Transcript for:
Role of Hijab and Feminism in Islam

कि मेरा जिस्म मेरी मर्जी क्या हमें इतना भी इख्तियार नहीं है कि हम क्या पहने कैसे रहे कैसे उठे बैठे कैसे बाहर निकले इतना पाबंद कर दिया गया है हर ऑफिस में एक ड्रेस कोड हर यूनिवर्सिटी में एक खास पहनावा यानी वो इस हद तक इस हद तक के अगर बाज मलिक ऐसे हैं नाम लेना शायद मुनासिब ना हो जहां पे लिबर्टी का सबसे बड़ा नारा बुलंद किया जाता है लेकिन अगर कोई हिजाब में खातून आ जाती है तो कहते नहीं आप हिजाब में नहीं आ सकते दूसरी चीज आप देखिए इस्लाम ने जो फ्रीडम की डेफिनेशन की है इस्लाम में हर चीज की सबसे पहली हद यह है के मनफात और फायदे से ज्यादा नुकसान का ना होना बाज उलमा की सीरत में मिलता है कि जब ना महरम खातून ने हाथ बढ़ा हाथ बढ़ाया मुसाफ के लिए तो उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिया खातून ने कहा कि आपने सारे मर्दों से हाथ मिलाया क्या मे मेरे अंदर कुछ कमी है क्या आप मैं हाथ मिला लूंगी तो क्या आप खराब हो जाएंगे गंदे हो जाएंगे मैले हो जाएंगे अजु बिल्ला मिन शैतान रजी बिस्मिल्ला र रहमान रहीम नाजरीन सलाम अलेकुम पर्दा और फेमिनिज्म आज यह वह टॉपिक होगा जिस पर इंशा अल्लाह हम गुफ्तगू करेंगे क्योंकि जब भी हिजाब के बारे में बात होती है तो कुछ लोग यह कहते हैं कि पर्दा हुकूक निस्वा के खिलाफ है औरतों के हुकूक के बखिल है पर्दे से औरतों को घर में बंद कर दिया जाता है और औरतों को यह भी हक नहीं है कि वह किस तरीके का लिबास पहने किस तरीके के कपड़े पहने मर्दों पे कोई पाबंदी नहीं लगाई जाती खवातीन पर बहुत सारी पाबंदियां लगाई जाती हैं तो इस तरीके की इंशाल्लाह यह गुफ्तगू रहेगी और हम इसको हल करने की कोशिश करेंगे कि हिजाब किसे कहते हैं उसके हुदूगिरो हमारे साथ इंशा अल्लाह हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन आली जनाब मौलाना मिर्जा अकरी हुसैन साहब किबला और इसी तरीके से हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन आली जनाब मौलाना मोहम्मद साजिद साहब किबला आइए हम दोनों उलमा का इस्तकबाल करते हैं दोनों की खिदमत में सलाम पेश करते हैं सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह व बरकात वालेकुम अलाम सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह व बरकात कैसे हैं आप इंशाल्लाह खैरियत से होंगे बहुत-बहुत शुक्रिया आपका कि आप तशरीफ लाए और इसी तरीके से किबला आपका भी कि आपने अपना कीमती वक्त दिया और इंशाल्लाह इस मौजू को हल करने की कोशिश करेंगे हम लोग क्योंकि एक बहुत ही अ अ बहरहाल माशे में तरह-तरह के सवालात हैं बहुत सारे कंफ्यूजन है लिहाजा हम लोग कोशिश करेंगे कि हिजाब के इर्दगिर्द जो सवाल पैदा होते हैं उनका जवाब आवाम तक पहुंचाया जाए मोमिनीन तक पहुंचाया जाए ताकि किसी हद तक उनका कंफ्यूजन कम हो सके या खत्म हो सके इंशा अल्लाह जब हिजाब की गुफ्तगू आती है खवातीन के सिलसिले में पर्दे की बात आती है तो बहुत सारे सवालात उठते हैं हमें यह चाहिए कि सबसे पहले हम हिजाब की डेफिनेशन क्या है पर्दे की हकीकत क्या है उसकी तारीफ क्या है इसको पहले हम समझ लेते हैं मैं चाहूंगा कि हम अपनी गुफ्तगू का यही से आगाज करते हैं फिर इंशाल्लाह कुरान में उसकी क्या दलील हैं हदीस में क्या बयान हुआ है फुकाहा क्या कहते हैं उसकी तरफ इंशाल्लाह हम आएंगे बहुत ही बेहतरीन मौजू है और यकीनन एक मुतला है जिसकी तरफ आपने इशारा किया और इसकी तारीफ और इसकी डेफिनेशन का वाज होना बहुत जरूरी है ताकि लोगों के नजदीक हमारी मां बहनों के नजदीक या इवन मुसल दीगर मुसलमान और नॉन मुस्लिम्स के नजदीक इसका प्रॉपर कंप्रीहेंशन जरूरी है आज हमारी बाज बहने मोमिना वो दीनदार हैं लेकिन हिजाब के मामले में अगर जरा सुस्त नजर आती हैं तो इस वजह से नहीं कि उनको हिजाब अल्लाह की मुखालिफत करनी है बल्कि वजह यह कि उनके सामने इसका ऑब्जेक्टिव इसका फलसफा इसकी अहमियत की वजाहत नहीं हुई है तो मैं वक्त कम लेते हुए सिर्फ इतनी वजाहत कर ताकि समझ में सबको आ जाए कि हिजाब का लुगत में जो माना है वो असल हिजाब कहते हैं डिक्शनरी में अगर देखा जाए तो एक सद को कहते हैं एक बैरियर को कहते हैं यानी दो चीजों में जो दीवार खड़ी करे यानी जिसे एक दूसरे को ना देख सके जैसे फॉर एग्जांपल यह दीवार हमारे लिए हिजाब है यह चादर हमारे लिए हिजाब है किस चीज के लिए हिजाब है इसके पीछे जो कुछ है हम उसे नहीं देख सकते तो यह लुगत में हिजाब का मफू है लेकिन जब हम आते हैं फिक नुक्ते नजर से हिजाब की तारीफ हम देखते हैं तो हिजाब एक खास किस्म के पहनावे को एक खास किस्म की गुफ्तगू को एक खास किस्म के रवैए को और एक खास किस्म के अमल को हिजाब कहते हैं मैंने सिर्फ पहनावा इसलिए नहीं कहा क्योंकि अक्सर लोग जब हिजाब की बात करते हैं तो लोगों के नजदीक स्काफ और कोर्ट मोंटो बुर्का चादर यही आता है हिजाब सिर्फ किसी खास पहनावे का नाम नहीं है कुरान जब हम हिजाब की तारीफ देखते हैं तो उसमें हिजाब हमें चार किस्म का नजर आता है सबसे पहला हिजाब होता है निगाहों का ठीक है कि अपनी वो निगाहों को छुपाए नीचे रखें दूसरा हिजाब होता है गुफ्तगू का लिसानी हिजाब यानी इस तरह बात ना करें गुफ्तगू ना करें सामने वाला जजब हो के सामने वाला जजब हो और अट्रैक्ट हो उनकी तरफ तीसरा अपने रफ्तार में यानी उनका चलना उनका उठना उनका बैठना उनका रवैया वो इस ना हो कि दूसरों को अपनी तरफ अट्रैक्ट करें ठीक है चौथा हिजाब जो है वो लिबास का है जबकि हमारे यहां जो फोकस किया जाता है वह सबसे ज्यादा लिबास वाले हिजाब पर फोकस किया जाता है बकिया इन तीन किस्मों पर बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं होती है अच्छा इसका फायदा यह इनकी तरफ तवज्जो इसलिए जरूरी है के इन तीन किस्मों में से एक किस्म ऐसी है कि जिसमें मर्दों पर भी हिजाब वाजिब है यानी मर्द भी अपने आप को मुस्त स्ना नहीं कर सकते बाज लोग ये कहते हैं जैसे कि मर्दों के लिए कुछ नहीं कहा जाता है औरतों को कहा जाता है कि हिजाब करो लेकिन जब हम कुरान को पढ़ते हैं तो उसमें जहां के ऊपर औरतों को निगाहें नीची रखने का हुक्म दिया गया है उससे पहले मर्दों को निगाह नीची रखने का हुकम दिया गया है ऐसा ही है बकुल बिल्कुल अगर खुद कुरानी ताबीर से पहले चूंकि आका ने लगवी डेफिनेशन से यानी डिक्शनरी के डेफिनेशन से शुरू किया और आका ने फरमाया कि हिजाब का एक मतलब बैरियर है तो हम अपने नाजरीन के लिए चाहते हैं कि ये वाज कर दें कि बैरियर है हां लेकिन किस चीज से बैरियर है किस चीज से बैरियर है दो चीजें हैं बैरियर है ऑब्स्ट कल नहीं है बकुल अगर इंग्लिश की ताबीर से हम समझे तो माने नहीं है बैरियर है किस चीज से गुनाहों से जी यह हिजाब यानी आप इन चार चीजों में अगर हिजाब करेंगे तो आप गुनाहों से महफूज होंगे आप समाज में तरक्की से दूर नहीं रहेंगे आपके लिए माने या ऑब्स्ट कल किसी तरक्की से नहीं होगा या किसी भी ऐसी चीज से नहीं होगा जिसे आप सक्सेस समझते हैं जिसे आप समझते हैं कि यही मेरी जिंदगी का असल मकसद है और आप उसकी तरफ जा चाहते आप ये समझे कि नहीं हिजाब य बकुल और अगर इंसान सक्सेस हासिल करके वो गुनाहों में डूब जाए तो फिर वो कामयाबी और फिर अगर कुरानी गुफ्तगू की तरफ हम आते हैं तो इदा में जैसा कि आपने फरमाया कुरान ने मर्द को हुक्म दिया सूर नूर की आयत नंबर 30 की अगर हम लोग तिलावत करें बिस्मिल्ला रहमान रहीम पैगंबर आप मोमिनीन से यानी मोमिन मर्दों से कह दीजिए कि वो अपनी आंखों को झुकाए और अपनी शर्मगाह को महफूज रखें यही बेही ताबीर जो है व अगली आयत में खवातीन के लिए आई है लेकिन पहले मर्दों के लिए आई यानी आयत नंबर 30 में मर्दों के लिए है और आयत नंबर 31 में खवातीन के लिए है तो कोई यह ना कहे कि इस्लाम की निगाह सिर्फ और सिर्फ औरतों के हिजाब के ऊपर है और मर्दों प कोई तवज्जो और जो बिल्कुल और जो बात मैंने बैरियर ऑकल के तबार से कि उसका भी जवाब यहां इसी आयत में है कि पैगंबर को जब यह हुक्म दिया गया कि आप मोमिनीन से यह बता दीजिए तो क्यों बता दीजिए लिका अकाल यह बात यानी अपनी निगाहों को झुपा यह हया या इस तरह से माशे में अपने आप को महफूज रखना गुनाहों से आलूदा होने से या अपनी शर्मगाह को महफूज रखना ये क्यों इसका पर्पस क्या है कि ये आपकी तहा का बाइज बने और तहा कैसी नफ्स की भी तहर माशे की यानी समाज की भी तहा त और हर तबार से मेंटल पीस का भी आपके लिए बायस बनेगा तो अगर कोई शख्स य समझता है य हिजाब ये लफ्ज ही मुझे बहुत भारी लगता है तो नहीं कुरान ने अगर इस हुक्म को पेश किया है तो आप देखिए कि किस परपस से और किस मकसद के साथ इसे पेश किया है हमें तो लगता है कि ये इस्लाम का हुक्म जो हिजाब का है ये एक फित्री तकाजा है जी और इंसान की बल्कि खातून की यह फितरत में पाया जाता है कि वह अपने बदन को छुपाना चाहती है उसके अंदर जो हया का अंसर है वो अल्लाह ने बहुत ज्यादा रखा है यानी उनका जो जमीर है उनकी जो फितरत है वो उनको इस बात की तरफ मजबूर कर रही होती है कि तुमको अल्लाह ने एक इज्जत दी है एक करामत दी है उसकी हिफाजत की तरफ तुम बढ़ो जी हां बिल्कुल और इसमें खुद खवातीन को हुक्म दिया गया है कि वह निगाहों को झुकाए और झुकाए और अपनी शर्म गाओं को महफूज रखें वहां कुछ इस्तेसन आत का भी कुरान कायल हुआ है और उन इस्तेसन से हमें यह बात समझ में आती है कि कुरान ने हुक्म हिजाब इसलिए नहीं रखा है कि खवातीन को गोश नशीन कर दे या को घर में बैठा दे इसलिए रखा है कि देखें आपके अंदर कुछ जीनत पाई जाती है जो ताबीर खुद आयत में है वला अपनी जनतो को आकार ना करिए अब खुद लफ जीनत से समझ में आता है अगर हम लोग इंग्लिश में इस लफ की ताबीर बयान करें कि जीनत का मतलब क्या है तो ब्यूटीफिकेशन किसी भी किस्म का ऐसा ब्यूटीफिकेशन ऐसा अडन मेंट जिससे सामने वाला अट्रैक्ट हो तो इसलिए कुरान ने जीनत इस्तेमाल की और जीनत को छुपाने की बात की कि इस्लाम नहीं चाहता कि खातून की अमनिता खातून की इज्जत खातून का वकार खातून का जो पूरा औरा है वह किसी भी अजनबी मर्द से किसी भी गैर जरूरी मर्द से डिस्टर्ब हो बिल्कुल ऐसे ही तो इसलिए कह र है कि जीनत को जाहिर ना करो और फिर इस्ना आए कि हां यह वो अफराद हैं जिनसे आप पहले से सिक्योर हैं इला ना सबसे पहले शौहर की बात आ गई कि शौहर के लिए आप जीनत पेश करें या आबा हिना का जब आपके बाप दादा अजदाद के लिए अगर यह है कि आप पेश कर सकते क्योंकि आप सिक्योर है पहले से जहा सिक्योर नहीं है वहां हुकम आ गया आप अपने आप महफूज करें औलाद से पर्दा नहीं है मां बाप से पर्दा नहीं है भाई से पदा मम का पूरा रा य चचा है मामू है लोगों से पर्दा नहीं लेकिन ये बात बारबार सुनाई देती है आजकल सोशल मीडिया का जमाना है कि मेरा जिस्म मेरी मर्जी क्या हमें इतना भी इख्तियार नहीं है कि हम क्या पहने कैसे रहे कैसे उठे बैठे कैसे बाहर निकले इतना पाबंद कर दिया गया है सबसे पहले देखिए यह एक मिसइंटरप्रिटेशन है इस्लाम का एक गलत तर्जुमा नहीं है इस्लाम की ठीक है इस्लाम ने कहीं भी जो है वह किसी को महदूद नहीं किया है बल्कि हर जगह खतरे से बचाया जहां खतरा वहां इस्लाम ने कानून पेश किया एग्जांपल आप देखें ये खतरा क्या है आप यह बताइए खतरा क्या है तरफ लाना चाहता हूं कि अगर एक खातून नाकस कपड़ों में बाहर निकल के आती है क्या खतरा हो सकता मैं सबसे पहले उनका शियार जो उसकी तरफ इशारा करूं मेरा मेरा फ्रीडम सबसे पहले उनको सबसे ज्यादा खतरा आता है अपने अपनी आजादी पर कि भाई हम आजाद हैं क्यों जबरदस्ती हमें एक कपड़े में लपेट के महदूद कि जाता आप कौन होते हैं हमें बताने वाले ठीक है मैं हम आए इस पे डिस्कस करें हम अपनी बहनों से अने उन लोगों से के जो इस बात पर डिस्कस करना चाहते हैं हम उनको एक थॉट पॉइंट दे रहे हैं वो उस पर गौर करें कभी भी उनके समझ में आए कि देखिए फ्रीडम आप जिस फ्रीडम की बात कर रहे हैं पहले उसको तो डिफाइन करिए कि फ्रीडम किस माने में है मिसाल के तौर एक फ्रीडम की डेफिनेशन इस्लाम ने पेश की है एक फ्रीडम की डेफिनेशन नॉन इस्लामिक वर्ल्ड में पाई जाती है हम ईस्ट और वेस्ट की बात नहीं कर रहे कहीं भी पाई जा सकती है ठीक है ना मिसाल के तौर पे मुकम्मल बगैर किसी हद बंद की आजादी ठीक है जिसका आज नतीजा है फर्ज कीजिए एक बच्चा या एक इंसान कहता है कि मुझे बिल्ली बनना है ठीक है या मिसाल के तौर पर मुझे कुत्ता बनना है आपने देखा होगा कुछ दिनों पहले सोशल नेटवर्क प कुछ इंसानों की इसी यूरोपियन कंट्रीज में किसी कंट्री में बजर जर्मनी का कहां का किस्सा था कुछ कुतो की तरह कुछ लोग भौक रहे थे बकुल कहा कि मेरे राइट्स ये है कि मुझे कुत्ता बनना है जी यानी मेरा जेंडर भी आप आइडेंटिफिकेशन वो बिल्ली की तरह म्या म्या करने लगे आप उसको एक्सेप्ट करेंगे नहीं करें मेरे पास गाड़ी है मैं जैसे सड़क पर चलाऊ हां मैं उसकी तरफ एटली अब मैं फ्रीडम अब ये फ्रीडम जो है मेजॉरिटी लोगों की इसको एक्सेप्ट नहीं करते जिसको एब्सलूट फ्रीडम एसोट फ्रीडम हां ये इसको नहीं लोग एक्सेप्ट करते हैं अब आता है फ्रीडम का दूसरा हिस्सा के इस हद तक आजादी हो कि जिसमें दूसरे को नुकसान ना पहुंचे और हम अपने आप को जो भी करें अच्छा ये डेफिनेशन भी जो है मलन नॉन इस्लामिक वर्ल्ड में ये भी पूरी तरह खरी नहीं उतरती क्या आप दूसरों को न ठीक है बात सही है भाई हम घर में इतनी जोर से म्यूजिक ना बचाए कि दूसरों के घर में डिस्टर्ब हो रात में सोना सके इतना शोर शराबा पार्टी नाइट पार्टी इस तरह की ना करें कि दूसरे सो ना पाए अपना घर बंद करके हम जो करते हैं हर आजादी महदूद है हां अब आइए इन लोगों से पूछते हैं अब इन्हीं शख्स 10 लोग एक जगह बैठे हैं एक शख्स चाहता है अपने आप को मारना सुसाइड करना चाहता है खब पुलिस को खबर लगी फौरन आके उसको अरेस्ट कर लिया भा आप क्यों अरेस्ट कर रहे हैं उसको फ्रीडम दीजिए फ्रीडम हासिल तो आप कहे कि नहीं हम फ्रीडम दे तो रहे हैं लेकिन उसकी भी हदें हैं जी अपने आप को नुकसान पहुंचाने में यानी अब हम इसका कंक्लूजन यह लेते हैं हत्ता नॉन इस्लामिक वर्ल्ड में भी फ्रीडम में महदूद यत हैं बिलकुल ठीक है अब आ इस्लामी नुक्ते नबला इससे पहले कि आप इस्लामी नुक्ते निगाह की तरफ जाए फ्रीडम में महदूद दियत हैं इसकी बड़ी मिसाल जो है खुद हर ऑफिस में एक ड्रेस कोड हर यूनिवर्सिटी में एक खास पहनावा वो इस हद तक इस हद तक कि अगर बाज मलिक हैं नाम लेना शायद मुनासिब ना हो जहां पे लिबर्टी का सबसे बड़ा नारा बुलंद किया जाता है लेकिन अगर कोई हिजाब में खातून आ जाती है तो कहते नहीं आप हिजाब भी नहीं आ सकते नहीं आप आप जब कहते लिबर्टी वो लिबर्टी की बात करते हैं फ्रीडम ऑफ चॉइस है ना तो इट्स माय फ्रीडम हां तो यहां पे आप किस बिना प रोक रहे व आप देखि आपको याद दाढी दाढ़ी के साथ ऑफिस एनवायरमेंट में आप मत आइए वहां फ्रीडम कहां चला जाता है वो फ्रांस में एक यूनिवर्सिटी में एक दफा हुआ था एक प्रोफेसर जो है वो क्लास में उसने तालबा को जो है हिजाब में में आई थी उसको अपोज किया था इफाक से एक मोमिना तालबा थी जी जी तो वो फ्रांस की तो उस फिर उसके बाद जो है वो यानी बाकायदा अखबारों में जो एक चीज देखी मेरा ड्रेस है मैं जिस तरह भी पहनू जब पाबंदियां आई थी ख मेरा ड्रेस है मैं जिस तरह भी पहनू इसमें इसकाफ भी शामिल होना चाहिए जी ठीक है भ मैं जिस तरह भी पहनू आप कौन होते हैं ठीक है तो आप इससे इनसिक्योर क्यों है यानी अपने नारे पर खुद भी अमल नहीं कर रल कर आपने फ्रीडम का जो आप कहते हैं फ्रीडम ऑफ चॉइस आपने रखा फ्रीडम ऑफ वॉइस आपने रखा फ्रीडम ऑफ ड्रेस आपने रखा सब कुछ आपने बच्चों को आप फ्रीडम दे रहे हैं सब कुछ लेकिन यहां क्यों आप मेरे ड्रेस में हमारे क्यों अपोज कर रहे आप हमको यहां भी फ्रीडम दीजिए ठीक है तो यहां फ्रीडम की डेफिनेशन चेंज हो जाती है तो आपने महसूस किया कि ये जो आजादी और रियत और फ्रीडम की जो बात करते हैं जो तारीफ पेश की जो डेफिनेशन पेश की नॉन इस्लामिक वर्ल्ड ने अभी हम ईस्ट वेस्ट में नहीं महदूद करना चाहते हैं हम किसी खास मुल्क का नाम लेना चाहते हैं कहीं भी हो सकता है तो यह तारीफ इनकंप्लीट है या तारीफ है कि जिस पर जहां चाहे वो डबल स्टैंडर्ड कर सकते हैं अपनी जरूरत के मुताबिक उसमें चेंस लेकर आते हैं ठीक है ना अपनी जरूरत के मुताबिक उसको बदल भी देते हैं ठीक है ना वहां फिर वहा वहां भी वो फ्रीडम इस्तेमाल करते इट्स माय चॉइस ठीक है तो जब आपको कानून तोड़ने में चॉइस है तो हमें पहनावे में चॉइस क्यों नहीं होनी चाहिए दूसरी चीज आप देखि इस्लाम ने जो फ्रीडम की डेफिनेशन की है इस्लाम में हर चीज की सबसे पहली हद यह है के मनफात और फायदे से ज्यादा नुकसान का ना होना सही इस्लाम ने फ्रीडम की हद रखी है नुकसान का ना हर वो काम हर वो अमल हर व चीज हर वो यानी रवैया हर वो र गुफ्तगू हर वो रफ्तार जिसमें नुकसान हो रहा हो अच्छा अब नुकसान में इस्लाम ने डेफिनेशन को एक्सपेंड किया नुकसान में उस शख्स को खुद नुकसान हो रहा होहे या दूसरों को नुकसान हो रहा हो वेस्ट में सिर्फ दूसरों तक महदूद वेस्ट में अलबता वो इन डेफिनेशन है लेकिन प्रैक्टिकली नहीं नहीं वहां भी नहीं है जब इंसान खुदकुशी करने जाता है ठीक है उ रोकते हैं ड्रग्स लेता है तो उसे रोकते हैं या मिसाल के तौर पर फर्ज कीजिए कोई सेल्फ ऑफेंस करता अपने खिलाफ तो भी उसको रोकते हैं लेकिन इलाम ले जो डेफिनेशन लिबरलिज्म फ्रीडम की पेश करते हैं वो यही है मेरी आजादी जो दूसरे को नुन ना प लेकिन इस्लाम में यह है कि दूसरा भी महफूज र हम भी महफूज इलाम इस्लाम ने बाकायदा यानी अपने असस नामे में रखा कि हम आजादी का हमारे पास जो डेफिनेशन है हमारे पास जो तारीफ है आजादी की वो यह कि आजादी उस हालत को कहते हैं कि जिसमें जो शख्स है जिसको आजादी चाहिए है वह अपनी आजादी से खुद को भी नुकसान ना पहुंचाए आप मिसाल के तौर पे इस्लाम में ड्रग्स हराम है ठीक है इस्लाम में मिसाल के तौर पे मुन शिया हराम है शराब हराम है या फर्ज कीजिए बहुत से ऐसे काम हैं कि जो इस्लाम में हराम है जिसका दूसरे से कोई ताल्लुक नहीं शायद कोई देख भी ना रहा तन्हाई में इंसान वो अंजाम दे रहा हो वो काम लेकिन इलाम शद ये इस्लाम के उस आईडियोलॉजी की तरफ इशारा है कि इस्लाम यह समझाना चाहता है के खुद इंसान का वजूद भी खुद उसका नहीं है एटली बहुत अच्छी बात है इंसान के वजूद जो है वो अल्लाह की अमानत है उसको आप खुद से खत्म नहीं कर सकते इसी ते यानी इसकी आप जड़ की तरफ अगर जाएंगे तो बाजग यही होती है क्योंकि यह जो आपने नारा जिसकी तरफ आपने इशारा किया कि मेरा जिस्म मेरी मर्जी उसमें यह नारा बुलंद करने वाला या करने वाली यही सोच रहा है ये मेरा जिस्म मेरी मिलकियत है इसलिए मेरी मर्जी मैं इसको ऑन करता हूं तो मैं जैसे चाहे तसरफती इसी फिक्र पर रोक लगाई है कि आप अपने जिस्म को अप मित मैं एक जरीफ नुक्ते की तरफ इशारा करूं एक फिक मसला है आप इसकी तरफ गौर कीजिएगा आप देखें किसी का कोई अजीज मर जाता है जैसे खुदा सबको सलामत रखे किसी के बाप का इंतकाल हो गया किसी के शौहर का इंतकाल हो गया खब लोग कभी गम इतना तारी होता है अपने आप को पीटने लगते हैं मारने लगते हैं इस्लाम ने इस गम की हालत में भी हदे मोयन की कि खातून इस तरह अपने आप को नहीं मार सकती गम में कि अपने बाल नोचने लगे अपने चेहरे प खराश लि आए अपने आप को जरर पहुंचाने लगे तो इस्लाम में हद क्या है फ्रीडम की कि तुमको नुकसान ना पहुंचे ना किसी दूसरे को पहुंचे और ना किसी दूसरे को नुकसान पहुंचे ठीक है और हत इमकान तुम्हारा फ्रीडम तुम्हारे फायदे का सबब बने ठीक है ये दूसरा पहलू है लेकिन कम से कम इस्लाम ने जो रखा है फ्रीडम की हद वो यह कि नुकसान ना पहुंचे ज्यादा से ज्यादा नुकन से बचाने की तरफ जहां भी नुकसान होता है इस्लाम वहां जो है यबला यह बात भी अर्ज कर दूं कि जरूरी नहीं है कि हर मसले में आपको खुद यह समझ में आए कि मेरा नुकसान किस चीज में और फायदा किस चीज इलाम ने जी जिसने आपको खल किया वो बेहतरीन तरीके से जानता है कि आपका फायदा किन चीजों में नुकसान किन चीजों में शायद जैसे खुद यही मसला है हम नुकसान के जा से गुग जी सम में आ रहा लेकिन लिक को जिसने मर्द को भी खलक किया है औरत को भी खक किया और दोनों की फितर का खालिक भी है दोनों के मिजाज का खालिक भी है वो जानता है कि तुम्हारा नुकसान किस चीज में तो आप ये ना कहिए अच्छा अगर नुकसान ही की बात है तो मैं खुद डिसाइड कर ले मेरा नुकसान किस चीज में अच्छा मैं यहां एक चीज और आपकी खिदमत में अ कर एक मौजू जो अंडरस्टूड है समझा हुआ है कि आज का इंसान खुद अपने बारे में मुकम्मल नहीं जानता है कि वह क्या है सही क्या उसके लिए अच्छी है चीज क्या चीज बुरी हैं इंसान अपने बारे में फारसी में एक किताब लिखी गई थी इंसान मौजूद ना शना इंसान एक नामा अन आइडेंटिफिकेशन [संगीत] अब एक अनजान मखलूक है तो हमें क्या करना होगा कि हम अपने बारे में तो जानते नहीं हम क्या हैं ठीक है तो जब हम अब खुद के बारे में नहीं जानते तो मेरा क्या नफा है और क्या नुकसान है ये भी हम डेफिनेटली नहीं जानते हैं क्योंकि हम अपना नफा और नुकसान उस वक्त जानेंगे फॉर एग्जांपल मेरे पास एक गैजेट है हम बच्चों की जबान में बात करें अगर एक गैजेट एक मोबाइल एक डिवाइस है हमें मालूम है कि पानी उसको खराब कर देता है तो हम पानी से उसको प्रोटेक्ट करते हैं ठीक है हमें मालूम है कि मिसाल के तौर पर उसको हम जमीर से जोर से जमीन पर फेंकें तो डैमेज हो जाएगा तो हम उसको पटकने से बचाते हैं हमें मालूम है कि अगर स्क्रीन के भल गिरा वो तो उसका स्क्रीन डैमेज हो जाएगा तो हम उसम प्रोटेक्टर लगाते हैं ठीक है हमें मालूम है तो हम इतना प्रोटे उसके लिए जो है इतना तहफ्फुज इंतजाम करते हैं लेकिन अपने बारे में हमें नहीं मालूम हम क्या है इंसान क्या कौन सी मखलूक है आज एक रियलिटी है इसको समझना होगा पढ़े लिखे अफराद दानिश्वर दानिश्वर जो हजरात है वो इस बात को एक्सेप्ट करते हैं कि जब इंसान अपने बारे में नहीं जानता है तो हाउ ही कैन डिसाइड अपने बारे में व कैसे फैसला कर तो अब मैं इस्लामी नुक्ते नजर से आपकी खिदमत में अर् करूं इस्लाम हरगिज इस स्लोगन को एक्सेप्ट नहीं करता कि मेरा वजूद मेरी मर्जी मेरा जिस्म मेरी मर्जी ना तुम तुम जिस चीज को अपना कह रहे हो अभी आपने फरमाया इशारा किया उसकी तरफ सबसे पहले वो तुम्हारा अपना नहीं है एक दूसरा दूसरी चीज ये कि तुम उसके बारे में कुछ जानते ही नहीं हो सही यू नो नथिंग अबाउट इट तो अब आपको क्या करना होगा ऐसे से इस्तफा करना होगा ऐसे से ऐसे की हिदायत प चलना होगा जो उसके बारे में जानता है जो उसके बारे में एक एक चीज ब्रीफ करता है जो उसका खालिक बनाने वाला है खुदा जो इंसान का खालिक और बनाने वाला है व इंसान की जरूरतों से भी आगाह है उसके नुकसान से भी आगाह है उसके फायदों से भी आगाह है और क्या उसके लिए चीज अच्छी है क्या अ यहां पर उस शुबे को भी यहां पे हल करते चले जो लोग ये कह देते हैं कि क्योंकि इतनी पाबंदी लगाई जाती है खातून के ऊपर और पर्दा और इस लिबास में आए और इतना छुपाए अपने को इससे मर्दों की जुस्तजू और बढ़ती है और इससे फसाद और फैलता है अगर यह चादर उतरवा दी जाए और यह कपड़े उतरवा दिए जाए तो फिर जो है सब नॉर्मल हो जाएगा और कोई जरूरत ही नहीं रहेगी सब एक दूसरे की तरफ देखेंगे नहीं सब वो हो जाएंगे जिसको कहा जाए कि जरूरत ही नहीं रहेगी खतरा खत्म हो जाए खतरा खत्म हो जाएगा आदत सी बन जाएगी लेकिन हमें लग जैसे बाज लोग ये दलील पेश करते हैं किल इंसान हरी जिस चीज के लिए मना किया गया है उसकी ज्यादा जुस्तजू में इंसान रहता है लेकिन अगर ये बात जबक मेरी न पूरी तरीके से मुगालता है एक फैले है अगर यह दुरुस्त है तो हर तिजोरी की जुस्तजू में रहेगा यकी हर कीमती चीज की जुस्तजू में रहेगा तो क्या आप दर नतीजा ये कह देंगे कि सारी तिजोरिया तोड़ दी जाए सारी कीमती चीजों को इंसान जो है वो जाहिर कर दे हर वो चीज जिसकी कोई वैल्यू है उसके सामने पेश कर दिया जाए जुस्तजू में तो रहता ही है हर इंसान किसी भी तिजोरी की या किसी भी कीमती जुस्तजू में तो रहता ही है तो क्या इसका मतलब यह है कि वो जुस्तजू वही मैं कह रहा हूं क्या वो जुस्तजू इस सूरत में खत्म हो जाएगी उसको पेश कर दिया जाए यानी अगर वो तिजोरिया खोल दी जाए तो फ जस्ज खत्म हो जाएगी ये एक सवाल है के अगर किसी के सामने खजनों का मुंह खोल दिया जाए जी तो क्या एक लिमिट ऐसी आएगी कि वह कहेगा बस अब मुझे नहीं चाहिए ऐसा नहीं है बिल्कुल क्योंकि हम अगर माल ही जब खजाने ब ऐसा मुमकिन है शायद माल की सूरत में ऐसा शायद पॉसिबल हो जाए कि एक वक्त ऐसा आ जाए कि इंसान कहे कि अब मुझे इससे ज्यादा नहीं चाहिए लेकिन शायद शहवत के मामले में ऐसा नहीं है बल्कि य जो शायद शहीद मुताहिर ने भी इसकी तरफ इशारा किया है कि शहवत का मैदान एक ऐसा मैदान है कि जहां के ऊपर आप जितनी रियायत बढ़ाते चले जाएंगे जितनी बेपर्दा कीी बढ़ाते चले जाएंगे उतना ही इंसान शहवत की तरफ आगे बढ़ता जाएगा यहां तक के वोह उसका वजूद खत्म हो जाए यानी कहीं पर भी इसमें रोक लगने वाली नहीं अच्छा किबला एक चीज मैं यहां अर्ज करना चाहूंगा कि आप देखें कभी-कभी किसी चीज का गलत प्रचार और गलत तबलीग किसी चीज की गलत तरबियत उसका नुकसान उसका नुकसान का सबब बनती है हम आज जो बहुत से लोग खुद मुसलमान हो या नन नॉन मुस्लिम्स हो वो जो तराज करते हैं इसमें हम मुसलमानों की कुछ गलती है हमने हिजाब को प्रॉपर तरीके से डिफाइन नहीं किया हमने हिजाब की जब बात हुई कहा मेरी मेरी बहनों को हमारी मांओं को हमारी बहनों को हमारी बेटियों को हिजाब प कवर करना चाहिए हमने य हिजाब यहां से शुरू नहीं किया कि हिजाब खाली औरतों पे नहीं है जी मर्दों पे भी हिजाब है अब जब हम हिजाब की बात जैसे इ में री हिजाब जो है वो बताए यय बहुत जरूरी मर्दों प कुरान जैसे म भी ऐसे कपड़े पहन के निकले नहीं यह कपड़े वाला हिजाब नहीं अ कर रहा हूं आपकी खिदमत में ला रहा हूं देखिए जैसे कला ने इदा में आयत में इशारा किया कुरान मजीद में सर नूर में जब हिजाब की गुफ्तगू की गई तो वहां औरतों से पहले मर्दों को अल्लाह ने हिजाब मोमिनीन से आप कह दीजिए कि वो अपनी निगाहों को नीचे रखें यानी सबसे पहला जो हिजाब है वो निगाहों का हिजाब है जो मर्दों पे वाजिब है बिल्कुल ठीक है तो अब अच्छा यह बात क्यों आ रही है देखिए इस्लाम बहुत दूरदेशी करता है इस्लाम जो कयामत से पहले भी अगर कोई तराज होने वाला उसको मद्देनजर रख के बात करता है भाई खवातीन कहती है ना कि भाई हमारा जो है वो लिबास है हम जैसे पहने दूसरों की वजह से हम अपने आप को हम इनसिक्योर क्यों बनाए दूसरों की वजह से अपने आप को महदूद क्यों करें आप मर्दों को रोकिए तो कुरान ने मर्दों को रोका जी हां बिल्कुल कुरान ने बैलेंस किया जी एक तरफ मर्दों को रोका उसके बाद खवातीन में क्योंकि एक रियलिटी है फिजिकली उनमें अट्रैक्शन ज्यादा अल्लाह ने दिया है या यूं कहूं कि उनको अल्लाह ने मर्दों से ज्यादा कीमती बनाया है मर्द कीमती है उनको अल्लाह ने मर्दों से ज्यादा कीमती बनाया उनको अल्लाह ने मर्दों से ज्यादा जो है जिम्मेदारियां दी है जी बिल्कुल इसीलिए अगर आयात का मुवाजा करें तो दो मसाइल में खवातीन और मर्द मुश्तक है एक हुक्म ये जब मर्दों से कहा जा रहा है मोमिनीन से कहा जा रहा है निगाहो को को झुकाए औरतो से भी य मुश्तक पहलू अगले हुक्म में भी दोनों मुश्तक है पहले मर्दों से कहा के व फ अपनी शर्मगाह को महफूज र फिर य खवातीन से भी यही बात कही अपनी शरम को महफूज रख लेकिन इसके बाद मर्द वहा आके रुक गए क्योंकि अब एक ऐसी खुसूसियत आने वाली है जो मर्द में नहीं पाई जाती औरतो में पाई जाती है वो क्या मर्द में वो जीनत नहीं पाई जाती है उसके स्ट्रक्चर में उसकी तखक में कि उसे कोई उस तरह से अट्रैक्ट हो जिस अट्रैक्शन पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए एक खास गरो के लिए लायना मर्द के लिए नहीं है औरत के लिए है क्योंकि परवरदिगार आलम खालिक है वो जानता है कि उसने खवातीन को इस तरह से खल्क किया है कि अगर ये अपनी जीनत को जिस तरह से बॉडी का स्ट्रक्चर है इसका उसी तरह से जाहिर करेगी जिस तरह से मर्द जाहिर करता है तो समाज में फ मुश्किलात और फसाद वजूद में आ सकता है अ और आप देखि यही जैसा कि अर्ज किया कि यहां समाज ने जो पेश किया वो क्योंकि खातून को इतना सुप्रेस किया इस कद उस परे सितम ढाए कि वह अपनी खूबियों को अपनी अपनी जेबाई को जो है वह अपने लिए ऐब समझने लगती है ठीक है जबकि अल्लाह ने उसकी कीमत बढ़ाई उसकी जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा थी उसको इतना जो है वो कीमती जेवर दिया या उसको जीनत अता की अल्लाह ने लेकिन हां क्योंकि उसकी जीनत को खुदा को मालूम था कि सारे इंसान एक जैसे नहीं होते हैं इंसानों में कुछ अच्छे भी हो सकते हैं बुरे भी हो सकते हैं इसलिए उन बुरे इंसानों का इहरा इनकी तबाही और इनके नुकसान का सबब ना बचे बने अल्लाह ने इनसे भी कहा कि तुम अपने आप को प्रोटेक्ट करो तुम बहुत कीमती हो बाज उलमा की सीरत में मिलता है कि जब ना महरम खातून ने हाथ बढ़ाया हाथ बढ़ाया मुसाफ के लिए तो उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिया खातून ने कहा कि आपने सारे मर्दों से हाथ मिलाया क्या मेरे मेरे अंदर कुछ कमी है क्या आप मैं हाथ मिला लूंगी तो क्या आप खराब हो जाएंगे गंदे हो जाएंगे मैले हो जाएंगे जी तो उनका कितना नफीस जवाब था कहा कि यह वजह नहीं कि मैं मैला हो जाऊंगा बल्कि मैंने चाहा कि जो अजमत तुम्हारी है अल्लाह की नजर में उस अजमत पे कोई खद ना आने पाए एटली जी बिल्कुल जो फलसफे हिजाब में से फलसफा या उसकी एक हिकमत है कि खुद एहतराम है जन उस जन के एहतराम के लिए खातून के एहतराम के लिए यह शाइस्ता नहीं है कि वो हर कसो नाकस के सामने जनतो को पेश कर अच्छा यहां पे यह बात भी इंतहा जरूरी है इसका तस्करा कि अगर परवरदिगार आलम को जो एक तराज होता है फेमिनिस्ट हजरात की जानिब से लिबरलिटी हजरात की जानिब से कि हुक्म हिजाब खवातीन को महबू करने और मुकद करने और घर में गोशाम करने के उनकी तरक्की में एक माने और रुकावट बनने के लिए है अगर ऐसी बात होती तो कुरान मजीद जो है वह जुजिया में जाकर यह ना बयान करता कि जब माश में आ रही हो तो कैसे आओ और कैसे ना आ सीधे-सीधे कह देता कि घर से ना निकलना जी बिलकुल माशे में ना आना बाजार में ना आना अच्छा आप की बात के लिए देखिए कुछ लोगों ने क्या किया हिजाब का मिस इंटरप्रिटेशन किया जी हिजाब यानी खातून को घर में कैद कर दो खातून कभी किसी से बात नहीं कर सकती खातून जो है बिल्कुल जो है वो बाजारों में रास्तों में नहीं निकल सकती तो ये उन्होंने इस्लाम का मिसइंटरप्रिटेशन किया या हत्ता इस्लाम से पहले ऐसा ऐसी ज्यादति रायज थी बाज दूसरी कमों में जैसे हिजाब का तसर पाया जाता में तस पाया जाता है नयत का हिजाब था क्रिश्चन में पाया जाता हिंदुओ में पाया जाता था हिजाब ठीक है तो वहां हिजाब के साथ-साथ जो है वो औरत की तनक उनको उन पर मजलि और उनकी हुवि और उनकी आइडेंटिटी यानी उनकी कोई हैसियत नहीं थी ट किया जाट किया जाता था उसको तो इन चीजों के लेकिन इस्लाम ने आकर के हां इसके मुकाबिल में इस्लाम ने क्या किया ब इस्लाम ने आके एक तो सबसे पहले इस्लाम के नजदीक जो खातून की डेफिनेशन है जी और उसकी जो शख्सियत है उसको महफूज रखते हुए इस्लाम कहीं खातून को मिसाल के तौर पे बाजार में या अपने काम से निकलने के लिए रोकता नहीं है इस्लाम जो है वो खास ये नहीं कहता है कि तुम ये लिबास पहनो क्योंकि कंट्रीज टू कंट्रीज लिबास ड्रेस कोड डिफर करता है अलग करता है इस्लाम ने खास लिबास नहीं बताया इस्लाम ने जो है वो चंद हदें बता दी कि फर्ज कीजिए तुम जब चलो तो इस तरह ना चलो बिलकुल बाजारों में कि तुम्हारी आवाज को देख के दूसरा अट्रैक्ट हो तुम्हारे पाज आ दरमिया रास्ता निकाला है ना तुम बिल्कुल बहना हो कर के समाज में निकल पड़ो बाजारों में निकल पड़ो और ना बिलकुल घरों में कैद हो जाओ कि तुम किसी से बात भी नहीं कर सकती और बाहर नहीं निकल सकती बल्कि दोनों के दरमियान का रास्ता बताया कि तुम बाइज्जत जिंदगी कैसे गुजार सकती हो और किस तरीके से समाज में अपने को मनवा सकती हो पहचान वा सकती हो आ सकती हो कैसे पार्टिसिपेट और आप ही की बात की ता के लिएला जैसे बाज लोग यह समझते हैं कि अब इस्लाम हिजाब को कहता है तो हम काम नहीं कर सकते ऑफिस में जी हम हम अपनी जरूरियत के लिए बाहर नहीं जा सकते इस्लाम ने ऑफिस में काम करने से या मिसाल के तौर पे इदार में बैठने से म नहीं यानी एक लेडी का वर्किंग लेडी होना इस्लाम में मायू नहीं है इस्लाम ने हां यह हद बता दी कि तुम काम करने जाती हो तुम जाओ लेकिन वहां अपने आप को इस तरह पेश ना करो कि दूसरे तुम्हें देखकर जज्ब हो जैसे फर्ज कीजिए कभी-कभी दुकानों में खरीदारों को अट्रैक्ट करने के लिए एक खातून को ह्यूमल किया जाता है उसे कहा जाता है तुम अपने आप को इस तरह जीनत और रास्त कीी के साथ लेकर जाओ कि तुम्हें देख के खरीदार आए बिलकुल ठीक है अब यहां ये ये नहीं है कि आप उसको कहते हैं हमने शाना बशा खातून को चलाया नहीं आप अपनी जरूरत के लिए उसको उस ऑब्जेक्टिफाई कर रहे हैं आप उसे आप उसके बदन को उसकी खूबसूरती को उसकी लतों को इस्तेमाल कर रहे हैं उसके हक हुकूक की अदायगी नहीं कर रहे ये फेमिनिज्म का जो नारा है कि इक्वलिटी ऑफ राइट होना चाहिए एक लिटी ऑफ जेंडर होना चाहिए यहां पमाल हो रहा है यहां पमाल हो रहा है और इस बात को भी मद्देनजर रखा इस्लामी तबार से कि फिजिकलिटी में चूंकि खलकत के तबार से फर्क है तो अकाम के तबार से फर्क है लेकिन स्पिरिचुअलिटी के तबार से अगर आप देखें यानी एक इंसान की यत उसकी आइडेंटिटी उसके वजूद के तबार से देखें तो इस्लाम किसी फर्क का कायल नहीं है और इसके लिए हमारे पास कई आयात है दलील के तौर प म जो भी अल सालेह अंजाम दे और कुरान मजीद में ऐसे शवा है कि कोई ऐसा दौर है जहां खातून मर्द से बेहतर है बिल्कुल बक इससे यह साबित होता है कि इस्लाम ने औरत को हुकूक दिए हैं औरत को मर्द से कम कभी भी नहीं करार दिया है लेकिन अगर कहीं यह महसूस हो रहा है कि मर्द से कोई हुक्म दिया गया किसी मसले में मर्द को कोई हुक्म दिया गया कोई तकाजा है मर्द से औरत से कोई और तकाजा है तो वो फिजिकलिटी की ब उसकी उसके वजूद की जो हकीकत है उनके पेशे नजर उसकी तवाना उसकी एबिलिटीज के पेशे नजर उसके अंदर जो लकत और सलाहियत के पेश नजर और और कहते ना मस क्या नाम है अल्लाह ने इंसानों के लिए अलग-अलग काम डिफाइन कर दिए एग्जांपल दे रहे जैसे बहुत क्या नाम तारीखी एग्जांपल जैसे आप देखि रसूल खुदा ने मौला कायनात की शादी जब बीवी जहरा सलाम अलहा से की ये तमाम मुसलमान इसको मुत है इस बात प ये शियों से शयों तक महदूद नहीं सुन्नी हजरात भी इस वक्त मानते हैं इसको तमाम मुसलमान इसको मानते हैं तो आपने बुला के दोनों को बैठाया कि भाई देखो अली तुम घर के बाहर के काम करना ठीक है और फातिमा तुम घर के अंदर के काम करना ठीक है क्यों इस तरह काम यानी डिवाइड हो जाए ठीक है अच्छा अलबत्ता ये एक आइडियल सिचुएशन है जी हां ठीक है लेकिन इस्लाम जो है यहां इस तरह नहीं कहता यानी वो एक आइडियल सिचुएशन थी कि अगर अच्छी हेल्दी फैमिली चाहिए हमें अच्छे बच्चों की तरबियत करनी है हमें मिसाल के तौर पे मुशे को लीडर्स पेश करने हैं तो महाज तकसीम कर द महाज तकसीम कर दिया कि दिस इज योर वर्क दैट इज योर वर्क ये आपका खवातीन का ये काम है कि वो माशे को लीडर्स देती है वो मशर की अजम शख्सियतों की तरबियत करती हैं जैसे आप देखिए शहजादी ने जिन बच्चों की तरबियत की खब मौला कायनात का कंट्रीब्यूशन है 100% ठीक है लेकिन शहजादी का 150 पर कंट्रीब्यूशन है ठीक है मौला कायनात की जिंदगी सफर में गुजरती थी ठीक है शहजादी उस दौर में बच्चों को संभालती थी मौला कनात जब आते थे वो बच्चों को संभालते थे जी तो यह क्या था शहजादी ने अपने बच्चों की तरबियत देके लीडर्स दिए आज दुनिया में एक मिसालीडिंग के लिए जाया करते थे तो शहजादी बाहर निकलती थी पानी का इंतजाम करती थी वो लेके आती और इसके बरक्स भी हमें मिसाल मिलती है कि अगर शहजादी प मस बीमार है या खस्ता है तो काना अमीर मोमिनीन अ सलाम घर में झाड़ू लगा यानी हब जरूरत जिसको जो फरीजा अंजाम देना है अजम दे यहां पर य मैसेज हमारे आवाम के लिए बहुत क्लियर है के खातून खाना घर की जो खातून है उसके जो काम है उसम ऐसा नहीं है कि मर्द जो है वो पार्टिसिपेट ना करे या उसम हिस्सा ना ले उसके ब और दूसरी चीज य वहां यानी हिजाब यह नहीं कहता हिजाब यानी घर में बैठना खुद रसूल खुदा के साथ जंगो में खवातीन जाती थ तीमारदारी करकी जिम्मेदारी थी इस या घर से बाहर निकल सकती है इसका जोय मूम निकाले यानी खवातीन जो इससे समझ में आता है कि खातून घर से बाहर जाकर जो भी दीनी काम जो जरूरियत है जो दीनी काम है मिसाल के तौर पर नमाज जमात बहुत से लोग इस जहन में आता है कि खवातीन नमाज जमात के लिए निकल सकती है कि नहीं तकाफ के लिए जा सकती है कि नहीं हज के लिए जा सकती है नहीं तो यहां से समझ में आता है कि नहीं जो जो जरूरतें हैं जो जो जरूरत जा सकती है खातून जरूरियत खरीद फरोख्त के लिए बाजार में जा सकती है क्या अपनी जरूरियत जिंदगी को फराम कर सकती है उन मसाइल को उन जरूरियत को किस तरह से अंजाम दे इसकी तरफ कुरान ने मुत किया है बस ये हुदूगिरो नहीं कहा कि ऐसे नर्म लहजे में गुफ्तगू ना करो कि मर्द तुम्हारी तरफ अट्र ज ये हद बयान कर दी लिबास में भी मैंने अर् किया जैसे क्या इशारा भी हुआ आयत में इस्लाम ने यह नहीं कहा कि मिसाल के तौर पे खवातीन बर सगीर का लिबास पहने खवातीन मिसाल के तौर पेकल ग गल्फ का लिबास नहीं हर इलाके का अपना अपना लिबास होता है इस्लाम ने उसम इंटर नहीं किया इस्लाम क्या कहता है कि भाई तुम जैसा भी लिबास पहनना है पहनो अपने जिस्म को नुमाया ना करो अपनी जनतो को जाहिर ना कर शायद बाज खवातीन और बाज बहनों की की नजर में उनके जहन में ये तसर हो कि हिजाब मतलब वो खास काली चादर वो ड्रेस कोड जिसको मसल बाज इस्लामी मलिक में फलो किया जाता है लेकिन ऐसा बिल्कुल हर नहीं बाज जगह ऐसा भी होता है कि खातून या हम हमारी माएं बहने बेटियां यह समझती हैं कि यह बहुत मायू चीज है समाज किधर जा रहा है दुनिया किधर जा रही है और हम जो हैं कितने हमको चादर में लपेट दिया गया है चादर में लपेट दिया गया है तो शर्म के मारे भी देखिए कभी-कभी एक मुसलमान सोचता है मैं दाढ़ी क्यों रखूं भाई सब लोग मेरा मजाक उड़ा रहे हैं मैं चादर में जा रही हूं मेरा मजाक उड़ा रहे हैं तो खाली मजाक उड़ाने से इंसान अपनी दीनी शनातन दुरुस्त नहीं है क्यों इसलिए कि देखें इमाम हुसैन सलाम से जो शेर मंसूब है अल मत ला मन रकर के इज्जत की मौत जिल्लत की जिंदगी से बेहतर है यह पहला मिसरा है दूसरा मिसरा यह है के जिल्लत की जिंदगी जहन्नम में जाने से बहतर हैने बतर अगर हमें कोई हिकारत की निगाह से देख रहा है अगर फर्ज करें सपोज ट अल तो एक खातून को इतना जरी होना चाहिए कि ये मेरा तशु है मेरा इमतियाज है मेरा दीन का हुकम है मेरे अल्लाह का हुकम है तुमसे क्या मतलब है मेरी आइडेंट दुनिया किधर मेरी आइड मेरी आइडेंटिटी है ये मैं इसमें क्या कर सकती हूं लेकिन दूसरी तरफ अगर कहीं पर उसको यह एहसास हो कि लोग मेरी हिकारत से देख रहे हैं या समाज में दूसरी निगाह से देखा जा रहा है तो बहरहाल उसको इस बात की तरफ मुतजेंस तकत मिलेगी और उसको सपोर्ट मिलेगी कि हां मैं अगर दुनिया में चंद रोज की जिंदगी में अगर किसी ने कभी मुझे हिकारत से देख लिया तो बहरहाल मेरी जिंदगी आखिरत की वह तो महफूज़ है ही इस्लाम ने कभी भी खातून को रिग्रेसिव निगाह से नहीं देखा और रिग्रेसिव नहीं रखा हमेशा प्रोग्रेसिव जाना और इसीलिए जहां-जहां प्रोग्रेस के मैदान किबला ने जैसे फरमाया भी कि जैसे हमें एक प्रोग्रेसिव समाज को वजूद में लाने के लिए तरबियत बेहतरीन तरबियत औलाद की जरूरत है तो इस प्रोग्रेस में सबसे अहम किरदार खातून का है जी तो रिग्रेसिव नहीं है दूसरी बात हमें यह भी देखना चाहिए कि जैसा आपने कहा मसखरी की बात वाक खास तौर पर मुसलमानों को और हम शियों को भी इस बात की तरफ मुतजेंस हमारे निगाहों के सामने ऐसे रिलीजस भी हैं ऐसे फिरके भी हैं जो पूरी तरह से अपने दीन के लिबास में लिबास में कह रहा हूं तमाम अकाम को फॉलो करते हैं बैंक्स में भी जाते हैं स्कूल्स में भी जाते हैं ऑफिस में भी जाते हैं हर जगाह जाते हैं लेकिन वो इतने पाबंद हैं कि सामने वाले में जरूरत नहीं होती कि ये पगड़ी उतार दो बिलकुल बकुल सामने वाले रिग्रेट भी नहीं करते और पूरी तरह से उसे आइडेंटिफिकेशन होता है कभी-कभी वो अक्सर लोग जब इस्लाम का मसखरा उड़ाना चाहते हैं वो कहते हैं इस्लाम तो कहता है औरतें सेफ बच्चे पैदा करें ये तौहीन है खातून की जी देखिए एक मशीन बनना जी और एक इंसान होक दूसरे इंसान की तरबियत करना जमीन आसमान का फर्क है इस्लाम ने जो खातून को निगाह दी है खातून को जिस निगाह से इस्लाम देखता है वो एक मुरब्बी के उनवान से ठीक है एक जो है वो तरबियत करने वाले इंसान के उनवान से यानी खुदा रब्बुल आलमीन है खुदा ने अपनी जिम्मेदारी खातून को दी है सही उे उसे भी कना मैं रबिया बनाया रब तरबियत करने वाले को कहते हैं पालने वाले को कहते हैं बहुत बड़ी जिम्मेदारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है तो इस्लाम खातून को यह नहीं कहता है कि वो मस वो एक बच्चा पैदा करने वाली मशीन है ये उसकी तौहीन है इस्लाम कहता है कि वो एक मुरब्बी है वो एक तरबियत करने वाली वो समाज को अच्छा इंसान देने वाली आप देखिए क्या नाम है मौला कायनात अहले बैत सलाम की सीरत में जो पाया जाता है वो बाकायदा जो है वो कभी-कभी अपनी मां पे फख्र करते थे इमाम हुसैन कयाम कितना मशहूर है तमाम मुसलमान बरल आपने क्या कहा था या बल्लाह व रसूल वल मोमन वजर ता बत व तहत ठीक है अल्लाह उसके रसूल और मोमिनीन सरदार उल मोमिनीन ये इस बैत से राजी नहीं है और हत्ता वो आगोश राजी नहीं है जिनमें हुसैन की तरबियत हुई यानी अपनी पाकीजा आगोश यानी अपनी मां की तरफ इशारा किया यानी मेरे आज इतने बड़े हिस्टोरिकल मूवमेंट और कयाम में दखल मेरी मां उका किरदार उनका किरदार है तो अब आप देखिए कितनी कितनी डिफरेंट जो है वह एक मुख्तलिफ निगाह है मुख्तलिफ जाविया से इस्लाम देखता है तो बहरहाल क्या नाम है यह और उस मां ने आगा आपने इशारा किया तो उस मां ने जहां हुसैन अलैहि सलाम की परवरिश की वहीं जैनब की भी उसी मां ने परवरिश की जो दरबार में जाके हाकिम के सामने पूरी जुरत के साथ बयान कर रही है ल रही उस मां की पर उस बेटी की परवरिश भी उसी माने अच्छा खुद शहजादी जैनब की एक तो एक यानी सारे मुसलमानों के सामने हम ये सीरत पेश कर सकते हैं वो किसी यानी शियों से मख सूस ये फैक्ट नहीं है कि शहजादी जैनब सलामुला अहा ने दरबार में सिर्फ गुफ्तगू नहीं की जी बल्कि इस्लाम में खातून का किरदार पेश किया पेश किया कि खातून क्या कर सकती है जब जरूरत हो जैसी जरूरत जैसी जरूरत वैसा अमल यानी जेंडर के हिसाब से हम अफराद को बांट नहीं सकते ड्यूटीज के तबार से हम अफराद को बांटेंगे जब ड्यूटीज होंगी जैसी रिस्पांसिबिलिटीज होंगी मर्द पे अगर रिस्पांसिबिलिटी है तो वो काम करेगा खातून पे है तो वो काम करेगी मौला कायनात पे फरीजा था वो हक का दिफाई मौला कायनात घर पे रहे तो शहजादी जहर है रिस्पांसिबिलिटीज एंड ड्यूटी बिल्कुल यहां पे यह बात भी किबला अर्ज करना चाहूंगा कि अगर किसी मुल्क में किसी मुसलमान माशे में इस्लामी माशे में हम यह देखते हैं कि बाज मुसलमान खवातीन के साथ उनके हुकूक तलफ कर रहे हैं और उनके साथ ज्यादती कर रहे हैं तो यह अमल मुसलमान जो है वोह हुक्म इस्लाम के काते में नहीं जाएगा नहीं मुसलमान की गलती है वो मुसलमान की गलती कीजिए कोलामी मुक बिल्कुल सही फरमाया कोई इस्लामी या यानी कोई मुल्क ऐसा है जहां मुसलमान ज्यादा है मेजॉरिटी में या वहां इस्लाम के नाम की हुकूमत है हो सके ठीक है तो अब हम वहां अगर कोई गलती होती है तो हम यह नहीं कह सकते कि अब वहां वो मुसलमान लोग वो तो ऐसा करते हैं तो अब हमें भी तो जायज होना चाहिए ना हमें दीन अपना लेना है कुरान से बिलकुल दन अपना लेना है तामा पगम इसके बरक्स मुसलमानों को भी यह ये होना चाहिए कि हमारा दन जब हमें ये सिखाता है तो हम उसकी तालिमा पर अमल करें और एक चीज और किबला थोड़ा सा इसको यानी दूसरे जाविया से भी देखें कि हत्ता नबी अकरम के जमाने की हुकूमत में भी गलती करने वाले लोग थे मौजूद थे तो कभी भी इंडिविजुअल्स की गलती को मजहब की हम गलती नहीं साबित कर सकते ठीक है ना या मिसाल के तौर प हम किसी कंट्री से स्पेशल ड्रेस कोड ले ले जी कि वो मुल्क वाले इतने मशहूर हैं और वो मुसलमान है और उनका लिबास ऐसा है हम किसी कंट्री का नाम भी नहीं लेना चाहते किसी मुल्क का नाम नहीं लेना चाहते हैं लेकिन हो सकता है उनका लिबास सही हो हो सकता है उनका पहनावा गलत हो हो सकता है आज हम उनको अपने लिए रोल मॉडल बना रहे हैं आइंदा आने वाले जमाने में वो गुमराह हो जाए तो फिर हम अगर उनकी आंख बंद करके पैरवी करेंगे तो हम गुमराही की तरफ भी जा सकते हैं इस्लाम ने इससे मना किया इस्लाम क्या कहता है आप कवानी को देखिए जी लॉज को देखिए जो फंडामेंटल्स हैं जो बुनियाद आप उनको देखिए अगर कहीं भी उसकी तदब होती है हम उसके आगे सर झुकाएंगे उनको आंखों से लगाएंगे यानी स्टैंडर्ड और मेयार हमारे लिए इस्लाम हैम कुशरे को हम हुज्जत नहीं करार देते अगर किसी माश में खूबियां है खूबियां ले लीजिए अगर बुराइयां है तो मेयार चकि इस्लाम है तो बुराइयों को छोड़ द बक लेकिन इस वक्त जो दुनिया की फिजा है उसमें बेहयाई और बे हिजाबी को इतना उरूज दिया जा रहा है और इतना बढ़ावा दिया जा रहा है के खवातीन जो है वो बहरहाल एक कहीं कहीं पर हिजाब को मायू भी समझने लगती हैं हालांकि जो बाहिज जाब खातून हैं हमारे यहां और जो इफत पाक दामिनी की अपनी हिफाजत कर रही है वाक काबिले तारीफ है और जनाबे जैनब सलामुल्लाह अलहा बीबी फातिमा जहरा सलाम उल्ला अलहा की सीरत तैयबा के ऊपर वह अपने अमल को जारी और सारी रखे हुए हैं काबिले तारीफ है और उनके बेशक उनको अजर मिलेगा शहजादे की बारगाह से और उनकी नजरे इनायत होती है उनके ऊपर लेकिन यहां के ऊपर जो बढ़ावा दिया जा रहा है जी जी अब चाहे सोशल मीडिया पर हो टीवी और मीडिया की जिसके जरिए से भी क्या ऐसा महसूस नहीं होता है कि दुश्मन की एक सोची समझी साजिश है के बेहयाई को और बे हिजाबी और बे पर्दी को बढ़ावा दिया जाए बिल्कुल हमें ऐसा लगता है पूरी प्लानिंग है आप जैसे जिस जिस सवाल की तरफ किबला ये अच्छी बात बिल्कुल ऐसा ही हो रहा है साथ साथ एक बड़ा हद मकसद ये है कि किस तरह यानी इन मोमिन औरतों के दिल में पहले खौफ ईजाद करें कि वो अपने या मुसलमान खवातीन के दिल में खौफ इजाद करें कि यह तुम इनसिक्योर बनाता है तुम्हारे लिए खतरा है ठीक है जैसे बाज मुल्कों में ऐसा हुआ भी चलती खातून के सर से जो है वो स्काफ छीन लिया गया ठीक है ना या यह कि उनको इतना हकीर बना दो कि वो अपनी पेश रफत और अपनी तरक्की के खिलाफ इसको समझे या ये कि वो इस ड्रेस कोट से मायूस हो जाए बच्चा मायूस है कि हमें अगर दीनदार अपनी जिंदगी में इस दुनिया के स्टैंडर्ड के मुताबिक अगर हमें जीना है तो फिर हमें उन्हीं के मुताबिक रहना होगा यानी एहसास कमजोरी इस कदर इस कदर बेहयाई को उरूज दे दिया गया है कि औरतों को जरिया बनाया जाता है अपने प्रोडक्ट्स को बेचने का अपनी चीजों को लोगों तक पहुंचाने का यानी वो जो इज्जत थी एक औरत की उसको औरत की निगाह में ही खो दिया गया है आज की दुनिया और खासतौर से बाज इक्त सादी उमर को मद्देनजर रख के अगर हम इस पर तबसरा करें देखिए एक बात तो वाज है बातिल के अपने अदाफैस बातिल क्यों हमारी खवातीन को यानी जो भी वेस्टर्न सोसाइटीज है हमारी खवातीन को हिजाब से निकालना चाहता है उनके अपने कुछ खास सेट ऑफ यानी परपस है मोटिव है जिनमें वह खवातीन को इस्तेमाल करना चाह रहा है और उसे इस बात का यकीन है कि अगर यह खातून इस्लामी हिजाब में रहेगी ना तो वहां यह हमारे किसी काम के वो अफ नहीं हासिल बातिल चाहता है कि यह खातून देखिए आज के दौर में ह्यूमंस को एक रिसोर्स के तौर पर देखा जाता एकली ह रिसोर्स की जो है व फील्ड है कि यह ह्यूमन किस तरह से हमारे काम आ सकता है जो उनके अहदा हैं उनके अहदा में ये ह्यूमन जो खातून है वो पर्दे के साथ काम नहीं आ सकती कैसे काम आ सकती है वो पर्दे के साथ तो हरगिज काम नहीं आ सकती है उन्हे यह पता है लिहाज बेपर्दा बना लिहाजा बेपर्दा करो जो एक मिसाल आपने दी कि उनके जरिए से प्रमोट करो एक और मिसाल जो मैंने इक्त सादी बात की कि उन्हें पता है कि यह जो तबका है आज के दौर में यह हमारे लिए चीप लेबर है बनिस्बत मर्दों के बकल आप कहीं पर भी दुनिया के किसी भी मुल्क में अगर आप देखेंगे कि खवातीन अगर काम कर रही हैं और आज के दौर में भी जो फेमिनिस्ट खवातीन है वो इसके लिए लड़ रही हैं कि हमें इक्वल पे नहीं मिल रही है क्यों इक्वल पे नहीं मिल रही क्योंकि बातिल ने इस ह्यूमन रिसोर्स को इस्तेमाल ही इसलिए किया है कि हम इन्हे सस्ते में जो है वो काम करवा सकते हैं जो मर्द से करवाएंगे तो महंगे में करवाएंगे और एक और चीज है कि उन उसी बातिल यानी सोसाइटी की एक पूरी इंडस्ट्री है कॉस्मेटिक्स की जी जी बिल्कुल अगर आप देखें आरा की की ब्यूटीफिकेशन की एक पूरी इंडस्ट्री है जो शायद दुनिया की सबसे ज्यादा ग्रॉसिंग हाईली ग्रॉसिंग और सबसे ज्यादा बेनिफिशियल इंडस्ट्री है अगर व देखता है कि यह ह्यूमन रिसोर्स ये खवातीन जो है वो इस्लामी ड्रेस कोड के साथ दुनिया के सामने आती हैं तो खरीदार नहीं मिले तो कोई खरीददार अच्छा एक चीज किबला बहुत इंपोर्टेंट नुक्ते की तरफ आपने इशारा फरमाया कि आपने देखा होगा मशहूर है मिसाल के शेर का शिकार करने के लिए जंगलों में बकरियों को रखा जाता था ठीक है आज यानी एक इस्तेमाल यानी एक बड़े शिकार को हासिल करने के लिए इक्त सादी दुनिया में ये बाकायदा औरत को ब उनवान वसीला इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि वो अपना शिकार हासिल कर सकें अच्छा अपार्ट फ्रॉम दिस आप देखें एक मजहबी नुक्ते नजर से आप देखें कुरानी नुक्ते नजर से आप देखें कि जो इस्लाम के दुश्मन है खब वो उस वक्त तक इस्लाम की दुश्मनी से दस बदार नहीं होंगे जब तक मुसलमान अपना दीन छोड़कर उनके दन को ना अपना ले या यूं कहूं अपने उसूल से हटकर उनके उसूल को ना अपना ले एक दूसरे जावी से आप देखें हत्ता ये जो मसन फर्ज कीजिए यहूद के सिलसिले में यानी चाहे वो जस्ट हां कुरान कहता है कि आपसे यहूद और न सारा खुश नहीं होंगे जब तक आप उनकी मिल्लत को उनके दन को फॉलो ना करें एक दूसरी चीज ये है देखिए उनको यह मालूम है जब तक मुसलमान अपने उसूल पर पाबंद रहेंगे गाम जंद रहेंगे उस वक्त तक जो है वह वह इन पे गालिब नहीं हो सकते तो इन्हे क्या करना है इनके लिए तो इन्होने ये नहीं कहा इन्होने हिज को खतरा नहीं अस दुनिया में टारगेट हिजाब को किया गया इनको हिजाब से खतरा नहीं है इनको दीनदार से खतरा है प्रैक्टिसिंग मुस्लिम से ख प्रैक्टिसिंग मुस्लिम से खतरा है ठीकरी महब है जो प्रैक्टिसिंग र गया तो इसी वजह से इन्होंने कोशिश की कि भाई हमें नए नए स्लोगन तैयार करने होंगे पहले इन्होंने फेमिनिज्म का स्लोगन तैयार किया ये इसके पीछे कहीं ना कहीं साजिश दुश्मनों की है ठीक है इन्होंने फिर उसके बाद इक्त सादी स्लोगन उसके बाद इन्होंने मिसाल के तौर पर हिजाब को एक ऐसा ड्रेस बताया कि ये खतरे की अलामत है ठीक है या हिजाब के पीछे उन्होने कहा शायद टेररिस्ट छुपा हो ठीक है ये सारी बातें इन्होंने रायज की कि किसी तरह यह अपने उसूल से हट जाए ये जब अपने उसूल से हटेंगे ठीक है इ गलबा पा सकते हैं इसलिए आप देखिए मुसलमानों का वो वर्जन कि जो इनके साथ हम निवाला हम प्याला है नॉन प्रैक्टिसिंग है वो उनको इनसिक्योर नहीं समझते वो उनकी महफिल में जाते हैं उनकी मिसाल के तौर प दीनी महफिल में जाते हैं क्योंकि उनका मद य वो देखते हैं कि दे आर हमारे लिए को प्र मिला की य है कि यह दुश्मन का एक तो लिहाजा क्या नाम है हमारी मां बहनों को जो है वो अपने इस आइडेंटिटी को अपनी और अपनी इस ब्यूटी को और अपने इस जमाल और कमाल को जो अल्लाह ने उन्हें अता किया ये जेवर जो अता किया इसको इसकी इंपोर्टेंस को समझना चाहिए के और दुश्मन की साजिश को भी समझना जरूरी है अपनी अहमियत को समझने में हमें यह देखना होगा कि हमारा दुश्मन कौन है अगर दुश्मन बहुत मामूली हो तो इसका मतलब हमारी अहमियत बहुत कम है अगर हमारा दुश्मन बहुत क इसका मतलब हम बहुत स्ट्रंग हैं हमारी जो है हमें टारगेट कर र तो नाजरीन यहां पर यह बात समझ में आई के पर्दा खवातीन के हुकूक को खत्म नहीं करता है बल्कि एक खातून को उसका हक देता है यह जो नारा है के पर्दे के जरिए से औरत को महदूद कर दिया जाता है घर में बंद कर दिया जाता है उनके हुकूक को उनके राइट्स को पामा कर दिया जाता है कतन ऐसा नहीं है बल्कि इस्लामिक पॉइंट ऑफ व्यू यह है कि वो औरत को उसका दर्जा देना चाहती है औरत को उसका राइट देना चाहता है औरत को उसका हक देना चाहता है कोई यह ना समझे कि उसकी तरक्की की राह में रुकावट बनेगा यह पर्दा कोई यह ना समझे कि वह समाज में या मुशे में बाहर नहीं निकल सकती है या वह अपने दूसरे कामों में शरीक नहीं हो सकती है या यह ना समझे कोई भी औरत कि वह पर्दे में रह कर के किसी भी एक्टिविटी में किसी भी एक्टिविटी में इवॉल्व नहीं हो सकती है नहीं बल्कि औरत को यह तमाम तरीके के हक हासिल हैं और जिस तरीके से बयान किया गया जनाबे जैनब सलामुल्लाह अलैहा जनाबे फातिमा जहरा सलामुल्लाह अलैहा ने किस तरीके से घर के बाहर भी और घर के अंदर भी जब जैसी जरूरत रही वैसे जिंदगी गुजारी है और यह भी कतन नहीं है कि इस्लाम ने या कुरान ने सिर्फ औरत से कहा हो कि तुम पर्दा करो बल्कि जिस तरीके से औरत को पर्दा करने का हुक्म दिया वैसे ही मर्द को भी अपनी निगाहें झुकाने का हुक्म दिया है बस थोड़ा सा चूंकि खातून की साख ऐसी है इसलिए उसके लिए एक हिजाब का हुक्म बयान किया गया है और इस हिजाब के साथ-साथ खातून हर मैदान में तरक्की हासिल कर सकती है अपना हर मकसद पूरा कर सकती है और हर अचीवमेंट को अपने वो पा सकती है इमाम जमाना अल सलातो वस्सलाम के लश्कर में जिस तरीके से मर्द शरीक होंगे उसी तरीके से इंशा अल्लाह बा हिजाब खवातीन भी शरीक होंगी कतन मायूस होने की जरूरत नहीं ना जमाने वालों की बातों से मायूस होने की जरूरत है और ना इस तरीके के खोकले नारों से मायूस होने की जरूरत है इंशाल्लाह कि हम और आप सब इमाम जमाना अ सला सलाम के लश्कर में शरीक होंगे और उनके जुहूर के लिए हम सबको मिलकर के माहौल फराम करना चाहिए ताकि जल्द अस जल्द इमाम का जुहूर हो सके और हम सब उनके नासिर में शुमार हो सके अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्ला [संगीत]