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भारत में राष्ट्रवाद का उदय

हलो एवरीवन, ये इस सीरीज का दूसरा बीडियो है इस बीडियो में हम क्लाश टेंथ हिस्टी के चेप्टर नमर तू को कमप्लीट करेंगे जिसका नाम है Nationalism in India देखो इस चेप्टर में हम देखेंगे कि लोगों ने 1915 के बाद independence के लिए कैसे struggle किया कौन-कौन से movements देखने को मिले साथ में हम ये भी जानेंगे कि हमारे देश के लोगों में nationalism कैसे फैला मतलब अपने देश के प्रती प्यार और देश भक्ती की भावना कैसे पैदा हुई फ़र्स्ट टॉपिक है हमारा तफ़र्स्ट वर्ल्ड वार खिलाफत और नॉन कॉपरेशन हमारे चैप्टर की सुरुवात होती है 1914 से 1914 में कई बड़ी पावर्स आपस में लड़ रही थी एक तरफ थी Allied Powers और दूसरी तरफ थी Central Powers Allied Powers में आते थे ये सारे Nations और Central Powers में आते थे ये सारे Nations इसी लड़ाई को World War I बोला गया बृतेन एक Major Participant था जो की इस बॉर को लड रहा था हमारी इंडिया के इस बॉर से डारेक्टली कोई कनेक्सन नहीं था लेकिन फिर भी इस बॉर का इंपेक्ट हमारी इंडिया की उपर भी पड़ रहा था ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय पर हम बृतेन की ही कॉलोनी थे मतलब बृतेन हमारे उपर कबजा की हुए था अब चूकी बृतेन वार लड़ रहा था अब क्या impact पड़ रहा था आए जानते हैं जिसके लिए वो इंडिया में custom duties बढ़ा देता है साथ में income tax introduce कर देता है ताकि वो extra revenue generate करके war का खर्चा manage कर पाए second war की वज़े से इंडिया के अंदर हर एक item के prices लगबग double हो गए थे थर्ड इंडियन लोगों को जबरदस्ती बृतिस आर्मियों भरती किया जा रहा था फूर्थ उसी टाइम पीरिड में लोगों की फसले भी खराब हो गई थी जिस वज़े से इंडिया में acute food shortage देखने को मिल रही थी मतलब खाने की बहुत कमी देखने को मिल रही थी Fifth During this war time इंडिया में एक epidemic भी फिल रहा था जिसका नाम था influenza epidemic इससे भी कई सारे लोगों की जाने चली गई थी अगर हम 1931 के सेंसेस को देखें तो करीब 13 मिलियन लोगों की जाने चली गई थी इसी फैमाइन और एपिडेमिक के चलते The Idea of Satyagraha तो इस समश्याओं के दोर में लोगों को जरूवत थी एक ऐसे वेक्ती की जो ब्रिटिस रूल की हो रहे अत्याचारों से उन्हें बचा सके और उनकी अगेंस्ट में आवाज उठा सके फाइनली जनवरी 1915 में एंट्री होती है महात्मा गांधी जी की जो की साउथ अफरिका से इंडिया लोडते हैं महात्मा गांधी अपने शात एक आईडिया लेकर आते हैं ये आइडिया था नॉन बॉयलेंस का गांधी जी का मानना था कि हमें जो भी लड़ाई लड़नी चाहिए वो बिदाउट विपन लड़ी जानी चाहिए सत्य की राह पर चलकर और सांती पून तरीके से गांधी जी बॉयलेंस यानि की हिस्सा के बिलकुल खलाफ थे गांधी जी इस सत्यागरे की आईडिया को इंडिया आनी से पहले 90-06 में साउथ अफरिका में भी प्रेक्टिस कर चुके थे सिमिलरली जब गांधी जी इंडिया आते हैं प्रश्न जो की 1918 में किया था इसमें गांधी जी कोटन मिल वरकस को सपोर्ट करते हैं क्योंकि बरकस की बेज़ेज बहुत कम थी तो बरकस की बेज़ेज बढ़ाने के लिए ये मुवमेंट किया गया था सुरुवात के दो पीजेंट्स के लिए थे और तीसरा वरकर्स के लिए था आईए जानते हैं Roll Act पास किया गया था 1919 में जिसे पास किया था Imperial Legislative Council ने Imperial Legislative Council उस समय की British Parliament थी इंडिया के अंदर इस एक्ट की मदद से ब्रिटिस गवर्मेंट को काफी इनॉर्मस पावर मिल गई थी इस लॉ के असाब से अगर कोई भी बेक्ती पॉलिटिकल या रिवोलूशनली अक्टिबिटीज करता पाया जाता था तो उसे गवर्मेंट बिना ट्रायल के सीधा दो साल के लिए जेल में डाल सकती थी ये लोग इतना हास था कि इसे ब्लैक लोग भी बोला जाता था तो इसी रॉलेक्ट एक्ट के अगेंस्ट में गांधी जी 6th अपरेल 1919 को अपना सत्यागर्य लॉंच करते हैं ताकि वो इस लॉ को अपोस कर पाए ये सत्यागर्य नेशन बाइट सत्यागर्य था मतलब ये जो सत्यागरह था वो पूरी कंट्री के लिए था तो इस मूवमेंट की सुरुवात स्ट्राइक यानि की हर्टाल के साथ होती है इस मूवमेंट के सपोर्ट में कई सारे लोग सडकों पर आ जाते हैं दुकानों को बंद कर दिया जाता है और रेल्वे बरकर्स स्टाइक पर चले जाते हैं और साथ में रेलीज भी ओगनाइज होने लगते हैं ये सब देखकर बृतिस गवर्मेंट को लगा कि जल से जल देने कंट्रोल करना होगा जिसके लिए कई लोकल लीडर्स को अरेश्ट कर लिया जाता है और तो और गांधी जी को भी दिल्ली जाने से रोक लिया जाता है अब दोस्तो यहां तक सिच्चिएशन बॉयलेंड नहीं हुई थी मतलब धंगा लड़ाई जगडा नहीं हुआ था लेकिन 10 अपरेल को सिच्चिएशन थोड़ी खराब हो जाती है क्या होता है 10 अपरेल 1919 को अमरिश सर में एक peaceful procession की उपर पुलिस fire कर देती है मतलब एक सांती पूर्ण जुलूस के उपर ये सब देखकर जनता को गुश्रा आ जाता है और वे government buildings पर हमला कर देते हैं अमरेश सर में मार्शियल लॉ लगा देती है मार्शियल लॉ मतलब अब पावर मिलिटरी के पास आ गई थी और उस समय पर उस एरिया की मिलिटरी की कमांड थी जनरल डायर के पास अब देखो क्या होता है 13 अपरेल का दिन था इस दिन जलिया वाला बाग में बैसागी का मेला लगा हुआ था इसलिए कई सारे लोग मेला मनाने के लिए ये लोग इनोसेंट थे ये तो खुशी-खुशी बैसाकी का मेला मना रहे थे पर इनकी खुशी जनरल डायर को मनजूर नहीं थी जनरल डायर आता है अपनी मिलेटरी के साथ और बाग के सारे एक्जिट पॉइंट्स को बंद करवा देता है और ओपन फायर का ओडर दे देता है इन मासूम लोगों की उपर जिसमें हंड्रेट्स और पीपल मारे जाते हैं इस इंसिडेंट को जलिया वाला बाग मैसेकर के नाम से जाना गया इस इंसिडेंट ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था North India के कही सारे सेहरों में Boilance होने लगता है लोग roads पर उतर आते हैं Government authorities और buildings के उपर हमला कर देते हैं और classes होने लगते हैं ये सब देखकर British government भी और brutally repression करने लगती है मतलब इन्हें मारने पीटने लगती है कुल मिलाकर situation जो थी वो पूरी तरीके से violent हो गई थी गांधी जी कभी नहीं चाहते थे कि बॉयलेंस हो ये सब देखकर गांधी जी इस सत्याग्रह मूवमेंट को उसे called off कर देते हैं यानि की बंद कर देते हैं लेकिन अफगांती जी को ये समझ में आ जाता है कि ये छोटे मोटे मूवमेंट करने से कुछ नहीं होगा बलकि एक बड़ा मूवमेंट करने की जरूरत है और ये तब ही possible है जब हिंदू और मुस्लिम एक साथ आएंगे तब ही मूवमेंट broad level पर होगा और दूसरी तरफ से Central Powers Central Powers इस वार को हार गई थी तो अगर आप नोटिस करोगे तो इन हारे हुए Nations में एक Nation Ottoman Empire भी था तो इस Ottoman Empire का जो राजा था वो था खलीफा अब खासवात क्या थी कि जो खलीफा था उसकी सारे मुस्लिम्स रिस्पेट करते थे क्योंकि खलीफा जो था वो पूरे इसलामिक वर्ल्ड का हैड था साथ में ऐसे रूमर्स भी फैल रहे थे कि ब्रिटेन जो है वो जीतने के बाद अब खलीफा के उपर एक हास पीस टीटी भी इंपोस करने वाला है तो इस बास से मुस्लिम्स और ज़्यादा दुखी थे इसलिए जितने भी मुस्लिम्स थे वो खलीफा को डिफेंड करने के लिए खिलाफत मूवमेंट कर रहे थे अलग-लग जोगों पर मार्च 1990 में बॉंबे में भी खिलाफत कमीटी बनाई गई थी खलीफा को डिफेंड करने के लिए ये इंडिया के कई यांग जिसमें दो मेल लीडर थे जिनने अली बृदस बोला जाता है जो की थे मौम्मद अली और सौकत अली तो गांधी जी और इनके बीच में मास एक्सन को लेकर डिसकसन होता है अब दोनों ही कमुनिटी को लड़ना बृटिसस से ही था एक reason था सुराज का और दूसरा reason था खिलाफत इसू का तो मुहमद अली और सौकत अली कहते हैं कि अगर ये दोनों community साथ आ गई तो खिलाफत इसू भी solve हो जाएगा और सुराज के लिए भी एक broad movement होगा गांधी जी ने कहा कि ये सही है ये बढ़िया opportunity है ये ही तो मैं चाहता हूँ इसकी बाद फाइनली सेप्टेम्बर 1920 में कोल जहां गांदी जी अधर लीडर्स को भी कन्वेंस कर लेते हैं साथ में एक बड़ा मुव्मेंट स्टार्ट करने के लिए जो की था नौन कॉपरेशन मुव्मेंट तो इस non-cooperation movement के लिए सारे हिंदू और मुश्लिम रीडर्स साथ में आ जाते हैं अब question ये था कि गांधी जी non-cooperation movement ही start करना क्यों चाह रहे थे Why non-cooperation? तो इसका अंसर गांधी जी ने 9009 में अपनी बुक हिन सुराज में पहले ही दे दिया था उन्होंने अपनी बुक में बताया था कि जो ब्रिटिसर्स थे वो इंडिया में इसलिए रूल कर पाए क्योंकि इंडियन्स ने उनके साथ कॉपरेट किया था यानि कि उनका सईयोग किया था और अगर इंडिया के लोग ब्रिटिसर्स के साथ क� आईए अब हम ये जानते हैं कि गांधी जी क्या प्रोपोजल्स रखते हैं नॉन कोपरेशन मूवमेंट के लिए तो गांधी जी कहते हैं सबसे पहले तो गवर्मेंट के दौरा जितने भी टाइटल्स दिये गए हैं सबको सरेंडर करना होगा दूसरा बिर्टिस गवर्मेंट के जितनी भी सर्विसेज हैं उनको बाइकॉट करना होगा गांधी ये भी कहते हैं कि अगर इतना करने के बाद भी या कोई एक्सन लेती है तो फिर हम full civil disobedience campaign launch करेंगे मतलब फिर हम government के साथ ओवे ही नहीं करेंगे तो इस तरीके से movement को launch करने की लगबग पूरी तयारी हो गई थी इसके पीछे दो रीजन थे लेकिन कॉंग्रेस के कुछ लीडर नवंबर 1920 में होने वाले कांसिल एलेक्शन्स को बायकॉट करना नहीं चाह रही थी वो ये सोच रहे थी कि अगर वो election जीतते हैं और वो कुछ major changes कर पाएंगे दूसरा Congress पार्टी ए कुछ leaders का मानना ये भी था कि ये movement violence create करेगा तो ये बातों को लेकर कॉंग्रेस के अंदर टसल चल रहा था लेकिन फाइनली दिसेंबर 1920 में जहां Congress मान जाती है इस Non-Corporation Movement के लिए तो Congress के accept करने के बाद सभी लोग आप पूरी तरीके से तयार थे इस Movement को launch करने के लिए And finally, January 1921 में इस Non-Corporation Khilafat Movement को सुरू कर दिया जाता है Second topic है अमारा Differing Strengths Within the Movement इस टॉपिक में अब हम ये दिखते हैं कि ये movement अलग जगों पर किस तरीके से चल रहा था सबसे पहले हम ये दिखते हैं कि सेहरों में ये movement किस तरीके से चल रहा था तो टाउन्स के अंदर सबसे ज़्यादा पार्टिस्पेट किया था मिडल क्लास लोगों ने तो इस मूवमेंट के चलते टाउन के अंदर थाउजन्ड्स ओप इस्टूडेंट्स ने गवर्मेंट स्कूल्स और कॉलेजेस को छोड़ दिया teachers and headmasters ने resign कर दिया lawyers ने अपनी legal practices देना बंद कर दिया council elections को by-court कर दिया liquor shops को picked कर दिया इसके अलावा लोगों ने foreign goods को by-court कर दिया मतलब विदेशु से जो सामान आता था इंडिया में उसे by-court कर दिया cloths आते थे मतलब जो बिदेशों से जो कपड़े आते थे उने भी जला दिया गया अब इसका result क्या आता है पहला foreign cloths का import आदा हो जाता है 1921 और 1922 में क्योंकि लोग अब foreign cloths को खरीद नहीं रहे थे दूसरा merchants और traders भी foreign goods के साथ trade करना बंद कर देते हैं तीसरा ये सब होने की बज़े से मतलब सुधेसी कपड़े बनने लगते हैं इंडियन क्लॉज यान की खादी कपड़ों को पैनना सुरू कर देते हैं तो यहां तक देखने के बाद आपको लग रहा होगा कि ये मूवमेंट सैरो में तो अच्छे से चल रहा है पर दोस्तों ऐसा नहीं था सुरुवात में तो ये movement सही चलता है पर ये movement towns में धीरे slow down हो जाता है slow down क्यों हो जाता है इसके पीछे भी reason थे पहला reason था कि जो Indian cloths यानि के खादी कपड़े थे वो काफी expensive थे क्योंकि ये हातों से बनते थे वहीं जो foreign clause थे वो लोगों को सस्ते पढ़ते थे क्योंकि वो cloths factories में बनते थे इसलिए लोगों ने फिर से foreign cloths को खरीदना चालू कर दिया था दूसरा reason था इंडिया के अंदर इंडिया के खुद के institutions की कमी थी इंडिया में ना ही खुद के schools थे और ना ही colleges थे इसलिए जितने भी students और teachers थे क्योंकि उनके पास कोई और अल्टरनेटिव नहीं था तीसरा लॉयस ने भी इसी तरीके से धीरे गवर्मेंट कोट्स को फिर से जॉइन कर लिया क्योंकि उनके पास भी कोई और alternative नहीं था तो दोस्तों ये कुछ region थे जिस बजे से ये movement cities में कमजोर पड़ने लगा था यानि कि slow down होने लगा था Rebellion in the countryside अब हम ये देखते हैं कि ये movement countryside यानि की rural area में किस तरीके से चल रहा था सबसे पहले हम देखते हैं peasant movement of awad मतलब awad में movement किस तरीके से चल रहा था अब अद में क्या था कि जो Peasants थे वो काफी ज़ादा परिसान थे बड़े Landlords और तुलकदार से क्योंकि ये जमीनों का काफी ज़ादा Rent चार्ज करते थे उपर से ये बेगार भी कराते थे मतलब बिना पैसू के काम भी कराते थे इसी लिए ये पीजन डिमांड करते हैं रिवेन्वी को कम कराने के लिए बेगार को खतम कराने के लिए, साथ में पीजेंट ये भी चाहते थे कि ये ओपरेसिव लेंडलोड्स का सोसल बाइकॉट होना चाहिए तो ये सब demand के लिए peasants movement करते हैं अबत के अंदर जिसको lead कर रहे थे बाबा रामचंदर बाबा रामचंदर एक सन्यासी थे जिनोंने पहले फिजी में as a indentured labor काम किया था तो सारे किसान और बाबा रामचन मिलके मुवमेंट के रूप में नाई धोवी बंद की सुरुवात करते हैं नाई धोवी बंद मतलब ये लोग क्या करते हैं बड़े लेंडलोड्स और तुलकदारों को बेसिक सर्विसेज देना बंद कर देते हैं जैसे कि नाई इनके बाल काटना बंद कर देते हैं धोवी इनके कपड़े दोना बंद कर देते हैं मतलब basic services देना बंद कर देते हैं बावा रामचंदर और पंडे जवालाल नेहरू ने एक ओध किसान सबा भी बनाई थी जो की October 1920 में बनाई गई थी बाद में जाकर इसकी ब्रांचेस आसपास के गाउं में भी खुली जाती है अब दोस्तों ये जो मूवमेंट चल रहा था किसानों का वो धीरे बॉयलेंट होने लगा था लोग तुलकदास और मचेंट्स के घरों पर हमला करने लगे थे बजारों को लूटने लगे थे ग्रेंस को इखटा करने लगे थे और तो जो लोकल लीडर्स थे वो भी पीजेंट से यही कहा रहे थे कि ऐसा करने के लिए उनसे गांधी जी ने कहा है साथ में ये भी कहा है कि तुम जाओ और सारी जमीनों को छीलो कि जाओ और लूट लो सब कुछ मतलब मूव्मेंट काफी बॉयलेंट होने लगा था तो ये तो एक example था अवध का इसी तरीके से आप अंदाजा लगा सकते हो कि अलग-अलग गाओं में ये movement किस तरीके से चल रहा होगा अब हम देखते हैं tribal participation मतलब अब हम ये देखते हैं कि tribal लोगों ने इस movement को किस तरीके से देखा तो इसमें हमें Goodam Hills of Andh Pradesh की tribal population के बारे में बढ़ना है तो यहां की जो tribal population थी वो परेसान थी इनकी परिसानिया कारण था इस्ट्रिक्ट फॉरेश लॉस मतलब ब्रिटिसर्स ने इस्ट्रिक्ट फॉरेश्ट लॉस बना दिये थे जिस बजे से इन लोगों का जंगलों में जाने रिस्टिट कर दिया गया था मतलब इने जंगलों में जाने नहीं दिया जा रहा था ओपल से ब्रिटिसर्स इन्हें फोर्स करते थे बेगार करने के लिए जिनका नाम था अलूरी सीताराम राजू ये क्लेम करते थे कि इनके पास स्पेशल पावस हैं और गोली भी इनका कुछ नहीं बगाड सकती ये गांधी जी के आइडियास की काफी ज़राज रिस्पेट करते थे लेकिन ये मानते थे कि इंडिया आजाद नॉन बॉयलेंस से नहीं हो सकता बलकि उसके लिए हत्यार उठाने पड़ेंगे तो अलोरी सीताराम राज्यू और ये सब ट्राइबल लोग मिलकर 1920 के time period में Britishers के against में Gorilla Movement करते हैं जिसमें ये कई सारे पुलिस स्टेशन्स पर हमला करते हैं कई सारे ब्रिटिस ओफिसेल्स को मारते हैं काफी वॉयलेंस करते हैं लेकिन अफसोस 1924 में अलूरी सीताराम राजू पकड़े जाते हैं और उन्हें मार दिया जाता है लेकिन तब तक वो एक फॉक हीरो बन गए थे इनकी उपर एक मूवी भी बनी है स्वराज इन प्लांटिशन अब हम तीसरा किस देखते हैं यह है Plantation Workers का. असम में कई सारे बरकर्स काम किया करते थे टी गार्डन्स में अब प्रॉब्लम क्या थी कि ब्रिटिशस ने एक एक्ट पास किया था जिसका नाम था इल्लेड इमिगरेशन एक्ट 1859 इसके तैथ कोई भी बरकर बिना परमीशन के प्लांटेशन फील्ड से बाहर नहीं जा सकता था तो इन लोगों को लगा कि अब तो आजादी मिल गई चलो भागो तो कई सारे लोग plantation fields को छोड़कर अपने घरों के तरब भागने लगते हैं पर इनको बीच में ही पगड़ लिया जाता है और इने पुलिस के द्वारा बहुत जादा मारा जाता है तो अभी तक हमने कंट्री साइड में हो रहे कई सारे मुवमेंट्स को देखा तो उनमें हमने क्या देखा कि लोग गांधी जी के मेसेजेस को अलग-लग तरीकों से इंटरप्रेट कर रहे थे कुछ लोग plantation छोड़ के भाग रहे थे मतलब सब लोग non-cooperation movement को सब के लिए सुराज का मतलब अलग था उपर से बॉयलेंस भी काफी जाधा हो रहा था इसी दोरन 1922 में क्या होता है चोरी चोरे एक जगे है गोरकफुर उत्तर प्रदेश में वहाँ पर कई सारे लोग एक peaceful demonstration कर रहे थे जिस पर वहाँ की local police attack कर देती है तो जो लोग थे वो गुस्सा में आका चोरी चोरा के police station में आग लगा देते हैं जिसमें कई policemen जो उसके अंदर फसे थे वो मर जाते हैं तो इस incident को देखकर गांधी जी को लगता है कि movement बंद कर देना चाहिए क्योंकि violence काफी ज़दा हो रहा है। तो गांधी जी इस non-cooperation movement को February 1922 में बंद कर देते हैं, यानि ये खतम कर देते हैं। पीछे जो कुछ भी गटा उससे गांधी जी को ये समझ में आ गया कि आगे कोई भी मास स्ट्रगल करने से पहले लोगों का प्रॉपरली ट्रेन होना जरूरी है लोगों को ये पता होना चाहिए कि मुवमेंट कैसे करना है और मुवमेंट का एम क्या है क्योंकि council में रहकर British Polishries को oppose करना आसान हो जाएगा तो इसी के लिए कॉंग्रेस के दो लीडर्स मिलकर सियार दास और मौतीलाल नेहरू एक नई पार्टी बनाते हैं जिसका नाम था सुराज पार्टी जो की 1 जनवरी 1923 में बनाई गई थी तो वो इसमें पाटिस्पेट ही नहीं करते हैं ये सब तो चली रहा था लेकिन धीरे हमारी पॉलिटिक्स भी काफी इंप्रूब करती है बेसिकली दो ऐसे फैक्टर्स थे जिनोंने हमारी पॉलिटिक्स को काफी सदा सेप किया पहला था Great Economic Depression जो की स्टार्ट हुआ था 1929 में तो इस Depression के चलते इंडिया लोगों की उपर काफी बुरा impact पड़ा था इंडिया में Agricultural prices गिरने लगते हैं Agricultural goods का export गिरने लगता है मतलब Peasants अपनी फसलों को बेच नहीं पा रहे थे tax दे पा रहे थे दूसरा factor था Simon Commission देवो क्या था British की government ने हमारी इंडिया में एक commission भेजा था जिसको Simon Commission बोला जाता है इसलिए बोला जाता है क्योंकि इस commission को जो lead कर रहे थे वो थे Sir John Simon इस commission का main objective था इंडिया के constitution को review करना और कुछ changes को suggest करना क्योंकि हमारी इंडिया के लोग Britishers के पुराने Constitution से खुस नहीं थे पर problem ये थी कि इस Commission के अंदर 7 मेंबर थे और सातों की सातों मेंबर बिरिटिसस थे, कोई भी इंडियन नहीं था इसलिए इंडियन लोगों को ये बात सही नहीं लग रही थी कि एक तो इंडिया के कॉंस्टिटूशन के लिए आ रहे हैं तो जब ये कमीशन 1928 में इंडिया आता है तो सारे लीडर्स मिलकर चाहे वो कॉंग्रेस से हो चाहे वो मिश्लिम लीक से हो सब मिलकर इस कमीशन को अपोस करते हैं और जोरो सोरो से Go Back Simon, Go Back Simon का नारा लगाते हैं। कि कहीं सिच्चिएशन हाथ से न निकल जाए इसलिए इंडिया के अंदर जो ब्रिटिस गवर्मेंट थी उसका जो बाईसरोइता लोड रिविन वो हमें दो ओफर देता है पहला ओफर देता है इंडिया के domination status का मतलब rule Indians का रहेगा लेकिन रहोगे तुम Britishers के यंडर में दूसरा ओफर देता है कि हम मिलके एक round table conference करेंगे जिसमें हम इंडिया की future constitution के बारे में discuss करेंगे लेकिन जो Congress थी वो इन दोनों office से satisfied नहीं थी इस्पेसिली जो रेडिकल लीडर्स थे जैसे की जवालनाल नेहरू और सुबास्टंदर बॉस ये कह रहे थे कि हमें फुल इंडिपेंडेंस चाहिए मतलब पूरा सुराज चाहिए इसी बात को इन दिसेमा 1929 में लाहोर कॉंग्रेस सेशन में पंडे जवालनाल नेहरू एक रेजिलूशन पास करते हैं और ओफिसली डिमांड करते हैं पून सुराज के लिए और साथ में ये भी अनाउंस करते हैं कि वो आने वाली 26 जनबरी 1930 को इसलिए इस बात को इतना ज़ाधा attention नहीं मिलता है ये सब देखकर गांधी जी को लगता है कि पहले लोगों को unite करना होगा तब जाके कोई बड़ा movement हो पाएगा पर इसके लिए गांधी जी को कोई ऐसी चीज के जरूरत थी जिसकी मदद से लोगों को यूनाइट किया जा सके तो उन्हें आइडिया आता है सॉल्ड का यानि की नमक का गांधी जी को लगा कि नमक एक पावरफुल सिम्बल बन सकता है जिससे लोगों को यूनाइट किया जा सकता है आप सोचने वाली बात यह है कि गांधी जी नमक को ही क्यों चुना तो इसके पीछे रीजन थे पहला कारण था कि सॉल्ट हर कोई कंजियूम करता है चाहे वो रिच हो चाहे वो पूर हो हर किसी की जरूवत होती है तीसरा सॉल्ट का पुरदक्षन भी केवल बिरिटिस कवर्मेंट ही कर सकती थी इंडियन्स नहीं कर सकते थे तो ये समस्य पूरे देश की थी इसलिए गांधी जी ने नमक को चुना as a symbol country को unify करने के लिए आये समझ में? तो गांधी जी क्या करते हैं? 31st जनबरी को एक लेटर लिखते हैं लॉर्ड इर्विन के लिए जिसमें गांधी जी अपनी 11 demands रखते हैं और इन 11 demands में एक demand salt tax को खतम करने के लिए भी थी गांधी जी साथ में ये भी कहते हैं कि 11 माज तक अगर हमारी demands नहीं मानी गई तो हम civil disobedience movements को start कर देंगे लेकिन लॉर्ड अर्बिन इनकी बात नहीं मानता है तो गांधी जी डिसाइड करते हैं कि वो अब Civil Disobedience Movement को लॉंच करेंगे तो इसके लिए गांधी जी सॉल्ट मार्च करते हैं जिसे डांडी मार्च भ तो गांधी जी 12 माज को अपने 78 trusted volunteers के साथ निकल पड़ते हैं ये जाते हैं सावरमती आसरम से और इन्हें पहुचना था डांडी गुजरात ये पूरी जर्नी 240 माइल्स के थी तो गांधी जी और उनके volunteers पर डे 10 माइल्स ट्रेवल करते थे ये जर्नी पूरे 24 दिनों तक चलती है और फाइनली 6 अपरेल को गांधी जी और उनके वॉलिंटियर्स डांडी पहुँच जाते हैं जहां वो इलिगल तरीके से सॉल्ट बनाते हैं और गवर्मेंट के सॉल्ट लोगों तोडते हैं और यहीं से बिगनिंग होती है Civil Disobedience Movement की अब आप लोग सोच रहे होगे कि पहले वाले और इस वाले Movement में डिफरेंस क्या था तो पहले वाले और इस वाले Movement में डिफरेंस यह था कि पहले वाले Movement में यानि कि Non-Corporation Movement में बस यही था लेकिन यह जो Civil Disobedience Movement था साथ में हमें उनके laws को भी तोड़ना था शोकी गान दीजिये नमक पर बाद में जाकर मात्मा गांधी जी को भी अरेश्ट कर लिया जाता है। जिस बजे से बॉयलेंस काफी ज़दा बड़े जाता है। इंडिया के लगवक एक लाख लोगों को अरेश्ट कर लिया जाता है। ये सब देखकर गांधी जी सिविल डिसॉबि� राउंड टेवल कॉंफरेंस करनी होगी गांधी जे एग्री हो जाते हैं एक कंडिशन के उपर कि उन्हें सारे पॉलिटिकल प्रिजनर्स को बाहर निकालना होगा यानि कि रिलीज करना होगा तो ये साइन होता है बट जब वो बापस आते हैं तो वो काफी जार डिसपॉइंटेड रहते हैं उपर से जब वो लोट कर आते हैं तो वो ये भी देखते हैं कि अभी भी जारता लीडर्स जेल में ही है और कॉंग्रेस पार्टी को भी इलीगल करार कर दिया गया है ये सब देखकर गांधी जी डिसाइड करते हैं कि वो अब फिर से Civil Disobedience Movement को लॉच करेंगे और वो इस Movement को री लॉच भी करते हैं पर अपसोस 1934 तक ये Movement अपना सारा Movementum लूस कर चुका था How participants saw the movement? मतलब अब हम ये देखते हैं कि जो अलगला लोगों के गुरुप थे उन्होंने इस movement में किस तरीके से participate किया था तो सबसे पहले हम देखते हैं रिच पीजेंट्स के बारे में और जानते हैं कि रिच पीजेंट्स ने इस मूवमेंट में किस तरीके से पाटिस्पिट किया था तो ये जो किसान थे वो कमर्सिल क्रॉप सुगाते थे मतलब फसले बेच कर पैसे कमाते थे लेकिन उस time period में जब economic depression आया तो agriculture goods के prices गिर गए जिस बजे से इनकी income भी decrease हो गई और इसी कारण से ये British government को tax और revenue भी pay नहीं कर पा रहे थे तो जब गांधी जी ने Civil Disobedience Movement श्टार्ट किया, तो इन लोगों ने बढ़ चट के पार्टिस्पेट किया, क्योंकि ये चाहते थे कि जो High Revenue है उसे कम कर दिया जाएं। पर जब 1931 में गांधी जी Civil Disobedience Movement को बंद कर देते हैं, तो जब गांधी जी ने Civil Disobedience Movement को 1932 में रीलॉँच किया तब इन मेंसे कई सारे लोगों ने पार्टिसिबेट ही नहीं किया क्योंकि वो सोच रहे थे कि इससे कुछ फायदा ही नहीं होता तो क्यों करे पर्टस्पेट अब हम देखते हैं पूर पीजेंट्स को तो जो पूर पीजेंट्स थे उनके पास खुद की जमीन नहीं होती थी जिसके बदले में वे उन्हें रेंट देते थे तो ये लोग भी land revenue नहीं दे पा रहे थे यानि कि rent pay नहीं कर पा रहे थे तो जब गांधी जी ने movement को start किया तो ये लोग demand कर रहे थे landlord से कि उनकी unpaid rent को माफ कर दिया जाए पर दोस्तों जो congress थी वो इस no rent campaign को support नहीं कर रही थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि जो बड़े landlords हैं वो उनसे upset हो जाए जो की इनकी business activities को restrict करती थी मतलब ये खुल के openly business नहीं कर पा रहे थे जिस बजी से ये लोग चा रहे थे कि ऐसी policies को हटना चाहिए जो इनकी business activities को restrict करती हूँ सेकेंड प्रॉब्लम थी कि इंडिया में बहार से foreign goods import होते थे तो ऐसे में इंडियन बिजनिस्मेंस को काफी लॉस होता था क्योंकि फॉरेंग गुड्स काफी सस्ते होते थे जिस वजह से इंडियन गुड्स बिच नहीं पाते थे तो ये लोग शाते थे कि इंडिया में foreign goods को रोग दिया जाना चाहिए ताकि Indian industrialists और merchants को फायदा हो सके इंडिया में इनी business class को support करने के लिए दो federation भी बनाए गई थी पहली थी Indian industrialists and commercial congress योगी 1920 में बनाए गई थी और दूसरी Federation of Indian Chambers of Congress and Industries जो की 1927 में बनाई गई थी दोस्तो इनी business class में दो बड़े industrialists थे जिनका नाम था पुरसुत्तम दास ठाकूर दास और जीडी बिरला जो की business class को lead कर रहे थे तो जब 1930 में civil disobedience movement को start किया जाता है तो ये लोग काफी ज़दा participate करते हैं जिसमें ये imported goods को खरीदना और बेचना बंद कर देते हैं साथ में ये civil disobedience movement को financially भी support करते हैं मतलब movement के लिए fund भी करते हैं वहीं अगर हम बात करें industrial workers की तो industrial workers ने इस movement में जादा participate नहीं किया था except Nagpur region Nagpur region में workers ने participate किया था बाकि इस movement में workers का जादा participation देखने को नहीं मिला था पर जितना मिला तब वो ये demand कर रहे थे कि उनकी wages को बढ़ा दिया जाए और उनकी poor working conditions को बहतर किया जाए पर जो Congress थी वो इन पर ध्यान नहीं देती है क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि इनकी बजे से इंडस्टिलिस्ट का पार्टिसिपेशन अफेक्ट हो क्योंकि उस समय पर बड़े इंडस्टिलिस्ट का एक बड़ा रोल था इस मूवमेंट में ऐसे में वो workers को support करके industrialist को upset करना नहीं चाहती थी इसलिए congress workers को जाधा support नहीं कर रही थी जब हमने इतने सारे लोगों के participation को देख लिया तो woman कहां रह जाएंगी आईए अब हम woman participation को देखते हैं participation of woman इनफेक्ट जब गांधी जी डांडी मार्चेस कर रहे थे तो कई सारी महिलाएं गांधी जी को सुनने के लिए घरों से बाहर आ जाती थी। पर उस समय पर महिलाएं देश की सेवा को एक सेकरेट ड्यूटी की तरह देख रही थी मतलब देश की सेवा एक पुन्न का विशे है महिलाओं के इतने सेक्रिफाइस के बाद भी उनकी लाइफ में जादा चेंज नहीं आता है क्योंकि उन्हें इतना attention नहीं मिला था जितना वो deserve करती थी जहां तक कि Congress की अगर हम बात करें तो Congress महिलाओं को किसी भी authority में post या position देने की इच्छा में नहीं थी Congress का केवल यही इराधा था कि महिलाओं का केवल एक symbolic presence देखने को मिले इस movement में जो की देखने को मिला था The Limits of Civil Disobedience Movement दोस्तो ऐसा नहीं था इस movement में हर एक group ने participate किया हो बलकि दो ऐसे ग्रूप्स थे जिनका participation जादा देखने को नहीं मिला था पहला ग्रूप था Dalits का और दूसरा ग्रूप था Muslims का तो सबसे पहले हम Dalits का case देखते हैं और जानते हैं कि उन्होंने क्यों participate नहीं किया था आए जानते हैं देखो पहला reason था कि Congress जो थी वो Dalit को ignore कर रही थी क्योंकि इस movement में high class Hindus ने भी participate किया था तो Congress Dalit को support करके इन high class Hindus को offend करना नहीं चाती थी क्योंकि उनका participation जादा था लेकिन वहले ही कॉंग्रेस सपोर्ट नहीं कर रहे थे लेकिन गांधी जी दलित्स को पूरा सपोर्ट कर रहे थे गांधी जी का मानना था दलित्स हरी जन है मतलब भगवान की ही संतान है और उनका ये भी मानना था कि अगर हमें सुराज चाहिए तो वो हमें तब तक नहीं मिलेगा जब तक हम सुसाइटी से अंटेचेबलिटी खतम नहीं कर देते इनकी सेपरेट एलेक्टोरेट की डिमांड को वी आर अम्बेडकर जी लीड कर रही थे जिसके लिए उन्होंने 1930 में एक डिपरेश्ट क्लास असोशेशन भी बनाई थी लेकिन गांधी जी सेपरेट एलेक्टोरेट के प्रस्ताव से खुस नहीं थे मतलब गांधी जी भूँ करताल सुरू कर देते हैं गांधी जी की सभी लोग रिस्पेक्ट करते थे तो एट दी एंड बियार अम्बेडकर जी भी मान जाते हैं पर उनकी बीच में एक पैक्ट साइन होता है जिसे पूना पैक्ट बोला जाता है जो की September 1932 में साइन किया गया था जिसके तरच depressed class को reservation दे दिया जाता है provisional and central legislative council में मतलब separate electorate तो नहीं रहेगी रहेगी तो general electorate ही पर जो seats होंगी provisional और legislative council में उनमें कुछ seats तलिच के लिए reserve कर दी जाएंगी तो ये था PUNA PACT अब हम Muslim Community का case देखते हैं तो मुश्लम कमोनिटी ने भी इस मुव्मेंट में जादा पार्टिस्पेड नहीं किया था, क्यों नहीं क क्या reason थे? देखो, हमें पता है starting में जब हमने non-cooperation, khilafat movement start किया था, तो उसमें Hindu और Muslims दोनों ने ही participate किया था. लेकिन उसके बाद धीरे Hindu और Muslims के बीच में tension बढ़ने लगा था, क्योंकि religion के basis पर अलगले organizations बन रहे थे, जैसे कि हिंदू के लिए एक ओगनेजिसन बना था हिंदू महासाबा करके हिंदू महासभा की तरब बढ़ने लगा था जिस बज़े से दोनों कमुनिटी के बीच में दूरियां बढ़ रही थी पर फिर भी 1927 में कॉंग्रेस और मुस्लिम लीग ने अलाइस बनाने का सोचा ताकि मिलके इस्ट्रगल किया जा सके वो डिमांड कर रहे थे सेपरेट लक्रोरेट की उनका मानना यह था कि सब के लिए joint electorate ही होना चाहिए ना कि separate electorate बट मुहमाद अली जिनना मुस्लिम्स के लिए सेपरेट एलक्टोरेट चाते थे लेकिन बहुत कन्वेंस करने के बाद मुहमाद अली जिनना मान जाते हैं जॉइंट एलक्टोरेट के लिए लेकिन सर्थ ये थी कि मुस्लिम्स के लिए सीट्स रिजब करनी होगी सेंटरल असेंबली में उसी के साथ से मुस्लिम्स को सीट मिले उसी टाइम पर यानि की 1928 में एमर जैकर जो की हिंदू महासवा के एक लीडर थे वो इनके इस प्रस्ताओं को लेकर जम के बरोध करते हैं और strongly oppose करते हैं जिसके बाद दोनों communities के बीच में काफी ज़ादा दूरिया आ जाती हैं इसलिए जब गांधी जी ने 1930 में civil disobedience movement start किया था तो majority section of Muslim community ने participate ही नहीं किया था लास्ट टॉपिक है हमारा The Sense of Collective Belonging तो इस टॉपिक में हम ये जानेंगे कि लोगों में अपनीपन का भाव कैसे पैदा हुआ यानि कि लोगों में Sense of Collective Belonging प्रक्टिव ब्लॉगिंगनेस कैसे पैदा होई तो इसके पीछे कई कारण थे पहला कारण था United Struggle लोगों का उस समय पर एकी बिजन था जो की था इंडिया को ब्रिटिसस से आजाद कराना इसलिए लोगों में धीरे दूसरा रीजन था कल्चरल प्रोसेस लोगों ने धीरे अपने कल्चर के साथ यानि कि अपने कल्चर के साथ रिलेट करने लगे थे रबेनना टैगोर और नतिसा सास्त्री इनका काफी बड़ा योगदान था कल्चरर प्रोसेसेस में इनोंने इंडियन फोकलोस को गाउं-गाउं जाका लोगों तक पहुचाया ताकि लोग अपने culture से relate करें और लोगों में sense of collective blogging ने इसकी भावना आया कि हम सब एक है, हमारा culture एक है आया समझ में? तीसरा है figures and images 18th और 19th century में जो artists थे वो nations को represent करते थे different allegories से फोर एग्जांपल जैसे की फ्रांस की एलोगोरी थी मेरियन और जर्मनी की एलोगोरी थी जर्मेनिया तो इसी तरीके से अलग-लग नेशन्स को रिप्रेजेंट किया जाता था अलग-लग फिगर्स और पेंटिंग्स के थिरू जैसा की हमने पिछ इस सॉंग को उन्होंने अपनी बुक आनन्द मठ में भी इंक्लूट किया था इन फैक्ट जब 1905 में सुदेशी मुवमेंट चला था तब इस सॉंग को काफी बड़ चड़के गाया गया था बाद में जाकर अभिनेंदर नाट टेगोर ने 1905 में भारत माता की पेंटिंग बनाई जिसमें जो भारत माता थी वो काम, कमपोस, डिवाइन और स्पीचुल दिखाई दे रही थी फोर्थ है Symbols and Flags लोगों में symbols and flags की वज़े से भी sense of collective bloggingness जाग रही थी क्योंकि जो फ्लेग होता है वो पूरी कंट्री को रिपरेजेंट करता है तो हमारे देश के लिए भी अलग-अलग फ्लेग्स बन रहे थे जैसे कि बेंगाल सुदेशी बूमेंट पर एक फ्लेग बनाया गया था जिसमें तीन कलर थे ग्रीन, येलो और रेड बाद में जाका 1921 में गांधी जी ने भी एक फ्लेग बनाया था जिसमें भी तीन कलर थे रेड, ग्रीन और वाइट और बीच में एक spinning wheel था जो की self help को express करता था Fifth ए reinterpretation of history दोस्तों जब ब्रिटिसस हमारे देश में आये थे तो उन्होंने लोगों के मन में ये इंटरप्रिटिशन बैठा दी थी कि इंडिया काफी बैगवार्ड और प्रिमिटिव था तो वो खुद से गवर्मेंट हैंडल नहीं कर सकते थे। इसलिए हमने government को handle करके Indians पर एसान किया है. पर आप लोग जानते हो हम सब जानते हैं कि reality में तो Britishers हम सब को लूटने आये थे. इसलिए struggle के समय पर Indian Nationalists हिस्ट्री को reinterpret कर रहे थे. मतलब लोगों को ये बता रहे थे कि ब्रिटिसर्स के आने से पहले हम कमजोर नहीं थे, बलकि एंसियन टाइम में हम काफी डबलब थे हर फील्ड में, चाहे वो आर्ट और एग्री कल्चर हो, रिलीजन और कल्चर हो, सब कुछ बहुत अच्छा था, हमारी हिस् सेंस ओप कलेक्टिव ब्लॉगिंग नेस जगाई जा रही थी जिससे लोगों में अपने पन का भाव जग रहा था और नेशनलिजम की फीलिंग जग रही थी और इसी नेशनलिजम की फीलिंग के चलते बाद में जा