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پاکستان میں عوامی بے عزتی کے مسائل

[संगीत] शाहनवाज पिछले ढाई घंटे से लाइन में खड़ा है वह पैदा तो इसी मुल्क में हुआ मगर मुसलसल इंतजार ने उसे शक में डाल दिया शक में डाल दिया क्या वह वाकई इस मुल्क का शहरी है क्या शना के हुसूल का कोई बाइज्जत तरीका नहीं तंग आकर अब व अंदर जाने की कोशिश कर रहा [संगीत] है 10 बंदे यहां अंदर मैं अंदर चले जाता हूं अंदर कितना टाइम लग जाएगा मुझे अंदर तो क्यों है जी अंदर तो क्यों आपको खुद एहसास हो जाएगा अंदर जाएंगे पता चल जाएगा कितना क्यू चल रहा है जैसे आप जा रहे हो जैसे दूसरे जा रहे अंदर तो क्यू मौजूद है मुझे बच्चों के लिए बेफाम बनवाना था अब उसके चक्कर में मैं दो से ढाई घंटे हो गए अभी मैं भारी लाइन में खड़ा हूं सारा दिन समझ ले यहां प अभी निकल जाएगा अब अंदर जाएंगे अंदर भी यही काउंटर का हिसाब किताब है जैसे अगर 30 काउंटर है तो 30 में से पांच काउंटर चल रहे हैं पीछे तो हम काफी चीजों को पेंडिंग में डाल कर आए और आज तो इत्तफाक से हमारी छुट्टी है अगर छुट्टी नहीं होती तो फिर हमें छुट्टी लेकर आना पड़ता और पता नहीं कितनी दफा आना पड़ेगा यहां पर सिस्टम के मुताबिक कोई काम नहीं हो रहा यहां पर बस फौरी है जलालत [संगीत] है मेरी तरह शायद आप भी इन [संगीत] के साथ भी तो दिए जा सकते हैं ना औरतों बुजुर्गों को लाइन में लगाए बगैर पूरा पूरा दिन जाया किए बगैर और सख्त धूप में सड़क पर तमाशा लगाए बगैर भी तो यह काम हो सकता है पैसे लेकर दी जाने वाली इस सर्विस का कोई रिस्पेक्टेड हल क्यों नहीं निकाला जाता क्या इसकी वजह ब्यूरोक्रेसी है या बेसी करप्शन है या लैक ऑफ अकाउंटेबिलिटी या शायद यह सब मेरी वाइफ है इनका मैंने स्मार्ट कार्ड बनाना है पैसे भी मैं दूं अपना दिन का जो दिहाड़ी है वह भी जाया करूं वाइफ मेरी खड़ी है वहां पर बैठने की जगह नहीं है ना किसी किस्म की कोई इन्होंने हमें फैसिलिटी इस तरह की दी है कि यहां आकर हम इजी होके बैठ जाए य भेड़ बकरियों की तरह जानवरों की तरह लोग खड़े हुए [संगीत] हैं ये उस पाकिस्तान के शहरी हैं जो इन्हें इज्जत नफ्स देने के लिए बनाया गया था इस मुल्क का आईन भी को ताकत का सर चश्मा कहता है यहां के वसाय कानून हुक्मरान का हक सिर्फ अवाम को हासिल है लेकिन क्या वाकई ऐसा है आईन भी तो यह कहता है कि आवाम इस जमीन पर खुदा के नायब और मुल्क के हकीकी वारिस हैं जरा अपने इलाके का चक्कर तो लगाकर देखें थाने से लेकर अस्पताल तक नादरा से लेकर पासपोर्ट ऑफिस तक कचहरी से लेकर सड़क तक बेचारे लोग कभी इलाज कभी शनाग की कार्ड कभी आटा तो कभी पानी और कभी वीआईपी सवारी गुजरने के इंतजार में रुसवा होते हैं महजब दुनिया के हुक्मरान अपने आवाम के लिए रास्ते आसान बनाते हैं उनकी रुकावटें दूर करते हैं हमारे यहां रास्ते मुश्किल और लंबे करके कदम-कदम पर रुकावट के तोहफे पेश किए जाते हैं हुकूमत आवाम को कुछ दे ना दे कम से कम इन तरसे हुओ को इज्जत तो दे सकती है इसके लिए कोई कर्जा लेने की तो जरूरत नहीं लेकिन हुकूमत ऐसा नहीं करती क्योंकि इस रवैए के पीछे एक हिस्ट्री है हिस्ट्री है आज हम आपको उसी कनेक्शन के बारे में बताने लगे [संगीत] हैं तो आप रफ्तार को लाइक और सब्सक्राइब करले और फिर हम चलते हैं तक्सीम हिंद से पहले के हिंदुस्तान [संगीत] में अगर आप किसी अंग्रेज अफसर के दफ्तर में काम के लिए आए हैं तो बैठ नहीं सकते क्योंकि कुर्सी सिर्फ उसे मिलेगी जिसके पास कुर्सी नशीन का सर्टिफिकेट होगा यानी यह सर्टिफिकेट रखने वाला ही कुर्सी पर बैठ सकता है अब चॉइस आपकी है खड़े रहे या चले जाएं यह वायरस कुछ जाना पहचाना लग रहा है ना जब धूप में खड़े लोगों की लंबी कतार लगी हो और काउंटर के पीछे ठंडे कमरे में बैठा शख्स जानते हुए भी देर किए जाए फोन पर लंबी-लंबी बातें करता रहे लेकिन अगर साहब का मैं मेहमान पहुंचे तो फौरन काम कर दे यह कुर्सी नशीन सर्टिफिकेट असल में यह बताने के लिए था कि कौन ऊंचे दर्जे का इंडियन है और कौन निचले दर्जे का इसी सर्टिफिकेट से गोरा साहिब इंडियंस पर अपनी बरतरी जताते कि कहीं कोई यह ना भूले कि वह अंग्रेज के बराबर नहीं हो सकता आजादी के बाद यह सर्टिफिकेट तो खत्म हो गया लेकिन सोच ना बदली अंग्रेज दुनिया के अमीर तरीन मुल्क में आए और 200 साल में उसे गरीब तरीन करके छो छोड़कर चले गए मलका सबा ने हुक्मरानों के बारे में बड़े पते की बात कही थी जिसे अल्लाह ताला ने कुरान की सूर नमलूक किसी इलाके पर चढ़ाई करते हैं ना तो उसे तबाह कर देते हैं और वहां के इज्जतदार लोगों को जलील कर देते हैं अंग्रेज ने भी यही किया 1770 में बंगाल शदीद कहत में पड़ा लोग अपने औजार और अपने बच्चे तक बेचने लगे मगर ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस वक्त भी लगान वसूल करना बंद ना किया फिर 1943 में यही बंगाल दोबारा कद से दोचा हुआ 40 लाख लोग मर गए लेकिन बतान वजीर आजम विंस्टन चर्चिल ने फूड सप्लायिंग काल में लोगों को मरने दिया यह दुरुस्त था कि ताजे बरतानिया में सूरज गुरब नहीं होता क्योंकि शायद अंधेरे में अल्लाह मिया भी उन पर भरोसा नहीं करते पाकिस्तान बन गया मगर इसके बाद भी बंगालियों को हुकूक ना मिल सके मगरिब पाकिस्तान की इलीट ने बंगालियों की अक्सर से डर कर कभी वन यूनिट फार्मूला बनाया तो कभी उन पर उर्दू जबान थोपने की कोशिश की उन्हें इक्दर्म की गई और पाकिस्तान दो टुकड़े हो गया यही नहीं कभी उनके कद कभी रंग और कभी टके को तजक का निशाना बनाया जाता हम उन्हें कहते थे जीय दो फुटे क्या कर लेंगे लेकिन अब देखें उन्होंने करके दिखा दिया तो यह जो होती है कि आप किसी नस्ल को कमतर समझे यह सबसे बड़ी गलत चीज होती है अभी हमने अल्लामा इब्ने खलदून का भी मुताल किया तो उन्होंने भी कहा कि किसी रियासत की कमजोरी जो होती है वो यह होती है कि जब आप आम आदमी को कमतर समझने लगे और हुक्का जो हैं या सुल्तान वह अपने आप को बतर समझे तो वहीं से फिर रियासत कमजोर होना शुरू हो जाती है ब्रिटिश राज में अंग्रेज अफसरों को लंबी चौड़ी तनख्वाह और जागीर आवाम पर भारी टैक्स लगा कर दी जाती थी जबकि हिंदुस्तानियों की तनख्वाह 100 साल तक ना बढ़ाई गई आज भी सरकारी मुलाज की तनख्वाह और पेंशन हर साल बढ़ाई जाती हैं लेकिन आम मजदूर से लेकर प्राइवेट मुलाज मीन इस रिलीफ से महरूम रहते हैं उ उल्टा उन पर टैक्स का बोझ डाल दिया जाता है सबकॉन्टिनेंट में जो रेलवे निजाम अंग्रेजों का तोहफा समझे जाते हैं ना उसकी भी असलियत जान लीजिए जो रेलवे निजाम बिछाया गया उसकी बतान भी इन्वेस्टर्स को दुगनी रकम दी गई और यह रकम आवाम के टैक्स के पैसों से अदा की गई वह यहां पटरियां बिछाते और फिर गोरे उनके जरिए लूट का माल बंदरगाह से लंदन ले जाते आज इसी तरह पाकिस्तान में महंगी शराय और किक बैग्स पर बिजली घर लगाए जाते हैं जो बिजली भले ना बनाए आवाम से पैसे वसूल करते रहते हैं वही आवाम जो आईन में इस वतन के मालिक मुख्तार हैं पाकिस्तान में हमको जो चीज विरस में मिली है वह तीन चीजें विरस में मिली है एक पाकिस्तान की सिविल ब्यूरोक्रेसी एक पाकिस्तान की फौज और एक पाकिस्तान की पॉलिटिकल इलीट सिविल ब्यूरोक्रेसी और पाकिस्तान की फौज जो थी उस वक्त जो इंडियन आर्मी थी उनको बुनियादी तौर पर यह बता दिया गया था कि आप जो 5 लाख लोग जो है ना यही असल में सबसे अहम तरीन लोग हैं और यही है जो मोहबे वतन है बाकी 30 35 करोड़ इंडियन जो हैं यह गद्दार हैं हां अलबत्ता कोई उनमें से अपने आपको को महब वतन साबित कर दे तो साबित कर और उन्होंने इनको बकायदा एक सब्जेक्ट के तौर पर तैयार किया आईएसीएस के जो इम्तिहान होता था और जो उसकी ट्रेनिंग होती थी उसी ट्रेनिंग को हमने यहां फॉलो किया इसी तरह कंटोनमेंट के अंदर जिस तरह की ट्रेनिंग होती थी जिस तरह उनको बाकी सिविलियन से बिल्कुल अलहदा ट्रीट किया जाता था बिल्कुल हमने वैसे उसी तरह उनको इन्हेरिटेंस भी नहीं बदला यही वजह है कि वह रवैया आज तक कायम है और उसी रवैए की बुनियाद पे आम आदमी जो है वो जलील और रुसवा है क्योंकि पाकिस्तान का जो भी एलीट है उसको हमने आज तक बदलने की कोशिश ही नहीं की ये इंडियन फिल्म भगत सिंह का एक सीन है अंग्रेज एक हिंदुस्तानी को इसलिए बुरी तरह मार रहे हैं कि वह एक ऐसे सिनेमा में आ गया जहां इंडियंस और कुत्तों का दाखिला मना है ब्रिटिश राज में अपर क्लास के लिए कई क्लब्स बनाए गए जहां वह गरीबों से दूर अपने जैसे लोगों से मिलते अजीब बात यह है कि यहां कुत्तों और औरतों का दाखला मना था आज वुमेन एंपावरमेंट का नारा लगाने वाले उस वक्त औरतों को एक इस्तेमाल की चीज समझते थे 47 में अंग्रेज चले गए मगर सोच ना बदली सिंध क्लब की मिसाल ले लीजिए 78 वर्षों में सिंध की स्पेलिंग में एच ऐड नहीं हो सकती का क्योंकि वह गोरे हटा कर गए थे इसको भी छोड़िए मुस्लिम दुनिया की पहली खातून वजीर आजम सिंध की रानी बेनजीर भुट्टो को सिंध क्लब की मेंबरशिप सिर्फ इसलिए नहीं मिल सकी क्योंकि वह एक औरत थी एंड डॉग्स एंड वूमेंस वर नॉट अलाउड इनसाइड द ग्लोब इन दिनों सड़क पर गरीब को खाना खिलाने का बड़ा रिवाज है फलाही कंपनियां बड़े-बड़े नाम से खैरात इकट्ठी करके चौराहों और पुलों के नीचे लंगर खाने चलाती हैं खाना तो दिया जाता है लेकिन इज्जत मट्टी में मिल जाती है क्या यह खैरात देने वाले सेठ और इदार अपनी फैमिलीज को चलती रोड के किनारे गंदी फुटपाथ पर उनके साथ बिठाकर खाना खिला सकते हैं अगर उनकी इज्जत नफ्स है तो इन गरीबों की भी है क्योंकि बनाने वाले के नजदीक तो सब इंसान बराबर है दस्तरखान पर गराबा को आम लोगों को खाना खिलाना बहुत बड़ी नेकी है मगर रोडो पर सड़कों पर बाजारों में मार्केट में रोड के दाएं बाएं किनारों पर सब दुनिया के सामने उनको खाना खिलाना यह मुनासिब तरीका नहीं मदद कीजिए मगर इज्जत नफ्स को बरकरार रख कर के किसी गरीब को खाना खिलाना निहायत सवाब है और उसको खाना खिलाना चाहिए मगर उसको इस तरह खाना खिलाना चाहिए कि उसकी जाती अना मजरू नहीं हो तो इसलिए मैंने कहा था कि नुमाइश के जो आपका नुमाइश का चौक है उसम बिठाने की बजाय आप उनको दस्तर पाक के अंदर टेंट लगाएं या को ऐसी चीज लगाएं कि जो खा रहा है वो खाते हुए नजर नहीं आए क्योंकि वो उसकी जाती इनाम मजरू कर रहा है इसलिए बहुत से ऐसे लोग जो भूखे भूखे होते हैं जिनको जरूरत होती है खाने की वो नहीं खाना खाते क्योंकि वो उनकी तसर होती है सिखों के जितने गुरुद्वारे हैं उनमें तीनों टाइ तीन टाइम खाना होता है और उसका सिस्टम यह है कि जो भी गुरुद्वारे में जाएगा उसको खाना मिलेगा तीन वक्त का यह आपको मुसलमानों को डालना चाहिए कि जो भी मस्जिद में जाएगा उसे खाना मिलेगा यह जो आपने चौकों में लगाया ये गलत है आप ये खाना मस्जिद के सहन में क्यों नहीं करते मगर यहां तो इज्जत सिर्फ पैसे वालों की होती है गरीब का इससे क्या लेना देना सस्ते आटे के लिए कतार लगवाने वाले हुक्मरान यह जानते ही नहीं कि गरीब हर गुजरने वाली आंख का सामना कैसे करेगा क्योंकि इस एहसास के लिए इन्हें कम से कम एक बार लाइन में जरूर लगना पड़ेगा पॉलिसिया कितनी ही अच्छी क्यों ना हो अगर उन पर अमल ना किया जाए तो अच्छी गवर्नेंस मुमकिन नहीं इसकी बड़ी मिसाल हमारी ब्यूरोक्रेसी है ब्रिटिश राज से हमें इस ब्यूरोक्रेसी का ढांचा तोहफे में मिला होना तो यह चाहिए था कि अंग्रेजों के तसत से आजाद होने वाली आवाम के साथ अच्छा बर्ताव किया जाता मगर यहां तो पुराना मायबाप कल्चर और भी जड़े पकड़ता गया ब्यूरोक्रेसी 1901 में ही जमी रही ना खुद टस से मस हुई और ना लोगों के लिए आसानी पैदा की जो रिफॉर्म्स भी हुए तो उनका फोकस ग्रेड्स और मरा तक महदूद रहा किसी हुकूमत ने पब्लिक सर्विस डिलीवरी बेहतर बनाने पर कभी ध्यान ना दिया यही वजह है कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में टैक्स जमा कराना हो या डिग्री पर ठप्पा लगाना आवाम के नसीब में इज्जत का कोई गुजर [संगीत] नहीं इर इर भाई क्या हो गया ना यह लड़का दहशत गर्द था ना कोई मुजरिम यह तो बस अपने कागजात दफ्तर खर्जा स्टेंप कराने आया था जरा इमेजिन करें कि अगर इस लड़के की जगह सेक्रेटरी या वजीर खार का बेटा होता तो क्या उसके साथ भी यही सुलूक होता हम भी कितने सादा हैं वो भला आता ही क्यों पूरा दफ्तर ही घर पहुंच जाता ब्रिटिश राज में अंग्रेज कत्ल करके भी 6 माह बाद आजाद हो जाते या उन्हें ₹1 जुर्माना होता यही काम अगर कोई हिंदुस्तानी करे तो उसे मौत या उम्र कैद से कम सजा नहीं [संगीत] मिलती रेमंड डेविस हो या शाहरुख जतोग पाकिस्तान में कत्ल करके भी जेल से रिहाई मुमकिन है मगर गरीब इंसाफ होने तक जेल में पड़े पड़े इंतकाल कर जाता है अब सवाल यह है कि जब कायदे आजम ने पाकिस्तान अंग्रेज अजों के निजाम से आजादी के लिए बनाया था तो हम फिर क्यों उसी में जकड़ते चले गए इसकी एक मुख्तसर सी कहानी है अंग्रेजों के दौर में जराई जमीनें वफादार हिंदुस्तानियों में बांटी गई यहां वह साहब बहादुर के घोड़े पालते यह बड़ी-बड़ी जागीर हासिल करने वाले वही चौधरी सरदार और मखदूम हैं जिन्होंने जंगे आजादी में अंग्रेजों का साथ दिया उन्हें नाम में नवाब खान बहादुर खान साहब कुर्सी नशीन और सफेद पोज जैसे खिताबत मिले इन वडेर जिम्मेदारों और सरदारों के घरों में आज भी कोई जूते पहनकर दाखिल नहीं हो सकता इन्हीं खानदान के चश्मो चिराग सिविल सर्विस में आला ओहदे तक पहुंचते हैं बाप चौधरी बनकर और यह ब्यूरोक्रेट बनकर आवाम पर हुक्मरान करते हैं फिर चाहे वह छोटा सा सेक्शन ऑफिसर हो या डिप्टी कमिश्नर कहने को तो पब्लिक सर्वेंट है मगर खुद को आका से कम नहीं समझते इन्हें अकेडमी में वही सिलेबस पढ़ाया जाता है जो कयाम पाकिस्तान से पहले अंग्रेजों ने बनाया था जहां आवाम की हैसियत कीड़े मकोड़े से ज्यादा नहीं जब ताकत का नशा चढ़ता है ना तो बाप की उम्र का शख्स भी बेटा दिखाई देता है यही इन खातून के साथ हुआ मैडम एक और आसान हल है जो 2015 से लेकर 2018 तक हमारा मसला यहां से हल होता था बेटा उस रोज हमने डिसाइड किया था कि आपका जो डिसीजन है वो सीएम की समरी आप सब इसम माने थे मुत्त फिक थे अब इस तरह नहीं करें कि अभी आपकी लिस्ट भी नहीं गई और आप लोगों ने पहले ही जो है सुने पहले लिस्ट आप सो वेफर थ वेरीफाई करें की लिस्ट आप पूरी करोगे तो जाएगी ि की लिस्ट आप पूरी करोगे तो जाएगी ले जियाउल हक ने 1985 में गैर जमाती इंतखाब करवाए जिनमें उन लोगों ने हिस्सा लिया जो अपनी बरादरी अपने मजदूर और किसानों के वोटों से कामयाब हो सकते थे जिन्हें आज आप इलेक्टबज कहते हैं इनके लिए पार्टी टिकट की कोई अहमियत नहीं थी बल्कि पार्टियां उनके पास टिकट लेकर जाती हैं जो सिविल हुकूमत बनी पहले जुनेजो साहब की जो जवला उनकी जिंदगी में बनी उस वक्त से पावर ट्रांसफर नहीं होती है इक्त दार पूरा मुंत किल नहीं होता शेयरिंग है स आखिरी अगर इक्दर्म मजबूरी के तहत अब जो है चाहे वह नवाज शरीफ साहब आए हो बेनजीर आई हो या और लोग भी अब सिर्फ शेयरिंग है पावर शेयरिंग उसी का एक नतीजा हम यह भी देखते हैं कि हर कॉर्पोरेट इदार में एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर हर यूनिवर्सिटी में प्राइवेट यूनिवर्सिटी में रिटायर्ड ब्रिगेडियर क्योंकि आपके काम आसानी से हल होते हैं जब एक रिटायर्ड जनरल या ब गेयर जाता है किसी इदार में होता है 1970 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि पाकिस्तान पर 22 फैमिली काबिज हैं यही पूरा मुल्क चला रही है आज इन खानदान की तादाद 400 से 500 तक है जिनमें सियासत दन ब्यूरोक्रेट फौज अदलिया और रिलीजियस इस्टैब्लिशमेंट शामिल है हमारे यहां फंड्स की एलोकेशन की कमी नहीं है फंड्स मौजूद हैं अब देखें ना ये जो हेल्थ कार्ड का जो सिस्टम केपीके में शुरू हुआ है आप खुद सोचे कि वो कहां से फंड्स निकाले यहीं से निकाले आपने आपने कहा कि ये जो ये जो ये जो रिडंडेंट किस्म के प्राइवेट अस्पताल है सरकारी अस्पताल जिनको हम इतना पैसा देते हैं और दया जाता है हम एक आदमी को पैसा देते हैं कार्ड में जाके प्राइवेट मार्केट के अंदर जो अस्पताल खुले हैं वैसे भी उसने अपने बाप को आखिर में मरने से पहले वहीं ले जाना है यहां से तो मारने वाले हैं तो वहां जाके इलाज करा दुनिया पूरी में सिस्टम होता है इसी सान से उन्होंने आठ साल चलाया ना और सक्सेसफुली चलाया उसी की बुनियाद प वो आज तक वहां से जीतते चले आ रहे हैं हमारे यहां मसला सारा ये है कि हम उन फंड्स को नाजायज इस्तेमाल करते हैं कमीशन खोरी के लिए दवाइयों की खरीदारी में कमीशन खाते हैं अस्पताल को बनाने में कमीशन खाते हैं ये यहां किसी एहतेजाज के लिए नहीं बल्कि इलाज के लिए आए हैं खेमा लगाकर हफ्तों यहीं पड़े रहते हैं और अस्पताल में अपनी बारी का इंतजार करते हैं इस खेमे में रहते हुए भी यह दूध बिस्किट पानी बल्कि हर शय पर टैक्स देते हैं रियासत इनसे टैक्स लेती तो है बदले में देती कुछ नहीं आजादी किस चीज का आजादी है आजादी तो हम लोगों को थड़ी मिल रहा है आजादी तो उन लोग के जिसका इलाज होता है जिसको पूछ रहा है अभी कोई पूछने वाला नहीं है हमारे पास ना पुलिस है ना कोई पा है तुम्हारा क्या हालात है क्या होज है क्यों इधर परेशान बैठा हुआ है वा हमार को पुलिस के हाथ में मारा है कोई पूछने वाला नहीं है क्या करे हम लोग हम तो अनपढ लोग अनपढ लोगों का कोई हैसियत भी नहीं है यहां पे यहां पे सिर्फ डॉक्टर लोगों का हैसियत है और सरकारी लोगों का अभी हमारे नहीं सबको य हालात है कोई पूछने वाला नहीं है इमरजेंसी प जाओ बोलता हमारा काम नहीं है पर्ची बनाओ यार हम कैसा पर्ची बनाए हम तो मर रहे हैं यह कैसी आजादी है कि जिसमें एक आम आदमी कैद है जिस पर गोरे के निजाम की छाप लगी है यह कैसा आजाद मुल्क है जो कुर्सी नशीनो में घिरा है जहां एक आम आदमी अपने हक के लिए धक्के खाता है पाकिस्तान का स्लोगन रोटी कपड़ा और मकान नहीं था यह सब देना तो ऊपर वाले का काम है वैसे भी कोई इंसान किसी दूसरे को भला दे भी क्या सकता है मुशी रिलीफ तो बहुत बाद की बात है आवाम पहले बेइज्जती में तो रिलीफ हासिल कर ले और इसमें ना तो अमेरिका रुकावट है ना आईएमएफ आवाम को इज्जत देने से ना यहूद ने रोका है ना हुनू ने नवाज शरीफ कहते हैं हुकूमत में आए तो सड़कें देंगे इमरान खान ने कहा लाखों घर देंगे बिलावल भुट्टो ने मुफ्त बिजली देने का वादा किया आप कुछ ना दें एक पाकिस्तानी को इज्जत दे दें बस [प्रशंसा] [संगीत]