देखना जब तुम अब देखो पहचान बता रहे कि भगवान के सन्मुख हो जब तुम प्रभु के सन्मुख होगे तो तुम देखना तुम्हारा उत्साह बढ़ेगा कभी-कभी सत्संग में कहते कि अब उस आनंद की उगन को कैसे बताए ऐसा समझ लो जैसे किसी का ब्याह तय हो गया हो संसारी पुरुष का उसके मनोनुकूल पत्नी मिल गए हो तना फूला फुला घूम या मां के इकलौते बेटे का ब्याह हो फिर कैसे फूली फूली सबका स्वागत आनंद अब यह कहां परमानंद में प्रभु से उदाहरण बैठेगा पर वो तो अद्वितीय है अचिंत है ऐसे ही चंद्र शाखा न्याय जैसा कि डाल के एक हाथ ऊपर देखो चंद्रमा दिखाई दे रहा है अद्भुत फूलन अद्भुत उत्साह जिस समय भगवत सन्मुख हो ग ना एक ऐसी उन्मत एक ऐसे आनंद की की उमन उसके लिए ललचा हो जो तुम खोज रहे हो इधर नहीं है वो इधर है परमानंद विज्ञानानंद क्या क्या भगवान के उस आनंद को महापुरुषों ने सजा करके बहुत सुख में परमानंद में निश्चित निश्चित हम कई बार कहा है कि अगर इस ऐसा कुछ होता तो हम कह जरूर देते भले हमारी कमी होती कि हमारी कमी कारण पर हम कह देते परस सच्ची कहते हैं व उसी आनंद का ये ये जितना यह आनंद का जो क्षेत्र माना गया शरीर है भोग है इसकी तो दशा ही देख रहे हो आनंद का स्वरूप प्रभु में जजों तुम्हारा प्रभु सन्मुख होकर कदम बढ़ेगा तो तुम्हारे अंदर अद्भुत आनंद अद्भुत उत्साह अद्भुत उत्कंठा और एक दिव्य शक्ति यह भी बात एक दिव्य शक्ति तुम्हारे अंदर देवी संपदा बढ़ने लगेगी एक अलौकिक शांति रहेगी दुख सुख में एक समानता का भाव आ जाएगा कोई भी भोग तुम्हें प्रिय नहीं लगेगा नहीं खान पान तेही भावे है नहीं कोमल वसन सुहावे है सब विषय लगे ते खारा है हरि आशिक का मग न्यारा है संत जन देखते ही ऐसे लगेंगे जैसे सनेह संबंधी जन मिलते हैं अच्छा अच्छा ऐसे संतों को देखते ही मन नाच पड़ेगा आज तो भाग्य भगवत सन्मुख का आज तो भाग्य हमें साधु समागम मिला हमें संत जन मिले तुम्हारी विलक्षण एक स्थिति होगी कोई भी द्वंद तुम्हें स्पर्श नहीं कर पाएगा निराशा चिंता भय विषाद कामना वासना यह सब क्षीण होने लगेंगी केवल भगवत सन्मुख जब तक तुम भगवान की तरफ पीठ किए हो संसार भोगों की की तरफ मुख किए हो तो तुम कुछ भी कर लो तुम्हें सुख शांति मिलने वाली नहीं जितना जितना तुम भोग संग्रह धन वैभव एकत्रित करोगे उतना ही अशांत और चिंतित और शकित होते जाओगे ये महापुरुषों की बात है देख लो अपने हृदयं को जितना तुम भोगों की तरफ बढ़ो ग परिणाम में यह दोष तुम्हारे अंदर आएंगे जैसे भगवत सन्मुख का तो कैसे जाने भगवत सन्मुख है तो बोले जही तुम भगवत सन्मुख होगे तो तुम्हारा एक एक क्षण नवीन उत्साह नवीन उत्कंठा दिव्य शक्ति और दवी संपदा शांति समता वैराग्य प्रेम और संतो को देखकर अपार सुख ऐसा यह भगवत सन्मुख का लक्षण अब यहां बता रहे चाहे जितना तुम धन वैभव भोग एकत्रित कर लो भगवत विमुख हो तुम्हें कभी सुख शांति नहीं मिल सकती भ विमुख का लक्षण क्या है भय विषाद चिंता राग द्वेष वैर अशांति द्रोह दम पाखंड परिग्रह हिंसा कामना वासना ममता दुर्गुण दुर्विन भयानक दुख यह भगवत विमुख के लक्षण है जो भगवत सन्मुख होता है एक भी उनके हृदय में नहीं होते जाच जाच अंदर जाच भगवत विमुक्ताए इसी में सारे दोष बैठे हुए हैं और जहां भगवत सन्मुख हुए तहां तुम्हारा प्रतिफल नवीन उत्साह नवीन उत्कंठा दिव्य शक्ति दैवी संपदा शांति क्षमता वैराग्य प्रेम समस्त दंद से छूट कर के एक अद्भुत आनंद और संत समागम जीवन बन जाएगा देखो राधा बाबा पूर्ण महापुरुष है कोई उनको जानना थोड़ी साधन साद्य के विषय में पर आपको ध्यान होगा जब ऋषिकेश में उनके गांठों में बहुत दर्द वात रोग के कारण तो वह अपने निजी जन से कह रहे थे भाई मुझे सत्संग में पहुंचा दो वह सेवा करते करते शायद श्रमिक हो गए होंगे या जो भी तो उन्होंने बाबा की इस बात का सपोर्ट नहीं किया बहुत बार कहने पर बाबा कहा कि आप जान यह जानते हो कि हम जा पाएंगे उ कहा आप जा ही नहीं पाओगे क्योंकि आपकी गाठ बोले ऐसा नहीं फिर जो बाबा ने अंदर बात की वो जो लिखा था कि भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि प्रीतम मुझे इतनी सामर्थ्य केवल दे दो कि जहां से सत्संग सुनाई देता वहां तक मैं पहुंच जाऊं और एक बांस डंडा उठाया और बाबा घसीटते हुए वहां गए इस बात का बहुत प्रभाव पड़ा हृदय में कि इनको कोई साधन साध्य विषयक अब जानकारी की आवश्यकता नहीं पूर्ण महापुरुष है संपूर्ण है उनमें कोई भी लेकिन ऐसे महापुरुष होते हुए सत्संग की इतनी प्रियता वो देखो लिखाया साधु सम एकदम आनंदित हो गए कि आज तो मुझे साधु समागम मिला यह भगवत सन्मुख का लक्षण विमुख का नहीं भगवत सन्मुख का लक्षण तो हम अपने को जबरदस्ती मुख मोड़ना होगा अगर हम इसी जन्म में परम कल्याण चाहते हैं इसी जन्म में सुख चाहते हैं मुख मोड़ना हो जबरदस्ती शब्द लिखा है जबरदस्ती मोड़ना हटो हटो जैसे य है ना कि अब जिस तुम कगार पर खड़े हो भारी दरार पड़ गई है जबरदस्ती हटो नहीं तो गिरने वाले हो धारा में तुम बह जाओगे डूब जाओगे ऐसे ही तुम्हारी वही दशा है जैसे हरि हरी घास खा रहा है बकरा और बकरी से सहवास कर रहा है और बड़ा सुख का अनुभव कर रहा है पर वो कसाई वाड़े में बंद है वह यह नहीं जान रहा कि अब की नंबर हमारा आ रहा है गड़ासा चलने का व नहीं जान पा रहा है इसी प्रकार आप खानपान शौक मौज मस्ती परिवार सांसारिक सुख भोग रहे हैं पर आपको पता नहीं कि काल के कसाई वाड़े में है मौत का गड़ासा व बिल्कुल तैयार किए हुए है बस समय की दे रही है आपका ही है सावधान इसीलिए क जबरदस्ती भगवत सन्मुख करो अपने मन को अपने तन को अपनी वाणी को अपनी चेष्टा को कोई उपाय नहीं है बचने का आपको दिखाई दे र क्या भयभीत कर रहे हैं आप देख ही नहीं पा रहे हो भय तो तांडव मचा रहा है देख लो ऐसे जरा सी भूमि हुई हजारों लोग मकान नीचे दब के मर गए ऐसे जल में उफान आई एक लहर आई प्रांत का प्रांत नष्ट कर दिया क्या क्या लीलाए हो रही प्रकृति की माया की हमारा भी तो नंबर आएगा ना कोई ना कोई तो आएगा काल का रूप कहीं ना कहीं कोई रोग कोई घटना कोई और हम मस्त हैं जैसे बकरा हरी हरी घास खा रहा है ऐसा ऐसा उसको लग रहा हम बड़े सुखी यह पता नहीं अगला नंबर हमारा है तुमको बिना सूचना दिए बिना राय के तुम्हारी मृत्यु तुम्हारा नाश कर देगी मृत्यु किसी से राय लेती है क्या कि अब हमारी प्रार्थना स्वीकार करें हम अपना काम शुरू करें यद आपकी आज्ञा हो ऐसा नहीं अगर ऐसा हो तो कोई तैयार नहीं होगा कोई नहीं तैयार होगा बिना आपको सूचना दिए बिना आपकी राय के वह आपका नाश कर देगी मृत्यु इसलिए वह सहसा आप पर आक्रमण करेगी उसके पहले आप सावधान हो जाओ अब वो कब करेगी कुछ पता नहीं है इसलिए आपको अभी से इसी सेकंड से सावधानी करनी है क्या एक एक वृति को कृष्णा का कर दो प्रियालाल के चरणों में लगा दो बुद्धिमान उपासक सावधान तुम्हारी जन्म के साथ ही मृत्यु पैदा हो चुकी तुम्हारी कितने अनुभवी महापुरुष कह रहे सावधान जब तुम्हारा जन्म हुआ था उसी समय तुम्हारी मृत्यु भी पैदा हो गई है बस तुम्हारे साथ चल रही मृत्यु अवसर देख रही है समय देख रही जहां पूरा हुआ वह अपना काम कर देगी इसलिए प्रतिक्षण तू मृत्यु की दृष्टि में है शिकार बिल्कुल लक्ष्य पर है मृत्यु का अंतिम स्पर्श तुम्हारा सर्वनाश कर देगा शरीर रुपया पैसा कामना घर मकान पद पदवी सब अतः तुम कुछ ऐसा करो जिससे मृत्यु शरीर पर प्रभाव पड़े आप पर आप करता भोक्ता भाव में इसलिए आप पर प्रभाव पड़ता है वह क्या है इस चक्र से सदा सु छूट जाने के लिए एकमात्र सब ग्रंथ सब संत और सब पंथ का निर्णय है सतत भगवत भजन सतत भगवत चिंतन प्रभु के आश्रित होकर प्रभु का भजन एक छोटी सी वस्तु जब भाव में भरकर आप प्रभु को समर्पित करते हैं तो प्रभु से बहुत बड़ी मान लेते हैं हमारे प्रभु का स्वभाव ऐसा है पत्र पुष्पम फलम तोयं ये में भक्ता देखो नाशवान वस्तु है ना अगर एक चुल्लू जल भगवत अर्पण कर दिया भगवान उतने में प्रसन्न हो रहे एक तुलसी दल ले लिया एक फूल ले लिया कोई फल ले लिया और भगवान भाव में भरकर कहते अनामी मैं उसे खा लेता हूं जैसे फूल सूंघने की वस्तु है पर भगवान क पा लेता हूं पत्ता पा लेता हूं जल पा लेता हूं फल पा लेता हूं पत्रं पुष्पम फलम यम ये में भक्त भक्ति भाव से जो भक्त अर्पित कर देता है भगवान कहते मैं उसे पा लेता हूं वह शाश्वत हो गई दो प्रकार की बैंक है एक माया कृत बैंक एक हरी बैंक हरी बैंक में वही वस्तु जमा होती है जो त्वदीयं वस्तु गोविंदम तुमे समर्पण ऐसे होता है ध्यान रखना आपके द्वारा द वस्तु आपको समर्पित है यह हरि बैंक में जमा हो गया अगर आप निष्काम भाव से करते तो भगवत प्राप्त हो जाएंगे सकाम भाव से करते हैं तो आपको बहुत आगे बढ़ कर के मिलेगी और यहां जो बैंक में माया कृत जमा है य सब रद्द शरीर छूटा सब व्यर्थ गया मानव जीवन का एक एक क्षण इतना कीमती है उसके बदले में फिर कुछ नहीं है कि हम यह दे करके समय खरीद ले तो ऐसे समय को केवल केवल महा महिमा में भगवन नाम स्मृति में लगाओ सब चेष्टा हो रही नाम जप कर रहे हैं आपका बैंक बैलेंस बढ़ रहा है एक एक नाम जैसे कोई भूखा व्यक्ति एक एक कवल पाता है तो तुष्टि पुष्टि छु निवृत्ति होती जाती है ऐसे एक एक नाम संसार से वैराग्य अपने स्वरूप का ज्ञान और भगवान के चरणों में प्रेम यह तीनों होते चले जा रहे हैं पर जैसे बहुत भूख लगी हो तो दो चार कवल में और भूख बढ़ती नजर आती है तृप्ति का बोध नहीं होता आधे पेट होने के बाद फिर स्वाद और तृप्ति का अनुभव होने लगता है फिर पूरा जब पेट भर जाता है तो कहना क्या है ऐसे ही अभी हम थोड़ा भजन करते तो और जलन बढ़ रही है यद्यपि वो संसार से राग स्वरूप का ज्ञान और भगवत चरणारविंद में प्रेम यह प्रारंभ हो गया है एक एक नाम से पर जब आप 24 घंटे में कम से कम 12 घंटे का ऐसा अभ्यास बने कि हम भगवत स्मरण परायण तो आधा पेट मानो हुए फिर आपको स्वाद मिलने लगेगा अनर्थ की निवृत्ति होते ही आनंद का स्फुरण होने लगेगा पर एक एक नाम व्यर्थ नहीं जा रहा गिनो या ना गिनो किसी को भ्रम रहता है अगर माला से गिने गे नहीं तो व्यर्थ चला जाएगा अरे भाई गिनना तो आपके मन को लगाने के लिए है नाम तो अविनाशी है राधा राधा बोला नहीं गिनो ग तो फल नहीं मिलेगा क्या किछ कुछ लोगों को भ्रम होता है अगर गिना नहीं तो फिर वो संख्या ऐसे ही चली जाएगी लिखा जाएगा नहीं गिनना केवल मन को लगाने के लिए है नाम महा महिमा है गिनो या ना गिनो अब प्रेमी जन गिनने में नहीं रहते हां प्रेमी जंतु श्वास प्रश् वास अपने प्रीतम के नाम का वर्तमान में स्वाद ले रहे हैं उसका और कोई फल नहीं चाहिए ये जि ब्या प राधा राधा चल रहा है हमें सब कुछ मिल गया बस यही चलता रहे हम भूलू ना इतना स्वाद इतनी महा सुख की वृत्ति उदय होती है सामने प्रिया लाल हृदय आनंद की उफान में जिव्या पे नाम अब उसे क्या चाहिए जो क्षण चला गया वो लौटकर दोबारा तुम्हारे जीवन में नहीं आएगा बहुत बड़ा घाटा अगर खाली चला गया तो बहुत बड़ी हानि बहुत बड़ा छिद्र बहुत बड़ी दोष वृति हो गई जरा सा भगवत विस्मरण में अंतर माया का प्रवेश का हनुमंत विपत प्रभु सोई जब तो सुमिरन भजन न होई शवास प्रस्वावना नाम का अभ्यास भगवत स्मृति कहीं भी जा रहे हो कोई भी कार्य कर रहे हो किसी से भी कोई व्यवहार कर रहे हो अंदर ही अंदर स्मरण प्रभु का स्मरण ना छूटने पावे लाभ हरिवंश के नाम उचर लाभ इससे बड़ा कोई लाभ नहीं राधा राधा हरि हरि अगर नाम उच्चरण हो रहा अंदर बहुत बड़ा लाभ मिल रहा है एक लाख रुपया एक घंटे में कमा लिया और हरि को भूल गए किस काम में आएगा और एक घंटे बाद शरीर छूट गया एक लाख रुपया कमा लिया है हरि का नाम नहीं लिया आएगा क्या हाथ और एक घंटे लगातार नाम नाम जप किया है भले हमारे पास लौकिक वैभव नहीं है लेकिन ना तो संताप होगा ना शोक होगा ना चिंता होगी ना भय होगा एक आनंद और वह अनंत काल के लिए बैंक में जमा हो गया अविनाशी नाम यह हमारी समझ में क्यों नहीं आ रहा लाखों रुपए इकट्ठा कर ली चिंता है शोख है भय है नाना प्रकार की वासना जल रहे लाभ क्या मिला नाम चल रहा है माना कि आपके पास उतना ऐश्वर्य नहीं है यथा लाभ संतोष जितना प्रभु दिए सं पर आपका हृदय प्रफुल्लित रहेगा भरोसा बहुत बड़े स्वामी का है और एक एकक नाम आपका जमा हो रहा है सदगुरुदेव भगवान एक दिन बोले थे एक एक सेकंड का तुम्हारे हिसाब होगा ऐसा नहीं कि तुम नाम जप कर रहे हो उनके लिए ज रहे हो कष्ट सह रहे हो तो तुम्हें किसी को बताने की जरूरत है एक एक सेकंड का हिसाब होगा और आप निहाल हो जाओगे वह एक एक सेकंड आपको देख रहा है आपके एक एक सेकंड की वृत्ति का हिसाब होगा बहुत उदार दानी है हमारे प्रभु अति उदार विव सुंदर ऐसे मालिक के सेवक हो वह एक एक सेकंड देख रहा है और तुम्हारा हिसाब करेगा बाहर से नाटक करोगे भक्ति का दम करोगे तो समय लगेगा दंभ पूर्वक भी भक्ति की व्यर्थ नहीं जाती झूठा खेले साचा हो एक दिन ऐसा झटका लगेगा माया का कि अपने आप सच्चाई पर खड़े हो जाओगे वो बहुत खिलाड़ी है उससे बड़ा कोई खिलाड़ी नहीं करो करो दम करो नाटक अब वो अपना नाटक विस्तार करेगा और ऐसी जगह खड़ा करेगा जहा कोई नहीं तब पुकारोगे हे हरि तो बोलेगे आ जाओ हम तो पहले ही बां फैलाए बैठे थे पहले ही तुम तो हमें केवल निमित्त बनाकर भोगों के लिए तुम चल रहे थे लेकिन अब असलियत में पुकारा आओ हम तुम्हारे स्वागत के लिए खड़े झूठा खेल है यह खेल ऐसा है झूठा खेल है साचा होए अगर झूठ से भी कोई भक्ति करने लगे तो सच्चाई में भगवान उ से भक्त बना देते हैं हा जो कोई भक्ति करे कपट से उसको भी अपनाओ शाम दाम और दंड भेद से सीधे रास्ते लाऊ शम दाम दंड भेद सीधे रास्ते लाओ नकली से बनाऊ असली यही मेरे मन में छड़ी भगत मेरे मुकुट मणि मैं हूं भक्तन को दास भगत में आ कितने कृपाल स्वामी है एक राजा का सरोवर था बहुत बड़ा तो उसम वो अपने मन अल्लाद के लिए रंग बिरंगी मछलियां पाले हुए थे कभी-कभी कोई मछुआरा तो उन्होंने आदेश कर दिया सरोवर से जो मछली पकड़ेगा उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा अब तो कोई जाता नहीं बहुत मछलियां रंगबिरंगी को एक मछवा परिवार बड़ा भूखा था और कई दिनों से भी मुझसे मिला नहीं था शिकार उसने देखा यहां कोई रखवाले तो रहते नहीं है मृत्युदंड का आदेश हम जल्दी से लिया भाग जाएंगे और ढेर सारी मछलियां बड़ी बड़ी वो गया जाल फैलाया मछली समेट ही रहा था कि राज सवारी दूर से घोड़ों की टॉप धूल अरे य तो अब क्या करें भागते हैं तो दिखाई देंगे बंदी बना लिए जाएंगे क्योंकि व घोड़े में है उसको लगा कि साधु बन जाना अच्छा है बहुत बढ़िया उपाय है फरन कपड़ा सब उतारे और रजली पूरे शरीर में पोत ली अब तो साधु बैठ जाल जल में छोड़ दिया ऐसे छुपा दिया शांत से ब वो राजा निकल रहे थे तो देखा सरोवर पर कोई परमहंस बैठे हैं बोले भाग्य दूर ही अपने सब राज शोभा को रोक दिया सैनिकों को रोक दिया नंगे पैर पाग उतार करके आए साष्टांग दंडवत की धीरे से हल्की आंखो वो तो भयभीत है कि मृत्युदंड मिलता रत्ना आदि सामने रखकर पर वो आंख खोला नहीं तो उसने समझा महाराज ध्यान में विक्षेप नहीं पहुंचाना चाहिए चुपचाप चला जब घोड़ों की टॉप दूर ऐसे जाते हुए वो चले गए तो आख खुला तो देखा रत्ना हीरे आदि तो उसने विचार किया कर्म तो मैं वह कर रहा था कि मुझे मृत्युदंड मिलता लेकिन साधु भेष का सहारा लिया तो मुझ नीच अपराधी को राजा प्रणाम किया और यह रत्न रख के गया यह जब मैं नकली भाव रखा तो ऐसा हुआ यद मैं असली में साधु बन जाऊं तो क्या होगा अब मैं ना अपने घर जाऊंगा ना आज के बाद कभी मछली मारूंगा अब मैं सच्चा साधु बनूंगा बना दिया जो कोई भक्ति करे कपट से उसको भी अपनाओ पर काहे को समय बर्बाद करोगे आपको भगवान ने सत्संग दिया है तो आप सच्चे मार्ग के पथिक बनो श्वास प्रवास तुम्हारी खाली ना जाने पावे जब तक तुम्हारा मुख भोगों की ओर है मुख का तात्पर्य अंदर से है अंतर ही अंतर तुम सब साधन कर रहे हो लेकिन तुम्हारी विश्राम स्थिति मन मानता है भोग में क्या खाने को मिलेगा हा हर्षित हो गए क्या भोगने को मिलेगा हर्षित हो गए मतलब आप अभी भोगों के सन्मुख है अंतर की बात देखना जब तक तुम्हारा मुख भोगों की ओर है तो तुम कह रहे हो कि हम भगवत मार्ग के पथिक है भगवत मार्ग में चल रहे हैं पर तुम चल लोगों की ओर ही रहे हो प्रभु की ओर एक कदम नहीं चल रहे हो जैसे कई बार सत्संग में बताया है ये बिहारी जो हैं आप मुख इधर करो छठी करा की तरफ और दौड़ लगा दो तो आपका हर कदम बिहारी जी से दूर होता चला जा रहा है आप बहुत चल रहे हो लेकिन विपरीत चल रहे हो तो आप बिहारी जी से दूर होते चले जा रहे हो और यह मार्ग है लेट जाओ और लेट कर चलो तो समय आएगा पहुंच जाएंगे क्योंकि आप सही मार्ग में चल रहे हो आप ऐसे सोए सोए चलो एक बार लेट गए 10 मिनट फ लेट फिर एक बार उठे फिर लेट गए आप पहुंच जाओगे क्योंकि सही मार्ग है समझो भाव समझो यदि आप भगवत सन्मुख है तो आपकी चाल धीमी होगी तो भगवान मिल जाएंगे आप भगवत विमुख है भोगों के सन्मुख है तो दौड़ लगा लो हर कदम आपका प्रभु से दूर होता चला जाएगा आपको दूर करता चला जाएगा यही भेद उपासक नहीं समझ पाता और पूरा जीवन लगा देता है बहुत ध्यान देने का विषय कि आप समझते हैं परमार्थ के पथिक अपने को और चाल है भोगों की तरफ तो हर कदम आपको प्रभु से दूर करता गया और आप कर रहे 50 वर्ष से मैं चल रहा हूं लेकिन मंजिल नहीं मिली क्योंकि मंजिल की तरफ आपका मुख ही नहीं था आपका मुख था मंजिल के विपरीत जो प्रतिकूल से वर्जन स्थिति होनी चाहिए वहां आपने अनुकूलता देखी और चल पड़े भोगों की तरफ तो फिर क्या होगा आप यही को कहते हैं आकर कि 20 वर्ष से मैं साधन में हूं क्या साधन में हो बहुत दौड़ाने दौड़ने वाले हो बहुत दौड़ाकर विपरीत दौड़ रहे तो फायदा क्या हुआ अरे धीमी भी चाल हो लेकिन अनुकूल चाल हो तो मंजिल पास है दूर नहीं है ये बहुत समझने की बात बहुत समझने की बात यही गलती हमसे होती है महापुरुषों द्वारा स्वाद्यय शास्त्र जिसकी जयघोष करता है ऐसे नाम का अपमान कर रहे हो तुम्हारे कदम किधर है किधर है कदम तुम्हारे तुम्हारी चाल किधर है पहले देखो ना अरे सन्मुख होए जीव मोई ज मही जन्म कोट यग नास होते मेरे प्रभु कहते हैं करोड़ों जन्म के पाप उसी क्षण नष्ट कर देता हूं जब सन्मुख होते सन्मुख का मतलब समझो अंदर ही अंदर भोगों को विश्राम मान रहे हो भोगों को सुख मान रहे हो मान प्रतिष्ठा को जीवन का लाभ मान रहे हो तो आपके सम्मुख कौन है प्रभु है या मान प्रतिष्ठा है या भोग है या संसार है क्या वेश रख लेना प्रभु की सन्मुख होती है क्या उद्देश्य क्या है तुम्हारा उद्देश्य सन्मुख होती उद्देश्य बहुत बार कहा है उद्देश्य को आप ठीक कर लीजिए