9th भय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी श्रीला प्रभुपाद की जय हो एक अनंत कोटि 229 वृद्धि की जाए नाम आचार्य श्री हरिदास ठाकुर की जय हो और प्रेम से कहो श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत दर्शन वा शादी गौर भक्तवृंद की जय श्री राधा कृष्ण गोपीनाथ श्याम कुंड राधाकुंड गिरि गोवर्धन की जय हो ओम श्री राधा रास बिहारी जी की जय श्री सीता राम लक्ष्मण हनुमान जी की जय श्री गौर निताई की जय गौर प्रेमानंदा अ कि ऑल ग्लोरीज टो बे असेंबल्ड अट एज ऑल ग्लोरीज टो थे सिमिलरिटी ऑल ग्लोरीज टो डेसिमल रिपोर्टिंग जय श्री लड्डू गोपाल अजय को हुआ है का अभाव हुआ है कि अ आ जइयो राधा माधवा पंजाबे हारे हैं और ज्योति जनाब बल्लभ रॉ धार रे रे और ज्योति जाना बल्लभ रॉ घाघरे है का विरोध है जैसा दाणा नंदन अग्रज उमंरा रंजना झा लंदन बजाना रंजना जी कि क्या मोना तेरा बना 4000 से कि गहरा था मां झाला तुझा में हारे हैं हुआ है कि चेहरा थामा धावा पंजाब से हारे थे मैं जय श्री प्रभुपाद की जय राधा रास बिहारी की जय श्री सीता राम लक्ष्मण हनुमान जी की जय श्री गौर निताई की जय गौर प्रेमानंदा में जुटे समवेत भक्तवृंद आर यू कि ऑल ग्लोरीज टो डेसिमल डेबिट इसका हिंदी अनुवाद है जय समवेत भक्तवृंद लाल तप्पड़ हरे कृष्णा जय श्री अमृत भक्तवृंद आ जाए समेत भक्तवृंद आर कि जैन समेत भक्त वृंदावन-जय श्री प्रभुपाद है मैं नमाज विष्णुपाद लायक कृष्णा प्रेस था यह भूत अनले श्रीमते भक्तिवेदांत स्वामी थी ना मैंने नमस्ते सारस्वत देवे गौड़ा वाणी प्रसारण निर्विशेष अ शून्यवादी पास जात दे 570 कि जेताराम सूरत अपंग और मामा मंदिर में तेरे गति मत सब सूत्रधार भिजवाओ श्री राधा मदन मोहन राम की ओम श्री चैतन्य मनोभिलाषितं स्थापितं जेनर भूतले स्वयं रूप हक अदा महिरम दबाती स्व प्रधान तिकडम वांछा कल्पलता व्यस्क कृपा सिंधु व्यवसाई पति का नाम पावर ने वैष्णव नमो नमः में लिखे हैं उस जगन्नाथ जगन्नाथ जगन्नाथ कॉस्ट कम का पहला श्लोक में लिखा गया है हुआ है कि कदाचित कि कालिंदी तट बीपी ना संगीत तरह लो हुआ है का मुद्दा आधे रे नारी है वो बदन कमला का आस्वाद मधु पहल श्री रामा संभोग ब्रहमा अमर पति गणेश अर्चित Pad जहां में जगन्नाथ स्वामी कि नयनपथ-गामी भवतु में में कि इस चौथाई पद को आप लोग बोल रहे जगन्नाथ स्वामी नयनपथ-गामी भवतु में कि जगन्नाथ स्वामी नयनपथ-गामी भवतु में आ कि कदाचित हां कभी-कभी अ कि कालिंदी त टर्न ऑन ओम श्री जमुना जी के के तीर पर उगे हुए विपिन बंद हुए दो का संगीत तरला अ मैं अपनी बांसुरी पर गीत गाते हुए जो नृत्य करते हैं का रस बिहार करते हैं का मुद्दा परम आनंद में है एक अभिनेत्री हैं इस ग्रुप की कि नारी गोप नारी हूं है अर्थात गोपियां कि गोपियों के वो बदन कमला मुख-कमल उसको का आस्वाद भी पीते हुए हैं और मधु पहल जो भंवरे के समान हैं है जैसे भंवरा मैं कमल के फूल पर मंडराता रहता है है वैसे ही भगवान जगन्नाथ है ओम श्री राधा रानी के लिए ए मुख कमल क्या स्वाद में मैं सदा लूप रहते हैं हैं और जिनके चरणों की सेवा रमा कि लक्ष्मी संभोग भगवान शंकर की ब्रह्मा सृष्टि करता ब्रह्मा जी कि अमरपति स्पीड और देवताओं के राजा इंद्र है है और गणेश जी ओम श्री गणपति जी और इन सब के द्वारा आदेशित प्रदाह हैं जिनके चरणों की अर्चना होती है है ऐसे जगन्नाथ जैन कि हमारे नेतृत्व पथ में उदित होकर आ है अर्थात हमें दर्शन देकर को आनंदित करें और अजय को कि अश्लील जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए भगवान चैतन्य महाप्रभु ने 98 स्लोक रचा है में जगन्नाथ जी के बारे में उसे उसे को जगरनाथा अष्टकम कहते हैं मैं स्वयं गौर चंद्र के मुख कमल से निकला हुआ है आत्म स्लो है जिसमें पहला है कि कदाचित कालिंदी के तट बीपी उत्तर लुट में जगन्नाथ जी वास्तव में वृंदावन निवासी हैं कि वृंदावन मूल स्थान है वहां से फिर से जगन्नाथपुरी गए हैं है और भी कई क्षेत्रों में गए हैं लेकिन मूल जो भूमि है भगवान के वह मथुरा वृंदावन में जगन्नाथ जी नीलांचल में रहते हैं ओम श्री विग्रह रूप से विराजते हैं परंतु कदाचित और कालिंदी तट विपिन संगीत तक लो तो कभी मैं जमुना जी के तट में उगे हुए बांध अर्थात वृंदावन में संधि तरह का गीत का संगीत गाते हुए तरला वे नित्य करते रहते हैं है जैसे यहां ओम श्री मंदिर में भगवान हैं तो यह राधा रास बिहारी है रासबिहारी तो संगीत प्रकार है जो रासलीला में थिरकते रहते नाचते रहते हैं कहां का वृद्धि तत्पर जो बान है मैं जमुना के किनारे है कि वृंदावन कि बहुत से बन हैं कालिंदी के तट पर है जैसे 552 पूरा बहन पूर्वी तट पर और सात बन पश्चिम तक पर है और पूर्व उत्तर प्रदेश महाबंद लाइफ इन थे भद्रवन कि इस तरह के बन है और पश्चिमी तट पर श्री वृंदावन मधुबन तालिबान को मधुबन का काम बंद ए सबअर्बन है अ हैंड्स फ्री निबंधों में श्री जगन्नाथ जी में नाचते रहते हैं कभी गाय चराते हैं न वास्तव में गाय चराना ही उनका मुख्य काम है यहां पर गो सारण करने में ही अवैध नाचते रहते हैं क्योंकि गौचारण उनके लिए परम आनंद मई लीला है मैं तो वही प्रभु राधा रास बिहारी जी हां बने हैं हां भाई कालिंदी के तट से समुद्र तट पर आ गए हैं कि वह समुद्र स्तर पर वैसे भी जगन्नाथ जी रहते हैं के नीलांचल में है है और श्री राधा रानी के मुख कमल ऊपर भंवरे की तरह आश्वस्त हैं जगना है कि यह बहुत बड़ी बात कह रहे हैं भगवान चैतन्य महाप्रभु का मुद्दा भी रे नारी बदन कमला का स्वाद मधु पा भगवान जगन्नाथ जैन कि राधा रानी के मुंह पर इतनी आसक्ति से देखते रहते हैं कि जैसे भंवरा कमल के पुष्प पर आसक्त रहता है है इसीलिए ऊ ओम श्री जगन्नथ जय बलदेव महाकवि ने भक्तों ने भगवान जगन्नाथ जी के लिए के गीत गोविंद साह जगन्नाथ जिसको बहुत पसंद करते हैं हुआ है में जगन्नाथ जी का स्वभाव है कि ब्रज की गोपियों से बहुत प्रेम करते हैं में कितना प्रेम करते हैं उसी का वर्णन किया गया है आप वीर नारियां ही रे ना रे का भजन कमला कि अस्साद मधु पाल कि गोपियों के ए मुख को भगवान पीते रहते देखते हैं जैसे भंवरा कमल पुष्प के पराज को पीता रहता है हुआ है है यह और कितने महान हैं भगवान ऐश्वर्य कैसा है रमा संभोग ब्रह्मा अमर पटेल गणेश हर्षित पद्धति कि भगवान जगन्नाथ के चरणकमलों की पूजा रमा देवी करते हैं रामायण लक्ष्मी जी कि अ लक्ष्मी और संभोग भगवान शिव में ब्रहमा अ है और सुश्री ब्रह्मा जी अमर पति कि देवताओं के राजा को इंद्रदेव क है और गणेश गणपति जी की कि इन सारा कि महाराष्ट्र में गणपति जी की पूजा करता और गणपति जी के स्वामी श्री जगन्नाथ जी है गणेश चर्चित पदा हैं जिनके पास वैध शरण गणेश के द्वारा श्री ब्रह्मा के द्वारा शंकर जी के द्वारा और देवराज इंद्र के द्वारा पूजित है है ऐसे जगन्नाथ जी के दर्शन की हम कामना करते हैं अजय को कि वे जगन्नाथ जी कृपा करके आंखों के सामने उदित हो नयनपथ-गामी भवतु कि हमारे नयन जहां तक जा रहे हैं है तो वहां यह विमेन पथ में उदित हो जाए गांव में आ जाए जगन्नाथ स्वामी नयनपथ-गामी भवतु में आ कि नयनपथ-गामी भवतु मतलब मुझे दर्शन दे मुझे आनंदित करें में जहां-तहां भगवान है कि श्री विग्रह के रूप में विराजमान हैं ओम श्री ब्रह्म का अर्थ होता है के विग्रह का अर्थ है कलेवर बापू शरीर और श्री भगवान के कि शरीर के लिए या किसी भी अंग के लिए श्री शब्द का प्रयोग होता है हैं जैसे कि अगर हाथ का वनवास कहां जगह श्री हंसते और रूपमंजरी कमल से श्री हस्त कमल अ कि कैसे भगवान के समग्र शरीर को का विग्रह कहते हैं तुरंत कि भगवान का शरीर चीन में है दिव्य है इसीलिए उसमें ओम श्री विशेषण दिया जाता है श्री विग्रह कि भगवान का स्वरुप है है तो जहां-तहां बहुत बड़े-बड़े लोगों ने भगवान का अरसा विग्रह स्थापित किया है से जगन्नाथपुरी में जो नीलांचल पर्वत के ऊपर मंदिर है कि वह स्वयं ब्रह्माजी के प्लान से बनाए थे कि महाराज इन रिदम में कि उसे बनवाया था लेकिन कि वास्तव में मास्टर प्लान ब्रह्मा जी का था और आर्किटेक्ट विश्वकर्मा जी थे हैं और मंदिर आज भी है मैं इसी तरह में श्री वृंदावन में और अर्चना विग्रह है जय श्री बांके बिहारी जी में श्रीकृष्ण-बलराम है और अनेक विग रहें अनेक श्री विग्रह है तो यही पद्धति आचार्यों ने चलाया है भगवान का दर्शन हमें करना है है तो कहां करेंगे अब है तो इसके लिए उन्होंने बड़ा-बड़ा मंदिर बनाया था कि अश्लीला प्रभुपाद जबकि शेष भावना का प्रचार कर रहे थे इस है तो उन्होंने ने पहले सोचा कि केवल पुस्तक प्रकाशित किया जाए है है लेकिन श्रील प्रभुपाद जी को जब पुस्तक का वितरण से सफलता मिले कुछ अर्थपूर्ण प्राप्त हुआ और कुछ भक्तों ने सहायता की तरह श्रील प्रभुपाद जी तुम संसार भर में में मंदिर बनाने की बात सोचें अ को सबसे पहले श्रीमाधोपुर वृंदावन है और मुंबई तीन मंदिर भारत में स्थापित करने की सोच है है तो सबसे पहला मंदिर भारत में प्रभुपाद जी ने बनाया व है हैदराबाद का मंदिर है कि राधा मदनमोहन मंदिर हुआ है हुआ है कि यह यक्ष प्रश्न होता है कि क्या वास्तव में भगवान श्री मूर्ति के रूप में रहते हैं के आवास से रहते हैं कि एक भक्त हुए हैं नारायण भट्ट को है जो गुरुवायुर मंदिर में रहते थे यह गुरुवायुर मंदिर में का निर्माण स्वर्ग के देवताओं के गुरु बृहस्पति जी और वायुदेवता मिलकर देखिए अब जो मनुष्य कब बनाया हुआ नहीं है वह मंदिर से साक्षात देवताओं ने बनाया बृहस्पति जी ने जिनको गुरु कहते हैं में मौजूद देवताओं के गुरु है और वायुदेवता है इसीलिए उसको गुरुवायुर है कि गुरु और वायु का गुरुवायुर है तो जब में श्री विग्रह स्थापित हुआ वहां हो तुम बहुत की जान लोगे इन साउथ इंडिया से उसके दर्शन के लिए को इकट्ठा होता था और बहुत आनंद में रहने लगे थे 9th नारायण भट्ट जी ए कविता में लिखते हैं है कि कि उक्त Star श्रेष्ठ सिस्टर कि मैं यह समझता था कि भगवान जो सृष्टि की हैं ये दुनिया बनाया है यह केवल जीवन को दुख देने के लिए बनाए थे कि वह कहते हैं मैं पहले सोचता था की कोशिश या फिर सृष्टि और टेस्टी बॉक्सटर तहसील डिस्टिक ओं कि इतने एवं पूर्व मामलों सितम से पहले मेरी धारणा थी कि भगवान इस जगत को बनाए हैं जीवो को कष्ट देने के लिए है लेकिन है प्रभु जब से मैंने आप का दर्शन किया गुरुवार में को सबसे मेरी धारणा बदल गई थी कि अब यह विचार नहीं है कि कष्ट देने के लिए बाय नहीं यह सबसे बड़ा आनंद देने के लिए भगवान स्टिकी है कि यदि जीव कि सृष्टि आप नहीं करते हैं तो आपका इस चिन्ह मै कि आप प्राकृतिक जो स्वरूप है मैं इसको मैं अपने आंखों से अपने कानो से कि कैसे लोग पीते थे से साक्षात भगवान का दर्शन कैसे मिलता है है तो यह श्री विग्रहों के रूप में जो भगवान का दर्शन मिलता है यह बहुत बड़ा आनंद है कि इन नेत्र से और स्वत राय कौन से भगवान के गुणों को उनकी लीलाओं को सुनना ए परम आनंद है कि नेत्र से भगवान का दर्शन का आनंद कान से उनके कथा का आनंद और जिह्वा से उनके नाम का उच्चारण अइसा आनंद इतवार नंदा मध्य वर्धनम या आनंद समुद्र को बढ़ाने वाला है ए परम विजेता श्री कृष्ण संकीर्तन अम्म अ कि यदि टेस्टी नहीं हुई होती ए स्ट्रेंज लोगों को यह सौभाग्य कैसे मिलता है है तो यही सौभाग्य देने के लिए भगवान स्टिकी है अ है तो शीशी में मुख्य है भगवान् के नाम का जप करना कीर्तन करना और नेत्र से भगवान के श्री विग्रह का दर्शन करना है है और कौन से भगवान की लीलाओं को सुनना है कि यह अमृत श्रद्धा का समुद्र है एक बहुत बड़ा आनंद है इस जगत में है तो सही सृष्टि में यह सब चीज 1622 इसीलिए बड़े-बड़े आज चार जजों ने मंदिर बनवाया मंदिर में श्री विग्रह की स्थापना किया यह जहां में लाखों लोग आ सकते हैं तो भगवान का दर्शन करके आनंद प्राप्त कर सकते हैं भगवान का कीर्तन करके और कथा सुनकर के की जय गुरु भाई रुके श्रीकृष्ण को देखकर के नारायण भगत जी कहते हैं कि अगर जन्म नहीं हुआ वह तय हिस्ट्री नहीं हुई होते तो यह सब आनंद कैसे मिलता है कि भगवान का बापू मैं सिर्फ विग्रह चित्र सादरम् चित्र शहद कि कांसास बुलिश ओं कि चेन्नै आनंद है में विश्वास करना चाहिए इसमें श्रद्धा की आवश्यकता है बिना श्रद्धा के कि भगवान भगवान का नाम काम कर देता है लेकिन श्री विग्रह में श्रद्धा होनी चाहिए है कि यह भगवान हैं और हमारे प्रणाम को स्वीकार कर रहे हैं हमारे बैठ को स्वीकार करते हैं का प्यार सात है भगवान हमारी पूजा को स्वीकार करने के लिए ही और साफ वस्त्र धारण करते हैं है जिसे हम भगवान से कुछ कह सके अपना सुख अपना दुख है क्योंकि वही जगतबंधु है इस जगत के सभी जिलों के एकमात्र बंद हो एक मात्र माता-पिता भाई अपने मित्र सब कुछ वहीं है है इसीलिए इनको जगन्नाथ कहते हैं और बंधु जगत आम समस्त जिलों के बंधु है कि भगवान से हमारा संबंध है जगन्नाथ जिसे अ है और सबका संबंधित सभी जिलों के कि अगर नफरत शेरखान कि केवल मनुष्यों कहीं नहीं सभी जिलों के सबका पालन पोषण कर रहे हैं इन सबको जीवन दे रहे हैं मैं इसी विशेषता के कारण श्री कृष्ण का नाम है जगन्नाथ कि जगत के समस्त जीवन के कि वे बंधन है मैं स्वयं सर्व भूतानाम कि गीता में कि भगवान कहते है नंबर सभी जीवो का सुविध हूं आप सबका हित करने वाला हूं है और बदले में कोई अपेक्षा नहीं रखने वाला है कल सुबह दूसरे वह कहते हैं कि जो कुछ बदले में चाहे ना मैं अपनी प्रशंसा नाचा है या कोई पैसा ना चाहे तो हैं और बिना अपेक्षा कर जो हित करें है तो भगवान हमारे ऐश-ऐश विरुद्ध हैं कि जगन नाथ दैव कर है इसीलिए अर्चना विग्रह का प्रतिदिन दर्शन करना पूजन करना में कीर्तन करना है आवश्यक है है असली बंधु-बांधव का अर्थ है मित्र भाई माता-पिता और अपना जो भी संबंधित कहिए यह सब बंधुओं है है लेकिन कोई थोड़े काल के लिए कोई 5 साल के लिए कोई साल भर के लिए कोई सौंफ साल के लिए के बंधुओं को हैं लेकिन श्री कृष्ण हुए दे अनादिकाल से अनंत काल तक हमारे बंधु रहेंगे कि वह कभी स्नेह टूटेगा नहीं भगवान का कि जीवन का स्मरण करें या ना करें वे सदा स्मरण करते हैं कि मैं सदा इश्क का ध्यान रखते हैं कि यह जीव हमारे हैं ममैवांशो जीवलोके जीव भूता सनातना जगन्नाथ जी के विचार है ए माई वाहन सजीव बोतल जीव मेरा ही अंश है आज के वक्त लगा रहे हैं भगवान है को मेरा ही अंश या और किसी का नहीं है और जो संबंध संसार में हैं वे बिल्कुल भूल सफेद झूठ हैं कि हम केवल माल नहीं है मन में यह मनो मैं सब बंद है वास्तव में कोई संबंध नहीं है कि इस संसार में कोई व्यक्ति सोचता है कि यह हमारा भाई है यह हमारी पत्नी है यह हमारा बेटा है यह बिल्कुल सपना जैसा ब्रह्म है कि वास्तविक नहीं है एक विशेष अपना में यदि कोई व्यक्ति विवाह कर रहे कि उत्सव देखेगा कि हम जा रहे हैं ससुर विवाह हो रहा है तो उधर से करने आ रही है लेकिन जगने के बाद न तो विवाह है नंबर आता है न करने आए कुछ नहीं ऐसे ही यहां ब्रश हम संसार और संसार के नाता सभी क्षणिक है असली नाता कृष्ण से है जगन्नाथ जिसे है है और सरदार रहेगा कि हम चाहे याद करें या ना करें यह सब बंद रहेगा कि हमारी ड्यूटी नहीं है कि हम उस संबंध को याद करें जो आर्म का कीर्तन करें प्रणाम करें है अब दर्शन कर रहे हैं मैं तो अपना जो काम है वह करना चाहिए सबका अपना काम यही है भगवान का दर्शन करना भगवान की पूजा करना में तीर्थंकर ना 118 जप करना महामंत्र का कुछ देर श्री विग्रह इस जगत में स्थापित करके बहुत महान उपकार किया है आचार्यों ने है में सर्वत्र सुलभ है भगवान का श्री विग्रह ओर से जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ विराजते हैं हैं परंतु कहीं भी भगवान नारायण के रूप में भगवान श्री कृष्ण के रूप में भगवान श्रीराम के रूप में जगन्नाथ जी हैं वो तो ए इस जगत में यही बहुत बड़ा आनंद है यही बड़ा सुख है है और तो सब वास्तव में क्या कष्ट है आप पर इतना शुक्र है कि भगवान का नाम बोल रहे ना भगवान का स्मरण करना भगवान की कथा सुनना कि भगवान का दर्शन करना यह आनंद है है और इसको - कर दिया जाए तो सब केवल धोखा लग्न दुख है कि नारायण भट्ट तरी कहते हैं मैं पहले हमारी धारणा थी कि संसार दिखना है लेकिन अब नहीं है है क्योंकि अब भगवान का श्री विग्रह संसार में मिल गया अब दर्शन करना है और भगवान की कथा सुननी है मैं तो वही जगन्नाथ जी जो समुद्र के तट पर बिहार करते हैं जगन्नाथ पुरी में वह यहां रासबिहारी के रूप में प्रसिद्ध है हुआ है श्री रासबिहारी अ है जो रस में विहार करते हैं याददाश्त बिहार करते हैं एक राष् में अनेक ओम श्री गोपी और गोपियों के साथ कि मृतक करते हैं हैं और अपने ही स्वरूप बहुत मैं अपने से पृथक नहीं है गोपियां कृष्ण नहीं राधा रानी के रूप में हैं गोपियों के रूप में ललिता विशाखा के रूप में सभी गोपियों के रूप में और स्वयं मैं अपने साथ है नृत्य करते हैं को आनंद प्रदान करते हैं अपना आनंद है कि चिन्मयानंद ने में गोपियों के मन में बहुत काल से अभिलाषा थी कि हम सर्वस्व त्याग करके और कृष्ण के साथ हो जाए है तो भगवान ने स्वयं ही बांसुरी बजा करके उनको बुलाया है कि वे सर्वस्व त्याग करके कृष्ण के पास आ गई है और यह राशि बिहार में स्वच्छंद नीला है परम पुरुष की परम ब्रह्म की जहां कोई है लौकी के नियम नहीं है के समस्त मर्यादाओं से आयातित यह लीला है है तो ऐसे जगन्नाथ जी का श्री कृष्ण का अ के दर्शन करना थे और उनके सामने का कीर्तन करना नित्य करना को दीपावली की लीलाओं को सुंदर या बहुत बड़ा सुख है हुआ है ओम श्री भगवान कि जब कोई विशेष लीला करते हैं है तो उसका का बहुत महत्व होता था जैसे आज भगवान जगन्नाथ जी स्नान करेंगे स्नान यात्रा अ है और की दस तारीख को भगवान के रथ यात्रा है की रथ यात्रा के बाद है मैं अपने मौसी के घर गुंडेचा रानी के महल में चले जाते हैं कि तुम जगन्नाथ जी की अजीब ला ला कि वे बहुत खाते हैं मैं बहुत बार भोग लगता है है इसीलिए खाते-खाते बीमार हो जाते हैं कि जब बीमार हो जाते हैं तुम बीमारी के समय में जो दवाइयां दी जाती हैं वह भी बहुत बड़े भोग के रूप में बहुत बड़ा बड़ा आइटम है में बहुत मात्रा में दिया जाता है को तवे बीमारी से मुक्त होता है कि यह सब लीला है कृष्ण के अ कि जब भगवान भी अधिक खाने से बीमार हो जाते हैं यहां पर मनुष्य अधिक खाने से क्या नहीं बीमार होगा है इसीलिए खाने में कंट्रोल रखना चाहिए आम आदमी जितना खाकर के बीमार होता है उतना बिना खाए बीमार नहीं होता है को खाकर के ज्यादा बीमार होता है को भि देखा गया है कि देव भगवान शिव की शिक्षा देते हैं हिसाब से दिखाओ कि शरीर चलाने के लिए खाना है यह नहीं कि शरीर चलाएंगे खाने के लिए इस गाड़ी में पेट्रोल डालते हैं गाड़ी चलाने के लिए हैं कि ऐसा नहीं है कि गाड़ी चलाएंगे पेट्रोल पीने के लिए आ इस गाड़ी में पेट्रोल डालने के लिए कि अगर बिना पेट्रोल के भी गाड़ी चलने लगे तो कौन आदमी डालना चाहेगा है ऐसे ही कम खाकर के या हवा पीस करके भी यदि शरीर चल जाए मैं तो बहुत अच्छा है हैं नारद जी कहते हैं इस उस राज्यसभा में महाराज युधिष्ठिर से मुझे आश्चर्य है कि लोग पानी पीकर कहीं क्यों नहीं रह जाते हैं को आश्वस्त करते हैं ना राज्य कि उनका तो शरीर चिन्ह है और उस तरह सकते हैं वो कहते हैं कि जो मनुष्य बारिश से पानी से भी क्यों नहीं संतुष्ट हो जाता है मेरे दोस्त यदि पानी पीने से संतोष ना हो तो ठीक है कुछ भोजन कर लिया जाए लेकिन अब इस पूरे पेट भरकर के भोजन न किया जाये क् है योग शास्त्र बताता है कि है आधा पेट कौन से भरना चाहिए है और चौथा ही अपने पेट को पानी से भरना चाहिए है और हवा में आने-जाने के लिए छोड़ देना चाहिए था यह कि चौथाई भाग खाली रहे हवा की जगह चाहिए ना पेट में जाने के लिए में सांस प्रश्वास के लिए है मैं तो केवल रीसेंट परसेंट इस पेस्ट को भर दिया जाएगा अन्न से तब बीमार नहीं होगा आदमी क्या होगा विनर तो होगा है है 25 प्रतिषत पेट का अंश हवा के लिए रहना चाहिए है और 25प्रतिशत में जेल है और केवल आधा पेट खाना है कि यह को जीने की कला है कि भगवान उसे बताया भगवान कपिल देव ने माता देवहूति से बात बताया है कि इस तरह से खा करके और भगवान का भजन करना चाहिए हुआ है और हरे कृष्ण जाई श्रीला प्रभुपाड़ा और हरे कृष्ण महाराज जी की कि हाजी मेरा प्रश्न है यह है कि एकादशी होती है वह मायापुर में रहते हुए मनाते हैं वृंदावन फिफ्थ ऐसी करते हैं मैं जगन्नाथपुरी में एकादशी कहां क्या है कोई भक्त लोग बोलते नहीं वहां उस कि वहां भगवान के प्रसाद की महिमा अधिक है कि जगन्नाथ जी भारत खाते रहते हैं है तो जगन्नाथ का भात जगत पर सारे हाथ कि भगवान का प्रसाद बहुत दुर्लभ ऐसे ले जगन्नाथ पुरी में अपने मित्र यह इस पैक आदर्श ही नहीं रहा रखा जाता है है लेकिन अब हम इसका उनके भक्त वहां भी यह कार जैक रखते हैं है जो प्रभुपाद जी का आदेश है वहीं करना है हम लोगों को ए पर्सन नियम बहुत है ये सारी दुनिया में दिख जाए तो आने का पंप हैं अनेक प्रचार है नेक्स्ट संप्रदाय हैं है लेकिन हमें चलना है अपने ही ट्रैक पर हमारा ट्रैक कौन है जो श्रील प्रभुपाद ने कहा है बस है अतः चाय जगन्नाथ पुरी में है चाहे मायापुर में या वृंदावन में एकादशी तो करना ही है में सवार लोग नहीं करते हैं है तो अब उनका ट्रैक है वह जैसे एज बढ़ रहे हैं है लेकिन हमारा पथ है तो श्रीला प्रभुपाद में निश्चित किया है है वहीं करना है कि एकादशी अवश्य करना चाहिए कि अकादशी को एक विशेष भोजन करना चाहिए उसको हरिवासर देती है उस कहते हैं या माधव तिथि थी है ऐसे तो पूरा जीवन कृष्ण के लिए है भजन के लिए है लेकिन उसमें भी एकादशी तो और कोई काम करने के लिए नहीं है केवल नाम जपने के लिए और भजन के लिए है और हर भोजन के लिए नहीं है है ऐसा नहीं कि एकादशी को भोजन नहीं करेंगे अब क्या कर एकादशी को फास्ट में करके ऑफ टेस्ट करेंगे है यहा ज्ञान है है या धर्म का उल्लंघन है वास्तव में कि यदि उपवास न रख सके तो ज्यादा से ज्यादा जलते हैं को जल भी अगर प्रयत्न ना पड़े तो थोड़ा खत फल खा ले कोई अग्नि पर पकाया हुआ कोई भोजन ना करें कि एकादशी को याद रखना चाहिए है याद रखिए कि अन्य तिथियों पर जो भजन किया जाएगा है वहीं भाजपा ने दी एकादशी को होता है तो उसका ज्यादा महत्व होता है हजार गुना ज्यादा है कि हर कोई जाप दान तपस्या है कि यदि मन में किया जाता है वृंदावन धाम में मायापुर में तो उसका हजार गुना फल होता है कि यदि कि वृंदावन में कोई एक माला जप करता है तो हजार माला कल लाभ होता है है इसका आशय यह नहीं कि वह अब एक मामला उस जपले और सोचें कि अब तो 16 माला ही इसमें हजार माला इंक्लूडेड है तो 16 क्यों नहीं है है तो अन्य अतिथियों की अपेक्षा एकादशी महारानी का बहुत महत्त्व है कि उत्तरप्रदेश या नहीं खाना है को और अधिक जप करना है भी पढ़ना है हुआ है है और भी अनेक प्रकार की भक्ति है तो वही करना चाहिए एकादशी को कि हरिकृष्ण के विषय में मत देखिए हैं क्या करते हैं प्रभुपाद ने क्या कहा है वहीं देखना है कर दो कि हर समाज पार्टी और प्रश्न है जगन्नाथ पुरी में विदेशी लोगों को अलाउड नहीं अंदर दर्शन के लिए क्या वह लोग ऐसा बोलते हैं सुना है कि वह लोग विद ए जगन्नाथ जी विदेश चले जाएंगे तो इसलिए उन लोगों ने ढेर विदेशी लोगों को अंदर अमेरिका ना लेकर लोग चेक करते हैं कि वह हम नहीं जानते हैं क्यों क्यों नहीं जाना जाता है इस पर भगवान चैतन्य महाप्रभु भी कि उस नियम को मानने अ का रूप गोस्वामी सनातन गोस्वामी कि अज्ञेय एक हिंदू परिवार में सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे है है लेकिन वे मुसलमान के यहां नौकरी करते थे बहुत बड़े बड़े पद पर थे है कि आप सब छोड़कर के वे भक्त हुए हैं है तो चैतन्य महाप्रभु उनको भी नहीं कहा कि तुम मंदिर में प्रवेश करो जो कि चैतन्य महाप्रभु का बहुत बड़ा प्रभाव था कि वे चाहते तो राजा को आज्ञा दे सकते थे महाराणा प्रताप रूद्र को कि इनको मंदिर में जाने दो है लेकिन भगवान चैतन्य महाप्रभु ने नहीं कहा था हैं यह लोग जगन्नाथ पुरी जाते थे सनातन गोस्वामी और रूप गोस्वामी ज कि ट्रेलर कि हरिदास की तरह हरिदास ठाकुर की कुटिया में ठहरते थे मैं तुझे तन में प्रवेश एंव वहीं जाकर दर्शन करते थे उनसे भेंट करते थे है तो चैतन्य महाप्रभु मैं इसको ने इसका विरोध नहीं किया यह सामाजिक नियम था खैर तो नियम ठीक है जैसे भी बना होगा तो ठीक था तभी ने चेतन महापुरुष का अनुमोदन किए है अरे हरिदास ठाकुर को नहीं कहा कि तुम जाओ मंदिर या मेरे साथ चलो की रथयात्रा के समय सभी को जगन्नाथ जी का दर्शन हो जाता था है लेकिन मंदिर में जाना है मना था हुआ है है तो उसके विषय में हम क्या कहें जो कि भगवान ने किया है चेतन महाप्रभु ने अ है वहीं मानना है चाहिए तबीयत ठीक है है जो सामाजिक ट्रेडिशन है उसको तोड़ना नहीं चाहिए हमें इन जगन्नाथ जी तो सुलभ हैं कि भारतवर्ष के प्रत्येक शहरों में हर गांव में भी इन जगन्नाथ जी की रथयात्रा होती है कि आप श्रील प्रभुपाद की कृपा से जगन्नाथ जी समुद्र पार करके चले गए हैं अमेरिका में इंग्लैंड में कि कनाडा में में कि आस्ट्रेलिया में सब जगह है तो वहां उनका दर्शन कर सकते हैं कि यह कोई जरूरी नहीं है कि जगन्नाथ पुरी में मंदिर में घुसकर दर्शन करें ई कि नहीं कि जगन्नाथ जी अगर आ रहे हैं अपने घर तो वही दर्शन करें अपने देश में करें अ है और कोई नियम कि को तोड़कर के यह सा नक्श सोचें कि हम बहुत बड़े भक्त हो गए कोई भी भक्त होगा हरिदास ठाकुर से बढ़ा तो हो नहीं पाएगा और रूप गोस्वामी सनातन गोस्वामी से सब पीछे ही रहेंगे है तो यह अभिमान नहीं करना चाहिए हम तो प्योर हैं हम भक्त हैं हमको जाने में क्या हर्ज है मंदिर में जाएंगे हेलो हेलो इस तरह से करेंगे तो फिर मंदिर वाले धक्का देकर के गाली देते हुए निकाल ही देंगे अब का स्वेटर चैतन्य महाप्रभु कौन मारने के लिए दौड़े थे जब चैतन्य महाप्रभु प्रथम बार गए जगन्नाथ मंदिर में कि के भावावेश में थे वे जगन्नाथ जी का आलिंगन करने के लिए चल दिए हैं कि तालिबान कर नहीं पाए मंदिर में गिर गए बेहोश हो गया है तो उन लोगों ने समझा मंदिर के पंडों ने समझा कि मर गया है वो बेहोश हो गए हैं कि तुम भरना चाहते थे निकालो निकालो कि मंदिर से बाहर पर उसी समय सर बम भट्टाचार्य आ गए 200 उन्होंने देखा लक्ष्मण से समझ गए कि एक कोई महापुरुष हैं है और कृष्ण भक्ति का विकार है मरे नहीं है और जूही कि नाक के पास ले जा करके देख अब जूही है तो उसमें स्पंदन भावेश चल रही थी कि थे तब वे अनुवाद करके कुछ लोगों से भगवान को अपने घर ले गए आप तो आजकल के भागते दिए सोच है कि हम तो प्योर है हम तो भगवान का नाम जपते हैं है तो कोई कितना जपता है क्या हरिदास ठाकुर से बढ़कर जप लिया मैं अपने अंदर दीनता होने चाहिए हरिदास ठाकुर सोचते थे कि मैं तो आप धाम हूं मैं जवन जाति में जन्म दिया है कि आप तो भगवान के मंदिर में क्या उस अ रास्ते पर भी जाना मेरे लिए उचित नहीं है जिस पर जगन्नाथ जी चलते हैं कि एग्जिस मार्ग में पुजारी लोग आते जाते हैं वहां भी जाना ठीक नहीं है हमसे कोई छुपा जाएगा हमसे महापाप हो जाएगा कि तुम जो मूढ़ सनातन गोस्वामी का था कि हरिदास ठाकुर का था वहीं मूड होना चाहिए कर दो कि यदि हमको परमिशन होता है दर्शन करने का तो करें नहीं तो में जगन्नाथ जी का स्मरण करें और उनके चक्र का दर्शन करें मंदिर के शिखर का दर्शन करें तो कभी मंदिर में बने हुए नियमों की अवहेलना न करें जैसे आप के मंदिर में यदि कोई व्यक्ति बाहर का यार है और कहें कि मैं बहुत शुद्ध हूं मैं ब्राह्मण हूं कि मैं मांस बैंक खाता मैं प्याज लहसुन नहीं खाता हूं मैं स्नान करता हूं ठीक हूं मैं आपके ड्यूटी रूम में जाऊंगा आप बीटी का चरण छू सकता हूं तो क्या आप अलार्म करेंगे नहीं क्योंकि नियम है कि पहले श्री घनश्याम लेकर के ब्राह्मण हो जाओगे और वह भी हमारे स्किन के गुरुद्वारा तब तुमको एडमिशन हो मिलेगा है अरे हमारा नियम है तो उसी तरह से नियम है जगन्नाथ जी के मंदिर में जैन मंदिर के नियम है उसको हमें अपने करना चाहिए उसका पालन करना चाहिए अ अजय को है उसमें दृष्टि से नहीं करना चाहिए हैं यह लोग मंदिर में घुसने नहीं देते हैं है और उसके पीछे एक इतिहास है कि उड़ीसा फाल का इतिहास बताता है एक बार कि एक मुसलमान इस मंदिर को तोड़ दिया था और जिसने कोणार्क मंदिर को तोड़ा है कि कोणार्क को क्षतिग्रस्त कर दिया बिल्कुल अब जगन्नाथ जी के मंदिर को भी तोड़ने की कोशिश किया है कि भ्रष्ट थोड़ी सी हानि कर दिया है लेकिन ओम श्री हनुमान जी गलत दिए सगीर करके भाग गए हैं हुआ है है तो उसी समय से मुक्ति मंडप नए निर्णय लिया जो ब्राह्मणों की सभा है है जिसका मुक्ति मंडप कहते हैं प्रभु जगन्नाथ पुरी में तो ब्राह्मणों ने नियम बना दिया है कि इसमें कोई भी है हिंदू जाति से भिंड शहर मुस्लिम क्रिश्चियन व्यापार सी कोई भी और इसमें प्रवेश नहीं मिलेगा कि उन्होंने मंदिर की रक्षा के लिए जगन्नाथ जी की रक्षा कड़े नियम बनाए थे है तो नियम बड़े ही कि सोच-समझकर बनाया गया और उसमें हम लोगों कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए कि जो नियम है सब अच्छे हैं हुआ है और हरे कृष्ण महाराज जी मैं अपने जगन्नाथ के प्रसाद के बारे में कहा महिमा बताई बंद हम देखते हैं कि बहुत सारे भक्त लोग प्रसाद खाते हैं वह सिर्फ देखते हैं तो उस परिणाम क्या होता है को फेंकते हैं कि हमारे आश्रम में भी हम देखते बहुत सारे भक्त और प्रसाद लेते अब बाकी कुछ जो ने पसंद व फेंक देते हैं ने अपनी पसंद के अनुसार खाते हैं तो फेंक देने के बाद उसके परिणाम क्या है हुआ है कि फेकना तो नहीं चाहिए एक अदद प्रसाद के बहुत जीव अधिकारी होते हैं ना ऐसे कुछ पक्षी हैं कुछ कुत्ते हैं कुछ आदमी हैं कि प्रसाद जथाजोग बांट देना चाहिए इतना नहीं चाहिए कि एक में पर तो अपराध लगेगा अ हैं परंतु प्रसाद समझकर के आवश्यकता से अधिक पेट में कर्णय भी ठीक नहीं है कर दो और प्रसाद के में बहुत अधिकारी हैं बहुत जीव है हैं तो उनको देना चाहिए था जो कि अ कि पहले तो विवेक होना चाहिए जितना हम खा सके उतना ही लें को खाने वाले को इतना चेतना रहती है ना कि मैं कितना खाऊंगा है तो खाने के पहले का स्टीमेट करने चाहिए इतना खाऊंगा मैं कि अगर उसमें से कतराते छूट जाए है तो अन्य जिलों को दे दें है लेकिन इतना ना छूट जाए कि जो हमारे इस्टीमेट से बहुत बाहर हो कि इस प्रकार जिसको यह अंदाज नहीं है कि मैं कितना खाऊंगा और यह भी ज्ञान नहीं है कितना खाना चाहिए वह तो बिल्कुल पशु जैसा है हुआ है एक सुपर उसने वाले को भी ध्यान रखना चाहिए कि यह व्यक्ति इतना खा सकता है अब से दुगना पत्तल में डाल देना भी ठीक नहीं है हुआ है कर दो में चुप प्रसाद ए ड्यूटी के समान आदरणीय है भगवान के समान है है तो सबके लिए है ना वह है जहां तक हो सके प्रसाद बांटना चाहिए प्रभुपाद जिन्हें इसके लिए यह सब दिए डिसटीब्यूट प्रसादम कि डिस्ट्रिब्यूट में तो दो ही डिस्ट्रिब्यूशन है डिस्ट्रिब्यूट ब्रुक्स डिस्ट्रिब्यूट प्रसादम कि प्रसाद बाटू प्रसाद व इट प्रसादम कि यह बहुत कम जगह पर पहुंचने कहा था कि प्रसाद बनना चाहिए जिसको हम विस्तार कर सके अधिक से अधिक जिलों को मिल सके अब और अधिक से अधिक मनुष्यों का अ हुआ है मैं इसी में हमारी महत्त्व है है अरे महाराज आदि बोला गया से जुड़ी गौर अ अ आम आदमी जो मर्जी से बोला गया यही गौरव श्री कृष्णा सही जगन्नाथ जगन्नाथ मेहुल कृष्ण है गौतम हुए अजय नितांत जो एरो बड़गाम चाहिए सूर्य नारायण को मालूम नहीं है और आपको मालूम नहीं सुभद्रा जी भगवान की खास बाह्न है ने गौरंगा के लाना है क्या है अजय को भी आप पूछ रहे हैं जैसे कृष्ण जगन्नाथ हैं आज इंगोर चंद्र हैं तो सुभद्राजी चेतन लीला में क्या है घ्र क कि हम केवल इतना ही जानते हैं कि कृष्ण-बलराम हां भाई हैं और सुभद्रा जी बहन है है अब जो बात मालूम नहीं है तो इसको हम क्या बता रहे थे कि जो भी बताएंगे तो गड़बड़ बताएंगे इसलिए नहीं बताओ ना कि जब मालूम नहीं है तो मैं कहता हूं कि मुझे मालूम नहीं है कि आज और एक क्वेश्चन है जैसे कि मुझे डर बंद में एक माला करेगा तो मिलता है कभी भी स्किन के वक्त किनारे अच्छा है हम पानी में रहेंगे धाम में रहेंगे लेकिन रूपा जी बोलते हैं इसे पलट वाले बताते हैं कि हम इस बीच बाजार में रहेंगे जहां पर माया का नगर यह हम वहां रहकर प्रचार करेंगे पवन शर्मा करेंगे कल की भक्तों की चाहत है कि हम लोग बुद्धि देंगे लेकिन तो हम पिज्जा प्रॉपर्टी पर फट में लिखें कि जो ज्यादा हो जाएंगे तो गड़बड़ जाएगा थोड़ा में गड़बड़ करेगा तो फस जायेगा तो इसका वर्णन सब बताएंगे तो अच्छा रहेगा तो है तो प्रभुपाद जी ने कहां है कि वृंदावन का सेवन करना चाहिए है लेकिन में बहुत ज्यादा रहने से यदि अपराध हो तो से ज्यादा नहीं रहना चाहिए यहां पर हम इतने समर्थ नहीं है गए हो गए थे कि हम इस बीच माया के नगर में रहेगी कि आम क्या नगर में बहन माया के इस नगर में कि हमारी दुर्दशा हो जाएगी कि वह बहुत बड़े-बड़े भक्तों के लिए है कि कि माया मैं रहा हुं समाज में और समाज का प्रभाव न होने दो कि समाज को चेंज कर दो की रक्षा के लिए संभव नहीं है इसीलिए भगवान के धाम का आश्रय लिया जाता है है जैसे कोई कहे कि हम मंदिर में रहने की क्या आवश्यकता है कहीं भी कोई रहे सब जगह भगवान के भक्ति हो सकती है में हवा शक्ति है लेकिन मंदिर में जो सुविधा है है जो भगवान के बारे में सुनने को मिलता है कि रतन मिलता है दर्शन यह सब चीज सुलभ नहीं है सब जगह जैसे ही भगवान के धाम में स्पेशल फैसिलिटी है कृष्ण का स्मरण करने की थी है जैसे गिरिराज परिक्रमा करना है वृंदावन की परिक्रमा करनी है और वहां सब लोग यही करते रहते हैं इसलिए स्वभाविक ही अपना मन रम जाता है हुआ है हुआ है है अरे विष्णु महाराज जी महाराज ने अपने प्रवचन के प्रारंभ में बताया कि जगरनाथा अष्टकम चेतन्य महाप्रभु गौरांग महाप्रभु के द्वारा उद्धृत है और हम वैसा जानते हैं कहीं किताबों में भी ऐसा लिखा है कि यह सिर्फ आदि शंकराचार्य के द्वारा लिखा गया है वह स्वच्छता करेंगे कि मैं हम तो यही पड़े हैं जगन नाथ अश्क तक चेतन महाप्रभु के मुख से निकला है हैं जैसे कि मैंने चर्च में थोड़ा आगे आने के लिए प्रेरित करने है कि गया था तो वहां पर बताया कि सबका गुरु से एक ही गोल है और जब अब इस्लाम के आदमियों से बातें किया तो उन्होंने भी बताया कि एक हिस्सा एक खुदा है मगर हमारे हिंदू धर्म में देखा जाता है तो 33 कोटि देव पर रियल क्या है एक ही गुरु हमारा कृष्णा है कि बजरंगबली है काली मां है दुर्गा मां है सिर्फ हिंदू धर्म में इसके बारे में पूछना था श्री कृष्णम वंदे जगत गुरु कि एक नहीं गुरु है कृष्ण लेकिन उसकी परंपरा है कृष्णा ने ज्ञान दिया ब्रह्मा जी को ब्रह्माजी ने नारदजी को दिया नारदजी ने व्यासदेव को दिया है व्यास देव जी ने मध्वाचार्य को दिया है है इसके बाद बहुत से परंपरा में लगाया है है तो बहुत गुरु हैं इस परंपरा का ज्ञान उन लोगों को बिल्कुल नहीं है है इसलिए कहते हैं एक गुरु हैं वह है गॉड यह कहने का मतलब है कि तुम किसी को गुरु मत मानो तो भगवान को गुरु मान हो और भगवान क्या है वह शून्य है कोई आकार नहीं है मैं तो कभी नहीं बोला है ना आगे बोलेगा वह गुरु कैसा है कि यह सब थर्ड क्लास का विचार है कि आप गलत जगहों पर जा करके सोएं दिये मगर यह श्री साईनाथ अभी तो बोला सबका मालिक एक है के मालिक एक है है लेकिन आप एक और जगह जाकर कहिए कि कोई मालिक नहीं है कोई कंपनी चलाने वाला नहीं है कि तुम हां काम चलेगा वहां तो मालिक स्वीकार करना पड़ेगा जॉब के लिए काम के लिए लेकिन तत्व होता है मालिक सबका सारे जगत का एक कही है और ठीक है कि ऑल रोमांटिक है कृष में उसका नाम है उसका रूप है उसके कुछ कर्म है दिलाएं हैं कि ऐसा नहीं को बालिका हवा जैसा हो गया अब कोई आकार नहीं कुछ नहीं कि के सबका मालिक एक तो उसका नाम क्या है कृष्ण कि सभी कृष्ण के दास हैं चलिए मेरे पूछने का मतलब यह था कि जैसे बुड्ढा हो गया बुड्ढा धर्म में विशेष है कि गुरु को मानते हैं कि हमारे जो कंचन है उसमें सिर्फ हम किसको माने कृष्ण का अनुमान है कि 33 कोटि देवी को माने तो कि भगवत गीता परिचय सुननी है है तब पता चलेगा ना हुआ है ओम श्री कृष्णा परंपरा को स्वीकार करते हैं कि नहीं आ कि आप यह विधि को मानते हैं कि नहीं कि एक व्यक्ति ज्ञानी है वह फिर दूसरे को ज्ञान दिया तीसरे को गेम देश को मानते हैं ना कि स्कूल कॉलेज में पढ़े हैं गए हैं है तो वहां को पढ़ाने वाले के एक परंपरा होती है कि एक व्यक्ति पड़ा करके आया है ऊपर प्रेशर रह पढ़ाता है उससे फिर दूसरे पड़ते हैं कि पिछले पड़ते हैं इस तरह कई टीचर हो जाते हैं हुआ है मैं तो वैसे भी सबसे श्रेष्ठ गुरु से कि अगर कोई पड़ा है जैसे ब्रह्मा जी पड़े हैं है तो उनसे फिर नाराजी पड़े बनारस जैसे व्यास ली पड़ेगा और व्यास जी ने बहुत पाठशाला खोलकर के पढ़ाया लोगों को कि इस पद्धति को मानते हैं ना कि यह कहना बहुत आसान है कि आडवाणी करने के लिए और ने गुरुओं को किस्सा ए कहीं गुरु है परमात्मा है ए ट्रिप परमात्मा का ज्ञान की परंपरा नहीं चालू कर सका एक ही ज्ञानी है और बस ज्ञानी बना रहेगा मैं तो किसी को ज्ञान नहीं देगा है लेकिन हमारे कृष्ण तो ज्ञान दिए अनेक दृष्टियों को और ऋषि यों ने फिर अपने शिष्यों को ज्ञान दिया है कि इस तरह से भगवान का ज्ञान परंपरा द्वारा आता है जैसे गंगा जी का पानी नहरों से अ कि खेत में पहुंच जाता है 200 ऐसे ही परंपरा होती है भगवान का ज्ञान कि अब तक आ रहा है अजय को कि आप उनसे पूछ नहीं के भगवान तो गुरु है तो उसका कोई ग्राम है उसका को उपदेश है है और उसको कोई ग्रहण किया कि नहीं भगवान कैसा गुरु है कि एक भी चला नहीं बनाया था थे ऑर्डर तो किसी को ग्रुप बनने दिया है लुट है कि मैं कि मैं हैं देखना है मेरा टैब कहां पर पैदा हुआ और सुनाओ है इसलिए वह तो कहने का मतलब है कि मैं भगवान हूं मेरे हृदय में है मेरे हृदय में है और मैं हूं लुट गए कि वह सब बकवास है और कुछ भी बोलते हैं तो ठीक नहीं है ठीक है भगवत गीता ऐड पीस आप भगवत गीता के बात को स्वीकार करने चाहिए और उसके अलावा उसके विरुद्ध जो है वह बकवास है हुआ है हुआ है कि मैं को अधिकृत मंदिर देखना है मैं इतना कठोर के सारे भगवान का पूछते हैं और हमें आपके जैसे गुरु भी बताया था कि दूर कोई ऐसे भी हैं कि दुर्गा को नहीं पड़े करके भगवान को पूछो श्रीकृष्ण बहुत बार मैंने सुना हूं बैक रिसेंट फोरम स्वर्णा और उनके अधीन अनेकेश्वर हैं उसे अनेक लोग घृणा को मारने की 33 कोटि देव ने हमारे जो हिंदू कल्चर में है कि जैसे वो लोग मानते हैं कि हमारे गुरु है वह जिस पद पर हैं जैसे स्थिति है उसके अनुसार मां ने है के देवता हैं वे अधिकारी हैं इस संसार में लेकिन मैं ग्रेड है कि कौन किस पावर कहा जैसे देश में यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति है और तो और भी लोग देश में कुछ बड़े पदों पर हैं उसे गवर्नर है किसी राज्य में की तरफ पूछेंगे कि हम किसको मान रहे हैं की प्रॉब्लम को भी मांगी लेकिन गवर्नर माननीय राष्ट्रपति को माननीय राष्ट्रपति ग्रुप में या बैंक की किसी को भी राष्ट्रपति मांग लिए और राष्ट्रपति को इग्नोर करना गया और प्रिया अब्राहम है बल्कि राष्ट्रपति को आप जाकर प्रचार के लिए वह निराकार है ए गुड कोई रूप नहीं है उसका अ कि यह गलत बात होगी जो जैसा है उसको उस रूप में मानना है अजय को में बहुत देश में आदमी है सबको मानना है ना है लेकिन जूस रूप में है उसी रूप में माने कृष्ण सर्वेश्वर हैं परम ईश्वर हैं है और देवता पुष्प छोटे-छोटे पौधों पर हैं अधिकारी हैं लेकिन भगवान कृष्ण के अधीन हैं तो सबका मालिक एक कृष्ण यह बात करते हैं जी हां गुरुदेव मेरा एक प्रश्न है कि जो पांडवों का जो दुख था कसता है कि उनके पिछले जन्मों का यह था या भगवान का विस्तार से कुछ नहीं मैं तो भगवान के पार्षद पांडव कि उन पर कोई कि आगे पीछे का पुण्य पाप नहीं था तो हम समस्त कर्मों से मुक्त थे भगवान की इच्छा से उनको दुख हुआ है इसी कारण से कुंती महारानी जो पांडवों की माता है कि वह भगवान से मांगते है कि हमको हमारे जीवन में बार-बार विपत्ति आती रहे हो कि कोई विपत्ति थोड़े मांगेगा भगवान शिव लेकिन मांग रहे हैं है क्योंकि विपत्ति में भगवान सहायता करने आते थे मेरे प्रिय भगवान की इच्छा थी अपने कर्म का फल नहीं थे कि पांडवों के जीवन में मिथुन नीति पार्षद थे अ और हरे कृष्णा प्रभु जी ओ कि प्रभु जी हम यह पूछना चाहते हैं कि आप है जैसे वेद और पुराण यह सत्यता प्रमाणित करते हैं है तो अगर वेद और पुराण में जो इन के रचयिता हैं शायद हम उतना ध्यान नहीं है वेदव्यास जी महाराज जी हैं तो वह तो प्रभु के बहुत बड़े भक्त खुद ही मेह उन्हें तो शायद ज्ञान होगा कि भगवान कौन है और इतने बड़े ज्ञानी महापुरुष उन्होंने बे ड य वेद और पुराण की रचना की रचना करने के बाद उन्होंने इस भ्रम में पूरे समाज को डाल दिया कि शिव पुराण में लिखा विष्णु पुराण लिखा नाना प्रकार के पुराने लिखे उन्होंने अगर भगवान एक ही है तो नाना प्रकार के पुराने लिखने की ज़रूरत किया थी अगर पुराण दिखे भी थे रास्ता मार्ग उन्होंने दिखाया भी तो ठीक है तो एक ही जन को केंद्रित करते जो की सर्वश्रेष्ठ थे और वह सर्वश्रेष्ठ है श्रीकृष्ण भगवान टोनी को केंद्र में रखते हैं लेकिन उन्होंने कभी पुराने सूजी को केंद्र में रख दिया विष्णु पुराण में विष्णु जी को केंद्र में रख दिया गरुड़ पुराण में और किसी को केंद्र में रख दिया तो सबको उन्होंने केंद्र में रखकर के और समाज अंदर एक भ्रमित प्रश्न जो डाल दिया है यह कहां से इतने बड़े महापुरुष की कहां से यह अज्ञानता थी उनकी की अज्ञानता थी यह समझ में नहीं आता है नहीं और अभी तक लोग भ्रम में है सुनिए उन्होंने जो कुछ लिखा है और सबके हित के लिए लिखा है में ही प्रभु जी समझ में आए तो ही होना जब समझ में आता ही नहीं है तो हिट कहां से पैदा हो समझ में नहीं आता है तो उसको समझाने की कोशिश किया है मेरे सारे के ग्रंथों के साथ और कुंठा ब्रह्म सूत्र रख दिया सूत्र और फिर ब्रह्मसूत्र भी कठिन पड़ गया समझना तो उन्होंने स्वयं भाषण लिखा कि ब्रह्मसूत्र की टीका किया है कि वह है श्रीमद् भागवतम् कि मुझे तो जो शिव पुराण पड़ते हैं और शिवजी की महिमा को बड़ा समझते हैं है या गरुण पुराण पढ़ते हैं वहां पर विष्णु जी की महिमा है तो इन पुराणों को केवल पढ़ लें इसके ऊपर में और लॉकर ना करें इसके बारे में ध्यान रखें क्या केवल पढ़ने के लिए है बस इसको मतलब व्यवहार में लाने के लिए नहीं है कि हम शिवजी को शिवपुराण कर लिया है है तो फिर जी को यह सुप्रीम मानने वाले लोग है उसको पढ़ें पड़ने से फायदा यह होगा कि कम से कम और सदाचार आ जाएगा जीवन में जो शिवजी को सुप्रीम मानते हैं हैं तो उसके अनुसार तो जैसे मान सुना खाना है और दुराचार देना करना इतना सीखेंगे शिवजी को बढ़ा मानेंगे तो है क्योंकि कुछ जीव कुछ मनुष्य ऐसे हैं जो तमोगुण में ही रहते हैं और वह यदि कृष्ण को आप बढ़ा बताइए तो उनके समझ में बात आएगी नहीं है अतः शिवजी को बड़ा बता करके उनकी मति को शिवजी के अनुसार थी जाते हैं कि यह पद्धति है वेदों की अ और फिर तमोगुण से रजोगुण पर आए और रजोगुण से सत्त्वगुण में आया और सद्गुण से फिर निर्गुण अ के गुणों से रहित स्थिति है तो जो व्यक्ति तमोगुण में है उनको तमोगुणी देवता को ही बताना होगा और रजोगुण में हैं तो उनको रजोगुणी देवता का का परिचय देना होगा है इसीलिए पुराणों में इतना भयभीत है अ सब प्रकार के मनुष्यों पर दृष्टि है व्यासदेव कि अ कि अगर आप कह दीजिए कृष्ण के भक्ति करो तो अधिकांश मनुष्य तो है तमोगुण में है वह इस बात को नहीं मानता आएंगे क्यों नहीं मान पाते हैं प्रकट दिखाता अगर कहा जाता है कि स्नान करो करना चाहिए तो कुछ लोग तो यह भी नहीं समझ पाते हैं और दान की क्या जरूरत है तो क्या बिना स्नान किया नहीं खा सकते हैं अरे खा सकते हो है तो आप दुनिया में प्रचार करके देख लीजिए है कि अधिकांश तमोगुणी मनुष्य है संयुक्त तमोगुण में रहना अच्छा मानते हैं तहसील लिए तमोगुणी देवता को ही सुप्रीम मानकर के चलते हैं है इसीलिए पुराण में भी कभी कमी कि शिवजी की तो कभी गणपति जी की एक अकवि माता दुर्गा के अ की प्रशंसा की गई थी कि केवल उस कैटेगरी के लोगों की मति को लगाने के लिए हायर करने के लिए कि एक्स वीडियो नीचे जैसे हम बड़े ऊंचे भवन पर चढ़ना चाहते हैं तो कई श्रेणियां होती हैं तो पहले से लिए दूसरे ऐश्वर्या तीसरी ऐसे ही बढ़ते बढ़ते हैं पहले हम है तमोगुण से मुक्त होंगे तो एकाएक निर्गुण नहीं हो पाएंगे अ मैं इक प्रकृति के गुण को नहीं पा सकते हैं तो इसलिए है भले रजोगुण में जाएंगे रजोगुण में से फिर विकास करके तब शतगुण में आएंगे और सद्गुण के बाद तब निर्गुण प्लेटफॉर्म सेंस डेंटल आ कल सुबह व्यास देव की यही पद्धति है उन्हें इस तरह से हितकिया समग्र मानव जाति का अ अब आप जरा विचार कीजिए सारे संसार में जितने मनुष्य हैं उसमें अधिकांश का मांस खाते हैं और बात मान सही नहीं गौ मांस भी खाते हैं की बजाय जल मनुष्यों को यदि है तमोगुण है तमोगुण से उठाने के लिए किसी रजोगुणी देवता का वर्णन किया जाए मैं तो खुद उसके चलते अगर मांस खाना छोड़ दें ए ब्रीफ खाना छोड़ दें तो एक स्टेप आगे बढ़े ना अ है तो यह व्यास देव की पद्धति है कम से कम भगवान शिव के भाग पर तो तो गौ मांस नहीं खा सकते हैं 111 स्टेप विकास हुआ नाम कि इस तरह से करते-करते धीरे-धीरे वे सभी दुर्गुणों से पार हो जाएंगे मैं निर्गुण मतलब गुणों से परे लेना है जीव को उठाना है कि मैं बंधन क्या है प्रकृति के गुणों में हम फंसे हैं है तो गुणों का अतिक्रमण लायक नहीं किया जा सकता है के क्रम से होता है कि प्रभु जी जैसे शिवजी को सुप्रीम मानकर अगर शिव के नजदीक मतलब उनकी तपस्या में उनकी कृपा से वहां तक पहुंच गए और अंत में शिवजी ने यह कहा कि हम तो सुप्रीम नहीं है सुप्रीम तो कृष्ण चाहिए तो बचपन में से ले करके उस स्टेज तक जब तक वह शिव के चरणों तक नहीं पहुंचा वह भक्त तब तक वह तो शिवजी को सुप्रीम मानता था और उसके बाद जब शिव जी यह करें और इस चीज को मानने पास पहुंचे शिवजी तो बच्चों से मन अचानक कैसे बदलेगा ऑटोमेटिक कैसे वह बटन तो सुई तो है नहीं तो तुरंत जवाब चेंज हो जाए तो अपने मन को कैसे बदलेगा कि अभी तक मैं हम तो शिवजी को सुप्रीम समझते थे अब यह कह रही कि रिज्यूम लक्षण मिलते हैं शिवजी के वचन समझेगा शिवजी के आश्रम से शिवजी इतने बड़े विरक्त हैं वह क्या काम करते हैं तुमने राम राम देव रात्रि सादर अट हुआ नगारा थी उस शिव जी के दिन राम-राम रटते रहते हैं कि भगवान का भजन करते हैं वो तो शिर्डी से उसी खाएगा ना कि सुप्रीम कि वास्तव में कोई और है जिसका भजन शिव जी स्वयं करते हैं कि वह जगन्नाथ जैन रमेश भांभू ब्रह्मा मुहूर्त पति गणेश चर्चित पदार्थ हुआ है कि शिवजी स्वयं भजन करते हैं मैं भगवान का हूं है तो शिवजी तक पहुंचना चाहिए पहले एक तो सिर जी के आवरण से बच्चन से और स्वयं समझ जाएगा अ कर दो है और यदि बहुत ही अ है एक्सपर्ट गुरु मिल है कृष्णभावनामृत का तो तत्काल नहीं वेलवेट कर सकता है जैसे श्रीला प्रभुपाद कि उन्होंने कि अमेरिका के लोगों को में या भारत कई लोगों को यह बात नहीं पड़ा है कि पहले तुम शिव की उपासना करो या सूर्य की उपासना करो दुर्गा की उपासना करो दौर आगे बढ़ जाओगे सीधे मुक्त कर दिया गौ मांस खाते थे शराब पीते थे हैं उनको उन्होंने का सिद्धांत बताया शहद कि वास्तव में जीव कृष्णा कालिदास है तो उन लोगों ने यह सब तर्क नहीं किया कि शिव कृष्ण नहीं क्यों सुप्रीम है और क्यों नहीं है हमारे भारतवर्ष में ज्यादा बखेड़ा है कि अगर कृष्ण का भजन करने को यह सलाह करके कम से कम दो चार हजार अतिथि सैकड़ों खड़ा कर देते हैं कंपटीटर है कि यह भी भक्त व भगवान है अभी भगवान है अभिवादन है लेकिन श्रीला प्रभुपाड़ा जी ने तो उनको रखा है नहीं आ ने कृष्ण को लाख रावण लिया है है जो सत्य-सिद्धांत है श्री कृष्णा तू भगवान स्वयं कर दो इस तरह दीवार सांस कोई समर्थ हो ये सब कोई जरूरत नहीं है और अन्य पुराणों की अन्य देवताओं के अ कि यह सब प्रभुपाद की कृपा है कि इतने भागते सत्य बात को समझ गए हैं है और कृष्ण को समर्पण की है थे और उनकी मति को फिर कोई डिगा नहीं सकता कि कोई चर्च हो अचानक साईं भाई हो है अब कृष्ण भावना में अधिक है भक्त वृद्धि नहीं सकते हैं कर दो ऑन करो अजय को हैं तो हमारे कल्चर में एक ही ग्रंथ हैं भगवत गीता जथा आरोप अजय को क्यों नहीं नहीं किसी में कुछ नहीं सबका सार है भगवत गीता है अजय को हुआ है कि भगवत गीता यथारूप पढ़िए है में सभी वेद पुराण का सार है हुआ है अच्छा ठीक है जय श्री प्रभु उबाल आ हुआ है कर दो