानते हैं सेकंड कर्नाटक वह 1749 तू 1754 बैकग्राउंड फर्स्ट कार्नेटिक वार के बाद फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स के पॉलीटिकल एंबिशियस बाढ़ जाते हैं वह साउदर्न इंडिया में फ्रेंच की पावर और पॉलीटिकल प्रभाव को बढ़ाने के लिए वहां के लोकल डायनेस्टिक डिस्प्यूट में इंटरफेयर करना शुरू करते हैं उनका एक एक इसमें अंग्रेजन की पावर को कम करना भी था उनको ऐसा करने का मौका मिलता है जब हैदराबाद और कर्नाटक के थ्रू को लेकर डिस्प्यूट शुरू हो जाता है हैदराबाद के निजाम आजम जहां की 21st मे 1748 को मृत्यु हो जाति है और उनकी बेटे नसीब जंग हैदराबाद के अगली निजाम बनते हैं लेकिन इनके नेफ्यू और आसिफ जहां के ग्रैंडसन मुजफ्फर जंग इनको चैलेंज करते हैं और खुद निजाम की गाड़ी चाहते हैं उधर दूसरी तरफ कर्नाटक में नवाब अनवारुद्दीन को चैलेंज कर रहे होते हैं वहां के फॉर्म और नवाब दोस्त अली के सन इन डॉ चंदा साहब डुप्लेक्स को इसमें अपनी पॉलीटिकल स्कीम को आगे बढ़ाने का मौका दिखता है इसलिए वो डेक्कन में मुजफ्फर जंग और कर्नाटक की नवाब शिव के लिए चंदा साहब का सपोर्ट करने का डिसीजन लेते हैं यह देखने पर इंग्लिश नासिर जंग और अनवारुद्दीन की साइड हो जाते हैं इस तरह यहां से शुरू होती है सेकंड कर्नाटक वार की कहानी जो 1749 से 1754 तक चला है आई जानते हैं इस वार के दौरान क्या-क्या घटनाएं हुई कोर्स ऑफ डी वर्ल्ड डुप्लेक्स के प्लेन को सक्सेस मिलती है जब मुजफ्फर जंग चंदा साहब और फ्रेंच की कंबाइंड आर्मी के हाथों 1749 में वेल्लोर के पास हुई बैटल ऑफ अंबर के दौरान अनवारुद्दीन की हर और मृत्यु हो जाति है और दिसंबर 1750 में नासिर जंग को भी मार दिया जाता है और डुप्लेक्स को रिवॉर्ड के तोर पर रिवर कृष्णा के साउथ की पुरी मुगल टेरिटरी का गवर्नर डिक्लेअर कर देते हैं इसके अलावा नॉर्दन सरकार के कुछ डिस्ट्रिक्ट भी फ्रेंच को दे दिए जाते हैं और निजाम की रिक्वेस्ट पर एक फ्रेंच आर्मी को हैदराबाद में तैनात कर दिया जाता है जिसे वहां फ्रेंच एंट्रेंस को सुरक्षित रखा जा सके लेकिन कुछ ही मीना के बाद मुजफ्फर जंग को मार दिया जाता है और फ्रेंच मुजफ्फर के अंकल सलबत जंग को नया निजाम बनाते हैं 1751 में चंदा साहब कार्नेट के नवाब बन जाते हैं इस समय डुप्लेक्स अपनी पॉलीटिकल पावर की हाइट पर होते हैं लेकिन जल्दी ही कहानी में ट्वीट आता है लेट नवाब अनवारुद्दीन के बेटे मोहम्मद अली तृष्णो बाली के फोर्ट में रिफ्यूज लिए हुए थे चंदा साहब और फ्रेंच के अनेक प्रयासों के बाद भी जिला नहीं जीता जाता अंग्रेज भी शांत नहीं बैठने थे रॉबर्ट क्लाइव जो मोहम्मद अली को तृष्णापल्ली में इफेक्टिव रिइंफोर्समेंट नहीं दे पाते गवर्नर साउंड्स को एक काउंटर मूव सो जाते हैं जिसके तहत कार्नेटिक की कैपिटल पर एक सरप्राइज अटैक प्लेन किया जाता है जिससे तिरछीणा पाली से प्रेशर को डाइवर्ट किया जा सके प्लेन के मुताबिक लाइव सिर्फ 210 सोल्जर के फोर्स के साथ अगस्त 1751 में अर्को को कैप्चर कर लेते हैं चंदा साहब के द्वारा तिरछी नपोली से डाइवर्ट करके 4000 की फोर्स भेजी जाति है लेकिन यह फोर्स एयरपोर्ट को जितने में असफल रहती है आर्कोट की सफलता के बाद अंग्रेजन का मनोबल और भी बाढ़ जाता है और 1752 में स्ट्रिंगर लॉरेंस एक स्ट्रांग इंग्लिश फोर्स के साथ किचेनॉनपल्ली में फ्रेंच से सुरेंद्र कर लेते हैं और इसी बीच चंदा साहब को तंजौर के राजा षड्यंत्र करके मार डालते हैं मोहम्मद अली कर्नाटक के नवाब बन जाते हैं तिरुचिरापल्ली में हुए डिजास्टर के बाद डुप्लेक्स की किस्मत का सितारा डूबने लगता है फ्रेंच कंपनी के डायरेक्टर डुप्लेक्स के पॉलीटिकल एंबीशन और उसे पर हुए खर्च से खुश नहीं होते और उन्हें इंडिया से वापस फ्रांस बुला लिया जाता है 1754 में डुप्लेक्स को रिप्लेस करके फ्रेंच के नए गवर्नर बनते हैं गोरे हुए अंग्रेजन के साथ नेगोशिएशंस शुरू करते हैं और 1755 में ट्रीटी का पांडिचेरी साइन करते हैं उसको भी समझते हैं इंप्लीकेशंस सेकंड कार्नेटिक वार से ये साफ हो गया की यूरोपीय कंपनी को सक्सेस के लिए इंडियन अथॉरिटी के सपोर्ट की जरूर नहीं है बल्कि उल्टा इंडियन अथॉरिटी कंपनी के ऊपर डिपेंडेंट होने लगी थी कर्नाटक में मोहम्मद अली और हैदराबाद में सलबत जंग यूरोपीय कंपनी के पत्रों एन होकर क्लाइंट बन गए थे इंग्लिश और फ्रेंच के बीच कनफ्लिक्ट का ये दूसरा राउंड भी इनकनक्लूसिव रहा क्योंकि अंग्रेजन के कैंडिडेट मोहम्मद अली कर्नतें के नवाब तो बन जाते हैं लेकिन फ्रेंच डेक्कन में अभी भी स्ट्रांग थे उनके कैंडिडेट सलबत जंग हैदराबाद के निजाम थे साथ ही सालाना 30 लाख रुपए रिवेन्यू देने वाले नॉर्दर्न सरकार के कुछ इंपॉर्टेंट डिस्ट्रिक्ट भी फ्रेंच कंपनी को मिल गए साउथ इंडिया में फ्रेंच की पोजीशन कुछ कमजोर और अंग्रेजों की पोजीशन कुछ स्ट्रांग जरूर होती है इंडिया में एंग्लो फ्रेंच रिवरी का डिसाइड एक्शन होता है थर्ड कर्नाटक वार में तो आई अब उसके बड़े में डिस्कस करते हैं थर्ड कर्नाटक वी ऑटो 1758 तू 1763 फर्स्ट कर्नाटक भी यूरोप में चल रही इंग्लिश और फ्रेंच के स्ट्रगल की इंडिया में गंज थी 1756 में यूरोप में 7 इयर्स वार शुरू हो जाता है और फिर से इंग्लैंड और फ्रांस आमने सामने होते हैं इसका एक्सटेंशन इंडिया तक होता है फ्रेंच गवर्नमेंट 1757 में जनरल काउंटिंग लाली को इंडिया भेजती है जो 12 महीने की यात्रा के बाद 1758 में यहां पहुंचने हैं इसी बीच ब्रिटिश 1757 में बंगाल में प्लासी का बैटल जीत चुके होते हैं जिससे उन्हें रिसोर्सेस मिल जाते हैं और 1758 में कैप्चर कर लेते हैं लाली का नेक्स्ट मद्रास को गर्ने का होता है लेकिन वहां अंग्रेजन की एक स्ट्रांग नवल फोर्स ए पहुंचती है और लाली को मजबूर होकर घेराव खत्म करना पड़ता है इसके बाद लाली हैदराबाद से वासी को बुला लेते हैं ये फ्रेंच की एक बड़ी गलती साबित होती है क्योंकि इससे उनकी लैंड गैरसैण कमजोर पद गई और इसी बीच पोकोक के कमांड में इंग्लिश फ्लीट फ्रेंच फ्रीज को तीन बार हर देती है और फ्रेंच फ्रीज को इंडियन वाटर छोड़कर जान पर मजबूर कर देते हैं सी पर कमांड होने के बाद अब अंग्रेजन के लिए जीत का रास्ता खुला जाता है और उनकी फाइनल विक्ट्री में कोई डाउट नहीं राहत फ्रेंच को 20 सेकंड जनवरी 1760 को तमिलनाडु में वांडीवाश की बैटल में सर कू के हाथों बुरी तरह हर का स्वाद रखना पड़ता है वासी को प्रिजनर बना लिया जाता है 8 महीने के ब्लॉक आते के बाद पांडिचेरी भी अंग्रेजन द्वारा जीत लिया जाता है और 16th जनवरी 1761 को ला सुरेंद्र कर देते हैं उसके बाद जल्दी ही फ्रेंच माहे और जिंगी को भी को देते हैं इस तरह साउथ इंडिया में एंग्लो फ्रेंच रिवरी के ड्रामा का फाइनली पर्दा गिरता है फ्रेंच की पोजीशन अब वापस उठने लायक नहीं र गई थी यूरोप में 7 इयर्स बर का और होता है 1763 में ट्रीटी का पेरिस के द्वारा इसके प्रोविजंस के अनुसार फ्रेंच को पांडिचेरी और कुछ अन्य सेटलमेंट वापस कर दिए जाते हैं लेकिन इस शर्ट पर की इनको कभी भी 45 नहीं किया जाएगा इस तरह इंडिया में फ्रेंच की पॉलीटिकल एंबिशियस का हमेशा के लिए और हो जाता है दोस्तों यह तो हमने जान लिया की फ्रेंच और इंग्लिश कंपनी के कनफ्लिक्ट में फाइनली इंग्लिश को जीत मिलती है और फ्रेंच को हर पर इसके पीछे के कुछ रीजंस को भी जानते हैं है इसलिए कम कर रहे लोगों में ऐंठूसियाज्म और सेल्फ कॉन्फिडेंस की कमी नहीं थी कंपनी इंस्टेंट डिसीजंस भी ले शक्ति थी क्योंकि उन्हें गवर्नमेंट की परमिशन नहीं चाहिए होती थी दूसरी तरफ फ्रेंच कंपनी गवर्नमेंट की कंट्रोल में थी इससे डिसीजन मेकिंग में भी डिले होता था दूसरा रीजन था अंग्रेजन की सुपीरियर नेवी इसकी हेल्प से वो सभी इंपॉर्टेंट बॉटल्स जीत पाते हैं साथ ही इंडिया की बड़ी और इंपॉर्टेंट सिटीज पर ब्रिटिश का ही कंट्रोल था जैसे की कोलकाता बॉम्बे और मद्रास जबकि फ्रेंच के पास सिर्फ पांडिचेर ही था ऐसा कई हिस्टोरियन का मानना भी है की इंग्लिश कोलकाता से शुरू करके पूरे इंडिया को कंट्रोल कर सकते थे लेकिन पांडिचेरी से शुरू करके फ्रेंच गया कोई भी ऐसा नहीं कर सकता था इसके अलावा इंग्लिश कंपनी के पास फंड्स की कमी नहीं थी कार्नेटिक वर्स के बीच में ही 1757 में प्लासी का बैटल होता है जिसमें जितने पर कंपनी की वेल्थ में और भी ज्यादा इजाफा होता है लेकिन फ्रेंच के पास फंड्स की शॉर्टेज बनी रहती है है वह पॉलीटिकल एंबिशियस की वजह से कमर्शियल इंटरेस्ट की अनदेखी कर देते हैं एक और इंपॉर्टेंट रीजन था ब्रिटिश सक्सेस के पीछे अंग्रेजन की सुपीरियर मिलिट्री कमांड्स इंग्लिश साइट पर सरण कू मेजर स्ट्रिंग लॉरेंस रॉबर्ट क्लाइव जैसे लीडर्स की लंबी लिस्ट के कंपैरिजन में फ्रेंच साइट पर सिर्फ डुप्लेक्स का ही नाम याद राहत है दोस्तों ये थे कुछ रीजंस जिनकी वजह से इंग्लिश फ्रेंच को हराकर इंडिया में अपना डोमिनेंस बनाने में कामयाब होते हैं कंक्लुजन थर्ड कर्नाटक वार में जीत के बाद इंडिया में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कोई भी यूरोपियन राइवल नहीं बचत और इसके बाद वो अपना पूरा ध्यान इंडिया में एक डोमिनेंट पॉलीटिकल पावर बने पर लगा देते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी कैसे धीरे-धीरे एक अंपायर सेट अप करती है यह हम अपनी आने वाली वीडियो में देखेंगे रोड तू प्लासी इन बक्सर दोस्तों अभी तक हमने देखा की कैसे इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी इंडिया में अपने सभी यूरोपियन राइवल्स को हराकर मोनोपोलिस्टेब्लिश कर लेती है अब हम जानेंगे की कंपनी कैसे इंडियन रुलर्स को हराकर इंडिया में एक डोमिनेंट पॉलीटिकल पावर बनकर उभरती है इंडियन प्रोविंस को जीत लेती है और इसमें सबसे पहले नंबर आता है बंगाल का बैटल ऑफ प्लासी और बक्सर को इंडियन हिस्ट्री के मेजर टर्निंग प्वाइंट्स में से माना जाता है तो आज हम इन्हीं गेम चेंजिंग बॉटल्स के बड़े में डिस्कस करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन बंगाल उसे समय के इंडिया के प्रोविंस में सबसे ज्यादा फर्टाइल और रिच था आज के बांग्लादेश बिहार और उड़ीसा इसके पाठ होते थे यहां की इंडस्ट्रीज और कॉमर्स भी वेल डेवलप्ड थी नाम के लिए तो यह मुगल अंपायर का पार्ट था लेकिन यहां के नवाब वास्तव में इंडिपेंडेंस रोलर की तरह शासन कर रहे थे इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल में कई जगह अपनी फैक्टरीज एस्टेब्लिश करती है और कोलकाता में 1696 से 176 के बीच एक फोर्ट का भी कंस्ट्रक्शन करती है इस फोर्ट का नाम इंग्लैंड के किंग विलियम डी थर्ड के ओनर में फोर्ट विलियम रखा जाता है मतलब यह डिफरेंस की परपज के लिए होता था जिसमें कॉटन और सिल्क टैक्सटाइल्स मेजर ट्रेड आइटम थे 17 मुगल एंपरर फारुख सियार अपने फरमान के द्वारा कंपनी को बंगाल में ड्यूटी फ्री ट्रेड करने की परमिशन भी दे देते हैं हम का सकते हैं की बंगाल में कंपनी के काफी स्ट्रांग ट्रेडिंग इंटरेस्ट थे फिर ऐसा क्या हुआ की कंपनी और बंगाल के नवाब के बीच 1757 में प्लासी की बैटल होती है आई जानते हैं बैकग्राउंड तू बैटल ऑफ प्लासी बंगाल में सिचुएशन तब बदलने लगती है जब 1756 में एक स्ट्रांग रोलर नवाब अली वर्दी खान की मृत्यु हो जाति है और उनके ग्रैंडसन सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बनते हैं सिराजुद्दौला की कुछ राइवल्स थे जो उनकी जगह खुद नवाब बन्ना चाहते थे जैसे की पूर्णिया की शौकत जंग और ढाका की घसीटी बेगम इसके साथ ही कर्नाटक वर्स के बाद से ही नवाब इंग्लिश कंपनी के प्लांस को लेकर डू में थे ऐसी सिचुएशन में जब इंग्लिश कंपनी इनडायरेक्ट नवाब की राइवल घसीटी बेगम को सपोर्ट करती है और बंगाल की पॉलीटिकल ऑफेंडर्स भी देती है तो नवाब का गुस्सा और भी बाढ़ जाता है है इसके अलावा मुगल फरमान के अनुसार जो दस्तक यानी की फ्री पैसेज कंपनी को अपने ट्रेड के लिए मिलते थे कंपनियां का मिस उसे करना शुरू कर देती है कंपनी के एम्पलाइज कंपनी के ट्रेड के साथ-साथ अपने प्राइवेट ट्रेड में भी इन फ्री पैसेज का उसे करते थे जबकि मुगल फरमान में सिर्फ कंपनी के ट्रेड को ही ये राइट दिया गया था इसके अलावा इंडियन मरचेंट्स को भी पैसेज बीच देते थे यह एक तरह से चीटिंग थी और इसे नवाब को काफी रिवेन्यू लॉस भी उठाना पद रहा था इसी बीच कंपनी फोर्ट विलियम को और भी ज्यादा 45 करने लगती है और फोर्ट की वाल्स पर गंज तैनात कर दी जाति हैं क्योंकि अंग्रेजन को डर था की फ्रेंच से चल रहा कनफ्लिक्ट बंगाल तक एक्सटेंड कर सकता है यह सब देखने के बाद नवाब कंपनी को वार्निंग देते हैं की वह ऐसा करना बैंड करें लेकिन कंपनी उनकी बात नहीं सुनती नवाब को लगता है की कंपनी उनकी सॉवरेन्टी को चैलेंज कर रही है इसलिए वो कंपनी के खिलाफ एक्शन लेते हैं और कोलकाता की तरफ मार्च शुरू करते हुए फोर्ट विलियम को 28 जून 1756 को कैप्चर कर लेते हैं फिर नवाब अपनी इस आसन जीत को सेलिब्रेट करने के लिए कोलकाता का चार्ज मानिकचंद को देकर अपनी कैपिटल मुर्शिदाबाद लोट जाते हैं यह नवाब की बहुत बड़ी गलती साबित होती है वो अपने एनीमी की स्ट्रैंथ को अंडरस्टीमेट कर लेते हैं इसका फायदा उठाकर कुछ अंग्रेज अपनी शिप के साथ हुगली रिवर के रास्ते भाग जाते हैं क्योंकि मानिकचंद के पास कोई नवल फोर्स नहीं थी इसीलिए वो अंग्रेजन को ऐसा करने से रॉक नहीं पाते इंग्लिश ऑफिशल्स सी के पास फूलता नाम की जगह पर शरण लेते हैं क्योंकि यहां अपनी नवल स्ट्रैंथ की वजह से वह सेफ र सकते थे यहां वह मद्रास से हेल्प अपने का वेट करते हैं कोलकाता के फल की न्यूज़ अगस्त 1756 तक मद्रास पहुंचती है और फिर कुछ डिले के बाद 16th अक्टूबर 1756 को एडमिरल वाटसन और करनाल क्लाइव की लीडरशिप में मद्रास से एक स्ट्रांग नवल और मिलिट्री फोर्स कोलकाता के लिए भेज दी जाति है यह फोर्स दिसंबर 1756 में कोलकाता पहुंच जाति है और इसके बाद सेकंड जनवरी 1757 को ही क्लाइव मानिकचंद को ब्राइब देकर कोलकाता को वापस जीत लेते हैं और फरवरी 1757 में नवाब सिराजुद्दौला क्लाइव के साथ अलीपुर की ट्वीटी साइन करते हैं नवाब ने कोलकाता को जितने के बाद उसका नाम अलीपुर कर दिया था इस ट्वीटी के अनुसार नवाब अंग्रेजन को उनके पुराने ट्रेडिंग प्रिविलेज वापस कर देते हैं उनको कोलकाता को 45 करने की परमिशन दे देते हैं और इस दौरान हुए अंग्रेजन के पूरे नुकसान की भरणी का भी प्रॉमिस करते हैं लेकिन इसके बाद भी अंग्रेज संतुष्ट नहीं होते और एक कंस्पायरेसी प्लेन की जाति है जो जन्म देती है बैटल ऑफ प्लासी को तो आई जानते हैं इस कंस्पायरेसी और बैटल ऑफ प्लासी के बड़े में बैटल ऑफ प्लासी अंग्रेज समझ चुके होते हैं किस राजू दौला के नवाब रहते हुए उनके ऊपर खतरा हमेशा बना रहेगा इसलिए वो नवाब के खिलाफ चल रही एक इंस्पीरसी से जुड़ जाते हैं इस कंस्पायरेसी के अनुसार सिराजुद्दौला की जगह उनके ही मीर बक्शी मीर जफर को नवाब बनाने का प्लेन होता है मीर जफर के अलावा इसमें शामिल होते हैं मानिकचंद जो कोलकाता के ऑफिसर इंचार्ज होते हैं अमीचंद जो एक रिच मर्चेंट थे जगत सीट जो बंगाल के सबसे बड़े बनकर थे और खादिम खान जो नवाब की आर्मी में कमांडर थे प्लेन के अकॉर्डिंग अंग्रेज नवाब के सामने ऐसी डिमांड रखते हैं जिन्हें नवाब कभी नहीं मां सकते थे नवाब समझ जाते हैं की अब अंग्रेजों के साथ वार के अलावा और कोई रास्ता नहीं है दोनों साइड 23rd जून 1757 को प्लासी के मैदान पर जो मुर्शिदाबाद से अराउंड 30 किलोमीटर की दूरी पर था मिलते हैं लेकिन प्लासी का बैटल सिर्फ नाम के लिए ही बैटल था इसमें अंग्रेजन की साइड से 50 से भी कम लोग मारे जाते हैं जबकि नवाब लगभग अपने 500 आदमी को देते हैं दबाव की आर्मी का मेजर पार्ट जो ट्रेडर्स मीर जफर और राय दुर्लभ की कमांड में था बैटल में कोई हिस्सा ही नहीं लेट दबाव के सोल्जर का सिर्फ एक छोटा सा ग्रुप ही जिसको मीर मदन और मोहनलाल लीड कर रहे थे बहादुर के साथ लड़ता है लेकिन अंत में नवाब मैदान छोड़कर जान पर मजबूर हो जाते हैं और मीर जफर के पुत्र मीरां उनको मुर्शिदाबाद के रास्ते में मार देते हैं मीर जफर को बंगाल का नवाब बना दिया जाता है और इनाम के रूप में अंग्रेजन को 24 परगना की जमींदारी दी जाति है और साथ ही कोलकाता पर अटैक की कंपनसेशन के लिए एक करोड़ 7700000 मीर जफर कंपनी को देते हैं इसके अलावा बहुत से गिफ्ट और ब्राइब कंपनी के ऑफिशल्स को भी दिए जाते हैं जैसे की क्लाइव को अराउंड 2 मिलियन से भी ज्यादा का इनाम मिलता है दोस्तों यह तो थी बैटल ऑफ प्लासी कहानी जो अंग्रेजन के लिए बंगाल के मास्टर बने का रास्ता खोल देती है और कैसे मीर जफर जैसे एक बंदे की ट्रचूड़ी की वजह से इतिहास की दिशा ही बादल जाति है ईस्ट इंडिया कंपनी अब कमर्शियल के साथ पॉलीटिकल एनटीटी भी बन जाति है इससे उनकी प्रेस्टीज में भी ज्यादा होता है और एक ही झटका में वो इंडिया के अंपायर की एक मेजर कंटेंडर बन जाते हैं बंगाल से मिलने वाले रिवेन्यू की वजह से ही अंग्रेज एक स्ट्रांग आर्मी ऑर्गेनाइजर कर पाते हैं और देश के बाकी हसन को जितने का खर्चा भी मैनेज कर पाते हैं इसके अलावा बंगाल पर कंट्रोल एंग्लो फ्रेंच स्ट्रगल में भी डिसाइसिव रोल निभाते है जैसा की हमने अपनी पिछली वीडियो में देखा था तो दोस्तों यह तो बात हुई प्लासी के युद्ध की लेकिन बंगाल को जितने की कहानी यहां खत्म नहीं होती वो खत्म होती है बक्सर के युद्ध के बाद तो चलिए अब उसके बड़े में भी चर्चा करते हैं बैटल ऑफ बक्सर प्लासी की बैटल में कंपनी का साथ देने के बदले में मीर जफर को बंगाल की नवाबशिप मिल जाति है लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास होता है की उन्हें यह डील काफी महंगी पद रही है कंपनी और उसके ऑफिसर्स की डिमांड बढ़नी ही रहती हैं और नवाब की ट्रेजरी धीरे-धीरे खाली होने लगती है कंपनी के डायरेक्टर ने भी ऑर्डर दे दिया था की बंगाल से ही मुंबई और मद्रास प्रेसिडेंसी का खर्चा भी निकाला जाए और बंगाल के रेवेन्यू से ही कंपनी इंडिया से होने वाले एक्सपोर्ट्स को परचेज करेगी इसका मतलब कंपनी अब सिर्फ इंडिया से ट्रेड नहीं कर रही थी बल्कि बंगाल के नवाब पर अपने कंट्रोल का उसे करके वहां की वेल्थ को ड्रीम करने में लगी थी मीर जफर समझ गए की कंपनी और उसके ऑफिशल्स की डिमांड्स को पूरा करना नामुमकिन है दूसरी तरफ कंपनी के ऑफिशल्स भी नवाब को क्रिटिसाइज करने लगता हैं क्योंकि वो उनकी एक्सपेक्टशंस को पूरा नहीं कर रहे थे इसलिए अक्टूबर 1760 में कंपनी मीर जफर को फोर्स करती है की वो नवाब की गाड़ी अपने सोनल डॉ अमीर कासिम के फीवर में छोड़ दें और इस तरह मीर जफर को रिप्लेस करके बंगाल के नवाब बन जाते हैं मीर खासी मीर खासिम बदले में कंपनी को बर्दवान मिदनापुर और चित्तागोंग डिस्ट्रिक्ट की जमींदारी दे देते हैं साथ ही इंग्लिश ऑफिशल्स को करीब 29 लाख रुपए के प्रेजेंस भी गिफ्ट करते हैं कंपनी ने सोचा था की मीर कासिम उनके पपेट की तरह रहेंगे लेकिन मीर कासिम कंपनी की ऐसी सभी उम्मीद पर पानी फ़िर देते हैं वह एक टेबल एफिशिएंट और स्ट्रांग रोलर थे मीर कासिम अपने आप को फॉरेन कंट्रोल से फ्री करना चाहते थे उनको यह रिलाइज होता है की अपनी इंडिपेंडेंस को मेंटेन करने के लिए उनके पास एक एफिशिएंट आर्मी और फूल ट्रेजरी का होना जरूरी है इसलिए वह अलग-अलग रिफॉर्म्स के थ्रू अपनी इनकम बढ़ाने की कोशिश करते हैं जैसे की रिवेन्यू एडमिनिस्ट्रेशन में से करप्शन को खत्म करके इसके साथ ही वह यूरोपियंस की तरह एक मॉडर्न और डिसिप्लिन आर्मी बनाने की कोशिश करते हैं कंपनी से दूरी बनाने के लिए वह अपनी कैपिटल को भी मुर्शिदाबाद से मुंगेर शिफ्ट कर लेते हैं मीर कासिम कंपनी के ऑफिसर्स के द्वारा होने वाले दस्तक का मिसयूज रोकने के लिए एक दृष्टिक स्टेप लेते हैं और इंटरनल ट्रेड पर लगे वाली सभी ड्यूटीज को खत्म कर देते हैं एक सावरेन रोलर होने के नाइट वो ऐसा कर सकते थे इसकी वजह से इंडिया के और कंपनी के मरचेंट्स की पोजीशन एक जैसी हो जाति है यह सब कंपनी को बिल्कुल भी पसंद नहीं आता वो अपने और इंडियन के बीच एक क्वालिटी को टॉलरेट नहीं कर सकते थे कंपनी नवाब से डिमांड करती है की इंडियन ट्रेडर्स पर फिर से इंपोज कर दी जाए इसी बात पर बंगाल के नवाब और कंपनी के बीच एक बार फिर बैटल की शुरुआत होती है 1763 में शुरू की कुछ बॉटल्स में मीर कासिम हर जाते हैं और वह अवध चले जाते हैं अवध में मीर कासिम वहां के नवाब सुझाव डोला और मुगल एंपरर शाह आलम तू के साथ एलाइंस बनाते हैं यह तीनों मिलकर 22nd अक्टूबर 1764 को बक्सर में मेजर मंगरो की कमांड में कंपनी की आर्मी से आमना सामना करते हैं इन तीनों पावर्स की 40 हजार से 60000 की कंबाइंड आर्मी कंपनी की अराउंड 7000 की आर्मी से बुरी तरह हर जाति है और बक्सर के बैटल में अंग्रेजन की जीत होती है दोस्तों यह तो हुई बक्सर के युद्ध की कहानी आई अब इसके रिजल्ट्स क्या रहे वो भी जानते हैं आफ्टर मठ ऑफ बक्सर बक्सर का बैटल इंडियन हिस्ट्री की मोस्ट डिसाइसिव बॉटल्स में से एक माना जाता है इसने दो मेजर इंडियन पावर्स की कंबाइंड आर्मी के अगेंस्ट इंग्लिश आर्म्स की सुपीरियर को साबित कर दिया था इसने ब्रिटिशर्स को बंगाल बिहार और उड़ीसा का मास्टर बना दिया और अवध को भी इनकी दया पर लाकर खड़ा कर दिया मुगल एंपरर शाह आलम तू से कंपनी को बंगाल बिहार और उड़ीसा के दीवानी राइट्स मिल जाते हैं यानी की यहां से रिवेन्यू कलेक्ट करने का राइट अब कंपनी के पास होगा इस तरह बंगाल पर कंपनी का कंट्रोल अब लीगलाइज्ड हो जाता है कंपनी इसके बदले में मुगल एंपरर को 26 लाख रुपए की सब्सिडी देने का प्रॉमिस करती है और अवध के दो डिस्ट्रिक्ट कोरा और इलाहाबाद भी इन्हें दे देती है मुगल एंपरर 6 साल तक इलाहाबाद के फोर्ट में एक तरह से अंग्रेजन के प्रिजनर के जैसे रहते हैं अवध के नवाब सुझाव दौला के साथ 16th अगस्त 1765 को इलाहाबाद की त्रुटि साइन होती है इसके अनुसार नवाब कंपनी को 5000000 युद्ध के हर्जन के रूप में देते हैं और साथ ही कोरा और इलाहाबाद के जिला एंपरर शाह आलम तू को सुरेंद्र कर देते हैं और दोनों के बीच एक एलाइंस साइन होता है जिसमें कंपनी किसी भी आउटसाइड अटैक से नवाब को प्रोटेस्ट करने का प्रॉमिस करती है अगर नवाब कंपनी की आर्मी का खर्चा उठा ले इस एलियंस के बाद अवध के नवाब कंपनी के डिपेंडेंट बन जाते हैं इस तरह बक्सर के युद्ध के बाद कंपनी को एन सिर्फ बंगाल का डायरेक्ट कंट्रोल मिल जाता है बल्कि अवध भी इनडायरेक्ट इनके कंट्रोल में ए जाता है दोस्तों यह तो बात हुई अंग्रेजन द्वारा बंगाल के कांग्रेस की प्लासी और फिर बक्सर के बैटल से अंग्रेजन ने बंगाल को अपने कंट्रोल में कर लिया था इस सब में एक इंपॉर्टेंट पर्सनालिटी का राइस हम देखते हैं वो थे रॉबर्ट क्लाइव जो बंगाल के पहले गवर्नर अप्वॉइंट किया जाते हैं तो आई उनके राइस को भी डिस्कस कर लेते हैं राइस ऑफ लाइफ रॉबर्ट क्लाइव बंगाल प्रेसीडेंसी के पहले ब्रिटिश गवर्नर थे क्लाइव का करियर कंपनी के एक ऑर्डिनरी एम्पलाई के रूप में शुरू होता है और कंपनी की सबसे इंपॉर्टेंट प्रेसीडेंसी के गवर्नर बने तक चला है सबसे पहले 1744 में क्लाइव ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए फैक्टर या कंपनी एजेंट के रूप में कम करने के लिए मद्रास से सन जॉर्ज फोर्ट पहुंचने हैं इसके बाद वो अपनी एबिलिटी साबित करने के लिए कंपनी की आर्मी में भारती हो जाते हैं सेकंड कार्नेटिक वार के समय आर्कोट की सीध में ब्रिटिश विक्ट्री में अपने रोल के लिए क्लाइव को काफी फेम और प्रशंसा मिलती है फिर 1753 में वो ब्रिटेन लोट जाते हैं लेकिन 1755 में ही उन्हें इंडिया वापस बुला लिया जाता है क्योंकि फ्रेंच के साथ फिर से युद्ध की सिचुएशन बन रही थी उनको डिप्टी गवर्नर बनाया जाता है मिलकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला से कोलकाता को रीकैप्चर करते हैं इसके बाद क्लाइव कंस्पायरेसी की हेल्प से बैटल ऑफ प्लासी में सिराजुद्दौला को हर देते हैं क्लाइव बंगाल में कुछ फ्रेंच पोर्ट्स को भी कैप्चर कर लेते हैं इन अचीवमेंट्स के लिए उन्हें लॉर्ड क्लाइव बैरन ऑफ प्लासी का टाइटल दिया जाता है प्लासी की जीत के बाद कंपनी इंडिया में एक पैरामाउंट पावर बन जाति है बंगाल उनका हो जाता है जिससे कंपनी के फॉर्चून में बहुत बड़ा इजाफा होता है 1760 में लाइव फिर से इंग्लैंड लोट जाते हैं इसके बाद 1765 में वो बंगाल के गवर्नर और कमांडर इन के के रूप में इंडिया वापस आते हैं बक्सर की बैटल के बाद होने वाले इलाहाबाद की त्रुटि को नेगोशिएट और साइन करते हैं क्योंकि वो अवध को ब्रिटिश और मराठस के बीच बफर की तरह उसे करना चाहते थे है इसके साथ ही बंगाल में क्लाइव सिस्टम ऑफ ड्यूल गवर्नमेंट इंट्रोड्यूस करते हैं इस सिस्टम के अनुसार बंगाल में दीवानी राइट तो कंपनी के पास रहते हैं लेकिन निजामत यानी की एडमिनिस्ट्रेशन देखने के राइट्स नवाब के पास ही रहते हैं इसका मतलब था कंपनी के पास पावर तो पुरी रहेगी लेकिन रिस्पांसिबिलिटी कुछ भी नहीं लाइव 1767 तक बंगाल के गवर्नर रहते हैं हम का सकते हैं की इंडिया में कंपनी का अंपायर एस्टेब्लिश करने में क्लाइव का काफी इंपॉर्टेंट रोल था कंक्लुजन दोस्तों यह थी अंग्रेजन द्वारा बंगाल के कांग्रेस की पुरी हिस्ट्री जहां एक तरफ प्लासी का बैटल इंग्लैंड के लिए बंगाल का दरवाजा खोलना है वही बक्सर कंपनी की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं पर एक मोर लगा देता है इसके साथ ही हमने क्लाइव की स्टोरी को भी समझा जो बंगाल के पहले ब्रिटिश गवर्नर बनते हैं अब आगे आने वाली वीडियो में हम देखेंगे की इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी कैसे बंगाल के बाद इंडिया के बाकी पार्ट्स पर भी एक-एक करके अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश करती है बैटल ऑफ प्लासी और बक्सर को डिस्कस करने के बाद आज हम साउथ इंडिया के मैसूर रीजन की बात करेंगे और जब मैसूर का नाम लिया जाता है तब टाइगर का मैसूर यानी टीपू सुल्तान की बात ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता तो आज हम टीपू सुल्तान और अंग्रेजन के साथ उनकी रिवरी को डिस्कस करने वाले हैं लेकिन उससे पहले हम उनके पिता हैदर अली के बड़े में भी बात करेंगे और डिटेल में समझेंगे बैकग्राउंड के बड़े में तो आई शुरू करते हैं किंगडम ऑफ मी शो दोस्तों 14th सेंचुरी से 17th सेंचुरी के बीच मैसूर विजयनगर अंपायर का सबोर्डिनेट स्टेट हुआ करता था जब विजयनगर अंपायर का डिक्लिन हो जाता है तब बहुत से छोटे-छोटे किंग्डम्स इस रीजन में इमर्ज होते हैं ऐसा ही एक इंडिपेंडेंस हिंदू किंगडम 1612 में मैसूर में बोडिया डायनेस्टी के अंदर इमेज होता है 17th सेंचुरी में नर्स राजा बॉडीगार्ड और चिकर आज वोदेयर के रूल के समय मैसूर की टेरिटरी का काफी एक्सपेंशन हुआ इस एक्सपेंशन के बाद मैसूर की टेरिटरी में वेस्टर्न घाट से लेकर कोरोमंडल प्लेन की वेस्टर्न बाउंड्रीज तक का एरिया था यह किंगडम बड़ा होता गया और फिर 1734 में यहां के राजा बने कृष्णा राजा वोट यार डी सेकंड इनका इंटरेस्ट राज्य चलने में नहीं था इसलिए साड़ी बवास इनके दो मंत्री नजराज और देवराज के हाथों में थी इसका मतलब था की कृष्णा [संगीत] क्वालिटीज के चलते वो मैसूर आर्मी में प्रमोट होते गए हैदर अली ने वेस्टर्न मिलिट्री ट्रेनिंग के फायदे को समझा और अपने सोल्जर को उसमें ट्रेन भी किया फ्रेंच कंपनी के एक्सपट्र्स की हेल्प से 1755 में तमिलनाडु के डिंडीगुल में हैदर अली ने कैनन फैक्ट्री भी लगे थी यहां से हैदर अली और फ्रेंच कंपनी के बीच अच्छे रिलेशंस की शुरुआत भी होती है यहां तक की कार्नेटिक वर्स के समय हैदर अली और उनकी बटालियन ने फ्रेंच कमांडर्स जैसे की डुप्लेक्स डॉ डी लाली और डबासी के अंदर सब भी किया था लेकिन मैसूर में एक वीक रोलर होने की वजह से मराठस और हैदराबाद के निजाम मैसूर पर लगातार हमला कर रहे थे जिसकी वजह से मैसूर पॉलिटिकल और फाइनेंशली वीक होने लगा था इससे सिचुएशन में मैसूर को एक स्ट्रांग लीडर की जरूर थी ऐसे में हैदर अली ने 1761 में तक्ता पलट कर दिया और मैसूर के सुल्तान बन गए फिर 1761 और 1763 के बीच हैदर अली और मालाबार को कैप्चर कर लेते हैं वह फैऊदल लॉर्ड्स पर भी अपना कंट्रोल बना लेते हैं इसके बाद पालीगढ़ टाइम से रिवेन्यू जमा करने लगता हैं इन सब रीजंस की वजह से मैसूर फिर से एक प्रॉस्परस स्टेट बने लगा दोस्तों यह तो बात हुई मैसूर और उसकी सुल्तान हैदर अली की इनकी टक्कर अंग्रेजन के साथ कैसे हुई बात करते हैं फर्स्ट एंग्लो मैसूर वार की फर्स्ट एंग्लो मैसूर वार 176-769 मैसूर के फ्रेंच कंपनी के साथ अच्छे रिलेशंस और हैदर अली का मालाबार के रिच ट्रेड पर कंट्रोल इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने पॉलीटिकल और कमर्शियल इंटरेस्ट के लिए खतरा लगे लगता हैं बंगाल के नवाब के खिलाफ बक्सर के युद्ध में मिली सफलता के बाद अंग्रेज हैदराबाद के निजाम के साथ एक ट्वीटी साइन करते हैं जिसके अनुसार हैदर अली से निजाम की सुरक्षा करने के बदले में अंग्रेजन को नॉर्दर्न सरकार इसका जिला मिल जाता है इसके बाद हैदराबाद का निजाम मराठस और अंग्रेज हैदर अली के खिलाफ एक एलाइंस बनाकर युद्ध करते हैं लेकिन हैदर अपनी डिप्लोमेटिक एबिलिटी का उसे करके मराठस को युद्ध में न्यूट्रल कर देते हैं और निजाम को अपना एली बना लेते हैं हैदर अली और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच वार कंटिन्यू राहत है और लगभग वन और हाफ येर तक बिना किसी कंक्लुजन की चला राहत है फिर हैदर अपनी स्ट्रीट्स चेंज करते हैं और अचानक मद्रास के सामने पहुंच जाते हैं इससे मद्रास में कंप्लीट किया और पानी की सिचुएशन हो जाति है जी वजह से अंग्रेज मजबूर होकर हैदर अली के साथ 4th अप्रैल 1769 को एक त्रुटि साइन करते हैं जिसे ट्रीटी का मद्रास बोला जाता है ट्रीटी के प्रोविजंस के अनुसार वार में जो भी प्रिजनर्स बनाए गए थे उनको एक्सचेंज करना था और साथ ही कन्कर्ड किया हुए एरियाज को भी एक दूसरे को लौटना था इसके साथ ही अंग्रेज हैदर अली से यह भी प्रॉमिस करते हैं की अगर कोई और मैसूर पर अटैक करता है तो वह हैदर अली को हेल्प प्रोवाइड करेंगे तो चलिए समझते हैं ऐसा क्यों होता है दोस्तों 1769 में फर्स्ट एंग्लो मैसूर वार और होता है और सिर्फ 11 साल बाद ही 1780 में मैसूर और ईस्ट इंडिया कंपनी फिर से आमने सामने होते हैं है इसका एक रीजन था अंग्रेजन द्वारा मद्रास की ट्रीटी का वायलेशन होता यह है की 1771 में मराठा मैसूर पर अटैक कर देते हैं और ऐसे में जब हैदर अली ईस्ट इंडिया कंपनी से हेल्प मांगते हैं तो वो हेल्प देने से माना कर देते हैं इसकी वजह से मराठा मैसूर को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचने हैं और हैदर अली को मजबूर होकर मराठस को 36 लाख रुपए देने पढ़ते हैं शांति समझौते के लिए इस वजह से हैदर अली ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से बहुत ज्यादा नाराज थे लेकिन कंपनी सिर्फ यहां नहीं रुकी वो 1779 में मैसूर की टेरिटरी माही पर अटैक कर देती है माही मालाबार कास्ट पर लोकेटेड था और हैदर अली ने इसे फ्रेंच कंपनी को दिया हुआ था माही के थ्रू ही मैसूर को फ्रेंच से एडवांस्ड वार मैटेरियल्स जैसे मिलता था इसके बदले में हैदर अली ने माही की प्रोटेक्शन के लिए अपने ट्रूप्स वहां दिप्लाई किया हुए अटैक के बाद हैदर अली ने भी वार की तैयारी शुरू कर दी है उन्होंने अंग्रेजन के खिलाफ मराठस और निजाम के साथ एलियंस बना लिया लेकिन मराठस और निजाम के साथ तो मैसूर के रिश्ते इतने अच्छे नहीं थे फिर ये एक साथ कैसे ए गए तो दोस्तों मराठाज हैदर अली के साथ इसलिए ए जाते हैं क्योंकि इस समय यानी की 1775 में फर्स्ट एंग्लो मराठा वार भी शुरू हो चुका था और अंग्रेज मराठस और हैदर अली के आम एनीमी बन चुके थे मराठस को तो ठीक पर हैदराबाद मैसूर के साथ कैसे ए जाता है उसका पहले रीजन था निजाम अंग्रेजन से नॉर्दर्न सरकार वापस लेना चाहते थे और दूसरा हैदर अली उन्हें प्रॉमिस करते हैं की निजाम के दुश्मन के नवाब वाला जहां पर अटैक करेंगे और कैप्चरड टेरिटरी को निजाम के साथ शेर कंपनी से हेल्प मांगते हैं अंदर लीडरशिप ऑफ एक्टर मुनरो है और दूसरी टुकड़ी कर्नल विलियम बेली के नेतृत्व में गुंटुर में जो की नॉर्दर्न सरकार कपाट था तैयार की जाति है अंग्रेजन का प्लेन था की यह दोनों ट्रूप्स कांजीवरम में मिलेंगे और मिलकर हैदर अली की आर्मी पर अटैक कर देंगे लेकिन हैदर अली के बेटे टीपू करनाल बेली को कांजीवरम से पहले ही बोली लर नाम की जगह पर रॉक देते हैं और दोनों ब्रिटिश आर्मी को कंबाइन नहीं होने देते 1780 में पॉलीनुर की बैटल हुई जिसमें इंग्लिश आर्मी को हर का सामना करना पड़ा और करनाल बेली ने सुरेंद्र कर दिया दूसरी तरफ एक्टर मंगरो की आर्मी पर हैदर अली ने अटैक कर दिया और हेक्टर माणुरोब भाग कर अपनी आर्मी के साथ वापस मद्रास पहुंच गए हैदर अली मद्रास जान की जगह वापस की तरफ जाते हैं और घेर को और मजबूत करते हैं तभी खबर आई है की मैसूर ब्रिटिश आर्मी ने कैप्चर करना शुरू कर दिया है उनको रोकने के लिए टीपू मालाबार की तरफ चले जाते हैं इसी बीच बंगाल से एक बहुत बड़ी ब्रिटिश आर्मी कू की लीडरशिप में मद्रास पहुंच जाति है सराय कू मद्रास पहुंचकर सबसे पहले अपनी डिप्लोमेटिक स्किल को उसे करके मराठस और निजाम को हैदर अली से अलग कर देते हैं और फिर 1781 में हैदर अली और कू के बीच कई सारे बॉटल्स होते हैं जिसमें से तीन इंपॉर्टेंट बॉटल्स बैटल ऑफ प्रोटॉन और शॉलिंगुर में सरकुट हैदर अली को हर देते हैं लेकिन इसी बीच सेवंथ दिसंबर 1782 को हैदर अली की कैंसर से डेथ हो जाति है उसके बाद उनके बेटे टीपू मैसूर के सुल्तान बनते हैं हैदर अली की डेथ के बाद टीपू और कंपनी के बीच लगभग एक और साल तक बॉटल्स में हर जीत का सिलसिला चला रहा इतने समय तक वार चलने के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीं निकाल रहा था इसलिए फाइनली दोनों पार्टी पीस करने का फैसला करती हैं और 1784 में मंगलौर साइन की जाति है वापस कर देती हैं इस तरह से सेकंड एंग्लो मैसूर वार का भी और हो जाता है लेकिन मैसूर और इंग्लिश कंपनी के बीच कनफ्लिक्ट खत्म नहीं होता और 1790 में एक बार फिर से दोनों के बीच वार शुरू होता है लेकिन थर्ड एंग्लो मैसूर वार को डिस्कस करने से पहले हम टीपू सुल्तान के बड़े में जान लेते हैं टीपू सुल्तान नवंबर टीपू सुल्तान हैदर अली ग्रेट वारियर थे जिन्हें टाइगर ऑफ मैसूर के नाम से भी जाना जाता है टीपू वेल एजुकेटेड थे जिन्हें एरोबिक परसों कैलोरीज और उर्दू का ज्ञान था अपने फादर हैदर अली की तरह टीपू भी एक एफिशिएंट मिलिट्री जनरल थे वह अपनी आर्मी को यूरोपीय मॉडल के बेसिस पर ऑर्गेनाइज करते हैं इसके साथ ही वह अपने सोल्जर को ट्रेन करने में फ्रेंच ऑफिसर्स की हेल्प भी लेते हैं टीपू लेवल फोर्स की इंर्पोटेंस को बहुत अच्छी तरह समझते थे इसलिए 1796 में वह बोर्ड ऑफ रियलिटी को सेटअप करते हैं उनका प्लेन 22 बैटलशिप की बड़े फिगर्स तैयार करने का था इसके अलावा उन्होंने मंगलौर बजे दबाव और मोलीदाबाद में तीन डॉकयार्ड भी बनवाई टीपू सुल्तान साइंस और टेक्नोलॉजी ऑपरेशन को एक्सप्लेन करने वाली एक मिलिट्री मैन्युअल लिखी थी टीपू लैंड रिवेन्यू सिस्टम में भी रिफॉर्म्स लेकर आते हैं और मैसूर में सेरीकल्चर को भी प्रमोट करते हैं उन्होंने एक स्टेट कमर्शियल कॉरपोरेशन को भी कमीशन किया था यूरोपीय की तरह फैक्टरीज सेटअप करने के लिए हम का सकते हैं की टीपू सुल्तान एक एबल मिलिट्री जनरल के साथ एक एफिशिएंट एडमिनिस्ट्रेटर भी थे उनका एक कोटेशन है की तू लाइव लाइक ए लायन पर ए दे इस फॉर बटर दें तू लाइव 100 इयर्स लाइक एन जाकर और अपनी लाइफ और डेथ में टीपू इसे पूरा भी करते हैं तो आई अब वापस चलते हैं टीपू सुल्तान और इंग्लिश कंपनी के बीच हुए थर्ड एंग्लो मैसूर वार पर थर्ड एंग्लो मैसूर वार 79292 सुल्तान और अंग्रेजन के बीच कनफ्लिक्ट को रिजॉल्व करने के लिए काफी नहीं थी दोनों ही डेक्कन के रीजन में अपनी पॉलीटिकल सुप्रीमेसी एस्टेब्लिश करना चाहते थे थर्ड एंग्लो मैसूर होता है जब टीपू ट्रैवल को और पर अटैक कर देते हैं त्रवंकोर अंग्रेजन का और ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए पेपर का एकमात्र सोर्स भी करता है यह दोनों कोचिंग स्टेट का पार्ट है जो की टीपू का इसलिए टीपू ट्रैवल कर के इस एक्ट को अपने सावरेन राइट्स का वायलेशन मानते हैं और उसे पर अटैक करते हैं इसके बाद ब्रिटिश त्रवंकोर की साइड लेते हुए मैसूर पर अटैक कर देते हैं इसके साथ ही निजाम और मराठा जो की टीपू की बढ़नी हुई पावर सेजल थे ब्रिटिशर्स को जॉइन कर लेते हैं टीपू सुल्तान जनरल मडोज के अंदर ब्रिटिश आर्मी को हर देते हैं फिर 791 में लॉर्ड कार्नवालिस आर्मी को लीड करते हुए श्रीरंगपट्टनम पहुंच जाते हैं जो टीपू की कैपिटल थी मराठाज और निजाम की सपोर्ट से अंग्रेज श्रीरंगपट्टनम पर अटैक करते हैं टीपू बहादुर के साथ उनका सामना करते हैं लेकिन तीनों की कंबाइन पावर के सामने फाइनली हर जाते हैं बड़ा महल दिल्ली और मालाबार अंग्रेजन को मिलते हैं जबकि तुंगभद्र और उसकी ट्रिब्यूटरीज के आसपास के रीजन मराठस को मिल जाते हैं और निजाम को रिवर कृष्णा से न तक का एरिया मिलता है है इसके अलावा और डैमेज के रूप में टीपू से ₹3 करोड़ भी मांगे जाते हैं जिसमें से हाफ अमाउंट को तुरंत पे करना था और बाकी को इंस्टॉलमेंट में और इसकी गारंटी के लिए अंग्रेज टीपू के दो बेटों को अपना होस्टेस बना लेते हैं थर्ड एंग्लो मैसूर वार साउथ में टीपू की डोमिनेंट पोजीशन को डिस्ट्रॉय कर देता है और वहां ब्रिटिश सुप्रीमेसी को एस्टेब्लिश करता है टीपू सुल्तान की पावर डिस्ट्रॉय तो हुई थी लेकिन पुरी तरह खत्म नहीं अंग्रेजन को अभी भी उनसे खतरा महसूस होता था इसलिए 1799 में फिर से एक वार होता है तो चलिए उसको भी डिस्कस करते हैं टीपू सुल्तान को काफी हमिलिएट होना पड़ा था लेकिन फिर भी टीपू ट की सभी कंडीशंस को पूरा करते हैं और ब्रिटिशर्स को और कंपनसेशन का बच्चा हुआ अमाउंट देकर अपने बेटों को भी रिलीज करवा लेते हैं है लेकिन टीपू को अपने हमिलिएशन का बदला भी चाहिए था इसलिए वह 1792 से 1799 के बीच अपने सभी लॉसेस को रिकवर करते हैं और इसके साथ ही वह फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने रिश्ते अच्छे करते हैं इसके लिए वो फ्रेंच ऑफिसर्स के द्वारा मैसूर में 1794 में जैकोबिन क्लब की एस्टेब्लिशमेंट का भी सपोर्ट करते हैं जैकोबिन क्लब फ्रांस की एक रिवॉल्यूशनरी ऑर्गेनाइजेशन थी जो फ्रांस में मोनोकी की जगह रिपब्लिकन गवर्नमेंट चाहते थे टीपू खुद भी जैकोबिन क्लब के मेंबर बनते हैं और श्री गंगा पटनम में ट्री ऑफ लिबर्टी भी प्लांट करते हैं और इसी समय टीपू फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट जो इजिप्ट में कैंपेन कर रहे होते हैं उनके साथ कांटेक्ट करते हैं वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ साथ में मिलकर लड़ने के लिए इनवाइट करते हैं इसके अलावा टीपू सुल्तान अपने भेजते हैं उम्मीद थी की यहां से भी उन्हें सपोर्ट मिलेगा और सब मिलकर ब्रिटिश का सफाई कर देंगे लेकिन अंग्रेजन को टीपू के प्लांस के बड़े में पता चल जाता है और 1798 में नए गवर्नर जनरल लॉर्ड इंडिया में ए चुके होते फ्रांस के बीच बढ़नी हुई दोस्ती को लेकर काफी कंसर्न थे टीपू की इंडिपेंडेंस को खत्म करने के लिए बैलंसली उन्हें सब्सिडियरी एलाइंस की ट्वीटी पर साइन करने के लिए कहते हैं जब टीपू सुल्तान ऐसी किसी भी त्रुटि पर साइन करने से माना कर देते हैं तब फोर्थ एंग्लो मैसूर वार की शुरुआत होती है इस वार में भी मराठाज और निजाम अंग्रेजन की हेल्प करते हैं क्योंकि मराठाज को टीपू की आदि टेरिटरी देने का प्रॉमिस किया जाता है और निजाम पहले ही अंग्रेजन के साथ सब्सिडियरी एलाइंस साइन कर चुके थे इन 1798 यह वार 17th अप्रैल 1799 को शुरू होती है और फोर्थ में 1799 को श्री रंग पटनम के फल के साथ खत्म हो जाति है टीपू अपनी कैपिटल को बचाने के लिए बहादुर से लड़ते हैं और इसमें उनकी मृत्यु हो जाति है उनकी पुरी ट्रेजरी पर अंग्रेज कब्जा कर लेते मराठस को ऑफर करते हैं लेकिन मराठाज उन्हें लेने से माना कर देते और गरम गोंडा डिस्ट्रिक्ट दिए जाते हैं और ब्रिटिश अपने पास का नारा वायानाड कोयंबटूर द्वारा कृष्णा राजा थे थर्ड को दे दिया जाता है कृष्णा राजद ए थर्ड अंग्रेजन के साथ सब्सिडियरी एलाइंस भी साइन कर लेते हैं कंक्लुजन तो दोस्तों आज हमने समझा की कैसे मैसूर और इंग्लिश कंपनी के बीच लगभग 32 सालों तक कनफ्लिक्ट चला और इनके बीच कर वर्स हुए इसके साथ ही अंग्रेज कैसे इंडियन स्टेटस की आपस की रिवरी का फायदा उठाते हैं ये भी हमें एंग्लो मैसूर वर्स में देखने को मिलता है बिना मराठाज और निजाम की हेल्प के अंग्रेज शायद मैसूर को कभी नहीं जीत पाते और हमने टाइगर ऑफ मैसूर कहे जान वाले टीपू सुल्तान के बड़े में भी जाना चाहते हैं की मराठा अंपायर जिसके फाउंडर छत्रपति शिवाजी महाराज थे जिसे बालाजी विश्वनाथ और बाजीराव वन जैसे एंबिशियस पेशवा और भी स्ट्रांग पावर बना देते हैं उसका अल्टीमेटली डिक्लिन कैसे होता है आज हम इसी क्वेश्चन का आंसर अपनी इस वीडियो के थ्रू समझेंगे हम डिस्कस करेंगे की कैसे ब्रिटिश के आने के बाद उनका और मराठस का कनफ्लिक्ट शुरू होता है दोनों पावर के बीच हुए एंग्लो मराठा वर्स को भी समझेंगे और देखेंगे की आखिर मराठा अंपायर के डिक्लिन के पीछे क्या रीजन थे तो आई शुरू करते हैं सबसे पहले जानते हैं की ब्रिटिश के साथ कनफ्लिक्ट से जस्ट पहले मराठा अंपायर की क्या सिचुएशन थी मराठा अंपायर ड्यूरिंग सेकंड हाफ का थे 18th सेंचुरी दोस्तों आपने थर्ड बैटल ऑफ पानीपत के बड़े में तो सुना ही होगा यह बैटल 14th जनवरी 1761 को मराठस और अफगान रोलर अहमद शाह अब्दाली के फोर्सेस के बीच हुई थी पानीपत में मराठस की हर उनके लिए एक डिजास्टर साबित होती है मराठस पानीपत की बैटल में लगभग 28000 सोल्जर और सदाशिव राव और विश्वास राव जैसे इविल मिलिट्री कमांडर्स को को देते हैं इसके साथ ही उनकी पॉलीटिकल प्रेस्टीज को भी बड़ा झटका लगता है इस बैरल के समय उनके पेशवा थे बालाजी बाजीराव और पानीपत में मिली हर के सदमे की वजह से जून 1761 में इनकी भी मृत्यु हो जाति है तब फिर इनके 17 साल और स्टेट्समैन थे 11 साल के छोटे से पीरियड में ही माधवराव वन पानीपत की बैटल के बाद कोई हुई मराठा पावर को रिस्टोर करने में कामयाब होते हैं वो 1762 में हैदराबाद में निजाम को हर देते हैं मैसूर के हैदर अली को 1767 में ट्रिब्यूट पे करने के लिए मजबूर कर देते हैं और साथ ही नॉर्थ इंडिया में रोहिलास को हराकर राजपूत स्टेटस और जाट के को सबजूगेट करके वहां अपने कंट्रोल को रिसेट करते हैं इस तरह एक बार फिर से मराठा अंपायर पावरफुल होने लगता है की तभी कहानी में एक और ट्वीट आता है 1772 में माधवराव वन की टीवी की बीमारी के करण मृत्यु हो जाति है इसके बाद मराठस के बीच सक्सेशन को लेकर कनफ्लिक्ट शुरू होता है और यही फर्स्ट एंग्लो मराठा वार का बैकग्राउंड बंता है तो आई समझते हैं इस कनफ्लिक्ट और फर्स्ट एंग्लो मराठा वार को फर्स्ट एंग्लो मराठा वार 1775 तू 1782 माधवराव की मृत्यु के बाद उनके भाई नारायण राव और अंकल रघुनाथ राव के बीच पावर के लिए तास शुरू हो जाता है नारायण राव पेशवा तो बन जाते हैं लेकिन 1773 में ही उनको मारवा दिया जाता है रघुनाथ राव को लगता है की नारायण राव की मृत्यु के बाद तो पेशवा की गति उनको ही मिलेगी लेकिन उनके सारे अरमानों पर जल्द ही पानी फिर जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि नाना फडणवीस और मजी सिंधिया जैसे प्रॉमिनेंट मराठा जनरल्स की काउंसिल पेशवा की गाड़ी के लिए सवाई माधवराव को सपोर्ट करने का डिसीजन लेती है और इसे 12 भाई काउंसिल कहा जाता था इसके लीडर नाना फडणवीस थे सवाई माधवराव का जन्म नारायण राव की मृत्यु के कुछ मीना बाद हुआ था और वह सिर्फ 40 दिन के ही थे जब उन्हें पेशवा बना दिया जाता है इन्हें माधवराव तू के नाम से भी जाना जाता है इसके बाद फ्रस्ट्रेटेड होकर रघुनाथ राव 1775 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बॉम्बे काउंसिल से मिलते हैं और पेशवा बने के लिए उनसे हेल्प मांगते हैं कंपनी हेल्प करने के बदले में सेल सेट और बैसीन को लेने की डिमांड करती है और साथ ही सूरत और भरूच जिला से मिलने वाले रिवेन्यू में भी शेर मांग लेती है रघुनाथ राव इसके लिए एग्री हो जाते हैं और बदले में कंपनियां ने अपने 251 सोल्जर दे देती है इस एग्रीमेंट को ट्रीटी का सूरत कहा जाता है यहां से शुरुआत होती है फर्स्ट एंग्लो मराठा वार की स्तुति कंपनी को भी सेंड कर दी जाति है क्योंकि रेगुलेटिंग एक्टिव 1773 के बाद बंगाल के पास मुंबई और मद्रास काउंसिल के सुपरविजन की पावर थी इसलिए किसी भी डिसीजन का बंगाल पेंसिल से रतीफाई होना जरूरी था इधर 15थ मार्च 1775 को रघुनाथ राव और करनाल की टीम की लीडरशिप में ब्रिटिश फोर्सेस बैटल के लिए मराठाज की तरफ बढ़ाने लगती है मराठस की तरफ से लीड कर रहे थे हरि पेंट के दोनों बैटलफील्ड में आमने-सामने होते हैं और फर्स्ट एंग्लो मराठा वार की शुरुआत होती है मराठस ने गोरिल्ला वार टेक्निक्स का उसे करके ब्रिटिश फोर्सेस की हालात खराब कर दी यह वार अभी चल ही रही थी की कंपनी की बंगाल काउंसिल के पास सूरत क्रिटिकल लेटर पहुंच जाता है गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ट्रीटी का सूरत को कंडोम करते हैं और मुंबई काउंसिल को वार रोकने का ऑर्डर दे देते हैं और साथ ही मराठस को भी मैसेज भेजते हैं की वह वार ना करके उनसे एक फ्रेंडली ट्वीटी करना चाहते उनको मराठस के पास भेजते हैं और 1776 में ट्रीटी का पुरंदर साइन करते हैं साथ ही ये प्रॉमिस करते हैं की वो मराठस के किसी भी रेबल को सपोर्ट नहीं करेंगे बदले में वार के टाइम मराठाज ने जिन ब्रिटिश टेरिटरीज को जीत लिया था वो ब्रिटिशर्स को वापस मिल जाएगी लेकिन ट्रीटी का पुरंदर के बाद भी फर्स्ट एंग्लो मराठा वार खत्म नहीं होती क्योंकि एक तरफ तो बॉम्बे काउंसिल ने रघुनाथ राव को अभी भी शरण दी हुई थी और दूसरी तरफ इंग्लैंड में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स पुरंदर की ट्वीटी को एक्सेप्ट नहीं करते इस तरह फिर से वार शुरू हो जाता है ब्रिटिशर्स मराठस पर अटैक करते हैं और मराठा आर्मी को खुद महाद्वीप सिंधिया लीड करते हैं तलेगांव में दोनों के बीच बैटल होता है और ब्रिटिश को यहां हर मिलती है ब्रिटिश आर्मी यहां से भाग कर वडगांव पहुंच जाति है लेकिन मजी सिंधिया की आर्मी वहां भी उन्हें घर लेती है और 1779 में ब्रिटिश आर्मी सुरेंद्र कर देती है यहां पर ही ट्वीटी ऑफ बड़गांव साइन की जाति है जिसके अकॉर्डिंग ब्रिटिश गवर्नमेंट ने मराठाज की जितनी भी टेरिटरीज होती हैं 17 125 से सब वापस करनी पड़ती हैं यह ट्रीटी बॉम्बे काउंसिल और मराठस के बीच हुई थी लेकिन एक बार फिर वारेन हेस्टिंग्स बॉम्बे काउंसिल की ट्वीटी को एक्सेप्ट नहीं करते और कोलकाता से तीन डिफरेंट ब्रिटिश फोर्सेस को भेज देते हैं एक कर्नल गोदादर की लीडरशिप में दूसरी कैप्टन परफॉर्म की और तीसरी जनरल केमच की लीडरशिप में फरवरी 1779 में करनाल गोदर अहमदाबाद को कैप्चर कर लेते हैं और फिर अगस्त 1780 में कैप्टन परफॉर्म ग्वालियर को इसके बाद दिसंबर 1780 में करनाल गॉड ब्लेसिंग को भी कैप्चर कर लेते हैं और फरवरी 1781 में जनरल कबक ने महाजी सिंधिया को भी हर दिया है इसके बाद वारेन हेस्टिंग्स मराठस के साथ ट्वीटी साइन करने का डिसीजन लेते हैं यह थी ट्रीटी का सालबाई जो फर्स्ट एंग्लो मराठा वार की सबसे इंपॉर्टेंट ट्रीटी थी इसके अकॉर्डिंग सेल्सियस के पास ही रहेगा लेकिन ट्रीटी का पुरंदर के बाद एक्वायर की हुई बाकी सभी मराठा टेरिटरी उन्हें वापस कर दी जाएगी साथ ही ब्रिटिशर्स रघुनाथ राव का सपोर्ट नहीं करेंगे और पेशवा रघुनाथ राव को पेंशन दे देंगे इसके अलावा यह भी डिसाइड होता है की पेशवा और किसी भी यूरोपियन पावर को सपोर्ट नहीं करेंगे इस तरह ट्रीटी का सालबाई से 1782 में फाइनली फर्स्ट एंग्लो मराठा वार का और होता है सालबाई की ट्वीटी के बाद मराठस और ब्रिटिश के बीच 20 साल तक तो कोई कनफ्लिक्ट नहीं होता यह टाइम ब्रिटिश को कंप्लीट करने में लगाते हैं और दूसरी तरफ मराठा कांफिडूरीसी में दरार और ज्यादा बाढ़ जाति है कनफेडरेसी की बात करें तो दोस्तों पेशवा बाजीराव वन के टेन्योर में मराठा अंपायर को कर पावरफुल मराठा चिप्स के बीच डिवाइड कर दिया गया था ये थे ग्वालियर के सिंधिया नागपुर के भोसले इंदौर के होलकर और बड़ौदा के गायकवाड यह सभी चिप्स मिलकर मराठा कांफिडोसी बनाते थे और पेशवा कनफेडरेसी के ऑफिशल हेड होते थे लेकिन पावर स्ट्रगल और म्युचुअल जूलूस के चलते चिप्स के बीच हमेशा कनफ्लिक्ट चला राहत था यह कनफ्लिक्ट पेशवा के वीक होने पर और भी ज्यादा बाढ़ जाता है जैसे की सेकंड एंग्लो मराठा वार के टाइम देखने को मिलता है तो आई सेकंड एंग्लो मराठा वार को डिस्कस करते हैं सेकंड एंग्लो मराठा वार 18002 तू 18005 दोस्तों सेकंड एंग्लो मराठा वार को डिस्कस करने से पहले इसका बैकग्राउंड जान लेते हैं 1795 में पेशवा माधवराव सेकंड सुसाइड कमेंट कर लेते हैं इनकी आगे सिर्फ 21 साल थी और तब तक इनकी कोई संतान भी नहीं थी रघुनाथ राव जो पेंशन लेकर रिटायर हो चुके थे उनके तीन बेटे थे बाजीराव सेकंड सीमा जी राव सेकंड और अमृत राव इन कंडीशंस में बाजीराव सेकंड पेशवा बनते हैं बाजीराव सेकंड तो एक वीक पेशवा थे लेकिन नाना फडणवीस इनके के मिनिस्टर बनकर मराठा पावर को संभाले हुए थे लेकिन 1800 में नाना फडणवीस की मृत्यु हो जाति है और इसके बाद मराठा कांफिडोसी को संभालने वाला कोई भी नहीं बचत मराठा कांफिडोसी के के के बीच आपस में ही वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो जाति है उसे टाइम सबसे पावरफुल के थे इंदौर के जसवंत राव होलकर और ग्वालियर के यात्राओं सिंधिया होलकर और सिंधिया के बीच आपस में टकराव होते रहते थे और इसमें पेशवा सिंधिया को सपोर्ट कर रहे थे जसवंत राव होलकर बिना पेशवा की परमिशन के नॉर्थ की तरफ टेरिटरी एक्वायर करने के लिए कैंपेन कर रहे थे इसके साथ ही उन्होंने अपने भाई बिट्टू जी होलकर को साउथ की तरफ कैंपेन के लिए भेजो था लेकिन विठू जी पेशवा की ही टेरिटरी को लूटने लगता हैं तब पेशवा बाजीराव सेकंड उन्हें अरेस्ट कर लेते हैं और ऑर्डर देते हैं की बिट्टू जी होलकर को हाथी के पैरों से कुचलकर मारवा दिया जाए यह सुनकर जसवंत राव होलकर आज बाबला हो जाते हैं और 18002 में सिंधिया और पेशवा की कंबाइंड आर्मी पर अटैक कर देते हैं होलकर इनकी आर्मी को पुणे के पास बुरी तरह से हर देते हैं होलकर के डर की वजह से बाजीराव सेकंड पूना छोड़कर वैसे ही चले जाते हैं जसवंत राव होलकर पुणे में अपने करीबी विनायक राव को पेशवा डिक्लेअर कर देते हैं विनायक राव अमृत राव के बेटे और बाजीराव सेकंड के भतीजे थे बाजीराव सेकंड वापस पेशवा बने के लिए ब्रिटिश से हेल्प मांगते हैं यानी की जो गलती उनके पिताजी रघुनाथ राव ने की थी ये भी वही करते हैं मराठस के इंटरनल मटर में ब्रिटिश इंटरफ्रेंस को इनवाइट करके बाजीराव सेकंड और ब्रिटिशर्स के बीच 18002 में साइन होती है 20 साल बाद यह मराठस और ब्रिटिशर्स के बीच फिर से एक इंपॉर्टेंट ट्रीटी थी इसके प्रोविजंस के अकॉर्डिंग सूरत ब्रिटिशर्स को मिलन था और साथ ही मराठाज हैदराबाद के निजाम से जो चौथ की डिमांड करते थे वह भी बैंड करनी थी इसके बदले में कंपनी 6000 ट्रूप्स बाजीराव सेकंड को दे रही थी जो पेशवा बने में तो उनकी हेल्प करने ही वाले थे लेकिन उसके बाद भी बाजीराव सेकंड को इन्हें अपनी मिलिट्री में ही रखना था और इनका पूरा खर्चा उठाना था दूसरे शब्दों में कहें तो बाजीराव सेकंड ब्रिटिशर्स के साथ एक सब्सिडियरी एलाइंस की त्रुटि साइन कर लेते हैं जिसमें प्रचारक लॉर्ड वालेस्ले थे 13th में 18003 को ब्रिटिशर्स के प्रोटेक्शन में बाजी राव सेकंड फिर से पेशवा बन गए लेकिन पेशवा अब ब्रिटिशर्स के कंट्रोल में हो गए थे सब्सिडियरी एलाइंस की ये ट्रीटी किसी भी मराठा के को पसंद नहीं ए रही थी क्योंकि उन्हें अपनी फ्रीडम बहुत पसंद थी और सब्सिडियरी एलाइंस साइन करके पेशवा ने मराठस की फ्रीडम एक तरह से ब्रिटिश को दे दी थी और यही करण बंता है सेकंड एंग्लो मराठा वार का सिंधिया और भोसले कोशिश करते हैं की ब्रिटिश को हराकर पेशवा को इस ट्रीटी के दाल से बाहर निकाला जाए लेकिन उनकी यह कोशिश असफल रहती है और सभी मराठा चिप्स के साथ अलग-अलग ट साइन करते हैं घोसला के साथ 17th दिसंबर 183 को ट्रीटी ऑफ देवगांव साइन होती है और सिंधिया के साथ 30th दिसंबर 183 को ट्रीटी का सुरजी अंजनगांव सिंधिया से ब्रिटिशर्स को रोहतक गंगा यमुना द्वारा गुड़गांव दिल्ली आगरा रीजन ब्रोच गुजरात के कुछ डिस्ट्रिक्ट बुंदेलखंड का कुछ पार्ट और अहमदनगर का फोर्ट मिलता है और भोसले से घटक बालेश्वर और वर्धारी भर के वेस्ट का एरिया इन्हें मिल जाता है 184 में होलकर भी ब्रिटिशर्स पर अटैक करते हैं लेकिन 185 तक यह भी हर जाते हैं और 18006 में इनके साथ होती है ट्रीटी का राजपुर घाट होलकर से ब्रिटिश को टोंक बूंदी और रामपुर की टेरिटरी मिलती है दोस्तों यहां समझना वाली बात यह है की सभी मराठा चिप्स अलग रहे थे इन्होंने यूनाइटेड और का और हो जाता है इस वार में मराठस को काफी ज्यादा टेरिटरीज का लॉस होता है और साथ ही मराठा चिप्स सब्सिडियरी एलाइंस भी एक्सेप्ट कर लेते हैं उनकी पोजीशन अब कंपनी की तुलना में कमजोर हो जाति है लेकिन मराठस और ब्रिटिशर्स के बीच का कनफ्लिक्ट यहां भी खत्म नहीं होता और दोनों के बीच थर्ड एंग्लो मराठा वार होती है तो चलिए अब थर्ड एंग्लो मराठा वार को डिस्कस करते हैं थर्ड एंग्लो मराठा वार 1817 तू 18 18 दोस्तों थर्ड एंग्लो मराठा वार होती है पिंडारी इसके इश्यूज पर मराठस जब भी किसी बैटल या एक्सपेंडिचर पर जाते थे तो पिंडारी को भी अपनी सी के साथ रखते थे पिंडारी इस बेसिकली मिलिट्री प्लंडर हुआ करते थे जो मराठा आर्मी के साथ जोड़ने थे मिशनरीज मतलब की यह लोग मराठा से कोई भी फीस चार्ज नहीं करते थे बल्कि जितने के बाद यह अपना हिस्सा उसे एरिया को ल कर वसूल करते थे मराठस की तरफ से इन्हें इस बात की पोजीशन थी पिंडारी इसको यह कास्ट नहीं थी बल्कि इनमें अलग-अलग कास्ट और क्लासेस के लोग शामिल होते थे अब होता यह है की सेकंड एंग्लो मराठा वार के बाद मराठस काफी वीक हो जाते हैं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कंट्रोल उनके ऊपर बढ़ता जा रहा था और ऐसे में मराठाज जब कोई एक्सपीडिशन कर ही नहीं रहे थे तो पिंडारी को भी मराठा से कोई कम नहीं मिल का रहा था अब रेगुलर एंप्लॉयमेंट ना मिलने के करण पिंडारी ने आसपास की टेरिटरीज को प्लंडर करना शुरू कर दिया उन्होंने हैदराबाद के निजाम कर्नाटक के नवाब मालाबार और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की टेरिटरीज में भी लूटपाट कर दी इससे परेशान होकर ब्रिटिश कंपनी के गवर्नर जनरल वारेन हस्त ने 1817 में पिंडारी पर अटैक कर दिया पिंडारी पर अटैक एक तरह से मराठा सॉवरेन्टी पर अटैक और मराठा इसका जवाब ब्रिटिश कंपनी को देना चाहते थे इसके साथ ही सेकंड एंग्लो मराठा वार के टाइम जो सब्सिडियरी एलाइंस ट्वीट हुई थी उसके अकॉर्डिंग ब्रिटिश कंपनी ने हर एक मराठा के के कोर्ट में रेजिडेंट यानी की ब्रिटिश एजेंट अप्वॉइंट कर दिया था और ये रेजिडेंस मराठा चिप्स पर नजर रखते थे की वो कोई कंस्पायरेसी ना कर पाएं मराठा इन रेजिडेंस के इंटरफेरेंड से भी परेशान थे ऐसे में ब्रिटिश मराठस पर पिंडारी इसको हेल्प करने का एक्विजिशन भी लगा देते हैं तब ईश्वर मराठा चिप्स डिसाइड करते हैं की उन्हें ब्रिटिशर्स का मिलकर सामना करना चाहिए पेशवा बाजीराव तू मल्हार राव होलकर और मधु जी भोसले तू एक यूनाइटेड फ्रंट का फॉर्मेशन करते हैं लेकिन एक बार फिर से ब्रिटिशर्स की जीत होती है और मराठस के साथ फिर से साइन की जाति हैं सिंधिया के साथ 1871 में ग्वालियर साइन की जाति है पेशवा को गाड़ी से हटा दिया जाता है और पेंशन अगर कानपुर के पास बिठूर भेज दिया जाता है उनकी ज्यादातर टेरिटरी बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन जाति है और इस तरह थर्ड एंग्लो मराठा वार के साथ मराठा अंपायर का भी और हो जाता है सभी मराठा चिप्स ब्रिटिशर्स के आगे सुरेंद्र कर देते हैं और इसके साथ ही पंजाब और सिंह के अलावा पुरी इंडियन टेरिटरी पर ब्रिटिश का डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कंट्रोल एस्टेब्लिश हो जाता है दोस्तों ये तो बात हुई एंग्लो मराठा वर्स की अब ऐसे कुछ ओवरऑल रीजंस को भी समझते हैं जिनकी वजह से मराठस को ब्रिटिशर्स से हर का सामना करना पड़ता है रीजंस पर मराठा लॉस मराठस की हरकत सबसे बड़ा करण था मराठा चिप्स के बीच यूनिटी ना होना जुडिशल की साइड लेने लगता हैं इसके अलावा मराठा ब्रिटिशर्स की पॉलीटिकल और डिप्लोमेटिक स्ट्रैंथ को भी नहीं समझ पे हमने देखा की कैसे हर बार मराठा लीडर्स ब्रिटिशर्स के साथ ट्रीटी के झांसी में ए जाते हैं इसके अलावा मराठाज की हर के पीछे और भी रीजंस थे जैसे की मराठा चिप्स की इन एक्ट लीडरशिप उनका इनफीरियर मिलिट्री सिस्टम वो गोरिल्ला वाॅरफेयर में तो माहिर थे लेकिन ब्रिटिशर्स के साथ आमने-सामने की बैटल में नहीं इसके साथ ही ब्रिटिशर्स की सुपीरियर डिप्लोमेटिक स्किल जिसकी हेल्प से वो ये इंश्योर कर लेते हैं की हैदराबाद या मैसूर जैसे स्टेटस मराठस और ब्रिटिशर्स के अफेयर्स में कोई इंटरफ्रेंस ना करें यह मराठस की हर का एक करण कहानी जा शक्ति हैं इन सभी रीजंस की वजह से अल्टीमेटली मराठस ब्रिटिश से हर जाते हैं और एंग्लो मराठा वर्स के बाद उनके अंपायर का फाइनल डिक्लिन होता है कनक्लूडिंग रिमार्क्स दोस्तों इस तरह ब्रिटिश ने इंडिया की एक और इंपॉर्टेंट पावर मराठस को भी रास्ते से हटा दिया बंगाल और मैसूर पर उनकी जीत को हम पहले ही कर कर चुके हैं जैसा की हमने पहले भी बताया की अब पंजाब और सिंह को छोड़कर ब्रिटिशर्स का कंट्रोल ऑलमोस्ट पूरे इंडिया पर हो चुका था कुछ एरियाज पर डायरेक्ट कंट्रोल था और कुछ पर इनडायरेक्ट जैसे की अवध हैदराबाद ईटीसी पर सब्सिडियरी एलाइंस की हेल्प से पंजाब और सिंह की उनकी जीत को हम अपनी आने वाली वीडियो में कर करेंगे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी लगभग पुरी इंडियन टेरिटरी पर अपना डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कंट्रोल एस्टेब्लिश कर चुकी थी लेकिन इंडिया का नॉर्थ वेस्ट एरिया यानी की सिंह प्रांत और सिख अंपायर अभी भी उसकी कंट्रोल से बाहर था आज हम इन्हीं दोनों एरियाज के बड़े में बात करने वाले हैं हम जानेंगे की इनके साथ कंपनी के रिलेशंस कैसे थे कंपनी के लिए इन एरियाज की क्या इंर्पोटेंस थी और ऐवेंंचुअली कंपनी इन्हें कब और कैसे अनेक कर लेती है तो आई शुरू करते हैं सबसे पहले बात करते हैं जिंदगी दोस्तों सिंह सिंधु यानी की सिंदरी बार के किनारे पर बस हुआ है 18th सेंचुरी से ही सिंह को कुछ बलूची चीज कलेक्टिवली रूल कर रहे थे जिन्हें अमिरज़ कहा जाता था ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहां अपनी पहले फैक्ट्री 1775 में छता नाम की जगह पर एस्टेब्लिश की थी लेकिन 1792 में पॉलीटिकल और रेस्ट और फिजिकल प्रॉब्लम्स की वजह से उन्होंने इस फैक्ट्री को छोड़ दिया था इसके बाद 189 में लॉर्ड मिंटो वन ने सिंह के अमीरस के साथ ट्विटर वेटरनल फ्रेंडशिप साइन की थी प्रॉमिस करते हैं की वो सिंह में फ्रेंच को सेटल नहीं होने देंगे इस बार अमेरिकंस को भी सिंह से बाहर रखना का प्रोविजन ट्रीटी में एड कर दिया जाता है कुछ समय बाद ही कंपनी का ध्यान सिंधु रिवर की कमर्शियल और नेवीगेशनल वैल्यू की तरफ आकर्षित होता है 1832 में विलियम बेंटिक आमिर्स के साथ एक नई कमर्शियल त्रुटि साइन करने के लिए करनाल पोर्टिंग को सिंह भेजते हैं साथ ही लेफ्टिनेंट डेल होस्ट को लोअर इंडस्ट्रीज के कोर्स का सर्वे करने के लिए भेज दिया जाता है फॉलोइंग टर्म्स पर ट्रीटी साइन करते हैं पहले पॉइंट था की इंग्लिश ट्रैवल्स और मरचेंट्स को सिंह से फ्री पैसेज दिया जाएगा और रिवर सिंधु को कमर्शियल परपज के लिए उसे करने दिया जाएगा लेकिन वर्स के लिए कोई भी शिव या गुड्स सिंधु के थ्रू नहीं ले जाएंगे दूसरा पॉइंट था की सिंह में कोई भी इंग्लिश मर्चेंट सेटल नहीं होगा और ट्रैवल्स को पासपोर्ट रखना होगा तीसरा की मिलिट्री न्यूज़ या टूल्स की डिमांड नहीं राखी जाएगी है इसके साथ ही फ्रेंडशिप की पुरानी टूटीज को भी कंफर्म किया गया और प्रॉमिस किया गया की दोनों पार्टी एक दूसरे के एरियाज को एनएक्स करने की कोशिश नहीं करेंगे और आखिर में करनाल पॉटिंगर कंपनी के पॉलीटिकल एजेंट की तरह सिंह में रहेंगे इसके बाद 1839 में सिंह के अमीरस को एक बार फिर से फोर्स करके उनके साथ सब्सिडियरी एलाइंस की त्रुटि साइन की जाति है यहां भी ब्रिटिशर्स यह प्रॉमिस करते हैं की सिंह को कभी एनएक्स नहीं करेंगे दोस्तों 1832 और फिर 1839 की ट्वीटी में तो प्रॉमिस किया गया था की सिंह का कभी एनेक्सेशन नहीं होगा फिर ऐसा क्या हुआ की 1843 में ब्रिटिशर्स सिंह को मिक्स कर लेते हैं आई जानते हैं दोस्तों सिंह का एनेक्सेशन करने के पीछे स्ट्रैटेजिक और कमर्शियल दोनों ही रीजंस थे पहले स्ट्रैटेजिक रीजंस को समझते हैं 42 तक एंग्लो अफगान वार हुआ था जिसमें ब्रिटिश की बुरी तरह हर हो जाति है इस हार्ड से ब्रिटिश को बहुत बड़ा झटका लगता है अपनी कोई हुई प्रेस्टीज को वापस अपने के लिए कंपनी को जरूर थी एक जीत की और जितने के लिए पंजाब और सिंधी बच्चे हुए थे लेकिन पंजाब में राजा रंजीत सिंह जैसे स्ट्रांग रोलर का रूल था कंपनी उनके अगेंस्ट रिस्क नहीं लेना चाहती थी इसलिए वह अपना निशाना बनाते हैं पहले से ही कमजोर सिंह को यह तो हुआ पहले स्ट्रैटेजिक रीजन एक और स्वीटी करण था जिंदगी अनेक सेशन का जिसे अक्सर फोबिया कहा जाता है और वो था रसिया की इन्वेस्टियन का डर ब्रिटिश को लगता था की रसिया इंडिया में उनके अंपायर पर अटैक कर सकता है और इसी अटैक को प्रीवेंट करने यह वह अपने इंडियन अंपायर का नॉर्थ वेस्टर्न बॉर्डर स्ट्रांग करना चाहते थे इसके साथ ही ब्रिटिशर्स को यह भी डर था की पंजाब के राजा रंजीत सिंह सिंह को जीत सकते हैं और ये वो कभी नहीं चाहते थे इसलिए कंपनी डिसाइड करती है की सिंह उनके डायरेक्ट कंट्रोल में होना चाहिए स्ट्रैटेजिक रीजंस के अलावा सिंह को आयनिक करने की कमर्शियल रीजंस भी थे सिंह पर कंट्रोल होने से सिंधु रिवर के थ्रू होने वाले ट्रेड को कंट्रोल किया जा सकता था जिससे कंपनी नॉर्थ वेस्ट इंडिया और पंजाब के साथ इजीली ट्वीट कर शक्ति थी इन्हीं सभी रीजंस की वजह से ब्रिटिशर्स ने सिंह को एनएक्स करने का डिसीजन लिया कंपनी सिंह के अमीरस पर यह आप लगती है की उन्होंने एंग्लो अफगान वार के समय ब्रिटिश की हेल्प नहीं की और इसका सेटलमेंट ब्रिटिश रेजिडेंट पर छोड़ने की जगह कंप्लीट पॉलीटिकल और मिलिट्री अथॉरिटी के साथ सिंह भेज देते हैं इसके बाद बलोची सोल्जर रिवॉर्ड कर देते हैं और ओपन वार शुरू हो जाता है और सिंह का अनेक सेशन कंप्लीट हो जाता है है इस अलेक्सेशन से एंग्लो इंडियन अंपायर को वेस्ट की तरफ एक शार्टर और सफर फ्रंटियर मिल जाता है इसके साथ ही सिंधु रिवर की कमांड भी उनके हाथों में ए जाति है जिससे ब्रिटिशर्स के लिए सेंट्रल एशिया तक एक डायरेक्ट कमर्शियल वे ओपन हो जाता है लेकिन कंकर करने वाले चार्ल्स नेपियर इस आइनेक्सेशन की रायचौयस को लेकर कन्वेंस नहीं थे अपनी डायरी में उन्होंने लिखा था वे हैव नो राइट तू सी सिंह ये विशाल इन ह्यूमन पीस ऑफ रिसेलिटी आईटी बिल बी दोस्तों सिंह के एनेक्सेशन के बाद अब सिर्फ पंजाब ही ऐसा रीजन था जहां कंपनी का कंट्रोल एस्टेब्लिश नहीं हुआ था तो आई अब पंजाब की स्टोरी को समझते हैं महाराजा रंजीत सिंह जो की एक स्ट्रांग और कैपेबल लीडर थे उन्होंने अपनी आर्मी को यूरोपीय मॉडल पर ट्रेन किया था ऐसा कहा जाता है की उनके पास एशिया की सेकंड बेस्ट आर्मी थी मतलब इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी और महाराजा रंजीत सिंह के बीच रिलेशंस की शुरुआत होती है 189 की ट्विटर अमृतसर से दोस्तों ट्रीटी का अमृतसर 1817 की ट्रीटी का दिलसित से काफी ज्यादा कनेक्ट है ट्रीटी का तिलचात फ्रांस के नेपोलियन और रसिया के रोलर सिकंदर डी वन के बीच हुई थी और इसमें डिसाइड हुआ था की ये दोनों पावर लैंड रूट के थ्रू इंडिया को एवढे करेंगे इसी पॉसिबल इनवेजन से अपने अंपायर को से करने के लिए ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो वन 18 को लाहौर भेजते हैं सिर्फ और डिफेंसिव एलाइंस का प्रपोज महाराजा रंजीत सिंह के सामने रखते हैं रंजीत सिंह इस प्रपोज को एक्सेप्ट करने के लिए अपनी दो कंडीशंस रखते रहेंगे और दूसरी कंडीशन थी की ब्रिटिश रंजीत सिंह को एंटीरे पंजाब इंक्लूडिंग मालवा टेरिटरीज का सोरेन एक्सेप्ट कर लेंगे मालवा टेरिटरीज का यहां मतलब है मॉडर्न सदन पंजाब और हरियाणा का रीजन जिसे सर सतलुज रीजन भी कहा जाता था 187 की नेगोशिएशंस तो फेल हो जाति हैं लेकिन 2 साल बाद ही पॉलीटिकल सिचुएशन पुरी तरह चेंज हो जाति है वह यह था की महाराजा रंजीत सिंह ने सितंबर 18 में मालवा रीजन को एवं करने की कोशिश की थी लेकिन फरवरी 189 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके ऊपर अटैक कर दिया इस अटैक में कंपनी को काफी सक्सेस मिलती है ऐसी सिचुएशन में महाराजा रंजीत सिंह को समझ में ए गया की कंपनी के साथ ज्यादा टक्कर लेना सही नहीं है और वो अमृतसर की ट्वीटी साइन करने के लिए तैयार अमृतसर में महाराजा रंजीत सिंह को यह एक्सेप्ट करना पड़ा की वो सतलुज रिवर को अपनी सदन बाउंड्री मां लेंगे और कभी भी इसे बाहर नहीं करेंगे दोस्तों ट्रीटी का अमृतसर के बाद रंजीत सिंह और कंपनी के बीच और कोई तकरार देखने को नहीं मिलता लेकिन कहानी में ट्वीट आता है जब जून 1839 में महाराजा रंजीत सिंह की डेथ हो जाति है फर्स्ट एंग्लो सिख वार 18456 दोस्तों महाराजा रंजीत सिंह की डेथ के बाद उनके बेटे खड़क सिंह राजा बनते हैं लेकिन उनमें अपने पिता जैसी कोई भी खूबी नहीं थी वो नसे के आदि थे और हर वक्त शराब और अफीम के नसे में धूत रहते थे और जब वो ज्यादातर बीमा रहने लगे तो कुछ मीना बाद ही उनके बेटे नवनेहाल सिंह को राजा बना दिया गया फिर नवंबर 1840 में खड़क सिंह की मृत्यु हो गई और उनके फ्यूनरल से वापस आते समय महाराजा नव निहाल सिंह के ऊपर गेट के ऊपर से बहुत बड़ा पत्थर टूट करके गया और इस तरह उनकी भी डेथ हो गई इसके बाद खड़क सिंह की वाइफ और नवनिहाल सिंह की मदर चंद कौर नवनिहाल के रीजेंट बनकर गाड़ी संभालती हैं लेकिन यह बात रंजीत सिंह के एक और बेटे शेर सिंह को पसंद नहीं ए रही थी और उन्होंने 70 हजार की फौजी के साथ लाहौर का घेराव कर लिया और जैनुअरी 1841 में खुद को महाराजा डिक्लेअर कर दिया लेकिन 1843 वीर सिंह को भी धोखे से मार दिया गया इसके बाद सितंबर 1843 में रंजीत सिंह के 5 साल के बेटे दिलीप सिंह को महाराजा बनाया जाता है दिलीप सिंह की मदर जींद कौर उनका रीजेंट बन के राजपथ संभालती हैं इस तरह पॉलीटिकल इंस्टेबिलिटी के चलते आर्मी कमजोर पढ़ने लगती है सोल्जर को समय से वेतन नहीं मिल का रहा था और आर्मी में इंडिसिप्लिन बढ़ता जा रहा था दोस्तों पंजाब की सिचुएशन पर कंपनियां अपनी नजर बनाए हुए थे उन्हें समझ ए गया था की पंजाब किंगडम पहले की तरह स्ट्रांग नहीं है इसके साथ ही ब्रिटिशर्स ने 1843 में सिंह को दो एनएक्स कर ही लिया था तो अब बस पंजाब ही उनके कंट्रोल से बाहर था सिंह के अनेक सेशन के बाद पंजाब को भी डर था की कहानी कंपनी उनके ऊपर अटैक ना कर दे सिचुएशन और ज्यादा टेंशन होने लगती है जब 1845 में गवर्नर जनरल लॉर्ड होर्डिंग सतलज रिवर पर हजारों की संख्या में अपनी ट्रूप्स भेजना लगता हैं ऐसे में सिख आर्मी को समझ नहीं ए रहा था की ब्रिटिश कंपनी लाहौर पर अटैक करने वाली है या उनका कुछ और प्लेन है कन्फ्यूजन की सिचुएशन में सिख आर्मी के कुछ डस्टन ने यानी बटालियन ने 11th दिसंबर 1845 में सतलज रिवर को क्रॉस कर दिया क्योंकि सिख आर्मी का मानना था की अगर ये ईस्ट इंडिया कंपनी को बर चाहिए तो वो उनके ही एरिया में होगी ना की पंजाब में इसलिए वो सतलज को क्रॉस करके बहादुर से अपने दुश्मन का सामना करने पहुंच जाते हैं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हिसाब से सतलज रिवर को क्रॉस करना मतलब इसी को करण बनाकर दिसंबर 1845 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब किंगडम पर अटैक कर दिया सिख आर्मी को लीड कर रहे थे उनके जनरल तेजा सिंह और लाल सिंह पहले बात तो यह दोनों ही लीडर्स कैपेबल नहीं थे और दूसरी बात यह की कंपनी से भी मिले हुए थे तो ऐसी सिचुएशन में जब फर्स्ट एंग्लो सिख वार हुआ तो सिख आर्मी को हर जगह हर का सामना करना पड़ा ये शब्द दिसंबर 1845 में शुरू होकर मार्च 1846 में ट्रीटी का लाहौर के साथ खत्म होती है ट्रीटी का लाहौर में ब्रिटिश कहते हैं की वो दिलीप सिंह को पंजाब किंगडम का रोलर और रानी जिंदल को उनका रीजेंट एक्सेप्ट करते हैं इसके साथ ही लाल सिंह को वजीर माने के लिए भी तैयार हैं लेकिन अब पंजाब की आर्मी को सिर्फ ₹20000 इंफिनिटी और 12000 केवलारी तक सीमित कर दिया जाता है सिख आर्मी का रिकॉग्निशन होने तक महाराजा और लाहौर के लोगों की सुरक्षा के लिए एक ब्रिटिश फोर्स को लाहौर में तैनात कर दिया जाता है कंपनी लाहौर किंगडम से एक करोड़ रुपए से ज्यादा की वारिडिटी की मांग भी करती है लाहौर किंगडम के पास इतना पैसा नहीं था इसलिए कंपनी लाहौर किंगडम के पार्ट जम्मू और कश्मीर को गुलाब सिंह को बीच देती है गुलाब सिंह इसके बदले में कंपनी को 75 लाख रुपए देते हैं इसके साथ ही व्यास और सतलुज के बीच का एरिया जालंधर दवाब को भी ब्रिटिश एनेक्स कर लेते हैं तो दोस्तों यह थी 1846 की ट्रीटी का लाहौर इस हमिलिटी से सिख खुश नहीं थे और वो रिबेलीयन कर देते हैं कंपनी इजीली इस रिबेलीयन को कृष कर देती है और कहती है की यह रिबेलीयन महारानी जींद के खाने पर हुआ है इसलिए एक और ट्रीटी साइन की जाति है जिसके अकॉर्डिंग महारानी जींद को पेंशन देकर बनारस भेज दिया जाता है और ब्रिटिश रेजिडेंट हेनरी लॉरेंस की लीडरशिप में एक रीजेंसी काउंसिल बनाई गई जिसमें 86 सर्ड्स को रखा गया कहा गया की अब से ये रीजन सी काउंसिल महाराजा दिलीप सिंह के रीजेंट के रूप में कम करेगी यह थी ट्रीटी का भैरव्वल जो हुई थी दिसंबर 1846 में इस ट्वीटी के हिसाब से जो ब्रिटिश ट्रूप्स 1846 के और में लाहौर से विद्रोह करने वाले थे उन्हें अब तब तक लाहौर में ही रहना था जब तक की दिलीप सिंह माइनर है और इसके बदले में पंजाब को कंपनी को हर साल 22 लाख रुपए भी देने होंगे दोस्तों इस ट्वीटी के बाद यह साफ हो गया की पंजाब की रियल पावर अब ब्रिटिश रेजिडेंट के हाथ में ए चुकी है और पंजाब अब सिर्फ एक वेसल स्टेट बन गया है यहां से पंजाब की इंटरनल एडमिनिस्ट्रेशन के रिस्पांसिबिलिटी भी ईस्ट इंडिया कंपनी की हो जाति है लेकिन ब्रिटिश यहां भी नहीं रुकते सिर्फ 2 साल के बाद ही 1848 में सेकंड एंग्लो सिख वार के थ्रू वो पंजाब को पुरी तरह एनएक्स कर लेते हैं आई फिर सेकंड एंग्लो सिख वार को भी समझते हैं सेकंड एंग्लो सिख वार 184849 दोस्तों यह तो हमने समझा की फर्स्ट एंग्लो सिख वार के बाद हुई ट्वीटी सिक्स के लिए बहुत ही हमिलिएटिंग थी और साड़ी पावर्स अब ब्रिटिश रेजिडेंट हेनरी लॉरेंस के हाथों में ए चुकी थी ऐसे में 1848 में हेनरी लॉरेंस मुल्तान के गवर्नर दीवान मूलराज से इंक्रीज रिवेन्यू की डिमांड करते हैं लेकिन मूलराज ने एन तो बड़ा हुआ रिवेन्यू देने की बात मनी और ना ही पुराना हिसाब किताब जूता किया उन्होंने भी अपनी तरफ से तैयारी कर ली थी की अगर ब्रिटिश रेजिडेंट कोई जबरदस्ती करने की कोशिश करेंगे तो देख लेंगे तब ब्रिटिश रेजिडेंट डिसाइड करते हैं की मूलराज को रिप्लेस करके किसी और को मुल्तान का गवर्नर बना दिया जाए लेकिन मुल्तान की जनता मूलराज के फीवर में थी इसलिए मुल्तान के नए सिख गवर्नर को दो ब्रिटिश ऑफिसर लेफ्टिनेंट पैट्रिक वनजाग न्यू और लिफ्टेड एंडरसन के साथ मुल्तान भेजो गया जब यह मुल्तान पहुंचे तो वहां की जनता पहले से ही भड़की हुई थी उन्होंने इन दोनों ब्रिटिश ऑफिसर्स को मार दिया फर्स्ट एंग्लो सिख वार की हमिलिएशन से परेशान पंजाब के लोगों को मूलराज में अपना नया लीडर मिल गया और जल्दी ही सिख ट्रूप्स ने भी मूलराज को जॉइन कर लिया और पंजाब में एक ओपन रिबेलीयन की शुरुआत हो गई उसे समय गवर्नर जनरल थे लॉर्ड डलहौजी पंजाब की स्थिति देखकर लॉर्ड डलहौजी ने डिसाइड किया की यह एक बहुत ही बढ़िया मौका है पंजाब को एनएक्स करने का उन्होंने पंजाब पर अटैक कर दिया और इस तरह सेकंड एंग्लो सिख वार की शुरुआत हो गई इस वार के दौरान कुछ इंपॉर्टेंट बॉटल्स हुई थी जैसे की बैटल ऑफ रामनगर बैटल ऑफ चिलियांवाला और बैटल ऑफ गुजरात आर्मी को सुरेंद्र करना पड़ा पंजाब को अनेक कर लिया गया और अब पंजाब भी ब्रिटिश कंपनी की टेरिटरी बन गया दोस्तों पंजाब के अनेक सेशन के लिए कहा जाता है की दी एनेक्सेशन ऑफ पंजाब वैसे नो एनेक्सेशन आईटी वज एन सीक्रेट ब्रीच ऑफ ट्रस्ट ऐसा इसलिए क्योंकि 1846 की ट्रीटी में भैरू वाल के बाद से ब्रिटिश रेजिडेंट ही सही मेन में पंजाब को रूल कर रहे थे सभी सिविल और एडमिनिस्ट्रेटिव पावर्स उनकी ही हाथों में थी महाराजा दिलीप सिंह तो माइनर थे और उनका सिर्फ नाम ही उसे हो रहा था रिबेलीयन सिख आर्मी ने किया था ना की महाराजा या उनकी रीजेंसी कम से लेने और महाराजा का रीजन होने के नाइट यह ब्रिटिश रेजिडेंट की ड्यूटी थी की वह मूलराज और सिख आर्मी के रिबेलीयन को सरप्राइज करें महाराजा दिलीप सिंह को तो किसी भी तरह इस रिबेलीयन के लिए रिस्पांसिबल नहीं माना जा सकता इसलिए इस बेसिस पर उनसे उनका किंगडम छन लेना पुरी तरह अंजस्ट था कंक्लुजन तो दोस्तों हमने देखा की कैसे ब्रिटिश कंपनी ने अपने फायदे के लिए पहले सिंह और फिर पंजाब दोनों से ही फ्रेंडली रिलेशंस बनाए और इसके बाद जब उन्हें सही मौका मिला तब इस फ्रेंडशिप को भूलकर उन्होंने इन्हें एनएक्स कर लिया यह ब्रिटिश कंपनी में ए चुकी थी वारेन हेस्टिंग्स 1772 2785 हम अपनी पिछली कुछ वीडियो में देख चुके हैं की कैसे ब्रिटिशर्स इंडिया में आगे एन ट्रेडिंग कंपनी आते हैं और फिर ग्रैजुअली यहां पर अपना अंपायर एस्टेब्लिश करते हैं ब्रिटिशर्स द्वारा अंपायर एस्टेब्लिश करने और उसके बाद यहां एडमिनिस्ट्रेशन चलने में बहुत इंपॉर्टेंट रोल था ब्रिटिश गवर्नर और गवर्नर जनरल्स का हम बंगाल प्रेसीडेंसी के पहले गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव के बड़े में पहले ही डिस्कस कर चुके हैं आज हम बंगाल के नेक्स्ट गवर्नर और फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल वारेन हेस्टिंग्स के बड़े में बात करने वाले हैं तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन वारेन हेस्टिंग 1750 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को जॉइन करते हैं कंपनी में डिफरेंट पोजीशंस पर सर्व करने के बाद फाइनली 1772 में इन्हें बंगाल प्रेसीडेंसी का गवर्नर अप्वॉइंट किया जाता है बंगाल 1764 में बैटल ऑफ बक्सर के बाद ब्रिटिश कंपनी के कंट्रोल में ए चुका था और उसे समय बंगाल की गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव थे जो यहां ड्यूल गवर्नमेंट सिस्टम को एस्टेब्लिश करते हैं इसके तहत रिवेन्यू कलेक्शन यानी की दीवानी राइट्स तो कंपनी मैनेज करती है लेकिन निजामत राइट्स यानी की एडमिनिस्ट्रेशन संभालने की रिस्पांसिबिलिटी बंगाल के नवाब के पास ही रहती है 1772 में गवर्नर बने के बाद वारेन हेस्टिंग्स के सामने सबसे इंपॉर्टेंट टास्क था बंगाल में एक स्टेबल एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम में ए चुके थे इनके गवर्नर बने के कुछ समय बाद ही 1773 में ब्रिटिश पार्लियामेंट रेगुलेटिंग एक्ट पास करती है दोस्तों रेगुलेटिंग एक्ट क्यों लाया गया था और इसके इंपॉर्टेंट प्रोविजंस क्या थे आई अपने नेक्स्ट क्षेत्र में समझते हैं रेगुलेटिंग एक्ट ऑफ 1773 प्लासी और बक्सर के बैटल के बाद ब्रिटिश कंपनी बंगाल पर रूल करने लगती है अब कंपनी सिर्फ एक ट्रेडिंग ऑर्गेनाइजेशन में रहकर एक एडमिनिस्ट्रेटिव बॉडी भी थी इसीलिए कंपनी की फंक्शनिंग को रेगुलेट करने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट 1773 में रेगुलेटिंग एक्ट पास करती है इस एक्ट के अनुसार मद्रास और मुंबई की प्रेसिडेंट बंगाल के कंट्रोल में ए गए बंगाल के गवर्नर की पोस्ट अब गवर्नर जनरल की पोस्ट बन गई और इस तरह वारेन हेस्टिंग्स पहले गवर्नर जनरल बन गए गवर्नर जनरल को एसिस्ट करने के लिए फोर मेंबर की एक एग्जीक्यूटिव काउंसिल भी बनाएगी सभी डिसीजंस मेजॉरिटी के बेसिस पर लिए जान थे और गवर्नर जनरल सिर्फ टी के कैसे में ही वोट कर सकते थे एक्टीनो कंपनी के सर्वेंट को प्राइवेट ट्रेड करने और नेटिव से ब्राइब्स और प्रेजेंट लेने से भी प्रोहिबिट किया इसके साथ ही फोर्ट विलियम कोलकाता में सुप्रीम कोर्ट को भी एस्टेब्लिश किया गया दोस्तों यह तो बात हुई रेगुलेटिंग एक्टिव 17 जिसने वारेन हेस्टिंग्स को गवर्नर जनरल बनाया अब बात करते हैं वारेन हेस्टिंग्स की डिफरेंट रिफॉर्म्स की जो उन्होंने गवर्नर और गवर्नर जनरल रहते हुए इंट्रोड्यूस किया रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस बाय वारेन हेस्टिंग्स वारेन हेस्टिंग अलग-अलग फील्ड में रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस करते हैं जैसे की एडमिनिस्ट्रेटिव रिवेन्यू जुडिशल और कमर्शियल आई एक-एक करके इन्हें डिस्कस करते हैं सबसे पहले बात करते हैं एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स की एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स वारेन हेस्टिंग्स का सबसे इंपॉर्टेंट एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म था बंगाल में रॉबर्ट क्लाइव द्वारा इस्टैबलिश्ड ड्यूल सिस्टम ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन को अबॉलिश करना दोस्तों आपको याद होगा की ड्यूल सिस्टम में निजामत राइट्स तो नवाब के पास थे लेकिन जमींदारी राइट्स कंपनी इलाहाबाद ट्रीटी के अनुसार कंपनी मुगल एंपरर को जो 26 लाख से वापस लेकर 50 लाख रुपए में अवध को बीच देते हैं इन सभी एक्शंस के पीछे रीजन कंपनी की इकोनामी को बटर करना था एडमिनिस्ट्रेशन के बाद अब देखते हैं रिवेन्यू रिफॉर्म्स को रिवेन्यू रिफॉर्म्स रिवेन्यू कलेक्शन के लिए वारेन हेस्टिंग कोलकाता में एक बोर्ड ऑफ रिवेन्यू सेटअप करते हैं हर एक जिला में एक ब्रिटिश कलेक्टर और अकाउंटेंट जनरल अप्वॉइंट किया जाता है ब्रिटिश ट्रेजेडी को मुर्शिदाबाद से कोलकाता मूव कर दिया जाता है 1772 में कोलकाता बंगाल की कैपिटल डिक्लेअर की जाति है 1772 में ही वारेन हेस्टिंग्स लैंड रिवेन्यू के लिए 5 इयर्स सेटलमेंट की शुरुआत करते हैं इस सिस्टम के अकॉर्डिंग सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को पांच साल के लिए रिवेन्यू कलेक्ट करने का राइट मिल जाता है इन्हें रिवेन्यू फार्मर्स बोला जाता है लेकिन यह सिस्टम फेल हो जाता है क्योंकि बोली लगाने वालों को लैंड में कोई इंटरेस्ट नहीं होता था वो सिर्फ स्पैकुलेटर थे और इसलिए वह कल्टीवेटर से ज्यादा से ज्यादा वसूल करने की कोशिश करते थे इसके अलावा लैंड को ओवरस्सेस भी किया गया था और स्टेट की डिमांड बहुत हाय राखी गई थी इसके ऊपर से कलेक्शन का मेथड बहुत हर्ष था कंपनी के कलेक्टर्स रिवेन्यू फॉर्म को हरायस करते थे इन सभी रीजंस की वजह से रिवेन्यू फॉर्म्स पर काफी ज्यादा बकाया हो जाता है और बहुत लोगों को डिफॉल्ट के लिए अरेस्ट भी किया जाता है 1776 में जब 5 एयर सेटलमेंट एक्सपायर हो जाता है तो वारेन हेस्टिंग्स 1 एयर सेटलमेंट करते हैं इस बार सेटलमेंट के लिए प्रेफरेंस जमींदारा को दी जाति है और इन्हीं रिफॉर्म्स से सिख लेकर नेक्स्ट गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस के रिवेन्यू रिफॉर्म्स एक स्टेप आगे होते हैं जिनके बड़े में हम अपनी नेक्स्ट वीडियो में डिस्कस करेंगे तो ये तो थे वारेन हेस्टिंग्स के रिवेन्यू फील्ड में एक्सपेरिमेंट आई अब बात करते हैं उनके जुडिशल रिफॉर्म्स की जुडिशल रिफॉर्म्स दोस्तों रिवेन्यू रिफॉर्म्स में तो वारेन हेस्टिंग्स को ज्यादा सक्सेस नहीं मिली लेकिन उनके जुडिशल रिफॉर्म्स जरूर सक्सेसफुल होते हैं वारेन हेस्टिंग्स का सबसे पहले जुडिशल रिफॉर्म होता है जमींदारा की जुडिशल पावर्स को खत्म करना 1772 में वारेन हेस्टिंग्स जिला लेवल पर दीवानी अदालत और फौजदारी अदालत सेटअप करते हैं दीवाने अदालत को कलेक्टर यानी की यूरोपीय ऑफिसर प्रेसीडे करता था और फौजदारी अदालत को इंडियन जज इसके अलावा दीवानी अदालत में हाइंड्स का कैसे हिंदू लॉस के अकॉर्डिंग डिसाइड होता था और मुस्लिम का मुस्लिम डॉ के अकॉर्डिंग लेकिन फौजदारी अदालत में सभी का डिसीजन मुस्लिम डॉ के अकॉर्डिंग ही होता था जिला कोट्स के डिसीजन के अगेंस्ट अपील के लिए कोलकाता में सदर दीवानी अदालत और सदर निजामत अदालत भी सेटअप की गई थी इसके अलावा वारेन हेस्टिंग मुस्लिम और हिंदू लॉस को कोडिफाई करने की कोशिश भी करते हैं 1776 में हिंदू कोड का एक इंग्लिश ट्रांसलेशन द्वारा इंट्रोड्यूस किया गए जुडिशल रिफॉर्म्स अब लास्ट में उनके कुछ कमर्शियल रिफॉर्म्स को भी जान लेते हैं कमर्शियल रिफॉर्म्स वारेन हेस्टिंग बंगाल के इंटरनल ट्रेड में बोतल नेक को क्लियर करने के लिए कुछ स्टेप्स लेते हैं सबसे पहले वह जमींद्रीज में चल रहे अनेक कस्टम हाउसेस को सरप्राइज करते हैं अब सिर्फ 5 कस्टम हाउसेस मेंटेन किया जाते हैं कोलकाता हुगली मुर्शिदाबाद ढाका और पटना में हेस्टिंग्स दस्तक के मिसयूज को भी चेक करते हैं ड्यूटीज को कम करके 2 और 1/2% कर दिया जाता है और ये इंडियन और यूरोपीय दोनों पर ही लगे जाति हैं इसके साथ ही ये कंपनी सर्वेंट के प्राइवेट ट्रेड पर भी रिस्ट्रिक्शंस लगाते हैं दोस्तों वारेन हेस्टिंग्स के रिफॉर्म्स की तो बात हो गई आई अब उनके टाइम पीरियड के कुछ अदर इंपॉर्टेंट इवेंट्स पर भी एक नजर डालते हैं इंपॉर्टेंट इवेंट्स ड्यूरिंग वारेन हेस्टिंग्स पीरियड 1772 2785 वारेन हेस्टिंग्स के 13 साल के कार्यकाल में बहुत से इंपॉर्टेंट इवेंट्स हुए थे एक-एक करके उनको डिस्कस करते हैं सबसे पहले इंपॉर्टेंट इवेंट था 1774 में होने वाला फर्स्ट रोहिल्ला वार लिए इसको डिटेल में समझते हैं फर्स्ट रोहिल्ला वार दोस्तों रोहिलास बेसिकली अफ़ग़ानस थे जो 18थ सेंचुरी में मुगल अंपायर के डिक्लिन के समय इंडिया आते हैं और रोहिलखंड के एरिया पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लेते हैं जब पेशवा माधवराव वन की लीडरशिप में मराठा पावर एक बार फिर से राइस कर रही थी तब रोहिलास को मराठा अटैक का डर सताने लगता है 1772 की शुरुआत में मराठस ने रोहिल्ला चीफ़्टेन जवित खान को हराकर उनकी पुरी टेरिटरी पर कब्ज भी कर लिया था ऐसे में रोहिल्ला लीडर हाफिज रहमत खान मराठा से प्रोटेक्शन के लिए 17th जून 1772 को अवध के नवाब के साथ ट्वीटी साइन करते हैं और इसके बदले में रोहिलास उन्हें 40 लाख की पेमेंट करने का प्रॉमिस करते हैं मराठस रोहिलखंड पर अटैक प्लेन भी करते हैं लेकिन तभी पेशवा माधवराव वन की मृत्यु हो जाति है और इस तरह रुहेलखंड टाटा टैक्स से बैक जाता है मराठस का अटैक तो नहीं होता लेकिन अवध के नवाब फिर भी रोहिल्ला से ट्रीटी में प्रॉमिस की गई 40 लाख की अमाउंट डिमांड करते हैं जब रोहिल्लाजों ने पे करने से माना कर देते हैं तब नवाब रोहिलखंड को एनएक्स करने का डिसीजन लेते हैं इस एनेक्सेशन के लिए वो ब्रिटिश कंपनी से हेल्प मांगते हैं और इंटरेस्टिंग वारेन हेस्टिंग 40 लाख के पेमेंट के बदले में हेल्प देने के लिए तैयार हो जाते हैं 23rd अप्रैल 1774 को बैटल ऑफ ईरानपुर कटरा होती है जिसमें करनाल सिकंदर चैंपियन की फोर्सेस हाफिज रहमत खान की लीडरशिप में रोहिलास को हर देते हैं बैटल में हाफिज रहमत खान की मृत्यु हो जाति है और रोहिलास लाल डोंग के माउंटेंस की तरफ भाग जाते हैं इस तरह रॉयल खंड अवध को मिल जाता है और फिर रोहिल्ला वर्क और हो जाता है वारेन हेस्टिंग्स के टाइम में ही 1776 से 1782 के बीच फर्स्ट एंग्लो मराठा वार होती है और 1780 से 1784 के बीच सेकंड एंग्लो मैसूर वार भी होती है इन दोनों टॉपिक को हम पहले ही अपनी वीडियो में कर कर चुके हैं इसीलिए डिटेल में समझना के लिए आप वीडियो को रेफर कर सकते हैं 1784 में ओरिएंटल स्टडीज को इनकरेज करने के लिए एशियाई सोसाइटी ऑफ बंगाल की फाउंडेशन भी की जाति है वारेन हेस्टिंग्स ने इसकी एस्टेब्लिशमेंट के लिए से विलियम जॉन्स को इनकरेज और सपोर्ट किया था 1784 में ही ब्रिटिश पार्लियामेंट पिच इंडिया एक्ट भी पास करती है ये एक्ट 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट की शॉर्टकट्स को दूर करता है आई इसको थोड़ा डिटेल में समझते हैं इट्स इंडिया एक्ट 1784 पिट्स इंडिया एक्ट कंपनी के पॉलीटिकल और कमर्शियल फंक्शंस को अलग-अलग करता है यह एक्ट इंडिया में ब्रिटिश पजेशन पर ड्यूल कंट्रोल एस्टेब्लिश करता है मतलब इमीडिएट कंट्रोल तो कंपनी का रहेगा लेकिन फाइनल अथॉरिटी ब्रिटिश गवर्नमेंट की होगी पॉलीटिकल मैटर्स को देखने के लिए बोर्ड ऑफ कंट्रोल एस्टेब्लिश किया जाता है और कमर्शियल अफेयर्स के लिए कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को अप्वॉइंट किया जाता है कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स कंपनी को रिप्रेजेंट करते थे और बोर्ड ऑफ कंट्रोल ब्रिटिश गवर्नमेंट को बोर्ड ऑफ कंट्रोल में 6 मेंबर्स थे सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जो बोर्ड के प्रेसिडेंट थे चांसलर ऑफ डी एक्स चेकर और कर परी विकास करता है की सभी सिविल और मिलिट्री ऑफिसर्स जॉइन करने के 2 मीना के अंदर इंडिया और ब्रिटेन में अपनी प्रॉपर्टी को डिस्क्लोज करेंगे कर मेंबर्स की वजह से गवर्नर जनरल को अपने अकॉर्डिंग लेने काफी समस्या होती थी लेकिन अब उन्हें सिर्फ एक मेंबर की सहमति चाहिए बड़े डिसीजंस लेने के लिए तीन मेंबर्स में से एक मेंबर की पोस्ट इंडिया में ब्रिटिश क्राउन की आर्मी के कमांडर इन के को दी जाएगी इसके साथ ही काउंसिल में अब गवर्नर जनरल को वीटो पावर भी दे दिए गए मद्रास और बॉम्बे प्रेसिडेंसी को बंगाल प्रेसिडेंट का सबोर्डिनेट डिक्लेअर कर दिया गया और कोलकाता अब इंडिया में ब्रिटिश की कैपिटल बन गई दोस्तों पिट्स इंडिया एक्ट इसलिए इंपॉर्टेंट हो जाता है क्योंकि इसी एक्ट के द्वारा इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन पर ब्रिटिश गवर्मेंट का डायरेक्ट कंट्रोल एस्टेब्लिश हुआ था इससे पहले तक तो साड़ी रिस्पांसिबिलिटी सिर्फ कंपनी की ही थी साथी गवर्नर जनरल की पोजीशन अबाउट स्ट्रांग हो जाति है क्योंकि काउंसिल का कंट्रोल अब पहले जितना स्ट्रांग नहीं राहत दोस्तों यह तो हुआ पिट्स इंडिया एक्ट का डिस्कशन आई अब अपने टॉपिक की तरफ वापस चलते हैं वारेन हेस्टिंग्स का टाइम पीरियड उनके कुछ कंट्रोवर्शियल डिसीजंस के लिए भी जाना जाता है तो चलिए अब उनके बड़े में डिस्कस करते हैं दोस्तों जय सिंह बनारस के राजा हुआ करते थे और बनारस अवध का फ्यूडिटरी या सबोर्डिनेट स्टेट था 1775 में जब अवध के नवाब सुझाव दौला की मृत्यु हो जाति है तब उनके बेटे आसफोला नवाब बनते हैं वारेन हेस्टिंग इस चेंज का फायदा उठाते हैं और नए नवाब को फोर्स करते हैं एक नई त्रुटि साइन करने के लिए इस ट्रीटी के अकॉर्डिंग बनारस कंपनी को ट्रांसफर कर दिया जाता है और चैट सिंह अब कंपनी के सबोर्डिनेट बन जाते हैं की जय सिंह कंपनी को 22 लाख रुपए एनुअल पे करेंगे और इसके अलावा उनके ऊपर और कोई डिमांड नहीं राखी जाएगी उनको पीसफुली बनारस में रूल करने दिया इस प्रोविजन को वायलेट करते हैं और क्वेश्चन नंबर डिमांड रखना लगता हैं 1779 और 1780 में फिर से यह डिमांड रिपीट की जाति है 1780 में राजा 2 लाख रुपए की ब्राइब वारेन हेस्टिंग्स को भेजते हैं जिससे अब आगे और कोई डिमांड ना राखी जाए लेकिन वारेन हेस्टिंग फिर भी एक्स्ट्रा सब्सिडी और 2000 कैलोरी कंटिजेंट भेजना की डिमांड करते हैं राजा वारेन हेस्टिंग्स को लेटर लिखकर माफी मांगते हैं की वो ये डिमांड पुरी नहीं कर सकते वारेन हेस्टिंग राजा चैट सिंह को पनिश करने का डिसीजन लेते हैं और उनके ऊपर 50 लाख का फाइन इंपोज कर देते हैं वो खुद बनारस की तरफ प्रोसीड करते हैं राजा उनसे बक्सर में आकर मिलते हैं और अपनी टर्बन उनके पैरों में रख देते हैं लेकिन वारेन हेस्टिंग बनारस पहुंचने से पहले कोई भी डिसीजन करने से माना कर देते हैं और बनारस पहुंचने पर वह जेट सिंह को अरेस्ट करवा लेते हैं चैट सिंह के सोल्जर अपने राजा का अपमान देखने पर ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह कर देते हैं लेकिन उनकी रिबेलीयन को इजीली सरप्राइज कर किया जाता है नारायण को 22 लाख की जगह 40 लाख के एनुअल पेमेंट के बदले में राजा बना दिया जाता बनारस के राजा अब सिर्फ कंपनी के पेंशनर बन के र जाते हैं बनारस के बाद वारेन हेस्टिंग्स अवध को निशाना बनाते हैं अवध के नवाब आसफोला पर कंपनी के करीब 15 लाख रुपए थे अमाउंट उन्हें अवध में स्टेशन सब्सिडियरी फोर्स के लिए पे करने थे जब कंपनी उनके ऊपर पेमेंट करने के लिए दबाव डालते है तब आसफोला सजेस्ट करते हैं की उन्हें लेट नवाब की वाइफ यानी की अवध की बेगम का ट्रेजर लेने की परमिशन दे दी जाए इससे पहले भी ब्रिटिश रेजिडेंट के इंटरफ्रेंस पर नवाब बेगम से 560000 ले चुके थे तब कोलकाता काउंसिल ने गारंटी दी थी की इसके बाद बेगम से और कोई डिमांड नहीं की जाएगी लेकिन नवाब के सजेशन पर वारेन हेस्टिंग अपनी दी हुई गारंटी को भूलकर ब्रिटिश रेजिडेंट को बेगम से रुपए लेने का ऑर्डर दे देते हैं बेगम को प्रेशराइज करके उनसे 105 लाख की अमाउंट ले ली जाति है जिसका ज्यादातर हिस्सा कंपनी का डेड चुकाने में चला जाता है ये दोनों ही इंसीडेंट इतने कंट्रोवर्शियल थे की जब वारेन हेस्टिंग्स इंग्लैंड वापस पहुंचने हैं तो वहां की पार्लियामेंट उनके ऊपर इंपिचमेंट का कैसे भी चलती है यह ट्रायल 178 से 1795 तक चला है लेकिन और में उन्हें सभी चार्ज से फ्री कर दिया जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी कंट्री का तो फायदा ही किया था और इंग्लैंड की जनता उन्हें हीरो मानती थी कंक्लुजन दोस्तों हम का सकते हैं की वारेन हेस्टिंग्स ने एक तरफ तो इंडिया में ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम की फाउंडेशन को बनाया और दूसरी तरफ इंडिया में कंपनी की टेरिटरी को और ज्यादा इंक्रीज भी किया फिर चाहे वह फर्स्ट एंग्लो मराठा वार में जीता हुआ सायल सेट हो या अवध से लिया हुआ बनारस वारेन हेस्टिंग्स ने अपनी मिलिट्री और डिप्लोमेटिक स्किल का उसे करके ब्रिटिश के इंडियन अंपायर का एक्सपेंशन किया था उनके बाद गवर्नर जनरल बनते हैं लॉर्ड कार्नवालिस जिनके बड़े में हम अपनी आने वाली वीडियो में डिस्कस करेंगे लॉर्ड कार्नवालिस 1786 2793 दोस्तों हमने अपनी पिछली वीडियो में फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल वारेन हेस्टिंग्स के बड़े में डिस्कस किया था आज हम इसी सीरीज को आगे ले जाते हुए नेक्स्ट गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस के बड़े में जानेंगे लॉर्ड कार्नवालिस को लोग अक्सर याद करते हैं अमेरिकन रिवॉल्यूशन के समय उनकी हर के लिए 28 सितंबर से 19th अक्टूबर 1781 के बीच योगदान वर्जीनिया में अमेरिकन रिवॉल्यूशन के लास्ट इंपॉर्टेंट कैंपेन में उन्हें अमेरिकन रिवॉल्यूशनरीज ने हर दिया था लेकिन उनकी लाइफ के बेस्ट इयर्स का आना तो अभी बाकी था जो वो इंडिया में गवर्नर जनरल बने के बाद जीते हैं सितंबर 1786 तक बंगाल की एक्टिंग गवर्नर रहे थे लेकिन उनके इस शॉर्ट टाइम पीरियड में कोई इंपॉर्टेंट डेवलपमेंट देखने को नहीं मिलता इसलिए हम डायरेक्ट चलते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों लॉर्ड कार्नवालिस को 1786 में बंगाल प्रेसीडेंसी का गवर्नर जनरल अप्वॉइंट किया जाता है इसके साथ ही उन्हें ब्रिटिश इंडिया के कमांडर इन के की पोस्ट भी दी जाति है इसका मतलब हुआ की लॉर्ड कार्नवालिस के पास हाईएस्ट सिविल अथॉरिटी के साथ साथ हाईएस्ट मिलिट्री अथॉरिटी की पावर भी ए गई थी कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने उन्हें टास्क दिया था की वो इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम को रे ऑर्गेनाइजर करें और साथ ही लैंड रिवेन्यू की समस्या का भी कुछ समाधान निकले लॉर्ड कार्नवालिस अपने प्रेडिसेसर वारेन हेस्टिंग्स द्वारा एस्टेब्लिश किया गए सिस्टम को और इंप्रूव करते हैं और इंडिया में एडमिनिस्ट्रेशन का एक ऐसा सुपरस्ट्रक्चर तैयार करते हैं जो यहां 1858 तक चला है तो आई एक एक करके लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा किया गए रिफॉर्म्स को समझते हैं वारेन हेस्टिंग्स ने जो जुडिशल सिस्टम एस्टेब्लिश किया था कार्नवालिस उसमें कुछ चेंज करते हैं जैसे की 1787 में वो जिला कलेक्टर्स को फिर से दीवानी अदालत का जज बना देते हैं इससे पहले वारेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कलेक्टोरस की जुडिशल पावर्स को खत्म कर दिया था लॉर्ड कार्नवालिस में सिर्फ कलेक्टर्स की जुडिशल पावर्स को रिस्टोर करते हैं बल्कि उन्हें पहले से भी ज्यादा माजीस्तूरियल पावर्स दे देते हैं दूसरा रिफॉर्म 79 से 92 के पीरियड में क्रिमिनल एडमिनिस्ट्रेशन की फील्ड में इंट्रोड्यूस होता है जिला फौजदारी अदालत को अबॉलिश करके उनकी जगह कर सर्किट कोर्स बनाई जाति हैं इनमें से तीन बंगाल में थी और एक भी हर में और इन सर्किट कोट्स में यूरोपियन ऑफिसर्स को ही जज पॉइंट किया जाता है और इनको एसिस्ट करते थे अजीज और मुफ्तीज इससे पहले फौजदारी अदालत में इंडियन को ही जज अप्वॉइंट किया जाता था हम का सकते हैं की यहां से जुडिशल सिस्टम में से इंडियन को अलग करने की शुरुआत हो जाति है लॉर्ड कार्नवालिस का सबसे इंपॉर्टेंट जुडिशल रिफॉर्म था उनका 1793 का कौन बाल स्कूल में उनके सभी रिफॉर्म्स फाइनल शॉप लेते हैं और ये प्रायमरीली सिपरेशन ऑफ पावर के प्रिंसिपल पर बेस्ड था कौन वो इसको रिलाइज होता है की कलेक्टर्स के हाथ में जुडिशल पावर्स देना सही डिसीजन नहीं था क्योंकि जिनके पास रिवेन्यू कलेक्शन की पावर थी वो रिवेन्यू के केसेस को इंपर्शाली कैसे डिसाइड कर सकते थे इसलिए कार्नवालिस कोर्ट में वो सिपरेशन ऑफ पावर्स के प्रिंसिपल को फॉलो करते हैं और कलेक्टर्स की सभी जुडिशल और मैजिस्टिशियल पावर्स को खत्म कर दिया जाता है सिविल कोट्स को प्रेसीडे करने के लिए जिला जज नाम से एक नई ऑफिसर क्लास की शुरुआत की जाति है इसके अलावा कंडोम क्वालिटी और जस्टिस के वेस्टर्न आइडिया पर बेस्ड थे इसीलिए रिलिजियस लॉस की जगह इन ट्रोड्यूस किया जाता है लेकिन एकदम नया सिस्टम था और आम जनता को इसे समझना में काफी दिक्कत होती थी साथ ही जस्टिस के लिए अब लॉयर्स की जरूर भी होने लगी थी इसीलिए एक तरह से जस्टिस अब एक्सपेंसिव हो गई थी और आम मां की रेट से बाहर वालों इसके जुडिशल रिफॉर्म्स की बात लिए अब उनके पुलिस रिफॉर्म्स को जानते हैं जुडिशल रिफॉर्म्स को सप्लीमेंट करने के लिए पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन में भी कुछ इंपॉर्टेंट चेंज किया जाते हैं सबसे पहले तो लॉर्ड कार्नवालिस जमींदारा की पुलिस पावर्स को खत्म कर देते हैं उनकी जगह अब जिला पुलिस का कंट्रोल इंग्लिश मैजिस्ट्रेट को दिया जाता है हर एक डिस्ट्रिक्ट को थाना या पुलिस सर्किल में डिवाइड कर दिया जाता है एक सर्किल का एरिया लगभग 20 स्क्वायर माइल्स का होता ठाणे का इंचार्ज इंडियन ऑफिसर के पास होता था जिसे दरोगा कहते थे और उन्हें एसिस्ट करने के लिए बहुत से कांस्टेबल भी होते थे हम का सकते हैं की इंडिया में मॉडर्न पुलिस सिस्टम की शुरुआत यहां से होती है दोस्तों जुडिशल और पुलिस रिफॉर्म्स के साथ ही लॉर्ड कार्नवालिस अपने फादर ऑफ सिविल सर्विसेज भी कहा जाता है कौन वॉइस सबसे पहले कंपनी सर्वेंट के द्वारा किया जान वाले प्राइवेट ट्रेड की प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए स्टेप्स लेते हैं उनको रिलीज होता है की कंपनी के एम्पलाइज की सैलरी बहुत कम है और उसको सप्लीमेंट करने के लिए वो करप्शन या इलीगल मिंस का उसे करते हैं इसलिए वो एम्पलाइज की सैलरी रेस कर देते हैं इसके साथी कौन वालरस कंपनी में नेपोटिज्म और पॉलीटिकल फेवरेटीज्म को भी कम करते हैं वो मेरिट के बेसिस पे अपॉइंटमेंट स्टार्ट करते हैं यहां तक की एक बार वो प्रिंस ऑफ वेल्स की रिकमेंडेशन को भी माना कर देते हैं लॉर्ड कार्नवालिस इंडिया में सिविल सर्विसेज को कोवीनेटेड सिविल सर्विस और अनकंवीनियंट सिविल सर्विस में डिवाइड करते हैं कवर्ड सर्विसेज में इंडियन को अप्वॉइंट नहीं किया जाता था इससे हमें पता चला है की पॉलिसी रेसिजम से प्रभावित थी लॉर्ड कार्नवालिस ही एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी के यूरोपिनाइजेशन के लिए रिस्पांसिबल थे यूरोपिनाइजेशन ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन दोस्तों लॉर्ड कार्नवालिस रेसियल डिस्क्रिमिनेशन के सपोर्टर थे उनके अकॉर्डिंग तो हर एक इंडियन क्राफ्ट था इसलिए सभी हायर सर्विसेज को वो सिर्फ यूरोपीय के लिए रिजर्व कर देते हैं कोविनेटेड सर्विसेज के दरवाजे भी उन्होंने ही इंडियन के लिए बैंड कर दिए थे आर्मी में इंडियन सूबेदार की पोस्ट से आगे नहीं जा सकते थे और सिविल सर्विसेज में मुसिप्स या डिप्टी कलेक्टर से ऊपर की पोस्ट पर उनका अपॉइंटमेंट नहीं हो सकता था सोने वाली बात यह है की उसे समय की इंग्लैंड में भी एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज करप्शन से फ्री नहीं थी और कंपनी को इंप्रूव करने के लिए तो उन्होंने उनकी सैलरी को इंक्रीज कर दिया था लेकिन इंडियन एम्पलाइज के लिए उन्होंने कभी सिम मेथड अप्लाई करने की कोशिश भी नहीं की इससे साफ होता है उन्होंने ही राशलिज्म की पॉलिसी पर ऑफिशल मोर भी लगा दी थी और इस राशलिज्म की पॉलिसी से एंग्लो इंडियन रिलेशंस ब्रिटिश रूल के आखिरी समय तक ग्रसित रहते हैं कमर्शियल रिफॉर्म्स को डिस्कस कर लेते हैं कमर्शियल रिफॉर्म्स दोस्तों कंपनी के खुद के गुड्स तो यूरोप में कई बार घाटे में बेचे जा रहे थे लेकिन कंपनी के सर्वेंट जो गुड्स खुद यूरोप भेजते थे अपनी प्राइवेट ट्रेड के लिए उन्हें काफी मुनाफा हो रहा था 1774 में कोलकाता में बोर्ड ऑफ ट्रेड एस्टेब्लिश किया गया था और तभी से कंपनी अपने गुड्स यूरोपियन और इंडियन ठेकेदार के थ्रू प्रोक्योर करती थी यह ठेकेदार यूजुअली गुड्स को हाय प्राइसेस पर सप्लाई करते थे और साथ ही इनकी क्वालिटी भी इनफीरियर होती थी बोर्ड के मेंबर्स ठेकेदार पर एक्शन लेने की जगह से कम करके 5 मेंबर्स की कर देते हैं इसके साथ ही कांट्रैक्ट्स के थ्रू प्रोक्योरमेंट का मेथड खत्म कर दिया जाता है और इसकी जगह अब कमर्शियल रेजिडेंट्स और एजेंट के थ्रू सप्लाई के मेथड को अपना लिया जाता है लैंड रिवेन्यू सिस्टम में सुधार लाना कार्नवालिस का सबसे बड़ा कंसर्न था वारेन हेस्टिंग्स के फाइव एयर और 1 एयर सेटलमेंट जो बिल्डिंग सिस्टम पर बेस्ड थे फेल हो चुके थे कंपनी को टाइम पर रिवेन्यू नहीं मिल पता था और उसकी अमाउंट भी फिक्स नहीं थी इसके साथ ही वारेन हेस्टिंग्स के बिडिंग सिस्टम की वजह से कल्टीवेटर भी परेशान थे इन सभी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए कार्नवालिस 1793 में बंगाल में परमानेंट सेटलमेंट इंट्रोड्यूस करते हैं इस सिस्टम के अकॉर्डिंग जमींदारा को लैंड ओनर माना गया और उनके साथ 79 में 10 साल का सेटलमेंट किया जाता है जिसे 1793 में परमानेंट कर दिया जाता है जमींदारा को लैंड में हेरेडिटरी राइट्स मिल गए मतलब उनके बाद जमींदारी उनके ही सक्सेस को ट्रांसफर हो जाएगी सेटलमेंट के अकॉर्डिंग टोटल रिवेन्यू का 89% शेर कंपनी का होगा और 11% जमींदारा अपनी पास रख सकते हैं इसमें परमानेंट का मतलब था की लैंड रिवेन्यू का अमाउंट हमेशा के लिए फिक्स कर दिया यह अमाउंट लैंड का सर्वे करके उसकी प्रोडक्टिविटी और पेस्ट की रिवेन्यू रिकॉर्ड्स के बेसिस पर फिक्स किया जाना था यानी की अब रेगुलर बेसिस पर लैंड रिवेन्यू की डिमांड चेंज नहीं की जाएगी और अमाउंट को बिडिंग से भी डिसाइड नहीं किया जाएगा परमानेंट सेटलमेंट करने के पीछे कंपनी का मोटर था की उन्हें रेगुलर और फिक्स रिवेन्यू मिलता रहे इसके साथी कौन बोल इसका विचार था की क्योंकि जमींदार जब लैंड ऑनर्स थे और प्रोडक्टिविटी इंक्रीज करने में उनका अपना फायदा था तो वो लैंड में इन्वेस्ट करेंगे साथ ही कल्टीवेटर पर भी बिडिंग सिस्टम के जैसे एक्सेसिव रिवेन्यू का प्रेशर नहीं आएगा एक तरह से लॉर्ड कार्नवालिस इंडिया के जमींदारा को इंग्लैंड के लैंडलॉर्ड वाला रोल देना चाहते थे इस सेटलमेंट का एक फीचर सनसेट क्लोज़ भी था इसका मतलब होता है की जमींदारा को फिक्स डेट पर शाम होने से पहले रिवेन्यू डिपॉजिट करना होता था अगर वो ऐसा नहीं करते थे तो उनके जमींदारी राइट्स को नीलम कर दिया जाता था हम का सकते हैं की परमानेंट सेटल के पीछे इंटेंशन तो अच्छी थी लेकिन फिर भी इसमें बहुत सी प्रॉब्लम्स देखने को मिलती है सबसे पहले प्रॉब्लम थी की लैंड रिवेन्यू के अमाउंट का रेट बहुत ही रखा गया था क्योंकि कंपनी परमानेंट तोर पर रेट फिक्स कर रही थी इसलिए उनकी कोशिश थी की ज्यादा से ज्यादा रेट रखा जाए इससे होता ये है की जमींदारा इतना रिवेन्यू कलेक्ट नहीं कर पाते थे और सनसेट क्लोज़ के तहत उनकी जिम्मेदारी भी चली जाति थी इसके साथ ही जमीदार ज्यादा से ज्यादा रिवेन्यू कलेक्ट करने के लिए कल्टीवेटर को बहुत ज्यादा हरायस भी करने लगता हैं जमींदारा को लॉन्ग टर्म के लिए लैंड में इन्वेस्ट करने का कोई इंसेंटिव भी इस सिस्टम में नहीं था परमानेंट सेटलमेंट लैंडलॉर्डिज्म के फिनोफेना को भी जन्म देता है जब लैंड ओनर अपनी लैंड होल्डिंग के पास एन रहकर कहानी दूर रहने लगता है जैसे की इसकी इसमें लैंड रोड सिटी में रहने ग जाते इस सेटलमेंट की वजह से ही पहले बार प्रेजेंट्स लैंड पर अपने राइट्स को देते हैं और टेनेंस आते बिल बन जाते हैं हम का सकते हैं की परमानेंट सेटलमेंट भी लैंड रिवेन्यू का परमानेंट सॉल्यूशन नहीं दे पता और आगे जाकर ब्रिटिशर्स बाकी प्रोविंस लैंड रिवेन्यू सिस्टम इंट्रोड्यूस करते हैं अदर इंपॉर्टेंट इवेंट्स दोस्तों लॉर्ड कार्नवालिस के टाइम में ही 1790 में थर्ड एंग्लो मैसूर वार भी हुआ था इसमें कौन वालिस ने टीपू सुल्तान को हराकर उनके साथ 1792 में ट्रीटी का श्रीरंगापटना साइन की थी एंग्लो मैसूर वर्स को हम अपनी वीडियो में पहले ही कर कर चुके हैं डिटेल में समझना के लिए आप वो वीडियो रेफर कर सकते हैं लॉर्ड कार्नवालिस के टाइम में ही 1791 में बनारस में संस्कृत कॉलेज स्टार्ट किया गया था जिसके फाउंडर जोनाथन थे कंक्लुजन दोस्तों 86 से 1793 तक गवर्नर जनरल की पोस्ट पर रहते हैं लेकिन इसके साथ ही ये पहले ऐसे गवर्नर जनरल भी थे जिन्हें इस पोस्ट पर फिर से अप्वॉइंट किया जाता है जनवरी 185 में जनरल अप्वॉइंट होते हैं लेकिन उनका सेकंड टर्म राहत है क्योंकि अक्टूबर 185 में इलनेस की वजह से प्रेजेंट अप के गाजीपुर में उनकी मृत्यु हो जाति है और आज भी यहां उनका मौसम लिए मौजूद है तो दोस्तों हमने एक और इंपॉर्टेंट ब्रिटिश गवर्नर को भी कर कर लिया है अब हम अपनी नेक्स्ट वीडियो में डिस्कस करेंगे 1823 [संगीत] दोस्तों आज हम इस वीडियो में दो इंपॉर्टेंट ब्रिटिश गवर्नर जनरल्स के बड़े में बात करने वाले हैं हमने अपनी पिछली वीडियो में लॉर्ड कॉर्नवालिस्को कर किया था जो 1793 तक गवर्नर जनरल की पोस्ट पर रहते हैं उनके बाद 1793 से लेकर 1798 तक गवर्नर जनरल रहे थे सकों शो जिनके टाइम पीरियड में कोई खास रोमांचक घटना घटित नहीं होती और इनके बाद 1798 में गवर्नर जनरल बनते हैं लॉजेली जो की इंपॉर्टेंट गवर्नर जनरल्स में से एक हैं और इसीलिए इनके बड़े में डिटेल में चर्चा करना जरूरी हो जाता है तो आई शुरू करते हैं गवर्नर जनरल बने से पहले ब्रिटिश ट्रेजरी के लोड और बोर्ड ऑफ कंट्रोल में कमिश्नर की ऑफिस हॉल कर चुके थे लेकिन इंग्लैंड की पॉलीटिकल लाइफ में वो अपना कुछ खास इंप्रेशन नहीं बना पे थे या फिर ये का सकते हैं की उन्हें अभी कैसा मौका ही नहीं मिला था जहां वो अपनी काबिलियत दिखा पाएं उन्हें ये मौका मिला है जब 1798 में उनका अपॉइंटमेंट गवर्नर जनरल की पोस्ट पर होता है इंडिया में अपने मिशन को लेकर बहुत क्लियर विजन से आए थे वो कंपनी को इंडिया में सुप्रीम पावर बना देना चाहते थे उसकी टेरिटरीज को और भी ज्यादा इंक्रीस करना चाहते थे और सभी इंडियन स्टेटस को कंपनी के डिपेंडेंट की पोजीशन में ले आना चाहते थे और नॉन-इंचन की पॉलिसी को छोड़कर वार की पॉलिसी शुरू करते हैं उनके अकॉर्डिंग नॉन इंटरवेंशन की पॉलिसी से सिर्फ कंपनी के दुश्मनों को ही फायदा हो सकता था और उनकी इस फॉरवर्ड पॉलिसी को इंग्लैंड की वार मिनिस्ट्री भी सपोर्ट करती है इंडियन रुलर्स के अगेंस्ट बहुत ही ऑफेंसिव एटीट्यूड अडॉप्ट करते हैं वो खुद को बंगाल टाइगर कहते थे जो हमेशा ही शिकार की तलाश में राहत था और बंगाल के इस टाइगर का पहले शिकार बनते हैं मैसूर के टाइगर टीपू सुल्तान टीपू सुल्तान के साथ 1799 में होता है फोर्थ एंग्लो मैसूर वार इस वार में टीपू सुल्तान मारे जाते हैं और मैसूर की आदि से ज्यादा टेरिटरी पर कंपनी का कब्ज हो जाता है जो टेरिटरी बजती है उसको बॉडीगार्ड डायनेस्टी के एक माइनर राजा को दे दिया जाता है और उनके साथ सब्सिडियरी एलाइंस की ट्वीटी साइन कर ली जाति है मतलब इनडायरेक्ट पूरा मैसूर ही कंपनी के कंट्रोल में ए चुका था मैसूर के बाद बैलंसली अपना अगला शिकार बनाते हैं मराठस को उनके साथ 183 से 1800 के बीच होता है सेकंड एंग्लो मराठा वार सेकंड एंग्लो मराठा वार के और होने पर कंपनी पेशवा के साथ-साथ होलकर सिंधिया और भोसले के साथ भी सब्सिडियरी एलाइंस की त्रुटीज साइन कर लेती है इसके साथ ही मराठा अंपायर की टेरिटरी का एक बड़ा हिस्सा भी कंपनी के कब्जे में ए जाता है तो दोस्तों यह थे लॉर्ड वालेस्ले के टाइम पीरियड के दो इंपॉर्टेंट हुआ जिनके ध्रुव वह समय इंडिया की सबसे पावरफुल पावर्स कहे जान वाले मैसूर और मराठा अंपायर को डिस्ट्रॉय कर देते हैं आई अब जानते हैं लॉर्ड वेलेजली की सबसे इंपॉर्टेंट पॉलिसी यानी की सब्सिडियरी एलाइंस सिस्टम के बड़े में सब्सिडियरी एलाइंस दोस्तों सब्सिडियरी एलाइंस बेसिकली ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन स्टेटस के बीच होने वाली जिसमें इंडियन किंग्डम्स अपनी सॉवरेन्टी को देते हैं इंडिया में ब्रिटिश अंपायर को खड़ा करने में सब्सिडियरी एलाइंस सिस्टम की बड़ी भूमिका रहती है लॉर्ड वेलेजली ने इस सिस्टम को फार्मूले फ्रेम किया था लेकिन इसका सबसे पहले बार उसे किया था फ्रेंच गवर्नर डी प्लेन आपको याद ही होगा की कैसे करना ठीक शब्द के समय डबल इंडियन सिस्टम के साथ एलियंस बनाते हैं जिसमें उन्हें प्रोटेक्शन देने के बदले में वह उनसे ट्रिब्यूट और टेरिटरीज दोनों ही ले लेते हैं इसके बाद ब्रिटिश के साथ इस तरह के एलाइंस में आने वाले पहले रोलर थे अवध के नवाब सुझाव द्वारा ये कम किया था वैली ने वो सब्सिडियरी एलाइंस के प्रोविजंस को वेल डिफाइंड बनाते हैं और फिर इसे ब्रिटिश अंपायर के एक्सपेंशन के लिए एक हथियार की तरह उसे करते हैं आई अब सब्सिडियरी एलाइंस के फीचर्स को समझते हैं फीचर्स ऑफ सब्सिडियरी एलाइंस दोस्तों जो इंडियन रुलर्स ब्रिटिश के साथ सब्सिडियरी एलाइंस में इंटर करते थे उन्हें अपनी आर्मी को डिसोल्व करके अपनी टेरिटरी में ब्रिटिश फोर्स को रखना होता था और इस ब्रिटिश आर्मी की मेंटेनेंस का खर्चा भी उन्हें ही देना होता था अगर कोई रोलर पेमेंट करने में फेल हो जाता था तो उसकी टेरिटरी का कुछ पार्ट कंपनी अपने कब्जे में कर लेती थी इसके बदले में ब्रिटिश इंडियन स्टेट को किसी भी फॉरेन अटैक या फिर इंटरनल रिवॉर्ड से प्रोटेक्शन ऑफर करते थे इंडियन रुलर्स को अपने कोर्ट में एक ब्रिटिश रेजिडेंट को भी रखना होता था वैसे तो ट्रीटी में प्रॉमिस किया जाता था की यह रेजिडेंस इंडियन स्टेट के इंटरनल अफेयर्स में कोई इंटरफ्रेंस नहीं करेंगे लेकिन यह अक्सर पेपर पर ही र जाता था इसके साथ ही इंडियन स्टेट किसी भी और फॉरेन पावर के साथ कोई एलाइंस नहीं कर सकता था और ना ही अपने यहां ब्रिटिशर्स के अलावा किसी और यूरोपियन को सर्विस पर रख सकता था और अगर एलिजंस साइन करने से पहले कोई यूरोपियन उनके यहां कम कर रहा होता था तो उनकी सर्विस को भी टर्मिनेट करना होता था इस प्रोविजन का मोटे था फ्रेंच इन्फ्लुएंस को कम करना बिना ब्रिटिश अप्रूवल के इंडियन रोलर किसी दूसरे इंडियन रोलर के साथ भी किसी तरह के राजनैतिक संबंध नहीं बना सकते थे इस तरह से इंडियन रोलर अपनी सभी मिलिट्री और फॉरेन पावर्स को को देते हैं दूसरे शब्दों में कहें तो वह अपनी साड़ी इंडिपेंडेंस होकर ब्रिटिश बन जाते हैं और इस तरह धीरे-धीरे इंडिया का बहुत सर पार्ट ब्रिटिश कंट्रोल में ए जाता है 1799 में मैसूर और तंजौर 1801 में अवध 18002 में पेशवा 183 में घोसला और 18004 में सिंधिया भी सब्सिडियरी एलाइंस पर साइन कर देते हैं इसके अलावा जोधपुर मछरी बूंदी और भरतपुर के स्टेटस भी सेलेंस के पार्ट बनते हैं दोस्तों सब्सिडियरी एलाइंस की वजह से इंडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा कंपनी के इनडायरेक्ट कंट्रोल में ए जाता है इसके साथ ही अब इंडियन रुलर्स के खर्च पर कंपनी एक बड़े आर्मी को भी मेंटेन कर शक्ति थी यही आर्मी आगे चलकर इंडिया के बाकी पार्ट्स को जितने में उनकी हेल्प करती है इसीलिए सब्सिडियरी एलाइंस इंडिया में ब्रिटिश अंपायर के एक्सपेंशन के लिए बहुत इंपॉर्टेंट पॉलिसी मनी जाति है इस तरह लॉर्ड वेलेजली अपने विजन को पूरा करने में सफल रहते हैं उन्होंने एन सिर्फ इंडिया में ब्रिटिश अंपायर का टेरिटोरियल एक्सपेंशन किया बल्कि कंपनी को इंडिया की सुप्रीम मिलिट्री अथॉरिटी भी बना दिया दोस्तों लोट बैलंसली के बाद एक बार फिर से लॉर्ड कार्नवालिस गवर्नर जनरल बनकर इंडिया आते हैं लेकिन जैसा की हमने अपनी पिछली वीडियो में भी आपको बताया था इससे पहले की वह अपने सेकंड टर्म में कुछ इंपॉर्टेंट करते उनकी मृत्यु हो जाति है उनके बाद 185 से 1800 तक जोसे बार लोग गवर्नर जनरल रहे थे उनके टाइम पीरियड की सिर्फ एक ही चीज याद रखना लायक है और वो है 186 में हुई वेल्लोर से पोयम उतनी दोस्तों यह मुटनी वेल्लोर में स्टेशन मद्रास रेजीमेंट की कुछ सिपहिया द्वारा की गई थी इसके पीछे का करण था ट्रेडिशनल के उसे समय के गवर्नर जनरल बंटिंग के पास किया था विलियम बेंटिकिनी को सरप्राइज भी कर दिया था इसके बाद 187 से लेकर 1813 तक लॉर्ड मिंटो वन गवर्नर जनरल की पोस्ट पर रहते हैं उनका टाइम पीरियड भी हमारे लिए इंपॉर्टेंट नहीं है इसलिए अब हम चलते हैं अगले गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स की तरफ लॉर्ड हेस्टिंग 1813 तू 1823 दोस्तों जहां एक तरफ लोट बैलेंस लेने इंडिया में कंपनी की मिलिट्री सुप्रीमेसी को एस्टेब्लिश किया था वहीं लॉर्ड हेस्टिंग्स ने इंडिया में ब्रिटिश पैरामाउंटसी को इंपोज करने का कम किया था लेकिन इंडिया में आने के बाद उनके सामने सबसे पहले चैलेंज था गोरखास का तो आई इसको थोड़ा डिटेल में डिस्कस करते हैं गोरखा वार और दी एंग्लो नेपाल वार 18 14 तू 1816 दोस्तों 1768 में गोरखास ने नेपाल पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लिया था इसके बाद वह अपनी डोमिनियन को माउंटेन के आगे एक्सपेंड करना शुरू करते हैं नॉर्थ में तो चाइनीस इन्हें एक्सपेंशन करने नहीं देते इसलिए यह बंगाल और अवध की तरफ पुश करते हैं गोरखपुर जिला में ए जाता है इसके बाद कनफ्लिक्ट शुरू होता है जब गुरखास बुधवार और शिवराज जिला पर कब्जा कर लेते हैं उसे समय तो ब्रिटिश बिना किसी ओपन कनफ्लिक्ट के इंडस्ट्रीज को रे ऑक्युपी कर लेते तीन पुलिस स्टेशंस पर अटैक कर देते हैं और गोरखास के अगेंस्ट ऑफेंसिव लॉन्च करने का डिसीजन लेते हैं 12000 की गोरख आर्मी के अगेंस्ट हेस्टिंग्स 34000 सोल्जर की बड़े आर्मी तैयार करते हैं लेकिन 1814 का यह कैंपेन बुरी तरह फूल हो जाता है इसके बाद भी ब्रिटिश हर नहीं मानते और फिर से कोशिश करते हैं अप्रैल 1815 में वो कुमाऊं हिल्स में अल्मोड़ा को कैप्चर करने में कामयाब होते हैं और मैं 1815 में अमर सिंह थापा से मालाओं का वोट भी जीत लिया जाता है मालाओं के फल के बाद गोरखास नेगोशिएशंस करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन हेस्टिंग्स की डिमांड्स उनके एटीट्यूड चेंज कर देती हैं और एक बार फिर से दोनों के बीच होस्टिलिटीज शुरू हो जाति हैं बुरी तरह हर दिया जाता है इसके बाद गोरखा समझ जाते हैं की उनके लिए अब ब्रिटिश को और रजिस्टर करना पॉसिबल नहीं है और इसीलिए मार्च 1816 में वो ट्रीटी का सुगौली को एक्सेप्ट कर लेते हैं कुमाऊं जिला कंपनी को सुरेंद्र कर देते हैं इसके साथ ही दोनों के बीच तराई बाउंड्री को पिलर्स के थ्रू मार्क कर दिया जाता है गुरखास काठमांडू में ब्रिटिश रेजिडेंट रखना के लिए भी मां जाते हैं और इसके साथ ही सिक्किम से परमानेंटली विद्रोह करने के लिए तैयार हो जाते हैं ब्रिटिशर्स को हिल स्टेशंस और समर कैपिटल के लिए साइट भी मिल जाति है जैसे की शिमला मसूरी रानीखेतसेत्र इसके साथ ही ब्रिटिशर्स गोरखास को अपनी आर्मी में भी शामिल कर लेते हैं जो आगे छलके इंडिया में कंपनी की डोमिनियन को एक्सपेंड करने में काफी हेल्प करते हैं तो दोस्तों इसके बाद लॉर्ड हेस्टिंग्स का नेक्स्ट चैलेंज होता है पिंडारी का इशू पिंडारी इसके बड़े में हमने एंग्लो मराठा वर्स के लेक्चर में डिटेल में डिस्कस किया था इसके अलावा मराठस के साथ 1816 से 18-18 तक थर्ड एंग्लो मराठा वार भी लॉर्ड हेस्टिंग्स के पीरियड में ही हुआ था थर्ड एंग्लो मराठा वार से पहले हिस्ट्री मराठस के चैलेंज को हमेशा के लिए खत्म कर देते हैं दोस्तों मराठस के डिक्लिन के बाद प्रैक्टिकल तो कंपनी इंडिया में सुप्रीम पावर बन गई थी लेकिन अभी भी मुगल रोलर सेरेमोनियल तोर पर इंडिया के एंपरर थे और गवर्नर जनरल की सेल पर डी सर्वेंट ऑफ एंपरर फ्रिज लिखा होता था लॉर्ड हेस्टिंग्स इसे बदलना चाहते थे इसलिए वह अपने नॉर्दर्न इंडिया के टूर पर मुगल एंपरर अकबर डी सेकंड से मिलने से इनकार कर देते हैं वो साफ कर देते हैं की मुगल एंपरर को पहले सभी ऐसी सेरेमनी को खत्म करना होगा जो कंपनी के डोमिनियंस पर उनकी सुप्रीमेसी दर्शाती हो मतलब की अंपायर को कंपनी के साथ एक क्वालिटी के स्टेटस पर मिलन होगा और मुगल एंपरर अकबर डी सेकंड पर मीटिंग करते हैं इस तरह से लॉर्ड हेस्टिंग्स ने एन सिर्फ कंपनी को सुप्रीम पावर बनाया बल्कि उसको एक सुप्रीम पावर की तरह बिहेव करना भी शिखा दिया दोस्तों वैसे तो लॉर्ड हेस्टिंग्स अपनी वर्स के लिए ही जान जाते हैं लेकिन इनके टाइम पीरियड में कुछ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स भी हुए थे आई उनको भी डिस्कस कर लेते हैं एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स अंदर हेस्टिंग्स दोस्तों लॉर्ड हेस्टिंग्स काफी लकी थे क्योंकि उनके पास जॉन मालकिन स्टंट और चार्ल्स में कफ जैसे कैपेबल एडमिनिस्ट्रेटर मौजूद थे यही एडमिनिस्ट्रेटर उनके टाइम पीरियड में रिफॉर्म्स को इंट्रोड्यूस करते हैं जैसे की थॉमस मुनरो जो 1820 में मद्रास के गवर्नर बनते हैं मालाबार कोयंबटूर मदुरई और डिंडीगुल में लैंड टेन्योर के रियट वादी सिस्टम को इंट्रोड्यूस करते हैं रूट बड़ी सिस्टम में सेटलमेंट डायरेक्टली रीयूडीएच यानी की एक्चुअल टिलर के साथ किया जाता था मतलब कल्टीवेटर ही लैंड रिवेन्यू का डायरेक्ट पैर बन जाता है बिना किसी जमींदार या विलेज कम्युनिटी के बीच में आए इसी तरह नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस में मारवाड़ी सिस्टम इंट्रोड्यूस किया जाता है इसके अकॉर्डिंग सेटलमेंट विलेज कम्युनिटी या महल के रिप्रेजेंटेटिव के साथ किया जाता था इंडिविजुअल कल्टीवेटर का शेर विलेज के लोग आपस में सेटल कर सकते दोस्तों ट्रायोटवारी और महालवाड़ी सेटलमेंट को और ज्यादा डिटेल में हम अपनी लैंड रिवेन्यू सिस्टम की वीडियो में कर करेंगे ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव का सिपरेशन कर दिया था लेकिन हिस्ट्री कलेक्टर को मजिस्ट्रेट का ऑफिस देना शुरू कर देते हैं तो यह थे लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय में होने वाले कुछ एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कंक्लुजन दोस्तों इस तरह लौटबे दोनों ने ही इंडिया में ब्रिटिश अंपायर के एक्सपेंशन का कम किया यह दोनों ही अवार्ड के सपोर्टर थे और कंपनी को इंडिया की सुप्रीम पावर बना देना चाहते थे और हमने देखा की कैसे वो अपने इस विजन में कामयाबी रहते हैं इन्हें ही जाता है 38 तू 1835 आज हम एक ऐसे ब्रिटिश गवर्नर जनरल की बात करने वाले हैं जो इंडिया में अपने सोशल रिफॉर्म्स के लिए जानी जाति हैं इसके साथ ही वह फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया विलियम बेंटिक जो जेरेमी बेंथम की यूटिलिटेरियन फिलासफी के फॉलोअर थे जिसका सिंपल शब्दों में मतलब होता है मैक्सिमम गुड पर मैक्सिमम पीपल इसी फिलासफी से इंस्पायर होकर वो इंडिया में अलग-अलग रिफॉर्म्स को इंट्रोड्यूस करते हैं तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों की थी उन्होंने 1791 में 16 साल की छोटी सी आगे में ही ई जॉइन कर ली थी और 1798 में करनाल की रैंक तक भी पहुंच गए थे वह इंग्लैंड में हाउस ऑफ कॉमनस के मेंबर भी थे इंडिया में उनके करियर की शुरुआत होती है 183 में जब उन्हें मद्रास का गवर्नर अप्वॉइंट किया जाता है दोस्तों 186 में वेल्लोर मुटनी के समय विलियम बेंटिक ही मद्रास की गवर्नर है उन्होंने ऑर्डर दिया था की नेटिव सोल्जर अपनी ट्रेडिशनल अटायर नहीं पहन सकते जिसकी वजह से वेल्लोर में तैनात कुछ मद्रास रेजीमेंट विद्रोह कर देती हैं वेल्लोर मुटनी को तो इन्होंने सरप्राइज कर दिया था लेकिन इसके बाद 187 में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स इन्हें इंग्लैंड वापस बुला लेते हैं इसके बाद विलियम बेंटिक 1828 में गवर्नर जनरल की पोस्ट पर इंडिया वापस आते हैं गवर्नर जनरल रहते हुए उन्होंने बहुत सारे रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस किया थे आई एक-एक करके उनके रिफॉर्म्स को डिस्कस करते हैं सोशल रिफॉर्म्स ऑफ बेंटिक दोस्तों विलियम बेंटिक से पहले किसी भी गवर्नर जनरल ने इंडिया की सोशल प्रॉब्लम्स को टैकल करने की हिम्मत नहीं दिखाई थी बेंटिक पहले ऐसी गवर्नर जनरल थे जो सोशल इविल्स के अगेंस्ट डॉ पास करते हैं जैसा की आप सब जानते ही होंगे की इंडिया में सती प्रथम का प्रचलन था इस प्रथम के अनुसार हसबैंड की डेथ के बाद वाइफ को भी हसबैंड की चिता के साथ ही जल दिया जाता था इस प्रथम के खिलाफ राजाराम मोहन राय जैसे सोशल रिफॉर्मर्स कैंपबेल शुरू करते हैं इसके साथ ही वह विलियम बेंटिक पर सती प्रथम को इलीगल डिक्लेअर करने का प्रेशर भी बनाते हैं विलियम बेंटिक इनके कैंपेन का सपोर्ट करते हुए दिसंबर 1829 में रेगुलेशन नंबर 17 पास करते हैं जिसके अनुसार सती प्रथम को इलीगल डिक्लेअर कर दिया जाता है और साथ ही इसे एक क्रिमिनल ऑफेंस बना दिया जाता है शुरुआत में यह रेगुलेशन सिर्फ बंगाल प्रेसीडेंसी में एप्लीकेबल होता है लेकिन 1830 में इसे मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी में भी एक्सटेंड कर दिया जाता है दोस्तों सती प्रथम के अलावा विलियम बेंटिक इंफिनिटी साइड और चाइल्ड सैक्रिफिस जैसी सोशल इविल्स को भी सरप्राइज करते हैं बहुत साड़ी कम्युनिटी में गर्ल चाइल्ड की हत्या करने की प्रथम चली ए रही थी वैसे तो 1795 में बंगाल रेगुलेशन 16 और 1800 पर मी रेगुलेशन थ्री ने इंफिनिटी साइट कोई लीगल डिक्लेअर कर दिया था फिर भी ये इन ह्यूमन प्रैक्टिस कंटिन्यू थी इसीलिए बैंकिंग ने इसको प्रथम को खत्म करने के लिए कठोर कम उठा थे इसके साथ ही बंगाल अगर आयरलैंड पर कुछ स्पेशल ऑकेजंस पर चाइल्ड सेक्रेफिसिस ऑफर करने की प्रथम थी जब बैंकिंग को इसके बड़े में पता चला है तो वो तुरंत इस पर रॉक लगाने का ऑर्डर दे देते हैं दोस्तों विलियम बेंटिक को ठग्स के सिपरेशन का भी श्री दिया जाता है की मोस्टली सेंट्रल इंडिया और बंगाल के रीजन में सक्रिय थे ठग्स ऐसे हेरिटेज हत्यारे और लुटेरे होते थे जो भोले-भाले और डिफेंसलेस ट्रैवल्स को अपना निशाना बनाते थे इनकी काफी डिसेबल्ड ऑर्गेनाइजेशन थी इनमें से अगर कुछ एक्सपट्र्स ट्राएंगल्स थे तो कुछ कुछ डेड बॉडीज के क्विक डिस्पोजल में महारत हासिल थी और कुछ अच्छे स्पाइस और इनफॉर्मेंट थे इनके अपने कोड शब्द और साइन होते थे इनकी ऑर्गेनाइजेशन इतनी एफिशिएंट थी की गवर्नमेंट की नोटिस में इनका एक भी फेलियर नहीं आया था विलियम बेंटिक ठग्स को सरप्राइज करने के लिए 1835 में ठगी और डी क्वालिटी डिपार्मेंट एस्टेब्लिश करते हैं इस डिपार्मेंट का चार्ज वो करनाल विलियम्स लेमन कर लेते हैं इंडियन रुलर्स को भी इस टास्क में कॉर्पोरेट करने के लिए इनवाइट किया जाता है करना करीब 1500 ठग्स को गिरफ्तार करते हैं और इन्हें मृत्यु दंड या उम्र कैद की सजा सुने जाति है इनके एफर्ट्स की वजह से 1837 के बाद से ऑर्गेनाइज्ड स्किल पर होने वाली ठगी देखने को नहीं मिलती दोस्तों विलियम बेंटिक के सोशल रिफॉर्म्स एक तरह से इंफेक्शन पॉइंट थे और इन रिफॉर्म्स की छवि आज तक हमें अपने इंडियन सिस्टम में देखने को मिलती है आई उनके टाइम में इंट्रोड्यूस हुए एजुकेशनल रिफॉर्म्स की बात करते हैं एजुकेशनल रिफॉर्म्स दोस्तों विलियम बेंटिक के टाइम पीरियड में 1835 में मकोली मिनट्स किया गए थे कंपनी का चार्ट 20 साल के लिए रिन्यू किया था तब उसमें प्रोविजन यह भी था की कंपनी को हर साल ₹1 लाख नेटिव्स की एजुकेशन पर खर्च करने होंगे है इसके लिए कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शंस फॉर्म की जाति है और विलियम बेंटिक लॉर्ड मकोली को कमेटी का प्रेसिडेंट अप्वॉइंट करते हैं इस कमेटी को डिसाइड करना था की एजुकेशन के लिए आने वाली गवर्नमेंट ग्रांट को किस तरह खर्च किया जाए कमेटी के मेंबर्स दो ग्रुप में डिवाइड हो चुके थे एक तरफ थे विल्सन और प्रिंसिपल ब्रदर्स जैसे ओरिएंटलिस्ट जो ओरिएंटल लैंग्वेज और इंडियन लिटरेचर की एजुकेशन को प्रमोट करना चाहते थे दूसरी तरफ से चार्ल्स ट्रैवलिंग जैसे जो वेस्टर्न साइंस और लिटरेचर के सपोर्टर थीम्स को और फरवरी 1835 की अपने फेमस मिनट में वह वेस्टर्न एजुकेशन और इंग्लिश मीडियम में एजुकेशन प्रपोज करते हैं लाइब्रेरी की सिंगल सेल्फी इंडिया और अब की पुरी की पुरी नेटिव लिटरेचर के बराबर है और सेवंथ मार्च 1835 को एक रेजोल्यूशन पास कर बाढ़ जाता है जिसके अकॉर्डिंग हायर एजुकेशन में इंग्लिश मीडियम और वेस्टर्न लिटरेचर को प्रमोट करने का डिसीजन लिया जाता है दोस्तों मंगोली मिनट इंडिया में मॉडर्न एजुकेशन की फाउंडेशन के जुडिशल रिफॉर्म्स की चर्चा करते हैं जुडिशल रिफॉर्म्स दोस्तों विलियम बेंटिक लॉर्ड कार्नवालिस की जुडिशल सिस्टम में कुछ बदलाव करते हैं जैसे की वह कौन वालरस द्वारा सेटअप प्रोविंशियल कोर्ट से अपील और सर्किट कोट्स को अबॉलिश कर देते हैं विलियम बेंटिक कोर्स की ड्यूटी मजिस्ट्रेट और कलेक्टर्स को ट्रांसफर कर देते हैं और इनके सुपरविजन के लिए कमिश्नर ऑफ रिवेन्यू और सर्किट अप्वॉइंट करते हैं इसके अलावा अदालत और सदर दीवानी अदालत एस्टेब्लिश करते हैं जिसकी वजह से अप और दिल्ली के लोगों को अपील के लिए अब कोलकाता जान की जरूर नहीं रहती दोस्तों अभी तक में पर्शियन को इंग्लिश से रिप्लेस कर देते हैं और इसी के साथ ही लोअर कोट्स में पर्शियन के साथ साथ वर्नाकुलर लैंग्वेज में कैसे फाइल करने का ऑप्शन भी दे देते हैं इस तरह से विलियम बेंटिक ने जुडिशल सिस्टम को इंडियन के लिए एक्सेसिबल बनाने की कोशिश की थी दोस्तों विलियम बेंटिक ने कुछ फाइनेंशियल रिफॉर्म्स भी इंट्रोड्यूस किया थे आई अब उनके बड़े में जानते हैं फाइनेंशियल रिफॉर्म्स कंपनी की फाइनेंशियल कंडीशन को बटर करने के लिए विलियम बेंटिक बहुत सारे स्टेप्स लेते हैं जैसे की वह मिलिट्री ऑफिसर को मिलने वाले एक्स्ट्रा अलाउंस या भट्टे को कम कर देते हैं नए रूल्स के अकॉर्डिंग अगर ट्रूप्स कोलकाता के 400 माइल्स के विदीन स्टेशन रहेंगे तो उन्हें सिर्फ आधा भट्ट ही दिया जाएगा इस स्टेप से मेंटेन एक साल में गरीब 20000 पाउंड बच्चा लेते हैं इसी तरह सिविल सर्वेंट के अलावा भी पॉसिबल था वहां हाय स्पीड यूरोपियंस की जगह इंडियन को एम्पलाई करते हैं बैंकिंग अफीम ट्रेड को भी रेगुलराइज और लाइसेंस करते हैं और अफीम के एक्सपोर्ट की परमिशन सिर्फ बॉम्बे पोर्ट को देते हैं जिससे कंपनी को ड्यूटीज के थ्रू प्रॉफिट में शेर मिल जाता है विलियम बेंटिक के इन सभी स्टेप्स की वजह से पहले हर साल होने वाला 1 करोड़ का डिफिसिट 1835 तक दो करोड़ के सरप्लस में बादल जाता है दोस्तों ये तो बात हो गई पेंटिंग के रिफॉर्म्स की अब उनके टाइम पीरियड के कुछ और इंपॉर्टेंट इवेंट्स को भी डिस्कस कर लेते हैं अगर इंपॉर्टेंट इवेंट्स दोस्तों विलियम बेंटिक के टाइम पीरियड में ही 1833 का चार्ट एक्ट पास हुआ था इस एक्ट के इंपॉर्टेंट प्रोविजंस कुछ इस तरह जनरल ऑफ इंडिया बना दिया जाता है इस तरह विलियम बेंटिक फर्स्ट गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया बनते हैं एडमिनिस्ट्रेशन को यूनिफाइड कर दिया जाता है मतलब की बॉम्बे और मद्रास के गवर्नर की लेजिसलेटिव पावर्स खत्म कर दी जाति हैं और पूरे ब्रिटिश इंडिया की लेजिसलेटिव वाल्विस गवर्नर जनरल को दे दी जाति है कंपनी के सिविल और मिलिट्री अफेयर्स को कंट्रोल करने के लिए गवर्नर जनरल की काउंसिल फॉर्म की जाति है जिसमें 4 मेंबर्स रखें जाते हैं पहले बार गवर्नर जनरल की गवर्नमेंट को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया कहा जाता है और काउंसिल को इंडिया काउंसिल इस एक्ट के थ्रू कंपनी की टी और चाइनीस ट्रेड पर मोनोपोली को भी खत्म कर दिया जाता है यूरोपियंस को इंडिया में प्रॉपर्टी परचेज करने की परमिशन भी दे देता है एडमिनिस्ट्रेशन को सेंट्रलाइज्ड करने का कम किया और गवर्नर जनरल की पोजीशन को और भी ज्यादा स्ट्रांग बना दिया दोस्तों अब बात करते हैं विलियम बेंटिक वैसे तो इंडियन स्टेटस के साथ नॉन इंटरफ्रेंस की पॉलिसी फॉलो करते हैं जैसे की जयपुर में ब्रिटिश रेजिडेंट पर अटैक होने के बाद भी वो कोई एक्शन नहीं लेते इसी तरह जोधपुर बूंदी कोटा और भोपाल में भी इंटरफ्रेंस के स्ट्रांग रीजंस होने के बावजूद नॉन-इंशन की पॉलिसी को ही फॉलो करते हैं है लेकिन कुछ केसेस में ऐसा नहीं होता और 1831 में बैंकिंग मैसूर को मिस गवर्नेंस की प्लाई पर एनएक्स कर लेते हैं इसी तरह 1834 में वो कुर्ग और कचरा को भी एनएक्स कर लेते हैं दोस्तों विलियम बेंटिक को सेंट्रल एशिया में चल रहे रोशनी डांसर का भी आइडिया था रसिया के किसी भी पॉसिबल इनवेजन को प्रीवेंट करने के लिए वो पंजाब के राजा रंजीत सिंह के साथ 1831 में ट्रीटी का पर्पेटुअल फ्रेंडशिप साइन करते हैं इसके साथ ही सिंह के अमीरस के साथ भी एक कमर्शियल कम पॉलीटिकल ट्रीटी कनक्लूड करते हैं कंक्लुजन दोस्तों विलियम बेंटिक के एडमिनिस्ट्रेशन के लिए साथ-साथ लगातार चली ए रही अवार्ड और एनेक्सेशंस की पॉलिसी के बीच एक शांतिपूर्ण पीरियड की तरह लगता हैं जिन्होंने अपने रिफॉर्म्स के थ्रू इंडिया में एडमिनिस्ट्रेशन और सोशल लाइफ को लिबरलाइज करने की कोशिश की 1848 तो 1856 दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की जिन्हें मकर ऑफ मॉडर्न इंडिया भी कहा जाता है वैसे तो लॉर्ड डलहौजी सबसे ज्यादा फेमस है अपनी डॉक्ट्रिन अब लैब की पॉलिसी के लिए लेकिन इन्होंने बहुत सारे रिफॉर्म्स भी इंट्रोड्यूस किया थे आज हम लाड डलहौजी के सभी रिफॉर्म्स और पॉलिसी को डिटेल में कर करने वाले हैं तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन 1848 से लेकर 1856 तक इंडिया के गवर्नर जनरल रहते हैं यह इंडिया की यंगेस्ट गवर्नर जनरल भी रहे थे इनकी टाइम पीरियड में एक तरफ तो इंडिया का काफी तेजी से मॉडर्नाइजेशन हुआ था और दूसरी तरफ इन्होंने अपनी पॉलिसी से देश में एक आज सी लगा दी थी आई सबसे पहले बात करते हैं दोस्तों लॉर्ड डलहौजी इंडिया में इंपिरियलिस्टिक एंबिशियस के साथ आए थे वह इंडिया में ब्रिटिश अंपायर को एक्सपीएनडी और कंसोलिडेटेड करना चाहते थे और अपने इस एक को पूरा करने के लिए डलहौजी अलग-अलग मैथर्ड अडॉप्ट करते हैं सबसे पहले मेथड तो ऑब्वीजली वार ही था इन्होंने 184849 में सेकंड एंग्लो सिख वार के थ्रू पंजाब को एनएक्स कर लिया था जिसकी पुरी कहानी हम आपको पहले ही बता चुकी हैं इसके साथ ही डलहौजी के टाइम पीरियड में ही 1852 में सेकंड एंग्लो बर्मा वार भी हुआ था जिसके थ्रू लोअर बर्मा यानी की पेगुआर कर लिया जाता है 1850 में लाड डलहौजी सिक्किम के राजा पर दो इंग्लिश डॉक्टर के साथ दुर्व्यवहार करने और उन्हें इंप्रिजन करने का आप लगाते हैं और इसी आप में सिक्किम के कुछ डिस्ट्रिक्ट को एनएक्स कर लेते हैं जिसमें दार्जिलिंग भी शामिल था और 1853 में जब हैदराबाद के निजाम ईस्ट इंडिया कंपनी को उनकी ऑक्जिलिअरी फोर्स के लिए पेमेंट करने में फेल हो जाते हैं तब लोट डलहौजी निजाम को फोर्स करते हैं की हैदराबाद कंटिजेंट की मेंटेनेंस के लिए वो विरार और उसके आसपास के कुछ डिस्ट्रिक्ट जिनका रिवेन्यू लगभग 50 लाख का था कंपनी के हवाले कर दें इस तरह बरार जो आज के महाराष्ट्र के विदर्भ रीजन में लोकेटेड है कंपनी की टेरिटरी बन जाता है दोस्तों एक तरह से कहा जा सकता है अलग-अलग मैथर्ड के द्वारा कंपनी की टेरिटरीज को एक्सपेंड करने में लगे हुए थे और इसमें सबसे ज्यादा सफल मेथड साबित होती है उनकी डॉक्टरी नव लैब की पॉलिसी तो आई डॉक्टर दोस्तों अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो डॉक्ट्रिन ऑफ लैब के अनुसार अडॉप्टेड सन यानी की गॉड लिया हुआ बेटा अपने फादर की प्राइवेट प्रॉपर्टी का तो और हो सकता है लेकिन स्टेट कर रहे हैं यह डिसीजन पैरामाउंट पावर मतलब की ब्रिटिश कंपनी का होगा की स्टेट को अडॉप्टेड सन को दिया जाए या फिर उसे एनएक्स कर लिया जाए अक्सर लॉर्ड डलहौजी को ही डॉक्ट्रिन अब लैब की इस पॉलिसी का इन्वेंटर समझ लिया जाता है लेकिन यह सही नहीं है दरअसल सच तो ये है की 1834 में ही कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने ये साफ कर दिया था की लिनियल सक्सेस के फेलियर की कैसे में अडॉप्ट करने की परमिशन देना कंपनी पर निर्भर करेगा और यह परमिशन एक्सेप्शन की तरह होगी ना की रूल की तरह मतलब ऐसी परमिशन सिर्फ स्पेशल केसेस में ही दी जाएगी और इसके तहत 1839 में मांडवी स्टेट और 1840 में कोलाबा और जालौन स्टेट को एनएक्स भी किया गया था लेकिन बहुत से इसमें अडॉप्टेड सन को रूल करने की परमिशन भी गई थी जैसे की 1827 में दौलत राव सिंधिया की डेथ के बाद उनके अडॉप्टेड सन जंगकोजी उनके स्टेट को और करते हैं और 1843 में जान को जी की डेथ के बाद एक बार फिर से गॉड लिए हुए बेटे जय जी राव को ही गति मिलती है जॉन सलवान के अनुसार 1826 से 1848 के बीच कम से कम 15 नेटिव रुलर्स को अपने एस अडॉप्ट करने की परमिशन दी गई थी इसका मतलब यह हुआ की लाड डलहौजी से पहले तक इस पॉलिसी को अंग्रेजन द्वारा यूनिफॉर्म तरीके से अप्लाई नहीं किया जा रहा था लेकिन जब डलहौजी इंडिया आते हैं तो वो कुछ प्रिंसिपल्स अडॉप्ट करते हैं उन्होंने इंडियन स्टेटस को तीन कैटिगरीज में डिवाइड कर दिया पहले कैटिगरी में वह स्टेटस आते थे जिन्हें डायरेक्टली या इनडायरेक्ट ब्रिटिश ने क्रिएट किया था दूसरी कैटिगरी में थे ब्रिटिश के डिपेंडेंट स्टेटस और तीसरी कैटिगरी थी इंडिपेंडेंस स्टेटस की डलहौजी डिसाइड करते हैं की पहले कैटिगरी के स्टेटस को किसी भी कंडीशन में अपने आगे अडॉप्ट करना अलाउड नहीं होगा और दूसरी कैटिगरी के स्टेज को एडॉप्शन के कैसे में ब्रिटिश से परमिशन लेनी होगी यह परमिशन दी भी जा शक्ति है और नहीं थर्ड कैटिगरी के स्टेटस पुरी तरह फ्री थे अपने आगे अडॉप्ट करने के लिए डॉक्ट्रिन का लैप्स की पॉलिसी को अप्लाई करके लाड डलहौजी ने 1848 में सतारा को 1849 में जैतपुर और संबलपुर को 1850 में भगत को 1852 में उदयपुर को 1853 में झांसी को और 1854 में नागपुर को एनएक्स किया था दोस्तों लॉर्ड डलहौजी बेसिकली एक आइनेक्सेशनल थे डॉक्टर की पॉलिसी को अप्लाई करके वो इंडिया में अपने एंबीशन पूरा कर रहे थे और जहां डॉक्टर इन लैब सप्लाई नहीं हो पाती वहां किसी और बहाने से उन्होंने अवध स्टेट का एनेक्सेशन आई उसके बड़े में भी जानते हैं दोस्तों आपको याद होगा की 1765 में बैटल ऑफ बक्सर के बाद अवध के नवाब के साथ ब्रिटिशर्स ने ट्रीटी ऑफ इलाहाबाद साइन की थी और उसके बाद 1801 में बैलंसली ने अवध के साथ सब्सिडियरी एलाइंस की त्रुटि साइन कर ली थी जिसके बाद से ही अवध के नवाब एक्सटर्नल डिफरेंस और लायन ऑर्डर की मेंटेनेंस के लिए पुरी तरह से कंपनी पर डिपेंड हो गए थे 1856 में लॉर्ड डलहौजी अवध को मेल एडमिनिस्ट्रेशन के बेसिस पर एनएक्स कर लेते हैं मतलब यह हुआ की अवध के नवाब पर यह आप लगाया जाता है की वो अवध को सही से रूल नहीं कर का रहे हैं वहां के एडमिनिस्ट्रेशन की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है और प्रजा परेशान है इसलिए अवध के लोगों को अच्छा एडमिनिस्ट्रेशन देने के लिए जरूरी है की वहां नवाब का शासन खत्म करके ब्रिटिश रूल एस्टेब्लिश किया जाए और इस तरह अवध भी ब्रिटिश टेरिटरी का हिस्सा बन जाता है दोस्तों ध्यान देने वाली बात यह है की अवध में शासन की खराब स्थिति के लिए अल में ब्रिटिशर्स ही रिस्पांसिबल थे सब्सिडियरी फोर्सेस के मेंटेनेंस के लिए अवध का काफी हिस्सा उन्होंने पहले ही एनएक्स कर लिया था अवध के नवाब तो पुरी तरह उनके ऊपर ही डिपेंड थे इसलिए वाले एडमिनिस्ट्रेशन को अनेक स्टेशन का वैलिड रीजन नहीं कहा जा सकता वो तो बस लोट डलहौजी के लिए बहन था अवध को एनएक्स करने का अल में तो इंग्लैंड में चल रही इंडस्ट्रियलिज्म के लिए कॉटन की बहुत ज्यादा डिमांड थी और अवध कॉटन प्रोडक्शन का एक फर्टाइल ग्राउंड था लॉर्ड डलहौजी की अनेक सेशन पॉलिसी की वजह से इंडिया की नेटिव रुलर्स और आम जनता में ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट एक आक्रोश की भावना पैदा हो जाति है जो आगे चलकर 1857 की क्रांति का एक करण भी बंटी है सबसे पहले जानते हैं उनके एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के बड़े में एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स दोस्तों लॉर्ड डलहौजी के इंडिया आने तक गवर्नर जनरल्स एन सिर्फ इंडिया में एंटीरे ब्रिटिश टेरिटरी का सुपरविजन कर रहे थे बल्कि बंगाल प्रोविंस को गवन करने की रिस्पांसिबिलिटी भी उन्हें के हाथों थी इस वजह से उनके ऊपर कम का बटन बहुत ज्यादा राहत था इसलिए लॉर्ड डलहौजी ने बंगाल के एडमिनिस्ट्रेशन को देखने के लिए अलग से एक लेफ्टिनेंट गवर्नर का अपॉइंटमेंट कर दिया इससे गवर्नर जनरल अब सिर्फ जो इंडिया फैयर्स पर अपना ध्यान दे सकता था इसी तरह से न्यूली एक्वायर ट्रेडर्स का चार्ज भी कमिश्नर्स को दे दिया गया था जैसे की पंजाब के कैसे में इसके अलावा लॉर्ड डलहौजी से पहले तक पब्लिक वर्क की कंस्ट्रक्शन का कम मिलिट्री बोर्ड ही देखा था यानी ब्रिज बनाना हो या सड़क बनानी हो मिलिट्री से ही सर कम लिया जाता था आप समझ सकते हैं की इससे सोल्जर की क्या हालात होती होगी इसलिए डलहौजी ने पब्लिक कंस्ट्रक्शन के लिए एक नया डिपार्मेंट शुरू किया जिसे पब्लिक वर्क डिपार्मेंट यानी की पीडी कहा जाता है यह डिपार्मेंट से पेशावर तक ग्रैंड ट्रक रोड कर रिकंस्ट्रक्शन किया गया बहुत से बृजेश का कंस्ट्रक्शन भी हुआ था यह तो बात हुई के एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स की मिलिट्री रिफॉर्म्स के बड़े में दोस्तों डलहौजी के अनेक सेशंस ने ब्रिटिश इंडिया को ईस्ट में बंगाल से लेकर वेस्ट में पंजाब और सिंधतक स्टैंड कर दिया था अब इतने एक्सटेंशन एरिया के स्ट्रीट्स कंट्रोल के लिए ट्रूप्स के बटर डिस्ट्रीब्यूशन की जरूर भी महसूस होती है इसलिए डलहौजी ने बंगाल आर्टिलरी के हैडक्वाटर्स को कोलकाता से मेरठ शिफ्ट कर दिया था इसके साथ ही आर्मी के परमानेंट हैडक्वाटर्स को भी शिमला शिफ्ट करने का कम शुरू हो जाता है यह प्रोसेस फाइनली 1865 में कंप्लीट हुआ था इसके साथ ही डलहौजी को यह भी महसूस होता है की आर्मी में इंग्लिश सोल्जर की तुलना में इंडियन सोल्जर का नंबर बहुत ज्यादा बाढ़ गया है जो की अंपायर की सुरक्षा के लिए कभी भी खतरा बन सकता है इसलिए वह इंग्लिश सोल्जर के नंबर को बढ़ाने की कोशिश भी करते हैं इंग्लिश सोल्जर की तीन नई रेजीमेंट रेस की जाति हैं पंजाब में ब्रिटिश ऑफिसर के अंदर में एक सिख आर्मी को भी रेस करते हैं इसके अलावा डलहौजी इंडियन आर्मी में गोरखास की एक नई रेजीमेंट भी फॉर्म करते हैं और इसमें कोई संदेह नहीं की लाड डलहौजी के इन मेजर में 1857 की क्रांति को सरप्राइज करने में ब्रिटिशर्स की काफी मदद की थी लेकिन वो कैसे इसको हम अपनी नेक्स्ट वीडियो में समझेंगे फिलहाल चलते हैं डलहौजी के एजुकेशनल रिफॉर्म्स की तरफ एजुकेशनल रिफॉर्म्स दोस्तों लो डलहौजी के टाइम में एजुकेशन की फील्ड में कई सारे इंपॉर्टेंट रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस किया गए थे 1853 में डलहौजी में प्राइमरी एजुकेशन से रिलेटेड रेगुलेशंस पास की थी यह रेगुलेशंस थॉमसूनियन सिस्टम और न्यूक्लियर एजुकेशन पर बेस्ड थी इसमें कहा गया था की प्राइमरी एजुकेशन वर्नाकुलर यानी की लोकल लैंग्वेज में दी जाए डलहौजी के समय में ही 1854 में वुड डिस्पैच भी आया था जिसे इंडिया में इंग्लिश एजुकेशन का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है इसमें कहा गया था की हर जिला में स्कूल और कॉलेज खोल जैन इसके साथ ही सभी प्रेसीडेंसी टाउन में यानी की बॉम्बे मद्रास और कोलकाता में एक यूनिवर्सिटी को एस्टेब्लिश किया जाए इसमें यह भी सजेस्ट किया गया था की गवर्नमेंट प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशंस और इंडिविजुअल्स को स्कूल और कॉलेजेस शुरू करने के लिए सब्सिडी देकर है इसके साथ ही हर जिला में एक इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल होना चाहिए और हर एक प्रॉब्लम्स में एक डायरेक्टर और एजुकेशन डलहौजी ने वुड डिस्पैच के इन सजेशन को जहां तक संभव था इंप्लीमेंट करने की कोशिश की 1857 में कोलकाता मद्रास और बॉम्बे में यूनिवर्सिटी एस्टेब्लिश हुई थी इसके साथ ही 1846 में रुड़की में इंजीनियरिंग कॉलेज और कोलकाता में एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूशन भी एस्टेब्लिश की गई थी दोस्तों बात करते हैं डलहौजी के उन रिफॉर्म्स के बड़े में जिसकी वजह से उन्हें मकर ऑफ मॉडर्न इंडिया भी कहा जाता है यानी की रेलवे टेलीग्राफ और पोस्ट सर्विसेज के रिफॉर्म्स के बड़े में डेवलपमेंट ऑफ रेलवे टेलीग्राफ और पोस्ट सर्विसेज दोस्तों डलहौजी के टाइम पीरियड में इंडिया में ब्रिटिश डोमिनियंस को आयरन लाइन से जोड़ दिया गया मतलब की रेलवे लाइंस का डेवलपमेंट शुरू हो जाता है 1853 के अपने फेमस रेलवे मिनट में लोड डलहौजी ने स्कीम की ब्रेड आउटलाइंस को सामने रखा था जो इंडिया में फ्यूचर रेलवे एक्सटेंशन का बेसिस फॉर्म करती हैं 1853 में ही बॉम्बे से ठाणे तक फर्स्ट रेलवे लाइन को तैयार किया गया इसके अगले साल कोलकाता से रानीगंज कोलफील्ड तक रेलवे लाइन शुरू की गई ध्यान रखना वाली बात यह है दोस्तों की इंडिया में रेलवे का डेवलपमेंट प्राइवेट कंपनी के द्वारा किया जा रहा था और वो भी ब्रिटिश कंपनी रेलवे में इन्वेस्ट करने पर उन्हें ब्रिटिश गवर्नमेंट 5% का गारंटीड इंटरेस्ट भी प्रॉमिस करती है रेलवे का डेवलपमेंट लॉर्ड डलहौजी इंडिया को मॉडर्नाइज करने के लिए नहीं करते बल्कि उनका मकसद तो ब्रिटिश ट्रेड को प्रमोट करना और कॉलोनियल इंटरेस्ट को आगे ले जाना ही था लेकिन फिर रेलवे के डेवलपमेंट ने इंडिया को यूनिफाई करने का कम किया और इनडायरेक्ट नेशनलिज्म को प्रमोट किया 1852 में इंडिया में इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ सिस्टम भी इंट्रोड्यूस किया गया ये एक बहुत ही इंपॉर्टेंट डेवलपमेंट था क्योंकि टेलीग्राफ की मदद से देश के एक कोनी से दूसरे कोनी तक तुरंत मैसेज पहुंच सकते थे लगभग 4000 माइल्स की इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ लाइंस कंस्ट्रक्ट की जाति हैं जो कोलकाता को पेशावर बॉम्बे मद्रास और देश के अन्य हसन से जोड़ देती हैं इसके अलावा 1854 में एक नया पोस्ट ऑफिस एक्ट पास हुआ और पहले बार पोस्टेड स्टंप्स इशू किया गए लेटर को चाहे कितनी भी डिस्टेंस के लिए भेजना हो हर लेटर के लिए आधा आना यानी की दो पैसे का यूनिफॉर्म रेट फिक्स कर दिया गया था अब एक सोर्स ऑफ रिवेन्यू बन जाता है दोस्तों इंडिया में ट्रांसपोर्ट और कम्युनिकेशन को मॉडर्नाइज करने का कम किया कंक्लुजन डलहौजी ने इंडिया में बहुत से रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस किया थे लेकिन उनका प्राइमरी मोटिव इंडिया में ब्रिटिश अंपायर को सेफगार्ड और कंसोलिडेटेड करना ही था दोस्तों हमें नहीं भूलना चाहिए की डलहौजी एक इंपिरियलिस्ट थे उन्हें इंडिया के लोगों की विशेष या सेंटीमेंट की कोई परवाह नहीं थी इसलिए उन्होंने अनेक सेशंस करते समय किसी भी तरह के मोरल को फॉलो नहीं किया फिर बात चाहे पंजाब के साथ भी ट्रायल की हो या अवध जैसे पुराने इलाए को धोखा देने की डलहौजी ने ब्रिटिश अंपायर को एक्सपेंड करने के लिए सम दम दंड भेद सभी तरह की नेशन का इस्तेमाल किया और जैसा की हम पहले ही बता चुके हैं उनकी पॉलिसी को 1857 की क्रांति का एक इंपॉर्टेंट करण भी माना जाता है फॉरेन पॉलिसी ऑफ डी ब्रिटिश दोस्तों के साथ भी ब्रिटिश का कांटेक्ट के साथ ब्रिटिश रिलेशनशिप की बात करते हैं [संगीत] 19th सेंचुरी के दौरान ब्रिटिशर्स द्वारा बहुत से डिप्लोमेटिक मिशन भूटान भेजें जाते हैं इनको ऑफीशियली तो यही करण बताया जाता है की भूटान क्रॉस बॉर्डर रीड कर रहा है या फिर डिसिडेंस को शेल्टर दे रहा है लेकिन असली वजह तो ब्रिटिश के इंपिरियलिस्ट एंबिशियस थे भूटान इंडो तिब्बती ट्रेड के लिए तो विटल था ही इसके अलावा टी प्लांटेशन के लिए द्वारा रीजन की कमर्शियल वायबिलिटी भी सभी जानते थे सबसे इंपॉर्टेंट पीस मिशन 186364 में वायसराय लॉर्ड इलजन द्वारा भेजो जाता है इसी अश्लील ईडन की नेतृत्व में भेजो गया था लेकिन भूतनी इस इनकी ऑफर को रिजेक्ट कर देते हैं की भूटान में उन्हें मिस्त्री किया गया जिसके बाद नवंबर 1864 में ब्रिटिश भूटान के गेस्ट बोर्ड डिक्लेअर कर देते हैं इसे द्वारा और कहा जाता है निरोज स्वॉर्ड्स निव्स जैसे वेपंस के साथ वल्ड ब्रिटिश आर्मी का सामना करती है यह वार सिर्फ 5 महीने तक ही चला है और भूटान अपनी लगभग 20% टेरिटरीज में को देता है इसके साथ ही पिछले बॉर्डर क्लैशस में ऑक्युपी की हुई इंडियन टेरिटरीज को भी सुरेंद्र करता है इसके बाद 11th नवंबर 1865 को ट्रीटी का सींचुला साइन की जाति है जिसके अनुसार भूटान आसिम द्वारा और बंगाल ड्वॉर्फ्स की टेरिटरीज ब्रिटिश को दे देता है यही सुरेंद्र किया हुए डिस्ट्रिक्ट ब्रिटिशर्स द्वारा टी गार्डन के रूप में डेवलप किया जाते हैं इसके अलावा साउथ पूर्वी भूटान में दीवान गिरी की 83 स्क्वायर किलोमीटर की टेरिटरी भी ब्रिटिश की हो जाति है जिसके बदले में भूटान को 50000 की एनुअल सब्सिडी देने का प्रॉमिस किया जाता है 1910 में इसे रिवाइज करके नई त्रुटि साइन की जाति है जिसे ट्रीटी का पूनाखा कहते हैं ट्रीटी का पुणे का 8 जनवरी 1910 को साइन की जाति है इसमें ब्रिटेन भूटान को इंडिपेंडेंस की गारंटी देता है साथ ही भूटानी रॉयल गवर्नमेंट को दिए जान वाला स्टाइपेंड भी बड़ा देता है और बदले में भूतनी फॉरेन रिलेशंस ब्रिटिश इंडिया की कंट्रोल में ए जाते हैं 1947 तक ट्वीटी और पूनाखा ही भूटान के साथ ब्रिटिश इंडिया के रिलेशंस को गाइड करती है भूटान के बाद अब दूसरे माउंटेन इस नेबर्स यानी की नेपाल की बात करते हैं दोस्तों 1768 में गोरखास ने नेपाल पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लिया था इसके बाद वो अपनी डोमिनियन को माउंटेंस के आगे एक्सपेंड करना शुरू करते हैं नॉर्थ में तो चाइनीस इन्हें एक्सपेंशन करने नहीं देते इसलिए ये बंगाल और अवध की तरफ पुश करते हैं दूसरी तरफ 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी गोरखपुर जिला को ऑक्युपी कर लेती है जिसके बाद उनका फ्रंटियर गोरखास की टेरिटरी के डायरेक्ट टच में ए जाता है और दोनों के बीच कनफ्लिक्ट शुरू होता है जब गोरखास बुटवल और शिवराज डिस्ट्रिक्ट पर कब्जा कर लेते हैं उसे समय तो ब्रिटिशर्स बिना किसी ओपन कनफ्लिक्ट के जिला को रे ऑक्युपी कर लेते हैं गोरखास एक बार फिर से बटवाल की तीन पुलिस स्टेशन पर अटैक कर देते हैं और गोरखास के अगेंस्ट ऑफेंसिव लॉन्च करने का डिसीजन लेते हैं 12000 की गोरख आर्मी के अगेंस्ट 34000 सोल्जर की बड़ी आर्मी तैयार करते हैं लेकिन 1814 का यह कैंपेन बुरी तरह फेल हो जाता है इसके बाद भी ब्रिटिश हर नहीं मानते और फिर से कोशिश करते हैं 1815 में वो कुमाऊं हिल्स में अल्मोड़ा को कैप्चर करने में कामयाब होते हैं और मैं 1815 में अमर सिंह थापा से मालाओं का वोट भी जीत लिया जाता है मालाओं के फल के बाद गोरखास नेगोशिएशंस करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन हेस्टिंग्स की डिमांड्स उनका एटीट्यूड चेंज कर देती है और एक बार फिर से दोनों के बीच होस्टिलिटीज शुरू हो जाति हैं बुरी तरह हर दिया जाता है इसके बाद गोरखास समझ जाते हैं की उनके लिए अब ब्रिटिश को और विशिष्ट करना पॉसिबल नहीं है और इसीलिए मार्च 1816 में वो ट्रीटी का सुगौली को एक्सेप्ट कर लेते हैं 3d के अकॉर्डिंग गोरखास गढ़वाल और कुमाऊं जिला कंपनी को सुरेंद्र कर देते हैं इसके साथ ही दोनों के बीच तराई बाउंड्री को पिलर्स के थ्रू मार्क कर दिया जाता है गुरखास काठमांडू में ब्रिटिश रेजिडेंट रखना के लिए भी मां जाते हैं और इसके साथ ही सिक्किम से परमानेंटली विड्रॉ करने के लिए तैयार हो जाते हैं ब्रिटिशर्स को हिल स्टेशंस और समर कैपिटल के लिए साइट भी मिल जाति है जैसे की शिमला मसूरी रानीखेत से इसके साथ ही ब्रिटिशर्स गोरखास को अपनी आर्मी में भी शामिल कर लेते हैं जो आगे चलकर इंडिया में कंपनी के डोमिनियन को एक्सपेंड करने में काफी हेल्प करते हैं 19th सेंचुरी की शुरुआत में बर्मा एक फ्री कंट्री हुआ करता था और वेस्ट की तरफ अपनी टेरिटरी एक्सपेंड करना चाहता था लेकिन इंडिया में ब्रिटिश का रूल था और वह बर्मा पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश करना चाहते थे इसके पीछे बहुत सी करण थे सबसे पहले तो बर्मा के फॉरेस्ट रिसोर्सेस में ब्रिटिश का इंटरेस्ट था उसके अलावा बर्मा ब्रिटिश मैन्युफैक्चरर्स के लिए मार्केट भी प्रोवाइड कर सकता था इसके साथ ही ब्रिटिशर्स बर्मा और बाकी के साउथईस्ट एशिया में फ्रेंच एंबिशियस को नियंत्रित भी करना चाहते थे इसकी वजह से तीन एंग्लो बर्मीज वार होती हैं और 1885 में बर्मा को ब्रिटिश इंडिया में एनएक्स कर लिया जाता है आई 24 19th सेंचुरी की शुरुआत में बर्मीज वेस्ट शब्द यानी की इंडिया की तरफ एक्सपेंशन करने की कोशिश करते हैं जिसमें वो अरकान और मणिपुर को ऑक्युपी कर लेते हैं साथ ही आसिम और ब्रह्म पुत्र वाली को भी लगातार थ्रेट इन करते हैं इसकी वजह से ब्रिटिश के साथ इनका लगातार गतिरोध बना राहत है और फिर सितंबर 1823 में बर्मा चित्तागोंग के पास लोकेटेड आयरलैंड पर कब्जा कर लेट है इस आयरलैंड को ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी टेरिटरी समझती थी इसके बाद से ही दोनों के बीच बॉटल्स का सिलसिला शुरू हो जाता है शुरुआत में यह बॉटल्स अरकान और मणिपुर के रीजंस में होते हैं जहां बर्मा ब्रिटिश पर भारी पड़ती हैं क्योंकि उन्हें यहां के जंगल में फाइट करने का काफी एक्सपीरियंस था इसलिए ब्रिटिश फाइट को बर्मीज मैनलैंड पर ले जाते हैं 11th में 1824 को अचानक से ब्रिटिश लेवल फोर्स यंग ऑन यानी की रंगून हार्बर में इंटर करती है और बर्मीज को सरप्राइज ले लेती है इसके बाद लगभग 2 साल तक दोनों के बीच इंटेंस बॉटल्स होते हैं फाइनली दिसंबर 1825 में बर्मीज ब्रिटिश के साथ कस करने के लिए तैयार हो जाते हैं नेगोशिएशन शुरू होती हैं और फरवरी 1826 में ट्रीटी का यंडाबों के जरिए दोनों के बीच शांति स्थापित होती है इस विधि के अनुसार बर्मा की गवर्नमेंट एक करोड़ रुपए वार कंपटीशन के रूप में देने के लिए तैयार होती है साथ ही अपने कोस्टल प्रोविंस अरकान और टेनेसम ब्रिटिशर्स को दे देती हैं इसके अलावा असम कछार और जयंतिया पर क्लेम करना भी छोड़ देती हैं और मणिपुर को एक इंडिपेंडेंस स्टेट की तरह रिकॉग्नाइज्ड कर लेती हैं और कैपिटल आवामी ब्रिटिश रेजिडेंट को एक्सेप्ट करती है साथ ही कोलकाता में बर्मीज ऑन बाय भी पोस्ट किया जाता है इस वार में ब्रिटिश इंडिया के फाइनेंस को पुरी तरह बर्बाद कर दिया था लगभग 13 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग इस वार पर खर्च हुए थे और करीब 15000 सोल्जर की इस पूरे कैंपेन के दौरान डेथ हो गई थी जिसमें मेजॉरिटी इंडियन ट्रूप्स की थी इस तरह ब्रिटिश की इंपिरियलिस्ट एम्स को पूरा करने के लिए इंडियन रिवेन्यू और ह्यूमन रिसोर्सेस को एक्सप्लोइट किया गया था इसके बाद 1852 में एक और एंग्लो बर्मा वार होती है सेकंड बर्मा वार 1852 बर्मा के साथ ब्रिटिश का सेकंड वार कमर्शियल नीड और लॉर्ड डलहौजी की इंपिरियलिस्ट पॉलिसी की वजह से होता है ब्रिटिश मरचेंट्स अपार बर्मा की टिंबर रिसोर्सेस चाहते थे साथ ही बर्मीज मार्केट में और ज्यादा पेनिट्रेट करना चाहते थे 1852 में लॉर्ड डलहौजी ट्रीटी का यंडाबों से रिलेटेड कुछ माइनर इश्यूज को रिजॉल्व करने के बहाने कोमोडोर जॉर्ज लैंबर्ट को बर्मा भेजते हैं लेकिन फिर भी लैंबर्ट रंगून के पोर्ट को ब्लॉक कर देते हैं इस तरह की शुरुआत हो जाति है दिसंबर 1852 में किंग को इन्फॉर्म किया जाता है की अब से बेगू कंपनी डोमिनियन का पाठ होगा जो की बर्मा का आखिरी कोस्टल प्रोविंस था 20th जनवरी 1853 को फॉर्मल प्रोक्लेमेशन इशू कर दी और हो जाता है इसके बाद 1885 में एक बार फिर से बर्मा के साथ कनफ्लिक्ट शुरू होता है थर्ड बर्मा वार 1885 18 के दौरान बर्मा और फ्रांस के बीच बढ़नी नजदीकियां ब्रिटिशर्स के लिए कंसर्न बन जाति हैं 1885 में फ्रेंच काउंसिल मास बर्मीज गवर्नमेंट के साथ में घोषित करने के लिए मंडली आते हैं और बर्मा में एक फ्रेंच बैंक और मंडली से ब्रिटिश बर्मा की नॉर्दर्न बॉर्डर तक रेल लिंक के कंस्ट्रक्शन की बात करते हैं ब्रिटिशर्स यहां अपनी डिप्लोमेटिक पावर्स का उसे करते हैं और फ्रेंच गवर्नमेंट को बर्मा से हाउस को रिकॉल करने के लिए कन्वेंस कर लेते हैं इस बार तो फ्रेंच बर्मा से वापस चले जाते लेकिन इस तरह की इवेंट्स ब्रिटिश को बर्मा के अगेंस्ट एक्शन लेने के लिए कन्वेंस कर देते हैं अब उन्हें बस एक मौके की तलाश थी जो जल्द ही उन्हें मिल जाता है बर्मा में कम कर रही एक ब्रिटिश टिंबर कंपनी मुंबई बर्मा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन परमस कोर्ट फाइंड लगा देती है एक्सट्रैक्शन को अंदर रिपोर्ट किया था और अपने एम्पलाइज को भी पी नहीं किया था बर्मीज ऑफिशल कंपनी के टिंबर को सीएस कर लेते हैं लेकिन कंपनी और ब्रिटिश गवर्नमेंट क्लेम करती है की यह चार्ज गलत है और बर्मीज कोड्स करप्ट हैं ब्रिटिशर्स बर्मी गवर्नमेंट से डिमांड करते हैं की इस डिस्प्यूट को सेटल करने के लिए वो ब्रिटिश अपॉइंटेड आर्बिट्रेटर को एक्सेप्ट कर ले और जब बर्मीज ऐसा करने से माना कर देते हैं तब 12 अक्टूबर 1885 को ब्रिटिश गवर्नमेंट एक अल्टीमेटम इशू करती है जिसमें कहा जाता है की बर्मीज मंडली में एक नया ब्रिटिश रेजिडेंट एक्सेप्ट करें और उसके अराइवल तक कंपनी पर लगा कोई भी लीगल एक्शन या फाइन सस्पेंड किया जाए साथ ही बर्मा अपनी फौरन रिलेशंस ब्रिटिश कंट्रोल में दे दें इसके अलावा नॉर्दर्न बर्मा और चीन के बीच ट्रेड के विकास के लिए ब्रिटिश को कमर्शियल फैसेलिटीज भी प्रोवाइड करें इस अल्टीमेट टीम को एक्सेप्ट करने से बर्मा के रियल इंडिपेंडेंस खत्म हो जाति है जिसके बाद थर्ड एंग्लो बर्मीज वार की शुरुआत हो जाति है और बर्मा के किंग सुरेंद्र कर देते हैं फर्स्ट जनवरी 1886 को बर्मा को फॉर्मूली ब्रिटिश इंडिया में एनएक्स कर लिया जाता है गोरिल्ला प्राइसिंग शुरू हो जाति है जो 1896 तक चलती रहती है और फिर फर्स्ट वर्ल्ड वार के बाद यहां नेशनलिस्ट मूवमेंट शुरू होता है बर्मा के नेशनलिस्ट इंडियन नेशनल कांग्रेस के साथ हाथ मिला लेते हैं इस लिंक को कमजोर करने के लिए 1935 में बर्मा को इंडिया से सेपरेट कर दिया जाता है हो वांग सॉन्ग की लीडरशिप में बर्मीज नेशनलिस्ट मूवमेंट और ज्यादा तीव्र होता है और फाइनली फोर्थ जनवरी 1948 को बर्मा को इंडिपेंडेंस मिलती है अब बात करते हैं की बैच के साथ ब्रिटिश रिलेशंस की एंग्लो तिब्बती रिलेशंस तिब्बत में फियोक्रेटिक रूल हुआ करता था इसे बुद्धिस्ट मांग सिया लमन रूल कर रहे थे और चीन की सिर्फ नॉमिनल सुसरेंटिस पर थी ब्रिटिशर्स ने काफी कोशिश की थी टिबैत के साथ फ्रेंडली और कमर्शियल रिलेशन स्थापित करने की लेकिन गर्जन के आने तक उन्हें इसमें कोई सफलता नहीं मिली थी वायसराय लोड कर्जन के समय लास में रूस इन्फ्लुएंस बढ़ता ही जा रहा था तिब्बत में ऋष्णम और अमिनेशन आने की रिपोर्ट ए रही थी जो गर्जन के लिए चिंता की बात थी इसलिए वह करनाल यंग हसबैंड के नेतृत्व में एक गोरख कंटिजेंट को तिब्बत के साथ एग्रीमेंट करने के लिए भेज देते हैं तिब्बतंस नेगोशिएट करने से इनकार कर देते हैं और नॉन वायलेट तरीके से विरोध शुरू करते हैं उसे समय के दलाई लामा लास छोड़कर भाग जान पर मजबूर होते हैं और यंग हसबैंड तिब्बती ऑफिशल्स के साथ फोर्सफुली त्रुटि साइन करते जिसे वीडियो लास कहा जाता है इसके अनुसार तिब्बत को 75 लाख की इंडिमनिटी पे करने के लिए कहा जाता है पेमेंट की सिक्योरिटी के रूप में 75 साल तक चुंबी वाली को ब्रिटिशर्स ऑक्युपी कर लेते हैं इसके साथ ही या तुम ज्ञान से और गाटोंक में ट्रेडमार्क ओपन करने के लिए भी कहा जाता है इसके अलावा तिब्बती रेलवे रोड या टेलीग्राफ के लिए किसी भी फॉरेन स्टेट को कोई कंसेशन नहीं दे सकता था सिर्फ ग्रेट ब्रिटेन को तिब्बत के फॉरेन अफेयर्स में कुछ कंट्रोल दिया जाता है नॉर्थ के बाद अब नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटियर की तरफ चलते हैं और डिस्कस करते हैं एंग्लो अफगान रिलेशंस दोस्तों 19th सेंचुरी की शुरुआत में रूस इन्फ्लुएंस काफी बढ़ाने लगता है की रसिया उनकी इंडियन अंपायर पर अटैक प्लेन कर रहा है इसलिए अफगानिस्तान में एक फ्रेंडली रोलर की जरूर महसूस की जाति है जो ब्रिटिश कंट्रोल में रहे इसी इंटेंशन से एंग्लो ऑफ गण रिलेशंस गाइड होते हैं 1836 में लॉर्ड ऑकलैंड इंडिया के गवर्नर जनरल बनते हैं और यह फॉरवर्ड पॉलिसी की बात करते हैं इसका मतलब था की कंपनी खुद से इनिशिएटिव लगी ब्रिटिश इंडिया की बाउंड्री को प्रोबेबल रूस अटैक से प्रोटेस्ट करने के लिए इस ऑब्जेक्टिव को दो तरीके से पूरा किया जा सकता था या तो नेबरिंग कंट्रीज के साथ ट्रीटी करके या फिर उन्हें पुरी तरह एनएक्स करके अफगानिस्तान की अमीर दोस्त मोहम्मद ब्रिटिशर्स के साथ फ्रेंडशिप तो करना चाहते थे लेकिन इस शर्ट पर की ब्रिटिश सिख से पेशावर को रिकवर करने में उनकी हेल्प करें शाहूजा के साथ शाहूजा तब से लुधियाना में ब्रिटिश पेंशनर बन के र रहे थे इस ट्रीटी में डिसाइड होता है की सिक्स की मिलिट्री हेल्प के जारी शहशुजा को वापस अफगानिस्तान के थ्रू पर बैठाया जाएगा जिसके बाद शाह सजा फॉरेन अफेयर्स सिक्स और ब्रिटिशर्स की एडवाइस के अनुसार कंडक्ट करेंगे साथ ही वह सिंह के अमीरस पर अपने सावरेन राइट्स भी छोड़ देंगे और रिवर सिंधु के राइट बैंक पर लोकेटेड अफगान टेरिटरी पर महाराजा रंजीत सिंह के क्लेम को एक्सेप्ट कर लेंगे इसके बाद शुरुआत होती है फर्स्ट एंग्लो अफगान वार की आई जानते हैं इसके बड़े में फर्स्ट एंग्लो अफगान वार 1839 तू 1842 ब्रिटिश आर्मी अगस्त 1839 में काबुल में इंटर करती है दोस्त मोहम्मद सुरेंद्र कर देते हैं और शाह पूजा को अफगानिस्तान का अमीर बना दिया जाता है लेकिन अफगानिस्तान की हत्या कर दी जाति है जिसमें यह अफगानिस्तान को इबे एक्यूरेट करने के लिए तैयार होते हैं और दोस्त मोहम्मद को रिस्टोर भी करते हैं फर्स्ट अफगान वार में इंडिया की डेड करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं और लगभग 20000 लोग इसमें मारे जाते हैं जॉन लॉरेंस और थे पॉलिसी का मास्टरी इन एक्टिविटी फर्स्ट अफगान वार के डिजास्टर के बाद जॉन लॉरेंस मास्टर ली इन एक्टिविटी पॉलिसी को फॉलो करते हैं 1863 में दोस्त मोहम्मद की डेथ के बाद भी वार ऑफ सक्सेशन में कोई इंटरफ्रेंस नहीं किया जाता लॉरेंस की पॉलिसी दो कंडीशंस पर आधारित थी पहले फ्रंटियर पर पीस डिस्टर्ब ना हो और दूसरा सिविल वार में कोई भी कैंडिडेट फौरन हेल्प ना मांगे इसके बाद शेर अली खुद को अफगानिस्तान के थ्रोन पर कब्ज करते हैं तो लॉरेंस उनके साथ फ्रेंडशिप कल्टीवेट करने की कोशिश करते हैं लेकिन 1876 में लैटिन इंडिया के वायसराय बनते हैं और नई फॉरेन पॉलिसी शुरू करते हैं जिसे प्राउड रिजर्व की नीति कहा जाता है इसका मकसद साइंटिफिक फ्रंटियर्स को मेंटेन करना और स्फियर्स ऑफ इन्फ्लुएंस को सेफगार्ड करना था लियोन के अनुसार अफगानिस्तान के साथ रिलेशनशिप को अंबिगुअस नहीं रखा जा सकता था और इसीलिए सेकंड एंग्लो अफगान वार की शुरुआत होती है आई जानते हैं इसके बड़े में भी सेकंड एंग्लो अफगान वार 1870 तो 1880 लिटिल शेर अली को एक फेवरेबल त्रिनिटी का ऑफर देते हैं लेकिन अमीर अपने दोनों पावरफुल नेबर्स यानी की रसिया और ब्रिटिश इंडिया के साथ फ्रेंडशिप चाहते थे साथ ही दोनों में से किसी का बहुत ज्यादा इंटरफ्रेंस भी नहीं होने देना चाहते थे बाद में शेर अली काबुल में ब्रिटिश और बाय रखना से भी माना कर देते हैं जबकि इससे पहले रसियन को यह कंसेशन दे दिया गया [संगीत] और जब रूस अपना न्वोक काबुल से वीडियो कर लेते हैं तब लिटन अफगानिस्तान को एवं करने का फैसला करते हैं इनवेजन की स्थिति में शेर अली भाग जाते हैं और ब्रिटिशर्स में 1879 में शेर अली के एल्डेस्ट सन याकूब खान के साथ ट्रीटी का गंधक साइन करते हैं इसमें डिसाइड होता है की अमीर अपनी फॉरेन पॉलिसी गवर्नमेंट ऑफ इंडिया यानी ब्यूटियस की एडवाइस के अनुसार कंडक्ट करेंगे काबुल में परमानेंट ब्रिटिश रेजिडेंट तैनात किया जाएगा ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट फॉरेन अग्रेशन के अगेंस्ट आमिर को पूरा सपोर्ट देगी और एनुअल सब्सिडी भी देगी लेकिन जल्द ही पॉपुलर प्रेशर्स के करण याकूब को भी थ्रोन छोड़ना पड़ता है और ब्रिटिश को काबुल और कंधार रीकैप्चर करने पढ़ते हैं लेकिन अफगानिस्तान को तोड़ने का प्लेन बनाते हैं लेकिन इसे इंप्लीमेंट नहीं कर पाते और नेक्स्ट वायसराय लॉर्ड रिपन इस प्लेन को फॉलो नहीं करते बल्कि अफगानिस्तान को एक बफर स्टेट की तरह ट्वीट करने की पॉलिसी अपनाते हैं रूस रिवॉल्यूशन और फर्स्ट वर्ल्ड वार के बाद अफगानिस्तान फूल इंडिपेंडेंस की डिमांड करते हैं 1909 में अब्दुल रहमान के सक्सेसर बने हबीबुल्लाह की 1990 में हत्या कर दी जाति है और नए रोलर अमानुल्लाह ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट ओपन वार डिक्लेअर कर देते हैं 1921 में ब्रिटिशर्स हर मां लेते हैं और अफगानिस्तान फॉरेन अफेयर्स में अपनी इंडिपेंडेंस रिकवर कर लेट है कंक्लुजन एस की फौरन पॉलिसी उनके इंपिरियलिस्ट एंबीशन से गाइड थी एक तो वो किसी भी राइवल पावर जैसे की रसिया या फ्रांस से अपने इंडियन अंपायर को प्रोटेस्ट करना चाहते थे और दूसरा अपने मार्केट को भी एक्सपेंड करना चाहते थे इन्हीं दोनों मोटिव्स के साथ वह फॉरेन पॉलिसी को कंडक्ट करते हैं लेकिन यहां समस्या यह थी की अपने एंबीशन को पूरा करने के लिए यह इंडियन रिवेन्यू और मैनपॉवर का उसे करते हैं फिर चाहे अफगानिस्तान के साथ वार हो या फिर बर्मा के साथ इनका कनफ्लिक्ट इंडियन सोल्जर ही इनके लिए फाइट करते हैं और लाखों रुपए इन वर्स पर खर्च कर दिए जाते हैं सिविल उप्राइजिंग इन ट्राईबल रिवॉल्वेस 1757 तू 1856 दोस्तों 1857 की क्रांति के बड़े में तो हम सभी कुछ ना कुछ जरूर जानते हैं लेकिन उससे पहले भी ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट विद्रोह की कई आवाज़ उठी थी जिनके बड़े में अक्सर लोगों को कम पता होता है आज हम ऐसे ही कुछ रिवॉल्ट्स और उप्राइजिंग की चर्चा करने वाले हैं यह रिवॉल्ट्स देश के अलग-अलग हसन में अलग-अलग समय पर हुए थे मुख्य तोर पर इन रिबेलियंस के तीन फॉर्म्स देखें जाते हैं सबसे पहले बात करते हैं सबसे पहले उनको समझते हैं सबसे बड़ा करण इकोनामी एडमिनिस्ट्रेशन और लैंड रिवेन्यू सिस्टम में ब्रिटिश द्वारा तेजी से किया गया बदलाव था है जिसकी वजह से एग्रेरियन सोसाइटी पुरी तरह से उथल-पुथल हो गई थी उदाहरण के तोर पर लैंड रिवेन्यू रेट्स इतने हाय कर दिए गए थे की बैगन और जमींदारा दोनों ही परेशान थे इसी तरह ब्रिटिश ने नया जस्टिस सिस्टम भी इंट्रोड्यूस कर दिया था जिससे जस्टिस एन सिर्फ महंगा बल्कि लोगों से दूर हो गया था इंडियन हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज का डिक्लिन होने से हजारों की संख्या में आर्टिजंस की रोजी रोटी छन गई थी इसके अलावा ब्रिटिश रूल का फौरन करैक्टर भी विद्रोह का एक करण था लोगों को एक विदेशी शक्ति के अधीन होना कभी अच्छा नहीं लगता इंडियन के प्राइड को भी ब्रिटिश रूल में हट किया था और इसीलिए फॉरेनर को अपनी जमीन से बाहर करने के बहुत से एफर्ट्स देखने को मिलते हैं ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट रिबेलियंस उनका बंगाल पर कब्जा होने से ही शुरू हो जाता है शायद ही ऐसा कोई साल गया हो जब इनके विरुद्ध कोई आम रिबेलीयन ना हुआ हो 1763 से 1856 के बीच 40 से ज्यादा मेजर रिबेलियंस होते हैं इसके अलावा 100 से ज्यादा माइनर वंश भी थे आई अब अलग रीजंस में होने वाले सिविल रिबेलियंस के कुछ उदाहरण देखते हैं शुरुआत करते हैं बंगाल और पूर्वी इंडिया से रिवॉल्ट्स इन बंगाल में ही एस्टेब्लिश किया था इसलिए सबसे पहले विद्रोह भी यही शुरू होता है और वह 1763 में होने वाला मंगस यानी सन्यासी और बेदखल किया हुए जमींदारा लीड कर रहे थे और इनका साथ देते हैं पेजयंस और नीचे बार्बी से निकले हुए सोल्जर सन्यासी रिवॉल्ट के पीछे में करण होली प्लेस को विजिट करने पर लगे गई रिस्ट्रिक्शंस थी सन्यासी अक्सर होली श्रीस की यात्रा करते थे और वहीं के लोकल जमीदार इन्हें दक्षिण दिया करते थे लेकिन ब्रिटिश को लगता है की यह लोग उनका हिस्सा ले रहे हैं साथ ही इतने बड़े स्टार पर लोगों का घूमने उन्हें डॉ और ऑर्डर की प्रॉब्लम लगता था इसलिए वह सन्यासी की विजिट पर रिस्ट्रिक्शंस लगा देते हैं और इसी से नाराज सन्यासी उनके खिलाफ विद्रोह कर देते हैं रिवॉल्ट के दौरान कंपनी की फैक्टरीज और स्टेट ट्रेजरीज पर रेड की जाति है यह लोग कंपनी की आम फोर्सेस का बहादुर से सामना करते हैं इनका विद्रोह 1800 तक चला राहत है बंकिम चंद्र चटर्जी की नवल आनंद मठ इसी विद्रोह पर बेस्ड है सन्यासी रिबेलीयन के बाद 176 से 1772 तक चौर विद्रोह हुआ था यह बंगाल और बिहार के पांच डिस्ट्रिक्ट में फैला था इसके अलावा पूर्वी इंडिया के मेजर रिबेल्स में 1783 में होने वाला रंगपुर और दिनाजपुर रिबिन 1799 में विष्णुपुर और बीरभूम 1800 पर सेवेंटीन के बीच उड़ीसा के जमींदारा का विद्रोह और 1827 से 40 तक चलने वाला संबलपुर रिवॉल्ट आता है पूर्वी इंडिया के बाद आई अब साउथ इंडिया की तरफ चलते हैं रिवार्ड्स इन साउथ इंडिया दोस्तों साउथ इंडिया में विजयनगरम के राजा 1794 में रिवॉर्ड करते हैं [संगीत] पॉलीगर्स बेसिकली साउथ इंडिया की जमींदारा को कहा जाता था और इनका विद्रोह टैक्सेशन को लेकर हुआ था इसके अलावा 185 में त्रवंकोर के दीवान वेल थंबिका हेयर तेल रिवॉल्ट होता है 18005 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल वैलेंस लेने ट्रैवल कर के राजा पर सब्सिडियरी एलाइंस ट्वीट पोस्ट कर दी थी लेकिन राजा ट्रीटी के हर स्टंट्स की वजह से नाराज हो जाते हैं और सब्सिडी पे नहीं करते ऐसे में ब्रिटिश रेजिडेंट जब इन्हें सब्सिडी पे करने के लिए फोर्स करने लगता है तो उसके एटीट्यूड से लोगों की नाराजगी और ज्यादा बाढ़ जाति है और दीवार के सपोर्ट से रिवॉल्ट कर देते हैं इस विद्रोह को दबाने और यहां शांति स्थापित करने के लिए विशाखापट्टनम में 1835 में गंजाम में और 184647 में कुरनूल में मिलती हैं अब बात करते हैं वेस्टर्न इंडिया की रिपोर्ट इन वेस्टर्न इंडिया दोस्तों 1816 से 1832 के बीच सौराष्ट्र के के बार-बार ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट विद्रोह करते हैं इसी तरह गुजरात के कॉलेज भी 1824 से 28 तक 1839 में और फिर 1849 में विद्रोह का बिगुल बजाते हैं इनके विद्रोह का करण ब्रिटिश रूल का इंपोजिशन और उनके द्वारा कोहली के फोर्स को टोडा जाना था इसके अलावा कंपनी द्वारा इस इस्टैबलिश्ड नए एडमिनिस्ट्रेशन की वजह से बड़ी संख्या में यह लोग बेरोजगार भी हो गए थे पेशवा की हर के बाद से ही महाराष्ट्र में लगातार विद्रोह का सिलसिला चला राहत है जिसमें 1818 से 1831 के बीच भील उप्राइजिंग हुई थी भील खानदेश के हिल रेंजेस में रहते थे और ब्रिटिशर्स ने इनके रीजन में इंट्रूड करना शुरू कर दिया था लोकल्स इस इंट्रूजन से ना खुश थे और उन्होंने इस बात का रिपोर्ट किया इसके साथ ही 1824 में चुनाव द्वारा लाड की टूर एप्प्राइजिंग 1841 की सतारा प्राइसिंग और 1844 का गडकरी इसका रिवॉल्यूशन प्रॉमिनेंट है दोस्तों 1824 में आज के अप और हरियाणा ने ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट हथियार उठा लिए थे इसके अलावा 185 में बिलासपुर का विद्रोह 1814 से 17 के बीच अलीगढ़ के तालुकदार का विद्रोह 1842 में जबलपुर के बुंदेला का रिपोर्ट और 1852 में खानदेश में हुआ विद्रोह मेजर रिबेलियंस की कैटिगरी में आते हैं ये तो बात हुई मेजर सिविल रिबेलियंस के कुछ उदाहरणों की अयूब इनका थोड़ा एनालिसिस भी करते हैं एनालिसिस ऑफ सिविल उप्राइजिंग दोस्तों देश के अलग-अलग हसन में हुई 100 से भी ज्यादा इन सिविल उप्राइजिंग में हमें आम लोगों का करेज देखने को मिलता है इससे पता चला है की कैसे ब्रिटिश रूल की शुरुआती सालों से ही इंडिया के लोग इसका विद्रोह करने लगे थे और कैसे इन लोगों ने अपने से शक्तिशाली ब्रिटिश फोर्सेस का सामना किया था दोस्तों लगातार चलने वाले ये रिबेलियंस एक साथ देखने पर मसीव लगता हैं लेकिन अल में यह अपने फैलाव में पुरी तरह लोकल थे और एक दूसरे से आइसोलेटेड थे इन सभी का करैक्टर इसीलिए एक जैसा नहीं था की यह किसी नेशनल या आम एफर्ट को रिप्रेजेंट कर रहे थे बल्कि इसलिए था क्योंकि यह आम कंडीशंस को रिप्रेजेंट करते थे लेकिन समय और जगह फैऊदल लीडर्स बैकवर्ड लुकिंग और ट्रेडिशनल आउटलुक वाले थे जो अभी भी पुरानी दुनिया में र रहे थे मॉडर्न वर्ल्ड की बैंकिंग और अप्रोच से कोसों दूर बस पुराने फॉर्म्स ऑफ रूल और सोशल रिलेशंस को फिर से एस्टेब्लिश करना चाहते थे ब्रिटिश एक करके सभी रेगुलेरियस को शांत कर लेते हैं तो कुछ पुरी तरह खत्म करके उदाहरण के तोर पर वेल थंपी को मृत्यु होने के बाद भी पब्लिकली हैंग किया जाता है जिससे लोगों के मां में एक डर पैदा कर सकें इन सिविल रिबेलियंस का सप्रेशन एक करण बंता है की 1857 की क्रांति का असर साउथ इंडिया और ज्यादातर वेस्टर्न और पूर्वी इंडिया में देखने को नहीं मिलता इनका हिस्टोरिकल साइनिफिकेंस इस बात में है की यह ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट विद्रोह का एक स्ट्रांग और वैल्युएबल लोकल ट्रेडीशन एस्टेब्लिश करते हैं और आजादी के लिए आगे होने वाले संघर्ष में इंडियन के लिए प्रेरणा का एक सोर्स बनते हैं बहुत ही साहस के साथ यह लोग विद्रोह में अपनी भागीदारी देते हैं ट्राईबल लोगों की नाराजगी के कई करण सबसे पहले करण तो यह था की कॉलोनियल एडमिनिस्ट्रेशन ने इनके रिलेटिव आइसोलेशन को खत्म कर दिया था जहां अभी तक ये अपनी कम्युनिटी में पीसफुली र रहे थे इनका मेंस्ट्रीम सोसाइटी से बहुत ज्यादा लिंक नहीं था वहीं ब्रिटिश रूल के आने के बाद ट्राईबल्स को मेंस्ट्रीम एडमिनिस्ट्रेशन के साथ तेजी से जोड़ा जान लगा कुछ जगह पर ब्रिटिशर्स ट्राईबल के को जमींदारा रिकॉग्नाइज्ड कर लेते हैं और लैंड रिवेन्यू का नया सिस्टम इंट्रोड्यूस कर देते हैं ट्राईबल प्रोडक्ट्स पर टैक्स लगा दिया जाता है साथ ही ट्राईबल एरियाज में क्रिश्चियन मिशनरीज का आना भी बहुत बाढ़ जाता है यह लोग ट्रायल्स को कन्वर्ट करने की पुरी कोशिश करते हैं है इसके अलावा ब्रिटिश रूल के दौरान ट्राईबल्स के बीच मनी लैंडर्स ट्रेडर्स रिवेन्यू फार्मर्स जैसे मिडिलमैन की संख्या बहुत अधिक हो जाति है यह लोग सीड्स थे और धीरे-धीरे ट्राईबल्स को डेड के दाल में फंसा कर उनके लैंड पर कब्जा करने लगता हैं इसकी वजह से ट्राईबल पीपल एग्रीकल्चर लेबर्स शेर क्रॉपर्स और टिनेंट्स की पोजीशन में आने लगे थे कॉलोनियलिज्म की वजह से फॉरेस्ट के साथ भी ट्राईबल्स की रिलेशनशिप में चेंज आता है ज्यादातर ट्रबल कम्युनिटी अपनी लाइवलीहुड के लिए फॉरेस्ट रिसोर्सेस पर डिपेंड करते थे लेकिन ब्रिटिश ने इन फॉरेस्ट पर भी अपना कब्जा कर लिया था और ट्राईबल्स के फॉरेस्ट एरिया एक्सेस करने पर रिस्ट्रिक्शंस लगा दिए थे इसके अलावा पुलिसमैन और बाकी ऑफिशल्स के द्वारा शोषण और एक्सपोर्टेशन भी ट्राईबल्स के लिए आम हो गया था रिवेन्यू फार्मर्स और गवर्नमेंट एजेंट ट्राईबल से बेकार यानी की फोर्स अनपेड लेबर का कम भी लिए करती थी लेकिन ट्राईबल कम्युनिटी के पुराने लिविंग सिस्टम को ब्रिटिश रूल ने काफी हद तक डिस्ट्रिक्ट कर दिया था और यही एक आम फैक्टर था सभी ट्रैवलर प्राइस के पीछे और उसके कुछ उदाहरण को देखते हैं मैथर्ड ऑफ ट्रबल रिवार्ड्स और एग्जांपल्स दोस्तों ज्यादातर ट्रबल एप्प्राइजिंग ब्रेड बेस्ड होती थी इनमें हजारों की संख्या में ट्रबल्स भाग लेते थे रिबेलीयन तब शुरू होता था जब ट्राईबल्स शोषण से पुरी तरह दुखी हो जाते थे और उन्हें लगता था की अब उनके पास फाइट करने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं बच्चा है विद्रोह के दौरान आउटसाइडर्स जैसे की मनी लैंडर्स जमींदार गवर्नमेंट ऑफिशल्स पर अटैक किया जाता था उनकी प्रॉपर्टी को लूट जाता था और उन्हें गांव से बाहर कर दिया जाता था कई जगह पर ट्रबल रिवार्ड्स को रिलिजियस ने लीड किया था जिन्हें मसीह बोला जाता था यह लोग क्लेम करते थे की इनके पास मैजिकल पावर्स हैं जिनकी हेल्प से यह ब्रिटिशर्स को हर सकते हैं इनकी खाने पर बड़ी संख्या में ट्रबल मैसेज विद्रोह से जुड़ जाते थे हालांकि ट्राईबल्स और ब्रिटिशर्स का मुकाबला बराबरी का नहीं था एक तरफ सभी मॉडर्न वेपंस के साथ ट्रेन आर्मी हुआ करती थी तो दूसरी तरफ हाथ में पत्थर भला कुल्हाड़ी जैसे हथियार लिए ट्रेवल्स इस अनइक्वल वाॅरफेयर में लाखों की संख्या में ट्रबल्स अपनी लाइफ सैक्रिफिस करते हैं दोस्तों मेजर ट्रबल रिवार्ड्स के कुछ एग्जांपल इस तरह पहले ट्रबल रिबेलीयन 1768 में बंगाल में हुआ था इसे चौर रिबेलीयन कहा जाता है इसके अलावा बंगाल में ही 1783 का रंगपुर रबालियां वेस्टर्न महाराष्ट्र में सेवाराम की लीडरशिप में 1825 का भी रिपोर्ट छोटा नागपुर एरिया में हुई 1832 की कला प्राइस और 1855 का संथाल होल इंपॉर्टेंट है ट्रबल रिवार्ड्स को और अच्छे से समझना के लिए 21 स्टडी देखते हैं सबसे बड़े ट्रबल रिवॉर्ड कहे जान वाले संथाल फूल की दोस्तों संथाल्स भागलपुर और राजमहल के बीच के एरिया में रहते थे इसे दमन ए को कहा जाता था ब्रिटिश रूल के आने के बाद इनके एरिया में आउटसाइडर यानी की दिखेयूज इंटर करते हैं और संथाल्स का शोषण शुरू हो जाता है जमीन दर्ज मनी लैंडर्स और ब्रिटिश ऑफिशल्स की वजह से संथाल्स की लाइफ बदलने लगती है इनके ऊपर हैवी टैक्स लगा दिए जाते हैं जमींदारा और गवर्नमेंट ऑफिशल्स तरह-तरह के एक्सप्लोजंस करने लगता हैं लोन लेने पर 50 से 500% तक के हाय इंटरेस्ट रेट चार्ज किया जाते हैं अलग-अलग त्रिकोण से संथाल्स की प्रॉपर्टी पर कब्जा करना शुरू हो जाता है मार्केट और हार्ट में इन्हें धोखा देकर ज्यादा वसूली की जाति है इस तरह के शोषण और अत्याचारों से परेशान होकर विद्रोह करने पर मजबूर होते हैं 1854 में ट्रबल हिट्स यानी की माजीस और परगनास मिलकर विद्रोह के बड़े में प्लानिंग करने लगता हैं जमींदारा और मनी लैंडर्स को लूटने की कुछ घटनाएं भी शुरू हो जाति हैं 30 जून 1855 को ट्राईबल लीडर्स भाग निधि विलेज में करीब 6000 साल की असेंबली बुलेट हैं यह 400 विलेज को रिप्रेजेंट करती है यहां पर रिवॉल्ट का बैनर रेस करने और आउटसाइडर्स को बाहर करने का फैसला लिया जाता है सिद्धू और कानून से हथियार उठाने और आजादी के लिए फाइट करने को कहा है लीडर्स संथाल मां और वूमेन को बड़ी संख्या में मोबिलाइज करना शुरू करते हैं इसके लिए गांव-गांव में प्रशासन निकले जाते हैं जल्द ही 60000 संथाल इन्हें जॉइन कर लेते यह लोग 1500 से 2000 के बैंड्स बनाकर जमींदारा और महाजनस पर हमला शुरू कर देते हैं इनके घर पुलिस स्टेशन रेलवे कंस्ट्रक्शन साइट्स पोस्ट करियर्स एडसेटरा पर अटैक किया जाता है खाने का मतलब यह है की दिकू एक्सप्लोइटेशन और कॉलोनियल पावर के सभी सिंबल्स पर अटैक होता है जैसे ही ब्रिटिश गवर्नमेंट को रिबेलीयन के बड़े स्टार के बड़े में पता चला है वह इनके विरुद्ध मिलिट्री कैंपेन लॉन्च कर देती है आर्मी की 10 से भी ज्यादा रेजीमेंट को बुलाया जाता है और विद्रोह के नेताओं को पकाने के लिए 10000 रुपए तक के इनाम की घोषणा कर दी जाति है बहुत ही कुर्ता के साथ संथाल्स के विद्रोह को ढाबा दिया जाता है 15000 से ज्यादा संथाल्स की हत्या कर दी जाति है 10 से भी ज्यादा गांव को पुरी तरह तबाह कर दिया जाता है सिदो को पड़कर अगस्त 1855 में मार दिया जाता है वहीं कानून फरवरी 1856 में विद्रोह के बिल्कुल अंतिम पड़ाव में एक्सीडेंट के जारी पकड़े जाते हैं राजमहल हिल्स पुरी तरह संथाल के खून में नहा चुके होते हैं संथाल उसने बहुत ज्यादा साहस का परिचय दिया और आखरी दम तक सुरेंद्र नहीं किया जाता है कंक्लुजन तो दोस्तों यह थी 1857 से पहले के कुछ मेजर सिविल और ट्रबल रिबेलियंस की कहानी इससे पता चला है की 1857 की क्रांति अचानक से नहीं हुई थी उसके पीछे ब्रिटिश डोमिनेशन के अगेंस्ट विद्रोह करने की एक लंबी हिस्ट्री रही थी फर्क बस इतना था की 1857 से पहले के ज्यादातर विद्रोह का स्टार लोकल या रीजनल रहा था जबकि 1857 की क्रांति काफी बड़े स्टार पर हुई थी प्रेजेंट मूवमेंट्स दोस्तों इंडिया में ब्रिटिश रूल के एस्टेब्लिशमेंट के बाद बहुत से पॉलीटिकल इकोनामिक और एडमिनिस्ट्रेटिव चेंज हुए थे और इन चेंज का सबसे ज्यादा इफेक्ट हमें इंडियन प्रेजेंस पर देखने को मिलता है बादल जाति है हर लेवल पर उनका शोषण होने लगता है और जब इस शोषण का लेवल्स के टोलरेंस लेवल को पर करता है तो वो इसके अगेंस्ट विद्रोह या आंदोलन करते हैं आज के वीडियो में हम ऐसे ही कुछ इंपॉर्टेंट मोमेंट्स की चर्चा करेंगे सबसे पहले इनकी पीछे की जनरल कॉसेस को समझते हैं दोस्तों ब्रिटिश रूल के समय इंडिया का एग्रेरियन स्ट्रक्चर पुरी तरह बादल जाता है इसके बहुत से करण देखें जा सकते हैं जैसे की ब्रिटिश की इकोनामिक पॉलिसी उनके द्वारा किया गया इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स का री जिसकी वजह से लैंड पर प्रेशर बढ़ता है नई लैंड रिवेन्यू सिस्टम और कॉलोनियल एडमिनिस्ट्रेटिव और जुडिशल सिस्टम को हाय रेंज लीगल न्यूज़ पोस्ट अफेक्शंस और अनपेड लेबर जैसी प्रॉब्लम्स फेस करनी पड़ती थी वही एरियाज में खुद गवर्नमेंट ने बहुत हाय रिवेन्यू रेट फिक्स किया हुआ था जिसे चुकाने के लिए किसान अक्सर लोकल मनी लैंडर से हेल्प लेने को मजबूर होते थे और यह किसने को बहुत हाय इंटरेस्ट रेट पर पैसे उधर दिए जाते थे जिसके लिए किसान अपनी जमीन और कैथल को गिरवी रखते थे और जब यह लोन नहीं चुका पाते थे तो गिरवी राखी गई प्रॉपर्टी मनी दूर की हो जाति थी इस तरह धीरे-धीरे बहुत बड़े एरियाज पर एक्चुअल सिर्फ 10 इंच शेर क्रॉपर्स और लैंडलेस लेबर्स में तब्दील हो गए थे किसान अक्सर इस शोषण का विरोध करते थे और कई बार इन हालातो से परेशान होकर किसान क्राइम का रास्ता भी चुन लेते थे क्योंकि भूखे करने से तो वही रास्ता अच्छा नजर आता था इसलिए कुछ किसान रोबरी डेकोरेटिव और सोशल बांडेटरी जैसी एक्टिविटीज में भी इंवॉल्वड होते दिखते हैं और एक दूसरा रास्ता था साथ मिलकर विद्रोह करना जिसके कुछ एग्जांपल्स को आज हम डिस्कस करने वाले हैं प्रेजेंट मूवमेंट्स को हम दो कैटिगरीज में डिवाइड कर सकते हैं 1859 में हुए इंडिगो रिपोर्ट की इंडिगो रिवॉल्ट 185960 इंडिगो रिवॉल्ट यह नील विद्रोह 185960 के बीच बंगाल में हुआ था यहां किसने ने यूरोपीय प्लांटर्स के खिलाफ विद्रोह किया था जो उन्हें इंडिगो यानी की नील की खेती करने के लिए फोर्स करते थे बंगाल में इंडिगो का कल्टीवेशन 1780 के अराउंड शुरू हो गया था उसे समय इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन की वजह से यूरोप में इंडिगो की डिमांड काफी हाय रहती थी क्योंकि इस ब्लू दी का उसे टेक्सटाइल इंडस्ट्री में किया जाता था इसी का फायदा उठाने के लिए यूरोपियन प्लांटर्स इंडिया में इंडिगो कल्टीवेशन करवाते थे कल्टीवेशन अपनी जमीन पर ही इंडिगो कल्टीवेट करते थे और सिस्टम में प्लांटर्स बंगाल के किसने की जमीन पर इंडिगो की खेती करते थे है इसके लिए यह किसने के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन करते थे और उन्हें एडवांस लोन ऑफर करते थे यह पूरा सिस्टम बहुत ही ऑपरेशन हुआ करता था किसान को उसकी सबसे अच्छी जमीन पर इंडिगो गो करनी पड़ती थी इसके अलावा प्लांटर्स इनके प्रोड्यूस का बहुत ही कम रेट ऑफर करते थे जी वजह से किसान ना तो कभी इनका लोन रिपेयर कर पाते थे और ना ही इस सिस्टम से खुद को बाहर कर पाते थे गवर्नमेंट अथॉरिटी और रूल्स भी प्लांटर्स को ही फीवर करते थे इस शोषण से परेशान होकर 1859 में बंगाल के नदिया जिला के प्रेजेंस इंडिगो कल्टीवेट करने से माना कर देते हैं इन्हें लीड कर रहे थे दो भाई दिगंबर विश्वास और विष्णु विश्वास और जब प्लांटर्स इन्हें फोर्स करने के लिए अपने लाठील्स भेजते हैं तो यह उनके ऊपर काउंटर अटैक कर देते हैं बंगाल की एजुकेटेड क्लास भी इस आंदोलन में इंपॉर्टेंट रोल प्ले करती है न्यूज़ पेपर कैंपेन मास मीटिंग्स और पीजेंस के ग्रीवेंस पर मेमोरंडा तैयार करके इनके कैसे को सपोर्ट किया जाता है दीनबंधु मित्र अपने प्ले नील दर्पण के जारी किसने की मिसरेबल कंडीशन को हाईलाइट करते हैं और ये रिवॉल्ट के लिए एक इंपॉर्टेंट सोर्स ऑफ इंस्पिरेशन बन जाता है आंदोलन को तीव्र होता देख ब्रिटिश गवर्नमेंट एक नोटिफिकेशन इशू करती है जिसमें कहा जाता है की रेट अपनी जमीन पर अपनी पसंद की क्रॉप गो करने के लिए फ्री हैं और पुलिस का कम है की उनके इस राइट को प्रोटेस्ट किया जाए अगर प्लांटर्स को लगता है की किसी ने कॉन्ट्रैक्ट को ब्लीच किया है तो वो सिविल कोर्ट में अपील कर सकते हैं इसके अलावा 1860 में इंडिगो कमीशन भी अप्वॉइंट की जाति है और इसकी रिकमेंडेशन को 1860 के एक्ट सिक्स में शामिल किया जाता है इसके बाद इंडिगो प्लांटर्स धीरे-धीरे बंगाल से बिहार और उत्तर प्रदेश की तरफ मूव कर जाते हैं इंडिगो रिवॉल्ट के बाद अब बात करते हैं बंगाल में ही हुए एक और आंदोलन 1870 और 1880 के दौरान पूर्वी बंगाल के एक बड़े हिस में एग्रेरियन अनरेस्ट देखने को मिलता है इसका मुख्य करण जमींदारा की ऑपरेसिव प्रैक्टिस थी जमींदार्ज अक्सर लीगल लिमिट से ज्यादा रिवेन्यू डिमांड करते थे इसके अलावा 1859 के रेंट एक्ट 10 के अनुसार किसने को ऑक्युपेंसी राइट्स भी नहीं लेने देते थे एक्ट के अनुसार अगर लगातार 12 साल तक कोई किसान सिम प्लॉट ऑफ लैंड को कल्टीवेट करता है तो उसे लैंड के ऑक्युपेंसी राइट्स दिए जान थे लेकिन जमींदार जैसा बिल्कुल नहीं जाते थे और इसीलिए वो अक्सर फोर्सफुली किसने को जमीन से लिखल कर देते थे उनकी फसल और कैटल को साइज कर लेते थे और कोर्ट में लिटिगेशन भी फाइल कर देते थे जो काफी लंबा चलते थे और किसान के लिए महंगे साबित होते थे है इस सबसे परेशान होकर पावना जिला के युसूफ शाही परगना के किसान एग्रेरियन लीग की फॉर्मेशन करते हैं लेग रेंट स्ट्राइक ऑर्गेनाइजर करती है यानी की किसान बड़ा हुआ रिवेन्यू देने से माना कर देते हैं और जमींदारा को कोट्स में चैलेंज करते हैं कोर्ट के इसको फाइट करने के किसान फंड जमा करते हैं इनका संघर्ष पूरे भावना और पूर्वी बंगाल के कुछ और डिस्ट्रिक्ट तक फेल जाता है यहां स्ट्रगल का में फॉर्म लीगल रेजिस्टेंस ही राहत है और इसीलिए बहुत कम वायलेंस देखने को मिलती है किसने का संघर्ष वैसे तो 1885 तक चला राहत है लेकिन ज्यादातर केसेस थोड़ा ऑफिशल परसूएसन और थोड़ा जमींदार के डर की वजह को ऑक्युपेंसी राइट्स मिल जाते हैं और बड़ा हुआ रेंट भी नहीं चुकाना पड़ता इसके अलावा गवर्नमेंट जमींदारा के ऑपरेशन को प्रोटेस्ट करने के लिए कानून बनाने का प्रॉमिस भी करती है किया जाता है पबन रिवॉल्ट के दौरान भी बहुत सी इंडियन इंटेलेक्चुअल ने पेजयंस कैसे को सपोर्ट किया था इसमें बंकिम चंद्र चटर्जी आरसी डेट और सुरेंद्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में इंडियन संगठन शामिल थी पूर्वी रीजन के बाद अब चलते हैं वेस्टर्न इंडिया की तरफ डेक्कन राय वेस्टर्न इंडिया के डेक्कन रीजन में ब्रिटिश वादी सिस्टम इंट्रोड्यूस किया था यहां के किसान इस सिस्टम के तहत लगाएं गए हैवी टैक्सेशन से परेशान थे जिसके करण वो मनी लैंडर की दाल में फैंस चुके थे यह मनी लैंडर्स ज्यादातर आउटसाइडर्स थे और मारवाड़ी और गुजराती कम्युनिटी को बिलॉन्ग करते थे 1864 में अमेरिकन सिविल वार खत्म होने के बाद सिचुएशन और खराब हो जाति है क्योंकि अमेरिका से एक बार फिर कॉटन की सप्लाई होने लगती है और इसलिए कॉटन के दम काफी गिर जाते हैं ऐसे समय में 1867 में गवर्नमेंट लैंड रिवेन्यू को भी 50% तक बड़ा देती है और साथ ही कई साल लगातार यहां के किसान क्रॉप फेलियर का सामना करते हैं इन सब के करण किसान की कंडीशन और ज्यादा खराब होने लगती है 1874 में मनी लैंडर्स और किसने के बीच टकराव बहुत बाढ़ जाता है और किसान आउटसाइड मूवमेंट शुरू कर देते हैं यह लोग उनकी शॉप से समाज लेना बैंड की जमीन को कल्टीवेट नहीं करता और गांव के बाबर्स वाशमान श मार्क्स भी इन्हें सर्व करने से माना कर देते ही पुणे अहमदनगर सोलापुर और सतारा के गांव तक फेल जाता है और उसके बाद सोशल बॉयकॉट एग्रेरियन राइट्स में ट्रांसफार्मर होने लगता है मनीलेंडर के घर और दुकान पर अटैक शुरू हो जाते हैं किसान नेट बैंड और डीडीएस को अपने कब्जे में लेकर इन्हें पब्लिकली जल देते हैं लेकिन गवर्नमेंट फोर्स का उसे करके मूवमेंट को सरप्राइज करने में सफल रहती है [संगीत] इस आंदोलन के दौरान भी महाराष्ट्र के इंटेलिजेंस आने किसने को सपोर्ट किया था दोस्तों 19 सेंचुरी के कुछ इंपॉर्टेंट प्रेजेंट मूवमेंट को दो हमने डिस्कस कर लिया आई अब इनके फीचर्स को समझ लेते हैं करैक्टेरिस्टिक फीचर्स ऑफ 19 सेंचुरी प्रेजेंट मोमेंट्स 19th सेंचुरी के दौरान हुए किसान आंदोलन में पिजेंसी में फोर्स बनकर उभरते हैं यह लोग डायरेक्टली अपनी डिमांड्स के लिए फाइट करते दिखते हैं और इनकी ज्यादातर डिमांड इकोनामिक इश्यूज से संबंधित थी यह आंदोलन किसान की इमीडिएट एनीमीज के अगेंस्ट डायरेक्टेड थे फिर चाहे वो फॉरेन प्लांटर्स हो इंडिजन जमींदारा हो या फिर मनीलेंडर इसके अलावा आंदोलन की ऑब्जेक्टिव्स भी स्पेसिफिक और लिमिटेड ही थे यह सिर्फ कुछ पर्टिकुलर ग्रीवेंस का ही रिड्रेसल चाहते थे इन्होंने डायरेक्ट कॉलोनियलिज्म को टारगेट नहीं किया था और एक्सप्लोइटेशन या सबोर्डिनेशन के सिस्टम को खत्म करना था इन आंदोलन की टेरिटोरियल रिच भी लिमिटेड थी संघर्ष में कोई कंटिन्यूटी या फिर लॉन्ग टर्म ऑर्गेनाइजेशन भी देखने को नहीं मिलता अपने लीगल राइट्स के प्रति स्ट्रांग अवेयरनेस डेवलप करते हैं और इन्हें कोट्स के बाहर और अंदर असार भी करते हैं किसान आंदोलन के फीचर्स को समझना के बाद इनकी कुछ लिमिटेशंस भी जान लेते हैं लिमिटेड या फिर नया सोशल इकोनामिक और पॉलीटिकल प्रोग्राम भी नहीं था यह संघर्ष मिलिटेंट होते हुए भी ओल्ड सोसाइटल ऑर्डर के फ्रेमवर्क में ही हुए थे और उनके पास और टर्निंग सोसाइटी को लेकर किसी भी तरह का कॉन्सेप्ट नहीं था है लेकिन 20th सेंचुरी के प्रेजेंट मूवमेंट्स नेशनल फ्रीडम स्ट्रगल से डिपलाई इन्फ्लुएंस भी थे और इनका इंपैक्ट भी फ्रीडम स्ट्रगल पर देखने को मिलता है तो आई अब इनके बड़े में बात करते हैं 20th सेंचुरी प्रेजेंट मूवमेंट्स 20th सेंचुरी के प्रेजेंट मूवमेंट्स में सबसे पहले गांधीजी द्वारा लीड 1917 का चंपारण सत्याग्रह और 1918 का खेड़ा सत्याग्रह आते हैं इन्हें हमने गांधी जी के इनिशियल मूवमेंट के वीडियो में कर किया हुआ है इसके अलावा इस दौरान किसान सभा मूवमेंट भी शुरू होता है आई उसके बड़े में जानते हैं अप में ऑर्गेनाइजर किया जाता है फरवरी 1918 में गौरी शंकर मिश्रा और इंद्र नारायण द्विवेदी यूनाइटेड प्रोविंस किसान सभा सेट अप करते हैं मदन मोहन मालवीय भी इनके एफर्ट्स को सपोर्ट करते हैं इसके साथ हिंगोली सिंह दुर्गापाल सिंह और बाबा रामचंद्र जैसे प्रॉमिनेंट लीडर्स भी जुड़ने हैं जून 1920 में बाबा रामचंद्र नेहरू जी से यहां के गांव को विजिट करने के लिए कहते हैं फिर अक्टूबर 1920 में अवध किसान सभा की फॉर्मेशन होती है यह किसने से कहते हैं की वो बेदखली लैंड को तिल ना करें और साथ ही बगर यानी की उन पेड़ लेबर ऑफर ना करने का भी सुझाव देते हैं जो लोग इन कंडीशंस को नहीं मानते उनका बॉयकॉट किया जाता है और सभी डिस्प्यूट को पंचायत के द्वारा सॉल्व किया जाता है किसान सभा पहले मास मीटिंग्स और मोबिलाइजेशन के द्वारा ही प्रोटेस्ट करती हैं लेकिन जैनुअरी 1921 में यह पैटर्न चेंज हो जाता है और बाजार घर और अनाज गोदाम को लूटना शुरू कर दिया जाता है एक्टिविटी के मेजर सेंटर रायबरेली फैजाबाद और सुल्तानपुर के जिला थे लेकिन यह आंदोलन जल्दी ही डिक्लिन हो जाता है से लेकिन कुछ समय बाद ही अप में एक और किसान आंदोलन शुरू हो जाता है टीका मूवमेंट 1921 के और में एक बार फिर अप के नॉर्दर्न डिस्ट्रिक्ट जैसे की हरदोई बहराइच और सीतापुर में प्रेजेंट डिस्कंटेंट दिखने लगता है इसके पीछे कई करण थे जैसे की हाय रेंज जो की रिकॉर्डिंग रेट से 50% ही था रिवेन्यू कलेक्शन के इंचार्ज द्वारा किसने का शोषण और शेर रेंस की प्रैक्टिस इसके अगेंस्ट शुरू होता है एक आया यूनिटी मूवमेंट इसको लीडरशिप देते हैं मदारी पासी और बाकी के लोगास्ट लीडर बहुत से छोटे जमीदार भी इनका साथ देते हैं इसकी मीटिंग्स में किसने को प्रतिज्ञा दिलाई जाति है की वो सिर्फ रिकॉर्ड रिवेन्यू को ही पे करेंगे अपनी जमीन से बेदखल किया जान पर वहां से नहीं जाएंगे फोर्स लेबर से इनकार करेंगे और पंचायत के डिसीजंस का पालनपुर करेंगे आंदोलन काफी तेजी से फैलता है लेकिन अथॉरिटी द्वारा सीवर रिप्रेशन के करण मार्च 1922 तक इस आंदोलन का भी और हो जाता है नॉर्थ के बाद अब चलते हैं सदन रीजन की तरफ जहां किसान आंदोलन नेशनल मूवमेंट के साथ मौज होता है मैपिला रिवॉल्ट मैपिलर्स मालाबार रीजन में रहने वाले मुस्लिम टिनेंट्स थे और यहां ज्यादातर जमींदारा हिंदू में भी जमींदारा के द्वारा किया जा रहे शोषण का विरोध किया और बाकी के शोषणकारी इलीगल डिमांड जाते थे 1920 में लोकल कांग्रेस बॉडी टैलेंट लैंडलॉर्ड रिलेशनशिप को रेगुलेट करने के लिए गवर्नमेंट से लेजिसलेशन लाने की डिमांड करती है इससे माप्पिलास का भी हौसला बढ़ता है और जल्दी ही इनका आंदोलन उसे समय चल रहे खिलाफत एजीटेशन के साथ मर्ज हो जाता है खिलाफत आंदोलन के नेता जैसे की गांधीजी शोकत अली और मौलाना आजाद मैपिलाज की मीटिंग्स को एड्रेस करते हैं नेशनल लीडर्स के अरेस्ट के बाद लीडरशिप लोकल मैपिला लीडर्स के हाथ में ए जाति है अगस्त 1921 में सिचुएशन खराब होने लगती है क्योंकि इनके एक लीडर अली मसलिया को अरेस्ट कर लिया जाता है जिसके बाद बड़े शुरू हो जाते हैं शुरुआत में तो ब्रिटिश अथॉरिटी के सिंबल्स को टारगेट किया जाता है लेकिन बाद में रिबेलीयन पुरी तरह अपना करैक्टर चेंज कर लेट है शुरू कर देते हैं क्योंकि इन्हें लगता है है और एक एंटी गवर्नमेंट और एंटी लैंडलॉर्ड आंदोलन कम्युनल होने लगता है इसके बाद गवर्नमेंट अपनी पुरी ताकत के साथ इसको सरप्राइज करने में ग जाति है और दिसंबर 1921 तक आंदोलन पुरी तरह खत्म हो जाता है मैपिलाज को इस तरह से प्रेस किया गया की आजादी तक उन्होंने फिर किसी आंदोलन में भाग नहीं लिया आई अब 28 सेंचुरी के दौरान हुए बाकी के प्रेजेंट मूवमेंट्स और उनसे रिलेटेड डेवलपमेंट को ब्रीफ में देखते हैं अगर इंपॉर्टेंट डेवलपमेंट्स दोस्तों 28th सेंचुरी के प्रेजेंट मूवमेंट में बारडोली सत्याग्रह भी आता है यह 1926 में गुजरात के बारडोली जिला में शुरू हुआ था यहां किसान लैंड रिवेन्यू में की गई 30% की बढ़ोतरी का विरोध कर रहे थे इसे सरदार वल्लभभाई पटेल ने ही उन्हें सरदार का टाइटल दिया था आंदोलन तेज होने पर ब्रिटिश गवर्नमेंट एक कमेटी सेटअप करती है जिसमें रिवेन्यू हाय को ऊंजस्ट पाया जाता है और सिर्फ 6.03% का ही इंक्रीज किया जाता है है इसके अलावा अप्रैल 1936 में लखनऊ में जो इंडिया किसान सभा फॉर्म की जाति है स्वामी सहजानंद सरस्वती इसके प्रेसिडेंट बनते हैं और ग रंग जनरल सेक्रेटरी किसान मेनिफेस्टो इशू किया जाता है और इंदु लाल याग्निक के अंदर प्रिडिकल भी शुरू किया जाता है इसके अलावा आजादी मिलने से ठीक पहले भी कुछ पेशेंट मूवमेंट्स देखने को मिलते हैं जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी का रोल बहुत ज्यादा राहत है पहले था 1946 में बंगाल में हुआ तेभागा मूवमेंट यहां बंगाल प्रोविंशियल किसान सभा स्टूडेंट गांव जाकर शेर क्रॉपर्स को ऑर्गेनाइजर करते हैं लेकिन जल्दी ही ये आंदोलन कमजोर हो जाता है इसके पीछे कुछ मुख्य करण थे जैसे की मुस्लिम लीग की मिनिस्ट्री द्वारा बार्गधारी विला अनाउंस करना जिसमें रेंट पे कुछ रिलीफ ऑफर की गई थी दूसरा आंदोलन जुलाई 1946 में शुरू हुआ था इसे तेलंगाना मूवमेंट बोला जाता है यह मॉडर्न इंडियन हिस्ट्री का सबसे बड़ा प्रेजेंट गोरिल्ला वार था इसका इफेक्ट 3000 गांव और लगभग 30 लाख लोगों पर हुआ था यहां कम्युनिस्ट के नेतृत्व में निजाम की रजाकार फोर्स का बहादुर से सामना करते हैं और लगभग 2 साल तक अपना संघर्ष जारी रखते हैं 1948 में इंडियन सिक्योरिटी फोर्सेस द्वारा हैदराबाद की टेकओवर के बाद ये आंदोलन धीरे-धीरे खत्म हो जाता है कंक्लुजन दोस्तों इस तरह प्रेजेंट मूवमेंट्स के द्वारा इंडिया के किसने ने ब्रिटिश अथॉरिटी को लगातार चैलेंज किया था शुरुआत में भले ही इनके टारगेट्स में सिर्फ इमीडिएट ऑपरेशंस हो लेकिन बाद में यह डायरेक्टली ब्रिटिश कॉलोनियल रूल का विरोध करते दिखते हैं इन्होंने नेशनल मूवमेंट को भी अपनी प्रेजेंट से स्ट्रेंजर किया किसने के पार्टिसिपेशन के बिना नेशनल मूवमेंट कभी सफल नहीं हो सकता था यह बात गांधीजी बहुत अच्छी तरह समझते थे और इसीलिए उन्होंने पैसों को डायरेक्टली नेशनल मूवमेंट से जोड़ने का कम किया प्रेजेंट मूवमेंट्स ने पोस्ट इंडिपेंडेंस एग्रेरियन रिफॉर्म्स का एटमॉस्फेयर भी क्रिएट किया जैसे की आजादी के बाद जमींदारी सिस्टम को अबॉलिश कर दिया जाता है और भी बहुत साड़ी रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस किया जाते हैं जो कहानी ना कहानी आजादी से पहले प्रेजेंट मूवमेंट की डिमांड रहे थे डी रिवॉल्ट 1857 पार्ट वन दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं 1857 के रिवॉल्ट की जिसे सिपाही मुटनी क्रीलिन या फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस जैसे नाम से भी जाना जाता है 10th में 1857 को मेरठ से और यह धीरे-धीरे नॉर्थ में पंजाब से लेकर साउथ में नर्मदा तक और ईस्ट में बिहार से लेकर वेस्ट में राजपूताना रीजन तक को कर कर लेट है रिवॉल्ट की डीटेल्स में जान से पहले इसके पीछे के करण समझना जरूरी हो जाता है तो आई पहले उन्हें समझते हैं कोई एक करण नहीं बल्कि बहुत से करण जिम्मेदार थे यह रिपोर्ट नतीजा था ब्रिटिश कॉलोनियल रूल के 100 साल के अत्याचारों जी हां 1757 की बैटल ऑफ प्लासी के बाद इंडिया में ब्रिटिश कॉलोनियल रूल की शुरुआत हुई थी और तब से लेकर 1857 आने तक ब्रिटिश ने बहुत से ऐसे कम किया थे जिसकी वजह से इंडिया के लोगों में उनके खिलाफ आक्रोश पैदा हो रहा था इस आक्रोश कोचिंग गाड़ी मिलती है 1857 में और शुरुआत होती है इंडिया के फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस की आई पहले आक्रोश के अलग-अलग कर्म को समझते हैं सबसे पहले बात करते हैं पॉलीटिकल ज्ञानी की राजनीति कर्म की पॉलीटिकल कॉसेस दोस्तों ब्रिटिश इंडिया कंपनी इंडिया में अपनी पावर और प्रेस्टीज को बढ़ाने के लिए जो कुछ भी पॉसिबल था कर रही थी इसके लिए चाहे उसे अपने प्रोमाइज को तोड़ना पड़े या फिर क्यूटिस को डिसऑर्डर करना पड़े इसकी वजह इंडियन रुलर्स को उनकी इंटेंशंस पर डाउट होने लगा था और जब ब्रिटिश सब्सिडियरी एलाइंस और फिर डॉक्टरी नवलप्स जैसी पॉलिसी के तहत इंडियन स्टेटस को एनएक्स करना शुरू कर देते हैं तब जैसे पानी सर से ऊपर ही चला जाता है सभी इंडियन रुलर्स के मां में यह डर ए जाता है की अगला नंबर उनका ही हो सकता है यही वजह थी की बहुत से इंडियन रुलर्स 1857 के रिवॉल्वड के समय ब्रिटिश के खिलाफ हथियार उठा लेते हैं अब बात करते हैं इकोनामिक कॉसेस दोस्तों ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का में मोटिव तो इंडिया में ज्यादा से ज्यादा प्रॉफिट ऑन करना ही था इसके लिए तरीके उन्होंने अलग-अलग इस्तेमाल से इंडिया की ट्रेडिशनल इकोनामी पुरी तरह से डिस्ट्रॉय होने लगती है ऐसी कोई इकोनामिक क्लास नहीं थी जिसे ब्रिटिश रूल में नुकसान नहीं हुआ चाहे फिर वो बैगन सो मर्चेंट हूं आर्टिजंसू या फिर जमीदार ही क्यों ना हो ब्रिटिशर्स ने जो लैंड रिवेन्यू सिस्टम इंडिया में इंट्रोड्यूस किया थे जैसे की परमानेंट सेटलमेंट रियट वादी सिस्टम या महालवाड़ी सिस्टम सभी में रिवेन्यू रेट्स इतने ही रखें गए थे की प्रेजेंस की कंडीशन मिसिबल हो जाति है रिवेन्यू चुकाने के लिए उन्हें कर्ज लेने की जरूर पढ़ने लगती है और इस तरह वो धीरे-धीरे मनी लैंडर्स के दाल में फंसे लगता हैं इसके साथ ही एग्रीकल्चर के बढ़ते कमर्शियल ने भी प्रेजेंस की हालात खराब कर दी थी इसी तरह ट्रेडिशनल कम जमींदारा को भी रिवेन्यू चुकाने में डर होने पर सनसेट क्लोज़ की वजह से कई बार अपनी जमींदारी से हाथ धोना पड़ता था एग्जांपल के तोर पर अवध में 21000 ताल्लुकदर्स जो की वहां की जमींदारा को कहा जाता था उनकी स्टेटस को कन्फ्यूज्ड कर लिया गया था इसी तरह इंडियन ट्रेड और मर्केंटाइल क्लास को भी ब्रिटिश पॉलिसीज की वजह से नुकसान हो रहा था ब्रिटिशर्स ने इंडिया के गुड्स पर तो हाईटेक ड्यूटीज इंपोज कर दी थी जबकि इंडिया में ब्रिटिश गुड्स के इंपोर्ट पर बहुत ही लो टैरिफ रखें हुए थे इसकी वजह से इंडिया से कॉटन और सिल्क टैक्सटाइल्स का एक्सपोर्ट पुरी तरह खत्म होने की कागर पर ए गया था आर्टिजंस और हैंडीक्राफ्ट के लोगों को भी अनइंप्लॉयमेंट का सामना करना पद रहा था इंडियन रुलर्स जो इन्हें पैट्रिक देने का कम करते थे उनके स्टेटस को तो ब्रिटिशर्स ने अलेक्स कर लिया था इसके साथ ही इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स को डिस्चार्ज करके ब्रिटिश गुड्स को प्रमोट किया जा रहा था जिसके परिणाम स्वरूप इंडियन आर्टिजंस अपा के लिए कोई दूसरा रास्ता खोजना पर मजबूर हो गए थे और वो मिलन भी बहुत मुश्किल हो रहा था क्योंकि मॉडर्न इंडस्ट्रीज का डेवलपर भी इंडिया में नहीं हो रहा था इस तरह से ब्रिटिश की शोषणकारी आर्थिक नेशन के करण इंडिया के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही थी और ये एक बहुत बड़ा करण बंटी है 1857 के रिपोर्ट का आई अब बात करते हैं कुछ एडमिनिस्ट्रेटिव कर्म की एडमिनिस्ट्रेटिव कोर्सेज दोस्तों कंपनी के एडमिनिस्ट्रेशन में बहुत ज्यादा करप्शन फैला हुआ था जिसकी वजह से आम लोग बहुत परेशान थे इसके साथ ही कंपनी का एडमिनिस्ट्रेशन इंडिया के लोगों के लिए एकदम फौरन था कंपनी के साथ किसी भी तरह का कोई रिलेशन लोग महसूस नहीं कर पाते थे साथ ही एडमिनिस्ट्रेशन की भाषा और दूर तरीके भी उनके लिए समझना मुश्किल हो रहा था कोई भी नहीं था इस वजह से भी लोगों में ब्रिटिश रूल के खिलाफ असंतोष की भावना बनी हुई थी अब बात करते हैं कंपनी के खिलाफ पैदा हुए आक्रोश के पीछे के कुछ सोशल रिलिजियस कॉसेस की सोशल रिलिजियस कोर्सेज दोस्तों ब्रिटिशर्स कभी भी इंडियन को अपने बराबर का नहीं समझते थे उनके एटीट्यूड में रेसिजम और सुपीरियर परिसर भारत हुआ था इसकी वजह से एक आक्रोश तो लोगों में था ही इसके साथ ही ब्रिटिशर्स बहुत सी ऐसी सोशल रिलिजियस पॉलिसी फॉलो करते हैं जिसकी वजह से ये आक्रोश और भी ज्यादा बढ़ाने लगता है इसमें सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है क्रिश्चियन मिशनरीज की एक्टिविटी वो अलग-अलग त्रिकोण से इंडिया के लोगों को कन्वर्ट करने की कोशिश कर रहे थे जिसकी वजह से लोग उन्हें एक खतरे की तरह देखने लगे थे इसके साथ ही ब्रिटिशर्स भी ऐसे कुछ कानून बनाते हैं जिससे लोगों को विश्वास होने लगता है की ब्रिटिश उनके रिलिजन को चैलेंज कर रहे हैं इसके एग्जांपल्स हैं मंदिर और मस्जिद की जमीन पर टैक्स लगाने का डिसीजन 1856 का रिलिजियस डिसेबिलिटीज एक्ट जिसमें कहा गया था की रिलिजन चेंज करने पर भी एन्सेस्ट्राल प्रॉपर्टी में हिस्सा बना रहेगा इसके साथ ही ब्रिटिशर्स के द्वारा किया गए कुछ सोशल रिलिजियस रिफॉर्म्स को भी लोग अपने ट्रेडीशंस में बाहरी दखल की तरह देखते हैं फिर चाहे बात सती प्रथम पर बन की हो विडोरी मैरिज एक्ट पास करने की या फिर वूमेन को एजुकेशन देने की इन सभी रिफॉर्म्स की वजह से भी समाज के एक बड़े वर्ग में ब्रिटिश के खिलाफ आक्रोश की भावना जन्म ले चुकी थी दोस्तों 1857 के रिवॉल्वड की शुरुआत आर्मी के सिपाही के द्वारा हुई थी इसलिए कुछ ऐसे कर्म को भी समझ लेते हैं जिनका संबंध इसके साथ था रीजंस पर बॉयज भी अल में पार्ट तो इंडियन सोसाइटी के ही थे इसीलिए जो भी परेशानी जनरल सोसाइटी में हो रही थी वह सब रीजन टॉयज में आक्रोश पैदा कर ही रहे थे और इसमें भी सबसे ज्यादा जी बात का उन्हें डर था वह थी की ब्रिटिशर्स उनका धर्म नष्ट करना चाहते हैं गली देकर बुलाया करते थे साथ ही इंडियन के लिए आगे बढ़ाने के रास्ते भी नहीं खुला थे वो सूबेदार की पोस्ट से आगे नहीं जा सकते थे यह ब्रिटिशर्स के रेसिजम का एक प्रतीक था सेप्वॉयज के डिसेटिस्फेक्शन का एक रिसेंट करण भी था और वह था ब्रिटिश का एक ऑर्डर जिसमें कहा गया था की सिंह और पंजाब में सर्विस के लिए जान पर सेप्वॉयज को कोई फॉरेन अलाउंस नहीं मिलेगा जैसा की उन्हें अब तक मिलता आया था इसके साथ ही अवध कईनेक्सेशन एक बड़ा करण था क्योंकि ब्रिटिश आर्मी में कम कर रहे बहुत से सैनिक अवध को ही बिलॉन्ग करते थे इसलिए उनके लिए अवध को हैं एक्स किया जाना उनके घर को हैं एक्स करना जैसा था इन सभी रीजंस की वजह से बॉयज के अंदर ब्रिटिश के खिलाफ आक्रोश की आज सुलाने लगी थी हिसाब को विस्फोट में बदलने के लिए अब बस एक चिंगारी की जरूर थी और वो चिंगारी कब और कैसे मिलती है आई जानते हैं इमीडिएट कैसे दोस्तों 1857 रिवॉल्ट के लिए चिंगारी का कम किया था और फील्ड राइफल के इंट्रोडक्शन इसके कार्टेजेस पर ग्रीस पेपर कर हुआ करता था जिसे राइफल में लोड करने से पहले मुंह से काटकर खोलना पड़ता था और यह जो ग्रीस था वो सूअर और गे की चर्बी से बंता था इससे इंडियन से बॉयज चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम बहुत गुस्से में ए जाते हैं उन्हें लगता है की ब्रिटिश गवर्मेंट जान बूझकर ग्रेज्ड कार्टेज के द्वारा उनका धर्म नष्ट करना चाहती है इसका मतलब अब विद्रोह करने का समय ए गया है दोस्तों यह तो बात हुई 1857 के रिवॉल्ट के पीछे के सभी कर्म की आई अब यह देखते हैं की रिपोर्ट आखिर कब कहां और कैसे शुरू हुआ था डी बिगनिंग और कोर्स ऑफ रिपोर्ट दोस्तों जैसा की हमने आपको शुरुआत में ही बताया था 1857 का रिकॉर्ड 10th में को मेरठ से शुरू हुआ था और उसके बाद नॉर्दर्न और सेंट्रल इंडिया के एक बड़े हिस में फेल गया था लेकिन मेरठ में और ब्रेक से पहले भी विद्रोह के साइंस दिखने ग गए थे जैसे की 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में यंग सोल्जर मंगल पांडे को फैंसी दे दी क्योंकि उन्होंने ब्रेस्ट कार्टेज का उसे करने से माना कर दिया था और अपने ब्रिटिश ऑफिसर्स पर अटैक कर दिया था इसी तरह के कुछ और भी इंसीडेंट ये इशारा कर रहे थे की सेप्वॉयज में विद्रोह की आज ग चुकी है और फिर मेरठ में आखिरकार विस्फोट हो ही जाता है 24th अप्रैल को थर्ड नेटिव गैलरी के 90 जवान ग्रीस कार्टेजेस को एक्सेप्ट करने से माना कर देते हैं इसलिए नाइंथ में को उनमें से 85 को आर्मी से तत्काल डिस्टेंस करके 10 साल की सजा सुना दी जाति है और जय में बैंड कर दिया जाता है इस घटना से मेरठ में तैनात सभी से बॉयज के दिल में विद्रोह की आज ग जाति है और 10 मैं को वह अपने साथी जवानों को जय से बाहर निकालकर अपने ऑफिसर्स की हत्या करके विद्रोह का बिगुल बजाते हैं सूरज ढलना के बाद सभी जवान दिल्ली की तरफ निकाल पढ़ते हैं और जब अगली सुबह यह सिपाही डेली पहुंचने हैं तो वहां की लोकल इंफिनिटी भी इन्हें जॉइन कर लेती है वो भी अपने यूरोपियन ऑफिसर्स को मार के शहर को सीएस कर लेते हैं इसके बाद यह सोल्जर मुगल एंपरर बहादुर शाह जफर को इंडिया का एंपरर मानते हुए उन्हें अपने रिवॉल्ट का लीडर चुन लेते हैं इस एक्ट से यह सब बॉयज सोल्जर की मुटनी को एक रिवॉल्यूशनरी वार में ट्रांसफॉर्म कर देते हैं इसके बाद अलग-अलग जगह पर सेप्वॉयज विद्रोह करने लगता हैं और सभी दिल्ली की तरफ पहुंचने लगता हैं और शायद उनके प्रेशर पर इंडिया के सभी चिप्स और रुलर्स को लेटर लिखकर कहते हैं की ब्रिटिश रिज्यूम के साथ फाइट करने के लिए ऑर्गेनाइज किया जाए नॉर्थ और सेंट्रल इंडिया के डिफरेंट पार्ट्स में सेप्वॉयज के रिकॉर्ड के साथ-साथ सिविल रिवॉल्ट भी शुरू हो जाते हैं सिविलियन पापुलेशन भी हथियार उठा लेती है और ब्रिटिश के खिलाफ जंग में सेपोइस के साथ खड़ी हो जाति है और देखते ही देखते इंडिया के एक बड़े हिस में क्रांति की ज्वाला जैन लगती है 1857 के इस रिवॉल्ट के स्टोर्स सेंटर्स बनते हैं दिल्ली कानपुर लखनऊ बरेली झांसी और बिहार दिल्ली में नॉमिनल और सिंबॉलिक लीडर बहादुर शाह जफर के पास थी लेकिन रियल कमांड जनरल वक्त खान की लीडरशिप में कम कर रहे सोल्जर के ग्रुप के हाथों में थी कानपुर में विद्रोहों का नेतृत्व कर रहे थे नाना साहिब जो बाजीराव सेकंड के अडॉप्टेड संत थे नाना साहब कानपुर से अंग्रेजों को भाग देते हैं और खुद को पेशवा डिक्लेअर करते हैं नाना साहब का यहां साथ देते हैं उनके सबसे काबिल और लॉयल साथी टाटिया टॉप लखनऊ में बेगम हजरत महल विद्रोह को लीड कर रही थी उन्होंने अपने बेटे बृजेश कबीर को अवध का नवाब डिक्लेअर कर दिया और 1857 के रिवॉल्ट की सबसे फेमस लीडर रानी लक्ष्मीबाई झांसी में अंग्रेजों के खिलाफ जंग कर रही थी बिहार में रिवॉल्ट की के ऑर्गेनाइजर थी जगदीशपुर के जमीदार कुन से इसके साथ ही फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला भी 1857 के रिवॉल्ट के एक आउटस्टैंडिंग लीडर थे इसके अलावा बरेली के खान बहादुर खान मेरठ के कम सिंह संभालपुर यानी की उड़ीसा के सुरेंद्र शाही मथुरा के देवी सिंह हरियाणा के राव तुलाराम गोंडवाना किंगडम के शंकर शाह और रघुनाथ शाह भी 1857 रिवॉल्ट के इंपॉर्टेंट लीडर्स थे इन सभी लीडर्स की लीडरशिप में सेप्वॉयज और आम जनता एक साथ आकर ब्रिटिशर्स के खिलाफ 1857 की क्रांति की आज हर तरफ फैला देते हैं लेकिन जैसा की आप सब जानते ही होंगे की आखिर में 1857 का अवार्ड असफल राहत है 1859 का एंड होने तक ब्रिटिश विद्रोह को पुरी तरह से दबाने में सफल होते हैं और फिर से अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लेते हैं लेकिन ऐसे क्या करण थे जिनकी वजह से 1857 का रिकॉर्ड सफल हो जाता है और कैसे ब्रिटिश इसे सरप्राइज करने में सफल होते हैं इसका जवाब आपको हम अपनी अगली वीडियो यानी की 1857 रिवॉल्ट के पार्ट तू में देंगे इसके साथ ही यह भी बताएंगे की 1857 रिवॉल्ट की इंर्पोटेंस क्या है और इसके लॉन्ग टर्म क्या रिजल्ट्स रहते हैं इसे सरप्राइज कर दिया था रिवॉल्ट की लिमिटेशंस क्या थी और इसकी नेचर को लेकर जो डिबेट है उसको भी समझना की कोशिश करेंगे साथ ही रिवॉर्ड की इंपैक्ट्स के बड़े में भी बात करेंगे तो आई शुरू करते हैं दोस्तों 1857 का रिवॉल्ट इंडिया के एक बड़े भाग में तो फैला था लेकिन फिर भी समाज के सभी लोगों ने इसमें पार्टिसिपेशन नहीं किया था साथी पूरे देश में इसका असर देखने को नहीं मिला था और सेंट्रल इंडिया के रीजन तक ही सीमित र जाता है यह साउथ इंडिया तक नहीं पहुंचता और साथ ही पूर्वी और वेस्टर्न इंडिया के भी ज्यादातर हिस इसमें भाग नहीं लेते इसके साथ ही इंडियन स्टेटस के बहुत से रुलर्स और बड़े जमीदार भी इसमें भाग नहीं लेते इसके विपरीत ग्वालियर के सिंधिया इंदौर के होलकर हैदराबाद के निजाम जोधपुर के राजा भोपाल के नवाब पटियाला नाभा और जींद के रुलर्स कश्मीर के महाराजा नेपाल के रनास और बहुत से ऐसे अन्य रुलर्स ने तो ब्रिटिश को खुला सपोर्ट किया था रिपोर्ट को सरप्राइज करने में सभी रुलर्स चिप्स और जमींदारा का सपोर्ट ना मिलन ही 1857 रिवॉर्ड की पहले वीकनेस थी इसके अलावा मॉडर्न एजुकेटेड इंडियन ने भी 1857 रिपोर्ट को सपोर्ट नहीं किया था ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें लगता था की विद्रोह करने वाले राजा राजवाड़े तो इंडिया को पीछे की तरफ ही ले जाएंगे और इंडिया को मॉडर्न बनाने का कम ब्रिटिश रूल में ही हो सकता है एजुकेटेड इंडियन को यह काफी बाद में एहसास होता है की अल में ब्रिटिश रूल उन्हें मॉडर्न बनाने का नहीं बल्कि लूटने का कम कर रहा है इसके साथ 1857 के विद्रोहियों के पास मॉडर्न वेपंस और युद्ध के बाकी समाज की भी कमी थी ज्यादातर तो तलवार और भले जैसे असिएंट वेपन से ही फाइट कर रहे थे विद्रोही पोली ऑर्गेनाइज्ड भी थे सेप्वॉयज बहादुर तो थे लेकिन उनमें भी डिसिप्लिन की कमी थी कई बार वो देंगे करने वाले मोब की तरह बिहेव करते थे ना की एक डिसिप्लिन आर्मी के जैसे 1857 के विद्रोहियों के पास मिलिट्री एक्शन का ना तो कोई आम प्लेन था और ना ही कोई सेंट्रलाइज्ड लीडरशिप देश के अलग-अलग कोनी से उठी अप्रिसिंग्स में एक ऑर्डिनेशन की कमी देखने को मिलती है और दूसरी तरफ ब्रिटिश कंपनी के पास रिसोर्सेस की कोई कमी नहीं थी ब्रिटिश गवर्नमेंट ने बड़ी संख्या में मां मनी और आर्म्स की सप्लाई इंडिया में की और वोट को पुरी ताकत के साथ सरप्राइज कर दिया गया विद्रोहियों को पहले झटका लगता है जब 28 सितंबर 1857 को जनरल जॉन निखिल सिंह की नेतृत्व में एक लंबी लड़ाई के बाद ब्रिटिश दिल्ली को कैप्चर कर लेते हैं एंपरर बहादुर शाह को बंदी बना लिया जाता है रॉयल प्रिंस को पड़कर वही मार दिया जाता है मुगल एंपरर के खिलाफ कैसे चला है और उनको रंगून में एक्सेल की सजा सुना दी जाति है रंगून में ही 1862 में उनकी मृत्यु हो जाति है इस तरह मुगल वंश का पुरी तरह खत्म हो जाता है दिल्ली के फल के साथ रिवॉल्ट का फोकल पॉइंट तो डिसएप्ल हो जाता है लेकिन रिवॉल्ट के बाकी लीडर्स स्ट्रगल जारी रखते हैं लेकिन पावरफुल ब्रिटिश के सामने एक-एक करके ये सब भी हर जाते हैं कानपुर में नाना साहब बाहर जाते हैं लेकिन वो सुरेंद्र नहीं करते और 1859 में नेपाल भाग जाते हैं जिसके बाद उनके बड़े में कुछ पता नहीं चला इंडिया के जंगल की तरफ चले जाते हैं और वहां से अप्रैल 1859 तक गोरिल्ला वाॅरफेयर जारी रखते हैं लेकिन तभी उनके जमींदार दोस्त उन्हें धोखा दे देते हैं और सोते समय उन्हें पकड़ लिया जाता है और 15th अप्रैल 1859 को एक हर एक ट्रायल के बाद उन्हें भी मार दिया जाता है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बहादुर के साथ अंग्रेजन का सामना करती हुई 17th जून 1858 को युद्ध भूमि में मार दी गई थी 1859 तक कुंवर सिंह वक्त खान खान बहादुर खान मौलवी अहमदुल्लाह जैसे लीडर्स भी मार दिए जाते हैं और अवध की बेगम नेपाल में जाकर छुपाने के लिए मजबूर हो जाति हैं इस रिपोर्ट के सिपरेशन में कुछ ब्रिटिश कमांडर्स जो मिलिट्री फेम हासिल करते हैं वह थे जॉन लॉरेंस हैवलॉक नील कैंपबेल और यूरोप 1859 के और होने तक इंडिया में ब्रिटिश अथॉरिटी फिर से पुरी तरह एस्टेब्लिश हो चुकी थी लेकिन 1857 का रिवॉल्ट बेकार नहीं जाता यह हमारे इतिहास का एक ग्लोरियस लैंडमार्क है 1857 का रिवॉल्ट ब्रिटिश इंपिरियलिज्म से आजादी के लिए भारत के लोगों का पहले ग्रेट स्ट्रग था आगे आने वाले फ्रीडम स्ट्रगल के लिए 1857 के रिवॉल्ट ने इंस्पिरेशन का कम किया दोस्तों 1857 का रिवॉल्ट फेल होने के बावजूद ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन के लिए एक बहुत बड़ा झटका साबित होता है इसकी वजह से ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन में काफी बदलाव देखने को मिलते हैं आई एक-एक करके उनके बड़े में जानते हैं सबसे बड़ा चेंज जाता है 1858 के गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट के थ्रू यह एक्ट इंडिया को गवर्न करने की पावर ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन को ट्रांसफर कर देता है इससे पहले कंपनी के डायरेक्टर्स और बोर्ड ऑफ कंट्रोल के पास इंडिया की अथॉरिटी थी अब यह पावर मिल जाति है सेक्रेटरी ऑफ स्टेट पर इंडिया को और उसको एसिस्ट करने के लिए काउंसिल भी बना दी जाति है सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ब्रिटिश कैबिनेट के एक मेंबर हुआ करते थे और इसलिए पार्लियामेंट के प्रति उनके रिस्पांसिबिलिटी थी इस तरह का सकते हैं की इंडिया के ऊपर अब अल्टीमेट पावर ब्रिटिश पार्लियामेंट की हो गई थी इंडिया में गवर्नमेंट को पहले की तरह गवर्नर जनरल को ही देखना था गवर्नर जनरल को वॉइस राय यानी की क्राउन का पर्सनल रिप्रेजेंटेटिव का टाइटल भी दे दिया जाता है इसके बाद दूसरा सबसे दृष्टिक चेंज जाता है आर्मी के ऑर्गेनाइजेशन में 1857 जैसा फिर से कोई रिवॉल्ट ना हो इसके लिए आर्मी को रे ऑर्गेनाइजर किया जाता है सबसे पहले तो आर्मी में यूरोपियन सोल्जर की संख्या को बढ़ाया जाता है बंगाल आर्मी में हर दो इंडियन सोल्जर पर एक यूरोपियन सोल्जर और मद्रास और मुंबई में हर पांच इंडियन सोल्जर पर दो यूरोपियन सोल्जर का प्रोपोर्शन फिक्स किया जाता है इसके लिए ई रिक्रूटमेंट में कास्ट रीजन और रिलिजन के बेसिस पर डिस्क्रिमिनेशन शुरू कर दिया और पठान जिन्होंने 1857 के रिवॉल्ट को सरप्राइज करने में ब्रिटिश की मदद की थी उनको मार्शल रेसेज डिक्लेअर कर दिया गया और बड़ी संख्या में इन्हें आर्मी में लिया जान लगा जबकि 1857 रिवॉल्ट में भाग लेने वाले रीजन जैसे की अवध बंगाल और सेंट्रल इंडिया के सोल्जर को नॉन मार्शल डिक्लेअर कर दिया गया और बड़ी संख्या में आर्मी में इनकी भारती को बैंड कर दिया गया इसके अलावा सोल्जर में नेशनलिस्ट सेंटीमेंट को डेवलप होने से रोकने के लिए कम्युनल कास्ट और रीजनल बेसिस पर रेजीमेंट को फॉर्म किया गया इसके साथ ही प्रिंसली स्टेटस के साथ रिलेशंस में भी एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है एनेक्सेशन की पॉलिसी को छोड़ दिया जाता है इंडियन स्टेटस को अपना और अडॉप्ट करने की परमिशन भी दे दी जाति है ऐसा इसलिए क्योंकि 1857 के रिवॉल्ट के समय बहुत से इंडियन रुलर्स ने ब्रिटिशर्स की हेल्प की थी बिना उनकी हेल्प के 1857 के रिवॉल्ट को सरप्राइज करना मुश्किल हो जाता है इसीलिए इसके बाद से ब्रिटिश प्रिंसली स्टेटस को ब्रेक वाटर्स इन डी स्टॉर्म की तरह उसे करते हैं इस तरह से हम का सकते हैं की 1857 के रिवॉल्ट की वजह से इंडिया में ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन का चेहरा पुरी तरह से बादल जाता है दोस्तों यह तो हुई 1857 के रिवॉल्ट की पुरी कहानी अब बात करते हैं इसके नेचर को लेकर डिबेट की नेचर ऑफ डी 1857 रिवॉल्ट दोस्तों 1857 के रिवॉल्ट के नेचर को लेकर अलग-अलग ओपिनियन दिए जाते हैं कुछ इतिहासकारों ने इसे हिंदू और मुस्लिम की कंस्पायरेसी भी का दिया कोई ऐसे बाबर आजम ब्रिटिश हिस्टोरियन इसे सिरोय मुटनी कहकर इसकी इंर्पोटेंस को कम करना चाहते थे हां यह सच है की 1857 के रिवॉल्ट की शुरुआत से बॉयज नहीं की थी लेकिन जैसा की हम देख चुके हैं की इसमें सेप्वॉयज के अलावा पेजयंस सिविलियन पापुलेशन और इंडियन रुलर्स ने भी भाग लिया था फिर से सिर्फ मुटनी का देना बिल्कुल गलत होगा वाद सावरकर ने 1857 के रिवॉल्ट को फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस का है इसके अगेंस्ट में यह आगमन दिया जाता है की 1857 से पहले तो बहुत से रिवॉल्ट हुए थे जैसे की कॉल विद्रोह पी का विद्रोह संथाल फिर ये फर्स्ट कैसे हुआ दोस्तों यह बिल्कुल सही है की 1857 से पहले भी ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट बहुत से रिवॉल्ट हुए थे लेकिन यह सभी लोकल रिवॉल्ट थे और बहुत छोटे रीजन तकसीमित थे 1857 को फर्स्ट इसीलिए बोला जाता है क्योंकि इतने बड़े स्टार पर ये पहले ही रिपोर्ट था इसके बाद डिबेट होती है की क्या यह सच में इंडिपेंडेंस के लिए स्ट्रगल था कुछ लोगों का कहना है की यह तो फैऊदल रिपोर्ट था और सभी लीडर्स अपनी अपनी फैऊदल पावर्स को वापस अपने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे ब्रिटिश से इंडिपेंडेंस की बात तो कहानी थी ही नहीं यहां याद रखना वाली बात यह है की शुरुआत में भले ही इंडिपेंडेंस का कोई एम ना हो लेकिन रिवॉर्ड शुरू होने के बाद ब्रिटिश रूल को इंडिया से खत्म करने का बहादुर शाह अपने लेटर में भी लिखने हैं की इंडिया से ब्रिटिश सत्ता को समाप्त करने के लिए सभी इंडियन रुलर्स को एक कनफेडरेसी बनानी होगी इसलिए इतिहासकार सीएनसी ने भी कहा है की 1857 का रिवॉल्ट शुरू भले ही एक से बाय मुटनी की तरह हुआ था लेकिन खत्म के रिपोर्ट को नेशनल मूवमेंट बोलते हैं 1857 रिवॉल्ट के नेचर को लेकर भले ही अलग-अलग ओपिनियन हो सकते हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है की यह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होने वाला एक यादगार रिवॉल्ट बन गया था कंक्लुजन दोस्तों 1857 का रिवॉल्ट कोई मामूली विद्रोह नहीं था यह इंडियन हिस्ट्री का एक इंपॉर्टेंट टर्निंग पॉइंट था इसके हीरोज इंडिया के घर घर में याद किया जान लगे और आने वाली पीढ़ी के लिए इंस्पिरेशन बन गए यहां तक मिसल देते हैं झांसी की रानी आज भी वूमेन एंपावरमेंट का प्रतीक मनी जाति हैं 1857 का यह रिपोर्ट भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए अमर रहेगा [संगीत] जी सुपरस्टिशंस और ट्वीट के द्वारा किया जा रहा एक्सप्लोइटेशन भी इनके द्वारा कंडोम किया गया था इन्हें सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स के नाम से जाना जाता है आज हम समझेंगे की इनकी शुरुआत क्यों होती है ये कौन सी रिफॉर्म्स की बात करते हैं और इनका क्या प्रभाव राहत है साथ ही इनकी कुछ लिमिटेशंस की भी चर्चा करेंगे सबसे पहले ये जानते हैं की 19th सेंचुरी में ऐसी क्या कंडीशंस बंटी हैं की सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स शुरू होते हैं कॉसेस बिहाइंड सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स दोस्तों पहले और सबसे बड़ा करण था ब्रिटिश रूल और उसका इंडिया की पॉलीटिकल इकोनामिक सोशल लाइफ पर गहरा प्रभाव ब्रिटिश के साथ ही मॉडर्न वेस्टर्न इतिहास जैसे की एक क्वालिटी लिबर्टी फ्रेटरनिटी और जस्टिस भी इंट्रोड्यूस हुए थे मॉडर्न एजुकेशन इन सभी इतिहास को स्प्रेड करती है और धीरे-धीरे एक एजुकेटेड मिडिल क्लास तैयार हो जाति है जो इंडियन सोसाइटी को मॉडर्नलिटी के लेंस से देखना शुरू कर दी है रिफॉर्म मूवमेंट्स को शुरू करने के पीछे दूसरा करण यूरोपियन ओरिएंटलिस्ट के एफर्ट्स थे सब विलियम जॉन्स विलकिंस मैक्स मुइलर जैसे ओरिएंटलिस्ट्स के वर्ग से इंडिया का ग्लोरियस पेस्ट लाईमलाईट में ए जाता है जो इंडियन को कॉन्फिडेंस देता है और उन्हें रिफॉर्म करने की रेशम भी देता है इसके अलावा एक करण क्रिश्चियन मिशनरीज का प्रभाव भी था यह लोग इंडियन कस्टम और रिलिजन को क्रिटिसाइज करते थे और लोगों को क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट करने की कोशिश कर रहे थे ऐसी स्थिति में इंडियन कॉलेज को लगता है की इनका मुकाबला करने के लिए पहले अपने धर्म और समाज में सुधार करने की जरूर है इन्हीं सब कर्म से सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स की शुरुआत होती है करण के साथ ही समझना भी जरूरी है की यह मूवमेंट्स कितने प्रकार के होते थे और रिफॉर्म के लिए कौन-कौन से मैथर्ड अडॉप्ट किया जाते हैं टाइप्स और मैथर्ड ऑफ सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स दोस्तों सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन को दो कैटिगरीज में डिवाइड किया जाता है जो इंडिया की पेस्ट ग्लोरी में विश्वास करते थे और यह वेस्टर्न इतिहास को अडॉप्ट करने की जगह असिएंट इंडियन ट्रेडीशंस और थॉट्स को रिवाइव करना चाहते थे इसमें आर्य समाज रामकृष्ण मिशन और देवबंद मूवमेंट का एग्जांपल आता है रिफॉर्म मूवमेंट राशनलिज्म और रिलिजियस यूनिवर्सल की आईडियोलॉजी से प्रेरित थे रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस करने के लिए अलग-अलग मैथर्ड अडॉप्ट किया जाते हैं जैसे की न्यूज़ पेपर्स और जर्नल्स को पब्लिश करना राजाराम मोहन राय अपना न्यूज़ पेपर संवाद कौमुदी निकलते हैं वही दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश के जारी अपनी इतिहास फ्लेट हैं दूसरा मेथड था मीटिंग्स बुलाना और गवर्नमेंट पर प्रेशर बेल्ट करना जिसकी हेल्प से यह लोग सती प्रथम बालेश्वर जैसे सोशल लेजिसलेशंस पास करवा पाते हैं इसके अलावा रिफॉर्म मूवमेंट परसूएसन का मेथड बी अडॉप्ट करती हैं इसके तहत लोगों को कन्वेंस करने की कोशिश करते हैं की वो सोशल इविल्स जैसे की सती या पर्दा सिस्टम का सपोर्ट ना करें इसके लिए रीजन के साथ ही स्क्रिप्चर से भी एग्जांपल्स किया जाते हैं सबसे ज्यादा पॉपुलर किया जाता है वह था लाइक माइंडेड पीपल के साथ मिलकर संगठन फॉर्म करना जैसे की ब्रह्म समाज आर्य समाज एसोसिएशंस की चर्चा करते हैं एग्जांपल ऑफ सोशल रिलिजियस रिफॉर्मर एसोसिएशंस ब्रह्म समाज दोस्तों ब्राह्मण समाज की शुरुआत 1828 में कोलकाता में राजा राममोहन राय ने की थी है इन्हें फादर ऑफ मॉडर्न इंडिया भी कहा जाता है क्योंकि यह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो इंडिया में मॉडर्न इतिहास के बेसिस पर सोसाइटी फॉर्म करने की कोशिश करते हैं ब्रह्म समाज आइडल वरशिप पॉलिथीन कास्ट ऑपरेशन और उन नेसेसरी रिचुअल्स के अगेंस्ट फाइट करता है इसके अलावा सती पॉलिगामी पर्दा सिस्टम चाइल्ड मैरिज एट सिटेरा जैसी सोशल इविल्स के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाता है इन्होंने वीडियो रे मैरिज और वूमेन की एजुकेशन का भी समर्थन किया राजा राममोहन राय के एफर्ट से ही 1829 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल मेंटेंनिंग ने सती प्रथम पर कानून लाकर इसे बन किया था दोस्तों ब्रह्म समाज मेली पूर्वी इंडिया में एक्टिव राहत है अब बात करते हैं ऐसी संगठन की जिसका इफेक्ट वेस्टर्न इंडिया में ज्यादा देखने को मिलता है आर्य समाज दोस्तों आर्य समाज की स्थापना 1875 में बॉम्बे में हुई थी बाद में इसका हैडक्वाटर्स लाहौर में स्थापित किया गया था इसके फाउंडर स्वामी दयानंद सरस्वती एनिमल सैक्रिफाइस चाइल्ड मैरिज और कास्ट सिस्टम का विरोध किया इसकी फॉलोइंग सबसे ज्यादा नॉर्दर्न और वेस्टर्न इंडिया के एरियाज में अच्छी जाति है दयानंद सरस्वती जी ने अपने विचार सत्यार्थ प्रकाश नाम की किताब में लिखे थे यह इंडिया को एक क्लासलैस और कैशलेस सोसाइटी बनाने का विजन रखते थे साथ ही फ्री और यूनाइटेड इंडिया देखना चाहते थे दोस्तों जैसे की हम पहले बता चुके हैं आर्य समाज रिवाइवलिस्ट कैटिगरी में आने वाला एक संगठन यही दूसरी संगठन की भी बात करते हैं रामकृष्ण मिशन रामकृष्ण मिशन स्वामी विवेकानंद द्वारा शुरू किया गया इसकी स्थापना 1892 में कोलकाता के पास बेलूर नाम की जगह पर हुई थी इसका मकसद विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस जी की टीचिंग्स का प्रचार प्रसार करना था इन्होंने कास्ट सिस्टम और अनटचेबिलिटी का विरोध किया यह सभी रिलिजियस की यूनिवर्सल टीवी पर फॉक्स करते हैं और वेदांत को प्रोपागेट करते हैं स्वामी विवेकानंद दरिद्र नारायण के कॉन्सेप्ट को पॉपुलर करते हैं इसके अनुसार हर गरीब व्यक्ति में ईश्वर है और इसीलिए इनकी सेवा ईश्वर की सेवा के समाज है इसके साथ ही 1893 में शिकागो में ऑर्गेनाइज हुई वर्ल्ड रिलिजियस कॉन्फ्रेंस में भाग लेकर स्वामी जी ने विश्व मंच पर हिंदुइज्म की फिलासफी का प्रचार भी किया दोस्तों यह तो बात हो गई हिंदुइज्म से रिलेटेड रिफॉर्मर एसोसिएशंस की अब कुछ मुस्लिम रिलिजियस रिफॉर्मर एसोसिएशंस की भी चर्चा करते हैं इसमें सबसे पहले बात करते हैं अलीगढ़ मूव मटकी अलीगढ़ मूवमेंट दोस्तों इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिला में सर सैयद अहमद खान द्वारा 1860s में की गई थी इसका मकसद मुस्लिम के बीच वेस्टर्न साइंटिफिक एजुकेशन का प्रचार करना था इसी के तहत 1875 में सैयद अहमद खान ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की थी जो 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बन जाता है अपने इतिहास को फैलाने के लिए यह तहदिल अखलाक नाम से मैगजीन पब्लिश करते थे इन्होंने अपनी बुक कंट्री आउटलुक को कंडोम किया था और राशनलिज्म और साइंटिफिक नॉलेज के बेसिस पर अपने खुद के व्यूज शेर किया थे इनका एंपहसिस कुरान की स्टडी पर राहत है इन्होंने सूफिज्म को भी कंडोम किया था साथ ही डिलीवरी को भी अनीस इस्लामिक बताया था अलीगढ़ मूवमेंट के बाद अब इसी के पैरेलल में चलने वाले मुस्लिम रिवाइवलिस्ट यानी की देवबंद मूवमेंट की बात करते हैं देवबंद देवबंद मूवमेंट की शुरुआत अप के सहारनपुर जिला में देवबंद नाम की जगह से 1867 में हुई थी इसके फाउंडर मोहम्मद कासिम नाना तवी और राशिद अहमद गैंग ही थे देवबंद एक रिवाइवलिस्ट मूवमेंट था यह एंटी ब्रिटिश मूवमेंट था जिसका एजुकेशनल एफर्ट्स के थ्रू मुस्लिम का अपलिफ्टमेंट करना था इसके ट्विन ऑब्जेक्टिव्स थे पहले मुस्लिम के बीच कुरान और हदीस की पोती जींस का प्रचार प्रसार करना और दूसरा फौरन रुलर्स के अगेंस्ट जिहाद की स्पिरिट को लाइव रखना लेकिन अलीगढ़ मूवमेंट की तरह यह वेस्टर्न एजुकेशन को प्रमोट नहीं करता बल्कि ट्रेडिशनल इस्लामिक टीचिंग्स पर फॉक्स करता है इसके अलावा दोस्तों और भी बहुत सारे संगठन फॉर्म किया गए थे जैसे की प्रार्थना समाज वेद समाज विदुरी मैरिज संगठन दोस्तों आंदोलन के उदाहरण जन के बाद अब इनके प्रभाव को भी समझ लेते हैं इंपैक्ट्स ऑफ रिफॉर्म मूवमेंट्स सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स का बहुत ही गहरा प्रभाव देखने को मिलता है इनके एफर्ट्स से सती प्रथम विडोरी मैरिज फीमेल इन्फैंटिसाइड जैसे सोशल इविल्स को अबॉलिश करने के एक्ट्स पास होते हैं समाज में रीजन और राशनलिटी का प्रचार होता है साथ ही इनके द्वारा बहुत से स्कूल और कॉलेज खोल गए थे जिससे मॉडर्न एजुकेशन का स्पीड और ज्यादा इंडिया में होता है इसके अलावा रिफॉर्म मूवमेंट्स का सबसे बड़ा प्रभाव नेशनल मूवमेंट पर देखने को मिलता है सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स के प्रयासों से इंडिया में नेशनलिज्म प्रमोट होता है लोग एक बार फिर से अपने कलर और सिविलाइजेशन पर गर्व करने लगता हैं यह लोग इंडियन कल्चरल ट्रेडीशंस पर हो रहे ब्रिटिश क्रिटिसिजम का मुंह तोड़ जवाब देते हैं जिसकी वजह से इंडियन में कॉन्फिडेंस डेवलप होता है और नेशनलिज्म की फीलिंग और स्ट्रांग होती है दोस्तों यह तो बात हुई इनकी अचीवमेंट्स की लेकिन रिफॉर्म मूवमेंट पुरी तरह सफल नहीं होते खाने का मतलब यह है की इनके प्रभाव में कुछ लिमिटेशंस र जाति हैं लिमिटेशंस ऑफ रिफॉर्म मूवमेंट्स सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स की सबसे बड़ी इमिटेशन यह थी की इनका सोशल बेस बहुत ही नैरो राहत है मेली यह एजुकेटेड और अर्बन मिडिल क्लासेस को ही अपने साथ जोड़ पाते हैं जबकि और मैसेज और अर्बन पुर इनके प्रभाव से ज्यादातर बाहर ही र जाते हैं इसके अलावा रिफॉर्मर्स की पेस्ट की ग्रेटनेस को अपील करने की टेंडेंसी और स्क्रिप्ट्रल अथॉरिटी पर रैली करना सुडो साइंटिफिक थिंकिंग को भी जन्म देता है साथ ही हिंदू मुस्लिम सिख और पारसी को भी अलग-अलग सेक्शंस में डिवाइड करने का कम करता है बहुत से हिंदू रिफॉर्मर्स असिएंट पीरियड को प्रेस करते हैं और मेडिकल पीरियड को पुरी तरह डिसिडेंस का युग बता देते हैं इससे इनडायरेक्ट मुस्लिम महसूस करते हैं और कम्युनल टेंडेंसी को भी बढ़ावा मिलता है कंक्लुजन दोस्तों हम का सकते हैं की सोशल रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट्स पुरी तरह समाज को मॉडर्न या राशन तो नहीं बना पाते लेकिन फिर भी ये कवरेज कोशिश जरूर थी उसे समय की लीडर्स की जो अपनी ही समाज के अगेंस्ट खड़े होकर उन्हें आईना दिखाने का साहसी कम करते हैं लिमिटेड ही सही लेकिन इनका इंपैक्ट तो इंडियन सोसाइटी पर हुआ था इसके अलावा नेशनलिज्म को प्रमोट करके इन्होंने आगे होने वाले नेशनल मूवमेंट को भी स्ट्रांग बनाने का कम किया था 19th सेंचुरी के सु विलेज रिफॉर्म मूवमेंट्स की वजह से ही इंडिया मॉडर्न नेशन बने की र पर अग्रसर होता है लो कास्ट मूवमेंट्स दोस्तों 19th सेंचुरी में इंडिया में सोशल रिलिजियस रिफॉर्म्स के लिए बहुत सारे ऑर्गेनाइजेशंस फॉर्म किया गए थे जैसे की ब्रह्म समाज आर्य समाज यंग बंगाल मूवमेंट प्रार्थना लीडर्स अपार कास्ट हिंदू कम्युनिटी को बिलॉन्ग करते थे इन लोगों ने कास्ट डिस्क्रिमिनेशन के अगेंस्ट आवाज जरूर उठाई थी और अनटचेबिलिटी को भी काफी नाम किया था इसके बावजूद कास्ट डिस्क्रिमिनेशन को रोकने या अनटचेबल्स की कंडीशन में सुधार लाने में इन्हें बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली थी साथ ही 19 और 20th सेंचुरी में कुछ ऐसे सरकमस्टेंसस बनते हैं जिनकी वजह से लोअर कास्ट में क्लास कॉन्शसनेस डेवलप होने लगती है इसके बाद यह लोग खुद कास्ट क्वालिटी के लिए संघर्ष शुरू करते हैं ब्रिटिश की डिवाइडेड रूल की पॉलिसी वेस्टर्न एजुकेशन सिस्टम की ग्रोथ आम इंडियन पैनल कोड कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर का इंट्रोडक्शन रेलवे नेटवर्क का एक्सटेंशन मॉडर्न पॉलीटिकल थॉट की पापुलैरिटी जो एक क्वालिटी और सोशल ईगलिटेरिएनिज्म पर बेस्ड था कुछ ऐसे करण थे जिनकी वजह से कास्ट सिस्टम को डिफेंड करना मुश्किल होता जा रहा था ऐसी सिचुएशन में लोअर कास्ट की कुछ लीडर्स सामने आते हैं और खुद ही मूवमेंट की शुरुआत करते हैं इनके बड़े में बात करने से पहले यह समझना जरूरी है की आखिर लोअर कास्ट पीपल को आंदोलन करने की जरूर भी क्यों पड़ती है कॉसेस ऑफ लोअर जाति मूवमेंट्स दोस्तों लोअर कास्ट से यहां हमारा मतलब उनका से है जिन्हें अनटचेबल्स कहा जाता था इन्हें वर्ण सिस्टम से बाहर रखा जाता था इसमें ज्यादातर मीनल जॉब्स करने वाले लोग जैसे लेदर वर्कर्स गार्डनर्स स्वीपर आते थे इंडियन सोसाइटी में इन लोगों के साथ बहुत ही इन ह्यूमन व्यवहार किया जाता था अपार कास्ट लोगों का मानना था की इनके स्पर्श से ही इंसान पोल्यूटेड हो सकता है इसलिए इन्हें ना तो मैं सरिता कम्युनिटी के साथ रहने दिया जाता था और ना ही यह लोग में सड़क पब्लिक वेल्स टेंपल्स आदि का उसे कर सकते थे है इसके अलावा इन्हें किसी भी तरह के राइट्स भी नहीं दिए जाते थे इसके ऊपर से अपार कास्ट के लोग इनका शोषण करते थे इन्हें बहुत ही अपमानजनक शब्दों से बुलाया जाता था इनके साथ कोई भी अच्छे से बात करने के लिए तैयार नहीं होता था इनके साथ खाना या पीना तो बहुत दूर की बात थी इनका दिखाना भी अशुभ माना जाता था इस तरह लोअर कास्ट के लोग अपने ही देश और समाज में सेकेंडरी सिटीजंस की तरह जीते थे इनकी बस्तियां गांव से बाहर होती थी लेकिन ब्रिटिश रूल के साथ जब मॉडर्न एजुकेशन भी इंडिया में आई है तो सिचुएशन बदलना शुरू करती है शुरुआत में क्रिश्चियन मिशनरीज इन्हें कन्वर्ट करने के लालच में एजुकेशन देना शुरू करते हैं इसके बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट भी इन स्कॉलरशिप देने लगती है इसके पीछे उनका मकसद जरूर डिविडेंड रूप था लेकिन इससे अनटचेबल्स कम्युनिटी को फायदा जरूर होता है है इसके अलावा मॉडर्न थॉट्स जैसे लिबर्टी एक क्वालिटी और फ्रेटरनिटी पर जब इंडिया में बात होना शुरू होती है तो बहुत से सोशल रिफॉर्मर्स कास्ट सिस्टम के खिलाफ भी बोलना शुरू करते हैं इससे लोअर कास्ट के लोगों में धीरे-धीरे अवकलन आना शुरू हो जाति है इतना सब होने के बाद भी जब कास्ट डिस्क्रिमिनेशन खत्म नहीं होता तब लोअर कास्ट की कुछ लीडर्स इसे ओपनली चैलेंज करने का साहस दिखाई हैं आई अब ऐसे ही कुछ लीडर्स और उनके मूवमेंट्स के बड़े में जानते हैं ज्योतिबा फूल और सत्यशोधक समाज दोस्तों सबसे पहले लोअर कास्ट मूवमेंट शुरू करने का श्री महाराष्ट्र के ज्योतिबा फूल जी को जाता है इनका जन्म माली कास्ट में हुआ था फ्यूचर कास्ट के लिए भी यह इंस्पिरेशन का कम करते हैं शोधन समाज की स्थापना करते हैं इस ऑर्गेनाइजेशन के लिए सोशल जस्टिस सीकर करना था इन्होंने लोअर कास्ट और वूमेन के लिए बहुत से स्कूल और ऑर्फनेजेस भी ओपन किया थे ज्योतिबा फूल को 1876 में पूनम म्युनिसिपल कमेटी का मेंबर भी इलैक्त किया गया था यह कांग्रेस को भी क्रिटिसाइज करते हैं क्योंकि इनका मानना था की कांग्रेस पुरी तरह नेशनल नहीं बन शक्ति जब तक वो लोअर और बैकवर्ड काश के वेलफेयर में अपना इंटरेस्ट ना शो करें 188 में ज्योतिबा फूल जी को महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया गया था फूल जी गुलामगिरी इशारा लाइफ ऑफ शिवाजी जैसी बुक्स की ऑथर थे गुलामगिरी को मराठी में लिखा गया था और यह कास्ट सिस्टम को क्रिटिसाइज करने वाली सबसे पहले बुक्स में से एक मनी जाति है इसे डायलॉग के फॉर्म में लिखा गया था जो ज्योतिबाजी और उनके करैक्टर धोंडीबा के बीच में चला है बुक में बेसिकली कास्टीज्म की थ्योरी को चैलेंज किया गया है ज्योतिबा फूल और उनके मूवमेंट ने अंबेडकर को भी काफी इन्फ्लुएंस किया था महाराष्ट्र के बाद अब बात करते हैं साउथ इंडिया की जहां लोअर जाति मूवमेंट्स की एक स्ट्रांग हिस्ट्री रही है यहां श्री नारायण गुरु और एव रामास्वामी नायकर जैसे लीडर्स ने लोअर कास्ट के एमांसिपेशन के लिए कम किया श्री नारायण धर्म परिपालन योगम संडपी मूवमेंट दोस्तों श्री नारायण गुरु केरला की अनटचेबल्स कम्युनिटी एडवांस या एडवांस को बिलॉन्ग करते थे इन्होंने 19023 में श्री नारायण धर्म परिपालन योगम की स्थापना की थी और इसके तहत टेंपल एंट्री मूवमेंट लॉन्च किया गए थे उसे समय लो और कास्ट स्पेशली अनटचेबल्स जैसे की एडवांस को टेंपल में एंट्री का अधिकार नहीं दिया जाता था है इसके अगेंस्ट ही इन्होंने आंदोलन किया श्री नारायण गुरु जी का मानना था की अलग-अलग कास्ट में डिफरेंस सिर्फ सुपरफिशियल है जैसे एक ही ट्री की सभी लीव्स का जूस एक जैसा ही होता है वैसे ही अलग-अलग कास्ट को बिलॉन्ग करने वाले भी एक ही ईश्वर की संतान है और इसीलिए एक समाज ही है इसी पर उन्होंने नारा दिया था वन रिलिजन वन कास्ट और वन गॉड पर मैनकाइंड नारायण गुरु और उनके साथियों ने एयरवेज की अपलिफ्टमेंट के लिए 2 पॉइंट प्रोग्राम लॉन्च किया था इसमें पहले पॉइंट यह था की यह अपनी कास्ट से नीचे की कास्ट के प्रति अनटचेबिलिटी की प्रैक्टिस को छोड़ देंगे और दूसरे पॉइंट के तहत नारायण गुरु बहुत से टेंपल्स बनाते हैं जो सभी कास्ट के लिए ओपन रखें जाते हैं इसके साथ ही वह मैरिज वरशिप और फ्यूनरल से रिलेटेड विजुअल्स को भी सिंपल बनाते हैं नारायण गुरु अनटचेबल्स ग्रुप की ट्रांसपोर्टेशन में काफी हद तक दूर रहते हैं अब बात करते हैं साउथ इंडिया के ही एक दूसरे कास्ट मूवमेंट की जस्टिस पार्टी दोस्तों 28 नवंबर 1916 को मद्रास के लीडिंग नॉन ब्राह्मण सिटीजंस साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन की स्थापना करते हैं इसमें डॉक्टर टीम नायर श्री पीपीटी थे अग्रज चेतियार और बाढ़गल के राजा शामिल थे इस ऑर्गेनाइजेशन को जस्टिस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है यह लोग नॉन ब्राह्मण मेनिफेस्टो नाम से एक जॉइंट डिक्लेरेशन इशू करते हैं जिसमें गवर्नमेंट जॉब्स में नॉन ब्राह्मण के लिए रिजर्वेशन की डिमांड राखी जाति है 1920 में जब मद्रास लेजिसलेटिव काउंसिल के इलेक्शंस होते हैं तब इनकी पार्टी पावर में आई है आगे जाकर जस्टिस पार्टी रामास्वामी नायकर की लीडरशिप में कम करने लगती है और वो इसे एक नई दिशा दिखाई हैं आई वे रामास्वामी नायकर और सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट दोस्तों एंटी ब्राह्मण मूवमेंट में एक बड़ा नाम आता है सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट का इसे एव रामास्वामी नायकर ने शुरू किया था जिन्हें बेरिया यानी की ग्रेट सोल के नाम से जाना जाता है नायकर पहले कांग्रेस के मेंबर हुआ करते थे इन्होंने नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट में भी पार्टिसिपेट किया था लेकिन सोशल जस्टिस और नॉन ब्राह्मण के रिप्रेजेंटेशन के इशू पर कांग्रेस के साथ इनका मतभेद हो जाता है और यह कांग्रेस छोड़कर 1925 में सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट लॉन्च करते हैं इस मूवमेंट पैदा करना था इन्होंने अपना जर्नल कुड़ी अरसू भी निकाला था जर्नल और मूवमेंट के द्वारा यह बिना ब्राह्मण प्रीस्ट के वेडिंग करना जबरदस्ती टेंपल में एंट्री करना और मनुस्मृति को जलन जैसी एक्टिविटीज को प्रमोट करते हैं इन फैक्ट साउथ इंडिया स्पेशली तमिलनाडु के सभी नॉन ब्राह्मण के लिए एक अंब्रेला मूवमेंट प्रोवाइड करने की कोशिश करते हैं 1937 के बाद जस्टिस पार्टी की लीडरशिप इनके हाथों में ए जाति है और इन्हें लगता है की इलेक्टरल पॉलिटिक्स छोड़कर पार्टी को नॉन ब्राह्मण मूवमेंट से एक रिफॉर्मेस्थ मूवमेंट में चेंज करने की जरूर है इसी सोच के साथ 1944 में सीलम कॉन्फ्रेंस में पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ और गड़गम कर दिया जाता है और फिर ये रिफॉर्म्स की र पर चल देते हैं हालांकि सितंबर 1949 में यह पार्टी स्प्लिट हो जाति है और अन्नादुरई की लीडरशिप में द्रव्यमंत्र कार्यक्रम यानी डीएमके की फॉर्मेशन होती है जो एक बार फिर से इलेक्टरल पॉलिटिक्स जॉइन करती है और 1967 में तमिलनाडु में पहले बार दम के गवर्नमेंट बंटी है और अन्नादुरई कम इलेक्ट्रिक हिंदुइज्म की भी कड़ी आलोचना करते हैं और हिंदू रिलिजन को ब्रा सी कंट्रोल का एक इंस्ट्रूमेंट कहते हैं वो मनु के लॉस को इन ह्यूमन बताते हैं और पुराना इसको परी टेल्स उन्होंने हिंदुइज्म का उपहास करते हुए कहा था की कुछ चीज ऐसी हैं जिन्हें साधारण नहीं जा सकता सिर्फ खत्म किया जा सकता है और ब्रा मैं निकाल हिंदुइज्म उन्हें में से एक है नायकर ने रिलिजन को एक सुपरस्टिशन बताया और द्रविडियन पर हिंदी इंपोज किया जान का भी विरोध किया वो होटल पर लगे हुए कास्ट के नाम वाले बोर्ड्स को डिस्ट्रॉय कर देते थे ब्राह्मण के होली थ्रेड को कैट देते थे डेट्स को चप्पल से मारते थे और मूर्तियां को भी तोड़ देते थे पेरियार की लिगसी आज भी द्रविडियन मूवमेंट के लिए इंस्पिरेशन का सोर्स है दोस्तों लोअर जाति मूवमेंट की बात दो बी आर अंबेडकर के बिना पुरी नहीं हो शक्ति तो आई उनके ग्रेट कंट्रीब्यूशन के बड़े में जानते हैं दो बी आर अंबेडकर और डिप्रेस्ड क्लासेस मूवमेंट अंबेडकर जी का जन्म 1891 में महाराष्ट्र के मेहर कास्ट में हुआ था बचपन से ही उन्हें कास्ट डिस्क्रिमिनेशन का सामना करना पड़ा था और आगे चलकर वह इसके अगेंस्ट बोलने वाले सबसे बड़े लीडर बनते हैं उन्होंने मुंबई के अल्फेंस्टीन कॉलेज से ग्रेजुएशन कंप्लीट की और अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से अपनी मां और फटी की डिग्री हासिल की जुलाई 1924 में अंबेडकर जी मुंबई में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना करते हैं इसका अनटचेबल्स की मोरल और मटेरियल प्रोग्रेस करना होता है वो एजीटेशन कभी रास्ता बनाते हैं और दिसंबर 197 में अनटचेबल्स के मंदिर में घुसने और पब्लिक वेल्स में से पानी लेने के राइट्स के लिए सत्याग्रह लॉन्च करते हैं इसे महाद सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है आगे बढ़ते हुए 1930 में अंबेडकर जी नेशनल पॉलिटिक्स में इंटर करते हैं और अनटचेबल्स के लिए सेपरेट इलेक्टोरेट्स की डिमांड करते हैं वो ब्रिटिशर्स द्वारा ऑर्गेनाइज्ड तीनों राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में पार्टिसिपेट करते हैं 1932 में ब्रिटिश पीएम द्वारा एनाउंसर कम्युनल अवार्ड में अंबेडकर जी की सेपरेट इलेक्टरेट की डिमांड एक्सेप्ट कर ली जाति है लेकिन गांधीजी द्वारा इसका विरोध करने और भूख हड़ताल शुरू करने पर अंबेडकर जी कंप्रोमाइज करने के लिए तैयार होते हैं और उनके और गांधी जी के बीच पूना पेस्ट साइन होता है जिसके अकॉर्डिंग सेपरेट इलेक्टरेट की डिमांड वापस ले ली जाति है और उसकी जगह जनरल कांस्टीट्यूएंसी में शेड्यूल कास्ट को रिजर्वेशन दिया जाता है अप्रैल 1942 में जो इंडिया पार्टी के रूप में अंबेडकर जी शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन फॉर्म करते हैं कांग्रेस पार्टी द्वारा उन्हें कांस्टीट्यूएंट असेंबली का मेंबर बनाया जाता है और फिर हमारे कॉन्स्टिट्यूशन की ड्राफ्टिंग कमेटी का हेड बनकर अंबेडकर जी अपना अनमोल योगदान देते हैं उनके प्रयासों से इंडिया को ऐसा कॉन्स्टिट्यूशन मिलता है जिसमें अनटचेबिलिटी को अबॉलिश कर दिया जाता है और जो फंडामेंटल राइट्स और एक क्वालिटी की गारंटी देता है इंडिपेंडेंस के बाद वो गवर्नमेंट में डॉ मेंबर की तरह कम करते हैं और हिंदू कोड बिल लेकर आते हैं हालांकि बिल्कुल लेकर जब असेंबली में विरोध होता है तो पीएम नेहरू इसे वापस ले लेते हैं इस बात से नाराज होकर अंबेडकर जी कैबिनेट से रिजाइन कर देते हैं हालांकि बाद में नेहरू अलग-अलग पार्ट्स में हिंदू कोड बिल पास करवा लेते हैं 1950 में अंबेडकर जी अपने फॉलोअर्स के साथ बुद्धिस्म अडॉप्ट कर लेते हैं यह उनका तरीका था हिंदू कास्ट सिस्टम को अपोज करने का उनके अनुसार क्योंकि हिंदू रिलिजन और उसका कास्ट सिस्टम अनटचेबल्स को इक्वल राइट्स देने के लिए तैयार नहीं है इसलिए अनटचेबल्स के पास हिंदुइज्म को छोड़ने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं राहत है दोस्तों अंबेडकर जी आज भी लोअर कास्ट पीपल के लिए इंस्पिरेशन का सोर्स हैं उनके विचार और आईडियोलॉजी आज भी देश के युवाओं को प्रेरणा देती हैं कंक्लुजन इस तरह कास्ट डिस्क्रिमिनेशन के अगेंस्ट लो और कास्ट पीपल ने अलग-अलग आंदोलन की अपने साथ हो रही इन ह्यूमन बिहेवियर को चैलेंज करने का इन्होंने साहस दिखाए इन्हीं के प्रयासों का नतीजा था की लो और कास्ट पीपल अपने अधिकारों की प्रति सजग हुए हालांकि निरसा करने वाली बात यह है की इतने प्रयासों के बाद भी कास्ट डिस्क्रिमिनेशन जैसे इविल से देश आजाद नहीं हो सका है आज भी अनटचेबल्स के अगेंस्ट किया जान वाले क्रीमिया अक्सर न्यूज़ पेपर की हैडलाइंस बनते रहते हैं यकीनन ऐसी हैडलाइंस को देखकर ज्योतिबा फूल पेरियार या अंबेडकर जैसे ग्रेट लीडर्स खुश नहीं होते हमें जरूर है हमें जरूर है इन ग्रेट लीडर्स के विजन को पूरा करने की एक कास्टलेस इक्वल सोसाइटी फॉर्म करने की ये किसी एक लीडर से संभव नहीं होगा बल्कि सभी देशवासियों को इसमें सतना होगा लॉर्ड लियोन और लॉर्ड रिपन दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं दो ऐसे ब्रिटिश वाइस-रॉयस की जिन्हें एक दूसरे का अपोजिट भी कहा जा सकता है एक तरफ थे लॉर्ड लिटिल जिन्हें याद किया जाता है उनकी रिप्रेसिव पॉलिसीज के लिए और दूसरी तरफ लाउडरपन जिन्हें उनकी लिबरल पॉलिसीज के लिए जाना जाता है आई शुरू करते हैं लॉर्ड लिटन से लोड लेटर 1876 तू 1880 का चार्ज लिया था वह प्रोफेशन से डिप्लोमा थे और अलग-अलग कैपेसिटीज में ब्रिटिश फॉरेन ऑफिस को सर्व कर चुके थे इसके साथ ही वो एक रिपीटेड के नाम से जान जाते थे 1876 से पहले तक उन्हें एडमिनिस्ट्रेशन का कोई एक्सपीरियंस नहीं था और ना ही वह इंडियन अफेयर्स की जानकारी थे तो इंडिया का वायसराय बने के बाद उन्होंने क्या-क्या कम किया आई जानते हैं सबसे पहले जानते हैं 187678 के फैमिन में लॉर्ड लियोन के रोल को डी फैमिन का 187678 दोस्तों 1876 से 78 के बीच इंडिया फैमिन का सामना करना पड़ता है इसका सबसे ज्यादा असर दिखता है मद्रास मुंबई मैसूर हैदराबाद और सेंट्रल इंडिया और पंजाब के कुछ पार्ट्स में एक एस्टीमेट के अनुसार इस फेमस से एक साल के ही अंदर करीब 5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई थी प्रेसीडेटशिप में कमीशन पॉइंट करते हैं अपनी रिकमेंडेशन देती है जैसे की सभी प्रोविंस में फंड बनाया जाए नेक्स्ट बात करते हैं रॉयल टाइटल ट्रैक 1876 की और 1877 के दिल्ली दरबार की डी रॉयल टाइटल ट्रैक 1876 और दिल्ली दरबार ऑफ 1877 ब्रिटिश पार्लियामेंट 1876 में रॉयल टाइटल्स एक्ट पास करती है जिसके अनुसार इंग्लैंड की क्वीन विक्टोरिया को इंडिया की इंप्रेस होने का टाइटल मिलता है इसे कैसे रे हिंद भीगा जाता था लॉर्ड लियोन इंडिया में इसे सेलिब्रेट करने के लिए 1877 में डेली दरबार ऑर्गेनाइजर करते हैं जिसमें फैमिली क्वीन विक्टोरिया को इंडिया की रानी अनाउंस किया जाता है ध्यान देने वाली बात यह है की यह दरबार तब ऑर्गेनाइजर किया जा रहा था जब इंडिया में फेम के करण लोग भूखे मा रहे थे और ऐसे समय में लोगों की हेल्प करने की जगह लिटिल दरबार में लाखों खर्च कर देते हैं इससे पता चला है की लियोन के मां में इंडिया के लोगों के लिए किसी भी तरह की कोई सिंपैथी नहीं थी उनके इस एक्ट से लोगों में ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट डिस्कंटेंट बढ़ाने लगता है और नेशनलिस्ट फीलींगस और भी प्रखर होती हैं अब बात करते हैं वर्नाकुलर प्रेस एक्ट मार्च 1878 दोस्तों लॉर्ड लिटन की इस तरह पॉलिसीज को वर्नाकुलर प्रेस यानी की इंडियन लैंग्वेज में छापने वाले न्यूज़पेपर और जर्नल्स ओपनली क्रिटिसाइज करने लगता की कैसे फेमेन से बुरी तरह फैक्ट्री लोग गवर्मेंट से कोई हेल्प ना मिलने की वजह से रोबरी करने के लिए मजबूर हो गए हैं का सकते हैं की वर्नाकुलर प्रेस ब्रिटिश रूल पिक्चर सबके सामने लाने का कम कर रही थी इस तरह की भड़काने वाले आर्टिकल्स की तेजी से होती ग्रोथ लॉर्ड लियोन को परेशान करती है और वो रिप्रेसिव पॉलिसी फॉलो करने का डिसीजन लेते मार्च 1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पास कर देते हैं जिसका होने वाले गवर्नमेंट के क्रिटिसिजम को रोकना था एक्ट के अनुसार वर्नाकुलर न्यूजपेपर्स के पब्लिशर को मजिस्ट्रेट के साथ बंद साइन करना था की वो ऐसा कोई भी आर्टिकल पब्लिश नहीं करेंगे जिससे लोगों के अंदर ब्रिटिश गवर्मेंट किया अगेंस्ट दिस अफेक्शन पैदा हो और अगर वो इसको वायलेट करते हैं तो उनके प्रिंटिंग इक्विपमेंट को सीस भी किया जा सकता है मजिस्ट्रेट के एक्शन के अगेंस्ट कोर्ट में कोई अपील भी नहीं की जा शक्ति थी इस एक्ट के थ्रू लोड लिटिल ने फ्रीडम ऑफ स्पीच के राइट को छन लिया था और सबसे बड़ी बात थी की यह सिर्फ वर्नाकुलर प्रेस के लिए ही था एक तरह से डिसलाॅयल नेटिव प्रेस और लॉयल एंग्लो इंडियन प्रेस के बीच भेदभाव का प्रतीक था इस तरह के डिस्क्रिमिनेशन से लोगों को समझ आने ग गया की ब्रिटिशर्स की थ्योरी ऑफ व्हाइट मेंस बर्डन बस एक दिखावा है वर्नाकुलर प्रेस एक्ट से बचाने के लिए अमृत बाजार पत्रिका खुद को रातों रात इंग्लिश पब्लिकेशन बना लेती हैं इस एक्ट से वर्नाकुलर प्रेस को तो कंट्रोल कर लिया गया लेकिन गवर्नमेंट के अगेंस्ट जो डिस्कंटेंट था वो कम नहीं हुआ था बस उसको ओपनली एक्सप्रेस नहीं किया जा रहा था इससे डिस्कंटेंट अंदर ही अंदर और ज्यादा बढ़ता है अब बात करते हैं लियोन के एडमिनिस्ट्रेशन के एक और रिप्रेसिव मेजर की जो था 1878 का आर्म्स एक्ट 1878 इस एक्ट ने बिना लाइसेंस के हथियार रखना या खरीदने बेचे को क्रिमिनल ऑफेंस डिक्लेअर कर दिया लेकिन एक्ट का वर्स्ट फीचर था इसमें शामिल रेसियल डिस्क्रिमिनेशन क्योंकि यूरोपियंस और एंग्लो इंडियन पर यह एक्ट लागू नहीं होता था मतलब इंडियन के हथियार रखना से ही परेशानी थी दोस्तों रेसियल डिस्क्रिमिनेशन की बात करें तो यह ब्रिटिश की सभी पॉलिसी में दिखता है और इसका सबसे बड़ा एग्जांपल था सिविल सर्विसेज में इंडियन की अपॉइंटमेंट खाने को तो 1833 के चार्ट एक्ट ने इंडियन के लिए सिविल सर्विसेज का रास्ता खोल दिया था लेकिन रियलिटी में यूरोपियन ब्यूरो कृषि कभी भी इंडियन को अपना हिस्सा नहीं बनाना चाहती थी और इसीलिए लॉर्ड लिटन 1878 में स्टेट्यूटरी सिविल सर्विस का प्लेन आगे रखते हैं इसके अनुसार गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रोविंशियल गवर्मेंट के रिकमेंड करने पर कुछ इंडियन को स्टेट्यूटरी सिविल सर्विसेज में एम्पलाई कर शक्ति थी लेकिन इसमें भी शर्ट यह थी की यह अप्वाइंटमेंट्स गवर्नेंस सर्विस में होने वाले टोटल अप्वाइंटमेंट्स के 16 से ज्यादा नहीं हो सकते थे इसके साथ ही स्टेट्यूटरी सिविल सर्विस के स्टेटस और सैलरी भी कवमेंट सर्विसेज के जैसे नहीं थे लॉर्ड लिटन है तो यह भी प्रपोज दिया था की कोविनेटेड सर्विसेज को पुरी तरह से इंडियन के लिए क्लोज कर दिया जाए लेकिन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इस प्रपोज पर एग्री नहीं इंडियन को एग्जाम में कंप्लीट करने से डिस्चार्ज करने के लिए मैक्सिमम आगे को 21 से घटकर 19 कर दिया जाता है इस तरह से इंडियन को सिविल सर्विसेज में आने से रोकने की हर संभव कोशिश की गई थी अब बात करते हैं फ्री ट्रेड की फ्री ट्रेड दोस्तों लिटन ने इंग्लैंड की टेक्सटाइल इंडस्ट्री के इंटरेस्ट को ध्यान में रखते हुए 1879 में कॉटन क्लॉथ पर लगे वाली इंपोर्ट ड्यूटी को अबॉलिश कर दिया था इससे इंडिया में डेवलप हो रही टेक्सटाइल इंडस्ट्री को नुकसान होता है और ब्रिटिश इंडस्ट्रीज को फायदा पॉलिसी हुआ था वार लियोन के प्रोवोग करने पर ही हुआ था और और में एक फेलियर साबित हुई इसमें लिटन इंडिया के रिवेन्यू का बड़ा हिस्सा खर्च कर इन पॉलिसी इंडियन को ब्रिटिश रूल नेचर का एहसास होने लगता है एजुकेटेड इंडियन को रिलाइज होता है की ब्रिटिश कैसे उनके साथ डिस्क्रिमिनेशन कर रहे हैं और इसी वजह से नेशनलिज्म की भावना और ज्यादा प्रमोट होती है वायसराय की पोस्ट से रिजाइन कर देते हैं और नए वायसराय बनते हैं लॉर्ड रिपन तो आई अब लॉर्ड रिपन के बड़े में बात करते हैं 84 दोस्तों 1880 में इंग्लैंड की लीडरशिप में लिबरल पार्टी पावर में आई है ग्लैडस्टिन इंडिया के लिए अपनी पॉलिसी डिक्लेअर करते हुए कहते हैं की ब्रिटिशर्स का रूल इंडिया की नेटिव लोगों के लिए प्रॉफिटेबल होना चाहिए और हमारी पॉलिसी होगी की हम इंडियन को ये दिखा और समझा भी सके की कैसे ब्रिटिश रूल उनके फायदे के लिए ही है और अपनी इस पॉलिसी को इंप्लीमेंट करने के लिए ग्लैडस्टिन ने लॉर्ड रिपन को इंडिया का वायसराय पॉइंट किया था लॉर्ड रिपन ब्रेड आउट लुक रखना वाले एक ऑनेस्ट परसों थे इसके साथ ही वह डेमोक्रेट भी थे रिपन का पॉलीटिकल नजरिया अपने प्रीति से लोड लिटिल से एकदम उल्टा था यह इंडिया की तरफ ड्यूटी महसूस करते थे लॉर्ड रिपन इंडिया के एडमिनिस्ट्रेशन को लिबरलाइज करने के लिए स्टेप्स लेते हैं आई जानते हैं उनके स्टेप्स के बड़े में शुरू करेंगे इंडिया में आए सबसे पहले फैक्ट्री एक्ट 1881 दोस्तों फैक्ट्री लेबर्स की कंडीशन इंप्रूव करने के लिए लॉर्ड रिपन 1881 में पहले फैक्ट्री एक्ट पास करते हैं यह एक्ट सोर्सेस यादव वर्कर्स रखना वाली फैक्टरीज पर लागू होना था इस एक्ट ने 7 साल से कम आगे के बच्चों के एंप्लॉयमेंट पर प्रतिबंध लगा दिया इसके साथ ही 12 साल से कम आगे वालों के लिए वर्किंग हॉर्स को लिमिट कर दिया और डेंजरस मशीनरी को फैंस करने के लिए भी कहा इन इंप्लीमेंटेशन को सुपरवाइज्ड करने के लिए इंस्पेक्टर्स को भी अप्वॉइंट किया गया था यह एक्ट अपने स्कोप में भले ही लिमिटेड था लेकिन इंडिया की इंडस्ट्रियल हिस्ट्री में एक नई फैज की शुरुआत करता है पहले बार लेबर लॉस को लेकर एक पॉजिटिव खबर हमें देखने को मिलती है आगे चलकर इसी के बेसिस पर बटर लेबर लॉस कंट्री में ले गए इसके बाद लॉर्ड रिपन का मेजर स्टेप था वर्नाकुला एक्ट को रिपीट करना और लोकल सेल्फ गवर्नमेंट का रेजोल्यूशन पास करना रिपील ऑफ डी वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1882 और रेजोल्यूशन ऑन लोकल सेल्फ गवर्नमेंट 1882 दोस्तों की पॉलिसी की वजह से बड़े हुए डिस्कंटेंट को कम करने की कोशिश करते हैं इसके लिए सबसे पहले वह रिटन द्वारा ले गए वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को 1882 में वापस ले लेते हैं बराबर की फ्रीडम मिल जाति है रिपन के इस एक्ट से इंडिया में पब्लिक ओपिनियन को कॉन्सिलिएट करने में मदद मिलती है लेकिन लॉर्ड रिपन को सबसे ज्यादा याद किया जान वाले कम हैं उनका 188 2 में पास किया गया लोकल सेल्फ गवर्नमेंट पर रेजोल्यूशन इसके लिए इन्हें इंडिया में फादर ऑफ लोकल सेल्फ गवर्नमेंट भी कहा जाता है लॉर्ड रिपन इंडिया में म्युनिसिपल इंस्टीट्यूशंस की शुरुआत करते हैं जिसका लोगों को पॉलीटिकल एजुकेशन देना था अब बात करते हैं उनके एजुकेशनल रिफॉर्म्स की एजुकेशनल रिफॉर्म्स 1882 में ही सब विलियम हंटर की चैंपियनशिप में एक एजुकेशन कमीशन को अप्वॉइंट किया जाता है इसका मैंडेट 1854 के वुड डिस्पैच के बाद इंडिया में एजुकेशन फील्ड में हुई प्रोग्रेस को रिव्यू करना और आगे की पॉलिसी के लिए सुझाव देना था कमीशन प्राइमरी एजुकेशन के एक्सपेंशन और इंप्रूवमेंट के लिए गवर्नमेंट की स्पेशल रिस्पांसिबिलिटी पर जोर देती है इसका सुझाव था की प्राइमरी एजुकेशन को न्यूली इस्टैबलिश्ड म्युनिसिपल और जिला बोर्ड्स की केयर में दे दिया जाए इसके साथ ही सेकेंडरी एजुकेशन में कोर्सेज को दो भाग में बांट दिया जाए पहले लिटरेरी एजुकेशन जो यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम्स के लिए स्टूडेंट को तैयार करें और दूसरा प्रैक्टिकल कोर्स होना चाहिए जो कमर्शियल करियर के लिए तैयार करता इसके अलावा कमीशन ग्रैंड सिस्टम को सेकेंडरी और हायर एजुकेशन तक एक्सटेंड करने का सुझाव भी देती है कमीशन ने फीमेल एजुकेशन को स्प्रेड करने के लिए भी सजेशन दिए थे कमीशन के ज्यादातर सुझावों को गवर्नमेंट एक्सेप्ट कर लेती है इसे देश में काफी तेजी से स्कूल की ग्रोथ देखने को मिलती है अब बात करते हैं उनकी लैंड रिवेन्यू पॉलिसी की रेजोल्यूशन ऑन लैंड रिवेन्यू पॉलिसी दोस्तों लैंड रिवेन्यू पॉलिसी में भी कुछ चेंज इंट्रोड्यूस करने की कोशिश की थी वो बंगाल के परमानेंट सेटलमेंट में कुछ मोडिफिकेशन प्रपोज करते हैं वह रियड को परमानेंट और सिक्योरिटी का शोरूम देना चाहते थे इसके साथ ही गवर्नमेंट की तरफ से प्राइस राइस के अलावा किसी भी और ग्राउंड पर आगे से लैंड रिवेन्यू ना बढ़ाने की कमिटमेंट देना चाहते थे लेकिन बंगाल के जमींदारा उनके इस मेजर का विरोध करते हैं साथ ही प्रेजेंस का सपोर्ट भी उन्हें नहीं मिलता क्योंकि लगता है की एंग्लो इंडियन ब्यूरो कृषि तो जमींदार से भी ज्यादा बुरी है सेक्रेटरी ऑफ स्टेट भी रिपन के प्रपोज को फीवर नहीं करते इसलिए उनका यह रेजोल्यूशन इंप्लीमेंट नहीं हो पता रेजोल्यूशन इंप्लीमेंट भले ही एन हुआ हो लेकिन इससे यह पता चला है की लॉर्ड रिपन की इंटेंशंस अच्छी थी वो बंगाल की मदद ही करना चाहते थे अब बात करते हैं इल्बर्ट बिल्कुल ट्रैवर्सिटी वे इल्बर्ट बिल्कुल ट्रॉफी 18834 दोस्तों 1883 में वायसराय काउंसिल के डॉ मेंबर से क एल्बो ने एक बिल इंट्रोड्यूस किया था जिसे इल्बर्ट बिल के नाम से जाना जाता है इसकी इंट्रोडक्शन से पहले तक क्रिमिनल केसेस में यूरोपियंस का ट्रायल इंडियन मजिस्ट्रेट नहीं कर सकते थे उनका ट्रायल सिर्फ यूरोपियन जज ही कर सकते थे अल्बर्ट बिल इसको चेंज करने के लिए लाया गया था इसके अनुसार इंडियन जज भी यूरोपियंस के कैसे को प्रेसीडे कर सकते थे लेकिन अल्बर्ट बिल के इस प्रोविजन से एक बहुत बड़ी कंट्रोवर्सी क्रिएट हो जाति है और इसलिए इंडियन जज के सामने ट्रायल फेस करने की बात भी गलत थी इस बिल के अगेंस्ट कोलकाता में रहने वाली यूरोपियन बिजनेस कम्युनिटी प्रोटेस्ट करना शुरू कर देती है ऐसा इसलिए क्योंकि यह अपने इंडियन सर्वेंट को इल्ट करते थे और कई बार उन्हें जान से ही मार देते थे ऐसे केसेस में इंग्लिश जज तो इन्हें बहुत कम सजाई है बिना सजा के ही जान देते थे इसलिए अपने स्पेशल प्रिविलेज को डिफेंड करने के लिए यूरोपियन कम्युनिटी एक डिफेंस संगठन बनती है यह लोग 15000 का फंड भी कलेक्ट करते हैं जिसकी मदद से ये इंडिया और लंदन दोनों ही जगह मिल्क अगेंस्ट प्रोपेगेंडा शुरू कर देते हैं यह लोग वाइस राय लॉर्ड रिपन को अब उसे करना भी शुरू कर देते हैं और ब्रिटिश गवर्नमेंट से कहते हैं की रिपन को इंडिया से वापस बुला लिया जाए कोलकाता में रेसियल राइट्स की संभावना बढ़ाने लगती है लंदन की न्यूज़ पेपर्स में भी रिपन की पॉलिसी की आलोचना होने लगती है यहां तक यह बिल समझदारी से भारत नहीं है बढ़नी हुई प्रोटेस्ट के आगे आखिरकार लॉर्ड रिपन को ही झुकना पड़ता है जिसके बाद इंडियन जज किसी यूरोपियन का कैसे तभी जज कर सकता था जब जूरी की एटलिस्ट 50% मेंबर्स यूरोपीय बिल की कंट्रोवर्सी और कंप्रोमाइज ने इंडियन को ब्रिटिशर्स के और ज्यादा गेस्ट कर दिया जी तरह ब्रिटिशर्स ने अपने हक की बात प्रोटेस्ट करके मानव ली थी उसे इंडियन भी सिख गए की उन्हें भी इसी रास्ते पर चलना होगा और इस वजह से ये इनडायरेक्ट इंडियन नेशनल मूवमेंट और 1885 में कांग्रेस की स्थापना को प्रमोट करने के लिए रिस्पांसिबल था कंक्लुजन दोस्तों कंक्लुजन दोस्तों ये थे वायसराय लॉर्ड रिपन के इंडिया में किया गए रिफॉर्म्स हम का सकते हैं की उन्होंने इंडिया में लिबरल एडमिनिस्ट्रेशन को प्रमोट करने की पुरी कोशिश की वह इसमें कितने सफल हुए की तरह याद किया जाता है [संगीत] उन्हें लगता है की उनका मिशन इंडिया होने से पहले ही 1884 में रिजाइन कर देते हैं और एक हरे हुए इंसान की तरह इंग्लैंड लोट जाते हैं लॉर्ड रिपन एक्यूमेंटेरियन और लिबरल थे लेकिन ब्रिटिश कॉलोनियल रूल के इंटरेस्ट को आगे ले जान के लिए उनके जैसे इंसान की जरूर नहीं थी इसी वजह से इंडिया में उनका मिशन फेल राहत है हालांकि वो हमें ब्रिटिशर्स की पॉसिबल कमीन सीड्स जरूर दिखा जाते हैं दोस्तों इस समय दुनिया में हर तरफ नेशनलिज्म तेजी से स्प्रेड हो रहा था और इंडिया में इस नेशनलिज्म की स्पिरिट को जागने में लॉर्ड लिटन दोनों ही इंस्ट्रूमेंट साबित होते हैं लेकिन जहां एक एडवर्सरी की तरह इंडिया में नेशनलिज्म की आज को चिंगारी देते हैं इस स्पिरिट को आगे ले जाते हैं [संगीत] की उनका जन्म इंडिया का वायसराय बने के लिए ही हुआ है वायसराय बने से पहले ही लोड कर्जन इंडिया के बड़े में बहुत कुछ जानते थे वह इससे पहले कई बार इंडिया ए भी चुके थे 1899 में इंडिया के वाइस रॉयल की पोस्ट पर अपॉइंटमेंट लॉर्ड कर्जन के लिए किसी सपना की पूरा होने जैसा था आई जानते हैं लॉर्ड कर्जन कैसे अपने सपना को सच्चाई में बदलते हैं और इंडिया आने के बाद वो क्या क्या करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों इंडिया का वायसराय बन्ना अपने आप में बहुत बड़ा टास्क तथा इसके अलावा 1896 के फेमो और उसके बाद प्रॉब्लम और ज्यादा बड़ा दी थी रेवेन्यू कम होते जा रहे थे इसके साथ ही एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी को भी समय के साथ बदलने की जरूर महसूस हो रही थी और ब्रिटिशर्स के लिए इससे भी ज्यादा गंभीर समस्या थी उसे समय के इंडिया का पॉलीटिकल क्लाइमेट क्योंकि इंडियन में अवेयरनेस ए रही थी और वह ब्रिटिश से यह सवाल करने ग गए थे की उन्हें इंडिया पर रूल करने का अधिकार आखिर किसने दिया ऐसी सिचुएशन में इंडिया में अपनी टास्क का एक बहुत क्लियर कॉन्सेप्ट लोड कर्जन के दिमाग में था वो पुरी तरह कन्वेंस थे की एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी को तुरंत डिपार्मेंट रिफॉर्म्स की पुलिस रिफॉर्म्स दोस्तों रिफॉर्म्स के लिए कर्जन का मेथड था एक एक्सपर्ट कमीशन को अप्वॉइंट करना यह कमीशन डिपार्मेंट की वर्किंग की पुरी जांच करती थी और फिर इसकी रिपोर्ट के आधार पर जरूरी रिफॉर्म्स के लिए कानून बना दिया जाता था 1912 फ्रीजर की अध्यक्षता में पुलिस कमीशन को अप्वॉइंट किया जाता है कमीशन अपनी रिपोर्ट 193 में सबमिट कर दी है जिसमें पुलिस फोर्स के इंप्रूवमेंट के लिए कई सारे सुझाव दिए गए थे जैसे की सभी रैंक्स की सैलरी इंक्रीज करना सभी प्रोविंस में पुलिस फोर्स की स्ट्रैंथ को बढ़ाना ऑफिसर और कांस्टेबल दोनों के लिए ही ट्रेनिंग स्कूल खोलना ही रैंक्स के लिए प्रमोशन की जगह डायरेक्ट रिक्रूटमेंट करना प्रोविंशियल पुलिस सर्विस को सेटअप करना सेंट्रल डिपार्मेंट ऑफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस को क्रिएट करके इंप्लीमेंट कर दिया जाता है यह तो बात हुई एजुकेशनल रिफॉर्म्स दोस्तों लॉर्ड गर्जन का मानना था की इंडिया में एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस पॉलीटिकल रिवॉल्यूशनरीज को जन्म देने वाली फैक्टरीज बन गई हैं इसके साथ ही एजुकेशन सिस्टम के खराब होते स्टैंडर्ड और उसमें बढ़ते इन डिसिप्लिन ने कर्जन को परेशान किया हुआ था इसलिए 192 में वो यूनिवर्सिटी कमीशन को पॉइंट करते हैं कमीशन की रिकमेंडेशन के आधार पर 1904 में इंडियन यूनिवर्सिटी एक्ट पास किया जाता है इस एक्ट के द्वारा यूनिवर्सिटी के ऊपर गवर्नमेंट कंट्रोल को बड़ा दिया गया था एजुकेटेड इंडियन ने कमीशन की रिपोर्ट और रिजेक्ट का काफी विरोध भी किया था इस तरह लौटकर्जन कोशिश करते हैं की एजुकेशन सिस्टम को इंडियन नेशनलिज्म को सपोर्ट करने से रॉक जाए लेकिन तब तक शायद डर हो चुकी थी नेशनलिज्म का जिन चिराग से बाहर ए चुका था और यूनिवर्सिटी पर कंट्रोल कर लेने से उसको चिराग में वापस नहीं भेजो जा सकता था बल्कि इस एक्ट ने तो आज में गी डालने का ही कम किया स्टूडेंट और उनके नेशनलिज्म की मिसल हम अगले वीडियो में स्वदेशी मूवमेंट में देखेंगे अब बात करते हैं इकोनामिक रिफॉर्म्स दोस्तों लॉर्ड कर्जन के इकोनामिक रिफॉर्म्स में आते हैं उनके फेम लैंड रिवेन्यू इरिगेशन एग्रीकल्चर रेलवे टैक्सेशन और ई एक सत्र से रिलेटेड लेजिसलेशंस आई एक-एक करके इनके बड़े में जानते हैं फेमस सबसे पहले बात करते साउथ सेंट्रल और वेस्टइंडीज इंडिया का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ था इस दौरान लॉर्ड कर्जन ने काल से प्रभावित लोगों की हर संभव मदद की थी हम का सकते हैं की यह पहले ऐसे वायसराय थे जिन्होंने फेम की समस्या को ह्यूमन टच के साथ टैकल करने की कोशिश की थी कल्टीवेटर को रिवेन्यू पेमेंट से भी एग्जैक्ट कर दिया गया है कमीशन 1901 में ही अपनी रिपोर्ट सबमिट कर देती है कमीशन का कहना था की फेम के समय जो रिलीफ डिस्ट्रीब्यूशन की गई थी वो बहुत ज्यादा थी इसके साथ ही ऐसे मदर्स पर जरूर से ज्यादा इंप्रेस किया गया था जिनकी जरूर ही नहीं थी कमीशन एबल बॉडी परसों के लिए टास्क फोर्स से पेमेंट करने का सुझाव देती है साथ ही फॉदर फेम से डील करने के लिए रूल्स भी तैयार करती है यह तो बात हुई लौटकर्जन के फैमिन रिलीफ मेजर्स की आई बात करते हैं उनके एग्रीकल्चरल रिलेटेड रिफॉर्म्स की एग्रीकल्चर लैंड रिवेन्यू और इरिगेशन लॉर्ड कर्जन रिवेन्यू एडमिनिस्ट्रेशन को इंप्रूव करने के लिए 16th जनवरी 192 को लैंड रेजोल्यूशन इंट्रोड्यूस करते हैं इसमें लैंड रिवेन्यू के लिए तीन प्रिंसिपल्स फिक्स किया जाते हैं जो थे पहले की रिवेन्यू को हमेशा ग्रैजुअली ही इंक्रीज किया जाएगा दूसरा प्रिंसिपल था की रिवेन्यू कलेक्ट करते समय एग्रीकल्चर को कोई नुकसान ना हो इसका पूरा ध्यान रखा जाए और तीसरा था की ड्रॉट या और किसी मुश्किल के समय प्रेजेंट की तुरंत हेल्प की जाए इरिगेशन रिलेटेड रिफॉर्म्स के लिए 1901 में कमीशन फॉर्म की जाति है कमीशन आने वाले 20 सालों में इरिगेशन के ऊपर अतिरिक्त खर्च करने का सुझाव देती है कर्जन के समय में झेलम कैनाल को कंप्लीट करने के साथ अपार झेलम और लोअर बड़ी दवा कनाल का कम भी शुरू हो जाता है इसके साथ ही 194 में कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटीज एक्ट के द्वारा कल्टीवेटर के लिए सस्ते रेट्स पर लोन देने का प्रोविजन किया गया था इंडियन एग्रीकल्चर और लाइव स्टॉक की इंप्रूवमेंट के लिए लोट कर्जन इंस्पेक्टर जनरल के अंदर इंपीरियल एग्रीकल्चर डिपार्मेंट भी सेटअप करते हैं जिसका कम कल्टीवेशन के साइंटिफिक मैथर्ड को प्रमोट करना था इस तरह लौटकर्जन इंडिया में एग्रीकल्चर और प्रेजेंस की कंडीशन को इंप्रूव करने की कोशिश करते हैं एग्रीकल्चर रिफॉर्म्स के बाद आई जानते हैं रेलवे रिलेटेड रिफॉर्म्स के बड़े में रेलवे द्वारा इंट्रोड्यूस किया जान के बाद से ही रेलवे का प्रचार प्रसार बहुत तेजी से इंडिया में हो रहा था इसको और आगे ले जान का कम करते हैं लोट कर्जन रेलवे की डेवलपमेंट पर खास ध्यान देते हैं उनके समय में रेलवे की एक्जिस्टिंग लाइंस को इंप्रूव किया जाता है और साथ ही नई लाइंस पर भी कम शुरू किया जाता है रेलवे की वर्किंग और एडमिनिस्ट्रेशन पर एडवाइस देने के लिए इंग्लैंड से रेलवे एक्सपर्ट मिस्टर थॉमस रॉबर्टसन को बुलाया जाता है रॉबर्टसन के अनुसार रेलवे की कंडीशन अनसेटिस्फेक्ट्री थी और इसमें ऊपर से लेकर नीचे तक रिफॉर्म की जरूर थी यह कहते हैं की रेलवे लाइंस को कमर्शियल इंटरप्राइजेज की तरफ बिल्ड किया जाना चाहिए है इसके साथ ही रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े सभी मैटर्स को देखने के लिए एक रेलवे बोर्ड सेटअप करने का सुझाव भी देते हैं लौटकर्जन कमीशन की रिकमेंडेशन को एक्सेप्ट कर लेते हैं और रेलवे का मैनेजमेंट जिसे अभी तक पब्लिक वर्क डिपार्मेंट देखा था रेलवे बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया जाता है अब बात करते हैं टैक्सेशन और ई रिलेटेड मेजर्स की ई और टैक्सेशन दोस्तों 1899 के इंडियन कॉलेज और पेपर ई एक्ट के द्वारा ब्रिटिश ई को इंडिया में लीगल टेंडर डिक्लेअर कर दिया जाता है और एक पाउंड की कीमत ₹15 के बराबर राखी जाति है इसके साथ ही कर्जन शॉर्ट्स टैक्स का रेट भी कम करते हैं [संगीत] दोस्तों यह थे लॉर्ड कर्जन के इंपॉर्टेंट इकोनामिक रिफॉर्म्स अब हम जानते हैं उनके समय में होने वाले आर्मी रिफॉर्म्स के बड़े में आर्मी रिफॉर्म्स लौटकर्जन के समय में हुए आर्मी के रीऑर्गेनाइजेशन का श्री जाता है लॉर्ड किचन को यह 192 से लेकर 198 तक इंडिया के कमांडर इन के रहे थे इंडियन आर्मी को दो कमांड्स में डिवाइड कर दिया जाता है नॉर्दर्न कमांड और सदन कमांड नॉर्दर्न कमांड का हेड क्वार्टर मुरी में और सदन कमान का हैडक्वाटर्स पुणे में था आर्मी की हर डिवीजन में तीन ब्रिगेड बनाई जाति हैं जिसमें दो ब्रिगेड इंडियन बटालियन की और एक ब्रिगेड इंग्लिश बटालियन की होती थी इसके साथ ही ऑफिसर्स को ट्रेन करने के लिए क्वेटा में ट्रेनिंग कॉलेज भी सेटअप किया जाता है ब्रिटिश ट्रूप्स को बेटा आर्म्स की सप्लाई शुरू होती है इसके अलावा आर्मी की हर बटालियन को एक सीवर टेस्ट पास करना होता था जिसका नाम रखा गया इस डिपार्मेंट का खर्चा और ज्यादा बाढ़ जाता है दोस्तों लौटकर ने असिएंट मॉन्यूमेंट्स के लिए भी एक एक्ट पास किया था आई जानते हैं उसके बड़े में असिएंट मॉन्यूमेंट्स एक्ट 1904 लोड कर्जन हिस्ट्री के स्टूडेंट रहे थे और आर्कियोलॉजी में उनका दीप इंटरेस्ट था इसीलिए इंडिया के हिस्टोरिकल मॉन्यूमेंट्स को रिपेयर रिस्टोर और प्रोटेस्ट करने के लिए वो 1904 में असिएंट मॉन्यूमेंट्स एक्ट पास करते हैं हिस्टोरिकल बिल्डिंग की रिपेयर के लिए 50000 पाउंड की अमाउंट सैंक्शन कर दी जाति है कर्जन इंडियन स्टेटस पर भी प्रेशर डालते हैं की वो अजंता एलोरा और सांची स्तूप जैसे इंडिया के रिच हेरिटेज को प्रिजर्व करने का कम करें इंडिया में आज भी स्मारक कंजर्वेशन के लिए एक बेडरॉक की तरह माना जाता है दोस्तों इन सभी रिफॉर्म्स के अलावा लौटकर ने 1899 में कोलकाता कॉरपोरेशन एक्ट भी पास किया था इस एक्ट के द्वारा कर्जन लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के फील्ड में किया गए लॉर्ड रिपन के कम को अंडो करना चाहते थे ये एक्ट कॉरपोरेशन में इलेक्ट्रिक मेंबर्स की स्ट्रैंथ को कम कर देता है जिससे कलकट कॉरपोरेशन और उसकी कमेटी में ब्रिटिश एलिमेंट की मेजॉरिटी बनी रहती है इंडियन मेंबर्स एक्ट से खुश नहीं थे और 28 मेंबर्स अपना विरोध दिखाने के लिए रिजाइन भी कर देते हैं लेकिन कर्जन पर इनकी प्रोटेस्ट का कोई असर नहीं पड़ता बल्कि वह तो अपने कम से इतने खुश थे की 1903 में एक बैंक्विट में कहते हैं की वायसराय की पोस्ट से रिटायर होने के बाद वो कोलकाता का मेयर बन्ना पसंद करेंगे ये एक अकेला ऐसा कम नहीं था कर्जन का जिसने इंडियन को प्रोटेस्ट करने के लिए मजबूर किया उनका सबसे कंट्रोवर्शियल डिसीजन तो बंगाल का पार्टीशन था तो आई उसके बड़े में जानते हैं पार्टीशन ऑफ बंगाल 1905 दोस्तों 1905 में बंगाल प्रेसीडेंसी का पार्टीशन कर्जन के सबसे ज्यादा क्रिटिसाइज होने वाले मूव्स में से एक था इसका विरोध एन सिर्फ बंगाल में बल्कि पूरे भारत में किया जाता है आई समझते हैं कर्ज ने ये डिसीजन आखिर क्यों लिया था बंगाल प्रॉब्लम्स उसे समय इंडिया का सबसे ज्यादा पापुलेशन वाला प्रॉफिट था लगभग 8 करोड़ की जनसंख्या थी बंगाल की जिसमें आज का वेस्ट बंगाल बिहार छत्तीसगढ़ के कुछ हिस उड़ीसा असम और आज का बांग्लादेश भी शामिल था कर्जन कहते हैं की पार्टीशन कायम इतनी बड़े प्रॉब्लम्स के एडमिनिस्ट्रेशन को इजी बनाना है लेकिन उनका एक्चुअल मोटिव दो बंगाल प्रोविंस से उठ रही लाउड पॉलीटिकल वॉयस को कृष करना था और उनके बीच रिलिजियस ड्राइव और अपोजिशन को जन्म देना था इसे समझना के लिए पार्टीशन की प्लेन को समझना जरूरी है प्लेन की अकॉर्डिंग 3.1 करो की पापुलेशन के साथ ईस्ट बंगाल और असम को एक नया प्रोविंस बन्ना था इसमें मुस्लिम हिंदू पापुलेशन का रेशों 3:2 था वेस्टर्न बंगाल प्रोविंस में हिंदू मेजॉरिटी रहने वाली थी नेशनलिस्ट लीडर्स कहते हैं की ये स्कीम लोगों को रिलिजियस के बेसिस पर डिवाइड करने के लिए बनाई गई थी इससे मुस्लिम को हिंदू के अगेंस्ट खड़ा कर दिया जाएगा और उनकी यह बात बेगुन याद नहीं थी ये साबित होता है पूर्वी बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर की एक डिक्लिनेशन से जिसमें वो कहते हैं की उनकी दो वाइव्स में से मोहम्मडन वाइफ उनकी फेवरेट है एवं लॉर्ड कर्जन भी पूर्वी बंगाल की डोर के समय कहते हैं की पार्टीशन का एकम मोहम्मडन प्रोविंस क्रिएट करना भी है इसके साथ ही यह लिंग्विस्टिक्स बेसिस पर भी डिवाइड और रूल की पॉलिसी थी क्योंकि प्लेन के अकॉर्डिंग वेस्ट बंगाल में बंगाली माइनॉरिटी बना दिए गए थे बंगाल पार्टीशन की विरोध में एक बड़ा मूवमेंट खड़ा हो जाता है जिसे हम स्वदेशी मूवमेंट के नाम से जानते हैं और मटेरियल एडवांटेज का विजन दिखाकर अपनी तरफ किया जाता है इंडिया से वापस चले जाते हैं लेकिन उनकी डिसीजन के अगेंस्ट प्रोटेस्ट आने वाले कई साल तक चलते हैं कंक्लुजन दोस्तों लोट कर्जन ग्रेट इंपिरियलिस्ट थे वह इंडिया में ब्रिटिश कंट्रोल को और ज्यादा स्ट्रांग करना चाहते थे उनके ज्यादातर रिफॉर्म्स और एक्ट्स इसी मोटिव को फुलफिल करने के लिए थे इसके साथ ही इंडियन को लेकर उनका ओपिनियन बहुत ही खराब था वो इंडियन की इंसल्ट करने और उनकी दीपेस्ट फीलींगस को हट करने का कोई भी मौका नहीं जान देते थे एक ऑक्शन पर उन्होंने बंगाली को डरपोक हवाबाज और बस दिखावा करने वाला देश प्रेमी तक का दिया था वह इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट से मिलने से भी इनकार कर देते हैं और कांग्रेस की एक्टिविटीज को लेटिंग ऑफ गैस की तरह कैरक्टराइज करते हैं इस तरह इंपिरियलिस्ट डिजाइंस की वजह से कर्जन इंडिया के पॉलीटिकल और रेस्ट को बर्स्टिंग पॉइंट तक पहुंच देते हैं और इससे शुरुआत होती है इंडिया में पॉलीटिकल मूवमेंट के एक बिल्कुल नए फेस की गर्जन की टेरैनो की वजह से ही इंडियन में नेशन हुड के और भी स्ट्रांग सेंस का जन्म होता है इस तरह देखा जाए तो कर्जन इंडिया के बेनिफैक्टर प्रूफ होते हैं भले ही उनकी इंटेंशन कभी भी ऐसी ना रही हो वॉइस ऑफ नेशनलिज्म 1857 तू 1885 दोस्तों आज हम बात करेंगे इंडियन नेशनल मूवमेंट की शुरुआती दूर की जिसमें हम जानेंगे उसकी इमरजेंसी के करण हम यह भी जानेंगे की 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की गठन से पहले वो कौन सी पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशंस थे जिन्होंने इंडियन नेशनल मूवमेंट को इनिशियल पुश देने का कम किया लेकिन सबसे पहले एक बैकग्राउंड जान लेते हैं बैकग्राउंड दोस्तों 1857 की क्रांति के बाद भारत एक मेजर पॉलीटिकल और सोशल चेंज के दूर से गुर्जर रहा था जहां भारत की बागडोर अभी ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से ब्रिटिश क्राउन के हाथों में चली गई थी अब इंडिया डायरेक्टली ब्रिटिश क्राउन द्वारा गवन होने वाला था वैसे तो ईस्ट इंडिया कंपनी की पावर्स को कम करने की कोशिश 173 के रेगुलेटिंग एक्ट से चल रही थी लेकिन 1857 की क्रांति ने इस पूरे प्रोसेस को एक्सीलरेट कर दिया और ब्रिटिश क्राउन ने फाइनली साड़ी पावर्स जूम कर ली लेकिन इंडियन की बात करें तो उनके हालातो में इसे कोई खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि ब्रिटिश क्राउन ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी रिप्रेसिव पॉलिसी इंटेलेक्चुअल और यहां तक की कैपिटल भी ब्रिटिश से काफी नाराज थे इस कांटेक्ट में अब हम जानते हैं की इंडियन नेशनल मूवमेंट के राइस के करण क्या थे और ऐसी क्या वजह थी जिनके चलते 19th सेंचुरी के सेकंड हाफ में इंडियन की पॉलीटिकल फैक्टर्स रिस्पांसिबल पर नेशनल मूवमेंट दोस्तों इंडियन नेशनल मूवमेंट के इमरजेंसी का सबसे में करण लोगों में यह रिलाइजेशन था की उनके पिछड़ेपन में कॉलोनियल रूल का सबसे बड़ा हाथ था और इस रिलाइजेशन की सबसे पहले वजह यह थी की ब्रिटिश राज ने भारत में एक यूनिफाइड स्ट्रक्चर क्रिएट किया थ्रू लॉस और इंस्टीट्यूशंस लाइक सिविल सर्विसेज और ज्यूडिशरी और मॉडर्न मेंस ऑफ ट्रांसपोर्ट और कम्युनिकेशन लाइक रेलवे रोड टेलीग्राफ ईटीसी इन सब ने इंडियन के फिट को एक दूसरे से जोड़ दिया जिसके चलते एक बंगाली के कंसर्न और एक पंजाबी के कंसर्न्स लगभग सिमिलर थे इसके अलावा अलग-अलग जगह की लीडर्स और इंटेलेक्चुअल को भी इतिहास के एक्सचेंज में मदद मिली ब्रिटिशर्स द्वारा भारत में इंट्रोड्यूस किया गए मॉडर्न एजुकेशन ने वेस्टर्न थॉट और आइडियल को भी इंडियन के सामने इंट्रोड्यूस किया इसकी चलते कई यूरोपियन स्कॉलर्स जैसे की राशनल सेकुलर डेमोक्रेटिक और नेशनलिस्ट इतिहास भी इंडिया में स्प्रेड हुए जिसकी वजह से नेटिव इंटेलेक्चुअल की थिंकिंग में बदलाव आने लगे इसके साथ ही सेकंड हाफ ऑफ 19थ सेंचुरी में प्रेस और लिटरेचर ने भी इस रिलाइजेशन में अपना योगदान निभाया इस दूर में लगभग 169 न्यूजपेपर्स पंपलेट और जर्नल्स विनैकुलर लैंग्वेज में पब्लिश हो रहे थे जो ब्रिटिश पॉलिसीज का जोर शोर से क्रिटिसिजम कर रहे थे इनमें से कुछ प्रॉमिनेंट नेशनलिस्ट न्यूज़ पेपर्स थे बंगाल में हिंदू पैतृक अमृत बाजार पत्रिका इंडियन मेरा बंगाली सोम प्रकाश और संजीवनी बॉम्बे में रसग्गुफ्तार नेटिव ओपिनियन इंदु प्रकाश महारथ और केसरी मद्रास में हिंदू स्वदेशी मित्रों आंध्र प्रकाशिक और केरल पत्रिका अप में एडवोकेट हिंदुस्तानी और आजाद पंजाब में ट्रिब्यून अकबर आम और कोहिनूर अगला इंपॉर्टेंट करण था इंडियन का अपने पेस्ट का रे डिस्कवरी कई यूरोपियन स्कॉलर विल्सन रावत सरसों और इंडियन स्कॉलर्स जैसे आरजी भंडारकर ल मित्र और बाद में स्वामी विवेकानंद ने इंडियन हिस्ट्री के आर्ट और कलर को रे डिस्कवर किया जिसकी वजह से इंडियन का सेल्फ मोटिवेशन और कॉन्फिडेंस बड़ा इनमें से कई स्कॉलर्स ने इंडियन रुलर्स जैसे अशोक चंद्रगुप्त और अकबर की पॉलीटिकल अचीवमेंट्स की कहानियां को लोगों तक पहुंचा ब्रिटिश ने इंडिया में अपने रूल को जस्टिफाई करने के लिए अभी तक व्हाइट मांस बर्डन थ्योरी के द्वारा इंडियन को यह बताने की कोशिश की थी की इंडियन बाबरिक और उन सिविलाइज्ड थे जो खुद को गवर्नर नहीं कर सकते थे और इंडियन को सिविलाइज करने हैं लेकिन इंडिया के ग्लोरियस पेस्ट के डिस्कवरी ने इंडियन की कॉन्फिडेंस को बूस्ट किया और उन्हें खुद के कलर पर गर्व करने का एक मौका दिया जिसके थ्रू वो ब्रिटिश आइडिया लॉजिकल डोमिनेंस को चैलेंज कर सकते थे इसके अलावा 19th सेंचुरी के सोशियो रिलिजियस रिफॉर्म मूवमेंट ने सोसाइटी के कई वर्गों को जागरूक किया पर एग्जांपल सोशल रिफॉर्मर्स ने कास्ट सिस्टम को क्रिटिसाइज करते हुए कास्ट के बेसिस पर डिवाइडेड इंडियन सोसाइटी में एक सेंस ऑफ यूनिटी को जन्म देने का प्रयास किया इसके अलावा सोशल रिफॉर्म मूवमेंट में वूमेन अपलिफ्टमेंट वूमेन राइट्स विडो रीमैरिज को यंग बंगाल मूवमेंट के फाउंडर हेनरी विवियन डिरोजियों ने सावित्रीबाई पहले के साथ सत्य शोधन समाज ने स्वामी दयानंद सरस्वती के आर्य समाज ने और ईश्वर चंद्र विद्यासागर में भी प्रमोट किया इसके अलावा ब्रिटिश राज के रेडिकल्स ने भी इंडियन में ब्रिटिश राज के प्रति एक नेगेटिव ड्यूटी को जन्म दिया हिस्टोरियन कई ऐसी इंस्टेंस की बात करते हैं जहां इंग्लिश मां ओपनली एजुकेटेड इंडियन को इंसर्ट करते थे 20th सेंचुरी में गांधी जी के साथ हुए रेसियल डिस्क्रिमिनेशन की कहानी तो हम सभी जानते हैं और इसके एग्जांपल्स हमें 19th सेंचुरी में भी मिलते हैं इसके अलावा इंडियन को कई एक्सक्लूसिव इंग्लिशमन क्लब से अलग रखा जाता था और इंडियन को यूरोपीय पेसेजंर्स के साथ ट्रेन कंपार्टमेंट में ट्रैवल करना भी अलाउड नहीं था इन सब ने इंडियन की सेल्फ रिस्पेक्ट को हट करने का कम किया इसके अलावा ब्रिटिश राज की कई ऑफिशल रिप्रेसिव पॉलिसी का सबसे अच्छा एग्जांपल है जिसके थ्रू गवर्नमेंट अपने खिलाफ क्रिटिसिजम को रोकना चाहती थी इसके अलावा 1877 में जब भारत एक बेहद खतरनाक फैमिली से गुर्जर रहा था तभी ब्रिटिश ने एक इंपीरियल दरबार को ऑर्गेनाइजर किया जिसने इंडियन को ब्रिटिश के सेल्फिश एटीट्यूड को एक्सपोज किया 18 98 में लिटन ने इंडियन सिविल सर्विसेज की मैक्सिमम आगे को 21 से रिड्यूस करके 19 कर दिया जिससे इंडियन की सिविल सर्विसेज में एंट्री और भी ज्यादा मुश्किल हो गई 1883 में रिपन की वायसराय शिव के दौरान हुई अल्बर्ट बिल्कुल ट्रबीसी कहानी ना कहानी इमेडिएट फ्लैश पॉइंट वाली जिसके चलते इंडिया में ऑर्गेनाइज्ड पॉलीटिकल एक्टिविटी में राइस हुआ और 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन हुआ इस बिल का मकसद था की क्रिमिनल केसेस में इंडियन जिला मजिस्ट्रेट और सेशन जज को यूरोपीय का ट्रायल करने की परमिशन हनी चाहिए लेकिन कई रेसिस्ट यूरोपियंस ने इस बिल के खिलाफ मैसिव प्रोटेस्ट ऑर्गेनाइज्ड कर इसे रॉक दिया और ये डिक्लेअर किया की इंडियन वन नोट कर दिया गया जो इंडिया क्योंकि इसने इंडियन को एक्रॉस रीजन और कम्युनिटी यूनिट करने में हेल्प किया था तो दोस्तों यह थे इंडिया में ऑर्गेनाइज्ड नेशनल मूवमेंट के राइस के करण वैसे तो इंडिया में ट्रॉली पान इंडिया ऑर्गेनाइज्ड पॉलीटिकल स्ट्रगल की शुरुआत 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के फॉर्मेशन से हुई लेकिन आईएनसी के पहले भी मिड-19 सेंचुरी में कई ऐसे ऑर्गेनाइजेशंस एस्टेब्लिश हुए जिन्होंने आईएनसी के फॉर्मेशन को एक बेस प्रोवाइड करने का कम किया तो चलिए अब कुछ इंपॉर्टेंट परी कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन की चर्चा करते हैं पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशंस बिफोर इंडियन नेशनल कांग्रेस दोस्तों इंडिया में ऑर्गेनाइज्ड पॉलीटिकल एक्टिविटीज और इंडियन नेशनल मूवमेंट के जनक कहानी ना कहानी राजा राममोहन राय को माना जाता है जिन्होंने भारत में सबसे पहले सोशल और पॉलीटिकल इश्यूज को ब्रिटिशर्स के सामने रखना का कम किया उन्होंने अपने ब्रह्म समाज के थ्रू वूमेन अपलिफ्टमेंट कास्ट सिस्टम की प्रॉब्लम्स और सिविल सर्विसेज रिफॉर्म्स को लेकर लोगों में अवेयरनेस फैलाने का कम किया इसके अलावा 1857 की क्रांति के पहले बंगाल बिहार और उड़ीसा के लैंडलॉर्ड ने फर्स्ट ऑर्गेनाइज्ड पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन को 1837 में कोलकाता में एस्टेब्लिश किया था जो लैंडलॉर्ड के इंटरेस्ट के इश्यूज को प्रेजेंट कर रहे थे यह ऑर्गेनाइजेशन बाद में 1851 में बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी के साथ ब्रिटिश इंडियन संगठन में मर्ज कर दिया गया और पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशंस के क्रिएशन की आवाज और ज्यादा बुलंद हुई प्रोटीन प्रोटीन 66 में ग्रैंड रोड मां ऑफ इंडिया का ही जान वाले दादाभाई नौरोजी ने लंदन में ईस्ट इंडिया संगठन को एस्टेब्लिश किया जिसमें उन्होंने इंडियन की प्रॉब्लम्स को ब्रिटिश गवर्मेंट के सामने रखा नौरोजी ने अपनी किताब पावर्टी और उन ब्रिटिश रूल इन इंडिया और स्कॉलर आरसी डेट ने अपनी किताब डी इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया के थ्रू इंडियन के एक्सप्लोइटेशन और पावर्टी को एक सिस्टमैटिक तरीके से उजागर करने का कम किया उन्होंने ड्रेन और वेल्थ थ्योरी के थ्रू इंडियन को समझाया की कैसे ब्रिटिशर्स इंडिया को डेवलप नहीं कर रहे थे बल्कि उसे एक्सप्लोइट कर और गरीब बनाते जा रहे थे इसके अलावा 1876 के समय सुरेंद्र नाथ बनर्जी नाम की एक अच्छी राइटर और लोटर और यंगर नेशनलिस्ट लीडर आनंद मोहन बस ने बंगाल में इंडियन संगठन को एस्टेब्लिश किया यह आगे बंगाल के कई गांव और काशन से लोगों को पॉलिटिकल यूनिट करने वाला था इंडियन सिविल सर्विस एग्जामिनेशन में आगे लिमिट रिफॉर्म्स एक्ट और वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के अगेंस्ट एजीटेशन में भी इसी ऑर्गेनाइजेशन ने एक्टिवली पार्टिसिपेट किया था बाद में इंडियन संगठन की कुछ ब्रांचेस बंगाल के बाहर भी एस्टेब्लिश हुई जो काफी फेमस हुई लेकिन इसे जो इंडिया बॉडी का रैकेट्जिनेशन नहीं मिला क्योंकि इनकी डिमांड्स लार्जली लोकल रीजंस के इश्यूज तकलिमिटेड थी बाकी की पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन का फंक्शनिंग और स्कोप भी काफी नैरो और लिमिटेड था जिन्हें ज्यादा रैकिंग मिशन नहीं मिला बंगाल के अलावा इंडिया की कई और पार्ट्स में अलग-अलग ऑर्गेनाइजेशन बने जिसमें जस्टिस राणा देने पुनः सार्वजनिक सभा को एस्टेब्लिश किया जो ब्रिटिश पॉलिसीज और इकोनामिक इश्यूज को जर्नल्स के थ्रू रेस कर रहे थे साथ में मद्रास महाजन सभा 1881 और मुंबई प्रेसीडेंसी संगठन 1885 ने भी ब्रिटिश गवर्नमेंट की एडमिनिस्ट्रेटिव और लेजिसलेटिव पॉलिसी का भरपूर क्रिटिसिजम किया खैर अब समय ए गया था जहां कई नेशनलिस्ट लीडर्स को लगा की सारे पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन को एक यूनिफाइड तरीके से ब्रिटिश गवर्मेंट से अपनी मांगों को पॉलीटिकल तरीके से बावा सकते हैं इसलिए इंडियन संगठन ने कोलकाता में दिसंबर 1883 को एक जो इंडिया नेशनल कॉन्फ्रेंस को ऑर्गेनाइज किया जिसमें बंगाल के साथ बाहर की लीडर्स भी शामिल हुए और फिर फाइनली 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन हुआ चलिए ब्रीफली नजर डालते हैं फ्री इंडियन नेशनल कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशंस की डिमांड्स पर डिमांड्स ऑफ फ्री कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन दोस्तों फ्री कांग्रेस लीडर्स की सबसे पहले डिमांड थी पब्लिक एक्सपेंडिचर को कम करना जिसके थ्रू ब्रिटिश को फुलफिल कर रहे थे दूसरी डिमांड थी इंडियन सिविल सर्विसेज में रिफॉर्म्स जिसकी चर्चा हमने पहले की इसके अलावा यह ऑर्गेनाइजेशंस लेजिसलेटिव काउंसिल में इंडियन के डिमांड को भी पुश कर रहे थे ताकि इंडियन को अपने देश की गवर्नेंस में रिप्रेजेंटेशन मिले वो लेजिसलेटिव काउंसिल को एक पॉलीटिकल प्लेटफॉर्म की तरह उसे कर ब्रिटिश रिप्रेसिव पॉलिसी का पॉलीटिकल विरोध भी करना चाहते थे ताकि सिविल लिबर्टीज पर अटैक कम हो सके वह प्रेस की लिबर्टी के भी सपोर्टर थे इसलिए इनमें से कई ऑर्गेनाइजेशंस ब्रिटिश गवर्नमेंट के वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जैसे पॉलिसीज के खिलाफ एजीटेशन भी कर रहे थे फाइनली उनका डिमांड था की मॉडर्न एजुकेशन को विलेज तक पहुंचा जाए जो अभी तक सिर्फ कुछ लिमिटेड सेक्शंस तक ही सी में था कंक्लुजन तो दोस्तों ये भी कहानी इंडियन नेशनल मूवमेंट के शुरुआती दूर की जहां हमने देखा की कैसे इंडिया में सेकंड हाफ ऑफ 19थ सेंचुरी में एक नेशनल वैगनिंग के चलते इंडियन ने अपनी प्रॉब्लम्स और इश्यूज को रिलीज किया और साथ में पॉलीटिकल रिफॉर्म्स की बात की अब हम अगले वीडियो में इंडियन नेशनल कांग्रेस के फॉर्मेशन और उसके अचीवमेंट की बात करेंगे की कैसे आईएनसी ने इंडियन नेशनल मूवमेंट को एक प्रॉपर प्लेटफॉर्म दिया और धीरे-धीरे भारत के सभी वर्गों को इकट्ठा कर अंग्रेजन को भारत से भागने में सफलता हासिल की एरिया ऑफ मॉडरेट्स 1885 2905 दोस्तों हमने पिछली वीडियो में देखा की कैसे 1857 की क्रांति के बाद भारत में नेशनलिज्म के करण शुरू होते हैं कैसे वेरियस पॉलीटिकल और सोशल ऑर्गेनाइजेशंस का गठन होता है और किस तरह वो ब्रिटिशर्स के एक्सप्लोइटेशन को आम जनता के सामने उजागर करते हैं हमने ये भी देखा की किन कर्म से नेशनल मूवमेंट की शुरुआत हुई और कैसे इस मूवमेंट ने खुद को सस्टेन किया आई अब हम बात करेंगे इंडियन नेशनल मूवमेंट के नेक्स्ट फैज की जिसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन हुआ और जिसने इंडियन पॉलिटिक्स को एक नया मोड दिया आई शुरू करते हैं इंडियन नेशनल कांग्रेस के फॉर्मेशन की कहानी से फॉर्मेशन ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस दोस्तों इंडियन नेशनल कांग्रेस आने वाले समय में इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल को लीड करने वाला अंब्रेला ऑर्गेनाइजेशन बने वाला था लेकिन इसके फॉर्मेशन का इतिहास काफी इंटरेस्टिंग और कंट्रोवर्सी का मुद्दा रहा है ऐसा इसलिए क्योंकि इंडियन नेशनल कांग्रेस के गठन का क्रेडिट कई हिस्टोरियन एक रिटायर्ड इंग्लिश सिविल सर्वेंट ओ हम को देते हैं ना की इंडियन लीडर्स को इस आर्गुमेंट को हम सेफ्टी वाल्व थ्योरी के नाम से जानते हैं दोस्तों सेफ्टी वाल्व थ्योरी कहती है की ब्रिटिशर्स ने 1857 की क्रांति को देखा था और उन्हें ये मालूम था की इंडियन पॉलीटिकल सिचुएशन फिर से ऐसे कई मेजर रिबेलियंस को जन्म दे शक्ति थी इसलिए वह चाहते थे की ऐसी टेंशंस को अवॉइड किया जा सके और इसका सबसे अच्छा तरीका था इंडियन को एक पॉलीटिकल प्लेटफॉर्म प्रोवाइड कर उनके गुस्से और डिसइनेंट को बिल्ड अप होने से रोकना ये एक साइकोलॉजिकल गेम की तरह देखा जा सकता है जहां नाराज इंडियन अपनी एनर्जी को एटलिस्ट डिस्कस कर सकें जो उन्हें एक सेंस ऑफ एंपावरमेंट देने में हेल्प करेगा भले ही उनकी एक्चुअल कंडीशन में कोई बदलाव आए या ना आए इसलिए इस थ्योरी प्रमोटर्स कहते हैं की इंडियन नेशनल कांग्रेस का फॉर्मेशन आओ हम द्वारा इंडिया के वायसराय लॉर्ड डफर ने किया था ना की इंडियन नेशनलिस्ट ने ऐसी दाव किया जाते हैं की आओ हम ने दफन के अलावा कई और ब्रिटिशर्स जैसे लॉर्ड रिपन जॉन ब्राइट टेट्रा के साथ भी मीटिंग्स की थी इसके अलावा कई ब्रिटिशर्स जैसे सर विलियम वेडिबल जॉर्ज यू चार्ल्स ब्रांड हमें इस इंडिया वी में सपोर्ट भी किया था हालांकि ये थ्योरी हिस्टोरियन द्वारा लाजली रिजेक्ट की जा चुकी है लेकिन फिर भी इंडियन नेशनल कांग्रेस में ब्रिटिश कंट्रीब्यूशन को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता ब्रिटिश कंट्रीब्यूशन को खुद गोपाल कृष्णा गोखले ने 1913 में डिस्क्राइब किया और कहा था की बिना इंग्लिश सपोर्ट के आईएमसी जैसा कोई भी पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन फॉर्म नहीं हो पता क्योंकि अगर ब्रिटिश गवर्नमेंट चाहती तो किसी भी पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन को इजीली सरप्राइज कर शक्ति थी इसीलिए गोखले खुद लाइटनिंग कंडक्टर थ्योरी में बिलीव करते थे इस थ्योरी के हिसाब से ब्रिटिशर्स ने आईएमसी को फॉर्म नहीं किया बल्कि इंडियन नेशनलिस्ट ने ब्रिटिशर्स की सहायता से आईएमसी को फॉर्म किया ताकि ब्रिटिश गवर्मेंट का इंडियन के खिलाफ डिस्ट्रस्ट के माहौल में भी आईएमसी सरवाइव कर सके और इंडियन के डिमांड्स को वॉइस मिल सके इसके अलावा आईएमसी में कई इंडियन लीडर्स का रूल था जो यह बताता है की आओ हम का आईएमसी के फॉर्मेशन में रूल लाजली फैसिलिटेटर की तरह था इंडियन लीडर्स ने ही आईएनसी को एक स्ट्रांग ऑर्गेनाइजेशन की तरह डेवलप किया जिसमें दादाभाई नौरोजी बदरुद्दीन तैयब जी फिरोजशाह मेहता आनंद चरलू सन बनर्जी आरसी डेट अंबोस गोपाल कृष्णा गोखले जस्टिस राणा दी और बाल गंगाधर तिलक जैसे इंपॉर्टेंट लीडर्स थे आईएमसी में कई वूमेन लीडर्स कभी कंट्रीब्यूशन रहा जैसे 1890 में कोलकाता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट कदंबिनी गांगुली पहले वूमेन बनी जिन्होंने कांग्रेस सेशन को एड्रेस किया था खैर आओ हम ने इंडियन लीडर्स को कांटेक्ट किया और इंडियन नेशनल कांग्रेस का पहले सेशन 1885 में बॉम्बे में ऑर्गेनाइजर किया गया जिसे डब्लू सी बानाजी ने प्रेसीडे किया था इसमें लगभग 72 डेलीगेट ने भाग लिया था धीरे-धीरे आईएनसी की पापुलैरिटी बढ़ाने लगी और 1889 तक इंडियन डेलिगेट्स की इसमें संख्या 2000 तक पहुंच गई लेकिन आईएनसी इनिशियली एक ऑर्गेनाइजेशन ही रहा जो एजुकेटेड मिडिल क्लासेस द्वारा डोमिनेटेड था आईएमसी के लीडर्स लाजली लॉयर्स जर्नलिस्ट ट्रेडर्स इंडस्ट्री में फ्रेंडली रिलेशंस को प्रमोट करना ताकि पॉलीटिकल यूनिफिकेशन मदद मिले और आईएमसी को और स्ट्रैंथ मिले आईएमसी का दूसरा टीम था नेशनल यूनिटी को एक्रॉस कास्ट क्लास और रिलिजियस लाइंस में डेवलप करना ताकि पॉपुलर डिमांड्स को ब्रिटिश गवर्मेंट के सामने एक यूनिफाइड तरीके से रखा जा सके और साथ में पब्लिक ओपिनियन को ट्रेनिंग के थ्रू ऑर्गेनाइजर किया जा सके आईएमसी ने अपने फॉर्मेशन के बाद कई रिफॉर्म्स की डिमांड्स ब्रिटिश के सामने राखी जिनकी चर्चा अब हम करेंगे शुरू करेंगे सबसे इंपॉर्टेंट मुद्दे से ऑफ कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स दोस्तों आईएमसी का सबसे पहले मुद्दा था कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स का शुरुआती दूर में नेशनलिस्ट लीडर्स की डिमांड थी की गवर्नमेंट में उनकी हिस्सेदारी ज्यादा से ज्यादा हो बेस्ड ऑन डी प्रिंसिपल में एक्सपेंशन और वोटिंग राइट्स की डिमांड की वह चाहते थे की काउंसिल में इलेक्ट्रिक सेंटिटिव्स को मेंबरशिप मिले और साथ में मेंबर्स की पावर भी इंक्रीज हो इसके चलते ही ब्रिटिशर्स को इंडियन काउंसिल एक्टिव 1892 को पास करना पड़ा जिसकी वजह से इंपीरियल लेजिसलेटिव काउंसिल आज वेल आज प्रोविंशियल काउंसिल में मेंबर्स इंक्रीज हुए काउंसिल को एनुअल बजट डिस्कस करने की ताकत भी दी गई लेकिन वोटिंग पावर नहीं दिया गया जिसकी वजह से नेशनल एक्टिव 1892 से डिसेटिस्फाइड थे और प्रोटेस्ट कर रहे थे नेशनलिस्ट की डिमांड थी की पब्लिक पर्स में इंडियन का कंट्रोल हो ना की ब्रिटिशर्स का इसीलिए नोट टैक्सेशन विदाउट रिप्रेजेंटेशन स्लोगन को प्रमोट किया गया जो अमेरिकन रिवॉल्यूशन से लिया गया था साथ में सिर्फ कुछ मेंबर्स ही इंडियन द्वारा इलेक्ट हो सकते थे वह भी इनडायरेक्ट इसके अलावा अभी भी नॉन इलेक्ट्रिक ऑफिशल्स की मेजॉरिटी कंटिन्यू रही बाद में 28 सेंचुरी की शुरुआत में नेशनलिस्ट लीडर्स ने ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के सेल्फ गवर्निंग मॉडल को इंडिया में स्वराज के कॉन्सेप्ट के थ्रू रेस किया सबसे पहले स्वराज की डिमांड गोखले के बनारस सेशन 1905 और दादाभाई नौरोजी के कोलकाता सेशन 196 से हुई जिसकी चर्चा हम आने वाले वीडियो में करेंगे सबसे इंपॉर्टेंट एजेंडा को ऑफ इकोनॉमिक्स इकोनामिक रिफॉर्म्स दोस्तों अर्ली नेशनलिस्ट लीडर्स ने ब्रिटिश इकोनामिक पॉलिसीज को एक्सपोज किया और समझाया की कैसे वो हमारी इकोनामिक बैकवार्डनेस पार्वती और फेलियर एग्रीकल्चर इन मॉडर्न इंडस्ट्री का करण है दादाभाई नौरोजी ने ड्रेनो वेल्थ थ्योरी के थ्रू ये क्लेम किया की ब्रिटिश इंडियन वेल्थ को इंडिया में इन्वेस्ट करने की बजाएं उसे इंग्लैंड ले जा रहे थे यह थ्योरी इंडियन नेशनलिस्ट मूवमेंट के इकनॉमिक एस्पेक्ट का फाउंडेशन स्टोन बनी खैर अर्ली नेशनलिस्ट ने पावर्टी को इरेडिकेट करने के लिए मॉडर्न इंडस्ट्रीज को तेज गति देने का सजेशन भी दिया और साथ में नेशनलिस्ट छह रहे थे की ब्रिटिश गवर्नमेंट टैरिफ और गवर्मेंट के थ्रू मॉडर्न इंडस्ट्रीज को प्रमोट करें इसके अलावा लेटर फैज में नेशनलिस्ट लीडर्स ने स्वदेशी जैसे न्यू इतिहास को पापुलराइज भी किया और ब्रिटिश गुड्स के बॉयकॉट को प्रमोट किया अपनी डिमांड्स को पूरा करने के लिए इंडियन लीडर्स कई आंदोलन भी किया जिम लैंड रिवेन्यू में रिडक्शन प्लांटेशन लेबर्स के वर्किंग कंडीशंस में इंप्रूवमेंट साल्ट टैक्स का इवोल्यूशन और ब्रिटिश गवर्मेंट की मिलिट्री एक्सपेंडिचर में रिडक्शन जैसी डिमांड्स इंक्लूड थी इकोनॉमिक्स के बाद बात करते हैं एडमिनिस्ट्रेटिव और अदर रिफॉर्म्स की एडमिनिस्ट्रेटिव और अदर रिपोर्ट्स नेशनलिस्ट मांग कर रहे थे की सिविल सर्विसेज में इंडियन को इंक्लूड किया जाए ताकि इंडियन का गवर्मेंट में रिप्रेजेंटेशन बाढ़ सके वह यह उम्मीद कर रहे थे की इंडियन सर्विसेज ब्रिटिश गवर्नमेंट को इंडियन इश्यूज पर सेंसटाइज करेगी जिससे उनकी कंडीशंस इंप्रूव हो सकेंगे इसके अलावा फाइनेंशली बात करें तो सर्विसेज में यूरोपियन मोनोपोली के दो मुख्य नुकसान भी थे जिसके चलते नेशनलिस्ट की डिमांड कर रहे थे पहले यह था की से क्वालिफिकेशन होने के बाद भी यूरोपियन ऑफिशल्स को काफी ज्यादा सैलरी और एमोल्यूमेंट्स मिलते थे है जिसकी वजह से इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव कॉस्ट काफी ज्यादा हो जाता था वहीं इंडियन ऑफिशल्स की सैलरीज और एमोल्यूमेंट्स कम होने के करण एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सपेंडिचर काफी कम हो सकता था दूसरा यूरोपियन ऑफिशल्स अपनी सैलरी का ज्यादा हिस्सा और पेंशन को इंग्लैंड में भेज देते थे जिसकी वजह से इंडियन ट्रेजरी का ड्रीम होता था अगर हम जुडिशल रिफॉर्म की बात करें तो नेशनलिस्ट की एक मेजर डिमांड थी सिपरेशन ऑफ पावर्स यानी एग्जीक्यूटिव और ज्यूडिशरी का अलग करना इसके अलावा नेशनलिस्ट ने ये डिमांड भी राखी की ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडियन पे ट्रस्ट करें और उन्हें सेल्फ डिफेंस के लिए आर्म्स रखना और उसे करने की परमिशन दें बाकी डिमांड्स में इंक्लूड था वेलफेयर स्टेट का एस्टेब्लिशमेंट मेडिकल और हेल्थ फैसेलिटीज का एक्सपेंशन मॉडर्न एजुकेशन का मांस लेवल पर स्प्रेड और टेक्निकल एजुकेशन और हायर एजुकेशन का प्रमोशन ताकि इंडियन को ब्रिटिश रूल के इंपैक्ट का रिलाइजेशन हो सके एग्रीकल्चरल बैंक्स को एस्टेब्लिश करने की भी मांग की दोस्तों यह मेंशन जरूरी है की नेशनलिस्ट का ध्यान एन केवल एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स तक्सीम में था बल्कि पेज्जंस और फार्मर्स के एग्रीकल्चर रिफॉर्म्स पर भी था जिसमें फार्मर्स को फेमेन से बचाने के लिए उन्होंने इरिगेशन को एक्सपेंड करने की मांग की नेशनलिस्ट लीडर्स ने पुलिस सिस्टम को भी रिफॉर्म करने की मांग की जिससे की पुलिस ऑनेस्ट और सही तरीके से कम करें ताकि लोगों का विश्वास पुलिस पर बढ़ लेटर नेशनलिस्ट लीडर्स ने इंडियन वर्कर्स और इन डेंजर लेबर्स को भी डिफेंड किया जो साउथ अफ्रीका मलाई मॉरीशस वेस्टइंडीज और ब्रिटिश गायन में कम कर रहे थे ताकि उनके वर्किंग कंडीशन को बेहतर और वेजेस को इंक्रीज किया जा सके इसके अलावा वो डिफेंस और सिविल राइट्स की भी मांग कर रहे थे इसमें फ्रीडम ऑफ स्पीच और प्रेस के इंपॉर्टेंट सबसे इंपॉर्टेंट मुद्दे थे क्योंकि अब तक नेशनलिस्ट को इनकी इंर्पोटेंस समझ ए गई थी पर एग्जांपल 1897 में जब बॉम्बे गवर्नमेंट ने तिलक को ब्रिटिश गवर्नमेंट के अगेंस्ट बोलने और लिखने के लिए अरेस्ट कर लिया और पुणे के दो लीडर्स नटू ब्रदर्स को भी विदाउट ट्रायल अरेस्ट कर लिया गया तब पूरे देश में प्रोटेस्ट देखें गए इसी दूर में तिलक एक पावरफुल लीडर की तरह इंडियन पॉलीटिकल सीन में इमेज भी हुए थे तो दोस्तों यह तो बात हुई वेरियस रिफॉर्म्स की अब बात करते हैं इंडियन नेशनल कांग्रेस के पॉलीटिकल मैथर्ड की जिसको नेशनलिस्ट लीडर्स ने अडॉप्ट किया मैथर्ड ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस दोस्तों 1885 से 1905 तक आईएमसी में मॉडरेट लीडर्स का डोमिनेंस रहा जैसे दादाभाई नौरोजी सुरेंद्रनाथ बनर्जी आरसी डेट वर्क बनर्जी फिरोज शाह मेहता गोपाल कृष्णा गोखले रासबिहारी बस और एमजी ग्रैजुएल रिफॉर्म्स और स्लो चेंज में विश्वास रखते थे वो ब्रिटिश रिप्रेशन से और इसीलिए वो किसी भी तरीके के नॉन कांस्टीट्यूशनल स्ट्रगल में विश्वास नहीं करते थे इसीलिए उनके मैथर्ड को पिटीशन प्रेयर्स और प्रोटेस्ट या 3p मॉडल के लेंस से देखा जाता था मॉडरेट लीडर्स अपने इश्यूज को जुडिशल रूट पिटीशन तू गवर्मेंट और राइटिंग इन न्यूजपेपर्स जैसे टूल्स के थ्रू राज करते थे और ये उम्मीद करते थे की अगर ब्रिटिशर्स को इंडियन के हालातो के बड़े में अवेयर करवाया गया तो वो उन्हें सुधारने की कोशिश करेंगे वो अपनी स्पीशीज के थ्रू पॉलीटिकल अवेयरनेस को स्प्रेड करने के साथ ही साथ पब्लिक ओपिनियन को भी रेस करते थे इससे मॉडरेट लीडर्स ने इंडियन फ्रीडम मूवमेंट को फाउंडेशन देने का कम किया और डिफरेंट रीजन के लीडर्स को एक पॉलीटिकल प्लेटफॉर्म प्रोवाइड किया इन डी फॉर्म ऑफ आई एन सी के प्रति एटीट्यूड को समझते हैं दोस्तों ब्रिटिश गवर्नमेंट शुरू से ही इंडियन नेशनल मूवमेंट के प्रति काफी होस्टेस ने नेशनल लीडर्स को ब्राह्मण और वायलेट लिंग से संबोधित किया ब्रिटिश गवर्नमेंट ने आईएमसी की कुछ डिमांड्स को एक्सेप्ट भी किया लेकिन ज्यादातर डिमांड्स को नेगलेक्ट किया साथ में आईएमसी के प्रोटेस्ट को रिप्रेसिव पुलिस एक्शन के थ्रू ढाबा दिया गया और सेडिशन के चार्ज में नेशनलिस्ट लीडर्स को जय में दाल दिया गया जिसमें तिलक का नाम इंपॉर्टेंट है खैर अब हम भी वेलवेट करते हैं आईएमसी में मॉडरेट फैज के सक्सेस को इवेलुएशन मॉडरेट फैज दोस्तों मॉडरेट लीडर्स की सबसे इंपॉर्टेंट सक्सेस थी की इन्होंने नेशनल और वीकनिंग को प्रमोट किया इसके साथ ही ब्रिटिश का असली चेहरा इंडियन के सामने एक्सपोज करने का कम भी किया नेशनल मूवमेंट के मॉडरेट फैज में आइडिया ऑफ डेमोक्रेसी को भी प्रोपागेट किया गया था मॉडरेट लीडर्स ने ब्रिटिश रूल के इकोनामिक करैक्टर को एक्सपोज करने के साथ एक आम पॉलीटिकल और इकोनामिक प्रोग्राम को इंडियन को यह मोटिवेशन और कॉन्फिडेंस दिया की वो खुद को गवन कर सकते हैं और उन्हें ब्रिटिश की कोई जरूर नहीं है दोस्तों यह तो हुई कहानी इंडियन नेशनल कांग्रेस के फॉर्मेशन से लेकर मॉडरेट फैज के अचीवमेंट्स तक की आने वाली वीडियो में हम इंडियन नेशनल कांग्रेस के एक्सट्रीमिस्ट्रेस को देखेंगे जिसने नेशनल मूवमेंट को एक नई दिशा दिखाने का कम किया फॉर्मेशन और उसके मॉडरेट फेस को डिस्कस किया था आज हम बात करेंगे नाम से जाना जाता है इसके अलावा हम स्वदेशी और होमरूल लीग मूवमेंट को भी डिटेल में डिस्कस करेंगे तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों 28th सेंचुरी की शुरुआत में इंडिया में नेशनल लीडर्स की एक नई क्लासीमझ होती है जो मॉडरेट ग्रुप से काफी अलग थी यह ब्रिटिश अंपायर के अगेंस्ट और भी ज्यादा एग्रेसिव डांस लेते हैं और इन्हें एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स के नाम से जाना जाता है इसमें ज्यादातर यंग लीडर्स लीडर्स की सॉफ्ट और परसूएसिव अप्रोच पर यकीन नहीं था एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स की लिस्ट में मुख्यतः नाम आता है बाल गंगाधर तिलक लाल लाजपत राय विपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष के बड़े में डिटेल में डिस्कस करने से पहले यह समझना जरूरी है की ऐसे क्या करण थे जिनकी वजह से इंडियन नेशनल कांग्रेस में इनका राइस होता है तो आई समझते हैं कॉसेस पर डी राइस ऑफ एक्सट्रीमीज्म दोस्तों एक्सट्रीमिस्ट फैज के उदय के पीछे बहुत से करण जिम्मेदार थे आई एक-एक करके उनको समझते हैं सबसे पहले करण था ब्रिटिश रूल के थ्रू नेचर की पहचान होना अर्ली नेशनलिस्ट लीडर्स ने ब्रिटिशर्स को एक्सपोज करने का कम किया था उन्होंने अपनी राइटिंग्स और स्टैटिसटिक्स डाटा की हेल्प से यह साबित कर दिया था की ब्रिटिश रूल और उसकी पॉलिसी की वजह से ही इंडिया की इकोनामिक हालात इतनी खराब हो चुकी है और गरीबी दिन रोज बढ़नी जा रही है इसी अवेयरनेस का नतीजा था एक स्ट्रीमिस्ट एडोलॉजी की ग्रोथ इन्हें समझ ए जाता है की इंडिया की प्रोग्रेस ब्रिटिश रूल में पॉसिबल ही नहीं है वेस्टर्नाइजेशन के अगेंस्ट एक रिएक्शन के रूप में भी देखा जाता है क्रिश्चियन के लिए एक चैलेंज बन रहे थे मैटेरियलिस्टिक और इंडिविजुअल्स वेस्टर्न सिविलाइजेशन इंडियन सिविलाइजेशन की वालुज को धीरे-धीरे एरोड करती जा रही थी एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स इंडियन स्पिरिचुअल हेरिटेज से इंस्पिरेशन लेते हैं एक्सट्रीमीज्म के राइस का सबसे बड़ा करण था मॉडरेट लीडर्स की लिमिटेशंस मॉडरेट लीडर्स ब्रिटिश अथॉरिटी से अपनी कोई सिग्निफिकेंट डिमांड एक्सेप्ट करने में सफल नहीं हुए थे यहां तक की 1892 के काउंसिल एक्ट में भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी यही वजह थी की धीरे-धीरे मॉडरेट लीडर्स के मैथर्ड पर से यंग लीडर्स का भरोसा उठने लगता है एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स मॉडरेट्स के थ्री पीस यानी की पिटीशन प्रेयर और प्रोटेस्ट के मेथड को पॉलीटिकल मेंडिकेंट नाम देते हैं तिलक कांग्रेस को कांग्रेस और फ्लेटरर्स और कांग्रेस सेशन को हॉलीडे रीक्रिएशन बोलते हैं लाल लाजपत राय का मानना था की कांग्रेस की मीटिंग एनुअल फेस्टिवल ऑफ एजुकेटेड इंडियन से ज्यादा कुछ भी नहीं है इस तरह एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स मॉडरेट्स के स्ट्रांग पॉलिटिक्स बन जाते हैं इसके अलावा इंडिया की खराब होती है इकोनामिक कंडीशन भी इंडियन नेशनल एक्टिविटी में एक्सट्रीमीज्म के राइस को प्रमोट करती है 1896 और 1899 की टेरेबल फेमिंस के साथ महाराष्ट्र में पहले पबोनिक प्लेग ने बड़ी संख्या में लोगों की जान ली थी गवर्नमेंट की रिलीफ मशीनरी पुरी तरह से बेकार साबित हो रही थी तिलक केल्स और ओवर बेयरिंग गवर्नमेंट प्ले कमिश्नर को क्रिटिसाइज भी करते हैं क्योंकि ये कुछ अच्छा करने की जगह सिचुएशन को और ज्यादा बड़ा बना रहे थे तिलक कहते हैं की सरकारी उपाय से कम ट्रॉल तो हमारे लिए प्लेग है यह सभी इवेंट्स इंडियन को एहसास दिलाते हैं की उनकी कंडीशन कितनी हेल्पलेस हो गई है इसके साथ ही बार-बार फेमिंस का आना भी गवर्नमेंट की एंटी नेशनल पॉलिसी का ही रिजल्ट था इसके साथ ही इंडिया के बाहर हो रही इवेंट्स भी यंगर जेनरेशन को काफी इन्फ्लुएंस करते हैं जैसे की ब्रिटिश कॉलोनी स्पेशली साउथ अफ्रीका में इंडियन के साथ होने वाला हमिलिएटिंग ट्रीटमेंट एंटी ब्रिटिश फीलिंग क्रिएट करता है तुर्की और रसिया में चल रही नेशनल मूवमेंट्स भी इंडियन को न्यू हॉप्स और एस्पिरेशन देने का कम करते हैं इंडियन नेशनलिस्ट का कॉन्फिडेंस और ज्यादा बाढ़ जाता है जब 1896 में अब सीनरी जैसा देश इटालियन आर्मी के अटैक को रिप्लेस करने में कामयाब राहत है इसके अलावा 1905 में रसिया जैसे पावरफुल देश पर जबान की शानदार जीत भी इंडियन को इंस्पिरेशन देने का कम करती है इन सभी इवेंट्स की वजह से इंडियन लीडर्स को ये विश्वास हो जाता है की ब्रिटिशर्स इन्विंसिबल नहीं है और उन्हें भी हराया जा सकता है दोस्तों नेट सीक्रेट सीक्रेट इंडिया में काफी रिसेंट क्रिएट किया था इसके साथ ही लॉर्ड कर्जन 193 में ऐसे समय में दिल्ली दरबार ऑर्गेनाइज्ड करते हैं जब इंडिया पुरी तरह से 189900 के फैमिन के इफेक्ट से बाहर भी नहीं आया था उनका ये एक्ट भी बहुत कॉन्डम किया जाता है और इसी इंटरप्रेट किया जाता है आज एन पंपाउज बेसेंट तू एन स्टार्टिंग पापुलेशन गर्जन एडमिनिस्ट्रेशन का सबसे ज्यादा हिट किया जान वाला एक्ट था बंगाल का पार्टीशन इस एक्ट ने इंडियन की आंखें खोल दी थी और उन्हें ब्रिटिशर्स का असली रंग दिखने ग गया था पब्लिक प्रोटेस्ट के बावजूद पार्टीशन को फोर्स करना दिखता है की ब्रिटिशर्स को इंडियन पब्लिक ओपिनियन की कोई परवाह नहीं थी इससे यह भी साबित होता है की मॉडरेट्स की पिटीशन प्रेयर्स और प्रोटेस्ट की पॉलिसी से तो रिजल्ट्स नहीं मिलने वाले थे इन्हीं सब रीजंस की वजह से होता है मैथर्ड ऑफ एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स दोस्तों एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स का गोल स्वराज था जबकि मॉडरेट लीडर्स का गोल तो सिर्फ एडमिनिस्ट्रेशन में ज्यादा से ज्यादा इंडियन को शामिल करना था इसलिए इनके मैथर्ड भी मॉडरेट लीडर्स से अलग है मॉडरेट्स के थ्री पीस के मेथड को ये ओपनली क्रिटिसाइज कर ही चुके थे इसीलिए प्रेयर और पिटीशन की जगह एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स बॉयकॉट और स्वदेशी मैथर्ड को अपनाते हैं यह परसूएसन से ज्यादा कन्फर्टेशनल में बिलीव करते थे इसके साथ ही ब्रिटिश रूल का विरोध करने में भी ये ज्यादा वो कल थे मॉडरेट्स की तरह इन्हें ब्रिटिश जस्टिस में कोई विश्वास नहीं था और ना ही यह ब्रिटिश क्राउन के प्रति कोई लॉयल्टी रखते थे एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स मांस मूवमेंट में भी बिलीव करते थे और लोअर मिडिल क्लास को नेशनल मूवमेंट से जोड़ना चाहते थे एक्सट्रीमिस्ट के यह मैथर्ड सबसे पहले बार इंप्लीमेंट हुए थे स्वदेशी मूवमेंट के दौरान तो इस स्वदेशी मूवमेंट को डिटेल में समझते हैं दोस्तों स्वदेशी मूवमेंट बंगाल पार्टीशन के अगेंस्ट ऑर्गेनाइज्ड किया गया था यह इंडियन नेशनल कांग्रेस की तरफ से एक मांस मूवमेंट करने की पहले कोशिश भी थी लेकिन मास मूवमेंट शुरू होने से पहले कांग्रेस ने पार्टीशन का विरोध मॉडरेट मेथड से ही किया था 1903 में पार्टीशन का प्लेन आने पर मॉडरेट लीडर्स पिटीशन और प्रेयर्स के द्वारा बंगाल पार्टीशन के अगेंस्ट प्रोटेस्ट करते हैं लेकिन उनकी प्रोटेस्ट का ब्रिटिशर्स पर कोई असर नहीं होता और जुलाई 1905 में बंगाल पार्टीशन का फाइनल अनाउंसमेंट कर दिया जाता है और सेवंथ अगस्त 1905 को कोलकाता टाउन हाल की मीटिंग में बाय गो रेजोल्यूशन के पैसेज के साथ स्वदेशी मूवमेंट का फॉर्मल प्रोक्लेमेशन हो जाता है 16 अक्टूबर 1905 को जो पार्टीशन फॉर्म में आता है तब पूरे बंगाल में उसे दिन को डीएफ मॉर्निंग की तरह मनाया जाता है यूनिटी के सिंबल के रूप में लोग एक दूसरे को राखी भी बांधते हैं प्रोफेशनल्स निकले जाते हैं जिसमें लोग वंदे मातरम और अमर सोनार बांग्ला जैसे गीत गेट हैं पॉलीटिकल लीडर्स बड़ी बड़ी गैदरिंग्स को एड्रेस करते हैं जल्दी ही मूवमेंट देश के बाकी हसन तक स्प्रेड हो जाता है तिलक की लीडरशिप में बॉम्बे और पुणे में लाल लाजपत राय और अजीत सिंह की नेतृत्व में पंजाब में मूवमेंट स्प्रेड होने लगता है सैयद हैदर राजा दिल्ली में लीडरशिप प्रोवाइड करते हैं और चिदंबरम पिल्लई मद्रास में मूवमेंट तो शुरू हो जाता है लेकिन कांग्रेस की तरफ से अभी भी इसका कोई फॉर्मल प्लेन नहीं रखा गया था आई जानते हैं कांग्रेस में स्वदेशी मूवमेंट को लेकर क्या चल रहा था डी कांग्रेस पोजीशन दोस्तों 1905 में गोखले की प्रेसीडेटशिप में कांग्रेस की मीटिंग होती है इसमें बंगाल की पार्टीशन और कर्जन की रिएक्शन को कंडोम किया जाता है साथ ही बंगाल में चल रहे स्वदेशी मूवमेंट को सपोर्ट करने का फैसला भी लिया जाता है एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स तो मूवमेंट को बंगाल से बाहर देश के दूसरे पार्ट तक एक्सटेंड करना चाहते थे साथी फॉरेन गुड्स के बाय गॉड से आगे बढ़कर एक फूल फ्लेड मास्क स्ट्रगल भी शुरू करना चाहते थे लेकिन उसे समय कांग्रेस में मॉडरेट लीडर्स का डोमिनेंस था और वो इतने आगे नहीं जाना चाहते थे लेकिन नेक्स्ट कांग्रेस सेशन में एक बड़ा स्टेप लिया जाता है इस सेशन को हेड कर रहे थे दादा भाई नौरोजी और यह कोलकाता में हुआ था यहां डिक्लेअर किया जाता है की कांग्रेस का गोल सेल्फ गवर्नमेंट या स्वराज है इस डिक्लेरेशन से एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स का कॉन्फिडेंस और बाढ़ जाता है और वह स्वदेशी और बॉयकॉट के साथ पैसिव रेजिस्टेंस की कॉल भी दे देते हैं इसमें गवर्नमेंट स्कूल और कॉलेजेस का गवर्नमेंट सर्विसेज का कोट्स का लेजिसलेटिव काउंसिल का म्युनिसिपालिटीज का और गवर्नमेंट टाइटल्स का बॉयकॉट शामिल था है इसके अलावा और कौन-कौन सी एक्टिविटीज स्वदेशी मूवमेंट के दौरान हुई थी आई जानते हैं न्यू फॉर्म्स ऑफ स्ट्रगल और इंपैक्ट दोस्तों स्वदेशी और बॉयकॉट मूवमेंट के समय फॉरेन गुड्स को बॉयकॉट करने के अलावा भी बहुत सी एक्टिविटी शुरू की जाति है जैसे की करो वॉलिंटियर्स या समिति को ऑर्गेनाइजर किया जाता है इसमें अश्विनी कुमार डेट द्वारा बरिसल में बनाई गई स्वदेश बांधव समिति सबसे ज्यादा पॉपुलर होती है यह समिति मास मोबिलाइजेशन का पावरफुल मेंस बन जाति हैं स्वदेशी मूवमेंट के दौरान मैसेज तक पहुंचने और उनके बीच पॉलीटिकल मैसेज को स्प्रेड करने के लिए पॉपुलर फेस्टिवल्स और मेला कभी इस्तेमाल किया जाता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण है तिलक द्वारा शुरू किया गए गणपति और शिवाजी फेस्टिवल किया जाता है और अरविंद होश को इसका प्रिंसिपल बनाया जाता है देखते ही देखते देश के अलग-अलग हसन में नेशनल स्कूल और कॉलेजेस खुलना शुरू हो जाते हैं 15th अगस्त 196 को नेशनल कंट्रोल में एजुकेशन सिस्टम को ऑर्गेनाइज करने के लिए नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन को सेटअप किया जाता है इसके साथ ही बहुत से स्वदेशी यानी की इंडीजीनस इंटरप्राइजेज की भी शुरुआत होती है इसमें सबसे इंपॉर्टेंट है चिदंबरम पिल्लई के द्वारा इस्टैबलिश्ड नेशनल शिव बिल्डिंग एंटरप्राइज स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कंपनी 1917 में इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट भी फॉर्म की जाति है इसका एक इंडियन आर्टिस्ट पर इंग्लिश इन्फ्लुएंस को काउंटर करना था यह चाहते थे की इंडियन आर्ट यूरोपियन आर्टिस्ट ना होकर इंडीजीनस आर्ट फॉर्म बनते हैं नंदलाल बस साइंस की फील्ड में जगदीश चंद्र बस प्रफुल्ल चंद्र राय जैसे जीनियस ओरिजिनल रिसर्च से पूरे विश्व में ख्याति बातें इस तरह हम का सकते हैं की स्वदेशी मूवमेंट सिर्फ पॉलीटिकल फील्ड तक ही लिमिटेड नहीं था इसका इंपैक्ट हर फील्ड में देखने को मिलता है और ये इंडियन को एक नया कॉन्फिडेंस देने का कम करता है मूवमेंट में स्टूडेंट का पार्टिसिपेशन बड़े स्केल पर देखने को मिलता है इसके साथ ही वूमेन और वर्किंग क्लास भी पहले बार नेशनल मूवमेंट से जुड़ने हैं लेकिन 198 आते-आते स्वदेशी मूवमेंट खत्म होने की कागर पर ए जाता है ऐसा क्यों डी मूवमेंट आउट स्वदेशी मूवमेंट के डिक्लिन के पीछे बहुत से करण थे सबसे पहले करण था गवर्नमेंट की तरफ से किया गया प्रिपरेशन दोस्तों 1908 आते-आते मूवमेंट लीडर एस हो जाता है क्योंकि ज्यादातर लीडर्स को या तो अरेस्ट कर लिया जाता है या फिर डिपो अरबिंदो घोष और विपिन चंद्र पालतू एक्टिव से रिटायर ही हो जाते हैं इसके अलावा मूवमेंट मोस्टली अपार और मिडिल क्लास तक ही सीमित र जाता है यह मैसेज स्पेशली पैग्स को अपने साथ जोड़ने में असफल राहत है और स्वदेशी मूवमेंट के डिक्लिन होने का सबसे बड़ा करण था लीडर्स के बीच की आपसी अनबन मॉडरेट्स और एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स मूवमेंट की स्ट्रेटजी को लेकर अलग-अलग ओपिनियन रखते थे उनके बीच की तकरार इतनी ज्यादा बाढ़ जाति है की 197 की सूरत सेशन में कांग्रेस दो ग्रुप में स्प्लिट हो जाति है इसे सूरज प्लेट के नाम से जानते हैं आई सूरज प्लेट को डिटेल में समझते हैं सूरज प्लेट 197 कांग्रेस सेशन दोस्तों 1917 का सेशन पहले नागपुर में होना था लेकिन नागपुर एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स का स्ट्रांग गोल था और मॉडरेट लीडर्स को ये डर था की नागपुर में अगर सेशन हुआ तो तिलक प्रेसिडेंट बन जाएंगे इसलिए मॉडरेट लीडर गोखले सेशन को सूरज शिफ्ट कर देते हैं सूरत क्योंकि तिलक के होम प्रॉब्लम्स में आता था इसीलिए रूल के अकॉर्डिंग वो सेशन के प्रेसिडेंट नहीं बन सकते थे इस तरह 197 के सेशन की शुरुआत मॉडरेट और एक स्त्रीमिस्ट लीडर्स के बीच तकरार के साथ होती है यह मॉडरेट ग्रुप प्रेसिडेंट के लिए रोष बिहार घुस का नाम आगे करते हैं और एक सरिता इस ग्रुप लाल लाजपत राय को प्रेसिडेंट बनाना चाहते थे पहले बार प्रेसिडेंट की पोस्ट के लिए इलेक्शन करना पड़ता है और फाइनली रोशन बिहार घोषित प्रेसिडेंट इलेक्ट होते हैं लेकिन इस सबके बीच दोनों ग्रुप के बीच तकरार इतनी ज्यादा बाढ़ जाति है की सेशन को कॉल ऑफ करना पड़ता है और इस तरह कांग्रेस स्प्लिट हो जाति है दोस्तों कांग्रेस में हुई स्पिरिट का फायदा ब्रिटिश गवर्नमेंट उठाती है और एक्सट्रीम इस पर मैसिव अटैक लॉन्च कर देती है आई देखते हैं कैसे गवर्नमेंट स्ट्रेटजी एंटीगमत एक्टिविटीज को रोकने के लिए 1917 से 1911 के बीच ब्रिटिश गवर्नमेंट 5 नए लॉस लेकर आई है यह थे सेडिशन मीटिंग्स 197 इंडियन न्यूज़ पेपर इनिसाइटमेंट तू ऑफेंसेस एक्ट 198 क्रिमिनल डॉ अमेंडमेंट एक्ट 198 और दी इंडियन प्रेस एक्ट 1910 मिनट्स लीडर तिलक के अगेंस्ट 1909 में सेडिशन के इस फाइल किया जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने न्यूज़पेपर केसरी में बंगाल के क्रांतिकारी द्वारा मुजफ्फरनगर में बम फेक जान की घटना पर आर्टिकल लिखा था इन्हें गिल्टी मानते हुए ₹1000 का फाइन और 6 साल के लिए बर्मा की मंडलीय जय में रहने की सजा सुने जाति है और लाल लाजपत राय विदेश चले जाते लीडर्स की ऑप्शंस में मूवमेंट कमजोर पढ़ने लगता है और कुछ समय के लिए खत्म सा हो जाता है 1914 में जब तिलक जय से बाहर आते हैं तब एक बार फिर से मूवमेंट की बागडोर अपने हाथ में लेते हैं इस बीच मॉडरेट्स को खुश करने के लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट 1909 में इंडियन काउंसिल एक्ट भी लेकर आई है इसे मौली मिंटो रिफॉर्म्स के नाम से जाना जाता है एक्ट की डीटेल्स को हम एक अलग वीडियो में डिस्कस करेंगे यहां बस इतना समझ लेते हैं की इस एक्ट के द्वारा मॉडरेट्स और मुस्लिम को ब्रिटिश गवर्नमेंट अपनी तरफ करना चाहती थी दोस्तों यह तो बात हुई की ब्रिटिशर्स कैसे अलग स्ट्रेटजी अपनाते हैं एक स्त्रीमिस्ट और मॉडरेट ग्रुप से डील करने केराटिन स्टिक पॉलिसी के लिए स्टिक की तरह जब तिलक जय से बाहर ए जाते हैं तब किस तरह से नेशनल मूवमेंट आगे बढ़ता है आई जानते हैं फर्स्ट वर्ल्ड वार लखनऊ सेशन और होम रूल लीग मूवमेंट दोस्तों 1914 में जब फर्स्ट वर्ल्ड वार शुरू होती है तब मॉडरेट लीडर्स तो वार में ब्रिटिश का सपोर्ट स एन मटर ऑफ ड्यूटी करते हैं वहीं तिलक जैसे एक्सट्रीमिस्ट ये सोचकर ब्रिटिश के वार एफर्ट्स को सपोर्ट करते हैं की इस लॉयल्टी के बदले में ब्रिटिशर्स उन्हें सेल्फ गवर्नमेंट का तोहफा दे देंगे लेकिन इसके साथ ही लीडर्स को इस बात का भी एहसास था की बिना किसी पॉपुलर प्रेशर की ब्रिटिश गवर्मेंट कभी भी कंसेशन देने के लिए तैयार नहीं होगी इसलिए लीडर्स की तरफ से एक ऑर्गेनाइज्ड एफर्ट तो जरूरी है कुछ और भी करण थे जिसकी वजह से नेशनल मूवमेंट इस दिशा में बढ़ता है जैसे की वार के दौरान इंडिया में गरीब लोगों की हालात और खराब होना क्योंकि वार के समय हैवी टैक्सेशन इंपोज किया जा रहा था और साथ ही रोजमर्रा की चीजों के दम आसमान चुने लगे थे इस वजह से लोग भी प्रोटेस्ट करने के लिए एक एग्रेसिव मूवमेंट के पक्ष में नजर ए रहे थे अब ये मूवमेंट इंडियन नेशनल कांग्रेस की लीडरशिप में होना तो मुश्किल ग रहा था क्योंकि मॉडरेट्स की लीडरशिप में कांग्रेस एक पैसिव और इनर्ट पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन बन कर र गई थी इसलिए कांग्रेस के बाहर से ही मूवमेंट शुरू होता है और यह मूवमेंट था होम रूल लीग के एग्जांपल को फॉलो करता है तिलक अपनी इंडियन होम रूल लीग अप्रैल 1916 में सेटअप करते हैं इसकी पहले मीटिंग बेलगांव में होती है और इसका हैडक्वाटर्स पुणे में बन जाता है इनकी लिक बॉम्बे सिटी को छोड़कर महाराष्ट्र कर्नाटक सेंट्रल प्रोविंस और विराट को कर करती हैं लेकिन मेजर डिमांड्स में स्वराज लिंग्विस्टिक्स स्टेटस का फॉर्मेशन और वर्नाकुलर में एजुकेशन देना शामिल था अपनी जो इंडिया होम रूल लीग को सितंबर 1916 में मद्रास से शुरू करती हैं तिलक के एरियाज को छोड़कर पूरे इंडिया को इनकी लीग कर करती है और इनके अलावा इसमें ब्ल्यू वाडिया और क रामास्वामी अय्यर का भी इंपॉर्टेंट योगदान था है इसी बीच 1916 में कांग्रेस का लखनऊ सेशन भी होता है इसमें एक्सट्रीमिस्ट को वापस कांग्रेस में शामिल कर लिया जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि मॉडरेट्स और एक्सट्रीमिस्ट दोनों को ही रिलीज होता है की उनके बीच स्प्लिट ने पॉलीटिकल इन एक्टिविटी को जन्म दे दिया है साथ ही एनी बसंत और तिलक कुछ सालों से रियूनियन के लिए एफर्ट कर ही रहे थे इस बीच गोखले और फिरोज शाह मेहता जैसे मॉडरेट लीडर्स की मृत्यु भी रियूनियन के लिए रास्ता बनाने का कम करती है तो इस तरह मॉडरेट्स और एक्सट्रीमिस्ट फिर से एक साथ कम करने लगता हैं और इस वजह से होम रूल लीग मूवमेंट और भी स्ट्रांग हो जाता है इसे मोतीलाल नेहरू जवाहरलाल नेहरू भोला भाई देसाई मोहम्मद अली जिन्ना तेज बहादुर सप्रू और लाल लाजपत राय जैसे लीडर्स भी जॉइन कर लेते हैं यानी की बहुत से नए लीडर्स इस आंदोलन के दौरान ही पहले बार नेशनल स्ट्रगलेसी जुड़ने हैं बीच में दिखने लगता है जगह पब्लिक मीटिंग्स ऑर्गेनाइजर की जाति हैं न्यूज़ पेपर के थ्रू प्रोपेगेंडा चलाया जाता है सोशल वर्क ऑर्गेनाइज किया जाते हैं ब्रिटिश गवर्मेंट मूवमेंट के अगेंस्ट सीवर रिप्रेशन शुरू कर देती है मद्रास में स्टूडेंट की पॉलीटिकल मीटिंग्स अटेंड करने पर बन लगा दिया जाता है तिलक को पंजाब और दिल्ली जान से रॉक दिया जाता है जून 1917 में अन्य बसंत और उनके एसोसिएट्स को अरेस्ट कर लिया जाता है इसकी वजह प्रोटेस्ट शुरू हो जाते हैं अपना विरोध जताने के लिए सर सुब्रह्मण्य अय्यर अपना नाइट हुड रिनाउंस कर देते हैं और तिलक पैसिव रेजिस्टेंस शुरू करने की बात करते हैं इस तरह होने लगता है इसलिए ब्रिटिश गवर्नमेंट सितंबर 1917 में उन्हें रहा कर देती है लेकिन 1998 जैसे की इफेक्टिव अंग ग्रेजुएशन करना होना 1978 के बीच कम्युनल रिच का होना और अगस्त 1917 की मोंटीगू की डिक्लेरेशन मोंटीगू इंडिया के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट थे 20th अगस्त 1917 को ये ब्रिटिश पार्लियामेंट में डिक्लेअर करते हैं की इंडिया में ब्रिटिशर्स का लॉन्ग टर्म गोल रिस्पांसिबल गवर्नमेंट एस्टेब्लिश करना है इस डिक्लेरेशन के बाद मॉडरेट्स और अन्य बेसेंट को लगता है की आंदोलन को कंटिन्यू करने की जरूर नहीं है इसके अलावा सितंबर 1918 में एक कैसे के सिलसिले में तिलक भी विदेश चले जाते हैं इस तरह मूवमेंट हो जाता है और धीरे-धीरे डिक्लिन कर जाता है और यहां से नेशनल मूवमेंट के गांधियन फीस की शुरुआत होती है जिसके बड़े में हम अपनी आने वाली वीडियो में बात करेंगे इवेलुएशन ऑफ एक्सट्रीमिस्ट स्पेस दोस्तों एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स का इंडियन नेशनल मूवमेंट में बहुत इंपॉर्टेंट योगदान रहा है इन्हीं लीडर्स की वजह से इंडियन को यह कॉन्फिडेंस आया था की वो ब्रिटिशर्स से स्वराज की डिमांड कर सकते हैं तिलक का स्लोगन स्वराज इस मी बर्थराइट जो हम रूल मूवमेंट के दौरान दिया गया था घर-घर तक पहुंच जाता है और आगे आने वाली पीढ़ी को भी इंस्पायर करने का कम करता है एक्सट्रीमिस्ट फैज के समय ही नेशनल एजुकेशन और स्वदेशी इंटरप्राइजेज का डेवलपमेंट और तेजी से शुरू होता है नेशनल मूवमेंट को एक नई और जरूरी दिशा देने का कम करता है एक्सट्रीमिस्ट्रेस लेकिन इसके साथ ही एक सरिता इस लीडर्स अपने स्वराज के गोल को पूरा करने के लिए कोई स्ट्रांग एक्शन प्लेन नहीं तैयार कर पाते यह यंगस्टर में जोश तो जगह देते हैं लेकिन उनकी एनर्जी को सही दिशा में चैनेलाइज करने में असफल रहते हैं खासकर स्वदेशी मूवमेंट के डिक्लिन के बाद युद्ध डायरेक्टनलेस फूल करते हैं इसका ही नतीजा था की कुछ यंगस्टर रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज की तरफ चले जाते हैं रिवॉल्यूशनरी फेस के बड़े में हम अपने नेक्स्ट वीडियो में चर्चा करेंगे रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट फर्स्ट फेस दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने इंडियन नेशनल कांग्रेस में एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स के राइस की बात की थी साथ ही बंगाल पार्टीशन के अगेंस्ट शुरू हुए स्वदेशी और बॉयकॉट मूवमेंट के बड़े में भी जाना था इसके अलावा होम रूल लीग स्कोर भी समझ लिया था ये सभी डेवलपर कहानी इंडियन नेशनल कांग्रेस से ही रिलेटेड थे लेकिन देश की आजादी के लिए सिर्फ इंडियन नेशनल कांग्रेस ही स्ट्रगल नहीं कर रही थी कांग्रेस के बाहर भी बहुत सारे लोग और ऑर्गेनाइजेशंस ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट खड़े हो चुके थे इन्हीं में से एक स्ट्रांग है रिवॉल्यूशनरीज का इसलिए आज हम रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट के फर्स्ट फैज को डिटेल में डिस्कस करने वाले हैं तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन रीजंस पर इमरजेंसी दोस्तों इंस्पायर किया था हमने देखा था की कैसे ब्रिटिश की रिप्रेशन के करण ओपन मूवमेंट का डिक्लिन शुरू हो गया था ऐसी सिचुएशन में बहुत से यंग पैट्रियोट्स थे जो चुप नहीं बैठ सकते थे गवर्नमेंट जब शांतिपूर्ण तरीके से विरोध का रास्ता बैंड कर देती है तब यह यंग लीडर्स सीक्रेट रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज की तरफ चले जाते हैं इसलिए यह उनसे बदला भी लेना चाहते थे है इसके अलावा रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट की शुरू होने का एक करण एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स का फेलियर भी था एक्सट्रीमिस्ट लीडर्स यूथ के जोश को सही दिशा दिखाने में असफल हो गए थे ब्रिटिश रिप्रेशन के बाद किस तरह मूवमेंट को आगे ले जाना चाहिए इसका कोई एक्शन प्लेन इन लीडर्स के पास नहीं था ऐसी सिचुएशन में युद्ध को जो भी रास्ता सही लगता है वो उसकी तरफ चल देते हैं यह रास्ता और कुछ नहीं बल्कि क्रांतिकारी पाठ ही था आई अब समझते हैं रिवॉल्यूशनरीज की आईडियोलॉजी क्या थी और इनका पियानो एक्शन किया था रिवॉल्यूशनरी प्रोग्राम दोस्तों क्रांतिकारी की बेसिक एडोलॉजी थी ब्रिटिश को फोर्स के जारी इंडिया से बाहर निकालना इसके लिए वह रूस नहीं लिस्ट और आयरलैंड के नेशनलिस्ट से इंस्पिरेशन लेते हैं यह लोग इंडिविजुअल हीरोइन डीडीएस में यकीन करते थे इंडियन रिवॉल्यूशनरीज भी इनके ही दिखाएं मार्ग पर चलते हैं और उन पॉपुलर ब्रिटिश ऑफिशल्स की हत्या करना शुरू कर देते हैं इसके पीछे उनका ब्रिटिशर्स के दिल और दिमाग में टेरर पैदा करना साथ ही देश के लोगों की फीलींगस को अराउस करना जिससे वो ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट क्रांति करने के लिए तैयार हो जाए इनके एक्शन प्रोग्राम में सीक्रेट इसोसिएशन एस्टेब्लिश करना मिलिट्री ट्रेनिंग प्रोवाइड करना और स्वदेशी डेकोरेटिव डालना भी शामिल था यह तो बात हुई रिवॉल्यूशनरीज की आईडियोलॉजी और उनके बेसिक एक्शन प्लेन की अब बात करते हैं इंडिया के अलग-अलग रीजन में होने वाली रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज के कुछ एग्जांपल्स की रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज इन इंडिया दोस्तों इंडिया में क्रांतिकारी गतिविधि का ट्रेडीशन कोई नया नहीं है स्वदेशी मूवमेंट से पहले भी हमें कुछ रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज के एग्जांपल्स देखने को मिलते हैं इसमें सबसे इंपॉर्टेंट रीजन था महाराष्ट्र महाराष्ट्र में ही यूरोपियंस का पहले पॉलीटिकल मर्डर कमेंट हुआ था 20 सेकंड जून 1897 को बालकृष्ण चापेकर और दामोदर चापेकर पूनम प्ले कमेटी के प्रेसिडेंट मिस्टर ब्रांड को गली मार देते हैं हालांकि गलती से लेफ्टिनेंट जो मिस्टर ब्रांड की मिलिट्री एस्कॉर्ट थे उनको भी गली ग जाति है इसके बाद चाबी कर ब्रदर्स को अरेस्ट करके फैंसी की सजा सुना दी जाति है जबिकर ब्रदर्स का यह एक्ट रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटी का पहले उदाहरण भी माना जाता है बाल गंगाधर तिलक अपने न्यूज़पेपर केसरी में जापेकर ब्रदर्स के इस एक्शन की तारीफ में एक आर्टिकल लिखने हैं इसके लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट उनके ऊपर सेडिशन चार्ज लगा देती है और तिलक को 18 मंथ्स के रिग्रेस इंप्रिजनमेंट की सजा सुने जाति है और उनके भाई नासिक में मित्र मेला नाम से एक सीक्रेट सोसाइटी ऑर्गेनाइज करते हैं मित्र मेला 1904 में अभिनव भारत नाम की सोसाइटी के साथ चेंज हो जाति है जल्दी ही नासिक पुणे और मुंबई बम मैन्युफैक्चरर के सेंटर्स के रूप में उभरते हैं 1909 में अभिनव भारत के मेंबर अनंत लक्ष्मण कान्हा रे नासिक कलेक्टर एमटी जैक्सन की हत्या कर देते हैं ब्रिटिश इंक्वारी में पाया जाता है की यह हत्या एक बहुत बड़ी कंस्पायरेसी का हिस्सा है ये कंस्पायरेसी थी ब्रिटिश गवर्नमेंट के अगेंस्ट एक आर्म्ड रिवॉल्यूशन ऑर्गेनाइज करना इसमें 38 लोगों को गिरफ्तार किया जाता है साथ ही यह भी पाया जाता है की सावरकर स्किंस्पायरेसी के लीडर हैं इसलिए उन्हें आजीवन देश निकाला की सजा सुना दी जाति है और उनकी साड़ी प्रॉपर्टी जप्त कर ली जाति है इस तरह बंगाल में भी बहुत सी क्रांतिकारी गतिविधियां देखने को मिलती हैं 193 में पोलिंग दास ढाका में अनुशीलन समिति की पहले ब्रांच शुरू करते हैं तीन आठ मित्र कोलकाता में इसकी एक और ब्रांच शुरू करते हैं 196 में वरिंदर घोष और भूपेंद्रनाथ डेट मिलकर युगांतर समिति एस्टेब्लिश करते हैं इसी नाम से यह एक न्यूज़ पेपर भी निकलते हैं इस न्यूज़ पेपर में एंटी ब्रिटिश इतिहास को छाप जाता था और लोगों में नेशनलिज्म की भावना का प्रसार किया जाता था 197 में पूर्वी बंगाल और बंगाल की लिफ्टेड इन गवर्नर को करने के असफल प्रयास भी किया गए थे इसके बाद 30th अप्रैल 198 को मुजफ्फरपुर के जज मिस्टर किंग्सफरड की हत्या का प्रयास किया जाता है इनके ऊपर बम फेंकने की जिम्मेदारी प्रफुल्ल चाचा और खुदीराम बॉस्को दी गई थी लेकिन गलती से बम मिस्टर कैनेडी के कैरिज पर गिर जाता है और दो लेडीज इसमें मेरी जाति हैं प्रफुल्ल चाचा और बस को अरेस्ट कर लिया जाता है चाकी तो खुद को ही गली मार लेते हैं जबकि बस के खिलाफ ट्रायल होता है और उन्हें फैंसी दे दी जाति है गवर्नमेंट कोलकाता में मानिकतला गार्डन और बाकी जगह अवैध हथियारों की तलाशी का अभियान चलती है इसमें 34 लोगों को गिरफ्तार किया जाता है जिसमें अरबिंदो घोष और उनके भाई नरेंद्र घोष भी शामिल थे इन सभी लोगों के ऊपर अलीपुर कंस्पायरेसी कैसे चलाया जाता है अरबिंदो घोष को एविडेंस एन होने की वजह से छोड़ दिया जाता है लेकिन बाकी सभी लोगों को सजा सुने जाति हैं इस तरह बंगाल भी रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट का एक इंपॉर्टेंट सेंटर बन गया रिपोर्ट के अनुसार रिपोर्ट किया गए थे और 60 से ज्यादा मर्डर अटेंप्ट हुए थे ब्रिटिश ऑफिसर पर पंजाब में भी हमें रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट का प्रभाव देखने को मिलता है यहां लाल लाजपत राय और अजीत सिंह मुख्य रूप से लीड कर रहे थे लाल जी जिन्हें पंजाब केसरी और लायन और पंजाब जैसे नाम से जाना जाता है पंजाबी नाम का न्यूज़पेपर निकलते हैं जिसका मोटो होता है किसी भी कीमत पर सेल्फ हेल्प अजीत सिंह जो की भगत सिंह के अंकल थे वो लाहौर में अंजुमन ने मौसी बाय वतन नाम से एक क्रांतिकारी संस्था शुरू करते हैं संस्था भारत माता नाम से एक जनरल भी प्रकाशित करती है लेकिन पंजाब में रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज पर जल्दी ही रॉक लगा दी जाति है क्योंकि में 197 में गवर्नमेंट पॉलीटिकल मीटिंग्स पर बन लगाने के साथ लाल लाजपत राय और अजीत सिंह को रिपोर्ट कर देती है इसके अलावा दिसंबर 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में भी वायसराय लोड होर्डिंग के ऊपर बम फेंका गया था बिहार उड़ीसा और अप में भी गाड़ी एक्टिव थे लेकिन बाकी एरियाज के कंपैरिजन में यहां प्रभाव कुछ कम देखने को मिलता है दोस्तों यह तो बात हुई देश के अंदर चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों की क्रांतिकारी की जो देश के बाहर से आंदोलन कर रहे थे रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज एब्रॉड दोस्तों गवर्मेंट के रिप्रेशन की वजह से बहुत से क्रांतिकारी विदेश चले जाते हैं और वहीं से अपना संघर्ष जारी रखते हैं आई जानते हैं उनके बड़े में 1905 में श्याम जी कृष्णा वर्मा लंदन में इंडिया हाउस की स्थापना करते हैं यह लंदन में इंडियन स्टूडेंट के लिए एक सेंटर का कम करता है और इंडिया से रेडिकल यूथ को लंदन लाने के लिए एक स्कॉलरशिप स्कीम भी शुरू की जाति है श्याम जी कृष्णा वर्मा वे इंडियन सोशियोलॉजिस्ट नाम से एक जनरल भी शुरू करते हैं सावरकर और लाल हरदयाल जैसे रिवॉल्यूशनरीज इंडिया हाउस का मेंबर बन जाते हैं इसी सर्किल के मदन लाल ढींगरा 19 में कर्जन वायलेट जो की सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के पॉलीटिकल एडवाइजर थी की हत्या कर देते हैं लंदन के अलावा पेरिस में मैडम भीकाजी काम जो की एक पारसी रिवॉल्यूशनरी थी वंदे मातरम नाम का अखबार निकलते हैं मैडम काम को मधुर इंडियन रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट भी कहा जाता है इन्होंने ऑर्गेनाइज्ड वर्ल्ड सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में इंडियन फ्लैग को फहराया था यह फ्लैग मैडम भीकाजी कृष्णा वर्मा ने मिलकर डिजाइन किया था और आगे जाकर यह इंडिया की नेशनल फ्लैग के लिए एक टेंपलेट्स का कम करता है जर्मनी में वीरेंद्र नाथ चौपाध्याय रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज को लीड कर रहे थे उनकी न्यूज़ पेपर का नाम तलवार था फर्स्ट वर्ल्ड वार के शुरू होने के बाद यह जर्मन फॉरेन ऑफिस की हेल्प से ज़िम-अप प्लेन बनाते हैं प्लेन के तहत 1915 में बर्लिन कमेटी पर इंडियन इंडिपेंडेंस एस्टेब्लिश की जाति है इसमें वीरेंद्र नाथ के अलावा भूपेंद्र नाथ दत्ता और लाल हरदयाल जैसे रिवॉल्यूशनरीज भी शामिल थे इनका प्लेन इंडिया में आर्म्ड रिबेलीयन इनसाइड करना था इसके लिए आम और वॉलिंटियर्स को इंडिया में भेजना की तैयारी करते हैं प्लेन के अनुसार उड़ीसा के बालेश्वर में हथियार पहुंचने थे और बंगाल की क्रांतिकारी बाघ जतिन इन्हीं लेने आने वाले थे लेकिन ब्रिटिशर्स को इनके प्लेन की भक ग जाति है और पुलिस फायरिंग में बाघ जतिन मारे जाते हैं दोस्तों इंडिया के बाहर सबसे इंपॉर्टेंट रिवॉल्यूशनरी ग्रुप था गदर पार्टी गदर पार्टी दोस्तों गदर पार्टी का इनिशियल नाम पेसिफिक कास्ट हिंदुस्तान संगठन था और इसे 15th जुलाई 1913 को लाल हरदयाल भगवान सिंह करतार सिंह सराभा और भाई परमानंद जैसे लीडर्स के नेतृत्व में उस में फॉर्म किया गया था इसका हैडक्वाटर्स सन फ्रांसिस्को में था यह लोग गदर नाम से एक पत्रिका भी पब्लिश करते थे जिसमें ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट एक आर्म्ड रिवॉल्यूशन की बात होती थी गदर पार्टी इंडिया में क्रांति लाना चाहती थी और इनके इस प्लेन को प्रोत्साहन देने का कम करते हैं 1914 के दो इवेंट्स पहले था मारू इंसिडेंट और दूसरा फर्स्ट वर्ल्ड वार की शुरुआत फर्स्ट वर्ल्ड वार इंसिडेंट की डीटेल्स जानना थोड़ा जरूरी है तो आई इसको समझते हैं दोस्तों सिंगापुर यानी कनाडा ले जा रही थी यह पैसेंजर मोस्टली सिंह और पंजाबी मुस्लिम पर पहुंचती है तो कनाडा अथॉरिटीज लोगों को शिवा से उतारने की परमिशन देने में डेरी करती है और लगभग 2 महीने तक पोस्ट पर ही अटकी रहती है इसके बाद इन्हें वापस जान के लिए का दिया जाता है ध्यान देने वाली बात यह है की कनाडा अथॉरिटीज ऐसा ब्रिटिश गवर्मेंट के इन्फ्लुएंस में करती हैं शिव सितंबर 1914 में कोलकाता वापस पहुंचती है वहां इन्हें तुरंत पंजाब जान वाली ट्रेन में बैठने का ऑर्डर दिया जाता है पहले से ही इतनी लंबी यात्रा करने की वजह से यह लोग परेशान थे ऐसे में यह ट्रेन में बैठने से माना कर देते हैं और इसी बात पर पुलिस के साथ इनका कनफ्लिक्ट शुरू हो जाता है कोलकाता के पास बज-बज नाम की जगह पर यह कनफ्लिक्ट होता है और इसमें 22 लोगों की मृत्यु हो जाति है और ब्रिटिश आर्मी की इंडियन सोल्जर को विद्रोह करने के लिए उकसाते हैं गदर पार्टी 21st फरवरी 1915 को फिरोजपुर लाहौर और रावलपिंडी गैरसैण में आर्म्ड रिवॉल्ट की डेट को भी फिक्स कर देती है लेकिन उनका यह प्लेन लास्ट मोमेंट पर धोखेबाजी की वजह से खराब हो जाता है उनका ही एक मेंबर ब्रिटिश अथॉरिटी से जा मिलता है और ब्रिटिशर्स फौरन एक्शन लेते हुए रिबेलियस रेजिमेंट को डिसबैंड कर देते हैं लीडर्स को अरेस्ट करके डिपो कर दिया जाता है और करीब 45 लोगों को फैंसी भी दी जाति है रोष बिहार बस जबान भागने में सफल होते हैं और वहां से अपना संघर्ष जारी रखते हैं दोस्तों गदर मूवमेंट की इंर्पोटेंस उनकी आईडियोलॉजी में है यह पुरी तरह सेकुलर अप्रोच के साथ मिलिटेंट नेशनलिज्म की सिख देते हैं पॉलीटिकल हो जाते हैं क्योंकि इनके पास ऑर्गेनाइज्ड लीडरशिप की कमी थी इसके साथ ही ये आम रिपोर्ट के लिए हर लेवल पर जरूरी प्रिपरेशन को भी अंदर एस्टीमेट कर लेते दोस्तों इस तरह इंडिया से बाहर र कर भी रिवॉल्यूशनरीज देश की आजादी के लिए संघर्ष करते रहते हैं कंक्लुजन दोस्तों यह था रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट का फर्स्ट फेस रिवॉल्यूशनरी भले ही एक बड़ी क्रांति करके ब्रिटिशर्स को देश से भागने में असफल रहते हैं लेकिन इंडियन नेशनल मूवमेंट में उनका कंट्रीब्यूशन अनमोल है अपनी एक्टिविटी से इन्होंने लोगों में नेशनलिज्म की भावना को और ज्यादा प्रबल बनाया था इनकी वजह से देशवासियों में सेल्फ रिस्पेक्ट और सेल्फ कॉन्फिडेंस की वृद्धि होती है यह इन क्रांतिकारी की एक्टिविटीज का ही नतीजा था की ब्रिटिश रूल का डर लोगों में से निगलना शुरू हो जाता है महात्मा गांधी इन साउथ अफ्रीका दोस्तों इंडियन नेशनल मूवमेंट का पाठ बने से पहले गांधीजी साउथ अफ्रीका में ब्रिटिश कॉलोनियल रूल को चैलेंज कर चुके थे आज हम उनके साउथ अफ्रीकन कैंपेन को डिटेल में डिस्कस करने वाले हैं हम जानेंगे की कैसे गांधीजी साउथ अफ्रीका में एक लीडर के रूप में उभरते हैं और किस तरह यहां इंडियन के राइट्स को प्रोटेस्ट करते हैं शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में पोरबंदर नाम की जगह पर हुआ था यह अपने फादर करमचंद गांधी की सबसे छोटी संतान थे इनकी मदर का नाम पुतलीबाई था और वो इनके फादर की फौजी वाइफ थी गांधी जी की स्कूलिंग पास के राजकोट से हुई थी जहां उनके फादर लोकल रोलर के एडवाइजर के रूप में कम करते थे 13 साल की आगे में गांधीजी की शादी कस्तूरबा से हो जाति है फिर सितंबर 1888 में डॉ पढ़ने के लिए गांधीजी इंग्लैंड चले जाते हैं यहां वो सक्सेसफुली अपनी डिग्री कंप्लीट करते हैं और 10 जून 1891 को उन्हें बार में बुलाया जाता है [संगीत] लेकिन इस साल वो इंडिया वापस ए जाते हैं अगले दो साल तक गांधीजी मुंबई में अपनी लो प्रैक्टिस एस्टेब्लिश करने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें रिलाइज होता है की ना तो उन्हें इंडियन डॉ की इतनी नॉलेज है और ना ही ट्रायल फेस करने का सेल्फ कॉन्फिडेंस इसलिए गांधीजी वापस अपने घर पूर्व बंदर लोट जाते हैं यहां वो अपने फ्यूचर को लेकर परेशान ही हो रहे थे की तभी साउथ अफ्रीका में लोकेटेड एक इंडियन बिजनेस फर्म का रिप्रेजेंटेटिव इसे मिलने आता है वह गांधीजी को एंप्लॉयमेंट को ऑफर देता है हम डिटेल फाइव पाउंड की फीस में 12 महीने के लिए गांधी जी को साउथ अफ्रीका में कम करना था गांधीजी ऑफर को एक्सेप्ट कर लेते हैं और साउथ अफ्रीका की उनकी जर्नी शुरू होती है अराइवल इन साउथ अफ्रीका दोस्तों 24th में 1893 को गांधीजी डरबन पहुंच जाते हैं यहां उन्हें मर्चेंट दादा अब्दुल्ला के लिए लीगल काउंसिल का कम करना था एक महीने बाद ही कम के सिलसिले में उन्हें ट्रेन से प्रिटोरिया नाम की जगह पर जाना होता है इसी जननी के रास्ते में गांधीजी नेटल के पीटर मैरिज बग स्टेशन से भी गुजरते हैं यहां गांधीजी ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में बैठे हुए थे तभी एक व्हाइट परसों कंपार्टमेंट में इंटर करता है और तुरंत रेलवे ऑफिशल्स को बुला लेट है रेलवे ऑफिशल्स गांधीजी को थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में जान का ऑर्डर देता है क्योंकि इंडियन और अन्य नॉनवाॅयस को फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में ट्रैवल करने की परमिशन नहीं थी गांधीजी इसका विरोध करते हैं और अपना टिकट भी दिखाई हैं जो की फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट का ही था लेकिन ऑफिसर्स कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे और गांधी जी के ऑर्डर ना माने पर वो उन्हें ट्रेन से धक्का दे देते हैं उनके लगेज को भी प्लेटफॉर्म पर ही फेक दिया जाता है गांधीजी को पुरी रात स्टेशन पर ही गुजरानी पड़ती है यह पहले मौका था जब गांधी जी को रेसिजम का सामना करना पड़ता है की ब्रोकली ड्रेस इंडियन को फर्स्ट और सेकंड क्लास टिकट दे दी जाएगी लेकिन यह गांधीजी की सिर्फ पार्शियल विक्ट्री की थी साउथ अफ्रीका में र रही इंडियन के लिए रेसियल डिस्क्रिमिनेशन आम बात हो चुकी थी उन्हें व्हाइट सीसम की वजह से रोजाना ही हमिलिएशन और कंटेंप्ट झेलना पड़ता था बहुत सी कॉलोनी में बिना परमिट के रात 9:00 बजे के बाद इंडियन को बाहर आने की परमीशंस तक नहीं थी और ना ही ये लोग पब्लिक फुटपाथ का उसे कर सकते थे प्रिटोरिया पहुंचकर गांधीजी अपना लीगल क शुरू कर देते हैं साथ ही वहां र इंडियन की मीटिंग बुलेट हैं और उन्हें ऑर्गेनाइज होकर शोषण का विरोध करने का सुझाव देते हैं साथ ही प्रेस के थ्रू भी गांधीजी अन्य के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं इस समय तक गांधीजी का साउथ अफ्रीका में रुकने का कोई प्लेन नहीं था लेकिन फिर भी वो अपनी तरफ से अगेंस्ट इंडियन को अराउस करने की पुरी कोशिश करते हैं अपने डॉ के इसको सेटल करने के बाद गांधीजी वापस इंडिया जान की तैयारी करने लगता हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है गांधीजी को साउथ अफ्रीका में अभी लंबे समय के लिए रहना था डी स्ट्रगल बिगिंस दोस्तों एक तरफ तो गांधीजी 1894 में अपना कम खत्म करके वापस इंडिया जान वाले थे और दूसरी तरफ नेपाल की सांसद एक ऐसा बिल लाने की तैयारी में थी जिसे इंडियन से वोटिंग का अधिकार छन लिया जाता अप्रैल 1894 में गांधीजी के फेयरवेल डिनर के समय इस बिल पर डिस्कशन शुरू हो जाता है गांधीजी अपने साथियों से कहते हैं की किसी भी तरह से इस बिल को पास होने से रोकना चाहिए नहीं तो यह उनके कॉफिन की पहले कल बन शक्ति है लेकिन वहां मौजूद सभी लोगों को लगता है की गांधी जी के बिना वो इस बिल का विरोध नहीं कर पाएंगे इसलिए सभी गांधी जी से और 1 महीने साउथ अफ्रीका में ही रुकने के लिए कहते हैं लेकिन यह लोग गांधीजी को ही अपना लीडर क्यों बनाना चाहते थे जो अभी मैच 25 साल के ही थे एक्सपीरियंस और आगे में उनसे भी बड़े-बड़े मरचेंट्स साउथ अफ्रीका में मौजूद थे ऐसा इसलिए क्योंकि जी इंग्लैंड से पढ़ाई करके लौटे थे उन्हें इंग्लिश की अच्छी नॉलेज थी और साउथ अफ्रीका में र रहे ज्यादातर इंडियन को इंग्लिश नहीं आई थी शादी गांधीजी बैरिस्टर भी थे इसलिए पिटीशन ड्राफ्ट कर सकते थे एक वही थे जो रोलर से उनकी ही लैंग्वेज में बात कर सकते थे और इंडियन को उनके सामने रिप्रेजेंट कर सकते थे इसलिए गांधीजी को यह लोग अपना लीडर चुनते हैं उसे समय ना इन्हें पता था और ना ही गांधी जी को अंदाज़ था की आने वाले 20 साल तक वो साउथ अफ्रीका में ही र कर अपने लोगों की स्ट्रगल में बड़ी भूमिका निभाएंगे 1894 296 मॉडरेट फेस ऑफ डी स्ट्रग दोस्तों गांधी जी फेयरवेल डिनर को ही एक मीटिंग में बादल देते हैं और यहां पर ही एक्शन कमेटी फॉर्म कर ली जाति है यह कमेटी नडाल लेजिसलेटिव असेंबली के लिए एक पिटीशन ड्राफ्ट करती है वॉलिंटियर्स पिटीशन की कॉप्स बनाते हैं और पुरी रात उसके ऊपर सिग्नेचर कलेक्ट करते हैं पिटीशन को अगली सुबह प्रेस में भी अच्छी खासी पब्लिसिटी मिलती है लेकिन इन सभी एफर्ट्स के बावजूद असेंबली बिल पास कर देती है गांधीजी फिर भी हर नहीं मानते और एक दूसरी पिटीशन पर कम करना शुरू कर देते हैं इस बार पिटीशन लॉर्ड रिपन के लिए तैयार की जा रही थी लॉर्ड रिपन उसे समय सेक्रेटरी ऑफ स्टेट पर कॉलोनी की पोस्ट हॉल कर रहे थे एक महीने के अंदर ही 10000 सिग्नेचर के साथ यह पिटीशन लॉर्ड रिपन के पास भेज दी जाति है डिस्ट्रीब्यूशन के लिए इसकी हजार कॉप्स भी बनाई जाति हैं और पहले बार इंडिया के लोगों को साउथ में र रही अपने साथियों की हालात के बड़े में पता चला है 20 सेकंड अगस्त 1894 को गांधीजी साउथ अफ्रीका में इंडियन के राइट्स को प्रोटेस्ट करने के लिए नेटल इंडियन कांग्रेस नाम से पहले पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना करते हैं इंडियन ओपिनियन नाम से अपना एक न्यूज़ पेपर भी शुरू करते हैं 1894 से 196 तक गांधीजी की पॉलीटिकल एक्टिविटीज को मॉडरेट फैज बोला जा सकता है क्योंकि इस दौरान गांधीजी पिटीशन और मेमोरेंडम्स भेजना पर ही ध्यान देते हैं यह पिटीशन साउथ अफ्रीकन लेजिस्लेटर्स के साथ लंदन में कॉलोनियल सेक्रेटरी और ब्रिटिश पार्लियामेंट तक को भेजी जाति हैं की अगर इंपीरियल गवर्नमेंट के सामने कैसे के सभी फैक्ट्स रख दिए जैन तो ब्रिटिश सेंस ऑफ जस्टिस जग जाएगा और इंपीरियल गवर्नमेंट इंडियन के बिहा पर साउथ अफ्रीका में जरूर करेगी क्योंकि इंडियन आखिर ब्रिटिश सब्जेक्ट्स ही तो थे लेकिन 196 आते आते गांधीजी सभी मॉडरेट मैथर्ड को ट्राई कर चुके थे है और कोई भी सफलता नहीं मिल रही थी इसलिए उनको लगे लगा था की आगे बढ़ाने के लिए किसी और मेथड की जरूर है तब 196 से पैसिव रेजिस्टेंस या सत्याग्रह का फैज शुरू होता है 19629914 फैज ऑफ पैसिव रेजिस्टेंस और सत्याग्रह दोस्तों पैसिव रेजिस्टेंस या सत्याग्रह का उसे गांधीजी सबसे पहले बार रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट का विरोध करने के लिए करते हैं 196 में कानून लाया गया था जिसके तहत इंडियन को अपने फिंगरप्रिंट्स वाला रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट हमेशा अपनी साथ रखना था 11th सितंबर 1900 के अंपायर थिएटर में एक पब्लिक मीटिंग होती है यहां इंडियन फैसला करते हैं की वह इस कानून को नहीं मानेंगे और उसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं गांधी जी कैंपेन को चलने के लिए पैसिव रेजिस्टेंस संगठन की स्थापना करते हैं रजिस्ट्रेशन की लास्ट डेट निकाल जाति है गवर्नमेंट गांधीजी और उनके 26 साथियों के अगेंस्ट करवाई शुरू करती है यह लोग कंट्री छोड़कर जान का ऑर्डर मिलता है और ऑर्डर ना माने पर इन्हें जय में दाल दिया जाता है इसी तरह जय जान वालों की संख्या बढ़नी जाति है जल्दी ही इनका नंबर 155 पहुंच जाता है लोगों के मां से जय का डर निकाल जाता है जय को किंग एडवर्ड का होटल कहा जान लगा था ऐसे में जनरल स्मार्ट जो की साउथ अफ्रीका में डिफरेंस और नेटिव अफेयर्स मिनिस्टर थे गांधीजी को बात करने के लिए बुलेट हैं और वादा करते हैं की अगर इंडियन वॉलनटिअरीली रजिस्टर कर लेने तो ये कानून वापस ले लिया जाएगा गांधी जी इनकी बात मां लेते हैं और सबसे पहले खुद ही रजिस्टर करते हैं लेकिन जनरल स्मैश धोखा दे देते हैं और ऑर्डर देते हैं की वॉलंटरी रजिस्ट्रेशन को कानून के तहत रतीफाई किया जाए इसके बदले में इंडियन अपने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट को पब्लिकली जल देते हैं इसी बीच गवर्नमेंट एक और कानून लेकर आई है जिसका मकसद साउथ अफ्रीका में इंडियन इमीग्रेशन पर रिस्ट्रिक्शन लगाना था इसकी अगेंस्ट भी इंडियन प्रोटेस्ट करना शुरू करते हैं गवर्नमेंट प्रोटेस्टर्स को जय में डालना शुरू कर देती है अक्टूबर 1900 में गांधी जी को भी जय हो जाति है इसके बाद भी इन लोगों की स्पिरिट कमजोर नहीं होती ऐसे में गवर्नमेंट इन लोगों को इंडिया डिपो करना शुरू कर देती है आंदोलन अब कमजोर पढ़ने लगता है लिमिटेड सत्याग्रह इसका तो जय से अंदर बाहर होना लगा राहत है लेकिन ज्यादातर लोगों में अब थकावट के साइन दिखने लगता हैं आंदोलन बहुत लंबा होता जा रहा था और गवर्नमेंट अभी भी इनकी डिमांड एक्सेप्ट करने के मूड में नहीं थी सत्याग्रही को सपोर्ट करने के लिए फंड्स भी खत्म होते जा रहे थे ऐसे में अपने एक जर्मन फ्रेंड टैलेंट बा की मदद से गांधीजी 1910 में जो हेन्सबर्ग के पास टॉलस्टॉय फॉर्म की स्थापना करते हैं इस एक्सपेरिमेंट को गांधीजी इंडिया में भी आगे बढ़ते हैं और साबरमती जैसे आश्रम की स्थापना करते हैं यहां सत्याग्रही इसकी फैमिली र शक्ति थी और खुद को सस्टेन कर शक्ति थी इसके साथ ही इंडिया से भी फंड्स आने लगता हैं सर रतन टाटा 25000 रुपए भेजते हैं कांग्रेस मुस्लिम लीग और हैदराबाद के निजाम भी अपना कंट्रीब्यूशन देते हैं आंदोलन का डेरा समय के साथ बढ़ता जाता है 1913 आते-आते इसमें टोल टैक्स का विरोध भी शामिल कर लिया जाता है सभी एक-इंडेक्ट इंडियन के ऊपर तीन पाउंड का पाल टैक्स लगाया जाता था जो पहले बांडेड लेबर की तरह कम करते थे इसके अबोलिशन की डिमांड कैंपेन के बेस को और ज्यादा बड़ा कर देती है क्योंकि इन डेंजर लेबर्स अब इससे जुड़ने जाते हैं अब यह सत्याग्रह पुरी तरह से एक मांस मूवमेंट बन जाता है इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का एक ऑर्डर इंडियन मैरिज को इन वैलिडेट कर देता है इस ऑर्डर के हिसाब से जो भी क्रिश्चियन तरीके से नहीं हुई है और रजिस्टर ऑफ मैरिज के पास रजिस्टर नहीं होगी इसका मतलब था की हिंदू मुस्लिम और पारसी मैरिज इलीगल हो गई थी और ऐसी शादियों से होने वाले बच्चों को इलेजिटीमेट कहा गया था इस जजमेंट को इंडियन अपनी वूमेन की इंसल्ट मानते हैं और इस वजह से बहुत साड़ी वूमेन भी अब आंदोलन से जुड़ जाति हैं यहां से आंदोलन का फाइनल फीस शुरू हो जाता है इमीग्रेशन कानून को तोड़ने के लिए लोग इलीगली बॉर्डर क्रॉस करना शुरू करते हैं माइंस और फैक्टरीज में स्ट्रीक्स की जाति है गांधीजी खुद न्यू कैसल टाउन पहुंचकर एजीटेशन को लीड करते हैं न्यूकासल नेपाल में एक मीनिंग टाउन था यहां के वर्कर्स ने स्ट्राइक कर दी थी इसलिए एंपलॉयर्स वर्कर्स क्वार्टर्स की इलेक्ट्रिसिटी और वाटर कनेक्शन कट कर देते हैं ऐसे में यहां रहने वाले करीब 2000 लोगों को लेकर गांधी जी ट्रांसवर बॉर्डर के लिए मार्च शुरू करते हैं यह लोग ट्रांसपेरेंट जय में जाना चाहते थे मार्च के दौरान दो बार गांधीजी को अरेस्ट करके छोड़ दिया जाता है और तीसरी बार अरेस्ट होने पर जय भेज दिया जाता है लेकिन वर्कर्स का मॉडल टाउन नहीं होता वो अपना मार्च जारी रखते हैं फिर जबरदस्ती इन लोगों को जय में बहुत ही खराब ट्रीटमेंट दिया जाता है जिसमें स्टार्वेशन और विपिन शामिल था साथ ही फोर्सफुली माइंड्स में भी क कराया जाता है गवर्नमेंट के इस एक्शन से पुरी इंडियन कम्युनिटी गुस्से में ए जाति है प्लांटेशंस और माइंस में कम करने वाले वर्कर्स स्ट्राइक करने लगता हैं एनिमेट और पीसफुल मां और वूमेन के अगेंस्ट उसे किया जा रहे इस ब्रूटल फोर्स की हर जगह निंदा होने लगती है ऐवेंंचुअली गवर्नमेंट गांधीजी के साथ नेगोशिएशंस के लिए तैयार हो जाति है एग्रीमेंट के अनुसार साउथ अफ्रीका की गवर्नमेंट मेजर इंडियन डिमांड्स को मां लेती है यानी की पाल टैक्स और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट को खत्म कर दिया जाता है इंडियन रीति रिवाज से होने वाली शादियों को भी मान्य कर दिया जाता है इस तरह साउथ अफ्रीका में गांधीजी का आंदोलन सफल राहत है नॉन वायलेट सिविल डिसऑबेडिएंट से अपने अपॉन्ंस को नेगोशिएटिंग टेबल पर आने के लिए मजबूर कर दिया जाता है और आंदोलन के दौरान राखी गई डिमांड्स को भी पूरा करवा लिया जाता है कंक्लुजन दोस्तों साउथ अफ्रीका के इस स्ट्रगल के दौरान ही गांधीजी एक लीडर बनते हैं यहां पर ही उन्होंने अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह टेक्निक कू डेवलप किया इस सत्याग्रह के दौरान उन्होंने अलग-अलग कम्युनिटी के साथ कम करना भी शिखा चाहे वो मुस्लिम हो तमिल हूं पारसी हूं या फिर हिंदू साउथ अफ्रीका में गांधीजी को मौका मिलता है अपने पॉलीटिकल और लीडरशिप स्टाइल को इवॉल्व करने यहां पर वह आंदोलन को मॉडरेट फेस से गांधियन फेस तक लेकर गए थे अब ऐसा ही कुछ उन्हें इंडिया में भी करना था 1893 में गांधीजी एक वकील के रूप में इंडिया से गए थे लेकिन 1915 में साउथ अफ्रीका से सिर्फ एक वकील नहीं बल्कि एक नेशनल हीरो और लीडर लोट कर आता है जो की आगे चलकर इंडिया के नेशनल मूवमेंट का रुख ही बदलने वाला था आगे आने वाले वीडियो में हम देखेंगे की कैसे गांधीजी इंडिया की आंदोलन की लीडरशिप अपने हाथ में लेते हैं अराइवल ऑफ गांधी और अर्ली मूवमेंट्स दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हम इंडियन नेशनल मूवमेंट के 1917 से 18 तक की इवेंट्स को कर कर चुके हैं इसके बाद का जो टाइम पीरियड है उसे गांधियन एरा के नाम से जाना जाता है नेशनल मूवमेंट की दिशा तो पुरी तरह बदली जाति है साथ ही यह पीरियड आजादी के बाद के भारत को भी दिशा दिखाने का कम करता है आज हम इसी को शुरू करने वाले हैं हम जानेंगे की कैसे गांधीजी इंडिया के नेशनल मूवमेंट को एक नई डायरेक्शन देते हैं साथ ही उनकी एडोलॉजी और शुरुआत के कुछ इंपॉर्टेंट मूवमेंट्स को भी कर करेंगे तो आई शुरू करते हैं अराइवल ऑफ गांधीजी दोस्तों गांधीजी जनवरी 1915 में साउथ अफ्रीका से इंडिया वापस आते हैं उनके साउथ अफ्रीकन कैंपेन को हम अपनी पिछली वीडियो में डिटेल में कर कर चुके हैं साउथ अफ्रीका में किया गए उनके कम के बड़े में सिर्फ एजुकेटेड क्लास ही नहीं बल्कि आम जनता भी जान गई थी इसीलिए इंडिया में उनकी पहचान एक सफल लीडर के रूप में बन चुकी थी साउथ अफ्रीका में संघर्ष के दौरान ही नेशनल मूवमेंट के लिए गांधीजी की आईडियोलॉजी भी डेवलप होती है उनकी एडोलॉजी का बेस सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह था इसके अलावा गांधीजी सर्वोदय यानी की सभी के विकास में बिलीव करते थे गांधीजी की एडोलॉजी प्रेरित थी उनकी मदर के आदर्श से जैनिज्म फिलासफी से हिंदुइज्म से और लियो टॉलस्टॉय के विचारों से इंडिया आने के बाद अपने राजनैतिक गुरु गोखले की खाने पर गांधी जी एक साल तक देश घूमते हैं जिससे वो देश और उसके लोगों की हालात को अच्छे से समझ सकें गांधीजी उसे समय चल रही होम रूल एजीटेशन की फीवर में नहीं थे क्योंकि उन्हें लगता था की वार के बीच में ब्रिटेन से होम रूल की डिमांड करना सही नहीं यहां तक की वह वार के लिए सोल्जर रिक्रूट करने में भी ब्रिटिश की हेल्प करते हैं इसके लिए उन्हें रिक्रूटिंग सार्जेंट ऑफ डी गवर्नमेंट के नाम से भी जाना जाता है साथ ही वार में उनकी सर्विसेज के लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट उन्हें कैसे हिंद मेडल भी देती है फर्स्ट वर्ल्ड वार के दौरान ही गांधीजी इंडिया में कुछ लोकल लेवल आंदोलन का हिस्सा भी बनते हैं चंपारण अहमदाबाद और खेड़ा सत्याग्रह दोस्तों बिहार के चंपारण जिला में यूरोपियन प्लांटर्स किसने को इंडिगो यानी की नील की खेती करने के लिए फोर्स कर रहे थे जिसकी वजह से यहां के किसान बहुत परेशान थे ना तो वो अपनी जरूर के अनुसार फूड क्रॉप्स गो कर सकते थे और ना ही उन्हें इंडिगो के लिए सही दम ही मिलते थे यहां जो सिस्टम चल रहा था उसे तीन कठिया सिस्टम कहा जाता था इसका मतलब था की किसान को कम से कम तीन कत्था जमीन पर इंडिगो की खेती करनी होती थी कथा लैंड मेजरमेंट की एक यूनिट थी जिसमें 20 कथा एक बीघा के बराबर होता था शुरुआत में तो किसने को इसके अच्छे दम मिलते थे इसलिए वह इंडिगो की खेती के लिए तैयार हो गए इंडिगो को रिप्लेस करने लगती हैं ऐसी सिचुएशन में अपने प्रॉफिट को मैक्सिमाइज करने के लिए यूरोपियन प्लांटर्स किसने से हाय रेंज और लीगल न्यूज़ की डिमांड करने लगता साथ ही किसने को फोर्स किया जाता है की वो यूरोपियंस के द्वारा फिक्स किया गए प्राइसेस पर अपने प्रोड्यूस को बीच दे और अगर किसान इंडिगो गो करने से माना करते तो पुलिस और ज्यूडिशरी की हेल्प से उन्हें डराया धमकाया जाता था इस वजह से यहां के किसने की हालात बहुत ही खराब हो चुकी थी गांधी जी को इसके बड़े में राजकुमार शुक्ला नाम के एक व्यक्ति से पता चला है जो चंपारण के ही एक किसान थे राजकुमार शुक्ला गांधीजी से मिलकर उन्हें चंपारण के किसने की मदद करने के लिए कहते हैं उसे समय यानी की 1916 में गांधीजी कांग्रेस का सेशन अटेंड करने के लिए लखनऊ में थे उनके पास चंपारण जान का समय नहीं था लेकिन राजकुमार शुक्ला उनका पीछा नहीं छोड़ते वह गांधीजी को हर जगह फॉलो करते हैं और उनसे रिक्वेस्ट करते हैं की वह एक बार चंपारण चलकर किसने की हालात खुद देख लेने फाइनली गांधीजी उन्हें प्रॉमिस करते हैं की वह कोलकाता की विजिट के बाद चंपारण पहुंच जाएंगे गांधी जी जब कोलकाता पहुंचने हैं तब राजकुमार शुक्ला उन्हें चंपारण ले जान के लिए वहां पहले से ही मौजूद होते हैं 1917 की शुरुआत में गांधीजी चंपारण पहुंच जाते हैं इसके बाद गांधीजी राजेंद्र प्रसाद नरहरि पारीक जी बी कृपलानी और महादेव देसाई जैसे लोकल लीडर्स के साथ मिलकर एक टीम बनाते हैं यह लोग किसने की समस्या को सही तरीके से समझना के लिए एक सर्वे शुरू करते हैं गांधी जी की एक्टिविटीज को देखकर लोकल ब्रिटिश ऑफिसर्स थोड़ा घबरा जाते हैं उन्हें डर लगता है की कहानी साउथ अफ्रीका की तरह गांधीजी यहां भी कोई बड़ा आंदोलन ना खड़ा कर दें इसलिए ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडिगो कल्टीवेटर की समस्या का हाल निकालना के लिए खुद ही एक कमेटी सेटअप करती है गांधीजी कम्युनिटी के मेंबर्स को कन्वेंस करने में कामयाब होते हैं की तीन कठिया सिस्टम पुरी तरह गलत है और इसे पॉलिश करने की जरूर है साथ ही इंडिगो प्लांटर्स के साथ एग्रीमेंट करते हैं की उन्होंने किसने से जो इलीगल न्यूज़ वसूल किया थे उसका 25% किसने को कंपनसेशन अमाउंट के रूप में वापस करें इस तरह गांधी के किसने की समस्या हाल हो जाति है यहां पर यह समझना जरूरी है की किसने की फूल कंपनसेशन की डिमांड नहीं मनी जाति लेकिन गांधीजी मिडिल पाठ और कंप्रोमाइज में यकीन करते थे चंपारण के बाद गांधी जी को मार्च 1918 में अहमदाबाद से बुलावा जाता है यहां कॉटन में लर्स और वर्कर्स के बीच प्लेग बोनस के डिस्कंटीन्यूएशन के इशू पर डिस्प्यूट खड़ा हो गया था मिल ऑनर्स बोनस खत्म कर देना चाहते थे और वर्कर्स की डिमांड थी की इसके बदले में उनके वेजेस में 50% की बढ़ोतरी की जाए जिससे वो वो टाइम इन्फ्लेशन में खुद को मैनेज कर सकें लेकिन मिलन्स सिर्फ 20% की बढ़ोतरी के लिए तैयार थे इसलिए वर्कर्स हड़ताल पर चले जाते हैं मिल ऑनर्स और वर्कर्स के बीच के रिश्ते और खराब होने लगता हैं जब हड़ताल पर गए वर्कर्स को डिसमिस किया जान लगता है और मुंबई से विवर्स को बुलाने का डिसीजन लिया जाता है ऐसी सिचुएशन में हेल्प के लिए वर्कर्स अनुसुइया साराभाई के पास पहुंचने हैं और अंबालाल साराभाई की बहन भी थी अंबाला होने के साथ-साथ अहमदाबाद मिल ऑनर्स संगठन के प्रेसिडेंट भी थे अनसूया बहन गांधीजी से इस डिस्प्यूट में इंटरव्यू करने की रिक्वेस्ट करती है वैसे तो गांधीजी अंबालाल साराभाई के दोस्त थे अंबालाल जी ने अहमदाबाद में आश्रम बनाने के लिए गांधीजी को डोनेशन भी दी थी लेकिन इसके बावजूद गांधीजी यहां वर्कर्स के साथ खड़े होते हैं अनुसुइया जी भी वर्कर्स को सपोर्ट करती हैं और गांधी जी का पूरा साथ देती हैं गांधी जी वर्कर से वेजेस में 50% की जगह 35% बढ़ोतरी की डिमांड पर हड़ताल करने के लिए कहते हैं इसके साथ ही हड़ताल के दौरान पुरी तरह अहिंसा का पालनपुर करने की सलाह भी वर्कर्स को देते हैं इसके बाद भी जब मिल ऑनर्स नहीं मानते तो वर्कर्स का मनोबल बढ़ाने के लिए गांधीजी खुद आमरण अंश पर बैठ जाते हैं ये पहले मौका था जब इंडिया में किसी पॉलीटिकल कॉल्स के लिए गांधीजी हंगर स्ट्राइक करते हैं और फाइनली के सामने रखना के लिए मां जाते हड़ताल वापस ले ली जाति है और ट्रिब्यूनल वर्कर्स की 35% बीज हाय की डिमांड को मां लिया जाता है अहमदाबाद स्ट्राइक के दौरान ही गांधीजी को खेड़ा आने का इनविटेशन मिल जाता है यहां पर 1918 में ड्रॉट की वजह से किसने की फसल बर्बाद हो गई थी रिवेन्यू कोड में प्रोविजन था की नॉर्मल प्रोड्यूस की तुलना में अगर 14th से भी गम की पैदावार होती है तो किसने का लगन माफ किया जा सकता है किसने की एक ऑर्गेनाइजेशन गुजरात सभा ब्रिटिश अथॉरिटीज के पास पिटीशन भेजती है की साल 1919 के लिए रिवेन्यू एसेसमेंट को सस्पेंड कर दिया जाए लेकिन गवर्नमेंट कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थी वह यहां तक का देती है की अगर किसान टैक्स नहीं देंगे तो उनकी प्रॉपर्टीज जप्त कर ली जाएगी खेड़ा में गांधीजी का साथ देने के लिए वल्लभ भाई पटेल नरहरि पारीक मोहनलाल पांड्या और रवि शंकर व्यास जैसे लीडर्स मौजूद थे यह लोग गांव जाकर किसने को ऑर्गेनाइज करते हैं और उन्हें बताते हैं की क्या करना है पेमेंट का डिसीजन लिया गया था इस सत्याग्रह के दौरान किसने ने शानदार अनुशासन और एकता का परिचय दिया था टैक्स पर एन करने की स्थिति में जब गवर्नमेंट किसने की पर्सनल प्रॉपर्टी जमीन ईटीसी को जप्त करना शुरू कर देती है तब भी किसान सरदार पटेल का साथ नहीं छोड़ते और फर्स्ट नॉन कोऑपरेशन आंदोलन में बने रहते हैं आखिर में गवर्नमेंट किसने के साथ समझौते के लिए मां जाति है साल 1919 के लिए टैक्स को सस्पेंड कर दिया जाता है और किसने की जो भी प्रॉपर्टीज की गई थी वो उन्हें लोटा दी जाति है इस तरह चंपारण अहमदाबाद और खेड़ा में गांधीजी लोगों की समस्या सुलझाने में कामयाब होते हैं और किसने और वर्कर्स के बीच अपनी एक पहचान बना लेते हैं इन लोकल लेवल इवेंट्स के बाद अब बड़ी थी एक जो इंडिया मूवमेंट की गांधीजी का पहले जो इंडिया लेवल का आंदोलन कौन सा था और वो किस तरह से होता है आई जानते हैं दोस्तों गांधी जी को उम्मीद थी की वर्ल्ड वार के और होने पर ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडिया में जरूर कुछ रिफॉर्म्स लेकर आएगी लेकिन होता इसके उल्टा है इंडियन को कंसेशन की जगह मार्च 1990 में रोलेट एक्ट का तोहफा मिलता है रोल अटैक को थोड़ा डिटेल में समझते हैं वर्ल्ड वार के दौरान इंडियन रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज को सुप्प्रेस करने के लिए ब्रिटिश डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट 1915 लेकर आए थे यह इमरजेंसी क्रिमिनल डॉ था मतलब वोट जैसी इमरजेंसी सिचुएशन के दौरान किसी भी तरह की रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटी को रोकने के लिए एक हर्ष डॉ था यह वर्ल्ड वार के खत्म होने के 6 महीने बाद तक के लिए लागू किया गया था फर्स्ट वर्ल्ड वार नवंबर चेंज से जस्ट करना है इस कमेटी ने इंडिया में मिलिटेंट नेशनलिज्म को कंट्रोल करने के लिए डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट को इंडेफिनिटी टाइम के लिए एक्सटेंड करने का रिकमेंडेशन दिया यही एक्ट फिर रोलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है हालांकि इसका ऑफिशल नाम अनक्कल और रिवॉल्यूशनरी क्राइम एक्ट 1919 है इस एक्ट का इनाम था ब्रिटिशर्स के खिलाफ किसी भी कंस्पायरेसी को शुरू होने से पहले ही खत्म कर देना इसकी प्रोविजंस के अनुसार पुलिस बिना किसी वारंट की किसी भी जगह को सर्च कर शक्ति थी इसके अलावा शक के आधार पर किसी को भी 2 साल के लिए बिना किसी ट्रायल के जय में डाला जा सकता था स्पेशल कोर्ट बनाए गए रौलट एक्ट से रिलेटेड जिसमें तीन जज की बेंच फैसला करती थी और इनके फैसला के खिलाफ किसी भी तरह की अपील नहीं की जा शक्ति थी इसलिए इस एक्ट को नो अपील नो दलील कानून भी कहा जान लगा गांधी जी से एक कल कानून कहते हैं और इसके अगेंस्ट सत्याग्रह शुरू करने का डिसीजन लेते हैं उन्होंने 24th फरवरी 1999 में बॉम्बे में सत्याग्रह सभा शुरू की आंदोलन को ऑर्गेनाइज करने के लिए गांधीजी होम रूल लीग जैसे ऑर्गेनाइजेशंस को भी अपने साथ जोड़ने हैं इसके बाद जगह सत्याग्रह सभा की गई और फिर फैसला किया गया की सिक्स्थ अप्रैल 1990 को रौलट एक्ट के विरोध में पूरे देश में हड़ताल की जाएगी सब कुछ प्लेन के हिसाब से ही हो रहा था की तभी खबर आई है की ब्रिटिशर्स ने पंजाब के दो बड़े लीडर्स सैफुद्दीन किछु और डॉक्टर सत्यपाल को अरेस्ट कर लिया है यह नाइंथ अप्रैल 19 की बात थी इस खबर के बाद पंजाब में माहौल खराब होने में डर नहीं लगती लोग अपने लीडर्स की अरेस्ट के बड़े में सुनकर गुस्से में ए जाते हैं और जगह हिंसक प्रदर्शन होने लगता है भीड़ गवर्नमेंट प्रॉपर्टी को अपना निशाना बनाने लगती है और पूरा पंजाब गुस्से की आज में जलने लगता है सिचुएशन को कंट्रोल करने के लिए 11th अप्रैल को पंजाब में मार्शल डॉ लगा दिया जाता है और पंजाब की जिम्मेदारी जनरल डायर को दे दी जाति है इन सभी बटन से अनजान अमृतसर और उसके आसपास के गांव के लोग 13th अप्रैल को बैसाखी के पाव पर जलियांवाला बैग में इकट्ठा होते हैं बड़ी संख्या में लोगों के कठे होने की खबर मिलने पर जनरल डायर अपनी ट्रूप्स को ओपन फायर करने का ऑर्डर दे देते हैं फायर करने से पहले पब्लिक को किसी भी तरह की वारंग भी नहीं दी जाति इसमें हजारों निहत्थे लोग मारे जाते हैं दूसरी तरफ सत्याग्रह के दौरान देश में फाइल वायलिन से गांधीजी बहुत निरसा हो जाते हैं खासकर बंगाल पंजाब और गुजरात में बहुत ज्यादा हिंसा हो जाति है हिंसा की यह घटनाएं गांधीजी को बहुत आहट कर देती हैं इसलिए 18 अप्रैल 1990 को गांधीजी इस आंदोलन को वापस ले लेते हैं और वह इस सत्याग्रह को एक हिमालय जितनी बड़ी गलती बताते हैं कंक्लुजन दोस्तों इस तरह गांधीजी का पहले जो इंडिया लेवल का मूवमेंट एक तरह से फूल हो जाता है की किसी भी बड़े आंदोलन को शुरू करने से पहले उन्हें लोगों को अहिंसा और सत्याग्रह में ट्रेन करने की जरूर है और इसके लिए उन्हें कांग्रेस जैसे बड़े ऑर्गेनाइजेशन की मदद भी चाहिए होगी इसलिए अपना अगला आंदोलन गांधी जी कांग्रेस के बैनर में ही शुरू करते हैं और वो आंदोलन था नॉन कोऑपरेशन यानी की सहयोग आंदोलन इस आंदोलन के बड़े में हम अपनी नेक्स्ट वीडियो में चर्चा करेंगे खिलाफत कोऑपरेशन मूवमेंट दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल केक ऐसे आंदोलन की जो सिर्फ जान आंदोलन ही नहीं बल्कि कई मैनो में एक इंपॉर्टेंट टर्निंग पॉइंट भी था इसे हम खिलाफत कोऑपरेशन मूवमेंट के नाम से जानते हैं तो आई डिटेल में समझते हैं खिलाफत और नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को बैकग्राउंड के लिए माहौल तैयार होने लगा था इसके पीछे कई करण थे आई इनके बड़े में जानते हैं सबसे पहले करण देश की बिगड़ी इकोनामिक सिचुएशन को माना जा सकता है युद्ध के दौरान चीजों के दम बहुत ज्यादा बाढ़ चुके थे साथ ही ब्रिटिश गवर्नमेंट ने टैक्स और रेंट्स में भी बढ़ोतरी कर दी थी जिसकी वजह सोसाइटी का लगभग हर क्षेत्र परेशान था इस तरह इकोनॉमिक्स हार्डशिप्स ने लोगों में एंटी ब्रिटिश एटीट्यूड को और भी मजबूत कर दिया था इसके अलावा अपनी पिछली वीडियो में हम रोलेट एक्ट और जलियांवाला बैग हत्याकांड के बड़े में तो डिस्कस कर ही चुके हैं यहां अंग्रेजी हुकूमत का एक बहुत ही घिनौना चेहरा सामने आता है इन घटनाओं की वजह से जनता में ब्रिटिश के खिलाफ आक्रोश की एक प्रबल अग्नि फेल गई थी इसके बाद जलियांवाला बैग हत्याकांड की जांच करने के लिए बनाई गई हंटर आदमी गी डालने जैसा कम करती है ये अपनी रिपोर्ट में जनरल डायर के एक्शन को सही बताती है इसके अलावा ब्रिटिश सांसद और वहां की जनता भी जनरल डायर के सपोर्ट में खड़ी दिखती है इस सब ने इंडिया के लोगों के जख्मो पर जैसे नमक लगा दिया था यही वजह थी की लोग अंग्रेजन से सीधी टक्कर लेने के लिए तैयार दिखे रहे थे और आखिर में 1919 में आए मोंटीगू चैंप्स पर रिफॉर्म्स भी इंडियन की सेल्फ गवर्नमेंट की डिमांड को सेटिस्फाई करने में सफल नहीं होते फर्स्ट वर्ल्ड वार में लॉयल्टी दिखाने के बाद काफी लोगों को उम्मीद थी की ब्रिटिश रिफॉर्म्स और दीप और इंडियन के लिए बेनिफिशियल रहेंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता इसके बाद लोगों को भरोसा हो जाता है की अंग्रेज सीधी तरह से तो इंडियन की कोई भी डिमांड नहीं माने वाले इसलिए एक बड़े आंदोलन की सख्त जरूर है और इसी समय खिलाफत इशू सामने ए जाता है जिसके राउंड आगे चलकर नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट डेवलप होता है तो आई डी खिलाफत इशू वह यह था दोस्तों फर्स्ट वर्ल्ड वार के दौरान हारने वाले देश में ओटोमन तुर्की भी शामिल था और जीत हुई थी ब्रिटेन और उसके लिक सुनने में यह ए रहा था की ओटोमन तुर्की साइन होने जा रही है आप सोच रहे होंगे की ओटोमन तुर्की से इंडियन नेशनल मूवमेंट का क्या कनेक्शन हो सकता है कनेक्शन यह है दोस्तों की पुरी दुनिया के मुस्लिम जिसमें इंडिया में रहने वाले मुस्लिम भी शामिल थे तुर्की के सुल्तान को अपना स्पिरिचुअल लीडर यानी की खलीफा मानते थे इसलिए उनकी सिंपैथी तुर्की के साथ थी लेकिन वार के बाद तुर्की से उसका बड़ा हिस्सा छन लिया गया था और खलीफा को भी पावर से हटाए जा रहा था इसी बात से दुनिया भर में र मुस्लिम पापुलेशन गुस्से में थी इंडिया के मुस्लिम लीडर्स भी ब्रिटिश के सामने कुछ मांग रखते हैं जिसमें पहले मांग थी की मुस्लिम की सीक्रेट प्लेस पर खलीफा का कंट्रोल बने रहने दिया जाए और दूसरी थी टेरिटोरियल अरेंजमेंट के बाद खलीफा के पास सफिशिएंट टेरिटरीज रहने दी जाए ब्रिटिश गवर्नमेंट पर प्रेशर बनाने के लिए 1990 की शुरुआत में अली ब्रदर्स मौलाना आजाद अजमल खान और हजरत मोहनी की लीडरशिप में एक खिलाफत कमेटी फॉर्म की जाति है इस तरह देश व्यापी आंदोलन के लिए जमीन तैयार हो जाति है डेवलपमेंट ऑफ डी खिलाफत नॉन कोऑपरेशन प्रोग्राम दोस्तों शुरुआत में तो खिलाफत लीडर्स सिर्फ मीटिंग्स पिटीशन और डेपुटेशन जैसे मैथर्ड को ही उसे करते हैं लेकिन फिर इसमें एक मिलिटेंट इमेज होने लगता है जो एक्टिव वेजिटेशन के पक्ष में था ये लोग गांधी जी को अपने साथ जोड़ने का फैसला लेते हैं और नवंबर 1990 में गांधी जी को जो इंडिया खिलाफत कमेटी का प्रेसिडेंट बना दिया जाता है दिल्ली में जो इंडिया खिलाफत कॉन्फ्रेंस में ब्रिटिश गुड्स को बॉयकॉट करने की कॉल दी जाति है इसके साथ खिलाफत लीडर्स साफ कर देते हैं की जब तक तुर्की के साथ फेवरेबल टर्म्स पर ट्रीटी साइन नहीं होती तब तक गवर्नमेंट के साथ हर तरह का सहयोग रॉक दिया जाएगा खिलाफत इशू में गांधी जी को ब्रिटिश गवर्मेंट के अगेंस्ट एक यूनाइटेड मास मूवमेंट शुरू करने की अपॉर्चुनिटी नजर आई है इसके लिए उन्हें कांग्रेस के सपोर्ट की भी जरूर थी चलिए जानते हैं की कांग्रेस कैसे इस मूवमेंट के साथ जोडी है कांग्रेस स्टैंड ऑन खिलाफत क्वेश्चन दोस्तों खिलाफत के इशू पर मूवमेंट शुरू करने को लेकर कांग्रेस एक मत नहीं थे बहुत से लीडर्स को लगता था की रिलिजियस इशू को नेशनल मूवमेंट से नहीं जोड़ना चाहिए साथ ही कुछ लीडर्स गांधी जी के नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट से भी सहमत नहीं थे उनके मां में सत्याग्रह को लेकर भी कुछ डाउट्स थे लेकिन गांधीजी सभी लीडर्स को कन्वेंस करने में कामयाब रहते हैं और मूवमेंट के लिए कांग्रेस का अप्रूवल मिल जाता है इसके लिए सितंबर 1920 में कोलकाता में कांग्रेस का स्पेशल दक्षिण ऑर्गेनाइजर किया जाता है यहां कांग्रेस पंजाब रोंग और खिलाफत इशू पर नॉन कोऑपरेशन प्रोग्राम चलने का अप्रूवल दे देती है इसके बाद दिसंबर 1920 में नागपुर के रेगुलर सेशन में कांग्रेस नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को फॉर्मूली इंडस कर देती है इस सेशन में कांग्रेस के कॉन्स्टिट्यूशन में भी बदलाव किया जाता है कांग्रेस का गोल्कंस्टीट्यूशनल मेंस के द्वारा सेल्फ गवर्नमेंट अटेंड करने की जगह पीसफुल और लेजरमेंट मीन से स्वराज अटेंड करना कर दिया जाता है इस तरह तीन डिमांड्स के साथ नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट शुरू किया जाता है पहले डिमांड थी तुर्की के साथ फेवरेबल ट्रीटी दूसरी डिमांड थी पंजाब रोंग का एड्रेस की स्थापना गांधीजी डिक्लेअर करते हैं की अगर पुरी तरह को फॉलो किया जाएगा तो 1 साल में ही स्वराज मिल जाएगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वो सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट शुरू कर देंगे देखते ही देखते आंदोलन पूरे देश में फैलने लगता है तो आई आंदोलन की स्पीड और इस दौरान होने वाली एक्टिविटीज को समझते हैं दोस्तों नॉन कोऑपरेशन प्रोग्राम में गवर्मेंट स्कूल और कॉलेजेस लोकोड्स लेजिसलेटिव काउंसिल फॉरेन क्लॉथ एत्र का बॉयकॉट करना शामिल था आंदोलन को घर-घर तक पहचाने के लिए गांधीजी अली ब्रदर्स के साथ नेशन व्हाइट डोर करते हैं हजारों की संख्या में स्टूडेंट गवर्मेंट स्कूल और कॉलेज छोड़कर नेशनल स्कूल और कॉलेज जॉइन कर लेते हैं इस दौरान बहुत से एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस ऑर्गेनाइज किया गए जैसे की अलीगढ़ में जामिया मिलिया काशी विद्यापीठ गुजरात विद्यापीठ और बिहार विद्यापीठ बहुत सारे लॉयर्स अपनी प्रैक्टिस छोड़ देते हैं जिसमें मोतीलाल नेहरू जवाहर लाल नेहरू सी आर दास वल्लभभाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद जैसे नाम शामिल थे जगह जगह विदेशी कपड़ों की होली जाली जान लगती है और इनका इंपोर्ट लगभग आधा हो जाता है तिलक स्वराज फंड में 1 करोड़ कलेक्ट हो जाते हैं जुलाई 1921 में अली ब्रदर्स मुस्लिम को आर्मी से रेस करने के लिए कहते हैं इसके लिए सितंबर में उन्हें अरेस्ट कर लिया जाता है फिर गांधीजी उनकी बात को दोहराते हैं और लोकल कांग्रेस कमेटी को इसके ऊपर रेजोल्यूशन पास करने के लिए कहते हैं असेंबली प्लांटेशन स्टीमर सर्विसेज और असम बंगाल रेलवे में हड़ताल ऑर्गेनाइजर की जाति हैं नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स की इंडिया विजिट पर जगह जगह हड़ताल और डेमोंसट्रेशंस ऑर्गेनाइजर होते हैं नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट के दौरान बहुत से लोकल मूवमंस भी शुरू होते हैं जैसे की अप में अवध किसान मूवमेंट और ए का मूवमेंट मालाबार में मोबला रिपोर्ट और पंजाब में सिख एजीटेशन इस आंदोलन में समाज के लगभग हर वर्ग में पार्टिसिपेट किया था फिर चाहे वो मिल कलासु बिजनेस क्लास हूं किसान हूं स्टूडेंट हूं या फिर वूमेन इसके साथ ही पहले बार मुस्लिम बड़ी संख्या में नेशनल मूवमेंट से जुड़े थे लेकिन इतने बड़े आंदोलन के बाद भी ब्रिटिश गवर्मेंट झुकना को तैयार नहीं थी वो आंदोलन को सरप्राइज करना शुरू कर देते हैं पब्लिक मीटिंग्स पर बन लगा दिया जाता है प्रेस को सेंसर किया जान लगता है और गांधीजी को छोड़कर लगभग सभी लीडर्स को अरेस्ट कर लिया जाता है गवर्मेंट के रिप्रेशन के बाद गांधी जी पर दबाव बंता है की वो आंदोलन का नेक्स्ट पेज यानी की सिविल डिसऑबेडिएंस शुरू कर दें फर्स्ट फरवरी 1922 को गांधीजी डिक्लेअर करते हैं की अगर पॉलीटिकल प्रिजनर्स को रहा नहीं किया गया और प्रेस पर से कंट्रोल्स नहीं हटाए गए तो वो गुजरात के बारडोली से सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट शुरू करेंगे लेकिन इससे पहले की गांधीजी ऐसा कुछ करते एक ऐसी घटना होती है जिसके बाद आंदोलन को ही वापस ले लिया जाता है चोरी चौरा इंसिडेंट दोस्तों अप के गोरखपुर जिला में चोरी चौरा नाम का एक छोटा सा गांव है इतिहास में से याद रखा जाता है यहां फिफ्थ फरवरी 1922 को हुई घटना की वजह से हुआ यह था दोस्तों की आंदोलन के दौरान यहां प्रदर्शन कर रहे लोगों के लीडर को पुलिस ने काफी मारा था इससे गुस्से में आए लोग पुलिस स्टेशन के सामने प्रोटेस्ट करते हैं पुलिस प्रोटेस्ट कर रहे लोगों के ऊपर ओपन फायर करना शुरू कर देती है इससे लोगों में गुस्से की आज और ज्यादा भड़क जाति है और वो पुलिस पर हमला बोल देते हैं पुलिस मां बचाने के लिए स्टेशन के अंदर चुप जाते हैं तभी भीड़ स्टेशन को ही आज लगा देती है इस हिंसा में 22 पुलिस वाले मारे जाते हैं हिंसा की इस घटना के बड़े में सुनने के बाद गांधीजी तुरंत आंदोलन को वापस ले लेते किसी अरदास मोतीलाल नेहरू सुभाष इत्यादि आश्चर्य जताते हैं लेकिन गांधीजी सिर्फ एक घटना की वजह से पूरे आंदोलन को क्यों वापस ले लेते हैं इसे समझना जरूरी है दोस्तों गांधी जी को लगता था की लोग अभी पुरी तरह से अहिंसा के मेथड को नहीं समझ पाएं हैं चोरी चौरा जैसे इनसीडियस आगे चलकर आंदोलन को और ज्यादा हिंसक बना सकते थे और एक वायलेट मूवमेंट को ब्रिटिश गवर्मेंट बहुत आसानी से सरप्राइज कर शक्ति थी इसके साथ ही आंदोलन में अब थकावट के साइंस भी नजर आने लगे थे और ये स्वाभाविक भी था क्योंकि किसी भी आंदोलन को बहुत लंबे समय तक है पिच पर सस्टेन करना आसन नहीं होता ब्रिटिश गवर्नमेंट भी किसी भी तरह की नेगोशिएशंस करने के मूड में नजर नहीं ए रही थी इसलिए सभी बटन को ध्यान में रखकर गांधीजी आंदोलन को वापस लेने का फैसला करते हैं इसके बाद मार्च 1922 में सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाने के जॉर्ज पर गांधी जी को अरेस्ट कर लिया जाता है और उन्हें 6 साल की सजा सुने जाति है कुछ समय बाद खिलाफत इशू भी अपनी साइनिफिकेंस को देता है और इरेलीवेंट बन जाता है क्योंकि 1924 में तुर्की में एक नेशनल रिवॉल्यूशन होता है और वहां मोना की या खिलाफत को अबॉलिश कर दिया जाता है इसके बाद इंडिया में भी खिलाफत मूवमेंट डिड डॉ हो जाता है दोस्तों नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट अपने स्वराज के गोल को तो अचीव नहीं कर पता लेकिन फिर भी ये आंदोलन एक फेलियर नहीं माना जा सकता क्योंकि इसने बहुत कुछ अचीव किया था इस आंदोलन के थ्रू नेशनलिस्ट सेंटीमेंट देश के कोनी कोनी तक पहुंच गए थे बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ने हैं और ये सही मैनो में एक मांस मूवमेंट बंता है आंदोलन में मिडिल क्लास के कंपैरिजन में बैलेंस और वर्कर्स का पार्टिसिपेशन ज्यादा राहत है इसके अलावा मद्रास को छोड़कर टाउनशिप इलेक्शन का बॉयकॉट भी काफी हद तक सक्सेसफुल राहत है पोलिंग एवरेज सिर्फ 5 से 8% ही राहत है इकोनामिक बॉयकॉट आंदोलन का सबसे इंपॉर्टेंट फैक्टर था और ये बहुत कामयाब भी राहत है फॉरेन क्लॉथ की इंपॉर्टेंस की वैल्यू 1921 में 120 मिलियन रुपीज से घटकर 1921 22 में सिर्फ 50020 ही र जाति है नॉन को ऑपरेशन के साथ गांधीजी के कुछ सोशल मूवमेंट्स भी जुड़े हुए थे जैसे की टंप्रेंस या एंटी लेकर कैंपेन इनका भी व्यापक असर देखने को मिलता है पंजाब मद्रास बिहार और उड़ीसा में लेकर एक्सिस रिवेन्यू में साइनिफिकेंस गिरावट होती है सबसे जरूरी बात इस आंदोलन में भाग लेने के बाद लोगों का कॉन्फिडेंस बाढ़ जाता है और वो ब्रिटिश रूल का सामना करने के लिए तैयार होते हैं हम का सकते हैं की नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल का टर्निंग पॉइंट साबित होता है यहां से मास मूवमेंट की शुरुआत होती है यह आंदोलन आगे होने वाले आंदोलन की नीव तैयार करने का कम भी करता है रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट सेकंड फेस दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं इंडिया में रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट के सेकंड फेस की फर्स्ट फेस को हम अपनी वीडियो में पहले ही डिस्कस कर चुके हैं आज हम देखेंगे की रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट के सेकंड फेस की शुरुआत कब और कैसे होती है और साथ ही फर्स्ट और सेकंड फेस के बीच की डिफरेंस को भी समझना की कोशिश करेंगे तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों गांधीजी और सियार दास के खाने पर बहुत सी रिवॉल्यूशनरी ग्रुप नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट पर हिस्सा लेते हैं लेकिन जब अचानक से चोरी चौरा के बाद 1922 में यह आंदोलन वापस ले लिया जाता है तब यह लोग बहुत निरसा हो जाते हैं इंडियन नेशनल कांग्रेस की लीडरशिप स्ट्रेटजी और अहिंसा पर से इनका भरोसा ही उठ जाता है फिर यह लोग आजादी अपने के लिए किसी दूसरे विकल्प की तलाश करने लगता के पार्लियामेंट्री क में इंटरेस्ट था और ना ही नो चेंज के कंस्ट्रक्टिव केमोन में इसलिए यह फिर से रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटी को रिवाइव करने का फैसला करते हैं इस दौरान रिवॉल्यूशनरी ग्रुप के दो सेपरेट्स ब्रांड उभरते हैं जिसमें एक पंजाब अप बिहार के एरिया में एक्टिव था और दूसरा बंगाल में इनके बड़े में डिटेल में जानना जरूरी है शुरुआत करते हैं पंजाब अप बिहार वाले ग्रुप से इन पंजाब यूनाइटेड प्रोविंस बिहार दोस्तों इस रीजन में रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटी को डोमिनेट करने वाले ग्रुप का नाम था हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन अक्टूबर 1924 में अप के कानपुर जिला में हुई थी इसके पीछे रामप्रसाद बिस्मिल योगेश चंद्र चटर्जी और सचिंद्रनाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारी का रिवॉल्यूशन के जारी कॉलोनियल गवर्नमेंट को ओवरथ्रो करना और उसकी जगह फेडरल रिपब्लिक ऑफ यूनाइटेड स्टेटस ऑफ इंडिया को एस्टेब्लिश करना था आर्म्ड रिवॉल्यूशन को ऑर्गेनाइज करने के लिए इन्हें फंड्स की जरूर थी इसका इंतजाम करने के लिए ये लोग ब्रिटिश ट्रेजरी को लूटने का फैसला करते हैं और 1925 में काकोरी रोबरी का प्लेन तैयार होता है काकोरी लखनऊ के पास एक छोटा सा स्टेशन था जहां 9 अगस्त 1925 को यह लोग आईटी डॉ ट्रेन पर ढाका डालते हैं और इसमें रखें रेलवे के ऑफिशल कैश को ल लेते हैं लेकिन इसके बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट इनके पीछे ग जाति है और बहुत सारे क्रांतिकारी को अरेस्ट कर लिया जाता है जिसमें से 17 को जय भेज दिया जाता है कर को जीवन भर के लिए देश निकाला की सजा दी जाति है और कर क्रांतिकारी को फैंसी भी दी जाति है यह कर क्रांतिकारी थे राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक अल्ला ज्ञान रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इस तरह होती है बहुत सारे क्रांतिकारी एक ही झटका में नेशनल स्ट्रगल से हटा दिए जाते हैं इससे बैग से उभरते के लिए युवक क्रांति ऑर्गेनाइज करने का फैसला लेते हैं सितंबर 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटा में इनकी मीटिंग होती है जहां चंद्रशेखर आजाद की लीडरशिप में हरि का नाम बदलकर आगे एस आर ए यानी की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन कर दिया जाता है इस मीटिंग में भगत सिंह सुखदेव भगवती चरण बोहरा विजय कुमार सिंह जयदेव कपूर जैसे युवक क्रांतिकारी नेता भी शामिल थे पिछले सारे कलेक्टिव लीडरशिप से कम करने और सोशलिज्म को ऑफिशल गोल बनाने का फैसला लेती है इसके कुछ समय बाद ही अक्टूबर 1928 में कमीशन के दौरान लाठी चार्ज में लाल लाजपत राय शाहिद हो जाते हैं लाल लाजपत राय की इस तरह मृत्यु होने से क्रांतिकारी में आक्रोश की भावना जग जाति है लाठीचार्ज का ऑर्डर ब्रिटिश जीपी स्कॉट ने दिया था इसलिए बदला लेने के लिए जीपी स्कॉट की हत्या का प्लेन बनाया जाता है इस प्लेन में भगत सिंह के साथ चंद्रशेखर आजाद सुखदेव और राजगुरु भी शामिल थे ये लोग जीपी स्कॉट को गली करने के लिए जाते हैं लेकिन इनके क्रांतिकारी साथी जय गोपाल स्कॉट की सही पहचान नहीं कर पाते जी वजह से एसपी साउंड की हत्या हो जाति है इसके बाद इनका अगला बड़ा एक्शन होता है 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में बम फेंकना इसके पीछे इनकी असेंबली में पास किया जा रहा ट्रेड डिस्प्यूट बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल का विरोध करना था जो सिविल राइट्स के अगेंस्ट था और इसका मकसद भगत सिंह की शब्दों में बैरन को अपनी बात सुनाना था बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर डेट वहां से भागने की कोशिश नहीं करते बल्कि खुद को अरेस्ट करते हैं खुद को अरेस्ट करना भी इनकी स्ट्रेटजी का हिस्सा था ये लोग ट्रायल कोर्ट को प्रोपेगेंडा फोरम की तरह उसे करना चाहते थे जिससे लोगों तक इनके मूवमेंट और आईडियोलॉजी की जानकारी पहुंच जाए और भी बहुत सारे क्रांतिकारी को पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया जाता है जय की खराब कंडीशंस के विरोध में क्रांतिकारी द्वारा भूख हड़ताल भी की जाति है यह लोग डिमांड रखते हैं की इनके साथ पॉलीटिकल प्रिजनर्स जैसा बर्ट किया जाए भूख हड़ताल की 64वें दिन जतिन दास नाम की क्रांतिकारी शाहिद हो जाते हैं चंद्रशेखर आजाद भी जय से बाहर थे और दिसंबर 1929 में दिल्ली के पास वायसराय लोड अर्बन की ट्रेन को बम से उड़ने की कोशिश में भी शामिल थे 2 साल तक ब्रिटिशर्स की नाक में दम करने के बाद फरवरी 1931 में एक उन्हें के साथ ही उन्हें धोखा दे देते हैं और इलाहाबाद के पार्क में पुलिस एनकाउंटर के दौरान आजाद शाहिद हो जाते हैं ब्रिटिश सरकार भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु पर लाहौर कंस्पायरेसी कैसे यानी की साउंड्स मर्डर कैसे भी चलती है इसमें इन्हें फैंसी की सजा सुने जाति है इस तरह 23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु फैंसी के फंडे को हंसते-हंसते गले लगा लेते हैं इनका यह बलिदान आज भी इंडियन के लिए इंस्पिरेशन का कम करता है दोस्तों यह तो बात हुई पंजाब अप बिहार के रीजन में एक्टिव रिवॉल्यूशनरी ग्रुप की दोस्तों बंगाल में सबसे फेमस रिवॉल्यूशनरी ग्रुप चित्तागोंग ग्रुप था जो सूर्य सेन की लीडरशिप में कम कर रहा था सूर्य सीन भी नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट में पार्टिसिपेट कर चुके थे और चित्तागोंग के नेशनल स्कूल मी टीचर थे इसलिए इन्हें प्यार से मास्टर डाबी कहा जाता था रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटी की वजह से 1926 से 1928 तक यह जय में भी रहे थे इसके बाद यह कांग्रेस में कम करना जारी रखते हैं 1929 में सूर्य सीन चित्तागोंग जिला कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी भी थे सूर्य सेन अनंत सिंह गणेश घुस और लोकनाथ बाल जैसे अपने साथियों के साथ मिलकर एक आम रिबेलीयन ऑर्गेनाइजर करने का फैसला करते हैं इनका प्लेन चित्तागोंग के दो मीन अमरीश पर कब्जा करना होता है जहां से यह आम चीज करके रिवॉल्यूशनरीज तक पहुंच सकें प्लेन को एग्जीक्यूट करने के लिए सूर्य से इंडियन रिपब्लिकन आर्मी चित्तागोंग ब्रांच की फॉर्मेशन करते हैं 18 अप्रैल 1930 को प्लेन एक्शन में लाया जाता है अपने साथियों के साथ सीन चित्तागोंग की पुलिस अमरी पर रीड डालते हैं एक दूसरा ग्रुप असिलिअरी फोर्सेस की अमीरी को रीड करता है रीड के दौरान इन्हें आर्म्स तो मिल जाते हैं लेकिन एम्युनिशन लॉकेट करने में यह फूल हो जाते हैं हालांकि यह टेलीफोन टेलीग्राफ और रेलवे लाइन को डिस्ट्रॉय करने में जरूर कामयाब होते हैं सूर्य सेन पुलिस अमरी के प्रेमिसेस में इंडियन फ्लैग होइस्ट करते हैं और यहां प्रोविंशियल रिवॉल्यूशनरी गवर्नमेंट की प्रोक्लेमेशन करते हैं इसके बाद यह लोग जलालाबाद हिल्स की तरफ भाग जाते हैं 22 अप्रैल को यहां पुलिस फोर्स पहुंच जाति है और इनके बीच गण बैटल शुरू हो जाता है जिसमें 12 क्रांतिकारी शाहिद हो जाते हैं और पुलिस के लगभग 80 जवान मारे जाते हैं बाकी क्रांतिकारी के साथ सूर्य सीन यहां से भाग निकलते हैं इसके बाद सूर्यसेन अलग-अलग जगह छुपकर रहते हैं गवर्नमेंट की प्रॉपर्टी पर रेट डालने का सिलसिला भी जारी राहत है लेकिन फरवरी 1933 में इनके साथ ही नेत्र सीन इन्हें धोखा दे देते हैं जब सूर्य सन इनके घर में छुपी हुए थे तब ये ब्रिटिश को खबर कर देते हैं और सूर्य से इनको अरेस्ट कर लिया जाता है सूर्य सेन पर पुलिस द्वारा जय में बहुत टॉर्चर किया जाते हैं और 12 जनवरी 1934 को इन्हें फैंसी दे दी जाति है इनकी आगे उसे समय मंत्र 39 साल थी इनके बाकी क्रांतिकारी साथी भी या तो भूली से एनकाउंटर में मारे जाते हैं या अरेस्ट कर लिए जाते हैं दोस्तों यह तो बात हुई सेकंड फेस की कुछ इंपॉर्टेंट रिवॉल्यूशनरी ग्रुप और उनकी एक्टिविटीज की सेकंड फैज में रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट कैसे फर्स्ट फेस अलग था डिफरेंस बिटवीन फर्स्ट और सेकंड फैज ऑफ रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट दोस्तों रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट की बेसिक आईडियोलॉजी तो दोनों ही फेस में से थी यही की आर्म्ड रिवॉल्यूशन के जारी इंडिया से ब्रिटिश रूल को खत्म करना है लेकिन इसके अलावा दोनों फेस में कुछ डिफरेंस भी देखने को मिलते हैं आई एक-एक करके इनके बड़े में जानते हैं सबसे पहले डिफरेंस था इंडिविजुअल एक्शन की जगह ग्रुप या कलेक्टिव एक्शन पर ज्यादा एंपहसिस इसीलिए सेकंड फेस में हमें एचएसआरआरई और इंडियन रिपब्लिक के नाम ही जैसी ऑर्गेनाइजेशन देखने को मिलती है इसके अलावा फर्स्ट फैज में जहां सीक्रेट सोसाइटी ज्यादा देखने को मिलती हैं वहीं सेकंड फैज में क्रांतिकारी ओपन मूवमेंट की तरफ ज्यादा नजर आते हैं दूसरा डिफरेंस था वूमेन का पार्टिसिपेशन सेकंड फेस की रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज में बड़े स्केल पर वूमेन का पार्टिसिपेशन देखने को मिलता है जिसमें सूर्य सीन ग्रुप की प्रीतीलता वाडेकर और कल्पना डेट हर की दुर्गा भाभी जैसे नाम शामिल है इनके अलावा कोमिला की जिला मजिस्ट्रेट को गली करने वाली दो स्कूल गर्ल शांति घोष और सुनीति चौधरी और फरवरी 1932 में कन्वोकेशन सेरेमनी के दौरान गवर्नर पर फायर करने वाली बिना दास की बहादुर के किस भी याद किया जाते हैं इसके अलावा दोस्तों फर्स्ट फेस के दौरान हिंदू रिलिजियस सिटी की तरफ एक ट्रेड देखने को मिलता है जैसे की क्रांतिकारी देवी की प्रतिज्ञा जैसी कुछ रसों को फॉलो करते थे लेकिन सेकंड फैज में ऐसा देखने को नहीं मिलता यहां भगत सिंह खासकर क्रांतिकारी आंदोलन में सेक्युलरिज्म को प्रमोट करते हैं जिसकी वजह से इस फेस में मुस्लिम का पार्टिसिपेशन भी बढ़ता दिखता है उदाहरण के तोर पर अशफाक अल ला खान सूर्य सेन ग्रुप के अमीर अहमद तुलुमिया आदि अपना योगदान देते दिखते हैं दोस्तों फर्स्ट फेस और सेकंड फैज में सबसे बड़ा अंतर जो देखने को मिलता है वह राजनीतिक व्यवस्था को लेकर कोई प्रॉपर विजन क्रांतिकारी के पास नहीं था जबकि क्रांतिकारी इसीलिए कर काफी सजग दिखते हैं वो इंडिया में एक सोशलिस्ट और रिपब्लिक सिस्टम एस्टेब्लिश करना चाहते थे कंक्लुजन दोस्तों क्रांतिकारी के मैथर्ड देश को आजादी दिलाने में कितने कारगर साबित होते हैं इस बात का जवाब देना थोड़ा कठिन हो सकता है लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं की इनके योगदान ने आजादी की लड़ाई को और मजबूत बनाया गांधी जी और कांग्रेस भले ही इनके तरीके से सहमत नहीं थे लेकिन वो भी इनके देश प्रेम का सम्मान जरूर करते थे भगत सिंह के पैट्रियोटिज्म की सराहन करते हुए गांधी जी भी कहते हैं भगत सिंह की बहादुर और बलिदान के आगे हम अपना सर झुकते हैं क्रांतिकारी आंदोलन ने एन सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत की नींद उदा दी थी बल्कि देशवासियों के दिल में आजादी की ज्वाला जागने का कम भी किया था इसीलिए आज भी इनके बलिदान को याद करके हम गौरवान्वित महसूस करते हैं इवेंट्स बिटवीन नॉन कोऑपरेशन और सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने खिलाफत और नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को डिस्कस किया था यह भी जाना था की 1922 में चोरी चौरा की घटना के बाद इस आंदोलन को ऑफीशियली और कर दिया गया था लेकिन आंदोलन खत्म होने के बाद इंडियन नेशनल कांग्रेस की क्या एक्टिविटीज रहती हैं फ्रीडम स्ट्रगल को यहां से आगे ले जान के लिए क्या स्ट्रेटजी अडॉप्ट की जाति है आज हम इन सभी सवालों के जवाब जन की कोशिश करेंगे दोस्तों नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट फरवरी 1922 में खत्म हो जाता है और मार्च 1922 में गांधीजी को अरेस्ट करके छह साल के लिए जय भेज दिया जाता है इसके बाद कांग्रेस में एक डिबेट शुरू हो जाति है की गांधीजी के कंस्ट्रक्टिव प्रोग्राम को ही कंटिन्यू किया जाए एक्टिविटीज शामिल थी इस एक्शन को नो चेंज ग्रुप बोलते हैं इसको लीड कर रहे थे वल्लभ भाई पटेल राजेंद्र प्रसाद और सी राजगोपालाचारी और दूसरा फक्शन चाहता था की लेजिसलेटिव काउंसिल का बॉयकॉट छोड़कर इलेक्शंस में पार्टिसिपेट किया जाए इस ग्रुप को प्रोचेंजेज का नाम दिया जाता है इसके लीडर्स सी आर दास और मोतीलाल नेहरू थे इनका मानना था की लेजिसलेटिव असेंबली का पार्ट बनकर उसको एक्सपोज करना चाहिए की कैसे वो सिर्फ दिखावे के लिए बनी है सी आर दास और मोतीलाल नेहरू अपना यह प्रपोज दिसंबर 1922 में कांग्रेस के गया सेशन में रखते हैं इस प्रोग्राम को मेंडिंग और एंडिंग अकाउंट्स नाम दिया जाता है लेकिन नो चेंज ग्रुप की अपोजिशन की वजह से इनका प्रपोज हर जाता है इसके फीवर में सिर्फ 800 वोट्स पढ़ने हैं जबकि अगेंस्ट में 1748 इसके बाद दास और मोतीलाल नेहरू कांग्रेस ने अपनी रिस्पेक्टिव ऑफिसेज दूसरी डिजाइन कर देते हैं और फर्स्ट जनवरी 1923 को कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी के फॉर्मेशन करते हैं जिसे बाद में स्वराज पार्टी के नाम से जाना जाता है दास इस पार्टी के प्रेसिडेंट बनते हैं और नेहरू सेक्रेटरी इस तरह कांग्रेस का दो फ्रेक्शंस में टूटना 197 की सूरत स्प्लिट की यादें ताज कर देता है लेकिन इस बार कांग्रेस को स्प्लिट होने से बच्चा लिया जाता है क्योंकि यहां दोनों ही फ्रेक्शंस को अच्छी तरह पता था की ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट उन्हें यूनाइटेड रहने की जरूर है नो चेंज के साथ ही स्वराजिस्ट भी समझते थे की मांस मूवमेंट के थ्रू ही उनकी डिमांड पुरी हो शक्ति हैं और इसके लिए उनका एक रहना बहुत जरूरी है इसके अलावा दोनों ग्रुप के लीडर्स गांधी जी की लीडरशिप को जरूरी मानते थे इसलिए सितंबर 1923 के दिल्ली कांग्रेस सेशन में काउंसलिंग के अगेंस्ट प्रोपेगेंडा को सस्पेंड कर दिया जाता है और कांग्रेस के मेंबर्स को इलेक्शन में पार्टिसिपेट करने की परमिशन मिल जाति है नवंबर 1923 में लेजिसलेटिव काउंसिल के इलेक्शंस होते हैं स्वराज्यस को इलेक्शन की तैयारी के लिए बहुत कम समय मिल पता है लेकिन फिर भी इलेक्शंस में यह लोग अच्छा प्रदर्शन करते हैं सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में 10001 इलेक्ट्रिक सीट में 42 सिट्स पर इनकी जीत होती है इसके अलावा सेंट्रल प्रोविंस में भी इन्हें क्लियर मेजॉरिटी मिलती है बंगाल में यह लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरते हैं और मुंबई और अप में भी इनका रिजल्ट काफी अच्छा राहत है इलेक्शंस जितने के बाद स्वराज पार्टी की क्या जीवन से रहती हैं उनको भी जानते हैं अचीवमेंट्स का स्वराज पार्टी दोस्तों काउंसिल का मेंबर रहते हुए स्वराज पार्टी के फॉलोवरिंग अचीवमेंट रहे थे सबसे पहले अचीवमेंट था की अपने कोलिशन पार्टनर्स के साथ मिलकर कई मैकोन पर यह लोग गवर्नमेंट को आउट वोट करने में कामयाब रहते हैं काउंसिल के अंदर ये लोग सेल्फ गवर्नमेंट सिविल लिबर्टीज और इंडस्ट्रियलिज्म जैसे मुद्दों पर पावरफुल स्पीशीज के थ्रू अपनी बात रखते हैं 1925 में सेंट्रल लेजिसलेटिव के स्पीकर के रूप में विट्ठल भाई पटेल को इलेक्ट करने में कामयाब होते हैं 1928 में यह लोग पब्लिक सेफ्टी बिल को हर देते हैं यह बिल गवर्नमेंट कम्युनिस्ट एक्टिविटीज को कंट्रोल करने के लिए लेकर आई थी मोंटफोर्ट स्कीम के खोखलेपन को एक्सपोज करने का कम भी करते हैं और ऐसे समय में जब नेशनल मूवमेंट अपनी स्ट्रैंथ वापस अपने की कोशिश कर रहा था यह अपनी एक्टिविटीज से पॉलीटिकल वेक्यूम फूल करते हैं यह लोग दिखा देते हैं की काउंसिल को क्रिएटिविटी भी उसे किया जा सकता है दोस्तों इसी बीच फरवरी 1924 में हेल्थ ग्राउंड पर गांधीजी को जय से रहा कर दिया जाता है और नवंबर 1924 में गांधीजी और दास एक जॉइंट स्टेटमेंट साइन करते हैं इसमें कहा जाता है किस स्वराज पार्टी लेजिस्लेटर्स में कांग्रेस के भी हाफ पर और उसका इंटीग्रल बांट रहकर ही कम करेगी इसके बाद दिसंबर में कांग्रेस के बेलगाम सेशन में इस डिसीजन को इनडोर्स किया जाता है यह कांग्रेस का अकेला ऐसा सेशन था जिसे गांधी जी ने प्रेसीडे किया था लेकिन अब धीरे-धीरे स्वराज पार्टी भी कमजोर पढ़ने लगती है वह कैसे आई समझते हैं लिमिटेशंस और डिक्लिन ऑफ स्वराज पार्टी दोस्तों 16th जून 1925 को सियार दास की मृत्यु हो जाति है अपने फाउंडर लीडर को कोन के बाद स्वराज पार्टी कमजोर होने लगती है पार्टी के कुछ मेंबर्स पावर को रेसिस्ट नहीं कर पाते इस तरह पार्टी रैंक्स में करप्शन भी देखने को मिलता है कोलिशन पार्टनर्स के साथ भी मतभेद शुरू हो जाते हैं इसके साथ ही कम्युनल इंटरेस्ट भी पार्टी में इंटर कर जाते हैं स्वराज पार्टी रिस्पांस और नॉन रिस्पांस में डिवाइड हो जाति है रेस्पॉन्सिव में लाल लाजपत राय मदन मोहन मालवीय और एनसी केलकर जैसे लीड ए जाते थे यह लोग चाहते थे की गवर्मेंट के साथ कॉर्पोरेट किया जाए और जहां भी संभव हो ऑफिस हॉल किया जाए इसके अलावा यह लोग सो कोल्ड हिंदू इंटरेस्ट को भी प्रोटेस्ट करना चाहते थे इस तरह स्वराज पार्टी का डिवीजन शुरू हो जाता है और मैं लीडरशिप मार्च 1926 में लेजिसलेच्योर से खुद को वीडियो कर लेती है जबकि स्वराजित का एक क्षेत्र 1926 के इलेक्शन में खड़ा होता है लेकिन इनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं राहत सेंटर में ये 40 सिट्स जीत लेते हैं लेकिन अप सेंट्रल प्रोविंस और पंजाब में बुरी तरह हर जाते हैं 1930 में लाहौर कांग्रेस रेजोल्यूशन के बाद स्वराज फाइनली लेजिसलेच्योर से क आउट करते हैं इस तरह काउंसलिंग का यह पहले एक्सपेरिमेंट 10 साल तक चला है यह आईएमसी और उनके मेंबर्स को बड़ी सिख देकर जाता है इस बीच नो चेंज की क्या एक्टिविटीज रहती हैं आई यह भी जानते हैं कंस्ट्रक्टिव क बाय नो चेंज दोस्तों जी समय स्वराज्यस्त काउंसिल में अपनी पीछे से ब्रिटिश रूल को एक्सपोज करने में लगे थे उसे समय नो चेंज अपने कंस्ट्रक्टिव क से मैसेज के साथ कनेक्शन बना रहे थे यह लोग अलग-अलग जगह आश्रम की स्थापना करते हैं जहां खड़ी और चरखा को प्रमोट किया जाता है इसके साथ ही नेशनल स्कूल और कॉलेज भी सेटअप करते हैं जहां स्टूडेंट को नॉन कॉलोनियल आईडियोलॉजिकल फ्रेमवर्क में ट्रेन किया जाता है इसके अलावा हिंदू-मुस्लिम यूनिटी और अनटचेबिलिटी के रिमूवल के प्रयास भी इनके द्वारा किया जाते हैं फॉरेन क्लॉथ और लिकर का बॉयकॉट भी ऑर्गेनाइज्ड करते हैं फ्लड की टाइम लोगों तक मदद पहचाने का कम भी करते हैं इस तरह कंस्ट्रक्टिव वर्कर्स आने वाले सिविल डिसऑबेडिएंस के लिए एक्टिव ऑर्गेनाइजर का कम करते हैं दोस्तों इस तरह नेशनल मूवमेंट के पास और नो चेंज अपने अपनी तरीके से एक्टिव रहने की कोशिश करते हैं जल्दी ही दोनों ग्रुप के फिर एक साथ आने का मौका भी ए जाता है और यह मौका आता है साइमन कमीशन के रूप में आई समझते हैं साइमन कमीशन और इस मौके को भी अराइवल ऑफ साइमन कमीशन और इंडियन रिस्पांस दोस्तों 1990 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में प्रोविजन था की गवर्नेंस स्क्रीन की प्रोग्रेस को चेक करने के लिए और नए स्टेप्स का सुझाव देने के लिए 10 साल बाद एक कमीशन अप्वॉइंट की जाएगी इस प्रोविजन के तहत नवंबर 1927 को यानी शेड्यूल से 2 साल पहले ही ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडियन स्टेट्यूटरी कमीशन सेटअप करती है यह एक जो व्हाइट सेवन मेंबर कमीशन थी जिसके अध्यक्ष थे इसलिए इसे पॉपुलर साइमन कमीशन कहा जाता है कमीशन को सुझाव देना था की क्या इंडिया फादर कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स के लिए तैयार है और अगर हां तो यह रिफॉर्म्स क्या हनी चाहिए इंडियन लीडर्स इस बात से बहुत नाराज होते हैं की साइमन कमीशन में एक भी इंडियन मेंबर नहीं था और फॉरेनर्स डिसाइड करेंगे की इंडिया सेल्फ गवर्नमेंट के लिए फिट है या नहीं इसे सेल्फ डिटरमिनेशन प्रिंसिपल का वायलेशन समझा जाता है और इंडियन की सेल्फ रिस्पेक्ट को जानबूझकर इंसल्ट करने का एक तरीका कांग्रेस दिसंबर 1927 के मद्रास सेशन में कमीशन को हर स्टेज और हर फॉर्म में बॉयकॉट करने का डिसीजन लेती है कांग्रेस के इस डिसीजन का सपोर्ट हिंदू महासभा के लिबरल्स मुस्लिम लीग का मेजॉरिटी करता है लेकिन पंजाब की यूनियन पार्टी और साउथ की जस्टिस पार्टी इस बॉयकॉट को सपोर्ट नहीं करती थर्ड फरवरी 1928 को कमीशन मुंबई में लैंड करती है उसे दिन पूरे देश में हड़ताल और मांस ऑर्गेनाइज की जाति हैं कमीशन का स्वागत हर जगह कल झंडा दिखाकर साइमन को बैक के नई से किया जाता है साइमन कमीशन के अगेंस्ट टेस्ट में यूथ लीडर्स एक्टिव रोल निभाते हैं जगह यूथ लीग और कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइज की जाति हैं नेहरू और सुभाष चंद्र बस युद्ध के लीडर्स बनकर उभरते हैं पूरे देश में प्रोटेस्ट का माहौल बन जाता है पुलिस प्रदर्शनकारी पर लाठी बरसाने लगती है अक्टूबर 1928 में पुलिस की लाठियां से लाल लाजपत राय की कंडीशन सीरियस हो जाति है और 17th नवंबर 1928 को शेर पंजाब अपनी आखिरी सांस लेते हैं इसके बाद प्रदर्शन और भी उग्र होने लगता है दूसरी तरफ क्रांतिकारी संगठन भी एक्टिव हो जाते हैं इसी बीच सेक्रेटरी ऑफ स्टेट पर इंडिया लॉर्ड बग इन हेड इंडियन लीडर्स को कॉन्स्टिट्यूशन ड्राफ्ट करने का चैलेंज दे देते हैं इनका मानना था की इंडियन कभी एक साथ आकर कॉन्स्टिट्यूशन ड्राफ्ट नहीं कर सकते इंडिया के लीडर्स इनके चैलेंज को एक्सेप्ट कर लेते हैं और इसका जवाब कैसे दिया जाता है आई जानते हैं नेहरू रिपोर्ट दोस्तों लॉर्ड बुकिंग हेड के चैलेंज के जवाब में फरवरी 1928 में एक जो पार्टी कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर की जाति है और मोतीलाल नेहरू की अध्यक्ष कॉन्स्टिट्यूशन ड्राफ्ट करने के लिए एक कमेटी अप्वॉइंट की जाति है तेज बहादुर सप्रू सुभाष चंद्र बस एस अन्य मंगल सिंह अली इमाम शोएब कुरैशी और ग्रे प्रधान कमेटी के मेंबर्स थे ये इंडियन द्वारा देश के लिए कांस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क तैयार करने की पहले कोशिश थी कमेटी अगस्त 1928 तक अपनी रिपोर्ट फाइनल कर लेती है नेहरू रिपोर्ट की सभी रिकमेंडेशन एक मत से दी गई थी सिर्फ एक एस्पेक्ट को छोड़कर और वह यह था की मेजॉरिटी मेंबर्स तो कॉन्स्टिट्यूशन का बेसिस डोमिनियन स्टेटस चाहते थे लेकिन एक क्षेत्र कंप्लीट इंडिपेंडेंस को बेसिस बनाना चाहता था नेहरू रिपोर्ट की मेजर रिकमेंडेशन कुछ इस तरह से थी| डोमिनियन स्टेटस को इंडियन की डिजायरेबल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट बताया जाता है सेपरेट इलेक्टोरेट्स की जगह जॉइंट इलेक्ट्रिक जिसमें सेंटर में मुस्लिम के लिए सिट्स रिजर्व करने का प्रोविजन था साथ ही ऐसी प्रोविंस में भी जहां मुस्लिम माइनॉरिटी में है लिंग्विस्टिक्स प्रोविंस बनाने का सुझाव भी शामिल था इसके अलावा 19 फंडामेंटल राइट्स जैसे की इक्वल राइट्स पर वूमेन यूनिवर्सल एडल्ट सफरेज और यूनियन फॉर्म करने का राइट भी नेहरू रिपोर्ट रेकमेंड करती है सेंटर और प्रोविंस में रिस्पांसिबल गवर्नमेंट का प्रोविजन मुस्लिम के कल्चरल और रिलिजियस इंटरेस्ट के फूल प्रोटेक्शन के साथ स्टेट का रिलिजन से पुरी तरह डिसोसिएशन भी इनकी रिकमेंडेशन का हिस्सा था दोस्तों नेहरू रिपोर्ट की रिकमेंडेशन से सभी पार्टी और ग्रुप सेटिस्फाई नहीं होते सबसे पहले तो कम्युनल रिप्रेजेंटेशन के सवाल पर मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा रिपोर्ट के अगेंस्ट चली जाति हैं यहां नेहरू रिपोर्ट के अगेंस्ट जिन्ना अपने 14 प्वाइंट्स रखते हैं इसके अलावा कांग्रेस का यंगर क्षेत्र भी नेहरू रिपोर्ट से नाराज होता है इनके लिए रिपोर्ट में डोमिनियन स्टेटस का आइडिया एक कम पीछे ले जान जैसा था 1928 में कांग्रेस के कोलकाता सेशन में नेहरू रिपोर्ट को अप्रूव किया जाता है लेकिन जवाहर लाल नेहरू और बस कांग्रेस के डोमिनियन स्टेटस के गोल को रिजेक्ट कर देते हैं और मिलकर इंडिपेंडेंस पर इंडिया लीग सेटअप करते हैं कंक्लुजन दोस्तों एक तरफ यंगर क्षेत्र पूर्ण स्वराज यानी की कंप्लीट इंडिपेंडेंस को कांग्रेस का गोल बनाना चाहता था दूसरी तरफ ओल्ड लीडर्स जैसे की गांधीजी और मोतीलाल नेहरू का मानना था की डोमिनियन स्टेटस की डिमांड को इतनी जल्दी खत्म ना किया जाए क्योंकि इसके ऊपर भी कंसेंसस बड़ी मुश्किल से कई सालों में जाकर बना था इसलिए यह लोग सुझाव देते हैं की गवर्नमेंट को डोमिनियन स्टेटस की डिमांड एक्सेप्ट करने के लिए 2 साल का समय दिया जाए लेकिन यंगर एलिमेंट्स के प्रेशर बनाने पर इस समय को 1 साल कर दिया जाता है और डिसाइड होता है की अगर साल के और तक गवर्नमेंट डोमिनियन स्टेटस के साथ कॉन्स्टिट्यूशन को एक्सेप्ट नहीं करती तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की डिमांड के साथ सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट लॉन्च कर देगी अपनी अगली वीडियो में हम देखेंगे की गवर्नमेंट का क्या रिस्पांस राहत है और फिर कांग्रेस किस तरह से सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट शुरू करती है 31 दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने देखा था की कैसे 1928 में कांग्रेस ब्रिटिश गवर्नमेंट को एक साल का समय देती है डोमिनियन स्टेटस पर बेस्ड कॉन्स्टिट्यूशन को एक्सेप्ट करने के लिए आज हम देखेंगे की ब्रिटिश गवर्मेंट इस पर क्या रेस्पॉन्ड करती है और इंटर्न कांग्रेस का क्या रिएक्शन राहत है तो आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों मैं 1929 में ब्रिटेन में राम से मैकडॉनल्ड की लीडरशिप में लेबर पार्टी की सरकार बंटी है और वायसराय लॉर्ड अरविन को कंसंट्रेशन के लिए लंदन बुलाया जाता है इसके बाद 31 अक्टूबर को वायसराय अनाउंस करते हैं की ब्रिटिश सरकार के अनुसार स्टेटस की तरफ ले जाना है और साथ ही साइमन कमीशन के रिपोर्ट सबमिट होते ही राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर करने का प्रॉमिस भी करते हैं [संगीत] और दिल्ली मेनिफेस्टो इशू किया जाता है इसमें यह लोग डिमांड करते हैं की ब्रिटिश गवर्नमेंट राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का परपज क्लीयरली बता दे और परपज यह नहीं होना चाहिए की डोमिनियन स्टेटस कब तक दिया जाएगा बल्कि उसकी इंप्लीमेंटेशन की स्कीम फॉर्मीदते करना होना चाहिए है इसके जवाब में फाइनली 23rd दिसंबर को लॉर्ड अर्बन गांधीजी और बाकी लीडर्स को बताते हैं की वो ऐसा कोई एश्योरेंस नहीं दे सकते इस तरह नेगोशिएशंस की स्टेज खत्म हो जाति है और कन्फर्टेशनल की तैयारी शुरू होने लगती है लाहौर सेशन और गोल्फ कंप्लीट इंडिपेंडेंस दोस्तों 1929 का कांग्रेस सेशन लाहौर में ऑर्गेनाइजर किया जाता है इसके प्रेसिडेंट जवाहरलाल नेहरू बनते हैं जो दिखाई हैं की कांग्रेस का ट्रांजिशन यंगर जेनरेशन की तरफ हो रहा था और यहां पर ही पूर्ण स्वराज को कांग्रेस का गोल्ड डिक्लेअर कर दिया जाता है इसके साथ ही 31 दिसंबर 1929 को आदि रात के समय रवि नदी के किनारे पर तिरंगा भी फहराया जाता है और आने वाली 26th जनवरी को पूर्ण स्वराज दे के रूप में मनाने की घोषणा की जाति है 26th जनवरी 1930 को पूरे देश में पब्लिक मीटिंग्स ऑर्गेनाइज की जाति हैं जिसमें इंडिपेंडेंस प्लीज को रीड और फर्म किया जाता है लाहौर में कांग्रेस वर्किंग कमेटी को सिविल डिसऑबेडिएंस का प्रोग्राम लॉन्च करने के लिए भी ऑथराइज कर दिया गया था साथ ही लेजिसलेच्योर के सभी मेंबर्स को अपनी सीट से रिजाइन करने के लिए भी कहा गया था जैसा की हमने अपनी पिछली वीडियो में बताया था स्वराज पार्टी के मेंबर्स इसके बाद रिजाइन कर देते हैं लाहौर कांग्रेस का मैंडेट आगे ले जाते हुए गांधीजी अपनी 11 डिमांड गवर्नमेंट के सामने रख देते हैं और इन डिमांड्स को एक्सेप्ट या रिजेक्ट करने के लिए 31 जनवरी 1930 को अल्टीमेटम देते हैं टोटल प्रोहिबिशन इंट्रोड्यूस किया थर्ड क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्मेंट सीआईडी में रिफॉर्म्स किया जैन फोर्थ आर्म्स एक्ट को बदला जाए फिफ्थ पॉलीटिकल बिजनेस को रिलीज किया लिंग एक्सचेंज रेशों को कम किया जाए जिससे एक्सपोर्ट्स में इंडिया को फायदा हो एट टेक्सटाइल प्रोटेक्शन इंट्रोड्यूस किया जाए नाइंथ कोस्टल शिपिंग इंडियन के लिए रिजर्व हो 10th लैंड रिवेन्यू में भी 50% की गिरावट की जाए और 11th आर्मी और सिविल सर्विसेज पर खर्च को 50% तक कम किया जाए है लेकिन गवर्नमेंट की तरफ से कोई पॉजिटिव रिस्पांस ना आता देख मिड फरवरी 1930 में कांग्रेस की वर्किंग कमेटी साबरमती आश्रम में मीटिंग करती है और गांधी जी को फूल पावर्स दे देती है की वो अपनी पसंद की जगह और समय पर सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट की शुरुआत करें तो देखते हैं गांधी जी कब और कहां से आंदोलन की शुरुआत करते हैं दांडी मार्च और साल्ट सत्याग्रह दोस्तों फरवरी एंड तक गांधीजी फैसला ले चुके होते हैं की वो नमक के मुद्दे पर आंदोलन की शुरुआत करेंगे नमक या सॉर्ट को अपने आंदोलन की थीम बनाने का यह फैसला बहुत सोच समझकर लिया गया था नमो की कैसी चीज है जिसकी जरूर सबको है और इस पर टैक्स गरीब लोगों के लिए बहुत भारी पड़ता है साथ ही नमक बनाने पर सरकार की मोनोपोली होने से लोगों से सेल्फ एंप्लॉयमेंट का एक जरिया भी छन लिया गया था है इसलिए सेकंड मार्च 1930 को गांधीजी अपने प्लेन की जानकारी वायसराय को देते हैं इस प्लेन के अकॉर्डिंग गांधीजी साबरमती आश्रम से 78 मेंबर्स के साथ 240 माइल्स की यात्रा करते हुए दांडी के कस पर पहुंचेंगे और वहां पहुंचकर बीच से नमक कलेक्ट कर साल्ट डॉ को वायलेट करेंगे इसके साथ ही मार्च के बाद फ्यूचर एक्शन के लिए डायरेक्शन भी गांधीजी द्वारा दी जाति हैं जो इस तरह से थी जहां भी पॉसिबल हो नमक कानून को टोडा जाए विदेशी कपड़े और शराब की दुकानों की पिक्टिंग की जा शक्ति है लॉयर्स अपनी प्रैक्टिस छोड़ सकते हैं और गवर्नमेंट सर्वेंट अपनी पोस्ट से रिजाइन कर सकते हैं सत्य और अहिंसा का अधिकता के साथ पालनपुर करना होगा और गांधीजी के अरेस्ट होने के बाद लोकल लीडर्स को ओबी करना होगा यह ऐतिहासिक दांडी मार्च 12 मार्च को साबरमती आश्रम से शुरू होता है पूरे दांडी मार्च को लोकल और इंटरनेशनल न्यूज़ पेपर द्वारा कर किया गया था हजारों की संख्या में लोग इस मार्च से जुड़ने जाते हैं और रास्ते में जगह-जगह गांधीजी लोगों को संबोधित भी करते हैं फाइनली सिक्स्थ अप्रैल को दांडी पहुंचकर गांधीजी नमक कानून तोड़ते हैं इस तरह सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट की शुरुआत हो जाति हैं स्प्रेड ऑफ डी सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट दोस्तों दांडी में गांधीजी के द्वारा नमक कानून तोड़ते ही पूरे देश में जगह-जगह नमक कानून टूटना शुरू हो जाता है सी राजगोपालाचारी तिरुचिरापल्ली से वेदारण्यम तक मार्च ऑर्गेनाइजर करते हैं और तंजौर कास्ट पर साल्ट डॉ ब्रेक करते हैं वही मालाबार में कांग्रेस लीडर के केलापन नमक कानून का उलझन करते हैं अप्रैल 1930 में नमक कानून तोड़ने के लिए नेहरू जी को अरेस्ट कर लिया जाता है इसके विरोध में मद्रास कोलकाता और कराची में प्रोटेस्ट ऑर्गेनाइज्ड की जाति हैं उड़ीसा में गोपाल बंधु चौधरी के नेतृत्व में बालेश्वर घटक और पुरी डिस्ट्रिक्ट की कोस्टल रीजंस में सॉर्ट सत्याग्रह ऑर्गेनाइजर किया जाता है इसी बीच गांधीजी अनाउंस करते हैं की वो वेस्ट कास्ट पर धरसाना साल्टवर्क्स पर रीड करने जा रहे हैं इसलिए उन्हें भी फोर्थ में 1930 को अरेस्ट कर लिया जाता है बॉम्बे दिल्ली कोलकाता और सोलापुर में मैं सिर्फ प्रोटेस्ट देखने को मिलते हैं कांग्रेस वर्किंग कमेटी डिफरेंट एक्शन प्लेन को सैंक्शन कर देती है जिससे और लोग जोड़ सकें वो कहते हैं की रेवत वाणी एरियाज में रिवेन्यू पे नहीं किया जाए और जमींदारी एरियाज में नो चौकीदारी टैक्स कैंपियन शुरू किया जाए इसी के साथ साथ सेंट्रल प्रोविंस में फॉरेस्ट लॉस कभी वायलेशन शुरू होगा दर्शन साल्टवर्क्स पर रेड का अनफिनिश टास्क 21st में 1930 को सरोजिनी नायडू इमाम साहिब और गांधी जी के बेटे मणिलाल पूरा करते हैं यहां एनिमेट और पीसफुल क्राउड पर पुलिस ब्रूटल लाठी चार्ज कर देती है इस दौरान दो लोग मारे जाते हैं और 320 लोग घायल हो जाते हैं लेकिन इसके बावजूद सत्याग्रही अपनी तरफ से अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ते जैसा की सी ब्लू सी ने मार्गदर्शन किया था यूनाइटेड प्रोविंस में नो रिवेन्यू कैंपेन शुरू हो जाता है वही सेंट्रल प्रोविंस में लोग फॉरेस्ट लॉस का डिफाइन शुरू कर देते हैं इस तरह देश का लगभग हर हिस्सा आंदोलन में अपनी भागीदारी देने लगता है अब यह समझते हैं की आंदोलन के दौरान मांस पार्टिसिपेशन का एक्सेंट क्या राहत है दोस्तों समाज के लगभग हर वर्ग में इस आंदोलन में पार्टिसिपेट किया था एक-एक करके जानते हैं किसकी भागीदारी ज्यादा थी और किसकी कुछ कम सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट में वूमेन का पार्टिसिपेशन बड़े स्टार पर देखने को मिलता है दांडी मार्च के दौरान जगह-जगह हजारों की संख्या में वूमेन गांधीजी को सुनने के लिए आई है और आंदोलन शुरू हो जान पर पुरी तरह से उससे जुड़ जाति हैं यह लोग लेकर शॉप्स और विदेशी कपड़े बेचे वाली दुकानों के आगे धरना प्रदर्शन करती हैं वूमेन के साथ साथ स्टूडेंट और यूथ भी आंदोलन में बाढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं सेंट्रल प्रोविंस महाराष्ट्र और कर्नाटक में ट्राईबल्स इस आंदोलन के एक्टिव पार्टिसिपेंट्स थे वहीं मुंबई कोलकाता मद्रास और सोलापुर आदि स्थान पर वर्कर्स का पार्टिसिपेशन बड़ी संख्या में हुआ था इसके साथ ही मरचेंट्स और ट्रेडर्स भी आंदोलन के दौरान काफी उत्साहित दिखते हैं ट्रेडर्स एसोसिएशंस और कमर्शियल बॉडीज बॉयकॉट को इंप्लीमेंट करने में एक्टिव रोल निभाते हैं खासकर पंजाब और तमिलनाडु में यूनाइटेड प्रोविंस बिहार और गुजरात से पैंस का पार्टिसिपेशन सबसे ज्यादा राहत है है अगर हम मुस्लिम की बात करें तो आंदोलन में मुस्लिम का पार्टिसिपेशन 1920 के नॉन कोऑपरेशन के जैसा नजर नहीं आता क्योंकि मुस्लिम लीडर्स ने आंदोलन से अलग रहने की अपील की थी साथ ही गवर्नमेंट भी कम्युनल डिस्टेंस को इनकरेज करने में एक्टिव थे लेकिन फिर भी कुछ एरियाज में ओवरव्हेलमिंग पार्टिसिपेशन देखने को मिलता है जैसे की नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में यहां गांधियन लीडर अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में मुस्लिम बढ़-चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लेते हैं इसके साथ ही सेन हटा त्रिपुरा गैबांधा बघौरा और नोआखली में भी मिडिल क्लास मुस्लिम आंदोलन में भाग लेते हैं ढाका में भी मुस्लिम लीडर्स शॉपकीपर लोअर क्लास पीपल और अपर क्लास वूमेन आंदोलन में एक्टिव रहती हैं दिल्ली बिहार और लखनऊ में रहने वाली मुस्लिम वीविंग कम्युनिटी को भी आंदोलन से इफेक्टिवेली जोड़ा गया था इतने बड़े आंदोलन पर ब्रिटिश गवर्नमेंट का क्या रिस्पांस राहत है आई देखते हैं गवर्नमेंट रिस्पांस एफर्ट्स फुट रूल्स दोस्तों शुरुआत में तो ब्रिटिश गवर्नमेंट का एटीट्यूड राहत है क्योंकि वह कन्फ्यूजन में थे अगर वह आंदोलन को दबाने के लिए फोर्स का इस्तेमाल करते हैं तो कांग्रेस रिप्रेशन के नाम पर गवर्नमेंट को क्रिटिसाइज करेगी और अगर वो ऐसा नहीं करते तो कांग्रेस इसे अपनी जीत बताएगी दोनों ही कंडीशन में गवर्मेंट की पावर तो कम हनी ही थी गांधी जी को अरेस्ट करने का डिसीजन भी काफी लाल मेटल के बाद ही लिया गया था लेकिन जब एक बार गवर्नमेंट डिप्रेशन करना शुरू करती है तो अपनी पुरी ताकत जोंक देती है सिविल लिबर्टीज को बन कर दिया जाता है प्रेस पर पाबंदी लगा दी जाति है सिविल डिसऑबेडिएंस ऑर्गेनाइजेशंस को बन करने की पुरी आजादी प्रोविंशियल गवर्मेंट को दे दी जाति है इसके साथ ही आंदोलनकारी पर लाठीचार्ज और फायरिंग भी शुरू कर दी जाति है जय में दाल दिया जाता है गवर्नमेंट के रिप्रेशन के बाद आंदोलन कम होने की जगह और भी ज्यादा उग्र होने लगता है इसी बीच साइमन कमीशन की रिपोर्ट भी ए जाति है और जुलाई 1930 में लॉर्ड अर्बन राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर करने की घोषणा कर देते हैं इसके साथ ही सेंट्रल लेजिसलेच्योर के 40 मेंबर्स के सजेशन पर कांग्रेस के साथ शांति की कोशिश की जाति है इसके लिए तेज बहादुर सप्रू और श्री जयकार को मेडिएटर बनाया जाता है अगस्त में मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू को गांधीजी से मिलने के लिए एयर बड़ा जय ले जय जाता है लेकिन इस बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलता है की नवंबर में लंदन में होने वाली फर्स्ट राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में कुछ क्षेत्र जरूर हिस्सा लेने वाले लेकिन कांग्रेस इसका हिस्सा नहीं होगी बिना कांग्रेस के राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस भी बेनतीजई रहती है वहां मौजूद लगभग हर डेलीगेट का यही कहना था की बिना कांग्रेस के कॉन्स्टिट्यूशन पर ऑपरेशन करना मीनिंग जैसी है अब ब्रिटिश गवर्नमेंट को समझ आता है की अगर उसे कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स के नाम पर सरवाइव करना है तो कांग्रेस को मानना जरूरी है इसलिए ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर फर्स्ट राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के कंक्लुजन में कहते हैं की उन्हें उम्मीद है की सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस जरूर हिस्सा लगी वायसराय 25th जनवरी को गांधी जी और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी मेंबर्स की बिना शर्ट रिहाई अनाउंस कर देते हैं जिससे यह लोग फ्रिली और फीयरलेसली ब्रिटिश पीएम की स्टेटमेंट का जवाब दे सकें अब कांग्रेस का क्या जवाब रहने वाला था गांधी अर्बन पेट दोस्तों लगभग तीन हफ्ते के आपसी डिस्कशन और डेलिबरेशंस के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी वायसराय के साथ बातचीत के लिए गांधीजी को ऑथराइज करती है गांधीजी और वायसराय लोड अर्बन के बीच अराउंड दो हफ्तों तक डिस्कशन होते हैं और फाइनली फिफ्थ मार्च 1931 को गांधी एवं एक्ट पर साइन होते हैं इस पेस्ट के अनुसार हिंसा एन करने वाले सभी पॉलीटिकल प्रिजनर्स को रहा करना था सभी तरह के फाइन जो अभी तक कलेक्ट नहीं किया गए थे उन्हें माफ करना था जब तक की हुई जमीन को वापस करना था साथ ही रिजाइन करने वाले गवर्नमेंट सर्वेंट को लीनियंट ट्रीटमेंट देना था कास्ट के किनारे वाले गांव में कंजप्शन के लिए सॉर्ट बनाने की मंजरी भी सरकार ने दे दी इसके बदले में कांग्रेस सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट को रोकने के लिए एग्री होती है और साथ ही नेक्स्ट राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में पार्टिसिपेट करने के लिए भी तैयार होती है दोस्तों इस तरह सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट दोस्तों आंदोलन तो गांधी इर्विन पेस्ट से खत्म हो गया आंदोलन की सफलता ही थी की कांग्रेस पहले बार सरकार के साथ बराबरी पर आकर कोई समझौता कर रही थी आंदोलन के दौरान 90 हजार से ज्यादा लोग जय गए थे यह संख्या 9 को ऑपरेशन मूवमेंट की तुलना में तीन गनी थी ब्रिटेन से कपड़े का इंपोर्ट आधा हो गया था लेकर एक साइज और लैंड रिवेन्यू से होने वाली सरकार की आमदनी पर भी गहरा असर पड़ता है इंडियन नेशनलिज्म की आज समाज के हर वर्ग तक पहुंच जाति है इस तरह यह आंदोलन मैक्स को नेशनल मूवमेंट को एक्टिव पार्टिसिपेशन बनाने में नॉन कोऑपरेशन आंदोलन से भी ज्यादा सफल रहा था साथ ही इस आंदोलन के दौरान हिंसा की कोई बड़ी घटना देखने को नहीं मिलती इसका मतलब था की लोग अब गांधी जी की सत्याग्रह टेक्निक को पुरी तरह अपना चुके थे जिसका सबसे अच्छा उदाहरण धरसाना में देखने को मिला था कंक्लुजन हम का सकते हैं की सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट एन सिर्फ इफेक्टिवली ऑर्गेनाइज्ड किया गया बल्कि इसमें कांग्रेस को सही मेन में मांस ऑर्गेनाइजेशन भी बना दिया था यही वजह थी की ब्रिटिश गवर्नमेंट भी कांग्रेस के साथ समझौता करने के लिए झुक जाति है सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट फेस तू दोस्तों हमने अपने पिछले वीडियो में सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट को डिस्कस किया था फिफ्थ मार्च 1931 को हुए गांधी ऐरवा पैक के बाद आंदोलन का फर्स्ट पेज खत्म हो गया था इसके बाद इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल किस दिशा में आगे बढ़ता है आज हम यही जानेंगे आयु शुरू करते हैं मार्च 1931 में हुए इंडियन नेशनल कांग्रेस के कराची सेशन से कराची सेशन दोस्तों गांधी इर्विन या दिल्ली बैठ को इंडस करने के लिए 29 मार्च 1931 को कांग्रेस का कराची सेशन ऑर्गेनाइज्ड किया जाता है यह डेलीपैक्ट को इंडस करने के अलावा फंडामेंटल राइट्स और नेशनल इकोनामिक प्रोग्राम पर रेजोल्यूशन भी पास किया गया था कांग्रेस डिक्लेअर करती है की लोगों का शोषण खत्म करने के लिए पॉलीटिकल फ्रीडम के साथ-साथ इकोनामिक फ्रीडम भी जरूरी है फंडामेंटल राइट्स पर रेजोल्यूशन बेसिक सिविल राइट्स की गारंटी देता है जिसमें फ्री स्पीच फ्री प्रेस फ्री असेंबली और फ्रीडम ऑफ संगठन शामिल थे इसके साथ ही क्वालिटी बिफोर डी डॉ इरेस्पेक्टिव ऑफ कास्ट क्रीड और सेक्स रिलिजियस मैटर्स में स्टेट की न्यूट्रॅलिटी यूनिवर्सल एडल्ट फ्रेंचाइजी की बेसिस पर इलेक्शंस और फ्री और कंपलसरी प्राइमरी एजुकेशन जैसे राइट्स भी इसका पार्ट थे यह माइनॉरिटी और डिफरेंट लैंग्वेज और स्क्रिप्ट को प्रोटेस्ट करने की बात भी कहीं गई थी ध्यान देने वाली बात यह है की इसी रेजोल्यूशन को हम अपने कॉन्स्टिट्यूशन में बाद में फंडामेंटल राइट्स के रूप में पार्ट थ्री में अडॉप्ट करते हैं नेशनल इकोनामिक प्रोग्राम के तहत रेंट और रिवेन्यू में सब्सटेंशियल रिडक्शन प्रॉमिस किया गया था इसके अलावा उन इकोनॉमिक्स होल्डिंग्स होने पर रेंट से एक्सेंप्शन एग्रीकल्चरनेस में रिलीफ और कंट्रोल ऑफ यूजुअली की बात भी की गई थी इसमें वर्कर्स के लिए लिविंग वेज के साथ बटर कंडीशंस लिमिटेड अवर्स ऑफ क प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन वर्कर्स और यूनियन फॉर्म करने का राइट भी शामिल था यह प्रोग्राम की इंडस्ट्रीज माइंस और मेंस ऑफ ट्रांसपोर्ट पर स्टेट ओनरशिप भी प्रॉमिस करता है इस तरह से कराची रेजोल्यूशन कांग्रेस के बेसिक पॉलीटिकल और इकोनॉमिक्स प्रोग्राम को रिप्रेजेंट करता है आजादी के बाद भी कांग्रेस पॉलिसीज में इसका एसेंस देखा जा सकता है दोस्तों 29th अगस्त 1931 को गांधीजी सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस अटेंड करने लंदन के लिए निकाल जाते हैं सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस सेवंथ सितंबर 1931 से फर्स्ट दिसंबर 1931 तक लंदन में आयोजित की जाति है इंडियन नेशनल कांग्रेस की तरफ से गांधीजी को सोल रिप्रेजेंटेटिव बनाया गया था इसके अलावा प्रिंसली स्टेटस के रिप्रेजेंटेटिव भी यहां मौजूद थे मुस्लिम का प्रतिनिधित्व मौलाना शौकत अली मोहम्मद अली जिन्ना मोहम्मद इकबाल जैसे लीडर्स कर रहे थे हिंदू ग्रुप को दीवान बहादुर राजा नरेंद्र नाथ रिप्रेजेंट कर रहे थे इसके अलावा लिबरल पार्टी से गण बसु तेज बहादुर सप्रू और चिमनलाल हरिलाल शीतल वार्ड जैसे लीडर्स पहुंचे हुए थे डिप्रेस्ड क्लासेस का रिप्रेजेंटेशन कर रहे थे गवर्नमेंट का इंडिया नरेंद्र नाथ और एम रामचंद्र राव गए हुए थे खाने का मतलब यह हुआ की इंडियन पालिटी और सोसाइटी के लगभग हर शिक्षक की तरफ से रिप्रेजेंटेटिव सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में पहुंच गए गवर्नमेंट इनके जारी ये दिखाना चाहती थी की कांग्रेस सभी इंडियन की इंटरेस्ट को रिप्रेजेंट नहीं करती कॉन्फ्रेंस में गांधीजी कहते हैं की इंडिया और ब्रिटेन के बीच एक क्वालिटी के बेसिस पर पार्टनरशिप हनी चाहिए और डिमांड रखते हैं की सेंटर और प्रोविंस में तुरंत ही रिस्पांसिबल गवर्नमेंट एस्टेब्लिश की जाए इसके साथ ही अनटचेबल्स को हिंदू मानते हुए गांधी जी कहते हैं की इन्हें माइनॉरिटी की तरह ट्वीट नहीं किया जाना चाहिए इसलिए इनके लिए सेपरेट इलेक्ट की आइडिया को वो डिस्कार्ड कर देते हैं इसके अलावा गांधीजी यह भी कहते हैं की मुस्लिम या किसी और माइनॉरिटी ग्रुप के लिए भी सेपरेट इलेक्टरेट की जरूर नहीं है लेकिन बाकी डेलीगेट गांधी जी से सहमत नहीं होते इस तरह अलग डेलीगेट ग्रुप के बीच कोई एग्रीमेंट नहीं बन पता और सेकंड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में भी इंडिया के कांस्टीट्यूशनल फ्यूचर पर कोई डिसीजन नहीं इंडिया की आजादी की डिमांड को माने से इनकार कर देती है 28 दिसंबर 1931 को गांधीजी हताश होकर वापस इंडिया ए जाते हैं और अगले ही दिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट को रिज्यूम करने का डिसीजन लेती है सिविल डिसऑबेडिएंस रिज्यूम्स और गवर्नमेंट रिस्पांस दोस्तों इस तरह सिविल डिसऑबेडिएंस का सेकंड फैज शुरू होता है फर्स्ट फेस के दौरान ब्रिटिश गवर्नमेंट आंदोलन के अगेंस्ट रिस्पांस को लेकर कन्फ्यूजन में अच्छी थी लेकिन सेकंड फेस में ऐसा नहीं होता लोड इर्विन की जगह लॉर्ड विलिंग दान वायसराय बन चुके थे और वो गांधीजी और उनके आंदोलन को किसी भी तरह की दील देने की मूड में नहीं थे इसलिए फोर्थ जनवरी 1932 को गांधी जी को अरेस्ट कर लिया जाता है साथ ही ऑर्डिनेंस के जारी अथॉरिटी को अनलिमिटेड पावर दे दी जाति हैं सभी सिविल लिबर्टीज को खत्म कर दिया जाता है अथॉरिटी अपनी मर्जी से लोगों और उनकी प्रॉपर्टी को सीस कर शक्ति थी इस तरह एक हफ्ते के अंदर ही सभी लीडिंग कांग्रेस मां को जय में दाल दिया जाता है गवर्नमेंट के इस एक्शन के अगेंस्ट इंडिया के लोग गुस्से से रिएक्ट करते हैं कांग्रेस ने भले ही बिना किसी प्रिपरेशन के आंदोलन शुरू किया था लेकिन इसे मैसिव पॉपुलर रिस्पांस मिलता है पहले 4 महीने में ही करीब 80 हजार सत्याग्रही को जय होती है लाखों लोग लेकर और फॉरेन क्लॉथस बेचे वाली शॉप्स की पिकेटिंग करते हैं लीगल गैदरिंग्स नॉन वायलेंस डेमोंसट्रेशंस जैसे मैथर्ड के साथ ऑर्डिनेंस का डिफेंस किया जान लगता है नॉन वायलेट आंदोलन को गवर्नमेंट पुरी शक्ति से दबाना शुरू कर देती है कांग्रेस और उसकी एलिट ऑर्गेनाइजेशंस को इलीगल डिक्लेअर कर दिया जाता है साथ ही उनके ऑफिसेज और फंड्स सीएस कर लिए जाते हैं सभी गांधी आश्रम पर पुलिस अपना कब्जा कर लेती है पीसफुल विकेट्स सत्याग्रही और प्रदर्शनकारी पर लाठी चार्ज किया जाता है मारा जाता है और कठोर दंड और फाइनेंस लगा दिए जाते हैं जय में प्रिजनर्स को बहुत ही करूर था के साथ ट्वीट किया जाता है सजा के तोर पर कूड़े बरसाना रूस की बात हो जाति है और इंडिया के डिफरेंट पार्ट्स में चल रहे नो टैक्स कैंपेन के अगेंस्ट भी कठोर कम लिए जाते हैं लोगों की जमीन घर मवेशी खेती के साधन और बाकी संपत्ति को जप्त कर लिया जाता है पुलिस लोगों का अलग-अलग तरीके से शोषण करने लगती है लोग अपनी तरफ से पुरी कोशिश करते हैं फाइट बैक करने की लेकिन गांधीजी और बाकी लीडर्स को मौका ही नहीं मिलता आंदोलन के टेंपो को बिल्ड करने का इसलिए ज्यादा लंबे समय तक आंदोलन सस्टेन नहीं कर पता कुछ ही मीना के अंदर गवर्मेंट इफेक्टिवेली आंदोलन को कृष कर देती है हालांकि थोड़ी बहुत जान आंदोलन में अभी भी बच्ची हुई थी और अर्ली अप्रैल 1934 तक यह चला राहत है और फिर फाइनली गांधीजी आंदोलन को विद्रोह करने का डिसीजन लेते हैं दोस्तों इस तरह सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट का सेकंड फेस भी और हो जाता है इस आंदोलन के दौरान ही एक और महत्वपूर्ण घटना हुई थी जिसकी चर्चा करना जरूरी है डिप्रेस्ड क्लासेस की तरफ से सेपरेट इलेक्टरेट की डिमांड की गई थी जिसका गांधी जी ने विरोध भी किया था लेकिन डिवाइडेड रूल की पॉलिसी को फॉलो करते हुए अगस्त 1932 में ब्रिटिश पीएम मैकडॉनल्ड सभी माइनॉरिटी के लिए सेपरेट इलेक्टरेट की घोषणा कर देते हैं इसे कम्युनल अवार्ड भी कहा जाता है इसमें डिप्रेस्ड क्लासेस को भी माइनॉरिटी कम्युनिटी माना गया इस कोशिश का वह पूरा विरोध करते हैं इसके लिए गांधीजी 28 सितंबर 1932 को आमरण अंश यानी की फास्ट ऊंटो डेथ शुरू कर देते हैं हैं उनके अनुसार अगर डिप्रेस्ड क्लासेस को एक सेपरेट कम्युनिटी की तरह ट्वीट किया जान लगा तो अनटचेबिलिटी को खत्म करने का सवाल ही नहीं रहेगा और इस दिशा में किया जा रहे हिंदू सोशल रिफॉर्म बेकार हो जाएंगे साथ ही हाइंड्स भी हमेशा के लिए डिवाइड हो जाएंगे इसलिए गांधीजी चाहते थे की डिप्रेस्ड क्लासेस के रिप्रेजेंटेटिव भी जनरल इलेक्ट्रोरेट के द्वारा ही चुने जैन ऐसी सिचुएशन में डिफरेंट पॉलीटिकल परसूएसन के लीडर्स एक साथ आते हैं जिम मदन मोहन मालवीय मेक राजा और बी अंबेडकर शामिल थे यह लोग आखिर में एक समझौते पर राजी हो जाते हैं जिसे पुणे समझौता या पूना पेस्ट कहा जाता है पूना पेस्ट के अनुसार डिप्रेस्ड क्लासेस के लिए सेपरेट इलेक्टरेट का आइडिया छोड़ दिया जाता है और इसकी जगह प्रोविंशियल लेजिस्लेटर्स में उनके लिए रिजर्व्ड सिट्स की संख्या को 71 से बढ़कर 147 कर दिया जाता है साथ ही सेंट्रल लेजिसलेच्योर में भी टोटल सिट्स का 18% उनके लिए रिजर्व कर दिया जाता है इस तरह से पूना पेस्ट के बाद गांधीजी अपना फास्ट तोड़ते हैं साथ ही जय से बाहर आने पर सभी कम छोड़कर लगभग 2 साल तक वो अनटचेबिलिटी के अगेंस्ट कैंपेन में ही एक्टिव रहते हैं है इस दौरान सेवंथ नवंबर 1933 से लेकर 29th जुलाई 1934 तक यानी की करीब 9 महीने का इंटेंसिव हरिजन टूर भी कंडक्ट करते हैं हरिजन नाम गांधीजी ने डिप्रेस्ड क्लासेस को दिया था इस स्टोर के दौरान गांधीजी गरीब 20000 किलोमीटर की यात्रा करते हैं रिसेंटली फाउंडेड हरिजन सेवक संघ के लिए फंड्स कलेक्ट करते हैं सभी फॉर्म्स में अनटचेबिलिटी की प्रैक्टिस को खत्म करने की अपील करते हैं और सोशल वर्कर्स से कहते हैं की गांव-गांव जाकर हरिजनस के सोशल इकोनामिक कल्चरल और पॉलीटिकल के लिए कम करें दोस्तों इस तरह गांधीजी अपने इन्फ्लुएंस का उसे करके हिंदू उसको डिवाइड होने से बच्चा लेते हैं आई अब वापस नेशनल मूवमेंट की तरफ चला जाए डिबेट आफ्टर सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट दोस्तों बड़े आंदोलन के खत्म होने के बाद एक बार फिर से सवाल खड़ा होता है की आगे की स्ट्रीट्स क्या होगी इसे लेकर कांग्रेस में तीन पर्सपेक्टिव सामने आते हैं पहले था की गांधियन लाइंस पर कंस्ट्रक्टिव क किया दूसरा पर्सपेक्टिव था की कांस्टीट्यूशनल स्ट्रगल को रिवाइव किया जाए और 1934 में होने वाले सेंट्रल लेजिसलेच्योर के इलेक्शंस में पार्टिसिपेट किया जाए इसका सपोर्ट कर रहे थे इनके अलावा जो तीसरा प्रोस्पेक्टिव सामने ए रहा था वह कांग्रेस में उभरते स्ट्रांग लेफ्ट ईस्ट ट्रेड का था इसे जवाहरलाल नेहरू जैसे लीडर्स रिप्रेजेंट कर रहे थे और ये लोग कंस्ट्रक्टिव क और काउंसलिंग एंट्री दोनों को ही क्रिटिसाइज करते हैं इसकी जगह यह जान आंदोलन को ही कंटिन्यू रखना के पक्ष में थे फाइनली काउंसिल एंट्री के फीवर में फैसला लिया जाता है मे 1934 में जो इंडिया कांग्रेस कमेटी पटना में मिलती है और पार्लियामेंट्री बोर्ड सेटअप किया जाता है कांग्रेस के बैनर में ही इलेक्शंस फाइट करने का डिसीजन हो जाता है इसी बीच गांधीजी को यह भरोसा हो जाता है की कांग्रेस के पावरफुल ट्रेंड्स के साथ उनके अपने विचार नहीं मिलते बड़े क्षेत्र पार्लियामेंट्री पॉलिटिक्स को फीवर कर रहा था गांधीजी इसके पुरी तरह खिलाफ थे साथ ही सोशलिस्ट ग्रुप से भी उनके फंडामेंटल डिफरेंस थे इसलिए अक्टूबर 1934 में गांधीजी कांग्रेस से रिजाइन कर देते हैं नवंबर 1934 में सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली के इलेक्शंस होते हैं इसमें टोटल 75 इलेक्ट्रिक सिट्स में से 45 पर कांग्रेस की जीत होती है लेकिन इससे भी ज्यादा इंपॉर्टेंट इलेक्शन होना अभी बाकी था इंडिया एक्ट 1935 और इलेक्शंस ऑफ 1937 दोस्तों 1932 के आंदोलन के दौरान ही थर्ड राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर की जाति है इसमें भी कांग्रेस पार्टिसिपेट नहीं करती यहां पर हुए डिस्कशन के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट 1935 का एक्ट पास करती है इस एक्ट में प्रोविंशियल ऑटोनॉमी इंट्रोड्यूस की गई थी और इसके लिए ही अर्ली 1937 में इलेक्शंस डिक्लेअर कर दिए जाते हैं इलेक्शंस को लेकर एक बार फिर से कांग्रेस में डिबेट शुरू हो जाति है सभी लीडर्स एग्री करते थे की 1935 के एक्ट का विरोध करना है लेकिन यह विरोध किस तरह से किया जाए इसको लेकर सबकी अलग-अलग राय थी फाइनली 1937 के फेसबुक सेशन में इलेक्शंस में पार्टिसिपेट करने पर सहमति बन जाति है और ऑफिस एक्सेप्टेंस का फैसला पोस्ट इलेक्शन पीरियड पर छोड़ दिया जाता है फरवरी 1937 में इलेक्शंस होते हैं जिसमें कांग्रेस शानदार प्रदर्शन करती है 1161 कंटेस्टेंट सिट्स में से 716 सिट्स पर इनकी जीत होती है कुछ मीना की तसल्ली के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी ऑफिस एक्सेप्ट करने का फैसला लेती है और टोटल 11 में से 8 प्रोविंस में गवर्नमेंट फॉर्म की जाति है जिसमें मद्रास मुंबई सेंट्रल प्रोविंस उड़ीसा बिहार अप नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और असम शामिल था आई जानते हैं गवर्नमेंट फॉर्म करने के बाद कांग्रेस मिनिस्टरीज का परफॉर्मेंस कैसा राहत है 28 मठ ऑफ कांग्रेस रूल दोस्तों कांग्रेस मिनिस्टरीज लोगों के वेलफेयर के लिए कम करना शुरू करती है फिर भी यह कुछ रिफॉर्म्स इंट्रोड्यूस करने की कोशिश करते हैं सिविल लिबर्टीज को रिवाइव करते हुए सभी इमरजेंसी पावर्स को रिपील कर दिया जाता है इलीगल डिक्लेअर की गई पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन और जर्नल्स पर से बन हटा दिया जाता है प्रेस पर से सभी रिस्ट्रिक्शंस रिमूव कर दिए जाते हैं हजारों पॉलीटिकल प्रिजनर्स के रिलीज का ऑर्डर इशू किया जाता है और दूसरा फाइनेंशियल रिसोर्सेस की भी बहुत कमी थी इसके अलावा टाइम भी कंस्ट्रेंट बन जाता है कांग्रेस मिनिस्टरीज का रूल सिर्फ 28 मंथ्स तक ही राहत है यह समय बड़ी एग्रेरियन या एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के लिए काफी नहीं था 1939 में सेकंड वर्ल्ड वार शुरू हो जाता है और ब्रिटेन बिना इंडियन की परमिशन की इंडिया को वर्ल्ड वार में पार्टिसिपेंट बना देता है इसी के विरोध में कांग्रेस मिनिस्ट्री अक्टूबर 1939 में रिजाइन कर देती हैं कंक्लुजन दोस्तों इलेक्शंस में पार्टिसिपेट करने और फिर गवर्नमेंट फॉर्म करने से कांग्रेस लीडर्स को पार्लियामेंट्री सिस्टम में कम करने का वैल्युएबल एक्सपीरियंस मिलता है यही एक्सपीरियंस आजादी के बाद इंडियन डेमोक्रेसी को सस्टेन करने में काफी हेल्प करता है अपने आगे आने वाले वीडियो में हम देखेंगे की कैसे सेकंड वर्ल्ड वार के दौरान नेशनल मूवमेंट डिसाइसिव फीस में पहुंच जाता है [संगीत] बैकग्राउंड सेकंड वर्ल्ड वार और कांग्रेस इस रिस्पांस दोस्तों सितंबर 1939 में सेकंड वर्ल्ड वार की शुरुआत होती है और ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट कांग्रेस या सेंट्रल लेजिसलेच्योर के इलेक्ट मेंबर किया बिना नहीं इंडिया को भी वार में पार्टिसिपेंट क्लियर कर देती है कांग्रेस पुरी तरह से फैशनिस्ट फोर्सेस के अगेंस्ट थे और एलाइड कैसे का सपोर्ट भी करना चाहती थी लेकिन उनका मानना यह था की खुद गुलामी में रहते हुए इंडिया किसी दूसरे देश की फ्रीडम की फाइट नहीं कर सकता कांग्रेस के ऑफिशल स्टैंड को डिस्कस करने के लिए 10 से 14 सितंबर के बीच वर्धा में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग होती है यह कांग्रेस लीडर्स की अलग-अलग व्यूज सामने आते हैं शो करते हैं उनका मानना था की वेस्टर्न यूरोप की डेमोक्रेटिक स्टेटस और हिटलर के नाथसी स्टेट में क्लियर डिफरेंस है वही सोशलिस्ट और सुभाष चंद्र बस का कहना था यह वार एक इंपिरियलिस्ट वार है क्योंकि दोनों ही साइज कॉलोनियल टेरिटरीज को जेन करने या डिफेंड करने के लिए ही फाइट कर रही हैं इसलिए किसी भी साइड को सपोर्ट करने का सवाल ही नहीं है बल्कि कांग्रेस को सिचुएशन का फायदा उठाते हुए तुरंत ही आजादी के लिए आंदोलन शुरू कर देना चाहिए इन सब के बीच जवाहर लाल नेहरू का अपना अलग स्टैंड था उनके अनुसार जस्टिस तो ब्रिटेन फ्रांस और पोलन के साथ ही है लेकिन साथ ही ब्रिटेन और फ्रांस इंपिरियलिस्ट कंट्रीज हैं और ये वार केपीटलाइज्म के इनर कांट्रडिक्शंस का ही नतीजा है इसलिए नेहरू जी का कहना था की फ्रीडम मिलने तक ना तो इंडिया को वार जॉइन करना चाहिए और ना ही ब्रिटेन की मुश्किल का फायदा उठाते हुए अभी कोई आंदोलन ही शुरू करना चाहिए फाइनली नेहरू जी के स्टैंड को ही कांग्रेस का ऑफिशल स्टैंड डिक्लेअर किया जाता है कमेटी अपने रेजोल्यूशन पर पोलैंड पर हुए नागजी अटैक को कंडोम करती है साथ ही डिक्लेअर करती है की इंडिया इस वार में पार्टी नहीं बन शक्ति क्योंकि खाने के लिए तो यह वार डेमोक्रेटिक फ्रीडम के लिए लाडा जा रहा है लेकिन इंडिया को यही फ्रीडम नहीं दी जा रही है अगर ब्रिटेन सच में डेमोक्रेसी और फ्रीडम की फाइट कर रहा है तो उसे इंडिया में यह प्रूफ करना चाहिए की अपने वरयाम्स को ब्रिटेन इंडिया में कैसे इंप्लीमेंट करेगा उसके बाद इंडियन खुशी से वार में उनका साथ देने के लिए तैयार है इस रेजोल्यूशन के अगेंस्ट ब्रिटिश गवर्नमेंट का रिस्पांस पुरी तरह नेगेटिव राहत है अक्टूबर 1939 को एक स्टेटमेंट जारी करते हैं जिसमें वो मुस्लिम लीग और प्रिंस को कांग्रेस के अगेंस्ट उसे करने की कोशिश करते हैं ब्रिटेन के वॉरियर्स को डिफाइन करने से साफ इनकार भी कर देते हैं फ्यूचर को लेकर बस इतना प्रॉमिस करते हैं की वार खत्म होने के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडिया की सेवरल पार्टी कम्युनिटी के रिप्रेजेंटेटिव और इंडियन प्रिंस के साथ कंसल्टेशन करेगी और डिसाइड करेगी की 1935 एक्ट को कैसे मॉडिफाई किया जा सकता है इसके रिएक्शन में गांधीजी कहते हैं की ब्रिटिश गवर्नमेंट अपनी डिवाइडेड रूल की पॉलिसी को ही कंटिन्यू कर रही है वायसराय की डिक्लेरेशन से साफ है की अगर ब्रिटेन का बस चले तो इंडिया में कभी भी डेमोक्रेसी नहीं आने देगा कांग्रेस ने तो ब्रेड मांगी थी लेकिन उसे पत्थर मिले हैं 23rd अक्टूबर को वर्किंग कमेटी वाइस रॉयल की स्टेटमेंट को रिजेक्ट करते हुए कांग्रेस मिनिस्ट्री से रिजाइन करने के लिए कहती है लेकिन अभी भी जान आंदोलन शुरू करने की कोई बात नहीं होती गवर्नमेंट कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थी और एक के बाद एक ऑर्डिनेंस जारी करके सिविल लिबर्टी इस पर रिस्ट्रिक्शंस लगाने लगती है पहले ही आम आदमी दुखी था इकोनॉमिक्स की बेसिक नेसेसिटी अवेलेबल नहीं थी फिर धीरे-धीरे कांग्रेस लीडर को यह बताने का समय ए जाता है की इंडियन कपिल अगस्त ऑफर अन्य इंडिविजुअल सत्याग्रह दोस्तों 1940 की शुरुआत में वर्ल्ड वार में हिटलर को सक्सेस मिलती जा रही थी बेल्जियम हॉलैंड और फ्रांस को फास्टेस्ट बॉलर्स ने जीत लिया था ऐसे में ब्रिटेन कंसीलर मूड में ए जाता है कांग्रेस भी कंप्रोमाइज के लिए तैयार थी अगर उसे वार के दौरान इंटिरिम गवर्नमेंट फॉर्म करने दिया जाए लेकिन ब्रिटिश गवर्नमेंट कांग्रेस के डिमांड एक्सेप्ट नहीं करती और अपनी तरफ से एक ऑफर लेकर आई है जिसे अगस्त ऑफर कहा जाता है वायसराय लिंग्लित को इसमें अनाउंस करते हैं की इंडिया को डोमिनियन स्टेटस देना ब्रिटिश गवर्मेंट का ऑब्जेक्टिव है साथ ही वायसराय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल को एक्सपेंड करने का प्रपोज भी रखते हैं जिसमें इंडियन की मेजॉरिटी होगी वार के बाद इंस्टिट्यूट असेंबली सेट अप करने की बात भी इसमें होती है लेकिन यह भी कहा जाता है की बिना माइनॉरिटी की कंसेंट के कोई भी फ्यूचर कॉन्स्टिट्यूशन नहीं किया जाएगा [संगीत] [संगीत] है इसलिए 1940 के और में कांग्रेस एक बार फिर गांधीजी से कमान संभालने के लिए कहती है और गांधी जी इंडिविजुअल सत्याग्रह शुरू करने का डिसीजन लेते हैं यह सत्याग्रह हर लोकेलिटी में कुछ सिलेक्टेड इंडिविजुअल्स के द्वारा लिया जाना था इस सत्याग्रह का ही लोगों की फीलिंग को एक्सप्रेस करना था की वो वार में इंटरेस्टेड नहीं है उनके लिए नक्सिज्म और इंडिया पर रूल कर रहे डबल और डोक्रेसी में कोई अंतर नहीं है साथ ही सत्याग्रह गवर्नमेंट को एक और मौका देता है की वो पीसफुली कांग्रेस की डिमांड मां लेने सत्याग्रही को एंटीवायरस स्पीच देनी थी इस एक्ट से वह वार के अगेंस्ट अपनी फ्रीडम ऑफ स्पीच की डिमांड करेंगे और अगर गवर्नमेंट उन्हें अरेस्ट नहीं करती है तो इसी स्पीच को जगह जगह जाकर रिपीट करेंगे और गांव से होकर दिल्ली के लिए मार्च करेंगे इस तरह एक आंदोलन की शुरुआत होती है जिसे दिल्ली चलो आंदोलन भी कहा जाता है इसमें सबसे पहले चुने जान वाले सत्याग्रह विनोबा भावे थे और दूसरे सत्याग्रही जवाहर लाल नेहरू बनते हैं मे 1941 तक 25000 से भी ज्यादा लोगों को इंडिविजुअल सत्याग्रह करने के लिए अरेस्ट किया जाता है हालांकि ब्रिटिश गवर्नमेंट इसके बाद भी कांग्रेस की डिमांड्स माने के लिए तैयार नहीं होती लेकिन जल्द ही ऐसी इंटरनेशनल सिचुएशन बंटी है की उन्हें एक और मिशन इंडिया भेजना पड़ता है ट्रिप्स मिशन दोस्तों वर्ल्ड वार में ब्रिटेन की सिचुएशन क्रिटिकल होती जा रही थी 22 जून 1941 को जर्मनी सोवियत यूनियन पर अटैक कर देता है और इसके बाद 7 दिसंबर को जापान पर्ल हार्बर में अमेरिकन फ्लीट पर सरप्राइज अटैक कर देता है जल्दी ही जबान फिलिपींस इंडो चीन इंडोनेशिया और बर्मा पर कब्जा कर लेट है तेजी से आगे बढ़ते हुए मार्च 1942 में रंगून को ऑक्यूपई कर लिया जाता है और इस तरह और अब इंडिया के दरवाजे पर पहुंच जाति है इंडियन लीडर्स को इंडिया के डिफेंस की चिंता होने लगती है साथ ही वार की बिगड़ी सिचुएशन को देखते हुए उस के प्रेसिडेंट रूल्स अबाउट चाइनीस प्रेसिडेंट पर दबाव डालने लगता हैं की वो वार में इंडियन का एक्टिव सपोर्ट लेने की कोशिश करें इसलिए ब्रिटिश पीएम मार्च 1942 में कैबिनेट मिनिस्टर स्टेफोर्ड ग्रिप्स की लीडरशिप में एक मिशन इंडिया भेजते हैं लेकिन ट्रिप्स का प्रपोज भी इंडियन लीडर्स को निराश करता है उन्होंने अपने प्रपोज में वार के बाद इंडिया को डोमिनियन स्टेटस देने और कांस्टीट्यूएंट असेंबली फॉर्म करने का प्रॉमिस किया था इस कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली के मेंबर्स को प्रोविंशियल असेंबली द्वारा इलेक्ट्रिक किया जाना था और प्रिंसली स्टेटस के कैसे में मेंबर्स रुलर्स द्वारा नॉमिनेट होने थे ट्रिप्स प्रपोज में एक प्रोविजन ये भी था की अगर कोई प्रॉब्लम्स न्यू कॉन्स्टिट्यूशन को एक्सेप्ट नहीं करता तो उसे अधिकार होगा की वो अपने फ्यूचर स्टेटस को लेकर ब्रिटेन के साथ एक सेपरेट एग्रीमेंट करें यह प्रोविजन मुस्लिम लीग की सेपरेट स्टेट की डिमांड को एकोमोडेशन करने के लिए था ट्रिप्स प्रपोज के बड़े में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है की जब उन्होंने इसको पहले बार पढ़ा तो वो बहुत डिप्रेस्ड हो गए थे कांग्रेस डोमिनियन स्टेटस इंडिया के पार्टीशन और कांस्टीट्यूएंट असेंबली में नॉमिनेटेड मेंबर्स जैसे प्रोविजंस पर एतराज जताती है ब्रिटिश गवर्नमेंट इनकी इमीडिएट ट्रांसफर ऑफ इफेक्टिव पावर की डिमांड को भी एक्सेप्ट करने से माना कर देती है और इस तरह क्रिप्स मिशन भी फूल हो जाता है यह ध्यान रखना वाली बात यह है की ब्रिटिश पीएम चर्चिल चाहते ही नहीं थे की ट्रिप्स मिशन कामयाब हो उन्होंने ये मिशन सिर्फ इंटरनेशनल कम्युनिटी में दिखावे के लिए ही भेजो था क्रिप्स को साफ बोल दिया गया था की ड्राफ्ट डिक्लेरेशन से अलग वो कुछ भी नहीं कर सकते बाघिन और नेगोशिएट करने की इनके पैसे की वजह से ही ये मिशन फेलियर बंता है ब्रिटिश गवर्नमेंट की इंटेंशंस को भी साफ कर दिया था इंडियन लीडर्स समझ जाते हैं की अब ब्रिटिश के साथ नेगोशिएशंस का कोई फायदा नहीं है जरूर है एक बड़े जन्म आंदोलन की क्यूट इंडिया मूवमेंट दोस्तों टिप्स के जान के बाद गांधीजी ब्रिटिश विड्रोल और जैपनीज इन विजन के अगेंस्ट नॉनवॉयलेट नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट का रेजोल्यूशन तैयार करते हैं 14th जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में आंदोलन के आइडिया को एक्सेप्ट किया जाता है इस डिसीजन को अगस्त में जो इंडिया कांग्रेस कमेटी की बॉम्बे मीटिंग में रतीफाई किया जाना था 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालियर टैंक में क्यूट इंडिया रेजोल्यूशन पास किया जाता है यहां पर ही गांधीजी करो या मारो यानी डू और दी का नारा देते हैं वो कहते हैं की या तो हम इंडिया को आजाद कर लेंगे या फिर इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे लेकिन अब अंग्रेजी राज की गुलामी में और नहीं रहेंगे ब्रिटिश गवर्नमेंट लेकिन ना तो कांग्रेस से नेगोशिएशन के मूड में थी और ना ही आंदोलन के फार्मूले शुरू होने गए सुबह ही कांग्रेस के सभी टॉप लीडर्स को अरेस्ट कर लिया जाता है कांग्रेस की सभी ऑर्गेनाइजेशंस को भी इलीगल डिक्लेअर कर दिया जाता है गवर्मेंट के इस तरह अचानक अटैक करने से लोगों में इंस्टैन्टेनियस रिएक्शन देखने को मिलता है जैसे ही अरेस्ट की न्यूज़ फैलती है मुंबई के ग्वालियर टैंक में लाखों लोगों की भीड़ जमा हो जाति है और अथॉरिटीज के साथ क्लासेज होने लगता हैं इसी तरह की डिस्टरबेंस 9th अगस्त को अहमदाबाद और पुणे में भी देखने को मिलते हैं और 10 अगस्त को दिल्ली अप और बिहार के बहुत सारे शेरों जैसे की कानपुर इलाहाबाद वाराणसी और पटना में हड़ताल पब्लिक डेमोंसट्रेशंस और प्रोफेशन किया जाते हैं इसके जवाब में गवर्नमेंट प्रेस पर प्रतिबंध लगा देती है इसी बीच कांग्रेस के बहुत से प्रोविजनल लीडर्स जो अरेस्ट होने से बैक गए आंदोलन की खबर गांव तक पहुंचने लगती है पूरे देश में इसका असर दिखने लगता है आई जानते हैं की पब्लिक किस तरह आंदोलन में अपना योगदान देती है पब्लिक ऑन रामपॉगे दोस्तों क्यूट इंडिया मूवमेंट के दौरान लोग सिंबल्स ऑफ अथॉरिटी को अटैक करना शुरू करते हैं पुलिस स्टेशंस पोस्ट ऑफिसेज कोट्स रेलवे स्टेशंस जैसी जगह पर कब्जा करना शुरू कर देते हैं पब्लिक बिल्डिंग पर नेशनल फ्लैग फहराया जाता है रेलवे ट्रेक्स उखाड़ दिए जाते हैं टेलीग्राफ लाइंस को कट कर दिया जाता है और कई जगह ब्रिज उदा दिए जाते हैं कई जगह पर सत्याग्रह हज के ग्रुप तहसील जाकर खुद को अरेस्ट कर लेते हैं पूरे देश में स्टूडेंट स्कूल और कॉलेज की हड़ताल कर देते हैं और इलीगल पत्रिका आज का डिस्ट्रीब्यूशन करने लगता हैं अहमदाबाद मुंबई जमशेदपुर अहमदनगर और पुणे में वर्कर्स हड़ताल शुरू कर देते हैं इसे स्पेंस करने के लिए सरकार अपना पूरा जोर लगा देती है पुलिस और मिलिट्री को एनिमेट क्राउड्स पर फायरिंग का ऑर्डर दे दिया जाता है यहां तक की लो फ्लाइंग एयरक्राफ्ट से मशीन गण भी चलाई जाति है गांव के लोगों को होस्टेस बना लिया जाता है उनके ऊपर करीब 90 लाख रुपए तक का फाइन इंपोज कर दिया जाता है लोगों की बिलोंगिंग्स को लौटकर फाइन मौके पर ही वसूल भी किया जाता है सस्पेक्ट पर कूड़े बरसाए जाते हैं और गांव वालों के भाग जान पर पूरे के पूरे गांव को ही जल दिया जाता है 1942 के और होने तक 60000 से भी ज्यादा लोगों को अरेस्ट कर लिया जाता है इस तरह की ब्रूटल रिप्रेशन की वजह से स्ट्रगल का मांसपेस 6 से 7 हफ्तों के अंदर ही खत्म कर दिया जाता है इसके बाद शुरुआत होती है अंडरग्राउंड एक्टिविटीज की अंडरग्राउंड एक्टिविटीज दोस्तों गवर्नमेंट के रिप्रेशन की वजह से बहुत सी नेशनलिस्ट अंदर ग्राउंड हो जाते हैं और वहीं से अपनी एक्टी इस जारी रखते हैं इसके प्रॉमिनेंट मेंबर्स अच्युत पटवर्धन अरुण आसफ अली राम मनोहर लोहिया सुचेता कृपलानी बीजू पटनायक आरपी गोयनका और जीपी नारायण जैसे लीड थे बॉम्बे में उषा मेहता अंडरग्राउंड रेडियो ऑपरेट करती है यह लोग लोगों के मोरल को बनाए रखना का कम करते हैं पूरे देश के एक्टिविस्ट को गाइडलाइंस के साथ आर्म्स और अमिनेशन भी प्रोवाइड करते हैं इसी के साथ क्यूट इंडिया मूवमेंट का एक सिग्निफिकेंट फीचर पैरेलल गवर्नमेंट की एस्टेब्लिशमेंट था पहले पैरेलल गवर्नमेंट अगस्त 1942 में ईस्ट अप के बलिया में प्रोक्लेम की गई थी इसके लीडर चित्तू पांडे से पेशेंट के एक्सेंट को समझते हैं दोस्तों क्यूट इंडिया मूवमेंट में बहुत बड़े स्टार पर मांस पार्टिसिपेशन देखने को मिलता है जैसा की हम डिस्कस कर चुके हैं पूरे देश के लोग इस आंदोलन में अपने अपने तरीके से योगदान देते हैं आंदोलन में युद्ध स्पेशली स्टूडेंट सबसे आगे नजर आते हैं इसके साथ ही वूमेन भी कंधे से कंधा मिलकर आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाती हैं वर्कर्स और पेजयंस के सहयोग के बिना तो आंदोलन की कल्पना भी नहीं की जा शक्ति अगर पॉलीटिकल पार्टी की बात की जाए तो मुस्लिम लीग इस आंदोलन का विरोध करती है हिंदू महासभा भी क्यूट इंडिया का बॉयकॉट करने का डिसीजन लेती है लेकिन इसके बाद भी मुस्लिम का पार्टिसिपेशन हमें इस आंदोलन में नजर आता है साथी आंदोलन के दौरान किसी भी तरह के कम्युनल क्लासेस भी नहीं हुए थे कम्युनिस्ट पार्टी भी आंदोलन को जॉइन नहीं करती क्योंकि सोवियत रसिया पर जर्मनी का अटैक हो चुका था इसलिए कम्युनिस्ट वार में ब्रिटिश का सपोर्ट करने लगता हैं [संगीत] हालांकि पर्सनल लेवल पर बहुत सारे कम्युनिस्ट लीडर्स आंदोलन का सपोर्ट भी करते हैं इस तरह क्यूट इंडिया मूवमेंट में सोसाइटी का ऑलमोस्ट हर क्षेत्र पार्टिसिपेट करता है और ब्रिटिश को यह एहसास दिलाते हैं की इंडियन की विशेष के अगेंस्ट अब इंडिया को रूल करना पॉसिबल नहीं है इस आंदोलन में आम लोगों का हीरोइज्म भी देखने को मिलता है लीडरशिप के अभाव में और गवर्नमेंट के ब्रूटल रिप्रेशन के बाद भी वो आंदोलन को करने नहीं देते कंक्लुजन दोस्तों क्यूट इंडिया मूवमेंट के बाद यह साफ हो गया था की आजादी को ज्यादा डर तक इंडियन से दूर नहीं रखा जा सकता ब्रिटिश गवर्नमेंट समझ गई थी की अगर फिर से ऐसा एक मूवमेंट होता है तो ब्रिटिशर्स के लिए रिप्रेस करना पॉसिबल नहीं होगा आगे आने वाली वीडियो में हम देखेंगे की किस तरह ब्रिटिशर्स पावर ट्रांसफर करने की तैयारी करते हैं सुबह चंद्र बस और इन दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने सेकंड वर्ल्ड वार के दौरान इंडियन नेशनल मूवमेंट की प्रोग्रेस को देखा था और इस दौरान शुरू हुए क्यूट इंडिया मूवमेंट को भी डिस्कस किया था जी समय इंडिया में यह सब घटनाएं हो रही थी उसे समय इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल केक बड़े लीडर यहां मौजूद नहीं थे जी हां हम बात कर रहे हैं सुभाष चंद्र बस की नेताजी दौरान कहां थे और कैसे वहां से आजादी की लड़ाई जारी रखते हैं आज हम इसके बड़े में ही चर्चा करेंगे इंट्रोडक्शन दोस्तों सुभाष चंद्र बस ने 1920 में इंडियन सिविल सर्विसेज एग्जामिनेशन में फोर्थ पोजीशन सिक्योरिटी थी लेकिन 1921 में ही सिविल सर्विसेज से रिजाइन करके उन्होंने फ्रीडम स्ट्रगल की र चुन ली थी और कांग्रेस के मेंबर बन गए थे नेताजी के पॉलीटिकल गुरु चितरंजन दास थे जैसा की आपको याद होगा की 1928 में जब मोतीलाल नेहरू जी की रिपोर्ट आई है तो जवाहर लाल नेहरू के साथ सुभाष चंद्र बस ने भी डोमिनियन स्टेटस के प्रोविजन का विरोध किया था और दोनों ने मिलकर इंडिपेंडेंस पर इंडिया लीग की स्थापना की थी दोनों लीडर्स अब इंडिपेंडेंस से कम कुछ नहीं जानते थे 1938 के हरिपुरा सेशन में सुभाष चंद्र बस कांग्रेस के प्रेसिडेंट बनते हैं और इसी समय जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में नेशनल प्लानिंग कमेटी एस्टेब्लिश करते हैं और कांग्रेस में यंग ब्रिगेड को रिप्रेजेंट करते थे कांग्रेस का अगला सेशन त्रिपुरा में होता है बस एक बार फिर कांग्रेस प्रेसिडेंट के इलेक्शन में खड़े हो जाते हैं इस बार उनके अगेंस्ट गांधियन कैंडिडेट बता भी सीता रमैया खड़े होते हैं इलेक्शन में बस जीत जाते हैं लेकिन गांधी जी उनके साथ कम करने से माना कर देते हैं क्योंकि दोनों की पॉलीटिकल और इकोनामिक आईडियोलॉजी मैच नहीं होती थी इकोनामिक फ्रंट पर जहां गांधीजी ट्रस्ट थ्योरी में विश्वास करते थे वहीं बस सोशलिज्म को फीवर करते थे इसी तरह गांधी जी की पॉलीटिकल एडोलॉजी जहां नॉन वायलेंस पर बेस थी वही बस देश की आजादी के लिए किसी भी हद तक जान के लिए तैयार थे गांधीजी के साथ इन्हीं फंडामेंटल डिफरेंस की चलती बस कांग्रेस प्रेसिडेंट की पोस्ट से रिजाइन करते थे कांग्रेस से बाहर बस 1939 में अपनी अलग पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक फॉर्म करते हैं जब सेकंड वर्ल्ड वार शुरू होता है तो नेताजी का मानना था की कांग्रेस को मौके का फायदा उठाकर एक बड़ा आंदोलन शुरू कर देना चाहिए और जब कांग्रेस उनके इस मत से सहमत नहीं होती तो बोझ कांग्रेस के बाहर से ही आंदोलन शुरू करने की कोशिश करते हैं मार्च 1940 में रामगढ़ में फॉरवर्ड ब्लॉक और किसान सभा के जॉइंट एफर्ट्स से एक एंटी कंप्रोमाइज कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर की जाति है यहां पर ते होता है की सिक्स्थ अप्रैल को वर्ल्ड वाइड स्ट्रगल लॉन्च किया जाएगा और में मनी या मटेरियल किसी भी तरह से इंडियन रिसोर्सेस को इंपिरियलिस्ट वार में उसे करने का विरोध किया जाएगा प्लेन के अकॉर्डिंग सिक्स्थ अप्रैल को लॉन्च हुई स्ट्रगल में लोग बाढ़ चढ़कर भाग भी लेते हैं इसके बाद जुलाई में बस कोलकाता में एक और सत्याग्रह लॉन्च करने की कोशिश करते हैं यह सत्याग्रह स्मारक के रिमूवल के लिए किया जाना था लेकिन इससे पहले ही ब्रिटिश गवर्नमेंट बस को अरेस्ट कर लेती है जिसकी वजह से दिसंबर 1940 में ब्रिटिश इन्हें हाउस अरेस्ट में रख देते फिर खबर आई है की बोझ हाउस अरेस्ट से एस्केप कर चुके हैं 17th जनवरी 1941 को एक पठान के भेस में बस ब्रिटिश ऑफिसर को चकमा देते हुए हाउस अरेस्ट से फरार हो जाते हैं और 26 जनवरी 1941 को पेशावर पहुंच जाते हैं और फिर अफगानिस्तान के रास्ते रसिया चले जाते हैं बस इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल के लिए सोवियत रसिया की हेल्प लेने की कोशिश करते हैं लेकिन जून 1941 में रसिया वर्ल्ड वार में एलियंस को जॉइन कर लेट है मतलब अब वो खुद ब्रिटेन के साथ हो गया था इस बात से बोझ काफी निराश हो जाते हैं और यहां से जर्मनी के लिए प्रस्थान करते हैं उन्होंने उम्मीद किसी भी समय नहीं छोड़ी और निरंतर प्रयास करते रहे उनका मानना था की इंडिया को आजाद करने के लिए और ब्रिटिश इंपिरियलिस्ट फोर्सेस को हारने के लिए वर्ल्ड लेवल पर हेल्प लेनी जरूरी है जर्मनी में बस अपना नाम और लडो में और इटली के द्वारा कैप्चर किया गए इंडियन ओरिजन के वार बिजनेस को लेकर बस एक आर्मी फॉर्म करते हैं जिसे फ्री इंडिया लीजन कहा जाता है जर्मनी के ड्रेसएदिन में इसका ऑफिस बनाया जाता है जर्मनी के लोग बस को नेताजी नाम देते हैं और यहां पर ही फ्री इंडिया सेंटर में बस जय हिंद का नारा देते हैं जरूरी 1942 में बर्लिन रेडियो से बोझ रेगुलर ब्रॉडकास्ट शुरू करते हैं इसी आजाद हिंद रेडियो नाम दिया जाता है मे 1942 में बस की मुलाकात हिटलर से होती है इस मीटिंग के बाद बस को जर्मनी की इंटेंशंस पर डाउट हो जाता है इसके साथ ही बस हिटलर के रेसिस्ट व्यूज कभी विरोध करते हैं उन्हें लगे लगता है की इंडिया की आजादी के लिए जर्मन हेल्प से कम नहीं चलने वाला इसलिए फरवरी 1943 में छोड़ देते हैं और सबमरीन के द्वारा जापान चले जाते हैं और फिर वहां से सिंगापुर पहुंचने हैं सिंगापुर में नेताजी मस्त बिहार बहुत से इंडियन इंडिपेंडेंस मूवमेंट की कमांड अपने हाथों में लेते हैं लेकिन ये इंडियन नेशनल आर्मी का सेकंड फेस होता है और इसे समझना से पहले फर्स्ट फैज को समझना जरूरी है ओरिजन और फर्स्ट फैज ऑफ दी इंडियन नेशनल आर्मी दोस्तों इंडियन प्रिजनर्स अवार्ड यानी पी ओ ब्लू को लेकर ई क्रिएट करने का आइडिया ओरिजनली मोहन सिंह का था ये ब्रिटिश इंडियन आर्मी के ऑफिसर थे जिन्होंने मालय में रिट्रीटिंग ब्रिटिश आर्मी को जॉइन ना करने का फैसला किया था इसके बाद इन्होंने जापानी से हेल्प मांगी थी जैसे की हम जानते हैं की वर्ल्ड वार 2 में ब्रिटेन उस और रसिया मिलकर लाड रहे थे जर्मनी और जापान के विरुद्ध जापान ने तेजी से बढ़ते हुए सऊदी एशिया में ब्रिटेन और उसके एलॉयज को हराया था और ब्रिटिश इंडियन सोल्जर को बिजनेस अवार्ड यानी पुज बना लिया था मोहन सिंह द्वारा हेल्प मांगने पर जापानी इंडियन पो ब्लू मोहन सिंह को सोप देते हैं जिन्हें मोहन सिंह इंडियन नेशनल आर्मी में रिक्रूट करने की कोशिश करते हैं बड़ी संख्या में पी ओ ब्लू इस आर्मी को जॉइन करने के लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि एक तो इनके मां में ब्रिटिश के अगेंस्ट गुस्सा था और दूसरा जबान में पी ओ डब्लू कैंपस की कंडीशंस बहुत खराब थी सितंबर 1942 में 16000 से ज्यादा सोल्जर के साथ इन की फर्स्ट डिवीजन तैयार हो जाति है लेकिन जल्दी ही इन के रोल को लेकर मोहन सिंह और जैपनीज के बीच डिफरेंस इमर्ज हो जाते हैं जापानी सिर्फ 2016 की एक टोकन फोर्स की रेस करना चाहते थे जबकि मोहन सिंह का प्लेन एक बड़ी आर्मी क्रिएट करना था है इसके साथ ही इन की ऑटोनॉमी को लेकर भी जापान और मोहन सिंह के विचार अलग-अलग थे इसलिए जापानी दिसंबर 1942 में मोहन सिंह को अपनी कस्टडी में ले लेते हैं और इसी के साथ इन का फर्स्ट फैज और हो जाता है अब बात करते हैं सेकंड फेस की जो सुभाष चंद्र बस के सिंगापुर पहुंचने से शुरू होता है दोस्तों आपको क्रांतिकारी रोशन बिहार बोस्टो याद ही होंगे इंडिया में इनकी रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज को जब ब्रिटिशर्स ने फोर्सफुली से प्रेस किया तब 1915 में यह जुबान चले गए थे और ऐवेंंचुअली जबान के नेचरलाइज्ड सिटिजन बन जाते हैं यहां वह जापानी को इंडियन इंडिपेंडेंस मूवमेंट में इंटरेस्ट दिलाने के लिए बहुत एफर्ट्स करते हैं टोक्यो में इंडियन क्लब की फॉर्मेशन करते हैं और वेस्टर्न इंपिरियलिज्म पर लेक्चर भी देते हैं इसके बाद 1942 में जापानी गवर्नमेंट की हेल्प से टोक्यो में राष्ट्र बिहार बस इंडियन इंडिपेंडेंस लीग इनफॉरमेशन करते हैं और जब मोहन सिंह द्वारा इन क्रिएट की जाति है तो यह बहुत एक्साइड होते हैं और सिंगापुर के लिए निकाल जाते हैं जापानी बीएफ फैसला करते हैं की इन अब इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की लीडरशिप में ही कम करेगी इस तरह दिसंबर 1942 से बिहार बोसी इन कमांड संभल रहे 1943 में सुभाष चंद्र बस सिंगापुर पहुंच जाते हैं और उनकी मुलाकात रोष बिहार बस से होती है अब इंडियन इंडिपेंडेंस लीग सोप दी जाति है 25 अगस्त को नेताजी इन की सुप्रीम कमांडर बन जाते हैं बलिया में बस तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का पॉपुलर नारा देते हैं नेताजी की पापुलैरिटी इतनी ज्यादा थी की सिर्फ पी ओ ब्लू ही नहीं बल्कि साउथ ईस्ट एशिया में र रहे लोकल इंडियन भी इन्हें जॉइन करने लगता हैं 12 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में प्रोविजनल गवर्नमेंट पर फ्री इंडिया की इनफॉरमेशन करते हैं जिसमें 8c चटर्जी को फाइनेंस को ब्रॉडकास्टिंग और लक्ष्मी स्वामी नाथन को वूमेन डिपार्मेंट दिया जाता है यह प्रोविजनल गवर्नमेंट ब्रिटेन और यूनाइटेड स्टेटस पर वोट डिक्लेअर कर देती है ए आओ उसके द्वारा इसे रिकॉग्नाइज्ड किया जाता है 6 नवंबर 1943 को जापानी आर्मी और निकोबार आईलैंड्स इन को दे देती है सुभाष चंद्र बस इनका नाम बदलकर शाहिद और स्वराज द्वीप रख देते हैं इन रिक्रूटर्स को ट्रेन किया जाता है और फंड्स कलेक्ट किया जाते हैं इन में रानी झांसी रेजीमेंट नाम से एक वूमेन रेजीमेंट भी फॉर्म की जाति है जरूरी 1944 में इन्हें का हेड क्वार्टर रंगून शिफ्ट कर दिया जाता है और यहां से आर्मी रिक्रूटर्स को इंडिया के लिए मार्च करना था उनका वार क्रि होता है चलो दिल्ली सिक्स्थ जुलाई 1944 को बोझ आजाद हिंद रेडियो से महात्मा गांधी को फादर ऑफ नेशन कहकर एड्रेस करते हैं और गांधीजी से इंडिया की आजादी की आखिरी लड़ाई के लिए आशीर्वाद मांगते हैं शाहनवाज की कमांड में इन की एक बटालियन जापानी आर्मी के साथ इंडो बर्मा फ्रंट पर भेज दी जाति है ये लोग इंफाल कैंपेन में पार्टिसिपेट करते हैं लेकिन यहां जापानी इंडियन के साथ डिस्क्रिमिनेटरी ट्रीटमेंट करने लगता हैं इंडियन सोल्जर को राशन नहीं दिया जाता है और उनसे जापानी यूनिट्स के लिए मेनियल क कराया जाता है इससे आए ने यूनिट होने लगती है इसके बाद भी 18 मार्च 1944 को इन बर्मा बॉर्डर क्रॉस करके इंडियन तेल पर अपना कम रखती है यहां से कोहिमा और इंफाल की तरफ बाढ़ जाति है 14 अप्रैल को बहादुर ग्रुप के करनाल मलिक को होस्ट करते हैं जो आज मनी में है 3 महीने तक मोहे रंग में मिलिट्री एडमिनिस्ट्रेशन ड्यूटी संभालती है लेकिन उसके बाद बड़ी संख्या में एलाइड फोर्सेस यहां पहुंचने लगती है एलिट फोर्सेस फेर फाइट के बाद इनक ये टेरिटरी रिटेल्म कर लेती है 18th जुलाई 1944 को इन की सभी ब्रिगेड विड्रोल शुरू कर देती है इसके बाद जापानी आर्मी की स्टडी रिट्वीट के साथ इन द्वारा इंडिया को लिब्रेट करने की साड़ी उम्मीद भी खत्म हो जाति है मिड 1945 तक यह रिट्वीट जारी रहती है 15th अगस्त 1945 को सेकंड वर्ल्ड वार में जवान सुरेंद्र कर देता है और इसी के साथ इन का भी सुरेंद्र होता है रिपोर्ट के अनुसार 18th अगस्त 1945 को नेताजी की संदिग्ध हालात में टाइपिंग में एक और क्रश के दौरान मृत्यु हो जाति है कंक्लुजन दोस्तों इस तरह इन एक बहादुर प्रयास था इंडिया को आजादी दिलाने का इस बात डिबेट जरूर होती रहती है की अगर इंस सच में जापानी हेल्प से देश को आजाद कर लेती तो क्या होता कुछ लोगों का मानना है की जापानी इंपिरियलिज्म ब्रिटिश इंपिरियलिज्म से भी ज्यादा भयानक हो सकता था तो क्या फिर सुभाष चंद्र बस को एक और लड़ाई लड़नी पड़ती जापानी को इंडिया से बाहर करने के लिए शायद ऐसा हो सकता था लेकिन इन और जापान दोनों को ही मिलिट्री एडवेंचर्स में ब्रिटेन के खिलाफ सफलता नहीं मिलती हालांकि जब आई एन के सोल्जर को पी ओ ब्लू की तरह इंडिया वापस लाया जाता है तो इनके डिफेंस में एक बहुत बड़ा मूवमेंट खड़ा हो जाता है और इस मूवमेंट का जरूर एक इंपॉर्टेंट योगदान था देश की आजादी में इस तरह इनडायरेक्ट इन फ्रीडम मूवमेंट में अपना कंट्रीब्यूशन देती है इसके बड़े में अपनी नेक्स्ट वीडियो में हम विस्तार से चर्चा करेंगे दोस्तों अपनी पिछली दो वीडियो में हम सेकंड वर्ल्ड वार के दौरान हुई इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल की एक्टिविटीज को डिस्कस कर चुके हैं जिसमें क्यूट इंडिया मूवमेंट और इंडियन नेशनल आर्मी सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट कहीं जा शक्ति हैं आज हम आगे बढ़ते हुए देखेंगे की वर्ल्ड वार के खत्म होने के बाद क्या-क्या घटनाएं घटित होती हैं इस समय तक विश्व का और भारत का माहौल काफी बादल चुका था इंपिरियलिस्ट फोर्सेस इंक्लूडिंग ब्रिटेन अब वीक हो चुकी थी और इंडिया में नेशनलिज्म की फीलिंग काफी दीप हो चुकी थी इसी बैकग्राउंड को ध्यान में रखते हुए हम सबसे पहले बात करते हैं शिमला कॉन्फ्रेंस की वे बिल ऑफर और शिमला कॉन्फ्रेंस दोस्तों इंडियन लीडर्स के साथ नेगोशिएशन स्टार्ट करने की परमिशन दे देते हैं जिसे विवेल ऑफर के नाम से जाना जाता है वे बिल ऑफर पर डिस्कशन करने के लिए शिमला कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर की जाति है और इसमें पार्टिसिपेट करने के लिए कांग्रेस लीडर्स को जून 1945 में ही जय से रिलीज कर दिया जाता है यह कॉन्फ्रेंस 25th जून से 14th जुलाई 1945 तक चलती है वायसराय के ऑफर में इंडियन एग्जीक्यूटिव काउंसिल की फॉर्मेशन करना शामिल था जिसमें वायसराय और कमांडर इन के को छोड़कर बाकी सभी मेंबर्स इंडियन रहेंगे इसमें कास्ट हिंदू और मुस्लिम को इक्वल रिप्रेजेंटेशन दिया जाएगा साथ ही शेड्यूल कास्ट का भी अलग से रिप्रेजेंटेशन होगा इसके अलावा नए कॉन्स्टिट्यूशन पर डिस्कशन के दरवाजे भी खोल जाएंगे है लेकिन शिमला कॉन्फ्रेंस असफल रहती है क्योंकि जिन्ना डिमांड रख देते हैं की कैबिनेट के मुस्लिम मेंबर्स को नॉमिनेट करने का राइट सिर्फ लीग के पास ही होना चाहिए कांग्रेस इस डिमांड को एक्सेप्ट नहीं करती इसको एक्सेप्ट करने का मतलब होता की कांग्रेस अपने को सिर्फ कास्ट हिंदू की पार्टी मां लेती है रॉनिकली उसे समय कांग्रेस के प्रेसिडेंट खुद एक मुस्लिम ज्ञानी की मौलाना अब्दुल कलाम आजाद थे ऐसी सिचुएशन में वायसराय विवेल मीटिंग को ही खत्म कर देते हैं उनका मानना था की बिना लीग के कोलिशन गवर्नमेंट कम ही नहीं कर शक्ति यहां ब्रिटिश एक तरह से जिन्ना को बीटो दे देते हैं विवेल का यह स्टेप आगे चलकर बहुत बड़ी गलती साबित होने वाला था इसी बीच ब्रिटेन में इलेक्शंस हो चुके थे और क्लेमेंट अटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी पावर में ए जाति है और ये जल्द से जल्द इंडियन इंडिपेंडेंस के इशू को सॉल्व करना चाहते थे लेकिन उससे पहले देश में एक और स्ट्रगल के लिए मंच तैयार हो रहा था एक तरफ तो शिमला कॉन्फ्रेंस फेल हो जाति है और दूसरी तरफ ब्रिटिश गवर्नमेंट इन के सोल्जर और ऑफिसर्स के अगेंस्ट ट्रायल अनाउंस कर देती है इसी के विरोध में एक बड़ा मूवमेंट शुरू होता है दी आई एन ए ट्रायल्स और एजीटेशन दोस्तों इन के सोल्जर और ऑफिसर्स को ब्रिटिशर्स ने बंदी बना लिया था और उनके अगेंस्ट कोर्ट में ट्रायल शुरू करने जा रहे थे क्योंकि ब्रिटिशर्स के अनुसार इन लोगों ने ब्रिटिश क्राउन के प्रति लॉयल्टी की ओटी को ब्रेक किया था और इसीलिए यह ट्वीटर्स थे लेकिन इंडिया की जनता स्वागत नेशनल हीरोज की तरह कर रही थी और जब तीन इन ऑफिसर्स शाहनवाज खान गुरदयाल सिंह ढिल्लों और प्रेम सहगल के खिलाफ दिल्ली के रेड फोर्ट में ट्रायल शुरू करने की घोषणा होती है तो इंडियन पब्लिक इसका जमकर विरोध करती है पूरे देश में इनकी रिहाई की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं कांग्रेस भी सितंबर 1945 मुंबई में अपनी पहले पोस्ट वार सेशन में सपोर्ट में रेजोल्यूशन पास करती है और इन प्रिजनर्स के डिफरेंस के लिए और आसफ अली जैसे लॉयर्स कोर्ट करती है इसका कम रिलीज होने वाले सोल्जर को स्मॉल करने की कोशिश करना भी था इन ट्रायल्स के अगेंस्ट होने वाले प्रोटेस्ट कई मैनो में ऐतिहासिक थे इससे पहले कोई भी कैंपेन इतनी हाय पेज और इंटेंसिटी के साथ नहीं हुआ था एजीटेशन को प्रेस से भी वाइड कवरेज मिलता है 511 नवंबर को इन वीक और 12 नवंबर 1945 को इन दी सेलिब्रेट किया गया ये कैंपेन देश के एक बड़े हिस में फैलता है और डायवर्स सोशल ग्रुप और पॉलीटिकल पार्टी इसमें भाग लेते देखते हैं एजीटेशन के नर्व सेंटर्स तो दिल्ली बॉम्बे कोलकाता मद्रास यूनाइटेड प्रोविंस और पंजाब रहे थे लेकिन इसका असर कुर्ग बलूचिस्तान और असम जैसे दूर दराज के इलाकों में भी दिखता है गवर्नमेंट एम्पलाइज इन ए कैसे के लिए फंड्स कलेक्ट करते हैं लॉयलिस्ट ब्रिटिश सरकार से अच्छे इंडो ब्रिटिश रिलेशंस का हवाला देकर इन ट्रायल्स को आबंदों करने की अपील करते हैं आर्म्ड फोर्सेस भी इंस सोल्जर के प्रति सिंपैथी शो करते हैं यह लोग मीटिंग्स अटेंड करते हैं फंड्स में कंट्रीब्यूट करते हैं और साथ ही रिलीज होने वाले सोल्जर को यूनिफॉर्म में रिसीव भी करते हैं इसी समय ब्रिटेन को भी इन इशू की पॉलीटिकल साइनिफिकेंस समझ आने लगती है और इसीलिए कोर्ट मार्शल में गिल्टी कार दिए जान के बावजूद 3 जनवरी 1946 को इन ऑफिसर्स को फ्री कर दिया जाता है ब्रिटिश गवर्नमेंट के इस चेंज्ड एटीट्यूड के पीछे कुछ इंपॉर्टेंट करण थे जिन्हें समझना जरूरी है रीजंस बिहाइंड चेंज्ड एटीट्यूड ऑफ डी ब्रिटिश दोस्तों वर्ल्ड वार और होने के बाद से ही इंडिया को लेकर ब्रिटिश गवर्नमेंट के एटीट्यूड में बदलाव देखने को मिलता है इसका एक करण तो हम आपको शुरू में ही बता चुके हैं वो था ब्रिटेन में लेबर पार्टी का पावर में आना इसकी बहुत से मेंबर्स कांग्रेस की डिमांड्स को सपोर्ट करते थे इसके अलावा वार के बाद वर्ल्ड में बैलेंस ऑफ पावर भी चेंज हो चुका था अब ब्रिटेन नहीं बल्कि उस और सोवियत यूनियन दुनिया की बिग पावर्स बन गए थे और ये दोनों ही इंडिया की फ्रीडम की डिमांड को सपोर्ट कर रहे थे वार में ब्रिटेन की जीत भले ही हुई थी लेकिन उसकी इकोनामिक और मिलिट्री पावर को बहुत बड़ा नुकसान भी हुआ था खुद को रिहैबिलिटेशन करने में ब्रिटेन को अभी सालों लगे वाले थे ब्रिटिश सोल्जर भी वार के बाद तक चुके थे और इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल को सरप्राइज करने के लिए और ज्यादा समय अपने घर से दूर इंडिया में बिताने के लिए तैयार नहीं थे इसके साथ ही नेशनल स्ट्रगल को सरप्राइज करने के लिए ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट अब सिविल एडमिनिस्ट्रेशन और आर्म्ड फोर्सेस के इंडियन पर्सनाइल पर भी पुरी तरह बायोटीक इतिहास इंडियन आर्मी के रैंक्स में भी इंटर कर चुके हैं इसी समय फरवरी 1946 बॉम्बे में इंडियन लेवल रेटिंग्स का रिवॉल्ट भी होता है ये ब्रिटिश कफन के लिए लास्ट नल की तरह कम करता है इसको डिटेल में हम अपने नेक्स्ट क्षेत्र में समझेंगे ब्रिटिश एटीट्यूड में चेंज का सबसे बड़ा करण था इंडियन पीपल का कॉन्फिडेंट और डिटरमाइंड मोड जनता फॉरेन रूल का हमिलिएशन और लंबे समय तक टॉलरेट नहीं कर शक्ति थी 19456 के बीच नवल मुटनी और इन एजीटेशन के अलावा पूरे देश में न्यू मॉडल एजीटेशन स्ट्रीक्स और डेमोंसट्रेशंस भी होते हैं ऐसा लगे लगा था की लोग आजादी मिलने तक अब कोई रेस्ट नहीं करेंगे जहां हड़ताल एन की गई हो जुलाई 1946 में पोस्ट और टेलीग्राफ वर्कर्स द्वारा स्ट्राइक की जाति है साउथ इंडिया में अगस्त 1946 में रेलवे वर्कर्स स्ट्राइक पर चले जाते हैं है इसी दौरान 1946 की शुरुआत में प्रोविंशियल असेंबलीज के इलेक्शन भी होते हैं इसमें जनरल सीट पर कांग्रेस को ओवरव्हेलमिंग मेजॉरिटी मिलती है वहीं मुस्लिम के लिए रिजर्व्ड सिट्स पर मुस्लिम लीग का प्रदर्शन शानदार राहत है इलेक्शन रिजल्ट्स एक मेजर पॉलीटिकल डेवलपमेंट साबित होते हैं इन सभी रीजंस को ध्यान में रखते हुए अटली गवर्नमेंट फरवरी 1946 में अनाउंस करती है की एक हाय पावर मिशन इंडिया भेजो जाएगा इसे कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है लेकिन कैबिनेट मिशन पर डिस्कशन करने से पहले फरवरी 1946 में ही हुई एक और बड़ी घटना यानी की नवल मुटनी की चर्चा कर लेते हैं दोस्तों फरवरी 1946 में ब्रिटिश राज को एक बड़ा चैलेंज फेस करना पड़ता है और वो था रॉयल इंडियन नेवी में ओपन मुटने इसकी शुरुआत 18 फरवरी को बंबई से होती है यहां पर नीचे मायास तलवार पर तैनात 1100 नवल रेटिंग्स खराब खाने और रेसियल डिस्क्रिमिनेशन के इशू पर हंगर स्ट्राइक शुरू कर देते हैं ई डेट नाम की रेटिंग को ह्मिस तलवार पर क्यूट इंडिया लिखने के लिए अरेस्ट कर लिया जाता है इसके बाद रेटिंग्स का गुस्सा और भी ज्यादा बाढ़ जाता है मुंबई और कोलकाता शहर पैरालाइज जैसी स्थिति में पहुंच जाते हैं जगह मीटिंग्स और प्रोफेशन होते हैं पूरे देश में हड़ताल का सिलसिला शुरू हो जाता है एक्सपीरियंस पर अटैक होने लगता हैं साथ ही बहुत से पुलिस स्टेशंस पोस्ट ऑफिसेज शॉप्स रेलवे स्टेशंस बैंक्स ईटीसेटरा को जल दिया जाता है रॉयल इंडियन एयरफोर्स की बॉम्बे पुणे कोलकाता जसोल और अंबाला यूनिट्स भी सिंपाठ्ठेटिक स्ट्रीक्स करती हैं वहीं जबलपुर के सिपाही स्ट्राइक पर जाते हैं खाने का मतलब यह है की सभी फोर्सेस की तरफ से ब्रिटिश अथॉरिटी को चैलेंज मिलन शुरू हो जाता है और इसमें आम जनता भी इनका साथ देती है और जैसे की हम पहले ही डिस्कस कर चुके हैं इस मुटनी का बड़ा रोल राहत है ब्रिटिश गवर्मेंट के एटीट्यूड को चेंज करने में इसके बाद समझ गए की अब नेटिव फोर्सेस पर पुरी तरह रिलायंस नहीं किया जा सकता और नेशनलिज्म की भावना ने दीप रूट बना ली हैं कंट्री में आई वापस कैबिनेट मिशन की तरफ चलते हैं कैबिनेट मिशन दोस्तों कैबिनेट मिशन के तहत 3 ब्रिटिश कैबिनेट मिनिस्टर्स को इंडिया भेजो गया था इसके अध्यक्ष पाठक लॉरेंस थे और बाकी दो मेंबर्स थे स्टेफोर्ड ग्रिप्स और एव सिकंदर इनका कम पीसफुल तरीके से ट्रांसफर ऑफ पावर की नेगोशिएशंस करना था 24th मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंच जाता है सभी इंडियन पार्टी और ग्रुप की लीडर्स के साथ इंटिरिम गवर्नमेंट और नई कॉन्स्टिट्यूशन के इशू पर लंबे डिस्कशन होते हैं इसके बाद मिशन मे 1946 में अपना प्लेन सामने रखना है इस प्लेन के में पॉइंट कुछ इस तरह थे पाकिस्तान की डिमांड को रिजेक्ट कर देता है हिंदू मेजॉरिटी प्रोविंस मद्रास मुंबई सेंट्रल प्रोविंस यूनाइटेड प्रोविंस बिहार और उड़ीसा को रखा गया था क्षेत्र बी में मुस्लिम मेजॉरिटी प्रोविंस यानी की पंजाब नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर तीनों ग्रुप के मेंबर्स अलग से ग्रुप का कॉन्स्टिट्यूशन डिसाइड करेंगे इसी के साथ 3 टियर स्ट्रक्चर भी प्रपोज किया गया प्रोविंशियल क्षेत्र और यूनियन लेवल पर अलग-अलग एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेचर होंगे अगला इंपॉर्टेंट पॉइंट था की कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली के मेंबर्स को प्रोविंशियल असेंबली द्वारा इलेक्ट्रिक किया जाएगा एक आम सेंटर होगा जो डिफेंस कम्युनिकेशन और एक्सटर्नल अफेयर्स को कंट्रोल करेगा इसके अलावा प्रोविंस को फूल ऑटोनॉमी दी जाएगी और रिजिजू पावर्स भी उनके पास रहेंगे प्रिंसली स्टेटस फ्री होंगे सक्सेसर गवर्मेंट या ब्रिटिश गवर्मेंट के साथ किसी भी अरेंजमेंट में इंटर होने के लिए फर्स्ट जनरल इलेक्शंस के बाद प्रोविंस ग्रुप से बाहर आने के लिए फ्री होंगे और 10 साल बाद ग्रुप या यूनियन कॉन्स्टिट्यूशन को रिकेसिटर करने की डिमांड भी प्रोविंस रख सकते हैं और कॉन्स्टिट्यूशन बने तक गवर्नमेंट फॉर्म की जाएगी जिसके मेंबर कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली से ही चुने जाएंगे कैबिनेट मिशन प्लेन को मुस्लिम लीग और कांग्रेस अपने अपने तरीके से इंटरेक्ट करते हैं कांग्रेस के अनुसार कैबिनेट मिशन ने पाकिस्तान की डिमांड को जानकारी दिया था वही लीग का मानना था की ग्रुपिंग के प्रोविजन में पाकिस्तान की डिमांड भी एंप्लॉय है इसके अलावा कांग्रेस का मानना था की ग्रुपिंग का प्रोविजन ऑप्शनल है वही मुस्लिम लीग के अनुसार ये मैंडेटरी था इसलिए इनिशियली दोनों ही इसको एक्सेप्ट कर लेते हैं सेवंथ जुलाई को कांग्रेस कमेटी की मीटिंग में जवाहरलाल नेहरू कहते हैं की उन्होंने सिर्फ कांस्टीट्यूएंट असेंबली में जाना एक्सेप्ट किया है बाकी और किसी प्रोविजन को माने के लिए वो बाउंड नहीं है इसका मतलब ये था की असेंबली एक सावरेन बॉडी होगी और खुद रूल्स ऑफ प्रोसीजर पर फैसला लगी नेहरू की अनाउंसमेंट के बाद 29th जुलाई 1946 को लीग की तरफ से मिशन की एक्सेप्टेंस को जिन्ना विड्रॉ कर लेते हैं और 16th अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन दे मनाने की घोषणा कर देते हैं जिसके बाद देशभर में स्पेशली कोलकाता में कम्युनल राइट्स शुरू हो जाते हैं नारा दिया जाता है लेकर रहेंगे पाकिस्तान लड़के लेंगे पाकिस्तान इसी बीच सेकंड सितंबर 1946 को लीग के मेंबर्स के बिना ही इंटिरिम गवर्नमेंट फॉर्म की जाति है और नेहरू इसकी दे फैक्टो हेड बनते हैं लेकिन देश में सिविल वार नर्स शुरू हो जाए इस डर से वायसराय लॉर्ड केवल लीग के अपिजमेंट के प्रयास करते हैं और 26 अक्टूबर 1946 को लीग भी इंटिरिम गवर्नमेंट जॉइन कर लेती है लीग ने इंटिरिम गवर्नमेंट जॉइन जरूर कर ली थी लेकिन अपनी डायरेक्ट एक्शन की नीति को भी उन्होंने नहीं छोड़ था इसके साथ ही लीग के मेंबर्स इंटिरिम गवर्नमेंट के कम में कॉपर भी नहीं कर रहे थे उनकी कोशिश हमेशा डिस्क्रिप्शन क्रिएट करने की रहती थी दोस्तों इधर कांग्रेस और मुस्लिम लीग में टसल हर दिन बाढ़ रहा था और उधर ब्रिटेन के पीएम क्लाइमेट में एक इंपॉर्टेंट घोषणा करते हैं डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस 28 फरवरी 1947 को ब्रिटिश पीएम अटेली अनाउंस करते हैं की 30th जून 1948 तक ब्रिटिश इंडिया छोड़ देंगे और साथ ही माउंटबेटन को नया वायसराय अप्वॉइंट कर दिया जाता है माउंटबेटन के इंडिया आने पर जहां एक तरफ ट्रांसफर ऑफ पावर पर नेगोशिएशंस तेज हो जाति हैं वही यह भी साफ हो जाता है की पार्टीशन इनएविटेबल बन चुका है क्या रीजन थे की इंडियन लीडर्स पार्टीशन के लिए तैयार हो जाते हैं इसकी चर्चा हम अपने अगले वीडियो में विस्तार से करेंगे और साथ ही जानेंगे की फाइनल ट्रांसफर ऑफ पावर किस तरह से होता है कंक्लुजन दोस्तों इस वीडियो में हमने 1940 में हुए इंपॉर्टेंट इवेंट्स को कर कर लिया है वे बिल ऑफर और शिमला कॉन्फ्रेंस से लेकर इन एजीटेशन रिउतनी और कैबिनेट मिशन तक की डीटेल्स हमने समझ ली हैं क्योंकि इन इवेंट्स को जान लेने के बाद ही हम फाइनल ट्रांसफर ऑफ पावर यानी की इंडियन इंडिपेंडेंस को बेहतर समझ सकते हैं साथ ही हम ब्रिटिशर्स के चेंज्ड एटीट्यूड के पीछे के करण भी जान चुके हैं जिनकी वजह से आखिर 1947 में वह इंडियन इंडिपेंडेंस की डिक्लेरेशन करने के लिए मजबूर होते हैं इंडिपेंडेंस और पार्टीशन दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने देखा था की 28 फरवरी 1947 को ब्रिटिश गवर्नमेंट ने इंडिया को जून 1948 से पहले आजादी देने की घोषणा कर दी थी और इस प्रोसेस को जल्द से जल्द कंप्लीट करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को इंडिया का वायसराय बनाया गया आज की वीडियो में हम देखेंगे की वायसराय माउंटबेटन किस तरह ट्रांसफर ऑफ पावर की निकोशियशंस को आगे लेकर जाते हैं और क्यों इंडियन लीडर्स पार्टीशन को एक्सेप्ट कर लेते हैं आई शुरू करते हैं टसर बिटवीन मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोस्तों 1940 के लाहौर सेशन में मुस्लिम लीग ने पहले बार एक सेपरेट नेशन यानी की पाकिस्तान की डिमांड राखी थी और यहां से जीना उनके सोल स्पोक्सपर्सन की तरह कम करते हैं अब लीग और जिन्ना के लिए मुस्लिम को नेशनल आईडेंटिटी और सेल्फ डिटरमिनेशन का राइट देना नॉन नेगोशिएबल मिनिमम डिमांड बन चुकी थी जिन्होंने 1942 मिशन को भी इसीलिए रिजेक्ट कर दिया था क्योंकि उसमें मुस्लिम के सेल्फ डिटरमिनेशन के राइट को रिकॉग्नाइज्ड नहीं किया गया था इसके बाद 1945 दे देते हैं तो उनके हौसले और ज्यादा बुलंद हो जाते हैं है इसके बाद कैबिनेट मिशन को लीग पहले तो एक्सेप्ट कर लेती है क्योंकि उसके अनुसार ग्रुपिंग के प्रोविजन का मतलब पाकिस्तान की डिमांड को मानना ही था लेकिन जब कांग्रेस की तरफ से नेहरू साफ करते हैं की वो सिर्फ कांस्टीट्यूएंट असेंबली के प्रोविजन को एक्सेप्ट कर रहे हैं ना की ग्रुपिंग को तो मुस्लिम लीग ना सिर्फ कैबिनेट मिशन को जानकारी देती है बल्कि डायरेक्ट एक्शन की कॉल भी देती है इसकी वजह से देश में हिंसा बढ़नी जा रही थी कम्युनल हार्मनी को बनाए रखना मुश्किल हो गया था यह स्थिति कैसे ए गई थी कम्युनिकेशन इतना ज्यादा कैसे फैला था इसको हम अलग से डिटेल वीडियो में कर करेंगे यहां इतना समझना जरूरी है की दिन रोज देश का माहौल बिगड़ रहा था और दूसरी तरफ ब्रिटिश को देश छोड़ने की जल्दी थी वो किसी भी तरह पावर ट्रांसफर करके यहां से जाना चाहते थे उनका अब कोई भी इंटरेस्ट नहीं था देश की कम्युनल माहौल को सुलझाने का इसलिए उनकी तरफ से कोई ज्यादा कोशिश भी नहीं की जा रही थी स्थिति को संभालने की ऐसी स्थिति में यह साफ हो जाता है की अगर देश को सिविल वार की सिचुएशन से बचाना है तो आजादी के साथ पार्टीशन भी एक्सेप्ट करना पड़ेगा माउंट पैटर्न प्लेन दोस्तों अप्रैल 1947 में कांग्रेस प्रेसिडेंट कृपलानी वायसराय से कहते हैं की बैटल की अपेक्षा हम उन्हें पाकिस्तान देने के लिए तैयार हैं शर्ट बस ये है की आप बंगाल और पंजाब का विभाजन फेयर मैनर में होने दें माउंटबेटन भी तुरंत डिसीजंस लेने के लिए तैयार थे उन्हें ब्रिटिश गवर्मेंट से साफ आदेश मिला था की जल्द से जल्द इंडिया को क्यूट किया जाए इसी के साथ इंडिया आते ही उन्हें समझ ए गया था की कैबिनेट मिशन तो एक डेड हॉर्स बन चुका है और जीना एक सावरेन स्टेट से कुछ भी कम पर सेटल होने वाले नहीं हैं इसलिए यूनाइटेड इंडिया को पावर हैंडोवर करना नामुमकिन सा हो गया है ऐसे में अप्रैल 1947 बनाते हैं जिसे प्लेन कहा जाता है इस प्लेन के अकॉर्डिंग पंजाब और बंगाल का पार्टीशन किया जाना था और पावर प्रोविंस और सब प्रोविंस को ट्रांसफर की जानी थी यह प्रोविंस फ्री थे इंस्टिट्यूट असेंबली के किसी भी ग्रुप को जॉइन करने के लिए इसके अलावा इंटिरिम गवर्नमेंट को जून 1948 तक पावर में रहना था स्ट्रांग सेंटर की अब्सेंस में प्रोविंस को पावर दे देना इंडिया में बालकनाइजेशन को जन्म दे सकता था मतलब की यूरोप के बालकान रीजन की तरह देश छोटी-छोटी हसन में विभाजित हो जाता है इसीलिए नेहरू इस प्लेन को पुरी तरह रिजेक्ट कर देते हैं उनके अनुसार यह प्लेन बिना किसी सिक्योरिटी और स्टेबिलिटी के सिर्फ डिस्ट्रक्टिव टेंडेंसी को जन्म देने वाला है ऐसी सिचुएशन एक अल्टरनेटिव प्लेन प्रपोज करते हैं इस प्लेन को उन्हें के नाम पर माउंटबेटन प्लेन बोला जाता है यह प्लेन थर्ड जून 1947 को अनाउंस किया जाता है इसके अनुसार पावर दो सक्सेसर डोमिनियन गवर्नमेंट स्कूल ट्रांसफर की जाएगी इंडिया और पाकिस्तान इसके साथ ही पावर ट्रांसफर की डेट को जून 1948 से आगे बढ़कर तीन अगस्त 1947 भी कर दिया जाता है प्लेन में पंजाब और बंगाल का पार्टीशन प्रपोज किया जाता है हिंदू मेजॉरिटी प्रोविंस जो पहले ही एक्जिस्टिंग इंस्टिट्यूट असेंबली को एक्सेप्ट कर चुकी हैं उन्हें कोई भी चॉइस नहीं दी जाति वही मुस्लिम मेजॉरिटी प्रोविंस यानी की बंगाल पंजाब सिंह नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और बलूचिस्तान को डिसाइड करना था की वो एक्जिस्टिंग इंस्टिट्यूट असेंबली को जॉइन करेंगे या फिर पाकिस्तान के लिए बने वाली अलग और नई असेंबली को यह डिसीजन प्रोविडेंशियल असेंबलीज को लेना था नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में रेफरेंडम किया जाना था और बलूचिस्तान के कैसे में क्वेटा म्युनिसिपालिटी और ट्राईबल रिप्रेजेंटेटिव के साथ काउंसिल्टेशंस हनी थी अगले ही दिन में नेहरू जी ना और सिक्स के बिहाफ पर सरदार बलदेव सिंह इस प्लेन को इंडस कर देते हैं इस तरह ट्रांसफर और पावर के लिए तेजी से बढ़ाना शुरू हो जाता है यहां एक सवाल यह उठाता है की आखिर कांग्रेस ने डोमिनियन स्टेटस को क्यों एक्सेप्ट कर लिया था और दूसरा है की पावर ट्रांसफर की डेट को ब्रिटिश ने क्यों एडवांस कर दिया था आई एक ही करके दोनों सवालों के जवाब जानते हैं सबसे पहले बात करते हैं की कांग्रेस ने डोमिनियन स्टेटस को क्यों एक्सेप्ट किया वही कांग्रेस एक्सेप्टेड डोमिनियन स्टेटस दोस्तों 1929 की लाहौर कांग्रेस की स्पिरिट के अगेंस्ट जाते हुए कांग्रेस डोमिनियन स्टेटस को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार हो जाति है क्योंकि पहले तो इससे पीसफुल और क्विक ट्रांसफर ऑफ पावर इन होना था दूसरा इस समय बन रही एक्सप्लोसिव सिचुएशन को कंट्रोल करने के लिए कांग्रेस के पास अथॉरिटी होना जरूरी हो गया था और तीसरा रीजन था की इससे ब्यूरो कृषि और आर्मी में कंटिन्यूआईटी मेंटेन र शक्ति थी जिसकी बहुत जरूर थी इन सभी रीजंस की वजह से कांग्रेस 1947 में डोमिनियन स्टेटस को एक्सेप्ट कर लेती है अब बात करते हैं की ब्रिटिशर्स को इतनी जल्दी क्या थी पावर ट्रांसफर करने की नेशनल फॉरेन अर्ली डेट अगस्त 15 1947 दोस्तों ब्रिटिशर्स जून 1948 की जगह 15th अगस्त 1947 को ही पावर ट्रांसफर करने का बड़ा डिसीजन लेते हैं इसकी पीछे पहले करण था की वो चाहते थे की कांग्रेस डोमिनियन स्टेटस पर एग्री हो जाए उन्हें लगता था की जल्दी पावर ट्रांसफर करने से कांग्रेस डोमिनियन स्टेटस को भी मां लगी और ऐसा हुआ भी इसके साथ ही ब्रिटिश कम्युनल सिचुएशन के रिस्पांसिबिलिटी से भी एस्केप करना छह रही थी जैसा की हम पहले ही बता चुके हैं की ब्रिटिश किसी भी तरह कम्युनल राइट्स में इंगेज नहीं होना चाहते थे जब उन्हें इंडिया से जाना ही था तो वो क्यों अपने रिसोर्सेस और जान यहां जोखिम में डालें इसलिए वह फैसला लेते हैं की इस सिचुएशन से इंडियन को ही निपटाने दिया जाए अब बात करते हैं फाइनल ट्रांसफर ऑफ पावर फाइनल ट्रांसफर विद पार्टीशन दोस्तों 20th जून को बंगाल असेंबली और 23rd जून को पंजाब असेंबली पार्टीशन के फीवर में फैसला करती हैं वेस्ट पंजाब और ईस्ट बंगाल पाकिस्तान को जॉइन करने वाले थे वहीं बाकी एरियाज यानी की ईस्ट पंजाब और वेस्ट बंगाल इंडिया में ही रहने वाले थे इसकी कुछ समय बाद ही सिंह बलूचिस्तान और फिर नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस भी पाकिस्तान जॉइन करने का फैसला लेते हैं माउंटबेटन का अगला टास्क था दो बाउंड्री कमीशन को अप्वॉइंट करना एक बंगाल के लिए और दूसरी पंजाब के लिए इंटरनेशनल फ्रंटियर्स को दिल्ली नित करने के लिए यह दोनों ही कमिश्नर सीरियल रेड क्लिफ के नेतृत्व में अप्वॉइंट की जाति हैं और इसे यह कम करने के लिए सिक्स वीक से ज्यादा का समय नहीं मिलता जो बाउंड्रीज अवार्ड के द्वारा प्रिसक्राइब की जाति हैं उनके बड़े में एडमिट करते हैं की वो दोनों सीड्स के लाखों लोगों के लिए पीड़ा का करण बने वाली थी फिफ्थ जुलाई 1947 को माउंटबेटन प्लेन पर बेस्ड इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट को ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पास कर दिया जाता है इस एक्ट को 18th जुलाई 1947 को रॉयल एसेंट भी मिल जाति है और फाइनली 15th अगस्त 1947 को एक्ट इंप्लीमेंट कर दिया जाता है एक्ट के अकॉर्डिंग 15th अगस्त 1947 को दो इंडिपेंडेंस डोमिनियंस इंडिया और पाकिस्तान का क्रिएशन होता है दोनों ही डोमिनियंस के पास गवर्नर जनरल रहेगा जिसकी रिस्पांसिबिलिटी होगी इस एक्ट को इफेक्टिवली ऑपरेट करना दोनों नए डोमिनियंस की कांस्टीट्यूएंट असेंबली उसे डोमिनियन के लिए लेजिसलेटिव पावर्स को एक्सरसाइज करेंगे एक्जिस्टिंग सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली और काउंसिल ऑफ स्टेटस ऑटोमेटेकली डिसऑर्डर हो जाएंगे ट्रांजिशनल पीरियड में यानी की जब तक कांस्टीट्यूएंट असेंबली नया कॉन्स्टिट्यूशन अडॉप्ट नहीं कर लेती तब तक दोनों डोमिनियंस में शासन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 की अकॉर्डिंग किया जाएगा 1947 के एक्ट के प्रोविजंस के अनुसार 14th अगस्त को पाकिस्तान और 15th अगस्त को इंडिया को अपनी फ्रीडम मिलती है जिन्ना पाकिस्तान के फर्स्ट गवर्नर जनरल बनते हैं वहीं इंडिया लॉर्ड माउंटबेटन को ही गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की तरह कंटिन्यू करने के लिए कहता है 15th अगस्त 1947 मिडनाइट के समय इंडिया की कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली का स्पेशल सेशन होता है और नेहरू अपनी फेमस ट्वीट विथ डेस्टिनी स्पीच देते हैं दूसरे दिन नेहरू फ्री इंडिया के पहले प्राइम मिनिस्टर के रूप में शपथ लेते हैं और देश सेलिब्रेशंस में डब जाता है लेकिन दोस्तों इंडिया में सब सेलिब्रेशन के मूड में नहीं थे इसमें सबसे बड़ा नाम था महात्मा गांधी का वो इस दिन किसी भी तरह की सेलिब्रेशन का हिस्सा नहीं बनते और पूरा दिन फास्टिंग और प्रेयर में ही निकलते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि वो पार्टीशन की पुरी तरह खिलाफ थे और देश के विभाजन के साथ मिली ये आजादी उनके लिए अधूरी थी इसके साथ ही ब्रिटिश के इस तरह से पार्टीशन एक दर्दनाक एक्सपीरियंस में बादल जाता है कैसे आई समझते हैं प्रॉब्लम्स अली विड्रोल दोस्तों माउंटबेटन के समय जी तेजी से इवेंट्स घटित होते हैं उसमें पार्टीशन की डीटेल्स को सही तरीके से अरेंज करने का समय ही नहीं मिलता जिसकी वजह से बड़े स्टार पर ब्लू शेड देखने को मिलता है स्पेशली पंजाब मैसाच्यर को प्रीवेंट करने में ये पुरी तरह फूल हो जाते हैं इसका सबसे बड़ा करण था की पार्टीशन की प्रॉब्लम्स को टैकल करने के लिए कोई भी ट्रांजेशनल इंस्टीट्यूशन स्ट्रक्चर नहीं बनाया गया था माउंटबेटन इस उम्मीद पर थे की वह इंडिया और पाकिस्तान के आम गवर्नर जनरल रहेंगे और इस तरह नेसेसरी लिंक प्रोवाइड करेंगे लेकिन जिन्ना ने यह पोजीशन अपने लिए रख ली थी इसके साथ ही बाउंड्री कमीशन अवार्ड को अनाउंस करने में भी डिले किया गया था अवार्ड 12th अगस्त 1947 को ही तैयार हो चुका था लेकिन माउंटबेटन इसे 15थ अगस्त के बाद ही पब्लिक करने का फैसला लेते हैं जिससे ब्रिटिश डिस्टरबेंस की सभी रिस्पांसिबिलिटी से एस्केप कर सकें है इसका नतीजा बहुत ही भयानक होता है सब कॉन्टिनेंट अपनी हिस्ट्री में कम्युनल वायलेंस और ह्यूमन डिस्प्लेसमेंट का वर्स्ट कैसे सिनेरियो विटनेस करता है इस दौरान करीब 10 लाख लोगों की हत्या कर दी जाति है और 75000 से भी ज्यादा वेमन का रेप होता है दोनों ही डायरेक्शंस में डेड बॉडी से भारी हुई ट्रेंस बॉर्डर क्रॉस करती हैं एक करोड़ से ज्यादा लोग डिस्प्लेस होते हैं और रिफ्यूजी कैंपस में आजादी का कड़वा टेस्ट चखना के लिए मजबूर होते हैं इस तरह बहुत से इंडियन के लिए फ्रीडम पार्टीशन के लॉस के साथ आई है और इस कम्युनल फ्रेंज़ी के सबसे बड़े विक्टिम खुद फादर ऑफ नेशन बनते हैं जिनकी 30th जनवरी 1948 को मिलिटेंट हिंदू नेशनलिस्ट द्वारा हत्या कर दी जाति है कंक्लुजन दोस्तों इस तरह 1947 में एक फंडामेंटल शिफ्ट होता है और वो था इंडिया का एक सावरेन स्टेट के रूप में उभारना हालांकि आजादी का जश्न पार्टीशन के गम की वजह से कुछ फीका जरूर राहत है इसी के साथ आजादी अपने साथ न्यू सेटअप चैलेंज भी लेकर आई आगे आने वाले समय में इंडिया की सामने एन सिर्फ प्रिंसली स्टेटस को इंटीग्रेटेड करने का चैलेंज था बल्कि देश की पालिटी इकोनामी और सोसाइटी को भी एक मजबूत फाउंडेशन देना था दोस्तों बी की तरफ यानी ब्रिटिश गवर्नेंस सिस्टम इसमें हम ब्रिटिशर्स द्वारा इंट्रोड्यूस डिफरेंट लैंड रिवेन्यू सिस्टम लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के साथ पुलिस आर्मी और ज्यूडिशरी में हुए डेवलपमेंट्स को कर करेंगे साथ ही सभी चार्ट और रेगुलेशन एक्ट्स को भी डिस्कस करेंगे आई शुरू करते हैं पार्ट बी लैंड रिवेन्यू सिस्टम दोस्तों लैंड रिवेन्यू ब्रिटिशर्स के लिए मेजर सोर्सेस ऑफ इनकम में से एक था इस इनकम को मैक्सिमाइज करने के लिए उन्होंने इंडिया में अलग-अलग सिस्टम इंट्रोड्यूस किया थे आज उनके इंपॉर्टेंट लैंड रिवेन्यू सिस्टम को डिटेल में कर करेंगे जानेंगे की यह सिस्टम कब कहां और क्यों ले गए साथी इंडियन एग्रीकल्चर कम्युनिटी पर इनका इंपैक्ट भी डिस्कस करेंगे इंट्रोडक्शन दोस्तों 1765 में बैटल ऑफ प्लासी के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल बिहार और उड़ीसा के दीवानी राइट्स मिले थे और तभी से कंपनी के लैंड रिवेन्यू एक्सपेरिमेंट भी शुरू हो जाते हैं 1772 में बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स फार्मिंग सिस्टम इंट्रोड्यूस करते हैं इस सिस्टम के तहत रिवेन्यू कलेक्शन का चार्ज तो यूरोपियन जिला कलेक्टर्स के पास राहत है लेकिन रिवेन्यू कलेक्ट करने का अधिकार हाईएस्ट बिदार यानी की सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को दिया जाता था फार्मिंग सिस्टम बहुत ज्यादा सफल नहीं होता क्योंकि विदेश प्रोडक्शन प्रोसेस की परवाह किया बिना ज्यादा से ज्यादा रिवेन्यू एक्सट्रैक्ट करने की कोशिश करते हैं और इसकी वजह से प्रेजेंस की हालात बहुत ज्यादा मिसिबल होने लगती है इसलिए 1784 में लॉर्ड कार्नवालिस को रिवेन्यू एडमिनिस्ट्रेशन को स्ट्रीमलाइन करने के स्पेसिफिक मैंडेट के साथ इंडिया भेजो जाता है परमानेंट सेटलमेंट जो डी जमींदारी सिस्टम दोस्तों लॉर्ड कार्नवालिस 1793 में परमानेंट सेटलमेंट इंट्रोड्यूस करते हैं इसके तहत लैंड रिवेन्यू कलेक्ट करने की जिम्मेदारी जमींदारा को दी जाति है सेटलमेंट जमींदारा के साथ इसलिए किया जाता है क्योंकि बहुत सारे प्रेजेंस से रिवेन्यू कलेक्ट करने की तुलना में थोड़े से जमींदार से रिवेन्यू कलेक्ट करना ज्यादा इजी राहत साथ ही कंपनी सोसाइटी के एक स्ट्रांग क्षेत्र को अपने साथ जोड़ना चाहती थी इसमें टोटल लैंड रिवेन्यू का 11% जमीन डर अपने पास रख सकते थे और 89% ब्रिटिश सरकार के पास जमा करना होता था इस सिस्टम में जमींदारा को लैंड ऑनर्स माना गया था वो जमीन को खरीद और बीच सकते थे इससे पहले तक जमींदारा के पास लाडनिंग राइट्स नहीं होते थे उनका कम सिर्फ रिवेन्यू कलेक्ट करना होता था इससे एक्चुअल टिक्स को सिर्फ टेरेंस बना दिया गया जमींदार अपनी मर्जी से कभी भी उन्हें जमीन से बेदखल कर सकते थे इसे बंगाल बिहार उड़ीसा के अलावा यूनाइटेड प्रोविंस के बनारस डिवीजन और नॉर्दर्न कार्नेटिक में भी लागू किया गया था जमींदारी सिस्टम ब्रिटिश इंडिया के टोटल एरिया के लगभग 19% एरिया को कर करता था परमानेंट सेटलमेंट में सनसेट क्लोज़ का भी प्रोविजन था इसका मतलब होता था की एक डेफिनेट डेट पर सनसेट होने से पहले जमींदार स्कूल लैंड रिवेन्यू जमा करना होता था ऐसा एन करने पर उनकी जमींदारी नीलम कर दी जाति थी परमानेंट सेटलमेंट इंट्रोड्यूस करने के पीछे लॉर्ड कार्नवालिस का मकसद कंपनी के लिए डेफिनेट सोर्स ऑफ रिवेन्यू फिक्स करना था इससे वह आने वाले बजट और एक्सपेंडिचर को भी प्लेन कर सकते थे इसके अलावा उनका यह भी मानना था की जमींदारा लैंड में इन्वेस्ट करेंगे जिससे प्रोडक्टिविटी भी बढ़ेगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता सबसे पहले दो रिवेन्यू का माउंट इतना हाय फिक्स किया गया था की शुरुआत के सालों में जमींदार्ज के लिए उसे कलेक्ट करना ही मुश्किल हो जाता है इसकी वजह से बहुत सी जमींदारी नीलम कर दी जाति हैं इसके बाद जमींदारा ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कामना चाहते थे इसलिए वो लैंड में भी कोई इन्वेस्टमेंट नहीं करते जो भी रिवेन्यू डिसाइड किया जाता है वो बिना किसी एसेसमेंट के एक अंदाज से किया जाता है नतीजा ये होता है की प्रेजेंस की कंडीशन मिजोरेबल होने लगती है जमींदारा उनसे मनमाना कर वसूल करने लगता हैं क्योंकि सेटलमेंट में कहानी भी यह स्पेसिफाई नहीं किया गया था की जमींदारा कल्टीवेटर से कितना रेंट ले सकते हैं इसी का फायदा उठाकर जमींदारा कल्टीवेटर से बहुत सारे इलीगल न्यूज़ भी वसूल करने लगता हैं साथ ही सिस्टम वेन्यू कलेक्ट करने की जिम्मेदारी किसी दूसरे छोटे जमीदार को दे देता है इससे अल्टीमेटली पेशेंस पर रिवेन्यू का भर बाढ़ जाता है यही वजह है की आगे चलकर जमींदारी एरियाज में बहुत साड़ी प्रेजेंट रिपोर्ट्स भी देखने को मिलते हैं प्रेजेंट रिवार्ड्स को हम अलग से अपनी वीडियो में डिस्कस करेंगे रेवत बड़ी सिस्टम दोस्तों समय के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी अपना रूल्स साउथ और साउथ वेस्टर्न इंडिया में भी एक्सटेंड कर लेती है ऐसे में यहां लैंड सेटलमेंट की नई समस्या खड़ी होती है ब्रिटिश ऑफिशल्स के अनुसार इस एरिया में पहले से बड़े जमींदारा मौजूद थे इसलिए जमींदारी सिस्टम को यहां इंट्रोड्यूस करना मुश्किल था साथ ही कुछ ब्रिटिश को यह भी लगता था की परमानेंट सेटलमेंट की वजह से कंपनी को फाइनेंशियल लॉस हो रहा है क्योंकि एक तो उन्हें जमींदारा के साथ रिवेन्यू शेर करना पड़ता है और दूसरा लैंड से बढ़नी हुई इनकम पर वह कोई क्लेम नहीं कर सकते इसके साथ ही जमींदार कल्टीवेटर का शोषण भी करते थे इसलिए मंगरो और रीड जैसे ब्रिटिश सजेस्ट करते हैं की सेटलमेंट डायरेक्ट कल्टीवेटर के साथ किया जाए इसके साथ ही सेटलमेंट को परमानेंट एन करके प्रिडिकली रिवाइज किया जान का प्लेन था इस सेटलमेंट का नाम रियट वादी रखा गया क्योंकि सेटलमेंट यानी की कल्टीवेटर के साथ होता है इसे सबसे पहले 1792 में बड़ा महल एरिया में सिकंदर रीड ने स्टार्ट किया था उसके बाद थॉमस मंगरो ने इसे मद्रास के बाकी एरियाज में एक्सटेंड किया आगे चलकर सिस्टम को बॉम्बे प्रेसीडेंसी में भी लागू किया गया था है दोस्तों वाणी सिस्टम ने लैंड पर प्रेजेंट ओनरशिप सिस्टम को एस्टेब्लिश नहीं किया अल में बहुत सारे जमींदारा की जगह एक बड़े जमींदार यानी की स्टेट ने ले ली थी पेजयंस तो सिर्फ गवर्नमेंट के टेनेंस बन गए थे और समय पर लैंड रिवेन्यू ना जमा कर अपने की स्थिति में इनका लैंड बीच दिया जाता था ज्यादातर एरियाज में लैंड रिवेन्यू का रेट भी बहुत हाय फिक्स किया गया था जैसे की मद्रास में गवर्नमेंट का क्लेम ग्रोस प्रोडक्शन का 45 से 55% तक फिक्स किया गया था ऐसी ही कुछ हालात मुंबई की भी थी नतीजा यह होता है की बेस्ट सीजंस में भी मुश्किल से अपने गुजरे लायक ही बचत था इसके साथ ही गवर्नमेंट के पास कभी भी लैंड रिवेन्यू बढ़ाने का अधिकार भी था ड्रॉट या फ्लड्स के करण फसल बर्बाद होने पर भी किसने को रिवेन्यू पे करना होता था इस वजह से किसान धीरे-धीरे मनी लैंडर्स की दाल में फंसे लगता हैं इस तरह किसने की हालात अच्छी नहीं रहती ब्रिटिश इंडिया के करीब 52% एरिया में इस सिस्टम को इंप्लीमेंट किया गया महालवाड़ी सिस्टम दोस्तों जमींदारी सिस्टम का मॉडिफाइड वर्जन गंगा वाली नॉर्थवेस्ट प्रोविंस सेंट्रल इंडिया के कुछ पार्ट्स और पंजाब में इंट्रोड्यूस किया गया था इसको महालवाड़ी सिस्टम कहा जाता है इसमें रिवेन्यू पूरे विलेज यह स्टेट के लिए फिक्स किया जाता था और सेटलमेंट गांव की मुखिया या जमीदार के साथ होता था इस सेटलमेंट को हॉल मैकेंजी और आम बर्ड जैसे ब्रिटिश ने इंट्रोड्यूस किया था स्टेट का शेर इसमें लैंड की नेट इनकम का 66% तक रखा गया था और सेटलमेंट 30 साल के लिए किया गया बहुत हाय फिक्स किया जाता है और यहां भी प्रॉपर एसेसमेंट नहीं किया जाता जिसकी वजह से चला जाता है कंक्लुजन दोस्तों ब्रिटिश द्वारा इंट्रोड्यूस लैंड रिवेन्यू सिस्टम की वजह से इंडिया की और इकोनामी पुरी तरह डिस्टर्ब होने लगती है विलेज कम्युनिटी का एक्जिस्टिंग पॉलीटिकल इकोनामिक सोशल फ्रेमवर्क पुरी तरह ब्रेकडाउन हो जाता है प्राइवेट प्रॉपर्टी का कॉन्सेप्ट लैंड को एक मार्केट कमोडिटी में टर्न कर देता है सोशल रिलेशनशिप चेंज हो जाति हैं लैंडलॉर्ड मनीलेंडर ट्रेड जैसी नई सोशल क्लासेस की इंर्पोटेंस बाढ़ जाति है और वो ओपेसेंस और एग्रीकल्चर लेबर जैसी क्लास के नंबर्स मल्टीप्लाई हो जाते हैं कंपटीशन में बादल जाता है खाने का मतलब यह है की ट्रेडिशनल और एनवायरनमेंट पुरी तरह बादल जाता है रिवेन्यू का ओवर एसेसमेंट सभी सिस्टम का एक आम फीचर निकाल कर आता है क्योंकि कंपनी रिवेन्यू इनकम को मैक्सिमाइज करना ही था इसकी वजह से किसान कर्ज में बने लगता हैं और बहुत से किसने को अपनी ही जमीन से बेदखल होना पड़ता है या एक टैलेंट की तरह कम करना पड़ता है इस तरह यह रिवेन्यू सिस्टम प्रेजेंस में ब्रिटिश की अगेंस्ट आक्रोश को जन्म देते हैं जिसकी परिणाम स्वरूप हमें आने वाले समय में बहुत से प्रेजेंट रिपोर्ट देखने को मिलते हैं इकोनामिक इंपैक्ट ब्रिटिश रूल दोस्तों ब्रिटिशर्स द्वारा फॉलो की गई पॉलिसीज की वजह से इंडियन इकोनामी तेजी से कॉलोनियल इकोनामी में ट्रांसफॉर्म हो गई थी जिसका नेचर और स्ट्रक्चर ब्रिटिश इकोनामी की जरूर के हिसाब से ते होता था ब्रिटिश ने इंडियन इकोनामी के ट्रेडिशनल स्ट्रक्चर को पुरी तरह से डिस्ट्रिक्ट कर दिया था साथ ही ब्रिटिश कभी भी इंडियन लाइफ का इंटीग्रल पार्ट नहीं बने वो हमेशा ही फॉरेनर्स की तरह यहां रहे और इंडियन रिसोर्सेस को एक्सप्लोइट करते रहे और इंडियन वेल्थ को ट्रिब्यूट की तरह यहां से ले जाते रहे इस तरह इंडियन इकोनामी को ब्रिटिश ट्रेड और इंडस्ट्री के इंटरेस्ट का सबोर्डिनेट बना दिया गया जिसकी परिणाम हमें अलग-अलग रूप में देखने को मिलते हैं जैसा की आप जानते हैं की ब्रिटिश ने लगभग 200 साल तक इंडिया पर रोल किया इतने लंबे समय तक एक्सप्लोइटेशन का नेचर एक जैसा नहीं रहा था यह समय के साथ चेंज होता रहा और इसी की बेसिस पर कॉलोनियल रूल को तीन फेस में डिवाइड किया जाता है कॉलोनियल रूल के चेंजिंग इकोनामिक करैक्टर को समझना के लिए इंडियन स्कॉलर आरपी डेट ने इसे तीन फीस में डिवाइड किया है पहले फैज लगभग 1757 से 1813 तक चला है और इसे मर्केंटाइलिज्म या कमर्शियल केपीटलाइज्म का फीस कहा जाता है एक ट्रेड और कॉमर्स पर अपनी मुनाबाली बनाना और दूसरा बुलियन की समस्या का समाधान ढूंढना बुलियन की समस्या से हमारा मतलब है की ब्रिटिशर्स को इंडिया से गुड्स परचेज करने के लिए अपने यहां के गोल्ड सिल्वर और उनके कोइंस का उसे करना पड़ता था जो की मर्केंटाइलिज्म की दृष्टि से फेवरेबल नहीं था मोनोपोली बनाने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की फॉरेन कंपनी को रास्ते से हटा देती हैं और बुलियन की समस्या बैटल ऑफ प्लासी के बाद खत्म होती है जिसे डिटेल में हम थोड़ी डर में देखेंगे इस फेस का फॉक्स इंडिया से ड्रा वेल्थ और ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा डायरेक्ट कॉलोनियल प्लंडर पर राहत है यही से इंडिया की इकोनामी का कॉलोनियल एक्सप्लोइटेशन शुरू हो जाता है इसके बाद दूसरा फेस लगभग 1813 से शुरू होकर 1860 तक चला है इसे इंडस्ट्रियल केपीटलाइज्म का फीस कहते हैं इस समय तक इंग्लैंड में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन की शुरुआत हो चुकी थी और वहां बड़े स्केल पर गुड्स मैन्युफैक्चरर किया जा रहे थे इन्हीं गुड्स को सेल करने के लिए मार्केट की जरूर थी साथ ही ब्रिटिश इंडस्ट्रीज की और ज्यादा ग्रोथ के लिए बड़ी स्टार पर रा मैटेरियल्स भी चाहिए थे 1813 के चार्ट एक्ट के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी की मोनोपोली को भी खत्म कर दिया गया था और इसी के साथ कॉलोनियल गवर्नमेंट वन साइड फ्री ट्रेड पॉलिसी की शुरुआत भी करती है जिसमें ब्रिटेन से इंडिया आने वाले मैन्युफैक्चर्ड गुड्स पर कोई ड्यूटी नहीं लगे जाति और इंडिया से ब्रिटेन के लिए रा मैटेरियल्स भी बिना किसी किया जाते हैं लेकिन इंग्लैंड में इंडिया से जान वाले किसी भी फिनिश्ड प्रोडक्ट पर हैवी ड्यूटी बनी रहती है उदाहरण के तोर पर इंडियन टैक्सटाइल्स पर 300% ड्यूटी इंपोज की जाति है इस तरह इस पीरियड के दौरान इंडिया में दिन इंडस्ट्रियलिज्म और रुरलीसेशन देखने को मिलता है संक्षेप में कहें तो इंडस्ट्रियल केपीटलाइज्म का फीस इंडियन इकोनामी को ब्रिटिश गुड्स के लिए मार्केट और रा मैटेरियल्स के सप्लायर में कन्वर्ट कर देता है तीसरा और आखिरी फैज लगभग 1860 से शुरू होकर 1947 तक चला है इसे फाइनेंशियल केपीटलाइज्म का फीस बोला जाता है इस दौरान ब्रिटिश इंडिया में कैपिटल इन्वेस्ट करना शुरू करते हैं इसका करण यह था की अब इंडस्ट्रियलिज्म दुनिया के बाकी देश में भी फैलने लगा था जैसे की जर्मनी जापान है इस वजह से ब्रिटिश इंडस्ट्रीज के लिए कंपटीशन बाढ़ जाता है सरवाइव करने के लिए कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन को कम करने की जरूर समझी जाति है और साथ ही साथ पिछले फैज के दौरान प्रॉफिट जमा करते-करते ब्रिटिश काफी कैपिटल जमा कर लेते हैं जिसे इन्वेस्ट करने की ऑपच्यरुनिटीज ढूंढी जा रही थी इसके साथ इंडिया में इन्वेस्ट करने से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट कम होती है साथ ही चिप लेबर भी मिल जाति है इसलिए इस पीरियड में तेजी से ब्रिटिश कैपिटल का फ्लो इंडिया में होता है लेकिन इसका मकसद इंडिया में इंडस्ट्रियल ग्रोथ करना नहीं राहत बल्कि इंडियन रिसोर्सेस का एक्सप्लोइटेशन करना होता है ब्रिटिश कैपिटल उन्हें एक्टिविटीज में लगे जाति है जो ब्रिटिश इंडस्ट्रीज के लिए कंप्लीमेंट्री साबित होती हैं एक एस्टीमेट के अनुसार 1914 से पहले तक लगभग 97% ब्रिटिश कैपिटल रेलवे मर्चेंट शिपिंग मीनिंग और फाइनेंशियल हाउस के डेवलपमेंट में इन्वेस्ट की गई अलग-अलग फेर में हुए इकोनामिक इंपैक्ट को डिस्कस करते हैं शुरुआत करते हैं इंडियन एग्रीकल्चर से इंपैक्ट ऑन इंडियन एग्रीकल्चर कंपनी ने इंडिया में नए लैन्टेनियस जैसे की परमानेंट सेटलमेंट रियट वादी महालवाड़ी सिस्टमैटिक सेटर को इंट्रोड्यूस किया था इन सभी सिस्टम में रिवेन्यू रेट को बहुत हाय रखा गया और महालवाड़ी एरियाज में रेगुलर इंटरवल पर रिवेन्यू रेट बड़ा दिए जाते थे इन नए सिस्टम की वजह से नई सोशल क्लासेस जैसे की लैंडलॉर्ड मनी लैंडर्स लैंड्स स्पैकुलेटर इमर्ज होते हैं और इन बढ़ाने लगती है और इंडियन कल्टीवेटर की कंडीशन खराब होती चली जाति है ज्यादातर कल्टीवेटर गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने के लिए मजबूर होते हैं लैंड रिवेन्यू सिस्टम के इंपैक्ट को और डिटेल में हमने अलग से एक वीडियो में कर किया है कॉलोनियल पॉलिसी की वजह से इंडियन एग्रीकल्चर का कर्मशलाइजेशन भी देखने को मिलता है स्पेशली सेकंड यानी की इंडस्ट्रियल केपीटलाइज्म वाले फेस के दौरान ब्रिटिश इंडस्ट्रीज को रा मैटेरियल्स चाहिए थे जैसे की कॉटन जूते इंडिगो ईटीसीईटेरा इसलिए इंडिया में फूड क्रॉप्स की जगह ऐसी कमर्शियल क्रॉप्स को प्रमोट किया जाता है फोर्सफुली इन्हें कल्टीवेट कराया जाता है जैसे इंडिगो प्लांटेशन के कैसे में इसकी वजह से पैगिंस पर कर्ज तो बढ़ता ही है साथ ही और इकोनामी की सेल्फ डिपेंड्स खत्म हो जाति है खाने को अनाज नहीं राहत है और ऐसी सिचुएशन में फेमिंस बहुत आम हो जाते हैं ब्रिटिश कॉलोनियल रूल का एडवर्स इंपैक्ट सिर्फ इंडियन एग्रीकल्चर पर ही नहीं होता बल्कि ट्रेडिशनल इंडियन इंडस्ट्रीज को भी यह पुरी तरह डिस्ट्रॉय कर देता है ब्रिटिश रूल का इंडियन हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज पर बहुत ही गहरा प्रभाव देखने को मिलता है ब्रिटिश के आने से पहले तक इंडिया एक एक्सपोर्टिंग कंट्री हुआ करती थी यहां तक की ब्रिटिश भी इंडिया ट्रेड करने के लिए ही आए थे और वो यहां अपने देश के प्रोडक्ट्स का ट्रेड नहीं करते थे बल्कि इंडिया से प्रोडक्ट्स जैसे की टैक्सटाइल्स स्पाइसेज ईटीसेटरा यूरोप में एक्सपोर्ट करते थे मर्केंटाइलिज्म यानी की फर्स्ट फैज के दौरान यही स्थिति बनी रहती है लेकिन सेकंड फैज में शुरू होने के बाद इंग्लैंड से बड़ी संख्या में मशीन मेड प्रोडक्ट्स इंडिया आने लगता हैं जो की इंडियन गुड से काफी सस्ते होते थे जिसकी वजह से इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स की डिमांड कम होने लगती है साथ ही वन साइड फ्री ट्रेड जैसी पॉलिसी के करण इंडियन गुड्स पर फॉरेन मार्केट में हैवी ड्यूटी इंपोज की जाति हैं इस तरह डोमेस्टिक और फॉरेन दोनों ही मार्केट में इंडियन गुड्स की डिमांड कम हो जाति है इसके अलावा ब्रिटिश इंडिया से रा मटेरियल जैसे की कॉटन का एक्सपोर्ट शुरू कर देते हैं इस वजह से इंडियन आर्टिजंस को रा मटेरियल या तो मिलता नहीं है या फिर बहुत महंगे मिलने लगता हैं इस करण मजबूरी में इंडियन विवर्स ये कम छोड़ने लगता हैं रेलवे का डेवलपमेंट भी ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज को नुकसान पहुंचना है क्योंकि इससे पहले कम से कम रिमोट कॉर्नर्स में तो इंडियन गुड्स की डिमांड रहती थी लेकिन रेलवे के आने के बाद देश के कोनी कोनी में सस्ते ब्रिटिश गुड्स पहुंच जाते हैं इस तरह हैंडीक्राफ्ट्स इंडस्ट्रीज का डिक्लिन तो तेजी से होता है लेकिन मॉडर्न इंडस्ट्रीज की शुरुआत इतनी जल्दी नहीं होती इसलिए ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज में कम करने वाले लोग बेरोजगार हो जाते हैं गंजेटिक बिहार का स्टैटिसटिक्स डाटा बताता है की यहां टोटल पापुलेशन के मुकाबला इंडस्ट्रियल पापुलेशन का प्रोपोर्शन जो 18009 के समय 18.6% था वह 191 में घटकर सिर्फ 8.5% र जाता है कहा जा सकता है की ब्रिटिश रूल के दौरान इंडस्ट्रियल प्रोग्रेस दूर उल्टा इंडियन ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज का डिक्लिन होता है इकोनामिक इंपैक्ट को समझते हैं जिसे इंडियन नेशनलिस्ट लीडर्स की थ्योरी से समझाया है ड्रेन वेल्थ फ्रॉम इंडिया इंडियन नेशनल लीडर्स और इकोनॉमिस्ट के अनुसार इंडिया से इंग्लैंड के लिए होने वाला कांस्टेंट फ्लो ऑफ वेल्थ जिसके बदले में इंडिया को कोई भी इकोनामिक कमर्शियल या मटेरियल रिटर्न नहीं मिलता था ड्रेनो वेल्थ कहलाता है यह साल डर साल इंडिया से इंपीरियल ब्रिटेन द्वारा लिए जा रहे इनडायरेक्ट ट्रिब्यूट की तरह था मर्केंटाइल कॉन्सेप्ट में कहें तो इकोनामिक ग्रीन तब होता है जब एडवर्स बैलेंस ऑफ ट्रेड की वजह से गोल्ड और सिल्वर देश से बाहर जान लगता हैं बैटल ऑफ प्लासी से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी इंडिया में ट्रेड करने के लिए ब्रिटेन से बोलियां इंपोर्ट करती थी लेकिन प्लासी के बाद सिचुएशन बिल्कुल बादल जाति है ईस्ट इंडिया कंपनी अब इंडिया में टेरिटरीज एडमिनिस्ट्रेटर करना शुरू कर देती है और यहां के सरप्लस रेवेन्यू पर उसका अधिकार हो जाता है अब ब्रिटेन से बोलिए लाने की जगह इंडिया के ही रिवेन्यू को उसे करके कंपनी अपने एक्सपोर्ट्स को परचेज करती है इस तरह इंडिया के रिवेन्यू को कंपनी पुरी तरह अपने फायदे के लिए उसे करती है जिसके बदले में इंडिया को कुछ भी नहीं मिलता है यह सिस्टम 1813 के चार्ट एक्ट से खत्म होता है क्योंकि उसमें कंपनी के कमर्शियल और टेरिटोरियल रेवेन्यू को सेपरेट किया जाता है लेकिन इंडिया से इकोनामिक ड्रेन का और यहां भी नहीं होता बस इसका करैक्टर थोड़ा बादल जाता है 1813 के बाद ग्रीन एक तरफ एक्सपोर्ट्स के फॉर्म में होता है इस इकोनामिक ड्रेन की में कांस्टीट्यूएंट्स कुछ इस तरह थे होम चार्ज ऐसे एक्सपेंडिचर को बोला जाता था जो इंडिया के भी हाथ पर सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा इंग्लैंड में किया जाते थे 1857 के रिवॉल्ट से पहले होम चार्ज 13% हुआ करते थे 1897 से 1901 के बीच यह प्रोपोर्शन बढ़कर 24% हो गया था और 1921 22 में होम चार्ज सेंट्रल गवर्नमेंट के टोटल रिवेन्यू के 40% तक पहुंच गए थे होम चार्ज के अंदर ईस्ट इंडिया कंपनी के शेरहोल्डर्स को दिए जान वाला डिविडेंड कंपनी द्वारा इंडिया के बाहर लिए पब्लिक डेट पर इंटरेस्ट सिविल और मिलिट्री चार्ज और इंग्लैंड में किया गए स्टोर परचेज जाते थे ड्रेन का नेक्स्ट कंपोनेंट था फॉरेन कैपिटल इन्वेस्टमेंट पर दिया जान वाला इंटरेस्ट इंटरेस्ट ऑन फॉरेन कैपिटल इन्वेस्टमेंट 28 सेंचुरी में ब्रिटेन से फाइनेंस कैपिटल इंडिया में इंटर होना शुरू होता है यानी की थर्ड फैज फाइनेंशियल केपीटलाइज्म की शुरुआत पीरियड के समय इस पर सालाना लगभग 30 से 60 करोड़ रुपए खर्च होते थे यहां ये याद रखना चाहिए की फौरन कैपिटल लिस्ट इंडिया के इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट में इंटरेस्टिंग नहीं थे बल्कि अपने फायदे के लिए इंडियन रिसोर्सेस को एक्सप्लोइट करना चाहते थे साथ ही इंडीजीनस कैपिटल एंटरप्राइज को अलग-अलग तरीके से पीछे करने की कोशिश भी करते थे इकोनामिक ड्रेन का एक और कंपोनेंट देखा जा सकता है इसकी ग्रोथ भी नहीं लिखने हुए दादा भाई नौरोजी ने कहा था की ये एविलों जो इविल्स है और इंडियन पावर्टी का सबसे बड़ा करण भी है इनके अनुसार ब्रिटिश रूल की शुरुआत से लेकर 1865 तक कल 1500 मिलियन पाउंड का ड्रेन इंडिया से हो चुका था और 1883 से 1892 के बीच करीब 3009 करोड़ के जारी मैं सिर्फ ब्रिटिशर्स ने इंडिया की वेल्थ को लूटने का कम किया बल्कि इसकी वजह से इंडिया में इंडस्ट्रियलिज्म भी नहीं हो पाया क्योंकि इसके लिए जो जरूरी कैपिटल थी वो तो ब्रिटेन ट्रांसफर हो रही थी यह तो बात हो गई कॉलोनियल रूल के दौरान इंडिया पर हुए इकोनामिक इंपैक्ट्स की लेकिन यह इंपैक्ट्स सिर्फ कॉलोनियल रूल तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि इनकी लिगसी इंडिपेंडेंस इंडिया पर भी देखने को मिलती है कैसे आई जानते हैं 200 साल का ब्रिटिश रूल एक्सट्रीम पावर्टी के साथ एग्रीकल्चर और इंडस्ट्रियल दोनों ही सेक्टर में इकोनामिक बैकवार्डनेस की लिगसी छोड़ जाता है 1947 में जब ब्रिटिश इंडिया से गए तब दुनिया की सबसे जटिल लैंड प्रॉब्लम पीछे छोड़ गए जिसमें लैंड राइड्स की कॉम्प्लिकेटेड हीेरार की थी लैंड टेन्योर की इनसिक्योरिटी थी कल्टीवेशन की टेक्निक प्रिमिटिव बने हुए थे पेरिल्ड बहुत कम थी एग्रीकल्चरल होल्डिंग्स फ्रेगमैन थी और मनी लैंडर्स का शिकंजा और इकोनामी पर बना हुआ था इसके साथ ही एग्रीकल्चर में इन्वेस्टमेंट तो उन्होंने ना के बराबर किया था दम शब्दों में कहें तो देश पर काल यानी की फेम का खतरा लगातार मंडरा रहा था इस स्थिति से निकालने के लिए देश को कई साल ग गए और एग्रीकल्चर की कुछ समस्या जो ब्रिटिश लिगसी हैं अभी तक बनी हुई हैं इंडस्ट्रियल सेक्टर का हाल भी कुछ ऐसा ही था इंडियन इंडस्ट्रीज का लोपसाइडेड डेवलपमेंट हुआ था प्रोडक्शन टेक्निक्स बहुत ही कम थी इंडस्ट्रियल वर्कर्स की हालात भी कुछ खास अच्छी नहीं थी इसके अलावा इंडस्ट्रीज पर ब्रिटिश फाइनेंस कैपिटल का दबदबा अभी भी बना हुआ था ब्रिटिश इंडिया को लो पर कैपिटा इनकम वाला गरीब देश बना कर चले गए थे एवरेज इंडियन इनकम कुछ इस तरह फोर्ट कर सकते थे वह भी इस शर्ट पर के कपड़े की कोई डिमांड ना हो सर के ऊपर छठ भी ना हो और किसी तरह का कोई एम्यूजमेंट या रीक्रिएशन तो भूल ही जो इस तरह आजादी के समय इंडिया को ब्रिटिश लिगसी के रूप में वर्षों के कॉलोनियल एक्सप्लोइटेशन के नीचे डाबी इकोनामी और गाइड अंदर डेवलपमेंट मिलता है कंक्लुजन दोस्तों हम का सकते हैं की ब्रिटिश कॉलोनियल रूल का सबसे बड़ा प्रभाव इंडियन इकोनामी पर ही दिखता है यही वजह थी की इंडियन नेशनलिस्टरीना वेल्थ की थ्योरी से कॉलोनियल रूल को एक्सपोज करने की कोशिश करते हैं और इंडिया में इकोनामिक नेशनलिज्म की शुरुआत होती है कॉलोनियल रूल एक बड़ी वजह थी की इंडिया में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन नहीं हो पाया इंडियन एग्रीकल्चर और इंडस्ट्रीज के बैकवार्डनेस के लिए भी कॉलोनियल पॉलिसीज ही रिस्पांसिबल थी चार्ट एक्ट इन रेगुलेशन एक्ट दोस्तों जैसा की हम देख चुके हैं की 1764 में हुई बैटल ऑफ बक्सर के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल गई थी इसके बाद 1765 में बंगाल में ड्यूल सिस्टम ऑफ गवर्नमेंट को इंट्रोड्यूस किया गया था जिसके तहत कंपनी के पास रिवेन्यू कलेक्ट करने का राइट राहत है लेकिन एडमिनिस्ट्रेशन के रिस्पांसिबिलिटी नवाब की रहती है इस सिस्टम के करण कंपनी के पास बिना किसी रिस्पांसिबिलिटी के पुरी अथॉरिटी ए चुकी थी इसका रिजल्ट यह होता है की कंपनी के सर्वेंट में करप्शन बहुत ज्यादा बाढ़ जाता है और वो अपने फायदे के लिए प्राइवेट ट्रेड में बीजी रहने लगता हैं इसके साथ ही रिवेन्यू कलेक्शन की वजह से बेसिन ट्री का भी शोषण होने लगता है और इसके ऊपर से 1772 में कंपनी करती है जबकि उसके एम्पलाइज दिन रात फ्लैश कर रहे थे ऐसी सिचुएशन में ब्रिटिश गवर्नमेंट फैसला करती है की कंपनी के अफेयर्स को रेगुलेट करने के लिए अब उसे ही कोई कम उठाना पड़ेगा इस दिशा में सबसे पहले कम होता है 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट इसके बाद धीरे-धीरे कंट्रोल इन लॉस का नंबर बढ़ाने लगता है आई सबसे पहले रेगुलेटिंग एक्ट के प्रोविजंस को समझते हैं रेगुलेटिंग एक्ट 1773 दोस्तों इस एक्ट के थ्रू ब्रिटिश कैबिनेट पहले बार इंडिया में कंपनी के अफेयर्स पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश करती है यह गवर्नर ऑफ बंगाल की पोस्ट को गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल में चेंज कर देता है इसके अलावा बंगाल की एडमिनिस्ट्रेशन के लिए गवर्नर जनरल की कर मेंबर वाली काउंसिल का प्रोविजन रखा जाता है वारेन हेस्टिंग बंगाल के पहले गवर्नर जनरल बनते हैं रेगुलेटिंग एक्ट के अनुसार मुंबई और मद्रास के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अंदर कम करना होता है इसके साथ ही कोलकाता में ओरिजिनल और अपेलत जूरिडिक्शन वाला सुप्रीम कोर्ट एस्टेब्लिश करने का प्रोविजन भी था जिसमें एक के जस्टिस के साथ तीन जज को अप्वॉइंट किया जाना था कंपनी के डायरेक्टर्स को रिवेन्यू अफेयर्स और सिविल और मिलिट्री एडमिनिस्ट्रेशन से रिलेटेड सभी को रेस्पॉन्डेंट्स ब्रिटिश गवर्नमेंट के साथ शेर करने के लिए भी कहा गया था लेकिन इसमें बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिलती और 1784 में एक और एक्ट पास करना पड़ता है विच इंडिया एक्ट 1784 बिट्स इंडिया एक्ट ड्यूल सिस्टम को इंट्रोड्यूस करता है यानी की कंपनी के साथ अब ब्रिटिश गवर्मेंट का कंट्रोल भी इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन पर एस्टेब्लिश किया जाता है इंडिया में कंपनी की टेरिटोरियल पोजीशंस को एक्ट में ब्रिटिश पजेशन बोला जाता है इस तरह कंपनी अब स्टेट का एक सबोर्डिनेट डिपार्मेंट बन जाता है लेकिन कमर्शियल एक्टिविटीज और दे तू दे एडमिनिस्ट्रेशन पर कंपनी का अपना कंट्रोल बना राहत है ड्यूल सिस्टम के तहत 1784 का यह एक्ट बोर्ड ऑफ कंट्रोल की एस्टेब्लिशमेंट करता है बोर्ड ऑफ कंट्रोल का कम कंपनी के सिविल मिलिट्री और रिवेन्यू अफेयर्स पर कंट्रोल करना था चांसलर ऑफ एक्स चेकर सेक्रेटरी ऑफ स्टेट और क्राउन द्वारा अपॉइंटेड प्रिवी काउंसिल के कर मेंबर्स इसका हिस्सा थे इसके अलावा गवर्नर जनरल की काउंसिल की स्ट्रैंथ को 4 से घटकर 3 मेंबर्स कर दिया जाता है जिसमें एक मेंबर कमांडर इन के को रखा जाता है साथ ही मुंबई और मद्रास की प्रेसिडेंसेस को बंगाल के गवर्नर जनरल का सबोर्डिनेट बना दिया जाता है चार्ट एक्ट 1793 दोस्तों ईस्ट इंडिया कंपनी को इंडिया के साथ ट्रेड करने के लिए ब्रिटिश गवर्मेंट से चार्ट मिला था जिसके तहत पूर्वी ट्रेड में इसकी मोनोपोली एस्टेब्लिश की गई थी 1793 का चार्ट एक्ट इसी चार्ट को और 20 साल के लिए रिन्यू कर देता है इस एक्ट के थ्रू गवर्नर जनरल को काउंसिल के डिसीजन को ओवरराइड करने की पावर भी दी जाति है इसमें एक प्रोविजन यह भी होता है की सभी सीनरी ऑफिशल जैसे की गवर्नर जनरल गवर्नर और कमांडर इन के की अपॉइंटमेंट के लिए रॉयल अप्रूवल लेना मैंडेटरी होगा इसके अलावा एक्ट में बोर्ड ऑफ कंट्रोल के मेंबर्स और उसके पूरे स्टाफ का खर्चा अब इंडियन रिवॉल्यूशन से उठा जान का प्रावधान था 1793 का यह चार्ट एक्ट कंपनी के द्वारा ब्रिटिश गवर्नमेंट को एनुअल 5 लाख पाउंड देने का प्रोविजन भी करता है 20 साल बाद जब इस चार्ट के एक्सपायर होने का समय होता है तब नेक्स्ट चार्ट एक्ट पास किया जाता है 1813 का चार्ट एक्ट कई मीना में एक लैंडमार्क चार्ट एक्ट इंग्लिश ट्रेडर्स इस समय डिमांड करने लगे थे की उन्हें भी इंडियन ट्रेडमैन शेर मिलन चाहिए यानी की वो ईस्ट इंडिया कंपनी की मोनोपोली का विरोध कर रहे थे इसके पीछे दो करण थे पहले तो लेजर फेयर की स्पिरिट और दूसरा नेपोलियन का कॉन्टिनेंटल सिस्टम जिसके तहत बाकी यूरोपियन पूछ ब्रिटेन के लिए क्लोज कर दिए गए थे इसलिए ब्रिटिश ट्रेडर्स चाहते थे की इंडियन ट्रेड को सभी के लिए ओपन कर दिया जाए इनकी डिमांड्स को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश गवर्नमेंट 1813 का चार्ट एक्ट पास करती है जिसके तहत कंपनी को खत्म कर दिया जाता है लेकिन चीन के साथ और ओवरऑल टी यानी की चाय के ट्रेड में उसकी मोनोपोली बनी रहने दी जाति है साथ ही इंडियन टेरिटरीज और रिवेन्यू को कंपनी और 20 साल तक रिटन कर शक्ति थी लेकिन क्राउन की सॉवरेन्टी के अंदर रहते हुए बोर्ड ऑफ कंट्रोल की पावर और ज्यादा बड़ा दी जाति हैं इस एक्ट में इंडिया में एजुकेशन को प्रमोट करने के लिए एनुअल 1 लाख रुपए की ग्रैंड का प्रोफेशन भी था क्रिश्चियन मिशनरीज को भी इंडियन आने और अपना रिलिजन करने की परमिशन दे दी जाति है दोस्तों 1813 के चार्ट एक्ट के बाद फिर से 20 साल बाद अगला चार्ट एक्ट पास होता है चार्ट एक्ट 1833 1833 के चार्ट एक्ट में कंपनी को टेरिटरीज और रिवेन्यू कलेक्शन पर मिली 20 साल की लेज को फरदर एक्सटेंड कर दिया जाता है लेकिन चीन और चाय के ट्रेड पर कंपनी की मोनोपोली को इस बार और कर दिया जाता है इसके अलावा यूरोपियन इमीग्रेशन और इंडिया में प्रॉपर्टी के एक्विजिशन पर सभी रिस्ट्रिक्शंस हटा दी जाति हैं जिससे यूरोपियंस द्वारा इंडिया का कॉलोनाइजेशन और तेजी से बढ़ता है 1833 का यह एक्ट गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल की पोस्ट को गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की पोस्ट में चेंज कर देता है और उसको कंपनी के सभी सिविल और मिलिट्री अफेयर्स को कंट्रोल और डायरेक्ट करने की पावर दी दी जाति है सभी रेवेन्यू भी गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की अथॉरिटी में रेस किया जान थे और एक्सपेंडिचर पर भी पुरी तरह उसका कंट्रोल एस्टेब्लिश कर दिया जाता है इंडियन लॉस के कंसोलिडेशन और कोडिफिकेशन के लिए एक डॉ कमीशन का प्रोविजन भी इस एक्ट में था एक्ट गवर्नर जनरल की काउंसिल में एक फोर्थ मेंबर भी एड करता है जो की डॉ मेकिंग में एक लीगल एक्सपर्ट हो इसे लोन मेंबर भी कहा जाता है पहले बार लॉर्ड मौली ये पोजीशन लेते हैं इसके साथ ही मुंबई और मद्रास गवर्नमेंट की लेजिसलेटिव पावर्स पुरी तरह खत्म कर दी जाति हैं अब वो सिर्फ गवर्नर जनरल को प्रपोज भेज सकते थे फाइनल डिसीजन लेने का राइट सिर्फ गवर्नर जनरल के पास ही होता है एडमिनिस्ट्रेशन को डिलीवरी अबॉलिश करने के स्टेप्स लेने के लिए भी कहता है आई अब नेक्स्ट चार्ट एक्ट के प्रोविजंस को समझते हैं चार्ट एक्ट 1853 1853 का चार्ट एक्ट डिसाइड करता है की जब तक पार्लियामेंट कोई और कानून नहीं बनाता तब तक इंडियन टेरिटरी का पोजीशन कंपनी के पास ही रहेगा यानी पहले बार लेज को 20 और सालों के लिए ऑटोमेटेकली एक्सटेंड नहीं किया जाता इसके अलावा सर्विसेज पर से कंपनी का पैठनिज खत्म कर दिया जाता है मतलब अब कंपनी अपनी पसंद से सर्विसेज में अपॉइंटमेंट नहीं कर शक्ति थी बल्कि इसके लिए ओपन कंपटीशन का प्रोबेशन किया जाता है डॉ मेंबर को गवर्नर जनरल की एग्जीक्यूटिव काउंसिल का फूल मेंबर बना दिया जाता है 1853 का चार्ट एक्ट गवर्नमेंट के एग्जीक्यूटिव और लेजिसलेटिव फंक्शंस को भी सेपरेट करता है लेजिसलेटिव परपोज के लिए सिक्स एडिशनल मेंबर्स को शामिल किया जाता है इस लेजिसलेटिव विंग को इंडियन लेजिसलेटिव काउंसिल बोला जाता है और इसमें लोकल रिप्रेजेंटेशन को भी इंट्रोड्यूस किया जाता है लेकिन फाइनल डॉ के लिए गवर्नर जनरल की एसेंट की जरूर होती है और वह लेजिसलेटिव काउंसिल किसी भी बिल को कर सकता था दोस्तों 1853 का चार्ट एक्ट आखिरी चार्ट एक्ट क्योंकि इसकी कर साल बाद ही 1857 की क्रांति हो जाति है और उसके बाद पास होता है गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858 रिवॉल्ट वेट 357 कंपनी के एडमिनिस्ट्रेशन को पुरी तरह एक्सपोज कर देता है उससे पहले तक इंडिया में मेल एडमिनिस्ट्रेशन के लिए कोई अकाउंटबल नहीं था ब्रिटिश गवर्नमेंट डिसाइड करती है की इस नॉर्मली को रेक्टिफाई करने का समय ए गया है और ये ब्रिटिश गवर्मेंट के लिए सही मौका था कंपनी से इंडियन टेरिटरी की पोजीशन को लेने का 1858 का एक्ट पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा इंट्रोड्यूस ड्यूल सिस्टम का और कर देता है अब इंडिया को कंपनी नहीं बल्कि क्राउन के नाम पर गवन किया जाना था इसके लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट और उसकी 15 मेंबर की काउंसलर पॉइंट की जाति है अगस्त 1858 में लॉर्ड स्टेनली पहले सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बनते हैं गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के टाइटल को रिप्लेस करके वायसराय कर दिया जाता है जिसका मतलब था क्राउन का इंजन और वायसराय को डायरेक्ट ब्रिटिश गवर्नमेंट अप्वॉइंट करती थी इसके साथ लॉर्ड कैनिंग इंडिया के पहले वायसराय बनते हैं लेकिन दोस्तों समझना वाली बात ये है की इस मूवमेंट पर क्राउन के द्वारा पावर सुूम करना बस एक फॉर्मेलिटी ही थी जैसा की हम देख चुके हैं काफी पहले से ब्रिटिश गवर्नमेंट ही इंडियन अफेयर्स को रेगुलेट कर रही थी का सकते हैं की इस एक्ट ने ऑलरेडी डेड हॉर्स यानी की कंपनी को एक डिसेंट बेरियल देने का कम किया था कंक्लुजन दोस्तों यह थी 1858 तक पास किया गए इंपॉर्टेंट एक्ट्स की समरी जिसमें हमने देखा की कैसे ग्रैजुअली ब्रिटिश गवर्नमेंट ईस्ट इंडिया कंपनी से इंडियन अंपायर को कैप्चर कर लेती है अपने नेक्स्ट वीडियो में हम 1858 के बाद ब्रिटिश गवर्मेंट द्वारा पास किया गए एक्ट्स को समझेंगे आफ्टर 1858 तिल इंडिपेंडेंस दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने 1858 तक के रेगुलेशंस और चार्ट एक्ट्स को डिस्कस किया था आज हम इसके आगे के एक्ट के बड़े में बात करेंगे जैसा की हम देख चुके हैं की 1858 के एक्ट से कंपनी के रूल का एंड हो जाता है और इंडिया डायरेक्ट ग्राउंड के एडमिनिस्ट्रेशन में ए जाता है इसके बाद पहले एक्ट पास होता है 1861 में जिसे इंडियन काउंसिल एक्ट 1861 बोला जाता है इंडियन काउंसिल एक्ट 1861 इंडियन काउंसिल एक्ट 1861 ब्रिटिश पार्लियामेंट का एक एक्ट था जिसने गवर्नर जनरल के काउंसिल में सिग्निफिकेंट चेंज इंट्रोड्यूस किया थे काउंसिल के एग्जीक्यूटिव फंक्शंस के लिए फिफ्थ मेंबर को एड किया जाता है यह फाइव मेंबर्स होम मिलिट्री डॉ रिवेन्यू और फाइनेंस देखते थे इस एक्ट के थ्रू पोर्टफोलियो सिस्टम भी इंट्रोड्यूस किया जाता है जो उसे समय के वायसराय लॉर्ड कैनिंग का आइडिया था इस सिस्टम में एच मेंबर को पर्टिकुलर डिपार्मेंट का पोर्टफोलियो असाइन किया जाता है इन्हें खुद गवर्नर जनरल नॉमिनेट करते थे इनका अपॉइंटमेंट 2 साल के लिए किया जाता था और 12 में से कम से कम हाफ मेंबर्स का नॉन ऑफिशल होना जरूरी था यहां ऑफिशल का मतलब था ऐसे लोग जो गवर्नमेंट सर्विसेज का पाठ नहीं थे और इसमें यूरोपियंस और नेटिव इंडियन दोनों ही शामिल थे यह एक्ट मुंबई और मद्रास की गवर्नर और उनकी काउंसिल की लेजिसलेटिव पावर्स को रिस्टोर कर देता है जिन्हें 1833 के चार्ट एक्ट ने खत्म कर दिया था लेकिन बिना गवर्नर की परमिशन की कोई पास नहीं हो सकता था इसके साथ ही वायसराय के पास काउंसिल के किसी भी डिसीजन को ओवरराइड करने की पावर भी थी इमरजेंसी के दौरान वायसराय को ऑर्डिनेंस पास करने की पावर भी दी जाति है इस एक्ट के अंदर बाकी प्रोविंस में भी लेजिसलेटिव काउंसिल के फॉर्मेशन का प्रोविजन था जिसके तहत 1862 में बंगाल 1886 में नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और 1897 में पंजाब और बर्मा में लेजिसलेटिव काउंसिल का फॉर्मेशन होता है इसके अलावा सेक्रेटरी ऑफ स्टेट किसी भी लेजिसलेशन को डिसएप्रूव कर सकता था मतलब लेजिसलेशन पर अल्टीमेट पावर ब्रिटेन में बैठे सेक्रेटरी के हाथ में थे 200 इस तरह 1861 के एक्ट ने लेजिसलेटिव काउंसिल को इन लाज तो कर दिया लेकिन उनका रोल लिमिटेड ही था यह मेली एडवाइजरी था और फाइनेंस यानी की बजट के ऊपर कोई भी डिस्कशन तक करना अलाउड नहीं था जो 1892 में इंट्रोड्यूस किया गया था इंडियन काउंसिल एक्ट 1892 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की फाउंडेशन हो चुकी थी और कांग्रेस की सबसे बड़ी डिमांड लेजिसलेटिव काउंसिल का रिफॉर्म करना ही थी इसी डिमांड को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश पार्लियामेंट इंडियन काउंसिल एक्ट 1892 भास्कर करती है एक्ट के थ्रू गवर्नर जनरल की लेजिसलेटिव काउंसिल को फरदर इन लॉज किया जाता है साथ ही सेंट्रल और प्रोविंशियल दोनों ही जगह है नॉन ऑफिशल मेंबर्स की संख्या भी बड़ा दी जाति है यूनिवर्सिटी जिला बोर्ड्स म्युनिसिपालिटीज जमींदारा ट्रेड बॉडीज और चैंबर्स ऑफ कॉमर्स को प्रोविंशियल काउंसिल के लिए मेंबर्स रिकमेंड करने की पावर दी जाति है इस तरह यह प्रिंसिपल ऑफ रिप्रेजेंटेशन को इंट्रोड्यूस करता है इनडायरेक्ट इलेक्शन के एलिमेंट को एक्सेप्ट कर लिया गया था इसके साथ ही लेजिस्लेटर्स को बजट पर डिस्कशन करने की पावर दी जाति है और वो कुछ लिमिट्स के अंदर पब्लिक इंटरेस्ट के मैटर्स पर एग्जीक्यूटिव से क्वेश्चन भी कर सकते थे हालांकि इसके लिए उन्हें छह दिन पहले नोटिस देना होता था दोस्तों 1892 का काउंसलिंग कांग्रेस के लिए एक अचीवमेंट जरूर था क्योंकि उनकी लेजिसलेटिव काउंसिल को इन बड़े करने की डिमांड इसने एक्सेप्ट कर ली थी लेकिन अभी भी यह पुरी तरह रिप्रेजेंटेटिव बॉडी नहीं थी और ना ही उनके पास कोई सब्सटेंशियल पावर्स थी इसलिए फुर्थर रिफॉर्म्स की डिमांड बनी रहती है और अगला रिफॉर्मेट 1909 में पास होता है इंडियन काउंसिल एक्ट 1909 1909 के काउंसिल एक्ट को मौली मिंटो रिफॉर्म्स के नाम से भी जाना जाता है यह इंडिया की गवर्नेंस में रिप्रेजेंटेटिव और पॉपुलर एलिमेंट लाने का पहले ब्रिटिश अटेंप्ट था इसके थ्रू इंपीरियल लेजिसलेटिव काउंसिल की स्ट्रैंथ को 16 मेंबर्स से इंक्रीज करके अब 60 मेंबर्स कर दिया जाता है इंडियन मेंबर को शामिल किया जाता है एग्जीक्यूटिव काउंसिल को जॉइन करने वाले पहले इंडियन सत्येंद्र प्रसाद सिंह बनते हैं उन्होंने लौंग मेंबर के पद पर काउंसिल को जॉइन किया था प्रोविंशियल एग्जीक्यूटिव काउंसिल के मेंबर्स की संख्या भी इंक्रीज कर दी जाति है है इसके अलावा सेंट्रल और प्रोविंशियल लेजिसलेटिव काउंसिल को पहले से ज्यादा पावर्स दी जाति हैं प्रोविंशियल लेजिसलेटिव काउंसिल में नॉन ऑफिशल मेंबर्स की मेजॉरिटी हो जाति है लेजिसलेटिव काउंसिल के मेंबर अब बजट पर डिस्कशन के साथ रेजोल्यूशन भी पास कर सकते थे और सप्लीमेंट्री क्वेश्चन पूछने का राइट भी उन्हें दिया जाता है 1909 का एक्ट मुस्लिम के लिए सेपरेट इलेक्ट्रिक का प्रोविजन भी करता है साथ ही इंडियन अफेयर्स के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की काउंसिल में भी दो इंडियन को नॉमिनेट किया जाता है इस तरह मौली मिंटू रिफॉर्म्स एक तरफ तो काउंसिल रिफॉर्म्स की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ सेपरेट इलेक्टरेट जैसे प्रोविजंस की हेल्प से डिवाइड और रूल की पॉलिसी को आगे लेकर जाते हैं इसके 10 साल बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट अगला रिफॉर्म एक्ट पास करती है दोस्तों 1990 चिप्स पर रिफॉर्म्स पर बेस था अगस्त 1917 में पहले बार ब्रिटिश गवर्नमेंट ने डिक्लेअर किया था की उसका ऑब्जेक्टिव इंडिया में ग्रैजुअली रिस्पांसिबल गवर्नमेंट इंट्रोड्यूस करना है ये एक्ट इस दिशा में कम समझा जा सकता है इस एक्ट ने सेंटर में इंडियन लेजिसलेटिव काउंसिल को रिप्लेस करके बाय कैमररल सिस्टम इंट्रोड्यूस किया था जिसमें काउंसिल ऑफ स्टेट यानी की यहां पर हाउस और लेजिसलेटिव असेंबली यानी की लोअर हाउस था दोनों ही हाउसेस में मेजॉरिटी डायरेक्टली इलेक्ट मेंबर्स की होती थी यानी की 1990 का एक्ट पहले बार डायरेक्ट इलेक्शंस का प्रोविजन करता है हालांकि फ्रेंचाइजी वोटिंग का राइट बहुत ही लिमिटेड पापुलेशन के पास ही था यह प्रॉपर्टी टैक्स और एजुकेशन जैसी क्वालिफिकेशन पर बेस था एक्ट में कम्युनल रिप्रेजेंटेशन के प्रिंसिपल को भी एक्सटेंड किया गया था और मुस्लिम के अलावा सिक्स क्रिश्चियन और एंग्लो इंडियन को भी सेपरेट इलेक्टरेट प्रोवाइड कर दिए गए थे है इसके अलावा प्रोविंस में दी की इंट्रोड्यूस की गई थी जिसके तहत सब्जेक्ट्स को दो लिस्ट में डिवाइड किया गया था रिजर्व्ड और ट्रांसफर रिजर्व्ड लिस्ट में आने वाले सब्जेक्ट्स को गवर्नर द्वारा एडमिनिस्टर किया जाना था इसमें लायन ऑर्डर फाइनेंस लैंड रिवेन्यू और इरिगेशन जैसे सब्जेक्ट्स को रखा गया था वहीं ट्रांसफर सब्जेक्ट्स को मिनिस्टर्स एडमिनिस्टर करने वाले थे जिन्हें लेजिसलेटिव काउंसिल के इलेक्ट मेंबर्स के बीच से नॉमिनेट किया जाना था इसमें एजुकेशन इंडस्ट्री एग्रीकल्चर और एक्सिस जैसे सब्जेक्ट्स थे प्रोविंस में कांस्टीट्यूशनल मशीनरी फूल होने की सिचुएशन में गवर्नर ट्रांसफर सब्जेक्ट्स का एडमिनिस्ट्रेशन भी अपने अंदर ले सकता था पहले बार प्रोविंशियल और सेंट्रल बजट को भी सेपरेट किया गया था यानी की प्रोविंस को अब खुद का बजट बनाने की पावर मिल गई थी एक्ट की एक प्रोविजन के अनुसार इंडिया के लिए हाय कमिश्नर को अप्वॉइंट किया बन जाता है जो लंदन में 6 साल तक इस ऑफिस पर रहेगा और उसका कम यूरोप में इंडियन ट्रेड को देखना होगा कुछ फंक्शंस जिन्हें पहले सेक्रेटरी ऑफ स्टेट देखते थे अब हाय कमिश्नर को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं एक्ट में यह फैसला भी किया जाता है की सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जिसे अभी तक इंडियन रिवेन्यू से पे किया जाता था अब ब्रिटिश एक्स चेकर से उसकी पेमेंट होगी इससे होम चार्ज कम होते हैं इसके साथ दोस्तों 1919 के इस एक्ट की वजह से इंडियन लीडर्स को पहले बार कांस्टीट्यूशनल सेटअप में कम करने का कुछ एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सपीरियंस जरूर मिला था लेकिन रिस्पांसिबल गवर्नमेंट की डिमांड को पूरा करने से अभी ये बहुत दूर था इंडियन लेजिसलेच्योर अभी भी एक नॉन सावरेन लव मेकिंग बॉडी थी| और गवर्मेंट एक्टिविटी के सभी अफेयर्स में एग्जीक्यूटिव के सामने पावर एस बनी हुई थी दोस्तों 1990 के एक्ट में एक प्रोविजन यह भी था की 10 साल पॉइंट की जाएगी जो 1990 के रिफॉर्म्स को इवेलुएट करेगी और आगे की रिफॉर्म्स के बड़े में सजेशन देगी है लेकिन नवंबर 1927 में यानी की शेड्यूल से 2 साल पहले ही इस कमीशन के अपॉइंटमेंट को अनाउंस कर दिया जाता है इंडियन स्टेट्यूटरी कमीशन जिसे उसके अध्यक्ष के नाम पर साइमन कमीशन भी कहा जाता है अपनी रिपोर्ट 1930 में सबमिट करती है इसके प्रपोजल्स पर डिस्कशन करने के लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट तीन राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइजर करती है और उसके बाद एक रिपोर्ट तैयार होती है जिसके आधार पर 1935 का एक्ट पास किया जाता है गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में 451 क्लासेस और 15 शेड्यूल थे इसमें जो इंडिया फेडरेशन को एस्टेब्लिश करने की बात कहीं गई थी जिसके तहत गवर्नर प्रोविंस के कमिश्नर प्रोविंस और इंडियन प्रिंसली स्टेटस का एक यूनियन फॉर्म किया जाना था इसके साथ ही प्रोविंस में डायर की को खत्म कर दिया जाता है लेकिन सेंट्रल एग्जीक्यूटिव में इसे इंट्रोड्यूस किया जाता है इसमें सेंट्रल लेजिसलेटिव हाउसेस के बीच डेडलॉक की स्थिति में जॉइंट सेशन का प्रोविजन भी इंट्रोड्यूस किया जाता है इसके साथ ही लेजिसलेटिव सब्जेक्ट्स को तीन लिस्ट में डिवाइड किया जाता है फेडरल लिस्ट प्रोविंशियल लिस्ट पर लेजिसलेशन फेडरल लेजिसलेच्योर द्वारा पास बिल्कुल वे तू करने की पावर वायसराय के पास बनी रहती है प्रोविंस को ऑटोनॉमी दी जाति है और वहां फूली रिस्पांसिबल गवर्नमेंट को एस्टेब्लिश किया जाता है हालांकि कुछ सेफगार्ड भी रहते हैं प्रोविंशियल लेजिस्लेटर्स को भी फरदर एक्सपेंड किया जाता है मद्रास बॉम्बे बंगाल यूनाइटेड प्रोविंस बिहार और असेंबलीकैमरल लेजिस्लेटर्स एस्टेब्लिश करने का प्रोविजन भी इसमें शामिल था कम्युनल इलेक्ट्रोड के प्रिंसिपल को एक्सटेंड करते हुए डिप्रेस्ड क्लासेस वूमेन और लेबर क्लास के लिए भी इसका प्रोविजन कर दिया जाता है 1935 का एक्ट फ्रेंचाइजी को भी एक्सटेंड करता है टोटल पापुलेशन में लगभग 10% को अब वोटिंग राइट मिल जाता है एक्ट में फेडरल कोड का प्रोविजन भी था जिसे 1937 में एस्टेब्लिश किया जाता है है इसके पास ओरिजिनल और बैलेट पावर्स के साथ इंटरस्टेट डिस्प्यूट को सेटल करने की पावर भी थी इसके अलावा सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की इंडियन काउंसिल को अबॉलिश कर दिया जाता है दोस्तों एक्ट में विजुलाइज जो इंडिया फेडरेशन तो कभी अस्तित्व में नहीं ए पता क्योंकि इंडिया की डिफरेंट पार्टी और स्पेशली प्रिंसली स्टेटस इसके अगेंस्ट हो गए थे फर्स्ट अप्रैल 1937 को प्रोविंशियल ऑटोनॉमी के प्रोविजन को इंप्लीमेंट कर दिया जाता है लेकिन सेंट्रल गवर्नमेंट कुछ माइनर अमेंडमेंट के साथ अभी भी 1990 के एक्ट के अकॉर्डिंग ही कम करती रहती है 1935 के एक्ट का ऑपरेटिव पार्ट आजादी मिलने तक यानी की 15th अगस्त 1947 तक फोर्स में राहत है यह कोशिश थी इंडिया को रिटर्न कॉन्स्टिट्यूशन देने की लेकिन इसके क्रिएशन में इंडियन को इंवॉल्व नहीं किया गया था इसके साथ ही इसमें अमेंडमेंट का राइट भी ब्रिटिश पार्लियामेंट को ही दिया गया था इंडिया में इस एक्ट की लगभग सभी सेक्शंस ने आलोचना की थी और कांग्रेस ने इसे पुरी तरह रिजेक्ट कर दिया था इसकी जगह कांग्रेस एडल्ट फ्रेंचाइजी पर आधारित कॉन्स्टिट्यूशन बने तक 1935 एक्ट के थ्रू ही इंडिया को गवर्नर किया जाता है और इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन भी इसके काफी सारे प्रोविजंस को बर करता है कंक्लुजन दोस्तों इस तरह 1858 के बाद धीरे-धीरे इंडियन कांस्टीट्यूशनल डेवलपमेंट हुए थे अलग-अलग एक्ट्स के द्वारा इंडिया में कुछ हद तक रिस्पांसिबल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट इंट्रोड्यूस की गई थी हालांकि पुरी तरह इसका फॉर्मेशन आजादी मिलने के बाद ही होता है फिर भी हम का सकते हैं की इन एक्ट्स के थ्रू इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन करते हैं जो आजादी के बाद इंडियन डेमोक्रेसी को सफल बनाने में काफी मदद करता है लोकल सेल्फ गवर्नमेंट दोस्तों इंडिया में एशिया टाइम से लोकल गवर्निंग बॉडीज देखने को मिलती हैं फिर चाहे वो मौर्य अंपायर के दौरान पाटलिपुत्र की सिटी काउंसिल हूं या फिर चोला अंपायर की विलेज असेंबलीज लोकल गवर्नमेंट ब्रिटिश रूल के समय शुरू हुआ था आज हम इसी को यानी ब्रिटिश कॉलोनियल रूल के दौरान लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के डेवलपमेंट को डिटेल में देखने वाले हैं लेकिन उसे समझना से पहले यह जान लेना जरूरी है की आखिर ब्रिटिश ने इंडिया में लोकल गवर्निंग बॉडीज का डेवलपमेंट क्यों शुरू किया था तो आई जानते हैं रीजंस बिहाइंड डी ग्रोथ ऑफ लोकल बॉडीज बहुत से ऐसे फैक्टर्स थे जिनकी वजह से ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडिया में लोकल बॉडीज को एस्टेब्लिश करने का डिसीजन लेती है इसमें सबसे पहले करण था ओवर सेंट्रलाइज की वजह से ए रही फाइनेंशियल डिफिकल्टी 1857 की क्रांति के बाद कंपनी पर फाइनेंशियल प्रेशर बहुत अधिक बाढ़ गया था ऐसे में डिसेंट्रलाइजेशन करना जरूरी हो गया था जिससे रोड और पब्लिक वर्क की रिस्पांसिबिलिटी लोकल बॉडीज को ट्रांसफर की जा सके और गवर्नमेंट को एडिशनल रिवेन्यू भी मिले इसके अलावा नेशनलिस्ट लीडर्स की भी डिमांड थी की बेसिक सिविक फैसेलिटीज में इंप्रूवमेंट किया जाए जो की लोकल बॉडीज के थ्रू ही बटर हो सकता था साथ ही कुछ ब्रिटिश पॉलिसी मार्क्स का यह भी मानना था की लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के साथ इंडियन को जोड़ने से ब्रिटिश सुप्रीमेसी भी अंडमान नहीं होगी और इंडियन में बढ़ते हुए पॉलिटिसाइजेशन को भी सीमित किया जा सकेगा इसके साथ ही लोकल वेलफेयर के लिए लोकल टैक्सिस का उसे होने से ऑलरेडी बर्डन सेंट्रल ट्रेजरी पर प्रेशर भी नहीं बनेगा डी बिगनिंग सबसे पहले लोकल बॉडीज प्रेसीडेंसी टाउन में इस टैबलेट की जाति है 1687 में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने मद्रास में कॉरपोरेशन सेटअप करने का ऑर्डर दिया था यह कोऑपरेशन ब्रिटिश और इंडियन मेंबर्स से मिलकर बनी थी और इसी सिटी में गढ़ हाल जय स्कूल एट सिटेरा बिल्ड करने के लिए टैक्स लवी करने की पावर दी गई थी लेकिन यह एक्सपेरिमेंट फेल हो जाता है क्योंकि रेजिडेंस डायरेक्ट टैक्स देने के लिए तैयार नहीं थे जी वजह से कॉरपोरेशन कोई भी प्रोजेक्ट शुरू नहीं कर पाती इसके बाद 17-26 का चार्ट एक्ट कॉरपोरेशन की जगह मायर्स कोर्ट सेटअप करने का प्रोविजन करता है जुडिशल थी मद्रास के अलावा मुंबई और कोलकाता में भी सिमिलर मायर्स कोर्ट सेटअप किया जाते हैं इसके बाद 1793 का चार्ट एक्ट पहले बार म्युनिसिपल इंस्टीट्यूशंस को स्टेट्यूटरी बेसिस प्रोवाइड करता है इसमें गवर्नर जनरल को मार दी जाति है की वह प्रेसीडेंसी टोंस में जस्टिस ऑफ पीस को अप्वॉइंट कर सकते मीत करने स्कैवेंजिंग और रोड्स को रिपेयर करने के लिए हाउस और लेंस पर टैक्स लगाने की पावर दी गई थी इसके अलावा 1850 में एक्ट पास किया गया था जिसके बाद प्रेसिडेंट के अलावा दूसरे टोंस में भी म्युनिसिपल बॉडीज का डेवलपमेंट शुरू हो गया था इसमें म्युनिसिपल बॉडीज को इनडायरेक्ट टैक्स लगाने की पावर दी गई थी इसका फायदा उठाकर नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस यानी की मॉडर्न अप और मुंबई के बहुत सारे डांस में म्युनिसिपल समिति सेटअप की गई थी प्रेसीडेंसी टाउन में रेंटल वैल्यू के फाइव परसेंट रेट पर हाउस टैक्स इंपोज किया गया था कॉरपोरेशन के मेंबर्स को सिलेक्ट करने का राइट भी दे दिया गया था लेकिन 1856 में यह सिचुएशन पुरी तरह रिवर्स हो जाति है क्योंकि बॉम्बे में एग्जीक्यूटिव पावर नॉमिनेटेड कमिश्नर के हाथों में कंसंट्रेट कर दी जाति है ऐसा ही प्रोसीजर मद्रास और कोलकाता में भी फॉलो होता है इसके बाद लोकल बॉडीज के इवोल्यूशन में एक बड़ा डेवलपमेंट 1870 में होता है आई इस डेवलपमेंट को डिटेल में समझते हैं न्यूज़ रेजोल्यूशन ऑफ 1870 1870 में वायसराय लॉर्ड मेयर एक रेजोल्यूशन पास करते हैं यह रेजोल्यूशन फाइनेंशियल डिसेंट्रलाइजेशन से रिलेटेड था एडमिनिस्ट्रेटिव कन्वीनियंस और फाइनेंशियल स्ट्रिजेंसी को देखते हुए इंपीरियल यानी की सेंट्रल गवर्नमेंट ने एडमिनिस्ट्रेशन के कुछ डिपार्टमेंट प्रोविंशियल गारमेंट्स को ट्रांसफर कर दिए थे जैसे की एजुकेशन मेडिकल सर्विसेज और रोड इसके लिए इंपीरियल गवर्नमेंट की तरफ से प्रोविंस को एनुअल ग्रैंड दिए जान थे साथी प्रोविंशियल गवर्मेंट को अपने बजट को बैलेंस करने के लिए लोकल टैक्सेशन का अधिकार भी दिया गया था लॉर्ड मियो के रेजोल्यूशन में कहा गया की एजुकेशन सैनिटेशन मेडिकल रिलीफ और लोकल वर्क के लिए देवोटेड फंड्स को सक्सेसफुली मैनेज करने के लिए लोकल इंटरेस्ट केयर और सुपरविजन बहुत ही जरूरी है खाने का मतलब ये हुआ की लोकल सेल्फ गवर्निंग इंस्टीट्यूशंस को स्ट्रेंजर करने की जरूर थी रेजोल्यूशन में आउटलाइन पॉलिसी को इंप्लीमेंट करने के लिए कई प्रोविंशियल गवर्नमेंट मऊ म्युनिसिपल एक्ट पास करती है बंगाल जिला बोर्ड सिस एक्ट 1871 और बंगाल में लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के लिए लिया गया पहले कम था सिमिलर एक्ट मद्रास नॉर्थवेस्ट प्रोविंस और पंजाब में भी पास होते हैं लोकल बॉडीज के लिए प्रोएक्टिव नजर आते हैं आई जानते हैं उनके बड़े में रेपिन्स रेजोल्यूशन ऑफ 1882 लॉर्ड रिपन के समय एडमिनिस्ट्रेशन के हर्षविया में लिबरलाइजेशन देखने को मिलता है उनका 1882 का रेजोल्यूशन लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के विकास में एक लैंडमार्क है लॉर्ड रिपन ने जब मायर्स रेजोल्यूशन के बाद लोकल बॉडीज की फील्ड में हुई प्रोग्रेस को रिव्यू किया तो बाय की लोकल रेट्स और सेसेस की मदद से एक बड़ी इनकम जेनरेट हो रही है और कुछ प्रोविंस ने इस इनकम की मैनेजमेंट को पुरी तरह लोकल बॉडीज को सोप हुआ है इस तरह म्युनिसिपालिटीज का मेंबर और यूजफुलनेस दोनों ही बाढ़ गए हैं लेकिन अभी भी देश के अलग-अलग हसन में इन क्वालिटी नजर ए रही है यानी की हर जगह प्रोग्रेस एक जैसी नहीं थी बहुत सी सर्विसेज जिन्हें लोकल बॉडीज को दिया जा सकता था अभी भी प्रोविंशियल गवर्नमेंट के हाथ में ही थी रिपन चाहते थे की प्रोविंशियल गवर्नमेंट लोकल बॉडीज के साथ फाइनेंशियल डिसेंट्रलाइजेशन का वही प्रिंसिपल उसे करें जो लॉर्ड मियो ने शुरू किया था अपनी कंट्रीब्यूशन के लिए लॉर्ड रिपन को फादर ऑफ लोकल सेल्फ गवर्नमेंट भी कहा जाता है लॉर्ड रिपन के रेजोल्यूशन के में प्वाइंट्स कुछ इस तरह थे लोकल बॉडीज का विकास सिर्फ एडमिनिस्ट्रेशन को इंप्रूव करने के लिए ही नहीं बल्कि पॉपुलर और पॉलीटिकल एजुकेशन के इंस्ट्रूमेंट के तोर पर भी होना चाहिए लोकल अफेयर्स को अर्बन और और लोकल बॉडीज के थ्रू एडमिनिस्टर करने की पॉलिसी बनाई जाति है इन्हें डेफिनेट ड्यूटीज और रिवेन्यू के सूटेबल सोर्सेस भी दिए जाते हैं जिन्हें अप्वॉइंट करने के लिए इलेक्शंस भी ऑर्गेनाइज किया जा सकते थे और लोकल बॉडीज के चेयरपर्सन भी सिर्फ नॉन ऑफिशल मेंबर्स ही बन सकते थे ऑफिशल इंटरफ्रेंस को मिनिमम रखना का फैसला किया जाता है और इसी सिर्फ लोकल बॉडीज के एक्ट को रिवाइज और चेक करने के लिए ही किया जा सकता था ना की पॉलिसीज को डिक्टेट करने के लिए ऑफिशल एग्जीक्यूटिव सैंक्शन की जरूर थी है इस रेजोल्यूशन के आधार पर 1883 और 1885 के बीच बहुत से एक्ट्स पास किया गए थे जिन्होंने इंडिया में म्युनिसिपल बॉडीज के कॉन्स्टिट्यूशन पावर्स और फंक्शंस को बहुत हद तक बादल दिया था लेकिन अभी इफेक्टिव लोकल सेल्फ गवर्निंग बॉडीज का सपना अधूरा ही था एक्जिस्टिंग लोकल बॉडीज में बहुत साड़ी लिमिटेशंस देखने को मिलती हैं जैसे की सभी जिला बोर्ड्स और बहुत सी मुनेलिटीज में इलेक्ट मेंबर्स माइनॉरिटी में ही थे इसके अलावा फ्रेंच बहुत ही लिमिटेड थी जिला बोर्ड्स को अभी भी जिला ऑफिशल सी एड कर रहे थे साथ ही गवर्नमेंट का स्ट्रिक्ट कंट्रोल बना हुआ था वह कभी भी अपनी मर्जी से इन लोकल बॉडीज को सस्पेंड या सुपर स्पीड कर शक्ति थी इसके अलावा नहीं थे उन्हें लगता था की इंडियन सेल्फ गवर्नमेंट के लिए अनफिट है इंपिरियलिज्म की पॉलिसी डोमिनेंट करती है और इसी की एक बड़े समर्थक लॉर्ड कर्जन लोकल बॉडीज पर ऑफिशल कंट्रोल बढ़ाने की दिशा में कम उठाते हैं एक बार फिर डिसेंट्रलाइजेशन पर कमीशन अप्वॉइंट की जाति है रॉयल कमीशन ऑन डिसेंट्रलाइजेशन 1998 इस कमीशन के अनुसार लोकल बॉडीज की इफेक्टिव फंक्शनिंग में सबसे बड़ी समस्या फाइनेंशियल रिसोर्सेस की कमी होना है इसी को ध्यान में रखते हुए कमीशन अपने सुझाव दे दी है जिसमें सबसे पहले सुझाव था की विलेज पंचायत को और ज्यादा पावर्स दी जाए जैसे उन्हें पेटी केसेस में जुडिशल पावर्स मिले माइनर विलेज वर्क स्कूल फ्यूल और फॉदर रिजर्व्स पर खर्च करने की पावर मिले इसके लिए पंचायत को एडेक्वेट सोर्स ऑफ इनकम भी प्रोवाइड करना चाहिए इसके अलावा हर एक तालुका या तहसील में सब जिला बोर्ड्स को एस्टेब्लिश करना चाहिए जिनकी पावर्स और रिवेन्यू सोर्सेस जिला बोर्ड से अलग रखना चाहिए इसे दिया जा सकता था है इसके साथ इम्यूनिटी अगर चाहे तो प्राइमरी एजुकेशन के रिस्पांसिबिलिटी भी ले शक्ति हैं लेकिन सेकेंडरी एजुकेशन अस्पताल रिलीफ पुलिस और वेटरनरी वर्क जैसे मैटर्स के चार्ज से कमीशन लोकल बॉडीज को रिलीज करने के लिए कहती है कमीशन की रिकमेंडेशन पर ऑफिशल व्यू देते हुए 1915 में गवर्नमेंट का एक रेजोल्यूशन कहता है की लोकल रेवेन्यू इन इलास्टिक हैं और इन्हें फादर रिवाइज नहीं किया जा सकता इस तरह डिसेंट्रलाइजेशन कमीशन के सुझाव सिर्फ पीपल पर ही र जाते हैं और लोकल बॉडीज की कंडीशन वैसी ही बनी रहती है जैसे रिपन की समय में थी इसके बाद 1918 में लोकल सेल्फ बॉडीज से रिलेटेड एक और रेजोल्यूशन पास किया जाता है 20th अगस्त 1917 को ब्रिटिश गवर्नमेंट ने डिक्लेअर किया था की उनका एक इंडिया में ग्रैजुअली रिस्पांसिबल गवर्नमेंट को डेवलप करना है और इसके लिए पहले स्टेप लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के स्फीयर में ही लिया जाना था इसी अनाउंसमेंट को ध्यान में रखते हुए मे 1918 का यह रेजोल्यूशन इंडिया में लोकल सेल्फ गवर्नमेंट को रिव्यू करता है इसमें सजेस्ट किया जाता है की लोकल बॉडीज के ज्यादा से ज्यादा रिप्रेजेंटेटिव बनाए जैन और इन्हें सिर्फ नाम की नहीं बल्कि रियल अथॉरिटी भी दी जाए साथ ही प्रोविंशियल गवर्नमेंट को विलेज पंचायत के डेवलपमेंट की शुरुआत करने के लिए भी कहा जाता है 1918 के रेजोल्यूशन पर कोई स्टेप्स लिए जाते इससे पहले ही 1919 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पास होता है इसमें लोकल बॉडीज की क्या पोजीशन रहती है आई जानते हैं लोकल सेल्फ गवर्नमेंट को ट्रांसफर सब्जेक्ट की लिस्ट में रखा गया इस पर इलेक्ट मेंबर्स का कंट्रोल था और सभी प्रोविंस को अपनी अपनी जरूर के अनुसार लोकल सेल्फ इंस्टीट्यूशंस को डेवलप करने के लिए कहा गया था लेकिन फाइनेंस रिजर्व्ड सब्जेक्ट था यानी इस पर गवर्नर या एग्जीक्यूटिव काउंसलर का ही कंट्रोल था और फंड्स की कमी के करण इंडियन मिनिस्टर्स लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के क्षेत्र में ज्यादा कुछ कम नहीं कर पाते 1928 के साइमन कमीशन भी अपनी रिपोर्ट में अप बंगाल और मद्रास के अलावा और जगह पर विलेज पंचायत की प्रोग्रेस ना होने की तरफ पॉइंट करती है इसके साथ ही कमीशन एफिशिएंसी के नाम पर लोकल बॉडीज के ऊपर प्रोविंशियल कंट्रोल को बढ़ाने जैसा रेट्रोग्रेट्स स्टेप भी सजेस्ट करती है साइमन कमीशन का यह भी मानना था की इलेक्ट मेंबर्स लोकल टैक्स को इंपोज करने में रेलूक्टेंट रहते हैं और 1919 रिफॉर्म्स के बाद लोकल बॉडीज के फाइनेंस का मैनेजमेंट और खराब हुआ है इसके बाद गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 पास होता है उसे समय लोकल बॉडीज की कंडीशन में क्या चेंज आते हैं आई जानते हैं डी गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 और आफ्टर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में प्रोविंशियल ऑटोनॉमी प्रोवाइड की जाति है जिसके बाद इंडिया में लोकल सेल्फ गवर्निंग इंस्टीट्यूशंस का और तेजी से विकास संभव होता है पोर्टफोलियो फाइनेंस क्योंकि अभिलेक्टेड मिनिस्टरीज के पास था इसलिए लोकल बॉडीज को डेवलप करने के लिए फंड्स अवेलेबल किया जा सकते थे इसके साथ ही 1990 के बाद से प्रोविंशियल और लोकल टैक्सेशन में चला ए रहा देमार्केशन भी खत्म कर दिया जाता है इस दौरान प्रोविंस में नए एक्ट्स पास किया जाते हैं जो लोकल बॉडीज को और ज्यादा अथॉरिटी देते हैं लेकिन फाइनेंशियल रिसोर्सेस और टैक्सेशन की पावर्स लगभग इस लेवल पर रहती हैं जैसी रिपन के समय में थी इसके अलावा 1935 के बाद लोकल बॉडीज पर कुछ रिस्ट्रिक्शंस भी लगा दी जाति हैं जैसे की ट्रेड्स कॉलिंग प्रोफेशनल्स और प्रॉपर्टी पर इनकी टैक्सेशन पावर्स को कम कर दिया जाता है मतलब यह हुआ की आजादी मिलने तक लोकल बॉडीज का बहुत ही सीमित विकास हुआ था इनके पास कोई रियल अथॉरिटी और पावर्स नहीं थी ज्यादातर पावर्स प्रोविंशियल गवर्नमेंट से ही डेरिव थी कंक्लुजन दोस्तों इस तरह ब्रिटिश कॉलोनियल रूल के समय लोकल बॉडीज को डेवलप करने के कुछ स्टेप्स तो जरूर लिए गए थे लेकिन इसके पीछे ब्रिटिशर्स का में मकसद और ज्यादा रिवेन्यू कलेक्ट करना और अपनी रिस्पांसिबिलिटी से हाथ छुड़वाना था ना की इंडिया में लोकल लेवल पर डेमोक्रेसी डेवलप करना लॉर्ड रिपन जरूर कोशिश करते हैं की इंडियन को लोकल सेल्फ गवर्नमेंट के जारी एडमिनिस्ट्रेशन से जोड़ा जाए लोकल बॉडीज का सही मैनो में विकास आजादी के बाद ही हो पता है इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन आर्टिकल 40 के तहत स्टेट गवर्नमेंट स्कूल विलेज पंचायत को ऑर्गेनाइज करने के लिए डायरेक्ट करता है इसके बाद 73 और 74th अमेंडमेंट एक्ट्स के जारी और और अर्बन लोकल बॉडीज को और स्ट्रेंजर किया जाता है लोकल सेल्फ गवर्नमेंट का डेवलपमेंट आज भी एक वर्किंग प्रोग्रेस है और इसमें रेगुलर इवोल्यूशन जरूरी है इवोल्यूशन को समझेंगे हम देखेंगे की किस तरह ब्रिटिश कॉलोनियल रूल की जरूर के हिसाब से इनमें समय के साथ चेंज किया जाते हैं सबसे पहले बात करते हैं पुलिस सिस्टम की इवोल्यूशन की इवोल्यूशन ऑफ पुलिस सिस्टम अंदर ब्रिटिश रूल दोस्तों फ्री कॉलोनियल इंडिया में यानी की मुग़ल और दूसरे नेटिव स्टेटस की गवर्नमेंट ऑटोक्रेटिक नेचर की होती थी और उसे समय कोई सेपरेट या फॉर्मल पुलिस सिस्टम नहीं हुआ करता था मुगल रूल के समय फौजदार डॉ और ऑर्डर मेंटेन किया करते थे इसके साथ ही सिटीज में ये कम कोतवाल का होता था यहां तक की 1765 से 1772 तक बंगाल में ड्यूल रोल के समय भी जमींदारा को ही डॉ और ऑर्डर मेेंटेन करने की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन कई बार जमींदारा अपनी ड्यूटी कर देते थे और कुछ जमींदारा तो डेकोर्स के साथ मिलकर उनकी ल में शेर भी लेते थे 1770 में फौजदर्स की पोस्ट को खत्म कर दिया गया था लेकिन 1774 में वारेन हेस्टिंग्स एक बार फिर से फौजदार्ज की इंस्टीट्यूशन को रिस्टोर कर दें और जमींदारा को इन्हें एसिस्ट करने के लिए कहा जाता है 1775 में बड़े डिस्ट्रिक्ट के मेजर टोंस में फौजदार थाना को एस्टेब्लिश किया जाता है और बहुत से छोटे पुलिस स्टेशन इन्हें एसिस्ट करने के लिए बनाए जाते हैं लेकिन इंडिया में रेगुलर पुलिस फोर्स क्रिएट करने का श्री लॉर्ड कार्नवालिस को जाता है इसके लिए उन्हें फादर ऑफ इंडियन पुलिस सर्विसेज भी कहा जाता है 1791 में लॉर्ड कार्नवालिस पुलिस फोर्स को ऑर्गेनाइज करने का कम शुरू करते हैं इसके लिए एक जिला को अलग-अलग थाना यानी की सर्कल्स में डिवाइड किया जाता है और जिला यानी की एसपी को बनाया जाता जमींदारा को उनकी पुलिस ड्यूटी से रिलीव कर दिया जाता है इस तरह एक इंडिपेंडेंस डॉ और ऑर्डर मशीनरी एस्टेब्लिश करने की कोशिश की जाति है इसके बाद 18008 में लॉर्ड मियो हर डिवीजन के लिए एक एसपी अप्वॉइंट कर देते हैं और इनकी हेल्प के लिए बहुत से स्पाइस यानी की गोयनका को रखा जाता है लेकिन यह स्पाइस लोकल पीपल का काफी शोषण करते थे 1814 में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के एक ऑर्डर के जारी दारोगाज और उनके सबोर्डिनेट्स का अपॉइंटमेंट बंगाल के अलावा कंपनी की बाकी सभी टेरिटरीज में अबॉलिश कर दिया जाता है इसके बाद बैंकिंग के समय 1828 तू 1835 में एसपी की पोस्ट भी अबॉलिश कर दी जाति है उसकी जगह अब कलेक्टर या मजिस्ट्रेट को पुलिस फोर्स हेड करने की रिस्पांसिबिलिटी मिलती है यानी एक बार फिर फ्यूजन ऑफ पावर देखने को मिलता है और हर डिवीजन की कमिश्नर को स्पीड की तरह एक्ट करना होता है यह अरेंजमेंट सफल नहीं राहत इससे पुलिस फोर्स का ऑर्गेनाइजेशन खराब हो जाता है और कलेक्टर पर बहुत ज्यादा बर्डन ए जाता है फिर 1860 में पुलिस कमिश्नर अप्वॉइंट की जाति है जिसकी रिकमेंडेशन के आधार पर इंडियन पुलिस एक्ट 1861 पास होता है इसके अनुसार सिविल कांस्टेबल का एक सिस्टम तैयार किया जाता है प्रोवेस में इंस्पेक्टर जनरल को पुलिस का हेड बनाया जाता है रेंज में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरली ये कम देखा है वही जिला का हेड एक बार फिर से एसपी को बनाया जाता है इसके अलावा नेशनल मूवमेंट को सरप्राइज करने के लिए भी कई इंस्टेंस पर ब्रिटिश पुलिस उसे करते हैं ब्रिटिशर्स ने जो इंडिया पुलिस का क्रिएशन नहीं किया था 1861 का पुलिस एक्ट सिर्फ प्रोविंस में पुलिस सेटअप की गाइडलाइंस प्रोवाइड करता है हालांकि इसमें मेंशन रैंक्स को यूनिफॉर्म पूरे देश में इंट्रोड्यूस किया गया था इसके अलावा लौटकर्जन के समय 192 में एक और पुलिस कमीशन फॉर्म की गई थी इसके हेड एंड्रयू फ्रीजर थे कमीशन की रिकमेंडेशन के आधार पर प्रोविंस में क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्मेंट यानी की सीआईडी और सेंटर में सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी की सिब को एस्टेब्लिश किया गया था इनका इस्तेमाल इंडिया में रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटी और नेशनल मूवमेंट को सरप्राइज करने के लिए किया जाता था दोस्तों यह तो बात हो गई पुलिस फोर्स के इवोल्यूशन की जिसने ब्रिटिश रूल को इंडिया में बनाए रखना में काफी हेल्प की थी अब बात करते हैं ऐसी फोर्स की जिसकी वजह से ब्रिटिश रूल इंडिया में एस्टेब्लिश हो पाया था और इतने समय कंटिन्यू रहा था यानी की ई ऑर्गेनाइजेशनवामी ड्यूरिंग ब्रिटिश रूल दोस्तों मिलिट्री इंडिया में कंपनी के रूल की बैकबोन हुआ करती थी 1857 की क्रांति से पहले इंडिया में मिलिट्री फोर्सेस के दोस्त सेपरेट बोर्ड्स ऑपरेट किया करते थे पहले सेटअप यूनिट जिसे क्वींस आर्मी कहा जाता था इंडिया में ड्यूटी पर आए सर्विंग ब्रिटिश ट्रूप्स का था और दूसरा कंपनी के ट्रूप्स हुआ करते थे जो यूरोपीय और नेटिव रेजिमेंट का मिक्सर होते थे क्वींस आर्मी ग्राउंड की मिलिट्री फोर्स का पार्ट हुआ करती थी 1857 के बाद ई का सिस्टमैटिक रीऑर्गेनाइजेशन किया जाता है इस रिऑर्गेनाइजेशन के पीछे मुख्य करण फिर से 1857 जैसी क्रांति होने से रोकना था सबसे पहले तो यह एश्योर किया जाता है की आर्मी में यूरोपियन ब्रांच न्यूमेरिकल हमेशा इंडियन ब्रांच को डोमिनेट करें इसके लिए बंगाल आर्मी में हर दो इंडियन सोल्जर पर एक यूरोपियन सोल्जर का प्रोपोर्शन फिक्स किया जाता है और मुंबई और मद्रास में यह प्रोपोर्शन 5 इंडियन सोल्जर पर दो यूरोपियन सोल्जर का राहत है इसके अलावा 1859 और 1879 की मिलिट्री कमिश्नर 1/3 व्हाइट आर्मी के प्रिंसिपल पर इंसिस्ट करती हैं जबकि 1857 से पहले ये व्हाइट आर्मी सिर्फ 14% हुआ करती थी इसके साथ ही की ज्योग्राफिकल लोकेशंस और डिपार्मेंट जैसे की आर्टिलरी टैंक्स और आर्म्ड कर में स्ट्रिक्ट यूरोपियन मोनोपोली मेंटेन की जान लगी थी यहां तक की साल 1900 तक इंडियन को राइफल्स भी इनफीरियर क्वालिटी की दी जाति थी और इन हाईटेक डिपार्मेंट में सेकंड वर्ल्ड वार तक इंडियन को एंट्री नहीं दी गई थी कोई भी इंडियन ऑफिसर रैंक तक नहीं पहुंच सकता था 1914 तक इंडियन के लिए हाईएस्ट रैंक सूबेदार ही हुआ करती थी दोस्तों आर्मी की इंडियन ब्रांच को डिवाइड और रूल पॉलिसी के बेसिस पर भी रिऑर्गेनाइज किया जाता है इसके तहत मार्शल रेसेज और नॉन मार्शल रिसर्च की आईडियोलॉजी फॉर्म की जाति है जिसमें बताया जाता है की अच्छे सोल्जर सिर्फ स्पेसिफिक कम्युनिटी से ही ए सकते समय कम्युनिटी से इन डिस्क्रिमिनेशन रिक्रूटमेंट की पॉलिसी को जस्टिफाई किया जाता है क्योंकि इन ग्रुप ने 1857 की क्रांति को सरप्राइज करने में ब्रिटिश की हेल्प की थी और साथ ही यह रिलेटिवली मार्जिनल सोशल ग्रुप को बिलॉन्ग करते थे इसलिए इन पर नेशनलिज्म का इफेक्ट होने के चांसेस भी कम थे अवध बिहार सेंट्रल इंडिया और साउथ इंडिया के सोल्जर जिन्होंने 1857 के रिवॉल्ट में भाग लिया था उन्हें नॉन मार्शल डिक्लेअर कर दिया जाता है है इसके अलावा सभी रैगनमेंट्स में कास्ट और कम्युनल कंपनी इंट्रोड्यूस कर दी जाति है और इंडियन रेजीमेंट को सोशियो एथेनिक ग्रुप का मिक्सर बना दिया जाता है जिससे ये एक दूसरे को बैलेंस करते रहे इसके साथ ही सोल्जर में नेशनल फीलींगस की ग्रोथ को रोकने के लिए कम्युनल कास्ट ट्रबल और रीजनल कॉन्शसनेस को इनकरेज किया जाता है इसी कॉन्टेक्स्ट में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट पर इंडिया चार्ल्स वुड ने कहा था की मैं डिफरेंट रेजीमेंट में अलग-अलग और राइवल्स स्पिरिट चाहता हूं जिससे जरूर पढ़ने पर बिना किसी संकोच के एक सिख हिंदू पर फायर कर सके और एक गोरख दोनों में से किसी पर भी फायर कर सकें इसके अलावा दोस्तों ब्रिटिश की तरफ से पुरी कोशिश की जाति है की सोल्जर को रेस्ट ऑफ डी पापुलेशन की लाइफ और थॉट से दूर रखा जाए इसके लिए अलग-अलग मैथर्ड अपने जाते हैं जैसे की न्यूज़ पेपर्स जर्नल्स और नेशनल पब्लिकेशंस को सोल्जर तक पहुंचने से रॉक जाता है है इस तरह 1857 के बाद ई का पुरी तरह रिऑर्गेनाइजेशन करके यह एश्योर किया जाता है की इंडिया पर ब्रिटिश हॉल कमजोर ना हो पे साथी इंडियन आर्मी को एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश अंपायर के एक्सपेंशन के लिए भी उसे किया जाता है पुलिस और आर्मी जहां ब्रिटिश रूल को एस्टेब्लिश और प्रोटेस्ट करने का कम करते हैं वहीं जुडिशल सिस्टम इसे कंसोलिडेटेड करने में हेल्प करता है इसलिए ब्रिटिश रूल में जुडिशल रिफॉर्म्स को भी समझ लेते हैं जुडिशल रिफॉर्म्स दोस्तों ब्रिटिश रूल से पहले इंडिया में जुडिशल सिस्टम का ना कोई प्रॉपर प्रोसीजर हुआ करता था और ना ही डॉ कोट्स का हाईएस्ट से लोएस्ट ग्रेडेशन में कोई प्रबल ऑर्गेनाइजेशन हिंदू उसके ज्यादातर केसेस को गांव की पंचायत या जमींदार संभल लेते थे और मुस्लिम के लिए जुडिशल एडमिनिस्ट्रेशन की यूनिट के रूप में उनके रिलिजियस लीडर कई हुआ करते थे इसके अलावा राजा और बादशाह को जस्टिस का फाउंटेन हेड समझा जाता था और वह अपनी समझ से न्याय करते थे उसके लिए कोई फिक्स नियम या कानून अक्सर नहीं होते थे रिकॉर्ड जुडिशल प्रेसिडेंट पर बेस्ड आम लॉस सिस्टम की शुरुआत 1726 में होती है जब मद्रास मुंबई और कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा मायर्स कोर्स एस्टेब्लिश किया जाते हैं इसके बाद कंपनी का ट्रेडिंग पावर से रनिंग पावर में ट्रांसपोर्टेशन होने के साथ जुडिशल सिस्टम में नए एलिमेंट्स एड होने शुरू हो जाते हैं यह चेंज अलग-अलग गवर्नर जनरल्स द्वारा किया गए थे सबसे पहले बात करते हैं वारेन हेस्टिंग्स के समय में हुए रिफॉर्म्स की रिफॉर्म्स अंदर वारेन हेस्टिंग 1772 2785 दोस्तों वारेन हेस्टिंग्स का सबसे पहले जुडिशल रिफॉर्म होता है जमींदारा की जुडिशल पावर्स को खत्म करना 1772 में वारेन हेस्टिंग्स जिला लेवल पर दीवान अदालत और फौजदारी अदालत सेटअप करते हैं दीवानी अदालत में सिविल केसेस ट्री किया जाते थे और फौजदारी में क्रिमिनल केसेस दीवानी अदालत को कलेक्टर यानी की यूरोपीय ऑफिसर प्रेसीडे करता था और फौजदारी अदालत को इंडियन जज इसके अलावा दीवानी अदालत में हिंदू उसका कैसे हिंदू लॉस के अकॉर्डिंग डिसाइड होता था और मुस्लिम का मुस्लिम डॉ के अकॉर्डिंग लेकिन फौजदारी अदालत में सभी का डिसीजन मुस्लिम डॉ के अकॉर्डिंग ही होता था जिला कोट्स के डिसीजन के अगेंस्ट अपील के लिए कोलकाता में सदर दीवानी अदालत और सदर निजामुद्दीन कोशिश भी करते हैं 1776 में हिंदू कोड का एक इंग्लिश ट्रांसलेशन कोड ऑफ जंतु लॉस के नाम से पब्लिश भी हो जाता है दोस्तों ये थे वारेन हेस्टिंग्स द्वारा इंट्रोड्यूस किया गए जुडिशल रिफॉर्म्स इसके बाद जुडिशल सिस्टम को फादर रिफॉर्म लॉर्ड कार्नवालिस ने किया था तो आई उनके रिफॉर्म्स को जानते हैं रिफॉर्म्स अंडरग्राउंड वालेस 1786 2793 दोस्तों वारेन हेस्टिंग्स ने जो जुडिशल सिस्टम एस्टेब्लिश किया था कार्नवालिस उसमें कुछ चेंज करते हैं जैसे की 1787 में वो जिला कलेक्टर्स को फिर से दीवानी अदालत का जज बना देते हैं लॉर्ड कार्नवालिस एन सिर्फ कलेक्टर्स की जुडिशल पावर्स को रिस्टोर करते हैं बल्कि उन्हें पहले से भी ज्यादा मजेस्टिशियल पावर दे देते हैं यह सिपरेशन ऑफ पावर्स की प्रिंसिपल के एकदम उल्टा था दूसरा रिफॉर्म 1792 के पीरियड में क्रिमिनल एडमिनिस्ट्रेशन की फील्ड में इंट्रोड्यूस होता है जिला फौजदारी अदालत को अबॉलिश करके उनकी जगह कर सर्किट कोर्स बनाई जाति हैं इनमें से तीन बंगाल में थी और एक भी हर में और इन सर्किट कोर्स में यूरोपीय ऑफिसर्स को ही जज अप्वॉइंट किया जाता है और इनको एसिस्ट करते थे काज़ीज़ और मुफ्तीज इससे पहले फौजदारी अदालत में इंडियन को ही जज अप्वॉइंट किया जाता था हम का सकते हैं की यहां से जुडिशल सिस्टम में से इंडियन को अलग करने की शुरुआत हो जाति है और आईसीएम की झलक दिखने लगती है लॉर्ड कार्नवालिस का सबसे इंपॉर्टेंट जुडिशल रिफॉर्म था उनका 1793 का कौन बाल स्कूल में उनके सभी रिफॉर्म्स फाइनल शिव लेते हैं और यह प्राइमरी सिपरेशन ऑफ पावर के प्रिंसिपल पर बेस था की कलेक्टर्स के हाथ में जुडिशल पावर्स देना सही डिसीजन नहीं था क्योंकि जिनके पास रिवेन्यू कलेक्शन की पावर थी क्या वो रिवेन्यू के केसेस को इंपर्शाली डिसाइड कर सकते थे इसलिए कॉर्न बॉल्स कोड में वह सिपरेशन ऑफ पावर्स के प्रिंसिपल को फॉलो करते हैं और कलेक्टर्स की सभी जुडिशल पावर्स को खत्म कर दिया जाता है है इसके अलावा सिविल कोट्स को प्रेसीडे करने के लिए जिला जज नाम से एक नए ऑफिसर क्लास की शुरुआत की जाति है साथ ही कार्नवालिस कोर्ट फीस को भी अबॉलिश करते हैं यूरोपियन सब्जेक्ट्स को भी इंडियन जुडिशल सिस्टम की जूरिडिक्शन मिलाया जाता है इसके साथ ही गवर्नमेंट सर्वेंट को उनके ऑफिशल एक्शंस के लिए सिविल कोट्स में अनस्टेबल बनाया जाता है डॉ का प्रिंसिपल एस्टेब्लिश होता है इतने सालों से चला रहा सिस्टम अब पुरी तरह बादल चुका था कम से कम पेपर पर तो अब कास्ट क्लास या रिलिजन के बेसिस पर भेदभाव नहीं किया जा सकता जिसकी वजह से अक्सर जस्टिस मिलने में डिले होता था और अनसर्टेन टीवी बनी रहती थी बंटिंग इन कोट्स की ड्यूटी मजिस्ट्रेट और कलेक्टर्स को ट्रांसफर कर देते हैं और इनके सुपरविजन के लिए कमिश्नर ऑफ रिवेन्यू और सर्किट को अप्वॉइंट करते हैं इसके अलावा वो इलाहाबाद में सेपरेट सदर निजामत अदालत और सदर दीवानी अदालत एस्टेब्लिश करते हैं जिसकी वजह से अप और दिल्ली के लोगों को अपील के लिए अब कोलकाता जान की जरूर नहीं रहती दोस्तों अभी तक कोर्ट की लैंग्वेज पर्शियन थी बेंटिक हायर कोर्स में परसों को इंग्लिश से रिप्लेस कर देते हैं और इसके साथ ही लोअर कोट्स में परसों के साथ साथ वर्नाकुलर लैंग्वेज में कैसे फाइल करने का ऑप्शन भी दे देते हैं इस तरह से विलियम बेंटिक जुडिशल सिस्टम को इंडियन के लिए एक्सेसिबल बनाने की कोशिश की थी बेंटिक के बाद भी जुडिशल सिस्टम में समय-समय पर कुछ रिफॉर्म्स ले गए थे आई उनको भी समझ लेते हैं दोस्तों 1833 में इंडियन लॉस के क्वालिफिकेशन के लिए लॉर्ड मौली के चेयरमैनशिप में डॉ कमीशन अप्वॉइंट की गई थी जिसके एफर्ट्स से 1859 में सिविल प्रोसीजर कोड 1860 में इंडियन पैनल कोड और 1861 में क्रिमिनल प्रोसीजर कोड तैयार हुआ था 1865 में सुप्रीम कोर्ट और सदर अदालत को मर्ज करके कोलकाता बॉम्बे और मद्रास में तीन हाय कोट्स बना दिए गए थे इसके बाद 1935 की गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में फेडरल कोर्ट एस्टेब्लिश करने का प्रोविजन था इसे 1937 में सेटअप किया गया और हाईकोर्ट से अपील्स पर सनी करना था जुडिशल रिफॉर्म्स की चर्चा तो हो गई वैल्यूएशन भी कर लेते हैं आखिर यह रिफॉर्म्स कहां तक सफल थे इवेलुएशन दोस्तों ब्रिटिश रूल के समय इस्टैबलिश्ड जुडिशल सिस्टम के कुछ पॉजिटिव एस्पेक्ट्स देखें जा सकते हैं जैसे की इसके द्वारा इंडिया में रूल ऑफ डॉ की स्थापना होती है इसके अलावा रिलिजियस और रुलर्स के पर्सनल कानून की जगह कोडिफाइड लॉस ए जाते हैं इनके जरिए सोसाइटी में प्रोविडेंट डिस्क्रिमिनेशन को कम करने की कोशिश की जाति है जैसे अब कास्ट के बेसिस पर अलग कानून नहीं था लोगों के सामने सब बराबर हो जाते हैं यूरोपियन सब्जेक्ट्स को भी इसके जूरिडिक्शन मिलाया गया था हालांकि क्रिमिनल केसेस में सिर्फ यूरोपीय जज ही उनके कैसे की सनी कर सकते थे इसके साथ ही गवर्नमेंट सर्वेंट को भी सिविल कोट्स में आंसर डबल बनाया जाता है लेकिन इसकी कुछ नेगेटिव एस्पेक्ट्स भी ध्यान में रखना की जरूर है पहले नेगेटिव यह था की जुडिशल सिस्टम और ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड और एक्सपेंसिव हो जाता है लिटिगेशन लंबा समय लेने लगती है जिसका रिजल्ट डिलीट जस्टिस होता है इसके अलावा यूरोपीय जज अक्सर इंडियन यूजेस और ट्रेडीशन से फैमिलियर नहीं होते थे साथ ही जुडिशल सिस्टम का उसे कॉलोनियल इंटरेस्ट को सुरक्षित रखना के लिए ज्यादा किया जाता है और नेटिव स्कूल कंक्लुजन दोस्तों इस तरह इंडिविजुअल ब्रिटिश गवर्नर जनरल्स की समझ और कॉलोनियल इंटरेस्ट को ध्यान में रखते हुए पुलिस आमीन और ज्यूडिशरी का इवोल्यूशन होता है और ये इंडिया में ब्रिटिश अंपायर के मजबूत पिलर्स बनकर उभरते हैं हालांकि पुरी कोशिश के बाद भी ब्रिटिशर्स नेशनलिज्म की वाव को इन तक पहुंचने से नहीं रॉक पाते और फाइनली जब आर्मी और पुलिस फोर्स में नेशनलिस्ट फीलींगस नजर आने लगती हैं तो ब्रिटिशर्स को समझ ए जाता है की उनका रूल अब और ज्यादा नहीं चल सकता [संगीत] दोस्तों इंडिया में मॉडर्न एजुकेशन की शुरुआत ब्रिटिश कॉलोनियल रूल के दौरान ही हुई थी उससे पहले दाग एजुकेशन गुरुकुल मदरसा और मकतब के थ्रू दी जाति थी जिसमें रिलिजियस एजुकेशन के साथ ड्रामा लॉजिक मैथमेटिक्स फिलासफी सब्जेक्ट शिक्षा दी जाति थी इसके अलावा ट्रेडिशनल कास्ट और आर्टिजंस गल्स के द्वारा वोकेशनल एजुकेशन भी प्रोवाइड करते थे लेकिन ब्रिटिश के आने के बाद इंडियन एजुकेशन सिस्टम पुरी तरह से बादल जाता है आज हम बात करने वाले हैं ब्रिटिश रूल के दौरान किस तरह एजुकेशन सिस्टम का डेवलपमेंट इंडिया में होता है और इसके क्या फायदे और क्या नुकसान देखने को मिलते हैं आई शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन ब्रिटिश रूल की शुरुआती सालों में प्राइवेट इंडिविजुअल्स द्वारा एजुकेशन फील्ड में कुछ एफर्ट्स किया जाते हैं जैसे की 1781 में वारेन हेस्टिंग्स वर्जन और एरोबिक की लर्निंग को प्रमोट करने के लिए कोलकाता मदरसा की स्थापना करते हैं और 1791 में जोनाथन डंकन बनारस में संस्कृत कॉलेज की शुरुआत करते हैं इस दौरान गवर्नमेंट की तरफ से एजुकेशन को प्रमोट करने में कोई इंटरेस्ट शो नहीं किया जाता 1800 में लॉर्ड वालेस्ले ने फोर्ट विलियम कॉलेज सेटअप किया था इसे कंपनी के सिविल सर्विस को ट्रेन करने के लिए बनाया गया ऑफिशल तोर पर ब्रिटिश द्वारा एजुकेशन के डेवलपमेंट की तरफ कम 1813 के चार्ट एक्ट के बाद लिए जाते हैं क्योंकि इस एक्ट में इंडिया में एजुकेशन को प्रमोट करने के लिए एनुअल 1 लाख रुपए का प्रावधान किया गया जाता है जब बात इंडिया में एजुकेशन के डेवलपमेंट की आई है तो सवाल ये उठाता है की यह एजुकेशन इंडियन होगी या वेस्टर्न और इसे वर्नाकुलर लैंग्वेज में इंपोर्ट किया जाएगा या इंग्लिश लैंग्वेज में इसको लेकर दो ग्रुप बन जाते हैं एक ग्रुप ओरिएंटलिस्ट्स तथा और दूसरा एंग्लेसिस ओरिएंटलिस्ट ग्रुप जिसमें प्रिंसिपल्स आते थे इनका मानना था की इंडियन लैंग्वेज में इंडियन सब्जेक्ट्स की नॉलेज को प्रमोट करना चाहिए वहीं एंग्लिसिस्ट इंग्लिश लैंग्वेज के मीडियम से वेस्टर्न एजुकेशन स्प्रेड करने की सपोर्टर थे इस डिबेट को सॉल्व करने के लिए ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट 1823 में जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शंस पॉइंट करती है शुरुआत में तो इस कमेटी को ओरिएंटलिस्ट ग्रुप डोमिनेट करता है और यह लोग कोलकाता में संस्कृत कॉलेज आगरा और दिल्ली में दो और ओरिएंटल कॉलेजेस एस्टेब्लिश करने का प्रोग्राम तैयार करते हैं है इसके साथ ही इंडीजीनस लर्निंग को प्रमोट करने के लिए गुरुकुल और मदरसाज को पीटने देने का भी फैसला करते हैं लेकिन जल्दी ही सिचुएशन एनालिसिस्ट ग्रुप के फीवर में टर्न हो जाति है जब 1828 में यूटिलिटेरियन रिफॉर्मेंस विलियम बेंटिक गवर्नर जनरल बनते हैं और 1834 में लॉर्ड मेघौली को जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शंस का प्रेसिडेंट बना दिया जाता है पुरी तरह से इंग्लिश एजुकेशन के फीवर में थे सेकंड फरवरी 1835 को वो अपने फेमस मुकाबला मिनट्स पब्लिश करते हैं जिसमें इंग्लिश लैंग्वेज और वेस्टर्न एजुकेशन को डेवलप करने का फैसला लिया जाता है यह इंडिया में इंग्लिश एजुकेशन के इंट्रोडक्शन का ब्लूप्रिंट बंता है मकोली के अनुसार एक अच्छी यूरोपियन लाइब्रेरी की सिंगल शेल्फ पुरी ओरिएंटल लिटरेचर के बराबर है बेंटिक 7 मार्च 1835 को ही एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए प्रपोज को इंडस कर देते हैं इस तरह इंडिया में वेस्टर्न एजुकेशन की शुरुआत होती है एजुकेशन फील्ड में अगली डेवलपमेंट 1854 में देखने को मिलती है चार्ल्स वुड बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रेसिडेंट थे 1854 में इन्होंने इंडिया में फ्यूचर एजुकेशन की स्कीम को लेकर एक कंप्रिहेंसिव डिस्पैच या डॉक्यूमेंट तैयार किया था इसे इंडिया में इंग्लिश एजुकेशन का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है इसकी में रिकमेंडेशन इस तरह से थी सबसे पहले तो यह डिक्लेअर करता है की गवर्नमेंट की एजुकेशन पॉलिसी का वेस्टर्न एजुकेशन की टीचिंग देना है मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन को लेकर ये कहता है की हायर एजुकेशन के लिए इंग्लिश लैंग्वेज ही परफेक्ट मीडियम है लेकिन प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन के लिए यह वर्नाकुलर लैंग्वेज के मीडियम को सजेस्ट करता है जिला लेवल पर एफिलिएटिड कॉलेज सेटअप करने का सुझाव देता है साथ ही इसमें एजुकेशन की फील्ड में प्राइवेट एंटरप्राइज को प्रमोट करने के लिए ब्रांच इन 8 सिस्टम का आइडिया भी प्रपोज किया गया था कंपनी टेरिटरीज के सभी फाइव प्रोविंस में डिपार्मेंट ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन बनाने का सुझाव दिया जाता है इसका कम प्रॉब्लम्स में एजुकेशन की प्रोग्रेस को रिव्यू करना और गवर्मेंट को एनुअल रिपोर्ट सबमिट करना था लंदन यूनिवर्सिटी के मॉडल पर कोलकाता मद्रास और मुंबई में यूनिवर्सिटी को एस्टेब्लिश करने का प्रपोज दिया गया था इसके साथ ही इसमें वोकेशनल इंस्ट्रक्शन और टेक्निकल स्कूल और कॉलेजेस एस्टेब्लिश करने पर भी इम्फैसीज किया गया था वुड डिस्पैच वूमेन एजुकेशन को प्रमोट करने के बाद भी करता है इसकी लगभग सभी रिकमेंडेशन को इंप्लीमेंट किया गया और मैथर्ड आने वाले लगभग फाइव डिकेड्स तक एजुकेशन की फील्ड को डोमिनेट करते हैं इसके बाद धीरे-धीरे वेस्टर्न सिस्टम इंडिजन सिस्टम को रिप्लेस कर देता है 1882 में एजुकेशन के फील्ड में वुड डिस्पैच के बाद हुई प्रोग्रेस को रिव्यू करने के लिए गवर्नमेंट एक कमीशन अप्वॉइंट करती है इसे यू हंटर की लीडरशिप में फॉर्म किया जाता है इसलिए इसे हंटर कमीशन बोला जाता है कमीशन को मेली प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन की फील्ड में सुझाव देने के लिए कहा गया था इसलिए इंडियन यूनिवर्सिटी की फंक्शनिंग में कमीशन इंक्वारी नहीं करती है इसकी में रिकमेंडेशन कुछ इस तरह थी प्राइमरी एजुकेशन के इंप्रूवमेंट और एक्सटेंशन में स्टेट के स्पेशल रोल को इम्फैसीज किया गया था साथी प्राइमरी एजुकेशन की कंट्रोल को न्यूली सेटअप जिला और म्युनिसिपल बोर्ड्स को देने का प्रस्ताव रखा गया था सेकेंडरी एजुकेशन के लिए दो डिवीजन बनाने का सुझाव था पहले लिटरेरी जो यूनिवर्सिटी तक जाएगा और दूसरा वोकेशनल जिसमें कमर्शियल करियर्स की तैयारी कराई जाएगी कमीशन फीमेल एजुकेशन को लेकर इन एडेक्वेट फैसेलिटीज की तरफ भी ध्यान देने को कहता है अगले दो डकैत में तेजी से सेकेंडरी एजुकेशन का स्प्रेड होता है जिसमें इंडियन का रोल भी काफी इंपॉर्टेंट राहत है इसके अलावा 1882 में पंजाब यूनिवर्सिटी और 1887 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की स्थापना भी होती है प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन की बात तो हंटर कमीशन ने कर ली थी इसके बाद अब नेक्स्ट कमीशन स्पेशली इंडियन यूनिवर्सिटी के लिए फॉर्म किया गया 1994 20th सेंचुरी की शुरुआत से ही इंडिया में पॉलीटिकल और रेस्ट बढ़ाने लगता है ऐसे में ब्रिटिश को लगता है की प्राइवेट मैनेजमेंट के अंदर चलने वाले एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस का स्टार गिर चुका है और यहां से पॉलीटिकल रिवॉल्यूशनरीज पैदा हो रहे हैं इसलिए 192 में लोड कर्जन रैली कमीशन अप्वॉइंट करते हैं इसका एक इंडियन यूनिवर्सिटी को इंप्रूव करने के लिए मेजर सजेस्ट करना था इसकी रिकमेंडेशन के आधार पर इंडियन यूनिवर्सिटी एक्ट 1904 पास किया जाता है जिसके अनुसार यूनिवर्सिटी इसको स्टडी और रिसर्च पर ज्यादा ध्यान देने के लिए कहा जाता है यूनिवर्सिटी के फेलोज का नंबर कम कर दिया जाता है और ऑफिस में इनका पीरियड भी रिड्यूस कर दिया जाता है गवर्नमेंट ही नॉमिनेट करती है इसके अलावा गवर्नमेंट के पास यूनिवर्सिटी के रेगुलेशंस को बेटो करने और खुद अपनी तरफ से रेगुलेशंस पास करने की पावर भी ए जाति है प्राइवेट कॉलेज की एफीलिएशंस की कंडीशंस को और स्ट्रिक्ट कर दिया जाता है साथ हायर एजुकेशन और यूनिवर्सिटी को इंप्रूव करने के लिए अगले 5 साल तक पर एनम 5 लाख रुपए जाते हैं है इस एक्ट के थ्रू यूनिवर्सिटी पर गवर्नमेंट का कंट्रोल बहुत ज्यादा बड़ा दिया जाता है इसको जस्टिफाई करने के लिए कर्जन क्वालिटी और एफिशिएंसी का रीजन देते हैं लेकिन उनका असली मकसद तो इंडियन स्टूडेंट में नेशनलिज्म की फीलिंग को स्प्रेड होने से रोकना था इंडियन लीडर्स इसे इंपिरियलिज्म को स्ट्रेंजर करने और नेशनलिस्ट फीलींगस को सावताश करने का टेंप्ट मानते हैं गोखले इसे रेट्रो ग्रेट मेजर कहते हैं इसके बाद 1913 में गवर्नमेंट एजुकेशन पॉलिसी को लेकर एक रेजोल्यूशन पास करती है गवर्नमेंट रेजोल्यूशन ऑन एजुकेशन पॉलिसी 1930 वह यह था की 196 में बड़ौदा के प्रिंसली स्टेट ने अपनी टेरिटरीज में कंपलसरी प्राइमरी एजुकेशन को इंट्रोड्यूस किया था जिसके बाद नेशनल लीडर्स ब्रिटिश इंडिया में भी ऐसा करने के लिए गवर्नमेंट पर प्रेशर बना रहे थे गोखले ने इशू को लेजिसलेटिव असेंबली में भी रेस किया था लेकिन एजुकेशन पॉलिसी पर अपने 1913 के रेजोल्यूशन में गवर्मेंट कंपलसरी एजुकेशन के रिस्पांसिबिलिटी लेने से माना कर देती है हालांकि इन लिटरेसी रिबूट करने की पॉलिसी को जरूर एक्सेप्ट कर लिया जाता है साथ ही प्रोविंशियल गवर्मेंट से कहा जाता है की वो पूर और बैकवर्ड सेक्शंस को फ्री एलीमेंट्री एजुकेशन देने की तैयारी करें इसके लिए प्राइवेट एफर्ट्स को इनकरेज करना था और सेकेंडरी स्कूल की क्वालिटी को भी इंप्रूव करना था साथ ही हर प्रोविंस में यूनिवर्सिटी एस्टेब्लिश करने का डिसीजन भी लिया जाता है इसके बाद 1917 में एक और कमीशन फॉर्म की जाति है है इस कमीशन को कोलकाता यूनिवर्सिटी की प्रॉब्लम्स को स्टडी और रिपोर्ट करने के लिए फॉर्म किया गया था लेकिन इसकी रिकमेंडेशन बाकी यूनिवर्सिटी पर भी एप्लीकेबल थी कमीशन ने स्कूल एजुकेशन से लेकर यूनिवर्सिटी एजुकेशन तक इन टायर फील्ड को रिव्यू किया था इसका मानना था की यूनिवर्सिटी एजुकेशन को इंप्रूव करने के लिए पहले सेकेंडरी एजुकेशन का इंप्रूव होना जरूरी है अपनी रिपोर्ट में इसने बहुत से सुझाव दिए थे जैसे की स्कूल कोर्स 12 साल का होना चाहिए स्टूडेंट को मैट्रिक की जगह इंटरमीडिएट स्टेज के बाद यूनिवर्सिटी में 3 एयर डिग्री कोर्स के लिए इंटर करना चाहिए साथ ही सेकेंडरी और इंटरमीडिएट एजुकेशन के एडमिनिस्ट्रेशन और कंट्रोल के लिए एक सेपरेट बोर्ड होना चाहिए इसके अलावा यूनिवर्सिटी रेगुलेशंस की फ्रेमिंग में रिगिडिटी कम हनी चाहिए और यूनिवर्सिटी को सेंट्रलाइज्ड यूनिटरी रेजिडेंशियल टीचिंग ऑटोनॉमस बॉडी की तरह फंक्शन करना चाहिए ना की स्कैटर्ड एफिलिएटिड कॉलेज की तरह इसके साथ ही फीमेल एजुकेशन एप्लाइड साइंटिफिक और टेक्नोलॉजी का एजुकेशन टीचर्स ट्रेनिंग और प्रोफेशनल और वोकेशनल कॉलेजेस को और ज्यादा एक्सटेंड करना चाहिए 1920 में गवर्नमेंट सैडलर रिपोर्ट की रिकमेंडेशन को प्रोविंशियल गारमेंट्स को फॉरवर्ड करती है और इन्हें इंप्लीमेंट करने के लिए कहा जाता है सैडलर कमीशन के बाद 1929 में हर डॉग कमेटी का फॉर्मेशन होता है 1929 स्कूल और कॉलेज की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ाने से एजुकेशन स्टैंडर्ड गिरने लगता हैं इसलिए एजुकेशन के डेवलपमेंट पर रिपोर्ट देने के लिए हार्ड टॉक कमेटी को सेटअप किया जाता है इसकी में रिकमेंडेशन इस तरह से थी पहले सुझाव था की प्राइमरी एजुकेशन पर जोर देना चाहिए लेकिन इसके लिए किसी कंपल्शन या हिस्ट्री एक्सपेंशन की जरूर नहीं है दूसरा यह था की सिर्फ डिजर्विंग स्टूडेंट को ही हाय स्कूल और इंटरमीडिएट स्टेज तक जाना चाहिए जबकि एवरेज स्टूडेंट को 8th स्टैंडर्ड के बाद वोकेशनल कोर्सेज की तरफ डाइवर्ट कर देना चाहिए इसके अलावा यूनिवर्सिटी एजुकेशन के स्टैंडर्ड में इंप्रूवमेंट लाने के लिए ऐडमिशन को रिस्टिक करने की जरूर है लास्ट एजुकेशन प्लेन की तरफ चलते हैं साजन प्लेन ऑफ एजुकेशन साजन प्लेन को 1944 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड एजुकेशन द्वारा तैयार किया गया था इसकी मेजर रिकमेंडेशन कुछ इस तरह से थे इसमें तीन से छह साल के आगे ग्रुप के लिए प्री प्राइमरी एजुकेशन 611 साल के आगे ग्रुप के लिए फ्री यूनिवर्सल और कंपलसरी एलीमेंट्री एजुकेशन 11 से 17 साल की सिलेक्टेड चिल्ड्रन के लिए हाय स्कूल एजुकेशन और फिर हायर सेकेंडरी के बाद 3 साल की यूनिवर्सिटी कोर्स का सुझाव था हाय स्कूल दो तरह के होने थे पहले एकेडमिक और दूसरा टेक्निकल और वोकेशन इसके अलावा टेक्निकल कमर्शियल और आर्ट एजुकेशन को रिकमेंड किया गया प्रस्ताव था इसमें 20 साल के अंदर एडल्ट लिटरेसी को खत्म करने का टारगेट दिया गया इसके साथ ही टीचर्स ट्रेनिंग फिजिकल एजुकेशन और फिजिकल और मेंटली हैंडिकैप्ड के लिए एजुकेशन पर भी स्ट्रेस किया गया था की 40 साल के अंदर इंडिया में इंग्लैंड के जैसे लेवल ऑफ एजुकेशन अतिन हो जाना चाहिए यह प्लेन काफी बोल्ड और कंप्रिहेंसिव तो था लेकिन इसमें इंप्लीमेंटेशन के लिए कोई भी मेथाडोलॉजी प्रपोज नहीं की गई थी यह तो बात हो गई एजुकेशन से रिलेटेड डिफरेंट कमिश्नर और प्लांस की ब्रिटिश पॉलिसी को इवेलुएट करते हैं इवेलुएशन ऑफ ब्रिटिश पॉलिसी ऑन एजुकेशन दोस्तों सबसे पहले तो ब्रिटिश ने मॉडर्न एजुकेशन के एक्सपेंशन को लेकर जो मैसर्स लिए थे वो पुरी तरह इन एडेक्वेट थे और दूसरा इनके पीछे उनका मकसद इंडियन की भलाई करना तो बिल्कुल भी नहीं था फिर क्या रीजन थे की ब्रिटिशर्स ने इंडिया में एजुकेशन को प्रमोट किया इसमें सबसे पहले करण था इन लाइटेड इंडियन क्रिश्चियन मिशनरीज और ह्यूमैनिटी इन ऑफिशल्स की तरफ से मॉडर्न एजुकेशन के फीवर में किया गया एजीटेशन दूसरा करण था एडमिनिस्ट्रेशन संभालने के लिए एजुकेटेड इंडियन की के सप्लाई इसके अलावा ब्रिटिश मैन्युफैक्चर्ड गुड्स के लिए डिमांड भी क्रिएट करेंगे साथी एक व्यू यह भी था की वेस्टर्न एजुकेशन इंडियन को ब्रिटिश रूल एक्सेप्ट करने में हेल्प करेगी क्योंकि इसमें ब्रिटिश कॉन्कर्स और उनके एडमिनिस्ट्रेशन को ग्लोरिफाई किया जाता था इस तरह ब्रिटिश मॉडर्न एजुकेशन का उसे इंडिया में अपनी पॉलीटिकल अथॉरिटी को और मजबूत करने के लिए करना चाहते थे वेस्टर्न एजुकेशन के डेवलपमेंट के साथ ही इंडियन लर्निंग के ट्रेडिशनल सिस्टम का धीरे-धीरे डिक्लिन होने लगता है क्योंकि इसे किसी भी तरह का सपोर्ट नहीं मिल पता स्पेशली 1844 के बाद जब यह डिक्लेअर कर दिया जाता है की गवर्नमेंट एंप्लॉयमेंट के लिए इंग्लिश की नॉलेज होना कंपलसरी है इसके साथ ही ब्रिटिश मांस एजुकेशन को नेगलेक्ट करते हैं जिसकी वजह से बड़े स्टार पर इलेक्ट्रिसिटी देखने को मिलती है 1911 में यह 84% थी और 1921 में 92% क्योंकि एजुकेशन के लिए पैसे देने होते थे इसलिए यह सिर्फ क्लासेस की मोनोपोली बन जाति है और इसकी वजह से एजुकेटेड और मैसेज के बीच बहुत बड़ा लिंग्विस्टिक्स और कल्चरल गल्फ क्रिएट हो जाता है वूमेन की एजुकेशन को पुरी तरह नेगलेक्ट किया था क्योंकि एक तो गवर्नमेंट ऑर्थोडॉक्स सेक्शंस को नाराज नहीं करना चाहती थी और दूसरा वूमेन को एजुकेशन देने से कॉलोनियल रूल को कोई फायदा भी नहीं था साइंटिफिक और टेक्निकल एजुकेशन पर भी बहुत ध्यान नहीं दिया गया था 1857 तक सिर्फ कोलकाता बॉम्बे और मद्रास में ही तीन मेडिकल कॉलेजेस थे और सिर्फ एक ही अच्छा इंजीनियरिंग कॉलेज था रुड़की में और वह भी सिर्फ यूरोपीय और यूरेशियन के लिए ही ओपन था कंक्लुजन इस तरह हम का सकते हैं की ब्रिटिशर्स ने सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए इंडिया में मॉडर्न एजुकेशन की शुरुआत की थी लेकिन इंडियन ने इसका पूरा फायदा उठाया मॉडर्न एजुकेशन के इतिहास में इंडिया में जी एजुकेटेड मिडिल क्लास को तैयार किया वही आगे जाकर इंडियन नेशनल मूवमेंट को लीड करती है दोस्तों यहां हमारा पार्ट भी भी खत्म हुआ अब वीडियो के लास्ट और फाइनल पार्ट को शुरू करते हैं जो बात करता है मेंस्ट्रीम फ्रीडम स्ट्रगल के साथ चलती पैरेलल मूवमेंट्स की इसमें हम लेफ्ट के राइस कैपिटल क्लास के राइस वर्कर क्लास के मूवमेंट्स और प्रिंसली स्टेटस में चल रहे मूवमेंट जैसे टॉपिक को कर करने वाले हैं तो आई शुरू करते हैं डी लास्ट सेगमेंट ऑफ दिस वीडियो डी स्टोरी ऑफ पार्टीशन दोस्तों 14th अगस्त 1947 के खत्म होने में बस कुछ ही वक्त बच्चा था और आदि रात को इतिहास लिखा जाना था नई दिल्ली में स्थित कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली के मिडनाइट सेशन को एड्रेस करने आए जवाहर लाल नेहरू ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया नाम दिया ट्वीट विथ डेस्टिनी जी तरह नेहरू आजादी को लेकर हॉपफुल थे वैसे ही उनका भाषण भी बेहद हॉपफुल था उन्होंने भारत की आजादी को अनाउंस किया और कहा आते डी स्ट्रोक ऑफ डी मिडनाइट व्हेन डी वर्ल्ड स्लिप्स इंडिया विलन तू लाइफ और फ्रीडम कॉन्स्टिट्यूशन असेंबली खचाखच भारी थी सारे दालों के नेता मौजूद थे लेकिन भारत की आजादी के सबसे बड़ी नेता महात्मा गांधी वह नहीं थे तो कहां थे गांधी दोस्तों वो गांधी जिन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बस ने आपसी मतभेद के बावजूद राष्ट्रपति वह दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर नोवा खाली में थे जी हां जब देश आजादी का जश्न माना रहा था तब गांधी बंगाल के नोआखली में लगी आज को बुझने की कोशिश कर रहे थे हमारी आज की कहानी इसी आज की है जो आजादी के वक्त पूरे देश में सुलग रही थी आज की कहानी उसे घटना की है जिसने आजादी के जश्न को फीका कर दिया वो घटना जिसने भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी तो दिलाई लेकिन ऐसी कीमत पर जिसका हिसाब भी लगा पन नामुमकिन था यह कहानी है दो ऐसे मुल्कों की स्थापना की जो 75 साल बाद भी एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं दोस्तों यह कहानी है भारत के विभाजन की इंडिया डिवाइडेड एट थे स्ट्रोक ऑफ डी मिडनाइट टावर 15th अगस्त 1947 लगभग 200 सालों के दमन के बाद ब्रिटिश राज ने भारत छोड़ और भारत उपमहाद्वीप 2000 देश में विभाजित हुआ हिंदू मेजॉरिटी सेकुलर इंडिया और मुस्लिम मेजॉरिटी सेकुलर पाकिस्तान भारत भी सेकुलर है लेकिन पाकिस्तान का सेक्युलरिज्म 1955 में खत्म हो गया और वो एक इस्लामिक स्टेट बन गया खैर पार्टीशन का अंदाज़ 1947 के पहले ही लगाया जा रहा था और जब ब्रिटिशर्स की इंडिया एग्जिट की अटकालीन तेज हुई तो हजारों लाखों की संख्या में हिंदू सिख और मुस्लिम पाकिस्तान और इंडिया के बीच माइग्रेट करने लगे और इनमें से कई लाखों लोग तो बॉर्डर पर पहुंची नहीं पे पार्टीशन की खबरें तेज हुई और ब्रिटेन एक हिस्ट्री विड्रोल के प्लांस बनाने लगा परिणाम स्वरूप भारत में अव्यवस्था और अराजकता के बादल छ गए इस अराजकता के सबसे बड़े शिकार बने दो बॉर्डर प्रोविंस पंजाब और बंगाल जहां दंगों की आज सुलगना लगी अंग्रे ने यह विभाजन पीपल पर लाइंस खींचकर तो कर दिया पर ऑन ग्राउंड इसका अंजाम था हजारों लाखों लोगों का कत्लेआम और डिस्प्लेसमेंट महिलाओं के साथ रेप हुए और बच्चों को किडनैप कर बाजरो में बीच दिया गया नरसंहार यौन वायलेंस डकैती ल पोस्ट कन्वर्जेंस ये सब आम बात हो गई थी एक रिपोर्ट के हिसाब से लगभग 75000 औरतें का हिंसक भीड़ और दंगाइयों द्वारा रेप किया गया और ये सिर्फ रिकॉर्डिंग डाटा है इन रियलिटी तो यह नंबर लाखों में था पड़ोसी ही पड़ोसी का दुश्मन बन गया हैवानियत अपनी चर्म पर थी फेमस लेखक सदर हसन मंटो उसे दूर में विभाजन के इस भयावा रूप को अपनी कहानियां में बताते रहे खुशवंत सिंह ने भी अपनी किताब एन ट्रेन तू पाकिस्तान में पार्टीशन कैसे कुरूप चेहरे की चर्चा की देशभर में फैली इस अराजकता ने देश को ही नहीं बल्कि पुरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया हजारों सालों से लाडली एक शांतिपूर्वक माहौल में र रहे लोग अचानक दुश्मन बन गए और उनके बीच बॉर्डर्स बना दिए गए लेकिन दोस्तों ये दुश्मनी अचानक से पैदा नहीं हुई थी इस दुश्मनी का जन्म एक कॉन्शियस प्रोसेस या सूची समझी साजिश के तहत हुआ यह कॉन्शियस प्रोसेस क्या था आगे हम उसकी ही चर्चा करेंगे और देखेंगे कहानी भारत की रोड्स तू पार्टीशन की तू नेशन थ्योरी रोड तू पार्टीशन दोस्तों इंडिया का पार्टीशन उसे लास्ट मिनट एग्रीमेंट का नतीजा था जिसके तहत ब्रिटिशर्स भारत को आजादी देने वाले थे लेकिन इस पार्टीशन के बीच कब बॉय गए इसकी कहानी काफी पुरानी है ब्रिटिश के खिलाफ जब आजादी की लड़ाई छड़ी गई तो इंडियन नेशनल कांग्रेस उसे लड़ाई का सबसे प्रॉमिनेंट ऑर्गेनाइजेशन बन के उभरा इसका फॉर्मेशन 1885 में दादाभाई नौरोजी ओ हम और डीसी वचन जैसे नेताओं ने किया था लेकिन पार्टीशन तक आते-आते इसका में कंट्रोल महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं के हाथ में चला गया इंडियन नेशनल कांग्रेस और उसके मोस्ट प्रॉमिनेंट नेता इंक्लूडिंग महात्मा गांधी वन नेशन के आइडिया की सपोर्टर थे यानी वो मानते थे की देश में रहने वाले अलग-अलग धर्म और जाति के लोग एक राष्ट्र बनाते हैं और वो उसमें पीसफुली र सकते हैं यही वजह थी की महात्मा गांधी पार्टीशन से इतने आहट हुए की जब दिल्ली में कांग्रेस आजादी का जश्न माना रही थी तब गांधी नोआखली जाकर दंगाइयों को हथियार रखना के लिए माना रहे थे गांधी का वन नेशन का सपना टूट गया था वो खुद भी टूट गए थे खैर कांग्रेस और गांधी के इतिहास के खिलाफ सबसे बड़ा अपोजिशन आया राइट विंग पॉलीटिकल ग्रुप से जिनका जन्म कांग्रेस के सेक्युलरिज्म के अगेंस्ट एक रिएक्शन के रूप में हुआ था मुस्लिम लीग जैसे ऑर्गेनाइजेशंस जो माइनॉरिटी को रिप्रेजेंट करने का दवा कर रहे थे उन्होंने स्पेसिफिकली कांग्रेस के वन नेशन के आइडिया को चैलेंज किया लीग के सबसे ताकतवर नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस को हिंदू ऑर्गेनाइजेशन डिक्लेअर कर दिया और गांधी पर हिंदू मेजॉरिटी रेनिज्म को प्रमोट करने का आप लगाया जीना ने देश के मुस्लिम को यह बोला की क्योंकि 80% लोग भारत में हिंदू हैं और डेमोक्रेसी में मेजॉरिटी सपोर्ट से ही सरकार बंटी है इसलिए आने वाले समय में मुस्लिम के खिलाफ डिस्क्रिमिनेशन होगा इसलिए मुस्लिम को एक अलग देश बनाने की जरूर है जिन्ना ने अपनी तू नेशन थ्योरी में ये भी कहा की मुस्लिम और हिंदू के इंटरेस्ट अलग-अलग शांति से कभी र ही नहीं सकते लीग के अलावा डॉक्टर शशि थरूर कहते हैं की ऐसे ही सिमिलर रागी मंच हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर भी दे रहे थे डॉक्टर जरूर अपनी किताब वही आई एम हिंदू में यह दवा करते हैं की तू नेशन थ्योरी के सबसे पहले दावेदार सावरकर थे जिन्होंने 1937 में इस थ्योरी को प्रोपाउंड किया मार्च बिफोर मुस्लिम लीग पाकिस्तान रेजोल्यूशन ऑफ 1940 थ्योरी किसने पहले हिंदू मुस्लिम डिवाइड के लिए कांग्रेस मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा कनफ्लिक्ट से भी ज्यादा रिस्पांसिबल [संगीत] अंग्रेज जब भारत आए तो उन्होंने कई रिबेलियंस और रिवॉल्ट स्पेस की 1857 का विद्रोह अंग्रेजी ताकत के लिए सबसे बड़ा एक्जिस्टेंशल थ्रेड बना क्योंकि इसमें हिंदू-मुस्लिम यूनिटी बाढ़ चढ़कर अच्छी गई हिंदू लीडर्स ने मुगल एंपरर बहादुर शाह जफर के अंदर अंग्रेजन के खिलाफ विद्रोह छेद दिया था ब्रिटिश ने इस विद्रोह को कुचल तो दिया लेकिन उन्होंने यह कनक्लूड किया की अगर उन्हें इंडिया में राज करना है तो उन्हें हिंदू मुस्लिम यूनिटी को ब्रेक करना ही होगा इसलिए उन्होंने मैक्सिमम पर बेस्ड डिवाइडेड रूल पॉलिसी अपनी और अपनी पॉलिसी की थ्रू वो हिंदू मुस्लिम डिवाइड को बढ़ावा देने लगे ऐसा नहीं है की हिंदू मुस्लिम कनफ्लिक्ट पहले नहीं था लेकिन उसका स्केल काफी लोकलाइज्ड था और इतिहास का दवा करते हैं की लार्जली हिंदू मुस्लिम इंडिया में पीसफुली ही रहते थे यही भारतीय सिविलाइजेशन ग्लोरी का प्रति बना लेकिन ब्रिटिश डिवाइडेड रूल पॉलिसी ने हिंदू मुस्लिम डिवाइड को एक नेशनल या राष्ट्रीय अवतार दे दिया डिविडेंड रूल सिर्फ रिलिजियस लाइंस में नहीं हुआ बल्कि हर पॉसिबल अंकल से किया गया सेक्स को मुस्लिम किया अगेंस्ट एक कास्ट को दूसरी कास्ट के अगेंस्ट एक रीजन को दूसरी रीजन के अगेंस्ट ट्रबल्स को नॉन ट्राईबल्स के अगेंस्ट अनस्वर यह डिवाइडेड रूल हमें कई ब्रिटिश पॉलिसी में दिखता है 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजन ने 6 पत्थंस और गोरखास को अपील करने के लिए मिलिट्री रिक्रूटमेंट में डिस्क्रिमिनेटरी पॉलिसी को अडॉप्ट किया ऐसा इसलिए क्योंकि सिक्स पत्थंस और गोरखास ने ब्रिटिश को विद्रोह में सपोर्ट किया था जबकि अवध बिहार और साउथ के सोल्जर के खिलाफ डिस्क्रिमिनेशन हुआ क्योंकि ये 1857 विद्रोह की में सपोर्टर थे इसके अलावा कास्ट बेसिस पर डिवीजन के लिए ब्रिटिशर्स ने कास्ट बेस्ड रेजीमेंट भी क्रिएट किया ब्रिटिशर्स ने बाकी के एडमिनिस्ट्रेटिव जॉब्स में भी डिस्क्रिमिनेशन कर स्पेसिफिक कम्युनिटीज को अपीस करना चालू किया कई एजुकेटेड और इनफ्लुएंशल लीडर्स को इस्तेमाल करके भी ब्रिटिशर्स ने रिलिजियस डिवाइड को फ्यूल किया पर एग्जांपल ब्रिटिशर्स ने एक्टिव ली मुस्लिम रिफॉर्मर सर सैयद अहमद खान को पीटनाइश किया और उनसे आज किया की वो मुस्लिम को इंडियन नेशनल कांग्रेस को बॉयकॉट करने के लिए मने समय और सिचुएशन के हिसाब से जो भी ग्रुप अंग्रेजन को फेवरेबल लगता वो उन्हें अपील करते और सोसाइटी का विभाजन करते यह पुरी डिवाइडेड रूल पॉलिसी अपनी चर्म पर तक पहुंची जब 1909 का रिफॉर्म्स आया इसके तहत मुस्लिम को सेपरेट इलेक्ट्रोरेट दे दिया इसके तहत मुस्लिम ही मुस्लिम कैंडिडेट को वोट कर सकता था और इसीलिए इसे कम्युनल इलेक्टरेट भी कहा गया इसने हिंदू-मुस्लिम डिफरेंस को पॉलीटिकल साइंस और नेशनलाइज कर दिया और अब किसी भी प्रकार का वैकेंसी मुश्किल लगे लगा कुछ हिस्टोरियन तो यह भी दवा करते हैं की 1857 के बाद हुए ऑलमोस्ट सारे दंगों को अंग्रेजों ने ही क्रिएट किया था ब्रिटिश कलेक्टर्स सेक्रेटली हिंदू पंडित को पैसे देकर मुस्लिम के अगेंस्ट स्पीच देने को कहते और मौलवियों को पैसे देकर हाइंड्स के अगेंस्ट स्पीच देने को सिस्टमैटिक कम्युनल प्वाइजन कोलोनियलिज्म का वो कुरूप चेहरा है जो हमारे समाज को आज तक हॉट करता है एन सिर्फ भारत में बल्कि पूरे साउथ एशिया में खैर 25% पापुलेशन के साथ मुस्लिम ब्रिटिश इंडिया की लार्जेस्ट रिलिजियस माइनॉरिटी थे वेस्टर्न प्रोविंस जैसे सिंह पंजाब एनब्ल्यूएसपी और ईस्ट में बंगाल प्रोविंस के कई एरियाज में तो वो मेजॉरिटी में भी थे यही वजह है की मुस्लिम हिंदू डिवाइड ब्रिटिश पॉलिसी का प्रायोरिटी रहा इंपीरियल रूल में मुस्लिम को कई पॉलीटिकल और एडमिनिस्ट्रेटिव एडवांटेज दिए गए जिनके प्रति वो 1947 तक अगस्टम्ड हो गए थे उन्हें डर था की आजादी के बाद शायद उनसे यह बेनिफिट्स छन लिए जाएंगे स्पेशली अगर कांग्रेस पावर में आई तो ऊपर से जीना ने ऑलरेडी कांग्रेस को हाइंड्स की पार्टी डिक्लेअर कर दिया था 19456 में मुस्लिम लीग को प्रोविंशियल इलेक्शन में मेजॉरिटी मुस्लिम वोट्स मिले और अब मुस्लिम लीग यह दवा करने लगी की वह मुस्लिम की सोल रिप्रेजेंटेटिव बॉडी है चलिए अब देखते हैं की कैसे ब्रिटिश हिस्ट्री विड्रोल ने सिचुएशन को बाद से बतर बना दिया डी हिस्ट्री ब्रिटिश विद डी रोल दोस्तों वर्ल्ड वार 2 में सेटबैक फेस कर रहा ब्रिटिश अंपायर अपनी ग्लोबल हिजामानी ऑलरेडी को चुका था ऊपर से 1942 में महात्मा गांधी ने क्यूट इंडिया मूवमेंट में करो या मारो का नारा दे दिया था अंग्रेज वार जितने के लिए इंडियन का सपोर्ट चाहते थे और इसलिए उन्हें कांग्रेस की सपोर्ट की जरूर थी इसीलिए उन्होंने कई एक्टिव एफर्ट्स लिए वो कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स अगस्त ऑफर ट्रिप्स मिशन और कैबिनेट मिशन इंडिया में कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स देने और आजादी की पॉसिबिलिटी को एक्सप्लोर करने के लिए भेजें गए लेकिन इन सभी ने पाकिस्तान के फॉर्मेशन को लॉज ली रिजेक्ट कर दिया पर मार्च 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान रेजोल्यूशन को पास कर सिचुएशन को काफी ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड कर दिया था लीग के लिए इस रेजोल्यूशन को इंप्लीमेंट करवाना एक क्रेडिबिलिटी टेस्ट था और ऐसे में कांस्टीट्यूशनल एफर्ट्स को लेकर लीग और कांग्रेस में सेटलमेंट नामुमकिन ग रहा था 1947 के कैबिनेट मिशन को कांग्रेस और लीग दोनों ने रिजेक्ट कर दिया और जीना ने पाकिस्तान के लिए डायरेक्ट एक्शन लॉन्च कर दिया इसका नतीजा था लॉज स्केल कम्युननल वायलेंस अगस्त 1946 में डी ग्रेट कोलकाता किलिंग में लगभग 4000 लोग मारे गए और 1 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए उधर मार्च 1947 में माउंटबेटन नए वायसराय बना दिए गए जिनका एम था ब्रिटिश का इंडिया से स्पीडी विड्रोल आज अमेरिकन स्पीडी विड्रोल ने जी तरह का किया अफगानिस्तान में क्रिएट किया है वैसा ही कुछ तब भारत में हुआ जून थर्ड को माउंट बैटरी ने कांग्रेस और लीग को उल्टीनेटर दे दिया और कहा की अगस्त 1947 तक ब्रिटिश छोड़ देंगे इतने साल के कनफ्लिक्ट के बाद अब नेताओं के पास कोई अल्टरनेटिव नहीं था उनके पास केवल दो चॉइसेज थी या तो वो बिना किसी सॉल्यूशन के एक अराजक आजाद भारत को एक्सेप्ट करें जहां प्रिंसली स्टेटस अपनी इंडिपेंडेंस डिक्लेअर कर देश को फ्रेगमेंट कर लेने या फिर वो पार्टीशन को कस कर केवल दो स्टेटस बनाकर इस अराजकता को अवॉइड करें मोस्टली जो 2 सेपरेट स्टेटस को अपोज कर रहे थे उन्हें भी इस सेटलमेंट को मजबूरी में एक्सेप्ट करना पड़ा और इसके में कल्पित थे अंग्रेज उनकी कॉन्शियस डिवाइस और उनका इरिस्पांसिबल बिहेवियर पाकिस्तान को सीरियल रेडक्लिफ द्वारा दिमागाइटेड बाउंड्रीज के तहत सेपरेट कर दिया गया और इंडिया ने 15th अगस्त को नए मॉडल ऑफीशियली 17th अगस्त को अप्रूव हुए लेकिन हिस्ट्री विड्रोल का एक और नतीजा था इरिस्पांसिबिलिटी मार्केटिड बाउंड्री रेडक्लिफ ने बाद में एडमिट किया की उनके द्वारा बनाई गई बाउंड्रीज आउट ऑफ डेट मैप्स और सेंसेज मटेरियल पर बेस थे इंडियन स्टोन अपार्ट हूं बाज रिस्पांसिबल पर वाइल्डलैंड्स होना गया था पार्टीशन अनाउंस हुआ और देंगे भड़क उठे लाखों लोग सफर टेरिटरी के लिए माइग्रेट करने लगे मुस्लिम पाकिस्तान की और और हिंदू और सिख इंडिया की और एस्टीमेट के हिसाब से लगभग 1.5 करोड़ लोगों को डिस्प्लेसमेंट झेलना पड़ा डेथ की बात करें तो लगभग दो से 20 लाख लोगों के मारे जान की खबरें हैं पार्टीशन ने एन सिर्फ वायलिन डेथ को जन्म दिया बल्कि लोग डिजीज भुखमरी और डिप्रिवेशन से भी मारे कई हिस्टोरियन तो ये भी कहते हैं की भले ही पार्टीशन को अवॉइड कर पन 1947 में मुश्किल था लेकिन वायलेंस डेथ और डिप्रेशन शायद अवॉइड किया जा सकता था जी तरह से पार्टीशन की जिम्मेदार मेली अंग्रेज थे वैसे ही इस जनोसाइड और क्राइसिस के जिम्मेदार भी वही थे ब्रिटिशर्स खुद के लोगों को बचाने में बीजी रहे और पंजाब और बंगाल में लायन ऑर्डर मेंटेन करने से परहेज करते रहे इसीलिए कहते हैं की यह मैसिव क्राइसिस क्रिएट करने के बाद भी केवल 6 से 7 ब्रिटिशर्स ही इस दूर में मारे गए चलिए अब देखते हैं की विभाजन ने पोस्ट कॉलोनियल साउथ एशिया को कैसे बादल दिया इंपैक्ट ऑन पोस्ट कॉलोनियल साउथ एशिया दोस्तों इस ब्लडी पार्टीशन ने भारत को ही नहीं बल्कि पूरे साउथ एशिया को बादल कर रख दिया एक तरफ जहां हजारों साल तक डाइवर्सिटी इंडियन सबकॉन्टिनेंट का हॉलमार्क रही और अलग-अलग कम्युनिटी के लोग सद्भावना से रहते थे वहीं दूसरी और पार्टीशन के हॉरर ने एक लॉन्ग लास्टिंग ट्रस्ट डिफिसिट को जन्म दिया यह सिर्फ इंडिया में नहीं हुआ बल्कि पाकिस्तान और करंट स्टीम बांग्लादेश में भी हुआ भले ही पाकिस्तान सिर्फ मुस्लिम के लिए क्रिएट किया गया था लेकिन इन रियलिटी ऐसा हुआ नहीं वेस्ट पाकिस्तान में लगभग 1.6% नॉन मुस्लिम थे ईस्ट पाकिस्तान या मॉडर्न दे बांग्लादेश में लगभग 22% नॉन मुस्लिम और इंडिया में लगभग 10% मुस्लिम 1951 के सेंसेक्स के हिसाब से बैक गए ये सब्सटेंशियल नंबर था स्पेशली इंडिया और बांग्लादेश में पार्टीशन में हुई हिंसा का इंपैक्ट इन तीनों देश में इतना गहरा हुआ की समय-समय पर यह राइट्स के रूप में दिखाई देता है इसी रिलिजियस ड्राइव का नतीजा था एक रिलिजियस फेनेटिक द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या अंग्रेज चले गए लेकिन उनका फैलाया हुआ जहर रहा और इसने इन देश में एक सरिता आईडियोलॉजी को और ज्यादा फ्यूल किया और एक स्त्रीमिस्ट ऑर्गेनाइजेशंस अपना प्रोपेगेंडा चलते रहे खैर सबसे ज्यादा खराब कंडीशन थी रिफ्यूजी की जो डिप्रिवेशन फेस करते रहे उनका रिहैबिलिटेशन स्टेट के लिए सबसे बड़ा चैलेंज बना दिल्ली रिफ्यूजी क्राइसिस का मेजर सेंटर था रिफ्यूजी क्राइसिस 194748 में कश्मीर को लेकर हुए इंडिया पाक वार के चलते और ज्यादा इंटेंस हो गई और रेफ्रिजीस और ज्यादा तेजी से माइग्रेट करने लगे लोग छोटी-छोटी ग्रुप में 1960 तक माइग्रेट करते रहे बिकॉज़ ऑफ डिस्क्रिमिनेशन पेस्ट इंडिया ने तो फिर भी ऑफीशियली खुद को सेकुलर डिक्लेअर कर माइनॉरिटी प्रोटेक्शन का जम्मा उठाया लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं हुआ दोस्तों ये इतिहास 75 साल बाद भी भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को गाइड करता है जहां लॉक के एक्रॉस आए दिन सीजफायर वायलेशंस होते हैं दोनों देश आज न्यूक्लियर आम है और इसीलिए दुनिया भर के देश न्यूक्लियर वार की पॉसिबिलिटी से परेशान रहते हैं और इसीलिए फार्मर उस प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन ने लॉक को डी मोस्ट डेंजरस प्लेस इन डी वर्ल्ड बताया था राइस ऑफ लेफ्ट इन इंडिया जाता था इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन और फिर सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट आईडियोलॉजी के आने के बाद इन टर्म्स का मीनिंग और व्हाइट हो जाता है आज हम इंडिया में लेफ्ट आईडियोलॉजी की ग्रोथ और इससे रिलेटेड पार्टी के फॉर्मेशन की बात करेंगे सबसे पहले जानते हैं कुछ ऐसी कंडीशंस को जो इंडिया में लेफ्ट आईडियोलॉजिस्ट की ग्रोथ को फीवर करती हैं सरकमस्टेंसस फरिंग ग्रोथ ऑफ लेफ्ट आईडियोलॉजिस इन इंडिया फर्स्ट वर्ल्ड वार के और के दौरान कुछ ऐसी पालिटी को इकोनॉमिक्स सरकमस्टेंसस बनते हैं जिनकी वजह से इंडिया में लेप्टिज्म गो करता है जैसे की वार अपने साथ फाइनेंशियल बर्डन लेकर आता है डेली नेसेजिटीज की चीजों के दम आसमान चुने लगता हैं देश में फेम जैसे हालात बन जाते हैं और ऐसे में इंडस्ट्री लिस्ट अपने मुनाफे में लगे होते हैं इस सबसे इंपिरियलिस्ट कैपिटल डोमिनेशन के इविल्स एक्सपोज होते हैं इसके अलावा मार्क्स के रिवॉल्यूशनरी इतिहास और यूएसएसआर का फॉर्मेशन इंडियन इंटेलेक्चुअल को इंस्पायर करता है इसी समय गांधी जी द्वारा स्वराज और स्वदेशी के मैसेज को देश के कोनी कोनी में फैलाने की कोशिश की जाति है जो पॉलीटिकल मूवमेंट को एक नई दिशा देता है और ऐसे में एक ऑर्गेनाइज्ड और ऑडियो लॉजिक इंस्पायर सोशलिस्ट मूवमेंट के लिए जमीन तैयार हो जाति है इसके साथ ही एजुकेटेड मिडिल क्लास की एक नई जेनरेशन अनइंप्लॉयमेंट की वजह से लिबरलिज्म में अपना विश्वास को देती है और रिवॉल्यूशन आर्य सोशल स्टूडियोलॉजिक की तरफ अट्रैक्ट होती है इस तरह लेफ़्टिस्ट मूवमेंट की शुरुआत इंडिया में होने लगती है डी लेफ्ट मूवमेंट्स इंडिया में लेफ्ट मूवमेंट के इमरजेंसी को दो मां स्ट्रीम्स में डिवाइड किया जा सकता है पहले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्लेटफॉर्म पर कम्युनिस्ट कर रहा है जो की इंटरनेशनल कम्युनिस्ट मूवमेंट की ब्रांच की तरह फंक्शन करते हैं और लार्जली कमेंटम द्वारा ही कंट्रोल किया जाते हैं दूसरी सरिता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के विदीन लिफ्ट कराई जाता है उदाहरण के तोर पर 1934 में फॉर्म की गई कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ये डेमोक्रेटिक सोशलिज्म की आइडल जी से इंस्पायर होते हैं सबसे पहले बात करते हैं फर्स्ट सरिता यानी की कम्युनिस्ट पार्टी की डी कम्युनिस्ट पार्टी म राय और साथ अक्टूबर 1920 में ताशकंद में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की इनफॉरमेशन करते हैं इसके अलावा इंडिया में भी 1920 के बाद बहुत से लेफ्ट विंग और कम्युनिस्ट ग्रुप एक्जिस्टेंस में ए चुके होते हैं इनमें से ज्यादातर ग्रुप दिसंबर 1925 में कानपुर में एक साथ आकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया नाम से एक जो इंडिया ऑर्गेनाइजेशन बनाते हैं कम्युनिस्ट मूवमेंट के इतिहास को पांच फेस में डिवाइड किया जा सकता है फर्स्ट फैज डी पीरियड ऑफ थ्री कंस्पायरेसी ट्रायल्स मास्को की कम्युनिस्ट यूनिवर्सिटी पर टॉयलेट्स ऑफ डी ईस्ट में ट्रेनिंग लेने के बाद कम्युनिस्ट रिवॉल्यूशनरीज का पहले बैंड इंडिया आता है लेकिन यहां इन्हें ब्रिटिश क्राउन के अगेंस्ट कंस्पायरेसी के लिए एक्स किया जाता है जी वजह से ये अपना ज्यादा प्रभाव बना ही नहीं पाते इसके बाद कॉमिनेस्ट मूवमेंट तब थोड़ा स्ट्रांग बंता है जब ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी इंडिया में इसे सुपरवाइज करने का फैसला लेती है इनकी तरफ से फिलिप्स प्रत को दिसंबर 1926 में इंडिया भेजो जाता है और यहां आकर यह बहुत सी यूनियंस ऑर्गेनाइजर करते हैं न्यूज़ पेपर्स को एडिट करते हैं और कुछ युद्ध और फ्रंट ऑर्गेनाइजेशंस भी लॉन्च करते हैं इनके प्रयासों से बंगाल मुंबई पंजाब और अप में वर्कर्स और पेजयंस पार्टी ऑर्गेनाइजर की जाति हैं दिसंबर 1928 में सभी वर्कर्स और प्रेजेंस पार्टी को मर्ज करके जो इंडिया वर्कर्स इन प्रेजेंट पार्टी का फॉर्मेशन होता है कम्युनिस्ट पार्टी मुंबई में बहुत साड़ी इंडस्ट्रियल स्ट्रीक्स ऑर्गेनाइजर आई है इस दौरान कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे बड़ी सफलता थी ट्रेड यूनियंस पर अपना इन्फ्लुएंस बनाना 1920 से 1928 के बीच कम्युनिस्ट का इन्फ्लुएंस वर्कर्स के ऊपर बहुत स्ट्रांग हो जाता है साथ ही गवर्नमेंट हर तरह से लेफ़्टिस्ट मूवमेंट का दमन करने की कोशिश करने लगती है इस पीरियड में कम्युनिस्ट मूवमेंट तीन कंस्पायरेसी ट्रायल्स में इंवॉल्व होकर चढ़ जाएगा विषय बन जाता है 19223 में पेशावर कंस्पायरेसी ट्रायल 1924 में कानपुर कंस्पायरेसी ट्रायल और 1929 में मेरठ कंस्पायरेसी ट्रायल मेरठ ट्रायल जो 3 साल से ज्यादा चला है और 27 लोगों को इसमें कनविक्ट किया जाता है कम्युनिकेशन को मास्टर्स का दर्ज दे देता है यानी की इन्हें काफी पॉपुलर कर देता है कम्युनिस्ट का एंटी ब्रिटिश ट्रांस उन्हें नेशनलिस्ट से भी सिंपैथी जेन करता है कांग्रेस वर्किंग कमेटी इनके डिफेंस के लिए सेंट्रल डिफेंस कमेटी सेटअप करती है और 1500 भी सैंक्शन करती है 1929 में गांधीजी जय में इसे मिलने जाते हैं और कम्युनिस्ट लीडर्स के प्रति अपनी सिंपैथी एक्सप्रेस करते हैं इस तरह 1934 तक कम्युनिस्ट मूवमेंट को इंडिया में काफी रिस्पेक्ट मिलने लगती है और का सकते हैं की कम्युनिकेशन आईडियोलॉजी खुद को यहां एस्टेब्लिश कर लेती है इस तरह 1925 से 1929 के पीरियड में सीबीआई कांग्रेस के साथ कॉर्पोरेट करती है और उसकी प्रोग्राम को इन्फ्लुएंस करने की कोशिश करती है लेकिन जल्दी ही सिचुएशन रिवर्स हो जाति है जो की सेकंड फेस के अंदर समझा जा सकता है आई देखते हैं सेकंड फैज डी पीरियड ऑफ पॉलीटिकल 1929 के बाद जब गांधीजी की लीडरशिप में नेशनलिस्ट मूवमेंट तेजी से आगे बाढ़ रहा था तब की ऑर्गेनाइजेशन और आईडियोलॉजिकल दोनों स्टार पर सफर करती है कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की सिक्स्थ कांग्रेस में दिए गए डायरेक्शन के अनुसार की कांग्रेस से खुद को अलग कर लेती है साथ ही 1929 में वर्कर्स और पीजेंट पार्टी को यह कहकर डिसोल्व कर दिया जाता है की तू क्लास पार्टी को डेवलप करना इरेशनल है सीबीआई 1929 से ही कांग्रेस के राइट और लेफ्ट दोनों ही विंग्स को अटैक करने लगती है इस समय कांग्रेस जहां पूर्ण स्वराज का रेजोल्यूशन अडॉप्ट करती है और सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट को लॉन्च करती है वही की कांग्रेस की बॉबी लाती को कम करने के लिए संघर्ष की ट्रे एंगुलर करैक्टर को हाईलाइट करती है जिसमें कहा जाता है की वर्कर्स का स्ट्रगल सिर्फ फॉरेन इंपिरियलिज्म के अगेंस्ट ही नहीं बल्कि इंडियन एक्सप्लोइटर्स के अगेंस्ट भी है यह लोग गांधीजी की लीडरशिप को पेटी बुढ़वा कहकर अटैक करते हैं है और उन्हें इंपिरियलिज्म का एक टूल तक बता देते हैं जो मैसेज के रिवॉल्यूशनरी स्ट्रगल को बितराय कर रहे हैं यह कांग्रेस के लेफ्ट विंग की आलोचना करते हैं कहते हैं की वह एक काउंटर रिवॉल्यूशनरी फोर्स है लेकिन सीबीआई की यह टैक्टिकल अप्रोच अनरियलिस्टिक साबित होती है मैसेज का इनके लिए सपोर्ट कम हो जाता है नेशनलिस्ट लीडरशिप के साथ भी इनके रिलेशंस खराब हो जाते हैं ऐसे में ब्रिटिश गवर्मेंट मौके का फायदा उठाकर जुलाई 1934 में की को इलीगल ऑर्गेनाइजेशन डिक्लेअर कर देती है जिसके बाद कम्युनिस्ट कई ग्रुप में स्प्लिट हो जाते हैं अब बात करते हैं थर्ड फैज की थर्ड फैज कम्युनिस्ट और टीम भी रिलीज यूनाइटेड फ्रॉम प्लेन 1935 में पीसी जोशी की लीडरशिप में की को एक बार फिर रीऑर्गेनाइज्ड किया जाता है 1935 में हुई कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की सेवंथ कांग्रेस में कम्युनिस्ट को नेशनलिस्ट फोर्सेस के साथ यूनाइटेड फ्रेंड्स फॉर्म करने के लिए बोला जाता है जिसके बाद एक बार फिर ये लोग कांग्रेस के साथ को ऑपरेशन शुरू कर देते हैं इस मीटिंग में हुई डिलीवरी के आधार पर मार्च 1936 में आरती डेट और बेन ब्रैडली अपनी थीसिस पब्लिश करते हैं जिसका नाम था दी एंटी इंपिरियलिस्ट पीपल्स फ्रॉम इन इंडिया डेट ब्रैडली इंडियन नेशनल कांग्रेस को नेशनल स्ट्रगल में इंडियन का यूनाइटेड फ्रंट कहते हैं और कम्युनिस्ट को एडवाइस करते हैं की वो कांग्रेस को जॉइन करें और उसके लेफ्ट विंग को स्ट्रेंजर करें और रिएक्शनरी राइट विंग एलिमेंट्स को कांग्रेस से बाहर करने की कोशिश करें प्लेन बनाते हैं लेकिन कम्युनिस्ट लीडरशिप मूवमेंट के सोशल बेस को ब्रोडें करने में फेल हो जाति है और पॉपुलर फ्रंट कभी एक्जिस्टेंस में ही नहीं आता हालांकि 1930 के लेटर हाफ के दौरान मैसेज में बढ़नी हुई पॉलीटिकल एक्टिविटी का फायदा उठाते हुए कम्युनिस्ट अपने पॉलीटिकल कारंटीन से बाहर ए जाते हैं और एक बार फिर से इंडियन पॉलिटिक्स के रेडिकल एलिमेंट्स में अपनी जगह बना लेते हैं इसके बाद सेकंड वर्ल्ड वार के साथ फोर्थ फैज की शुरुआत हो जाति है फोर्थ फीस डी सेकंड वर्ल्ड वार और डी कम्युनिकेशन 1939 में जब सेकंड वर्ल्ड वार की शुरुआत होती है तो कमेंट ऑन लीडर्स की एडवाइस के अनुसार इंडियन कम्युनिस्ट यूनाइटेड फ्रंट पॉलिसी को कंटिन्यू रखते हैं और हर तरह के इंपिरियलिज्म का विरोध करते हैं लेकिन जून 1941 में जब हिटलर सोशलिज्म के फादर लैंड सोवियत यूनियन पर अटैक कर देता है तब कम्युनिस्ट खुद को एक ट्रिकी पोजीशन में पाते हैं इंडियन कम्युनिस्ट यू टर्न लेते हुए अब वार को पीपल्स वार में री लेबल कर देते हैं और एलाइड रोशन वार फ्रंट को अपना पूरा सपोर्ट अनाउंस करते हैं ब्रिटिश गवर्नमेंट 1942 में सीबीआई को लीगल ऑर्गेनाइजेशन डिक्लेअर कर देती है कम्युनिस्ट इस दौरान ब्रिटिश वार एफर्ट्स को हर संभव सपोर्ट देते हैं यहां तक की 1942 में क्यूट इंडिया मूवमेंट को सरप्राइज करने के लिए ब्रिटिशर्स के लिए स्पाइस का कम भी करते हैं कम्युनिस्ट पॉलिसी में आए इस सद्दाम स्विफ्ट की नेशनलिस्ट सर्कल्स में काफी आलोचना की जाति है कम्युनिस्ट देश की आजादी को भी एक फस यानी की छलावा बताते हैं यहां से शुरुआत होती है फिफ्थ फीस डी ट्रांसफर ऑफ पावर नेगोशिएशंस और कम्युनिस्ट मल्टीनेशनल प्लेन इस पीरियड में की का पोस्चर क्रोम मुस्लिम राहत है और वह कांग्रेस लीग के एलियन एशिया को और वाइड करने की कोशिश करते हैं सीबीआई द्वारा सभी सेपरेटिस्ट एलिमेंट्स को इनकरेज किया जाता है और इंडिया को कई सारे सावरेंस स्टेटस में डिवाइड करने का कम किया जाता है इनकी स्ट्रीट्स कम से कम एक ऐसे स्टेट पर अपना कंट्रोल बनाने और फिर उसे बाकी के इंडियन के लिबरेशन के बेस के रूप में उसे करने की थी लेकिन मुस्लिम लीग कम्युनिस्ट के साथ एलाइंस के आइडिया को जानकारी देती है और सीबीआई एक डिस्क्रेडिटेड ऑर्गेनाइजेशन की तरह र जाति है 1942 में ही सीबीआई ने एक रेजोल्यूशन अडॉप्ट किया था जिसमें इंडिया को एक मल्टी नेशनल स्टेट डिक्लेअर किया गया था और करीब 16 ऐसी इंडियन नेशंस को आईडेंटिफाई किया गया था 1947 तक कम्युनिस्ट मूवमेंट इंडियन पॉलिटिक्स में अपनी जगह को देता है और की पुरी तरह डेरी की सिचुएशन में होती है जब ब्रिटिश इंपिरियलिज्म से आजादी ही देश के लोगों का डोमिनेंट इंस्टिंक्ट होता है उसे समय सीबीआई की एक्स्ट्रा नेशनल लॉयल्टी और पुरी तरह यूरोपियन मॉडल पर डिपेंड्स इसे एक सस्पेक्ट ऑर्गेनाइजेशन बना देता है आई अब सेकंड सरिता यानी की कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की बात करते हैं डी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कांग्रेस का लेफ्ट विंग एक राशन लिस्ट रिवॉल्ट की तरह मर्ज होता है जो एक तरफ तो गांधीजी के मिस्ट्री सिस्टम के अगेंस्ट था और दूसरी तरफ कम्युनिज्म के दोगमेटिज्म के भी इनके आईडियोलॉजिकल इंस्पिरेशन मार्क्सिज्म और डेमोक्रेटिक सोशलिज्म से आई हैं और ये एंटी इंपिरियलिज्म नेशनलिज्म और सोशलिज्म की सपोर्टर होती हैं सुभाष चंद्र बस समझते हैं की कांग्रेस लेफ़्टिस्ट सिर्फ एंटी इंपिरियलिस्ट ही नहीं बल्कि वो नेशनल लाइफ को सोशलिस्ट बेसिस पर रिकंस्ट्रक्ट भी करना चाहते हैं अपने गोल को अचीव करने के लिए इन्हें दो फ्रेंड्स पर फाइट करना होता है पहले तो फौरन इंपिरियलिज्म और उसके इंडियन एयरलाइंस के साथ और दूसरा मिल्क वाटर नेशनलिस्ट यानी की राइटर के साथ जो इंपिरियलिज्म के साथ डील करने के लिए तैयार हैं दूसरे शब्दों में कहें तो ये कंप्लीट इंडिपेंडेंस और सोशलिज्म के फीवर में थे यह क्लासेस के लिए नहीं बल्कि मैसेज के लिए स्वराज चाहते थे गांधियन आईडियोलॉजी और नेशनलिस्ट स्ट्रगल से इनका इल्लूजनमेंट पहले बार तब होता है जब 1922 में गांधीजी ने नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को विड्रॉ कर लिया था वो भी ऐसे समय में जब नेशन पॉपुलर रिवॉल्ट के बहुत पास था इसी वजह से 1931 में सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट को सस्पेंड करना और फिर 1934 में इसे कॉल ऑफ करना भी इन्हें गांधियन आईडियोलॉजी के अगेंस्ट कर देता है लेफ्ट विंग इस निष्कर्ष पर आता है की हमेशा और हर सिचुएशन में नॉन वायलेंस की थ्योरी का प्लेन करना अनसुस्तीनेबल है और स्लिपरी फाऊंडेशंस पर बेस्ड है जुलाई 1931 में जीपी नारायण फूलन प्रसाद वर्मा और कुछ अन्य लीडर्स बिहार सोशलिस्ट पार्टी फॉर्म करते हैं सितंबर 1933 में पंजाब सोशलिस्ट पार्टी एक्जिस्टेंस में आई है इसके बाद अक्टूबर 1934 में जो इंडिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी यानी सीसी फॉर्मूली ऑर्गेनाइज्ड की जाति है जिसके पीछे जीपी नारायण आचार्य नरेंद्र देव और मीनू मसानी जैसे लीडर्स कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कांग्रेस के लिए कोई राइवल पॉलीटिकल ऑर्गेनाइजेशन नहीं थी बल्कि इसे कांग्रेस के ही अंदर कम करने के लिए फॉर्म किया गया था लेकिन फिर भी कांग्रेस का राइट विंग इन्हें इंटरनेशनल सेंट कहता है और कम्युनिस्ट इन्हें सोशल फेस या फेक सोशलिस्ट भी कहते हैं इसका जवाब देते हुए कांग्रेस सोशलिस्ट इंडियन कम्युनिस्ट को यूएसएसआर की सैटेलाइट डिस्क्राइब करते हैं सीसी गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 को भी कॉन्डम करती है साथी 1937 इलेक्शंस के दौरान कांग्रेस द्वारा ऑफिस एक्सेप्टेंस की भी आलोचना करती है सोशलिस्ट प्रेशर के ही करण 1936 के कांग्रेस के इलेक्शन मेनिफेस्टो में लोगों के सोचों- इकोनामिक रेवेंस को रिमूव करने का प्रोग्राम शामिल किया गया था सेकंड वर्ल्ड वार के समय सीसी कांग्रेस की तरफ से ब्रिटिश वार फोर्ड के लिए कंडीशनल हेल्प का भी विरोध करती है क्योंकि उनका मानना था की यह वार इंपिरियलिज्म के पार्टनर्स के बीच के रेप पार्टीशन के लिए हो रहा है कांग्रेस सोशलिस्ट चाहते थे की आजादी के लिए कांग्रेस रिवॉल्यूशनरी वार की शुरुआत करें सीसी क्यूट इंडिया मूवमेंट को सपोर्ट करती है और उसे ऑर्गेनाइज करने में लीडिंग रोल निभाती है इसके बाद सीसी ट्रांसफर ऑफ पावर के लिए नेगोशिएट सेटलमेंट के फीवर में भी नहीं थी बल्कि ये इंडिया में इंपिरियलिज्म कम्युनलिज्म और फैऊदलिज्म को डिस्ट्रॉय करने के लिए एक रिवॉल्यूशनरी स्ट्रगल की जरूर बताते हैं कांग्रेस सोशलिस्ट मुस्लिम लीग को इन लिक विद ब्रिटेन कहते हैं और जिन्ना को देश का गद्दार और इंपिरियलिस्ट का टूल बोलते हैं यह लोग हिंदू मुस्लिम यूनिटी की आशा करते हैं लेकिन टेंपरेरी फैक्ट्स या एग्रीमेंट्स के बेसिस पर नहीं बल्कि इकोनामिक इश्यूज पर इम्फैसीज करके जो हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही इफेक्ट करते हैं सीसी इंडिया के पार्टीशन को कांग्रेस लीडरशिप का सुरेंद्र बताती है साथ ही अल्टरनेटिव और पॉजिटिव पॉलिसी नाला अपने का अपना और वो रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट का फेलियर भी एक्सेप्ट करती है सीबीआई और सीसी के अलावा कुछ और माइनर लेफ़्टिस्ट पार्टी भी इंडिया में फॉर्म होती हैं आई उनको भी डिस्कस कर लेते हैं माइनर लेफ़्टिस्ट पार्टी कम्युनिस्ट मूवमेंट के शुरू होने के बाद 1939 40 के पीरियड में बहुत सी माइनर लेफ़्टिस्ट पार्टी की ग्रोथ भी होती है इनमें से ज्यादातर पार्टी पर्सनेलिटीज के राउंड सेंटर रहती हैं और एक बार सेंट्रल फिगर के गायब होने के बाद ये पार्टी भी डिफूंक हो जाति हैं इनमें सबसे पहले बात करते हैं फॉरवर्ड ब्लॉक की डी फॉरवर्ड ब्लॉक 1919 में कांग्रेस और गांधी जी के साथ मतभेद होने के बाद सुभाष चंद्र बस फॉरवर्ड ब्लॉक का फॉर्मेशन करते हैं यह कांग्रेस की क्रीड पॉलिसी और प्रोग्राम को तो एक्सेप्ट करते हैं लेकिन उसकी हाय कमांड में कॉन्फिडेंस के लिए खुद को बाउंड नहीं करते इसमें सभी एंटी इंपिरियलिस्ट रेडिकल और प्रोग्रेसिव ग्रुप को एक बैनर में लाने की कोशिश की जाति है लेफ्ट कंसोलिडेशन कमेटी को ऑर्गेनाइज करने में ये हम रोल निभाते है कांग्रेस के कोऑपरेशन के एटीट्यूड का विरोध करते हैं और इंडिया में इंपिरियलिज्म को खत्म करने के लिए विदेश से मिलिट्री हेल्प लेने के लिए चले जाते हैं 1947 में जो इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ट्रांसफर ऑफ पावर को बोगस ट्रांसफर कहता है और आप लगता है की दारा हुआ समाज स्ट्रगल को हारने के लिए ब्रिटिश इंपिरियलिज्म के साथ पार्टनरशिप के लिए तैयार हो गया है अब बात करते हैं रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी की रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी अर्ली 20th सेंचुरी के क्रांतिकारी इस पार्टी के ऑर्गेनाइजेशन के लिए न्यूक्लियस प्रोवाइड करते हैं इसे 1940 में लॉन्च किया जाता है यह ब्रिटिश इंपिरियलिज्म के वायलेट ओवर थ्रू और इंडिया में सोशलिज्म के एस्टेब्लिशमेंट को सपोर्ट करते हैं आईडियोलॉजिकली ये कॉमिनेस्ट पार्टी से ज्यादा सीसी के क्लोज होते हैं 1939 में त्रिपुरा कांग्रेस सेशन के दौरान हुए गांधी बस तिल में ये बूस्ट का साथ देते हैं ये लोग यूएसएसआर के वार जॉइन करने के बाद भी वार एफर्ट को सपोर्ट नहीं करते ट्रांसफर ऑफ पावर और पार्टीशन को ये कांग्रेस की उज्जवल लीडरशिप और इंपिरियलिज्म के बीच हुई बागडोर डील बताते हैं इसके अलावा कुछ और मेन पार्टी थी जैसे की 1939 में एन डेट मजूमदार बोलशेविक पार्टी ऑफ इंडिया एस्टेब्लिश करते हैं 1942 में समंदर नाथ टैगोर रिवॉल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी लॉन्च करते हैं और 1941 में इंद्रसेन और अजीत राय जैसे बलिनिस्ट पार्टी उसे करते हैं यह सभी डिसिडेंट कम्युनिस्ट ग्रुप थे और हर कोई इंडियन रिवॉल्यूशन को लीड करने के लिए खुद को सबसे फिट पार्टी बताता है इंडिया में कम्युनिस्ट मूवमेंट के पायनियर में राय का मार्क्सिज्म से पुरी तरह मोहभंग हो जाता है और 1940 में वो रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑर्गेनाइजर करते हैं इनका कहना था की इंडिया में रिवॉल्यूशन अकेले प्रोलिटेरिएट क्लास नहीं ला शक्ति बल्कि यह सिर्फ मल्टी क्लास पार्टी की लीडरशिप में ही ए सकता है कंक्लुजन दोस्तों इस तरह लेफ़्टिस्ट मूवमेंट में कई अलग-अलग ट्रेंड्स देखने को मिलते हैं लेफ्ट मूवमेंट्स देश में सोशलिस्ट आईडियोलॉजी को स्ट्रिंग दिन करते हैं कांग्रेस के सु इकोनामिक प्रोग्राम पर इनका गहरा प्रभाव देखने को मिलता है उदाहरण के तोर पर 1931 के कराची सेशन में लाया गया नेशनल इकोनामिक प्रोग्राम हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी बहुत ज्यादा सफल नहीं दिखती उसकी बड़ी वजह यह थी की यह अपने को इंडिया की सिचुएशन के अनुसार मॉडल करने की जगह इंटरनेशनल डिस्टेंस और फॉरेन आईडी को ही अपना बेस बनाए रखते हैं इसके अलावा अलग-अलग कम्युनिस्ट ग्रुप में यूनिटी भी नहीं अच्छी जाति जो इंडिया में कम्युनिस्ट मूवमेंट को कमजोर कर देता है दोस्तों 19th सेंचुरी के सेकंड हाफ के दौरान इंडिया में मॉडर्न इंडस्ट्री की शुरुआत होती है रेलवे की कंस्ट्रक्शन में कम करने वाले हजारों हाथ मॉडर्न इंडियन वर्किंग क्लास का हिस्सा बन जाते हैं रेलवे के साथ ही कुछ ऐसी लेडी इंडस्ट्रीज का डेवलपमेंट भी शुरू होता है जैसे की कॉल इंडस्ट्री तेजी से विकास करती है और लॉज वर्किंग ग्लास को रोजगार देती है इसके बाद कॉटन और जट इंडस्ट्रीज की भी शुरुआत अच्छी जाति है इन सभी इंडस्ट्रीज में कम करने वाले लोग इंडियन वर्किंग क्लास का पाठ कहलाने हैं इंडियन वर्किंग क्लास भी इस तरह के एक्सप्लोइटेशन को फेस कर दी है जैसा की इंडस्ट्रियलिज्म के दौरान यूरोपियन वर्किंग क्लास द्वारा किया गया था वर्किंग कंडीशन चाइल्ड लेबर और बेसिक एमिलाइटिस का अभाव लेकिन इंडिया में कॉलोनियलिज्म का होना वर्किंग क्लास मूवमेंट को एक अलग टच देता है इंडियन वर्कर्स को दो फोर्सेस का एक साथ सामना करना पड़ता है एक तो इंपिरियलिस्ट रनिंग क्लास और दूसरा कैपिटल क्लास का इकोनॉमिक्स दोनों ही तरह की कैपिटल लिस्ट शामिल थे इसलिए वर्किंग क्लास मूवमेंट का इंडिपेंडेंस मूवमेंट के साथ दीप कनेक्शन देखा जा सकता है अली नेशनलिस्ट स्पेशली मॉडरेट्स लेबर कैसे के प्रति बहुत ज्यादा एक्टिव नहीं दिखते इस समय इंडियन ओल्ड फैक्टरीज की लेबर और ब्रिटिश ओल्ड फैक्टरीज की लेबर को अलग-अलग ट्वीट किया जाता था ये भी समझा जाता था की लेबर लेजिसलेशंस इंडियन ओल्ड इंडस्ट्रीज की कम्पेटिटिव आगे को इफेक्ट करेंगे साथ ही अर्ली नेशनलिस्ट क्लास के बेसिस पर इंडिपेंडेंस मूवमेंट में डिवीजन नहीं होने देना चाहते थे इस वजह से देखा जाता है की मॉडरेट्स 1881 और 1891 के फैक्ट्री एक्ट्स कभी विरोध करते हैं इस दौरान वर्कर्स की इकोनामिक कंडीशंस को इंप्रूव करने के लिए कुछ फिलैंथरोपिक एफर्ट्स जरूर हुए थे और यह स्पेसिफिक लोकल ग्रीवेंस को ही हम करते थे ऐसे ही कुछ एफर्ट्स पर नजर डालते हैं बनर्जी वर्किंग मेंस क्लब की शुरुआत करते हैं और भारत श्रमजीवी के नाम से न्यूज़ पेपर लेजिसलेटिव काउंसिल में लेबर की बटर वर्किंग कंडीशंस पर एक बिल पास करने की कोशिश करते हैं 1880 में नारायण मेघा जी लोखंडे दीनबंधु न्यूज़पेपर की शुरुआत करते हैं और साथ ही बॉम्बे मिल और मिल हाथ संगठन को भी सेटअप करते हैं 1899 में ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे के सिगनल्स द्वारा पहले स्ट्राइक की जाति है जिसे काफी सपोर्ट भी मिलता है तिलक कई मीना से अपनी न्यूज़ पेपर महाराष्ट्र और केसरी में इस स्ट्राइक के लिए कैंपेन कर रहे थे इसके अलावा 20th सेंचुरी आते-आते बहुत सी नेशनल लीडर्स जैसे की विपिन चंद्रपाल और जी सुब्रह्मण्य अय्यर भी वर्कर्स के लिए बटर कंडीशंस और प्रोन लेबर रिफॉर्म्स की डिमांड करने लगता हैं ड्यूरिंग स्वदेशी अक्सर्ज स्वदेशी आंदोलन में वर्कर्स भी भाग लेते हैं अश्विनी कुमार बनर्जी प्रभात कुमार राय चौधरी प्रेम तो उसे बस और पूर्वक कुमार घोष जैसे लीडर्स के द्वारा जगह स्ट्रीक्स ऑर्गेनाइजर की जाति है ये स्ट्रीक्स गवर्नमेंट प्रेस रेलवे और जट इंडस्ट्री में की जाति हैं सुब्रह्मण्य शिवा और चिदंबरम पिल्लई टूटी गौरी और तिरुनेलवेली में स्ट्राइक लीड करते हुए गवर्नमेंट द्वारा अरेस्ट कर लिए जाते हैं इस दौरान ट्रेड यूनियंस को फॉर्म करने की कोशिश भी की जाति है लेकिन इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिलती स्वदेशी आंदोलन के बाद हुआ कल क्लास मूवमेंट में अगला टर्न फर्स्ट वर्ल्ड वार के दौरान होता है आई समझते हैं किस तरह गटर बनाता है चीजों के दम भी आसमान चुने लगे थे और इंडस्ट्रियलिस्ट के लिए यह प्रॉफिट कमाने का पीरियड साबित हो रहा था लेकिन वर्कर्स को भी लो वेजेस ही दी जा रही थी 1915 से 1924 के दौरान जट मिल द्वारा जहां 140% एवरेज डिविडेंड मिल रहा था वही इंडस्ट्री में कम करने वाले वर्कर्स की एवरेज वेज सिर्फ 12 पाउंड पर एनम थी ऐसी सिचुएशन की वजह से वर्कर्स में डिस्कंटेंट बढ़ता जा रहा था इस समय इंडिया में गांधीजी के आने से नेशनल मूवमेंट और ज्यादा ब्रेड बेस्ट हो गया था और नेशनल कॉल्स के लिए वर्कर्स और प्रेजेंस की मोबिलाइजेशन पर जोर दिया जा रहा था इसके अलावा इंटरनेशनल इवेंट्स जैसे की 1917 में रूस रिवॉल्यूशन और यूएसएसआर का फॉर्मेशन कमेंट ऑन कंफर्मेशन और आईएलओ का सेटअप होना इंडिया की वर्किंग क्लास मूवमेंट को एक नई डाइमेंशन देता है इस सबके बीच वर्कर्स को ट्रेड यूनियंस में ऑर्गेनाइज करने की शुरुआत भी होती है 31 अक्टूबर 1920 को जो इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का फॉर्मेशन होता है इसके पहले प्रेसिडेंट लाल लाजपत राय बनते हैं और दीवान चमन लाल को पहले जनरल कंट्री बनाया जाता है लाल लाजपत राय केपीटलाइज्म को इंपिरियलिज्म से लिंक करते हुए कहते हैं की इंपिरियलिज्म और मिलट्वॉइज्म केपीटलाइज्म के जुड़वा बच्चे हैं एटक के तीसरी और चौथ सेशन की अध्यक्षता कर दास करते हैं 1922 में कांग्रेस के गया सेशन में एटक के फॉर्मेशन को वेलकम किया जाता है और उसे एसिस्ट करने के लिए एक कमेटी भी फॉर्म की जाति है सी आर दास कहते हैं की कांग्रेस को वर्कर्स के कैसे को अपने एजेंडा में शामिल करना चाहिए नहीं तो यह लोग नेशनल मूवमेंट से आइसोलेट हो जाएंगे एटक के साथ नेहरू सुभाष चंद्र बस सन रूस जीएमसी इन गुप्ता वे वे गिरी और सरोजिनी नायडू जैसी लीडर्स भी क्लोज कांटेक्ट में रहते हैं शुरुआत में एटक ब्रिटिश लेबर पार्टी के सोशल डेमोक्रेटिक इतिहास से इन्फ्लुएंस थी इसके बाद गांधीजी की नॉन वायलिन फ्रस्ट्रेशन की फिलासफी का इस पर गहरा प्रभाव पड़ता है इससे पहले 1918 में जिंदाबाद मिल स्ट्राइक के दौरान गांधी जी ने अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर संगठन को भी ऑर्गेनाइजर किया था ट्रेड यूनियंस के फॉर्मेशन को बढ़ता देख 1926 में ब्रिटिश गवर्नमेंट ट्रेड यूनियन एक्ट लेकर आई है इस एक्ट में ट्रेड यूनियंस को लीगल एसोसिएशंस की तरह किया जाता है और उनके रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशंस के लिए कुछ कंडीशंस राखी जाति हैं ये एक्ट ट्रेड यूनियंस को सिविल और क्रिमिनल इम्यूनिटी देता है लेकिन सिर्फ लेजिटीमेट एक्टिविटीज के लिए इनकी पॉलीटिकल एक्टिविटीज पर रिस्ट्रिक्शंस लगा दी जाति हैं इसके बाद लीड 1920 का दूर शुरू होता है जब वर्कर मूवमेंट और ज्यादा स्ट्रांग होता दिखता है लीड 1920 से 1930 लीड 1920 में वर्कर्स मूवमेंट पर स्ट्रांग कम्युनिस्ट इन्फ्लुएंस देखा जा सकता है जो इसे पहले से ज्यादा मिलिटेंट और रिवॉल्यूशनरी बना देता है कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की फोर्थ कांग्रेस एटक को मैसेज भेजती है की सिर्फ फेयर वेजेस से ही संतुष्ट ना हो बल्कि केपीटलाइज्म और इंपिरियलिज्म को उखाड़ फेंकने के लिए कम करें 1928 के दौरान बड़े स्टार पर इंडस्ट्रियल अनरेस्ट देखने को मिलता है मुंबई टेक्सटाइल मिल में गिनी कामगार यूनियन द्वारा 6 महीने लंबी स्ट्राइक ऑर्गेनाइजर की जाति है कल मिलकर 2003 स्ट्रीक्स होती हैं जिसमें 5 लाख से ज्यादा वर्कर्स इंवॉल्व होते हैं और ये स्ट्रीक्स इमीडिएट इकोनामिक डिमांड से ज्यादा पॉलीटिकल इतिहास से प्रेरित नजर आई हैं इस पीरियड में बहुत से कम्युनिस्ट ग्रुप का क्रिस्टलाइजेशन भी होता है जिन्हें ऐसे देंगे मुजफ्फर अहमद पीसी जोशी सोहन सिंह जोशी जैसे लीडर्स लीड करते हैं ट्रेड यूनियन मूवमेंट की बढ़नी स्ट्रैंथ से घबराकर गवर्नमेंट लेजिसलेटिव रिस्ट्रिक्शंस लेकर 1929 में पब्लिक सेफ्टी ऑर्डिनेंस और ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट इंट्रोड्यूस किया जाता है ट्रेड डिस्प्यूट इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट को सेटल करने के लिए कोट्स इंक्वारी और कंसल्टेशन बोर्ड्स का अपॉइंटमेंट कंपलसरी कर देता है साथ ही पब्लिक यूटिलिटी सर्विसेज जैसे की रेलवे वाटर और इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड्स ईटीसेटरा में स्ट्राइक करने के लिए हर इंडिविजुअल वर्कर को वन मठ का एडवांस नोटिस एडमिनिस्ट्रेशन को देना कंपलसरी कर दिया जाता है इसके बिना सभी स्ट्रीक्स इलीगल डिक्लेअर कर दी जाति हैं इसके अलावा कोरसिव या पीली पॉलीटिकल नेचर की ट्रेड यूनियन एक्टिविटीज करने से भी इन्हें माना कर दिया जाता है यहां तक स्ट्रीक्स भी नहीं की जा शक्ति थी ट्रेड यूनियन मूवमेंट को और ज्यादा रिस्टिक करने के लिए 1929 में ही मेरठ कंस्पायरेसी कैसे भी फाइल किया जाता है जिसमें गवर्नमेंट 31 लेबर लीडर्स को अरेस्ट कर लेती है और 3 1/2 एयर की ट्रायल के बाद मुजफ्फरनगर और शौकत उस्मानी जैसे ट्रेड यूनियन लीडर्स को कनविनित किया जाता है इस ट्रायल को दुनिया भर में पब्लिसिटी मिलती है लेकिन इससे इंडियन वर्किंग क्लास मूवमेंट कमजोर पद जाता है जैसा की गवर्नमेंट का एक भी था इस बीच 1930 में शुरू हुए सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट में वर्कर्स ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था लेकिन ब्रिटिश गवर्नमेंट इन्हें फोर्सफुली ढाबा देती है लॉर्ड स्केल पर वर्कर्स और उनके लीडर्स को अरेस्ट किया जाता है लेजिसलेशंस और कमिश्नर के थ्रू वर्कर्स को विक्टिमाइज किया जाता है इन डेवलपमेंट की वजह से यूनियन लीडर्स को यूनिटी की इंर्पोटेंस समझ आई है और अक्टूबर 1934 में फॉर्म हुई कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी मॉडरेट और रेडिकल ट्रेड यूनियंस को यूनाइटेड करने का प्रयास करती है इसे जयप्रकाश नारायण आचार्य नरेंद्र देव और मीनू मसानी ने मिलकर फॉर्म किया था 1937 के प्रोविंशियल इलेक्शंस के दौरान आईआईटी उस कांग्रेस को सपोर्ट करती है कांग्रेस मिनिस्टरीज के ट्रेड यूनियंस के प्रति सीमित एटीट्यूड के करण 193 अभी तक इनकी संख्या बढ़कर 296 हो जाति है बिहार बॉम्बे यूनाइटेड प्रोविंस और सेंट्रल प्रोविंस में कांग्रेस गवर्नमेंट लेबर इंक्वारी कमेटी भी अप्वॉइंट करती हैं जो वर्कर्स की कंडीशनस को सुधारने के लिए लिबरल रिकमेंडेशन देती हैं जिसके बाद बॉम्बे इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1938 डी बॉम्बे शॉपर्स सिस्टम सेट 1939 क मेटरनिटी एक्ट 1939 और बंगाल मेटरनिटी एक्ट 1939 जैसे बेनिफिशियल लेजिसलेशंस एनेक्ट किया जाते हैं इसके बाद 1939 में सेकंड वर्ल्ड वार शुरू हो जाता है जब एक बार फिर वर्कर मूवमेंट नया टर्न लेट है आई जानते हैं इस दौरान क्या-क्या होता है ड्यूरिंग और आफ्टर डी सेकंड वर्ल्ड वार सेकंड वर्ल्ड वार एक बार फिर से बढ़ते प्राइसेस और पिछड़ती वेजेस का दूर लेकर आता है साल 1940 बहुत सी स्ट्रीक्स का गवाह बंता है ऐसा इसलिए भी क्योंकि ट्रेड यूनियंस उसे समय चल रहे पॉलीटिकल डेवलपमेंट से खुद को अलग नहीं रख शक्ति थी सितंबर 1940 में फैसियलिज्म और इंपिरियलिज्म के अगेंस्ट एटक एक रेजोल्यूशन अडॉप्ट करती है इसमें कहा जाता है की ऐसी किसी भी वार्म शामिल होना जिससे अपने देश में फ्रीडम और डेमोक्रेसी इस्टैबलिश्ड ना होती हो एन सिर्फ देश के लिए हितकारी होगा बल्कि इसमें वर्किंग क्लास का भी कोई बेनिफिट या हिट नहीं हो सकता इस तरह शुरुआत में तो वर्कर्स मूवमेंट वार को अपोज करता है लेकिन 1941 में यूएसएसआर के एलिट पावर्स की तरफ से वार जॉइन करने के बाद कम्युनिस्ट वार को पीपल्स वार कहते हैं और इसे सपोर्ट करने लगता हैं कम्युनिस्ट लीडर एम एंड्राइड एटक छोड़कर इंडियन फेडरेशन ऑफ लेबर नाम की प्रूफ गवर्नमेंट यूनियन बना लेते हैं ब्रिटिश गवर्नमेंट भी इस लॉयल ऑर्गेनाइजेशन के लिए पर मठ 13000 का ग्रैंड सैंक्शन कर देती है और इसीलिए क्यूट इंडिया मूवमेंट के दौरान वर्कर्स का पार्टिसिपेशन कुछ कम देखने को मिलता है इस दौरान कम्युनिस्ट इंडस्ट्रियल पीस की पॉलिसी फॉलो करने की सलाह देते हैं हालांकि आर्गेनाईजेशन सपोर्ट के बाहर इंडिविजुअल वर्कर्स जरूर आंदोलन को सपोर्ट करते हैं इसके बाद 1945 से 1947 के बीच वर्कर्स बड़ी संख्या में पोस्ट वार नेशनल अब्जॉर्जर्स में शामिल होते हैं उदाहरण के तोर पर 1946 में नवल रेटिंग्स के सपोर्ट में जगह-जगह वर्कर्स स्ट्राइक पर जाते हैं फौरन रूल की आखिरी साल में बहुत सी स्ट्राइक अच्छी जाति है जो की पोस्ट रेलवे जैसी एस्टेब्लिशमेंट में की गई थी कंक्लुजन दोस्तों हम का सकते हैं की इंडिया में वर्कर्स मूवमेंट काफी हद तक आजादी के आंदोलन से प्रभावित राहत है शुरुआत में नेशनल लीडर्स ही ट्रेड यूनियंस को लीडरशिप प्रोवाइड करते दिखते हैं लेकिन लेट 1920 के बाद इसका नेतृत्व कम्युनिस्ट लीडर्स के हाथों में चला जाता है वर्किंग क्लास नेशनल मूवमेंट को भी ब्रेड बेस प्रधान करती है इनके पार्टनरशिप के बिना नेशनल स्ट्रगल अधूरा ही र जाता वॉइस इंडियन कैपिटल और डी रूल इन नेशनल बुक दोस्तों इंडियन फ्रीडम मूवमेंट एक ऐसी दास्तान है जी सिर्फ एक पर्सपेक्टिव से नहीं देखा जाना चाहिए ये कैसी गुत्थी है जिसमें बड़े-बड़े नेताओं जैसे गोखले तिलक गांधी एट सिटेरा के साथ-साथ कई ऐसे समुदाय और आइडलॉजिस भी शामिल रही जिनका जिक्र किया बिना इसको समझना मुश्किल होने के साथ ही अधूरा भी है यह कहानी है भारत के कैपिटल अर्थात पूंजी पतियों के राइस और इंडियन फ्रीडम मूवमेंट में उनके रोल की जिसने हमारी स्ट्रगल में एक हम भूमिका निभाई लेकिन ये कहानी शुरू करने से पहले जल्दी से जानते हैं कुछ बेसिक फैक्ट्स अबाउट केपीटलाइज्म केपीटलाइज्म सिंपल टर्म्स में अगर समझा जाए तो केपीटलाइज्म अर्थात पूंजीवाद एक ऐसा इकोनामिक सिस्टम है जिसमें कैपिटल गुड्स की ओनरशिप प्राइवेट या कॉरपोरेट के हाथ में होती है कैपिटल गुड्स अर्थात पूंजीगत माल मतलब ऐसे गुड्स जिनका उसे दूसरे कंज्यूमर गुड्स के प्रोडक्शन के लिए होता है प्रोडक्शन प्राइसेस और डिस्ट्रीब्यूशन फ्री मार्केट पर डिपेंडेंट होता है कितना प्रोडक्शन करना है कितना प्राइस रखना है यह सब कुछ प्राइवेट कंपनी डिसाइड करती हैं मार्केट को कंट्रोल करने में सरकार का कोई खास रूल नहीं होता इस सिस्टम को केपीटलाइज्म कहते हैं और ये डिफरेंट है कम्युनिज्म से जिसमें स्टेट एक मेजर कंट्रोलर और इकोनामिक एक्टिविटी होता है आई अब चलते हैं वापस हमारी कहानी की तरफ की कैसे इंडियन कैपिटल क्लास फ्रीडम स्ट्रगल में इंवॉल्व हुई और कैसे उसे इन्फ्लुएंस किया इंट्रोडक्शन दोस्तों कॉलोनियलिज्म के दूर में कई इंडिविजुअल कैपिटल लिस्ट ने नेशनल मूवमेंट में पार्टिसिपेट किया उन्होंने एन केवल कांग्रेस जॉइन किया जय भी गए और उसे दूर की सभी मुश्किलों को एक्सेप्ट किया जो कांग्रेस मां के लिए आम बात थी जमुनालाल बजाज वाडीलाल लाल भाई मेहता लाल शंकर लाल सैमुअल आयरन कुछ ऐसे नाम हैं जो इसमें वेल्लूं रहे कुछ ऐसे भी इंडिविजुअल कैपिटल थे जिन्होंने कांग्रेस जॉइन नहीं किया पर फाइनेंशियल या कोई इनडायरेक्ट हेल्प की जैसे गड़ बिरला अंबाला साराभाई और बालचंद हीराचंद कई छोटे मरचेंट्स या ट्रेडर्स ने भी एक्टिवली सपोर्ट किया दूसरी और कुछ ऐसे इंडिविजुअल कैपिटल या सेक्शंस रहे जो की कांग्रेस या नेशनल मूवमेंट की तरफ न्यूट्रल रहे और कुछ नहीं तो एक्टिवली अपोज भी किया यहां पर हम पुरी कैपिटल ईस्ट क्लास इन इंडिया कैपिटल क्लास पहले इंपॉर्टेंट बात यह है की अगर दूसरी कॉलोनियल इकोनामी से कंपेयर करें तो इंडियन कैपिटल का इकोनामिक डेवलपमेंट काफी संपन्न और कई मैनो में उनकी ग्रोथ का नेचर काफी अलग भी रहा जानते हैं कैसे फर्स्टली इंडियन कैपिटल क्लास मिड 19th सेंचुरी में गो होना चालू हुई मुख्य बात यह है की इनकी कैपिटल अर्थात पूंजी निजी रूप से स्वतंत्र थी ना की किसी फॉरेन कैपिटल के जूनियर पार्टनर की तरह ये उनकी इंडिपेंडेंस कैपिटल थी सेकंड थी इंडियन कैपिटल क्लास इकोनॉमिकली या पॉलिटिकल कभी भी ऐसी सामंतवादी यानी फेयूडलिस्टिक लोगों के अधीन नहीं रहा जो इंपिरियलिज्म के सपोर्ट में थे बल्कि 1944 की फेमस बॉम्बे प्लेन जिनके सिग्नेटरीज जेआरडी टाटा और गड़ बिरला जैसे लोग रहे उन्होंने डिटेल लैंड रिफॉर्म्स का सपोर्ट भी किया जिसमें कोऑपरेटिव बनाने की बात की गई थर्डली 1914 से 1947 के दौरान कैपिटल क्लास ने बहुत तेजी से ग्रोथ की इसकी कई कर्म में से एक इंपोर्ट सब्सीट्यूशन रहा जिसके चलते स्वदेशी प्रोडक्ट्स को इनकरेज किया गया बाय लिमिटेड इंपोर्ट आजादी होने तक इंडीजीनस ये स्वदेशी इंटरप्राइजेज का डोमेस्टिक मार्केट शेर 73% तक पहुंच गया और ऑर्गेनाइज्ड बैंकिंग सेक्टर के डिपॉजिट का 80% जो साफ-साफ इनकी ग्रोथ को बयान करता है यहां ये समझना जरूरी है की कैपिटल की ग्रोथ कॉलोनियलिज्म के करण नहीं हो रही थी जैसा अक्सर इल्जाम लगाया जाता है बल्कि यह ग्रोथ कॉलोनियलिज्म के खिलाफ लगातार स्ट्रगल करते हुए हुई| जो उनकी इंपिरियलिज्म के खिलाफ लड़ाई के बीच आता बल्कि मिड 1920 तक उन्होंने अपने लॉन्ग टर्म क्लास इंटरेस्ट को सेट किया और इंपिरियलिज्म के खिलाफ अपनी आवाज को खुलकर लोगों तक पहुंचा कैपिटल क्लास की हेसिटेशन सिर्फ यह थी की इंपिरियलिज्म के खिलाफ कौन सा रास्ता चुनाव जाए उन्हें ये डर था की स्ट्रगल ऐसा रास्ता ना ले ले जिससे उनके यानी केपीटलाइज्म के एक्जिस्टेंस पर ही खतरा ए जाए इंपिरियलिज्म और एंटी इंपिरियलिस्ट मूवमेंट की तुलना में कैपिटल क्लास की क्या सोच रही यह समझना से पहले एक नजर इस पर डालना जरूरी है की कैपिटल इस क्लास का इमरजेंसी एक पॉलीटिकल एंटी के रूप में कैसे हुआ इमरजेंसी ऑफ डी कैपिटल एंटी 1920 की शुरुआत से ही गड़ बिरला और पुरुषोत्तम दास जैसी कैपिटल ने इंडिया की कमर्शियल इंडस्ट्रियल और फाइनेंशियल इंटरेस्ट के लिए एक नेशनल लेवल की ऑर्गेनाइजेशन को बनाने का प्रयास किया जिसकी मदद से कॉलोनियल गवर्नमेंट के सामने अपनी मांगे रख सकें इन्हीं कोशिशें के चलते 1927 में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स और इंडस्ट्री अर्थात फीकी का गठन हुआ जिसे कॉलोनियल गवर्नमेंट और इंडियन पब्लिक ने कैपिटल क्लास की एक डोमिनेंट ओपिनियन के रूप में स्वीकार किया कैपिटल क्लास की लीडर्स फीकी को ट्रेड कॉमर्स और इंडस्ट्री के नेशनल गार्जियन के रूप में देखने लगे इस प्रोसेस के दौरान इंडियन कैपिटल ने इंटेलेक्चुअल का इस्तेमाल करके इंपिरियलिज्म की कंप्रिहेंसिव इकोनामिक क्रिटिक को डेवलप किया जिसमें उन्होंने ट्रेड प्रैक्टिस में हो रही एक्सपी पोजीशन को उजागर किया फिर चाहे वो डायरेक्ट एप्रुपरिएशन यानी सीधे ल के मध्य से हूं या फिर ट्रेड फाइनेंस ई मैनिपुलेशन दो कंट्रीज के बीच हो रहे अनइक्विलिक्स चेंज जैसे माध्यमों से हो कांग्रेस लीडर्स ने उनके ओपिनियन और एक्सपर्टीज को हमेशा ही रिस्पेक्ट से ट्वीट किया कैपिटल ने ये महसूस किया की फिक्की लंबे समय तक सिर्फ एक ट्रेड यूनियन मंत्र नहीं र शक्ति उनका मानना था की अब उनको पॉलिटिक्स में इंटरव्यू करना चाहिए 1928 में फिक्की के प्रेसिडेंट सर पुरुषोत्तम दास ने डिक्लेअर किया वीकेंडो सेपरेटर पॉलिटिक्स फ्रॉम इकोनॉमिक्स इंडियन नेशनलिज्म में फरदर इंवॉल्व होने की बात कहीं गई सिमिलरली गड़ बिरला ने 1930 में फ्रीडम फाइटर के हाथ मजबूत करने की बात कहीं जिससे गवर्नमेंट को अपनी समक्ष लाया जा सके तो वापस आते हैं एंटी इंपिरियलिस्ट मूवमेंट के सपोर्ट में कैपिटल लिस्ट क्लास के तोर त्रिकोण पर अकॉर्डिंग तू कैपिटल क्लास कैपिटल क्लास का शुरू से यह मानना था की स्ट्रगल के बाद में कभी भी कांस्टीट्यूशनल मेंस और नेगोशिएशंस को आबंदों नहीं किया जाना चाहिए कैपिटल मास्क सिविल डिसऑबेडिएंस के पक्ष में नहीं थे इनके कुछ कर्म पर नजर डालते हैं पहले उन्हें डर था की मांस सिविल डिसऑबेडिएंस सोशल सेंस में रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट में कन्वर्ट हो सकता है जिससे केपीटलाइज्म को खतरा होगा दूसरा वो लंबे चलने वाले आंदोलन को सपोर्ट नहीं कर सकते थे क्योंकि उनकी दे टुडे बिजनेस को हनी होती तीसरा उनके कांस्टीट्यूशनल पार्टिसिपेशन और 22 राय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल में शामिल होने को सुरेंद्र के तोर पर नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि वो काउंसिल में रहकर इफेक्टिव अपोजिशन देना चाहते थे जिससे ऐसे लोग जो नेशनल इंटरेस्ट के लिए कम नहीं कर रहे थे वो अपनी बात ना मानव लेने ऐसा होने से कैपिटल क्लास और इंडियन इकोनामी को घाट हो सकता था वो केवल अपनी ऊपर ही पार्टिसिपेट करना चाहते थे नेशनल डिमांड्स को आबंदों किया बिना यही करण था की फीकी ने 1934 में रिपोर्ट ऑफ जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी ऑन कांस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स पर इंडिया को रिजेक्ट किया चौथ उन्होंने बिना कांग्रेस के इंवॉल्वमेंट की ब्रिटिश गवर्नमेंट से नेगोशिएट करने से इनकार कर दिया राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार किया और गांधी जी के इंवॉल्वमेंट को नेसेसरी बताया एस एन फ्री मां नवंबर 1929 में साराभाई ने कहा माइंस तू सपोर्ट ऑफ डी कांग्रेस डी गवर्नमेंट बिल नोट लिसन तू यू फाइनली कैपिटल क्लास ने फ्रीडम स्ट्रगल के और त्रिकोण को साइड लाइन नहीं किया उनके अनुसार कांस्टीट्यूशनलिज्म सिर्फ एक स्टेप था में गोल यानी फ्रीडम की और एग्जांपल को ऑन किया की कांग्रेस अपने गोल्ड तक पहुंचने के लिए ऑफिस जॉइन कर रही है ना की कॉन्स्टिट्यूशन को इन्फोस करने के लिए और अगर दो-तीन साल में प्रोग्रेस नहीं हुई तो मांस सिविल डिसऑबेडिएंस का डायरेक्ट एक्शन लेना जरूरी हो जाएगा दोस्तों कैपिटल क्लास का एटीट्यूड सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट की और काफी उलझा देने वाला था एक नजर इस पर भी डालते हैं परिसर एटीट्यूड टुवर्ड्स सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट कैपिटल क्लास बताए गए कर्म से सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट से डरती रही पर ये एक्सेप्ट भी किया की जो भी अब तक डिमांड्स एक्सेप्ट हुई हैं वो इस मूवमेंट के करण ही थी जनवरी 1931 में गड़ बिरला ने पुरुषोत्तम दास को लिखने हुए ये माना की गांधी जी के करण ही हमारे ऑफर्स एक्सेप्ट किया गए और किसी भी हाल में मूवमेंट को वीक नहीं होने दिया जा सकता जब भी मूवमेंट लंबा चला तो कैपिटल क्लास 20 और नेगोशिएशन की बात सामने लेकर आई यही उनका ड्यूल ऑब्जेक्ट करने में सपोर्ट नहीं किया बल्कि उन्होंने लगातार गवर्नमेंट को प्रेशराइज किया रिप्रेशन को रोकने के लिए समय के साथ इंडियन कैपिटल के एटीट्यूड में भी काफी अंतर दिखाई दिया पर एग्जांपल बड़े पैमाने पर सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट का सपोर्ट किया फिफ्थ अगस्त 1942 क्यूट इंडिया मूवमेंट के कर दिन पहले वायसराय से पॉलीटिकल फ्रीडम की मांग की ये तो बात हुई कैपिटल क्लास और सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट की और उनकी एटीट्यूड की अब कई बार कांग्रेस पर ये इल्जाम लगे की वो कैपिटल क्लास से इन्फ्लुएंस है इसको समझते हैं नेशनल मूवमेंट और इन्फ्लुएंस ऑफ कैपिटल 1920 के और तक भले ही इंडियन कैपिटल का एक बड़ा क्षेत्र कांग्रेस को सपोर्ट कर रहा था लेकिन यह समझना जरूरी है की इंडियन नेशनल मूवमेंट नहीं इनके द्वारा क्रिएट किया गया था और ना ही किसी भी तरह से इनके सपोर्ट पर डिपेंडेंट था बल्कि कैपिटल क्लास ने हमेशा ही नेशनल मूवमेंट की स्ट्रेटजी पर रिएक्ट किया और कांग्रेस को फॉलो किया यह भी देखा जाना चाहिए की जो भी कैपिटल नेशनल मूवमेंट का पाठ रहे वो जनरली कंजरवेटिव स्पेक्ट्रम में रहे जिनका मूवमेंट की स्ट्रैटेजिस पर कोई खास इन्फ्लुएंस नहीं रहा फिर भी नेशनल मूवमेंट की ऑटोनॉमी पर लगातार ही सवाल खड़े होते रहे हैं ऐसा कहा गया की कैपिटल ने अपने पैसों के दम पर कांग्रेस को प्रेशराइज किया अपनी डिमांड्स मानवाने के लिए जैसे लोअर रूपी स्टर्लिंग रेशों जिसे एक्सपोर्ट करने पर इंडियन एक्सपोर्टर्स का फायदा होता तारीफ प्रोटेक्शन जिसकी मदद से इंपोर्ट होने वाले गुड्स की डोमेस्टिक गुड से ज्यादा हो जाए और लोकल इंडस्ट्रीज को प्रॉफिट हो मिलिट्री एक्सपेंस जो कॉलोनियल गवर्नमेंट दूसरी कॉलोनी बचाने के लिए करती थी इन सभी स्टेप्स से कैपिटल क्लास का ही फायदा होने वाला था ये भी इल्जाम लगे की कैपिटल ने इस हद तक इन्फ्लुएंस किया की किसी भी मूवमेंट को कब स्टार्ट और एंड करना है ये भी वही डिसाइड करने लगे गांधी अर्बन पेस्ट के बाद सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट को बैंड करना इसका ही एक एग्जांपल बताया गया ये सारे एक्यूजेशन रियलिटी को रिफ्लेक्टर नहीं करते आई जानते हैं क्यों फर्स्ट इकोनामिक नेशनलिज्म की डिमांड जैसे प्रोटेक्शन फिजिकल और मॉनिटरी ऑटोनॉमी सिर्फ कैपिटल को फायदा नहीं पहचाने वाली थी बल्कि पुरी कंट्री की डिमांड थी जो की एक्सप्लोइटेशन का शिकार थी जैसे नेहरू सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट ने भी इन डिमांड्स के लिए लड़ाई लड़ी सेकंड इकोनामिक नेशनलिज्म की डिमांड कोई नई बात नहीं थी 50 साल पहले से ही नेशनलिस्ट ने इसकी डिटेल डॉक्ट्रिन डेवलप करनी चालू कर दी थी वह भी तब जब इंडियन कैपिटल एक क्लास के रूप में उभरा भी नहीं था इसलिए यह कहना गलत है की उन्होंने कांग्रेस को इन्फ्लुएंस किया थर्ड ये बात सच है की कांग्रेस को फंड्स की जरूर थी और बिजनेस कम्युनिटी से लेते भी रहे खासकर स्ट्रगल की कांस्टीट्यूशनल फैज के दौरान लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है की कांग्रेस की पॉलिसीज को कभी उन्होंने इन्फ्लुएंस किया छोटे डोनेशन और मेंबरशिप फीस पर ही लोकल लीडर्स अपना गुजर करते रहे इस कांटेक्ट में गांधीजी की पोजीशन पर बात करना जरूरी है 1922 से ही गांधीजी का यह मानना था की भले ही मरचेंट्स और मिल ऑनर्स से सपोर्ट लेना चाहिए पर किसी भी कंडीशन में इस मूवमेंट को उन पर डिपेंडेंट नहीनफेस्टेशन है इसलिए यह मूवमेंट पीटरलेस सी इंडिपेंडेंस तो होना ही चाहिए पर उनके खिलाफ नहीं होना चाहिए हालांकि आगे चलकर गांधी जी का एटीट्यूड नेगेटिव हो गया जब वर्ल्ड वार 2 के दौरान कैपिटल क्लास प्रॉफिट मेकिंग में लगे रहे जबकि लोग फेम से मा रहे थे लास्टली कांग्रेस हमेशा ही बिना कैपिटल के अप्रूवल के मूवमेंट स्टार्ट और एंड करती रही अपने खुद की स्तुति जी परसेप्शन और मैसेज की प्रिपेयरनेस के आधार पर आई अब जानते हैं की कैसे फ्रीडम स्ट्रगल के चलते कैपिटल और लेफ्ट ईस्ट जिन्हें अक्सर अपोजिट और दी आईडियोलॉजिकल स्पेक्ट्रम में समझा जाता है किम टुगेदर पर नेशनल गुड कैपिटल और कोऑपरेशन विद लेफ्ट टेस्ट दोस्तों इंडियन कैपिटल ने कभी कांग्रेस को अपनी क्लास पार्टी के रूप में नहीं देखा बल्कि एक ओपन एंडेड ऑर्गेनाइजेशन के रूप में देखा जो की एक पॉपुलर मूवमेंट को लीड कर रही थी 1930 के दर्श में नेहरू सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट के इन्फ्लुएंस के करण जब कांग्रेस में रेडिकलाइजेशन बड़ा तब कैपिटल ने पॉलिटिक्स में एक्टिव पार्ट लेने का डिसीजन लिया सराहनीय है की इसके बावजूद भी उन्होंने इंपिरियलिज्म का साथ नहीं दिया ऐसी ही एक कोशिश को इंडियन कैपिटल ने नाकाम कर दिया जब 1929 में कुछ कैपिटल ने यूरोपीय और इंडियन कैपिटल की एक पार्टी बनाने का सुझाव दिया जो की कम्युनिस्ट एक्टिविटी के खिलाफ होने वाली थी 1928 में भी पब्लिक सेफ्टी बिल को सपोर्ट करने से इनकार कर दिया जिसका इस्तेमाल अटैक नहीं करना चाहते थे बल्कि वह उन लोगों के हाथ सशक्त करना चाहते थे जिन्होंने केपीटलाइज्म का डेरा नहीं छोड़ या फिर सोशलिज्म को अपोज किया कैपिटल जैसे जल मेहता जो की 1943 में फिक्की के प्रेसिडेंट थे का ये मानना था की सोशल चेंज से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है कंसिस्टेंट प्रोग्राम ऑफ रिफॉर्म्स इसी रिफॉर्म प्रोस्पेक्टिव के साथ पोस्ट वार इकोनॉमिक्स डेवलपमेंट कमेटी को कम करना था जिसने फाइनली मुंबई प्लेन को बनाया वो सब कुछ जो सोशलिस्ट मूवमेंट में रीजनेबल था उसे एकोमोडेशन करने की कोशिश की गई बिना केपीटलाइज्म की एसेंशियल फीचर्स को सुरेंद्र की आखिरकार मुंबई प्लेन ने पार्शियल नेशनलाइजेशन पब्लिक सेक्टर लैंड रिफॉर्म और वर्कर्स की वेलफेयर स्कीम्स की नेसेसिटी को भी कुछ हद तक एक्सेप्ट किया कनक्लूडिंग रिमार्क्स तो दोस्तों हमने देखा की इंडियन कैपिटल क्लास प्रो इंपिरियलिस्ट बिल्कुल भी नहीं थी इंडियन कैपिटल क्लास ने अपने लॉन्ग टर्म इंटरेस्ट को आईडेंटिफाई किया और उसको प्रगमैटिकली परसू किया उन्होंने कांग्रेस की इंर्पोटेंस को समझते हुए इंडियन नेशनलिज्म के साथ कभी नहीं छोड़ और लगातार अपनी क्लास इंफ्रास्टेट को सोसाइटी की इंटरेस्ट के तोर पर उजागर किया इन फैक्ट दिस वज डी वेरी ब्यूटी ऑफ ए फ्रीडम स्ट्रगल जहां वेरियस आईडियोलॉजी और क्लासेस के लोगों ने मिलकर कंट्रीब्यूट किया और भारत देश का इतिहास अमर हो गया पॉपुलर स्ट्रगलर इन प्रिंसली स्टेटस दोस्तों जब हम इंडिया के फ्रीडम स्ट्रगल को याद करते हैं तो यूजुअली ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट हुए मूवमेंट दिमाग में आते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं की ब्रिटिश राज तो इंडिया की खाली 35th टेरिटरी को कर करता था बाकी की 25th टेरिटरी को इंडियन रुलर्स जिन्हें प्रिंसली स्टेटस भी कहा जाता था उनके अंदर में थी सरदार पटेल ने कैसे 500 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय किया इसके बड़े में तो आपने सुना ये पढ़ाई होगा लेकिन आज हम उससे पहले का इतिहास जानते हैं लेकिन उससे पहले जानते हैं व्हाट डू वे मीन बाय डी टर्म प्रिंसली स्टेटस प्रिंसली स्टेटस ब्रिटिश ने जब इंडिया को कंकर किया तो कुछ एरियाज पर डायरेक्ट कंट्रोल एस्टेब्लिश किया जैसे बंगाल मद्रास या अवध का रीजन लेकिन एक बड़ा एरिया ऐसा भी था जहां डायरेक्ट कॉक्वेस्ट की जगह इंडियन प्रिंस को ही रूल करने दिया गया कंडीशन बस यह थी की इन सभी स्टेटस को ब्रिटिश पैरामाउंट से एक्सेप्ट करनी होगी पैरामाउंटसी बेसिकली मेंस की ये स्टेटस ब्रिटिश क्राउन के वेसल होंगे वे एक्सेप्ट सब्सिडियरी एलायंसेज विथ ब्रिटिशर्स सो डिफरेंस के पास होगी और इंटरनल मैटर्स में स्टेटस फ्री होंगे देवाश्म रियली बड़े स्टेटस सच स हैदराबाद मैसूर कश्मीर लाइक बीकानेर बड़ौदा इंदौर जामनगर डी डेक्कन स्टेटस अलवर भरतपुर अब ऐसी क्या कंडीशन थी की इंडियन प्रिंस के रूल के अगेंस्ट मूवमेंट्स हुई वेल बहुत से रीजंस थे आई जानते हैं कॉसेस ऑफ मूव मांस इन प्रिंसली स्टेटस सबसे इंपॉर्टेंट रीजन मोस्ट ऑफ डीज इंडियन रुलर्स ऑटोक्रेटिक स्टाइल में रूल करते थे ब्रिटिशर्स ने इन्हें किसी भी एक्सटर्नल और इंटरनल थ्रेड के अगेंस्ट प्रोटेक्शन भी गारंटी की हुई थी अंदर पैरामाउंट प्रिंसिपल इसलिए मोस्ट ऑफ डेम अपनी प्रजा को भूलकर बस सेल्फिश इंटरेस्ट को बड़ा रहे थे दूसरा रीजन था हाईटेक से आपको जानकर हैरानी होगी की कुछ प्रिंसली स्टेटस में टैक्सेशन रेट्स ब्रिटिश इंडिया से भी ज्यादा थे तीसरा रीजन था लॉक ऑफ सिविल लिबर्टीज यहां रहने वाले लोगों के पास डेमोक्रेटिक राइट्स ना के बराबर थे एक तरफ ये रीजंस थे और दूसरी तरफ ब्रिटिश इंडिया में नेशनल मूवमेंट तेजी से आगे बाढ़ रहा था उसकी वजह से पॉलीटिकल कॉन्शसनेस अबाउट दे किसी रिस्पांसिबल गवर्नमेंट और सिविल लिबर्टीज भी काफी बधाई और दिस वाव ऑफ पॉलीटिकल कॉन्शसनेस अलसो रिच दिस टैक्स 20th सेंचुरी के फर्स्ट और सेकंड डीके में बहुत से इंडियन रिवॉल्यूशनरीज इन स्टेटस में शेल्टर लेने लगे और पॉलिटिसाइजेशन के एजेंट बने इसके बाद नॉन कोऑपरेशन और सिविल डिसऑबेडिएंस जैसे बड़े आंदोलन ने रियासतों के लोगों को और भी ज्यादा इन्फ्लुएंस किया बहुत से स्टेटस में प्रजामंडल्स या स्टेटस पीपल्स कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइज्ड की गई जैसे की मैसूर हैदराबाद बड़ौदा जामनगर इंदौर ईटीसी में इस प्रोसेस ने तब चर्म छुआ जब 1927 में बलवंत राय मेहता मणिलाल कोठारी और जी आर अभ्यंकर जैसे लीडर्स के द्वारा जो इंडिया स्टेटस पीपल्स कॉन्फ्रेंस को एस्टेब्लिश किया गया इससे डिफरेंट स्टेटस में होने वाले स्ट्रगलर को एक यूनाइटेड प्लेटफॉर्म मिला पर दोस्तों यह सब ऑर्गेनाइजेशंस और प्लेटफॉर्म रियासतों में आंदोलन को लेकर इंडियन नेशनल कांग्रेस जो की फ्रीडम स्ट्रगल की सबसे इंपॉर्टेंट नेशनल लेवल ऑर्गेनाइजेशन थी उसकी पॉलिसी क्या थी विद रिस्पेक्ट तू प्रिंसली स्टेटस आई जानते हैं नेक्स्ट क्षेत्र में पॉलिसी ऑफ कांग्रेस टुवर्ड्स प्रिंसली स्टेटस सबसे पहले कांग्रेस ने अपनी पॉलिसी आर्टिकल 8 की 1920 के नागपुर सेशन में इस सेशन में कांग्रेस ने इंडियन रुलर्स को अपने स्टेटस में रिस्पांसिबल गवर्नमेंट एस्टेब्लिश करने के लिए बोला और प्रिंसली स्टेटस में रहने वाले लोगों को कांग्रेस का मेंबर बने की परमिशन दी लेकिन वो अपनी स्टेट में कांग्रेस के नाम से कोई आंदोलन शुरू नहीं कर सकते थे पर ऐसा क्यों था की कांग्रेस प्रिंसली स्टेटस में डिस्टेंस रखना छह रही थी तो दोस्तों कई हिस्टोरियन की मैन तो कांग्रेस उसे समय फॉरेन पावर से लड़ने पर फॉक्स करते हुए इंडिपेंडेंस रुलर्स का अपोजिशन नहीं चाहती थी शादी कांग्रेस के कई बड़े बिजनेस मानते थे की डिफरेंट प्रिंसली स्टेटस रिक्वायर्ड डिफरेंट स्ट्रैटेजिस तू फाइट अगेंस्ट डी प्रिंसली रोलर इसीलिए अनलाइक ब्रिटिश इंडिया जहां यूनीफामिटी प्रिंसली स्टेटस में रेजिस्टेंस और फाइट्स टुवर्ड्स पॉपुलर गवर्नमेंट की लड़ाई काफी नेऊेंस होने की जरूर थी इसलिए कांग्रेस उसे समय प्रिंसली स्टेटस के मैसेज को अपने रेजिस्टेंस को खुद बिल्ड अप करने पर फॉक्स करने की पॉलिसी को सपोर्ट करती थी पर जैसे-जैसे फ्रीडम स्ट्रगल और स्ट्रांग हुआ तो यह पॉलिसी भी चेंज हुई 1929 के लाहौर सेशन में जवाहर लाल नेहरू कहते हैं की इंडियन स्टेटस कनॉट लाइव अवार्ड फ्रॉम डी रेस्ट ऑफ इंडिया और यहां के लोगों को अपना फ्यूचर डिटरमिन करने का पूरा अधिकार है इससे पता चला है की कांग्रेस एक इनडायरेक्ट कैटालिस्ट की तरह थी जो पॉपुलर स्ट्रगल इन प्रिंसली स्टेटस को मैच्योर स्ट्रांग और रेसिलियंट बना रही थी इसके बाद कुछ इंपॉर्टेंट डेवलपमेंट्स हुए जिन्होंने सिचुएशन बिल्कुल बादल कर रख पहले 19 55 का एक्ट जिसके तहत फेडरेशन की बात कहीं गई थी जिसका हिस्सा प्रिंसली स्टेटस भी थे प्रिंसली स्टेटस के रिप्रेजेंटेटिव को नॉमिनेट किया जाना था रुलर्स के द्वारा ना की पब्लिक से इलेक्ट्रिक तो इसने रिस्पांसिबल गवर्नमेंट की डिमांड को औरतें कर दिया दूसरा डेवलपमेंट था 1937 में कांग्रेस मिनिस्टरीज का प्रोविंस में आना और उनका परफॉर्मेंस जिससे लोगों को एक नया कॉन्फिडेंस और एक्सपेक्टेशन मिली हम देखते हैं की 193839 के पीरियड में और भी तेजी से स्टेटस में प्रजामंडल्स का फॉर्मेशन होता है इन सभी डेवलपर के बीच कांग्रेस भी अपनी पॉलिसी चेंज करती है कांग्रेस लीडरशिप यह रिलाइज करती है की आईटी इस हाय टाइम की प्रिंसली स्टेटस को भी पुरी तरह आजादी के आंदोलन का हिस्सा बनाया जाए क्योंकि उसके बिना एक यूनाइटेड इंडिपेंडेंस डेमोक्रेटिक कंट्री का विजन जो कांग्रेस देख रही थी वो अधूरा राहत इन बदलती हवाओं की झलक हमें गांधी जी के टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए इंटरव्यू में मिलती है जिसमें वो कहते हैं की जब तक प्रिंसली स्टेटस के लोग अवेयर नहीं थे तब तक कांग्रेस की नॉन इंटरवेंशन परफेक्ट स्टेटमेंट इंडिया के मैसेज को एक समाज मानना है इसलिए कांग्रेस के 1939 त्रिपुरा सेशन में कांग्रेस प्रिंसली स्टेटस को अपने बैनर के अंदर मूवमेंट करना अलाउ कर देती है इसके बाद शुरू होता है स्ट्रगल का फाइनल फेस आई जानते हैं फाइनल फेस अभी तक ब्रिटिश इंडिया और प्रिंसली स्टेटस में अलग-अलग चल रहे आंदोलन को एक किया जाता है इस में 1939 में नेहरू विकम प्रेसिडेंट ऑफ दी जो इंडिया स्टेटस पीपल्स कॉन्फ्रेंस और वो इम्फैसीज करते हैं आम नेशनल एम्स ऑफ पॉलीटिकल स्ट्रगलर इन ब्रिटिश इंडिया और इन डी प्रिंसली स्टेटस सेकंड वर्ल्ड वार के स्टार्ट होने पर सिचुएशन में दृष्टिक चेंज जाता है कांग्रेस मिनिस्टरीज रिजाइन कर देती हैं और क्यूट इंडिया मूवमेंट लॉन्च किया जाता है इसमें कांग्रेस ब्रिटिश इंडिया और प्रिंसली स्टेटस में कोई डिस्टिंक्शन नहीं रखती पीपल ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस विथ डी क्यूट इंडिया मूवमेंट यहां गांधीजी प्रिंसली स्टेट के रुलर्स और मैसेज दोनों को बताते हैं है जहां रोलर का रोल मसोस को फेयर और जस्ट पॉलिसी के साथ रूल करना है वहीं मैसेज को डिस्पाट प्रिंस के सामने स्ट्रांग्ली खड़ा होकर उनसे अपने राइट्स की डिमांड को रखना चाहिए साथ ही अब कांग्रेस की पॉलिसी में इंडिपेंडेंस ऑफ इंडिया के साथ साथ प्रिंसली स्टेटस को इंडिया का इंटरनल मेंबर बनाने की डिमांड एक इंटीग्रल पार्ट बन जाति है इसके साथ ही स्ट्रगल अगेंस्ट ब्रिटिश राज में फाइनली स्टेटस के पॉपुलर स्ट्रगलर को एक इक्वल इंर्पोटेंस दी जाति है लेकिन दोस्तों प्रिंसली स्टेटस का कंप्लीट इंडिपेंडेंस ब्रिटिश इंडिया के इंडिपेंडेंस से थोड़ा और मुश्किल था प्रिंसली स्टेटस में पॉपुलर स्ट्रगलर का लास्ट लेग हमें इंडिपेंडेंस के बाद देखने को मिलता है जब सरदार पटेल और बीपी मेनन कंप्लीट इंडिया बनाने के लिए स्टेटस को डोमिनियन ऑफ इंडिया में शामिल करने के लिए प्लेन बनाते हैं स्टेटस को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसेशन दिया जाता है जिसके द्वारा वह डोमिनियन ऑफ इंडिया में इंक्लूड हो सकते थे बट इसमें कुछ प्रिंसली स्टेटस पैरामाउंटसी लैप्स होने के बाद अपने आप को डोमिनियन में शामिल ना होकर इंडिपेंडेंस रहने की कोशिश करते हैं इसमें ट्रैवल को कश्मीर हैदराबाद एटरा जैसे प्रिंसली स्टेटस शामिल थे इस एस्पेक्ट को और डिटेल में समझना के लिए दो स्टेटस की स्टोरी को डिटेल में जानते हैं राजकोट और हैदराबाद पहले चलते हैं राजकोट स्टोरी ऑफ राजकोट दोस्तों राजकोट में राजा लक्खा जी राज सिंह जी तू के रूल के टाइम गवर्नमेंट में पॉपुलर पार्टिसिपेशन इनकरेज किया जाता है पर एग्जांपल 1923 में राजकोट प्रजा प्रतिनिधि सभा एस्टेब्लिश होती है जब 1930 में उनके बेटे धर्मेंद्र सिंह जी राजा बनते हैं जो की पॉपुलर पार्टिसिपेशन इन करेज नहीं करना चाहते थे की वो मोर फ्रस्ट्रेटेड इन है ऑन प्लेजेस और उसको पूरा करने के लिए स्टेट की इकोनामी पर काफी प्रेशर था उसके बाद टैक्स इंक्रीज होने और प्रतिनिधि सभा के लैब होने जैसे रीजन से पब्लिक में डिस्कंटेंट और बढ़ता है फिर स्टार्ट होता है स्ट्रगलर का सिलसिला राजकोट सत्याग्रह का सपोर्ट सरदार पटेल और गांधीजी जैसे नेशनल लीडर्स भी करते हैं और फाइनली एक एग्रीमेंट भी साइन होता है बिटवीन राजदरबार और सरदार पटेल इसमें पीवी पर्स पर लिमिट राखी गई और एक कमेटी का पॉइंट होना था तो सजेस्ट फरदर रिफॉर्म्स इस कमेटी के साथ मेंबर्स को सरदार पटेल रिकमेंड करेंगे यह भी डिसाइड होता है लेकिन यहां पर ब्रिटिश गवर्नमेंट इंटरफेयर करती है वह दरबार को सरदार पटेल की लिस्ट ऑफ मेंबर्स को रिजेक्ट करने को कहती है और गांधीजी डायरेक्टली इंवॉल्व भी होते हैं लेकिन दरबार की पोजीशन में कोई चेंज नहीं होता दूसरी तरफ आंदोलन वायलेट और कम्युनल होने लगता है इसकी वजह से गांधीजी सत्याग्रह खत्म करने का डिसीजन लेते हैं इनोसेंस सत्याग्रह फील्ड बट डी स्ट्रगल ऑफ राजकोट पीपल कंटिन्यू बट जब इंडिपेंडेंस का वक्त आता है डी रोलर ऑफ राजकोट न्यू की अब उन्हें प्रोटेस्ट करने के लिए ब्रिटिश पावर नहीं है सो ही डिसाइड नोट तू चैलेंज एनीमो और ही रीडली साइन डी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसेशन और फाइनली राजकोट की जनता को मिलती है रिस्पांसिबल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट ये थी राजकोट की कहानी अब चलते हैं साउथ के हैदराबाद में स्टोरी ऑफ हैदराबाद डी स्टोरी ऑफ हैदराबाद इसे अपोजिट ऑफ राजकोट यहां पर निजाम का रूल था लेकिन पापुलेशन हिंदू मेजॉरिटी थी कोई कांग्रेस को भी बन कर दिया गया था लेकिन फ्रीडम स्ट्रगल और पॉलीटिकल कॉन्शसनेस का असर यहां के लोगों तक भी है और धीरे-धीरे स्टेट में पॉलीटिकल एक्टिविटीज बधाई सत्याग्रह स्टार्ट हुए लेकिन स्टेट ने उनको रिप्रेस करने की हमेशा कोशिश की इसके अलावा रिलिजियस और कल्चरल ऑपरेशन भी था स्टाइल वो बढ़नी हुई नेशनल कॉन्शसनेस को रॉक नहीं पे और लोगों का स्ट्रगल बढ़ता गया रजाकार जो की एक पारा मिलिट्री फोर्स थी निजाम की उसने स्ट्रगल करने वालों को हरायस करना शुरू किया और सिचुएशन बहुत वालीटाइल हो गई बट फाइनली इंडियन आर्मी के 1948 ऑपरेशन पोलो की हेल्प से पीपल्स मूवमेंट वन कंक्लुजन प्रिंसली स्टेटस की कंडीशन ब्रिटिश इंडिया से काफी डिफरेंट थी इसलिए यहां होने वाले स्ट्रगलर भी अलग फॉर्म लेते हैं स्पिरिट ऑफ नेशनलिज्म और डेमोक्रेसी यहां भी जीत हासिल करती है और लोगों को रिप्रेजेंटेटिव फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट मिलती है [संगीत] बिना इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल की हिस्ट्री अधूरी रहती है उनके द्वारा किया गए सैक्रिफिस का स्थान सबसे ऊंचा है इंडियन वूमेन ने सच्ची स्पिरिट और अद्भुत साहस के साथ आजादी के संघर्ष में अपना योगदान दिया इतिहास में ऐसी भारतीय महिलाओं की एक लंबी लिस्ट है जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए खुद को डेडिकेट किया अपनी आज की इस वीडियो में हम ऐसे ही कुछ ग्रेट इंडियन वूमेन के कंट्रीब्यूशन को समझेंगे हम देखेंगे की कैसे इन्होंने नेशनल मूवमेंट के सभी फेस में अपना अनमोल योगदान दिया आई शुरू करते हैं अर्ली स्ट्रगलर ब्रिटिश रूल के अगेंस्ट हुए संघर्ष में वूमेन का पार्टिसिपेशन 1817 में ही शुरू हो गया यशवंत राव होलकर की बेटी थी बहादुर से लड़ते हुए ब्रिटिश कर्नल मालकिन को गोरिल्ला वाॅरफेयर में हर देती हैं यानी की 1857 की क्रांति से भी पहले इंडियन वूमेन ने ब्रिटिश के साथ टक्कर लेना शुरू कर दिया था अब बात करते हैं 1857 के ग्रेट रिवॉल्ट में वूमेन पार्टिसिपेशन की डी ग्रेट रिवॉल्ट वेटिंग 57 ब्रिटिश ने भले ही 1857 की क्रांति को 1 साल के अंदर ही कृष कर दिया हो लेकिन यह सबसे पॉपुलर इवॉल्व था जिसमें इंडियन रुलर्स मैसेज और सोल्जर ने बाढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था इस क्रांति की सबसे बड़ी हीरोइन को कौन भूल सकता है झांसी की रानी लक्ष्मी बाई 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने अद्भुत साहस पराक्रम और वीरता का परिचय दिया और हमेशा के लिए भारतीयों के दिलों में अमर हो गई उनकी मिसल आज भी वूमेन एंपावरमेंट के लिए दी जाति है रानी लक्ष्मीबाई अकेली ऐसी महिला नहीं थी जिन्होंने इस क्रांति में भाग लिया उनके साथ उनकी ही सहेली झलकारी बाई ने भी अपनी वीरता का सबूत इस लड़ाई में दिया था इसके अलावा अवध की रानी बेगम हजरत महल शक्ति थी और दूसरा गांधीजी खुद इंडियन वूमेन की पोटेंशियल को समझते थे और इन्हें आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते थे तो आई अब गांधियन फीस की चर्चा करते हैं विमेंस पार्टिसिपेशन इन डांडियां फेस गांधीजी ने जब 1920 में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट लॉन्च किया तो उसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपनी भागीदारी दी सरल देवी मुथुलक्ष्मी रेड्डी सुशीला नायर राजकुमारी अमृत कौर सुचेता कृपलानी और अरुण आसफ अली जैसी वूमेन ने नॉन वायलेट मूवमेंट में पार्टिसिपेट किया वूमेन बड़ी संख्या में लेकर शॉप्स के आगे धरना देती थी फॉरेन क्लॉथ की होली जलती थी और रैली और माचिस में भी हिस्सा लेती थी गांधी जी की वाइफ कस्तूरबा गांधी और नेहरू फैमिली की वूमेन जैसी कमल नेहरू विजय लक्ष्मी पंडित और स्वरूप रानी ने भी नेशनल मूवमेंट में बाढ़ चढ़कर भाग लिया था लाडू रानी और उनकी डॉटर मनमोहिनी श्याम और जनक लाहौर में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को लीड करती हैं और सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट लॉन्च किया जाता है तो कमल देवी चट्टोपाध्याय गांधीजी से रिक्वेस्ट करती हैं की अपने दांडी मार्च में वह महिलाओं को भी शामिल करें कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मी कमल देवी गांधी जी के इतिहास और नॉन वायलेंस के कॉन्सेप्ट से बहुत प्रेरित थी उन्होंने आजादी के संघर्ष में भाग लेने के लिए 1923 में ही कांग्रेस पार्टी को जॉइन कर लिया था है इसके बाद वूमेन जगह नमक कानून तोड़कर फॉरेस्ट लॉस ब्रेक करके और प्रभात फेरीज के जारी अपनी लिबर्टी की तरफ कम बढ़नी हैं मी 1930 में धरसाना साल्टवर्क्स पर रेड करने के लिए गांधीजी खुद सरोजिनी नायडू को नॉमिनेट करते हैं और जी तरह से ये रेड कंडक्ट की जाति है वो अपने आप में आंदोलन के अहिंसात्मक नेचर की मिसल है आंदोलन के दौरान कमल देवी जगह पब्लिक मीटिंग्स एड्रेस करती हैं नमक तैयार करती हैं फॉरेन क्लॉथ और लिकर शॉप्स पर धरना देती हैं इसी दौरान 26th जानुडी 1930 को हुई एक घटना से पूरे देश का ध्यान उनकी तरफ जाता है प्रदर्शन के दौरान पुलिस हमला बोल देती है और अपने हाथ में लिए तिरंगे को बचाने के लिए कमल देवी उससे लिपट जाति हैं पुलिस वाले लाठी बरसते रहते हैं लेकिन वो एक चट्टान की तरह खड़ी रहती है खून बहता राहत है लेकिन कमल देवी तिरंगे को अपने हाथ से नहीं जान देती दूसरी तरफ मणिपुर में रानी गाइडें लाइव ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट नागालैंड नेशनलिस्ट के संघर्ष को लीड करती हैं इसके लिए इन्हें 1932 में अरेस्ट कर लिया जाता है देश की आजादी के बाद इन्हें जय से रहा किया जाता है और जवाहर लाल नेहरू इन्हें रानी ऑफ नागार्ज का टाइटल देते हैं इंडिविजुअल एफर्ट के साथ साथ वूमेन बहुत सी ऑर्गेनाइजेशन के जारी भी आंदोलन को सपोर्ट करती हैं उदाहरण के तोर पर नई सत्याग्रह कमेटी महिला राष्ट्रीय संघ और लेडीज विकेट इन बोर्ड जैसे ग्रुप आंदोलन को और मजबूत बनाते हैं भारतीय महिलाओं की भागीदारी सिर्फ नॉन वायलेट मूवमेंट्स तक ही सीमित नहीं थी बल्कि वो रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलती नजर आई हैं रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज में वूमेन दो तरह से अपना योगदान देती हैं पहले तो पैसिव तरीके से था जिसमें यह रिवॉल्यूशनरीज को छुपाने की जगह देती हैं फंड्स के लिए अपनी ज्वेलरी देती हैं मैसेज और वेपन करियर का कम भी करती हैं और इन डायरेक्टली रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज को सपोर्ट करती हैं और दूसरा तरीका एक्टिव था जहां वूमेन खुद हाथ में पिस्तौल्स लेती नजर आई हैं उदाहरण के तोर पर सूर्य सन की नेतृत्व में 1930 में हुई चित्तागोंग ई रेड में कल्पना डेट और प्रीतीलता वादी डर जैसी रिवॉल्यूशनरी शामिल थी वहीं दिसंबर 1931 में शांति घोष और सुनीति चौधरी बंगाल के कोमिला जिला के दम को गली मार देती हैं तो 21 साल 1932 में कन्वोकेशन सेरेमनी के दौरान बंगाल की गवर्नर को शूट करती हैं इतना ही नहीं देश के बाहर भी वूमेन रिवॉल्यूशनरीज आजादी के लिए संघर्ष करती हैं जिसमें सबसे बड़ा नाम मैडम भीकाजीकामा का है इन्हें मदर ऑफ इंडियन रिवॉल्यूशनरी मूवमेंट भी कहा जाता है इन्होंने 197 में जर्मनी के स्रोत गार्डन में ऑर्गेनाइज्ड वर्ल्ड सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में भाग लिया था और यही पहले बार इंडियन फ्लैग को अनफॉल भी किया था इस तरह क्रांतिकारी एक्टिविटीज में भी महिलाओं ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया था आई अब आजादी के आखरी आंदोलन यानी की क्यूट इंडिया मूवमेंट में वूमेन की पार्टी से पेशेंट की बात करते हैं क्यूट इंडिया मूवमेंट 1942 की क्यूट इंडिया रेजोल्यूशन ने वूमेन को इंडियन फ्रीडम के डिसिप्लिन सोल्जर कहा था जिनकी जरूर आजादी के संघर्ष की ज्वाला को जलाए रखना के लिए बहुत ही ज्यादा थी और इंडियन वूमेन ने ऐसा ही किया आंदोलन के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं में भाग लिया उषा मेहता ने वॉइस ऑफ फ्रीडम नाम से सीक्रेट रेडियो ट्रांसमीटर सेटअप किया था जिसके द्वारा आंदोलन से जुड़े प्रोटेस्ट और अरेस्ट की न्यूज़ यंग नेशनलिस्ट की एक्टिविटीज और गांधीजी के फेमस दो दी मैसेज को लोगों के बीच सर्कुलेट किया गया था सुचेता कृपलानी नॉनवॉयलेट रेजिस्टेंस को लीड करती हैं वहीं अरुण आसफ अली अंडरग्राउंड रिवॉल्यूशनरी एक्टिविटीज को लीडरशिप प्रोवाइड करती हैं इन बड़े नाम के अलावा हजारों की संख्या में ऐसी और वूमेन थी जो आजादी के लिए अपने अपने स्टार पर इनिशिएटिव लेती हैं देश में जब क्यूट इंडिया मूवमेंट चल रहा था तब देश के बाहर सुभाष चंद्र बस इंडियन नेशनल आर्मी का फॉर्मेशन कर रहे थे 1943 में फॉर्म हुई इस आर्मी में वूमेन रेजीमेंट भी शामिल थी जिसका नाम 1857 क्रांति की लीजेंडरी हीरोइन रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया था इसे लगभग 15000 वूमेन ने जॉइन किया था इन्हें फूल मिलिट्री ट्रेनिंग दी गई थी और कॉम्बैट ड्यूटीज के लिए तैयार किया गया था लेकिन जब शुरुआत में इन्हें सिर्फ नॉन कॉम्बैट रोल दिए जाते हैं तो यह सब अपने लीडर से शिकायत करती हैं जिसके बाद 1945 में इन्हें इंफाल कैंपेन के दौरान एक्चुअल वार ऑपरेशन एस के लिए भेजो जाता है हम का सकते हैं की इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल का ऐसा कोई भी फ्रंट नहीं था जहां वूमेन पार्टिसिपेशन मिसिंग हो हर इंडियन वूमेन ने आजादी के इस यज्ञ में अपनी आहूदी दी थी दोस्तों इंटरेस्टिंग बात यह है की सिर्फ इंडियन वूमेन ने ही नेशनल मूवमेंट में भाग नहीं लिया था बल्कि बहुत सी ऐसी फॉरेन नेशनल्स भी थी जिन्होंने इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल को एक्टिवली सपोर्ट किया था आई ऐसी कुछ वूमेन के बड़े में भी बात करते हैं फॉरेन वूमेन इन इंडियन नेशनल मूवमेंट जब फ्रीडम स्ट्रगल में नॉन इंडियन वूमेन के पार्टिसिपेशन की बात होती है तो उसमें सबसे बड़ा नाम आयरलैंड की अन्य बेसन का आता है अन्य बसंत इंडिया में थियोसोफिकल सोसाइटी की फाउंडर थी इन्होंने होम रूल लीग की भी शुरुआत की थी जिसका आइरिश होम रूल लीग की तरह इंडिया में होम रूल यानी स्वराज के लिए आंदोलन शुरू करना था इसके अलावा 1917 में यह कांग्रेस प्रेसिडेंट की पोस्ट पर भी सिलेक्ट हुई थी नेशनल मूवमेंट में अन्य बसंत के अनमोल योगदान के लिए इंडिया में आज भी उन्हें ग्रेट फूली याद किया जाता है जिनका नाम मिस मगरित नोबेल था यह जनवरी 898 में इंडिया आई हैं और स्वामी विवेकानंद की डिसएबल बंटी हैं इन्हें सिस्टम निवेदिता के नाम से जाना जाता है इन्होंने अमेरिका और यूरोप में इंडिया के संघर्ष का प्रचार प्रसार किया सिस्टर निवेदिता ने 1905 में कांग्रेस का बनारस सेशन भी अटेंड किया था और स्वदेशी मूवमेंट को सपोर्ट किया था पेरिस में जन्मी मीरा अल्फों 1914 में इंडिया आई है और श्री अरबिंदो से मिलती हैं इन्हें युनिवर्सिटी मदर के नाम से जाना जाता है पांडिचेरी के पास इंटरनेशनल टाउन और बिल की स्थापना के पीछे इन्हीं की इंस्पिरेशन है इन्होंने सिर्फ इंडिया के ईद ओल्ड हेरिटेज और कलर को इन रिच किया बल्कि यानी बेसन और नलिनी सेन गुप्ता जैसी वूमेन को इंडिया के लिए फाइट करने के लिए मोटिवेट भी किया इसके अलावा महात्मा गांधी दो इंग्लिश लेडिस मीरा बहन और सरल बहन को कौन भूल सकता है और इनका जन्म इंग्लैंड में हुआ था वही सरल बैंक का नाम कैथरीन मेरी हिलाना था इन्हें इंडियन नेम गांधी जी द्वारा दिए गए थे मीरा बहन गांधीजी के साथ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में गई थी और इन्होंने और एरियाज में सोशल रिफॉर्म्स के लिए बहुत कम किया था वही सरलाबेन भी एक ग्रेट सोशल रिफॉर्मर थी इन्होंने उत्तराखंड के कौसनी में एक आश्रम स्थापित किया था ये गांव गांव जाकर पॉलीटिकल प्रिजनर्स की फैमिली को हेल्प किया करती थी इस तरह बहुत सी विदेशी महिलाओं ने इंडिया की आजादी में हम रोल निभाया था हम का सकते हैं की भले ही इंडिया की सिटीजंस एन रही हूं लेकिन दिल से जरूर दोस्तों इस तरह आजादी के लिए संघर्ष में महिलाओं ने अपनी जिम्मेदारी निभाई उन्होंने पब्लिक मीटिंग्स की फॉरेन क्लॉथ और अल्कोहल शॉप्स के आगे धरना दिया खड़ी को अपनाया और राष्ट्रीय आंदोलन में बाढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया इस दौरान महिलाओं ने पुलिस की बैटिंग को भी फेस किया और जय भी गई हजारों की संख्या में भारतीय महिलाओं ने देश की आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी और ऐसी सभी महान महिला स्वतंत्रता सेनानियों को हमारा शत शत नमन स्टडी इक इस अब तैयारी हुई अफॉर्डेबल