[संगीत] [संगीत] हाय एवरीवन दिस इज स्नेहा वेलकम बैक टू द चैनल होप यू ऑल आर डूइंग ग्रेट तो आज से हम लोग स्टार्ट कर रहे हैं हमारी 15 डेज प्लेज और आज है हमारी इस 15 डेज प्लेज का डे वन आज हम लोग करेंगे हमारा चैप्टर नंबर वन इकोनॉमिक्स एंड इकोनॉमी वन शॉर्ट लेक्चर है एक ही वीडियो में हम लोग ये पूरा चैप्टर कवर करेंगे वो भी काफी डिटेल में अच्छा देखो सबसे पहले तो जिन्हें इस 15 डेज प्लेज के बारे में नहीं पता उन्हें बता देती हूं टुडे इज फर्स्ट ऑफ जुलाई आज से हम लोग स्टार्ट कर रहे हैं और ये जो हमारी 15 डेज प्लेज है ये हमारी चलेगी 177th ऑफ जुलाई तक बीच में दो संडे है संडे को आपके पास में वीडियोस नहीं आएंगी आपको अच्छे से रिवीजन करना है तो 15 दिन के अंदर हम लोग क्लास 11थ इकोनॉमिक्स यानी कि माइक्रो स्टैट्स के 15 चैप्टर्स कवर करेंगे वन शॉट के अंदर किस तरह से देखो माइक्रो के अंदर हम लोग करेंगे हमारा चैप्टर नंबर 1 टू स यानी कि प्राइस इलास्टिसिटी ऑफ डिमांड तक के सारे चैप्टर्स हम लोग कवर करेंगे वन शॉट के अंदर सेम इसी तरह से स्टैट्स का हम लोग करेंगे चैप्टर नंबर 1 टू 9 यानी कि मीन तक के सारे चैप्टर्स अगेन वन शॉट के अंदर हम लोग कंप्लीट करेंगे तो अगर आपको डिटेल में देखना है कि किस दिन आपके पास में कौन से चैप्टर की वीडियो आ रही होगी वीडियो कितने बजे आ रही होगी तो अभी एक दो दिन पहले मैंने एक वीडियो अपलोड करी थी मैं उसका लिंक आपको डिस्क्रिप्शन में डाल दूंगी कमेंट्स के अंदर डाल दूंगी एक बार उस वीडियो को चेक कर लेना आपको आईडिया हो जाएगा कौन से दिन कौन सी वीडियो आएगी वीडियो कितने बजे आएगी तो शुरू करें फटाफट से क्या नाम है चैप्टर का इकोनॉमिक्स एंड इकोनॉमी तो सबसे पहले तो बात करते हैं यार इकोनॉमिक्स होता क्या है देखो अगर आपको कभी भी इको समझना है इकोनॉमिक्स क्या होता है तो सबसे पहले जरूरी है आप ये समझो रिसोर्सेस क्या होते हैं देखो रिसोर्सेस क्या है कोई भी ऐसी चीज जो हमारी वांट्स को सेटिस्फाई कर रही है जिससे हमें एक सेटिस्फैक्ट्रिली वो हर चीज हमारे लिए क्या है रिसोर्स है फॉर एग्जांपल पानी पीते हैं पानी क्या है रिसोर्स है हम लोग फ्रेश एयर ले रहे हैं ऑक्सीजन ले रहे हैं ऑक्सीजन हमारे लिए क्या है रिसोर्स है लैंड पर हम लोग रहते हैं लैंड हमारे लिए क्या है रिसोर्स है आपकी जेब में जो पैसा रखा हुआ है उस पैसे से आप कुछ भी खरीद सकते हो गाड़ी खरीद सकते हो बाइक में पेट्रोल दलवा सकते हो ड्रेसेस परचेस कर सकते हो तो आपकी जो मनी है वो भी आपके लिए क्या है रिसोर्स है तो एनीथिंग दैट सेटिस्फाई ह्यूमन वांट इज अ रिसोर्स कोई भी ऐसी चीज जो ह्यूमन वांट को सेटिस्फाई करती है जिससे हमें एक सेटिस्फैक्ट्रिली है तो ये सब कैसे आता है ये सब आता है मनी की हेल्प से ये मनी हमारे लिए क्या है रिसोर्स है समझ में आया सेम सेम इसी तरह से मार्केट के अंदर एक प्रोड्यूसर भी होता है प्रोड्यूसर क्या करता है गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन करता है कपड़े बनाता है और भी खाने के आइटम्स बनाता है शूज वगैरह बनाता है तो प्रोड्यूसर को प्रोडक्शन करने के लिए क्या चाहिए होता है प्रोड्यूसर को प्रोडक्शन करने के लिए लैंड चाहिए लैंड पर ही वो प्रोडक्शन कर सकता है उसे प्रोडक्शन करने के लिए लेबर चाहिए एंप्लॉयज वगैरह चाहिए उसे प्रोडक्शन करने के लिए बिजनेस में कैपिटल चाहिए यानी कि मशीनस वगैरह चाहिए अदर टूल्स चाहिए और एक होता है एंटरप्रेन्योर यानी कि वो खुद बंदा बिजनेसमैन उसकी स्किल्स की भी वहां पर रिक्वायरमेंट होती है उसके दिमाग की भी वहां पर रिक्वायरमेंट होती है तो प्रोडक्शन करने के लिए भी बहुत सारे रिसोर्सेस की रिक्वायरमेंट होती है ये सारी चीजें भी क्या है रिसोर्सेस हैं तो कोई भी चीज जो हमारी वांट्स को सेटिस्फाई कर ही है वो क्या है रिसोर्स है रिसोर्सेस मींस दोज गुड्स एंड सर्विसेस रिसोर्सेस का मतलब वो सारे गुड्स और सर्विसेस जैसे लैंड है लेबर है प्रोडक्शन करने के लिए टूल्स और मशीनस की रिक्वायरमेंट होती है पैसे की रिक्वायरमेंट होती है जिन चीज की हेल्प से फर्द दूसरे गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन होता है वो हर चीज हमारे लिए क्या है रिसोर्स है समझ में आ गया हर चीज रिसोर्स होती है अब देखो ये जो रिसोर्सेस हैं इनकी दो बेसिक प्रॉपर्टीज होती हैं यानी कि इन रिसोर्सेस के दो क्या होते हैं कैरेक्टरिस्टिक होते हैं पहला है रिसोर्सेस आर स्कर्स ये जो रिसोर्सेस हैं ये सारे के सारे रिसोर्सेस कैसे होते हैं स्कर्स होते हैं यानी कि रिसोर्सेस की कमी होती है रिसोर्सेस कैसे होते हैं लिमिटेड होते हैं रिसोर्सेस कभी भी अनलिमिटेड नहीं होते पानी है तो पानी भी लिमिटेड है पानी की स्केरस टी है तभी शायद पीने वाले पानी के लिए हम बिसलरी की बॉटल्स खरीदते हैं घर में हम आरओ वगैरह लगवा हैं समझ में आ रहा है हर तरह के रिसोर्सेस की स्केर सिटी है चाहे आप अंबानी की बात कर लो अंबानी की बात में ब पास में बहुत पैसा है स्टिल अंबानी और पैसा कमाते जा रहे हैं क्यों क्योंकि उस पैसे की स्केरस टी है पैसे क्या है लिमिटेड है पैसे की कमी है प्लस ये जो रिसोर्सेस होते हैं इनके अल्टरनेटिव यूजेस होते हैं यानी कि ये जो रिसोर्सेस हैं इनके मल्टीपल यूजेस होते हैं इन के बहुत सारे यूजेस होते हैं फॉर एग्जांपल लैंड है लैंड क्या है एक रिसोर्स है जिसकी स्केरस टी है यानी कि कमी है ठीक है लेकिन उस लैंड के मल्टीपल यूजेस हैं अल्टरनेटिव यूजेस हैं आप उस लैंड पर फार्मिंग भी कर सकते हो ठीक है आप उसी सेम पीस ऑफ लैंड पर चाहो तो अपनी फैक्ट्री भी खोल सकते हो या फिर आप सेम पीस ऑफ लैंड पर कोई बिल्डिंग बनवा सकते हो रेजिडेंशियल कंस्ट्रक्शन जिसे बोलते हैं रहने के लिए घर वगैरह बनवा लिया वहां पर आप अपना ऑफिस भी खोल सकते हो या फिर वहां पर आप कोई एनजीओ भी खोल सकते हो तो रिसोर्सेस केयर्स हैं लेकिन इन रिसोर्सेस के अल्टरनेटिव यूसेज हैं मल्टीपल यूसेज हैं तो ऐसे में एक नॉर्मल ह्यूमन बीइंग कैसे बिहेव करता है हमारा ह्यूमन बिहेवियर कैसा होता है अब हम लोग कौन हैं कंज्यूमर्स हैं ऐसे में एक नॉर्मल ह्यूमन बीइंग यानी कि जो कंज्यूमर है वो कैसे अपने लिमिटेड रिसोर्सेस को खर्च करें अपने पैसे को खर्च करें कि पैसे को खर्च करके उसे क्या मिलना चाहिए मैक्सिमम सेटिस्फैक्ट्रिली चाहिए कंज्यूमर यही सोचता है है इसी सिचुएशन के अंदर जो प्रोड्यूसर है उसके रिसोर्सेस भी लिमिटेड हैं वो अपने रिसोर्सेस को कैसे स्पेंड करें कि रिसोर्सेस को खर्च करके प्रोड्यूसर को क्या होना चाहिए मैक्सिमम प्रॉफिट होना चाहिए और ऐसे में ही हमारी एक सोसाइटी है पूरा का पूरा देश है इकोनॉमी है सोसाइटी अपने रिसोर्सेस को कैसे खर्च करें कि सोसाइटी को रिसोर्सेस खर्च करके चाहे वो कोल है पेट्रोल है देश का पैसा है कुछ भी है उन रिसोर्सेस को खर्च करके सोसाइटी को मैक्सिमम सोशल वेलफेयर हो यानी कि सोसाइटी का भला हो तो ऑन एन एवरेज एक ह्यूमन बीइंग कैसे सोचता है हमारा ह्यूमन बिहेवियर कैसा होता है कि अम हिन स्कर्स रिसोर्सेस को किस तरह से स्पेंड करें कि कंज्यूमर को मैक्सिमम सेटिस्फैक्ट्रिली का सबसे ज्यादा भला होना चाहिए सोशल वेलफेयर होना चाहिए इसी पूरी स्टडी को क्या बोला जाता है इकोनॉमिक्स समझ में आ गया रिसोर्सेस की स्केरस टी है रिसोर्सेस के अल्टरनेटिव यानी कि मल्टीपल यूजेस हैं और हमारी ह्यूमन वांट्स कैसी है अनलिमिटेड है हमारी इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती तो इकोनॉमिक्स एक साइंस है जिसके अंदर हम ह्यूमन बिहेवियर को स्टडी करते हैं हमारे बिहेवियर को स्टडी करा जाता है कि कैसे हम ये जो स्कर्स रिसोर्सेस हैं लिमिटेड रिसोर्सेस हैं इनका एलोकेशन करते हैं एलोकेशन मतलब इन्हें स्पेंड करते हैं इन्हें खर्च करते हैं कि अगर हमें कंज्यूमर है तो हम चाहते हैं कि हमारा सेटिस्फैक्ट्रिली और अगर हम पूरे के पूरे देश की बात करें पूरे सोसाइटी की बात करें तो सोसाइटी अपने पैसे अपने रिसोर्सेस को इस तरह से खर्च करती है सो सोसाइटी को मैक्सिमम सोशल वेलफेयर होना चाहिए सोसाइटी का सबसे ज्यादा भला होना चाहिए दिस इज इकोनॉमिक्स तो ये जो इकोनॉमिक्स है ये हमें दो ग्रीक वर्ड से मिला है एक ग्रीक वर्ड है ओइ कोस और दूसरा है नेमनोड हाउसहोल्ड का मतलब होता है परिवार आप में हम सब लोग किसके अंदर आते हैं हाउसहोल्ड के अंदर आते हैं परिवार के अंदर आते हैं मेमन का मतलब होता है मैनेजमेंट तो इकोनॉमिक्स का मतलब हो गया मैनेजमेंट ऑफ हाउसहोल्ड यानी कि ह्यूमन बिहेवियर का मैनेजमेंट ह्यूमन बिहेवियर को स्टडी करना दिस इज इकोनॉमिक्स समझ में आ गया तो इकोनॉमिक्स इज द साइंस ऑफ ह्यूमन बिहेवियर ह्यूमन बिहेवियर की साइंस है व्हिच इज कंसर्न्ड विद द एलोकेशन ऑफ स्कर्स रिसोर्सेस जो किससे रिलेटेड है कि स्कर्स रिसोर्सेस यानी कि जिन रिसोर्सेस की कमी है स्केरस टी है जो लिमिटेड रिसोर्सेस हैं उन्हें किस तरह से एलोकेट करना है स्पेंड करना है इन सच अ मैनर दैट द कंज्यूमर आर एबल टू मै देयर सेटिस्फैक्ट्रिली चाहिए अगर आप एक प्रोड्यूसर हो तो आप चाहते हो कि आपकी प्रॉफिट्स मैक्सिमम हो और सोसाइटी हो तो सोसाइटी चाहती है मैक्सिमम सोशल वेलफेयर हो दिस इज इकोनॉमिक्स स्टडी ऑफ ह्यूमन बिहेवियर इज इकोनॉमिक्स इन रिलेशन टू एलोकेशन ऑफ स्केस रिसोर्सेस करेक्ट है चमक गया अच्छे से यहां तक आगे देखो बात आती है वाइड डू वी नीड टू स्टडी इकोनॉमिक्स इकोनॉमिक्स को पढ़ना हमारे लिए क्यों जरूरी है सिंपल सा है इको को पढ़ना इसलिए जरूरी है ताकि इंडिविजुअल लेवल पर जो कंज्यूमर है आप मैं हम सब लोग हैं हमारा सेटिस्फैक्ट्रिली जो प्रोड्यूसर है उसका प्रॉफिट मैक्सिमम हो और जो इकोनॉमी है यानी कि जो पूरी की पूरी कंट्री है जो हमारी सोसाइटी है उसका भला होना चाहिए उसका सोशल वेलफेयर होना चाहिए सोशल वेलफेयर मतलब सबका भला हो हमारी जो सोसाइटी का बैकवर्ड सेक्शन है पुअर सेक्शन है वीकर सेक्शन है उनका भी भला होना चाहिए उनका भी अपलिफ्टमेंट हो दिस इज इकोनॉमिक्स इसलिए इको पढ़ना हमारे लिए जरूरी है अब देखो जब हम इ को पढ़ते हैं तो दो वर्ड्स हमेशा हमें देखने को मिलते हैं एक होता है स्केर सेडी और दूसरा होता है चॉइस स्केरस और चॉइस बहुत जरूरी है इको के लिए ये इको के एसेंस है स्केरस टी का मतलब क्या होता है मैंने पीछे भी आपको बताया जब किसी चीज की कमी होती है जब किसी चीज की शॉर्टेज होती है उसे हम लोग क्या बोलते हैं स्केरस टी बोलते हैं ना बेंगलुरु में पानी की स्केरस टी चल रही है यानी कि कमी चल रही है तो स्केरस टी का मतलब है किसी भी चीज की शॉर्टेज होना व्हाट यू हैव इज लेस दन व्हाट यू विश टू हैव आपको इतना चाहिए लेकिन अगर कोई चीज आपके पास में सिर्फ इतनी सी है इसका मतलब स्केरस टी है और जब किसी चीज की कमी होती है तो हमें चूज करना पड़ता है कि यार इन रिसोर्सेस जिनकी कमी है इन रिसोर्सेस को हम कहां पर स्पेंड करें तो बोलते हैं चॉइस इज द आउटकम ऑफ स्केरस टी स्केरस है उसकी वजह से चॉइस का जन्म हो रहा है मैंने कहा आपके पास में में लैंड है लैंड की स्केर सिटी है तो आपको चूज करना पड़ेगा कि यार इस लैंड पर मैं फार्मिंग करूं या फिर यहां पर मैं रेजिडेंशियल कंस्ट्रक्शन करूं घर बनाऊं अपना ऑफिस बनाऊं कोई एनजीओ खोलूं आपको सोचना पड़ेगा तो आपके सामने जितने भी अल्टरनेटिव्स है जितने भी ऑप्शंस है उनमें से बेस्ट को आप सिलेक्ट करते हो आपको चूज करना पड़ेगा क्यों क्योंकि रिसोर्सेस स् केयर्स हैं और इन रिसोर्सेस के अल्टरनेटिव यूसेज हैं तो स्केयर सिटी होगी तो हमें चूज करना पड़ेगा यानी कि हमें डिसीजंस लेने पड़ेंगे और इसी को हम लोग क्या बोलते हैं इकोनॉमिक्स समझ में आया आगे आता है इकोनॉमिक प्रॉब्लम क्या होती है देखो हमें पता है हमारे रिसोर्सेस की क्या है स्केरस है स्केयर सिटी है तो हमें क्या करना पड़ेगा हमें चूज करना पड़ेगा हमारे सामने प्रॉब्लम ऑफ चॉइस आता है इसी प्रॉब्लम ऑफ चॉइस को बोला जाता है इकोनॉमिक प्रॉब्लम वही लिखा है इकोनॉमिक प्रॉब्लम मींस द प्रॉब्लम ऑफ चॉइस कि हमें चूज करना पड़ेगा और द प्रॉब्लम ऑफ एलोकेशन ऑफ स्कर्स रिसोर्सेस टू डिफरेंट यूसेज हमें सोचना पड़ेगा कि ये जो स्केस रिसोर्स सोर्सेस जिनकी कमी है इन्हें किस तरह से एलोकेट यानी कि स्पेंड खर्च करना है अलग-अलग यूजेस पर तो ये जो चूज करने वाला काम है इस पूरी प्रॉब्लम को क्या बोला जाता है इकोनॉमिक प्रॉब्लम द एलोकेशन ऑफ द लिमिटेड रिसोर्सेस लिमिटेड रिसोर्सेस को किस तरह से खर्च करना है पहली चीज तो ये एंड द डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ द फाइनल मिक्स ऑफ गुड्स एंड सर्विसेस सबसे पहले तो प्रोड्यूसर भाई साहब सोचेंगे कि उनके पास में जो लिमिटेड रिसोर्सेस हैं लैंड है लेबर है टूल्स है मशीनें वगैरह है पैसा है उन्हें वो कहां खर्च करें कौन से गु गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन करें समझ में आया गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन हो गया अब इन गुड्स और सर्विसेस को किस तरह से डिस्ट्रीब्यूटर है देखो बेसिकली हमारी जो सोसाइटी है उस सोसाइटी को हम दो पार्ट्स में डिवाइड कर देते हैं एक होता है हमारी सोसाइटी का रिचर सेक्शन पैसे वाले लोग जिनके पास में सब कुछ है एक होता है हमारी सोसाइटी का वीकर सेक्शन यानी कि गरीब लोग जिनके पास में चीजों की कमी है तो ये डिसाइड करना कि जो गुड्स और सर्विसेस बने हैं प्रोड्यूस करे हैं उन्हें किसे डिस्ट्रीब्यूटर है रिचर लोगों को डिस्ट्रीब्यूटर है या पुअर लोगों को डिस्ट्रीब्यूटर है ये दो बेसिक इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स होती है जो हर सोसाइटी फेस करती है तो बेसिकली ये इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स का जन्म हो क्यों रहा है पहला रीजन क्या है कि हमारे जो रिसोर्सेस हैं वो कैसे हैं स्केरस हैं स्केरस टी ऑफ इकोनॉमिक रिसोर्सेस रिसोर्सेस की कमी है चाहे लैंड ले लो चाहे पैसा ले लो चाहे लेबर ले लो हर चीज की स्केरस टी है सेकंड है इन रिसोर्सेस के अल्टरनेटिव यूजेस हैं मल्टीपल यूजेस हैं फॉर एग्जांपल अगर आपकी जेब के अंदर एक ₹5000000 का जो नोट है वो नोट आप आपका क्या है स्कियर्स है लिमिटेड है लेकिन उसके अल्टरनेटिव यूसेज है आप उससे बहुत सारी चीजें कर सकते हो उससे आप बाइक में पेट्रोल दलवा सकते हो आप अपने लिए ड्रेस लेकर आ सकते हो गर्ल्स है तो वो कॉस्मेटिक्स पर उसे खर्च कर सकती हैं आप एंटरटेनमेंट पर खर्च कर सकते हो मूवी देखकर आ सकते हो आप कोई कोर्स परचेस कर सकते हो बुक्स वगैरह खरीद सकते हो आप गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड को डेट पर लेकर जा सकते हो तो उनके अल्टरनेटिव यूजेस हैं और हमारी जो ह्यूमन वांट्स है वो कैसी है अनलिमिटेड है हमारी इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हमारी इच्छाएं अन लिमिटेड है हमें ये चाहिए वो चाहिए कुछ ना कुछ हमें चाहिए समझ में आया तो ये तीन कारण है जिसकी वजह से किसका जन्म होता है इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स का जन्म होता है समझ में आ गया अब देखो इको की दो ब्रांचेस होती है एक होती है माइक्रो इकोनॉमिक्स और एक होती है मैक्रो इकोनॉमिक्स हमें पता है रिसोर्सेस की क्या है स्केरस है स्केरस है तो हमें क्या करना पड़ेगा चूज करना पड़ेगा और चूज करने को ही हम लोग क्या बोलते हैं इकोनॉमिक प्रॉब्लम क्या बोलते हैं इकोनॉमिक प्रॉब्लम अब जब इन इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स को हम एक स्मॉल लेवल पर डिस्कस करते हैं हम इंडिविजुअल के लेवल पर डिस्कस करते हैं एक बंदे के लेवल पर या फिर ग्रुप ऑफ इंडिविजुअल्स के लेवल पर डिस्कस करते हैं तो उसे हम लोग क्या बोल देते हैं माइक्रो इकोनॉमिक्स क्या बोल देते हैं माइक्रो इकोनॉमिक्स रिसोर्सेस की स्केरस है हमें चूज करना पड़ेगा तो इकोनॉमिक प्रॉब्लम को जब हम छोटे लेवल पर डिस्कस करते हैं मान लो मैं एक इंडिविजुअल कंज्यूमर की बात कर रही हूं ये जो इंडिविजुअल कंज्यूमर है इसका नाम है गुंजन गुंजन सोच रही है कि वो अपने पैसे को कहां खर्च करें कि पैसे को खर्च करके उसे मैक्सिमम सेटिस्फैक्ट्रिली ड्रेस लूं मैं खाने पर पैसे को खर्च करूं मैं किसी को गिफ्ट दे दूं मैं पढ़ाई पर पैसे को खर्च करूं तो उसके दिमाग में बहुत सारी चीजें आ रही है 500 का नोट रखा हुआ है 500 के नोट में बहुत सारी चीजें हो सकती है गुंजन सोच सकती है मैं मेरे लिए ड्रेस ले आऊं या फिर मैं मेरे लिए कॉस्मेटिक्स ले आऊं या फिर गुंजन के दिमाग में आएगा कोई बुक्स खरीद लेती हूं कोई कोर्स परचेस कर लेती हूं एंटरटेनमेंट पे खर्च कर सकती है पूल पार्टी करने ले चले जाए या फिर मान लो कोई मूवी देखने चले चले जाए या फिर कैंटीन में दोस्तों के साथ में पार्टी कर सकती है बहुत सारे ऑप्शंस है वो अपने पैसे को कहां खर्च करें कि उसे मैक्सिमम क्या मिले सेटिस्फैक्ट्रिली प्रोड्यूसर का नाम है राहुल राहुल सोच रहा है मैं मेरे लैंड लेबर अपनी मशीनरी पैसे को कहां खर्च करूं कौन से गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन करूं कि यार मुझे प्रॉफिट मैक्सिमम होना चाहिए ये माइक्रो इकोनॉमिक्स है हम इंडिविजुअल्स की बात कर रहे हैं या फिर हम ग्रुप ऑफ इंडिविजुअल्स की भी बात कर सकते हैं बटरफ्लो पैन सब जानते हो बटरफ्लो पैन प्रोड्यूस करने वाले मार्केट में जितने भी प्रोड्यूसर्स हैं प्रोड्यूसर्स चीज को बना के बेचते हैं तो वो चीजों की क्या करते हैं सप्लाई करते हैं तो हम बटरफ्लो पैन की सप्लाई की बात कर रहे हैं ग्रुप ऑफ प्रोड्यूसर्स की बात कर रहे हैं लेकिन एक ही गुड बटरफ्लो एक ही गुड के प्रोड्यूसर्स की बात कर रहे हैं वो भी माइक्रो इकोनॉमिक्स में आएगा ग्रुप ऑफ पीपल की भी हम बात कर सकते हैं या फिर बटरफ्लो खरीदने वाले मार्केट में जितने भी कंज्यूमर्स हैं लाखों कंज्यूमर्स होंगे हम सबकी डिमांड की बात कर रहे हैं कि कौन कितने बटर फ्लोस खरीदता है वो भी माइक्रो इकोनॉमिक्स के अंदर ही आएगा क्योंकि हम एक गुड के डिमांड और सप्लाई की बात कर रहे हैं दिस इज माइक्रो इकोनॉमिक्स लेकिन हमें पता है रिसोर्सेस की स्केरस टी है हमें चूज करना पड़ेगा इकोनॉमिक प्रॉब्लम इसी को बोलते हैं जब इस चीज को हम एक लार्ज लेवल पर स्टडी करते हैं यानी कि जब हम पूरी की पूरी कंट्री की बात कर रहे हैं जब हम पूरे देश की बात कर रहे हैं उसे हम लोग क्या बोलते हैं मैक्रो इकोनॉमिक्स तो यहां पर हम कभी भी एक इंडिविजुअल कंज्यूमर की बात नहीं करते एक इंडिविजुअल प्रोड्यूसर की बात बात नहीं करते अ थोड़े से प्रोड्यूसर्स की सप्लाई या फिर थोड़े से कंज्यूमर्स के डिमांड की बात नहीं करते यहां पर हमारे देश में जितने भी गुड्स और सर्विसेस हैं उनका जितना भी प्रोडक्शन हो रहा है यानी कि देश में जितने भी गुड्स और सर्विसेस हैं टोटल जितना भी प्रोडक्शन हो रहा है उसकी मार्केट वैल्यू को जीडीपी बोलते हैं ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट हम इसकी बात करते हैं देश के अंदर कितना अनइंप्लॉयमेंट है यानी कि कितनी बेरोजगारी है हम इसकी यहां पर बात करते हैं हम बात करते हैं देश के अंदर कितनी पॉवर्टी है यानी कि गरीबी है कई कई बार होता है कि हर चीज की प्राइसेस इंक्रीज होती रहती है महंगाई जिसे बोलते हैं इंग्लिश में उसे इंफ्लेशन कहते हैं हम इंफ्लेशन की यहां पर बात करते हैं हमारे देश की टोटल इनकम कितनी है हमारी नेशनल इनकम कितनी है हम उसकी बात करते हैं देश में जितने भी कंज्यूमर्स हैं सारे कंज्यूमर्स की टोटल डिमांड की बात करते हैं टोटल जितने भी गुड्स और सर्विसेस की वो डिमांड करें मैं एक गुड की बात नहीं कर रही बटरफ्लो की मार्केट में जितने भी गुड्स और सर्विसेस प्रोड्यूस हो रहे हैं उन सब की सारे के सारे कंज्यूमर्स कितनी डिमांड कर रहे हैं तो इसे हम लोग क्या बोले एग्रीगेट डिमांड क्या बोलेंगे एग्रीगेट मतलब होता है टोटल एग्रीगेट डिमांड की बात करते हैं जितने भी प्रोड्यूसर्स हैं वो जितने भी गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन कर रहे हैं उसे हम लोग क्या बोलेंगे एग्रीगेट सप्लाई यहां पर इस तरह के बड़े मुद्दों को डिस्कस करा जाता है सरकार का बजट आता है आरबीआई कोई ना कोई पॉलिसी चेंज करता है दैट इज मैक्रो इकोनॉमिक्स तो जब हम किसी भी इकोनॉमिक प्रॉब्लम को छोटे लेवल पर पढ़ते हैं दैट इज माइक्रो इकोनॉमिक्स जब हम इकोनॉमिक प्रॉब्लम को एक बड़े लेवल पर स्टडी करते हैं दैट इज मैक्रो इकोनॉमिक्स तो माइक्रो इकोनॉमिक्स देखर समझ में आ रहा है कहां से आया है ग्रीक वर्ड एमआई के आर ओएस से आया है माइक्रो से जिसका मतलब होता है स्मॉल माइक्रो इकोनॉमिक स्टडीज इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स यहां पर हम इकोनॉमिक प्रॉब्लम यानी कि स्केरस है तो हमें चूज करना पड़ेगा इन्हें जब हम इंडिविजुअल लेवल्स पर पढ़ते हैं या फिर ग्रुप ऑफ इंडिविजुअल्स भी हो सकता है जैसे हम एक फर्म एक प्रोड्यूसर की बात कर रहे हैं एक हाउसहोल्ड एक परिवार की बात कर रहे हैं एक इं इंडस्ट्री इंडस्ट्री मतलब बटरफ्लो बनाने वाले जितने भी प्रोड्यूसर्स हैं हम सारे प्रोड्यूसर्स की बात कर रहे हैं इंडिविजुअल मार्केट की हम बात करें मार्केट के अंदर बहुत सारी फर्म्स होती है बहुत सारे प्रोड्यूसर्स होते हैं उसकी जब हम बात कर रहे हैं दैट इज माइक्रो इकोनॉमिक्स माइक्रो इकोनॉमिक्स के अंदर मेन मुद्दा क्या होता है डिटरमिनेशन ऑफ आउटपुट कि फर्म का आउटपुट कितना होगा फर्म को कितना प्रोडक्शन करना है फर्म की प्राइस क्या होगी जो भी गुड है उसे कितनी प्राइस पर बेचा जाएगा ये मेन मुद्दे होते हैं और इसी को हम थ्योरी ऑफ प्राइस भी बोलते हैं क्या बोलते हैं थ्योरी ऑफ प्राइस अब देखो वैसे तो आप आगे चलकर डिटेल में पढ़ोगे लेकिन यहां पर प्राइस कैसे डिसाइड करी जाती है ये किसी भी चीज की क्या होती है डिमांड होती है डिमांड का कर्व ऐसे ही बनता है आप आगे चलकर पढ़ोगे ये किसी भी चीज की सप्लाई होती है जहां पर डिमांड और सप्लाई इंटरसेक्ट कर जाती है ये प्रोडक्ट की प्राइस डिसाइड हो जाती है कि प्रोडक्ट को इतने में बेचना है ये माइक्रो इकोनॉमिक्स है थ्योरी ऑफ प्राइस एक होता है मैक्रो इकोनॉमिक्स मैक्रो इकोनॉमिक्स आया है ग्रीक वर्ड एम ए के आर ओएस से जिसका मतलब होता है लार्ज जब हम किसी इकोनॉमिक प्रॉब्लम यानी कि प्रॉब्लम ऑफ स्केरस एंड चॉइस को पूरी इकोनॉमी के लेवल पर पढ़ते हैं एट द लेवल ऑफ इकोनॉमी एज अ होल जब हम पूरे देश के लेवल पर पड़ते हैं उस उसे हम मैक्रो इकोनॉमिक्स बोलते हैं एग्रीगेट्स की बात करते हैं टोटल की बात करते हैं जैसे नेशनल इनकम कितनी है हमारी हमारे देश में जितने भी कंज्यूमर्स हैं वो सारे के सारे गुड्स और सर्विसेस पर टोटल कितना खर्चा कर रहे हैं जनरल प्राइस लेवल जब देश के अंदर हर चीज की प्राइसेस इंक्रीज होती हैं उसे हम लोग क्या बोलते हैं इंफ्लेशन जब देश के अंदर हर चीज की प्राइसेस डिक्रीज होती है उसे हम लोग क्या बोलते हैं डिफ्लेशन इस तरह के मुद्दों को यहां पर डिस्कस करा जाता है एग्रीगेट डिमांड क्या है एग्रीगेट सप्लाई क्या है दिस इज मैक्रो इकोनॉमिक समझ में आ गया अ से अब देखो दोनों के अंदर एक बार हम लोग डिफरेंस देख लेते हैं सबसे पहले बात करते हैं माइक्रो इकोनॉमिक्स और मैक्रो इकोनॉमिक्स दोनों में क्या डिफरेंस है देखो मीनिंग की बात करते हैं माइक्रो इकोनॉमिक्स के अंदर हम किसी भी इकोनॉमिक प्रॉब्लम को इंडिविजुअल लेवल पर स्टडी करते हैं कि एक इंडिविजुअल फर्म की हम लोगों ने बात कर ली इंडिविजुअल परिवार की हम लोगों ने बात कर ली इंडिविजुअल कंज्यूमर की हम लोगों ने बात कर ली लेकिन मैक्रो इकोनॉमिक्स के अंदर हम किसी भी इकोनॉमिक प्रॉब्लम को इकोनॉमिक इशू को पूरे देश के लेवल पर स्टडी करते हैं यानी कि इकोनॉमी एज अ होल पूरे देश की हम लोग बात करते हैं सेंट्रल इशू क्या है माइक्रो इकोनॉमिक्स में हम लोग देखते हैं कि एक जो इंडिविजुअल प्रोड्यूसर है वो अपने कितना प्रोडक्शन करेगा डिटरमिनेशन ऑफ आउटपुट मतलब इंडिविजुअल प्रोड्यूसर का प्रोडक्शन कितना होगा उसका आउटपुट कितना होगा उसके प्रोडक्ट की क्या प्राइस होगी प्राइस मैंने आपको बता दिया हम कैसे निकालते हैं ये डिमांड है और ये हमारे पास में सप्लाई है तो इस तरह से प्राइस डिसाइड हो जाती है लेकिन मैक्रो इकोनॉमिक्स में मेन मुद्दा है कि एग्रीगेट आउटपुट कितना होगा देश में हमारे जो तीनों सेक्टर्स होते हैं प्राइमरी सेक्टर सेकेंडरी सेक्टर टचली सेक्टर आप 9थ 10th में पढ़ के आए होंगे तीनों सेक्टर्स का टोटल प्रोडक्शन कितना होगा टोटल प्रोडक्शन की मार्केट वैल्यू को बोला जाता है एग्रीगेट आउटपुट कितना होगा हमारे देश का जीडीपी कितना होगा जनरल प्राइस लेवल क्या है देश में इंफ्लेशन है या डिफ्लेशन है अजमन मतलब हम क्या मान के चल रहे हैं देखो जब हम माइक्रो इकोनॉमिक्स पढ़ते हैं तो हम ये मान के चलते हैं कि मैक्रो से रिलेटेड जो सारी की सारी चीजें हैं वो सारी चीजें कैसी हैं कांस्टेंट है जब हम माइक्रो पढ़ते हैं तो हम मैक्रो से रिलेटेड जैसे मैक्रो में एग्रीगेट डिमांड आता है एग्रीगेट सप्लाई आता है ये सारी चीजें हम मान के चलेंगे कांस्टेंट है माइक्रो पढ़ रहे हो तो मान के चलोगे मैक्रो की सारी चीजें कांस्टेंट हैं और जब हम मैक्रो इकोनॉमिक्स पढ़ते हैं तो वी अज्यू माइक्रो वेरिएबल रिमन कांस्टेंट कि माइक्रो से रिलेटेड सारी चीजें कांस्टेंट हैं माइक्रो से रिलेटेड मतलब इंडिविजुअल की डिमांड में कोई चेंज नहीं आ रहा इंडिविजुअल प्रोड्यूसर की सप्लाई में कोई चेंज नहीं आ रहा माइक्रो पढ़ रहे हो तो मैक्रो की सारी चीजें कांस्टेंट मानो मैक्रो पढ़ रहे हो तो माइक्रो की सारी चीजें कांस्टेंट मानो सेंट्रल रोल माइक्रो इकोनॉमिक्स के अंदर मेन रोल किसका होता है डिमांड और सप्लाई का होता है मेन रोल डिमांड और सप्लाई का है लाइक द प्रॉब्लम ऑफ प्रोडक्ट प्राइसिंग जैसे डिमांड ये है सप्लाई ये है इसके हेल्प से हम प्रोडक्ट की प्राइस डिसाइड करते हैं लेकिन मैक्रो के अंदर मेन रोल किसका होता है यहां पर गवर्नमेंट पॉलिसीज होती है सरकार का रोल होता है गवर्नमेंट की जितनी भी पॉलिसीज होती हैं गवर्नमेंट की पॉलिसीज होती है कि हमसे कितना टैक्सेस लेना है ठीक है सरकार अपने पैसे को कहां-कहां पर खर्च करेगी तो ये जो गवर्नमेंट की पॉलिसीज होती हैं इसी को हम लोग क्या बोलते हैं फिस्कल पॉलिसी क्या कहते हैं फिस्कल पॉलिसी या फिर बजेट पॉलिसी भी बोलते हैं आप जो क्लास 12थ के अंदर पढ़ोगे तो यहां पर हम फिस्कल पॉलिसी के बारे में बोलते हैं हमारे सारे के सारे जितने भी देश के अंदर बैंक्स हैं सारे बैंक्स का पापा कौन है सारे बैंक्स का पापा है आरबीआई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पैसे से रिलेटेड पॉलिसीज बनाता है जिसे हम लोग बोलते हैं मोनेटरी पॉलिसी क्या बोलते हैं मोनेटरी पॉलिसी ये क्लास 12थ की चीजें हैं तो यहां पर हम आरबीआई की मोनेटरी पॉलिसीज को पढ़ते हैं सरकार की फिस्कल पॉलिसीज के बारे में पढ़ते हैं बड़े मुद्दे डिस्कस करते हैं कि देश में अनइंप्लॉयमेंट बेरोजगारी कितनी है गरीबी कितनी है पॉवर्टी इंफ्लेशन महंगाई कितनी है माइक्रो का दूसरा नाम है थ्योरी ऑफ प्राइस बहुत इंपॉर्टेंट है और मैक्रो का दूसरा नाम है थ्योरी ऑफ इनकम एंड एंप्लॉयमेंट अगेन बहुत इंपॉर्टेंट है माइक्रो का दूसरा नाम थ्योरी ऑफ प्राइस मैक्रो का दूरा नाम दूसरा नाम है थ्योरी ऑफ इनकम एंड एंप्लॉयमेंट समझ में आ गया आगे देखो बात करते हैं पॉजिटिव एंड नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स बहुत ही आसान सा है देखो पॉजिटिव इकोनॉमिक्स का मतलब क्या होता है जभी भी हम किसी फैक्ट की बात कर रहे हैं किसी भी चीज की बात कर रहे हैं जो पास्ट से रिलेटेड है किससे रिलेटेड है जो पास्ट से रिलेटेड है या फिर प्रेजेंट से रिलेटेड है फ्यूचर से रिलेटेड है जब हम पास्ट के किसी इवेंट की बात कर रहे हैं जब हम प्रेजेंट के किसी इवेंट की बात कर रहे हैं या फिर हम फ्यूचर के किसी इवेंट की बात कर रहे हैं कि पास्ट में ऐसा हुआ था प्रेजेंट में ऐसा हो रहा है फ्यूचर में ऐसा होगा भूत भविष्य वर्तमान ठीक है और और ये सारी की सारी चीजें किस पर बेस्ड है ये सारी की सारी चीजें फैक्ट्स पर बेस्ड है ये सारी की सारी चीजें फिगर्स पर बेस्ड हैं कि इन चीजों को हम वेरीफाई कर सकते हैं कि ये जो चीजें हैं वो सही है या गलत हैं इसे हम लोग बोलते हैं पॉजिटिव इकोनॉमिक्स फॉर एग्जांपल मैंने बोला इंडिया गट इंडिपेंडेंस ऑन 15th ऑफ अगस्ट 1947 तो ये क्या है एक पास्ट से रिलेटेड फैक्ट है जिसे आप वेरीफाई कर सकते हो चेक करके बता सकते हो कि नेहा मैम सही बोल रही है या गलत बोल रही है गलत भी हो सकता है गलत भी पॉजिटिव इकोनॉमिक्स में ही आएगा आप वेरीफाई कर सकते हो ना ये क्या है पॉजिटिव इकोनॉमिक्स है जब हम पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर के किसी इवेंट की बात कर रहे हैं व्हिच आर बेस्ड ऑन फैक्ट्स एंड फिगर्स हम अपना ओपिनियन नहीं दे रहे हैं हम अपना सजेशन नहीं दे रहे हैं कोई वैल्यू जजमेंट पास नहीं कर रहे हैं हम सिर्फ फैक्ट और फिगर बता रहे हैं जो बात थी वो बात एज इट इज बता रहे हैं जो बात फ्यूचर में भी हो सकती है इसे हम लोग पॉजिटिव इकोनॉमिक्स बोलते हैं ठीक है लेकिन एक होती है नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स जब हम पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर का कोई इवेंट नहीं बता हैं कोई बात नहीं बता रहे हैं बल्कि अपना सजेशन दे रहे हैं कि ऐसा होना चाहिए हम अपना सजेशन दे रहे हैं जजमेंट पास कर रहे हैं ऐसा होना चाहिए ओपिनियन दे रहे हैं उसे हम लोग क्या बोलते हैं नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स समझ में आया अब ओपिनियन तो सबका अलग-अलग होता है आपका ओपिनियन अलग होगा मेरा ओपिनियन अलग होगा हम किसी के ओपिनियन को वेरीफाई नहीं कर सकते हम ओपिनियन को कभी सही या गलत बता ही नहीं सकते आप मान लो कांग्रेस को सपोर्ट करते हो मैं बीजेपी को सपोर्ट करती हूं तो कोई ऐसे थोड़ी ना बोल सकता है कि नेहा मैम सही है आप गलत हो या फिर आप सही हो नेहा मैम गलत है ऐसा पॉसिबल नहीं है यह क्या होता है नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स तो पॉजिटिव इकोनॉमिक्स के अंदर हम किसी भी इकोनॉमिक इशू इकोनॉमिक प्रॉब्लम की बात करते हैं जो पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर से रिलेटेड है जिसे हम फैक्ट्स और फिगर्स की हेल्प से डिस्कस करते हैं जिन्हें वेरीफाई करा जा सकता है फॉर एग्जांपल मैंने कहा आज जो है वो पीएम की एक मीटिंग हुई थी प्राइम मिनिस्टर की एक रैली टाइप हुई थी और उस रैली को 1.5 लाख लोगों ने अटेंड करा ठीक है ये क्या है पॉजिटिव इकोनॉमिक्स है इट इज बेस्ड ऑन फैक्ट्स एंड फिगर्स अब देखा गया कि एक्चुअली मैं गलत हूं इस रैली को 2 लाख लोगों ने अटेंड करा था तो मेरा स्टेटमेंट गलत हो गया गलत भी हो सकता है सही भी हो सकता है किसमें आएगा पॉजिटिव इकोनॉमिक्स के अंदर आएगा तो कैरेक्टरिस्टिक क्या है यहां पर हम किसी भी इकोनॉमिक प्रॉब्लम की बात करते हैं जो पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर से रिलेटेड है बात हम फैक्ट्स और फिगर्स के बेसिस पर कर रहे हैं इन स्टेटमेंट्स को वेरीफाई करा जा सकता है कि जो स्टेटमेंट मैंने दिया है वो ट्रू है या फाल्स है वो ट्रू भी हो सकता है फॉल्स भी हो सकता है दोनों किसम आते हैं पॉजिटिव के अंदर यहां पर हम हमारा ओपिनियन नहीं दे रहे हैं सजेशन नहीं दे रहे हैं हम कोई जजमेंट पास नहीं कर रहे हैं जजमेंटल हम नहीं हो रहे ये किसमें आता है पॉजिटिव इकोनॉमिक्स के अंदर लेकिन नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स में हम व्हाट वाज व्हाट इज व्हाट वुड बी उसकी बात नहीं करते क्या था क्या है क्या होगा हम बात करते हैं व्हाट ऑट टू बी क्या होना चाहिए जो इकोनॉमिस्ट नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स को सपोर्ट करते हैं वो कभी नहीं बताते कि क्या था क्या है क्या होगा वो हमेशा बताते हैं क्या होना चाहिए मतलब वो अपने ओप ऑपिनियंस देते हैं जजमेंट पास करते हैं यहां पर डिबेट्स वगैरह हो जाती है तो यहां पर हमेशा क्या दिए जाते हैं सजेशंस ओपिनियन दिए जाते हैं वैल्यू जजमेंट है अब वैल्यू जजमेंट होगा मैं कुछ कह रही हूं मैं अपना ओपिनियन दे रही हूं आप कुछ कह रहे हो आप अपना ओपिनियन दोगे तो कंट्रोवर्सी और डिबेट होना बहुत ओबवियस है और किसी के भी ओपिनियन को हम वेरीफाई नहीं कर सकते सही गलत नहीं बता सकते मैं बीजेपी को सपोर्ट कर रही हूं आप कांग्रेस को सपोर्ट कर सकते हो कोई नहीं बोल सकता कि नेहा मैम सही है आप गलत हो आप सही हो नेहा मैम गलत है अपना अपना ओपिनियन है अपनी-अपनी चॉइस है तो यहां पर ये जो इकोनॉमिस्ट होते हैं ये बताते हैं व्हाट ऑट टू बी क्या होना चाहिए नहीं बताते क्या था क्या है क्या होगा ये सिर्फ बताते हैं क्या होना चाहिए समझ में आ गया तो यहां पर ओपिनियन है वैल्यू जजमेंट्स है सजेशंस है जिन्हें वेरीफाई करना पॉसिबल नहीं है सही गई सही और गलत बताना पॉसिबल नहीं है डिफरेंस देख लें पॉजिटिव इकोनॉमिक्स के अंदर हम किसी भी इकोनॉमिक इशू की बात करते हैं जो पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर से रिलेटेड है भूतकाल वर्तमान काल भविष्य काल और नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स के अंदर हम इकोनॉमिस्ट बताते हैं क्या होना चाहिए वो अपना ओपिनियन देते हैं ठीक है पॉजिटिव इकोनॉमिक्स रिलेटेड है व्हाट वाज क्या था व्हाट इज क्या है एंड व्हाट वुड बी क्या होगा नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स वाले बोलते हैं व्हाट ऑट टू बी क्या होना चाहिए पॉजिटिव इकोनॉमिक्स जो है वो फैक्ट्स ऑफ फिगर्स पर बेस्ड है पीएम की रिली को 1.5 लाख लोगों ने अटेंड करा इंडिया गॉट इंडिपेंडेंस ऑन मैंने कह दिया 21 ऑफ अगस्ट 1947 हमें पता है ये स्टेटमेंट गलत है वेरीफाई कर सकते हैं तो ये भी किसमें आएगा पॉजिटिव इकोनॉमिक्स के अंदर ही लेकिन नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स के अंदर कोई फैक्ट्स फिगर्स नहीं होते पॉजिटिव इकोनॉमिक्स के अंदर कोई वैल्यू जजमेंट नहीं है यहां पर वैल्यू जजमेंट है अपने ओपिनियन दिए जाते हैं बोलते हैं ना तुम बहुत ज्यादा जजमेंटल हो रहे हो हर चीज को जज करते हो तो ये लोग हर चीज को जज करते हैं पॉजिटिव बताएंगे नेगेटिव बताएंगे स्टेटमेंट्स ऑफ पॉजिटिव इकोनॉमिक्स आर नॉट नेसेसरीली द स्टेटमेंट्स ऑफ ट्रुथ अगर पॉजिटिव इकोनॉमिक्स का कोई स्टेटमेंट है तो जरूरी नहीं है वो स्टेटमेंट हमेशा सची हो जैसे मैंने बोला पीएम की रैली को 1.5 लाख लोग ों ने अटेंड करा गलत है पीएम की लोग रैली को 2 2 लाख लोगों ने अटेंड करा तो मेरा स्टेटमेंट गलत भी हो सकता है हम ट्रू और फाल्स बता सकते हैं लेकिन नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स में हम किसी स्टेटमेंट को ट्रू और फाल्स नहीं बता सकते क्योंकि ये ओपिनियन है आप किसी के ओपिनियन को सही या गलत नहीं बता सकते हो फॉर एग्जांपल मैं एक स्कीम की बात करती हूं एमजी नरेगा ठीक है एमजी नरेगा हां मनरेगा भी बोलते हैं महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट और ये स्कीम आई थी 2005 के अंदर इस टीम के अंदर गांव के अंदर जो लोग बिलो पॉवर्टी लाइन है जो लोग एक्सट्रीमली गरीब हैं हर फैमिली से एक बंदे को अगर बंदा काम करना चाहता है तो बंदे को 100 डेज का एंप्लॉयमेंट प्रोवाइड करा जाता है 100 दिन का सरकार एंप्लॉयमेंट प्रोवाइड करती है और मिनिमम वेजेस उस बंदे को दिए जाते हैं तो इस स्कीम के अंदर सरकार गांव में हर फैमिली से एक एडल्ट मेंबर को अगर बंदा काम करना चाहता है कोई ना कोई मैनुअल वर्क यानी कि मशीनों से काम नहीं होगा 100 डेज का गारंटीड एंप्लॉयमेंट प्रोवाइड करती है अब मान लो एक बच्ची है हमा हमारे पास में प्रियांशी प्रियांशी की फैमिली में किसी की जॉब लग गई ठीक है किसी को 100 डेज का एंप्लॉयमेंट मिल गया तो वो कहती है यार यह स्कीम तो बड़ी अच्छी है बहुत शानदार स्कीम है वही एक और बच्चा है जिसका नाम है राहुल बोल देते हैं राहुल बोलता है ये मनरेगा स्कीम ये तो बड़ी बकवास स्कीम है इससे तो किसी को बेनिफिट ही नहीं होता हो सकता है इससे फायदा नहीं हुआ हो तो ये इनका ओपिनियन है ये किसके अंदर आएगा नॉर्मेटिव इकोनॉमिक्स के अंदर हम किसी को सही या गलत नहीं बता सकते चमक गया अच्छे से सेकंड लास्ट टॉपिक आता है हमारे पास में व्हाट इज इकोनॉमी इकोनॉमी क्या है इकोनॉमी का मतलब आप तो बहुत सिंपल सा समझ लो कंट्री को क्या बोलते हैं इकोनॉमी बोलते हैं कंट्री को इकोनॉमी बोलते हैं एक सिस्टम है इस सिस्टम के अंदर बहुत सारे लोग हैं जो कुछ ना कुछ काम कर रहे हैं अपना लाइवलीहुड अर्न करने के लिए यानी कि अपना जीवन यापन करने के लिए एक सिस्टम है जिस सिस्टम के अंदर बहुत सारे लोग हैं करोड़ों लोग हैं जो कुछ ना कुछ काम कर रहे हैं पैसा कमाने के लिए अपना लाइवलीहुड अर्न करने के लिए जीवन यापन करने के लिए इस सिस्टम को हम लोग क्या बोल देते हैं इकोनॉमी कोई इंसान है जो फार्मिंग कर रहा है कोई बैंक में जॉब कर रहा है कोई ऑफिस में जॉब कर रहा है कोई किसी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा है तो कोई सेल्फ एंप्लॉयड है ठीक है तो इकोनॉमी एक सिस्टम है बाय व्हिच पीपल ऑफ एन एरिया अर्न देयर लिविंग जहां पर लोग अपना लाइवलीहुड अर्न करते हैं दे अर्न देयर लिविंग अब देखो कोई भी इंडिविजुअल है वो अपने आप में ही सक्षम नहीं है कोई भी इंडिविजुअल सिर्फ अपने दम पर सारे के सारे गुड्स और सर्विसेस तो प्रोड्यूस नहीं कर सकता अपनी सारी वांड्स को तो सेटिस्फाई नहीं कर सकता मैं टीचर हूं मैं आपको पढ़ा रही हूं तो मैं एजुकेशन दे रही हूं लेकिन खाने के लिए फूड के लिए अ या फिर फुटवियर्स के लिए कार वगैरह के लिए लैपटॉप के लिए मोबाइल फोन के लिए मुझे मार्केट पर डिपेंडेंट होना पड़ता है वो सारी चीजें मैं पैसा दूंगी और मार्केट से खरीद कर लेकर आऊंगी करेक्ट है तो कोई भी इंडिविजुअल कैपेबल नहीं है कि वो सारे गुड्स और सर्विसेस खुद ही प्रोड्यूस कर ले और खुद ही अपनी सारी की सारी वांट्स को सेटिस्फाई कर ले उसे दूसरे पर डिपेंडेंट होना ही पड़ेगा फॉर एग्जांपल एक फार्मर है तो जो फार्मर है वो फूड प्रोड्यूस कर सकता है ठीक है फूड दूसरे लोग उससे खरीदेंगे लेकिन बाकी दूसरी चीजों के लिए फॉर एग्जांपल क्लोथ्स के लिए फॉर एग्जांपल फुट वियर्स के लिए या फिर उसे ट्रैक्टर वगैरह चाहिए बहुत सारी चीजें चाहिए उन चीजों के लिए उसे मार्केट पर डिपेंडेंट होना पड़ता है दूसरे लोगों से वह चीज़ें परचेज करनी पड़ती हैं तो कहीं ना कहीं म्यूचुअल डिपेंडेंस होती है हम सब लोग एक दूसरे पर डिपेंडेंट हैं और तीन इकोनॉमिक एक्टिविटीज का जन्म होता है यह तीन बेसिक इकोनॉमिक एक्टिविटीज हैं इसी की वजह से सबसे पहले प्रोडक्शन होता है जैसे मैं कहती हूं फार्मर ने प्रोडक्शन करा और उसने वीट ग्रो करा प्रोडक्शन हुआ प्रोडक्शन के बाद में एक्सचेंज होता है यानी कि फार्मर जो प्रोड्यूसर है वो अपने माल को बेचेगा कंज्यूमर को ग्राहक को और कंज्यूमर बदले में क्या देगा पैसा देगा तो मैं गई मैंने फार्मर से क्या खरीद लिया वीट खरीद लिया और बदले में मैं फार्मर को क्या दे आऊंगी पैसा दे आऊंगी एक्सचेंज हो गया अब मैं उस वीट को क्या करूंगी यूज करूंगी यानी कि क्या होगा कंजमेट इकोनॉमिक एक्टिविटीज है प्रोडक्शन होता है उसके बाद में प्रोड्यूसर सामान कंज्यूमर को देता है कंज्यूमर बदले में पैसा दे देता है एक्सचेंज होता है और कंज्यूमर उस चीज को यूज़ करता है यानी कि कंजमेट इकोनॉमिक एक्टिविटीज हैं इसके अलावा एक इकोनॉमिक एक्टिविटी और है दैट इज इन्वेस्टमेंट प्रोड्यूसर को जो प्रॉफिट होता है उसे वो बिजनेस में इन्वेस्ट करता है मशीनें वगैरह खरीदता है प्रपोजल प्रोजेक्ट में पैसा लगाता है दैट इज इन्वेस्टमेंट तो बच्चा दो तरह की इकोनॉमी हमारे सामने आती हैं एक होती है सिंपल इकोनॉमी बहुत ही सिंपल इकोनॉमी और एक होती है कॉम्प्लेक्शन कम होता है लोगों की इनकम कम है लोगों के हाथ में पैसा कम है लोग डिमांड कम करेंगे डिमांड कम करेंगे तो ओबवियस सी बात है एक्सचेंज कम होता है ये म्यूचुअल इंटरडिपेंडेंस बहुत कम होती है सिंपल इकोनॉमी वो इकोनॉमी है जहां पर ये जो एक्सचेंज है ये जो इंटरडिपेंडेंस है ये मॉडरेट है यानी कि कम होता है क्योंकि लोगों के पास में पैसा कम है तो लोग डिमांड कम करेंगे एक्सचेंज कम होगा इंटरडिपेंडेंस कम है कॉम्प्लेक्शन पर लोगों के पास में बहुत पैसा है तो लोग डिमांड ज्यादा करते हैं तो एक्सचेंज भी ज्यादा होगा प्रोडक्शन भी ज्यादा होगा ये जो इंटरडिपेंडेंस है ये बहुत ज्यादा होती है समझ में आ गया तो सिंपल सा डिफरेंस है सिंपल इकोनॉमी में लोगों की इनकम कम होती है कॉम्प्लेक्टेड है बहुत सारी वांट्स है लेकिन वांट्स उतनी नॉर्मसिंव वांट्स नहीं होती उतनी बड़ी वांट्स नहीं होती कॉम्प्लेक्शन बड़ी-बड़ी वांट्स है सिंपल इकोनॉमी में मैंने बताया लोगों के हाथ में पैसा कम है अगर लोगों के हाथ में पैसा कम है तो ओबवियस सी बात है वो डिमांड कम करते हैं इंटरडिपेंडेंस कम है कॉम्प्लेक्शन ज्यादा है डिमांड ज्यादा करते हैं इंटरडिपेंडेंस ज्यादा है सिंपल इकोनॉमी के अंदर एक्सचेंज जो है वो मॉडरेट है कम एक्सचेंज होता है कॉम्प्लेक्शन ज्यादा है लोग डिमांड ज्यादा कर रहे हैं प्रोड्यूसर को प्रोडक्शन ज्यादा करना पड़ेगा एक्सचेंज ज्यादा होगा समझ में आ गया लास्ट टॉपिक आता है टाइप्स ऑफ इकोनॉमी वैसे ये जो टॉपिक है यह कल वाली क् में आप और ज्यादा डिटेल के अंदर डिस्कस करेंगे हम लोग इसे फिर भी यहां पर इस चैप्टर में भी हम लोग पढ़ते हैं तीन तरह की इकोनॉमी होती हैं मार्केट इकोनॉमी कंट्रोल्ड इकोनॉमी और मिक्स्ड इकोनॉमी पहली बात तो मार्केट इकोनॉमी का नाम है फ्री इकोनॉमी और इसे हम कैपिटिस इकोनॉमी भी बोलते हैं क्या-क्या बोलते हैं कैपिटिस इकोनॉमी और फ्री इकोनॉमी देखो ये एक ऐसी इकोनॉमी है जहां पर जो गवर्नमेंट का रोल होता है वो बहुत कम होता है नोशनल ना के बराबर है सरकार जो है वो देश के अंदर लॉ ऑर्डर और डिफेंस देख लेती है लॉ देख लेती है ऑर्डर देख लेती है डिफेंस वगैरह देख लेती है मतलब बेसिकली यहां पर चलती किसकी है प्राइवेट सेक्टर की प्राइवेट मतलब आप मैं हम जैसे इंडिविजुअल्स की यहां पर चलती है प्राइवेट सेक्टर खुद डिसाइड करता है व्हाट टू प्रोड्यूस व्हाट टू प्रोड्यूस मतलब कौन से गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन करना है कौन सी चीज बनानी है हाउ टू प्रोड्यूस गुड्स और सर्विसेस का प्रोडक्शन कैसे करना है गुड्स और सर्विसेस कैसे बनाने हैं यानी कि लेबर की हेल्प से ज्यादा प्रोडक्शन करना है या फिर ज्यादा से ज्यादा कम मशीनों की हेल्प से करना है और लास्ट है फॉर होम टू प्रोड्यूस यूज गुड्स और सर्विसेस बना लिए अब इन गुड्स और सर्विसेस को किसे बेचना है गुड्स और सर्विसेस को बना के रिच लोगों को बेचना है या पुअर लोगों को बेचना है ये तीनों डिसीजंस जो है वो प्राइवेट सेक्टर खुद लेता है सरकार का इंटरफेरेंस नहीं होता और प्राइवेट सेक्टर का मेन मकसद सिर्फ और सिर्फ क्या होता है प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन प्राइवेट सेक्टर अपने बारे में सोचता है वो सोशल वेलफेयर लोगों की भलाई के बारे में नहीं सोचता तो मार्केट इकोनॉमी मतलब फ्री और कैपिटिस इकोनॉमी सरकार का रोल नोशनल है ना के बराबर है प्राइवेट सेक्टर प्राइवेट इंडिविजुअल्स की हम लोगों की चलती है हम लोग खुद डिसाइड करते हैं व्हाट टू प्रोड्यूस कौन से गुड्स और सर्विसेस बनाने हैं हाउ टू प्रोड्यूस गुड्स और सर्विसेस कैसे बनाने हैं फॉर हूम टू प्रोड्यूस गुड्स और सर्विसेस बना के किसको बेचने हैं और हमारा मेन मकसद है प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन कंट्रोल्ड इकोनॉमी जिसका दूसरा नाम है सोशलिस्ट इकोनॉमी ठीक है सोशलिस्ट इकोनॉमी बोलते हैं और इसका दूसरा नाम है सेंट्रली सेंट्रली प्लान इकोनॉमी सेंट्रली प्लान इकोनॉमी के अंदर गवर्नमेंट का मेन रोल होता है और गवर्नमेंट को हम लोग बोलते हैं पब्लिक सेक्टर सरकार डिसाइड करती है क्या बनाना है कैसे बनाना है और गुड्स और सर्विसेस बना के किसको बेचना है और हम बोलते हैं सरकार का मेन मकसद होता है सोशल वेलफेयर सरकार लोगों की भलाई के लिए काम करती है सरकार कभी अपने प्रॉफिट्स को मैक्सिमाइज करने के बारे में नहीं सोचती थर्ड आता है मिक्स्ड इकोनॉमी मिक्स्ड इकोनॉमी जैसे इंडिया की इकोनॉमी है हमारे यहां पर प्राइवेट सेक्टर भी है और पब्लिक सेक्टर यानी कि गवर्नमेंट सेक्टर भी है आपने देखा प्राइवेट स्कूल्स हैं तो ग गवर्मेंट स्कूल्स हैं प्राइवेट हॉस्पिटल्स हैं गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स हैं प्राइवेट कंपनीज हैं तो पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स पीएस यूज वगैरह भी हैं तो दोनों का होता है प्राइवेट सेक्टर प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन के लिए काम कर रहा है पब्लिक सेक्टर सोशल वेलफेयर के लिए काम कर रहा है लेकिन जब हम प्रैक्टिकली बात करते हैं ना पता है तो दुनिया के सारे ही देश मिक्स्ड इकोनॉमी है जैसे सबसे अच्छा एग्जांपल मैंने आपको इंडिया का दे दिया लगभग दुनिया के सारे देश मिक्स्ड इकोनॉमी है सिंपल सा है जब गवर्नमेंट का रोल थोड़ा सा ज्यादा होने लग जाता है जिसे हम कम्युनिज्म बोलते हैं जैसे नॉर्थ कोरिया में सर सरकार का रोल बहुत ज्यादा है चाइना में सरकार का रोल बहुत ज्यादा है जब सरकार का रोल थोड़ा सा ज्यादा होने लग जाता है सरकार सारे डिसीजंस लेने लग जाती है व्हाट हाउ एंड फॉर हूम टू प्रोड्यूस तो उसे हम लोग बोल देते हैं कंट्रोल्ड इकोनॉमी ये वाली इकोनॉमी वहीं जो प्योर कंपटीशन होता है यानी कि सरकार का रोल कम होता है सारी चीजें प्राइवेट इंडिविजुअल्स डिसाइड करते हैं और सारी चीजें कैसे डिसाइड होती है अकॉर्डिंग टू डिमांड एंड सप्लाई कैसे डिसाइड होती है डिमांड और सप्लाई का सारा खेल है कि ये डिमांड है ये प्रोडक्ट की सप्लाई है यहां इंटरसेक्ट कर गए ये प्राइस हो गया डिमांड सप्लाई के अकॉर्डिंग सारी चीजें हो रही है जैसा यूएस में होता है जापान में होता है यूके में होता है उसे हम लोग बोल देते हैं मार्केट इकोनॉमी समझ में आ गया क्लियर है तो कंट्रोल्ड इकोनॉमी कौन सी इकोनॉमी है यानी कि हमारी सोशलिस्ट इकोनॉमी यानी कि सेंट्रली प्लान इकोनॉमी जहां पर सरकार डिसाइड करती है क्या बनाना है कैसे बनाना है बना के किसको बेचना है सरकार का कंट्रोल बहुत ज्यादा होता है और सरकार का मेन मकसद है सोशल वेलफेयर जैसा चाइना में रशिया में नॉर्थ कोरिया में देखने को मिलता है मार्केट इकोनॉमी कौन सी इकोनॉमी है जहां पर गवर्नमेंट का कंट्रोल कैसा है नोशनल है यानी कि ना के बराबर है सरकार इ सीमित तो लॉ ऑर्डर एंड डिफेंस यहां पर तीनों डिसीजंस क्या बनाना है कैसे बनाना है बना के किसको बेचना है प्राइवेट इंडिविजुअल्स लेते हैं अकॉर्डिंग टू मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई मान लो किसी चीज की सप्लाई ये है ठीक है और किसी चीज की डिमांड बहुत ज्यादा आ रही है अब भाई इतनी सारी डिमांड आ रही है इस इतनी सारी डिमांड को फुलफिल करना तो पॉसिबल नहीं है क्योंकि सप्लाई कम है मान लो टमाटर की सप्लाई इतनी है लेकिन टमाटर की डिमांड इतनी है अब इतनी डिमांड को फुलफिल करना पॉसिबल नहीं है तो टमाटर महंगे हो जाएंगे ताकि जो लोग अफोर्ड कर सकते हैं वही लोग खरीदें तो डिमांड और सप्लाई का सारा रोल है कैपिटिस इकोनॉमी या फी इकोनॉमी बोलते हैं और मेन मकसद क्या है प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन जैसे यूएसए यूके जापान है मिक्स्ड इकोनॉमी के अंदर गवर्नमेंट का रोल मॉडरेट है जैसा इंडिया के अंदर है यहां पर तीनों प्रॉब्लम्स व्हाट टू प्रोड्यूस हाउ टू प्रोड्यूस फॉर हूम टू प्रोड्यूस मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई यानी कि प्राइवेट सेक्टर सारे डिसीजंस लेता है लेकिन साथ में गवर्नमेंट सेक्टर भी है यानी कि सोशल कंसीडरेशन भी होता है फॉर एग्जांपल इंडिया तो यहां पर प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन भी है और साथ में सोशल वेलफेयर भी है समझ में आ गया लास्ट स्लाइड है हम लोग डिस्कस कर लेते हैं तीनों के बीच में एक प्रॉपर डिफरेंस तो सारी चीजें बहुत ही अच्छे से क्लियर हो जाएंगी देखो सबसे पहले सेंट्रली प्लान इकोनॉमी जहां पर मेन रोल किसका है सरकार का है मार्केट इकोनॉमी फ्री इकोनॉमी यानी कि मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई प्राइवेट सेक्टर और मिक्स्ड में दोनों आ गए नेचर की बात करें तो कंट्रोल्ड इकोनॉमी में जितनी भी इकोनॉमिक एक्टिविटीज होती हैं चाहे प्रोडक्शन हो कंजमेट मेंट हो एक्सचेंज हो सबको सरकार कंट्रोल करती है या फिर कोई सेंट्रल अथॉरिटी ठीक है सरकार की चलेगी मार्केट इकोनॉमी के अंदर सारी इकोनॉमिक एक्टिविटीज को प्राइवेट सेक्टर कंट्रोल करता है मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई के अकॉर्डिंग सारे के सारे डिसीजंस प्राइवेट सेक्टर लेता है और मिक्स्ड इकोनॉमी के अंदर जितनी भी इकोनॉमिक एक्टिविटीज हैं उन्हें मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई का तो रोल है ही प्राइवेट सेक्टर सारे डिसीजंस लेगा लेकिन अ सब चीजों को सरकार भी कहीं ना कहीं रेगुलेट और कंट्रोल करती है मेन मोटिव की बात करें तो सेंट्रली प्लांट इकोनॉमी का मेन मकसद क्या है सोशल वेलफेयर की सबका भला होना चाहिए हमारी जो सोसाइटी का वीकर सेक्शन है उसका भी क्या होना चाहिए अपलिफ्टमेंट होना चाहिए मार्केट इकोनॉमी में प्रोड्यूसर्स अपने बारे में सोचते हैं मेन मकसद है प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन मिक्स्ड इकोनॉमी के अंदर जो पब्लिक सेक्टर है वो तो किसके बारे में सोचेगा सोशल वेलफेयर के बारे में जैसा हमारे देश में है और जो प्राइवेट सेक्टर है वो किसके बारे में सोचेगा अपने प्रॉफिट्स को मैक्सिमाइज करने के बारे में कंज्यूमर सोवन की बात करें कि कंज्यूमर की चलती है क्या तो देखो मार्केट इकोनॉमी के अंदर कंज्यूमर सोवन है यानी कि कंज्यूमर मार्केट का किंग माना जाता है सारी चीजें वही बनाई जाती है जिनकी कंज्यूमर डिमांड कर रहा है कंज्यूमर कौन है आप में हम सब लोग आप लोग स्विगी का एग्जांपल ले लो जोमेटो का एग्जांपल ले लो ये सारी चीजें हमारी इच्छाओं के अकॉर्डिंग बनाई जा रही है आज हमारे पास में इतना टाइम नहीं है कि हम बाहर जाकर खाना खाएं शॉपिंग करने जाएं तो स्विगी जमेटो आ गया तो हमारी इच्छाओं के अकॉर्डिंग प्रोड्यूसर ने वो चीजें बनाई है हम मार्केट के किंग हैं जो चीजें हम चाहते हैं प्रोड्यूसर वही चीजें बनाता है सेंट्रली प्लान इकोनॉमी में सरकार खुद डिसाइड करती है क्या बनाना है कंज्यूमर की इच्छाएं नहीं देखी जाती सरकार खुद डिसाइड करती है क्या बनाना है और बेसिकली जो सरकार है वो नेसेसिटी वाले आइटम्स बनाती है जैसे फूड ग्रेंस हो गया सरकार ने रेलवेज की फैसिलिटी दी है मेडिसिंस वगैरह जिनकी जरूरत गरीब लोगों को है जो बेचारे अफोर्ड नहीं कर सकते मिक्स्ड इकोनॉमी के अंदर कंज्यूमर सोवन है लेकिन सरकार भी गरीब लोगों का भला करती है पीडीएस के थ्रू पब्लिक डिस्ट्री टशन सिस्टम आप लोगों ने राशन शॉप्स देखी होंगी जो लोग बिलो पॉवर्टी लाइन आते हैं जो गरीब हैं उनके पास में राशन कार्ड होता है वो ये राशन कार्ड से राशन शॉप्स से सामान खरीद सकते हैं फूड ग्रेंस वगैरह एसेंशियल आइटम्स बहुत ही सस्ते के अंदर तो कंज्यूमर की सोवन है लेकिन पीडीएस सिस्टम भी है सरकार की चल रही है रिसोर्सेस पे कंट्रोल की बात करें तो यहां पर सारे रिसोर्सेस पर गवर्नमेंट का कंट्रोल है सारे रिसोर्सेस पर लोगों का कंट्रोल है प्राइवेट सेक्टर का रिसोर्सेस पर सरकार और लोगों दोनों का कंट्रोल है क्योंकि मिक्स्ड है प्राइस डिटरमिनेशन यहां पर प्राइस सरकार डिसाइड करती है यहां पर प्राइस डिसाइड करी जाती है अकॉर्डिंग टू मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई इस तरह से प्राइसेस डिसाइड हो जाती है अगर किसी चीज की डिमांड ज्यादा है तो ओबवियस सी बात है वो चीज क्या हो जाएगी महंगी हो जाएगी इस तरह से होता है यहां पर प्राइसेस मार्केट के अकॉर्डिंग डिसाइड करी जाती है ऐसे ही लेकिन सरकार भी एसेंशियल कमोडिटीज की प्राइस को रेगुलेट करती है अगर प्राइवेट सेक्टर मेडिसिंस हो गए या फिर एसेंशियल फूड ग्रेंस वगैरह हो गए इन चीजों की प्राइसेस को बहुत ज्यादा इंक्रीज कर देगा तो सरकार फिर इंटरफेयर करती है डोमिनेशन मतलब किसकी चलती है तो यहां पर मेन चलती है पब्लिक सेक्टर की मतलब सरकारी सेक्टर की यहां पर मेन चलती है प्राइवेट सेक्टर की ठीक है आप में हम जैसे लोगों की और यहां पर दोनों सेक्टर्स की अच्छे से चलती है समझ में आ गया इसी के साथ में वी हैव कंप्लीटेड आवर चैप्टर नंबर वन हम लोगों ने हमारा चैप्टर नंबर वन कंप्लीट कर लिया वन शॉट के अंदर और अगर एक्सप्लेनेशन आपको थोड़ी भी अच्छी लगी देन प्लीज मेक श्यर आप कमेंट करके बताओ और अपने सारे फ्रेंड्स के साथ में शेयर करो अब कल हम लोग करेंगे हमारा चैप्टर नंबर टू सेंट्रल प्रॉब्लम्स ऑफ़ एन इकोनॉमी जिसके अंदर हम लोग ये जो टाइप्स ऑफ इकोनॉमी हैं तीन जो सेंट्रल प्रॉब्लम्स है व्हाट टू प्रोड्यूस हाउ टू प्रोड्यूस फॉर हूम टू प्रोड्यूस इन्हें डिटेल में डिस्कस करेंगे पीपीसी वगैरह के बारे में पढ़ेंगे सो आई विल सी यू टुमारो लॉट्स ऑफ लव बा बाय [संगीत]