कि नमस्कार दोस्तों कि आप इमेजन कर सकते हो यह धरती जिस पर हम सभी इंसानों ने जन्म लिया है यह धरती जो घर है अंगिनत प्रकार के जीवों का यही धरती आज से 400 करोड़ साल पहले एक उबलता हुआ लावे का बोला था एक ऐसा गोला जिस पर जिन्दगी का कोई नाम और निशान तक नहीं था। ऐसे में जाहिर सी बात है सवाल उठता है, आखर ये लावेगा गोला हमारी आज की पृत्वी में कैसे बदल गया। ये सारा पानी कहां से आया, हमारे चांद यानि मून की फॉर्मेशन कैसे होगी। हमारे सूर्य और सोलर सिस्टम के जन्म से। आज के इस वीडियो में। आज से करीब 4.6 बिलियन एर्स पहले, यानी 460 करोड साल पहले की बात है। हमारा सोलर सिस्टम एग्जिस्ट नहीं करता था। इसकी जगह था तो सिरफ अंदकार, गहरी शांत और खाली स्पेस। इस स्पेस में घूम रहा था धूल और गैस से भरा हुआ एक बादल। इस बादल को हमने सोलर नेबुला का नाम दिया है। इसमें कई प्रकार की गैसेज मौजूद थी लेकिन मोस्ली हाइड्रोजिन और हीलियम सबसे ज्यादा मात्रा में पाई जाती है। ये बादल शांती से करोडो अर्बो सालों से अंतरिक्ष के अंधिरे में घूम रहा था कि अचानक से एक दिन एक बड़ा धमाका होता है। ये धमाका इस बादल के अंदर नहीं होता, बलकि इसके बगल में होता है। इसके पास मौझूद एक dying star explode कर जाता है इस explosion को हम supernova बुलाते हैं और अक्सर ये उन stars के साथ होता है जो अपनी life के end तक पहुँच चुके हैं इस धमाके की shock waves हमारे solar nebula पर पड़ती हैं और इसके चलते gravitational instability आ जाती है इस बादल की कुछ areas में gas और dust compress करने लगता है धीरे ये पूरा nebula अंदर की ओर सिकुडने लगता है और जो gas और धूल थी वो घूमने लग जाती है गोल घूमने लग जाती है एक rotating disc के रूप में इस flat rotating disk को हम proto-planetary disk का नाम देते हैं proto का मतलब है पहले, planets के आने से पहले की disk स्क्रीन पर दिखाएगा इस animation में आप देख सकते हैं कि ये disk कैसी दिखती होगी क्यूंकि ये disk चप्टी हुई है, flat है इससे हमें ये भी समझ में आता है कि हमारा solar system एक flat solar system क्यूं है हमारे solar system के सारे planets जब सूरज के अराउंड गोल-गोल चक्कर लगाते हैं वो almost एक ही plane में रहते हैं ऐसा नहीं है कि किसी प्लानेट का ओर्बिट ज्यादा उपर नीचे हो एक दूसरे से। अब इस प्रोटो प्लानेटरी डिस्क के बीचों बीच, प्रेशर और टेंपरेचर दोनों बढ़ते रहते हैं, जिसके चलते एक प्रोटो स्टार का जन्म होता है। कि स्टार के बनने से पहले जो चीज एक्सिस्ट करती थी। यह इतना ज्यादा concentrated हो गया बीच में, कि nuclear fusion का reaction होने लगा। हाइड्रोजन गैस का फ्यूजन रियाक्शन, जो लगभग 15 मिलियन डिग्री सेल्शियस पर होता है, इस रियाक्शन में हाइड्रोजन हीलियम में बदल जाता है, इसी फ्यूजन रियाक्शन की वज़े से, हमारे सूरज का जन्म होता है, जिसकी वज़े से धूप, गर्मी और रोशनी हमें मिलती है दर्दी पर, उस वक्त 4.6 बिलियन यर्स पहले, सारा सूरज में जाकर इखट्टा हो रहा था। यही कारण है कि आज के दिन भी हमारे पूरे सोलर सिस्टम का टोटल मास का लगभग 99.8% सिरफ सूरज में मौजूद है। और बाकी जो 0.2% है वो बेकार नहीं गया। उसी 0.2% से बनते हैं 8 प्लानेट्स, सेकडो मून्स, हजारो कॉमेट्स और लाखो एस्ट्रोइट्स हमारे सोलर सिस्टम में। ये चीज भी बड़ी इंटरेस्टिंग है। जो गूमती होई प्रोटो प्लानेटरी डिस्क थी, उसके अंदर छोटे-छोटे धूल के पार्टिकल्स, आपस में तकराने लगे और चिपकने लगे एक दूसरे से। यानि कि प्लानेट्स का बहुत छोटा, टाइनी वर्जन। जब ये प्लानेट एसिमल्स ग्राविटी के प्रभाव से इखटे होने लगे, और साइज और मास में लगभग हमारे चांद जितने बड़े हो गए, तो हम इन्हें प्रोटो प्लानेट्स करके पुकारने लगे। इसे हम अकरिशन कहते हैं। The coming together and cohesion of matter under the influence of gravitation to form larger bodies. Materials के accumulation से larger bodies का निर्मान होगा। Accretion के इस process को Soviet Union के astronomer Victor Safranov ने साल 1969 में पहली बार दुनिया के सामने रखा था। लेकिन शुरुवात में उनको किसी ने seriously नहीं लिया। ये सिर्फ 1984 में जाकर ही था कि जब Safranov के काम को पढ़ा जाने लगा और उनके ideas को scientific community द्वारा अपनाया जाने लगा। आज के दिन एक्रिशन का एक प्रोसेस, साइंटेश्ट पूरे भ्रमान में बार-बार देख चुके हैं, होते हुए टेलिस्कोप्स के जरिये. एस्ट्रोनोमर्स ने बाकी सोलर नेबिलाज में यह चीज होते हुए देखी है, इसी प्रोसेस का एक और सबूत हमें मेटियोराइट्स में भी देखने को मिलता है। जो मेटियोर्स धर्ती पर आकर गिरते हैं, साइंटेस्ट जब उन्हें स्टडी करते हैं और देखते हैं कि उनके अंदर कौन-कौन से मेटियोर्स मौजूद हैं। वैसे एक interesting fact यहाँ पर यह भी है कि हमारी पृत्वी पर पाया जाने वाला uranium हमारे solar system से भी पुराना है। इसे 6 billion years पुराना माना जाता है। इसका मतलब यह किसी supernova में बना था। यही सारा measurements का data collect करके धूल और planet isimals के collisions के कुछ simulations scientists बना पाते हैं। और उन simulations से हम estimate कर पाते हैं कि यह protoplanets बनने में tens of millions of years का समय लगा होगा। अब हमारी धर्ती की बात करें तो यह चोटे protoplanets और planet isimals थे। इनके बीच अकसर तकराव होते रहते थे और ये तकराव कोई छोटे नहीं थे बहुत जबरदस एनरजी निकलती थी इनमें इतनी गर्मी पैदा होती थी कि चट्टाने पिघल जाती थी और इनके उपर लावा के समुद्र बन जाते थे पर ऐसे ही कुछ तक्रावों के बाद जन्म हुआ हमारी धक्ती का ओवर मिलियन्स अब येर्स ग्राविडी पूल्स थीस रॉक्स टुगेदर टु फॉर्म ये एर्थ वन अब एट लीस्ट आ हंडर प्लानेट्स अप सिर्कलिंग दिसाद यह जो समय था जहां पर कॉंस्टेंटली बंबारी चलती रहती थी हमारी धर्ती से आकर छोटे प्रोटो प्लानेट्स तकराते तो और हेडन जो नाम है ये अंडरवर्ल्ड के ग्रीक गॉड हेडीस से आया है। इस नाम को रखने के पीछे क्या कारण था आप समझ सकते हो। उस वक्त नर्क जैसी हालत थी धर्ती पर। इस समय 4.6 बिलियन येर्स पहले से लेकर 4 बिलियन येर्स पहले तक चला। तो जो भी चटानी उस वक्त धर्ती पर हुआ करती होंगी वो सब पिघल जाती थी। और सबकी सब लावा में बनती रहती थी। दपती रहती थी। लेकिन अब कमाल की बात देखो दोस्तों। यही नर्क जैसा समय, कारण था जिसकी वज़े से धर्ती पर पानी आया। कुछ कॉमेट्स और एस्ट्रोइट्स जो धर्ती से टकराते थे, जब इस एयोन यूग से सम्मंदित माइकरोस्कोपिक क्रिस्टल्स के भीतर फसे हुए मिनरल्स की अनालिसिस करी, तो पता चला कि पृत्वी पर भी लिक्विड वोटर मौजूद है। लेकिन ज्यादातर जो पानी की मात्रा बढ़ रही थी, तो पानी भाप बन कर हवा में चला जाता था, और समय पर बरसने लगता था वापस धर्ती पर। लगभग एक समान रूप की लावा की लेयर बन गई थी धर्ती के रहा हूँ। इसे ग्राविटी ने साथ में बांध कर रखा था। और इसके बाद शुरू हुआ सिल्सिला डिफरेंचियेशन था। आपके मन में शायद फिर से ये सवाल आये, कि हमें ये कैसे बता चला कि उस समय पर सही में ये सब हुआ था। बाकी प्लानेट्स के कॉंपोजिशन को देखना और समझना कि रीसेंट हिस्ट्री में वो कैसे दिखते थे और कैसे डेवलब किये। और तीसरा हो गया कंप्यूटर सिमिलेशन्स रन करना। जो गैसिस और एलिमेंट्स उस समय में मौजूद हैं, उन सब का डेटा कंप्यूटर में इंपूट करना और मॉडल के थ्र� मदद से हम अपने प्लानेट की हिस्ट्री बेहतर समझ पाए हैं। इसका इस्तिमाल अल्मोस्ट हरेक इंडस्ट्री में किया जाता है। आटोमोबील, फाइनांस, मीडिया, हेल्थकेर। scalar.com एक सलूशन ओफर करते हैं। स्केलर ने अब तक 15,000 learners के career transformation में help की है और आप उन students की success stories इस section में देख सकते हो और 100 से भी ज्यादा capstone projects का access मिलता है जो आपको industry ready बनाने में help करेंगे स्केलर ने Google, Meta, Flipkart, Amazon, Miantra जैसी 900 से ज्यादा companies के साथ placement partnership की है जिसके थूँ वो अपने learners को placement assist provide करते हैं इनका एक easy EMI option भी है दो साल के लिए 0% interest के साथ तो अगर आपको लगता है कि स्केलर आपके करियर को बूस्ट करने में आपकी मदद कर सकता है, तो इनकी वेबसाइट का लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा। क्रस्ट, मैंटल और कोर। प्रिकिन सही माइनों में जो तीन लेयर का सेपरेशन है, ये इसके अगले काल में ही देखने को मिलता है। आर्कियन शब्द आता है ग्रीक वर्ड आर्के से, जिसका मतलब होता है बिगिनिंग। तो इस यूक से बेसिकली हम कंसिडर करते हैं, ये समय 4 बिलियन एर्स पहले से लेकर, 2.5 बिलियन एर्स पहले तक चला। जो भारी elements थे, जैसे कि iron और nickel, जो बाकी elements के comparison में ज्यादा dense थे, वो धीरे-धीरे इस magma के अंदर flow करके, धरती के center की ओर खिचने लगे, ठीक उसी तरीके से जैसे पानी रेत में से अपना रास्ता बनाता है, इसके बीचे simple कारण था gravitation का force, जो भारी elements है, iron और nickel, और जो हलके elements है, सिलिकॉन, ओक्सिजिन, एल्यूमिनियम, सोडियम, पोटाशियम ये अलग-अलग एलिमेंट्स का उपर और नीचे जाना समय के साथ बहुत ज़्यादा बढ़ता गया और धीरे-धीरे धरती के सेंटर में धरती का कोर बनने लगा जब ये आइरन और निकल इखटे फ्यूज होने लगे हम सब जानते हैं कि धरती का कोर सबसे गरम कॉंपोनेंट है धरती का यहाँ का तापपान 6000 डिग्री सेल्शियस तक पहुँच जाता है कि वो इस temperature पर melt नहीं होता। बलकि ये iron और nickel solid form में धर्ती के core में मौजूद है। आज के दिन भी ऐसा ही है। और ये temperature इतना ज्यादा होने के पीछे कारण, सिरफ ज्यादा pressure और gravitational force नहीं है। एक और कारण है, mantle layer में हो रहा constant radioactive decay। uranium, thorium और potassium जैसे elements mantle की layer में मौजूद है, जिनका constantly radioactive decay हो रहा है, और ये पृथ्वी की गर्मी का एक बड़ा main source है। मैंटल जो है ये सबसे मोटी लेयर है 3000 किलोमेटर से ज्यादा मोटी है आज के दिन ये लेयर सॉलिड है लेकिन उस समय ये लेयर सॉलिड नहीं होती थी यहां मैगमा होता था यहां हलके एलिमेंट्स जब धीरे उपर आ रहे थे तो उनके थंडे होने से जो अलग-अलग प्रकार के पत्थर आज के दिन क्रस्ट पर पाए जाते हैं। ग्रेनाइट, बेजल्ट। क्रस्ट की गहरी लेयर्स में पाए जाने वाली मेटमॉर्फिक रॉक्स, जैसे कि मार्बल या स्लेट। एक बड़ा क्लियर कट ट्रांजिशन दिखता है, इसके अलावा उपरी लेयर्स में सेडिमेंटरी रॉक्स होती हैं, जैसे कि सैंड स्टोन, यह वो पत्थर जो वेधरिंग की वज़े से कॉंस्टेंटली तूटते रहे और नए बनते रहे, जब इन पर धूप, हवा, पानी और बर्फ पड़ी तो, कि लाखों करोडों सालों तक यह डिफरेंशियेशन का प्रोसेस चला, हम छोटी क्लासेज में अक्सर बच्चों को पढ़ाते हैं, कि ये differentiation सिरफ crushed mantle और core की है, लेकिन actually में इसमें बहुत सारी differentiation करी जा सकती हैं.
स्कूल के बाद अगर आप कभी geology और detail में जाकर पढ़ोगे, तो आपको पता लगेगा कि actually तीन नहीं, इनकी physical properties को देखकर. ये layers हैं, लीथोस्फेर, एस्थेनोस्फेर, आउटर कोर और इनर कोर. oceanic और continental, ओशन्स के ऊपर मौजूद है और जो क्रस्ट कॉंटिनेंट्स पर मौजूद है, इनमें भी अपने आप में बहुत बड़ा फर्क है। समुद्रों पे जो क्रस्ट की लेयर है वो काफी पतली है, एवरेज मोटाई लगभग 100 किलोमेटर ही है। वहाँ पर बोलकेनोस देखने को मिलते हैं। इसके नीचे जो एस्थेनोस्फेर की लेयर है, वो रिजिड नहीं है, वो constantly move करती रहती है, एक lubricant की तरह बनती है, एस्थेनो का मतलब होता है ग्रीक में कमजोर, और ये वाली लेयर unlike लीथोस्फेर, continuous है, इसमें कोई तुकडे नहीं है, average मोटाई लगभग 140 किलो मेटर की, इसके नीचे आते lower mantle के उपरी भाग में एक transition zone देखने को मिलती है, जहां चटाने अधिक से अधिक dense हो जाती है, ऐसी चटानों के कुछ उधारन देखिए, olive vine, peridotite, ringwoodite, ये high pressure minerals मैंटल के अंदर बनते हैं और जैसा आप देख सकते हो ये दिखने में बहुत ही सुन्दर लगते हैं। आप सोचोगे अगर ये minerals मैंटल के अंदर मिलते हैं तो हम बाहर निकाल के ने कैसे देख पाते हैं। Actually मैं हम इने बाहर नहीं निकालते, nature, धर्ती बाहर निकालती है। कई बार ये ऐसी volcanic eruptions होती हैं जहाँ पर volcano से निकलने वाला magma मैंटल से आता है और अपने साथ ये high pressure minerals लेकर आता है। दूसरा कई बारी क्या होता है, जब मीटीरोइट्स धर्ती पर आकर टकराते हैं, तो वो इतने स्पीड से उनका टकराव होता है, कि उस प्रेशर से भी ये मिनिरल्स कई बारी बन जाते हैं. अब इससे अंदर कोर की लेय��� पर आये, तो वहाँ जो आउटर कोर की लेयर है, वहाँ गर्मी के कारण आयरन चर्न करते रहता है, ये magnetic field एक बहुत बड़ा कारण है जिसकी वज़े से धर्ती पर life sustain कर पाती है। क्योंकि इसी magnetic field की वज़े से सूरत से आने वाले बहुत ही हानिकारक charged particles हम पर नहीं गिर पाते हैं। Solar wind से हमें protection मिलती है और एक atmosphere बनी रह पाती है। Outer core और inner core की layer में सबसे बड़ा difference यही है कि outer core जो है वो liquid है और inner core solid है। लेकिन यहाँ एक interesting fact जैसे ऐसे outer core का liquid थंडा हो रहा है। वो धीरे सॉलिड में कन्वर्ट हो रहा है और इनर कोर की लेयर इसी कारण से हर साल लगबग एक मिलीमीटर बढ़ती रहती है अब इस पूरी कहानी में एक सवाल यह आता है कि चांद कहां से आ गया है धर्ती ने तो जन्म ले लिया लेकिन मून कहां से आया धर्ती के पास इसका जवाब भी दोस्तो हेडियन इयोन में ही छुपा है एक थी कैप्चर थियोरी कि ये एक ऐसा प्लैरेटरी ओब्जेक्ट था जो धर्ती के नज़दीक आया और धर्ती के ग्राविटेशन फोर्स ने इसे कैप्चर कर लिया। इसे कैप्चर थियोरी कहते हैं। दूसरी एक थियोरी है कोफॉर्मेशन थियोरी, कि चांद और पृत्वी एक ही साथ फॉर्म होई थे। कि धर्ती से ही तूट कर एक हिस्सा चांद बन गया। एक और प्लानेट आकर टकराया था। और इस टकराव की वज़े से चांद की फॉर्मेशन हुई। इसे कहा जाता है जाइंट इंपैक्ट हाइपोथेसिस। इसके अनुसार लगभग 4.5 बिलियन इयर्स पहले, जब अर्थ की फॉर्मेशन हो ही रही थी, तब एक और प्रोटो प्लानेट एक्जिस्ट करता था। ये करीब मार्स के साइज का प्लानेट था। सोलर सिस्टम फॉर्म होने के करीब 100 मिलियन साल बाद, इस वक्त धर्ती सिर्फ एक लावा की गेन थी, ये वाला प्लानेट भी वही था, तो इस टक्राफ से होता क्या है, दोनों प्लानेट का कोर एक दूसरे में अब्जॉर्ब हो जाता है, इसी बीच एक बड़ा तुकड़ा तूट कर बाहर निकल जाता है, जो चांद बनता है, उसका करीब 30% मास हमारे आइरन रिच कोर का है, ये सिर्फ 1.6 to 1.8% ही है, जियादातर जो मेटल्स थे उस दूसरे प्लैनेट में, वो अच्छली में आज धर्ती पे ही मिल गए हैं और धर्ती का ही हिस्सा बन गए हैं। और चांद जो है, वो इस टक्राफ के मलवे से निकला है। यहां भी आप सोचोगे, लेकिन ये सब हमें पता कैसे चल पाया। चांद के मैंटल से जो सैंपल्स मिले, वो धरती पर पाए जाने वाली बेसॉल्टिक रॉक्स से काफी सिमिलर थे। चांद पर पाए जाने वाले पथरों में जो ओक्सिजिन, आईसोटोप्स और बाकी एलिमेंट्स थे, वो पृत्वी की चट्टानों में मिल रहे हैं, ओक्सिजिन और बाकी एलिमेंट्स से भी बहुत मिलते जुड़ते थे। उनमें फिजन थियोरी सबसे करीब पहुँची थी। चांद असल में धर्ती का ही हिस्सा था, जब एक और प्लानेट इससे आकर बहुत ही भयानक तरीके से टक्राया। स्क्रीन पर आप देख सकते हैं इसी चीज पर कम्प्यूटर द्वारा बनाया गया एक simulation लेकिन कमाल की बात पता है क्या है अगर ये टक्राव नहीं होता तो आज हम यहां जिंदा भी नहीं होते क्योंकि इसी टक्राव की वज़े से धर्ती के axis पर एक बहुत बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा हमें 23.5 डिग्रीज का rotational tilt देखने को मिला इसकी बज़े से बिना इस rotational tilt के हमें गर्मी से सर्दी हैं क्लाइमेटिक variations इतनी ज्यादा हो जाती कि life को adapt कर पाना बहुत मुश्किल होता दूसरा बिना चांद के हमें टाइट्स नहीं देखने को मिलते हैं। लोटाइट, हाइटाइट ये जो वेरियेशन्स आती हैं। इनी वेरियेशन्स की वज़ेश से, लिविंग औरगेनिजम्स पानी से जमीन पर आ पायें। यह वास्तव में गैसिस का बहुत ही खराब मिशरेंड है, क्योंकि इसमें ओक्सिजन की बहुत कमी है। लेकिन समय के साथ साथ, जैसे ऐसे पृत्वी धीरे थंडी होती गई, वाटर वेपर ने कंडेंस करना शुरू कर दिया। और लाखों करोडों साल बाद जाकर, हमें सरफिस पर विशाल महासागर देखने को मिला। भारी संख्या में मौजूद इस लिक्विड वाटर ने एक बहुत-बहुत महत्तपूर काम किया हमारे जीवन के लिए। इसने हमारी एट्मॉस्फेर से ज्यादतर कार्बन डायोक्साइड और हीट को एब्जॉर्व कर दिया। इसी की वज़े से धर्ती के सर्फिस पर टेंपरेचर्स इतने प्लेजेंट बन पाए, ओक्सिजन की मात्रा बढ़ने लगी। बहुत से लोगों लगता है कि यहाँ पर main contribution जंगलों का और पेडों का होता है लेकिन ऐसा नहीं है, असली में यह काम समुदर कर रहा है लेकिन unfortunate चीज यह है कि धिरे समुदर की capacity full होती जा रही है यह अपने आप में एक बहुत interesting topic है जिस पर एक separate video बन सकता है अभी के लिए इस video को इस point पर end करना चाहूँगा कि जितने भी events मैंने आपको बताये यह सब preconditions थी अगर यह चीजें ऐसे ना होती तो शायद life को कभी मौका नहीं मिल पाता उभर कर आने का धरती का सूरच से एक सही distance पर होना, ना ज्यादा दूर, ना ज्यादा पास.
धरती का size सही proportion का होना, ना ज्यादा बड़ा, ना ज्यादा छोटा, ताकि gravitational pull सही हो, सही तरीके के elements को atmosphere में रखने के लिए. Exactly वही gases को atmosphere में रखने के लिए, जो हम चाहते हैं. तीसरा, धरती के core में exactly सही amount की magnetic field होना, एक ऐसी magnetic field जो हमें सूरच की खतरनाक gamma rays और x-rays से बचा कर रखें.
चौथा, सही मातरा में volcanic eruptions होना, जिससे कि एक सही amount का greenhouse effect देखने को मिल सकता है. अगर greenhouse effect ज्यादा extreme हो जाता है, तो ज्यादा carbon dioxide देखने को मिलेगी, oxygen नहीं होगी, और वही हालत होगी, जो Venus planet पर होती है. लेकिन अगर greenhouse effect कम होता है, एक strong atmosphere ना maintain कर पाना, और sufficient amount में liquid water ना होना.
कि जो भी कुछ हुआ है वो बहुत ही अद्बूद है और इसलिए इस अद्बूद प्लानेट को बचाय रखना हम सब का कर्तव्य होना चाहिए इतनी सारी अलग-अलग सही चीजों का एक साथ हो पाना इतना रेर है नहीं दूँब पाए हैं स्केलर का लिंक नीचे डिस्क्रिप्षिन में मिल जाएगा अगर ये वीडियो पसंद आया दोस्तों तो ये वाला भी जरूर पसंद आयेगा जिसमें मैंने बात करी है धरती पर एविलूशन आखिर इंसानों का एविलूशन कैसे हुआ हम कौन से जानवरों से न