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Overview of Indian Art History

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका इंडियन आर्ट एंड आर्किटेक्चर की इस अद्भुत यात्रा पर एक यात्रा जो लाखों साल पहले स्टार्ट हुई लेकिन आज भी निरंतर जारी है कहते हैं अगर देखो आपको ना इतिहास पता लगाना है ना तो एक पत्थर ही काफी है मध्य प्रदेश की भीम बदका केव्स में बनी पेंटिंग हमें मानव सभ्यता के अर्ली इतिहास के बारे में बताती हैं चाहे देखो वो थंजाथ शवर टेंपल हो या फिर खजुरा के मंदिर आज भी उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इतने साल पहले इतने बड़े-बड़े स्ट्रक्चर्स आखिरकार खड़े कैसे किए गए भारत के इतिहास में अनेकों राजा महाराजा आए सबने अपने-अपने हिसाब से आर्ट एंड आर्किटेक्चर को प्रमोट किया लेकिन वो सब भारत की विरासत का हिस्सा बने देखो इस वीडियो का मकसद सिविल सर्विसेस के एस्परेंस को आर्ट एंड आर्किटेक्चर की तैयारी करवाना तो है ही लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते वो चीजें आपको इस वीडियो में पता लगेंगी जिससे देखो आपको अपने इतिहास पे अपने देश पे गर्व होगा तो चलिए शुरुआत करते हैं इस अद्भुत यात्रा की इंडिया में आर्किटेक्चर की शुरुआत ना इंडस वैली सिविलाइजेशन से मानी जाती है जिसका टाइम स्पैन 3000 बीसी से 1500 बीसी तक था जब देखो इंडस वैली सिविलाइजेशन से संबंधित साइड्स की खुदाई की गई ना तो हमें यह पता चला कि उस समय की सिटीज बहुत प्लान हुआ करती थी और सिर्फ इतना ही नहीं इन सिटीज में वाटर और सैनिटेशन का भी खास ख्याल रखा गया था इन सिटीज में यूज़ होने वाली ब्रिक्स यानी ईंटें यूनिफॉर्म स्टैंडर्ड की होती थी ऐसा नहीं एक ईंट कम चोड़ी दूसरी ज्यादा चोड़ी साइज अलग-अलग नहीं सिमिलर साइज ऐसे ही इंडस वैली सिविलाइजेशन साइट्स के बहुत सारे और फीचर्स भी थे जिन्हें अभी हम थोड़ा और डिटेल्स में समझेंगे इंडस वैली सिविलाइजेशन की साइट्स में ना प्लानिंग कुछ इस प्रकार से की जाती थी कि इन सिटीज में हर तरह की फैसिलिटी के साथ-साथ इनकी सेफ्टी का भी खास ख्याल रखा जाता था इंडस वैली सिविलाइजेशन की टाउन प्लानिंग का सबसे बड़ा फीचर यह था कि सिटीज को ना दो पार्ट्स में डिवाइड किया जाता था एक था अपर सिटी जिसे सिटेडल कहा जाता था और दूसरे पार्ट को लोअर सिटी कहा जाता था और ये दोनों सिटीज जो थी ना अपर सिटी लोअर सिटी दोनों को ही वाल्स से सेपरेटली फोर्टिफाइंग जाता था डिफेंस के लिए अटैक से बचने के लिए दोनों सिटीज की किलेबंदी की जाती थी इसमें से देखो अप्पर सिटी यानी कि सिटेडल को एक आर्टिफिशली रेज्ड माउं पर बिल्ड किया जाता था जैसे एक टीला सा बना दिया मिट्टी और दूसरी चीजों की सहायता से तो एक बार माउं बन गया टीला बन गया मतलब जमीन ऊपर उठ गई उसके बाद अप्पर सिटी का निर्माण वहां पे होता था मतलब अप्पर सिटी जो था वो एक हाइट पर हुआ करता था जबकि दूसरी सिटी लोअर सिटी वो तो बिल्कुल देखो ग्राउंड लेवल पर बनी होती थी और इन दोनों सिटीज में एक इंपोर्टेंट फर्क ये होता था सिटी में देखो जो भी इंपॉर्टेंट बिल्डिंग्स हुआ करती थी ना जैसे कि असेंबली हॉल हुआ अनाज जहां पे स्टोर करके रखा जाता था ग्रेनरी वगैरह कोर्टयार्ड पिलर होल्स सब के सब अपर सिटी में हुआ करते थे ना कि लोअर सिटी में ये अप्पर पार्ट जनरली सिटी के वेस्ट साइड में होता था इतिहासकार देखो ऐसा अनुमान लगाते हैं कि इस अपर पार्ट में सिटी के रूलरसोंग्स घर हुआ करते थे लोअर सिटी में इंडस वैली सिविलाइजेशन के सिटीज रोड से बिल्कुल वेल कनेक्टेड हुआ करते थे सिटीज के बिल्डिंग को मेन रोड से कनेक्ट किया जाता था जिनकी विड्थ 30 मीटर हुआ करती थी और ये रोड कनेक्टिंग रोड में राइट एंगल में मिला करते थे ये खास बात सिटीज में जो रेजिडेंशियल बिल्डिंग हुआ करती थी ना वो देखो बेक्ड ब्रिक्स से बनी होती थी बेक्ड ब्रिक्स मतलब पकी हुई ईटें लेकिन देखो कहीं-कहीं अनबेक्ड ब्रिक्स के एविडेंस भी पाए गए हैं इन ब्रिक्स का ना एक यूनिफॉर्म स्टैंडर्ड हुआ करता था जिसमें लेंथ विड्थ और थिकनेस का रेशो ना 4 2:1 का होता था कुछ-कुछ हाउसेस में ना मल्टीपल स्टोरीज भी होते थे मतलब दो माले वाला घर तीन माले वाले घर भी हुआ करते थे इंडस वैली सिविलाइजेशन के लोग ना बिल्डिंग कंस्ट्रक्ट करने के लिए ना पकी हुई ईटों को जिप्सम मोटार से जोड़ते थे इंडस वैली सिविलाइजेशन की सिटीज में वाटर सप्लाई और सैनिटेशन का भी खास ख्याल रखा गया था फॉर एग्जांपल हर एक घर का अपना एक वेल ड्रेन टॉयलेट और बाथरूम होता था हर घर से ड्रेन बाहर देखो एक एक्सीलेंट मेन ड्रेन के नेटवर्क से मिलता था ये चीज हमें दिखाती है कि इंडस वैली सिविलाइजेशन की सिटीज में मुंसिपल लाइफ बहुत बढ़िया ढंग से डेवलप थी यहां के लोग ग्रेंस स्टोरेज करने के लिए ना बड़ी-बड़ी ग्रेनरीज कंस्ट्रक्ट किया करते थे एग्जांपल के लिए मोहन जोदड़ो का लार्जेस्ट बिल्डिंग है यहां का ग्रेनरी जिसकी लेंथ 1 फीट और विड्थ 75 फीट और हाइट 15 फीट थी इस ग्रेनरी में तीन रोज थे और तीनों रोज में टोटल 27 कंपार्टमेंट्स थे इस ग्रेनरी को मॉइश्चर वगैरह और पेस्ट वगैरह से बचाने के लिए एक रेस्ट प्लेटफॉर्म पे बनाया गया था मतलब थोड़ी ऊंचाई पे बनाया गया था और इसमें ना वेंटिलेशन की व्यवस्था भी की गई थी मोहन जदा औरो के अलावा हड़प्पा में भी 12 ग्रेनरीज होने के एविडेंस मिले हैं जो दो रोज में बनाए गए थे मोहन जोदड़ो में ग्रेनरी के अलावा एक ग्रेट बाथ भी लोकेटेड था जो इंडस वैली आर्किटेक्चर का एक बहुत इंपॉर्टेंट फीचर है मोहन जुदा औरो का ग्रेट बात की लंबाई 179 फीट और चौड़ाई 107 फीट है ये लंबाई चौड़ाई वैसे आपको याद रखने की आवश्यकता नहीं है बस थोड़ा आप समझ जाओ कि कितने बड़े-बड़े ये स्ट्रक्चर हुआ करते थे इस ग्रेट बाद के आसपास ना बहुत सारे कमरे और गैलरीज बने हुए थे ये कमरे और गैलरीज ना लोगों के कपड़े बदलने और कुछ दूसरे जरूरी कामों के लिए थे यानी जब लोग नहाने के लिए आते तो वो अपने कपड़े इन कमरों में रख सकते थे यहां पर कपड़े बदल सकते थे और नहाकर वापस चेंज कर सकते थे इस पूरे बात कॉम्प्लेक्शन और ड्रेनेज से कनेक्टेड किया गया था यानी ग्रेट बाथ में पानी आता था और गंदा पानी बाहर निकलता था इससे ग्रेट बाथ को रेगुलर साफ करना और मेंटेन करना आसान हो जाता था वरना देखो अगर पानी सप्लाई और ड्रेनेज नहीं होता तो ग्रेट बात तो गंदा हो जाता और इसमें नहाना क्या ही पॉसिबल हो पाता हिस्टोरियन यानी इतिहासकार यह मानते हैं कि ये ग्रेट बाथ शायद किसी रिलीजियस रिचुअल के लिए यूज होता होगा यानी लोग यहां पर किसी पूजा या अन्य रिलीजियस वजह से नहाने आते होंगे जैसे आज के समय में हर की पौड़ी पर हरिद्वार में डुबकी लगाते हैं इससे पुण्य मिलता है तो उसी प्रकार से इस ग्रेट बात का उस समय कोई रिलीजियस सिग्निफिकेंट शायद होता होगा आम नहाने के लिए इसका इस्तेमाल शायद नहीं होता होगा ऐसा देखो इतिहासकार सोचते हैं इंडस सिटीज के बारे में गोर देने वाली वाली बात देखो ये है किसी भी सिटी में टेंपल या फिर किसी तरह का कोई भी रिलीजियस स्ट्रक्चर नहीं मिला है और टेंपल के साथ-साथ इवन देखो कोई वेपन या वरफेन मॉन्यूमेंट्स भी नहीं देखने को मिला है इन सबके अलावा लोथल सिटी भी अपने आर्किटेक्चरल फीचर के लिए जाना जाता है ये सिटी मॉडर्न डे गुजरात में लोकेटेड है लोथल सिटी ना छह सेक्शंस में डिवाइडेड थी हर एक सेक्शन को एक बड़े से ब्रिक्स से बने प्लेटफॉर्म पे बिल्ड किया गया था इसके साथ लोथल सिटी के जो घर थे ना वो देखो थोड़े अलग थे बाकी इंडस वैली के शहर से यहां के घरों का जो मेन दरवाजा था ना वो सीधा मेन स्ट्रीट को खुलता था यानी घर से निकलने पर आप सीधा मेन रोड पर पहुंच जाते थे लेकिन बाकी शहरों में घर के मेन गेट से निकलकर पहले एक छोटी गली में जाना पड़ता था उसके बाद मेन रोड पर पहुंचते थे इसे लेटरल एंट्री कहते हैं लोथल का सबसे खास आर्किटेक्चरल फीचर था यहां का डोक यार्ड यानी जहाजों का अड्डा ये डोक यार्ड एक ऐसा पोर्ट था जहां बड़े-बड़े जहाज आते जाते थे ये डोक यार्ड देखो टाइडल पोर्ट था ये डोक यार्ड लोथल का वर्ल्ड का ओल्ड डोक यार्ड माना जाता है इस डोक यार्ड के थ्रू ना सिर्फ देखो इंडस वैली के लोग आपस में साबरमती नदी के रास्ते व्यापार करते थे बल्कि ये एक ऐसा ट्रेड पोर्ट भी था जिसके थ्रू इंडस वैली के लोग दूसरे देशों के साथ उस समय देश तो नहीं हुआ करते थे देश का कंसेप्ट बाद में आया लेकिन दूसरे रीजन से व्यापार करते थे मतलब यह सिर्फ लोकल ट्रेड के लिए नहीं बल्कि इंटरनेशनल ट्रेड के लिए भी इस्तेमाल होता था लोथल के डोक यार्ड से बहुत सारी इंपॉर्टेंट चीजें जैसे देखो मोती हीरे ज्वारा और अन्य कीमती सामान कहां भेजा जाता था वेस्ट एशिया और अफ्रीका के रीजंस में एक्सपोर्ट किया जाता था यानी लोथल से ये चीजें जहाजों के थ्रू इन जगहों पर भेजी जाती थी और वहां के लोगों को बेची जाती थी इस प्रकार से हमने इंडस वैली सिविलाइजेशन के आर्किटेक्चर को समझा इसके बाद अब हम बात करेंगे मोरियन आर्किटेक्चर के बारे में देखो मोरियन पीरियड में बहुत सारे आर्किटेक्चरल स्ट्रक्चर्स का कंस्ट्रक्शन करवाया गया इतने लार्ज स्केल पर आर्किटेक्चर का निर्माण करने के पीछे एग्जैक्ट इंटेंशन का तो देखो पता नहीं चलता लेकिन ज्यादातर हिस्टोरियंस ये मानते हैं कि मोरियन रूलरसोंग्स पॉलिटिकल और रिलीजियस दोनों रीजन की वजह से बनवाया था पूरे मोरियन आर्किटेक्चर को हम दो भागों में क्लासिफाई कर सकते हैं पहला है कोर्ट आर्ट यानी कि वो आर्ट एंड आर्किटेक्चर जिसका निर्माण स्टेट के पैट्रोले से हुआ था मतलब रूलरसोंग्स मपल्ला है पॉपुलर आर्ट यानी कि जो इंडिविजुअल्स द्वारा बिना किसी स्टेट पेट्रोनस के बनाए गए थे इसमें देखो एग्जांपल्स हैं केव्स पोटरी और स्कल्पचर्स मोरियन कोट आर्ट का सबसे इंपोर्टेंट आर्किटेक्ट रल स्ट्रक्चर है मोरियन पलेसेस इन पलेसेस को देखो मोरियन एंपायर की कैपिटल पाटलीपुत्र और कुमरार में बनवाया गया था चंद्रगुप्त मौर्या का जो पैलेस है ना वो ईरान के एमेड पैलेस से इंस्पायर्ड बताया जाता है ये पैलेस बड़े-बड़े मैसिव साइज के तीन मंजिला बिल्डिंग हुआ करते थे जिसके सेंटर में एक बहुत बड़ा पिलर होता था और ना पलेसेस की दीवारों पर कार्विंग्स यानी नकासी की हुई होती थी और पैलेस को स्कल्पचर से सजाया जाता था पैलेस के बाद मोरियन कोर्ट आर्ट का दूसरा मेजर स्ट्रक्चर था मोरियन पिलर्स ये पिलर्स ना देखो सामान्यता 40 फीट तक ऊंचे हुआ करते थे यानी हाइट में 40 फीट और इनको चुनार सैंड स्टोन से बनाया जाता था मोरेन पिलर्स मेनली चार पार्ट्स में बिल्ड किए जाते थे एक लंबे साफ्ट को बेस बनाया जाता था जो कि एक मोनोलिथ पिलर होता था यानी सिंगल पीस ऑफ स्टोन से बनाया जाता था फिर साफ्ट के ऊपर कैपिटल हुआ करता था जो कि देखो या तो लोटस शेप्ड या फिर बेल शेप्ड हुआ करता था जानते हो एक चीज कैपिटल का ना बेल शेप में होना और पॉलिश्ड होना लस्टर फिनिश होना ये चीज ना ईरानियन पिलर्स से इन्फ्लुएंस थी अब आओ कैपिटल के ऊपर कैपिटल के ऊपर एक सर्कुलर या रेक्टेंगल बेस होता था जिसको एबेकस कहा जाता था एबेकस के ऊपर एक एनिमल फिगर को प्लेस किया जाता था इसका सबसे अच्छा एग्जांपल है मॉडर्न बिहार में लोकेटेड चंपारण का लोरिया नंदनगढ़ पिलर और इवन वाराणसी का सारनाथ पिलर इसी सारनाथ पिलर का अकस और एनिमल को भारत सरकार ने अपने स्टेट एंबलम के रूप में अडॉप्ट किया है मोरियन पीरियड में ही स्तूप आट को खूब पॉपुलर किया गया यह मौर्य कोर्ट आर्ट का मेजर फॉर्म भी था वैसे देखो स्तूपस का कंस्ट्रक्शन वैदिक टाइम से ही एक ब्यूरियल माउंट के रूप में किया जाता था जिसमें मरे हुए लोगों का रेलिक्स रखे जाते थे और यह ब्यूरियल सेरेमनी का एक इंपॉर्टेंट पार्ट था लेकिन स्तूप आट का क्लाइमैक्स मोरियन पीरियड खास करके सम्राट अशोक के कार्यकाल में देखने को मिला इतिहासकारों की अगर हम माने तो उनके रीन में उनके राज में लगभग 84000 स्तूपस का कंस्ट्रक्शन करवाया गया था स्तूप कंस्ट्रक्शन का देखो ओल्ड बेस्ट एग्जांपल है उत्तर प्रदेश का पीपर वाहा स्तूप जिसे फोर्थ सेंचुरी बीसी में यानी कि प्री मोरियन पीरियड में मनवाया गया था महात्मा बुद्ध की डेथ के बाद ना नौ स्तूप बनाए गए थे जो एंपायर के अलग-अलग पार्ट्स में मनवाए गए थे ये स्तूप देखो राजगृह है विशाली कपिलवस्तु अलकप ठा पीड़ा पावा कुशीनगर पिपली वाना और रामग्राम में बनवाए गए थे कई बार ये भी क्वेश्चन पूछ लिया जाता है कि इन स्तूप की ना सिग्निफिकेंट क्या है ये स्तूप ना महात्मा बुद्ध के ज्ञान और उनके द्वारा जो उपदेश दिए गए थे ना उनका प्रतीक है जब लोग ये स्तूप देखते हैं ना तो उन्हें बुद्ध की शिक्षाओं और उनके द्वारा प्राप्त किए गए आध्यात्मिक ज्ञान की याद आती है स्तूप लोगों को बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं मतलब स्तूप देखो सिर्फ एक इमारत नहीं है बल्कि बौद्ध धर्म के जो फंडामेंटल प्रिंसिपल्स है ना और महात्मा बुद्ध की लाइफ से जुड़े जो इंपॉर्टेंट पहलू है ना उनका सिंबल है ये स्तूप स्तूप का जो बेस होता है ना वो सर्कुलर होता है ये देखो मनुष्य के बर्थ एंड डेथ के साइकल को सिंबोला इज करता है जबकि स्तूप का जो पिनेकल है शिखर है वो लाइफ के निर्वाण प्रण को रिप्रेजेंट करता है बिल्कुल आसान भाषा में मैं आपको बताता हूं अगर हम देखो किसी व्यक्ति के जीवन को एक स्तूप के रूप में देखें तो स्तूप का सर्कुलर बेस उस व्यक्ति के जन्म और मृत्यु के बीच के समय को दर्शाता है जैसे एक इंसान पैदा होता है बड़ा होता है बूढ़ा होता है और फिर मर जाता है यह सब स्टेजेस उसके जीवन के चक्र को बनाते हैं सर्कल को बनाते हैं बिल्कुल वैसे ही स्तूप का जो बेस है वो सर्कुलर है वहीं देखो दूसरी तरफ स्तूप का पिनेकल यानी शिखर उस व्यक्ति के जीवन के उस पल को दर्शाता है जब वो सारे दुख खों और परेशानियों से मुक्त हो जाता है और उसे सच्ची शांति और खुशी मिलती है यह वही अवस्था है जिसे बौद्ध धर्म में निर्वाण कहते हैं अब समझ गए आसान भाषा में स्तूप का सर्कुलर बेस मतलब मनुष्य के बर्थ एंड डेथ के साइकल और स्तूप का पिनेकल मतलब मनुष्य के निर्माण को रिप्रेजेंट करता है अगर देखो हम स्तूप के स्ट्रक्चरल एलिमेंट्स की बात करें तो एक टिपिकल स्तूप में एक सर्कुलर बेस होता है एक हेमिस्फेरिकल डोम या अंडा एक स्पायर या हर्मिया और एक पैरासोर या छत्र होता है स्तूप के कंस्ट्रक्शन में ना वेरियस ऑब्जेक्ट जैसे देखो ब्रिक्स स्टोंस प्लास्टर ईटीसी इन सब का उपयोग किया जाता है एक स्तूप को कई स्टेजेस में बनाया जाता है और इसका हर एक स्टेज बुद्ध के टीचिंग्स या फिर उनके लाइफ इवेंट्स को सिंबोला करता है पोस्ट मोरियन पीरियड में स्तूप आर्किटेक्चर का एवोल्यूशन जारी रहा और इस पीरियड में कई डायनेस्टीज और किंगडम ने अपने-अपने स्टाइल में स्तूपस का कंस्ट्रक्शन करवाया एग्जांपल के लिए डेकन में सतवा हंस ने कई सारे स्तूपस का कंस्ट्रक्शन करवाया जो आज के आंध्र प्रदेश में अमरावती के पास में सिचुएटेड है इसी प्रकार से आंध्र ने भी नागार्जुन कोंडा का फेमस स्तूप का कंस्ट्रक्शन करवाया उधर नॉर्थ वेस्ट में कुशाना ने आज के अफगानिस्तान में कनिष्क स्तूप का कंस्ट्रक्शन करवाया जो अपने मैसिव साइज इलब डेकोरेशन और बुद्धिस्ट स्कल्पचर्स के लिए फेमस था मोरियन कोट आर्ट के बाद अब हम बात करते हैं मोरियन काल के दौरान डेवलप हुए पॉपुलर आर्किटेक्चर के बारे में जैसे कि देखो पहले भी हमने डिस्कस किया पॉपुलर आर्ट वो आर्ट फॉर्म होते थे जो आम लोगों के द्वारा बनाए जाते थे इन आर्ट फॉर्म्स को ना स्टेट का पेट्रोनेट स्टेट की स्पोर्ट प्राप्त नहीं होती थी इस इस तरह के पॉपुलर आर्ट्स के एग्जांपल्स हैं जैसे केव आर्किटेक्चर स्कल्पचर पोट्री आर्ट ये सब मोरियन काल के पॉपुलर आर्ट में ना सबसे ज्यादा फेमस है केव आर्किटेक्चर जिसे रोक कट आर्किटेक्चर का एक हिस्सा माना जाता है रोक कट आर्किटेक्चर का पहला एग्जांपल था राजगीर की सोन भंडार गुफा जो देखो एक रोकेट केव है इस केव का निर्माण फर्स्ट बुद्धिस्ट काउंसिल के दौरान किया गया था इसलिए इस केव को प्री मोरियन फेज का पार्ट माना जाता है यानी मोरंस से पहले ये गुफा बन गई थी इन गुफाओं का इस्तेमाल ना बारिश के समय बहुत भिक्षु या फिर जो जैन साधु थे ना वो रुकने के लिए किया करते थे इसलिए इन केव्स को विहार भी कहा जाता है आगे चलकर देखो यही केव्स बुद्धिस्ट मोनेस्ट्री के रूप में काफी फेमस हुई इन गुफाओं की नक्काशी की बात करें तो अंदर से ना बहुत ज्यादा पोलिश दीवारें डेकोरेटिव डोर्स यानी दरवाजे ये सब चीजें देखो गुफाओं की खासियत थी सेकंड सेंचुरी बीसी से लेकर फर्स्ट सेंचुरी एडी के बीच रोक कट आर्किटेक्चर इंडियन आर्किटेक्चर का एक इंपोर्टेंट हिस्सा बन गया था और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अजंता की गुफाएं जिसमें 29 के 25 विहार और चार चैत्य हल्स मौजूद हैं इसके अलावा देखो अर्ली रोक कट आर्किटेक्चर में उड़ीसा की उदयगिरी और खंडगिरि की गुफाएं भी आती हैं जिनका निर्माण कलिंग के राजा खर्वेला के अंडर में फर्स्ट से सेकंड सेंचुरी बीसी के बीच किया गया था मतलब जिस समय कलिंग के राजा खर्वेला रूल कर रहे थे ना उस समय ये गुफाएं बनी थी यहां पर मैन मेड और नेचुरल दोनों तरह के केव्स देखने को मिलते हैं जिनमें जैन मक्स रहा करते थे उदयगिरी की इन गुफाओं से ही हमें फेमस हाथ गुंफा इंस्क्राइनॉक्स है जिसे ब्राह्मी स्क्रिप्ट में लिखा गया था इसके बाद पोस्ट मोरियन पीरियड की अगर बात करें सेकंड सेंचुरी बीसी आते-आते मोरियन एंपायर डिसइंटीग्रेट होने लगा था और इसकी जगह छोटे-छोटे अंपायर्स राइज होने लगे जैसे देखो नॉर्थ में सुंग कनव कुषण और शक वहीं साउथ और वेस्ट रीजन में सातवाहन इक्स वाकू अभीर और वाकाटक अपनी पकड़ को मजबूत करने लगे मोर्य काल से पोस्ट मोरियन पीरियड के आर्किटेक्चर में ना हमें एक कंटिन्यूटी देखने को मिलती है जैसे देखो पोस्ट मोरियन पीरियड के रो कट आर्किटेक्चर में कई सारे नए एलिमेंट्स जोड़े गए जिसमें चैत्य या विहार सबसे इंपोर्टेंट फीचर थे विहार रो कट केव्स का निर्माण तो देखो मोरियन पीरियड में ही होने लगा था लेकिन चैत्य का निर्माण पोस्ट मोरियन पीरियड की खोज थी चैत्य होल्स देखो चकोर चेंबर्स होते थे मतलब स्केयर शेप में होते थे जिनकी छत फ्लैट होती थी और इनका इस्तेमाल बुद्धिस्ट मोक्स प्रेयर होल्स की तरह करते थे इन चैत्य के साथ ना एक खुला हाल भी होता था जिसे पत्थर की दीवारों से सहारा दिया जाता था और इन दीवारों पर मनुष्यों और जानवरों की कृतियों को उकेरना जाता था चैत होल्स का सबसे अच्छा एग्जांपल हमें कार्ले केव्स में देखने को मिलता है जिनको सेकंड सेंचुरी बीसी से फिफ्थ सेंचुरी एडी के बीच बनाया गया था कारले की गुफाओं में एक चैत्य और तीन विहार मौजूद हैं इसके अलावा नासिक की गुफाओं में भी चैत्य हाल देखने को मिलता है जिसे पांडव लेनी के नानाम से भी जाना जाता है थोड़ा सा डिटेल से डिस्कस करें पांडव लेनी केव्स यानी कि नासिक चैत्य केव्स यहां एक चैत्य और 16 विहार का निर्माण किया गया नासिक से लगभग 200 किमी दूर हमें भाजा की गुफाएं देखने को मिलती हैं जिनको सेकंड सेंचुरी में बनाया गया 22 गुफाओं का यह ग्रुप अपनी रिच इंग्रेविंग्स के लिए काफी जाना जाता है इस समय देखो रोकेट आर्किटेक्चर के साथ-साथ स्तूप का निर्माण भी काफी प्रचलित था मोरियन पीरियड के कंपैरिजन में पोस्ट मोरियन पीरियड में बनाए गए जो स्तूप थे ना वो देखो ज्यादा डेकोरेटिव थे अब देखो स्तूपस में लकड़ी और ईटों की जगह स्टोंस का यूज किया जाने लगा मोरियन काल में बनाए गए स्तूपस को सुंग रूलरसोंग्स स्तूपस थे ना उनको सजावटी द्वारों में बदल दिया डेकोरेटिव गेटवेज बहुत डेकोरेशन की गई मतलब पुराने स्तूपस के ऊपर बहुत सारी फिगर्स और नकाशी से डेकोरेट किया गया जिन्हें हम तोरण द्वार बोलते हैं मध्य प्रदेश में आप सांची स्तूप देख लीजिए बरहट का स्तूप ये इसी वास्तुकला का सबसे बेहतरीन नमूना है एक क्वेश्चन पूछूं वैसे आगे बढ़ने से पहले सांची स्तूप तो देखो फेमस है बरहद का स्तूप कहां पे है बहूत का स्तूप देखो मध्य प्रदेश के सतना डिस्ट्रिक्ट में है मध्य प्रदेश वालों बताओ इसके बारे में कमेंट बॉक्स में इसके बाद नेक्स्ट मोरियन आर्किटेक्चर के बाद अब हम बात करते हैं टेंपल आर्किटेक्चर के बारे में जो कि देखो डेवलप हुआ पोस्ट मोरियन पीरियड के दौरान और स्पेसिफिकली बोले तो देखो गुप्त पीरियड के दौरान इवॉल्व हुआ डिटेल से इसके बारे में अब हम बात करते हैं टेंपल आर्किटेक्चर की शुरुआत देखो थर्ड फोर्थ सेंचुरी एडी के आसपास मानी जाती है देखो वैसे तो वैदिक काल से ही ना पूजा के रिवाज होते रहे हैं लेकिन उस समय ना पूजा के लिए ना मंदिर नहीं बनाया गया था किसी भी धार्मिक स्थान की बात करें तो सबसे पहले थर्ड सेंचुरी में लकड़ी या पत्थर के ढांचे बनाए गए जहां पे पूजा पाठ जैसे काम किए जाते थे लेकिन चौथी सेंचरी आते-आते इन छोटे-मोटे [संगीत] ढाचर्य हो गया और इस तरह धीरे-धीरे मंदिरों के बनने की शुरुआत हुई और देखो यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि मंदिरों का विकास ना समाज के विकास के साथ-साथ हो रहा था जैसे-जैसे सोसाइटी डेवलप हुई समाज विकसित हुआ ठीक उसी परपोस में टेंपल आर्किटेक्चर का भी विकास हो रहा था मतलब सोसाइटी जैसे-जैसे इवोल्व हुई मंदिर और ज्यादा बड़े होते गए और ज्यादा डेकोरेटिव होते गए फिफ्थ सेंचुरी एडी आते-आते टेंपल आर्किटेक्चर अपने बिल्कुल देखो विकसित चरण में पहुंच गई थी कैसे क्योंकि देखो जब गुप्त शासकों का रूल आया ना तो उस समय पहाड़ों को काटकर बनाए गए गुफा मंदिरों के बजाय अलग से इंडिपेंडेंट मंदिरों के बनने की शुरुआत हुई पहले तो सिर्फ पहाड़ को काट के मंदिर बना दिया लेकिन जब गुप्त शासकों का रूल आया ना तो उन्होंने अलग से पूरी एक बिल्डिंग बनाने की शुरुआत की कि हां ये मंदिर हम बनवा रहे हैं पहाड़ को काट के नहीं अलग से इंडिपेंडेंट मंदिर नए सिरे से शुरुआत से गुप्त काल के दौरान मंदिरों की खूबसूरती के कारण इसे भारत का स्वर्ण युग भी कहा जाता है नॉर्थ इंडिया के मुकाबले ना साउथ इंडिया में टेंपल आर्किटेक्चर की शुरुआत थोड़ी देर से हुई सदर्न इंडिया में टेंपल आर्किटेक्चर शुरू करने का जो क्रेडिट है वो पल्लव वंश को जाता है जिन्होंने देखो सेवंथ सेंचुरी में मंदिरों का निर्माण शुरू करवाया पल्लव शासक राज सिंह वर्मन द्वारा ममलुक बनवाए गए जिनमें रथ मंदिर वरा गुफा मंदिर कृष्ण मंदिर महिषासुर मर्दिनी मंडप और सौर मंदिर यह सब शामिल हैं जिन्हें यूनेस्को की विश्व धरो में शामिल किया गया है साउथ इंडिया में ना पलव के बाद टेंपल आर्किटेक्चर की डेवलपमेंट में चोल शासकों ने अहम भूमिका निभाई चोलो ने देखो 11थ सेंचुरी 12थ सेंचुरी में डरविन शैली के कई सारे मंदिरों का निर्माण करवाया जैसे एरावतेश्वरा वृद्धेश्वर मंदिर गंगई कोंड चोल पुरम मंदिर ये सबसे प्रमुख मंदिर हैं जो चोल शासकों के द्वारा बनवाए गए थे टेंपल आर्किटेक्चर को गहराई से समझने के लिए बहुत जरूरी है टेंपल्स के बेसिक स्ट्रक्चर को समझना वैदिक धर्म में एक टेंपल के ना चार मेजर पार्ट्स होते हैं जो है गर्भ गृह है नंबर दो मंडप नंबर तीन शिखर नंबर चार वाहन गर्भ गृह मंदिर का देखो सबसे अंदर का हिस्सा होता है जहां देवता या देवी की मूर्ति को रखा जाता है यह मंदिर का नाम सबसे ज्यादा पवित्र स्थान माना जाता है संस्कृत में गर्भ का मतलब होता है गर्भाशय और गृह का मतलब होता है कमरा तो ग्रब गृह का मतलब है मंदिर का भीतरी पवित्र कमरा इंग्लिश में देखो ग्रब गृह को ही सेक्टम सैंक्टोरम कहते हैं जो एक लैटिन शब्द है जिसका मतलब होता है पवित्रो का पवित्र फिर देखो मंदिर के प्रवेश द्वार से ग्रब गृह तक जाने वाले रास्ते को मंडप कहा जाता है इसे देखो छत दार मतलब इसके ऊपर छत इसलिए होती है ताकि जब मंदिर में भीड़ बढ़ जाए ना तो श्रद्धालु यहां मंदिर के ग्रब ग्रह में प्रवेश करने के लिए इकट्ठा हो सके और उन्हें बारिश या धूप से सुरक्षा मिल सके देखो भारतीय मंदिरों में ना ग्रब ग्रह के ऊपर जो पार्ट जाता है ना नॉर्थ इंडिया में उस पार्ट को शिखर बोलते हैं और साउथ इंडिया में ग्रब ग्रह के ऊपर वाले पार्ट को विमान बोलते हैं समझ गए फिर से बोलता हूं ध्यान से सुनिए नॉर्थ इंडिया में ग्रब ग्रह के ऊपर वाले पार्ट को शिखर बोलते हैं और साउथ इंडिया में ग्रब ग्रह के ऊपर वाले पार्ट को बोलते हैं विमान फर्क देखो इतना है शिखर का स्ट्रक्चर जहां कर्वी लीनियर और लंबा होता है वहीं दूसरी तरफ विमान इस प्रकार से लगता है जैसे देखो कई सारी मंजिलों से बना कोई पिरामिड हो शिखर के कंपैरिजन में विमान में देवी देवताओं के स्कल्पचर इंग्रेव्ड होते हैं और इनका बेस रेक्टेंगल होता है इसके अलावा देखो शिखर में ना दो और स्ट्रक्चर होते हैं जिन्हें अमलक और कलस कहा जाता है शिखर पर क्लस मंदिर के स्ट्रक्चर को पूरा करता है क्लस ना एक स्माल पोर्ट की तरह दिखने वाला स्टोन स्ट्रक्चर होता है और जिसे अमलक के ऊपर रखा जाता है यह मेटल जैसे ब्रास या गोल्ड से बना होता है यह दोनों स्ट्रक्चर नागर स्टाइल यानी नॉर्थ इंडियन टेंपल्स के फीचर्स हैं अमलका या फिर अमलक यह देखो एक पत्थर से बनी डिस्क टाइप स्ट्रक्चर होती है जिसे शिखर के ऊपर माउंट किया जाता है वहीं क्लस को अमलका के ऊपर सेट किया जाता है और यह टेंपल का सबसे ऊपरी हि हिसा होता है शिखर के बाद अब हम बात करते हैं वाहन की टेंपल आर्किटेक्चर में वाहन का मतलब है उस टेंपल के डीटी का विकल इंडियन स्क्रिप्चर के अनुसार हर डीटी के लिए हर देवता के लिए एक अलग वाहन होता है जैसे आपको एग्जांपल्स देता हूं लॉर्ड शिव का वाहन क्या है लर्ड शिव का वाहन नंदी नामक बैल है शिव मंदिरों में ना आपको अक्सर नंदी की मूर्ति ग्रब ग्रह के सामने बैठी हुई मिलेगी जिसका मुख भगवान शिव की मूर्ति की तरफ होता है एक और एग्जांपल लीजिए लॉर्ड विष्णु उन उनका वाहन है गरुड़ गरुड़ एक ऐसा पक्षी जिसके बारे में कहा जाता है कि वह अपने शत्रु नागों का नाश करने की क्षमता रखते हैं भारत में ना टेंपल आर्किटेक्चर को तीन मेजर स्कूल्स में डिवाइड किया जाता है पहला है नागर स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर नॉर्थ इंडिया में लोकेटेड ज्यादातर टेंपल्स इसी स्टाइल में बनाए गए हैं दूसरा है देखो डरविज स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर इस स्टाइल के जो टेंपल्स है ना वो साउदर्न इंडिया में देखने को मिलते हैं डरविन स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर और तीसरा है वेसर स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर जो कि नागर और डरविज स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर का एक प्रकार से हाइब्रिड वर्जन है इस स्टाइल के ज्यादातर टेंपल्स डेकन रीजन में लोकेटेड हैं अब एक-एक करके ना टेंपल आर्किटेक्चर के ये जो तीनों स्टाइल्स हैं ना इनको डिस्कस करते हैं सबसे पहले है नागर स्टाइल आर्किटेक्चर नागर स्टाइल के मंदिरों को ना पत्थर के एक उठे हुए प्लेटफॉर्म पे बनाया जाता है जिसे बोलते हैं जगती मतलब नागर स्टाइल के जो मंदिर मिलेंगे ना आपको एक हाइट पे मिलेंगे उठे हुए प्लेटफॉर्म प मिलेंगे और उस उठे हुए प्लेटफॉर्म को बोलते हैं जगती इन मंदिर की इन मंदिरों की दीवारों पर ना स्कल्पचर्स और नकासी पर काफी ध्यान दिया जाता है और इससे ये जो नागर स्टाइल आर्किटेक्चर के टेंपल्स है ना वो खास बन जाते हैं टेंपल्स के एंट्रेंस को भी देवी देवताओं फूलों और ज्योमेट्री डिजाइंस के इमेजेस से बखूबी डेकोरेट किया जाता है नेक्स्ट पॉइंट देखो नागर शैली के टेंपल आर्किटेक्चर में ना टेंपल के चारों ओर बड़ी-बड़ी बाउंड्री वाल्स नहीं होती और ना ही बड़े-बड़े गेट होते हैं ये दोनों फीचर जो है ना वो डर्ड स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के हैं डरविज स्टाइल में टेंपल के चारों ओर बड़ी-बड़ी बा ब्री वाल्स और बड़े-बड़े गेट होते हैं इसके अलावा नागर शैली के मंदिरों में ना एक से ज्यादा शिखर भी होते हैं एक से ज्यादा शिखर लेकिन ग्रब ग्रह के ऊपर जो शिखर होता है ना वह सबसे बड़ा शिखर होता है बाद में देखो इवन शिखर के आधार पर ही नागर मंदिर शैली की ना कई सब स्टाइल्स यानी उप शैलियां डेवलप हो गई जैसे देखो चंदेल शैली ओड़ीशा शैली उदाहरण के लिए आप खजराहो के टेंपल देखिए वो चंदेल स्टाइल के हैं कोणार्क का सूर्य मंदिर देखिए ये ओसा स्टाइल का है ये ओड़ी सा स्टाइल चंदेल स्टाइल ये क्या है ये एक प्रकार से ना सब स्टाइल है नागर स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर का नागर शैली के अंदर ना एक अलग से डिस्टिंक्ट स्टाइल भी है जिसे बोलते हैं वलभी स्टाइल वलभी स्टाइल में ना मंदिरों की जो छत है ना रूफ वो रेक्टेंगल होती है यानी आयताकार होती हैं जो हमें नॉर्थ इंडिया के कई टेंपल्स में देखने को मिलती है मैं आपको एग्जांपल देता हूं चंडी मंदिर यह उन्ना हिमाचल प्रदेश में है चंडी का मंदिर बांसवाड़ा राजस्थान कलिका मंदिर चित्तौड़गढ़ राजस्थान इन सभी मंदिर में ना एक चीज कॉमन है छत जो है वो रेक्टेंगल है यानी आयताकार है तो ये एक फीचर है वलभी स्टाइल का जो नागर स्टाइल का ही एक डिस्टिंक्ट स्टाइल है अलग से विशिष्ट स्टाइल है आप कह सकते हो नागर स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के बाद अब हम देखते हैं डरविज स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर साउथ इंडिया के ज्यादातर टेंपल्स डरविज स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के अंडर आते हैं डरविज मंदिरों का जो प्लान है आमतौर पर देखो हेक्सागोनल यानी छह कोणीय या फिर ऑक्टेगनल मतलब आठ कोणीय होता है इस टाइल में बने टेंपल्स की एक खास बात यह होती है कि इनकी बाउंड्री वाल बहुत एक्सटेंसिव होती है मतलब बहुत विस्तृत होती है बड़ी-बड़ी दीवारें होती हैं मंदिर के चारों ओर और इन बाउंड्रीज पर लोकेटेड गेट्स को गोपुरम कहते हैं समझ गए मतलब गोपुरम मतलब द्वार इन गोपुरम्स की जो हाइट है वो देखो नागर टेंपल के कंपैरिजन में काफी ज्यादा होती है और कई टेंपल्स तो आपको ऐसे मिलेंगे जिनके गोपुरम की हाइट इनके विमान यानी शिखर के हाइट से भी ज्यादा होती है डरविज स्टाइल में टेंपल्स के शिखर को विमान कहते हैं नागर और डरविज स्टाइल के मंदिरों में एक और डिफरेंस यह है देखो नागर टेंपल आर्किटेक्चर में ना ग्रब ग्रह का जो एंट्रेंस होता है ना उस एंट्रेंस पर मिथुन या फिर रिवर गोडस के स्कल्पचर्स होते हैं जबकि साउथ के टेंपल्स में ना जो ग्रब ग्रह होता है उसके एंट्रेंस पर द्वारपाल के स्कल्पचर्स देखे जाते हैं समझ गए मतलब नागर टेंपल आर्किटेक्चर में ग्रब ग्रह के एंट्रेंस पर स्कल्पचर्स किसके मिथुन और गोडेस के और दूसरी तरफ साउथ में ग्रब ग्रह के एंट्रेंस पर स्कल्पचर्स किसके द्वारपाल के रवि स्टाइल के मंदिरों में एक और खासियत मंदिर कंपाउंड के अंदर ही पोंड्स यानी जलाशय या फिर तालाब होता है नॉर्थ इंडिया के टेंपल्स के कंपाउंड के अंदर आपको कभी भी वाटर बॉडी देखने को नहीं मिलेगी रेयरली देखने को मिलेगी मतलब फीचर नहीं है टेंपल के अंदर पंड का होना नाग टेंपल आर्किटेक्चर में जबकि साउथ के टेंपल्स में आप देखोगे मंदिर के कंपाउंड में आपको एक पंड या तालाब मिलेगा ये डरविज स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्ट र का शानदार फीचर है चोल राजाओं के द्वारा बनवाए गए ज्यादातर टेंपल्स जैसे देखो तंजोर का ब्रदेशहेड राजराज फर्स्ट ने करवाया था और देखो ऐसा बताया जाता है कि इस टेंपल को बनवाने में ना 13000 टन से भी ज्यादा ग्रेनाइट स्टोंस का इस्तेमाल किया गया था यह डरविन मंदिरों की कला में ना एक नील का पत्थर है बिदेश्वर टेंपल का नाम वैसे राज राजेश्वर टेंपल था और इसे बिदेश्वर टेंपल का नाम मराठा ने दिया था हिस्टोरिकल एविडेंस है देखो यह बात भी साफ है कि डरविज स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर को डेवलप करने में चोल डायनेस्टी और पल्लव डायनेस्टी ने काफी क्रुशल रोल प्ले किया था चेन्नई से देखो 60 किमी की दूरी के आसपास ईस्ट कोस्ट पर बना है महाबलीपुरम का फेमस शो टेंपल और इसके अलावा कांचीपुरम का कैलासनाथ टेंपल ये देखो पल्लव डायनेस्टी के द्वारा ही बनवाए गए थे शो टेंपल में ना तीन श्राइन हैं जिसमें से दो तो भगवान शिव की हैं और बीच में भगवान विष्णु की श्राइन है तो इस प्रकार से हमने र्वी डैम स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के बारे में डिस्कस किया अब देखो इसके बाद अब हम बात करते हैं वेसर स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के बारे में वेसर स्टाइल देखो नागर और डरविन स्टाइल का हाइब्रिड फॉर्म है और इस स्कूल के टेंपल्स यानी वेसर स्कूल के जो टेंपल्स हैं ना मेनली सेंट्रल और डेकन इंडिया में देखे जाते हैं इसे शंकरा स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर भी कहा जाता है चालुक्यास राष्ट्रकूट और होय सेला डायनेस्टीज द्वारा बनवाए गए ज्यादातर मंदिर ना इसी स्टाइल में बनवाए गए हैं बेलूर हले बडू और सोमनाथपुर में स्थित हो सेला डायनेस्टी के द्वारा जो मंदिर बनवाए गए हैं ना वो देखो इस वेसर स्टाइल के सबसे बेहतरीन एग्जांपल है इस टाइल के मंदिरों की अगर देखो फीचर्स की बात करें इस टाइल के मंदिरों की दीवारों पर ना बेहतरीन नकासी नकासी मतलब दीवारों पर जो इंग्रेविंग्स या फिर कार्विंग्स वगैरह नहीं हो जाती कोई पैटर्न वगैरह बना दिया जाता है तो वेसर स्टाइल के मंदिरों में ना दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी और पेंटिंग्स देखने को मिलती हैं वेसर शैली में ना मंदिर का शिखर छोटा होता है लेकिन बहुत ज्यादा डेकोरेटेड होता है सुसज्जित होता है मतलब इस स्टाइल में ना टेंपल्स को यूज नॉन रेड प्लेटफॉर्म पे बिल्ड किया जाता है जैसे नागर टेंपल आर्किटेक्चर में हमने देखा ना टेंपल ना जगती के ऊपर बनाया जाता है यानी रेज्ड प्लेटफॉर्म के ऊपर बनाया जाता है लेकिन वेसर स्टाइल में ऐसा नहीं होता वेसर स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर का जो बेस होता है ना वो स्टार शेप्ड में होता है एलोरा का कैलासनाथ टेंपल बेलूर का चेन केशव टेंपल हंपी का विरु पाक्स टेंपल एहोल का लड खान टेंपल यह सब देखो वेसर स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के सबसे पॉपुलर टेंपल्स हैं वेसर स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर को डेवलप करने का जो क्रेडिट है ना वो देखो चालुकयन डायनेस्टी को जाता है पांचवीं से सातवीं सेंचुरी एडी के बीच डेकन में चालुक्य डायनेस्टी का रूल हुआ करता था जिन्हें चालुक्यास ऑफ बादामी भी कहा जाता है बाद में देखो चालुकयन किंग्स के द्वारा एहोल बादामी और पट दखल में काफी सारे वेसर स्टाइल के टेंपल्स का कंस्ट्रक्शन करवाया गया इन टेंपल्स के कंस्ट्रक्शन में ना मोस्टली सैंड स्टोंस का यूज किया गया था चालुक्य किंग्स द्वारा बनवाए गए टेंपल्स में लाड खान टेंपल को सबसे ज्यादा अर्लीस्ट माना जाता है टेंपल आर्किटेक्चर को उनकी स्टाइल के अलावा रीजनल स्टाइल्स के बेसिस पर भी क्वालीफाई किया गया है आइए देखते हैं ऐसे कुछ मेजर रीजनल टेंपल आर्किटेक्चर स्कूल्स को रीजनल टेंपल आर्किटेक्चरल स्कूल में सबसे पहले हैं चंदेल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर इस चंदेल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में मंदिर बनाने की जो शुरुआत है ना वो देखो 10वीं 11वीं सेंचरी के बीच बुंदेलखंड रीजन में हुई चंदेल डायनेस्टी से मिले इंस्क्राइनॉक्स ग है ना या फिर पत्थर पे जो नकाशी की गई है वो देखो बहुत ज्यादा सुंदर है और जैसा मैंने आपको बताया 900 एडी से 1000 एडी के बीच में यह मंदिर बनवाए गए थे लेकिन सुंदरता आज भी जं की त्यों बरकरार है दुनिया का सबसे बेहतरीन आर्किटेक्चर में गिना जाता है खजराहो के मंदिर को 1986 में यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की लिस्ट में खजरा मंदिर को जोड़ लिया चंदेल राजाओं ने इन मंदिरों को बनवाने में सैंड स्टोन यानी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया यहां ध्यान देने वाली बात देखो यह है चंदेल मंदिरों में ना नागर और डरविन दोनों स्टाइल के फीचर्स देखे जा सकते हैं इसमें सबसे अद्भुत फीचर है मंदिर की बाहरी दीवारों पर बनाई गई मूर्तियां ये मूर्तियां हिंदू धर्म के जो चार गोल होते हैं ना धर्म आर्ट काम मोक्ष इन सब चार गोल्स को रिप्रेजेंट करती हैं यहां मौजूद बहुत सारे जो मंदिर हैं ना उन मंदिरों में छह तो देखो भगवान शिव को समर्पित है आठ भगवान विष्णु जी को एक भगवान गणेश जी को और एक सूर्यदेव को और तीन जैन तीर्थंकरस को भी समर्पित हैं यहां स्थित कंदरिया महादेव टेंपल चंदे वास्तुकला का देखो एक बेहतरीन एग्जांपल है नागर स्टाइल में 4 मीटर ऊंचे प्लेटफार्म पर बने इस मंदिर को 999999 एडी में चंदेल राजा ढंग देव ने बनवाया था इसके बाद हम दूसरे रीजनल स्टाइल्स में बने मंदिरों की बात करें तो इसके बाद आता है उड़ीसा स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर उड़ीसा स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर में जो फीचर्स है ना वो देखो तीन ऑर्डर्स में क्लासिफाई किए गए हैं रेखा पीड़ा पिदा देऊल और सबसे लास्ट में खाखरा ज्यादातर जो मेन टेंपल साइट्स है ना उड़ीसा स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर के वो देखो मॉडर्न पूरी डिस्ट्रिक्ट में स्थित है इसे देखो एंसटिटाइट ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर में ना शिखर को देऊल कहा जाता है ये ऑलमोस्ट टॉप तक वर्टिकल रहता है और बिल्कुल अचानक से शार्पली अंदर की तरफ कवी हो जाता है इसके अलावा देखो ओडिसा स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर में ना आमतौर पर देउल यानी शिखर के आगे एक मंडप यानी कि ओपन हॉल होता है और इस मंडप को ना उड़ीसा स्कूल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर में जब जग मोहना कहा जाता है उड़ीसा स्टाइल में ना सामान्यता देखो मंदिर के चारों ओर बाउंड्री वाल्स होती हैं और उड़ीसा स्टाइल में मुख्य मंदिर का जो नीचे का हिस्सा होता है ना वो स्क्वेयर फॉर्म में होता है लेकिन मुख्य मंदिर जैसे-जैसे देखो ऊपर जाता है वो गोल होता जाता है और सबसे ऊपर वाले सर्कुलर हिस्से को मस्तक कहते हैं मंदिर के अंदर के कमरे और गुफाएं भी ये देखो आमतौर पे ना स्केर की फॉर्म में होते हैं और मंदिर के बाहर के हिस्से पर बहुत सारी कार्विंग्स आपको मिलेगी कार्विंग्स मतलब पत्थर पर जो नक्काशी की जाती है ये जो कार्विंग्स है ना यानी नकासी है आमतौर पर हिंदू देवी देवताओं से संबंधित होती हैं कोनार्क का सूर्य मंदिर आप देखिए कोनार्क एक जगह है उड़ीसा में बे ऑफ बंगाल के किनारे पर स्थित 1240 के आसपास ना पत्थर से सूर्य यानी सन टेंपल यहां पे बनवाया गया था यह कुनार का सूर्य मंदिर एक एलिवेटेड प्लेटफॉर्म पे है जैसे हम देखते हैं ना गलियों में कई जो घर होते हैं वो जमीन से थोड़े ऊपर उठे हुए होते हैं ताकि बारिश आने पर पानी जो है घर के अंदर ना आ जाए तो उसी प्रकार से यह जो मंदिर है थोड़ा एलिवेटेड प्लेटफॉर्म पे है और इसकी दीवारें बहुत डिटेल और सुंदर कार्विंग से ढकी हुई हैं दीवारों प जो नकासी की गई है ना वो सन गोड और उनकी कहानियों से रिलेटेड है या फिर कुछ अन्य मिथल जिकल स्टोरी से संबंधित भी नकासी सूर्य मंदिर के दीवारों पर की गई है कुनार के सूर्य मंदिर में 24 बड़े-बड़े व्हील्स हैं व्हील्स मतलब पहिए जैसे साइकिल का पहिया होता है ना वैसे बड़े-बड़े 24 व्हील्स हैं 12 दोदो के पेयर हैं ये जो 24 बड़े-बड़े व्हील्स हैं ना कुना कुर्क के सन टेंपल की एक खास पहचान है देखो मिथल जीी के अनुसार ये जो पहिए हैं ना कुनार के सन टेंपल में ये सन गोड के रथ के पहिए को दर्शाते हैं हिंदू कहानियों के हिसाब से सन गोड एक रथ पर सवार होते हैं जिसे सात घोड़े खींचते हैं और आप देखोगे कुनार के सन टेंपल में जो सीढ़ियां है ना शुरुआत में वहां पे सात घोड़े भी बने हुए हैं समझे मतलब मंदिर के प्रवेश द्वार पर जो सीढ़ियां हैं वहां पर ये घोड़े बने हुए हैं अब देखो हिल टेंपल्स का आर्किटेक्चर कैसा था वो थोड़ा सा डिस्कस कर लेते हैं देखो कुमायूं घड़वाल हिमाचल और कश्मीर के हिल्स में ना आर्किटेक्चर का एक यूनिक फॉर्म डेवलप हुआ क्यों क्योंकि देखो कश्मीर का आठ और आर्किटेक्चर कई सारे दूसरे स्थानों से प्रभावित हुआ है मैं आपको एग्जांपल देके बताता हूं देखो पांचवीं सेंचुरी तक ना कश्मीर पर धारा आठ का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा आप में से कुछ लोग पूछेंगे कि सर ये तो बताओ घरा आट क्या है देखो गंधरा आट ना एक यूनिक आर्ट स्टाइल है जो फर्स्ट से लेकर सेवंथ सेंचुरी एडी के दौरान धारा रीजन में विकसित हुई लेकिन अभी भी कुछ लोग पूछेंगे सर गंदरा रीजन है कहां पे देखो गंधरा रीजन आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में स्थित था गांधा रीजन के ना कुछ एग्जांपल्स देता हूं जैसे देखो तकसीला पेशावर पाकिस्तान में नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर ये सब गांधा साइट्स हैं और ये ना कश्मीर के नजदीक थी इस वजह से फिफ्थ सेंचुरी एडी आते-आते कश्मीर में ना धारा आट का इन्फ्लुएंस देखने को मिला बट देखो ये गंधरा आर्ट का इन्फ्लुएंस ना कश्मीर में मिक्स हो गया क्योंकि देखो गुप्ता और पो पोस्ट गुप्ता पीरियड की जो आर्ट एंड आर्किटेक्चरल स्टाइल थी ना वो भी कश्मीर में आई एक तरफ कश्मीर में गारा आर्ट का इन्फ्लुएंस दूसरी तरफ उस समय गुप्ता और पोस्ट गुप्ता पीरियड के दौरान जो आर्ट एंड आर्किटेक्चर था ना उसका भी इन्फ्लुएंस कश्मीर में देखने को मिला गुप्ता पीरियड के दौरान ये जो मुख्य साइट्स थी जैसे सारनाथ मथुरा और कुछ अन्य स्थान यहां से वो आर्ट एंड आर्किटेक्चर कश्मीर में गया और कश्मीर में घरा आर्ट के साथ मिक्स हो गया मिक्स देखो ऐसे हो गया उस समय ना जो ब्राह्मण या फिर बुद्धिस्ट मोक्स थे वो कश्मीर कुमायूं हिमाचल गढ़वाल जहां एक तरफ इन स्थलों की यात्रा करते थे दूसरी तरफ मैदानों में जो धार्मिक संस्थान थे जैसे बनारस नालंदा इवन दक्षिण में कांचीपुरम इनकी भी यात्रा करते थे तो बुद्धिस्ट मंग्स ब्राह्मण यहां भी जाते कश्मीर में कुमायूं में गढवाल में और मैदानों के धार्मिक स्थलों में भी जाते जैसे बनारस नालंदा कांचीपुरम तो ना इन विभिन्न धार्मिक स्थलों के बीच में ना आइडियाज का आदान प्रदान होता था ज्ञान का आदान प्रदान होता रहता था इसी वजह से गुप्ता और पोस्ट गुप्ता पीरियड का जो आर्ट एंड आर्किटेक्चर था ना वो हिल्स में पहुंच गया कुमायूं में घड़वाल में कश्मीर में और देखो इन सबके अलावा पहाड़ों का अपना एक यूनिक आर्किटेक्चरल स्टाइल भी था यहां की बिल्डिंग्स अक्सर लकड़ी से बनी होती थी और इनकी छत थोड़ी ढाल दार होती थी ढाल दार मतलब पिचड रूफ मैं आपको बिल्कुल सिंपल भाषा में बताता हूं ढाल दार रूफ का मतलब होता है घर की छत एक तरफ से दूसरी तरफ तक थोड़ी ना ढाल के साथ बनाई जाती है ऐसा देखो इसलिए लोकल क्लाइमेट को देखते हुए जैसे बर्फबारी वगैरह होती है लोकल क्लाइमेट को देखते हुए ये ढाल दार छत बनाई जाती थी और लोकल क्या मटेरियल अवेलेबल थे उन सब को भी देखा जाता था तो ये तीनों चीजें आपस में मिक्स हो गई पहाड़ों का लोकल स्टाइल गारा आर्ट का इन्फ्लुएंस गुप्ता और पोस्ट गुप्ता आर्ट एंड आर्किटेक्चर का इन्फ्लुएंस ये तीनों आपस में ना मिक्स हो गए कश्मीर में कुमायूं में घड़वाल में हिमाचल में इस तरह कश्मीर और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में ना आर्ट एंड आर्किटेक्चर विभिन्न स्टाइल्स और ट्रेडीशन का एक अद्भुत मिक्सचर बना यहां पे ना आपको हिंदू ट्रेडीशन और बुद्धिस्ट ट्रेडीशन आपस में घुले मिले मिलेंगे इसके बाद अब हम ना हिल टेंपल आर्किटेक्चर से संबंधित कुछ स्पेसिफिक फीचर्स देख लेते हैं देखो कई जगहों पर ना मंदिर का मुख्य भाग ग्रब ग्रह मंदिर का वो भाग जहां पर मूर्ति होती है और इसके अलावा शिखर मंदिर का सबसे ऊंचे वाला भाग ये ना रेखा प्रसादा या टिला स्टाइल में होते थे ये खास टाइप का नॉर्थ इंडियन टेंपल डिजाइन है लेकिन देखो साथ की साथ मंडप मतलब मंदिर का वो भाग जहां लोग इबादत करने के लिए इकट्ठा होते हैं तो मंडप ना अक्सर लकड़ी से यानी व से पुराने स्टाइल में बना होता है इस प्रकार से देखो यह जो मंदिर है ना हिल टेंपल है यहां पर ना नए और पुराने स्टाइल का एक अद्भुत कॉमिनेशन देखने को मिलता है कुछ मंदिरों की तो पूरी बिल्डिंग ही पगोड़ा स्टाइल में बनी होती है पगोड़ा मतलब देखो एक खास तरह का मल्टी टियर टावर आमतौर पे देखो ईस्ट एशियन कंट्रीज में जैसे इंडोनेशिया में मलेशिया में थाईलैंड में इन देशों में पगोड़ा स्टाइल की बिल्डिंग्स आपको ज्यादा देखने को मिलेंगी बट कहीं-कहीं पर इसका इस्तेमाल हिमालयन रीजंस में भी हुआ है नेक्स्ट पॉइंट देवक कश्मीर में ना कारकोटा पीरियड जो सेवंथ सेंचुरी से नाइंथ सेंचुरी एडी तक रहा यह जो कारकोटा पीरियड है ना मंदिर निर्माण के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रहा कश्मीर में इस दौरान के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है पंढरे थान मंदिर जो देखो आठवीं से नौवीं सेंचुरी में बना था इस मंदिर के साथ एक खास बात यह है कि ये एक तालाब के बीच में एक चबूतरे पर बना हुआ है यानी एलिवेटेड प्लेटफॉर्म पर बना हुआ है ये उस परंपरा को दर्शाता है जिसमें मंदिर के साथ एक वाटर टैंक होता था इवन देखो चंबा और साम लाजी में भी जो मंदिर है ना वहां पर एक तरफ लोकल परंपराएं और दूसरी तरफ पोस्ट गुप्ता स्टाइल दोनों का एक अद्भुत फ्यूजन देखने को मिलता है लक्षणा देवी मंदिर में महिषासुर मर्दिनी यानी दुर्गा और नरसिंह यानी विष्णु के अवतार की मूर्तियां देखो पोष्ट गुप्ता प्रभाव को दर्शाती हैं कुमायूं के मंदिरों में ना अल्मोड़ा के पास जागेश्वर और पिथौरागढ़ के पास चंपावत के मंदिर इस क्षेत्र में नागर आर्किटेक्चर के क्लासिक एग्जांपल्स हैं इसके बाद अब हम डिस्कस करते हैं वेस्टर्न इंडियन टेंपल्स के बारे में देखो इंडिया के नॉर्थ वेस्ट स्न पार्ट्स में जैसे गुजरात में राजस्थान में और वेस्टर्न मध्य प्रदेश में बहुत सारे टेंपल्स मिलते हैं और इन टेंपल्स को बनवाने के लिए जिन स्टोंस का इस्तेमाल किया गया ना वो देखो अलग-अलग कलर के और अलग-अलग टाइप के हैं सबसे ज्यादा जो कॉमन स्टोन है वो तो देखो सैंड स्टोन है इसके अलावा 10थ से 12थ सेंचुरी के बीच बहुत सारी मंदिरों में जो मूर्तियां बनवाई गई थी ना वो ग्रे से लेकर ब्लैक बसा की बनवाई गई थी वैसे देखो सबसे ज्यादा खूबसूरत और सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तो मार्बल है जो काफी सो सॉफ्ट और वाइट होता है मार्बल से बने मंदिर आप देखोगे 10वीं से 12वीं सेंचुरी के बीच में माउंट आबू में जो जैन मंदिर बने थे ना वो वाइट मार्बल से बने हुए हैं इसके अलावा देखो एक और फेमस मंदिर है 15वीं शताब्दी में बनवाया गया रण कपूर मंदिर ये राजस्थान के पाली डिस्ट्रिक्ट में है ये भी वाइट मार्बल से बना है रण कपूर में जो ये टेंपल है यह भी देखो जैन टेंपल है और अगर देखो इस रीजन में हम बात करें सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट और हिस्टोरिकल साइट्स में से एक है गुजरात में सामल जी सामल जी देखो आज के गु गुजरात में है भगवान विष्णु को डेडिकेटेड है यह सामल जीी का टेंपल इसके आसपास भी काफी सारे हिंदू टेंपल्स लोकेटेड हैं ये जो सामल जीी वाला टेंपल है ना गुजरात में इसका कंस्ट्रक्शन तो देखो 11वीं सेंचुरी में चालुक्य स्टाइल में स्टार्ट हुआ था बट अभी जो स्ट्रक्चर है ना वो 15वीं से लेकर 16वीं सेंचुरी पुराना है इसी वेस्ट इंडिया रीजन में फेमस मंदिर मोढेरा का सन टेंपल भी लोकेटेड है उड़ीसा में कुनार का सन टेंपल हमने डिस्कस किया लेकिन यह भी फेमस है मोढेरा का सूर्य मंदिर जो गुजरात में है इस मंदिर को बनवाने की शुरुवात 11वीं शताब्दी में हुई थी और इसका निर्माण किसने करवाया सोलंकी डायनेस्टी के राजा भीमदेव फर्स्ट ने 1026 में मोढेरा के सन टेंपल का निर्माण करवाया था मंदिर के सामने एक बहुत बड़ा रेक्टेंगल शेप में स्टेप टैंक है जिसे सूर्यकुंड कहा जाता है ये देखो शायद भारत का ना सबसे भव्य मंदिर टैंक है ज्योग्राफी में हम पढ़ते हैं देखो साल में ना दो बार इक्विनोक्स आते हैं एक बार 20 मार्च को और दूसरा 22 सितंबर को है ना तो होता यह है हर साल इक्विनोक्स ीस के समय सूर्य की रोशनी ना सीधी मंदिर के मुख्य ग्रब ग्रह में पड़ती है समझ गए मतलब मोडर के सन टेंपल को ना इस प्रकार से डिजाइन किया गया है जब साल में दो बार इक्विनोक्स आता है ना 20 मार्च को और 22 सितंबर को तो उस समय जब सनराइज होता है ना तो उसकी पहली किरण मंदिर के केंद्र में स्थित ग्रब ग्रह में सीधा प्रवेश करती हैं ग्रब ग्रह मतलब वो मुख्य कक्ष जहां भगवान सन की मूर्ति विराजमान है जब देखो ऐसा होता है ना तो एक जबरदस्त दृश्य देखने को मिलता है अब हम डिस्कस करते हैं ईस्टर्न इंडियन टेंपल्स के बारे में जो ईस्टर्न इंडियन टेंपल्स है ना इनमें देखो नॉर्थ ईस्ट के टेंपल्स बंगाल के टेंपल्स और ओडिसा के टेंपल्स आते हैं देखो सबसे पहली चीज बंगाल में सातवीं शताब्दी तक ना मंदिर और मूर्तियों को बनाने के लिए ना टेराकोटा का उपयोग किया जाता था टेराकोटा मतलब एक प्रकार की मिट्टी जिसे आग में पकाया जाता है ताकि वह थोड़ी कठोर हो जाए थोड़ी टिकाऊ हो जाए और इवन देखो इसी टेराकोटा की सहायता से ना बौद्ध और हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों वाली तख्तियां भी बनाई जाती थी और इन्हीं तख्तियां की सहायता से मंदिरों को सजाया जाता था आज के असम में कुछ पुराने मंदिर और मूर्तियां मिली हैं जो सिक्स्थ सेंचुरी के आसपास की हैं जैसे देखो एग्जांपल के तौर पर असम में तेजपुर के पास दह पर्वतीय में एक पुराना द्वार है जिस पर नक्काशी की गई है असम में ही तीन सुकिया के पास रंगा गोरा टी एस्टेट में कुछ पुरानी मूर्तियां मिली हैं इन मूर्तियों और द्वारों पर जो कार्विंग्स यानी नकासी की गई है ना इससे पता चलता है कि असम में ना इवन गुप्त काल का भी प्रभाव था समझ गए मतलब गुप्तासना इन्फ्लुएंस असम तक था जैसे-जैसे देखो समय बीता 12थ से 14 सेंचुरी के बीच असम में ना अपना खुद का एक लोकल टेंपल स्टाइल डेवलप हो गया कैसे डेवलप हुआ देखो उस समय ना आज का जो मयांमार है ना उस समय का बर्मा वहां से ताई एथनिक ग्रुप के लोग आए थे तो ये ताई एथनिक ग्रुप के जो लोग आए ना असम में उनके साथ उनका स्टाइल यानी आर्किटेक्चर भी आ गया इसके अलावा उस समय बंगाल में फेमस पाल डायनेस्टी का जो अलग से स्टाइल था ये दोनों मिक्स हो गए और एक असम में नई लोकल स्टाइल डेवलप हो गया जिसको बोलते हैं अहोम स्टाइल अहोम स्टाइल यह देखो मुख्य रूप से गवाठी के आसपास के इलाकों में देखने को मिलता है अहोम स्टाइल में जो बने मंदिर हैं वो देखो असम की जबरदस्त कल्चरल हेरिटेज का पार्ट है ईस्ट इंडियन टेंपल्स के बारे में थोड़ा और डिटेल से डिस्कस करते हैं फेमस कामख्या मंदिर देखो यह एक शक्ति पीठ है यानी देवी शक्ति की पूजा के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान यह मंदिर देखो देवी कामख्या को समर्पित है और इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में असम में हुआ था बंगाल जिसमें देखो आज का बांगला देश भी शामिल है और बिहार यहां पर देखो नौवीं से 11वीं शताब्दी के बीच ना जो मूर्ति कला की शैली डेवलप हुई उसे पाल शैली कहा जाता है इसका नाम जो यह पाल शैली नाम है ना उस समय इस रीजन में जो डायनेस्टी रूल कर रही थी ना पाल डायनेस्टी उसके नाम पर रखा गया है इसके बाद 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच जो मूर्तिकला की शैली डेवलप हुई उसे सेन शैली कहा जाता है जो सेन डायनेस्टी से जुड़ी है देखो बंगाल में जो पाल डायनेस्टी थी ना वो बौद्ध धर्म को काफी सपोर्ट करते थे तो पाल डायनेस्टी के राजाओं ने काफी सारे बौद्ध मठों और विहार का निर्माण करवाया लेकिन देखो उसी समय के हिंदू मंदिरों में भी एक अलग लोकल स्टाइल देखने को मिलता है जिसे ध्यान से सुनिए जिसे वंग स्टाइल कहा जाता है वंग समझे अगर यूपीएससी पूछ ले कि वंग स्टाइल के जो मंदिर है कहां पे मिलते हैं ये देखो बंगाल में मिलते हैं ईस्ट इंडिया में मिलते हैं देखो वंग स्टाइल का एक एग्जांपल पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले में स्थित नौवीं शताब्दी का सिद्धेश्वर महादेव मंदिर सिद्धेश्वर महादेव मंदिर कौन से स्टाइल का वंग स्टाइल का इस मंदिर की खास बात देखो ये है इस मंदिर का शिखर बहुत ऊंचा और कर्विंग है कर्विंग मतलब जैसे आम की शेप होती है ना कुछ-कुछ वैसी शेप है और शिखर के ऊपर एक बहुत बड़ा अमलक है ये जो मंदिर है ना सिद्धेश्वर महादेव मंदिर ये अर्ली पाला स्टाइल का एक एग्जांपल है लास्ट में देखो दो और पॉइंट्स हैं देखो पुरूलिया डिस्ट्रिक्ट आज के वेस्ट बंगाल का जो पुरूलिया डिस्ट्रिक्ट है ना यहां पे कुछ पुराने मंदिर हैं जो देखो काले और भूरे रंग के बेसाल्ट और क्लोराइड नामक पत्थरों से बने हैं इन मंदिरों में ना ऐसे खंबे और अलमारियां हैं जो मेहराब की तरह दिखती हैं आप पूछोगे सर मेहराब क्या है मेहराब एक आंख या गुबुन जैसी फॉर्म होती है जो अक्सर इस्लामिक आर्किटेक्चर में देखने को मिलती है तो इन मंदिरों का देखो जो खास डिजाइन और खास पत्थरों का इस्तेमाल था ना इस चीज ने आसपास के इलाकों में जैसे गौर और पांडवा में भी ना बंगाल सल्तनत काल की शुरुआती इमारतों को प्रभावित किया मुगल साम्राज्य के समय और उसके बाद बंगाल और बांग्लादेश में बहुत सारे मंदिर टेराकोटा ईटों से बनाए गए एक और चीज इन टेराकोटा के मंदिरों में ना लोकल बांस के घरों की कुछ खासियत दिखाई देती हैं जैसे देखो छतों का ढलान यानी मंदिर बनाते समय ना कारीगरों ने उन तकनीकों का इस्तेमाल किया जो वह पहले से बांस के घरों में बनाने में इस्तेमाल करते थे इससे ना इन मंदिरों की एक अनोखी शैली विकसित हुई यानी अनोखा स्टाइल डेवलप हुआ जो लोकल ट्रेडिशनल कोटा जैसी नई सामग्री के कॉमिनेशन से बना तो इस प्रकार से हमने ईस्ट इंडियन टेंपल के बारे में डिस्कस किया अब हम सेंटल इंडिया के टेंपल्स के बारे में डिस्कस करते हैं देखो उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और राजस्थान के जो एंस टेंपल्स हैं ना प्राचीन काल के टेंपल्स हैं इनमें काफी सारी समानताएं देखने को मिलती हैं सबसे इंपॉर्टेंट समानता तो ये है दे आर मेड ऑफ सैंड स्टोन यानी बलुआ पत्थर से यह मंदिर बनवाए गए थे प्राचीन काल में यानी गुप्ता पीरियड के कुछ जो ओल्डेस्ट सर्वाइविंग स्ट्रक्चरल टेंपल्स है ना वो मध्य प्रदेश में हैं स्ट्रक्चरल टेंपल्स मतलब जैसे नीव भरी जाती है उसके बाद फिर दीवारें खड़ी की जाती हैं ये स्ट्रक्चरल टेंपल्स और दूसरे रोक को काट के बनाए जाने वाले टेंपल्स रोक का टेंपल्स जो हम ऑलरेडी डिस्कस कर चुके हैं तो गुप्ता पीरियड के ओल्डेस्ट सर्वाइविंग स्ट्रक्चरल टेंपल्स मध्य प्रदेश में मिलते हैं गुप्ता काल के देखो सभी नागर स्टाइल के जो टेंपल्स हैं ना इन मंदिरों के ऊपर अमलक और क्लस जैसे क्राउनिंग एलिमेंट्स मिलते हैं अमलक आपको पता है शिखर के ऊपर मैंगो यानी आम के आकार की एक संरचना होती है जो शिखर के ऊपर होती है और अमलक के ऊपर होता है क्लश तो ये दोनों जो चीजें हैं ना अमलक और क्लस यह देखो मंदिर के शिखर खना और भी ज्यादा सुंदर बना देते हैं शिखर के ऊपर तो गुप्ता काल के जो टेंपल है ना सेंट्रल इंडिया में वो देखो कंपैरिजन में काफी सिंपल और काफी छोटे होते थे इनमें ना चार खंबे होते थे मतलब चार पिल्लर जो एक छोटे से कमरे को स्पोर्ट देते थे और इस कमरे को मंडप कहते थे यह मंडप एक छोटी सी खुली बैठक जैसी दिखती थी जो मंदिर के सबसे पवित्र हिस्से यानी ग्रब ग्रह से पहले बनी होती थी मंडप देखो केयर फॉर्म में होता था और इसमें लोग आकर बैठते थे ताकि पूजा कर सकें और इवन देखो गर्भ गृह जहां देवता की मूर्ति रखी जाती थी वो भी मंडप के आकार का ही एक छोटा सा कमरा होता था ये मंदिर देखो उतने ज्यादा बड़े नहीं थे लेकिन सुंदर और कलात्मक थे इसके बाद नेक्स्ट उदयगिरी मध्य प्रदेश के विदिशा शहर के बाहरी इलाकों में स्थित है यह देखो एक बड़े हिंदू गुफा मंदिर परिसर का हिस्सा है यहां पर ना चट्टानों को काट के कई छोटी-छोटी गुफा बनाई गई और उनमें से कुछ मंदिरों के रूप में इस्तेमाल होती थी इनमें से देखो अधिकांश गुफाएं यानी अधिकांश जो रोक कट टेंपल्स है ना वो गुप्त काल से संबंधित है दूसरा देखो ऐसा ही एक स्थल है सांची जो एक प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप के पास स्थित है यहां पर भी चट्टानों को काटकर कई सारे केव टेंपल्स बनाए गए हैं इस तरह गुप्त काल में केव टेंपल्स और स्ट्रक्चरल टेंपल्स दोनों का निर्माण हुआ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में ना देवगढ़ मंदिर है इसका निर्माण देखो छटी शताब्दी के शुरुआत में हुआ था ये गुप्त काल के आखिरी दौर के मंदिरों का एक खास एग्जांपल है ये मंदिर ना पंचायतन आर्किटेक्चरल स्टाइल में बना है इस पंचायतन स्टाइल की हम बात करें इस पर यूपीएससी ने क्वेश्चन पूछा था इसमें देखो एक मुख्य मंदिर होता है जो ना रेक्टेंगल चबूतरे पर बना होता है और इस मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर चार और छोटे-छोटे मंदिर होते हैं तो कुल मिलाकर पांच मंदिर होते हैं इसलिए इसे पंचायतन मंदिर कहा जाता है मतलब पंचायतन स्टाइल का मंदिर पंच का मतलब होता है पांच इसके शिखर की बिनावत भी देखो खास है इस शिखर को लैटिना या फिर रेखा प्रसादा शिखर कहा जाता है क्योंकि इसकी आकृति नरम घुमावदार रेखाओं जैसी होती है तो ये हमने डिस्कस किया देवगढ़ मंदिर के बारे में अब हम डिस्कस करते हैं 64 योगिनी मंदिर के बारे में ये जो 64 योगिनी मंदिर है ना ये देखो 10वीं शताब्दी से भी पुराना है ये एक प्रकार से ना छोटे-छोटे मंदिरों का एक समूह है और ये छोटे-छोटे जो मंदिर है ना ये स्केर फॉर्म में है और ये छोटे-छोटे मंदिर तराश हुए ग्रेनाइट पत्थरों से बने हैं समझ गए बड़े-बड़े जो ग्रेनाइट पत्थर है ना उनको तराशा गया और उनकी सहायता से छोटे-छोटे स्केर फॉर्म में मंदिर बनाए गए और उन्हीं का ग्रुप है यह 64 योगिनी मंदिर हर एक मंदिर उन देवियों को समर्पित है जो सातवीं शताब्दी के बाद तांत्रिक पूजा के उदय से जुड़ी हुई हैं मैं आपको बिल्कुल आसान भाषा में बता देता हूं इन मंदिरों में ना ऐसी देवियों की पूजा होती थी जो तांत्रिक धर्म से जुड़ी थी तांत्रिक धर्म एक अलग तरह का धर्म है जो सातवीं शताब्दी के बाद चलन में आया इसमें ना कई तरह के जादू टोने मंत्र और खास रीति रिवाज होते हैं इन तांत्रिक देवियों को ना योगिनी कहा जाता था योगिनी एक तरह की शक्तिशाली देवियां होती थी जिनके पास जादुई ताकते होती थी और लोगों को यह लगता था कि अगर वे इन योगिनित्य की पूजा करेंगे तो उन्हें खास शक्तियां और फायदे मिलेंगे धीरे-धीरे योगिनी पूजा का रिवाज बहुत प्रचलित हो गया और कई जगहों पर योगिनी मंदिर बन गए इन मंदिरों को 64 योगिनी मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि देखो इनमें 64 योगिनित्य की मूर्तियां या फिर पूजा स्थल होते थे 64 का मतलब 64 मतलब कई लोगों को नहीं पता होता जो इंग्लिश मीडियम वाले होते हैं ऐसे देखो कई सारे मंदिर सातवीं से 10वीं शताब्दी के बीच मध्य प्रदेश उड़ीसा और साउथ में तमिलनाडु तक में बनवाए गए थे तो इस प्रकार से ये हमने 64 योगिनी टेंपल्स के बारे में डिस्कस किया अब खजरा मंदिर के बारे में डिस्कस करते हैं खजुरा में देखो बहुत सारे मंदिर हैं ज्यादातर हिंदू देवी देवताओं को समर्पित है और कुछ जैन मंदिर भी हैं खजुराहो के मंदिर अपनी बहुत सारी इरोटिक मूर्तियों के लिए भी जाने जाते हैं मतलब कामुक मूर्तियां यहां पर देखो जो कामुक भावनाएं हैं ना उनको को आध्यात्मिक भावनाओं के समान इंपॉर्टेंस दिया गया है इन इरोटिक मूर्तियों को ना लाइफ और यूनिवर्स के पाठ के रूप में देखा गया है और ये जो इरोटिक मूर्तियां है ना ये देखो मंदिरों की दीवारों पर और वहां पे जो पिलर्स है ना उनके ऊपर उकेरी गई हैं जो बहुत ज्यादा सुंदर और कलात्मक है खजुरा में ही देखो एक लक्ष्मण मंदिर है जो भगवान विष्णु को समर्पित है इसे 954 यानी 954 एडी में चंदेल राजा ढंगा ने बनवाया था ये देखो नागर स्टाइल का एक मंदिर है जो ऊंचे चबूतरे पर बना है और इस चबूतरे तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी है खजरा का ही कंदरिया महादेव मंदिर ये ना खजराहो का सबसे ऊंचा मंदिर है और भगवान शिव को समर्पित है यह मंदिर चंदेल राजाओं के समय 11वीं शताब्दी में बना था डिजाइन और नकाशी बहुत जबरदस्त है तो इस प्रकार से देखो हमने सेंट्रल इंडिया में जो टेंपल्स हैं उनके स्टाइल एंड उनके आर्किटेक्चर के बारे में डिस्कस कर लिया अब देखो डेकन आर्किटेक्चर के हम बारे में हम डिस्कस करते हैं एक बात बताओ डेकन में कौन-कौन से रीजंस आते हैं डेकन में और हिंदी में दक्कन में महाराष्ट्र कर्नाटक तेलंगाना आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से आते हैं देखो ऐतिहासिक रूप से ना डेकन कई सारी इंपॉर्टेंट डायनेस्टीज का सेंटर रहा है जैसे सातवाहन चालुक्य राष्ट्रकूट और विजयनगर साम्राज्य इन डायनेस्टीज ने ना डेकन की संस्कृति कला और आर्किटेक्चर को काफी ज्यादा इन्फ्लुएंस किया है डेकन के कई इलाकों में खास करके कर्नाटक में नॉर्थ इंडिया और दक्षिण भारत यानी साउथ इंडिया दोनों का जो स्टाइल है ना नागर स्टाइल और डरविन स्टाइल दोनों को ना कॉमिनेशन देखने को मिलता है यहां के मंदिरों में नागर स्टाइल के ऊंचे शिखर और डरविज स्टाइल के मंडप और गोपुरम जैसे फीचर्स साथ-साथ नजर आते हैं सातवीं से आठवीं शताब्दी तक आते-आते महाराष्ट्र के एलोरा में बहुत बड़े-बड़े भव्य मंदिर के बनने की शुरुआत हुई लगभग देखो 750 एडी तक ना वेस्ट चालुक्य डायनेस्टी से डेकन का जो कंट्रोल था ना वो राष्ट्रकूट डायनेस्टी के हाथों में चला गया राष्ट्रकूट डायनेस्टी के आर्किटेक्चर की सब सबसे बड़ी जो अचीवमेंट है ना वो है एलोरा का कैलासनाथ मंदिर यह मंदिर यानी कैलासनाथ मंदिर जो है भारत में रोक कठ यानी चट्टान को काट कर बनाने की हजारों साल पुरानी परंपरा का एक शानदार एग्जांपल है ये एक देखो पूरा डरविज शैली का टेंपल है जिसमें नंदी की मूर्ति वाला मंडप है क्योंकि मंदिर भगवान शिव को समर्पित है इसमें गोपुरम जैसा प्रवेश द्वार चारों ओर ब्रह्मदेव और छोटी मूर्तियों वाले मंदिर सीढ़ियां लगभग 30 मीटर ऊंचा विमान भी है ये सब ना सीधे चट्टान को काट कर बनाए गए हैं एक पहाड़ के पत्थर को धीरे-धीरे तराज कर पूरा कैलासनाथ मंदिर खड़ा कर दिया गया और देखो आगे बढ़े उससे पहले एक चीज वैसे तो मैंने आपको पहले भी बताई थी डेकन में ये जो मंदिर है ना ये देखो वेसर स्टाइल के हैं वेसर स्टाइल एक कॉमिनेशन है नागर स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर और दूसरी तरफ डर्ब देड स्टाइल ऑफ टेंपल आर्किटेक्चर दोनों का कॉमिनेशन है वेसर स्टाइल वेसर स्टाइल में जो मंदिर है ना यहां पर ना एक तरफ आपको नागर स्टाइल के ऊंचे ऊंचे शिखर और दूसरी तरफ डरविज स्टाइल के गोपुर और मंडप दोनों एक साथ मिलेंगे डेकन में वेसर स्टाइल के ना मंदिर जो हैं वह चालुक्य होयसल और विजयनगर काल में ज्यादातर बनवाए गए थे कुछ एग्जांपल्स मैं आपको दूं वेसर मंदिरों के जैसे देखो बेलूर का चिन केशव मंदिर हले बीड़ का होय सालेश्वरम और सोमनाथपुर का केशव मंदिर इन सब मंदिरों में ना आपको कॉमिनेशन देखने को मिलेगा नागर टेंपल आर्किटेक्चर और रविद टेंपल आर्किटेक्चर दोनों का यानी यह मंदिर वेसर स्टाइल के हैं चलो आगे बढ़ते हैं देखो पुल केसन फर्स्ट ने ना 500 1443 यानी 543 एडी में बादामी के आसपास के इलाकों पर ना कब्जा करके वेस्ट चालुक्य साम्राज्य की स्थापना की और शुरुआती चालुक्य काल में मंदिरों का जो निर्माण था ना वो मुख्यत देखो चट्टानों को काटकर गुफाएं बनाने के रूप में हुआ लेकिन बाद में चालुक्य काल में पत्थर के मंदिर भी बनने लगे एहोल में रावण फाड़ी गुफा शायद सबसे पहली चालुक्य केव है यह अपनी अनोखी मूर्ति कला के लिए भी जानी जाती है इस केव की ना सबसे इंपॉर्टेंट मूर्तियों में से एक है नटराज की मूर्ति नटराज भगवान शिव का एक रूप है जिसमें वो नाचते हुए दिखाई देते हैं नटराज की मूर्ति देखो बहुत खास है क्योंकि इसमें उनके साथ-साथ सात माताओं की मूर्तियां भी हैं ये सात माताएं सप्त मात्रिचय कुमारी वैष्णवी वाराही इंद्राणी और चामुंडा शामिल है ये देखो सभी अलग-अलग देवताओं की शक्तियां मानी जाती हैं तो इस मूर्ति में ये माताएं नटराज यानी भगवान शिव के दोनों ओर खड़ी हैं ये मूर्तियां ना बहुत बड़ी हैं आदमी के या फिर औरत के असली आकार से भी बड़ी यानी लार्जर देन लाइफ आकार की ये मूर्तियां हैं आमतौर पर देखो मूर्तियां इतनी बड़ी नहीं बनाई जाती थी इसलिए इनका जो आकार है साइज जो है वो काफी खास है भगवान शिव के यानी नटराज के लेफ्ट साइड में तीन माताएं हैं और राइट साइड में चार माताएं हैं सबके हाथों में अलग-अलग हथियार या चीजें हैं जो उनकी पहचान बताती हैं इसके अलावा देखो पत्ता दखल में ना चालुक्य स्टाइल का सबसे मंदिरों में से एक है विरुपाक्ष मंदिर इस मंदिर का निर्माण ना विक्रमादित्य सेकंड ने 733 से लेकर 744 एडी के बीच करवाया था और ये उन्होंने अपनी मुख्य रानी लोक महादेवी के कहने पर करवाया था ये विरुपाक्ष मंदिर जो है भगवान शिव को समर्पित है और इसमें भगवान शिव की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है यहीं पर यानी पत्तादकल में एक अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर है पापनाथ मंदिर यह भी भगवान शिव को समर्पित है इसके अलावा देखो कर्नाटक के एहोल में स्थित लाड खान मंदिर ये तो देखो पहाड़ी इलाकों में जैसे लकड़ी से मंदिर बने होते थे ना उस टाइल से प्रेरित ज्यादा लगता है यह कर्नाटक के एहोल में स्थित लाड खान मंदिर हालांकि यह मंदिर पथरों से बनाया गया है फिर भी इसकी छत की डिजाइन बिल्कुल लकड़ी के मंदिरों जैसी है इसके बाद नेक्स्ट कर्नाटक के हलेबिदु मंदिर मतलब होयसल राजाओं के स्वामी ये देखो एक बहुत ही खूबसूरत और प्रसिद्ध मंदिर है यह होयसल राजा ने 1150 एडी में ब्लैक सिस्ट स्टोन से बनवाया ये जो मंदिर है ना नटराज यानी भगवान शिव के नृत्य रूप को समर्पित है इसकी एक खास बात यह है यह मंदिर देखो एक दोहरी इमारत है मतलब डबल बिल्डिंग है जिसमें संगीत और नृत्य के लिए एक बड़ा हॉल या मंडप बनाया गया है मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नकाशी और मूर्ति कारी की गई है जो होयसल आर्ट की खूबियों को दर्शाता है इसके अलावा देखो डेकन आर्किटेक्चर में ही नेक्स्ट है 1336 एडी में स्थापित विजयनगर जिसका लिटरल मीनिंग है विजय का शहर विजयनगर में देखो कई सारे इंटरनेट इंटरनेशनल ट्रैवलर्स आए जैसे इटली के ट्रैवल निकोलो डी कोंटी पुर्तगाली ट्रैवलर जिनका नाम है डोमिंग पायस यह सब इंटरनेशनल ट्रैवलर्स विजयनगर आए इन ट्रैवलर्स ने ना विजयनगर के बारे में बहुत इंपॉर्टेंट चीजें और इंटरेस्टिंग चीजें लिखी हैं ट्रैवलर्स के द्वारा जो चीजें लिखी गई हैं इससे हमें विजयनगर के इतिहास को और ज्यादा गहराई से समझने में मदद मिलती है इसके अलावा देखो कई सारे संस्कृत और तेलुगु लिटरेचर वर्क्स भी विजयनगर साम्राज्य की काफी स्मृत लिटरेचर ट्रेडिश् का एविडेंस देती हैं मतलब संस्कृत और तेलुगु जो लिटरेचर डॉक्यूमेंट है ना वो हमें बताते हैं कि विजयनगर साम्राज्य में लिटरेचर ट्रेडिशनल था और अगर आर्किटेक्चर की बात करें तो यहां पे ना एक प्रकार का ना कॉमिनेशन देखने को मिलता है जो आर्किटेक्चर यहां पे है वो कॉमिनेशन देखो डरविज स्टाइल एक तरफ और दूसरी तरफ पड़ोसी सल्तनत का जो इस्लामिक स्टाइल था वो दोनों का कॉमिनेशन डरविज स्टाइल और दूसरी तरफ इस्लामिक स्टाइल दोनों का कॉमिनेशन जैसे देखो एग्जांपल के तौर पर विजयनगर के मंदिरों में ना रवि स्टाइल की खास विशेषताएं जैसे ऊंचे ऊंचे गोपुरम विशाल मंडप और सुंदर मूर्तिका यह सब देखने को मिलता है इसके साथ-साथ इनमें इस्लामी आर्किटेक्चर के तत्व भी शामिल किए गए जैसे गुबल मेहराब और जाली वाली खिड़कियां तो दोनों शैलियों का कॉमिनेशन विजयनगर की आर्किटेक्चर को एक अनूठी पहचान देता है तो इस प्रकार से हमने यह भी कंप्लीट कर लिया डेकन आर्किटेक्चर डेकन आर्किटेक्चर को समझने के बाद अब हम कुछ बुद्धिस्ट आर्किटेक्चरल डेवलपमेंट्स को देख लेते हैं बुद्धिस्ट आर्किटेक्चर में ना सबसे प्रमुख स्थल तो देखो बध गया है यहां पे ना बोधि वृक्ष का बहुत ज्यादा महत्व है बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी साथ ही साथ महाबोधी मंदिर उस समय के ब्रिक वर्क का यानी ईंटों के काम का एक बहुत इंपॉर्टेंट एग्जांपल है कहा यह जाता है कि बोधी ब्रिक्स के पास पहला मंदिर सम्राट अशोक ने बनवाया था मंदिर में देखो बहुत सारी मूर्तियां ऐसी हैं जो आठवीं शताब्दी के पाल डायनेस्टी के टाइम पीरियड की मानी जाती हैं आज के समय में जो महाबोधी मंदिर है ना काफी हद तक देखो यह सातवीं शताब्दी के पुराने डिजाइन पर आधारित है लेकिन हां इसका रिनोवेशन हुआ था कॉलोनियल पीरियड के दौरान यानी अंग्रेज जब भारत में रूल कर रहे थे उस समय इस मंदिर का जो डिजाइन है ना थोड़ा देखो असामान्य है क्योंकि ना तो यह स्ट्रिक्टली डरविन आर्किटेक्चर है और ना ही नागर स्टाइल का आर्किटेक्चर है यह नागर मंदिर की तरह नैरो है बट देखो इसमें डरविन आर्किटेक्चर जैसी सीधी ऊंचाई है बिना मुड़े हुए इसके बाद देखो नालंदा विश्वविद्यालय की बात कर लेते हैं नालंदा विश्वविद्यालय यह देखो एक महाविहार है क्योंकि ना यहां पे अलग-अलग साइज की मॉनेस्ट्रीज मिलती हैं तो नालंदा विश्वविद्यालय ना एक प्रकार से अलग-अलग टाइप की अलग-अलग साइज की मॉनेस्ट्रीज का एक कॉम्प्लेक्शन की नीव रखी थी और बाद में जो शासक आए उन्होंने इसका विस्तार किया यानी यूनिवर्सिटी को एक्सपेंड किया नालंदा की स्टको पत्थर और ब्रोंज की जो मूर्तिकला है ना इस इस पर देखो सारनाथ की बौद्ध गुप्त कला का काफी इन्फ्लुएंस देखने को मिलता है शुरुआती नालंदा मूर्तियों में महायान बोधी देवी देवताओं को दर्शाया गया है जैसे आपको एग्जांपल देता हूं खड़े बुध कमल के फूल पर बैठे बुधि सत्व मंजू श्री कुमार और अवलोकितेश्वरा नागार्जुन शामिल है ये मूर्तियां ना भगवान बुद्ध और बौधि सत्व को ना ह्यूमन फॉर्म में चित्रित करती हैं और उनकी स्पिरिचुअल पावर और कंपैशन को दर्शाती हैं इसके बाद देखो 11वीं और 12वीं शताब्दी के अंत में जब नालंदा एक इंपोर्टेंट तांत्रिक सेंटर के रूप में उभरा तो फिर यहां पर देखो वज्रयान देवी देवताओं की मूर्तियां बनने लगी चालुक्य होयसल और विजयनगर काल में ज्यादातर बनवाए गए थे कुछ एग्जांपल्स मैं आपको दूं वेसर मंदिरों के जैसे देखो बेलूर का चिन केशव मंदिर हले बीड का हो सालेश्वरम दिर और सोमनाथपुर का केशव मंदिर इन सब मंदिरों में ना आपको कॉमिनेशन देखने को मिलेगा नागर टेंपल आर्किटेक्चर और रविद टेंपल आर्किटेक्चर दोनों का यानी यह मंदिर वेसर स्टाइल के हैं चलो आगे बढ़ते हैं देखो पुलकेसिन फर्स्ट ना 543 यानी 543 एडी में बादामी के आसपास के इलाकों पर ना कब्जा करके वेस्ट चालुक्य साम्राज्य की स्थापना की और शुरुआती चालुक्य काल में मंदिरों का जो निर्माण था ना वो मुख्यत देखो चट्टानों को काटकर गुफाएं बनाने के रूप में हुआ लेकिन बाद में चालुक्य काल में पत्थर के मंदिर भी बनने लगे एहोल में रावण फाड़ी गुफा शायद सबसे पहली चालुक्य केव है यह अपनी अनोखी मूर्ति कला के लिए भी जानी जाती है इस केव की ना सबसे इंपॉर्टेंट मूर्तियों में से एक है नटराज की मूर्ति नटराज भगवान शिव का एक रूप है जिसमें वो नाचते हुए दिखाई देते हैं नटराज की मूर्ति देखो बहुत खास है क्योंकि इसमें उनके साथ-साथ सात माताओं की मूर्तियां भी हैं ये सात माताएं सप्त मात्रिचय कुमारी वैष्णवी वाराही इंद्राणी और चामुंडा शामिल है ये देखो सभी अलग-अलग देवताओं की शक्तियां मानी जाती हैं तो इस मूर्ति में यह माताएं नटराज यानी भगवान शिव के दोनों ओर खड़ी हैं ये मूर्तियां नाना बहुत बड़ी हैं आदमी के या फिर औरत के असली आकार से भी बड़ी यानी लार्जर दन लाइफ आकार की ये मूर्तियां है आमतौर पर देखो मूर्तियां इतनी बड़ी नहीं बनाई जाती थी इसलिए इनका जो आकार है साइज जो है वो काफी खास है भगवान शिव के यानी नटराज के लेफ्ट साइड में तीन माताएं हैं और राइट साइड में चार माताएं हैं सबके हाथों में अलग-अलग हथियार या चीजें हैं जो उनकी पहचान बताती हैं इसके अलावा देखो पत्ता दखल में ना चालुक्य स्टाइल का सबसे सब से ज्यादा भव्य मंदिरों में से एक है विरुपाक्ष मंदिर इस मंदिर का निर्माण ना विक्रमादित्य सेकंड ने 733 से लेकर 744 एडी के बीच करवाया था और यह उन्होंने अपनी मुख्य रानी लोक महादेवी के कहने पर करवाया था यह विरुपाक्ष मंदिर जो है भगवान शिव को समर्पित है और इसमें भगवान शिव की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है यहीं पर यानी पत्तादकल में एक अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर है पापनाथ मंदिर ये भी भगवान शिव को समर्पित है इसके अलावा देखो कर्नाटक के एहोल में स्थित लाड खान मंदिर ये तो देखो पहाड़ी इलाकों में जैसे लकड़ी से मंदिर बने होते थे ना उस टाइल से प्रेरित ज्यादा लगता है यह कर्नाटक के एहोल में स्थित लाड खान मंदिर हालांकि यह मंदिर पथरों से बनाया गया है फिर भी इसकी छत की डिजाइन बिल्कुल लकड़ी के मंदिरों जैसी है इसके बाद नेक्स्ट कर्नाटक के हलेबिदु मतलब होयसल राजाओं के स्वामी ये देखो एक बहुत ही खूबसूरत और प्रसिद्ध मंदिर है यह होयसल राजा ने 1150 एडी में ब्लैक सिस्ट स्टोन से बनवाया ये जो मंदिर है ना नटराज यानी भगवान शिव के नृत्य रूप को समर्पित है इसकी एक खास बात यह है यह मंदिर देखो एक दोहरी इमारत है मतलब डबल बिल्डिंग है जिसमें संगीत और नृत्य के लिए एक बड़ा हॉल या मंडप बनाया गया है मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नकाशी और मूर्तिका की गई है जो होयसल आर्ट की खूबियों को दर्शाता है इसके अलावा देखो डेकन आर्किटेक्चर में ही नेक्स्ट है 1336 एडी में स्थापित विजयनगर जिसका लिटरल मीनिंग है विजय का शहर विजयनगर में देखो कई सारे इंटरनेशनल ट्रैवलर्स आए जैसे इटली के ट्रैवल निकोलो डी कोंटी पुर्तगाली ट्रैवलर जिनका नाम है डोमिंग पायस ये सब इंटरनेशनल ट्रैवलर्स विजयनगर आए इन ट्रैवलर्स ने ना विजयनगर के बारे में बहुत इंपॉर्टेंट चीजें और इंटरेस्टिंग चीजें लिखी हैं ट्रैवलर्स के द्वारा जो चीजें लिखी गई हैं इससे हमें विजयनगर के इतिहास को और ज्यादा गहराई से समझने में मदद मिलती है इसके अलावा देखो कई सारे संस्कृत और तेलुगु लिटरेचर वर्क्स भी विजयनगर साम्राज्य की काफी स्मृत लिटरेचर ट्रेडिश् का एविडेंस देती हैं मतलब संस्कृत और तेलुगु जो लिटरेचर डॉक्यूमेंट है ना वो हमें बताते हैं कि विजयनगर साम्राज्य में लिटरेचर ट्रेडीशन काफी ज्यादा स्ट्रांग था और अगर आर्किटेक्चर की बात करें तो यहां पे ना एक प्रकार का ना कॉमिनेशन देखने को मिलता है जो आर्किटेक्चर यहां पे है वो कॉमिनेशन देखो डरविज स्टाइल एक तरफ और दूसरी तरफ पड़ोसी सल्तनत का जो इस्लामिक स्टाइल था वो दोनों का कॉमिनेशन डरविज स्टाइल और दूसरी तरफ इस्लामिक स्टाइल दोनों का कॉमिनेशन जैसे देखो एग्जांपल के तौर पर विजयनगर के मंदिरों में ना डरविज स्टाइल की खास विशेषताएं जैसे ऊंचे ऊंचे गोपुरम विशाल मंडप और सुंदर मूर्तिका यह सब देखने को मिलता है इसके साथ-साथ इनमें इस्लामी आर्किटेक्चर के तत्व भी शामिल किए गए जैसे गुबल मेहराब और जाली वाली खिड़कियां तो दोनों शैलियों का कॉमिनेशन विजयनगर की आर्किटेक्चर को एक अनूठी पहचान देता है तो इस प्रकार से हमने यह भी कंप्लीट कर लिया डेकन आर्किटेक्चर डेकन आर्किटेक्चर को समझने के बाद अब हम कुछ बुद्धिस्ट आर्किटेक्चरल डेवलपमेंट्स को देख लेते हैं ष्ठ आर्किटेक्चर में ना सबसे प्रमुख स्थल तो देखो बध गया है यहां पे ना बोधि वृक्ष का बहुत ज्यादा महत्व है बौधि वृक्ष के नीचे भगवान बुध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी साथ ही साथ महाबोधी मंदिर उस समय के ब्रिक वर्क का यानी ईंटों के काम का एक बहुत इंपॉर्टेंट एग्जांपल है कहा ये जाता है कि बोधी ब्रिक्स के पास पहला मंदिर सम्राट अशोक ने बनवाया था मंदिर में देखो बहुत सारी मूर्तियां ऐसी हैं जो आठवीं शताब्दी के पाल डायनेस्टी के टाइम पीरियड की मानी जाती हैं आज के समय में जो महाबोधी मंदिर है ना काफी हद तक देखो यह सातवीं शताब्दी के पुराने डिजाइन पर आधारित है लेकिन हां इसका रिनोवेशन हुआ था कॉलोनियल पीरियड के दौरान यानी अंग्रेज जब भारत में रूल कर रहे थे उस समय इस मंदिर का जो डिजाइन है ना थोड़ा देखो असामान्य है क्योंकि ना तो यह स्ट्रिक्टली डरविन आर्किटेक्चर है और ना ही नागर स्टाइल का आर्किटेक्चर है यह नागर मंदिर की तरह नैरो है बट देखो इसमें डरविन आर्किटेक्चर जैसी सीधी ऊंचाई है बिना मुड़े हुए इसके बाद देखो नालंदा विश्वविद्यालय की बात कर लेते हैं नालंदा विश्वविद्यालय यह देखो एक महाविहार है क्योंकि ना यहां पे अलग-अलग साइज की मॉनेस्ट्रीज मिलती हैं तो नालंदा विश्वविद्यालय ना एक प्रकार से अलग-अलग टाइप की अलग-अलग साइज की मॉनेस्ट्रीज का एक कॉम्प्लेक्शन की नीव रखी थी और बाद में जो शासक आए उन्होंने इसका विस्तार किया यानी यूनिवर्सिटी को एक्सपेंड किया नालंदा की स्टको पत्थर और ब्रोंज की जो मूर्तिकला है ना इस पर देखो सारनाथ की बौद्ध गुप्त कला का काफी इन्फ्लुएंस देखने को मिलता है शुरुआती नालंदा मूर्तियों में महायान बोधी देवी देवताओं को दर्शाया गया है जैसे आपको एग्जांपल देता हूं खड़े बुद्ध कमल के फूल पर बैठे बोधि सत्व मंजू श्री कुमार और अवलोकितेश्वरा नागार्जुन शामिल हैं ये मूर्तियां ना भगवान बुद्ध और बौधि सत्व को ना ह्यूमन फॉर्म में चित्रित करती हैं और उनकी स्पिरिचुअल पावर और कंपैशन को दर्शाती हैं इसके बाद देखो 11वीं और 12वीं शताब्दी के अंत में जब नालंदा एक इंपोर्टेंट तांत्रिक सेंटर के रूप में उभरा तो फिर यहां पर देखो वज्रयान देवी देवताओं की मूर्तियां बनने लगी इनमें वज्र शारदा जो कि सरस्वती का एक रूप है खर्स पाण अवलोकितेश्वरा ना बौद्ध धर्म में तांत्रिक प्रथाओं के डेवलपमेंट और इंपॉर्टेंस को दर्शाती हैं वज्रयान बौद्ध धर्म का एक टाइप है आप कह सकते हो जिसमें जादुई मंत्र मुद्राएं और प्रोसेसेस का इस्तेमाल किया जाता है इसके बाद मुकुट पहने बुद्ध की मूर्तियां आमतौर पर 10वीं शताब्दी के बाद ही दिखने लगी ये देखो एक नई पर्वती थी जो बुध के चित्रण में आई इससे पहले बुध को ना बिना किसी आभूषण या फिर मुकुट के बिल्कुल साधारण कपड़ों में दर्शाया जाता था लेकिन ना 10वीं शताब्दी के बाद बुद्ध को ना आभूषणों के साथ और मुकुट के साथ दिखाया जाने लगा मुकुट का प्रयोग शायद उनकी दिव्यता और उनकी इंपॉर्टेंस को दिखाने के लिए किया जाता था बाद में देखो उड़ीसा में ना कई बड़े-बड़े बौद्ध मठ यानी बुद्धिस्ट मॉनेस्ट्रीज डेवलप हुई इनमें ललित गिरी वज्र गिरी और रतन गिरी सबसे फेमस हैं ये मठ यानी मॉनेस्ट्रीज उड़ीसा में बौद्ध धर्म और कला के ना बहुत इंपॉर्टेंट सेंटर बन गए इनमें बौद्ध मूर्ति कला और आर्किटेक्चर के बेहतरीन नमूने देखने को मिलते हैं इसके बाद कोस्टल सिटी नागापटनम भी देखो चोल पीरियड के दौरान ना एक इंपॉर्टेंट बौद्ध केंद्र था बुद्धिस्ट सेंटर था यह एक इंपॉर्टेंट पोर्ट था जहां पे विदेशी व्यापारी और यात्री आया करते थे इस शहर में ना कई बौद्ध मठ और विहार थे आज भी यहां बौद्ध स्तूप और मंदिरों के खंडहर मौजूद है जो इसके गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं तो इस प्रकार से हमने बुद्धिस्ट आर् आर्किटेक्चर से संबंधित चीजें डिस्कस की बस अब देखो टेंपल आर्किटेक्चर में ना लास्ट है जैन आर्किटेक्चरल डेवलपमेंट्स लास्ट है बस ये जैन लोग ना हिंदुओं की तरह बहुत सारे मंदिरों के निर्माता थे उनके पवित्र स्थल और तीर्थ स्थान अक्सर देखो पहाड़ी इलाकों को छोड़कर पूरे भारत में पाए जाते हैं जैसे मतलब हिमाचल उत्तराखंड इनको छोड़ देना तो लगभग पूरे भारत में जैन टेंपल आपको मिलेंगे इवन माउंट आबू में भी मिलेंगे जो पहाड़ी के ऊपर है लेकिन हिमाचल उत्तराखंड वहां पे नहीं मिलते कश्मीर में जैन धर्म देखो एक प्राचीन भारतीय धर्म है जिसके अनुयाई जिसके फॉलोअर्स अहिंसा और बिल्कुल सिंपल जीवन में विश्वास करते हैं जैन धर्म के देखो 24 तीर्थंकर हुए जिनमें महावीर और पार्श्वनाथ सबसे प्रमुख हैं जैन मंदिर इन्हीं तीर्थंकरों और अन्य देवी देवताओं को समर्पित होते हैं सबसे पुराने जैन तीर्थ स्थल बिहार में पाए जाते हैं यहां पर भी देखो पावापुरी में भगवान महावीर का निर्माण स्थल और वैशाली जैसी जगहें शामिल हैं इसके अलावा डेकन में एलोरा और एहोल ये सबसे महत्त्वपूर्ण जैन स्थलों में से हैं एलोरा में कई जैन केव टेंपल हैं जो शानदार आर्किटेक्चर का एग्जांपल है एहोल में मेघु जैन मंदिर काफी फेमस है जिसमें तीर्थंकरों की खूबसूरत प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं इसके अलावा मध्य प्रदेश में देवगढ़ खजुरा चंदेरी और ग्वालियर में जैन मंदिरों के कुछ शानदार नमूने देखने को मिलते हैं देवगढ़ में 31 फीट ऊंची बाहुबली की एक विशाल प्रतिमा है ग्वालियर स्थित सिद्ध क्षेत्र सोनागिरी जैन तीर्थ यात्रा का देखो एक इंपॉर्टेंट सेंटर है इसके अलावा कर्नाटक में जैन मंदिरों की एक काफी जबरदस्त विरासत है और श्रवण बेलगोला में गोमटेश की प्रसिद्ध मूर्ति है भगवान बाहुबली की यह ग्रेनाइट प्रतिमा 18 मीटर या फिर यूं कहे 57 फीट ऊंची है यह देखो दुनिया की सबसे ऊंची दुनिया की सबसे ऊंची मोनोलिथिक फ्री स्टैंडिंग स्ट्रक्चर है आप पूछोगे सर यह मोनोलिथ मोनोलिथिक फ्री स्टैंडिंग स्ट्रक्चर क्या होती है मतलब देखो यह जो मूर्ति है ना एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई है और इसे खड़ा करने के लिए ना किसी एक्स्ट्रा स्पोर्ट की जरूरत नहीं है तो इसी लिए ये दुनिया की सबसे ऊंची मोनोलिथिक फ्री स्टैंडिंग स्ट्रक्चर है बिना किसी स्पोर्ट के इसका निर्माण जो है ना वो मैसूर के गंग राजाओं के सेनापति और प्रधानमंत्री चामुंडे राय ने करवाया था चामुंडे राय स्वयं जैन धर्म के फॉलोअर और संरक्षक थे उन्होंने ना इस मूर्ति के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी और इसे पूरा करवाने में 12 साल लग गए माउंट आबू में जो जैन टेंपल्स है ना उनका निर्माण तो देखो विमल शाह ने करवाया था माउंट आबू देखो आर्किटेक्चर के हिसाब से ना काफी इंपोर्टेंट है क्योंकि यहां पर नागर और रविम दोनों स्टाइल्स का कॉमिनेशन देखने को मिलता है सबसे लास्ट में गुजरात के काठिया वार्ड में पालीताना के पास शत्रुंजय की पहाड़ियों में एक महान जैन तीर्थ स्थल है यहां पर देखो शत्रुंजय की पहाड़ियों में ना बहुत सारे मंदिर हैं मतलब दर्जनों मंदिरों का ग्रुप है यह मंदिर विभिन्न ऊंचाइयों पर बने हैं जिन तक पहुंचने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ने पड़ती हैं शत्रुंजय के शिखर पर मतलब शत्रुंजय पहाड़ियों के शिखर पर अरिष्ट नेमी और नेमीनाथ के जबरदस्त मंदिर स्थित हैं इसके बाद अब हम डिस्क डिस्कस करते हैं मेडि वल आर्किटेक्चर के बारे में जब देखो भारत में इस्लाम धर्म आया ना तो यहां के कल्चर पर तो असर पड़ा ही लेकिन सबसे ज्यादा असर भारत के आर्ट एंड आर्किटेक्चर पर पड़ा इससे पहले भारत में डरविन नागर और वेसर स्टाइल में बने हजारों प्राचीन मंदिर थे जो अपनी खूबसूरती और डिजाइन के लिए मशहूर थे लेकिन जैसे-जैसे इस्लाम धर्म फैला उसका असर यहां की वास्तुकला पर हुआ भारत में इस्लामिक आर्किटेक्चर बनने की शुरुआत एक मस्जिद से हुई थी जिसका नाम है चेराम जुमा मस्जिद केरला के त्रिसूर में बनी इस मस्जिद का निर्माण चेरा किंग चेराम पिरम के रूल में अरेबिया से आए मलिक इवन दीनार ने 629 एडी में किया था और यह इंडिया में बनी देखो पहली मस्जिद होने के साथ-साथ दुनिया की भी दूसरी मस्जिद थी वैसे तो भारत में इस्लाम की शुरुआत सातवीं सेंचरी में हो गई थी लेकिन इस्लामिक आर्किटेक्चर की असली शुरुआत हमें 13 सेंचुरी में टर्किश कनक्स के बाद देखने को मिलती है इस्लामिक आर्किटेक्चर के बारे में देखो सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें इस्लाम धर्म में जो सिंबल्स या फिर साइन की इंपोर्टेंस है उसको देखो आर्किटेक्चर में भी बखूबी दिखाया गया है आप एग्जांपल देखिए जैसे देखो इस्लामिक आर्किटेक्चर में ना आर्च यानी मेहराब का यूज किया जाता है अब यह इस्लाम में ना आर्च किसको रिप्रेजेंट करता है यह आर्च यानी मेहराब इस्लाम में रिप्रेजेंट करता है स्पेस को ठीक उसी प्रकार से इस्लामिक आर्किटेक्चर में ना डोम यानी गुबु का भी यूज किया जाता है जो देखो इस्लाम में खुले आसमान को दर्शाता है इस्लामिक रूलर ने बाद में अपने मोनुमेंट्स में चारबाग स्टाइल की शुरुआत की जो इन मोनुमेंट्स की खूबसूरती को बहुत बढ़ा देता है चारबाग स्टाइल में एक स्केर ब्लॉक को ना चार एक जैसे दिखने वाले गार्डेंस में डिवाइड किया जाता है दिल्ली में बने हुमायूं टोम में यह स्टाइल देखने को मिलता है इसके अलावा टर्किश रूलरसोंग्स देखो इंडिया के इस्लामिक आर्किटेक्चर में ना जहां एक तरफ पर्शियन और टर्किश दोनों इन्फ्लुएंस देखने को मिलते हैं उसके साथ-साथ इंडिया के लोकल आर्किटेक्चरल स्टाइल का भी असर देखने को मिलता है और इसी वजह से इस्लामिक आर्किटेक्चर ना कह के इसे इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर कहा जाता है इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर ने इंडिया की मॉन्यूमेंट्स बनाने की जो स्टाइल थी ना उसमें बहुत सारे नए फीचर्स ऐड कर दिए जो इंडियन स्टाइल से बिल्कुल अलग थे जैसे इंडियन स्टाइल्स में ना पहले टेंपल आर्किटेक्चर में जैसा हमने समझा शिखर को जरूरी माना जाता था था लेकिन इस्लामिक आर्किटेक्चर में ना शिखर की जगह गुंबद ने ले ली और इस फेस में ना यानी मेडियल पीरियड में किले मकबरे मस्जिद और मीनारों को सबसे ज्यादा बनवाया गया इसके बाद देखो इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर को ना हम ध्यान से देखें तो इनको चार अलग-अलग सब कैटेगरी में डिवाइड किया जा सकता है पहला है इंपीरियल स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर जो दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों के टाइम पे शुरू हुआ दूसरा है प्रोविंशियल स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर जो कि देखो मेडि वल पीरियड में अलग-अलग प्रोविंसेस में डेवलप होना शुरू हुआ इस स्टाइल में बने मॉन्यूमेंट हमें मांडू गुजरात बंगाल और जौनपुर के एरियाज में देखने को मिलते हैं तीसरा है मुगल स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर जो कि देखो हमें नाम से ही समझ में आ रहा है कि मुगलों के समय में यह जो आर्किटेक्चर है वो डेवलप हुआ आगरा का ताज महल इस स्टाइल का सबसे सुंदर एग्जांपल है जिसे देखो 1983 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में इंक्लूड किया गया इसके बाद एक और स्टाइल है सबसे लास्ट में वो है डेकन स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर यह डेकन एरिया में डेवलप हुआ कुछ इस्लामिक रूलरसोंग्स होकर खुद से अपना राज एस्टेब्लिश कर दिया तो उन्हीं के अंडर यह डेकन स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर डेवलप हुआ जैसे एग्जांपल के तौर प देखो बीजापुर और गोलकोंडा में जो इमारतें हैं वहां पे आप डेकन स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर देख सकते हो जैसे कि देखो गोल गुंबज तो अब हम इन चारों सब कटेगरी ग्रीज को ना थोड़ा डिटेल में देखते हैं सबसे पहले हैं इंपीरियल स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर 1206 एडी से लेके 1526 एडी के बीच दिल्ली सल्तनत के अलग-अलग सुल्तानों के अंतर्गत यह इंपीरियल स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर डेवलप हुआ तो इसी को सबसे पहले हम डिस्कस करते हैं सल्तनत पीरियड देखो दिल्ली सल्तनत में ना आर्किटेक्चर की शुरुआत स्लेव डायनेस्टी के कुतुबुद्दीन बबक के पीरियड में शुरू हुई आर्किटेक्चर को डेवलप करने में दिल्ली पर हुकूमत करने वाली सभी डायनेस्टीज ने अपना-अपना योगदान दिया रियल स्कूल का पहला स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर स्लेव डायनेस्टी द्वारा डेवलप किया गया जिसे मामल स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर भी कहते हैं इस फेस में हुआ क्या ज्यादातर देखो जो पहले से बने हुए स्ट्रक्चर्स थे ना उनको तोड़ा गया और बस नए तरीके से उनको रिकंस्ट्रक्ट किया गया कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना सबसे पहला काम किला राय पिथोरा में करवाया जिसको पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था दिल्ली में बने कुतुब मीनार का निर्माण इसी पीरियड में शुरू हुआ था कुतुब मीनार जिसकी ऊंचाई 72.5 मीटर है इस मीनार को ना पांच मंजिलों में डिवाइड किया गया है कुतुब मीनार की नीव दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन एवक ने रखी हालांकि देखो इसका पूरा निर्माण बाद में सुल्तान इल्तुतमिश ने 1230 एडी में करवाया यह मीनार ना भारत में इस्लामिक रूल की शुरुआत की एक निशानी के तौर पर बनवाया गया था यह मीनार जालियों से सजी है और बाहरी दीवारों पर ना अरेबिक लैंग्वेज में इंस्क्राइनॉक्स दौलताबाद में स्थित चांद मीनार टावर भी इसी स्टाइल के आर्किटेक्चर का एक अच्छा एग्जांपल है जो कुतुब मीनार की तरह ही मनाया गया है इनके अलावा दूसरे आर्किटेक्चरल स्ट्रक्चर्स को देखें तो देखो कुवत उल इस्लाम मोस्क जो कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्टेड है और अजमेर में बना अढ़ाई दिन का झोपड़ा यह भी देखो कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही 1194 एडी में कंस्ट्रक्ट करवाया था यह एक मॉस्क है जो दिल्ली की कुवत उल इस्लाम मोस्क से भी काफी बड़ी है ऐसा कहा जाता है एक बार ना मोहम्मद गोरी वह अजमेर से गुजर रहे थे और उन्होंने ना वहां पर एक मॉन्यूमेंट देखा और देखकर कुतुबुद्दीन ऐबक को आदेश दिया कि 60 घंटे के अंदर-अंदर इस स्ट्रक्चर को मस्जिद में कन्वर्ट कर दिया जाए और देखो यह काम पूरा करने में ना सिर्फ अढ़ाई दिन का समय लगा और इसी वजह से नाम पड़ा अढ़ाई दिन का झोपड़ा हालांकि कुछ लोग देखो यह भी मानते हैं कि यहां पर ना उर्स का मेला चलता है ढाई दिन तक रहता है और इसी की वजह से नाम पड़ा इस मस्क का ढाई दिन का झोपड़ा मतलब अलग-अलग क्लेम्म एक बात यहां देखो नोटिस करने वाली यह है कि शुरुआती समय में ना मस्जिद के ऊपर सिर्फ एक डोम बनवाई जाती थी लेकिन जैसे-जैसे ये आर्किटेक्चर अपनी मैच्योर फेस में पहुंचा तो दो और तीन डोम का निर्माण भी शुरू हो गया स्लेव डायनेस्टी के बाद पावर में आई खिलजी डायनेस्टी जिसने देखो 1290 एडी से लेकर 1320 एडी तक रूल किया इस डायनेस्टी की खास बात यह थी कि इन्होंने ना इंडिया में आर्किटेक्चर की एक नई स्टाइल को ही शुरू कर दिया द सेल जक स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर ये स्टाइल टर्किश पर्शियन और अरब इन्फ्लुएंस का एक शानदार मिश्रण था आप कह सकते हो जिसमें ना मेनली रेड सैंड स्टोन और मोटार का यूज किया गया इस डायनेस्टी के जो सबसे मशहूर सुल्तान थे अलाउद्दीन खिलजी उनके द्वारा बनवाया गया अलाई दरवाजा और सरी फोर्ट सेल जक स्टाइल आर्किटेक्चर के मेजर स्ट्रक्चर्स हैं सेल जक स्टाइल में बने मॉन्यूमेंट्स अपनी रिच कैलीग्राफी के लिए जाने जाते हैं कैलीग्राफी मतलब देखो दीवारों पे ना बढ़िया सी हैंडराइटिंग में कुछ-कुछ आपको लिखा मिलेगा जैसे यूपीएससी में एस्परेंस लिखते हैं ताकि मेंस में अच्छे मार्क्स आ जाए इसके बाद देखो खिलजी डायनेस्टी के बाद तुगलुक डायनेस्टी आई लेकिन इस पीरियड में ना आर्ट एंड आर्किटेक्चर की फील्ड में ज्यादा नया डेवलपमेंट देख को नहीं मिलता है और इसीलिए तुगलुक काल को आर्किटेक्चर के नजरिए से इतना अच्छा नहीं माना जाता है बाकी दूसरी डायनेस्टी से अगर कंपेयर करें तो तुगलक रूलरसोंग्स ही एक नए शहर तुगलकाबाद का निर्माण करवाया और इस तुगलकाबाद शहर के सामने खुद का मकबरा भी बनवाया इस तुगलकाबाद शहर के अंदर एक फोर्ट भी देखो बनवाया गया था जिसे 5 पोर्ट के नाम से जानते हैं इस पोर्ट की दीवारें काफी चोड़ी और काफी मजबूत बनवाई गई थी रॉयल पैलेस की दीवारें ना बहुत ज्यादा सुंदर थी एक बार फेमस ट्रैवलर इब्ने म तूता ने दीवारों की तारीफ करते हुए यह लिखा जब सूर्य उदय होता है तो यह पहले सूरज की तरह ही चमकता है तुगलक रूल में बनी दीवारों को अगर देखोगे तो देखो यह थोड़ी सी ना आपको टेढ़ी नजर आएंगी इन दीवारों को ना सीधा ना बनवाकर 75 डिग्री के एंगल पर बनवाया गया है मांडू में हिंडोला महल इसी स्टाइल का एक एग्जांपल है तुगलक रूलरसोंग्स शेप में सबसे पहले जो मकबरा बना वो यही है खाने जहां तिलंगानी और इसी स्टाइल को लोदी डायनेस्टी ने अपना मेन आर्किटेक्चरल डिजाइन बनाया तुगलक के बाद सैयद डायनेस्टी का पीरियड आया और इस पीरियड में ना आर्किटेक्चर डिजाइन में काफी सारे चेंजेज हुए अब ना मनटु आर्चीज का ना इस्तेमाल कम होता गया मतलब पहले घोड़े के नाल की शेप के जो मेहराब हुआ करते थे ना उनका इस्तेमाल कम होता गया और मोनुमेंट्स की छत को स्पोर्ट करने के लिए लकड़ी की बीम का यूज किया जाने लगा सैयद काल में सुल्तान के मकबरे को जहां देखो ऑक्टग शेप में बनाया गया वहीं दूसरी तरफ जो नोबल्स होते थे दरबार में उनके मकबरे को स्केर की फॉर्म में बनाना स्टार्ट किया गया ऑक्टग शेप के मकबरे का उस समय का जबरदस्त एग्जांपल है मुबारक शाह का टोम सबसे बेस्ट एग्जांपल है ऑक्टग शेप का सैयद डायनेस्टी के बाद लोधी डायनेस्टी में भी इस आर्किटेक्चर डिजाइन का यूज किया गया इसके अलावा लोदी डायनेस्टी के समय टोम्स में डबल डोम ऐड करना इस समय का एक आर्किटेक्चरल इनोवेशन था डबल डोम मतलब ऊपर वाले डोम के अंदर एक और होलो डोम जो बाहर वाला डोम होता था वह तो देखो बिल्डिंग की खूबसूरती के लिए था और उस बाहर वाले डोम के अंदर जो एक और होलो डोम होता था वह डोम देखो इंटरनल सेट्री और इंटरनल स्पोर्ट के लिए होता था इस पीरियड में बनाए गए टोम्स भी ऑक्टग शेप में होते थे यहां पर ध्यान देने वाली बात देखो यह है इन मकब को ना डेकोरेट नहीं किया जाता था लोधी डायनेस्टी के दौरान आर्किटेक्चर में डबल डोम के अलावा और कुछ खास डेवलपमेंट नहीं हुआ दिल्ली सल्तनत पीरियड में ना रॉयल आर्ट के अलावा रीजनल स्कूल्स ऑफ आर्किटेक्चर भी डेवलप हुए थे जिनमें देखो बंगाल बीजापुर जौनपुर और मांडू सबसे इंपोर्टेंट है बंगाल स्कूल के आर्किटेक्चर स्ट्रक्चर्स में ब्रिक्स और ब्लैक मार्बल का ज्यादा यूज होने लगा इस पीरियड में जो मॉन्यूमेंट्स बने उनमें एक नया आर्किटेक्चरल फीचर देखने को मिला और वह है स्लोपिंग रूफ जैसे देखो तुगलक पीरियड में स्लोपिंग वाल्स हुआ करते थे अब देखो स्लोपिंग रूफ पैटर्न स्टार्ट हुआ यानी जो छतें थी वह स्लोप की फॉर्म में इस तकनीक का यूज टेंपल आर्किटेक्चर में किया जाता था लेकिन इस पीरियड में यह मॉस्क में भी यूज किया जाने लगा वेस्ट बंगाल के मालदा में मनी कदम रसूल मॉस्क और पांडुआ की अदीना मस्जिद इन दोनों में आप इस फीचर को क्लियर देख सकते हो बंगाल आर्किटेक्चर से संबंधित मोनुमेंट्स आपको देखो ज्यादातर आज के समय में पश्चिम बंगाल के मालदा के आसपास के क्षेत्र में देखने को मिलेंगे बंगाल के बाद अब हम सेंट्रल इंडिया की ओर चलते हैं सेंट्रल इंडिया की बात करें तो मध्य प्रदेश के वेस्ट में यानी मालवा रीजन में मांडू साम्राज्य की नीव दिलावर खान ने 1401 एडी में रखी और बाद में इस शहर का नाम बदलकर साहिबाबाद रख दिया इसी पीरियड में ना मांडू एक प्रॉस्पर किंगडम के तौर पर इमर्ज होकर आया और यहां पर डेवलप हुआ आर्किटेक्चर का एक नया स्टाइल द मालवा स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर इतना ज्यादा डिटेल में नहीं देखेंगे बस दो-तीन बातें इस स्टाइल में बने मॉन्यूमेंट्स की ना सबसे खास बात यह थी कि इनको ना रंग बिरंगे पत्थर और मार्बल से डेकोरेट किया जाता था इसमें वेंटिलेशन को बनाए रखने के लिए दीवारों में बड़ी-बड़ी खिड़कियां बनाई जाती थी महल में बावली यानी वाटर टैंक भी बनाया जाता था हो सांग शह के रूल में बनी मांडू की जामा मस्जिद में अरेबियन स्टाइल की झलक देखने को मिलती है और इसमें सबसे ज्यादा अनोखी बात यह है कि इसमें ना मीनारों या पिलर्स का यूज नहीं किया जाता था जो मेडियल टाइम की मस्जिद का सबसे इंपॉर्टेंट एलिमेंट हुआ करता था लेकिन यहां पर कोई दीवारें नहीं कोई पिल्लर नहीं बंगाल और मांडू के अलावा मेडियल टाइम में ना जौनपुर किंगडम भी अपने रीजनल स्टाइल में बने आर्किटेक्चर के लिए जाना जाता है इसे देखो जौनपुर के सर्की स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर के नाम से भी जाना जाता है 1408 एडी में जौनपुर में इब्राहिम शाह सर्की द्वारा बनाई गई अटाला मॉस्क इस स्टाइल का सबसे अच्छा एग्जांपल है प्रोविंशियल स्कूल्स में आखिरी है बीजापुर स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर इसे देखो डेकन स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर भी कहा जाता है यहां ना ज्यादातर मस्जिदों का ही कंस्ट्रक्शन देखने को मिलेगा दो यूनिक फीचर्स देखो इन मस्जिदों में एक तो थ्री आस्ट फसाद मतलब सामने वाले एरिया में ना फसाद में तीन मेहराब यानी आर्चीज आपको देखने को मिलेंगे और इसके अलावा डोम आपको देखने को मिलेगा बल्ब की शेप में बल्ब नुमा या फिर प्याज की फॉर्म में इन स्ट्रक्चर्स को मजबूती देने के लिए लोहे के क्लैंप्स और मोटार का यूज किया जाता था दीवारों को सुंदर बनाने के लिए ना उसमें जाली या फिर नकाशी का इस्तेमाल किया जाता था कर्नाटक के बीजापुर में बना हुआ गोल गु आज डेकनी स्टाइल की मिसाल बन गया है यह इतना नायाब है कि कुछ इतिहासकार तो देखो यह भी बोल देते हैं अगर इसका निर्माण नॉर्थ इंडिया में हुआ होता तो शायद लोग ना ताज महल के बजाय इस गोल गुंबद को देखने के लिए ज्यादा आते और इसे गोल गुंबद को बनवाया गया है इंटरलॉकिंग टेक्नीक की सहायता से मतलब इस गोल गुंबद में ना आपको पिलर्स नहीं देखने को मिलेंगे क्योंकि ना स्पोर्ट के लिए इसे इंटरलॉकिंग टेक्नीक की सहायता से बनाया गया है यहां पर ना एक वि स्परिंग गैलरी भी है जहां पे ना आप कुछ भी बोलेंगे वो देखो एकदम क्लियर और इको फ्री साउंड के साथ दूसरी तरफ से फिर से आपको वापस सुनाई देगा जैसे आप अपने ही कान में बोल रहे हो यह देखो यह सब फीचर्स इन आर्किटेक्चर्स को ना सबसे अलग और अनोखा बनाते हैं इवन इसका नाम भी इसके राउंड शेप डोम के कारण ही गोल गुंबज रखा गया लगभग 200 फीट ऊंची यह डोम दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी डोम है डेली सल्तनत के बाद आता है मुगल पीरियड या कहे तो इंडियन आर्किटेक्चर में एक नया चैप्टर देखो मुगल आर्किटेक टेक्चर को लेकर ना यह कहना तो सही नहीं होगा कि यह आर्किटेक्चर सबसे बेहतरीन है लेकिन इतना जरूर है कि दूसरे आर्किटेक्चर्स के कंपैरिजन में यह सबसे न्यू और प्रिजर्व्ड है दूसरी बात यह कि मुगल आर्किटेक्चर के बारे में ना हमें काफी रिटन एविडेंस मिलते हैं जो हमें इसको समझने में मदद करते हैं 1526 एडी बना पानीपत की ऐतिहासिक लड़ाई में लोदी डायनेस्टी के आखिरी रूलर इब्राहिम लोदी को बाबर के हाथों हार का सामना करना पड़ा और इसी के साथ भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत हुई मुगल आर्ट और आर्किटेक्चर में ना काफी इंटरेस्ट रखते थे और यही वजह है कि उनके रूल में इंडियन आर्किटेक्चर फिर से अपने पीक पर पहुंचा मुगल एंपायर के पहले रूलर बाबर ने मुगल आर्किटेक्चर की शुरुआत पानीपत और रोहिला खंड में मस्जिद बनाने के साथ शुरू की पानीपत में इब्राहिम लोधी को हराने के बाद बाबर ने ना वहां पे एक मस्जिद का निर्माण करवाया काबुली बाग मोस्क जिसमें पर्शियन स्टाइल का इस्तेमाल किया गया है आगे चलकर सभी मुगल स्ट्रक्चर में ना हमें पर्शियन स्टाइल की झलक साफ-साफ देखने को मिलती है भारत में ना चार चारबाग स्टाइल यानी किसी मॉन्यूमेंट के चारों तरफ गार्डन बनाने की स्टाइल को इंट्रोड्यूस करवाने का क्रेडिट भी मुगलों को ही जाता है बाबर देखो बहुत कम समय तक रूल में रहे इस वजह से ना वो ज्यादा आर्ट एंड आर्किटेक्चर की फील्ड में ना कंट्रीब्यूट नहीं कर पाए बाबर के बाद उनके बेटे हुमायूं भी ज्यादा देखो आर्ट एंड आर्किटेक्चर पर फोकस नहीं कर सके क्योंकि ना उनका लगातार पावर स्ट्रगल चलता रहा शेरशाह के साथ उनके रूल के दौरान ना दिल्ली में 1533 में एक नए शहर दीन पना की स्थापना हुई हिमायू के रूल में अगर जो मारते बनी उनकी बात करें तो उनमें देखो पर्शियन स्टाइल का इंपैक्ट साफ-साफ देखा जा सकता है हुमायूं के डेथ के बाद ना उसकी पत्नी हाजी बेगम ने हुमायू टोम का निर्माण करवाया जो देखो इस टाइल का सबसे शानदार एग्जांपल है कुछ हिस्टोरियंस का तो यह भी मानना है कि ताजमहल का डिजाइन भी हुमायूं के मकबरे से ही इंस्पायर होकर लिया गया 1539 में बैटल ऑफ कन्नौज में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हरा दिया और फिर 1539 से लेकर 1555 तक शेरशाह सूरी ने दिल्ली पर शासन किया सूरी डायनेस्टी के रूल के दौरान आर्किटेक्चर पर काफी ध्यान दिया गया सूरी डायनेस्टी में बने ज्यादातर मॉन्यूमेंट्स आज देखो पाकिस्तान में मौजूद हैं जिसमें रोहतास का किला आज यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा है अगर देखो दिल्ली की बात करें दिल्ली के पुराना किला में बनी किलाएा ये मस्जिद है एक यह सूरी डायनेस्टी की एक मेन बिल्डिंग है हुमायूं को हराने के बाद पुराने किला पर कंट्रोल करने के बाद शेरशाह सूरी ने इस मस्जिद को अपने प्राइवेट यूज के लिए बनवाया था इसी किले में शेरशाह ने एक लाइब्रेरी भी बनवाई ये ये देखो वही लाइब्रेरी है जिसकी सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की डेथ हुई थी अपने रूल की छाप छोड़ने के लिए शेरशाह ने पटना में शेरशाह सुरी मस्जिद का निर्माण करवाया शेरशाह सूरी ने सड़क आजम को बनवाया जो मोरियन रूल के टाइम बनाई गई सड़क का एक एक्सटेंशन था इसी रोड को आज हम जीटी रोड यानी ग्रैंड ट्रंक रोड के नाम से भी जानते हैं इसके अलावा कई किताबों में इसको बादशाही सड़क या उत्तर पथ भी कहा जाता है रोड्स बनवाने के साथ-साथ शेरशाह ने देखो मुसाफिरों की हेल्प करने के लिए ना रोड्स के किनारे पर स य यानी कि रेस्ट हाउस का निर्माण भी करवाया शेरशाह ने जिंदा रहते हुए खुद का मकबरा तक बनवा दिया 1555 में उनकी डेथ के बाद उनको इसी मकबरे में दफनाया गया जो आज बिहार के सासाराम में मौजूद है तालाब के बीचोंबीच बने इस मकबरे को बनाने के लिए रेड सेंडस्टोन का यूज किया गया था शेरशाह सूर्य की दत के बाद फिर एक बार मुगल रूलरसोंग्स का गोल्डन फी जो शाहजा के समय अपने पीक पर पहुंचा अकबर के समय में जो मॉन्यूमेंट्स बने ना उनमें देखो रेड सैंड स्टोन को कंस्ट्रक्शन मटेरियल के तौर पर यूज किया गया मुगल आर्किटेक्चर में टू डोर आर्च इंट्रोड्यूस करने का क्रेडिट भी अकबर को ही जाता है टू डोर आर्च क्या है ये देखो एक चौरस तीर की नोक की तरह दिखता है टू डोर आर्च ये एक ब्रिटिश स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर है अकबर के द्वारा बनवाए गए सबसे बड़े प्रोजेक्ट की अगर बात करें तो वो था आगरा का किला भारत के सबसे मजबूत किलों में से एक यह किला देखो लाल बलुआ पत्थर से बनवाया गया है वैसे तो इस फोर्ट का कंस्ट्रक्शन अकबर ने करवाया था लेकिन इस फोर्ट के अंदर के ज्यादातर स्ट्रक्चर साजा द्वारा बनवाए गए थे इस किले को राजपूत आर्किटेक्चर से इन्फ्लुएंस होक बनवाया गया था इस फोर्ट के अंदर लोकेटेड कुछ मेजर स्ट्रक्चर्स की अगर हम बात करें मोती मस्जिद दीवान आम दीवान खास जहांगीर महल और सबसे लास्ट में सीश महल दीवान आम ये देखो एक हाल होता था जहां बादशाह आम जनता की समस्याएं सुनते थे ये एक तरह की कोट होती थी जिसे हिंदी में दरबार भी कहते हैं इसी तरह दीवाने खास जैसे कि देखो वर्ल्ड से ही समझ में आ रहा है ये एक हाल था जहां बादशाह अपने खास गेस्ट को रिसीव करते थे और मिलते थे यहां जनरल पब्लिक का आना जाना सख्त मना होता था जहांगीरी महल आगरा फोर्ट काना सबसे बेहतरीन स्ट्रक्चर था यह महल इस किले का प्रिंसिपल जनाना था जनाना एक ऐसा प्लेस या कोर्टयार्ड होता है जो रॉयल वुमेन द्वारा यूज किया जाता है इसका कंस्ट्रक्शन अकबर द्वारा उनकी बेगम के लिए करवाया गया था यहां एक शीश महल का निर्माण 1600 31 से 1640 एडी में साज ने करवाया था इस महल की दीवारों को ना जानबूझकर काफी मोटा बनवाया गया था ताकि इसका इंटीरियर ठंडा रहे इसकी दीवारों और सीलिंग्स में शीशे का यूज किया गया है और इसी वजह से इसका नाम शीश महल रखा गया आगरा फोर्ट के बाद अकबर के द्वारा बनवाया गया दूसरा मेजर आर्किटेक्चरल वंडर है फतेहपुर सिकरी का शहर यहां मौजूद मॉन्यूमेंट्स आज भी देखो अच्छी कंडीशन में है और यही वजह है कि हिस्टोरियंस ने इस शहर को फ्रोजन मूवमेंट इन हिस्ट्री से डिस्क्राइब किया है यहां के आर्किटेक्चर में हिंदू और पर्शियन स्टाइल का यूनिक कॉमिनेशन देखने को मिलता है शहर में अलग-अलग दिशाओं से आने जाने के लिए आठ दरवाजों का कंस्ट्रक्शन किया गया था जिसमें दिल्ली गेट आगरा गेट लाल गेट ग्वालियर गेट और अजमेरी गेट शामिल हैं फतेहपुर सिकरी में आर्किटेक्चर की दृष्टि से देखो बहुत सारे मॉन्यूमेंट्स बनवाए गए हैं जैसे कि बुलंद दरवाजा इसे अकबर ने 1576 एडी में गुजरात विक्ट्री की याद में बनवाया था इस स्ट्रक्चर की हाइट ना 40 मीटर्स है और इसे रेड सैंड स्टोन से बनवाया गया है इसे दुनिया का लार्जेस्ट गेटवे भी कहा जाता है 15 1971 एडी में यहां शेख सलीम चिस्ती का टोम बनवाया गया जिसे बनाने में वाइट मार्बल का इस्तेमाल किया गया है ऐसा माना जाता है कि सलीम चिस्ती एक सूफी सेंट थे जिनके आशीर्वाद से अकबर के बेटे सलीम का जन्म हुआ जिसे हम जहांगीर के नाम से भी जानते हैं और यही वजह थी अकबर शेख सलीम चिस्ती को काफी मानते थे और उनकी याद में इस मकबरे का निर्माण अकबर ने करवाया इस किले में बना हुआ पांच मंजिला पंच महल मुगल आर्किटेक्चर का बेजोड़ नमूना है जिसे कोलम्स में बनाया गया है है इसे पर्शियन बंदग यानी कि विंड कैचर के स्टाइल में बनाया गया है मतलब खिड़कियां इस प्रकार से डिजाइन की गई है कि विंड को कैच करें और वातावरण जो है अंदर का वो नियंत्रण में रहे मतलब प्राकृतिक एयर कंडीशनिंग आप कह सकते हो नेचुरल एसी यहां मौजूद जोदा भाई पैलेस और मरियम उज जमानी पैलेस अपने सुंदर इंटीरियर्स के लिए काफी फेमस है जोदा भाई पैलेस के इंटीरियर को ना बेल्स और फ्लावर्स के मोटिव से बहुत अच्छे तरीके से सजाया गया है अकबर ने इस शहर के अंदर इ बाबत खाना का भी कंस्ट कशन करवाया था जिसका इस्तेमाल अकबर दूसरे धर्म के धर्म गुरुओं से डिस्कशन करने के लिए किया करते थे पंच महल के सामने बने पसी कोट का इस्तेमाल अकबर चेस खेलने के लिए करते थे और यहां पे मौजूद हिर मीनार का कंस्ट्रक्शन अकबर ने अपने फेवरेट हाथी हिरन की याद में करवाया था नाम देखो हिरन है लेकिन एक्चुअल में वह हाथी था अकबर के बाद जहांगीर ने मुगल एंपायर की बागडोर को संभाला पर अकबर की तरह उसको आर्किटेक्चर की जगह पेंटिंग्स में काफी दिलचस्पी थी इस इसीलिए जहांगीर के राजम ना आर्किटेक्चर में डेवलपमेंट ना होकर पेंटिंग्स और बाकी के आर्ट फॉर्म्स में ज्यादा डेवलपमेंट्स देखने को मिले लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जहांगीर के रीन में किसी भी आर्किटेक्चरल स्ट्रक्चर का कंस्ट्रक्शन हुआ ही नहीं एग्जांपल के लिए देखो जहांगीर ने सिकंदरा में अपने पिता अकबर का टोम बनवाया लाहौर में उन्होंने मोती मस्जिद और खुद के टोम का भी कंस्ट्रक्शन करवाया था उसमें देखो रेड स्टैंड स्टोन की जगह संगमरमर का यूज करवाया गया और इसके बाद तो देखो मुगल आर्किटेक्चर में संगमरमर का इस्तेमाल होने लगा एग्जांपल के लिए इतम दुला जो जहांगीर की बेगम नूर जहां के पिता थे उनका टोम पूरी तरह से वाइट मार्बल से बना पहला मुगल मॉन्यूमेंट था मुगल आर्किटेक्चर को एक नई सुंदरता देने का काम जहांगीर ने किया जिसमें सबसे आगे है बगीचों का निर्माण कश्मीर में डल लेक के किनारे पर बना सालिमार बाग जहांगीर ने ही बनवाया था जहांगीर के बाद साजा ने मुगल साम्राज्य को संभाला और यही समय था जब मुगल आर्किटेक्चर अपने पीक पर पहुंचा इसका सबसे बड़ा एग्जांपल है आगरा में स्थित ताजमहल मकराना के सफेद संगम मर से बनी इस इमारत को साजा ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था ताज महल देखो एक ऐसी इमारत है जिसमें मुगल आर्किटेक्चरल स्टाइल की सभी फीचर्स जैसे देखो कैलीग्राफी मतलब राइटिंग्स ब्यूटीफुल राइटिंग पिएट डरा चारबाग स्टाइल में बने गार्डन फोर हाइटनिंग टेक्नीक वैसे देखो फोर हाइटनिंग टेक्नीक के बारे में आपको थोड़ा सा बता दूं इसमें ना कॉलम्स एंड आर्चस यानी मेहराब को ना इस प्रकार से बनाया जाता था कि वो देखो या तो ज्यादा दूर दिखें या फिर ज्यादा नजदीक दिखें काइंड ऑफ ना थ्री मिशनल व्यू देने के लिए इस टेक्नीक का इस्तेमाल किया जाता था कंपाउंड में फाउंटेंस भी देखने को मिले यह सारे फीचर्स ताज महल के डेवलपमेंट में ताजमहल के मॉन्यूमेंट में देखने को मिलते हैं ताजमहल के मार्बल्स पर हल्की-फुल्की देखो नक्काशी भी की गई है इस नक्काशी से ना सारे डिजाइंस और मोटिव्स उभरे हुए और 3डी जैसे लगते हैं यह काम देखो इतनी खूबसूरती और बारीकी से किया गया है कि सब कुछ असली और जिंदा सा दिखता है साझा के समय में जो इमारतें बनी ना उन इमारतों की दीवारों पर कुरान की आयतों को भी दीवारों पर गुदवा गया ताज महल के अलावा साजा ने दिल्ली में लाल किला और उसके सामने भारत की सबसे बड़ी मस्जिद जामा मस्जिद का निर्माण करवाया लाहौर का शालीमार बाग और शजना बाद सिटी ये भी देखो शाजा के द्वारा ही बनवाए गए थे शाजा ने अपने लिए मयूर सिंहासन बनवाया जिसे पीकोक थ्रोन या फिर तख्त ए ताऊस भी कहा जाता है बाद में 1739 एडी में अफगानी शासक नादिर शाह ने इस सिंहासन को यानी थ्रोन को लूट लिया था साझा के बाद औरंगजेब ने ने बाकी मुगल रूलरसोंग्स क्चर का डिक्लाइन होना शुरू हो गया जो बाद में पूरी तरह खत्म हो गया हालांकि औरंगजेब के बेटे आजम शाह के द्वारा उसकी मां रबिया दुरानी की याद में बनवाया गया बीबी का मकबरा औरंगजेब के रूल में बना सबसे बेहतरीन मॉन्यूमेंट है इस मकबरे को ना डेकन इंडिया का ताजमहल भी कहा जाता है औरंगजेब के बाद दिल्ली की गद्दी पर कई मुगल बादशाह आए और गए लेकिन किसी ने भी ना आर्क र पर इतना ध्यान नहीं दिया मुगल आर्किटेक्चर की आखिरी निशानी की अगर हम बात करें तो वह है दिल्ली के लाल कुआ बाजार में बना जिन्नत महल यह देखो मुगल स्वराज्य में बना आखिरी मॉन्यूमेंट था इसका निर्माण बहादुर शाह जफर की पत्नी जिनत महल ने करवाया था 18th और 19 सेंचुरी में जब देखो मुगल आर्किटेक्चर का डिक्लाइन हो रहा था ना तब तक यूरोप की अलग-अलग देशों की ट्रेडिंग कंपनीज ने इंडिया में अपनी पकड़ को मजबूत बनाना स्टार्ट कर दिया था जैसे देखो पुर्तगाली डच डेनिश फ्रेंच और ब्रिटिशर्स लेकिन देखो इस्लामिक इवेडर्स की तरह ना यह सारे देश अपना-अपना आर्किटेक्चर भारत लेकर आए सबसे पहले हम देखेंगे पुर्तगाली स्टाइल को जिसका प्रभाव देखो बाकी यूरोपियन ट्रेडर्स की तुलना में सबसे कम पड़ा इन्होंने ना अपनी बिल्डिंग्स को बनाने में आबियन टेक्निक का इस्तेमाल किया इस स्टाइल की खासियत थी न्यूकल टावर्स और मेहराब दव का सेंट पॉल चर्च और गोवा में स्थित सेंट कैथेड्रल चर्च इसके सबसे शानदार एग्जांपल्स हैं पुर्तगालियों की तरह फ्रेंच लोग भी आर्किटेक्चर का नया डिजाइन लेकर आए पर साथ-साथ सिटी प्लानिंग के कांसेप्ट को भी लेकर आए इनके कंट्रोल में रहे पुडी चरी नम माहे क्राइक ये जब जो शहर थे ना इन शहरों को बड़े ही व्यवस्थित तरीके से बसाया गया है फ्रेंच द्वारा बनाए गए ज्यादातर मॉन्यूमेंट्स हमें दक्षिण भारत में ही देखने को मिलते हैं बेसिलिका ऑफ सैक्रेड हर्ड चर्च और चांदनगर का सैक्रेड हर्ड चर्च इस स्टाइल का सबसे महीन उदाहरण है दीवारों में भी देखो जाली की जगह ना बड़ी-बड़ी खिड़कियां बनाई गई जिनमें रंग बिरंगे कांच लगाए गए फ्रेंड्स और पोर्तुगीज की तुलना में ब्रिटिशर्स ने लंबे समय तक भारत में रूल किया इसलिए ब्रिटिशर्स द्वारा बनवाई गई बिल्डिंग्स की तादाद भी ज्यादा है इनको देखो बनाने में गोथिक स्टाइल का यूज हुआ है और इस स्टाइल को विक्टोरिया स्टाइल ऑफ आर्किटेक्चर भी कहते हैं आज देखो हम जो बिल्डिंग्स को बनाने में स्टील का लोहे का और कंक्रीट का यूज करते हैं ना इसकी शुरुआत ब्रिटिशर्स ने ही की थी कलक का विक्टोरिया मेमोरियल इसी स्टाइल में बनाया गया है 20वीं सदी आते-आते बिल्डिंग्स को बनाने में न्यू रोमन आर्किटेक्ट ल स्टाइल की शुरुआत हुई 1910 के बाद भारत में लगभग जितने भी इमारतों का निर्माण हुआ वो देखो इसी स्टाइल में हुआ दिल्ली का राष्ट्रपति भवन सुप्रीम कोर्ट की बिल्डिंग इन बिल्डिंग्स में जो गुंबद आप देखते हो ना वो देखो इसी स्टाइल का एक फीचर है इं सानदार बिल्डिंग्स को डिजाइन किया गया था मशहूर वास्तुकार एडविन लुटियंस और हार्बर्ड बेकर के द्वारा दरअसल इस समय में ना कंस्ट्रक्शन करने के कई सारे स्टाइल एक साथ चलन में थे ऐसे ही एक आर्किटेक्चरल स्टाइल थी इंडो परा सैनिक स्टाइल ये इस्लामिक आर्किटेक्चर और ब्रिटिश स्टाइल का एक प्रकार से ना कॉमिनेशन था अंडाकार गुंबदे और छत के आगे छज्जे निकालना और आकर्षक मेहराबों को बनाना इस स्टाइल के कुछ फीचर्स थे इन फीचर्स का इस्तेमाल चेन्नई के म्यूजियम में चेन्नई के ही एक सिनेट हाउस में और मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में बखूबी किया गया है आजादी के बाद तो देखो आर्किटेक्चर के ना और भी कई सारे स्टाइल सामने आए लेकिन जो बात अंग्रेजों के समय बनी बिल्डिंग्स की थी वो बात देखो आजादी के तुरंत बाद बनी बिल्डिंग्स में एकदम से नहीं देखने को मिली और पंजाब सरकार ने तो चंडीगढ़ शहर को एक प्लान तरीके से बसाने के लिए फ्रेंच वास्तुकार ली कोरबू जियर तक को बुलाया था मॉडर्न आर्किटेक्चर को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए कई सारे वास्तुकार का योगदान था इनमें देखो लोरी बेकर कार्ल हाइज ली कोरबू जियर एडविन लूटेंस और चार्ल्स कोरिया सबसे अहम थे पुर्तगालियों का जो आइबीय स्टाइल था ना और ब्रिटिशर्स का गोथिक स्टाइल इन दोनों में ना कुछ बेसिक डिफरेंसेस थे जैसे देखो पोर्तुगीज बिल्डिंग की दीवारों को ना बनाने में ईंटों का इस्तेमाल करते थे वो सीढ़ियों और छत को बनाने में लकड़ी का इस्तेमाल करते थे लेकिन इसके ठीक विपरीत ब्रिटिशर्स ने ईंटों की जगह दीवारों को बनाने में ना लाल बलुआ पत्थर और दानेदार चूने का यूज किया क्लियर कर देता हूं बलुआ पत्थर मतलब सैंड स्टोन और चूने वाला पत्थर वो मतलब लाइमस्टोन ताकि आसानी से आपको समझ में आ जाए कंफ्यूज मत हो आप इसके बाद जो देखो पुर्तगालियों का आइबीय आर्किटेक्चरल स्टाइल था ना उस पर लोकल इंडियन स्टाइल का ना उतना असर नहीं पड़ा लेकिन जो ब्रिटिश गोथिक स्टाइल था इस पर लोकल इंडियन स्टाइल का बहुत असर पड़ा नतीजा यह हुआ एक नया स्टाइल इमर्ज होके आया जिसका नाम था इंडो गोथिक स्टाइल इस स्टाइल में ना इंडियन और ब्रिटिश आर्किटेक्चर के फीचर्स दोनों फीचर्स एक साथ देखने को मिलते हैं इसका एक एग्जांपल है गेटवे ऑफ इंडिया जो मुंबई में है कंफ्यूज मत होएगा इंडिया गेट दिल्ली में है और गेटवे ऑफ इंडिया मुंबई में है तो ये हमने इस प्रकार से देखा मॉडर्न आर्किटेक्चर को अब हम इसके बाद पेंटिंग्स को देखते हैं आर्किटेक्चर की तरह ही पेंटिंग्स भी देखो हमारे कल्चर और हिस्ट्री का एक बहुत इंपॉर्टेंट हिस्सा है तो शुरुआत बात करते हैं पेंटिंग से पेंटिंग्स यानी चित्रकला हिंदुस्तान में देखो पेंटिंग्स का इतिहास काफी पुराना है समय-समय पर अलग-अलग स्टाइल के जरिए इनमें हमारे समाज विचार इतिहास और संस्कृति को व्यक्त किया गया है पेंटिंग्स को बनाने की शुरुआत तो देखो प्रीहिस्टोरिक टाइम में ही हो गई थी यह वह समय था जब इंसान को पढ़ना लिखना तक नहीं आता था हम पेंटिंग्स को देखकर यह कह सकते हैं अलग-अलग तरीकों से बनी इन पेंटिंग्स को हम तीन कैटेगरी में क्लासिफाई कर सकते हैं कौन-कौन ये तीन कैटेगरी हैं सबसे पहले केव पेंटिंग्स दूसरे नंबर पे मरल पेंटिंग्स और तीसरे नंबर पे फ्रेस्को पेंटिंग्स तो हम शुरुआत करते हैं प्रीहिस्टोरिक पेंटिंग्स ऑफ इंडिया से देखो प्रीहिस्टोरिक पेंटिंग्स को देखकर हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि हजारों साल पहले जिंदगी कैसी रही होगी घने जंगलों के बीच मौजूद गुफाओं में बनी इन पेंटिंग्स को दरअसल सिंबल की तरह बनाया गया है जैसे देखो किसी इंसान को अगर शो करना हो तो चार स्टिक के रूप में दिखाया जाता था चार डंडियो आप तस्वीर में देखिए इसी प्रकार से पहाड़ों नदियों और जंगली जानवरों को बनाने के लिए बस लाइंस सर्कल्स और ट्रायंगल का यूज किया गया है यहां मौजूद कई सारी पेंट तर देखो गेरुआ रंग यानी ओकर कलर जो है इसका इस्तेमाल हुआ है पर देखो इनमें येलो ग्रीन और ब्लैक कलर्स भी इस्तेमाल हुए हैं मतलब इनका यूज भी पेंटिंग्स में देखा जा सकता है इन पेंटिंग्स का सबसे अच्छा कलेक्शन हमें मध्य प्रदेश के भीम बदका की केव्स में देखने को मिलता है इसके अलावा छत्तीसगढ़ की जोगीमारा केव्स में उत्तराखंड की खुदया केव्स में तेलंगाना की कुपल केव्स में कर्नाटक की पिक लिहाल केव्स में भी ये केव पेंटिंग्स हमें देखने को मिलती हैं अगर देखो हम भीम बदका केव्स की बात करें तो ये मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी की दूरी पर है यहां पर देखो 400 से ज्यादा केव्स हैं और जिनकी दीवारों पर मानव इतिहास के सबसे पुराने केव पेंटिंग्स आपको देखने को मिलेंगे इन केव्स में सबसे पहले 1957 में आर्कियोलॉजिस्ट वी एस वाकणकर ने इन केव पेंटिंग्स को खोजा था और 2003 में देखो इन केव्स को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल कर लिया गया यहां से मिली पेंटिंग्स को उनके वेरिएशन के आधार पर हम तीन टाइप्स में डिवाइड कर सकते हैं ह्यूमन एनिमल और ज्योमेट्री सिंबल्स यहां पहले जो पेंटिंग्स बनी होंगी उनमें एक लोमड़ी और कई पैरों वाली छिपकली थी लेकिन लोथी फेस आते-आते यहां बूल्स एलिफेंट्स सार्स चिंकारा भेड़ और घोड़े की पेंटिंग्स भी बनाई गई यानी समय के साथ-साथ यहां बनी पेंटिंग्स की थीम में भी चेंजेज आए हैं प्रीहिस्टोरिक पेंटिंग्स के बाद अब हम मरल पेंटिंग्स को देखते हैं इन पेंटिंग्स को गुफाओं में मंदिरों में और महलों की दीवारों पर बनाया जाता था यह पेंटिंग्स आकार में देखो बहुत बड़ी होती हैं मुरल पेंटिंग्स की हम बात कर रहे हैं इनको सेकंड सेंचुरी बीसी से लेकर 10थ सेंचुरी एडी के बीच में बनाया गया आज लगभग देखो 20 से ज्यादा ऐसी जगह हैं जहां पे मुरल पेंटिंग्स ठीक वैसी ही बेहतर स्थिति में है जब उनको बनवाया गया था मतलब कंडीशन आज भी उनकी काफी ज्यादा अच्छी है अजंता एलोरा बाघ सतन वासल अरम मलाई रावण छाया रोक शेल्टर मरल पेंटिंग्स के देखो सबसे इंपोर्टेंट स्थल हैं इन पेंटिंग्स को वि विस्तार से समझने से पहले हम यह समझ लेते हैं कि म्यूरल मिनिएचर और फ्रेस्को पेंटिंग्स में डिफरेंस क्या है तो देखो जो म्यूरल पेंटिंग्स है ना इनको दीवारों पर बड़े-बड़े आकार में बनाया जाता है वहीं मिनिएचर पेंटिंग्स साइज में बहुत छोटी होती हैं और इनको आमतौर पर किताबों या कपड़ों पर बनाया जाता है अब अंतिम है फ्रेस्को पेंटिंग्स तो ये देखो एक तरह की म्यूरल पेंटिंग्स ही है लेकिन इनको बनाने से पहले ना दीवार पर एक गीला प्लास्टर चढ़ाया जाता है और उसके ऊपर फिर इन पेंटिंग्स को बनाया जाता है ऐसा करने से पेंटिंग्स की जो उम्र और क्वालिटी है दोनों बढ़ जाती है यही वजह है यह पेंटिंग्स देखो आज भी उम्दा हालत में बची हुई हैं इसके बाद अब हम देखते हैं अजंता केव्स में बनी पेंटिंग्स को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मौजूद हैं अजंता की केव्स यहां पर देखो टोटल ना 29 केव्स हैं जिनमें से चार चैत्य हैं और बाकी विहार चैत्य तो देखो एक प्रार्थना हॉल होता है और विहार मोंगस के रुकने की जगह होती है इन केव्स को सजाने के लिए ना इनके अंदर पेंटिंग्स और मूर्तियों को बनाया गया था इनकी दीवारों पर हमें म्यूरल और फ्रेस्को दोनों तरह की पेंटिंग्स देखने को मिलती है यहां की गुफा नंबर एक में बनी बोधि सत्व पदम पाणी की पेंटिंग म्यूरल पेंटिंग का एक शानदार नमूना है पदम पानी एक बोधि सत्व थे जिन्होंने देखो दूसरों के दुखों को दूर करने के लिए निर्माण को त्याग दिया इस म्यूरल में ना उनकी आंखें लंबी और हाथ में वो एक कमल को फ कमल के फूल को थामे हुए हैं इसी के साथ यहां पर वज्र पानी बोधि सत्व की पेंटिंग भी है जिनके हाथ में एक वज्र है मतलब समझ गए पदम पानी के हाथ में कमल का फूल है और वजर पानी यह भी एक बौधि सत्व है और इनके हाथ में एक वजर है अजंता केव्स में केव नंबर 17 में हमें महात्मा बुद्ध और उनकी पत्नी यशोधरा और उनके बेटे राहुल की इमेज मिलती है गुफा नंबर 19 और केव नंबर 26 में स्टोन कार्विंग्स सबसे ज्यादा देखने को मिलती है इसी केव में मौजूद है महात्मा बुद्ध की महापरिनिर्वाण की इमेज यह इमेज भगवान बुद्ध के अंतिम समय को दिखाता है जब देखो वह इस दुनिया से मुक्त हो गए इस इमेज में वह दाई ओर करवट लिए लेटे हुए हैं सिर के नीचे तकिया हैं आंखें बंद हैं इस तस्वीर में महात्मा बुद्ध के आसपास जो लोग हैं और उनके जो शिष्य हैं वो देखो दुखी हैं अपने गुरु के अंतिम क्षणों को देखकर इन पेंटिंग्स को सातवां राजाओं के संरक्षण में बनवाया गया था और यहां मौजूद जो महायान पेंटिंग्स है ना वो देखो वाकाटक राजा हरि सेन के संरक्षण में बनवाई गई थी अजंता केव्स की ज्यादातर पेंटिंग्स में हमें जातक कहानियों का वर्णन देखने को मिलता है यही जातक कहानी सांची स्तूप के तोरण द्वार पर भी बनाई हुई हैं आप पूछोगे सर ये तोरण क्या होता है तोरण द्वार देखो एक ना डेकोरेटिव प्रवेश द्वार होता है जो आमतौर पर मंदिरों स्तूप और महलों के सामने बनाया जाता है और अगर आपको डाउट आए जातक कथाएं का क्या मतलब है जातक कथाएं मतलब भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानियों का कंपाइलेशन यहां देखो गौर करने वाली बात यह है कि जातक कहानियों का डिपिक्शन सिर्फ उन्हीं पेंटिंग्स में मिलता है जो पांचवीं शताब्दी के बाद बना बनवाई गई हैं पांचवीं शताब्दी से पहले जो पेंटिंग्स बनवाई गई थी उनमें भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानियों का जिक्र यानी डिपिक्शन नहीं देखने को मिलता है अजंता के बाद हम एलोरा गुफाओं की बात करें तो यहां पर अजंता में टोटल केव्स की संख्या है 34 यहां देखो केव नंबर 12 में तारा अवलोकितेश्वरा क्या मतलब है मानुष बुद्ध का अर्थ है मानव रूप में बुद्ध बौद्ध धर्म में ना बुद्ध को विभिन्न रूपों में दर्शाया जाता है जिनमें से एक है मानुष या फिर यूं कहे मानव रूप इसी समय की दूसरी केव पेंटिंग्स की अगर बात करें तो देखो आपको एग्जांपल देता हूं बाग केव पेंटिंग्स अरमा मलाई गुफाओं की पेंटिंग्स बादामी पेंटिंग्स भाजा पेंटिंग्स और कन्हेरी पेंटिंग्स एक-एक करके इनको हम डिस्कस करते हैं सबसे पहले बात करते हैं बाग केव्स की पेंटिंग्स की इनको देखो फर्थ सेंचुरी एडी से सिक्सथ सेंचुरी एडी के बीच बनाया गया था ये जो बाग केव्स है ना मध्य प्रदेश राज्य के धार जिले में स्थित है दरअसल इनको ना केव कहना भी गलत है क्योंकि ये रॉक कट शेल्टर्स हैं इन शेल्टर्स को ना सुंदर बनाने के लिए कार्विंग्स और पेंटिंग का पेंटिंग्स का उपयोग किया गया है बाग पेंटिंग्स भारतीय आर्ट के गोल्डन पीरियड को दर्शाती हैं यहां की ना केव नंबर फोर जिसे रंग महल कहते हैं यहां पर भगवान बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित म्यूरल बने हुए हैं इसके बाद बात करते हैं अर्मा मल पेंटिंग्स की ऐसी ही कुछ पेंटिंग्स तमिलनाडु के वेलोर जिले में मौजूद अर्मा मलाई की गुफाओं में मिलती हैं अर्मा मलाई केव्स में जो पेंटिंग्स है ना यह देखो जैन धर्म से संबंधित है हालांकि यहां मौजूद ज्यादातर पेंटिंग्स अब तो देखो खराब हो चुकी हैं लेकिन उनके रंगों को आज भी दीवारों पर और छत पर देखा जा सकता है इन पेंटिंग्स को बनाने में पेट्रोग्लिफ तकनीक का उपयोग हुआ है पेट्रोग्लिफ तकनीक में क्या होता है दीवार पर पत्थर या फिर देखो छैनी से पहले तो चित्र यानी इमेज को उकेरा जाता है और बाद में फिर धीरे-धीरे उसमें रंग रंगों को भर दिया जाता है ताकि वो जो पेंटिंग्स है ना वो परमानेंट रहे थाई बनी रहे इसके बाद है बजा केव्स बजा केव्स देखो महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित हैं ये गुफाएं सेकंड सेंचुरी बीसी में बनाई गई और ये गुफाएं हीनयान बौद्ध परंपरा से संबंधित हैं यहां पर टोटल 22 गुफाएं हैं जिनमें देखो चैत्य और विहार दोनों शामिल हैं गुफा नंबर 19 जो है उसकी छत देखो सेमी सर्कुलर है यहां पे देखो जो पेंटिंग्स हैं वो बहुत अच्छी कंडीशन में नहीं है यहां पे ना गुफाओं में दीवारों और छतों पर रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो ये दर्शाता है कि किसी समय पर पे यहां पर पेंटिंग्स बनवाई गई थी उसी प्रकार से अगर हम कनेरी केव्स की पेंटिंग्स की बात करें कनेरी केव्स कहां पे है कनेरी केव्स देखो मुंबई के मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क में स्थित है ये जो कन्हेरी केव्स है ना ये फर्स्ट सेंचुरी एडी से 10थ सेंचुरी एडी के बीच में बनाई गई थी और जो बुद्धिस्ट मोक्स थे वो इन केव्स को यूज में लेते थे और 109 चट्टानों को काटकर यह कनेरी केव्स बनाई गई थी इन केव्स में स्तूप चैत्य विहार यह सब शामिल है कनेरी केव्स में भी देखो समय के अनुसार यह जो पेंटिंग्स है ना वो नष्ट हो गई हैं लेकिन इन केव्स में एक जो हमें इंस्क्राइनॉक्स में भी म्यूरल पेंटिंग्स बनी हुई हैं बादामी देखो चालुक्य साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था इन केव्स को राजा मंगलेश के समय बनवाया गया था यहां की गुफा नंबर तीन में ब्राह्मणवाद से जुड़ी सबसे पुरानी पेंटिंग्स मौजूद है इन पेंटिंग्स की थीम पुराणों की कथाओं पर आधारित है यहां बनी एक पेंटिंग में तो कीर्ति वर्मन को राजा कीर्ति वन को कीर्ति वर्मन को उसकी पत्नी के साथ डांस करते हुए दर्शाया गया है चेहरे की बनावट की बात करें तो इनके फीचर्स कुछ-कुछ देखो अजंता पेंटिंग्स जैसे ही हैं जैसे लंबी-लंबी आंखें जो आदि बंद नजर आती हैं और होठ जो है वो थोड़े उभरे हुए नजर आते हैं इसके बाद बात करें म्यूरल अंडर पलवा बादामी के बाद अब हम पल्लव साम्राज्य में म्यूरल पेंटिंग्स की बात करते हैं देखो तमिलनाडु में ना चल लूक की जो पावर है जैसे-जैसे डिक्लाइन हुई उसके बाद इस क्षेत्र में पल्लव राजाओं का शासन शुरू हो गया पल्लव राजाओं ने भी कला और संस्कृति को उतना ही तवज्जो दिया जितना कि चालुक्य शासकों के समय में दिया गया था पल्लव काल में कई बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण हुआ जैसे देखो तमिलनाडु का मंडक पट्टू मंदिर यहां पे ना एक इंस्क्राइनॉक्स चित्रकार पुल्ली मतलब टाइगर अमंग द आर्टिस्ट तो महेंद्र वर्मन के बारे में ये सारे टाइटल्स दिए गए हैं यूपीएससी पूछ सकती है पल्लव राजाओं ने ना मंदिरों को सुंदर बनवाने के लिए दीवारों पर काफी सारी पेंटिंग्स भी बनवाई उनमें से ज्यादातर अब धुंधली या फिर मिट चुकी हैं जो पेंटिंग्स बच गई हैं उनमें से एक है पन मल मंदिर में बनी देवी की पेंटिंग कांचीपुरम के मंदिरों में जो पेंटिंग्स बनी हैं उनको बनवाया था पल्लव राजा राज समा नेम खैर देखो अब तो सिर्फ यहां पर पेंटिंग के कुछ निशान ही मौजूद हैं लेकिन इन निशानों से ना यह पता चलता है कि इनमें सोम स्कंद को चित्रित किया गया है यह एक फैमिली पेंटिंग है जिसमें भगवान शिव माता पार्वती और इनके बीच में स्कंद यानी कार्तिकेय जिनको मुरुगन भी कहा जाता है वह बाल रूप में बैठे हुए हैं इसके बाद पांड्या शासको की बात करें पांड्या शासको ने तिरुमला पुरम और सितन वासल में जैन केव्स का निर्माण करवाया इन्हीं जैन केव्स की छतों पर और पिलर्स पर पेंटिंग्स बनी हुई हैं यहां बनी पेंटिंग्स में देखो देवियों को डांस करते हुए दिखाया गया है और इन पेंटिंग्स को लगभग नौवीं शताब्दी में बनवाया गया था हम देखो थोड़ा सा ना सिटन वासल पेंटिंग्स को थोड़ा सा डिटेल से समझ लेते हैं तमिलनाडु के अर्मा मल गुफा से लगभग 250 किमी की दूरी पर स्थित है सिटन वासल की केव्स यहां बनी पेंटिंग्स जैन समवशरण पर आधारित हैं समवशरण का मतलब क्या है सभी को शरण यह देखो जैन तीर्थंकर का उपदेश कक्ष है जिसमें 20000 से ज्यादा सीढ़ियां हैं इन म्यूरल को ना गीले प्लास्टर के ऊपर बनाया गया है इसमें पीले हरे नीले काले और सफेद रंग का उपयोग किया गया है यहां एक पेंटिंग है जिसमें एक तालाब है और यह तालाब कमल के फूलों से भरा हुआ है और कुछ बध भिक्षु इन फूलों को तोड़ते हुए दिखाए गए हैं तो यह हुई सीटन वासल पेंटिंग्स की चोल साम्राज्य के समय बनाई गई पेंटिंग्स इनकी बात करते हैं नौवीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच चोल राजाओं ने तमिलनाडु के क्षेत्र में शासन किया जब 11वीं शताब्दी में देखो चोल शासन अपने पीक पर था ना तब काफी सारे मंदिरों का निर्माण हुआ तमिलनाडु का नरता मलाई चोल पेंटिंग्स का गढ़ माना जाता है यहां चोल साम्राज्य के समय बनी सैकड़ों मूर्तियां पेंटिंग्स और केव टेंपल्स मौजूद हैं बिदेश्वर मंदिर गंगाई कोंडा चोल पुरम मंदिर दारा सुरम मंदिर यह देखो महान चोल शासक राजा राजा और राजेंद्र चोल के समय बनवाए गए थे सबसे अधिक चोल पेंटिंग्स हमें वृद्धेश्वर मंदिर की दीवारों पर देखने को मिलती हैं यहां पर कुछ-कुछ पेंटिंग्स को देखकर ऐसे लगता है जैसे देखो इन्हें ना दो बार बनाया गया हो ऐसा माना जाता है जो ऊपर की पेंटिंग्स है ना उनको 16वीं शताब्दी में नायक राजाओं के शासनकाल में बनवाया गया था यहां की पेंटिंग्स में भगवान शिव के अलग-अलग रूपों को दिखाया गया है जैसे नटराज और त्रिपुरा तक जब देखो 13 सेंचुरी में चोल शासकों की डोमिनेंस खत्म हुई तो उसके बाद शुरू होता है विजयनगर साम्राज्य का समय विजयनगर साम्राज्य देखो राजधानी हंपी से लेके तिरु चिरा पल्ली यानी टची तक फैला हुआ था हपी के ही वीरु पाक्स मंदिर की छत में हमें विजयनगर शासकों के वंश से जुड़ी पेंटिंग्स मिलती हैं यहां पर महाभारत और रामायण की घटनाओं को भी पेंटिंग्स में दर्शाया गया है इसके अलावा लेपाक्षी मंदिर की दीवारों पर बनी भगवान शिव की पेंटिंग्स इसी समय की हैं ये पेंटिंग्स देखो सामने से देखने के बजाय साइड से देखने पर ज्यादा समझ में आती हैं विजयनगर पेंटिंग्स के बाद अब हम जल्दी से नायक पेंटिंग्स को भी देख लेते हैं 14th सेंचुरी से 17 सेंचुरी के बीच नायक पेंटिंग्स हमें देखो तिरु परण कुंदरम श्रीरंगम और तिरु वारर से मिलती हैं तिरु परन कुंदरम में जो पेंटिंग्स है ना उनमें भगवान महावीर के जीवन के दृश्यों को दिखाया गया है यहां की पेंटिंग्स में भी रामायण और महाभारत की घटनाओं को दिखाया गया है यहां हमें कृष्ण लीला से जुड़ी पेंटिंग्स भी देखने को मिलती है तिरु वारू में राजा मुचकुंद इनकी कहानी को चित्रित किया गया है तिरु वलन जुली की नटराज पेंटिंग्स नायक कला का देखो सबसे अद्भुत नमूना है नायक काल में चेंगमरी कृष्ण मंदिर में रामायण को 60 पैनल्स में चित्रित किया गया है इसके बाद अब हम बात करते हैं केरल म्यूरल की वैसे तो देखो इस समय काफी सारी पेंटिंग्स बनाई गई इन पेंटिंग्स में थिरु वलन जुली की नटराज पेंटिंग सबसे महत्त्वपूर्ण है इन पेंटिंग्स को बनवाने वाले कलाकारों ने नायक और विजयनगर पेंटिंग्स के जो एलिमेंट्स हैं उनका इस्तेमाल किया इवन देखो उस समय जो परंपराएं प्रचलन में थी ना उनसे भी ये पेंटिंग्स काफी ज्यादा प्रभावित हुई जैसे कथकली डांस या फिर कलम एजूथू इन दोनों को ना पेंटिंग्स में दर्शाया गया है आप पूछोगे सर कलम एजोत क्या है ये देखो एक प्रकार की रंगोली है जो केरल में बनाई जाती है यह पेंटिंग्स हमें सबसे ज्यादा मंदिरों की छत दीवारों और पिलर्स पर मिलेगी यह पेंटिंग्स भी रामायण और महाभारत की कथाओं से प्रेरित है पुंडरीक पूरम के कृष्ण मंदिर में और त्रिप्र यार के राम मंदिर में बनी पेंटिंग्स केरल पेंटिंग्स के सबसे मैच्योर फेस में बनाई गई थी मंदिर के अलावा कोची के डच पैलेस में कायम कुलम के कृष्ण पुरम पैलेस में और पद्मनाभ पुरम पैलेस में केरल म्यूरल पेंटिंग्स को आप देख सकते हो इसके बाद देखो ओड़ीशा के रावण छाया रोक शेल्टर्स में भी कुछ म्यूरल पेंटिंग्स बनी हुई हैं यहां पेंटिंग्स में राजा अपनी सेना के साथ जाते हुए दिखाए गए हैं इन्हीं केव शेल्टर्स में हमें 11वीं शताब्दी की चोल युग की पेंटिंग्स के साक्ष्य भी मिलते हैं मेडियल पीरियड में पेंटिंग्स के क्षेत्र में एक इनोवेशन देखने को मिली जिसे हमने मिनिएचर पेंटिंग्स का नाम दिया होती क्या है मिनिएचर पेंटिंग्स ये देखो भारतीय कला का एक अनोखा रूप है ये पेंटिंग्स बहुत छोटे आकार में बनाई जाती हैं ये पेंटिंग्स इतनी छोटी होती हैं कि इन्हें देखने के लिए आमतौर पर मैग्नीफाइंग ग्लास की जरूरत पड़ती है इन छोटी मिनिएचर पेंटिंग्स को देखो विभिन्न सर्फेसेज पे बनाया जाता था जैसे देखो पाम लीफ यानी ताड़ के पत्ते इसके अलावा बाद में कागज का आविष्कार हो गया था तो पेपर मिनिएचर पेंटिंग्स के लिए एक काफी ज्यादा पॉपुलर माध्यम बन गया इसके अलावा कई बार हाथी दांत के ऊपर भी मिनिएचर पेंटिंग्स बनाई जाती थी ये सब एग्जांपल्स हैं कि किनके ऊपर यह मिनिएचर पेंटिंग्स बनाई जाती थी अगर देखो डिटेल से मिनिएचर पेंटिंग्स की बात करें अलग-अलग शासकों के संरक्षण में ना कई सारे अलग-अलग स्टाइल निकल कर सामने आए और इन्हीं स्टाइल्स के आधार पर इन्हें हम कई सारे स्कूल्स में डिवाइड कर सकते हैं जैसे देखो पाल्स स्कूल मुगल स्कूल राजधानी स्कूल भुंडी स्कूल मालवा स्कूल मेवाड़ स्कूल पहाड़ी शैली बसोहली स्कूल कांगड़ा स्कूल और सबसे लास्ट में दकन स्कूल मिनिएचर पेंटिंग्स में ना 10वीं शताब्दी ईसवी में बनी भगवान बुद्ध की प्रज्ञा पमिता की जो पेंटिंग है ना ये देखो मिनिएचर पेंटिंग्स का सबसे पहला उदाहरण है तो सबसे पहले देखो हम पाल स्कूल को देखते हैं पाल शासकों का समय बौद्ध कला और संस्कृति के नजरिए से अंतिम सबसे महत्त्वपूर्ण काल था इसके बाद तो देखो बौद्ध कला धीरे-धीरे गिरावट की ओर बढ़ने लगी पाल स्कूल में बनी जातर पेंटिंग्स बौद्ध धर्म के वज्रयान संप्रदाय से ताल्लुक रखती हैं इन्हें ताड़ के पत्तों पर बनाया जाता था यानी पाम लीव्स के ऊपर अगर हम इस समय की सबसे प्यारी पेंटिंग की बात करें तो वोह है अष्ट शास्र स्का प्रज्ञा पमिता की पांडुलिपि इस पांडुलिपि को 8000 पंक्तियों में लिखा गया है मुस्लिम इवेडर्स ने जब नालंदा जैसे एजुकेशनल संस्थानों को नष्ट किया तब देखो उसी के साथ इस समय की ज्यादातर पांडु लिपियां और पेंटिंग्स भी नष्ट हो गई ये जो पाल स्कूल ऑफ पेंटिंग्स हैं ये देखो विशेष रूप से बिहार और बंगाल के क्षेत्रों में काफी फला फुला और बाद में नेपाल और तिब्बत सहित पड़ोसी क्षेत्रों की कला को भी पाल स्कूल ऑफ पेंटिंग्स ने प्रभावित किया इन पेंटिंग्स में ना भगवान बुद्ध बौद्धि सत्व और अन्य बौद्ध देवताओं को चित्रित किया गया है इनमें ह्यूमन शेप्स को यानी मानव आकृतियों को सरल रेखाओं और सिस्टमैटिक डिजाइंस और बिल्कुल चमकदार रंगों के साथ दर्शाया गया है पाल स्कूल के बाद अब हम देखते हैं मुगल स्कूल ऑफ पेंटिंग्स को इन पेंटिंग्स की शुरुआत देखो अकबर के बादशाह बनने के साथ हुई थी पेंटिंग्स की दुनिया में मुगल काल एक बड़ा सेंटर बनके सामने आया अकबर ने पेंटिंग्स को बनाने की जिम्मेदारी मीर सैयद अली और अब्दुल समद खान को दी इस काम के लिए उसने एक तस्वीर खाने को भी बनवाया ये कहना गलत नहीं होगा कि देखो मुगल स्कूल ऑफ पेंटिंग्स इन्हीं दो पेंटर्स की देन है मुगल स्कूल ऑफ पेंटिंग्स में अगर देखो हम पेंटिंग्स बनाने की शैली को देखें तो इनमें हमें भारतीय शैली और ईरान की सफावी पार्शन पेंटिंग्स के फीचर्स नजर आते हैं इन पेंटिंग्स को देखो बहुत ज्यादा ध्यान से बनाया जाता था रंगों को इतनी बारीकी से इस्तेमाल किया जाता था कि छोटी से छोटी जानकारी भी हमें साफ नजर आती है इन पेंटिंग्स की बॉर्डर को सुंदर बनाने के लिए कैलीग्राफी का इस्तेमाल किया जाता था मुगल पेंटिंग्स का असली विकास तो देखो तब शुरू हुआ जब गुजरात ग्वालियर और कश्मीर से हजारों पेंटर्स को मीर सैयद अली और अब्दुल समद खान के साथ काम करने के लिए दिल्ली बुलाया गया ये इसी प्रयास का नतीजा था कि मिनिएचर पेंटिंग्स की दो सबसे अच्छी किताबें तूती नामा और हमजा नामा बनकर सामने आई तूती नामा मुगल पेंटिंग्स का पहला काम था जिसमें लगभग 250 मिनिएचर पेंटिंग्स शामिल हैं ये 52 अलग-अलग कहानियों पर आधारित है 70 टेल्स ऑफ पैरेट या फिर सुख सप्तती से प्रेरित है इसे पूरा करने में लगभग 5 साल से ज्यादा का वक्त लगा था हमजा नावा की पेंटिंग्स फारसी कहानी दास्तान अमीर हमजा पर आधारित है इन पेंटिंग्स को पार्शन सफावी स्टाइल में बनाया गया है इनके अंदर बहुत ही शानदार तरीके से रेड ब्लू और ग्रीन कलर्स का इस्तेमाल हुआ है अकबर के बाद आते हैं जहांगीर जहांगीर देखो जब बादशाह बने तो ये मुगल पेंटिंग्स और भी ज्यादा महीन हो गई और भी ज्यादा बढ़िया हो गई यहां तक कि इस पीरियड में बनी सबसे अच्छी पेंटिंग खुद बादशाह जांगीर की है इसमें वो एक हाथ में वर्जिन मैरी की तस्वीर लेकर खड़े दिखाई दे रहे हैं इसके अलावा इस समय की कुछ दूसरी बेहतरीन पेंटिंग्स हैं अयारे दानिश और अनवार सुनली जो कि देखो एक एनिमल पोयम की किताबें हैं जहांगीर के कोट आर्टिस्ट उस्ताद मंसूर थे इन्हें पेड़ों और जानवरों को कैनवास पर उतारने में महारत हासिल थी उस्ताद मंसूर के अलावा आका रिजा अबुल हसन मंसूर मनोहर गोवर्धन बलचनमा जहांगीर के समय के मशहूर पेंटर थे इन सब आर्टिस्ट के अलावा देखो एक और भी आर्टिस्ट थे बिशन दास जहांगीर ने इनकी तारीफ करते हुए कहा था कि पेंटिंग्स के क्षेत्र में ना बशन दास का कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता जहांगीर की मृत्यु के बाद शाजा के शासन काल में भी पेंटिंग्स के स्तर में कोई कमी नहीं आई हालांकि उस समय देखो पोर्ट्रेट पेंटिंग्स को ज्यादा महत्व दिया गया पोर्ट्रेट पेंटिंग्स इन पेंटिंग्स का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की सकल सूरत और व्यक्तित्व को कैनवास पर उकेरना होता है मुगल काल में देखो मुगल बादशाहों और दरबारियों के पोर्ट्रेट बनवाए गए थे और एक चीज और ये पर्टिकुलर साझा नहीं बल्कि सभी मुगल किंग्स के लिए एप्लीकेबल है मुगल पेंटिंग्स में ना राजसी जीवन हिस्टोरिकल घटनाएं शिकार के दृश्य पोर्ट्रेट फूल पत्तियां और जानवर यह सब चीजें पेंटिंग्स में दिखाई जाती थी इन पेंटिंग्स का इस्तेमाल किताबों को सजाने दरबारी जीवन को दर्शाने और इंपॉर्टेंट इवेंट्स को दर्ज करने के लिए किया जाता था अब फिर से बात करें साजा के समय देखो जो पेंटर्स थे उनमें फकीर उल्ला मीर हाशिम मुरार हुनर मोहम्मद नादिर मोहम्मद नातिर समर कंदी यह सब फेमस पेंटर थे और अब साझा के बाद बात करें औरंग जेब की औरंगजेब के शासनकाल में कला के क्षेत्र में इतना ध्यान नहीं दिया गया इसी वजह से मुगल कोर्ट के जो पेंटर्स थे वो नाराज हो गए वो देखो अलग-अलग इंडिपेंडेंट प्रोविंसेस में जाने लगे पेंटर्स का यही माइग्रेशन एक कारण था कि मुगल पेंटिंग्स डिक्लाइन करने लगी और पेंटिंग्स के कई सारे रीजनल स्कूल्स उभर कर सामने आए अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के समय मुगल पेंटिंग्स फिर से रिवाइव हुई लेकिन जो ग्लोरी अकबर से साजा के समय तक थी वो फिर कभी लौटकर वापस नहीं आई अब हम बात करते हैं रीजनल स्कूल ऑफ पेंट की हमने देखा कि किस प्रकार से मुगल पेंटर्स के माइग्रेशन की वजह से पेंटिंग्स के काफी सारे रीजनल स्कूल्स उभर कर आए इन्हीं रीजनल स्कूल्स को हमने साउथ इंडियन पेंटिंग नाम से क्लासिफाई किया ये फिर और तीन मेजर ब्रांचेस में डिवाइड है पहला है दखनी स्कूल ऑफ पेंटिंग फिर है मैसूर स्कूल ऑफ पेंटिंग और आखिरी है तंजोर स्कूल ऑफ पेंटिंग अब चूंकि दक्कन का एरिया कई सारे छोटे-छोटे इंडिपेंडेंट किंगडम में बटा हुआ था तो इनके भी कई सारे सब स्कूल उभर कर सामने आए जैसे देखो दखनी स्कूल ऑफ पेंटिंग में बीजापुर गोलकोंडा और अहमद नगर स्कूल ऑफ पेंटिंग अब हम चलते हैं उत्तर भारत की तरफ और देखेंगे पहाड़ी स्कूल ऑफ पेंटिंग्स को पहाड़ी पेंटिंग्स का विकास मेनली हिमाचल प्रदेश पश्चिमी पंजाब उत्तराखंड और जम्मू एंड कश्मीर के आसपास के रीजंस में हुआ था पहाड़ी स्कूल को हम दो पार्ट्स में डिवाइड कर सकते हैं पहला है जम्मू या फिर डोगरा स्कूल और दूसरा है बसोली या फिर कांगड़ा स्कूल कश्मीर में स्थित एक छोटा सा सूबा था जिसे राजा भूपत पाल द्वारा 1635 एडी में स्थापित किया गया यहीं से बसोली नेचर पेंटिंग्स की शुरुआत हुई यह पेंटिंग्स राजा कृपाल पाल के संरक्षण में अपने चर्म पर पहुंची बड़ी-बड़ी आंखें टेडा मेडा आसमान या फिर यूं कहें सखरा आसमान इन पेंटिंग्स की खास बात थी और देखो इन पेंटिंग्स में यानी बसोली पेंटिंग्स में ना अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल भी होता था बसोली पेंटिंग्स में अक्सर गीत गोविंद बिहारी सतसई और बारा मासा जैसे ग्रंथों के दृश्य दिखाए जाते थे पहाड़ी स्टाइल में सबसे पॉपुलर और डेवलप्ड स्कूल था कांगड़ा स्कूल ये देखो 18वीं शताब्दी के आखिर में शुरू हुआ था कांगड़ा की पेंटिंग्स में भक्ति और अध्यात्म की झलक मिलती है गीत गोविंद और भगवत पुराण की कहानियां इन पेंटिंग्स में दर्शाई जाती थी चित्रकारों ने इन ग्रंथों के आधार पे काफी प्यार से और बढ़िया पेंटिंग्स बनाई है कांगड़ा पेंटिंग्स का सबसे मशहूर हिस्सा है 12 महीने का ग्रुप इसमें हर महीने के मौसम और उसके हिसाब से बदलते इंसान की भावनाओं को बहुत खूबसूरती से दिखाने की कोशिश की गई है मैं आपको एग्जांपल देता हूं जैसे कि गर्मी के महीने में लोग कैसे होते हैं थके हुए होते हैं और भड़के हुए नजर आते हैं बारिश के मौसम में सब खुश और फैला हुआ सा महसूस करते हैं और सर्दी के मौसम में लोग अक्सर कांपते हुए नजर आते हैं आग के पास बैठे नजर आते हैं तो इन सब दृश्यों को पेंटिंग में दिखाने की कोशिश की गई है इन पेंटिंग्स में यानी कांगड़ा पेंटिंग्स में ना ना सिर्फ कैसे-कैसे नेचर बदल रही है बल्कि नेचर के बदलने के साथ-साथ इंसानी जज्बात कैसे बदल रहे हैं उनको भी बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया है यह कांगड़ा पेंटिंग्स की एक खास पहचान है जो कांगड़ा पेंटिंग्स को बाकी पेंटिंग से अलग बनाती है हमने अभी तक देखा कि हर रीजनल स्कूल की अपनी एक यूनिक स्टाइल थी लेकिन एक पेंटिंग की स्टाइल हमें लगभग सभी स्कूलों में कॉमन देखने को मिलती है वो है रागमाला पेंटिंग्स ये पेंटिंग्स विभिन्न भारतीय संगीत के रागों को दर्शाती हैं अलग-अलग रीजनल स्कूल्स के आधार पर इन्हें पहाड़ी रागमाला राजस्थानी और राजपूती रागमाला डेकन रागमाला और मुगल रागमाला नाम दिया गया इसके अलावा कई पेंटिंग्स राग से जुड़े स्पेसिफिक हिंदू देवी देवताओं को भी दर्शाती हैं जैसे कि देखो राग भैरव या भैरवी रागमाला में देखो छह प्रमुख राग हैं भैरव दीपक श्री मालकोश मेघ और सबसे लास्ट में हिंदू इसके बाद अब हम डिस्कस करते हैं कंपनी पेंटिंग्स के बारे में कॉलोनियल पीरियड में ना एक नया हाइब्रिड स्टाइल ऑफ पेंटिंग इमर्ज हुआ इसमें ना राजपूत मुगल और अन्य इंडियन पेंटिंग स्टाइल्स के एलिमेंट्स को यूरोपियन एलिमेंट्स के साथ में मिक्स किया गया ये पेंटिंग्स देखो तब इवोल्व हुई जब ब्रिटिश कंपनी ऑफिसर्स ने इंडियन स्टाइल में ट्रेंड पेंटर्स को रोजगार देना स्टार्ट किया पेंटर्स ने अपने एंप्लॉयर के यूरोपियन टेस्ट को अपनी इंडियन पेंटिंग्स के साथ में मिक्स कर दिया इसे ही कंपनी पेंटिंग्स कहा जाता था इनमें शेडिंग यानी परछाई की टेक्निक्स भी यूज़ होती थी लोर्ड इंपे और लोर्ड वेल्स दोनों ने इन पेंटर्स को सपोर्ट किया बहुत सारे पेंटर्स देखो इंडिया के अलग-अलग कोनों के जो फ्लोरा एंड फोना थे यानी जानवर और पेड़-पौधे उनको पेंट कर रहे थे इन पेंटिंग्स में कंपनी पेंटिंग्स को डिस्कस करने के बाद अब हम डिस्कस करते हैं बाजार पेंटिंग्स के बारे में ये स्कूल भी देखो अंग्रेजों के आने से इन्फ्लुएंस था ये कंपनी पेंटिंग से अलग था क्योंकि इस स्कूल ने यूरोपियन टेक्निक्स और थीम्स को ना इंडियन थीम्स और स्टाइल के साथ में मिक्स नहीं किया बल्कि बाजार स्कूल ने ना रोमन और ग्रीक इन्फ्लुएंस लिया उन्होंने पेंटर्स को ग्रीक और रोमन स्टैचू उस को कॉपी करने को कहा ये स्कूल देखो बंगाल और बिहार रीजन में काफी पॉपुलर था ग्रीको रोमन हेरिटेज के अलावा उन्होंने देखो एवरीडे बाजार की पेंटिंग्स भी बनाई मतलब कि इंडियन में बाजार के जो दृश्य होते थे दुकानें वगैरह उनको यूरोपियन बैकग्राउंड के साथ पेंटिंग में दिखाया गया बाजार पेंटिंग्स में सबसे फेमस जनर में से एक ब्रिटिश ऑफिशल्स के सामने ना इंडियन कलाकार डांस किया करते थे तो इस चीज को डिपिक्ट किया गया काफी ज्यादा बाजार पेंटिंग्स में उन्होंने रिलीजियस थीम्स पर भी पेंटिंग्स बनाए बाजार स्कूल के पेंटर्स ने ना भगवान और देवियों की पेंटिंग्स भी बनाए बट देखो अगर किसी भगवान की पेंटिंग में ना दो से ज्यादा हाथ या फिर हाथी का चेहरा होता था जैसे भगवान गणेश जी में तो उसे अलाव नहीं किया जाता था क्यों क्योंकि ना अंग्रेजों को लगता था कि इंसान के शरीर में सिर्फ दो हाथ और एक नॉर्मल सा चेहरा होना चाहिए इसलिए अगर किसी पेंटिंग में भगवान की मूर्ति में ज्यादा हाथ या अलग से चेहरा होता था तो वह उनके हिसाब से सही नहीं थी अंग्रेजों के हिसाब से यह नेचुरल नहीं था इसलिए वो सुपर नेचुरल पेंटिंग्स को अलाव नहीं करते थे इसके बाद अब हम डिस्कस करते हैं बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के बारे में देखो जो बंगाल ऑ स्कूल ऑफ आर्ट था ना उसके बारे में एक सिंपल सी बात ये 1940 और 1960 के टाइम में दूसरी पेंटिंग स्टाइल से अलग था इनकी खास बात यह थी कि ये सिंपल क्लर्स यूज करते थे बंगाल स्कूल का आईडिया अभिनंद नाथ टैगोर ने 20वीं सेंचरी के शुरुआत में दिया इन्होंने इंडियन आर्ट में देसी वैल्यूज को डालने की कोशिश की और आर्टिस्ट को अंग्रेजी स्टाइल से दूर रहने को कहा इनकी फेमस पेंटिंग है भारत माता और इन्होंने मुगल थीम्ड पेंटिंग्स पर भी फोकस किया इसी स्कूल के एक और बड़े पेंटर हैं नंदलाल बोस उन्हें भारत के संविधान के पहले डॉक्यूमेंट को सजाने का काम भी दिया गया था किनको नंदलाल बोस को रवींद्रनाथ टैगोर भी इसी स्कूल से जुड़े थे और इनकी पेंटिंग्स में ना एक खास बात थी रवींद्रनाथ टैगोर ने ना मोटी ब्लैक लाइंस यूज की जिससे उनकी पेंटिंग्स के सब्जेक्ट एकदम से बाहर निकल के आते थे और उन्होंने छोटे साइज की पेंटिंग्स बनाई बंगाल स्कूल ऑफ पेंटिंग्स को डिस्कस करने के बाद अब हम डिस्कस करते हैं क्यूबिस्ट स्टाइल की पेंटिंग्स के बारे में देखो आजादी के बाद ना भारत में पेंटिंग्स के कई सारे स्टाइल्स इमर्ज होके आए और उन्हीं में से एक था क्यूबिस्ट स्टाइल ऑफ पेंटिंग्स ये पेंटिंग्स यूरोप के क्यूबिस्ट मूवमेंट से इंस्पायर होकर शुरू हुई एमएफ हुसैन जैसे जो फेमस आर्टिस्ट थे इन्होंने अपने काम में इस स्टाइल को दिखाया है इस स्टाइल के अंतर्गत ऑब्जेक्ट्स को ना तोड़ा जाता था फिर उनका एनालिसिस करने के बाद फिर से जोड़ा जाता था बट जो ऑब्जेक्ट्स को बाद में फिर से जोड़ा गया है ना इस चीज को पेंटिंग्स के फॉर्म में बनाया जाता है यानी पेंटिंग्स को देख के आपको ऐसा लगेगा जैसे बहुत सारे टुकड़े जो है ना पेंटिंग्स के वो आपस में जोड़ दिए गए हो एम एफ हुसैन की पर्स निफिट ऑफ रोमांस सीरीज इस स्टाइल का फेमस वर्क है 1840 में फोटोग्राफी के चलन में आने के बाद यह स्कूल बुरी तरह से प्रभावित हुआ और 20वीं सदी आते-आते तो पेंटिंग्स का जो चलन है वो लगभग देखो खत्म ही हो गया ईश्वरी प्रसाद जो है वो मॉडर्न पेंटिंग्स के आखिरी आर्टिस्ट माने जाते थे ईश्वरी प्रसाद की बात करें तो हम देखो राजा रवि वर्मा को कैसे भूल सकते हैं त्रावणकोर के रहने वाले राजा रवि वर्मा ने ट्रेडिशनल इंडियन पेंटिंग्स को वेस्टर्न इन्फ्लुएंस के साथ बनाए रखा शकुंतला उनकी सबसे फेमस पेंटिंग है जिसमें उन्होंने दुष्यंत और शकुंतला की कहानी को बखूबी दर्शाया है इसके अलावा लेडी इन द मूनलाइट और मदर इंडिया राजा रवि वर्मा की कुछ दूसरी फेमस पेंटिंग्स हैं इस प्रकार से हमने मॉडर्न पेंटिंग्स को समझा तो मॉडर्न पेंटिंग्स को डिस्कस करने के बाद अब हम डिस्कस करते हैं फोक पेंटिंग्स के बारे में और फोक पेंटिंग्स से संबंधित देखो यूपीएससी ने ना बहुत सारे क्वेश्चंस पूछे हैं फोक पेंटिंग्स देखो एक ट्रेडिशनल आर्ट फॉर्म है यह देखो पीडियो से यानी जनरेशन से चली आ रही है इनमें पुराने जमाने के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी उनकी लोक कलाएं पुरानी कहानियां धार्मिक मान्यताएं ये सब चीजें दिखाई जाती हैं मतलब इन पेंटिंग्स को देखकर ना हमें लगता है कि पहले के लोग कैसे रहते थे क्या करते थे और किन चीजों में उनकी आस्था थी ये सब चीजें इन पेंटिंग्स के जरिए सालों तक सुरक्षित रह गई सबसे पहले हम हम देखते हैं मधुबनी पेंटिंग्स को यह पेंटिंग्स ना बिहार में काफी प्रचलित है मधुबनी जिले के आसपास महिलाओं के द्वारा यह पेंटिंग्स बनाई जाती हैं इन्हें मिथिला पेंटिंग्स भी कहा जाता है ये आमतौर पर भगवान कृष्ण राम दुर्गा लक्ष्मी शिवजी यह सारे जो हिंदू देवी देवता हैं ना इनसे और धार्मिक मुद्दों से प्रेरित होती हैं यह मधुबनी पेंटिंग्स इनमें कुछ फिगर्स को सिंबल्स के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जैसे मछली को गुड लक या फिर फर्टिलिटी को दर्शाने के लिए बनाया जाता है और देखो ट्रेडिशनल मधु नी पेंटिंग्स को ना दीवारों पर गोबर या मिट्टी के बेस पर बनाया जाता है हालांकि अब इन्हें कागज या कपड़ों के ऊपर भी बनाया जाने लगा है इन्हें बनाने में चावल के पेस्ट और नेचुरल कलर्स का इस्तेमाल होता है अब चूंकि देखो यह कला लिमिटेड एरिया में मिलती है इसलिए मधुबनी पेंटिंग्स को जीआई टैग भी दिया गया है इसके बाद दूसरी पेंटिंग है पट चित्र जैसी मधुबनी पेंटिंग्स है ना वैसे ही कुछ फोक पेंटिंग्स हमें उड़ीसा में देखने को मिलती है इन्हें पट चित्र कहा जाता है पट का मतलब होता है कपड़ा और चित्र का मतलब होता है पेंटिंग्स इन्हें एक कॉटन के बेस पे बनाया जाता है इनमें बनाए गए चित्रों की बॉर्डर को बनाने के लिए लाल और पी पीले रंग का इस्तेमाल होता है और ये कलर्स भी फूल पतियों और सब्जियों से निकाले जाते हैं अगर हम इन पेंटिंग्स की थीम की बात करें तो भगवान जगन्नाथ या फिर देखो वैष्णव धर्म से संबंधित थीम्स होती हैं इन पट चित्र पेंटिंग्स में ताड़ के पत्तों पर बनी पट चित्र को ताला पट चित्र कहा जाता है इसके बाद नेक्स्ट है कलमकारी आंध्र प्रदेश की है यह कलमकारी पेंटिंग्स और काफी फेमस है इनमें ना इन पेंटिंग्स में कलम यानी कि पेन को ना बांस यानी बैंबू से बनाया जाता है और इस पेन का इस्तेमाल रंगों के फ्लो को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है सूती कपड़े पर बनाई गई यह पेंटिंग्स पुराणिक कथाओं से प्रेरित होकर बनाई जाती हैं आंध्र प्रदेश के श्री काल हस्ती और मछली पटनम कलमकारी पेंटिंग्स के मुख्य सेंटर हैं इसके बाद नेक्स्ट है मंजूषा पेंटिंग इसको अंगिका कला के नाम से भी जाना जाता है इसमें अंग शब्द अंगा महाजनपद के लिए प्रयोग किया गया है इन्हें देखो मुख्यतः भागलपुर क्षेत्र में बनाना शुरू किया गया था इनमें बनाए गए सांप जैसे पैटर्स की वजह से इन्हें स्नेक पेंटिंग्स भी कहा जाता है इन्हें जूट या फिर कागज के बॉक्स प बनाया जाता है इसके बाद नेक्स्ट अब हम देखते हैं नॉर्थ ईस्ट इंडिया में बनाई जाने वाली थंगका पेंटिंग्स को ये पेंटिंग्स देखो सिक्किम हिमाचल प्रदेश लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों में बनाई जाती है इन्हें नेचुरल कलर्स का इस्तेमाल करके सूती कपड़े पर बनाया जाता है इन पेंटिंग्स में हर कलर का अपना एक महत्व है अपनी एक इंपोर्टेंस है जैसे देखो ब्लैक कलर जो है वो एंगर को दर्शाता है सफेद कलर ब्यूटी को दर्शाता है सुंदरता को रेड कलर जुनून को दर्शाता है येलो कलर कंपैशन यानी करुणा को दर्शाता है ये पेंटिंग्स बौद्ध धर्म से संबंधित हैं इनमें भगवान बुद्ध के जन्म को उनकी ज्ञान प्राप्ति के समय को दर्शाया गया है फोक पेंटिंग में अगली है फड पेंटिंग यह पेंटिंग्स राजस्थान में बनाई जाती हैं इनकी जो थीम है व धार्मिक किस्म की होती है इनमें वहां के जो लोकल देवी देवता है ना उनको पूजा जाता है जैसे देखो पाबूजी और देवनारायण इनको दर्शाया जाता है फर्ड पेंटिंग्स में इन्हें कपड़े के लंबे टुकड़े पर बनाया जाता है यह कपड़ा लगभग 15 से 30 फीट लंबा होता है और इसको ही फड कहते हैं यहीं से इनका नाम आया फड पेंटिंग इन्हें बनाने में भी फूल पतियों से निकाले हुए कलर्स का इस्तेमाल होता है गोल चेहरे बड़ी-बड़ी आंखें इन पेंटिंग्स की ना खास बात है खासियत है इसी कर्म में नेक्स्ट फोक पेंटिंग है पिथोरा पेंटिंग इन्हें ना मध्य प्रदेश और गुजरात की कुछ ट्राइब्स के द्वारा बनाया जाता है और इन पेंटिंग्स की थीम बिना धार्मिक और आध्यात्मिक यानी स्पिरिचुअल किस्म की होती हैं देखो मान्यता यह है कि इन पेंटिंग्स को बनाने से ना घर में शांति और समृद्धि बनी रहती है त्यौहारों और कुछ खास मौकों पर इन पेंटिंग्स को बनाने का रिवाज है इसके बाद अब हम देखते हैं वर्ली पेंटिंग्स के बारे में वर्ली पेंटिंग्स के बारे में एक सिंपल बात यह है इस पेंटिंग का जो नाम है उन लोगों से आया है जो 2500 से 3000 साल पहले से इस पेंटिंग की परंपरा को निभाते आ रहे हैं इन्हें वर्ली कहते हैं जो गुजरात महाराष्ट्र बॉर्डर पे रहने वाले आदिवासी लोग हैं यह पेंटिंग्स मध्य प्रदेश के भीम बदका की म्यूरल पेंटिंग से बहुत मिलती-जुलती है जो प्रीहिस्टोरिक टाइम्स की हैं वर्ली पेंटिंग्स में एक चौकट या चौक होता है जिसके आसपास देखो मछली पकड़ने शिकार करने खेती करने नाच गाने जानवर पेड़-पौधे या फिर जो फेस्टिवल्स हैं इन सबके जो दृश्य है वह दिखाए जाते हैं पहले के जमाने में ना यह पेंटिंग्स दीवारों पर बनाई जाती थी और इनमें बहुत बेसिक ग्राफिक वोकैबुलरी इस्तेमाल होती थी जैसे देखो ट्रायंगल है सर्कल है या फिर स्फीयर है ये शेप्स नेचर से इंस्पायर होते हैं जैसे सूरज या चांद से सर्कल कोनिकल शेप्ड ट्रीज या पहाड़ों से ट्रायंगल और पवित्र जगह या जमीन के टुकड़ों से स्क्वायर इंसान या जानवरों को दिखाने के लिए ना दो ट्रायंगल को टिप पे जोड़ा जाता है जिसमें सर्कल्स उनके सर का काम करते हैं सिर्फ सफेद रंग का पिगमेंट इस्तेमाल होता है और इसे देखो गम और चावल के पाउडर से बनाया जाता है खास करके देखो महाराष्ट्र में नॉर्थ सहदी रेंज में जो ट्राइब्स रहते हैं ना उनके द्वारा ये पेंटिंग्स बनाई जाती हैं इसके बाद अब हम देखते हैं चेरियल स्क्रोल पेंटिंग्स के बारे में ये देखो तेलंगाना की अपनी क्ला है और चेरियल स्क्रोल जो पेंटिंग है नकासी आर्ट का एक टाइप है इन पेंटिंग्स में ना एक के बाद एक कहानी होती है जैसे कॉमिक्स में होता है ना सीन नंबर वन सीन नंबर सेकंड डब्बे डब्बे बने होते हैं कॉमिक्स आपने कोई पढ़ी हो बच्चों के लिए जो होती है सीन वन सीन सेकंड ऐसे पेंटिंग्स बनी होती है कॉमिक्स में उसी प्रकार चेरियल स्क्रोल पेंटिंग्स में ना मतलब पेंटिंग नंबर में एक सीन होगा फिर अगला जो सीन होगा वह दूसरी पेंटिंग में होगा सीन नंबर टू तो इस प्रकार से कई सारे सीन मिलाकर एक स्टोरी बनती है समझ गए यह पेंटिंग्स देखो बलाद कम्युनिटी के लोग बनाते हैं और इनमें अक्सर हिंदू एपिक्स और जो पुरा पुराणिक कहानियां है ना वह दर्शाई जाती हैं आर्टिस्ट इन स्क्रोल पेंटिंग्स का इस्तेमाल करके कहानियां सुनाते हैं और साथ में म्यूजिक भी बजाते हैं ऐसा करते हुए यह जगह-जगह घूमते रहते हैं और ये पेंटिंग्स ना बड़ी होती हैं कभी-कभी तो 45 फीट तक लंबी हो सकती हैं 2007 में इन्हें जीआई स्टेटस भी मिल गया था मतलब यह तेलंगाना की खास चीज बानी गई है इसके बाद नेक्स्ट है कालीघाट पेंटिंग्स कालीघाट पेंटिंग्स देखो 19वीं सदी में ना कोलकाता के बदलती शहरी समाज की देन है मतलब कोलकाता से ना गांव में बहुत सारे लोग आए थे और कोलकाता उस समय ब्रिटिश राजधानी थी तो ना कोलकाता में कालीघाट मंदिर के आसपास गांव से आए लोग जो बस गए थे ना उन्होंने इस प्रकार की पेंटिंग्स को बना स्टार्ट किया था इनमें ना पेपर मिल्क के कागज पर वाटर कलर्स का इस्तेमाल किया जाता था और जो ब्रश होता था वो बछड़े या फिर गिलेरी के बालों से बने होते थे पेंटिंग्स में जो फिगर बनाए जाते थे ना उनको साफ बैकग्राउंड पर जब बनाया जाता तो एक अलग तरह का खास लुक मिलता था पहले तो यह पेंटिंग्स ज्यादातर भगवान और भगवती के बारे में होती थी यानी देवी देवताओं के बारे में होती थी बट बाद में इन पेंटिंग्स में ना समाज की भावनाएं भी दिखाई जाने लगी कालीघाट पेंटिंग्स को देश की पहली ऐसी पेंटिंग माना जाता है जो गरीब और छोटे लोगों की भावनाओं को दिखाती है और सीधे कस्टमर से बात करती है इसके बाद नेक्स्ट है सौरा पेंटिंग्स इन पेंटिंग्स को ना उड़ीसा की सौरा जनजाति के द्वारा बनाया जाता है यह भी देखो वर्ली पेंटिंग्स जैसी ही हैं यह एक प्रकार की ना म्यूरल पेंटिंग्स हैं यह सौरा ट्राइब्स के देवता सौरा को समर्पित की जाती है इनको बनाने में ना सफेद रंग का यूज किया जाता है और अगर किसी इंसान को बनाना हो तो प्रीहिस्टोरिक पेंटिंग्स जैसे ही स्टिक्स के फॉर्म में बनाया जाता है इसके बाद नेक्स्ट है पैथ करर पेंटिंग्स यह भी देखो ट्राइबल से जुड़ी एक खास पेंटिंग है और इसे झारखंड के आदिवासी लोग बनाते हैं इनका संबंध ना देवी मंसा से है और यह जो ट्राइब्स हैं देवी मंसा की पूजा करते हैं यह पेंटिंग्स दान देने या यज्ञ करवाने जैसे जो सोशल रिचुअल्स है ना उनसे जुड़ी हुई हैं इनकी थीम काफी पुराण होती है इंसान के मरने के बाद उसके साथ जो होता है उससे जुड़ी थीम्स हमें इन पेंटिंग्स में देखने को मिलती है पैटकर पेंटिंग्स में तो इस प्रकार से देखो हमने काफी सारी फोक पेंटिंग्स को समझा जाना इसके बाद अब हम डिस्कस करेंगे स्कल्पचर्स के बारे में पेंटिंग्स के बाद अब हम देखेंगे स्कल्पचर्स को यानी मूर्तियों को देखो ये आर्ट फॉर्म बिना उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव सभ्यता जब सभ्यता की बात हो तो सबसे पहले हमारे दिमाग में जो सिविलाइजेशन आती है वो इंडस वैली सिविलाइजेशन है स्कल्पचर्स के सबसे पुराने जो एविडेंस है हमें सिंधु घाटी सभ्यता से मिलते हैं इन स्कल्पचर्स को हम मुख्यत देखो दो प्रकार से डिवाइड कर सकते हैं पहला है पत्थर से बने स्कल्पचर्स और दूसरा है मेटल यानी धातु के स्कल्पचर्स हमें देखो हड़प्पा और मोहन औरो से सबसे ज्यादा पत्थर से बने स्कल्पचर्स मिलते हैं इन्हें बनाने में देखो लाल बलुआ पत्थर यानी रेड सैंड स्टोन स्टिया टाइट या टेराकोटा या पकी हुई मिट्टी का इस्तेमाल हुआ है हड़प्पा में ना खुदाई करते वक्त एक मेल टोसो और बिडेड प्रीस्ट कास्ट कल्चर में मिला है टोसो का मतलब है धड़ जिसकी ना मुंडी है और ना ही लिब्सन मेल टोसो की हम बात करते हैं ये जो मेल टोसो मिला है ना इसकी कारीगरी देखो इतनी ज्यादा बेहतरीन है इसे हम गंधार स्टाइल में बनी मूर्तियों से कंपेयर कर सकते हैं ये बहुत ज्यादा पोलिश स्कल्पचर्स हैं इसके अलावा बीयर्डेड प्रीस्ट या फिर यूं बोले दाढ़ी वाला आदमी इसी समय का एक और स्कल्पचर है इसकी तुलना उस समय रहे पुजारी से की जा सकती है इसका जो लेफ्ट कंधा है वो शोल से ढका हुआ है इस शोल को ट्रफोल पैटर्न में यानी तीन पतियों जैसे पैटर्न में डेकोरेट किया गया है इसकी आंखें लंबी और आदि बंद नजर आती हैं ऐसा लगता है जैसे यह ध्यान की मुद्रा में मगन हो और चेहरे की बनावट की बात करें तो ये देखो एवरेज साइज का है इसके राइट हैंड में एक तावीज बंधा हुआ है जिससे हम ये अंदाजा लगा सकते हैं कि उस समय के लोग ना तंत्र मंत्र में विश्वास करते होंगे इंडस वैली में पत्थर के अलावा ब्रोन से बनी मूर्तियां भी काफी मिलती हैं इन्हें बनाने में ब्रोंज कास्टिंग मेथड का यूज हुआ है यह तकनीक इंडस वैली के दौरान काफी पॉपुलर हुआ करती थी मोहन जुदा औरों से मिली डांसिंग गर्ल की और कालीबंगा से मिली सांड की मूर्ति ब्रोंज कास्टिंग के अच्छे उदाहरण हैं अब जानते हैं देखो ये ब्रोंज कास्टिंग की तकनीक आखिरकार है क्या तो देखो इस तकनीक में ना पहले मोम की एक स्टैचू बनाई जाती थी उसको फिर मिट्टी के लेप से ढांक दिया जाता था जब ऊपर की मिट्टी सूख जाती थी ना तब इस पूरे स्टैचू को आग में रख देते थे ऐसा करने से मिट्टी तो पक जाती थी पर अंदर जो मोम था ना वो पिघल जाता था यानी वैक्स जो अंदर था ना जिसको मोम बोलते हैं वो पिघल जाता था तो फिर देखो एक होल करके एक सुराख करके अंदर का सारा मोम बाहर निकाल लिया जाता था यानी मिट्टी का एक ढांचा रह गया जो अंदर से खोखला है मोम तो सारा निकल गया बट देखो अब ना अंदर ब्रोंज को भर दिया जाता था ठंडा होने के बाद ऊपर की मिट्टी को हटा दिया जाता था तो अंदर हमारी ब्रोंज की मूर्ति बन जाती थी ये जो पूरी प्रोसेस है ना इसी को हम लस्ट वैक्स टेक्नीक कहते हैं हजारों साल पहले की ये मेटल कास्टिंग की टेक्नीक आज भी हिमाचल प्रदेश उड़ीसा बिहार मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में यूज की जाती है हालांकि कुछ दूसरी साइट्स जै जैसे कि देखो लोथल में ब्रोंज की जगह कॉपर का यूज भी हुआ है डांसिंग गर्ल के बारे में हम थोड़ा डिटेल से देखते हैं इस मूर्ति के सिर में ना बालों का जूड़ा बंधा हुआ है इसने अपने लेफ्ट हैंड में चूड़ियां पहनी हुई है और राइट हैंड में भी एक कंगन जैसा कुछ पहना हुआ है गले में कोड़ी का हार भी है हाथ की पोजीशन को देखें तो इसका जो राइट हैंड है वो हिप के ऊपर है और लेफ्ट हैंड आगे की तरफ है यह देखो त्रिभंग पोस्चर जैसा प्रतीत होता है मेटल कास्टिंग से बनी मूर्तियों को देखने के बाद समझने के बाद अब हम टेरा टा यानी पकी हुई मिट्टी से बनी मूर्तियों को देखते हैं ब्रोंज स्ट्रक्चर की तुलना में इनकी फिनिशिंग और क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं थी टेराकोटा से बने स्कल्पचर्स में बैलगाड़ी झुनझुना विसल पक्षी और जानवरों के स्कल्पचर्स मिलते हैं टेराकोटा से बनी मूर्तियों में सबसे इंपोर्टेंट है मैत्री देवी या मदर गोडेस की मूर्ति इसमें ये जालीदार कपड़े और गले में एक लंबा नेकलेस पहने हुए हैं इन्हें गोडस ऑफ फर्टिलिटी भी माना जाता है है इनके अलावा म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स एलिफेंट्स भगवान शिव और नंदी की मूर्तियां भी हमें यहां से मिलती हैं तो इस प्रकार से हमने स्कल्पचर्स को समझा अब हम जानते हैं सील्स के बारे में देखो इंडस वैली की साइट से ना हजारों सील्स बरामद हुई हैं इनको बनाने में गोल्ड का हाथी के दांतों का भी यूज हुआ है पर ज्यादातर सील्स स्टिया टाइट से बनी हुई हैं इनका मेन यूज कमर्शियल एजुकेशनल डेकोरेशन या फिर इवन गहने बनाने के लिए भी यूज होता था इन्हें गोल या फिर स्क्वेयर से में ज्यादा बनाया जाता था इनके ऊपर ना कुछ ना कुछ साइंस या फिर सिंबल बने होते थे जैसे देखो वन होन राइनो टाइगर यह सब इन सिंबल्स को ना हम पिक्टोग्राफिक एक्सप्रेशन कहते हैं एक सील जो काफी ज्यादा फेमस है वह है पशुपति सील इस सील के बीच में ना एक ह्यूमन फिगर है जिसके चारों तरफ जानवर बने हुए हैं इसके राइट साइड में टाइगर और एलीफेंट है लेफ्ट साइड में राइनो और बफेलो बने हुए हैं सील्स के बाद अब हम इंडस वैली की पोटरी को देख लेते हैं इंडस वैली की साइड्स में मिली पोटरी को ना व्हील की सहायता से बनाया गया था यानी पहिए की सहायता से पोटरी में प्लेन पोटरी ज्यादा कॉमन थी यानी इन्हें ज्यादा सजाया नहीं गया है इन पोटरी में ग्रे कलर की धारियां और लाल कलर से डिजाइन बनाई गई थी इन्हें सजाने के लिए ज्योमेट्री डिजाइन को बनाया गया यहां के कुछ बर्तनों में ना नोब भी बनाए गए थे नोब मतलब बर्तन को पकड़ने के लिए जो साइड में हैंडल बना होता है जैसे चाय गरम होती है ना चाय बनाते हैं लेकिन फ्राई पैन को पकड़ने के लिए एक डंडा सा लगा होता है फ्राई पैन के साथ में उसे नोब बोलते हैं इंडस वाली सिविलाइज से मैं पॉलीकॉम पोट्री काफी कम मिलती है पॉलीकॉम पोटरी यानी ऐसी पोटरी जिसमें बहुत सारे कलर्स का यूज हुआ है इसके अलावा यहां से परफोरेटेड बर्तन भी मिलते हैं परफोरेटेड पोटरी यानी छेद वाले बर्तन इनका मेन यूज ना अल्कोहल को फिल्टर करने के लिए होता था पोटरी में बहुत खास है पेंटेड अर्थन जार यह हमें मोहन जोदड़ो से मिला है आग में पकाने के बाद इन पर भी अलग-अलग थीम से जुड़े पैटर्न बनाए जाते थे इंडस वैली के बाद मोरन काल के समय स्कल्पचर को बनाने में काफी प्रोग्रेस हुई इस टाइम पर बने स्कल्पचर्स को हम दो हिस्सों में डिवाइड कर सकते हैं पहला है कोर्ट आर्ट और दूसरा है पॉपुलर आर्ट पॉपुलर आर्ट यानी इंडिविजुअल इनिशिएटिव और कोर्ट आर्ट मतलब राजा वगैरह जो प्रमोट करते थे कोर्ट से जो चीजें प्रमोट होती थी समझ गए एग्जांपल दूं आपको जैसे देखो राजा महाराजा उस समय पैलेस बनवाते थे पिलर्स बनवाते थे स्तूप बनवाते थे ये सब एग्जांपल्स हैं कोट आर्ट के वहीं पॉपुलर आर्ट में जैसे कुछ लोग हैं उन्होंने शेल्टर के लिए केव्स बना ली या फिर पोटरी उन्होंने बनाना स्टार्ट कर दिया स्कल्पचर्स हैं यह सब क्या है यह पॉपुलर आर्ट है ये इंडिविजुअल इनिशिएटिव से निकल के आते हैं मोरियन पलेसेस के बारे में ना मशहूर चाइनीज ट्रेवल फाहियान ने कहा था ये इतने सुंदर थे यानी मोरियन जो पलेसेस थे ना इतने ब्यूटीफुल थे मानो कि भगवान ने इसे गिफ्ट में दिया हो इन महलों को बनाने में ना लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है इन पर पर्शियन इन्फ्लुएंस काफी रहा पेंटिंग्स की तरह ही मोरियन स्कल्पचर्स में में भी हमें धार्मिक इन्फ्लुएंस देखने को मिलता है मोरियन आर्ट में ना हर जगह पत्थर को बेहतरीन ढंग से तराशा गया है रेलिंग में दरवाजों को बनाने में हर जगह पत्थर का यूज दिखता है पाटलीपुत्र में हमें मोरन काल से जुड़े कई सारे अवशेष मिलते हैं कुछ इतिहासकारों का मानना है इन स्कल्पचर्स को बनाने में ना एकमे निडॉग्स को अडॉप्ट किया गया था ये जो एकमे निडर था ना जहां पे देखो आज का ईरान है ना उस रीजन में ये एकमे निडर फैला हुआ था हालांकि देखो जो एमेनिटी मॉडल और मोरेन एंपायर के द्वारा जो पिलर्स एस्टेब्लिश कि गए इनमें काफी डिफरेंसेस हैं जैसे देखो ये पिलर ना मोनोलिथिक है यानी एक ही पत्थर को तराश कर बनाए हुए हैं वहीं एमेनिटी जो पिलर्स है ना उनको टुकड़ों में जोड़ के बनाया गया है मतलब अलग-अलग पत्थरों को जोड़ के बनाया गया है एक और डिफरेंस ये है जो मोरियन पिलर्स है ना वो इंडिपेंडेंटली खड़े हुए हैं लेकिन एक मेनेड मॉडल वाले जो पिलर्स हैं ना वो बिल्डिंग्स के ऊपर खड़े किए जाते थे इन पिलर्स पर ना इंस्क्राइनॉक्स के ऊपर इंक्रिप्शन को लिखने में ज्यादातर पाली और प्राकृत लैंग्वेज का इस्तेमाल हुआ था हालांकि कहीं-कहीं ग्रीक और आरामाइज का भी यूज हुआ है इन पिलर्स को ना हम चार भागों में डिवाइड कर सकते हैं शॉफ्ट कैपिटल अबेकस और कैपिटल फिगर पिलर्स में सबसे ऊपर कुछ जानवरों के फिगर्स बने होते थे जैसे शेर बैल या फिर हाथी इन्हीं फिगर्स को हम कैपिटल फिगर कहते हैं फॉर एग्जांपल लोयन है तो लोयन कैपिटल एलीफेंट है तो एलीफेंट कैपिटल इन कैपिटल फिगर्स को एक बेस पर बनाया है इस बेस को कहते हैं अबेकस कुछ पिलर्स में ये जो जो अबेकस है वो देखो स्क्वेयर फॉर्म में है और कुछ में राउंड शेप का है अबेकस के नीचे देखोगे ना एक बेल शेप का लोटस है इसको कैपिटल कहा जाता है इसका जो मुंह है वो नीचे की तरफ है और इस कैपिटल या फिर इनवर्टेड लोटस के नीचे होता है साफ्ट कुछ इंपॉर्टेंट पिलर्स हमें देखो बसरा बखीरा लोरिया नंदनगढ़ रामपूर्वा संकिसा और सारनाथ से मिले हैं इनमें से सारनाथ पिल्लर का लोएन कैपिटल हमने नेशनल एंबलम के तौर पर लिया है इन तमाम पिलर्स को बनाने में ना दो प्रकार के पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है पहला देखो मथुरा का तेदो रेड सैंड स्टोन दूसरा है चुनार का दानेदार हार्ड सैंड स्टोन और इस पत्थर पर भीना काले रंग के धब्बे होते हैं प्रीलिम के पॉइंट ऑफ व्यू से ना हम कुछ इंपोर्टेंट पिलर्स को थोड़ा डिटेल से देख लेते हैं सबसे पहला है सारनाथ पिलर इसे लोइन कैपिटल के नाम से भी जाना जाता है इसमें ना सबसे ऊपर चार शेरों को बनाया गया है ये चार शेर जो हैं वो घड़ी की दिशा में पावर करेज कॉन्फिडेंस और फेथ को दर्शाते हैं इसके अबेकस में 24 पोक्स वाला चकर भी है जो धर्म चक्र का प्रतीत है इस पिलर के अबेकस में भी चार जानवरों को बनाया गया है जो है एलिफेंट लोयन बुल और हॉर्स ये देखो ये जो पिलर है ना भगवान बुद्ध के पहले उपदेश का प्रतीक है भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था सारनाथ के बाद वैशाली से मिले पिल्लर को देखें तो ये बाकी पिल्लर से देखो थोड़ा अलग है इसमें सबसे ऊपर सिर्फ एक ही शेर बना हुआ है और इसका जो फेस है वो नॉर्थ डायरेक्शन में है भगवान बुद्ध ने भी उनकी आखिरी यात्रा उत्तर दिशा में की थी इस पिलर की तरह ही लोरिया नंदनगढ़ के पिलर में भी एक ही शेर मौजूद है अगला है इलाहाबाद पिलर इस पिलर पर सम्राट अशोक के अलावा गुप्त शासक समुद्रगुप्त और मुगल बादशाह जहांगीर ने भी इंस्क्राइनॉक्स और यक्षिणी की मूर्ति काफी प्रचलित है यक्ष का सबसे पहला वर्णन इलांगो अधिगम की शिल्प पाद काम में भी मिलता है यक्ष और यक्षण का हिंदू जैन बुद्ध धर्म में काफी ज्यादा महत्व है इन्हें गार्डियन डिटीज यानी रक्षा करने वाले देवताओं के रूप में पूजा जाता था पटना विदिशा और मथुरा से यक्ष यक्ष श्रेणी की बड़ी-बड़ी मूर्तियां मिली हैं इनमें डिटेलिंग पर काम किया गया है कि चेहरे के एक्सप्रेशन से इनके इमोशंस को समझा जा सकता है ज्यादातर मूर्तियां स्टैंडिंग पोज में हैं पटना के दीदारगंज से मिली लाल बलुआ पत्थर से बनी यक्षिणी की मूर्ति मोरियन पॉपुलर आर्ट का एक शानदार एग्जांपल है इसके बाद अब हम डिस्कस करते हैं मोरन काल की पोटरी के बारे में देखो मोरन काल के जो मिट्टी के बर्तन थे ना उनको आमतौर पर नॉर्दर्न ब्लैक पोलिश वेयर यानी देखो शॉर्ट नेम एनबीपीडब्ल्यू के रूप में जाना जाता था और इसकी खास बात यह थी इनकी फिनिशिंग इन्हें ना लग्जरी आइटम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था कोसांबी और पाटलीपुत्र इस प्रकार की पोटरी को बनाने के प्रमुख सेंटर थे पोटरी के बाद अब हम बात करते हैं मोरियन साम्राज्य के रो कट आर्ट की बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर यह जो आर्ट थी वो तैयार की जाती थी इनमें सबसे पहले है लोमस रीसी गुफाएं बिहार के जहानाबाद जिले में ना बराबर और नागार्जुनी हिल्स में काफी सारी गुफाएं मौजूद हैं और उन्हीं में से एक है लोमस ऋसी गुफा इस गुफा का जो प्रवेश द्वार है वो एक सेमी सर्कुलर च चैत्य आर्च के फॉर्म में है चैत्य आर्च हॉर्स शू शेप के होते हैं मतलब घोड़े की जो नाल है ना उसके शेप के होते हैं और अंदर से यह गुफा गोलाकार है और इसकी दीवारें जो है काफी पोलि है किसने बनवाया था इन गुफाओं को इन गुफाओं को बनवाया था मोरियन शासक अशोक ने बाद में इन गुफाओं को आजीविका सेक्ट को सौंप दिया गया था ताकि आजीविका सेक्ट के जो साधु हैं इनमें तपस्या कर सके और इनमें रुख सके आजीविका सेक्ट के फाउंडर थे घोशाल मस्करी पुत्र देखो आजीविका सेक्ट ना इस फिलोसोफी पर आधारित है कि पूरी दुनिया जो है वो डेस्ट यानी फेट से चल रही है क्या होना है कब होना है सब पहले से त्या है सबकी जो नियति है पहले से डिसाइडेड है इसके बाद मोरियन स्कल्पचर्स में अगला है ओड़ीशा के धोली में मौजूद एलीफेंट का रोक कट स्कल्पचर 1837 में इसकी खोज ब्रिटिश ऑफिसर मार्क हम किट्टो ने की थी इसमें सिर्फ हाथी का सिर कान सूंड और आगे के दो पैर दिखते हैं अब आते हैं हम पोस्ट मोरियन पीरियड पर मोरियन साम्राज्य के पतन के साथ कई छोटे-छोटे राज्य पावर में आ गए इनमें से देखो नॉर्थ में कन्नवराय में सातवाहन थे इसी समय में स्कल्पचर्स के अलग-अलग स्कूल भी उभर कर सामने आए और मूर्तिकला भी अपने बिल्कुल पीक प पहुंच गई थी इस पीरियड में जो स्कल्पचर्स बने ना वो और भी ज्यादा रियलिस्टिक हो गए थे काफी ज्यादा रिफाइंड और एक्सप्रेसिव इन स्कल्पचर्स को बनाया जाने लगा पोस्ट मोरियन पीरियड में अशोका ने जिन स्तूप को बनवाया था ना उनका भी सुधार इस फेस में हुआ जहां-जहां देखो पहले ईंटों का और लकड़ी का यूज हुआ वहां पर अब पत्थर का इस्तेमाल किया गया सांची का जो स्तूप है ना इसका सबसे बड़ा एग्जांपल है जैसे देखो पहले ना इसकी जो रेलिंग थी ना वो लकड़ी की थी लेकिन बाद में पुष्यमित्र सुंग के काल में लकड़ी की जो रेलिंग थी ना उसको बदल के पत्थर की रेलिंग बना दी गई सांची स्तूप के चारों तरफ पत्थर से बने जो बड़े-बड़े तोरण द्वार है ना उनका निर्माण सुं काल में हुआ था इसके बाद बेहरू स्तूप के तोरण द्वार हेलेनिस्टिक स्कूल के इन्फ्लुएंस को दर्शाते हैं पोस्ट मोरियन स्कल्पचर्स में भी मोरन काल की तरह ही यक्ष यक्ष श्रेणी काफी प्रचलित थे इसके अलावा देखो रूरू जातक की कहानियों को भी यहां दिखाया गया इनमें बौधि सत्व एक हिरण के भेस में एक व्यापारी को अपनी पीठ पर बिठाकर रेस्क्यू करते हुए दिखाए गए हैं बेहरू की तुलना में सांची के जो स्कल्पचर हैं उनमें फिनिशिंग काफी ज्यादा अच्छी हैं इसमें सबसे अच्छी कारीगिरी उनके तोरण द्वार में नजर आती है कुषण पीरियड में भी कला के क्षेत्र में काफी ज्यादा डेवलपमेंट हुआ इसी समय में भगवान बुद्ध की पहली मूर्ति मथुरा और गंधार क्षेत्र में फर्स्ट सेंचुरी बीसी के आसपास बनाई गई इससे पहले तो देखो भगवान बुद्ध को सिर्फ ना सिंबल्स के फॉर्म में दिखाया जाता था लेकिन मूर्ति बनना स्टार्ट हुआ फर्स्ट सेंचुरी बीसी के आसपास मथुरा के अलावा देखो अमरावती सारनाथ और कोसांबी में भी आर्ट काफी ज्यादा डेवलप हुई और ये जो शहर है ना अमरावती सारनाथ कोसांबी ये भी कला के रूप में एक महत्त्वपूर्ण केंद्रों के रूप में एस्टेब्लिश हुए स्कल्पचर्स को बनाने की कला गुप्त काल में अपने चरम पर पहुंची इस समय देखो भगवान बुद्ध के अलावा भगवान विष्णु भगवान शिव यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियां भी बनाई गई कनिष्क परखम यक्ष माहोली बोधि सतह और बैठे हुए कुबेर की जो मूर्ति हैं ये देखो मथुरा शैली के कुछ बेहतरीन एग्जांपल्स हैं शुरुआती फेस में बॉडी के स्ट्रक्चर पर काफी ध्यान दिया गया मूर्तियों को काफी मस्कुलर और फ्लसी बनाया गया लेकिन देखो चौथी सदी आते-आते इनमें ना मस्कुलेरिटी कम होती गई अब इन मूर्तियों में भगवान बुद्ध के सिर के पीछे एक हेलो बनाना शुरू हुआ जो देवी देवता हैं उनके सर के पीछे ये गोल सा चक्रा जो बना दिया जाता है ना इसे हेलो बोलते हैं मथुरा स्कूल के तहत बनी मूर्तियों में भगवान बुद्ध और बद्धि सत्व को बैठे हुए दिखाया गया है बौद्धि सत मतलब वो पर्सन जिसको ना हायर लेवल पे स्पिरिचुअल अचीवमेंट हो गया है लेकिन फाइनल इनलाइटनमेंट वो जानबूझ के डिले कर रहा है क्यों क्योंकि वो दूसरों की हेल्प करना चाहता है इनलाइटनमेंट अटेनमेंट सारनाथ और कोसांबी की मूर्तियां सबसे अच्छे उदाहरण हैं मथुरा स्कूल की हम बात कर रहे हैं मथुरा शैली की कटरा माउंट की बुद्ध की मूर्ति काफी अहम है इसमें ना भगवान बुद्ध पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं और बालों का जूड़ा बना हुआ है मथुरा स्टाइल के मेन सेंटर्स थे मथुरा सोख और कंका लि टीला इन्हें कुषण राजाओं ने पेट्रोनस दिया था मथुरा शैली की मूर्तियों में बुध के बाल घूंगराले बनाए गए हैं इसमें कान को लंबा आंखों को चौड़ा और होठों को मोटा करके दिखाया जाता था शरीर की बनावट देखें तो कंधे चोड़े उभरा हुआ सीना और पैर के पंजों के बीच में गैप है हमें भगवान बुद्ध की कई मूर्तियों में उनके लेफ्ट शोल्डर पर एक कपड़ा दिखाई देता है इस कपड़े को संघाटी कहते हैं मथुरा शैली का एक खास फीचर था भगवान बुद्ध के आसपास बोधी सतह पदम पानी और वज्र पानी को बनाना तो मथुरा शैली को डिस्कस करने के बाद अब हम गंधार स्कूल ऑफ आर्ट्स को डिटेल से समझेंगे कुषण और सख शासक गंधार स्कूल के पैटर्स थे गंधार स्कूल देखो मुख्यतः बौद्ध धर्म के महायान सेक्ट से संबंधित था इस पर ग्रीको रोमन कल्चर का इन्फ्लुएंस साफ-साफ दिखता है यही वजह है कि इसे ग्रीको बुद्धिस्ट स्कूल ऑफ आर्ट भी कहा जाता है गंधार शैली में हमें कहीं भी संगमरमर के यूज के एविडेंस नहीं मिलते यह मूर्तियां यूनानी यानी ग्रीक स्कल्पचर से काफी मेल खाती हैं तकसीला से मिला भगवान बुद्ध के सिर का स्कल्पचर इन पर ग्रीको रोमन आर्ट के इन्फ्लुएंस को साफ-साफ दर्शाता है गंधार आट से प्रेरित इन मूर्तियों पर पर्शियन स्कियन और पार्थियन कला का प्रभाव काफी रहा अफगानिस्तान का जलालाबाद हड्डा बिग्राम और टेक्सल जो अभी पाकिस्तान में है गंधरा आठ के प्रमुख केंद्र बनकर उभरे इस टाइल में भगवान बुद्ध के बालों को वेवी यानी लहराते हुए बनाया गया है चेहरे की बनावट भी ग्रीक देवता अपोलो से काफी ज्यादा मिलती-जुलती दिखाई गई है इसमें लंबी-लंबी आंखें छोटे-छोटे कान और नाक को शार्प बनाया गया है मथुरा शैली से हटके इनमें बुद्ध की मूर्तियों को अलग-अलग मुद्राओं में बनाया गया है जिन मूर्तियों में बुध स्टैंडिंग पोजीशन में है उनमें उनका एक हाथ उठा हुआ है यह देखो अभय मुद्रा को दर्शाता है जो निडरता का प्रतीक है फिर कुछ ऐसी भी मूर्तियां हैं जिसमें भगवान बुद्ध बैठे हुए हैं उसमें उनका राइट हैंड जमीन को यानी अर्थ को स्पर्श करता हुआ दिखाया गया है यह देखो भूमि स्पर्श मुद्रा है यह मुद्रा भगवान बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है इन मुद्राओं पे ना यूपीएससी ने एक बार क्वेश्चन पूछ लिया था इसलिए ऊपर ऊपर से इनको हम देख लेते हैं नेक्स्ट है वरद मुद्रा व्रद मुद्रा की बात करें तो यह दया दान को दर्शाती है दया और दान इस मुद्रा में पांच उंगलियां पांच सिद्धियों का प्रतीक है जैसे देखो उदारता नैतिकता धैर्य प्रयास और एकाग्रता यानी कंसंट्रेशन इसके बाद नेक्स्ट है उत्तरा बोधि मुद्रा इसका मतलब है सर्वोच्च आत्मज्ञान नेक्स्ट है करुणा मुद्रा यह देखो बुराई से ने का संकेत देती है इस मुद्रा से जो ऊर्जा मिलती है ना वह नेगेटिविटी को दूर करने में मदद करती है [संगीत] [संगीत] दरअसल अभी ना सिविल सर्विसेस के एस् पैरेंट्स का एग्जाम है और सिलेबस कंप्लीट करवाना जरूरी तो इस वजह से आगे का जो पोर्शन आप देखोगे ना वो आप देखो स्लाइड्स की फॉर्म में देखोगे लेकिन बाद में देखो जैसा आपने बेहतरीन एडिटिंग शुरुआत में देखी फिर से यह वीडियो अपलोड की जाएगी और लास्ट वाला जो पार्ट है वो भी बेहतरीन एडिटिंग के साथ कंप्लीट किया जाएगा देखो सबसे पहले तो स्टूडेंट्स हैं स्टूडेंट्स के कंसर्न सबसे पहले हैं तो इसलिए आगे का जो पार्ट है वह आप जरूर देखिए वह स्लाइड्स की फॉर्म में है लेकिन एडिटिंग वाला जो पार्ट है वह फिर से अपलोड किया जाएगा एग्जाम के बाद में ंसेस की बात करें तो प्राचीन काल से ही भगत जनों द्वारा भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए डांस किया जाता था यानी देवदासी सिस्टम के बारे में आपने सुना होगा जहां देवदास यां भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए डांस करती थी अब देखिए जो हमारे क्लासिकल डांस हैं उसके प्रिंसिपल एलिमेंट्स कहां से ड्राइव किए गए हैं यहां पे क्वेश्चन बनता है तो इसका आंसर है नाट्यशास्त्र नाट्यशास्त्र से हमारे क्लासिकल डांस के प्रिंसिपल एलिमेंट्स को ड्राइव किया गया है तो एक क्वेश्चन मैं आपसे पूछता हूं कि यह किसके द्वारा लिखा गया था नाट्यशास्त्र लिखा गया था भारत मुनि के द्वारा अब देखिए नाट्य में सब कुछ चीजें आ जाती हैं नाट में डांस भी आ जाता है ड्रामा भी आ जाता है और म्यूजिक भी आ जाता है तो याद रखिएगा नाट इंक्लूड्स एवरीथिंग डांस म्यूजिक और सब कुछ ड्रामा भी आ जाता है अब देखिए जो यह नाट है उसका जो ओरिजन ट्रेस होता है वो ब्र से ट्रेस होता है ब्रह्मा ने क्या किया आपको पता होगा चार वेदांश है अभी कौन-कौन से चार वेद है ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद इन चारों वेदा से थोड़ा थोड़े एलिमेंट्स लिए और पांचवे वेद का निर्माण कर दिया जो कि है नाट्यशास्त्र अब जैसे देखिए ऋग्वेद से क्या लिया ऋग्वेद से वर्ड्स ले लिए यानी थोड़ा बहुत पाठ्य ले लिया और यजुर्वेद से क्या ले लिया यजुर्वेद से जेस्टर्स ले लिए यानी अभिनय समझ गए और सामवेद से सामवेद तो आपको पता है गीतों वाला वेद होता है सामवेद तो गीत ले लिए यहां से अथर्ववेद से रस ले लिया रस का मतलब है इमोशंस तो इन चार वेदों में से थोड़े-थोड़े एलिमेंट्स लेके एक पांचवें वेद का निर्माण कर दिया गया जिसका नाम है नाट्यशास्त्र नटराज के बारे में हमने पढ़ा था जो भगवान शिव की डांस करती हुई जो ब्रोंज की प्रतिमा थी नटराजा के बारे में तो नटराजा देखिए सब कुछ बताती है कैसे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ कैसे डिस्ट्रक्शन होगा और कैसे प्रिजर्वर्स हो रहा है तो काफी कुछ सिग्नीफा ये करता है अब देखिए डांस को दो प्रकार से डिवाइड किया जा सकता है एक फॉर्म है लाशय फॉर्म और दूसरी है तांडव फॉर्म तांडव की बात करें तो देखिए मेल जो फीचर्स होते हैं वो काफी ज्यादा होते हैं इसमें जैसे पावर स्ट्रेंथ और फर्म अपील और जो लास फॉर्म होती है डांस की उसमें फेमिना फीचर्स ज्यादा होते हैं जैसे ग्रेस भाव्य रस इस तरह के फीचर्स ज्यादा होते हैं तो ये याद रखिएगा क्योंकि बार-बार इनका वर्णन आएगा आने वाले डांसस में तो ये याद रखिएगा दो फॉर्म कौन सी होती है डांस की एक होती है तांडव जिसमें मेल फीचर्स पर बल दिया जाता है और लास्य जो डांस का एक प्रकार है इसमें फेमिनिन फीचर्स पर बल दिया जाता है जैसे ग्रेस भावे रस है तो आगे देखिए जो हमारी संगीत नाट्य अकेडमी है इन्होंने आठ डांसस को क्लासिकल डांस का दर्जा दिया है तो कौन-कौन से आठ डांसस है कई बार यूपीएससी बिल्कुल सिंपल क्वेश्चन भी पूछ लेती है पहला है भरतनाट्यम जो कि तमिलनाडु से है दूसरा कथक ये यूपी से है तीसरा कथकली केरला से है चौथा है जो कुचीपुड़ी आंध्र प्रदेश से है पांचवा ओडिसी डांस उड़ीसा से छठा सतरिया डांस असम से सातवा मणिपुर डांस मणिपुर से मोहिनी अट्टम केरला से से तो आठ डांस आप याद रखिएगा इन आठ डांसस को क्लासिकल डांस का दर्जा दिया है किसने संगीत नाटक अकेडमी में और संगीत नाटक अकेडमी जो है कौन सी मिनिस्ट्री के अंडर में आती है मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के अंडर में ये आती है सबसे पहले देखिए हम डिस्कस करते हैं भारत नाट्यम क्या है भारतनाट्यम में सबसे पहले तो देखिए भारत का मतलब क्या है नाट्यम का मतलब तो डांस हो गया नाट्यम मतलब डांस तो भरत का क्या मतलब है भरत देखिए तीन शब्दों से मिलकर बना हुआ है सबसे पहले है भा भा मतलब भाव भाव पे बल दिया जाता है बाद में आता है रा रा मतलब रागा और फिर आता है ता ता मतलब ताला तो ये देखिए यहां पे भारता का मतलब हो गया भाव राग और ताला तो भाव राग और ताल तीन चीजों से बना हुआ है ये भारत और नाट्यम का मतलब है डांस तो भारत नाट्यम डांस जो है तीन चीजों से मिलके बना हुआ है पहले इनको सादिर दश टाट्यम और दूसरा कहते थे तंजावूर नाट्यम भी कहते थे अभी इनका नाम है भारत नाट्यम तमिलनाडु का डांस है इसमें कोई भी डाउट नहीं होना चाहिए और फायर डांस भी इसे कहा जाता है फायर डांस क्यों कहा जाता है ऐसे नहीं कि डांस करते इसमें आग लग जाती है ऐसा कुछ नहीं है देखिए डांस करते इसमें जो नर्तकी या फिर जो नर्तक होते हैं उनकी मूवमेंट्स इस प्रकार से होती है कि जैसे कोई आग की जो फ्लेम है आग की जो लपटे हैं वो मूव कर रही है इस प्रकार से जो नर्तक या नर्तकी की मूवमेंट होती है इसलिए इस डांस को हम फायर डांस भी कहते हैं और देखिए इस डांस में ना बहुत ज्यादा फोकस किया जाता है हैंड मूवमेंट्स पे ये देखिए यहां पे हैंड मूवमेंट्स पे बहुत ज्यादा फोकस किया जाता है और जो घुटने होते हैं आमतौर पर झुके होते हैं यह देखिए आमतौर पर घुटने की जो शेप होती है वो झुकी होती है और इसके अलावा देखिए इस डांस को आप पांच प्रकार से डिवाइड कर सकते हैं एलिमेंट्स कौन-कौन से हैं भरतना टम डांस के इसके इससे पहले मैं आपको एक एक इसमें एक प्रकार से पोस्चर के बारे में बता देता हूं कटक मुखा हस्ता यह एक इंपॉर्टेंट पोचर है इस डांस में जो हाथों की मूवमेंट या फिर हाथों को जो हाथ की शेप होती है वो इस प्रकार से होती है कि जो वर्ल्ड को रिप्रेजेंट करती है यह यह देखिए इस चीज को कहते हैं कटका मुखा हस्ता तो यूपीएससी इस बारे में पूछ सकती है कि जो पोस्चर है क्या रिप्रेजेंट करता है ओम शब्द को रिप्रेजेंट करती है हाथ की एक प्रकार से जो पोचर है इस प्रकार से होता है और इस पूरी चीज को कहते हैं कटक मुख हस्ता याद रखिएगा यह इंपोर्टेंट है अब देखिए भरत नाम डांस को आप पांच एलिमेंट्स में डिवाइड कर सकते हैं कौन-कौन से ऐसे एलिमेंट्स है सबसे पहले देखिए आता है अरेप अरेप में क्या होता है देखिए ना टाम डांस स्टार्ट होने से पहले सबसे पहले ये होता है अलिया रप्पू ये एक प्रकार से सिंपल जो रिदमिक सिलेबल्स को गाया जाता है और बिल्कुल बेसिक डांस दो तीन स्टेप करके दिखा दिए भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए बस ऐसा नहीं होता कि जैसे डांस स्टार्ट होने से पहले थोड़ा बहुत गा दिया 2030 सेकंड के लिए दो तीन स्टेप करके दिखा दिए इससे क्या होता है यह चीज करी जाती है भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए दूसरे नंबर पर क्या आता है दूसरे नंबर पर आता है जाति स्वरम यह देखिए यहां पे दूसरे नंबर प आता है जाति स्वरम जाति स्वरम में क्या करते हैं कुछ नहीं प्योर डांस है ये सिर्फ डांस करते हैं इसमें और पोज देते हैं काफी सारे रिदमिक मूवमेंट होती है तो अगर कोई पूछ ले कि जाति स्वरम क्या है प्योर डांस है और रिदमिक मूमेंट है तीसरे नंबर पर आता है सबदम सबदम में क्या होता है सदम में देखिए भगवान की ग्लोरी के लिए यानी भगवान की तारीफ करने के लिए भगवान की प्रेज के लिए एक गाना गाया जाता है उस चीज को कहते हैं शब्द तो वर्ड से ही पता लग रहा है शब्द मतलब कुछ तरह का गाना गा रहा है किस लिए भगवान के लिए गाना गाया जा रहा है चौथे नंबर पर आता है जावली इसमें क्या होता है इसमें देखिए जल्दी जल्दी डांस किया जाता है फास्टर मूवमेंट की जाती है शरीर की और जो लिरिक्स होते हैं लव लिरिक्स होते हैं काफी छोटे-छोटे लिरिक्स होते हैं किस तरह के लिरिक्स होते हैं बिल्कुल छोटे-छोटे जैसे जल्दी जल्दी नाम है तेरा तेरा इस प्रकार से कुछ भी बोल दीजिए और जल्दी डांस होता है जो शरीर की मूवमेंट है वो काफी तेजी से होती है पांचवे नंबर प क्या आता है पांचवे नंबर प आता है थिल्लाना इसमें क्या होता है ये देखिए ये तो सिर्फ कंक्लूजन है भरतनाट्यम डांस का तो पांच एलिमेंट से रिवाइज करवा देता हूं पहले नंबर पे आते है अलि रप्पू सिर्फ इंट्रोडक्शन डांस होता है थोड़े बहुत डांस का दो तीन स्टेप और दो तीन थोड़ा सा म्यूजिक करके बता दिया भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए दूसरे नंबर पर जाती स्वरम प्योर डांस होता है तीसरे नंबर पे आता है सबदम सबदम भगवान की ग्लोरी में गाना गाया जाता है चौथे नंबर पे आता है जावली जल्दी-जल्दी डांस किया जाता है फास्टर मूवमेंट्स होती हैं लव लिरिक्स होते हैं और पांचवे नंबर पे आता है थिल्लाना थिलाना मतलब कंक्लूजन हो गया डांस का और देखिए जो भरतना टम डांस है वो एक प्रकार से एक हर डांस भी है एक हर मतलब कैसे है क्योंकि देखिए जो डांसर होता है वह काफी तर तरह के रोल निभाता है इसलिए इसको एक हरे डांस भी कहते हैं वन डांसर हु इज लाइक डांसिंग देन प्लेज द वेरियस रोल्स ट्स वई वी कॉल दिस डांस एज एक हरे डांस याद रखिएगा एक हरे डांस भी कहते हैं इनडायरेक्टली क्वेश्चन पूछेगी यूपीएससी कौन से डांस को एक हरे डांस कहा जाता है तो बिल्कुल गलत नहीं होना चाहिए अब चलते हैं देखिए अगले डांस की तरफ जो है कुचीपुड़ी डांस कुचीपुड़ी ांचेल से दूसरे गांव में जाते थे डांस करने के लिए मेल आर्टिस्ट के द्वारा ये स्टार्ट किया गया था आंध्र प्रदेश में एक गांव से दूसरे गांव में जाते थे भगवता ने कहा जाता था शुरू में मेल श्रद्धालु मेल भगवता ये डांस करते थे लेकिन अब तो देखिए फीमेल के द्वारा किया जाता है और पहले ग्रुप में किया जाता था अब दोनों ग्रुप और सोलो डांस भी किया जाता है और देखिए क्या है इस डांस में देखिए पहले जो डांस होता था वो तो भगवत पुराण पर आधारित होता था भगवत पुराण किस पर है भगवत पुराण कृष्णा पे है लेकिन अब तो देखिए सेकुलर भी आ गई है सेकुलर थीम मतलब एक प्रकार से इरोटिक फ्लेवर्स या श्रृंगार रस इस प्रकार की चीजों पर भी डांस किया जाता है देखिए सबसे पहले स्टार्टिंग कैसे होती है इस डांस की स्टार्टिंग में सबसे पहला होता है दारू दारू मतलब वो शराब नहीं पीने वाली नहीं है दारू का क्या मतलब है यहां पे देखिए दारू का मतलब ये है कि शुरू में क्या होता है जैसे हमने तमिलनाडु में डिस्कस किया था भटना टम डांस में ऐसे ही इसमें दो तीन स्टेप करके दिखा दिए और दो तीन एक प्रकार से गाना गा दिया बिल्कुल 20-30 सेकंड के लिए इस चीज से क्या होता है सभी जो किरदार है प्रिंसिपल कैरेक्टर्स हैं अपने आप को इंट्रोड्यूस करते हैं उसमें क्या था भरतना टम डांस में वो भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए डांस की स्टार्टिंग में 203 सेकंड के लिए दो तीन स्टेप करके दिखा दिया फिर 20-30 सेकंड का गाना गा दिया वो भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए था लेकिन इसमें इस चीज को कहते हैं दारू जो डांस स्टार्ट होने से पहले होता है लेकिन जो दारू होता है वो एक प्रकार से भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए नहीं होता प्रिंसिपल कैरेक्टर्स अपने आप को इंट्रोड्यूस करते हैं अपना एक प्रकार से बताते हैं अपने बारे में इसलिए होता है दारू और इसमें देखिए दोनों काम करते हैं भी गाते हैं और डांस भी करते हैं जो इनका मुख्य किरदार होते हैं दो तीन चीज आपको याद रखनी है इस डांस के बारे में देखिए एक है मंडूक शब्द मंडूक शब्द क्या है देखिए मंडूक शब्द में ना मेंडक की स्टोरी के बारे में बताया जाता है डांस करते करते मेंडक की स्टोरी के बारे में बताया जाता है इस चीज को कहते हैं मंडूक शब्द और क्या इंपोर्टेंट है इसमें एक इंपोर्टेंट चीज है देखिए तरंगम तरंगम में क्या होता है यहां पर देखिए तरंगम में यह होता है सिर के ऊपर में एक कुछ लोटा वगैरह रख के और नीचे ब्रास की प्लेट के कोनों पर रहकर ये डांस किया जाता है यानी पैर जो होते हैं वो ब्रास की प्लेट के कोनों पर होते हैं और सर प सिर के ऊपर में कुछ लोटा वगैरह होता है तो ऐसे डांस किया जाता है कुछी पुड़ी के अंदर में इस चीज को कहते हैं तरंगम याद रखिएगा इसके अलावा देखिए एक और चीज भी होती है जला चित्रा नृत्यम ये जला चित्रा नृत्यम क्या है देखिए इसमें क्या होता है डांसर ना अपने पैरों की सहायता से रंगोली करते हैं मतलब डांस भी कर रहे हैं साथ-साथ और रंग भी लगा हुआ है पैरों पे और जो रंग लगा हुआ है पैरों पे उसकी सहायता से फर्श पर रंगोली की जाती है इस चीज को कहा जाता है जल चित्र नृत्यम याद रखिएगा दोनों फॉर्म होती है इसमें लास्य भी होता है और तांडव भी होता है देखिए ज्यादातर जो डांस होते है ना उसमें दोनों ही फॉर्म होती है लास्य और तांडव जितने भी है मतलब लगभग आठों की आठों में दोनों है लास और तांडव और [संगीत] प्रिस्क्रिप्शन में कॉस्ट्यूम्स होती है और उसी को पहन के डांस किया जाता है तो ये था हमारा कुछ पू डांस आंध्र प्रदेश का ये डांस था अब आता है ओडिसी डांस देखिए जो ओडिसी डांस है ये एक प्रकार से जैन किंग जैन किंग थे जिनका नाम था खेरला उनके द्वारा प्रमोट किया गया था उड़ीसी डांस शुरू शुरू में थीम काफी ज्यादा है राधा कृष्णा लव है और दसावतार भी थीम है या फिर उड़ीसा में जगन्नाथ टेंपल भी है वो भी थीम है यह सारी थीम्स है इनके बेसिस पर ये डांस किया जाता है देखिए अब इस डांस को भी आप तीन फॉर्म में डिवाइड कर सकते हो कौन-कौन सी तीन फॉर्म है सबसे पहले देखिए है मेहरी ये देखिए ये है मेहरी मेहरी स्कूल ऑफ मेहरी जो उड़ीसा का स्कूल है सब पार्ट है यानी यहां पर देखिए उड़ीसी डांस को तीन पार्ट में डिवाइड कर सकते हैं पहली फॉर्म है मेहरी और दूसरी फॉर्म है नरता और तीसरे फॉर्म है गोटप्रोन टाइम में मंदिरों में जो देवदासी भगवान के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए डांस करती थी उस डांस को कहा जाता है मेहरी डांस उड़ीसी डांस का सब पार्ट है ये दूसरे नंबर पे आता है नरता डांस रॉयल कोर्ट्स में यानी राजा महाराजाओं की कोर्ट के अंदर में जो राजा महाराजाओं के सामने डांस किया जाता था उस डांस को कहते हैं नरता डांस उड़ीसी डांस का सब पार्ट है तीसरे नंबर पे जो मेल होते हैं यंग बॉयज जवान लड़के लड़कियों की कॉस्ट्यूम पहन के जो डांस करते थे उस चीज को कहा जाता था गोटप्रों कर रहे हैं ओसी डांस का सब पार्ट है इस डांस को कहा जाता था गोटी पू याद रखिएगा अब देखिए उड़ीसी डांस की बात करें तो बॉडी को तीन पार्ट्स में डिवाइड होती है इसमें त्रिभंगा पोजीशन होती है एक फेस दूसरा यहां तक की और तीसरा नीचे तक की तो बॉडी को तीन पार्ट्स में डिवाइड करते हैं त्रिभंगा पोस्चर भी इसे कहते हैं अब देखिए अगर इस डांस की बात करें तो हम एक प्रकार से इंट्रीकेट फ्रेमवर्क होता है बॉडी को आगे और पीछे इस तरह से मूव किया जाता है कि जो फ्रेमवर्क है काफी इंट्रीकेट होता है और इंपॉर्टेंट तो बस यही है इ भी क्वेश्चन बन सकता है बाकी इसके भी काफी सारे एलिमेंट्स हैं जैसे एक प्रकार से मैं बताऊं तो मंगल चरम या फिर बातू पलवी अभिनय मोक्षा जैसे भरतत डांस के कई सारे एलिमेंट्स थे जैसे अलि रप्पू जावली थिलाना वो सब हमने डिस्कस किए इस डांस के भी कई सारे एलिमेंट्स है मंगल चरलम बाटू पलवी अभिनय मोक्षा है लेकिन देखिए वो इंपोर्टेंट नहीं है इसलिए हम उसे डिस्कस नहीं करेंगे आगे देखिए अगला जो डांस है हमारा वो है कथकली कथकली डांस की देखिए बात करें तो तो इसमें भगवान और शैतान के बीच में जो कंफ्लेक्स दिखाया जाता है और कथा का मतलब होता है स्टोरी कथा का मतलब होता है स्टोरी और कली का मतलब क्या होता है बताइए बताइए कली का मतलब होता है ड्रामा तो एक प्रकार से इस डांस में ड्रामा को दिखाया जाता है भगवान और शैतान के बीच के कंफ्लेक्स होती है और और टेंपल डांस इसका ओरिजिन है अब तो देखिए टेंपल में नहीं बाकी जगह में भी की जाता है लेकिन इसका ओरिजिन जो हुआ था वह मंदिर से स्टार्ट हुआ था यह इसमें देखिए बॉडी और इमोशंस पर पूरा कंट्रोल रहता है और इस डांस को देखिए ओपन एयर स्टेज पर किया जाता है और डान यानी सुबह के समय से स्टार्ट होता है और सुबह के समय खत्म होता है और जो रोशनी होती है वह ब्रास लैंप की सहायता से रोशनी की जाती है तो यह इंपोर्टेंट फैक्ट्स आप याद रखिएगा अब देखिए इसमें जो कैरेक्टर्स है वो अलग तरह के होते हैं देखिए मान लीजिए अगर फेस पर हरा रंग लगा के रखा है तो इसका मतलब यह है ये नोबिलिटी को रिप्रेजेंट कर रहा है ये जो है वो नोबल है अगर मान लीजिए फेस पे अगर आपका लाल रंग है तो ये इसका मतलब यह है कि आप एक प्रकार से रॉयल हो यानी किंग की फैमिली के पार्ट हो और अगर मान लीजिए फेस प काला रंग है तो वो क्या रिप्रेजेंट कर रहा है वो रिप्रेजेंट ये कर रहा है कि आप बुराई का प्रतीक हो यानी आप विलन हो इस पूरे ड्रामा के अगर काला रंग हो तो काला रंग का मतलब आप विलन हो हरा रंग मतलब नोबल हो लाल रंग मतलब आप रॉयल हो यानी राजा की फैमिली का पार्ट हो तो यह सारा है याद रखिएगा इंपॉर्टेंट है यह भी अगला है मोहिनी एटम डांस मोहिनी का क्या मतलब है केरला का ये डांस है और कथकली डांस है वो भी केरला का है यह भी केरला का था और अगला जो डांस है मोहिनी एटम वो भी केरला का है मोहिनी का क्या मतलब होता है देखिए मोहिनी का मतलब होता है ब्यूटीफुल वुमन तो यहां पर देखिए मोहिनी का मतलब होता है ब्यूटीफुल वुमन और अटम का मतलब होता है मलयालम में डांस यानी ब्यूटीफुल वुमन का डांस एसेंशियली सोलो डांस है लेकिन कई बार इसे ग्रुप में भी किया जाता है और देखिए इस डांस में जो वैसे तो दोनों होते हैं लािया और तांडव लेकिन लािया जो फीचर है वो डोमिनेट करता है यानी फीमेल का जो फीचर है भाव रस उमंग वो चीजें फोकस करती है इस डांस के अंदर में म्यूजिक केरला से रिलेटेड है तो कार्नेटिक म्यूजिक होगा डाउट होना ही नहीं चाहिए और देखिए इसमें जो कॉस्ट्यूम होती है वो वाइट होती है यह देखिए यहां पर वाइट कॉस्ट्यूम है तो याद रखिएगा कई बार इनडायरेक्टली क्वेश्चन आ जाएगा मान लीजिए कौन सी डांस में जो कॉस्ट्यूम है वो वाइट होती है तो ये याद रखिएगा मोटम डांस में वाइट होती है देखिए इसमें कुछ कुछ डांस से फ्यूचर्स ऐड कर लिए गए हैं थोड़े बहुत फ्यूचर्स भटना आटम से ले लिए गए और थोड़े बहुत फीचर जो है कथकली से ले लिए गए दोनों को मिलाकर बन गया मोहिनी अट्टम डांस इन दोनों को ऐड करके डांस बन गया मोहिनी अट्टम तो बस इसी प क्वेश्चन बन सकता है फेमिना फ्यूचर्स पर ज्यादा बल दिया जाता है और बस यही है आगे क्या है अगला देखिए जो डांस है वो है मणिपुरी डांस मणिपुरी डांस के बारे में ऐसा कहा जाता है कि देखिए जो शिवजी और पार्वती है उन्होंने मणिपुरी के हिल्स में पुराने समय में डांस किया था और वहीं से इस डांस का उदय होता है देखिए पैरों में यह चीज होती है और इसलिए जो पैर को ज्यादा घुमा नहीं सकते मणिपुरी डांस में ज्यादा मूवमेंट पैरों की हो नहीं सकती क्योंकि जो कॉस्ट्यूम है वह इस तरह की होती है और हाथों की मूवमेंट पर काफी ज्यादा बल दिया जाता है फेस एक्सप्रेशन पर बल नहीं दिया जाता क्योंकि फेस तो छुप जाता है ना यह देखिए कोस्टम इस तरह की होती है कि फेस छुप जाता है तो फेस एक्सप्रेशन पर ज्यादा बल नहीं दिया जाता इस डांस के अंदर में हाथों की मूमेंट पर काफी ज्यादा बल दिया जाता है और इस डांस की बात करें तो पुंग इंस्ट्रूमेंट का ज्यादा इस्तेमाल होता है ये इस तरह का इंस्ट्रूमेंट होता है पुंग इंस्ट्रूमेंट जिसे कहते हैं इसका ज्यादा इस्तेमाल होता है और थीम क्या होती है कृष्णा विष्णु इस प्रकार की थीम होती है और रासलीला जो है वह इस मणिपुरी डांस का एक पार्ट है बस इसी पर क्वेश्चन बन सकता है और एक बात यह याद रखना रवींद्रनाथ जो टैगोर है उन्होंने शांति निकेतन में इस डांस को प्रमोट किया था मणिपुरी डांस को तो इस पर इस तरह से क्वेश्चन आ सकता है कि रविंद्रनाथ टैगोर प्रमोटेड विच डांस सो वी हैव टू रिमेंबर दिस फैक्ट दैट मणिपुरी डांस वास प्रमोटेड बाय द रविंद्रनाथ टैगोर अगला कौन सा डांस है अगला डांस देखिए है यूपी का डांस है यह है कथक डांस इसमें देखिए कथक का मतलब क्या होता है कथक का मतलब होता है स्टोरी टेलर स्टोरी बताने वाला अब देखिए इस डांस में क्या होता है घुटनों को नहीं झुकाया जाता हमने यह डिस्कस किया था जो हमारा भरतना टम डांस था उसमें तो घुटने थे आमतौर पर झुके ही होते थे हर एक मूवमेंट में लेकिन कथक डांस में ठीक उसके उलट घुटनों को नहीं झुकाया जाता लेकिन बाद में शुरू में तो देखिए टेंपल डांस था ये मंदिर में किया जाता था लेकिन बाद में मुगल कोर्ट्स में इसे एंटरटेनमेंट के लिए भी किया जाता था इस डांस को इस डांस को देखिए हिंदुस्तानी म्यूजिक है क्योंकि यूपी का डांस है तो हिंदुस्तानी म्यूजिक होगा नॉर्मल सी बात है स्पॉन्टेनििटी काफी ज्यादा है फ्रीडम है इस डांस को करने में यानी जो भी किरदार इस डांस को करते हैं उनको उनके पास में इंप्रोवाइजेशन का स्कोप रहता है वह अपने हिसाब से मूवमेंट्स को डिसाइड कर सकते हैं कई सारी चीजों बेस्ड है भाव राग और ताल भाव राग और ताल तीन चीजों प बेस्ड है ये और डांस डांसर जो है वो सिंगिंग भी करते हैं दोनों काम करते हैं डांस भी करते हैं और सिंगिंग भी करते हैं थीम क्या रहती है थीम रहती है राधा कृष्णा लव बस यही है पहले सोलो डांस किया जाता था अब ग्रुप में भी किया जाता है देखिए इन चीजों प आप कंफ्यूज मत हो होएगा दो तीन जो चीजें हैं क्या यह डांस लास्य है या तांडव है आमतौर पर सारे डांस हैं वो लास और तांडव दोनों हैं क्या ये डांस एक प्रकार से सोलो किया जाता है ग्रुप में सारे के सारे जो डांस है आजकल दोनों में किए जाते हैं सोलो में भी किए जाते हैं ग्रुप में भी किए जाते हैं इसलिए इस पे क्वेश्चन आने की संभावना ऑलमोस्ट नील है लास्ट डांस इस डिस्कशन का है सतरिया डांस देखिए सतरिया डांस जो है वो असम का डांस है एक वैष्णव संत हुए थे जिनका नाम है शंकर देव शंकरा देव ने देखिए सोचा कि सभी अलग-अलग रीजंस में अलग-अलग डांस अवेलेबल है लेकिन असम का कोई डांस नहीं है तो इन्होंने क्या किया अपना एक खुद खुद का डांस एक प्रकार से डिस्कवर किया जिसका नाम है त्रिया डांस असम का डांस है सिल्क कपड़ों का यूज होता है यह देखिए जो कपड़े हैं वो सिल्क कपड़ों का यूज होता है और सुबह सुबह य गाना गाया सुबह सुबह डांस किया जाता है तो जो गाना गाया जाता है साथ साथ में उसको बोर गीत भी कहते हैं डांस करते वक्त जो गीत गाए जाते हैं उनको कहा जाता है बोर गीत और 15वीं शताब्दी में इस डांस को डिस्कवर किया गया था और जो मेल मक्स डांस करते हैं उनको भोगत कहते हैं भोगत थोड़ा-थोड़ा बंगाली टच है इसलिए भगतस कह देते हैं और क्या है बाकी तो कुछ नहीं है बस इतनी चीज याद रखनी है इसम देखि 2015 में इस क्वेश्चन आया था कि क्या यह डांस जो है वो वैष्णव मूवमेंट का पार्ट है तो यह वैष्णव संत थे तो इस संत थे तो इससे आपको अंदाजा हो जाता है क्या यह भक्ति मूवमेंट का पार्ट है नहीं य भक्ति मूवमेंट का पार्ट नहीं है इस प्रकार से चीजें आप इनडायरेक्टली इवोल्व कर सकते हो ड्रामा या फिर थिएटर ड्रामा या थिएटर डिस्कस करने से पहले एक रिजनल या फिर फोक डांस जो है चाऊ डांस उसके बारे में हम थोड़ा सा जानने की कोशिश करते हैं तीन चार साल पहले 26 जनवरी के मौके पर रिपब्लिक डे प्रेड पर इसे किया गया था तब से काफी सुर्खियों में आया था ये चाऊ डांस मुख्यत यह मेल आर्टिस्ट के द्वारा किया जाता है और देखिए यह मास्क लगा के किया जाता है ये जो डांस किया जाता है चेहरे पर मास्क लगा के किया जाता है और इसमें देखिए कई बार जो थीम्स होती है वो मिथल जिकल भी होती है और नेचर की थीम्स भी होती हैं जब हम मिथल जिकल थीम्स की बात करें तो कुछ भी हो सकता है रामायण हो सकती है माभारत हो सकती है कुछ भी हो सकता है और इसमें भी देखिए जैसे आपने कल देखा होगा कथकली डांस जो कि केरला का डांस है कथकली डांस उसमें भगवान और शैतान के बीच में कंफ्लेक्स में लड़ाई दिखाई जाती है ठीक उसी तरह चाऊ डांस में भी गोड और एविल के बीच में कंफ्लेक्स बाद में जो एक इंपोर्टेंट बात यह है कि तीन सब स्कूल्स में डिवाइडेड है जो चाऊ डांस है तीन सब स्कूल्स में डिवाइडेड है कौन-कौन से इसके सब स्कूल है देखिए जगह के नाम प तीन सब स्कूल है पहला जो है वो है सरायकेला जगह का नाम है सरायकेला झारखंड में एक ये जगह है सरायकेला तो सरा खेला चाऊ डांस पहला ये हो गया दूसरा है पुरुलिया पुरुलिया गेस कीजिए कहां पे है पुरुलिया है वेस्ट बंगाल में तो दूसरा सब स्कूल है पुरुलिया छऊ डांस तीसरा है मयूरभंज मयूरभंज जगह है उड़ीसा में तो तीसरा जो इसका सब स्कूल है चाउ डांस का वो है मयूरभंज उड़ीसा में है तो ये तीनों सब स्कूल है चाऊ डांस के आपको याद रखने हैं चलिए अब हम डिस्कस करते हैं ड्रामासोनलाइन ये जो डांस य जो ड्रामा थे या फिर थिएटर्स किए जाते थे उसके अंश मिले हैं गुफाओं में और सील्स में जो सबसे पुराने अर्लीस्ट ड्रामे चिस्ट कौन थे तो अगर कोई पूछे यूपीएससी पूछे तो आपको बताना है भास ये सबसे पुराने ड्रामे चिस्ट थे आपने जो एंसिफेरम पूरा नाम है अभिजन शकुंतलम या फिर आपने शुद्रक के उस प्ले के बारे में सुना होगा जो उन्होंने लिखा था मृज क टिकमिल हिस्ट्री की बुक में हम पढ़ते हैं मृज कटकम या फिर अभिजन सुकुंतलम जो एक प्रकार से कालिदास के द्वारा लिखा गया था तो देखिए जो इंपॉर्टेंट है वो हम देखें तो सबसे पहले हम नॉर्थ इंडिया के देखते हैं नॉर्थ इंडिया में भांड पत्थर ये एक प्रकार से ड्रामा किया जाता है जम्मू के जम्मू एंड कश्मीर के अंदर में ये जितने भी देखिए ये ड्रामासोनलाइन जाना तो एक प्रकार से अनुचित होगा और यूपीएससी क्वेश्चन पूछती भी नहीं है तो सबसे इंपोर्टेंट तो आपको यह रहना बहुत जरूरी है कि कौन से स्टेट में ये ड्रामा किया जाता है तो भांड पत्थर याद रखिएगा जम्मू एंड कश्मीर में किया जाता है और मेनली फार्मर कम्युनिटी के द्वारा ये किया जाता है ये देखिए फोटो में आपको दिख भी रहा होगा ये फार्मर्स हैं किसान हैं और जो इसमें ड्रामा जो किया जाता है इसमें वज्ञात मेंक एलिमेंट्स दिखे जाते हैं यानी डायलॉग ऐसे होते हैं कि टीका टीका टिप्पणी की जाती है व्यवस्था पर सरकार पर या फिर किसी और एक प्रकार से जो भी चीज है गवर्नेंस है उसके ऊपर पे आगे देखिए इंपॉर्टेंट है स्वांग स्वांग या फिर सांग भी इसको कहते हैं हरियाणा का यह ड्रामा है इसमें देखिए मेनली नकल की जाती है किसी भी किसकी भी नकल की जाती है और इस पर भी टिप्पणी की जाती है तो ड्रामा के साथ-साथ म्यूजिक भी होता है इसमें तो आपको दो-तीन चीजें हैं वो याद रखनी है सांग या फिर स्वांग किया कहां जाता है हरियाणा में इसे किया जाता है नकल की जाती है किसी की भी और म्यूजिक भी साथ-साथ चलाया जाता है अगला जो है वो नौटंकी नौटंकी कहां किया जाता है नौटंकी देखिए उ उत्तर प्रदेश का ड्रामा है इसमें देखिए जो ध्यान रखने लायक जो बात है वह यह है दोहा या चौपाई आवश्यक रूप से होती है इसमें तो ये याद रखिएगा इसमें और जो आवाज होती है डायलॉग्स होते हैं वो काफी तेज आवाज में होते हैं हाई पिच होती है अब देखिए ये सब बातें इंपॉर्टेंट नहीं है कि आवाज तेज होती है या कम होती है और पीच हाई होती है या कम होती है इन सब बातों पे क्वेश्चन नहीं बनते क्वेश्चन बस ज्यादातर तो इसी पे बनते हैं कि कहां पे किया जाता है नौटंकी यूपी में किया जाता है और यह भी ठीक-ठाक बात है भी क्वेश्चन पूछे तो कि दोहा और चौपाई आवश्यक रूप से शामिल होती है इसमें अकबर के द्वारा इसे प्रमोट किया गया था ये याद रखिएगा अकबर के द्वारा नौटंकी को प्रमोट किया गया था और कुछ समय के लिए ब्रिटिशर्स ने इसे बैन कर दिया था नौटंकी को कुछ समय के लिए ब्रिटिशर्स ने बैन कर दिया था यह भी बात याद रखनी है उसके बाद में देखिए आता है रामलीला रामलीला तो देखिए वैसे तो पूरे इंडिया में की जाती है लेकिन यूपी की रामलीला ज्यादा फेमस हो गई इसलिए यूपी का नाम लिख रखा है तो यह तो ज्यादा इंपॉर्टेंट है नहीं रामलीला का तो हमें पता ही है और तुलसीदास के द्वारा ये स्टार्टिंग इसकी की गई थी और तुलसीदास ने इसे लिखा था तो इस पर तो क्वेश्चन नहीं आएगा रामलीला प आगे देखिए रमन ये इंपोर्टेंट है रमन उत्तराखंड का एक ड्रामा है इसमें देखिए यह जो ड्रामा किया जाता है वहां के एक लोकल लोकल एक प्रकार से भूमिया देवता है उन पर आधारित लोकल डीटी है भूमिल देवता उन पर आधारित यह ड्रामा किया जाता है रमना उत्तराखंड में है और उसके बाद में देखिए इसमें स्टोरीज बताई जाती है भूमिया देवता की स्टोरीज को इसमें बताया जाता है रमन में और एक बात जो इंपोर्टेंट आपको याद रखनी है यूनेस्को हेरिटेज का दर्जा प्राप्त है रमन को उत्तराखंड में इसे किया जाता है और रिलीजियस फेस्टिवल यह रहता है बस इतनी इंपोर्टेंट बातें हैं इन पे क्वेश्चन आ सकते हैं आगे है माच माच कहां का है मध्य प्रदेश का यह ड्रामा है माच और मेल डोमिनेटेड है अब मेल डोमिनेटेड है या फीमेल डोमिनेटेड है इस पे भी क्वेश्चन आने की संभावना कम ही है क्योंकि देखिए 25-30 डांस इंपॉर्टेंट है अब सब में याद थोड़ी नहीं रखेंगे कौन सा मेल डोमिनेटेड है कौन सा फीमेल डोमिनेटेड है लेकिन जो जो इंपॉर्टेंट है बार सुन लेंगे तो हो सकता है वहां पर याद आ जाए ऐसा है बाकी इतना इंपोर्टेंट नहीं है बस देखिए डायलॉग्स है वो बहुत इंपोर्टेंट होते हैं मार्च के और मेनली देखिए इसको होली फेस्टिवल पर किया जाता है होली के दौरान इस पर किया जाता है आगे क्या है आगे देखिए भावना भावना है असम का ड्रामा अब यह ईस्टर्न इंडिया के स्टार्ट हो गए भावना असम का है और इसको देखिए शंकर देव के द्वारा स्टार्ट किया गया था शंकर देव के द्वारा आप आपने वो देखा होगा सतरिया जो डांस था क्लासिकल डांस था सतरिया वो शंकर देव के द्वारा शंकर देव के द्वारा 15वीं शताब्दी में स्टार्ट किया गया था तो ठीक उसी तरह भावना जो ड्रामा है यह भी असम में शंकर देव के द्वारा स्टार्ट किया गया था तो यह बात आप याद रखिएगा अगला जो है वह है देखिए जात्रा जात्रा वेस्ट बंगाल का फेमस ड्रामा है और चैतन्य का इन्फ्लुएंस मिलता है इस ड्रामा में चैतन्य का और इसमें देखिए कृष्णा की लाइफ पर आधारित कुछ ना कुछ दिखाया जा जाता है जात्रा में और एक काइंड ऑफ ये मूविंग थिएटर है जगह-जगह पर घूम-घूम के इसे किया जाता है और अक्टूबर से जून के बीच में इसे किया जाता है ठीक है तो तीन चार बातें याद रखनी है चैतन्य का इन्फ्लुएंस मिलता है कृष्णा की लाइफ पर आधारित थीम होती है घूम घूम के किया जाता है और अक्टूबर से जून तक का जो टाइम रहता है उस समय के बीच में इसे किया जाता है अगला जो है वो है विदेशिया विदेशिया बिहार का एक ड्रामा है और बिहारी ठाकुर के द्वारा इसे फाउंड किया गया था और स्पेशल फीचर इसका क्या है फीमेल रोल भी जो है वो मेल के द्वारा किए जाते हैं यह देखिए यहां पर यह मेल है या फीमेल है लिख रखा है यहां पे जो इवन फीमेल के रोल है व भी मेल के द्वारा किए जाते हैं आगे क्या है आगे है प्रहलाद नाटक प्रहलाद नाटक देखिए जो ये ड्रामा है वो उड़ीसा का है और इसे तीन से सात दिनों के बीच में कंप्लीट किया जाता है लगातार यह चलता है जैसे रामलीला 10 दिनों तक चलती है वैसे ही जो यह प्रहलाद नाटक है तीन से सात दिनों के बीच तीन से सात दिनों लिए चलता है स्टोरीज क्या होती है प्रहलाद की स्टोरी आपको पता ही होगा प्रहलाद और हिरना कश्यप के बीच की जो स्टोरी है उसको दिखाया जाता है इसमें प्रहलाद नाटका में और काफी सारे कैरेक्टर्स इसमें होते हैं 20 से ज्यादा कैरेक्टर्स इसमें होते हैं चलते हैं आगे अब देखिए कुछ ये साउथ इंडिया के ड्रामा हैं सबसे इंपोर्टेंट है बुरा कथा बुरा कथा यह एपी और तेलंगाना दोनों जगह पर किया जाता है और इसे जंगम कथा भी कहते हैं जंगम कथा राइस लीमा का जो रीजन है वहां पर इसे जंगम कथा के तौर पर जाना जाता है बुरा कथा को और शिव वर्षी पर होते हैं यह भी घूम घूम के एक प्रकार से कथा को सुनाते हैं और जो फिसपी है व एक प्रकार से शिवा फिलोसोफी है से फिलोस कुछ भी आप कह लीजिए अगला जो है देखिए हा ये याद रखिएगा बुरा ता को किया जाता है आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अगला जो है वह है मुडी एट मुडी एट को किया जाता है केरला में और हर साल इसे काली टेंपल में परफॉर्म किया जाता है काली का जो मंदिर है वहां पर इसे परफॉर्म किया जाता है और इसमें भी एक प्रकार से जैसे आप हमने पहले डिस्कस किया था चाऊ डांस में या फिर जो कथकली में जो गड और एविल के बीच में एक प्रकार से जो कन्फ है उसको दिखाया जाता है और यह बात याद रख गा उसका नेक्स्ट पार्ट है सीक्वल है मुडी एट इसमें भगवान जो है वह जीत चुके हैं यानी अच्छाई की बुराई प जीत को दिखाया जाता है इसमें यानी गोड की एविल पर जो जीत हुई है उसको दिखाया जाता है मूडीटू ड्रामा में केरला में इसे किया जाता है और इसमें भी मास्क का यूज होता है ये देखिए मास्क लगा रखा है चेहरे पे मास्क का यूज होता है और फ्लोर पे यानी फर्स पे काफी ज्यादा ड्राइंग की जाती है इस ड्रामा के दौरान में और हैंड गेचर्स है वो एक प्रकार से एब्सेंट रहते हैं हैंड गेचर्स हैंड गेचर्स का यूज नहीं होता इसमें इसके अलावा देखिए इसे भी यूनेस्को द्वारा एक प्रकार से इनटेंजिबल आर्ट के तौर पर रिकॉग्नाइज किया गया है और कौन सी थी और थी पहले रमन रमन जो उत्तराखंड में की जाती है उसको भी जो यूनेस्को ने रिकॉग्नाइज किया है इनटेंजिबल हेरिटेज आर्ट के रूप में और मुडी एट को भी रिकॉग्नाइज किया है यने ने तोय आपको याद रखना है अगर देखिए मान लीजिए यूनेस्को अगर रिकॉग्नाइज कर ले हेरिटेज के रूप में तो काफी फायदे होते हैं जैसे इंटरनेशनल कोऑपरेशन काफी मिलता है फिनेंस भी मिलते हैं स्टडी के लिए इसके अलावा ट्रेनिंग होती है यह सब चीज जो होती है नॉर्मल नॉर्मल आगे क्या आता है आगे देखिए थियम थियम है केरला का थियोलॉजी थियोलॉजी का मतलब होता है भगवान के बारे में पढ़ना तो थियम उसी से रिलेटेड है थीम देखिए यह सिर पर हेड गियर बांध के किया जाता है यह देखिए सिर पर पूरा हेड लगा लिया उसके बाद में किया जाता है और यह जो चीज है वो लोकल गोड्स को रिप्रेजेंट करते हैं जो यह यहां पर पिक्चर में हमें दिख रहे हैं यह लोकल गोड्स को रिप्रेजेंट करते हैं और इसको भी देखिए जो लोकल गोड्स की सिग्निफिकेंट क्या रहती है उनके बारे में ऐसा प्रचलित होता है कि वह गांव की रक्षा करते हैं प्रोटेक्टर है गांव के तो याद रखिएगा उसके बाद में अगला है देखिए कुड़ी अटम कुड़मूल बात है आमतौर पे तो देखिए डरविन लैंग्वेज का यूज होना चाहिए लेकिन इस डांस या फिर ड्रामा में क्योंकि देखिए ये मिक्स है काइंड ऑफ डांस ड्रामा थिएटर सबका मिक्स होते हैं जितने भी हम डिस्कस कर रहे हैं ना तो आप कई कईयों कई-कई जो है वो डांस भी है ड्रामा भी है काइंड ऑफ मिक्स है तो ये देखिए जो है जो अभी हम डिस्कस कर रहे हैं कुडिया टम यह संस्कृत लैंग्वेज का यूज होता है जबकि साउथ इंडिया का है तो क्वेश्चन में आ जाए तो कहीं हमारा गलत ना हो जाए क्योंकि हम उस उस समय दिमाग लगाएंगे कि साउथ इंडिया का तो इसलिए डरविन लैंग्वेज का यूज होना चाहिए संस्कृत लैंग्वेज का यूज नहीं होना चाहिए लेकिन इसको आप एक्सेप्शन के रूप में मान सकते हैं तो कुडिट्टा थिएटर है टेंपल थिएटर यह है और यह भी देखिए कई दिनों तक चलता है और इसमें भी जो जेस्टर्स रहते हैं काफी रिच जेस्चर का यूज होता है जैसा पिछला हमने डांस किया था यह वाला थियम इसमें तो देखिए हाथ के जेस्टर्स का यूज नहीं होता लेकिन इसमें हाथ के जेस्चर का काफी ज्यादा यूज होता है अगला है देखिए हमारा वो है थेरू कोथ यह देखिए ये है थेरू कोथ यह है तमिलनाडु का तमिलनाडु में सेे किया जाता है और यह काइंड ऑफ मिक्सचर है काफी सारी चीजें इसमें मिक्स है म्यूजिक भी है ड्रामा भी है और डांस भी है तीनों चीज मिक्स है इसमें और उसके बाद में देखिए ओपन में इसे किया जाता है गलियों में भी किया जाता है और थिएटर के तौर पर भी किया जाता है लेकिन ओपन जगह पर इसे आमतौर पर किया जाता है खुली जगह पर देखिए यह देखिए खुली जगह पर इसे किया जा रहा है अभी इस पिक्चर में और थीम क्या रहती है थीम रहती है रामायण महाभारत यह भी 18 दिनों तक कंटिन्यू चलता रहता है थीम होती है रामायण या फिर महाभारत और मेनली एक प्रकार से मेल के द्वारा किया जाता है लेकिन फीमेल भी इसमें अपना रोल निभाती है तो वही सेम बात लॉजिक वही है इस तरह का क्वेश्चन नहीं पूछे ग यूपीएससी के ये मेल के द्वारा किया जाता है या फिर फीमेल के द्वारा किया जाता है अगला है यक्ष गन यक्ष गन कर्नाटका में फेमस है और इसे ओपन एयर में किया जाता है यानी खुली जगह पर इसे किया जाता है और थीम जो रहती है वो रामायण महाभारता दशावतार तीनों तरह की थीम्स होती है रामायण भारता या फिर दशावतार यक्ष गन कहां का है याद रखिएगा कर्नाटका का ये है अगला कौन सा है अगला देखिए जात्रा जात्रा जे से जो जात्रा था वह था वेस्ट बंगाल का लेकिन य जेड से जात्रा है वह है गोवा का तो कंफ्यूज मत होएगा गोवा का है यह देखिए यह भी एक एनुअल सेलिब्रेशन है इसमें भी एक प्रकार से जो लोकल डिटीज है लोकल देवी देवताओं हैं उनको एक प्रकार से पालकी में बिठाकर जुलूस निकाला जाता है प्रोसेशन निकाला जाता है हर साल इसे जाता है और वहां की सोश इकोनॉमिक जो कल्चर है गोवा का उसका एक इंटीग्रल पार्ट है यह जात्रा तो याद रखिएगा अगला है तमाशा तमाशा है महाराष्ट्र का इसमें देखिए जो मूवमेंट्स होती है काफी फास्ट होती है सॉरी इसमें स्पेशल कॉस्ट्यूम्स नहीं होती यह देखिए जो नॉर्मल कॉस्ट्यूम्स ये डेली दिनचर्या में पहनते हैं उसी कॉस्ट्यूम से इसे परफॉर्म किया जाता है तमाशा को तो यह बात आप याद रखिएगा इसमें स्पेशल कॉस्ट्यूम्स नहीं होते हैं जो म्यूजिक होता है वो लावनी म्यूजिक होता है लावनी यह महाराष्ट्र का फेमस म्यूजिक है तो साथ-साथ तमाशा के साथ-साथ यही चलता है और उसके बाद में अगला है भावई भावई को देखिए गुजरात के राजस्थान में किया जाता है और यह जो रिलीजियस रिचुअल्स पर आधारित यह ड्रामा होता है रिलीजियस रिचुअल्स पर आधारित इसमें देखिए काफी सारे किरदार होते हैं सोशल रेलीवेंस होती है किरदारों की जैसे बोरा बोरी बोरा बोरी एक विलेज के बनिया पे आधारित किरदार हैं डोकरी जो है वो ओल्ड वूमन पर आधारित किरदार है तो बोरा विलेज बनिया और डोकरी जो है वो ओल्ड वुमन जो है तो सोशल रेलीवेंस से रिलेटेड चीजों को दिखाया जाता है भावई में अगला क्या इंपोर्टेंट है अगला देखिए दशावतार दशावतार गोवा में गोवा का ये ड्रामा है और एक प्रकार से जो थीम रहती है वो लोड विष्णु भगवान विष्णु के 10 अवतार है उन पर आधारित थीम्स रहती है और एक प्रकार से लकड़ी के मास्क पहन के यह किया जाता है पिक्चर में तो नहीं दिख रहे लकड़ी के मास्क कहां है जो भी है लिख रखा है यहां पे लकड़ी के मास्क पहन के ये किया जाता है दशावतार पपेट्री जिसे हिंदी में कठपुतली के नाम से भी जाना जाता है लेकिन आज हमें डिस्कशन करने पर ज्ञात होगा कि कठपुतली तो सिर्फ एक पार्ट है पपेट्री का और पपेट्री अपने आप में एक बहुत बड़ी आर्ट है और प्राचीन काल से यानी एसिंट ईरा में भी पपेट्री को परफॉर्म किया जाता था और सबसे पुराने जो हमें सबूत मिलते हैं वो मिलते हैं देखिए तमिल लैंग्वेज का एक क्लासिकल लिटरेचर है जिसका नाम है सिल पाद क्रम यहां से हमें सबूत मिलते हैं कि फर्स्ट सेंचरी और सेकंड सेंचरी बीसी में भी पपेट्री को परफॉर्म किया जाता था और कई परपज के लिए इसे पर परम किया जाता था जैसे कि सबसे पहले मुख्यत मनोरंजन के लिए इसे परफॉर्म किया जाता था और उसके बाद में एपिक्स लेजेंड्स यानी रमायन महाभारत या फिर पुराण को परफॉर्म करने के लिए अपनी आइडेंटिटी दर्शाने के लिए सोशल मैसेज को डिलीवर करने के लिए या फिर एजुकेशन के लिए और देखिए पपेट्री को आज भी परफॉर्म किया जाता है देश के कई हिस्सों में लेकिन शायद उस लेवल पर नहीं जिस लेवल पर पहले परफॉर्म किया जाता था क्योंकि आज देखिए आजकल देखिए एंटरटेनमेंट के लिए बहुत सारे अन्य सोर्स उपलब्ध है तो कहीं ना कहीं जो पपेट्री है सोशल मैसेज के लिए बहुत सारे अन्य सोर्स उपलब्ध है तो इन सभी कारणों से जो पपेट्री की जो आर्ट है वो कहीं ना कहीं पिछड़ गई है तो यह हमारी धरोहर है हमें सहेज के रखना चाहिए देखिए वैसे पपेट्री को आप चार पार्ट्स में डिवाइड कर सकते हैं पहला है स्ट्रिंग पपेट पपेट का मतलब होता है खिलौना खिलौना मतलब यह देखिए जो कुछ भी कह लीजिए आप इनको गुड्डा गुड्डी कह लीजिए खिलौना कह लीजिए जो मेन किरदार होते हैं और इन्हीं का यूज करते हुए विभिन्न किरदारों को दर्शाया जाता है देखिए जब पपेट्स को स्ट्रिंग्स या धागे की सहायता से इधर-उधर हिलाया जाता है शरीर के विभिन्न अंगों को धागे की सहायता से हिलाया जाता है तो उसको कहते हैं स्ट्रिंग पपेट इमोशंस दर्शाने के लिए शैडो पपेट सफेद रंग के पर्दे पर जो पपेट्स हैं उनकी परछाई दिखाई देती है जो भी मूवमेंट्स हो रही है पपेट्स की उनकी परछाई दिखाई जाती है सफेद रंग के पर्दे पर यानी उनकी शैडो दिखती है तो ये होती है शैडो पपेट्स ग्लो पपेट्स होता है दस्तानों की सहायता से जो ये पपेट्स का खेल दिखाया जाता है यानी जो ये पपेट्री होती है वो दस्तानों पर अंकित होती है हम देखेंगे आने वाली स्लाइड्स में देखेंगे और रोड पपेट्स भी इसी तरह का ग्लोब पपेट की तरह होता है चलिए इनको थोड़ा विस्तार से हम डिस्कस कर लेते हैं सबसे पहले तो आप देखिए स्ट्रिंग पपेट्स के बारे में हम जानते हैं सबसे ज्यादा कॉमन ये पपेट्री है जो स्ट्रिंग पपेट है इसमें देखिए शरीर के जो विभिन्न अंग होते हैं जैसे हाथ पैर या फिर जो शरीर के दूसरे अंग है आप फेस मान लीजिए इनको धागों की सहायता से जोड़ा जाता है अब जब भी हाथों की मूवमेंट दिखानी होती है तो आप इस धागों धागे को ऊपर खींचें स्ट्रिंग को ऊपर खींचें अगर इस हाथ को हिलाना है तो इस धागे को ऊपर खींच तो इस प्रकार से शरीर का जो विभिन्न अंग है उनको स्ट्रिंग्स की सहायता से जोड़ दिया जाता है और शरीर की मूवमेंट जो होती है वो स्ट्रिंग्स की सहायता से होती है ये देखिए जो मेन पपेट होता है वो किसी भी चीज से बना हो सकता है यानी जो मेन पपेट है ये खिलौना है चाहे वो लकड़ी का बना हो सकता है वायर का क्लॉथ का लकड़ी का कॉटन का किसी भी चीज का बना हो सकता है और काफी फ्लेक्सिबल होती है इस स्ट्रिंग पपेट्री में क्योंकि काफी सारे शरीर के अंग जो होते हैं वो धागे की सहायता से अटैच होते इसे परफॉर्म किया जाता है राजस्थान में उड़ीसा में कर्नाटका में और तमिलनाडु में अब देखिए जो कठपुतली है वह स्ट्रिंग पपेट का एक पार्ट है अलग से नहीं है पपेट तो सिर्फ चार तरह की है स्ट्रिंग शैडो ग्लो रोड अब यह हमने देखा कि स्ट्रिंग पपेट क्या होता है अब स्ट्रिंग पपेट का एक पार्ट है कठपुतली जिसे मुख्यत राजस्थान में परफॉर्म किया जाता है कट का मतलब होता है लकड़ी और पुतली का मतलब होता है डोल यानी खिलौना गुडा गुड़िया कुछ भी कह लीजिए तो देखिए एक मेन लकड़ी होती है और मेन लकड़ी को सजा दिया जाता है मेन लकड़ी को गुड़िया की तरह सजा दिया जाता है और कलरफुल जो ड्रेस है उसको पहना दी जाती है यह देखिए ये जो ड्रेस हमें दिख रही है उसके पीछे एक लकड़ी है क्योंकि कठपुतली है कठपुतली में तो निश्चित तौर पर लकड़ी होगी कठ कट मतलब लकड़ी कॉस्ट्यूम्स यानी जो इनके कॉस्ट्यूम्स होते हैं हेड गियर्स यानी जो टोपी होती है वहां पर कहीं ना कहीं आपको राजस्थानी झलक देखने को मिलती है क्योंकि मुख्यत कठपुतली को राजस्थान में परफॉर्म किया जाता है राजस्थान के अंदर में भाट कम्युनिटी के द्वारा इसे परफॉर्म किया जाता है कठपुतली आर्ट को और उनका यह कहना है कि देखिए जो भट कम्युनिटी है उनका कहना है कि हमारे जो एंसेट हैं यानी हमारे जो पूर्वज हैं वह भी पुराने समय में राजा महाराजाओं के दरबार में कठपुतली को परफॉर्म किया करते थे राजस्थान के अलावा जो पड़ोसी राज्य हैं जैसे कि मध्य प्रदेश पंजाब यहां पर भी इसे परफॉर्म किया जाता है प्राचीन सबसे प्राचीन जो सबूत मिलते हैं विक्रमादित्य जो एक एक प्रकार से महान किंग थे उज्जैन में उनके दरबार में इसे परफॉर्म किया जाता था आगे क्या देखिए जब कठपुतली को परफॉर्म किया जाता है तो उसके साथ-साथ में रिजनल म्यूजिक को भी प्ले किया जाता है और उसके साथ-साथ में एक स्टोरी टेलर होता है यह सब सीटी वगैरह ये सब तो नॉर्मल सी बातें हैं लेकिन एक बात ध्यान रखिएगा जब कठपुतली को परफॉर्म किया जाता है तो साथ-साथ उसके साथ एक बंदा यानी देखिए कठपुतली परफॉर्म हो रही है तो कोई ना कोई सोशल मैसेज तो डिलीवर हो रहा होगा अब यूं तो है नहीं जो यह है वो बोलेंगे जो गुड़िया या गुड्डा है डोल है पपेट है यह तो नहीं बोलेंगे तो यह जो जो कुछ भी चल रहा है इस कठपुतली के अंदर में उसको नरे करने के लिए एक स्टोरी टेलर होता है यानी कथा वादक होता है जो इस पूरी कठपुतली के प्ले को एक प्रकार से परफॉर्म करता है बताता है कि अब क्या कुछ चल रहा है ये देखिए और कठपुतली में ये होता है कि कई बार तो देखिए जो किरदार जो होते हैं जिनका काफी मेन रोल नहीं रहता उनको चार-पांच धागों से नहीं जोड़ा जाता उनको सिर्फ एक स्ट्रिंग से जोड़ दिया जाता है सिर्फ यह बताने के लिए अब वो बोल रहे हैं अब उनकी बारी है बोलने के लिए और जो मेन जो किरदार हैं उनको चार-पांच स्ट्रिंग से जोड़ दिया जाता है ताकि बारीक से उनकी एक्सप्रेशन को दिखाया जा सके अगला देखिए यह स्ट्रिंग पपेट्री का ही एक पार्ट है कुंधी कुंधी सा में इसे परफॉर्म किया जाता है स्ट्रिंग पपेट्री को और इसका नाम है कुंधिया कुंधना से भी जाना जाता है गोपा लीला का मतलब होता है राधा और कृष्णा की स्टोरी कुंही का मीनिंग होता है पपेट समझ गए यानी उड़ीसा की लैंग्वेज में यानी ओडिसी में कुंधे़ी मेन पपेट होता है यह लकड़ी का बना होता है पैर नहीं होते और जो एक प्रकार से आप कह सकते हैं स्कर्ट्स है वो ज्यादा लंबी होती है पैर नहीं होते पैर क्यों नहीं होते क्योंकि देखिए पैर बहुत कम पपेट्री में आपको देखने को मिलेंगे क्योंकि एक तो देखिए पैर अगर लगाएंगे तो ज्यादा कॉम्प्लेक्शन जो है और इवन काम भी बढ़ जाता है उसको मैनेज करना काफी डिफिकल्ट हो जाता है तो आमतौर पर पपेट्री में होता क्या है हाथ प ज्यादा फोकस किया जाता है फेस पे फोकस किया जाता है लेकिन पैर नहीं होते जो स्कर्ट्स है उसको बढ़ा दिया जाता है और काफी जॉइंट्स जो है वो ज्यादा वर्सेटाइल होते हैं और आर्टिकुलेट ज्यादा होते हैं यानी ज्यादा जेस्टर्स जो है उसको दिखाया जा सकता है कॉस्ट्यूम्स जो होती है वो ज्यादा फस्ट जात्रा फेस्टिवल की तरह होती है जात्रा फेस्टिवल आपको याद होगा वेस्ट बंगाल में परफॉर्म किया जाता था और उड़ीसा जो है वेस्ट बंगाल का पड़ोसी राज्य है तो कहीं ना कहीं इसे जात्रा को थोड़ा बहुत उड़ीसा में भी परफॉर्म किया जाता होगा शायद तो उसी वजह से जो कॉस्ट्यूम्स है वो जात्रा फेस्टिवल की तरह कॉस्ट्यूम्स होती हैं और जो म्यूजिक होता है जो ओडिसी डांस पर जब परफॉर्म किया जाता है वो जब ओडिसी डांस में जो म्यूजिक को यूज होता है वही म्यूजिक का यूज होता है इस एक प्रकार से कुंधी में भी आगे क्या है आगे देखिए कर्नाटका में गोमता पपेट्री को परफॉर्म किया जाता है यह भी एक प्रकार से स्ट्रिंग पपेट्री का एक पार्ट है और इसमें जो कैरेक्टर्स होते हैं वो यक्ष गन यक्ष गन आपको याद होगा एक ड्रामा प्ले किया जाता है कर्नाटका के अंदर में तो जो कैरेक्टर्स यक्ष गन ड्रामा में होते हैं जो कर्नाटका में प्ले किया जाता है वही कैरेक्टर्स होते हैं गमेता पपेट्री आर्ट में जो कटका में परफॉर्म किया जाता है इवन नाइंथ सेंचरी में भी इसे परफॉर्म किया जाता था और यह एक प्रकार से पुराणा पुराण जो है जैसे हमारे भगवत पुराण विष्णु पुराण वहां पर भी इनका जिक्र मिलता है गोता का लकड़ी से बने होते हैं जो मेन पपेट होते हैं और फाइव टू सेवन स्ट्रिंग्स को अटैच किया जाता है यह देखिए और इसमें भी कथा वादक होता है और जो यह पूरा शो को परफॉर्म कर रहा होता है उस पर्सन का नाम है भगवत हार भगवत हार याद रखिएगा यह इंपोर्टेंट है यूपीएससी देखिए इनडायरेक्टली पूछेगी यूपीएससी य देख लेगी द भगवतार इज फेमस फॉर चार ऑप्शन मिल जाएंगे फेमस फॉर ए कैरेक्टर इन डांस ए कैरेक्टर इन ड्रामा या फिर यूं आ जाएगा ए पर्सन हु ऑपरेट्स द गेटा पपेट्री या फिर पर्सन हु परफॉर्म्स द पपेट्री इस प्रकार से चार ऑप्शन आ जाएंगे तो हमें थोड़ा सा याद रखना है भगवा तरर होता कौन है भगवा तरर पूरा य गेटा पपेट्री को एक प्रकार से ऑपरेट करता है कंटेंट्स तो एपिक्स रामायण भावता या फिर वहां से लिए लिए जाते हैं आगे है बोमला टम बोमला टम देखिए तमिलनाडु में आमतौर पर जो अटम लास्ट में जुड़ा होता है तो वह केरला का आर्ट होती है आपको याद होगा मोहिनी अट्टम केरला का है और कुड़ी अट्टम यह भी केरला का था लेकिन पपेट्री में लास्ट में अटम जुड़ा हो तो यह तमिलनाडु की एक पपेट्री आर्ट है याद रखिएगा एक्सेप्शन है यहां पे तो याद रखिएगा एक्सेप्शन जब भी होती है तो उसे याद रखना होता है ताकि हमारा जो कॉमन सेंस है वह गलत ना हो यह देखिए मुख्यत यह रोड और स्ट्रिंग पपेट्री को कंबाइन करके है इसमें जो पपेट होते हैं यह बहुत ज्यादा बड़े बहुत ज्यादा हेवियस्ट और बहुत ज्यादा आर्टिकुलेट होते हैं तो याद रखिएगा जो बोमल टम है वो तमिलनाडु का है इसके देखिए और काफी सारे एग्जांपल्स है और ज्यादा डिटेल में हम नहीं जाएंगे लेकिन एग्जांपल्स है वो आप याद रख लीजिए जैसे पटा नाच यह है असम का है और काला सूत्री बहुल यह महाराष्ट्र में इसे परफॉर्म किया जाता है नूल पवा कोथ केरला में परफॉर्म किया जाता है केल बोमला आंध्र प्रदेश में परफॉर्म किया जाता है और आगे लाइ थब जगो यह मणिपुर में इसे परफॉर्म किया जाता है तो याद रखिएगा याद रह जाएंगे आपको वैसे ये सब या ही रह जाए वैसे आपको सॉरी कितना याद रहता है मैं पूछूं अभी अभी अभी मैंने आपसे पूछे थे ये सारे बताइए मणिपुर में कौन सा परफॉर्म होता था मणिपुर में सबसे लास्ट में था ये देखिए लाई थी भी जगो आपको तो याद हो गए होंगे मुझे तो देख के भी पढ़ने मेरे लिए मुश्किल हो जाते हैं लाई थी भी जगो याद रखिएगा ऑप्श देख के याद आ जाएंगे अगला है देखिए शैडो पपेट शैडो पपेट में देखिए क्या करते हैं अगली दूसरी नंबर की पपेट्री है पहले हमने डिस्कस कर स्ट्रिंग पपेट्री दूसरी है यह शैडो पपेट्री शैडो पपेट्री में देखिए एक सफेद रंग का कपड़ा होता है सफेद रंग का कपड़ा होता है यहां पर दर्शक बैठे हैं यहां पर दर्शक बैठे हैं आगे सफेद रंग का कपड़ा है सफेद रंग के कपड़े के पीछे सॉरी सॉरी सफेद रंग के कपड़े के पीछे जो पपेट्री है उसको परफॉर्म किया जाता है और काफी सारी लाइट डाली जाती है उसके ऊपर में देखिए ये सफेद रंग का कपड़ा है यहां पे दर्शक बैठे हैं और सफेद रंग के कपड़े के पीछे यहां पे पपेट हैं और यहां पे लाइट डाली जा रही है ऐसे समझ गए ऐसे लाइट डाली जा रही है उन पे तो ये पपेट की जो परछाई है वो कपड़े पे डालती है और बाद में दर्शकों को सिर्फ परछाई दिखाई देती है एक्चुअल में पपेट्स नहीं दिखाई देते समझ गए सबसे पहले आती है लाइट्स लाइट पड़ती है पपेट्स पे और लाइट्स की परछाई पड़ती है सफेद रंग के कपड़े पे और उस परछाई को यानी शैडो को देखा जाता है है दर्शकों के द्वारा तो यह है हमारी शैडो पपेट्री यह देखिए सारा कुछ ये बया किया गया है शब्दों में तो यह तो इंपोर्टेंट नहीं है मतलब बस एक आपको कांसेप्ट समझ में आ गया तो क्या शब्द बयान कर रहे हैं वो आपके लिए इंपोर्टेंट नहीं है आप अपने शब्दों में लिख सकते हो अगर मेंस में इसका क्वेश्चन आता है तो दो-तीन बातें याद रखिएगा बस वही सब चीजों के लिए इसे यूज होता है सोशल मैसे मैसेज के लिए या फिर रामायण महाभारता की स्टोरी दर्शाने के लिए मिथल जीी के लिए सभी तरह की चीजों के लिए इसका यूज होता है और वैसे काफी छोटे हो होते हैं जो पपेट्स होते हैं लेकिन जो परछाई दिखाई देती है कपड़े पे काफी बड़ी परछाई दिखाई देती है और सोशल स्टेच स्टेचर के हिसाब से जो पपेट्स है उनका कद बड़ा हो जाता है मान लीजिए अब राजा दिखाया जाए जाना है शैडो पे तो राजा का जो साइज होगा काफी बड़ा होगा अगर कोई सर्वेंट को दिखाया जाना है तो उसका साइज काफी छोटा होगा तो इस प्रकार से इन सभी चीजों की माइन्यूट डिटेल्स का भी ध्यान रखा जाता है इस शैडो पपेट्री में अब शैडो पपेट्री को थोड़ा आप प्रकार देख लीजिए एग्जांपल के तौर पे क्वेश्चन इन पे बनते हैं अब प्रीलिम में अब प्रीलिम में जब उनको पहुंचना होगा तो ये देखिए वो एक नाम दे देंगे या तो मैच मैच द फॉलोइंग दे देंगे कि रावना आचार्य कौन सी पपेट्री है शैडो पपेट्री है कि नहीं है या फिर रावणा चार छाया जो है यह छाया है चार्य नहीं है सॉरी जो रावण छाया जो पपेट्री है कहां पर इसे परफॉर्म किया जाता है इसे उड़ीसा में परफॉर्म किया जाता है इस प्रकार हमें नाम जरूर याद रखने हैं तो कुछ नाम देख लेते हैं थोलू बोमल इसे आंध्र प्रदेश में परफॉर्म किया जाता है रावना छाया को उड़ीसा में परफॉर्म किया जाता है और एक प्रकार से जो ये है काफी मुश्किल नाम है क्या है ये चमा दय छया पता नहीं काफी मुश्किल नाम है बहुल इसे महाराष्ट्र में परफॉर्म किया जाता है तो गालू गेटा इससे कर्नाटका में परफॉर्म किया जाता है तो नाम हमें याद रखने हैं इस वीडियो के लास्ट में एक बार नाम नाम दोबारा से भी हम देख लेंगे ताकि याद हो जाए और किसी दिन दोबारा से भी आपको रिवाइज करवा दूंगा मैं चिंता मत कीजिए आगे देखिए ये है ग्लोब पपेट ग्लोब पपेट क्या है देखिए जो ये इसमें क्या है हमने ये देखा कि जो स्ट्रिंग पपेट है उसमें धागों की सहायता से इनको मूव किया जाता है पपेट्स को और शैडो पपेट्री में हमने देखा सिर्फ परछाई दिखाई देती है तो ग्लोब पपेट्री में ग्लो का मतलब होता है दस्ताना इसमें इन पपेट्स को दस्ताने के तौर पे कोई भी व्यक्ति जो इसे ऑपरेट कर रहा है वो पहन लेता है तो अब हाथ की जो डिफरेंट उंगलियां हैं हाथ की जो डिफरेंट फिंगर्स हैं अगर उनको मूव करेंगे मान लीजिए एक फिंगर को मूव करेंगे तो ये हाथ मूव करेगा दूसरी की फिंगर मूव करेगा तो ये हाथ मूव करेगा अंगूठा मूव करेंगे तो मेन जो ये धड़ है वो परफॉर्म करेगा सिर परफॉर्म करेगा इस प्रकार से दस्ताने की तौर पर हाथ में पहन लिया जाता है फिर अगर अलग-अलग जब उंगलियों को मूव करेंगे तो इन क यानी जो पपेट्स है उनके अलग-अलग सीड के जो अंग है वह मूव करेंगे इस प्रकार से यह परफॉर्म किया जाता है यहां पर देखिए बच्चा देखिए इसने भी अपने हाथों में यह उठा रखे हैं तो इस प्रकार से इसे परफॉर्म किया जाता है दस्ताने की सहायता से समझ गए पपेट्स को दस्ताने के लिए दस्ताने की तर्ज पर हाथों में पहन लिया जाता है और फिर पपेट्स के डिफरेंट अंगों को मूव किया जाता है शरीर जो हाथ की डिफरेंट उंगलियों की सहायता से यह सभी उन्हीं चीजों को दिखाया गया है शब्दों में हाथों में पहन लिया जाता है दो तीन जो इंपोर्टेंट बातें हैं कई बार जैसे दोदो दो पपेट्स को एक साथ परफॉर्म किया जाता है और जब इन इस पपेट्री को यानी ग्लो पपेट्री को परफॉर्म किया जाता है तो साथ-साथ ढोलक एक हाथ में कई बार ऐसा होता है एक हाथ में पपेट होता है दूसरे हाथ में ढोलक होता है और तो कुछ नहीं है इसमें आगे इसके भी हम टाइप्स देख लेते हैं कौन-कौन से इसके टाइप्स हैं दो टाइप्स इसके फेमस है पवा कोथ केरला और बेनर पुटु यह वेस्ट बंगाल का तो दोनों याद रखिएगा पवा कोथ केरला और बेनर पटल ये वेस्ट बंगाल रोड पपेट रोड पपेट देखिए एक ग्लो पपेट का एक पार्ट है अपने आप में देखिए अब पार्ट कैसे हैं इसमें तो देखिए दस्तानों की सहायता से पपेट्री को परफॉर्म किया जाता था इसमें बस क्या होते हैं दस्ताने नहीं होते लकड़ी की सहायता से परफॉर्म किया जाता है समझ गए चौथा टाइप है ये स्ट्रिंग में हमने देखा स्ट्रिंग के सहायता से शैडो में हमने देखा छाया की सहायता से ग्लोब में हमने देखा दस्तानों की सहायता से दस्ताने की तर तर्ज पर पहन लिया जाता है और इसमें हम देखते हैं कि लकड़ी की सहायता से रोड की सहायता से परफॉर्म किया जाता है यहां पे देखिए एक्सटेंशन जो होती है ग्लो पपेट की लकड़ी की तर्ज पे होती है रोड की तर्ज पे होती है रोड किसी भी तरह की हो सकती है लकड़ी की हो सकती है सरिया की हो सकती है आयरन की हो सकती है स्टील की हो सकती है और जॉइंट्स जो होते हैं वो अटैच होते हैं पपेट्स के डिफरेंट तरह के ड जो जॉइंट्स है वो अटैच होते हैं रोड से और जब रोड्स को मूव किया जाता है तो वो जॉइंट्स के तर्ज पर शरीर के विभिन्न अंग मूव होते हैं तो एक्सप्रेशन को शो किया जाता है इसी तर्ज पर पैर नहीं होते इसमें लेगस नहीं होते लॉजिक सेम है साड़ी लपेट दिया जाता है यानी जो यह पपेट होती है पपेट होते हैं उनको साड़ी की सहायता से लपेट दिया जाता है तो इसके कौन से कौन से टाइप्स है इसके देखिए इसके टाइप्स की बात करें तो यह है यमपुरी जो कि बिहार में इसे परफॉर्म किया जाता है पुट नाच जो है इसे वेस्ट बंगाल में परफॉर्म किया जाता है काठी कांधे इसे उड़ीसा में परफॉर्म किया जाता है कांधे हमने पढ़ा था कुंधी सा में परफॉर्म किया जाता था स्ट्रिंग पपेट्री वो था और कांधे जो है उड़ीसा का यह रोड पपेट्री है चलिए इसको एक मिनट में हम पूरा रिवाइज कर लेते हैं याद हो जाएंगे आपको देखिए यह पपेट्री हमने डिस्कस किया कि जो तमिल का एक शिल्प अधिकम में सबसे पहले इसे परफॉर्म दिखाया गया था फर्स्ट और सेकंड सेंचुरी बीसी में और पपेट्री के चार टाइप स्ट्रिंग शैडो ग्लोब रोड स्ट्रिंग पपेट धागों की सहायता से मूव किया जाता है स्ट्रिंग पपेट का पार्ट है कठपुतली राजस्थान में परफॉर्म किया जाता है है कुंधिया और इसे उड़ीसा में परफॉर्म किया जाता है गेटा कर्नाटका में परफॉर्म किया जाता है स्ट्रिंग का पार्ट है बोमला टम तमिलनाडु का तमिलनाडु में परफॉर्म किया जाता है स्ट्रिंग पपेट्री का एक पार्ट है ज्यादा अब दूसरी पपेट्री जो है वो है जो है पटाल नाच असम में और काला सूत्री बहुल महाराष्ट्र में नूल पपा कोथ केरला में और केल बोमल आंध्र प्रदेश में और लाई थी भी जगो मणिपुर में उसके अलावा देखिए शैडो पपेट में सफेद रंग के कपड़ा जो होता है वहां पे शैडो दिखाई देती है और इसके सामने दर्शक बैठते हैं इसके टाइप कौन-कौन से हैं थोलू बोम लट्टा आंध्र प्रदेश में रावना रावना छाया उड़ीसा में और यह तो मुश्किल नाम था पहले नहीं बोल पाया था ना मैं हां गालू गोमता ये कर्नाटका में उसके बाद में ग्लोब पपेट दस्तानों की तरह पहन के इसे परफॉर्म किया जाता है टाइप से पपा खत केरला में बेनर पटल वेस्ट बंगाल में रोड पपेट रोड की सहायता से मुंह किया जाता है यमपुरी बिहार में पुटु नाच वेस्ट बंगाल में काथ कांदे उड़ीसा में समझ ग ग तो ये हो गई हमारी पपेट्री पपेट्री के बाद में हमारा क्या रह गया अभी काफी कुछ देखि हमने कवर कर ही लिया आर्ट एंड कल्चर में एक तो हमारा म्यूजिक बाकी है और हमारा क्या बाकी है थोड़ा बहुत म्यूजिक को देखि अगर इतिहास में हम टटोलने की कोशिश करें इसका ओरिजन ट्रेस करने की कोशिश करें तो जो हमारे वैदिक किरा के जो चार वेद हैं कौन-कौन से ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद चार वेदों में से जो सामवेद है वहां पर हम म्यूजिक को ट्रेस कर सकते हैं इवन जो सामवेद का जो उपवेद है गंधर्व वेद वहां से भी हम म्यूजिक को ट्रेस कर सकते हैं ऐसा कहा जाता है कि जो नारदा है नारद जो हैं उन्होंने सबसे पहले भगवान के मैसेज को सुना था और जो सबसे फर्स्ट म्यूजिशियन है वो है तुमू तुमू हमारे सबसे फर्स्ट म्यूजिशियन है और नारद ने सबसे पहले भगवान के मैसेज को सुना था उसके बाद में देखिए ऐसा भी कहा जाता है कि जो सभी सभी जितने भी क्रिएशंस हुई हैं वो साउंड से हुई है ओम शब्द से हुई है साउंड से हुई है और इसके अलावा पुराने समय में आपने देखा होगा कि जो यज्ञ वगैरह किए जाते थे और आहुति जो दी जाती थी वो भी मंत्र के उच्चारण करके दी जाती थी यग में आपने देखा होगा मंत्रों का उच्चारण किया जाता है सैक्रिफाइस किए जाते हैं तो यानी कहने का मतलब यह है म्यूजिक का बहुत बड़ा रोल रहा है हमारे इतिहास में भी और इवन जो साइंस ऑफ म्यूजिक है उसको कहा जाता है गंधर्व वेदा जो सामवेद का उपवेद है गंधर्व वेदा उसको एक प्रकार से साइंस ऑफ म्यूजिक के नाम से भी जाना जाता है भारता मुनि के द्वारा जो नाट्य शास्त्र लिखा गया था वहां पर भी म्यूजिक के ऊपर में काफी सारे चैप्टर्स हैं तो आपको सबसे पहले तो ये याद रखना है कि नाट्यशास्त्र किसने लिखा था नाट्यशास्त्र लिखा गया था भारत मुनि के द्वारा और इस नाट्यशास्त्र जो कि भारत मुनि के द्वारा लिखा गया था वहां पर भी म्यूजिक प काफी ज्यादा चैप्टर्स हैं अब देखिए पिलर्स ऑफ इंडियन म्यूजिक कौन-कौन से हैं देखिए मुख्यत तीन पिलर्स हैं इंडियन म्यूजिक के सबसे पहले है स्वर पहला पिलर है इंडियन म्यूजिक का दूसरा है राग और तीसरा है ताल समझ गए ये तीन पिलर्स है इंडियन म्यूजिक के तो स्वर में सबसे पहले क्या आता है ये देखिए स्वर तो ये सारे जो हैं स्वर का मतलब होता है टोन या फिर पिच सात स्वर्स का जिक्र है हमारे इंडियन मू म्यूजिक सिस्टम में जैसे सा रे ग मा पा धानी यह सात स्वर्स हैं सबका अलग-अलग मतलब है सा का मतलब होता है सजदा सिक्स बोन और एनिमल मोर इनसे जुड़े हैं तो इस प्रकार से ये अलग-अलग सिग्निफिकेंट है इतना ज्यादा डीप में यूपीएससी नहीं पूछेगी कि र जैसे स्वर जो है रे उसमें कौन सा एनिमल जुड़ा है ये तो बहुत ज्यादा डीप हो जाएगा बस याद रखिएगा सात स्वर्स हैं और सबका अलग-अलग मतलब है सा का मतलब सजदा और रे का मतलब रिश्वा और ग का मतलब गंदरा और मध्यम प का मतलब पंचमार्क है सात स्वर के बाद में देखिए राग क्या होता है जब इन सात स्वर्स को जो हमने अभी डिस्कस की सात स्वर्स है सारा सा रे ग मा पा धानी इनको देखिए अलग-अलग कांबिनेशन में जब गाया जाता है तो वो राग बन जाता है तो ये राग को आप कह सकते हैं बेसिस ऑफ मेलोडी यानी स्वर के कमिशन होता है राग कमिशन ऑफ स्वर्स आर कॉल्ड ए राग सारे गामा पानी सात को अलग अलग शब्द से आप कंबाइन करोगे तरीको से कंबाइन करोगे तो व आपका राग बन जाएगा और अलग अलग कमिशन बन सकता है देखिए ज 5 वर्ष का कमिशन है उसको कहते हैं डव राग और जो छ स्वर्स का कमिशन व बनता है डव राग और सात स्वर्स का कॉमिनेशन बनता है संपूर्ण राग तो ये याद रखिएगा उसके बाद में क्या आता है देखिए जो राग होती है वो एक प्रकार से अलग-अलग समय रहता है मेलिए 12 राग होती है हमारे हिंदुस्तानी म्यूजिक में और जो कार्नेटिक म्यूजिक है साउथ इंडिया में जोगाया जाता है वो आगे हम डिस्कस करेंगे वहां पर 72 राग होती है और जो राग होती है हिंदुस्तानी म्यूजिक के हिसाब से उनको अलग-अलग तरीके से गाया जाता है अलग-अलग समय पर गाया जाता है यह एग्जांपल के तौर पर छह राग से जिनको डिस्कस किया गया है यहां पे देखिए जो हिंडोल राग है जैसे एग्जांपल के तौर पर उनको सुबह-सुबह गाया जाता है और बसंत ऋतु में यानी टाइम भी निर्धारित है और एक प्रकार से सीजन जो है जिस सीजन में इसे गाया जाता है वो भी निर्धारित है और किस लिए गाया जाता है पर्पस क्या होता है यंग कपल का एक प्रकार से लव को दर्शाने के लिए इसे गाया जाता है दूसरी जो राग है दीपक दीपक को गाया जाता है देखिए नाइट के दौरान में रात्रि के दौरान में गाया जाता है समर के सीजन में गर्मियों के दौरान में और भाव क्या है कंपैशन दया आप देखिए कोई प्रॉपर एक प्रकार से सिनर्जी बनाकर इन सब चीजों को याद रख सकते हो कैसे अब मान लीजिए दीपक नाम का आपका कोई दोस्त दोस्त है और रात को गर्मी का सीजन है रात को किसी को देख के उसको दया आ गई तो इस प्रकार से आपको यह सारी चीज याद हो जाएगी भाई दीपक था और गर्मी के सीजन में रात को उसको दया आ गई थी इसलिए कोल्ड ड्रिंक पिला दी किसी को तो ये पूरा आपको याद हो जाएगा वैसे ही अगला याद कर सकते हो मेघ आफ्टरनून रेनी करेज तो इसे आप ऐसे याद कर सकते हो मेघ नाम की आपकी कोई दोस्त है दोपहर का टाइम है और बहुत तेज बारिश आ गई फिर भी मेघ ने करेज का सामना करते हुए अपना घर पहुंची या फिर जहां भी उनको पहुंचना था वहां व पहुंच गई इस प्रकार से आप कुछ एक प्र से सिमेट्री सी बना के आप याद कर सकते हो ऐसे ही श्री है श्री इवनिंग के दौरान में गाया जाता है सर्दियों के मौसम में इसे गाया जाता है और ग्लैडनेस श्री श्री र श्री श्री रविशंकर जिसे आप इसे कनेक्ट कर सकते हो कि सर्दियों का टाइम है इवनिंग है वह अपना जो आर्ट ऑफ लिविंग है उसको संबोधित कर रहे हैं ग्लैडनेस अपनी दिखा रहे हैं तो इस प्रकार से आप याद कर सकते हो और कुछ नहीं है इसमें आगे यह है मल्हा यह मिडनाइट विंटर यूथ फुल लव और जो भैरवी है मॉर्निंग सुबह सुबह और पीस और डि नेस के लिए गाया जाता है आगे हम चलते हैं ताल क्या है ताल तो देखिए एक बेसिस ऑफ रिदम है इसमें बीड्स को साइक्लिक मैनर में गाया जाता है बीड्स कोई भी हो सकती है तीन से लेकर 108 बीट्स के कॉमिनेशन को ताल कहते हैं बीज कोई भी हो सकती है कोई भी हम साउंड करते हैं जैसे इवन देखिए आप जैसे आप वो देख सकते हो जब समुंद्र की जो लहरें हैं वो भी एक ताल करती है पहले आती है ऊपर उठती है फिर जाती है स्वर करती है कुछ साउंड बुलाती है तो यह ताल होता है ताल देख आपको सिंपल सा एग्जांपल देता हूं देखिए ठक ठक ठा ठक ठक ठा यह तीन बीट्स है यह ताल है काइंड ऑफ एक रिदम क्रिएट होही है ठक ठक ठ बारबार मैं े रिपीट कर रहा हूं यानी एक ताल हो रहा है जो सबसे फेमस है देखिए काफी टाइप के हो सकते हैं लेकिन तीन ताल जो है वह काफी फेमस है इसमें 16 बीट्स होती है तो याद रखिएगा तीन ताल जो है काफी फेमस है और इसमें 16 बीट्स होती हैं चलिए अब आगे चलते हैं आगे देखिए कई बार डिफरेंस पूछ लेते हैं हिंदुस्तानी और कार्नेटिक म्यूजिक के बीच में डिफरेंस क्या है तो देखिए काफी सारे डिफरेंस है इनके बीच में सारे के सारे बिल्कुल आसान लैंग्वेज में हमने डिस्कस करें तो ये देखिए यहां पे यहां पे हम ले लेते हैं हिंदुस्तानी म्यूजिक और यहां पे हम ले लेते हैं कार्नेटिक म्यूजिक देखिए सबसे पहले इन्फ्लुएंस की बात करते हैं जो हिंदुस्तानी म्यूजिक है वहां पर काफी सारा इन्फ्लुएंस देखने को मिलता है अरब जो रीजन है वहां का पर्शियन रीजन का इवन अफगान रीजन का इन सभी रीजंस का इन्फ्लुएंस देखने को मिलता है हिंदुस्तानी म्यूजिक में लेकिन जो कार्नेटिक म्यूजिक है वो अपने आप में एक प्रकार से इंडिजन अस है घरेलू है डोमेस्टिक रूप से ही बना है और कहीं बाहर का इन्फ्लुएंस नहीं दिखता यहां पे तो इंडिजन अस है कार्नेटिक म्यूजिक अब दूसरे नंबर प जो बात आती है फ्रीडम की देखिए हिंदुस्तानी म्यूजिक में काफी फ्रीडम मिलती है गायकार को सिंगर को बहुत ज्यादा फ्रीडम मिलती है लेकिन कार्नेटिक म्यूजिक में उतनी ज्यादा फ्रीडम नहीं मिल पाती और इंस्ट्रूमेंट्स की बात करें तो देखिए इंस्ट्रूमेंट का काफी ज्यादा यूज होता है फोकस होता है हिंदुस्तानी म्यूजिक पे लेकिन वोकल चीज का ज्यादा फोकस होता है यानी गाने पे ज्यादा फोकस होता है कार्नेटिक म्यूजिक में और इंस्ट्रूमेंट्स पे कम फोकस होता है उसके बाद में देखिए बात करें टाइप की और टाइप की बात करें तो देखिए काफी इमोशनल होता है हिंदुस्तानी म्यूजिक और जो यह कार्नेटिक म्यूजिक होता है वो इंटेलेक्चुअल से भरा होता है तो यह अपने आप में क्लासिफिकेशन है उसके बाद में क्या आता है देखिए घराने होते हैं हिंदुस्तानी म्यूजिक में जैसे पटियाला घराना लखनऊ घराना जो घराना सिस्टम है वो देखने को नहीं मिलता कार्नेटिक म्यूजिक में तो यह भी आपको याद रखना है उसके अलावा राग देखिए जो राग है सिक्स प्रिंसिपल राग्स हैं हिंदुस्तानी म्यूजिक के अंदर में जो हमने अभी डिस्कस की थी लेकिन राग्स हैं कार्नेटिक म्यूजिक में और इसके बाद में देखि टाइम यानी जो राग गाए जाते हैं हिंदुस्तानी म्यूजिक में प्रॉपर टाइम और सीजन के हिसाब से गाई जाती है लेकिन कार्नेटिक म्यूजिक में साउथ इंडिया में जो राग गाई जाती है वो प्रॉपर टाइम और सीजन के हिसाब से नहीं गाई जाती बस मेन तो यही है देखिए बाकी जो इंस्ट्रूमेंट्स है वो भी आप देख सकते हो ज्यादा इंपोर्टेंट नहीं है इसमें तबला सारंगी सितार वो है यहां पे वीना और मृदु गम का ज्यादा यूज है इंस्ट्रूमेंट कम ही पूछते हैं कि म्यूजिक में कौन से इंस्ट्रूमेंट्स हैं उसके बाद में क्या आता है देखिए उसके बाद में थोड़े हमारे हिंदुस्तानी म्यूजिक के सब स्टाइल्स हैं जैसे ध्रुपद ध्रुपद देखिए हिंदुस्तानी म्यूजिक का सबसे पुराना और इवन सभी स्टाइल्स का मदर स्टाइल इसे कहा जाता है ओल्डेस्ट स्टाइल है और बाकी सभी हिंदुस्तानी म्यूजिक के जो सब स्टाइल्स हैं उनका मदर कहा जाता है ध्रुपद को और वैदिक ओरिजिन है वैदिक ओरिजिन वैदिक ईरा से हम इसको ट्रेस कर सकते हैं और संस्कृत में यह गाया जाता था शुरू शुरू में अभी तो दूसरी लैंग्वेजेस में इसे गाया जाता है और यह देखिए सबसे पहले जो इसका इमरजेंस हुआ वो टेंपल से मंदिरों से हुआ हुआ टेंपल से इसका मंदिर य जो देवदासी थी भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए ध्रुपद का गाते थे उसके अलावा देखिए फिर राजा मान सिंह जो ग्वालियर के राजा थे राजा मान सिंह और मान सिंह तोमर उनका नाम था उन्होंने इसे बहुत पॉपुलर इज किया था फिर बाद में अकबर को भी श्रे जाता है अकबर ने भी इस स्टाइल को काफी पॉपुलर इज किया हरिदास के थ्रू हरिदास जो उनके दरबार में गाते थे उनके थ्रू अकबर ने इसे काफी प्रमोट किया इवन जो बैजू बारवा थे वो भी अकबर के ईरा में ही थे और अकबर ने उन्हीं के थ्रू इसको प्रमोट किया जा था और देखिए ध्रुपद को एक प्रकार से सीरियस और जो सोबर कंपोजीशन दोनों में गाया जाता है दो पार्ट्स में आप इसे डिवाइड कर सकते हो एक है अलाप और दूसरा है बंदिश अलाप जो होता है वह देखिए एक्सपोजिशन सेक्शन होता है और इसमें काफी फ्रीडम होती है अपने आप से भी आप कुछ गा सकते हो लेकिन बंदिश में जो कुछ फिक्स है आपको वही गाना पड़ता है फिक्स कंपोजीशन रहता है बंदिश के दौरान में और अलाप के दौरान में थोड़ा बहुत फ्रीडम आपके पास में रहता है समझ गए बंदिश के दौरान में फिक्स कंपोजीशन रहता है बस इसमें इतना ही है देखिए उसके बाद में क्या है उसके बाद में है ख्याल म्यूजिक वैसे इसके घराना भी है जो हमने अभी डिस्कस किया ध्रुपद के लेकिन घराना इतने इंपोर्टेंट नहीं है काफी डीप में हो जाएगा वो सब एग्जाम के लिए इंपोर्टेंट नहीं है तो ख्याल म्यूजिक में क्या है ख्याल म्यूजिक में ख्याल का मतलब ही देखिए क्या है आईडिया आईडिया थॉट इमेजिनेशन यह मतलब है ख्याल का आईडिया थॉट और इमेजिनेशन देखिए ख्याल में क्या है ये अमीर खुसरो ने स्टार्ट किया था सबसे पहले याद रखिएगा कई बार इनडायरेक्ट क्वेश्चन आ सकता है कि अमीर खुसरो ने कौन सा म्यूजिक स्टार्ट किया था तो ख्याल म्यूजिक स्टार्ट किया था और इसके अलावा देखिए इसमें भी काफी फ्रीडम होती है और स्पेशल फीचर्स इसका क्या है तान का यूज होता है तान म्यूजिक का इसमें यूज होता है काफी फ्रीडम इसमें होती है जो सिंगर होते हैं अपने हिसाब से भी काफी कुछ इसमें ऐड कर सकते हैं मेलोडी और रिदम दोनों पर फोकस किया जाता है यह भी दो पार्ट्स में डिवाइडेड होता है एक बड़ा ख्याल और एक छोटा ख्याल दो पार्ट्स में डिवाइडेड होता है छोटा ख्याल और बड़ा ख्याल बस यही है काफी कुछ ज्यादा है नहीं इसमें आगे क्या है आगे देखिए धमार स्टाइल धमार काइंड ऑफ देखिए य ध्रुपद की तरह ही है बस इसमें धमार ताल का यूज होता है ज्यादातर जो है व ध्रुपद की तरह जो हमने सबसे पहले डिस्कस किया था जो मदर है सभी सब स्टाइल्स का उसी की तरह है लेकिन इसमें धमार ताल का यूज होता है और जो बीट्स होती है 14 बीट्स इसमें रहती है लेकिन जो बीट्स होती है रेगुलर नहीं होती 14 बीट्स का इसमें यूज होता है वो काफी इरेगुलर होती है उसके बाद में क्या है उसके बाद में देखिए इसकी जो थीम होती है वो लॉर्ड कृष्णा पर आधारित होती है और होली फेस्टिवल से रिलेटेड इसकी थीम आमतौर पर रहती है और लर्ड कृष्णा पर आधारित इनकी थीम रहती है जो म्यूजिक कंटेंट जो होता है वह काफी इरोटिक कंटेंट रहता है और इसमें भी फ्रीडम होती है फ्रीडम दी जाती है सिंगर को फ्रीडम तो देखिए ऑलमोस्ट एक दो को छोड़ के सभी में दी जाती है जैसे ध्रुपद का जो पार्ट था बंदिश उसमें नहीं है फ्रीडम कार्नेटिक में नहीं है फ्रीडम इस प्रकार से ज्यादातर में है और हिंदुस्तानी के सब स्टाइल्स हैं उनमें भी ज्यादातर में है ध्रुपद के पार्ट में नहीं है आगे क्या है आगे देखिए ठुमरी ठुमरी की अगर बात करें तो देखिए यह मिक्स्ड रागास पर आधारित है जो डिफरेंट राग्स हमने डिस्कस किए थे अभी जैसे वो थे हमारी भैरवी राग दीपक राग उन सभी को कंबाइन करके मिक्स करके बनाया जाता है ये ठुमरी एक प्रकार से जो स्टाइल है थीम रहती जो है थीम काफी एक प्रकार से लाइट रहती है रिलीजियस और रोमांटिक रहती है लाइट रिलीजियस और रोमांटिक थीम रहती है इसकी और जो टेक्स्ट होता है वो एक प्रकार से बहुत ज्यादा इंपोर्टेंट होता है इसका ठुमरी यानी जो गाया जा रहा है उसका टेक्स्ट भी काफी इंपोर्टेंट है और मीनिंगफुल टेक्स्ट होता है फीमेल वॉइस में ज्यादातर टाइम इसे गाया जाता है लेकिन आजकल मेल वॉइस में भी इसे गाया जाता है लेकिन जनरली इसे फीमेल वॉइस में ही गाया जाता है दो टाइप्स की ठुमरी होती है एक होती है पूर्वी ठुमरी और एक होती है एक प्रकार से पंजाबी ठुमरी जो पूर्वी ठुमरी होती है वह काफी स्लो रहती है और जो पंजाबी ठुमरी है वह काफी फास्ट रहती है बस कुछ नहीं कुछ सिनर्जी बना के याद रख लीजिए और क्या पंजाबी ठुमरी फास्ट होती है कुछ गाना से याद कर कुछ सोस याद कर लीजिए जैसे अंग्रेजी बीट वाला जो गाना है काइंड ऑफ हमें तो देखिए क्वेश्चन सही करने हैं बाकी जो कुछ जिस सिट्री बना के हम याद कर रहे हैं वो इंपोर्टेंट नहीं है बस हमारे क्वेश्चन सही होने चाहिए आगे क्या है आगे है तराना तराना की अगर बात करें तो देखिए इसमें जो रिदम होता है वो काफी इंपोर्टेंट रोल प्ले करता है जो शब्द होते हैं मीनिंग लेस होते हैं कुछ भी क लीजिए जैसे एग्जांपल देता हूं मैं देखिए आपको धुम पचक्कू धूम पचक्कू देखिए अब ये मीनिंग लेस है कुछ भी इसका मतलब नहीं निकलता लेकिन रिदम है इसमें बार-बार अगर मैं ऐसे गाऊंगा तो एक रिदम क्रिएट हो रही है लेकिन मीनिंग लेस है कुछ भी शब्द का अर्थ नहीं निकल पा रहा है तो यह होता है तराना यह देखिए पहले इसको टेंपल्स में गाया जाता था अब तो देखिए वैसे काफी जगह पर इसे गाया जाता है शुरू में टेंपल से इसका इमरजेंस हुआ था और उसके बाद में है टप्पा स्टाइल यह लास्ट स्टाइल है टप्पा स्टाइल यह देखिए हमारे जो वेस्टर्न इंडिया है वेस्टर्न इंडिया में जो कैमल को ड्राइव करते थे पुराने समय में वो इसे गाते थे तपा को क्विक फ्रेजस का यूज होता है काफी सारे जो नोड्स है यानी जो स्वर्स है नोड्स है उनका काफी सारे कॉमिनेशन पर परम्यूटेशन एंड कॉमिनेशन का यूज होता है इसमें अब जो देखिए एक इंटरेस्टिंग बात है टप्पा को देखिए पंजाबी में लिखा तो जाता है लेकिन पंजाबी में इसे गाया नहीं जाता पंजाबी में लिखा जाता है लेकिन पंजाबी में गाया नहीं जाता तो चार पांच क्वेश्चन बन सकते हैं इस पर कहां पर यह गाया जाता है यह गाया जाता है हमारे वेस्टर्न इंडिया में और पंजाबी में लिखा जाता है लेकिन गाया नहीं जाता और एक प्रकार से क्विक फ्रेजस का यूज होता है बस यही इंपोर्टेंट बातें हैं आजकल देखिए एक्सटेंट हो रहा है क्योंकि आज जो है ज्यादा नए गाने ज्यादा चलने लगे हैं तो ये इस तरह के जो हमारे धरोहर हैं वो एक्सटेंट होने लगी हैं लुप्त होने लगी हैं आगे देखिए थोड़े बहुत हमारे फॉक्स म्यूजिक भी है एक एक दोदो लाइने इन पे है वो देख लेते हैं देखिए पहला सबसे पहला है वना वन म्यूजिक इसे कश्मीर में गाया जाता है और इसकी जो शादी समारोह प इसे गाया जाता है जब भी कोई शादी होती है मैरिज उसके मौके पर इसे गाया जाता है अगला है पांडवानी म्यूजिक यह छत्तीसगढ़ में गाया जाता है थीम जो होती है महाभारता पर आधारित इसकी थीम होती है अला अला देखिए ये मध्य प्रदेश में गाया जाता है और जो लोकल जो एक प्रकार से इनको हीरोज हैं उनकी स्मृति में उनकी तारीफ करने के लिए और उनके बलदान को दर्शाने के लिए इसे गाया जाता है अला को मध्य प्रदेश में पाई जो है उसे भी मध्य प्रदेश में गाया जाता है और इसे तो देखिए रेनी सीजंस में यानी बारिश के लिए गाया जाता है जब भी मानसून की दरक रहती है तो मानसून लाने के लिए इसे गाया जाता है मांड मांड म्यूजिक को गाया जाता है राजस्थान में राजस्थान में पुराने समय में रॉयल कोर्ट्स में यानी जो राजा थे राजा के दरबार में राजा को की तारीफ करने के लिए राजपूत रूलर थे उनकी ग्लोरी के लिए इसे गाया जाता है मांड को राजस्थान में अगला है पावनी हरी यानी पानी पावनी का मतलब पानी पानी से है यहां पे देखिए जब गांव में राजस्थान में पानी की ज जहां कमी रहती है तो एक प्रकार से कुएं के नजदीक जब महिलाएं कपड़े धो रही होती हैं या फिर जो दूसरे काम कर रही होती है तब इस प्रकार के म्यूजिक को गाया जाता है पानी हरी जिसे कह सकते हैं आप दांडिया तो काफी फेमस है गुजरात में इसे गाया जाता है खेला जाता है और ओवी महाराष्ट्र का एक म्यूजिक है इसमें जो महिलाएं होती हैं अपने हाउसहोल्ड का वर्क यानी जो घरेलू घर का जो काम है जब व कर रही होती है तब इसे वो गाती है ओवी को अगला है पावडा पावडा को देखिए इसे भी महाराष्ट्र में गाया जाता है इसे जैसे मध्य प्रदेश में आपने देखा था यह जो लोकल जो एक प्रकार से हीरोज थे उनकी स्मृति में गाया जाता था उसी प्रकार से यह पाउडर जो है वो महाराष्ट्र में लोकल जो हीरोज है जैसे शिवाजी जो है उनकी ग्लोरी में गाया जाता है और लावणी है वो भी मध्य प्रदेश देश में गाया जाता है लावनी जो है वो एक प्रकार से जो तमाशा जो ड्रामा हमने डिस्कस किया था महाराष्ट्र का एक ड्रामा था तमाशा तमाशा के दौरान में लावनी म्यूजिक का यूज किया जाता है कुछ और भी है जैसे भगवती भगवती जो फेमस है कर्नाटका और महाराष्ट्र में काफी फेमस है सोहर जो म्यूजिक है वो बिहार में इसका यूज होता है चाइल्ड बर्थ के मौके पर इसका यूज होता है सोहर का अगला है जिकिर जिकिर अरुणाचल प्रदेश और असम में इसे गाया जाता है और एक प्रकार से इस्लाम की टीचिंग्स को समझाने के लिए इसका यूज होता है जिक्र का जा जिनज जा जिंजा का यूज जो होता है वो अरुणाचल प्रदेश में ज्यादा होता है और जो मौका होता है मैरिज यानी शादी समारोह में इसे ज्यादा यूज होता है जा जिंजा का अगला है खुंजा पर्व खुंजा पर्व का यूज होता है मणिपुर में बहुत ज्यादा और इवन जो देखिए बैटल्स लड़ी गई थी काफी फेमस बैटल लड़ी गई थी मणिपुरी के बीच में और ब्रिटिश के बीच में 18914 में एक युद्ध हुआ था मणिपुर के बीच में और ब्रिटिश के बीच में तो उस समय की लड़ाई को एक प्रकार से उसकी ग्लोरिफाई करने के लिए उसको और उस बैटल को बता के लिए इस म्यूजिक का यूज होता है जिसका नाम है खुंजा पर तो यह सारे म्यूजिक हमने डिस्कस किए और कैलेंडर काफी इंपोर्टेंट टॉपिक है और 2014 में यूपीएससी ने इस पर क्वेश्चन भी पूछा था दो साल अब उस बात को हो चुके हैं तो इस बार भी संभावना है कि यूपीएससी के द्वारा इस टॉपिक प कैलेंडर पर क्वेश्चन पूछा जा सकता है सबसे पहले मैं आपको अवगत करवाना चाहता हूं कि चार तरह के कैलेंडर हम इस वीडियो में डिस्कस करेंगे सबसे पहले हम डिस्कस करेंगे विक्रम संवत दूसरे नंबर पे हम डिस्कस करेंगे शाखा संवत तीसरे नंबर पर हम डिस्कस करेंगे हिजरी कैलेंडर और चौथे नंबर प हम डिस्कस करेंगे जॉर्जियन कैलेंडर तो चार कैलेंडर हम डिस्कस करने जा रहे हैं इस वीडियो में अब देखिए क्लासिफाई इनको करेंगे तो ऊपर के दो कैलेंडर हैं विक्रम संवत और शाखा संवत यह हिंदू धर्म हिंदू धर्म पर आधारित कैलेंडर हैं और जो तीसरे नंबर का कैलेंडर है हिजरी कैलेंडर यह इस्लाम पर आधारित कैलेंडर है और चौथे नंबर का जो कैलेंडर है जॉर्जियन कैलेंडर यह साइंटिफिक कैलेंडर है सबसे पहले हम डिस्कस करते हैं विक्रम संवत संवत का मतलब होता है ईरा देखिए ये स्टार्ट हुआ था 57 बीसी में जी हां थोड़ा इसम डाउट रहता है कुछ लोग कहते हैं ये 56 बीसी में स्टार्ट हुआ था इवन कुछ लोग 58 बीसी प भी बताते हैं लेकिन एक जो सर्व सहमति है कंसेंसस है वो 57 बीसी पे है तो 57 बीसी के अकॉर्डिंग अगर हम हिसाब लगाएं तो विक्रम संवत का कौन सा साल अभी चल रहा है तो आप बताइए आपको ऐड करना होगा 2017 में 57 बीसी को ऐड करना होगा बिफोर क्राइस्ट ये है 57 बीसी तो यानी -57 इसको मान लीजिए तो उसके हिसाब से अभी जो चल रहा है वो 2017 में ऐड कर दीजिए 57 यह चल रहा है 2074 तो विक्रम संवत के हिसाब से अभी 2074 वां साल है अब देखिए इसकी शुरुआत कहां से हुई आखिरकार क्या हुआ था 57 बीसी में देखिए 57 बीसी में उज्जैन के एक रूलर थे विक्रमादित्य इन्होंने हराया था शका रूलरसोंग्स होगा जो चंद्रमा है व एक महीने में दो फेसेस को पूरा करता है पहले वो न्यू मून से जाता है फुल मून की तरफ में यानी न्यू मून जब ये मूवमेंट्स इस प्रकार से होती है पोजीशन इस प्रकार से होती है पहले हमारी धरती आती है धरती के चारों ओर चक्कर लगाता है चंद्रमा और दोनों मिलके चक्कर लगाते हैं सूर्य के चारों ओर तो यहां पे देखिए जब पोजीशन ऐसी होती है सूर्य चंद्रमा और धरती ऐसी पोजीशन जब होती है तो न्यू मून होता है न्यू मून यानी जो चंद्रमा है वो हमें दिखाई नहीं देता और क्यों दिखाई नहीं देता क्योंकि देखिए सूर्य की जो किरणें हैं वो आउट साइन कर देती हैं चंद्रमा हमें तभी दिखाई देता है जब एक प्रकार से यह सूर्य की किरणों को रिफ्लेक्ट करता है धरती की तरफ में लेकिन ऐसी पोजीशंस पे जो जो सूर्य की किरणें हैं वो आउट साइन कर देती हैं चंद्रमा की किरणें रिफ्लेक्ट होके आ नहीं पाती धरती तक तो इसलिए चंद्रमा हमें दिखाई नहीं देता और जब पोजीशन इस प्रकार से होती है जब चंद्रमा एक प्रकार से चक्कर लगा के घूम के इधर आ जाता है तो पूरा चंद्रमा हमें दिखाई देता है फूल मून वो होता है पूरा चंद्रमा हमें दिखाई देता है क्योंकि सूर्य काफी दूर होता है तो जो एक प्रकार से जो रिफ्लेक्शन आता है चंद्रमा की तरफ से काफी अच्छा आता है और वो फुल मून कहलाता है इस प्रकार से फेज वाइज चंद्रमा हमें दिखाता है अगर हिंदी की बात करें तो देखिए जब चंद्रमा में पूरा दिखाई देता है तो उस दिन को हम कहते हैं पूर्णिमा यानी चंद्रमा पूरा दिखाई दे रहा है पूर्णिमा और जब चंद्रमा में बिल्कुल नहीं दिखाई देता यानी न्यू मून होता है उस चीज को कहते हैं हम अमावस तो आपको यह चीज याद रखनी है जब अमावस से पूर्णिमा के बीच के जो दिन होते हैं उनको एक प्रकार सेकल पक्ष कहा जाता है और पूरा जब चंद्रमा में दिखाई देता है यानी पूर्णिमा मा से न्यू मून के बीच के या अमावस के बीच के जो दिन होते हैं उनको हम कृष्ण पक्ष कहते हैं तो थोड़ी सी जानकारी है ज्यादा इंपोर्टेंट तो नहीं है बस याद रखिएगा आप अगला देखिए आपको एक और जो चीज याद रखनी है वह है अगला है शाका संवत शाका संवत देखिए यह भारत का ऑफिशियल साल भी है ऑफिशियल संवत भी है और इसकी शुरुआत हुई थी देखिए 78 एडी से पहले काफी मिथ थे इसके बारे में कि कनिस्क ने हराया था साका रुलर्स को तो ये उल्टा था लेकिन कनिस्क नहीं हराया कनिस्क तो एक एक कुशान रूलर थे तो शाका संवत है तो शाका के एक किंग थे जिसका नाम था चेस थन इन्होंने हराया था किसी दूसरे व्यक्ति को वहीं से शुरुआत हुई थी 78 एडी से इसकी शुरुआत हुई थी शाखा संवत की अब ये हमारा नेशनल कैलेंडर भी है और नेशनल कैलेंडर के हिसाब से अभी कौन सा साल चल रहा है क्योंकि देखिए एडी है 78 एडी है तो आपको 2017 से 78 घटाना होगा माइनस करना होगा तो उसके हिसाब से 1939 चल रहा है और हमारे जो देश यानी जो हमारा देश का ऑफिशियल गैजेट है उसमें हमने शाखा संवत बनाया हुआ है इवन जो एयर इंडिया ऑल इंडिया रेडियो की जो एक प्रकार से ब्रॉडकास्टिंग होती है वो भी शाखा संवत के हिसाब से होती है तो यह आपको याद रखना है तो इसी पे यूपीएससी ने क्वेश्चन पूछा था यूपीएससी ने क्वेश्चन पूछा था कि शाखा संवत के अकॉर्डिंग में कौन सा सबसे पहला महीना है तो चैत्र जो महीना है वो सबसे पहला महीना है 22 मार्च को स्टार्ट हो जाता है शाखा संवत यानी हमारे देश का जो ऑफिशियल साल है वो 22 मार्च को स्टार्ट हो जाता है सबसे पहला जो महीना होता है वो चैत्र का होता है दूसरे नंबर का विशाख होता है सबसे लास्ट होता है वो फाल्गुन होता है सभी तो आपको याद रखने की आवश्यकता नहीं है सिर्फ पहला दूसरा और लास्ट याद रख लीजिए समझ गए सभी याद रखने की जरूरत नहीं है 12 के 12 आपको याद रखने की आवश्यकता नहीं है पहला याद रख लीजिए चैत्र जो यूपीएससी ने पूछा था दूसरा याद रख लीजिए वैशाख और 12वां याद रख लीजिए फाल्गुन अगला देखिए जो कैलेंडर है वो है हिजरी कैलेंडर हिजरी कैलेंडर की शुरुआत हुई थी देखिए 620 622 एडी में 622 एडी से क्या हुआ था 62 622 इंग्लिश में नहीं बोला जा रहा है 622 एडी में क्या हुआ था देखिए जो मोहम्मद साहब हैं व मक्का से मदीना की तरफ अग्रसर हुए थे 622 एडी में और तभी से यह मुस्लिम कैलेंडर की शुरुआत हुई थी और यह भी एक प्रकार से लूनर कैलेंडर है 12 महीनों में डिवाइडेड है सबसे पहला जो महीना होता है वो होता है मुहर्रम दूसरा जो महीना होता है वो होता है सफर और जो नौवां महीना होता है वो रमजान होता है और 12वां जो महीना होता है वह होता है जुज्जावारापू तो इस हिसाब से यह शुरुआत 622 एडी से इसकी शुरुआत हुई थी सऊदी अरेबिया में सबसे पहले इसकी शुरुआत हुई थी मक्का मदीना सऊदी अरेबिया में है मोहम्मद साहब मक्का से मदीना की तरफ अग्रसर हुए थे 622 एडी में तभी से यह हिजरी कैलेंडर की शुरुआत हुई थी तो यह सब चीजें आपको याद रखनी है 12 महीने इसमें होते हैं और इवन देखिए आपने वो भी देखा होगा जो शहरी होता है वह मॉर्निंग ब्रेकफास्ट होता है इफ्तहार जो पार्टी होती है वो इवनिंग पार्टी होती है तो ये कुछ इंपोर्टेंट बातें हैं जिन पर क्वेश्चन पूछे जा सकते हैं आगे देखिए जॉर्जियन कैलेंडर तो काफी सिंपल कैलेंडर है जो साइंटिफिक कैलेंडर है जो 1 जनवरी से स्टार्ट होता है वह है इन इस सब चीजों के बारे में तो आपको पता ही होगा इवन इतना गहराई से आपको पता होगा जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल सभी महीनों के दिन भी आपको पता होगा तो यह तो कुछ ज्यादा इंपॉर्टेंट है नहीं जॉर्जन कैलेंडर और इस पर क्वेश्चन आने की संभावना काफी कम है हर 4 साल बाद लीप ईयर होता है यानी 2016 2020 हर चा साल बाद लीप ईयर होगा और वैसे फरवरी का यानी लीप ईयर में फरवरी के जो दिन होते हैं वो 29 हो जाते हैं समझ गए आगे है आगे देखिए हम कुछ जो सब्जेक्ट्स है जैसे मैथमेटिक्स केमिस्ट्री उन सबके बारे में थोड़ा-थोड़ा डिस्कस करते हैं कि इतिहास में वो कैसे इवोल्व हुए देखिए मैथमेटिक्स की अगर बात करें तो मैथमेटिक्स का जिक्र तो हमें हड़प्पा टाइम्स में मिलता है हड़प्पा में आपने पढ़ पता होगा पढ़ा होगा टाउन प्लानिंग के बारे में बहुत जबरदस्त उनकी टाउन प्लानिंग थी हड़प्पा टाइम्स में जो शहर की जो सड़कें थी वो राइट एंगल्स पर टकराती थी तो इससे पता लगता है कि जो हड़प लोग थे उनको ज्योमेट्री की काफी ज्यादा नॉलेज थी तो यहीं से हड़प टाइम से मैथमेटिक्स का यूज होना स्टार्ट हो गया था उसके बाद में देखिए अर्लीस्ट बुक यानी सबसे जो पुरानी बुक है मैथमेटिक्स के ऊपर में वो है सुलवा सूत्रा सुलवा सत्रा सबसे पुरानी बुक है मैथमेटिक्स के ऊपर में यह लिखी थी बधा यन ने बधा यन ने मैथमेटिक्स के ऊपर में य बुक लिखी थी सेवन सेंचुरी बीसी में समझ गए आपको याद रखना है कई बार क्वेश्चन पूछ लिया जाता है और उसके बाद में देखिए इवन पाई और पाइथागोरस थ्योरम का भी जिक्र था इस सुलवा सूत्र बुक में जो बदा ने लिखी थी पाई जो आज के टाइम में जिसकी वैल्यू कहा जाता है 3.1 या फिर 22.7 देखिए इस पाई का जिक्र था भारत के एक बौधायन इन्होंने मैथमेटिशियन ये थे और इन्होंने एक बुक लिखी थी सुवा सूत्र में वहां पर पाई का जिक्र मिलता है और इवन पाइथागोरस थ्योरम का जिक्र मिलता है और बाद में देखिए अप स्तम एक और मैथमेटिशियन थे जिसका नाम था अस्थम यह आपको याद रखना है इन्होने देखिए सेकंड सेंचरी बीसी में यह कांसेप्ट दिया था कैसे एक ट्रायंगल के जो एंगल्स है वो एक्यूट एंगल हो सकते हैं ऑब्ज एंगल हो सकते हैं या फिर आप कह सकते हैं एंगल भी हो सकते हैं एक्यूट एंगल कौन से होते हैं 90 डिग्री से कम वाले एक्यूट एंगल होते हैं और ट्यूस एंगल 90 डिग्री से ज्यादा वाले ट्यूस एंगल होते हैं और 90 डिग्री जिनका एंगल होता है वो राइट एंगल है यह सारा कांसेप्ट दिया था अपस थम ने सेकंड सेंचरी बीसी में और उसके बाद में देखिए आर्य भट्ट ने 499 एडी के आसपास यह इंपोर्टेंट है यह आपको याद रखना है देखिए आर्य भट्ट ने 499 एडी के आसपास एक बुक लिखी थी जिसका नाम था आर्य भटिया ज्यादा मुश्किल बुक नहीं है नाम से पता लग जाएगा तो 499 एडी के आसपास इन्होंने बुक लिखी थी जिसमें इन्होंने काफी सारे कांसेप्ट दिए थे मैथमेटिक्स से रिलेटेड एस्ट्रोनॉमी का कांसेप्ट भी इन्होंने दिया था एस्ट्रोनॉमी को पुराने समय में खगोल शास्त्र के नाम से जाना जाता था तो एस्ट्रोनॉमी में क्या होता था एस्ट्रोनॉमी में देखिए वो सब चीजें होती थी जैसे कि आप इसका यूज करते थे किस प्रकार से जो ग्रह है वो मूव कर रहे हैं इन सब चीजों का यूज होता था एक्यूरेट कैलेंडर के लिए या फिर क्लाइमेट या फिर रेनफॉल के पैटर्स पता करने के लिए नेविगेशन के लिए या फिर इवन होरोस्कोप राशि वगैरह को पता करने के लिए भी इसका यूज होता था तो आर्य भट्ट ने अपनी बुक आर्य भटिया में खगोल शास्त्र कांसेप्ट दिया था उसके अलावा देखिए आर्य बुक को चार पार्ट्स में डिवाइड कर सकते हैं ये तो ज्यादा इंपोर्टेंट नहीं है डीप में जाने वाली बात हो गई जैसे नंबर थ्योरी या फिर एस्ट्रोनॉमी देखिए एस्ट्रोनॉमी जो है वो एक प्रकार से काफी प्रचलित थी उस टाइम में आर्य भट्ट के समय में इवन नालंदा की यूनिवर्सिटी जो काफी ज्यादा फेमस है नालंदा की यूनिवर्सिटी में एक ऑब्जर्वेटरी भी एस्टेब्लिश की गई थी और वहां पर काम करते थे आर्य भट्ट तो आप सोच के देखिए कितना ज्यादा जो मैथमेटिक्स था पुराने समय में भी उसके बाद उसके अलावा देखिए आर्य भट्ट और भी ज्यादा काफी सारे कंसेप्ट दिए उन्होंने कांसेप्ट दिया कि धरती जो है वो गोल है पहले काफी सारे मिथ्स थे धरती के बारे में कुछ लोग कहते थे धरती इवन एक प्रकार से रेक्टेंगल की फॉर्म में है कुछ कहते थे स्फीयर की फॉर्म में है तो इन्होंने कांसेप्ट दिया था धरती गोल है बाद में हालांकि ये कांसेप्ट और ज्यादा चेंज हो गया अब देखिए इन्होंने ये बताया कि धरती जो है वो सूर्य के चारों ओर अपनी एक्सिस पे घूमती है और इवन ट्रायंगल का कंसेप्ट भी इन्होंने दिया था अलजेब्रा का कंसेप्ट इन्होंने दिया था अलजेब्रा कौन सा जैसे a स् + b स् ये सारा अलजेब्रा होता है ये सारा कंसेप्ट इन्होंने दिया था कि किसी भी क्वांटिटी को किसी वेरिएबल की फॉर्म में हम रिप्रेजेंट कर सकते हैं और इन्होंने पाई की वैल्यू भी बताई थी पाई की वैल्यू उन्होंने बताई थी सबसे पहले 3.141 काफी एक्यूरेट ये वैल्यू है इवन उस समय में जो ग्रीक्स थे वो भी इस तरह की वैल्यू को एक प्रकार से नहीं डिस्कवर कर पाए थे और दूसरे देखिए जो अरब्स हैं अरब पहले मैथमेटिक्स को कहते थे हिंदी सट के नाम से जानते थे मैथमेटिक्स को क्योंकि देखिए भारत में मैथमेटिक्स का काफी कुछ इवॉल्व हुआ है तो उनके हिसाब से यह मैथमेटिक्स को शुरू शुरू में हिंदी सेट के नाम से जानते थे और बाद में एक प्रकार से जो पूरा वेस्टर्न वर्ल्ड है वो भी काफी ज्यादा आभारी है इंडिया को कि मैथमेटिक्स के काफी सारे कांसेप्ट दिए इंडिया की तरफ से आए और दूसरे देखिए सबसे बड़े जो साइंटिस्ट है वह है ब्रह्मगुप्ता ब्रह्मगुप्ता देखिए आर्य भट्ट तो काफी फेमस थे गुप्ता ईरा में 499 एडी के आसपास में और जो ब्रह्मगुप्ता है यह काफी सारे फेमस थे सेव सेंचरी एडी में यह देखिए ब्रह्मगुप्ता ने अपनी एक बुक लिखी थी जिसका नाम था ब्रह्मगुप्ता सिद्धांतिका तो यह भी नाम से ही पता लग रहा है कोई खास एक प्रकार से फसा नहीं इसके यूपीएससी इस चीज पर देखिए इनकी बुक में सबसे पहले जीरो का जिक्र मिलता है जीरो का जिक्र सबसे पहले कहां मिलता है अगर यूपीएससी इनडायरेक्टली ये पूछे तो हमें बताना है ब्रह्मगुप्ता सिद्धांतिका नाम की एक बुक है जो कि ब्रह्मगुप्ता द्वारा लिखी गई थी वहां पर जीरो का जिक्र सबसे पहले मिलता है और इन्होंने एक प्रकार से नेगेटिव नंबर्स का भी कांसेप्ट दिया उस समय नेगेटिव नंबर्स को एक प्रकार से डेप्ट कहा जाता था डेट डेट का मतलब होता है कर्ज उधारी और पॉजिटिव का मतलब फॉर्च्यून के नाम से जाना जाता था उस समय में यानी नेगेटिव नंबर्स और कांसेप्ट दिया था ब्रह्मगुप्ता ने नेगेटिव नंबर्स को डेट के नाम से जाना जाता था और पॉजिटिव नंबर्स को फॉर्चस के नाम से जाना जाता था नाम से देखिए कांसेप्ट पूरा क्लियर ही है नेगेटिव मतलब आपको किसी को पैसे देने हैं तो वो कर्ज हो गया तो डेट हो गया पॉजिटिव मतलब यानी खुद के आपके पैसे हैं तो वो फॉर्चस यानी संपत्ति हो गई उसके बाद में देखिए महावीर महावीर नाम के यह शख्स थे इन्होंने नाइंथ सेंचुरी बीसी में एक बुक लिखी थी जिसका नाम था गणित सारा एक प्रकार से संग्रह नाइंथ सेंचरी बीसी की बात है की नहीं एडी की बात है बीसी नहीं ना सेंचरी एडी ना सेंचरी एडी की बात इन्होने बुक लिखी थी जिसका नाम था गणित सारा संग्रह यह देखिए जो बुक थी व अर्थमेटिक के बारे में थी अर्थमेटिक मतलब जैसे एलसीएम एचसीएफ या फर एलसीएम इन सब चीजों पर य बुक थी जो लिखी थी महावीर ने ना सेंचरी एडी में नाम है बुक का गणित सारा संग्रह इसके अलावा देखिए जो एक बहुत एक प्रकार से इंपोर्टेंट साइंटिस्ट है वो है भास्कर भास्कराचार्य पूरा नाम इनका है इन्होने देखिए मैथमेटिक्स के काफी सारे कांसेप्ट दिए थे इनकी जो बुक थी वो चार पार्ट में डिवाइडेड थी जैसे कि लीलावती लीलावती को नाम था अर्थमेटिक और दूसरा इन्होने कांसेप्ट दिया था बीजगणित बीजगणित मतलब अलजेब्रा आगे तीसरा नंबर का जो कांसेप्ट है व है एक प्रकार से गोला धय गोला अध्याय में क्या है गोला मतलब एक प्र से स्फीयर य तीसरा इनका पार्ट था बुक का चौथा पार्ट क्या था इनका गृह गणिता ग्रह मतलब होता है प्लेनेट तो प्लेनेट की मूवमेंट को एक प्रकार से एक्सप्लेन कर रहा था इनका चौथा पार्ट तो चार पार्ट्स इन्होंने दिए थे पहला था एक प्रकार से लीलावती जो अर्थमेटिक पर आधारित था दूसरा इनका पार्ट था बीजगणित जो अलजेब्रा पर आधारित था तीसरा इनका पार्ट था गोलाधार पर आधारित है चौथा इनका पार्ट है गृह गणता जो प्लेनेट पर आधारित है यह सारे कंसेप्ट दिए थे भास्कराचार्य ने 12 सेंचुरी एडी में तो याद रखिएगा 12वीं सेंचुरी एडी में भास्कराचार्य ने सारे कंसेप्ट दिए थे उसके अलावा साइक्लिक मेथड भी इन्होंने बताया था इसके अलावा देखिए ये तो हो गया पूरा एंसटिटाइट हो जाता है तो मेडीवेक ने एक प्रकार से मैथमेटिक्स को इंट्रोड्यूस करवाया था अपने शासनकाल में और फैजी ने ट्रांसलेट किया था जो ये भास्कराचार्य की जो बुक थी हमने चार सेक्शन अभी अभी डिस्कस किए बीजगणित वगैरह तो भास्कराचार्य की जो बुक थी उसका एक पार्ट था बीजगणित उसको फैजी ने कन्वर्ट किया था मिडिवल टाइम में फैजी ने तो याद रखिएगा फैजी ने उसको कन्वर्ट किया था अकबर इरा में और आगे जो है वो है देखिए लीलावती लीलावती को ट्रांसलेट किया था जेम्स टेलर ने 19 सेंचुरी के अंदर में तो आप नाम याद रखिएगा जेम्स टेलर इन्होंने ट्रांसलेट किया था लीलावती को और यह इन्होंने किया था 19 सेंचुरी बीसी पे एडी में सॉरी बीसी क्यों निकल रहा है मेरे मुंह से 19 सेंचरी एडी में तो आपको ये याद रखना है यूपीएससी द्वारा इन मुद्दों पर क्वेश्चन पीज काफी इंपोर्टेंट टॉपिक है और काफी बार यूपीएससी के द्वारा फिलोस फीज पर क्वेश्चन पूछे गए हैं जैसे कि न्याय विदांता योगा ये सब चीजें क्या है तो फिलोसोफी डिस्कस करने से पहले थोड़ा सा बैकग्राउंड हम जानने की कोशिश करते हैं एंस थिंकर्स ने कहा कि किसी भी पर्सन को अपने जीवन काल में चार लक्ष्यों की प्राप्ति की कोशिश करनी चाहिए कौन से ऐसे चार लक्ष्य है पहले नंबर पे है धर्म दूसरे नंबर पे है अर्थ तीसरे नंबर पे काम चौथे नंबर पे मोक्ष अब देखिए धर्म का मतलब है कि सोसाइटी के बीच में रूल कैसे होने चाहिए सोसाइटी और स्टेट के बीच में किस प्रकार के रूल होने चाहिए ये सब बातें डिस्कस की गई है बुक का नाम है धर्मशास्त्र में दूसरे नंबर पे देखिए अर्थ यानी इकोनॉमिक रिसोर्सेस को किस प्रकार से यूटिलाइज किया जाए ये सब बातें डिस्कस की गई है अर्थशास्त्र में जो जो कि लिखा गया था कोटिल के द्वारा अब तीसरे नंबर पर देखिए काम यानी फिजिकल प्लेजर कैसे हासिल की जाए ये सब बातें डिस्कस की गई है एक प्रकार से बुक का नाम है कामा सूत्रा में अब चौथे नंबर की बात आती है कि देखिए जीवन में मुक्ति कैसे हासिल की जाए किस प्रकार से जीवन को जीवन में सेल्वेन हासिल की जाए मोक्ष प्राप्त हो मुक्ति कैसे हो ये सब बातों को डिस्कस किया गया है छह फिलॉसफी के अंदर में तो सबसे पहले तो नाम नाम जान लेते हैं कौन सी छह फिलॉसफी है जिनके अंदर में मोक्ष के बारे में डिस्कस किया गया है सबसे पहले है न्याय यहां पर देखिए दूसरे नंबर पर है वशिका तीसरे नंबर पे है संख्या चौथे नंबर पर योगा पांचवे नंबर पर मीमांसा है छठे नंबर पर विदांता है मीमांसा को पूर्वा मीमांसा के नाम से भी जानते हैं विदांता को उत्तर मीमांसा के नाम से भी जानते हैं तो कई बार यूपीएससी के द्वारा नाम भी पूछ लिए जाते हैं कौन सी फिलॉसफी किसके द्वारा दी गई थी तो न्याय फिलॉसफी दी गई थी गौतम के द्वारा वैशिका फिलॉसफी दी गई थी कनडा के द्वारा संख्या फिलोसोफी दी गई है कपिला के द्वारा योगा फिलोसोफी दी गई है पतंजलि के द्वारा पूर्वा मीमांसा फिलोसोफी दी गई है जमिनी के द्वारा और उत्तरा मीमांसा फिलोसोफी दी गई है बदरयाना के द्वारा हालांकि शंकराचार्य और रामानुजा की भी रोल है उत्तरा मीमांसा में यानी जो लास्ट की है विधानता फिलोसोफी में ठीक है नाम आपको याद रखने हैं काफी बार क्वेश्चन पूछ लिए जाते हैं सबसे पहले हम डिस्कस करते हैं देखिए संख्या फिलॉसफी संख्या फिलोस फी काफी सबसे पुरानी फिलॉसफी यह है और देखिए यह फिलोस फी जो है वो डिवाइन पावर को एक प्रकार से नकाती है ये कई बार जैसे कहा जाता है कि जो पूरी दुनिया को बनाया किसने है % यही रहता है ही और और ये कहते हैं कि देखिए पूरी दुनिया को भगवान ने नहीं मनाया यानी गॉड की एसिस्टेंसिया फिलोसोफी को जो सपोर्टर है वो कहते हैं पूरी दुनिया को प्रकृति ने बनाया है यानी नेचर ने बनाया है यानी शुरू में जो इनका रुख था वो मैटेरियलिस्टिक था भौतिकवाद की तरफ ज्यादा था यानी पूरी दुनिया को भगवान ने नहीं बनाया प्रकृति ने बनाया है लेकिन कुछ समय बाद यानी फोर्थ सेंचुरी एडी के आसपास इन्होंने कहा कि पूरी दुनिया को बनाने में ना सिर्फ प्रकृति का रोल है बल्कि स्पिरिचुअलिज्म का भी रोल है यानी अध्यात्म का भी रोल है या यानी बाद में इन्होंने फोर्थ सेंचरी एडी के बाद में इन्होंने कहा कि नेचर प्लस में स्पिरिचुअलिज्म ने मिलके यानी अध्यात्म प्लस में प्रकृति ने मिलके इस पूरी दुनिया को बनाया है तो एक प्रकार से मेटलिस्ट फिलॉसफी थी शुरू में बाद में स्पिच स्पिरिचुअलिस्टिक फिलोसोफी भी हो गई थी और देखिए यह कहते हैं कि देखिए जो इस दुनिया में मुक्ति कैसे हासिल कर सकते हैं यह कहते हैं कि देखिए इस दुनिया में मुक्ति हासिल करने के लिए आपको नॉलेज चाहिए ज्ञान चाहिए और ज्ञान कैसे हासिल किया जा सकता है तो इनके हिसाब से देखिए ज्ञान हासिल किया जा सकता है अनुमान लगा के यानी परसेप्शन से आप किसी भी चीज का अनुमान लगा सकते हैं पर्सीव कर सकते हैं चीजों को परसेप्शन आपकी अपनी अलग होगी दूसरे नंबर पे इन्फ्रेंस से इन्फ्रेंस से आप ज्ञान हासिल कर सकते हो तीसरे नंबर पे ये कहते हैं हियरिंग से यानी सुनने से इन तीनों चीजों से आप ज्ञान हासिल कर सकते हो और ज्ञान आपको एक बार हासिल हो गया तो आपको मुक्ति हासिल हो जाएगी आपको मोक्ष मिल जाएगा इस प्रकार के इनके विचार थे संख्या फिलॉसफी के आगे डिस्कस करते हैं दूसरे नंबर की जो फिलॉसफी है वो है योग फिलोसोफी अब देखिए योग फिलोसोफी क्या कहती है ये कहती हैं देखिए हमारा जो मन है वो इधर-उधर डोल जाता है तो मन को कंट्रोल करने के लिए हमें योगा करना पड़ेगा जब हम नियमित रूप से योगा करेंगे और योगा के सभी आंस को अपनाएंगे तो इससे हम अपने मन को कंट्रोल में रख सकते हैं जब हमारा मन कंट्रोल में रहेगा हमारी कंसंट्रेशन रहेगी तो इस चीज से हम इस जीवन से मोक्ष हासिल कर सकते हैं मुक्ति हासिल कर सकते हैं तो समझ गए आप यानी जो योग फिलोसोफी है जो कि पतंजलि द्वारा दी गई थी ये कहती है कि हमारे मेनली हमें अपनी सेंसेस को कंट्रोल में रखना है और सेंसेस को कैसे कंट्रोल में रख सकते हैं योगा करके यानी प्रणा याम करके या फिर जो दूसरे आसन है वो करके हम अपनी कंसंट्रेशन बढ़ा सकते हैं जिससे हमको मुक्ति मिल जाएगी अब तीसरे नंबर की कौन सी फिलॉसफी है तीसरे नंबर की फिलॉसफी है देखिए न्याय फिलॉसफी यह एक प्रकार से साइंटिफिक फिलोसोफी है कैसे यह फिलोसोफी देखिए सिर्फ लॉजिक प काम करती है सिर्फ और सिर्फ लॉजिक प काम करती है और कहते हैं कि देखिए नॉलेज को कैसे एक्वायर किया जा सकता है इनके हिसाब से देखिए जैसे संख्या फिलोसोफी ने कहा था ठीक उसी के अकॉर्डिंग न्याय फिलॉसफी ने भी कहा कि नॉलेज आप एक्वायर कर सकते हैं प्रपोजिशन से यानी किसी भी स्टेटमेंट की सत्यता आपको जाननी है तो आप पर्सीव कीजिए अनुमान लगाइए देखिए समझिए और सुनिए इन तीन चीजों से यानी इन्फ्रेंस से परसेप्शन से और नॉलेज से इन देखने से इन तीनों चीजों से आप किसी भी स्टेटमेंट की सत्यता जान सकते हैं मैं आपको इस फिलोस फी को एक एग्जांपल से समझाने की कोशिश करता हूं देखिए देखिए एनसीआरटी का ये एग्जांपल है कि पहाड़ों में आग लगी हुई है क्योंकि वहां पे धुआ है अब देखिए यानी कहने का पहले पह पहली स्टेटमेंट ये है कि फायर लगी हुई है माउंटेंस में यानी पहाड़ों में आग लगी हुई है अब दूसरी स्टेटमेंट क्या है वहां पर धुआ उठ रहा है समझ गए स्मोक इन द माउंटेंस अब दो चीजों को एनालाइज कीजिए आप देखिए पहाड़ों में आग लगी हुई है और वहां पर धुआ भी है तो इससे आप क्या अनुमान लगा सकते हो दोनों स्टेटमेंट को आप एनालाइज करोगे तो आपको पता लगेगा कि जहां प फायर है वहां पर धुआ होता है समझ गए तो तीसरी स्टेटमेंट आप क्या हो सकती है आपकी व्हेन एवर देर इज अ फायर देर इज अ स्मोक जहां भी फायर हो वहां स्मोक होगा ये कहां से तीसरी स्टेटमेंट कहां से आई पहली दो स्टेटमेंट से तो आई पहली स्टेटमेंट क्या थी पहाड़ों में आग लगी हुई है दूसरी स्टेटमेंट पहाड़ों में फिलहाल धुआ है जहां पे आग लगी हुई है तो दोनों स्टेटमेंट से क्या स्टेटमेंट निकल रही है इन्फ्रेंस क्या निकाल सकते हैं हम इन्फ्रेंस यही तो निकाल सकते हैं हम जहां भी आग लगती है वहां धुआ है सिंपल सा लॉजिक है जो हम सिलोज में यूज करते हैं हमारे यूपीएससी के सीसेट के पेपर में तो वही चीज यहां पे न्याय फिलॉसफी में यूज होती है तो ये एक साइंटिफिक फिलॉसफी है और अच्छी फिलॉसफी ये है अच्छी बुरी तो मतलब अपने-अपने विचार हो सकते हैं चौथे नंबर की फिलोसोफी जो है वो है वसिस का फिलोसोफी यह देखिए यह तो एक प्रकार से द्रव्य को इंपॉर्टेंस देते हैं यानी ये कहते हैं कि देखिए दुनिया में जितनी भी चीजें हैं ऑब्जेक्ट्स हैं वो एटम से बनी हुई है तो यहीं से एक प्रकार से फिजिक्स का इमरजेंस हुआ इसी फिलोसोफी से इन्होंने फिलोसोफी ने सबसे पहले कहा था कि जितनी भी चीजें हैं वो चार पांच चीजों से मिलके बनी हुई है कौन-कौन सी अर्थ से मिलके बनी हुई है और वाटर से यानी पानी से मिलके बनी हुई है फायर से मिलके बनी हुई है एयर और स्काई यानी इन पांच सभी जो दुनिया में जो ऑब्जेक्ट्स हैं इन पांच चीजों से मिलके बने हुए हैं और यानी कहने का मतलब है कि एटम से मिलक सभी ऑब्जेक्ट्स बने हुए हैं यानी यहीं से फिजिक्स का इमरजेंस होता है और बाद में देखिए इन्होंने थोड़े बहुत अपने साइंटिफिक जो इनका कांसेप्ट है उसको डाइल्यूट भी कर दिया था बाद में वैस इसका फिलॉसफी ने यह भी कहा था कि एक प्रकार से यह बिलीव करते हैं हेवन और साल्वेशन में यानी एक प्रकार से स्वर्ग और मोक्ष जैसी चीजों में ये बिलीव करते हैं इसलिए थोड़ा इनका जो पहले के साइंटिफिक जो कांसेप्ट है वो थोड़ा बहुत गॉड में इन्होंने अपना एक प्रकार से फेथ जिताया था तो डाइल्यूट हो गया था इनका साइंटिफिक जो कांसेप्ट है वो अगली फिलॉसफी कौन सी है देखिए अगली फिलॉसफी जो है वो है मीमांसा फिलॉसफी मीमांसा फिलॉसफी में क्या है देखिए वैसे तो यह भी एक प्रकार से रीजनिंग और इंटरप्रिटेशन में बिलीव करती है और साइंटिफिक फिलोसोफी है लेकिन इन्होंने अपने साइंटिफिक कांसेप्ट का यूज किया वैदिक सैक्रिफाइस को जायज ठहराने के लिए कैसे जैसे मैं आपको एग्जांपल देता हूं देखिए वैदिक सैक्रिफाइस क्या कहते हैं हमें यज्ञ करना चाहिए तो इन्होंने साइंस का यूज करते हुए इन वैदिक सैक्रिफाइस को एक प्रकार से ठीक बताया इन्होंने कहा कि देखिए वैदिक सैक्रिफाइस इसलिए करने चाहिए क्योंकि जो धुआ निकलेगा वो उससे एक प्रकार से एनवायरमेंट को साफ कर देगा देखिए अब आप उस चीज पे मत जाइएगा क्योंकि इससे तो बल्कि एनवायरमेंट पोल्यूटर क्योंकि ये फिर जो ये फिलोसोफी है मीमांसा वाले फिर ये दूसरी बातें कहेंगे कि जो यज्ञ की सामग्री होती है वो इस प्रकार की होती है कि जब धुआं उससे निकलता है कि जो वातावरण में एक प्रकार से कीटाणु है वो मर जाते हैं तो इनका दूसरे टाइप का कंसेप्ट है कि तो कहने का का मतलब ये है कि वैदिक सैक्रिफाइस को जायज ठहराते हैं ये साइंस का यूज करते हुए यानी इनकी जो बातें हैं जो वैदिक सैक्रिफाइस को ये साइंस के कंसेप्ट का यूज़ करते हुए कहते हैं कि वो बिल्कुल जस्टिफाई है जो वैदिक सैक्रिफाइस होते हैं तो इनका क्रिटिसिजम भी यहां पे होता है क्या क्रिटिसिज्म होता है क्रिटिसिज्म देखिए इनका ये होता है इन पर आरोप लगते हैं कि आप एक प्रकार से ब्राह्मण की ब्राह्मण की डोमिनेंस एस्टेब्लिश करने के लिए और उनको फायदा हो उनको फायदा पहुंचाने के लिए क्योंकि देखिए पुराने समय में सैक्रिफाइस कौन करवाता था सिर्फ ब्राह्मण तो करवाते थे सैक्रिफाइस और वर्ना सिस्टम जो और ज्यादा एक प्रकार से डिफरेंट वर्ना के बीच में जो खाई पैदा हो गई वो मीमांसा फिलोसोफी से और भी बड़ी हो गई क्योंकि सारे सैक्रिफाइस तो ब्राह्मण करवाते थे और इन्होंने उन सैक्रिफाइस को जायज ठरवाल करने के लिए और उनको फायदा पहुंचाने के लिए इन्होंने इस प्रकार की फिलोसोफी का सपोर्ट किया तो यह है अगला क्या है अगली सबसे लास्ट फिलोसोफी है विदांता फिलॉसफी देखिए विदांता को आप इस फिलॉसफी को क्या कहते हैं एंड ऑफ वेदास यानी वेदास के सबसे लास्ट की फिलोसोफी है और एंड ऑफ वेदास भी इसको कहते हैं ये कहते हैं कि देखिए अल्टीमेट जो वो ब्राह्मण है ब्राह्मण क्या होता है ब्राह्मण मतलब जो ब्रह्मा भगवान नहीं ब्राह्मण का मतलब यहां पर है अल्टीमेट रियलिटी यानी इंडिपेंडेंट नेचरल आइडेंटिटी काफी एक प्रकार से अपने आप में इंडिपेंडेंट है जो य आइडेंटिटी है ब्राह्मण जिसको कहते हैं अल्टीमेट रियलिटी यही है इसको आप सोल से भी जोड़ के देख सकते हो यानी जो आत्मा है व भी ब्रह्मण है ब्राह्मण है मतलब बुक में ब्रह्मा लिखा हुआ है लेकिन अगर इंटरनेट पर सर्च मारोगे तो ब्रह्मण लिखा आता है तो ब्रह्म ही आप कह लीजिए जो बुक में लिखा हुआ है देखिए ये कहते हैं अल्टीमेट रियलिटी जो है वो ब्रह्मा है और आत्मा को भी ये ब्रह्मा से जोड़ के देख सकते हैं यानी किसी पर्सन को अगर सेल्फ रिलाइजेशन हो जाए अपने आत्मा का ज्ञान हो जाए इनर ज्ञान हो जाए तो इसका मतलब है उसको अल्टीमेट रियलिटी मिल गई यानी किसी भी पर्सन को सेल्फ रिलाइजेशन हो गया कि मैं क्या हूं मैं कौन हूं कहां से आया हूं उसका मतलब है उसको अल्टीमेट रियलिटी का पता लग गया और ब्रह्मा है वो अल्टीमेट रियलिटी है बाकी सब मोह माया है ऐसा इन्होंने कहा और भी कुछ बातें इन्होंने कही कौन सी बातें इन्होंने कही ये इन्होंने कहा कि देखिए इस लाइफ में पिछली लाइफ के एक प्रकार से जो कर्म आपने पिछले जीवन काल में किए थे उनका फल आपको इस जीवन में भी भुगतना पड़ेगा समझ गए तो इन्होंने यह बात कही इन्होंने कहा कि देखिए ये लाइफ साइकिल चलता रहता है यानी पिछले जन्म में अगर आपने कोई पाप या पुण्य किया तो उसका फल आपको इस जीवन में भी मिलेगा इस तरह की इन्होंने बात कही तो देखिए दो मुख्य पसंस है जिन्होंने इस फिलोस फी को सपोर्ट किया एक है शंकर जिन्होंने शंकराचार्य जिन्होंने एक प्रकार से नाइंथ सेंचुरी में सपोर्ट किया उसके बाद में है रामानुजा और इन्होंने किया 12थ सेंचुरी में दोनों की अलग-अलग ढंग से सपोर्ट किया इन्होंने शंकराचार्य ने कहा कि देखिए जो भगवान है वो निर्गुण है कोई एटिबल नहीं है एक प्रकार से ब्रह्मा के और जो दूसरे रामानुज खा उन्होंने कहा कि ब्रह्मा को हासिल किया जा सकता है एक प्रकार से भक्ति से या डिवोशन से जब आप पूरी भक्ति करोगे तो उससे आप ब्रह्मा को हासिल कर सकते हो यानी इनर ज्ञान को हासिल कर सकते हो और जो भी उन्होंने बात कही एक इंडिपेंडेंट नेचुरल आइडेंटिटी उसको हासिल कर सकते हो अब देखिए ये तो मुख्य रूप से छह फिलोसोफी थी इसके अलावा देखिए एक दो चीजें और भी इंपोर्टेंट है अब देखिए एक और जो पर्सन थे चार्वक चार्वक ने एक प्रकार से यहां पे देखिए चार्वक ने एक अपनी फिलॉसफी दी जिसका नाम है लोकायत लोकतक सकते हैं और इंग्लिश में वैसे लोकायत कह सकते हैं कुछ भी कह सकते हैं आप अब देखिए इन्होंने कहा कि इन्होंने कहा कि देखिए जीवन है एक ही जीवन है और जो बाकी छह फिलोसोफी में जिस प्रकार से बात की गई है किस प्रकार से मोक्ष हासिल किया जा सकता है या फिर इस जीवन और मरन के साइकल से छुटकारा पाया जा सकता है तो चार्वक ने तो ये कहा कि ऐसा कोई साइकिल है ही नहीं जो जीवन है एक ही जीवन है और जो भी आपको जिंदगी जीनी है इसी जीवन में जीनी है और आप खाओ पियो एस करो और कोई भी आप इस प्रकार से कोई भी आप मन में बात ना रखो कि अगर मैं ये करूंगा तो वो हो जाएगा ये करूंगा तो अगले जीवन में मुझे फल मिलेगा क्योंकि जीवन है सिर्फ यही है और भगवान जो भगवान को तो इन्होंने माना ही नहीं और इन्होंने कहा कि भगवान जैसी कोई आइडेंटिटी है ही नहीं तो ये सब बातें इन्होंने कही और इन्होंने वही बात सेम कही कि देखिए जो रिचुअल्स वगैरह यानी जो सैक्रिफाइस किए जाते हैं वो तो ब्राह्मण जो है वो अपने लिए करते हैं अपने वर्ना को ऊपर रखने के लिए करते हैं और उनको इस से फायदा होता है इसीलिए वो ये सारे जो सैक्रिफाइस हैं वो करवाते हैं यानी सैक्रिफाइस करने की आवश्यकता है ही नहीं और क्योंकि जीवन है वो सिर्फ यही जीवन है और मोक्ष जैसी कोई चीज है ही नहीं तो ऐसा इन्होंने कहा चार्वक ने इन सभी फिलोस फीज को देखिए आप यूज कर सकते हैं अपने एथिक्स के पेपर में भी और काफी इंपोर्टेंट ये टॉपिक है यूपीएससी के द्वारा प्रीलिम में भी इसपे काफी बार क्वेश्चन पूछा जाता है वेदिक लिटरेचर के बारे में काफी इंपोर्टेंट टॉपिक है यूपीएससी के द्वारा काफी बार इस पे क्वेश्चंस पूछे गए हैं और वैसे देखिए आर्ट एंड कल्चर का हमारा ऑलमोस्ट ये सेकंड लास्ट लेक्चर है है और इसके बाद सिर्फ केमिस्ट्री और फिजिक्स या फिर साइंस की कुछ चीजें किस प्रकार से इवोल्व हुई एंस रा से हमारा सिर्फ वो टॉपिक बच जाएगा अब देखिए अब देखिए वैदिक लिटरेचर अगर हम पढ़ते हैं तो सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि जो वेद शब्द है कहां से आता है वेद शब्द आता है विद से विद का मतलब होता है नॉलेज नॉलेज मतलब ज्ञान अब देखिए वेद को आप वैसे तो कई प्रकार से डिवाइड कर सकते हैं लेकिन जो दो इसके मुख्य प्रकार है वो है श्रुति और स्मृति श्रुति क्या है श्रुति का मतलब होता है देखिए बेस्ट ऑन हियरिंग यानी सुनने पर आधारित जो आपने वेद कंपाइल किए थे उन्हें कहते हैं श्रुति और स्मृति का मतलब होता है बेस्ड ऑन मेमोरी यानी यदा पर आधारित और वैसे देखिए और कौन-कौन से पार्ट्स में वेद को आप डिवाइड कर सकते हैं ये जैसे एपिक्स के आधार पर रमायण महाभारत या फिर पुरानस के आधार पर पुराण मतलब जैसे भगवत पुराण विष्णु पुराण इसके अलावा देखिए अगमस और दर्शन के आधार पर भी आप वेद को डिवाइड कर सकते हैं और देखिए दर्शंस जो है इसके सारे पार्ट्स है मतलब इन इन चीजों में वेद डिवाइड ध देखिए दर्शन तो हमने डिस्कस किए थे फिलोसोफी जैसे न्याय वैसे इसका संख्या योग पूर्वा मीमांसा उत्तरा मीमांसा ये पिछली वीडियो में हमने सारी फिलोसोफी डिस्कस की थी काफी इंपोर्टेंट है और नहीं आपने वीडियो देखी हो तो देख लीजिएगा अब देखिए जो मुख्यत चार स्कूति को अब चार वेदों में डिवाइड करते हैं चार वेद आपने सुना ही होगा ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद इसके अलावा दूसरे पार्ट्स भी हैं वेद के जैसे ब्राह्मण या फिर आप अरण्या काज उपनिषद क्या मतलब है इन सबका अब वीडियो के अगले पार्ट में हम ये सब जानेंगे उसके अलावा देखिए वेदों के उपवेद भी हैं और वेदंगास भी हैं अब देखिए सबसे पहले बात आती है वेद हम डिस्कस करते हैं कौन से चार वेद हैं तो वेदों को डिस्कस करते हैं सबसे पहले देखिए ऋग्वेद आता है ऋग्वेद के बारे में ऐसा भी कहा जाता है सबसे ओल्डेस्ट रिलीजियस टेक्स्ट में से एक है ऋग्वेद के टेक्स्ट 1700 बीसी के आसपास ऋग्वेद को कंपाइल किया गया था यहां पे देखिए और 1028 भजन है इसके अंदर में हिम्स का मतलब होता है भजन 1028 भजन है और ऋग्वेद को देखिए 10 मंडल्स में भी डिवाइड किया गया और जैसे देखिए एग्जांपल के तौर पर जो थर्ड मंडल है वहां से गायत्री मंत्र लिया गया है गायत्री मंत्र एक प्रकार से सन गोड सावित्री की स्तुति में गाया गया है उसके अलावा देखिए और जो इंपोर्टेंट मंडलस है जैसे उदाहरण के तौर पर जो दवा मंडल है दव मंडल से जो वर्ना का कांसेप्ट आता है क्या आपको पता है इस चीज का कि वर्ना का जो कांसेप्ट है कि जैसे हिंदू धर्म में सोसाइटी को चार वर्ना में डिवाइड किया जाता है जैसे ब्राह्मण उसके बाद में क्षत्रिय वैश्य और शुद्रास ऐसा कहा जाता है देखिए वेदा के 10वें मंडल में ऐसा कहा गया था जो ब्रह्मा है उनके अगर ब्रह्मा की आप पूरी बॉडी को देखोगे तो देखिए मुंह से निकलते हैं ब्राह्मण और हाथों से यानी आम से निकलते हैं क्षत्रिय थाई से निकलते हैं वेश्य और लेग से निकलते हैं फीट से निकलते हैं शुद्र तो ऐसा कंसेप्ट निकलता है ऋग्वेद के 10वें मंडल से जिसका नाम है पुरुष सुक्त बय याद रखिएगा कई बार इनडायरेक्टली यूपीएससी के द्वारा क्वेश्चन पूछ लिया जाता है जैसे कि ये चार वरनास कांसेप्ट कौन से वेद से आया या फिर ऋग्वेद के कौन से मंडल से आया कौन से मंडल ये तो काफी डिफिकल्ट क्वेश्चन आ जाएगा देयर इज अ वेरी लेस प्रोबेबिलिटी दैट दिस क्वेश्चन मे बी आस्क बट यू हैव टू अवेयर अबाउट दैट हाउ दिस पुरुष सुक्त कांसेप्ट इवॉल्वड सो दिस इवोल्व फ्रॉम द ऋग्वेद आगे क्या है देखिए आगे है सामवेद ये काफी इंपोर्टेंट है देखिए सामवेद में क्या है देखिए सामवेद का मतलब होता है जो चीज हमारे दिमाग में शांति लाती है तो क्या है सामवेद में सामवेद शब्द जो निकलता है वो निकलता है देखिए समन से समन से साम निकलता है इसका मतलब होता है मेलोज मेलोडी का मतलब आपको पता ही होगा राग यानी गाना मेलोडी यह सब चीजें होती है सामवेद में यानी देखिए अब आपको पता है जैसे ऋग्वेद में काफी सारे लोक्स हैं भजनस हैं अब सैक्रिफाइस करते समय युग यग में आहुति देते समय कैसे उनका उच्चारण करना है कैसे एक प्रकार से रिदम में उनका उच्चारण करना है प्रोनंसिएशन को करना है वो सब चीजें आती है सामवेद में ये हमने म्यूजिक पढ़ा था तब भी डिस्कस किया था कि जो म्यूजिक का इवोल्व एक प्रकार से ओरिजिन हम ट्रेस कर सकते हैं वो सामवेद से ट्रेस कर सकते हैं और जो देखिए कई बार ऐसा इनडायरेक्टली पूछ लिया जाता है एक उदगात्री नाम के पुरोहित थे उदगात्री उनका नाम था यह पुरोहित थे इन्होंने सबसे पहले यह भजन सुनाए थे और ध्रुपद या राग जो है ध्रुपद राग समवेद में मिलती है हमें यह भी हमें याद रखना है आगे क्या है आगे देखिए यजुर्वेद है यह भी काफी इंपोर्टेंट है सबसे पहले तो आप याद रखिएगा यजुर्वेद को आप दो पार्ट में डिवाइड कर सकते हो एक है सुकल वेद और दूसरा है कृष्ण वेद यह देखि इसमें प्रोसीजर होता है यानी जो भी एक प्रकार से आपको सैक्रिफाइस करने हैं यग में आहुति देनी है पूजा करनी है भगवान की तो प्रोसीजर क्या होना चाहिए वो सारा जो प्रोसीजर है वो इसमें होता है यजुर्वेद में किस प्रकार से क्या परफॉर्मेंस कैसी होनी चाहिए सैक्रिफाइस करते वक्त वो सारे रूल्स रेगुलेशंस आते हैं यजुर्वेद के अंदर में आगे है देखिए अथर्ववेद ये भी काफी इंपोर्टेंट वेद है अथर्ववेद जो है एक प्रकार से अपने आप में सबसे छोटा वेद भी इसे कहा जाता है देखिए पुराने समय में जो टोना टोटके होते थे एक प्रकार से जैसे बुराइयों को भगाने के लिए जैसे सिंपल लेमंड टर्म्स में कहते थे पुराने टाइप में कि भूतनी आ गई शरीर के अंदर में गांव में जैसी लैंग्वेज यूज करते हैं देखिए आज भी यूज करते हैं तो काइंड ऑफ जो टोने टोटके होते थे वो सब चीजें एक प्रकार से कंपाइल की गई थी अथर्ववेद के अंदर में तो काफी इंपोर्टेंट है यह भी आपको याद रखना है और आगे देखिए आता है एक प्रकार से उपवेद अब देखिए आप वेदों को चार इसके सब पार्ट्स में डिवाइड कर सकते हैं उनको कहते हैं उपवेद उपवेद का मतलब एक प्रकार से होता है टेक्निकल नॉलेज यानी मान लीजिए वेदों से रिलेटेड कोई टेक्निकल नॉलेज है किसी सब्जेक्ट की तो वो उपवेद में कंपाइल की गई है जैसे उदाहरण के तौर पर देखिए जो धनुर्वेद है यानी तीर कमान जो है आपने रामायण में देखा होगा जो तीर कमान धनुर्वेद जो है वो एक प्रकार से जुड़े हुए हैं ऋग्वेद से उसी तरह देखिए जो सपत वेदा है वो एसोसिएटेड है यजुर्वेद से म्यूजिक और ये सब जो चीजें गांधर्व वेद के अंदर में आते हैं वो काइंड ऑफ उपवेद है सामवेद के और मेडिसिन वगैरह यानी दवाई वगैरह की जो चीजें हैं वो आती है अथर्ववेद के अंदर में तो हमें ये याद रखना है कई बार इनडायरेक्टली यूपीएससी के द्वारा क्वेश्चन पूछ लिया जाता है मैच द फॉलोइंग दे देते हैं जैसे इस साइड वेद दे देंगे इस साइड उपवेद दे देंगे और कहेंगे कि मैच द फॉलोइंग कीजिए कौन सा ऋगवेद से कौन सा जुड़ा है और कौन सा उपवेद जो है वो सामवेद से जुड़ा है तो हमें याद रखना है दोबारा से आपको रिवाइज करवा देता हूं देखिए धनुर्वेद ऋग्वेद से जुड़ा है सताप वेदा जो है वो यजुर्वेद से जुड़ा है गंधर्व वेद जो है वो सामवेद से जुड़ा है आयुर्वेद जो जुड़ा है वो अथर्ववेद से जुड़ा है तो याद रखने हैं हमें ये सारे के सारे आगे क्या है आगे देखिए है उपनिषद उपनिषद में क्या है देखिए उपनिषद का मतलब होता है नॉलेज जब कोई शिष्य अपने गुरु के नजदीक बैठ के नॉलेज हासिल करता है उस चीज को कहते हैं उपनिषद निषद का मतलब होता है नजदीक जब यानी आप अपने टीचर के नजदीक बैठ के शिक्षा हासिल कर रहे हो ज्ञान हासिल कर रहे हो उस चीज को आप कह सकते हो उपनिषद अब देखिए इनको एक प्रकार से वेदार भी कहते हैं एंड ऑफ द वेदास आप इनको कह सकते हैं वेदों के सबसे लास्ट में यह पाट आता है तो इसलिए इनको कई बार एंड ऑफ द वेदास भी कहते हैं वेद रिता भी कहते हैं इनमें देखिए एक प्रकार से आध्यात्मिक और फिलोसोफी कंटेंट होता है यानी वो सब चीजें जैसे कैसे कर्म करने चाहिए अगर कर्म अच्छे नहीं करोगे तो इसका क्या फल होगा आत्मा क्या है क्या शरीर अमर है इस यूनिवर्स की उत्पत्ति कैसे हुई अंत कैसे होगा ईश्वर है या नहीं है ये सारे जो डिफिकल्ट क्वेश्चंस है वो आपको मिलेंगे उपनिषद के अंदर में तो काफी इंटरेस्टिंग है उपनिषद आप जरूर पढ़िए अरे नहीं नहीं मत पढ़िए यार मतलब बहुत कुछ है पढ़ने को अभी पेपर क्लियर करना है उसके अलावा देखिए जो 108 उपनिषद है और 820 से लेके एक प्रकार से 500 बीसी तक के बीच में इन्हें कंपाइल किया गया था और आगे आते हैं देखिए ब्राह्मण ये ब्राह्मण क्या होते हैं देखिए सिंपल सी भाषा में देखिए जो वेद होते हैं ना इनकी जो लैंग्वेज होती है काफी डिफिकल्ट होती है अब एक प्रकार से आम लोगों तो ये समझ में आएगी नहीं तो जो ब्राह्मण है काइंड ऑफ वेदों के ऊपर में कमेंट्री है जैसे ऋग्वेद की लैंग्वेज यजुर्वेद की लैंग्वेज सामवेद अथर्ववेद इनकी लैंग्वेज को एक्सप्लेन करने के लिए ये लिखे गए थे ब्राह्मण काइंड ऑफ देखिए जैसे आप एग्जांपल ले सकते हैं क्या ले जैसे देखिए मनाल का ले लीजिए यूपीएससी की कई चीजें काफी डिफिकल्ट होती हैं इकोनॉमिक्स के जो कांसेप्ट है काफी डिफिकल्ट है लेकिन मनाल उन सभी चीजों को कितना आसान चीजों में समझाते हैं तो काइंड ऑफ वो एक ब्राह्मण हैं यूपीएससी को अगर आप वेद मानोगे तो मनाल हुए ब्राह्मण चीजों को समझा रहे हैं कमेंट्री कर रहे हैं वो अब आगे क्या है अब देखिए ब्राह्मण के बारे में बात करें तो सबसे इंपोर्टेंट जो है वो सताप ब्राह्मण है जो एक उपवेद भी है जो कि यजुर्वेद से अटैच है जो हमने अभी-अभी देखा था उसके बाद क्या आता है उसके बाद में देखिए आता है अरण यका यह क्या है देखिए इसका मतलब होता है काफी टाइम काफी बार ऐसा होता है देखिए जो पुरोहित वगैरह है जो विद्वान है वह जंगल में रह रहे होते हैं फॉरेस्ट में रह रहे होते हैं और जब देखिए फॉरेस्ट में रह रहे पुरोहितों से विद्वानों से शिक्षा हासिल की जाती है जो चेले होते हैं विद्वानों से जब जंगल में शिक्षा हासिल करते हैं तो उस पूरी चीज को कहते हैं अरण्य काज याद रखिएगा यह भी काफी इंपोर्टेंट है और एक यह भी देखिए काइंड ऑफ इसमें मैजिकल पावर कंपाइल की गई है यह भी ब्राह्मण का कंक्लूजन पार्ट है जो एक प्रकार से आपने देखा होगा जो उपनिषद है वो भी कंक्लूजन पार्ट है वेदास का जो अरण अकास है ये ब्राह्मण का कंक्लूजन है इसमें भी काइंड ऑफ एक प्रकार से मैजिकल पावर्स जो फिलोस फिकल कांसेप्ट है वही है और ऋषिस के बारे में नॉलेज के बारे में काफी कुछ डिस्कस किया गया है आरंग काज के बारे में अब आगे आता है देखिए वेदंगा वेदंगा क्या है देखिए वेदंगा को अगर आसान भाषा में बताएं तो देखिए जो वेद कंपाइल किए गए थे वो 1700 बीसी के आसपास कंपाइल किए गए थे लेकिन अब देखिए चलते-चलते फर्स्ट मिलियन बीसी आ गया था यानी 1000 बीसी से लेके फर्स्ट बीसी के बीच का जो पीरियड है उसको फर्स्ट मिलियन बीसी आप कह सकते हैं यानी ऑलमोस्ट हजार सालों के बाद में पूरी सरकमस्टेंसस चेंज हो गई परिस्थितियां चेंज हो गई यानी 1000 साल के बाद जो लोग हुए उनको वेद की लैंग्वेज नहीं समझ में आ पा रही थी काफी डिफिकल्ट उनको लैंग्वेज लग रही थी और कैसे वेद को समझा जाए उस चीज को आसान बनाने के लिए यह वेदंगा का कांसेप्ट आया था छह सब्जेक्ट्स वेदंगा के हैं जैसे फोनेटिक्स यानी शिक्षा क्या है पोएटिक चंदास ग्रामर व्याकरण और एटमो जीी लिंग्विस्टिक निरकु रिचुअल्स ये सारी चीजें हैं काइंड ऑफ बस नाम नाम इसके पूछे जा सकते हैं इनको डिटेल में आपको पढ़ने की आवश्यकता कतई नहीं है तो बस इनके नाम याद रख लीजिए कौन-कौन से नाम है कल्प कल्प के अंदर में होते हैं देखिए रिचुअल्स उसके बाद में आता है व्याकरण व्याकरण मतलब ग्राम ग्रामर के बाद होते हैं निरकु निरकु का मतलब एटमो जीी चंदा का मतलब मैट्रिक्स ज्योतिष का मतलब एस्ट्रोनॉमी और उसके बाद में देखिए एक और जो बात आपको याद रखनी है वो ये रखनी है देखिए जो एक प्रकार से पानि नाम की एक फेमस बुक है वो संस्कृत में में है और वो लिखे गई थी देखिए व्याकरण है काइंड ऑफ और वो अष्टाध्याई के द्वारा लिखे गई थे कई बार अटा क्वेश्चन पूछ लिया जाता है अष्टाध्याई के द्वारा पानि नी बुक लिखी गई थी आगे क्या है आगे देखिए पुराण है पुराण तो देखिए सिंपल सा कांसेप्ट है कोई खास नहीं पुराण तो देखिए पुराने समय में कई चीजों के बारे में ये होते थे जैसे कोई भी मान लीजिए लेजेंड्स जैसे हमारे किरदार हैं जैसे कोई भी मिथल जिकल किरदार भी हो सकता है या फिर जो अवतार हुए थे जैसे विष्णु के अवतार हुए थे जैसे कृष्ण भगवान राम इन सब चीजों के बारे में देखिए 18 पुराण है वो कंपाइल कि गए हैं उनकी सारी स्टोरीज है जैसे विष्णु पुराण में विष्णु की सारी स्टोरीज है भगवत पुराण में कृष्ण की सारी स्टोरीज है तो यह है पुराण तो पुराण आपसे पूछे तो आप क्या बताओगे काइंड ऑफ य मिथल जिकल या फिर लेजेंड्स कोई लोकल देवताओं के बारे में इस प्रकार से जो स्टोरी कंपाइल की गई थी वो 18 पुराणों में है तो उनको पुराण कहते हैं उसके अलावा देखिए श्लोक कितने हैं यह सब चीजें इंपोर्टेंट नहीं है इनको आप मत देखिएगा आगे क्या है आगे देखि स्मृति स्मृति इंपोर्टेंट है क्या है य स्मृति देखि ति ये है कि काइंड ऑफ सोसाइटी को किस प्रकार से गवर्न करना चाहिए सोसाइटी के बीच में किस प्रकार के रूल एंड रेगुलेशंस होने चाहिए कानून किस प्रकार से चलने चाहिए अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की हत्या करेगा तो क्या सजा उसको मिलनी चाहिए इसी सभी सभी चीजों को एक प्रकार से बेस्ट बनाकर स्मिज का निर्माण किया गया था यानी सोसाइटीज और सिटीजंस के बीच में डिफरेंट सिटीजंस के बीच में किस प्रकार का रिलेशन होना चाहिए उसको गवर्न करने के लिए किस प्रकार से रूल से सोसाइटी चलनी चाहिए उस चीज के लिए है स्मृति अब देखिए जैसे सबसे इंपोर्टेंट तो आपने देखा होगा धर्मशास्त्र एक प्रकार से धर्मशास्त्र काफी इंपोर्टेंट स्मृति है उसके अलावा और भी काफी सारी स्मृति जो है वो इंपोर्टेंट है जैसे मानव धर्मशास्त्र या फिर विष्णु धर्मशास्त्र और जो बाद में जो एक इंपोर्टेंट स्मृति कंपाइल की गई थी वो थी मित सारा मतक सारा तो ये आज इस वीडियो में मेनली तीन रिलीजस हम डिस्कस करेंगे जोरा निज्म जूडा इज्म और इस्लाम इस वीडियो में हम सखि ज्म नहीं डिस्कस करने जा रहे हैं तीन रिलीजन पर हमारा फोकस रहेगा देखिए सबसे पहले डिस्कस करते हैं जोरा निज्म और सबसे पहले जो बेसिक फैक्ट्स हैं किसके द्वारा इस धर्म की स्थापना की गई थी इनका नाम है जोरार या फिर जोरात उस्त्रा इनके द्वारा जोरा रिज्म की स्थापना की गई थी पारसी धर्म पारसी नाम से आपको आसानी होगी समझने में पारसी लोगों के द्वारा इस धर्म को फॉलो किया जाता है 600 700 बीसी के आसपास इस धर्म की स्थापना की गई थी जिसे पारसी लोग फॉलो करते हैं तो देखिए यह टाइमलाइन जानने की आवश्यकता इसलिए है कई बार यूपीएससी क्रोनोलॉजी पूछ लेती है कि कौन सा धर्म पहले आया कौन सा बाद में आया जैसे कई बार ये पूछ लेते हैं कि जैसे इस्लाम आया वो 622 एडी के आसपास आया जो सखि जम है वो एक प्रकार से 1600 एडी के आसपास आया तो कई बार क्रोनोलॉजी पूछ ली जाती है तो थोड़ा सा हमें ध्यान रखने की आवश्यकता है क्या मानते हैं जो पारसी लोग हैं वो देखिए एक सुप्रीम गड में विश्वास रखते हैं जिसका नाम है अहरा मजदा और एक प्रकार से देखिए इसमें गॉड और एविल का कांसेप्ट है जैसा हमने कई तरह के डांसस में डिस्कस किया था वैसे ही इस धर्म में कांसेप्ट है गॉड और एविल का गॉड है वो है अहर मजदा और जो एविल है वो है अंगरा मयूर नाम देख लीजिए अंगरा मयूर जो है वो बुराई यानी शैतान आप इन्ह कह सकते हैं और जो देखिए पारसी लोग जो है वो मानते हैं कि अंत में एक प्रकार से है वो अहर मजदा यानी जो गड है उनकी जीत होगी और बुराई है वह हार जाएगी यानी जो शैतान है उसकी हार होगी उसके बाद क्या है उसके बाद में देखिए इस धर्म में जो रेनिज्म में आग का एक बहुत बड़ा रोल है इस पे क्वेश्चन पूछा था यूपीएससी ने 2013 में व्हाट इज द रोल ऑफ फायर इन जरे निज्म तो काफी इंपोर्टेंट मेंस में क्वेश्चन पूछा था लेकिन प्रीलिम में भी पूछा जा सकता है कि क्या रोल है फायर का देखिए आग का बहुत बड़ा रोल है और ऐसा कहा जाता है जो आग यानी फायर जो है वह एक प्रकार से मैसेंजर का काम करती है भगवान और लोगों के बीच में और इसीलिए जो पारसी जो लोग हैं काफी पूजा करते हैं आग की ना सिर्फ आग की बल्कि धरती और हवा की भी काफी ज्यादा पूजा की जाती है इस पारसी धर्म में और उसके अलावा देखिए इवन यह कहते हैं कि जो डेड बॉडीज होती है वह पूरे एनवायरमेंट को पोल्यूटर हैं और एक प्रकार से बुराई का सिंबल है जो डेड बॉडीज होती हैं और इसलिए यह डेड बॉडीज को एक प्रकार से जलाते नहीं है यह एक प्रकार से खुले में छोड़ दिया जाता है और गिद वगैरह जो है उस बॉडी को एक प्रकार से डिके करते हैं और डिग्रेड करते हैं और यह आपने सुना भी होगा साइलेंस ऑफ टावर के बारे में आपने सुना होगा यह साइलेंस ऑफ टावर है मुंबई में है तो पारसियों के द्वारा इस साइलेंस ऑफ टावर को यूज किया जाता है डेन बॉडीज को डिग्रेड करने के लिए यानी खुले में छोड़ दिया जाता है बाद में जो गिद यानी वल्चरस जो होते हैं उस बॉडी को डिके करते हैं तो और देखिए अगर देखिए इंडिया के दृष्टिकोण से देखें तो एक एक प्रकार से इनका पर्सीक्यूशन पहले ये ईरान में इस धर्म की स्थापना की गई थी लेकिन बाद में पर्सीक्यूशन स्टार्ट हुआ पारसियों का तो वो इंडिया के वेस्टर्न कोस्ट पर आए संजन कोस्ट ये कुछ नाम है कोस्ट का जहां पर ये आए थे और वहां पर देखिए एक छोटी सी स्टोरी है आपको याद रखने में आसानी होगी मैं आपको बताता हूं देखिए ये जब वेस्टर्न कोस्ट पर आए थे तो वहां पे जडी राना एक राजा रूल कर रहे थे तो इन्होंने रिफ्यूजी मांगा रिफ्यूजी स्टेटस मांगा हमारे वेस्टर्न कोस्ट में वहां प जो राजा रूल कर रहे थे उनसे तो राजा ने एक प्रकार से क्या किया सिंबल के तौर पे एक दूध से भरा हुआ कटोरा उनको दिया काइंड ऑफ यह जेस्टर था कि देखिए ऑलरेडी जो यह लैंड है यह भरा हुआ है और यहां पे आपके लिए जगह नहीं है तो फिर उन्होंने क्या किया पारसियों में कोई समझदार व्यक्ति थे उन्होंने क्या किया दूध से भड़े हुए कटोरी में एक प्रकार से चीनी के कुछ दाने फेंक दिए यह एक स्टोरी है इसे याद रखने में आसानी होगी चीनी के कुछ दाने फेंके तो वह दूध में भरा हुआ जो कटोरा था व चीनी पिघल गई उसके अंदर में तो काइंड ऑफ राजा को समझ में आ गया कि जो पारसी हैं उनसे डरने की ता नहीं है और यहां पर यह लोकल रीति रिवाजों के हिसाब से रहेंगे और यही हुआ बाद में भी देखिए पारसियों ने क्या किया यहां पर जो भारत में वो रहे तो सरी लेकिन एक प्रकार से उन्होंने अपना दो दो तरफ उन्होंने अप्रोच अपनाई उन्होंने अपना कल्चर भी सहेज के रखा लेकिन लोकल रीति रिवाज या फिर लोकल जो पहनावा मान लीजिए लोकल परंपराएं मान लीजिए कस्टम मान लीजिए प्रैक्टिसेस मान लीजिए उनको भी अपनाया तो पारसी आपने देखा होगा कि देखिए जो काफी सारे पारसी फेमस है इंडिया के अंदर में जैसे रतन टाटा या फिर बोमन ईरानी या फिर जो सारे सैम मैनक सा ये सारे पारसी हैं और इवन जो ईस्ट इंडिया कंपनी जब हमारे देश में आई तब तब से काफी ज्यादा इन्होंने ट्रेड प्रैक्टिसेस अपनाई और काफी अमीर हो गए धीरे-धीरे करके ये और इवन इन्होंने ही सबसे पहले भारत के अंदर में वेस्टर्न प्रैक्टिसेस को अपनाया ये देखिए ये देखिए ये काइंड ऑफ मैप है कहां पारसियों की पॉपुलेशन इंडिया में कितनी है तो ज्यादा तो सारा कुछ याद रखने की आवश्यकता नहीं है लेकिन देखिए चिंता की बात एक ये है कि पारसी की पॉपुलेशन काफी कम हो रही है इंडिया के अंदर में काफी सारे रीजंस इसके लिए रिस्पांसिबल है एक रीजन तो यूं कहा जाता है कि जो ज्यादातर जो पारसी हैं वो सिटीज यानी शहरों के अंदर में रहते हैं तो इसलिए जो कल्चर है वह शहरों का ज्यादा है इसलिए कैरियर को ज्यादा तवज्जो दी जाती है बजाय के फैमिली को और इसके अलावा जो दूसरे रीजन से ऐसा भी कहा जाता है कि कन्वर्ट नहीं करते या फिर इंट्रा कम्युनिटी में ज्यादा शादी को तवज्जो देते हैं तो जेनेटिक प्रॉब्लम आ जाती है आगे जाके तो इसके लिए देखिए इनकी पॉपुलेशन को ठीक करने के लिए सरकार ने एक स्कीम भी लच करी थी जिसका नाम है जिओ पार्सी तो ऐसा क्वेश्चन आ सकता है कि कौन सी मिनिस्ट्री ने ये स्कीम लच की थी तो देखिए इनकी को कंटेन करने के लिए ताकि और ज्यादा कम ना हो यह स्कीम लच की गई थी माइनॉरिटी अफेयर मिनिस्ट्री के द्वारा तो याद रखिएगा ये इंपॉर्टेंट है उसके बाद अगला जो रिलीजन है वो है जूडा इज्म जूज के द्वारा इसे फॉलो किया जाता है और देखिए ऐसा भी कहा जाता है यह संसार का सबसे पुराना मोनोथेस्ट कि रिलीजन है जैसे वैसे तो सबसे पुराना जो रिलीजन है सनातन धर्म को यानी हिंदू धर्म को सबसे पुराना कहा जाता है लेकिन मोनोथेस्ट नहीं है काफी सारे देवी देवता हैं लेकिन मोनोथेस्ट रिलीजन की बात करें तो जूडा इज्म सबसे पुराना है और कहां से इसके बेसिक क्लास निकलते हैं हेब्राइक के पहली जो पांच बुक्स हैं तोरा वहां से इसके रूल्स इस धर्म के रूल्स एंड रेगुलेशंस निकलते हैं बेसिक क्लास निकलते हैं तो तोरा के बारे में जान लेते हैं यूपीएससी इस पे क्वेश्चन पूछ सकती है कि बेसिक बुक कौन सी है जो जूडा इज्म की तो तोरा याद रखिएगा प्राइमरी डॉक्यूमेंट है जूडा इजम के बारे में ये और टीचिंग्स है सारी की सारी भगवान की टीचिंग्स है गॉड की टीचिंग्स है कैसे जो जूज हैं उनको सोचना चाहिए कैसे समझना चाहिए और लाइफ क्या है डेथ क्या है ये तमाम तरह की चीजें हैं वो है तोरा में और 600 13 कमांडेंट्स है लेकिन उसमें से 10 सबसे मेन है कहां से आए वो अगली स्लाइड में हम जानेंगे देखिए अब्राहम अब्राहम का एक अहम रोल है जूडा इजम में अब्राहम को एक प्रकार से जूश लोगों का फादर भी जाना जाता है और देखिए काइंड ऑफ एक कांट्रैक्ट हुआ था गॉड के बीच में और अब्राहम के बीच में और अपना जो एक प्रकार से श्रद्धा अर्पित करी थी भगवान के प्रति अब्राहम ने और इसीलिए गॉड ने आशीर्वाद दिया था अब्राहम को और बाद में देखिए जो कांट्रैक्ट रिन्यू भी हुआ इनके बेटे अब्राहम के बेटे इसाक के साथ में और उसके बाद में कांट्रैक्ट फिर से रिन्यू हुआ इसाक के बाद में जैकब के साथ में कांट्रैक्ट का मतलब क्या है यहां पे काइंड ऑफ आशीर्वाद गॉड ने दिया अब्राहम को कि वो जूडा इजम को प्रीज करें और इसको एक प्रकार से फैलाएं इस प्रकार का कांट्रैक्ट हुआ था गॉड और अब्राहम के बीच में और अब्राहम के बाद में हुआ इजाक के साथ में जो अब्राहम के बेटे थे और बाद में इजाक के बेटे जैकब के साथ में और जैकब को एक प्रकार से इजराइल के नाम से भी जाना जाता है इजराइल और यहीं से निकले इजराइली इजराइल जो देश है वो यहीं से निकला बाकी सारे जो वंशज है जैकब के उनको इजराइली भी कहा जाता है समझ गए यानी सबसे पहले गड का कांट्रेक्ट हुआ था अब्राहम के साथ में कि आप जूडा इजम को एक प्रकार से फिलाइम कांट्रैक्ट हुआ अब्राहम के बेटे इजाक के साथ में फिर इजाक के बेटे जैकब के साथ में जिनको इजराइल के नाम से जाना जाता है और बाद में सारे जो वंशज हुए जैकब के उनको इजराइली लोगों लोगों के नाम से जाना जाता है तो काइंड ऑ देखिए एक और जो इंपोर्टेंट चीज है वो है ये मोजेस मोजेस के बारे में देखिए मोजेस एक प्रकार से इजराइली थे और इजिप्त में एक प्रकार से इनका जन्म हुआ था और इजिप्ट में उस समय जो जो जूज थे काइंड ऑफ जो हेब्रा काफी तरह के अत्याचार करते थे हेब्रा मोजीस ने देखा जो एक प्रकार से संत थे साधु आप इनको कह सकते हैं इन्होंने देखा कि कोई जो मास्टर है मास्टर एक प्रकार से अत्याचार कर रहा है हब्र के ऊपर में तो इन्होंने गुस्से में आके उनको धक्का दे दिया एक प्रकार से प्रहार किया उनके ऊपर में स्लेव मास्टर जो कि एक हेब्रा कर रहा था बाद में उनको पता था कि इसकी भारी पनिशमेंट हो गई सजा होगी इसकी तो वो जंगल चले गए थे जंगल में जब वो गए तो उन्होंने देखा जो एक झाड़ी है वो जल रही थी जल तो रही थी लेकिन डिस्ट्रॉय नहीं हो रही थी वहीं से उन्होंने भगवान की आवाज सुनी और एक प्रकार से जो माउंट सिनाई की ये बात है तो वहां प वहां पे भगवान ने इनको 10 कमांडेंट्स दिए जो हमने देखा था कि कैसे इजराइल को सोचना चाहिए कैसे समझना चाहिए कैसे रहना चाहिए वो तमाम तरह की चीजें थी वो यहीं से आई काइंड ऑफ जो मोजीस नाम के जो ये संत थे इनको माउंट सिनाई पे एक प्रकार से भगवान के द्वारा ये कमांडेंट्स दिए गए थे थे और वहीं से जो तोरा बुक में बाद में यह प्रकाशित हुए थे तो यह चीज आपको याद रखनी है बस बेसिक्स इतना ही है एग्जाम में इतना ही पूछा जा सकता है अब डिटेल में जाने की बात हो तो मर्जी कितना ही डिटेल में जा सकते हो लेकिन उतने डिटेल में जाने की आवश्यकता है नहीं अब आगे क्या है आगे देखिए थोड़ा सा इस्लाम देख सकते हैं इस्लाम का मेनली मतलब क्या होता है इस्लाम का मेनली मतलब होता है सरेंडर यानी सबमिशन टू गॉड यानी एक प्रकार से आप अपने आप को सबमिट कर रहे हो भगवान के प्रति में और देखिए 622 एडी के आसपास 632 632 एडी के आसपास अ एक प्रकार से मोहम्मद साहब ने इसकी स्थापना की थी और मक्का में इसकी स्थापना हुई थी सऊदी अरेबिया में है यह मक्का और उसके बाद में देखिए ये कैसे गया पहले पिलर्स देख लेते हैं देखिए इस्लाम के मेनली पांच पिलर्स हैं ये देखिए पांच पिलर्स कौन-कौन से हैं कई बार एक प्रकार से यूपीएससी के द्वारा देखिए इतना जदा डीप में जाके यूपीएससी पूछेगी तो नहीं पांच पिलर्स कौन से हैं मेनली बुक्स के बारे में पूछा जा सकता है कि कौन से धर्म की कौन सी बुक फेमस है एक प्रकार से क्रोनोलॉजी पूछी जा सकती है किसने धर्म की स्थापना करी लेकिन स्टेट पीएससी में कई बार जरूर इस चीजों पे क्वेश्चन पूछ लिया जाता है इवन पूछा भी गया है राजस्थान पीएससी या फिर यूपीपीसीएस जो है उनके द्वारा ये क्वेश्चंस पूछे जाते हैं कि कौन से बेसिक टिनेंट्स हैं तो ये देख लीजिए तो पहला जो टेनेंट्स है वो है फास्टिंग रमजान के दौरान में जो फास्टिंग की जाती है उसको आप रोजा भी कह सकते हो या फिर आप एक प्रकार से सवम भी कह सकते हो उसके बाद में देखिए पिलग्रिम ज यानी मक्का में जाने को एक प्रकार से जो एक प्रकार से तीर्थ यात्रा की जाती है मक्का में उसको हजज कहते हैं ऐसा कहा जाता है कि हर एक मुस्लिम को अपने जीवन काल में एक बार जरूर हज की यात्रा पर जाना चाहिए उसके बाद आता है कि प्लेजिंग द फेथ यानी भगवान के प्रति अपना एक प्रकार से विश्वास प्रकट करना इस चीज को एक प्रकार से तौहीद के नाम से भी जाना जाता है और उसके बाद में आता है रिचुअल प्रेयर्स जो यानी एक दिन में जो पांच बार रोजा या रोजा नहीं नवाज अदा की जाती है उस चीज को कहते हैं य रिचुअल प्रेयर्स शलत के नाम से भी इसको जाना जाता है नवाज या फिर शलत उसके बाद में आता है चैरिटी टू द पुर यानी एक प्रकार से गरीब लोगों की सहायता करना और उनको दान देना इस चीज को कहते हैं जगत तो ये पांच चीजें आपको याद रखनी है मेनली ये पांच पिलर्स हैं इस्लाम के और बाद में देखिए इस इस्लाम अपनी स्थापना के बाद में पलेन गया फिर इजिप्ट पर्शिया और उसके बाद में पूरे वर्ल्ड में फैला जहां जहां ये फैला उसके बाद में देखिए दो पार्ट्स में डिवाइड हो गया इस्लाम सिया या सुन्नी दो पार्ट्स में डिवाइड हो ग कैसे इसका डिवीजन होगा कई बार यह काफी इंपोर्टेंट क्वेश्चन है यहां पे देखिए मेनली ये कफ्ट हुआ मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद में देखिए उनके एक प्रकार से उनके बाद में गद्दी कौन संभालेगा इसको लेकर विवाद हुआ जो सुन्नी है सुन्नी कह रहे थे कि जो सबसे योग्य व्यक्ति है मोहम्मद साहब के बाद में उनको एक प्रकार से गद्दी संभाल नहीं चाहिए लेकिन सिया ने क्या कहा सिया ने कहा कि देखिए जो गद्दी है उसके बाद में वो एक प्रकार से मोहम्मद साहब के परिवार में ही रहनी चाहिए फैमिली में ही रहनी चाहिए तो इस बात को लेकर विवाद हुआ यानी प्रोफेट मोहम्मद पैगंबर मोहम्मद साहब की जब मृत्यु हुई उसके बाद में एक उनके बाद में गद्दी कौन संभालेगा इस चीज को लेकर विवाद हुआ सुन्नी ने कहा कि जो सबसे योग्य होगा उन्हीं को गद्दी संभालने चाहिए और जबकि सिया ने कहा कि उनके परिवार में ही गद्दी रहनी चाहिए तो सुन्नी के हिसाब से अबू बकर एक प्रकार से से उनके उ उत्तराधिकारी होने चाहिए थे और सिया के हिसाब से उनके जो उत्तराधिकारी होने चाहिए थे वो अली बिन अबू होने चाहिए थे जो कि काइंड ऑफ स सनिला थे इनके पैगंबर मोहम्मद साहब के तो इसी बात को लेके विवाद हुआ और बाद में सिया और सुन्नी आए तो अब देखिए बात करें तो जो सिया है वो एक प्रकार से ईरान या इराक में काफी ज्यादा है और सुन्नी जो है वो सऊदी अरेबिया या पाकिस्तान यहां पे सबसे ज्यादा इनकी संख्या है या फिर और भी काफी सारे ऐसे देश हैं जो सऊदी अरेबिया के जो एलाइज हैं जैसे कतर ओमान या फिर यमन इन सब देशों में सुन्नी की जनसंख्या ज्यादा है शिया की जनसंख्या ज्यादा है ईरान और इराक में तो मेनली तो देखिए यही एक प्रकार से हमने जो तीन रिलीजस को डिस्कस किया जैसा हमने पहले कहा डिस्कशन में बस इतना ही थैंक यू थैंक यू वेरी मच फॉर डिस्कशन