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वित्तीय प्रबंधन के महत्वपूर्ण तत्व

हेलो एवरीवन माय नीम इस बुष्रा वेलकम बैक टो दिओ फीशल प्लैटफॉर्म आफ यूजीसी नेट आदा 24-7 सो आज के इस पॉइंटिव सेशन में सुझाली से जॉइंट कर जाइए आज के इंट्रोडियो और अभी तक हमने जितना भी पोषण रिवाइस किया जैसे आज एकोनोमिक्स को हमने रिवाइज कर तो क्या आपने अपने एंट पर उसको एक बार ही वापस से ब्राशिट किया अब आज बिजनस फानेंस करने वाले फिर फिर इसके अंदर हमारे पास में तीन डिसीजन है फैनेंसिंग का डिसीजन है फिर हमारे पास में जो है बताओ आप कह सकते हैं डिविडेंट का डिसीजन है तो इसमें अलग-अलग-अलग-अलग चैप्टर्स आ जाते हैं हमारे पास में तो सारे ही चैप्टर्स को आज हम जिसमें रिवाइज करने की कोशिश करने वाले हैं और यह वीडियो होफ़ुली पहली category हम कहते हैं कि traditional approach है पहले के समय पर क्या होता था कि हम लोग financial manager का जो role होता था उसको सिर्फ उसम कहते थे कि इसका role सिर्फ उसे procurement of funds की तहट जो है वो सीमे थे यानि जहां से funds लेके आना है कहां से कितना funds लेकर के आना है खाली ठीक है तो procurement of funds के उपर ध्यान होता था but modern management में अगर पैसा 50,000 हो लाख हो एक लाख हो बट आप अगर उसका प्रॉपर यूटिलाइजेशन नहीं कर पा रहे हैं तो भी आपके लिए गड़बड़ है सीम गोज़ विद बिजनेस एस वेल तो बिजनेस के पास में आपने पैसा कितना ले करके आ गया है लेकिन आप उसका प्रॉपर फाइन आइंट बैकबॉन होती है किसी भी बिजनेस की किसी भी एंटरप्राइस की सो प्रोक्यूरमेंट ऑफ फंट जो वह कहती है कि यार प्रोक्यूरमेंट तो करना है फंड्स का यानि फंड्स कहां से कितने लेकर आने इसके ऊपर तो मुझे चर्चा करना है लेकिन हमें साथ ही साथ ये भी देखना है कि इन फंड्स का application कहां पे करना है मुझे यानि ये फंड्स लगाने कहां पे हैं वर्किंग कैपिटल में कितने फंड्स रखने हैं, fixed assets में कितने फंड्स लगाने हैं, किस project में कितना लगाना हैं, इन सब के ऊपर चर्चा करना भी financial manager का काम होता है तो financial manager करता क्या है हमने का financial manager सबसे पहले तो एक company की capitalization को determine करता है capitalization का मतलब हो गया कि आखिर उस company को कितने funds के requirement है आपको सबसे पहले तो ये जानना है ना कि पैसा required कितना है मेरे को 100 रुपिये की ज़रूरत हो अगर मैं 150 लेके आ जाओं तो मैं misutilization करूँगी funds का 100 की ज़रूरत है और मैं 50 लेकर किया हूँ तो मेरे पास में shortage of funds हो जाएगी, तो capitalization का अर्थ होता है ये determine करना कि आखिर एक funds को जरूरत कितने funds की है, क्योंकि अगर आपने capitalization धन करीके से determine नहीं किया तो आपके पास में दो situations निकल के आ सकती हैं, जिसमें से एक situation को हम लोग कह आपके पास में projects है नहीं उनको invest करने के लिए, तो आपका rate of return गिरने लग जाएगा, आपका market price of this year fall करने लग जाएगा, investors भरोसा नहीं करेंगे, उनको लगेगा कि यार इनके पास में तो projects अच्छे नहीं है, इनका rate of return गिरा हुआ है, so यह आपकी company की long term के लिए अच्छा न अच्छा under capitalization भी एक धातक situation है किसी enterprise की point of view से क्योंकि under capitalization अगर हो गया तो what will happen कि मेरे को जितना fund required था मैं उतना लेके नहीं आई अब मालो मेरे को production करना है मेरी आप कह सकते हैं मतलब demand है मेरे पास में लेकिन अब मेरे पास पैसा नहीं है अब मैं हो सकता production ही नहीं कर पा रही ह मेरे पास raw material के लिए पैसा नहीं है labor के लिए पैसा नहीं है तो इसको हम कहते हैं under capitalization के situation हो गई तो mainly अगर हम कहें तो capitalization को determine करना सबसे foremost या पहला नीव जिसको कहते है ना base जिसको कहते है वो वाला objective है हमारा सबसे पहले तो हमें capitalization धंग तरीके से determine करना है कि over या under capitalization नहीं होना चाहिए अब ये अगर हम उद्देशों की बात करें कि यह जो financial management है, business finance कहलो, यह जो इसका prime बंदा होता है, जिसको हम financial manager कहते हैं, तो वो जो financial manager है, उसको हम कहते हैं कि यार यह majorly दो उद्देशों के लिए काम करता है, यानि जब भी हम यह procurement of funds की बात कर रहे हैं, हम utilization of funds की बात करते हैं, तो हम जहां पे हम इस तरीके से अपने funds को लाने की कोशिश करते हैं, इस तरीके से उनके utilization की कोशिश करते हैं, कि हमारे पास में जो business के अंदर profit हो रहा है, वो maximize होता चला जाएं, यानि आज में को 50,000 का हुआ तो कल मैं सोचू 55,000, फिर 60,000, फिर 65,000, फिर 70,000, मैं इस तरीके से सो अच्छा हमको profit जब बढ़ाना होता है तो हम क्या कर सकते हैं cost कम करनी पड़ेगी अपने को main मुद्दा ही है यह profit बढ़ाना है तो cost कम कर दो या तो अपनी sales जो है वो enhance कर दो यही दो तरीके है profit बढ़ाने के अच्छा जब भी भी हमारे पास में यह दो तरीके होते हैं cost को मत cost कम कर रही हूँ, तो it's quite possible मैं quality गिरा दू, sales maximize कर रही हूँ, it's quite possible मैं false advertisement देने की कोशिश कर रही हूँ, तो ये सारी situations हो सकती हैं, modern management में हम कहते हैं कि हमारी जो firm है, वो wealth maximization की बात करती है, wealth maximization का मतलब हो गया कि मैं अपनी shares की, equity shares की market price के लिए काम कर रही हूँ, मैं अपने equity shareholders अच्छा कोई भी एक ऐसी firm है, जो मालो मैं किसी firm की equity shareholder हूँ, और वो मेरी market price बढ़ा रही है, मेरी value of the firm, मेरी value shares की increase कर रही है, अब इस particular situation है, मुझे लगेगा कि यहाँ कितनी इच्छी firm है, मेरे लिए इस share की price increase हो रही है, तो यहाँ पर क्या हो रहा है, बाकी लोग इसके shares क्योंकि जब हम में को लगता ना यह कंपनी बहुत बढ़िया काम कर रही है कंपनी का नाम होता है गुड़विल होती है तो अपने आप उसकी सेल्स होती है और अपने आप रॉफिट हो जाता है तो इस ब्रॉडर ऑब्जेक्टिव जिसको हम वेल्थ मैक्जमाइजेशन का ऑब्जेक्टिव कहते हैं या मॉडर्न फर्म्स कह लीजिए आजकल वेल्थ मैक्जमाइजेशन के ऑब्जेक्टिव के लिए काम करती हैं अब एक फ़नांचियल मैनेजमेंट मेजर तीन फंक्शन पहला वो ये decide करता है कि मेरे को अगर जो मैं पैसा लेके आ रही हूँ, जो financing decision के अंदर आता है, तो ये पैसा मैं कहां से लेकर किया हूँ, यानि पहले तो हम ये determine करते हैं कि यार capitalization कितना है, मालो मैंने का 50 लाग का funds मुझे चाहिए, दूसरा मुद्धा हसेगा कि ये funds मेरे क चाहिए किस चीज के लिए शॉर्ट टर्म में चाहिए लॉन टर्म में चाहिए मिडल टर्म में चाहिए मेरे को हाई रिस्क वाला फेन चाहिए या मेरे को ऐसा चाहिए कि हां बस मैंने किसी को शेयर दिए उसने मुझे पैसा दे दिया मुझे वापस करने की टेंशन नहीं है यह सारी चीजें होती है जो हम डिटरमाइन करते हैं कि यार मेरे को फैनेंस चाहिए कहां से यानि सोर्ट्स ऑफ एंड मेरे को क्या होना चाहिए यह डिटरमाइन कर लिया अच्छा सोर्ट्स ऑफ फैनेंस जब हम कि उस सोर्ट की कॉस्ट कितनी आ रही है कॉस्ट ऑफ कैपिटल भी कोई फॉर्म पागल तो है नहीं कि हाइयर कॉस्ट के ऊपर पर जो है कैपिटल लेकर कि आ जाएगी क्योंकि वर्णा तो उसका रेट ऑफ रिटर्न नहीं निकल कि आएगा उसके उसको पैसा देना भी तो यह ना किसी को इंट्रेस्ट देना है डिविडेंट देना है उस सिचुएशन में सेगी न हम लोग कॉस्ट कैपिटल की बात करते हैं कि यार कॉस्ट एक पर्टिकलर सोर्च की कितनी निकल कि आ रही है ओवर ऑल कॉस्ट मेरे उस 50 लाख की कितनी निकल करके आ रही है तो हम cost of capital का determination करते हैं cost of capital का determination जब हम करते हैं तो हम यहीं पे capital structure की बात करते हैं कि किस source से कितना पैसा लेके आना है कि इस 50 लाख में से कितना हिस्सा मैं dividend मैं debenture से लाओ कितना हिस्सा equity से लाओ कितना हिस्सा preference से लाओ इसको जब हम बात करते हैं इसको कहते हैं हम capital structure determine करने की कोशिश करना यह एक firm के या एक manager के financing decision का हिस्सा होते हैं अब पैसा आ गया यानि this was all about the procurement of the funds अच्छा मेरे पास सोचो पैसा आ गया now what to do अब मैं क्या करूँगी इस पैसे का कहीं न कहीं निवेश करूँगी investment करूँगी यानि कहीं इस पैसे को लगाऊंगी तो पैसा जब हम लगाते हैं तो वहाँ पे दो options हैं मेरे पास जैसे हम लोग real life में भी करते हैं न long term investments fixed assets ले लिया कोई property या ऐसा कुछ खरीद लिया कि जिसको हम कहते हैं हमारे कैपिटल बजटिंग के डिसीजिंग होना और दूसरा हम जो डेट टूटे ऑब्जेक्टिव यानि उस वरी जो डेट टूटे एक्टिविटीज के लिए पैसा रखते हैं कि आज दूध लेना है साबून लेना है चाय पत्ती लेनी उसके लिए हम पैसा रखते हैं तो दिजार दिन वर्किंग कैपिटल के लिए जो हम अपना पैसा रख रहे हैं अब पैसा आ लिया प्रोक्यूर कर लिया पैसे का एप्लीकेशन कर लिया अब मैंने जितना जो प्रमाया अब यह डिटर्माइन करना है कि जो पैसा ले करके आई हूँ ना इस पैसे में से जो मैंने earning किया earning per share जो तना मैंने किया इसमें से कितना हिसा dividend के तौर पे देना है कितना हिसा अपने पास मुझे retain करके रखना है कई बार ऐसा होता है कि हम पूरा सोचते हैं कि आर पे कर देते हैं कई बार होते हैं हम सोचते हैं प कितना dividend देंगे, वो हम बात करते हैं dividend decisions के अंदर, तो मोटे-मोटे इतने तीन decisions होते हैं, जो एक financial manager लेने की कोशिश करता है, एक-एक करके इन decisions से अपना discussion हम start करेंगे, सबसे पहले financing, यानि procurement of funds की बात करें, पहला chapter cost of capital, cost of capital का मतलब हो गया, कि जब भी भी हम, जब मैं हूँ, मेरे पास मैं 10,000 रुपए हैं, तो अगर मैंने ये 10,000 रुपए company A में रखे, तो मैंने कहीं न कहीं company B, company C, company D में पैसा invest करनी की जो opportunity है उसको foregone कर दी, तो अब मैं ये चाहूंगी कि company A मुझे बदले में कुछ returns दे, तो company A की point of view से वो क्या हो गया, वो हो गई उनकी cost कि अगर मैंने उनको ये 10,000 रुपए दिये और वो बदले में मुझे 10% का इंट्रेस्ट मान लो दे रही है तो इस कंपनी के पॉइंट ऑफ यू से यह 10% जो है वह इनकी कॉस्ट निकल करके आने वाली है अब अगर हम कॉस्ट ऑफ कैपिटल की बात करें तो जब भी हम अलग-अलग सोर्सेस से पैसा लेकर आते हैं डिबेंचर कि कमिशन के चार्जेस देने पड़ रहे हैं प्रिंटिंग के कोई चार्जेस देने पड़ रहे हैं प्रॉस्पेक्ट इशू कर रहे हैं उसके कोई चार्जेस आ रहे हैं अंडर आइटिंग का कोई कमिशन आ रहा है तो यह सब मेरी इस बल्लप सोर्स के कॉस्ट तो बढ़ाएगा मालो 50 लाख रुपए मुझे लाने के लिए अगर 10 लाख का एक्सपेंडिचर हो गया तो मेरे लिए 10 जहां पर भी investment करूँगी इस 50 लाग का, I'll want मैं at least 10 लाग से ज़ादा earn करूँ, because this is now the hurdle for me, कि यार इससे कम earn किया, तो मैंने तो loss earn किया, 10 लाग तो cost ही लग गए, अगर 10 लाग से कम का profit कमा रही हूँ, यानि कि मैं loss earn कर रही हूँ, so cost of capital को हड़र rail कहते हैं, कॉस्ट आफ कैपिटल को हम कट ऑफ रेट कहते हैं, अब मैं उसी प्रोजेक्ट में पैसा लगाओंगी, जो मुझे 10% से जादा का रेट आफ रिटर्न देगा, क्योंकि 10% तो ये shareholder ले जाएगा मेरे से, या ये debenture holder ले जाएगा मेरे से, तो कॉस्ट आफ कैपिटल मेरे लि जो required है कि हम persuade कर सकें उस investor को, lure कर सकें उस investor की भाई आप मेरी security में पैसा लगा दो, मैं आपको 10% का interest दूँगी या मैं आपको 12% का interest दूँगी, so this 10% और this 12% company के point of view से is the cost of capital, जब भी हम cost of capital की बात करते हैं, तो पहली जो हम cost निकालते हैं, वो निकालते है cost of debt, debt यानि debentures की cost कोट टॉप डेट जो है यानि जो हमारा इंट्रेस्ट निकल करके आता है कुछ नहीं करना है इसके लिए हम लोग इंट्रेस्ट होल डिवाइडेड वाइड मालों 10% का इंट्रेस्ट एक कंपनी कमा रही है वह डिवाइडेड वाइड जितना है नेट प्रोसीज आया है हमारे पास में यानि 10 50 लाख रुपए के डिवेंचर इशू किए थे 10 लाख के खर्चे हो गए और 40 मुझे बदले में मिले तो यहां पर मैं 40 लाख रुपए लिखूंगी मल्टिप्लाइड बाय 100 करेंगे यह हमारे लिए cost of debt जो है वो निकल करके आ जाती है other name तनू आ जाएगा हमारे लिए cut off rate या hurdle rate दोनों नामों से जानते हैं इसको हम एक आ जाती है हमारे पास में cost of preference, preference की cost यानि जब हम कहते हैं हम लोग shares issue करते हैं, preference shares कौन से shares होते हैं, एक ऐसे shares जिनको एक preferred dividend मिल रहा है, एक fixed rate of dividend मिल रहा है, और जब हम repayment की बात करते हैं, liquidation के time पे तब भी इनको पहले पैसा देते हैं, और इन shares को हम maximum 20 वर्षों के लिए issue equity shareholders कोई होते है equity shareholders ऐसे shareholders जिनको हम कहते हैं कि यार ये तो हमारे owners of the company है अब owner है तो चाहे dividend दो चाहे dividend ना दो यानि यहाँ पे एक fixed rate of dividend नहीं होता है कभी देते हैं कभी नहीं देते हैं जादा profit कमा लिया जादा dividend दे दिया नहीं कमाया तो हो सकता है नहीं दिया dividend हमने इनको आप आपको रिडीम नहीं करना होता यानि इक्विटी शेयर होल्डर्स को पैसा तब मिलेगा वापसी अपने शेयर्स का जब कंपनी वाइंड अब होगी और वाइंड अब के दौरान में अगर कंपनी के पास पैसा हुआ तब इनको मिलेगा अगर नहीं हुआ तो इनको बोलते इक्विटी शेयर होल्डर्स ऑफ दी कंपनी तो बुजे डिविडेंट डिसीजन वाला चैप्टर वह मीनी के नेक्स्ट आ जाते हैं, हमारे पास में cost आती है, retained earning की cost, ये तीनों जो cost हैं, इनको हम कहते हैं, these are the explicit cost, explicit cost का मतलब हो गया, एक ऐसी cost जो मैं out of the pocket pay कर रही हूँ, बहुत सारे बच्चे confused रहते हैं, कि equity shareholders की जो cost है, वो implicit होती है, जबकि ये गलत है, equity shareholders explicit cost है, भले ही आप fix नहीं देते हैं इनको, लेकिन जब भी देते हैं, तब तो out of pocket दे रहे हैं ना, मैंने मालो आज नहीं दिया, लेकिन कल जब भी दूँगी, तो दूँगी तो अपनी pocket से ना, मेरी pocket से कुछ तो जा रहा है, तो जब भी मेरी pocket से कुछ cost जा रही है, पैसा जा रहा है मेरी pocket से, then that is the explicit cost of capital हमारा, implicit cost of capital का मतलब हो गया, जब actual मेरे पास से कुछ जा नहीं रहा है, फिर भी मुझे लग रहा है मेरे ऊपर burden आ रहा है कि यार ये cost है इसको हम implicit cost कहते हैं retained earning क्या हुई equity shareholders की earning का वो हिस्सा यानि मेरी earning पर share का वो हिस्सा जो मैंने अपने पास retain कर दिया dividend के तौर पे उसको नहीं दिया तो इसको क्या कहते है इसको कहते है हमारी retained earning आप वो बिचारा जो shareholder है उसने आपसे उमीदे लगा ली होंगी कि यार बई कंपनी ने पैसा रोका है कल को कंपनी बढ़ाकर देगी देनी रही है कल को बढ़ाकर देगी हम यहीं सोचते हैं तो आप कंपनी के ऊपर तो बड़न हो गया ना यार आज अगर दस रुपया रोका इसका तो कल दस नहीं देना पड़ेगा तो बढ़ाकर देना पड़ेगा तो कंपनी के लिए कॉस्ट आ रही है उसके दिमाग में कि यार कल को बढ़ाकर देना पड़ेगा सुधिस दिन इंप्लिसिट कॉस्ट जो एक्चुल मेरी पॉकेट से जानी नहीं है बट स्टिल में को लग रहा है जो हमारे लिए इंप्लेसिट कॉस्ट ऑफ कैपिटल रहती है पढ़ लेते हैं कि करके हम लोग सो कॉस्ट ऑफ डेट की अगर हम बात करें तो कॉस्ट ऑफ डेट बॉर्रोइंग सेव्स दी टैक्सेस क्योंकि जब भी हम कॉस्ट ऑफ डेट यानि डिबेंचर्स को पे करते हैं अपना operating का profit कहते हैं, यानि अपने operations का profit कहते हैं, यानि हमने day to day जो activity करी, उससे जो होने वाला मेरा profit है, उसको हम operating profit या EBIT के नाम से कहते हैं, earning before interest and tax, इसमें से हम minus करते हैं interest को, interest यानि जो diventure holders को हम देते हैं, interest, यह minus करने के बाद में आता है EBT, यानि earning before taxes आती है, तो इसको minus फिर हम यहां से taxes को deduct करते हैं इसलिए हम कहते हैं कि जब हम debentures issue करते हैं तो यहां पे cost saving हो रही है क्योंकि जब हमने interest pay किया उस time पे taxes नहीं लगे वहाँ पे so this is one of the reasons कि हम कहते हैं कि debentures जो है वो एक cheaper source of finance है क्योंकि यहां पे cost saving हमारे लिए हो रही होती है so this is the formula आपके लिए उसको calculate करने का cost of preference क्या हो गया cost of preference here is capital is that part of cost of capital in which we calculate the amount which is payable to preference shareholders in the form of dividend with fixed rate. कि डिबेंचर्स को और प्रिफरेंस को हम लोग एक तरीके से ट्रीट करते हैं क्योंकि यहां पर फिक्स डी पेमेंट हो रहा है बस वहां पर इंटरेस्ट का पेमेंट हो रहा होता है यहां पर डिविडेंट का पेमेंट हो रहा होता है बस इतना सा डिफरेंट है रेस्ट एवरीथिंग रिमेइंग दी सेम वहां पर बस कॉस्ट सेविंग्स हो रही होती है और यहां पर रेगिलरली रिपीटिंग दिसेंग थिंग कॉस्ट ऑफ इक्विटी के अगर हम बात करें तो तो cost of equity क्या हो गया? cost of equity also known as cost of common stock is the minimum rate of return जो एक company at least generate करें अच्छा देखो company equity shareholders को fixed नहीं pay करती but still इतना pay करने की कोशिश करती है क्योंकि उसकी market price गिर जाएगी वरना shares की कोई company नहीं चाहती कि उसकी market price गिर जाए क्योंकि wealth maximization के objective के लिए काम कर रहे हैं तो cost of equity में हम ये निकालते हैं कि आखिर कितनी मुझे cost कम से कम pay करना है, कितना dividend मुझे कम से कम pay करना है, कि आखिर मेरी company की जो market price है, shares की, वो अगर बढ़ नहीं रही हो, तो वो गिर भी नहीं रही हो, वो at least stable जो है, वो यहाँ पे रह रही हो, so it is alternatively referred to as the required rate of return, next आएंगे, देखो cost of retained earning, में डिफाइंड एविडियो पॉजिनिटी कॉस्ट इन टर्म्स ऑफ डिविडेंट फॉर गॉन ऑफ द इक्विटी शेयर होल्डर्स क्योंकि हमने किया चुके हमने क्या किया अगर हमने क्या किया हमने यहां पर उस उनको एडिविडेंट को रोक लिया तो अभी उनको यह होगा ना कि कल को कुछ बढ़ाकर कंपनी देने वाली है तो कर्स्ट अब दिए रिटेड एर्निंग इज दी सीम एज फुली सब्सक्राइब इश्यू आफ एडिशनल शेयर्स विच मेजर विकॉस्ट आफ एक्विटी अग्जापिटल यहां पर हम लोग क्या करते हैं हम लोग यह देखते हैं कि कंपनी है अगर उसने मेरा दस रुपया रखा तो अट लीस्ट व कल को में को कितना वापस करने वाली है कि शेयर होल्डर की मार्केट प्राइस व टेबल रहे सारी चीज इस एक्जैक्टल नोट आज दिखाओ टाइप रिटेड अर्नी अब आ जाते हैं हम कैपिटल स्ट्रक्चर के ऊपर हम लोग मतलब कितनी cost आ रही है हर एक source की हमारे लिए, इसके बाद में हम सोचते हैं कि कितना, किस particular source से पैसा लेके आना है, यानि capital structure is the mix of forms and capitalization, कि 50 लाख रुपे मेरा capitalization है, तो इसमें इसे 15 लाख मैं shares से लेके आई हूँ, preferred shares से, 15 लाख मैं equity shares से लेके आई हूँ, 20 लाख मैं debenture से लेके आई हूँ, तो इस जो mix है ना ही हमारे capital का, कि कितना कहां से मैं ले करके आ रही हूं सिर्फ इस नून आईटी कैपिटल स्ट्रक्चर हमारे फर्म का स्टेट एक्सप्लेंस हाउ मच अमाउंड वी शूट रेस्ट फ्रॉम इच सोर्स अच्छा कितना किस सोर्स से पैसा लेकर रहे हैं पर माइन करते हैं क्योंकि हम चाहते हैं ना ऑप्टिमम पॉइंट मेंटेन करना ऑप्टिमम पॉइंट क्या हो गया मेरे पास में cost of capital जहां पे minimum आ रही हो value of the firm maximum जा रही हो that is the optimum point मेरी capital structure का कौन सा होता है मेरा optimum point capital structure का capital structure का optimum point cost minimum सबसे और value सबसे maximum ये maintain करने की कोशिश करते हैं हम वो debt equity का mix जब हम लाने की कोशिश करते हैं ये कितना पैसा कहां से लेके आ रहे हैं so आ प अप्टिमम कैपिटल स्ट्रक्चर इस जहां पर वैल्यू ऑफ दी फर्म मैक्सिमम हो और कॉस्ट ऑफ दी फर्म या कॉस्ट ऑफ दी कैपिटल जो है वह मेरे मारे में मिनिमम हो रहा हूं अच्छा एक कंपनी जहां से भी जिस भी सोर्स से कितना भी पैसा लेकर आ रही है वो स रिस्क को हम avoid या minimize करने की कोशिश करेंगे, possible use करेंगे leverage का, leverage means debt का इस्तेमाल करने की हम कोशिश करते हैं, capacity अब मेरे firm की कितनी है पैसे को लेकी आने की, मैं उधार तो लेकर की आ जाओं, बहुत सारा, मेरे पास capacity होने चाहिए न, उस पैसे को वापस पे करने की, तो ये सारी कि अगला देखो यहां पर हमारे पास में देखो दो थ्यूरीज आती है दो शुक्रों फ्रॉट्स के लोग कुछ ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि आपके सोर्च से कितना पैसा लेकर आते हैं जिसको हम अपना कैपिटल स्ट्रक्चर को क्या कहते हैं वह लेकर कैपिटल स्ट्रक्चर वैल्यू ऑफ दिफर्म को एफेक्ट करता है वैल्यू ऑफ दी फर्म को एफेक्ट करता है इन थ्यूरीज को जो थ्यूरीज यह कहती है कि कैपिटल स्ट्रक्चर वैल्यू ऑफ दी फर्म को एफेक्ट करता है इन थ्यूरीज को हम कहते हैं दिए रेलेवेंट थ्यूरीज कौन सी थ्यूरी दिए रेलेवेंट थ्यूरी और क्योंकि ये कहती है capital structure is irrelevant to determine the value of the firm एक एक करके theories को देख लेते हैं हम लोग सबसे पहली theory है net income approach की theory net income approach की theory क्या कह रही है David Duran ने theory दी बोल रहे है कि value of the firm increase करेगी जैसे जैसे cost of capital decrease करता है क्या कह रहे है कि देखो debt being a cheaper source of finance तो debt को जैसे जैसे अपने capital structure में शामिल करोगे, increase करोगे, तो बोल रहे है, overall जो cost है आपकी, वो नीचे आने लग जाएगी, definitely, क्योंकि debt is a cheaper source of finance, इसको बढ़ाएंगे, तो overall cost decline होगी, जैसे ही cost कम होगी, वैसे ही value of the firm increase करेगी, कौन सी theory, theory, net income approach की theory, क्या कहती है, कोई taxes exist नहीं करते, cost of debt is cheaper than cost of equity, debt को जैसे जैसे हम use करेंगे, उससे हमारे equity shareholder का risk perception change नहीं होता है, ठीक है, net income approach, a relevant theory, cost of debt, cheaper source of finance, जैसे इस capital structure में शामल करेंगे, overall cost of capital decline करेगा, और value of the firm increase करेगी, NOI given by David Duran, नेक्स्ट थिओरी पे आ जाते है, which is net operating income, इसकी just opposite थिओरी है, यहाँ पे इन्होंने कहा कि भाई देखो ऐसा नहीं होता है, जैसे ही debt being a cheaper source of finance, it's absolutely fine, debt is a cheaper source of finance, but यह वाली थिओरी कहते है कि भाई देखो, जैसे ही debt को हम capital structure में शामिल कहते है, तो equity shareholders का risk perception increase हो जाता है, वो कहते debt को तो आप अगर interest pay कर दोगे तो equity shareholders के लिए जो profit availability है वो कम होने लग जाएगी zero हो सकती है तो हो सकता है कि अगर मैंने debt को शामिल किया equity shareholders का risk perception बढ़ रहा है वो जादा demand कर रहा है तो बोल रहे है आप जितना debt से बचाने की कोशिश करोगे equity shareholders उतना extra charge मांगने लग जाएगे आप से तो आपका overall जो cost of capital है that remains constant क्या बोल रहे हैं ओवर ऑल कॉस्ट ऑफ कैपिटल रिमेइन्स कॉन्स्टेंट यह कीवर्ड जितने मैं बता रही हूं इन कीवर्ड को याद रखिएगा इन कीवर्ड से क्वेश्चन आते हैं एग्जामिनेशन के अंदर जो कैसे तो ओवर ऑल कॉस्ट ऑफ कैपिटल रिमेइन्स कॉन्स्टें� नेट ऑपरेटिंग इनकम अपरोच अगेन ये वाली थिवरी भी डेविड दुरान में भी थी सो अंडर इस अपरोच चेंजिस और वोकिंग कैपिटल डस नॉट एफेक्ट दी वैल्यू अवधी फर्म बिकॉज ओवराल कॉस्ट अफ कैपिटल रिमेइन्स कॉन्स्टेंट इर्रेस्पेक्टिव अवधी मेथोड आफ फाइनांसिंग तो वे रिजन नो रिलेशन्शिप दिस एन इर्लेवेंट मॉडल वे रिजन नो रिलेशन्शिप बिट्ट्वीन कैपिटल स्ट्रक्चर आएंड वैल्यू अवधी फर्म एक ओवराल कैपिटल स्ट्रक्चर अ और value of the firm में कोई लिना देना कोई relationship नहीं है। ठीक है। दो theories देखी एकदम extreme opposite एक दूसरे से। थर्ड theory है हमारे पास में which is the traditional approach. Traditional approach एक ऐसी theory है जो जिस theory ने optimum capital structure की बात करी। Ezra Solomon के दौरा ये theory दी गई। इन्होंने कहा कि आट देखो equity shareholder जैसा पागल नहीं होते। या आपने एक ऐसा debt increase के और एकदम से equity shareholders का risk perception increase हो गया, definitely इन्होंने क्या का, इन्होंने curve दिया, इस तरीके से एक saucer shape का curve दिया, इन्होंने का, जैसे जैसे आप debt को अपने capital structure में शामिल करोगे, so this is the overall cost of capital का curve, तो आपका overall cost of capital decline होगा, क्या होगा, decline होगा, point तक, इस point के beyond जब आप debt को शामिल करोगे तो equity shareholders का risk perception increase होगा और इसके बाद देखो overall cost of capital increase हो रहा है, reality में यही होता है एक time तक debt शामिल करोगे ऐसा तो है नहीं कि day 1 से equity shareholders हमारे लिए risk perception increase कर देंगे थोड़े टाइम तो शांत रहता है ना तो बोल रहे जब तक डेट शामिल कर रहे हो एक particular time तक equity shareholders demand नहीं कर रहे हैं एक्स्ट्रा overall cost of capital नीचे आ रहे हैं इसके बियोड ऊपर जाएगा जिस इज आप पॉइंट ऑफ ऑप्टिमम कॉस्ट ऑफ कैपिटल यह यह कैपिटल स्ट्रक्चर मेंटेन करोगे तो ऑफ कॉस्ट कम है इसके बियोड डेविएट करोगे ओरल कॉस्ट देखो आपकी इंक्रीज हो रही है ऑप्टिमम कैपिटल स्ट्रक्चर थिवरी कहलो इंटरमीडियेट अपरोच कहलो ट्रेडिशनल अपरोच कहलो यह वाली अपरोच है ध्यान रखेगा एग्जामिनेशन में शब्द आये ऑप्टिमम कैपिटल स्ट्रक्चर किसने दिया था तो इस वो दिए ट्रेडिशनल अ� चौती थिवरी आ रही है हमारे पास में मोदी ग्लानी आन मिलर अपरोच इन्होंने कुछ नया नहीं दिया इन्होंने अपनी वो एनो आई और एन आई वाली जो थिवरी थी उसको फॉलो करने की कोशिश किया इन्होंने अपनी थिवरी को अगेंड दो भागों में दिया था हमारे पास में अगर debt को increase करोगे तो equity shareholders का risk perception बढ़ेगा, overall cost of capital constant है, कोई लिना दिना नहीं है, capital structure में और overall cost of capital के अंदर, इन्होंने बोला कि आपका जो value of the firm है, वो हमारे investment decision से dependent अमेन करता है, आप एक particular firm की अगर आप बात करो, तो बोल रहे हैं, वो firm में किस project में कहां कितना प प्रेपोजिशन पर डिपेंड कर रही है आपके कैपिटल स्ट्रक्चर पर डिपेंड नहीं कर रही है आप जहां पैसा लगाते हैं उसका उससे कोई लिना देना नहीं है कि वो पैसा आप कहां से ले करके आ रहे हो जिसने कहा MM ने अपने पहले अप्रोच में कहा या अपनी फिर इन्होंने इन सोके जागे 1952 में इनका second hypothesis आया या second approach आई second approach में इन्होंने जब taxes को include किया इन्होंने का नहीं भाई या taxes को include कलिया ना debt is a cheaper source of finance अब ये यहाँ पे आ करके वापसे NI को support करने लग गए जो relevant वाली approach थी कि हाँ बई debt is a cheaper source of finance debt को शामिन करेंगे overall cost नीचे आएगा value of the firm उपर जाएगे किसने कहा MM ने टैक्सिस को इंक्लूड किया से कुछ इस प्रकार से इनका था अब अगर MM अपरोच का क्वेश्चन एग्जामिनेशन में आता है और आपसे बोल नहीं रहा कि यार जो है कौन से अपरोच के बारे में पूछ रहा है प्रेपोजिशन बन पूछ रहा है या टू पूछ रहा है तो original हम लोग preposition 1 को मानते हुए answer करते हैं examination के अनुवर्थ next आएंगे हम लोग अब पैसा ले करके तो आ गए अब क्या करना है finance ले करके आ गए financing decision हो गया मेरा तो financing decision के बाद में अब इस पैसे को क्या करना है मेरे को कहीं ना कहीं invest करना है investment करना है तो जब भी भी हंजी absolutely that's assumptions important है तो हमारे पास में अगर हम देखें तो जब हम investments की बात करते हैं तो हम दो प्रकार की चीजों की बात करते हैं investment के अंदर एक हो जाता है हमारे लिए जब हम long term investments की बात करते हैं यानि हम capital budgeting decisions की बात करते हैं और दूसरा जब हम short term investments की बात करते हैं यानि day to day operations के लिए जब हम पैस लंबे समय में कहीं पर निवेश करते हैं, कोई बिल्डिंग खरीद रही है, कोई लान्ड खरीद रही है, कोई मशीनरी खरीद रही है, तो इस एक बहुत बहुत बहुत करने वाले है यानि जो investment करने वाले है वो मेरे लिए significant है भी नहीं है भी मैं कभी भी ऐसे जगह पर investment नहीं करना चाहूंगे ना जिससे मुझे बदले में पैसा ना है returns ना है बहुत सारी चीजें है क्योंकि उस पर आ रहे हैं कि आर असेट को लेकर आना है आप जो है आप कह सकते हो जो है हम इंवेस्टमेंट करने की कोशिश कर रहे हैं तो यह सारी डिसीजन जो है वह आ जाते हैं कैपिटल डिसीजन करने की कोशिश करते हैं अब लार्ज अमाउंट्स क्योंकि यहां पर हम लोग स्पेंड कर रहे हैं तो दिस डिसीजन आर इर्रेवरसिबल ने लॉन टर्म यूज फंड्स इनवॉल्ड है इसीलिए वाले डिसीजन एक फॉर्म के पॉइंट ऑफ यूज बहुत आप सूचो अगर आपने एक जगे घर गलत खरीद लिया है और लोकालिटी अच्छी नहीं थी है कुछ तो वो आपके उपर एक long term का impact डालने वाले हैं इस विशेष नोन एड कैपिटल बजेटिंग डिसिजिजन आप कैपिटल बजेटिंग डिसिजिजन के देखो हमारे पास में फीचर्स क्या क्या ह�� गए कैपिटल बजेटिंग में एक तो हम यूज इन्वेस्मेंट की बात कर रहे हैं जो कि हमारे को फ्यूचर में बेनिफि� तो आज मेरे लिए ना वह एक करोड़ का प्रोडक्शन दे पाएगी ना मैं उसे करोड़ आज कमा पाऊंगी एक साल के अंदर हो सकता है मैं अगले पांच साल तक उससे एक करोड़ निकाल पाऊं और या उसके बाद जो है पांचवे साल के वर्ष के बाद और ये long investment जो है वो fixed in nature होते हैं तो आपको बहुत सोच समझ के decisions लेने हैं ये जो investments हैं वो business के conditions के उपर आधारित हैं market conditions इसके उपर effect डालते हैं huge funds का involvement हो रहा है irreversible है ऐसा तो है नहीं कि आज एक machine ली खरीदी कल बेच दी पर सो दूसरी खरीद ली these are irreversible in nature तो again हम ये सारे decisions ज तो इन डिसिजिएंस को लेने का जो प्रॉसेस है वह क्या होता है कि सबसे पहले मेरे पास बहुत सारे प्रॉजेक्ट है घर देखने जाओगे अगर तो हो सकता आपने मालू तीन घर देखें एबी सी तीन घर आपने देखें तो यह जो तीन घर आपने देखें हैं तो अभी क्या हो गया प्रॉजेक्ट का इडेंटिफिकेशन एंड जनरेशन यह तीन प्रॉजेक्ट है मेरे देखें तीन घर है जो मैं खरीद सकते हूं अब स्क्रीनिंग करेंगे हमने कहा यह वाला जो है इसका थोड़ा सा झंजट है यहां पर एरिया अच्छा नहीं हमने कहा यहां पर इसका सेशिंग अच्छा नहीं है यह हमने कहते हैं इसका थोड़ा स्क्रीनिंग इवालूवेशन करने की कोशिश करें कि इसका यह नहीं है इसका वह नहीं है स्क्रीनिंग इवालूवेशन करें कि मे project selection की stage, अब select कर लिया, अब हम implementation करेंगे उसका, and then implementation करने के बाद में, हम एक साल के बाद में ऐसे performance का review करते हैं, कि मैंने जो सोचा था, मैंने जो plan बनाया था, और जो actual में चीज़े हो रही है, क्या वो same है, या वो vary कर रही है हमारे लिए, this is the performance review वाला part, अब जबी भी हम capital budgeting decisions क हम कहते हैं कि जो capital budgeting की decisions की technique आती है वो दो भागों में विभाजित है capital budgeting की techniques कौन-कौन से दो भाग हैं कि हम कहते हैं एक तो वो हमारे पास में techniques हैं जो time value of money को इस्तेमाल करती है time value of money का मतलब हो गया जो ये मानती है कि आज के 10,000 दो साल बाद के 10,000 के बराबर नहीं है भाई मह time value of money को consider करने वाली techniques की बात करें तो major जो हमारे पास में techniques आती है which is NPV net profit, net present value PI, profitability index, IRR जो आपकी examination के point of view से majorly पूछ ही जाती है ऐसा नहीं कि techniques सिर्फ इतनी है techniques इसके अलावा भी बहुत सारी है हमारे syllabus के point of view से इतनी techniques हमारे लिए relevant रहें फिर अगर हम ऐसी techniques की बात करें जो time value of money को consider नहीं करती है, यानि does not consider time value of money, यानि ये वाली techniques में हमारे पास में सिर्फ दो techniques आती हैं, एक है हमारे पास में payback period method, और दूसरा आता है हमारे लिए ARR method, accounting rate of return, ARR is the only technique, जो accounting profits के ऊपर calculations करती हैं, बाकि जितनी भी techniques हैं, वो जितना cash flow आ रहा है हमारे पास में business के अंदर, उसके अधार पर decision लेने की कोशिश करती है कि इस project को accept करना है या reject करना है, तो इस चीज़ को ध्यान रखेगा, कि अगर आप से पूछते हैं कि time value of money को कौन सी technique consider नहीं करती है accounting profits के आधार के ऊपर calculation करती है which is ARR, बाकि दोन तीनो techniques, चारो techniques जो हैं, वो cash flow के आधार पे calculations करने की कोशिश करती है. अब अगर हम एक एक करके techniques की बात करें तो payback period sorry present value method का मतलब हो गया एक ऐसी technique जहां पे हम present value निकाल रहे हैं present value मतलब future में जो cash flows आने वाले हैं उनकी आज की value क्या है क्योंकि आज अगर मैं 50 लाक लगा रही हूँ और future में अगले 5 सालों तक मुझे कुछ कुछ cash flows आ रहा है तो पाचो सालों के, पाचो वर्षों के cash flows की, आज की value निकलने की कोशिश करूँगी, और देखूँगी उसको minus करने की, करने के बाद में कि में को आज profit आ रहा ही की नहीं आ रहा है, और उसके आधार पर determine करूँगी, कि यार मेरे को इस project में पैसा लगाना चाहिए, या नहीं ल पहले वर्ष, दूसरे वर्ष, तीसरे वर्ष, चौथे वर्ष, पाँचवे वर्ष, जितना भी पैसा आया, उसकी मैंने present value निकाली, और मेरी present value 45 लाग की आ रही है, और आज इस project में मैंने पैसा लगाया है, वो 40 लाग लगाया है, तो मेरे पास NPV कितनी निकल के आ गई, 5 ल एक्सेप्ट अगर यह जीरो हो जाती मालो 45 ही लगा रहे थे 45 ही निकल के आ रहा था एनपीवी जीरो हो जाती तो हम क्या करते चाहे एक्सेप्ट करते चाहे रिजेक्ट करते क्योंकि ना प्रॉफिट था ना लॉस हो रहा था इस प्रोटिकलर पर अगर इन टीवी जीरो से कम आ गई मेरे लिए मालो 45 लगाए था और 50 मैंने मालो लगाया था अ 45 निकल कर रहा है, NPV 0 से कम आती, जब 0 से कम आईगी NPV, तो हम project को reject करेंगे, इन तीनों चीजों को याद रखेगा, NPV 0 से ज़ादा accept the project, NPV 0 से कम reject the project, NPV 0 के बराबर may accept, may reject the decision, या यही point है, जब हम IRR को refer करते हैं, which is internal rate of return, similar technique है, NPV के जैसे, which is PI, कुछ अलग नहीं है, PI is a technique जो हम ज�� capital rationing की situation होती है, यानि जब एक firm के पास में capital बहुत कम है, और उसके पास में अच्छे-अच्छे projects हैं बहुत सारे, तो profitability technique के आधार पे वो projects को rank करती हैं, और rank 1 से start करते हुए project में investment करना चालू करती है, चलो पहले इसमें करते हैं, फिर तो अगर examination में आता है कि सबसे best technique कौन सी मानी जाती है capital budgeting की तो बोलोगे NPV अगर पूछा जाए capital rationing के situation में best technique कौन सी है तो हम कहेंगे PI which is profitability index हमारे लिए PI के मैं बात करूँ तो PI कुछ नहीं है same है देखो present value future cash flows upon initial investment वहाँ पे क्या कर रहे थे present value future cash inflows माइनस इनिशियल इन्वेस्टमेंट कर रहे थे यहां पर बस उसको हम डिवाइड कर रहा है बाकि एवरीथिंग रिमिंगती सी प्रेजेंट वैल्यू और प्रेजेंट इन फ्लो और प्रेजेंट वैल्यू ऑफ आउट लोगों को माइनस किया तो इन पीवी निकला प्रेजेंट वैल्यू फ्लो और प्रेजेंट वैल्यू ऑफ डिवाइड किया तो पीवी निकल करके आ गया अब सेम डिसिजन है पीवी ग्रेटर देन वन अच्छा जब एंटीवी ग्रेटर देन जीरो आईगी तभी पीवी ग्रेटर देन NPV less than 0, तो PI less than 1 आएगी, reject the project, NPV is equal to 0, तो PI is equal to 1, इस situation में, may accept, या may reject the project, यहां तक कोई दिक्कत, कोई परेशानी किसी को है, तो पूछ लीजे, कोई दिक्कत कोई परेशानी next technique आ रही है हमारे पास में which is IRR internal rate of return अब जब हमारे पास में NPV क्या हुई? 0 हमें पता नहीं चला कि यार इस प्रोजेक्ट को एकसेप्ट करें या इसको रिजेक्ट करें तो हमने कह चलो आप दूसरी टेक्निक के ऊपर चलते हैं उससे आई आई आई वह पॉइंट मेरे इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न का पॉइंट है अब यहां पर हमने कहा कि अब इन पीवी जीरो हो गई आप कैलकुलेट कैसे करना है तो आई आर आर कहता है कि सबसे पहले ये देखो कि ये जो project है इसका rate of return कितना है महने उसके उपर आपने उस project को के उपर जो पैसा लगाया है उस project का अपना return कितना है अगर वो project माल लो 15% का rate दे रहा है rate of return दे रहा है तो हम कहते हैं इसको compare करो किस से cost of capital से compare करो मान लो आप जिस source से ये पैसा लेके आये थे उसकी cost अगर 10% है यानि अगर मैं ऐसे लिखूँ if the cost of capital is less than the rate of return तो हम project को क्या करेंगे बताओ हम project को क्या करेंगे हमने का अगर cost of capital is less than the rate of return कम है अगर तो IRR कहेगा चलो accept कर लो project को चलो क्या कर लो accept कर लो project को और अगर cost of capital ज्यादा आ गया rate of return से तो IRR कहेगा चलो भाई reject करो इस project को clear है अगर कोई एक ऐसा point आ जाता है यानि कोई एक ऐसा project मालो हो जाए जहाँ पे NPV और IRR opposite decisions दे रहो NPV कहे रहा है project accept करो IRR बोल रहा है project reject करो अब क्या करेंगे हमने कहा hey NPV तुम हमारी प्रीवेट टेक्निक हो दिस इस दिन मोस्ट लॉफ्ट टेक्निक तो हम एंटीवी को हमेशा फॉलो करते हैं ठीक है तो जब भी बीच लाशिंग डिसीजन होगा जब भी मुझे ऐसा लगेगा कि आधो टेक्निक अलग-अलग डिसीजन दे रही है तो हम हमेशा इसको चूज करते एंटीवी को चूज करते अलग डिसीजन कब हो सकते हो सकता यार प्रॉजेक्ट का लाइफ अलग अराए अब प्रॉजेक्ट का अलग-अलग लाइफ है तो एंटीवी ने किसी को चूज कर आया रहने किसी को चोज किया हो सकता है कि इरेगुलर कैश फ्लोज थे जिसकी वजह से एन पी वी और आयर अलग अलग डिसीजन दे सकते हैं और हम अमेशा किसके साथ जाएंगे एन पी वी के साथ जाएंगे क्लियों बिकॉर्स दिस इस दिए मोस्ट इंपोर्टेंट टेक्निक और कौन सी सिचुएशन है जहां पर हम पी आई को चूज करते हैं ब नेक्स हम लोग विच इस पॉइंट जहां पर हम कहते हैं पेबैक पीरिड या एरर वाले मैथर जाते हैं यानी जब हम कहते हैं कि हम टाइम वैल्यू ऑफ माइनी को कंसिडर नहीं करते डॉजन ऑट कंसिडर टाइम वैल्यू ऑफ माइनी तो पेबैक पीरिड एक ऐसी टेक्निक है पेबैक मैंने 50 लाख लगा है किसी प्रोजेक्ट में तो वह जितने समय में मुझे पैसा वापस आएगा कि पहले वर्ष मान लो 10 लाख आया दूसरे वर्ष 15 आया तीसरे वर्ष 15 आया चौथे वर्ष 40 साल बल्कि 10 लाख आया टोटल मिला के 50 हो गया तो मेरा पेबैक पीरिड चार सालों का हो गया सिंपल सो पेबैक पीरिड इस दिख टाइम रिक्वाइड वह समय जो मुझे लगेगा उस इनवेस्टमेंट जो मैंने किया उसको कावर अप करने के लिए इसको हम अपना पेबैक पीरिड कहते हैं कि मैंने का 50 लाख लगाएं चार साल में निकल किया रहे हैं तो ये मेरा payback period हो गया अच्छा payback period भी इस्तेमाल करती है company है तो कि देखो जो तोना लंबा payback period है ना उतना जदा risk वर जाता है future किसने देखा future is very risky मुझे नहीं पता कि भाई वो company रुकेगी नहीं रुकेगी वो project रुकेगा नहीं future is very uncertain तो हम prefer ऐसा project करते हैं जो short term में मेरे को पैसा निकाल के दे दे यानि कम समय में मेरे को जितना लंबा है ना मेरा payback period उतना हमारे लिए risky हो जाता है वो वाला project so payback period से हम लोग time जनने की कोशिश करते हैं कि यार ये project से पैसा कितने समय में मुझे निकल करके आ रहा है दूसरी चीज जो payback period वाली technique है इसका drawback ये होता है कि it's quite possible कि एक project आपको 3 साल में पैसा निकाल के दे रहा है दूसरा project आपको 4 साल में पैसा निकाल के दे रहा है payback period किसको choose करेगा इसको इसको पेवेक पीरियट है, इच क्वाइट पॉसिबल कि तीन वर्षों के बाद इसमें कैश फ्लो ही ना आए और इच क्वाइट पॉसिबल यहाँ पे चार वर्षों के बाद में एक्स्ट्रीम कै� पॉसिमल है तो पेबैक पीरिड वह जो पेबैक का टाइम है उसके बाद के कैशलों को कंसिडर नहीं करता तो दूसरे वन ऑफ दिन मेजर ड्रॉबैक्स जो यह वाली टेक्निक फॉर फेस करती है और साथ ही साथ यह टाइम वैल्यू ऑफ मनी तो accounting rate of return which is also known as the average rate of return यानि ये ऐसी technique है जहां पे हम लोग return निकालने की कोशिश करते हैं on the basis of accounting profit तो accounting rate of return is the average net profit जो मेरे पास में आया है यानि यहाँ पे हम accounting profit या net profit का इस्तेमाल कर रहे हैं अपन हमने कितना average investments हो है वो किया है इसके अधार पे जो calculation हो रहा है this is the ARR टेक्निक जो सबसे कम इस्तेमाल होती है यानि यह वाली टेक्निक को हम बिल्कुल ही इस्तेमाल नहीं करते हैं फर्म्स के अंतरगत क्योंकि एक तो यारी अकाउंटिंग प्रॉफिट को यूज कर रही है तो मैंने कितना डेप्रेसिएशन करें विचार इरेलेमेंट प्रॉजेक्ट के पॉइंट ऑफ यू से तो हम कह रहे हैं कि जब भी हम एयर को यूज करते हैं कम थोड़ा सा प्रेफर करते हैं और साथ ही साथ या टाइम वेलियो फ्रॉम नहीं को भी कंसिडर नहीं कर रहा है तो दो ड्रॉबैक्स यहां पर हमारे लिए आ जाते हैं क्लियर है कि नेक्स्ट आएंगे अब लॉन टर्म डिसीजन हो गया फिक्स कापिटल वाले अब आते शॉट टर्म वाले डिसीजन के ऊपर विच इस वर्किंग कैपिटल का मैनेजमेंट वर्किंग कैपिटल वर्किंग कैपिटल मीच देटोडे अक्टिविटीज हमारी उसके लिए जो हम पैसा रखते हैं विच इस वर्किंग कैपिटल तो वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट रेफर्स टू दी मैनेजरियल अकाउंटिंग स्ट्राटेजी जो हम डिटरमाइन कर रहे हैं ताकि हम दो चीजों को कॉमपनेंट जो वर्किंग कैपिटल है उनको यूटलाइज कर सके एक है करंट असेट दूसरा करंट लायबलिटी करंट असेट का मतलब वो सारे असेट जो मुझे अगले एक साल के अंदर अंदर पैसा देंगे जैसे बिल्स रेसीवेबल मेरा स्टॉक मेरे पास में कैश प� करेंट लायबिलिटी मतलब मेरी वो देनदारी जो मुझे अगले एक साल में पेमेंट करनी है, जैसे मेरा कोई short term का loan है, मेरा कोई bills payable है, मेरा कोई creditor है, ये सब मेरे current liabilities के अंतरगत include हो जाते हैं, तो working capital का management also is very important companies के point of view से, क्यों important है बई, क्योंकि day to day activities नहीं manage करी, तो machine week कि production की पैसे नहीं है, अगर तो माली नहीं बिकरा, अगर तो वो machinery का कोई फाइदा नहीं है, so working capital is equally important to the capital budgeting decision, अब working capital की अगर हम बात करें, तो हम दो आधार पे, या दो भागों में working capital को determine करते हैं, one is the value based working capital, जहां पे हम gross और net working capital की बात करते हैं, और एक है हमारा time based working capital, जहां पे ह करते हैं अब ग्रॉस वर्किंग कैपिटल की बात करें फॉर वैल्यू बेज वर्किंग कैपिटल में ग्रॉस वर्किंग कैपिटल की बात करें तो ग्रॉस वर्किंग कैपिटल इग्वेल टू टोटल करेंट असेट्स जितना किसी भी कंपनी के पास करेंट असेट्स है देटेज इग्जाइटली वॉट उसका ग्रॉस वर्किंग कैपिटल है कंपनी के एक पास 50 लाख के करेंट असेट्स है तो वह ग्रॉस वर्किंग कैपिटल कंपनी के पास 45 लाख के करेंट असेट्स है तो वह उसका अ ग्रॉस वर्किंग कैपिटल है तो ग्रॉस वर्किंग कैपिटल इज इक्वल टोटल नंबर ऑफ करंट असेट्स जो कंपनी के पास में है नेट वर्किंग कैपिटल को हम कहते हैं कि जितना भी आपके पास में करंट असेट्स है उसमें से लायबिलिटी इस माइनस करो जो नेट बच्चरा है आपके पास में जो नेट वर्किंग कैपिटल की बात करते हैं तो हम नेट वर्किंग कैपिटल की बात कर रहे होते हैं वाले जो हम कहते हैं ना कि what is working capital तो हम कहते हैं working capital is current assets minus current liabilities that is exactly what the net working capital is in general जो working capital है उसको हम कहते हैं the day to day activities जो एक firm की होती है कि वो जो expenditure कर रही है जो वो income derive कर रही है that is exactly what the working capital is जिसमें value based आधार पे जो working capital का determination है उसमें net working capital is current assets minus the current liabilities of the firm आप सिलूट लीजिए वांगी इसको हम कहते हैं आईडीली हमारे पास में टू इस टू वन होना चाहिए यानि करंट असेड आईडीली हमारे पास में डबल होने चाहिए करें लायबिलिटीज के कंपरेशन में ना होगा हम टाइम बेस्ट वर्किंग कि किसी महीने किसी हमारे घर में किसी की शादी है या फेस्टिवल है या हमारे घर में कोई बीमार पड़ गया है तो हमें कुछ एक्स्ट्रा फंड्स की रिक्वारमेंट होती है यह फंड्स मुझे हमेशा नहीं रिक्वायर है ऐसा नहीं है तो इस फंड्स की रिक्वारमेंट होगी तो इस विदेश पॉइंट ऑफ यू से सोचो तो नया प्रॉडक्ट लांच कर रहा है या कोई सीजन उसका आया हुआ है या उसने कोई स्पॉंसर किया है कोई एडवर्टिजमेंट को मतलब जहां पर वह कुछ एक स्पेशल एक्टिविटी कर रहा है जो वह पूरे वर्ष नहीं करता हमेशा नहीं करता और उसके लिए उसको कुछ एक्स्ट्रा फंड्स के रिक्वार्मेंट है इस इस दिन टेंपररी वोर्किंग कैपिटल ऑन दिव दो हैं जब मेरे को जो है ए तीन हजार का तो राशन आएगा ही आएगा मेरे पास में सुवू जो कैपिटल है ना जो मैंको इतना तो मिनिमम चाहिए इससे नीचे तो काम नहीं चलने वाला तो देश देश दी परमिनेंट वर्किंग कैपिटल हमारे लिए अब आ जाते हैं हम आप आप दिविडेंट डिसीजियों से डिविडेंट डिसीजियों से हमारे लिए सबसे पहले क्या किय लेकर क्या है क्या finance cost of capital capital structure उसका investment क्या fixed capital यानि capital budgeting working capital का decision लिया उसके बाद में आप क्या करेंगे अब हम ये decide करेंगे कि यार dividend कितना देना है मेरे को dividend decisions are like a decision कि मेरे को कितना पैसा अपने पास retain करना है मेरे को कितना पैसा अपने पास retain करना है और कितना पैसा मुझे dividend के forms में देना है किसी को मुझे डिविडेंट के फॉर्म में देना है किसी को ठीक है तो देट इज दिविडेंट डिसीजन हमारे लिए डिविडेंट डिसीजन में भी दो प्रकार की थिवरी आती है एक आती है रिलेवेंट थिवरी का मतलब हो गया ऐसी थिवरी तो कहती है कि आप कितना डिविडेंट देते हैं इससे आपके वैल्यू अब फॉर्म के ऊप यहाँ पर जब हम dividend की बात करें तो हम equity shareholders की बात करें क्योंकि preference का तो fixed है already, so कितना dividend देते हैं हम कहते हैं कि यह जो है determine करता है value of the firm या market price of the share पे effect डाल रहा है, so these are the relevant theories, फिर आते है irrelevant models जो यह कहते हैं कि आप dividend दो यह dividend ना दो इससे market price of the shares के उपर कोई effect नहीं पड़ता है, इसको कहते हैं इसको कहते हैं irrelevant decisions हमारे लिए सबसे पहले relevant model देख लेंगे relevant model में दो model है Walter और Gordon का model almost similar दोनों के models है बस formula अलग दिया है दोनों ने बाकी चीजें remains the same according to Walter का model given by James E Walter तो जो model दिया यहां पर देखो क्या है dividends are relevant एंड है विंग ऑन फॉर्म शेयर प्राइसेस यह डिविडेंट कितना दे रहे हो यह कितना नहीं दे रहे हो इसका एफेक्ट शुरू के प्राइसेस के ऊपर पड़ रहा है ऑल्सो दी इंवेस्टमेंट पॉलिसी कैन नॉट बी सेपरेटेड फ्रॉम दी डिविडेंट का कोई लिना-देना नहीं है मार्केट प्राइसेस के ऊपर किसने का वॉल्टर ने बोलने की कोशिश करिए तो वॉल्टर ने रिलेशनशिप को क्लियर किया यहां पर वॉल्टर ने बोला कि अगर अच्छा यह वाली चीज वॉल्टर और गॉर्डन दोनों पर कॉमन है तो क्या कहने है वॉल्टर कि अगर हमारा रेट ऑफ रिटर्न इस ग्रेटर देन दिन कॉस्ट ऑफ कैपिटल मेरा कॉस्ट कम है तो शेयर होल्डर भी खुश रहेगा कि कंपनी एक ऐसी जगह पर पैसा लगा रही है मेरा जहां पर वह ज्यादा रिटर्न कम आ रही है तो शेयर होल्डर को लगेगा ना कि कल को बढ़ाकर पैसा मिलने वाला है तो जब भी आप रिटर्न आपका return ज्यादा आ रहा है, तो मैं ऐसी company में पैसा लगा के संतोष्ट हो जाओंगी, खुश हो जाओंगी, कि यार ये तो company return अच्छा है न कर रही है, तो मेरी market price जो है न, वो increase होगी shares की, तो ये वाली company 100% retention जब करती है, इनको हम growth firm कहते है, ये company जब 100% retention करती है, तो इसकी market price of the share maximum पे होती है, 100% retention का मतलब 0% pay out कर रही है, सारा का सारा पैसा अपने पास retain कर रही है, अब एक company जिसका rate of return कम है कॉल्स्ट ऑफ कैपिटल से कि बिचारी लॉसन कर रही है कॉस्ट 10 परसेंट के अगर पे कर रही है लेकिन खुद कमा रही है आठ परसेंट यह तो यार गड़बड़ सिचुएशन है तो हम कह रहे हैं जब आपके पास है ही नहीं रिटर्न कमाने के ऑप्शन इससे अच्छा यह होगा कि जो कमाया है आठ परसेंट कमाया जो कमाया दे दो एक्विटी शेयर होल्डर अपने वापस कर दो पैसा उनका दे दो उनको क्योंकि आपके पास अगर आप रिटेन करोगे तो कहां पैसा लगाओगा आपके पास तो पॉजिनिटी नहीं है तो इस फर्म जो अपने शेयर होल्डर को 100% पे आउट करेगी तब उसकी मार्केट प्राइस मैक्सिमम पर आएगी क्योंकि अगर वो रिटेन करने लग जाएगी एक्यूटी शेयर होल्डर को लगेगा यार कमा पानी रहें मेरा पैसा और रिटेन कर रहें वो शेयर सेल करने equity shareholder को लगेगा चीक है देना है दे दे रखना है रख ले मतलब indifferent वाली situation है आप 0 से 100% तक में कितना भी pay out करो कितना भी retention करो market price पे कोई खास फर्क नहीं पड़ता market price remains the constant तो market price जो है pay out ratio can vary from 0 to 100 और कोई फर्क नहीं पड़ेगा market price of the shares की उपर कौन सी theory Walter की theory assumptions देखो क्या क्या कह रहे है कि जितनी मी financing हो रही है firms की वह रिटेंड अर्निंग के थ्रू हो रही है, हम कोई भी external financing को इस्तेमाल नहीं कर रहे है, rate of return और जो cost of capital है, वो constant रह रहा है, irrespective of any changes in the working capital, irrespective of any changes in the investment, सारी की सारी earnings या तो distribute हो रही है, या तो हम return कर रहे है, earning per share और dividend per share को constant पाना, और हम मान के चल रहे हैं कि एक form की, परपीचुअल लाइफ है, परपीचुअल लाइफ का मतलब हो गया, लंबे समय तक फर्म चलने वाली है, चेके, मतलब उसका winding up का अभी कोई वो नहीं है मेरे पास में, formula ध्यान रख लेना, इसका question आता है, अगर examination में बहुत easy सा question आता है, formula ध्यान रख लेना, ये वाला क्या है, P is equal to D, which is dividend per share plus, R is rate of return upon K is the cost of capital, earning per share minus dividend per share whole divided by cost of capital, ठीक है, batches में दोनों, management, commerce दोनों के अंदर हमने इन questions को कर भी रखा है, revise कर लिजेगा, एक बारी questions को cost of capital, dividend decisions के questions important रहेंगे, examination के point of view से, next आ जाएंगे, और formula तो बहुत ध्यान से देखके जाना, ठीक है, ऐसा ना हो कि पता चल रहा है, question कर लिया, वहाँ पे जाके formula एक गप हो बोल रहा है कि जो dividend है वो relevant है share price of the firm के लिए dividend capitalization model को हमने इस्तेमाल किया to study the effect of dividend policy on the stock price of the firm similar model है Walter के जैसा बस इन्होंने formula अलग देने की कोशिश करी है बाकी चीजे remains the same Gordon का model assure करता है कि जो investor है वो risk averse है यानि हम आज के profits को prefer करते हैं वन बर्ड इन थे बेटर दें टू बिहाइंड बुशेस तो यहां पर हम बोल रहे हैं कि प्रिफर हम करते हैं को दिया फॉर देख पुट अप प्रीमियम ऑन सर्टेन रिटर्न एंड डिसकाउंट ऑफ दिन अनसर्टेन रिटर्न प्रिफर कर रहे हैं इन्वेस्टमेंट हो सकता है ना कि आज अपने रिटेन कर लिया कल को लॉस हो गया आपका कोई पॉसिबिल से यहां पर आप कह सकते हैं हो गया हमारे लिए चेके तो यहां पर अगर आप देखो तो फॉर्मुला क्या है हमारे लिए फॉर्मुला इस इस इस विच इस दिन पर शुरू ब्रैकेट में वन माइनस बी बी इस दी रिटेंशन रेशियो होल डिवाइडेड बाई के इके क्या है हमारे लिए कैपिटलाइजेशन रेट यानि इक्विटी का कॉस्ट आफ कैपिटल माइनस बी आर बी इस दी रिटेंशन रेशियो आर इस दी रेट ऑफ रिटर्न यानि बी आर इस दिन ग्रोथ रेट जो एक फॉर्म का है तो यहां पर आ रहा है वह वाला अजम्शन से क्या है गॉर्डन वॉडल के देखो अल्मुद सिमिलर अजम्शन है रेट ऑफ रिटर्न कॉस्ट ऑफ कैपिटल कॉंस्टेंट ना लाइफ ऑफ दी फॉर्म इंडेफिनेट कहलो परपेचुअल कहलो रिटेंशन रेशो एक बार डिसाइड कर लिया फिक्स रहने वाला ग्रोथ रेट फिक्स रहेगा कॉस्ट ऑफ कैपिटल ग्रेटर दें दी बी आर विच इस दिग्ग्रोथ रेट हमारे लिए क्लियों सो दिस वॉट दिए अजम्शन वॉड मॉडल स्टेट बाकी सारी चीज दे रिमेंट दी सेम वह रेड ग्रेटर देन के तो रिटेंशन करेंगे आरेज लेस्ट दिन के तो पे आउट कर देंगे बराबर आएगा तो कुछ भी करो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कौन सा मॉडल गॉर्डन का मॉडल दोनों मॉडल रिलेवेंट मॉडल थे तीसरा मॉडल आ रहा है जो इर्रेलेवेंट मॉडल है मोदी यहाँ पे क्या कह रहे हैं यहाँ पे कह रहे हैं कि आप कितना भी dividend के form में दीजिए या ना दीजिए कोई फर्क नहीं पड़ने वाला उससे यह कह रहे हैं कि dividend policy has no effect on the market price of the share and believes that investment policy that decreases increases the firm's share value बोल रहे हैं कि आप एक shareholder को पैसा दो dividend के form में या ना दो उससे फर्क नहीं पड़ता आपकी market price depend करती है कि आपने कितना पैसा invest करके रखा है कहां invest करके रखा है यानि अगर if I am the shareholder तो मेरे को फर्क इस बात से पड़ेगा मेरे को फर्क इस बात से पड़ेगा आप जीतन हो एब्सलूटली जी से भी बोल सकते हैं उसको dividend नहीं दे रही है अगर इसने investment अच्छी जगे पर कर रखा है तो मैं तब भी इसका share hold करूँगी इसके share की market price तब भी increase करेगी इन्होंने कहा कि आपका dividend policy का effect आपके market price के उपर नहीं पड़ता बलकि किसके उपर किसका effect पड़ेगा हमारी market price of the shares के उपर effect पड़ता है हमारे investment decisions का कि आपने कहां पे कितना investment किया है that is what is relevant assumptions again very important perfect capital market है, यानि investors को, investors बहुत rational है, उनको सारा access है information का, कि आपने कहा investments किये हुए हैं, सब कुछ क्या, इनको सारी information available है, कि आपकी कितनी cost है, transaction cost, each and everything इनको पता है आपके बारे में, there are no taxes exist, कोई taxes exist नहीं कर रहे हैं यहाँ पे, फिर it is assumed that a company follows a constant investment policy, यानि जहां पे investment कर रही है, constantly invest कर रही है, और हम मान के चल रहे हैं, future profits company के stable है, कोई uncertainty नहीं है future के profits में, ये किसने कहा, MM approach ने कहने की कोशिश किया, यानि मोदी ग्लानी and मिलन approach ने ये कहा, अभी हमने major chapters, major topics finance के अंदर revise के है, एक बहुत बड़ा chunk है finance के अगर हम बात करें, so try to revise it, इन वेरी जिस्ट मैनर यह जितने नोट है यह आपको गेंद तहां पर मिल जाएंगे मेरे टेलेग्राम के ऊपर मिल जाएंगे यूजीसी नेट बाय बुश्रामाम सर्च कर लेना इसके पहले वाली भी जो क्लासिस थी उनके नोट रिविजियन आपको दे दिये गए थे सेशन अच्छा लग रहा है तो प्लीज सेशन को लाइक कर दो चैनल को सब्सक्राइब कर दो तो आपको नोटिफिकेशन जो है वह इससे रिलेटेड मिल जाए तो सेशन जब end करूँगी तो please comment section में आके एक बार इस review लिख देना, जब मैं session को end करूँगी तो future students के point of view से, and anybody who is preparing for the upcoming, यानि December 2024 के लिए अगर आप prepare कर रहे हैं, तो जो है, आप मेरे courses launch हुचुके हैं, December 2024 वाले, and जो June वाले बच्चे से, उनसे यह request आएगी, कि आप comment section में review दे कैसा पढ़ाया अच्छा बुरा वोड़ेवर यू फील लाइक आप रिव्यू लेकर सकते हैं नीचे कमेंट सेक्शन के अंदर कि हाउ यू फेल्ट तो इस तरीके से ऐसे कोर्सेस अवेलेबल है यू गैस के रिन्डरोल इन दीस कोर्सेस मेगा पैक एंग्लिश मीडियम बुकेट के साथ अवेलेबल है विदाउट बुकेट वाला अवेलेबल है मेगा बैक में पेपर वान पेपर टू दोनों के कोर्सेस सारी चीजें अवेले डिस्काउंट से विल्स यू गैस अगेन इन नेक्स सेशन कल हम लोग स्टाटिस्टिक्स को रिवाइस करने की कोशिश करेंगे सब्सक्राइब करेंगे स्टाटिस्टिक्स को भी एक जिस मैनेल में रिवाइस कर सकें इसी समय पर विच एड वन पीएम सब्सक्राइब टेक एड एवरीवन पेड में आज क्लास तीन बजे लगाई है इनकम टैक्स की अगर तो पेड क्लासेस में मिलते हैं द अप्लीकेशन के ऊपर पीड इनकम टैक्स की अगर वह बाइट एक एड एवरीवन अ