[संगीत] भारत का जेम्स बॉन्ड भी कहते हैं जी हान हम बात कर रहे हैं इंडिया के करंट नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर श्री अजीत दोवाल जी की इंडिया की टॉप्स बाय मास्टर सुपर कॉप और 21वीं सदी के चाणक्य कहे जाने वाले अजीत दोवाल की असल कहानी जेम्स बॉन्ड की थ्रिलिंग मूवी से कम नहीं है पाकिस्तान आज भी इनके नाम से थर-थर कांपते है आज उनको देश का सबसे पावरफुल ब्यूरोक्रेट बताया जाता है नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के तौर पर उनको कैबिनेट रैंक के मिनिस्टर का दर्ज दिया गया है कभी रिक्शा वाला तो कभी मोची कभी धर्म बदलकर दूसरे देश का नागरिक बन्ना तो कभी दुश्मनों के साथ मिलकर उनसे उनकी सारी जानकारी में उन्होंने ऐसी ऐसी खतरनाक कारनामे किए हैं जो जासूसी की दुनिया में शायद ही पहले किसी ने की है अपनी इसी क्षमता और बुद्धि के बलबूते पर वो देश के बड़े-बड़े दुश्मनों को घुटनो पर ले आए आज उनकी उम्र 77 साल हो चुकी है लेकिन जब भी हम उनको टीवी या किसी वेट में देखते हैं तो आज भी वो उतने ही फिट और एक्टिव दिखाई पड़ते हैं आज भी इंडियन फॉरेन पॉलिसी और सिक्योरिटी से जुड़े हर छोटे-बड़े कदम उन्हें की निगरानी में उठा जाते हैं तो यहां सवाल यह है की आखिर उनमें ऐसी क्या खूबियां नहीं जिसकी वजह से उन्होंने नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया आज की वीडियो में हम अजीत दोवाल की जीवनी के साथ-साथ उनसे जुड़ी कुछ हम खूबियां और किस कहानियों की चर्चा करेंगे तो लिए बिना देर किए इस डिस्कशन को आगे बढ़ते हैं 20 जनवरी उत्तराखंड की पौड़ी गढ़वाल में अजीत दोवाल का जन्म एक फौजी परिवार में हुआ उनके पिता मेजर ग्लोबल इंडियन आर्मी स्कूल से ही हुई थी अपनी कॉलेज की पढ़ उन्होंने अजमेर मिलिट्री स्कूल से की 22 की उम्र में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ आगरा से इकोनॉमिक्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल की मास्टर्स खत्म करते ही उन्होंने यूपीएसी का एग्जाम दिया और पहले ही अटेम्प्ट में उसको क्वालीफाई कर इंडियन पुलिस सर्विस को ज्वाइन कर लिया इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं की अजीत डबल पढ़ने में शुरुआत से ही काफी श्राप द 1968 में उनकी पहली पोस्टिंग केरल कादर में एएसपी के तौर पर हुई खैर संयोग की बात यह है की उनकी पोस्टिंग की कुछ ही समय बाद केरल में एक बेहद अनफॉर्च्युनाते घटना हुई असल में 28 दिसंबर 1971 को केरल के थैलेसरी गांव में हिंदू और मुस्लिम कम्युनिटी के बीच कुछ रयूमर्स को लेकर कम्युनल टेंशन बढ़ाने लगी 1972 के फर्स्ट वीक तक आते-आते इंटेंशंस में एक बिल्कुल बलों हिंदू मुस्लिम राइट्स का रूप ले लिया पूरे इलाके में तनावपूर्ण स्थिति दोनों तरफ से वायलेंस लूट पाठ और चोरी चकरी बढ़ती ही जा रही थी हालत को काबू से बाहर निकलता दे देश के तत्कालीन होम मिनिस्टर के करुणाकरण एक ऐसी पुलिस पर्सनल की तलाश करने लगे जो इन राइट्स को कंट्रोल कर सके कुछ ही समय के अंदर अंदर एएसपी के पद पर कोठी अंबे तैनात एक यंग और स्मार्ट पुलिस ऑफिसर यानी अजीत दोवाल होम मिनिस्टर करुणाकरण की नजरों में ए गए अजीत डबल को सर्विस में आए अभी 3 साल भी नहीं हुए द लेकिन उनके कामकाज से उनके चर्चे अभी से ही दूर-दूर तक फैलने लगे द उनकी सीनियर्स ये जान चुके द की उनमें कुछ तो बहुत खास है इसी के चलते करुणाकरण उन दंगों को काबू में लाने के लिए अजीत डबल को चुनते हैं बस फिर गया था अजीत डबल ने कुछ ही दिनों के अंदर-अंदर दोनों कम्युनिटी के लोगों को समझकर एन सिर्फ दंगों को शांत किया बल्कि उन लोगों पर अपना ऐसा जादू चलाया की वो लोग एक दूसरे के लूट हुए समान को भी वापस करने के लिए राजी हो गए यानी जो कम पूरे स्टेट की पुलिस नहीं कर का रही थी वो अजीत जबल ने खुद अकेले ही कुछ ही क्षणों में कर दिखाया उनके इस पराक्रम के चर्चे केरल से लेकर दिल्ली तक होने लगे देखते ही देखते अपने इसी हुनर की वजह से वह दिल्ली में बैठे इंटेलिजेंस ऑफिसेज की नजरों में ए गए और तभी उन्हें सेंट्रल सर्विसेज के लिए केरल से दिल्ली बुला लिया गया दिल्ली में उन्हें सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी आईबी यानी इंटेलिजेंस ब्यूरो में डेपुटेशन के लिए भेज दिया गया इसके साथ ही उन्होंने इतनी कम उम्र में जासूसी की दुनिया में कदम रखा और यही से एक यंग आईपीएस ऑफिसर का इंडिया का स्पाई मास्टर बनने का सफर शुरू हुआ उनकी इस रोमांचक सफर पर एक नजर डालते हैं [संगीत] तो दोस्तों लगभग 7 साल की पुलिस सर्विस के बाद अजीत दोवाल आईबी में नियुक्त हो जाते हैं शुरुआत में कुछ समय के लिए उन्हें कुछ डेस्क वर्क सोप जाता है इत्तेफाक की बात है 1970 में इंडिया की नोटिस रीजन में इनसरजेंशी का माहौल था वहां की स्टेटस खुद के लिए एक इंडिपेंडेंट नेशन की मांग कर रहे द अगर बात करें मिजोरम स्टेट की तो वहां एक सेपरेटिस्ट laltenga की लीडरशिप के अंदर इंस्टेबिलिटी अपने पीठ पर थी यह वहां अपनी एक अलग पैरेलल सरकार चला रहे द मिजो नेशनल फ्रंट मिजोरम को इंडिया से अलग करने की मांग कर रहा था दिल्ली में बैठी इंडियन गवर्नमेंट के लिए यह सिचुएशन बहुत नाजुक थी ऐसे में आईबी ने यह तय किया की उनका कोई ऑफिसर मिजोरम जाकर इन sarjans को शांत करने की कोशिश करेगा लेकिन सवाल था की ये करेगा कौन अब जवाब केवल अपनी मैरिज की कुछ ही महीनो बाद अपने वर्क पर वापस लौटे जब उनको मिजोरम की हालत का पता चला तो उन्होंने खुद ए गया कर वहां जाने की बात कही सबको कहीं ना कहीं इस बात का भरोसा था की अब ये सिचुएशन सॉल्व हो ही जाएगी खैर वहां जाकर उन्होंने अपनी खास रणनीति बिछाई और एक-एक करके सभी दुश्मनों को ढेर कर दिया असल में laltenga अपना आतंक अपने साथ कमांडोज के बलबूते पर फैलता था ये सात कमांडर्स laltenga की सबसे बड़ी ताकत होने के साथ-साथ सबसे बड़ी कमजोरी भी द और अजीत दोवाल ने उनकी इसी कमजोरी पर वॉर किया उन्होंने इन साथ में से छह कमांडर्स को अलग-अलग तरह से लालच और दिलासा देकर अपनी तरफ शामिल कर लिया यहां को जब यह पता चला की उसकी असल पावर तो उसके हाथों से जा चुकी है तब उसको भारत सरकार के आगे घुटने ठीक नहीं पड़े कुछ समय बाद laltenga और भारत सरकार के बीच पीस टैक्स कराई गई इसी के साथ मिजोरम के सेपरेटिस्ट मूवमेंट को खत्म किया गया वहां चुनाव करवाए गए और आखिरकार अजीत दोवाल का यह मिशन कामयाब रहा मिजोरम की इंडिया के साथ सक्सेसफुल एक्सेप्शन में अजीत दोवाल के इमेंस कंट्रीब्यूशन के चलते उनको प्रेसिडेंट पुलिस मेडल से नवाज गया इतनी कम सर्विसेज में अजीत दोवाल ऐसे पहले ऑफिस द जिनको इस पदक से सम्मानित किया गया खैर मिजोरम के बाद ऐसा ही कुछ सिक्किम में भी हुआ सिक्किम तब तक इंडियन यूनियन का पार्ट नहीं बना था सिक्किम के राजा इंडिया के साथ एक सेशन नहीं करना चाहते द लेकिन एक बार फिर अपनी चाणक्य नीति से अजीत दोवाल ने सिक्किम को इंडियन यूनियन के साथ सक्सेसफुली मेरे कर दिखाया कर 1970 के एंड तगड़े आते 930 की सिचुएशन तो कुछ टेबल हो चुकी थी लेकिन अगली दशक में पंजाब में कुछ नई टेंशन जुबा ले रही थी पंजाब में खाली स्थानी मिलिटेंट्स अपने अलग देश खाली स्थान की मांग करने लगे मिलिटेंट्स की गुड अमृतसर के गोल्डन टेंपल को अपना सिर्फ शेल्टर बनाकर पुरी शहर में आतंक फैलाने लगे चीजें काबू से बहुत ज्यादा बाहर होने लगी 1984 तक आते-आते ऑपरेशन ब्लू स्टार की नौबत ए गई इंडियन मिलिट्री पर्सनल्स ने गोल्डन टेंपल को मिलिटेंट से मुक्त करने के लिए इस ऑपरेशन को लॉन्च किया और उन मिलिटेंट्स को वहां से के दिया लेकिन इस ऑपरेशन के बाद भी गोल्डन टेंपल पुरी तरह मिलिटेंट से मुक्त नहीं हुआ था इस प्रॉब्लम का पुरी तरह सफाया करने के लिए 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर लॉन्च किया गया और इस ऑपरेशन में अजीत डोभाल की बेहद हम भूमिका रही आपको जानकर हैरानी होगी की इन बची हुई मिलिटेंट्स की जानकारी निकलने के लिए उन्होंने एक रिक्शा पुलर का भेष बनाया इतना ही नहीं इस भैंस के साथ उन्होंने उन मिलिटेंट्स पर ऐसा जादू चलाया की वो ये मानने के लिए तैयार हो गए की ये रिक्शा पोलर एक पाकिस्तानी इंटेलिजेंस ऑफिसर है जो उनकी मदद के लिए वहां आया है बस फिर गया था इसी बात का फायदा उठाकर उन्होंने उन मिलिटेंट्स के साथ गोल्डन टेंपल के अंदर रहकर उनकी हर छोटी बड़ी जानकारी इकट्ठा की और इंडियन आर्मी को इसी जानकारी के आधार पर ऑपरेशन ब्लैक थंडर लॉन्च किया गया और अजीत दोवाल इसको पार लगाने में कामयाब रहे इसके अलावा अगर हम बात करें पाकिस्तान की तो ये शायद अजीत दोवाल के वर्क फ्रंट का सबसे कुशल प्रोजेक्ट रहा जैसा की हम सब जानते ही हैं 1972 में इंडिया ने अपना फर्स्ट न्यूक्लियर टेस्ट कंडक्ट किया ये टेस्ट सक्सेसफुल होते ही पाकिस्तान मानव तिलमिला गया इसकी तुरंत बाद पाकिस्तान की न्यूक्लियर साइंटिस्ट दो एक्स खान ने पाकिस्तान न्यूक्लियर प्रोग्राम को डिवेलप करने के लिए चीन और फ्रांस से मदद मांगी फ्रांस को जैसे ही पाकिस्तान के एंटी इंडिया एंबेसेडर की भनक लगी वैसे ही वो उसे प्रोग्राम से पीछे है गया लेकिन चीन ने पाकिस्तान का हाथ नहीं छोड़ा उधर नॉर्थ कोरिया भी पाकिस्तान की न्यूक्लियर प्रोग्राम में उसकी मदद कर रहा था जैसे ही इस चीज की खबर इंडियन पीएम इंदिरा गांधी को लगी उन्होंने पाकिस्तान की इन सभी गतिविधियों को ड्रेस करने के लिए अपना स्पाइन नेटवर्क पाकिस्तान और चीन में बिछा दिया अजीत दोवाल को पाकिस्तान भेजा गया वो एक बाग यानी भिखारी का भेष बनाकर पाकिस्तान की कबूतर शहर पहुंच गए इनको शक था की यहां खंड रिसर्च सेंटर नाम के इंस्टीट्यूट के अंदर पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम चल रहा है वो इस सेंटर के बाहर बैठकर यहां आने जाने वाले सभी साइंटिस्ट्स को ट्रैक करने लगे लेकिन उससे उनको यहां पर चल रही न्यूक्लियर प्रोग्राम्स का कोई पुख्ता सबूत हासिल नहीं हुआ तो उसके बाद यह उसे बार-बार की शॉप पर गए जहां से वो साइंटिस्ट बाल काटते द वहां से उन्होंने अन्हार सैंपल्स को कलेक्ट करके उन्हें इंडिया में टेस्टिंग के लिए भेजा और टेस्टिंग में यह पता चला की वह है सैंपल न्यूक्लियर रेडिएशन पोस्ट है यानी उनको यह यकीन हो गया की पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्रोग्राम खान रिसर्च सेंटर के अंदर ही चल रहा है उन्होंने बड़ी चालाकी से उनके न्यूक्लियर प्रोग्राम्स की सभी डिटेल्स निकल और इंडिया में ट्रांसफर की उसे समय इंडिया में इंदिरा गांधी को रिप्लेस कर मोरारजी देसाई भारत के पीएम बन चुके द अजीत दोवाल ने उनको यह रिपोर्ट्स देकर पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को डिस्ट्रॉय करने के अलग-अलग मैथर्ड प्रपोज किए लेकिन कई पॉलिटिकल रीजंस की वजह से उनको हर बार रिजेक्ट कर दिया गया यानी इंडिया ने पाकिस्तान की न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अटैक तो नहीं किया लेकिन इतने कॉन्फिडेंशियल प्रोग्राम की छोटी से छोटी जानकारी इंडिया तक पहुंचने में अजीत दोवाल ने जो भूमिका निभाई उसके बाद पाकिस्तान भी इंडियन इंटेलिजेंस का लोहा मैन गया खैर सबके चलते हुए 1988 में अजीत दोवाल को हाईएस्ट गैलंट्री अवार्ड कीर्ति चक्र से नवाज गया आपको बता दें की अजीत दोवाल ऐसी पहले पुलिस ऑफिसर द जिनको ये मिलिट्री ओनर दिया गया था इतना ही नहीं 1990 में उन्होंने कश्मीर में बढ़ रही मिलिटेंसी को रोकने के लिए भी अपनी इन्हीं सटीक नेगोशिएशन स्किल्स का इस्तेमाल किया उसे दौरान कश्मीर मिलिटेंट्स के आतंक से बेहाल था अजीत दोवाल ने यहां आते ही एक पाकिस्तान द्वारा फंडेड कश्मीर मिलिट्री को का बारे के दिमाग को कुछ इस तरह मैनिपुलेट किया की जो कुकर परे पाकिस्तान का एजेंट था वो अजीत डोभाल से कुछ ही बार मिलने के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की मदद करने लगा यानी कुका परी को भी उन्होंने अपनी ओर मिला लिया इसके बाद 1996 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा के इलेक्शंस कराए गए और इन इलेक्शंस में kukabari एमएलए की सीट जीत गया अजीत दोवाल की इन्हीं शानदार नेगोशिएशन स्किल्स का एक और नायब नमूना हमें इस 814 की हाई jackings के दौरान भी देखने को मिला जैसा की आपने सुना ही होगा इस हाई जैकिंग के पीछे इसी का हाथ था वो चाहते द की अपनी सिटीजंस की जान बचाने के लिए इंडिया उनके शौक और टेररिस्ट को छोड़ दे और साथ ही उनको दो बिलियन डॉलर्स पे करें लेकिन ये अजीत दोवाल को गवारा नहीं था पर दोनों ही साइड से उन पर प्रेशर भी बढ़ रहा था लेकिन उसके बावजूद उन्होंने एक बार फिर अपनी बातों के चक्कर व्यू से मिलिटेंट्स के मैन में अपना दर बैठा दिया इन नेगोशिएशंस के बाद 100 की जगह उनके कुल तीन आतंकवादियों को छोड़ा गया और एक पैसेंजर के अलावा उसे फ्लाइट के सभी पैसेंजर सही सलामत वापस घर ए सके तो आप देख सकते हैं की अपनी हिम्मत और शार्प प्रेजेंस ऑफ माइंड के चलते उन्होंने हाई जैकर्स की टर्म्स और कंडीशंस को बहुत ज्यादा टोन डाउन कर दिया और इसी के साथ उनका यह ऑपरेशन भी सक्सेसफुल रहा है सोर्सेस की माने तो 1971 से 1999 तक इंडियन एयरलाइंस की 15 हाई jackings में से हर एक की टर्मिनेशन में अजीत दोवाल का एक्टिव कंट्रीब्यूशन रहा लेकिन उनका यह सफर अभी खत्म नहीं हुआ और वह कैसे लिए देखते हैं पोस्ट रिटायरमेंट तो दोस्तों 7 साल पुलिस फोर्स और लगभग 30 साल इंटेलिजेंस ब्यूरो में कम करने के बाद genuary 2005 में वो आईबी के के के पद से रिटायर हुए लेकिन उसके बाद भी वो देश की पॉलिटिक्स अकादमी और स्पेशली नेशनल सिक्योरिटी के मैटर्स में एक्टिवली इंवॉल्व रहे हैं इस दौरान उन्होंने कई रिनाउंड गवर्नमेंट और नॉन गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट और सिक्योरिटी थिंक टैंक्स में इंडिया के सिक्योरिटी चैलेंज और फॉरेन पॉलिसी ऑब्जेक्टिव्स पर लेक्चरर्स डिलीवर की कई लीडिंग न्यूज़ पेपर्स और जर्नल्स में इंडिया की सिक्योरिटी से रिलेटेड आर्टिकल्स भी पब्लिश की दिसंबर 2009 में उन्होंने एक लीडिंग पब्लिक पॉलिसी थीम टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना की और इस तरह वो अपने पोस्ट रिटायरमेंट फेज में दुनिया के सामने खुलकर इंडिया की नेशनल सिक्योरिटी ऑब्जेक्टिव्स को प्रमोट करते नजर आए लेकिन उनकी जिंदगी के इस फज ने एक बड़ा टर्न 2014 में लिया जब न्यू दिल्ली में बीजेपी की गवर्नमेंट ने अपनी सत्ता स्थापित की 30th मे प्रोटीन को पीएम मोदी ने उनको देश के फिफ्थ नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के रूप में नियुक्त किया नेशनल एडवाइजर बनते ही उनके सामने इराक से एक बड़ा चैलेंज जा खड़ा हुआ असल में उसे समय इराक में आईसीएस का आतंक छाया हुआ था जून 2015 में आईसीएस ने इंडिया की 46 नर्सेज को टिकट में बंदी बना लिया ना इसे बनने की कुल 2 महीने बाद अजीत दोवाल बहुत खुफिया तरीके से इराक पहुंचे वहां उनकी सरकार के साथ कोलैबोरेट किया और कुछ ही दिनों के अंदर अंदर सभी इंडियन नर्सेज को आईसीएस की चंगुल से छुड़ाकर इंडिया वापस ले आए इसके बाद भी पिछली कुछ सालों में पाकिस्तान में इंडिया पर उड़ी और पुलवामा में दो खूंखार आतंकी हमलों को अंजाम दिया इन दोनों हम लोग के रिस्पांस में भारत की ओर से जो सक्सेसफुल सर्जिकल स्ट्राइक हुई उन दोनों के मास्टरमाइंड और कोई नहीं बल्कि खुद अजीत डोभाल ही द आपको याद होगा की पुलवामा की सर्जिकल स्ट्राइक में विंग कमांडर अभिनंदन का प्लेन पाकिस्तान इलाके में जा गिरा और वो पाकिस्तान के कब्जे में ए गए जाहिर है की पाकिस्तान उनको इतनी आसानी से छोड़ने वाला नहीं था लेकिन अजीत दोवाल ने यहां से अमेरिका फोन घुमाया और वहां से उनके काउंटरपार्ट ने पाकिस्तान पर प्रेशर बनाया और कुछ ही घंटे के अंदर विंग कमांडर अभिनंदन को 22 इंडिया को सौंप दिया गया हालांकि पाकिस्तान इसको एक गुडविल जेस्चर का नाम देता है लेकिन असल में ये सब अजीत दोवाल के ही खौफ का नतीजा था तो दोस्तों ये वीडियो खत्म तो हो जाएगी लेकिन अजीत दोवाल की वीरता के किस कहीं खत्म नहीं होंगे उनकी जिंदगी की कहानी असल में इतने थ्रिल और रोमन से भारी हुई है लेकिन अब तक आप ही अंदाजा लगा ही सकते हैं की अपने 30 साल लंबे जासूसी के कैरियर में उन्होंने कैसी कैसी खूंखार परिस्थितियों को अकेले फीस करते हुए पूरे इंडिया की सिक्योरिटी को सर आंखों पर रखा इस दौरान कई बार बात उनकी जान पर भी बनाई लेकिन उन्होंने कभी भी घबराकर ठीक भी कदम पीछे नहीं रखा बिना डरे बिना डगमगाए वो अपने मकसद पर हमेशा डीआईजी रहे वो बहुत दूरदर्शी हैं अपने दुश्मनों से कई गुना आगे की सोच रखते हैं इसीलिए कहा जाता है की जहां सब की सोच खत्म हो जाती है वहां से अजीत डबल की सोच शुरू होती है अपनी शॉप में intality के जरिए अपने राइवल्स के दिमाग को पढ़ लेना और उसी के बेस पर उनकी साइकोलॉजी के साथ खेलना अजीत डबल की सबसे बड़ी खूबी रही इसी के बाल पर उन्होंने अच्छे-अच्छे मास्टरमाइंड के प्लांस को फ्लॉप कर दिया इसके अलावा अपनी मात्रा भूमि की रक्षा को लेकर उनका जुनून और हिम्मत उनको उनकी हर कम में सफलता दिला दी गई तो दोस्तों ये थी कहानी इंडिया के सबसे पावरफुल स्पाई मास्टर अजीत दोवाल की स्टडी इक इस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल