Transcript for:
अजीत डोभाल की जीवनी

अजीत डवाल ही इन सबके पीछे थे और इन्होंने ही पीडीपी पार्टी बनवाई कश्मीर के अंदर यूपीएससी का पहला अटेंप्ट दिया और पहले ही अटेंप्ट में यूपीएससी क्रैक कर दिया और अजीत ढोवाल की जो वाइफ थी उनको तक नहीं पता था कि जिनके लिए वो खाना बना रही हैं वो मिलिटेंट है और वो उनके घर में बैठे हैं डवाल जो हैं वो दाऊद इब्राहिम को इसलिए पकड़ना चाहते थे ताकि वो पावर में आ सके मोदी जी ने अजीत डोबल को गुजरात में इनवाइट किया कांग्रेस बिल्कुल भी खुश नहीं था अजत ढोवाल से और इसका नुकसान आगे चलके अजीत ढोवाल को होता है अजीत डोभाल आतंकियों को काउंटर करने के लिए ऑफिशियल पोस्ट प हैं दूसरी तरफ उनका बेटा एक पाकिस्तानी के साथ बिजनेस कर रहा है कांग्रेस के जयराम रमेश को अजीत डोबल के बेटे विवेक डोबल से माफी मांगनी पड़ती है अजीत डोबल आरएसएस के एकनाथ रानाडे की ऑर्गेनाइजेशन विवेकानंद केंद्र की मदद से अजीत डोबल दिल्ली के होटल में छोटा राजन के इन शूटरों के साथ बैठ के प्लानिंग कर रहे थे इसी टाइम पे अरविंद केजरीवाल किरण वेदी अन्ना दारे ये सब अजीत डवाल के साथ में मिलकर सेमिनार करते [संगीत] देखिए 28th जनवरी 1945 का दिन था और इस दिन उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जहां मेजर जीएन डवाल रहते थे इनके घर में अजीत डोभाल जी का जन्म होता है और अजीत डोबल के जो फादर थे वो मेजर थे आर्मी में और इनकी जो मदर थी वो यूपी के फॉर्मर सीएम एच एन बहुगुणा की चचेरी बहन थी अब क्योंकि इनके फादर आर्मी में थे तो आगे चलके उनका ट्रांसफर राजस्थान में हुआ तो अजीत डोबल जो थे वो भी वहीं अजमेर राजस्थान के इंडियन मिलिट्री बोर्डिंग स्कूल से ही अपनी स्कूलिंग पूरी करते हैं और फिर इसके बाद ईयर 1967 में इन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में मास्टर डिग्री ली और उसके अगले ही साल ईयर 1968 में यूपीएससी का पहला अटेंप्ट दिया और पहले ही अटेंप्ट में यूपीएससी क्रैक कर दिया उस समय ये 22 साल के थे अब आईपीएस में सिलेक्शन होने के बाद इनकी ट्रेनिंग वगैरह हुई और उसके बाद ये केरला के कोटेम डिस्ट्रिक्ट में एएसपी बन जाते हैं अब जब ये एएसपी बने केरला में तो उसके कुछ ही दिन बाद 28th ऑफ दिसंबर 1971 को एक ऐसा इंसीडेंट होता है जिसकी वजह से अजीत डवाल बहुत ही कम टाइम में फेमस हो जाते हैं एक्चुअली हुआ क्या था कि केरला की कन्नौट डिस्ट्रिक्ट के थला सेरा में इस दिन नूरजहां एक होटल था वहां पे फर्स्ट फ्लोर से एक आदमी ने जूता फेंक दिया था और इसको लेक दो रिलीजियस ग्रुप में लड़ाई हो जाती [संगीत] है और फिर इस एरिया की सिचुएशन इतनी ज्यादा खराब हो जाती है कि दंगे स्टार्ट हो जाते हैं लूट पाट शुरू हो जाती है दोनों ग्रुप्स ने एक दूसरे की दुकानें जलाना सामान लूटना शुरू कर दिया था बात इतनी बढ़ गई थी कि इस एरिया में पुलिस तक जाने से डर गई थी अब ऐसे में उस टाइम पे कांग्रेस की गवर्नमेंट थी और कांग्रेस के जो होम मिनिस्टर थे के करुणा करण इनप बहुत ज्यादा प्रेशर हो गया था तो ये एक ऐसे ऑफिसर को ढूंढ रहे थे जो इस एरिया में जाने से ना डरे निडर हो और कैसे भी करके इन दंगों को रोक दे तो उस टाइम पे ये जो सीनियर ऑफिसर थे उन्होंने बताया कि एक नया ऑफिसर आया वो बहुत ही शार्प माइंडेड है और निडर है तो वो इस काम के लिए सही रहेगा तो जो सीनियर थे उन्होंने अजीत डोबल का नाम सजेस्ट किया तो सारे सीनियर ऑफिसर की बात मानते हुए के करुणा करण जो थे इन दंगों को रोकने की जो जिम्मेदारी थी वो अजीत डवाल को दे देते हैं और अजीत डवाल इंस्ट्रक्शन मिलते ही सेकंड ऑफ जनवरी 1972 को इस एरिया में पहुंच जाते हैं और जहां पहले ऑफिसर जो थे जो जाने में डर रहे थे अजीत डवाल पूरे एरिया में घूमने लगते हैं अजीत डवाल पूरे एरिया में घूम-घूम के छोटी से छोटी जो डिटेल्स थी उनको कलेक्ट करना स्टार्ट कर देते हैं अजीत डवाल ने डायरेक्ट फोर्सेस का यूज करने की बजाय स्ट्रेटेजिक इंटेलिजेंस गैदरिंग टेक्निक का यूज किया इन्होंने सिर्फ उन्हीं एरियाज में हैवी पुलिस डेप्लॉय की जहां से सारा का सारा ये जो दंगे हो रहे थे उनका कोऑर्डिनेशन चल रहा था और ये करने के बाद इन्होंने लाठी डंडों का यूज करे बिना इन्होंने क्या किया इन्होंने जो दोनों ग्रुप्स के जो लीडर थे जो लीड कर रहे थे इस पूरे दंगों को उनको आइडेंटिफिकेशन स्टार्ट करवाया और इनसे बात करने के बाद इनको मेन रीजन समझ में आया कि लोग जो उनका सामान लूटा गया उसको लेके बहुत ज्यादा गुस्सा है और इसके बाद अजीत ढोवाल ने क्या किया ये सारा सामान ढूंढने के बाद दोनों ग्रुप्स के जो सामान थे वो एक दूसरे के वापस करवाए और ये जो दंगे थे जो इतने दिन से चल रहे थे इनको एक ही वीक में बिना किसी वायलेंस के खत्म कर दिया फॉर्मर डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस एलेग्जेंडर जेकब ने इन दंगों पे रिपोर्ट बनाई थी और जब यह रिपोर्ट वापस आई तो अजीत डवाल की जो स्ट्रेटेजी थी उसकी काफी तारीफ हुई और यह काफी फेमस भी हुए उस टाइम पे दिल्ली तक इनके बारे में बात स्टार्ट हो गई थी उस टाइम पे कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी जी जो थी वो पीएम थी तो कुछ ही महीनों में अजीत डवाल को केरला स्टेट से निकाल के दिल्ली बुला लिया जाता है और मिड 1972 में ही इनको इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के डायरेक्ट ऑपरेशन विंग में ऐड कर दिया जाता है ताकि यह पूरे इंडिया के जो ऑपरेशंस हैं उनमें पार्टिसिपेट कर सके और यहीं से अजीत डोबा ल जो हैं वो जासूसी दुनिया के अंदर एंट्री मारते हैं और सेम ईयर में अजीत डोबल शादी भी करते हैं और आगे चलके इनके दो बेटे होते हैं विवेक डोबा और शौर्या डोबल अभी ये जो दोनों बेटे हैं इनके इनकी भी स्टोरी भी आएगी आगे तो अब इधर दिल्ली के अंदर अजीत डोबल अपने आईबी के जो ऑपरेशंस थे उनके लिए अपने आप को प्रिपेयर करना स्टार्ट करते हैं वहीं दूसरी तरफ मिजोरम को लेके इंदिरा गांधी बहुत ज्यादा परेशान हो गई थी एक्चुअली हुआ क्या था कि उस समय मिजोरम जो था वो आसाम का ही पार्ट था वो अलग स्टेट नहीं था तो मिजोरम का जो एरिया था वहां पे सूखा पड़ने की वजह से लोग ₹ लाख का कंपनसेशन मा मांग रहे थे और ना मिलने पर एक लाल डेंगा नाम का आदमी था उसने मिजो नेशनल फेमाइनस एम एनएफएफ बनाया और फिर आगे चलके इसका नाम मिजो नेशनल फ्रंट एमएनएफ कर दिया तो ये जो लाल डा था जो मिजो पॉपुलेशन थी वहां की उनके मुद्दों को लेक सरकार को खेरता था और उनकी आवाज उठाता था अब मिजोरम आसाम का हिस्सा था और आसाम के अंदर यह कर दिया गया था कि जिसको आसामिया लैंग्वेज आती होगी उसको ही गवर्नमेंट जॉब मिलेगी तो इसको लेके मिजो नेशनल फ्रंट एमएनएफ ये जिसको लाल डेंगा चला रहा था ये गवर्नमेंट के खिलाफ खड़ा हो जाता है और आम जनता जो थी वो भी बहुत ज्यादा इनके सपोर्ट में आ जाती है और हालत तब आउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है जब आसाम राइफल जो रेजीमेंट थी जिसमें मीजो पॉपुलेशन जो थी वो मेजॉरिटी में थी उनकी दो बटालियन को डिस्मिस कर दिया जाता है तो अब जब ये दो बटालियन डिस्मिस कर दी जाती हैं तो जो सोल्जर्स थे इस बटालियन के वो अपने मीजो एरिया में वापस आते हैं बहुत गुस्से में थे और इनमें से भी सात मेन कमांडर थे जिनकी जॉब गई थी वो वापस आके लाल डेंगा जो था वो उसके साथ जाके मिल जाते हैं कि गवर्नमेंट जो है वो बहुत ज्यादा नाइंसाफी कर रही है और अब हम लोगों को हथियार उठाने पड़ेंगे अब यहां से लाल डेंगा और जो उसकी एमएनएफ थी वो बहुत स्ट्रांग हो जाती है प्लस गवर्नमेंट के खिलाफ ये लोग मिलके वायलेंस स्टार्ट कर देते हैं मिजोरम को इंडिया से अलग करने की बातें स्टार्ट हो जाती है इनफैक्ट बीएसएफ जो था उसके ऊपर अटैक कर देते हैं ये लोग और इंडियन फ्लैग को हटा के अपना फ्लैग लगा देते हैं और मिजोरम को एक नया देश अनाउंस कर देते हैं आगे बढ़ने से पहले मैं एक कॉमन प्रॉब्लम डिस्कस करना चाहूंगा जो है मिस अलाइन मेंट इन टीथ स्टडीज के अकॉर्डिंग 40 से 50 पर एडल्ट्स में टीथ मिस अलाइन मेंट देखी जाती है अब सुनने में तो ये प्रॉब्लम बहुत छोटी लगती है लेकिन आढ़ती े दांतों की वजह से सारे दांत जो हैं वो ठीक से क्लीन नहीं हो पाते हैं तो प्लेग जैसी प्रॉब्लम भी हो सकती है इनफैक्ट इससे स्पीच प्रॉब्लम भी होती है और हमारी ओवरल हेल्थ भी अफेक्ट होती है तो आप समझ सकते हो कि दांतों का अलाइन मेंट लुक्स के अलावा हमारी हेल्थ के लिए भी कितना इंपॉर्टेंट है और अगर आपके भी दांतों का अलाइन मेंट ठीक नहीं है तो आपको टूथसी के टीथ अलाइन से उन्हें सीधा करवाना चाहिए और इसके लिए आप टूटस का एक फ्री डेंटल चेकअप स्केड्यूल करा सकते हैं अपने घर पे या फिर इनके एक्सपीरियंस सेंटर्स में भी करवा सकते हैं जो मैं खुद भी करा चुका हूं इससे आपको बहुत अच्छे से अपने टीथ और ओरल हेल्थ का पता चल जाएगा और अगर आपकी अलाइन मेंट ठीक नहीं है तो आप टूथसी के ही टीथ अलाइन यूज करके 6 से 10 महीनों में अपने दांतों को सीधा करा सकते हैं ये जो लाइनर्स हैं ये इनविजिबल है और काफी कंफर्टेबल भी हैं और इनको निकालना और लगाना भी बहुत इजी है और टूथसी देता है गारंटीड रिजल्ट टूथसी ने 3 लाख से भी ज्यादा लोगों के स्माइल्स डिजाइन किए हैं और मैंने खुद कई लोगों को बढ़िया रिजल्ट्स मिलते देखा है तो आज ही बुक कीजिए अपना फ्री टीथ स्कैन टूथसी की वेबसाइट या फिर ऐप से लिंक इज इन द डिस्क्रिप्शन तो टॉपिक पे वापस आते हैं अब गवर्नमेंट के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि जो लोकल पॉपुलेशन थी उनका सपोर्ट एमएन को बहुत ज्यादा था और ये जो सात कमांडर थे इनको भी बहुत ज्यादा था अब इंडियन गवर्नमेंट के सामने सबसे बड़ा चैलेंज ये आ रहा था कि जो लोकल पॉपुलेशन थी उनका सपोर्ट इस एमएनएफ ये जो लाल डेंगा वाला एमएनएफ था इनको बहुत ज्यादा था और अगर वो कोई मिलिट्री एक्शन भी लेते थे तो वो बैकफायर करता था इंडियन गवर्नमेंट को तो ये एक बहुत कॉम्प्लिकेटेड सिचुएशन बन गई थी और इस कॉम्प्लिकेटेड सिचुएशन से निपटने के लिए अजीत डोवा को मिजोरम के अंदर भेजा जाता आईबी के एक फॉर्मर डायरेक्टर थे उन्होंने कहा था कि अजीत डोबल को भेजा नहीं गया था बल्कि उन्होंने खुद से कहा था कि मुझे भेजो वहां पे मैं सारी चीजें वहां पे सही कर दूंगा तो फिर इससे निपटने के लिए अजीत डोबल को आईबी की लोकल यूनिट सब्सिडियरी इंटेलिजेंस ब्यूरो एसआईबीएम जरम के अंदर अब अजीत डोबल जो थे वो मिजोरम में पहुंचने के एक वीक के अंदर ही सारी छोटी से छोटी डिटेल्स इकट्ठी करना स्टार्ट कर देते हैं और इनको ये पता चलता है कि ये जो लाल डा है इसकी सारी की सारी पावर इन सात कमांडर की वजह से ही है और ये जो सात कमांडर है और जो लाल डेंगा है इनके आपस में कुछ बन नहीं रही है इनका कुछ कंफ्लेक्स रहा है और ये जो सात कमांडर थे इन्होंने अपना जो बेस बना रखा था वो म्यानमार की पहाड़ियों पे बना रखा था तो अब यहां से अजीत डोबल क्या करते हैं वो एक स्पाई एजेंट बनके इन पहाड़ियों पे पहुंच जाते हैं अब धीरे-धीरे ये जो सात कमांडर थे इनसे बात करना स्टार्ट करते हैं इनका ट्रस्ट जीत लेते हैं और बहुत ही कम टाइम में इनके ड्रिंकिंग पार्टनर बन जाते हैं और रोज दारू वगैरह पीना स्टार्ट कर देते हैं इनके साथ इनफैक्ट एक दिन इन सातों को अपने घर पे बुला के पोर्क खिला के पार्टी भी दी थी अजीत डोबल ने और अजीत ढोवाल की जो वाइफ थी उनको तक नहीं पता था कि जिनके लिए वो खाना बना रही हैं वो मिलिटेंट हैं और वो उनके घर में बैठे हुए हैं अब अजीत डोबल जब पूरी तरीके से इन कमांडर्स का ट्रस्ट जीत लेते हैं तो इनको समझाने की कोशिश करते हैं कि तुम कैसे भी करके इंडिया के साथ आ जाओ और अगर तुम इंडिया से मिल जाओगे तो मिजोरम को एक अलग से तो स्टेट बना ही दिया जाएगा आप लोगों को मंत्री की जो पोजीशन है वो भी दे दी जाएगी और ये जो छोटे-मोटे इशू हैं आम जनता के वो भी रिजॉल्व कर दिए जाएंगे और अगर ये सारी चीजें नहीं भी मानते हो तो इसमें आपका नुकसान है इंडियन आर्मी एक ना एक दिन इसमें घुसे गी और ये सारी चीजें खत्म करेगी और आपके हाथ में कुछ भी नहीं लगेगा तो इस तरीके से ईयर 1972 से लेक 1974 तक कंटीन्यूअस अजीत डोबल इन लोगों को समझाते हैं और सात में से छह कमांडर जो थे उनको अपनी तरफ कर लेते हैं और जैसे ही ये सात में से छह कमांडर इंडिया की तरफ मिल जाते हैं तो लाल डा बहुत ज्यादा वीक पड़ जाता है और उसको मजबूरी में इंडियन गवर्नमेंट के साथ पीस टॉक स्टार्ट करनी पड़ती है साइके दत्ता एक जर्नलिस्ट थे इन्होंने जब लाल डेंगा का इंटरव्यू लिया तो लाल डेंगा ने खुद ऑन रिकॉर्ड बोला कि ये जो अजीत डोबल है ये मेरे छह कमांडर ले गया था इसलिए मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं बचा था और फिर इसके बाद मिजोरम एक अलग स्टेट बनता है और लाल डा इसके सीएम बनते हैं और इसका क्रेडिट भी अजीत डवाल को जाता है अब इधर अजीत डवाल मिजोरम में थे और सेम टाइम पे सिक्किम जो कि एक प्रिंसली स्टेट था और वहां का जो राजा था पल देनन गयाल वो यूएस के एक हनी ट्रैप में फंस जाता है यूएस की एक सीआई एजेंट थी होप क्रुक इससे ये शादी कर लेता है और होप क्रुक जो कि एक यूएस की सीआई एजेंट थी वो सिक्किम की रानी बन जाती है और सिक्किम यूएस के इंस्पेक्शन पे चलने लगता है जिससे यूएस के इंटरेस्ट पूरे होते थे अब इससे निपटने के लिए इंदिरा गांधी आरएनए डब्लू के हेड आर एन काओ से बात करती हैं और उनको सिक्किम भेजती है आर एन काओ जो थे वो एक प्लान बनाते हैं जिसमें यह था कि ये लोग सिक्किम की जो लोकल पार्टियां है छोटी-छोटी लोकल पार्टियां हैं उनको सपोर्ट करेंगे उनको बड़ा बनाएंगे और उनको राजा के खिलाफ कर देंगे और जब राजा वीक होगा और उसको आम जनता का सपोर्ट नहीं होगा तो उसको हटाया जाएगा वरना अभी अगर कुछ करेंगे तो आम जनता भड़क जाएगी और इंडिया के अगेंस्ट में जाएगी वो चीज अब सिक्किम की ये जो छूट छोटी पॉलिटिकल पार्टियां थी जिनको सपोर्ट करके राजा के खिलाफ करना था और आम जनता का सपोर्ट लेना था यह टास्क जो था वो अजीत डोबल को दिया गया और अजीत डोबल ये टास्क मिलते ही एक प्लान बनाते हैं और वो क्या करते हैं कि कांग्रेस पार्टी की एक सिक्किम की लोकल यूनिट सिक्किम नेशन कांग्रेस थी इसके एक लीडर थे काजी डोर जीी इससे बात करके इसको सेट कर देते हैं और सारी चीजें एज पर प्लान कर ली जाती हैं और बहुत ही कम टाइम में जो लोकल जनता थी वो सिक्किम नेशनल कांग्रेस के जो लीडर थे काजी इसके सपोर्ट में बहुत ही कम टाइम में आ जाती है अब काजी को अपनी पॉलिटिकल पार्टी को एस्टेब्लिश करने के लिए बड़ा बनाने के लिए लोगों का सपोर्ट के लिए जो भी पैसा था हर तरीके का जो सपोर्ट था वो अजीत ढोवाल ने काजी को दिया और इन सबकी मदद से काजी आम जनता को अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो जाता है और राजा के ऊपर प्रेशर बना के सिक्किम में इलेक्शन करवा लेता है और इसके साथ-साथ इलेक्शन जीत के सिक्किम का पीएम भी बन जाता है पीएम इसलिए बनता है कि उस पर्टिकुलर टाइम तक सिक्किम जो था वो इंडिया से उसका मर्जर नहीं हुआ था अब एज पर प्लान काजी सिक्किम का पीएम बनने के कुछ ही दिन बाद इंदिरा गांधी को लेटर लिखता है और मदद मांगता है कि सिक्किम के हालात बहुत खराब होते जा रहे हैं और राजा अपनी मनमानी करके लोगों के अधिकार छीन रहा है उनका नुकसान कर रहा है और फिर इधर से इंदिरा गांधी मिलिट्री भेजती है और राजा और उसके पूरे पैलेस को सीज कर दिया जाता है और फिर जब सारी चीजें कंट्रोल में आ जाती है तो इसके बाद सिक्किम में रेफरेंडम कराया जाता है आता है जिसमें इंडिया के सपोर्ट में 97 पर लोग वोट करते हैं और सिक्किम कांस्टिट्यूशन के 36 अमेंडमेंट से 16th में 1975 को इंडिया का एक स्टेट बन जाता है सिक्किम और जैसा वादा किया गया था काज डोर जीी जो थे वो सीएम बनते हैं सिक्किम के अब ये सारी सिचुएशन यूएस के हाथ से निकल जाती है और सारी चीजें इंडिया के कंट्रोल में आ जाती है तो ये जो सीआई एजेंट थी ये राजा को तलाक देके वापस यूएस चली जाती है अब ये जो काम किए थे अजीत डोबल ने मिजोरम और सिक्किम के अंदर बैक टू बैक इसको लेके इनको प्रेसिडेंट पुलिस मेडल दिया जाता है जो कि ज ली 14 साल की सर्विस में दिया जाता है लेकिन अजीत डोबल ने ऐसा काम किया था कि इनके लिए एक एक्सेप्शन किया गया और 7 साल के अंदर ही ये अवार्ड इनको दे दिया जाता है और इन दोनों इंसिडेंट के बाद अजीत डोबल जो था वो एक बहुत बड़ा नाम बन गया था और बहुत ही कम टाइम में अजीत डवाल इंडिया की नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी में एक की प्लेयर बन गए थे अब मिजोरम और सिक्किम में जो हुआ था इसके बाद कुछ ऐसी सिचुएशन बनती है जिसकी वजह से अजीत डवाल को पाकिस्तान जाना पड़ता है एक्चुअली हुआ क्या था कि इस टाइम पे इंडिया ने न्यूक्लियर टेस्ट किया था अब इसको देख के पाकिस्तान जो था वो फ्रांस और चाइना की मदद से न्यूक्लियर टेस्ट के लिए अपना काम स्टार्ट करता है लेकिन फ्रांस जो था उसको थोड़े टाइम बाद पता चल जाता है कि पाकिस्तान न्यूक्लियर टेस्ट प्लान कर रहा है तो फ्रांस पीछे हट जाता है लेकिन चाइना पीछे नहीं हटता है और इसी टाइम पे पाकिस्तान के जो ऑफिशियल थे वो बैक टू बैक न्यूक्लियर टेस्ट के रिगार्डिंग नॉर्थ कोरिया भी जाने लगे थे तो इसके बारे में जब इंदिरा गांधी जी को पता चलता है कि पाकिस्तान न्यूक्लियर टेस्ट की प्लानिंग कर रहा है तो इंदिरा गांधी ने आरएनए डब् और आईबी की टीम को बुला के टास्क दिया कि पाकिस्तान ये जो कर रहा है इसका पता लगा के कैसे भी करके इसको रोको और फिर इसके बाद बिना टाइम खराब करे इंडियन इंटेलिजेंस एजेंसीज जो थी ये अपने सीक्रेट एजेंट्स को पाकिस्तान और चाइना भेजना स्टार्ट कर देती हैं उस टाइम पे एजेंट्स को जब भेजा जाता था तो उनको इंडियन एंबेसी में वैकेंसी दिखा के बुलाया जाता था तो अजीत डोबल जो थे उनको भी पाकिस्तान में इंडियन एंबेसी का फर्स्ट सेक्रेटरी बना के पाकिस्तान में भेजा गया था अजीत डोबल पाकिस्तान के अंदर करीब छह से 7त साल रहे थे जिसमें से कुछ टाइम इन्होंने स्पाई बनके इंटेल भी निकाले जैसे पाकिस्तान के कूटा की जो लेबोरेटरी में न्यूक्लियर प्रोग्राम चल रहा था तो उस एरिया में ये बैगर बन के घूमते थे जो हमारी आरएनए डब् वाली वीडियो थई जिसमें हमने ने बारबर शॉप से बाल उठा के इंडिया भेजने वाला इंसीडेंट बताया और पाकिस्तान की न्यूक्लियर टेस्ट लैब में जो अपना बंदा प्लांट कर दिया था जो पैसे मांग रहा था तो इन सारे इंसिडेंट में अजीत डवाल भी इंवॉल्व थे आर एडब के साथ जितने टाइम अजीत डवाल पाकिस्तान में रहे बहुत सारे ऑपरेशन में इंडिया की हेल्प हुई और इस पूरे टाइम जब ये पाकिस्तान में रहे तो ये दो बार पकड़े भी गए थे एक बार ये इस्लामाबाद की फेमस औलिया की जो मजार थी वहां जा रहे थे तो एक आदमी ने रोक के इनके कान की पियर्सिंग को लेके पूछा था दूसरा लाहौर में कवाली सुनते टाइम एक आदमी ने इनको बोला था कि तुम्हारी नकली दाढ़ी गिरने वाली है तो ये दो इंसीडेंट हुए थे और बाकी टाइम ये बैक टू बैक अपने इल प्रोवाइड करते थे अब इसके बाद इंडिया के अंदर भी बहुत सारी उथल-पुथल चल रही थी भंडर वाले इंसिडेंट को लेके ऑपरेशन ब्लू स्टार हो चुका था और जिस तरीके से गोल्डन टेंपल का नुकसान हुआ था इसको लेके सिख कम्युनिटी बहुत ज्यादा गुस्से में थी गवर्नमेंट बैकफुट पे थी इंदिरा गांधी जी की जान जा चुकी थी और इससे पहले की गवर्नमेंट कुछ समझ पाती कुछ ही टाइम बाद ईयर 1988 में दोबारा से सेम इंसिडेंट होता है जैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार के टाइम पे हुआ था कि मिलिटेंट्स गोल्डन टेंपल के अंदर पहुंच गए थे ठीक वैसे ही दोबारा ईयर 1988 में खालिस्तानी कमांडो फोर्स भिंडर वाले टाइगर फोर्स ऑफ खालिस्तान बब्बर खालसा के मिलिटेंट गोल्डन टेंपल के रूम नंबर 14 में आके बैठ गए थे और इस बार मिलिटेंट्स को पता था कि गवर्नमेंट अंदर घुस के ऑपरेशन नहीं कर सकती क्योंकि इससे पहले जो उसने ऑपरेशन किया था उसको लेके उसको बहुत खामियाजा भुगतना पड़ा था तो इस टाइम पे राजीव गांधी पीएम थे वो दोबारा से कोई भी गलती नहीं करना चाहते थे और उन्होंने कहा कि जो मिलिटेंट्स टेंपल के अंदर घुस गए हैं इनको कैसे भी करके निकालना है सिचुएशन को कंट्रोल में करना है लेकिन कोई भी गोल्डन टेंपल के अंदर नहीं जाएगा ना कोई अटैक करेगा तो इधर ये जो सारी चीजें चल रही थी इसी टाइम पर अजीत डवाल जो थे वो पाकिस्तान में थे और वो सारे इंटेल जो पंजाब से रिलेटेड थे वो बैक टू बैक पंजाब में जो एजेंसीज लगी हुई थी उनको भेज रहे थे तो फिर जब ये डिसाइड होता है कि यहां पे इन लोगों को निकालना है एक ऑपरेशन करना है तो अजीत डोबल को वापस बुलाया जाता है और ये जो पूरा ऑपरेशन था इसका हेड केपीएस गिल और अजीत डवाल को बनाया जाता है और इस पूरे ऑपरेशन को ऑपरेशन ब्लैक थंडर नाम दिया जाता है गोल्डन टेंपल के चारों तरफ जो सीआरपीएफ थी उन्होंने घेर रखा था पोजीशन ले रखी थी लेकिन आगे करना क्या है यह किसी को नहीं पता बता था तो अब अजीत डोबल क्या करते हैं एक रिक्शे वाले का गेटअप लेके गोल्डन टेंपल के आसपास घूमने लगते हैं बैक टू बैक जितनी भी इंफॉर्मेशन होती है गोल्डन टेंपल के पास में जाके वो सड़ी लेते रहते हैं अब इसके कुछ दिन बाद अजीत डोबल डिसाइड करते हैं कि गोल्डन टेंपल के अंदर जाए बिना ये जो ऑपरेशन है ये जो डिफिकल्ट ऑपरेशन है इसको पूरा करना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि अंदर जाए बिना उनकी एग्जैक्ट लोकेशन पता करे बिना ये ऑपरेशन पूरा नहीं हो सकता अब क्योंकि वो पाकिस्तान में पहले से ही रह चुके थे उनकी उर्दू बहुत अच्छी थी वहां का लहजा बहुत अच्छा था तो वो अंदर जाते ते हैं मिलिटेंट से जाके बात करते हैं और उनसे कहते हैं कि उनको पाकिस्तान की आईएसआई ने भेजा है उनकी मदद करने के लिए कई सारी चीजों पे मल्टीपल बात करने के बाद वो मिलिटेंट्स को कन्विंसिंग और अंदर जाने के बाद वो उल्टा मिलिटेंट्स को बताते हैं कि इस इस पोजीशन पे ऑफिसर्स खड़े हैं और इस बार गवर्नमेंट बुरी तरीके से डरी हुई है और इस बार ये लोग कुछ नहीं कर पाएंगे और ये सारी डिटेल जब उनको पता चल रही थी मिलिटेंट्स को तो वो बहुत खुश होते हैं कि इसी बहाने उनको गोल्डन टेंपल के बाहर की इंफॉर्मेशन भी मिल रही है तो ये सारी चीजें करके अजीत डोबल जो थे वो गोल्डन टेंपल के अंदर और बाहर आना जाना स्टार्ट कर देते हैं और मिलिटेंट्स को भी कोई दिक्कत नहीं थी उनको लगता था कि ये जो आदमी है यानी कि अजीत डोबल यह बाहर की इंफॉर्मेशन इन तक पहुंचा रहे हैं जिससे उनकी मदद होगी और उनका ऑपरेशन और अच्छे से होगा अब इसके बाद अजीत डोबल ने जब सारी पोजीशंस और डिटेल्स अंदर की इकट्ठी कर ली उसके बाद वो एनएसजी कमांडो को बुलाने के लिए कहते हैं और सेम डे रात में ही आईल 76 प्लेन से एनएसजी कमांडो को बुला लिया जाता है और पुलिस की वर्दी में बुलाया जाता है और जो सीआरपीएफ पहले से खड़ी थी उनको रिप्लेस करके उनकी जगह एनएसजी कमांडो आ जाते हैं अब इसके बाद डोबल एनएसजी की जो टीम थी उनको बता दे कि अंदर मिलिटेंट किस लोकेशन पे हैं कितने हैं कौन उनमें से लीडर है प्लान क्या है सारी चीजें समझा देते हैं और इसके साथ-साथ अजीत डोबल एक चीज और करते हैं कि अंदर गर्मी बहुत ज्यादा थी तो वो पानी फूड इलेक्ट्रिसिटी इसको काट देते हैं और प्लान यह बनाया जाता है कि जब मिलिटेंट्स पानी पीने के बहाने बाहर आएंगे तब उनको निशाना बना के मार दिया जाएगा और जब ये सारी चीजें हो जाती हैं तो 15th ऑफ मई को मिलिटेंट्स का टॉप कमांडर जागीर सिंह पानी पीने के लिए बाहर निकलता है और जैसे ही वो बाहर निकलता है वहीं पे स्नाइपर उसको गोली मार मार देते हैं तो जिस तरीके से पीने के लिए पानी नहीं था इलेक्ट्रिसिटी नहीं थी गर्मी बहुत थी और बहुत ज्यादा दिन हो गए थे इनफैक्ट उनका जो लीडर था उसको भी मार दिया गया था तो अंदर जो मिलिटेंट्स थे उनका जो मोराल था वो टूट गया था दूसरी तरफ अजीत डोबल जो थे वो अंदर भी जा रहे थे और बाहर भी आ रहे थे तो अंदर जाके उन्होंने मिलिटेंट्स को समझाया कि इस पर्टिकुलर टाइम पे सरेंडर करना सबसे बढ़िया डिसीजन रहेगा बाकी सरेंडर करने के बाद हम आगे का भी नेक्स्ट प्लान बना सकते हैं मल्टीपल डिस्कशन के बाद अजीत डोबा इन सारे मिलिटेंट्स को सरेंडर करने के लिए कन्वेंस कर लेते हैं और फिर 18 मई को सारे जो मिलिटेंट्स हैं वो सरेंडर कर देते हैं बिना हथियार के इतने लोगों को सरेंडर करवाना ये कोई आसान नहीं था और गलती से भी अगर थोड़ा सा भी शक हो जाता अंदर जब जा रहे थे अजीत डोबल तो उनकी जान जाना तय था लेकिन इतना बड़ा रिस्क लेके पूरे ऑपरेशन को अच्छे से करने के लिए अजीत डोबल की बहुत तारीफ होती है तो ये जो ऑपरेशन था इसको खत्म होने के बाद अजीत डोबल जो थे वो ईयर 1992 में लंदन की एंबेसी में भेज दिया जाता है उनको और कई सालों तक अजीत डोबल वहीं पे ही रहकर अलग-अलग ऑपरेशन में हेल्प करते हैं इंडिया की और इधर इंडिया के अंदर ईयर 1998 में इंडिया में गवर्नमेंट चेंज हो जाती है और बीजेपी की गवर्नमेंट आ जाती है और इसके 1 साल बाद यानी कि ईयर 24th ऑफ दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइन का प्लेन i 814 नेपाल एयरपोर्ट से डेल्ली एयरपोर्ट जा रहा था करीब 170 से 180 पैसेंजर थे और जैसे ही ये प्लेन इंडियन एयर स्पेस में पहुंचता है तो एक आतंकी ग्रुप था हरकत उल मुजाहिद्दीन इसके पांच पाकिस्तानी आतंकी एयरप्लेन को हाईजैक कर लेते हैं अब हाईजैक करने के बाद एगजैक्टली कहां ले जाना था ये तो उस पर्टिकुलर टाइम पे क्लियर नहीं था लेकिन ये जो प्लेन का पायलट था इसको पाकिस्तान की तरफ मोड़ने ने के लिए कहते हैं लेकिन पायलट जो था वो कहता है कि इतना फ्यूल ही नहीं है तो ये लोग थोड़ी देर तक डिस्कस करने के बाद यह डिसाइड करते हैं कि पहले इस प्लेन को अमृतसर में लैंड करा के फ्यूल भरवा लिया जाएगा उसके बाद जाया जाता है क्योंकि पैसेंजर तो इन्हीं के पास में थे तो ये बहुत कॉन्फिडेंट थे कि गवर्नमेंट कुछ कर नहीं पाएगी तो एज पर प्लान ये लोग अमृतसर में ये प्लेन को उतार देते हैं लेकिन टाइम बहुत ज्यादा लगने लगता है और इनको शक भी होता है कि इंडियन गवर्नमेंट शायद कुछ प्लान कर रही है फिर अमृतसर से ये प्लेन उड़ा के पाकिस्तान में लैंड करवाते हैं फिर वहां की गवर्नमेंट जब नहीं मानती है तो दुबई में लैंड करवाते हैं फिर वहां से रिफू करवा के 25 ऑफ दिसंबर 1999 को अफगानिस्तान के कांधल में उतार देते हैं अब इंडिया को जब इसके बारे में पता चलता है तो इंडियन एंबेसी के एक ऑफिसर जो कि इस्लामाबाद में पोस्टेड थे ए आर घनश्याम इंडियन गवर्नमेंट इनको कंधार में भेज के वहां की गवर्नमेंट से कोऑर्डिनेट करके इस हाईजैक की डिटेल्स पता लगाने को कहती है कि प्लेन कहां पे लैंड है इनकी डिमांड क्या है ये सारी चीजें पता करने को कहती है और ये जो आतंकी थे ये एआर घनशाम से बोलते हैं कि इंडियन गवर्नमेंट को बोल दो कि एक टीम बना के हमारे पास भेजें जिससे हम अपनी डिमांड जो है वो सारी चीजें डिस्कस कर कर सके तो ये एआर घ निशान जब ये सारी चीजें इंडियन गवर्नमेंट को बताते हैं तो इंडियन गवर्नमेंट बिना टाइम गवाए सात नेगोशिएटर मेंबर की एक टीम बना के नदार भेज देती है और इस टीम में जान पूछ के अजीत डोबल को रखा जाता है एक तो ये रीजन था कि ईयर 1971 से लेके 1999 के बीच में 15 से ज्यादा हाईजैकिंग में जो नेगोशिएटर का काम था वो अजीत डवाल ने ही किया था दूसरा इंडियन गवर्नमेंट को इनके ऊपर बहुत ज्यादा भरोसा था कि इस सिचुएशन को किसी ना किसी तरीके से संभाल लेंगे अब ये टीम कांधल पहुंचती है और अजीत ढोवाल नेगोशिएशन करना स्टार्ट करते हैं आतंकी बार-बार अपनी डिमांड चेंज कर रहे थे तो पहले तो अजीत ढोवाल कहते हैं कि आप एक डिमांड पे टिके रहिए वरना ऐसे तो सिचुएशन खराब हो जाएगी तो इसके बाद आतंकी एक पेपर पे लिख के अपनी सारी डिमांड प्लेन से बाहर फेंक देते हैं उस पेपर के ऊपर लिखा था कि इंडिया की जेल में जो उनके 36 आतंकी हैं उनको छोड़ दिया जाए साथ में 200 मिलियन डॉलर भी दिया जाए अब शुरू में तो मना कर दिया जाता है कि ये डिमांड नहीं पूरी करी जाएगी लेकिन दिक्कत ये थी कि इंडिया के अंदर प्रेशर बहुत ज्यादा था पैसेंजर्स की जो फैमिली थी और मीडिया जो था वो चारों तरफ से गवर्नमेंट को घेर रही थी ऊपर से अगर गवर्नमेंट कुछ प्लान भी करती किसी ऑपरेशन को लेके तो पाकिस्तान का एयर स्पेस को यूज़ करके वहां पे ऑपरेशन परफॉर्म करना पड़ता और पाकिस्तान के ऊपर इंडिया को भरोसा नहीं था अफगानिस्तान के भी लोग मिले हुए थे तो कुछ भी अगर ये प्लान करते तो सारी की सारी डिटेल जो थी इन हाईजैकर्स के पास पहुंच जाती और अगर उसके बाद भी अगर ऑपरेशन कुछ प्लान करते उनको हटाने का तो ये भी बहुत ज्यादा चांसेस था कि ये पूरे के पूरे प्लेन को ही उड़ा देते और सारे के सारे पैसेंजर थे उनकी जान चली जाती तो ऑपरेशन करने की तो कोई भी पॉसिबिलिटी नहीं बन रही थी तो जैसे-तैसे करके अजीत डोबल इनसे मल्टीपल डिस्कशन करते हैं और इनको एग्री करवा लेते हैं कि 36 तो नहीं लेकिन तीन आतंकी को छोड़ दिया जाएगा और आतंकी जो था इनसे बात करने के बाद मान भी जाते हैं तो फिर इसके बाद अजीत डोबल तीनों आतंकियों को दे के पैसेंजर छुड़वा तो लेते हैं लेकिन इंडिया के लिए बहुत बड़ा सेटबैक था अब इस इंसिडेंट के बाद अजीत डोबल ने ऐसे इंसिडेंट से निपटने के लिए नेशनल सिक्योरिटी को और ज्यादा स्ट्रांग किया नेशनल सिक्योरिटी को और ज्यादा स्ट्रांग करने के लिए अलग-अलग स्टेप्स उठाए जिसमें से मल्टी एजेंसी सेंटर एमएसी और जॉइंट टास्क फोर्स ऑन इंटेलिजेंट जेटीएफ आई ये सब बनाना स्टार्ट किया अब ये सारी चीजें चल तो रही थी लेकिन ईयर 199 8 में जब से बीजेपी की गवर्नमेंट आई थी ये डिस्कशन स्टार्ट हो गए थे कि अजीत डवाल बीजेपी के होम मिनिस्टर लाल कृष्ण आडवाणी के बहुत क्लोज हैं और उस टाइम पे एल के अडवाणी जी ने अजीत डवाल की रिपोर्टिंग डायरेक्टली अपने पास कर ली थी और ये क्लोजन देख के बाकी जो सीनियर ऑफिसर्स थे और अपोजिशन लीडर जो थे वो अजीत डोबल से इतना ज्यादा खुश नहीं थे इनफैक्ट इसी टाइम पे आरएनए डब् के चीफ का सिलेक्शन होना था जिसके लिए अजीत डोबल से ज्यादा एक्सपीरियंस और सीनियर ऑफिसर जो थे वो लाइन में थे लेकिन उसके बाद भी आरएनए डब् की चीफ की पोजीशन के लिए अजीत डवाल का नाम सबसे आगे रिकमेंड किया गया था और इनका चीफ बनना तय था लेकिन लास्ट मोमेंट पे क्या होता है कि नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर ब्रिजेश मिश्रा इनके रिकमेंडेशन की वजह से इस चीज को रोक दिया जाता है और अजीत डवाल नहीं बन पाते और सिर्फ इतना ही नहीं था इस टाइम पे एक दो चीजें और ऐसी होती है जिसकी वजह से कांग्रेस बिल्कुल भी खुश नहीं था अजीत ढोवाल से और इसका नुकसान आगे चलके अजीत ढोवाल को होता एक्चुअली हुआ क्या था कि कश्मीर में दो मेन पॉलिटिकल पार्टी थी उस टाइम पे शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और दूसरी तरफ मुफ्ती मोहम्मद सईद की डेमोक्रेटिक नेशनल कॉन्फ्रेंस तो उसी टाइम पे कांग्रेस भी अपनी प्रेजेंस जो थी वह कश्मीर के अंदर चाहती थी ताकि कश्मीर से वह एकदम अलग ना हो जाए और नेशनल सिक्योरिटी के लिए भी ये चीज़ बहुत इंपॉर्टेंट थी लेकिन कांग्रेस का कश्मीर में जीतना बहुत ही मुश्किल था तो कांग्रेस ने मुफ्ती मोहम्मद सईद को अपनी तरफ कर लिया कांग्रेस की स्टेट यूनिट का प्रेसिडेंट भी बना दिया और फिर आगे चलके कैबिनेट मिनिस्टर की भी पोजीशन दी और साथ में आगे चलके अगर कांग्रेस जीतती है तो कश्मीर का सीएम बनाने का भी वादा किया मुफ्ती से तो इन सब चीजों की वजह से जो मुफ्ती थे वह कांग्रेस में आ गए थे और इनकी जो पार्टी थी वह भी कांग्रेस में मर्ज हो गई थी कांग्रेस ने मुफ्ती को काम दिया था कि कैसे भी करके के कश्मीर में कांग्रेस को स्ट्रांग करो ताकि कांग्रेस पावर में आएगी तभी उनको सीएम बनाया जाएगा और मुफ्ती जो थे वो कांग्रेस को स्ट्रांग करने का काम अपना शुरू कर देते हैं कश्मीर के अंदर अब ये बातें तो हो गई थी कि ये कांग्रेस जीतेगी फिर ये सीएम बनेंगे लेकिन ये प्रोसेस बहुत लंबा था तो इसी बीच में कांग्रेस क्या करती है कि कश्मीर में अपनी प्रेजेंस के लिए शेख अब्दुल्ला से हाथ मिला लेती है और इलेक्शन लड़ने लगती है उसके साथ मिलके तो इस चीज से मुफ्ती बिल्कुल भी खुश नहीं थे और जब बीजेपी की गवर्नमेंट आती है तो अजीत डवाल को मल्टीपल टाइम कश्मीर में भेजा जाता है अजीत डवाल ने मुफ्ती से मल्टीपल मीटिंग की और मुफ्ती से बहुत अच्छी दोस्ती भी हो गई अजीत डोबल की इनकी दोस्ती के थोड़े टाइम बाद ही मुफ्ती जो थे वो कांग्रेस के लॉन्ग टर्म विजन पे लात मार के कांग्रेस को छोड़ देते हैं और जनमोर्चा जॉइन कर लेते हैं और जनमोर्चा से इन्हें कैबिनेट की पोजीशन भी ऑफर हो जाती है और फिर आगे चलके मुफ्ती यहां से भी हट के पीडीपी भी बना देते हैं जिससे कश्मीर की पूरी पॉलिटिकल इक्वेशन जो होती है वो चेंज हो जाती है और कांग्रेस को बिल्कुल पसंद नहीं आती ये चीज तो यही सारे रीजन थे जिसकी वजह से अजीत डोबल से कांग्रेस खुश नहीं थी फॉर्मर डायरेक्टर ऑफ आईबी एंड फॉर्मर सेक्रेटरी ऑफ आरडब्लू ने अपनी बुक में भी ये चीज मेंशन की है कि अजीत डवाल ही इन सबके पीछे और इन्होंने ही पीडीपी पार्टी बनवाई कश्मीर के अंदर अजीत ग्रैजुअली ड्रिफ्टेड अवे टू द अदर साइड टू मुफ्ती साहब देन द स्टोरी एज वन ऑ स्टोरीज एटिबल अ रोल इन क्रिएटिंग द पीडीपी तो इधर कश्मीर में सारी चीजें चल रही थी दूसरी तरफ आईबी का नया डायरेक्टर बनाया जाना था क्योंकि जो पहले था उसका टेनोर खत्म हो रहा था और अजीत डवाल का आईबी का नया डायरेक्टर बनना तय था क्योंकि सीनियरिटी के हिसाब से भी देखा जाता तो अजीत डोवा ली बनते लेकिन होता क्या है कि 31 ऑफ जुलाई 2004 को कांग्रेस की सर सरकार बन जाती [संगीत] है अब कांग्रेस को अजीत डोबल को आईबी का नया डायरेक्टर तो बनाना पड़ता है लेकिन कांग्रेस ने जो 2 साल का टेन्योर होता था उसको कम करके 8 महीने का कर दिया था और फिर उसके बाद आगे चलके 2005 में अजीत डोबल जो है वो रिटायरमेंट ले लेते हैं और अजीत डोबल जी के जाने के बाद जो नया आईबी डायरेक्टर बनाया गया ईएसएल नरसिम्हन उनका जो टेनर था वो पूरा 2 साल का ही रखा गया उनका कम नहीं किया गया तो इस चीज के भी एलिगेशन कांग्रेस के ऊपर लगे कि जान पूछ के कांग्रेस ने अजीत डल का टेन्योर 2 साल से कम करके 8 महीने का कर दिया था लेकिन अजीत डोबल जो थे वो देश के बाहर तो दिमाग लगा ही रहे थे देश के अंदर भी उससे ज्यादा दिमाग लगा रहे थे और फिर आगे चलके कुछ ऐसी चीजें हुई जिसकी वजह से वो दोबारा पावर में आए तो देखिए अजीत डोबल रिटायर तो हो गए थे लेकिन उसके बाद भी इनके पास जो इतने सालों का एक्सपीरियंस और स्किल्स थी उसका यूज करके ही अपनी पर्सनल कैपेसिटी में इंटेलिजेंस एजेंसीज के साथ मिलके काम कर रहे थे अब जिस ईयर ये रिटायर हुए थे सेम ईयर 2005 में दाऊद इब्राहिम की बेटी महारुख की शादी पाकिस्तान के क्रिकेट टर जावेद मिया दाद के बेटे जुनैद से 9 जुलाई को मक्का में होनी थी और उसका जो रिसेप्शन था 23 जुलाई को दुबई के ग्रैंड हयात में रखा गया था अब यह चीज डोबा को पता चल जाती है कि इस पर्टिकुलर फंक्शन में दाऊद इब्राहिम आने वाला है ये ऐसा मौका था कि जहां पे दाऊद की लोकेशन कंफर्म थी लेकिन फिर भी इस जगह पे दाऊद को पकड़ने के लिए अगर कोई ऑपरेशन किया जाए तो उसके फेल होने के चांसेस बहुत ज्यादा थे और फेल होने पे इंडिया की जो इमेज थी उसपे बहुत बड़ा डंट लगता इसलिए इंडिया किसी भी तरीके से कमांडो ऑपरेशन से बच रही थी अब यहां से अजीत डवाल एक प्लान बनाते हैं इन्होंने दाऊद इब्राहिम के दुश्मन छोटा राजन को रीच किया छोटा राजन जो था वो पहले दाऊद इब्राहिम के ही गैंग का मेंबर था लेकिन फिर इनमें लड़ाई हो जाती है इनफैक्ट एक बार दाऊद इब्राहिम ने बैंकॉक में छोटा राजन पे अटैक भी करवाया था तो ये सारी चीजें जो थी वो अजीत डोबल को पता थी तो वो छोटा राजन को अपने नेटवर्क का यूज करके रीच करते हैं और छोटा राजन को कन्वेंस कर लेते हैं कि यहां पे साथ में मिलक दाऊद इब्राहिम को मारा जा सकता है छोटा राजन जो था वो मान जाता है इस चीज के लिए और बॉर्डर पार करवा के अपने गैंग के दो शूटर विकी मल्होत्रा और फरीद तानाशाह को इंडिया भेजता है इस ऑपरेशन के लिए अजीत डोबा जो हैं वो इनकी ट्रेनिंग इंडिया की एक सीक्रेट लोकेशन पे करवाना स्टार्ट कर देते हैं टाइम बहुत ही कम था इस पूरे ऑपरेशन के लिए लेकिन बहुत ही कम टाइम में अजीत डोभाल ने इनके नकली पासपोर्ट दुबई की टिकट वगैरह सब अरेंज करा दिए गए थे अब यहां पे एक दिक्कत आ जाती है मुंबई पुलिस जो थी ये शूटर विकी मलोतरा और फरीद तानाशाह को पहले से ही पकड़ने की कोशिश कर रही थी और मुंबई पुलिस के कुछ सीनियर ऑफिसर को अजीत डोबल के इस ऑपरेशन के बारे में पता चल जाता है कुछ लोगों का यह भी कहना होता है कि दाऊद इब्राहिम ने ही इस पर्टिकुलर चीज इन दोनों शूटरों के बारे में मुंबई पुलिस को बताया था ताकि इस चीज से निपटा जा सके तो होता क्या है कि ये जो शूटर्स थे दुबई भेजने से पहले अजीत डवाल दिल्ली के एक होटल में इन शूटर्स को फाइनल ब्रीफ दे रहे थे कि जो वहां पे होटल होगा उसका लेआउट क्या है बिल्डिंग कैसी होगी कैसे एंटर करना है मारना कैसे है दाऊद को ये सारी चीजें समझा रहे थे तो अजीत डोबल दिल्ली के होटल में छोटा राजन के इन शूटरों के साथ बैठ के प्लानिंग कर रहे थे इसी टाइम पे मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच के डेप्युटी कमिश्नर धनंजय कमलाकर और आईपीएस ऑफिसर मीरा बोरवा करर सेम होटल में पहुंच जाती हैं और कहते हैं कि विकी और फरीद यहां पे नेताओं को मारने आए हैं ये तो पहले से ही मोस्ट वांटेड हैं इसलिए इनको हमें अरेस्ट करना हो होगा अब यहां से अजीत डोबल और इन लोगों में बहुत बहसा बहसी भी शुरू हो जाती है अजीत डोबल बहुत समझाने की कोशिश करते हैं इन्हें लेकिन ये लोग मानते नहीं है अब अजीत ढोवाल उस पर्टिकुलर टाइम पे किसी ऑफिशियल पोजीशन में नहीं थे तो उनकी और नहीं चल पा रही थी तो ये लोग इन शूटरों को गिरफ्तार करके ले जाते हैं और अजीत डोबल के हाथ से जो बहुत बड़ी अपॉर्चुनिटी थी दाउद को मारने की वो छूट जाती है अजीत ढोवाल ने अपने सीनियर्स को फोन करके इसको रोकने की भी कोशिश की लेकिन तब तक ये लोग गिरफ्तार हो चुके थे और न्यूज़ वगैरह में सारी बात आ गई थी अजीत ढोवाल इतना गुस्सा हो गए थे जब ये लोग शूटरों को पकड़ के ले जा रहे थे उन्होंने आईपीएस रा बनवार करर से कहा कि आई विल टीच यू अ लेसन दाऊद इब्राहिम शुरू से ही अजीत डवाल की हिट लिस्ट में रहे उन्होंने अपने पूरे करियर में मल्टीपल टाइम ट्राई किया दाऊद को पकड़ने का और आज की डेट में भी वो चाहते हैं कि इसको कैसे भी पकड़ ले हालांकि अजीत डोबल के जो क्रिटिक्स हैं उनका यह मानना है कि डवाल जो है वो दाऊद इब्राहिम को इसलिए पकड़ना चाहते थे ताकि वह पावर में आ सके इस बड़े ऑपरेशन को अंजाम देके अपना नाम बना सके अब अजीत डवाल की इस पर्टिकुलर टाइम पे तो पावर बहुत कम थी लेकिन इन्होंने अपने और ऑप्शन जो है वो भी एक्सप्लोर करने स्टार्ट किए और ऐसे एक्सप्लोर किए कि इंडिया की पूरी पॉलिटिक्स बद के रख दी और तब से लेके आज तक ये पावरलेस नहीं हुए अभी तक ही पावर में है तो होता क्या है कि इस इंसिडेंट के दो-तीन साल बाद ही ईयर 2008 में गुजरात के अंदर नरेंद्र मोदी जी सीएम थे और मोदी जी ने अजीत डोबल को गुजरात में इनवाइट किया कि यहां पे आके आप एक यूनिवर्सिटी खोलो इंटरनल सिक्योरिटी पुलिस साइंस से रिलेटेड जिसमें ये सारे कोर्सेस भी हो अजीत डोबल गुजरात पहुंच जाते हैं और बोर्ड ऑफ गवर्नर बना के जिसमें से एक बोर्ड ऑफ गवर्नर ये खुद थे तो ये सारी चीजें बना के अजीत डोबल जो हैं वो रक्षा शक्ति नाम से एक यूनिवर्सिटी खोल देते हैं गुजरात के अंदर और फिर इसके 1 साल बाद ईयर 2009 में अजीत डोबल आरएसएस के एकनाथ रानाडे से मिलते हैं एकनाथ जो थे वो उस टाइम पे तमिलनाडु के अंदर विवेकानंद केंद्र नाम से एक ऑर्गेनाइजेशन है जो स्वामी विवेकानंद की टीचिंग्स को प्रमोट करती है वो चलाते थे तो अजीत डोबल आरएसएस के एकनाथ रानाडे की ऑर्गेनाइजेशन विवेकानंद केंद्र की मदद से विवेकानंदा इंटरनेशनल फाउंडेशन वी आईएफ खोलते हैं इस थिंक टैंक का ऑब्जेक्टिव था नेशनल सिक्योरिटी डिप्लोमेसी और ग्लोबल अफेयर जैसी चीजों पर रिसर्च और एनालिसिस करके इंडिया को और स्ट्रांग और र करा जाए और ये जो विवेकानंद फाउंडेशन थी ये सेमिनार वगैरह करते थे कई सेमिनार में तो इन्होंने कांग्रेस के मुद्दों पर भी सपोर्ट दिखाया जैसे देवयानी खोबरा गाड़े इंसीडेंट था बांग्लादेश लैंड इशू था इस पे भी सेमिनार किए इन्होंने अब ये जो विवेकानंदा फाउंडेशन थी इसकी एक और विंग थी इंडिया फाउंडेशन नाम से इसमें यंग लोग ज्यादा थे जैसे राम महादेव निर्मला सीतारमन सुरेश प्रभु तो सेम ईयर यानी कि 2009 में अजीत डोबल के बेटे शौर्या डोबल जो सऊदी और यूएस में इन्वेस्टमेंट बैंकर थे ये इंडिया वापस आके इस इंडिया फाउंड ये जो थिंक टैंक बनाया था इन्होंने इसको जवाइन कर लेते हैं अब अभी तक तो सारी चीजें ठीक चल रही थी लेकिन विवेकानंद फाउंडेशन पूरे इंडिया के अंदर न्यूज़ में आता है ईयर 2011 में विवेकानंदा फाउंडेशन क्या करती है कि एक रिपोर्ट पब्लिश करती है इस रिपोर्ट का नाम था इंडियन ब्लैक मनी अब्रॉड इन सीक्रेट बैंक्स एंड टैक्स हैवन अब ये जो रिपोर्ट थी ये इन्होंने कांग्रेस को सबमिट नहीं की बल्कि इनके अपोजिशन उस समय बीजेपी अपोजिशन में थी इनको सबमिट करते हैं और फिर यह सबमिट करने के बाद ये लोग इससे रिलेटेड दो सेमिनार करते हैं जिसमें बाबा रामदेव अन्ना हजारे अरविंद केज केजरीवाल किरण बेदी सुब्रमण्यम स्वामी सब पहुंचते हैं तो अभी भले ही सिचुएशन चेंज हो गई हो लेकिन उस टाइम पे अरविंद केजरीवाल किरण बदी अन्ना जारे ये सब अजीत डोबल के साथ में मिलकर सेमिनार करते थे तो इसके बाद देश भर में ब्लैक मनी और करप्शन को लेकर प्रोटेस्ट स्टार्ट हो गए थे तो कांग्रेस उस समय पावर में थी और ये जो विवेकानंदा फाउंडेशन थी ये उनके लिए एक सरदर्द बन गई थी तो कांग्रेस ने आईबी के थ्रू इस ऑर्गेनाइजेशन को सर्विलांस पर डाल दिया था और इस पर नजर रखती थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी उसका कोई असर नहीं होता है फिर अप्रैल 2011 में अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल सब इसी करप्ट को लेके अनशन प बैठ जाते हैं और पूरे देश में प्रोटेस्ट स्टार्ट हो जाते हैं इंकलाब जिंदाबाद इंकलाब जिंबा जो मीडिया के साथियों के साथ बदसलूकी हुई उसपे बस दो मिनट के लिए अपनी बात रखने आया हूं ये गड़बड़ी फैलाने से तो ये तो जनता की जय जिसके बारे में हर किसी को ऑलरेडी पता ही है ये इतना बड़ा मूवमेंट बन जाता है कि आगे चलके कांग्रेस की सरकार भी गिर जाती है और फिर बीजेपी पावर में आती है और बीजेपी जब पावर में आती है तो नेशनल सिक्योरिटी की जो सबसे बड़ी पोस्ट है एनएसए की वो मिलती है अजीत डोबा को और बाकी भी जो इस फाउंडेशन से रिलेटेड लोग थे जैसे निर्मला सीतारमन सुरेश प्रभु इन सबको इंपॉर्टेंट पोजीशन मिलती है अजीत डोबल को एनएसए बनाया गया था तो उसपे बहुत हल्ला भी हुआ था क्योंकि एमके नारायण का अगर एक्सेप्शन छोड़ दें तो जितने भी एनएसए बने हैं वो आईएफएस डोमेन से ही रहे हैं लेकिन इसको साइड में करके भी अजीत डोबल को एनएसए बनाया जाता है और जैसे ही अजीत डोबल एनएसए बनते हैं तुरंत जून 2014 में एक बहुत बड़ा चैलेंज भी आ जाता है इनके सामने इराक में 46 इंडियन नर्सेज फंस गई थी अजीत डवाल इराक में पहुंच जाते हैं तुरंत इन नर्स को वापस लाने की पूरी प्लानिंग डिजाइन करते हैं इनफैक्ट म्यानमार हो उरी सर्जिकल स्ट्राइक बालाकोट एयर स्ट्राइक यहां तक कि जो अभी आर्टिकल 370 तक है हर ऑपरेशन में 2014 से लेकर अभी तक जितने भी ऑपरेशन हुए हैं अजीत डोबल खुद प्लान करते हैं हर एक चीज इंडिया की सिक्योरिटी से रिलेटेड कोई भी चीज हो अजीत डोबल की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता अजीत डोबल के एनएसए बनने से एकदम नई अप्रोच आई जनरली कोई भी कंट्री होती है वो अपनी नेशनल सिक्योरिटी के लिए मेनली तीन स्ट्रेटेजी में से कोई एक फॉलो करती है डिफेंसिव डिफेंसिव ऑफेंसिव या फिर ऑफेंसिव इंडिया ने मोस्टली इंडिपेंडेंस के बाद से डिफेंसिव स्ट्रेटजी अपनाई है इसमें क्या होता है आर्मी इंटेलिजेंस सब एक्टिव होते हुए भी बस अपने पर होने वाले जो अटैक होते हैं उसको रोकते हैं लेकिन अजीत डोबल ने इंडियन नेशनल सिक्योरिटी को थोड़ा सा शिफ्ट किया इन्होंने डिफेंसिव ऑफेंसिव स्ट्रेटेजी जो होती है वो रिकमेंड की जिनके रिजल्ट पहले के कंपैरेटिव ज्यादा अच्छे निकले अटैक कम हुए लेकिन ईयर 1998 से अभी तक जब से बीजेपी की गवर्नमेंट आई है तब से अजीत डोबा के रिश्ते जो हैं वो कांग्रेस से बहुत खराब हुए और टाइम टू टाइम अजीत डोबल के ऊपर और इनकी फैमिली के ऊपर एलिगेशन भी लगते रहे हैं तो इंडिया के बाहर दुश्मनों से लड़ने के साथ-साथ अजीत डोबल को अपनी और अपनी फैमिली के ऊपर लगे एलिगेशन से भी लड़ना होता है जैसे मैंने आपको बताया था कि अजीत डोबल के जो बेटे थे शोरिया डोबल वापस आके इन्होंने इंडियन फाउंडेशन इससे आके ये जुड़ गए थे लेकिन साइड में ये अपनी इन्वेस्टमेंट कंपनी भी चलाते थे जिसका नाम टॉर्च इन्वेस्टमेंट था इसको पहले जीस कैप भी बोलते थे इसका हेड क्वार्टर जो है वो सिंगापुर में है लेकिन इसको लेके भी दिक्कत खड़ी हो गई थी ये जो इन्वेस्टमेंट कंपनी थी इसमें एक पाकिस्तानी जिसका नाम सैयद अली अब्बास था वो कोफाउंडर था इस कंपनी का तो कांग्रेस ने इस परे कहा कि एक तरफ देश का एनएसए अजीत डोबल आतंकियों को काउंटर करने के लिए ऑफिशियल पोस्ट पे हैं दूसरी तरफ उनका बेटा एक पाकिस्तानी के साथ बिजनेस कर रहा है तो ये देश की सिक्योरिटी के लिए बहुत ही बड़ा खतरा है ये और बात यहां भी नहीं खत्म होती है ये जो इंडिया फाउंडेशन थी ये टाइम टू टाइम सेमिनार करती थी और इसके जो स्पांसर थे वो फॉरेन कंट्रीज की डिफेंस इक्विपमेंट बनाने वाली कंपनीज थी जैसे बोइंग इजराइल की मगल सिक्योरिटी सिस्टम लिमिटेड तो इसको लेके भी अजीत डोबा उनके बेटे को घेरा गया कि ये सिक्योरिटी रिलेटेड कंपनियां इनको क्यों स्पंस करेंगी बिना किसी फायदे के तो ये करेंगी नहीं तो इसका लिंक भी अजीत डोबल और उनके बेटे से जोड़ा गया कि इन कंपनीज को फेवर किया जा रहा है गिव एंड टेक रिलेशनशिप चल रहा है अब यहां तक भी ठीक था लेकिन अजीत डोबल की असली दिक्कतें तब शुरू होती हैं जब कांग्रेस के जयराम नरेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि अजीत डोबल के दूसरे बेटे विवेक डोबल ने जिस दिन नोटबंदी हुई उसके 13 दिन बाद केमन आइलैंड जहां टैक्स की कोई रोक टोक नहीं होती वहां जाके जीएन वाई एशिया हेज फंड स्टार्ट कर दिया और इसका जो लिंक है वो पूरी तरीके से नोटबंदी से इस्टैब्लिशमेंट हो गया तो अजीत डोबल ने जय राम न और कैरावन मैगजीन के ऊपर क्रिमिनल डिफॉर्मेशन केस कर दिया और जब यह केस कोर्ट में जाता है तो कांग्रेस के जयराम रमेश को अजीत डोबल के बेटे विवेक डोबा से माफी मांगनी पड़ती है और विवेक डोबल रिटर्न में भी माफी लेते हैं ये उस माफी की कॉपी है तो देखिए अजीत डोबल की जो लाइफ है वो किसी फिल्म स्टोरी से कम नहीं है और चाहे देश के बाहर लड़ना हो या अंदर लड़ना हो और तीन बार एनएसए बनके पावर अपने हाथ में रखना हो इनको कैबिनेट मिनिस्टर तक की रैंक दी गई है और यही रीजन है कि इनको देश के अंदर लोग असली चाणक्य कहते हैं क्योंकि ये पहले ऐसे एनएसए हैं जिनके हाथ में इतनी पावर रही इतने बड़े-बड़े लोग इनके पीछे पड़े लेकिन पावर इनके हाथ से कोई खींच नहीं पाया और जब गवर्नमेंट तक इनके हिसाब से नहीं रही तो वो गवर्नमेंट ही पावर में नहीं रही और लास्ट में आपको फिर से बता दूं कि टूथसी की वेबसाइट जरूर चेक करना फॉर देयर इनविजिबल टीथ अलाइन यह मेटल ब्रेसस की तरह ही काम करते हैं पर दिखते नहीं है बिल्कुल इनविजिबल है अपना फ्री टीथ स्कैन बुक करने के लिए डिस्क्रिप्शन में दिए गए लिंक पर क्लिक करना ना भूलें थैंक यू [संगीत]