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आरएनए डब्ल्यू (RAW) की कहानी

मतलब कि एक आरएसएस का आदमी होम मिनिस्टर बन सकता है लेकिन उसको आरएनए डब् में जॉब नहीं मिल सकती उनको साइन करना होता था कि वो और उनकी फैमिली का कोई भी मेंबर आरएसएस और कम्युनिस्ट से एसोसिएटेड नहीं है जिस दिन साइंटिस्ट वहां पे बाल कटवाते हैं इंडियन एजेंट्स उनके बाल उठा के ले आते हैं डेमोक्रेसी की हत्या हो गई है इंदिरा गांधी का रेजिग्नेशन चाहिए अब यह बात सुनते ही जियाउल हक के होश उड़ जाते हैं कि इतनी अंदर की डिटेल्स कैसे पता है इन लोगों को इंडियन आर्मी को डायरेक्ट कारगिल के मैदान में पता चला कि दो और नई बटालियन उनके अगेंस्ट में खड़ी हैं उसने अपना प्लेन कैबिनेट मिनिस्टर जो कि अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आए थे उनको घूमने के लिए दे दिया ऐसी फोटो आती है जिससे हर कोई हैरान हो जाता है उस फोटोग्राफ को देख के यह पता चलता है कि पाकिस्तान के एक एयर बेस पे और फिर जब ये सारी चीजें बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और हाथ से निकलने लगती हैं तो इंदिरा गांधी जी इमरजेंसी लगा देती हैं देखिए कहावत है नॉलेज इज पावर लेकिन यह कहावत सबसे ज्यादा फिट होती है इंटेलिजेंस एजेंसीज के ऊपर जो सिर्फ अपनी नॉलेज और इनपुट के दम पे लाखों लोगों की जान बचाते हैं अपने देश के लिए एक दुश्मन देश में जाके अपनी जान दाव पे लगा देते हैं और वो भी बिना कोई क्रेडिट लिए ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है आर एडब के बारे में हमने मूवीज तो बहुत देखी हैं लेकिन आरएनए डब् ऑपरेट कैसे करती है ऑपरेशन के लिए रेडी कैसे किया जाता है पॉलिटिकल इंटरफेरेंस कितनी होती है और उससे नुकसान क्या-क्या झेलना पड़ता है इनके ऑफिसर्स को रिस्क कितना होता है ये सारी चीजें आपको इस वीडियो में पता चलेंगी आप कहोगे कि ये तो सारी सीक्रेट इंफॉर्मेशन है मैं इस पे कैसे वीडियो बना रहा हूं तो देखिए इस वीडियो में मैंने सिर्फ वही चीज ऐड की है जो हमारे फॉर्मर आरडब्लू के जो ऑफिसर्स थे जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद बताया आई है और सिर्फ किसी एक ऑफिसर की बात या बुक या आर्टिकल पढ़ के मैं ये वीडियो नहीं बना रहा हूं मैंने मल्टीपल बुक्स रिसर्च पेपर और आर्टिकल पढ़े हैं और जो इंफॉर्मेशन मल्टीपल फॉर्मर ऑफिसर्स जो थे उनमें कॉमन थी सिर्फ वही इस वीडियो में ऐड की है जिनके लिंक आपको डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे एंड आई एम श्यर ये चीजें जब आपको पता चलेंगी तो आप सरप्राइज होंगे आगे बढ़ने से पहले मैं बात करना चाहूंगा एक ऐसे प्लेटफॉर्म की जिससे हर छोटे-बड़े बिजनेस को फायदा होगा देखिए चाहे आपका बिजनेस कोई भी हो उसमें इनवॉइस बनाना बिलिंग सही से करना पेमेंट्स रिकॉर्ड रखना टाइम कंजूमिंग है और ये इनवॉइस बना ने का ओल्ड फैशन तरीका अब आउटडेटेड हो चुका है इसे डिजिटल और प्रोफेशनल बनाना चाहिए जिससे कस्टमर का हम पे ट्रस्ट भी बढ़ता है लेकिन कैसे तो यहां आपकी मदद करेगा डू जो एक अल्टीमेट प्लेटफार्म है आपके बिजनेस को मैनेज करने के लिए जैसे कि सीआरएम पॉइंट ऑफ सेल्स वेबसाइट क्रिएशन सेल्स इवन बिलिंग और बिल्स एंड इनवॉइस मैनेज करने के लिए भी डू के पास एक इनवॉइस इंग ऐप है जिसमें कुछ इस तरीके से अपने बिजनेस की डिटेल्स डाल के डिजाइन फाइनल करना है फिर इनवॉइस क्रिएट करेंगे जिसमें डिटेल्स डालेंगे जैसे क्वांटिटी टैक्सेस रेट एक्सट्रा फिर डालेंगे बैंक डिटेल्स और इसके बाद कुछ क्लिक्स में आप इनवॉइस और बिलिंग करने के लिए रेडी हो इनवॉइस को यहीं से कस्टमर को डायरेक्टली सेंड कर सकते हैं और डैशबोर्ड से सब इनवॉइस के प्रोग्रेस का ओवरव्यू ले सकते हैं इसके अलावा भी ड में और भी एप्स हैं जिसमें पहला ऐप हमेशा के लिए फ्री है विद अनलिमिटेड कस्टमर सपोर्ट एंड होस्टिंग और बाकी एप्स के लिए भी आप ईयरली और मंथली प्लांस ले सकते हो स्टार्टिंग फ्रॉम ₹5000000 की जो इंटेलिजेंस एजेंसी आरएनए डब् है वो बनी तो ईयर 1968 में थी लेकिन उससे पहले कई ऐसे इंपॉर्टेंट डिसीजन थे जिनके लिंक आरएनए डब्लू के डेवलपमेंट से जुड़े हैं तो देखिए हुआ क्या था कि ब्रिटिशर्स के टाइम पे जबलपुर के जंगलों में कुछ डकेट थे जो अटैक और लूट करके जंगलों में गायब हो जाते थे तो इससे निपटने के लिए ब्रिटिशर्स ने एक डिपार्टमेंट बनाया और उसका नाम था ठगी एंड डकैती डिपार्टमेंट और यही वो डिपार्टमेंट था जो आगे चलके आरएनए डब्लू की नीव रखता है उस टाइम पे ये जो ठगी एंड डकैती वाला डिपार्टमेंट बनाया गया था ये उस एरिया में इनपुट और इंटेलिजेंस इकट्ठा करके ऊपर पहुंचाता था और कुछ अपने ऑफिस के लोग भी ये लोग डकैतों के साथ मिला देते थे और ऐसा करके बहुत ही कम टाइम में इस डिपार्टमेंट ने इस पूरे एरिया से डकैतों को खत्म कर दिया एक्चुअल में इस डिपार्टमेंट की वर्किंग कैसे होती थी उसका लिंक मैंने डिस्क्रिप्शन में लगा दिया एक बार आप देख लीजिएगा और यही वो टाइम था जब अंग्रेजों को इंटेलिजेंस की इंपॉर्टेंस समझ में आई तो उस टाइम पे एंटी ब्रिटिश गवर्नमेंट एक्टिविटी करने वाले जो फ्रीडम फाइटर्स थे उनसे निपटने के लिए भी एक ऐसी एजेंसी जिसका नाम सेंट्रल स्पेशल ब्रांच सीएसबी था उसको बनाया गया और ये जो ठगी डिपार्टमेंट की ऑफिसर्स और मैनपावर थी उसको इसी सेंट्रल स्पेशल ब्रांच सीएसबी में ट्रांसफर कर दिया गया और फिर आगे चलके इसमें क्राइम से रिलेटेड केसेस भी ऐड कर दिए गए और ईयर 1904 में इसका नाम सेंट्रल क्रिमिनल इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट सीसीआईडी हो गया था और फिर इसके 2 साल बाद ही उसका नाम आईबी इंटेलिजेंस ब्यूरो कर दिया गया था और इसी के साथ-साथ जब इनको इंटेलिजेंस में बहुत ज्यादा सक्सेस मिल रही थी तो इन्होंने अलग से एक मिलिट्री इंटेलिजेंस का भी डिपार्टमेंट बनाया था अब इसके बाद देश आजाद होता है और अंग्रेज जब इंडिया से जाते हैं तो बाकी डिपार्टमेंट की तरह आईबी डिपार्टमेंट जो था उसका भी ट्रांसफर किया जाता है लेकिन आईबी के केस में अंग्रेजों ने सारे इफॉर्म और एजेंट्स की जो डिटेल्स थी और जो सीक्रेट डॉक्यूमेंट थे कुछ को डिस्ट्रॉय कर दिया और कुछ को साथ में ले गए और आईबी जो था उसको इंडिया को दे दिया और एमआई जो था वो पाकिस्तान को दे दिया अब अंग्रेजों के जाने के बाद आईबी जो थी उसमें ट्रेन स्टाफ जो था उसकी शॉर्टेज हो जाती है लेकिन संजीवी पिलाई जो थे वो पहले हेड बने थे आईबी के तो उन्होंने ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी mi5 के मॉडल पे जैसे-तैसे करके आईबी को चलाया और अंग्रेजों के टाइम पे आईबी जो थी वो कंट्री की बाउंड्री के अंदर की चीजों पे काम करती थी लेकिन ईयर 1951 में हिम्मत सिंह कमेटी रिकमेंडेशन पे आईबी को इंडिया की बाउंड्री के अंदर और बाहर दोनों जगह के टास्क करने का काम दिया गया लेकिन इसके बाद आने वाले कुछ सालों में बैक टू बैक ऐसी चीजें होती हैं जिसकी वजह से आईवी जो पहले इंडिया की बाउंड्री के बाहर तक भी टास्क करती थी उसको इंडिया की बाउंड्री के अंदर ही रिस्टेट कर दिया गया और आरएनए डब् को बनाना पड़ा एक्चुअली होता क्या है कि ईयर 1954 में चाइना ने एक मैप रिलीज किया था जिसमें इंडिया का 120000 स्क्वा किमी एरिया जो था वो चाइना ने अपनी बाउंड्री के अंदर दिखा दिया था पहले तो इस पे ये बोला कि ये एरर है लेकिन एक्चुअल में चाइना इस एरिया को अपने अंडर लेना चाहता था तो इसके बाद आने वाले कुछ सालों तक चाइना वेट करता है लेकिन इसके बाद 28 अक्टूबर 1962 को इंडिया में घुस के कब्जा करना स्टार्ट कर देता है और इंडिया ये वॉर हार जाता है और आईबी जो था इस पूरी वॉर में चाइना की किसी भी मूवमेंट को नहीं पकड़ पाता है इंडिया ने इस वॉर में अपनी एयरफोर्स का यूज नहीं किया था क्योंकि इंडिया को लगता था कि अगर वो एयरफोर्स का यूज करेंगे तो उधर से चाइना भी यूज करेगा तो उससे ज्यादा नुकसान होगा लेकिन एक्चुअल में चाइना जहां से वॉर लड़ रहा था वहां उसका कोई बड़ा एयर बेस या एयरक्राफ्ट का अरेंजमेंट नहीं था इस इंफॉर्मेशन को भी आईबी पकड़ नहीं पाता है जिसकी वजह से नुकसान होता है इस वॉर के बाद आईबी को और स्ट्रांग किया जाता जिसमें टेक्नोलॉजी वगैरह ऐड की गई एविएशन रिसर्च सेंटर वगैरह बनाए गए सारा फोकस चाइना के बॉर्डर पर रखा गया लेकिन इसके बाद ईयर आता है 1965 और यह ईयर आते आते दोबारा से आईबी फेल हो जाती है इस साल पाकिस्तान इंडिया पर अटैक कर देता है लवार की नोक पर या एटम बम के डर से कोई हमारे देश को झुकाना चाहे दबाना चाहे यह देश हमारा डरने वाला नहीं तो एक सरकार के नाते हमारा क्या जवाब हो सकता है सवाल हम हथियारों का जवाब हथियारों को और आईबी को इसके बारे में भी कुछ नहीं पता चलता है अब बाकी देशों की एजेंसी जो थी उनके कंपेरटिवली आईबी जो था वो उतना अच्छा रिजल्ट नहीं दे रहा था क्योंकि अगर आईबी int16 6 को इंदिरा गांधी पीएम बनती है और पीएम बनते ही ये सबसे पहला काम करती है एक एक्सपीरियंस और फेमस ऑफिसर थे आर एन काव इनको बुलाती हैं और आर एन काओ जो थे वो नेहरू फैमिली से पुराने भी रिश्ते रहे हैं उनके आर एन काओ और इंदिरा गांधी जी की जो मदर थी वो चाइल्डहुड फ्रेंड थी और इससे पहले भी आर्यन काव ने जवाहरलाल नेहरू जो थे उनकी सिक्योरिटी संभाली थी तो इंदिरा गांधी को इनप ज्यादा ट्रस्ट था इंदिरा गांधी आर्यन काउ से एक मीटिंग करती है और उसमें कहती है कि हमें आईबी से हट के एक इंटेलिजेंस एजेंसी बनानी होगी जो बहुत ही एडवांस हो और उसका पूरा फोकस इंडिया की बाउंड्री के बाहर पे हो ताकि ये जो वॉर हो रही है इसमें हमें एडवांटेज रहे अब ये मीटिंग खत्म होने के बाद आरएन काओ दो महीने का टाइम लेते हैं और सारी स्टडी वगैरह करके एक नई एजेंसी बनाने का ब्लूप्रिंट सबमिट करते हैं आरयन काओ का ये जो ब्लूप्रिंट था इसको इंदिरा गांधी एक्सेप्ट कर लेती है ये एज इट इज इंप्लीमेंट होता है बस इसमें एक चीज इंदिरा गांधी इसमें ऐड करती हैं कि ये नई एजेंसी जो है जो भी बनेगी उसका जो हेड होगा वो डायरेक्टली पीएम को रिपोर्ट करेगा और उसी टाइम प वहां पे कैबिनेट सेक्रेटरी डीएस जोशी भी बैठे थे जिन्होंने इस एजेंसी का नाम सजेस्ट किया रिसर्च एंड एनालिसिस विन आरएनए डब् इसके बाद 21 ऑफ सितंबर 1968 को आर एडब बना दी जाती है उस टाइम पे इसका बजट 20 मिलियन यूएस डॉलर का था और इसका ऑफिस साउथ दिल्ली में रखा गया था आज भी लोदी रोड न्यू दिल्ली में इनका हेड ऑफिस है और आईबी जो थी वो आरएनए डब् बनने के बाद उसको इंडिया की बाउंड्री के अंदर की चीजें संभालने का टास्क दिया गया अब आईबी जो थी वो इंडिया के बाहर के जो ऑपरेशंस थे उनको नहीं कर सकती थी आरएनए डब् जब बनाई गई थी तो आरएन काओ ने ये चीज मैंडेटरी कर दी थी कि कोई भी आरएनए डब् का जो स्पाई होगा जो इंडिया की बाउंड्री के बाहर के ऑपरेशंस में इंवॉल्व होगा तो उसका नाम आप किसी भी डॉक्यूमेंट पे किसी भी रिपोर्ट पे या फिर पेपर के टुकड़े तक पे भी नहीं लिख सकते हो आपको नाम याद रखना होगा किसी भी डिपार्टमेंट के बाहर कोई ऑफिसर के नेम प्लेट नहीं होते थे और आरएनए डब् में कोई डेजिग्नेशन नहीं होती थी जो सीनियर ऑफिसर्स होते थे उनको सेक्रेटरी बोला जाता था और जो जूनियर ऑफिसर होते थे उनको अंडर सेक्रेटरी बोला जाता था बस यही दो डेजिग्नेशन होती थी अब ये सब सेटअप करने के बाद आरएनए डब्लू का जो नेक्स्ट टास्क था वो अपने स्पाइस को ट्रेन करके इंडिया के बॉर्डर के बाहर प्लांट करना ताकि इंफॉर्मेशन आ सके और ये जो टास्क था ये फॉरन सेक्रेटरी टीएन कॉल को दिया गया था इन्होंने क्या किया इंडिया के बाहर जो एंबेसीज थी वहां पे फेक जॉब रिक्वायरमेंट क्रिएट की और और फिर इन जॉब्स को भरने के बहाने आरएनए डब् के जो स्पाइस थे उनकी आइडेंटिटी चेंज करके उनको अलग-अलग देशों में भेजा गया आरएनए डब् के जितने भी एजेंट्स थे ये दूसरे देशों में जाके वायरलेस और वायर्ड कम्युनिकेशन के थ्रू इंफॉर्मेशन को ट्रेस करके मर्स कोड के थ्रू इंडिया में इंफॉर्मेशन पहुंचाते थे ये कोड ऐसे दिखते थे ये जितने भी स्पाइस थे इनको बाहर सेटअप करने के बाद आरएनए डब् ने इंडिया के बॉर्डर पे मॉनिटरिंग स्टेशंस लगाए और एसआई जीआई एनटी सिग्नल इंटेलिजेंस के थ्रू बॉर्डर से ही कम्युनिकेशन ट्रेस करना स्टार्ट किया जो भी उनकी रेंज में आता था अब जब ये आर एनड की एक्टिविटी स्टार्ट हुई तो उसके कुछ ही महीनों में आईबी और मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर जो थी इनकी इंपॉर्टेंस कम हुई और सारा फोकस जो था वो आरएनए डब् पे ज्यादा जा रहा था उनकी इंपॉर्टेंस बढ़ रही थी इनफैक्ट आईबी के जो डायरेक्टर थे एसपी वर्मा और एमएमएल हुजा जो थे वो तो आरएनए डब् के बनने के टाइम पे ही क्वेश्चन कर दिया था कि ये सही नहीं है और इस इंटरनल कंफ्लेक्स से आरएन डब् की वर्किंग में बहुत दिक्कत आने लगी आईबी के जो एमएमएल हुजा थे उन्होंने फॉरेन डेस के जो ऑफिसर्स थे आईबी में जैसे फॉरेन लैंग्वेज एक्सपर्ट फॉरेंसिक क्रिप्टोग्राफी एक्सपर्ट उनका आरएनए डब् में ट्रांसफर करने से मना कर दिया और आईबी की जो फॉरेन इंटल की जो पुरानी फाइल्स थी वो भी आरएनए डब् को नहीं दी गई पुराने जो अच्छे एजेंट थे जो आईबी के लिए अच्छा काम कर रहे थे उनकी डिटेल्स भी आरएनए डब् के साथ शेयर नहीं की गई इसके साथ-साथ आरएन डब् को फॉरेन ट्रेवल एक्सपेंस जो होता था और और भी बाकी जो खर्चे होते थे उसके लिए कैबिनेट से अप्रूवल लेना पड़ता था तो इसमें भी प्रोसेस बहुत डिले होता था इनमें भी दिक्कत आती थी इनको और फिर जब कई महीनों तक ये इंटरनल कंफ्लेक्स में घुसती हैं और आरएनए डब् के हेड को कैबिनेट का हिस्सा बना दिया जाता है अब इससे होता ये है कि एडमिनिस्ट्रेटिव लेवल पे हायरिंग फॉरेन ट्रेवल एक्सपेंसेस ये सब आ आर एडब के हाथ में आ गया था और तब जाके ये सिचुएशन कंट्रोल में आती है आर एनड की रिक्रूटमेंट के टाइम पे एक डिक्लेरेशन फॉर्म पे साइन करवाना होता था जहां पे उनको साइन करना होता था कि वो और उनकी फैमिली का कोई भी मेंबर आरएसएस और कम्युनिस्ट से एसोसिएटेड नहीं है अटल बिहारी वाजपेई जी पीएम बने आरएसएस के एलके एडवान होम मिनिस्टर बने लेकिन ये फॉर्म चेंज नहीं किया गया मतलब कि एक आरएसएस का आदमी होम मिनिस्टर बन सकता है लेकिन उसको आरएनए डब्लू में जॉब नहीं मिल सकती तो देखिए इसके बाद आरएनए डब् सारी चीजें सेटअप करने के बाद करीब 9 महीने बाद अपने पहले एजेंट को पाकिस्तान में घुसाने का प्लान बनाती है एजेंट का जो रियल नाम था वो तो आज की डेट तक नहीं पता चला लेकिन आरएनए डब्लू के जो ऑफिसर थे वो इनको कश्मीर बेदी बुलाते थे कश्मीर बेदी की जो हायरिंग थी वो आरएनए डब् ने पंजाब से की थी और हायरिंग कराने के बाद एक डिटेल बीजीसी करवाया गया और कई महीनों तक स्पाइन टेक्निक्स की ट्रेनिंग करवाई गई कश्मीर बेदी को इस टास्क के लिए इसलिए चुना गया था क्योंकि कश्मीर बेदी को इस्लामिक ट्रेडिशनल पंजाबी और उर्दू जो लैंग्वेज थी वो पहले से ही आती थी और ये सारी चीजें की इसलिए जा रही थी क्योंकि उस पर्टिकुलर टाइम पे केएन राव जो थे वो पड़ोसी देश जो थे वहां की इंफॉर्मेशन ट्रेस करने के लिए इंडिया और पाकिस्तान के बॉर्डर पे एयरक्राफ्ट पे कैमरा लगा के जो पाकिस्तान की साइड वाला एरिया था उसकी फोटोग्राफ्स निकालते थे और फिर ये फोटोग्राफ जो होती थी वो फोटो इंटरसेप्शन डिपार्टमेंट में जाती थी और फिर उस इमेज के बेसिस पे इंफॉर्मेशन कलेक्ट की जाती थी कि पाकिस्तान वाले एरिया में क्या-क्या चीजें चल रही हैं लेकिन ये जो पूरी चीज चल रही थी इसमें दिक्कत ये थी कि जो कैमरे थे उनकी जो रेंज थी वो खाली 70 किमी तक की थी और जो फोटोग्राफ्स भी आती थी वो उतनी क्लियर नहीं आती थी जिसको समझने में बहुत दिक्कत आती थी तो इस चीज से निपटने के लिए ये डिसाइड हुआ कि अगर हमारा कोई एजेंट उस एरिया में चले जाए और टाइम टू टाइम अगर फोटोग्राफ देता रहेगा तो उससे मैं और क्लेरिटी आएगी कि पाकिस्तान वाले एरिया में क्या चल रहा है और इसी टास्क को कंप्लीट करने के लिए जो कश्मीर बेदी थे उनको सेलेक्ट किया गया था अब इसके बाद कश्मीर बेदी का नाम बदल के मोहम्मद इब्राहिम कर दिया जाता है और फिर इनको दो पाकिस्तानी सिटीजंस की मदद के थ्रू इनको बॉर्डर क्रॉस कराया जाता है ये जो पूरा ऑपरेशन था इसको आरएन काव दिल्ली से चला रहे थे और जब कश्मीर बेदी पाकिस्तान पहुंच जाते हैं तो प्लान के हिसाब से वो वहां की सारी इंफॉर्मेशन रेडियो सिग्नल के थ्रू अमृतसर में एक घर था वहां भेजते थे और फिर वहां से एक आदमी एक सिक्योर टेलीफोन लाइन के थ्रू ये इंफॉर्मेशन दिल्ली में एक घर था वहां भेज बजता था फिर इसके बाद एक मैसेंजर बाइक पे आता था और उस एरिया के पब्लिक टेलीफोन का यूज करके इस इंफॉर्मेशन को कलेक्ट करता था और आरएन काव तक पहुंचाता था और फिर इसी के बेसिस पे सारी प्लानिंग होती थी तो फिर कई महीनों तक ये चीज चलती है लेकिन फिर एक दिन एक ऐसी फोटो आती है जिससे हर कोई हैरान हो जाता है उस फोटोग्राफ को देख के यह पता चलता है कि पाकिस्तान के एक एयर बेस पे कुछ नए अमेरिकन मेड्स एपीसी को एक कार्गो प्लेन से अनलोड किया जा रहा है इस प्लेन से गोला बारूद और कुछ आदमी निकल रहे थे इसमें 6 f14 फाइटर प्लेन सेवन b57 बॉम्बर्स और 300 कैरियर्स थे जो अनलोड हो रहे थे अब ये इंफॉर्मेशन जब ऊपर पहुंचती है तो ये चीज पता चल जाती है कि यूएस अपने आर्म्स एंबार्गो को तोड़ के पाकिस्तान को सीक्रेट वेपन सप्लाई कर रहा है जो कि इसको नहीं करना चाहिए था और यही वो टाइम था जब इंडिया को समझ में आ गया था कि आगे पाकिस्तान कुछ बड़े स्टेप ले सकता है तो इंडिया ने अपना फोकस और इवॉल्वमेंट ईस्ट पाकिस्तान यानी कि अभी का बांग्लादेश जो है उस पे कर दिया और इस वेपन सप्लाई को लेके भी बैक चैनल से यूएस से डिस्कशन स्टार्ट किया तो इधर ये सारी चीजें चल रही थी और ईयर 1970 आते-आते आरएनए डब्ल्यू के जो एजेंट्स थे वो लंदन में उन्होंने ठीक-ठाक नेटवर्क अपना बना लिया था तो इन्हीं इंडियन एजेंट्स में से एक एजेंट ऐसा था जो पाकिस्तान के डिप्लोमेट्स थे उनको फॉलो करता था उनकी इंफॉर्मेशन गैदर करता था कि पाकिस्तान के अंदर जो इलेक्शन होने वाले हैं उससे पहले पाकिस्तान अपने ईस्ट पाकिस्तान के अंदर कुछ मिलिट्री एक्शन प्लान करने वाला है ये इंफॉर्मेशन पहुंचते ही एनालाइज किया गया कि इस एक्शन से इंडिया की जो सिक्योरिटी है उसको खतरा है इसलिए ईस्ट पाकिस्तान में इनको और ज्यादा इंटरवू करना होगा यानी कि दखल देना होगा और फिर इसकी तैयारी इंडिया बहुत ही तेजी से शुरू कर देता है आरएन काओ इंडिया और ईस्ट पाकिस्तान का जो बॉर्डर था जो उस बॉर्डर पे टेक्निकल चेकपोस्ट बनाए गए थे उनके नंबर्स बढ़ा देते हैं और वेस्ट और ईस्ट पाकिस्तान के हर कम्युनिकेशन को ट्रेस करते हैं हर कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट करते हैं सिचुएशन ये हो गई थी कि पाकिस्तान के इलेक्शन आने तक आरएनए डब्लू के पास हर डिटेल्स थी कि इलेक्शन के अंदर किसकी जीतने की ज्यादा चांसेस हैं मिलिट्री एक्शन होगा तो कौन-कौन इवॉल्व होगा हर एक चीज उनको पता चल गई थी आरएन काओ ये सारी सिचुएशन एनालाइज करके इंदिरा गांधी जी को भेजते थे और इसके बाद ये भी सजेस्ट करते हैं कि अगर इंडिया ये वेस्ट पाकिस्तान और ईस्ट पाकिस्तान के बीच में जो एयरप्लेंस आते जाते हैं अगर अपना एयर स्पेस को ब्लॉक कर देगा तो ये इंडिया को बहुत बड़ा एडवांटेज देगा एक तो रूट तो लंबा होगा ही होगा दूसरा ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान का जो कम्युनिकेशन है वो भी ब्रेक होगा लेकिन इंदिरा गांधी जी कहती है कि ऐसा करना पॉसिबल नहीं है बिना किसी रीजन के ऐसे एयर स्पेस बंद करना या तो वॉर जैसी सिचुएशन हो तभी ये करा जा सकता है और अगर बिना किसी रीजन के इंडिया अगर ऐसा करेगा तो इंटरनेशनल प्रेशर जो है वो बहुत ज्यादा होगा जिससे इंडिया को दिक्कत होगी अब जब ये सारी बातें चल रही थी उसी टाइम पे एक ऐसा कोइंसिडेंस होता है जो इंडिया के लिए एक बहुत बड़ी अपॉर्चुनिटी बनके सामने आता है एक्चुअली हाशिम कुरेशी नाम का एक आदमी श्रीनगर से पेशावर गया था और वहीं पे उसकी मुलाकात मकबूल भट्ट नाम के आदमी से होती है जो कि एक आतंकी ऑर्गेनाइजेशन है एनएलएफ नेशनल लिबरेशन फ्रंट उससे बिलोंग करता था और ये जो एनएलएफ से मकबूल भट्ट था ये हाशिम कुरेशी को इन्फ्लुएंस कर लेता है और इसकी जो आतंकी ऑर्गेनाइजेशन थी एनएलएफ इसको जॉइन करा लेता है अब हुआ क्या था कि ये जो एनएलएफ थी इसके 36 मेंबर पाकिस्तान से कश्मीर में घुस रहे थे और उनको जम्मू एंड कश्मीर की पुलिस ने पकड़ लिया था अब एनएलएफ को इन 36 मेंबर्स को इंडिया की जेल से छुड़वाना था जिसके लिए वो एक प्लान बनाते हैं और इस प्लान का सारा का सारा जिम्मा जो था वो हाशिम कुरेशी को दे देते हैं लोग प्लान यह था कि हाशिम कुरेशी इंडिया में वापस जाएगा और श्रीनगर एयरपोर्ट से एक प्लेन को हाईजैक करेगा और फिर इंडियन गवर्नमेंट से नेगोशिएट करके 36 लोगों को छुड़वाया जाएगा और एज पर प्लान एनएलएफ जो था वो हाशिम को ट्रेन करके इंडिया भेज देता है अब जैसे ही हाशिम कुरेशी इंडिया में घुसता है इसको भी एजेंसीज पकड़ लेती हैं और यह खबर आरन काऊ के पास पहुंचती है और जब हाशिम का इंटेरोगेशन होता है तो उसमें ये जो प्लेन को हाईजैक करके अपने 36 बंदे छुड़ाने का जो प्लान था ये प्लान आरएनए डब् को पता चल जाता है अब आरएन का जो थे इसको एक अपॉर्चुनिटी की तरह देखते हैं वो हाशिम कुरेशी को कन्विंसिबल करने लगता है अब आरएन काओ का जो प्लान था उसमें हाशिम कुरेशी को कहा जाता है कि तुम इंडियन प्लेन को जैसे हाईजैक कर रहे थे उसको वैसे ही हाईजैक करना है आपको यह प्लेन हाईजैक करके पाकिस्तान के लाहौर में ले जाना है और प्लेन के अंदर आरएनए डब्लू के एजेंट्स होंगे और इस प्लेन को पाकिस्तान में उतारने के बाद 36 लोगों को जेल से छुड़वाने की डिमांड करनी है और उसके साथ-साथ एक चीज और करनी है जुल्फ का अली भुट्टो से मिलने की भी डिमांड रखनी है और हाशिम कुरेशी एज पर प्लान 38 ऑफ जनवरी 1971 को इंडिया से प्लेन हाईजैक करके लाहौर में प्लेन उतार देता है और फिर इसके बाद हाशिम की डिमांड के हिसाब से फर्स्ट ऑफ फैब 1971 को जुल्फिकार अली भुट्टो इससे मिलने आते हैं और जैसे ये मिलते हैं ये सारी फोटोज जो थी वो मीडिया में वायरल हो जाती हैं ये है वो फेमस फोटो अब इसके बाद इधर इंडिया में ऑल इंडिया रेडियो के अंदर इस हाईजैकिंग के बारे में अनाउंसमेंट करी जाती है और इसको इंडिया पे एक अटैक की तरह देखा जाता है और इसको एक खतरा बता केडि या पाकिस्तान के लिए जो एयर स्पेस था वो उसको बंद कर देता है पाकिस्तान के ऊपर काफी प्रेशर पड़ता है ऑल ओवर वर्ल्ड से लेकिन उसके बाद भी जुल्फीकार अली भुट्टो इस हाईजैकिंग को क्रिटिसाइज नहीं करते हैं पब्लिकली तो इस बात से इंडिया का जो क्लेम था उसको और हवा मिल जाती है अब इसके थोड़ी देर बाद पाकिस्तान प्लेन जो था उससे सारे पैसेंजर्स थे उनको उतारा जाता है और जैसे ही सारे लोग उतरते हैं प्लेन में आग लगा दी जाती है और ये प्लेन में आग लगने की बात की फोटो है और जितने भी एयरप्लेन में पैसेंजर थे जिसमें आरएनए डब् के एजेंट भी थे इनको पाकिस्तान को अमृतसर के रास्ते इंडिया पहुंचाना पड़ता है और क्योंकि हाशिम कुरेशी मिला था आर एडब से तो जो 36 आतंकवादी थे उनको भी नहीं छोड़ना पड़ता और एयर स्पेस जो था पाकिस्तान के लिए वो भी बंद कर दिया जाता है ये स्टेप आर एन काव का एक मास्टर स्टोक की तरह माना जाता है जिसकी वजह से आप लोगों को ये फोटो देखने को मिली अब इसके बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हो चुके थे इंदिरा गांधी जी का नाम बहुत होता है इस चीज को लेके इसके साथ-साथ आरएनए डब् को और स्ट्रांग किया जाता है और फिर आगे चलके जब ईयर 1974 में न्यूक्लियर टेस्ट हुआ था तो उसकी जो सीक्रेसी मेंटेन करनी थी उसमें भी आरएनए डब् ने बहुत ही इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया था लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद इंडिया में कुछ इंटरनल चीजें ऐसी होती हैं जिसकी वजह से आरएनए डब् को काफी नुकसान होता है एक्चुअली 12th ऑफ जून 1975 को अलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आता है उसमें ये कहा गया कि ये जो ईयर 1971 के लोकसभा इलेक्शन हुए थे ये सही तरीके से नहीं हुए थे इसमें इलीगल प्रैक्टिसेस हुई थी इलेक्शन जीतने के लिए और इंदिरा गांधी जी के ऊपर गवर्नमेंट मशीनरी और इंटेलिजेंस एजेंसीज को गलत तरीके से यूज करके इलेक्शन जीतने की बात कही जाती है अब हाई कोर्ट का जब ये डिसीजन आता है तो अपोजिशन बहुत ज्यादा हल्ला करता है बहुत प्रेशर बनाता है कि डेमोक्रेसी की हत्या हो गई है इंदिरा गांधी का रेजिग्नेशन चाहिए और जो अपोजिशन लीडर थे वो आरएनए डब्लू से भी बहुत ज्यादा नाराज थे उनका कहना था कि इंदिरा गांधी आरएनए डब् का यूज करती हैं सारे अपोजिशन लीडर्स के खिलाफ और इन सारी चीजों को लेकर काफी रैली वगैरह भी निकालते हैं अपोजिशन के लीडर और फिर जब ये सारी चीजें बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और हाथ से निकलने लगती हैं तो इंदिरा गांधी जी इमरजेंसी लगा देती इंदिरा गांधी की सरकार ने भारत में आपात काल की घोषणा की थी भाइयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आत काल की घोषणा की है इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है आप सभी गहरे और व्यापक शरन से अवगत होंगे जो उस समय से रचा जा रहा है जब से मैंने भारत ये जो इमरजेंसी थी ये ईयर 1977 तक लगी रहती है और फिर इमरजेंसी खत्म होने के बाद मार्च 1977 में मुरार जी देसाई पीएम बनते हैं पीएम बनते ही ये एक कमेटी बना के सबसे पहले आरडब्लू के ऊपर इंक्वायरी बिठाते हैं ये जो कमेटी बनाई गई थी इसको महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस ऑफिसर एसपी सिंह हेड कर रहे थे इसमें आरएनए डब् को क्लीन चीट तो मिल जाती है लेकिन कुछ चीजें ऐसी सामने आती हैं जिससे लीडर्स खुश नहीं थे इनफैक्ट आरएन एडब के ऊपर गुस्सा हो जाते हैं वो लोग इसमें ये चीजें निकल के आई कि आरएनए डब् ने एक स्पेशल डेक्स बनाई थी फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन नाम से इसका काम था अपोजिशन लीडर जो थे इंडिया के अंदर वो आउटसाइड इंडिया क्या एक्टिविटी करते हैं उस परे नजर रखना और इसमें ये पोस्टल एड्रेस टेलीफोन मॉनिटरिंग ये सारी चीजें करते थे अपोजिशन लीडर्स की और इस बात को फॉर्मर आरएनए डब् काउंटर टेररिज्म डिवीजन के हेड बी रमन ने भी अपनी बुक में बताया इन्होंने कहा कि उनको लैला फर्नांडीस जो कि जॉर्ज फर्नांडिस की वाइफ थी उनके ठिकाने के बारे में पता लगाने को कहा गया था तो ये जो कमेटी की रिपोर्ट आई थी इसके बाद मुरार जी देसाई का माइंडसेट बन चुका था कि आरएनए डब् इंदिरा गांधी जी के हिसाब से ही चलती थी और ये जो परसेप्शन बना था इस परसेप्शन का नुकसान आर्यन काओ को हुआ जिसकी वजह से उन्होंने अर्ली रिटायरमेंट ले ली कई ऐसी चीजें हुई थी जो आर्यन काओ को पसंद नहीं आई थी जैसे एक बार साउथ ब्लॉक की मीटिंग चल रही थी उसमें जैसे ही आर एन काओ घुसते थे उनको कुछ लोगों ने मर्डर नाम से बोलना शुरू कर दिया था जिसको लेके आर एन काओ काफी गुस्सा हो गए थे और आरयन काओ का जो सर्विस का टाइम बचा था उसमें उनको जबरदस्ती लीव पे भेजा जाने लगा था अब इधर आर एन काओ के हेड के साथ यह सारी चीजें हो रही थी और एट द सेम टाइम पाकिस्तान न्यूक्लियर टेस्ट करने की तैयारी कर रहा था जिसके ऊपर आरएनए डब का जो नेटवर्क था वो ऑलरेडी काम कर रहा था लेकिन इंडिया के अंदर आरएन काओ का जो ह्यूमिन चल रहा था उसके चक्कर में आरएन काओ ने अर्ली रिटायरमेंट ले लिया अब एक तरफ आरएनए डब् के हेड रिटायरमेंट ले रहे हैं दूसरी तरफ पाकिस्तान में बैठे आरएनए डब् के जो एजेंट्स हैं वहां से इटेल आ रहा है कि पाकिस्तान न्यूक्लियर पे काम कर रहा है उसको रोक रोका जा सकता है और वहीं दूसरी तरफ पीएम जो है वो उल्टा आरएनए डब् की स्ट्रेंथ को कम कर रहे थे उन्होंने आरएनए डब् के कई वर्टिकल्स हटा दिए थे और आरएनए डब् के इंडिया के बाहर के जो ऑपरेशन स्टार्ट होने वाले थे उन सबको रोक दिया था हालत ये हो गई थी कि आरएनए डब् के जो एंप्लॉयज थे जिनको निकाल दिया गया था वो गुस्से में आके मीडिया को जाके इंटरव्यू देने लगे थे गवर्नमेंट के खिलाफ और आरएनए डब् की जो बातें थी वो पब्लिकली रिवील होना शुरू हो गई थी इसी इंसीडेंट की वजह से आगे चलके इंटेलिजेंस ऑर्गेनाइजेशन रिस्ट्रिक्शन ऑफ राइट एक्ट 1985 पास किया गया था इसमें ये था कि कोई भी आरएनए डब् का एंप्लॉई जो है अगर वो मीडिया में जाएगा तो ये क्रिमिनल ऑफेंस की तरह काउंट होगा तो कहने का मतलब यह है कि नई गवर्नमेंट बनते ही आर एनड को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था और एट द सेम टाइम आरएनए डब के न्यू हेड और पाकिस्तान में बैठे आरएनए डब् के एजेंट्स पाकिस्तान की एक्टिविटीज को ट्रेस कर रहे थे अब एक दिन क्या होता है कि आरएनए डब् के एजेंट नोटिस करते हैं कि पाकिस्तान के बड़े-बड़े साइंटिस्ट रावलपिंडी के पास एक एरिया है जहां पे खान रिसर्च लेबोरेटरी थी वहां डेली जाते थे और शाम को सेम टाइम पे वापस निकलते थे इसके साथ-साथ उन्होंने कुछ मिलिट्री हेड थे उनको भी वहां जाते हुए देखा तो जो वहां पे इंडियन एजेंट्स थे उनको शक हुआ कि शायद कुछ इंपॉर्टेंट चल रहा है इस लेबोरेटरी में अब ये सारी डिटेल्स आरएनए डब् के हेड क्वार्टर में पहुंचती है तो उनको डाउट होता है कि पाकिस्तान कहीं न्यूक्लियर टेस्ट की तैयारी कर रहा है अब उस टाइम पे इस चीज को कंफर्म करने के लिए किसी एजेंट को उस लैब के अंदर प्लांट करने का टाइम नहीं था तो पाकिस्तान में जो इंडियन एजेंट्स थे उनको इंस्ट्रक्शन दिया जाता है कि कैसे भी करके जो साइंटिस्ट हैं इनकी एक्टिविटी ट्रैक करने का ट्राई करो उनकी कोई भी ऐसी चीज निकालने की कोशिश करो जिससे कंफर्म करा जा सके कि इस लैब के अंदर न्यूक्लियर से रिलेटेड काम चल रहा है अब इसके बाद इंडियन एजेंट्स जो थे वो इन साइंटिस्ट को रेगुलरली फॉलो करना स्टार्ट करते हैं तो ये जो साइंटिस्ट थे ये एक बार्बर शॉप थी वहां पे बाल कटवाने जाते थे तो ये एजेंट उसी बार्बर शॉप में जाके अपने रिलेशन बनाना स्टार्ट करते हैं और जिस दिन साइंटिस्ट वहां पे बाल कटवाते हैं इंडियन एजेंट्स उनके बाल उठा के ले आते हैं और फिर इंडिया भेज देते हैं अब इंडिया के अंदर जब ये बाल पहुंचते हैं तो इनके बालों की टेस्टिंग होती है तो उसमें न्यूट्रिनो रेडिएशन बहुत ज्यादा मिलती है जिससे कंफर्म हो जाता है कि खान रिसर्च लेबोरेटरी के अंदर न्यूक्लियस टेस्ट का काम चल रहा है इसके साथ-साथ इंडियन एजेंट्स को एक और सक्सेस मिलती है सेम वीक में इनको लैब में काम करने वाला पाकिस्तान का एक एजेंट मिल जाता है जो $10000 में पाकिस्तान का ये जो न्यूक्लियर टेस्ट था इसके ब्लूप्रिंट की कॉपी देने को रेडी हो जाता है अब लेकिन ये जो $10000 थे एजेंसी अपनी तरफ से नहीं दे सकता था इसके लिए अप्रूवल चाहिए था पीएम से अब पीएम के पास जब ये बात पहुंचती है तो पीएम इसके लिए मना कर देते हैं कि ये पाकिस्तान का इंटरनल मैटर है और अगर हम इसमें इंटरफेयर करेंगे तो इसमें इंडिया का नाम उछले आर एडब जो थी वो उस टाइम पे इजराइल की मसाद के साथ मिलके काम करती थी दोनों एजेंसीज जो थी वो अपने इल जो थी वो शेयर करती तो इजराइल को भी इसके बारे में पता चल जाता है और इजराइल के लिए भी ये खतरा था तो इजराइल इस खान रिसर्च लेबोरेटरी पे अटैक करने का प्लान बनाता है लेकिन इजराइल से पाकिस्तान की दूरी बहुत ज्यादा थी तो इसके लिए वो इंडिया को रीच आउट करता है कि इजराइल से ये लोकेशन दूर है रिफ्यूलिंग की जरूरत पड़ेगी तो इंडिया अगर रिफ्यूलिंग के लिए अलाव कर दे तो इजराइल न्यूक्लियर टेस्ट को रोक देगा लेकिन मुरार जी देसाई इसके लिए भी मना कर देते हैं कि ये पाकिस्तान के ऊपर इंडिया की धरती से एक अटैक की तरह माना जाएगा तो यह प्लान भी होल्ड हो जाता है पाकिस्तान के जो प्रेसिडेंट थे जनरल जियाउल हक और मुराजी देसाई इनके रिलेशन अच्छे थे फोन फोन पे भी इनकी बात होती थी तो एक दिन मुरार जी देसाई जो थे वो नाराज होकर बोल देते हैं फोन पे कि आप जो कर रहे हैं वो हमें पता है वो ठीक नहीं कर रहे हैं हमें पता है कि आप खान रिसर्च लेबोरेटरी में क्या-क्या कर रहे हैं कितने लोग इंवॉल्व हैं और किस तरीके से कर रहे हैं अब यह बात सुनते ही जियाउल हक के होश उड़ जाते हैं कि इतनी अंदर की डिटेल्स कैसे पता है इन लोगों को इसका मतलब है कि कोई अंदर है जो मिला हुआ है और इसी इंसीडेंट के बाद पाकिस्तान के अंदर तुरंत जितने इंडिया के एजेंट्स थे उनको ढूंढने का काम स्टार्ट हो जाता है और पाकिस्तान के इस पूरे सर्च ऑपरेशन में आरएनए डब्लू के सबसे ज्यादा एजेंट्स जो थे वो शहीद हुए थे आरएनए डब् यह न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोक तो नहीं पाता है पॉलिटिकल रिस्ट्रिक्शंस की वजह से लेकिन इन सब चीजों की वजह से पाकिस्तान का जो न्यूक्लियर प्रोग्राम था वो डिले हो गया था क्योंकि पाकिस्तान ने इस पूरे डेवलपमेंट के सिस्टम को ही चेंज कर दिया था और फिर आगे चलके इंडिया और पाकिस्तान में पीसफुल रिलेशन मेंटेन करने के लिए मुरार जी देसाई को निशान पाकिस्तान जो कि वहां का हाईएस्ट सिविलियन अवार्ड है वो दिया जाता [संगीत] है अब इसके बाद 14th ऑफ जनवरी 1980 को आरएनए डब् के लिए चीजें फिर से सही होने स्टार्ट होती है इस दिन इंदिरा गांधी जी दोबारा से पीएम बनती हैं और इसके बाद आरएनए डब को दोबारा से स्ट्रांग करने का काम स्टार्ट किया जाता है जो टोटल स्ट्रेंथ थी आर एडब की उसको बढ़ा दिया जाता है लेटेस्ट से लेटेस्ट टेक्नोलॉजी इंट्रोड्यूस कराई जाती हैं जो दुनिया की एजेंसीज यूज़ करती थी साइबर टेक्नोलॉजीज डिजिटल गैजेट्स इन सबकी ट्रेनिंग करवाई गई एजेंट्स को बाहर के देशों में भेज के ओवरऑल बजट जो था आर एनड का उसको भी बढ़ा दिया गया था अब इंदिरा गांधी के पीएम बनने के एक साल बाद ही ईयर 1981 में आरएन काओ को वापस बुला के सिक्योरिटी एडवाइजर का रोल दिया जाता है ये ये वो टाइम था जब आरएनए डब और एजेंट्स दोबारा से एक्टिव हो चुके थे और इसी पर्टिकुलर टाइम पे आरएनए डब की मदद से इंडिया को एक बहुत बड़ा फायदा होता है एक्चुअली हुआ क्या था कि इंडिया पाकिस्तान का जब बंटवारा हुआ था 70 किमी का पहाड़ी एरिया सियाचिन ग्लेशियर इस पे कंफ्लेक्स कंडीशन थी लेकिन स्ट्रेटजिकली बहुत ही इंपॉर्टेंट एरिया था तो इंडिया और पाकिस्तान दोनों इसको क्लेम करते थे इस एरिया की कंडीशन काफी एक्सट्रीम थी -50 डिग्र से ज्यादा टेंपरेचर ऑक्सीजन की कमी तो बहुत अलग तरीके के अरेंजमेंट करने होते थे यहां पे सरवाइव करने के लिए तो विवाद तो इस एरिया में काफी टाइम से चल रहा था लेकिन ईयर 1984 में आरएनए डब् की वजह से इस एरिया की जो सिचुएशन थी वो हमेशा के लिए बदल जाती है तो होता क्या है कि आर एडब के जो एजेंट्स थे उनका नेटवर्क लंदन में तो ऑलरेडी था लेकिन वो और स्ट्रांग हो चुका था ये लोग पाकिस्तान के जो डिप्लोमेट्स वगैरह होते थे उन परे नजर रखते थे और उसी एरिया में एक र्मेंस की शॉप थी जो एक्सट्रीम वेदर के लिए कपड़े बना के देती थी अब एक दिन क्या होता है कि एजेंट के पास का ऑर्डर किया है जो - 50° तक सरवाइव कर सक अब इंडियन एजेंट जो थे उनको ये चीज थोड़ी ऑड लगती है ये विक्रम सूत लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम एन हून के साथ मीटिंग करके सारी डिटेल शेयर करते हैं और इसके बाद सीए इन के ऊपर इंडियन आर्मी को डेप्लॉय करने की प्रिपरेशन स्टार्ट कर दी जाती है लेकिन सीच इन की जो कंडीशन थी वो नॉर्मल नहीं थी तो प्रिपरेशन के लिए ज्यादा टाइम लग रहा था तो एजेंट्स के थ्रू इस गारमेंट कंपनी को कांटेक्ट किया जाता है और जो डिलीवरी डेट थी उसको एक्सटेंड कराया जाता है ताकि प्रिपरेशन के लिए टाइम मिल सके और फिर सारी तैयारियों के साथ 13th ऑफ अप्रैल 1984 की मॉर्निंग को इंडियन आर्मी 300 जवानों को एयरलिफ्ट करके सीएन ग्लेशियर पे पहुंचा देती और तब से लेके आज की डेट तक सीए इन इंडिया के पास है पाकिस्तान की आर्मी जब तक वहां पे पहुंची तब तक बहुत देर हो चुकी थी इस ऑपरेशन को ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया गया था उस टाइम पे और इसके लिए आरएनए डब् को आज की डेट तक एप्रिशिया जाता है इसके बाद भी आर एनड का जो फोकस था वो कश्मीर के इलाकों में बहुत ज्यादा हो गया था आरएन एडब जो था वो एआरसी एविएशन रिसर्च सेंटर के थ्रू पाकिस्तान की एक्टिविटी टाइम टू टाइम ट्रेस करता रहता था लेकिन इस पूरे प्रोसेस में हमारी एजेंसी से कुछ गलतियां हो जाती हैं जिसकी वजह से कारगिल में हमें बहुत बड़ा डिस टेज होता है एक्चुअली सितंबर 1998 में आर एडब के एजेंट्स जो ब्रेसल में थे उनको वहां पे एक इनपुट मिलता है कि ब्रेसल में एक बड़ी कंपनी से पाकिस्तान ने 50000 बूट खरीदे हैं लेकिन इस इनपुट को जब आगे भेजा गया तो इसको इतना इंपॉर्टेंट नहीं समझा गया ये बूट्स एक्चुअल में कारगिल की लड़ाई के लिए खरीदे गए थे फिर इसके बाद सेम मंथ सितंबर 1998 में पाकिस्तान ने कारगिल के अपोजिट एरिया में अचानक से आर्टिलरी और मोटर रेजीमेंट जो थी वो बढ़ा दी थी इसकी डिटेल भी आगे भेजी गई लेकिन डीजीएमई ने कहा कि न्यूक्लियर ब्लास्ट की वजह से बॉर्डर पे ये सारी चीजें की जा रही होंगी जबकि जो इटेल था उसमें स्पेसिफिकली कारगिल का नाम मेंशन था और यही नहीं इसके ठीक एक महीने बाद अक्टूबर 1998 को पाकिस्तान आर्मी रिमोट पिलर्ड व्हीकल के थ्रू कारगिल एरिया का सर्वे करवाना स्टार्ट कर देती है और इस चीज को भी इग्नोर किया जाता है और उससे भी बड़ा इंटेलिजेंस फेलियर ये था कि सेम टाइम पे पाकिस्तान ने फोर्स कमांडर नॉर्दर्न एरिया एफसीएनए रीजन में दो नई बटालियन खड़ी कर दी थी जबकि आरएनए डब् ने अपनी अप्रैल 1998 से म 1999 की जो रिपोर्ट थी इसमें इस पूरे एरिया में कोई चेंजेज नहीं बताए थे इंडियन आर्मी को डायरेक्ट कारगिल के मैदान में पता चला कि दो और नई बटालियन उनके अगेंस्ट में खड़ी हैं जो कि बहुत बड़ा डिसएडवांटेज था आर्मी के लिए इनफैक्ट बीएसएफ नेवी एजेंसीज को रिपोर्ट सबमिट की थी कि 500 मिलिटेंट जो हैं वो कश्मीर में भेजे जा रहे हैं और अंडरग्राउंड बंकर बन रहे हैं तो ऐसे करके टोटल 45 इनपुट्स मिले थे जिनमें से सिर्फ 11 इनपुट ही ऊपर तक पहुंचे थे बाकी सारे इनपुट एजेंसीज में कोऑर्डिनेशन की कमी की वजह से कोई मीनिंगफुल इंफॉर्मेशन नहीं बना पाए ऊपर से इस क्रू सियल टाइम में एआरसी एविएशन रिसर्च सेंटर जिनको इस पूरे एरिया की मॉनिटरिंग करनी थी उसने अपना प्लेन कैबिनेट मिनिस्टर जो कि अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आए थे उनको घूमने के लिए दे दिया ये जितने भी इनपुट मिले इनको सही टाइम पे पकड़ा नहीं जा सका जिसकी वजह से कारगिल वॉर में इंडिया का बहुत नुकसान होता है और इंडिया के बहुत सारे सोल्जर्स शहीद होते हैं हालांकि इस पूरी लड़ाई के दौरान आरएनए डब् ने बहुत मदद की टेक्नोलॉजी को इंप्लीमेंट करके इनफैक्ट आरएनए डब् ने पाकिस्तान आर्मी चीफ परवेश मुशर्रफ की पूरी की पूरी फोन कन्वर्सेशन ही रिकॉर्ड कर ली थी लेकिन बाकी जो होते तो इतना नुकसान नहीं होता इंडिया का इसीलिए जैसे ही कारगिल वॉर खत्म होती है 3 दिन के अंदर ही 29th ऑफ जुलाई 1999 को इंटेलिजेंस इंटरनल सिक्योरिटी बॉर्डर कंट्रोल डिफेंस मैनेजमेंट सबकी इंक्वायरी के लिए कारगिल रिव्यू कमेटी बनाई जाती है और 15th ऑफ दिसंबर 1999 को यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सबमिट करती है जिसमें कहां-कहां पे लूप होल थे कहां-कहां किस-किस एजेंसी से गलती हुई ये सारी चीजें मेंशन की गई और उस दिन के बाद से इंडिया की नेशनल सिक्योरिटी का पूरा स्ट्रक्चर चेंज किया गया रिपोर्टिंग जिसकी जैसी थी वैसी ही रखी गई जैसे आरएन डब् की डायरेक्ट रिपोर्टिंग जो थी वो पीएम को रहती थी तो सब कुछ वैसे ही रखा गया लेकिन एक कोआर्डिनेशन सही से हो और फ्लो ऑफ इंफॉर्मेशन सही रहे इसके लिए नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल एनएससी बनाई गई ताकि सारी एजेंसीज और डिपार्टमेंट कोऑर्डिनेटेड रहे और तुरंत एक्शन लिया जा सके एक एजेंसी को अगर कोई इंटेल यूजलेस लग रहा है तो दूसरी एजेंसी के लिए शायद वही इनपुट बहुत ही यूज़फुल हो इसीलिए इसको इस तरीके से बनाया गया कि आगे ऐसी गलतियां ना हो ये है इसका स्ट्रक्चर सबसे ऊपर पीएम रहते हैं इसके नीचे नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल एनएससी ये एनएससी के मेंबर होते हैं और ये जो नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल होती है यह थ्री टियर मॉडल पे ऑपरेट करती है स्ट्रेटेजिक पॉलिसी ग्रुप नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर बोर्ड जॉइंट इंटेलिजेंस कमेटी जिसमें आरएन एडब आईबी ये सब एजेंसीज होती हैं ये डाटा और इनपुट इकट्ठा करते हैं अलग-अलग चैनल से यह डाटा नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड के पास जाता है जिसमें अलग-अलग फील्ड के एक्सपर्ट्स होते हैं जो सिचुएशन एनालाइज करते हैं फिर ये डाटा स्ट्रेटेजिक पॉलिसी ग्रुप में जाता है जिसमें हर डिपार्टमेंट के हेड होते हैं ये स्ट्रेटेजी डिसाइड करते हैं फिर ये इंफॉर्मेशन एनएससी के पास जाती है और पीएम के इनपुट और अप्रूवल के बाद प्लान ऑफ एक्शन होता है इसमें एनएसए नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जो है उसका भी बहुत इंपॉर्टेंट रोल रहता है जैसे इस पर्टिकुलर टाइम पे अजीत डवाल जी हैं ये एनएससी एसपीजी एनएसएबी तीनों का पार्ट होते हैं जो कि इंडियन सिक्योरिटी के बारे में डायरेक्ट पीएम को एडवाइज करते हैं और आज की डेट तक ये मॉडल फॉलो होता है आई एम श्यर आप एजेंट रविंद्र कौशिक मुंबई अटैक में जो आरएनए डब् का रोल था आरएनए डब् में जो सीआई एजेंट आ गया था पार्लियामेंट अटैक में जो आरएन डब् का रोल था वो भी जानना चाहते होंगे लेकिन इनके ऊपर मैं अलग से वीडियो बनाऊंगा क्योंकि इसमें बहुत सारी डिटेल्स हैं वो इस वीडियो में बताना पॉसिबल नहीं होगा लास्ट में फिर से आपको बता दूं कि अपने बिजनेस को ऑर्गेनाइज करिए और डू का यूज करिए लिंक मैंने डिस्क्रिप्शन में दे दिया है थैंक यू [संगीत]