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बंगाल विभाजन का प्रभाव और कारण

Apr 28, 2025

बंगाल विभाजन का परिचय

  • 1903 में योजना: लॉर्ड कर्जन द्वारा बनाई गई।
  • 1905 में लागू: ढाका, चिटगाँव और मयमसिंह को असम के साथ मिलाकर नया प्रांत 'ईस्ट बंगाल' बनाया गया।

बंगाल विभाजन के कारण

1. प्रशासनिक समस्या

  • घनी आबादी: बंगाल में 85 मिलियन लोग थे, जिससे प्रशासन में कठिनाई हो रही थी।
  • उपयोगिता: दो प्रांत बनाने से प्रशासनिक कार्य में आसानी होगी।

2. मुस्लिमों को राहत देना

  • 1857 के बाद संबंध सुधरना: सर सैयद अहमद खान के प्रयासों से ब्रिटिश और मुस्लिम संबंध सुधारने की कोशिश।
  • ईस्ट बंगाल: मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र, जिससे उन्हें प्रशासनिक नियंत्रण मिला।

3. हिंदू शक्ति को तोड़ना

  • ब्रिटिश डर: हिंदू बंगाल पर नियंत्रण कर ब्रिटिश को बाहर कर सकते हैं।
  • बंगाल का विभाजन: हिंदू और मुस्लिम के बीच शक्ति संतुलन बनाने के लिए।

4. विकास में समानता

  • वेस्ट बंगाल अधिक विकसित: ईस्ट बंगाल की आय का उपयोग वेस्ट बंगाल के विकास में।
  • उचित विकास: दोनों क्षेत्रों का समान विकास सुनिश्चित करने के लिए विभाजन।

5. सांस्कृतिक और भाषाई अंतर

  • मल्टीकल्चरल समस्याएं: विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं की समस्याओं से निपटने के लिए विभाजन।

बंगाल विभाजन के परिणाम

  • मुस्लिमों की संतुष्टि: विभाजन से मुस्लिम समुदाय खुश।
  • हिंदू असंतोष: हिंदू समुदाय ने विरोध किया, जिसमें चरमपंथी और लिबरल्स दोनों शामिल थे।
  • स्वदेशी आंदोलन: ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार, जिससे ब्रिटिश को आर्थिक नुकसान हुआ।

ब्रिटिश प्रतिक्रिया

  • प्रेस एक्ट 1908: मीडिया पर नियंत्रण और विरोध को दबाने की कोशिश।
  • जनसभा प्रतिबंध: विरोध सभाओं पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • मॉर्ली-मिंटो सुधार: हिंदुओं को शांत करने के लिए राजनीतिक सुधारों की घोषणा।

बंगाल विभाजन का रिवर्सल

  • 1911 में रिवर्सल: हिंदू विरोध, स्वदेशी आंदोलन और लॉर्ड मिंटो पर हमले के कारण विभाजन रद्द।
  • ब्रिटिश व्यापार पर असर: व्यापारिक नुकसान के चलते ब्रिटिश ने विभाजन को रद्द किया।

सफलता और विफलता

  • सफलता: विभाजन के कारण ब्रिटिश के लिए कुछ प्रशासनिक लाभ।
  • विफलता: हिंदू विरोध और आर्थिक नुकसान के चलते विभाजन का रिवर्सल।

अंततः, बंगाल विभाजन का रिवर्सल हिंदू बहुसंख्यक को संतुष्ट करने के लिए महत्वपूर्ण था।