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भारतीय मार्शल आर्ट्स का अध्ययन

[संगीत] स्टडी आईक्यू आईस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों आज हम आर्ट एंड कल्चर पर मैराथन वीडियो शुरू करने जा रहे हैं इस वीडियो में आपको यूपीएससी जीएस सिलेबस के आर्ट एंड कल्चर टॉपिक की कंप्रिहेंसिव कवरेज मिल जाएगी यानी एंट से लेकर मॉडर्न आर्किटेक्चर तक पेंटिंग से लेकर म्यूजिक तक और क्लासिकल से लेकर फोक डांस फॉर्म्स तक सब कुछ इसमें कवर किया जाएगा साथ ही मिसलेनियस टॉपिक्स जैसे कि फेयर्स एंड फेस्टिवल्स हैंडीक्राफ्ट्स मार्शल आर्ट्स लैंग्वेजेस डिफरेंट स्कूल्स ऑफ फिलॉसफी और भक्ति और सूफी मूवमेंट को भी डिस्कस करेंगे यानी आर्ट एंड कल्चर जैसे डावर्स टॉपिक को एक ही वीडियो में हम कवर कर लेंगे तो चलिए शुरू करते हैं भारत की कला और संस्कृति के इस अद्भुत सफर को इंडस वैली सिविलाइजेशन आर्किटेक्चर एंड स्कल्पचर आज के इस वीडियो से हम इंडियन आर्ट एंड कल्चर की शुरुआत करने जा रहे हैं इंडिया की कल्चरल हिस्ट्री करीब 3200 बीसी से लेकर इंडस वैली सिविलाइजेशन के समय से शुरू होती है इसलिए आर्ट एंड कल्चर की शुरुआत हम इंडस वैली सिविलाइजेशन के साथ करेंगे इंडस वैली सिविलाइजेशन करीब 1500 बीसी में एंड हुई जिसके बाद वैदिक पीरियड शुरू हुआ पीरियड में वेल प्लान सिटीज के एविडेंसेस नहीं मिले हैं वैदिक पीरियड के बाद हम मोरियन और पोस्ट मोरियन आर्किटेक्चर और स्कल्पचर के बारे में देखेंगे उसके बाद हम हिंदू टेंपल आर्किटेक्चर के बारे में जानेंगे जिसके बाद हम मिडिवल पीरियड और मॉडर्न आर्ट और आर्किटेक्चर की तरफ बढ़ेंगे तो चलिए शुरू करते हैं इंडस वैली सिविलाइजेशन से दोस्तों इंडस वैली सिविलाइजेशन वेस्ट और साउथ एशिया के इंपॉर्टेंट एंट अर्बन सिविलाइज में से एक था इसके अलावा इजिप्ट मेसोपोटामिया और चाइना के बारे में तो आपने सुना ही होगा इंडस सिविलाइजेशन को 1920 में चार्ल्स मेसन द्वारा खोजा गया था आर्ट एंड आर्किटेक्चर हिस्ट्री के इंपॉर्टेंट पार्ट्स होते हैं क्योंकि यहीं से हमको एवोल्यूशन के बारे में जानकारी मिलती है इस आर्ट में हमारे पूर्वजों की स्टोरीज छिपी होती हैं जिनको समझकर हम आज की सोसाइटी को और अच्छी तरह से समझ सकते हैं आर्ट और आर्किटेक्चर से हमें उस समय के कल्चर लाइवलीहुड ट्रेडिशनल है आज की इस कहानी में इंडस वैली सिविलाइजेशन के आर्किटेक्चर और स्कल्पचर पर बात करेंगे करीब 2500 बीसी में इंडस रिवर के बैंक्स पर हरप्पन सिविलाइजेशन इमर्ज हुआ हरप्पन सिविलाइजेशन को इंडस वैली सिविलाइजेशन भी कहा जाता जाता है यह सिविलाइजेशन नॉर्थ वेस्टर्न और वेस्टर्न इंडिया के लार्ज पार्ट्स में फैला हुआ था इस सिविलाइजेशन का मार्क्ड फीचर था विविड इमेजिनेशन और आर्टिस्टिक सेंसिबिलिटीज यह फीचर्स एक्सक वेशन साइट्स पर मिलने वाले स्कल्पचर्स सील्स पॉटरीज ज्वेलरी में साफ देखने को मिलते हैं हरप्पा और मोहेंजो दाड़ो जो इस सिविलाइजेशन की दो मेजर साइट्स हैं उनको अर्बन सिविक प्लानिंग का अर्लीस्ट एग्जांपल बोला जाता है रोड्स हाउसेस और ड्रेनेज सिस्टम का एक प्लान नेटवर्क उस समय में डिवेलप हुए प्लानिंग और इंजीनियरिंग स्किल्स को दर्शाता है आइए देखते हैं हरप्पा सिविलाइजेशन के आर्किटेक्चर के फीचर्स के बारे में आर्किटेक्चर इन हरप्पा सिविलाइजेशन हरप्पा और मोहिज दरो के जो रिमेस पाए गए हैं वह वहां की टाउन प्लानिंग के रिमार्केटिंग को एक रेक्टेंगल ग्रिड पैटर्न में सेटअप किया गया था रोड्स नॉर्थ साउथ और ईस्ट वेस्ट डायरेक्शन में हुआ करती थी जो एक दूसरे को राइट एंगल्स में कट करती थी बड़ी रोड्स सिटी को ब्लॉक्स में डिवाइड करती थी और छोटी लेंस इंडिविजुअल होम्स को मेन रोड से कनेक्ट करती थी यहां की एक्सक वेशन साइट्स में मेनली थ्री टाइप्स की बिल्डिंग्स पाई गई हैं ड्वे हाउसेस जहां पर सिटीजंस रहा करते थे पब्लिक बिल्डिंग्स जो सिटी की कॉमन बिल्डिंग्स थी और पब्लिक बाथ हरपपंस बर्न मड ब्रिक्स का इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन के लिए किया करते थे जिनका एक स्टैंडर्डाइज्ड डायमेंशन था अच्छे से बेक किए जाने के बाद इनको कई लेयर्स में रखकर जिप्सम मोटर से जॉइन किया जाता था सिटी को दो पार्ट्स में डिवाइड किया गया था अप्रेज्ड सिटाडेप और सिटी का लोअर पार्ट सिटाडेप जो कि सिटी के जनरली वेस्टर्न पार्ट में था बड़ी बिल्डिंग्स के कंस्ट्रक्शन के लिए यूज किया जाता था जैसे ग्रेनरीज एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग्स पिलर्ड हॉल्स और कोर्टयार्ड पॉसिबल है कि सिटाडेप की कुछ बिल्डिंग्स में रूलरसोंग्स या रूलरसोंग्स को बड़े ही इंटेलिजेंट तरीके से डिजाइन किया गया था जिसमें स्ट्रेटेजिक एयर डक्ट्स और रेज्ड प्लेटफॉर्म्स थे जो ग्रेंस को स्टोर करने और पेस्ट से बचाने का काम करते थे हरप्पन सिविलाइजेशन का एक इंपॉर्टेंट फीचर था पब्लिक बाथ जो उनके कल्चर में रिचुअलिस्टिक क्लींजिंग के इंपॉर्टेंस को शो करता है इन बाथ की सराउंडिंग में गैलरीज और रूम्स भी हुआ करते थे पब्लिक बाथ का सबसे फेमस एग्जांपल है ग्रेट बाथ जो मोहेंजो दरो में पाया गया है ग्रेट बाथ में एक भी क्रैक्स या लीक का ना होना उस समय की इंजीनियरिंग कैपेबिलिटीज को शो करता है सिटी के लोअर पार्ट में स्मॉल वन रूम हाउसेस मिले हैं जो वर्किंग क्लास पीपल के द्वारा क्वार्टर्स की तरह यूज किए जाते होंगे इनमें से कुछ हाउसेस में स्टेयर्स भी हैं जो यह शो करता है कि कुछ हाउसेस डबल स्टोरी ड भी थे मोस्ट बिल्डिंग्स में प्राइवेट वेल्स और बाथरूम हुआ करते थे और प्रॉपर वेंटिलेशन भी था हरापन सिविलाइजेशन का सबसे स्ट्राइकिंग फीचर था वहां का एडवांस्ड ड्रेनेज सिस्टम सभी हाउसेस से छोटे ड्रेंस निकलते थे जो कि बड़े ड्रेन से कनेक्टेड थे यह बड़े ड्रेंस मेन रोड्स के अलोंग हुआ करते थे ड्रेंस को लूस कवर किया जाता था जिससे उनकी रेगुलर क्लीनिंग और मेंटेनेंस की जा सके रेगुलर इंटरवल्स में सेसपिट्स को बनाया गया था जो सुएज के लिए था पर्सनल और पब्लिक हाइजीन पर जो इंपॉर्टेंस देखने को मिलता है वह काफी इंप्रेसिव है यह तो हुई बात आर्किटेक्चर की आगे बढ़ते हैं और देखते हैं स्कल्पचर्स के बारे में स्कल्पचर्स ऑफ हरप्पन सिविलाइजेशन हरप्पन स्कल्पचर्स थ्री डायमेंशन वॉल्यूम्स में काफी प्रोफिशिएंट यानी निपुण थे इनमें से सबसे कॉमनली पाए जाने वाले थे सील्स ब्रॉन्ज फिगर्स और पॉटरीज सबसे पहले बात करते हैं सील्स के बारे में आर्कियोलॉजिस्ट को डिफरेंट शेप्स और साइजेस की कई सील्स मिली हैं सभी एक्सक वेशन साइज पर मोस्ट सील्स स्क्वेयर शेप में है लेकिन ट्रायंगुलर रेक्टेंगल और सर्कुलर सील्स भी यूज में थी स्टेटाइट जो कि एक सॉफ्ट स्टोन होता है सील्स को बनाने के लिए मोस्ट कॉमनली यूज किया जाता था इस इसके अलावा एट चर्ड कॉपर फांस और टेराकोटा का यूज भी देखने को मिला है कॉपर गोल्ड और आइवरी के यूज के कुछ इंस्टेंसस भी मिले हैं मोस्ट सील्स में पिक्टोग्राफिक स्क्रिप्ट में इंक्रिप्शन हैं जिनको अभी तक डिसाइफर नहीं किया जा सका है कुछ सील्स पर एनिमल इंप्रेशंस भी देखने को मिले हैं जिसमें जनरली फाइव एनिमल्स रहते थे एनिमल्स को सील के सरफेस पर इंग्रेव किया जाता था मोस्ट कॉमन एनिमल्स थे यूनिकॉर्न हम बुल राइनोसोर उस टाइगर एलिफेंट बफलो बाइसन गोट आईबक्स क्रोकोडाइल एटस यहां पर यह जानना जरूरी है कि किसी भी सील पर काव के एविडेंस नहीं मिले हैं कुछ सील्स में इमेजिन एनिमल्स भी देखने को मिलते हैं जैसे हाफ मैन और हाफ एनिमल सील्स को प्राइमर कमर्शल पर्पसस के लिए यूज किया जाता था और कम्युनिकेशन में भी यह सील्स हेल्प करती थी मेसोपोटामिया और लोथल जैसी साइट्स में सील्स का मिलना यह बताता है कि सील्स का इस्तेमाल ट्रेड के लिए एक्सटेंसिवली किया जाता था कुछ डेड बॉडीज में ऐसी सील्स मिली हैं जिन पर होल थे ऐसा माना जाता है कि इनका यूज एम्युलेट्स यानी ताबीज की तरह किया जाता था कुछ सील्स में मैथमेटिकल इमेजेस भी देखने को मिली हैं जो पॉसिबल है कि एजुकेशनल पर्पसस के लिए यूज किया जाता होगा स्वास्थिक डिजाइन से मिलते-जुलते सिंबल्स भी कुछ सील्स पर मिले हैं मोहनजोदड़ो की पशुपति सील और यूनिकॉर्न सील इसके फेमस एग्जांपल्स हैं सील्स के बाद देखते हैं ब्रॉन्ज फिगर्स के बारे में हरप्पन सिविलाइजेशन में ब्रॉन्ज कास्टिंग को वाइड स्केल में प्रैक्टिस किया जाता था ब्रॉन्ज स्टैच्यू को लॉस्ट वैक्स टेक्नीक या सीए पडू टेक्नीक करके बनाया जाता था इस टेक्नीक में वैक्स फिगर्स को सबसे पहले वेट क्ले से कोट किया जाता था और ड्राई होने दिया जाता था इस क्ले को फिर हीट करके वैक्स को मेल्ट होने दिया जाता था एक छोटे से होल से वैक्स को बाहर निकालकर उसमें लिक्विड मेटल को डाल दिया जाता था कूल होने के बाद क्ले को हटाकर स्टैचू को रेडी किया जाता था जो वैक्स स्टैचू की शेप में होती थी यह टेक्नीक आज भी कंट्री के कई पार्ट्स में यूज की जाती है मोहिज दड़ोस द डांसिंग वर्ल्ड का ओल्डेस्ट ब्रॉन्ज स्कल्पचर है इस 4 इंच फिगर में एक गर्ल को डिपिक्ट किया गया है जिसने लेफ्ट आर्म में बैंगल्स और राइट आर्म में एम्युलेट और ब्रेसलेट पहना हुआ है वह त्रिभंगा डांसिंग पश्चर में खड़ी हुई है आगे बढ़ते हैं और देखते हैं टेराकोटा फिगरिंग के बारे में टेराकोटा फायर बेक्ड क्ले को कहा जाता है जिसका इस्तेमाल स्कल्पचर्स बनाने के लिए किया जाता था ब्रॉन्ज फिगर्स के कंपैरिजन में टेराकोटा स्कल्पचर्स कम नंबर्स में पाए गए हैं इनको पिंच मेथड से बनाया जाता था और यह मेनली गुजरात और काली बंगनआईएनएनेटवर्कमार्केटिंग हरप्पन सिविलाइजेशन में पाई जाने वाली पॉटरीज दो तरह की थी प्लेन पोट्री और पेंटेड पोट्री जिसको रेड एंड ब्लैक पोट्री भी कहा जाता है इसमें रेड कलर का यूज बैकग्राउंड पेंट करने के लिए किया जाता था और ब्लैक पेंट से उसके ऊपर डिजाइन बनाए जाते थे ट्रीज बर्ड्स एनिमल फिगर्स और जियोम मेट्रिक पैटर्स इसके थीम्स थे ज्यादातर पॉटरीज बहुत ही फाइन व्हील मेड वेयर्स थे और हैंड मेड पॉटरीज कम ही थी पॉटरीज मेनली तीन पर्पसस के लिए यूज की जाती थी प्लेन पोट्री का इस्तेमाल हाउसहोल्ड पर्पसस के लिए किया जाता था जिसमें ग्रेन और वाटर स्टोरेज मेन थे कुछ मिनिएचर वेसल्स का यूज डेकोरेशन के लिए किया जाता था जिनका क्राफ्ट बहुत ही मावलस था कुछ पॉटरीज परफोरेटेड थी जिनका यूज पॉसिबल है कि लिकर बनाने के लिए किया जाता होगा पॉटरीज के बाद आते हैं नमस पर हरप्पन पीपल लार्ज वरायटी ऑफ मटेरियल का यूज किया करते थे प्रेशिस मेटल्स और जेम स्टोन से लेकर बोनस और इवन बेक्ड क्ले का यूज ऑना मेंट्स बनाने के लिए किया जाता था मेन और वमन दोनों ही ऑना मेंट्स का यूज किया करते थे जैसे नेकलेसेस फिलेट्स आर्मलेट्स और फिंगर रिंग्स गर्ड्स इयररिंग्स और अंकलेट्स सिर्फ विमेन ही पहना करती थी कॉर्नेलिया अमथिस्ट क्वस स्टेटाइट एटस से बने बीड्स काफी पॉपुलर थे और लार्ज स्केल में प्रोड्यूस किए जाते थे इसका एविडेंस हमें चानू दाड़ो और लोथल में मिली फैक्ट्री से मिलता है फैब्रिक के लिए हरपपंस कॉटन और वल का इस्तेमाल करते थे जो रिच और पुआ दोनों ही पहना करते थे उस समय के लोग भी फैशन कॉन्शियस थे जिसका अनुमान अलग-अलग तरह की हेयर स्टाइल्स और बियर्ड से लगाया जा सकता है बियर डेड प्रीस्ट का फेमस बस्ट इंडस वैली सिविलाइजेशन के स्टो फिगर्स का एक्सीलेंट एग्जांपल है इसमें एक बीयर्डेड पर्सन को शॉल से ढका गया है जिसमें हमें ट्रिफॉयल पैटर्न देखने को मिलता है आईज लोंगेडएक्सएक्सएक्स अब देखते हैं हरप्पन सिविलाइजेशन के कुछ इंपॉर्टेंट साइट्स और वहां की इंपॉर्टेंट आर्कियोलॉजिकल फाइंडिंग्स के बारे में इंपॉर्टेंट साइट्स ऑफ हरप्पन सिविलाइजेशन हड़प्पा प्रेजेंट डे पाकिस्तान में है और रवि रिवर के बैंक पर सिचुएटेड है यह साइट सिक्स ग्रेनरीज की दो रोज के लिए फेमस है लिंगम और योनी के स्टोन सिंबल्स मदर गॉडेस फिगर भी मिले हैं वीट और बाली एक वुडन मट के अंदर पाए गए हैं यानी इस समय के लोगों को वीट और बार्ली की जानकारी थी इनके अलावा डाइस कॉपर स्केल और मिरर मिले हैं एक ब्रज मेटल का स्कल्पचर पाया गया है जिसमें एक डॉग डियर को चेज कर रहा है फेमस रेड सैंड स्टोन मेल टोसो भी यहीं पर पाया गया था मोहेंजो द भी प्रेजेंट डे पाकिस्तान में है और रिवर इंडस के बैंक्स पर सिचुएटेड है यहां की कुछ इंपॉर्टेंट फाइंडिंग्स के बारे में देख लेते हैं इसी साइट में सिटाडेप ग्रेट बाथ और ग्रेट ग्रेनरी को एक्सक वेट किया गया है इसके अलावा पोस्ट क्रीमेशन बेरियल बीयर्डेड प्रीस्ट का फेमस स्कल्पचर डांसिंग गर्ल का फेमस स्टैचू और पशुपति सील भी यहीं से मिले हैं ढोला वरा गुजरात में है यहां पर जाइंट वाटर रिजर्व एक यूनिक वाटर हार्नेस सिस्टम स्टेडियम डम्स और इबैंक मेंट्स के रिमेंस मिले हैं 10 लार्ज साइज साइंस वाले इंस्क्राइनॉक्स का बैरियल किया जाता था इसके अलावा राइस हस्क फायर अल्टर्स पेंटेड जा मॉडर्न डे चेस टेराकोटा फिगर ऑफ हॉर्स एंड शिप पाए गए हैं 45 90 और 180 डिग्री एंगल के मेजरमेंट्स के लिए इंस्ट्रूमेंट्स भी देखने को मिले हैं राखीगढ़ी हरियाणा में सिचुएटेड है जिसको इंडस वैली सिविलाइजेशन की वन ऑफ द लार्जेस्ट साइट कंसीडर किया जाता है यहां पर ग्रेनरी सिमेट्री ड्रेंस टेराकोटा ब्रिक्स पाए गए हैं रोपड़ सतलज रिवर के बैंक्स पर सिचुएटेड है जो कि इंडिया के पंजाब में है यहां की मेन फाइंडिंग्स है डॉग जिसको एक ह्यूमन के साथ बैरी किया गया था एक ओवल पिट बैरियल में इसके साथ ही कॉपर एक्स की फाइंडिंग यहां पर की गई है बलथर और काली बांगन राजस्थान में सिचुएटेड हैं जहां पर बैंगल फैक्ट्री टॉय कार्ट्स कैमल्स की बोनस डेकोरेटेड ब्रिक्स सिटाडेप और लोअर टाउन पाए गए सुरकोटड़ा गुजरात में सिचुएटेड है जहां पर फर्स्ट हॉर्स बोनस के एक्चुअल रिमेंस की फाइंडिंग हुई है बनवाली हरियाणा में है जो कि अब सूख चुकी सरस्वती रिवर के बैंक पर था यहां पर टॉय पलाव बाली ग्रेंस लपस लजली फायर ल्टर ओवल शेप्ड सेटलमेंट पाए गए हैं यह एकलौती सिटी है जहां पर रेडियल पैटर्न में स्ट्रीट्स मिली हैं आलमगीरपुर यूपी के मेरठ में यमुना रिवर के बैंक पर है यह साइट इंडस वैली सिविलाइजेशन की ईस्टर्न मोस्ट साइट है यहां की मेजर फाइंडिंग है कॉपर की ब्रोकन ब्लेड सिरामिक आइटम्स मेहरगढ़ जो कि आज के पाकिस्तान में है इस साइट को इंडस वैली सिविलाइजेशन का प्रीस यानी ऑरिजिन बताया जाता है यहां पर पोट्री और कॉपर टूल्स पाए गए हैं अब आते हैं कंक्लूजन पर कंक्लूजन तो दोस्तों यह थी कहानी इंडस वैली सिविलाइजेशन के आर्किटेक्चर और स्कल्पचर की हमने देखा कि हड़प्पा सिविलाइजेशन के आ आर्टिजन और स्कल्पचर्स आर्किटेक्चर और स्कल्पचर में नई ऊंचाइयों को छुआ साइंटिफिक सिटी से लेकर आर्टिस्टिक फिगर्स तक इस एंट सिविलाइजेशन ने स्किल और क्राफ्ट्समैनशिप की एक लेगासी पीछे छोड़ी है ब्रिक्स के हाउसेस और हाउसिंग पैटर्न आज के मॉडर्न अर्बन एनवायरमेंट से रिजल करता है डिटेल में प्लान किया गया ड्रेनेज सिस्टम शायद ही आज की किसी सिटी में देखने को मिलेगा इसके साथ ही एक एफिशिएंट वाटर सप्लाई सिस्टम यह सभी फीचर्स हड़प्पा सिविलाइजेशन के मेट्रोपॉलिटन कल्चर को शो करता है आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया लगातार इसकी सिटीज की फाइंडिंग्स में लगा हुआ है और आने वाले समय में हमें और डिटेल्स मिलती रहेंगी मोरियन एंड पोस्ट मोरियन आर्किटेक्चर एंड स्कल्पचर दोस्तों पिछली वीडियो में हमने इंडस वैली सिविलाइजेशन के आर्किटेक्चर और स्कल्पचर के बारे में देखा इंडस वैली सिविलाइजेशन करीब 1500 बीसी में एंड हुआ जिसके बाद करीब 500 बीसी तक वैदिक पीरियड चला 500 बीसी से सेकंड अर्बनाइजेशन का फेज स्टार्ट हुआ जिसमें बुद्धिज्म और जैनिज्म का राइज हुआ दोनों रिलीजन श्रमण ट्रेडीशन का पार्ट थे यानी ऐसे रिलीजन जो वैदिक प्रिंसिपल्स पर बेस्ड नहीं थे सिक्स्थ सेंचुरी बीसी में ओरिजनेट हुए इन रिलीजस के चलते गजेट वैली में रिलीजस और सोशल सिनेरियो में चेंज स्टार्ट हुए क्योंकि दोनों रिलीजस वैदिक एज के वर्ण और जाति सिस्टम के अपोज थे उन्हें क्षत्रिय रूलरसोंग्स देखने को मिलता है इस दौरान स्टेट पेट्रोनेट में डिवेलप हुए आर्ट और इंडिविजुअल इनिशिएटिव के आर्ट में हमें क्लियर डिमार्केट देखने को मिलता है इसीलिए मोरियन आर्ट को हम दो कैटेगरी में क्लासिफाई कर सकते हैं प पला कोट आर्ट जो कि कोर्ट यानी स्टेट इनिशिएटिव था जिसमें पैलेस पिलर्स स्तूपस एटस बनाए गए और दूसरा पॉपुलर आर्ट जो कि इंडिविजुअल इनिशिएटिव था जिसमें केव पॉटरी और स्कल्पचर आते हैं इस कहानी में हम इन्हीं मौरिन आर्किटेक्चर और स्कल्पचर्स पर डिस्कशन करेंगे सबसे पहले शुरू करते हैं कोट आर्ट से कोट आठ रियन रूलर ने कई आर्किटेक्चरल वर्क्स को कमीशन कराया फिर चाहे वह किसी पॉलिटिकल रीजन के कारण हो या फिर कोई रिलीजस रीजन इन वर्क्स को कोर्ट आर्ट के नाम से रिफर किया जाता है कोर्ट आर्ट में सबसे पहले हम बात करते हैं पैलेस के बारे में मोरियन एंपायर सबसे पहला पावरफुल एंपायर था जो इंडिया में रूल में आया कैपिटल पाटलीपुत्र और कुमराहार में पैलेस को एंपायर का स्प्लेंडर शो करने के लिए बनाया गया था यह दोनों जगह आज के भी बिहार में स्थित है चंद्रगुप्त मौर्या का पैलेस पर्स पोलिस ईरान के एकमी नेड पैलेस से इंस्पायर्ड था पैलेस का प्रिंसिपल बिल्डिंग मटेरियल वुड हुआ करता था मेगस्थनीज ने इस पैलेस को ग्रेटेस्ट क्रिएशंस ऑफ मैनकाइंड का दर्जा दिया है इस तरह कुमराहार में बना किंग अशोका का पैलेस एक मैसिव स्ट्रक्चर था यहां पर एक हाई सेंट्रल पिलर था और एक थ्री स्टोरी वुडन स्ट्रक्चर भी था पैलेस की वॉल्स को कार्विंग्स और स्कल्पचर से डेकोरेट किया गया था अब बात करते हैं पिलर्स के बारे में अशोका के समय पिलर इंस्क्राइनॉक्स पिलर्स के चार पार्ट्स हुआ करते थे एक लंबे शाफ्ट को बेस बनाया जाता था जो कि एक मोनोलिथ होता था यानी सिंगल पीस ऑफ स्टोन से बनाया जाता था शाफ्ट के ऊपर कैपिटल हुआ करता था जो कि या तो लोटस शेप्ड या फिर बेल शेप्ड हुआ करता था कैपिटल्स का बेल शेप और पॉलिश्ड और लस्ट्रे फिनिश होना रेनियम पिलर से इन्फ्लुएंस था कैपिटल के ऊपर एक सर्कुलर या रेक्टेंगल बेस होता था जिसको एबेकस कहा जाता था एबेकस के ऊपर एक एनिमल फिगर को प्लेस किया जाता था इसका सबसे अच्छा एग्जांपल है चंपारण का लौरिया नंदगढ़ पिलर और वाराणसी का सारनाथ पिलर आप सभी जानते हैं कि सारनाथ पिलर का एबेकस और एनिमल पार्ट इंडिया का नेशनल एंब्लेम है अब बात करते हैं स्तूपस के बारे में वैदिक पीरियड से ही स्तूपस एक बेरियल माउंड्स की तरह बनाए जाते थे इन स्तूपस में डेड लोगों के रेलिक्स और एस रखे जाते थे जो कि एक फ्यूनरल का पार्ट थे अशोका के रेन में स्तूप आर्ट अपने पहले फेज के क्लाइमेक्स पर पहुंचा उनके रेन में लगभग 84000 स्तूपस का कंस्ट्रक्शन करवाया गया था स्तूपस भले ही एक वैदिक ट्रेडिशनल बुद्धिस्ट ने किया बुद्धा की डेथ के बाद नाइन स्तूपस बनाए गए थे यह नाइन स्तूपस थे राजगृह वैशाली कपिलवस्तु अल्ल कप्पा रामग्राम वेध पीड़ा पावा कुशीनगर एंड पीपलीवन एक स्तूप का बेसिक डायग्राम और उसके पार्ट्स इस फिगर में दिखाए गए हैं स्तूप के कोर को अनबर्न्ट ब्रिक से बनाया जाता था जबकि आउटर सर्फेस को बर्न ब्रिक्स का यूज करके बनाया जाता था इस आउटर सरफेस को प्लास्टर की एक थिक लेयर से कवर किया जाता था इसी के साथ मेढी और तोरन को वुडन स्कल्पचर से डेकोरेट किया जाता था डेटी प्रदक्षिणा पथ या ओपन एम्बुलेटरी पैसेज वे पर वॉक करते थे वशिप करने के लिए एग्जांपल के तौर पर मध्य प्रदेश का सांची स्तूप अशोका का सबसे फेमस स्तूप है इसके अलावा उत्तर प्रदेश का पी प्रवास स्तू सबसे पुराना स्तू है चलिए यह तो हुई कोट आर्ट की बात आगे बढ़ते हैं और देखते हैं पॉपुलर आर्ट के बारे में पॉपुलर आर्ट रॉयल पेट्रोनेट के अलावा केव आर्किटेक्चर स्कल्पचर और पोट्री इंडिविजुअल आर्ट के रूप में उभर कर आया इनको एक साथ मिलाकर पॉपुलर फॉर्म्स ऑफ आर्ट एंड आर्किटेक्चर बोला गया सबसे पहले डिस्कस करते हैं केव आर्किटेक्चर के बारे में इस पीरियड में हमें रॉक कट केव आर्किटेक्चर का इमरजेंस देखने को मिलता है मोरियन पीरियड के दौरान इन केव्स का इस्तेमाल जनरली विहारा यानी लिविंग क्वार्टर्स के रूप में किया जाता था इन विहारा को मेनली बुद्धिस्ट या जैन मंक रहने के लिए यूज किया करते थे जहां एक तरफ शुरुआती केव्स का यूज सिर्फ आजीविका सेक्ट के फॉलोअर्स किया करते थे आगे चलकर यही केव्स बुद्धिस्ट मॉनेस्ट्रीज के रूप में पॉपुलर हुई इंटीरियर वॉल्स का हाईली पॉलिश्ड इंटीरियर फिनिश और डेकोरेटिव गेटवेज मोरियन पीरियड में बनाई जाने वाली केव्स के स्पेशल फीचर्स थे 320 से 185 बीसी के बीच बनी बिहार की बर्बर और नागार्जुनी केव्स इसके अच्छे एग्जांपल्स हैं जिनको अशोका के ग्रैंडसन दशरथ के टाइम में बनाया गया था पॉपुलर आर्ट में अब हम स्कल्पचर्स के बारे में डिस्कस करेंगे इसमें स्तूप के तोरण और मेधी के डेकोरेशंस के लिए या फिर रिलीजस एक्सप्रेशन को शो करने के लिए स्कल्पचर्स का यूज किया जाता था मोरियन पीरियड के दो सबसे फेमस स्कल्पचर्स हैं यक्ष और यक्षी ये स्कल्पचर्स हिंदुइज्म जैनिज्म और बुद्धिज्म तीनों ही रिलीजस वशिप करते थे यक्षी का अर्ली मेंशन हमें एपिक सिला पद करम में देखने को मिलता है जो कि संगम का एक तमिल टेक्स्ट है इसके अलावा सभी जैन तीर्थंकरा को भी एक यक्षी के साथ एसोसिएट किया जाता था स्कल्पचर्स के बाद पोट्री पर भी एक नजर डालते हैं मोरियन पीरियड की पोट्री को जनरली नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर यानी एनबीपी डब् कहा जाता है इनके मेन कैरेक्टर्स थे ब्लैक पेंट और एक हाईली लस्ट अस फिनिश इनका यूज कॉमनली लग्जरी आइटम्स के रूप में किया जाता था तो दोस्तों अभी तक हमने मौर्य नाट एंड आर्किटेक्चर की बात की अब हम देखेंगे पोस्ट मोरियन आट के बारे में पोस्ट मोरियन आट सेकंड सेंचुरी बीसी में मोरियन एंपायर के डिक्लाइन होने के बाद इंडिया में कई छोटी-छोटी डायनेस्टीज उभर कर आई नॉर्थ में शुंगा कनवास कुशानास और शकास और सदर्न और वेस्टर्न इंडिया में सात वाहना एक वाकस अभीरा और वक टकास प्रॉमिनेंस में आई सिमिलरली रिलीजस सीन की बात करें तो यहां भी कई ब्रह्मनिकल सेक्ट्स उभर कर आए जैसे शैवाइट्स वैश्णवाइट्स और शकता इट्स इस समय के आर्ट में भी हमें लगातार चेंज हो रहे सोशो पॉलिटिकल सिनेरियो की झलक देखने को मिलती है रॉक कट केव्स और स्तूप आर्किटेक्चर कंटिन्यू रहा जिसमें हर डायनेस्टी ने कुछ यूनिक फी इंट्रोड्यूस किए इसी तरह स्कल्पचर में भी डिफरेंट स्कूल्स इमर्ज हुए और स्कल्पचर आर्ट पोस्ट मोरियन पीरियड में ही अपने पीक पर पहुंचा सबसे पहले डिस्कस करते हैं इस पीरियड के आर्किटेक्चर के बारे में जिसमें रॉक कट केव्स और स्तूप आ जाते हैं रॉक कट केव्स मोरियन पीरियड की तरह ही इस पीरियड में भी रॉक कट केव्स का कंस्ट्रक्शन जारी रहा लेकिन इस पीरियड में दो तरह के रॉक केव्स का डेवलपमेंट हुआ चैत्य और और विहार विहारस बुद्धिस्ट और जैन मंस के लिए रेजिडेंशियल हॉल्स थे जो मोरियन पीरियड के दौरान डिवेलप हुए दूसरी तरफ चैत्य हॉल्स पोस्ट मोरियन पीरियड में डिवेलप हुए चैत्य हॉल्स मेनली क्वाड्रेंगुलर यानी चौकोर चेंबर्स थे जिनकी रूफ फ्लैट हुआ करती थी और इनका इस्तेमाल प्रेयर हॉल्स की तरह किया जाता था केव्स में ओपन कोर्टयार्ड भी हुआ करता था और स्टोन स्क्रीन वॉल्स भी होती थी जो बारिश से टेक्ट करती थी चैत्य हॉल्स को भी ह्यूमन और एनिमल फिगर से डेकोरेट किया जाता था कार्ले चैत्य हॉल अजंता केव्स इसका एग्जांपल है अजंता केव्स में 29 केव्स 25 विहारस और चार चैत्य हॉल्स हैं उड़ीसा की उदयगिरी और खांडा गिरी केव्स भी इस आर्किटेक्चर के फेमस एग्जांपल्स हैं इन केव्स को कलिंगा किंग खर्वेला के अंडर फर्स्ट से सेकंड सेंचुरी बीसी के बीच बनाया गया था यह केव्स आज के भुवनेश्वर के पास हैं इस केव कॉम्प्लेक्शन दोनों केव्स हैं इन केव्स को पॉसिबली जैन मंस के रेजिडेंस के लिए बनाया गया था उदयगिरी केव्स हाथी गुंफा इंस्क्राइनॉक्स ने को मिलता है उदयगिरी केव्स की एक और फेमस रानी गुंफा केव एक डबल स्टोरी केव है जिसमें कई ब्यूटीफुल स्कल्पचर्स देखने को मिलते हैं रॉक कट केव्स के बाद बात करते हैं स्तूपस के बारे में पोस्ट मोरियन पीरियड में स्तूपस काफी बड़े और डेकोरेटिव हो गए वुड और ब्रिक की जगह स्टोन ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल किया जाने लगा शुंग डायनेस्टी ने तोरणास को एक ब्यूटीफुली डेकोरेटेड गेट वेज के रूप में इंट्रोड्यूस किया तोर अनाज को बहुत ही इंट्रीकेट यानी जटिल तरीके से फिगर्स और पैटर्न से कार्व किया जाने लगा मध्य प्रदेश का भरहुत स्तूप और सांची स्तूप इसके बेस्ट एग्जांपल्स हैं आर्किटेक्चर के बाद आगे बढ़ते हैं और देखते हैं पोस्ट मोरियन पीरियड के स्कल्पचर के बारे में स्कल्पचर इंडियन सबकॉन्टिनेंट के तीन डिफरेंट रीजंस में स्कल्पचर के तीन प्रॉमिनेंट स्कूल्स डिवेलप हुए इनके सेंटर्स थे गांधा मथुरा और अमरावती गांधा स्कूल पंजाब के वेस्टर्न फ्रंटियर्स में डिवेलप हुआ जो कि आज के पेशावर और अफगानिस्तान में है ग्रीक इवेडर्स अपने साथ ग्रीक और रोमन स्कल्पचर्स के ट्रेडिशनल करर आए जिसने इस रीजन के लोकल ट्रेडिशनल एंस किया इसके चलते गांधा स्कूल को ग्रेको इंडियन स्कूल ऑफ आर्ट भी कहा जाने लगा गांधा स्कूल 50 बीसी से 500 एडी के बीच दो स्टेजेस में फ्लोरिश हुआ पहली स्टेज में ब्लू ग्रे सैंड स्टोन का यूज किया जाता था और दूसरी स्टेज में स्कल्पचर्स बनाने के लिए मड और स्टको का यूज किया गया मथुरा स्कूल फर्स्ट और थर्ड सेंचुरी बीसी के बीच यमुना रिवर के बैंक्स में फ्लोरिश हुआ यहां के स्कल्पचर्स बुद्धिज्म जैनिज्म और हिंदुइज्म तीनों रिलीजस की स्टोरीज और इमेजरी से इन्फ्लुएंस था मथुरा स्कूल में इमेजेस में सिंबॉलिज्म का यूनिक यूज देखने को मिलता है इसके अंतर्गत कई हिंदू गॉड्स को उनके अवायुद्धास यानी वेपन से रिप्रेजेंट किया जाने लगा जैसे शिवा को उनके लिंग और मुख लिंग से सिंबलाइज किया गया मथुरा स्कूल में बुद्ध के हेड पर शो किया जाने वाला हेलो अब बड़े साइज का शो किया जाता था और उसको ज्योमेट्री पैटर्न से डेकोरेट भी किया जाता था बुद्धा को दो बध सवाज यानी बुद्ध के पाथ पर चलने वाले लोग के साथ शो किया जाने लगा यह दो बोधि सतवास थे लोटस पकड़े हुए पदम पानी और थंडरबोल्ट पकड़े हुए वज्र पानी अमरावती स्कूल जो इंडिया के सदन पार्ट्स में कृष्णा और गोदावरी रिवर वैलीज में डिवेलप हुआ यह स्कूल सातवाह रूलर के पेट्रोनेट में डिवेलप हुआ जहां एक तरफ बाकी दोनों स्कूल्स सिंगल इमेजेस पर फोकस थे वहीं दूसरी तरफ अमरावती स्कूल ने डायनामिक इमेजेस और नैरेटिव आर्ट पर एमफसा किया इस स्कूल के स्कल्पचर्स ने त्रिभंगा पोचर यानी बॉडी विद थ्री बेंड्स का एक्सेसिव यूज किया सारे ही आर्ट फॉर्म्स भारत के रिच और वेरी कल्चर का एक इंपॉर्टेंट हिस्सा है अब आते हैं कंक्लूजन पर कंक्लूजन तो दोस्तों यह थी कहानी मोरियन और पोस्ट मोरियन आर्किटेक्चर और स्कल्पचर की हमने देखा कि मोरियन एंपायर के राइज होते ही की आर्ट में स्टेट इन्फ्लुएंस पहली बार देखने को मिला स्टेट के पेट्रोनेट में आर्ट ने नए-नए फॉर्म्स भी अडॉप्ट किए मोरेन एंपायर में स्तूप आर्किटेक्चर अपने चरम सीमा पर पहुंचा मोरेन एंपायर के बाद छोटी-छोटी डायनेस्टीज ने अपना यूनिक फीचर आर्ट में इंट्रोड्यूस किया और उसे और रिच बनाया और हमने यह भी देखा कि किस तरह इनवेडर्स और कंकर्स के माध्यम से भी आर्ट में क्या डिफरेंसेस आ सकते हैं इस तरह से देखा जाए तो इंडियन आर्ट और आर्किटेक्चर एक तरह से एवोल्यूशन की कहानी है हर एरा में हमें उस समय के नैरेटिव डिजाइंस और पैटर्स देखने को मिलते हैं जो अपने आप में यूनिक हैं इसीलिए सिर्फ आठ देखकर भी किसी पीरियड का अंदाजा लगाया जा सकता है मोरियन और पोस्ट मोरियन आर्ट भी हमारे इंडिया के लंबे इतिहास में एक इंपॉर्टेंट फेज बन चुका है और हमें इस पर गर्व है टेंपल आर्किटेक्चर ऑफ इंडिया पार्ट वन स्टडी आईक्यू में आपका स्वागत है मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों आज हम बात करेंगे इंडिया के टेंपल आर्किटेक्चर के बारे में यह टेंपल्स मैसिव स्ट्रक्चर से लेकर छोटे आकार के रूप में देश के कोने-कोने में फैले हैं यह टेंपल्स ना केवल विश्वास और धर्म के जीवंत प्रतीक हैं पर यह इंडिया के रिच हिस्टोरिकल पास्ट और उसके आर्किटेक्चरल मावल को भी दर्शाते हैं इस वीडियो के माध्यम से हम देखेंगे कि कैसे टेंपल आर्किटेक्चर इंडिया में इवॉल्व हुआ इसके बेसिक एलिमेंट क्या है उनका क्लासिफिकेशन और इंपॉर्टेंस क्या है टेंपल्स के स्ट्रक्चर को जानने से पहले आइए पहले हम उनका एवोल्यूशन जान ले एवोल्यूशन ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर ऐसा माना जाता है कि वैदिक टाइम्स में इंडिया में अधिकांश पूजा अग्नि या फायर पर आधारित थी थर्ड सेंचुरी में स्टोंस और वुड के आधार पर स्ट्रक्चर्स बनने लगे वहीं फोर्थ सेंचुरी में रॉक कट केव टेंपल्स का एस्टेब्लिशमेंट हुआ जो अ अधिकतर पहाड़ी इलाकों में पाए जाते हैं जैसे कर्नाटका के बादामी केव टेंपल और उड़ीसा का उदयगिरी खांडा गिरी केव्स इस प्रकार इन सिंपल स्ट्रक्चर से कॉम्प्लेक्शन का एवोल्यूशन हुआ इनसे हम इस वीडियो में देखेंगे कि कैसे इन एस्पेक्ट्स में समय के साथ हमने महारत हासिल की पर जैसे जैसे सोसाइटी एडवांस हुई टेंपल्स का इंपॉर्टेंस बदल गया टेंपल्स एजुकेशनल इंस्टिट्यूट सोशल गैदरिंग फेस्टिवल्स और मैरिजस का हब बन गए इवेंचर बन गए जहां इनके आसपास मार्केट्स पैलेस और मिलिट्री गैरिसंस बसने लगे मधुरा का मीनाक्षी अमन टेंपल पुरी का जगन्नाथ टेंपल एंसेट सिटी टेंपल के रूप में इमर्ज हुए कॉम्प्लेक्टेड मेंट शुरू हुआ फिफ्थ सेंचुरी गुप्ता पीरियड में गुप्ता इंडिया के पहले आर्टिस्ट थे जिन्होंने रॉक कट श्राइन से टेंपल्स को इवॉल्व किया उनके आर्किटेक्चरल मार्वल के कारण गुप्ता पीरियड को गोल्डन एज ऑफ इंडिया भी कहा जाता है जहां नॉर्दर्न इंडिया में टेंपल्स इवॉल्व हो रहे थे सदर्न इंडिया में टेंपल्स का डेवलपमेंट शुरू हुआ सेवंथ सेंचुरी में अंडर पल्लवा डायनेस्टी पल्लवा रूलर राजसिंहा वर्मन द्वारा ममल पुरम में कई मनटु ए इनमें रथ टेंपल वह काव टेंपल कृष्णा टेंपल महिषासुर मर्दिनी मप शोर टेंपल कॉम्प्लेक्टेड ब्यूटी माने जाते हैं इसी कारण 1984 में इन्हें यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया गया पल्लवास के रूल के बाद चोला ने अर्ली 11थ टू 12थ सेंचुरी के बीच द्रविडियन स्टाइल में आर्किटेक्चरल मार्वल्स क्रिएट किए राजा राजा वन द्वारा तंजावुर में बृहदेश्वर टेंपल राजेंद्र वन द्वारा गंगाई कोंडा चोलापुरम टेंपल और राजा राजा चोला टू द्वारा रावते स्वरा टेंपल कंस्ट्रक्ट किया गया इन सभी टेंपल्स को ग्रेट लिविंग चोला टेंपल्स कहा जाता है इसी के साथ कई रीजनल स्टाइल्स भी डिवेलप हुई जैसे बैसारा स्टाइल अंडर चालुक्यास ऑफ बादामी एंड होय सेलास राष्ट्रकूटस ने भी एथ सेंचुरी में द्रविडियन स्टाइल से इंस्पायर होकर कई टेंपल्स का निर्माण किया जैसे कैलाश टेंपल एलोरा फाइनली लेट 14th सेंचुरी में विजयानगर एंपायर सदन इंडिया में डोमिनेंट बन गए और उन्होंने डिस्टिंक्टिव राया गोपुरम या गेटवेज टेंपल्स में इंट्रोड्यूस किए और एक यूनिक स्टाइल डिवेलप किया हपी में स्थित विट्ठल स्वामी टेंपल विरुपाक्ष टेंपल विजयनगर स्टाइल को डिपिक्ट करता है दोस्तों यह था एवोल्यूशन ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर अब बात करेंगे टेंपल के बेसिक एलिमेंट्स की बेसिक एलिमेंट्स ऑफ अ टेंपल इंडियन टेंपल्स का निर्मा ण शिल्पशास्त्र और वास्तुशास्त्र के आर्किटेक्चरल प्रिंसिपल्स पर बेस्ड है जहां कॉस्मिक वैल्यूज डायरेक्शंस और अलाइन मेंट्स के बीच रिलेशन बताया गया है टेंपल्स की क्लासिफिकेशन से पहले आइए पहले हिंदू टेंपल्स के बेसिक एलिमेंट्स जान लेते हैं फर्स्ट इंपॉर्टेंट एलिमेंट इज गर्भ गृह या सेक्टम सैंक्टोरम यह मंदिर का वो स्थान है जहां प्रिंसिपल डेटी की स्थापना होती है नेक्स्ट है मंडपा यह मंदिर का एंट्रेंस हॉल है यहां पर वरशिपर्स असेंबल होते हैं फिर आता है शिखर या विमान यह मंदिर के ऊपर एक माउंटेन लाइक प्रोजेक्शन है नॉर्दर्न इंडिया में यह कर्वी लीनियर होते हैं और इन्हें शिखर कहते हैं सदर्न इंडिया में यह स्टेप्ड पिरामिडल होते हैं और इन्हें विमान कहते हैं नेक्स्ट है अमलका यह एक स्टोन से बनी डिस्क है जो शिखर के ऊपर दिखाई देती है ये मोस्टली नॉर्दर्न इंडियन टेंपल्स में पाए जाते हैं इसके बाद है कलश ये टेंपल्स का टॉप मोस्ट पार्ट होता है जो अमलका के ऊपर रेस्ट करता है नॉर्थ इंडियन टेंपल्स में यह कॉमन फीचर है नेक्स्ट एलिमेंट है अंतराल यह गर्भगृह और मंडप को कनेक्ट करने वाला नैरो पैसेज है अगला है जगती नॉर्दर्न टेंपल्स में पाया जाने वाला ये रेज प्लेटफार्म है जिस पर डेवरी बैठकर प्रे कर सकते हैं फाइनल एलिमेंट है वाहना यह मेन डेटी का वकल होता है और गर्भ गृह के ठीक सामने पोजीशन होता है दोस्तों यह थे बेसिक एलिमेंट्स ऑफ इंडियन टेंपल्स आइए बात करते हैं इस पर बेस्ड टेंपल आर्किटेक्चर के क्लासिफिकेशन की क्लासिफिकेशन ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर टेंपल आर्किटेक्चर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग स्वरूप में दिखाई देते हैं टेंपल डिजाइन के डिटेल्स और कार्विंग्स नॉर्दर्न और सदर्न इंडिया में काफी डिफरेंट है जो उनके कल्चर या वैल्यूज को रिफ्लेक्ट करते हैं ब्रॉडली टेंपल आर्किटेक्चर तीन टाइप के हैं पहला है नगर स्टाइल दूसरा द्रविडियन स्टाइल और तीसरा वेसरा स्टाइल पहले हम बात करते हैं नगर स्टाइल की नगर स्टाइल लगभग फिफ्थ सेंचुरी एडी में सिटीज के अराउंड नगर स्टाइल टेंपल्स डिवेलप हुए नगर स्टाइल रफल हिमालया से लेकर विंध रेंजेस तक एक्सटेंड करता है गुप्ता पीरियड में नगर स्टाइल टेंपल्स फाइव स्टेजेस में इवॉल्व हुए फर्स्ट स्टेज सांची का टेंपल नंबर 17 इसका बेस्ट एग्जांपल है इस स्टेज में टेंपल्स फ्लैट रूफ और स्क्वेयर शेप हुआ करते थे प्लट फर्मस लोअर एलिवेशन पर थे और पिलर्स भी काफी शैलो थे सेकंड स्टेज मध्य प्रदेश के नचना कुथुरा का पार्वती टेंपल इसका अच्छा एग्जांपल है रेज्ड प्लेटफॉर्म्स और कवर्ड एम्बुलेटरी पैसेज या प्रदक्षिणा पथ इस स्टेज के डिस्टिंक्ट फीचर्स थे थर्ड स्टेज यूपी के देवगढ़ में स्थित दशावतार टेंपल इसका अच्छा एग्जांपल है यहां फ्लैट रूफ की जगह शिखर डिवेलप हुआ इसी के साथ पंचायतन स्टाइल डिवेलप हुआ इस स्टाइल के तहत मेन टेंपल स्क्वेयर शेप्ड था जिसके आगे लोंगे केड मंडप था इस मंडप के अपोजिट साइड्स में चार सब्सिडियरी श्राइन प्लेस किए जाते थे फोर्थ स्टेज महाराष्ट्र के शोलापुर में स्थित तेर टेंपल इस स्टेज को दर्शाता है यहां पर मेन टेंपल स्क्वेयर से रेक्टेंगल शेप का बन गया था फिफ्थ स्टेज राजगीर का मनियार मठ इस स्टेज को रिफ्लेक्ट करता है इस स्टेज के दौरान टेंपल्स सर्कुलर शेप्ड थे जिनमें रेक्टेंगल प्रोजेक्शंस हुआ करते थे नगर स्टाइल के कई इंपॉर्टेंट फीचर्स हैं जैसे टेंपल्स अपेज प्लेटफॉर्म्स पर बने हैं और पंचायतन स्टाइल में टेंपल्स का ग्राउंड वर्क किया गया है इसी के साथ मंडपा या असेंबली हॉल प्रिंसिपल श्राइन के ठीक सामने बिल्ड किया गया है गर्भगृह डायरेक्टली टॉलेस्ट शिखर के नीचे प्रस्थापित है गर्भगृह के बाहर गंगा और यमुना गॉडेस की इमेजेस बनाई गई हैं शिखर एक या अनेक हो सकते हैं और शिखर तीन टाइप के होते हैं रेखा प्रसाद या लेटिना फमसाना और वल्लभी शिखर के ऊपर एक फ्लूटेड डिस्क या अमलक मौजूद होता है स्फेरिकल शेप्ड कलश अमलक को टॉप करते हैं टेंपल्स के अंदर वॉल को तीन वर्टिकल प्लेनस में डिवा ड किया गया है जिसे रथा कहते हैं यहां तीरथा से पंच रथा सप्त थाज और नवर थस भी एक्जिस्टेंस में आए इन वॉल्स पर नैरेटिव स्कल्पचर्स बनाए जाते थे गर्भ गृह को कवर्ड प्रदक्षिणा पथ या एम्बुलेटरी पैसेज द्वारा एंक्लोज किया जाता है द्रविडियन स्टाइल के कंपैरिजन में यहां वाटर टैंक्स और गेटवेज मौजूद नहीं है आइए अब हम बात करेंगे कैसे नगर स्टाइल अलग-अलग रीजंस में डिवेलप हुआ नगर स्टाइल इन वेरियस रीजंस सेंट्रल इंडिया सेंट्रल इंडिया में नगर स्टाइल यूपी एमपी और राजस्थान में पाया जाता है यहां पर टेंपल्स सैंड स्टोन की मदद से बनाए गए हैं इस रीजन के क्लासिकल एग्जांपल्स कुछ इस प्रकार हैं पहला है दशावतार विष्णु टेंपल इन देवगढ़ उत्तर प्रदेश लेट गुप्ता पीरियड के टेंपल आर्किटेक्चर का यह क्लासिकल एग्जांपल है पंचायतन स्टाइल में बना यह टेंपल रेखा प्रसाद शिखर से टॉप किया गया है यह एक वेस्ट फेसिंग टेंपल है जबकि मेजॉरिटी टेंपल्स नॉर्थ या ईस्ट फेसिंग होते थे विष्णु को तीन फॉर्म में टेंपल वॉल्स पर डिपिक्ट किया गया है पहला सदन वॉल में शेष शायना दूसरा ईस्ट में नरनारायण और तीसरा और वेस्ट में गजेंद्र मोक्षा ऐसा कहते हैं कि सब्सिडियरी श्राइन भी विष्णु का ही रूप थे इसलिए इस टेंपल को दशावतार कहा गया है दूसरा इंपॉर्टेंट आर्किटेक्चर मार्वल है एमपी का खाजू राहु टेंपल 10थ सेंचुरी में बना यह टेंपल एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है इसे चंदेला रूलरसोंग्स यहां मौजूद हैं टेंपल्स हिंदू और जैन रीजन को डेडिकेटेड है इसी के साथ कुछ टेंपल्स जैसे 64 योग टेंपल योगिनी को डेडिकेटेड है जो तांत्रिक वरशिप का एक पार्ट है खजुराहो में कई इंपॉर्टेंट टेंपल्स हैं जैसे कंदरिया महादेव टेंपल जो लॉर्ड शिवा को डेडिकेटेड है लक्ष्मणा टेंपल यह खाजू राहु का सबसे ग्रांडेस्ट टेंपल माना जाता है इसे चंदेला किंग ंगा ने 954 एडी में एस्टेब्लिश किया था अब हम बात करेंगे वेस्टर्न इंडिया की वेस्टर्न इंडिया गुजरात राजस्थान और वेस्टर्न एमपी में बने नगर स्टाइल टेंपल्स अधिकतर सैंड स्टोन से बने हैं इस रीजन में सोलंकी रूलर द्वारा टेंपल्स बनाए गए थे जिसका एक क्लासिक एग्जांपल है गुजरात के मोढेरा का सन टेंपल इस टेंपल को सोलंकी डायनेस्टी के राजा भीमदेव वन ने बनवाया इस टेंपल की सबसे खास बात है सूर्यकुंड सूर्यकुंड एक रेक्टेंगल स्टेप्ड टैंक है जो सेक्रेड वाटर बॉडी हुआ करता था इसके अलावा तोरण या डेकोरेटेड गेटवेज असेंबली हॉल की तरफ लीड करते हैं सेंट्रल श्राइन वॉल प्लेन है एक इंटरेस्टिंग फीचर इस टेंपल की यह है कि टेंपल ईस्ट फेसिंग है इस कारण हर साल इक्विनोक्स के दौरान सन रेज डायरेक्टली सेंट्रल श्राइन पर गिरती हैं अब हम बात करेंगे ईस्टर्न इंडिया की ईस्टर्न इंडिया नगर स्टाइल यहां नॉर्थईस्ट ओड़ीशा और बंगाल में पाया जाता है आइए शुरू करते हैं असम से असम असम में 10थ सेंचुरी तक गुप्ता इन्फ्लुएंस दिखता है वहीं 12थ से 14 सेंचुरी के बीच गवाहाटी में अहोम स्टाइल डिवेलप हुआ अहोम बर्मीज और बंगाल के पाला स्टाइल का मिक्सचर है फॉर एग्जांपल गोवाहाटी का कामाख्या टेंपल यह एक शक्ति पीठ है जो गॉडेस कामाख्या को डेडिकेटेड है आइए अब देखते हैं बंगाल में बंगाल नाइंथ से 11थ सेंचुरी के बीच पाला रूलरसोंग्स और क्ले मिक्सचर जिसे टेराकोटा ब्रिक्स कहते हैं से बना था बिल्डिंग्स पर कर्व्ड या स्लोपिंग रूफ है जिसे बांगला रूफ भी कहते हैं मुगल ने इसे अपने आर्किटेक्चर में यूटिलाइज किया फिगर्स को काफी पॉलिश किया जाता था जिससे वह मेटलिक और लस्ट्रे दिखते थे अब हम बात करेंगे ओड़ीशा की ओड़ीशा उड़ीसा में डिस्टिंक्ट स्टाइल डिवेलप हुआ जिसे कलिंग स्टाइल भी कहते हैं यहां शिखर या ड्यूल ऑलमोस्ट वर्टिकल है और सडन इनवर्ट कर्व लेते हुए टॉप में जाता है ड्यूल के ठीक सामने मंडप या जगमोहन पाया जाता है एक्सटीरियर वॉल इंट्रीकेटली कावड है पर इनर वॉल्स प्लेन है टेंपल को बाउंड्री वॉल्स द्वारा सराउंड किया जाता है पुरी का जगन्नाथ टेंपल और भुवनेश्वर का लिंगराज टेंपल इस स्टाइल को रिफ्लेक्ट करते हैं पर इस स्टाइल का सबसे बेहतरीन नमूना है कोणार्क कोणार्क का सन टेंपल यह टेंपल 1240 में बना था इस आर्किटेक्चरल मार्बल को ईस्टर्न गंगा डायनेस्टी के नरसिंहा देव वन ने बनाया था टेंपल एक रेज्ड प्लेटफार्म पर बना है और डिटेल्स मौजूद हैं यहां 12 पेयर्स ऑफ जाइगर व्हील्स स्कल्प हैं जो सन गॉड के चैरिटहम 1984 में इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया गया इसके कल्चरल हेरिटेज को सिग्नीफा करने के लिए ₹10 के रिवर्स साइड में कोणार्क सन टेंपल डिपिक्ट किया गया है इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कैसे नगर स्टाइल ने इंडिया के टेंपल आर्किटेक्चर को एक नया रूप दिया सिंपल रॉक कट केव टेंपल से इन कॉम्प्लेक्टेड वेलप मेंट इंडिया के रिच कल्चरल हेरिटेज को दर्शाता है और हमें उन रीजंस के कल्चर को समझ ने का एक नया पर्सपेक्टिव देता है अगले वीडियो में हम देखेंगे कि कैसे द्रविडियन और वि सारा स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर इवॉल्व हुए और कैसे तरह-तरह के रीजनल वेरिएशंस वहां डिवेलप हुए मिलते हैं अगले वीडियो में टेंपल आर्किटेक्चर ऑफ इंडिया पार्ट टू स्टडी आईक्यू में आपका स्वागत है मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों पिछले वीडियो में हमने टेंपल्स के इवोल्यूशनरी हिस्ट्री बेसिक एलिमेंट्स को जाना और देखा कि नॉर्दर्न इंडिया में नगर स्टाइल टेंपल्स कैसे डिवेलप हुए इसी के साथ हमने यह भी देखा कि कैसे नगर स्टाइल वेस्टर्न इंडिया सेंट्रल इंडिया और ईस्टर्न इंडिया में रीजनल वेरिएशंस के साथ दिखाई दिए आज हम इस वीडियो के तहत एक नजर डालेंगे सदर्न इंडिया के टेंपल आर्किटेक्चर की ओर जिस प्रकार नगर स्टाइल वेरिएशंस के साथ नॉर्दर्न इंडिया में नजर आए उसी प्रकार पेनिंस इंडिया में डिस्टिंक्ट टेंपल स्टाइल्स पाए गए प्रेडोमिनेंटली दो इंपॉर्टेंट स्टाइल्स सदर्न इंडिया में पाए जाते हैं द्रविडियन स्टाइल और विसा स्टाइल पहले हम बात करेंगे द्रविडियन स्टाइल की द्रविडियन स्टाइल लगभग कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविडियन स्टाइल के मंदिर पाए जाते हैं ये टेंपल्स रूलरसोंग्स कुछ इस प्रकार हैं टेंपल को कंपाउंड वॉल द्वारा एंक्लोज किया गया है गोपुरम या एंट्रेंस गेटवेज इंट्रीकेटली डिजाइंड है इसके अलावा विमाना स्टेप्ड पिरामिडल शेप में बना है द्रविडियन स्टाइल में विमान शिखर का इक्विवेलेंट है इसी के साथ नगर स्टाइल के कलश को यहां शिखर कहा जाता है नेक्स्ट फीचर है द्वार पालज गर्भ गृह के एंट्रेंस पर द्वारपाल के स्कल्पचर मौजूद है जो टेंपल को गार्ड करते हैं कंपाउंड के भीतर वाटर टैंक भी पाया जाता है सब्सिडियरी श्राइन मेन टावर के अंदर या बाहर पाए जाते हैं फाइनली गर्भगृह स्मॉलेट टावर में पाया जाता है यह सबसे ओल्डेस्ट टावर होता है टेंपल टाउन की पॉपुलेशन बढ़ते ही एडिशनल बाउंड्री वॉल्स ऐड किए जाते हैं फॉर एग्जांपल तिर चिर पल्ली के श्रीरंगम का श्री रंगनाथर टेंपल यहां पर सेवन कंसेंट रेक्टेंगल एंक्लोजर वॉल्स पाई जाते हैं हर वॉल में गोपुरम मौजूद है और मेन श्राइन सेंटर में होता है चलिए अब हम पल्लवास और चोला के टेंपल्स की मदद से द्रविडियन आर्किटेक्चर को समझते हैं पल्लवा आर्किटेक्चर पल्लवा डायनेस्टी के राजा महेंद्र वर्मन के शासन में सदर्न स्टेट्स में टेंपल्स बने पल्लवास के अंडर टेंपल्स चार स्टेजेस में इवॉल्व हुए पहली स्टेज में 610 से 630 एडी के बीच महेंद्र वर्मन के अंडर रॉक का टेंपल्स बनाए गए इन टेंपल्स को मंडपा कहा जाता था सेकंड स्टेज 630 से 668 एडी के बीच नरसिंह वर्मन के अंडर डिवेलप हुआ रॉक का टेंपल्स स्कल्पचर से डेकोरेट किए गए और मंडपास को रथा में डिवाइड किया गया बड़े रथासप्तमी 690 से 800 एडी के बीच राजसिंह वर्मन के अंडर डिवेलप हुआ रियल स्ट्रक्चरल टेंपल इसी स्टेज में हुआ लास्टली 800 से 900 एडी के बीच नंदी वर्मन के अंडर फाइनल स्टेज डिवेलप हुआ जहां टेंपल्स काफी छोटे साइज के थे पल्लवास के रेन में ममल्ट पोर्ट सिटी था जहां मावलस आर्किटेक्चर मॉन्यूमेंट्स मौजूद हैं ममल्ट को 1984 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया गया है इंपॉर्टेंट मॉन्यूमेंट्स इस प्रकार हैं पंच रथसप्तमी द्वारा बनाया गया है जहां नेबरिंग टेंपल्स रॉक कट स्टाइल से बनाए गए वहीं ग्रेनाइट की मदद से इस टेंपल को बनाया गया यह साउथ इंडिया में अर्लीस्ट स्ट्रक्चरल टेंपल माना जाता है शिवा और विष्णु के श्राइन यहां पाए जाते हैं इसका यूनिक फीचर है कि यहां तीन मेन श्राइन मौजूद हैं एक शिवा श्राइन ईस्ट फेसिंग है तो दूसरा शिव श्राइन वेस्ट फेसिंग है और तीसरा श्राइन अनंत शायना विष्णु को डेडिकेटेड है टेंपल के आउटर वॉल्स पर नंदी का स्कल्पचर बनाया गया है 2019 में पीएम मोदी और श जिन पिन के बीच सेकंड इंडिया चाइना इनफॉर्मल समिट इसी जगह पर हुई थी पल्लवास के डिक्लाइन के बाद चोला के अंडर एक नया स्टाइल डिवेलप हुआ चोला स्टाइल जो द्रविडियन स्टाइल का एक हिस्सा है चोला टेंपल्स चोला पल्लवास के फीचर्स को इनकॉरपोरेट करते हुए वेरिएशंस लाए इनमें सबसे इंपॉर्टेंट है तंजोर का बृहदेश्वर टेंपल इस शिवा टेंपल को राज राजा चोला द्वारा 1090 एडी में बनाया गया यह एक आर्किटेक्चरल ग्रेंजर में मिसाल है इंडियन टेंपल्स के मुकाबले यह सबसे लार्जेस्ट और टॉलेस्ट है इसका पिरामिडल विमान अराउंड 70 मीटर हाई है इस विमान के ऊपर डोम शेप्ड शिखर भी मौजूद है जिस पर नंदी की इमेजेस बनी हैं शिखर को 3 मीट 8 सेमी टॉल कलश द्वारा टॉप किया गया है शिवा डेटी को लिंगम के रूप में डबल स्टोरी सेक्टम में रखा है सराउंडिंग वॉल्स पर म्यूरल पेंटिंग्स और माइथोलॉजी स्टोरीज के स्कल्पचर से डेकोरेट किया गया है वहीं अगर हम गंगाई कोंडा चोलापुरम टेंपल की बात करें तो इस टेंपल का निर्माण राजेंद्र वन ने 135 एडी में कंप्लीट किया स्क्वेयर शेप में बने इस टेंपल को शिवा को डेडिकेट किया गया है हालांकि यहां पर विष्णु दुर्गा सूर्य हरिहरा जैसे हिंदू डेटी को भी डिस्प्ले किया गया है बृहदेश्वर टेंपल के साथ इस टेंपल को साउथ इंडिया का लार्जेस्ट शिवा टेंपल कंसीडर किया जाता है इसी के साथ एरावतेश्वरा राजा चोला सेकंड ने 12थ सेंचुरी में तंजावूर में किया इस टेंपल को शिवा को डेडिकेट किया गया है यहां पर मंडपा पिलर्स को इंट्रीकेटली कार्व करते हुए स्टोरीज डिपिक्ट की गई हैं जैसे पार्वती पेनेंस शिवाज मैरिज शिवाज फाइट विद असुरा वहीं मिनिएचर पैनल्स 63 नयनार सेंट्स या शैव सेंट्स की स्टोरीज डिपिक्ट करते हैं जो दर्शाता है कि चोला शैविज्म में बिलीव करते थे आपको बता दें कि इन तीनों टेंपल्स की इंपॉर्टेंस को दर्शाने के लिए इन्हें 1987 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया गया इसी के साथ नॉर्दर्न और सदर्न स्टाइल से इंस्पायर होकर कई रीजनल वेरिएशंस देखने को मिले जैसे वि सारा स्टाइल इस इसे डेकन या कर्नाटका स्टाइल भी कहा जाता है मिडिल सेवंथ सेंचुरी में डिवेलप हुए यह स्टाइल नगर और द्रविडियन स्टाइल का हाइब्रिडाइज्ड वर्जन है इस स्टाइल ने नगर के कर्विलेनियर शिखर और स्क्वेयर बेस को इनकॉरपोरेट किया और द्रविडियन स्टाइल के स्टेप्ड शिखर और इंट्रीकेट कार्विंग्स को इंबाइब किया इन्हें तीन डायनेस्टीज ने डिवेलप किया बादामी और कल्याणी के चालुक्यास राष्ट्रकूटस और होय सलाज वि सारा स्टाइल के इंपोर्टेंट एग्जांपल्स इस प्रकार हैं पट्ट डकल टेंपल्स ये एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है यहां पर कुल 10 टेंपल्स हैं चार नगर स्टाइल में चार द्रविड स्टाइल में एक जैन टेंपल और पाव नथा टेंपल जो विसा स्टाइल में बना है चालुक्य किंग विक्रमादित्य सेकंड की क्वीन लोका महादेवी ने 733 एडी में द्रविडियन स्टाइल में यहां वीरु पाक्षाला की स्थापना की आई होल का दुर्गा टेंपल और लड़खान टेंपल वि सारा स्टाइल के क्लासिकल एग्जांपल्स हैं अदर रीजनल स्टाइल्स कर्नाटका रीजन में तीन और रीजनल स्टाइल्स डिवेलप हुए होयसल आर्किटेक्चर चोला और पांड्या के डिक्लाइन के बाद होया सलाज साउथ में प्रॉमिनेंट बने इन्होंने 1050 एडी से 1300 एडी के बीच बेलूर सोमनाथपुर और हेले बिडेंस डिजाइन किए विसा स्टाइल में बने इन टेंपल्स का एक डिस्टिंक्टिव फीचर है जहां प्रेडोमिनेंटली पंचायतन स्टाइल अडॉप्ट किया जाता था होया सलाज ने एक नया स्टाइल स्टेल्टन या स्टार शेप्ड ग्राउंड प्लान इवॉल्व किया क्लोराइड शिस्ट मेन बिल्डिंग मटेरियल था हेले बडू का होयसलेश्वरा क्लासिकल एग्जांपल है राष्ट्रकूटा आर्किटेक्चर राष्ट्रकूटा डायनेस्टी को दांती दुर्ग ने 735 एडी में एस्टेब्लिश किया उन्होंने अपना कैपिटल मान्य खेड़ा में एस्टेब्लिश किया अगर हम कल्चरल एस्पेक्ट की बात करें तो राष्ट्रकूटा ने रिलीजस टॉलरेंस दिखाते हुए सभी रिलीजस को पेट्रनाइज्ड या पल्लव स्टाइल अडॉप्ट करते हुए कई आर्किटेक्चरल मार्वल्स क्रिएट किए जैसे कैलाश टेंपल एट एलोरा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पाया जाने वाला यह टेंपल एक आर्किटेक्चरल ब्यूटी है राष्ट्रकूटा किंग कृष्णा वन ने एथ सेंचुरी एडी में इस टेंपल का निर्माण किया एलोरा केव्स में कुल 34 बुद्धिस्ट जैन और हिंदू केव्स हैं पर इनमें सबसे लार्जेस्ट हिंदू केव टेंपल है कैलाश टेंपल ऐसा कहते हैं कि इस टेंपल को एक ही बड़े पत्थर से ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया है इस मंदिर को करीब 7000 मजदूरों ने 100 साल से भी ज्यादा समय लेकर इसका निर्माण किया है कैलाश माउंटेन के आकार में बना यह टेंपल 276 फीट लंबा और 154 फीट चौड़ा है इस टेंपल के एंट्रेंस पर छोटा गोपुरम मौजूद है जिसके भीतर लाइफ साइज्ड एलिफेंट्स हैं मेन टेंपल के अराउंड पांच सब्सिडियरी श्राइन मौजूद हैं जो गॉडेस गंगा यमुना और सरस्वती को डेडिकेटेड है मेन टेंपल तीन मंजिला है जिसमें सभागृह नंदी मंडप और गर्भगृह पाया जाता है शिवलिंग की मूर्ति गर्भगृह में मौजूद है यहां कई ब्यूटीफुल कार्विंग्स दिखाई देती हैं जैसे अर्धनारी और वीरभद्र के रूप में शिवा कैलाश पर्वत को शेक करते हुए रावण और रामायण महाभारत की अनोखी स्टोरीज इन्हीं फीचर्स के कारण कैलाश टेंपल को इंडिया के रॉक टेंपल्स का क्लाइमैक्स माना जाता है अगला इंपॉर्टेंट मार्वल है एलिफेंटा केव्स यहां पर कुल सात केव्स मौजूद हैं ईस्ट पर दो बुद्धिस्ट केव्स और वेस्ट पर पांच रॉक कट हिंदू केव टेंपल्स हैं इन केव्स का निर्माण राष्ट्रकूटस ने किया है मेन टेंपल लॉर्ड शिवा को डेडिकेटेड है एंट्रेंस पर 7 मीटर हाई सदाशिव या त्रिमूर्ति मौजूद है जो शिवा के तीन रूपों को दर्शाता है क्रिएटर प्रिजर्वर और डिस्ट्रॉयर यहां पर विशाल महेश मूर्ति स्कल्पचर भी दिखाई देता है जिसमें शिवा सेंटर में और उमा भैरव उनके साइड में डिपिक्ट किए गए हैं विजयनगर आर्किटेक्चर विजयनगर एंपायर ने हापी कर्नाटका में अपना कैपिटल एस्टेब्लिश किया उन्होंने चोला होया सलाज पांड्या और चालुक्यास और बीजापुर के इस्लामिक आर्किटेक्चर को कंबाइन करके एक नया स्टाइल डिवेलप किया जिसे हम विजयनगर स्टाइल कहते हैं गोपुरम्स या राय गोपुरम्स मैसिव थे और चारों साइड में बनाए गए थे इसके अलावा टेंपल्स में एक से ज्यादा मंडप थे सेंट्रल मंडप को कल्याण मंडप कहा जाता है सेकुलर बिल्डिंग का कांसेप्ट इसी दौरान आया हपी सिटी एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है जो कई टेंपल्स को होस्ट करता है जैसे विट्ठल स्वामी टेंपल लोटस महल विरूपाक्ष टेंपल और रघुनाथ टेंपल यहां नरसिमा ऑन शेष या स्नेक रॉकेट आइडल भी मौजूद है जो एक आर्किटेक्चरल ब्यूटी है इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कैसे टप रिलीजस इंस्टीट्यूशंस के तौर पर इवॉल्व हुए हालांकि इनका इंपॉर्टेंस रिलीजन तक ही सीमित नहीं था रोल ऑफ टेंपल्स टेंपल्स सोशो इकोनॉमिक आर्टिस्टिक और इंटेलेक्चुअल फंक्शंस के भी न्यूक्लियस थे अगर हम चोला के बृहदेश्वर टेंपल की बात करें तो इसके कंस्ट्रक्शन के लिए स्किल्ड मैन पावर जैसे आर्टिजंस और क्राफ्ट्समैन की जरूरत थी और डेली एक्टिविटीज के लिए प्रीस्ट्स कुक्स म्यूजिशियंस और डांसिंग गर्ल्स की जरूरत थी इस कारण टेंपल्स सोर्स ऑफ एंप्लॉयमेंट का केंद्र बिंदु बन गए इसके अलावा कमर्शियल एक्टिविटीज को फोस्टर करके टेंपल्स टूल ऑफ अर्बनाइजेशन बन गए अर्बन सेटलमेंट के अलावा मार्केट्स ने इनलैंड ट्रेड को एक नया इंबेड दिया टेंपल्स को देवदंड के रूप में लैंड गिफ्ट किया जाता था इरिगेशन फैसिलिटी जैसे वाटर टैंक्स कनाल और लैंड रिक्लेमेशन एक्टिविटीज द्वारा उन्होंने एग्रीकल्चरल सेक्टर में भी अपना कंट्रीब्यूशन दिया कांचीपुरम के उत्तरा मेरूरज्जू कॉलेजेस टेंपल से अटैच थे और स्टूडेंट्स के लिए फ्री बोर्डिंग एंड लॉजिंग फैसिलिटी प्रोवाइड किया गया था आर्टिस्टिक हब के रूप में म्यूजिशियंस और डांसर्स को अप्रिशिएट किया जाता था और इस कला को जनरेशन टू जनरेशन पास किया जाता था इन पॉजिटिव फीचर्स के अलावा कई नेगेटिव फीचर्स भी थे टेंपल्स ने कास्ट सिस्टम को परपे चुएट करने में मदद की ब्राह्मण को रिलीजस इंस्क्राइनॉक्स इस सिस्टम के तहत एक लड़की को डेटी के वरशिप और सर्विस के लिए डेडिकेट किया जाता था टेंपल एक्टिविटीज के अलावा वह डांस और म्यूजिक भी प्रैक्टिस करती थी और उन्हें हाई सोशल स्टेटस में रखा जाता था कास्ट सिस्टम के प्रोलिफिक्स गर्ल्स को देवदासीज के रूप में रखा गया उनसे मेनियल जॉब्स जैसे मंदिर की साफ सफाई और अपर कास्ट मैन द्वारा एक्सप्लोइटेशन किया जाने लगा प्रेजेंटली देवदासी सिस्टम को सोशल इविल की तरह ट्रीट करते हुए इस प्रैक्टिस को बैन किया गया है तो दोस्तों यह था हमारे भारत के इतिहास का वह पहलू जो एक कंटीन्यूअस ट्रेशन की तरह आज भी एजिस्ट करता है इतिहास के इन स्थलों को प्रिजर्व करना हमारी जिम्मेदारी है क्योंकि हम अपने समृद्ध अतीत के संरक्षक हैं और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है इस्लामिक आर्किटेक्चर वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों इंडियन आर्ट और आर्किटेक्चर की कहानी एक एवोल्यूशन की स्टोरी है हम जानते हैं कि किसी भी पीरियड के आर्किटेक्चर की स्टाइल्स और टेक्निक्स उस समय के रूलरसोंग्स और स्कल्पचर्स का अपना एक अलग नैरेटिव है ग्रेट अंपायर्स का इमरजेंस और डिके फॉरेन रूलरसोंग्स जो ग्रैजुअली इंडिजन बन गए डिफरेंट कल्चरस और स्टाइल्स का कॉन्फ्लूएंट एटस ये सभी आर्किटेक्चर और स्कल्पचर्स के एवोल्यूशन में देखने को मिलता है आज की इस कहानी में हम मिडिवल इंडिया के इस्लामिक आर्ट और आर्किटेक्चर के बारे में जानेंगे 712 एडी के अरब कॉक्वेस्ट के बाद इंडिया में इस्लामिक लर्स का अराइवल स्टार्ट हुआ 12थ सेंचुरी में दिल्ली के थ्रोन को एक इस्लामिक रूलर ने ऑक्यूपाइड 1192 की मोहम्मद ऑफ गोर की जीत इंडियन सबकॉन्टिनेंट के आर्ट और आर्किटेक्चर में नया चैप्टर लिखने वाली थी आने वाले सालों में इंडियन आर्किटेक्चर में मैसिव चेंज आया न्यू एलिमेंट्स जैसे कैलीग्राफी इनले वर्क का यूज करके ऑना मेंटेशन एटस को इंट्रोड्यूस किया गया जो नए रूलरसोंग्स बनाए रखा इसीलिए इस पीरियड के आर्किटेक्चर में हमें पर्शियन और इंडियन स्टाइल का कॉन्फ्लूएंट देखने को मिला और इसीलिए इस आर्किटेक्चर स्टाइल को इंडो इस्लामिक या इंडो सैरा सेनिक आर्किटेक्चर भी कहा जाता है सबसे पहले शुरू करते हैं इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर के कुछ फीचर्स से फीचर्स ऑफ इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर इस पीरियड में आर्च और डोम्स ने प्रॉमिनेंस गेन किया जिसको आक्यू स्टाइल आर्किटेक्चर कहा जाता है मॉस्क और मोलियम के अराउंड मिनार्स का कंस्ट्रक्शन इस्लामिक रूलरसोंग्स को अवॉइड किया गया जो कि कुरान के हिसाब से करना मना था जहां एक तरफ हिंदू आर्किटेक्चर कंजे हो चुका था वहीं दूसरी तरफ इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर ने स्पेशियसनेस मैसिव और ब्रेथ को इंट्रोड्यूस किया स्कल्पचर्स की जगह कैलीग्राफी को डेकोरेशन के तौर पर यूज किया गया डेकोरेशन के लिए अरबस्कुलर में फूल पत्तियों यानी एक तरह के वेजिटेशन के पैटर्न को ज्योमेट्री स्टेम के फॉर्म में बनाया जाता था इस पीरियड के आर्किटेक्चर में ज्योमेट्री के प्रिंसिपल्स को हैवली यूज किया गया इस समय की बिल्डिंग्स में इंट्रीकेट यानी जटिल जाली वर्क्स देखने को मिला जो इस्लामिक रिलीजन में लाइट की इंपॉर्टेंस को शो करता है वाटर का इस्तेमाल एक इंपॉर्टेंट फीचर था और इसको रिलीजस कूलिंग और डेकोरेटिव पर्पसस के लिए किया जाता था इस्लामिक रूलरसोंग्स किया जिसमें एक स्क्वेयर ब्लॉक को चार एडजेसेंट आइडेंट गार्डेंस में डिवाइड किया जाता था इस समय के आर्किटेक्चर ने पेट्रा ड्यूरा टेक्नीक को भी यूज किया जिसमें स्टोन वॉल्स में प्रेशर स्टोंस और जेम्स को इनले यानी जड़ा जाता था एक और यूनिक फीचर था फोर शॉर्ट निंग टेक्नीक जिसमें इंक्रिप्शन को इस तरह ड्रॉ किया जाता था कि वह दूर होते हुए भी नजदीक दिखाई दें दोस्तों यह तो बात हुई कुछ इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर के ओवरऑल फीचर्स की शुरू करते हैं इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर के फर्स्ट फेज यानी दिल्ली सल्तनत पीरियड से जहां हम जानेंगे इस पीरियड में बने मॉन्यूमेंट्स और उनके आर्किटेक्चर के मेन फीचर्स के बारे में आर्किटेक्चर इन दिल्ली सल्तनत पीरियड दोस्तों दिल्ली सल्तनत का पीरियड 1206 से 1526 तक था इस पीरियड के आर्किटेक्चर को दो ब्रॉड कैटेगरी में डिवाइड किया जा सकता है इंपीरियल स्टाइल जो दिल्ली के रूलरसोंग्स पहले देखते हैं इंपीरियल स्टाइल के बारे में यह आर्किटेक्चर 1191 से 1557 के बीच अलग-अलग डायनेस्टीज के अंडर डिवेलप हुआ हर रूलर ने अपना यूनिक एलिमेंट इंट्रोड्यूस तो किया लेकिन ब्रॉड स्टाइलाइजेशन सेम ही रहा इंपीरियल स्टाइल में सबसे पहले आती है स्लेव डायनेस्टी यह डायनेस्टी 1206 से 1290 के बीच पावर में थी जिसके दौरान डिवेलप हुए आर्किटेक्चर को ममलुक स्टाइल आर्किटेक्चर बोला गया इस पीरियड में मोस्टली एसिस्टिंग हिंदू स्ट्रक्चर्स को रीमॉडल किया गया कई मॉन्यूमेंट्स को बनवाया गया जैसे फेमस कुतुब मीनार यह एक फाइव स्टोरी स्ट्रक्चर है जिसको कुतुबुद्दीन बबक ने इनिशिएटिव ग्राउंड फ्लोर ही बनवा पाए अगली तीन स्टोरी को इल तत् मिश ने कंप्लीट करवाया और फिफ्थ स्टोरी को फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया कुवतुल इस्लाम मॉस्क जो कि कुतुब मीनार प्र मिस में ही है और अजमेर का अढ़ाई दिन का झोपड़ा इस पीरियड के कुछ और एग्जांपल्स हैं स्लेव डायनेस्टी के बाद खिलजी डायनेस्टी पावर में आई जिन्होंने 1290 से 1320 तक रूल किया इस डायनेस्टी ने सेलजुक स्टाइल आर्किटेक्चर को एस्टेब्लिश किया रेड सैंड स्टोन इस पीरियड के आर्किटेक्चर की खास बात थी इसके अलावा आर्कट स्टाइल इसी पीरियड से स्टार्ट हुआ इस पीरियड में मोटर का बड़े स्तर पर इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन में किया जाने लगा इसके फेमस एग्जांपल्स हैं अलाई दरवाजा बाय अलाउद्दीन खिलजी सिरी फोर्ट एटस खिलजी डायनेस्टी के बाद तुगलक डायनेस्टी पावर में आई जिसके रेन को आर्किटेक्चर के लिए क्राइसिस का पीरियड कहा जाता है क्योंकि इस दौरान कोई प्रॉमिनेंट कंस्ट्रक्शन देखने को नहीं मिला इसके बावजूद कुछ कंस्ट्रक्शन वर्क चलता रहा जिसमें ग्रे सैंड स्टोन का यूज देखने को मिला इस पीरियड में बिल्डिंग की स्ट्रेंथ पर फोकस किया गया और साथ ही साथ डेकोरेशन पर एमफसिस कम दिया गया स्ट्रेंथ प्रोवाइड करने के लिए स्लोपिंग वॉल्स का यूज किया गया आर्च और लिंटेल दोनों मेथड का यूज एंट्रेंस बनाने के लिए किया गया दिल्ली में स्थित गयासुद्दीन तुगलक का टूम और तुगलकाबाद जहांपना और फिरोजाबाद सिटीज इसके एग्जांपल्स हैं इसके बाद आती है लोधी डायनेस्टी जिनके रेन में आर्किटेक्चर एक बार फिर से बैकवर्ड होता गया इनके रेन में सिर्फ टम्स का ही कंस्ट्रक्शन करवाया गया हालांकि इस पीरियड के आर्किटेक्चर का एक इंपॉर्टेंट फीचर था डबल डोम्स का इंट्रोडक्शन इसमें टॉप डोम के अंदर एक हलो डोम हुआ करता था बाहर वाला डोम बिल्डिंग की खूबसूरती के लिए था और अंदर वाला डोम इंटरनल सिमेट्री के लिए होता था इस समय की टम्स ठोस और बिना किसी डेकोरेशन के हुआ करते थे उनको ऑक्टग शेप में बनाया जाता था जिनका डायमीटर एप्रोक्सीमेटली 15 मीटर का हुआ करता था एग्जांपल्स की बात करें तो लोधी गार्डेंस सिटी ऑफ आगरा जिसको सिकंदर लोधी ने बनाया था उनमें से एक था दोस्तों अभी तक हमने इंपीरियल स्कूल के बारे में बात की जहां आर्किटेक्चर दिल्ली के रूलरसोंग्स कैटेगरी यानी प्रोविंशियल स्कूल्स ऑफ आर्किटेक्चर की तरफ सल्तनत पीरियड में इंडो इस्लामिक स्टाइल ने लोकल आर्किटेक्चरल स्टाइल को इन्फ्लुएंस करना स्टार्ट किया बंगल बीजापुर जौनपुर और मांडू इंपॉर्टेंट आर्किटेक्चरल सेंटर्स के रूप में उभर कर आए सबसे पहले देखते हैं बंगाल स्कूल के बारे में ब्रिक्स और ब्लैक मार्बल इस आर्किटेक्चरल स्टाइल के मेन कैरेक्टरिस्टिक थे इस पीरियड में बनाए गए मॉस्क में स्लोपिंग बांगला रूव्स का यूज कंटिन्यू रहा जो इसके पहले टेंपल्स में यूज किया जाता था गौर यानी बंगाल का कदम रसूल मॉस्क और पांडुआ का अदीना मॉस्क इस के मेन एग्जांपल्स हैं प्रोविंशियल स्कूल में अब हम बात करते हैं मालवा या मांडू स्कूल के बारे में मालवा प्लेटो की धार और मांडू सिटीज आर्किटेक्चर की इंपॉर्टेंट सीट्स बनी डिफरेंट कलर्ड स्टोन और मार्बल्स इसके प्रॉमिनेंट फीचर्स थे इसमें लार्ज विंडोज बनाई जाती थी और उनको आर्चस और पिलर से डेकोरेट किया जाता था इस स्कूल में मिनार्स का यूज नहीं किया जाता था मालवा स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर को पठान स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर भी कहा जाता है यह स्कूल एनवायरमेंटल एडेप्टेशन के लिए भी जाना जाता है जैसे वेंटिलेशन के लिए लार्ज विंडोज बावली यानी आर्टिफिशियल रेजर्स लोकली अवेलेबल मटेरियल का यूज वगैरह मांडू का फेमस जहाज महल रानी रूपमती पवेलियन अशरफी महल इस स्कूल के एग्जांपल्स हैं आगे बढ़ते हैं और देखते हैं प्रोविंशियल आर्किटेक्चर के जौनपुर स्कूल के बारे में इस स्कूल को रूलर ने पेट्रनाइज्ड स्टाइल को शार्की स्टाइल का नाम भी दिया गया इसमें भी पठान स्टाइल की तरह मिनार्स का यूज नहीं किया जाता था इस स्कूल में एक यूनिक फीचर था कि यहां के प्रेयर हॉल्स के साइड बेज और सेंटर में बोल्ड और फोर्सफुल कैरेक्टर्स को पेंट किया जाता था इसका सबसे अच्छा एग्जांपल है जौनपुर का अता मॉस्क प्रोविंशियल स्कूल्स में आखिरी है बीजापुर स्कूल जो आदिल शाह के पेट्रोनेट में डिवेलप हुआ इसको डेकन स्टाइल भी कहा जाता है आदिल शाह ने कई मॉस्क टूस और पैलेस बनवाए जो थ्री आर्च फसाद और बल्बस डोम की वजह से यूनिक थे फसाद यानी किसी भी बिल्डिंग का फ्रंट फेज और बल्बस डोम यानी बल्ब के जैसे राउंड डोम इसमें कॉर्निसेज यानी वॉल्स और सीलिंग के कॉर्नर के डेकोरेशन पर भी फोकस किया जाता था आयन क्लैम्स और एक स्ट्रांग मो की मदद से बिल्डिंग्स को स्ट्रेंथ प्रोवाइड की जाती थी और वॉल्स को रिच कार्विंग से डेकोरेट किया जाता था बीजापुर का गोल गुंबद और आदिल शाह का मजलि इसके एग्जांपल्स है तो दोस्तों यहां तक हमने देखा 1526 तक के इस्लामिक आर्किटेक्चर के बारे में जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 1526 दिल्ली में मुगल डायनेस्टी का रन स्टार्ट हुआ तो आइए देखते हैं मुगल डायनेस्टी के आर्ट और आर्किटेक्चर के बारे में मुगल डायनेस्टी के समय इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर अपनी हाइट्स पर पहुंच गया मुगल आर्किटेक्चर दोस्तों मुगल्स आर्ट और आर्किटेक्चर के ग्रेट पेट्रनस थे उनके अंडर आर्किटेक्चर ने फिर से अपनी इंपॉर्टेंस को रिगेन किया न्यू बिल्डिंग्स को ग्रेट विजन और आर्टिस्टिक इंस्पिरेशन के साथ बनाया गया आइए देखते हैं सबसे पहले मुगल रूलर बाबर के रेन के बारे में बाबर बाबर ने पानीपत और रोहिलखंड में मॉस्क की कंस्ट्रक्शन करवाए दोनों का कंस्ट्रक्शन 1526 में हुआ पानीपत के मॉस्क का नाम है काबुली बाग मॉस्क जिसको उन्होंने इब्राहिम लोधी के विक्ट्री के बाद बनवाया था बाबर ने चार बाग स्टाइल ऑफ गार्डेंस को भी इंट्रोड्यूस किया लेकिन उनका रेन इतना शॉर्ट लिव था कि बड़े पैमाने पर किसी भी तरह की नई स्टाइल और टेक्नीक इंट्रोड्यूस नहीं हो पाई बाबर के बाद हुमायूं रूलर बने हुमायूं के रेन में शेर शाह के साथ लगातार पावर स्ट्रगल चलती रही और इसी कारण से आर्ट और आर्किटेक्चर में वह फोकस नहीं कर पाए उन्होंने एक सिटी का फाउंडेशन रखा जिसका नाम था दीन पना लेकिन उसको फिनिश नहीं कर पाए इस पीरियड में पर्जन स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर ही प्रॉमिनेंट रहा दोस्तों हम जानते हैं कि 1539 से लेकर 1555 तक शेर शाह सूरी ने दिल्ली की थ्रोन पर रूल किया आइए उनके में हुए आर्किटेक्चरल डेवलपमेंट पर एक नजर डालते हैं शेरशाह सूरी शेरशाह के ब्रीफ रेन में उन्होंने कुछ मॉन्यूमेंट्स का कंस्ट्रक्शन करवाया उन्होंने किला कोना को बनवाया जो कि दिल्ली के पुराना किला में है पाकिस्तान के फेमस रोहतास फोर्ट का कंस्ट्रक्शन भी उन्होंने ही करवाया अपने रेन को यूनिक बनाने के लिए उन्होंने पटना में शेरशाह सूरी मस्जिद बनवाई जिसको अफगान स्टाइल में बनाया गया था उनका रेन लोधी स्टाइल से मुगल स्टाइल के आर्ट और आर्किटेक्चर का ट्रांजिशन माना जाता है पुराने मोरियन रूट का उन्होंने रिकंस्ट्रक्शन और एक्सटेंशन करवाया और उसको रिनेम करके सड़क आजम नाम दिया जो आगे चलकर ग्रैंड ट्रंक रोड कहलाई ट्रैवलर्स के लिए उन्होंने पर्याप्त सराइज बनवाए शेरशाह का टूम उनके बर्थ प्लेस सासाराम में बनाया गया जो आज के बिहार के रोहतास डिस्ट्रिक्ट में है टूम को रेड सैटोन से बनाया गया है और यह एक लेक के बीच में सिचुएटेड है 1555 में मुगल्स दोबारा रूल में आए 1526 में अकबर ने दिल्ली की थ्रोन संभाली और यहीं से मुगल आर्ट और आर्किटेक्चर का गोल्डन पीरियड शुरू हुआ आइए देखते हैं उनके रेन के बारे में अकबर दोस्तों अकबर ने अपनी रेन में आर्ट और आर्किटेक्चर में कीन इंटरेस्ट लिया अकबर के रेन में कंस्ट्रक्शन का प्रिंसिपल फीचर था रेड सैंड स्टोन का इस्तेमाल अकबर ने ट्यूडर आर्च यानी फोर सेंटर्ड आच को भी इंट्रोड्यूस किया उनके रेन में बनाए गए कुछ प्रॉमिनेंट कंस्ट्रक्शन वर्क्स के बारे में देखते हैं सबसे पहले है आग्रा फोर्ट आग्रा फोर्ट अकबर के रेन में सबसे पहले शुरू होने वाले कंस्ट्रक्शंस में से एक था लेकिन फोर्ट के अंदर के ज्यादातर स्ट्रक्चर्स का कंस्ट्रक्शन शाहजहां के रेन में हुआ यहां की कुछ प्रॉमिनेंट बिल्डिंग्स हैं मोती मस्जिद दीवाने आम दीवाने खास जहांगीरी महल और शीश महल फोर्ट के अंदर के गार्डेंस को चार बाग स्टाइल में बनाया गया है अकबर के रेन का अगला प्रॉमिनेंट वर्क है फतेहपुर सीकरी आइए देखते हैं इसके बारे में यह कैपिटल सिटी इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर का हाईलाइट मानी जाती है इस सिटी को फ्रोजन मोमेंट इन हिस्ट्री से डिस्क्राइब किया जाता है क्योंकि यहां की बिल्डिंग्स में हिंदू और पर्जन स्टाइल का यूनिक मिक्सचर देखने को मिलता है यहां की कुछ इंपॉर्टेंट बिल्डिंग्स के बारे में देख लेते हैं बुलंद दरवाजा जो 40 मीटर का रेड सैंड स्टोन का स्ट्रक्चर है इसको 1576 एडी में अकबर की गुजरात विक्ट्री की याद में बनाया गया था इसको दुनिया का लार्जेस्ट गेटवे भी कहा जाता है सलीम चिस्टी टूम को 1581 में बनाया गया था यहां पर वाइट मार्बल में ब्यूटीफुल जाली वर्क देखने को मिलता है यहां की वॉल्स में पंच महल एक फाइव स्टोरी स्ट्रक्चर है जिसको कॉलम से बनाया गया है और पर्जन बद गीर यानी विंड कैचर के कांसेप्ट पर बनाया गया है जोधाबाई पैलेस और मरियम उ समानी पैलेस में ब्यूटीफुल इंटीरियर्स हैं जिसमें बेल और फ्लावर्स के हिंदू मोटिव्स बने हुए हैं इबादत खाना जहां पर अकबर डिफरेंट रिलीजन के लीडर से डिस्कशन के लिए मिला करते थे पवी कोट जहां पर बताया जाता है कि अकबर चेस खेला करते थे हिरन मीनार को अकबर के फेवरेट एलीफेंट की याद में बनाया गया था जिसका नाम हिरन था यह मीनार ट्रैवलर्स के लिए लाइट हाउस का भी काम करती थी दोस्तों आगे बढ़ते हैं और देखते हैं अगले मुगल एंपरर जहांगीर के रेन के आर्किटेक्चर के बारे में जहांगीर जहांगीर के रेन में आर्किटेक्चर का इंपॉर्टेंस कम हो गया क्योंकि वह पेंटिंग्स और बाकी आर्ट पर फोकस थे इसके बाद बावजूद उन्होंने कुछ मॉन्यूमेंट्स का कंस्ट्रक्शन करवाया इसमें सिकंदरा में अकबर का टूम इंक्लूडेड है उन्होंने लाहौर में खुद का टूम भी बनवाया इसके अलावा उन्होंने कई गार्डेंस का कंस्ट्रक्शन भी करवाया जैसे कश्मीर का शालीमार बाग उन्होंने लाहौर की मोती मस्जिद का कंस्ट्रक्शन भी करवाया जहांगीर की वाइफ नूर जहां ने उनके फादर इत मादु दौला के टूम को बनवाया जहांगीर के रेन में ही वाइट मार्बल ने रेड सैंड स्टोन को चीफ बिल्डिंग मटेरियल के रूप में रिप्लेस किया एतमाद दौला का टूम फर्स्ट मुगल वर्क था जो पूरी तरह से वाइट मार्बल में बनाया गया था इसमें वन ऑफ द फाइनेस्ट्राइड स्पेस जो ग्रैंडर और लग्जरियस नेस का बेस्ट एग्जांपल है इसको अर्जुनमृता वर्क बहुत ही फाइन है मार्बल में लो रिलीफ कार्विंग्स की गई हैं यानी प्लेन बैकग्राउंड में डिजाइन को हल्का सा ऊपर उठाकर काव किया जाता है ताजमहल के अलावा शाहजहां ने कई और मनटु को बनवाया जैसे डेल्ली का रेड फोर्ट जामा मस्जिद लाहौर का शालीमार बाग और सिटी ऑफ शाहजहानाबाद इन लार्ज स्केल कंस्ट्रक्शंस के अलावा उनकी बनवाई पीकॉक थ्रोन इस पीरियड के फाइनेस्ट्राइड शाहजहां के बाद औरंगजेब की रेन में मुगल आर्किटेक्चर का डिक्लाइन हो गया आर्ट और आर्किटेक्चर में उनका खास इंटरेस्ट नहीं रहा मोहम्मद आजम शाह लास्ट मुगल एंपरर थे जिन्होंने आर्किटेक्चरल कंस्ट्रक्शन करवाए उन्होंने अपनी मदर बेगम राबिया दुरानी की याद में बीवी का मकबरा बनवाया यह औरंगाबाद में सिचुएटेड है जिसको ताज महल का पुआ इमिटेशन कहा जाता है उन्होंने दिल्ली की जीनत महल का कंस्ट्रक्शन भी करवाया अब आते हैं कंक्लूजन पर कंक्लूजन दोस्तों यह थी कहानी इंडियन मिडिवल हिस्ट्री के इस्लामिक आर्ट और आर्किटेक्चर की इस पीरियड में लार्ज स्केल आर्किटेक्चरल एक्टिविटीज देखने को मिली दिल्ली सल्तनत पीरियड से स्टार्ट हुए इस पीरियड ने आर्किटेक्चर में कई उतार चढ़ाव देखे इस्लामिक पीरियड में भी मुगल आर्किटेक्चर सबसे प्रॉमिनेंट रहा जिसको इस्लामिक आर्ट का पीक कहा जा सकता है मुगल पीरियड में ग्रेट्स चेंज ऑफ आइडियाज और स्टाइल्स हुए जो इसको सल्तनत पीरियड से डिफरेंट बनाते हैं इसमें कई लोकल और रीजनल स्टाइल्स भी इंक्लूड हुए इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर की एक खास बात यह थी कि इसमें ऑर्ण मेंटल डेकोरेशन बहुत ही वाइटल थी इसमें आर्चस वॉल्ट्स और डोम्स का यूज किया जाता था मुगल आर्किटेक्चर ने दो और आर्किटेक्चर स्टाइल्स यानी सिख स्टाइल और राजपूत स्टाइल को भी इन्फ्लुएंस किया वर्ल्ड के सबसे पुराने मॉस्क इंडिया में इस्लामिक पीरियड में ही बनाए गए हैं इंडिया के इस्लामिक हेरिटेज की स्स्टस अनबिलीवर्स आर्ट एंड आर्किटेक्चर वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों अभी तक हमने एसिंट हिस्ट्री के इंडस वैली सिविलाइजेशन से लेकर मिडिवल हिस्ट्री के इस्लामिक आर्ट और आर्किटेक्चर के बारे में देखा आज की इसका कहानी में हम मॉडर्न आर्किटेक्चर के बारे में देखेंगे और जानेंगे इस पीरियड में कौन से नए फीचर्स इंडियन आर्किटेक्चर में देखने को मिले यूरोपियन कॉलोनिस्ट्स का इंडिया में अराइवल एक तरह से देखा जाए तो मुगल एंपायर के डिक्लाइन से को इंसाइड हुआ जिसके बाद इंडिया में पोर्तुगीज फ्रेंच डच डेनिश और ब्रिटिश के बीच पावर स्ट्रगल स्टार्ट हुआ यूरोपिय अपने साथ कई आर्किटेक्चरल स्टाइल्स लेकर आए जिसकी झलक उनके समय में किए गए कंस्ट्रक्शंस में देखने को मिलती है से पहले इंडिया में आए पोर्तुगीज से लेकर 1947 में एंड हुए कॉलोनियल रूल तक यूरोपिय ने इंडियन आर्किटेक्चर में अपने अपने योगदान दिए आज इस कहानी में हम इन्हीं यूरोपियन इन्फ्लुएंस की बात करेंगे शुरू करते हैं सबसे पहले आ यूरोपिय यानी पोर्तुगीज के इंडियन आर्किटेक्चर पर रहे इनफ्लुएंसेस से पोर्तुगीज इन्फ्लुएंस पोर्तुगीज अपने साथ आइबीय स्टाइल आर्किटेक्चर लेकर आए आइब स्टाइल रोमन आर्ट से भी पहले का आर्किटेक्चर है यह स्टाइल स्पेन और पोर्तुगीज हुआ शुरुआत में उन्होंने ट्रेडिंग पोस्ट्स और वेयरहाउसेस बनाए जिनको बाद में फोर्टीफाइड टाउन में रीमॉडल किया गया उन्होंने पैटियो हाउसेस और बारक स्टाइल के कांसेप्ट को भी इंट्रोड्यूस किया जो चर्च की स्ट्रेंथ शो करने के लिए लेट 16th सेंचुरी में यूरोप में डिवेलप हुआ इस स्टाइल में एलेबोरेट डिटेल और थिएटर डिजाइंस हुआ करते थे जो एक ड्रामे इफेक्ट देते थे और इसके साथ आर्किटेक्चर डिजाइन में कंट्रास्टिंग कलर्स यानी डार्क और लाइट कलर्स का यूज एक साथ किया जाता था इस स्टाइल के कुछ नोटेल कंस्ट्रक्शंस के बारे में देखते हैं से कैथड्र इन गोवा जिसको 1619 एडी में कंप्लीट किया गया इसको पोर्तुगीज द्वारा लेट गोथिक स्टाइल में बनाया गया है बेसिलिका ऑफ बम जीसस गोवा यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है जिसको बारक स्टाइल में बनाया गया है और 1604 एडी में इसे कंप्लीट किया गया मुंबई का कैस्टेला डे अगवां सेंट पॉल्स चर्च दि जिसका कंस्ट्रक्शन 1610 एडी में कंप्लीट हुआ दू फोर्ट जो 1535 में दू आइलैंड में बना इस फोर्ट में एक लाइट हाउस है और कॉप्लेक्स के अंदर तीन चर्चस हैं दोस्तों आगे बढ़ते हैं और फ्रेंच इन्फ्लुएंस की बात करते हैं फ्रेंच इन्फ्लुएंस फ्रेंच पीपल ने अर्बन सिटी प्लानिंग के कांसेप्ट को इंट्रोड्यूस किया फ्रेंच सिटीज पॉन्डिचेरी और चंद्रनगर वेस्ट बंगाल में को कार्टीजन ग्रिड प्लान और साइंटिफिक आर्किटेक्चरल डिजाइंस में बनाया गया था फ्रेंच ने एनोनिमस आर्किटेक्चर के कांसेप्ट को भी इंट्रोड्यूस किया यानी ऐसा आर्किटेक्चर जिसमें बिल्डिंग्स का फ्रंट पोर्शन एकदम सिंपल होता था बिना किसी ऑन मेंटेशन या डिजाइन के इनके अलावा फ्रेंच ने माहे जो केरला में है करकल जो तमिलनाडु में है और यान जो आंध्र प्रदेश में है उसके कोस्टल टाउंस को भी डिवेलप किया पुदुचेरी का चर्च ऑफ सेक्रेड हार्ट ऑफ जीसस और चंद्रनगर का सीक्रेड हार्ट चर्च फ्रेंच आर्किटेक्चर का एग्जांपल है फ्रेंच के बाद अब इंडियन आर्किटेक्चर पर ब्रिटिश इन्फ्लुएंस की चर्चा करते हैं ब्रिटिश इन्फ्लुएंस दोस्तों डोमिनेंट कॉलोनियल पावर होने के कारण ब्रिटिशर्स का आर्किटेक्चर में इन्फ्लुएंस सबसे सिग्नि रहा ब्रिटिशर्स ने इंडिया में गोथिक स्टाइल आर्किटेक्चर को इंट्रोड्यूस किया जिसका आगे चलकर इंडियन आर्किटेक्चर के साथ फ्यूजन हुआ और यह इंडो गोथिक आर्किटेक्चर कहलाया 1911 के बाद एक नया आर्किटेक्चरल स्टाइल डिवेलप होता है जिसे नियो रोमन आर्किटेक्चर नाम दिया जाता है आइए सबसे पहले इंडो गोथिक स्टाइल के बारे में जानते हैं इंडो गोथिक स्टाइल को विक्टोरियन स्टाइल भी कहा जाता है इस आर्किटेक्चरल स्टाइल में इंडियन पर्जन और गोथिक स्टाइल्स का एक यूनिक ब्लेंड देखने को मिलता है इसमें कंस्ट्रक्शंस एक्सट्रीमली लार्ज और इलब हुआ करते थे इंडो इस्लामिक कंस्ट्रक्शन के कंपैरिजन में वॉल्स थिन होती थी आर्चस कर्वड ना होकर पॉइंटेड हुआ करते थे लार्ज विंडोज इस आर्किटेक्चर का यूनिक फीचर थी चर्चे में क्रूसिफिकेशन क्रॉस के आकार की होती थी स्टील आयन और फिल किए गए कंक्रीट का इस्तेमाल इसी आर्किटेक्चर से शुरू हुआ कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल और मुंबई का गेटवे ऑफ इंडिया इसके कुछ एग्जांपल्स हैं इंडो गोथिक स्टाइल के बाद बात करते हैं नियो रोमन स्टाइल के बारे में 1911 के बाद ब्रिटिश राज में हुए कंस्ट्रक्शंस न्यू रोमन स्टाइल में है जिसको नियो क्लासिकल स्टाइल भी कहा जाता है एडविन लटन और हर्बर्ट बेकर के द्वारा किया गया न्यू डेल्ली का आर्किटेक्चर इसका फाइनेस्ट्राइड की तरह एनोनिमस स्टाइल का इस्तेमाल किया जाता था यानी बिल्डिंग्स में कोई इंटरेस्टिंग डिजाइन या ऑन मेंटेशन नहीं हुआ करता था इस स्टाइल में सभी आर्किटेक्चरल स्टाइल्स को मिक्स किया गया जिसके कारण यह कंजे ेड दिखाई देने लगे हाइब्रिड नेचर के कारण सिंपलीसिटी मॉडर्निटी और यूटिलिटी का कॉम्प्रोमाइज भी र आने लगा था यो रोमन स्टाइल में सर्कुलर बिल्डिंग्स पर फोकस देखने को मिलता है इस फेज में ही अप टर्न डोम को इंट्रोड्यूस किया गया जैसा कि हमें सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन में देखने को मिलता है अप टर्न डोम सिर्फ एक ऑना मेंटल या सजावट का फीचर होता है जिसका बिल्डिंग के स्ट्रक्चर में कोई इंपॉर्टेंस नहीं होता तो दोस्तों अभी तक हमने इंडियन आर्किटेक्चर में यूरोपियन इन्फ्लुएंस की बात की 1947 में देश को आज आजादी मिलने के बाद आर्किटेक्चर के फील्ड में कुछ नए डेवलपमेंट्स देखने को मिलते हैं जिन्हें पोस्ट इंडिपेंडेंस आर्किटेक्चर की कैटेगरी में रखा जाता है आइए इस पर भी एक नजर डालते हैं पोस्ट इंडिपेंडेंस आर्किटेक्चर 1947 के बाद आर्किटेक्चर के दो स्कूल्स इमर्ज हुए एक था रिवाइवलिस्ट और दूसरा मॉडर्निस्ट लेकिन ये दोनों स्कूल्स कॉलोनियल इन्फ्लुएंस से अलग नहीं हो पाए जिनके कारण इंडिया के आर्किटेक्चरल ट्रेडिशनल होने लगा इसका एक एग्जांपल दिया जा सकता है पंजाब गवर्नमेंट का ल कोबू जिए को हायर करना जो कि एक फ्रेंच आर्किटेक्ट थे जिन्होंने चंडीगढ़ सिटी को डिजाइन किया पोस्ट इंडिपेंडेंस आर्किटेक्चर के एक इंपोर्टेंट आर्किटेक्ट थे लॉरी बेकर जिनको आर्किटेक्ट ऑफ द पुअर कहा जाता है उन्होंने केरला में मास हाउसिंग कांसेप्ट को रेवोल्यूशन इज किया 2006 में उनको प्रिस का प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया गया जिसको आर्किटेक्चर का नोबेल प्राइज बोला जाता है उनके आर्किटेक्चरल फीचर्स में से एक था एनवायरमेंट फ्रेंडली बिल्डिंग्स जिसमें लोकली अवेलेबल मटेरियल का यूज किया जाता था उन्होंने वेंटिलेशन और थर्मल कंफर्ट पर भी फोकस किया अर्बन आर्किटेक्चर में चार्ल्स कोरिया का नाम आता है उन्होंने मॉडर्न आर्किटेक्चरल प्रिंसिपल्स को लोकल नीड्स के हिसाब से ढाला उनके द्वारा डिजाइन की गई बिल्डिंग्स में शामिल है मध्य प्रदेश की असेंबली बिल्डिंग अहमदाबाद का महात्मा गांधी मेमोरियल म्यूजियम एलआईसी बिल्डिंग दिल्ली का फेमस कनॉट प्लेस एट्स 2006 में उनको पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित भी किया गया कंक्लूजन दोस्तों आज की इस कहानी में हमने मॉडर्न आर्किटेक्चर के बारे में देखा जैसा कि आपने देखा मॉडर्न आर्किटेक्चर मेनली यूरोपियन इन्फ्लुएंस के लिए जाना जाता है प्रीहिस्टोरिक टाइम से लेकर मॉडर्न डे तक हमने देखा कि आर्ट और आर्किटेक्चर ने लोगों की लाइफ और एक्सपीरियंस में यूनिक रोल प्ले किया ग्रीक्स अरब्स पर्शियंस यूरोपिय सभी ने छोटे ही सही पर अपने-अपने योगदान दिए सभी फेजेस में हमको बिल्डिंग मटेरियल में एडवांसमेंट और डिफरेंट डिजाइन स्ट्रेटेजी देखने को मिली आर्ट और आर्किटेक्चर आज हमें उस समय की सोसाइटी को बेहतर तरीके से समझने में भी हेल्प करता है इन्हीं सब ट्रेडीशन से मिलकर ऐसा कॉमिनेशन बनाया जिसे हम इंडियन आर्ट और आर्किटेक्चर कहते [संगीत] हैं वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों पेंटिंग एक ऐसी यूनिवर्सल लैंग्वेज है जिसे किसी लीपी की जरूरत नहीं जब आदमी को भाषा का ज्ञान तक नहीं था तब भी शायद अपने मन की बात कहने के लिए व वो पेंटिंग का सहारा लेता रहा होगा कहने का मतलब है कि पेंटिंग की हिस्ट्री उतनी ही पुरानी है जितना कि मानव इतिहास और बात अगर इंडियन पेंटिंग्स की करें तो उसकी बात ही निराली है जो चटक रंगों का प्रयोग कला कौशल और बारीकी इन भारतीय पेंटिंग्स में देखने को मिलती है वो अतुलनीय है अपनी इसी खूबसूरती के लिए भारतीय पेंटिंग्स पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं यह पेंटिंग्स मात्र अपनी सुंदरता के लिए ही विश्व भर में प्रसिद्ध नहीं है बल्कि यह अपने रोचक इतिहास के लिए भी दूर-दूर तक जानी जाती हैं और इसी इतिहास के बारे में आज हम चर्चा करने वाले हैं इसके साथ ही इनके विभिन्न प्रकारों पर भी बात करेंगे आइए शुरू करते हैं इंडियन पेंटिंग्स के एवोल्यूशन से एवोल्यूशन ऑफ इंडियन पेंटिंग्स दोस्तों इंडिया में पेंटिंग्स की परंपरा सदियों पुरानी है प्रीहिस्टोरिक पीरियड से ही पेंटिंग्स के प्रमाण देश में देखने को मिलते हैं यह लगभग 5 लाख बीसीई से 6000 बीसीई तक का एक लॉन्ग पीरियड था इसे पलियो मेसोलिथिक ओलिथूस या वॉल्स पर इंग्रेव किया जाता था इसका सबसे पहला प्रमाण हमें मध्य प्रदेश में भोपाल के पास भीम बेटका केव्स में देखने को मिलता है यहां पर हमें 600 से ज्यादा पेंटेड केव्स मिली हैं रॉक्स जैसी परमानेंट सर्फेसेज पर इंग्रेविंग करके बनाई जाने वाली इन पेंटिंग्स को म्यूरल कहते हैं इस तरह की प्रिमिटिव रॉक पेंटिंग्स इंडिया में कई जगह देखने को मिलती हैं जिनमें एमपी की पंचमणी और भीम बेटका और यूपी का मिर्जापुर इंपॉर्टेंट है प्रीहिस्टोरिक पीरियड में बनाई गई इन पेंटिंग्स को पेट्रोग्लिफ के नाम से भी जाना जाता है आगे चलकर फ्रेस्को पेंटिंग्स का चलन बढ़ता हुआ देखने को मिलता है यह पेंटिंग्स वेट प्लास्टर का इस्तेमाल कर प्योर कलर से बनाई जाती थी और ज्यादातर रिलीजस और स्पिरिचुअल थीम्स पर बेस्ड होती थी इसी दौरान गुप्ता पीरियड में इंडियन पेंटिंग्स में एक बड़ा रेवोल्यूशन आया जब वात्सायन ने अपनी रचना कामसूत्र में इंडियन पेंटिंग्स के छह सिद्धांतों का उल्लेख किया इन छह सिद्धांतों को भारतीय पेंटिंग्स के डांग भी कहते हैं इन सिक्स एस्पेक्ट्स में पहला है रूप भेद यानी अपीयरेंस मतलब रूप की समझ दूसरा है प्रमाणम यानी सही अनुपात यानी मेजर्स और आकार स्ट्रक्चर का बोध तीसरा एस्पेक्ट है भाव यानी आकृतियों के मनोभाव चौथा लावण्य योजन यानी कलात्मक शोव मतलब ग्रेस को आर्टिस्टिक ढंग से पेंटिंग में उतारना वही पांचवा एस्पेक्ट है सदृश्य यानी सिमिलिट्यूड या समान रूप वाला और छठा और आखरी एस्पेक्ट है वर्णिक भंग यानी आर्टिस्टिक तरीके से ब्रश और कलर्स को यूज करना इस काल में इंडियन पेंटिंग्स मुख्य रूप से म्यूरल तथा फ्रेस्कोस के रूप में बनाई जाती थी इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण हमें अजंता और एलोरा की गुफाओं में देखने को मिलता है जहां ज्यादातर पेंटिंग्स भगवान बुद्ध के जीवन और अन्य धार्मिक और पौराणिक कहानियों के दृश्यों पर आधारित हैं इसके बाद मिडिवल टाइम पीरियड में विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक फैक्टर्स की वजह से कुछ नए पेंटिंग स्कूल्स का उदय हुआ इस पीरियड के दौरान ही इंडियन पेंटिंग्स की सबसे इंपॉर्टेंट स्टाइल्स यानी मुगल राजपूत और डेकनी शैली का आरंभ हुआ और इस एवोल्यूशन का आखिरी खंड है 19th सेंचुरी से लेकर वर्तमान तक जो कि मॉडर्न या आधुनिक काल को दर्शाता है इस काल के दौरान इंडियन पेंटिंग्स पर वेस्टर्न आर्ट फॉर्म्स का अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है जिसे बंगाल स्कूल और प्रोग्रेसिव आर्टिस्टिक सोसाइटी जैसे नए आर्ट स्कूल्स का उदय हुआ दोस्तों प्रीस्ट रिक से लेकर आज तक इंडियन पेंटिंग्स में हुए निरंतर विकास ने मात्र उनकी स्टाइल और टेक्निक्स में बदलाव नहीं किया बल्कि इसी एवोल्यूशन के चलते इन पेंटिंग्स के कई कैटेगरी की उत्पत्ति भी हुई जिसके कारण आज इंडियन पेंटिंग्स मुख्य रूप से चार कैटेगरी में यानी म्यूरल मिनिएचर मॉडर्न और फोक पेंटिंग्स में बटी हुई है तो आइए अब इन इंडियन पेंटिंग्स के डिफरेंट टाइप्स को एक-एक करके समझ लेते हैं म्यूरल पेंटिंग्स दोस्तों म्यूरल से तात्पर्य उन पेंटिंग से है जो किसी भी दीवार या सॉलिड स्ट्रक्चर पर बनाई जाती हैं इंडिया में इनकी शुरुआत 10थ सेंचुरी बीसी के आसपास हुई थी और तब से लेकर 10थ सेंचुरी एडी तक यह वन ऑफ द मोस्ट पॉपुलर आर्ट फॉर्म्स के रूप में बनी रही आज भी म्यूरल पेंटिंग्स के कई प्रमाण हमें इंडिया में देखने को मिलते हैं सदियों पूर्व बनाई गई यह पेंटिंग्स आज भी आकर्षण का केंद्र यह हमें देश भर के कई हिस्सों जैसे अजंता केव्स अर्मा मलाई केव्स रावण छाया रॉक शेल्टर बाग केव्स सिता अन वासल केव्स तथा इलोरा के कैलाशनाथ मंदिर में देखने को मिलती है यह पेंटिंग्स नेचुरल या मैन मेड केव्स में बनाई जाती थी अगर इन पेंटिंग्स की थीम की बात करें तो वह मुख्य रूप से प्राचीन भारत के तत्कालीन धर्म हिंदुइज्म बुद्धिज्म और जैनिज्म से इंस्पायर्ड हुआ करती थी आइए एक-एक करके कुछ चर्चित म्यूरल सेंटर्स के यूनिक फीचर्स को जान लेते हैं शुरुआत करते हैं अजंता केव से अजंता केव्स दोस्तों अजंता केव्स वेस्टर्न घटस की सह्याद्री रेंजेस में स्थित यूनेस्को द्वारा रिकॉग्नाइज एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद डिस्ट्रिक्ट में वागोरा रिवर के पास रॉक कट केव्स की एक श्रृंखला है इन्हें 200 बीसी से लेकर 650 एडी के समय में डिवेलप किया गया था अजंता में टोटल 29 केव्स पाई जाती हैं जिनका आकार एक हॉर्स शू मैग्नेट की तरह है यहां पाई गई पेंटिंग्स मौर्य गुप्ता तथा शुंग डायनेस्टी से संबंधित हैं इनकी मेन थीम बुद्धिज्म से प्रेरित है अजनता में मिलने वाले म्यूरल में पिगमेंट्स का इस्तेमाल भी देखा जा सकता है जो इन हजारों साल पुरानी पेंटिंग्स को आज भी उतना ही खूबसूरत बनाए हुए हैं इसके साथ ही इन पेंटिंग्स में फिगर्स को लाल रंग से बोल्ड आउटलाइन किया जाता है इसकी वजह से वह अधिक उभर कर दिखते थे और इन पेंटिंग्स को एक विशेष छवि प्रदान करते थे अजंता में मिलने वाले म्यूरल में मुख्य रूप से पद्म पाणी वज्र पाणी मंजु श्री डाइंग प्रिंसेस तथा अप्सरा पॉपुलर पेंटिंग्स के रूप में जानी जाती हैं अजंता के बाद आइए चर्चा करते हैं एलोरा केव्स में मिलने वाले म्यूरल की एलोरा केव्स दोस्तों एलोरा केव्स अजंता केव से करीब 100 किमी दूर सह्याद्री रेंजेस में ही स्थित हैं एलोरा 100 गुफाओं का एक समूह है जिनमें से मात्र 34 केव्स ही पब्लिक के लिए खुली हुई हैं इन 34 में से 17 हिंदू धर्म को समर्पित हैं तो वहीं दूसरी ओर 12 केव्स बुद्धिज्म और पांच केव्स जैनिज्म से संबंधित हैं इलोरा की एक खासियत यह भी है कि यह दुनिया के सबसे बड़े रॉक कट हिंदू टेंपल केव कॉम्प्लेक्शन टेंपल एक आर्किटेक्चरल वंडर है जो राष्ट्रकूटा रूलर कृष्णा वन द्वारा बनवाया गया था बात अगर एलोरा केव्स में मिलने वाली पेंटिंग्स की करें तो यहां पांच केव्स में म्यूरल देखने को मिलते हैं ध्यान देने वाली बात यह है कि यहां म्यूरल दो स्टेज में तैयार किए गए थे पहले स्टेज में म्यूरल की रचना तब की गई जब इन केव्स पर कार्विंग का काम चल रहा था फिर कई सदियों बाद इन केव्स में सेकंड स्टेज के अंतर्गत दोबारा म्यूरल पेंटिंग्स की गई फिगर्स के ट्विस्टेड हेड्स बेंट आर्म्स शार्प लिम्स पॉइंटेड नोज तथा बलज आइज जैसे फीचर्स एलोरा में मिलने वाले म्यूरल को एक विशेष छवि प्रदान करते हैं एलोरा के बाद आइए बाग केव्स में मिलने वाले म्यूरल पर चर्चा करते हैं बाग केव्स दोस्तों बाग केव्स नौ बुद्धिस्ट केव्स का एक कॉम्प्लेक्शन के धार डिस्ट्रिक्ट में बागनी नदी के किनारे स्थित हैं यहां पेंटिंग करने से पहले वॉल्स और सीलिंग्स पर ऑरेंज कलर का एक थिक मड प्लास्टर लगाया जाता था इसी प्लास्टर के ऊपर लाइम का इस्तेमाल करते हुए म्यूरल का निर्माण किया जाता था वैसे देखने में यहां मिलने वाले म्यूरल अजंता म्यूरल से मिलते जुलते हैं इन दोनों म्यूरल के डिजाइन एग्जीक्यूशन और डेकोरेशन काफी हद तक एक समान है लेकिन बाग केव्स के म्यूरल काफी ज्यादा मात्रा में गाढ़े रंगों का प्रयोग करके के बनाए गए हैं इनकी आउटलाइनिंग अजंता म्यूरल की तुलना में ज्यादा बोल्ड होती हैं तथा इनकी फिगर्स भी हाईली मॉडल रहा करती थी थीम्स की बात करें तो बाग केव्स के म्यूरल में सेकुलरिज्म की झलक साफ दिखाई पड़ती है म्यूरल की बात करें और बादामी केव्स का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता तो चलिए एक नजर बादामी केव्स की पेंटिंग्स पर डाल लेते हैं बादामी केव्स दोस्तों बादामी केव्स कर्नाटका के बागलकोट में स्थित है यह रॉक केव टेंपल सिक्स्थ सेंचुरी के आसपास बनाए गए थे यहां विष्णु के कई अवतारों की विशाल आकृतियां हैं और इन्हें पूर्ण रूप से म्यूरल पेंटिंग से सजाया गया है इसके साथ ही इस केव कॉम्प्लेक्टेड इंडिया के वन ऑफ दी ओल्डेस्ट म्यूरल में से एक है बादामी केव के म्यूरल अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं बात अगर इन म्यूरल के फीच र्स की करें तो वह काफी हद तक अजंता और बाग केव से मिलती जुलती हैं परंतु इन पेंटिंग्स में बनाए गए फिगर्स देखने में काफी ग्रेसफुल और कंपैशनेट लगते हैं औरों की तुलना में इन फिगर्स के एक्सप्रेशन अधिक सेंसिटिव होते हैं और इसी डिस्टिंक्टिव आइडेंटिटी के कारण बादामी केव्स को यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट का भी सम्मान प्राप्त है दोस्तों बादामी केव पेंटिंग्स की ही तरह कई ऐसी रॉक कट केव सेंटर्स हैं जो अपनी म्यूरल के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं और इनमें तमिलनाडु के अर्मा मलाई केव पेंटिंग्स सिता न वासल केव पेंटिंग्स ओड़ीशा की रावण छाया रॉक शेल्टर पेंटिंग्स आंध्र प्रदेश की लेपाक्षी टेंपल पेंटिंग्स और 36 गढ़ की जोगी मारा केव पेंटिंग्स प्रमुख हैं यह तो थी मरलस की कहानी आइए अब बिना देर किए कहानी को आगे बढ़ाते हुए मिनिएचर पेंटिंग्स पर डिस्कशन करते हैं मिनिएचर पेंटिंग्स दोस्तों अभी तक हमने म्यूरल के बारे में जाना म्यूरल की विशेषता थी कि उन्हें काफी भव्य और बड़े स्केल पर बनाया जाता था हालांकि समय के साथ और खासकर पेपर के इन्वेंशन के बाद इस तरह की पेंटिंग्स का चलन कम होता गया लोगों ने पेंटिंग्स को दीवार या पत्थरों पर नहीं बल्कि कागज या अन्य छोटे मीडियम पर बनाना शुरू किया और एक नए पेंटिंग स्टाइल यानी मिनिएचर पेंटिंग्स की उत्पत्ति हुई मिनिएचर पेंटिंग्स स्मॉल मीडियम पर काफी डिटेलिंग के साथ बनाई जाती हैं इन्हें कभी भी 25 स्क्वा इंच से बड़े साइज में नहीं बनाया जाता है रंगों का सटीक प्रयोग और बारीकी इन्हें यूनिक आइडेंटिटी प्रदान करती है इन पेंटिंग्स को ज्यादातर पेपर पाम लीव्स और फैब्रिक पर चित्रित किया जाता था इसके साथ ही इन पेंटिंग्स को अपने इंट्रीकेट डिटेल्स और फर्स्ट क्लास ब्रश वर्क के लिए जाना जाता है मिनिएचर पेंटिंग्स की थीम इंडियन रिलीजस तथा नॉन रिलीज लिटरेचर पर आधारित हुआ करती थी यहां एक गौर करने वाली बात यह भी है कि मिनिएचर पेंटिंग्स पांच कैटेगरी में बांटी गई हैं आइए उन सभी कैटेगरी को ब्रीफ में समझने की कोशिश करते हैं शुरुआत करते हैं अर्ली मिनिएचर पेंटिंग से अर्ली मिनिएचर पेंटिंग्स दोस्तों अर्ली मिनिएचर्स के अंतर्गत भारत में दो पेंटिंग स्कूल्स यानी पाला स्कूल ऑफ पेंटिंग तथा अपभ्रंश स्कूल ऑफ आर्ट की उत्पत्ति होती है बात अगर पाला स्कूल में मिनिएचर पेंटिंग की करें तो यह मिनिएचर पेंटिंग्स की सबसे पुरानी शैलियों में से एक है इन पेंटिंग्स को ज्यादातर बुद्धिज्म की थीम से इंस्पायर्ड होकर बनाया जाता था इसके साथ ही इन पेंटिंग्स में नालंदा तथा विक्रमशिला कल्चरल हेरिटेज साइट्स की झलक भी देखने को मिलती है इन पेंटिंग्स को पाम लीव्स पर बड़े ही खूबसूरती से लाइट कलर्स का इस्तेमाल कर बनाया जाता था इसके साथ ही इन पेंटिंग्स में ज्यादातर टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं यानी सीन्यूअस लाइंस के इस्तेमाल को भी देखा जा सक सकता है इस स्कूल में बनाई गई फेमस पेंटिंग्स की बात करें तो सबसे उच्च स्थान अष्ट सहस्त्र का प्रज्ञान परमपिता नामक एक बुद्धिस्ट मैनु स्क्रिप्ट को प्राप्त है इस मैनु स्क्रिप्ट में इस्तेमाल की गई ड्राइंग्स पाला स्कूल ऑफ पेंटिंग का सबसे अच्छा उदाहरण है अर्ली मिनिएचर फेज के तहत अपभ्रंश स्कूल ऑफ आर्ट की भी उत्पत्ति हुई थी यह पेंटिंग स्कूल गुजरात और राजस्थान के मालवा रीजन को कवर करता है और 11थ से 15th सेंचुरी के बीच यह स्कूल सभी पेंटिंग सेंटर्स में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था इस स्कूल में बनाई गई पेंटिंग्स शुरू में जैनिज्म से इंस्पायर्ड हुआ करती थी लेकिन आगे चलकर इनमें वैष्णव कल्चर की छवि देखने को मिलती है एक ही पेंटिंग स्कूल में कल्चरल अमलगम मेशन के कारण हमें दो धर्मों पर बने चित्र देखने को मिलते हैं कुछ गीत गोविंद यानी राधा कृष्ण पर आधारित हैं तो कुछ जैन आइकोनोग्राफी को बड़ी ही खूबसूरती के साथ पेश करते हैं इस स्कूल में बने पेंटिंग्स का सबसे मुख्य उदाहरण हमें कल्प सूत्र और कालका चार्य कथा में देखने को मिलता है यह तो थी मिनिएचर पेंटिंग के पहले स्टेज की कहानी आइए अब इसके दूसरे स्टेज यानी ट्रांजिशन पीरियड मिनिएचर को भी समझ लेते हैं ट्रांजिशन पीरियड मिनिएचर दोस्तों इस दौरान मिनिएचर पेंटिंग्स में कई बदलाव देखने को मिलते हैं और इसीलिए इस पीरियड को हाबजॉब इस दौरान भारत में मुस्लिम शासकों का आगमन हुआ और इसी कारण 14th सेंचुरी आते-आते भारत के आर्ट एंड कल्चर में इस्लामिक इन्फ्लुएंस देखने को मिलने लगा तो वहीं दूसरी ओर दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य में एक नए पेंटिंग स्टाइल का विकास हुआ और वह पेंटिंग स्टाइल काफी हद तक डेकनी स्टाइल ऑफ पेंटिंग के समान था इस पेंटिंग स्टाइल के फीचर्स की बात करें तो इनमें रिच कलर्स का प्रयोग होता था इसके साथ ही फिगर्स और ड्रेसेस को आउटलाइन करने के लिए लिए बोल्ड ब्लैक कलर्स का इस्तेमाल होता था इन पेंटिंग्स में फेस ड्राइंग्स पर अच्छा खासा एमफसिस डाला जाता था और इसीलिए फेसेस को जनरली थ्री क्वार्टर एंगल से ड्र किया जाता था जो देखने में बड़े ही खूबसूरत और 3डी अपीयरेंस देते थे फिगर्स के साथ ही पेंटिंग्स में बैकग्राउंड लैंडस्केप को भी बड़े ही अनूठे ढंग से सजाया जाता था जिनमें खूबसूरती से बनाई गई नदी पहाड़ पेड़-पौधे तथा जानवरों की आकृति साफ-साफ देखने को मिलती है मिनिएचर पेंटिंग्स के सेकंड फेज के बाद आइए इसके थर्ड फेज को भी ब्रीफ में समझ लेते हैं मिनिएचर आर्ट ड्यूरिंग दिल्ली सल्तनत दोस्तों जैसा कि हमने जाना कि 14th सेंचुरी में भारत के आर्ट एंड कल्चर में इस्लामिक इन्फ्लुएंस देखने को मिलने लगे पेंटिंग्स पर भी अब इंडियन टच के साथ पर्शियन एलिमेंट्स साफ-साफ नजर आने लगे और इन एलिमेंट्स ने इंडियन पेंटिंग्स को एक नई आइडेंटिटी प्रदान की इंडियन और पर्जन फ्लुएंस से बनी पेंटिंग्स का सबसे पहला प्रमाण हमें दिल्ली सल्तनत के दौरान देखने को मिलता है इन पेंटिंग्स को जनरली दिल्ली सल्तनत के दौरान रचे गए मैनु स्क्रिप्ट के लिए तैयार किया जाता था उदाहरण के तौर पर हम नासिर शाह के राज्य काल में तैयार की गई निमत नामा मैनु स्क्रिप्ट को देख सकते हैं इस मैनु स्क्रिप्ट में ट्रेडिशनल इंडियन स्टाइल और पर्जन एलिमेंट्स का इस्तेमाल करते हुए जो पेंटिंग्स बनाई गई हैं वह अतुलनीय है डेल्ली तनत में कल्चरल सिंथेसिस से बनी पेंटिंग्स ने ही आगे चलकर मुगल राजपूत और डेकन स्कूल ऑफ पेंटिंग्स की नीव रखी तो आइए अब मुगल एरा मिनिएचर पेंटिंग्स पर बात करते हैं मुगल एरा मिनिएचर पेंटिंग्स दोस्तों मुगल काल की पेंटिंग्स पर्जन स्टाइल से हैवली इन्फ्लुएंस थी इस दौरान बनाई जाने वाली पेंटिंग्स में नए कलर पैलेट डिफरेंट थीम्स और एक नए आर्ट फॉर्म का इस्तेमाल देखने को मिलता है बात अगर थीम की करें तो तो उसमें भी समय के साथ काफी बदलाव आया पहले भारतीय पेंटिंग्स में रिलीजस और स्पिरिचुअल थीम्स का दबदबा था परंतु व पेंटिंग्स राजा महाराजाओं के पराक्रम उनकी नीची जिंदगी और दरबार सींस को दर्शाने लगी थी इसके अलावा हंटिंग सींस और हिस्टोरिकल इवेंट्स जैसी थीम्स पर भी पेंटिंग्स बनाई जाने लगी इन पेंटिंग्स में नेचुरलिस्टिक स्टाइल देखने को मिलता है जो पर्जन स्टाइल का ही एक फीचर है बात अगर इन पेंटिंग्स में इस्तेमाल हु रंगों की करें तो वह काफी ब्राइट और शाइनी हुआ करते थे मुगल पेंटिंग्स को बड़ी ही बारीकी से ज्योमेट्री प्रिंसिपल्स का ध्यान रखते हुए बनाया जाता था जो इन्हें एक स्पेशल विजुअल इफेक्ट देता था अगर अलग-अलग मुगल बादशाहों के शासन में पेंटिंग्स के विकास की बात करें तो मुगल वंश के संस्थापक बाबर का ज्यादातर समय तो एंपायर की फाउंडेशन और एक्सपेंशन में ही बीता हालांकि बीजद नाम के एक पर्शियन आर्टिस्ट को इन्होंने पेट्रोनेट दिया था बीजद ने ने मुगल एंपायर के फैमिली ट्री को डेकोरेट करने के लिए कई पेंटिंग्स का निर्माण किया इसी पेंटेड फैमिली एल्बम ने मुगल पेंटिंग्स का बेस तैयार किया बाबर के बाद मुगल गद्दी पर हुमायूं बैठे हुमायूं जब शेरशाह सूरी से अपनी सल्तनत हार बैठे तब उन्होंने पर्शिया में शाह अब्बास के दरबार में शरण ली थी इस दरबार में उनकी मुलाकात अब्दुल समद और मीर सैयद अली नामक दो मशहूर पर्जन पेंटर से होती है जिन्हें वह अपने साथ भारत लेकर आते हैं अब्दुल समद और मीर सैयद अली ने हुमायूं के बाद अकबर के राज्य में भी काम किया और इसी दौरान उन्होंने तूती नामा नामक मैनु स्क्रिप्ट को बड़ी ही खूबसूरत पेंटिंग से सजाने का काम किया अकबर ने पेंटिंग्स के लिए एक स्पेशल डिपार्टमेंट का एस्टेब्लिशमेंट किया इसके साथ ही उन्होंने तस्वीर खाना नामक एक फॉर्मल आर्टिस्टिक स्टूडियो की भी स्थापना की इस स्टूडियो में विशेष रूप से पेंटिंग्स तैयार करने के लिए इ इंडिया और पर्शिया के बड़े-बड़े आर्टिस्ट को सैलरी बेसिस पर हायर किया जाता था इन आर्टिस्ट्स ने कई यूनिक पेंटिंग स्टाइल्स का निर्माण किया इन यूनिक स्टाइल्स में रियलिस्टिक पेंटिंग्स ड्रामे एक्सप्रेशंस के साथ फेशियल फीचर्स का निर्माण करना लाइवली ड्राइंग्स बनाना तथा पेंटिंग्स में थ्री डायमेंशन फिगर्स और कैलीग्राफी का इस्तेमाल करना प्रमुख था जो भी पेंटर इस नए स्टाइल को प्रयोग करते हुए मिनिएचर पेंटिंग्स बनाता था उसे अकबर द्वारा सम्मानित भी किया जाता था अगर इस समय के फेमस पेंटर्स की बात करें तो उसमें दसवंत बासवा तथा केशु को शीर्ष स्थान प्राप्त है वहीं पॉपुलर पेंटिंग्स में तूती नामा हमजा नामा अनवर ए सोहेली और गुलिस्तान ऑफ सादी प्रमुख माने जाते हैं पेंटिंग्स का सबसे ज्यादा विकास जहांगीर के शासनकाल में हुआ जहांगीर को खासकर पशु पक्षियों और पेड़ पौधों की पेंटिंग्स पसंद थी और इसीलिए उन्होंने इस तरह की पेंटिंग को लार्ज स्केल पर बनवाना शुरू किया इसके साथ ही जहांगीर काल में हम पोर्ट्रेट पेंटिंग्स के भी बढ़ते हुए चलन को देख सकते हैं इस दौरान बनाई जाने वाली पेंटिंग्स में नेचुरलिज्म और रियलिज्म था इसके साथ ही इन पेंटिंग्स में चारों ओर एक डेकोरेटेड मार्जिन यानी फ्रेम देखने को भी मिलता है इन्हीं आर्टिस्टिक रिफॉर्म्स के कारण जहांगीर काल को मुगल मिनिएचर पेंटिंग्स का गोल्डन पीरियड कहा जाता है जहांगीर काल के फेमस पेंटिंग्स की बात करें तो वह जेब्रा टर्की कॉक की पोर्ट्रेट पेंटिंग है और अयारे दानिश नामक एक पेंटिंग एल्बम है उस्ताद मंसूर इस समय के सबसे प्रसिद्ध पेंटर रहे इसके बाद शाहजहां के समय एक नई पेंटिंग स्टाइल सामने आई दरअसल अकबर और जहांगीर अपनी पेंटिंग्स में नेचुरलिज्म पसंद करते थे परंतु शाहजहां को यह पसंद नहीं था शाहजहां ने ऐसी पेंटिंग स्टाइल को पॉपुलर इज किया जिसमें आर्टिफिशियल एलिमेंट्स का इस्तेमाल होता था इसके अलावा इनमें यूरोपियन इफ्लू भी देखने को मिलता है इतना ही नहीं शाहजहां ने पेंटिंग टेक्नीक में भी कई बदलाव किए जैसे पेंटिंग्स के निर्माण में पेन पेंसिल स्केच और चारकोल का इस्तेमाल करना पेंटिंग्स को लस्ट्रे बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा गोल्ड एंड सिल्वर का उपयोग करना बात अगर शाहजहां दरबार के फेमस पेंटर्स की करें तो उनमें मोहम्मद नादिर समर कंदी और मीर हाशिम प्रसिद्ध हैं शाहजहां के बाद औरंगजेब ने मुगल एंपायर की कमान संभाली औरंगजेब ऑर्थोडॉक्स इस्लामिक आइडियो में बिलीव करता था जिस कारण उसने पेंटर्स को पेटनेट देना बंद कर दिया और इसीलिए पेंटर्स ने अन्य अंपायर्स की ओर माइग्रेट करना शुरू कर दिया और मुगल पेंटिंग्स का डिक्लाइन शुरू हो गया मिनिएचर पेंटिंग्स की आखिरी कैटेगरी यानी रीजनल मिनिएचर्स और उसके सब टाइप्स को हम अपने अगले लेक्चर में कवर करेंगे साथ ही चर्चा करेंगे मॉडर्न पेंटिंग्स और फोक पेंटिंग्स पर इंडियन पेंटिंग्स पार्ट टू वेलकम टू स्टडी आक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों अपने लास्ट लेक्चर में हमने इंडियन पेंटिंग्स के कुछ प्रकारों की बड़ी ही गहराई से चर्चा की आइए अब कहानी को आगे बढ़ाते हुए रीजनल स्कूल्स ऑफ मिनिएचर पेंटिंग्स पर चर्चा करते हैं रीजनल स्कूल्स ऑफ मिनिएचर पेंटिंग्स रीजनल किंगडम के पटने में डिवेलप हुए कुछ मिनिएचर पेंटिंग स्कूल्स की बात करें तो इसमें सबसे मेजर है राजस्थानी स्कूल ऑफ पेंटिंग इसे राजपूत स्कूल ऑफ पेंटिंग्स के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस पेंटिंग स्टाइल की उत्पत्ति और विकास राजस्थान के राजपूत किंगडम में हुई मुगल मिनिएचर से इन्फ्लुएंस इस पेंटिंग स्कूल के अंतर्गत कई सब स्कूल्स हैं जिसमें सबसे पहला नाम मेवाड़ किंगडम में फ्लोरिश हुए मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग का आता है वैश्णविज्म थीम पर बेस्ड स्कूल की पेंटिंग्स में रामायण और भागवत पुराण से संबंधित चित्रों के अलावा पॉपुलर पोयम्स और स्टोरीज जैसे रसिका प्रिया और रागमाला पर भी चित्र बनाए गए मेवाड़ स्कूल के फेमस पेंटर्स में साहिब दीन का नाम आता है समय के साथ थीम्स में बदलाव देखने को मिला और दरबार सीनस और रॉयल सेरेमनीज जैसी सेकुलर नेचर की पेंटिंग्स का दौर शुरू हुआ इसके साथ ही पेंटिंग स्कूल में ड्र की गई तमाशा पेंटिंग्स भी काफी पॉपुलर हैं अगला सब स्कूल जयपुर स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग्स है जिसे ढूंढरका आता है इस पेंटिंग स्कूल की उत्पत्ति और विकास में महाराजा सवाई प्रताप सिंह का सबसे बड़ा योगदान है इन पेंटिंग्स के उदाहरण हम महल की दीवारों और आमेर महल की समाधि हों में देख सकते हैं इसकी थीम्स मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग से सिमिलर ही थी वहीं एक और सब स्कूल मारवाड़ स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग का डेवलपमेंट महाराजा मानसिंह की देखरेख में होता है यह पेंटिंग स्कूल जोधपुर और बीकानेर जैसे एरियाज को कवर करता है इस पेंटिंग स्टाइल की थीम्स में वैष्णवी के साथ शैविज्म की छवि भी देखने को मिलती है और यह शिव पुराण नट चरित्र दुर्गा चरित्र और पंचतंत्र पर आधारित हुआ करती थी फिगर्स की कलरफुल क्लोथिंग और उनमें ब्राइट कलर्स का इस्तेमाल इस पेंटिंग स्टाइल के यूनिक फीचर्स माने जाते हैं साथ ही मारवाड़ पेंटिंग स्कूल के दो सब स्कूल्स भी हैं पहला किशनगढ़ स्कूल और दूसरा बूंदी स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग किशनगढ़ स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग में मुख्य रूप से राधा कृष्ण पर पेंटिंग्स बनाई जाती थी इस पेंटिंग स्कूल के यूनिक फीचर्स में फिगर्स के लॉन्ग नेक्स आर्च आई ब्राउज थिन लिप्स और वाइड आइज प्रमुख माने जाते हैं पॉपुलर पेंटिंग्स बनी ठनी इसी पेंटिंग स्टाइल के अंतर्गत बनाई जाती हैं पॉपुलर पेंटर्स में सावंत सिंह नगार दस और निहाल चंद शामिल है वहीं बूंदी स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग अपने नेचुरलिज्म और रियलिज्म के लिए जानी जाती हैं इसकी थीम्स भगवान श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित हुआ करती थी अगला सब स्कूल कोटा स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग है कोटा और बूंदी की पेंटिंग स्टाइल में काफी समानता देखने को मिलती है और इसीलिए इन दोनों पेंटिंग स्टाइल्स को हड़ती स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है कोटा स्कूल में बनाई जाने वाली पेंटिंग्स में कृष्ण भक्ति की झलक देखने को मिलती है इसके अलावा टाइगर और बेयर हंटिंग जैसी थीम्स भी इस पेंटिंग स्कूल में काफी पॉपुलर हैं यह तो थे राजस्थानी स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग्स के कुछ मेजर सब स्कूल्स इसके अलावा रीजनल पेंटिंग स्टाइल में पहाड़ी स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग भी शामिल है दोस्तों सब हिमालयन स्टेट्स में विकसित हुए सभी पेंटिंग स्टाइल्स पहाड़ी स्कूल के अंतर्गत आते हैं इस स्कूल में की गई पेंटिंग्स पौराणिक कथाओं से लेकर भारतीय साहित्य तक संबंधित हैं इस स्टाइल में कैनवस पर कई आकृतियां लाई जाती हैं और सभी गतिशीलता से भरपूर और एक दूसरे से भिन्न होती थी इस स्कूल के दो सबसे महान पेंटर्स नैनसुख और मनक थे पहाड़ी स्कूल को दो में मेजर सब स्कूल्स में बांटा जा सकता है बसोली और कांगड़ा स्कूल बसोली स्कूल के सबसे पहले पेटन राजा कृपाल पाल थे इस पेंटिंग स्टाइल के यूनिक फीचर्स की बात करें तो इनमें बोल्ड और डार्क कलर्स का उपयोग कर पेंटिंग्स को अंजाम दिया जाता था बसोली पेंटिंग्स प्रसिद्ध कविताओं पर आधारित हुआ करती थी पेंटर देवीदास की पेंटिंग रस मंजरी और पेंटर मनक की गीत गोविंदम इसके सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है वहीं कांगड़ा स्कूल में बनी पेंटिंग्स अपनी डेलिकेट सॉफ्टनेस और नेचुरलिस्टिक अपीयरेंस के लिए जानी जाती हैं इसके अंतर्गत बनाई गई पेंटिंग्स में सबसे पॉपुलर नैनसुख के वंशजों द्वारा बनाया गया कांगड़ा के महाराजा संसार चंद का पोर्ट्रेट है अब यह तो बात हुई उत्तर भारत के रीजनल पेंटिंग स्कूल्स की आइए अब एक नजर दक्षिण भारत के मिनिएचर पेंटिंग स्टाइल्स पर डाल लेते हैं मिनिएचर पेंटिंग स्टाइल्स ऑफ साउथ इंडिया दोस्तों उत्तर भारत की ही तरह दक्षिण भारत में भी कई प्रमुख मिनिएचर पेंटिंग स्कूल्स का विकास हुआ हालांकि यहां की पेंटिंग्स और नॉर्थ इंडियन पेंटिंग्स में काफी अंतर देखने को मिलता है इस स्टाइल की थीम्स में स्पिरिचुअलिज्म का डोमिनेंस देखा जा सकता है यह पेंटिंग्स उत्तर भारतीय पेंटिंग्स की तरह राजाओं और उनके जीवन पर आधारित नहीं हुआ करती थी बल्कि इन्हें हिंदू देवी देवताओं के ऊपर बड़ी खूबसूरती से बनाया जाता था इसके साथ ही इन पेंटिंग्स में गोल्ड का काफी प्रयोग होता था साउथ इंडियन मिनिएचर्स के मेजर सब स्कूल्स में तंजोर स्कूल और मासोर स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग्स आते हैं तंजोर स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग को मराठा द्वारा पीटने दिया गया था इस पेंटिंग स्टाइल के विकास में सबसे बड़ा हाथ महाराजा सरफ जीी टू का माना जाता है तंजोर पेंटिंग्स ग्लास या वुडन प्लाक्स पर ब्राइट कलर्स का इस्तेमाल करते हुए बनाई जाती हैं अगर माय सो स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग की बात करें तो इसमें एक ही पेंटिंग में दो या अधिक आकृतियों को बनाया जाता है और उनमें से एक आकृति को साइज और रंग के मामले में प्रधान रखा जाता है तो दोस्तों अभी तक हमने मुख्य रूप से मिनिएचर पेंटिंग्स की कहानी जानी आइए अब बिना देर किए भारतीय पेंटिंग्स के अगले प्रकार यानी मॉडर्न इंडियन पेंटिंग्स पर भी चर्चा कर लेते हैं मॉडर्न इंडियन पेंटिंग्स कॉलोनियल रूल के दौरान राजपूत मुगल पहाड़ी दक्षिण भारतीय और यूरोपियन एलिमेंट्स के अमलगम मेशन से एक नए पेंटिंग स्टाइल का डेवलपमेंट हुआ जिन्हें हम कंपनी पेंटिंग्स के नाम से जानते हैं ब्रिटिश रूल के समय भारत में रह रहे ब्रिटिश पेंटर्स ने भारतीय पेंटिंग्स को यूरोपियन एलिमेंट्स के साथ बनाना शुरू किया इस पेंटिंग स्टाइल को कोलकाता चेन्नई दिल्ली पटना वाराणसी और थंजाथ में फॉलो किया जाता था कंपनी पेंटिंग्स के फीचर्स की बात करें तो इनमें पहली बार वाटर कलर्स का प्रयोग हुआ इतना ही नहीं इस पेंटिंग स्टाइल में कई मॉडर्न पेंटिंग और शेडिंग टेक्निक्स भी देखने को मिलती हैं इन पेंटिंग्स को मुख्य रूप से इंडियन लैंडस्केप और फ्लोरा फोना की थीम्स पर बनाया जाता था मजहर अली खान तथा गुलाम अली खान कंपनी पेंटिंग स्टाइल के मुख्य पेंटर्स के रूप में जाने जाते हैं इसके अलावा मॉडर्न इंडियन पेंटिंग्स का एक स्कूल बाजार पेंटिंग्स भी है इसमें भी यूरोपियन इन्फ्लुएंस साफ-साफ नजर आता है हालांकि यह कंपनी पेंटिंग से अलग थी क्योंकि इस स्टाइल में यूरोपियन टेक्निक्स और थीम्स का फ्यूजन इंडियन टेक्निक्स और थीम्स के साथ किया गया था इतना ही नहीं इन पेंटिंग्स में रोमन और ग्रीक एलिमेंट्स को भी देखा जा सकता है बाजार पेंटिंग्स बिहार और बंगाल में प्रचलित थी इस पेंटिंग स्टाइल में ग्रेको रोमन हेरिटेज के अलावा भारतीय बाजारों की छवि यूरोपियन बैकग्राउंड के साथ देखने को मिलती है रिलीजस सब्जेक्ट्स पर भी पेंटिंग्स बनाई गई लेकिन प्राकृतिक मानवीय आकृति की यूरोपियन धारणा से भिन्न भगवान गणेश जैसे देवी देवताओं की पेंटिंग्स को इसमें निषिद्ध किया गया यूरोपियन इन्फ्लुएंस को काउंटर करने ने और भारतीय पेंटिंग टेक्निक्स को रिवाइव करने के लिए एक नए इंडिजन स्टाइल का डेवलपमेंट हुआ जिसे बंगाल स्कूल के नाम से जानते हैं इस यूनिक पेंटिंग स्टाइल की कहानी अर्ली 20th सेंचुरी से शुरू होती है जब नेंद्र नाथ टैगोर ने अपनी पेंटिंग एल्बम अरेबियन नाइट लॉन्च किया इस पेंटिंग स्टाइल में साधारण रंगों का प्रयोग देखने को मिलता है तथा इनमें स्वदेशी वैल्यूज की झलक भी दिखती है अबन इंद्रनाथ टैगोर की भारत माता पेंटिंग और नंदलाल बोस द्वारा बनाया गया महात्मा गांधी का स्केच बंगाली स्कूल ऑफ पेंटिंग का सबसे सटीक उदाहरण है मॉडर्न इंडियन पेंटर्स की बात करें तो राजा रवि वर्मा का नाम कैसे भूला जा सकता है उन्होंने साउथ इंडियन पेंटिंग के एलिमेंट्स का वेस्टर्न पेंटिंग और कलर टेक्निक्स के साथ फ्यूजन किया उन्हें फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन पेंटिंग्स भी कहा जाता है इनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स ज्यादातर पौराणिक कथाओं और अन्य साहित्यिक रचनाओं पर आधारित हैं लेडी इन द मूनलाइट शकुंतला द दमयंती और स्वन तथा रावण किडनैपिंग सीता इनकी कुछ प्रमुख पेंटिंग्स मानी जाती हैं इसके अलावा यूरोप के क्यूबिस्ट मूवमेंट से प्रेरित होते हुए भारत में क्यूबिस्ट स्टाइल ऑफ पेंटिंग की भी शुरुआत की गई इस पेंटिंग स्टाइल में मॉडर्न आर्ट टेक्निक्स का इस्तेमाल किया जाता है जिसके तहत पेंटिंग्स में किसी भी ऑब्जेक्ट को हर एंगल से दिखाने हेतु उन्हें बड़े ही बारीकी से ज्योमेट्री प्रिंसिपल्स का इस्तेमाल करते हुए ड्रा किया जाता है इन पेंटिंग्स में हमें ज्योमेट्री और कलर्स का परफेक्ट बैलेंस दे देखने को मिलता है अगर भारतीय क्यूबिस्ट पेंटर्स की बात करें तो इनमें एमएफ हुसैन का नाम सबसे पहले आता है इनके द्वारा बनाई गई पर्स निफिट ऑफ रोमांस क्यूबिस्ट आर्ट फॉर्म और एब्स्ट्रेक्ट स्टाइल ऑफ पेंटिंग का सबसे खूबसूरत उदाहरण है इसी तरह 1947 में एक और नए पेंटिंग स्टाइल का डेवलपमेंट इंडिया में देखा गया इसे पेंटर्स के एक लोकल ग्रुप द्वारा शुरू किया गया था जिसका नाम प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप था यह पेंटर्स प्रोग्रेसिव थीम्स पर बोल्ड कलर्स का इस्तेमाल करते हुए बना जाती थी पेंटिंग का यह स्टाइल एब्स्ट्रेक्ट आर्ट फॉर्म्स और सॉफ्ट थीम्स पर आधारित होता है बात अगर इस पेंटिंग स्टाइल को लच करने वाले ग्रुप की करें तो उसके फाउंडर फ्रांसिस न्यूटन सोजा थे और एस एच रजा एच ए गड़े तथा एम एफ हुसैन इत्यादि इसके एमिनेंट मेंबर्स के रूप में प्रसिद्ध हैं आइए अब कहानी को आगे बढ़ाते हुए भारतीय पेंटिंग्स के आखिरी प्रकार यानी फोक पेंटिंग्स की चर्चा करते हैं फोक पेंटिंग्स ऑफ इंडिया आम लोग के बीच विकसित हुई कला को ही फोक या लोक कला कहा जाता है बात अगर पेंटिंग्स की करें तो भारत जैसे विविधता वाले देश में फोक पेंटिंग्स के अनेकों प्रकार देखने को मिलते हैं आइए इनमें से कुछ प्रमुख फोक पेंटिंग स्टाइल्स को विस्तार से समझते हैं मधुबनी आठ दोस्तों यह एक खूबसूरत लोक कला है जो खास तौर पर बिहार के मिथिला रीजन में देखने को मिलती है ऐसा कहा जाता है कि पहली बार इस पेंटिंग को रामायण काल में भगवान श्री राम और सीता के विवाह अवसर पर बनाया गया था और तब से आज तक इस पेंटिंग को बनाने की परंपरा बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्रों में चली आ रही है इन पेंटिंग्स को राइस पेस्ट काउ डंग और वेजिटेबल कलर्स का इस्तेमाल करते हुए त्यौहारों और किसी भी शुभ अवसर पर बनाया जाता है इस पेंटिंग को मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा हिंदू देवी देवताओं की थीम्स पर बनाया जाता है इतना ही नहीं इस पेंटिंग में प्राकृतिक तत्त्वों जैसे सूरज चंद्रमा पेड़ पौधे फूल पशु पक्षी इत्यादि की ड्राइंग्स भी देखने को मिलती हैं मधुबनी पेंटिंग्स इतनी नायाब और खूबसूरत होती हैं कि इन्हें जीआई टैग भी प्राप्त है बात अगर इनके फेमस पेंटर्स की करें तो उसमें जगदंबा देवी बहुआ देवी भारती दयाल गंगा देवी इत्यादि प्रमुख माने जाते हैं मिथिला की लोक कला के बाद आइए जानते हैं उड़ीसा की फोक पेंटिंग पट चित्र के बारे में पट चित्र दोस्तों पट चित्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ कपड़े पर बनाया गया चित्र होता है इस पेंटिंग स्टाइल में हमें क्लासिकल और फोक एलिमेंट्स दोनों एक साथ देखने को मिलते हैं यह पेंटिंग मुख्य रूप से वैश्णविज्म और जगन्नाथ कल्चर से इंस्पायर्ड होती है इस पेंटिंग को सूती कपड़ों के ऊपर नेचुरल कलर्स का इस्तेमाल कर बनाया जाता है यह कलर्स मुख्य रूप से बर्न कोकोनट शेल्स हिंगुला रामराजा तथा लैंप ब्लैक से प्राप्त होते हैं इन पेंटिंग्स को बनाने में किसी भी पेंसिल स्केच या पेन का इस्तेमाल नहीं होता फिगर्स को आउटलाइन करने के लिए पेंटिंग ब्रश का इस्तेमाल किया जाता है जिसके बाद उनमें रंग भर दिए जाते हैं पेंटिंग तैयार होने के बाद लैकर की मदद से इसे शाइनी अपीयरेंस दी जाती है कभी-कभी इन पेंटिंग्स को पाम लीव्स पर भी बनाया जाता है जिसे ताल पट्ट चित्र कहते हैं अब चलते हैं बंगाल की तरफ और जानते हैं वहां की पटुआ आट के बारे में पटुआ आट दोस्तों पटुआ आठ बंगाल की लोक कला है जिसकी शुरुआत आज से करीब हजार साल पूर्व की गई थी यह पेंटिंग्स खासकर देवी देवताओं की थीम्स पर बनाई जाती हैं और जनरली इन्हें कपड़ों से बने पटस या स्क्रोल्स पर आर्टिस्ट द्वारा पेंट किया जाता है कुछ सालों पहले इसी लोक कला के माध्यम से पटुआ आर्टिस्ट घूम घूम कर पौराणिक कथाओं का गान किया करते थे परंतु आज इन फोक पेंटिंग्स का प्रयोग सोशल और पॉलिटिकल कैंपस के लिए किया जाता है आपको जानकर हैरानी होगी कि इन हिंदू रिलीजस पेंटिंग्स को बंगाल की मुस्लिम पॉपुलेशन द्वारा बनाया जाता है जो भारत की गंगा जमुनी तहजीब का साक्षात प्रमाण है पटुआ आठ के बाद बात करते हैं कालीघाट पेंटिंग्स की कालीघाट पेंटिंग्स कालीघाट पेंटिंग्स की शुरुआत कलकाता के कालीघाट मंदिर के आसपास रह रहे रूरल माइग्रेंट्स द्वारा 19वीं सदी में की गई थी इन पेंटिंग्स को वाटर कलर का इस्तेमाल करते हुए न्यूट्रल बैकग्राउंड के साथ बनाया जाता है बात अगर कालीघाट पेंटिंग्स की थीम्स की करें तो पहले इनमें रिलीजन और स्पिरिचुअलिज्म की छवि देखने को मिलती थी लेकिन समय के साथ पेंटिंग थीम्स में बड़ा बदलाव नजर आया यह पेंटिंग्स अब ज्यादातर सोशल इश्यूज की थीम्स पर बनाई जाने लगी आज के समय इन पेंटिंग्स में वमन एंपावरमेंट रोमांटिक और व्यंगात्मक थीम्स का चलन बढ़ता नजर आ रहा है आइए अब जानते हैं झारखंड की लोककला यानी पैटकर पेंटिंग के बारे में पैटकर पेंटिंग्स दोस्तों इस लोक कला को झारखंड की जनजातियों द्वारा बनाया जाता है इन पेंटिंग्स का इतिहास काफी प्राचीन है और इसीलिए इन्हें वन ऑफ दी एंस स्कूल्स ऑफ पेंटिंग्स के नाम से भी जाना जाता है बात अगर इस फोक पेंटिंग के थीम्स की करें तो वह ट्राइबल गॉडेस मां मंसा पर आधारित होती हैं इसके साथ ये पेंटिंग्स रिलीजस कस्टम्स और मृत्यु के बाद मानव शरीर का क्या हाल होता है ऐसे नॉन कन्वेंशनल सब्जेक्ट्स पर भी बनाई जाती हैं झारखंड की लोक कला के बाद चर्चा करते हैं आंध्र प्रदेश की कलमकारी फोक पेंटिंग्स की कलमकारी कलमकारी से आशय उन फोक पेंटिंग से है जिसे कलम यानी कि पेन का इस्तेमाल करते हुए कॉटन क्लोथ्स पर बनाया जाता हो इन पेंटिंग्स में यूज होने वाली पेंस बैंबू की बनी होती हैं और इन्हीं के सहारे पेंटिंग्स पर कलरिंग की जाती है यह कलर्स मुख्य रूप से वेजिटेबल से एक्सट्रैक्ट किए जाते हैं इसके अलावा इन पेंटिंग्स में फर्मेंटेड जैगरी वाटर के माध्यम से भी कलरिंग की जाती है कलमकारी पेंटिंग्स मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के श्री कला हस्ती और मछली पटनम एरिया में प्रैक्टिस की जाती है इस पेंटिंग को भी अपने यूनिक फीचर्स के कारण जीआई टैग प्राप्त है कलमकारी के बाद हम जानेंगे एंसेट ट्राइबल आर्ट वर्ली पेंटिंग्स के बारे में वर्ली पेंटिंग्स दोस्तों वार्ली भारतीय राज्य गुजरात और महाराष्ट्र की लोककला है इसकी शुरुआत तकरीबन 2 से 3000 बीसी के बीच वार्लिस नामक आदिवासियों द्वारा की गई थी इसी ट्राइब के कारण ही इस लोक कला का नाम वारली पड़ा ये पेंटिंग सामान्यतः भीमबेटका में पाए जाने वाली पेंटिंग्स की तरह लगती हैं इसके मुख्य फीचर्स की बात करें तो इन पेंटिंग्स में सेंट्रल पोजीशन पर एक चौक या चौकट की आकृति बनी होती है और इसी फिगर के चारों ओर पेंटिंग्स का निर्माण किया जाता है जिन्हें मुख्य रूप से हंटिंग फार्मिंग डांसिंग एनिमल्स ट्रीज तथा फेस्टिवल्स जैसी थीम्स पर बनाया जाता है इतना ही नहीं इन पेंटिंग्स में हमें गॉडेस ऑफ फर्टिलिटी कही जाने वाली पालघाट और अन्य देवी देवताओं की आकृति भी देखने को मिलती है इन पेंटिंग्स को मुख्यतः ट्रायंगल सर्कल्स और स्क्वेयर जैसे जियोम मेट्रिक सिंबल्स का प्रयोग करते हुए मड या काव डंग से बने बेस पर बनाया जाता है तथा इनमें कलरिंग के लिए वाइट कलर्स का इस्तेमाल होता है जिसे गम और राइस की मदद से तैयार किया जाता है वार्ली के बाद आइए जानते हैं थांग का फोक पेंटिंग के बारे में थांग का फोक पेंटिंग दोस्तों थांसा फोक पेंटिंग मुख्य रूप से सिक्किम हिमाचल प्रदेश लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में बनाई जाती हैं यह पेंटिंग्स बुद्धिज्म को डेडिकेटेड होती हैं इन्हें कॉटन कैनवस के ऊपर ब्राइट और शाइनी कलर्स का इस्तेमाल करते हुए बनाया जाता है इस पेंटिंग में यूज होने वाले कलर्स की अपनी खुद की एक फिलोसॉफिकल सिग्निफिकेंट होती है जैसे रेड कलर पैशन और इंटेंस इमोशंस को दर्शाता है वाइट कलर पीस को ब्लैक एंगर को तथा ग्रीन कलर ह्यूमन कॉन्शसनेस को डिपिक्ट करता है अपने इसी कलर सिग्निफिकेंट के कारण यह पेंटिंग्स वन ऑफ द मोस्ट ब्यूटीफुल और मीनिंगफुल मानी जाती हैं इसी तरह भारत की ऐसी कई फोक पेंटिंग्स हैं जो दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं इनमें बिहार की मंजूषा पेंटिंग राजस्थान की फाड़ पेंटिंग तेलंगाना की चेरियल स्क्रोल पेंटिंग गुजरात की पिथौरा पेंटिंग और उड़ीसा की सौरा फोक पेंटिंग प्रमुख है कंक्लूजन तो दोस्तों यह थी इंडियन पेंटिंग्स की कहानी इस लेक्चर में हमने भारतीय सभ्यता में पेंटिंग्स के इतिहास को समझने की पूरी कोशिश की इसके साथ ही हमने लोक कला के रूप में पेंटिंग्स के अलग-अलग प्रकारों को समझा रीजनल वेरिएशंस को डिपिक्ट करती यह पेंटिंग्स देश की साझी सांस्कृतिक विरासत हैं जिन्हें प्रोत्साहन और संरक्षण देना सभी का कर्तव्य है हैंडीक्राफ्ट्स आर्ट एंड कल्चर वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों इंडियन आर्ट एंड कल्चर में हम आर्किटेक्चर स्कल्पचर पोट्री और पेंटिंग्स के बारे में देख चुके हैं आज की इस कहानी में हम अगले इंपॉर्टेंट एस्पेक्ट हैंडीक्राफ्ट के बारे में बात करेंगे दोस्तों हैंडीक्राफ्ट्स हाथों से बनाए गए किसी भी डेकोरेटिव फंक्शनल ऑब्जेक्ट को कहा जाता है हैंडीक्राफ्ट के प्रोडक्शन में मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता इंडिया में लगभग हर स्टेट के हैंडीक्राफ्ट्स में एक यूनिक स्टाइल है जो वहां के स्किल आर्ट कल्चर और ट्रेडिशनल देते हैं हैंडीक्राफ्ट के इकोनॉमिक इंपॉर्टेंस की बात करें तो इसमें कम कैपिटल इन्वेस्टमेंट में भी लाइवलीहुड कमाई जाती है आज इंडिया हैंडीक्राफ्ट्स का वन ऑफ द मेजर प्रोड्यूसर और सप्लायर भी है पुराने समय से ही हैंडीक्राफ्ट कई मटेरियल की मदद से बनाए जाते हैं जैसे क्लॉथ आइवरी टेराकोटा सिल्वर क्ले एटस आज की इस कहानी में हम अलग-अलग तरह के हैंडीक्राफ्ट्स के बारे में जानेंगे और देखेंगे उनके स्पेशल फीचर्स के बारे में शुरू करते हैं क्लॉथ हैंडीक्राफ्ट से और देखते हैं इसके टाइप्स फीचर्स और इंडिया में कहां-कहां यह प्रैक्टिस किए जाते हैं क्लॉथ हैंडीक्राफ्ट्स दोस्तों क्लॉथ हैंडीक्राफ्ट की कई टेक्निक्स होती हैं जैसे वीविंग और प्रिंटिंग आर्टिस्ट्स या तो वुडन ब्लॉक्स या फिर प्रिंटेड क्लॉथस का इस्तेमाल दूसरे मटेरियल पर पैटर्न बनाने के लिए करते हैं क्लॉथ हैंडीक्राफ्ट में एक इंपॉर्टेंट आर्ट है बांधनी या बंधेज जिसको इंग्लिश में टाई एंड डाई टेक्नीक बोला जाता है इस डाइंग टेक्नीक में क्लॉथ को अलग-अलग पैटर्स में रबर की मदद से बांधा जाता है और कलर में डिप किया जाता है बंधी हुई जगह पर कलर पेनिट्रेट नहीं कर पाता जिसके कारण कपड़े पर एक पैटर्न बन जाता है इस एंसेट डाइंग टेक्नीक का इस्तेमाल आज भी हमको राजस्थान और गुजरात में देखने को मिलता है लहरिया एक ऐसी टाई एंड डाई टेक्नीक है जिसमें कपड़े पर रिपल्स या वेव्स के पैटर्न बनाए जाते हैं इसका इस्तेमाल जयपुर और जोधपुर में किया जाता है इकत भी एक टाय एंड डाई टेक्नीक है जिसे कपड़े को बनाए जाने के पहले यानी यान पर ही अप्लाई किया जाता है इस टेक्नीक के मेजर सेंटर्स हैं तेलंगाना उड़ीसा गुजरात और आंध्र प्रदेश एंट पीरियड की कुछ और टेक्निक्स भी हैं जो आज भी यूज होती हैं जैसे कलमकारी जिसमें हैंड पेंटिंग आर्ट को कपड़े पर किया जाता है और इसमें वेजिटेबल डाइज का यूज होता है इसको आंध्र प्रदेश में प्रैक्टिस किया जाता है बाट आट जिसमें मल्टीकलर्ड बाट साड़ी और दुपट्टा बनाए जाते हैं यह आट मध्य प्रदेश और वेस्ट बंगाल में फेमस है वेस्ट बंगाल का एक और फेमस एसिंट आर्ट है जमद नहीं जिसमें मस्लिम के कपड़े पर ओपेक यानी अपारदर्शी पैटर्स एक ट्रांसपेरेंट बैकग्राउंड में बनाए जाते हैं इंडिया में फैब्रिक पैटर्न की कुछ टेक्निक्स अब्रॉड से भी आई ट्रेड रूट्स के माध्यम से इसका बेस्ट एग्जांपल है तंचने जो एक चाइनीज इंस्पिरेशन है और ट्रेडिंग कम्युनिटीज के माध्यम से गुजरात के सूरत में आई यह आर्ट फाइन मिनिएचर पेंटिंग से मिलता जुलता है आगे बढ़ते हैं और देखते हैं ग्लासवेयर के बारे में ग्लासवेयर दोस्तों इंडिया में ग्लास मेकिंग का पहला मटेरियल एविडेंस करीब 1000 बीसी में गंगा वैली के पेंटेड ग्रेवेयर कल्चर में मिला है वैदिक टेक्स्ट सत पथ ब्राह्मणा में इसको कांच बोला गया है महाराष्ट्र के ब्रह्मपुरी और कोल्हापुर में ग्लास इंडस्ट्री के एविडेंसेस मिले हैं यहां पर एक स्पेशल ला ग्लासवेयर बनाया जाता था जिनको लेंटिकुलर बीड्स कहा जाता था यानी जो लेंस के शेप के होते हैं इंडिया के सदर्न पार्ट की बात करें तो आर्कियोलॉजिस्ट को डेकन की चलकोलिथिक साइट मास्की में ग्लास के एविडेंस मिले हैं इसके अलावा आहार राजस्थान हस्तिनापुर और ई छत्र उत्तर प्रदेश एफान और उज्जैन मध्य प्रदेश एटस में भी ग्लास के एविडेंसेस मिले हैं मिडिवल पीरियड की बात करें तो मुगल्स ने ग्लासवेयर ट को पेट्रनाइज्ड में डेकोरेशन के लिए किया गया इसके अलावा मुगल्स के लिए ग्लास हुका परफ्यूम बॉक्सेस यानी इतर दांस और इंग्रेव्ड ग्लासेस में ग्लास का यूज किया जाता था आज भी ग्लास इंडस्ट्री के कई टाइप्स हैं जिनमें से सबसे इंपॉर्टेंट है ग्लास बैंगल्स इंडस्ट्री इंडिया में सबसे फेमस बैंगल्स इंडस्ट्री हैदराबाद में है जहां इनको चूड़ी का जोड़ास कहा जाता है उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद ग्लास सैंडलीय यानी झूमर और बाकी डेकोरेटिव पीसे के लिए फेमस है यूपी के सहारनपुर में भी ग्लास इंडस्ट्री है जहां पंच कोरा प्रोड्यूस किया जाता है जो कि बच्चों के खेलने वाले खिलौने हैं बिहार के पटना में एक यूनिक तरह के डेकोरेटिव ग्लास बीड्स प्रोड्यूस किए जाते हैं जिसको टिकुली कहा जाता है इसको बिहार की संथाल ट्राइब के द्वारा आज भी इस्तेमाल किया जाता है दोस्तों हैंडीक्राफ्ट्स में अब हम बात करें करेंगे आइवरी क्राफ्टिंग के बारे में जो कि इंडिया में वैदिक पीरियड से ही एक प्रे वेलेंट आर्ट है आइवरी क्राफ्टिंग वैदिक पीरियड में इसको दांता कहा जाता था हाल ही में हुए एक्सक वेश में यह पता चला है कि हड़प्पा पीरियड में आइवरी और उसके बने ऑब्जेक्ट्स जैसे डाइस एट्स को इंडिया से तुर्कमेनिस्तान अफगानिस्तान और पर्जन गल्फ में एक्सपोर्ट किया जाता था सांची में सेकंड सेंचुरी बीसी के इंक्रिप्शन मिले हैं जिसमें विदिशा के आइवरी वर्कर्स गिल्ड का मेंशन है इसके अलावा तक्षशिला में हमें एक आइवरी कोम मिला है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि सेकंड सेंचुरी एडी में भी आइवरी का इस्तेमाल कॉमन था आइवरी का इस्तेमाल हमें मुगल पीरियड में भी देखने को मिला है जहां इसका इस्तेमाल कोम्स डागर्स हैंडल और ऑना मेंट्स में किया जाता था इंडिया में आवरी के ट्रेडिशनल सेंटर्स दिल्ली जयपुर और वेस्ट बंगाल के कुछ पार्ट्स में है यहां पर कई आर्ड ऑब्जेक्ट्स को बनाया जाता है जैसे कैस्केड्स पलकन यानी पालकी और फेमस अंबारी हाथी इसके अलावा केरला की आइवरी पेंटिंग्स जोधपुर के आइवरी बैंगल्स और जयपुर का आइवरी जाली वर्क फेमस है यह तो बात हुई आइवरी क्राफ्टिंग की आइए अब टेराकोटा क्राफ्ट्स पर एक नजर डालते हैं टेराकोटा क्राफ्ट्स दोस्तों टेराकोटा का मीनिंग होता है बेक्ड अर्थ जो कि एक तरह की सिरामिक क्ले है इसका इस्तेमाल स्कल्पिन आर्किटेक्चर पोट्री और ब्रिक मेकिंग में किया जाता था टेराकोटा क्राफ्ट्समैनशिप के बेस्ट एग्जांपल्स हैं बांकुरा हॉस द पंचमुरा हॉस और टेराकोटा टेंपल्स जो वेस्ट बंगाल के बांकुरा डिस्ट्रिक्ट में सिचुएटेड है एथ सेंचुरी में पाला पीरियड के बुद्धिस्ट विहारस टेराकोटा आर्ट के बेस्ट स्पेसिमेन माने जाते हैं इसका बेस्ट एग्जांपल है सोमन पुरा महावीरा जो आज के बांग्लादेश के नवगांव डिस्ट्रिक्ट में लोकेटेड है और एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है आइए अब ब्रीफ में बात करते हैं सिल्वर ज्वेलरी के बारे में सिल्वर ज्वेलरी दोस्तों सिल्वर ज्वेलरी के आर्टिस्ट द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सबसे फेमस टेक्नीक है फिलीग्री वर्क यह एक इंट्रीकेट मेटल वर्क टेक्नीक होती है जिसका इस्तेमाल ज्वेलरी या और भी छोटे-छोटे मेटल वर्क में किया जाता है ओड़ीशा को वहां के सिल्वर एंकलेट के लिए जाना जाता है जिनको पेनरी या पेजमैन में सिल्वर से बुने हुए यूनिक ऑना मेंट्स होते हैं जिन्हें गुंची कहा जाता है कर्नाटका के बिद्र विलेज में किया जाने वाला बिद्र वर्क अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है इसमें सिल्वर का इस्तेमाल एक डार्क बैकग्राउंड में सिल्वर को जड़ कर किया जाता है आइए अब क्ले और पोट्री वर्क की तरफ चलते हैं जिसके बारे में ऐसा बताया जाता है कि इंसानों द्वारा बनाए जाने ने वाला सबसे पुराना आर्ट है यह क्ले एंड पोट्री वर्क दोस्तों पोट्री को लिरिक ऑफ हैंडीक्राफ्ट्स कहा जाता है क्योंकि इसको एक पोएटिक कंपोजिशन में मोल्ड किया जाता है पोट्री का अर्लीस्ट एविडेंस हमें मेहरगढ़ से मिलता है जो पाकिस्तान में लोकेटेड एक लिथिक साइट है एंसेट पीरियड की सबसे फेमस पोट्री पेंटेड ग्रेवेयर पोट्री है जो टिपिकली ग्रे कलर में हुआ करती थी और वैदिक पीरियड यानी 1500 से 600 बीसी के बीच प्रे वेलेंट थी कंट्री के कुछ पार्ट्स में हमें रेड एंड ब्लैक पोटरी के एविडेंसेस भी मिलते हैं जिनको 1500 से 300 बीसी के बीच रखा जाता है इनको वेस्ट बंगाल के लार्ज पार्ट्स में पाया गया है इसके अलावा नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड वेयर भी एंसेट पीरियड में फेमस थे इसको दो फेसेस में बांटा जाता है पहला 700 टू 400 बीसी और दूसरा 400 टू 100 बीसी यह फेजस पार्शियली मोरियन पीरियड से को इंसाइड करते हैं इंडिया के सदर्न पार्ट्स की बात करें तो वहां पर रोलेट पोट्री के कुछ अवशेष पाए गए हैं जिनको 200 से 100 बीसी के बीच का बताया जाता है अरिका मेडू पुदुचेरी में इसके सबसे ज्यादा एविडेंसेस देखने को मिले 300 से 600 एडी के बीच रहे गुप्ता पीरियड की शुरुआत में हमें कुछ नई डेकोरेटिव टेक्निक्स देखने को मिली जैसे एंबेलिश मेंट्स यानी एक तरह की डेकोरेटिव डिजाइन पेंटिंग स्टंपिंग और मोल्ड इंडो इस्लामिक ट्रेडीशंस के आने के बाद हमको ग्लेज पॉटरी देखने को मिली अभी की बात करें तो इंडिया के हर पार्ट में एक अलग तरह का क्ले वर्क फेमस है उदाहरण के तौर पर खुर्जा पोट्री जिसका ओरिजिन यूपी से होता है और यह कलरफुल और स्टर्डी होती हैं इसका इस्तेमाल हाउसहोल्ड आइटम्स बनाने के लिए किया जाता है ब्लैक पोट्री इसका ओरिजिन आजमगढ़ के यूपी में है इस पोट्री में एक डार्क टिंट यानी शेड होता है ग्लेज टाइल्स इनका ओरिजिन भी यूपी के लखनऊ डिस्ट्रिक्ट में है जिसमें ग्लेजिंग की स्पेशल टेक्निक्स का इस्तेमाल किया जाता है इनके अलावा ब्लू पोट्री कागजी पोट्री दाल गट पोट्री एटस भी हैं आगे बढ़ते हैं और देखते हैं ब्रॉन्ज क्राफ्ट्स के बारे में ब्रोंज क्राफ्ट्स दोस्तों एंट इंडिया में मेटल का यूज आर्ट के कंपैरिजन में वेपंस के लिए ज्यादा किया जाता था मेटल कास्टिंग में ब्रॉन्ज वर्क सबसे पुरानी आर्ट में से आता है जैसा कि हमें मोहन जुर दाड़ो में मिले फेमस डांसिंग गर्ल स्टैचू से पता चलता है ब्रॉन्ज कॉपर और टिन का मिक्सचर होता है और इसका अर्लीस्ट लिटरेरी एविडेंस मत्स्य पुराण में है ब्रॉन्ज क्राफ्ट प्रोड्यूस एरियाज में उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं जहां एटावा सीतापुर वाराणसी और मुरादाबाद इसके मेजर सेंटर्स हैं यहां फ्लावर पॉट्स गॉड्स और गॉडेस की इमेजेस जैसे डेकोरेटिव आइटम्स बनाए जाते हैं यूपी के बाद मेजर सेंटर्स हैं तमिलनाडु जहां पर पल्लवा चोला और पांडियन आर्ट से प्रभावित एंस स्टैच्यू बनाई जाती हैं दोस्तों अब हम ब्रीफ में देखते हैं कुछ आर्ट फॉर्म्स जैसे मेटल क्राफ्ट्स और लेदर प्रोडक्ट्स के बारे में मेटल एंड लेदर क्राफ्ट्स मेटल क्राफ्ट्स की बात करें तो इसमें आयन कॉपर बेल मेटल जिंक एटस का यूज कास्टिंग के लिए किया जाता है इसकी कुछ मेन टेक्निक्स है जैसे इन मसिंग और डमस निंग जिनकी मदद से ऑना मेंट्स बनाए जाते हैं इंग्रेविंग में एक मेटल बेस पर नक्काशी करके डिजाइंस बनाए जाते हैं राजस्थान का फेमस मोरी वर्क इसका एग्जांपल है मुरादाबाद में भी इस टेक्नीक से पॉट्स बनाए जाते हैं मंब बॉसिंग में डिजाइन बेस मेटल से ऊपर उठी रहती है और डेमस निंग में एक डार्क बैकग्राउंड में प्रेशिस मेटल्स को जड़ा जाता है इस टेक्नीक को राजस्थान के आर्टिस्ट कोफ्ता गिरी के नाम से जानते हैं लेदर क्राफ्ट की बात करें तो यह टेक्नीक लगभग 3000 बीसी से एक्जिस्टेंस में है एसिंट समय से लेकर मुगल पीरियड तक इसका यूज होता रहा है आज की बात करें तो लेदर का मेन यूज फुटवेयर बैग्स और वॉलेट्स बनाने के लिए किया जाता है लेदर का बिगेस्ट मार्केट राजस्थान है जहां पर कैमल लेदर के प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं जयपुर और जोधपुर मोजड़ी के लिए फेमस है जो कि एक तरह का वेर है यूपी के कानपुर में भी लेदर प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं महाराष्ट्र की कोल्हापुरी चप्पल्स भी फेमस लेदर प्रोडक्ट हैं इनके अलावा चेन्नई और कोलकाता भी लेदर बैग्स और फुटवेयर के मेजर सेंटर्स हैं पंजाब की जूती और बीकानेर के मनौती आर्ट भी लेदर इंडस्ट्री में फेमस है दोस्तों यह तो बात हुई इंडिया के मेन हैंडीक्राफ्ट की इन आर्ट फॉर्म्स के अलावा कुछ और आर्ट फॉर्म्स भी हैं जो इंडिया में टॉयज एंब्रॉयडरी क्राफ्ट्स टॉयज की बात करें तो इनका एविडेंस हमें हड़प्पा सिविलाइजेशन से ही देखने को मिलता है इनके लिए क्ले पेपर पेपर मेशे और पेंटेड या शाइनी वुड का इस्तेमाल किया जाता रहा है रेड वुड से बनी तिरुपति डॉल्स और सॉफ्ट वुड से बने अंबारी हाथी आंध्र प्रदेश के फेमस टॉय आर्ट हैं इसके अलावा राजस्थान असम और सदर्न इंडियन स्टेट्स भी टॉयज के लिए जाने जाते हैं अब बात करते हैं एंब्रॉयडरी की जिसमें नीडल्स का इस्तेमाल करके गोल्ड सिल्वर सिल्क या कॉटन थ्रेड से डिजाइन बनाए जाते हैं एंब्रॉयडरी आर्ट जैसे एप्लिक ओड़ीशा के पीपली विलेज में प्रैक्टिस की जाती है फुलकारी एक ऐसी टेक्नीक जिसमें फ्लावर्स बनाए जाते हैं यह पंजाब दिल्ली हरियाणा में प्रोड्यूस किए जाते हैं गोटा राजस्थान की एक टेक्नीक है जिसमें गोल्ड थ्रेड्स का यूज डिजाइन बनाने के लिए किया जाता है जरी वर्क के लिए राजस्थान के खंडेला और जयपुर फेमस है इसमें गोल्ड या सिल्वर थ्रेड से सिल्क पर वर्क किया जाता है चिकनकारी एंब्रॉयडरी लखनऊ के कल्चर और क्लॉथ मेकिंग प्रोसेस को डिफाइन करती है कश्मीर शॉल्स पर की जाने वाली काशीद एंब्रॉयडरी कश्मीर की स्पेशलिटी है औरंगाबाद की हिमरू शॉल्स और मध्य प्रदेश की महेश्वरी सारीज अपने कॉटन और सिल्क आन और गोल्डन जरी वर्क के कॉमिनेशन के लिए जानी जाती हैं गु गुजरात में मिरर वर्क एंब्रॉयडरी की जाती है जिसमें कांच के छोटे पीसे को कपड़े पर फिक्स किया जाता है अब आते हैं कंक्लूजन पर कंक्लूजन दोस्तों आज की इस कहानी में हमने इंडिया में प्रैक्टिस किए जाने वाले मेन हैंडीक्राफ्ट्स की बात की हमने जाना कि हैंडीक्राफ्ट्स इंडियन कल्चर में एशियंट समय से ही प्रैक्टिस किया जाता रहा है ब्रिटिश रूल के दौरान ट्रेडिशनल हैंडीक्राफ्ट्स इंडस्ट्री का बड़े स्केल पर डिक्लाइन देखने को मिलता है लेकिन इसके बावजूद इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स सरवाइव करने में कामयाब रहते हैं रिसेंट इयर्स में हैंडीक्राफ्ट्स की इंपॉर्टेंस उनके कल्चरल और फाइनेंशियल वैल्यूज के कारण बढ़ गई है हैंडीक्राफ्ट्स की स्मॉल स्केल इंडस्ट्री इंडियन इकॉनमी के डेवलपमेंट में एक मेजर रोल प्ले कर सकती है इसकी ज्यादातर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स या तो रूरल या फिर छोटे टाउंस में सिचुएटेड हैं और सिटीज में इनका अच्छा मार्केट पोटेंशियल है इस तरह से हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री रूरल कम्युनिटीज के लिए एक इनकम सोर्स है इंडिया में इसको कॉटेज इंडस्ट्री की कैटेगरी में रखा जाता है और पिछले कुछ सालों में यह इंडस्ट्री एक मेजर रेवेन्यू जनरेटर भी रही है अवेयरनेस और मार्केट प्रमोशन के साथ ही टेक्नोलॉजिकल सपोर्ट और ट्रेनिंग से इस इंडस्ट्री के पोटेंशियल को टैप किया जाना चाहिए जिससे ना सिर्फ हमारे कल्चर बल्कि इकॉनमी को भी प्रोत्साहन मिलेगा इंडियन म्यूजिक वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों आज की कहानी में हम इंडियन आर्ट एंड कल्चर के कल्चरल एस्पेक्ट म्यूजिक पर चर्चा करेंगे म्यूजिक किसी भी कल्चर का सोल माना जाता है और इंडिया में म्यूजिक का एक लंबा ट्रेडीशन रहा है ऐसा बताया जाता है कि नारद मुनि ने अर्थ पर म्यूजिकल आर्ट को इंट्रोड्यूस किया था इंडस वैली सिविलाइजेशन की साइट्स में हमें सेवन फोल्डेड फ्लूट और रावन हठ जैसे इंस्ट्रूमेंट्स के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो यह दर्शाते हैं कि इस समय से ही इंडियन सबकॉन्टिनेंट में म्यूजिक का चलन था म्यूजिक के लिटरेरी सोर्सेस हमको 2000 साल पहले वैदिक टाइम्स में पहली बार देखने को मिले सामवेद में राग के सभी सेवन नोट्स खरहर प्रिया को घटते क्रम में मेंशन किया गया है गंधर्व वेद जो कि सामवेद का ही उपवेद है उसे साइंस ऑफ म्यूजिक कहा जाता है आ त्रेय अरण्यक में वीणा इंस्ट्रूमेंट का मेंशन और जेमिनी ब्राह्मण में डांस और म्यूजिक का डिस्क्रिप्शन यह क्लियर शो करता है कि इंडियन ट्रेडिशनल हजारों सालों से कल्चर का एक इंपॉर्टेंट पार्ट रहा है तो आइए कहानी की शुरुआत हम करते हैं इंडियन म्यूजिक की हिस्ट्री से हिस्ट्री ऑफ इंडियन म्यूजिक इंडिया में म्यूजिक का मेन डेवलपमेंट डिवोशनल साइट्स यानी श्रद्धा की जगहों जैसे म इत्यादि में हुआ इस टाइप के रिचुअलिस्टिक म्यूजिक जैसे संगम और जाति गण हमको लेटर वैदिक पीरियड में देखने को मिले जहां टेक्स्ट की पंक्तियों को म्यूजिकल पैटर्न में गाया जाता था म्यूजिक के सब्जेक्ट में एलेबोरेट क्लेरिफिकेशन और डिस्क्रिप्शन हमको भारत मुनि द्वारा लिखे नाट्य शस्त्र में देखने को मिला जो 200 बीसी से 200 एडी के बीच कंपाइल हुआ इस टेक्स्ट में म्यूजिक पर इंपॉर्टेंट चैप्टर्स हैं और म्यूजिक की श्रुती यानी कीज का डिस्क्रिप्शन भी इसी टेक्स्ट में किया गया है इसके अलावा नाइंथ सेंचुरी में मातंगा द्वारा लिखे गए बृहद देशी में वर्ड राग को डिफाइन किया गया 13th सेंचुरी म्यूजिकोलॉजिस्ट सारंग देव के द्वारा लिखे गए क्लासिक टेक्स्ट संगीत रत्नाकर में 264 रागास को डिफाइन किया गया है इनके अलावा 11थ सेंचुरी में नंदा द्वारा लिखे गए संगीत मकरंद और राम मात्य द्वारा लिखे गए स्वरमेला कलानिधि में भी हमको रागास के बारे में जानकारी मिलती है दोस्तों एसिंट और मिडिवल पीरियड में हमें ऐसे गुरुकुलस के एविडेंस भी मिले हैं जहां म्यूजिक सीखने के लिए स्टूडेंट्स टीचर के साथ ही रहते थे पर्जन एलिमेंट्स के आने के बाद नॉर्थ इंडियन म्यूजिक के बेसिक फीचर्स में चेंज देखने को मिला जैसे ध्रुव पद या डिवोशनल सिंगिंग ने 15th सेंचुरी के दौरान ध्रुपद स्टाइल का रूप लिया इसी तरह 177th सेंचुरी में हिंदुस्तानी म्यूजिक का एक नया फॉर्म डिवेलप हुआ खयाल स्टाइल दोस्तों इंडियन म्यूजिक को समझने के लिए और उसके अलग-अलग फॉर्म्स को जानने से पहले उसके स्ट्रक्चर के बारे में जानना जरूरी है तो आइए सबसे पहले हम इंडियन म्यूजिक की एनाट यानी स्ट्रक्चर पर नजर डालते हैं एनाट ऑफ इंडियन म्यूजिक दोस्तों इंडियन क्लासिकल म्यूजिक के तीन मेन पिलर्स हैं राग ताल और स्वर एंट समय में स्वर को वेदास के रेसिटेशन से जोड़ा जाता था लेकिन समय के साथ इसको नोट या स्केल डिग्री डिफाइन करने के लिए यूज किया जाता है नाट्य शस्त्र में भारत ने इसको 22 स्वज में डिवाइड किया लेकिन आज के हिंदुस्तानी म्यूजिक में स्वरों को सप्तक या सर्गम यानी सात स्वरों में डिवाइड किया गया है जो है सा रे ग म प धनी इंग्लिश में इसे पिच कहते हैं रागा की बात करें तो यह संस्कृत वर्ड रंज से आया है जिसका लिटरल मीनिंग है किसी पर्सन को डिलाइट या हैप्पी करना यानी रागा किसी भी मेलोडी का बेसिस होता है किसी भी पर्सनालिटी सब्जेक्ट या मूड को जगाने के लिए रागा का प्रयोग किया जाता है हर राग का बेसिक एलिमेंट होता है नोट जिनसे मिलकर राग को बनाया जाता है इसलिए नंबर ऑफ नोट्स के आधार पर राग के तीन प्रकार होते हैं धव जिसमें पांच नोट्स होते हैं धव जिसमें छह नोट्स होते हैं और संपूर्ण राग जिसमें सात नोट्स होते हैं राग के तीन मेजर टाइप्स होते हैं शुद्ध राग जो कि प्योर राग होता है जैसे कि आप नाम से समझ सकते हैं इस राग में किसी दूसरे राग का मिक्सचर नहीं होता छाया अलग राग जिसमें दो रागास का मिक्सचर होता है और यदि किसी कमप पोजीशन में दो से ज्यादा रागास को मिक्स किया जाए तो उसको संकीर्ण राग कहा जाता है बढ़ती हुई नोट्स को आरोह कहा जाता है जहां हर नोट पिछली नोट से हाई होती है और घटती हुई नोट्स को अवरोह कहा जाता है यह तो हुआ टेक्निकल डिस्क्रिप्शन हिंदुस्तानी म्यूजिक की अगर बात करें तो इसमें छह मेन रागास होते हैं जो टाइम और सीजन पर बेस्ड होते हैं और हर राग एक इमोशन को जागृत करता है यह छह राग हैं भैरव जो डॉन में बजाया जाता है और हर सीजन के लिए है हिंडोल मॉर्निंग में स्प्रिंग सीजन का राग है दीपक नाइट के लिए समर में बजाया जाता है मेघ लेट नाइट में रेनी सीजन में बजाया जाता है श्री इवनिंग के समय और विंटर सीजन के लिए होता है और मालकोश जो कि मिडनाइट में विंटर सीजन में बजाया जाता है दो दोस्तों राग के कुछ कंपोनेंट्स भी होते हैं यह है रस थाट और समय जैसा कि हमने देखा कि राग परफॉर्मर और ऑडियंस दोनों में ही एक इमोशनल रिस्पांस को जागृत करता है उत्पन्न हुए इन इमोशंस को रस कहा जाता है यह रस नौ प्रकार के होते हैं जिन्हें नौ रस कहा जाता है यह है श्रृंगार श्रृंगार रस जो लव को जागृत करता है हास्य ह्यूमर लाफ्टर के लिए करुणा पैथ यानी हौसले के लिए रौद्र एंगर के लिए भयानक हॉरर के लिए वीर ब्रेवरी के लिए अद्भुत वंडर के लिए विभ डिसग के लिए और शांत पीस के लिए इनके अलावा एक भक्ति रस भी होता है जो ईश्वर के लिए डिवोशन का प्रतीक होता है रस के बाद अगला कंपोनेंट है थाट जो एक ऐसा सिस्टम है जिसमें रागास को अलग-अलग ग्रुप्स में क्लासिफाई किया जाता है आखिरी कंपोनेंट है समय जिसमें दिन के समय के हिसाब से राग को परफॉर्म किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कोई भी राग तभी इफेक्टिव होता है जब उसे एक पर्टिकुलर समय में गाया जाए दोस्तों यहां तक हमने राग और स्वर को समझा इंडियन म्यूजिक के स्ट्रक्चर में आखिरी पार्ट है ताल ताल किसी कंपोजीशन की बीट्स की रिदमिक ग्रुपिंग को कहा जाता है यह तीन से लेकर 108 बीट्स के बीच हो सकती हैं म्यूजिक के टाइम को मेजर करने के लिए ताल का यूज किया जाता है जिसे म्यूजिकल मीटर बोला जाता है हिंदुस्तानी और कर्नाटक म्यूजिक में ताल अलग-अलग तरह के होते हैं ताल की एक खास बात यह है कि यह मेन म्यूजिक से इंडिपेंडेंट होता है ताल की गति यानी टेंपो को लय कहा जाता है दोस्तों यह तो बात हुई इंडियन म्यूजिक के स्ट्रक्चर की अब हम आगे बढ़ते हैं और देखते हैं इंडियन म्यूजिक के क्लासिफिकेशंस के बारे में क्लासिफिकेशन ऑफ इंडियन म्यूजिक इंडियन सबकॉन्टिनेंट में कई तरह के म्यूजिक आज चलन में है जो अलग-अलग ग्रुप्स को बिलोंग करते हैं कुछ क्लासिकल म्यूजिक के करीब हैं और कुछ ग्लोबल म्यूजिक के साथ एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं रीसेंट समय में क्लासिकल और नए म्यूजिक जैसे पॉप जैज एट्स का फ्यूजन क्रिएट करने का ट्रेंड भी शुरू हुआ है इंडियन म्यूजिक को चार कैटेगरी में क्लासिफाई किया जाता है पहला है क्लासिकल म्यूजिक जिसमें दो टाइप्स हैं हिंदुस्तानी स्टाइल और कर्नाटिक स्टाइल दूसरा है फोक म्यूजिक तीसरा है क्लासिकल और फोक म्यूजिक का फ्यूजन जिसके चार टाइप्स हैं सुगम संगीत रविंद्र संगीत हवेली संगीत गण संगीत चौथा और आखरी है मॉडर्न म्यूजिक जिसमें आता है रॉक म्यूजिक पॉप म्यूजिक ब्लू म्यूजिक ट्रांस म्यूजिक जैज म्यूजिक और साइकेड म्यूजिक आइए इन सभी म्यूजिकल क्लासिफिकेशंस के बारे में एक-एक करके जानते हैं शुरू करते हैं क्लासिकल म्यूजिक से जिसमें समय के साथ दो डिस्टिंक्ट स्कूल्स इवॉल्व हुए हिंदुस्तानी म्यूजिक जो इंडिया के नॉर्दर्न पार्ट्स में प्रैक्टिस किया जाता है और कर्नाटक म्यूजिक जो इंडिया के सदन पार्ट्स में प्रैक्टिस किया जाता है सबसे पहले देखते हैं हिंदुस्तानी म्यूजिक और उसके अलग-अलग टाइप्स के बारे में हिंदुस्तानी म्यूजिक वैसे तो दोनों ही म्यूजिक टाइप्स यानी कर्नाटक और हिंदुस्तानी म्यूजिक की हिस्टोरिकल रूट्स भारत के नाट्यशास्त्र से शुरू हुई लेकिन 14th सेंचुरी में यह दोनों डायवर्ज हो गए हिंदुस्तानी ब्रांच में म्यूजिकल स्ट्रक्चर और इंप्रोवाइजेशन की पॉसिबिलिटीज पर फोकस किया जाता है हिंदुस्तानी ब्रांच ने शुद्ध स्वर सप्तक यानी ऑक्टेव ऑफ नेचुरल नोट्स को अडॉप्ट किया किसी दो नोट्स के बीच के इंटरवल को ऑक्यूपाइड होती हैं जिनको ऑक्टेव कहा जाता है दोस्तों हिंदुस्तानी म्यूजिक में 10 मेन सिंगिंग स्टाइल्स होती हैं जो है ध्रुपद धमार होरी खयाल टप्पा चतुरंग राग सागर तराना सरगम और ठुमरी इनमें से कुछ मेजर स्कूल्स के बारे में जानना जरूरी है शुरू करते हैं ध्रुपद से ध्रुपद स्टाइल को हिंदुस्तानी क्लासिकल म म्यूजिक का ओल्डेस्ट और ग्रांडेस्ट स्टाइल कहा जाता है जिसका मेंशन हमें नाट्यशास्त्र में भी देखने को मिलता है इसका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ध्रुव और पद जो यह दर्शाता है कि इसमें पोएट्री और उसको गाने का तरीका दोनों ही फीचर्स मिले हुए हैं भले ही म्यूजिक स्टाइल के तौर पर 13th सेंचुरी में यह एस्टेब्लिश हुआ लेकिन अपने पीक पर यह एंपरर अकबर के समय पहुंचा अकबर ने म्यूजिकल मास्टर्स जैसे गोपाल दास स्वामी हरिदास और तानसेन को पेट्रनाइजिंग सेन को मुगल कोर्ट के नवरत्नों में जगह मिली मिडिवल पीरियड में यह एक मेजर फॉर्म ऑफ सिंगिंग के रूप में उभरा लेकिन 18 सेंचुरी के बाद इसका डिक्लाइन होना शुरू हुआ ध्रुपद म्यूजिक एक पोएटिक फॉर्म है जिसमें प्रेजेंटेशन स्टाइल काफी एक्सटेंडेड होती है और राग को प्रेसा और ओवर्ट फॉर्म में इलब किया जाता है ध्रुव का अर्थ होता है अनमूविंग यानी रुका हुआ इसका मतलब है कि इसमें स्वर यानी नोट कला यानी टाइम और शब्द यानी टेक्स्ट एक जगह पर फिक्स कर दिए जाते हैं ध्रुपद म्यूजिक आलाप से शुरू होता है जिसमें वर्ड्स का यूज नहीं किया जाता आलाप के बाद ध्रुपद शुरू होता है और पखावज और तानपुरा इंस्ट्रूमेंट्स प्ले किया जाता है इसमें संस्कृत सिलेबल्स का यूज किया जाता है और यह दो लोगों के द्वारा परफॉर्म किया जाता है ध्रुपद सिंगिंग को वाणज के आधार पर चार फॉर्म्स में फरदर डिवाइड किया जा सकता है डागरी घराना जो डागर फैमिली द्वारा परफॉर्म किया जाता है इसमें आलाप पर एमफसिस दिया जाता है डागर्स मुस्लिम होते हुए हिंदू गॉड्स और गॉडेस के ऊपर लिखे गाने गाते हैं जयपुर के गुंडेचा ब्रदर्स इसके अच्छे एग्जांपल्स हैं दरभंगा घराना इसमें खादर वाणी और गौहर वाणी में गाया जाता है यह घराना मलिक फैमिली से जुड़ा हुआ है राम चतुर मलिक प्रेम कुमार मलिक और सियाराम तिवारी इसके परफॉर्मिंग मेंबर्स हैं बेतिया घराना इस घराने में नोहर और खंद्र वाणी में ध्रुपद परफॉर्म किया जाता है मिश्र फैमिली के द्वारा इसको गाया जाता है इंद्र किशोर मिश्रा इसको रेगुलरली परफॉर्म करते हैं ध्रुपद के बाद अगला हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक फॉर्म है खयाल खयाल एक पर्जन वर्ड है जिसका मतलब है आईडिया या इमेजिनेशन इस स्टाइल के ओरिजिन का श्रे अमीर खुसरो को दिया जाता है ख्याल दो से आठ लाइंस तक के शॉर्ट सोंग्स पर बेस्ड होता है खयाल कंपोजिशन को बंदिश भी कहा जाता है 15 सेंचुरी के रूलर सुल्तान मोहम्मद शारकी ने इस स्टाइल को सबसे बड़ा पेटनेट दिया खयाल में आलाप की जगह तान का इस्तेमाल किया जाता है जिसका टेंपो आलाप से ज्यादा होता है और यही इसका यूनिक फीचर है खयाल की यूजुअल थीम रोमांटिक नेचर की होती है जिसमें इवन डिवाइन क्रिचर्स गॉड या किंग को प्रेज के लिए भी गाया जाता है लॉर्ड कृष्णा के लिए एक्सेप्शनल ख्याल कंपोजिशन की जाती हैं इसके पांच घराने हैं ग्वालियर घराना जिसमें मेन फोकस मेलोडी और रिदम पर होता है नाथू खान और विष्णु पालु स्कर इसके पॉपुलर परफॉर्मर है किराना घराना जो यूपी के किराना टाउन में बेस्ड है गोपाल इसके फाउंडर हैं लेकिन इसकी पॉपुलर का रियल क्रेडिट अब्दुल करीम खान और अब्दुल वाहिद खान को जाता है प्रेसा इज ट्यूनिंग और नोट्स के एक्सप्रेशन के लिए इसको जाना जाता है इसके फेमस सिंगर्स हैं पंडित भीम सेन जोशी और गंगूबाई हंगल आगरा घराना फैयाज खान ने इस घराने को रिवाइव किया जिसके बाद इसको रंगीला घराना भी कहा जाता है यह घराना खयाल और ध्रुपद स्टाइल का ब्लेंड यानी मिक्सचर है मोहसीन खान नियाजी और विजय किचलू इसके फेमस एक्सपर्स यानी विस्तारक हैं पटियाला घराना पटियाला के महाराजा की स्पांसर शिप में यह स्टाइल 19th सेंचुरी में डिवेलप हुआ इसमें ग्रेटर रिदम और इमोशंस पर स्ट्रेस दिया जाता है साथ ही इंट्रीकेट तांस और अलंकार को यूज भी किया जाता है बड़े गुलाम अली खान साहिब इसके सबसे वेल नोन कंपोजर थे जो हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक के ग्रेटेस्ट वोकल लिस्ट में से एक है भेंडी बाजार घराना 19th सेंचुरी में इसका ओरिजिन हुआ इसमें सिंगर्स को अपनी ब्रेथ यानी सांस को लंबे समय तक कंट्रोल करने के लिए ट्रेन किया जाता था इसका एक यूनिक फीचर यह है कि इसमें कुछ कर्नाटिक रागास का इस्तेमाल भी किया जाता है हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक में तीसरा इंपॉर्टेंट स्टाइल है तराना स्टाइल इस स्टाइल में रिदम एक क्रुशल रोल प्ले करता है इसमें शॉर्ट मेलोडी को कई बार रिपीट किया जाता है अलग-अलग वेरिएशन और इलाबेन से इसमें कई वर्ड्स का इस्तेमाल भी होता है जिनको फास्ट टेंपो में गाया जाता है इस समय दुनिया के फास्टेस्ट तराना सिंगर हैं पंडित रतन मोहन शर्मा जो कि मेवाती घराना से हैं उनको तराना के बादशाह का टाइटल भी दिया गया है दोस्तों हिंदुस्तानी म्यूजिक में एक सेमी क्लासिकल स्टाइल भी है जो क्लासिकल स्टाइल की तरह ही स्वर यानी नोट पर बेस्ड होता है लेकिन इसमें राग के लाइटर वर्जंस का यूज किया जाता है जैसे भोपाली या मालकोश इसके साथ ही इसमें ताल का भी लाइटर वर्जन और मध्यम या ध्रु लय का यूज किया जाता है यानी ये टेंपो में थोड़ा फास्ट होते हैं इसमें भाव और लिरिक्स पर एमफसा इज किया जाता है ठुमरी टप्पा और गजल कुछ सेमी क्लासिकल हिंदुस्तानी म्यूजिक के टाइप्स हैं आइए ब्रीफ में इनके बारे में जान लेते हैं शुरू करते हैं ठुमरी से जिसमें मिक्स्ड रागास का इस्तेमाल किया जाता है इसमें कंपोजिशंस या तो रोमांटिक या डिवोशनल होती हैं यह स्टाइल भक्ति मूवमेंट से इतना इन्फ्लुएंस था कि जनरली सभी कंपोजिशंस लॉर्ड कृष्णा के लिए लव और डिवोशन शो करने के लिए होते हैं इसके कंपोजिशन जनरली हिंदी या अवधि डायलेक्ट या ब्रिज भाषा डायलेक्ट में होते हैं और यूजुअली फीमेल वॉइस में गाए जाते हैं ठुमरी भी दो प्रकार की होती हैं पूर्वी ठुमरी जिसको स्लो टेंपो में गाया जाता है और पंजाबी ठुमरी जिसको फास्ट टेंपो में गाया जाता है ठुमरी के मेन घराने हैं बनारस और लखनऊ बेगम अख्तर ठुमरी की एक मशहूर गायिका है ठुमरी के बाद बात करते हैं टप्पा के बारे में इस स्टाइल में रिदम एक इंपॉर्टेंट रोल प्ले करता है यह स्टाइल नॉर्थ वेस्ट इंडिया के कैमल राइडर्स के फोक सॉन्ग से ओरिजनेट हुआ लेकिन क्लासिकल वोकल स्पेशलिटी के रूप में पहचान मुगल एंपरर मोहम्मद शाह की कोर्ट में मिली जल्दी-जल्दी फ्रेजस को मोड़ना इस स्टाइल का एक यूनिक फीचर है आज यह स्टाइल एक्सटिंक्ट होती जा रही है मिया सोड़ी पंडित लक्ष्मण राव ऑफ ग्वालियर और शन्नो खुराना इसके कुछ चुनिंदा विस्तारक हैं सेमी क्लासिकल स्टाइल में नेक्स्ट है गजल जो एक पोएटिक फॉर्म है और इसमें रिदमिक कपलेट्स का यूज किया जाता है ऐसा बताया जाता है कि इसका ओरिजिन 10थ सेंचुरी के दौरान ईरान में हुआ इस्लामिक सल्तनत और सूफी सेंट्स के माध्यम से इसका विस्तार 12थ सेंचुरी में हुआ गजल एक ऐसा पोएटिक एक्सप्रेशन है जो लॉस और पेन के होते हुए भी लव की प्रेजेंस को शो करता है एक गजल कभी भी 12 अार यानी कपलेट से ज्यादा नहीं हो सकती ट्रेडिशनल गजल का सिर्फ एक ही सब्जेक्ट हुआ करता था लव जो याद गॉड के लिए या किसी ह्यूमन के लिए भी हो सकता है शुरुआत में गजल्स सिर्फ एजुकेटेड अपर क्लास ही समझ पाती थी क्योंकि इसमें लिरिक्स कॉम्प्लिकेटेड होते थे समय के साथ इसमें सिंपलीफिकेशन आया जो इसको एक लार्जर ऑडियंस तक पहुंचाने में मदद करता है मोहम्मद इकबाल मिर्जा गालिब 13th सेंचुरी के रूमी 14th सेंचुरी के हाफिज और काजी नजरुल इस्लाम एटस इससे जुड़े कुछ फेमस पर्सन हैं दोस्तों यह था कंप्लीट डिस्क्रिप्शन क्लासिकल म्यूजिक के पहले प्रकार हिंदुस्तानी म्यूजिक का अब चलते हैं इसके अगले प्रकार कर्नाटक म्यूजिक की तरफ कर्नाटक म्यूजिक कर्नाटक ब्रांच एक ऐसा म्यूजिक क्रिएट करती है जिसको ट्रेडिशनल ऑक्टेव में प्ले किया जाता है जैसा कि हमने देखा कि ऑक्टेव का मतलब होता है दो नोट्स के बीच में ऑक्यूपाइड नोट्स कर्नाटक म्यूजिक कृति पर बेस्ड होता है और साहित्य या लिरिक क्वालिटी पर मेनली फोकस्ड होता है कृति एक हाईली इवॉल्वड म्यूजिकल सॉन्ग होता है जिसको एक राग और एक फिक्स्ड ताल या रिदमिक साइकिल में बांधा जाता है कर्नाटिक स्टाइल के हर कंपोजिशन में कई पार्ट्स होते हैं आइए इनके बारे में देखते हैं पल्लवी किसी कंपोजिशन की फर्स्ट या सेकंड थीमे लाइंस को पल्लवी कहा जाता है यह पोशन हर स्टेंजर किया जाता है इसको कर्नाटिक कंपोजिशन का बेस्ट पार्ट माना जाता है जिसको रागम थानम पल्लवी बोलते हैं यहां पर आर्टिस्ट के पास इंप्रोवाइजेशन के लिए अच्छा स्कोप होता है अनुपल्लवी पल्लवी को दो लाइंस फॉलो करती हैं जिनको अनुपल्लवी कहा जाता है इसको बिगिनिंग में गाया जाता है और कभी-कभी सॉन्ग के एंड में भी गाया जाता है लेकिन इसको हर स्टैंज यानी चरम के बाद रिपीट करना जरूरी नहीं है इसको किसी भी रिसाइट की बिगिनिंग में गाया जाता है ऑडियंस को रिसाइट का राग रिवील करने के लिए इसका यूज किया जाता है इसके फदर दो पार्ट्स हैं पूर्वांग यानी फर्स्ट हाफ और उत्तरा यानी सेकंड हाफ राग मलिका यह यूजुअली परफॉर्मेंस का कंक्लूजन होता है क्योंकि इसमें सिंगर इंप्रोवाइज करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होता है लेकिन हर आर्टिस्ट को ओरिजिनल थीम पर वापस भी आना होता है इनके अलावा कर्नाटक म्यूजिक के और भी कई कंपोनेंट्स होते हैं जैसे स्वर कल्पना जो कि एक इंप्रोवाइज्ड सेक्शन है और ड्रमर की मदद से मीडियम और फास्ट पेस में परफॉर्म किया जाता है कर्नाटक म्यूजिक यूजुअली मृदंगम के साथ प्ले किया जाता है मृदंगम के साथ की मेलोडी को थानम कहा जाता है और ऐसे पार्ट्स जिसमें मृदंगम नहीं होता उन्हें रागम कहा जाता है तो दोस्तों यहां तक हमने हिंदुस्तानी और कर्नाटक क्लासिकल म्यूजिक के बारे में जाना कंक्लूजन पर जाने से पहले ब्रीफ में इनके डिफरेंसेस जान लेते हैं डिफरेंसेस बिटवीन हिंदुस्तानी एंड कर्नाटिक म्यूजिक जहां एक तरफ हिंदुस्तानी म्यूजिक में अरब पर्जन और अफगान इन्फ्लुएंस है वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक म्यूजिक पोरली इंडिजन है हिंदुस्तानी म्यूजिक में कई सब स्टाइल्स भी जिसके कारण इसमें घराना डिवेलप हुए जबकि कर्नाटक म्यूजिक का सिर्फ एक स्टाइल ऑफ सिंगिंग होता है हिंदुस्तानी म्यूजिक में इंस्ट्रूमेंट्स का इंपॉर्टेंस वोकल्स जितना ही होता है जबकि कर्नाटक म्यूजिक में वोकल्स पर ज्यादा एमफसिस किया जाता है हिंदुस्तानी म्यूजिक में छह रागा होते हैं और टाइम यानी समय को स्ट्रिक्टली फॉलो किया जाता है और कर्नाटक म्यूजिक में 72 रागास होते हैं और इसमें टाइम को फॉलो करना जरूरी नहीं होता तबला सारंगी सितार और संतूर हिंदुस्तानी म्यूजिक के मेजर इंस्ट्रूमेंट्स हैं और वीणा मृदंगम और मेंडोलिन कर्नाटक म्यूजिक के मेजर इंस्ट्रूमेंट्स है फ्लूट और वायलिन दोनों ही म्यूजिक में कॉमन होते हैं दोस्तों अब आते हैं कंक्लूजन पर कंक्लूजन आज की इस कहानी में हमने डिटेल में जाना इंडियन म्यूजिक की हिस्ट्री स्ट्र और टाइप्स के बारे में इंडियन क्लासिकल म्यूजिक की रूट्स हमें वैदिक लिटरेचर से शुरू होती मिली जिसमें सामवेद और नाट्यशास्त्र सबसे इंपॉर्टेंट है क्लासिकल म्यूजिक में इमोशंस का रोल काफी बड़ा होता है इसके एक्सपीरियंस को प्रिजर्व करना बहुत इंपॉर्टेंट है क्लासिकल म्यूजिक के अलावा इंडियन म्यूजिक में फोक म्यूजिक क्लासिकल और फोक म्यूजिक का फ्यूजन और मॉडर्न म्यूजिक भी है जिनके बारे में हम इस वीडियो के सेकंड पार्ट में देखेंगे फ्यूजन ऑफ क्लासिकल इन फोक जनरली देखा जाए तो एक डिवोशनल म्यूजिक ही इन दोनों को आपस में जोड़ सकता है जहां रॉयल्टी और कॉमन पीपल एक साथ मिलकर डेटी को वशिप करते हैं और यहीं से दोनों जनरस कंबाइन होते हैं और एक फ्यूजन क्रिएट होता है इस फ्यूजन स्टाइल में भी कई स्टाइल्स हैं आइए जानते हैं उनके बारे में पहला है सुगम संगीत जो कि डिवोशनल म्यूजिक का ही एक जानरा है और क्लासिकल और फोक म्यूजिक को एक साथ जोड़ता है कुछ पुराने म्यूजिकल फॉर्म्स जैसे प्रबंध संगीत और ध्रुव पद से यह प्रभावित है जो अपने आप में डिवोशनल म्यूजिक हुआ करते थे इस कैटेगरी की कुछ सब कैटेगरी भी हैं आइए ब्रीफ में देखते हैं उनके बारे में भजन जो कि नॉर्थ इंडिया की सबसे पॉपुलर डिवोशनल सिंगिंग है इसका ओरिजिन भक्ति मूवमेंट से हुआ जहां गॉड के को सेंट्स हिम्स के माध्यम से विस्तार करते हैं इसमें लिरिक्स को सिंपल मेलोडी में सेट किया जाता है और जनरली एक या एक से ज्यादा राग में गाया जाता है गॉड एंड गॉडेस की लाइफ और महाभारत और रामायण इसके पॉपुलर सब्जेक्ट्स हैं भजनस में चिमटा ढोलक ढफल और मंजीरा जैसे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स का यूज काफी प्रख्यात है मिडिवल पीरियड के कुछ फेमस एक्सपर्स थे तुलसीदास मीराबाई सूरदास कबीर एटस आज भजनस को लोग एक साथ मिलकर टेंपल्स में या किसी तरह के फंक्शंस में गाया करते हैं अनूप जलोटा और अनुराधा पौडवाल इसके कुछ फेमस सिंगर्स हैं शबद सुगम संगीत का अगला प्रकार है जो सखि के राइज के साथ गुरुद्वारा में सिख गुरुस के डिवोशन में गाया जाता था हिस्टोरियंस का मानना है कि शब्द को पॉपुलर गुरु नानक और उनके डिसाइल्स ने किया आज देखा जाए तो शबद सिंगिंग के तीन टाइप्स हैं राग बेस्ड शबद सिंगिंग ट्रेडिशनल शबद जिसका मेंशन आदि ग्रंथ में है और आखिरी है लाइटर वंस जिसमें कोई प्रॉपर रूल्स या रागास फॉलो नहीं किए जाते सुगम संगीत में अगला है कवाली जो कि फिर से एक डिवोशनल म्यूजिक है जिसे अल्लाह या प्रोफेट मोहम्मद या किसी भी फेमस इस्लामिक सेंट या सूफी के प्रेज में गाया जाता है इसको एक सिंगल राग में कंपोज किया जाता है और जनरली उर्दू पंजाबी या हिंदी में लिखा जाता है इसके अलावा कुछ ब्रिज और अवधि वर्ड्स का यूज भी किया जाता है इनको सूफी श्राइन में गाया जाता है कव्वाली को यूजुअली सोलो या फिर एक ग्रुप में गाया जाता है जिसमें दो लीड सिंगर्स होते हैं और आठ मेंबर्स की टीम होती है म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स जैसे तबला ढोलक और हार्मोनियम का यूज किया जाता है इंटेंसिटी या टेंपो धीरे-धीरे बिल्ड अप होता है जो यह दर्शा है कि डेवो ट्रांसिड यानी अदर वर्ल्डली स्टेज पर पहुंच चुका है ऐसा कहा जाता है कि अमीर खुसरो से कवाली का ओरिजिन हुआ लेकिन यह बात अभी डिस्प्यूटेड है कुछ मेजर कवाल हैं साबरी ब्रदर्स नुसरत फतेह अली खान अजीज वारसी एटस दोस्तों यह तो बात हुई सुगम संगीत की फ्यूजन में अगली कैटेगरी है रविंद्र संगीत जो कि बंगाल में म्यूजिक कंपोजिशन का सबसे फेमस फॉर्म है इसमें नोबेल लॉरेट रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा प्रोड्यूस किए गए म्यूजिक को रीक्रिएट किया जाता है रविंद्र संगीत क्लासिकल एलिमेंट्स और बंगाली फोक ट्रेस का एक मिक्सचर है इस संगीत की कई थीम्स हैं जैसे एक सच्चे ईश्वर की भक्ति नेचर और उसकी सुंदरता के प्रति डिवोशन और लाइफ का सेलिब्रेशन पेट्रियट जम भी इस संगीत का एक इंपॉर्टेंट इमोशन है सुगम संगीत में थर्ड कैटेगरी है गान संगीत जो कि एक ऐसा फ्यूजन म्यूजिक है जिसको एक बड़ी संख्या में कोरस या ग्रुप्स में गाया जाता है पेट्रियोटिक फीलिंग के लिए गाना इसका सबसे कॉमन फॉर्म है सोसाइटी में हो रही मैल प्रैक्टिसेस के प्रोटेस्ट में भी सोंग्स गाए जाते हैं जनरली इसमें किसी ना किसी सोशल मैसेज का प्रचार किया जाता है जैसे वमन और चिल्ड्रन के एक्सप्लोइटेशन को रोकना हमारा नेशनल सॉन्ग वंदे मातरम इसका सबसे पॉपुलर एग्जांपल है जिसको नेशन के प्रेज के लिए गाया जाता है सुगम संगीत में फोर्थ और लास्ट कैटेगरी है हवेली संगीत जो कि मोस्टली राजस्थान और गुजरात में डिवेलप हुआ पर आज कंट्री के कई पार्ट्स में दिखाई देता है ओरिजनली इसको टेंपल प्रेमिसेस में गाया जाता था लेकिन आज इसको टेंपल के बाहर भी गाया जाता है करेंटली इसको पुष्टि मार्ग संप्रदाय कम्युनिटी द्वारा प्रैक्टिस किया जाता है दोस्तों यह था क्लासिकल और फोक म्यूजिक के फ्यूजन फॉर्म का एक छोटा सा डिस्क्रिप्शन इसके बाद इंडियन म्यूजिक में हम मॉडर्न म्यूजिक पर चर्चा करेंगे और देखेंगे उसके टाइप्स और फीचर्स के बारे में मॉडर्न म्यूजिक दोस्तों मॉडर्न म्यूजिक के बारे में तो आप बखूबी जानते ही हैं मॉडर्न म्यूजिक में किसी भी ट्रेडिशनल कन्वेंशन जैसे रिदम मेलोडी एटस पर पूरी तरह से फ्रीडम होती है आर्टिस्ट किसी भी तरह से म्यूजिक को प्रोड्यूस करते हैं मॉडर्न म्यूजिक में सबसे पहला है रॉक म्यूजिक इंडियन सबकॉन्टिनेंट के रॉक म्यूजिक को इंडियन रॉक कहा जाता है जहां पर इंडियन म्यूजिक के एलिमेंट्स को मेन स्ट्रीम रॉक म्यूजिक में मिलाया जाता है इंडिया सेंट्रिक होते हुए भी यह म्यूजिक ग्लोबल रॉक म्यूजिक के एलिमेंट्स को रिटेन करता है इंडिया के रॉक सिंगर्स में सबसे पहली सिंगर थी उषा थुपकुलगुडेम थे एक इंटरेस्टिंग बात यह भी है कि ना सिर्फ वेस्टर्न रॉक म्यूजिक ने इंडियन रॉक को इन्फ्लुएंस किया बल्कि इंडियन क्लासिकल म्यूजिक ने भी वेस्टर्न रॉक को कई माइनों में इन्फ्लुएंस किया रॉक म्यूजिक के बाद अगला है जैज इंडिया में जैज म्यूजिक का ऑरिजिन 1920 में बम्बे अफ्रीकन अमेरिकन जैज म्यूजिशियंस के द्वारा हुआ धीरे-धीरे यह म्यूजिक हिंदी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री में नजर आने लगा मॉडर्न म्यूजिकोलॉजिस्ट की माने टू 1930 से 1950 के बीच का पीरियड इंडिया में जैज म्यूजिक का गोल्डन एज था यूएसए में हो रहे रेशल डिस्क्रिमिनेशन को अवॉइड करने के लिए कई ब्लैक म्यूजिशियंस इंडिया आए जैसे लियोन एबी क्रिकेट स्मिथ क्रीटन थॉमसन एटस जैज और इंडियन क्लासिकल म्यूजिक के बीच कुछ सिमिलरिटीज हैं जिसमें एक यह है कि दोनों ही म्यूजिक में इंप्रोवाइजेशन इवॉल्व होता है म्यूजिशियंस ने इसको म्यूजिक फॉर्म्स के बीच कोलैबोरेशंस हुए जिससे एक नए म्यूजिक जानरा का डेवलपमेंट हुआ जिसको इंडो जैज बोला गया रवि शंकर जॉन कोल्टन एटस इस फ्यूजन के पायनियर्स माने जाते हैं मॉडर्न म्यूजिक में आखिरी डिस्कशन हम करेंगे पॉप म्यूजिक के बारे में पॉप म्यूजिक में इंडियन एलिमेंट्स के कॉमिनेशन को हम इडी पॉप या इवन हिंदी पॉप के नामों से कैटेगरी करते हैं इंडियन पॉप म्यूजिक को 1990 के शुरुआती दौर में फेमस पॉप सिंगर अलीशा चिनाई ने फदर पॉपुलर किया इंडियन पॉप म्यूजिक मोस्टली इंडियन फिल्म इंडस्ट्री से ही निकल कर आता है दोस्तों अब आते हैं कंक्लूजन पर इंडियन म्यूजिक की इस टू पार्ट स्टोरी में हमने इंडियन म्यूजिक के बारे में डिटेल में देखा हमने देखा कि किस तरह इंडिया में म्यूजिक की रूट्स एंट टाइम से ट्रेस की जा सकती हैं म्यूजिक के डेवलपमेंट का यह प्रोसेस एक अन एंडिंग प्रोसेस है जो आज भी इवॉल्व हो रहा है आज के दौर में ऐसे इंस्टीट्यूशंस राइज हो रहे हैं जो स्टूडेंट्स को और मासस को इस म्यूजिकल आर्ट से परिचित करा रहे हैं और यही कारण है कि इंडियन क्लासिकल म्यूजिक आज भी रेलीवेंट बना हुआ है यही नहीं इंडियन क्लासिकल म्यूजिक ना सिर्फ इंडियन मॉडर्न म्यूजिक बल्कि दुनिया में सभी तरह के म्यूजिकल फॉर्म्स को इन्फ्लुएंस कर रहा है दोस्तों हमारी इस धरोहर को प्रिजर्व करना हमारी जिम्मेदारी बन जाती है म्यूजिक की स्टडी ना सिर्फ हमें हमारे कल्चर से परिचित कराती है बल्कि हमारे अंदर के क्रिएटिव पोटेंशियल को भी उजागर करती है स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल इंडियन क्लासिकल डांस फॉर्म्स वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों हमारे भारत में प्राचीन काल से ही नृत्य की एक समृद्ध और महत्त्वपूर्ण परंपरा रही है इसीलिए नृत्य का इंडियंस के धार्मिक और सामाजिक जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान शुरू से रहा है इसी इंपॉर्टेंस को देखते हुए आज हम बात करने वाले हैं इंडियन क्लासिकल डांस फॉर्म्स यानी भारतीय शास्त्रीय नृत्य की आज हम विस्तार से समझेंगे कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य क्या होता है कौन-कौन से होते हैं क्यों यह नृत्य परफॉर्म किए जाते हैं और इनकी क्या-क्या विशेषताएं हैं सबसे पहले यह समझते हैं कि आखिर जो यह टर्म है क्लासिकल उसका मतलब क्या होता है क्लासिकल का हिंदी में अर्थ है शास्त्रीय मतलब जो हमारे शास्त्रों में मेंशन हो यानी कि एसिएंट टेक्स्ट में उनके बारे में वर्णन किया गया हो अब जाहिर है कि आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि शास्त्रीय नृत्यों के बारे में इतनी डिटेल में हमें कैसे पता चला तो दोस्तों आपके इस प्रश्न का उत्तर है कि अलग-अलग पीरियड्स में जो भी इंसक्रिपिंग लिटरेरी सोर्सेस स्कल्पचर्स पेंटिंग्स राजाओं और कलाकारों की वंशावली एट्स मिले वह सब मिलकर भारत में होने वाले अलग-अलग प्रकार के नृत्यों के साक्ष यों के रूप में माने गए हैं लेकिन दोस्तों भारत मुनि द्वारा लिखित नाट्य शस्त्र नृत्यों की विशेषताओं को स्थापित करने के लिए सबसे प्रमुख सौस माना गया है और आपको यह भी बता दें कि जो भी समकालीन शास्त्रीय नृत्य के रूप में है वह सब 12थ सेंचुरी से 19 सेंचुरी तक किए गए म्यूजिकल प्लेज से विकसित हुए हैं आइए अब हम भारतीय नृत्यों के कुछ बुनियादी पहलुओं को समझते हैं इन नृत्यों के दो प्रमुख पहलू होते हैं पहला लास्य इसमें ग्रेस होता है भाव होता है और रस होता है यह एक कला के रूप में नृत्य के फेमिनिन फीचर्स का प्रतीक है और दूसरा तांडव इसमें कुछ मूवमेंट्स होते हैं और लय होती है यह एक नृत्य के मेल फीचर्स का प्रतीक होता है आइए दोस्तों अब हम शास्त्रीय नृत्य के कंपोनेंट्स और इसमें मजूद प्रमुख रस के बारे में जानते हैं कंपोनेंट्स एंड रसेस शास्त्रीय नृत्य के अंदर तीन मुख्य भाग होते हैं जिसमें पहला है नाट्य यह डांस का नाटकीय तत्व होता है जिसमें कैरेक्टर्स की नकल की जाती है दूसरा भाग होता है नृत्य इसमें डांस के मूवमेंट्स के मूल रूप समाहित होते हैं और आखिरी भाग होता है नृत्य इसके अंदर अलग-अलग मुद्रा और अलग-अलग हाव भाव समाहित होते हैं यह तो बात हुई शास्त्रीय नृत्य के अलग-अलग भागों के बारे में अगर रस की बात करें तो शास्त्रीय नृत्य में नौ तरह के रस होते हैं जिसमें पहला रस होता है श्रृंगार रस यह रस प्रेम भाव को दर्शाता है दूसरा रस होता है रौद्र रस यह रस क्रोध भाव दर्शाता है तीसरा रस होता है विभ रस यह रस घृणा भाव दर्शाता है चौथा रस वीर रस जो वीरता दर्शाता है वहीं पांचवा रस शांत रस यानी शांति और शांत चित्ता को दर्शाने वाला है अगर छठे रस की बात करें तो यह हास्य रस है जो हंसी और कॉमिक भाव को दर्शाता है सातवा रस होता है करुणा रस यह रस त्रासदी भाव को दर्शाता है आठवा रस भयानक रस डरावने भाव को दर्शाता है और आखरी रस है अद्भुत रस यह रस अद्भुत या आश्चर्य भाव दर्शाता है दोस्तों अभी तक हमने समझा कि इंडियन क्लासिकल डांसस के स्रोत कौन से थे उनके कंपोनेंट्स क्या-क्या थे कितने अलग-अलग प्रकार के रस इसके अंदर समाहित हैं आइए अब हम समझते हैं कि इन सभी प्रकार के शास्त्रीय नृत्यों में से कौन से नृत्य की क्या विशेषताएं हैं इनका उद्गम कहां से हुआ क्यों और कैसे किए जाते हैं और वह क्या दर्शाते हैं पॉपुलर क्लासिकल डांस फॉर्म्स ऑफ इंडिया वर्तमान में भारत में आठ क्लासिकल डांस फॉर्म्स को रिकॉग्नाइज किया जाता है जिसमें भरत नाट्यम कथक कथकली मोहिनी अटम कुचीपुड़ी उड़ीसी सतरिया और मणिपुरी शामिल है आइए एकएक करके इनके बारे में विस्तार से जानते हैं भारत नाट्यम यह नृत्य दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु का एक नृत्य है इस नृत्य में शरीर की गति की तकनीक और मूवमेंट्स का अध्ययन करने के लिए सबसे प्रमुख मुख सोर्सेस में से एक है नंदीकेश्वरा द्वारा लिखी हुई पुस्तक अभिनय दर्पण भरत नाट्यम नृत्य को एक हार्य के रूप में भी जाना जाता है जिसके अंदर मृतक एक ही प्रदर्शन के अंदर अलग-अलग भूमिकाएं निभाता है इस नृत्य में पांव कल्हे और बाहों के ट्रांजिशनल मूवमेंट शामिल होते हैं इसमें जो नृत होता है वो अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अपनी एक्सप्रेसिव आइज को मूव करता है और साथ ही साथ वह अपने हाथों के इशारों का इस्तेमाल भी करता है भरत नाट्यम नृत्य को परफॉर्म करते समय जो साथ में ऑर्केस्ट्रा होता है उसमें विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि मृदंगम वायलिन वीणा बांसुरी सिंबल इत्यादि इसके अलावा जो व्यक्ति इस नृत्य पाठ का संचालन करता है उसको नाट वनर कहते हैं अपने सामान्य रूप में भरत नाट्य नृत्य को सात मुख्य भागों में विभाजित किया जा जाता है जो है अलरी शब्द या शब्द वर्ण या वर्णम पाद थलना श्लोका और जाति स्वरण दोस्तों भरत नाट्यम नृत्य से जुड़ा एक इंटरेस्टिंग तथ्य यह है इस नृत्य की मुद्राओं को तमिलनाडु के बहुत ही लोकप्रिय चिदंबरम मंदिर के गोपुरम यानी गेट पर चित्रित किया गया है यह दर्शाता है कि तमिलनाडु में भरत नाट्यम की क्या वैल्यू है आज के दौर में भरत नाट्यम को जितना जाना जाता है या कभी इसके बारे में पढ़ा जाता है तो कहीं ना कहीं इसका श्रेय जाता है दो महान शख्सियतों को ई कृष्णा अयर और रुक्मिणी देवी अरुंडेल जिन्होंने भरत नाट्य मृत्य को उसकी खोई हुई लोकप्रियता और वर्तमान स्थिति तक इसको पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है तो दोस्तों दक्षिण भारत के नृत्य भरत नाट्यम को जानने के बाद अब हम चलते हैं नॉर्थ इंडिया के एक मशहूर नृत्य की तरफ जो है कथक इस शब्द का क्या मतलब है इसको कहां परफॉर्म किया जाता है इसकी विशेषता क्या है कैसे परफॉर्म किया जाता है आइए देखते हैं कथक दोस्तों कथक शब्द की उत्पत्ति कथा शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है कहानी यह मुख्य रूप से एक गांव या मंदिर में परफॉर्म किया जाता है जिसमें परफॉर्मर्स प्राचीन शास्त्रों में लिखित कहानियां सुनाया करते थे अगर इसके एवोल्यूशन की बात करें तो 15th और 16th सेंचुरी में भक्ति आंदोलन के प्रसार के साथ कथक नृत्य की एक अलग ही विधा के रूप में डिवेलप होने लगा रासलीला नामक लोक नाटकों में राधाकृष्ण की कथाओं का मंचन किया गया जिसमें लोक नृत्य को कथक स्टोरी टेलर्स के बेसिक जेस्चर के साथ जोड़ा गया दोस्तों मुगलों के शासनकाल में मुगल सम्राटों और उनके नोबल्स के सामने कथक का प्रदर्शन दरबार में किया जाता था जहां इसने अपनी वर्तमान विशेषताओं को प्राप्त किया और एक अलग शैली के साथ नृत्य के रूप में डिवेलप हुआ आगे जाकर अवध के अंतिम वाजिद अली शाह के संरक्षण में य एक प्रमुख कला के रूप में विकसित हुआ कथक नृत्य के कुछ इंपॉर्टेंट फीचर्स की बात करें तो आमतौर पर कथा की एक सोलो परफॉर्मेंस होती है वृतक अक्सर वर्सेस को पढ़ने के लिए रुकता है और उसके बाद मूवमेंट्स के माध्यम से उनका एग्जीक्यूशन करता है फुटवर्क पर अधिक ध्यान दिया जाता है मूवमेंट्स को स्किलफुली नियंत्रित किया जाता है और घुंगरू पहने नर्तक द्वारा सीधे पैर से परफॉर्म किया जाता है कथक शास्त्र नृत्य का एक मात्र रूप है जो हिंदुस्तानी या उत्तर भारतीय संगीत से जुड़ा है और जो कथक का क्लासिकल स्टाइल है उसको पुनर्जीवित किया गया है लेडी लीला सोखे ने जिनको मेनका नाम से भी जाना जाता है तो दोस्तों यह थी कुछ दिलचस्प डिटेल्स एक बहुत ही खूबसूरत नॉर्थ इंडियन क्लासिकल डांस की आइए अब आपको ले चलते हैं वापस दक्षिण भारत की ओर कथकली दोस्तों कथकली के प्रदर्शन में भारत के सभी शास्त्रीय नृत्य कलाओं की तरह विचारों को व्यक्त करने के लिए म्यूजिक वोकल परफॉर्मर्स नृत्य कला और हाथ और चेहरे के जेस्चर को एक साथ सिंथेसाइज किया जाता है हालांकि कथकली इस मायने में अलग है कि इसमें प्राचीन भारतीय मार्शल आर्ट और दक्षिण भारत के एथलेटिक ट्रेडीशन के मूवमेंट्स को भी शामिल किया गया है जहां अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य मुख्य रूप से हिंदू मंदिरों और मठों के स्कूल्स में विकसित हुए कथकली अन्य शास्त्रीय भार नृत्यों के विपरीत हिंदू रियासतों के कोर्ट्स और थिएटर्स में विकसित हुआ दोस्तों चाकिया कुटू कृष्ण अटम कूड़ी अट्टम और रामन अट्टम केरला के कुछ ऐसे रिचुअल परफॉर्मिंग आर्ट्स हैं जिनका सीधा प्रभाव कथकली के फॉर्म और टेक्नीक पर पड़ता है कथकली नृत्य संगीत और अभिनय का मिश्रण है और कहानियों को नाटकीय रूप देता है जो बहुत हद तक भारतीय एपिक से अडेप्ट है इस नृत्य कला में भारी मेकअप और शानदार कॉस्ट्यूम्स जैसे बड़े मुखौटे विशाल स्कर्ट्स और बड़े हेड ड्रेसेस का उपयोग किया जाता है नृत विशेष श्रृंगार और वेशभूषा के साथ कहानियों की भूमिकाएं जैसे कि राजा देवता या राक्षस की भूमिका निभाते हैं गायक कथा सुनाते हैं और वादक वाद्य यंत्र बजाते हैं अलग-अलग चेहरे के रंग अलग-अलग मानसिक अवस्थाओं और चरित्र को दर्शाते हैं उदाहरण के तौर पर ग्रीन कलर पन को दर्शाता है वहीं ब्लैक कलर दुष्ट के लिए इस्तेमाल करते हैं और रेड पैचेज रॉयल्टी और इवल का कॉमिनेशन माना जाता है इस नृत्य में हाथों के जेस्टर्स चेहरे के एक्सप्रेशंस और आंखों के मूवमेंट्स बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं शरीर का भार पैरों के बाहरी किनारों पर होता है जो थोड़े बेंट और कर्वड होते हैं कथकली नृत्य के सबसे प्रमुख कलाकार माने जाते हैं रमन कुट्टी नायर और कलामंडलम गोपी आइए दो दोस्तों अब चलते हैं हम आंध्र प्रदेश जहां का एक डांस फॉर्म कुचीपुड़ी बहुत ही प्रसिद्ध है कुचीपुड़ी कुचीपुड़ी आंध्र प्रदेश के कृष्णा डिस्ट्रिक्ट के एक गांव का नाम है जिसमें नृत्य नाटक की बहुत पुरानी परंपरा रही है इसे सामान्य रूप से यक्ष गान के नाम से जाना जाता है 17 सेंचुरी में यक्षगान की कुचीपुड़ी शैली की परिकल्पना सिद्धेंद्र योगी ने की थी वह अपने गुरु तीर्थ नारायण योगी जी के द्वारा गाइडेड लिटरेरी यक्ष गान ट्रेडीशन में लीन थे जिन्होंने संस्कृत में कृष्ण लीला त रंगिणी नाम से एक काव्य की रचना की थी इसे डांस ड्रामा के रूप में परफॉर्म किया जाता है यानी कि ग्रुप्स में और सोलो आइटम्स की तरह भी परफॉर्म किया जाता है कॉस्ट्यूम्स नमेंट और ज्वेलरी इस नृत्य में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं कुचीपुड़ी नृत्य के सोलो आइटम्स के कुछ प्रकार हैं मंडूक शब्द जो एक मेंढक युवती की कहानी है बाल गोपाल तरंग इसमें सर पर पानी से भरा मिट्टी का बर्तन रखकर पीतल की थाली के किनारों पर खड़े होकर नृत्य कर ताल चित्र नृत्य इसमें नाचते समय पैरों की उंगलियों से चित्र बनाए जाते हैं यामिनी कृष्ण टिक यामिनी कृष्ण मूर्ति और राजा रेड्डी कुचीपुड़ी नृत्य से जुड़े दो प्रमुख कलाकार माने जाते हैं दोस्तों हमारा अगला प्रमुख और प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है मोहिनी यटम मोहिनी अटम या मोहिनी नृत्य केरला का शास्त्रीय सोलो डांस फॉर्म है मोहिनी भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम है मोहिनी अटम के रेफरेंसेस 1709 में माड़ मंगलम नारायण नाम पुत्री द्वारा लिखी गई व्यवहार माला टेक्स्ट और बाद में कवि कुंजन नांबियार द्वारा लिखित घोष यात्रा में पाए जा सकते हैं इसे 18 से 19 सेंचुरी के समय ट्रैवन कोर के राजाओं महाराजा कार्तिक तिरुनल और उनके उत्त अधिकारी महाराजा स्वाति तिरोल द्वारा वर्तमान क्लासिकल फॉर्मेट में ढाला गया था यह नृत्य ज्यादातर सर्कुलर मूवमेंट्स नाजुक स्टेप्स और हल्के एक्सप्रेशंस के साथ लड़कियों द्वारा सोलो परफॉर्म किया जाता है मोहिनी अट्टम के मूवमेंट्स को नांगिया कुथु और फीमेल फोक नृत्य कई कोट कली और तिरुवथरा कली से उधार लिया गया है इस नृत्य में भरत नाट्यम जो ग्रेस और एलिगेंस और कथकली यानी विगर के तत्व भी हो होते हैं लेकिन यह अधिक एरोटिक लिरिकल और डेलिकेट होता है मोहिनी अट्टम के अंदर रियलिस्टिक मेकअप और साधारण ड्रेसिंग जो केरला के कसावु साड़ी में होती है उसका उपयोग किया जाता है इसमें लिरिक्स मणि प्रवाल भाषा में लिखी गई हैं जो कि मध्यकालीन दक्षिण भारत की भाषा है जो तमिल मलयालम और संस्कृत भाषा का कॉमिनेशन है इस नृत्य के प्रमुख कलाकार हैं पल्लवी कृष्णन और सुनंदा नायर दोस्तों मोहिनी यटम को समझने के बाद आइए अब हम चलते हैं उड़ीसा राज्य की ओर जहां का एक बहुत ही प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है उड़ीसी उड़ीसी नृत्य के परफॉर्मेंस के प्रमुख विषय हैं भगवान विष्णु के अवतारों की कहानियां और जयदेव के गीत गोविंद के वर्सेस सदंग लिरिक्स से सपोर्टेड एक सॉफ्ट डांस और मुद्राओं और भावनाओं के संदर्भ में भरत नाट्यम की समानताएं रखने वाला नृत्य है इसे मोबाइल स्कल्पचर भी कहा जाता है इसमें दो प्रमुख मुद्राएं शामिल हैं जिसमें पहली है त्रिभंगा जिसमें बॉडी को नेक टोसो और नीज पर डिफलेक्ट किया जाता है और दूसरी है चौक जिसमें नृत्यकला एक स्क्वेयर की नकल करने वाली पोजीशन बनाई जाती है उड़ीसी नृत्य के प्रख्यात कलाकार सोनल मान सिंह और केल चरण महापात्र माने जाते हैं आइए दोस्तों अब हम जानते हैं असम के एक बहुत ही लोकप्रिय नृत्य के बारे में सत्रीय डांस वैष्णव सेंट और साम के रिफॉर्मर शंकर देव द्वारा वैष्णव फेथ के प्रचार के एक माध्यम के रूप में 15 सेंचुरी एडी में सत्रीय नृत्य पेश किया गया था बाद में सत्रीय नृत्य एक डिस्टिंक्टिव स्टाइल के रूप में डिवेलप और एक्सपेंड हुआ अपने धार्मिक चरित्र और सत्रों यानी वैष्णव मठ या मॉनेस्ट्रीज के साथ जुड़ाव के कारण इस नृत्य शैली को क्षत्रिय नाम दिया गया है क्षत्रिय नृत्य परंपरा हस्त मुद्राओं फुटवर्क्स आहार्य म्यूजिक आदि के संबंध में स्ट्रिक्टली निर्धारित सिद्धांतों द्वारा संचालित होती है इस नृत्य परंपरा की दो अलग-अलग स्ट्रीम्स देखी जा सकती हैं जिसमें असम के पारंपरिक नाटक भावना से संबंधित प्रदर्शनों की सूची गायन भानार नाच से शुरू होकर खर मनार नाच तक इसमें शामिल है और दूसरी स्ट्रीम में आते हैं ऐसे डांस नंबर्स जो इंडिपेंडेंट हैं जैसे जैसे छाली राजगढ़िया छाली झुमुरा नाडु आदि इसमें छ की विशेषता ग्रेसफुलनेस और एलिगेंस होती है जबकि झुमरा की विशेषता विगर और मजेस्टिक ब्यूटी होती है आइए दोस्तों हम चलते हैं पूर्वोत्तर भारत की तरफ और जानते हैं मणिपुर के मणिपुरी नृत्य से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों को मणिपुरी मणिपुरी नृत्य की उत्पत्ति प्राचीन काल में हुई थी जो कि रिकॉर्डेड हिस्ट्री से पहले का नृत्य माना जाता है मणिपुर में नृत्य रिचुअल्स और ट्रेडिशनल फेस्टिवल से जुड़े हुए हैं शिव पार्वती और यूनिवर्स को बनाने वाले अन्य देवी देवता नृत्य के लेजेंड रेफरेंसेस हैं ला हराबा नृत्यों का अर्लीस्ट फॉर्म है जो मणिपुर में सभी स्टाइलाइज नृत्यों का आधार है इस नृत्य का लिटरल मीनिंग होता है मेरी मेकिंग ऑफ गॉड्स यह सॉन्ग और डांस की सेरेमोनियल ऑफि के रूप में परफॉर्म किया जाता है इसको परफॉर्म करने वाले कलाकार मायबाप कहलाते हैं जो दुनिया के क्रिएशन की थीम को रिनेक्ट करते हैं मणिपुर के लोकप्रिय रास लीला नृत्यों की उत्पत्ति 18th सेंचुरी के राजा भाग्यचंद्र के शासनकाल में हुई थी मणिपुरी नृत्य खुद में ही बहुत सारे फॉर्म्स का कलेक्शन है हालांकि सबसे लोकप्रिय फॉर्म रास संकीर्तना और थांतायर का कीर्तन रूप नृत्य के साथ होता है जिसे मणिपुर में संकीर्तन के रूप में जाना जाता है इस डांस फॉर्म में मेल डांसर्स डांस करते समय पं और खड़ताल बजाते हैं मणिपुरी डांसर्स थिएटर डिस्प्ले में रिदम को स्टैंप आउट करने के लिए घुंगरू नहीं पहनते हैं क्योंकि यह डेलिकेट बॉडी मूवमेंट्स में इंटरफेयर करता है कंक्लूजन तो दोस्तों यह थे भारत के बहुत ही प्रमुख और प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य यानी क्लासिकल डांस फॉर्म्स इस वीडियो लेक्चर में हमने इनके बारे में कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथ्य समझे यह डांस फॉर्म्स भारत की प्राचीन चीन विरासत कला और परंपरा का जीवित उदाहरण है आगे आने वाले लेक्चर में हम बात करेंगे क्लासिकल डांस के विपरीत ऐसे डांस फॉर्म्स की जो देश की लोक परंपरा से जुड़े हुए हैं यानी फोक डांस फॉर्म्स की स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल इंडियन फोक डांसस वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों पिछली वीडियो में हमने देखा था कि भारत में कितने प्रकार के शास्त्रीय नृत्य परफॉर्म किए जाते हैं और उनके महत्व को भी हमने विस्तार से समझा उसी क्रम में आगे बढ़ते हुए भारतीय नृत्यों के दूसरे प्रमुख पहलू यानी भारतीय लोक नृत्य को आज हम विस्तार से जानेंगे जैसा कि हम जानते हैं भारत तरह-तरह की संस्कृतियों और परंपराओं का देश है लोक कला लोगों के एक समूह या एक एक विशेष स्थान की आम संपत्ति होती है ओरिजनेट्स की पहचान को भले ही भुला दिया गया हो लेकिन शैली को युगों तक संरक्षित रखा गया है मूल रूप से भारतीय लोक और आदिवासी नृत्य सरल है और ऋतुओं के आगमन बच्चे के जन्म शादियों और त्यौहारों जैसे ओकेज के दौरान खुशी व्यक्त करने के लिए किए जाते हैं अधिकांश अवसरों पर नृत खुद गाते हैं और उनके साथ में वाद्य यंत्र बजाने वाले कुछ सा कलाकार भी होते हैं लोक नृत्य के प्रत्येक रूप में एक विशिष्ट कॉस्ट्यूम और रिदम होता है और कुछ वेशभूषा व्यापक गहनों और डिजाइंस के साथ बहुत रंगीन होती हैं यह सभी लोक नृत्य भारत के विविध कल्चरल टेरेन को बेहतर ढंग से जानने में मदद करते हैं राज्य या क्षेत्र की कहानियों के अनुसार प्रत्येक राज्य या क्षेत्र की अपनी लोक नृत्य परंपराएं होती हैं यह समग्र कला का एक विविध संग्रह है लोक नृत्य शास्त्रीय नृत्य के विपरीत सहज होते हैं और बिना किसी प्रोफेशनल ट्रेनिंग के स्थानीय लोगों द्वारा परफॉर्म किए जाते हैं चलिए आइए अब हम एक-एक करके भारत के कुछ बहुत ही प्रमुख और प्रसिद्ध लोक नृत्यों को थोड़ा डिटेल में समझते हैं जिसमें पहला है छाओ दोस्तों यह एक आदिवासी मार्शल आर्ट नृत्य है जो ज्यादातर ओड़ीशा झारखंड और वेस्ट बंगाल जैसे भारत के कुछ राज्यों में परफॉर्म किया जाता है इस नृत्य के तीन सब जनरस हैं जो उनकी उत्पत्ति और विकास पर आधारित हैं जैसे पहला है पुरुलिया छाऊ जो वेस्ट बंगाल में परफॉर्म किया जाता है दूसरा होता है सराई केला छाऊ जो झारखंड में ज्यादातर देखा जाता है और तीसरा होता है मयूरभंज छाव जो उड़ीसा में अधिकतर देखा जाता है दोस्तों छाऊ नृत्य सबसे अधिक वसंत उत्सव के दौरान देखा जाता है जो 13 दिनों तक चलता है और इस डांस को देखने के लिए पूरी कम्युनिटी शामिल होती है पुरुष नृत कों द्वारा रात के समय खुले स्थान में यह नृत्य किया जाता है यह नृत्य और मार्शल आर्ट्स का एक मिश्रण है जो मॉक कॉम्बैट टेक्निक्स को नियोजित करता है छाऊ नृत्य का विषय हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित है मयूर भंजय को छोड़कर नृत बाकी सभी छाऊ प्रदर्शनों के दौरान मुखौटे पहनते हैं छाऊ नृत्य एक पूर्व भारतीय शैली है जो महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों के दृश्यों के साथ-साथ स्थानीय लोक कथाओं और एब्स्ट्रेक्ट अवधारणाओं को फिर से प्रस्तुत करती हैं छाऊ नृत्य क्षेत्रीय उत्सवों विशेष रूप से वसंत ऋतु में चैत्र पर्व से निकटता से जुड़ा हुआ है दोस्तों छाव नृत्य को 2010 में यूनेस्को की रिप्रेजेंटेटिव लिस्ट ऑफ इनटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी में भी शामिल किया गया अगला लोक नृत्य है कालबेलिया दो दोस्तों यह नृत्य राजस्थान के कालबेलिया समुदाय की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक लोक नृत्य है नृत्य के मूवमेंट्स और वेशभूषा नागों के समान होती हैं इस नृत्य शैली का सबसे प्रशंसक बीन है इसे 2010 में यूनेस्को की रिप्रेजेंटेटिव लिस्ट ऑफ इनटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी यानी आईसीए में शामिल किया गया था इस नृत्य में गोल गोल घूमना होता है जो इस नृत्य को ने लायक बनाते हैं कालबेलिया से जुड़े मूवमेंट्स इसे भारत में लोक नृत्य के सबसे सेंसुअस फॉर्म्स में से एक बनाते हैं यह आमतौर पर किसी भी खुशी को सेलिब्रेट करने के लिए किया जाता है और इसे कालबेलिया संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है कालबेलिया नृत्य का एक और अनूठा पहलू यह है कि केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है जबकि पुरुष वाद्य यंत्र बजाते हैं और संगीत प्रदान करते हैं ब्लैक स्कर्ट्स में महिला लाय नृत्य करती हैं और घूमती हैं जैसे मानो वह एक सर्प की चाल की नकल करती हैं जबकि पुरुष उनके साथ खंजरी वाद्य यंत्र और पुंगी बजाते हुए चलते हैं जो पारंपरिक रूप से सांप को पकड़ने के लिए बजाया जाता है वृतक पारंपरिक टैटू डिजाइंस ज्वेलरी और स्मॉल मिरर्स और चंडी के धागे के साथ कढ़ाई वाले वस्त्र पहनते हैं कालबेलिया गीत कहानियों के माध्यम से मिथल जिकल नॉलेज का प्रसार करते हैं वो गीत कालबेलिया के काव्य कौशल को भी प्रदर्शित कर करते हैं जो सहज रूप से गीतों की रचना करने और प्रदर्शनों के दौरान गीतों को इंप्रोवाइज करने के लिए प्रतिष्ठित हैं पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित यह गीत और नृत्य एक मौखिक परंपरा का हिस्सा है जिसके लिए कोई टेक्स्ट या ट्रेनिंग मैनुअल मौजूद नहीं है दोस्तों कालबेलिया लोक नृत्य को डिटेल में समझने के बाद अब हम चलते हैं अपने अगले लोक नृत्य की तरफ जो है बहू दोस्तों बिहू एक लोकप्रिय एमीज नृत्य है जिसे पुरुषों और महिलाओं दोनों के के द्वारा ग्रुप्स में किया जाता है बिहू नृत्य के शुरुआती डिपिक्शन नाइंथ सेंचुरी के असम के तेजपुर और दर्रांग क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं बिहू का जिक्र 14 सेंचुरी के चुटिया राजा लक्ष्मी नारायण के शिलालेखों में भी पाया गया है बिहू नृत्य का नाम असम के राष्ट्रीय कार्यक्रम बहाग बिहू उत्सव से मिला है जिसे रंगाली बिहू के नाम से भी जाना जाता है जो असम के न्यू ईयर की याद दिलाता है रंगाली या बोहाग बिहू अप्रैल महीने में परफॉर्म किया जाता है कंगाली या कटी बिहू अक्टूबर महीने में परफॉर्म किया जाता है और भोगा या माघ बिहू जनवरी महीने में परफॉर्म किया जाता है तीनों में से सबसे प्रमुख रंगाली बिहू वसंत उत्सव की याद दिलाता है भोगा बिहू जिसे माग बिहू के नाम से भी जाना जाता है एक हार्वेस्ट फेस्टिवल है जिसमें सांप्रदायिक दावत शामिल होती हैं कंगाली बिहू जिसे कटी बिहू के नाम से भी जाना जाता है एक उदास दुखी घटना है जो स्क सिटी के मौसम की याद दिलाती है दोस्तों माना जाता है कि बिहू नृत्य फर्टिलिटी और प्रेम का जश्न मनाते हुए सीजनल मूड का सम्मान करता है और इसे अप्रैल के मध्य में त्यौहार के दौरान प्रदर्शित किया जाता है बिहू को बिहू नृत्य बिहू नास भी कहा जाता है और बिहू लोक संगीत को बिहू गीत के नाम से भी जाना जाता है धूमधाम और उल्लास को उजागर करने के लिए नर्तकी हों को रंगीन पारंपरिक वेशभूषा पहनाई जाती है ग्रुप फॉर्मेशन हाथों के तेज मूवमेंट्स और तेज कदमों के मूवमेंट्स यह सभी नृत्य प्रदर्शन का हिस्सा है इस नृत्य शैली की जड़ें अननोन है लेकिन इसने लंबे समय से असम के कई जातीय समूहों की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसमें कै वताज देवरीज सोनोवाल कचार चुटियास बोरोज मिसिंग रबज मोरान और बराही शामिल हैं बिहू को विस्तार से समझने के बाद अब हम चलते हैं राजस्थान के एक प्रमुख लोक नृत्य की तरफ घूमर दोस्तों घूमर जिसे गणगौर के नाम से भी जाना जाता है एक राजस्थानी लोक नृत्य है यह भील जनजाति द्वारा देवी सरस्वती की पूजा करने के लिए परफॉर्म किया जाता था और बाद में इसे अन्य राजस्थानी समुदायों द्वारा अपनाया गया यह नृत्य ज्यादातर घूंघट वाली महिलाओं द्वारा घाघरा पहनकर किया जाता है घूमर पहले राजपूताना में स्थानीय महिलाओं द्वारा किया जाता था लेकिन बाद में इसे राजपूत नोब विमेन द्वारा अपनाया गया इन नृत्य प्रदर्शनों को देखने के लिए पुरुषों को अनुमति नहीं थी राजपूत राजाओं के शासनकाल के दौरान घूमर भारतीय राज्य राजस्थान में लोकप्रिय हो गया और फिर बाद में यह नृत्य मुख्य रूप से शुभ अवसरों पर महिलाओं द्वारा किया जाने लगा राजस्थान की अलग-अलग लोकेशंस के साथ घूमर डांस फॉर्म एक डिफरेंट स्टाइल और ड्रेसिंग में थोड़ा सा वेरिएशन गेन करता है घूमर को गुजरात की सीमा से लगे डिस्ट्रिक्ट में तेज ताल पर गरबा जैसे स्टेप और ढोलपुरी ब्रज क्षेत्र में धीमी ताल पर किया जाता है इसी तरह उदयपुर कोटा बूंदी और अन्य स्थानों में वेशभूषा और नृत्य शैली में अंतर है घूमर नृत्य के बारे में कुछ तथ्य समझने के बाद आइए अब हम रुख करते हैं कर्नाटका राज्य के एक प्रमुख लोक नृत्य की तरफ जो है डोलू कुरिथा कर्नाटका का पारंपरिक नृत्य है यह नृत्य ऊर्जा से भरपूर है और प्रमुख त्यौहार और समारोह के दौरान पूरे राज्य में इसका प्रदर्शन किया जाता है यह श्री बीरालिंगेश्वरा की पूजा से जुड़ा एक लोकप्रिय लोक नृत्य है जिन्हें भगवान शिव का एक रूप माना जाता है जिनका ओरिजिन नॉर्थ कर्नाटका के कुरबा गौड़ा समुदाय के रिचुअल्स में हुआ था डोलू या ड्रम भगवान शिव से जुड़ा हुआ है जो क्रोधित होने पर अपनी आक्रामकता और उग्र नृत्य भैरव तांडव नृत्य के लिए जाने जाते हैं माना जाता है कि शिव ने अपने द्वारा मारे गए राक्षसों की स्किन से एक ड्रम बनाया था शिव के मुख्य भक्त जो कुरबा समुदाय से आते हैं वह ढोल बजाकर राक्षसों की हत्या का जश्न मनाते हैं डोलू कु निधा 10 से 12 ढोल वादकोवई का हिस्सा पुरुष और महिलाएं दोनों हो सकती हैं यह ड्रम नृत्य आमतौर पर एक सर्कुलर या सेमी सर्कुलर फैशन में किया जाता है जिसमें ड्रम होल्डर गायन और संगीत के साथ ताल में अपनी ड्रम बजाते हैं डोलू कुनिता विभिन्न मंदिर उत्सवों सांस्कृतिक कार्यक्रमों और उत्सवों का एक अभिन्न अंग है करग फेस्टिवल प्रोसेशंस मैसूरू दसरा जंबू सवारी बंगलुरु हब्बा विभिन्न टेंपल कार फेस्टिवल्स में अक्सर डोलू कुनिता प्रदर्शन शामिल होते हैं दोस्तों आइए अब हम चलते हैं भारत के अगले राज्य तमिलनाडु की ओर जहां का एक प्रमुख लोक नृत्य बहुत ही प्रसिद्ध है और वह है कोलम दोस्तों कोलम नृत्य भारत के तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में की की जाने वाली एक प्राचीन ग्रामीण लोक कला है इसे कोलनल या कोल कोलनल भी कहा जाता है कोल का अर्थ होता है एक छोटी सी स्टिक और अट्टम का अर्थ है प्ले स्टिक से किया जाने वाला नाटक या नृत्य इसका सरलतम अर्थ हो सकता है कांचीपुरम में इसका उल्लेख चय वक आर कोल अटम के रूप में मिलता है जो इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करता है कोल अटम की उत्पत्ति से जुड़ी कहानियों के अनुसार इस नृत्य की प्रासंगिकता बसवा सुर के अस्तित्व से है एक राक्षस जो अपनी शातिर और अमानवीय कृतियों के लिए कुख्यात था लेजेंड्स के अनुसार बसवा सुर पर काबू पाने के लिए हाथ में छोटी स्टिक्स लेकर कुछ युवा लड़कियों ने उसे अप्रोच किया और मंत्र मुग्ध करने वाली संगीत धुनों पर कोलटतम किया असुर इन लड़कियों की दिव्य उपस्थिति संगीत और नृत्य से अत्यधिक प्रसन्न हुआ और अपने सभी बुरे इरादों को छोड़ने का वादा किया तभी से इस घटना को दक्षिण भारत के कई ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कोल जो ठहराय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है यह नृत्य रूप तमिलनाडु के सभी भागों में प्रसिद्ध है कोल टम केवल महिलाओं द्वारा परफॉर्म किया जाता है यह लोक नृत्य लयबद्ध मूवमेंट्स गीत और संगीत का एक सम्मेलन है यह डांस फॉर्म स्थानीय ग्रामीण त्यौहारों के दौरान किया जाता है यह ना केवल दर्शकों बल्कि प्रतिभागियों को भी विविध प्रकार का मनोरंजन प्रदान करता है इस नृत्य के समूह में आठ से 40 के बीच नृत्यकला रखते हैं और एक रिदमिक बैकग्राउंड लाने के लिए उन्हें एक साथ बजाते हैं पिनल कोल टम भी इसी नृत्य का एक रूप है जिसमें स्टिक्स के स्थान पर रोप्स का प्रयोग किया जाता है यह नृत्य आंखों के लिए बहुत ही आकर्षक होता है क्योंकि इसमें विभिन्न रंगबिरंगी रोप्स का उपयोग किया जाता है कोल टम नृत्य पूरे 10 दिनों तक परफॉर्म किया जाता है जिसकी शुरुआत दिवाली के बाद अमावस्य या अमावस की रात से होती है दोस्तों कोलम नृत्य अन्य राज्यों में भी परफॉर्म किया जाता है फर्क सिर्फ इतना है कि भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है दोस्तों यह था तमिलनाडु का बहुत ही प्रमुख और खूबसूरत लोक नृत्य आइए अब हम चलते हैं अगले राज्य केरला की ओर और जानते हैं वहां के एक प्रमुख और प्रसिद्ध लोक नृत्य के बारे में पड़नी दोस्तों पड़ यानी केरला राज्य में पंपा नदी के तट पर स्थित भद्रकाली मंदिरों में की जाने वाली एक रिचुअलिस्टिक आर्ट फॉर्म है पौराणिक कथाओं के अनुसार दरका नाम के सुर को मारने के बाद भी जब देवी भद्रकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ तब भगवान शिव के सेवक भूत गानों ने उनके क्रोध को कम करने के लिए उनके सामने नृत्य प्रस्तुत किया जिससे देवी भद्रकाली शांत हुई अन्यथा उनके क्रोध के परिणाम स्वरूप पूरी दुनिया का विनाश हो जाता यहीं से इस नृत्य परंपरा की शुरुआत को माना जाता है इस घटना की याद में प्रतिभागी एरिक नट यानी सुपारी के पेड़ के पत्तों से बने मुखौटे यानी कोलम पहनकर नृत्य करते हैं कोलम बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रंग पूरी तरह से नेचुरल होते हैं वो पेड़ की लकड़ी के हरे रंग कारी मंजुल पोड़ी सिंदूर आदि से बने होते हैं पड़े अनी आमतौर पर कड़ मणिदा कोट्टंगल थरा कुन्नन थानम और दक्षिण केरला के कई अन्य मंदिरों में परफॉर्म किया जाता है पड़नी के परफॉर्मेंस में कुलम थडल का डोमिनेशन देखा जाता है कोलम एरिक नेट के पत्तों पर चित्र बनाकर बनाया गया एक मुखौटा पड़नी नर्तक इस कोलम को धारण करते हुए भक्ति भाव से रिचुअल डांस करते हैं ये कोलम आध्यात्मिक शक्तियों या देवीय चरित्रों का चित्रण है जिसमें भयानक और शानदार चेहरे के मुखौटे और प्राकृतिक पाउडर के साथ गहरे लाल और काले रंग जैसे वाइब्रेंट कलर्स में पेंटेड हेड गियर्स शामिल हैं कोलम के प्रकार हैं गणपति कोलम यक्षी कोलम पक्षी कोलम मदन कोलम कलान कोलम मरुधा को कोलम पिशाच कोलम भैरवी कोलम गंधर्व कोलम और मुकलम कोलम पड़नी अनिवार्य रूप से एक कम्यून एक्टिविटी है जिसमें ग्रामीण सक्रिय रूप से एरिक नट के कलेक्शन और कोलम को बनाने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं यह नृत्य लोगों को क्षेत्र की ऐतिहासिक सांस्कृतिक और इतिहास के साथ-साथ प्राचीन घटनाओं के बारे में भी शिक्षित करता है आइए दोस्तों अब चलते हैं कर्नाटका राज्य की तरफ और देखते हैं वहां का एक प्रमुख लोकनृत्य पटक निधा दोस्तों पटक निधा मैसौर क्षेत्र का एक प्रमुख नृत्य रूप है यह मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा परफॉर्म किया जाने वाला एक डिवोशनल डांस है पट कुनिता का मूल महत्व अन्य कुनिठा नृत्यों और नृत्य नाटकों की तरह काफी हद तक धार्मिक है हालांकि इसमें बहुत अधिक कॉमेंट्री नहीं होती और नर्तकी हों की लय और प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित किया जाता है आमतौर पर प्रत्येक प्रदर्शन में 10 से 15 लोग शामिल होते हैं इस नृत्य में में लंबे बैंबू पोल्स का उपयोग करते हैं जिन्हें पाटा के नाम से जाना जाता है और जो रंगीन रिबन से डेकोरेटेड होते हैं प्रत्येक बैंबू पोल 10 से 15 फीट के बीच लंबा होता है पोल्स को अक्सर चांदी या पीतल के छत्र के साथ सजाया जाता है यह नृत्य अपने जीवंत उत्साह के साथ एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत करता है और यह सभी धर्मों के लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है पूजा कुनिठा बेंगलुरु और मांय डिस्ट्रिक्ट में इस नृत्य शैली का एक प्रमुख संकरण है पाटा को निधा कर्नाटका राज्य का एक लोक नृत्य है जो आमतौर पर राज्य के आसपास के ग्रामीण धार्मिक समारोहों में परफॉर्म किया जाता है इसमें नरेशन का उपयोग किया जाता है लेकिन यह मामूली महत्व रखता है बैंबू के लंबे खंभों को चलाने की नर्तक हों की क्षमता सबसे अधिक ध्यान आकर्षित करती है हालांकि अतीत में कर्नाटका में पाटा कुनिता का कुछ धार्मिक महत्व था लेकिन अब इसे काफी हद तक भुला दिया गया है कंक्लूजन तो दोस्तों ये थे भारत के कुछ बहुत ही प्रमुख और प्रसिद्ध लोक नृत्य यानी इंडियन फोक डांसस इन सभी लोक नृत्यों की सांस्कृतिक महत्वता वहां के लोगों की पहचान होने के साथ ही यह लोक नृत्य इन राज्यों के निवासियों को उनकी परंपरा से जोड़ने का काम करते हैं और साथ ही समाज में एक सेंस ऑफ यूनिटी और बिलोंग ंग भी प्रदान करते हैं ये सभी डांस फॉर्म्स यकीनन भारत की प्राचीन विरासत कला और परंपरा का जीता जागता उदाहरण है और यह लोकनृत्य भारत की रिच कल्चरल डायवर्सिटी के जीते जागते सबूत भी हैं जिनको विश्व स्तर पर भी पहचान मिल चुकी है इसी वजह से इनमें से कुछ लोक नृत्यों को यूनेस्को ने भी रिकॉग्नाइज किया है स्टडी आईक्यू आईस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल [संगीत] इंडियन थिएटर वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों भारत सिर्फ एक नाम नहीं विभिन्न संस्कृतियों का संगम है विविधता में एकता की इसी पहचान के साथ भारत पूरी दुनिया में अपनी एक अनूठी जगह बनाता है जैसा कि हम सभी को पता है कि भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति है इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी भी माना जाता है जीने की कला हो या विज्ञान या फिर राजनीति ही क्यों ना हो भारतीय संस्कृति हर जगह अप अलग पहचान रखती है आज की चर्चा में हम आपको भारतीय संस्कृति के एक ऐसे पहलू से रूबरू कराने जा रहे हैं जो सदियों से इसका हिस्सा रहा है यह देश की संस्कृति का खुद एक अभिन्न अंग तो है ही साथ ही इसके विभिन्न रंगों को दर्शाने का एक जरिया भी हम बात कर रहे हैं भारतीय लोक नाट्य यानी इंडियन थिएटर की आज हम इंडियन थिएटर के बारे में विस्तार से बात करने वाले हैं तो आइए शुरू करते हैं इंडियन थिएटर दोस्तों प्राचीन काल से ही इंडियन थिएटर हमारी संस्कृति का बहुत महत्त्वपूर्ण अंग बना हुआ है देश के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग रूप में देखा जा सकता है अगर सरल भाषा में कहा जाए तो थिएटर अलग-अलग स्किल्स का एक कंपोजिशन है यानी मनोरंजन और सामाजिक शिक्षा के लिए की गई सामूहिक अभिव्यक्ति को ही हम थिएटर कहते हैं इसमें डांस एक्टिंग सिंगिंग टॉकिंग माइनिंग के साथ ही थिएटर क्राफ्ट्स जैसे मास्क्स मेकअप और कॉस्ट्यूम्स के द्वारा स्टोरी को प्रेजेंट किया जाता है इन सभी को मिलाकर ही एक अच्छा थिएटर बनता है आम भाषा में हम इसी को ड्रामा कहते हैं इंडियन थिएटर के इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि सीता बेना और जोगी मारा केव्स के एक्सक वेटेड रूइनिंग करते हैं यह सिर्फ एक उदाहरण है जो भारतीय संस्कृति में थिएटर के सदियों पुराने ट्रेडिशनल इट करता है भारत मुनि के नाट्य शास्त्र के अनुसार लॉर्ड ब्रह्मा ने गॉड्स के पास टाइम के लिए चार वेदास के एलिमेंट्स को कंबाइन करके नाट्य वेद की रचना की थी नाट्य शास्त्र की रचना सेकंड सेंचुरी एडी के अराउंड हुई थी और यह ड्राम टर्ज पर पहली फॉर्मल ट्रीटज है इसमें 10 प्रकार के नाटक यानी प्ले का विवरण मिलता है जिसमें वन एक्ट प्ले से लेकर 10 एक्ट्स तक आते हैं और ये क्लासिकल संस्कृत थिएटर के सभी एस्पेक्ट्स को कवर करता है इंडियन थिएटर को हम तीन टाइप्स में डिवाइड करते हैं जिसमें पहला है क्लासिकल संस्कृत थिएटर दूसरा फोक थिएटर और तीसरा है मॉडर्न थिएटर तो आइए एकएक करके विस्तार में इन तीनों टाइप्स के बारे में जानते हैं क्लासिकल संस्कृत थिएटर दोस्तों संस्कृत शब्द नाटका रूट वर्ड नाट से डिराइवर होता है डांसर इसके अलावा रूपक दृश्य काव्य और प्रेक्षा काव्य जैसे कई शब्दों का इस्तेमाल प्राचीन समय में ड्रामा को डिस्क्राइब करने के लिए किया जाता था प्राचीन भारत में नाटक मुख्यतः दो तरह के होते थे पहला लोक धर्मी और दूसरा नाट्य धर्मी लोक धर्मी नाटक में लोगों की रियलिस्टिक लाइफ के बारे में दर्शाया जाता था और नाट्य धर्मी कन्वेंशनल प्लेज होते थे जहां नरेशन शैली और सिंबॉलिज्म का यूज किया जाता था क्लासिकल संस्कृत ट्रेडिशनल को 10 टाइप्स में कैटेगरी इज किया गया है जो है अंक भान दीमा थम ग्र नाटक प्रहसन प्रकर्ण स्वकना विधि और वयोग हालांकि नाट्य शस्त्र में इनमें से सिर्फ दो यानी नाटक और प्रकरण का ही विवरण मिलता है इसके अलावा क्लासिकल संस्कृत प्ले कुछ रिजडन वेंशन से बंधे हुए होते हैं जैसे कि उस समय ज्यादातर प्ले चार से सात एक्ट के ही होते थे इनमें हमेशा ही हैप्पी एंडिंग्स होती थी ट्रेजेडी का पोट्रेयर बहुत रेर था नाटक का मेन किरदार हमेशा एक मेल ही होता था जो अंत में हमेशा अपना गोल अचीव कर ही लेता था इसके साथ ही इन प्लेज में एक वेल डिफाइंड ओपनिंग प्रोग्रेशन डिवेलपमेंट पॉज और कंक्लूजन होता था अश्वघोष द्वारा रचित सरी पुत्र करणा को क्लासिकल संस्कृत ड्रामा का पहला एग्जांपल माना जाता है यह ना एक्ट का प्ले था दूसरे इंपॉर्टेंट प्ले राइट में भाष्य का नाम आता है जिन्होंने फोर्थ और फिफ्थ सेंचुरी बीसी के बीच 13 प्लेज का कंपोजिशन किया था इनके अलावा शूद्रक द्वारा रचित मृ कटि वैशाख दत्ता द्वारा रचित मुद्रा राक्षस भाव भूति द्वारा रचित महावीर चरित्र और हर्षवर्धन द्वारा रचित रत्नावली प्रमुख प्राचीन नाटक में शामिल है क्लासिकल संस्कृत ड्रामा की बात हो तो कालिदास का नाम तो भुलाया नहीं जा सकता इन्होंने हमें मालविका अग्निमित्र विक्रम और वशी और शाकुंतलम जैसी कालजई रचनाएं दी समय के साथ धीरे-धीरे संस्कृत थिएटर का डिक्लाइन होने लगा इसके पीछे कई कारण थे जैसे कि संस्कृत ड्रामे का पोएट्री की तरफ डायवर्ज हो जाना रिजनेट की वजह से क्रिएटिव स्पेस को रिस्ट्रिक्टर कम हो जाना और अंत में मुस्लिम रूलरसोंग्स लेकिन एक थिएटर फॉर्म है जो 10थ सेंचुरी एडी से लेकर आज तक केरला में कंटिन्यूड है इसका नाम है कुड़िया टम या कुथी अटम यह नाट्य शस्त्र के सभी रूल्स को फॉलो करता है और केरला की चकर और नांबियार कास्ट द्वारा ट्रेडिशनल परफॉर्म किया जाता है इस प्ले को संस्कृत प्राकृत और मलयालम भाषा में परफॉर्म किया जाता है और मड़ावी और एड़क का इसमें बैकग्राउंड म्यूजिक प्रोवाइड करते हैं मार्गी मधु चक इस आर्ट फॉर्म के लीडिंग एक्सपोटल हैं क्लासिकल संस्कृत थिएटर के बाद आइए अब थिएटर के दूसरे टाइप यानी फोक थिएटर पर चर्चा करते हैं फोक थिएटर इंडिया के अलग-अलग भागों में फोक थिएटर का एक रिच ट्रेडीशन रहा है ट्रेडिशनल फोक थिएटर लोकल लाइफस्टाइल के वेरियस एस्पेक्ट्स को दर्शाते रहे हैं जिसमें सोशल नॉर्म्स बिलीव्स और शामिल होते हैं फोक थिएटर की रूट्स रूरल हैं और यह रस्टिक फ्लेवर हमें इसमें शामिल ड्रामे स्टाइल में साफ नजर आता है आज एजिस्ट करने वाले ज्यादातर फोक थिएटर्स 15th 16th सेंचुरी एडी के अराउंड डिवोशनल थीम्स के साथ इमर्ज हुए थे हालांकि समय के साथ इसमें लव बैलेड्स और लोकल हीरोज की कहानी को अडॉप्ट करना शुरू कर दिया इंडियन फोक थिएटर को ब्रॉडली तीन टाइप्स में डिवाइड किया जाता है पहला रिचुअल थिएटर दूसरा थिएटर ऑफ एंटरटेनमेंट और तीसरा साउथ इंडियन थिएटर सबसे पहले बात करते हैं रिचुअल थिएटर की रिचुअल थिएटर फोक थिएटर का वह फॉर्म है जो भक्ति आंदोलन के दौरान प्रचलित हुआ यह परफॉर्मर और ऑडियंस दोनों के ही द्वारा ईश्वर के प्रति अपने फेथ को दर्शाने का एक पॉपुलर माध्यम बनकर उभरे थे इस तरह के थिएटर के कुछ पॉपुलर एग्जांपल्स की बात करें तो इसमें अंकिया नाट कला रामलीला रास लीला भूटा और रम मंश शामिल है अंकिया नाट असम का पौराणिक वन एक्ट प्ले है जिसे 16 सेंचुरी एडी में वैष्णव सेंट शंकर देवा और उनके शिष्य महादेव द्वारा शुरू किया गया था इसे ऑपरा के स्टाइल में परफॉर्म किया जाता है और भगवान कृष्ण की लाइफ के इंसीडेंट्स को इसमें दर्शाया जाता है इस दौरान रेटर या सूत्रधार का साथ देते हैं ग्रुप ऑफ म्यूजिशियंस जिन्हें गायन बायन मंडली कहा जाता है और यह खोल और सिंबल्स प्ले करते हैं इस थिएटर का एक यूनिक फीचर यह है कि इसमें स्पेशल एक्सप्रेशंस को दर्शाने के लिए मास्क का उपयोग किया जाता है अगर बात करें कला की तो यह एक वैश्णवाइट्स होता है दशावतार कला गोपाल कला और गलन कला इसकी कुछ पॉपुलर ब्रांचेस हैं वहीं रामलीला उत्तर प्रदेश का प्रचलित फोक थिएटर है इसमें रामायण को इक्ट किया जाता है और इसे मुख्यतः दशहरा से पहले के पीरियड में सोंग्स डांसेसएक्सएक्सएक्स के कन्नारा डिस्ट्रिक्ट में प्रचलित है रम्मन उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन का रिचुअल थिएटर है इसमें विलेजर्स विलेज डेटी भूमि आल देवता को मंदिर के कोर्टयार्ड में ऑफिस अर्पण करते हैं इसे यूनेस्को द्वारा इनटेंजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी की लिस्ट में भी शामिल किया गया है इसका एक इंपॉर्टेंट एस्पेक्ट जागर की सिंगिंग है जो लोकल लेजेंड्स का एक म्यूजिकल रें है रिचुअल थिएटर के बाद अब थिएटर ऑफ एंटरटेनमेंट की तरफ चलते हैं थिएटर का यह फॉर्म अपने नरेशन और स्टोरी टेलिंग में ज्यादा सेकुलर होता है यह स्टोरीज ऑफ लव वैलर और सोशो कल्चरल ट्रेडीशंस पर ज्यादा फोकस करते हैं और इनका मेन एम रूरल मासे को एंटरटेनमेंट प्रदान करना रहता है इसके अंतर्गत भवाई दस कथियाई जैसे अनेकों लोकल थिएटर्स आते हैं आइए एक-एक करके इनमें से कुछ प्रमुख के बारे में जान लेते हैं भावई राज थान और गुजरात का पॉपुलर फोक थिएटर फॉर्म है प्ले की थीम जनरली रोमांटिक होती है इसे सेमी क्लासिकल म्यूजिक के साथ परफॉर्म किया जाता है जो डिस्टिंक्ट फोक स्टाइल में भुंगला झंझा और तबला जैसे वाद्य यंत्रों के साथ प्ले किया जाता है भवाई थिएटर में सूत्रधार को नायक कहते हैं वहीं दस कथियाई में प्रचलित फोक थिएटर है इस फॉर्म में दो नरेट होते हैं पहला गायक जो कि मुख्य है और दूसरा पालिया जो को नरेट है नरेशन का साथ देता है ड्रामे म्यूजिक जिसे कठिया नाम के वुडन म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट द्वारा कंपोज किया जाता है गरोस गुजरात की गोड़ाई को नरेट करने के लिए पेंटेड पिक्चर्स का उपयोग किया जाता है इसी तरह जात्रा ईस्टर्न इंडिया का प्रचलित ओपन एयर फोक थिएटर है जिसे वैश्णवाइट्स महाप्रभु द्वारा बंगाल में भगवान कृष्ण की टीचिंग्स का प्रचार करने के लिए इनीशिएट किया गया था वहीं करला हिमाचल प्रदेश के फुट हिल्स में प्रचलित ओपन एयर थिएटर फॉर्म है मध्य प्रदेश के मालवा रीजन में मांच फोक थिएटर हमें दिखता है इस फॉर्म का यूनिक फीचर इसके डायलॉग्स होते हैं जो कपलेट्स के फॉर्म में डिलीवर किए जाते हैं और रंगत दोहास कहलाते हैं स्वांग पंजाब और हरियाणा रीजन में प्रचलित म्यूजिक ड्रामा है जिन्हें एक रा हारमोनियम सारंग ढोलक और खरता के म्यूजिक के साथ परफॉर्म किया जाता है स्वांग का ही एक ऑफशूट नौटंकी नॉर्थ इंडिया में मोस्ट पॉपुलर फॉर्म ऑफ थिएटर है प्लेज हिस्टोरिकल सोशल और ट्रेडिशनल स्टोरीज पर बेस्ड होते हैं जिन्हें डांस और म्यूजिक के थ्रू डिलीवर किया जाता है डायलॉग्स को लिरिकल फैशन में नगाड़ा नाम के ड्रम की बीट्स के साथ बोला जाता है ओजापाली असम का यूनिक थिएटर फॉर्म है जो प्राइमर फेस्टिवल ऑफ मानसा या सरपेंट गॉडेस के साथ एसोसिएटेड है इसमें नरेशन के तीन डिस्टिंक्ट पार्ट्स होते हैं जिन्हें बनिया खंड भटियाली खंड और देव खंड कहा जाता है ओजा मेन रेटर होता है और पालीसू उस के अन्य मेंबर्स इसी तरह शिवाजी महाराज द्वारा अफजल खान की हत्या पर लिखा गया शिवाजी महाराज की वीरता को दर्शाता लोक नाटक है पवाड़ा जो महाराष्ट्र रीजन में पॉपुलर है इसे गोंधली और शाहीर नाम के फोक म्यूजिशियंस द्वारा गाया जाता है तमाशा भी महाराष्ट्र का फेमस फोक थिएटर है जो कि लावणी सोंग्स के ऊपर फीमेल द्वारा परफॉर्म किया जाता है वहीं विल्लू पट्टू एक म्यूजिकल थिएटर है जो डेकन में पॉपुलर है इसमें बो शेप्ड इंस्ट्रूमेंट्स का यूज करके रामायण की स्टोरीज को नरेट किया जाता है भंड पत्थर जम्मू एंड कश्मीर में मुस्लिम्स द्वारा पेश किया जाता है इसमें म्यूजिक ड्रामा और डांसिंग का विशेष रोल होता है इसके अलावा असम के माजुली आइलैंड में परफॉर्म होने वाला भावना भी एक इंपॉर्टेंट थिएटर फॉर्म है एंटरटेनमेंट और ड्रामा के द्वारा इसमें रिलीजन और मोरल टीचिंग्स को प्रमोट किया जाता है कोंकण एरिया पर्टिकुलर सिंधुदुर्ग महाराष्ट्र में और नॉर्थ गोवा के फार्मर्स के बीच दशावतार एक थिएटर फॉर्म की तरह प्रचलित है प्ले में विष्णु के 10 अवतारों को दर्शाया जाता है अब बढ़ते हैं फोक थिएटर की तीसरी कैटेगरी यानी थिएटर्स ऑफ साउथ इंडिया की तरफ साउथ इंडियन थिएटर ट्रेडीशन डांस पर एमफसा इज करते हैं जबकि नॉर्दर्न इंडिया में एमफसिस म्यूजिक पर रहता है इसमें प्रमुख हैं यक्ष गाना बर्रा कथा प्रगति वेशालु बाया लता तल मड्डले थेयमैनम के रीजन में परफॉर्म किया जाता है इसका ओरिजिन विजयनगर एंपायर के राज दरबार में हुआ था जहां जक्कुला वरुण नाम की कम्युनिटी इसे परफॉर्म करती थी आंध्र प्रदेश का ही एक और पॉपुलर डांस ड्रामा ट्रेडिशनल बुर्र नाम के प्रकाशन इंस्ट्रूमेंट से डिराइवर वैशाल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कृष्णा डिस्ट्रिक्ट में पॉपुलर फोक थिएटर है इसी तरह बाया लता कर्नाटका का ओपन एयर थिएटर ट्रेडीशन है जिसे लोकल डेटी की वशिप के दौरान परफॉर्म किया जाता है स्टोरीज राधा कृष्ण के प्रेम पर आधारित होती हैं बाया लतास जनरली पांच टाइप्स के होते हैं दशरथ सन्नाटा दोड डाटा परिजात और यक्षगान यक्षगान और परिजात को सिंगल सूत्रधार द्वारा निरीट किया जाता है और बाकी तीन को तीन से चार के कोरस में विदूषक की हेल्प से परफॉर्म किया जाता है अगर ताल मड्डले की बात करें तो ताल एक तरह का सिंबल होता है और मड्डले एक तरह का ड्रम केरला और कोस्टल कर्नाटका में यह पॉपुलर है इसमें नरेशन अर्थ धारी की मदद से भागवत द्वारा किया जाता है इसे बैठकर परफॉर्म किया जाता है और इसमें डांस कॉस्ट्यूम्स और एक्टिंग का यूज नहीं होता थय ओपन एयर प्ले है जो केरला के लोकल टेंपल्स में परफॉर्म किया जाता है यह पूर्वजों की स्पिरिट को ऑनर करता है थम कर्नाटका के भूटा फेस्टिवल से मिलता जुलता है संगम लिट में भी यम का मेंशन मिलता है कृष्ण अट्टम भी केरला का ही एक कलरफुल डांस ड्रामा ट्रेडीशन है यह आठ दिन तक चलने वाले कार्निवल फेस्टिवल का हिस्सा है जिसमें हर रात्रि भगवान कृष्ण की लाइफ स्टोरी नरेट की जाती है कुरु वं जीी तमिलनाडु का फोक ट्रेडीशन है जो क्लासिकल तमिल पोएट्री और सोंग्स के साथ परफॉर्म किया जाता है इसकी बेसिक थीम लव स्ट्रक हीरोइन के आसपास घूमती है यह डांस बैले के फॉर्म में परफॉर्म होता है और भरतना टम इसका प्रिंसिपल डांस फॉर्म है फोक थिएटर पर विस्तृत चर्चा के बाद आइए अब मॉडर्न थिएटर की बात करते हैं मॉडर्न थिएटर मॉडर्न इंडियन थिएटर ब्रिटिश कॉलोनियल एरा के समय उभर कर आया संस्कृत टेक्स्ट और वेस्टर्न टेक्स्ट के ट्रांसलेशन हमें मॉडर्न थिएटर में होते हुए दिखे शेक्सपियर और गट होल्ड एफाइन की रचनाएं लोगों तक पहुंचने लगे कलका और मद्रास जैसे शहर एंटरटेनमेंट के नए केंद्र बनने लगे 1850 और 1920 के बीच वेस्टर्न इंडिया में पारसी थिएटर फेमस होने लगे जहां प्लेस गुजराती और मराठी जैसी रीजनल लैंग्वेजेस में परफॉर्म किए जाते थे आजादी के बाद 1952 में संगीत नाटक अकादमी की स्थापना हुई जिसने इंडिया में थिएटर को प्रमोट और उनके ग्रोथ में मदद करने का काम किया कंक्लूजन दोस्तों इस तरह इंडियन थिएटर्स का एक रिच ट्रेडीशन रहा है यह हमारी विरासत का एक अभिन्न अंग है थिएटर समाज के कस्टम्स और बिलीव्स को दिखाने का काम करता है देश के अलग-अलग हिस्सों में पाए जाने वाले थिएटर ट्रेडीशंस हमारे रिच कल्चरल हेरिटेज का ही एक जीता जागता उदाहरण है इंडियन पपेट्री वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों पॉपकॉर्न के साथ काउच पर बैठकर बड़े ही आराम से वेब सीरीज या मूवीज का लुत्फ उठाना भला किसे पसंद नहीं और ऐसा हो भी क्यों ना आखिर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में यही चीजें तो एंटरटेनमेंट का तड़का लगाती हैं और ऐसे ही एक एंटरटेनमेंट का साधन है पपेट्री यानी कठपुतली का खेल पपेट्री एक ऐसी लोक कला है जिसमें दर्शकों के सामने काफी खूबसूरत और प्रेरणादाई कहानियां नाटक के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं और यह प्रस्तुति कोई इंसान नहीं बल्कि रंगबिरंगी साज सज्जा से परिपूर्ण कठपुतलियां देती हैं जी हां यह बात जरूर है कि कठपुतलियों को लोगों द्वारा ही मैनेज किया जाता है परंतु इस पूरे नाटक में अहम भूमिका यह कठपुतलियां ही निभाती हैं वैसे आप सब ने कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में पपेट्री का लुत्फ जरूर उठाया होगा जो मजा आपको इन शोज को देखने के बाद मिला होगा उसकी तुलना आप किसी और से कर ही नहीं सकते दरअसल इन पपेट शोज को देखते ही हमें हमारे बचपन के सबसे लोकप्रिय गुड्डे गुड़ियों के खेल की याद आने लगती है और यही पपेट्री की सबसे बड़ी खासियत है इसके साथ ही कठपुतलियां और इन शोज में दिखाई जाने वाली कहानियां हमें हमारी संस्कृति और सभ्यता से भी रूबरू कराती हैं पर क्या आपको पता है कि पपेट्री मात्र एक नहीं बल्कि कई टाइप्स की होती हैं आज हम इंडियन पपेट्री के विभिन्न टाइप्स की विस्तार से चर्चा करने वाले हैं इस क्रम में आइए सबसे पहले भारतीय सभ्यता में पपेट्री के इतिहास को समझ लेते हैं ओरिजिन ऑफ पपेट्री इन इंडिया दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि पपेट्री का मंचन भारत में हजारों सालों से होता आ रहा है इस बात का सबसे ठोस प्रमाण हमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के आर्कियोलॉजिकल रिमन से मिलता है दरअसल जब इन एक्सक वेशन साइट्स की खुदाई की गई तब धागों से जुड़ी हुई कई कठपुतलियां पाई गई थी जो इस बात का दावा करती हैं कि हड़प्पा काल में भी पपेट्री का मंचन एक लोक कला के तौर पर होता था और एक से दो बीसी के बीच लिखे गए तमिल क्लासिकल लिटरेचर शिला पड क्रम में कठपुतलियों का जिक्र होना पपेट्री और भारतीय सभ्यता के पुराने रिश्ते को दर्शाता है इन तमाम हिस्टोरिकल सोर्सेस में पपेट्री का उल्लेख एक लोक कला या एंटरटेनमेंट के साधन के रूप में हुआ है लेकिन पपेट्री यहीं तक सीमित नहीं है भारतीय संस्कृति में इसकी एक फिलोसॉफिकल सिग्निफिकेंट उदाहरण हमें भगवत गीता में देखने को मिलता है जहां श्री कृष्ण ने ईश्वर का जिक्र करते हुए कहा है कि वह एक पपेटियर हैं और हम सभी मनुष्य उनके पपेट्स यानी हम सभी मनुष्यों के जीवन की बागडोर भगवान के हाथों में है और वह जब चाहे जैसे चाहे हमें कठपुतलियों की तरह नचा सकते हैं और इसीलिए भागवत गीता में भगवान को सूत्रधार भी कहा गया है भारतीय पपेट्री शोज में जो कठपुतलियों की डोरियों को पकड़कर उन्हें नचाता है उसे भी सूत्रधार ही कहते हैं यह महज एक संयोग नहीं बल्कि इस बात को प्रमाणित करता है कि पपेट्री भारत में महाभारत काल से चलती चली आ रही है हां यह बात जरूर है कि तब से लेकर आज तक पपेट्री का निरंतर विकास होता रहा है और इसी के चलते भारत के अनेकों हिस्सों में पपेट्री के विभिन्न प्रकारों का एवोल्यूशन हुआ है अगर इन तमाम पपेट्री फॉर्म्स को क्लासिफाई किया जाए तो इन्हें चार ब्रॉड कैटेगरी स्ट्रिंग पपेट्स शैडो पपेट्स ग्लव पपेट्स और रॉड पपेट्स में बांटा जा सकता है आइए सबसे पहले स्ट्रिंग पपेट्स के बारे में जानते हैं स्ट्रिंग पपेट्स दोस्तों स्ट्रिंग पपेट्स के फीचर्स की बात करें तो इन्हें आमतौर पर वुड का इस्तेमाल करके बनाया जाता है और इनकी लंबाई 8 से 9 इंच के बीच होती है इन ट् को खूबसूरती प्रदान करने के लिए इन्हें ऑयल पन से कलर किया जाता है और इसमें चार चांद लगाते हैं इनके फेशियल फीचर्स जिसे कलर्स का ही इस्तेमाल करते हुए बड़े ही मनमोहक ढंग से बनाया जाता है इन पपेट्स की आईज लिप्स नोज इत्यादि एक्सट्रीमली ब्यूटीफुल होते हैं और देखने से ऐसा लगता है कि मानो किसी पेंटर ने नहीं बल्कि खुद भगवान ने इनकी रचना की हो इसके साथ ही पतले वुडन पाइप्स का इस्तेमाल कर इनकी बॉडी लिम्स का निर्माण किया जाता है और फिर इन पपेट्स को ट्रेडिशनल इंडियन आउटफिट्स में तैयार किया जाता है इसके साथ ही इन्हें एक रियलिस्टिक टच देने के लिए जेवर गहनों और अन्य प्रकार के ब्यूटी एक्सेसरीज से सजाया जाता है जिसके कारण इन पपेट्स की खूबसूरती देखते ही बनती है सजाने के बाद इन पपेट्स में डोरियां अटैच की जाती हैं और इन्हीं डोरियों का इस्तेमाल करते हुए सूत्रधार पपेट्स को कंट्रोल करता है आइए अब स्ट्रिंग पपेट्स का इस्तेमाल कर किए गए देश भर के कुछ इंपॉर्टेंट पपेट्री शोज के बारे में भी जान लेते हैं सबसे पहले हम जानेंगे कठपुतली के बारे में कठपुतली दोस्तों कठपुतली का नाम तो आपने जरूर सुना होगा अगर नहीं सुना है तो हम बता देते हैं कि कठपुतली राजस्थान के ट्रेडिशनल स्ट्रिंग पपेट्स को कहते हैं अगर इस शब्द पर गौर करें तो यह दो शब्दों को जोड़कर बना हुआ है काठ यानी वुड और पुतली यानी डॉल जिस इसका मतलब है लकड़ी से बनी हुई गुड़िया राजस्थानी कठपुतलियों की सबसे खास बात यह है कि इनके पैर नहीं होते और लेग्स की एब्सेंट की वजह से इनके हाथों में डोरियों को अटैच किया जाता है जिसके बाद इन्हें सूत्रधार द्वारा कंट्रोल किया जाता है अगर इस स्ट्रिंग पपेट के फीचर्स की बात करें तो इन्हें पूर्ण रूप से राजस्थानी सभ्यता के हिसाब से सजाया जाता है इन पपेट्स को चमकीले आउटफिट्स पहनाए जाते हैं और हैवी ज्वेलरी से डेकोरेट किया जाता है और पपेट शोज के दौरान इन कठपुतलियों को सूत्रधार द्वारा राजस्थानी लोक संगीत पर नचाया जाता है चलिए यह तो रही राजस्थानी कठपुतलियों की बात आइए अब उड़ीसा के स्ट्रिंग पपेट्स यानी कुंधी में प्रचलित है इनका निर्माण हल्की और सूखी लकड़ियों का इस्तेमाल करके किया जाता है इनके फीचर्स की बात करें तो इन्हें ज्यादातर लॉन्ग स्कर्ट्स पहनाया जाता है इस पपेट्री की एक खास बात है और वह है कि यह बाकी पपेट्स की तुलना में ज्यादा फ्लेक्सिबल होती हैं इसकी फ्लेक्सिबल के दो कारण है पहले इनके निर्माण में लाइट वुड्स का इस्तेमाल होता है और दूसरा इन पपेट्स के लिम्स में कई सारे जॉइंट्स का निर्माण करना ज्यादा जॉइंट्स की अवेलेबिलिटी से पपेट्स का मूवमेंट इजी हो जाता है जिसका एडवांटेज सूत्रधार को मिलता है और इसीलिए वह बड़ी आसानी से इन्हें एफिशिएंटली परफॉर्म करा सकता है कुंधी पपेट्री में हमें ओसी डांस की छाप देखने को मिलती है जो ओसी की संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न अंग है आइए अब ओड़ीशा से कर्नाटका की ओर चलते हैं और वहां के स्ट्रिंग पपेट्री गोमे अत्ता के बारे में जानते हैं गोंबे अत्ता दोस्तों गोंबे अत्ता पपेट्री को कर्नाटका की प्राचीन लोक कलाओं में विशेष स्थान प्राप्त है इनमें पपेट्स की स्टाइलिंग और डिजाइनिंग कर्नाटका के मशहूर थिएटर डांस फॉर्म यक्ष गान के आधार पर की जाती इन पपेट्स के फेशियल फीचर्स और आउटफिट्स को भी यक्ष गान डांसर्स की तरह ही रीक्रिएट किया जाता है इन पपेट्स को इसी डांस फॉर्म के आधार पर सूत्रधार द्वारा परफॉर्म करवाया जाता है यहां एक ध्यान देने वाली बात यह है कि गोमे अटा के हैवी आउटफिट्स और टिपिकल डांस मूवमेंट्स के चलते एक सूत्रधार द्वारा इन्हें कंट्रोल करना मुश्किल होता है और इसीलिए इन्हें मैनेज करने के लिए एक से ज्यादा सूत्रधार की आवश्यकता होती है कर्नाटका पपेट्स के आइए इसी राज्य के पड़ोसी तमिलनाडु के स्ट्रिंग पपेट्स यानी बमल अट्टम के बारे में भी जान लेते हैं बमल अट्टम दोस्तों ऐसा कहते हैं कि बोमल म पपेट्री हमेशा से तमिलनाडु की संस्कृति का अखंड हिस्सा रहा है अगर इन पपेट्स के यूनिक फीचर्स की बात करें तो यह भारत में पाए जाने वाले पपेट्स में सबसे लंबे और भारी भरकम होते हैं इनकी हाइट लगभग साढ़े फीट तक होती है और इनका वजन 10 किलो के आसपास होता है और इसी कारण सूत्रधार द्वारा इन्हें मात्र डोरियों से मैनेज नहीं किया जा सकता जिस वजह से इन पपेट्स की स्ट्रिंग्स को एक आयन रिंग से अटैच कर दिया जाता है और यही आयन रिंग सूत्रधार अपने सर पर पहनकर पपेट्स को कंट्रोल और मैनेज करता है आयन रॉड्स और डोरियों से अटैच होने के बाद पपेट्स का मूवमेंट काफी इजी हो जाता है और परफॉर्मेंस के दौरान सूत्रधार उन्हें अच्छे से मैनेज कर लेता है दोस्तों अभी तक हमने स्ट्रिंग पपेट्स के बारे में जाना आइए अब प के अदर फॉर्म शैडो पपेट्स के बारे में जान लेते हैं शैडो पपेट्स दोस्तों इंडिया में शैडो पपेट्री की अच्छी खासी पॉपुलर है बात अगर शैडो पपेट्री के फीचर्स की करें तो यह काफी यूनिक है क्योंकि इनका निर्माण किसी मेटल या वुड से नहीं बल्कि लेदर से किया जाता है शैडो पपेट्री का निर्माण लेदर को पपेट्स के शेप में कट करते हुए किया जाता है यहां एक गौर करने वाली बात यह है कि यह पपेट्स फ्लैट फिगर्स के रूप में निर्मित किए जाते हैं पपेट्स का निर्माण होते ही उन्हें दोनों साइड से एक ही तरह का पेंट कर दिया जाता है जिससे पपेट्स दोनों साइड से एक जैसे लगते हैं इसके साथ ही इस पपेट्री टाइप में कठपुतलियों को किसी भी प्रकार से सजाया नहीं जाता पपेट्स के निर्माण होने के बाद बारी आती है उनके परफॉर्मेंस की जिसके लिए इन पपेट्स को वाइट स्क्रीन पर रखा जाता है और उन्हें ऐसी पोजीशन में रखते हैं ताकि उन पपेट्स पर पीछे से रोशनी पड़ सके जिससे उन कठपुतलियों की परछाई सामने स्क्रीन पर दर्शकों को अच्छी तरह से दिखाई दे इस दौरान पपेट्स के मूवमेंट को सूत्रधार कंट्रोल करता है और इसके नतीजतन शैडो के रूप में खूबसूरत सी पपेट्री परफॉर्मेंस दिखाई पड़ती है आइए अब शैडो पपेट्स का इस्तेमाल कर किए गए देश भर के कुछ इंपॉर्टेंट पपेट्री शोज के बारे में भी जान लेते हैं सबसे पहले हम जानेंगे तोगा गोंबे अट्टा के बारे में तोगा गोंबे अटा दोस्तों गालू गोंबे अटा कर्नाटका शैडो पपेट्री का एक मुख्य उदाहरण है यह कर्नाटका के मोस्ट पॉपुलर शैडो थिएटर के रूप में भी जाना जाता है और अगर इसके यूनिक फीचर्स की बात करें तो वह इन पपेट्स के डिफरेंट शेप्स और साइजेस हैं आपको जानकर हैरानी होगी कि इन पपेट्स के साइजेस समाज के विभिन्न वर्ग यानी सोशल स्टेटस के आधार पर डिसाइड किए जाते हैं दरअसल राजा महाराजा और रिलीजियस फिगर्स के पपेट्स को भारी भरकम पपेट्स की सहायता से रिप्रेजेंट किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों को छोटे साइज के पपेट्स द्वारा दर्शाया जाता है पपेट्स में वेरिएशन होने के कारण दर्शक नाटक मंचन के दौरान प्रस्तुत किए गए अलग-अलग कैरेक्टर्स को पहचान लेते हैं कर्नाटका के शैडो पपेट्स के बाद आइए अब उड़ीसा के शैडो पपेट्स यानी रावण छाया के बारे में चर्चा करते हैं रावण छाया ओड़ीशा के थिएटर शोज में रावण छाया की अपनी एक अनूठी पहचान है यह ओड़ीशा एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का भी एक अभिन्न अंग है बात अगर रावण छाया के यूनिक फीचर्स की करें तो इस श्रेणी में बनाए गए पपेट्स का निर्माण डियर स्किन से होता है इसके साथ ही इन शैडो पपेट्स को बड़े ही बोल्ड मैनर में सजाया जाता है इसके अलावा इन पपेट्स के ड्रामे पोस्चर्स भी काबिले तारीफ होते हैं इस पपेट्री में ह्यूमन फिगर्स के अलावा पशु पक्षी पेड़ जैसे नॉन ह्यूमन फिगर्स को भी रिप्रेजेंट किया जाता है इसके साथ ही वोकल आर्टिस्ट्स द्वारा इस पपेट शो में किए गए लिरिकल और म्यूजिकल नैरेटिव भी रावण छाया को एक नई डेप्थ प्रदान करते हैं और यही सभी क्वालिटीज रावण छाया को पपेट्री में एक नई पहचान प्रदान करती हैं रावण छाया के बाद आइए अब थोलू बलाता के बारे में जानते हैं थोलू बम बलाता दोस्तों थोलू बलाता आंध्र प्रदेश में प्रचलित शैडो पपेट्री को कहते हैं इसमें पपेट्स का निर्माण काफी भव्य स्तर पर किया जाता है इन्हें दोनों साइड से कलर्स का इस्तेमाल करते हुए रंगबिरंगा बनाते हुए परफॉर्मेंस के लिए तैयार किया जाता है अगर इस पपेट्री से जुड़े कुछ खास पहलुओं की ओर ध्यान दें तो वो है इस पपेट शो में क्लासिकल म्यूजिक का इस्तेमाल करते हुए दर्शाई जाने वाली पौराणिक कथाएं और इसी रिलीजस सिग्निफिकेंट के कारण थोलू बलाता आंध्र प्रदेश की सभ्यता और संस्कृति का एक मुख्य स्रोत बना हुआ है आइए अब आगे बढ़ते हुए पपेट्री की तीसरी कैटेगरी यानी ग्लव पपेट्स पर चर्चा कर लेते हैं ग्लव पपेट्स दोस्तों ग्लव पपेट्स को स्लीव हैंड और पाम पपेट्स के नाम से भी जाना जाता है अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पपेट्री में यानी दस्तानों का क्या काम दरअसल ग्लव पपेट्री में पपेट्स को सूत्रधार दस्तानों की तरह पहन लेते हैं और ऐसा करने के बाद वह अपनी हथेलियों के मूवमेंट से पपेट्स को कंट्रोल और मैनेज करते हुए नाटक का मंचन करते हैं ग्लव पपेट्री में इस्तेमाल होने वाले पपेट्स काफी छोटे आकार में बनाए जाते हैं और यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इन पपेट्स के पूरे शरीर की जगह केवल हेड पोशन का निर्माण किया जाता है और इसी हेड से एक लं स्लीव ग्लव्स या स्कर्ट को अटैच कर दिया जाता है ताकि सूत्रधार उसे आसानी से अपनी बाहों में पहन सके आमतौर पर इन पपेट्स को कपड़े कागज या लकड़ी का इस्तेमाल करके बनाया जाता है पपेट्री शो के दौरान सूत्रधार इन पपेट्स को दस्तानों की तरह अपने दोनों बांहों में पहन लेता है और इन पपेट्स के हेड को अपने इंडेक्स फिंगर के सहारे मूवमेंट प्रदान करता है इसके साथ ही अन्य उंगलियों का इस्तेमाल करते हुए सूत्रधार पपेट्स को पूरे फेशियल एक्सप्रेशन के साथ बड़ी ही खूबसूरती से डांस परफॉर्मेंस प्रेजेंट करवा पाता है सूत्रधार की फिंगर मूवमेंट्स इतने कमाल के होते हैं कि बेजान से पपेट्स भी परफॉर्मेंस के वक्त बिल्कुल जीवित मालूम पड़ते हैं और इसी वजह से ग्लव्स पपेट्स की पूरे भारत में काफी अच्छी खासी पॉपुलर है आज भी जब ढोल मजीरे की ताल पर ग्लव पपेट्री का मंचन होता है तो दर्शकों की तालियां चारों तरफ सुनाई देती हैं आइए अब ग्लव पपेट्स का इस्तेमाल करने वाली फेमस पावरकट कुठ पपेट्री के बारे में जान लेते हैं पावा कुटू दोस्तों पावा कठू केरला में प्रस्तुत किए जाने वाले ट्रेडिशनल ग्लव पपेट शो को कहते हैं ऐसा माना जाता है कि इस लोक कला की शुरुआत इस राज्य में करीब 18 सेंचुरी के आसपास हुई थी बात अगर पावा कोठू पपेट्स की करें तो इन्हें कलरफुल पेंट्स फेदर्स और ज्वेलरी से सजाते हुए काफी खूबसूरत बनाया जाता है और इसी कारणवश इन पपेट्स पर केरला के लोक नृत्य कथकली की छाप देखने को मिल है क्योंकि कथकली डांसर्स को भी हूबहू इसी तरह सजाया जाता है पाव कुट्टू पपेट्स द्वारा महाभारत और रामायण जैसे पौराणिक कथाओं के ऊपर नाट्य मंचन किया जाता है अभी तक हमने विशेषकर तीन पपेट्री फॉर्म्स को जाना आइए अब कहानी को आगे बढ़ाते हुए रड पपेट्स के बारे में भी जान लेते हैं रड पपेट्स दोस्तों इस पपेट्री में ना तो हम डोरियों का इस्तेमाल करते हैं ना ही शैडोज का और ना ही ग्लव्स का इसमें इस्तेमाल होता है तो केवल रॉड्स का जी हां इस पपेट्री में सूत्रधार द्वारा पपेट्स को रॉड्स की सहायता से पर्दे के पीछे से कंट्रोल किया जाता है पपेट्स का निर्माण यूजुअली स्ट्रिंग पपेट्स की ही तरह होता है लेकिन डोरी का इस्तेमाल ना करते हुए इन्हें मेटलिक रॉड से जोड़ा जाता है जिसकी मदद से सूत्रधार पपेट्री को अंजाम देता है देखने में यह पपेट शो भी अन्य शोज की ही तरह काफी मनमोहक होते हैं आइए रॉड पपेट्री के कुछ मुख्य उदाहरणों के बारे में भी जान लेते हैं यमपुरी दोस्तों यमपुरी भारतीय राज्य बिहार की लोक कला का एक इंटीग्रल पार्ट है इस पपेट्री में ज्यादातर लकड़ी से बने हुए पपेट्स का इस्तेमाल होता है और इनमें किसी भी प्रकार के जॉइंट्स का निर्माण नहीं होता पपेट्स का स्ट्रक्चर तैयार होने के बाद इन्हें पेंट किया जाता है और रंगबिरंगी पोशाकों से सजाया जाता है जिसके बाद इनमें रॉड्स अटैच कर इन्हें परफॉर्मेंस के लिए तैयार कर दिया जाता है बिहार के यमपुरी की ही तर है वेस्ट बंगाल का पुतुल नाच भी काफी लोकप्रिय है आइए उस पर भी एक नजर डाल लेते हैं पुतुल नाच दोस्तों पुतल नाच बंगाल के अलावा भारतीय राज्य उड़ीसा और असम में भी काफी प्रचलित है अगर पुतल नाच में प्रयोग किए जाने वाले पपेट्स की बात करें तो इनकी लंबाई लगभग तीन से 4 फीट के बीच होती है इन पपेट्स में तीन जगहों पर जॉइंट्स का निर्माण किया जाता है जो इन्हें हाई फ्लेक्सिबल प्रोवाइड करते हैं अगर इन पपेट्स के विजुअल एस्थेटिक की बात करें तो इनकी साज सजावट बंगाल लोक कथा जात्रा के कैरेक्टर्स के रूप में होती है जो इन्हें एक विशेष छवि और सुंदरता प्रदान करते हैं इसके साथ ही पपेट्स में मेटलिक रॉड्स को भी अटैच कर दिया जाता है नाट्य मंचन के दौरान इन्हीं मेटलिक रॉड्स को सूत्रधार अपनी कमर पर अटैच करते हैं यानी यानी एक सूत्रधार पपेट्स को आयन रॉड की सहायता से अपनी कमर में बांध लेता है और पर्दे के पीछे से अपनी डांस परफॉर्मेंस देने लगता है प्रस्तुति के दौरान जैसे-जैसे सूत्रधार मूव करते हैं ठीक वैसे ही मूवमेंट्स पपेट्स द्वारा भी किए जाते हैं जिससे दर्शकों को यह लगता है कि मानो पपेट्स ही नृत्य प्रस्तुति दे रहे हो इस मंचन के दौरान म्यूजिशियंस द्वारा हारमोनियम सिंबल्स और तबला का प्रयोग करते हुए जो संगीत बजाया जाता है वह पुतुल नाच के इस पूरे कार्यक्रम को और भी खूबसूरत बना देता है कंक्लूजन तो दोस्तों यह थी इंडियन पपेट्री की कहानी इस कहानी में हमने भारतीय सभ्यता में पपेट्री की अहम भूमिका को समझने की कोशिश की इसके साथ ही हमने इस लोक कला के अलग-अलग प्रकारों को समझा और देश भर के विभिन्न पपेट शोज और उनके यूनिक फीचर्स पर चर्चा की हिस्ट्री ऑफ कॉइंस एंड करेंसी सिस्टम इन इंडिया वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों क्या हमने कभी सोचा है कि अगर मनी या करेंसी ना हो तो क्या हो मनी कॉमन मीडियम ऑफ एक्सचेंज होता है जिसे किसी भी देश की सेंट्रल गवर्नमेंट इशू करती है आजकल तो पेपर मनी और डिजिटल करेंसी पॉपुलर हैं लेकिन काफी समय तक ट्रेड और एक्सचेंज कॉइंस में ही होता था दोस्तों इस वीडियो में हम इंडिया में कॉइंस की हिस्ट्री को ट्रेस करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे ओवर द एजेस कॉइंस प्रेजेंटली पॉपुलर पेपर करेंसी में इवॉल्व हुए तो आइए वीडियो की शुरुआत करते हैं इंपॉर्टेंस ऑफ कॉइंस एंड करेंसी से इंपॉर्टेंस ऑफ कॉइंस एंड करेंसी दोस्तों मनी कॉमन मीडियम ऑफ एक्सचेंज होता है इसका मतलब है कि हम इसका यूज करके गुड्स एंड सर्विसेस एक्सचेंज कर सकते हैं जहां मनी एक पॉपुलर टर्म है किसी भी देश में यूज होने वाले मनी को उस देश का करेंसी कहते हैं जैसे इंडिया की करेंसी रुपीज है और अमेरिका की डॉलर्स कॉइंस पेपर करेंसी डिजिटल करेंसी यह सब करेंसी के डिफरेंट फॉर्मैट्स होते हैं हिस्टॉरिकली देखें तो जब करेंसी सिस्टम का इन्वेंशन नहीं हुआ था तब बाटर सिस्टम के यूज से ट्रेड और एक्सचेंज होता था बाटर सिस्टम में लोग गुड्स के बदले गुड्स ही एक्सचेंज करते थे मसलन मेरे पास अगर फूड ग्रेंस हैं और मुझे क्लोथ्स चाहिए तो मुझे ऐसे इंसान को खोजना पड़ेगा जिसके पास क्लोथ्स हो पर उसे फूड ग्रेंस की जरूरत हो जाहिर सी बात है ऐसे एक्सचेंज में टाइम और एफर्ट भी बहुत लगेगा और फूड ग्रेंस और क्लोथ्स की सही वैल्यू डिटरमिन करना भी मुश्किल होगा कोई एक किलो ग्रा राइस के बदले दो जोड़ी कपड़े मांगेगा कोई तीन पर भी अग्री नहीं करेगा ऐसी प्रॉब्लम से निकलने के लिए ही इंसान ने करेंसी इन्वेंट की करेंसी कॉमन मीडियम ऑफ एक्सचेंज बना जिससे कि ट्रेड प्रोडक्शन एक्सचेंज एटस को बढ़ावा मिला माना जाता है कि ट्रेड और एग्रीकल्चर का इंसान के सिविलाइजेशनल प्रोग्रेस में बहुत बड़ा रोल रहा है क्योंकि उसने एक तरह का सोसाइटल चेंज ला दिया इंसान जो पहले बस हंटिंग गैदरिंग करके अपना गुज दरा कर रहा था अब टाउंस और विलेजेस में सेटल लाइफ बिता सकता था धीरे-धीरे मटेरियल प्रोग्रेस हुआ और विलेजेस से टाउंस और फिर अंपायर्स बने किसी भी सिविलाइजेशन की हिस्ट्री हम उठाकर देख ले सबकी ट्रेजे क्ट्री अमूमन इसी डायरेक्शन में फ्लो करती है इंडिया में भी करेंसी सिस्टम का डेवलपमेंट ग्रेजुएशन और ट्रेड के डेवलपमेंट से लिंक्ड है अगर प्रीहिस्टोरिक एज की बात करें तो इनके तीनों फेज पलियो थिक मेसोलिथिक और ओलिथु में करेंसी के यूज का कोई एविडेंस नहीं मिलता प्रीहिस्टोरिक एज में इंसान हंटिंग और गैदरिंग पर डिपेंड करता था सोसाइटी का एवोल्यूशन नहीं हुआ था जिस कारण से गुड्स एक्सचेंज बहुत लिमिटेड था करेंसी सिस्टम का पहला यूज हरप्पा सिविलाइजेशन में ट्रेस किया जाता है फ्रेंड्स आइए अब इंडिया की करेंसी सिस्टम का एवोल्यूशन देखते हैं एंट एरा दोस्तों जैसा कि पहले बताया गया है करेंसी का सबसे इंपॉर्टेंट यूज ट्रेड के लिए होता है हिस्टोरियंस ने कंक्लूजन में ओल्डेस्ट लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेड हरप्पन सिविलाइजेशन 3500 टू 1300 बीसी में स्टार्ट हुआ था हरप्पन अपने कंटेंपररी मेसोपोटामियन सिविलाइजेशन से ट्रेड करते थे जो कि प्रेजेंट डे इराक रीजन में लोकेटेड है लेकिन हिस्टोरियंस को अभी तक इस ट्रेड में यूज होने वाले कॉइंस नहीं मिले हैं ऐसा माना जाता है कि हरपपंस स्टोन से बने सील्स का यूज ट्रेडिंग के लिए किया करते थे प्रेजेंट डे इराक सीरिया रीजन से काफी मात्रा में हरप्पन सील्स रिकवर तो किए गए हैं लेकिन हिस्टोरियंस कंक्लूजन कर पाए कि यह ट्रेड के लिए ही यूज होते थे कई हिस्टोरियंस मानते हैं कि हरप्पन में बाटर सिस्टम का ही यूज होता था लेकिन इतने लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेड के लिए बाटर यूज करना पॉसिबल नहीं लगता है इसलिए हरप्पन कॉइंस का इशू अभी भी अनरिजॉल्वड है और जब तक हरप्पन स्क्रिप्ट्स डिसाइफर नहीं हो जाती यह शायद रहस्य ही बना रहेगा हरपपंस के बाद आए वैदिक कल्चर 1500 टू 600 बीसी में भी कॉइंस या करेंसी के यूज का कोई कंक्लूजन नहीं मिला है ऋग्वेदी पीपल मोस्टली पेस्टोरल थे जो एनिमल्स और उनके प्रोड्यूस पर डिपेंडेंट थे लेटर वैदिक पीपल एग्रीकल्चरलिस्ट थे ट्रेड और एक्सचेंज वैदिक एज में मोस्टली लिमिटेड था और माना जाता है कि यह बाटर फॉर्म में ही कंक्लूजन और करेंसी सिस्टम के यूज का पहला कंक्लूजन 600 बीसी के अराउंड मिलता है इस समय इंडिया में 16 महाजनपदों का रूल था मगध काशी अवंती वज्जी एटस कुछ इंपॉर्टेंट महाजनपद थे बुद्धिस्ट टेक्स्ट और पाणिनी के अष्टाध्याई कॉपर और सिल्वर से बने कॉइंस का जिक्र करते हैं इन्हें कर्ष पन या पन भी कहा जाता था यह कॉइंस इरेगुलर शेप के हुआ करते थे और इन पर कई प्रकार के सिंबल्स के ऊपर से पंच कर दिया जाता था जिसके कारण इन्हें पंच मार्क्ड कॉइंस भी कहते हैं इन परे पंच किए हुए सिंबल्स अलग-अलग होते थे और यह महाजनपद से महाजनपद डिफर करते थे जैसे कि सौराष्ट्र हट बुल के सिंबल और पांचाल स्वास्तिक के सिंबल को अपने कॉइंस पर पंच करता था महाजनपदों के बाद जब पहली बार मोरियन के रूप में ऑल इंडिया एंपायर एस्टेब्लिश हुआ तो ट्रेड और इकोनॉमिक एक्टिविटीज फ्लोरिश हुई फ्लरिज ट्रेड के लिए सबसे जरूरी होता है कॉमन करेंसी और मौर्यास के समय सबसे ज्यादा पंच मार्क्ड कॉइंस इशू किए गए मौर्य अपने कॉइंस पर करीब 450 डिफरेंट तरह के सिंबल्स का यूज करते थे इनमें नेचुरल सिंबल्स जैसे सन मून हिल्स और ट्रीज जियोम मेट्रिकल फिगर्स जैसे सर्कल रेक्टेंगल व्हील ह्यूमन फिगर्स और एनिमल्स का भी यूज किया जाता था मौर्यास के बाद आए इंडो ग्रीक्स ने सबसे पहले इंडिया में डाई स्ट्रक कॉइन इशू किए जहां पंच मार्क्ड कॉइंस में सिंबल्स को कॉइन पर पंच किया जाता था वहीं डाय स्ट्रक कॉइंस मिंट्स में मोल्ड्स के यूज से बनते थे मिंट्स उस जगह को कहते हैं जहां मेटल्स को पिघलाकर कॉइंस का फॉर्म दिया जाता है मोल्ड्स के इस्तेमाल के कारण कॉइंस की शेप में यूनिफॉर्म आई इंडो ग्रीक्स ने कॉइंस पर पहली बार पोर्ट्रेट यूज करना शुरू किया जैसे कि इंडो ग्रीक किंग मिनांडर के इशू कॉइंस पर उनके वेरियस ला स्टेजेस को शो करता हुआ पोर्ट्रेट दिखता है कॉइंस की हिस्ट्री में इंडो ग्रीक डायनेस्टी कुशानास का इंपॉर्टेंट रोल रहा था जिन्होंने फर्स्ट सेंचुरी एडी से लेकर फोर्थ सेंचुरी एडी तक नॉर्थ इंडिया पर रूल किया कुशानास ने सबसे पहली बार काफी लार्ज अमाउंट में गोल्ड कॉइंस इशू किए कुशाना कॉइन की खासियत है कि जहां एक साइड पर किंग का पोर्ट्रेट नेम और टाइटल मेंशन होता था तो दूसरी साइड किंग के फेवरेट डेटी या गॉड का पोर्ट्रेट होता होता था कुशानास अपने कॉइंस पर ब्राह्मी लैंग्वेज का इस्तेमाल करते थे वहीं गुप्ता ने पहली बार कॉइंस पर संस्कृत का इस्तेमाल शुरू किया गुप्ता ने भी काफी गोल्ड कॉइंस इशू किए जिन्हें दिनारा कहते थे गुप्ता के कॉइंस पर जनरली किंग्स को कॉम्बैट पोज में दिखाया जाता था लेकिन कुछ किंग्स अपने आर्टिस्टिक साइड को भी दिखाते थे जैसे कि समुद्र गुप्त और कुमारगुप्त वीना बजाते हुए दिखाए गए हैं एंट एरा में के एवोल्यूशन की हिस्ट्री देखने के बाद आइए अब मिडिवल एज में इसकी हिस्ट्री देखते हैं मिडिवल एरा 12थ सेंचुरी एडी के एंड तक दिल्ली में मुस्लिम रूलर का रूल आ गया था इनके द्वारा इशू किए गए कॉइंस इस्लामिक हिस्ट्री और कल्चर से इंस्पायर्ड थे सल्तनत के टर्किश रूलर ने इंडियन किंग्स के रॉयल डिजाइंस को इस्लामिक कैलीग्राफी से रिप्लेस किया इस्लामिक कल्चर में ह्यूमन फिगर्स और पोर्ट्रेट पर पाबंदियां थी इसलिए इस्लामिक रूलरसोंग्स को जित्त 1526 में मुगल साम्राज्य के स्टार्ट होने के बाद एक यूनिफाइड और स्टैंडर्डाइज्ड करेंसी सिस्टम की नीव रखी गई लेकिन मुगल्स का करेंसी सिस्टम एक्चुअली शेरशाह सूरी 1540 से 1555 से कॉपी किया गया था शेर शाह ने दिल्ली पर केवल 15 साल रूल किया लेकिन इतने कम समय में ही उन्होंने काफी एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स किए शेर शाह का करेंसी रिफॉर्म भी उन्हीं में से एक था शेर शाह ने ट्राई मेटलिक सिस्टम को स्टैंडर्डाइज किया जिसमें कॉइंस बनाने में तीन तरह के मेटल्स का इस्तेमाल होता था पहला गोल्ड कॉइंस थे जिन्हें मोहर कहते थे एक मोहर का स्टैंडर्ड वेट 169 ग्राम्स फिक्स किया गया था और यह हाईएस्ट वैल्यू की करेंसी थी दूसरा सिल्वर कॉइंस थे जिन्हें रुपया कहा जाता था एक रुपया का वेट 178 ग्राम फिक्स किया गया था शेर शाह द्वारा इंट्रोड्यूस किया गया रुपया कॉइन का फॉर्मेट अर्ली 20th सेंचुरी तक चला इसे हम मॉडर्न रुपी का प्रीक सर भी कह सकते हैं तीसरी तरह के कॉइंस थे कॉपर कॉइंस जिन्हें दाम कहा जाता था एक सिल्वर रुपया की की म 40 कॉपर दाम तक की गई थी मुगलों ने शेरशाह के ट्राई मैटालिक सिस्टम को ही आगे बढ़ाया मॉडर्न एरा आते-आते इंडिया ब्रिटिश रूल के अधीन आ गया था लेकिन 1857 तक ब्रिटिश ने मोस्टली मुगल करेंसी का ही यूज किया मिडिवल एज में करेंसी का एवोल्यूशन देखने के बाद आइए ब्रिटिश रूल और इंडिपेंडेंट इंडिया में इसका एवोल्यूशन देखते हैं ड्यूरिंग ब्रिटिश रूल एंड इंडिपेंडेंट इंडिया 1717 में ब्रिटिशर्स ने मुगल कॉइंस को मिंट करने की परमिशन मुगल रूलर फारूक सियार से ली ब्रिटिशर्स के द्वारा मिंट किए गए गोल्ड कॉइंस को कैरोलिना सिल्वर कॉइंस को एंजेलीना और कॉपर कॉइंस को कपरून कहते थे 1717 में मुगल बादशाहत भले अकबर के समय जैसी मजबूत ना बची हो लेकिन अभी भी इसकी काफी इंपॉर्टेंस थी इसलिए ब्रिटिश बिना मुगल फरमान के कॉइंस इशू नहीं कर सकते थे लेकिन 1757 के बैटल ऑफ प्लासी और 1764 के बैटल ऑफ बक्सर के बाद ब्रिटिश इंडिया के रियल रूलर बन चुके थे अब भी वह मुगल मनी का ही यूज करते थे लेकिन प्रिंट करने के लिए अब उन्हें मुगलों से परमिशन लेनी नहीं पड़ती थी 1857 की क्रांति के बाद रुपी को इंडिया का ऑफिशियल करेंसी डिक्लेयर कर दिया गया लेकिन ब्रिटिश सोवन को पोट्रे करने के लिए मुगल कैलीग्राफी की जगह कॉइंस पर अब किंग जॉर्ज द सि के पोर्ट्रेट का यूज होता था इसके बाद 1935 में पहली बार इंडिया के करेंसी सिस्टम को मैनेज करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई जब इंडिया को ब्रिटिश से आजादी मिली तो करेंसी सिस्टम में कई चेंजेज लाए गए 15th अगस्ट 1950 में आया आना सिस्टम लच किया गया यह इंडिपेंडेंट इंडिया का पहला स्वदेशी कॉइन सिस्टम था न रप को 16 पार्ट्स में डिवाइड किया गया और हर पार्ट को आना कहा जाता था न्यू आना सिस्टम के साथ ही इंडियन कॉइन के ऊपर से ब्रिटिश किंग के पोर्ट्रेट को हटा दिया गया और उसकी जगह अशोका के लायन कैपिटल ने ले ली दूसरा मेजर चेंज 1955 में कॉइन ज अमेंडमेंट एक्ट के साथ लाया गया जिसमें डेसिमल कॉइन सिस्टम इंट्रोड्यूस किया गया इस सिस्टम में एक रुपी को 100 पार्ट्स में डिवाइड किया गया जिसे पैसा कहते थे इस तरह एक रुपया में 100 पैसे होते हैं नए सिस्टम को पुराने से डिफरेंशिएबल नया रुपया कहते थे और पुराने आना सिस्टम को पुराना रुपया तो फ्रेंड्स इस तरह एंट एरा से लेकर मॉडर्न एरा तक कॉइंस और करेंसी सिस्टम का एवोल्यूशन हुआ इंडिया में पेपर करेंसी सबसे पहली बार ब्रिटिश गवर्नमेंट ने 18611 डिनॉमिनेशन का पेपर करेंसी इशू किया गया था पेपर करेंसी के यूज के कई फायदे हैं मसलन इन्हें कैरी करना काफी आसान होता है और गवर्ट को इशू करने में भी ज्यादा कॉस्ट नहीं आती आज र 10 20 50 100 500 और 2000 के पेपर नोट्स यूज किए जाते हैं ईज ऑफ यूसेज के कारण हायर डिनॉमिनेशंस में जनरली पेपर करेंसी ही इशू किया जाता है कॉइंस लोअर डिनॉमिनेशन जैसे ₹1 2 5 और 10 के इशू किए जाते हैं पेपर करेंसी के बाद डिजिटल मनी करेंसी सिस्टम का नया इनोवेशन है 21 सेंचुरी डिजिटल इंडिया का एज है आजकल मोबाइल और इंटरनेट के थ्रू ही डिजिटली पैसा ट्रांसफर कर दिया जाता है वैसे तो डिजिटल वॉलेट और फिजिकल वॉलेट में कोई ज्यादा डिफरेंस नहीं है लेकिन इसने मनी को लंबी दूरी तक ट्रांसफर करना काफी इजी कर दिया है डिजिटल मनी के बाद आजकल एक और नया इनोवेशन क्रिप्टो करेंसी भी काफी चर्चा में है इंडिया में भी इनका एडॉप्शन तेजी से हो रहा है क्रिप्टो करेंसी की खास बात है कि यह डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी है यानी कि इसे सेंट्रल गवर्नमेंट इशू नहीं करती इन्हें प्रोग्रामर्स कॉम्प्लेक्टेड कैलकुलेशंस सॉल्व कर माइंड करते हैं क्रिप्टो करेंसी के सपोर्टर्स मानते हैं कि इससे वर्ल्ड ओवर करेंसी सिस्टम को रिफॉर्म करने में मदद मिलेगी और इसे कोई गवर्नमेंट मैनिपुलेट भी नहीं कर पाएगी लेकिन कई लोग क्रिप्टो करेंसी को मनी लरिंग और टेरर फाइनेंसिंग के लिए इसका दुरुपयोग भी कर रहे हैं आने वाले समय में क्रिप्टो करेंसी को लेकर और ज्यादा क्लेरिटी होगी फ्रेंड्स अब हम वीडियो के लास्ट पार्ट की तरफ बढ़ते हैं समरी दोस्तों इस वीडियो में हमने इंडिया में करेंसी का एवोल्यूशन देखा हमने देखा कैसे पंच मार्क्ड कॉइन से करेंसी सिस्टम स्टार्ट हुआ और ओवर द एजेस कैसे इसमें न्यू इनोवेशंस जुड़ते गए हमने यह भी देखा कैसे करेंसी का एवोल्यूशन और इंसान का मटेरियल प्रोग्रेस लिंक्ड है जैसे-जैसे कॉइंस स्टैंडर्डाइज होते गए इनका एडॉप्शन बढ़ता गया और ट्रेड एंड एक्सचेंज बढ़ता गया दोस्तों अगर पुराने समय में इंडिया को सोने की चिड़िया कहा जाता था तो उसमें सबसे इंपॉर्टेंट रोल लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेड का था हरप्पा सिविलाइजेशन के समय से ही हमारे ट्रेडर्स लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेड कर रहे थे लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेड को फैसिलिटेट करने में सबसे इंपॉर्टेंट इंग्रेडिएंट्स सिस्टम का होता है और इंडियन किंग्स ने पूरी हिस्ट्री में एक स्टेबल करेंसी सिस्टम देने की कोशिश की है दोस्तों शशि थरूर अपनी बुक एन एरा ऑफ डार्कनेस द ब्रिटिश एंपायर इन इंडिया में कहते हैं कि ब्रिटिश के आने से पहले इंडिया 23 वर्ल्ड जीडीपी कंट्रोल करता था और इंडिया के गुड्स दुनिया के हर कोने में जाते थे इससे हम समझ सकते हैं कि एसिएंट मीडिएवल एरा में हमारा ट्रेड और करेंसी सिस्टम कितना सोफिस्टिकेटेड था आज इंडिया वर्ल्ड की फास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनमी में से एक है और कोशिश यही है कि 2030 तक वर्ल्ड की टॉप तीन में शामिल हो जाए इसके लिए ट्रेड एक्सपोर्ट्स सर्विसेस मैन्युफैक्चरिंग सभी सेक्टर्स को इंडिया के ग्रोथ में कंट्रीब्यूट करना पड़ेगा कैलेंडर ऑफ इंडिया वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह फ्रेंड्स जब सिविलाइजेशन हंटिंग गैदरिंग से सेटल लाइफ की तरफ बढ़ा तो पहली बार टाइम कीपिंग की जरूरत महसूस हुई ट्रेड फेस्टिवल्स रिलीजस गैदरिंग्स और एडमिनिस्ट्रेशन को मैनेज करने के लिए टाइम इंपॉर्टेंट था वैसे तो ह्यूमंस सन की पोजीशन का यूज करके डे का टाइम बता सकते थे लेकिन टाइम का रिकॉर्ड रख पाना मुश्किल था कैलेंडर का इन्वेंशन इस इंपॉर्टेंट नीड को अड्रेस करने के लिए किया गया था ताकि डेज मंथ्स यर्स का रिकॉर्ड रखा जा सके इंडिया में कैलेंडर का डेवलपमेंट एस्ट्रोनॉमी के डेवलपमेंट से लिंक था एंट इंडियन एस्ट्रोनर्जी और वारा मरा ने अर्थ का सन के अराउंड रिवॉल्व करने के समय को काफी एक्युरेटली कैलकुलेट कर लिया था इनकी कंट्रीब्यूशंस ने इंडिया में कैलेंडर के डेवलपमेंट को पुश किया कैलेंडर डेवलपमेंट में सलेलकर की रिलेटिव पोजीशंस काफी इंपॉर्टेंट थे आसमान में इनके रिलेटिव पोजीशन को डिटरमिन कर एंसेट इंडियंस ने कई प्रकार के कैलेंडर बनाए फ्रेंड्स आइए इस वीडियो में इंडिया की की कैलेंडर मेकिंग हिस्ट्री और मेथड को ब्रीफ में देखते हैं हिस्ट्री ऑफ कैलेंडर मेकिंग इन इंडिया इंडिया की कैलेंडर मेकिंग हिस्ट्री काफी पुरानी है और यह वैदिक एज से स्टार्ट हो जाती है वेदों का एक अंग ज्योतिष को माना गया है ज्योतिष डिसिप्लिन में सिलेस्ट बॉडीज जैसे कि अर्थ सन मून कांस्टेलेशंस की पोजीशंस को स्टडी कर टाइम को डिटरमिन किया जाता था ऐसा इसलिए जरूरी था क्योंकि वैदिक रिचल को परफॉर्म करने के लिए सिलेसियन बॉडीज का ऑस्पी अस या शुभ पोजीशन डिटरमिन करना जरूरी माना जाता था एंसेट इंडियंस ने सोलर ईयर यानी अर्थ का सन के अराउंड एक चक्कर का टाइम काफी एक्युरेटली डिटरमिन कर लिया था आर्यभट्ट अपने ग्रंथ आर्य भटैया में यह समय को 365 डेज 6 आवर्स 12 मिनट्स और 30.8 4 सेकंड्स बताते हैं यह मॉडर्न साइंटिफिक कैलकुलेशन से निकला 365 डेज 5 आवर्स 59 मिनट्स और 16 सेकंड्स के काफी क्लोज है मिडिवल एज आते-आते इंडिया में लगभग 30 अलग-अलग प्रकार के कैलेंडर हो गए थे यह सारे कैलेंडर रीजन हिस्ट्री और कल्चर के आधार पर वेरी करते थे लेकिन कुछ बातें इनमें कॉमन थी जैसे कि इन कैलेंडर में ईयर या साल को कैलकुलेट करने के लिए मुख्य रूप से तीन ही फॉर्मेट का उपयोग किया जाता था यह तीन फॉर्मेट है सोलर ईयर लूनर ईयर और लूनी सोलर ईयर इसके अलावा महीनों का नाम जैसे कि चैत्र वैशाख कार्तिक एटस भी डिफरेंट कैलेंडर में सिमिलर हैं हालांकि रीजन के हिसाब से कुछ वेरिएशंस देखने को मिलते हैं जैसे कि वैशाख को एसएमज में बोहाग और बंगाली में बोसाक कहते हैं दोस्तों आज के समय में इंडिया में प्रचलित कुछ कैलेंडर के बारे में जानने से पहले आइए सोलर ईयर लूनर ईयर और लूनी सोलर ईयर को समझते हैं यह ईयर या साल को डिटरमिन करने के लिए बहुत इंपॉर्टेंट है और कैलेंडर में वेरिएशन इन्हीं की वजह से आता है ईयर या साल डिटरमिन करने के लिए तीन मेन तरीके हैं पहला सोलर ईयर अर्थ को सन के अराउंड एक चक्कर काटने में जितना समय लगता है उसे हम सोलर ईयर कहते हैं सोलर कैलेंडर अर्थ का सन के अराउंड एक चक्कर को एक ईयर कंसीडर करते हैं लेकिन साइंटिफिक ली देखें तो अर्थ को सन का एक चक्कर लगाने में 365 डेज 5 आवर्स 59 मिनट्स और 16 सेकंड्स लगते हैं लेकिन एक कैलेंडर ईयर तो 365 डेज का ही होता है तो बाकी का समय कहां गया एक्चुअली बाकी समय को कैलेंडर में ऐड कर दिया जाता है और इसे ऐड करने के हर कैलेंडर के डिफरेंट मेथड्स हैं कैलेंडर का एक साल और वन सोलर ईयर के बीच सिंक्रोनाइजेशन होना जरूरी है तभी सीजंस और फेस्टिव फल्स एक फिक्स्ड टाइम ऑफ द ईयर में फॉल करेंगे कुछ कैलेंडर जैसे हिजरी कैलेंडर कैलेंडर ईयर और सोलर ईयर के बीच के डिफरेंस को कैलेंडर में ऐड नहीं करते हैं इससे सीजंस और फेस्टिवल एक फिक्स्ड कैलेंडर टाइम में नहीं आते इस एस्पेक्ट को हम आगे हिजरी कैलेंडर में डिटेल में देखेंगे ईयर कैलकुलेट करने का दूसरा तरीका है मोन का अर्थ के अराउंड रेवोल्यूशन या लूनर ईयर लूनर ईयर लूनर ईयर में भी सोलर ईयर की तरह 12 मंथ्स ही होते हैं लेकिन लूनर कैलेंडर में मंथ को मून के मूवमेंट से डिटरमिन किया जाता है एक लूनर मंथ टू सक्सेसिव फुल मस यानी पूर्णिमा या टू सक्सेसिव न्यू मस या अमावस्य के बीच का टाइम होता है यह टाइम ऑन एन एवरेज 29.5 डेज का होता है और इस टाइम को 12 से मल्टीप्लाई करने पर 354 आता है इसलिए लूनर ईयर 350 डेज का होता है यह सोलर कैलेंडर के हिसाब से 11 दिन कम है सोलर ईयर से लूनर कैलेंडर को रेकन साइल करने के लिए हर ढाई साल के बाद लूनर कैलेंडर में एक एक्स्ट्रा मंथ जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं ऐसा करने से सीजंस और फेस्टिवल्स कैलेंडर ईयर के फिक्स्ड टाइम पर पड़ते हैं यर डिटरमिन करने का तीसरा तरीका है लूनर और सोलर ईयर का कॉमिनेशन जिसे हम लूनी सोलर ईयर कहते हैं लूनी सोलर यर इस सिस्टम में यर सोलर साइकिल से कैलकुलेट किया जाता है और मंथ्स मून के साइकिल से दोस्तों जितने भी कैलेंडर हम आगे देखेंगे वह सब टाइम और ईयर को डिटरमिन करने के लिए इन्हीं तीन में से एक तरीके को फॉलो करते हैं आइए अब चार मेन टाइप्स के कैलेंडर को देखा जाए जो मॉडर्न इंडिया में फॉलो होते हैं यह चार कैलेंडर हैं विक्रम कैलेंडर साखा कैलेंडर हिजरी कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर विक्रम कैलेंडर विक्रम कैलेंडर विक्रम एरा या विक्रम संवत से स्टार्ट होता है 56 बीसी को विक्रम संवत का स्टार्टिंग ईयर माना जाता है यानी कि यह क्रिश्चियन एरा स्टार्ट होने के 56 साल पहले से ही शुरू हो गया था कई हिस्टोरियंस ऐसा मानते हैं कि विक्रम संवत की शुरुआत उज्जैन के किंग विक्रमादित्य ने साका डायनेस्टी के रूलर पर अपनी विक्ट्री को मार्क करने के लिए की थी विक्रम कैलेंडर इंडिया और नेपाल में रहने वाले हिंदू के द्वारा मोस्टली फॉलो किया जाता है हिंदू रिलीजस फेस्टिवल्स की डेट्स विक्रम कैलेंडर पर ही बेस्ड होती हैं यह कैलेंडर मून के मूवमेंट पर बेस्ड है इसीलिए यह लूनर कैलेंडर की श्रेणी में आता है नए साल की शुरुआत चैत्र मंथ में न्यू मून या अमावस्य के अगले दिन से होती है जो कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से मार्च अप्रैल में पड़ता है हालांकि इंडिया के कुछ रीजंस में कार्तिक महीने के फर्स्ट डे जो कि जनरली अक्टूबर में पड़ता है उसको भी न्यू ईयर डे की तरह सेलिब्रेट करते हैं क्योंकि यह लूनर कैलेंडर हैं तो साल में 354 डेज और 12 मंथ्स होते हैं 12 मंथ्स के नाम इस प्रकार हैं चैत्र वैशाख जेष्ठ आषाढ श्रावण भाद्रपद अश्विन कार्तिक मार्ग शर्षा पौष माघ और फागुन हर मंथ दो फोर्टनाइट्स में डिवाइडेड होते हैं शुक्ल पक्ष या ब्राइट हाफ और कृष्ण पक्ष या डार्क हाफ शुक्ल पक्ष अमावस्या या न्यू मून के अगले दिन से स्टार्ट होता है और पूर्णिमा या फुल मून को खत्म होता है उसी प्रकार कृष्ण पक्ष पूर्णिमा के अगले दिन से स्टार्ट होता है और अमावस्या के दिन खत्म होता है नए मंथ की शुरुआत कृष्ण पक्ष से होती है कैलेंडर ईयर को सोलर साइकिल से रेकन साइल करने के लिए हर ढाई साल बाद इस कैलेंडर में एक एक्स्ट्रा मंथ ऐड कर दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं विक्रम कैलेंडर के बाद आइए सका कैलेंडर के बारे में जाने जो इंडिया का नेशनल कैलेंडर भी है साका कैलेंडर इस कैलेंडर की शुरुआत किंग शालीवाहन ने 78 एडी में की थी इसे साका एरा भी कहा जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि किंग शालीवाहन साका ट्राइब से ही बिलोंग करते थे साका कैलेंडर लूनी सोलर कैलेंडर है इसका मतलब है कि इसमें लूनर मंथ्स और सोलर ईयर्स होते हैं साका कैलेंडर के मंथ्स भी विक्रम कैलेंडर के जैसे ही हैं इसी के साथ साका कैलेंडर जनरली 22 मार्च से स्टार्ट होता है और लीप ईयर में 23 मार्च से साका कैलेंडर के मंथ्स में फिक्स्ड नंबर ऑफ डेज होते हैं साल में 12 मंथ्स और 365 डेज होते हैं लीप ईयर हर 4 साल बाद आता है जिसमें 366 डेज होते हैं साका कैलेंडर चैत्र से स्टार्ट होता है जिसके बाद वैशाख जेष्ठ आषाढ श्रावण भाद्रपद अश्विन कार्तिक मार्ग शशा पौष माघ और फागुन आता है साका कैलेंडर को 1957 में इंडिया का नेशनल कैलेंडर घोषित किया गया था इसका मतलब है कि गवर्नमेंट के हर ऑफिशियल नोटिफिकेशन या कम्युनिकेशन में पॉपुलर ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ सखा कैलेंडर के हिसाब से ट एंड टाइम मेंशन होता है सका कैलेंडर और विक्रम कैलेंडर के मंथ्स के नाम लगभग सिमिलर हैं साका कैलेंडर के बाद आइए नजर डालते हैं हिजरी कैलेंडर पर जिसे मुस्लिम्स फॉलो करते हैं हिजरी कैलेंडर इस कैलेंडर का ओरिजिन अरब में हुआ था पहले इसे अमूल फिल कहा जाता था लेकिन प्रोफेट मोहम्मद की डेथ के बाद इसे हिजरी या हिजरा कहा जाने लगा असल में हिजरी टर्म प्रॉफिट मोहम्मद के मैक्का से मदीना के हिजरत को डिनोट करता है माना जाता है कि यह इवेंट 6228 में हुआ था जिसे हिजरी एरा का जीरो ईयर डिक्लेयर किया गया यानी कि हिजरी कैलेंडर का स्टार्टिंग पॉइंट 622 एडी है इस कैलेंडर में मंथ के ड्यूरेशन का कैलकुलेशन लूनर साइकिल से किया जाता है इस तरह वन मंथ अराउंड 29.5 डेज का होता है और साल में 12 मंथ्स और 354 डेज होते हैं हिजरी कैलेंडर हिंदू कैलेंडर की तरह लूनर ईयर और सोलर ईयर के बीच के डिफरेंस को एक्स्ट्रा मंथ डालकर रेकन साइल नहीं करती है इससे एक प्रॉब्लम तो यह आती है कि यह अप्रॉक्सिमेट्स की तुलना में 1 साल पीछे चला जाता है हाइपोथेटिकली अगर मान लिया जाए आज ईयर 2008 है तो 30 साल बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से 2030 एडी होगा लेकिन हिजरी कैलेंडर के हिसाब से यह केवल 2029 एडी ही होगा दूसरी प्रॉब्लम यह आती है कि इससे सीजंस मंथ्स और फेस्टिवल्स का सिंक्रोनाइजेशन नहीं रहता इसका मतलब है कि मान लिया जाए रमजान का महीना अभी समज में पड़ता है लेकिन कुछ सालों बाद यह विंटर्स में पड़ेगा हिजरी कैलेंडर के 12 मंथ्स इस प्रकार हैं मुहर्रम सफर रबी शव्वाल रब उ सानी जमादी उल अव्वाल जमादी उ सानी रजब शाबान रमजान शव्वाल जिलकाद और जिल हिजा मुहर्रम हिजरी कैलेंडर का पहला मंथ होता है और जिल हिजा आखरी एंड में ग्रेगोरियन कैलेंडर को देख लें जो यूनिवर्सलीस पॉपुलर भी है ग्रेगोरियन कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर क्रिश्चियनिटी के फाउंडर जीसस क्राइस्ट की बर्थ से स्टार्ट होता है जीसस का बर्थ ग्रेगोरियन कैलेंडर का स्टार्टिंग पॉइंट है यह सोलर साइकिल को फॉलो करता है और 1 साल में 12 महीने और 365 दिन होते हैं लेकिन एक सोलर साइकिल तो 365 डेज 5 आवर्स 59 मिनट्स और 16 सेकंड्स का होता है एक्स्ट्रा 5 आवर्स 59 मिनट्स और 16 सेकंड्स को कैलेंडर में हर 4 साल के बाद वन एक्स्ट्रा डे के फॉर्म में डाल दिया जाता है इसे लीप ईयर भी कहते हैं लीप ईयर में फरवरी में 28 डेज की अपेक्षा 29 डेज होते हैं ग्रेगोरियन कैलेंडर वर्ल्ड में मोस्ट फॉलो कैलेंडर है और इंडिया में भी अब मोस्टली यही यूज होता है ग्रेगोरियन कैलेंडर के 12 मंथ्स जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल म जून जुलाई अगस्ट सितंबर अक्टूबर नवंबर और दिसंबर हैं फ्रेंड्स अब हम वीडियो के लास्ट पार्ट की तरफ बढ़ते हैं समरी इस वीडियो में हमने देखा कि कैसे इंडिया में कैलेंडर का एवोल्यूशन हुआ हमने कैलेंडर बनने के मोस्ट इंपॉर्टेंट कांसेप्ट सोलर ईयर लूनर ईयर और लूनी सोलर ईयर को भी समझा इंडिया का कैलेंडर मेकिंग ट्रेडीशन काफी पुराना है और यह इस बात का प्रतीक है कि एंसेट इंडिया में साइंस और टेक्नोलॉजी कितना डिवेलप था हमने यह भी देखा कैसे इंडियन एस्ट्रोनॉमिकली सोलर ईयर को कैलकुलेट किया था उनकी कैलकुलेशंस ही कैलेंडर को बनाने का बेस था इंडिया का कैलेंडर मेकिंग ट्रेडीशन इंडिया से बाहर निकलकर दुनिया के कई पार्ट्स में स्प्रेड हुआ चाइनीज हिब्रू और बेबिलोनिया कैलेंडर भी इंडिया के कैलेंडर मेकिंग ट्रेडीशन से इंस्पायर्ड थे इंडियन लिटरेचर पार्ट वन वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह लिटरेचर या साहित्य को सोसाइटी का मिरर कहा जाता है लिटरेचर सोसाइटी की कंडीशंस को रिफ्लेक्ट करता है लिटरेचर के माध्यम से हम अपने पास्ट में जा सकते हैं और अपने आंसेस्टर्स के पर्सपेक्टिव्स को समझ सकते हैं इससे ना केवल हम अपने प्रेजेंट कल्चर और सोसाइटी को बेटर अंडरस्टैंड कर सकते हैं बल्कि अपनी फ्यूचर ट्रेजे क्ट्री को भी प्रिडिक्ट करने में हेल्प ले सकते हैं इसलिए सोसाइटी के लिए लिटरेचर काफी इंपॉर्टेंट होता है अगर हम अपनी कंट्री इंडिया को ही ले ले तो इसके लिटरेरी ट्रेडिशनल स्ट्रंग रहे हैं वेदास को वर्ल्ड के वन ऑफ द ओल्डेस्ट लिटरेचर्स में से एक माना जाता है यह इंडियन सिविलाइजेशन का ओल्डेस्ट सर्वाइविंग टेक्स्ट है वेदास को संस्कृत लैंग्वेज में लिखा गया था संस्कृत और वेदास को एक्चुअली सनातन धर्म और इंडियन सिविलाइजेशन का फाउंडेशन स्टोन भी कह सकते हैं वेदास जहां रिलीजस लिटरेचर को रिप्रेजेंट करते हैं वहीं एसिंट इंडिया में कई नॉन रिलीजस लिटरेचर्स भी लिखे गए कालिदास के द्वारा लिखे गए ड्रामा और पोएट्री मास्टर पसेस से कम नहीं इन्हें ना केवल इंडिया बल्कि वर्ल्ड के कई लैंग्वेजेस में ट्रांसलेट भी किया गया है इंडिया की लिटरेरी हिस्ट्री एक्चुअली अनब्रोकन चेन की तरह है जो हमारे प्रेजेंट को पास्ट से कनेक्ट करती है फ्रेंड्स आज की वीडियो में हम इंडिया की लिटरेरी हिस्ट्री को समझेंगे इस वीडियो में हमारा फोकस संस्कृत पाली प्राकृत और द्रविडियन लैंग्वेजेस के लिटरेचर पर होगा संस्कृत वर्ल्ड की वन ऑफ द ओल्डेस्ट सर्वाइविंग लैंग्वेजेस में से है जिसका डेवलपमेंट वैदिक एज अराउंड 1500 बीसी से स्टार्ट हुआ था संस्कृत को मदर ऑफ ऑल इंडो एरियन लैंग्वेजेस कहा गया है क्योंकि इसका इन्फ्लुएंस ना केवल प्राकृत पाली द्रविडियन लैंग्वेजेस पर दिखता है बल्कि आज बोली जाने वाली लैंग्वेजेस जैसे हिंदी बंगाली एमीज एट्स भी संस्कृत से बोरो करती हैं एशियंट इंडिया के संस्कृत टचर में वेदस उपनिषद पुराण और कई नॉन रिलीजस टेक्स्ट जैसे कोटिल का अर्थशास्त्र कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम एटस इंक्लूडेड है तो चलिए स्टार्ट करते हैं संस्कृत लिटरेचर से संस्कृत लिटरेचर की स्टार्टिंग वेदास से होती है वेदास वेद का लिटरल मीनिंग होता है नलेज सनातन धर्म में वेद को डिवाइन या इटरनल माना जाता है वैसे तो वेदाज को सनातन धर्म का सीक्रेड टेक्स्ट माना गया है लेकिन वैदिक नॉलेज किसी पर्टिकुलर सेक्ट या जियोग्राफिक एरिया तक रिस्ट्रिक्टेड नहीं है यह पूरे यूनिवर्स को वन फैमिली ट्रीट करती है वेदास में लिखे चांटिंग्स और प्रेयर्स पीस प्रोस्पेरिटी हेल्थ और हैप्पीनेस की कामना करते हैं हिस्टोरियंस मानते हैं कि वेदास 3000 बीसी से 1000 बीसी के बीच कंपोज किए गए थे लंबे समय तक इन्हें जनरेशन टू जनरेशन ओरली ट्रांसमिट किया जाता था अराउंड 600 बीसी में वेदाज रिटन फॉर्म में कंपाइल किए गए वेदाज चार मेजर टाइप्स के हैं ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद वेदों में ऋग्वेद ओल्डेस्ट है इसमें 1028 इंडिविजुअल संस्कृत हिम्स हैं ऋग्वेद किसी भी इंडो आरियन लैंग्वेज का ओल्डेस्ट सर्वाइविंग कंपोजिशन है ऋग्वैदिक भजनस मोस्टली लाइफ डेथ क्रिएशन सैक्रिफाइस जैसी थीम्स पर बेस्ड हैं मोस्टली ऋग्वैदिक हिम्स इंद्र यानी रेन गॉड को डेडिकेटेड हैं इसलिए इंद्र को चीफ ऋग्वैदिक डेटी माना जाता है इंद्र के अलावा भी ऋग्वेद में कुछ गॉड्स मेंशन है जैसे अग्नि गॉड ऑफ फायर वरुण गॉड ऑफ वाटर रुद्र गॉड ऑफ विंड और स्टोम आदित्य सन गॉड वायु गॉड ऑफ व और अश्विनी ट्विंस कई ऋग्वैदिक भजन फीमेल गॉड्स को भी डेडिकेटेड हैं जैसे उषा गॉडेस ऑफ डॉन पृथ्वी गॉडेस ऑफ अर्थ और वाक गॉडेस ऑफ स्पीच हिस्टोरियंस मानते हैं कि ऋग्वेद के समय सोसाइटी मोस्टली नेचर वरशिपर्स थी और हमारे गॉड्स भी नेचर से ही इंस्पायर्ड थे ऋग्वेद के बाद यजुर्वेद पर चलते हैं यजुर्वेद यजुर का मतलब सैक्रिफाइस होता है और यजुर्वेद मोस्टली मंत्र और रिचुअल्स पर फोकस करता है जो वैदिक टाइम्स में सैक्रिफाइस के काम आता था रिचुअल्स पर फोकस के कारण इसे रिचुअल वेद भी कहते हैं क्योंकि यह प्रीस्ट्स या ऋषि के के लिए गाइड बुक की तरह था जो सैक्रिफिशियल रिचुअल्स कंडक्ट करते थे यजुर्वेद के बाद सामवेद को समझते हैं सामवेद साम का मतलब होता है मेलोडी या सोंग्स सामवेद में 18753 प इसके फोकस के कारण इसे बुक ऑफ चैंस भी कहते हैं सामवेद इस बात का प्रूफ है कि इंडियन म्यूजिक का डेवलपमेंट वैदिक जज में ही शुरू हो गया था आखिरी वेद है अथर्व वेद अथर्व वेद अथर्व वेद को ब्रह्म वेद भी कहा जाता है इसका श्रेय अथर्व और अंगिरा नाम के दो ऋषि को दिया जाता है इस इसलिए पुराने जमाने में इसे अथर्व गिरासाेले लाइफ में शांति और समृद्धि से संबंधित है लेकिन विशेष रूप से यह कई बीमारियों के उपचार पर भी केंद्रित हैं अथर्व वेद में 99 बीमारियों के उपचार की विधि लिखी है हालांकि उपचार की विधि ज्यादातर मंत्रास और क्रियाज पर केंद्रित है इसलिए कुछ लोग इसे कभी-कभी काला जादू की किताब भी कहते हैं वेदास को समझने के लिए वैदिक एज के बाद आए स्कॉलर्स ने वेदंगास या ब्रांचेस या लिम्स ऑफ वेदास को डिफाइन किया मुख्य रूप से सिक्स वेदांग है शिक्षा यानी एजुकेशन निरुक्त यानी एटमो जीी छंद मैट्रिक्स इन संस्कृत ग्रामर ज्योतिष यानी एस्ट्रोनॉमी और व्याकरण यानी ग्रामर पाणिनी की अष्ट अध्याय जो कि अरा 400 बीसी में लिखी गई थी वेदांग का वन ऑफ द बेस्ट एग्जांपल है यह संस्कृत ग्रामर के रूल्स को डिफाइन करती है और वेदास की अंडरस्टैंडिंग को इजी बनाती है वेदाज के ऊपर कई कमेंट्रीज भी लिखी गई हैं जो वैदिक मंत्रास का डिटेल एक्सप्लेनेशन प्रोवाइड करती हैं और इन्हें ब्राह्मणा कहते हैं ब्राह्मणा को भी दो पार्ट में डिवाइड किया जा सकता है पहले पार्ट को ब्राह्मणा कहते हैं और यह वैदिक और सैक्रिफाइस का डिटेल एक्सप्लेनेशन प्रोवाइड करती है दूसरे पार्ट को अरण्यक कहते हैं जो कि सोल बर्थ डेथ और उसके बियोंड जैसी एब्स्ट्रेक्ट टॉपिक्स पर फोकस करती है अरण्य कस के फाइनल पार्ट को उपनिषद कहते हैं जिनका डेवलपमेंट बाद में हुआ और इनका फोकस प्रिंसिप फिलोसॉफिकल क्वेश्चन को एड्रेस करना था वेदास को समझते हुए हमें एक बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि इसका लीनियर डेवलपमेंट नहीं हुआ है मतलब है कि ओवर द एजेस ऋषि सेजेस इसमें एड ऑनस करते गए ओवर द इयर्स वेदास पर कई सारी कमेंट्रीज लिखी गई जिन्हें बाद में वेदास का पाठ मान लिया गया वेदास के बाद उपनिषद को समझते हैं जिन्हें वेदांत भी कहा जाता है उपनिषद उपनिषद का लिटरल मीनिंग होता है गुरु के सानिध्य में बैठना उपनिषद एक्चुअली में हमारे गुरु शिष्य परंपरा को रिप्रेजेंट करते हैं उपनिषद का ज्ञान शिष्य अपने गुरु के पास बैठकर लिया करते थे उपनिषद संस्कृत में लिखे गए हैं और क्योंकि यह वेदास का लास्ट पार्ट है इन्हें वेदांत भी कहा जाता है उपनिषद जनरली फिलोसॉफिकल क्वेश्चंस जैसे लाइफ डेथ साल्वेशन जैसे इश्यूज को डील करते हैं वैसे तो 200 उपनिषद लिखे गए हैं लेकिन इनमें 108 पॉपुलर हैं वेदास की तरह उपनिषद रिचुअल्स को प्रोपेट नहीं करते हैं बल्कि राइट नॉलेज और राइट बिलीव्स पर फोकस करते हैं कठोपनिषद मुंडक उपनिषद डोज उपनिषद श्वेता अश्व अवतार उपनिषद कुछ पॉपुलर उपनिषद है सत्यमेव जयते यानी कि ट्रुथ अलोन ट्राम्स जो इंडिया के नेशनल एलेम में इंस्क्राइनॉक्स है एक्चुअली में मुंड को उपनिषद से लिया गया है उपनिषद के बाद अब पुराणा को समझते हैं जो उस समय आम जनता में काफी पॉपुलर थे पुरानस पुराणा एंट इंडियन मिथल कल टेक्स्ट हैं जिनमें यूनिवर्स के फॉर्मेशन से लेकर डिस्ट्रक्शन की कहानी लिखी गई है वैसे तो पुराणा किंग्स सेजेस गॉड्स डेमी गॉड्स सबकी कहानी बताते हैं लेकिन इनका मेन फोकस हिंदू ट्रिनिटी ब्रह्मा विष्णु और महेश पर है पुराणा 18 हैं और हर एक किसी इंपॉर्टेंट गॉड की कहानी बताता है और उनके अराउंड फिलोसॉफिकल और रिलीजस कांसेप्ट को भी एक्सप्लेन करता है पुराणा इस को काफी सिंपल लैंग्वेज में स्टोरी फॉर्म में लिखा गया था इसीलिए वह वेदाज के कंपैरिजन में कॉमन पीपल में काफी पॉपुलर हुए पुराणा की पॉपुलर ने एक अलग जनर उप पुराणा या माइनर पुराणा को जन्म दिया उप पुराणा भी पुराणा की तरह स्टोरी फॉर्मेट में है और यह इंपॉर्टेंट डेटी की कहानी बताते हैं वेदास उपनिषद और पुराणा के बाद आइए रामायण और महाभारत के बारे में जाने जो हिंदू सोसाइटी के कलेक्टिव मेमोरी में स्थापित हो गए हैं रामायण ओवर द एजेस रामायण के कई वर्जंस लिखे गए लेकिन मोस्ट पॉपुलर और मोस्ट श्रद्धेय वर्जन वाल्मीकि के द्वारा लिखी गई रामायण है रामायण को आदि काव्य यानी अर्लीस्ट एपिक भी कहा जाता है और वाल्मीकि को आदिक कवि यानी अर्लीस्ट पोएट वाल्मीकि रामायण 24000 वर्सेस यानी छंद के फॉर्म में लिखी गई है जिन्हें सेवन पार्ट्स में डिवाइड किया गया है ह पाठ को कांड कहते हैं और हर कांड प्रभु श्री राम और मां सीता की लाइफ के कुछ इंपॉर्टेंट इवेंट्स को दर्शाता है युद्ध कांड में श्री राम ने डी मन किंग रावण पर विजय प्राप्त की और मां सीता को लंका से वापस लेकर आए रामायण बुराई पर अच्छाई की जीत को रिप्रेजेंट करता है इसके साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लाइफ के थ्रू सनातन धर्म के चार पुरुषार्थस धर्म अर्थ काम मोक्ष को अचीव करने का प्रैक्टिकल पाथ बताया गया है अब बात करते हैं महाभारत की महाभारत रामायण की तरह ही महाभारत के भी डिफरेंट वर्जन हैं इनमें सबसे पॉपुलर वेदव्यास के द्वारा लिखा हुआ है वेदव्यास के लिखे वर्जन में 8800 वर्सेस थे और इसे जय कह थे टाइम के साथ स्कॉलर्स ने कई स्टोरीज इसमें ऐड की जिससे नंबर ऑफ वर्सेस 24000 हो गए प्राचीन वैदिक ट्राइव भारता के नाम पर इसे भारत कहा गया करंट फॉर्म में न लाख वर्सेस हैं और इसे महाभारत कहते हैं महाभारत कौरवास और पांडवास के बीच के कॉन्फ्लेट को दर्शाता है कहानी के मेन सूत्रधार श्री कृष्ण हैं जिन्हें सनातन धर्म में विष्णु का अवतार मानते हैं महाभारत के अंदर ही सनातन धर्म का एक और सबसे इंपॉर्टेंट टेक्स्ट भागवत गीता भी है भागवत गीता एक्चुअली युद्ध से पहले अर्जुन को दिया श्री कृष्ण का संदेश है जब अर्जुन युद्ध में अपने रिलेटिव्स को देखकर हिचक रहे थे तो श्री कृष्ण ने उन्हें भागवत गीता का उपदेश दिया इसमें कृष्ण ने धर्म कर्म और राइच अस लिविंग की बात की है माना जाता है कि भागवत गीता के द्वारा श्री कृष्ण ने कॉम्लेक्स सनातन फिलोसोफी को कंसा फॉर्म में ह्यूमन सोसाइटी के बेनिफिट के लिए समझाया है वेदास पुराण उपनिषद जैसे रिलीजस लिटरेचर के अलावा संस्कृत लैंग्वेज में कई नॉन रिलीजस लिटरेचर भी लिखे गए इनमें ड्रामा पोएट्री प्रोज साइंटिफिक टेक्स्ट एटस शामिल है तो आइए कुछ नॉन रिलीजस संस्कृत लिटरेचर देखें नॉन रिलीजस लिटरेचर अगर संस्कृत ड्रामा की बात करें तो कालिदास शुद्र का वैशाख दत्त भाव भूति भाषा कुछ पॉपुलर नेम्स हैं कालिदास के द्वारा लिखा गया अभिज्ञान शाकुंतलम रिकग्निशन ऑफ शकुंतला वन ऑफ द मोस्ट पॉपुलर संस्कृत ड्रामा है इसमें किंग दुष्यंत और शकुंतला की कहानी है कैसे वह फॉरेस्ट में मिलते हैं फिर अलग हो जाते हैं और अपने बेटे भरत के कारण रीयूनाइट हो जाते हैं किंग भरत आगे चलकर भरत डायनेस्टी स्टेबलिंग भरत और भरत वंश से ही डिराइवर वासिया यानी लव स्टोरी ऑफ विक्रम एंड उर्वशी मालविका अग्नि मित्र यानी लव स्टोरी ऑफ मा विका एंड अग्निमित्र संस्कृत पोएट्री में भी कालिदास के कुमार संभव रघुवंश मेघदूतम ऋतु संभरा जैसी पोयम्स पॉपुलर हैं कालिदास के अलावा हरि सेन पॉपुलर पोएट थे जिन्होंने समुद्र गुप्त की ब्रेवरी को डिस्क्राइब करते हुए कई पोयम लिखी हरि सेन की लिखी पोयम इतनी अप्रिशिएट की गई थी कि समुद्रगुप्त के अलाहाबाद पिलर इंक्रिप्शन में उसे जगह दी गई है 500 बीसी से 200 बीसी के बीच संस्कृत में कई ऐसी बुक्स लिखी गई जिन्हें बुक्स ऑफ लॉ कहते हैं धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र इस कैटेगरी में आते हैं इनमें हिंदू सोसाइटी को गवर्न करने के लिए रूल्स और रेगुलेशंस को डिस्क्राइब किया गया जैसे रूल्स फॉर ट्रांसफरिंग प्रॉपर्टी फ्रॉम फादर टू सन पनिशमेंट फॉर क्राइम्स एट मनुस्मृति भी धर्म सूत्र ट्रेडिशनल है जो सोसाइटी में मैन और वुमन के रोल्स को डिस्क्राइब करता है मनुस्मृति कास्ट बेस्ड सोसाइटी को सही मानता है और एक ही क्राइम के लिए डिफरेंट कास्ट के लोगों को डिफरेंट पनिशमेंट प्रिसक्राइब करता है इसके कारण कई लोग इसे कंट्रोवर्शियल टेक्स्ट भी मानते हैं मोरियन पीरियड का अर्थशास्त्र भी इंपॉर्टेंट संस्कृत वर्क है मोरियन पीरियड की सोसाइटी एडमिनिस्ट्रेशन और इकोनॉमिक कंडीशन को समझने के लिए अर्थशास्त्र इंपॉर्टेंट है इसे चाणक्य या विष्णु गुप्त ने था जो चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री भी थे चाणक्य की कई बातें आज भी डिप्लोमेसी और स्टेट क्राफ्ट के लिए इंपॉर्टेंट मानी जाती हैं संस्कृत लिटरेचर के बाद आइए पाली और प्राकृत लिटरेचर पर नजर डाले लिटरेचर इन पाली एंड प्राकृत पोस्ट वैदिक एज में संस्कृत लिटरेचर के अलावा पाली और प्राकृत में भी लिटरेचर कंपोज किए गए पाली और प्राकृत लैंग्वेज को प्रॉमिनेंट बनाने में बुद्धिस्ट और जैन मंस का काफ इंपोर्टेंट रोल रहा है धीरे-धीरे यह दोनों लैंग्वेजेस लैंग्वेजेस ऑफ द कॉमन पीपल बन गई कहा जाता है कि बुद्ध अपने सर्मन पाली लैंग्वेज में देते थे बुद्धिस्ट के मोस्ट इंपॉर्टेंट रिलीजियस लिटरेचर त्रिपत कास यानी विनय पित का सुत पित का अभ धम्म पित का को भी पाली में ही कंपोज किया गया है विनय पीत का डेली लाइफ के रूल्स और रेगुलेशन से डील करता है सुत पीत मोरालिटी और धम्म जैसे सब्जेक्ट से डील करता है और अभी धम्म पीत का फिलॉसफी और मेटा फिजिक्स से बुद्धिस्ट नॉन रिलीजस लिटरेचर का बेस्ट एग्जांपल जातिका स्टोरीज है जातिका बुद्धा के प्रीवियस बर्थस की स्टोरीज का कंपिलेशन है माना जाता है कि बुद्ध गौतम बनने के पहले 550 बर्थ से होकर गुजरे जातिका स्टोरीज में पॉपुलर मिथ्स फो क्लोस मोरल स्टोरीज का यूज कर राइच अस लिविंग का संदेश दिया गया है बुद्धिज्म के साथ ही जनजम रिलीजन का भी साइमल नियस डेवलपमेंट हुआ जैन तीर्थंकरस ने अपनी फिलोसोफी को सोसाइटी में स्प्रेड करने के लिए प्राकृत लैंग्वेज का यूज किया अंगा उपंगा और परिक्रमा मोस्ट पॉपुलर जैन टेक्स्ट है जो प्राकृत में लिखे गए थे आइए अब द्रविडियन लैंग्वेजेस के लिटरेचर को डिस्कस करते हैं द्रविडियन लिटर द्रविडियन लिटरेचर में चार मेजर द्रविडियन लैंग्वेजेस के लिटरेचर इंक्लूडेड है तमिल तेलुगु मलयालम और कनाडा इनमें से तमिल लैंग्वेज सबसे ओल्डेस्ट है और ग्रामर और रूट वर्ड्स के मामले में संस्कृत से क्लोजेस्ट है तमिल लिटरेचर 300 बीसी से 300 एडी के बीच लिखे गए संगम लिटरेचर तमिल लिटरेचर का इंपॉर्टेंट पार्ट है संगम लिटरेचर एप्रोक्सीमेटली 2000 381 पोएम्स का कलेक्शन है जो 473 पोएट्स को एटिबल किया जाता है संगम एक्चुअली असेंबलीज को डिनोट करता है कहते हैं कि पांड्या किंग्स मदुराई में असेंबलीज ऑर्गेनाइज करते थे जिनमें दूर दूर से पोएट्स बर्ड्स राइटर्स आया करते थे इनके द्वारा कंपोज किए गए लिटरेचर को ही संगम लिटरेचर कहते हैं एनटायर संगम लिटरेचर को टू मेजर फील्ड्स में डिवाइड किया जा सकता है पहला है अहम जो कि इनर फील्ड या इनर इमोशंस को डिनोट करता है इसमें एब्स्ट्रेक्ट टॉपिक्स जैसे लव सेक्सुअल रिलेशंस एसेट पर कंसंट्रेट किया गया है दूसरा फील्ड है पुरम या आउटर फील्ड जो कि ह्यूमन लाइफ के आउटसाइड एक्सपीरियंस जैसे कि सोशल लाइफ एथिक्स वैलर कस्टम्स एट्स पर बेस्ड है रिवर्ड तमिल सेंट थिरु वल्लुवर के कोरल्स भी तमिल लिटरेचर का इंपॉर्टेंट कंट्रीब्यूशन है कुरल पॉलिटी गवर्नेंस लव मोरालिटी जैसे इश्यूज को डिस्कस करते हैं तमिल कल्चर में कोरल्स की बहुत इंपॉर्टेंस है और इन्हें तमिल वेदास भी कहा जाता है रामायण और महाभारत की तरह ही तमिल लैंग्वेज में भी दो मेजर एपिक्स हैं सील पध करम स्टोरी ऑफ एन एंकलेट जिसे इलांगो अड़गल ने लिखा था और मणि मेकला जिसे चटना ने लिखा था नाइंथ और 12थ सेंचुरी के बीच भक्ति सेंट्स अल्ब और नायनास ने तमिल लिटरेचर को एनरिच किया अलवर्स विष्णु के वरशिपर्स थे और नायर्स शिव के इन्होंने अपने डेटी के लिए तमिल लैंग्वेज में कई डिवोशनल पोएट्री लिखी तमिल लिटरेचर के बाद आइए मलयालम लिटरेचर पर नजर डालते हैं मलयालम लिटरेचर मलयालम लैंग्वेज आज के केरला और उसके एड जॉइनिंग एरियाज में बोली जाती है यह लैंग्वेज बाकी द्रविडियन लैंग्वेजेस के कंपैरिजन में यंग है मलयालम का ओरिजिन 11 सेंचुरी में हुआ लेकिन 400 इयर्स के अंदर ही इसने एक रिच कॉर्पस ऑफ लिटरेचर डिवेलप किया भाषा कौटिल्य जो अर्थशास्त्र पर कमेंट्री है और कोक सासन मलयालम लिटरेचर के दो बड़े नाम हैं मलयालम लिटरेचर के बाद अब तेलुगु लिटरेचर को देखते हैं तेलुगु लिटरेचर तेलुगु लैंग्वेज का डेवलपमेंट भी अराउंड 10 से 11थ सेंचुरी में हुआ था तेलुगु में कई ग्रेट वर्क्स लिखे गए हैं लेकिन विजयनगर पीरियड को तेलुगु लिटरेचर का गोल्डन एज माना जाता है नाचना सुमंथा जो कि बुक्का वन के कोट पोएट थे उन्होंने फेमस वर्क उत्तरा हरिवंश कंपोज किया खुद फेमस विजयनगर किंग कृष्णा देव राय अकांप्लिश्ड पोएट और राइटर थे उन्होंने 16th सेंचुरी में अमुक्त मर्यादा कंपोज किया कृष्ण देव राय के समय एट डिस्टिंग्विश्ड स्कॉलर्स या अष्टदिग्गजस विजयनगर कोर्ट से अटैच थे इनके द्वारा भी तेलुगु लैंग्वेज में एक एक्सेप्शनल कंपोजिशंस की गई थी तेलुगु लिटरेचर के बाद एंड में कन्नडा लिटरेचर को समझते हैं कन्नडा लिटरेचर विजयनगर रूलरसोंग्स को भी पटने दिया था जैन स्कॉलर्स ने भी कनडा लिटरेचर के ग्रोथ में कंट्रीब्यूट किया माधवा ने 15 जैन तीर्थंकर के ऊपर धर्मनाथ पुराणा लिखा उरत विलासा ने जैन टीचिंग्स के ऊपर धर्म परीक्ष लिखा कनाडा लैंग्वेज में कई ग्रेट स्कॉलर्स हुए लेकिन रत्ना त्रिया या थ्री जेम्स ऑफ कन्नाडा लिटरेचर पंपा पर्ना और राणा का कोई कंपैरिजन नहीं है 10थ सेंचुरी एडी में पंपा जिन्हें फादर ऑफ कनाडा लिटरेचर भी कहा जाता है उन्होंने अपने ग्रेटेस्ट पोएटिक वर्क आदि पुराणा और विक्रम राजीव विजया को कंपोज किया कन्नाडा लिटरेचर और लैंग्वेज को चालुक्य और राष्ट्रकूटस किंग्स का पैट्रिज प्राप्त था आइए अब इस वीडियो की समरी देख लेते हैं इस वीडियो में हमने एसिएंट इंडियन लिटरेचर को डिटेल में समझा जो कि मोस्टली तीन लैंग्वेजेस संस्कृत प्राकृत और पाली से शुरू में डोमिनेटेड था संस्कृत इंडिया की ओल्डेस्ट लैंग्वेज है और सनातन धर्म का बेसिक फाउंडेशन लिटरेचर संस्कृत में ही लिखा है अराउंड 300 बीसी के अराउंड साउथ इंडिया में तमिल लैंग्वेज का डेवलपमेंट स्टार्ट होता है जो कि वन ऑफ दी ओल्डेस्ट द्रविडियन लैंग्वेजेस में से एक थी इसके बाद हमने दूसरे द्रविडियन लैंग्वेजेस कनाडा मलयालम और तेलुगु लिटरेचर को देखा इनका डेवलपमेंट एंसेट पीरियड में ही स्टार्ट हो गया था लेकिन इनका गोल्डन पीरियड मिडिवल एज में जाकर आया मिडिवल एज में मुस्लिम रूलरसोंग्स के साथ इनके यूनियन से उर्दू लैंग्वेज का जन्म हुआ साथ ही अपभ्रंश जिसे प्राकृत का ही रूप मानते हैं उसने मिडिवल एज में कई मॉडर्न इंडो आरयन लैंग्वेजेस जैसे हिंदी बंगाली एमीज एट्स को जन्म दिया इनके लिटरेचर को हम अगले वीडियो में देखेंगे इंडियन लिटरेचर पार्ट टू वेलकम टू स्टडी आक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों यह वीडियो इंडियन लिटरेचर का सेकंड पार्ट है इंडिया में आर्ट कल्चर और लिटरेचर की परंपरा काफी रिच और एंट रही है वेदस को वर्ल्ड के सबसे पुराने लिटरेचर में से एक माना जाता है इंडियन लिटरेचर की इस टू पार्ट सीरीज के पहले वीडियो में हमने वैदिक पीरियड से लेकर 10थ सेंचुरी एडी तक इंडियन लिटरेरी कल्चर के एवोल्यूशन को देखा था आज हम इसके आगे की कहानी को देखेंगे 11थ सेंचुरी से दो नए ट्रेंड्स ने इंडियन लिटरेचर की एवोल्यूशन को डिफाइन किया पहला ट्रेंड था टक्स और मंगोल्स का इंडिया में सेटल होना और इंडियन लिटरेचर पर उनका कल्चरल इन्फ्लुएंस वहीं दूसरा ट्रेंड इंडिया में भक्ति और सूफी मूवमेंट के स्प्रेड से रिलेटेड है मॉडर्न इंडो आरियन लैंग्वेजेस जैसे कि हिंदी बंगाली एमीज पंजाबी मराठी एट्स का डेवलपमेंट इन्हीं दो इन्फ्लुएंस से प्रभावित था इसके बाद 18th से 19th सेंचुरी में ब्रिटिश कॉलोनियल रूल के दौरान एक नया ट्रेंड देखने को मिला यूरोपीयंस ने इंडिया में मॉडर्न प्रिंटिंग प्रेस इंट्रोड्यूस किया और यहां की लैंग्वेजेस और लिटरेचर को सीखने में भी रुचि दिखाई उन्होंने कई इंडियन लिटरेरी वर्क्स को यूरोपियन लैंग्वेजेस में ट्रांसलेट भी किया जैसे कि 1785 में चार्ल्स विलकिंस द्वारा भागवत गीता का इंग्लिश ट्रांसलेशन किया गया 19th सेंचुरी के बाद तेजी से हुए प्रेस के डेवलपमेंट ने पहली बार लिटरेचर को आम जनता तक पहुंचाया इसका पूरा फायदा उठाते हुए इंडियन नेशनलिस्ट लीडर्स ने लिटरेचर का यूज लोगों के बीच नेशनलिज्म या राष्ट्रवाद की भावना फैलाने और ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए किया आइए अब एक-एक करके 10थ सेंचुरी के बाद हुए इंडियन लिटरेरी एवोल्यूशन को विस्तार से देखते हैं शुरुआत करते हैं पर्शियन लिटरेचर से पर्शियन लिटरेचर पर्शियन लैंग्वेज संस्कृत जितना ही पुराना है माना जाता है कि दोनों का डेवलपमेंट एक कॉमन इंडो यूरोपियन लैंग्वेज से हुआ था इंडिया में पर्जन का इंट्रोडक्शन टक्स और मंगोल्स के द्वारा 12थ सेंचुरी एडी में किया गया था पहले डेल्ली सल्तनत और फिर मुगल्स के समय पर्जन कोर्ट लैंग्वेज या दरबार की भाषा हुआ करती थी यानी कि सारे ऑफिशियल वर्क्स पर्जन में रिकॉर्ड किए जाते थे इंडिया में पर्शियन लैंग्वेज के शुरुआती पोएट्स में से एक अमीर खुसरो थे जिनका टाइम पीरियड 1253 से लेकर 1325 तक का है खुसरो सूफी सेंट निजामुद्दीन औलिया के डिसाइल थे पर्जन में उनकी पोएट्री कलेक्शन को दीवान कहते हैं इसके अलावा उन्होंने नू सिफर और मसनवी दिवाल रानी खिज्र खान भी लिखा जिसमें सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के बेटे खिज्र खान और राजपूत प्रिंसेस देवल रानी की कहानी को दर्शाया गया है सल्तनत काल के दौरान पर्जन में कई किताबें लिखी गई अधिकतर सल्तनत की हिस्ट्री के बारे में थी और अपने सुल्तान को ग्लोरिफाई करती थी जियाउद्दीन बरनी इस समय के सबसे फेमस हिस्टोरियन थे तारीख फिरोज शाही और फतवा ए जहान दारी उनके इंपॉर्टेंट वर्क्स थे तारीख के फिरोजशाही फिरोज शाह तुगलक के रूल तक दिल्ली सल्तनत के इतिहास को बयान करती है वहीं फतवा ए जहांदरी मुस्लिम रूलर के द्वारा फॉलो किए जाने वाले राजनैतिक मूल्यों पर केंद्रित है बर्नी के अलावा मिन्हाज उ से राज भी इस समय के फेमस हिस्टोरियन थे इंडिया में पर्जन लिटरेचर मुगल साम्राज्य के दौरान अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचा मुगल डायनेस्टी के फाउंडर बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजू के बाबरी टर्किश में लिखी थी इसे आगे चलकर अकबर ने पर्जन में ट्रांसलेट कराया था हुमायूं नामा हुमायूं की बहन गुलबदन बानू बेगम के द्वारा लिखी गई थी इसमें डेल्ली के थ्रोन को दोबारा कैप्चर करने के लिए किए गए हुमायूं के स्ट्रगल्स को दर्शाया गया है अकबर वैसे तो खुद पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन उन्होंने कई राइटर्स और हिस्टोरियंस को संरक्षण दिया अबुल फजल अकबर के कोर्ट हिस्टोरियन थे उनके द्वारा लिखा गया ने अकबरी और अकबर नामा मुगल सोसाइटी और पॉलिटी को समझने का सबसे इंपॉर्टेंट सोर्स है अकबर ने रामायण महाभारत उपनिषद जैसे कई संस्कृत वर्क्स को पर्जन में ट्रांसलेट करवाया महाभारत के पर्जन ट्रांसलेशन को रज्मनामा कहते हैं इसके अलावा जहांगीर की आत्मकथा तुजू के जहांगीरी भी पर्जन में ही लिखी गई है वहीं शाहजहां नामा और आलमगीर नामा शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल को डिस्क्राइब करते हैं 1707 में औरंगजेब की डेथ के बाद मुगल साम्राज्य पॉलिटिकली अनस्टेबल हो गया इसके बाद लेटर मुगल्स का समय आता है जहां से पर्जन लैंग्वेज का डिक्लाइन शुरू हो जाता है धीरे-धीरे पर्जन की जगह उर्दू लैंग्वेज लेने लगती है लास्ट मुगल रूलर बहादुर शाह जफर खुद उर्दू के एक फेमस पोएट थे जफर इनका पेन नेम था तो आइए अब उर्दू लिटरेचर के बारे में विस्तार से जानते हैं उर्दू लिटरेचर माना जाता है कि उर्दू का डेवलपमेंट सल्तनत आर्मी के बैरक्स या छाव नियों में टर्किश और इंडियन सोल्जर्स के इंटरसेक्शन से हुआ था टर्किश सोल्जर्स पर्शियन बोलते थे और इंडियंस हिंदी जिसके कारण उर्दू का डेवलपमेंट पर्जन और हिंदू के एक डायलेक्ट या बोली के फॉर्म में हुआ था उर्दू लैंग्वेज ज्यादातर हिंदी की ग्रामर फॉलो करती है और पर्जन की लिखावट उर्दू को सबसे पहले डेकन रीजन के बमनी स्टेट्स अहमदनगर गोलकोंडा बीजापुर बेरार में अपनाया गया था इसके कारण इसे दक्कन भी कहा जाता था 14 सेंचुरी में अमीर खुसरो पर्जन के साथ-साथ उर्दू में भी लिखते थे लेकिन उर्दू का गोल्डन पीरियड 18 से 19 सच में आया इस दौरान उर्दू कॉमन पीपल की लैंग्वेज बन गई मिर्जा गालिब सौदा दर्द मीर तकी मीर जैसे पोएट्स ने अपनी पोएट्री से इस लैंग्वेज को नरिच किया 20th सेंचुरी में सर सैयद अहमद खान उर्दू लिटरेचर के इंपॉर्टेंट फिगर थे जिन्होंने मुस्लिम सोसाइटी में रिफॉर्म्स लाने की कोशिश की उर्दू लिटरेचर के फील्ड में एक और बड़ा नाम मोहम्मद इकबाल का आता है इनके द्वारा लिखे गए पोएटिक कलेक्शन का नाम बंगी दरा है इसी कलेक्शन में इकबाल ने सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा गीत को लिखा जो इंडिया में आज भी राष्ट्र प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय है हिंदी के फेमस नोवलिस्ट प्रेमचंद भी हिंदी से पहले उर्दू में ही लिखते थे अब प्रेमचंद का नाम आ ही गया है तो चलिए हिंदी लिटरेचर की बात करते हैं हिंदी लिटरेचर हिंदी लैंग का डेवलपमेंट सेथ से 14 सेंचुरी के बीच अपभ्रंश भाषा से हुआ था जो कि खुद प्राकृत लैंग्वेज से इवॉल्व हुई थी 11थ सेंचुरी से इंडिया में स्प्रेड हुए भक्ति मूवमेंट ने हिंदी लैंग्वेज और लिटरेचर के डेवलपमेंट में अहम भूमिका निभाई मॉडर्न इंडिया में पॉपुलर कई लैंग्वेजेस जैसे हिंदी बंगाली एमीज पंजाबी मराठी एटस इसी समय डिवेलप हुई थी और इनको कॉमन पीपल के बीच पॉपुलर करने में भक्ति सेंट्स का पटेंट रोल रहा था आज हिंदी देश की सबसे पॉपुलर लैंग्वेज कही जा सकती है इसके कई डायलेक्ट्स या बोलियां हैं जो अलग-अलग रीजन में बोली जाती हैं जैसे ब्रिज भाषा उत्तर प्रदेश के ब्रिज रीजन में बोली जाती है अवधि उत्तर प्रदेश के अवध रीजन में भोजपुरी मगधी और मैथिली बिहार में और खड़ी बोली दिल्ली और उसके आसपास के रीजंस में बोली जाती है राजस्थान में बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा भी हिंदी का ही एक डायलेक्ट है भक्ति मूवमेंट के दौरान कई सेंट्स ने हिंदी के रीजनल डायलेक्ट में लिटरेचर कंपोज किया तुलसीदास ने अपनी सबसे फेमस कृति रामचरित मानस अवधि में लिखी थी सूरदास और बिहारी ब्रिज भाषा में लिखते थे वहीं मीराबाई राजस्थानी में लिखती थी कबीर ने अपने दोहे लिखने के लिए कई डायलेक्ट्स का प्रयोग किया है जिसमें अवधि और ब्रिज के साथ-साथ पर्जन का इन्फ्लुएंस भी देखने को मिलता है खड़ी बोली हिंदी की सबसे पॉपुलर फॉर्म है जिसके साथ आज हिंदी लैंग्वेज को आइडेंटिफिकेशन लिटरेचर पॉपुलर थी अब नेशनलिस्ट सेंटीमेंट्स या राष्ट प्रियता की भावना जगाने वाले लिटरेचर लिखे जाने लगे इस दौरान कई पुराने संस्कृत वर्क्स को हिंदी में ट्रांसलेट किया गया था जिसका मकसद अपनी रूट्स या विरासत को समझना था भारतेंदु हरिश्चंद्र 19th सेंचुरी के फेमस हिंदी राइटर्स में से एक थे इनके द्वारा लिखी गई सिटी ऑफ डार्कनेस या अंधेर नगरी आज भी पॉपुलर है भारत दुर्दशा भी हरिश्चंद्र की कृति है जिसमें वह भारतवासियों से एकजुट होकर ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हैं 20th सेंचुरी के दौरान हिंदी में कई फेमस राइटर और पोएट्स हुए सोशल रिफॉर्मर स्वामी दयानंद सरस्वती भी हिंदी की प्रमुख आवाज थे जिन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक किताब लिखी इस दौरान कई हिंदी ऑथर्स जैसे मुंशी प्रेमचंद सूर्यकांत त्रिपाठी निराला मैथिली शरण गुप्त ने समाज की कंजरवेटिव या रूढ़ीवादी सोच पर प्रहार किया प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट या नोवल किंग भी कहा जाता है गोदान गबन रंगभूमि प्रेमचंद के कुछ फेमस उपन्यास हैं हिंदी लिटरेचर के कुछ और नोटेल राइटर्स में सुमित्रानंदन पंत रामधारी सिंह दिनकर हरिवंश राय बच्चन महादेवी वर्मा का नाम प्रमुख है महादेवी वर्मा को समाज में महिलाओं के मुद्दों पर लिखने के लिए पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था हिंदी लिटरेचर के बाद आइए अब बंगाली और रिलेटेड लैंग्वेजेस के लिटरेचर को जानते हैं बंगाली एमीज एंड ओड़िया लिटरेचर हिंदी की तरह बंगाली एमीज और ओड़िया का डेवलपमेंट भी मिडिवल एजेस में ही हुआ था इनके डेवलपमेंट में भी भक्ति सेंट्स का इंपॉर्टेंट रोल रहा था यह तीनों लैंग्वेजेस आपस में काफी सिमिलर हैं लेकिन रीजनल डिफरेंसेस के कारण इनकी स्क्रिप्ट और बोलचाल में डिफरेंसेस आ गए हैं बंगाली की बात करें तो भक्ति मूवमेंट के दौरान बंगाली में कई डिवोशनल वर्क्स लिखे गए जिन्हें मंगल काव्यास कहते हैं बंगाल ब्रिटिश के अधीन आने वाले इंडिया के रीजंस में सबसे पहला था 1800 में इंग्लिशमन विलियम कैरी के द्वारा सेरामपुर में प्रिंटिंग प्रेस इस्टैब्लिशमेंट रोल प्ले किया कैरी ने खुद बंगाली ग्रामर और एक इंग्लिश बंगाली डिक्शन भी पब्लिश की थी ब्रिटिशर्स का कंट्रीब्यूशन मोस्टली इंडियन कल्चर को समझने और इंडिया में क्रिश्चियनिटी स्प्रेड करने से इंस्पायर्ड था बंगाली कम्युनिटी इंडिया की पहली कम्युनिटीज में से थी जिन्होंने सोशल रिफॉर्म्स या सामाजिक सुधार और नेशनलिस्ट सेंटीमेंट्स स्प्रेड करने के लिए प्रेस और लिटरेचर का सहारा लिया 18th सेंचुरी में राजा राम मोहन रॉय बंगाल के इंपॉर्टेंट राइटर्स में से एक थे अपने बंगाली जर्नल संवाद कमदी और प जर्नल मेरात उल अखबार के द्वारा रॉय सती प्रथा पॉलीगों विवाह चाइल्ड मैरिज जैसे सोशल इविल्स के खिलाफ आवाज उठाते थे ईश्वर चंद्र विद्यासागर और अक्षय कुमार दत्त राम मोहन रॉय के कंटेंपररी थे जिन्होंने अपने लिटरेचर के थ्रू सोशल रिफॉर्म्स के आइडियाज को लोगों तक पहुंचाया बंगाली लिटरेचर में बंकिम चंद्र चट उपाध्याय का नाम भी इंपॉर्टेंट है उनका सबसे फेमस नोवल आनंद मठ लेट 18 सेंचुरी के सन्यासी विद्रोह से इंस्पायर्ड था हमारा नेशनल सॉन्ग वंदे मातरम भी आनंद मठ से ही लिया गया है नोबेल प्राइज जीतने वाले पहले भारतीय बंगाली राइटर और पोएट रबिंद्रनाथ टैगोर थे उनको 1913 में अपने बंगाली वर्क गीतांजलि के लिए लिटरेचर के नोबेल से सम्मानित किया गया था 20th सेंचुरी में शरत चंद्र चैट जीी काजी नजरुल इस्लाम आरसी दत्त जैसे कुछ नाम हैं जिन्होंने बंगाली लिटरेचर में अपना कंट्रीब्यूशन दिया बंगाली के बाद एसएमज की बात करें तो मिडिवल एजेस में कई कोर्ट क्रॉनिकल्स या दरबार इतिहास एमीज में लिखे गए थे इन्हें बुरांजी कहा जाता था जो असम रीजन के अहोम किंग्स के इतिहास दर्ज करती थी ऑफिशियल वर्क्स के अलावा भक्ति सेंट शंकर देवा की एमीज डिवोशनल पोएट्री बहुत पॉपुलर है मॉडर्न एमीज लिटरेचर में पद्मनाभ गोहा बरुआ और लक्ष्मीनाथ बेस बरुआ ने अपनी छाप छोड़ी है एसएमज के बाद ओड़िया लैंग्वेज की बात करें तो मिडिवल एजेस से सरला दास और उपेंद्र भांजा की राइटिंग्स पॉपुलर हैं मॉडर्न टाइम्स में राधानाथ रे और फकीर मोहन सेनापति ओडिया लिटरेचर के पॉपुलर नेम्स हैं आइए अब गुजराती लिटरेचर के बारे में जानते हैं गुजराती लिटरेचर अर्लीस्ट गुजराती लिटरेचर 14 से 15th सेंचुरी के भक्ति सोंग्स के फॉर्म में है डिवोशनल राइटिंग्स में नरसिंह मेहता का नाम पॉपुलर है इन्होंने लोकल फॉक लोर्स और लॉर्ड कृष्णा के डिवोशनल सोंग्स का फ्यूजन किया था गुजराती पोएट्री में नार माद का नाम फेमस है वहीं गोवर्धन राम पॉपुलर नोवलिस्ट थे जिन्होंने क्लासिकल गुजराती नोवल सरस्वती चंद्र लिखा डॉक्टर के एम मुंशी ने भी गुजराती लिटरेचर में अपना अहम योगदान दिया उनके द्वारा लिखा गया पृथ्वी वल्लभ फिक्शन और नॉन फिक्शनल स्टोरीज को कंबाइन करता है गुजराती लिटरेचर के बाद आइए ब्रीफ में मराठी लिटरेचर के बारे में जाने मराठी लिटरेचर मराठी लैंग्वेज का ओल्डेस्ट लिटरेचर 13 सेंचुरी के सेंट ज्ञानेश्वर के द्वारा लिखा गया था ज्ञानेश्वर भक्ति सेन थे जिन्होंने मराठी में भगवत गीता पर एक डिटेल कमेंट्री लिखी थी इनके अलावा नामदेव सेना और गोरा जैसे भक्ति सेंट्स ने भी मराठी लिटरेचर में अपना कंट्रीब्यूशन दिया था 16th सेंचुरी के पॉपुलर भक्ति सेंट एकनाथ ने भागवत पुराण और रामायण पर मराठी में कमेंट्रीज लिखी सेंट एकनाथ के द्वारा लिखी गई डिवोशनल पोयम्स आज भी महाराष्ट्र में पॉपुलर हैं तुकाराम और रामदास इस समय के दूसरे पॉपुलर भक्ति सेंट्स थे मॉडर्न टाइम्स की बात करें तो इंडिपेंडेंस मूवमेंट के दौरान मराठी लैंग्वेज में भी कई न्यूजपेपर्स और पलेट पब्लिश किए गए इनमें सबसे पॉपुलर था बाल गंगाधर तिलक द्वारा निकाला जाने वाला मराठी न्यूजपेपर केसरी अपने न्यूजपेपर के थ्रू तिलक ब्रिटिशर्स की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते थे तिलक के अलावा एम जी रानाडे जी टी माधोकर केटी तेलंग मराठी लैंग्वेज के पॉपुलर राइटर्स थे मराठी लिटरेचर के बाद आइए अब पंजाबी लिटरेचर की बात करते हैं पंजाबी लिटरेचर पंजाब की जियोग्राफी ने इसके कल्चर के साथ-साथ इसके लिटरेचर को भी इन्फ्लुएंस किया है इंडिया के नॉर्थ वेस्टर्न बॉर्डर पर सिचुएटेड इस स्टेट में इंडियन इन्फ्लुएंस के साथ इस्लामिक इन्फ्लुएंस भी देखने को मिलता है पंजाबी लिटरेचर दो मेजर स्क्रिप्ट्स गुरुमुखी और पर्जन में लिखा मिलता है सिख समुदाय की होली बुक आदि ग्रंथ साहिब मोस्टली गुरुमुखी में लिखी गई है लेकिन इसमें कबीर नानक दादू के दोहे भी शामिल हैं जिसकी वजह से हिंदी का इन्फ्लुएंस भी हमें इसमें देखने को मिलता है आदि ग्रंथ साहिब को सिख धर्म के फिफ्थ गुरु गुरु अर्जन देव जी ने कंपाइल किया था इसके बाद लास्ट सिख गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने आदि ग्रंथ में बाकी गुरुओं की भी वाणी जोड़ी जिसके बाद यह गुरु ग्रंथ साहिब बन गया रिलीजियस लिटरेचर के अलावा पंजाबी में कई लव स्टोरीज पोएम्स और कई एपिक्स भी लिखी गई हैं सोहनी महिवाल सस्सी पुन्नू और वारिस शाह के द्वारा लिखा हीर रांझा पॉपुलर लव स्टोरीज हैं बाबा फरीद और बुल्ले शाह की सूफी पोएट्री रूलर और कॉमन पीपल दोनों के बीच पॉपुलर हुई मॉडर्न पंजाबी लिटरेचर की बात करें तो वह राष्ट्रीयता और देश प्रेम की भावना से इंस्पायर्ड थी भगत सिंह का लेजेंड सॉन्ग रंगदे बसंती चोला इसका क्लासिकल एग्जांपल है इस दौरान पुराने रूलर को याद करने का ट्रेंड चला जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था भाई वीर सिंह के द्वारा लिखा राणा सूरत सिंह इसी ट्रेंड का हिस्सा है डॉक्टर मोहन सिंह और पूरण सिंह पंजाबी लिटरेचर के कंटेंपररी राइटर्स हैं आइए ब्रीफ में इंडियन लिटरेचर को समरा इज कर लेते हैं समरी दोस्तों इंडियन लिटरेचर की इस टू पार्ट सीरीज में हमने एशियंट से लेकर मॉडर्न टाइम्स तक के लिटरेचर को जाना फर्स्ट पार्ट में हमने एसिंट इंडिया के लिटरेचर को देखा जहां संस्कृत डोमिनेट करती थी वेदास रामायण महाभारत उपनिषद जैसे सनातन धर्म के इंपॉर्टेंट टेक्स्ट जिन्हें हमने पार्ट वन में स्टडी किया था संस्कृत में ही लिखे गए थे इसके साथ ही हमने प्राकृत और पाली लैंग्वेज में लिखे इंपॉर्टेंट जैन और बुद्धिस्ट टेक्स्ट को भी जाना पार्ट वन में हमने चार मेजर द्रविडियन लैंग्वेजेस तमिल तेलुगु कनाडा और मलयालम के लिटरेचर को भी डिस्कस किया था सेकंड पार्ट में हमने इंडियन लिटरेचर की स्टोरी को 10थ सेंचुरी से शुरू किया 10थ सेंचुरी से 14th सेंचुरी तक इंडियन लैंग्वेजेस का ट्रांजिशनल फेज माना जा सकता है जब मॉडर्न इंडिया में पॉपुलर सभी लैंग्वेजेस का डेवलपमेंट हुआ 18th सेंचुरी के बाद जब इंडिया ब्रिटिश के अधीन आ गया तो नेशनलिस्ट लिटरेचर का दौर चला इस दौरान भारतीय समाज की बुराइयों को सुधारना और आजादी के लिए लड़ना मेन थीम्स रही इस मैसेज को जन जन तक पहुंचाने में प्रिंटिंग प्रेस का अहम रोल था आजादी के बाद एजुकेशन और लिटरेसी का स्प्रेड होने से लिटरेचर सोसाइटी के हर सेक्शन में फैला है आज इंडिया में 22 शेड्यूल्ड लैंग्वेजेस के अलावा भी कई लैंग्वेजेस में लिटरेचर लिखी जाती है बदलते जमाने में लिटरेचर कंपोज करने का तरीका भी बदला है आजकल कई किताबें ऑनलाइन लिखी और पब्लिश की जाती हैं जिन्हें हम कंप्यूटर और मोबाइल के थ्रू पढ़ सकते हैं आखिर में हम यही कह सकते हैं कि इंडियन लिटरेरी ट्रेडिशनल भी है लैंग्वेजेस ऑफ इंडिया वेलकम टू स्टडी आगू मेरा नाम है आदेश सिंह कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वानी फ्रेंड्स आप में से बहुत से लोगों ने यह कहावत तो सुनी होगी इसका अर्थ है कि इंडिया में थोड़ी ही दूर पर पानी बदल जाता है और उससे थोड़ी अधिक दूरी पर भाषा यह कहावत एक्चुअल में इंडिया में बोली जाने वाली लैंग्वेजेस की डाइवर्सिटी को दर्शाता है सेंसस 2011 के अनुसार इंडिया में कम से कम 19500 मदर टंगस और 121 मेजर लैंग्वेजेस बोली जाती हैं एक ही लैंग्वेज के कई मदर टंगस या डायलेक्ट्स डिफरेंट एरियाज में बोले जाते हैं अगर हिंदी को ही एज एन एग्जांपल ले ले तो इसके एटलीस्ट 40 डायलेक्ट्स या मदर टंगस हैं जैसे भोजपुरी मगही ब्रिज भाषा हरियाणवी एटस मेजर लैंग्वेजेस का क्लासिफिकेशन नंबर ऑफ स्पीकर्स से किया गया है इंडिया में 121 मेजर लैंग्वेजेस हैं इसका मतलब इन्हें बोल वाले कम से कम 10000 लोग या इससे ज्यादा हैं जाहिर सी बात है इंडिया की लैंग्वेज डायवर्सिटी पूरे वर्ल्ड में यूनिक है इंडिया की रिच लैंग्वेज डायवर्सिटी इंडियन सिविलाइजेशन के डेवलपमेंट के साथ धीरे-धीरे इवॉल्व हुई है इंडिया में लैंग्वेज और राइटिंग की डेवलपमेंट हम हरप्पन सिविलाइजेशन 3500 टू 1900 बीसी से ट्रेस कर सकते हैं जो कि वर्ल्ड की वन ऑफ द ओल्डेस्ट सिविलाइजेशन मानी जाती है हड़प्पा के रुन से कई राइटिंग रिमेंस रिकवर किए गए हैं अनफॉर्चूनेटली हड़प्पा स्क्रिप्ट्स को अभी तक डिसाइफर नहीं किया जा सका है इसलिए हम उनके लैंग्वेज के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं लेकिन हड़प एज के बाद आए वैदिक जज से इंडो आर्यन लैंग्वेजेस का डेवलपमेंट स्टार्ट हुआ जिनमें मोस्ट इंपॉर्टेंट थी संस्कृत फ्रेंड्स आज की इस वीडियो में हम इंडिया में बोली जाने वाली लैंग्वेजेस के ओरिजिन और डेवलपमेंट को समझेंगे इंडिया में बोली जाने वाली लैंग्वेजेस को मेजर्ली तीन लैंग्वेज फैमिलीज में डिवाइड किया जा सकता है इंडो आरियन ग्रुप द्रविडियन ग्रुप और साइनो टिब ग्रुप लैंग्वेज फैमिली का मतलब होता है कि एक लैंग्वेज फैमिली के लैंग्वेजेस का कॉमन ओरिजिन या एंसे है जिससे वह कई बातें शेयर करती हो जैसे ग्रामर प्रोनंसिएशन रूट वर्ड्स एटस तो चलिए स्टार्ट इंडो आरियन फैमिली की लैंग्वेज करते हैं जिनकी लैंग्वेजेस आज मेजॉरिटी ऑफ दी इंडियंस बोलते और समझते हैं इंडो आर्यन फैमिली इंडो आरियन फैमिली की इंपॉर्टेंट लैंग्वेजेस हैं संस्कृत प्राकृत पाली और इनसे डिवेलप हुई मॉडर्न लैंग्वेजेस जैसे हिंदी गुजराती बंगाली एमीज पंजाबी भी इसी में शामिल है इंडो आरियन ग्रुप ऑफ लैंग्वेजेस खुद एक लार्जर इंडो यूरोपियन लैंग्वेज से डिराइवर जो लिथिक एज यानी प्रीहिस्टोरिक एज में सेंट्रल एशिया और यूरोप में बोली जाती थी ऐसा माना जाता है कि जब आर्यंस इंडिया आए तो अपनी पुरानी लैंग्वेज लेकर आए समय के साथ लोकल इंटरेक्शन से संस्कृत डिवेलप हुई आज लगभग 74 पर ऑफ इंडियंस इंडो आर्यन फैमिली के लैंग्वेजेस बोलते हैं आइए अब इस लैंग्वेज फैमिली को थोड़ा डिटेल में स्टडी करें संस्कृत संस्कृत का डेवलपमेंट इंडिया में में वैदिक एज अराउंड 1900 बीसी से स्टार्ट हो गया था यह इंडिया में डिवेलप होने वाली ओल्डेस्ट लैंग्वेज है इंडिया की कल्चरल पॉलिटिकल हिस्ट्री को ट्रेस करने में संस्कृत का बहुत इंपॉर्टेंट रोल है वर्ल्ड का वन ऑफ द ओल्डेस्ट लिटरेचर वेदास संस्कृत में ही कंपोज किया गया था बाद में उपनिषद पुराण और धर्मशास्त्र भी संस्कृत में ही लिखे गए संस्कृत धीरे-धीरे पूरे इंडियन सबकॉन्टिनेंट में स्प्रेड हो गई और सनातन धर्म के डेवलपमेंट का लैंग्वेज बनी संस्कृत की खास बात है कि 2000 इयर्स के बाद भी इसमें ज्यादा चेंजेज नहीं आए हैं संस्कृत ग्रामर के रूल्स आज भी वही हैं जो पाणिनी ने अष्ट अध्याय में 400 बीसी में बताए थे वैसे तो संस्कृत इंडिया में हमेशा से रही है लेकिन इसका गोल्डन फेज गुप्ता के शासन काल में देखने को मिला गुप्ता पीरियड में कई ड्रामे ि पोएट्स और स्कॉलर्स हुए जिन्हो उने इस लैंग्वेज में लिटरेचर कंट्रीब्यूट किया और इसे नए मुकाम तक ले गए गुप्ता एज के कुछ इंपॉर्टेंट स्कॉलर्स हैं कालीदास विशाख दत्त शुद्रक एटस कालिदास के कालजई अभिज्ञान शाकुंतलम मेघदूतम जैसे कृतियों से तो सभी परिचित ही हैं संस्कृत धीरे-धीरे लैंग्वेज ऑफ एजुकेटेड क्लास बन गई संस्कृत की नॉलेज ब्राह्मण और किंग्स के लिए मैंडेटरी थी लेकिन कॉमन लोगों के बीच इसकी इंपॉर्टेंस धीरे धीरे घटने लगी और इंडो आरयन फैमिली की दूसरी लैंग्वेजेस ने इस स्पेस को भरा इनमें सबसे इंपॉर्टेंट प्राकृत और पाली हैं प्राकृत प्राकृत लैंग्वेज का डेवलपमेंट इंडिया में लगभग 600 एडी में स्टार्ट हुआ था और यह 1000 एडी तक चला असल में प्राकृत कोई सिंगल लैंग्वेज नहीं बल्कि एक लैंग्वेज ग्रुप को कहते हैं जो संस्कृत से अलग थी महाजनपदास की एज में प्राकृत लैंग्वेज ऑफ द कॉमन पीपल बन गई प्राकृत का एक फॉर्म मगधी प्राकृत या अर्ध मगधी था जो मगध महाजनपद में बोली जाती थी जैनिज्म के फाउंडर महावीरा का भी बर्थ मगध में ही हुआ था और एंट जैना टेक्स्ट अर्ध मगधी में कंपोज किए गए थे अगर हम पाली लैंग्वेज की बात करें तो यह भी प्राकृत से ही डिवेलप की गई है बुद्धा के सर्मन पाली में ही है बुद्धिज्म के तीन इंपॉर्टेंट टेक्स्ट विनाया पीत का सुत पीत का और अभिधम्मा पेत का पाली में लिखे गए हैं एथ और नाइंथ सेंचुरी एडी तक प्राकृत अपभ्रंश में बदल गया था अपभ्रंश एक्चुअली कोई सिंगल लैंग्वेज नहीं थी बल्कि मॉडर्न इंडि आर्यन लैंग्वेजेस के डेवलपमेंट से पहले जो डायलेक्ट नॉर्थ इंडिया में बोली जाती थी उन्हें अपभ्रंश का नाम दिया गया माना जाता है कि आगे चलकर हिंदी बंगाली जैसी लैंग्वेजेस अपभ्रंश से ही डेवलप हुई आइए ब्रीफ में इनके बारे में जानते हैं मॉडर्न इंडो आर्यन लैंग्वेजेस इंडो आरियन लैंग्वेजेस का नेक्स्ट फेज ऑफ डेवलपमेंट 1000 एडी के बाद से स्टार्ट हो गया था इस फेज में मॉडर्न इंडो आरियन लैंग्वेजेस जैसे कि हिंदी एमीज बंगाली गुजराती मराठी पंजाबी राजस्थानी एटस का डेवलपमेंट हुआ दोस्तों लैंग्वेज का डेवलपमेंट काफी कॉम्प्लेक्शन होता है और ओवर द टाइम यह कई सोर्सेस से अपनी वोकैबुलरी को डिवेलप करती है अगर हम हिंदी को ही देखें तो इसमें संस्कृत अपभ्रंश इंग्लिश उर्दू सभी का इन्फ्लुएंस है इंडो आरियन लैंग्वेजेस के बाद आइए अब द्रविडियन लैंग्वेज फैमिली पर भी नजर डाली जाए इंडिया की लगभग 25 पर पॉपुलेशन द्रविडियन लैंग्वेज यूज करती है द्रविडियन फैमिली द्रविडियन फैमिली के लैंग्वेजेस मोस्टली सदर्न इंडिया में बोली जाती हैं हिस्टोरियंस बिलीव करते हैं कि द्रविड फैमिली की लैंग्वेजेस इंडिया में इंडिजन सली डिवेलप हुई थी इसका मतलब है कि इंडो आरियन लैंग्वेज फैमिली की तुलना में इन पर आउटसाइड इन्फ्लुएंस काफी कम था एंट द्रविडियन लैंग्वेज ने 21 द्रविडियन लैंग्वेजेस को बर्थ दिया जिन्हें तीन मेन ग्रुप्स में डिवाइड किया गया है यह तीन मेन ग्रुप्स हैं नॉर्दन सेंट्रल और सदन द्रविडियन ग्रुप्स नॉर्दर्न द्रविडियन ग्रुप इसके अंदर तीन लैंग्वेजेस आती हैं ब्राहुई माल्ट और कारु ब्राहुई बलूचिस्तान में बोली जाती है माल्टो बंगाल और उड़ीसा के ट्राइबल एरियाज में बोली जाती है और कारु बंगाल उड़ीसा बिहार और मध्य प्रदेश में सेंट्रल द्रविडियन ग्रुप इसके अंदर 11 लैंग्वेजेस आती हैं गोंडी खड कुई मांडा पडजी गड़वा कोलनी पेंगो नाइकी कुवी और तेलुगु तेलुगु को छोड़कर बाकी ट्राइबल लैंग्वेजेस हैं और ट्राइब्स के द्वारा छोटी-छोटी पॉकेट्स में बोली जाती हैं सदर्न द्रविडियन ग्रुप सात लैंग्वेजेस इस ग्रुप में आती हैं कनाडा तमिल मलयालम तुलू कोडग तोड़ा और कोटा इनमें से सबसे ओल्डेस्ट तमिल है 21 द्रविडियन लैंग्वेजेस में से चार मोस्ट पॉपुलर हैं और प्रेजेंटली साउथ इंडिया में एक लार्ज पॉपुलेशन के द्वारा बोली जाती हैं यह चार हैं तमिल तेलुगु कनाडा और मलयालम इनमें से तमिल लैंग्वेज सबसे ओल्डेस्ट है जिसका डेवलपमेंट संस्कृत के साथ ही हुआ था 21 सेंचुरी में तमिल 66 मिलियन से भी ज्यादा लोगों के द्वारा बोली जाती है इंडिया के अलावा तमिल नॉर्दर्न श्रीलंका मलेशिया सिंगापुर मोरिशियस फिजी और म्यानमार में बोली जाती है फर्स्ट सेंचुरी एडी से फोर्थ सेंचुरी एडी के बीच में लिखा गया तोड़क पीयम को तमिल लैंग्वेज का फर्स्ट नोन लिटरेचर माना जाता है संस्कृत और तमिल एक दूसरे से कई सारे वर्ड्स और ग्रामर रूल्स बोरो करते हैं तमिल के कई वर्ड्स ऋग्वेद में भी मिलते हैं यह एसिंट इंडिया में नॉर्थ और साउथ के बीच के साझा कल्चर का कंक्रीट एविडेंस है तमिल के बाद अगर हम मलयालम की बात करें तो यह पहले तमिल की ही एक डायलेक्ट हुआ करती थी जो कि इंडिया के एक्सट्रीम साउथ वेस्ट कोस्ट पर बोली जाती थी के साथ इसका एक सेपरेट लैंग्वेज के फॉर्म में डेवलपमेंट हुआ मलयालम तमिल के अलावा संस्कृत से भी वर्ड्स बरो करती है 12थ सेंचुरी एडी के अराउंड लिखा गया राम चरितम मलयालम का फर्स्ट नोन लिटरेरी या साहित्यिक वर्क माना जाता है मलयालम के बाद आइए कनाडा की बात करते हैं कन्नडा कर्नाटका स्टेट की ऑफिशियल लैंग्वेज है कनाडा के अर्लीस्ट इंस्क्राइनॉक्स राजमार्ग नाइंथ सेंचुरी एडी में लिखा गया था 14 से 15th सेंचुरी के विजयनगर एंपायर के रूल को कनाडा के साथ साथ तेलुगु लिटरेचर का गोल्डन फेज माना जाता है द्रविडियन लैंग्वेजेस में तेलुगु लार्जेस्ट पॉपुलेशन के द्वारा बोली जाती है तेलुगु हिंदी और बंगाली के बाद इंडिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लैंग्वेजेस में से है तेलुगु साहित्य का पहला नोन वर्क नया भट्ट 11थ सेंचुरी में लिखा गया था जो कि महाभारत के एक पार्ट का पोएटिक ट्रांसलेशन है ज्योग्राफिकल प्रॉक्सिमिटी के कारण तेलुगु और कनाडा एक दूसरे से कई वर्ड्स बोरो करते हैं द्रविडियन फैमिली ऑफ लैंग्वेजेस के बाद आइए नजर डालते हैं साइनो टिब फैमिली ऑफ लैंग्वेजेस पर हालांकि साइनो टिब ग्रुप की लैंग्वेजेस बोलने वाली इंडिया की पॉपुलेशन कम है लेकिन यह इंपॉर्टेंट है क्योंकि मोस्टली यह इंडिया के नॉर्थ और नॉर्थईस्टर्न फ्रंटियर्स पर बोली जाती हैं इसलिए यह लैंग्वेजेस की डेवलपमेंट में चाइना टिब और म्यानमार में बोली जाने वाली लैंग्वेजेस का इन्फ्लुएंस रहा है साइनो टिब फैमिली साइनो टिब फैमिली की लैंग्वेजेस बोलने वालों की पॉपुलेशन इंडिया में एप्रोक्सीमेटली 0.6 पर है साइनो टिब लैंग्वेजेस को फर्द फोर ग्रुप्स में कैटेगरी इज किया गया है पहला है टिब इसके अंदर सिक्मी भूटिया बाल्टी शेरपा लाहु लद्दाखी और तिबेट के आसपास के एरियाज में बोली जाने वाली लैंग्वेजेस आती हैं दूसरा है हिमालयन जिसके अंदर किनौरी लिंबू जैसी लैंग्वेजेस शामिल हैं तीसरा है नॉर्थ असम ग्रुप की लैंग्वेजेस इसके अंदर अबर मेरी आका डफला और मिशमी जैसी लैंग्वेजेस इंक्लूडेड हैं चौथा है असम बर्मीज ग्रुप इसके अंदर कुकी चिन मिकिर बोडो और नागा आते हैं तो दोस्तों आपने देखा इंडिया लैंग्वेजेस के मामले में कितना डावर्स है हजारों साल के को एसिस्टेंसिया की डोमिनेंट लैंग्वेज थी गुप्ता एज संस्कृत का गोल्डन फेज माना जाता है संस्कृत गुप्ता की कोर्ट लैंग्वेज थी और गुप्ता के समय संस्कृत में कई इंपॉर्टेंट लिटरेचर लिखे गए मिडिवल टाइम में संस्कृत की जगह पर्जन ने ले ली मॉडर्न टाइम आते-आते संस्कृत और प्राकृत के इंटरेक्शन से हिंदी का जन्म हुआ आज देश की 40 पर पॉपुलेशन हिंदी बोलती है या समझती है जब भारत 1947 में ब्रिटिश से इंडिपेंडेंट हुआ तो इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ कि नेशनल लैंग्वेज किसको बनाना चाहिए इतनी डावर्स कंट्री जिसमें इतनी भाषाएं हो वहां यह डिसएग्रीमेंट होना तो लाजमी था नॉर्थ इंडियंस हिंदी को नेशनल लैंग्वेज के रूप में देखना चाहते थे वहीं साउथ इंडियंस इस बात से अग्री नहीं करते थे फिर इंडिया में ट्राइब्स भी थे जिनकी अपनी रिच लैंग्वेज हिस्ट्री रही है दोस्तों लैंग्वेज का मुद्दा बहुत ही डिवाइसिव मुद्दा है आज अगर हम यूरोप को देखें तो यह कहा जा सकता है कि लैंग्वेज नेशनलिज्म के कारण यूरोप कई छोटी-छोटी कंट्रीज में डिवाइड हो गया फिर इंडिया की डाइवर्सिटी तो यूरोप से कहीं ज्यादा थी इस समस्या से निजात पाने के लिए हमारे कांस्टिट्यूशन मेकर्स ने मिडिल पाथ का सहारा लिया उन्होंने किसी भी लैंग्वेज को नेशनल लैंग्वेज घोषित करने से मना कर दिया सारे सेक्शंस के सेंटीमेंट्स को अप होल्ड करने के लिए ऑफिशियल लैंग्वेजेस का सहारा लिया गया तो आइए दोस्तों इंडिया के ऑफिशियल लैंग्वेज से जुड़े प्रोविजंस को समझते हैं ऑफिशियल लैंग्वेज ऑफ इंडियन यूनियन इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन के आर्टिकल 3431 के अनुसार यूनियन गवर्नमेंट की ऑफिशियल लैंग्वेज देवनागरी स्क्रिप्ट में लिखी जाने वाली हिंदी होगी लेकिन इंग्लिश का यूज कांस्टिट्यूशन के शुरुआती 15 साल तक यूनियन के ऑफिशियल पर्पस के लिए किया जाएगा इसका मतलब यह था कि 26 जनवरी 1965 के बाद से अगर पार्लियामेंट कोई कानून नहीं बनाती है तो इंग्लिश का यूज खत्म होगा और यूनियन गवर्नमेंट के सारे ऑफिशियल फंक्शंस हिंदी में कैरी होंगे इस प्रोविजन के कारण नॉन हिंदी स्पीकिंग स्टेट्स में काफी प्रोटेस्ट हुआ इस इशू को रिजॉल्व करने के लिए पार्लियामेंट ऑफिशियल लैंग्वेजेस एक्ट 1963 लेकर आई हिंदी इंडियन यूनियन की ऑफिशियल लैंग्वेज है लेकिन इंग्लिश को भी सब्सिडियरी ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा दिया गया इसका अर्थ है यूनियन गवर्नमेंट के सारे काम हिंदी और इंग्लिश दोनों में किए जा सकेंगे इसके साथ ही कांस्टिट्यूशन ने शेड्यूल्ड लैंग्वेजेस का भी प्रोविजन दिया शेड्यूल्ड लैंग्वेजेस कांस्टिट्यूशन के एथ शेड्यूल में मेंशन है स्टेट गवर्नमेंट को फ्रीडम दी गई कि वह किसी भी लैंग्वेज को अपनी ऑफिशियल लैंग्वेज बना सकती है स्टार्टिंग में 14 लैंग्वेजेस को शेड्यूल्ड लैंग्वेजेस की श्रेणी में रखा गया यह लैंग्वेजेस थी एसएमज हिंदी मलयालम पंजाबी तेलुगु बंगाली कनाडा मराठी संस्कृत उर्दू गुजराती कश्मीरी ओड़िया और तमिल बाद में डिफरेंट कॉन्स्टिट्यूशन अमेंडमेंट्स के द्वारा सिंधी कोंकणी मणिपुरी नेपाली बोडो मैथिली डोगरी और संथाली को भी शेड्यूल्ड लैंग्वेजेस में शामिल किया गया जिससे कि अब शेड्यूल्ड लैंग्वेजेस की संख्या 22 हो गई है फ्रेंड्स आइए अब इस वीडियो का समरी देख लें समरी इस वीडियो में हमने इंडिया की रिच लिंग्विस्टिक हिस्ट्री के बारे में जाना हमने इंडिया में यूज होने वाली तीन मेजर लैंग्वेज फैमिलीज को समझा साथ ही हमने इंडिया की की ऑफिशियल लैंग्वेज से जुड़े प्रोविजंस भी देखें यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार इंडिया की 197 लैंग्वेजेस थ्रेटें है इसका मतलब है कि इनको बोलने वाले काफी कम लोग बचे हैं सिक्किम में बोली जाने वाली एक लैंग्वेज माझी के तो अब मात्र चार स्पीकर्स बचे हैं और सब एक ही फैमिली के हैं गणेश एंड देवी जो कि भाषा रिसर्च सेंटर वड़ोदरा के फाउंडर डायरेक्टर हैं मानते हैं कि 1961 के बाद से इंडिया ने 220 लैंग्वेजेस को हमेशा के लिए खो दिया है आज ग्लोबलाइजेशन की इस एज में हमारी लैंग्वेज डायवर्सिटी खतरे में है लिबरलाइजेशन प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन के बाद इंग्लिश हायर स्टडीज और कंपट एग्जाम्स के लिए प्रेफर्ड लैंग्वेज बन गई है इससे रीजनल लैंग्वेजेस को काफी नुकसान हुआ है इंडियन गवर्नमेंट ने इस इशू को सीरियसली लिया है और न्यू एजुकेशन पॉलिसी में लोकल और रीजनल लैंग्वेजेस पर स्पेशल फोकस किया है कोशिश यह है कि स्टूडेंट्स अपनी प्राइमरी एजुकेशन लोकल लैंग्वेज में ही करें साथ-साथ टेक्निकल एजुकेशन जो पहले केवल इंग्लिश में अवेलेबल थी उसे रीजनल लैंग्वेजेस में अवेलेबल कराने की कोशिश की जा रही है हमारा भी फर्ज बनता है कि हम अपनी लैंग्वेज डायवर्सिटी को बरकरार रखें और अपने लोकल लैंग्वेज को खूब इस्तेमाल करें दोस्तों लैंग्वेजेस का डिस्कशन तब तक अधूरा है जब तक हम इसके लिटरेचर को ना जाने कहते अगर लैंग्वेज सोसाइटी को क्रिएट करती है तो लिटरेचर सोसाइटी को रिफ्लेक्ट करता है अपने नेक्स्ट वीडियो में हम मेजर इंडियन लैंग्वेजेस के लिटरेरी ट्रेडिशनल आर्ट्स ऑफ इंडिया वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह मार्शल आर्ट्स का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में ब्रूसली जैकी चैन और कंग फू जैसी विदेशी मार्शल आर्ट्स के नाम आते हैं लेकिन क्या हम अपने देश में प्रैक्टिस किए जाने वाले मार्शल आर्ट्स के बारे में जानते हैं फ्रेंड्स इंडिया में मार्शल आर्ट ट्रेडीशन काफी पुराना है यहां एक नहीं बल्कि कई सारे ट्रेडिशनल अलग कल्चरल जियोग्राफिक और हिस्टोरिकल कंडीशंस में डिवेलप हुए थे यह ना केवल हमारी ट्रेडिशनल फाइटिंग स्किल्स को दिखाता है बल्कि यह हमारी रिच हिस्ट्री कल्चर और हेरिटेज को भी रिप्रेजेंट करते हैं तो फ्रेंड्स आइए इस वीडियो में हम अपने देश के कुछ ट्र मार्शल आर्ट फॉर्म्स को जानते हैं इस वीडियो में हम कलरी पयट सिलम पारी खांडा थोड़ा गटका थांगटाविया कलरी पाइट को वर्ल्ड का ओल्डेस्ट मार्शल आर्ट फॉर्म माना जाता है इसका ओरिजिन केरला रीजन में अराउंड फोथ सेंचुरी बीसी में हुआ था कहा जाता है कि केरला से निकलकर यह आर्ट फॉर्म साउथ ईस्ट एशिया जापान और चाइना में ट्रेवल किया और फिर वहां जुजित्सु कंफू ताइक्वांडो कराटे के एवोल्यूशन में इसने इंपॉर्टेंट रोल निभाया शास्त्रों की माने तो कलरी पाइट के ओरिजनेटर गुरु परशुराम थे जिन्होंने कलरी पाइट को स्टार्ट किया और इसे ह्यूमंस को पास ऑन किया कलरी पाइट कलरी वर्ड से बना है कलरी एक्चुअल में एक मलयालम वर्ड है जो कि एक स्पेशल टाइप की ट्रेनिंग ग्राउंड को रिप्रेजेंट करता है जहां यह मार्शल आर्ट प्रैक्टिस किया जाता है कलरी को प्रिपेयर करने के लिए चार से 5 फुट टॉप सोइल को निकाला जाता है और फिर सॉफ्ट सोइल यूज करके ट्रेनिंग ग्राउंड को तैयार किया जाता है कलरी पाइट की प्रैक्टिस मेनली चार पार्ट्स में डिवाइडेड है फर्स्ट माइ पाइट जो कि बॉडी कंडीशनिंग एक्सरसाइजस को बोलते हैं इसमें बॉडी के जॉइंट्स और मसल्स को स्ट्रेच किया जाता है और मार्शल आर्ट्स की प्रैक्टिस के लिए बॉडी को तैयार किया जाता है नेक्स्ट है कोल तारी बायट इसमें वुडन वेपंस का यूज किया जाता है जैसे कि लॉन्ग केनस शॉर्ट केनस ओटा जो कि एक एनिमल हॉन लाइक बेंट वेपन होता है थर्ड स्टेज है अंक थार पयट जिसमें शार्प वेपंस जैसे स्वर्ड और शील्ड स्पीयर डैगर और फ्लेक्सिबल स्वर्ड उर्मी का यूज किया जाता है उर्मी एक स्पेशल टाइप के स्वर्ड को कहते हैं जिसे इंसान अपने वेस्ट के अराउंड पहन सकता है इससे यह नोटिस में नहीं आता कोई भी इमरजेंसी सिचुएशन में उर्मी को निकालकर एनेमी को फेस किया जा सकता है फोर्थ और लास्ट स्टेज है वरुम काई जो कि बेर हैंडेड डिफेंस को कहते हैं इस स्टेज में कैलरी पाइट प्रैक्टिशनर किसी भी एडवर्सरी चाहे वो आर्म्ड हो या अना आर्म्ड उसे इजली हैंडल कर सकता है कलरी पाइट के गोल्डन एज में ना केवल राजा गुरुकुल में इसे सीखते थे बल्कि अपनी आमी में कलरी पाइट प्रैक्टिशनर्स की एक टुकड़ी भी रखते थे पोर्तुगीज और फिर ब्रिटिश के आने के बाद यह प्रैक्टिस कमजोर पड़ती चली गई कालेरी पाइट की प्रैक्टिस को ब्रिटिश ने 1804 में केरला में हुए आर्म रिवोल्ट के बाद बैन कर दिया था कोई भी अगर इसे प्रैक्टिस करता हुआ मिलता यह कलारी पाइट के वेपंस को रख हुआ पाया जाता तो उसे जेल भेज दिया जाता था इसके कारण कलरी पाइट की प्रैक्टिस धीरे-धीरे कम होने लगी इंडिपेंडेंस के बाद कलरी पाइट को रिवाइव करने की कोशिश की जाने लगी आज इसे एक कंपट स्पोर्ट की तरह डिवेलप करने की कोशिश जारी है मॉडर्न टाइम्स में कलरी पाइट वरफेन का हिस्सा तो नहीं है लेकिन यह बहुत ही अच्छी फिजिकल और सेल्फ डिफेंस एक्टिविटी है नेक्स्ट हम तमिल रीजन के मार्शल आर्ट फॉर्म सीलम बम को देखेंगे सिलम सिलम को भी कलरी पाइट की तरह ही वन ऑफ द ओल्डेस्ट मार्शल आर्ट फॉर्म्स माना गया है जियोग्राफिक प्रॉक्सिमिटी के कारण सिलबमे पाइट अपनी प्रैक्टिसेस में काफी कुछ सिमिलर हैं ऐसा माना जाता है कि सीलमबम का ओरिजिन ऋषि अगस्त्य के द्वारा किया गया था संगम लिटरेचर के अनुसार सीलमबम की हिस्ट्री कम से कम फोथ सेंचुरी बीसी से शुरू होती है उस समय इसका उपयोग सेल्फ डिफेंस और खतरनाक एनिमल से बचने के लिए किया जाता था बाद में तमिल डायनेस्टीज चेरा चोला पांडियास के समय इसका ऑर्गेनाइज्ड वॉर फेयर फॉर्म डिवेलप हुआ तमिल रीजन के राजा खुद गुरुकुल में इसकी ट्रेनिंग लेते थे और अपनी सेना की एक टुकड़ी सीलमबम फाइटर्स की रखते थे 18th सेंचुरी में जब ब्रिटिशर्स ने तमिल रीजन पर अटैक किया तो तमिल रीजन के किंग्स ने सीलम बम को सक्सेसफुली यूज किया अपने आप को ब्रिटिश से डिफेंड करने के लिए लेकिन ब्रिटिशर्स के बेहतर आर्म्स और एम्युनिशंस और नौसैनिक ताकत या नेवल पावर के सामने लोकल राजास जीत नहीं सके इस रीजन पर ब्रिटिश का कब्जा होने के बाद सीलमबम मार्शल आर्ट को बैन कर दिया गया इंडिपेंडेंस के बाद सीलमबम को दोबारा मार्शल आर्ट्स खेल के तौर पर और पहचान मिली सीलम बम का मेन वेपन बैंबू स्टिक होता है इसकी खास बात है कि यह फ्लेक्सिबल होता है और कॉम्बैट में टूटता नहीं है एक दूसरे वेरिएशन में बैंबू स्टिक के दोनों सिरे पर जलते हुए कॉटन कपड़े बांध दिए जाते हैं इसे टॉर्च सीलम बम भी कहते हैं सीलम बम में कुछ और प्रकार के वेपंस का भी उपयोग होता है जैसे अरुआ या सिकल वाल यानी कर्वड सोड कट्टी या नाइफ लेकिन जब सीलम बम स्पोर्ट्स की तरह खेला जाता है तो मोस्टली इसे बैंबू स्टिक तक ही सीमित रखते हैं आइए अब इंडिया के ईस्टर्न पार्ट में पॉपुलर परी खंडा पर नजर डाले परी खांडा परी खांडा बिहार झारखंड और उड़ीसा में प्रैक्टिस किया जाने वाला मार्शल आर्ट फॉर्म है परी का मतलब होता है सोर्ड और खंडा का मतलब शील्ड सोर्ड और शील्ड ही इस मार्शल आर्ट फॉर्म का मेन वेपन है परी खंडा की प्रैक्टिस इन राज्यों में पॉपुलर छाऊ डांस से काफी सिमिलर है ऐसा माना जाता है कि छाऊ डांस फॉर्म पारी खंडा से ही डिराइवर थोड़ा है थोड़ा हिमाचल प्रदेश में ओरिजनेट हुआ थोड़ा मार्शल आर्ट्स स्पोर्ट्स और कल्चर का मिक्सचर है इसे पारंपरिक तौर तरीके से बैसाखी के टाइम अप्रैल महीने में खेला जाता है थोड़ा एक्चुअली प्लेयर्स की आर्चरी स्किल्स सेट को टेस्ट करता है मेन इक्विपमेंट बोज एंड एरोज होते हैं ऐसा माना जाता है कि थोड़ा कुल्लू और मनाली वैली में महाभारत के समय हुए आर्चरी ड्यूल से इंस्पायर्ड है खेल में वुडन बोज एंड एरोज का इस्तेमाल किया जाता है बोज की लंबाई 1.5 मीटर से 2 मीटर तक की हो सकती है जो कि आर की हाइट पर डिपेंड करती है एरो बो के प्रोपोर्शन में होता है सारे इक्विपमेंट को ट्रेडिशनल आर्टिजंस बनाते हैं और फिर बैसाखी के समय से खेला जाता है यह खेल दो टीम्स के बीच खेला जाता है टीम्स को पाशी और साथी कहा जाता है जिन्हें पांडवास और कोरवास का डिसेंडेंट माना जाता है एक टीम में रफल 500 लोग तक हो सकते हैं सभी खेल में पार्टिसिपेट नहीं करते हैं कुछ बस डांसर्स होते हैं जो खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाते हैं थोड़ा केवल एक मार्शल आर्ट फॉर्म ही नहीं बल्कि लोगों की स्पिरिचुअलिटी को भी दर्शाता है इसे फेस्टिवल की तरह सेलिब्रेट किया जाता है जिससे कम्युनिटी बॉन्डिंग भी बढ़ती है आइए अब सिख गुरुस के द्वारा डिवेलप किया गया मार्शल आर्ट गटका को देखें गटका गटका पंजाब के सिक्स के द्वारा परफॉर्म किया जाने वाला मार्शल आर्ट है ऐसा माना जाता है कि जब सिखों के फिफ्थ गुरु गुरु अर्जुन देव को मुगलों के द्वारा 1606 में मार दिया गया था तब उनके सन हरगोविंद ने इसकी शुरुआत की थी गटका का मेन नेम मुगलों के अत्याचार से कम्युनिटी को बचाने का था बाद में 17 सेंचुरी में गुरु गोविंद सिंह जो कि खुद हथियार चलाने में माहिर थे उन्होंने इसे डिवेलप किया और इसे फाइनल फॉर्म दिया वैसे तो गट का पहले कॉम्बैट और वॉर में यूज होता था लेकिन अब इसकी प्रैक्टिस फिजिकल फिटनेस और सेल्फ डिफेंस के लिए की जाती है गटका वेपंस के साथ और बिना वेपंस के भी प्रैक्टिस किया जाता है गटका में यूज होने वाले मेन वेपंस हैं सोती जो कि एक लॉन्ग वुडन स्टिक है टेगा जो कि एक लॉन्ग ब्रॉड सर्ड है चक्र जो कि राउंड वेपन है जिसके एंड्स में वुडन बॉल्स लगे होते हैं जब खेल की तरह गटका का आयोजन होता है तब सारे मूवमेंट्स ढोल और और नगाड़े की बीट्स पर परफॉर्म किए जाते हैं गटका गुरु नानक बर्थडे गुरु गोविंद सिंह जयंती जैसे स्पेशल ओकेज पर लार्ज प्रोसेशन में परफॉर्म किया जाता है अगला मार्शल आर्ट है थांगटाविया मेन वेपंस हैं थांगटाविया था मणिपुर रीजन जब ब्रिटिशर्स के कब्जे में आया तो इस मार्शल आर्ट फॉर्म को बैन कर दिया गया था लेकिन इंडिपेंडेंस के बाद इसकी प्रैक्टिस दोबारा स्टार्ट की गई आज इस मार्शल आर्ट को मुख्य रूप से तीन डिफरेंट वेज में प्रैक्टिस किया जाता है पहला कंपलीटली रिचुअलिस्टिक नेचर का है जो कि तांत्रिक प्रैक्टिसेस से लिंक्ड है दूसरा स्पेयर और सोर्ड डांस का ब्यूटीफुल परफॉर्मेंस होता है और तीसरे तरीके में एक्चुअल फाइटिंग होती है अब नजर डालते हैं महाराष्ट्र के मार्शल आर्ट मर्दानी खेल पर मर्दानी खेल मर्दानी खेल महाराष्ट्र का ट्रेडिशनल मार्शल आर्ट फॉर्म है इसका ओरिजिन मुगल्स के अगेंस्ट मराठा के गोरिला वॉर से माना जाता है इसके वेपंस और मूवमेंट्स वेस्टर्न घटस के टेरेन को ध्यान में रखकर डिजाइन किए गए थे टफ माउंटेन पासेस में कम से कम वेपंस के साथ फास्ट मूवमेंट्स और रैपिड अटैक के लिए वरियर्स को ट्रेन किया जाता था इस मार्शल आर्ट फॉर्म में लाठी स्वर्ट शील्ड यानी ढाल तलवार यूज किया जाता है इसके अलावा खंड या डबल एज स्ट्रेट सर्ड और दंड पत्ता यानी डबल एज फ्लेक्सिबल सर्ड का भी यूज किया जाता है ब्रिटिश के समय इस पर बैन लगा दिया गया था जिसके बाद यह युद्ध कला ने खेल का फॉर्म ले या और तब से मर्दानी युद्ध मर्दानी खेल बन गया इस मार्शल आर्ट की एक खास बात है कि इसमें वमन और मेन को एक साथ एक ही वेपन से ट्रेन किया जाता है और उन्हें इक्वली ट्रीट किया जाता है नेक्स्ट मार्शल आर्ट है मस्ती युद्ध यह भी काफी पुराना है मस्ती युद्ध मस्ती युद्ध बनारस और उसके आसपास के क्षेत्रों में पॉपुलर हुआ इसका ओरिजिन और हिस्ट्री काफी पुराना है मस्ती युद्ध का जिक्र रामायण में भी मिलता है मस्ती युद्ध दो संस्कृत वर्ड से मिलकर बना है मस्ती यानी कि मुट्ठी और युद्ध यानी कि लड़ाई इसलिए इसमें मुख्य रूप से बॉडी के अपर पार्ट का ही यूज किया जाता है मस्ती युद्ध अनाम कॉम्बैट की श्रेणी में आता है इसमें पंचेज एल्बो स्ट्राइक्स किक्स और नी स्ट्राइक्स का यूज किया जाता है मस्ती युद्ध के फाइटर्स को उनकी स्किल्स के हिसाब से चार श्रेणियों में डिवाइड किया जाता है पहला है जमू वंती जिसमें फाइटर अपने अपोनेंट्स को लॉक एंड होल्ड के माध्यम से हराता है दूसरा है हनुमंती जिसमें टेक्निकल सुपीरियोर को दिखाया जाता है तीसरा है भीमसेनी जो कि स्ट्रेंथ या आत्मबल के लिए है और चौथा है जरा संधि जो कि लिम्स और जॉइंट्स पर अटैक करता है अंत में नजर डालते हैं कश्मीर की ब्यूटीफुल वैली में पॉपुलर स्के मार्शल आर्ट फॉर्म की स्के स्के कश्मीर रीजन में प्रैक्टिस किया जाने वाला मार्शल आर्ट फॉर्म है स्के का अर्थ पर्शन में नॉलेज ऑफ वॉर होता है मिडिवल एज में स्के कश्मीर में वर फेयर का हिस्सा था आर्म फॉर्मेट में स्के में सोर्ड और शील्ड का उपयोग होता है अनाम वर्जन में किक्स पंचे बॉडी लॉक्स का प्रयोग किया जाता है आजकल स्के को कंपट स्पोर्ट्स की तरह डिवेलप किया जा रहा है स्के फेडरेशन ऑफ इंडिया इससे रिलेटेड रूल्स एंड रेगुलेशंस बना रही है और रेगुलर कंपटीशन ऑर्गेनाइज कर रही है जिससे इसे यूथ के बीच बढ़ावा मिले कंक्लूजन दोस्तों इस वीडियो में हमने इंडिया के रिच मार्शल आर्ट हिस्ट्री के बारे में जाना इंडिया के हर रीजन में चाहे वह स्नो कैपड जम्मू कश्मीर हो या केरला के ब्यूटीफुल बीचेस हो कोई ना कोई मार्शल आर्ट फॉर्म प्रैक्टिस किया जाता था इनका इस्तेमाल जहां पहले कॉम्बैट के लिए होता था अब इनका इस्तेमाल मोस्टली सेल्फ डिफेंस और फिजिकल फिट के लिए होता है रिच मार्शल आर्ट हिस्ट्री होने के बावजूद आज कई आर्ट फॉर्म्स के कम ही प्रैक्टिशनर्स बचे हैं इसलिए इनको प्रमोट करने के लिए कई कोशिशें भी जारी रही हैं इंडियन गवर्नमेंट ने गटका कलरी पाइट और थांगटाविया जाए इस से ना केवल हमारी बॉडी और माइंड फिट रहेंगे बल्कि फ्यूचर जनरेशन के लिए इस रिच लेगासी को प्रिजर्व करने में भी मदद मिलेगी फेस्टिवल्स एंड फेयर्स इन इंडिया वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों इंडिया एक वास्टली जनस लैंग्वेजेस कस्टम्स और ट्रेडिशनल किए जाते हैं इंडिया की हिस्ट्री भी हजारों साल पुरानी है जो किसी नदी की धारा की तरह अविरल बहती चली आ रही है यहां अनेकों प्रकार के फेस्टिवल्स और फेयर्स सेलिब्रेट किए जाते हैं कहा तो यह भी जाता है कि शायद ही कैलेंडर में ऐसा कोई दिन हो जब भारत के किसी हिस्से में कोई फेस्टिवल या फेयर सेलिब्रेट ना किया जा रहा हो यह सभी फेयर्स और फेस्टिवल्स इंडिया की डाइवर्सिटी को रिप्रेजेंट करते हैं और इनमें से कई तो मेजर टूरिस्ट अट्रैक्शंस बनकर भी उभरे हैं टूरिस्ट्स इनके थ्रू इंडिया की डाइवर्सिटी और कल्चर को एक्सपीरियंस करते हैं दोस्तों फेस्टिवल्स ऑफ फेयर्स की बात करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि इनकी डेट्स का कैलकुलेशन मोस्टली लूनर कैलेंडर पर बेस्ड होता है जिसके कारण हर साल इनकी डेट्स वेरी करती हैं कुछ फेस्टिवल्स जैसे मकर संक्रांति और नेशनल फेस्टिवल्स की डेट सोलर कैलेंडर पर बेस्ड होती हैं इसलिए इनकी डेट्स में कोई वेरिएशन नहीं आता लूनर कैलेंडर और सोलर कैलेंडर के बीच का डिफरेंस समझने के लिए आप हमारे कैलेंडर ऑफ इंडिया वीडियो को रिफर कर सकते हैं आइए फेस्टिवल्स पर अपनी चर्चा की शुरुआत जनवरी में सेलिब्रेट किए जाने वाले फेस्टिवल मकर संक्रांति से करते हैं मकर संक्रांति मकर संक्रांति इंडिया में मनाए जाने वाले फेस्टिवल्स में से साल का पहला मेजर फेस्टिवल है यह फेस्टिवल सन गॉड को डेडिकेटेड है और मोस्टली 14 जनवरी को मनाया जाता है यहां सारे हिंदू फेस्टिवल्स की डेट्स लूनर कैलेंडर से कैलकुलेट की जाती हैं मगर संक्रांति अकेला ऐसा फेस्टिवल है जिसकी डेट्स सोलर कैलेंडर पर बेस्ड हैं इसलिए मकर संक्रांति हर साल एक ही डेट को पड़ता है मकर संक्रांति फेस्टिवल सीजनल चेंज को डिनोट करता है यह विंटर के एंड और समर्स की शुरुआत को माग करता है संक्रांति के बाद से नॉर्दर्न हेमिस्फीयर में दिन लंबे और रातें छोटी होना शुरू हो जाती हैं यह सन के उत्तरायण या नॉर्थ वर्ड जर्नी को डिनोट करता है मकर संक्रांति लगभग इंडिया के हर पार्ट में किसी ना किसी नाम से मनाई जाती है जैसे कि पंजाब में इसे मघी कहते हैं और इसके एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है तमिलनाडु में इसे पंगल कहा जाता है वेस्ट बंगाल में पौष पर्भ और गुजरात में उत्तरायण हर रीजन इसे अपने तरीके से मनाता है और फेस्टिविटीज फूड ट्रेडिशनल [संगीत] की ईदुल फित्र फेस्टिवल मुस्लिम कम्युनिटी का मोस्ट इंपॉर्टेंट फेस्टिवल है जिसे कम्युनिटी वर्ल्ड वाइड मनाती है यह फेस्टिवल मुस्लिम कैलेंडर के अनुसार रमदान मंथ के एंड और शव्वाल मंथ के बिगिनिंग में आता है रमदान मुस्लिम कैलेंडर का नाइंथ मंथ होता है और इसे ऑस्पी शस माना जाता है पूरे मंथ मुस्लिम फास्टिंग रखते हैं जिसे रोजा कहते हैं इस्लामिक ट्रेडिश् में माना जाता है कि रमदान के मंथ में ही प्रोफेट मोहम्मद को कुरान रिवील किया गया था इसी मंथ में प्रॉफिट की बैटल ऑफ बद्र में हिस्टोरिक जीत भी हुई थी इसी मंथ में प्रोफेट मोहम्मद के क्लोज फॉलोअर अबू तालिब को भी माट डम प्राप्त हुआ था इसलिए रमदान का महीना मुस्लिम्स के लिए होली और ऑस्पी शियस माना जाता है रमदान के मंथ के आखिरी दिन जब क्रेसें शेप्ड मून दिखता है तो ईद मनाई जाती है जहां पूरा रमदान का महीना फास्टिंग कंटेंपलेशन और प्रेयर्स में स्पेंड होता है ईद के दिन लोग खुशियां मनाते हैं ईद के बाद आइए मुहर्रम फेस्टिवल के बारे में जाने मुहर्रम मुहर्रम फेस्टिवल मुस्लिम कैलेंडर के फर्स्ट मंथ मुहर्रम में फॉल करता है इस मंथ के 10थ डे को यम अल शूरा कहते हैं इस्लामिक ट्रेडिशनल है कि इस दिन प्रोफेट मोहम्मद के ग्रैंडसन हुसैन बिन अली बैटल ऑफ कर्बला में माटर हुए थे इसलिए यह दिन मॉर्निंग के फॉर्म में मनाया जाता है इस दिन शिया मुस्लिम्स ताजिया प्रोसेशन निकालते हैं जिसमें शिया यूथस अपने बैग पर चाबुक मारते हैं ऐसा करके वह हुसैन अली की सफरिंग्स को याद करते हैं और उनके प्रति अपनी रिस्पेक्ट शो करते हैं मुहर्रम के बाद आइए क्रिश्चन के फेस्टिवल ईस्टर और गुड फ्राइडे की बात करते हैं ईस्टर एंड गुड फ्राइडे ईस्टर फेस्टिवल जीसस क्राइस्ट के रेजुर क्शन या रीबर्थ की याद में सेलिब्रेट किया जाता है क्रिश्चियंस की होली बुक बाइबल के अनुसार जीसस के क्रूसिफिकेशन हुआ था यहां जीसस के क्रूसिफिकेशन को ईस्टर के रूप में मनाते हैं जीसस का रीबर्थ मैनकाइंड के प्रति उनके प्रेम को दिखाता है इस दौरान चर्चस में मासस का आयोजन किया जाता है ईस्टर के सेलिब्रेशन की बात करें तो ट्रेडिशनल ईस्टर एग्स केक्स और बेकरी प्रोडक्ट्स के साथ इसे सेलिब्रेट किया जाता है अब चलते हैं सिख फेस्टिवल गुरु पूरब की तरफ गुरु पूरब गुरु पूर्व सिख कम्युनिटी का इंपॉर्टेंट फेस्टिवल है वैसे तो गु पूरब सभी 10 सिख गुरुस की जयंती पर मनाया जाता है लेकिन सबसे इंपॉर्टेंट गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह जयंती हैं अन्य इंपॉर्टेंट गुरु पूरब गुरु अर्जन देव और गुरु तेग बहादुर के माट डम की याद में मनाए जाते हैं सिख कम्युनिटी गुरु नानक के बर्थडे के मौके पर गुरु नानक जयंती मनाती है सभी गुरुद्वारा में इस दिन स्पेशल सर्विसेस होती हैं और लोगों के बीच में स्पेशल लंगर का भी आयोजन किया जाता है सभी गुरु पूरब उत्सव मनाने और ईश्वर को याद करने का समय होता है गुरु नानक जयंती के दौरान गुरुद्वारा में अखंड पार्ट्स का आयोजन होता है और प्रभात फेरी निकाली जाती है प्रभात फेरीज में लोग गुरु ग्रंथ साहिब के हिम्स गाते हैं और ईश्वर को याद करते हैं फेस्टिवल का कंक्लूजन गुरु ग्रंथ साहिब का प्रोसेशन निकालकर किया जाता है गुरु ग्रंथ साहिब को फ्लावर से डेकोरेटेड एक पालकी में रखकर ले जाया जाता है इस प्रोसेशन को लीड सिख धर्म के वरियर्स पंज प्यारे करते हैं जो अपने हाथों में सिख रिलीजन की होलिस्टन निशान साहिब को लेकर चलते हैं आज सिख कम्युनिटी पूरे इंडिया में स्प्रेड है इसलिए गुरु पूरब को लगभग पूरे इंडिया में मनाया जाता है लेकिन पंजाब में इसकी अपनी एक खास पहचान है गुरु पूर्व के बाद आइए महावीर जयंती के बारे में जाने महावीर जयंती महावीर जयंती जैन कम्युनिटी द्वारा सेलिब्रेट किया जाने वाला फेस्टिवल है इस दिन को जैन धर्म के 24 तीर्थंकर लॉर्ड महावीरा के बर्थ एनिवर्सरी के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है महावीर जयंती भद्र पाद के मंथ में आता है इस दिन सारे जैन टेंपल्स को सैफरन फ्लैग से सजाया जाता है लॉर्ड महावीरा के आइडल को दूध से अभिषेक कराया जाता है और फिर आइडल को प्रोसेशन में कैरी किया जाता है गुजरात और राजस्थान जैसे स्टेट्स जहां मोस्ट ऑफ द जेंस रहते हैं वहां ये फेस्टिवल काफी ग्रैंड तरीके से मनाया जाता है महावीर जयंती के बाद आइए बुद्धिस्ट्स के इंपॉर्टेंट फेस्टिवल बुद्ध पूर्णिमा के बारे में जान लेते हैं बुद्ध पूर्णिमा बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती लॉर्ड बुद्धा की बर्थ एनिवर्सरी को सेलिब्रेट करने के लिए मनाई जाती है ये अप्रैल मे में पड़ता है इसका सेलिब्रेशन मोस्टली नॉर्थ ईस्ट इंडिया और नॉर्दर्न इंडिया में होता है इस दिन बुद्धा की लाइफ से जुड़े सिटीज जैसे कि बोध गया सारनाथ राजगीर में बुद्धिस्ट डेटी स्पेशल पूजा का आयोजन करते हैं डेटी रिचुअलिस्टिक प्रेयर्स परफॉर्म करते हैं और बौद्ध गुरुस के सर्मन सुनते हैं इस दौरान बुद्धिस्ट स्क्रिप्चर की चैटिंग बुद्ध की इमेज की वशिप और मेडिटेशन भी किया जाता है आइए अब पारसी के इंपॉर्टेंट फेस्टिवल जमशेद जी नौरोज के बारे में जाने जमशेद जी नौरोज पारसी कम्युनिटी अपने न्यू ईयर की बिगिनिंग नौरोज फेस्टिवल के साथ करती है नव रोज पारसी कैलेंडर के फर्स्ट मंथ माह फरव दीन के पहले दिन पड़ता है दुनिया भर में पारसी लोग मार्च 21 को नौरोज मनाते हैं मार्च 21 की खास बात है कि इस दिन सन इक्वेटर पर डायरेक्ट शाइन करता है और मार्च 21 के बाद से समर सीजन स्टार्ट होने लगता है हालांकि इंडियन पसीज जो अपना अलग लना कैलेंडर फॉलो करते हैं उनके हिसाब से इसकी डेट्स वेरी करते हैं माना जाता है कि पारसी न्यू ईयर सेलिब्रेशन का ट्रेडिशनल पुराना है जोरो एस्ट्री निज्म जो कि प्रॉफिट राथू के द्वारा एस्टेब्लिश किया गया था वर्ल्ड का अर्लीस्ट मोनोथेस्ट रिलीजन है वेस्ट एशिया में इस्लाम के आने के बाद पसीज अपने होमलैंड पर्शिया यानी प्रेजेंट डे ईरान में पर्सीक्यूट होने लगे पर्सीक्यूशन से बचने के लिए वो इंडिया आए और आज इंडिया में ही पारसी की सबसे बड़ी कम्युनिटी है नौरोज के दिन पारसी हेल्थ और प्रोस्पेरिटी के लिए प्रे करते हैं और फायर टेंपल्स विजिट करते हैं इस दौरान लोग एक दूसरे के घर भी जाते हैं और शाम को फीस्ट का आयोजन किया जाता है मेनल मैड इंडिया के फेस्टिवल्स देखने के बाद आइए अब नॉर्थ ईस्ट इंडिया में पॉपुलर कुछ फेस्टिवल्स की चर्चा करते हैं फेस्टिवल्स ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया शुरुआत करते हैं बुद्धिस्ट के द्वारा मनाया जाने वाला लोसर फेस्टिवल से लोसर फेस्टिवल लोसर फेस्टिवल अरुणाचल प्रदेश हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में रह रहे बुद्धिस्ट कम्युनिटीज का इंपॉर्टेंट फेस्टिवल है लोसर फेस्टिवल टिब न्यू ईयर को भी रिप्रेजेंट करता है जो इस एरिया में रह रहे टिब बुद्धिस्ट के लिए इंपॉर्टेंट टाइम होता है लोसा फेस्टिवल खासकर महायान बुद्धिज्म फॉलो करने वाले बुद्धिस्ट में पॉपुलर है यह फेस्टिवल हर साल तीन दिनों के लिए मनाया जाता है जिसकी शुरुआत 11थ फरवरी से होती है लोसारी के दौरान बुद्धिस्ट मॉनेस्ट्रीज को कलरफुल प्रेयर फ्लैग से सजाया जाता है लोसारी के फर्स्ट डे को लामा लोसारी बुद्धिस्ट अपने रिलीजस हेड दलाई लामा की वशिप करते हैं और उनके ऑनर में प्रोसेशन निकालते लोसर फेस्टिवल के सेलिब्रेशन से ही जुड़ा हुआ है एक पॉपुलर मास्क डांस परफॉर्मेंस जिसे छम डांस कहते हैं इसमें डांसर्स कलरफुल कॉस्ट्यूम्स और लेबोरेटरी एडी में एक क्रूअल किंग लांग दारमा हुआ करते थे छाम डांस इसी क्रूअल किंग की डेथ को ड्रामा के फॉर्म में दिखाता है यह बुराई पर अच्छा की जीत के प्रतीक की तरह है लोसारी दिखते हैं लोसर फेस्टिवल और बुद्धिस्ट कल्चरल एस्पेक्ट को एक्सपीरियंस करने के लिए फॉरेन टूरिस्ट बड़ी संख्या में इंडिया आते हैं लोसर के बाद आइए नॉर्थईस्ट के एक और पॉपुलर फेस्टिवल बिहू के बारे में जाने बिहू फेस्टिवल बिहू या बोहाग बिहू असाम के सबसे पॉप फेस्टिवल्स में से है यह असमीज न्यू ईयर का प्रतीक है वैसे तो असम में बिहू साल में तीन बार सेलिब्रेट किया जाता है लेकिन अप्रैल में सेलिब्रेट किया जाने वाला बहाग बहू सबसे इंपॉर्टेंट है बहाग बिहू चेंजिंग सीजंस और एग्रीकल्चरल हावे से लिंक्ड है यह हर साल 14 अप्रैल को सेलिब्रेट किया जाता है असम के वेरियस ट्राइब्स में यह सेलिब्रेशन एक वीक से लेकर एक मंथ तक भी चलता है इस मौके पर ट्रेडिशनल डिश पीठा बनाया जाता है बिहू फेस्टिवल के दौरान लोग एक साथ आकर ट्रेडिशनल बिहू डांस भी परफॉर्म करते हैं बिहू के बाद आइए हॉर्नबिल फेस्टिवल के बारे में जाने हन बिल फेस्टिवल हॉर्नबिल फेस्टिवल नागालैंड में सेलिब्रेट होने वाला मेजर एग्रीकल्चरल फेस्टिवल है यह वीक लॉन्ग फेस्टिवल है जिसकी शुरुआत हर साल 1स्ट दिसंबर से होती है सभी नागा ट्राइब्स कि सामा हेरिटेज विलेज में जमा होते हैं और एक साथ फेस्टिवल को सेलिब्रेट करते हैं इस दौरान फेयर्स का आयोजन किया जाता है ट्रेडिशनल डांसेसएक्सएक्सएक्स माजुली फेस्टिवल को डिस्कस करते हैं माजुली फेस्टिवल माजुली फेस्टिवल असाम के माजुली आइलैंड में सेलिब्रेट किया जाता है इसका आयोजन नवंबर के मंथ में किया जाता है माजुली दुनिया का सबसे बड़ा रिवर इन आइलैंड है यह ब्रह्मपुत्र रिवर के बीच में लोकेटेड है माजुली फेस्टिवल का सेलिब्रेशन असाम के कल्चरल हेरिटेज और ट्रेडिशनल हिस्ट्री को शोकेस करने का इंपॉर्टेंट ओकेज है इस दौरान असम के साथ साथ बाकी नॉर्थ ईस्टर्न स्टेट्स के ट्राइब्स अपने ट्रेडिशनल आर्ट्स और क्राफ्ट्स डिस्प्ले करते हैं फेस्टिवल के दौरान असम के ट्रेडिशनल [संगीत] डांसेसएक्सएक्सएक्स पूजा जाता है हर साल जून के महीने में यहां लार्ज कांग्रेगेशन होता है यहां आने वाले डेविस की संख्या को देखते हुए इसे नॉर्थ ईस्ट का महाकुंभ भी कहा जाता है अंबू बाची मेले के दौरान लोग काफी दूर दराज से आते हैं क्योंकि मां कामाख्या फर्टिलिटी गॉडेस हैं इसलिए यहां चाइल्डलेस कपल्स बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं अंबू बाची मेला कई तांत्रिक प्रैक्टिसेस के लिए भी जाना जाता है जो मेले के दौरान यहां पर फम की जाती हैं कई बार तांत्रिक प्रैक्टिसेस के चलते अंबू बाची मेला कंट्रोवर्शियल भी हो जाता है नॉर्थईस्ट के फेस्टिवल्स के बाद आइए कुछ पॉपुलर फेयर्स को भी देख लेते हैं स्टार्ट करते हैं राजस्थान में सेलिब्रेट किए जाने वाले पुष्कर फेयर से पुष्कर फेयर पुष्कर फेयर कार्तिक के महीने में राजस्थान के पुष्कर सिटी में आयोजित किया जाता है इंग्लिश कैलेंडर के हिसाब से यह अक्टूबर से नवंबर के मंथ में पड़ता है पुष्कर फेयर एक्चुअली एनिमल ट्रेड से जुड़ा फेस्टिवल है इस दौरान कैमल्स हॉर्सेसैक्स का ट्रेड किया जाता है पुष्कर फेयर स्पेशली कैमल ट्रेड के लिए फेमस है और इसे वर्ल्ड का लार्जेस्ट कैमल ट्रेड फेयर भी कहा जाता है एनिमल ट्रेड के साथ-साथ पुष्कर फेयर के दौरान कल्चरल फेस्टिवल्स डांस म्यूजिक कंपटीशन का भी आयोजन किया जाता है इस दौरान बेस्ट डेकोरेटेड कैमल लार्जेस्ट मुश एलिफेंट टगर वॉर जैसे कंपटीशन का भी आयोजन किया जाता है पुष्कर फेयर का लुत्फ उठाने विदेशों से भी बड़ी मात्रा में पर्यटक आते हैं पुष्कर फेयर से जुड़ा एक रिलीजस एस्पेक्ट भी है इस दौरान हिंदू होली पुष्कर लेक में नहाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं कार्तिक के महीने में पुष्कर लेक में डुबकी लगाने को ऑस्पी अस माना जाता है इसलिए बड़ी संख्या में डोमेस्टिक टूरिस्टस इस समय पुष्कर आते हैं पुष्कर में कई एंस टेंपल्स भी हैं जिनके दर्शन टूरिस्ट फेयर के दौरान करते हैं इनमें से एक है ब्रह्मा टेंपल जो डेविट में काफी पॉपुलर है हिंदू बिलीव्स के अनुसार ब्रह्मा ने इस संसार को क्रिएट किया है और उनका एकमात्र मंदिर पुष्कर में ही है पुष्कर मेले के बाद आइए सूरज कुंड क्राफ्ट्स फेयर के बारे में जाने सूरज कुंड क्राफ्ट्स फेयर सूरज कुंड क्राफ्ट्स मेला हरियाणा के फरीदाबाद डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट से लेकर 15 फरवरी तक ऑर्गेनाइज होता है यह फेर ट्रेडिशनल क्राफ्ट्स लोकल क्विजन आर्ट कल्चर और म्यूजिक को डेडिकेटेड है दुनिया भर के करीब 20 कंट्रीज और इंडिया के कई स्टेट्स इसमें पार्टिसिपेट करते हैं इस फेयर में काफी संख्या में टूरिस्ट लोकल कल्चर को एक्सपीरियंस करने के लिए आते हैं कंक्लूजन दोस्तों यह इंडिया में सेलिब्रेट होने वाले फेस्टिवल्स और फेयर्स की एक एस्टिव लिस्ट नहीं है इंडिया जितना डावर्स है इसके फेयर्स एंड फेस्टिवल्स उतने ही डावर्स हैं इंडिया में सेलिब्रेट होने वाले सारे फेयर्स एंड फेस्टिवल्स की लिस्ट बना पाना भी पॉसिबल नहीं है इंडिया में सेलिब्रेट होने वाले फेयर्स एंड फेस्टिवल्स हमारे शेड कल्चर हिस्ट्री और जियोग्राफी का प्रतीक है यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स इन इंडिया वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह फ्रेंड्स सेकंड वर्ल्ड वॉर ह्यूमन हिस्ट्री की सबसे डेव पेटिंग वॉर्स में से एक थी 1939 से 1945 के बीच चले इस वॉर में बड़े पैमाने पर डेथ और डिस्ट्रक्शन हुआ था वॉर के नेगेटिव इंपैक्ट से बचने के लिए और वर्ल्ड में पीस कल्चरल एक्सचेंज और डायलॉग प्रमोट करने के लिए वर्ल्ड लीडर्स ने एक संगठन बनाने का फैसला किया इसके फलस्वरूप 1945 में यूनाइटेड नेशंस एजुकेशन साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन यूनेस्को का जन्म हुआ यूनेस्को का मेन ऑब्जेक्टिव था एजुकेशन साइंस और कल्चर के एरियाज में इंटरनेशनल कोऑपरेशन के माध्यम से वर्ल्ड पीस अचीव करना 1960 में इजिप्ट में एक घटना घटी जिसने पूरे वर्ल्ड का ध्यान मानव समाज के कल्चरल हेरिटेज या सांस्कृतिक विरासत की तरफ खींचा इजिप्ट का प्राचीन अबू सिंबल टेंपल पासी में बने डैम के कारण डूब रहा था यूनेस्को ने इसे बचाने के लिए इंटरनेशनल रे मिशन का आयोजन किया इस मिशन की सफलता ने वर्ल्ड कम्युनिटी का ध्यान कई और ऐसी हेरिटेज साइट्स की तरफ खींचा जो मानव समाज की धरोहर थी लेकिन किसी ना किसी कारणवश खतरे में थी उसके कुछ ही साल बाद ऐसी साइट्स जो ह्यूमन सिविलाइजेशन की सभ्यता और कल्चर के प्रोग्रेस को रिप्रेजेंट करती हैं उन्हें आर्म्ड कॉन्फ्लेट्स या वॉर जानबूझ के किया हुआ डिस्ट्रक्शन आर्थिक दबाव जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज जैसे डिजास्टर से बचाने के लिए पहली बार 1972 में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन का आयोजन किया वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन में डिसाइड किया गया कि 21 मेंबर्स की एक वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी बनेगी जो वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स को सिलेक्ट करेगी वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स को कमेटी ने थ्री कैटेगरी में डिवाइड किया कल्चरल नेचुरल या मिक्स्ड वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स कल्चरल साइट्स का ह्यूमन सिविलाइजेशन के लिए इंपॉर्टेंट कल्चरल सिग्निफिकेंट होता है नेचुरल साइट्स नेचर के प्रिजर्वेशन के लिए इंपॉर्टेंट होती हैं मिक्स्ड साइट्स अपनी कल्चरल और नेचुरल सिग्निफिकेंट दोनों के लिए जानी जाती हैं यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में चयन होने के कई लाभ हैं जैसे कि चुनी हुई साइट्स पर ग्लोबल अटेंशन या वैश्विक ध्यान आकर्षित होता है इस साइट के संरक्षण के लिए गवर्नमेंटल और नॉन गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से फंड अरेंज करने में आसानी होती है ऐसे में साइट को उसके ओरिजिनल फॉर्म में प्रिजर्व करना आसान हो जाता है वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स को आर्म्ड कॉन्फ्लेट्स या वॉर के दौरान कोई हाम नहीं पहुंचे इसलिए सभी कंट्रीज जिनेवा कन्वेंशन और हेग कन्वेंशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ कल्चरल साइट से बंधी हैं इंडिया में भी यूनेस्को ने कई साइट्स को पिछले कुछ वर्षों में वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स डिक्लेयर किया है जाहिर सी बात है इंडिया जैसी एंसेट सिविलाइजेशन में कई साइट्स यूनिवर्सल वैल्यू रखती हैं 2022 तक यूनेस्को के द्वारा इंडिया की 40 साइट्स को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स डिक्लेयर किया गया है इनमें 32 कल्चरल साइट्स हैं सेवन नेचुरल साइट्स और एक मिक्स्ड कैटेगरी की साइट है फ्रेंड्स आज के इस वीडियो में हम इंडिया के कुछ इंपॉर्टेंट वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स के बारे में ब्रीफ में जानेंगे स्टार्ट करते हैं कल्चरल साइट से कल्चरल साइट्स अजंता एंड इलोरा केव्स अजंता एंड इलोरा के रॉक कट केव्स को 1983 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया गया था दोनों केव्स का समूह महाराष्ट्र के औरंगाबाद सिटी के पास लोकेटेड है अजंता ग्रुप में 29 केव्स हैं जो विशेष रूप से बुद्धिज्म को समर्पित हैं अजंता केव्स वघोरा रिवर के पास सह्याद्री रेंजेस को एक्सक वेट कर बनाया गया था इन केव्स को 200 बीसी और 650 एडी के बीच बनाया गया था इन्हें मेनली सात वाहना और वकाटका डायनेस्टी जो कि पेनिंस इंडिया में रूल करते थे उनकी देखरेख में बनाया गया था 29 केव्स में से 25 का उपयोग विहारा या बुद्धिस्ट मंस के हाउसिंग के रूप में किया जाता था जबकि चार का उपयोग चैत्यास या प्रार्थना सभा के रूप में किया जाता था केव्स को डेकोरेट करने के लिए बुद्ध के जीवन और जत कथाओं से जुड़ी थीम्स का इस्तेमाल किया गया है अजंता केव्स में बनाई गई वॉल पेंटिंग्स को फ्रेस्को पेंटिंग्स कहते हैं यह यहां का मुख्य आकर्षण है पेंटिंग्स के अलावा स्कल्पचर से भी केव्स को डेकोरेट किया गया है बीते जमाने में अजंता केव्स इंपॉर्टेंट बुद्धिस्ट सेंटर था और उनका डिस्क्रिप्शन चाइनीज ट्रेवलर फाहे और नसंग की यात्रा वृता या ट्रेवल अकाउंट्स में भी मिलता है अजंता से कुछ ही दूरी पर एलोरा केव्स हैं एलोरा केव्स 34 केव्स का ग्रुप है जिनमें से 17 ब्रह्मनिकल 12 बुद्धिस्ट और फाइव जैन रिलीजन से संबंध रखने वाले केव्स हैं अजंता से अलग एलोरा के केव्स उस समय के तीनों मेजर रिलीजस हिंदुइज्म बुद्धिज्म और जैनिज्म को डेडिकेटेड हैं एलोरा के केव्स को विदर्भ कर्नाटका और तमिलनाडु के डिफरेंट वर्कर्स ग्रुप्स द्वारा फिफ्थ सेंचुरी एडी से 11थ सेंचुरी एडी के बीच बनाया गया था इसलिए एलोरा केव्स के आर्किटेक्चरल स्टाइल और सब्जेक्ट्स काफी वेरी हैं कैलाशनाथ टेंपल जो कि केव नंबर 16 में है काफी रिमार्केटिंग को कट कर टॉप टू बॉटम किया गया है नेक्स्ट कल्चरल साइट है ताजमहल उत्तर प्रदेश आधुनिक दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल मुगल आर्किटेक्चरल स्टाइल के चरमोत्कर्ष को रिप्रेजेंट करता है ताजमहल को शाहजहां ने अपनी बिलट वाइफ मुमताज महल की याद में बनवाया था कंस्ट्रक्शन 1632 में स्टार्ट हुआ और 1648 में कंप्लीट हुआ पूरी तरह से वाइट मार्बल से बना ताजमहल इस्लामिक भारतीय पर्जन और टर्किश आर्किटेक्चरल स्टाइल के एलिमेंट्स को कनेक्ट करता है इसके कंस्ट्रक्शन में सिमेट्री का पूरा ध्यान रखा गया है ताजमहल एक रेक्टेंगल गार्डन के एक एंड पर बनाया गया है मेन मकबरे के चारों तरफ चार खूबसूरत मीनारें हैं बगल में ही यमुना नदी बहती है जो ताज की खूबसूरती को रिफ्लेक्ट करती है ताजमहल के कंस्ट्रक्शन में फेमस मकराना मार्बल्स का यूज किया गया है जिसके कारण ताज दिन के डिफरेंट टाइम पर डिफरेंट दिखता है सुबह-सुबह ताज गुलाबी दोपहर में दूधिया सफेद सूर्यास्त को रेडिश ग्लो के साथ दिखता है फुल मून नाइट पर ताज काफी चार्मिंग और एं चांटिंग दिखता है और टूरिस्टस इसे फुल मून पर देखने के लिए दूर दराज से आते हैं यूनेस्को ने 1983 में ताज को उसकी आउटस्टैंडिंग यूनिवर्सल वैल्यू के लिए वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है सन टेंपल कोणार्क ओड़ीशा कोणार्क सन टेंपल उड़ीसा के फेमस टूरिस्ट स्पॉट पुरी से 35 किलोमीटर नॉर्थ ईस्ट डायरेक्शन में है कोनार्क टेंपल सी कोस्ट पर लोकेटेड है और पहले के जमाने में सेलर्स के लिए नेविगेशन पॉइंट की तरह एक्ट करता था इसे यूरोपियन सेलर्स ब्लैक पगोडा कहते थे क्योंकि यह दूर से दिखने पर ब्लैक कलर का एक जायंट टावर की तरह दिखता था कोणार्क सन टेंपल को बनवाने का श्रे ईस्ट गंगा डायनेस्टी के राजा नरसिमा देव वन को दिया जाता है माना जाता है कि इसका कंस्ट्रक्शन 1250 एडी के आसपास हुआ था इसका कंस्ट्रक्शन सन गॉड के विशाल 100 फुट चैरिटहम पेयर्स ऑफ स्टोन व्हील्स और सात स्टोन हॉर्सेसगर्ल्सेक्स का उत्कृष्ट उदाहरण है इसे 1984 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में नामित किया गया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स एट महाबलीपुरम महाबलीपुरम या मामल्लापुरम में मन मेंट्स के ग्रुप का कंस्ट्रक्शन पल्लवा डायनेस्टी के राजाओं ने सेवेंथ से एथ सेंचुरी एडी के बीच में तमिलनाडु के कोरोमंडल कोस्ट पर किया था ममल आपु पल्लवा डायनेस्टी का इंपॉर्टेंट सीपोर्ट था जहां से पल्लवास लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेड कंडक्ट करते थे इसके कारण ममलाका का सेकंड मोस्ट इंपॉर्टेंट सिटी था कैपिटल कांचीपुरम के बाद पोर्ट सिटी और ट्रेडिंग हब होने के कारण मलापुरम काफी प्रॉस्परस था जो यहां बने एप्रोक्सीमेटली 40 छोटे-बड़े मॉन्यूमेंट्स में रिफ्लेक्ट होता है ममल पुरम के मॉन्यूमेंट्स को द्रविड स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर का प्रीस भी कहा जा सकता है द्रविडियन स्टाइल का फुल डेवलपमेंट पल्लवास के बाद आने वाले चोला डायनेस्टी के समय हुआ ममलाका पर पर 40 डिस्टिंक्ट मॉन्यूमेंट्स हैं जिन्हें चार ग्रुप्स में डिवाइड किया जा सकता है पहला है रथा टेंपल्स जो रथ या रियट शेप के इंडिविजुअल टेंपल्स हैं दूसरा है मंडपास या केव टेंपल्स तीसरा है रॉक रिलीव्स जिन्हें बड़े रॉक्स को तराश कर बनाया गया है और चौथा है स्ट्रक्चरल टेंपल्स रथ टेंपल्स को लार्ज रॉक्स को तराश कर रथ की शेप दी गई थी रथ टेंपल्स में सबसे पॉपुलर पांच रथ टेंपल्स हैं जिन्हें पांडवास को डेडिकेट किया गया है इन पांच रथ टेंपल्स के नाम हैं धर्मराज रथ भीम रथ अर्जुन रथ नकुल सहदेव रथ और द्रौपदी रथ धर्मराज रथ इनमें सबसे बड़ा है और द्रौपदी रथ सबसे छोटा मंडप या केव टेंपल्स को अजंता और इलोरा के टेंपल्स की तरह हिल फेस को काटकर बनाया गया था रॉक रिलीव्स ऐसे मॉन्यूमेंट्स को कहते हैं जिन्हें लार्ज रॉक्स को काटकर बनाया गया था लेकिन इनका फॉर्म चेरियट्स के शेप का नहीं था इनमें इंपॉर्टेंट है डिसेंट ऑफ गंजी जिसे अर्जुना पेनिंस भी कहते हैं लास्ट ग्रुप है स्ट्रक्चरल टेंपल्स का जिन्हें रॉक्स को काट करर नहीं बल्कि उन्हें जोड़कर बनाया गया था इनमें सबसे इंपॉर्टेंट है शो टेंपल शो टेंपल फुल फ्लेज टेंपल कंस्ट्रक्शन का इंडियन सबकॉन्टिनेंट में वन ऑफ द अर्लीस्ट एग्जांपल है यह पल्लवास के टेंपल आर्किटेक्चर का हाईएस्ट पॉइंट को डिनोट करता है महाबलीपुरम के ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स को 1984 में वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में डाला गया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है खाजू राहु ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स खाजू राहु मध्य प्रदेश के छतरपुर डिस्ट्रिक्ट में लोकेटेड एक एंसेट सिटी है यहां प्रेजेंट टेंपल्स को खाजू राहु ग्रुप ऑफ टेंपल्स कहते हैं जिनका कंस्ट्रक्शन चंदेला डायनेस्टी के द्वारा 950 से 150 एडी के बीच में कराया गया था ओरिजनली 85 टेंपल्स कंस्ट्रक्ट किए गए थे लेकिन समय की मार प्लंडरिंग और डिस्ट्रक्शन के बाद अब 20 ही सरवाइव कर पाए हैं खाजू आहु टेंपल्स दो मेजर रिलीजस हिंदुइज्म और जैनिज्म को डेडिकेटेड हैं यह टेंपल्स नॉर्थ इंडिया में डिवेलप हुए नगर स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर को रिप्रेजेंट करते हैं खाजू आह टेंपल्स अपने इंट्रीकेटली कावड स्कल्पचर्स के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं रिलीजस थीम्स के अलावा यह स्कल्पचर्स कॉमन लाइफ के इवेंट्स को भी डिपिक्ट करते हैं जैसे कुछ स्कल्पचर्स विमेन को मेकअप अप्लाई करते हुए दिखाते हैं वहीं कुछ पॉटर्स म्यूजिशियंस फार्मर्स और अन्य कॉमन फोक्स को दिखाते हैं कुछ टेंपल्स में एरोटिक स्कल्पचर्स भी हैं और ऐसा माना जाता है कि इनका थीम वात्सायना के फेमस नोवल कामसूत्र से डिराइवर टेंपल कंदरिया महादेव टेंपल और लक्ष्मण टेंपल खाजू राहु ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स को 1986 में में वर्ल्ड हेरिटेज साइट नामित किया गया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है फतेहपुर सीकरी मुगल एंपरर अकबर ने फतेहपुर सीकरी में अपना कैपिटल बनवाया था 1572 से 1585 के बीच में इससे पहले मुगलों की कैपिटल आगरा हुआ करती थी जो फतेहपुर सीकरी से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर है ऐसा कहा जाता है कि एंपरर अकबर एक सन को प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहे थे अपनी मु लेकर वह सूफी सेंट सलीम चिश्ती के खानखो जो सीकरी में ही रहा करते थे सेंट सलीम चिश्ती की ब्लेसिंग से उन्हें सन की प्राप्ति हुई इसी कारण से अकबर ने सेंट को ऑनर करने के लिए अपना कैपिटल आगरा से सक्री शिफ्ट किया 1573 में अकबर के गुजरात में जंग जीतने के बाद इस सिटी का नाम फतेहपुर सीकरी या सिटी ऑफ विक्ट्री रखा गया फतेहपुर सीकरी सिटी के अंदर समय के साथ कई इंपॉर्टेंट मॉन्यूमेंट्स बनाए गए जिनमें बुलंद दरवाजा पांच महल जोधाबाई पैलेस सलीम चिश्ती टूम जमा मस्जिद इबादत खाना एसेट पॉपुलर नेम्स है बुलंद दरवाजा सिटी के सदर्न साइड का एंट्रेंस है और इसकी हाइट 54 मीटर्स है इसको अकबर ने गुजरात पर अपनी विक्ट्री सेलिब्रेट करने के लिए बनवाया था पंच महल एक चार स्टोरी की स्ट्रक्चर है फोर्ट के अंदर जहां अकबर और उनकी बेगम फेमस म्यूजिशियन तानसेन की म्यूजिक का आनंद उठाते थे इबादत खाना फतेहपुर सीकरी के अंदर बनाया गया था इसमें अकबर डिफरेंट रिलीजस के स्पिरिचुअल लीडर से मिलते थे और उनके साथ डिस्कशंस किया करते थे सलीम चिश्ती का टूम जामा मस्जिद के पास ही है जहां जामा मस्जिद और पूरा फतेहपुर सीकरी फोर्ट रेड सैंड स्टोन से बनाया गया है सलीम चिश्ती का टूम अकेला कंस्ट्रक्शन है जो कि वाइट मार्बल में है यह अपने इंट्रीकेट जाली वर्क्स के लिए पॉपुलर है और हर साल सेंट के डेविट इसे से विजिट करने आते हैं फतेहपुर सीकरी को 1986 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट नामित किया गया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है ग्रुप ऑफ मोनुमेंट्स एट हापी तुंग भद्र रिवर के सदन कोस्ट पर सिचुएटेड हंपी विजयनगर एंपायर का कैपिटल था पर्शियन और यूरोपियन ट्रैवलर्स के ट्रैवल अकाउंट्स के अनुसार हापी विजयनगर एक प्रॉस्परस वेल्थी और ग्रैंड सिटी थी इसमें कई टेंपल्स फ और ट्रेडिंग मार्केट्स थे पर्जन ट्रेवलर अब्दुल रज्जाक के अनुसार हंपी मिडिवल वर्ल्ड का सेकंड लार्जेस्ट सिटी था बेजिंग के बाद विजयनगर और हापी की वेल्थ के कारण यहां पर्शिया और यूरोप जैसे दूर के इलाकों से ट्रैवलर्स और ट्रेडर्स आया करते थे 1565 में बैटल ऑफ तली कोटा में विजयनगर की हार के बाद डेकन सल्तनत ने सिक्स मंथ्स तक हपी को प्लंडर किया इसके कारण सिटी को अबन कर दिया गया था 18 में कॉलिन मैकेंजी ने इस सिटी को दोबारा डिस्कवर किया हापी का ग्रंड और कल्चर यहां के रुस जिसमें टेंपल्स मॉस्क सिविल और मिलिट्री बिल्डिंग्स एटस है से क्लियर दिखता है हपी के कुछ नोटेल मॉन्यूमेंट्स है विरुपाक्ष टेंपल विरुपाक्ष जिन्हें शिवा का रूप भी माना जाता है विजयनगर के गार्डियन डेटी थे वैसे तो विरुपाक्ष टेंपल विजयनगर एंपायर से पहले ही बना था लेकिन विजय नगर किंग्स ने इसको इनलार्ज किया और एलेबोरेट स्कल्पचर से डेकोरेट किया टेंपल में मंडप गर्भगृह सब्सिडियरी श्राइन के अलावा तीन एंट्रेंस डोस या गोपुरम्स हैं विट्ठल टेंपल कॉम्प्लेक्टेड के अलावा कई हॉल्स पवेलियंस और दूसरे अन्य टेंपल्स भी हैं लेकिन सबसे फेमस है स्टोन चैरिटहम का ब्रांड सिंबल भी है विट्ठल टेंपल विठ्ठल देव को डेडिकेटेड है जिन्हें विष्णु का फॉर्म माना जाता है लोटस महल लोटस महल इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर का फाइन एग्जांपल है माना जाता है कि यह क्वीन और रॉयल लेडीज के लिए बनाया गया था हंपी के ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स को 1986 में वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में डाला गया था हिल फोर्ट्स ऑफ राजस्थान राजस्थान स्टेट के अंदर 100 से ज्यादा फोर्ट्स हैं जिन्हें हिल्स या माउंटेनस टेरेन में कंस्ट्रक्ट किया गया है इनमें से सिक्स फोर्ट्स को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में डाला गया है जिन्हें कलेक्टिवली हिल फोर्ट्स ऑफ राजस्थान कहते हैं वर्ल्ड हेरिटेज साइट के अंदर इंक्लूडेड राजस्थान के फोर्ट्स हैं चित्तौड़गढ़ में लोकेटेड चित्तौड़ फोर्ट कुंभलगढ़ में लोकेटेड कुंभलगढ़ फोर्ट सवाई माधोपुर में लोकेटेड रणथंबोर फोर्ट जैसलमेर में लोकेटेड जैसलमेर फोर्ट जयपुर में लोकेटेड आमेर फोर्ट और झाला वा में लोकेटेड गागरोन फोर्ट इनका कंस्ट्रक्शन एथ से 18 सेंचुरी के बीच में राजपूत राजाओं के द्वारा किया गया था यह फोर्ट्स लैंडस्केप्स डेजर्ट रिवर्स हिल्स और डेंस फॉरेस्ट जैसे नेचुरल डिफेंसेस को ध्यान में रखकर बनाए गए थे हिल फोर्ट्स ऑफ राजस्थान को 2013 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में डाला गया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है ग्रेट लिविंग चोला टेंपल्स ग्रेट लिविंग चोला टेंपल्स का कंस्ट्रक्शन चोला डायनेस्टी के किंग्स के द्वारा किया गया था 11थ से 12थ सेंचुरी एडी के बीच में चोला एंपायर अपने पीक में था और इसका एक्सटेंट साउथ में श्रीलंका से लेकर नॉर्थ में कृष्णा गोदावरी बेसन तक था चोला किंग्स के द्वारा कई टेंपल्स कंस्ट्रक्ट किए गए इनमें तीन काफी पॉपुलर हैं जिन्हें ग्रेट लिविंग चोला टेंपल्स के नाम से भी जाना जाता है यह अपने आप में द्रविडियन आर्किटेक्चर के ग्रंड को रिप्रेजेंट करते हैं यह तीन टेंपल्स हैं तंजावुर का बृहदेश्वर टेंपल गंगई कोंड चोलापुरम का बृहदेश्वर टेंपल और दरसुर में लोकेटेड रावते शवर टेंपल तंजावुर का बृहदेश्वर टेंपल लॉर्ड शिवा को डेडिकेटेड है और इसे राजा राजा चोला वन ने 1003 से 1010 एडी के बीच बनवाया था इस टेंपल के स्कल्पचर्स इंक्रिप्शन और पेंटिंग्स शैविज्म के अलावा वैष्ण म और शक्ति जम ट्रेडीशन को भी रिप्रेजेंट करती हैं ग्रेनाइट से बने इस टेंपल का विमान साउथ इंडिया का वन ऑफ द टॉलेस्ट है टेंपल में मैसिव कॉरिडोर और इंडिया का वन ऑफ द लार्जेस्ट शिवलिंग है गंगई कोंड चोलापुरम का बृहदेश्वर टेंपल भी लॉर्ड शिवा को डेडिकेटेड है और अपने काउंटर पार्ट तंजावूर के टेंपल से सिमिलर है इसे राजेंद्र वन ने 1035 एडी में बनवाया था गंगाई कोंडा चोलापुरम को एक्चुअली राजेंद्र वन ने नॉर्थ के पाला किंग्स को वॉर में हराने के बाद बनवाया था यह पुराने चोला कैपिटल तंजावर से अराउंड 80 किलोमीटर की दूरी पर है दरसुर का रावते शवर टेंपल को राज राजा टू ने 1150 एडी में बनवाया था यह सक्सेसिव चोला किंग्स के द्वारा बनवाए गए टेंपल्स में से लास्ट ग्रेट टेंपल था ग्रेट लिविंग चोला टेंपल्स को 1987 में वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में डाला गया था नेक्स्ट कल्चरल साइट है रेडफोर्ट कॉम्प्लेक्शन आगरा से दिल्ली शिफ्ट की तो उसने एक नया शहर शाहजहानाबाद बसाया शाहजहानाबाद को आज ओल्ड डेल्ली के नाम से भी जानते हैं अपने बसाए नए शहर में शाहजहां ने अपने और अपनी फैमिली के लिए जो फोर्ट बनवाया उसे ही रेडफोर्ट कहते हैं धीरे-धीरे रेडफोर्ट पूरे भारत पर पर मुगलों के साम्राज्य का सेंटर बन गया 1857 के रिवोल्ट के पहले तक लास्ट मुगल रूलर बहादुर शाह जफर रेडफोर्ट में ही रहते थे इसलिए रेडफोर्ट इंडिया की सोवन से अटैच हो गया ब्रिटिश से इंडिपेंडेंस के बाद अब हर 15 अगस्ट को प्रधानमंत्री रेडफोर्ट से ही तिरंगा फहराते हैं रेडफोर्ट के अंदर कई मॉन्य मेंट्स हैं जो मुगल आर्किटेक्चर के ग्रंड को रिप्रेजेंट करते हैं दीवाने आम दीवाने आम में एंपरर कॉमन लोगों से मिलते थे और उनकी प्रॉब्लम्स को अड्रेस करते थे दीवाने खास दीवाने खास प्राइवेट ऑडियंस के लिए यूज होता था वहां एंपरर केवल अपने मिनिस्टर से मिलते थे दीवाने खास में ही पीकॉक थ्रोन रखा था पीकॉक थ्रोन मुगल एंपरर का जूल्ड थ्रोन था जिसमें फेमस कोहीनूर डायमंड लगा हुआ था 1739 में नादिर शाह ने जब रेडफोर्ट प्लंडर किया तो पीकॉक थ्रोन को अपने साथ पर्शिया ले गया रेडफोर्ट को को 2007 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया फ्रेंड्स इंपॉर्टेंट कल्चरल साइट्स के बाद आइए अब कुछ नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स देखते हैं नेचुरल साइट्स सुंदरबंस नेशनल पार्क रॉयल बंगाल टाइगर्स के लिए जाना जाने वाला सुंदरबंस नेशनल पार्क टाइगर रिजर्व और बायोस्फीयर रिजर्व भी है यह इंडियन स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल में रिवर गंगा के द्वारा बनाए गए सुंदरबंस डेल्टा में लोकेटेड है सुंदरबंस इंडिया का वन ऑफ द लार्जेस्ट रिजर्व्स है और यह मोस्टली डेंस मैंग्रोव फॉरेस्ट से कवर्ड रहता है इस पार्क में एंडेंजर्ड रॉयल बंगाल टाइगर्स के अलावा गजेट डॉल्फिंस स्पॉटेड डियर वाइल्ड बोज और दूसरे मैमल्स और एंफीबियन स्पीशीज भी पाई जाती हैं सुंदरबंस में रेयर सॉल्ट वाटर क्रोकोडाइल्स भी पाए जाते हैं एंडेंजर्ड वाइल्डलाइफ और बायोडायवर्सिटी को प्रिजर्व करने में सुंदरबंस का इंपॉर्टेंस देखते हुए इसे 1987 को नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में डाला गया था नेक्स्ट नेचुरल साइट है ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क हिमाचल प्रदेश के कुल्लू रीजन में लोकेटेड है इसकी स्थापना 1984 में हुई थी और यह पार्क 1000 किमी स्क्वा से भी ज्यादा एरिया में स्प्रेड है पाक के अंदर की एल्टीट्यूड 1500 से 6000 मीटर के बीच वेरी करती है जिसके कारण ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क न्यूमरस फ्लोरा और करीब 375 फनल स्पीशीज का होम है 2014 में यूनेस्को ने इसे नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में डाला था नेक्स्ट नेचुरल साइट है केला देव नेशनल पार्क केला देव नेशनल पार्क जिसे पहले भरतपुर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी भी कहा जाता था राजस्थान के भरतपुर डिस्ट्रिक्ट में लोकेटेड है केवला देव का नाम एक्चुअली में केवला देव या शिव टेंपल के कारण पड़ा जो कि नेशनल पार्क के अंदर ही लोकेटेड है यह हेरिटेज साइट होने के साथ-साथ इंपॉर्टेंट रामसर साइट भी है रामसर साइट ऐसे वेटलैंड्स की लिस्ट होती है जो इकोलॉजी के लिए तो बहुत इंपॉर्टेंट है लेकिन ह्यूमन एक्टिविटीज के कारण थ्रेटें हैं केवला देव नेशनल पार्क भी थ्रेटें लैंडस्केप्स में से है क्योंकि इसकी फीडर रिवर गंभीर पे अपस्ट्रीम में डैम बन गया है डैम की कंस्ट्रक्शन के बाद केवला देव में फ्रेश वाटर फ्लो कम हो गया है हालांकि इंटरनेशनल प्रेशर्स और एनवायरमेंटलिस्ट के कहने पर गवर्नमेंट अब नेशनल पार्क के लिए एडिक्ट फ्रेश वाटर रिलीज करती है केवला देव इंपॉर्टेंट एवी फोना सैंक्चुरी है यहां हर साल थाउजेंड्स ऑफ रेर और एंडेंजर्ड माइग्रेटरी बर्ड्स विंटर्स में नेस्टिंग के लिए आती हैं केवला देव नेशनल पार्क में आने वाले कुछ माइग्रेटरी बर्ड्स क्रेंस पलिक हॉक्स गीज डक्स एट है साथ ही यहां कई ब्यूटीफुल एनिमल्स भी देखने को मिलते हैं जैसे गोल्डन जैकल स्ट्राइप हाइना जंगल कैट नील गाय ब्लैक बग फिशिंग कैट वाइल्ड बोर एसेट केवला देव को 1982 में नेशनल पार्क और 1985 में वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में डाला गया नेक्स्ट नेचुरल साइट है वेस्टन घाट वेस्टर्न घटस के हिल्स गुजरात से तमिलनाडु तक मोर देन 7000 स्क्वायर किलोमीटर में स्प्रेड हैं यह इंडिया के सिक्स स्टेट से पास करता है गुजरात महाराष्ट्र गोवा कर्नाटका केरला और तमिलनाडु यह हिमालया से जियोलॉजिक ओल्डर हैं और इन्हें वर्ल्ड के एट हॉटेस्ट हॉट स्पॉट्स में से एक माना जाता है इसका मतलब है कि वेस्टर्न घाट में पाई जाने वाली बायोडायवर्सिटी अनपैरेलल्ड है साथ ही साथ ह्यूमन एक्टिविटी से इनको खतरा भी है माना जाता है कि वेस्टर्न घाट एटलीस्ट 325 ग्लोबली थ्रेटें फ्लोरा फना बर्ड्स एंफीबियंस रेप्टाइल्स और फिश स्पीशीज का होम है इसके साथ ही इंडिया के मॉनसूनल क्लाइमेट को रेगुलेट करने में भी वेस्टर्न घटस का इंपॉर्टेंट रोल है आज वेस्टर्न घाट कई प्रकार की ह्यूमन एक्टिविटीज जैसे कंस्ट्रक्शन माइनिंग एग्रीकल्चर एटस के कारण थ्रेटें है वेस्टर्न घटस का डिस्ट्रक्शन ना केवल इकोलॉजी के लिए बल्कि क्लाइमेट चेंज के लिए भी खतरनाक है हाल ही में केरला अनप्रेसिडेंटेड फ्लड्स फेस कर रहा है एक इंपॉर्टेंट रीजन इसका यह भी है कि कई जगह पर वेस्टर्न घाट के फॉरेस्ट को काटकर ह्यूमन सेटलमेंट बसा दिए गए हैं इससे फ्लड्स और लैंडस्लाइड्स जैसे जजर्स का खतरा बढ़ जाता है वेस्टर्न घाट की इकोलॉजिकल इंपॉर्टेंस के कारण इसे 2012 में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया था इंडिया में एक साइट को यूनेस्को ने मिक्स्ड कैटेगरी में डाला है इसका मतलब है कि इसकी नेचुरल इंपॉर्टेंस के साथ-साथ कल्चरल इंपॉर्टेंस भी है आइए मिक्स्ड साइट के बारे में जाने आइए अब इंडिया में इकलौता मिक्स्ड वर्ल्ड हेरिटेज साइट को जाने मिक्स्ड साइट्स कंचनजंगा नेशनल पार्क कंचनजंगा नेशनल पार्क सिक्किम में लोकेटेड है ये इंडिया का वन ऑफ द हाईएस्ट एल्टीट्यूड नेशनल पार्क है नेशनल पार्क के अंदर ही वर्ल्ड का थर्ड हाईएस्ट पीक कंचनजंगा जिसकी हाइट 8586 है लोकेटेड है कंचनजंगा नेशनल पार्क एक्चुअली में कंचनजंगा बायोस्फीयर रिजर्व का कोर एरिया है यह बायोस्फीयर रिजर्व वर्ल्ड में अपनी बायोडायवर्सिटी के लिए फेमस है कंचनजंगा का 86 पर पार्ट अल्पाइन रीजन में लोकेटेड है और और बाकी पोशन हिमालयन वेट टेंपरेट और सब ट्रॉपिकल मॉस्ट डेसिडेंट काफी रिच है कंचनजंगा में पाए जाने वाले कुछ एंडेंजर्ड स्पीशीज है रेड पंडा स्नो लेपर्ड हिमालयन ब्लैक बेर मस्क डियर ग्रेट टिब शीप एसेट टिब से पास होने के कारण पाक में कई बुद्धिस्ट स्तूपस और मॉनेस्ट्रीज भी हैं जिसके कारण पाक की कल्चरल इंपॉर्टेंस भी काफी है नेचुरल और कल्चरल सिग्निफिकेंट के कारण ही कंचन जंगा नेशनल पार्क को यूनेस्को ने 2017 में इसे मिक्स्ड वर्ल्ड हेरिटेज की कैटेगरी में डाला था आइए अब जल्दी से समरी देख लेते हैं समरी फ्रेंड्स इस वीडियो में हमने इंडिया में यूनेस्को के द्वारा डेजिग्नेट कल्चरल नेचुरल और मिक्स्ड वर्ल्ड हेरिटेज साइट को देखा यह सारी साइट्स केवल इंडिया के लिए ही नहीं बल्कि वर्ल्ड के कल्चरल हेरिटेज के लिए भी वैल्युएबल है यह हमारी कंट्री के रिच कल्चरल और नेचुरल हिस्ट्री को पोट्रे करती हैं दोस्तों आपने इसमें से कितनी साइट्स को देखा है गवर्नमेंट देखो अपना देश प्रोग्राम के तहत डोमेस्टिक टूरिजम को बढ़ावा दे रही है हमारी भी यह कोशिश होनी चाहिए कि मलडी व्स यूरोप जैसी डेस्टिनेशन से पहले हम अपना देश घूमें और देखें दोस्तों यह देश इतना बड़ा सुंदर और डावर्स है कि यह आपको अचंभित कर देगा तो अगली बार मलडी व्स का टोर प्लान करने से पहले देखो अपना देश स्कूल्स ऑफ फिलोसोफी वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह संसार को किसने बनाया क्या इस पृथ्वी से भी अलग कोई दुनिया है मनुष्य होने का क्या मतलब है धर्म क्या है और अधर्म क्या दोस्तों ऐसे फिलोसॉफिकल क्वेश्चंस ने इंसान को हमेशा से परेशान किया है और हर सिविलाइजेशन ने अपने ढंग से इनके आंसर्स ढूंढने के प्रयास किए इजिप्शियन सिविलाइजेशन में मम्मी को बड़ी बारीकी से प्रिजर्व कर दिया जाता था क्योंकि उनके हिसाब से फिजिकल बॉडी की जरूरत इंसान को नेक्स्ट लाइफ में पड़ेगी मायंस के बिलीफ के अनुसार ह्यूमन सैक्रिफाइस लेजिटिमेसी ऐसे फिलोसॉफिकल क्वेश्चंस को आंसर करने के लिए इंडिया में भी फिलॉसफी का बर्थ हुआ फिलॉसफी को इंडिया में दर्शन शास्त्र भी कहते हैं दर्शन यानी कि देखने का नजरिया जाहिर सी बात है भारत जैसे वाट कंट्री में फिलोसॉफिकल क्वेश्चंस को देखने और समझने का नजरिया एक तो नहीं होगा तो दोस्तों इंडिया से निकले फिलोसॉफिकल डॉक्ट्रिन को मुख्य रूप से दो पार्ट्स में डिवाइड किया जा सकता है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडिशनल और हेटेरोडॉक्स ट्रेडिशनल वेदाज में विश्वास करता है वेदाज मुख्य रूप से चार हैं ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद ओल्डेस्ट वेदा ऋग्वेद है जो कि करीब 2000 बीसी में कंपाइल किया गया था ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन का मानना था कि वेदाज इनफैब हैं यानी वेदाज सर्वोपरि हैं इनकी फिलॉसफी वेदास के डिफरिंग इंटरप्रिटेशन से ही डिराइवर से न्याय वैशेषिका सांख्य योग पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा यानी वेदांत फिलॉसफी शामिल है अगर हम हेटेरोडॉक्स स्कूल की बात करें तो यह स्कूल वेदा में विश्वास नहीं रखता है जिसमें जैनिज्म बुद्धिज्म आजीविका और चार्वाक फिलोसोफी मुख्य थे तो दोस्तों आइए इस वीडियो में हम इंडिया के फिलोसॉफिकल ट्रेडिक मेनली ऑर्थोडॉक्स ट्रेडिशनल फिलोसोफी पर होगा ऑर्थोडॉक्स ट्रेडिश् जैसा कि पहले बताया गया है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशंस का जन्म वेदा से हुआ है और यह वेदास को डिफरेंटली इंटरप्रेट करते हैं लेकिन कुछ बातें हैं जो ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन के अंदर आने वाले सिक्स स्कूल्स में कॉमन है जैसे कि पहला फिलॉसफी या दर्शन का इंपॉर्टेंस केवल आत्मा और परमात्मा यानी ब्राह्मण को समझने के लिए नहीं है बल्कि इसका प्रैक्टिकल इंपॉर्टेंस है इसकी मदद हम धर्म को समझ सकते हैं धर्म यानी कि धारण योग्य बातें हम अक्सर धर्म और रिलीजन को इंटरचेंजेबली यूज कर लेते हैं लेकिन ऐसा सही नहीं है धर्म का अर्थ हिंदू फिलॉसफी में कोड ऑफ कंडक्ट से है यह सभी रिलीजस पर अप्लाई होता है धर्म आस्तिक के लिए भी है और नास्तिक के लिए भी दूसरा धर्म जरूरी है क्योंकि यह लाइफ को मीनिंग देता है और हर इंसान को जानवर से अलग करता है जानवर जहां अपने सेंस ऑर्गन्स के कंट्रोल में होते हैं धर्म इंसान के अपने सेंस ऑर्गन्स को कंट्रोल में करना सिखाता है धर्म का पालन करके ही इंसान पुरुषार्थ अचीव कर सकता है हिंदू फिलॉसफी में फोर पुरुषार्थस मुख्य हैं धर्म अर्थ काम और अंत में मोक्ष जिसके बाद इंसान परमात्मा में मिल जाता है तीसरा मेटा फिजिकल यानी आध्यात्मिक इश्यूज को को अड्रेस करने के लिए लॉजिक रीजनिंग और एनालिसिस का इस्तेमाल किया गया है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशंस में इसका अर्थ है कि किसी भी इशू को एनालिटिकल माइंड से अप्रोच करके उसे प्रूव करने की कोशिश की जा सकती है तो दोस्तों आइए अब थोड़ा डिटेल में समझते हैं ऑर्थोडॉक्स ट्रेडिशनल स्कूल्स ऑफ फिलॉसफी को सांख्य स्कूल सांख्य स्कूल के फाउंडर कपिल मुनि थे इन्होंने सांख्य सूत्र लिखा जिसमें सांख्य फिलॉसफी को डिस्क्राइब किया गया है सांख्या स्कूल ड्यूलिस्ट म यानी द्वैतवाद में विश्वास करता है ड्यूलिस्ट म के अनुसार यह संसार पुरुष और प्रकृति में डिवाइडेड है पुरुष यानी कि कॉन्शसनेस या चेतना इंसान का सोल यानी आत्मा और माइंड यानी मस्तिष्क उसे कॉन्शसनेस प्रदान करता है पुरुष इनटेंजिबल होता है अर्थात इसको बस फील किया जा सकता है इसे ना ही टच किया जा सकता है ना ही देखा जा सकता है प्रकृति टेंज बल होती है अर्थात उसे हम देख सकते हैं और सेंस ऑर्गन से फील और टच भी कर सकते हैं संसार में जो भी लिविंग और नॉन लिविंग थिंग्स है सारे प्रकृति के अंदर आते हैं जब पुरुष और प्रकृति डिजायर्स यानी कि कामना या इच्छा से अटैच होते हैं तो जीव का जन्म होता है डिजायर्स यानी कि जिन्हें हम अपने सेंस ऑर्गन्स आय यर नोज स्किन टंग का यूज करके पूरा पूरा करते हैं यह डिजायर्स को ही माया कहा गया है और जीव जब तक इस संसार में जीवित रहता है वह अपनी डिजायर्स को फुलफिल करने की कोशिश करता रहता है जब जीव की मृत्यु हो जाती है तो उसके अंदर का पुरुष प्रकृति से अलग हो जाता है और कॉस्मिक कॉन्शसनेस में मिल जाता है सांख्य फिलॉसफी इस स्टेट को मोक्ष या साल्वेशन कहती है एक बात ध्यान देने योग्य है कि सांख्य स्कूल गॉड या सुपर ह्यूमन के एेंस को डिनायर है मृत्यु के बाद आत्मा का पुनर्जन्म होता है या नहीं इस बारे में भी सांख्य फिलॉसफी साइलेंट है सांख्य बिलीव करती है कि राइट नॉलेज को अवाय करके साल्वेशन या मोक्ष अचीव किया जा सकता है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन का दूसरा स्कूल है न्याय स्कूल न्याय स्कूल न्याय स्कूल के फाउंडर अक्ष पद गौतम को माना गया है जिन्होंने न्याय सूत्र नाम के ग्र ग्रंथ की रचना की न्याय फिलोसोफी लॉजिक रीजनिंग और एनालिसिस में विश्वास करती है इसके अनुसार किसी भी नॉलेज को सही तभी माना जाएगा जब वह चार सिद्धांत यानी परसेप्शन यानी अनुभूति इनफर अनुमान कंपैरिजन तुलना और टेस्टिमोनी यानी साक्ष्य पर खरी उतरती है लॉजिकल थिंकिंग पर फोकस के कारण ही इसे हिंदू फिलॉसफी का वन ऑफ द मोस्ट रैशनल स्कूल माना गया है न्याय फिलॉसफी एंट ग्रीस में फेमस सक्रेटीज और प्लेटो के फिलॉसफी से काफी सिमिलर है न्याय फिलॉसफी गॉड में बिलीव करता है उनका बिलीव है कि यूनिवर्स को गॉड ने बनाया वही इसे सस्टेन करते हैं और वही इसे डिस्ट्रॉय करते हैं मोक्ष पाने के लिए हमें लॉजिकल थिंकिंग का यूज करना पड़ेगा तीसरा स्कूल है वैशेषिका वैशेषिका स्कूल यह स्कूल रियलिस्टिक और और ऑब्जेक्टिव फिलोसोफी में बिलीव करता है वैशेषिका स्कूल के फाउंडर ऋषि कनाड को माना गया है इनका मानना था कि यह संसार एटम्स यानी अणु से मिलकर बना है ब्राह्मण या गॉड वो फंडामेंटल फोर्स है जिससे एटम्स में कॉन्शसनेस आती है एटम से मिलकर मॉलिक्यूल बने और मॉलिक्यूल एलिमेंट्स बनाते हैं वैशेषिका फिलोसोफी का मानना है कि यह संसार पांच एलिमेंट से मिलकर बना है अर्थ यानी धरती एयर यानी वायु वाटर यानी जल फायर यानी अग्नि और ईथर यानी आकाश कहा जाता है कि फिजिक्स या भौतिक विज्ञान की इंडियन सबकॉन्टिनेंट में शुरुआत में वैशेषिका स्कूल का मेजर रोल रहा है यह फिलॉसफी न्याय फिलॉसफी से क्लोस एसोसिएटेड थी दोनों का बिलीफ साइंटिफिक रीजनिंग में था जिसके कारण आगे चलकर वैशेषिका और न्याय स्कूल यूनिफाइड हो गए न्याय फिलॉसफी की तरह ही वैशेषिका भी गॉड या कॉस्मिक पावर में बिलीव करती है जो यह संसार का सूत्रधार है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन का चौथा स्कूल है योगा स्कूल जो आजकल इंडिया में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी पॉपुलर है योगा स्कूल योगा फिलॉसफी के फाउंडर ऋषि पतंजलि थे जिन्होंने सेकंड सेंचुरी बीसी के अराउंड योगसूत्र ग्रंथ की रचना की योगसूत्र को ही योगा का ओरिजिन माना गया योगा असल में फिजिकल मेंटल स्पिरिचुअल प्रैक्टिस और डिसिप्लिन का कॉमिनेशन है योग फिलॉसफी बिलीव करती है कि मेडिटेशन और योगिक टेक्नीक से पुरुष को प्रकृति से अलग किया जा सकता है और मोक्ष या साल्वेशन को प्राप्त किया जा सकता है योग की फिलॉसफी एट फंडामेंटल्स पर बेस्ड है जो इस प्रकार हैं सेल्फ कंट्रोल यानी यम ऑब्जर्वेशन ऑफ रूल्स नियम फिक्स्ड पोचर्स आसन ब्रेथ कंट्रोल प्राणायाम चूज इंग एन ऑब्जेक्ट प्रत्याहार एंड फिक्सिंग द माइंड धरना कंसंट्रेटिंग ऑन द चोजन ऑब्जेक्ट ध्यान कंप्लीट डिसोल्यूशन ऑफ सेल्फ एंड इमर्जिंग द माइंड एंड द ऑब्जेक्ट समाधि आगे चलकर योग हिंदुइज्म के अलावा बुद्धिज्म और जैनिज्म का भी पार्ट बन गया आज योग की पॉपुलर को रिकॉग्नाइज करते हुए यूनाइटेड नेशंस हर साल 21 जून को इंटरनेशनल योगा डे मनाती है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन का पांचवां स्कूल है पूर्व मे मांसा यह स्कूल वेदास के रिचुअल्स पार्ट पर फोकस करता है पूर्व मीमांसा पूर्व मीमांसा के फाउंडर ऋषि जेमिनी थे मीमांसा का लिटरल मीनिंग होता है रीजनिंग इंटरप्रिटेशन और एप्लीकेशन यह फिलॉसफी वेदास को सर्वोपरि मानती है और इनका मेन फोकस वेदास के समहिता और ब्राह्मणा पाठ को एनालाइज करना था इनका मानना है कि वेदास के अंदर इटरनल ट्रुथ है और अगर किसी को मोक्ष और स्वर्ग प्राप्त करना है तो उसे वेदास में लिखी सारी ड्यूटीज को फुलफिल करना पड़ेगा पूर्व मीमांसा फिलॉसफी वैदिक रिचुअल्स को एमफसा इज करती है उनके अनुसार मोक्ष के लिए ना केवल रिचुअल्स परफॉर्म करना जरूरी था बल्कि उनके पीछे का जस्टिफिकेशन और रीजनिंग भी समझना जरूरी था रिचुअलिस्टिक पार्ट पर उनके फोकस के कारण यह फिलॉसफी ने प्रीस्टली क्लास यानी ब्राह्मण को इनकरेज किया इसके कारण ब्राह्मण और कॉमन पीपल के बीच सोशल डिस्टेंस बढ़ा वेदास पढ़ना और उसे इंटरप्रेट करने का जिम्मा मुख्य रूप से प्रीस्टली क्लास के पास था जिसके कारण कॉमन लोगों को हर रिचुअल्स के लिए प्रीस्टली क्लास पर डिपेंड करना पड़ता था कॉमन पीपल ना ही इतने एजुकेटेड थे ना उनके पास वेदास को एक्सेस कर करने का रिसोर्स था ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन का लास्ट स्कूल है उत्तर मीमांसा या वेदांत यह स्कूल ऑर्थोडॉक्स ट्रेडीशन का सबसे इंपॉर्टेंट स्कूल बनकर निकला और इसे मिडिवल एज के भक्ति मूवमेंट का प्रिकर माना गया है उत्तर मीमांसा या वेदांता उत्तर मीमांसा फिलॉसफी भी वेदा से ही राइड है यह फिलॉसफी भी वेदाज की रीजनिंग और इंटरप्रिटेशन में बिलीव करती है लेकिन पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा में कोर डिफरेंस है कि जहां पूर्व मीमांसा वेदास के साता और ब्राह्मण पर फोकस करती है उत्तर में मानसा वेदास के अंत यानी कि उपनिषादिक पाठ पर फोकस करती है असल में वेदास के चार मुख्य पाट है ब्राह्मणा समहिता आगण का और उपनिषद उपनिषद वेदा का आखिरी पाठ है इसे वेदांत भी कहा गया है वेदांत पर फोकस के कारण ही इस फिलॉसफी का नाम उत्तर मीमांसा या वेदांत फिलॉसफी पड़ा माना जाता है कि बद्रायण का ब्रह्मसूत्र जो कि सेकंड सेंचुरी में लिखा गया था इस फिलॉसफी का ओल्डेस्ट टेक्स्ट था इस फिलॉसफी के अनुसार ब्रह्मा या गॉड ही अंतिम सत्य है और बाकी सब माया है ऑर्थोडॉक्स ट्रेडिशनल स्कूल सबसे प्रॉमिनेंट और फिलोसॉफिकली एडवांस्ड है वेदांत फिलोसोफी में मुख्य रूप से बेसिक हिंदू टेक्स्ट का इंटरप्रिटेशन है उपनिषद ब्रह्म सूत्र और भागवत गीता आगे चलकर वेदांता स्कूल के कई सब स्कूल्स डिवेलप हुए एथ सेंचुरी एडी में आदि गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत या नॉन डलिस म की फिलॉसफी दी अद्वैत वेदांता के अनुसार आत्मा और परमात्मा एक ही है शंकराचार्य ने वेदांत फिलोसोफी को स्प्रेड करने के लिए इंडिया के फोर कॉर्नर्स में चार मॉनेस्ट्रीज यानी मट बद्रीनाथ श्रृंगेरी जगन्नाथ पुरी और द्वारका का निर्माण कराया 12थ सेंचुरी एडी में रामानुज ने विशिष्ट अद्वैता यानी क्वालिफाइड मोनिज्म को जन्म दिया इसके अनुसार हर आत्मा परमात्मा में नहीं मिल सकती जिनके पास ट्रू नॉलेज है वही परमात्मा में मिल सकते हैं आगे चलकर मिडिवल एज में मोक्ष या साल्वेशन के लिए भक्ति मार्ग को चुना गया भक्ति मार्ग के इंपॉर्टेंट प्रोपाउंडर माधवाचार्य थे जिन्होंने द्वैत सिद्धांत दिया द्वैत सिद्धांत के अनुसार आत्मा और परमात्मा दो अलग-अलग एंटिटीज हैं लेकिन ब्राह्मणा यानी गॉड की भक्ति से साल्वेशन अचीव किया जा सकता है भक्ति पंथ निर्गुण और सगुण में डिवाइड हो गया निर्गुण पंथ फॉर्मलेस गॉड की भक्ति करता था कबीरदास और नानक मुख्य निर्गुण सेंट थे सगुण पंथ मुख्य रूप से वैष्णव और शैव में डिवाइड हो गया तुलसीदास सूरदास मीरा और चैतन्य महाप्रभु एटस कुछ सगुण सेंट्स थे जिन्होंने मिडिवल एज में वेदांत फिलॉसफी को प्रोपेट किया मॉडर्न टाइम्स में वेदांत फिलॉसफी को वेस्ट में प्रचार प्रसार करने में स्वामी विवेकानंद का बड़ा रोल था विवेकानंद आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत में बिलीव करते थे कंक्लूजन तो दोस्तों इस में हमने वेदाज से निकले सिक्स ऑर्थोडॉक्स ट्रेडिशनल फिलोसोफी को देखा इनके अलावा बुद्धिज्म जैनिज्म चार्वाक आजीविका फिलॉसफी भी थी जो वेदास की अथॉरिटी में बिलीव नहीं करती थी इसके कारण इन्हें ट्रोड क्स ट्रेडिक और आजीविका स्कूल के फॉलोअर्स तो अब नहीं रहे लेकिन जैनिज्म और बुद्धिज्म इंडिया से निकलकर पूरे विश्व में स्प्रेड कर गया दोस्तों इंडिया के फिलोसॉफिकल इन्हेरिटेंस के कारण ही इसे विश्व गुरु कहा जाता है दुनिया भर से लोग इंडिया की फिलॉसफी को पढ़ने और समझने के लिए नालंदा विक्रमशिला और तक्षशिला जैसी यूनिवर्सिटीज में आया करते थे आज की मैटेरियलिस्टिक एज में मटेरियल प्रोस्पेरिटी तो है लेकिन मेंटल पीस नहीं है मटेरियल प्रोस्पेरिटी से अलग लाइफ को मीनिंग देने के लिए लोग वर्ल्ड ओवर इंडियन फिलॉसफी की तरफ इंटरेस्टेड हुए हैं वेस्ट में श्री कृष्ण भक्ति मूवमेंट का स्प्रेड इस बात का जीत जागता एग्जांपल है आज जरूरत है कि हम अपनी धरती से निकले इन फिलॉसफी को दोबारा रिविजिट करें और इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं भक्ति एंड सूफी मूवमेंट वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह कहा जाता है कि 21 सेंचुरी एज ऑफ प्रोस्पेरिटी है जो कि ह्यूमंस के मटेरियल प्रोग्रेस से संभव हो पाया है लेकिन मटेरियल प्रोग्रेस के साथ ही इसने कई तरह के कॉन्फ्लेट्स को भी जन्म दिया है रिलीजस और कल्चरल कॉन्फ्लेट्स उसी का एक एग्जांपल है सैमुअल पी हंटिंगटन जो कि एक फेमस इंटरनेशनल पॉलिटिक्स स्कॉलर हैं अपनी थीसिस क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन में लिखते हैं कि कोल्ड वॉर के बाद का एज रिलीजस और कल्चरल कॉन्फ्लेट्स का होगा उनका मानना है कि फ्यूचर वॉर्स कंट्रीज के बीच नहीं बल्कि कल्चरस के बीच लड़ी जाएंगी अगर हम ध्यान से देखें तो इसके कई एग्जांपल्स आज हमको वर्ल्ड में दिखाई दे जाएंगे मिडिल ईस्ट में इजराल पलेस्टाइन कॉन्फ्लेट अरब में शिया सुन्नी कॉन्फ्लेट अफगानिस्तान में हजरा और ताजिक को टारगेट करना मयमार से रोहिंग्या का पलायन यूरोप का रिफ्यूजी क्राइसिस एटस रिलीजस कल्चरल कॉन्फ्लेट के एग्जांपल्स है अगर हम अपने देश में ही देख ले तो हमारा देश भी इस प्रॉब्लम से अछूता नहीं है चाहे वह 2002 के गुजरात राइट्स हो 2013 के मुजफ्फरनगर राइट्स हो या रिसेंट मॉब लिंचिंग इंसीडेंसेस हो रिलीजस कल्चरल वायलेंस रह रह करर हमारी सोसाइटी में डिस्टरबेंसस क्रिएट करते रहे हैं दोस्तों ऐसे समय में जरूरत है कि हम इतिहास के पन्ने में झांक कर देखें हमारे देश का इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है इसी गौरवशाली इतिहास में से हम आज भक्ति और सूफी मूवमेंट्स की चर्चा करेंगे इनकी चर्चा इसलिए इंपॉर्टेंट है क्योंकि यह हमें बताते हैं कि एक डावर्स वर्ल्ड में जहां इतने रिलीजस बिलीव्स और सोशल सिस्टम्स हैं हम कैसे सुख शांति और समृद्धि के साथ रह सकते हैं दोस्तों भक्ति और सूफी मूवमेंट्स अनेकता में एकता का संदेश देते हैं और वसुदेव कुटुंब कम जिसका अर्थ है वर्ल्ड इज अ फैमिली इस भावना को चरितार्थ करते हैं तो आइए अब भक्ति एंड सूफी मूवमेंट्स को डिटेल में समझते हैं भक्ति मूवमेंट इंट्रोडक्शन भक्ति मूवमेंट का डेवलपमेंट सेवंथ से 12थ सेंचुरी के बीच तमिलनाडु में स्टार्ट हुआ था भक्ति मूवमेंट को लीड करने वाले सेंट्स को दो मेजर ग्रुप्स में डिवाइड कर सकते हैं नायनास और अलवर्स नायर्स शिवा के डेविट थे और अलवर्स विष्णु के भक्ति मूवमेंट से पहले सनातन धर्म में रिचुअल्स सैक्रिफाइस कस्टम्स को इंपॉर्टेंट माना जाता था लेकिन भक्ति सेंट्स ने इनसे अलग एक नया रास्ता अपनाया जो पर्सनल डिवोशन टू गॉड पर बेस था उन्होंने ब्राह्मण के द्वारा कंडक्ट किए जाने वाले लबरेट रिचुअल्स को हिंदू धर्म के लिए जरूरी नहीं समझा एक्सेस रिचुअलिज्म के कारण हिंदू धर्म कॉमन लोगों से दूर होता चला जा रहा था और यह केवल कुछ लोगों के हाथों में चला गया था यह अपर कास्ट ब्राह्मण थे जिन्हें संस्कृत की नॉलेज थी और जो वेदस को पढ़ना जानते थे भक्ति सेंटस का मानना था कि इंसान भक्ति या डिवोशन में रहकर भी साल्वेशन यानी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है इसके लिए ब्राह्मण के द्वारा कराए जाने वाले लबरेट रिचुअल्स की जरूरत नहीं है इसीलिए हम देखेंगे कि सभी भक्ति सेंट्स ने भजन कीर्तन पोएट्री एटस का रास्ता चुना और भक्ति को कॉमन लोगों के बीच पॉपुलर किया उन्होंने ब्रह्मस द्वारा एंडोस किए गए कास्ट सिस्टम से अपने आप को दूर रखा उनके पास कोई भी किसी भी वर्ग का आ जा सकता था इसी कारण से भक्ति मूवमेंट पर्टिकुलर लोअर कास्ट में काफी पॉपुलर था धीरे-धीरे साउथ से होते हुए भक्ति मूवमेंट नॉर्थ में स्प्रेड हुआ यहां भक्ति मूवमेंट टू स्ट्रीम्स में डिवाइड हो गया पहला स्ट्रीम निर्गुण ईश्वर को पूजने लगा निर्गुण भक्ति सेंट्स में सबसे इंपॉर्टेंट कबीर और नानक थे यह दोनों निराकार या फॉर्मलेस गॉड अर्थात जिसका कोई रूप ना हो ऐसे ईश्वर की पूजा करते थे दूसरा स्ट्रीम सगुन या साकार ईश्वर को पूजने लगा सगुन भक्ति सेंस एक आकार को पूजते थे जैसे वैश्णवाइट्स विष्णु की पूजा करते थे और शैवाइट्स शिव की इसके अलावा ईस्टर्न और नॉर्थ ईस्टन इंडिया में लोग शक्ति या देवी की भी पूजा करते थे इन्हें शकता कहा जाता था तो वैश्णवाइट्स शैवाइट्स और शकता सारे सगुण भक्ति सेंस की कैटेगरी में आते हैं आइए अब सबसे पहले निर्गुण भक्ति सेंटस को डिटेल में देखते हैं कबीर बा पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़ ताते ये चाकी भली पीस खाए संसार मतलब पत्थर की पूजा करने से अगर भगवान मिलते हैं तो मैं पहाड़ की ही पूजा कर लूंगा इससे तो भला पत्थर की चक्की है जिससे पीसने से संसार को भोजन भी मिलता है कबीर बिना कोई धर्म या संप्रदाय को मानने वाले निर्गुण भक्ति सेंट्स में वन ऑफ द मोस्ट इंपॉर्टेंट थे ऊपर लिखा इनका दोहा यह बताता है कि कबीर मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते थे वोह एक निराकार ईश्वर की पूजा करते थे कहा जाता है कि उनकी मां एक ब्राह्मण विडो थी जिन्होंने उनको अबन कर दिया था उनका पालन पोषण एक गरीब मुस्लिम वीवर फैमिली में हुआ था कबीर का मानना था कि भगवान को पाने का एक ही रास्ता है और वह है पर्सनल डिवोशन का वो ना मूर्ति पूजा में विश्वास करते थे ना ही किसी भी प्रकार के रिचुअल्स में इसलिए उन्होंने ने हिंदुओं के यज्ञ और हवन को क्रिटिसाइज किया और मुस्लिम्स के नमाज को भी अपने विचारों के कारण ऑर्थोडॉक्स सिक्षण से उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का भी सामना करना पड़ा लेकिन वह अपने विचारों पर अडिग रहे कबीर मानते थे कि सबको बनाने वाला एक है और उन्हें हम अलग-अलग नाम से पुकारते हैं जैसे कि राम हरि गोविंद अल्लाह रहीम खुदा एटस रिलीजन का एक्सटर्नल एस्पेक्ट कबीर के लिए इंपॉर्टेंट नहीं था उनका मानना था कि इंटरनली सारे रिलीजस एक ही परमपिता परमेश्वर की बात करते हैं उनके आइडियाज और बिलीफ उनके द्वारा रचे गए दोहास में रिफ्लेक्ट होते हैं यूनिटी ऑफ गॉड्स में बिलीव के कारण ही उनके मरने के बाद हिंदू और मुस्लिम्स दोनों ने उनकी बॉडी को क्लेम करना चाहा कबीर के आइडियाज केवल रिलीजन तक ही रिस्ट्रिक्टेड नहीं थे उन्होंने सोसाइटी की नैरो थिंकिंग को अपने फोर्सफुल और डायरेक्ट पोएट्री से चैलेंज कि उनके आइडियाज की मास अपील थी जिसके कारण कबीर के कई आइडियाज को सखि जम के आदि ग्रंथ साहिब में भी इनकॉरपोरेट किया गया है कबीर की तरह ही गुरु नानक भी इंपॉर्टेंट निर्गुण भक्ति सेंट थे गुरु नानक गुरु नानक निर्गुण या निराकार ईश्वर की आराधना करते थे वैसे तो गुरु नानक को आज सखि जम रिलीजन का फाउंडर कहा जाता है लेकिन नानक अपने समय में कोई अलग रिलीजन को फाउंड नहीं करना चाहते थे जिस प्रकार कबीर के विचारों पर चलने वाले उनके फॉलोअर्स ने कबीर पंथी नामक सेक्ट बना लिया उसी तरह नानक के विचारों पर चलने वाले उनके फॉलोअर्स ने सिख जम बनाया गुरु नानक का जन्म तलवंडी नानका साहब में हुआ था कम उम्र से ही उनकी दिलचस्पी स्पिरिचुअल लाइफ की तरफ थी वह हमेशा पुअर और नीडी लोगों की मदद करते थे गुरु नानक की पर्सनालिटी सिंपलीसिटी और पीसफुलनेस को कंबाइन करती थी उनका ऑब्जेक्टिव था सोसाइटी में एसिस्टिंग करप्ट और डिग्रेडिंग प्रैक्टिसेस को हटाया जा सके उन्होंने कास्ट बेस्ड डिविजन से अलग इक्वलिटी के सोशल ऑर्डर के लिए एक नया रास्ता दिखाया कबीर की तरह ही गुरु नानक देव एक सोशल रिफॉर्मर और रिलीजस टीचर भी थे उन्होंने औरतों की कंडीशन को इंप्रूव करने का नारा दिया उनके और उनके बाद आए सिख गुरुस के वचनों को गुरु ग्रंथ साहिब में कंपाइल किया गया जो कि सिख धर्म की होली बुक बनी निर्गुण भक्ति सेंस के बाद आइए अब सगुण भक्ति सेंटस के बारे में जाने सगुण भक्ति सेंस निर्गुण सेंट्स से अलग सगुन सेंट्स का डिवोशन एक साकार सगुन फॉर्म ऑफ गॉड या ब्रह्म की तरफ था ज्यादातर सगुन सेंट्स मिडिवल इंडिया में वैश्णवाइट्स थे जिनका वशिप राम और कृष्ण के अराउंड रिवॉल्व करता था राम और कृष्ण दोनों को ही भगवान विष्णु का रूप माना गया है इसीलिए इन्हें वैश्णवाइट्स कहते थे मोक्ष का रास्ता इनके हिसाब से पोएट्री सोंग्स डांस और कीर्तन में था मीनिंग वह ईश्वर की भक्ति में खो जाते थे ऐसे ही एक फेमस श्री कृष्णा डेविट थे सूरदास सूरदास फेमस टीचर वल्लभाचार्य के डिसाइल थे वैसे तो सूरदास देख नहीं नहीं सकते थे फिर भी उन्होंने सूरसागर ग्रंथ की रचना की इस ग्रंथ में वह कृष्ण के बचपन और यूथ को बड़े ही अफेक्शन और डिलाइट के साथ याद करते हैं श्री कृष्ण की भक्ति में मीराबाई का नाम भी बहुत इंपॉर्टेंट है मीरा बहुत ही कम उम्र में विधवा हो गई थी लेकिन वह श्री कृष्ण को ही अपना पति मानने लगी थी मीरा ने कृष्ण भक्ति में बहुत सारे डिवोशनल पोयम्स लिखे जो आज भी वृंदावन में गाए जाते हैं अगर ईस्टर्न इंडिया में हम भक्ति मूवमेंट की बात करें तो इसमें श्री चैतन्य महाप्रभु का इंपॉर्टेंट रोल था चैतन्य वैश्णवाइट्स लॉर्ड विष्णु के इंकार्नेट माने जाने वाले श्री कृष्ण पर कंसंट्रेटेड था चैतन्य कृष्ण को बस विष्णु का इंकार्नेट ही नहीं बल्कि हाईएस्ट फॉर्म ऑफ गॉड भी मानते थे कृष्ण के प्रति उनका डिवोशन संकीर्तन में दिखता था जो कि टेंपल्स घर और स्ट्रीट में डेविट इकट्ठा होकर करते थे हमने अपने आसपास इसकन के मंदिरों में हरे रामा हरे कृष्णा के गीत तो सुने ही होंगे जो आजकल विदेशों में भी काफी पॉपुलर हो रहे हैं हरे कृष्णा मूवमेंट के कोर संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु को ही माना गया है 1966 में इस मूवमेंट को विदेशों में ऑर्गेनाइज्ड रूप से चलाने के लिए न्यूयॉर्क में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस यानी इसकन को बनाया गया था श्री कृष्णा भक्ति के साथ ही मिडिवल में राम भक्ति भी काफी पॉपुलर थी प्रभु श्री राम के वशिप रामानंद 1400 से 1470 जैसे भक्ति सेंट्स ने पॉपुलर इज किया वह राम को सुप्रीम गॉड मानते थे विमेन और आउटकास्ट भी उनकी सभाव में आ सकते थे कबीर को रामानंद का ही डिसाइल माना गया है राम भक्ति में एक और सबसे बड़ा नाम तुलसीदास 1523 से 1623 तक उनका आता है जिन्होंने फेमस बुक रामचरित मानस की रचना की आइए अब भक्ति मूवमेंट के इंपॉर्टेंस को समझें इंपॉर्टेंस ऑफ भक्ति मूवमेंट वैष्णवास्त्र मूवमेंट ने स्टैग्नेंट हिंदू सोसाइटी को एक नए डायरेक्शन में पुश किया रिचुअल्स के अपोजिशन और पर्सनल डिवोशन पर फोकस के कारण भक्ति मूवमेंट लोअर कास्ट में बहुत पॉपुलर हुआ पहली बार सोसाइटी के लोअर कास्ट से रिलीजियस लीडरशिप और फॉलोअर्स दोनों आए संस्कृत की हे जमनी को ब्रेक करके भक्ति मूवमेंट ने रिलीजन को कॉमन लैंग्वेज में लोगों तक पहुंचाया इसके साथ ही भक्ति सेंट्स ने सोशल रिफॉर्म्स के लिए भी आवाज उठाई दोस्तों जिस तरह हिंदू रिलीजन और सोसाइटी को भक्ति मूवमेंट रिफॉर्म कर रहा था उसी समय मुस्लिम समाज से भी एक पावरफुल रिफॉर्मिंग निकला सूफी मूवमेंट ने मुस्लिम ऑर्थोडॉक्सी या उलेमास और उनके कट्टर पंथी विचारों को चैलेंज किया सूफीज ने गंगा जमुनी तहजीब और हिंदू मुस्लिम यूनिटी की बात की सूफी मूवमेंट सूफिज्म का डेवलपमेंट इस्लाम के अंदर ही एक लिबरल ट्रेडीशन के रूप में हुआ कुछ रिलीजस माइंडेड पीपल ने इस्लामिक सल्तनत के अंदर बढ़ती मैटेरियलिज्म का विरोध शुरू किया उनका झुकाव सिंपल लाइफ और ईश्वर के प्रति डिवोशन में था इन्हें बाद में सूफीज कहा जाने लगा ऐसा माना जाता है कि सूफी टर्म सूफ यानी वुल से डिराइवर क्लोथ्स पहना करते थे कुछ लोगों का मानना है कि यह सफा से निकला है जिसका लिटरल मीनिंग प्योरिटी होता है जो कि सूफी सेंट्स की प्योरिटी को दर्शाता है जो भी हो 11थ सेंचुरी तक सूफिज्म एक वेल डेवलप्ड मूवमेंट के फॉर्म में डिवेलप हो चुका था जिसका अपना लिटरेचर और वेल डेवलप्ड प्रैक्टिसेस थे सूफीज जनरली एक खानकाह के अराउंड ऑर्गेनाइज होने लगे खानकाह उस प्लेस को कहते थे जहां सूफी टीचर जिन्हें शेख पीर मुर्शिद भी कहते थे और उनके डिसाइल्स या मुरीद रहा करते थे शेख खानकाह के रूल्स के साथ स्पिरिचुअल कंडक्ट के रूल्स भी डि साइड करते थे शेख मरने से पहले अपने सक्सेसर को अपॉइंट्स का एक सिलसिला चल पड़ा सिलसिला का लिटरल मीनिंग चेन या जंजीर होता है और यह एक सूफी विचारधारा की ना टूटने वाली कड़ी को डिनोट करता है अबुल फजल आईने अकबरी में 14 सूफी सिलसिलास के बारे में लिखते हैं हर सूफी सिलसिला के अलग फाउंडर और विचार थे इन सिलसिलास को मुख्य रूप से दो टाइप्स में डिवाइड किया जा सकता है बशर और बेशरा बशा उन सिलसिलास को कहते थे जो कि इस्लामिक लॉज या शरिया में विश्वास रखते थे और उनके डायरेक्टिव्स जैसे कि नमाज और रोजा को फॉलो करते थे इनमें चिश्ती सूरा वर्दी फिरदौसी कादरी और नक्स बंदी पॉपुलर थे बेशरा सिलसिला अपने आप को शरिया से बाउंड नहीं मानते थे कलंदर सिलसिला इसमें बिलोंग करता था इंडिया में मुख्य रूप से दो सिलसिला काफी पॉपुलर थे चिश्ती और सराव दी सिलसिला आइए अब चिश्ती सिलसिला के बारे में समझते हैं चिश्ती सिलसिला चिश्ती सेक्ट ख्वाजा चिश्ती विलेज से स्टार्ट हुआ था जो कि अफगानिस्तान में हेरात प्रोविंस के नजदीक है इंडिया में चिश्ती सिलसिला की फाउंडेशन ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने रखी थी जो कि अराउंड 1192 एडी में इंडिया आए थे उन्होंने अजमेर राजस्थान को अपना मेन सेंटर ऑफ टीचिंग बनाया उनका मानना था कि मैनकाइंड की सर्विस ही बेस्ट फॉर्म ऑफ डिवोशन है इसलिए वह गरीबों के बीच काम करते थे उनकी मृत्यु अजमेर में ही 1236 में हुई मुगलों के टाइम में अजमेर लीडिंग पिलग्रिम सेंटर बना और कई एंपरर्स रेगुलरली शेख के टूम को विजिट करते थे कहा जाता है कि हिंदुस्तान के शहंशाह अकबर भी बेर फुट ख्वाजा चिश्ती की दरगाह पर अपनी मुराद मांगने गए थे ख्वाजा चिश्ती की पॉपुलर का तो यह आलम है कि आज भी लाखों लोग दुनिया भर से उनकी टूम को हर साल विजिट करने आते हैं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के प्रमुख डिसाइल कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी थे माना जाता है कि सुल्तान इलत मिश ने दिल्ली में कुतुब मीनार का कंस्ट्रक्शन सेंट कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में ही कराया था शेख फरीदुद्दीन गंजे शकर एक और पॉपुलर चिश्ती सेट थे जो कि मॉडर्न डे हरियाणा और पंजाब में प्रीच करते थे उन्होंने अपना दरवाजा हर किसी के लिए खुला रखा था जिसके कारण उनके डिसाइल्स में हिंदू और मुस्लिम्स दोनों आते थे शेख फरीदुद्दीन को लोग प्यार से बाबा फरीद भी कहते थे बाबा फरीद पंजाबी में प्रीच करते थे उनकी प्रीचिंग्स को सिखों की होली बुक आदि ग्रंथ साहिब में भी जगह दी गई बाबा फरीद के मोस्ट फेमस डिसाइल थे शेख निजामुद्दीन औलिया 12 38 टू 1325 निजामुद्दीन औलिया के कारण ही दिल्ली चिश्ती सिलसिला का एक इंपॉर्टेंट सेंटर बना वह दिल्ली 1259 में आए थे और अपने लाइफ टाइम में उन्होंने सात बार दिल्ली के सुल्तांस को बदलते देखा लेकिन निजामुद्दीन औलिया कभी भी किसी सुल्तान के दरवाजे तक नहीं गए वह मानते थे कि बिना ह्यूमैनिटी की सर्विस के गॉड की वरशिप अधूरी है अपने खानकाह में आए हर इंसान को बिना किसी डिस्क्रिमिनेशन के वह फूड और क्लोथ्स प्रोवाइड करते थे निजामुद्दीन औलिया डिवोशनल म्यूजिक में भी काफी इंटरेस्टेड थे उनका मानना था कि म्यूजिक के थ्रू इंसान गॉड को फील कर सकता है उनके लिबरल थॉट्स के कारण ऑर्थोडॉक्स मुस्लिम उलेमास उन्हें पसंद नहीं करते थे आज भी निजामुद्दीन दरगाह पर कव्वाली का आयोजन किया जाता है जिसे किसी भी रिलीजन के लोग अटेंड कर सकते हैं दिल्ली के ही एक और फेमस चिश्ती सेंट थे शेख नसीरुद्दीन महमूद जिनको प्यार से नसीरुद्दीन चिराग दिल्ली या लैंप ऑफ दिल्ली भी कहा जाता था 1356 में उनकी डेथ के बाद धीरे-धीरे चिश्ती सिलसिला ईस्टर्न और सदर्न इंडिया में शिफ्ट होने लगा बशा सिलसिलास में दूसरा नाम इंपॉर्टेंट है सुहरावर्दी सिलसिला का सुहरावर्दी सिलसिला यह सिलसिला शेख शहाबुद्दीन सुराव दी के द्वारा स्टार्ट किया गया था इंडिया में इसको शेख बहाउद्दीन जकारिया 1182 से 1262 के द्वारा एस्टेब्लिश किया गया था उन्होंने अपना खानकाह मुल्तान में बनाया जिसे कि रूलरसोंग्स वह गिफ्ट्स जागीर्स और गवर्नमेंट पोस्ट भी एक्सेप्ट करते थे अब ब्रीफ में सूफी मूवमेंट का इंपॉर्टेंस देख लेते हैं इंपॉर्टेंस ऑफ सूफी मूवमेंट इंडियन सोसाइटी के प्रति सूफीज का कंट्रीब्यूशन इमेंस था जिस तरह भक्ति सेंस ने हिंदुइज्म के अंदर के बैरियर्स को तोड़ा सूफीज ने भी इस्लाम को एक नया लिबरल आउटलुक दिया सूफी और भक्ति सेंट्स के इंटरेक्शन से एक लिबरल रिलीजन की फाउंडेशन रखी गई जिस तरह नानक और कबीर ने यूनिवर्सल लव पर बेस्ड रिलीजन की बात कही थी जिसमें हर धर्म के लोग जुड़ सकते हो उसी प्रकार सूफीज ने भी वहदा उल वजूद का कांसेप्ट दिया इसका मतलब होता है यूनिटी ऑफ ऑल बीइंग यानी कि सारे रिलीजस फंडामेंटली एक ही हैं जो भी डिफरेंसेस हमें दिखते हैं वह एक्सटर्नल है और जरूरी नहीं है इंटरनली सब रिलीजस एक ही हैं और हम सब एक ही परमपिता परमेश्वर की आराधना करते हैं जिसे हम अलग-अलग नाम से पुकारते हैं गरीब और पिछड़े सेक्शंस की मदद में सूफीज हमेशा आगे रहते थे जब सुल्तान और राजा से लोग उम्मीद खो देते थे तो सूफीज के पास आते थे निजामुद्दीन औलिया बिना किसी कास्ट और रिलीजन के बिना किसी भेदभाव किए गरीबों में गिफ्ट डिस्ट्रीब्यूटर के लिए जाने जाते थे कहा जाता है कि वह तब तक नहीं आराम करते थे जब तक उन्होंने खानकाह में हर इंसान को सुन ना लिया हो सूफीज के लिए हाईएस्ट फॉर्म ऑफ डिवोशन सर्विस टू मैनकाइंड ही था सूफी सेंट्स ने सब फेथ्स में इक्वलिटी और ब्रदरहुड को इनकरेज किया कहा जाता है कि अकबर का सेकुलर कैरेक्टर और सारे रिलीजन के प्रति उनका रिस्पेक्ट चिश्ती सेंट्स के प्रति उनके डिवोशन में दिखता था सूफी सेंट्स ने रीजनल लैंग्वेजेस को भी प्रमोट किया पंजाबी हिंदवी जो आगे चलकर हिंदी बना बंगाली जैसी लोकल लैंग्वेजेस के ग्रोथ में उनका अहम योगदान रहा तो फ्रेंड्स इस वीडियो में हमने भक्ति और सूफी मूवमेंट्स और उनकी इंपॉर्टेंस को देखा अब ब्रीफ समरी देख लेते हैं समरी भक्ति और सूफी मूवमेंट्स रिलीजन में लिबरल ट्रेडिशनल रिचुअल्स और एक्सटर्नल शो ऑफस के अगेंस्ट थे पर्सनल डिवोशन पर फोकस होने के कारण दोनों मूवमेंट्स कॉमन पीपल में काफी प्रचलित थे साथ ही दोनों मूवमेंट ने सोशल रिफॉर्म पर भी फोकस किया दोनों मूवमेंट ने एक लिटरिंग या इक्वल सोसाइटी की नीव रखी ऐसी सोसाइटी जहां कास्ट रिलीजन सेक्स इनकम के बेसिस पर कोई भेदभाव ना ना हो भक्ति और सूफी मूवमेंट का मैसेज यूनिवर्सल ब्रदरहुड और पीस का था अगर हर कोई इस मैसेज को सही तरीके से समझ पाए तो हमें वर्ल्ड में इतने कॉन्फ्लेट देखने को नहीं मिलेंगे अगर वसुदेव कुटुंबकम यानी वर्ल्ड इज वन फैमिली को स्थापित करना है और वर्ल्ड को क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन से बचाना है तो हमें भक्ति और सूफी सेंट्स के मैसेज को जन जन तक पहुंचाना होगा स्प्रेड ऑ इंडियन कल्चर अब्रॉड वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह फ्रेंड्स आउटसाइड वर्ल्ड से इंडिया का कांटेक्ट काफी पुराना है थर्ड मिलेनियम बीसी से ही इंडिया आउटसाइड वर्ल्ड के कांटेक्ट में रहा है हरपपंस प्रेजेंट डे इराक इरान रीजन में सिचुएटेड मेसोपोटामियन सिविलाइजेशन से ट्रेड के लिए जाने जाते हैं वैसे तो इंडिया थ्री साइड से ओशन और नॉर्थ में हिमालया से घिरा हुआ है लेकिन यह नेचुरल बैरियर्स इंडिया के आउटसाइड वर्ल्ड से कांटेक्ट को रोक नहीं पाए इंडिया से लोग कई कंट्रीज गए और अपनी कल्चर को वहां स्प्रेड किया साथ ही वह बाहर की कल्चर और आइडियाज को भी इंडिया लेकर आए आज इंडिया के कल्चरल इनफ्लुएंसेस साउथ एशिया साउथ ईस्ट एशिया चाइना जापान कोरिया सेंट्रल एशिया जैसे रीजंस में ज्यादा देखने को मिलते हैं बुद्धिज्म इंडिया से ही निकलकर इन कंट्रीज में स्प्रेड हुआ रिलीजन के अलावा इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस फूड क्लोथिंग डांस फेस्टिवल्स और डेली लाइफ के कई और एस्पेक्ट्स में देखने को मिलते हैं इंडिया से स्प्रेड हुए कल्चर का सबसे रिमार्केटिंग [संगीत] को तलवार के बल पर स्प्रेड करने की कोशिश की गई थी ऐसे बैटल्स को होली वॉर्स या क्रुसेड्स कहा गया लेकिन इंडिया के पूरे हिस्ट्री में ऐसी किसी वॉर या जिहाद का जिक्र नहीं मिलता है रियलिटी में इंडियन कल्चर के दूसरी कंट्रीज में एक्सेप्टेंस इंडियन कल्चरल वैल्यूज पर बेस्ड रही हैं जो कि स्पिरिचुअलिज्म टॉलरेंस और रिस्पेक्ट फॉर ऑल कल्चर्सल इंडियन कल्चरस के जिन एस्पेक्ट्स को दूसरे देशों ने अपनाया उसे अपने कल्चरल जियोग्राफिक और हिस्टोरिकल कंडीशंस को ध्यान में रखते हुए मॉडिफाई कर लिया अगर बुद्धिज्म की ही बात करें तो हम देखेंगे कि टिब चाइना जापान जैसी कंट्रीज में बुद्धिज्म इंडिया से ही स्प्रेड हुआ लेकिन लोकल कंडीशंस के आधार पर कई प्रैक्टिसेस मॉडिफाई कर लिए गए फ्रेंड्स आज के इस वीडियो में हम इंडियन कल्चर के स्प्रेड को डिटेल में समझेंगे हम देखेंगे कैसे ओवर द यर्स ट्रेड मिशनरीज ट्रैवलर्स वांडरर्स के थ्रू इंडिया का कल्चर दूसरे देशों में स्प्रेड हुआ मींस ऑफ स्प्रेड ऑफ इंडियन कल्चर डिस्टेंट लैंड्स में इंडिया के कल्चर को स्प्रेड करने में कई सारे फैक्टर्स रिस्पांसिबल हैं इनमें से मोस्ट नोटब कंट्रीब्यूशन ट्रेडर्स मिशनरीज स्कॉलर्स वांडरर्स या जिप्सीज का रहा है ट्रेडर्स एसिंट टाइम्स में इंडियन ट्रेडर्स नई ट्रेडिंग अपॉर्चुनिटी के सर्च में लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेवल करते थे इंडिया के ट्रेडर्स वेस्ट में रोम और ईस्ट में चाइना तक ट्रेवल करते थे फर्स्ट सेंचुरी बीसी में ट्रेडर्स गोल्ड की खोज में कंबोडिया जावा सुमात्रा और मले आइलैंड जैसी जगह गए इसी कारण से एंट इंडियन टेक्स्ट में इन आइलैंड्स को सुवर्ण द्वीप के नाम से भी जाना जाता था मथुरा उज्जैन प्रयाग और पाटलीपुत्र जैसे इनलैंड सिटीज और मल्लापुरम ताम्र लिप् कावेरी पटनम जैसे पोर्ट सिटीज ओवरसीज ट्रेड के लिए जाने जाते थे यूनिवर्सिटीज ट्रेडर्स के अलावा इंडियन यूनिवर्सिटीज भी इंपॉर्टेंट सेंटर्स ऑफ कल्चरल इंटरेक्शन थी दूसरे देशों से कई स्कॉलर्स इंडियन कल्चर और सिविलाइजेशन को समझने इन यूनिवर्सिटीज में आते थे ईस्ट में नालंदा और वेस्ट में वल्लभी यूनिवर्सिटी को काफी विजिट किया जाता था हन संग भी अपने ट्रेवल अकाउंट सीयू की में नालंदा और वल्लभी को ब्यूटीफुली डिस्क्राइब करते हैं नालंदा के बारे में ह्यूए संग कहते हैं कि यह सेवन स्टोरीज की थी और यहां 1500 टीचर्स और कई देशों से लगभग 10000 स्टूडेंट्स पढ़ते थे इंडियन कल्चर और खासकर बुद्धिज्म के स्प्रेड में बिहार के दो और एंट यूनिवर्सिटीज विक्रमशिला और उदंतपुरी का इंपॉर्टेंट रोल रहा है भूटान चाइना टिब जैसे देशों में महायान बुद्धिज्म को स्प्रेड करने में विक्रमशिला से गए स्कॉलर्स का इंपॉर्टेंट रोल है ट्रेडर्स स्कॉलर्स के अलावा वांडरर्स या जिप्सीज का भी इंडियन कल्चर को स्प्रेड करने में इंपॉर्टेंट रोल रहा है यह जिप्सी मोस्टली लैंड रूट्स के थ्रू ट्रेवल करते थे यह पंजाब सिंध मुल्तान होते हुए पर्शिया और यूरोप तक गए वांडरर्स और जिप्सीज ऐसा ही एक इंपॉर्टेंट ग्रुप है रोमास जिप्सी का रोमास एक्चुअली में नॉर्दन इंडियन स्टेट से बिलोंग करते थे माना जाता है कि जब एलेक्जेंडर अपने इंडियन कैंपेन से वापस लौटे तो अपने साथ इनको लेकर गए रोमास स्किल्ड वेपन मनुफक्चरर्स आयन वर्कर्स थे जिसके कारण आर्मी के लिए इनकी डिमांड काफी ज्यादा थी सिंध पर्शिया टर्की होते हुए रोमास यूरोप पहुंचे आज रोमा पीपल यूरोप के करीब 30 कंट्रीज में बसे हुए हैं इनकी मैक्सिमम पॉपुलेशन टर्की में है रोमानी लैंग्वेज जो रोमास आज भी यूज करते हैं कि कई नॉर्दर्न इंडियन लैंग्वेजेस से सिमिलरिटीज हैं न्यूमेरल्स की अगर बात करें तो रोमानी में एक द्वि त्रिन स्तार पाची बोला जाता है जो कि हिंदी में एक दो तीन चार पाच के सिमिलर हैं इंडियन सोसाइटी की तरह ही रोमास में भी वाइट कलर मोर्निंग या शोक को सिग्निफी हाथों पर मेहंदी अप्लाई करती हैं और इंडिया में फॉलो किए जाने वाले कई रिचुअल टैबूस रोमा सोसाइटी में भी फॉलो किए जाते हैं अनफॉर्चूनेटली रोमास यूरोप के वन ऑफ द मोस्ट पर्सीक्यूटेड ट्राइब्स में से एक है इनका कल्चर डोमिनेंट यूरोपियन कल्चर से अलग है जिसके कारण इन्हें डिस्क्रिमिनेशन फेस करना पड़ता है इसके कारण कई रोमास अपने इंडियन रूट्स को हाइड करते हैं और यूरोपियन कल्चर को अपनाने की कोशिश करते हैं आइए अब इंडियन कल्चर के स्प्रेड को रीजन वाइज डिटेल में देखते हैं इस वीडियो में हमारा फोकस सेंट्रल एशिया ईस्ट एशिया साउथ ईस्ट एशिया साउथ एशिया अरब वर्ल्ड और रूम पर होगा स्प्रेड ऑफ इंडियन कल्चर इन सेंट्रल एश रशिया तिबेट चाइना और इंडिया से सराउंडेड लैंडमास को सेंट्रल एशिया कहते हैं प्रेजेंटली तुर्कमेनिस्तान ताजिकिस्तान उज्बेकिस्तान कजाकिस्तान और किर्गिस्तान सेंट्रल एशियन कंट्रीज में आते हैं सेंट्रल एशियन कंट्रीज की हिस्ट्री में सिल्क रोड ट्रेड रूट का बहुत अहम रोल रहा है सिल्क रोड चाइना के सियान प्रोविंस से शुरू होकर सेंट्रल एशियन कंट्रीज को क्रिस क्रॉस करते हुए यूरोप तक जाता था वैसे तो इस रूट पर कई कमोडिटीज ट्रेड होती थी लेकिन चाइनीज सिल्क सबसे इंपॉर्टेंट था जो इस रूट के थ्रू ट्रेड होता था इसलिए इस रूट को सिल्क रूट के नाम से जानते हैं इंडिया के ट्रेडर्स भी नेपाल टिब कश्मीर के थ्रू सिल्क रूट को एक्सेस करते थे सिल्क रूट के थ्रू इंडियन गुड्स भी बाहर जाते थे और बाहर के गुड्स इंडिया आते थे सिल्क रूट पर केवल ट्रेडर्स ही नहीं बल्कि स्कॉलर्स मा और मिशनरीज भी ट्रेवल करते थे जिसके कारण इंडियन कल्चर स्पेशली बुद्धिज्म सेंट्रल एशिया में स्प्रेड हुआ सेंट्रल एशिया में आज कई बुद्धिस्ट स्तूपस मॉनेस्ट्रीज टेंपल्स स्टैच्यू के रिमेंस मिलते हैं जो एंट इंडिया और सेंट्रल एशिया के बीच के कल्चरल कांटेक्ट की गवाही देते हैं सिल्क रूट पर लोकेटेड ऐसा ही एक एंट बुद्धिस्ट किंगडम था किंगडम ऑफ खदान यह प्रेजेंट डे चाइनीज शिशांग रीजन में लोकेट है इंडिया और खोता के बीच का कल्चरल रिलेशनशिप 2000 साल से भी ज्यादा पुराना है खोता से मिले कुछ फर्स्ट सेंचुरी एडी के कॉइंस पर फ्रंट साइड पर इंग्रेविंग्स चाइनीज लैंग्वेज में है तो बैक साइड पर प्राकृत लैंग्वेज में है खोता की मॉनेस्ट्रीज में कई संस्कृत मैनु स्क्रिप्ट्स ट्रांसलेशंस एट्स भी मिले हैं जो इस रीजन के कंपोजिट कल्चर की तरफ इशारा करते हैं सेंट्रल एशिया के बाद आइए ईस्ट एशियन रीजन में इंडिया की कल्चर का स्प्रेड देखते हैं इंडियन कल्चर इन ईस्ट एशिया ईस्ट एशिया में हम चाइना तिबेट कोरिया और जापान में इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस को देखेंगे स्टार्ट करते हैं चाइना से चाइना इंडिया और चाइना के बीच के कांटेक्ट की शुरुआत सेकंड सेंचुरी बीसी से हो गई थी चाइना में इंडियन कल्चर को स्प्रेड करने में दो मंक स्कॉलर्स कश्यप मारत और धर्म रक्षिता का इंपॉर्टेंट रोल था यह मंस 67 एडी में हान डायनेस्टी के चाइनीज एंपरर मिंग टी के इनविटेशन पर चाइना गए थे माना जाता है कि चाइना में बुद्धिज्म का इंट्रोडक्शन इन्हीं दो स्कॉलर्स ने किया था चाइनीज एंपरर ने दोनों के रहने के लिए फेमस वाइट हॉर्स मॉनेस्ट्री भी बनवाई थी चाइना में बुद्धिज्म बहुत जल्दी पॉपुलर हो गया जिसके कारण लार्ज नंबर ऑफ चाइनीज बुद्धिस्ट पिलग्रिम्स बुद्धिस्ट स्क्रिप्चर और प्रैक्टिसेस को समझने के लिए इंडिया आने लगे जो चाइनीज ट्रैवलर्स इंडिया आए उनके द्वारा लिखी गई ट्रेवल डॉक्यूमेंट आज इंडियन हिस्ट्री को समझने का इंपॉर्टेंट सोर्स है जैसे कि चाइनीज ट्रैवलर ह्यू एन संग के ट्रेवल डॉक्यूमेंट सेवंथ सेंचुरी एडी के हर्षवर्धन रेन को समझने में हेल्प करते हैं इंडियन यूनिवर्सिटीज और मॉनेस्ट्री से भी कई प्रॉमिनेंट टीचर्स चाइना गए इनमें सबसे पॉपुलर थे बोधि धर्म ये ओरिजनली कांचीपुरम से बिलोंग करते थे नालंदा यूनिवर्सिटी से पढ़ने के बाद बुद्धिज्म प्रीच करने के लिए यह चाइना चले गए बौधि धर्म ने चाइना में योग और मेडिटेशन यानी ध्यान को काफी पॉपुलर किया मेडिटेशन को चाइनीज में चान कहते हैं जो संस्कृत वर्ड ध्यान से ही डिराइवर के कंट्रीब्यूशंस के कारण आज चाइना और जापान में उन्हें देवता की तरह वरशिप किया जाता है फोर्थ सेंचुरी एडी चाइना में जब वे डायनेस्टी पावर में आई तब इसके एंपरर ने बुद्धिज्म को स्टेट रिलीजन डिक्लेयर कर दिया इससे बुद्धिज्म को चाइना में काफी पुश मिला थाउजेंड्स ऑफ संस्कृत बुक्स को चाइनीज में ट्रांसलेट किया गया और कई पिलग्रिम्स बुद्ध के रेलिक्स और मैनु स्क्रिप्ट्स कलेक्ट करने के लिए इंडिया के बुद्धिस्ट सेंटर्स आए चाइनीज बुद्धिस्ट ने इंडिया में अजंता और एलोरा केव्स की तरह चाइना में भी कई रॉक कट केव्स बनाए इनमें दुन हुआंग यंगा लंग मेन के बुद्धिस्ट रॉक कट केव्स काफी पॉपुलर हैं यंग गंग के रॉक कट केव्स के कल्चरल वैल्यू के कारण इसे 1983 में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी डिक्लेयर किया है चाइना से होते हुए बुद्धिज्म का इन्फ्लुएंस कोरिया और जापान में भी स्प्रेड हुआ जापान में स्पेशली बुद्धिज्म को काफी एक्सेप्टेंस मिली और आज एप्रोक्सीमेटली 70 पर ऑफ द जापानीज बुद्धिस्ट फॉलोअर्स हैं जापान में बुद्धिज्म एप्रोक्सीमेटली 525 एडी में कोरिया के थ्रू पहुंचा था कोरियन एंपरर ने बुद्ध को एक स्टैचू रिचुअल ऑब्जेक्ट्स और कई सेक्रेड टेक्स्ट फ्रेंडशिप मिशन के साथ जापान भेजा था बुद्धिज्म को इंडिया से चाइना कोरिया और जापान की यात्रा में कम से कम 100 साल लग गए जापान में बुद्धिज्म के आने से नेटिव कामी वरशिपर्स और बुद्धिस्ट फॉलोअर्स के बीच स्ट्रगल शुरू हो गया लेकिन बुद्धिज्म को इंपीरियल स्पंस शिप मिला और फिर वहां बुद्धिज्म प्रीवेल किया तिबेट तिबेट हिमालया के नॉर्थ में सिचुएटेड प्लेटो रीजन में बसा है आज मोस्ट तिबेट बुद्धिस्ट हैं एथ सेंचुरी एडी के एंड तक तिबेट में बुद्धिस्ट रिलीजन मेजर रिलीजन बन गया था माना जाता है कि टिट बुद्धिज्म का स्प्रेड विक्रमशिला और नालंदा जैसी इंडियन यूनिवर्सिटीज के कारण हुआ था किंग थ्री संग डेसन ने दो फेमस बुद्धिस्ट स्कॉलर्स को नालंदा से तिबेट इनवाइट किया था पहले थे संत रक्षिता जिन्हें टिब में पहली बुद्धिस्ट मॉनेस्ट्री बनवाने का श्रेय दिया जाता है उसके बाद पद्म संभव आए पद्म संभव अपने स्पिरिचुअल और मैजिकल पावर्स के कारण जाने जाने लगे टिब में आज लोग उन्हें बोधि सत्व की तरह वरशिप करते हैं ईस्ट एशिया के बाद आइए श्रीलंका और साउथ ईस्ट एशिया में इंडियन कल्चर के स्प्रेड को समझा जाए इंडियन कल्चर इन श्रीलंका एंड साउथ ईस्ट एशिया श्रीलंका श्रीलंका के साथ इंडिया के कांटेक्ट के फर्स्ट एविडेंस रामायण में मिलते हैं रामायण के अनुसार श्रीलंका पर डीम किंग रावण का रोल था मिथल से हटकर अगर हिस्टॉरिकली देखें तो मौर्या डायनेस्टी के किंग अशोका का श्रीलंका के कल्चरल हिस्ट्री में इंपॉर्टेंट रोल था अशोका ने श्रीलंका में बुद्धिज्म स्प्रेड करने के लिए अपने सन महिंद्रा और डॉटर संघमित्रा को भेजा था महिंद्रा से इन्फ्लुएंस होकर उस समय की श्रीलंकन किंग देवम पिया तिस्सा ने बुद्धिज्म अडॉप्ट कर लिया था ग्रैजुअली श्रीलंका बुद्धिज्म का स्ट्रांग होल्ड बन गया पाली लैंग्वेज जो इंडिया में पॉपुलर थी उसका इस्तेमाल श्रीलंका में भी किया जाने लगा इनफैक्ट श्रीलंका के मेजर बुद्धिस्ट टेक्स्ट दिया वांसा और महावामसा पाली लैंग्वेज में ही लिखे गए हैं श्रीलंका का करेंटली पॉपुलर सिंघली लैंग्वेज भी एक्चुअली पाली तमिल और संस्कृत के मिश्रण से बना है बुद्धिज्म के साथ-साथ इंडिया के कल्चर के दूसरे एस्पेक्ट्स जैसे फूड पेंटिंग्स डांस म्यूजिक एट्स भी श्रीलंका पहुंचे और वहां के लोकल ट्रेडिशनल एंस किया श्रीलंका के बाद साउथ ईस्ट एशिया पर नजर डालते हैं साउथ ईस्ट एशिया साउथ ईस्ट एशिया रीजन में म्यानमार थाईलैंड वियतनाम कंबोडिया लाओस मलेशिया इंडोनेशिया जैसी कंट्रीज आती हैं इस रीजन पर भी इंडियन कल्चर और कस्टम्स का इन्फ्लुएंस काफी पड़ा है इंडियन ट्रेडर्स खासकर तमिल रीजन आंध्रा और ओड़ीशा से साउथ ईस्ट एशियन कंट्रीज ट्रेवल करते थे कई वहां पर सेटल भी हो गए इसलिए कई साउथ ईस्ट एशियन कंट्रीज में आज भी सब्सटेंशियल इंडियन डायस्पोरा पॉपुलेशन है म्यानमार म्यानमार या बर्मा इंडियन ट्रेडर्स काफी लंबे समय से जाते रहे हैं म्यानमार चाइना के रूट में पड़ता था इसलिए ट्रेडर्स ताम्र लिप्त और अमरावती जैसे पोर्ट सिटी से म्यानमार जाते रहते थे ग्रैजुअली इन ट्रेडर्स के साथ इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस भी म्यानमार में स्प्रेड करने लगा 10थ सेंचुरी एडी के अराउंड किंग अनिरुद्ध ने म्यानमार के डिफरेंट रीजंस को यूनाइट किया अनिरुद्ध ने बुद्धिज्म रिलीजन को प्रमोट किया और कई मैग्नियस मॉनेस्ट्रीज और पगोडा बनवाए ग्रैजुअली म्यानमार बुद्धिज्म में क ट हो गया और आज वहां 80 पर पॉपुलेशन बुद्धिस्ट ही है थाईलैंड थाईलैंड में भी इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस फर्स्ट सेंचुरी एडी से ही स्प्रेड होना शुरू हो गया था इंडियन ट्रेडर्स के साथ टीचर्स मिशनरीज थाईलैंड गए और इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस को वहां स्प्रेड किया म्यानमार की तरह थाईलैंड के लोगों ने भी बुद्धिज्म को होल हार्टडली एक्सेप्ट कर लिया बुद्धिज्म के अलावा थाईलैंड में कई वैष्णव टेंपल्स के भी रिमेंस हैं जो इस बात का सबूत है कि पास्ट में वहां सनातन धर्म के फॉलोअर्स भी रहा करते थे कंबोडिया इंडिया कंबोडिया का कल्चरल और हिस्टोरिकल रिलेशंस 2000 सालों से भी ज्यादा पुराने हैं कंबोडिया को संस्कृत में कंबोजा कहते थे कंबोजा में इंडियन ओरिजिन की कन्य डायनेस्टी रूल करती थी कंबोडियन फो क्लोर में कोनिया प्रिंस को उड़ीसा के गंजाम एरिया का बताया जाता है वह इंडिया से माइग्रेट करके कंबोडिया बस गए थे और उन्होंने कंबोडिया की फर्स्ट रूलिंग डायनेस्टी एस्टेब्लिश की कंबोडियन सोसाइटी अब प्रेडोमिनेंटली बुद्धिस्ट है लेकिन अभी भी यह हिंदू रिचुअल्स मूर्ति पूजा इंडियन मिथल जीी के कई एस्पेक्ट्स रिटेन करता है कंबोडिया में बोली जाने वाली खमेर लैंग्वेज भी संस्कृत के शब्दों का भरपूर इस्तेमाल करती है बाद में हिंदू बुद्धिस्ट इंडियन टेंपल आर्किटेक्चर का फ्लुएंस कई टेंपल्स और मॉनेस्ट्रीज के कंस्ट्रक्शन में देखा गया है कंबोडिया का फेमस अंकोरवाट टेंपल इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस का जीता जागता उदाहरण है पहले यह टेंपल लॉर्ड विष्णु को डेडिकेट किया गया था जिसे बाद में बुद्धिस्ट टेंपल में कन्वर्ट कर दिया गया कंबोडिया के बाद आइए इंडोनेशिया और मलेशिया में इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस पर नजर डालें इंडोनेशिया एंड मलेशिया मलेशिया और इंडोनेशिया में भी इंडियन कल्चरल इन्फ्लुएंस काफी पुराना है यह आइलैंड कंट्रीज के कई एंट रूलर हिंदू रिलीजन को फॉलो करते थे रामायण और महाभारत यहां आज भी पॉपुलर हैं और कई प्लेसेस पर रामलीला का आयोजन भी किया जाता है मलेशिया के केदा प्रोविंस से शिवा के कई स्टैचू भी मिले हैं मिडिवल एरा तक इंडोनेशिया और मलेशिया के मोस्ट ऑफ द पॉपुलेशन ने इस्लाम अपना लिया था इस्लाम अपनाने के बाद भी उन्होंने अपने हिंदू रूट्स को नहीं छोड़ा और आज भी कई पार्ट्स में दिवाली और दशहरा सेसे फेस्टिवल्स धूम धाम से मनाए जाते हैं मलेशिया के बाद अगर इंडोनेशिया की बात करें तो इंडोनेशिया का लार्जेस्ट शिवा टेंपल जावा आइलैंड पर है इसे पारम बन कहते हैं और इसके पास ही विष्णु और ब्रह्मा के टेंपल्स भी लोकेटेड हैं खास बात यह है कि इन टेंपल्स के अपोजिट इनके वाहनस के लिए भी टेंपल कंस्ट्रक्ट किए गए हैं इस प्रकार वहां शिव के वाहन के रूप में नंदी का टेंपल है विष्णु के लिए गरुड़ और ब्रह्मा के लिए गूस या बतक इन टेंपल्स को रामायण और महाभारत के स्कल्पचर से ब्यूटीफुली डेकोरेट किया गया है पंबन ग्रुप ऑफ टेंपल्स को एथ सेंचुरी एडी में शैलेंद्र डायनेस्टी के द्वारा बनवाया गया था यह टेंपल कंपाउंड आज वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी है इसी तरह इंडोनेशिया के बाली आइलैंड पर भी कई हिंदू डेटी जैसे शिव गणेश दुर्गा बुद्ध के स्टैचू मिलते हैं बाली आइलैंड में अब भी लोग मेजर्ली हिंदू रिलीजन ही फॉलो करते हैं जहां इंडोनेशिया के बाकी आइलैंड्स ने इस्लाम अपना लिया बाली के 80 पर रेजिडेंट्स आज भी हिंदू रिलीजन फॉलो करते हैं इंडियन फेस्टिवल्स जैसे कि होली दिवाली दशहरा यहां बहुत पॉपुलर हैं साउथ ईस्ट एशिया के बाद अब अरब वर्ल्ड से इंडिया के कांटेक्ट को समझते हैं कॉन्टेक्ट्स बिटवीन इंडिया एंड द अरब वर्ल्ड अरब वर्ल्ड और इंडिया के रिलेशंस काफी पुराने हैं इनके बीच अर्लीस्ट ट्रेडिंग हिस्ट्री हरप्पन सिविलाइजेशन से ही मिलती है ट्रैवलर्स और ट्रेडर्स वेस्ट एशिया लैंड रूट और सी रूट दोनों के द्वारा जा सकते थे लेकिन मानसून विंड्स के कारण सी ट्रेवल चीपर और सेफर माना जाता था समर्स में जब मानसून विंड्स इंडिया की तरफ बहती थी तो ट्रेडर्स अरब से इंडिया आ जाया करते थे विंटर से जस्ट पहले मानसून विंड्स अपना डायरेक्शन चेंज कर लेती हैं और यह इंडिया से अरेबियन पेनिंस की तरफ बहने लगती हैं इससे ट्रेडर्स को शिप से अरब जाने में आसानी होती थी पहले के जमाने में जब शिप्स विंड्स के डायरेक्शन पर डिपेंडेंट थी मानसून विंस इंडिया और अरब के ट्रेड के लिए किसी बूंद से कम नहीं था समय के साथ इंडिया अरब ट्रेड बढ़ता गया और इंडिया के यूरोप के साथ ट्रेड में भी अरब इंपॉर्टेंट ट्रांजिट हब के रूप में उभरा वेस्ट एशिया के साथ इंडिया का रिलेशन लैंड और सी रूट से काफी पुराना है वेस्ट एशिया में इस्लाम के स्प्रेड होने के बाद ये टायस और इंटेंसिफाई हुए इंडिया और अरब के बीच की फ्लोरिशिंग ट्रेड का गवाह नाइंथ सेंचुरी एडी से सुलेमान अल मसूदी अल इदरीसी जैसे कई ट्रैवलर्स के अकाउंट्स में मिलता है ट्रेड के बाद अगर कल्चरल स्फीयर में इंटरेक्शंस की बात करें तो यह भी काफी पुराना है इंडिया के कई साइंटिफिक वर्क्स पहले अरब वर्ल्ड में पॉपुलर हुए और अरेबियंस के थ्रू यूरोप पहुंचे एस्ट्रोनॉमी के फील्ड के इंपॉर्टेंट वर्क्स ब्रह्म स्फुट सिद्धांत और खंड खडक को अरब वर्ल्ड में सिंधियन कहते थे बाद में इंडियन एस्ट्रोन मर्स आर्य भट्ट और वरमीर के वर्क्स को भी अरेबिक में ट्रांसलेट किया गया था मैथमेटिक्स के फील्ड में इंडिया का सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन डेसिमल नंबर सिस्टम था यूरोपिय इसे अरेबिक न्यूमेरल्स कहते थे लेकिन अरेबियंस इंडिया के कंट्रीब्यूशन को नॉलेज करते हुए इसे हिंद न्यूमेरल्स कहते थे इसके अलावा इंडियन बुक्स ऑन मेडिसिन थ टिक्स एस्ट्रोलॉजी फिलॉसफी एट्स को अरबिक में ट्रांसलेट किया गया अरब वर्ल्ड से इंडिया के कांटेक्ट के बाद लास्टली इंडिया और रोम के बीच के कांटेक्ट को देखते हैं कांटेक्ट बिटवीन इंडिया एंड रोम रोमन एंपायर के साथ इंडिया का कांटेक्ट काफी पुराना है फर्स्ट सेंचुरी एडी में कुशानास के रूल के दौरान यह ट्रेड काफी फ्लरिज कर रहा था इंडिया के कई गुड्स जैसे पेपर बीटल स्पाइसे आइवरी सिल्क मस्लिम प्रेशर स्टोंस यूरोप में हाई डिमांड में थे स्पाइसेज की इनफैक्ट डिमांड यूरोप में इतनी हाई थी कि उनकी वैल्यू गोल्ड सिल्वर से कंपैरेटर हिस्टोरियन प्लिनी के हिसाब से पेपर और जिंजर यूरोप में इंडिया के अपने ओरिजिनल प्राइस से 100 गुना ज्यादा प्राइस पर प्रॉफिटेबली बिकता था वास्को द गामा का 1498 में यूरोप से इंडिया डायरेक्ट सी रूट की खोज करने में भी स्पाइस ट्रेड का इंपॉर्टेंट रोल था 1498 से पहले इंडिया के स्पाइसे सी रूट के द्वारा अरब कंट्रीज जाते थे और उसके बाद कैरावन में लादकर उन्हें यूरोप ले जाया जाता था इस तरह अरब्स स्पाइस ट्रेड में इंटरमीडियरीज का काम करते थे जिसके कारण यूरोप में स्पाइसेसफर डोमिनेंस को खत्म करना यूरोपियन सी एक्सपेडिन का एक इंपॉर्टेंट एम था बहरहाल रोमन एंपायर से ट्रेड इंडिया के लिए हाईली प्रॉफिटेबल था इंडियन गुड्स के बदले में रोमन एंपायर से गोल्ड और सेमी प्रेशर स्टोंस इंडिया लाया जाता था चोला डायनेस्टी के टाइम कई पोर्ट सिटीज इंपॉर्टेंट ट्रेडिंग हब्स बने जहां से गुड्स यूरोप भेजा जाता था कावेरी पटनम और ममलाका के इंपॉर्टेंट पोर्ट्स थे चोला किंग्स ने अपने पोर्ट्स पर कई लाइट हाउसेस भी इंस्टॉल करवाए थे ताकि शिप्स को कोस्ट पर गाइड किया जा सके यूरोप से कई एंबेसडर मर्चेंट्स साउथ इंडियन टाउंस में सेटल हो गए इनफैक्ट तमिल किंग्स की आर्मी की एक टुकड़ी यूरोपिय की रिक्रूट होती थी जिन्हें यवनस कहा जाता था इनका यूज स्पेशली मर्चेंट शिप्स के प्रोटेक्शन के लिए किया जाता था फ्रेंड्स एट लास्ट अब इस वीडियो की समरी देख लेते हैं समरी इस वीडियो में हमने देखा कि कैसे डिस्पाइना बैरियर्स इंडिया एंट टाइम्स से ही वर्ल्ड के कांटेक्ट में रहा है ट्रेडर्स मिशनरीज जिप्सीज के थ्रू इंडिया का कल्चरल इन्फ्लुएंस बाहर स्प्रेड हुआ इसके बाद हमने रीजनल लेवल पर इंडिया के कल्चरल इन्फ्लुएंस को देखा हमने देखा कैसे टिब श्रीलंका चाइना जापान कोरिया में इंडिया के थ्रू बुद्धिज्म स्प्रेड हुआ हमने साउथ ईस्ट एशियन कंट्रीज को भी देखा जहां बुद्धिज्म के साथ-साथ सनातन धर्म के कल्चरल इन्फ्लुएंस भी देखने को मिलते हैं मलेशिया इंडोनेशिया जैसी कंट्रीज आज इस्लामिक तो हैं पर उनके कस्ट रिचुअल्स में अभी भी सनातन धर्म के कई एस्पेक्ट्स मौजूद हैं इंडोनेशिया में हर साल राम लीला का भी आयोजन किया जाता है उसके बाद हमने अरब वर्ल्ड में इंडिया की साइंस और टेक्नोलॉजी का स्प्रेड देखा हमने देखा कैसे डेसीमल नंबर सिस्टम एस्ट्रोनॉमी मेडिसिन के कई इंपॉर्टेंट कांसेप्ट अरब के थ्रू यूरोप तक पहुंचे लास्ट में हमने इंडिया के रोमन एंपायर से कांटेक्ट को देखा हमने देखा कैसे यूरोपिय ने अरब्स का स्पाइस ट्रेड से डोमिनेंस करने के लिए इंडिया के लिए डायरेक्ट सी रूट खोजना शुरू किया यूरोपिय के सी एडवेंचरिंग फाइनली इंडियन के कॉलोनियलिज्म में जाकर कल्मिनेट हुआ फ्रेंड्स इंडियन कल्चर की सबसे खास बात है कि यह हमें टॉलरेंस सिखाता है दुनिया में ऐसा कोई भी देश नहीं है जहां कल्चर की इतनी डाइवर्सिटी हो फिर भी लोग पीसफुली रह रहे हो इंडिया की कल्चरल डायवर्सिटी इसके फेयर्स एंड फेस्टिवल्स को एक्सपीरियंस करने टूरिस्टस दूर-दूर से आते हैं हमें भी इंडियन कल्चरल वैल्यूज पर प्राउड फील करना चाहिए और इसे प्रिजर्व करते रहने की कोशिश करते रहनी चाहिए स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल