नमस्कार दोस्तों, क्या इस पूरे भ्रमान में हम इंसान अकेले हैं? या फिर हमारे इलावा भी कहीं और कोई intelligent life मौजूद है? अगर aliens सही में exist करते हैं, तो ये सोचना बड़ा सौभाविक है कि शायद aliens के मन में भी ऐसे ही सवाल उठते होंगे, कहीं इस universe में वो अकेले तो नहीं? हमारे universe में दो intelligent species के बीच में communication कैसे बनाया जाए?
इसी सोच को ध्यान में रखते हुए, NASA ने कई प्रोजेक्ट शुरू किये, ताकि हम किसी तरह aliens को एक संदेश भेज सकें। यह साल 1977 की बात है, कि NASA ने अपना Voyager 1 स्पेसक्राफ्ट लॉंच किया, और उसका मिशन क्लियरली डिफाइन किया। हमारा सोलर सिस्टम, यानि सौर मंडल की खोज को, बाहरी प्लानेट्स के आसपास से लेकर, सूर्य के प्रभाव शेत्र की बाहरी सीमाओं तक, तो ये एक इंटर स्टेलर मिशन था। हमारी मिलकीवे गैलेक्सी में करोडो अर्बो सोलर सिस्टम्स हैं। इन सोलर सिस्टम्स के बीच में जो जगे हैं, उसे इंटरस्टेलर स्पेस कहा जाता है। आज के दिन तक नासा ने सिरफ पाँच इंटरस्टेलर स्पेसक्राफ्ट्स लॉच किये हैं। इनके नाम हैं Pioneer 10, Pioneer 11, Voyager 1, Voyager 2 और New Horizons। क्योंकि सोलर सिस्टम को छोड़ कर जाने में बहुत लंबा समय लगता है। और ये दो जो छोड़ कर जा पाएं हैं, ये दो बड़े खास हैं, Voyager 1 और Voyager 2. इन्होंने Solar System की एक ऐसी सेर लगाए, कि हमें Jupiter, Saturn, Uranus और Neptune की एक कमाल की फोटोज मिल पाएं. आज की दिन तक Voyager 2 इकलोता स्पेसक्राफ्ट है, ज�� Uranus और Neptune के पास गया है. और Voyager 1 का सफर तो इतना लंबा रहा है, कि ये अफिशली धर्ती से सबसे दूर पहुचने वाला Man-made Object बन चुका है. As of October 2024, ये 24.7... बिलियन किलोमेटर्स दूर है धर्ती से। लेकिन इन दोनों वोयजर्स की सबसे दिल्चस बात तो यही है कि इनमें मौजूद हैं, एलियन्स के लिए धेर सारे मैसेजिस, जिनको साथ लिये ये अंतरिक्ष में भूम रहें। ये मैसेजिस जो इस उमीद से भेजे गए कि शायद हमारी कभी मुलाकात एलियन्स से हो, और इन संदेशों के जरीए हम उन्हें अपने बारे में कुछ बता सकें। आखिर क्या छिपा है इन पिटारों में?
जो NASA एलियन्स को बताना चाहती है। आए जानते हैं Voyager missions की पूरी कहानी, आज के इस वीडियो में। यह साल 1965 की बात है दोस्तों, कि NASA में काम करने वाले एक इंजिनियर ने नोटिस किया, कि हमारे सोलर सिस्टम के आखरी चार प्लैनेट्स, Jupiter, Saturn, Uranus और Neptune, एक बड़ी ही अनोखी जिमेट्रिक अरेंजमेंट में आ जाएंगे, लेट 1970 के समय में. एक ऐसी अनोखी अरेंजमेंट, जो 175 सालों में सिरफ एक बार आती है. इस अरेंजमेंट का मतलब था, कि एक ऐसा स्पेसक्राफ्ट भेजा जा सकता था, बहुत कम फ्यूल और समय इस्तिमाल करते हुए. अपनी स्पीड और ट्रेजेक्ट्री बदलने के लिए। इसी के आधार पर नासा ने Voyager 1 और Voyager 2 मिशन्स के प्लान्स बनाए। और यही कारण कि साल 1977 का इयर चुना गया इन दोनों स्पेसक्राट्स को लॉँच करने के लिए। मिशन के अनुसार Voyager 1 को Jupiter और Saturn के पास से fly-by करना था। खासकर Saturn के बड़े मून टाइटन पर फोकस करते हुए। और दूसरी तरफ Voyager 2 को Jupiter, Saturn, Uranus, Neptune के पास से गुजरना था। दोनों स्पेसक्राफ्ट के डिजाइन की बात करें तो एक दूसरे से काफी सिमिलर थे। दोनों ही तीन रेडियो आईसोटोप थर्मो एलेक्ट्रिक जनरेटर द्वारा पावर थे। इनमें कोई सोलर पैनल्स नहीं लगे थे। कि उससे कुछ सोलर एनरजी निकाली जा सके। और इनका मिशन तो सोलर सिस्टम को पार करना था। प्लूटोनियम जब डीके होता है, तो हीट निकलती है, उस हीट को बिजली में कन्वर्ट करा जा सकता है, यहीं से ही यह नाम आता है, रेडियो आईसोटोप थर्मो एलेक्ट्रिक जनरेटर, इसके लावा दोनों स्पेस प्रोवस में, एक मेगनेटोमीटर, एक हाई गेन अंटीना, कम्यूनिकेट करने के लिए धर्ती के साथ और बाकी कोई छोटे मोटे इंस्ट्रुमेंट्स रेडियेशन के अलग-अलग लेवल्स को मापने के लिए इंटरेस्टिंग चीज यह है कि वोजर 2 का लॉइंच वोजर 1 से पहले किया जाता है 20 अगस्ट 1977 में और 16 दिन बाद 5 सितमबर 1977 जवन को वॉइजर वन का लॉच होता है, नासा केनेडी स्पेस सेंटर से। जो रस्ता वॉइजर वन ने लिया, वो ज्यादा चोटा और तेज़ था वॉइजर टू के कमपैरिजन में। तो जुपिटर के बाद सबसे पहले वॉइजर वन ही पहुँचता है, और मार्च 1979 में, ये जबरदस्त टाइम लैप्स इसके द्वारा लिया जाता है। हर एक तस्वीर जुपिटर के एक रोटेशन पीरियट के बाद ली गई है। लगभग 10 घंटे का समय लगता है जूपिटर को रोटेट करने में। यह पहली बार था कि जूपिटर और जूपिटर के मून्स की इतनी क्लियर कट फोटोज हमें देखने को मिल पाए। और यही पर डिसकवरी हुई जूपिटर के रिंग्स की भी। जोवियन सिस्टम कहा जाता है। यह जोवियन शब्द रोमन गॉड अफ स्काई और थंडर से आता है जोव जिसका नाम है। और जोव का ही दूसरा नाम जुपिटर भी है, जहां से इस प्लानेट का नाम भी पड़ा। सैटन, यूरेनस और नेप्टून, यही कारण कि इन चारो प्लानेट्स को मिला कर जोवियन प्लानेट्स कहा जाता है, जुपिटर लाइक, प्लानेट्स। इसी जोवियन सिस्टम की एक्स्प्लोरेशन के दौरान, वॉयजर वन ने जुपिटर के आई-ओ मून की आंगोइंग वॉलकेनिक अक्टिविटी की भी खोज करें। ये भी पहली बार था जब इंसानों ने किसी और प्लानेट पर एक्टिव वॉलकेनोस को देखा। कुछ महिने बाद 9th July 1979 को वॉयजर 2 जुपिटर के पास पहुँचा, इसके पास आने से एक और नया चांद हमें देखने को मिला, पता चला एक और मून मौजूद है जुपिटर के पास। इन बॉजर मिशन्स की डिसकवरीज के कारण, जुपिटर के जो मून्स थे वो 13 से वड़कर 16 हो गए। हम 95 अलग-अलग मून्स डिसकवर कर चुके हैं। 95 अलग-अलग चांद जो जुपिटर के चारू तरफ घूम रहे हैं। इसके करीब डेड़ साल बाद, 12 नवेंबर साल 1980 को, वॉइजर वन पहुँचता है सैटन के पास.
इस वक्त तक वॉइजर वन की स्पीड इतनी तेज हो गई थी वॉइजर टू के मुकावले, कि वॉइजर टू को सैटन तक पहुँचने में करीब 9 महिने और लगे. सैटन पर पहुँचते ही वॉइजर वन ने 3 नए मून्स की खोज हाँ, यह पैंडोरा नाम वही है, जो अवतार फिल्म में एलियन प्लानेट का नाम रखा जाता है, लेकिन असलियत में, यह सैटन के एक मून का नाम है, उस समय तक सैटन के नोन मून्स की लिस्ट करीब 15 तक थी, लेकिन आज के दिन, हमने करीब 146 मून्स की खोज कर लिये सैटन के, बहुत सारा लिक्विड स्टेट में पानी मौजूद है। यही कारण कि कई सारी साइंस फिक्षन मूवीज इस पर बनी है, जिसमें टाइटन को एक ऐसी जगह दिखा रखा है, जहाँ पर या तो एलियन्स रहते हो, या फिर जहाँ पर इंसान जाकर रह सके। साटन को पार करने के बाद, यह पहला और इकलोता मैनमिट ओब्जेक्ट बन जाता है, साल 1986 में यूरेनस के पास, और 1989 में Neptune के पास से गुजरता है। और कुछ ये फोटोज हमारे पास आती हैं। वॉयजर वन दूसरी तरफ अपनी ट्रेजेक्टरी बदल लेता है, और Ecliptic Plane से बाहर चला जाता है। Ecliptic Plane अगर आप नहीं जानते, ये एक Imaginary Plane है, जिस पर हमारे Solar System के सारे Planets, अपने अलग-अलग Orbits में सूरज के चक्कर लगाते हैं। इसे अगर आप 3 Dimensions में देखो, सारे Planets में कुछ छोटे-मोटे Degrees का अंतर होता है, लेकिन सब एक Flat Plane पर लगते हैं almost। लेकिन Voyager 1 इस प्लेन से बाहर उठकर निकल जाता है। Voyager 1 का प्रोब ग्राविटी एसिस्ट की मदद से बहुत तेज स्पीड पकड़ लेता है। आज के दिन यह अंतरिक्ष में उड़ रहा है, 60,000 km पर आवर की ज्यादा स्पीड से। रफली Voyager 1 और Voyager 2 आज के दिन कहां पर मौजूद हैं। 1st January 1990 को, Voyager के Interstellar Mission की शुरुवात होती है। official mission, sun के influence से बाहर निकलने का। अगले ही महीने valentine's day के दिन, 14 फरवरी साल 1990 को, वॉयजर वन के द्वारा एक बड़ी मशूर फोटो ली जाती है, the pale blue dot, ये फोटो जिसमें वॉयजर वन धरती से करीब 6 billion kilometers दूर है, और हमारी धरती इसमें सिरफ एक छोटी सी blue कलर की dot की तरह दिखाई दे रही है, इसी perspective से वॉयजर वन के camera ने एक selfie भी ली, हमारे inner solar system की, एक family portrait जिसमें Venus, Earth, Jupiter, Saturn, Uranus और Neptune सब शामिल थे। अगर आप सोच रहे हो इसमें Mercury और Mars कहां गए, तो वो इसलिए दिखाई नहीं दे रहे, क्योंकि Sun की reflection इतनी ज्यादा पढ़ रही थी, कि वो उसमें गायब से हो गए। और Pluto बिचारा आज के दिन, तो वैसे ही नहीं है, उसकी कोई परवा नहीं करता, लेकिन इस फोटो के लिए भी वो बहुत चोटा था, इसलिए दिखाई नहीं दे रहा. मैं क्या करूँ, फिर जॉब छोड़ दू?
यह आखरी कुछ फोटोस खींचने के बाद, ताकि पावर और मेमरी दोनों बचाई जा सके. इंटरस्टेलर स्पेस के अंधेरे की ओर. इसके बाद सालों तक वोजर वन का कोई नया अपडेट नहीं आया.
साल 1998 में एक छोटा सा अपडेट बताय जाता है, कि ये धरती से सबसे दूर पहुँचने वाला man-made object बन गया है. फिर साल 2004 में बताय जाता है, कि Voyager 1 ने termination shock पार कर लिया है. ये एक ऐसा point होता है हमारे solar system की edge पर, जहां solar wind अचानक से धीमी हो जाती है.
आप पूछोगे ये solar wind क्या चीज है? ये असल में सूरत से आने वाले charged particles होते हैं. ये solar system के चारों और एक bubble सा बना देते हैं.
इस bubble को heliosphere कहा जाता है, और ये heliosphere हमें, इंटर स्टेलर रेडियेशन से बचाता है। जब हम हीलियोस्फेर की आउटर बाउंडरी हीलियोपॉस के करीब पहुँचते हैं, तो सोलर विंड और कमजोर हो जाती है। इस डाइग्राम को देखकर आप भेथर समझ सकते हो। जिसके बाद आती है, हीलियो पॉस्ट के आने के बाद कई सारे डायग्राम्स में एक बोशॉक का रीजन दिखाया जाता है इंटरस्टेलर स्पेस आने से पहले ऐसा कई सारे साइंटेस्ट का मानना था वोजर वन जब तक यहां नहीं गया था 25 आउगस्ट साल 2012 में वोजर वन ने हीलियो स्फेर को पीछे छोड़ दिया सोलर विंड से मिलती है। एक तरीके का डिफ्यूजन वाला रीजन, जहांपर कोई क्लियर कट बाउंडरी नहीं है। लेकिन सोच कर देखो दोस्तों, यह सिर्फ साल 2012 में ही था, कि वॉयजर वन ने बाउंडरी क्रॉस कर दिया। पूरे 22 साल का समय लग गया, चीज ने पहली बार सोलर सिस्टम की सरहदे पार कर ली है। यह डेटा साइंस का ही कमाल है, कि स्पेस एक्स्प्लोरेशन की इस फील्ड में हम इतनी सारी चीजों को बहतर समझ पाए हैं। लेकिन सिर्फ स्पेस एक्स्प्लोरेशन ही नहीं, आटोमोबील, फाइनैंस, मीडिया, हेल्थ केर। scalar.com आपको एक सलूशन आफर करते हैं। Scalar एक online tech learning platform है, जो programs provide करता है, software development, data science और machine learning में. Top tech companies के industry experts, यहाँ पर learners को mentor करते हैं. Scalar ने अब तक 15,000 learners के career transformation में help की है, और आप उन students की success stories इस section में देख सकते हो.
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यह हमें पता चला दोस्तों, इसके plasma wave instrument से. 9th April और 22th May 2013 के बीच में, एक powerful solar eruption record की गई Voyager 1 में. इस eruption की वज़े से Voyager 1 के पास के electrons vibrate होने लगे, और researchers नोटिस किया, कि Voyager 1 के आसपास की जो electron density है, बहुत ज्यादा हो गई है। इसी से ही हमें पता चला कि यह इंटरस्टेलर स्पेस में पहुँच गया है। आप सोचोगे लेकिन यह कैसे हो सकता है। एलेक्ट्रोन डेंसिटी सोलर सिस्टम के बाहर ज्यादा है, सोलर सिस्टम के अंदर के कमपैरिजन में। फर्क बस इतना है कि हिलियो पॉस से पहले जो इलेक्ट्रोन डेंसिटी में स्पाइक आई थी, वो सोलर विंड की वज़े से थी, और हिलियो पॉस के बाद जो स्पाइक आई इलेक्ट्रोन डेंसिटी में, ये इंटरस्टेलर विंड की वज़े से थी, ये सारी चीजें हमें पता चल पा रही थी, इस हाई गेन एंटीना की मदद से, सबकी सब इस एंटीना के जरीए ट्रांस्मिट हो रही थी, और धर्ती पर रिसीफ की जा रही थी, नासा के तीन डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन्स के दुआरा.
ये डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन्स भी अपने आपने बड़ी कमाल की चीज़ें, अगर आप मेरे व्लॉग चैनल को देखते हो, तो शायद आपको याद हो, मैंने औस्टेलिया में मौजूद इस डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन का एक टूर कराया था, इस वाले व्लॉग में. और तब ये 25 ओगस 2012 की डेट कन्फर्म हुई. नील आर्मस्ट्रॉंग का दिहान थुआ था। अच्छा, ये सारी बात तो हुई वोजर वन की। यहाँ पर वोजर टू का क्या हुआ। वोजर टू ने भी इंटरस्टेलर स्पेस में एंट्री मारी करीब 6 साल बात। 5 नवेंबर साल 2018 में। सिरफ दो स्पेस प्रोप्स जो आज के दिन तक ऐसा कर पाए हैं। इन दोनों के अंदर मौजूद हैं एलियन्स के लिए कुछ संदेश। अब भले ही इन दोनों Voyager मिशन्स ने कई सारे रिकॉर्ड्स तोड़े हों, लेकिन एलियन्स को संदेज भेजने के पर्यास में, ये पहले स्पेसक्राफ्ट्स नहीं थे। इससे पहले Pioneer 10 और Pioneer 11 ने भी ये कोशिश करी थी। वही मेसेजिस पहले Pioneer 10 और 11 में भेजे गए थे। बस फर्क ये है कि वोयजर्स में नई टेकनोलॉजी का इस्तिमाल करके, Pioneer Plaque एक छोटी सी gold anodized aluminium की plate है, जो Pioneers 10 और 11 के spacecraft पर लगाई गई थी। इस पर लिखी गई चीजे, aliens को हमारी planet Earth के बारे में बताती हैं। NASA ने इसे a mark of man कहा है। ये plate सिरफ 15-23 cm की है, लेकिन इस पर 5 engraved diagrams हैं। ये galaxy में हमारी location के बारे में जानकारी देती हैं। बीच में एक radial diagram है, जो असल में एक map है। इस map में हमारी सूरज की position को, 14 pulsars के relation में दिखाया गया है। Pulsars जो हैं, वो degenerated stars होते हैं, जो तेजी से घूमते हैं, और regular pulses emit करते हैं। Basically, इस नकशे को समझने के लिए, intelligence level इतना होना चाहिए, कि ये सारी knowledge पहले से पता हो aliens को। Plague के निचले हिस्से में, solar system के planets को दिखाया गया है, और सबसे left में सूरज है, उसके बाद सारे planets आते हैं। जो तीसरे planet की तरफ point out करता है, कि ये वो planet है, जहां से spacecraft निकल कर आया है। इसके middle right हिस्से में एक spacecraft का silhouette दिखाये गया है, और साती सात यहाँ आप देख सकते हो एक drawing एक पुरुष और एक महिला की, basically यह दिखाने की कोशिश करी गयी है, कि हम इंसान ऐसे दिखते हैं, जिन्होंने इस spacecraft को बनाया है, NASA ने कहा है, यह interstellar slab दर्शाता है, कि मानव जाती के पास, मानव विकास के युग की बहुतिक समस्याओं से परे, एक spiritual insight है, तो यह sheet काफी basic सी है, ज्यादा कुछ पता नहीं चलेगा aliens को अगर इसे देखा तो। इसलिए Voyagers missions में जो चीजें भेजी गई, वो इससे कहीं ज्यादा detailed थी। Voyagers के साथ भेजे गए messages, असल में 12 inch की gold plated copper discs और phonograph records हैं। इनमें आवाजे और images दोनों शामिल हैं। ऐसे दो records हैं, Voyager 1 और Voyager 2 दोनों पर भेजे गए हैं। phonograph जो है, इसे gramophone भी कहा जाता है, यह flat discs होती हैं, जिनमें sounds को store किया जा सकता है। यह एक जमाने में काफी popular हुआ करते थे, और 1970s के जमाने में काफी popular होते थे, जब Voyagers को बनाया जा रहा था। इन discs पर grooves एक spiral pattern में arranged होते हैं, जिनमें sound waves encoded होती हैं। जब एक सुई इन grooves के साथ लग कर चलाई जाती है, तो vibrations निकलती हैं, जो sound box तक पहुँचती हैं। जिसके vibrate होने पर, इन discs में record की गई sound waves, अक्सर इन sound waves को एक horn के जरीए और ज्यादा amplify किया जाता है, ताकि loudly और clearly यह वाँस सुनाई जा सके.
आज के दिन हमारे पास turntables और record players हैं, जो इसी concept पर काम करते हैं, लेकिन technology अलग है. आज के दिन, सुई से होने वाली vibrations को electrical signals में पहले convert किया जाता है, और फिर sound को amplify किया जाता है. यह जो record इसमें भेजा गया है, इसे golden record का नाम दिया गया है. इस record के contents को चार अलग-अलग sections में डिवाइड किया गया है. पहला सेक्षन है Scenes from the Earth.
115 images और diagrams, जो हमारे planet और हमारे planets पर मौजूद species के बारे में बताते हैं। जिसमें basic mathematical, chemical और physical definitions भी मौजूद हैं। दूसरी है Greetings from the Earth, 55 अलग-अलग भाषाओं में इंसानों के द्वारा बोली गई greetings. साथ में printed message भी है, जो American President Jimmy Carter और उस वक्त के United Nations के Secretary General, कर्ट वाल्डहाइम ने लिखा था। वो अलग बात है कि इसे समझने के लिए एलियन्स को इंग्लिश आनी जरूरी है। तीसरा सेक्षन है Music from the Earth, Musical Selections, हमारे धर्ती पर मौजूद अलग-अलग कल्चर्स और एरास के। Eastern और Western Classical Music की, जात कहां हो जैसे गाया गया है सुर्ष्री केसर बाई केरकरन चौथा सेक्शन है साउंड्स अफ दी अर्थ जिसमें अलग-अलग नैचुरल साउंड्स सुनाई गई हैं जो कुछ ऐसी है जाहिर सी बात है, एलियन्स को अगर ये आवाजे सुननी हैं, तो उन्हें इस फोनोग्राफ को अपरेट करना आना चाहिए। और इसी के लिए नासा के साइंटेस्ट ने इंस्ट्रक्शन्स भी रखी हैं इन डबो के अंदर। क्योंकि जरा इस डायग्राम को देखो आप। आप खुद ही देखो इस डायग्राम को और बताओ इन इंस्ट्रक्शन को देखकर, इन डायग्राम को देखकर, क्या आप समझ पा रहे हो कि फोनोग्राफ की मशीन को कैसे ओपरेट करना है? मेरी राय में आज के दिन के 90% इंसान भी इन इंस्ट्रक्शन को नहीं समझ पाएंगे, तो हम कैसे एक्सपेक्ट कर सकते हैं, कि एलियन्स इन डायग्राम को देखकर, समझ पाएं कैसे ओपरेट करना है इस मशीन को?
कि एक्चुली में किस डायग्राम का क्या मतलब है? फोनोग्राफ को अपरेट करना वैसे कोई इतना मुश्किल काम नहीं है, एलियन्स को बस यह समझना होगा कि कैसे हम इस डिस्क को लें, इस डिस्क को यहां डालें, और इसके उपर यह सुई लगा दें, साल 1977 में ऐसी कोई टेकनोलॉजी नहीं होती थी, जो एनलोग डिस्क पर इमिजिस को जेपेक जैसे फॉर्माट्स में स्टोर कर सके, वॉयजर के कंप्यूटर सिस्टम्स सिरफ 69 किलो बाइट्स की जानकारी ही स्टोर कर सकते थे। 69 किलो बाइट्स होता है सिरफ 0.07 मेगा बाइट। एक इमेज के लिए भी यह बहुत कम पड़ जाता है। 115 इमेज इस तो बहुत दूर की बात है। इसलिए नासा ने इन डिस्क्स पर इमेज डेटा शामिल करने के लिए एक नया तरीका सोचा। और ये फोटोज एक्चुली में आउडियो के फॉर्म में इन डिस्क्स में स्टोर्ड हैं। तो एलियन्स अगर इन्हें देखना चाहते हैं, तो उसके लिए रिवर्स प्रोसेस करना होगा। आउडियो के फॉर्म में इन डेटा स्टोर्ड है, उसे वापस इमेज में बदलना होगा। 115 तस्वीरों को जब डिकोड किया जाएगा, तो पहली तस्वीर यह सामने आएगी, एक सफेद calibration circle, एक simple black and white drawing, जो दो चीज़े करती है, पहले यह खुद record के आकार को represent करती है, और यह अपने आप में एक signal भी है, कि decoding सही तरीके से हुई है, इसके बाद आएगी photos basic mathematical concepts की, physical units, quantities, definitions, फिर दो solar system parameters के diagrams आते हैं, जो सन और तब के नौ प्लानेट्स को दिखाते हैं। इस डायग्राम के बाद सोलर सिस्टम के कई सारे ओब्जेक्ट की इंडिविजुअल फोटोज दिखाई जाती हैं। मरकुरी, मार्स, अर्थ और जुपिटर। तस्वीर के उपर की ओर टैग दिखता है कि हमारी आट्मॉस्फेर में नाइट्रोजन 78% है। N2-78-100 यहां कुछ chemical elements के models भी शामिल हैं, जैसे कि hydrogen, carbon, nitrogen, oxygen और phosphorus. यह chemical elements जीवन के आधार, life के fundamental blocks को दर्शाते हैं. DNA structures की भी दो तस्वीरे हैं, genetic information की transmission को भी समझाती हैं. एक ऐसी चीज़ जो सभी living things में मौजूद हैं.
एक तस्वीर microscopic details में cells और उनके division को भी दिखाती हैं. इसके बाद की 20 images, काबिलियत को दर्शाती हैं। कैसे मुँखा इस्तिमाल चाटने, खाने और पीने के लिए किया जाता है। साती साथ एक फोटो यहाँ पर ग्रेट वॉल अफ चाइना और ताज महल की भी है। इंटरेस्टिंग चीज यह है कि कोई भी तस्वीर यहाँ पर, मानवता का एक एडियल वर्जन, जैसा काल सेगन ने 1978 की अपनी किताब, Murmurs of Earth, The Voyager Interstellar Record में explain किया। सबसे बड़ा सवाल तो यहाँ पर यही उठता है कि क्या कोई भी Voyager Spacecraft कभी किसी Alien तक पहुँच पाएगा। और अगर यह किसी Alien species तक पहुँच भी गया, क्या उस Alien की species के पास इतना Intelligence level होगा, इस चीज को डिकोड करने के लिए या नहीं होगा। वोईजर वन का स्पेसक्राफ्ट 61,198 किलोमेटर पर आर की स्पीड से तेज दोड़े जा रहा है। धरती से लगभग 25 सो करोड किलोमेटर दूर इंटरस्टेलर स्पेस की गहराईयों में। और साइंटेश्ट का एस्टिमेट है कि 2025 में ही इसकी पावर सप्लाय पूरी तरीके से खतम हो सकती है। इससे हमारा communication जरूर खतम हो सकता है, लेकिन इसके अंदर मौझूद golden record, हमेशा के लिए शायद preserved रहेगा, scalar का link नीचे description में मिल जाएगा, और ये वीडियो अगर पसंद आया दोस्तों, तो aliens पर मैंने एक और वीडियो बनाया है इससे पहले, Area 51 के उपर, आखिर क्या राज है Area 51 के पीछे, यहां क्लिक करके देख सकते हैं,