अमीर आदमी अपना पैसा अमीर होने में यानी कि इन्वेस्टमेंट करने में लगाता है और गरीब आदमी अपना पैसा अमीर दिखने वाली चीजों को खरीदने में लगाता है और ये जो अमबानी अडानी है ये करोड़ों में कमा रहे हैं तो क्या ये भी अपना पैसा सेविंग अकाउंट और घरों में रखते हैं ये जो आप नाम सुनते हो एसबीआई म्यूचुअल फंड टाटा म्यूचुअल फंड इनको ही कहते हैं एसेट मैनेजमेंट कंपनी यूटीआई एक्ट जिसने पहली बार इंडिया के अंदर म्यूचुअल फंड को इंट्रोड्यूस किया ऐसा नहीं कि प्राइवेट लिमिटेड कंपनी डाल दी और म्यूचुअल फंड बेचना स्टार्ट कर दिया कि जो बचा हुआ पैसा है इसको रखने की सबसे सही जगह कौन सी होती है और इस चीज का क्रेडिट जाता है श्री टीटी कृष्णमाचारी जी को जो उस टाइम के फाइनेंस मिनिस्टर थे इन्होंने लेटर लिखा पीएम जवाहरलाल नेहरू जी को reliance1 नहीं है ये करोड़ों में कमा रहे हैं तो क्या ये भी अपना पैसा सेविंग अकाउंट और घरों में रखते हैं तो ये सारी चीजें डिटेल में डिस्कस करते हैं देखिए सबसे पहले तो ये देखते हैं कि हमारे पास जो पैसा बचता है जिसे हम सेविंग्स कहते हैं उसको रखने के लिए हमारे पास ऑप्शंस क्या-क्या है आप कहोगे कि इसमें ज्यादा दिमाग नहीं लगाना है या तो आप घर में रख लोगे या फिर सेविंग अकाउंट में रखोगे लेकिन ये दोनों जगह पे पैसा रखना एक घाटे का सौदा होता है क्योंकि जब आप अपना पैसा घर में या सेविंग अकाउंट में रखते हैं तो वो पैसा रखे रखे कम हो जाता है और ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं इसको एक एग्जांपल से समझते हैं मान लीजिए इस पर्टिकुलर टाइम पे आपने ₹1 बचा के रखे हैं जो कि आपकी सेविंग्स है और मार्केट में एक बुक है जिसका दाम ₹1 है तो अब आप जब चाहे मार्केट में जाके इस बुक को खरीद सकते हैं और अभी इंडिया का जो एवरेज इंफ्लेशन रेट है यानी कि जो महंगाई दर है वो है 7.5 इस लाइन का मतलब ये हुआ कि जो चीज आज ₹1000000 वो ₹10 7.50 पैसे की हो जाएगी और ये सिर्फ समझाने के लिए मैं बता रहा हूं एक्चुअल कैलकुलेशन इसकी अलग तरीके से होती है इसका मतलब यह हुआ कि अगर आपने बचे हुए ₹1 ऐसे ही अपने घर में रखे तो जो बुक आप आज की डेट में खरीद सकते हो अगले साल नहीं खरीद खद पाओगे आपका रखा हुआ पैसा हर साल कम होता है इंफ्लेशन की वजह से यही रीजन है कि जब लोग पैसे में डील करते हैं तो उसको इंफ्लेशन रेट से कंपेयर करते हैं क्योंकि इंफ्लेशन रेट की वजह से ही सिर्फ आपकी सेविंग ही नहीं बल्कि आपकी जो करंट सैलरी है वो भी कम हो जाती है यही रीजन है कि कंपनियां हर साल अप्रेजल करती हैं और जब आप अपने मैनेजर से अप्रेजल की बात कर रहे हो तो आपको इंफ्लेशन रेट भी ध्यान में रखना चाहिए अब सबसे बड़ा क्वेश्चन ये है कि फिर पैसे को रखा कहां पे जाए तो देखिए पैसे को हमेशा वहीं रखना चाहिए जहां पर सारे अमीर लोग रखते हैं यानी कि इन्वेस्ट करना चाहिए अमीर आदमी अपना पैसा अमीर होने में यानी कि इन्वेस्टमेंट करने में लगाता है और गरीब आदमी अपना पैसा अमीर दिखने वाली चीजों को खरीदने में लगाता है पैसे से पैसा बनाने को ही इन्वेस्टमेंट कहते हैं अब लेकिन बात ये है कि एक आम आदमी जिसको सिर्फ अपनी जॉब से रिलेटेड नॉलेज है एक दुकान वाला जो सिर्फ अपने सामान के बारे में जानता है वो ऐसे कैसे कहीं भी इन्वेस्ट करना स्टार्ट कर दे जब उसको नॉलेज ही नहीं है उसको नुकसान भी हो सकता है तो ये बात तो एकदम सही है लेकिन इसमें सबसे पहले ये देखना होगा कि एक आम आदमी के पास ऑप्शन क्या-क्या होते हैं इन्वेस्टमेंट के देखिए एक तो बहुत ही पुराना और कॉमन तरीका है कि आप अपनी जान पहचान वालों में से किसी को पैसा ब्याज पे दे दो और इंटरेस्ट रेट ऐसा रखो जो इंफ्लेशन रेट को बीट करे लेकिन इसमें भी दिक्कत है कहीं पैसा वापस ही नहीं आया तो फिर उस केस में क्या होगा तो ये भी एक तरह का रिस्क है अच्छा सेविंग अकाउंट में भी पैसा रखना एक इन्वेस्टमेंट ही होता है अब क्योंकि उसका इंटरेस्ट रेट इंफ्लेशन रेट को बीट नहीं कर पाता है इसलिए इसमें नुकसान होता है और आपका रखा हुआ पैसा कम होता है लोग सोचते हैं कि सेविंग अकाउंट एक जगह है बस पैसा रखने के लिए जहां पे आपका पैसा सिक्योर रहता है और पैसा इधर से उधर ट्रांसफर करने में आसानी होती है लेकिन सेविंग अकाउंट का जो मेन पर्पस है वो यही है कि हम लोग बैंक को एक तरह से पैसा देते ते हैं ताकि वो इन्वेस्ट करे और फिर उसका इंटरेस्ट हमको वापस मिले लेकिन अभी सेविंग अकाउंट में जो इंटरेस्ट मिलता है वो 4 पर का मिलता है और जो इंफ्लेशन रेट है जो कि एवरेज इन्फ्लेशन रेट है वो 7.5 का है इसलिए सेविंग अकाउंट में पैसा रखना एक खराब इन्वेस्टमेंट माना जाता है इसलिए अब सेविंग अकाउंट सिर्फ पैसे का लेनदेन करने के लिए एक अकाउंट बनके रह गया है अब देखिए आप मार्केट में जाएंगे तो आपको अलग-अलग तरह की इन्वेस्टमेंट करने के ऑप्शंस मिलेंगे कुछ लोग गोल्ड में इन्वेस्ट करते हैं कुछ लोग प्रॉपर्टी खरीदते हैं कुछ फिक्स डिपॉजिट करते हैं कोई शेयर मार्केट में पैसा लगाता है कुछ लोग गवर्नमेंट के बॉन्ड्स या फिर कंपनी के डिबेंचर में पैसे डालते हैं ऐसे बहुत ऑप्शन मिलते हैं मार्केट में लेकिन उसके बाद भी हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते हैं इन्वेस्टमेंट करने की क्योंकि रिस्क बहुत होता है और जब नॉलेज ना हो तो फिर और मन नहीं करता है पैसा कहीं डालने का देखिए आपको ये याद रखना है कि जैसे ही आप इन्वेस्टमेंट करने निकलते हो उसमें रिस्क इंवॉल्व होता ही होता है दुनिया में एक भी इन्वेस्टमेंट ऐसी नहीं है जिसमें रिस्क इवॉल्व ना हो सेविंग अकाउंट में भी पैसा रखना एक रिस्क होता है अगर आप पास्ट में देखोगे तो कई ऐसे बैंक हैं जो बैंक करप्ट हुए हैं इनफैक्ट पैसा घर में रखना भी एक तरह का रिस्क है किसी को अगर पता चल जाए कि आपके घर में काफी पैसा रखा है तो आपका घर भी रिस्क पे आ जाता है चोरी होने के चांसेस बढ़ जाते हैं देखिए इन्वेस्टमेंट में रिस्क हर जगह इवॉल्व होता है बस कहीं पे कम और कहीं पे ज्यादा होता है अब ये आपको डिसाइड करना होता है कि आपको रिस्क लेना कितना है ज्यादा रिस्क मतलब ज्यादा प्रॉफिट और कम रिस्क मतलब कम प्रॉफिट ये जो आप पिरामिड देख रहे हैं इसमें जैसे-जैसे आप ऊपर बढ़ेंगे तो आपका रिस्क भी बढ़ेगा लेकिन प्रॉफिट भी बढ़ेगा आपने एक चीज और सुनी होगी कि अगर हम अलग-अलग जगह पे पैसा इन्वेस्ट करें तो उसमें फायदा ज्यादा होता है और नुकसान कम होता है जिसको डायवर्सिफाइड इन्वेस्टमेंट बोलते हैं और यह बात सही भी लगती है अगर आप आप पिछले 50 या फिर 100 साल का पैटर्न देखोगे मार्केट के अंदर अगर आप पिछला रिकॉर्ड देखोगे शेयर मार्केट का तो चाहे यूएस क्राइसिस हो हर्षद मेहता स्कैम हो या फिर कोविड की बात करें तो हर बार शेयर मार्केट नीचे गया है और हर बार पहले से ज्यादा बड़ा प्रॉफिट करके ऊपर आया है तो इससे हमें ये समझ में आ गया कि अगर हम लॉन्ग रन में इन्वेस्ट करें तो हमारा फायदा है ये ग्राफ क्लियर बता रहा है कि ऊपर नीचे भले ही हुआ है शेयर मार्केट लेकिन लॉन्ग रन में ऊपर ही जा रहा है ऐसे ही अगर आप गोल्ड का ग्राफ देखो या फिर रियल स्टेट का ग्राफ देखो सब ऊपर नीचे हुए हैं लेकिन लॉन्ग रन में देखोगे आप तो सब ऊपर ही जा रहे हैं यही रीजन है कि लोग अलग-अलग सेक्टर में पैसा लगाने को अच्छा मानते हैं थोड़ा पैसा स्टॉक मार्केट में थोड़ा बॉन्ड मार्केट में थोड़ा ब्याज पे थोड़ा रियल स्टेट में ऐसा करके अलग-अलग सेक्टर में लगाते हैं और इनके अंदर भी डायवर्सिफाई कर देते हैं जैसे कि अगर आपने स्टॉक मार्केट में पैसा लगाया तो थोड़ा पैसा टेक्नोलॉजी कंपनी में थोड़ा ऑयल एंड गैस में थोड़ा कंज्यूमर गुड्स की कंपनीज में ऐसा करने से फायदा यह होता है कि अगर कोई सेक्टर लॉस में होता है तो उसका वेट करते हैं ऊपर आने का और जब कोई सेक्टर ऊपर जा रहा होता है और फायदा बना रहा हो होता है तो सही टाइम देख के अपना प्रॉफिट बना के उसमें से निकल लेते हैं और इसी चीज को हम डायवर्सिफाइड तरीके से इन्वेस्टमेंट करना कहते हैं देखिए हमने यह तो समझ लिया कि अलग-अलग सेक्टर में इन्वेस्ट करने से रिस्क कम होता है लेकिन क्वेश्चन अभी भी वही है कि अलग-अलग सेक्टर में इन्वेस्ट करने के लिए हमें नॉलेज पैसा और टाइम चाहिए होगा क्योंकि आपको हर सेक्टर के बारे में पता करना होगा इन सब में बहुत टाइम जाएगा और अगर आप किसी एक्सपर्ट को भी हायर करोगे तो उसकी फीस बहुत जाएगी पता चले जितना आपका रिटर्न आएगा उससे ज्यादा एक्सपर्ट की फीस चली जाएगी तो एक चीज तो कंफर्म है कि अगर अलग-अलग सेक्टर में इन्वेस्ट करना है तो इसके लिए पैसा तो बहुत चाहिए होगा अगर शेयर मार्केट की बात करें तो एमआरएफ का एक शेयर 84000 से भी ज्यादा का है प्रॉपर्टी के दाम गोल्ड का दाम बहुत ज्यादा है अब आप सोचो कि मुझे डायवर्सिफिकेशन करना है गोल्ड रियल एस्टेट शेयर मार्केट हर सेक्टर में तो आप कहां से कर पाओगे यह काम सिर्फ अमीर आदमी ही कर पाएगा लेकिन इसमें एक चीज हो सकती है जितने भी छोटे-छोटे इन्वेस्टर हैं जिनके पास कम पैसे हैं इन सबका पैसा अगर इकट्ठा कर दिया जाए और एक फंड बना दिया जाए देखिए जब भी किसी पर्टिकुलर पर्पस के लिए कोई पैसा इकट्ठा होता है उसको फंड बोलते हैं तो अगर सब लोग मिलके एक फंड इकट्ठा कर लें और एक अच्छे से फाइनेंशियल एक्सपर्ट को हायर कर लें जो बताए कि कहां पे पैसा लगाना सही होगा तो एक्सपर्ट की फीस भी कम लगेगी क्योंकि वो फीस सब में डिवाइड हो जाएगी और इसका लोड भी किसी एक पे नहीं पड़ेगा और कम पैसे में हम लोग डायवर्सिफाइड तरीके से इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं अब देखिए आईडिया तो बहुत अच्छा है लेकिन इसमें सबसे पहला चैलेंज है कि इतने सारे लोग इकट्ठे कहां से होंगे और उससे भी बड़ा चैलेंज है कि आप विश्वास किस पे करोगे इतने पैसे फंड बना के आपने किसी के पास रख दिए और वो भाग गया तो उस केस में क्या होगा तो यहां से एंट्री होती है गवर्नमेंट की इस चीज को लेके एक यूटीआई एक्ट बनाया गया 1963 में जहां पे इन सारी चीजों की जिम्मेदारी गवर्नमेंट लेती है अब लोग किसी पर्टिकुलर आदमी पर विश्वास भले ही ना करें लेकिन गवर्नमेंट और गवर्नमेंट की बनाई हुई अलग-अलग ऑर्गेनाइजेशन पे तो विश्वास करेंगे ही जैसे कि एसबीआई पीएनबी बैंक जनरल इंश्योरेंस वगैरह और एक बार ऐसा हुआ भी था कि गवर्नमेंट की बनाई हुई जो यूटीआई थी उसको काफी लॉस हुआ था लेकिन उसके बाद भी पब्लिक को उसका पैसा वापस मिला था तो इन सारी चीजों को कंसोलिडेट करके यानी कि इकट्ठा करके एक एक्ट लाया गया 1963 में यूटीआई एक्ट जिसने पहली बार इंडिया के अंदर म्यूचुअल फंड को इंट्रोड्यूस किया और इस चीज का क्रेडिट जाता है श्री टीटी कृष्णमाचारी जी को जो उस टाइम के फाइनेंस मिनिस्टर थे इन्होंने लेटर लिखा पीएम जवाहरलाल नेहरू जी को कि लोगों की जो सेविंग्स है यानी कि जो घरों में रखा हुआ पैसा है उसको एक सिस्टमैटिक तरीके से इन्वेस्ट करवाना चाहिए जिससे इंडिया का जो मार्केट है उसका भी फायदा हो और आम जनता का भी फायदा हो इस चीज का काम दिया गया रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को और 1964 में इंडिया की पहली म्यूचुअल स्कीम आई जिसका नाम था य 64 ये इंडिया की सबसे पॉपुलर स्कीम साबित हुई 19 63 से 1987 तक इंडिया के अंदर यूटीआई म्यूचुअल फंड का एक मात्र प्लेयर था फिर उसके बाद इसमें सरकारी बैंक आए अलग-अलग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट्स आए पीएनबी बैंक बैंक ऑफ इंडिया जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन अपने-अपने म्यूचुअल फंड लेके आए लेकिन अभी तक इसमें सिर्फ गवर्नमेंट कंपनीज ही आ रही थी अपने म्यूचुअल फंड लेके लेकिन 1993 में से भी आता है और इसके आते ही प्राइवेट कंपनीज की एंट्री भी शुरू कर दी जाती है और इससे आम जनता के पास बहुत सारे ऑप्शन खुल जाते हैं अलग-अलग स्कीम्स और ऑफर आने लगते हैं और कंपटीशन भी काफी शुरू हो गया था उस टाइम पे जो कि आज आज तक चल रहा है आगे चलके इसमें इंटरनेशनल प्लेयर्स भी आए जैसे कि मॉर्गन स्टनली जेपी मॉर्गन यह सब अपने म्यूचुअल फंड लेके आए देखिए भले ही इंडिया के अंदर म्यूचुअल फंड को गवर्नमेंट प्राइवेट और इंटरनेशनल कंपनियां लेके आ रही थी लेकिन गवर्नमेंट इस फंड की क्रिटिकल को बहुत ही अच्छे से समझता था यही रीजन था कि म्यूचुअल फंड की हर चीज सेबी से बहुत ही स्ट्रिक्ट तरीके से रेगुलेट की जाती थी आज भी सेबी म्यूचुअल फंड की हर एक्टिविटी में अपना इंवॉल्वमेंट रखता है हर म्यूचुअल फंड को अपने फंड की डिटेल पूरा का पूरा एक्सपेंस पिछला हिस्टॉरिक डाटा हर चीज सेबी से अप्रूव करानी होती है पब्लिक में एडवर्टाइज करने से पहले अब इसमें एक चीज यह भी समझ लेते हैं कि अगर किसी को अपना म्यूचुअल फंड स्टार्ट करना है तो इसमें पूरा प्रोसेस क्या फॉलो होता है देखिए म्यूचुअल फंड स्टार्ट करने के लिए मेनली पांच चीजों की जरूरत होती है पहला है ट्रस्ट दूसरा है स्पंस तीसरा है फंड मैनेजर और चौथा है एसेट मैनेजमेंट कंपनी जिसे एएमसी बोलते हैं और कस्टोडियन सेबी के रूल के हिसाब से म्यूचुअल फंड को सिर्फ एक ट्रस्ट की तरह ही बनाया जा सकता है ऐसा नहीं कि प्राइवेट लिमिटेड कंपनी डाल दी और म्यूचुअल फंड बेचना स्टार्ट कर दिया इसलिए म्यूचुअल फंड स्टार्ट करने के लिए पहले म्यूचुअल फंड ट्रस्ट बनाया जाता है उसके बाद इसके स्पंस करस बनाए जाते हैं यह स्पॉन्सर्स बहुत ही इंपॉर्टेंट रोल प्ले करते हैं म्यूचुअल फंड में पैसा तो ये लगाते ही हैं इसके अलावा म्यूचुअल फंड ट्रस्ट में ट्रस्टी कौन बनेगा सेबी के अप्रूवल वगैरह सब यही स्पंस देखते हैं यह सब होने के बाद एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी बनाई जाती है जिसे एएमसी कहते हैं ये जो आप नाम सुनते हो एसबीआई म्यूचुअल फंड टाटा म्यूचुअल फंड आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड इनको ही कहते हैं एसेट मैनेजमेंट कंपनी यानी कि एएमसी इन एएमसी को अपनी नेटवर्थ 10 करोड़ से ऊपर रखनी होती है अगर इससे कम होती है तो यह कोई कोई भी स्कीम लॉच नहीं कर पाएंगे एएमसी का जो मेन काम होता है वह म्यूचुअल फंड की अलग-अलग स्कीम्स को लॉन्च करने का होता है म्यूचुअल फंड के जो ट्रस्टीस होते हैं इनकी जिम्मेदारी होती है कि एएमसी के सारे सिस्टम ठीक से काम करें एएमसी के अंदर ऑडिटर रजिस्टर्ड वगैरह सब म्यूचुअल फंड के ट्रस्ट अपॉइंट्स को कोई भी म्यूचुअल फंड लॉन्च करने से पहले सारी डिटेल्स लोगों को बतानी होती हैं उसके बाद ही लोग उस पर्टिकुलर म्यूचुअल फंड की यूनिट खरीद सकते हैं अब आप कहोगे कि ये म्यूचुअल फंड के अंदर ये यूनिट का क्या मतलब होता है देखिए म्यूचुअल फंड जो भी पैसा अलग-अलग सेक्टर में इ इन्वेस्ट करता है उसको यूनिट में डिवाइड कर देता है इसको एक एग्जांपल से समझते हैं एमआरएफ का एक शेयर 84000 से ऊपर का है हनीवेल का एक शेयर 43000 से ऊपर का है 3m इंडिया का एक शेयर 23000 से ऊपर का है अब आपको अकेले इन सारे शेयर्स को खरीदना हो तो बहुत ज्यादा पैसे लगेंगे लेकिन म्यूचुअल फंड क्या करेगा इन तीन शेयर्स को खरीद लेगा और इनको छोटे-छोटे हजारों यूनिट में डिवाइड कर देगा अब आप लोग जब एक यूनिट खरीदोगे तो उसका पैसा बहुत कम होगा और कम पैसे में आपको तीनों शेयर्स मिल जाएंगे जो आप पहले नहीं कर सकते थे ये भी हो सकता है कि आपके ₹5000000 अब इसमें एक क्वेश्चन और आता है कि म्यूचुअल फंड की जो यह यूनिट होती है इस यूनिट का पैसा कैसे डिसाइड होता है तो देखिए जैसे कंपनी के शेयर्स होते हैं वैसे ही म्यूचुअल फंड की यूनिट्स होती हैं ये यूनिट्स जब म्यूचुअल फंड शुरू होता है तब एक फिक्स प्राइस में इशू की जाती हैं फॉर एग्जांपल ₹10 या फिर ₹1000000 वलू भी चेंज होती हैं एक म्यूचुअल फंड बहुत तरीके की स्कीम ला सकता है लेकिन हर स्कीम को ट्रस्टी से अप्रूवल लेना होगा और एक फाइल जिसे ऑफर डॉक्यूमेंट कहते हैं वो सभी को सबमिट करनी होती है इस ऑफर डॉक्यूमेंट में वो सब चीजें होनी चाहिए जिसे पढ़कर हमारे और आपके जैसे लोग सही डिसीजन ले पाए कि कौन सा म्यूचुअल फंड लेना है अगर ऑफर डॉक्यूमेंट सभी को फाइल करने के 21 दिन में सभी उसपे कोई भी कमेंट नहीं करता है तो एएमसी उस डॉक्यूमेंट को पब्लिक को ऑफर करके फंड जनरेट करने का काम शुरू कर सकता है पब्लिक से उसके बाद एएमसी एक फंड मैनेजर असाइन करेगी तो अब ये फंड मैनेजर क्या होता है देखिए फंड मैनेजर बेसिकली फाइनेंशियल एक्सपर्ट होते हैं और इनके साथ एक रिसर्च की टीम होती है जिनका फुल टाइम काम ही यही होता है कि वो इन्वेस्टमेंट को एनालाइज करें और वो इन्वेस्टमेंट खरीदें जो म्यूचुअल फंड के गोल्स को पूरा करती है ये फंड मैनेजर्स जरूरी इसलिए होते हैं क्योंकि ये अलग-अलग कंपनीज के फाइनेंशियल स्टेटमेंट को एनालाइज करते हैं कि उनका रेवेन्यू क्या है एक्सपेंस क्या है प्रॉफिट और लॉस क्या है ये जो फंड मैनेजर होते हैं बड़ी-बड़ी कंपनीज के मैनेजर और मालिकों से डायरेक्ट बात करते हैं अब नहीं करेगी लेकिन इन फंड मैनेजर से बात कर लेगी क्योंकि उनको पता होता है कि ओवरऑल फंड बहुत बड़ा है इन फंड मैनेजर्स के पास और अगर ये फंड मैनेजर हमारी कंपनीज में इन्वेस्ट कर देंगे तो कंपनी के लिए बहुत ही बढ़िया बात रहेगी इसलिए बड़ी-बड़ी कंपनीज इन फंड मैनेजर्स से बात करती हैं और समझाती हैं अपने आगे के प्लांस और ये सब एनालाइज करके जो पैसा लोगों से इकट्ठा होता है उस पैसे को फंड मैनेजर अपने हिसाब से देख के इन्वेस्ट कर देता है जिस डायवर्सिफिकेशन के लिए आपको लाखों खर्च करने होते हैं वो अब आप चाहो तो ₹5000000 से भी स्टार्ट कर सकते हो और आपको ₹5000000 टीज भी मिल रही हैं जो आप अकेले अफोर्ड नहीं कर पाते आपने म्यूचुअल फंड के अंदर एक्सपेंस रेशियो के बारे में सुना होगा कहीं पे ₹10 का होता है कहीं पे ₹1000000 एक से दो दिन के अंदर आपके अकाउंट में पैसा वापस आ जाएगा म्यूचुअल फंड के बारे में पहली इंपॉर्टेंट बात समझने की ये है कि सारे म्यूचुअल फंड एक से नहीं होते हैं हर फंड अलग-अलग होते हैं कोई हाई रिस्क फंड होता है तो किसी में रिस्क नहीं होता है कोई शेयर में इन्वेस्ट करता है तो कोई डेट में इन्वेस्ट करता है हर फंड का ये क्लियर होता है कि वो कितने पैसे कहां लगाएगा ऐसा नहीं है कि आपने फार्मा सेक्टर का म्यूचुअल फंड खरीदा है तो वो जाके गोल्ड में इन्वेस्ट कर देगा लोग सोचते हैं कि म्यूचुअल फंड सिर्फ शेयर मार्केट में लगता है लेकिन ऐसा नहीं है म्यूचुअल फंड के जो एक्सपर्ट होते हैं वो अलग-अलग जगह पे अपना पैसा इन्वेस्ट करते हैं जो लोग म्यूचुअल फंड लेते हैं उनको भी अपना गोल पता होना चाहिए कि वह किस पर्पस के लिए म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट कर रहे हैं उसके बाद ही म्यूचुअल फंड सेलेक्ट करने में आसानी होती है अगर आप बच्चों की पढ़ाई के लिए इन्वेस्ट कर रहे हैं तो आप कोई ऐसा म्यूचुअल फंड ले सकते हैं जिसमें लो रिस्क हो लेकिन लॉन्ग टर्म में फायदा हो अगर आप किसी वेकेशन का प्लान कर रहे हैं तो वहां पे आप हाई रिस्क वाला म्यूचुअल फंड भी ले सकते हैं क्योंकि अगर आप वैकेशन पे नहीं जा पाए तो यह कोई बिग डील नहीं है लेकिन बच्चों की एजुकेशन बहुत इंपॉर्टेंट है तो इस तरीके से आप अपने गोल सेट कर सकते हैं म्यूचुअल फंड की एक बात और है कि यह अलग-अलग ऑप्शन देता है इन्वेस्ट करने के मतलब कि अगर आप एक साथ पैसा नहीं डालना चाहते तो वह कहेगा कोई बात नहीं है आप हर महीने जितना भी कमाते हैं उसमें से कुछ अमाउंट सेट कर दीजिए वो आपके बैंक अकाउंट से उतना हर महीने कटता रहेगा मान लीजिए आपने ₹1 सेट कर दिया तो हर महीने ₹1 कटता रहेगा आपके बैंक अकाउंट से इसी ऑप्शन को एसआईपी कहते हैं कुछ लोग एसआईपी को म्यूचुअल फंड से अलग समझते हैं जबकि एसआईपी म्यूचुअल फंड ही है बस म्यूचुअल फंड ने एक तरीका दिया है पैसे लगाने का अब बात करते हैं कि म्यूचुअल फंड के डिसएडवांटेजेस क्या-क्या है देखिए म्यूचुअल फंड में जो फंड मैनेजर होता है वो पैसा तभी इन्वेस्ट कर पाएगा जब आप लोग पैसा इन्वेस्ट करोगे अगर आप लोग पैसा फंड से वापस लेने लगोगे मतलब कि अपने म्यूचुअल फंड की यूनिट बेचने लगोगे तो फंड मैनेजर को मजबूरी में पैसा इन्वेस्टमेंट से निकाल के आपको वापस करना होगा कभी-कभी ऐसा होता है कि मार्केट नीचे जाता है फंड मैनेजर जो कि एक एक्सपर्ट है अगर वो उस टाइम पे लगाना चाहता है लेकिन पब्लिक डर के मारे पैसा निकाल रही है अपने जो यूनिट्स हैं उनको बेच रही है तो फंड मैनेजर उस केस में कुछ नहीं कर पाएगा वो चाह के भी इन्वेस्ट नहीं कर पाएगा तो भले ही आप रिस्क लेना चाहे लेकिन ओवरऑल पैसा अगर फंड में से निकाला जा रहा है तो फंड मैनेजर उस केस में रुक जाएगा वो इ इ वेस्ट नहीं कर पाएगा लेकिन जब आप डायरेक्ट शेयर्स खरीदते हैं तो आप जब मन करे खरीद सकते हैं और जब मन चाहे बेच सकते हैं दूसरी चीज फंड मैनेजर कुछ केसेस में रिस्क नहीं लेते हैं वो एक्सपेरिमेंट करने से डरते हैं अब अगर कोई फंड मैनेजर फंड मैनेजर होता है वो ज्यादा रिस्क नहीं लेता है वो अपनी जॉब को खतरे में नहीं डालता है वो एवरेज रिटर्न से भी खुश रहता है म्यूचुअल फंड कंपनीज का जो प्रॉफिट होता है वह पब्लिक को कितना रिटर्न मिला उस परे डिपेंड नहीं करता है बल्कि इस परे डिपेंड करता है कि पब्लिक ने कितना फंड इकट्ठा किया है जितना फंड इकट्ठा होता है उसका एक से 2 पर म्यूचुअल फंड कंपनीज को जाता है चाहे पब्लिक को फायदा हो या फिर ना हो इसलिए कुछ कंपनीज का फोकस ज्यादा से ज्यादा फंड इकट्ठा करने में होता है रदर देन पब्लिक को रिटर्न दिलवाने में और इस चक्कर में वह सेफ खेलती [संगीत] हैं [संगीत] ए