हेलो अब्रिवान वेलकम टू द गाइस कैसे हैं आप सभी उम्मीद करता हूं आप सभी बच्चे बहुत अच्छे से होंगे अच्छे से पढ़ाई लिखाई कर रहे होंगे आज हम इस वीडियो में सेमीकंडक्टर का बेस्ट एंड क्विक रिपेजन करने वाले हैं स� मदद मैं कर सकूं और बच्चे एग्जाम के लिए पूरी तरीके से तैयार हो करके जाएं मेरे साथ ठीक मैं चाहूंगा कि आप previous year question के साथ नए questions की practice करें जिसके लिए हम आपके लिए लेकर क्या है एडूकार्ट का जो physics sample paper है इसके अंदर हमने रखे हुए बढ़िया quality questions ताकि आपकी practice में कोई कमी न रहे sample paper में आपको मिलेंगे case study based question, assertion reason और पूरा जैसा CBSE का जो level होता है questions के पूछे जाने का एज़ एड़ आपको वही मिलेगा और मैं आपको विश्वास दलाता हूँ जो बच्चा है सैंपल वेबर को अच्छे से प्रैक्टिस कर लेगा एज़ एड़ इस क्वेश्चन्स देखे जाने के एज़ इट इस पैटर्न देखे जाने के बरपूर चांसेज हैं सैं� अब भी order करो इसको सबसे बहले हम semiconductor में बात करेंगे semiconductor कैसे material है इनका क्या use है तो मैं आपको बदाता हूँ कि conductivity के basis पर हमने materials को 3 form में classify करा पहला जो type होता है यह conductor होता है हम सभी जानते हैं दूसरा type insulator है और तीसरा जो type है materials का वो semiconductor है conductor ऐसे material होते हैं जिनमें current flow होता है जो current को allow करते हैं और इनके पास free electrons होते हैं है ना जो की current के लिए responsible होते हैं example आप सबी से बच्चे समझते हैं copper and silver इसके example है इसके बाद अगर हम insulator की बात करें तो जैसे wood, paper, plastic हो गया हाँ ये इनमें से current flow नहीं होता ये current का allow नहीं करते क्योंकि इनके पास current के लिए free electrons नहीं होते अब हम बात करेंगे semiconductors की तो बई semiconductor की अगर हम बात करें तो इनकी जो conductivity है ये insulator और conductor के बीच मिलाई करती है insulator से ज़्यादा conductor से कम अच्छा आपको बदाना चाहूँगा 0 Kelvin पर 0 Kelvin जो की एकदम खतम temperature है उतने temperature पर जो semiconductor एंड insulator की तरह behave करते हैं क्योंकि उनके पास free electrons नहीं होते they do not have free electrons लेकिन जब हम temperature बढ़ाते हैं temperature बढ़ने से energy बढ़ती है, रूम temperature या 300 Kelvin के आसपास पहुँँच जाता है, तो इतनी energy मिलने से उस material के अंदर क्या हो जाते है free electrons generate हो जाते है और फिर ये जो material है जिसको हम semiconductor कह रहे है ये conductor की तरह behave करता है सीधी सी बात 0 kelvin पे energy ना होने के कारण से semiconductor insulator की तरह behave करते है temperature बढ़ने पर free electrons generate हो जाते है तो ये conductor की तरह behave करते है ये इसके example है और कुछ compound जिनमे mixing करके बनाय जाते हैं वो उन semiconductor के example है जैसे कि gallium arsenide, gallium arsenide phosphide इनसे हमारे LED bulb बनते हैं Clear है? तो ये basic introduction हुआ. और देखेंगे कि जो मारे सिलिकोन और जर्मेनियम most used semiconductor हैं, इनकी क्या खासियत है? तो देखो, सिलिकोन का atomic number होता है 14, group 4 के element है ये, और जर्मेनियम का atomic number है 32. अगर हम यहाँ पर ध्यान से देखें, तो ये दोनों ही, इनकी valency क्या है? अगर हम electronic configuration की बात करें 2,8,4 2,8,18,4 मतलब दोनों के ही outer shell में 4,4 electrons होते हैं तो दोनों के outer shell में कितने electron है?
चार electron है, जिनको हम balance electron भी कहते हैं, क्या बोलते हैं? Balance electron, क्यों? क्योंकि ये एक दूसरे की valency fulfill करने का काम करते हैं, सर कैसे? देखो मैं आपको बता दू, जैसे हम silicon के example से पूरे semiconductor को समझते हैं, चाहे आप सिलिकोन के एग्जामपल लें, चाहे आप जर्मीनियू के एग्जामपल लें, है ना, तो देखें, एक ही बात है, सिलिकोन के आउटर शेल में 4 एलेक्ट्रोन हैं, ये सिलिकोन चाहता है कि मेरे आउटर शेल में 8 एलेक्ट्रोन आ जाएं, तो ये क्या करते हैं अपने आसपास के सिलिकोन से एक एलेक्ट्रोन की शेयरिंग करते हैं जैसे ये बीच वाला जो सिलिकोन है ये एक एलेक्ट्रोन की शेयरिंग कर रहा है ना ये एक एलेक्ट्रोन इससे ले रहा है और अपना एक एलेक्ट्रोन इसको दे रहा है एक यह इस तरह का बनेगा, इसमें आप देख पा रहे हैं, यसे यह बीच वाला सिलिकोन देख लो, तो यहाँ पर एक एलेक्ट्रोन यह इसको दे रहा है, एक एलेक्ट्रोन से ले रहा है, एक एलेक्ट्रोन दे रहा है, एक एलेक्ट्रोन ले रहा है, क्लियर है, ये pure semiconductor कहलाते हैं इनमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती ठीक extrinsic semiconductor impure semiconductor है इनमें हम मिलावट करते हैं मिलावट करने का मतलब है कि silicon में silicon के अलाबा कुछ और atoms की mixing करी जाती है इसलिए इनको impure semiconductor बोलते हैं इनका नाम है extrinsic semiconductor clear? intrinsic semiconductor एक ही type की होते हैं वो खुद है extrinsic semiconductor दो type की होते हैं n type semiconductor और P type semiconductor clear है?
extrinsic semiconductor impurity को add करने से बनते हैं तो impurity के basis पर ये दो type के होते हैं अगर हम pentavalent impurity add करते हैं तो बनते हैं N type semiconductor और अगर हम trivalent impurity add करते हैं तो बनते हैं P type semiconductor pentavalent impurity वो होती है जिनके outer shell में 5 electron होते हैं ऐसे atom को यदि हम pure semiconductor में trivalent impurity मिलाएं, मतलब ऐसा atom जिसके outer shell में 3 electron है, example के तोर पे aluminum के outer shell में 3 electron है, तो अगर हम इसको silicon में मिलाते हैं, तो यह trivalent impurity कहलाती है, और इससे बनेगा p-type semiconducting crystal, phosphorus के outer shell में 5 electron है, पेंटा वेलेंट अटम हो जाएगा phosphorus, तो इसको मिलाने से बने अभी intrinsic semiconductor के अंदर current किस प्रकार से flow होता है आप यहाँ पर थोड़ी से नज़र डालेंगे इंट्रा देखो यह क्या चल रहा था अभी यहाँ पर सबसे पहले आप यहाँ पर देखो सबसे पहले इस crystal के अंदर क्या था कि बई सभी आसपास लेकिन intrinsic semiconductor के अंदर temperature बढ़ा temperature बढ़ने से जो covalent bond बनी थी जिनमें आपस में एलेक्ट्रोन की sharing हो रही थी वो उससे temperature बढ़ने से energy बढ़ी उससे electron हो गया free और electron free हो गया अब यहां से एक electron चला गया ना तो यह जगह खाली हो गयी इस खाली जगह को कहा गया hole इस खाली जगह को आ गया hole है ना तो अभी कहीं से आसपास से कोई electron आएगा और इसमें आ करके बैट जाएगा तो फिर यह जगए खाली हो जाएगी यहां बन जाएगा hole यहां से कहीं electron आएगा घूमते वो तो इस परकार से electron एक electron hole pair बनने से, यहाँ पे देखो, इस तरह से, एक current type का produce हो गया, है न, क्यों, क्योंकि देखो, electrons का circulation होने लगा, तो इसी परकार से मैं बोल सकता हूँ, intrinsic semiconductor के अंदर, temperature बढ़ने से covalent bond तूटती है, electron hole का generation होता है, pair का, और यहाँ पर electron hole इस तरह से transfer होते आगे बढ़ेंगे, थोड़ा सा समझेंगे चीजों को, और टिक, extrinsic semiconductor में अभी क्या होता है, वो आपको बताता हूँ, intrinsic semiconductor pure है, पूरी तरह से temperature पर dependent है, temperature बढ़ेगा, तो ही electron free होगा, नहीं तो नहीं होगा, तो उसमें current भी flow नहीं होगा, जबकि extrinsic semiconductor के करम बात करे n type semiconductor बनाने के लिए pure silicon का जो crystal है इसके अंदर हम pentavalent impurity जैसे कि phosphorus को add करते हैं तो pentavalent impurity मतलब इसके outer shell में 5 electron है तिक तो इनके आसपास के जो 4 electron जो होते हैं वो तो sharing के काम में लग जाते हैं लेकिन इसका जो 5 electron जो free हो जाता है ये अब थोड़ी है ना तो चाहे कोई भी मौसम हो सर्दी गर्मी बरसात कोई भी temperature हो हमेशा ये पांचमा electron फ्री होता है और current बनाता है तो इसमें electrons है लेकिन थोड़ा बहुत temperature भी अगर बढ़ता है तो यहाँ से इनकी कुछ covalent bond और भी तूट जाती है तो यहाँ पर electrons तो बहुत सारे हो जाते हैं तो यहाँ पर free electron की जो density है much greater than है hole density के clear है तो यह बात हो गई n type semiconductor की यहाँ पर जो atom हमने add करा है वो एक extra electron को donate करता है इसलिए हम इसको donor atom कहते हैं इसी प्रकार से हम आगे बढ़ेंगे और P type semiconductor बोलेंगे and type इसका नाम इसलिए रखा क्योंकि यह negatively charged electron दे रहा था लेकिन यहाँ पर जो एक electron की जो कमी है वो रह जाती है जिसको होल बोलते हैं अब यह hole आसपास से electron capture कर लेता है तो hole दूसरी जगह बन जाएगा इस प्रकार से एक करोड अगर aluminum atom ने डाल दिये तो एक करोड hole बन जाएगे और फिर बार एक करोड electron आके यहाँ पर भरे जनरेट हो जाते हैं तो यहाँ पर डोपिंग करने से मतलब डोपिंग का मतलब है इंप्यॉरिटी एड करना तो इंप्यॉरिटी एड करने से होल्स बहुत जादा बन रहे हैं क्योंकि यह ट्राइवेलेंट impurity है, यहाँ पर अपने आप electronic कमी generate हो जाती है, तो यहाँ पर hole density बहुत जादा होती है, electron density कम होती है, doping मतलब impurity atom को add करना, और जिस atom को add करा जाता है as impurity, उसको हम बोलते है dope end, तो आए जान लेते हैं, energy bend समझते हैं, energy bend क्या होता है, लेको अगर हम किसी भी material के crystal की बात करें तो उसके अंदर करोडो atoms होते हैं और उन करोडो atoms के पास बहुत सारे electrons होते हैं अभी एक crystal में सभी atoms सभी electrons एकदम चिपक के ठूस के जो है रखे होते हैं तो इससे क्या होता है कि एक दूसरे का जो nucleus है वो आसपास के electrons बहुत-बहुत सारी energy की अलग-अलग values होती है, है ना, तो उन energy की values जो अलग-अलग है, उनकी range को, उनकी series को हमने कहा bend, तो उस परकार से energy की जो series है, उसको हम energy bend कहते हैं, तो अगर हम एक crystal के अंदर देखें, तो दो type के electrons हो सकते हैं, या दो type क कि ये electrons की atoms की valency fulfill कर सकें है ना मतलब current flow नहीं करा सकते वो electrons बस आपस में valency fulfill करते रहते हैं तो उनको हम रखते हैं valence band के अंदर जबकि यदि electrons की energy बढ़के इतनी हो जाए कि वो current flow कराए तो हम उसको conduction band के अंदर रखते हैं इसको हम बोलते हैं 4 button energy gap valence band के electron को जब energy gap या उससे ज़्यादा energy मिल जाएगी तो ये conduction band में पहुँच जाएगा clear है जैसे कि conductor के लिए तो 0 electron volt energy gap होता है conductor के पास तो already free electrons होते हैं तो उसको आपको additional energy नहीं देने है सेमी कंडक्टर में 3 एलेक्ट्रोन वोल्ट से कम एनरजी देने पर काम चल जाता है इंसुलेटर के लिए एनरजी गैब 3 electron volt से भी जादा होता है है न जब आप 3 electron volt से जादा electron energy देंगे तब जाकर के insulator का electron valence band में पहुँच सकता है sorry conduction band में पहुँच सकता है और current बना सकता है silicon और germanium की जो energy gap है इसकी value आपको याद रखना है electron volt की बजाए हम 1.6 into 10 to the power minus 19 कनवर्ड कर सकते हैं याद रखो जर्मिनियम का एनर्जी गैब कम है मतलब जर्मिनियम का एलेक्ट्रोन वैलेंस बैंड से कंडक्शन बैंड में पहुँचने के लिए only 0.72 एलेक्ट्रोन बोल्ट एनर्जी लेगा अभी देखो अलग-अलग जो मैटेरियल्स के लिए एनर्जी बैंड डायग्राम बनाने को आपसे पूछा जाता है insulator की हम बात करें तो insulator के valence band में तो electrons हो गई होंगे valence तो fulfill कर रहे होंगे लेकिन इनके insulator की अंदर कोई भी electron current नहीं बनाता तो इसकी conduction band पूरी तरह से खाली है और यहाँ पर हमने energy gap को शो करा है जबकि conductor के पास already free electrons होते हैं, तो conductor के पास जो energy gap है, या कहूं valence band और conduction band, ये एक दूसरे को overlap कर रहा होता है, mix up हो चुका होता है, energy gap की value almost zero होती है, आगे बढ़ेंगे, और next हम देखेंगे, energy band diagram for intrinsic semiconductor, तो intrinsic semiconductor, जीरो कैल्विन टेंपरेचर पर इंसुलेटर के तरह बेहेव करते हैं जबकि आप temperature बढ़ा देंगे, let's say 300 Kelvin, तो room temperature पे कुछ electrons, क्या कर जाएंगे, ये free हो जाएंगे, तो जो electrons free हुए हैं, ये तो पहुँच गए conduction band में, current बनाने उपर, और इनकी जगह बन गया है, खाली जगह, यानि की hole, clear है, तो इस तरह से energy bend diagram आप बनाते हैं, intrinsic semiconductor का, अब extrinsic semiconductor दो type की होते हैं, n type, तो n type में क्या होता है बई, n type में तो अपने आप ही क्योंकि हम pentavalent impurity add करते हैं तो पांचवा electron अपने आप free हो जाता है तो उसकी valence band में तो electron रहेंगे यह obvious बात है लेकिन इसकी conduction band में भी हमेशा क्या रहेंगे हमेशा इसके पास electrons रहेंगे तो यह electrons हमने बनाए हैं इसके बाद covalent bond temperature बढ़ने से क� जो होता है जो जिसके पास जो कि पेंटा वेलेंट है उसके एलेक्ट्रोन को फ्री होने के लिए बहुत थोड़ी से एनर्जी चाहिए ना 0.01 एलेक्ट्रोन वोल्ट तो उसकी जो डोनर एनर्जी है उसको भी हम कंडक्शन बैंड से ठीक नीचे दिखा और electrons तो valence band में दिखाने है, जबकि, अब conduction band में तो electrons ही जा पाएंगे, तो electrons को conduction band में, मतलब holes को conduction band में नहीं दिखाते, ठीक है, लेकिन temperature बढ़ने से कुछ electrons, क्या हो जाते हैं, free हो जाते हैं, तो conduction band में वस वही electron दिखाने में, p-tap में, और बीचे दिखाना है कि temperature 0 Kelvin से बड़ा है तब ही कुछ electrons covalent bond तूटने से उपर पहुँच पाएंगे इसमें acceptor energy level, जो की aluminum atom acceptor होता है, उसके energy level valence band से ठीक उपर दिखाई जाती है थोड़ी सी, आगे बढ़ जाती है, काफी important है ये, अभी हम पढ़ेंगे p-n junction diode, बहुत important है, आराम समझना, सब कुछ समझ में आगा, देखो, एक कैसे बनता है p-n junction diode, ये समझाता हूँ, इस इसके बाद इसके दूसरे वाले end पे हमने pentavalent impurity add की, तो ये वाला जो end है, ये बन गया n-type crystal, clear है, याद रखेंगे, p-type crystal में holes बहुत जादा होते हैं, और electrons बहुत कम होते हैं, जबकि n-type crystal में electrons बहुत जादा होते हैं, और holes बहुत कम होते हैं तो जो चीज जादा है ना उसको majority बोलते हैं और जो चीज कम है उसको minority बोलते हैं तो P में holes majority में होते हैं electrons minority में जबकि n में electrons majority में होते हैं और holes minority में, clear है, अभी देखो, यहाँ पर holes और electrons की जो concentration यह अलग-अलग है, हाँ, तो जैसे यहाँ पर hole बहुत जादा है, यहाँ पर electrons बहुत जादा है, तो अभी जब यह दोनों एक बनते हैं, clear, तो क्या होता है, कि p से जो कुछ होल्स में एलेक्ट्रोन आ करके कैद हो जाते हैं, कैद हो जाते हैं तो यहाँ पर एक बीच में एक लेयर बन जाती है, इस लेयर में क्या होता है, इस लेयर में होते हैं इम्मोबाईल आईन, यानि की ऐसे आईन जो आप मूव नहीं कर सकते, एलेक्ट्रोन होल कै� negative charge आ गया जबकि electron से मतलब n region से electron निकल के चले गए तो जहां से electron निकल जाते हैं वहाँ पे हलका सा positive potential develop हो जाता है तो आप यहाँ पर देखेंगे यहाँ पे negative charge बन गया यहाँ पे positive charge बन गया तो यहाँ पे n region यहाँ पे n region, तो आप यहाँ पर यह देखो कि यहाँ पर electric field बनने लगती है across pn junction, यह जो बीच वाला जो आप सेक्शन देख रहे हैं इसको पी एन जंक्शन बोलते हैं दोनों का जंक्शन है जॉइंट है मीटिंग पॉइंट है क्लियर है और इस जंक्शन पे एक लेयर बन गई ये इस लेयर में क्या है इम्मोबाईल आयन है ऐसे आयन जो आप मूव नहीं कर सकते और इस लेयर को हम बगा देगा आने नहीं देगा क्लियर है एलेक्ट्रोन को यहाँ आना चाहेगा तो यह negative charge को रिपेल करके बगा देगा आने नहीं देगा तो यह जो electric field बनी या जो potential बना यह दोनों hole और electrons को majority को रोकने का काम कर रहा है यानि कि barrier बन रहा है इनके रास्ते में तो यह जो electric field बन रही है from n region to p region इसको हम बोलते हैं barrier electric field और जो positive charge है ये एक positive potential, ये negative charge, negative potential के तरह act कर रहा है, तो ये जो potential difference across junction बन रहा है, इसको हम बूलते हैं barrier potential, इसका भी same काम है, जो कि barrier electric field का है, उम्मीद करता हूँ आपको ये समझ में आया होगा, clear है, आगे हम बढ़ेंगे, तो अब मैं आपको बताता हूँ जो depletion layer के हमने definition लिखी वो यह है barrier potential के definition लिखी हमने वो यह है holes और electrons का diffusion को यह रोखता है चलिए दो टाइपी करेंट होते हैं, एक होता है diffusion current, जो की concentration difference कारण बनता है, holes और electrons के मिलने को, और एक होता है drift current, जैसे ये electric field जो है न, ये electron को खीच सकती है, ये वाल electric field यहाँ से hole को खीच सकती है, तो हम इसको बोलते हैं drift current, clear है, अच्छा, connection जो होता है pn junction diode का यह दो प्रकार का होता है एक तो सीधा connection जिसको हम बोलते है forward bias और एक तो उल्टा connection जिसको हम बोलते है reverse bias ठीक है तो आप यहाँ पर barrier potential के बारे में एक चीज़ पढ़ते हैं कि forward biasing में जो होता है यह barrier potential गट जाता है जबकि reverse biasing में barrier potential बढ़ जाता है क्योंकि reverse biasing barrier potential को support करती है अभी आपको समझ में आ जाएगा ठीक क्या scene है देखो forward biasing ऐसा जो है connection होता है जिसमें battery के positive end को pn junction के diode के p end से connect क टिक reverse में उल्टा हो जाता है, डियोड के P को बैटरी के negative से, और डियोड के N को बैटरी के positive से connect करते हैं, अभी क्या होता है, कि यहां से बैटरी का positive terminal इन holes को धक्का देता है, यह इनको electrons को repel करता है, तो यह जो depletion layer है इस पे दोनों end से दबाब पड़ता है है ना तो depletion layer की जो width है यह क्या हो जाती है यह decrease हो जाती है क्या हो जाती है decrease हो जाती है जबकि reverse biasing में उल्टा हो जाता है, reverse biasing में क्या होता है, कि यहां से holes को हलका सा खींच जाता है, electrons को हलका सा खींच जाता है, तो depletion layer की जो width होती है, यह बढ़ जाती है, clear है, अच्छा, forward biasing में current जो flow होता है, यह majority charge carrier के current flow होता है, है न जैसे P के holes move करेंगे electron के मतलब N के electron move करेंगे जबकि reverse biasing में minority charge carrier के कारण ही current flow होता है क्योंकि depletion layer की width बढ़ जाती है तो barrier potential और बढ़ जाएगा ठीक है ना तो देखो और वैसे भी देख सकते हो कि यह positive है तो इस end को positive ही करना पसंद करेगा यह clear है तो barrier potential इस प्रकार से reverse biasing support करती है और forward biasing oppose करती है clear है अगर हम current की बात करें तो forward biasing में जो current होता है उमेद करूँगा यह आपको समझ माया होगा अगर हम representation की बात करेंगे तो PN junction diode का जो representation है वो कुछ इस प्रकार का होता है यह वाले end को P कहा जाता है और इसको N कहा जाता है forward biasing कुछ इस प्रकार से होती है यह representation है sign convention है reverse biasing को जिस प्रकार से होती है अच्छा, डायोड की एक खासियत होती है जैसे conductor में current यहां से यहां तक, यहां से यहां तक किसी भी direction में जा सकता है लेकिन डायोड में जो current होता है यह सिर्फ और सिर्फ only allows current from P to N सिर्फ इसी direction में current जा सकता है इसमें current allowed नहीं है majority clear है आगे बढ़ जाते हैं अब देखो forward diode में जो forward biasing है उसका voltage current graph बनाया जाता है मतलब किस प्रकार से जो है आपको graph मिल रहा है voltage और voltage apply करने से किस प्रकार से current मिलता है तो देखो यहाँ पर क्या होता है देखो milli ampere लिखा है forward biasing में ऐसी होता है देखो starting में जब तक आप barrier जब तक आपने barrier potential को break नहीं करा तब तक current नहीं flow हुआ तो इसको हम बोलते है cut in voltage इसके बाद आप देख रहे हैं voltage बढा रहे हो current भी बढ़ रहा है clear है आगे बढ़ेंगे अगर हम reverse biasing की बात करेंगे तो reverse biasing में देखो micro amper में यह लिखा हुआ है बहुत थोड़ा सा reverse current flow होता है लेकिन अगर आपने एक time पे voltage को बहुत ही बढ़ा दिया तो current की value अचानक से बहुत बढ़ जाती है ऐसे voltage को हम बोलते हैं breakdown voltage clear है? अगे हम बढ़ेंगे और अगर दोनों का ग्राफ मिला दिया जाए तो देखो कुछ इस प्रकार का बन जाता है ये forward biasing ये reverse biasing सिलिकोन में जो barrier potential है ये थोड़ा सा जादा होता है जर्मेनियम के comparison में तो जर्मेनियम के लिए देखो बता दिया कि cut in voltage बहुत थोड़ा सा होता है चले आगे हम बढ़ेंगे इसकी process अब हम आ जाते हैं इस chapter के most important topic rectifier की ओर देखो rectifier एक ऐसा device है alternating current या voltage को direct current या voltage में convert करना, आप सभी जगबच्चे जानते हैं को alternating current में, एक cycle में current के direction दो बार बदलती है, एक cycle में current के direction दो बार बदलती है, let's say एक बार अगर current ऐसे है, तो अगली half cycle में current ऐसे हो जाएगा, इस प्रकार से alternating behavior से जो battery है, वो कभी भी चार्ज नहीं हो पाती हमें direct current की आपशकता होती है तो direct current में जो current की direction है तो rectifier यही काम करता है कि current को एकी direction में बनाए रखता है clear है तो alternating current of voltage को direct current of voltage में convert कर दिया जाता है rectifier का एकदम सीधा साधा सा principle है कि forward bias में जो pn junction diode की resistance गट जाती है कोई कि depletion layer गट जाती है और reverse bias में जो current की pn junction diode की resistance बढ़ जाती है इसलिए reverse bicing में current flow नहीं होता forward bicing में current flow होता है काम की बात देखो सिर्फ इतनी सी है forward bias में diode current को allow करेगा लेकिन अगर diode reverse bias में आ गया तो diode में से current flow नहीं होगा बस इतनी सी बात आप याद रखो forward bias में diode में current flow होता है reverse में नहीं होता clear अच्छा rectifier दो type के होते हैं half wave rectifier जो आधी wave को correct करता है full wave rectifier जो प लिंक वीडियो के डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगी आपको ठीक हाब वेव रेक्टिफायर में देखो जैसे सबसे पहले आपको यहाँ पर AC इनपुट मिलेगा ओल्टरनेटिंग करेंट वोल्टेज का इनपुट मिलेगा जिसको में रेक्टिफाई करना ह उपर वाला end है, ये positive और नीचे वाला end negative है, तो इस परगार से हम ये देखें, positive P से connect है और negative N से connect, तो ये diode इस वाले case में हो गया, let's say forward bias connect, तो forward bias है, तो इस diode में से current flow होगा, cycle पूरी हो जाएगी, और ये हमें एक half cycle में current मिल गया, लेकिन अगली बार क्या होगा कि ये उपर वाला जो end है वो negative बनेगा और ये positive बनेगा तो negative connect है P से और positive connect है N से तो ये वाले case में ये हो जाएगा reverse bias और आप समझते हैं कि reverse bias में diode current को allow नहीं करता है तो अगली half cycle में कोई भी current हमें output में नहीं मिलेगा voltage इसकी बाद क्या होगा फिर से ये positive बनेगा और ये negative बनेगा तो फिर अगली half cycle में फिर से ये diode forward bias में connect होने के current से प्रकार से आधी साइकल में ही हमें जो है करेंट मिलता है और आधी में नहीं मिलता है ना आउटपुट लेकिन आप यहाँ पर यह देखें आधी ही सही लेकिन आप जो करेंट है वो बस एक ही डारेक्शन में जैसे उपर ही मिल रहा है नीचे नहीं मिल यहाँ पर full wave rectifier में क्या है कि हमें cycle जब तक पूरी नहीं होगी तब तक आपको output नहीं मिलता clear देखो तो यह फिर से AC का यह input source हो गया यह transformer लगा है यह इसमें दो diode है एक diode D1 एक diode D2 बीच में से य यहाँ पर भी same structure है, अभी क्या होता है, जैसे मान के चलो कि first half cycle में, let's say यह बन गया, उपर वाला end positive और नीचे वाला end negative, तो अभी क्या हो रहा है, कि यह वाला जो आप देख रहे हैं diode, positive P से और negative N से, तो यह वाला diode तो forward by इसमें connect हुआ, तो इस diode में से current flow हो स क्योंकि देखो ये वाला जो end है diode D2 है ये reverse bias magnetic है तो इसमें से current flow नहीं होगा मतलब first half cycle में हमें output मिल रहा है कहां से मिल रहा है diode D1 से ठीक अच्छा इसके बाद अगर हम ये देखें अच्छा अगर आप ये देखो direction की बात करें तो ये x है ये y है तो first half cycle में यहाँ पर ह polarity और नीचे positive तो उपर वाला diode तो reverse bias में connect हो गया लेकिन नीचे वाला diode forward bias में connect हो गया तो इस प्रकार से बस नीचे वाले diode के थूँ current पास होगा इस बार भी current के direction x से y ही है इसका मतलब दोनों ही बार ये sure हो गया कि current same direction में हमें मिल रहा है output resistance में clear है तो इस बार उपर वाले में से नहीं flow होगा service में से flow होगा cycle complete हो जाएगी तो इस प्रकार से forward by इसमें हम दो डायोड का इस्तेमाल करके क्या कर लेते हैं? दोनों ही बार हमें output मिल जाता है, और वो भी same direction, from x to y, और यहाँ पर जो आपको output मिल रहा है, उसका ग्राफ हम इस प्रकार से बना देते हैं, क्योंकि ये diode D1 के थूँ output ये D2 के थूँ output बस मैं आपसे आपका प्यार भरा comment चाहता हूँ comment section में और इस वीडियो के description में जो link दिये हैं उनको जरूर से आप जो है follow करें और जल्दी से मुझे कॉमेंट करके बताएं अ�