Overview
यह लेक्चर क्लासिकल मॉडल में इनकम, आउटपुट, इंटरेस्ट रेट और गवर्नमेंट हस्तक्षेप के निर्धारण पर केंद्रित है, साथ ही टैक्स और फिस्कल पॉलिसी क े प्रभाव समझाए गए हैं।
क्लासिकल मॉडल और उत्पादन
- उत्पादन (आउटपुट) और इनकम लेबर पर निर्भर करते हैं।
- लेबर डिमांड और लेबर सप्लाई का इंटरसेक्शन इक्विलिब्रियम एंप्लॉयमेंट तय करता है।
- रियल वेज (वेतन/मूल्य स्तर) लेबर डिमांड-सप्लाई निर्धारित करता है।
- डिमिनिशिंग रिटर्न्स: उत्पादन बढ़ाने पर अतिरिक्त लाभ घटता है।
लोन-एबल फंड्स थ्योरी (Interest Rate Determination)
- मार्केट में सेविंग्स = लोन-एबल फंड्स की सप्लाई; इन्वेस्टमेंट = डिमांड।
- इंटरेस्ट रेट बढ़ने पर सेविंग्स बढ़ती हैं, इन्वेस्टमेंट घटती है।
- इक्विलिब्रियम इंटरेस्ट रेट वहां होता है जहाँ सेविंग्स व इन्वेस्टमेंट बराबर हों।
गवर्नमेंट का हस्तक्षेप
- गवर्नमेंट बजट सरप्लस होने पर सप्लायर बनती है, डिफिसिट होने पर डिमांडर बनती है।
- गवर्नमेंट की डिमांड इंटरेस्ट रेट से प्रभावित नहीं, फिक्स रहती है।
- गवर्नमेंट डिमांड बढ़ने से फंड्स की कुल डिमांड बढ़ती है, जिससे इंटरेस्ट रेट बढ़ता है और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट घटती है (Crowding Out Effect)।
टैक्स रेट का प्रभाव
- टैक्स बढ़ने से लेबर की डिस्पोजेबल इनकम घटती है।
- लेबर सप्लाई फंक्शन में बाय-डिफॉल्ट टैक्स का प्रभाव जोड़ा जाता है।
- टैक्स बढ़ने पर आउटपुट, एंप्लॉयमेंट व एग्रीगेट सप्लाई कम हो जाते हैं।
ग्राफ/एक्वीलीब्रियम विश्लेषण
- सप्लाई व डिमांड कर्व के इंटरसेक्शन से इक्विलिब्रियम फंड्स व इंटरेस्ट तय होती है।
- गवर्नमेंट डिमांड बढ़ने से डिमांड कर्व राइट शिफ्ट होता है, जिससे इंटरेस्ट रेट ऊपर जाता है।
Key Terms & Definitions
- रियल वेज — पैसा/मूल्य स्तर; वास्तविक क्रयशक्ति।
- लोन-एबल फंड्स — वे फंड्स जो मार्केट में लोन के रूप में उपलब्ध हैं।
- इक्विलिब्रियम इंटरेस्ट रेट — जहाँ सेविंग्स = इन्वेस्टमेंट होती हैं।
- डिमिनिशिंग रिटर्न्स — लगातार अधिक लेबर पर अतिरिक्त उत्पादन में गिरावट।
- Crowding Out — गवर्नमेंट डिमांड से प्राइवेट इन्वेस्टमेंट का कम ह ोना।
Action Items / Next Steps
- यूनिट-2 की चार वीडियो ("मनी") पूरी देखें।
- नोट्स और क्लास के चार्ट्स का दोहराव करें।
- अगली क्लास की सूचना/नोटिफिकेशन का इंतज़ार करें।