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निष्काम कर्म और भगवत गीता
Jun 5, 2024
निष्काम कर्म और भगवत गीता
परिचय
भगवत गीता महाभारत का एक पाठ है और इसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है।
मुख्यतः संवाद है भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच।
दिया गया है युद्ध भूमि कुरुक्षेत्र में।
अर्जुन युद्ध से पीछे हट रहे थे, तब कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया।
गीता का मुख्य उद्देश्य
मानवीय स्वभाव और धर्म का वास्तविक स्वरूप।
कर्म करो, परिणाम की चिंता मत करो।
गीता सिखाती है कि अपने कर्तव्य का पालन करो और फल की चिंता मत करो।
कर्म के प्रकार
कर्म
: शास्त्रों द्वारा निर्दिष्ट कर्तव्यों का पालन।
अकर्म
: पूर्ण निष्क्रियता, जिससे कर्मफल से बचा जा सके।
विकर्म
: गलत कर्म जो शास्त्रों के विरुद्ध हों।
कर्म
वे सभी कर्म जो वेदों और शास्त्रों द्वारा निर्दिष्ट होते हैं।
अकर्म
कुछ ना करना, जिससे बर्थ और डेथ की साइकिल से मुक्ति मिलती है।
विकर्म
धार्मिक स्क्रिप्चर्स के विरुद्ध कार्य करना।
बेकार फ्रीडम का मिसयूज करना।
निष्काम कर्म की धारणा
निष्काम कर्म का अर्थ है: 'बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करना'।
इससे बॉन्डेज से मुक्ति मिलती है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह आत्मानुभव के साथ होता है।
निष्काम कर्म फलों का त्याग, कर्मों का नहीं।
निष्काम कर्म का महत्व
कर्म करें पर फल की चिंता ना करें।
निष्काम कर्म के द्वारा आत्म-निर्णय और सुधार होता है।
यह मौलिक नैतिकता के साथ जुड़ा हुआ है।
रोज प्रैक्टिस से निष्काम कर्म की भावना आती है।
कर्म का अभ्यास की आवश्यकता
निष्काम कर्म से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
यह जीवन के उच्च उद्देश्य को समझने में सहायक।
निष्कर्ष
निष्काम कर्म से हमें अपने जीवन का सही उद्देश्य पता चलता है।
गीता का संदेश: कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
उचित अभ्यास और नैतिकता के साथ हम निष्काम कर्म कर सकते हैं।
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