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History and Impact of Rafale Aircraft

अगर हमारे पास आज राफेल होता तो शायद इससे भी नतीजा कुछ और होता। राफेल की कमी आज देश ने महसूस की है। इंडियन प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी ने यह अल्फाज़ आज से कुछ 6 बरस पहले अदा किए थे। उनकी स्पीच का पसमंजर भी शायद आपको याद ही होगा। अगर नहीं तो चलिए हम आपको बता देते हैं। यह बात है पुलवामा हमले के बाद 27 फरवरी 2019 की। जब पाकिस्तान एयरफोर्स ने इंडियन पायलट अभिनंदन का तारा मार गिराया था और पायलट को जिंदा गिरफ्तार भी कर लिया था। इस वाक्य ने भारतीय एयरफोर्स की सलाहियतों पर कई सवालात उठा दिए थे। जाहिर है जो हुकूमत इस सारी कशमकश और शर्मिंदगीगी की जिम्मेदार थी उसने कवर अप के लिए कोई ना कोई जवाज तो गढ़ना ही था। तो नरेंद्र मोदी ने यह बयानिया पेश किया कि अगर राफेल होते तो नताइज मुख्तलिफ होते। इसके साथ ही मोदी ने अपोजिशन को तनकीद का निशाना भी बनाया जो फ्रांस के साथ राफेल्स की जल्द खरीदारी की राह में रुकावट बन रही थी। ऐसा उनका ख्याल था। अब दोस्तों जरा फास्ट फॉरवर्ड करते हैं और 6 साल बाद मई 2025 में आते हैं। 22 अप्रैल को पहलगाम में एक अफसोसनाक मिलिटेंट अटैक होता है जिसमें 26 बेगनाह सिया जान की बाजी हार जाते हैं। इस हमले का इल्जाम भारत बिना किसी सबूतों के फौरन ही पाकिस्तान पर आयद कर देता है। दोनों मुालिक के ताल्लुकात जो पहले ही से काफी खराब चले आ रहे थे, मजीद खराब हो जाते हैं। भारत इसके बाद पाकिस्तान और आजाद कश्मीर में मुख्तलिफ लोकेशनेशंस पर स्कैल्प और हैमर प्रसीजन गाइडेड मिसाइलों से हमला कर देता है। यह हमला राफेल और दूसरे रूसी साख्ता तैयारों से किया जाता है। जी हां वही फ्रेंच राफेल जिसकी कमी महसूस की जा रही थी। लेकिन दोस्तों नताज इस पर भी कुछ मुख्तलिफ नहीं होते बल्कि शायद 2019 के मुकाबले में भी भारत को कहीं ज्यादा जिल्लत का सामना करना पड़ता है। छ और 7 मई की दरमियानी रात पाकिस्तान में भारतीय जलियत के बाद भारत को अपनी नवियत की मुनफिद डॉग फाइट में फाइटर जेट से पाकिस्तान के दावों के मुताबिक हाथ धोना पड़ते हैं। इसमें दिलचस्प बात यह थी कि पाकिस्तान ने अपनी एयर स्पेस में ही रहते हुए मुमकिना तौर पर चाइनीस साख्ता J10C पर नसब PL15 मिसाइल्स का इस्तेमाल किया और भारतीय एयरक्राफ्ट्स को निशाना बनाया। पाकिस्तानी असराय के मुताबिक तबाह किए गए तैयारों में तीन राफेल फाइटर जेट्स भी शामिल हैं। भारतीय सोर्सेस पांच नहीं बल्कि तीन फाइटर्स की तबाही कंफर्म करते हैं। लेकिन वो तीन तारे कौन से थे इस बारे में कुछ कंफर्म नहीं करते। लेकिन दोस्तों पैनलवामी मीडिया और फ्रेंच इंटेलिजेंस के एक हाई रैंक ऑफिशियल ने राफेल तैयारा कराए जाने की तस्दीक कर दी है। यह वही स्टेट ऑफ द आर्ट 4.5्थ जनरेशन राफेल तारा है जिसकी डिलीवरी मिलने पर भारत में खुशियां मनाई गई थी और डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने एयरक्राफ्ट को फूल और नारियल पेश किए थे। एयरक्राफ्ट के व्हील्स के नीचे लीमू रखकर भी इसे वेलकम किया गया था। जाहिर है इतनी बड़ी तादाद में भारतीय तारे गिराए जाना मौजूदा मॉडर्न वारफेयर में एक बड़ी खबर थी। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी मॉडर्न कॉम्बैट में राफेल तैयारा गिराया गया हो। इसका मनफी असर राफेल बनाने वाली कंपनी के शेयर्स पर भी स्टॉक एक्सचेंज मार्केट्स में देखा गया। राफेल तारे को टारगेट करने वाले चाइनीस फाइटर जेट J10C को बनाने वाली चाइनीस कंपनी चेंगडू एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन के शेयर्स की वैल्यू में अचानक बड़ा इजाफा भी नोट किया गया। तो दोस्तों, हम मुख्तसरन अब यह जानने की कोशिश करते हैं कि यह सब कैसे हुआ? राफेल की हिस्ट्री मुख्तसरन क्या है? और हम यह भी जानते हैं कि भारत ने फाइटर जेट्स कैसे हासिल किए और भारत की अपोजिशन के साथ राफेल डील के हवाले से भारत में तनाज़ा क्या था। आखिर में चाइनीस J10C का राफेल के साथ मुआजना भी करेंगे। तो आइए यह सब जानते हैं। लेकिन दोस्तों वीडियो में आगे बढ़ने से पहले अगर आपने बिग सोचू को सब्सक्राइब नहीं कर रखा तो हमें सब्सक्राइब कर लें ताकि हमें आपके लिए मालूमाती वीडियोस बनाने के लिए हौसला अफजाई मिलती रहे। शुक्रिया। राफेल की तैयारी की जरूरत 1970 की दहाई में पेश आई थी। जब फ्रांस ने अपने एयरक्राफ्ट्स के पुराने फ्लट को रिप्लेस करने का फैसला किया। इब्तदाई तौर पर फ्रांस, बर्तनानिया, जर्मनी, इटली वगैरह के साथ मल्टीीनेशनल यूरो फाइटर टाइफून प्रोजेक्ट का हिस्सा था। लेकिन बाद में फ्रांस ने अपना तारा डिजाइन करने का फैसला किया ताकि इसके फीचर्स और एक्सपोर्ट पर इसे ज्यादा कंट्रोल हासिल हो। लिहाजा फ्रेंच कंपनी डसाल्ट एिएशन ने राफेल डिजाइन किया और इसकी तैयारी शुरू कर दी। यह कंपनी पहली बार एयरक्राफ्ट तैयार नहीं कर रही थी बल्कि मेराज जैसे तारे भी इस कंपनी के क्रेडिट पर पहले ही से थे। राफेल के प्रोटोटाइप राफेल ए ने 1986 में उड़ान भरी लेकिन इसे फौरन ही सर्विस में शामिल नहीं किया गया बल्कि टेस्टिंग और डेवलपमेंट में अच्छा खासा वक्त लिया गया। बिलाखिर 2004 में राफेल एम यानी नेवल वर्जन की पहली खेप फ्रेंच नेवी में शामिल की गई। इसके बाद टू सीट राफेल बी और सिंगल सीट राफेल सी को 2006 में फ्रेंच एयरफोर्स ने अपने पेड़े में शामिल कर लिया। दोस्तों, राफेल 4.5 जनरेशन मल्टी रोल एयरक्राफ्ट है। मल्टी रोल को आप यूं समझे कि यह राफेल एयरक्राफ्ट एक ही फ्लाइट में एयर टू एयर, एयर टू सरफेस रिकॉग्नोसेंस यानी इंटेलिजेंस गैदरिंग और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर यानी दुश्मन के रेडार सिग्नल्स को जैम करने और चकमा देने की सलाहियत रखता है। एयरक्राफ्ट मुकम्मल तौर पर स्ट्रेंथ नहीं। यानी यह रेडार की नजरों से मुकम्मल तौर पर नहीं बच सकता। राफेल एक ट्विन इंजन एयरक्राफ्ट है। इसकी लंबाई 15 मीटर से कुछ जायद। विंग स्पैन लगभग 11 मीटर्स है। राफेल की स्पीड मैक 1.8 यानी आवाज की स्पीड से 8 गुना है। यानी तकरीबन 2222 कि.मी. फी घंटा। एयर टू एयर कॉम्बैट में बिय्ड विजुअल रेंज टारगेट को निशाना बनाने के लिए राफेल मिट्योर मिसाइल इस्तेमाल करता है। इस मिसाइल की रेंज 150 से 200 कि.मी. तक है। जबकि एयर टू सरफेस टारगेट को निशाना बनाने के लिए राफेल स्कैल्प क्रूज मिसाइल इस्तेमाल करता है। जिसकी रेंज 500 कि.मी. तक है। इसके अलावा हैमर प्रसीजन गाइडेड मिसाइल भी राफेल से फायर किए जा सकते हैं। जिनकी रेंज 60 से 70 कि.मी. तक होती है। यही दोनों यानी स्कैल्प और हैमर मिसाइल भारत ने पाकिस्तान पर हमले के लिए इस्तेमाल किए हैं। राफेल का कॉम्बैट रेडियस यानी वेपंस के साथ एयरबेस से उड़ान भरने, मिशन मुकम्मल करने और बगैर रिफ्यूल किए वापस बेस पर लैंड करने का फासला अप्रोक्समेटली 1850 कि.मी. है। अब हम यह जान लेते हैं कि भारत ने यह तैयारे कैसे हासिल किए थे और इससे मुतालिक क्या कंट्रोवर्सी भारत में पैदा हुई थी। भारतीय फजाइया के लिए 126 मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट्स की खरीदारी की जरूरत 2007 में महसूस की गई थी। भारतीय हुकूमत ने जदीद लड़ाका हथियारों की तलाश, टेस्टिंग और इवैल्यूएशन के लिए मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट प्रोग्राम का आगाज किया। कांग्रेस के दौर में तवील तकनीकी और फ्लाइट इवैल्यूएशन के बाद 2012 में फ्रेंच राफेल को सबसे कम कीमत और बेहतरीन ऑप्शन के तौर पर मुंतखब कर लिया गया। असल मसूबेब के मुताबिक 18 तारे बराहेरा तैयार हालत में फ्रांस की तरफ से फराहम किए जाने थे। जबकि बाकी 108 तारे भारत में हिंदुस्तान एयररोनॉटिक्स लिमिटेड एचएल हॉल के जरिए तैयार किए जाने थे। जिसमें डिसाॉल्ट कंपनी की जानिब से टेक्नोलॉजी की मुंतकिली भी शामिल थी। ताम हॉल और डसाल्ट कंपनीज के दरमियान टेक्नोलॉजी मुंतकिली से मुतालिक इख्तलाफात की वजह से यह डील मुकम्मल ना हो सकी। 2014 में जब बीजेपी की हुकूमत बन गई और नरेंद्र मोदी मुल्क के वज़रे आजम बन गए तो 2015 में फ्रांस के दौरे पर उन्होंने पिछली डील को कैंसिल करते हुए एक नई डील फ्रांस के साथ साइन करने का ऐलान कर दिया। 787 बिलियन यूरोस की यह नई डील 2016 में साइन हुई। जिसके तहत अब 36 तैयारशुदा राफेल तैयारे भारत को फ्रांस ने फराहम करने थे। इस नई डील में सरकारी अदारे हॉल की बजाय प्राइवेट कंपनी Reliance को बाद में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए मुंतखब किया गया। नई डील में पर यूनिट राफेल की कॉस्ट भी पहले वाली डील से 41% ज्यादा हो चुकी थी। इंडियन नेशनल कांग्रेस ने इस नई डील पर सवालात उठा दिए। जिनमें दो सवालात इंतहाई अहम थे कि तारे की कीमत इतनी ज्यादा अचानक से क्यों हो गई और हाल यानी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड जैसी तजुर्बेकार अदारे या कंपनी को छोड़कर Reliance कंपनी को क्यों चुना गया जो निस्बतन नई और कम तजुर्बेकार कंपनी थी। यह इशू भारत की सुप्रीम कोर्ट में क्या लेकिन 2018 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस डील में कोई बेजाब्तगी नहीं हुई। बहरहाल सियासी कशमकश के बावजूद यह तारे भारत को 2019 के आखिर में डिलीवर होना शुरू हो गए। 2022 में 36 राफेल्स की डिलीवरी मुकम्मल हुई। अप्रैल 2025 में भारत ने 7.7 बिलियन की एक नई डील भी साइन की जिसके तहत राफेल के 26 नेवल वेरिएंट्स फ्रेंच कंपनी ने भारत को फराहम करने हैं। दोस्तों राफेल के ट्विन इंजन के मुकाबले में J10C चाइनीस थारा जो कि पाकिस्तान एयरफोर्स के इस्तेमाल में है। सिंगल इंजन मल्टी रोल एयरक्राफ्ट है। यह भी 4.5 जनरेशन एयरक्राफ्ट है। राफेल की स्पीड जहां मैक 1.8 है। वहीं J10C की स्पीड Mac 2.2 है। J10C का कॉम्बैट रेडियस राफेल के 1850 कि.मी. के मुकाबले में तकरीबन 1400 कि.मी. है। J10C बिय्ड विजुअल रेंज टारगेट को निशाना बनाने के लिए PL15 मिसाइल का इस्तेमाल करता है। जिसके डोमेस्टिक वर्जन की रेंज 300 कि.मी. तक भी हो सकती है। जबकि राफेल से फायर किए जाने वाले बीटीर मिसाइल की ज्यादा से ज्यादा रेंज 200 कि.मी. तक है। एयर टू सरफेस टारगेट्स को निशाना बनाने के लिए J10C KD8 और LS6 मिसाइल्स का इस्तेमाल करता है। जिनकी रेंज बिल तरतीब 250 और 60 कि.मी. तक है। एयर टू सरफेस टारगेट को निशाना बनाने के लिए राफेल स्कैल्प और हैमर मिसाइल्स का इस्तेमाल करता है। जिनकी रेंज बिलतीब 500 और 70 कि.मी. तक है। राफेल कॉम्बैट टेस्टेड एयरक्राफ्ट है। जबकि J10C का हालिया पाक भारत कशीदगी से पहले कोई कॉम्बैट एक्सपीरियंस नहीं था। दोनों एयरक्राफ्ट्स कमोबेश एक जैसी खुसूसियत के हामिल है। या यूं कहा जा सकता है कि वेस्टर्न टेक्नोलॉजी होने की वजह से राफेल को कुछ एरियाज में बरतरी ही हासिल है। लेकिन लागत यानी कॉस्ट के ऐतबार से दोनों तैयारों में अच्छा खासा फर्क है। J10C के एक यूनिट की लागत जहां 40 से 50 मिलियन है। वहीं राफेल का एक यूनिट 100 से 120 मिलियन तक आता है। जबकि इसमें कुछ बाकी इसकी एक्सेसरीज या लवाजमात शामिल कर लिया जाए तो इसके एक तारे की लागत $250 मिलियन के लगभग भी पहुंच जाती है। लेकिन दोस्तों जैसा कि हम जानते हैं कि तैयारों के अलावा तैयारों को उड़ाने वाले पायलट की सलाहियतों पर भी यह मुनासिर होता है कि वह कॉम्बैट में कैसे परफॉर्म करते हैं। इसका मुजायरा आपने देख ही लिया कि कैसे पाकिस्तानी एयरफोर्स पायलट्स ने भारत के तीन राफेल अपना नुकसान किए बगैर गिरा डाले। गैर मसदका रिपोर्ट्स के मुताबिक वाइस चीफ ऑफ एयर स्टाफ एयर मार्शल सुजीत पुष्कारकार को हाल ही में जबरी तौर पर रिटायर करने की वजह भी यही है कि उन्होंने राफेल और इंडियन एयरफोर्स के पायलट्स की सलाहियतों पर कंसर्न्स का इज़हार किया था। इसके बाद उन्होंने इस बात पर भी सवालात उठाए थे कि पाकिस्तानी रेडार्स सिग्नल्स राफेल तैयारों को बार-बार आसानी से इंटरसेप्ट कर रहे हैं। दोस्तों, पाकिस्तान एयरफोर्स के पायलट्स की परफॉर्मेंस के बारे में आपकी क्या राय है? कमेंट्स में अपनी राय से जरूर आगाह करें और इस तरह की दिलचस्प वीडियोस देखने के लिए बिग सोचो को सब्सक्राइब कर लें। शुक्रिया।