हम लोगों ने light के बारे में बहुत सारी बाते की और खास करके उसकी जो wave like properties हैं और particle like properties हैं उनकी चर्चा की और हमने ये पाया कि light में दोनों के गुण मौजूद हैं और किन परिस्थितियों में आप light के साथ काम कर रहे हैं, वो decide करती है कि आपको वो light तरंग जैसे दिखेगी या आपको वो light particle जैसे दिखेगी। अगर आप interference के, diffraction के experiments कर रहे हैं, तो आप समझते हैं कि वो waves हैं, वो तरंगे हैं। अगर आप photoelectric effect के experiments करते हैं, तो आपको लगता है कि वो particles हैं। diffraction interference में भी अगर आप बहुत low intensity से कराते हैं वितिकरण diffraction या interference तो वहाँ भी आपको particles अलग-अलग दिखते हैं लेकिन वो अलग-अलग particles जब इकट्ठे हो जाते हैं बहुत सारे हो जाते हैं तब लगता है कि नहीं वो waves भी थी और कहीं पे destructive interference हो रहा था waves के बीच में तो वहाँ पे वो particles नहीं पहुँच रहे थे, जहाँ constructive interference हो रहा था, वहाँ जादा पहुँच रहे थे, तो एक fringe pattern उसमें से बंद करके आता है। Electrons के बारे में शुरु-शुरु में कोई इस प्रकार का समस्या इस प्रकार की समस्या नहीं थी। 1897 में, थॉम्सन ने अपने experiments करते समय में इसको देखा था कि इस तरह के negative charged particles हैं, atoms के अंदर में इसे निकल करके आते हैं। वहाँ से इलेक्ट्रोन्स की डिस्कवरी कही जाती है कि इलेक्ट्रोन्स का पता चला कि अच्छा इलेक्ट्रोन्स भी होते हैं और वो बिल्कुल एक साफ सुथरे पार्टिकल्स के रूप में उनकी छवी बहुत समय तक रही और करिबन 27 साल के बाद 1924 में जो फ्रेंच फिजक्स के विद्यार्थी ही कहें पी एच डी विद्यार्थी उनोंने डी डोगली हम कहते हैं लेकिन डी ब्रोई ऐसे कुछ उचारण होता है फ्रेंच में लेकिन हम उनके साथ बहुत न्याय नहीं कर पाएंगे अगर हम वह फ्रेंच का उचारण करने की कोशिश करेंगे तो हम अपने भारतीय हिसाब किताब उसको डी ब्रोगली भी बुलाया करेंगे नाम भी काफी बड़ा सा है लुइस से शुरू होकर के तो हम लोग इसको इतना ही कहते हैं डी ब्रोग ये 1924 में जब वो PhD की thesis अपने लिख रहे थे और उस से सम्मंदित जो काम चल रहा था उसके अंदर में उन्होंने इस proposal को लाया कि light ही क्यों, light ही क्यों जो electrons हैं या और जो particles हैं वो भी so called particles उनके अंदर में भी waves वाली properties होनी चाहे और light में अगर देखें जब वो particle की तरह behave करती है, photon की तरह जब आप उसको describe करते हो, तो एक-एक photon का जो momentum है, और वही light अगर तरंग के रूप में describe की जाए, तो उस समय में जो उसका wavelength है, तरंग दर्ग है, उनके बीच का रिष्टा आपको पता है, उनके बीच का रिष्टा ह ये फोटोन का मोमेंटम है लाइट जब फोटोन की तरह करे तो उसकी एक निश्चित उर्जा होगी उस फोटोन की और उसका एक निश्चित लिनियर मोमेंटम रेकिये समवेग होगा तो वो है ये फोटोन मोमेंटम और वही लाइट जब तरंग के रूप में सामने आएगी उस समय जो उसका वेवलिंग्थ होगा तरंग देरग होगी वो ये है ये वेवलिंग्थ है और यही जो रिष्टा है, तो यह डी ब्रोगली ने जो अपने थीसिस के अंदर में और एक वरणन किया, जिसको हम particles कहते हैं, उसका भी तरंग रूप होता है, उसका जो पूरा एक वरणन किया, उसके केंदर में यह equation है, उन्होंने यह propose किया कि particles का linear momentum, जो mass into velocity हम कहते हैं, और रिलेटिविटी आ चुकी थी आइंस्टेन के रिलेटिविटी आ चुकी थी 1905 में आई थी तो यही रिलेशन इसके लिए भी एलेक्ट्रॉन्स के ल और दूसरे so-called particles के लिए भी और इस बार यह जो P है यह H बटा mass into velocity और velocity कुछ जादा भी हो सकती है छोटे particles से बात हो रही है इसलिए relativistic expression ऐसा यह De Broglie hypothesis कहलाती है कि अगर electron है, proton है, कोई particle है, उसका कुछ mass M है, उसको V speed से आपने चला दिया तो वैसी हालत में इतना उसका momentum बन गया, linear momentum बन गया, और इतना अगर linear momentum बन गया, तो वो particle में wave की भी property आ गई है, वो भी समाहित हो गई है, और जो wave की property आ गई है, उस wave का wavelength इसके द्वारा, इतने के द्वारा मिलेगा, ऐसा यह hypothesis कहलाती है, De Broglie hypothesis, और इसके आधार पर उन्हो मान के चले थे कि ये एक रियल वेव है और यसा है वो सब बहुत अलग चीजे हैं उसके हम चर्चा नहीं करेंगे लेकिन मुख्य रूप से इलेक्ट्रोन्स भी वेव की तरह यवहार कर सकते हैं और इसके पहले नील्स बोर का क्वांटाइजेशन का रूल्स आप जानते हैं जो उन्होंने हाइड्रोजन आटम के स्पेक्ट्रम को डिफाइन करने के लिए दिया था कि अगर आप बोर्स मॉडल की चर्चा करें तो बोर्स मॉडल की चर्चा में है कि जो एलेक्ट्रॉन है वो एक सरकुलर पाथ में चलता है और जिन सरकुलर पाथ में एंगुलर मॉमेंटम और प्लांक्स कॉंस्टेंट का एक खास मल्टिपूल होता है जो एंगुलर मॉमेंटम है एन टाइम्स प्लांक्स कॉंस्टेंट डिवाइड बाई टू पाई जहाँ एन बराबर वन टू थी फोर पुर्णांक है तो ऐसे वाले एंगुलर मॉमेंटम जिस सरकुलर औरबिट्स में होंगे उसी में इलेक्ट्रोन्स घुमेगा और वहीं स्टेबल होंगे, ऐसा बोर्स मॉडल मैंने भी चर्चा की थी अपने शुरू के लेक्चर्स के अनर में, और यह उसका एक जाच है कि कौन से वृत, कौन से सरकल्स जिसमें इलेक्ट्रोन रह सकता है बिना रेडियेशन के हुए, कि डीब्रोगली के वेवलेंग्स से चले हैं कि जो एलेक्ट्रॉन है वो वास्तव में एक छोटा पार्टिकल नहीं हो करके और वो एक तरंग है एक वेव है और जो सर्कल है इस सर्कल के उपर वो वेव जो है वो स्टेबल के रूप में और अपने कंपन्स कर रही है तो अगर हम इसमें स्टेबल कराएं स्टेशनरी वेव बनाएं तो नोट्स और एंटी नोट्स बनेंगे और वो नोट्स और एंटी नोट्स जो होंगे वो ऐसे होंगे कि कुछ नोट होंगे यहां पर मान लीजिए हां एक नोड है मान लीजिए यहां एक नोड है चार नोड है और बीच में अगर एंटी नोड है तो यह पार्ट जो है वो अपना ज़्यादा वाइब् है और ऐसा तो एक नोड से लेकर के एक अगले नोड तक यह आप जानते हैं यह वेब्स इस तरह का जब स्टेशनरी वेब्स बनाती है किसी क्लोज पाथ के ऊपर एक नोड से अगले नोड तक हाफ वेबलिंग होता है फिर वहां से और अगला नोड यह पूरा मिलकर के एक वेबलिंग होता है और फिर इस नोड से इस नोड तक एक दूसरा वेबलिंग होगा अ तो stationary waves तब बनती हैं जब ये पूरी लंबाई में निश्चत संख्या के wavelengths fit हो सकते हैं यानि इतनी लंबाई के अंदर में दो वेवलिंग्थ आगा है, जैसे मैंने ये चित्र बनाया है, यहां से लेकर के यहां तक और यहां से लेकर के यहां तक यह एक wavelength है यह half wavelength हुआ और फिर यह half wavelength हुआ फिर यह half wavelength हुआ यह फिर half wavelength हुआ तो यह two wavelengths है यह length जो है यह two wavelengths है three wavelengths हो जाए तो ठीक है four wavelengths हो जाए तो ठीक है five wavelengths हो जाए तो ठीक है लेकिन 2.2 wavelengths नहीं हो सकता क्योंकि वैसा होगा तो फिर यहां node है और एक चक्कर के बाद मैं आओगा तो यहाँ node होना चाहिए तो हर जगह node ही node हो, हर जगह anti node ही anti node हो, तो वैसा stable pattern नहीं बन सकता है, तो stable pattern तभी बन सकता है, assuming this waves, electrons जो हैं वो waves हैं, यहाँ क्या है, यह waves है, बोर्ड्स मॉडल में एक particle चल रहा है, circle के ऊपर, और यह इस मॉडल के अंदर में है कि electronic wave है, stationary wave है, और वो stationary wave इस circle के ऊपर fit है, तो वैसी हालत में यह जो length है 2πr, इस length को होना चाहिए n times, integer times, लामडा, string में भी आप ने बढ़ा होगा, अगर एक string है, दोनों किनारों पर हमने fix किया हुआ है, जैसा sonometer के experiment में करते हैं, और उसको अगर हम vibrate करें किसी खास frequency से, ताकि उसमें stable patterns बने, तो फिर वैसा ही होता है, यहाँ node है तो यहाँ node होना चाहिए तो बीच में एक antinode हो सकता है या फिर एक और node हो सकता है एक और antinode हो सकता है तो एक निश्चित amount यह जो frequencies हैं वही उसके अंदर में stable हो जाकती है, तो वैसा ही कुछ यहाँ पर भी है, यह जो 2πr है, इसको integral multiple होना चाहिए इस wavelength का, ताकि इसके अंदर वो ठीक-ठीक fit हो जाके, और वैसा अगर करते हैं, और यह wavelength की जगह पर अगर हम यह रखते हैं, यहाँ से h by p रखते हैं इसको, तो यह n into h by p, और इस p को अगर मैं यहाँ इधर ले लूँ, p into r कर दूँ, p x r कर दूँगा और 2 pi को उधर ले जाओं तो यह n x h by 2 pi बनता है तो यहने electron के भी दो behavior एक particle behavior और एक wave behavior जब particle behavior है उस समय उसकी linear momentum की बात करेंगे उस समय उसकी energy की बात करेंगे उस electron की energy की बात करेंगे और जब wave behavior है उस समय उसके wavelength की बात करेंगे, उसके frequency की बात करेंगे, और ये रिष्टा होगा उन दोनों में, तो जब particle की तरह electron को treat करेंगे, तो ये हो जाएगा angular momentum, r cross p यह हो जाएगा angular momentum, और इसको होना चाहिए n into h by 2 pi, कहां से ला रहे हैं हम यह relation, यह relation हम कहां से ला रहे हैं, यह relation हम ला रहे हैं यहां से, याने electron को wave मानते हैं, बना गया था उसमें एलेक्ट्रोन को वेव नहीं माना गया था उसमें एलेक्ट्रोन को पार्टिकल माना गया था जो सर्कल के ऊपर चल रहे हैं और फिर एक पार्टिकल एक ओर्बिट से दूसरे ओर्बिट आने में कितनी इनर्जी उसने रेडियेट की लेकिन यहां देखो of wavelengths fit हो सके, stationary wave बन सके, nodes, antinodes बन सके, तो यहाँ ने De Broglie के hypothesis से, बोर्स का जो model है, वो justify हो रहा है, उसका एक justification वहाँ से मिल करके आ रहा है तो ये कहते हैं De Broglie hypothesis 1924 जब PhD thesis लिख रहे थे उस समय का ये मामला है तो हम आपको दोड़ा सा ये node और anti-node दिखाना चाहते हैं अपने table के उपर कि अगर एक circle हो और उस circle के अंदर में आप उसमें waves भेजें और एक विशेष frequency के आप waves भेजें तो फिर वो इस तरह के node, anti-node बनते हैं ये हम आपको अभी एक दिखला दे तो फिर उसके बाद आगे बढ़ते हैं तो यह एक यंतर है जिसको हम frequency generator कहते हैं इस यंतर को बिजली supply की जा रही है और इसका मुखी काम है कि इस terminal पर जिसको output terminal कहते हैं यहाँ पर एक voltage create करना और वो voltage oscillating voltage है वो changing voltage है V0 cos omega T type का voltage है और कितनी frequency से वो oscillate कर रहा है इसको कंट्रोल करने के लिए हैं ये knobs दिये गए हैं और knobs के आधार पे हम वो frequency कंट्रोल कर सकते हैं तो अभी जो frequency है वो कुछ 30 पर लेंगे और अब ये frequency के 13 हर्ज टाइप के फ्रिक्वेंसी है उतने से यहाँ वोल्टेज क्रिएट हो रहा है और यह वोल्टेज इस तार से ले करके हम जाते हैं कहां इस तार से ले करके हम आते हैं इस यंत्र में जो की एक vibrator है, एक speaker का diaphragm यहां अंदर लगा है, और उसको हम यह voltage देते हैं, और जैसा voltage हम देते हैं, उस अनुसार वो diaphragm oscillate है, करता है उपर नीचे ओसिलेट करता है और उस ओसिलेटिंग पार्ट से लगा हुआ यह यहां पर यह स्टेम देख रहे हैं आप यह ऐसे उपर नीचे ओसिलेट कर रहा है और जितनी फ्रिक्वेंसी का हम उसको voltage देंगे उतनी frequency से यह oscillate करेगा हम control कर सकते हैं उस frequency को और इसके उपर देखिए हमने एक transparent sheet से काट के यह एक ring बनाई है लगभग circular है यहां नीचे में कुछ circle खराब हो गया है इसमें शाटने के कारण से लेकिन लगभग circular यह ring है जो इसके साथ vibrations पैदा कर रहे हैं और वो vibrations इस ring में wave के रूप में चल रहे हैं और वो अपने superpositions करके और यहाँ पे stationary waves का निर्मान कर रहे हैं तो इसमें कैसा nodes और antinodes बन रहा है वो आप देखिए तो आप ध्यान से अगर इस ring को देखिए, तो आप देखेंगे कि यह जो point यहाँ पर है, इस circle पर, यह जो point यहाँ पर है, यहाँ का ring almost vibrate नहीं कर रहा है, जबकि इसी के पास में यहाँ का रिंग आप देख रहे होंगे कि यह वाइब्रेट कर रहा है यहाँ चौड़ा दिख रहा होगा आपको और यहाँ पर बिल्कुल शार्प दिख रहा होगा शार्प दिखने का कारण है कि यहाँ का जो रिंग है वो वाइब्रेट नहीं कर रहा है और इसी प्रकार से आप दूसरे साइड में अगर देखें, तो आपको यहाँ पर एक नोड दिखाई पड़ रहा होगा इस जगह पर, इस जगह की रिंग भी भाइब्रेट नहीं करती है, तो एक नोड यहाँ है और एक नोड यहाँ है, फिर उससे थोड़ा आप नीचे उतरें, तो आपको फिर से एक नोड यहाँ पर दिखाई होगा इस जगह पर, अगर आप नीचे उतरेंगे तो आपको इस जगह पर यहां पर एक नोट बना हुआ दिख रहा होगा और दो नोट के बीच में यहां कहीं पर देख पा रहे हूं यहां सर्किल भी थोड़ा सर्किल नहीं रह गया है लेकिन यहां पर आपको दिख रहा होगा यहां देखिए यहां वाइब्रेशन है और यहां करके वाइब्रेशन खत्म हो गए यहां पर नोट से इसी तरीके से यहां पर वाइब्रेशन से और यहां करके नोट बन गए तो टोटल चेक 6 दिख रहे होंगे आपको, total 6 दिख रहे होंगे, एक यहाँ, एक इधर, एक दो नीचे में, तो यहने 3 wavelengths fit हो रहे हैं इसमें, इसकी जो भी vibration की frequency है, वो ऐसी है, और हमने जो frequency उधर चदी है, वो ऐसी है, कि इसमें 3 wavelengths fit हो रहे है frequency change करता हूँ जैसे wavelength थोड़ी सी change हो जाए और थोड़ी सी change हो जाए तो इसमें 3 wavelength नहीं fit हो करके शायद 3.2 wavelength fit होने की कोशिश करें और तब आप देखे क्या होता है मैं इसकी frequency बदल रहा हूँ frequency generator से और ये देखे मैंने इसकी frequency थोड़ी बदल दी है और थोड़ी बदल देने से आपके जो node, sentinodes दिख रहे थे वो खराब हो गए अब आपको उतने सुन्दर, शार्प, बढ़िया node, sentinodes नहीं दिख रहे होंगे जैसे पहले दिख रहे हो दिख रहे थे तो इसमें स्टेशनरी स्टेबल पैटर्न नहीं बन रहा है लेकिन अगर मैं इसको सही फ्रेक्वेंसी देता हूं तो सही फ्रेक्वेंसी देने पर आप पाएंगे कि इसमें उसी तरीके से यह देखिए हम उसी पुरानी जगह पर आ रहे यह देखिए आपको अच्छे यहाँ पे बढ़ियासा नोट दिख रहा है, बढ़ियासा एंटी नोट दिख रहा है, तो अब ऐसा यह इंटेग्रल मल्टिपल आफ वेवलेंक्स जब इसके अंदर फिट हो जाए, 2 पाई आर बरा� डिब्रोगली हाइपोथेसिस एक थेरेटिकल परिकल्पना थी जिसको उन्होंने डिस्क्राइब किया जिसके आधार पर बहुत सारा डिस्कर्शन्स किया अपनी थेसिस के अंदर में लेकिन उसका कोई प्रायोगिक आधार नहीं था लेकिन प्रायोगिक आधार भी साथ कहीं और तयार हो रहा था तो डेविसन और जर्मर ये साइंटिस्ट अपनी लाबरेटरी के अंदर में 1921 से और निकल के उपर एलेक्ट्रोन्स का बंबार्डमेंट करके और वो एलेक्ट्रोन्स कहा जा रहे हैं उसकी सरफेस से टकरा कर इसके बारे में एक्सपेरिमेंट कर रहे थे यह जो डिब्रोगली की थीसिस है वह नाइनी ट्वेडी फोर की थीसिस है उसके और पहले से यह एक्सपेरिमेंट चल रहा था और उसका उद्देश बहुत सिंपल से था कि वह एक को अ metal के surface को study करना चाहा रहे थे electrons के माध्यम से और electrons का size अगर बहुत छोटा है तो आप कितना भी smooth surface बनाओ वो electron को उसके अंदर में जरूर वो खुर्दरेपन दिखाई पड़ जाएंगे और इसके कारण से जो वहां से electrons वापिस परावर्तित होंगे वो surface से उनका कैसा angle में distribution होगा वो फैले से होंगे जब हमारी रुखडी दिवाल के ऊपर जब लाइट पड़ती है तो वह इधर उधर डिफ्यूज रिफ्लेक्शन होता है उसका और शिशे पर पड़ती है तो एक खास डिरेक्शन में होता है तो हमारी जो लाइट है उसका वेवलिंक कुछ 500-600 नानो मीटर है लेकिन एलेक्ट्रॉन जो है वो बहुत छोटा पार्टकिल है इसलिए थोड़ा सा भी अगर रफनेस है तो उसको डिटेक्ट कर सकता है तो निकल में जो आटम से आटम के बीच में खाली जगए है फिर आटम है ये है तो उसके कारण से उसको वो ऐसा होना चाहिए और इलेक्ट्रोन्स को एक इधर उधर एक डिस्ट्रिबूशन में आना चाहिए उसको जाचने के लिए उसके उपर अध्यान करने के लिए ये प्रयोग 1921 से चल रहे थे और कभी 1923, 24, 25 के अंदर में कुछ ऐसा हो गया, वो लगातार बहुत सारे experiments की series थी वो, और कभी ऐसा हो गया कि उसमें कुछ गर्बड हो गई, और वो क्या गर्बड हो गई, तो पहले हम उसके experiment का setup थोड़ा आपको बताये कि किस प्रकार का था, तो वो गर्बड भी उसमें स एलेक्ट्रोन गन जिसको कहते हैं जिसमें से आप एलेक्ट्रोन निकाल सकते हैं गरम करके सीधा गरम करके केवल इसको अगर आप थर्मली हीट कर दें किसी मेटल वायर को किसी चीज को अगर आप हीट कर दें तो वहाँ से एलेक्ट्रोन्स बाहर निकल सकते हैं और वो एलेक्ट्रोन्स बीम बन सकती है तो ऐसा एलेक्ट्रोन की बीम बना करके और फिर उसको एक्सलरेट करना उसको एक्सलरेट करना यानि उसको किसी potential difference से आप अगर उसको इन electrons को अगर आप ले जाते हैं यहां माली जि आपने कुछ plate लगा रखी है और उन plate के उपर आपने कुछ potential difference बना रखा है यहां positive है यहां negative है तो electrons को इसमें accelerate कर सकते हैं और इसमें से जब वो electron की beam बाहर निकलेगी तो उसकी kinetic energy इस के अनुसार निधारित हो जाएगी अगर ये potential difference V है यहाँ पे तो E into V ये इतनी potential energy इसकी धटी है और वो इसकी kinetic energy में बदलेगी half mass into V square अगर एलेक्ट्रोन की स्पीड बहुत ज्यादा नहीं है तो आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन अगर स्पीड ज्यादा है तो वैसी हालत में आपको रिलेटिविटी के अंदर आना पड़ेगा लेकिन इन एक्सपेरिमेंट्स में जो यह प्रेंटेंचल डिफरेंस है वह 40 50 60 वोल्ट टाइप का है और इसलिए जो कैनेटिक इनर्जी है वह 40 50 एलेक्ट्रोन वोल्ट है काफी कम है स्पीड अभी भी स्पीड आफ लाइट से कम है काफी और इसलिए आप इसका इस्तेमाल कर लिहाजा इसका इस्तिमाल करें या ना करें ये काइनेटिक एनर्जी इतनी बनेगी और इतनी काइनेटिक एनर्जी से ये एलेक्ट्रोन्स आगे जाएंगे और इस बीम को एक निकल के प्लेट के उपर परपेंडिकुलरी फॉल कराया जाता था और इस सर्फेस से किस एंगल के उपर और किधर वो जा रहे हैं एलेक्ट्रोन उसको डिटेक्ट करने के लिए के लिए एक जगए प एक डिटेक्टर लगा करके जिस डिटेक्टर को आप घुमा सकते हैं जिस डिटेक्टर को आप ऐसे टर्न कर सकते हैं और इस आंगल को आप बदल सकते हैं इधर ला सकते हैं उधर ला सकते हैं तो अलग एंगल के उपर किस एंगल पर कितने एलेक्ट्रोन जा रहे हैं ये एक्स्पेरिमें का मुख्य उद्देश था और इस पूरी प्रक्रिया के अंदर में बीच के अंदर ही अगर हवा होगी और हवा के मॉलेकुल से टकरा जाएंगे और फिर कहीं चले जाएंगे तो हमें वो लगेगा कि हाँ निकेल के सरफेस से आ रहा है और हमारे एक्सपेरिमेंट प्रक्रिया को और एक वैक्यूम चैंबर के अंदर में रख करके और यह सारा एक्सपेरिमेंट किया जा रहा था तो यह चल रहे थे प्रयोग लेकिन जो गडबडी हुई कभी 1925 के आसपास में वो ये हुई कि किसी समय ये वैक्यूम लीक हो गया कहीं से कोई लीक डेवलप हो गई और इस चैंबर के अंदर में हवा घोज गई और इस चैंबर में हवा घुश जाने के कारण से ये जो निकल का फॉयल था ये निकल का फॉयल इसकी सरफेस ओक्सिडाइज हो गई और ये ओक्सिडाइज हो जाने के कारण से जो सारा एक्सपेरिमेंट का थीम थी वो थीम गरबड हो गई है तो क्या करना उस ऑक्साइड के लेयर को हटाना और फिर से उसकी मेटल को वैसा ही बनाना है तो इसके लिए इस फॉयल को निकाल करके अलग से और एक चैंबर में ले करके और उसका एक ही ट्रीटमेंट किया इसको इतने डिग्री तक गर्म करो इतने दिग्री तक ऐसे ठंडा करो वगैरह करके ताकि वापस वह मेटल के सर्फेस हमें मिल जाए कि यह जो ही ट्रीटमेंट किया गया इस ही ट्रीटमेंट में ऑक्साइड खत्म हो गया लेकिन निकल के क्वालिटी में उसका जो स्ट्रक्चर है क्रिस्टलाइन स्ट्रक्चर है उसकी क्वालिटी में बिल्कुल परिवर्तन आ गया है कि आप जानते हैं जो निकल होते हैं या आयरन होते हैं या कॉपर होते हैं जो इस तरह के एलिमेंट्स हैं या योगिक भी है तो वह मेटालिक सब्स्टेंसेंस हैं वह उनके जो एटम्स है वह खास-खास खास ढंग से सजे रहते हैं जिनको हम क्रिस्टल कहते हैं उनके निश्चित पोजीशन है इतने यहां पर एटम है इतनी दूसरे के बाद जरूर एक एटम होना चाहिए उसके इतने दूसरे के बाद फिर जरूर एक एटम होना चाहिए इस डिरेक्शन में यहां होना चा वहां चाहिए तो एक खास रचना में सजे होते हैं जिसको क्रिस्टल्स करते हैं और आप कोई भी उठाएंगे कॉपर का एक वायर उठाएंगे या आइरन की आप एक कील उठाएंगे तो क्या पाएंगे कि उसमें भी उस तरह का है स्ट्रक्चर क्रिस्टलाइन स्ट्रक्चर दोस्तों नेनोमीटर तक हो उतनी दूर तक वह क्रिस्टल ठीक है लेकिन उसके बाद कुछ गड़बड़ है और फिर दूसरा क्रिस्टल शुरू है और यह दूसरा क्रिस्टल इसके बगल वाला जो है वह हो सकता है कुछ दूसरे ओरियंटेशन पर हो इसमें एटम्स ऐसा-ऐसा जो चल रहे थे हो सकता यहां पर ऐसा-ऐसा चल रहे हैं कुछ बदल गया तो यह इसको हम लोग क्रिस्टलाइट लिए हम सारे उस रक्षणा से सजाए हुए हैं लेकिन एक क्रिस्टलाइट से दूसरे क्रिस्टलाइट में थोड़ा सा परिवर्तन है जैसे आपने फेरो मैगनेटिक मिटीरियल के समय डोमेंस सुना होगा एक डोमें के अंदर के सारे मैगनेटिक मॉमेंट्स एक तरह सा सजे है दूसरे डोमें में भी सजे है लेकिन दूसरे डोमें हो सकता है कि पहले डोमें के अनुसार कुछ खिसका हुआ हो कुछ घुमा हुआ हो वैसे यहां भी जो क्रिस्टलाइट्स हैं एक नॉर्मल कॉपर लीजे, एलिमिनियम लीजे लीजिए निकल लीजिए तो उसके अंदर में ऐसा या नमक ले लीजिए सोडियम क्लोराइड वह भी क्रिस्टलाइन स्ट्रक्चर है लेकिन नमक का जो अपना एक दाना होता है उस दाने के सभी एनेसियल वैसे सजेवे नहीं है उसके एक बहुत छोटे से पार्ट म लाइन कहते हैं तो शुरुआत में जो निकल जिससे काम कर रहे थे वह पॉलीक्रिस्ट लाइन था नॉर्मली सभी पॉलीक्रिस्ट लाइन ही होते हैं जिसके साथ यह सारे एक्सपेरमेंट चार साल से चल रहे थे लेकिन वह जो ही ट्रीटमेंट स्पेशल ही ट्रीटमेंट दिया गया कि उससे वह पोली क्रिस्टलाइन पूरा क्रिस्टल बन गया वह बड़े-बड़े क्रिस्टल बन गए वह छोड़े-छोड़े क्रिस्टलाइट थे वह सब मिलकर के एक सिंगल क्रिस्टल के तरह हो गया अब यह क्रिस्टल जो है इसके ऊपर जो इलेक्ट्रोन बीम पड़ी तो उन्होंने जो वहां से जो परावर्तन हुए वहां से जो इधर वहां से इलेक्ट्रोन गए उसका जो एंगुलर डिस्ट्रिबूशन है किस एंगल पर कितने इलेक्ट्रोन जाने है और पुलीक्रिस्ट क्रिस्टलाइन से जो काम हो रहा था उनके अंदर में बहुत परिवर्तन है वो बहुत अलग-अलग है और उस क्रिस्टलाइन निकल से जो परिणाम निकल करके आए वो फिजिक्स के इतिहास के बहुत महतुपुर्ण परिणाम है जिन्नों ने डी ब्रोगली हाइपोथेसिस क