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बिजनेस इकोनॉमिक्स का महत्व समझें

हर बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन का यह मोटिव होता है कि वह कम से कम रिसोर्सेस में ज्यादा से ज्यादा जो है वह प्रॉफिट अर्न कर सके या फिर जो उनके पास रिसोर्सेस है उसको इफेक्टिवली और एफिशिएंटली जो है उस रिसोर्सेस को यूज कर सकें क्लियर तो इस केस में जो है बहुत सारे ऐसे डिसीजंस होते हैं जो कि बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन को लेने पड़ते हैं बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में जो मैनेजर्स होते हैं उनको जो है डिफरेंट डिसीजंस जो है वो लेने पड़ते हैं लाइक हाउ टू एलोकेट और यूज रिसोर्सेस जो भी रिसोर्सेस ऑर्गेनाइजेशन के पास है उसको कैसे डिफरेंट एक्टिविटीज मेंलो ट करना है कैसे उसको जो है यूज करना है जिससे कि एफिशिएंटली और इफेक्टिवली जो है रिसोर्सेस यूज यूज़ किया जा सके ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन हो सके रिसोर्सेस का और साथ ही साथ मैक्सिमम जो है वहां पर प्रॉफिट जो है वो जनरेट किया जा सके इसी तरीके से हाउ मच टू प्रोड्यूस कितना प्रोड्यूस करें कभी-कभी ऐसा होता है कि डिमांड मार्केट में कम है आपके प्रोडक्ट की और आपने ज्यादा प्रोडक्शन कर दिया है तो वो वेस्टेज हो जाता है या फिर जो है मनी कहीं ना कहीं जो है वो फस जाता है कि पैसा आपने लगा दिया है पैसा रुका हुआ है क्योंकि डिमांड मार्केट में उतनी थी नहीं आपने उससे ज्यादा प्रोडक्शन कर दिया क् तो कितना प्रोड्यूस करना है व्हाट प्राइस शुड बी चार्ज क्या प्राइस जो है वो फेस किया जाए क्योंकि अगर आपने कम प्राइस चार्ज किया तो वहां पे आपको लॉस हो सकता है ज्यादा प्राइस चार्ज किया तो कस्टमर जो है वो आपके प्रोडक्ट से स्विच कर जाएगा किसी और प्रोडक्ट पे स्विच कर सकता है तो क्या प्राइस चार्ज करना चाहिए ये बहुत सारे ऐसे जो है यहां पर प्रॉब्लम्स होती हैं जो कि बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में मैनेजर फेस करते हैं और मैनेजर को इन प्रॉब्लम को सॉल्व करना होता है तो इसके लिए इकोनॉमिक्स में जो है डिफरेंट थ्योरी हैं कांसेप्ट हैं जिसका यूज करके मैनेजर्स इन टाइप के जो प्रॉब्लम्स होते हैं बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में जो मैनेजर प्रॉब्लम्स होते हैं उनको जो है वो सॉल्व कर सकते हैं टू सॉल्व दिस प्रॉब्लम देयर आर मेनी थ्योरी एंड कांसेप्ट इन इकोनॉमिक्स दैट हेल्प्स द मैनेजर टू मेक ऑप्टिमल डिसीजन जैसे कि लॉ ऑफ डिमांड है इलास्टिसिटी ऑफ डिमांड है लॉ ऑफ प्रोडक्शन मार्केट स्ट्रक्चर डिमांड फोरकास्टिंग ये जो है डिफरेंट कांसेप्ट है डिफरेंट थ्योरी हैं डिफरेंट जो है टूल्स है इकोनॉमिक्स के जिसका यूज करके जो मैनेजर्स होते हैं जो बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन होती हैं वो डिफरेंट बिजनेस के जो प्रॉब्लम्स होते हैं बिजनेस के जो इश्यूज होते हैं उनको जो है वो सॉल्व करती हैं और इसी को हम कहते हैं बिजनेस इकोनॉमिक्स यानी कि जब आप इकोनॉमिक्स का यूज़ करके बिजनेस में डिसीजन मेकिंग करते हैं बिजनेस के जो प्रॉब्लम्स होते हैं उनको सॉल्व करते हैं तो उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं बिजनेस इकोनॉमिक्स इज द इंटीग्रेशन ऑफ इकोनॉमिक थ्योरी विद बिजनेस प्रैक्टिस फॉर द पर्पस ऑफ फैसिलिटेटिंग डिसीजन मेकिंग एंड फॉरवर्ड प्लानिंग बाय मैनेजमेंट तो मैनेजमेंट द्वारा जो है डिसीजन मेकिंग आसानी से किया जा सके जो फॉरवर्ड प्लानिंग है फ्यूचर प्लानिंग है उसको किया जा सके उसके लिए जब आप इकोनॉमिक थ्योरी को जो है बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में यूज़ किया जाता है तो उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं क्लियर सिंपल सा कांसेप्ट है कि इकोनॉमिक्स को जब बिजनेस में यूज़ करते हैं तो इसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं इट इज कंसर्न्ड विद दी एप्लीकेशन ऑफ इकोनॉमिक थ्योरी टू बिजनेस मैनेजमेंट यानी कि यहां पर क्या हो गया कि जो इकोनॉमिक थ्योरी हैं उसका जब आप बिजनेस मैनेजमेंट में यूज़ करते हो एप्लीकेशन करते हो तो उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं तो बिजनेस इकोनॉमिक्स में तो इकोनॉमिक्स क्या है इकोनॉमिक्स में डिफरेंट टूल्स हैं जैसे कि अ डिमांड है सप्लाई कॉस्ट प्राइस कंपटीशन इन सब से रिलेटेड डिफरेंट थ्योरी और कांसेप्ट वहां पर दिए गए हैं और वहीं पर बिजनेस इकोनॉमिक्स में क्या होता है बिजनेस इकोनॉमिक्स अप्लाइज दीज टूल्स इन द प्रोसेस ऑफ बिजनेस डिसीजन मेकिंग यानी कि मैनेजर द्वारा जो डिफरेंट डिसीजन मेकिंग किए जाते हैं बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में उसमें जब इन इन टूल्स का इन थ्योरी का जो है कांसेप्ट का यूज किया जाता है तो उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिस कहते हैं तो इसीलिए यहां पर क्या होता है कि यहां पर जो बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में जो मैनेजर्स होते हैं वो डिसीजन मेकिंग के लिए इकोनॉमिक थ्योरी का कांसेप्ट का यूज करते हैं बिज़नेस ऑर्गेनाइजेशन में तो इसीलिए इसको हम मैनेजर इकोनॉमिक्स भी कहते हैं तो बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स किसी भी नाम से आपको मिल जाए तो समझ जाइएगा कि दोनों एक ही चीज है यानी कि इकोनॉमिक्स का यूज़ करके बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में डिसीजन मेकिंग किया जा रहा है मैनेजर द्वारा तो इसलिए हम इसको बिजनेस इकोनॉमिक्स भी कहते हैं मैनेजर इकोनॉमिक्स में भी कहते हैं तो कुछ यूनिवर्सिटीज में बिजनेस इकोनॉमिक्स के नाम से ये सब्जेक्ट रखा जाता है तो व कहीं पर मैनेजर इकोनॉमिक्स के नाम से इसको जो है रखा जाता है तो यह जो है क्या होता है कि इट इज ऑल अबाउट यूजिंग इकोनॉमिक आइडियाज टू हेल्प बिजनेस मेक स्मार्ट चॉइसेज भाई सबके पास रिसोर्सेस कम है तो स्मार्ट चॉइस कर सके इसके लिए जब आप इकोनॉमिस का यूज करते हैं बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में बिजनेस डिसीजन मेकिंग में तो उसे को हम बिजनेस इकोनॉमिस कहते हैं दिस इंक्लूड फाइंडिंग वेज टू मेक मोर मनी स्पेंड लेस एंड वर्क बेटर यानी कि जो भी रिसोर्सेस है उसका इफेक्टिवली एफिशिएंटली जो है वहां पर इस्तेमाल किया जाए जिससे कि कम खर्चे में ज्यादा से ज्यादा जो है वहां पर पैसा जो है वो रेवेन्यू जनरेट किया जा सके ऑर्गेनाइजेशन द्वारा उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं तो डिफरेंट ऑथर ने जो है बिजनेस इकोनॉमिक्स का डिफरेंट जो है डेफिनेशन दिया है तो आप यहां पर हम कुछ चार-पांच डेफिनेशंस देखेंगे क्योंकि नॉर्मली जो एमसीक्यू एग्जामिनेशन होते हैं वहां पर किसी भी डेफिनेशन को देकर पूछ लिया जाता है कि इस डेफिनेशन को किसने दिया है तो अकॉर्डिंग टू एमके एआर एंड मेरियम इन्होंने क्या कहा कि बिजनेस इकोनॉमिक्स इज द यूज़ ऑफ इकोनॉमिक मॉडल्स ऑफ थॉट टू एनालाइज बिजनेस सिचुएशन तो बिजनेस सिचुएशन को एनालाइज करने के लिए जब हम इकोनॉमिक मॉडल ऑफ थॉट को यूज़ करते हैं इकोनॉमिक थ्योरी कांसेप्ट को यूज़ करते हैं तो उसी को बिज़नेस इकोनॉमिक्स कहते हैं इसी तरीके से अकॉर्डिंग टू प्रोफेसर एवान जे डगलस इन्होंने क्या कहा कि मैनेजर इकोनॉमिक्स इज कंसर्न विद दी एप्लीकेशन ऑफ इकोनॉमिक प्रिंसिपल एंड मेथोडोलोग्य उसी को हम मैनेजर इकोनॉमिक्स कहते हैं या फिर बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं तो बिजनेस इकोनॉमिक्स मैनेजर इकोनॉमिक्स दोनों ही सेम टर्म है तो कहीं भी कोई भी यूज कर सकते हैं तो मेजल इकोनॉमिक्स यानी बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या हो गया कि जब अनसर्टेंटी की कंडीशन में फर्म या फिर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा इकोनॉमिक प्रिंसिपल्स मेथेडोने जल इकोनॉमिक्स या फिर बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं इसी तरीके से स्पेंसर एंड सिगल मैन ने डिफाइन किया क्या कहा कि द इंटीग्रेशन ऑफ इकोनॉमिक थ्योरी विद बिजनेस प्रैक्टिस फॉर द पर्पस ऑफ फैसिलिटी टिंग डिसीजन मेकिंग एंड फॉरवर्ड प्लानिंग बाय मैनेजमेंट तो उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स कहते हैं अकॉर्डिंग टू हेल स्टोस एंड रोथवेल उन्होंने क्या कहा कि मैनेजर इकोनॉमिक्स इज दी एप्लीकेशन ऑफ इकोनॉमिक थ्योरी एंड एनालिसिस टू प्रैक्टिस ऑफ बिजनेस फर्म एंड अदर इंस्टिट्यूशन क्लियर इसी तरीके से जो नेक्स्ट डेफिनेशन दिया था उन्होंने मेंस फील्ड ने दिया था कहा कि मैनेजर इकोनॉमिक्स इज कंसर्न विद द एप्लीकेशन ऑफ इकोनॉमिक कांसेप्ट एंड इकोनॉमिक्स टू द प्रॉब्लम ऑफ फॉर्मुले इि रेशनल डिसीजन मेकिंग यानी कि नेशन में रेशनल डिसीजन मेकिंग किया जा सके इसके लिए जब इकोनॉमिक कांसेप्ट और इकोनॉमिक्स का यूज़ किया जाता है बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन में तो उसी को हम क्या कहते हैं मेजल इकोनॉमिक्स कहते हैं मेजल इकोनॉमिक्स अप्लाइज द प्रिंसिपल्स एंड मेथड ऑफ इकोनॉमिक्स टू एनालाइज प्रॉब्लम फेस्ड बाय द मैनेजमेंट ऑफ अ बिजनेस और अदर टाइप ऑफ ऑर्गेनाइजेशन एंड टू हेल्प फाइंड सॉल्यूशन दैट एडवांस द बेस्ट इंटरेस्ट ऑफ सच ऑर्गेनाइजेशन दिस इज कॉल्ड बिजनेस इकोनॉमिक्स और मेजल इकोनॉमिक्स ये डेविस एंड चैंग ने कहा इन्होंने क्या कहा कि मैनेजर इकोनॉमिक्स क्या होता है मैनेजर इकोनॉमिक्स में या फिर बिज़नेस इकोनॉमिक्स में जो प्रिंसिपल्स और मेथड होते हैं इकोनॉमिक्स का उसका यूज़ करके जो भी मैनेजमेंट के प्रॉब्लम्स होते हैं उसको एनालाइज किया जाता है और बेस्ट सॉल्यूशन जो है वह फाइंड आउट किया जाता है उस बिज़नेस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए तो यही चीज़ बिज़नेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स होता है तो होप आपको क्लियर होगा यह कांसेप्ट क्या है कि बिज़नेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेज इकोनॉमिक्स क्या हो गया कि जो इकोनॉमिक्स के डिफरेंट जो माइक्रो इकोनॉमिक्स और मैक्रो इकोनॉमिक्स के डिफरेंट कांसेप्ट हैं थ्योरी हैं प्रिंसिपल्स हैं जब उसका यूज़ करके बिज़नेस ऑर्गेनाइजेशन में डिसीजन मेकिंग किया जाता है जिससे जिससे कि जो है मैक्सिमम प्रॉफिट जनरेट किया जा सके मैक्सिमम रेवेन्यू जनरेट किया जा सके तो उसी को हम बिजनेस इकोनॉमिक्स सभी मेजल इकोनॉमिक्स कहते हैं जब डिफरेंट इकोनॉमिक कांसेप्ट थ्योरी मेथोडोलोग्य बिनेस इकोनॉमिक्स का कि कैरेक्टरिस्टिक क्या है बिजनेस इकोनॉमिक्स का तो सबसे पहले इंपॉर्टेंट चीज कि ये जो है जो बिजनेस इकोनॉमिक्स है या फिर जो मैनेज इकोनॉमिक्स होता है ये माइक्रो इकोनॉमिक्स होता है माइक्रो इकोनॉमिक्स कहने का मतलब कि जो माइक्रो जो इकोनॉमिक्स है वो दो में डिवाइड है माइक्रो इकोनॉमिक्स और मैक्रो इकोनॉमिक्स मैक्रो इकोनॉमिक्स में जो है जो जो इंटीग्रेटेड जो टर्म्स होते हैं लाइक ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट इंफ्लेशन अनइंप्लॉयमेंट एक्सपोर्ट इंपोर्ट टैक्सेशन पॉलसी जो एग्रीगेट होता है इकोनॉमी का ओवरऑल इकोनॉमी को जो है वहां पर पढ़ा जाता है वहीं पर माइक्रो इकोनॉमिक्स में क्या होता है जो इंडिविजुअल बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन होते हैं फर्म्स होते हैं उनको जो है स्टडी किया जाता है तो यहां पर जो बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर जो मैनेजर इकोनॉमिक्स है यहां पर जो इकोनॉमिक्स कांसेप्ट प्रिंसिपल थ्योरी हैं उसका यूज़ करके इंडिविजुअल बिज़नेस फर्म्स का जो है प्रॉब्लम सॉल्व किया जाता है इसलिए इसको हम माइक्रो इकोनॉमिक्स कहते हैं यह माइक्रोकोम बिकॉज़ इट स्टडीज द प्रॉब्लम ऑफ़ एन इंडिविजुअल बिज़नेस यूनिट इट डज नॉट स्टडी द प्रॉब्लम ऑफ़ द एंटायस इकोनॉमिक्स में मैनेज इकोनॉमिक्स में इंडिविजुअल बिजनेस यूनिट के जो प्रॉब्लम्स होते हैं उनको स्टडी करते हैं ना कि पूरे एनटायर इकोनॉमी की इसलिए माइक्रो इकोनॉमिक्स होता है दूसरा है नॉर्मेटिव साइंस नॉर्मेटिव साइंस और पॉजिटिव साइंस दो टर्म आपने सुना होगा तो नॉर्मेटिव साइंस में क्या होता है पॉजिटिव साइंस में क्या होता है कि क्या हुआ था वहीं पर नॉर्मेटिव साइंस में होता है कि क्या होना चाहिए था क्लियर नॉर्मेटिव साइंस में क्या होता है कि क्या होना चाहिए था तो जो बिजनेस इकोनॉमिक्स है फिर जो मैनेजर इकोनॉमिक्स है वो नॉर्मेटिव साइंस है यानी कि ये ये बताता है कि मैनेजमेंट को क्या करना चाहिए किसी पर्टिकुलर सिचुएशन में क्या हुआ था उससे मतलब नहीं है क्या करना चाहिए था उससे मतलब है क्लियर तो बिज़नेस इकोनॉमिस्ट ये कहता है कि पर्टिकुलर सिचुएशन में क्या मैनेजमेंट को करना चाहिए इट इज कंसर्न विद व्हाट मैनेजमेंट शुड डू अंडर पर्टिकुलर सरकमस्टेंसस इट डिटरमाइंड द गोल ऑफ़ द एंटरप्राइज देन इट डेवलप द वेज टू अचीव दज गोल तो नॉर्मेटिव साइंस है बिज़नेस इकोनॉमिक्स यानी कि यहां पर यह बताया जाता है कि क्या करना चाहिए डिफरेंट सरकमस्टेंसस में डिफरेंट सिचुएशन में ऑर्गेनाइजेशन को अपने प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए नेक्स्ट है प्रगमेटिक प्रगमेटिक यानी कि ये प्रैक्टिकल अप्रोच है इट कंसंट्रेट ऑन मेकिंग इकोनॉमिक थ्योरी मो फ एप्लीकेशन ओरिएंटेड प्रगमेटिक मतलब क्या हो गया व्यवहारिक यथार्थवादी डीलिंग विद प्रॉब्लम इन अ प्रैक्टिकल वे रदर देन बाय फॉलोइंग आइडियाज ऑफ प्रिंसिपल यानी आइडिया प्रिंसिपल को फॉलो करना करके प्रॉब्लम को यहां पर सॉल्व नहीं किया जाता बल्कि उसका प्रैक्टिकल अप्रोच किया जाता है प्रैक्टिकल वे में जो है प्रॉब्लम को सॉल्व किया जाता है बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेज इकोनॉमिक्स में तो इसलिए प्रैगमेट हो गया इट कंसंट्रेट्स ऑन मेकिंग इकोनॉमिक थ्योरी मोर एप्लीकेशन ओरिएंटेड इट ट्राइज टू सॉल्व द मैनेजर प्रॉब्लम इन देयर डे टू डे फंक्शनिंग नेक्स्ट है प्रिस्क्रिप्शन इकोनॉमिक्स है या फिर जो मेनेल इकोनॉमिक्स है ये क्या है प्रिस्क्रिप्शन डिस्क्रिप्टिव इट प्रिसक्राइब्स सॉल्यूशन टू वेरियस बिजनेस प्रॉब्लम यानी कि बिजनेस इकोनॉमिक्स मैनेज इकोनॉमिक्स में जो है जो भी डिफरेंट बिजनेस प्रॉब्लम्स होते हैं उनके लिए सॉल्यूशन यहां पर जो है प्रिसक्राइब किया जाता है तो ये प्रिसक्रिप्टिव होता है वहीं पर है मैनेजमेंट ओरिएंटेड बट ओबवियस सी बात है कि इकोनॉमिक्स का बिजनेस में यूज़ किया जा रहा है इकोनॉमिक्स का मैनेजर द्वारा प्रॉब्लम बिजनेस प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए यूज़ किया जा रहा है तो ये मैनेजमेंट ओरिएंटेड हो गया द मेन एम ऑफ मैनेजर इकोनॉमिक्स और बिजनेस इकोनॉमिक्स इज टू हेल्प दी मैनेजमेंट इन टेकिंग करेक्ट डिसीजन एंड प्रिपेयरिंग प्लान एंड पॉलिसीज फॉर द फ्यूचर तो ये जो बिजनेस इकोनॉमिक्स हो गया फिर जो मैनेज इकोनॉमिक्स हो गया ये क्या है ये मैनेजमेंट ओरिएंटेड है क्लियर मैनेजमेंट प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए ही जो ये स्ट्रीम बनाया गया है ये ब्रांच बनाया गया है मल्टी डिसिप्लिन तो बिजनेस इकोनॉमिक्स में सिर्फ इकोनॉमिक के कांसेप्ट या फिर प्रिंसिपल्स नहीं है यहां पर जो है मैथमेटिक्स स्टेटिस्टिक्स ऑपरेशनल रिसर्च जो अलग-अलग सब्जेक्ट है उनके भी कांसेप्ट आपको जो है बिज़नेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स के देखने को मिल जाएंगे तो ये मल्टी डिसिप्लिन है सिर्फ इकोनॉमिक्स की कांसेप्ट नहीं है बिजनेस के भी कांसेप्ट है मैथमेटिक्स के भी कांसेप्ट है स्टेटिस्टिक्स का ऑपरेशन रिसर्च का जैसे डिमांड फोरकास्टिंग करना है तो वहां पर स्टेटिस्टिक्स का यूज़ किया जाता है तो ये मल्टी डिसिप्लिन होता है इसी तरीके से फोकस ऑन डिसीजन मेकिंग बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स का यूज ही हम इसलिए कर रहे हैं कि हम एक जो है ऑप्टिमल डिसीजन मेकिंग कर सकें इट प्रोवाइड टूल्स एंड फ्रेमवर्क टू हेल्प विद डिसीजन रिलेटेड टू रिसोर्सेस एलोकेशन प्रोडक्शन प्राइसिंग इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजिक प्लानिंग यानी कि जो डिफरेंट बिजनेस प्रॉब्लम्स होती हैं उनमें में जो है डिसीजन मेकिंग में ये बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स हेल्प करता है कि रिसोर्स कितना एलोकेट करना है कितना प्रोडक्शन करना है प्राइसिंग कैसे फिस करनी है इन्वेस्टमेंट कितना करना है क्लियर कितना लेबर यूज करना है कितना मटेरियल यूज करना है कॉमिनेशन क्या होगा लॉ ऑफ वेरिएबल प्रोपोर्शन आप अभी आगे चलके पढ़ेंगे तो ये सारे जो है ये जो इकोनॉमिक थ्योरी है कांसेप्ट है वो जो है वो बिजनेस में डिसीजन मेकिंग में हेल्प करता है एनालाइज मार्केट स्ट्रक्चर बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैल इकोनॉमिक्स में हम मार्केट स्ट्रक्चर को एनालाइज करते हैं कि मार्केट में ट्रेंड क्या चल रहा है डिमांड और सप्लाई एनालिसिस किया जाता है कि किस प्राइस पे कितनी सप्लाई हो रही है किस प्राइस पे क्या डिमांड है कितना फ्लक्स एशन हो रहा है इलास्टिसिटी ऑफ डिमांड इलास्टिसिटी ऑफ सप्लाई प्राइस में थोड़ा सा चेंज करने में कितना सप्लाई में या फिर डिमांड में चेंज हो रहा है कंपट का बिहेवियर क्या है कि जब कोई कंपनी जो है एक इंडिविजुअल फर्म है वो प्राइस डिक्रीज करी तो सामने वाला कंपीटीटर क्या कर रहा है वो जो है कोई इंडिविजुअल फर्म प्राइस इंक्रीज कर रहा है तो सामने वाला कंपटीसन के क्या प्रेफरेंसेस हैं यूटिलिटी का कांसेप्ट ये डिफरेंट जो है मार्केट स्ट्रक्चर को यहां पर एनालाइज किया जाता है इसी तरीके से इट एमफसा इज कॉस्ट डिमांड एंड रेवेन्यू एनालिसिस तो बिजनेस इकोनॉमिक्स मैनेजर इकोनॉमिक्स में फोकस कॉस्ट डिमांड रेवेन्यू इन सब पे जो है फोकस किया जाता है इट फोकस ऑन अंडरस्टैंडिंग एंड मैनेजिंग प्रोडक्शन कॉस्ट ऑपरेशनल एक्सपेंसेस ओवरऑल कॉस्ट स्ट्रक्चर डिमांड फ्लक्ट एशन रेवेन्यू डिफरेंट जो है कांसेप्ट है जो कि यहां पर फोकस किया जाता है तो बिजनेस इकोनॉमिक्स ये कैरेक्टरिस्टिक है बिजनेस इकोनॉमिक्स का और या फिर मेजल इकोनॉमिक्स का तो कुछ इंपॉर्टेंट है चार-पांच इंपॉर्टेंट आपको याद ही रखना चाहिए कि पहला कैरेक्टरिस्टिक क्या हो गया माइक्रो इकोनॉमिक्स है यानी कि यहां पर इंडिविजुअल बिजनेस यूनिट के जो है प्रॉब्लम को स्टडी किया जाता है माइक्रो इकोनॉमिक्स कांसेप्ट है नॉर्मेटिव साइंस है ये ये बताता है कि पर्टिकुलर सिचुएशन में क्या करना चाहिए प्रगमेटिक है यानी कि प्रैक्टिकल अप्रोच है एप्लीकेशन ओरिएंटेड है प्रिसक्रिप्टिव है मैनेजमेंट ओरिएंटेड है मल्टी डिसिप्लिन है एंड फोकस ऑन डिसीजन मेकिंग ये कुछ इंपॉर्टेंट कैरेक्टरिस्टिक है नेचर है जिसको आपको याद जरूर रख लेना चाहिए नेक्स्ट टॉपिक है स्कोप ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स यानी कि स्कोप माने कि दायरा तो हम बिजनेस इकोनॉमिक्स में क्या-क्या चीजें स्टडी करते हैं मैनेज इकोनॉमिक्स में क्या-क्या स्टडी करते हैं वो चीज यहां पर डिस्कस करते हैं तो देखिए जब आप सिलेबस अपना देखेंगे बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स में तो वहां पर आपको जो डिफरेंट टॉपिक्स देखने को मिल जाएंगे लाइक डिमांड एनालिसिस लॉ ऑफ डिमांड इलास्टिसिटी ऑफ डिमांड डिमांड फोरकास्टिंग प्रोडक्शन एनालिसिस लॉ ऑफ वेरिएबल प्रोपोर्शन यूटिलिटी कांसेप्ट हो जाएगा लॉ ऑफ डिमिनिशिंग मार्जिनल यूटिलिटी कॉस्ट एनालिसिस एवरेज रेवेन्यू मार्जिनल रेवेन्यू एवरेज कॉस्ट मार्जिनल कॉस्ट मार्केट स्ट्रक्चर परफेक्ट कंपटीशन मोनोपोली डुपो ओलिगोपोलिस्टिक एलोकेशन ये डिफरेंट जो है ट टर्म्स या फिर कांसेप्ट जो है आपको देखने को मिल जाएंगे और इन्हीं को है बिजनेस इकोनॉमिक्स में या फिर मेजल इकोनॉमिक्स में स्टडी किया जाता है तो स्कोप ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स में यही सारी चीजें आएंगी कि डिमांड एनालिसिस एंड फोरकास्टिंग यानी कि बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मेनेल इकोनॉमिक्स में हम डिमांड को एनालिसिस करते हैं डिमांड शेड्यूल हो गया डिमांड कर्व हो गया लॉ ऑफ डिमांड ठीक है फिर उसके बाद जो है इलास्टिसिटी ऑफ डिमांड डिमांड किन-किन चीजों से फ्लकचुएट करता है प्राइस का क्या है प्राइस इलास्टिसिटी ऑफ़ डिमांड इनकम इलास्टिसिटी ऑफ डिमांड जो है डिमांड फॉर कास्टिंग के जो डिफरेंट टेक्निक्स हैं उनको जो यहां पर पढ़ा जाता है इसी तरीके से अगला कांसेप्ट है प्रोडक्शन एनालिसिस यानी कि यहां पर लॉ ऑफ डिमांड लॉ ऑफ प्रोडक्शन से रिलेटेड जो है यहां पर आपको कांसेप्ट पढ़ने होंगे कॉस्ट एनालिसिस जो डिफरेंट कॉस्ट कर्व है मार्जिनल कॉस्ट है एवरेज कॉस्ट है टोटल कॉस्ट है इनके कर्व इनके बीच में रिलेशन ये सारी चीजें पढ़ेंगे मार्केट स्ट्रक्चर एंड प्राइसिंग जो हमने बताया कि परफेक्ट कंपटीशन मोनोपोली डुपो हर जो है मार्केट स्ट्रक्चर में कैसे प्राइसिंग जो है वहां पर डिसाइड की जाती है जो है वहां पर आप जो है प्राइस डिस्क्रिमिनेशन किया जाता है वहां पर कार्टेल होता है ओलिगोपॉली में किंग डिमांड कर्व होता है ये सारे कांसेप्ट पढ़ने होते हैं इन्वेंटरी मैनेजमेंट इसी तरीके से रिसोर्स एलोकेशन ये सारे कांसेप्ट जो है यहां पर पढ़ने होते हैं साथ ही साथ बहुत सारे सब्जेक्ट में आपको जो है वहां पर जीडीपी देखने को मिल जाएगा साथ ही साथ बिजनेस जो साइकिल होते हैं वो टर्म्स भी जो है आपको देखने को मिलेगा यानी कि कुछ माइक्रो इकोनॉमिक्स के भी कांसेप्ट यहां पर जो है बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स में पढ़ने होते हैं तो ये स्कोप ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स है या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स है यानी कि मेजल इकोनॉमिक्स बिजनेस इकोनॉमिक्स में क्या-क्या चीजें पढ़नी होती है तो मेजर जो पॉइंट्स वो यही है कि डिमांड जो लॉ ऑफ डिमांड है लॉ ऑफ सप्लाई है डिमांड फोरकास्टिंग प्रोडक्शन एनालिसिस कॉस्ट एनालिसिस रेवेन्यू एनालिसिस यहां पर होता है मार्केट स्ट्रक्चर जो है डिफरेंट मार्केट स्ट्रक्चर वो पढ़ने होंगे इन्वेंटरी मैनेजमेंट रिसोर्स एलोकेशन बिजनेस साइकिल जीडीपी ये सारे टर्म्स जो है वहां पर पढ़ने होते हैं अब बात कर ले कि इंपॉर्टेंस क्या है बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स पढ़ने का क्या इंपॉर्टेंस है क्या फायदा है तो सबसे पहली चीज इट प्रोवाइड गाइडेंस एंड डिसीजन मेकिंग जो भी बिजनेस प्रॉब्लम्स होते हैं उसको सॉल्व करने में जो है ये हेल्प करता है जो भी मैनेजर के सामने कोई प्रॉब्लम आती है तो उसमें उसमें क्या डिसीजन ले उसके लिए जो है बिजनेस इकोनॉमिक्स जो है या फिर मेजल इकोनॉमिक्स हेल्पफुल होता है हेल्प इन आइडेंटिफिकेशन हो सकती हैं उसको आइडेंटिफिकेशन इकोनॉमिक्स हेल्प करता है इट प्रोवाइड डिफरेंट स्किल्स एंड टूल्स टू सॉल्व बिजनेस प्रॉब्लम बिजनेस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए जो भी डिफरेंट स्किल्स चाहिए जो भी डिफरेंट टूल्स चाहिए वो जो है बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेजर इकोनॉमिक्स प्रोवाइड करता है हेल्प्स इन ऑप्टिमम यूज ऑफ रिसोर्सेस जो भी रिसोर्सेस हैं स्कर्स हैं और उन स्के रिसोर्सेस का ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन हो सके उसमें जो है बिजनेस इकोनॉमिक्स मैनेजर इकोनॉमिक्स हेल्प करता है कि किस तरीके के कॉमिनेशन को रखना है कितना लेबर कितना कैपिटल कितना जो है दूसरा रिसोर्स रखना है जिससे कि मैक्सिमम यूटिलाइजेशन हो सके और मैक्सिमम प्रॉफिट वहां पर जनरेट किया जा सके हेल्प्स इन अंडरस्टैंडिंग द एक्सटर्नल फैक्टर एक्सटर्नल फैक्टर कौन-कौन से हैं जो कि डिमांड को सप्लाई को या फिर बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन को अफेक्ट कर रहे हैं वो फैक्टर को भी एनालाइज करने में उनको समझने में बिजनेस इकोनॉमिक्स या फिर मैनेज इकोनॉमिक्स हेल्प करता है जैसे कि डिमांड है तो डिमांड को प्राइस भी अफेक्ट करता है इनकम भी अफेक्ट करता है ठीक है एडवरटाइजिंग भी अफेक्ट करता है तो डिफरेंट एक्सटर्नल फैक्टर हैं प्राइसिंग को जो हो गया कंपीटीटर भी अफेक्ट करता है तो जो डिफरेंट एक्सटर्नल फैक्टर हैं उनको भी अंडरस्टैंड करने में एनालाइज करने में बिजनेस इकोनॉमिक्स हेल्पफुल होता है इस जो है इसका बेनिफिट होता है तो ये कुछ इंपॉर्टेंट थे इंपॉर्टेंस थे बिजनेस इकोनॉमिक्स के तो होप आपको समझ में आया गया कि बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या होता है क्या स्कोप है क्या कैरेक्टरिस्टिक है नेचर है और क्या इंपॉर्टेंस है विश यू ऑल द बेस्ट कीप वाचिंग