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नारी के अधिकार और समता की चर्चा

वर्षों से जो बंद पड़े हैं उन नैनों को खोलो, नारी आओ बोलो, अब तक जो पुर्खों के पीछे, अब तक जो बुर्कों के पीछे, अब तक जो मरघट के पीछे और अब तक जो गुंगट के पीछे धाप रही है अपने मुक को छोड़ के पर दे बोलो, नारी आ� सबसे पहला प्रश्न करो उन माताओं से जाकर, रोई जो लड़की होने पर हसी पुत्र को पाकर, नारी होकर नारी को ही छोटा समझा सबने, नारी होकर नारी ही क्यों लगी हरदय को चुबने, भेद किया क्यों तुमने जब ना भेद किया था रबने, नंगा भेज दिया था पूछो की बेटे से जादा हम भी चाहती क्या मम्ता और आचल से जादा हम भी मांगती क्या अन अगर बेटे को देती हम भी अन नहीं खाती बेटे से अन्यत्र तो हम भी सोना नहीं चवाती पूछो उनसे पूछो सबसे जिन्होंने भेद किया शिक्षा में लड़की को चूले पर भेजा लड़के को कक्षा में पूछो उनसे भी जिन्होंने दोनों को पढ़वाया लेकिन गर में लड़की से ही घर का काम कराया नर को दी आजादी उतनी नारी को क्यों दीना? दोनों को ही एक सा रहकर क्यों न सिखाया जीना? लोग कहेंगे क्या इसका शिकार बनी क्यों नारी?

क्यों नारी पर ही थोपी लज्जा की बातें सारी? पूछो सारे प्रश्न सभी बातों को नापो तोलो नारी आओ बोलो अगला प्रश्न करो समाज से पूछो ये सब क्या है समता के अधिकार न रखना शमता की हत्या है बहलाया फुसलाया सबने कन्या को अंधी कर चंडीर कहकर पूजा की और बिठा दिया मंडी पर मंडी जिसमें कीमत तै करता है केवल इस पर भी नर हुआ नहीं कभी नारी का आभारी, पितर सत्ता के जोल में नारी रह गई मातर बिचारी, नर दाता बन करके बैठा औरत बन गई दासी, समता के सपनों को सदा से लगती आई फांसी, और इस फांसी का कारण क्या है, बस एक नारी होना, इस फांसी का कारण क्या है बस एक नारी होना क्या ये कारण कर देता है हमको इतना बौना जादा हो अधिकार नरों में ऐसा अद्भूत क्या है दो मस्तक है या पूरी सोने की काया है होते भी तो भी ये बातें गलत ही होती समता है अधिकार मनुझ का बात ये फिर भी होती ऐसे में वर्षों तक कम तर रखना बोलो क्या था, बुद्धी से प्रात्मिक्ता बलको देना बोलो क्या था, ऐसे पक्षपाती समाज का हिस्सा भला बने क्यूं, और नारी को ही ठुकरा दे ऐसी संतान जने क्यूं, रहे मर्द फिर और कहीं हमसे मिलने ना आपका। आए समता के अधिकार न जब तक सारे भाड में जाए गुट कर जीना भी जीना होता है क्या बोलो नारी आओ बोलो अगला प्रश्न करो आगे बढ़कर सारे धर्मों से कू तरकों को तोड़ो अपने सैयम वत तरकों से पूछो सबने नारी को आका था कम किस कारण सब ग्रंथों में लगती है क्यों नारी मात्र बिखारन देना हो नर को तलाक तो चाहे जब दे जाए और चाहे पतनी तो पहले पती को है ये छूट की रख ले चार पतनियां साथ वाहरी वाहसंसार नरों का केवल नर के हाथ वर्षों से एक चित्र खड़ा है विश्णू और लक्ष्मी का पैर दबाती पतनी और देखो आराम पती का अनुचित है ये कहे नहीं तो और भला क्या बोले क्या आखे हम बंद करें और साथ इनी के हो लें बुर्खा गुंगट सब महिला पर परदा करें हमी हम और वो भी क्योंकि मर्दों से नहीं होता मन पर सय्यम वो भी क्योंकि मर्दों से नहीं होता मन पर संयम अंतिम प्रश्न करो खुद से कि किसके संग खड़ी हो अपने पथ पर हो या पुरुषों के पथ पर चलती हो अरे शिव के तीन नयन सोने दो अपने दो तो खोलो नारी आओ बोलो