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इंटरप्लेनेटरी मिशन: वनेरा कार्यक्रम

इस इंटरप्लेनेटरी मिशन के बारे में आपने कभी नहीं सुना होगा 18 अक्टूबर साल 1967 यूएसएसआर का वनेरा फर स्पेसक्राफ्ट एक ऐसे प्लेनेट के एटमॉस्फेयर में घुसा जिसका एटमॉस्फेयर ऊपर से देखने पे तो बहुत डेंस था पर उस डेंस एटमॉस्फेयर के नीचे जिस दुनिया की कल्पना की जा रही थी वह दुनिया कल्पनाओं में हमारा अगला घर होने वाली थी उस प्लेनेट का मास उसकी डेंसिटी उसकी एटमॉस्फेरिक कंपोजीशन सब कुछ ऊपर से देखने पे अर्थ के सिमिलर थी जिस वजह से वैज्ञानिक को लग रहा था कि उन्हें नीचे अर्थ 2.0 रेडी मिलेगी और वेनेरा जैसे-जैसे एटमॉस्फेयर में नीचे जा रहा था उसे वैसे ही रीडिंग्स मिल भी रही थी प्लानेट की सतह से करीब 52 किमी ऊपर स्पेसक्राफ्ट के कैप्सूल प्रोब का पैराशूट खुल गया और वह पृथ्वी की तरफ उस ग्रह से रिलेटेड डाटा जैसे प्रेशर टेंपरेचर भेजने लगा अगले कुछ मिनट्स तक उस प्लेनेट का टेंपरेचर करीब 33 डिग्री सेल्सियस और वहां का प्रेशर अबाउट वन पीएसआई ही रिकॉर्ड किया जा रहा था व्हिच वाज इटली लाइक अर्थ और यह एक पॉजिटिव साइन था मगर जैसे-जैसे वो प्रोब नीचे गिरता जा रहा था ना वैसे-वैसे उसके द्वारा फेस किए जा रहे प्रेशर और आसपास का टेंपरेचर भी एक्सटेंसिवली बढ़ने लगा सरफेस लेवल के करीब 26 किमी ऊपर से भेजी गई रीडिंग्स में प्रोब ने 262 डिग्री सेल्सियस टेंपरेचर और 22 पीएसआई का प्रेशर रिपोर्ट किया जो उसकी रेजिस्टिंग कैपेबिलिटी से काफी ज्यादा था और कंट्रोल रूम में पैनिक की सिचुएशन चल ही रही थी कि तभी बूम एक्सट्रीम प्रेशर की वजह से वो स्पेस प्रोब सतह से 24.9 6 किमी ऊपर ही इंप्लोर और वैज्ञानिक समझ गए कि जिस ग्रह को वो सोलर सिस्टम का दूसरा हेवन यानी कि दूसरा स्वर्ग समझ रहे थे ना वो यहां पे जीता जागता नरक के बराबर है ये प्लानेट और कोई नहीं बल्कि सूर्य से दूसरा सबसे करीबी ग्रह वीनस है जहां तब तो क्या आज की टेक्नोलॉजी के हिसाब से भी जा पाना ऑलमोस्ट इंपॉसिबल है मगर इसके बावजूद रशियन वैज्ञानिकों ने दशकों पहले इतने हाई प्रेशर और टेंपरेचर में इतनी लिमिटेड टेक्नोलॉजी के साथ लैंड करके दिखाया था और इतिहास रच दी थी पर आखिर कैसे वेल आज के इस वीडियो में हम प्लेनेट वीनस के इसी सफर के बारे में बात करने वाले हैं तो हेलो गाइज मैं हूं कौशिक और चलिए शुरू करते हैं एक और नए एपिसोड [संगीत] को तो दोस्तों कोल्ड वॉर बेशक स्पेस साइंस के लिए सबसे फास्ट टेस्ट प्रोग्रेसिंग समय था यूएसए और यूएसएसआर चंद्रमा मंगल ग्रह और ना जाने किस-किस जगह को लेकर आपस में कंपीट कर रहे थे और कोशिश कर रहे थे कुछ ऐसा करने की जो सामने वाले देश से बेहतर हो अब इसमें सबसे इंटरेस्टिंग और अंडर रेटेड कहानी है वीनस की जहां नासा ने मेनर प्रोग्राम के तहत ऐसे स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया जो वीनस के पास से गुजरते हुए मरक्यूरी के पास जाने का एम रख रहे थे तो वहीं यूएसएसआर ने एम रखा कि वो वीनस के पास से नहीं गुजरेंगे बल्कि वीनस की सरफेस पे सेफली लैंड करके वहां की फोटोज और डाटा उसकी सर जमीन से धरती में ट्रांसमिट करेंगे ताकि उनकी अचीवमेंट अमेरिका से बेटर हो और वीनस की सतह पर उतरने की इसी एस्पिरेशन से शुरू किए गए मिशन को नाम दिया गया वेनेरा जो कि वीनस ग्रह को रशियन लैंग्वेज में बुलाया जाता है अब साल 1961 में इसकी प्रिपरेशंस शुरू की गई जिसमें वेनेरा वन और टू लैंडिंग अटेंप्ट करने के बजाय उसके पास से गुजरने वाले थे यानी कि यह एक फ्लाई बाय मिशन होने वाला था मगर दोनों ही स्पेसक्राफ्ट कम्युनिकेशन और टेलिमेटरी इश्यूज फेस करने के कारण लॉन्च के कुछ ही समय बाद धरती से डिस्कनेक्ट हो गए और मिशन फेल हो गया हालांकि नेरा 3 को लेकर डिजाइनिंग चेंज करी गई और इस बार उसे सरफेस लेवल तक उतारने का तय किया गया नाउ सिंस वीनस को लेकर यही कैलकुलेट किया गया था कि वहां की कंडीशंस पृथ्वी के काफी ज्यादा सिमिलर होंगी इसीलिए उस स्पेसक्राफ्ट की रेजिस्टिबल को इतना ध्यान नहीं दिया गया मगर कुछ दिक्कतों की वजह से प्रोब की इनिशियल ट्रेजे कटरी बड़बड़ा गई और प्रोब ने करीब 60000 किमी से वीनस को मिस कर दिया अब यह मिशन भी फेल ना हो जाए इसके लिए प्रोब की डायरेक्शंस को थ्रस्टर्स की मदद से सुधारने की कोशिश की गई मगर प्रोब स्टेबल नहीं हो पाया और वीनस की सरफेस पर जाकर क्रैश लैंड कर गया यूएसएसआर के साइंटिस्ट ने दावा किया कि 1 मार्च 1966 के दिन प्रोब की वीनस के सरफेस पर क्रैश लैंडिंग हुई थी जिस वजह से टेक्निकली नेरा 3 मानव इतिहास का वो पहला प्रोब था जिसने किसी किसी दूसरे ग्रह की सतह से कांटेक्ट किया हो और इसने कोल्ड वॉर में यूएसएसआर को काफी बड़ी बढ़त दी मगर वह रुके [संगीत] नहीं यूएसएसआर ने वेनेरा 4 बनाया जिसके सरफेस पर पहुंचने के पहले ही इंप्लोर जाने की वजह से सोवियत यूनियन को रियलिटी चेक मिला कि वो जिस जगह को टारगेट कर रहे हैं वो फूलों का बाग नहीं है बल्कि कांटों का समंदर था वेनेरा फाइव और वेनेरा सि को भी लैंड करवाने का अटेंप्ट किया गया मगर वो दोनों भी बीच एटमॉस्फेयर में उतरते समय फूट गए या उनकी बैटरी खत्म हो गई और यही वो समय था जब वैज्ञानिकों ने रियलाइफ किया एक मेजर प्रॉब्लम को उन्होंने देखा कि जब प्रोब्स को एटमॉस्फेयर में छोड़ा जा रहा था ना तो वो पहले तो बहुत तेजी से फॉल कर रहे थे मगर जैसे ही उन प्रोब्स का पैराशूट खुल जाता था वैसे ही उनकी फॉलिंग स्पीड काफी कम हो जाती थी मतलब अचानक से उन परे ब्रेक लग जाता था जिस कारण प्रोब्स को एक्सट्रीम प्रेशर और टेंपरेचर का सामना 90 मिनट्स तक करना पड़ रहा था व्हिच वाज प्रैक्टिकली वेरी हार्ड टू रेजिस्ट अब आपके मन में आ रहा होगा कि इतनी ही दिक्कत थी तो सीधा-सीधा पैराशूट ही हटा लेते वेल ऐसा भी नहीं कर सकते थे क्योंकि अगर पैराशूट हटा देते ना तो लैंडिंग के दौरान प्रोब स्टेबल रह के लैंड ही नहीं कर पाता और विंड्स की वजह से उसकी ट्रेजे क्ट्री चेंज होने से लेकर उसके डिस्ट्रॉय होने के चांसेस भी बढ़ सकते थे अब दोस्तों आप इस सिचुएशन में लैंडिंग स्पीड बढ़ाने के लिए क्या करते हैं वीडियो को यहां पॉज करो और नीचे कमेंट्स में लिखकर बताओ कर दिया दिया कमेंट चलो स्टार्ट करते [संगीत] हैं तो देखो इसके बाद नेरा 7 को बाकी सारे वेनेरा से कंप्लीट डिफरेंट और कई गुना ज्यादा स्ट्रांग बनाया वेसल को चारों तरफ से टाइटेनियम की मोटी लेयर से बनाया गया और अंदर शॉक एब्जॉर्ब मैटेरियल्स इंस्टॉल किए गए ताकि एक्सटेंसिव प्रेशर अंदर के इक्विपमेंट्स को डैमेज ना कर पाए और टेस्टिंग में यह पाया गया कि यह प्रोब 2600 पीएसआई का प्रेशर और 580 डिग्री सेल्सियस का टेंपरेचर झेल सकता था एज ए रिजल्ट इतनी मॉडिफिकेशन के बाद वेनेरा 7 का वजन करीब 490 किलो पहुंच गया जो बीते सभी वेनेरा प्रोब से काफी ज्यादा भारी था जिसका मतलब है कि ज्यादा प्रेशर रेजिस्ट करने के साथ-साथ ग्रेविटी इस प्रोब को इसके डिजाइन की वजह से और जल्दी नीचे की तरफ गिराती एंड दैट वाज नॉट इट वैज्ञानिकों ने नोटिस किया कि एटमॉस्फेयर के अंदर एंटर करते ही पैराशूट खुल जाने की वजह से उसकी स्पीड काफी जल्दी धीमे हो जाती थी और प्रोब को एटमॉस्फेयर के अंदर ना लंबा समय बिताना पड़ता था इसीलिए उन्होंने पैराशूट को एक ऐसे मटेरियल से बनी रीफिंग लाइन से बांधा जो कि 200 डि सेल्सियस तक की हीट रेजिस्ट कर सकती हो अब इस रीफिंग लाइन की वजह से ना पहले तो पैराशूट केवल 19 स् फीट तक ही खुलता था जिससे कि इनिशियल फेज में प्रोव की डिसेंडिंग स्पीड बढ़ी रहती थी मगर जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता था वैसे-वैसे ये लाइन मेल्ट होती रहती थी और एटमॉस्फेयर में एंटर करने के करीब 13 मिनट्स बाद रीफिंग लाइन पूरी पूरी तरह से मेल्ट हो गई और पैराशूट वापस पूरी तरह 27 स्क्वायर फीट का खुल गया प्लान बिल्कुल परफेक्टली जा रहा था और प्रोब की डिसेंडिंग स्पीड भी इतनी थी कि बिना इंप्लोर करे वो वीनस के सरफेस पर लैंड करने वाला था मगर लगता है कि प्लेनेट वीनस पर उतरने वाले इस स्पेसक्राफ्ट का शायद शनि भारी था क्योंकि रीफिंग लाइन मेल्ट होने के महज 6 मिनट्स बाद प्रोब का पैराशूट फटने लगा और लैंड करने से कुछ ही मिनट पहले पैराशूट के परखच्चे उड़ गए और वेनेरा 7 लास्ट मोमेंट पर वीनस के सरफेस पर क्रैश कर गया अब जब इसके बारे में एनालाइज किया गया तो यह पता चला कि प्रोब का एंटेना गलत डायरेक्शन में टर्न हो गया है जिस वजह से प्रोब द्वारा कम्युनिकेट नहीं किया जा सकता था और यूएसएसआर एक बार फिर से इतने पास होके हार गया या शायद नहीं हारा क्योंकि इनिशियली ऐसा लग रहा था कि वनेरा 7 कुछ भी ट्रांसमिट नहीं कर रहा है मगर जब कुछ हफ्ते बाद इस मिशन की टेप्स को रेडियो एस्ट्रोन ओलेग रिजका द्वारा रिव्यू किया गया तो उन्होंने नोटिस किया कि उन टेप्स में करीब 23 मिनट्स के काफी वीक सिग्नल्स पड़े हुए थे जो वेनेरा ने अर्थ पे ट्रांसमिट किए थे एंड दिस वाज अगेन हिस्टोरिक क्योंकि इसी ट्रांसमिशन के साथ वेनेरा 7 मानव इतिहास का ऐसा पहला मैन मेड ऑब्जेक्ट बना जिसने दूसरे प्लानेट की सरफेस से डाटा को ट्रांसमिट किया हो पर सिर्फ यही इस मिशन को लेकर बड़ी बात नहीं थी वैसे सेवन नंबर है तो इतिहास तो रचना ही था थाला फॉर ए रीजन बोले जो कोय बागों में है उस वीक डाटा के थ्रू भी हमें बहुत सी इंफॉर्मेशन मिली जैसे कि वीनस की सरफेस का टेंपरेचर 475 प्लस माइनस 20 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया और वहां का एटमॉस्फेरिक प्रेशर 1310 प्लस माइनस 220 पीएसआई रिकॉर्ड किया गया व्हिच वाज इनसेन और इतना हमारे लिए एविडेंस हो गया कि हम चाहे कितना भी टेक क्यों ना यूज कर ले वीनस में अपने स्पेसक्राफ्ट को बहुत लिमिटेड समय के लिए ही लैंड करवा पाएंगे और उसे वहां पर ऑपरेट कर [संगीत] पाएंगे खैर वनेरा 7 का क्रैश होना कंप्लीट वेस्ट नहीं गया क्योंकि हमें दो चीजें पता चल गई पहला हम अपने प्रेशर रेजिस्टेंस को थोड़ा लीनियंट कर दे तो भी कोई दिक्कत नहीं होगी और दूसरा हमें अपने कूलिंग सिस्टम को इंप्रूव करना पड़ेगा ताकि स्पेसक्राफ्ट वहां की हीट को और देर तक सरवाइव कर सके एंड साइंटिस्ट केम आउट विथ अ वेरी ग ग्रेट आइडिया उन्होंने प्रोब के अंदर लिथियम नाइट्रेट्स के ब्लॉक्स लगाए नाउ लिथियम नाइट्रेट एक ऐसा सॉल्ट लाइक सब्सटेंस होता है ना जिसे 1 डिग्री तक हीट करने के लिए तो सिर्फ 2 जूल एनर्जी पर ग्राम लगती है मगर जैसे ही ये सब्सटेंस अपना मेल्टिंग पॉइंट रीच करती है तब सॉलिड से लिक्विड में चेंज होने के लिए ये करीब 300 जूल्स ऑफ एनर्जी कंज्यूम करती है नाउ इतनी ज्यादा हीट एनर्जी अब्जॉर्ब करने की वजह से ये ब्लॉक्स सारे इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स की एक्सेसिव हीट एब्जॉर्ब कर लेते थे और उनकी ओवर हीटिंग प्रिवेंट ेंट करते थे जिस वजह से स्पेसक्राफ्ट को वीनस की सरफेस पर रहने के लिए ज्यादा समय मिलने का जुगाड़ बन गया और केवल यही नहीं स्पेसक्राफ्ट के प्रेशर रेजिस्टेंस को डिक्रीज करके 105 बार तक ले आया गया ताकि कॉस्ट कटिंग करते हुए प्रोब में और ज्यादा इक्विपमेंट्स फिट किए जा सके और सारी प्रिपरेशंस के बाद एक बार फिर से साल 1972 में वेनेरा 8 मिशन वीनस की तरफ भेजा गया और सब कुछ परफेक्टली एग्जीक्यूट होने के बाद वेनेरा इट ने 22 जुलाई 1972 के दिन सरफेस पर सेफली लैंड किया और हमें इस बार काफी सारे स्पेसिफिक डिटेल्स भेजी जैसे कि सरफेस से करीब 30 से 35 किमी ऊपर अचानक से प्लेनेट की लुमिनोसो जाती है और 10 किमी से कम के एल्टीट्यूड पे वीनस की विंड स्पीड 1 मीटर पर सेकंड तक गिर जाती है एक्सेट्रा बट दिस वाज नॉट इट लैंड करने के बाद करीब 50 मिनट 11 सेकंड्स तक लैंडर वीनस से धरती की तरफ डाटा भेजता रहा और फिर वहां की हार्श कंडीशन की वजह से बंद हो गया इस 50 मिनट का मतलब यह था कि वैज्ञानिकों ने वहां के एक्सट्रीम टेंपरेचर को टैकल करने का एक बेहतरीन सॉल्यूशन ढूंढ लिया था और वेनेरा ट के फोटोमीटर ने यह भी डिटेक्ट करके धरती पे भेज दिया कि वीनस में उतनी ही विजिबिलिटी है जितनी कि धरती पे होती है जिसका मतलब कि वहां कैमरे की मदद से इमेजेस कैप्चर करी जा सकती है अब जिन्हें नहीं पता उन्हें मैं बता दूं कि फोटोमीटर लाइट को इलेक्ट्रिक करंट में कन्वर्ट करता है और फिर उस डाटा को अर्थ पर भेजता है अब जितनी करंट की स्ट्रेंथ होती है उतनी स्ट्रांग सनलाइट और इसी से मेजर किया जाता है कि उस जगह पर रोशनी कितनी है अब इन डिटेल्स को जानने के बाद नेरा नाइन पे काम शुरू किया गया और इस बार प्रायोरिटी थी एक ऐसे प्रोब बनाने की जो वीनस से फोटोज को लेकर अर्थ पे भेज सके और इसके लिए प्रोब को कंप्लीट रीडिजाइन किया गया पैराशूट की जगह एयर ब्रेक्स इंस्टॉल किए गए और नीचे एक फ्लैट प्लेटफार्म बनाया गया ताकि लैंडर जहां कहीं भी लैंड करें वहां पे इस्टैब्लिशमेंट ले सके अब देखो कैमरा को भी ऐसे ही ओपन में एक्सपोज करते तो वो डिस्ट्रॉय हो सकते थे इसलिए कैमरा को प्रेशर वेसल्स के अंदर रखा गया और प्रेशर वेसल्स के एंड में लेंसेक्स के और एक 180° इमेज ली जा सके इन कैमरा के ऊपर एक लीड लगाई गई जो डीसेंट के समय इन्हें प्रोटेक्ट कर सके और लैंड होते ही पॉप होके नीचे गिर जाए वैसे तो वनेरा 9 में दो कैमरा इंस्टॉल किए गए थे मगर उनमें से सिर्फ एक ही लैंड होने के बाद फंक्शनल था और सालों के संघर्ष के बाद ये रही वीनस की पहली खूबसूरत तस्वीर इसके बाद वेनेरा 9 से लेकर वेनेरा 14 तक सबने वीनस की ढेरों तस्वीरें खींची एंड ऑनेस्टली स्पीकिंग इतने पास से किसी दूसरे ग्रह को देख के मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे यह नजारे मुझे इतने ज्यादा खूबसूरत लगे हालांकि इस इतिहास को देखने के साथ-साथ आपके कानों को भी सुकून मिले इसलिए हमने नेरा 14 द्वारा रिकॉर्ड की गई लैंडिंग के दौरान की रेयर ऑडियो रिकॉर्डिंग्स जुगाड़ी एंड ट्रस्ट मी इन्हें फील करके आपके रंग टे खड़े हो [संगीत] जाएंगे तो दोस्तों यह था इतिहास का एक ऐसा एक्सप्लोरेशन जो अपने आप में इतना इंस्पिरेशनल है कि क्या कहा जाए पर इसके बारे में ना बहुत ही कम लोगों को पता है यह बड़े ही ताज्जुब की बात है इसे हम एक तरह से वेस्टर्न प्रोपेगेंडा भी कह सकते हैं कि उन्होंने रशिया के इस बड़े अचीवमेंट को फैलने ही नहीं दिया और हमें पता ही नहीं चल पाया हमें केवल यही पता है कि यूएसए ने नासा ने कहां-कहां लैंड किया है उन्होंने कहां इंसानों को भेजा लेकिन रशिया ने क्या काम किया था यह आपको नहीं पता होगा अगर वीडियो पसंद आई तो इस वीडियो को लाइक कर देना और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करना और मुझे नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताना कि वीनस की इस असल इमेज को देखकर आपको क्या लग रहा है मतलब आपके अंदर से कैसी फीलिंग आती है इस तस्वीर को देखकर नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर बताओ और अगर आपको ये वीडियो पसंद आई ना तो आपको ये वाली वीडियो भी डेफिनेटली पसंद आएगी जिसमें हमने बात किया है एवेलोन एक्सप्लोजन के बारे में एवेलोन एक्सप्लो एक ऐसा टाइम पीरियड था जो वैज्ञानिकों के अकॉर्डिंग ना कभी एजिस्ट ही नहीं करना चाहिए था एक ऐसा टाइम पीरियड जब सिंगल सेल्यूलर ऑर्गेनिस्ट म से मल्टीसेल्यूलर ऑर्गेनिस्ट मस तेजी से बढ़ गए थे लेकिन यह जो टाइमलाइन है यह हमारे इतिहास में बैठना ही नहीं चाहिए था पर फिर भी यह एजिस्ट करता है आखिर क्या है माजरा इस पूरी कहानी का यहां पर टैप करके जाकर देखो बहुत इंटरेस्टिंग स्टोरी है मैं मिलता हूं आपको नेक्स्ट एपिसोड के साथ तब तक के लिए बाय जय [संगीत] हिंद हम