ये [संगीत] जो जीवन की दशा को सुधारने का समय मिला है बस इसमें हम सावधान रहे यदि हम किसी की स्तुति और निंदा परक वाणी बोलेंगे तो द्वैत भाव दृढ़ होता है कोई दूसरा है यह जब तक भाव रहेगा तब तक भगवत प्राप्ति में बहुत बड़ा विघ्न है आंतरिक भाव में बहुत जल्दी अध्यात्म की ऊंचाई पर भक्ति की भूमिका पर पहुंचने के लिए उपासक को यह सुधार करना अनिवार्य है किसी की किसी भी तरह चर्चा नहीं होनी चाहिए अगर हो तो भगवत भाव को पुष्ट करने वाली हो हम अधिक समय और अधिक भजन व्यर्थ कर देते हैं वाणी के अपराध के द्वारा जिसे हम महत्व नहीं देते शारीरिक अपराध तो बहुत ही अज्ञानता की बात है पर अधिकतर अपराध वाणी से बनते हैं उपासक को हर समय यह सावधानी रखनी है बोलना है तो भगवत वार अपने प्रियालाल के विषय में या किसी महा भागवत के सिद्धांत पावन उपदेश पावन चरित्रों में नहीं तो वाणी को मौन रखना है प्राय हम देखते हैं य वाणी बड़ी मलिन वृत्ति प्रकट करने वाली बहुत ही प्राप्य से युक्त कर देने वाली चेष्टा करती है कुछ लेना देना नहीं बैठे तो कोई ना कोई व्यक्ति हमारे सामने होगा आंतरिक दृष्टि में कहीं उसके गुण वर्णन कर रहे हैं कहीं उसके दोष वर्णन कर रहे हैं आप देखिएगा हृदय में यह हमारी साधना को बहुत ही मंद और हृदय को मलिन कर देती है वाणी ताते मौन रहबो उचित है सि ध्रु दास जी ने कहा है मौन से बहुत बचाव हो जाता है संकल्पित मौन मत रहिए विचार मौन सबको रहना चाहिए अनावश्यक भाषण बोलना अपराध ही मानो देखना जब आपकी वाणी खुले अर्थात वाणी की दशा में हो तब आप अपनी वाणी को सावधानी पूर्वक निरीक्षण कीजिए किसकी चर्चा कर रही है यदि आप सावधान नहीं है तो किसी व्यक्ति की किसी वस्तु की किसी स्थान की या तो अनुकूलता जनित गुण चर्चा कर रही होगी या प्रतिकूलता जनित दोष चर्चा कर रही होगी और इसी से हमारा जो साधन पथ है व बहुत शिथिल मंद गति हो जाता है हम जान नहीं पाते और श्री धाम वृंदावन में तो एक बहुत बड़ी सूक्ष्म बात है हमें परिक्रमा करते हुए एक संत भगवान मिले थे तो उन्होंने ऐसे स्वाभाविक कृपा करते हैं उन्होंने कहा कि बाबा एक बात ध्यान रखना अगर यहां लाभ प्राप्त करना है तो किसी के विषय में दोष दर्शन मत करना और किसी के दोषों का वर्णन मत करना नहीं तो जिन दोषों का आप वर्णन करेंगे वही दोष आप में बहुतायत रूप से हृदय में हो जाएंगे परिक्रमा में खड़े होकर उन्होंने कहा था उस बात का अनुभव भी हुआ है अगर हमने किसी के दोषों का वर्णन किया है तो बहुत हृदय जला है और ऐसा अनुभव हुआ कि वह दोष हम में है इसलिए परमार्थ के उपासक को माया दोष दर्शन कराएगी इसका काम है जैसे भक्ति निर्दोष दृष्टि लाती है तो माया दोष दृष्टि लाती है जहां आपको किसी पर दोष दिखाई दे तत्काल अंतर में लौट आपकी अंतर दृष्टि में वह दोष है इसीलिए आपको बाहर वह दोष दिखाई दे रहा है यदि अंतर दृष्टि में आप निर्दोष भगवत भाव में स्थित है तो आपको सारा संसार अपना प्रभु दिखाई देगा पक्की बात तो जब हमारे में ही दोष है तो फिर हम वर्णन क्या करें किसी के दोषों का अपने हृदय को हमें पावन करके प्रियालाल के प्रेम रस से भरना है किसी पर यदि किसी को दोष दिखाई देता है तो वह दोष अपने में होता है इसलिए बाहर दोष दिखाई देता है यह बड़ा अहंकारी है यह व्यभिचारी है यह पापी है यह नीच है तो सच्ची मानिए आपके अंदर वह वृति है तभी आप बाहर उस वृत्ति का दर्शन कर रहे हैं नहीं तो देखो महापुरुषों ने देखा अपने आराध्य देव को जित देखू तित श्याम मई और क सियाराम में सब जग जानी वो क सवम लमदम ब्रह्म तो इसका मतलब हमारी वृत्ति दूषित है तो तेरे भावे जो करे भलो बरो संसार नारायण तू बैठ के अपनो भवन बुहार हमें अपना हृदय पावन करना है जिससे हमारे प्रिया प्रीतम हमारे हृदय में आकर विराजमान हो जाए य गौर श्याम जोरी हर समय मंद मंद मुस्कुराती हुई लीला परायण हमारे हृदय निकुंज में सदैव लीला करें हमें यही आराधना का फल प्राप्त करना है पर हम सावधान नहीं रहते वाणी को हम एकदम खुले हुए हैं और यह नहीं सोचते कि बड़ा सा बड़ा अपराधी शिष्य बन जाता है बहुत विचार पूर्वक वाणी बोलिए और उसमें देखिए कि प्रिया प्रीतम है कि नहीं आपकी वाणी में गुरुदेव भगवत प्रेमी महापुरुष इनकी चर्चा है कि नहीं नहीं है मौन हो जाइए आप भगवत प्राप्ति के मार्ग में चले हैं अब आप अगर चूक करेंगे तो फिर यह वाणी का अपराधी आपको धाम की जो महिमा है उसमें डूबने नहीं देगा आपसे हृदय की बात कहते हैं यहां साधन कम और लाभ बहुत ज्यादा मिलता है धाम है ना अगर कुछ भी साधन ना हो केवल आपसे अाधव तो स्वयं आध्यात्मिक उन्नति आपकी यहां वास करने मात्र से होने लगेगी आप में दिव्यता आने लगेगी क्योंकि आप धाम वासी हैं आपके मन की मलिन चंचलता विषय प्रियता यह सब धाम की कृपा नष्ट करने लगेगी पर धाम में में रहते बसों वर्ष हो जाते हैं और हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती भगवत प्रेम प्रकाशित नहीं होता उसका कारण है असाधारण हुआ कि वो क्रिया में परिणित हो जाएगा वही दोष जो आप दूसरे पर देख रहे हैं दूसरों का दोष आप निंदा रूप में वर्णन कर रहे हैं वही आपके हृदय में जागृत पक्का हमने देखा है अपने हृदय में देखा संतों की वाणी का अनुभव किया है अगर हमसे गलती हो गई तो हमें गलती माननी पड़ी है प्रणाम करना पड़ा है बार-बार पश्चाताप करना पड़ा कि हमसे त्रुटि हो गई हमारी दृष्टि ठीक नहीं थी हमने दोष दर्शन किया हमें क्षमा करो आचार्य से गुरुदेव से जिसके प्रति दोष दर्शन हुआ उससे इसलिए सबसे प्रार्थना है वाणी बहुत संभाल कर बो आवश्यक है तो बोलिए नहीं तो भोरी सखी का यह दोहा याद कर लीजिए ना काहो सो बोलबो ना कोई व्यवहार अपनी कुंवर किशोरी को जियत निहार निहार आ इससे बढ़कर कोई बात नहीं है ना काहो सो बोली बो उदासीन रहो ना कोई व्यवहार हमारा परमार्थ और व्यवहार लाडली जो है हमारा व्यवहार भी उन्हीं से चलता है हमारे शरीर की आवश्यक सामग्री हमारे शरीर की व्यवस्था हमारे आराध्य देव के द्वारा होती है और हमारे परमार्थ की उन्नति परमार्थ की दृढ़ता आराध्य देव के द्वारा होती है हमारे व्यवहार और परमार्थ सब कुछ हमारे आराध्य देव युगल सरकार है बस फिर हमको किसी से व्यवहार जनित ार क्या करनी परमार्थ जनित वार्ता तो हमें केवल केवल रसिंक संग से प्राप्त होगी जहां में लाडली जू मिलेंगी परमार्थ का विविध स्वरूप है विविध साधनाएं हैं उनका विविध फल है वह सब हमें नहीं चाहिए हमें प्रिया प्रीतम चाहिए वह मिलेंगे रिसिको की कृपा से तो अगर हमें परमार्थ संबंधी वार्ता करनी है तो इष्ट मिले और मन मिले मिले भजन रस रीति तहा निशंक होए मिलिए तास कीज प्रीति बहुत मिले सो संग नहीं बहुत प्रकार के भक्त जन है बहुत प्रकार की भावना वाले जन है हम बहुतों का संग करेंगे तो हमारे विचार में हमारे भाव में संक्रामक भाव आ जाएगा इष्ट प्रियता इष्ट की आराधन की रस रीति वो हमें रस कों से प्राप्त होगी तो बस प्रेमी रस कों से संभाषण करना भजन है अन्य मौन रहना अगर हमारा यह बात करने का स्वभाव नहीं बदला ना जो मिला उसी से खड़े बात कर रहे हैं या जो पास आया निंदा स्तुति बहुत जल्दी अंतःकरण मलिन होता है यहां श्रीधाम वृंदावन अपना नशा चढ़ाता है ऐसा अनुराग बढ़ता अनुराग धाम है पर हमारे हृदय में क्यों नहीं बढ़ रहा मानते हैं आप शरीर से ऐसे अपराध नहीं करते होंगे पर वाणी से करते हैं वाणी को मौन रखिए ज्यादा बात करने का स्वभाव छोड़िए आवश्यक बात कीजिए नहीं तो नाम जप कीजिए नाम में लोभ जागृत हो जाए एक एक नाम आपको बहुत कीमती लगने लगे यह प्रियालाल से प्राथना कीजिए कि आपको प्रियालाल के नाम में प्रीति हो जाए नाम में प्रीति ना होने के कारण हम ग्राम्य वार्ता लोक वार्ता विषय वार्ता यह सब करते रहते हैं क्या हम उपासक हैं यदि हम ग्राम में वार्ता करते लोक वार्ता करते संसार राग द्वेष की वार्ता करते नहीं नहीं हमारे पास समय नहीं है रूप छके घूमत रहे तन को तनिक न भान यह हमारा मार्ग है हमारे हृदय में जलन होनी चाहिए विरह कमंडल कर लिए बैरागी दो नैन मांगत दरस मधु करी छके रहत दिन रन नेत्र हमारे वैरागी हो गए अब प्रियालाल की रूप झाकी के सिवा कुछ देखना ही नहीं चाहते हमारे प्राणों का पोषण जैसे माधु कररी वृत्ति से होता है तो हमारे प्राणों का पोषण प्रियालाल के नाम गुण रूप से होता है इसे कहते हैं मदगर मत चित्ता मदगदीपेट प्रियालाल के यश से होता है अगर प्रियालाल का यश सुनने को ना मिले प्रियालाल की बातें सुनने को ना मिले तो हृदय में पीड़ा होनी चाहिए बावर सोरस में फिरे खोजत नेह की बात कोई प्रेम बात कोई प्रियालाल की बात कोई प्रियालाल के महा भागवत की बात सुना दे एक एक इंद्रिय हमारी आराध्य देव में लगे यह आप सावधानी से निरीक्षण करते रहिए आप ही अपने न्यायाधीश हैं शास्त्र और सदगुरुदेव की वाणी को सामने रखकर अपने आचरण को जांच अपनी इंद्रियों की चेष्टा को जांच अपने मन के संकल्प विकल्प को जांच और जहां त्रुटि हो तो नाम बल लेकर के भगवत चरणों का बल लेकर के उस त्रुटि को त्याग हम इस जीवन में रमने नहीं आए जीवन मुक्त होने आए हैं यह जो हमें अवसर मिला है परम पावन श्री धाम वृंदावन की भूमि में बैठकर सिद्धांतों की चर्चा भक्तों की चर्चा प्रभु की चर्चा अब हम अपने को मुक्त करने के लिए आए हैं हर वासना से हर द्वंद से हर समस्याओं से जन्म मरण से अब हम मुक्त करने की चेष्टा कर रहे हैं तो यदि हम व्यवहार करेंगे प्रपंच की वार्ता करेंगे तो हम बंध जाएंगे वह वाणी से ऐसा कर्म बन जाएगा जो हमारे जीवन मुक्तता में बाधा पहुंचा देगा सोया हु अहंकार जग जाएगा अहंकार जगा तो जन्म मरण पक्का अहंकार गलित हो गया बात पक्की हम जीवन मुक्त हो गए इसलिए सावधानी पूर्वक निरंतर नाम जप का अभ्यास लीला गायन और अपने वाणी को मौन का विशेष आश्रय दीजिए स्वभाव बना लीजिए ना बोलने का किसी किसी का स्वभाव होता है बस लगे ही रहते हैं बातचीत करने में यह साधक का स्वभाव ठीक नहीं चल रहे हंसते हुए बात नहीं नहीं बात करना है पूज्य पंडित गया प्रसाद जी की जीवनी में देखा अगर बात परिक्रमा चल र कोई बात कर रहा है तो या तो मौन इशारा कर दिया य संत जन कोई भागवती की बात कर रहे तो खड़े हो गए बात की फिर परिक्रमा प्रणाम किया चल दिया हमारे एक एक कदम प्रदक्षिणा ही है हम प्रियालाल को जीवन समर्पित कर दिए हैं तो हमारा जहां भी चलना है वो परिक्रमा ही है हम जो भी बोलते हैं वह स्तुति ही है हम जो भी करते हैं वह पूजा ही है क्योंकि भगवत समर्पित जीवन के द्वारा जो कर्म होते हैं वह सब योग बन जाते हैं कर्म कर्म नहीं योग बन जाते हैं इसलिए हम अपनी बुद्धि को पवित्र रखते हुए ठीक निर्णय करें यह बुद्धि मलिन हो गई तो ठीक निर्णय नहीं कर रहे इसकी मलिन होता का त्याग कीजिए ना किसी से बात करने की रुचि हो जाए ना किसी से व्यवहार करने की रुचि बस समझ लो कि हमारा परमार्थ सुंदर चल रहा है अब चलो अकेले बैठे किसी से मिलते हैं यह परमार्थ का स्वरूप नहीं एकांत बैठना सीखो कभी तो एक घंटा तो ऐसा निकालो 24 घंटे में सेवाद शं बैठे मन की दशा को निरीक्षण करो कहां जा रहा है क्या प्रियता बची है मन की अंदर से यह किस भोग की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहा है और फिर डांट लगा उसको विवेक के द्वारा उसको विचार के द्वारा उसको समझाओ समझ जाता है जब आप उस विचार शून्य होकर मन को छूट दे देते हैं तो संकल्प विकल्प करके भोग क्रियाओं में फस जाता है साधक ऐसा नहीं होता साधक विचार करके मन को समझाता है जब मन नहीं समझता है तो उसके उपेक्षा कर देता है जा तुझे जहां जाना है राधा राधा राधा वह कुछ नहीं कर सकता है यह जीवन जीवन मुक्त होने के लिए है जीवन मुक्तता की तरफ तुम्हारे कदम बढ़ रहे हैं इसकी पहचान जब आप शांत बैठे तो आपके हृदय में अपने आप प्रियालाल का स्फुरण होना चाहिए यदि किसी व्यक्ति की झांकी आती है कोई वस्तु का दृश्य आता है कोई भोग सामग्री अभी आप उसमें फसे हैं यह पहचान है जीवन मुक्तता की तरफ कोई चाह नहीं अन्य कोई स्मृति नहीं एक मात्र कल सुना महर्षि मारकंडे जी छह मनवचा होकर भगवान के चिंतन में छय मनवचा होता है युग नहीं मनवचा नहीं हो सकते तो हम प्रयास तो करें ना जब हम कहीं एकांत बैठे हो क्रिया रहित हो तो हमारी वृत्ति कहां है मोबाइल में है मोबाइल के नंबरों से संपर्क में है या कोई भोग क्रिया का चिंतन या कोई भग सामग्री का चिंतन या किसी रिश्ते नाते व्यक्ति का चिंतन यह हमारे लिए बहुत बंधन है अंदर की बात तत्काल इसको काटना सीखो नहीं नहीं और श्यामा श्याम राधा वल्लभ श्री हरिवंश चिंतन यह आपकी आंतरिक सुधार की बात है आपको आंतरिक आनंद का अनुभव होने लगेगा हृदय कृत कृत्य का अनुभव करने लगेगा फिर किसी के उपदेश की आपको जरूरत नहीं रहेगी आपके चित्त का समाधान हो गया तो पवित्रता आपके रोम रोम में आनंद आपके रोम रोम में वह तो भक्त जन रंजन प्रभु है उनकी चर्चा सुनना व्यसन हो जाता है भक्तों की चर्चा सुनना व्यसन हो जाता है अब उसको कोई जानकारी नहीं चाहिए उसके चित्त का समाधान हो गया है केवल अपने प्रभु में लगा हुआ है यह बड़े-बड़े ऋषि मुनियों संत महात्माओं और शास्त्रों की सार बात आपको बता रहे हैं जब आप एकांत बैठे तो यदि आपके एकांत चिंतन में कोई व्यक्ति आ रहा तो आपका राग है या द्वेष है कोई वस्तु कोई व्यक्ति कोई स्थान कोई घटना कोई परिस्थिति यही मन फेंकता है अभी आप जीवन मुक्तता की तरफ नहीं है काटिए उसको उदासीन हुइए विचार के द्वारा उसको रोक रुक जाता है शांत हो जाता है मन जब उसको डांट लगाओ तो शांत हो जाता है हमारा मन ऐसा निश्चल हो जाए जैसे एकांत में रखा हुआ दीपक उसकी जयोती बिना हिले डुले अखंड जलती ऐसे ही हमारा मन शांत होकर केवल प्रियालाल के नाम में रूप में डूब रहा है कैसे उस आनंद का कोई वाणी के द्वारा वर्णन कर सकता है जिसका मन निश्चल होकर प्रभु में लग गया है असाधारण स्थिति प्राप्त करने के लिए भगवान आदेश करते हैं सुख दुखे समय कृत्वा लाभा लाभ जया जयो सुख दुख में समान रहो लाभ हानि में समान रहो और विजय और पराजय में समान रहो तो तुम असाधारण स्थिति को प्राप्त होगे कोई का हुआ पूरा हुआ नहीं हुआ जैसे श्री जी की इच्छा प्रयास हमारा लाभ हुआ या हानि समान भाव हम धर्म से चल रहे हैं हम ठीक से चल रहे हैं कोई निंदा करे या स्तुति करे जय हो या पराजय हो सुख हो या दुख हो यह अध्यात्म मार्ग के पथिक का स्वरूप है यह देखो भागवत मार्ग है य चढ़ाई वाला मार्ग है जब हम इस पर चलते हैं तो कोई सहयोगी नहीं होता पग पग पर दुख अपमान क्लेश और आंतरिक युद्ध काम क्रोध आदि का आक्रमण पर जो गुरुजनों के द्वारा दिए हुए मंत्र उपासना में दृढ़ है उसे कोई परास्त नहीं कर सकता अन्यथा फिर सलाह लेने का विचार आता है चार लोगों से कि भाई बड़ी समस्या वो तुम्हें निश्चित परमार्थ से बिलक कर देंगे परमार्थ के संबंध की सलाह केवल केवल महापुरुषों से ली जाए भगवत प्राप्त महापुरुषों से अन्यथा भ्रमित हो जाओगे गिर जाओगे परमार्थ से भगवती उमा जी शिव पुराण में पढ़ा बहुत कठोर तप में संलग्न है महादेव जी के लिए यह सप्त ऋषियों के बाद की बात है जब सप्त ऋषि गए उसके बाद की बात तो भगवान महादेव जी एक ब्रह्म ऋषि के रूप में गए तो यह सिद्धांत है कि चाहे आप आसन पर बैठे हो अगर आपका ध्यान बाहर है और आपको पता चला कोई संत आया है तो खड़े हो जाना चाहिए आसन से यह मर्यादा है नहीं तो आपका तप क्षीण हो जाएगा प्रणाम करो चाहे भले छोटी अवस्था कहो आपके सामने आया है व अतिथ है भगवत स्वरूप है और आसन दीजिए और फिर मधुर वार्ता कीजिए क्या सेवा करें आपकी बस इतना ऐसा ही भगवती ने किया खड़े होकर प्रणाम किया आइए विराज क्या सम्मान करें क्या स्वागत करें स्वागत की बात नहीं हमने सुना महादेव जी को पति बनाना चाहते हो हां ये तो हमारा दृढ़ निश्चय है तो क्या है उस भूत भावन में चिता की भस्म लगाता है भूतों का सरदार है ना कोई महल है ना कोई व्यवस्था है आप इतनी सुंदर और उनको में मुंडो की माला सर्प की माला जटा जूट का बवंडर भस्म लगाए घूमता है उसको तुम पति वण करना चाहती हो भगवती ने कहा बस बस बस यदि आपको आतिथ्य रूप में स्वीकार ना किया होता तो पहली दृष्टि में ही तुम्हें भस्म कर देती तुमने हमारे प्रीतम की निंदा की बस अब अगर एक भी शब्द आप बोले तो आप परिणाम समझ सकते हैं पर काहे को रु के भगवान शिव थे फिर शुरू कर भगवती ने कहा कि हमारे पिता हिमालय भी ब्रह्म ऋषियों का सम्मान करते हैं और हिमालय के आश्रय में ही रहकर व सिद्धि प्राप्त करते हैं इसलिए मेरा विचार हुआ कि जिसका आदर करना चाहिए उसको तो भस्म नहीं करेंगे पर इन कानों ने शिव निंदा सुनी है इसलिए मैं अपने शरीर को अभी भस्म कर प्रकट हो गए म नहीं बस बस महादेव जी नहीं कोई और नहीं मैं स्वयं हूं मैं देख रहा था कब तक देखते रहोगे बोले बस अब लगन ही टने वाली है तो अपने आराध्य देव और इष्ट देव की कोई अवहेलना करे धर्म की अवहेलना हो और हम क्षमा क्षमा ऐसा उस समय नहीं ऐसा नहीं फिर आप पतित हो जाएंगे फिर ऐसा नहीं लेकिन अगर हमारी कोई इच्छा के विरुद्ध तो हमें सहना चाहिए सहनशीलता हमारा पर परम धर्म है झूठ से सत्य बहुत ऊंचाई पर है क्रूरता से दयालुता बहुत ऊंचाई पर है तेजस्वी वही है जो क्रोध को भीतर ही भीतर शांत कर ले जो उत्पन्न हुए क्रोध को अपनी विवेक बुद्धि से दबा लेता है वही तत्व बोध प्राप्त करता है सर्वम लमदम क्रोधी मनुष्य ठीक ठीक समझ नहीं पाता उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए इसलिए सदाचारी उपासक को चाहिए कि जब मूर्ख लोग उसे निंदा करें अपमानित करें तो उसे क्रोध को दबाना ही परम तेज माने बाल भूत विवस मतवारे ते नहीं बोले वचन बचारे तिन करर कहा सुनी नहीं खाना चल देना चाहिए यदि कोई अपने को सता तो सहना चाहिए यदि कोई औरों को सता रहा है आप में बल है तो फिर क्षमा नहीं फिर रक्षा करो पर आज का समय तो इतना विचित्र हो गया है कि सामने आपके कोई अत्याचार कर रहा है तो आप और पतली गली से निकलना चाहेंगे सामने नहीं आना चाहेंगे बार एक गाय जो ट्रैक्टर के पीछे जोतने वाला यंत्र होता है उसमें ऐसे जो फसाया जाता है वो इतना होता है तो एक नवीन गाय थी उसका पैर पता नहीं क्यों क्यों उसमें ऐसे चला गया और रात्रि में 11 बजे वापस होते थे यमुना जी की तरफ से तो देखा कि वो फसी उसमें अब एकदम घबरा गए तो दो चार लोग जाते भैया अगर सहयोग करोगे तो इसको पकड़ के सीधा पैर को उठा दिया जाए तो टूटने से बच जाएगा कोई कोई आसपास अब क्योंकि उतने बड़े वजन को कैसे उठाया जा सकता है अब हम उसका पैर पकड़े कि अगर ऐसे वैसे ई तो टूट जाएगा नई बछिया थी अगर चार लोग वो सहयोग दे देते तो पैर ऐसे पकड़े जिससे इधर-उधर नहीं कर पाए और उसे उठा लिया जाए तो इतना ही पैर अंदर था हम दौड़ते रहे पर वो मारा झटका ऐसे टूट गया पैर और ऐसे लड़खड़ा कोई सहयोग नहीं देने वाला आपको इसी रोड में कोई पीट रहा हो ना तो हो सकता है कि मोबाइल से वीडियो बना लिया जाए मनोरंजन के लिए पर उसको बचाया नहीं जाएगा समय वीडियो बनाने में लगाएंगे बचा में नहीं लगाएंगे यह धर्म कहता है कि यदि कहीं किसी असहाय को कोई ऐसा पीड़ा पहुंचा रहा है उस समय क्षमा नहीं परहित लाग तज जो देही संतत संत प्रशंसा तेही किसी स्त्री को कोई सता रहा है किसी असहाय को कोई सता रहा है प्रार्थना करें बल का प्रयोग करे उसकी रक्षा करें यह सब बातें अब अपने लोगों की स्सुख वां छा बुद्धि है कौन झंझट में फसे चलो यार मरने दो कोई किसी का एक्सीडेंट हो तड़प रहा है यार कौन इस झंझट में नहीं वो झंझट तुम्हारे साथ भी हो सकती है कभी भगवान ना करे किसी को अगर किसी को ऐसी संकट अव्यवस्था है तो आप अगर वाहन से हो तो पहला का जो होगा भगवान देख रहे हैं पहला काम करो उठाओ उसको अस्पताल ले जाओ उसकी पीड़ा की निवृत्ति के लिए उपाय करो तो भगवान तुम पर प्रसन्न हो जाएंगे उस समय नहीं ये स्वार्थ बुद्धि नहीं होनी चाहिए यदि कोई आपको सतावे तो क्षमा कर दे लेकिन कोई असहाय को [संगीत] सतावे ली बन के मैं मधुबन में डो लूंगी तितली बन के मैं मधुबन में डोलू मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी तितली बनके मैं मधुबन में डोलू तितली बनके मैं मधुबन में डो लूंगी [संगीत] [संगीत] कभी कान्हा के मुकुट में झुप जाऊंगी कभी राधा के चुनर से लिपट [संगीत] जाऊंगी कभी कान्हा के मुकुट में छुप जाऊंगी कभी राधा के चुनर से लिपट जाऊंगी मैं तो लाज का घूंघट पट खोल लूंगी मैं तो लाज का घूंघट पट लूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी पितली बनके मैं मधुबन में डो लूंगी पितली बन के मैं मधु बनने बोलूंगी [संगीत] [प्रशंसा] मैं तो कदम की डाल पर बैठूंगी कान्हा कैसे चुराए चीर [संगीत] देखूंगी मैं तो कदम की डाल पर बैठूंगी कान्हा कैसे चुराए चीर देखूंगी अपनी भक्ति का मैं रंग रस घोलू अपनी भक्ति का मैं रंग रस लूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी तितली बन के मैं मधुबन में डो लूंगी तितली बन के मैं मधुबन में डो लूंगी [संगीत] [संगीत] [संगीत] उनके चरणों की दासी मैं हो जाऊंगी मैं तो भक्ति भजन में खो जाऊंगी [संगीत] उनके चरणों की दासी मैं हो जाऊंगी मैं तो भक्ति भजन में खो जाऊंगी अपनी भक्ति को ना धन से तो लूंगी अपनी भक्ति को ना धन से तो लूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी मैं तो राधे राधे राधे श्याम बोलूंगी तितली बन के मैं मधु बन डो लूंगी तितली बन के मैं मधु बनने डो लूंगी तितली बन के मैं मधुबन में डो लूंगी तितली बन के मैं मधुबन में डो लूंगी तितली बन के मैं मधु बनने डोलू [संगीत] कागा रे कागा सुन का कागा रे कागा सुन कागा मेरा ये संदेशा कान्हा को देना तेरे बिना दुखी तेरी राधा का रे कागा सुन काना मेरा ये सदेसा कान्हा को देना तेरे बिना दुखी तेरी राधा कागा रे कागा सुन कागा [संगीत] दिन है गुजरता कैसे रात कैसे बीत उसको सुनाना राधा बांट तेरी [संगीत] देखती दिन है गुजरता कैसे रात कैसे बीती उसको सुनाना राधा बाट तेरी देखती बाट तेरी देखती पूछना क्यों तोड़ा प्रेम [संगीत] धागा कागा रे कागा सुन कागा मेरा ये संदेशा कान्हा को देना तेरे बिना दुखी तेरी राधा कागरे कागा सुन कागा [संगीत] बिंदिया ना चूड़ी लाली कुछ नहीं भावे सारा सारा दिन तेरे याद सतावे बिंदिया ना चोड़ी लाली कुछ नहीं भावे सारा सारा दिन तेरी याद सतावे याद सतावे कहना तुझ से मन लागा कागा रे कागा सुल काना मेरा ये सबेसा कान्हा को [संगीत] देना तेरे बिना दुखी तेरी राधा कागा रे कागा सुन कागा [संगीत] मिलने ना आया तो कहना मर जाऊंगी गोकुल में कभी फिर मिल नहीं [प्रशंसा] पाऊंगी मिलने ना आया तो कहना मर जाऊंगी गोकुल में कभी फिर मिल नहीं पाऊंगी मिल नहीं पाऊंगी राधा ने किया ये राधा कागार कागा सुनता मेरा ये संदेशा कान्हा को देना तेरे बिना दुखी तेरी राधा कागार का सुन [संगीत] कागा कृष्णा मेरे कृष्णा कृष्णा मेरे कृष्णा [संगीत] दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्कों का दे गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्कों का दे गया राधे राधे कहता कहता राधे राधे कहता कहता जान मेरी वो ले गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्कों का दे गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्कों का दे गया राधे राधे कहता कहता राधे राधे कहता कहता जान मेरी वो ले गया दर्द की बस्ती में वो एक [संगीत] रोम रोम मेरा उसको ही बुलाई कोशिश हज की पर दिल ना भुलाए रोम रोम मेरा उसको ही बुलाए कोशिश हजार की पर दिल ना बुलाए मिटे ना दिल से जखम वो ऐसे निशान दे गया मिटे ना दिल से जख वो ऐसे निशान दे गया राधे राधे कहता कहता राधे राधे कहता कहता जान मेरी बोले गया दर्द की बस्ती में वो एक [संगीत] सारी सारी रात मुझको नींद ना आए दर्द सताए सांवरे तुझे नजर ना आए सारी सारी रात मुझको नींद ना आए दर्द सताए सांवरे तुझे नजर ना आए छीन कर बहार सुना शमशान मुझे दे गया छीनकर बहारे सोना शमशान मुझे दे गया राधे राधे कहता कहता राधे राधे धे कहता कहता जान मेरी वो ले गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्कों का दे गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्कों का दे गया राधे राधे कहता कहता राधे राधे कहता कहता जान मेरी बोली गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्को का दे गया दर्द की बस्ती में वो एक महल अश्को का दे गया राधे राधे कहता कहता [संगीत] [संगीत] [संगीत] [संगीत] कर ले तू नेक इरादे जरा बोल दे राधे राधे कर ले तू नेक राधे जरा बोल दे राधे राधे काम तेरे बन जाएंगे श्याम तुझे मिल जाएंगे हम तेरे बन जाएंगे श्याम तुझे मिल जाएंगे कर ले तू नेक इरादे जरा बोल दे राधे राधे [संगीत] [प्रशंसा] [संगीत] [संगीत] बड़ी दयालु राधा रानी कृपा जब बरसाती है किसी के दर पे नहीं बने वो बात यहां बन जा है बड़ी दयालु राधा रानी कृपा जब बरसाती है किसी के दर पे नहीं बनी वो बात यहां बन जाती है जो राधे नाम को साधे मिट्टी को सोना बना दे जो राधे नाम को साधे मिट्टी को सो ना बना दे भाग ये बदल जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे काम तेरे बन जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे कर ले तू नेक इरादे जरा बोल दे राधे राधे [संगीत] [संगीत] ब्रिज धाम में जाके देखो लगे स्वर्ग की धारा है युगों युगों से बहत यहां पे राधे नाम की धारा है ब्रिज धाम में जाके देखो लगे स्वर्ग की धारा है युगों युगों से बहती यहां पे राधे नाम की धारा है जो शीश तू यहां झुका दे ये दुखड़े सभी मिटा दे जो शीश तू यहां झुका दे ये दुखड़े सभी मिटा दे काम तेरे बन जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे हम तेरे बन जाएंगे श्याम तुझे मिल जाएंगे कर ले तू नेक इरादे जरा बोल दे राधे राधे [संगीत] [संगीत] [प्रशंसा] [संगीत] [संगीत] राधे नाम का प्याला पीले भवसागर कर जाएगा सबको सहारा दिया है उसने तेरा भाग्य सवर जाएगा राधे नाम का प्याला पीले भवसागर तर जाएगा सबको सहारा दिया है उसने तेरा भाग्य संवर जाएगा भक्ति में खुद को लगा दे एक बार तो वचन निभा दे भक्ति में खुद को लगा दे एक बार तू वचन निभा दे काम तेरे बन जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे काम तेरे बन जाएंगे श्याम तुझे मिन जाएंगे कर ले तू नेक इरादे जरा बोल दे राधे राधे काम तेरे बन जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे काम तेरे बन जाएंगे श्याम तुझे मिल जाएंगे काम तेरे बन जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे शम तेरे बन जाएंगे शाम तुझे मिल जाएंगे कर ले तू नेक इरादे जरा बोल दे राधे राधे राधे