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Overview of the Land Revenue System

Land Revenue Systems दोस्तों, Land Revenue ब्रिटिशर्स के लिए मेजर Sources of Income में से एक था इस Income को Maximize करने के लिए उन्होंने इंडिया में अलग-अलग Systems इंट्रिड्यूस किये थे आज हम उनके Important Land Revenue Systems को डीटेल में कवर करेंगे जानेंगे कि ये Systems कब, कहां और क्यूं लाए गए साथ ही Indian Agriculture Community पर इनका Impact भी डिसकस करेंगे आईए शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तो, 1765 में बैटल अव प्लासी के बाद इस्ट इंडिया कंपनी को बिंगॉल, बिहार और ओडिसा के दिवानी राइट्स मिले थे और तभी से कंपनी के लैंड रेविन्यू एक्सपेरिमेंट्स भी शुरू हो जाते हैं 1772 में बिंगॉल की गवरनर वारन हेस्टिंग्स फार्मिंग सिस्टम इंट्रिडूस करते हैं लेकिन revenue collect करने का अधिकार highest bidder यानि कि सबसे उची बोली लगाने वाले को दिया जाता था farming system बहुत ज्यादा सफल नहीं होता क्योंकि bidders production process की परवाह किये बिना ज्यादा से ज्यादा revenue extract करने की कोशिश करते हैं और इसकी वज़ा से peasants की हालत बहुत ज्यादा miserable होने लगती है इसलिए 1784 में Lord Cornwallis को revenue administration को streamline करने के specific mandate के साथ इंडिया भेजा जाता है। आए जानते हैं लॉर्ड कॉर्न वॉलिस लैंड रेविन्यू समस्या का क्या हल निकालते हैं। पर्मनेंट सेटलमेंट और द जमीनदारी सिस्टम। दोस्तों लॉर्ड कॉर्न वॉलिस 1793 में पर्मनेंट सेटलमेंट इंट्रिड्यूस करते हैं। इसके तहट लैंड रेविन्यू कलेक्ट करने की जिम्मेदारी जमीनदार्स ���ो दी जाती है। इसलिए किया जाता है क्योंकि बहुत सारे peasant से revenue collect करने की तुलना में थोड़े से जमीनदार से revenue collect करना ज्यादा easy रहता साथ ही company, society के एक strong section को अपने साथ जोड़ना चाहती थी इसमें total land revenue का 11% जमीनदार अपने पास रख सकते थे और 89% British सरकार के पास जमा करना होता था इस system में जमीनदार्स को landowners माना गया था वो जमीन को खरीद और बेच सकते थे इससे पहले तक जमीनदार्स के पास लैंड ओनिंग राइट्स नहीं होते थे उनका काम सिर्फ रेविन्यू कलेक्ट करना होता था इससे एक्चुअल टिलर्स को सिर्फ टेनेंट्स बना दिया गया था जमीनदार अपनी मरजी से कभी भी उन्हें जमीन से बेदखल कर सकते थे इससे बेंगॉल, बिहार, ओडिसा के अलावा युनाइटिट प्रोविंसिस के बनारस डिविजिन और नौधन करनाटिक में भी लागू किया गया था 19% area को cover करता था permanent settlement में sunset clause का भी provision था इसका मतलब होता था कि एक definite date पर sunset होने से पहले जमीनदार्स को land revenue जमा करना होता था ऐसा न करने पर उनकी जमीनदारी निलाम कर दी जाती थी permanent settlement introduce करने के पीछे लॉर्ड कॉर्न वॉलिस का मकसद company के लिए definite source of revenue और expenditure को भी plan कर सकते थे इसके अलाबा उनका ये भी मानना था कि जमीनदार्ज लैंड में invest करेंगे जिससे productivity भी बढ़ेगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता सबसे पहले तो revenue का amount इतना high fix किया गया था कि शुरुवात के सालों में जमीनदार्ज के लिए उसे collect करना ही मुश्किल हो जाता है इसके वज़ा से बहुत सी जमीनदारी निलाम कर दी जाती है इसलिए वो लैंड में भी कोई इंवेस्टमेंट नहीं करते हैं। जमीनदार्स कल्टिवेटर्स से बहुत सारे इलीगल ड्यूस भी वसूल करने लगते हैं साथ ही ये सिस्टम एबसिंटी लैंडलोडिजम को भी जन्म देता है जिसमें लैंडलोड यानि की जमीनदार खुद तो पास की किसी सिटी में रहने लगता है और रेविन्यू कलेक्ट करने की जिम्मेदारी किसी दूसरे छोटे जमीनदार को दे देता है पैजंट रिवोल्ड्स को हम अलग से अपनी वीडियो में डिसकस करेंगे। फिलहाल, लैंड रेविन्यू के एक दूसरे सिस्टम, यानि की रियोतवाडी सि रियोत वाडी सिस्टम दोस्तो समय के साथ इस्ट इंडिया कंपनी अपना रूल साउथ और साउथ वेस्टरन इंडिया में भी एक्स्टेंड कर लेती है। ऐसे में यहां लैंड सेटलमेंट की नई समस्या खड़ी होती है। साथ ही कुछ ब्रिटिश ओफिशल्स को यह भी लगता था कि परमनेंट सेटलमेंट की वजह से कमपणी को फाइनांचल लॉस हो रहा है। क्योंकि एक तो उन्हें जमीनदार्स के साथ revenue share करना पड़ता है और दूसरा land से बढ़ती हुई income पर वो कोई claim नहीं कर सकते इसके साथ ही जमीनदार cultivators का शोषन भी करते थे इसलिए Monroe और Reed जैसे British officials suggest करते हैं कि settlement direct cultivators के साथ किया जाए इसके साथ ही settlement को permanent न करके periodically revise किया जाने का plan था इस settlement का नाम रियोतवाडी रखा गया क्योंकि settlement रियोत यानि की cultivator के साथ होता है इसे सबसे पहले 1792 में बड़ा महल area में Alexander Reed ने start किया था उसके बाद Thomas Monroe ने इसे Madras के बाकी areas में extend किया आगे चलकर रियोतवाडी system को Bombay presidency में भी लागू किया गया था दोस्तों रियोतवाडी system ने land पर peasant ownership system को establish नहीं किया असल में बहुत सारे जमीनदार्स की जगह एक बड़े जमीनदार यानि की स्टेट ने ले ली थी पैजेंट्स तो सिर्फ गवर्मेंट के टेनेंट्स बन गए थे और समय पर लैंड रेवेन्यू न जमा कर पाने की स्थिती में इनका लैंड बेच दिया जाता था ज्यादतर एरियाज में लैंड रेवेन्यू का रेट भी बहुत हाई फिक्स किया गया था जैसे कि मद्रास में गवर्मेंट का क्लेम ग्रोस प्रड़क्शन का 45-55% तक फिक्स किया गया था ऐसी ही कुछ हालत बंबे की भी थी नतीजा ये होता है कि बेस्ट सीजन्स में भी रियोत के पास बड़ी मुश्किल से अपने गुजारे लायक ही बचता था। इसके साथ ही गवर्मेंट के पास कभी भी लैंड रेविन्यू बढ़ाने का अधिकार भी था। ड्राउट या फ्लड्स के कारण फसल बरबाद होने पर भी किसानों को रेविन्यू पे करना होता था। इस वजह से किसान धीरे धीरे मनी लेंडर्स की जाल में फसने लगते हैं। इस तरह रेवितवाडी एरियाज में भी किसानों की हालत अच्छी नहीं रहती। 52% एरिया में इस सिस्टम को इंप्लिमेंट किया गया था इसमें मद्रास और बॉंबे के अलावा सिंद, असैम और कूर्ग भी शामिल थे अब बात करते हैं महालवाडी सिस्टम की महालवाडी सिस्टम दोस्तों, जमीनदारी सिस्टम का मॉडिफाइड वर्जन गंगा वैली, नौर्थ वेस्ट प्रोविंसिस इसको महलवाडी सिस्टम कहा जाता है इसमें रेविन्यू पूरे विलिज ये एस्टेट के लिए फिक्स किया जाता था और सेटलमेंट गाओं के मुखिया या जमीनदार के साथ होता था इस सेटलमेंट को होल्ट मैकेंजी और आरेम बर्ड जैसे बृतिश ओफिशल्स ने इंट्रिडूस किया था स्टेट का शेयर इसमें लैंड की नेट इंकम का 66% तक रखा गया था और सेटलमेंट 30 साल के लिए किया गया था महलवाडी सिस्टम बृतिश इंडिया के 29% एरिया को कवर करता था इस सिस्टम में भी बाकी सेटलमेंट्स के जैसी प्रॉबलम्स देखने को मिलती हैं इसमें भी लैंड रेविन्यू का रेट बहुत हाई फिक्स किया जाता है और यहां भी प्रॉपर असेस्मेंट नहीं किया जाता जिसकी वजह से पेजंट्स पर डेट बर्डन बढ़ता जाता है बहुत से एरियाज में लैंड मनी लेंडर्स और मर्चंट्स के हाथों में चला जाता है कंक्लूशन दोस्तों, Britishers द्वारा Introduced Land Revenue Systems की वजह से इंडिया की Rural Economy पूरी तरह Disrupt होने लगती है Village Communities का Existing Politico-Economic Social Framework पूरी तरह Breakdown हो जाता है Private Property का Concept Land को एक Market Commodity में Turn कर देता है Social Relationships Change हो जाती है Landlord, Money Lender, Trader जैसी नई Social Classes की Importance बढ़ जाती है और poor peasants, tenants और agricultural labor जैसी class के numbers multiply हो जाते हैं villages में cooperation का महौल धीरे धीरे competition में बदल जाता है साथ ही individualism का system grow करने लगता है कहने का मतलब यह है कि traditional rural environment पूरी तरह बदल जाता है revenue का over assessment सभी systems का एक common feature निकल कर आता है क्योंकि company का primary aim तो revenue income को maximize करना ही था इसकी वजह से किसान कर्ज में दबने लगते हैं जमीन की बिकरी बढ़ जाती है और बहुत से किसानों को अपनी ही जमीन से बेदखल होना पड़ता है या एक टेनेंट की तरह काम करना पड़ता है इस तरह ये रेविन्यू सिस्टम्स पैजंट्स में ब्रिटिशर्स के अगेंस्ट आक्रोश को जन्म देते हैं जिसकी परिणाम सोरूप हमें आने वाले समय में बहुत से पैजंट रिवोर्ट्स देखने को मिलते हैं