बंगाल विभाजन का परिचय
- 1903 में योजना: लॉर्ड कर्जन द्वारा बनाई गई।
- 1905 में लागू: ढाका, चिटगाँव और मयमसिंह को असम के साथ मिलाकर नया प्रांत 'ईस्ट बंगाल' बनाया गया।
बंगाल विभाजन के कारण
1. प्रशासनिक समस्या
- घनी आबादी: बंगाल में 85 मिलियन लोग थे, जिससे प्रशासन में कठिनाई हो रही थी।
- उपयोगिता: दो प्रांत बनाने से प्रशासनिक कार्य में आसानी होगी।
2. मुस्लिमों को राहत देना
- 1857 के बाद संबंध सुधरना: सर सैयद अहमद खान के प्रयासों से ब्रिटिश और मुस्लिम संबंध सुधारने की कोशिश।
- ईस्ट बंगाल: मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र, जिससे उन्हें प्रशासनिक नियंत्रण मिला।
3. हिंदू शक्ति को तोड़ना
- ब्रिटिश डर: हिंदू बंगाल पर नियंत्रण कर ब्रिटिश को बाहर कर सकते हैं।
- बंगाल का विभाजन: हिंदू और मुस्लिम के बीच शक्ति संतुलन बनाने के लिए।
4. विकास में समानता
- वेस्ट बंगाल अधिक विकसित: ईस्ट बंगाल की आय का उपयोग वेस्ट बंगाल के विकास में।
- उचित विकास: दोनों क्षेत्रों का समान विकास सुनिश्चित करने के लिए विभाजन।
5. सांस्कृतिक और भाषाई अंतर
- मल्टीकल्चरल समस्याएं: विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं की समस्याओं से निपटने के लिए विभाजन।
बंगाल विभाजन के परिणाम
- मुस्लिमों की संतुष्टि: विभाजन से मुस्लिम समुदाय खुश।
- हिंदू असंतोष: हिंदू समु दाय ने विरोध किया, जिसमें चरमपंथी और लिबरल्स दोनों शामिल थे।
- स्वदेशी आंदोलन: ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार, जिससे ब्रिटिश को आर्थिक नुकसान हुआ।
ब्रिटिश प्रतिक्रिया
- प्रेस एक्ट 1908: मीडिया पर नियंत्रण और विरोध को दबाने की कोशिश।
- जनसभा प्रतिबंध: विरोध सभाओं पर प्रतिबंध लगाया गया।
- मॉर्ली-मिंटो सुधार: हिंदुओं को शांत करने के लिए राजनीतिक सुधारों की घोषणा।
बंगाल विभाजन का रिवर्सल
- 1911 में रिवर्सल: हिंदू विरोध, स्वदेशी आंदोलन और लॉर्ड मिंटो पर हमले के कारण विभाजन रद्द।
- ब्रिटिश व्यापार पर असर: व्यापारिक नुकसान के चलते ब्रिटिश ने विभाजन को रद्द किया।
सफलता और विफलता
- सफलता: विभाजन के कारण ब्रिटिश के लिए कुछ प्रशासनिक लाभ।
- विफलता: हिंदू विरोध और आर्थिक नुकसान के चलते विभाजन का रिवर्सल।
अंततः, बंगाल विभाजन का रिवर्सल हिंदू बहुसंख्यक को संतुष्ट करने के लिए महत्वपूर्ण था।