हेलो एंड आई वेलकम यू टू विज्ञान रिचार्ज 21 मार्च 1988 चार आदमी रेस्टोरेंट में बैठकर खाना खा रहे थे तभी वेटर जूस लेकर आता है और पहला घूंट गले के नीचे उतरते ही एक आदमी अपना गला पकड़कर जमीन पर गिर जाता है और मरने से पहले आखिरी शब्द कहता है उन लोगों ने मुझे जहर दे दिया है यह आदमी था स्टनली एलन मायर्स जुर्म तेल की जगह पानी पर चलने वाले इंजन की खोज करना किसने मारा आज तक नहीं पता चला और यह अकेला ऐसा आदमी नहीं था बल्कि 1935 में चार्ल्स एच गैरेट पानी पर वाहनों को चलाने के लिए इलेक्ट्रोलिटिक कार्बोरेटर का आविष्कार करते हैं नतीजा पेटेंट रिजेक्टेड टैक्स फ्रॉड का केस और रहस्यमय तरीके से मौत डेनिस कैलिन नाम के आदमी ने सेम आविष्कार किया पेटेंट भी मिल गया फिर सब बंद कोई प्रोग्रेस नहीं अपना दावा भी वापस ले लिया और बिना कुछ बेचे करोड़ों डॉलर्स कमा लिए पता है यह पैसे किसने दिए थे अमेरिकन मिलिट्री ने पर क्यों सब बताऊंगा यह भी बताऊंगा कि कब-कब किस-किस ने तेल की जगह पा पानी पर वाहन चलाने का दावा किया उनके साथ क्या हुआ कैसे तेल के खेल ने अमेरिका को घुटनों पर ला दिया आखिर तेल की जगह पानी पर कोई वाहन चल भी कैसे सकता है उसके पीछे क्या विज्ञान है और पानी से वाहन चलाए जा सकते हैं तो इसका कारण है इतिहास में हुई वो सारी घटनाएं जिन्होंने उन्हें यह विश्वास दिया है आपको क्या लगता है क्या हमेशा से वाहन पेट्रोल और डीजल पर ही चलते थे ऐसा नहीं है इतिहास में हमने कोयले से लकड़ी से चारकोल से केरोसीन डीजल पेट्रोल हर उस ईंधन से वाहनों को चलाया है जिससे उन्हें चलाया जा सकता है जिसकी शुरुआत हुई थी 18792 लैटिन अमेरिकन देशों में पेट्रोल को गैसोलीन कहते हैं और जो इंजन पेट्रोल पर काम करते हैं उन्हें गैस इंजन कहा जाता है इसी कारण की वजह से वहां पेट्रोल पंप को गैस स्टेशन कहते हैं 18792 पेट्रोल इंजन बनाकर पेट्रोल इंजन पर काम करने वाला दुनिया का पहला वाहन बना दिया इसके बाद 18971 120 में फ्रेंच इंजीनियर जॉर्ज इंबर्ट ने वुड गैस जनरेटर बनाकर गाड़ियों में लगा दिया और गाड़ियां लकड़ी पर चलने लगी लेकिन लकड़ी काटकर सुखाकर दुनिया भर का धुआं खाकर पालतू की सरदर्द पाले कौन पेट्रोल तो फटाफट डलता था आद मिनटों में गाड़ी लेकर निकलता था इसीलिए वुड गैस जनरेटर फेल हो गया अब आगे बढ़ने से पहले जरा यह जान लेते हैं कि आखिर वुड गैस जनरेटर कैसे काम करता था अगर लकड़ी को बिना हवा की मौजूदगी के गर्म किया जाए तो उससे वुड गैस या प्रोड्यूसर गैस निकल जाएगी अब बस इसे फिल्टर करना है और सीधा इंजन में भेजकर जैसे नॉर्मल पेट्रोल पर वाहन चलते हैं या सीएनजी पर चलते हैं ठीक उसी तरीके से वुड गैस पर भी वाहन चल पड़ेंगे अब जो लकड़ी जिसको आपने गर्म किया है वो चारकोल में बदल जाएगी और इसी चारकोल का इस्तेमाल करके दू दूसरी लकड़ी को गर्म किया जाएगा फिर वो चार कॉलम बदल जाएगी और यह साइकिल ऐसे ही चलता रहेगा हालांकि वुड गैस पेट्रोल और डीजल से कम पावर जनरेट करती है लेकिन पेट्रोल और डीजल के ना रहने की स्थिति में वुड गैस एक बढ़िया ऑप्शन है वुड गैस जनरेटर के बाद लोगों को यह विश्वास हो गया कि जो चीज जल सकती है वो वाहनों को चला सकती है इसके बाद चारकोल और कोयले पर भी वाहनों को चलाया गया लेकिन वर्ल्ड वॉर 2 ने सब कुछ ही बदल दिया आप यह बात तो जानते होंगे कि जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हमला किया था लेकिन क्या आपको यह बात पता है कि जापान ने हमला किया ही क्यों था अमेरिका तो वर्ल्ड वॉर 2 का हिस्सा भी नहीं था तो उसका कारण है तेल वर्ल्ड वॉर 2 में जापान को रोकने के लिए अमेरिका ने जापान को हो रही तेल की सप्लाई पर प्रतिबंध लगा दिया जिसका बदला लेने के लिए जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया और इसके बाद अमेरिका वर्ल्ड वॉर 2 में कूद गया अब अमेरिका ने अपने साथियों के साथ मिलकर जर्मनी के तेल भंडारों को उड़ाना शुरू कर दिया जिससे पैदा हुई तेल की किल्लत ने जर्मन सेना में हाहाकार मचा दिया अब इस नई परिस्थिति से से निबटने के लिए जर्मन इंजीनियर्स ने 1920 में खोजे गए वुड गैस जनरेटर को टैंकों में वाहनों में हर चीज में लगाना शुरू कर दिया अब तेल की किल्लत सिर्फ जर्मन सेना ही नहीं बल्कि अमेरिका और उसके साथी भी फेस कर रहे थे और अमेरिका ने भी अपने मिलिट्री वाहनों में वुड गैस का जमकर इस्तेमाल किया अब क्योंकि आम लोगों को तेल तो मिल नहीं रहा था तो उन्होंने भी अपना जुगाड़ तुगा लगाकर अपने घरेलू वाहनों में वुड गैस जनरेटर लगा लिए जो आज भी लोगों के पास देखने को मिल जाते हैं अब लोगों ने सोचा कि अगर हम लकड़ियों पर गाड़ी को चला सकते हैं तो कोयले पर क्यों नहीं और उन्होंने कोल गैस पर चलने वाले वाहन अपने आप ही बना लिए कोल गैस को बनाने के लिए कोयले को गर्म करके उसके ऊपर से भाप गुजारने पर हाइड्रोजन कार्बन मोनोऑक्साइड मीथेन और एथिलीन का एक मिक्सचर तैयार होता है जो सीधा इंजन में भेजकर ईधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है यह खोज भी वर्ल्ड वॉर ट का ही नतीजा थी लोग कोल गैस को बड़े से बैग में भरकर अपनी गाड़ियों की छत पर रखते थे और पाइप की मदद से उस गैस को इंजन में भेजा जाता था ये तेल के मुकाबले ती पड़ती थी इसके अलावा अमेरिका ने अपने देश में तेल की रेशनिंग शुरू कर दी यानी किसको कितना तेल मिलेगा और कितने दिन बाद मिलेगा यह पहले से ही तय किया जाने लगा बिना तेल के लोगों की जिंदगी रुक गई पेट्रोल पंप पर लंबी-लंबी कतारें लग गई और अमेरिकन अर्थव्यवस्था अपने घुटनों पर आ गई अगर यह युद्ध कुछ दिन और खींच जाता तो अमेरिका का बर्बाद होना तय था यह थी तेल की ताकत अब यहां से अमेरिका को एक बात समझ में आ गई कि अगर उसे दुनिया पर राज करना है तो तेल को अपने कंट्रोल में रखना पड़ेगा अगर आप इस बात पर ध्यान दें तो आपको पता चलेगा कि दुनिया में जितने भी तेल उत्पादक देश हैं या तो वोह अमेरिका के दोस्त हैं या बर्बादी के रास्ते पर धकेल दिए गए हैं सऊदी अरेबिया अमेरिका का दोस्त है ईरान इराक सीरिया लीबिया वेनेजुएला रशिया इन सबको अमेरिका ने बर्बाद किया है सिर्फ तेल पर कंट्रोल करने के लिए अब अगर ऐसी कोई तकनीक डेवलप हो जाए जो तेल के चंगुल से लोगों को निकाल दे तो अमेरिका लोगों को कंट्रोल कैसे करेगा क्या अब आप समझ पा रहे हैं कि जब 1935 में चार्ल्स एच गैरेट ने पानी से हाइड्रोजन बनाकर वाहनों को उस पर चलाया था तो अचानक से वो तकनीक कहां गायब हो गई और कैसे गायब हो गई स्टनली एलन मायर्स ने तो सार्वजनिक रूप से लोगों के बीच में गाड़ी में पानी डालकर उसे चलाया था जिसका नतीजा निकला 21 मार्च 1988 को जहर देकर उन्हें मार दिया गया और कमाल की बात यह है कि उनका डिजाइन कभी भी किसी को नहीं मिला और ना ही यह बात खुली कि उनकी हत्या किसने की थी और क्यों की थी अब इतिहास की इन दो घटनाओं ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया क्या वाकई में तेल की जगह पानी से वाहन चलाए जा सकते हैं क्योंकि पानी में कुछ ऐसा मौजूद है जो हर ईंधन में है वो है हाइड्रोजन अब जिस भी ईंधन का इस्तेमाल करके हम अपने वाहनों को चलाते हैं उन सबके अंदर हाइड्रोकार्बन मॉलिक्यूल है और कार्बन की मौजूदगी की वजह से वो कार्बन एमिशन प्रोड्यूस करता है लेकिन अगर हाइड्रोकार्बन में से कार्बन अलग कर दिया जाए तो हाइड्रोजन बचेगा जो बिल्कुल क्लीन फ्यूल है जो जलने पर पानी प्रोड्यूस करेगा यानी जब हाइड्रोजन ऑक्सीजन के साथ रिएक्ट करेगा तो पानी मिलेगा कोई भी हार्मफुल गैस प्रोड्यूस नहीं होगी अब आपको यह कारण समझ में आ गया होगा कि हाइड्रोजन पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है अब देखो आज के समय पानी का इस्तेमाल करके तीन तरीकों से वाहनों को चलाया जा सकता है पानी की मदद से एटन गैस को बना लो दूसरा पानी से हाइड्रोजन अलग करके हाइड्रोजन को सीधा फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल कर लो तीसरा हाइड्रोजन की मदद से बिजली पैदा कर लो यानी फ्यूल सेल अब ये तीनों तरीके कैसे काम करते हैं इसके बारे में जानने से पहले जरा यह जान लेते हैं कि किस-किस ने तेल का विकल्प खोजा और उसके साथ क्या हुआ 1930 में चार्ल्स एच गैरेट ने इलेक्ट्रोलिटिक कार्बोरेटर बनाया ये एक ऐसा डिवाइस था जो पानी में से हाइड्रोजन को अलग करके हाइड्रोजन को ईंधन की तरह इस्तेमाल करता था जिसके पेटेंट को यह कहकर रिजेक्ट कर दिया गया कि पानी से हाइड्रोजन अलग करने में ज्यादा ऊर्जा खर्च की जा रही है जबकि हाइड्रोजन से उतनी ऊर्जा नहीं मिल रही तो ये एक बेकार का डिजाइन है बाद में लड़ झगड़ करर गैरेट को पेटेंट तो मिल गया लेकिन किसी ने भी उनकी इस खोज में पैसा नहीं लगाया क्या पता अगर उन्हें पैसा मिलता तो शायद टेक्नो में सुधार हो जाता 2003 डेनिस क्लेन इन्होंने भी हाइड्रोजन पर चलने वाले वाहनों का एक मॉडल तैयार किया पेटेंट भी मिल गया लेकिन बाद में खुद ही अपना दावा वापस ले लिया लेकिन अमेरिकन मिलिट्री ने इनके आईडिया में जबरदस्त फंडिंग करी और आज ये अमेरिकन मिलिट्री के लिए टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट का काम करते हैं 2002 में जेनेसिस वर्ल्ड एनर्जी ने एक ऐसे डिवाइस की खोज करी जो सीधा पानी से हाइड्रोजन को अलग करके इंजन के अंदर ईंधन की तरह इस्तेमाल करता था और 2005 में इन्हें फ्रॉड के केस में गिरफ्तार कर लिया गया इनके डिवाइस और डिजाइन सरकार ने सीज कर लिए सन 2002 में जापान की एक कंपनी जेन पक्स वाटर एनर्जी सिस्टम्स हाइड्रोजन की मदद से बिजली बनाकर वाहनों को चलाने का दावा करती है और 2009 में कंपनी बंद हो जाती है जब कंपनी के डायरेक्टर से ये पूछा गया कि आप कंपनी क्यों बंद कर रहे हैं तब उन्होंने यह जवाब दिया कि पावरफुल लोग यह नहीं चाहते कि अल्टरनेट सोर्स ऑफ एनर्जी मार्केट में आए हालांकि उनके दावों को साबित करने के लिए उन्होंने कोई प्रूफ नहीं दिया लेकिन सभी लोगों के साथ साथ एक जैसा व्यवहार क्यों हो रहा था 2008 में एक श्रीलंकन इंजीनियर तुषारा परिमल इद्री सिंघे श्रीलंकन प्राइम मिनिस्टर रत्ना श्री विक्रम सिंघे के सामने पानी से इंजन को चलाकर दिखाते हैं और श्रीलंकन प्रधानमंत्री उन्हें पूरा सपोर्ट करने के लिए कहते हैं लेकिन कुछ ही महीनों के अंदर श्रीलंकन इंजीनियर तुषारा फ्रॉड के केस में फंस जाता है फिलिपींस के एक इन्वेंटर डेनियो डिंगल ने पानी की मदद से वाहनों को चलाने का दावा किया और सन 2000 में फोर मोसा प्लास्टिक्स के साथ एक कांट्रैक्ट साइन किया जिसमें वो दोनों मिल कर इस टेक्नोलॉजी को कमर्शियल करना चाहते थे लेकिन 2008 में 82 साल की उम्र में वो फ्रॉड के केस में फंस गए और उन्हें 20 साल की जेल हो गई इसके अलावा पाकिस्तान से गुलाम सरवार आघा वकार और भारत के मध्य प्रदेश से रईस मकरानी इन तीनों ने पानी पर वाहन चलाने का दावा किया जिसमें से रईस मकरानी ने तो नेशनल टीवी पर यानी डीडी न्यूज़ पर बकायदा इंटरव्यू भी दिया है और दिखाया भी है कि कैसे पानी पर वाहन चल सकता है लेकिन फिर भी लोग आज उन्हें भूल चुके हैं पर क्यों आइए बताता हूं देखिए पानी के साथ कैल्शियम कार्बाइड मिलाने से एटली गैस निकलती है जो बिल्कुल पेट्रोल की जगह इस्तेमाल की जा सकती है लेकिन यह अकेला कारण काफी नहीं है जिसकी वजह से हम ईधन के रूप में कैल्शियम कार्बाइड और पानी को इस्तेमाल करें अब जरा सुनिए दिक्कतें कहां-कहां पर हैं सबसे पहली परेशानी एटन गैस जबरदस्त फ्लेमेबल है यानी अगर लीक हुई तो नो इफ नो बट सीधा ऊपर का पत्ता कट इसका टैंक किसी बॉम की तरह फटेगा इसके अलावा इसके बाय प्रोडक्ट के रूप में आर्सेनिक और फास्फोरस भी निकलते हैं जो सेहत के लिए जबरदस्त नुकसानदेह हैं यह बात तो बिल्कुल ठीक है कि पानी भरपूर मात्रा में मिल जाएगा लेकिन कैल्शियम कार्बाइड ये इतनी आसानी से नहीं मिलता और इतना भी सस्ता नहीं है और कमाल की बात यह है कि कैल्शियम कार्बाइड प्रकृति में नहीं पाया जाता इसको बनाना पड़ता है और इसे बनाने में जो खर्चा होता है अगर उसको ध्यान में रखा जाए तो तेल सस्ता पड़ेगा इसके अलावा जब यह पानी से रिएक्ट करता है तो कैल्शियम हाइड्रोक्साइड भी बनता है जो उस टैंक के अंदर परत दर परत मोटा होता जाता है जिससे टैंक की क्षमता घटती है और इसे साफ करना आसान नहीं है मतलब खर्चा तो होगा दुनिया भर का उसके बाद रिस्क भी है हैसियत से बाहर का तो क्या फायदा हुआ ऐसे जुगाड़ का अब जरा बात कर लेते हैं कि हाइड्रोजन को डायरेक्ट इंटरनल कंबन में इस्तेमाल करने से कौन-कौन सी परेशानियां जुड़ी हैं जबकि ये टेक्नोलॉजी तो काफी पहले ही डेवलप हो चुकी थी सबसे पहली परेशानी हाइड्रोजन को स्टोर करना ये तो लीक होते ही आग पकड़ती है दूसरी समस्या इसका प्री इग्निशन तापमान ज्यादा होने की स्थिति में हाइड्रोजन को जिस समय पर जलना चाहिए यह उससे पहले ही जल जाएगी जिसकी वजह से इंजन से आवाजें आएंगी और नुकसान भी हो सकता है इसको इस्तेमाल करने के लिए इंजन में मॉडिफिकेशन भी की जाएंगी जिनसे वैसे ही खर्चा काफी बढ़ जाएगा यह बात बिल्कुल ठीक है कि हाइड्रोजन के जलने पर वाटर वेपर निकलेगा लेकिन टेंपरेचर ज्यादा होने की वजह से नाइट्रोजन के ऑक्साइड भी बनेंगे जो कि वातावरण के लिए हानिकारक है और आखिरी परेशानी प्योर फॉर्म में हाइड्रोजन को बनाना एक महंगा प्रोसेस है अब जब तक यह बड़े स्केल पर नहीं किया जाता तब तक हाइड्रोजन इंजन बनाकर कोई फायदा नहीं होने वाला अब बचता है आखरी यानी हाइड्रोजन फ्यूल सेल जिसमें हाइड्रोजन की मदद से बिजली बनाई जाती है और लास्ट में सिर्फ पानी ही बाहर निकलता है ये हाइड्रोजन को डायरेक्टली इंजन में इस्तेमाल करने से सस्ता पड़ता है अब जरा फ्यूल सेल के ऊपर बात कर लेते हैं कहां से आया किसने बनाया और कैसे बनाया सन 1800 में विलियम निकोलसन और एंथनी कार्ल इसली बिजली की मदद से पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ देते हैं जिसे नाम दिया गया इलेक्ट्रोलिसिस इसके बाद विलियम ग्रुव नाम के वैज्ञानिक ने निकोलसन और एंथनी के द्वारा लिखे गए नोट्स को पढ़ा और उन्होंने यह सोचा कि वो अगर हाइड्रोजन को तोड़ दें और दोबारा ऑक्सीजन के साथ उसे रिकंबाइन कर दें तो शायद उससे बिजली पैदा हो जाए और हाइड्रोजन को तोड़ने के लिए उन्होंने प्लैटिनम का इस्तेमाल किया और जैसा उन्होंने सोचा बिल्कुल वैसा ही हुआ उस जमाने में इसे नाम दिया गया गैस बैटरी जो आज फ्यूल सेल के नाम से फेमस है अब फ्यूल सेल होता है एक सैंडविच की तरह जिसमें बीच में इलेक्ट्रोलाइट एक साइड कैथोड और दूसरी साइड एनोड होता है अब जैसे ही हाइड्रोजन एनोड के ऊपर से गुजरती है तो एक कैटालिस्ट यानी कि प्लैटिनम हाइड्रोजन को इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन में तोड़ देता है अब ये जो प्रोटॉन है इस इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन से पार निकलकर कैथोड की साइड पर चला जाता है अब आपको समझाने के लिए मैं अपने उदाहरण में जिस मेंब्रेन का इस्तेमाल कर रहा हूं वो है प्रोटॉन एक्सचेंज मेंब्रेन या फिर लिक्विड इलेक्ट्रोलाइट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे सल्फ्यूरिक एसिड अब प्रोटॉन तो कैथोड की साइड पहुंच गया लेकिन इलेक्ट्रॉन वो एनोड को पार नहीं कर पाएगा बल्कि उसे एक दूसरा रास्ता दिया जाएगा और यह इलेक्ट्रॉन सीधा जाएगा मोटर के पास जहां पर यह उसे चलाकर कैथोड पर जाकर प्रोटॉन से जा मिलेगा अब क्योंकि मोटर चली है तो इस मोटर की मदद से गाड़ी के पहिए भी चलेंगे और गाड़ी आगे बढ़ेगी अब इस कैथोड के ऊपर सीधी हवा जिसमें 21 प्र ऑक्सीजन है हाइड्रोजन के साथ कंबाइन हो जाएगी और एग्जॉस्ट पाइप से निकलेगा पानी बस इतना ही है हाइड्रोजन फ्यूल सेल यही है इसका बेसिक प्रिंसिपल इसे आप वाटर व्हील के साथ कंपेयर कर सकते हैं जैसे बहते हुए पानी की काइनेटिक एनर्जी वाटर व्हील की मदद से मैकेनिकल एनर्जी में बदलती है ठीक उसी तरीके से हाइड्रोजन की केमिकल एनर्जी को फ्यूल सेल इलेक्ट्रिकल एनर्जी में बदलता है ये दोनों सिस्टम लगातार दिए जा रहे इनपुट पर निर्भर करेंगे वाटर व्हील के केस में पानी को लगातार बहना पड़ेगा ठीक उसी तरीके से फ्यूल सेल के केस में हमें लगातार हाइड्रोजन चाहिए अब यहां पर आपके दिमाग में ख्याल आया होगा कि जी जो गाड़ी फ्यूल सेल पर चल रही है जब उसके एग्जॉस्ट से पानी निकल रहा है क्यों ना इसी पानी से हाइड्रोजन बना ली जाए मतलब इलेक्ट्रोलिसिस करके और फिर इसी हाइड्रोजन को वापस फ्यूल सेल में घुमा दिया जाए अब अगर ये चीज हम सोच सकते हैं तो क्या वैज्ञानिको और इंजीनियर्स के दिमाग में यह बात नहीं आई होगी और अगर उन्हें यह बात पता है तो वो ऐसा कर क्यों नहीं रहे हैं समस्या कहां पर है ऐसा करने पर जितनी ऊर्जा हमें हाइड्रोजन सेल से मिल रही है हमें उससे कई अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ेगी इसीलिए ऐसा नहीं किया जाता अब आप सोच रहे होंगे कि सब कुछ इतना आसान है तो अभी भी हम फॉसिल फ्यूल से क्यों चिपके बैठे हैं फ्यूल सेल इस्तेमाल क्यों नहीं करते भाई साहब उसका कारण है कि हाइड्रोजन कैसे प्रोड्यूस करें अगर पानी से प्रोड्यूस करोगे तो उसके लिए इलेक्ट्रोलिसिस करना पड़ेगा और अगर किसी हाइड्रोकार्बन से पैदा करोगे तो उसके लिए भी एनर्जी देनी पड़ेगी और वो एनर्जी कहां से आएगी यानी फॉसिल फ्यूल तो जलाने ही पड़ेंगे यही है वो सबसे बड़ी समस्या जो इस टेक्नोलॉजी के रास्ते में रोड़ा बनकर बैठी है अब जरा जान लेते हैं कि पानी से हाइड्रोजन कैसे अलग की जा सकती है तो इसके लिए हम इलेक्ट्रोलिसिस प्रोसेस का इस्तेमाल करते हैं पानी लो उसमें दो इलेक्ट्रोड डालो डीसी करंट छोड़ दो ध्यान दो डीसी करंट एसी मत छोड़ देना अभी बताऊंगा क्यों और जैसे ही करंट घूमेगा कैथोड पर हाइड्रोजन और एनोड पर ऑक्सीजन इकट्ठा होनी शुरू हो जाएगी अब देखो डीसी करंट इसलिए इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि करंट की डायरेक्शन ना चेंज हो क्योंकि एसी करंट में तो डायरेक्शन बार-बार बदलती है और अगर डायरेक्शन बार-बार बदलेगी तो इलेक्ट्रोड की पोलैरिटी भी बदल जाएगी और इलेक्ट्रोलिसिस प्रोसेस नहीं हो पाएगा पोलैरिटी बदलने से मेरा मतलब है कि जो इलेक्ट्रोड एक बार कैथोड है पोलैरिटी बदलते ही वही एनोड बन जाएगी और लगातार यह प्रोसेस चलता रहेगा तो इलेक्ट्रोलिसिस कैसे होगा हो ही नहीं पाएगा इसीलिए डीसी करंट का इस्तेमाल करते हैं अब पड़ेगा इजिप्ट और सीरिया अचानक से इजराइल पर हमला कर देते हैं अमेरिका इजराइल को सपोर्ट करता है तेल का काम धंधा करने वाले देश अमेरिका से नाराज हो जाते हैं हां जी अमेरिका से भी लोग नाराज होते हैं इसके बाद ओपेक देश यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अरब पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज अमेरिका नेदर हैैंड पुर्तगाल और सऊदी अरेबिया पे ऑयल एंबार्गो लगा देते हैं एंबार्गो बोले तो मतलब तुमको तेल ना मिलने वाला हम तो देंगे ना जहां से मिलता हो वहां से ले लो अब भैया तेल ही इन देशों के पास था तो और कहां से ले ये एंबार्गो 19 अक्टूबर 1970 33 को लगाया गया था इन देशों ने ऑयल प्रोडक्शन को कट कर दिया अचानक से तेल के दाम आसमान छूने लगे अमेरिका में तेल की लूट पिटाई होने लगी लोग अपने देश की सरकार को गरि आने लगे इसके बाद युद्ध खत्म हुआ कुछ दिन हबीबी हबीबी हुआ और फिर सब कुछ नॉर्मल हो गया लेकिन अमेरिका ने सबक सीख लिया इसके बाद अमेरिका ने सऊदी अरेबिया से कहा अपन तेरे को पैसा देगा हथियार देगा तेरे घर तक किसी का भी लड़ाई झगड़ा नहीं आने देगा ये सारी टेंशन मेरी पर मेरा एक काम करना पड़ेगा और वो ये कि अब से तुम तेल डॉलर में ही बेचो ग मतलब अगर कोई डॉलर दे तो उसे तेल दे दो और किसी के पास डॉलर ना हो तो उससे कहो कि मार्केट से डॉलर खरीद के लाए और तुमको दे उसके बाद ही तुम तेल दोगे यहां से पैदा हुआ पेट्रो डॉलर इससे वैश्विक तौर पर डॉलर की डिमांड बढ़ गई और अमेरिका बिना डॉलर की वैल्यू गवाए धड़ाधड़ नोट छापने लगा और इस तरीके से डॉलर वर्ल्ड रिजर्व करेंसी बन गया यानी एक ऐसी करेंसी जिसको हर देश अपने पास होल्ड करके यानी रोक कर रखना चाहता है हालांकि बाद में यूरो और बाकी करेंसी में भी ट्रेड होने लगा लेकिन डॉलर का दबदबा आज भी जारी है है अब अगर अमेरिका किसी देश पर प्रतिबंध लगा दे कि भैया तुम व्यापार करने के लिए डॉलर का इस्तेमाल तो ना करोगे जैसे रशिया के डॉलर्स को फ्रीज कर दिया तो जरा यह बताओ उन डॉलर्स को इकट्ठा करने का फायदा क्या हुआ अर्थव्यवस्था हिला दी ना अब कल को भारत का युद्ध हो जाए और अमेरिका भारत के खिलाफ हो तो सबसे पहले भारत में आने वाले तेल का गला घोंटा जाएगा और अगर अमेरिका खिलाफ ना भी हो तो भी अलग-अलग देश एक दूसरे की फ्यूल सप्लाई को ही सबसे पहले काटते हैं उस स्थिति में हम अपनी अर्थव्यवस्था को कैसे बचाएंगे इस इसीलिए रशिया का साथ हमारे लिए बहुत जरूरी है जितना सस्ता हमें तेल मिलेगा उतना ज्यादा पैसा बचेगा और डेवलपमेंट तेजी से होगा इसीलिए भारत ऊर्जा के अलग-अलग स्रोतों की खोज कर रहा है करनी भी चाहिए और ग्रीन हाइड्रोजन उसी दिशा में एक प्रयास है इन्हीं चीजों को ध्यान में रखकर 4 जनवरी 2023 को नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की गई तेल पर निर्भरता घटते ही हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका के प्रभाव से बाहर निकलना शुरू कर देगी ये बहुत बड़ा जिओ पॉलिटिकल गेम है जिसमें अगर भारत को अपनी चौधरा हट दिखानी है तो तेल पर निर्भरता कम करनी ही होगी और दूसरा विकल्प नहीं है जब मैं इस वीडियो के बारे में रिसर्च कर रहा था तो सिर्फ एक ही चीज ऐसी थी जो मैं नहीं समझ पा रहा था कि इतिहास में पानी से वाहन को चलाने वाले जितने भी इन्वेंटर हुए वो सारे के सारे फ्रॉड कैसे निकले क्या ये इत्तेफाक है या कुछ और इस वीडियो से जुड़े हुए सारे रिसर्च पेपर्स पेटेंट्स और न्यूज़ आर्टिकल्स आपको विज्ञान रिचार्ज के अगर आपको डीजल इंजन की कहानी जाननी है तो उसकी वीडियो मैं स्क्रीन पर लगा रहा हूं तो यह है इस वीडियो का अंत मिलते हैं नेक्स्ट वीडियो में जय हिंद जय भारत