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Raja Ram Mohan Roy and His Efforts for Social and Religious Reforms

[प्रशंसा] [संगीत] [संगीत] हेलो फ्रेंड्स 19 सेंचुरी यानी 1801 से 1901 तक का जो समय था यह वह समय था जब इंडियन सोसाइटी पुरी तरह से इस प्रेग्नेंट और decarent हो रही थी मतलब कल्चरल डिक्लाइन कर रही थी केशवचंद्र सेन ने उसे समय की स्थिति को कुछ इस तरह से मेंशन किया था उन्होंने कहा की आज जो हम देख रहे हैं वह एक फॉलो नेशन है एक ऐसा नेशन जिसकी पार्षद के ख्याति अब खंडहर के ढेर में तब्दील हो चुकी है व्हाट सी सी टुडे इन लोगों को जो भी इंस्ट्रक्शन देते द यह लोग ब्लाइंड्ली इन इंस्ट्रक्शंस को फॉलो करते द यह लोग कभी यह क्वेश्चन नहीं करते द की हमें जो रिलिजियस राइट्स करने के लिए कहा जा रहा है वो हम क्यों कर रहे हैं रीजन और ressionality दोनों की यहां पर कमी थी और इन कर्म की वजह से रिलिजन के नाम पर बहुत सारे अंधविश्वास और सुपरस्टिशंस रिलिजन का पार्ट बनते चले गए वुमेन की पोजीशन लगातार सोसाइटी में कमजोर हो गई कार्ड सिस्टम रिगिड हो गया और काश बेस एक्सप्लोरेशन बढ़ता गया ऐसे में एक अर्जेंट नीड थी की देश में न्यू अवकेनिंग हो और यह अवकेनिंग सिर्फ तभी हो सकती थी जब आम लोगों को ressionally थिंक करना सिखाया जा सके और यह जो प्रक्रिया ऑफ वाकिंग है इसे इंडिया में इंडियन रेनेसां भी कहा जाता है और उसके सेंट्रल फिगर द वैन एंड ओनली राजा राममोहन रॉय यह कोई राज परिवार में पैदा नहीं हुए द इनको मुगल एंपरर अकबर तू ने राजा का टाइटल दिया हुआ था एनसीआरटी में इन्हें मॉडर्न इंडिया का पहला ग्रेड लीडर कहा गया है है इनका ऑब्जेक्टिव था इंडियन सोसाइटी को सोशल presudis और सुपरस्टिशन से मुक्त करना और देशवासियों की इंटेलेक्चुअल कंडीशन को इंप्रूव करना और यह कोई छोटा-मोटा टारगेट नहीं था इन दोनों ऑब्जेक्टिव्स को पूरा करना अपने आप में बहुत ही बड़ा कम था और इसके लिए इन्होंने डिसाइड किया की वेस्टर्न modelity और ईस्टर्न स्पिरिचुअलिटी दोनों के तालमेल से अपने इस ऑब्जेक्टिव को अचीव करेंगे इनका मानना था की इंडिया को वेस्ट से जरूर सीखना चाहिए इससे इंडियन कल्चर और थॉट्स को रिनोवेट किया जा सकेगा और यह जो लर्निंग है ये इंटेलेक्चुअल और क्रिएटिव प्रक्रिया से होने चाहिए मतलब कुछ भी वैसे सीखने से पहले हमें अपनी राशन थिंकिंग अप्लाई करनी चाहिए तो चलिए देखते हैं की राजा राम मोहन रॉय ने इंडियन सोसाइटी में सोशल और रिलिजियस रिफॉर्म्स लाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए सबसे पहली बात तो यह की इनका मोनोथैकस में बहुत ही प्रगाढ़ मिली थी की सभी रिलिजियस स्क्रिप्चर्स एक भगवान की पूजा की तरफ आग्रह करते है जो की अगर हम अपने चारों तरफ देखें तो खासकर हिंदुइज्म में तो बहुत सारे भगवानों को माना जाता है राजा राम मोहन रॉय ने डिसाइड किया की सबसे पहले उन्हें लोगों तक यह बात pahunchani होगी की भगवान एक है और हमें एक भगवान की ही पूजा करनी चाहिए इसके लिए उन्होंने 1809 में एक बुक लिखी जिसका नाम था गिफ्ट तू मोनोथैकस इस बुक में उन्होंने पूरे तर्क और एविडेंस के साथ ये एक्सप्लेन किया था की क्यों हमें बहुत सारे भगवानों की अपेक्षा सिर्फ एक भगवान की वरशिप करनी चाहिए इन्होंने यह बुक पर्शियन लैंग्वेज में लिखी थी क्योंकि उन दिनों इंडिया में कोर्ट लैंग्वेज पर्शियन थी और इंटेलेक्चुअल की जो भाषा थी उसे समय पर्शियन को माना जाता था अब बात ये है की बुक तो इन्होंने लिख दी बट यह बुक आम लोगों के लिए थी और पर्शियन हम लोगों को आती ही नहीं थी आम लोग बंगाली फिर भी समझ लेते द तो इन्होंने क्या किया की वन और पंच प्रिंसिपल ऑपरेशंस को बंगाली में ट्रांसलेट किया ताकि लोगों को यह बात समझ में आए की मोनोथैकस जो है वह इनके अकेले की फिलासफी नहीं है हमारे वेद और उपनिषद मोनोथेज्म को ही फॉलो करने की बात कर रहे हैं तो अब बंगाली में यह रिलिजियस डिस्क्रिप्शन कर दिए गए द बट अभी भी सभी लोगों तक यह बात पहुंच नहीं का रही थी क्योंकि ज्यादातर लोग अनपढ़ द किसी भी लैंग्वेज में लिखा हुआ पर्शियन या बंगाली उनके लिए तो कला अक्षर भैंस बराबर था तो इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए इन्होंने 1814 में कलकत्ता में आत्मीय सभा सेटअप की आदमी सभा मतलब सोसाइटी ऑफ फ्रेंड्स आइडियल यह था की हाथ में सभा में जो लोग इनके साथ जुड़ेंगे वह मोनोथेष्टिक प्रिंसिपल को आगे स्प्रेड करेंगे आइडियल वरशिप को अपोज किया जाएगा कास्ट रिगिडिटी मीनिंग्लेस रिचुअल्स और जो दूसरे सोशल इविल्स अब हिंदू रिलिजन के पार्ट बन चुके द उन्हें खत्म किया जाएगा इन्होंने लोगों को बताया की भाई हमारे जो वेद है वो रेशनल इतिहास पर बेस्ड है और आप भी चीजों को क्वेश्चन करना सीखो अगर किसी स्क्रिप्चर या रिलिजियस टेक्स्ट में कोई ऐसी बात लिखी है जिसका कोई जस्टिफिकेशन नहीं है और आपके समझ में नहीं ए रही है है तो आप उसको भी मत मानो राजा राम मोहन रॉय जो भी कर रहे द इससे क्रिश्चियन मिशनरीज बहुत ज्यादा खुश द उनको लग रहा था की इनके इन प्रयासों से हिंदुओं को कुछ ही समय में हिंदू रिलिजन में बहुत सारी कमियां दिखने लगेगी और अल्टीमेटली वो क्रिश्चियनिटी की तरफ मुड़ सकते हैं बट राजा राम मोहन रॉय के अगले ही कदम ने क्रिश्चियन मिशनरीज के मंसूबों पर पानी फेर दिया उन्होंने 1820 में एक बुक लिखी जिसका नाम था डी% ऑफ जीसस इसमें इन्होंने न्यू testiment की जो मोरल और philosphical बातें थी उन्हें जीसस की चमत्कारों वाली कहानियों से अलग कर दिया मोरल ऑफ फिलोसॉफिकल मैसेज को इन्होंने अप्रिशिएट किया और कहा की इन बातों को हिंदुइज्म में भी इन कॉर्पोरेट करना चाहिए क्रिश्चियन मिशनरीज इस बात से काफी ज्यादा नाराज हुए इसके बाद इन्होंने ब्रह्मा सभा की शुरुआत की 1828 में कुछ समय के बाद ही इस सभा का नाम ब्रह्म समाज कर दिया गया चैनल को प्रोपागेट करना ब्रह्म समाज में हर एक धर्म की अच्छी बातों के लिए जगह और उपनिषद राजा राम मोहन रॉय लगे हुए द समाज में राशनलिज्म और प्रोग्रेसिव इतिहास को प्रोपागेट करने के लिए तो ओबवियस सी बात है की ऑर्थोडॉक्स एलिमेंट्स भी शान बैठने वाले तो है नहीं authodox एलिमेंट्स ने ब्रह्मो समाज को काउंटर करने के लिए धर्म समाज को सेटअप कर दिया इसे फॉर्म किया था राजा राधाकांत देव ने और इनका एक ही मकसद था ब्रह्मो समाज का पाटन वर्ड 1833 में राजा राम मोहन रॉय की मृत्यु हो गई जो की ब्रह्म समाज के लिए एक बहुत ही बड़ा सेट बाग साबित हुआ अपने जीवन कल में नेशन बिल्डिंग से रिलेटेड ऐसा एक आधी कम होगा जिस पर राजा राम मोहन रॉय ने कम नहीं किया हो इन्होंने हिंदू रिलिजन के रिफॉर्म के लिए दिन रात कम किया और पहले 5 पॉइंट्स में हमने यही देखा इसके साथ-साथ इन्होंने वुमेन अपने लिए भी कम किया मॉडर्न एजुकेशन को प्रोपागेट करने के लिए भी कम किया और साथ ही साथ ब्रिटिश पॉलिसी के अगेंस्ट लोगों को अवैध भी करवाया उन दिनों सती प्रथा हुआ करती थी और उसके अगेंस्ट इन्होंने 1818 में ही कैंपेन करना शुरू कर दिया था इन्होंने लोगों को समझाया की सती प्रथा का जिक्र हमारे वेदों और उपनिषद में कहीं पर भी नहीं है और इन्होंने लोगों से रिक्वेस्ट किया की उनका ग्राउंड्स ऑफ रीजन कंपैशन और ह्यूमैनिटी हमें सती प्रथा का अंत कर देना चाहिए और इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश गवर्नमेंट को भी कई बार पिटीशन भेजें और कहा की इस प्रथा को क्रिमिनल्स किया जाए और ऐसा ही हुआ अंत में 1829 की गवर्नमेंट रेगुलेशन द्वारा सती प्रथा को एक क्रिमिनल एक्ट माना गया उसे समय गवर्नर जनरल द लॉर्ड विलियम बेंटिक राजा राम मोहन रॉय के जीवन की सबसे बड़ी जीत थी इसके अलावा पाली गेमिंग और वीडियो के साथ बुरे बर्ताव के अगेंस्ट भी लड़ते रहे और इनका यह भी प्रयास रहा की इन्हेरिटेंस राइट वुमेन को भी बराबर होनी चाहिए यानी पिता की jayjaat पर बेटी का भी उतना ही हक होना चाहिए जितना की बेटे का होता है है तो पॉइंट सिक्स सेवन और एट में हमने देखा की वुमेन एंप्लॉयमेंट के लिए इन्होंने क्या-क्या कदम उठा इसके अलावा मॉडर्न एजुकेशन के प्रोपेगेशन के लिए इन्होंने डेबिट हेयर के एफर्ट्स को सपोर्ट किया और अल्टीमेटली 1817 में हिंदू कॉलेज की शुरुआत हुई राजा राममोहन राय खुद एक इंग्लिश स्कूल चलते द जहां पर साइंस और वेस्टर्न थॉट्स से बच्चों को अवगत कराया जाता था इसके बाद 1825 में इन्होंने वेदांत कॉलेज के भी शुरुआत की जहां पर वेस्टर्न और इंडियन लर्निंग दोनों कराई जाती थी और अब लास्ट पॉइंट में हम देखेंगे की कैसे ब्रिटिश पॉलिसीज के खिलाफ यह लोगों को जागरूक कर रहे द राजा राम मोहन रॉय एक जनरलिस्ट तो द ही द साथ ही साथ ही एक लैंग्वेज भी द इन्हें बहुत सारे लैंग्वेज आती थी जिसमें बंगाली इंग्लिश पर्शियन ग्रीक लैटिन हिब्रू जैसी लैंग्वेज शामिल है इन्होंने अपने जर्नल्स बंगाली इंग्लिश हिंदी और पर्शियन में निकले द और इन्हीं जनरल के माध्यम से यह आम लोगों को ब्रिटिश पॉलिसी अगेंस्ट अफेयर कर रहे द इन्होंने बहुत सारे मुद्दे उठाएं जिसमें से कुछ में इश्यूज हम यहां पर देख रहे हैं जमींदार कैसे परमानेंट सेटलमेंट में किसने का खून चूस रहे हैं उसके अगेंस्ट इन्होंने आवाज़ उठाई इन्होंने अपने जनरल्स के थ्रू इंडियन गुड्स पर लगने वाले एक्सपोर्ट ड्यूटी को कम करने की मांग की इंडियन सिविल सर्विसेज को इंडिआनाइज्ड करने को कहा और ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव्स को सेपरेट करने की भी मांग राखी है जो की आगे चल के कांग्रेस की भी मांग रही तो हमने राजा राम मोहन रॉय से रिलेटेड सभी इंपॉर्टेंट पॉइंट्स को कवर कर लिया है चलिए अब देखते हैं की राजा राम मोहन रॉय की डेथ के बाद ब्रह्म समाज का क्या हुआ हमने देखा था की राजा राम मोहन रॉय ने ब्रह्मा सभा को एस्टेब्लिश किया था 18 2018 वेद और उपनिषद 33 में राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई जो की ब्रह्म समाज के लिए एक बड़ा सेट बैक साबित हुआ उनकी डेथ के बाद ब्रह्मो समाज एक्सिस्ट तो करता रहा बट विदाउट मच लाइफ ऐसे में देवेंद्र टैगोर जो की रविंद्र नाथ टैगोर के फादर द उन्होंने 1842 में ब्रह्मो समाज को ज्वाइन किया ब्रह्मो समाज ज्वाइन करने से पहले देवेंद्र नाथ टैगोर तत्व boudini सभा से जुड़े हुए द जिसे उन्होंने 1839 में फाउंड किया था यहां वह राजा राम मोहन रॉय की इतिहास को प्रोवाइड करते द और साथ ही साथ बंगाली लैंग्वेज में इंडिया के पास के सिस्टमैटिक स्टडी को भी प्रमोट कर रहे द कहीं ना कहीं यह दोनों इंस्टीट्यूशंस तत्त्वबोधिनी सभा और ब्रह्म समाज दोनों का एजेंडा एक जैसा ही था इसीलिए 1842 में यह दोनों इंस्टिट्यूट आपस में मर्ज हो गए अब देखने वाली बात यह है की देवेंद्र टैगोर के ब्रह्मो समाज से जुड़ने के बाद ब्रह्म समाज में क्या-क्या बदलाव आए तो देवेंद्र नाथ टैगोर की भविष्य में ब्रह्मो समाज ने वीडियो रीमैरिज को सपोर्ट किया पॉलिगामी को पॉलिश किया वुमेन एजुकेशन को बढ़ावा दिया और रैयत की कंडीशंस को इंप्रूव करने की कोशिश की तो यह बात तो तय है की देवेंद्र नाथ टैगोर की लीडरशिप ने ब्रह्मो समाज में फिर से जाम थोक दी थी और फिर 1857 में केशव चंद ने ब्रह्मो समाज को ज्वाइन किया जिससे मैं इन्होंने ब्रह्मो समाज को ज्वाइन किया था यह सिर्फ 19 साल के द इनकी प्रतिभा को देखते हुए सिर्फ एक ही साल में इन्हें आचार्य नियुक्त कर दिया गया कहा जाता है की ब्रह्मो समाज पर केशव चांदसेन का एक गहरा इन्फ्लुएंस हुआ और 1858 के बाद ब्रह्मो समाज में केशव पीरियड की शुरुआत हो गई है क्योंकि यही वो समय था जब ब्रह्मो समाज बंगाल के बाहर भी एक्सपेंड हुआ यूनाइटेड प्रोविंसेस पंजाब और मुंबई में भी अब ब्रह्म समाज की ब्रांचेस तेजी से खुलने लगी थी बट प्रॉब्लम यह थी की केशव चंद की सोच समय से कुछ ज्यादा ही आगे की थी यह इंटरकोर्स को भी सपोर्ट कर रहे द जो की आज 21वीं सदी में भी टैबू है ऐसे में देवेंद्र टैगोर और केशव चांदसेन के बीच किसी भी तरह का कोई तालमेल बन ही नहीं का रहा था और इसीलिए देवेंद्र नाथ टैगोर ने केशव चांदसेन को आचार्य के पद से डिसमिस कर दिया इन्हें 1865 में डिसमिस कर दिया गया था और इस तरह 1866 में ब्रह्मो समाज स्प्लिट हो गया की सब चंद सैन ने अपने फॉलोअर्स के साथ मिलकर एक नए brahmot समाज को एस्टेब्लिश किया जिसका नाम था ब्रह्मो समाज ऑफ इंडिया और देवेंद्र नाथ टैगोर ने भी एक्जिस्टिंग ब्रह्म समाज की ओरिजिनल को दर्शाते हुए ब्रह्म समाज का नाम बदलकर कर दिया आदि ब्रह्म समाज सब ठीक चल रहा था बट इसी बीच केशव चांदसेन ने एक ऐसी हरकत की जिससे यह साबित हो गया की उनकी करनी और करनी में फर्क है बातें तो वह करते द बहुत ही मॉडर्न टाइप की वह खुद पुरी जिंदगी बाल विवाह को अपोज भी करते रहे बट जैसे ही उनको मौका मिला अपनी 13 साल की बेटी की शादी खूब बिहार के नाबालिक महाराजा से करने का उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और अपनी 13 साल की बेटी की शादी कर दी इससे उनके जो फॉलोअर्स द वो बहुत ही नाराज हुए और इस बार ब्रह्मो समाज ऑफ इंडिया भी स्प्लिट हो गया उनके फॉलोअर्स ने एक नया ब्रह्मो समाज बनाया जिसका नाम था साधारण ब्रह्मो समाज इसे आनंद मोहन बोस शिव चंद्र देव और उमेश चंद्र दत्ता ने स्टार्ट किया था इनकी आईडियोलॉजी काफी हद तक आदि ब्रह्म समाज जैसी ही थी तो यह थी डिटेल्स ब्रह्मो समाज की चलिए अब देखते हैं की प्रार्थना समाज की शुरुआत कैसे हुई तो जैसा की हमने देखा की बंगाल में 1828 में ही ब्रह्मो समाज एस्टेब्लिश हो चुका था जिसके बाद बंगाल में सोशल रिलिजियस रिफॉर्म्स काफी तेजी से हो रहे द और उधर मुंबई में 184 के आसपास एक ऑर्गेनाइजेशन बनी जिसका नाम था paramhansabha yogination लिबरल इतिहास को स्प्रेड करने और कास्ट और कम्युनल बैरियर्स को ब्रेक करने का कम कर रही थी और यह ऑर्गेनाइजेशन कम कर रही थी सीक्रेट सोसाइटी यह सोसाइटी सेक्रेटली इसलिए कम कर रही थी क्योंकि यह औरत बचे रहना चाहते द बट बीइंग अन सीक्रेट सोसाइटी इनकी एक्टिविटी ब्रह्म समाज ज्वाइन किया और उनके नेतृत्व में ब्रह्म समाज के विचार पूरे देश में फैलने लगी बॉम्बे में भी इसका इंपैक्ट हुआ बॉम्बे में एक सोशल रिलिजियस ऑर्गेनाइजेशन एस्टेब्लिश हुई जिसका नाम था प्रार्थना समाज इसके फाउंडर द आत्माराम पांडुरंग और इन्होंने प्रार्थना समाज की शुरुआत केशव चंद सेन की मदद से 1867 में की प्रार्थना समाज भी ब्रह्म समाज की हिट रहा मोनोथैकस यानी सिंगल गोद की कॉन्सेप्ट को इंप्रेस करता है प्रार्थना समाज का आधार था उपनिषद और भागवत गीता के टीचिंग्स इसके अलावा वेस्टर्न लिबरल थॉट्स को भी ये प्रमोट करते द और यह महाराष्ट्र के भक्ति कल से भी अटैच द नामदेव और तुकाराम जैसे साइंस की पॉलिटिक लिटरेचर को भी यह प्रमोट कर रहे द वैसे तो यह ऑर्गेनाइजेशन एक सोशल रिलिजियस ऑर्गेनाइजेशन थी बट फिर भी इनका में फोकस था सोशल रिफॉर्म्स पर रिलिजियस रिफॉर्म्स पर इनका ज्यादा फोकस नहीं था इनका एक बहुत ही क्लियर था वुमेन एजुकेशन को प्रमोट करना विडो रीमैरिज को सपोर्ट करना मेल और फीमेल दोनों की मिनिमम परमीसिबल आगे फॉर मैरिज को बाधवाना और कास्ट सिस्टम का बहिष्कार स्टार्टिंग के दो तीन साल प्रार्थना समाज को वो रिस्पांस नहीं मिला जो इन्हें मिलना चाहिए था बट फिर जैसे ही एमजी रानाडे यानी महादेव गोविंद रानाडे ने प्रार्थना समाज को ज्वाइन किया 1870 में प्रार्थना समाज ना सिर्फ मुंबई में बल्कि पूरे देश में पॉप्युलर हो गया तो ये थी डिटेल्स प्रार्थना समाज की चलिए अब बात करते हैं यंग बंगाल मूवमेंट की जिसे हेनरी विवियन deroziyon ने शुरू किया था लीड 1820 और अर्ली 1830 यह वह समय था जब बंगाल में एक रेडिकल ट्रेंड देखने को मिला खासकर बंगाली intelactuals में इस रेडिकल ट्रेंड का नाम था यंग बंगाल मूवमेंट यह सोशल जो खुद फ़्रेंच रिवॉल्यूशन से इंस्पायर्ड द इसके अलावा यह एक पॉइंट भी द और काफी नेशनलिस्टिक शायरी भी लिखते द कहा जाता है की शायद ये मॉडर्न इंडिया के पहले नेशनल स्पोर्ट द अब क्वेश्चन ये है की ये सोशल रिलिजियस मूवमेंट क्या था और ये कैसे शुरू हुआ तो बात ये है की जब ये मात्रा 17 इयर्स के द तभी से इन्होंने हिंदू कॉलेज में पटना शुरू कर दिया था इनकी रेडिकल थिंकिंग से इनके स्टूडेंट्स काफी ज्यादा इंस्पायर्ड द हर अथॉरिटी को क्वेश्चन करना फ्रीली और ressionally सोचना अब इनके स्टूडेंट्स का बिहेवियर बन चुका था यह बात ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और कॉलेज अथॉरिटी को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई और इसीलिए 1831 में darojiyon को हिंदू कॉलेज से निकल दिया गया और डिरोजियो की गलती सिर्फ इतनी थी की इन्होंने अपने स्टूडेंट्स के साथ मिलकर आम लोगों को अवैध करना शुरू कर दिया था सोशली इकोनॉमिकली और पॉलिटिकल यानी एक तरह से इन्होंने राजाराम मोहन रॉय के इनीशिएटिव उसको आगे बढ़ाने की कोशिश की थी उन्होंने फ्रीडम वह प्रेस की बात की इसके अलावा इन्होंने डिमांड की इंडियन लेबर्स जो की दूसरी ब्रिटिश कॉलोनी में जाकर कम कर रहे हैं उन्हें बटोर ट्रीटमेंट मिलना चाहिए इन्होंने ट्रायल बाय जरी की भी मांग की यानी मुकदमे की जांच जूरी के द्वारा होनी चाहिए और इंडियन को भी हायर ग्रेड गवर्नमेंट सर्विसेज में एंप्लॉयमेंट मिलना चाहिए बट यंग बंगाल मूवमेंट फिल हो गया और इस मूवमेंट के फील्ड होने का एक रीजन तो ये था की मात्रा 22 साल की उम्र में deroziyon की मृत्यु हो गई इसके अलावा कई और रीजंस भी द जैसे की डिरोजियंस का pizans के साथ एक सीधा लिंक नहीं बन पाया उनका जो रेडिकलाइज्म था उनकी जो फिलासफी थी वो बहुत ही बोहेन थी और आम लोगों की समझ से बिल्कुल बाहर थी और यही रीजन रहा होगा की किसी भी सोशल ग्रुप या क्लास ने उनको सपोर्ट भी नहीं किया तो ये थी डिटेल्स यंग बंगाल मूवमेंट की अब हम बात करेंगे ईश्वर चंद्र विद्यासागर की और देखेंगे की ईश्वर चंद्र विद्यासागर और हेनरी विभिन्न डिरोजियो या कहें की यंग बंगाल वुमेन में क्या लिंग था विद्यासागर बंगाल रेनेसां मूवमेंट के वैन ऑफ डी ग्रेटेस्ट पर्सनेलिटीज में से एक द इनकी पढ़ कोलकाता के संस्कृत कॉलेज में हुई ईश्वर चंद एक ब्रिलिएंट स्टूडेंट द और इसी को रिकॉग्नाइज्ड करते हुए 1841 में जब इनकी पढ़ खत्म हुई तो संस्कृत कॉलेज ने इन्हें विद्यासागर का टाइटल दिया विद्यासागर मतलब ओशन ऑफ नॉलेज अब यहां पर हमें अपने पिछले टॉपिक का थोड़ा सा रेफरेंस लेना होगा हमने कहा था की लेट 18 20 और अर्ली 1830 के दौरान बंगाल में एक रेडिकल ट्रेंड देखने को मिला इस रेडिकल ट्रेंड का नाम था यंग बंगाल मूवमेंट यह एक सोशल रिफॉर्म मूवमेंट था और इस मूवमेंट के लीडर द हेनरी विविन डिरोजियो जो की एक एंग्लो इंडियन द 1831 में हेनरी विवियन deroziyon की मृत्यु हो गई और उसके बाद यंग बंगाल मूवमेंट थोड़ा ठंडा पद गया लेकिन हेनरी विभिन्न रोगियों के फॉलोअर्स जिन्हें डिरोजियंस कहा जाता था उन्होंने 1838 में सोसाइटी फॉर्म की जिसका नाम था सोसाइटी फॉर डी एक्विजिशन ऑफ जनरल नॉलेज तो जब 1838 में सोसाइटी शुरू हुई तो उसे समय ईश्वर चंद संस्कृत कॉलेज में पढ़ा करते द बट फिर भी बहुत ही शुरुआती दौर में ही उन्होंने इस सोसाइटी को ज्वाइन कर लिया था गैस सोसाइटी स्ट्रेस करती थी रेडिकल थिंकिंग पर जबकि संस्कृत कॉलेज में जोर था कंजरवेटिव थिंकिंग पर इन दोनों तरह के विचारधाराओं से जुड़े रहते हुए ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने कंजरवेटिव यानी ऑर्थोडॉक्स हिंदू विचारधारा और रेडिकल विचारधारा के बीच समन्वय बनाने की कोशिश की इन्होंने इन दोनों विचारधारा के बीच एक ब्रिज का कम किया हालांकि इनका झुकाव ज्यादातर रेडिकल थिंकिंग पर ही था जब 1850 में ये संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल बने तो इन्होंने संस्कृत कॉलेज में भी वेस्टर्न थॉट्स को इंट्रोड्यूस किया ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने कई सारे एजुकेशन और सोशल रिफॉर्म्स किए बट क्योंकि यह जानना ज्यादा जरूरी है उसे समय एक बड़ी संख्या में लोग पावर्टी लिटरेसी और सुपरस्टिशन की वजह से सफर कर रहे द और ईश्वर चंद्र विद्यासागर के दिल में लोगों के प्रति इनके दुखों के प्रति लिमिटलेस कंपैशन था जिसकी कारण इन्होंने कई सारे सोशल रिफॉर्म्स और एजुकेशन रिफॉर्म्स की है और इसीलिए इन्हें एक ह्यूमंस सोशल रिफॉर्मर और एक ह्यूमैनिस्ट एजुकेशनल रिफॉर्मर भी कहा जाता है इनके समय में इंडिया में कई सारे कॉलेजेस और इंस्टीट्यूशंस खुलने शुरू हो चुके द बट इन्होंने ये महसूस किया की सभी एजुकेशनल एंटरप्राइजेज रिलिजियसली डोमिनेटेड है फॉर एग्जांपल संस्कृत कॉलेज चाहे वो बनारस का हो या कलकत्ता का दोनों ही हिंदुइज्म डोमिनेटर द कोलकाता मदरसा इस्लामी डोमिनेटेड था मिशनरी इंस्टिट्यूट में क्रिश्चियन डोमिनेशन था और यहां तक की राम मोहन स्कूल्स में भी रिलिजियस टीचिंग्स पर ही ज्यादा जोर था ऐसे उन्होंने एक बड़ा कदम उठाया ऐसा प्रिंसिपल ऑफ संस्कृत कॉलेज इन्होंने कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के दरवाजे नॉन ब्राह्मण क्लास के लिए खोल दिए इसके अलावा इन्होंने संस्कृत कॉलेज में फिजिकल एजुकेशन प्रोग्राम्स को भी प्रमोट किया नहीं साइकोलॉजी इसके अलावा जो फीमेल एजुकेशन को लेकर सोशल presudis रूढ़िवादी विचार सोसाइटी में द उसे तोड़ने की इन्होंने कोशिश की इसका एक इंस्टेंस है वैक्यूम फीमेल स्कूल से रिलेटेड जैसे 1830 में फोन किया गया था 1830 में इसे फाउंड तो किया गया था लेकिन बहुत ज्यादा स्ट्रेंथ नहीं थी स्कूल में बट 1869 में जब ईश्वर चंद विद्यासागर को वैक्यूम फीमेल स्कूल का सेक्रेटरी बनाया गया तो इन्होंने फीमेल एजुकेशन को प्रमोट करने के लिए कोलकाता की एलीट क्लास को इस बात पर राजी कर लिया की वो अपनी बेटियों को वैक्यूम फीमेल स्कूल भेजें यह एक तरह का मोमेंट्स शुरू हो गया था जिसका एक अच्छा रिस्पांस देखने को मिला अपने इस मूवमेंट को और ज्यादा मजबूत करने के लिए इन्होंने हिंदू स्क्रिप्चर्स के टेक्स्ट को डिकोड किया और लोगों तक यह बात पहुंचाई की हमारे शास्त्र भी फीमेल एजुकेशन का सपोर्ट करते हैं यह बिल्कुल वैसे ही था जैसे राम मोहन रॉय ने सती प्रथा को खत्म करने के लिए शास्त्रों को कोर्ट किया था अब बंगाल की फीमेल एजुकेशन को प्रमोट करने के बाद इन्होंने और एरियाज में भी फीमेल एजुकेशन को पहुंचाना चाहा इसके लिए उन्होंने चार और डिस्ट्रिक्ट्स में 35 गर्ल्स है स्कूल स्टार्ट किए एक्चुअली उसे समय की बंगाल की लेफ्ट हैंड गवर्नर एलईडी ने कहा था की वो इस कम में इनकी मदद करेंगे इसके चलते इन्होंने इन स्कूल्स को स्टार्ट तो कर लिया था और शुरुआती खर्चा भी इन्होंने खुद ही किया बट जब समय पर गवर्नमेंट सपोर्ट नहीं मिल पाया तो इन्हें स्कूल्स बंद करनी पड़े कहा जाता है की ईश्वर चंद्र विद्यासागर अपने जीवन कल में कई बार कर्जे में डूब गए द और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि लोगों की मदद करने के लिए वह कई बार अपनी फाइनेंशियल स्थिति से भी बड़े-बड़े कम अपने सर पर ले लेते द अब यहां पर इनकी एजुकेशन रिफॉर्म के एक दूसरी डाइमेंशन को देखते हैं यह वह समय था जब मॉडर्न बंगाली लैंग्वेज पुरी तरह से डिवेलप नहीं हुई थी ऐसे में इन्होंने बंगाली प्राइमर वैन परिचय बंगाली अक्षर सीखते हैं आज भी बंगाली बच्चे दोनों पर नीचे से ही बंगाली सीखने की शुरुआत करते हैं विद्यासागर चाहते द की वेस्ट की साइंस और कल्चर को भी आम लोगों तक वर्नाक्यूलर लैंग्वेज में पहुंचा जाए बट इसके लिए सबसे पहली जरूरत यह थी की बंगाली प्रस को डिवेलप किया जाए जैसे की हमने पहले ही देखा की 19 सेंचुरी की शुरुआत में मॉडर्न बंगाली लैंग्वेज बहुत ज्यादा डिवेलप नहीं थी तो ऐसे में ईश्वर चंद विद्यासागर ने ही बंगाली प्रक्रिया स्टाइल को डिवेलप किया तो यह थी ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा किए गए एजुकेशनल रिफॉर्म्स अब बात करते हैं सोशल रिफॉर्म्स की आगे अन सोशल रिफॉर्मर इन्होंने पुराने संस्कृत टैक्स के खोजबीन करके यह प्रूफ कर दिया की वेदों में वीडियो किया गया है इन्होंने इस बात को लोगों तक पहुंचा और इस तरह 8009 से लोगों के सिग्नेचर लेके एक पिटीशन तैयार किया कंपनी को भेजा और कहा की इस पिटीशन के रिस्पांस में वीडियो रीमेंस कोलन करने से रिलेटेड एक लेजिसलेटिव एक्शन की जरूरत है लेगिस कर दिया यह बहुत ही बड़ी जीत थी विद्यासागर जी ने चाइल्ड मैरिज और पॉलिगामी के खिलाफ भी अपनी आवाज़ उठाई और एक सच्चे हमने सोशल रिफॉर्मर और सच्चे हमारे एजुकेशनल की तरह इन्होंने अपने पूरे जीवन को लोगों की सेवा में लगा दिया ईश्वर चंद विद्यासागर जी के बारे में बहुत कुछ है जो डिस्कस किया जा सकता है बट यूपीएससी एग्जाम के पर्सपेक्टिव से इतना काफी है चलिए अब बात करते हैं ज्योतिबा फुले के बारे में जिन्होंने अपना पूरा जीवन untability को redegate करने और सभी क्लासेस के लोगों के ह्यूमन राइट्स को इम्फैसीज करने में लगा दिया आगे चलकर डॉक्टर बी आर अंबेडकर जी के लिए भी इंस्पिरेशन रहे अंबेडकर जी ने भी ज्योतिबा फुले को अपना गुरु माना ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था इनका एक्चुअल नाम था ज्योतिबा गोरी और ये मलिका इसको बिलॉन्ग करते द इसका उसके लोगों से एक्सपेक्टेड होता था की वह गार्डनिंग और वेजिटेबल फार्मिंग जैसे कामों को करें इनके परिवार के कई लोग peshvaon के यहां पर फूल मलिका कम किया करते द और इसीलिए उन्हें पहले कहा जाता था और यही कारण था की ज्योतिबा गौरी को भी ज्योतिबा पहले के नाम से जाना गया कास्ट बेस रिस्ट्रिक्शंस के कारण बचपन में इनकी पढ़ सिर्फ प्राइमरी एजुकेशन तक हुई बट क्रिश्चियन मिशनरीज के इन्फ्लुएंस में इनके पिता ने इनकी आगे की एजुकेशन स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल में कराई बुक्स पढ़ना इन्हें बहुत ज्यादा पसंद था और इसी हॉबी के चलते ये एक ऐसी बुक के संपर्क में आए जिसने इनका पूरा जीवन बदल दिया इस बुक का नाम था राइट सो में इस बुक को थॉमस पेन ने लिखा था इस बुक ने इन्हें बहुत ज्यादा इन्फ्लुएंस किया और इनके अंदर सोशल जस्टिस की भावनाओं को बहुत ज्यादा प्रकट कर दिया इस बुक में यह पुरी तरह से डूब गए द और जब इन्होंने अपने आसपास देखा तो इन्होंने देखा की इंडियन सोसाइटी में लोअर कास्ट और वुमेन को सदियों से सोशल जस्टिस से डिप्राइव किया गया है इन्होंने रिलाइज किया की अगर दलितों और वुमेन को सोशल जस्टिस दिलाना है तो उन्हें समाज में मानसी पेट करना जरूरी है यानी सामाजिक रिस्ट्रिक्शन से उन्हें आजाद करना होगा बट ये कम इतना आसान नहीं था और ये सिर्फ एक प्रकार से किया जा सकता था और वो तरीका था दलितों और वुमेन को एजुकेट करके यानी एजुकेशन इस डी की तो सोशल जस्टिस और इस मिशन में सावित्रीबाई पहले जो की इनकी वाइफ थी उन्होंने भी इन्हें ज्वाइन कर लिया ज्योतिबा पहले और सावित्रीबाई फुले दोनों ने समाज की ऑर्थोडॉक्स विचारों वाले लोगों से लड़ते हुए समाज में गर्ल एजुकेशन को प्रमोट करने के लिए पुणे में एक गर्ल्स स्कूल की शुरुआत की और कर सिस्टम के खिलाफ अपनी मुहिम को और तेज करने के लिए ज्योतिबा फुले ने कई बुक्स लिखी जिम सबसे फेमस है गुलामगिरी गुलामगिरी इन्होंने मराठी में लिखी थी और इस बुक में इन्होंने का सिस्टम की धज्जियां उदा दी थी यह बुक ज्योतिबा और इन्हीं की बुक के कैरक्टर धोंडीबा के बीच बातचीत और डायलॉग को दर्शाती है इसमें 16 ऐसे और चार पोएटिक कंपोजिशन भी है इस बुक में इन्होंने प्रसिद्ध मेथेलॉजिकल कहानियों को लॉजिक और तर्क के जरिए यूजलेस डिक्लेयर कर दिया था इसमें एक मेथेलॉजिकल कहानी जिसमें वामन देव राजा बाली से उसके सारी संपत्ति ले लेते हैं इसमें इन्होंने रजब अली को सुद्रो का राजा बताया और वामन देव को एक क्रुएल और चालक ब्राह्मण जिसने चालाकी से राजा बाली को हराया था और उसके बाद ब्राह्मण जो की एक डिफरेंट ड्रेस है उसने भारत के नेटिव यानी सुद्रो पर अत्याचार करने शुरू कर दिए इसीलिए ज्योतिबा फुले राजा राम की अपेक्षा राजा बाली को अपना पूर्वज मानते हैं और कर सिस्टम के कंप्लीट अबोलिशन की बात करते हैं इसके अलावा ज्योतिबा फुले ने एक और फेमस बुक लिखी थी जिसका नाम था सार्वजनिक सत्य धर्म इस बुक में इन्होंने 30 आर्टिकल्स लिखे हैं जिसमें उन्होंने समझाया है की कैसे सभी धर्म का स्ट्रेस एक फैमिली की तरह साथ में रह सकते हैं जिसका आधार ह्यूमन राइट्स पर बेस होगा इस बुक में इन्होंने इस तरह के समाज को बनाने और उसमें रहने के लिए किस तरह प्रमोशन और इंटेलेक्चुअल एटीट्यूड चाहिए वह भी मेंशन किया है इसके अलावा इन्होंने एक समाज की स्थापना की है जिसका नाम था सत्यशोधक समाज यानी ट्रुथ सीकर सोसाइटी यह ऐसी सोसाइटी थी जिसका महाराष्ट्र के लावरकेस को भी बराबरी के सोशल और इकोनॉमिक बेनिफिट्स मिले और वो भी सर उठाकर जी सके इस समाज ने डिप्रैस क्लास को भ्रम में समाज के अत्याचारों के खिलाफ एकजुट किया ज्योतिबा ने इन लोगों को इस तरह से तैयार किया की इन्हीं बैकवर्ड क्लासेस के लोगों के बीच से इस समाज की लीडरशिप उमरी की लाइफ इवेंट्स की टाइमलाइन पर नजर डालते हैं ज्योतिबा पहले का जन्म 1827 में हुआ और उनकी डेथ 1890 में हुई इनके जीवन का टर्निंग पॉइंट वह था जब 1848 में इन्होंने थॉमस पेन की बुक राइट्स ऑफ मैन को पढ़ा क्योंकि इसी के बाद इन्होंने वुमेन और दलितों के एमांसिपेशन और सोशल जस्टिस के लिए कम करना शुरू किया इससे पहले 1847 में अपनी पढ़ पुरी की थी और पढ़ पुरी करने से पहले ही इनकी शादी हो चुकी थी यह चाइल्ड मैरिज थी और उसे समय इनकी उम्र सिर्फ 13 इयर्स थी जिस साल यह राइट ऑफ मैन बुक के संपर्क में आए उसी साल इन्होंने पुणे में गर्ल्स स्कूल स्टार्ट कर दिया था इस स्कूल को शुरू करने में इनकी वाइफ सावित्रीबाई का भी एक महत्वपूर्ण योगदान था 1854 में इन्होंने होम ऑफ विडोस की शुरुआत की और 1872 में इनकी बुक गुलामगिरी पब्लिश हुई जिसमें उन्होंने कहा सिस्टम की धज्जियां उदा दी थी और इसके अगले ही साल इन्होंने सत्यशोधक समाज को भी फाउंड किया जिसका मतलब था ट्रुथ सीकर सोसाइटी और जिसका लोअर कार्स को समाज में इक्वलिटी का दर्ज दिलाना ताकि वह भी समाज में सर उठा के जी सके इनकी डेथ की अगले ही साल इनकी बुक सार्वजनिक सत्य धन पब्लिश हुई जिसमें इन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां पर सब बराबर है जिस समाज का आधार ह्यूमन राइट्स पर बेस्ड है ज्योतिबा फुले को उनके कंट्रीब्यूशन के लिए महात्मा की उपाधि ज्योति वी फुले और सावित्रीबाई फुले की कोई संतान नहीं थी इसीलिए उन्होंने वीडियो की शुरुआत की थी उसी की एक ब्राह्मण वीडियो के बच्चे को गोद ले लिया था जिसका नाम था यशवंत पहले तो ये थी डिटेल्स ज्योतिबा फुले के बारे में चलिए अब बात करते हैं रामकृष्ण परमहंस और रामकृष्ण मूवमेंट के बारे में रामकृष्ण परमहंस 19th सेंचुरी बंगाल के एक रिलिजियस लीडर और मिस्टेक द मिस्टिक उसे कहा जाता है जो भगवान के साथ एक हो चुका है रामकृष्ण परमहंस का जन्म 1836 में हुआ था और उनका रियल नाम था चट्टोपाध्याय 1855 में जब ये मात्रा 19 इयर्स के द तो इन्हें कलकत्ता के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर का प्राइस नियुक्त किया गया इस मंदिर का पृष्ठ रहते हुए यह महाकाली की मूर्ति पर लगातार ध्यान का प्रयोग करते द और एक दिन इन्हें मैन काली के साक्षात दर्शन हुए मैन काली जगत जननी यानी यूनिवर्सल मदर के रूप में देखी इसके बाद स्पिरिचुअलिटी की और ज्यादा गहराइयों को अनुभव करने के लिए इन्होंने हिंदुइज्म के डिफरेंट डिफरेंट कल्ट और सेक्स को फॉलो किया और रास्ता चुनार रिनंसीएशन का मेडिटेशन का और भक्ति का रिनंसीएशन का मतलब होता है परित्याग रिनंसीएशन मेडिटेशन और भक्ति के रास्ते पे चलते हुए इन्होंने स्पिरिचुअल जर्नी की शुरुआत की हिंदू शास्त्रों में भगवान को पाने का एक रास्ता तंत्र को भी माना गया है रामकृष्ण परमहंस ने सबसे पहले इसी रास्ते को चुना तंत्र एक ऐसा डिसिप्लिन है जिसमें कई सारे रिचुअल्स परफॉर्म करने होते हैं और तंत्र की खास बात ये है की देवोतीस को उनकी टेंपटेशन से बचने के लिए नहीं कहता बल्कि कहता है की जो भी चीज आपको टेंप्ट करती है या अट्रैक्ट करती है उसे बोल्डली फेस करें और उसे फेस करके यह समझ लें की उसमें कुछ नहीं रखा है और अपनी इंटेंशन से ऊपर उठे और इस प्रक्रिया में अपनी सारी ऊर्जा को भगवान की भक्ति में लगा दें तंत्र विद्या का प्रयोग सालों तक चलता है तब जाकर साधक को सिद्धि प्राप्त होती है बट राम कृष्ण परमहंस को ऐसा करने में बस तीन ही दिन लगे इसके बाद इन्होंने वैश्णविज्म को भी अपनाया वैष्णवी इसमें एक भक्तिकाल है जिसमें भगवान को अपने पैरेंट अपने चाइल्ड गुरु फ्रेंड या फिर अपने प्रेमी के रूप में देख सकते हैं और जो भी भावना ने पकड़ा है उसमें डूब जाना होता है रामकृष्ण परमहंस ने इस रास्ते पर भी भगवान को का लिया इसके बाद इन्होंने सिमिलर प्रयोग अद्वैत वेदांत इस्लाम और क्रिश्चियनिटी के साथ भी की है और इन्होंने पाया की हर एक रिलिजन हर एक सेट आपको भगवान तक ले जा सकता है यानी सभी धर्म सही है इनफेक्ट फंडामेंटली एक ही है क्योंकि श्री कृष्ण श्री हरि राम यीशु अल्लाह यह सब भगवान के ही नाम है यह तो बात हुई रामकृष्ण परमहंस की भगवान की खोज की अब बात करते हैं इनकी टीचिंग्स और प्रैक्टिस की रामकृष्ण परमहंस ज्यादा पढ़े लिखे तो द स्पिरिचुअल नॉलेज और एक्सपीरियंस का भंडार था जो इन्होंने अपनी कंवर पोजीशन और स्पीच के फॉर्म में अपने स्टूडेंट्स अपने डिसीप्लस के साथ शेयर किया इनकी टीचिंग्स भक्ति तंत्र और वेदांत पर भेजती इनके जो सबसे ज्यादा क्लोज फॉलोअर्स द उन्हें इन्होंने ग वस्त्र दिए और परित्याग के रास्ते पर अग्रसर किया यानी इन्होंने एक मॉनेस्टिक लाइनेज की शुरुआत की जैसे रामकृष्ण ऑर्डर के नाम से जाना जाता है इनके सबसे प्रिया डिसएबल स्वामी विवेकानंद द और जब 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हुई तो उससे कुछ ही समय पहले रामकृष्ण परमहंस ने अपने सभी विषय पर्स की जिम्मेदारी स्वामी विवेकानंद को दे दी थी स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण ऑर्डर के दो लीगल और पैरेलल ऑर्गेनाइजेशंस का गठन किया एक का नाम है रामकृष्ण मठ और दूसरी ऑर्गेनाइजेशन का नाम है रामकृष्ण मिशन रामकृष्ण भट्ट ऑर्गेनाइजेशन है जिसका प्राइमरी फोकस स्पिरिचुअल ट्रेनिंग और रामकृष्ण परमहंस की टीचिंग्स को प्रोपागेट करना है जबकि रामकृष्ण मिशन है जो चैरिटेबल मेडिकल रिलीफ और एजुकेशन प्रोग्राम चलती है क्योंकि रामकृष्ण परमहंस कहते द सर्विस तो ह्यूमन बीइंग्स इसे डी सर्विस तू गोद और यह ऑर्गेनाइजेशन रामकृष्ण परमहंस की उसी फिलासफी पर बेस्ड है इन दोनों ऑर्गेनाइजेशंस का हेड क्वार्टर वेस्ट बंगाल के बेलूर में बेस है और ये दोनों ऑर्गेनाइजेशंस रामकृष्ण मूवमेंट का पार्ट है तो ये थी डिटेल्स रामकृष्ण मूवमेंट की अब हम स्वामी विवेकानंद की लाइफ से जुड़ी सभी इंपॉर्टेंट डिटेल्स को कवर करेंगे हम स्टार्ट करेंगे उनके बचपन से उसके बाद हम उनकी स्पिरिचुअल जर्नी उनकी टीचिंग्स और उनकी फिलासफी को जानेंगे हम देखेंगे कैसे अपनी स्पिरिचुअल क्वेश्चंस के दौरान वो बंकृप्त हो गए द और उनके जीवन में कौन-कौन से उतार-चढ़ावाए| और फिर हम देखेंगे की वो कैसे पार्लियामेंट ऑफ रिलीजियस में पहुंचे जहां उन्होंने वो स्पीच दी जो आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं और अंत में हम देखेंगे की कैसे उन्होंने mahasammati अटेंड की स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था भारत सरकार ने उनके ओनर में साल 1984 में उनके जन्मदिवस को नेशनल यूथ दे डिक्लेयर कर दिया था तब से हर साल इस दिन को नेशनल युद्ध की तरह सेलिब्रेट किया जाता है और हर साल नेशनल यूथ रेखा एक थीम होता है इस साल का थीम है चैनेलाइजिंग यूथ पावर नेशन बिल्डिंग स्वामी विवेकानंद का रियल नाम था नरेंद्र नाथ दत्ता इनका जन्म एक अमीर परिवार में हुआ था इनके फादर का नाम था विश्वनाथ दत्त जो बंगाल के एक बड़े बैरिस्टर द फिलैंथरोपिस्ट और नोवलिस्ट भी द नरेंद्र नाथ जब छोटे द तभी से स्पिरिचुअलिटी की तरफ इंटरेस्टेड द बचपन में ही ये शिवाजी राम सीता और हनुमान की मूर्तियां के सामने बैठकर मेडीटते किया करते द इनकी मेमोरी पावर इतनी स्ट्रांग थी की किसी भी चीज को देखते द तो इनको याद हो जाती थी इसी के साथ-साथ इनके रीडिंग स्पीड भी बहुत फास्ट थी दो-दो तीन-तीन बुक यह एक ही दिन में फिनिश कर दिया करते द और इनको हर तरह की बुक पढ़ने का शौक था चाहे वह फिलासफी हो रिलिजन की हो हिस्ट्री सोशल साइंस आर्ट्स या फिर लिटरेचर में भी इंटरेस्ट था बचपन से ही इन्होंने वेद उपनिषद भागवत गीता रामायण महाभारत और पुराने को पढ़ना शुरू कर दिया था और ऐसा बिल्कुल नहीं है की इनकी रुचि सिर्फ पढ़ में थी यह क्लासिकल म्यूजिक में भी ट्रेन है साथ ही साथ फिजिकल एक्सरसाइज करना कबड्डी कुश्ती और दूसरे स्पोर्ट्स में भी एक्टिव रहा करते द विलियम हसी यह कोलकाता के क्रिश्चियन कॉलेज के प्रिंसिपल द जहां से नरेंद्र नाथ ने ग्रेजुएशन किया था विलियम हसीन एक बार कहा की मैंने दुनिया घूमी है बट नरेंद्र जैसा जीनियस दूसरा कोई नहीं देखा नरेंद्र जब थोड़े बड़े हुए तो 18 साल की उम्र में उन्होंने ऑर्गेनाइजेशन ज्वाइन की जिसका नाम था नव विधान नव विधान को एस्टेब्लिश किया था केशव चंद्र सेन ने केशव चांदसेन पहले ब्रह्म समाज से जुड़े हुए द तो इस ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ने की वजह से नरेंद्र नाथ के जो बिलीव द वो इनिशियल स्टेज में ब्रह्म समाज के कॉन्सेप्ट से इन्फ्लुएंस हुए खिलाफ हो गए द बट दुनिया भर की किताबों स्क्रिप्चर्स को पढ़ने के बाद और नव विधानसभा एक ही प्रश्न होता की क्या आपने भगवान को देखा है बट कोई भी नहीं था जो उनके इस क्वेश्चन का आंसर दे सके फिर साल 1881 में नरेंद्र नाथ रामकृष्ण परमहंस से मिले पहली बार मिलते ही उन्होंने वही प्रश्न रामकृष्ण परमहंस से भी पूछा जो वो सबसे पूछते द की क्या आपने भगवान को देखा है रामकृष्ण परमहंस ने बिल्कुल सहजता के साथ इसका आंसर दिया उन्होंने कहा की मैं भगवान से बिल्कुल ऐसे ही मिलता हूं ऐसे ही बात करता हूं जैसे मैं तुमसे बात कर रहा हूं तुम्हें देख रहा हूं नरेंद्र नाथ ने ऐसा पहले कभी भी किसी के मुंह से नहीं सुना था उनकी लाइफ में यह टर्निंग पॉइंट साबित हुआ रामकृष्ण कामथ उनकी मोनेस्ट्री दक्षिणेश्वर में थी और अब इस इंसीडेंट के बाद नरेंद्र नाथ लगातार दक्षिणेश्वर जाते और रामकृष्ण परमहंस से मिलते इन दोनों के बीच में लंबे-लंबे डिस्कशन हुआ करते द स्टार्टिंग में नरेंद्र नाथ का रामकृष्ण परमहंस की कई बातों से डिसएग्रीमेंट था रामकृष्ण आइडियल वरशिप क्या करते द जबकि नरेंद्र नाथ आइडल वरशिप में बिलीव नहीं करते द क्योंकि उनके ऊपर ब्रह्म समाज का इन्फ्लुएंस था बट जो भी हो नरेंद्र नाथ की स्पिरिचुअल जर्नी की अब शुरुआत हो चुकी थी बट इसी बीच नरेंद्र नाथ के पिता विश्वनाथ दत्ता की डेथ हो गई और उनका फाइनेंशियल स्टेटस एकदम से डाउन हो गया हर तरफ से karzdaron की लाइन लग गई नरेंद्र नाथ और उनकी फैमिली बंकृप्त हो गई थी इस बात से दुखी होकर एक बार उन्होंने रामकृष्ण से कहा की क्या आप मेरी फैमिली की फाइनेंशियल वेल्डिंग के लिए मैन काली से प्री कर सकते हैं रामकृष्ण आग्रह किया की वो खुद अपने लिए करें बट जब नरेंद्र मैन काली के सामने प्री करने के लिए गए तो वो अपने लिए मैटेरियलिस्टिक चीज मांग ही नहीं पाए उन्होंने अपने लिए नॉलेज और डिवोशन की कामना की और इस इंसीडेंट के बाद नरेंद्र नाथ ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु मैन लिया और बन गए स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से उन्होंने सिखा की आम लोगों की सेवा करना भगवान की पूजा करने के बराबर है आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के जीवन का यह मंत्र बन गया हम इसी वीडियो में देखेंगे कैसे उन्होंने इस मंत्र को प्रैक्टिकल इंप्लीमेंट किया बट कुछ ही समय के बाद यानी अगस्त 1886 में रामकृष्ण परमहंस की थ्रोट कैंसर के कारण मृत्यु हो गई रामकृष्ण परमहंस जब जीवित द तो उनके जो देवोतीस और उनके एडमिरल से वो उनकी हर तरह से सपोर्ट करते द उनकी जरूरत का ख्याल रखते द बट हम रामकृष्ण परमहंस तो रहे नहीं और अब रामकृष्ण परमहंस की इच्छा अनुसार स्वामी विवेकानंद उनके डिसेबल्स के साथ दक्षिणेश्वर में रहने लगे बट रामकृष्ण परमहंस के जो देवोटी जो सपोर्टर्स द वह आप रामकृष्ण के डिस्प्ले को मदद करने में बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं द महीने अगर महीने मटका और अब स्वामी जी को अपने डिसीप्लस के साथ अपने लिए कोई नई जगह खोजने थी जहां पर रेंट थोड़ा कम हो और यह जगह मिले उन्हें वेस्ट बंगाल के 12 नगर में साल 1886 में उन्होंने 12 शहर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की 2 साल वहां रहने के बाद साल 1886 में स्वामी विवेकानंद ने मठ से निकलकर भारत भ्रमण करना शुरू कर दिया अपनी यात्रा ज्यादातर उन्होंने पैदल ही कवर की लगभग 5 साल के समय में उन्होंने पूरे भारत को एक्सटेंसिवली कवर कर लिया इस भारत भ्रमण के दौरान उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए रामकृष्ण परमहंस के स्पिरिचुअल एक्सपीरियंस से लेकर उपनिषद और भागवत गीता की टीचिंग्स भी लोगों को दी और जहां पर जरूरत थी वहां पर जीसस और बुद्ध के एग्जांपल्स भी दिए परमार्थ यानी सर्विस और व्यवहार यानी बिहेवियर के बीच के जो अंतर है उसे स्वामी विवेकानंद खत्म करना चाहते द रामकृष्ण परमहंस का भी यही कहना था की आम लोगों की सर्विस भगवान की पूजा के समान है विवेकानंद इसी कॉन्सेप्ट को एक स्टेप और आगे ले जाना चाहते द और वह चाहते द की अगर हमारे बिहेवियर में ही सर्विस का एटीट्यूड ए जाए तो इससे अच्छी बात और कोई हो ही नहीं सकती और इसके अलावा हम लोगों को यह भी लगता है की स्पिरिचुअलिटी और हमारी दे टुडे लाइव चीजें हैं स्वामी विवेकानंद ने लोगों को बताया की आप अपने जीवन में अपनी दे टुडे लाइफ में कैसे स्पिरिचुअलिटी को भी ला सकते हैं उसके लिए आपको गृहण जीवन से अलग होकर हिमालय की छोटी पर जाना या गुफाओं में जाकर रहने की जरूरत नहीं है इन चीजों को लोगों तक पहुंचाना भारत भ्रमण में स्वामी विवेकानंद का मिशन था उनका मानना ये था की हमें अपनी मातृभूमि के लिए हिंदुइज्म और इस्लाम जैसे दो महान सिस्टम को एक साथ लाना होगा क्योंकि स्वामी विवेकानंद का फॉर्म बिलीव यह था की भगवान एक है और डिफरेंट रीजंस उसी भगवान को पाने के लिए अलग-अलग रास्ते हैं स्वामी विवेकानंद यह भी मानते द की अगर हमें मोरनी स्ट्रांग बन्ना है और अपने में फेथ को मजबूत करना है तो स्पिरिचुअल नॉलेज जरूरी है बट यह स्पिरिचुअल नॉलेज अगर एक ऐसे इंसान को दी जाए जो भूख से तड़प रहा है तो यह नॉलेज उसके लिए किसी कम की नहीं है इसीलिए दो तरह की नॉलेज की बात की स्पिरिचुअल नॉलेज और ऐसी सेकुलर नॉलेज कर सके है अगर इंसान इकोनॉमिकली सही हालत में होगा तभी वह स्पेशल नॉलेज की इंपॉर्टेंस को भी समझ पाएगा 5 सालों तक भारत के अलग-अलग गांव और शहरों में स्पिरिचुअल अवेयरनेस स्प्रेड करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने विदेशों की तरफ रुख किया उन्होंने 31 मैं 1893 में अपनी यात्रा शुरू की सबसे पहले वो जापान पहुंचे उसके बाद चीन और फिर चीन से होते हुए कनाडा और फाइनली अमेरिका अमेरिका में वो 30 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंचे शिकागो में पार्लियामेंट ऑफ रिलीजियस होने वाली थी और स्वामी विवेकानंद यहां पर उसे ही अटेंड करने आए द पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन बेसिकली एक इनीशिएटिव था दुनिया के सभी रिलीजियस को एक मंच मिलने का ताकि सभी धर्म एक साथ मिलकर अच्छी चीजों और रिलिजियस लाइफ को प्रमोट कर सकें पार्लियामेंट ऑफ रिलीजियस का इस तरह का सम्मेलन आज तक सिर्फ सात बार हुआ है 1893 की पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन जिसे स्वामी विवेकानंद ने अटेंड किया था वह इस तरह का पहला इनीशिएटिव था इसी रिलिजन ऑफ पार्लियामेंट में स्वामी विवेकानंद ने अपनी स्पीच की शुरुआत जिन बर्ड्स के साथ की थी वह द मैसेज एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका यह दर्शाता है की वह हर किसी से कितना जुड़ा हुआ महसूस करते द उनके ये गोल्डन शब्द सुनते ही पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन में उपस्थित 7 हजार लोगों ने खड़े होकर स्वामी जी को दो मिनट के स्टैंडिंग ओवेशन दी थी अपनी इस स्पीच में उन्होंने स्पिरिचुअलिज्म और मैटेरियलिज्म को एक साथ लाने और उनमें एक हेल्दी बैलेंस बनाए रखने की बात की थी उन्होंने कहा की ईस्टर्न देशों का स्पिरिचुअलिज्म और वेस्टर्न देशों का मटेरियल जिसमें अगर मिल जाए तो ये मानव जाती की हैप्पीनेस के लिए सबसे बड़ी घटना होगी जॉन हेनरी बरोस जो इस पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन के प्रेसिडेंट द उन्होंने कहा की स्वामी विवेकानंद को सुनने के बाद पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन में मौजूद कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो उनसे इन्फ्लुएंस नहीं हो पाया पार्लियामेंट ऑफ रिलिजन में अपनी स्पीच देने के बाद स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्धि हर जगह फैल चुकी थी उन्होंने इसके बाद अमेरिका और लंदन में कई और जगह पर अपने लेक्चरर्स दिए और फिर वापस लौटकर इंडिया ए गए यह इंडिया वापस लौट कर आए 1897 में यहां आकर इन्होंने इंडिया में भी कई जगह पर अपने लेक्चरर्स दिए इन्होंने अपने लेक्चरर्स के जरिए भारत के युवाओं को भारत के महानता से अवगत कराया ताकि उनमें एक सेंस ऑफ प्राइड जग सके और यह बहुत जरूरी था क्योंकि कोलोनियल रूल चल रहा था और ब्रिटिश के रहते इंडिया के लोग अपने आप में हैं भावना फुल कर रहे द इन्होंने अपने लेक्चरर्स के जरिए हिंदुइज्म के डिफरेंट सेक्स को एक साथ लाने की भी कोशिश की साथ ही साथ इनकी कोशिश यह भी रहेगी वह एजुकेटेड लोगों को इस तरह से ट्रेन करें की वह वेदों में दिए गए प्रिंसिपल्स के जरिए गरीबों की मदद करें उनके दुख दर्द दूर करें साल 1897 में उन्हें रामकृष्ण मिशन की स्थापना रिलीफ एंड सोशल वर्क क्योंकि इनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने इनको रास्ता दिखाया था की आम इंसान की सेवा ही भगवान की पूजा के समान है रामकृष्ण मिशन के अंतर्गत इन्होंने देश में जगह-जगह स्कूल हॉस्पिटल्स और डिस्पेंसरीज खोली और जब भी कभी कोई नेचुरल कैलेमिटीज आती है जैसे की अर्थक्वेक फेमाइनस फ्लड्स या फिर एपिडेमिक तो ये ऑर्गेनाइजेशन आगे बढ़कर लोगों की मदद करती है रामकृष्ण मिशन आज की डेट में एक वर्ल्ड वाइड ऑर्गेनाइजेशन है 1898 में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ जो 12 नगर में था उसे शिफ्ट कर दिया एक नई जगह पर और वो नई जगह थी बेलूर बेलूर बेसिकली वेस्ट बंगाल में ही है 4 जुलाई 1902 जिस दिन स्वामी विवेकानंद की डेथ हुई उसे दिन वह और दिन से थोड़ा जल्दी उठे बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक मेडिटेशन किया अपनी डिसीप्लस को शुक्रिया था की उन्हें डिस्टर्ब ना किया जाए और रात 9:20 पर मेडीटते करते हुए उनके मृत्यु हो गई उनके डिसेबल्स मानते हैं की उन्होंने महासमुंद अटैं की है उनकी डेथ का रीजन ब्रेन के ब्लड वेसल का रूप्चर बताया गया उनके डिसेबल्स कहते हैं की ब्रेन सेल का रूप्चर दर्शाता है ओपनिंग इन डी क्राउन ऑफ़ है हेड जिसके कारण उन्होंने महासमाधि को अटेंड किया है अब हम दयानंद सरस्वती और आर्य समाज के बारे में बात करेंगे दयानंद सरस्वती इंडियन फिलोसोफर सोशल लीडर और आर्य समाज के फाउंडर द इनका जन्म 1824 में गुजरात की एक ब्राह्मण फैमिली में हुआ बचपन में इनका नाम मूल शंकर तिवारी था इनके सिस्टर और अंकल की डेथ ने इन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया की आखिर जीवन और मृत्यु है क्या और इसी की खोज में इन्होंने 21 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया और एक एसिटिक की तरफ पूरे देश में भ्रमण करते रहे परम ज्ञान की तलाश में इनका यह ब्राह्मण 15 सालों तक चला और अंत में इन्हें इनके गुरु श्री विराज आनंद मथुरा में मिले यह विरजन संधि डिसीप्ल बन गए और उनके आश्रम में रहने लगे योग का प्रशिक्षण लिया और इसी के साथ-साथ इन्होंने गुरु जी से वेदों का ज्ञान भी ग्रहण किया और इस तरह मूल शंकर तिवारी महर्षि दयानंद सरस्वती बन गए इनके गुरुदेव विरजानंद का मानना था की हिंदुइज्म अपनी हिस्टोरिकल रूट से भटक गया है और समय के साथ कई सारे रिचुअल्स और प्रैक्टिस जो हिंदुइज्म का पार्ट बन गए हैं उन्होंने हिंदुइज्म को इंपोर कर दिया है यानी दूषित कर दिया है दयानंद सरस्वती ने अपने गुरु जी को प्रॉमिस किया की वो अपना पूरा जीवन हिंदुइज्म की पुरीफिकेशन और वेदों को उनके सही जगह तक पहुंचने में लगा देंगे ऐसा कहते हुए उन्होंने गुरुजी से अगली और अपने पथ पर आगे बढ़े दयानंद सरस्वती जानते द की सिर्फ वेदों पर बी होने के कारण पाश्चात्य कल में हिंदुइज्म एक ग्लोरियस रिलिजन हुआ करता था बट समय के साथ उपनिषद पुराण सूत्रों को भी वेदों का पार्ट मैन लिया गया की उन्हें भी स्थान दिया गया जो की वेदुका है दयानंद सरस्वती ने यह साफ का दिया की यह सब पुराण उपनिषद ईटीसी वेदों का पार्ट नहीं है और हिंदुइज्म सिर्फ वेदों पर बी है और इस तरह उन्होंने आर्य और सनातन धर्म के बीच एक लाइन ड्रा कर दी उन्होंने कहा की अगर आप सिर्फ वेदों में मानते हैं तो आप आर्य अगर आप वेदों के साथ पुराण upnishadra को भी मानते हैं तो आप हुए सनातनी हिंदू ऐसा कहते हुए उन्होंने नारा दिया बैक तू वेद यह क्वालिटी हिंदू रिलिजन में वैदिक प्योरिटी को वापस से रेन स्टेट करने की उन दिनों अंग्रेज हम पर वेस्टर्न कल्चर होप रहे द और हमें बता रहे द की वैष्णो कल्चर सुपीरियर है इंडिया के लोगों और इंडियन कल्चर को बहुत ही हैं भावना से देखा जा रहा था ऐसे में बाग तू वेद की कॉल का कमल का असर हुआ इस स्लोगन ने भारत के लोगों के दिलों में प्राइड और सेल्फ कॉन्फिडेंस पैदा किया इससे लोगों को यह एहसास हुआ की हम भी एक महान सभ्यता के पार्ट है और इस तरह खासकर हिंदुओं में सेल्फ रिस्पेक्ट है और वह कॉन्फिडेंस से का सकते द की वैष्णव कल्चर की सिक्योरिटी सिर्फ एक मिथ है महाशिव दयानंद सरस्वती एक ऐसा भारत देख रहे द जो की किसी का गुलाम नहीं है जहां के लोग किसी क्लास और कास्ट में बाते नहीं है और सब के सब एक धर्म को मानते हैं जो है आर्य धर्म उन्होंने अपनी ये सोच अपनी ये विचार अपनी बुक सत्यार्थ प्रकाश में लिखे द सत्यार्थ प्रकाश का मतलब है डी ट्रुथ एक्सपोजिशन और यह बुक 1875 में पब्लिश हुई थी इस बुक में उन्होंने उसे समय के सभी इंपॉर्टेंट रिचुअल्स प्रैक्टिस और विचारधाराओं पर अपने व्यूज दिए उन्होंने आइडियल वरशिप अनटचेबिलिटी पॉलिगामी और हिंदुओं में काफी ज्यादा प्रचलित श्राद्ध की व्यवस्था जिससे हम अपने पूर्वजों को जो अभी संसार में नहीं है उनको उनका प्रिया भोजन भेज सकते हैं इस सब को बकवास बताया इसी के साथ-साथ कांच से सिस्टम और पुराने को भी मानने से माना कर दिया और कहा की कास्ट सिस्टम के फीवर में तो मैं एक दो बात सन भी सकता हूं बट ये चाइल्ड मैरिज क्या है इसको तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता इन्होंने कहा की शादी के लिए लड़कों की उम्र कम से कम 25 साल होनी चाहिए और लड़कियों की 16 साल इसके अलावा वुमेन को भी समाज में बराबरी का दर्ज दिया जाना चाहिए इंटर का मैरिज और वीडियो इमेज को बढ़ावा दिया जाए और वेदों में मेंशन chaturvanshi सिस्टम जहां पर यह कहा गया है की जाती जन्म से नहीं बल्कि इंसान के कम से तय होती है इसको दयानंद सरस्वती ने मान्य क्या और जैसा की हमने देखा की हिंदुइज्म ओरिजनली वेदों पर भेजता उसमें समय के साथ विधानसभा और पुराण आदि को भी वही जगह दे दी गई जो की veduki है और हमने यह भी देखा की 1875 के आसपास दयानंद सरस्वती जी ने बैक तू वेद की कॉल दी और कहा की जो लोग वेदों को मानते हैं वह है आर्य और जो लोग वेदों के अलावा पुराना आदि को भी मानते हैं वह है सनातनी हिंदू और इसके तुरंत बाद 1875 में ही दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना कर दी जिन लोगों पर बैक तू वेद कॉल का असर हुआ था उन्होंने तुरंत आर्य समाज को ज्वाइन कर लिया जो की पुरी तरह से वेदों पर बेच था ब्रह्म समाज की तरह आर्य समाज भी मोनोथैकस यानी सिंगल गोद की कॉन्सेप्ट को मानता है आर्य समाज का लिटिल मीनिंग है सोसाइटी ऑफ नोबल्स और आर्य समाज की सबसे पहली ब्रांच मुंबई में एस्टेब्लिश की गई बट शुरुआती समय में सबसे ज्यादा ग्रोथ आर्य समाज को पंजाब में देखने को मिला इसीलिए आर्य समाज का हेड क्वार्टर उसे समय के पंजाब के लाहौर में किया गया आर्य समाज के हर एक सदस्य को वेदों को पढ़ना और जानने का हक था चाहे वह आदमी हो या औरत या फिर किसी भी क्लास से हो हर कोई वेद पढ़ सकता था और डिस्कशन में पार्टिसिपेट कर सकता था बट आर्य समाज के हर एक मेंबर को 10 नियम फॉलो करने जरूरी थी और यह 10 के 10 नियम फॉलो करने ही होंगे इसमें कोई चॉइस नहीं है चलिए इन 10 नियमों को देखते हैं पहले तीन नियम आर्य समाज के कोड डॉक्ट्रिन को दर्शाते हैं और कहते हैं की हर एक आर्य समाज का भगवान पर अटूट विश्वास होना चाहिए वही है तू नॉलेज का प्राइमरी सोर्स और इस पूरे संसार में सिर्फ एक वही है जिसकी पूजा की जा सकती है बट पूजा मूर्ति बनाकर नहीं क्योंकि भगवान की कोई फॉर्म नहीं है इसके अलावा वेदों की dibinity और अथॉरिटी को भी कोर प्रिंसिपल्स का पार्ट बनाया गया अब इसके बाद जो नेक्स्ट 7 पॉइंट्स है वह आर्य समाज के रिफॉर्मेटिव एंबिशियस को दर्शाते हैं जिसमें कुछ गोल आर्य समाज ऐसा होल से संबंधित है और कुछ आर्य समाज मेंबर्स के लिए फॉर एग्जांपल हम देख सकते हैं की पॉइंट सिक्स आर्य समाज के प्राइम ऑब्जेक्टिव को दर्शाता है जो यह है की पूरे वर्ल्ड के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं ताकि सभी के लिए फिजिकल स्पिरिचुअल और सोशल प्रोस्पेरिटी लाई जा सके और बाकी के प्रिंसिपल्स यहां बताते हैं की इस ऑब्जेक्टिव को अचीव करने के लिए मेंबर्स को क्या करना है हमेशा रेडी रहना है टूथ को अपने के लिए और उन ट्रुथ को छोड़ने के लिए आर्य समाज के हर एक मेंबर को अपने एक्ट से पहले यह देखना है की जो वो कम करने जा रहे हैं वह धर्म अनुसार है या नहीं यानी वो जो भी करेंगे सबसे पहले इसका गहन अध्ययन करेंगे की क्या वो सही है या नहीं सबको लव और जस्टिस से ट्रीट करना है इन प्रिंसिपल्स में एक आर्य समाज को अपने इंडिविजुअल वेल्डिंग से पहले पुरी मानव जाती के वेल्डिंग के बारे में सोचने के लिए कहा गया है और कहा गया है की दूसरों का अपलिफ्ट अगर करोगे तो उसी में ही आपकी प्रोग्रेस जुड़ी हुई है इग्नरेंस हटाओ नॉलेज को प्रमोट करो हम देख सकते हैं की जितने भी नियम है वह बहुत ही सिंपल है को समझ आने वाले हैं ऊपर से दयानंद सरस्वती जैसा महान व्यक्तित्व जो पूरे देश में घूम-घूम कर इन प्रिंसिपल्स का प्रचार कर रहे द तो आर्य समाज का गुरुत्व निश्चित ही था नॉर्थ वेस्ट इंडिया और नॉर्थ इंडिया में आर्य समाज के ब्रांचेस खोल चली गई लाखों की तादाद में लोग उनसे जुड़ने लगे इन फैक्ट बहुत सारे लोग जो ब्रह्मो समाज से जुड़े हुए द वो भी ब्रह्मो समाज को छोड़कर आर्य समाज से जाम मिले हमने देखा की 1875 में आर्य समाज की पहली ब्रांच खुली थी मुंबई में और 1883 तक यानी जब तक दयानंद सरस्वती जीवित रहे इन आठ सालों में टोटल 131 ब्रांचेस ओपन हो चुकी थी जिसमें 74 ब्रांचेस जो थी वो अप में ओपन हुई थी और 35 ब्रांचेस पंजाब में आर्य समाज ने कई तरह से समाज सुधार कार्यों में अपना कंट्रीब्यूशन दिया जैसे की किसी भी क्राइसिस के समय चाहे वो फ्लड्स हो फेमाइनस हो या फिर अर्थक्वेक आर्य समाज ने हमेशा इन क्लासेस में लोगों की हेल्प की है इसके अलावा इन्होंने डीएवी स्कूल्स की चेन खोली थी जो की आज भी इंडिया के अच्छे स्कूल्स में गिनी जाते हैं यानी एजुकेशन के माध्यम से भी आर्य समाज की यह कोशिश रही है की समाज में चेंज लाया जा सके यानी स्कूल्स में इंडियन और वेस्टर्न थॉट्स दोनों को प्रमोट किया जाता है और इसी के साथ-साथ क्रिश्चियन और इस्लाम से हिंदू सोसाइटी को बचाने के लिए इन्होंने शुद्धि मूवमेंट की शुरुआत की जिसमें उन लोगों को वापस से हिंदुइज्म में कन्वर्ट किया गया जो पहले हिंदू ही द बट किसी दबाव के लालच की वजह से उन्हें इस्लाम या क्रिश्चियनिटी को अपनाना पढ़ा था और यह पॉइंट है जिसकी वजह से इस ऑर्गेनाइजेशन को एक कम्युनल ऑर्गेनाइजेशन की तरह से भी देखा जाता है जहां दयानंद सरस्वती जी के बहुत सारे फॉलोअर्स द तो उनके दुश्मन भी कम नहीं द हर एक रिलिजन की इन्होंने खुले मंचों से आलोचना की थी कई बार इन पर जानलेवा हमले भी हो चुके द और अंत में 1883 में ऐसे ही एक जानलेवा हमले में इनकी मृत्यु हो गई वह क्या की जिस घर में यह ठहरे हुए द उसी के नौकर को किसी ने पैसे देकर दूध में कांच के टुकड़े मिलवा दिए द और इस दूध को पीने के बाद दयानंद सरस्वती जी की हालत लगातार बिगड़ी चली गई और कुछ ही दिनों में उनके मृत्यु हो गई बड़े इनकी मृत्यु के बाद लाल लाजपत राय लाल हंसराज और स्वामी श्रद्धानंद के नेतृत्व में आर्य समाज तेजी से बढ़ता रहा चलिए अब बात करते हैं देव समाज की देव समाज के कनेक्शन ब्रह्म समाज से जुड़े हुए हैं जो की 1828 में एस्टेब्लिश हुआ था ब्रह्मो समाज और देव समाज के बीच का कनेक्शन बेसिकली शिवनारायण अग्निहोत्री है जिन्होंने 1873 में brahmot समाज की लाहौर ब्रांच की थी और देखते ही देखते ही ब्रह्मा समाज के इनफ्लुएंशल फिगर बन चुके द यह 187 तक ब्रह्मो समाज से जुड़े रहे और अब इनकी आईडियोलॉजी ब्रह्म समाज से मैच नहीं हो रही थी इसीलिए इन्होंने 1887 में ही देव समाज नाम की ऑर्गेनाइजेशन फाउंड की देव समाज का लिटिल मीनिंग है डिवाइन सोसाइटी और ये रिलिजियस एंड सोशल रिफॉर्म ऑर्गेनाइजेशन थी जिसने कई सारी सामाजिक बुराइयों को रिजेक्ट किया और कई सारी अच्छी चीजों को प्रमोट करने की बात की कास्ट सिस्टम चाइल्ड मैरिज और पर्दा सिस्टम जैसी प्रैक्टिसेज को देव समाज ने outerli रिजेक्ट कर दिया और वुमेन एजुकेशन वीडियो रीमैरिज और वेजेटेरिएनिज्म को इन्होंने प्रमोट किया इस ऑर्गेनाइजेशन को फाउंड करने के कुछ ही समय के बाद इन्होंने खुद को ही डिवाइन घोषित कर दिया और इस समाज के मेंबर्स को इन्हीं की पूजा करनी होती थी इन्होंने अपनी टीचिंग चार वॉल्यूम में कंपोज की जिन्हें देव शास्त्र कहा जाता है अब क्योंकि देर समाज पंजाब में एस्टेब्लिश हुआ था और आपको पता ही है की पंजाब 1875 से ही आर्य समाज का भी में सेंटर बन चुका था इन फैक्ट उनका भी हेडक्वार्टर पंजाब में ही था तो इसी के चलते दोनों सोशल रिलिजियस ऑर्गेनाइजेशन आमने सामने ए गई 188 से 1892 के बीच देश समाज और आर्य समाज के बीच एक इंटेंस पंपलेट फाइल देखने को मिली गरीब समाज इस फाइट में हमेशा हर्ता हुआ नजर आया तो यह समाज की चलिए अब बात करते हैं राधा स्वामी मोमेंट की राधा स्वामी इंडिया की वैन ऑफ डी लार्जेस्ट फेस में से एक है ये बहुत ही ज्यादा पॉप्युलर है खासकर नॉर्थ इंडिया में कहा जाता है की इंडिया के नॉर्दर्न रीजन में शायद ही कोई ऐसी लोकैलिटी हो जहां तक राधा स्वामी का नाम ना पहुंचा हो आपने राम रहीम सिंह इंसान का नाम तो सुना ही होगा जो की आजकल रोहतक की जेल में है यह डेरा सच्चा सौदा सिरसा के के है और यह जो डेरा सच्चा सौदा है यह भी राधा स्वामी मूवमेंट से ही रिलेटेड है हम देखेंगे कैसे देखो राधा स्वामी मूवमेंट के फाउंडर द शिव दयाल साहेब इन्होंने राधा स्वामी मूवमेंट की शुरुआत 1861 में आगरा में की थी इनके बाद राधा स्वामी मूवमेंट के नेक्स्ट गुरु बने बाबा जमाल सिंह उनके बाद नेक्स्ट गुरु बने सावन सिंह और सावन सिंह के समय में राधा स्वामी मूवमेंट चार पार्ट्स में स्प्लिट हो गया और इससे जो चार ग्रुप निकले उन्हें में से एक था डेरा सच्चा सौदा अब यह तो हमने देखा की राधा स्वामी मूवमेंट 1861 में शुरू हो गया था बट ये मूवमेंट क्या था इसके बिलीव्स क्या द ये जानना भी बाकी है राधा स्वामी ये वर्ड मिलकर बना है राधा और स्वामी से राधा से करती है सोल को और स्वामी का मतलब होता है मास्टर यानी राधा स्वामी का मतलब हुआ मास्टर ऑफ सोल और यही राधा स्वामी मोमेंट का ऑब्जेक्टिव है की आपको अपने सोल को मास्टर करना है यहां पर आप देख सकते हैं की राधा स्वामी की स्पेलिंग थोड़ी अलग है आमतौर पर राधा स्वामी को राधा स्वामी ही कहा जाता है राधा स्वामी मूवमेंट में सूरज शब्द योग का बहुत ही ज्यादा महत्व है यहां पर कहा जाता है की सूरज शब्द योग मुक्ति पाने का सबसे आसान तरीका है सूरज शब्द योग में आपको अपनी इन लाइट और साउंड पर मेडीटते करना होता है सूरत मतलब लाइट शाबाद मतलब साउंड यहां पर कर सिस्टम और जात-पात में नहीं माना जाता इसीलिए इस मूवमेंट से हर कास्ट के लोग जुड़े हैं इसके अलावा यहां पर यह भी कहा गया है की आपको स्पिरिचुअल अटेनमेंट के लिए संन्यास धारण करने की जरूरत नहीं है आप एक रेगुलर लाइफ जीते हुए grihst रहते हुए भी स्पिरिचुअल हो सकते हैं आपको बस राधा स्वामी के बिलीव सिस्टम का पार्ट होना है जो की छह कोर प्रिंसिपल्स पर बेस्ड है पहला गुरु यहां पर गुरु सुप्रीम है सिख रिलिजन में आपने देखा होगा की गुरु ग्रंथ साहिब यानी स्क्रिप्चर को गुरु मैन लिया गया है यहां पर ऐसा नहीं है यहां पर ये माना गया है की आपको एक लिविंग गुरु की जरूरत होती है उसके बाद भजन यानी प्रेयर्स पर जोर दिया गया है उसके बाद आता है सत्संग मतलब आपको अपनी जैसे फायरस लोगों की कंपनी चाहिए होगी और केंद्र होगा डेरा जोगी ऑर्गेनाइजेशन की तरह वर्क करेगा इसके अलावा चैरिटी और सर्विसेज को भी इन सिक्स को प्रिंसिपल्स का पार्ट बनाया गया है जहां पर आप भंडारे लग कर सकते हैं यानी बड़ी कम्युनिटी गैदरिंग्स को खाना खिला सकते हैं और यह जरूरी नहीं है की सबको भंडारे ही लगवाने हैं आप अपनी सर्विसेज भी दे सकते हैं फॉर एग्जांपल बर्तन मैन सकते हैं लोगों को खाना परोस सकते हैं तो ये थी डिटेल्स राधा स्वामी की अब हम जस्टिस मूवमेंट को समझेंगे जस्टिस मूवमेंट हमें भारत के सदन हिस्से में मद्रास प्रेसीडेंसी में देखने को मिला अगर बात करें इस मोमेंट के टाइम पीरियड की तो यह मूवमेंट हुआ था 19 सेंचुरी और अर्ली 20th सेंचुरी में इस समय मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्राह्मण पापुलेशन सिर्फ 3% थी और नॉन ब्राह्मण पापुलेशन थी 85% इसके बावजूद मद्रास प्रेसीडेंसी की ज्यादातर गवर्नमेंट जॉब्स और एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज में ब्राह्मण से ही डोमिनेट कर रहे द अगर हम इस टेबल पर नजर डालें तो हम देख सकते हैं की मद्रास प्रेसीडेंसी में 77 डिप्टी कलेक्टर ब्राह्मण द जबकि 85% पापुलेशन होने के बावजूद सिर्फ 30 डिप्टी कलेक्टर नॉन ब्राह्मण द बट यह तो बात हो गई डिप्टी कलेक्टर सब चेंज और डिस्ट्रिक्ट मुंसिफ की बट यही हाल था क्लर्कल और दूसरी लोअर पोजीशंस पर भी इसके अलावा मद्रास स्टेट लेजिसलेच्योर में नाइन ऑफिशल मेंबर्स में से आर्ट ऑफिशल मेंबर्स ब्राह्मी थी और सिर्फ इतना ही नहीं मद्रास प्रोविंस कांग्रेस कमेटी जो की इंडियन नेशनल कांग्रेस की मद्रास में रीजनल ब्रांच थी वहां भी ब्राह्मण ही डोमिनेट कर रहे द मतलब चाहे बात गवर्नमेंट जॉब्स की हो एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज की या legisletcher में रिप्रेजेंटेशन की हर जगह आप देख सकते हो की डोमिनेंट ब्राह्मण क्लास ही कर रही थी और यही कारण था की मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्राह्मण और नॉन ब्राह्मण के बीच में पॉलिटिकल सोशल और इकोनॉमिक डिवाइड काफी ज्यादा बढ़ चुका था तो इस बैकग्राउंड में नवंबर 1919 में 30 बड़े नॉन्ग्र में लीडर्स ने एक मीटिंग की और एक ऑर्गेनाइजेशन बनाई जिसका नाम था साउथ इंडियन लिबरेशन फेडरेशन यानी ऑपरेटर उसमें रिप्रेजेंटेशन की डिमांड उठाइए और अपनी डिमांड्स को वॉइस आउट करने के लिए इन्होंने जिस न्यूज़पेपर की शुरुआत की उसका नाम था जस्टिस और यह न्यूज़ पेपर लोगों में इतना ज्यादा पॉप्युलर हुआ की इस न्यूज़पेपर के नाम पर ही इस पार्टी का नाम ऐसा हिल से ज्यादा जस्टिस पार्टी कहा जाने लगा और इस मूवमेंट का नाम पद गया जस्टिस मूवमेंट जस्टिस मूवमेंट लगातार नॉन bramhance में पॉप्युलर होने लगा था और यह बात अब इंडियन नेशनल कांग्रेस को खलने लगी थी और इसीलिए कांग्रेस के अंदर जो कुछ नॉन ब्राह्मण द उन्होंने जस्टिस पार्टी को टक्कर देने के लिए मद्रास प्रेसीडेंसी एसोसिएशन फॉर्म की यानी मद्रास प्रेसीडेंसी में ये दोनों पार्टी जो नॉनवेज के डिमांड उठा रही थी और दोनों की डिमांड्स लगभग से थी और दोनों एक दूसरे के लिए कट्टर ऑर्गेनाइजेशन थी इससे क्या हुआ की जस्टिस पार्टी की जो ग्रोथ थी उसमें थोड़ी कम आई बट फिर भी चीज चलती रही चलिए जैसे इस पार्टी की टाइमलाइन पर एक नजर डालते हैं और इसका एक्चुअल नाम साउथ इंडियन लिबरेशन फेडरेशन 1920 में मद्रास प्रेसीडेंसी में जो फर्स्ट जनरल इलेक्शंस हुए तो यह पावर में ए गए और जैसा की इनसे एक्सपेक्टेड था पावर में आने के बाद इन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में कास्ट बेस रिजर्वेशन लागू कर दिया और कई एजुकेशन और रिलिजियस रिफॉर्म्स लाइन बट 1937 के मद्रास प्रेसीडेंसी के इलेक्शंस में इन्हें कांग्रेस के सामने हर का सामने करना पड़ा और उसे समय मद्रास प्रेसीडेंसी में कांग्रेस को लीड कर रहे द सी राजगोपालाचारी यानी राजा जी 1944 में जस्टिस पार्टी या कहीं की साउथ इंडियन लिबरेशन फेडरेशन का नाम बदलकर द्रविड़ का जन्म कर दिया गया इनफेक्ट उसी साल जस्टिस पार्टी को सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट भी मर्ज हुए द सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट के बारे में हम नेक्स्ट वीडियो में बात करेंगे तो जस्टिस पार्टी और सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट भी मर्ज हो गए द और अब इनका नाम हो चुका था द्रविड़ kasgam और यही वो पार्टी है जिससे आगे चलकर 1949 में डीएम की निकली डीएमके यानी द्रव्यमान अच्छा जस्ट पार्टी के बारे में जब भी हम बात करते हैं तो दो पॉइंट्स बहुत इंपॉर्टेंट है यहां पर जो हमेशा निकलते हैं पहले यह की जस्टिस पार्टी को कहने के बावजूद इन्होंने जलियांवाला मस्जिद कर को कभी भी कंडोम नहीं किया दूसरा गांधीजी से इनका हमेशा का 36 का आंकड़ा था इन्होंने नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को भी सपोर्ट नहीं किया और ना ही उसमें पार्टिसिपेट किया चलिए अब समझते हैं सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट को सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट को शुरू किया था एव रामास्वामी ने करने इन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत इंडियन नेशनल कांग्रेस से की थी इन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस 1990 में ज्वाइन की थी यह एक नॉन ब्राह्मण द और इनका मानना था की ब्राह्मणी कल रिलिजन और कल्चर ही लोअर कार्स के एक्सप्लोइटेशन के लिए जिम्मेदार है कांग्रेस में रहते हुए डिस्क्रिमिनेशन के खिलाफ लड़ना चाहते द बट इन्हें विभिन्न कांग्रेस कोई खास सपोर्ट नहीं मिला और इसी के चलते इन्होंने 1925 में ही कांग्रेस से रिजाइन कर दिया इनका मानना था की सदियों से डिस्क्राइब किए जाने के कारण नॉन ब्राह्मण ने अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट कोसी दी है और अगर इसी तरह उनके अंदर सेल्फ रिस्पेक्ट वापस से डिस्क्रिमिनेशन अपने आप खत्म हो जाएगा और इसीलिए इन्होंने कांग्रेस को छोड़ने के तुरंत बाद सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट की शुरुआत की एव रामास्वामी नहीं करने सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट 1925 में शुरू किया था एक्चुअली सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट शुरू करने का आइडिया इन्हें तमिल लिटरेचर से आया था जहां पर सेल्फ रिस्पेक्ट पर काफी जोर दिया गया है इस सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट के थ्रू इन्होंने ब्राह्मणी कल रिलिजन और कल्चर को पुरी तरह से रिजेक्ट कर दिया और नॉनवेज के अंदर सेल्फ प्राइड जगाने के लिए उन्हें उनके द्रविडियन पास से अवगत कराया गया इसका मतलब नॉनवेज को यह रिलाइज करवाया गया की आप भी एक महान सभ्यता को बिलॉन्ग करते हो ब्राह्मण को ही आपसे सुप्रिया नहीं है तो आईबी रामास्वामी अब भगवान बन चुकी थी इनके फॉलोअर्स ने इन्हें परियार का टाइटल दिया पर यार का मतलब होता है डी ग्रेट मैन सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट के दौरान इन्होंने जस्ट न्यूज़पेपर को शुरू किया उसका नाम है कुड़ी आंसू यह तमिल लैंग्वेज न्यूज़पेपर था इसके अलावा ब्राह्मण की सुपीरियर को खत्म करने के लिए इन्होंने सेल्फ रिस्पेक्ट वेडिंग की शुरुआत की जहां पर शादिया बिना ब्राह्मण प्लीज के संपन्न की गई यह एक बहुत ही बड़ा कदम था क्योंकि बिना पंडित जी की शादी आज भी सोच पाना काफी कठिन है सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट निश्चित ही मद्रास प्रेसीडेंसी के नॉन रैम्स के दिनों में सेल्फ रिस्पेक्ट जगाने में कामयाब रहा बाद में पेरियार ने भी जस्ट इस पार्टी को ज्वाइन कर लिया और सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट भी जस्टिस पार्टी में ही मर्ज हो गया और फिर 1944 में ही जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर दिया गया इसको फॉलो कीजिए लिंक आपको डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा थैंक यू