नमस्कार दोस्तों! 2014 में अगर आपको याद हो, डिरेक्टर क्रिस्टॉफर नॉलन की एक बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म आई थी, इंटरस्टेलरी. इस फिल्म में स्पेस रिलेटिट कॉन्सेप्ट्स को, वॉर्म होल्स, ब्लैक होल्स, एलियन प्लैनेट्स, उपर अपने स्पेसक्राफ्ट को लेकर ब्लैक होल के अंदर गिरते हैं। शुरू में इनके आसपास सब कुछ काला-काला होता है। कम्प्लीट डार्कनेस। लेकिन जैसे ये और अंदर गिरते हैं, और ये ब्लैक होल के अंदर बिरते चले जाते हैं। लेकिन फिर अचानक से अपने आपको ये एक 5-Dimensional Space के अंदर पाते हैं। एक 5-Dimensional Tesseract। ये एक बहुत ही दिमाग हिला देने वाली चीज है। एक ऐसी जगह है जहाँ पर ये अपने पास्ट से कम्यूनिकेट कर सकते हैं, ग्राविटी का इस्तिमाल करें। क्या ये सब possible हैं? क्या एक black hole के अंदर सही में ऐसा कुछ होता है?
अगर हम सही में black hole के अंदर गिरेंगे, आइए समझने की कोशिश करते हैं इन सारे सवालों को आज के सिर्फ। ब्लैक होल्स रेमेंड लारजली अन्नोन अंतल दे 20th सेंचरी ब्लैक होल्स रेजिन एंस्पेस वह द फॉर्स ग्राविटी इस सूज ब्लैक होल्स और डार्क सेंटर्स ग्राविटी बैट स्वालो एवरीथिंग इन देर पैन और कहानी के शुरू से शुरुवात करते हैं दोस्तों, ब्लैक होल्स का इतिहास कोई ज्यादा पुराना नहीं है, आज से सौ साल पहले कोई ब्लैक होल्स के बारे में जानता तक नहीं था, आइंस्टाइन की थिओरी ओफ रेलेटिविटी की वज़े से ही, हमें बताती है कि कैसे स्पीड टाइम को इंफ्लूएंस करती है, अगर आप एक ऐसी spaceship में बैठे हो जो बहुत तेज उड़ने लग रही है, जिसकी speed बहुत ज्यादा है, तो आपके लिए time धीरे चलेगा, relative to वो लोग जो spaceship में नहीं बैठे हैं, धरती पर ही हैं, relative शब्द बहुत ज़रूरी है, क्योंकि आप जब spaceship में बैठे होंगे, तो आ� कितना अलग चल रहा था। इस चीज़ को Kinematic Time Dilation कहा जाता है, और अगर आपने मेरा Time Traveller वाला वीडियो देखा है, तो उसमें मैंने डीटेल में एक्स्पेन किया है, ये कैसे काम करता है। अब स्पीड से ही नहीं, बलकि ग्राविटी से भी Time Dilation हो सकती है, जिसे आइनस्टाइन ने बताया अपनी General Theory of Relativity फिर। ये उन्होंने डेवलप करी थी साल 1915 में। इसे gravitational time dilation कहा जाता है, और interstellar film में इसे बढ़िया तरीके से दिखाया गया था। जब कूपर और उनके साथ ही एक aqua planet पर land करते हैं, उस planet पर उनके लिए एक घंटा धर्ती पर साथ सालों के बराबर होता है। ऐसा इस planet पर इसलिए होता है, तो ब्लैक होल की तरफ से आ रहा gravitational force इस पर impact डालता है। कि एक space-time का fabric imagine करो, एक तरीके का mesh imagine करो, जिस पर सारे planetary objects रखे हुए हैं। जितना ज्यादा उनका mass है, उतना ही ज्यादा, वो इस space-time के mesh को bend कर रहे हैं नीचे। और जब ये mesh bend होने लग रहा है, ना सिर्फ physical objects इसकी तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, बल्कि time की भी इससे dilation होने लग रही है, और जो बाकी forms of energy हैं, जैसे कि sound, heat और light, उन सब पर भी gravitation का असर पड़ता है। ग्राविटेशन से अल्मोस्ट हर चीज़ पर असर पड़ता है। ग्राविटेशन के फोर्स से ना सिर्फ फिजिकल ओब्जेक्ट अट्रैक्ट होते हैं, बलकि हीट, साउंड और लाइट भी अट्रैक्ट होते हैं। तो इसका मतलब यह हुआ दोस्तों, जिनमें ग्राविटेशनल फोर्स इतना ज्यादा है, एक्साक्टली यही होते हैं दोस्तों, ब्लैक होल्स। लेकिन आइनस्टाइन ने जब अपनी थियोरी अफ जेनरिल एलेटिविटी बताई थी, उस वक्त ये ब्लैक होल्स का कॉंसेप्ट सिर्फ थियोरेटिकल था। लेकिन उन्हें यह लगता था कि हाँ, थिवरेटिकली तो कहने के लिए इंफिनिटी जैसी चीज़े भी हो सकती हैं। लेकिन रियलिस्टिकली, प्रैक्टिकली उन्हें यकीन नहीं था कि ऐसी चीज़े असली में एक्जिस्ट करती हैं। कि लाइट की स्पीड ग्राविटी के इंफ्लुएंस को लिमिट करती है। प्रैक्टिकल एग्जांपल से समझाओं, तो इसका मतलब यह है कि मान लो, सूरज अचानक से गायब हो गया, आप सब जानते ही होंगे कि हमें आठ मिनिट बाद ही पता लगेगा धरती पर कि सूरज गायब हो गया है, यह भी हमें आठ मिनिट बाद ही फील होगा, योहानस द्रोस्ते, सुब्रमन्यम चंद्रशेकर, कई equations थी, इन लोगों ने उन equations को solve किया, उनके solutions निकालने की कोशिश करी, और इन equations के solution निकालने से, theoretically यह proof हो पाया, कि black holes जैसी चीज़ exist करती है, 1960s तक आते आते, फाइनली researchers और scientists ने वाना, कि theoretically ही नहीं, शायद एक दिन realistically भी, हम black holes को देख पाएंगे, क्योंकि ये चीज़े actually में space में exist करती हैं, साल 1964 में, लेकिन ये साल 1967 के बाद ही शब्ब पॉपिलर बना, जब एक फिजिसिस्ट जॉन वीलर ने इसे पॉपिलराइस किया. हाला कि ब्लैक होल शब्ब सुनने में काफी सेंसेशनल लगता है, लेकिन ये थोड़ा सा मिस्लीडिंग शब्ब है, ब्लैक होल, उनके बीच में nuclear fusion reactions होते रहते हैं। इन reactions की वज़े से heat और light produce होती हैं। यह जो heat produce हो रही है, यह बाहर की तरफ एक force डालती है। और अंदर की तरफ stars में force आता है, gravitation की वज़े से, जिसकी वज़े से star इकठटा होके, जिन्दा रह रहा है। एक equilibrium maintain करके रखता है। और अंदर की तरफ आने वाली forces gravitation की वज़े से। hydrogen या helium। यह फ्यूल हमेशा नहीं रहेगा, यह फ्यूल कभी तो खतम हो जाएगा, और जब यह फ्यूल खतम होगा, तो बाहर की तरफ जो फोर्स जाने लग रहा है, वो रहेगा नहीं, अंदर की तरफ जो ग्राविटी का फोर्स है, तो यह स्टार अपने उपर ही कोलाब्स कर जाएगा, लेकिन आगे क्या होता है, यह डिपेंड करता है कि उस स्टार का मास कितना है, अगर स्टार का मास ज्यादा नहीं है, छोटा अवरेज साइज स्टार है, तो वो रेड जाइंट में बदल जाता है, उसके बाद वो एक प्लानेटरी नेबूला बन सकता है, या फिर एक वाइट डॉर्फ बन सकता है, लेकिन अगर एक बड़ा स्टार है, बेसिकली कहा जाए, जितना मास था एक स्टार में, जब वो अपने ग्राविटेशनल फोर्स की वज़े से कंप्रेस हो गया, छोटा हो गया, कंडेंस हो गया, तो वो ये ब्लैक होल बन सकता है. इस चीज़ को प्रूफ किया था एक इंडियन अमेरिकन आस्ट्रोफिजिस्ट सुब्रमन्यम चंदरशेखर ने, जिन्नोंने एक चंदरशेखर लिमिट वैलियो निकाली, उन्होंने कहा कि एक वाइट ड्वार्फ का मैक्सिमम मास हो सकता है, उसके ऊपर वो स्टेबल नहीं रह पाएगा, अब समझते हैं कि ब्लैक होल कैसा होता है, मेनली तीन-चार टाइप के ब्लैक होल्स होते हैं दोस्तों। पहला है स्टेलर ब्लैक होल्स, जोकी सबसे कॉमन टाइप है ब्लैक होल्स का। वो ब्लैक होल्स जो स्टार्स से फर्म होते हैं। साइंटिस्ट का एस्टिमेट है कि हमारी मिलकीवे गैलेक्सी में कम से कम 10 मिलियन से लेकर 1 बिलियन ऐसे ब्लैक होल्स हैं। ये वो ब्लैक होल्स हैं जो एक आटम जितने छोटे होते हैं। लेकिन इनका वजन, इनका मास एक पहाड़ी जितना बड़ा होता है। ये वाले ब्लैक होल्स दोस्तों सिर्फ थिवरेटिकल हैं, हाइपोथेटिकल हैं, इनके बारे में हम ज्यादा नहीं जानते। तीसरा टाइप होता है ब्लैक होल्स का सूपर मैसिव ब्लैक होल्स। ये बहुत ही बड़े ब्लैक होल्स होते हैं, इतने बड़े कि इनका मास 1 मिल इतनी बड़ी बॉल में फिट होंगे, कि उस बॉल का डायमीटर हमारे सोलर सिस्टम जितना बड़ा हो। साइंटिस्ट का मानना है, कि हर बड़ी गैलेक्सी के बीच में, एक सूपर मैसिव ब्लैक होल है। हमारी मिलकीवे गैलेक्सी के बीच में, सैकिटेरियस एए। वो भी एक सूपर मैसिव ब्लैक होल बताया है उन्होंने। यह चौथे टाइप का ब्लैक होल होगा, इंटरमीडियेट ब्लैक होल। जो कि स्टेलर ब्लैक होल और सूपर मैसिव ब्लैक होल के साइज के बीच में कहीं हैं। हाला कि इसका कोई प्रूफ अभी तक डिसकवर नहीं किया गया है। मैं स्क्रीन पर आपको मूवी वाला ब्लैक होल दिखा रहा हूँ, क्योंकि वो ज्यादा HD है और ज्यादा 3-Dimensional है, उस फोटो के कमपैरिजन में, जो इंसानोंने अभी कुछ साल पहले ली थी, तो सबसे पहली चीज़ जो आप इस फोटो में नोटिस करेंगे, वो है एक ओरेंज कलर का रिंग, इसे Accretion Disc कहा जाता है, बहुत सा गैशियस मैटर और बाकी डेब्री ब्लैक होल की तरफ आकरशित होता है, और उसके चारों तरफ फ्लोट करता रहता है, जैसे हमारे सन के अराउंड, बाकी प्लानेट्स गोल-गोल घूमते रहते हैं, कि वो सब कुछ एक फ्लोइड सा मैटर बन चुका है, जितना ब्लैक होल के ज्यादा करीब जाएंगे, उतनी ही ज्यादा तेज ये पार्टिकल्स इसके राउंड रिवॉल्व कर रहे होंगे। ये पार्टिकल्स इतनी ज्यादा तेज घूमते हैं, एक दूसरे के साथ रब होते हैं, कमप्रेशन होता है, कि ये ग्लो करने लग जाते हैं, इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडियेशन इनसे निकलने लग जाती हैं, जो कि मेरली एक्स रेज होती हैं। इंसानों की आखे एक्स रेज को अक्चुली में देखी नहीं सकती। हम लोग बस इसे represent करते हैं, orange-yellowish color देकर, ताकि हम इसे दिखा सके, कि यहाँ पर कुछ है, असली color इस disc का blue के ज्यादा pass होगा, साल 2019 में, पहली बार actually में black hole की photo खीची गई थी, और इसमें भी इन्होंने, इस yellowish-orange color का use किया था, इस accretion disc को represent करने के लिए, अब एक चीज़ जो आप clearly notice कर सकते हैं, असली photo में, जो आप movie में इतना notice ना करें, कि एक side पर ये particles, ज्यादा bright कलर के दिखते हैं, दूसरी side के comparison में. इसके पीछे एक बड़ा simple सा reason है, जो particles हमारी तरफ spin करने लग रहे हैं, वो हमें ज्यादा bright कलर के दिख रहे हैं, और जो हमसे दूर spin करने लग रहे हैं, वो हमें dim होके दिख रहे हैं. यह होता है Doppler beaming effect की वज़य से.
तो जब आप इस black hole की असली photo को देखते हो, तो इस blur सी photo को देखकर, कि कौन सी direction है, जिसमें यह particles घूमने लग रहे हैं. और जो dim है वो हमसे दूर जाने लग रही है। अब movie वाली image पर वापस आयें, तो एक और interesting चीज़ आप notice करोगे, एकरेशन डिस्क एक तरीके का optical illusion देती है, gravity की वज़ेस्थे। देखकर ऐसा लगता है कि black hole के उपर और नीचे भी, इस disc ने cover कर रखा है। ऐसा हमें बस इसलिए दिखता है कि gravity light को bend करने लग रही है। जो disc का हिस्सा black hole के पीछे चुपा हुआ है, वो light जो वहाँ से निकल कर आ रही है, वो इसके उपर से आती है, इतनी bend हो जाती है gravity की वज़े से। अगर हम black holes को... वो टॉप व्यूज़ से देखेंगे तो वो बिल्कुल राउंड ही दिखाई देंगे, डिस्क नॉर्मल तरीके से दिखाई देगी। यह illusion हमें सिर्फ तब दिखता है, जब हम black holes को side view से देखते हैं। इसके लाभा black holes के अगर आप अंदर जाओगे, तो आपको एक लास्ट light का circle दिखेगा। इसे कहा जाता है photon sphere। इस area में gravity इतनी strong हो गई है, कि light ने ही orbit करना शुरू कर दिया है black hole कहा रहा हूँ। Light किससे बनती है? Photons से बनती है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप इस एरिया में पहुँच गए ब्लैक होल के जिंदा बचे रहे, तो थियोरिटिकली पॉसिबल है कि आपको अपने सर का पीछे का हिस्सा दिखाई दे, यानि सब कुछ काला-काला ही दिखाई दे रहा है. अगर आप एक ब्लैक होल के अंदर गिरने लग रहे हैं, और आपने इवेंट होराइजन को क्रॉस कर दिया है, तो थिवरेटिकली देखा जाये, तो आपके बच निकलने का कोई चांस नहीं है, जो कि लाइट भी नहीं बच के निकल सकती, तो एक इंसान क्या बच के निकल सकता है?
वो फाइव डाइमेंशनल स्पेस में होते हैं। मुवी का ये हिस्सा प्योरली इमेजिनेशन है, स्पेकुलेशन है, क्योंकि हम नहीं जानते, इवेंट होराइजन के अंदर क्या होगा। इंटरस्टेलर मुवी के प्रडूसर्स ने वैसे, इसे आइंस्टाइन की जेनरल थियोरी ओफ रेलेटिविटी डिस्क्राइब करने की कोशिश करती है। इस थियोरी ने ब्लैक होल के सेंटर में जो जगह है, उसे सिंग्युलारिटी करके पुकारा है। सिंग्युलारिटी एक ऐसा रीजन है ब्लैक होल का, वो सेंटर है जहाँ पर स्पेस टाइम का कर्वेचर इंफानाइट हो जाता है। ब्लैक होल के केस में, और क्योंकि हम relativity की थिओरी से जानते हैं, कि time energy के सारी चीजों पर असर पड़ता है, gravitation का, अगर gravitational force इतना ज्यादा है, तो time भी infinitely slow होते चले जाता है, लेकिन time के infinitely slow होने का क्या मतलब है यहाँ पर, क्या इसका मतलब यह है, और बाहर कभी निकल पाए उससे, यह सब हम नहीं जानते actually में, सिर्फ theories बनाई जा सकती हैं, नीचे कॉमेंट्स में लिखकर बता सकते हो। यहाँ पे कुछ बड़ी इंट्रेस्टिंग थियोरीज हैं जो सजेस्ट करी जाती हैं। जैसे कि हम ब्लैक होल के अंदर बाहर से नहीं देख सकते, क्योंकि सब कुछ लाइट उसके अंदर एब्जॉर्व हो रही है। लेकिन एक थियोरी यह कहती है कि, इवेंट होराइजन के अंदर, वो बस यही फोटो है। इवेंट होराइजन टेलिसकोप के द्वारा ली गई ये फोटो 10th April 2019 को, जिसने ब्लैक होल्स की एक्जिस्टेंस को प्राक्टिकली प्रूफ किया, करीब 100 साल बात जब उन्हें थियोरेटिकली प्रूफ किया गया था, ब्लैक होल से इतना डरने की जरूरत नहीं है, बहुत से लोगों को पहले ये misconception था कि black holes सारे matter को suck up करते रहते हैं और बड़े होते रहते हैं और eventually ये पूरे universe को खतम कर देंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता जैसा मैंने बताया हर galaxy के center में एक supermassive black hole होता है बाकि सारी planetary bodies और stars जो उस black hole की gravitation के range में हैं उसके around revolve करते हैं ठीक उसी तरीके से जैसे sun के around सारे planets revolve करते हैं हमारे solar system में यही चीज galaxy के बीच में और ताकतवर तरीके से होती है। तो अगर आप ब्लैक होल से अपनी ठीक दूरी बनाए रखेंगे, सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखेंगे, तो सेफ और सुरक्षित रहेंगे। प्रश्न प्रश्न प्र�