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Growth of Nationalism in India

हेलो एंड जय हिंद स्टूडेंट वेलकम बैक टू योर ओन चैनल सर तरुण रूपानी एक्सक्लूसिव चैनल फॉर आईसीएससी बोर्ड स्टूडेंट्स हां आप मेरे हैं सुपरस्टार्स तो आज है आपके लिए हिस्ट्री का चैप्टर वो भी करंट सिलेबस के अकॉर्डिंग ग्रोथ ऑफ नेशनलिज्म नेशनलिज्म किस तरीके से हमारे भारत में आया भारत छोटे-छोटे छोटे-छोटे राज्यों में राजाओं के बीच में बटा हुआ था और ये राजा एक दूसरे के साथ फाइट करते थे कि को भारत मां या कहे हम हिंदुस्तान यह नहीं पता था क्योंकि हर एक राजा जैसे कश्मीर का राजा हैदराबाद का राजा तो यूपी अवध का राजा तो सब राजा अलग-अलग थे और सबको अपना राज्य ही देश दिखाई देता था तो छोटे-छोटे टुकड़ों में हमारा भारत बटा हुआ था तो अंग्रेज आए अंग्रेजों ने भारत पर अत्याचार किया भारत पे जो अंग्रेजों ने मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम लाई और हमने सीखा फ्रेंच रेवोल्यूशन से सीखा लिबर्टी फ्रेटरनिटी इक्वलिटी इन सबसे भारत में एक नई ज्योति एक नया सवेरा आया नाम था ग्रोथ ऑफ नेशनलिज्म हां यही चैप्टर है आज हमारा बहुत आराम से पूरा चैप्टर फिनिश कर देंगे एक ही शॉट में फुल सिलेबस इन वन शॉट तो चलिए भारत में नेशनलिज्म की शुर शुरुआत हुई जब हमने दुनिया से सीखा कैसे अलग-अलग देशों ने अपने देश में देश प्रेम जागृत किया इसकी शुरुआत हुई जब फ्रेंच रेवोल्यूशन आया वहां पर देशवासियों ने अपने ही राजा को मारकर अपना देश एक डेमोक्रेटिक कंट्री बनाकर एकजुट कर लिया जब सोश रिफॉर्म्स मूवमेंट भारत में आए तब ऐसा हो पाया हमारे भारत में कि हम देश को अपना समझने लगे हम सब भारतवासी सही बताना जब कोई क्रिकेट का मैच चल रहा होता है और आपको इंडिया हारते हुए नजर आती है क्या आप मैच देखना पसंद करते हैं मैं श्यर हूं कि आपको यह मैच पसंद नहीं आता है और जब जीत रही होती है तो आप में भी उतना जोश आ जाता है क्या कहते हैं चंद्रयान थ्री याद रखिएगा जिस दिन चंद्रयान थी लैंड हुआ था हम सब भारतवासियों ने मिलकर वह क्षण टीवी पर देखा था और हम सब हम सब उतने प्रसन्न हुए थे जितना हर एक भारतवासी हुआ तो यह सब क्या है हमारे और आपके अंदर देश प्रेम की आग है तो देश प्रेम अर्थात नेशनलिज्म नेशनलिज्म रेफर्स टू फीलिंग ऑफ वननेस फीलिंग ऑफ कॉमन कॉन्शियस दैट इमर्ज व्हेन पीपल लिविंग इन अ कॉमन टेरिटरी शेयर द सेम हिस्टोरिकल पॉलिटिकल कल्चरल बैकग्राउंड हैविंग सेम कल्चर वैल्यूज एंड कंसीडर देम सेल्फ एज वन नेशन जब हम सबके अंदर एक जैसी जागरूकता होती है एक जैसी फीलिंग होते हम पूरे हिस्ट्री से कल्चर से एक हैं तो हम अपने आप को एक नेशन महसूस करते हैं थोड़ी आसान डेफिनेशन दे दूं आओ थोड़ी आसान डेफिनेशन करते हैं तो नेशनलिज्म इज अ फीलिंग ऑफ प्राइड एंड बिलोंग नेस टुवर्ड्स वन नेशन जब हमें अपने देश पर गर्व हो और हम सब एक हैं ऐसा विश् विश्वाश हो ये है नेशनलिज्म ये एक फीलिंग है जो हम सबको एक करती है जोड़ती है और ड्राइव करती है हमें हम सबके अंदर एक जुनून पैदा करती है टू फाइट फॉर अ कॉमन गोल क्यों एक देश का वीर सपूत एक वीर सिपाही हां बॉर्डर प खड़ा होकर सीने प गोली खाने को तैयार होता है वो है उसके अंदर छुपा देशप्रेम चलिए क्या फैक्टर्स थे कि हमारे देश में देशप्रेम जागा जबकि मैंने कहा भारत छोटे-छोटे राज्यों में बटा था पर अंग्रेजों ने हम पर अत्याचार कर हम सबको एक कर दिया क्योंकि हम सबका दुश्मन एक था और उस समय था ब्रिटिशर्स तो दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है तो हम सब भारतवासी अंग्रेजों के दुश्मन थे इसलिए हम एक दूसरे के दोस्त हो गए एक दूसरे के करीब आ गए एक दूसरे का दुख सुख हमने बांटा आइए थोड़ा सा गहराई से समझेंगे तो पहला फैक्टर है इकोनॉमिक एक्स टे अर्थात अंग्रेजों ने हमें पैसे से बर्बाद कर दिया गरीब बना दिया जो कभी सोने की चुड़िया भारत हुआ करता था उसे कंगाल कर दिया आइए कैसे किया और किससे तरह से लोगों का क्या रिएक्शन था सबसे पहले पीजेंट्स की बात करते हैं फार्मर्स की बात करते हैं तो फार्मर्स सबसे ज्यादा परेशान थे इंडिया एक एग्री गरियल इकॉनमी है और ब्रिटेन एक इंडस्ट्रियल इकॉनमी है याद रखिएगा ब्रिटिश के पास इंडस्ट्री सबसे पहले आई थी तो उनकी इंडस्ट्रीज को चाहिए था रॉ मटेरियल सोचिए वहां पे कॉटन टेक्सटाइल मिल है वहां पर आयरन मिल है आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री है और उनको रॉ मटेरियल कहां से जा रहा था हमारे भारत से तो हमारे किसानों को वो मजबूर करते थे कि वो उन्हें क्या करें रॉ मटेरियल दें और तो और खूब हाई टैक्स लगाते थे जिसे हिंदी में लगान कहते हैं और फार्मर्स को इस लगान का पैसा अपने प्रोड्यूस के रूप में प्रोड्यूस मतलब होता है अपनी उपज के रूप में जो वो पैदावार कर थे उसका बड़ा हिस्सा अंग्रेजों को लगान के रूप में देना पड़ता था कई बार तो उन्हें बहुत हाई टैक्स के चक्कर में मनी लैंडर से या लैंडलॉर्ड से उधार लेना पड़ता था जिसके वह जाल में फस जाते थे उसके बाद वह मनी लैंडर और लैंडलॉर्ड किसान को बर्बाद कर देता था वो इंडियन होता था याद रखिएगा और आर्टिस एंड क्राफ्टमेड थे हां भारत आर्ट एंड क्राफ्ट के लिए पूरी दुनिया में आज आज भी मशहूर है तो आर्टिजंस को उन्होंने बर्बाद कर दिया क्योंकि आर्टिजंस को जो रॉ मटेरियल चाहिए जो काम करने के लिए चाहिए वो तो अंग्रेज ले जा रहे हैं रॉ सिल्क ले जा रहे हैं रॉ कॉटन ले जा रहे हैं तो यहां पर आर्टिजंस के पास रॉ मटेरियल की कमी हो गई और तो और जो यहां से रॉ मटेरियल जा रहा है वहां इंडस्ट्रीज में बनकर ब्रिटेन की भारत में ही वापस आ जा रहा है एज अ फिनिश प्रोडक्ट तो दोहरी तरीके से हमारे आर्टिजंस और क्राफ्टमेड हो गए और तो और राजा भी नहीं थे उस समय राजाओं को भी अंग्रेजों ने गुलाम बना रखा था तो जो राजा इन आर्टिजंस को इन क्राफ्टमेड करते थे बढ़ावा देते थे वह खुद भी खत्म हो चुके थे इसीलिए आर्टिजंस भी बर्बाद हो गए दे वर एट द मर्सी क्योंकि उनके पास खाने को नहीं है कमाने को नहीं है अंग्रेजों ने उने बर्बाद कर दिया था जो वर्किंग क्लास के लोग थे अर्थात जो लोग फ पढ़े लिखे थे वो इसलिए परेशान थे कि उनको नौकरियां कहां मिल रही थी ब्रिटिश इंडस्ट्रीज के पास जो थोड़ी बहुत इंडस्ट्रीज थी उसके मालिक अंग्रेज थे और वो इंडियंस पर बहुत अत्याचार करते थे उनके साथ खूब एक्सप्लोइटेशन करते थे तो नौकरी पा करके भी उनका दर्द बहुत ज्यादा था दुख तकलीफ में जीते थे सैलरीज नहीं मिलती थी बहुत पुअर वर्किंग कंडीशंस हुआ करती थी और एजुकेटेड इंडियंस क्यों परेशान थे क्योंकि एजुकेटेड इंडियंस के पास एक ही काम था वो था अंग्रेजों के यहां नौकरी कर लो उनका बाबू बन जाओ उनके यहां गुलाम के रूप में क्लर्क के रूप में काम करो पढ़ने लिखने से कोई बहुत बड़ी नौकरी मिलने वाली नहीं है क्योंकि नौकरी देने के लिए कोई इंडस्ट्री नहीं है नौकरी देने के लिए सिर्फ गवर्नमेंट है वो भी ब्रिटिश तो इस तरीके से एजुकेटेड इंडियंस भी बर्बाद ही थे तो इंडिया में यह सब बर्बादी जो अंग्रेजों ने फैलाई इन सब की वजह से हम एकजुट हो गए तो इस तरह से आर्टि शियंस हो गए क्राफ्ट मैन हो गए एजुकेटेड पीपल हो गए यह सब एकजुट हो जाएंगे कि नहीं क्योंकि इन सब का दुश्मन तो एक ही है वो है ब्रिटिश और क्या हुआ अंग्रेजों ने बहुत अत्याचार किया हमारा बहुत दमन किया हमें पर रिप्रेशन किया हमारे इंडियंस को बहुत सताया मारा पीटा जहां मन किया जेल में बंद कर दिया फांसी चढ़ा दी तो उनकी रिप्रेसिव पॉलिसीज से हम फिर एक हो गए देखिएगा ध्यान से लॉर्ड लिटन के बारे में आते हैं जिसको सबसे क्रूरतलम से माना गया है वो उस समय सबसे खराब अंग्रेजों के वॉयज रय थे तो क्या किया उन्होंने देखिए लॉर्ड लिटन ने और इनकी खराब पॉलिसीज हमारे लिए फायदेमंद हो गई हमारे देश में और देश प्रेम की आग बढ़ गई कहते हैं ना जितना हमें दबाओगे उतना हम विस्फोट करके बाहर निकलेंगे यही हम इंडियंस ने भी अंग्रेजों को करके दिखाया लॉर्ड लिटन ने दिल्ली दरबार अरेंज किया जिसमें क्वीन विक्टोरिया के लिए सजाया पूरे दिल्ली को पूरे दिल्ली को दुल्हन की तरह सजा दिया करोड़ों रुपए लगा दिए उस जमाने में ताकि दिल्ली खूबसूरत बन सके ताकि रानी को क्वीन विक्टोरिया को एंप्रेस ऑफ इंडिया डि क्लियर किया जाए जबकि उस समय भारत में लाखों इंडियंस भूख से मर रहे थे भारत में बहुत बड़ा फेमाइनस का पड़ना उस जमाने में अकाल पड़ते थे लाखों इंडियंस मर रहे थे उन्होंने अंग्रेजों ने किसी की मदद नहीं की तो इससे इससे भी हमारे लिए अंग्रेजों के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत भर गई फिर आता है लॉर्ड लिटन ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पास किया वर्नाकुलर वर्नाकुलर मतलब होता है लोकल लैंग्वेज तो हमारे भारत में जो लोकल न्यूज़पेपर छपते थे जैसे बंगाल में बंगाली में छपते होंगे पंजाब में पंजाबी में महाराष्ट्र में मराठा में तो ये जो लोकल न्यूजपेपर्स थे जो आम लोगों की भाषा में छपते थे उनको अंग्रेजों ने बैन लगा दिया ये लगाया इस बैन कि अगर कोई फ वर्नाकुलर न्यूज़पेपर कोई ब्रिटिश के खिलाफ अगर कोई ऐसी न्यूज़ छाप है जो अंग्रेजों खिलाफ होती है जो इंडियंस को इंसाइट करती है उनमें जोश बढ़ती है अंग्रेजों के खिलाफ उस न्यूजपेपर को उन लोग क्या करेंगे बैन कर देंगे तो एक तरह से हमारा राइट एक तरह का हमारा अधिकार है राइट टू पब्लिश राइट टू मेक प्रेस इसका अधिकार अंग्रेजों ने हमारा छीन लिया इस कानून बना कर के और तो और एक कानून और बनाया जिसका नाम था इंडियन आर्म्स एक्ट नाम रखना है कोई बंदूक रखनी है तो बंदूक रखने के लिए इंडियंस को क्या चाहिए लाइसेंस जबकि यह रूल्स ब्रिटिशर्स पे अप्लाई नहीं होते हैं क्यों भैया दोहरे रूल क्यों एक ही देश में दो अलग-अलग कानून क्यों हमारे लिए कानून है उनके लिए यह वाला कानून नहीं है तो किया ना उन्होंने भेदभाव हमारे साथ यह अंग्रेजों की क्या थी रिप्रेसिव पॉलिसी थी और तो और अंग्रेजों ने जान बूझकर इंडियन सिविल सर्विस एग्जाम ये एग्जाम इंडिया में नहीं होता था ये लंदन में होता था क्योंकि जो व्यक्ति इस एग्जाम को पास करेगा उसको पास करने के बाद मैजिस्ट्रेट या जज की पोजीशन मिलेगी सिविल सर्वेंट की पोजीशन मिलेगी जो कि बहुत बड़ी पोजीशन होती है आज भी आपको मालूम ही है यूपीएससी एक बहुत ही एस्टीम बहुत ही गर्व करने वाला यस विषय है इसको पास करने पर आप जानते ही हैं हायर पोस्ट मिलती है गवर्नमेंट एडमिनिस्ट्रेटिव पोस्ट मिलती है तो उस समय था इंडियन सिविल सर्विस एग्जामिनेशन उसकी एज पहले हुआ करती थी 21 बाद में इसकी रिड्यूस करके कर दी गई 19 मतलब समझ गए इंडियंस को अब 19 साल में ही इस एग्जाम को पास करना होगा तो कम उम्र से क्या हो जाएगा कम इंडियंस पास कर पाएंगे हां इसको पास करना उनके लिए और मुश्किल हो जाएगा और जो फर्स्ट इंडियन थे जिन्होंने आईसीएस पास किया वो थे सुरेंद्र नाथ बनर्जी उन्होंने पहली बार में आईसीएस एग्जाम पास कर लिया था यह अलग बात है कि बाद में उन्होंने इसको रिजाइन कर दिया क्योंकि उनके साथ अंग्रेजों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया उनको लगा कि अंग्रेजों का जो हित है वो भारत के लिए नहीं है और उन्होंने अंग्रेजों से काम यस अंग्रेजों की नौकरी को लात मार दी चलिए इंपोर्ट ड्यूटीज ऑन द ब्रिटिश टेक्सटाइल्स वर रिमूव्ड देखा अंग्रेजों ने जो वहां से कपड़े भेजने थे यहां से गुड्स भेज रहे थे अपनी इंडस्ट्रीज से भारत में आके उसपे टैक्स नहीं लगना था तो फिर कर दिया चीटिंग जब इंडिया से जा रहा था हमने कोई अगर सामान एक्सपोर्ट करना था तो उस परे टैक्स लग रहा था तो इस तरह से अंग्रेजों ने हमारे साथ फिर क्या की चालबाजी की एक और किस्सा है नाम है इल्बर्ट बिल कंट्रोवर्सी सी पी इल्बर्ट यह लॉ मेंबर थे वॉइज रॉय काउंसिल में इन्होंने एक सजेशन दिया इन्होंने एक बिल बनाया नाम रखा इल्बर्ट बिल 1883 में क्या था इस बिल में इस बिल में यह नियम था कि ब्रिटिश या यूरोपियन को भी हमारे इंडियन जजेस ही हमारे जो भारत के जज बने थे वो भी उस पर फैसला सुना सकते हैं इससे क्या होगा इससे भारत के और ब्रिटेन के ब्रिटिश के जजेस में बराबरी रहेगी अर्थात ब्रिटिश जज और इंडियन जज जज तो जज है तो दोनों की बराबर होनी चाहिए पोजीशन हमारे इंडियन जज भी ब्रिटिश लोगों के खिलाफ फैसला सुना सकते हैं क्या हुआ जी नहीं यह कानून पास ही नहीं हो पाया अंग्रेजों ने इसका विरोध किया उन्होंने एक डिफेंस एसोसिएशन बनाई जिसमें उन्होंने यह कहा कि ये हमारा स्पेशल राइट है हमारा स्पेशल प्रिविलेज है हमने भारत को कॉलोनी बनाया है हम उनके अंडर में नहीं झुकेंगे नतीजा यह कानून पास ही नहीं हो पाया इस कानून को विड्रॉ कर लिया गया जिससे साबित हो गया कि अंग्रेज कभी भी न्याय नहीं चाहते थे कभी भी फेयर कोली नहीं चाहते थे मतलब अंग्रेजों से आप उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वह हमारे साथ उचित बर्ताव करेंगे न्यायपूर्ण बर्ताव करेंगे कभी नहीं नेवर दे नेवर हैड दिस अब आते हैं सोशो रिलीजस रिफॉर्म्स मतलब मतलब समाज में धर्म के आधार पर क्या-क्या बदलाव किए गए जिससे देशप्रेम जागा हां राजा राम मोहन रॉय आइए इनके दर्शन कर लेते हैं राजा राम मोहन रॉय जिनको कहते हैं फादर ऑफ इंडियन रिना एंस अब रनास मतलब रीबर्थ हमारे देश का एक पुनर्जन्म होने वाला है कैसे राजा राम मोहन रॉय जिन्होंने सोशल और रिलीजस रिफॉर्म किया हमारे समाज में हमारे धर्म में जो कुछ कमियां उनको उस समय समझ में आई उसम उन्होंने बदलाव किए क्या-क्या किया आइए देखते हैं सबसे पहले राजा राममोहन रॉय ने जो कि एक महान इंसान थे ग्रेट ह्यूमैनिस्ट थे मानवतावादी जिसे कहते हैं जो इंसानियत की सोचते हैं ऐसे व्यक्ति थे इन्होंने कहा कि सारे धर्म को एक होना चाहिए 1809 में इन्होंने एक किताब लिखी नाम था गिफ्ट टू मोनोथेस्ट मोनो मतलब होता है सिंगल थीट मतलब होता है प्रे करने वाला अर्थात एक सिंगल ईश्वर की प्रार्थना करनेवाला उसे कहते हैं मोनोथेस्ट ठीक है तो इन्होंने एक किताब लिखी अ गिफ्ट टू मोनोथेस्ट ये पर्शियन भाषा में लिखी गई किताब थी और इसके बाद 1814 में इन्होंने एक संस्था बनाई नाम है अमित्य सभा अमित्य सभा का मेन मकसद था कि वह लोगों को समझाए आइडल वरशिप जरूरी नहीं है और मीनिंग लेस रिचुअल्स करना अर्थात कर्मकांड करना हां जैसे अगरबत्ती जलाना पूजा पाठ कर करना जिसमें वो लोग बहुत दिखावा करते थे बुरा उन्होंने मना किया उन्होंने कहा नहीं नहीं आप ऐसा मत करिए किसम ऐसा बताया अमित सभा में और 1828 में उन्होंने बनाई ब्रह्म समाज ब्रह्म समाज एक बहुत बड़ी ऑर्गेनाइजेशन है भारत की जिसका आज भी आज भी बहुत सारा काम चल रहा है भारत के अनेक हिस्सों में इनकी ऑर्गेनाइजेशन काम कर रही है क्या करती है ये चाहती है लोगों में मोनोथेज्म आए अर्थात किसी एक ईश्वर की आराधना करें कहते हैं एक साधे सब सधे सब साधे सब जाए सुना है आपने हां यही वो कहना चाहते थे वरशिप ऑफ वन गॉड आइडल वरशिप मत करिए मूर्ति पूजा इन्होंने करने से मना किया था और चाहते थे लोग अगर करना भी है तो आप सिर्फ सच्ची प्रेयर करिए ध्यान करिए लोगों पर दया करिए अच्छा बिहेवियर करिए सबसे इंपॉर्टेंट चीज है सारे धर्मों के सारे लोगों के बीच में एकजुट की भावना ऑल रिलीजन ऑल शुड बी ट्रीटेड एस वन भेदभाव किसी भी धर्म के बीच में लोगों के बीच में इन्होंने मना कर दिया यह सबसे बड़ी ज्ञान था जो ब्रह्मो समाज में दिया गया अब आता है और क्या सोशल रिफॉर्म्स के रूप में राजा राम मोहन रॉय ने किया तो राजा राममोहन रॉय विरोध करते थे का सिस्टम का जो जाति प्रथा थी हमारे देश में वो इसके खिलाफ थे आपको मालूम ही है चार कास्ट हुआ करते थी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र ये इसके खिलाफ थे कहते थे नहीं य ठीक नहीं है पॉलीगेने खिलाफ थे एक से अधिक शादी करने को कहते हैं पॉलिगेमस में ऐसे लोग हुआ करते थे जो एक से अधिक शादी करते थे उसपे वो इसके अगेंस्ट थे और तो और चाइल्ड मैरिजस के वो खिलाफ थे पर्दा सिस्टम के वो खिलाफ थे तो समाज में कुछ कमियां थी उस जमाने में उसके वो विरोध करते थे आज ज्यादातर चीजें इसमें से खत्म हो चुकी है आप जानते ही हैं ये सब ऑल थैंक्स टू राजा राममोहन राय और तो और इन्होंने खूब एफर्ट किया खूब मेहनत की और उस समय के वॉइज रॉय नाम था विलियम बेंटिक उनको मना लिया और विलियम बेंटिक जी ने एक कानून बनाया नाम था सती बैन प्रैक्टिस ऑफ सती को इल्लीगल घोषित कर दिया गया 1829 में इसका मतलब है एक बहुत पुरानी प्रथा चलती थी नाम था सती जिसमें औरत अपने पति के मरने पर जिंदा उसकी आग में जला दी जाती थी कहते थे वो औरत सती मैया हो गई तो किसी कि औरत को जिंदा उसके पति के मरने पर जला देने से सोचिए कितना दर्द कितनी तकलीफ होगी तो यह प्रथा हिंदुओं की प्रथा थी और पर इससे एक जीती जागती औरत को आप जला दे रहे थे इस प्रथा को क्रूर प्रथा मानते हुए अंग्रेजों ने सिस्टम को बंद कर दिया और आज भी यह अप अप्लाइड अब नहीं है तो थैंक्स टू राजा राम मोहनरॉय और आते हैं राजा राम मोहन रॉय ज्ञानी भी बहुत थे कई सारे लैंग्वेज जानते थे उन्होंने कई सारे न्यूज पेपर लेख बंगाली में एक पेपर लिखा नाम रखा संवाद कमदी पर्शियन में पेपर लिखा नाम लिखा मीरात उल अकबर हां पर्शियन भाषा जो पर्शिया साही भाषा है उसे कहते हैं पॉलिटिकल राइट्स के लिए उन्होंने क्या काम किया उन्होंने डिमांड की पहली बार कि भारत में एग्जीक्यूटिव को जुडिशरी से सेपरेट किया जाए एग्जीक्यूटिव कानून को इंप्लीमेंट करते हैं जुडिशरी जजमेंट देते हैं ये दोनों क्या होने चाहिए अलग होने चाहिए दोनों एक थे पहले और तो और इन्होंने कहा जो भी फैसला हो वह जूरी द्वारा हो एक जज ना हो बल्कि मेंबर्स ऑफ जजेस हो इसे कहते हैं जूरी इन्होंने कहा हमारे इंडियंस को और यूरोपियन को एक कर दिया जाए एक जज दोनों को ट्रीट कर सके हां इल्बर्ट बिल वाली पॉइंट को उन्होंने रिपीट कर दिया यहां पर क्या जुडिशियस ऑफ सुपीरियर सर्विसेस जितने भी देश के हाई क्लास सर्विसेस जैसे मैंने कहा आईसीएस एग्जाम है उसमें भारत के नागरिकों को भर्ती किया जाए अर्थात वह सर्विस भारत में करवाई जाए और भारतीय नागरिकों को उसमें नौकरी दी जाए तो ये पहले आदमी थे जिन्होंने इंडियन राइट्स की बात की अब आते हैं अगले सोशल रिफॉर्मर के नाम है ज्योतिबा फूले आप देख पा रहे होंगे ज्योतिबा फूले खुद एक माली को समाज को बिलोंग करने वाले एक लो कास्ट इंडियन थे सो कॉल्ड लो कास्ट इंडियन थे पर खुद पढ़े लिखे थे शहरी नागरिक थे तो क्या हुआ जब ज्योतिबा फुलू ने देखा कि समाज में उनके तरह के लो कास्ट लोगों की बहुत इज्जत नहीं थी उन्हें महसूस हुया कि इज्जत ना मिलने का कारण एजुकेशन है उनको लगा कि वुमेन एजुकेशन बहुत मत है तो उन्होंने अपलिफ्टमेंट ऑफ वुमन पे सबसे ज्यादा काम किया ज्योतिबा फुले ने वूमेंस के अपलिफ्टमेंट के लिए वुमेन को प्रूव किया कि वूमेंस आर सुपी और उन्हें सुपीरियर बनाए रखने के लिए उन्हें पढ़ना चाहिए उन्होंने यह भी कहा कि अगर वुमन सुपीरियर रहना चाहती है तो उन्हें पढ़ना पड़ेगा उन्होंने अपनी वाइफ के साथ नाम है सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर एक पहला गर्ल्स स्कूल खोला पुणे में फर्स्ट गर्ल स्कूल 18544 में इन्होंने स्कूल्स फॉर अनटचेबल्स भी खोला अनटचेबल जानते ही हैं वही जिसको वो बिलोंग करते थे लो कास्ट को लो कास्ट के लोगों के लिए स्पेशली एक स्कूल खोला ताकि वो लोग पढ़े क्योंकि पढ़ पढ़ाई से आप क्या कर सकते हैं आप ऊंचे उठ सकते हैं जैसे कि आप जानते हैं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी वो भी एक लोकास को दलित को बिलोंग करते थे पर देखिए आज भारत में भगवान की तरह पूजे जाते हैं है ना तो पढ़ाई से आप क्या कर सकते हैं आप अपनी अपने परिवार का अपने समाज का सबका मान सम्मान ब सकते हैं हम जैसे पढ़ रहे हैं आज देखिए ज्योतिबा फूले के बारे में यह भी एक लोकास को बिलोंग करते थे तो समाज में ऊंचा उठने का उन्होंने रास्ता बता दिया उन्होंने अट के लिए स्कूल खोला प्राइवेट ऑर्फनेज खोले विडोज के लिए ऑर्फनेज जानते हैं अनाथालय जहां विधवाओं को घर दिया उन्होंने इन्होंने विडो री मैरिज को बढ़ावा दिया हां चाहते थे कि जब पहले जमाने में औरतें विधवा हो जाती थी उनके साथ बहुत अत्याचार होता था उनको समाज अच्छी नजर से नहीं देखता था कहते थे कि इस औरत ने ही अपने पति को मारा है तो उन्होंने उनकी रीमैरिज करने की परंपरा शुरू कराई बहुत अच्छा काम किया कास्ट सिस्टम के बारे में उन्होंने एक किताब लिखी है हां नाम है गुलामगिरी गुलाम गुलाम कौन है इसमें ने कहा उन्होंने अपने ही जो लो कास के लोगों थे उनको क्या हार्डशिप्स होती हैं क्या जीवन में तकलीफें आती हैं अर्थात अपना ही अनुभव उन्होंने उस किताब में लिखा नाम रखा गुलामगिरी सोशल जस्टिस फॉर लोकस के लिए उन्होंने काम किया उन्होंने एक सोसाइटी बनाई नाम है सत्य शोधक समाज सत्य को खोजने वाला सत्य की एनालिसिस करने वाला समाज ताकि सबको बराबर राइट्स मिल सके खास करके समाज के दबे कुचले लोगों को वीकर सेक्शन को जिसको वो बिलोंग करते थे उसको न्याय मिल सके और क्या हुआ देखिए तो इस तरीके से यह हमारे बड़े-बड़े रिफॉर्मर्स हमारे भारत में जो कुछ कमियां रह गई थी जो पुरानी परंपरा में कुछ कमियां थी हमारे समाज में कुछ कमियां थी उनको दूर किया और सबको क्या किया एकजुट किया तो इन सोशल रिफॉर्म मूवमेंट्स का हमारे भारत पर क्या असर पड़ा देश प्रेम पर क्या असर असर पड़ा बहुत ही पॉजिटिव असर पड़ा आइए देखें कैसे स्वामी दयानंद जी की बात करते हैं स्वामी विवेकानंद जी की बात करते हैं तो इन्होंने भी साबित किया हम इंडियंस को कि हमारा कल्चर तो विश्व में सुप्रीम है हमें सिखाया कि हम हम भारतवासियों नहीं सिविलाइजेशन शुरुआत की है हम बहुत ही रेशल सुप्रीम है हमारे अंदर एक आत्मविश्वास जगाया सोशल रिफॉर्मर्स ने अनटचेबिलिटी की बुराई की कास्ट सिस्टम की बुराई की इससे जो लो कास्ट के लोग थे उनको भी देश प्रेम जगने लगा उनको भी लगने लगा कि हम भी एक हैं हम सबके बीच में बराबर या बराबरी है भाईचारा है ब्रदरहुड है सोशल रिफॉर्मर्स ने लोगों को सिखाया कि वूमेंस की इज्जत करो वूमेंस को इक्वलिटी दो वूमेंस को पढ़ाओ इससे वूमेंस इंडिपेंडेंट मूवमेंट में पार्टिसिपेशन करने लगी वूमेंस भी एक्टिवली रोड प सड़कों प निकल पाई और अंग्रेजों का विरोध किया इनमें से स्वामी दयानंद जी को आप देखें स्वामी दयानंद जी ने इंडियंस का इंडियंस का सपोर्ट किया यह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज शब्द का इस्तेमाल किया स्वराज अर्थात भारत में हमारा अपना राज होना चाहिए इंडिया फॉर इंडियंस यह नारा देने वाले भी स्वामी दयानंद जी हैं और तो और जब देश में अंग्रेजों ने अत्याचार करना शुरू किया तो यह सब लीडर्स जो सोशल रिफॉर्मर्स के रूप में थे इन्होंने देशवासियों को क्या किया मोरली सपोर्ट किया सोशल मूवमेंट्स ने भारत में जागरूकता फैलाई लोगों को कास से क्रीड से धर्म से अलग किया कहा इसके जकड़ो से बाहर निकलो और देश को पहले क्या करो अपना सर्वोच्च मानो सबसे पहले क्या है आपका राष्ट्र है बाद में आपका कोई भी धर्म है कोई भी जाति है कोई भी परंपरा है पहले राष्ट्र सर्वोपरि है ये सिखाया इन सोशल रिफॉर्मर्स ने इससे देश प्रेम और जगह तो प्रेस का क्या रोल था उस समय के न्यूजपेपर्स के कुछ नाम है अमृत बाजार पत्रिका द बंगाली ट्रिब्यून पायनियर टाइम्स ऑफ इंडिया इनमें से कुछ न्यूजपेपर तो आज भी चल रहे हैं आपके घर में कौन सा न्यूजपेपर आ रहा है आप बता सकते हैं मुझे इनमें से कोई न्यूजपेपर है क्या आपके घर में जरूर बताइएगा मुझे कमेंट करके बता सकते हैं चलिए अब आगे बढ़ते हैं कि ज प्रेस का न्यूज पेपर्स का क्या इफेक्ट पड़ा हम इंडियंस पर तो यह प्रेस हम सबको मैसेज देती थी पैट्रियोटिज्म का प्रस मॉडर्न आइडियाज को छापते थी फ्रीडम के बारे में छापते थी इससे लोगों को जो रूल्स चल रहे थे उस समय इनके बारे में जानकारी मिल रही थी प्रेस में आप देखते ही है कुछ ना कुछ नया नई जानकारी छपी रहती है देशप्रेम की जानकारी छपी रहती है इंडिपेंडेंस की जानकारी छपी रहती है इससे देश में नॉलेज बढ़ती है अवेयरनेस बढ़ता है और तो और प्रेस ने जो अंग्रेजों के द्वारा किए गए अनज पॉलिसीज थी अत्याचार था उसको छापना शुरू कर दिया मान लो कहीं पर अंग्रेजों ने क्या किया इंडियंस पे अत्याचार किया लाठी चार्ज किया उनको फांसी चढ़ा दी या वर्कर्स को पैसा नहीं दिया किसानों को मारा पीटा तो यह सब छपे का पेपर में और जब पेपर में छपे तो हम भारतवासियों को इसका बहुत दुख होगा और हमें पता चल जाएगा कि अंग्रेज हमारे कभी नहीं हो सकते वह हमारे देश को सिर्फ लूटने आए हैं और हम दिन प्र दिन उनसे क्या होते जाएंगे और नफरत करते जाएंगे हम सबकी नफरत अंग्रेजों के प्रति हम भारतवासियों को एकजुट कर देगी इट मेड पॉसिबल दैट एक्सचेंज ऑफ व्यूज अमंग डिफरेंट सोशल ग्रुप्स समाज के अलग-अलग जो सोसाइटी के लोग थे जो कभी एक दूसरे से बात नहीं करते थे आज वो सब एक दूसरे से बात कर रहे हैं मिलजुल रहे हैं एक हो गए हैं एंड सबसे इंपॉर्टेंट इट मेड इंडियन अवेयर ऑफ व्हाट वाज हैपनिंग इन द वर्ल्ड हम सिर्फ भारत को नहीं अब दुनिया में भी देखने लगे क्योंकि वर्ल्ड न्यूज़ भी तो पेपर में रहती है वर्ल्ड में क्या चल रहा था उस समय हम सब देख रहे थे जैसे फ्रेंच रेवोल्यूशन आया तो हमने वहां से भी सीखा तो दुनिया भर में जो नई क्रांति आ रही थी नई जो जोश पैदा हुआ था वो हम भारतीयों में भी आ रहा था आइए समझते हैं प्रीक सर्स ऑफ द इंडियन नेशनल कांग्रेस मतलब वो पार्टीज जो इंडियन नेशनल कांग्रेस के बनने से पहली बनाई गई जो बेथ ऑफ दी इंडियन नेशनल कांग्रेस बनी रातों रात नहीं बनी इंडियन नेशनल कांग्रेस इसके पीछे की यहां बैकअप स्टोरी है कैसे धीरे-धीरे धीरे देश में पॉलिटिकल बॉडीज बनने लगी ऑर्गेनाइजेशन बनने लगी सबसे पहली पॉलिटिकल एसोसिएशन की बात करते हैं तो वो थी लैंड होल्डर सोसाइटी लैंड होल्डर सोसाइटी कुछ बड़े लैंडलॉर्ड्स के द्वारा बनाई गई सोसाइटी थी 1838 में बहुत समय तक चली नहीं सोसाइटी वैसे ये बट हां भारत में सोसाइटी बनने का ग्रुप बनाने का एसोसिएशन बनाने का शुरुआत हो चुकी थी उसके बाद और बहुत सारी छोटी-छोटी पार्टीज बनी इंडियन एसोसिएशन बनी है ना ऐसे बहुत सारी सोसाइटीज बनी और इन सोसाइटीज ने बेस का काम किया कांग्रेस के लिए अब उनमें से कौन बनी कौन एग्जांपल्स है सबसे पहले आते हैं जो सबसे प्रॉमिनेंट है वो है ईस्ट इंडिया एसोसिएशन आप देखिए परम आदरणीय दादा भाई नेरो जी द ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया ये पारसी बाबा थे और प्रोफेसर भी थे प्रोफेसर ऑफ मैथमेटिक्स थे दादा भाई नेहरो जी ने लंदन में 1866mhz लंदन में क्यों क्योंकि यह लंदन में भारतीय नागरिक थे जो हाउस ऑफ कॉमनस के मेंबर बन गए थे सोचिए वहां के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट भारत में नहीं सोचिए इंडियन होते हुए लंदन में हाउस ऑफ कॉमनस के मेंबर जैसे पार्लियामेंट है वहां के मेंबर क्या करना चाहते थे ताकि वह बताना चाहते थे ब्रिटिशर्स को कि इंडियंस के साथ क्या हो रहा है क्यों बनाया टू प्रोवाइड इंफॉर्मेशन टू ऑन ऑल इंडियन सब्जेक्ट्स टू ब्रिटिश सिटीजंस एंड मेंबर ऑफ द पार्लियामेंट अंग्रेज पार्लियामेंट को पता हो अंग्रेज नागरिकों को पता हो कि भारत में क्या कर रहे हैं उनके अंग्रेज उनके देशवासी हम भारतीयों के साथ क्या न्याय हो रहा है यह वो उनकी पार्लियामेंट में जाके बता रहे हैं और क्या किया इन्होंने आवाज उठाई जो इंडिया में अत्याचार हुआ इंडियंस में जो अत्याचार किए गए इसकी आवाज उन्होंने जाकर के वहां की पार्लियामेंट को उठाई और सजेशन भी दिया कि कैसे ठीक हो सकती है इनको ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया का दर्जा दिया गया ये सोचते थे ब्रिटिशर्स न्यायपूर्ण है इनको लगता था कि अंग्रेज आज नहीं कल बदलेंगे बस हमें उनको क्या करना है हमें उनको बताना है उनको लगा ये कि अंग्रेज हमारी प्रॉब्लम्स को सॉल्व कर सकते हैं उन्होंने बहुत सारी अपने एसोसिएशन के ब्रांचेस बनाई मुंबई में बनाया कोलकाता में बनाया और चेन्नई में बनाया अगले लीडर आ रहे हैं सुरेंद्रनाथ बनर्जी द फर्स्ट इंडियन टू क्वालीफाई फॉर दी आईसीएस एग्जाम इंडियन सिविल सर्विस एग्जाम यह खुद मजिस्ट्रेट बन गए थे आसाम में बट बाद में इन्होंने क्या कर दिया उस पद को त्याग दिया क्योंकि वहां उनको महसूस हुआ कि वो इंडियंस के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं और अंग्रेजों के साथ इनका इंटरेस्ट मैच नहीं कर रहा है आइए तो सुरेंद्र नाथ बैनर्जी ने एक ऑल इंडिया मूवमेंट शुरू किया और इस इंडियन एसोसिएशन में के लीडर थे कौन सुरेंद्र नाथ बैनर्जी सुरेंद्रनाथ बैनर्जी की संस्था में लॉयर्स प्रोफेशनल्स एजुकेटेड लोग मतलब सारे पढ़े लिखे क्लास के लोग थे क्योंकि वह स्वयं भी बहुत ही हाईली एजुकेटेड थे क्या ऑब्जेक्टिव था इंडियन एसोसिएशन का ताकि भारत में एक स्ट्रांग संस्था बनाई जा सके जो लोगों के विचारों से चले लोगों के पब्लिक के ओपिनियन बना सके आम जनता को बता सके कि क्या सोचना चाहिए और तो और यह भारत को एकजुट करना चाहते थे सबका एक एक पॉलिटिकल इंटरेस्ट है और वो है भारत की आजादी ये लोगों में वो भरना चाहते थे और और क्या करना चाहते थे फ्रेंड रिलेशंस चाहते थे चाहते थे कि हिंदू और मुसलमानों में सारे लोग मिलकर के अंग्रेजों का विरोध करें और तो और मास मूवमेंट चाहते थे आम जनता घर-घर के लोग आम आदमी भी क्या करें पार्टिसिपेट करें अंग्रेजों के विरोध के लिए सिर्फ कुछ ही लोग अगर जाएंगे अंग्रेजों का विरोध करेंगे 102 लोग अंग्रेजों के पास जाएंगे जिंदाबाद मुर्दाबाद अंग्रेज लाठी मार के जेल में बंद कर देंगे पर 1000 लोग जाएंगे 10000 लोग जाएंगे 1 लाख लोग जाएंगे तब अंग्रेज जाग जाएंगे उनकी हिम्मत नहीं होगी इतने लोगों को बंद करने की इतने लोगों को मारने की क्या कहते हैं और यही गांधी जी ने भी बाद में यही किया इस तरह से सैकड़ों लाखों लोगों को एकजुट कर दिया अब अंग्रेजों की हिम्मत नहीं थी कि वह गांधी जी को मार पाए समझ गए ना वरना जब चाहे तब वह एनस लीडर्स को दरबा बार रहे थे मास मूवमेंट करना चाहते थे जन जन का पार्टिसिपेशन चाहते थे तो क्या फायदा मिला इंडियन एसोसिएशन का हां इसके अचीवमेंट्स है इंडियन एसोसिएशन ने विरोध किया अंग्रेजों के लाइसेंस एक्ट का आर्म्स एक्ट का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट का याद है लॉर्ड लिटन ने बनाया था ना ये वर्नाकुलर प्रेस एक्ट आर्म्स एक्ट इन सबका विरोध हुआ और तो और जो ये एज कम कर दी थी उन्होंने 21 से 19 कर दी थी एज इन सबका हमने विरोध किया पहली बार ऐसा हुआ जब हमने विरोध किया वो इंडियन एसोसिएशन थी अब आया एक और संस्था एक और ऑर्गेनाइजेशन इंडियन नेशनल कॉन्फ्रेंस ये एक ऑल इंडिया कान्फ्रेंस थी कोलकाता में बुलाई गई थी किसने बुलाई थी सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने 1883 में सारे भारत के लीडर्स सारे भारत के प्रोफेशनल्स को लॉयर्स को हां टीचर्स को प्रोफेसर्स को बुलाया कहां पर कोलकाता में मीटिंग करने के लिए ताकि हम क्या करें एक कॉमन प्लेटफार्म तैयार कर सके एक ऐसी बॉडी बनाए एक ऐसी संस्था बनाए जो ऑल इंडिया नेचर की हो पूरे भारत में के लिए एक संस्था जो उन सबकी आवाज उठा सके इसके लिए बुलाया इंडियन नेशनल कॉन्फ्रेंस को हां ठीक दो साल बाद इसी के वजह से इंडियन नेशनल कांग्रेस बन पाई इस कान्फ्रेंस की की वजह से कांग्रेस बनी और क्योंकि कान्फ्रेंस का मकसद भी वही था देश प्रेम जगाना लोगों के अंदर लोगों के अंदर पब्लिक ओपिनियन क्रिएट करना और वही कांग्रेस का भी था इसी संस्था को उसमें मर्ज कर दिया गया आइए देखते हैं इंडियन नेशनल कांग्रेस की शुरुआत ए ओ ह्यूम जब पूरे भारत के अलग-अलग लीडर्स जिसमें नाथ बैनर्जी दादा भाई नेहरू जी वमेश चंद बैनर्जी ये सब जुटे हुए थे ताकि पूरे भारत में एक पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजेशन हो जो पूरे भारतवासियों की आवाज उठा सके अंग्रेजों के सामने ऐसी संस्था बनाई जा सके तब तक एक ए ओ ह्यूम एलन ऑक्टेवियस ह्यूम ये एक सिविल सर्वेंट थे आईसीएस से रिटायर्ड सिविल सर्वेंट थे इन्होंने शुरुआत की कांग्रेस की इनको लॉर्ड डफरिन का सपोर्ट था उस समय वॉइज रहे थे लॉर्ड डफरिन उनका खुद का इनको सपोर्ट था ए ओ ह्यूम को तो इंडियन नेशनल कांग्रेस की शुरुआत फाउंडर ए ओ ह्यूम इन्होंने ही इंडियन नेशनल यूनियन बनाया पहले नाम था उसका इंडियन नेशनल यूनियन इसकी मीटिंग बुलाई और जब इसकी मीटिंग बुलाई पुणे में पुणे में आ गया प्लेग उसकी मीटिंग को कर दिया गया कैंसिल और मीटिंग शिफ्ट हो गई मुंबई में तो इंडियन नेशनल यूनियन की पहली मीटिंग हुई 28 दिसंबर 1885 को कहां पर मीटिंग हुई पुणे में नहीं मुंबई में हो गई मुंबई में पहली बार इनकी मीटिंग बुलाई गई और वहां पर प्रेसिडेंट थे भूमेश चंद्र बैनर्जी आप देख पाएंगे डब्ल्यू सी बैनर्जी भूमेश चंद्र बैनर्जी स्क्रीन को बड़ा कर लिया करिए ठीक है जूम अप कर लिया करिए अगर आप किसी की इमेज क्योंकि ये इमेज आपकी बुक्स में दी है और इमेज बेस क्वेश्चन आएगा ठीक है तो डब्लू डब्ल्यू स बैनर्जी बना दिए गए और 72 डेलिगेट्स फ्रॉम कांग्रेस ऑल इंडिया आए थे और क्या हुआ इसके बाद तो कांग्रेस की लड़ी लग गई मतलब अब हर साल कांग्रेस एक एनुअल सेशन करती है दिसंबर के मंथ में करती है 1885 से शुरुआत हो चुकी थी सेकंड सेशन आने तक दादा भाई नेहरो जी कांग्रेस के लीडर बन गए थे कांग्रेस के प्रेसिडेंट दादा भाई नेहरू जी और उन्होंने इसका नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस चेंज कर दिया जो यूनियन शब्द था इंडियन नेशनल यूनियन में से यूनियन हटा दिया और तब से आज तक यही नाम है लॉर्ड डफरिन ने खुद इनको फेवर की या लॉर्ड डफरिन कांग्रेस को इसलिए फेवर करना चाह रहे थे इसलिए बनाने देना चाहते थे क्योंकि उनको लगा कि यह संस्था क्या करेगी एक सेफ्टी वॉल का काम करेगी जब भी कोई पॉपुलर डिस्कंटेंट होगा अर्थात आम जनता नाराज होगी भारतवासी आम एकजुट होने लगेंगे और अंग्रेजों के खिलाफ नाराज होने लगेंगे बगावत करेंगे उससे पहले ही हमें क्या हो जाएगा कांग्रेस से पता चल जाएगा कि ऐसी सिचुएशन बन रही है तो वो सेफ्टी वॉल का काम करेगी जैसे प्रेशर कुकर में अब बहुत गर्म कर दो तो तो सीटी बच के पता चल जाता है कि अंदर बहुत भाप अंदर बहुत गर्मी जमा हो गई है समझ गए सिफ्टी बॉल क्या काम करती है यही कांग्रेस का भी काम था सेफ्टी बॉल का काम करना था अंग्रेजों को बताना कि एक भयानक लड़ाई लड़ने के लिए लोग तैयार हो रहे हैं इसीलिए आप अभी सतर्क हो जाइए 1857 भी यही कारण था लोगों को पता ही नहीं चल पाया अंग्रेजों का अंग्रेजों को और हम सब क्या किए अंग्रेजों से बड़ा भयंकर युद्ध किए तो ऐसा दोबारा ना हो इसके लिए सेफ्टी वॉल का काम करेगी ये कौन कांग्रेस इसीलिए अंग्रेज खुद इसकी मदद कर रहे थे कई बार लॉर्ड डफरिन ने तो टी पाटी रखी थी कांग्रेस के लोगों के लिए कांग्रेस के लोगों को अपने दरबार में बुलाते थे लॉर्ड डफरिन कहते थे आइए आप लोग हमारे यहां डिस्टिंग्विश्ड गेस्ट हैं आप हमारे मेहमान है टी पाटी करिए यह होता था उस जमाने में यह तो बाद में अंग्रेजों को पता चल गया कि ये कांग्रेस ये इंडियंस के कांग्रेस है और इन्होंने फिर क्या किया अंग्रेजों के चढाने शुरू कर ही है तो सेफ्टी बॉल के रूप में बनाया कांग्रेस को ताकि वह डिस्कंटेंट को बता सके और ब्रिटिश इंटरेस्ट का ध्यान रख सके इंडिया में क्या था एम तो एम प्रमोट फ्रेंडली रिलेशन बिटवीन द नेशनलिस्ट वर्कर्स भारत में जो अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले देश प्रेमी हैं उनके बीच में क्या हो जाए संबंध बन जाए वो आपस में फ्रेंडली रिलेशंस डेवलप कर पाए और तो और वो एकजुट करना चाहते थे देश प्रेम की भावना धर्म जाति और प्रोविंस से उठ जाओ देश सबसे बड़ा है देश प्रेम सबसे बड़ा है यही आग जलाना चाहते थे और तो और वो लोगों की डिमांड्स को अंग्रेजों के सामने ले जाना चाहते थे जो आम जनता कहेगी वह कांग्रेस कहेगी लोगों की डिमांड के साम लिए कांग्रेस के की डिमांड लेकर के सरकार के पास पहुंचेगी और क्या करना लोगों को ऑर्गेनाइज करना ओपिनियन फॉर्म करने के लिए क्या मांगे क्या किस तरीके से मांगे अंग्रेजों से अपनी मांग रखें यह लोगों को सिखाती थी ये संस्था समझ गए अब कांग्रेस के बहुत सेशंस हुए हुए सबसे पहला सेशन तो आप जान ही चुके हैं डब्ल्यू स बैनर्जी इसके प्रेसिडेंट थे 1885 में सेकंड प्रेसिडेंट थे कोलकाता में हुआ मीटिंग कौन थे प्रेसिडेंट दादा भाई नेहरू जी थे फिर आया 23 सेशन इंपॉर्टेंट सेशन है 23 सेशन सूरत में हुआ और इसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस में स्प्लिट हो गया पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस में ही आपस में लड़ाई हो गई अर्ली नेशनलिस्ट जिनको हम मॉडरेट्स के नाम से भी जानते हैं वो अलग हो गए और असर्टिव नेशनलिस्ट जो अपनी बात मास मूवमेंट के द्वारा मनाना चाहते थे एक्शन से मनवाना चाहते थे वो अलग हो गए पहली बार कांग्रेस में जुदाई हो गई सूरत में ये सेशन हुआ था 26 को क्या हुआ 26 सेशन को 1911 में पहली बार जन गन मन हां हमारा नेशनल एलम बन गया एशन सॉरी सॉरी नेशनल सॉन्ग बन गया पहली बार कांग्रेस में यह गाया गया समझ रहे हैं पहली बार और 1916 में क्या हुआ मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस जॉइंट सेशन करती है यह सेशन लखनऊ में होता है इसीलिए इसको कई बार लखनऊ पैक्ट या लखनऊ एग्रीमेंट भी नाम से जाना जाता है और क्या हुआ खास बात इसी सेशन में 1916 में ही असर्टिव और अर्ली नेशनलिस्ट मॉडरेट्स और असर्टिव नेशनलिस्ट एकजुट हो गए उनके बीच में जो नफरत थी जो दूरिया थी वो खत्म हो गई पहली बार ऐसा हुआ सो दिस ब्रिंग्स टू द एंड ऑफ द एंटायस में आ गया होगा और सारे लेसंस को नए लेटेस्ट बोर्ड के सिलेबस के अकॉर्डिंग हम बना रहे हैं सारे नोट्स एब्सलूट फ्री है हमारे नोट्स कहां जाएंगे नोट्स के लिए आप हमारा पप डाउनलोड कर सकते हैं और वहां पर आपको फ्री मटेरियल सेक्शन मिलेगा वहां जाएं और नोट्स ले ले चलिए मिलते हैं बाय टेक केयर गॉड ब्लेस यू