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संस्कृत मंजूषा के पांच - एक सुगमाम संस्कृतम्

हमें कक्षा 8 के विद्यार्थियों का स्वागत है बच्चों आज मैं संस्कृत मंजूषा के पांच एक सुगमाम संस्कृतम् का अर्थ स्पष्ट कर रही हूं बच्चों आप यह बात अच्छी तरह से जानते हैं की यदि हम किसी को मां से लगन से एकाग्रचित होकर पढ़ने हैं तो वह विषय हमें सरल सम तथा रुचिकर लगे लगता है लेकिन यदि किसी विषय के बड़े में हम यह धरना बना लेते हैं की वह कठिन है हम उसे समझना में समर्थ है तो वास्तव में कठिन कठिन नीरा लगे लगता है तो धीरे-धीरे हमारी रुचि उसमें पढ़ने लगती है बच्चों संस्कृत रत्न का विषय नहीं है अपितु समझना का विषय है संस्कृत भाषा के विषय में वार्तालाप कर रहे हैं प्रीति ही सुनीता क्या बात है खिन्न कहते हैं दुखी परेशान आशिमाने हो तुम इतनी दुखी ऑपरेशन क्यों हो सुनीता कम करूंगी क्या करूं संस्कृत परीक्षा मैं अंक कहा ना अति शोभना संस्कृति की परीक्षा में मेरे अंक अच्छे नहीं आए हैं ठीक नहीं आए हैं प्रीति मत हो लेकिन दुखी शब्द में आलम जब शब्द हम प्रयोग करते हैं तो हमेशा तृतीय विभक्ति का एक वचन प्रयोग किया जाता है इसीलिए दिशा प्रयोग किया गया है श्रमिक कालीन चा सर्वनाम सिदध्याति परिश्रम करने से और समय के साथ सब ठीक हो जाता है सुनीता सखी तुम ब्रह्म सत्यम वतामी है सखी तुम्हें सच बताती हूं माहियम तू संस्कृति नहीं लगती है कठिन भाषा तुम्हें अच्छी लगती है प्रीति सुनते वस्तुत संस्कृति ने सुनीता वास्तव में संस्कृत भाषा है कठिन या मुश्किल बिल्कुल भी नहीं है सुनीता तट कथम वह कैसे प्रीति अभ्यासन एवं कौशल अभ्यास करने से कुशलता यानी की निपुणता आई है हम जितना अभ्यास किसी भी चीज का करते हैं उतना ही हम उसमें एक्सपर्ट उतना ही निपुण या कुशल होते चले जाते हैं तो अभ्यास करने से ही कुशलता यानी की निपुणता आई है अतः मैन इसलिए मैन मुश्किल या कठिन प्रत्येक मैन प्रतीत होता है यानी की प्रारंभ में जो कठिन प्रतीत होता है सरल हो जाता है सुनीता परम धातु रुपाणी शब्द रुपाणी सर्वम कंठस्थम भावे लेकिन धातु रूप शब्द रूप यह सब कैसे कंठस्थ होगा यानी कैसे याद होगा प्रीति सुनते शब्द रुपाणा धातु रुपाणा क प्रयोग सम्यक है सुनीता शब्द रूपन को और धातु रूपन का प्रयोग सम्यक मैन ठीक से बोधगया मैन समझना चाहिए की शब्द रूप और धातु रूप का प्रयोग यदि हम ठीक से समझ लेते हैं तो उसमें कोई भी मुश्किल नहीं होती है ग्राहम गत्वा घर जाकर पाठक से वचन पाठ का वचन नियमों कौशिक नियम से करती हो क्या तुम घर जाकर पाठ का वचन नियम से करती हो सुनीता कथम करूं कैसे करूं अध्यापिका यज्ञ कक्षयम शिक्षति हम तक एवं नबोध आमीन अध्यापिका या मैन जो कक्षा में शिक्षति मैन पड़ता हैं मैं वह ही नहीं समझ पाती यानी अध्यापिका जो कक्षा में पड़ता हैं मैं वह ही नहीं समझ पाती हूं चिंता मत करो ध्यानपूर्वक श्रवण मैन सुनने से पुनः पुनः और बार-बार वचन करने से सब समझ में ए जाएगा ठीक है सावधान पूर्वक सुनने से और बार-बार छान करने से सब समझ में ए जाएगा सुनीता कदाचित सत्यम कक्षसी तुम तुम शायद ठीक कहती हो कक्षा माया भाषा यहां प्रयोग कक्षा में समाहित चिता मैन एकाग्रचित होगा या लगन के साथ स्थित वामनी बैठकर पाठ की पुनरावृति करके यह पुनर अभ्यास करके मुझे भाषा का प्रयोग समझ लेना चाहिए यानी कक्षा में एकाग्रचित बैठकर और पार्ट का बार-बार अभ्यास करके मुझे भाषा का प्रयोग समझ लेना चाहिए मैं भी तुम्हारी सहायता करूंगी इस प्रकार संस्कृति की परीक्षा करूंगी मेरा बार-बार अभ्यास होगा तो ऐसा करने से मेरे भी संस्कृत की परीक्षा में अच्छे नंबर भाषा बिल्कुल सखी यह जान लो की संस्कृति एक भाषा है श्रावणीं भाषणीं वाचीन क लखन भक्ति सुनने से बोलने से वचन करने से ही लेखन शुद्ध होता है यानी जितना हम ध्यान से सुनते हैं जितना हम बार-बार उसे बोलते हैं जितना हम उसे पढ़ने हैं इस से हमारा लेखन शुद्ध होता है सुनीता कैसे पढ़ने होकर रहूंगी बच्चों इस अर्थ को आप बार-बार जब सुनेंगे आपको पाठ अच्छी तरह से स्पष्ट हो जाएगा यदि अभी आपने मेरा चैनल सब्सक्राइब नहीं किया है तो प्लीज उसे सब्सक्राइब करिए शेर करिए लाइक कीजिए ताकि अधिक से अधिक बच्चों को उसका लाभ प्राप्त हो सके धन्यवाद