65% के पास इलेक्ट्रिसिटी इंडिया में आज भी थर्मल पाउर प्लांट से जनरेट होती है और 85% कंट्रीज इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करने के लिए सबसे ज़्यादा थर्मल पाउर प्लांट यानि कोईले पर ही डिपेंडेंड है 500 मेगा वाट इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करने के लिए थर्मल पाउर प्लांट पर 250 टन कोईला हर गंठे में फोंक दिया जाता है सोच सकते हो आप 30-35% यानि 100 केजी आपने कोल जलाया तो 30-35 केजी कोल ही शिर्प इलेक्ट्रिसिटी में कन्वर्ट हो पाएगा बाकी के लोसेस हो जाएंगे और कोल बनता है पेड़ पोदों से तो यदि आप इलेक्ट्रिसिटी वेस्ट कर रहे हो तो इंडारेक्टली इनवायरमेंट को नु तो यदि आपने देखा हो कोई भी पावर प्लांट होता है वह पनी के सोर्स के पास में ही लगाया जाता है चाहे वह थर्मल हो या नुकलेर पावर प्लांट हो या हाइड्रो पावर प्लांट हो तो सबसे पहले कोईले को कोल माइन से पावर प्लांट तक ट्रेन की हेल्प से लाया जाता है और इस कोईले को खली किया जाता है कोल यार्ड के अंदर कोल यार्ड वह जगए होती है जहां कोईले को पावर प्लांट में रखा जाता है कोल मेनेजमेंट के लिए और यह कोल यार्ड अराउंड 50% के आसपास जगे पावर प्लांट की कन्जूम कर जाता है इंडिया में 2018 के इर में 622.22 मिलियन टन कोईला एलेक्ट्रिसिटी जेनरेट करने के लिए यूज हुआ और यह कोईला या तो जमीन खोद कर निकला जाता है या फिर पेड़ों को काट कर बनाया जाता है जैसे कोल इंडिया लिमिटेड एक बिगेस्ट कोल माइनिंग कंपनी है इंडिया की तो जब इस कोल को खानों से निकाल कर पाउर प्लांट तक लाया जाता है तो इसमें बहुत सारी इंप्यूरिटीज होती है तो सबसे पहले इसमें से बेस्ट क्वालिटी के कोले को अलग किया जाता है फिर इस साप किये हुए कोईले को कन्वेर बेल्ट की मदद से बठी तक पहुँचाया जाता है पर बठी तक पहुँचने से पहले इसको एक और प्रोसेस से गुजरना पड़ता है जिसको कहते हैं पुल्वराइजेशन की प्रोसेस सीधी बासा में समझे तो इसमें कोईले को एकदम बारिक पीस दिया जाता है बोल मील की हेल्प से और कोईले को इसलिए पीसा जाता है ताकि जहां बठी में कोईला जलता है वहाँ पर कोईला पूरा अच्छे तरीके से जल सके एवरी सिंगल एटम जो कोल का है उससे पूरी एनर्जी निकल सके तो जब यह पीशा हुआ कोईला इस आग की बठी में जलता है तो इस बठी के उपर लगा रहता है यह बोईलर जिसको आप देख सकते हो तो इस बोईलर की इन पाइपों के अंदर पानी गूमता रहता है और इस बठी की आग से यह पानी गरम होने लग जाता है इस बोईलर के अंदर पानी को इन पाइपों के अंदर इसलिए गुमाया जाता है ताकि इन पाइपों के चारों तरब से आग लग सके और पानी जल्दी स स्टीम बनने के लिए बोयलर के अंदर जो पानी यूज होता है वह मिनरल फ्री वाटर यूज होता है क्योंकि पानी को जब मिनरल होंगे तो पानी को ज्यादा टाइम लगेगा गर्म होने में और स्टीम बनने में अब आती है बोयलर में पानी आता है तो बोयलर में पानी आता है इकोनोमाइजर से और इकोनोमाइजर एक छोटा सा टेंक जैसा होता है जिसको आप देख सकते हो और इस इकोनोमाइजर को सेट किया जाता है इस आग की बठी के पास में एकदम टच करके ताकि पानी बोयलर जाने से पहले इस बठी से थोड़ा गर्म हो जाए और इस एकोनोमाइजर में पाने कहां से आता है उसके अपन आगे बात करेंगे वहाँ पर आपको अच्छे से समझ आएगा अब जो यह है थर्मल पाउर प्लांट है इसमें इस आग की बठ्ठी को लेकर दो प्रोबलम सबसे बड़ी आती है पहली जब इतना मिलियन्स ओप टन कोईला जलता है तो इससे बनने वाली जो राक होती है उसका मेनेजमेंट का अब आप सोच सकते हो कि 500 मेगा वाट एलेक्ट्रिसिटी जनरेट करने के लिए 250 टन कोईला हर एक गंटे में जलाया जाता है और जो दूसरी प्रोबलम है जब कोईला पीसी हुई फोम में जलता है तो इसको धुए की फोम में चिमनी से होते है इनवायरमेंट में उड़ने का डर रहता है क्योंकि यदि इतनी मिलियन्स ओप टन कोईला में से यदि एक टन कोईला भी उड़ गया तो कुछ ही दिनों में दूसरा जब कोईला जलता है तो जो कोल की भारी पार्टिकल होते हैं वह तो नीचे बैठ जाते हैं पर जो हलके पार्टिकल होते हैं वह फ्लू गेसेस के साथ में उड���ने लगते हैं तो इन फ्लू गेसेस को इनवायरमेंट में छोड़ने से पहले इलेक्ट्रो इस्टेटि अलग कर देता है और जो गरम हवा होती है उसको इनवायरमेंट में छोड़ देता है और उसी उड़ने वाली राप को बोलते हैं प्लाई एस और दोस्तों यह एलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर ही वह डिवाइस है जो एयर पॉलूशन को कम करता है यह एयर में जो भी स्मोक और गेस के पार्टिकल होते हैं उनको रोक लेता है और जो गरम एयर होती है उनको इनवायरमेंट में छोड़ देता है तो इस डिवाइस का यूज करके फैक्ट्री की चिमनी पर लगाकर पॉलूशन को काफी हद तक कम किया जा सकता है अपन थोड़ा आगे बढ़ते हैं वानी को बहुत ज्यादा गरम किया जाता है तो वह स्टिम बनने लग जाता है और यह जो बोइलर की स्टिम होती है इसका टेंपरेचर होता है 550 डिग्री से लेकर 1000 डिग्री सेलसियस तक तो जब बोइलर से इस हीटेड स्टिम को कलेक्ट किया जाता है तो इस हीटेड स्टिम को हाई प्रेशर के साथ में टर्बाइन पर छोड़ा जाता है और टर्बाइन जुड़ी रहती है एक साफ्ट के थूँ जनरेटर से तो जब टर्बाइन गूमती है तो जनरेटर भी गूमना सुरू कर देता है अब यह टर्बाइन भी कई टाइप के होते हैं फ्रेंसिस केपलन इंपलसिव इनमें से कुछ तो पानी के बड़े-बड़े सिप्स और पंडूबियों में यूज होते हैं और कुछ एयरप्लेन में यूज होते हैं पर जो थर्मल पावर प्लांट में मेंली जो ट्रबाइन यूज होता है वह इंपलसिव ट्रबाइन यूज होता है तो जब यह हाई हिटे जब यह स्टीम हाई प्रेशर टर्बाइन से आगे निकलती है तो इस स्टीम को थोड़ा टेंप्रेचर और प्रेशर कम हो जाता है इस हाई प्रेशर टर्बाइन के आगे लगा रहता है लो प्रेशर टर्बाइन यह साइज में बड़े पर लो प्रेशर पर भी गूम सकते हैं यह और यह जो स्टीम होती है न यह टर्बाइन की हर एक ब्लेड पर लगबग 250 किलो वजन जितना प्रेशर लगाती है तो आप सोच सकते हो आप इस स्टीम का टेंपरेचर और प्रेशर कितना ज़्यादा हाई होता है तो जब इन दोनों टर्बाइन का यह सेट गूमता है तो इन से जुड़ा हुआ जनरेटर भी गूमने लग जाता है अब यह स्टीम इस टर्बाइन से आगे निकलती है तो आगे लगा रहता है कंडेंसर और यह कंडेंसर के थुरू स्टीम को ठंडा करने के लिए कूलिंग टावर के पास में बेज दिया जाता है अब यह जो कंडेंसर है ना इसकी बहुत ही गजब का काम है यह एक तरीके से इंजिनियर्स का बहुत ही जबरदस दिमाक है कैसे वहे देखते हैं जब गरम स्टीम टर्बाइन से कंडेंसर के पास में आती है तो कंडेंसर इस स्टीम को ठंडा करने के लिए कूलिंग टावर के पास में बेज देता है और जब ये स्टीम ठंडा होकर पानी के रूप में कूलिंग टावर से वापस दूसरे पाइप में कंडेंसर के पास में आती है तो इन दोनों पाइप को एकदम पास पास में सेट किया जाता है एकोनोमिकली बेनिफिट के लिए कैसे जिस पाइप में गरम स्टीम जा रही है कूलिंग टावर के पास में वह स्टीम जिस पाइप में ठंडा पानी वापस आ रहा है उससे थोड़ी ठंडी हो जाएगी और यह जो ठंडा पानी है जो cooling tower से condenser के पास में आ रहा है यह गरम steam वाले pipe से थोड़ा गरम हो जाएगा तो जब यह ठंडा पानी condenser से होकर आगे निकलेगा तो turbine से जो heated steam आ रही है उससे और गरम हो जाएगा क्योंकि हमें तो यह पानी वापस boiler के पास में बेजना है ताकि boiler को पानी को गरम करने और steam बनाने में ज़्यादा time ना लगे और कंडेंसर के आगे यह पानी इकोनोमाइजर में जाता है जो मैंने आपको अभी बताया था जो यह आग की बट्टी के एकदम टचोकर लगा रहता है और इकोनोमाइजर से वापस बोइलर में बहाप बनने के लिए भेज दिया जाता है अब यह जो कूलिंग टावर होता है ना इसका गजब का मेकेनिजम होता है जिसमें स्टिम को ठंडा किया जाता है इसका मेकेनिजम मैं आपको एक बहुत ही सांदार एकजांपल से समझाता हूँ अक्सर आपने देखा होगा कि गर्मियों में जो पानी की टंक की छट पर रखी अब उस पानी को ठंडा करने के लिए एक सिंपल सा तरीका बताता हूँ आपको वह भी एकदम फ्री तो जब भी आप नाने जाओ उससे पहले एक पानी का टब या बाल्टी लेकर उसमें फ़वारा चला देना यही बातरों में नाने वाला फ़वारा जब पानी फ़वारे से लेकर टब तक आएगा बूंदों के रूप में तो यह पानी हवा के संपरक में आकर काफी हद तक ठंडा हो जाएगा और यदि आपने इस फ़वारे वाली बूंदों पर फेन चला दिया तो यह पानी बहु और यही सेम मेकेनिजम यूज होता है कूलिंग टावर में और बारिस के पानी में बारिस का पानी आप देख लेना बहुत ही ठंडा रहता है इतना ठंडा कि कई बार तो बरब बनकर नीचे गिरता है जिसको हम ओले बोलते हैं तो रास्ते में हावा के संपरक में वह ठंडी हो जाती है और पानी में भी बदल जाती है और कूलिंग टावर आप नीचे से देख सकते हो खुला रहता है इसमें नेचुरल हावा एंटर होती है नीचे से और स्टीम को ठंडा करके उपर निकल जाती है और इस हवा के साथ में कुछ स्टीम भी एनवायरमेंट में फेल जाती है पर इसका कोई नुकसान नहीं है क्योंकि यह सिर्फ पानी है कूलिंग टावर में नीचे की तरब पानी रहता है तो पंप से खीचा जाता है और यह पानी स्टीम को ठंडा करने के लिए काम में आता है और बाद में यही पानी आगे बोइलर के पास में जाता है गरम होने के लिए अब यह जो जनरेटर गूमता है टर्बाइन से 11,000 वोल्ट यानि 11 केवी तक जनरेट करता है यह जनरेटर फेराडे के लो ओप मेगनेटिजम पर काम करता है और इस पर मैंने डिटेल में एक सेपरेट वीडियो बनाया है बास अपर तय करना है यह जो पावर प्लांट की पूरी प्रोसेस होती है यह ओटोमेटिक होती है इन बड़े बड़े टर्बाइन जनरेटर और कोल को मेंटेन करने के लिए बहुत सारे लोग रगे रहते हैं जो इस जनरेटर बोइलर की हर एक सेकंड की परपोर में चेक करते रहते हैं और यह जनरेटर साइज में इतने बड़े और महंगे होते हैं कि इनकी हर एक चीज को मोनेटर किया जाता है यह किस स्पीड पर घूम रहे हैं कितना वोल्टेज जनरेट कर रहे हैं कितना करंट जनरेट कर रहे हैं क्या फ्रिक्वेंसी है कौन से लोसे सो रहे हैं कितना इनका टेंप्रेचर है हर एक चीज को मोनेटर किया जाता है क्योंकि यह जनरेटर 3000 आरपियम की स्पीड पर एक साल तक बिना रुके कंटिन्यूसली फुल लोड पर चलते रहते हैं अब जब जनरेटर के टर्मिनल से 11,000 वोल्ट कलेक्ट कर लिया जाता है तो इस voltage को इन बड़े बड़े transformer की help से step up किया जाता है 400 kV तक क्योंकि जब electricity power plant से होकर हमारे घरों तक पहुंचती है तो रास्ते में बहुत से losses होते हैं इस वज़े से इस high voltage पर transfer किया जाता है ताकि कम से कम losses हो जब यह 400 kV इन बड़े बड़े tower की help से बड़ी city के बड़े GSS में लाया जाता है तो इस 400 kV को step down किया जाता है वापस 11 kV तक अब इस transmission line का भी बहुत ध्यान रखना पड़ता है इसका भी load flow every time चेक किया जाता है क्योंकि इन में 4,00,000 volts से जो इन पर effect पड़ता है वह बहुत ही जबरदस्त होते हैं तो जब इन बड़े बड़े transformer से इन 400 kv को 11 kv तक step down कर लिया जाता है तो इस 11 kv की line की help से हमारे गरों तक transfer किया जाता है और यदि आपने देखा हो तो इस 11KV को घरों में यूज़ करने से पहले हमारी गली के नुकड़ी या घरों के पास में एक छोटा ट्रांसफॉर्मर लगाय जाता है जो इस 11KV को 400V तक स्टेप डाउन करता है और इस 400V में 3 फेज और एक न्यूटरल वाइर होता है तो एक फेज और एक न्यूटरल वाइर लेकर हमारे घरों में 220V की इलेक्ट्रिसिटी पहुँच जाती है जिसको हम काम में लेते हैं एलेक्ट्रिसिटी तब कटती है जब या तो कोई फोल्ट आ जाता है या फिर कभी लोड बढ़ जाता है। वरना पाउर प्लांट में एलेक्ट्रिसिटी 24 गंटे और साल की 365 दिनों में एनी टाइम एविलेबल रहती है। और यह थी एक कम्पलीट प्रोसेस एलेक्ट्रिसिटी जनरेशन से लेकर हमारे घरों तक पहुँचने की। यह इनफोर्मेशन आपको कैसी लगी जरूर कमेंट बॉक्स में बताना और यदि आपको कुछ पूछना है तो वह भी आप कमेंट में पूछ सक