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Introduction to Essentials of Business Communication

[संगीत] हेलो फ्रेंड्स मेरा नाम है मेहुल शर्मा और आपका स्वागत है मेरी इस नई वीडियो में चलिए शुरू करते हैं दोस्तों आज हम पढ़ने वाले हैं बिजनेस कम्युनिकेशन का पहला चैप्टर जिसका नाम है इंट्रोडक्शन टू एसेंशियल ऑफ बिजनेस कम्युनिकेशन और देखिए इस बार मैंने पहली बार कोशिश करी है कि मैं आपको हिंदी और इंग्लिश दोनों की पीडीएफ से पढ़ा सकूं क्योंकि काफी सारे बच्चे कमेंट कर रहे थे कि हिंदी में भी पढ़ाओ क्योंकि अगर इंग्लिश से पढ़ाऊंगा तो हिंदी वाले बोलते हैं फिर हिंदी से पढ़ाऊंगा फिर इंग्लिश वाले कवर नहीं हो पाएंगे इसलिए मैंने ट्राई करा कि दोनों पीडीएफ से मैं कवर करने की कोशिश करूं तो एक बार आप कमेंट करके जरूर बताइए कि आपको मतलब यह वीडियो कैसी लगी मतलब मैं आगे भी मतलब ऐसे ही दोनों पीडीएफ से कंटिन्यू करूं या फिर अलग-अलग करके पढ़ा हऊ ठीक है तो एक बार अपनी राय जरूर देना कमेंट में चलिए फिर शुरू करते हैं तो हम पढ़ने वाले हैं बिजनेस कम्युनिकेशन क्या होता है है ना तो देखिए बिजनेस कम्युनिकेशन क्या होता है जैसे कि हम नॉर्मल कम्युनिकेशन करते हैं ना जिसमें एक सैंडर होता है एक रिसीवर होता है सेंडर मैसेज भेजता है फिर रिसीवर क्या करता है मैसेज को डिकोड करता है है ना सेम वही कम्युनिकेशन है बस बिजनेस के पर्पस में की जाने वाली कम्युनिकेशन ही बिजनेस कम्युनिकेशन कहलाती है है ना अब हम जैसे कम्युनिकेशन कर रहे हैं बस अब वही बिजनेस रिलेटेड हो गया कि हां इतने स्टॉक खरीदने हैं है ना इतने कंपनी की ग्रोथ करनी है इतने एंप्लॉयज को हायर करना है तो बिजनेस से रिलेटेड होने वाली कम्युनिकेशन बिजनेस कम्युनिकेशन कहलाती है तो देखिए बिजनेस कम्युनिकेशन रेफर टू एक्सचेंज ऑफ इंफॉर्मेशन अब देखिए इंफॉर्मेशन का आदान प्रदान हो रहा है ना एक्सचेंज हो रहा है इंफॉर्मेशन किसके बीच दो आइडेंटिटी के बीच जो आइडेंटिटी क्या है एक ऑर्गेनाइजेशन है या दोनों कंपनीज भी हो सकती हैं तो कंपनी के बीच में चलने वाली कम्युनिकेशन या जो बिजनेस के जो रिलेटेड जो एंप्लॉयज होते हैं ना जो ओनर होता है उनके बीच में जो भी बातचीत चल रही है तो ये जितनी भी बातचीत कम्युनिकेशन है ये सब बिजनेस कम्युनिकेशन कहलाती है अब जैसे आप सभी जानते हैं कि जो कम्युनिकेशन होता है उसके दो टाइप होते हैं वर्बल और नॉन वर्बल है ना तो वर्बल में क्या आ जाता है जैसे कि मीटिंग करना है ना ना मतलब आमने-सामने की बातचीत करना ईमेल वगैरह रिपोर्ट देना है ना प्रेजेंटेशन करना तो ये जितनी भी चीजें हम बिजनेस से रिलेटेड चीजें जो करते हैं ये सब वर्बल कम्युनिकेशन में आती है है ना वर्बल में देखिए दोनों चीजें आती है ओरल भी और रिटर्न भी इसको अभी आप आगे और डिटेल में पढ़ेंगे है ना तो ओरल भी आ जाती है ओरल में क्या हम मीटिंग वगैरह लेते हैं बिजनेस की जो मीटिंग होती है उसमें हम ओरल कम्युनिकेशन ही तो करते हैं आप आमने सामने बातचीत करते हैं और ईमेल्स वगैरह भेजा जाता है है ना रिपोर्ट वगैरह भेजी जाती है प्रेजेंटेशन के माध्यम से लोगों को समझाया जाता है कुछ बातें है ना तो रिटर्न फॉर्म में भी हम कम्युनिकेशन करते हैं तो वर्बल में हम दोनों चीजें करते हैं ओरल भी और रिटर्न भी और देखिए जब भी हम बिजनेस कम्युनिकेशन कर रहे हैं तो काफी ज्यादा इफेक्टिव होनी चाहिए इससे क्या होता है कि बिजनेस को भी काफी ज्यादा फायदा होता है जो भी आप कम्युनिकेशन कर रहे हैं उसमें ध्यान रखिए कि आप बिल्कुल काम की बातें करें है ना आपका जो भी आईडिया या फिर जो भी आपका थॉट है वो सामने वाले के पास क्लियर पहुंचना चाहिए है ना सामने वाले को अच्छे से समझ आना चाहिए कि आप कहना क्या चाहते हैं है ना जो भी आपके आइडियाज है थॉट्स से सामने वाले को अच्छे से समझ आने चाहिए जो भी आप डिसीजन लेते हैं जैसे भी आप इश्यूज को रिजॉल्व वगैरह करते हैं ना उसके लिए कोई ना कोई आईडियाज देंगे तो जितनी भी सार चीजें हैं जो भी आपको आइडियाज और थॉट्स देने सामने वाले को तो ऐसे उसको एक्सप्रेस करने कि सामने वाला अच्छे से समझ सके तो इसी को बोलेंगे हम इफेक्टिव बिजनेस कम्युनिकेशन अब चलिए एक बार प्रोसेस को भी नजर डाल लेते हैं देखिए क्या होता है सेंडर होता है रिसीवर होता है बीच में एक चैनल होता है चैनल कुछ भी हो सकता है अब देखिए सेंडर क्या करेगा सबसे पहले तो वो मैसेज को सेंड करेगा है ना पहले मैसेज लिखेगा लिख भी सकता है या फिर बोल के भी उसको भेज सकता है वो चैनल पे डिपेंड करता है ना चैनल में कुछ भी आ सकता है चैनल मतलब होता है कि जरिया क्या है है ना जो सेंडर जो भी अपना मैसेज भेज रहा है रिसीवर के पास उसका चैनल क्या है है ना जैसे कि ईमेल हो सकता है या कागज पर लिख कर दे रहा है ना बोलकर समझा रहा है तो चैनल कुछ भी हो सकता है अब देखिए यहां पे इनकोडिंग मैसेज इनकोडिंग का मतलब होता है या तो लिख रहा है लिखने को भी इनकोडिंग बोलेंगे या फिर वो टाइप कर रहा है उसको भी इनकोडिंग बोलेंगे या फिर वो बोल रहा है वो सब इनकोडिंग है है ना और चैनल मैंने आपको बता दिया जैसे कि पेपर हो गया ईमेल हो गया इंटरनेट हो गया या कोई भी ऐसी चीज जहां से वो अपने जो बात है वो रख रहा है है ना फिर रिसीवर क्या करता है मैसेज को सुनेगा समझेगा है ना उसको डिकोड करेगा डिकोड का मतलब समझना कि वो सामने वाला कहना क्या चाहता है उसको डिकोड करेगा और फिर रिसीवर जो भी है वो उसकी बात सुन लेगा फिर उसका क्या देगा फीडबैक देगा है ना अब जैसे कि राम है राम ने मोहन को कहा कि तुम बहुत अच्छे लग रहे हो तो मोहन ने उसकी बात समझी अब मोहन क्या करेगा स्माइल पास करेगा या थैंक यू बोलेगा तो उसको क्या करेगा फीडबैक देगा है ना तो ये पूरी जो प्रोसेस है एक होगी कम्युनिकेशन की प्रोसेस सेंडर ने मैसेज भेजा है ना उसने डिकोड करा फिर उसने फीडबैक भेजा तो ये पूरी चेन हो गई एक कम्युनिकेशन की चेन हो गई अब देखिए बीच में नॉइस भी आ जाता है नॉइस क्या होता है बैरियर होता है बैरियर और नॉइस का मतलब एक ही होता है तो बैरियर कैसे हो सकता है कि सामने वाले ने कुछ बोला अब कोई पीछे कोई भोपू बजा रहा है है ना तो सामने वाले को सुनाई नहीं देगा कि वो कहना क्या चाहता है तो ये जो भोपू बजा है भोपो क्या हो गया नॉइस हो गया है ना नॉइस या बैरियर ऐसी चीज है जो मतलब जो चैनल जो भी चैनल से आप उसको भेज रहे हैं उसमें मतलब बाधा उत्पन्न कर रही है जैसे कि आपने ऑनलाइन ईमेल भेजा अब ईमेल क्या हो सकता है बैरियर क्या आ सकता है कि इंटरनेट स्लो है तो उसके पास ईमेल नहीं पहुंचा टाइम से तो ये जो इंटरनेट स्लो है ये क्या एक नॉइस है एक बैरियर है ठीक है अब देखिए कम्युनिकेशन के फंक्शंस क्या-क्या होते हैं तो सबसे पहला फंक्शन और सबसे मेन फंक्शन यही कि इंफॉर्मेशन को ट्रांसफर करना है ना और दूसरा होता है एक्सप्रेस इमोशन अब सामने वाला कोई भी कम्युनिकेशन कर रहा है तो साथ में अपने इमोशंस को भी शेयर कर करता है है ना और इससे जो रिलेशनशिप है वो स्ट्रांग होता है है ना जितनी आप आपस में एक दूसरे से बातचीत करेंगे कम्युनिकेशन को अच्छा इफेक्टिव करेंगे तो इससे जो आपका रिलेशनशिप है वो काफी ज्यादा स्ट्रांग हो जाता है और देखिए इससे आपका एटीट्यूड भी काफी ज्यादा इन्फ्लुएंस होता है ना सामने वाले से आप बात कर रहे हैं ना वो अगर आपकी रिस्पेक्ट कर रहा है आपसे अच्छे से बात कर रहा है तो आपका और भी एटीट्यूड बढ़ जाता है उसके प्रति है ना और देखिए आपको डिसीजन मेकिंग करने में भी ये फैसिलिटेट करता है कैसे करता है जैसे कि आप सामने वाले से बात करेंगे है ना उसके हाव भाव जानेंगे है ना उससे रिलेशनशिप स्ट्रांग करेंगे तो अगर आप कोई भी डिसीजन ले रहे हैं तो वो आपके साथ खड़ा रहेगा ना आपके हां में हां मिलाएगा ना आपका सपोर्ट करेगा तो इससे आप डिसीजन मेकिंग में भी स्ट्रांग डिसीजन ले पाएंगे अब सिचुएशन चाहे जो भी हो सकती है पर्सनल हो सकती है सोशल हो सकती है और प्रोफेशनल भी हो सकती है तो आप कोई भी डिसीजन आसानी से ले सकेंगे अगर आपको कम्युनिकेशन अच्छे से करनी आती है तो अब हम देखेंगे कि जो कम्युनिकेशन है वो कितने टाइप की होती है तो जैसे कि मैंने आपको पहले ही बताया कम्युनिकेशन दो टाइप की होती है एक है वर्बल और एक है नॉन वर्बल तो सबसे पहले व वल कम्युनिकेशन को देखते हैं तो वर्बल कम्युनिकेशन का मतलब होता है मौखिक संवाद जो हिंदी वाले बच्चे हैं वो साथ-साथ जो हिंदी के ऊपर जो पीडीएफ चली है उसमें भी साथ-साथ आप देखते जाइए कि यहां पे मतलब क्या-क्या वर्ड लिखे जा रहे हैं है ना तो वर्बल का मतलब होता है मौखिक संवाद अब जैसे कि मैंने आपको बताया इसमें स्पोकन और रिटर्न दोनों का यूज किया जाता है है ना वर्बल कम्युनिकेशन में आप तो एक तो बोलकर इंफॉर्मेशन को ट्रांसफर करते हैं या फिर पेपर पर लिखकर या ईमेल पर टाइप करकर आप इंफॉर्मेशन को शेयर करते हैं और देखिए इसमें हर चीज इंक्लूड होती है आपकी लैंग्वेज लवेज कैसी है आप किस लैंग्वेज में इंफॉर्मेशन दे रहे हैं ना आपकी टोन क्या है है ना आप जो भी वर्ड लिख रहे हैं तो आपकी चॉइस कैसी है वर्ड से रिलेटेड है ना जो भी आप वर्ड उसको लिख रहे हैं तो आपकी चॉइस देखी जाती है कि आप किस वर्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ये सब चीजें आपके आइडियाज आपके थॉट्स है ना तो ये सब चीजें जो भी आप कम्युनिकेशन कर रहे हैं उसमें ये सब चीजें इंक्लूड होती है ना वर्बल कम्युनिकेशन में अब देखिए इसके अंदर भी दो कम्युनिकेशन आती है वर्बल कम्युनिकेशन में है ना तो पहली क्या है ओरल कम्युनिकेशन यानी मौखिक संचार तो इस कम्युनिकेशन में आप बोलकर सामने वाले को अपनी बात समझाते हैं तो देखिए ये कम्युनिकेशन फेस टू फेस होती है है ना ये तो प्रेजेंटेशन के द्वारा भी हो सकती है और और कुछ भी वर्बल इंटरेक्शन हो सकता है है ना जैसे कि आप कोई भी कंप्यूटर वगैरह पे स्लाइड वगैरह के माध्यम से लोगों को बता रहे हैं ना जैसे कि कोई मीटिंग हो रही है मीटिंग में भी आप जो बातें करते हैं वो सब ओरल कम्युनिकेशन में आती है और कोई भी अगर आप स्पीच वगैरह दे रहे हैं ना या किसी को मोटिवेशन दे रहे हैं तो वो सब चीजें भी ओरल कम्युनिकेशन में आ जाती हैं दूसरा होता है रिटन कम्युनिकेशन यानी लिखकर अपनी बातों को समझाना अब चाहे वो आप ईमेल लिख सकते हैं है ना रिपोर्ट लिख सकते हैं एसे लिख सकते हैं और कोई भी इंपॉर्टेंट डॉक्यूमेंट आप लिखकर सामने वाले को अपनी बात समझा सकते हैं तो देखिए अगर हम इफेक्टिव बिजनेस कम्युनिकेशन की बात करें तो जो रिटन कम्युनिकेशन है इसका सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट रोल होता है है ना ओरल बाद में होता है सबसे पहले रिटर्न कम्युनिकेशन आपकी देखी जाती है कि बिजनेस पर्पस के माध्यम से आपके लिखने की सैली कैसी है है ना वो काफी ज्यादा क्लियर और कंसिस्ट होनी चाहिए क्लियर मतलब साफ शब्दों में आपकी बात आपको कहनी चाहिए है ना और कंसिस्ट मतलब जितना आप छोटा लिख सकते हैं ना जो भी आपकी इंफॉर्मेशन है उसको आप ज्यादा बड़ा साइज में ना लिखकर एक अपनी छोटी बात कहके समझा देना छोटे पैराग्राफ में जो भी आपको कहना है वो एक कंसाइनर में आप सामने वाले को समझा द एग्जांपल के लिए अगर आपको जैसे कि छुट्टी चाहिए है ना बॉस से छुट्टी मांगनी है तो आप एक लेटर लिखेंगे और उसमें मतलब अच्छे से ये बता देंगे कि मुझे छुट्टी चाहिए और क्यों चाहिए है ना रीजन बता देंगे और किसका कब चाहिए कितने बजे चाहिए ये सब आप उसमें डिटेल में बता देंगे तो जो मतलब जो इंफॉर्मेशन जो इंपॉर्टेंट इंफॉर्मेशन है सिर्फ वही रखेंगे फालतू की इंफॉर्मेशन उसमें ऐड नहीं करेंगे है ना लेटर जितना जदा छोटा और अच्छा होगा क्लियर होगा उतनी जल्दी आपका जो काम है वो अप्रूव होगा अब देखिए नॉन वर्बल कम्युनिकेशन क्या होती है जिसे हिंदी में बोलते हैं अनकहा संचार अब देखिए इसमें आप कुछ भी कह नहीं रहे है ना आप य इसमें बोलेंगे नहीं आप कुछ भी लिखेंगे नहीं अब इसमें क्या होता है आपकी बॉडी लैंग्वेज देखी जाती है है ना आपकी मतलब बोलने का तरीका देखा जाता है खड़े होने का तरीका बैठने का तरीका मतलब आप जब भी कम्युनिकेशन कर रहे हैं तो आप किस पोजीशन में है ना वो सब चीजें देखी जाती हैं वो सब नॉन वर्बल में आ जाती है अभी हम इनको बारी-बारी देखेंगे जैसे कि सबसे पहले है साइन लैंग्वेज तो देखिए साइन लैंग्वेज का जब इस्तेमाल किया जाता है जब सामने वाला जो व्यक्ति जो रिसीवर है वह सुन नहीं सकता या बोल नहीं सकता तो जब साइन लैंग्वेज का यूज किया जाता है है ना और हिंदी वाले भी साथ में पीडीएफ में देखते रहिए है ना जैसे कि हरकतें इशारे चेहरे के भाव है ना शारीरिक भाषा तो तो ये वर्डों पर आप जरा गौर करिए क्योंकि पेपर में आपको ये सब वर्ड लिखकर आने है है ना तो आप वर्ड देख लीजिए कि किसका मतलब क्या होता है तो देखिए इन सब चीजों का इस्तेमाल करके हम जो साइन लैंग्वेज है उसका इस्तेमाल करते हैं ताकि जो सामने वाला जो व्यक्ति है जो सुन नहीं सकता या बोल नहीं सकता वो सामने वाला समझ सके कि जो हम उससे कहना चाहते हैं ना वो सब समझ जाए वो अब देखिए जो साइन लैंग्वेज है ना वो हर जगह की अलग-अलग है इंडिया में मतलब किसी चीज का मतलब कुछ और होगा वहीं पर अगर अमेरिका की बात करें तो वहां का जो साइन लैंग्वेज है वो अलग होगी है ना जैसे कि हमें पानी पीना है तो सब मतलब इंडिया में अलग इशारा करेंगे अमेरिका में अलग इशारा करेंगे रशिया में अलग इशारा करेंगे तो मतलब बात करने का जो भी मतलब इशारे हैं ना वह अलग-अलग हो सकते हैं है ना कहीं पे मतलब यह नहीं कि एक इशारा तो पूरी दुनिया में फिक्स होगा अलग-अलग हो सकते हैं अभी एग्जांपल के लिए आपको दे रखे हैं एएसएल बीएसएल है ना अमेरिकन साइन लैंग्वेज ब्रिटेन साइन लैंग्वेज है ना आईएसएल इंडियन साइन लैंग्वेज तो बस आगे कोई भी आप देश लगा दीजिए और पीछे साइन लैंग्वेज लगाते जाइए तो इसका मतलब ये कि मतलब हर जगह अलग-अलग साइन लैंग्वेज होती है अगला है बॉडी लैंग्वेज जिसे काइनेसिस भी बोला जाता है अब देखिए जब भी आप किसी से बातचीत कर रहे हैं तो आपकी जो बॉडी लैंग्वेज वो काफी ज्यादा इंपॉर्टेंट होती है है ना मतलब कैसे बात कर रहे हैं अगर आप अपने सीनियर से बात कर रहे हैं तो आप ऐसे बात करेंगे कि आप खड़े होक रिस्पेक्ट करके बात करेंगे है ना वहीं अगर आपसे कोई छोटा बच्चा उससे अलग तरीके से आपकी जो बॉडी लैंग्वेज वो अलग होगी तो देखिए बॉडी लैंग्वेज में क्या-क्या आ जाता है आपका गेस्चर फेशियल एक्सप्रेशन बॉडी मूवमेंट और आपका पोस्चर और हिंदी वाले बच्चे भी साथ ही साथ देखते रहिए जैसे कि इशारे चेहरे के भाव शरीर की गतिविधियां और मुद्रा मुद्रा यानी मनी वाला नहीं यहां पे पोचर वाली मुद्रा कि आपकी पोजीशन कैसी है कि आपका खड़े होने का स्टाइल कैसा है बैठने का स्टाइल कैसा है बोलने का स्टाइल कैसा है वो सब और देखिए आपकी जो बॉडी लैंग्वेज है ना वो जो भी आप इंफॉर्मेशन कन्वे कर रहे हैं है ना तो उसमें इमोशन इंटेंशन और एटीट्यूड को दर्शाता है यानी देखिए किसी को अगर आपको अपनी भावनाएं व्यक्त करनी है मान मान लीजिए कोई इमोशनल बात कहनी है तो आप थोड़े उदास से हो जाएंगे आपकी जो बॉडी थोड़ी झुकी झुकी सी हो जाएगी वहीं अगर आपको कोई खुशी की इंफॉर्मेशन देनी है ना हैप्पी इंफॉर्मेशन देनी है तो आप स्माइल करेंगे है ना खुश होए गे थोड़ा खिल खिलाएंगे तो उससे आपका इमोशन और इंटेंशन पता चलता है कि आप जो भी बात कर रहे हैं उसके पीछे का क्या कारण है है ना वो बात अच्छी है बुरी है दुखी की बात है अच्छी बात है है ना वो सब चीजें आपकी बॉडी लैंग्वेज से ही पता चलता है एग्जांपल के लिए आपका कोई दोस्त है वो बोलता है कि मेरे पिताजी की डेथ हो गई अब वो दुखी है है ना निराश है अब आपको पता चलेगा हां भाई इसे थोड़ा दुख है इसके पिताजी चले गए वहीं पर अगर आपका दूसरा दोस्त है उससे पिताजी चले गए है ना वो बल्कि खुश हो रहा है उल्टा है ना क्योंकि उसको प्रॉपर्टी वगैरह मिलने वाली है है ना तो उससे आपको इस बॉडी लैंग्वेज से उसको क्या पता चल रहा है आपको कि हां वो खुश है थोड़ा है ना तो यहां पे दोनों मतलब दोनों में क्या पता चल रहा है आपको बॉडी लैंग्वेज से पता चल रहा है कि एक दोस्त मेरा खुश है और एक दोस्त मेरा दुखी है ना तो किससे पता चला बॉडी लैंग्वेज से और उसके उसने जो भावनाएं व्यक्त करी उससे पता चला तो देखिए अगर जब भी आपको एक इफेक्टिव कम्युनिकेशन करनी है बिजनेस में तो आपकी बॉडी लैंग्वेज अच्छी होनी जरूरी है आपको पता होना चाहिए कि जब भी कोई बात कर रहे हैं तो उस बात के जो पीछे हमारी जो बॉडी लैंग्वेज है वो कैसी होनी चाहिए है ना और अगला आ जाता है हमारा पैरालैंग्वेज और हिंदी में इसे बोलते हैं पार भाषा तो देखिए पैरालैंग्वेज में आपका टोन कैसा है पिच कैसी है वॉल्यूम कैसा है स्पीड कैसी है और रिदम कैसी है यह सब मायने करता है देखिए आपने देखा होगा जब लड़के बोलते हैं तो उनकी आवाज थोड़ी भारी होती है वहीं पर अगर लड़कियां बोलती है तो उनकी आवाज थोड़ी पतली सी होती है है ना तो ये किसका अंतर पड़ रहा है पिच का अंतर पड़ रहा है है ना जब भी आपने साउंड वेव तो देखी होगी उसमें जो एंप्लीट्यूड है उसका अंतर पड़ता है है ना तो उससे पता चलता है कि मतलब ये कैसे बोल रहा है है ना कोई अगर कोई बड़ा आदमी बोलेगा उसकी कितनी भारी आवाज होगी तो लोग उसे सीरियसली भी लेंगे है ना कि हां एक बड़ा आदमी बोल रहा है इतनी भारी आवाज होगी वहीं पर एक लड़का है उसकी बिल्कुल मरी हुई सी आवाज है है ना तो कोई उसकी बात को सीरियसली लेगा ही नहीं है ना तो ऐसे में जो पैरालैंग्वेज है ना आपकी जो टोन है आपकी जो पिच है और आपका वॉल्यूम आप कितनी तेज बोलने कितनी धीमी बोल रहे हैं ना कोई इंपॉर्टेंट बात है तो आपको ऐसे बोलनी है कि आखरी में बैठा जो बंदा है उसको भी सुनाई दे है ना और आपकी स्पीड कैसी है जैसे कि अभी मैं आपको समझा रहा हूं मैं बोल रहा हूं है ना तो मेरी स्पीड क्या है अभी नॉर्मल है ये तो नहीं एकदम से भाग रहा हूं मैं ट्रेन की तरह है ना या इतनी स्लो भी नहीं होनी चाहिए कि सामने वाला बंदा बोर हो जाए है ना तो नॉर्मल स्पीड होनी चाहिए और रिदम भी आपकी बढ़िया होनी चाहिए तो ये सब चीजें किसमें आ जाती है पैरालैंग्वेज में आ जाती है और ये चीजें भी मायने करती है है ना जैसे कि मैं आपसे कम्युनिकेट कर रहा हूं ना मैं भी आपसे बात कर रहा हूं तो अब मेरी जो आवाज है है ना उसके आप व टोन देख सकते हैं पिच देख सकते हैं वॉल्यूम देख सकते हैं ना वॉल्यूम भी आपको अच्छी खासी आ रही होगी और जो मेरी स्पीड है वो भी एक नॉर्मल है ना मतलब इतनी है कि आपको हर बात मेरी समझ आ रही है है ना तो ये सब पैरालैंग्वेज में आ जाता है अब अगला है स्पेस लैंग्वेज जिसे हम प्रॉक्सीम भी बोलते हैं अब देखिए जैसे कि आपको नाम से ही समझ आ रहा होगा स्पेस लैंग्वेज का मतलब है जब भी आप किसी से कम्युनिकेट कर रहे हैं बातचीत कर रहे हैं तो आप सामने वाले पर्सन और अपने बीच में कितना स्पेस मेंटेन कर रहे हैं ये वो लैंग्वेज में आता आता है अब देखिए एक स्पेस मेंटेन होना जरूरी होता है क्योंकि आप बिल्कुल करीब जाके उसको बोलोगे ना तो सामने वाला बंदा इरिटेट हो जाएगा है ना बिल्कुल पास जाके नहीं बोलना आपको थोड़ा सा गैप मेंटेन करना है एक 2 मीटर का गैप अपने हिसाब से आप मेंटेन कर सकते हैं है ना और वो पर्सन टू पर्सन वेरी करता है है ना मान लीजिए आपका कोई बॉस है आप उससे थोड़ी दूर होके बात करेंगे वहीं पर अगर आपका कोई दोस्त है आप बिल्कुल उसके चुपक के बात कर सकते हैं है ना तो ये परसन टू परसेंट वेरी करता है कि आप किस व्यक्ति से कितना मतलब जो गैप है वो मेंटेन करके रखेंगे और देखिए सबकी ना अपनी-अपनी पर्सनल स्पेस होती है है ना अपना एक दायरा होता है अगर आप उनके पर्सनल स्पेस में जाएंगे तो सामने वाले को िड़ हो सकती है और वो आपसे बात करने में वो इंटरेस्ट भी नहीं लेगा है ना तो आपको इंश्योर करना है कि आप अपने बीच में एक अच्छा सा स्पेस मेंटेन करके रख सके और देखिए स्पेस मेंटेन करना इसलिए भी जरूरी होता है ताकि सामने वाला बंदा आपकी पर्सनालिटी को देख सके आपकी बॉडी लैंग्वेज को देख सके है ना आप कैसे बात कर रहे हैं आपके चलने उठने का बैठने का तरीका वो सब देख सके है ना तो बिल्कुल पास तो कर नहीं सकते थोड़ी दूरी उससे होके करेंगे है ना इसलिए भी स्पेस जरूरी होता है ताकि सामने वाला बंदा आपको देख सके और आपको परख सके अब देखिए अगला होता है टाइम लैंग्वेज जिसे हम क्रोनिक भी बोलते हैं अब देखिए ये जो क्रोनि मिक है और ये जो ऊपर जो प्र प्रॉक्सीम है ये इसलिए ऐसे नाम है ये ग्रीक वर्ड से लिए गए हैं यह सब नाम बस आपको इनका मतलब समझना है स्पेस लैंग्वेज टाइम लैंग्वेज है ना यह सब आपको पता होना चाहिए अब देखिए जैसे कि स्पेस लैंग्वेज में आपको स्पेस मेंटेन करना था और टाइम लैंग्वेज में आपको टाइम को मैनेज करना है है ना जो भी आप बात अपनी कह रहे हैं वो एक प्रॉपर टाइम में होनी चाहिए ये नहीं कि आप उस सब बात को लंबा खींच रहे हैं अब जैसे कि मैं आपसे बात कर रहा हूं है ना मैं आपको कोई भी टॉपिक समझा रहा हूं तो मैं उसके लिए प्रॉपर टाइम ले रहा हूं है ना उसको ज्यादा एक लंबा खींच नहीं रहा हूं है ना आपको बोर नहीं कर रहा हूं है ना क्योंकि अगर आप ज्यादा टाइम लेंगे ना सामने वाला बंदा बोर हो जाएगा फिर आपकी बातों में इंटरेस्ट नहीं लेगा वो तो आपको पता होना चाहिए कि आपको कौन सी बात कितना टाइम लेना चाहिए मतलब कोई भी अगर आपको बात समझा नहीं दूसरे वाले को तो उसके लिए आपको कितना टाइम लेना है है ना कितने टाइम की रिक्वायरमेंट है तो वो आपको पता होना चाहिए और देखिए जब भी आप कम्युनिकेशन कर रहे हैं तो आपको ये इंश्योर करना चाहिए कि आप अपना जो बात कह रहे हैं ना आप उसके लिए प्रॉपर टाइम ले है ना यह नहीं कि आपने एकदम से पूरी बात कह दी है ना धीरे-धीरे कर कर आपने अ सामने वाले को अपनी बात समझा नहीं है ना आपने एक सेंटेंस बोला उसके बाद थोड़ा सा रुकिए है ना थोड़ा सा वेट करिए और फिर थोड़ा रुक के दूसरी बात कहिए है ना एकदम से पूरी लाइन मत कह दीजिए है ना धीरे-धीरे करके ताकि सामने वाला बंदा आपकी बात को समझ सके तो एक प्रॉपर टाइम लेते हुए अपनी बात को इफेक्टिव तरीके से सामने वाले को समझाइए अब देखिए जैसे क्या आप पंक्चुअलिटी का भी यूज कर सकते हैं जैसे कि एक सेंटेंस होता है आखरी में उसके फुल स्टॉप होता है जब आप पूरा सेंटेंस बोलते हैं उसके बाद थोड़ा सा रुकते हैं ना फिर अगला सेंटेंस बोलते हैं है ना तो यही यूज आपको करना होता है जब भी आप बोलते हैं तो आपको ये थोड़ा सा रुकना होता है पंक्चुअलिटी का इस्तेमाल करते हुए थोड़ा रुकना है फिर नेक्स्ट सेंटेंस को आपको बोलना है और कहीं पर आपको ऐसा कॉमा भी दिखता होगा ना कॉमा लगे होते हैं ऊपर भी दो कॉमे लगे होते हैं उसके टाइम पे भी थोड़ा सा रुकना होता है है ना फिर उसको पढ़ना होता है और देखिए आप कितना टाइम लेते हैं ये आपके कल्चर पे भी डिपेंड करता है है ना कोई साउथ का बंदा है वो ज्यादा टाइम लेगा बोलने में है ना कोई अगर अमेरिका का बंदा है वो ज्यादा टाइम लेगा है ना कोई कम टाइम लेगा है ना कोई अगर इंग्लिश बोलता है तो उसको थोड़ा कम टाइम लगेगा कोई हिंदी बोलता है उसको थोड़ा ज्यादा टाइम लगेगा बात को समझाने में है ना कोई अगर कोई दूसरी भाषा बोलता है उसको हो सकता है कम टाइम लगे ज्यादा टाइम भी लग सकता है तो कल्चर प भी डिपेंड करता है कि कोई अलग-अलग कल्चर के बंदे अलग-अलग टाइम लेते हैं अपनी बात को समझाने के लिए लेकिन एक बात इंपॉर्टेंट है कि जब भी आप कम्युनिकेशन कर रहे हैं तो बस प्रॉपर टाइम लीजिए है ना सामने वाले को बस आपकी बात समझ आनी चाहिए सामने वाला बोर नहीं होना चाहिए आपको जब भी बात करनी है प्रॉपर टाइम में करनी है अब अगला है लैंग्वेज ऑफ टच जिसे हम बोलते हैं एप्टिस अब देखिए इस लैंग्वेज में हम क्या करते हैं सामने वाले व्यक्ति को टच करते हैं अब टच कैसे करते हैं जब भी आप अपने दोस्त से मिलते हैं तो आप हैंड सेक करते हैं हाथ मिलाते हैं तो ये भी एक टाइप का टच होता है तो आप इससे क्या बता रहे सामने वाले को कि मैं आपका दोस्त हूं है ना आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं है ना तो आप क्या कर रहे हैं मतलब रिलेशनशिप बिल्ड कर रहे हैं एक स्ट्रांग रिलेशनशिप बिल्ड कर रहे वो भी बिना कुछ कहे तो यह क्या होता है लैंग्वेज ऑफ टच होता है है ना आप गले भी मिलते हैं तो यह भी लैंग्वेज ऑफ टच में आता है है ना तो देखिए हाथ मिलाना गले मिलना साभा स देना पीठ थपथपाना है ना पैर छूना तो ये सब किसम आता है लैंग्वेज ऑफ टच में आता है अब सामने वाले के पैर छुए गे तो आप उसको क्या बता रहे हैं कि मैं आपकी इज्जत करता हूं मैं आपकी रिस्पेक्ट करता हूं है ना अब किसी सामने वाले को आप थपथपाते हैं ना पीठ थपथपाते हैं तो इससे आप क्या बता रहे होते कि मैं तुम्हें सबासी दे रहा हूं है ना तो देखिए लैंग्वेज ऑफ टच में आप फिजिकल कांटेक्ट के माध्यम से अपने इमोशन को कन्वे करते हैं ठीक है और टच के माध्यम से आप अपना इंटेंशन भी सामने वाले को बताते हैं कि आपका क्या इरादा है अब एग्जांपल के लिए मान लीजिए कोई फाइट होने वाली है ना डब्ल्यूडब्ल्यूई की फाइट होने वाली है अब दोनों रेसलर क्या करेंगे हाथ मिलाएंगे और दोनों एक दूसरे का हाथ दबाए जोर से तो ये सामने वाले को क्या बता रहे हैं कि मैं तुमसे ज्यादा स्ट्रांग हूं है ना तो ये मतलब टच के माध्यम से सामने वाले को अपने इमोशंस और अपने इंटेंशन दर्शा रहे होते हैं अब है साइलेंस यानी साइलेंस भी एक टाइप की ना लैंग्वेज होती है आप अपने चुप रहते हैं ना तो सामने वाले को अपने इमोशंस के बारे में अपने इंटेंशन के बारे में भी दर्शा रहे होते हैं अब एग्जांपल के लिए आपके पिताजी ने आपसे पूछा कि कल तुम चलोगे तो आपने साइलेंस रहा आपने कुछ जवाब नहीं दिया तो पिताजी समझ जाएंगे कि आप नहीं जाना चाहते है ना तो ऐसे में आपने बिना कुछ कहे अपने सामने वाले को अपने इंटेंशन अपने इमोशंस को दर्शा दिया अब वहीं पर देखिए चोरी हुई है पुलिस आती है आपके पास और आपसे बोलती है कि इसने चोरी करी है अब उस टाइम पे आप साइलेंस रहते हैं आप चुप रहते हैं तो इससे आप क्या बता रहे हैं कि आप भी चोर के साथ सा मिले हुए हैं है ना तो चोर क्या है आपका दोस्त है तो आपने चुप रहकर पुलिस को वाले को अपने इंटेंशन अपने इमोशंस दर्शा दिए कि मैं इसका दोस्त तो मैं कुछ नहीं बोलूंगा ना आप साइलेंट रह गए तो साइलेंस यानी जो चुप्पी है वो एक ऐसी चीज है जो कुछ ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है और अगला है लिसनिंग यानी सुनना अब देखिए जब भी कम्युनिकेशन हो रही है तो ये थोड़ी ना हो क्या कि एक ही बंदा बोले जा रहा है दूसरा बंदा शांत बैठा हुआ है है ना तो ऐसा थोड़ी ना होता है कि जो एक बंदा बोल रहा है उसको सुनना भी तो पड़ेगा है ना तभी तो पूरी कम कम्युनिकेशन हो पाएगी है ना तभी पूरे जो कम्युनिकेशन का जो साइकिल वो कंप्लीट हो पाएगा जब सामने वाला बोलेगा दूसरा बंदा सुनेगा फिर दूसरा बंदा बोलेगा फिर सामने वाला सुनेगा तो लिसनिंग भी सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट होती है अब देखिए एक ही बंदा बोले जा रहा है वो किसी की सुन नहीं रहा है तो यहां पे कम्युनिकेशन तो हो रही है लेकिन इफेक्टिव कम्युनिकेशन नहीं हो पा रही है है ना तो अगर हमें इफेक्टिव कम्युनिकेशन करनी है तो हमें सामने वाले की भी सुननी पड़ेगी अब अगला है चैनल्स ऑफ कम्युनिकेशन यानी कम्युनिकेशन करने के क्या-क्या माध्यम हो सकते हैं तो देखिए एक माध्यम हो सकता है और ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर जिसका पहला टाइप है लाइन स्ट्रक्चर अब देखिए जब भी आप अपने दोस्त से बात करते हैं फोन पर तो वो कहता है ना कि लाइन पे बने रहिए तो देखिए लाइन पे बने रहिए मतलब क्या ये लाइन स्ट्रक्चर है है ना तो लाइन स्ट्रक्चर वो होता है जहां पे आप सामने वाले से सीधा कम्युनिकेट करते हैं और यहां पे कोई भी ग्रुप नहीं होता है ना आप इंडिविजुअल होते हैं आप होता है या सामने वाला एक बंदा होता है है ना सिर्फ दो ही लोग होते हैं दो ही लोगों के बीच में यहां पे बातचीत होती है है ना कोई और तीसरा चौथा पांचवा बंदा नहीं होता सिर्फ दो लोग होते हैं आमने-सामने बात करते हैं या तो वह कोई भी माध्यम हो सकता है या तो ईमेल के सारे चैट के माध्यम से कमिटी में बहुत सारे बंदे आ जाते हैं ग्रुप के ग्रुप आ जाते हैं ना एक ग्रुप दूसरे ग्रुप से बात करता है एग्जांपल के लिए जैसे जूम मीटिंग होती है google2 प जो मीटिंग होती है ना जो बिजनेस रिलेटेड जो मीटिंग होती है वो क्या होती है वो कमेटी स्ट्रक्चर के में आती है और देखिए कमेटी स्ट्रक्चर में कोई भी स्पेसिफिक टास्क्स आ सकता है प्रोजेक्ट आ सकता है ना डिसीजन मेकिंग प्रोसेसेस आ सकते हैं है ना इसमें क्या होता है कि एक ग्रुप दूसरे ग्रुप से डायरेक्ट बात करता है है ना उनको कोई भी टास्क समझाना है कोई प्रोजेक्ट के बारे में बताना है या फिर कोई डिसीजन लेना है उनको बहुत बड़ा बिजनेस से रिलेटेड है ना तो ये सब वो कैसे करते हैं एक कमिटी स्ट्रक्चर के माध्यम से करते हैं और ये जो कमेटी स्ट्रक्चर है जैसे कि एग्जांपल के लिए मैंने आपको बताया जम हो गया होंगे है ना मैनेजर्स होंगे तो वह सब मिलके आपस में मीटिंग करते हैं अगला है फंक्शनल स्ट्रक्चर और हिंदी में इसे बोलते हैं कार्यात्मक संरचना तो जो हिंदी वाले बच्चे हैं वो साथ ही साथ देखते रहिए है ना अब देखिए फंक्शनल स्ट्रक्चर में क्या होता है अब यह भी सिमिलर है ऊपर वाले की तरह लेकिन थोड़ा सा अंतर है अब ये भी google's पर हो सकता है फंक्शनल स्ट्रक्चर लेकिन अब अंतर कहां पे आ जाता है अब देखिए उसमें चेयर पर्सन था मैनेजर्स थे है ना बाकी सारे एंप्लॉयज थे तो मतलब बिजनेस से रिलेटेड आगे के लिए डिसीजंस लेते हैं है ना डिसीजंस बनाते हैं गोल सेट करते हैं लेकिन इस वाले में क्या होता है इसमें मतलब जो फंक्शन करना होता है उससे रिलेटेड यहां पे मीटिंग्स की जाती है है ना एक स्पेसिफिक जॉब को फंक्शन करना है उसके लिए यहां पे मीटिंग की जाती है जैसे कि यहां पे अब कौन होगा मैनेजर होगा मैनेजर के नीचे जितने भी मेंबर्स हैं एंप्लॉयज है वो होंगे वो मीटिंग करेंगे और फिर जो फैसले वो लेंगे वो डायरेक्ट फंक्शन करेंगे उसको इंप्लीमेंट करेंगे है ना जैसे कि आज उन्होंने मीटिंग करी तो मैनेजर उन्हें एक साथ मीटिंग में बता देगा कि आज तुम्हें ये ये चीजें करनी है तो एंप्लॉयज जाएंगे और डायरेक्ट वो वो चीजें कर देंगे तो ये क्या हो गया एक फंक्शनल स्ट्रक्चर हो गया बस अंतर क्या आ जाता है ऊपर वाले में तो मतलब डिसीजंस लिए जाते हैं लोगों को काम बताए जाते हैं गोल सेट किए जाते हैं ना वो सब चीजें चलती हैं लेकिन इसमें एक स्पेसिफिक जॉब को फंक्शन करने के लिए ये मीटिंग की जाती है और देखिए इसमें भी ग्रुप हो सकता है है ना अब एक मैनेजर के जो नीचे काफी सारे एंप्लॉयज आ जाते हैं तो वो पूरे के पूरे ग्रुप में एक साथ मीटिंग लेते हैं है ना और इसमें क्या होता है डेली बेसिस पे उनको काम बताए जाते हैं है ना डेली नहीं तो हफ्ते में मतलब बताया जाता है हफ्ते में मीटिंग होती है रोज-रोज मैनेजर उन्हें मैनेज करता है और उन्हें बताता है कि उनका काम क्या है वो आज के दिन क्या करेंगे कल उन्हें क्या करना है परसों उन्हें क्या करना है तो उनके मतलब वो क्या-क्या करने वाले हैं तो फंक्शन रिलेटेड उनकी मीटिंग लेता है तो दोनों में अंतर समझ आ गया कमेटी मतलब बड़े लेवल पर जिसमें चेयर पर्सन हेड होता है और फंक्शनल स्ट्रक्चर में जो मैनेजर होता है वो सबसे ऊपर होता है है ना वो डेली बेसिस पर काम बताता है और जो कमेटी स्ट्रक्चर है वहां पे जो चेयर पर्सन है वो फ्यूचर के लिए काफी लंबे समय के लिए प्लानिंग वगैरह वहां पे चलती है और दोनों ही जो स्ट्रक्चर हैं वो कौन से स्ट्रक्चर है जूम वाले google3 स्ट्रक्चर में बड़ा ग्रुप होता है मतलब कई सारी कंपनिया एक साथ हो सकती है वहीं पर अगर हम फंक्शनल स्ट्रक्चर की बात करें यहां ग्रुप जो होता है वो छोटे लेवल पर होता है और अगला है मैट्रिक्स स्ट्रक्चर अब देखिए जो मैट्रिक स्ट्रक्चर होता है ना वो ऑर्गेनाइजेशन में दोनों का मिक्सचर होता है है ना एक तो फंक्शनल वाले का और कमिटी वाले का जहां पे ये लिखा हुआ है ना प्रोजेक्ट बेस्ड स्ट्रक्चर तो यहां पे कमेटी स्ट्रक्चर से ही मतलब है तो कमेटी स्ट्रक्चर और फंक्शनल स्ट्रक्चर का दोनों का कॉमिनेशन क्या कहलाता है मैट्रिक स्ट्रक्चर कहलाता है तो देखिए यहां पे जो एंप्लॉयज काम करते हैं वो डुअल रिपोर्टिंग रिलेशनशिप को परफॉर्म करते हैं डुअल रिलेशनशिप मतलब यहां पे मैनेजर को भी रिपोर्ट कर रहे हैं और फिर चेयर पर्सन जो कंपनी का जो हेड है उसको भी सपोर्ट कर रहे हैं अब देखिए इस स्ट्रक्चर में होता क्या है अब यहां पे जो मीटिंग ली जाती है अब यहां पे कौन होगा मैनेजर भी होगा चेयर पर्सन भी होगा है ना जो भी प्रोजेक्ट मैनेजर है वो होगा अब यहां पे जो एंप्लॉयज है वो मतलब क्या होगा कि वहां पे पूछा जाएगा कि वहां पे जो काम चल रहा है पहले तो मैनेजर वो आपसे पूछेगा रिपोर्ट मांगेगा आप मैनेजर को बताएंगे कि य काम इतना हो गया ये हो गया ये हो गया फिर जो मैनेजर है फिर वो रिपोर्ट किसको देगा चेयर पर्सन को देगा है ना तो अब देखिए इसमें होता क्या है मेनली जैसे जो कमेटी वाला था उसमें हमें पता है पहले डिसीजंस बनाए जा रहे थे गोल सेट किए जा रहे थे कि हमें इस ईयर तक ये ये चीज अचीव कर लेनी है है ना तो मतलब फ्यूचर के लिए वो गोल को सेट कर रहे थे कि फ्यूचर में हम ये ये काम करेंगे वहीं पर फंक्शनल वाले में क्या हो रहा था कि आज जो हमने डिसाइड करा है कि उसी दिन निपटा देंगे है ना आज हमने ये डिसाइड करा है तो आज हम ये ये करेंगे तो फंक्शनल वाले में उसी दिन निपटा दे रहे थे अब मैट्रिक्स वाले में क्या होगा कि हमें इस साल तक इतनी ग्रोथ अचीव करनी है तो उस साल का काम उसी साल में निपटा देंगे है ना तो ये मतलब ये मैट्रिक्स में क्या होता है फ्यूचर के लिए गोल सेट किया जाता है लेकिन ज्यादा दूर तक नहीं छोटे-छोटे फ्यूचर गोल को सेट किया जाता है और उनको निपटाने के लिए जल्दी-जल्दी एक्शंस लिए जाते हैं तो इसलिए यह दोनों का कॉमिनेशन है है ना जैसे कि हमें एक अगले महीने तक सेल्स को इतना इंक्रीज करना है तो अगले महीने तक जल्दी जल्दी काम को बढ़ाया जाएगा प्रोडक्शन को बढ़ाया जाएगा ताकि वह काम इस महीने तक कंप्लीट हो सके तो इसमें यह सब चीजें मीटिंग में ली जाती है तो आई होप आप तीनों में समझ गए होंगे है ना लाइन वाला तो सिंपल था दो व्यक्ति आपस में एक दूसरे से बातचीत कर ली अब कमेटी वाले में बड़े लेवल पर होता है फंक्शनल वाले प छोटे लेवल पर और मैट्रिक्स है बीच का ठीक है अब देखेंगे कम्युनिकेशन नेटवर्क्स अब देखिए आपने कई सारे इंटरव्यू वगैरह देखे होंगे तो उसमें क्या होता है कि मतलब एक गोल सी टेबल होती है वहां पे बहुत सारे लोग बैठे होते हैं और किसी एक व्यक्ति से ही सवाल कर रहे होते हैं है ना या फिर कोई भी कोई हेड होता है ना वो जब मीटिंग लेता है तो एक बिल्कुल गोल सी टेबल होगी वहां पे बहुत सारे मतलब जो भी मैनेजर वगैरह है वो सब बैठे होंगे और जो कंपनी का हेड है वो बीच में होगा तो डायरेक्ट उससे सवाल किया जाता है तो व्हील नेटवर्क में क्या होता है एक सेंट्रल फिगर होता है है ना जिससे बातचीत जो बाकी के मेंबर है वो करते हैं अब देखिए यहां पे जो मेंबर है ना वो आपस में बातचीत नहीं करते जो सेंट्रल फिगर है सिर्फ उसी से बात करते हैं तो सेंट्रल फिगर और जो मेंबर है उनके बीच में जो बात होती है वो कौन सी है व्हील नेटवर्क और अगला होता है चेन नेटवर्क अब देखिए व्हील वाले में क्या हो रहा था कि जो मेंबर्स हैं वो आपस में बात नहीं कर सकते हैं जब सेंटर फिगर है उससे बात कर सकते हैं लेकिन चेन वाले में क्या है कि जो मेंबर है वो आपस में में भी बात कर सकते हैं जो सेंट्रल फिगर है उससे भी बात कर सकते हैं और आखरी में आता है सर्कल नेटवर्क अब देखिए इसमें कोई भी सेंट्रल फिगर नहीं होता जो चाहे किसी से भी बात कर सकता है है ना जितने भी मेंबर है वो आपस में बातचीत कर सकते हैं वहां पे सब इक्वल होते हैं है ना कोई भी सेंट्रल फिगर नहीं होता सब आपस में बातचीत करके जो उनको फैसला लेना है वो लेते हैं तो एक बार दोबारा से आपको बता देता हूं व्हील वाले में क्या है कि जो मेंबर है वो आपस में बात नहीं करेंगे कोई सेंट्रल फिगर होगा उससे बातचीत करेंगे चेन वाले में क्या होगा ये जो मेंबर है आपस में भी बात कर सकते हैं और सेंट्रल फिगर से भी बात कर सकते हैं और सर्कल वाले में कोई सेंट्रल फिगर नहीं होता सब मेंबर आपस में बात कर सकते हैं अब देखिए जो चैनल है ये भी दो टाइप के हो सकते हैं एक है फॉर्मल और दूसरा है इनफॉर्मल यानी औपचारिक और अनौपचारिक अब देखिए जो भी फॉर्मल चैनल होता है वो एक ऑफिशियल पाथ होता है जिसमें जो भी एंप्लॉई या मेंबर है वह जो भी कम्युनिकेशन करेगा वो एक ऑफिशियल तरीके से करेगा है ना कोई भी ऑफिशियल मीटिंग है अगर उसमें कोई भी वो बातचीत करता तो वो चीजें ऑफिशियल होगी वो अपने बॉस को कोई भी ईमेल वगैरह लिखेगा तो वो जो ईमेल होगी वो भी ऑफिशियल ईमेल होगी है ना ऑफिस से रिलेटेड जो ऑफिशियल ईमेल वो होगी और भी कोई न्यूज़ वगैरह हो सकती है कंपनी से रिलेटेड वो चीजें भी ऑफिशियल होती है है ना कंपनी से रिलेटेड जो भी रिपोर्ट मैगजीन वगैरह जो छपती है वो सब भी एक ऑफिशियल चीजें होती हैं वहीं पर अगर हम इनफॉर्मल चैनल की बात करें तो इसका जो पाथ होता है वह अनऑफिशियल होता है है ना इसमें जो मेंबर होते हैं वो माउंट टू माउंट बात करेंगे है ना फेस टू फेस बात करेंगे तो जो भी वो बातचीत कर रहे हैं वो कहीं तो र हो नहीं रही है है ना तो वो अनऑफिशियल होती है है ना मतलब सामने वाला प्रूफ नहीं कर सकता कि आपने ये वर्ड कहा है मुझे है ना तो ये जितनी भी चीजें ये सब अनऑफिशियल होती है है ना तो ये इनफॉर्मल चैनल में आती है तो ऑफिशियल से वो होंगी जिसको आप परमाण मतलब सिद्ध कर सकते हैं जैसे कि ईमेल आप कोई भी ईमेल भेज रहे हैं तो सामने वाला कह सकता है कल को कि आपने मुझे ईमेल करा था है ना प्रूफ है उसके पास तो यही होता है ऑफिशियल और अनऑफिशियल में आप अगर कोई चीज लिख कर भी देंगे तो वो भी ऑफिशियल होती है आपने सामने वाले को कोई लेटर लिखा तो वो भी ऑफिशियल लेटर होता है अब देखिए अगली चेन होती है द ग्रेप वाइन चेन तो ये ऐसी चेन होती है अंगूर की तरह होती है है ना अंगूर कैसे एक दूसरे से लटके रहते हैं है ना तो ये वैसी चैने होती हैं और ये जो ग्रेप वाइन चेन है ये इनफॉर्मल कम्युनिकेशन में आती है क्योंकि इसमें जो भी व्यक्ति बात कर रहा है ना वो ओरली कर रहा है है ना फेस टू फेस बात कर रहा है कोई भी रिटर्न नहीं हो रहा यहां पे बातचीत अनऑफिशियल तरीके से यहां पे बातचीत की जाती है और बातचीत करने के भी यहां पे चार प्रकार दिए गए हैं जैसे कि पहला है द सिंगल चेन स्ट्रैंड अब देखिए एक इसमें ना सिंगल चेन होती है जैसे कि कोई ए वाला बंदा है वह b से कम्युनिकेशन करता है ना उसको कोई इंफॉर्मेशन देता है b वाला सी को देगा स वाला डी को देगा डी वाला e को देगा है ना ऐसे चेन चलती जाएगी तो यह एक सिंगल चेन होती है और अगला है गॉसिप चेन यानी चुगली वाली चेन अब देखिए जैसे कि तीन दोस्त होते हैं तो तीन दोस्त में से कोई दो दोस्त ऐसे होंगे जो आपस में जिनका मतलब ज्यादा ट्रस्ट होता है एक दूसरे पे व दो लोग तीसरे की फिर चुगली करते हैं आपस में चुगली इन द सेंस मतलब गॉसिप करते हैं ना गपशप मारते हैं मतलब किसके बारे में मारेंगे किसी तीसरे बंदे के बारे में तो यहां पर जो दो व्यक्ति के बीच में जो बातचीत चल रही है वो किस बेसिस पर चल रही है कि जो एक बंदा है वो दूसरे वाले बंदे पर ज्यादा ट्रस्ट करता है है ना ज्यादा भरोसा करता है है ना या तो उसका पक्का दोस्त है तो जबी व तीसरे बंदे के बारे में उसके रिलेटेड गॉसिप करता है तो गॉसिप चेन का मतलब क्या है कि दो बंदे जो आपस में बात कर रहे हैं इसका मतलब यह है कि उनमें आपस में ट्रस्ट है और अगला है प्रोबेबिलिटी चेन अब देखिए इसमें कोई फिक्स नहीं होता कि आप किसी एक बंदे को बताए है ना आपके मतलब कोई मान लीजिए आपने मान लीजिए कार खरीदी है ना अब ये तो नहीं है कि आप एक दोस्त को बताएंगे और किसी को नहीं बताएंगे अब ये तो एक ऐसी चीज है कि आप सबको बताएंगे है ना अपने पहले दोस्त को बताएंगे दूसरे दोस्त को बताएंगे तीसरे दोस्त को पड़ोसियों को बताएंगे रिश्तेदारों को बताएंगे तो ये तो ऐसी चीज आप किसी को भी बताना चाहेंगे तो प्रोबेबिलिटी चेंज में भी यही होता है कि इसमें कोई भी मतलब फिक्स बंदा नहीं होता कि आप जो ए वाला बंदा वो सिर्फ बी को बताएगा वो किसी को भी बता सकता है सी को बताएगा डी को बताएगा ई को बताएगा आएगा है ना तो प्रोबेबिलिटी चेन में कोई किसी को कुछ भी बता सकता है और आखरी है क्लस्टर चेन अब देखिए क्लस्टर चेन में क्या होता है मान लीजिए आपका बर्थडे है अब आप सारे दोस्तों को बुलाना नहीं चाहते लेकिन आपके कुछ बेस्ट फ्रेंड है उनको बुलाना चाहते हैं तो इसमें यही होता है क्लस्टर चेन में जो मतलब जो सेंडर होता है वो मतलब ऐसे इंडिविजुअल को सेलेक्ट करता है जिनसे वो उनकी मतलब घनिष्ठ मित्रता है ना जिससे वो इंफॉर्मेशन शेयर करना चाहता है है ना अब आपका बर्थडे है अब आप आपके पांच दोस्त है पांच में से सिर्फ आपको दो को बुलाना है तो आप उन दो को पर्सनली इनवाइट करेंगे कि आप मेरे बर्थडे में आ जाइए है ना तो आपको अब चारों समझ आ गए एक बार दोबारा बता देता हूं सिंगल वाले में ए बी को बताएगा बी सी को फिर सी डी को एक सिंगल चेन चलती जाएगी गॉसिप वाले में कोई दो लोग आपस में किसी तीसरे की गॉसिप या बुराई या चुगली जो भी कर रहे हैं वो आपस में करेंगे गॉसिप करेंगे है ना गप्पे मारेंगे प्रोबेबिलिटी में कोई किसी को कुछ भी बता सकता है है ना उसमें कोई मतलब देखता नहीं है कि सामने वाला कौन है क्लस्टर वाले चेन में क्या होता है कि आप स्पेसिफिक बंदों को चुनते हैं कि हां मुझे यह बात इन लोगों को बतानी है अब अगला है इफेक्टिव कम्युनिकेशन बैरियर नॉइस एंड सॉल्यूशंस अब देखिए जब भी आप बिजनेस करेंगे या फिर किसी भी कंपनी में नौकरी करेंगे तो आपको इफेक्टिव कम्युनिकेशन करना काफी ज्यादा जरूरी होता है तो जब भी आप इफेक्टिव कम्युनिकेशन करना चाहेंगे तो आपके बीच में कई सारी बाधाएं आ सकती है बैरियर्स आ सकते हैं तो देखिए वो बैरियर क्या-क्या हो सकते हैं सबसे पहला है रार कल और ऑर्गेनाइजेशनल बैरियर अब देखिए आप एक कंपनी में काम करते हैं आप छोटे से एंप्लॉई हैं अब आपको डायरेक्ट से मिलना है मान लीजिए आप google2 से बात करनी पड़ेगी फिर जाके कहीं मेन बंदा आपको मिलेगा अगला बैरियर है साइकोलॉजिकल बैरियर यानी मनोवैज्ञानिक बाधाएं यानी देखिए आपको किसी व्यक्ति से बात करनी है लेकिन वह उसकी मतलब ऐसी कोई साइकोलॉजिकल उसको बीमारी कि वो आपकी बात अच्छे से समझ नहीं सकता तो यह भी एक टाइप का बैरियर है कि सामने वाले को आपकी बात समझ ही नहीं आ रही उसका दिमाग मान लीजिए उसका दिमाग खराब है है ना वो पागल है है ना उसका दिमाग इधर-उधर भटकता रहता है ना साइकोलॉजिकली उसको कोई काफी सारी दिक्कतें हो सकती है तो ऐसे में आप सामने सामने वाले से बात नहीं कर पाएंगे तो ये भी एक टाइप का साइकोलॉजिकल बैरियर है एग्जांपल के लिए अगर आप पागल खाने में जाएंगे ना वहां पे सब पागल भरे रहते हैं है ना वहां के जो भी डॉक्टर वगैरह है वो उनसे बात करना चाहते हैं तो वो उसकी बात समझते नहीं है उल्टा मजाक उड़ाने लगते हैं तो फिर वो क्या करते हैं उनको शॉक करंट वगैरह मारते हैं उनका दिमाग थोड़ा स्टेबल होता है फिर उनसे बातचीत की जाती है तो ये साइकोलॉजिकल बैरियर बीच में आ जाता है अगला है कल्चरल बैरियर अब देखिए आप तो जानते हैं इंडिया में कितने सारे कल्चर हैं है ना अलग-अलग टाइप के कल्चर हैं तो ऐसे में एक कल्चर को दूसरे कल्चर के व्यक्ति के साथ बात करने में काफी ज्यादा दिक्कतें हो सकती हैं अगला है लिंग्विस्टिक बैरियर यानी लैंग्वेज अब देखिए इंडिया में कितनी सारी भाषाए है एक भाषा तो है नहीं हिंदी बोली जाती है बंगाली बोली जाती है मराठी बोली जाती है है ना तमिलियन भाषा बोली जाती है तो इतने सारे बैरियर है है ना सामने वाले के साथ कम्युनिकेट करना चाहते हैं है ना अब मान लीजिए सामने वाले को हिंदी नहीं आती वो बंगाली बोलता है उसको यानी इंग्लिश नहीं आती वो तमिल बोलता है तो उसके साथ आप कैसे कम्युनिकेशन कर पाओगे है ना तो ये भी एक टाइप का बैरियर है है ना अगला बैरियर है स्टाइल ऑफ प्रेजेंटेशन अब जैसे कि आपको पता ही है जब भी बिजनेसेस में कई सारी प्रेजेंटेशन के माध्यम से लोगों को काफी सारी चीजें बताई जाती हैं अब आपका प्रेजेंटेशन ही खराब है उसका स्टाइल ही खराब है तो लोगों को आपकी बात समझ ही नहीं आएगी है ना आपको अगर कोई भी ग्राफिक का यूज करना है वो आपको ढंग से करना नहीं आता है ना आपने जो वर्ड है वो काफी ज्यादा छोटे-छोटे मतलब प्रेजेंटेशन में छोटे-छोटे वर्ड्स लिख दिए लोगों को दिखाई नहीं दे रहे तो लोग आपकी बातें समझ नहीं पाएंगे ऐसी कई सारी जो मतलब मुसीबत करते हैं वो प्रेजेंटेशन में हो सकती है ना मिस्टेक्स हो सकती है काफी सारी तो इसकी वजह से सामने वाला व्यक्ति है वो आपकी भाषा समझ नहीं पाएगा आप जो समझाना चाहते हैं वो समझ नहीं पाएगा तो आपका जो प्रेजेंटेशन है वो काफी ज्यादा अच्छा होना चाहिए और क्लियर होना चाहिए जैसे कि अभी मैंने आपको पीडीएफ से पढ़ा रहा हूं ये भी एक टाइप का प्रेजेंटेशन है है ना जैसे कि मैंने साफ-साफ शब्दों में लिखा हुआ है है ना जो हेडिंग है वो भी क्लियर लिखी है अब इसको मैं बिल्कुल छोटा कर दूं आप समझ नहीं पाएंगे कि यहां पे क्या लिखा हुआ है है ना तो जो आपका प्रेजेंटेशन है वो उसका जो स्टाइल है वो बढ़िया होना चाहिए और आखिरी में है फिजिकल बैरियर तो देखिए अगर आप सामने वाले से बात कर रहे हैं कम्युनिकेशन कर रहे हैं पीछे कोई जोर-जोर से गाने बजा रहा है तो जो गाने वो बजा रहा है उसकी वजह से नॉइस क्रिएट हो रहा है तो ये जो नॉइस है ये क्या है एक फिजिकल बैरियर है और मान लीजिए आप किसी से कम्युनिकेट कर रहे हैं लेकिन वो आपसे काफी ज्यादा दूर खड़ा है ना उसको आपकी बात सुनाई नहीं दे रही है तो ये भी क्या है एक फिजिकल बैरियर है है ना जो डिस्टेंस है वो क्या एक फिजिकल बैरियर है मान लीजिए आप फोन पे किसी से बात कर रहे हो और आपका नेट स्लो चल रहा है या फिर टावर के जो सिग्नल है वो नहीं आ पा रहे हैं तो ये भी क्या एक फिजिकल बैरियर है तो यह सारे बैरियर्स होते हैं जब भी हम इफेक्टिव कम्युनिकेशन करना चाहते हैं तो यह सारे बैरियर हमारे सामने आ जाते हैं तो इन बैरियर को हमें दूर करना चाहिए ताकि हम इफेक्टिव कम्युनिकेशन कर पाएं एग्जांपल के लिए अगर मैं अपनी बताऊं तो मैं पहले जो वीडियो बनाता था उसमें काफी ज्यादा आवाज कट कटती थी है ना क्योंकि मैं पहले दूसरे मतलब जो कान में सुनने वाली लीड होती है उससे रिकॉर्डिंग करता था लेकिन अब मैंने माइक खरीद लिया तो इससे अब आपको क्या होगा जो मेरी आवाज है वो क्लियर आ रही होगी तो मैंने क्या करा जो मेरी जो फिजिकल जो बैरियर था मैंने उसको हटा दिया है ना इसकी वजह से अब मैं आपके साथ इफेक्टिव कम्युनिकेशन कर पा रहा हूं तो यहीं पे यह जो चैप्टर है यह फिनिश होता है तो आई होप मैंने आपको जितना भी पढ़ाया आपको अच्छे से समझ आ गया होगा और एक बार कमेंट करके जरूर बताइए कि जो मैंने आपको हिंदी और इंग्लिश दोनों पीडीएफ एक साथ करके पढ़ाई है इससे आपको अच्छे समझ आया या नहीं आया है ना एक बार कमेंट करके अपनी राय जरूर दीजिए और वीडियो अगर आपको अच्छी लगी है तो सब्सक्राइब करें लाइक करें और शेयर करना ना भूलिए और अगर आपको इसकी पीडीएफ चाहिए तो आपको तब तक के लिए जय हिंद