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श्री घंटी मूर्ति जी का इंटरव्यू

सारा बंगाल लो अना मंग हरा मर गए ने बाकी ज म कर रहे तो 16 वर्ष आप विदेश में रहे 2 से ले से लेकर 2019 तक तो क्या मन में क्या प्रेरणा आई कैसे विचार आया कि वापस भारत जाना है भारत में आ कुछ करना 2014 की बात है मैं जब यूएस में काम कर रहा था प्रोफेसर की तरह तब मुझे पता चला कि हमारे आज के दुनिया में सिर्फ 90 दिन के अन्न है अन्न अगर आज बंद कर दें प्रोडक्शन तो 90 दिन के लिए ही पर्याप्त है उसके बाद दुनिया को हम लोग दे नहीं सकते तो यह बहुत विचलित किया वो बहुत इसके बारे में बहुत डिप्रेसो इसको देखेंगे चीज पूछना चाहूंगा कि जब वहां रह रहे थे हा तो जो वहां पर रहने का जो एक रहने की अनुभूति थी और उसको अगर हम आपके यहां पर वापस आने के बाद जब आप यहां आए और यहां पर रहना शुरू किए और यहां जो एक अनुभूति हुई इन दोनों में क्या अंतर है यूएसए जो था मेरे लिए एक फाइव स्टार होटल के जैसा था और भारत है वो मेरा घर है क्या बात है होटल होटल होता है घर घर होता है अगर एक ऑन एन एवरेज हम पूछे कि भारत के जो किसान है अभी पेस्टिसाइड का प्रयोग कर रहे हैं तो कितने परसेंट होंगे ऐसे लोग जिसके पास पैसा है वो कर रहा है जिसके पास नहीं है वो नहीं कर पा रहा है क्या दुष्प्रभाव है पेस्टिसाइड्स के चाइना की बात करता हूं मैं बार क्या हुआ था जब उनका कल्चरल रिवोल्यूशन चल रहा था तो उन्होंने देखा कि यहां पर स्पैरोज जो है वो बहुत ज्यादा है वो ग्रींस खाते हैं तो उन्होंने कहा कि नहीं नहीं इनको मारना चाहिए और उन्होंने पूरा राष्ट्र में उनके चाइना में अभियान चलाया विल किल स्पैरोज मारने के बाद क्या हुआ क्योंकि वो दाने खा रहे हैं इनके अनाज खा रहे हैं इसलिए अगले साल जो इंसेक्ट्स है ये इतने सारे बढ़ गए पूरा काल पढ़ गया तीन चार साल तक ओ हुक मरी हो गई पूरी चाइना में हम लोग ये पेस्टिसाइड जब डालते हैं सबको मार देते हैं क्योंकि ये इंडिस्क्रिमिनेट होता है उससे बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव होता है क्योंकि स्पैरोज के चलते चलते कीड़े बढ़ गए वैसे ही उनको मने मारने के बाद जो इसमें से बच जाते हैं वह फिर आने लगते हैं तो उसका तो कोई काट है नहीं अभी हमारे पास [संगीत] [संगीत] आज हमारे साथ एक बहुत ही विशिष्ट अतिथि हैं प्राचीन स्टूडियोज में श्री घंटी मूर्ति जी आप आईटी इंदौर में प्रोफेसर हैं बायोसाइंस के और इंडियन नॉलेज सिस्टम जो एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहल है भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन की आई केएस उसके नेशनल कोऑर्डिनेटर आज हम मूर्ति जी से उनके बारे में उनकी जीवन यात्रा के विषय में और आईएस के विषय में बहुत से अनसुने पक्ष उसको हम जानेंगे बहुत-बहुत स्वागत है मूर्ति जी नमस्ते बहुत-बहुत धन्यवाद आभार कि आप समय निकाल के आप आए हमारे स्टूडियो में और हम बहुत दिनों से सोच रहे थे कि आपसे एक इस तरीके की परिचर्चा करें जिससे कि बहुत सी चीजें जो हमारे दर्शकों को पता नहीं है आप जो काम कर रहे हैं उसके विषय में उनको पता चले तो सबसे पहले हम शुरू करते हैं आप अपनी संक्षिप्त जीवन परिचय से आप इसको शुरू करिए हां मेरे माता और पिता जी का नाम गं सुब्बाराव जी है और मेरे मां का नाम घंटी वेंकट रमणी जी है हम मूलतः गोदावरी के तट के वासी हैं कोनसीमा प्रांत जो बोलते हैं गोदावरी डेल्टा जो है वहां मेरा जन्म हुआ वहां से मैंने पढ़ाई की कर्नाटका में आंध्रा में तेलंगाना में फिर नागालैंड में 10 तक पूरी करने के बाद मैं नॉर्थ ईस्टन रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी जो अरुणाचल प्रदेश में एक गवर्नमेंट ऑफ इंडिया का एक एजुकेशन इंस्टिट्यूशन है वहां पर मैंने इंजीनियरिंग किया एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में उसके बाद मैंने बीटेक खत्म करने के बाद मैं आईआईटी खड़कपुर में एमटेक किया डेरी एंड फूड इंजीनियर में फूड प्रोसेस इंजीनियरिंग में आईआईटी खड़कपुर से उसके बाद 2003 में मैं यूएस गया था एग्रीकल्चर एंड बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी करने के लिए मेरे वहां मेरे गुरु थे प्रोफेसर विजय सिंह उनके अंडर में मैंने पीएचडी पूर्ण किया 2006 में उसके बाद मैं रेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में मैं वहां फैकल्टी बना और असिस्टेंट प्रोफेसर एसोसिएट प्रोफेसर फुल प्रोफेसर इसे बनकर 2019 2019 में वापस भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान जो इंदौर में आईटी इंदौर में प्रोफेसर के रूप में वापस भारत आ गया यह मेरा छोटा सा एजुकेशनल एंड वर्क वाला है और साथ में जैसे ही मेरी पढ़ाई खत्म हुई और मैं जॉब कर रहा था तो मेरी विवाह मेरा वैदेही के साथ हुआ और फिर हमारे तीन बच्चे हैं और फिर क्या बात है जीवन चल रहा है तो 16 वर्ष आप विदेश में रहे 2000 से ले तीन से लेकर 2019 तक तो क्या मन में क्या प्रेरणा आई कैसे य विचार आया कि वापस भारत जाना है और भारत में ही आगे कुछ करना है देखिए दो चीजें थी एक तो यह था कि मेरे मां ने भारत के प्रति और हमारे गुरुओं के प्रति जो श्रद्धा होनी चाहिए वो मेरे मां ने बहुत सारे कहानियां यह सब बताकर उन्होंने बताया और मेरे पिताजी ने वह करके दिखाया यह दोनों मेरे आदर्श स्रोत है इन्होंने दिखाया था कि कैसे करते हैं क्या करना चाहिए और वह जो कृतज्ञता भाव होता है क्योंकि देखिए हम एक प्राउड स्टूडेंट ऑफ केंद्रीय विद्यालय सरकार का स्कूल्स है और इसमें हम लोग ₹ पर महीने देते थे और फिर मैं नरेस में जाकर 50 50 यह मेरा फी रहता था और खड़कपुर में आने के बाद तो सरकार ने मुझे खुद फेलोशिप देकर पढ़ाया था तो जब उसके बाद यूएस ने रिकॉग्नाइज किया था लेकिन वो रिकग्निशन किस लिए था क्योंकि ये एजुकेशन तो यहां पर हुआ था बेसिक जो पढ़ाई हुई थी वो तो भारत सरकार ने दिया था मुझे भारत की देन है और तो मन में तो यह विचार रहता था कि वापस आक कुछ तो करना है यहीं पर रहना है तो जैसे बंगाली में बोलते हैं ना एक रवींद्रनाथ टैगोर जी का एक ये है जहां पर भी मेरा जन्म यहीं पर हुआ मैं यहीं पर मरूंगा यही मेरा देश है यही रहना है तो तो वो धारणा तो पहले से थी लेकिन यह भी होता है कि हमको सीखना है दुनिया भी देखना है और वहां पर सीखकर वापस बेस्ट प्रैक्टिसेस जो है भारत में लेके आना तो यह सोच रहता था और फिर मैं पीएचडी के बाद वापस आने का कोशिश भी किया था मैं 2007 में लेकिन कुछ कारण वश बोलिए हमारे उस टाइम में एकेडमिक इंस्टिट्यूशन में परिस्थितियां भी उस तरह से नहीं थी तो आ नहीं पाया था लेकिन कोशिश कर रहा था कि आ जाऊ तो ये एक वो परिस्थिति थी एक और बात थी कि जब हम काम करेंगे एक तो भारत में इतने सारे हमको इवन टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग यह सब में आवश्यकताएं हैं कि मैं सोच रहा था कि उसमें कुछ करना है एक हम लोगों को एक बहुत ही प्रेस्टीजियस नेशनल साइंस फेलो फाउंडेशन का यूएस में एक ग्रांट मिला था एक बार दे 2016 की बात है तब क्या था कि ये फूड एनर्जी वाटर नेक्सस प ये प्रोजेक्ट मिला था ये उस टाइम प बहुत बड़ा एरिया रिसर्च का था कि फूड जो हमारा भोजन होता है एनर्जी ऊर्जा और पानी ये तीनों का इंटरकनेक्शंस देखने के लिए एक बहुत ही प्रेस्टीजियस प्रोजेक्ट मिला था हम लोगों को रेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था तो काम कर रहे थे मेरी टीम के साथ तो उसमें करीब न 15 लाख डॉलर का प्रोजेक्ट था 1.5 मिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट था बड़ा था काम कर रहे थे हमने बहुत मेहनत की उसमें जब मेहनत करके वो हम लोग किसानों के लिए पॉलिसी मेकर्स के लिए इन लोगों के लिए वो बना रहे थे वो टूल बनाया था बहुत सारे मिलकर बनाया जब हम लोगों ने एक्चुअली जो ग्राउंड प जो देखा ग्राउंड प जाकर उसको अडॉप्ट करने वाले कितने रहेंगे इस बारे में हमने एक्चुअली देखा तो उसमें 30 लोग 40 किसान यही आते थे वही उतना ही इंपैक्ट होता है उसका ये नहीं कि हम लोगों का एक जिसमें कम था ऐसे ही सब बहुत सारे प्रोजेक्ट में ऐसा ही होता है तो फिर मुझे लगा इतना मेहनत कर रहे हैं हम लोग व 30 लोगों के लिए 20 लोगों के लिए और सरकार का वहां का सरकार है यहां का सरकार है पैसा तो पैसा है वो उतना लगा रहे हैं तो उसका इंपैक्ट क्या ये मेरे दिमाग में रहता था और उसी टाइम पर मैं यहां पे इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियर्स का एनुअल कॉन्फ्रेंस होता है तो उसमें मैं और मेरे कुछ कलीग्स थे जो भारत के थे हम लोग चाहते थे कि कुछ करें तो अमेरिकन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड बायोलॉजिकल इंजीनियर्स में वो लोग हम लोग हर साल आते थे तो यहां देखते थे कि यह लोग एक फील्ड सैंपल की बात कर रहे हैं तो 600 किसान 1000 किसान उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं और बहुत छोटे-छोटे प्रॉब्लम जो हम इजली सॉल्व कर सकते हैं और बहुत बड़ा उनके जीवन में इंपैक्ट पड़ता है तो फिर हमने सोचा ठीक है अगर काम करना ही है तो ऐसा काम करें जिससे इंपैक्ट हो ऐसा काम करके क्या फायदा जो ना तो किसी को खुशी मिल रही है ना खुद को खुश आनंद मिल रहा है और हम बस किए जा रहे हैं वो तो एक पॉइंट के बाद तो वो आ जाता है तो हमने सोचा था कि ऐसे क्या जरूरत है तो हम लोग थे हम लोग ग्रुप ऑफ फैकल्टी मेंबर्स आते थे तो देखा यहां पर ज्यादा काम करने का ये है और सौभाग्य मेरा था तो मैं वही बोलूंगा कि मेरा सौभाग्य था कि और ईश्वर का वो था आशीर्वाद था कि अपॉर्चुनिटी मिला कि 2018 से मैं देख रहा था कि किस इंस्टीट्यूशन में आऊ और आईआईटी इंदौर में मुझे वो अपॉर्चुनिटी मिला 2019 में 2019 में फिर यहां पर सब एक दिन मैंने बोला वैदेही को को हम लोग को जाना है भारत तो उसने बोला कब पैक करो तो हमने बच्चों को भी बोला तो उन्होंने बोले चलते हैं क्या बात है दादाजी दादा दादी है नाना नानी है और क्या बात है आएंगे तो फिर हम लोग सब मिलकर आ गए और उस दिन से जिस दिन से भारत में आए हैं हमको यहां इतने खुश हैं लोगों का इतना प्यार मिला है लोगों के साथ इतने अच्छे से रहे हैं और हम लोग जो काम करते हैं उसका मीनिंग हमको दिखता है वो तो खैर वो तो मैंने देखा है काफी उद्देश्य परक है काम है और बहुत लोगों तक पहुंच रहा है य काम तो इस तरह से जो भी काम मिला है तो मैं ज अब जब आया था तो मैं आई केस सोच कर नहीं आया था यह भी बात है मैं सोच कर आया था कि यहां पे जो टेक्निकल ट्रेनिंग है हम लोगों के इंजीनियर्स की क्योंकि मैं तो मूलत बायो प्रोसेस इंजीनियरिंग एी एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग से हूं तो सोचा था कि इसमें हमारे बच्चों को जो इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होते हैं उनको स्किलफुल कैसे बनाए जिसे वो खुद एंटनर बने क्योंकि हम कब तक नौकरियां ढूंढते रहेंगे बिल्कुल एंप्लॉयमेंट देने वाला होना चाहिए हमको कभी भी देने वाले होने चाहिए लेने वाले नहीं होने चाहिए उसको कैसे बनाएंगे इसके लिए मैं सोच रहा था कि कुछ सेंटर खोलूंगा यहां पे आके ए फिर उस उस दिशा में काम भी कर रहा था लेकिन भगवान की कुछ और इच्छा थी तो भारती आ केस आे इससे पहले एक चीज पूछना चाहूंगा कि जब वहां रह रहे थे तो जो वहां पर रहने का जो एक रहने की अनुभूति थी और उसको अगर हम आपके यहां पर वापस वास आने के बाद जब आप यहां आए और यहां पर रहना शुरू किए और यहां जो एक अनुभूति हुई इन दोनों में क्या अंतर है देखिए अभी यूएस में जितने दिन था मैं 16 साल था बहुत अच्छे कलीग्स थे बहुत अच्छे फैसिलिटी थे सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था ऐसा कुछ नहीं था कि हमको आना पड़ा आना आने के लिए बहुत अच्छे बहुत अच्छे से चल रहा था लेकिन जो भारत में अनुभूति है वो मेरे पिताजी बोलते हैं उसी शब्दों में मैं बोलूंगा यू यूएसए जो था मेरे लिए एक फाइव स्टार होटल के जैसा था और भारत है वह मेरा घर है क्या बात है होटल होटल होता है घर घर होता है अब उसी तरह से समझा सकता हूं और तो कुछ बिलकुल बहुत सही समझाया आपने होटल कभी कबार आप जा सकते हैं कभी कबार खा सकते हैं घर घर होता है घर का खाना घर का ही होता है बहुत सही कहा आपने अच्छा आईएस से फिर कैसे जुड़े आप है और कब जुड़े कैसे जुड़े अचानक आपने तो सोचा भी नहीं था कि आप आईएस को हेड करेंगे भारत में तो यह कैसे हुआ बिल्कुल नहीं सोचा था क्योंकि देखिए इसका 2014 की बात है अ मैं जब यूएस में काम कर रहा था प्रोफेसर की तरह तब वहां पे मैं कुछ दूसरे डिपार्टमेंट्स के कोर्सेस यह सब भी देखने जाता था वहां पे पढ़ने जाता था क्योंकि सीखना तो होता ही है क्योंकि बोलते हैं ना कि हार्ट ऑफ ए टीचर इज ऑफ ट ऑफ स्टूडेंट व पढ़ना तो पड़ता ही है हर बार नए नई चीज तो एक दूसरे को कोर्स में गया था तो उसके प्रोजेक्ट में कुछ कर रहा था उसमें एक देख रहा था कि फूड नेटवर्क का रेजिस यानी कि जो फूड सप्लाई चेन से हम तक जो अनाज पहुंचते हैं यह सब कैसे पहुंचते हैं इसके बारे में थोड़ा विश्लेषण किया था तो तब मुझे पता चला कि हमारे आज के दुनिया में सिर्फ 90 दिन के अन्न है अन्न अगर आज बंद कर दें प्रोडक्शन तो 90 दिन के लिए ही पर्याप्त है उसके बाद दुनिया को हम लोग दे नहीं सकते भोजन तो ये बहुत विचलित किया वो बहुत इसके बारे में बहुत डिप्रेस्ड था कि ये कैसे हम लोग इसको देखेंगे तो उसके बारे में मैं खोजते खोजते खोजते फिर एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग तो मेरा बैकग्राउंड था तो फिर मैं देखा कि इसको कैसे रिजलट बनाया जाए और स्पेशली भारत जैसा देश जिसमें 1.4 बिलियन का पॉपुलेशन है हमारा फर्स्ट एक्सप्रेशन ऑफ इंडिपेंडेंस होता है फूड सिक्योरिटी तो अगर हमको भारत को स्वाभिमान देश बनना है तो हमको किसी के आगे भोजन के लिए हाथ नहीं फैलाना है उसके लिए क्या करना है यह सब हमको सोचना पड़ेगा तो बात कर रहा था मैं लोगों से भी बात कर रहा था तो सोचा उसके बाद हम ये आया कि हमारा जो सोइल हेल्थ है एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी है इसके ऊपर हमको बहुत काम करने की जरूरत है तो फिर मैं यूएस में ही 20151 में ही मैंने कुछ प्रोजेक्ट्स शुरू किया था यह सिर्फ भारत के लिए नहीं यह संपूर्ण भूमंडल के लिए प्रॉब्लम है ये क्योंकि एग्रीकल्चर में जो प्रोडक्टिविटी कम हो रही है और सोइल ऑर्गेनिक मैटर जो बोलते हैं मिट्टी में जो ऑर्गेनिक मैटर होता है ये सब विश्व स्तर पर कम हो रहा है तो इसके लिए यूएस में भी प्रॉब्लम है इंडिया में भी प्रॉब्लम है यूरोप में भी प्रॉब्लम है हर जगह प्रॉब्लम है इसको कैसे इसका हल निकाला जाए इसके लिए हम लोगों ने बहुत रिसर्च किया तो साथ में उसी टाइम पर मैं थोड़ा संस्कृत में रुचि रखता हूं तो संस्कृत भारती का जो स्पोकन संस्कृत है वो उसपे भी मैं जाता था तो वो भी सीखने लगा थोड़ा बहुत तो फिर देखा कि हमारे यहां भी कुछ ना कुछ तो हुआ होगा तो देख रहे थे तो वृक्ष आयुर्वेद ये सबके बारे में मैं जाना फिर वो पुस्तकें मुझे बहुत बाद में 2017 16 17 में मिली तब तक हम लोग वहां पर यूएस में बहुत सारे रिसर्च करके हमने लेटेस्ट जो टेक्नोलॉजी है बायोटेक्नोलॉजी में हो या प्रोसेसिंग में हो यह सब यूज कर कर हमने एक लिक्विड वो प्रोसेस फर्टिलाइजर टाइप का बनाया जो हम लोग यूज कर सकते हैं सोइल का हेल्थ को मेंटेन करने के लिए तो उसके बारे में जब य सब करके हम बहुत खुश थे कि हमने कुछ बनाया है अच्छा है लेकिन देखा कि वृक्ष आयुर्वेद में जो आचार्य स्वरूपा आल ने जो 1000 साल पहले लिखा था कुण पजल जो उल्लेख किया था वो बहुत ही सिमिलर था हमने जो बनाया था तो उसके बाद मैंने सोचा अरे यह तो है यहां पर इतना सारा हमको आज के प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए आई केएस में भारतीय ज्ञान परंपरा में इतने सारे विषय छुपे हुए हैं जो हम यूज कर सकते हैं आज भी प्रासंगिक है ये सिर्फ वेद और पुराण तक सीमित नहीं है वो है आध्यात्म विषय तक सीमित नहीं है य लौकिक प्रयोजन भी बहुत है इसके तो कैसे उसको यूज कर सकते हैं तो फिर उसके ऊपर मैंने फिर और रुचि लगाई और थोड़ा सा उसके बारे में और पढ़ना शुरू किया तो जैसे जैसे पढ़ना शुरू किया और रुचि बढ़ती गई तो फिर दिमाग में आया 2019 में आया था 2020 में सोचा कि जो टेक्नोलॉजी जानते हैं साइंस जानते हैं वह संस्कृत नहीं जानते मैक्सिमम लोग और जो संस्कृत जानते हैं वो ये नहीं जानते हैं विज्ञान नहीं जानते हैं विज्ञान के विषयों को उतनी अच्छे से पढ़ते नहीं है तो यह जोड़ना तो जरूरी है तो सोचा कि क्यों ना हम टेक्नोलॉजी और मैथ साइंस जो पढ़ते हैं उनको संस्कृत में पढ़ाए टेक्स्ट को ओरिजिनल कांटेक्ट में पढ़ाया जाए तो इसके लिए हमने फिर सोचा कि कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा तो फिर एक दिन हमने सोचा श्री गणेश करते हैं तो बस एक सप्ताह का टाइम था 2020 में गणेश चतुर्थी के दिन हमने शुरू किया ये बोला कि हम भास्कराचार्य का जो लीलावती जो हमारे भारत में टेक्स्ट बुक हुआ करता था 1850 तक मैथमेटिक्स का टेक्स्ट बुक था जो संस्कृत में है और बहुत ही रोचक तरीके से बहुत ही सिंपल वे में पढ़ाया जाता है मैथ को आजकल जिस तरह से वो डर पैदा नहीं होता उससे बच्चों को इंटरेस्ट जगता है उस तरह से वो पढ़ाया जाता है तो वो लीलावती बहुत ही फेमस टेक्स्ट है तो उसको हमने सोचा कि यह पढ़ाते हैंक कोई भी टेक्नोलॉजिस्ट होगा साइंटिस्ट होगा वो तो सब तो पास किए ही है 10 12 तो टेक्स्ट बुक है तो जानेंगे ही उसको पढ़ाएंगे जो विषय जानते हैं और संस्कृत भी थोड़ा बहुत सीख लेंगे तो कैसे संस्कृत में ये सब विषयों का प्रसंग आता है यह देख लेंगे करके ने शुरू किया मैंने सोचा कुछ एक सप्ताह का समय है 40 50 लोग आएंगे लेकिन उसमें 850 लोग आए ओ अच्छा हा और ये करोना के टाइम पर था तो 850 लोग आए और आठ देशों से आए और क्या करेंगे शुरू किया पहले हमने 15 दिन संस्कृत सिखाया लोगों को ये बोला कि एटलीस्ट आप बोलना नहीं सीखेंगे तो भी चलेगा लेकिन आपको समझना पड़ेगा कोई संस्कृत में बोल रहा है तो आप समझिए जिससे कि आपको वो समझ आ जाएगा तो विषय समझ में आएगा इसलिए तो उसके बाद हमने एक और परीक्षा लिया सबका रीडिंग कंप्रीहेंशन राइटिंग कंप्रीहेंशन राइटिंग एबिलिटी एंड बेसिकली स्पीकिंग एबिलिटी ये तीनों हमने किया इसके लिए हमको क्योंकि मैं संस्कृत भारती से जुड़ा हुआ था संस्कृत भारती के बहुत सारे शिक्षक हैं आचार्य गण है जिन्होंने हम को यह सब 850 लोगों का वैल्युएशन करने में और यह सब प्रोग्राम करने में उन्होंने हमारी पूरी सहायता की उसके बाद हमने फिर हमारे प्रोफेसर राम सुब्रह्मण्यम जी है आईईटी बम्बे में मैथ के प्रोफेसर हैं और वो वेदों को भी उतनी ही अच्छे से जानते हैं जितना थियोरेटिकल फिजिक्स जानते हैं और मैथमेटिक्स जानते तो उनको हमने प्रार्थना किया कि आप यह पढ़ाएंगे उन्होंने हमारा सौभाग्य वश उन्होंने मान लिया और वो और उनके पोस्टडॉक स्टूडेंट प्रोफेसर अभी प्रोफेसर हैं आईआईटी खड़कपुर में डॉक्टर के महेश इन दोनों ने 15 दिन तक पूरा भास्कराचार्य के लीलावती के कुछ अध्यायों को संस्कृत में पढ़ाया और उसमें 850 में से कुछ 500 60 70 के आसपास लोगों ने पास किया एग्जाम हमने सबको पास नहीं किया जो संस्कृत नहीं जानता था उसको नहीं लिया हमने वो पढ़ा है पहले उसके बाद लिया और फिर उसमें फिर लोगों ने को बहुत अच्छा लगा यह एक्सपेरिमेंट जो है तो फिर हमको बोला गया था कि आईआईटी में कि क्यों ना इसके इस तरह का एक सेंटर शुरू करा तो एक सेंटर हमने फिर आईटी इंदौर में शुरू किया 2020 अक्टूबर में उस टाइम हमारे एक्टिंग डायरेक्टर थे प्रोफेसर निलेश जेन उन्होंने बोला था तो फिर हमने शुरू किया और आईआईटी के बहुत सारे कलीग्स हम लोगों ने मिलकर व एक सेंटर फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम शुरू किया और उसमें यह सब विषयों का हमारा वहां पर चलता है तो साथ साथ में वो जैसे वो चल रहा था कुछ दिन बाद एक सा कुछ आठन महीने बाद ये मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन से एक कॉल आया कि आप आओ और ये आईकेस सेल को थोड़ा सा स्टन करने के लिए आप आओ और उसी टाइम पर डॉक्टर अनुराधा चौधरी जी को भी बुलाया गया था हम दोनों जाकर आई केएस डिवीजन में जवाइन किए थे उस टाइम पे श्री एबी शुक्ला जी थे वो इसको हेड कर रहे थे उसके बाद उनका कार्यकाल खत्म हुआ समाप्त हो गया और फिर मैं नेशनल कोऑर्डिनेटर ऑफ आई केएस डिवीजन बना और फिर उस तरह से प्रस्थान शुरू हुआ क्या बात है तो आई केएस की शुरुआत कब हुई थी शुरू हुई थी 2020 जुलाई में अच्छा और आप कब बने नेशनल 20 21 2021 के अक्टूबर में मैं बना ओके बहुत बढ़िया ड नो भारत वास मेड विक्टिम ऑफ कंस्पिरेटर शिप एंड आइडियो सबर्स वी ऑल हैव सफर्ड अ [संगीत] लट लेट्स एंड ट नाउ वी ब्रिंग टू यू प्राम एन अनपोल जेटिक वीडियो प्लेटफार्म फॉर हिंदू प्रोटेक्ट योर फैमिली फ्रॉम फाल्स नेटिव्स अबाउट [संगीत] भारत डॉक्यूमेंट्री क्लासेस शोज ट यू विल नॉट फाइंड नम पावर टू द हिंदू वॉइस फर द कॉस्ट ऑफ वन कॉफी सब्सक्राइब नाउ ए प्रम क तो बायो साइंसेस बायोमेडिकल इंजीनियरिंग एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग यह सब इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग ये बहुत से तमाम ये शब्द आपसे रिलेटेड रहे हैं थोड़ा सा इसके विषय में हमें समझाइए हां देखिए ये सब हम लोग अगर इसको रिडक्शनिस्ट अप्रोच में देखेंगे तो यह सब इतने अलग-अलग दिखते हैं लेकिन अगर भारतीय पर्सपेक्टिव से देखेंगे प्रकृति के भाग है प्रकृति का लास्ट है और तो कुछ नहीं नाम बहुत बड़े-बड़े हैं लेकिन प्रकृति इसकी लास विन्यास है ये तो आप दृष्टि देखते रहेंगे आप एक सेल लेवल प देखेंगे तो माइक्रोबायोलॉजी हो गया थोड़ा और रिएक्टर लेवल में देखेंगे बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग हो गया और बड़ा देखेंगे तो फिर एग्रीकल्चर और भी ज्यादा तो फिर इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग हो गया बट बात तो सही सिमिलर होते हैं हर जगह देखेंगे हमारा जैसे प्रिंसिपल होता है ना कि य पिंडे त ब्रह्मांडे उसी तरह से यहां पे देखेंगे वहां प भी देखेंगे उसी तरह से चलता है तो सब में वो प्रिंसिपल्स जो है कनेक्टिंग प्रिंसिपल्स बहुत ही स्ट्रांग है वो हम लोग देखेंगे तो सिमिलर रहते हैं तो ज्यादा डिफरेंस नहीं है इसमें कैसे आपकी रुचि हुई इस फील्ड में आने की इस क्षेत्र को इस विषय को चुनने की अपनी जीवन में थोड़ा उसको उस पर प्रकाश डाली है हा तो ये तो ये था कि मेरे दोनों दादा दादाजी और नाना जी दोनों किसान थे अच्छा हां और मेरे नाना जी तो फ्रीडम फाइटर भी थे तो तो ये लोगों जब तो गांव से हैं तो जाते थे गांव जाते थे तो किसा वो किसान खेत ये सब से तो लगाव रहता ही था वहीं पे खेलकूद कर बड़े हुए तो दिखते थे वो सब तो एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में रुचि थी तो फिर जब मेरा एंट्रेंस एग्जाम हुआ इंजीनियरिंग का उसमें मैंने पहला चॉइस एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग दिया ओ बचपन से एक नैसर्गिक रुचि थी हां और फूड इंजीनियरिंग में मेरा बहुत ज्यादा रुचि था ये था कि मैं चॉकलेट खाऊंगा जाके क्या बात है चकलेट फैक्ट्री में काम करूंगा चॉकलेट खाने लेकिन ऐसे नहीं था लेकिन बाद में वो फील्ड ऑफ इंजीनियरिंग वो एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग से इसलिए भी लगा हुआ क्योंकि वो बहुत मल्टी डिसिप्लिन होता है उसमें आपको एक ट्रैक्टर से लेकर आपको मिल्क प्रोसेसिंग इक्विपमेंट तक और माइक्रोबायोलॉजी से लेकर हार्डकोर डिफरेंशियल इक्वेशन तक सब कुछ जानना होता है नहीं तो आप एक किसान जो होता है वो इन्हेरेंटली मल्टी डिसिप्लिन होता है सिंगल स्पेशलाइजेशन के साथ कोई किसान नहीं बन सकता तो उसको बीज बोना आना चाहिए मिट्टी को पहचानना आना चाहिए पानी कब देना है पौधे को देखना आना चाहिए पेस्टिसाइड्स कब डालना या पेस्ट को मैनेज कैसे करना यह आना चाहिए उसके बाद उसको प्रिजर्व कैसे करना है यह सब आना चाहिए नहीं तो कोई किसान नहीं बनता है तो यह जो मल्टी डिसिप्लिन है बहुत डायरेक्शंस में सोचने का जो वह है वह मुझे बहुत पसंद आता था तो यह सिर्फ एक एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में ही यह पॉसिबल है कि आप एक ट्रैक्टर को खोल रहे हो सुबह और फिर शाम को आकर कंप्यूटर पर सिमुलेशंस कर रहे हो और दूसरे दिन जाकर एक मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट में मिल्क कैसे किया जाता है प्रोसेसिंग किया जाता है उसके बारे में पढ़ रहे हो और फिर पेस्ट मैनेजमेंट के बारे में पढ़ रहे हो और पता नहीं क्या क्या और कर रहे हो आप स्ट्रक्चर्स के बारे में पढ़ रहे हो ये सब हम लोगों ने किया था एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एक वर्सटाइल डिसिप्लिन होता है तो बहुत रुचि उस लिए थी क्योंकि बहुत सारे काम करना था तो उसके बाद फिर एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में ही मैं फिर चांस मिला था कंप्यूटर साइंस में जाने का लेकिन नहीं गया क्योंकि मेरा यह क्लेम था कि कंप्यूटर साइंस तो हम लोग प्रोग्रामिंग तो सीख भी सकते हैं एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग कौन सिखाएगा मुझे तो फिर हमने वो सीखा मैंने फिर वो एग्रीकल्चर इंज मेंही कंटिन्यू किया और बाद में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में भी काम किया कुछ दिन अच्छा अच्छा अच्छा कहां इंडिया में कि यूएस में भारत नहीं भारत नहीं तो काम किया छ महीने के लिए काम किया वो भी मेरे मास्टर्स के बाद पीएचडी जाना तो था ही वो तो अगस्ट में था और मैं जनवरी में ग्रेजुएट किया था तो छ महीने करूंगा क्या सोचा नौकरी भी सॉफ्टवेयर भी देख लेते हैं तो उस एरिया में कुछ दिन काम किया तो उसके बाद फिर मैंने कभी रिग्रेट नहीं किया कि एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में गया हूं इतना अच्छा डिसिप्लिन था मेरे लिए कि बहुत मन भा गया उसमें और इतना महत्वपूर्ण है लाइफ सस्टेनिंग है लाइफ सस्टेनिंग है कितनी ये महत्त्वपूर्ण पक्ष है हमारे हम सबकी जीवन का जी का और यह तो बहुत अच्छी बात है कि आप यहां पर आकर और एक बहुत गहराई से काम करके और एक बहुत बड़ी अवेयरनेस ला रहे हैं इस दिशा में और इसम हम लोग अभी आगे बात करेंगे क्योंकि एक और एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग आपने क्योंकि बोला ना कि बहुत महत्त्वपूर्ण है यह सोचिए आज हम लोग सोचते हैं कि हमारा जो डेवलपमेंट है जो भी हो रहा है उसके लिए हम सोचते हैं कि हमने इसकी खोज कर ली उसकी खोज कर ली लेकिन सबका जो बेसिस है वो ट इन एग्रीकल्चर है क्योंकि आप देखेंगे अगर एक किलोग्राम एक केजी आटा बनाने के लिए 1900 वर्ष में 19 1900 में यूएस में 10 मिनट लगता था आज वही चार सेकंड में होता है क्योंकि इतने सारे मैकेनाइजेशन इतने सारे इंप्रूवमेंट हुए हैं उससे क्या होता है उस टाइम पर यूएस में करीब 80 से 90 प्र लोग एग्रीकल्चर से जुड़े हुए थे कृषि से जुड़े हुए थे और आज 1.5 पर से कम लोग जुड़े हुए हैं उससे क्या होता है बाकी जो समाज है वो फ्री हो जाता है भारत में भी ऐसा ही हो रहा है जब तक हम लोगों को ये फ्री नहीं कर सकते क्योंकि उनको पहले फ्री करना है तभी फ्री कर सकते हैं जब हम उनको अनन दिन दे सकते हैं जब किसान ज्यादा प्रोडक्टिव होता है और अन्न को प्रोडक्शन ज्यादा कर सकते हैं तो बाकी समाज जो है दूसरे काम में लग सकते हैं नहीं तो सबको अन्य के खोज में अपना खेत में ही काम करना पड़ेगा तो वो एफिशिएंसी ऑफ एग्रीकल्चर का जो है जो इंप्रूवमेंट है ट इज द फंडामेंटल बेसिस फॉर द एक्सीलरेटेड टेक्नोलॉजी चेंज सी सो समथिंग ट सस्टेंस एयर डेवलपमेंट टक सस्टस की जब बात आती है तो बहुत ही प्राचीन काल से भारत में सस्टेनेबल एग्रीकल्चर रहा है है ना प्रैक्टिस में रहा है लोग उसको प्रैक्टिकली करते थे और परंपरा से पीढ़ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही ये ज्ञान श्रृंखला जो सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की है आपको क्या लगता है कि पाश्चात्य ने या जैसे आप अमेरिका में रहे उसने कब समझा जाना इसके महत्व को सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के देखिए यह शुरू हुआ था इनका करीब सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद जो है हमने स्पेशली वेस्ट ने फर्टिलाइजर्स डालना शुरू किया थोड़ा फास्फोरस का तो शुरू हो गया था 187 से लेकिन जो एक्चुअल जो बहुत ज्यादा नाइट्रोजन फर्टिलाइजर का जो हुआ था वो सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यूज ज्यादा शुरू हुआ था तो उसके बाद उन्होंने बस 20 साल के अंदर एक और पेस्टिसाइड यूज करना शुरू कर दिया ये सब बहुत ज्यादा यूज शुरू कर दिया था उस उससे बहुत ज्यादा पर्यावरण को हानि पहुंचने लगी तो ये एक एनवायरमेंटल मूवमेंट का एक पहला बुक माना जाता है साइलेंट स्प्रिंग करके द साइलेंट स्प्रिंग 1960 में निकला था क्योंकि तब क्या हो रहे थे कि ये इतना पेस्टिसाइड यूज करने से पक्षी मर रहे थे थे तो स्प्रिंग जो है वसंत ऋतु खामोश है ये बेसिकली वो था तो क्योंकि पक्षियों नहीं थे तो यह तब उन लोगों ने सोचना शुरू किया क्योंकि देखिए वेस्ट का पर्सपेक्टिव कभी भी रिडक्शनिस्ट अप्रोच रहा है तो वह लोग उसका थिंकिंग प्रोसेस ऐसा रहता है कि मैं यह खेत के बारे में ही सोचूंगा इससे कितना निकालना है यह सोचूंगा और उससे क्या होता है कि आप अपने खेत के बारे में ही सोच रहे हैं लेकिन पूरा जो इकोलॉजिकल पर्सपेक्टिव है उसका इंपैक्ट है जब तक आप नहीं समझेंगे तो वो अभी तो नहीं करेगा लेकिन 101 साल बाद उसका इंपैक्ट जरूर दिखेगा और ये आप आजकल हम लोग पंजाब में भी देखते हैं पंजाब में भी ग्रीन रेवोल्यूशन के 20 साल बाद क्या है अभी जालंधर वहां से तो चलता ही है कैंसर एक्सप्रेस चलता है जो पूरे कैंसर के पेशेंट रहते हैं पंजाब से जो जा रहे क्योंकि ट वाज द कॉस्ट दैट फार्मर्स ऑफ पंजाब हैव पेड फॉर द फूड सिक्योरिटी ऑफ इंडिया और वैसे ही यूएस में भी ये किया था लोगों को बहुत सारे प्रॉब्लम हो रहे थे वहां पे हेल्थ का ये सब तो फिर उन लोगों ने शुरू किया फिर बोला नहीं डस्ट बॉल का जो था उसके बाद उन्होंने बोला कि कंजर्वेशन एग्रीकल्चर करना है लो टल करना है नो टिल करना है मतलब हर बार इतने बड़े-बड़े ट्रैक्टर्स लेकर वो खुदाई नहीं करनी खेतों की वो थोड़ा सा हल्का सा करना है बीच जितना बोना है उतना ही डेप्थ में करना है ये सब उन लोगों ने किया है तो तब से अवेयरनेस शुरू हुआ और फिर वो धीरे-धीरे से अलग-अलग नामों से दे देने लगे पहले तो कंजर्वेशन एग्रीकल्चर लो टिल एग्रीकल्चर नोटल एग्रीकल्चर फिर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर आजकल ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर की बात करते हैं ये सब जो है अल्टीमेटली जब देखा जाएगा तो इसमें ये बात यह कर रहे हैं कि हम खेत को सिर्फ एक खेत की तरह नहीं देखेंगे एक समथिंग दैट इज टू बी कंट्रोल्ड समथिंग टू बी एक्सट्रैक्टेड ना देखें उसको एक एज अ पार्ट ऑफ द होल अर्थ देखें और जब उसमें हम लोग पौधों के साथ माइक्रोब्स का और मिट्टी का और पूरे पर्यावरण का एक साथ वो देखेंगे कि इट इज नॉट अबाउट इंडिविजुअल थिंग बट एसेंशियली द एनटायर सिस्टम इट सेल्फ तब हमको पता चलता है कि यह अप्रोच में नेचुरली आएंगे यह अप्रोच हमारे भारतीय कृषि में पारंपरिक कृषि में सहज रूप से थी हजारों वर्षों से बहुत सारे हजारों वर्षों से और ऐसा नहीं था कि हमारा पारंपरिक कृषि में अगर हम लोग कर रहे हैं तो हमारा उपज कम थी ऐसा नहीं था कभी भी इनफैक्ट जो आप अगर बहुत सारे कावेरी डेल्टा में जो शिलालेख मिलते हैं चोल राज के टाइम के 1000 साल पहले के उसमें देखेंगे कि उनका जो प्रोडक्टिविटी था जितना उपज आता था वो आज के उपज से कहीं ज्यादा है आजकल जो जापनीज को जो हम लोग जो हाईएस्ट प्रोडक्टिविटी का वो नाप देते हैं उससे ज्यादा यहां पर मिलता था तो ऐसा नहीं था कि इसमें उपज नहीं मिलेगी उपज मिलता था लेकिन पर्यावरण को हानि नहीं होती थी वो क्योंकि एक सिस्टमिक थिंकिंग होता था यह बहुत बड़ा डिफरेंस है जो पारंपरिक कृषि ये ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर नहीं है ये मिक्सचर ऑफ स सस्टेनेबल कंजर्वेशन लो टिल या नोटल जो एग्रीकल्चर ये सब का मिक्सचर है जो बहुत ही सेंसिबल वे में इकोलॉजिकली सेंसिटिव वे में एग्रीकल्चर को प्रैक्टिस किया जाता था कृषि को प्रैक्टिस किया जाता था इसमें मारने मरने की बात नहीं होती थी मैनेज करने की बात होती प्रकृति के प्रति संवेदना होती थी जीव मात्र के प्रति संवेदना होती थी ये कोई नहीं बोलता था कि ये कोई कीड़ा है तो मार दो उसको ऐसे नहीं करते थे हम लोग मैनेज करते थे बंदर इनफैक्ट एक किसान ने एक बार बंगलुर के से 60 किमी दूर था वहां पे गांव में गया था वो अपना खेत में ये कर रहे थे कृषि कर रहे थे तो उनके खेत मैंने देखा तो चारों तरफ जो था वो फर्टिलाइजर वाला वो वाले खेत थे तो वहां पे मे में गया था तो पूरा एकदम बंजर भूमि की तरह दिख रहा था मिट्टी थी और कुछ नहीं थी क्योंकि तब वो जूते नहीं गए थे लेकिन इनका फील्ड देखा तो पूरा हरा भरा था मैंने बोला ये ऐसे क्यों कर रहे हो तो उन्होंने कुछ आम के पेड़ लगाए थे बहुत सारे फल लग रहे थे फल के वृक्ष लगे हुए थे और फिर उन्होंने दिखाया पहले तो यह सब दिखाया और फिर वो लेकर गए उनके बाउंड्री पर वहां पर बहुत सारे फल के वृक्ष लगे हुए थे और बहुत सारे जो हम लोग खाते नहीं है नॉर्मली हम लोग खाते ऐसे लगे हुए थे तो वो बोल रहे थे कि देखो अगर मैं भोजन नहीं दूंगा इवन जो जिसको हम पेस्ट बोलते हैं उसको मैं भोजन नहीं दूंगा तो वो यहां पर आएगा उसको मैं वहां पर दे रहा हूं तो वो वहीं पर रहता है यहां पर नहीं आता है मेरे आम पर नहीं आता क्योंकि उसको वहां पर भोजन मिल रहा है तो उस तरह से मैनेज किया जाता बहुत सारा जो है उसको भी भोजन मिले वो भी रहे हम भी रहे इस टाइप का मैनेजमेंट होता था ऐसा नहीं था कि हम लोगों ने वो केमिकल्स वो सब यूज नहीं किया वो भी यूज करते थे ऐसे केमिकल्स की बात नहीं कर रहा हूं मैं मतलब यानी कि जो टॉक्सिक केमिकल्स ऐसे बात नहीं कर रहा हूं जो प्रिपरेशन होते थे नीम का रस ले लिया या कुछ हींग ले लिया यह सबसे होते थे जिसे कि उनको भगा दिया जाए ना कि मार दिया जाए और व काम करते थे पाश्चात्य ने मिट 40 से हां पेस्टिसाइड्स और केमिकल का प्रयोग शुरू किया कृषि में और मिड 60 आते-आते उन्होंने रिलाइज किया कि इसका दुष्परिणाम क्या है और कितना भयावह है और फिर उन्होंने यह खोजना शुरू किया ये अन्वेषण शुरू शुरू किया कि क्या वजह है जो इस तरीके से विकृतियां आ रही है बीमारियां आ रही है पक्षी मर जा रहे हैं और फिर वो खोजते खोजते वो कहीं ना कहीं भारत की जो प्राचीन कृषि परंपरा है वहां तक पहुंचे जो सस्टेनेबल है हां वो दूसरे माल लेकिन वो बहुत टचस मार्ग है जहां मैं भी उसी तरह से आ रहा था जब तक मैंने वृक्ष आयुर्वेद का वो ला के बारे में नहीं पढ़ा मैं भी उसी मैंने सोचा यहां देखते हैं पहले बहुत सार लेकिन क्या वजह है कि हमने मिट 60 में हा यह केमिकल्स का पेस्टिसाइड का ग्रीन रिवोल्यूशन के नाम पे हमने प्रयोग शुरू कर दिया है क्योंकि देखिए उस टाइम पर वहां हमारे देश में एक अलग समस्या थी समस्या थी थ भूखमरी की स्टार्वेशन की सबको क्विक सॉल्यूशन चाहिए होता है तो क्विक सॉल्यूशन क्या था उस टाइम पर हाई प्रोडक्टिविटी का जो यह फर्टिलाइजर यूज है यह सब करने से हमारा जो फूड प्रोडक्शन है वो बढ़ जाएगा नहीं तो हमारे पास इवन आप 60 में आप पीएल 480 का भी अगर आप सोचेंगे तब ऐसी स्थिति थी कि हमारे सो कॉल्ड मित्र और शत्रु दोनों भी हमको गेहूं का वो नहीं देते थे वो देने के लिए बोलते कि आप वो शिप वेट कर रहा है यूएन में हमारे फर वोट करोगे तो हम यहां पर ये रिलीज करेंगे इस तरह का यह था क्योंकि वह हमारे भारत के स्वाभिमान का इशू था तब हमारे पास और कोई चारा भी नहीं था क्या करेंगे भोजन नहीं है उस टाइम पर लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी बोला था कि सप्ताह में एक बार उपवास करो इस तरह की स्थिति से निकलने के लिए हम संकट की स्थिति थी तो आपद धर्म के रूप में हमारे शास्त्र में जिस तरह से बोला जाता है ये यूज किया गया इसका मतलब है कि इतने लंबे एक कॉलोनियल रूल के बाद हम अपनी शायद प्राचीन परंपराओं से हम छूट गए थे टूट गए थे और क्योंकि जैसा आपने कहा कि जो प्राचीन जो कृषि परंपराएं है जैसे वृक्ष आयुर्वेद में है उसमें जो प्रोडक्टिविटी है जो उपज है वो जितनी केमिकल है उतनी रहती है जितनी केमिकल प्रयोग से होती है इसका मतलब कहीं ना कहीं वो परंपराएं कहीं ना कहीं प्रभावित हो गई थी उका क्षय हो गया था बहुत हो गया था क्या हो गया था क्योंकि कोलोनियल टाइम में इनफैक्ट इवन मुगल टाइम में भी उतना नहीं हुआ था जितना कोलोनियल वालों ने जितना डैमेज किया था आप अगर धर्मपाल जी ने जो उसका बहुत ही ब्यूटीफुल वे में उन्होंने उल्लेख किया है स्टेट ऑफ टेक्नो साइंस एंड टेक्नोलॉजी इन इंडिया इन 177th एंड 18 सेंचुरी ये उन्होंने पुस्तक जो गैजेट से है उससे उन्होंने कंपाइल करके लिखा है उसमें बताते हैं कि हमारा जो इंप्लीमेंट्स थे तो हल थे या काटने के लिए जो ये औजार थे ये सब जो थे सम ऑफ द बेस्ट इन द वर्ल्ड दैट टाइम फॉर आवर कंट्री हमारे देश के लिए बहुत ही सही थे तो इन लोगों ने कुछ यूरोपियन प्लाउज को यहां पर लाने की बात कही थी तो वो सक्सेस नहीं हुआ इनफैक्ट एक यह भी है कि हमारे सिविलाइजेशन में गोवंश को क्यों इतना महत्व दिया जाता है एक प्रोफेसर वकाल ऑफ स्मिल है कैनेडियन यूनिवर्सिटी मैगल में है शायद वो प्रोफेसर है वहां पे उन्होंने एक बहुत अच्छी बुक लिखी एंड बहुत सारे बुक लिखते हैं वो उनमें से एक बुक है एनर्जी एंड सिविलाइजेशन पर उन्होंने उसमें बात कही कि जो यूरोप का जो मिट्टी है उसमें आपको गहराई से वो हल चलाना पड़ता है जबकि भारत में हम लोग सिर्फ 5 से 10 सेंटीमीटर चलाते थे हल क्योंकि जरूरत नहीं था हमको भगवान की जो देन है यहां पे ये पुण्य भूमि इसलिए बोलते हैं कि हमको बीज बोएंग तो आ जाएगा और त्यागराज स्वामी जी बोलते हैं एक कृति में कि रामराज्य में हर महीने तीन बारिश होते हैं तो वो अगर आप एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग की पर्सपेक्टिव से देखें तो उसके बाद आपको और कोई इरिगेशन का जरूरत नहीं होता है वो काफी होता है पूरा आपको मिलेगा वो पूरा तो उस तरह से हमारे यहां सौभाग्यशाली है कि हमारा भूमि ऐसी है भारत में कोई भी जगह प जाए तो ऐसे जगह ऐसे होने से यह था कि हमको पूरा अंदर से वो हल चलाने की जरूरत नहीं पड़ती थी तो क्योंकि उनको चलाना पड़ता था तो वो आप देखे होंगे बेल्जियन हॉर्ससनएक्स अनाज देंगे उसको तो मान लीजिए एक एकड़ में जितना अनाज आता है उसका एक तिहाई हिस्सा इसको भोजन कर उसका भोजन में चला जाता है जबकि भारत में इसका परिस्थिति बिल्कुल विपरीत था हम लोग जो भी अनाज आता था वह हम लेते थे और सिर्फ उसका जो घास फूस जो स्ट्रॉ है वह हम अपने गाय बैल को खिलाते थे क्योंकि गाय बैल जो है उतना पावरफुल नहीं है जितना एक हॉर्स है लेकिन जरूरत भी नहीं है हमारे यहां वो स्ट्रॉ खाकर वो रहता था तो जो भारत का जो सिविलाइजेशन है वो इस स्तर तक इसलिए पहुंचा क्योंकि हमारी एग्रीकल्चर बहुत प्रोडक्टिव था उसके लिए वन ऑफ द मेन रीजन है कि हमारे पास यहां गोवंश था यह भी हमको जानना जरूरी है और जो भारत का जो देशी कौ ब्रीड है दिस आर डिफरेंट फ्रॉम द बॉस टोरस जो यूरोप का है हमारा बॉस इंडिकस माना जाता इंडिकस माना जाता है तो ये बहुत तो वो कहते हैं कि अगर एक तिहाई आप वकाल स्मल जी जो बोलते हैं उनके बुक में कि न थर्ड अगर आप अपने अपने घोड़ों को दे रहे हैं जो खिलाने के लिए तो बचेगा क्या 230 बचेगा जबकि यहां पे जो भी आता है वो हमारे पास रहता था तो सिविलाइजेशन भी हम लोग उस तरह से ये है ये 17 एंड 18 सेंचुरी की बात का टेक्स्ट बुक है दूसरा एक महाराजा इंदौर के जो हमारे महाराजा थे उन्होंने एक ब्रिटिश साइंटिस्ट थे सर हॉवर्ड करके उनको बुलाया था वो क्योंकि वहां पे ब्रिटिश एजेंट वो सब रहते थे तो उनको बुलाया था कि हमारे एग्रीकल्चर का प्रोडक्टिविटी थोड़ा कैसे बढ़ा सकते हैं इसका आप देखिए थोड़ा आगे तो वो आकर उन्होंने कुछ एक्सपेरिमेंट शुरू किए इंदौर में 1915 1920 के आसपास 19 19152 के बीच में आकर उन्होंने शुरू किया कुछ जगह भी मिली उनको क्योंकि महाराजा थे उन्होंने जगह दिया बोला आप यहां पर करो तो उन्होंने जानबूझकर उन्होंने बोला सर हॉवर्ड ने कि मैं जानबूझकर ब्रिटिश वाला सिस्टम से नहीं करना चाहता क्योंकि उन्होंने लिखा है कि ब्रिटिश सिस्टम जो अप्रोच है वो था प्लांट ब्रीडर जो है व प्लांट बेसिकली उसका जो ब्रीडर जो है पेस्ट वाला मैनेजमेंट से बात नहीं करता है वो दूसरे से इरिगेशन वाले से बात नहीं करेगा दूसरा प्लांट पैथोलॉजी से बात नहीं करेगा तीसरा सोइल वाले से बात नहीं करे ये सब अलग-अलग डिपार्टमेंट बना के इसको तोड़ दिया है जबकि हमको किसान जैसे मैंने कहा था कि किसान को मल्टी डिसिप्लिन होना पड़ता है तो उन्होंने बहुत साल देखा था भारत में किसानों को उन्होंने बोला नहीं मुझे इंटीग्रेट करके देखना है और वहां पर एक्सपेरिमेंट शुरू किया उन्होंने सोचा कि कि उन्होने लिखते हैं कि मैंने सोचा कि भारत के किसानों को सिखाऊंगा लेकिन इन द एंड मैंने ही उनसे सीखा है तो उन्होंने बहुत सारा जो हमारे यहां एक कंपोस्टिंग की पद्धति थी यह सब उन्होंने पूरा स्टडी करकर डॉक्यूमेंट किया और डॉक्यूमेंट करकर उसको उन्होंने द इंदोर मेथड करके पब्लिश किया द इंदोर मेथड करके ये शुरुआत है पूरे विश्व पूरे वर्ल्ड में ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर का क्योंकि उनको पितामह माना जाता है हॉवर्ड को ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर का उन्होंने यहां से लेकर यह मेथड को अमेरिका में और यूरोप में यह सब बहुत प्रचार किया क्योंकि उसी टाइम पर 1930 में यूएस में डस्ट बॉल चल रहा था तो क्योंकि उन लोगों ने बहुत ज्यादा यह स्टीम ट्रैक्टर से ये सबसे वो हल जोत करर वो कर दिया और उससे फैलो रहना बन गया था और वो जो फैलो बन मिट्टी धूल उड़ती थी तो पूरी जो फर्टिलिटी थी खत्म हो गई थी डस्ट बॉल था पूरा यूस में उस टाइम पे तो बहुत ज्यादा प्रॉब्लम्स आ रहे थे उनको तब उन्होंने उसी टाइम पर यह भी गया था यहां से भारत से सर हॉवर्ड ने जो इंडोर प्रोसेस करके जो बनाया था सबसे लोगों उनको तब कंजर्वेशन टिलेज लो टिलेज नो टिलेज ये सब प्रैक्टिसेस वहां से आना शुरू हुई थोड़ी-थोड़ी करके फिर वो डस्ट बॉल कवर क्रॉप्स का हमारे यहां तो कवर क्रॉप्स होता ही था हमारा मल्टीपल क्रॉपिंग होता था जबकि यानी कि आप एक रो लगाएंगे गेहूं का बीच में लगाएंगे तो वर्क का इस तरह का क्रॉप ऑलमोस्ट हम लोग करते थे यह बाद में ये सब इन्होंने स्टडी कर कर होवर्ड ने भी बताया कि दिस इज द वे टू डू थिंग्स दिस इज अ वे इन व्हिच यू मैनेज प्लांट्स माइक्रोब्स एंड सोइल टुगेदर एज अ सिस्टम जो भारत का पर्सपेक्टिव था यही उन्होंने इंदोर प्रोसेस करके बताया जो आज ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर यह सब उसका वेरिएंट्स है कुछ एलिमेंट्स है सब कुछ नहीं है कुछ एलिमेंट्स आते हैं तो एक तरीके का संकट था हमारे भारत के ऊपर 60 में जब हमें यह शुरू करना पड़ा पेस्टिसाइड्स का केमिकल्स का प्रयोग अपने ऋषि में लेकिन इसके दुश प्रभाव भी सामने आने शुरू हो गए अगले 20 साल में यहां भी लोगों को पता चला कि कैसे बीमारिया कैंसर और तमाम जेनेटिक म्यूटेशन और कैसे कैसे क्याक चीजें हो रही है तो उसके बाद हम क्या हमने कोई उसका कुछ सलूशन निकाला एग्रोन जो है जो अभी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में जो एग्रोनॉमिस्ट है एग्रीकल्चर इंजीनियर है यह सब इसको जानते हैं तो उन्होंने इसका रिस्पांस भी शुरू कर दिया था क्योंकि यूएस में भी यह प्रॉब्लम आ रहा था वेस्ट में भीय आ रहा था तो वहां से भी हम लोगों ने सीखा और करना शुरू किया तो वही यह था कि कंजर्वेशन एग्रीकल्चर कवर क्रॉप्स लगाना यह सब करके कर रहे थे लेकिन अभी भी पेस्टिसाइड्स का कोई हल नहीं है किसी के पास पेस्टिसाइड तो फिर भी वही यूज करते हैंक वो दृष्टि बदल पड़ेगी सिर्फ ऊपर ऊपर से बदलने से नहीं चलेगा क्योंकि हमको जब तक दृष्टि नहीं बदलेंगे जैसे उस किसान ने बोला था कि हम उनको मारेंगे नहीं उनको भोजन कहीं और देंगे तब तक वह दृष्टि नहीं आएगी तो करना मुश्किल है तो वह थोड़ा सा अभी भी धीरे-धीरे हो रहा है जिस रेट से होना चाहिए उस रेट से नहीं हो रहा है बट लोग सोच रहे हैं अगर एक ऑन एन एवरेज हम पूछे कि कितने परसेंट लोग अभी पेस्टिसाइड का प्रयोग कर रहे हैं भारत के जो कि है हां तो कितने परसेंट होंगे ऐसे लोग देखिए जिसके पास पैसा है वो कर रहा है जिसके पास नहीं है वो नहीं कर पा रहा है या कम कर पा र है इसीलिए एक उस तरह से बोला जाए तो यह भी है कि क्योंकि किसान गरीब है बहुत ज्यादा पेस्टिसाइड यूज नहीं होता है हमारे देश में कुछ-कुछ क्रॉप्स में बहुत ज्यादा यूज होता है जैसे आप ग्रेप्स है यह सब में तो बहुत ज्यादा यूज होता है लेकिन ऑन एन एवरेज देखा जाए तो पेस्टिसाइड यूज बहुत कम है फिर भी हमारे देश के लिए वह ठीक नहीं है तो हमको और क कम करना पड़ेगा एस अ परसेंटेज बोले जाए तो शायद 90 पर तो यूज कर रहे ही होंगे और पेस्टिसाइड्स के अलावा और कोई केमिकल जो यूज कर रहे हैं पेस्टिसाइड तो देखिए यूज करना पड़ता है उन लोगों को ये पेस्ट्स को मारने के लिए बिल्कुल और स्पेशली मोनो क्रॉप्स होते हैं तो और भी प्रॉब्लम होता है उसमें क्योंकि एक ही क्रॉप है तो उसी में सब खाएंगे तो आ जाएंगे वो सब उसी को इंपैक्ट करता है और तो वीडी साइड यूज करते हैं वीड्स को मारने के लिए प पहले यह भी था हमारे यहां वो बताते हैं कि किसान इतने डिलिजेंट थे कि कोई भी वीड जो है उसको निकाल देते थे हाथ से जाकर निकाल देते खुर पी से ये सब साफ रखते थे अपना खेत आजकल जो है लेबर का भी इशू है तो इसी में हमको टेक्नोलॉजी के बारे में सोचना पड़ेगा क्योंकि देखिए अभी हम लोग यह सोचेंगे कि हम सबको एक हाथ में खुरपी देकर खेत में चलाएंगे वो पॉसिबल नहीं है लेकिन रोबोटिक्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में जो इमेज रिकग्निशन ये सब ऑटोमेटिक होता है ये सब करके हम ऑटोमेट वडर्स बना सकते हैं जो हमारे किसान के लिए काम आएगा तो हमको अपने पारंपरिक ज्ञान दृष्टि के साथ मॉडर्न मेथड्स अडॉप्ट करके आगे चलना है इससे क्या होगा पेस्टिसाइड यूज नहीं करेंगे लेकिन हम लोग ये जो वीड्स को निकालना है वो काम हम कर पाएंगे और थोड़ा सा इकोलॉजिकली थिंकिंग जो होता था हर इसमें गांव के बाहर एक बायोडायवर्सिटी जैसा एक हॉटस्पॉट होता था सेक्रेड ग्रोव होता था जिसमें हम लोग उसको क्या बोलते हैं वन बोलते हैं जिसमें कोई नहीं जा सकता है व ग्राम का वैद्य जाएगा और वहां का पुजारी जाएंगे यह दो ही जाएंगे तो वद इसलिए क्योंकि वहां पे जड़ी बूटियां लेकर आएगा इस तरह के वो सीक्रेड ग्रोज होते थे पूरे देश में है ये उसको थोड़ा और बढ़ावा देना चाहिए इससे क्या होगा पूरा सिस्टम यह होगा और सबसे बड़ी बात यह है कि हमको फिर से वो दृष्टि लानी पड़ेगी कि हम भूमि पृथ्वी योह करके जो अ वेद का सूक्त है उस तरह सोचना पड़ेगा वो हम बोलते हैं लेकिन एक्चुअली करते नहीं है जब तक वो दृष्टि करके आएगा नहीं वो बदलाव वहां पर नहीं दिखेगा तो हमारे जो पारंपरिक जो कृषि विज्ञान है हां जैसे आपने बात की वृक्ष आयुर्वेद की इसमें पेस्टिसाइड्स के लिए क्या किन चीजों का प्रयोग बताया गया क्या विकल्प क्या है लोगों के पास अब देखिए बहुत सारे हैं बहुत सारे हैं इनफैक्ट दो तीन चीजों का उल्लेख करूंगा और मैं फिर बताऊंगा क्या है जैसे मान लीजिए ये कैटरपिलर जो होते हैं वो ऐसे ऐसे रंगते हुए आते हैं वो अगर है तो उसको निकालने के लिए हमारे यहां बताया गया कि जैसे धूप करते हैं घर में हम लोग उसी तरह से वो धूप करने के लिए बोला गया है सफेद राई के साथ वाइट मस्टर्ड के साथ उसके साथ करेंगे तो वो जो धुआ जो आएगा वो उसको गिरा देगा तुरंत गिरा देगा और क्या करते हैं दूसरे दिन मुर्गियों को भेजते हैं वहां प बस हो गया तो ये इस तरह से करते और मान लीजिए दीमक लग रहे हैं क्योंकि खेत में भी प्रॉब्लम होता है कुछ-कुछ पेड़ों पे और वहां प दीमक लग सकता है तो उन लोगों का बहुत ही छोटा सलूशन था कि एक पोटली में हींग डाल के उसको पानी में डाल देंगे वहां प जिस पानी से इरिगेशन हो रहा है और वो पानी जाएगा तो फिर अच्छा जहां जहां वो जाएगा वहां टरमाइट नहीं आएंगे दीमक नहीं आते हैं ये दो ऐसे ही ऐसे ही नीम के पत्तों से आप तो जानते ही है हम लोग जब अनाज स्टोर करते हैं तो नीम के या मिर्ची डालते हैं मिर्ची डालते हैं और सोचिए ये परंपरा जीवंत परंपरा है इसका एक एग्जांपल देता हूं मैं हम लोग देखिए तंबाकू जो है भारत में 16 17 शताब्दी में आया था क्योंकि वो साउथ अमेरिका का क्रॉप है वहां से आया था तो तब तक हमारे किसान जानते नहीं थे तंबाकू को लेकिन वो लोग क्या करते हैं आज अ एक्सपेरिमेंट करते हैं तो एक्सपेरिमेंट करके उन्होंने ये बोल दिया अभी पारंपरिक हो गया है वो कि तंबाकू को भिगोते हैं रात भर पानी में और वो पानी को छिड़क हैं उससे बहुत सारे पस हट जाते हैं जाते हैं हां ये ट्रेडिशनल ये सब का उल्लेख जो है एक तो हम लोगों को हमारे पुस्तकों में मिलता है हमारे ग्रंथों में मिलता है वृक्ष आयुर्वेद है कृषि पराशर है ऐसे करके बहुत सारी परंपराएं हैं इनफैक्ट जो वर्ल्ड का जो फर्स्ट टेक्स्ट बुक है एग्रीकल्चर का वह भारत में लिखा गया था कृषि पराशर 2500 साल पहले उसके बाद बहुत सारे पुस्तक आ इनफैक्ट संस्कृत में नहीं यह इसमें भी है ओड़िया में भी है वृक्ष आयुर्वेद का जो मूल प्रति है व संस्कृत में 30 पन्नों का है तो ओड़िया वाला 480 पन्नों का है इतना ज्यादा ज्ञान है उसमें और उसी तरह से फारसी में भी है रा शिको ने नुस्खा दर फन्नी फलाह करके फारसी में लिखवाया था मलयालम में है तो सभी भारतीय भाषाओ में ये जो लिखा है वो तो बहुत छोटा अंश है जो प्रचलित है वो बहुत ज्यादा इससे कहीं ज्यादा है तो इसमें जैसे अरुणाचल प्रदेश में एक पूरा डांस फॉर्म है जो उसमें मिलेट्स का खेती कैसे होता है कैसे बोना है व वो सब डांस फॉर्म में सिखाते तो ये सब ऐसे परंपराएं रही है हमारे पास तो ये सब जो है इसका आईसी ने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च ने 2001 से 2007 तक एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट किया था उन्होंने ऐसे जो मौखिक जो य परंपराएं हैं उनको कैप्चर करने का कोशिश किया और 2000 ऐसे उनको उन्होंने डॉक्यूमेंट किया और उसका उसमें से कुछ 200 को उन्होंने वैलिडेशन किया एक्सपेरिमेंट करके देखा कि यह चलते हैं कि नहीं साइंटिफिकली पूरा करके पूरा पेपर्स पब्लिश किया उस पर और उसमें से उन्होंने पाया कि 200 में से 85 पर जो है काम करते हैं इफेक्टिव है 5 पर का पता नहीं 10 पर का रिजर्व रखा गया है क्योंकि वो मालूम नहीं है वो काम कर रहा है या नहीं कर रहा है बैड इफेक्ट तो नहीं है पता नहीं है लेकिन 5 पर का काम नहीं कर रहा है 85 पर काम कर रहे हैं आज भी और उसमें वाटर मैनेजमेंट है वीड मैनेजमेंट है पेस्ट मैनेजमेंट है प्रिजर्वेशन है सोइल का न्यूट है प्लांट न्यूट्रिशन मैनेजमेंट है यह सब ऐसे करके किया है उन्होंने क्या इतने सारे और आप सोचिए और क्या-क्या होंगे क्या बात है तो बस अब आवश्यकता है कि अवेयरनेस हम पैदा करें इन सब चीजों को जो पारंपरिक जो तरीके हैं उनके विषय में जो आज के जो किसान है वह थोड़ा और अवेयर हो जागरूक हो और उन चीजों को एक्सपेरिमेंट करें उन चीजों को प्रयोग करें तो इस पेस्टिसाइड से मुक्ति मिल जाएगी क्या दुष्प्रभाव है पेस्टिसाइड पेस्टिसाइड के तो बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव है इन द सेंस कि एक तो यह है कि हम हम एक चाइना की बात करता हूं मैं एक बार क्या हुआ था जब उनका कल्चरल रिवोल्यूशन चल रहा था तो उन्होंने देखा कि यहां पे स्पैरोज जो वो बहुत ज्यादा है वो ग्रींस खाते हैं तो उन्होंने कहा कि नहीं नहीं इनको मारना चाहिए और उन्होंने एक पूरा राष्ट्र में उनके चाइना में एक अभियान चलाया विल किल स्पैरोज उन्होंने मार दिया हर चिड़िया को मार देते मारने के बाद क्या हुआ क्योंकि वो दाने खा रहे हैं इनके अनाज खा रहे इसलिए नेक्स्ट यर क्या हुआ एक भी बहुत चिड़िया ना के बराबर है उसके बाद क्या हुआ अगले साल जो इंसेक्ट है यह इतने सारे बढ़ गए क्योंकि वो एक दाना खाता था तो 10 कीड़ों को भी खाता था अब ये कर दिया कि वो एक दाने के चक्कर में 10 कीड़े बढ़ गए बढ़कर अगले साल क्या हुआ पूरा काल पड़ गया तीन चार साल तक भूक मरी हो गई पूरी चाइना में तो ऐसे ही यहां पर हम लोग एक के पीछे जा रहे हैं जो जैसे इवन जैसे सांप देखते हैं हम लोग को लगता है सब सांप जहरीले हैं ऐसा नहीं है कुछ परसेंट 5 10 पर ही जहरीले है बाकी तो कुछ नहीं है तो उसी तरह से ये कीड़े जो है पेस्ट है हम लोग एक दो ही है जो कुछ परसेंटेज है छोटा परसेंटेज जो एक्चुअली प्रोब्लेमे है बाकी को मारना नहीं है हम लोग ये पेस्टिसाइड जब डालते हैं सबको मार देते हैं क्योंकि ये इंडिस्क्रिमिनेट होता है उससे बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव होता है क्योंकि जैसे वो स्पैरो के चलते चलते कीड़े बढ़ गए वैसे ही उनको मरने मारने के बाद जो इसमें से बच जाते हैं वो फिर आने लगते हैं तो उसका तो कोई काट है नहीं अभी हमारे पास और यह बहुत ली और बहुत इफेक्टिवली हो रहा है पाच छ सालों में मतलब 10 साल के अंदर व उसम से कोई विषकन्या जैसा कोई आ जाता है जो उसके बाद जितना भी छिड़क कुछ नहीं होगा उसको बाकी सब मर रहे हैं जो अच्छे हैं वो भी मर रहे हैं तो क्योंकि देखिए एक पारंपरिक एक ये है हमारे खेतों में एक कीड़ा आता है गंधी बग या करके कुछ आता है उसके लिए क्या करते हैं किसान एक वाइल्ड शुगर केन है उसको लगा देते हैं लगा के छोड़ देते हैं क्या होता है उस पर एक मकड़ी आती है वो मकड़ी इनको खाता है अब सोचिए मैं ये बिना सोचे मैंने जाके पूरा पेस्टिसाइड छिड़क दिया मेरा मकड़ी भी मर जाएगा ये भी मरेगा ये तो मरेगा एक एक सीजन के लिए बाकी सीजन बाकी तो ये सब मर गया ट हो रेजिस्टेंट होके ये आ जाएंगे उसका तो क्या होगा और फिर स्वास्थ प दुष्प्रभाव ये तो इंसेक्ट्स के लिए है और वो हमारे भोजन में भी जाएगा और प्रॉब्लम क्या होता है वो बायो कंसंट्रेशन इफेक्ट बोलते हैं इसको तो अगर वह अनाज में 1 प्रतिशत है तो वह हमारे अंदर आके आके 10 प्र हो जाएगा क्योंकि हम अन्न भी खाते तो हमारे अंदर रहता है ना वो एक्युमटिका लाइफ स्टाइल डिसीज जो बोलते हैं आजकल जो कैंसर यह सब जो डिसीसेस है उनका बहुत सारे रीजन हम लोग जाकर ओवर यूज ऑफ पेस्टिसाइड से देखें कोलेशन मिलता है कॉजेशन का बहुत ज्यादा ये नहीं है बहुत सारे पेस्टिसाइड तो कैंसरस है ही कार्सिनोजेनिक होते ही है और लेकिन जिस अमाउंट में मिलते हैं उसका लॉन्ग टर्म इंपैक्ट पड़ता है दूसरा एक चीज है जो हम लोग को डायरेक्टली तो दिखता नहीं है लेकिन एक्चुअली आजकल समझ रहे हैं लोग माइक्रोब्स भी मारते हैं साइड के साथ ये सब मर रहे हैं तो वो जब वो अन्न को खाते हैं तो हमारे गट के अंदर जो माइक्रो बम है वो भी चेंज हो जाता है तो आजकल उसका महत्व अभी समझ रहे हैं हम लोग लास्ट 152 साल में साइंस में कि गट में जो माइक्रोबायोम का जो डाइवर्सिटी होता है माइक्रोब्स का जो डाइवर्सिटी है ट प्लेस वेरी वेरी इंपोर्टेंट रोल नॉट जस्ट ऑन गट हेल्थ बट ऑन थिंग्स लाइक स्कज फ्रेनिया बेसिकली अल्जाइमर डिसीज इम्यून रिस्पांस ये सब पर वो इंपैक्ट पड़ता है तो जब वो हम लोग खत्म कर देंगे उसका डाइवर्सिटी खत्म कर देंगे और गट को जो हेल्थ है वो खराब कर देंगे डिस बायोसिस बोलते हैं साइंटिफिक टर्म्स में वो जब हो जाता है तो पूरा इंपैक्ट मेंटल हेल्थ पर भी पड़ता है आप सोचिए हम जो खा रहे हैं मन प भी उसका इंपैक्ट पड़ता है ये सब साइंटिफिकली प्रूवन वो है जो पेपर्स पब्लिश हुए हैं बहुत सारा काम चल रहा है इसपे कि इसको कैसे किया जाए तो उसका बहुत सारा ये बोला जाता है कि आप ट्रेडिशनल जो फर्मेंटेड फूड है उसको खाइए फिर वो ठीक हो जाएगा अब ऐसा खाना क्यों खाना है और फिर यह ठीक क्यों करना है ऐसे ही ठीक कर सकते हैं तो आपको लगता है इस दिशा में काम हो रहा है कि अवेयरनेस बढ़ाई जा रही है पेस्टिसाइड्स का प्रयोग कम हो रहा है धीरे-धीरे हो रहा है एटलीस्ट जो सिटीज में जो बहुत सारे लोग हैं व तो अभी अवेयर हो रहे हैं कि पेस्टिसाइड्स नहीं होना चाहिए इसीलिए आप देखेंगे कि हर जगह बोलेंगे पेस्टिसाइड फ्री चाहिए ऑर्गेनिक चाहिए ऐसे करके लेकिन देखिए जैसे-जैसे हमारा इकोनॉमिक डेवलपमेंट होता जाएगा इस तरफ बहुत लोग जाते जाएंगे और अभी भी गांव में अगर जाएंगे आप जिनको बैकवर्ड बोलते हैं जो हमारे ट्राइबल है वो कम्युनिटी में अभी वो लोग ऐसे ही खाते हैं जो खाना चाहिए जिस तरह से हमको खाना चाहिए वो लोग तो ऐसे ही खाते हैं तो वही हम लोग फिर मिलन हो रहा है उस तरह से मैं देखता हूं बड़े पैशनेट है आप जब बात करते हैं इन विषयों प कौन सा व मोमेंट ऑफ इंस्पिरेशन आपके बचपन में कोई ऐसे घटना जिसने आपको बहुत आंतरिक रूप से प्रेरित किया इस फी में आने के लिए ऐसा एक इवेंट तो है नहीं लेकिन देखिए एक बार हम लोगों ने जो घर में जो य उगाते हैं ना पौधे उगाते हैं तो यह उगाते थे हम लोग तो मैंने एक दिन एक दाना मूंग का डालकर उसको बड़ा किया था बड़ा करने के बाद वो तीन महीने लगे थे मुझे वो करने में पूरा करने में एक मुट्ठी भर दाना मिला सो फिर मैंने वो दिखाया मेरे मां को तो उन्होंने बोला देखो हम इतना खाते हैं तो कितना मेहनत करना पड़ेगा क्या बात है तो वो एक इंस्पिरेशन था बहुत ही सुंदर लेकिन यह जो आप लोग प्रयास कर रहे हैं एक जागरूकता एक अवेयरनेस लाने का बहुत आवश्यक है और हमें पूर्ण विश्वास है कि धीरे-धीरे संपूर्ण भारत की जो किसान है व अवेयर होंगे इस चीज को देख क्योंकि इनका प्रयोग अब बंद होना बहुत बहुत ही आवश्यक बहुत ही आवश्यक है इसमें भारत प्रेरणादायक हो सकता है पूरे विश्व के लिए और यह बहुत इंपॉर्टेंट भी है क्योंकि सबको जरूरत है इसकी ड य नो भारत वास मेड विक्टिम ऑफ कंस्पिरेटर शिप एंड आइडियो जिकल सबर्स वी ऑल हैव सफर्ड अ लट [संगीत] लेट्स एंड ट नाउ व ब्रिंग टू यू प्रम एन अनपोल जेटिक वीडियो प्लेटफॉर्म फ हिंदू प्रोटेक्ट यो फैमिली फम फल्स नेटिव अबाउट [संगीत] भारत डॉक्यूमेंट्री क्लासेस शोट यू विल नॉट फाइंड न प्रम इ पावर टू द हिंदू बॉय फर द कॉस्ट ऑफ वन कॉफी सब्सक्राइब नाउ क अब आगे बढ़ते हैं मूर्ति जी जो अनदर हैड ट यूर वेयरिंग एस नेशनल कोऑर्डिनेटर ऑफ आईएस पहले तो आईएस क्या है इसके विषय में आप जरा बताइए अगर देखेंगे तो बेसिकली भारतीय ज्ञान परंपरा जो हम लोग बोलते हैं आई केस यह भारत का ज्ञान विज्ञान और जीवन दर्शन है जो भारतीयों ने प्रकृति के साथ रहकर प्रकृति में रहकर उन्होंने अपने अनुभवों से इसको उसका जो है उसको गैदर करकर उससे उन्होंने जो निचोड़ है वो भारतीय ज्ञान परंपरा ये हमको कहां मिलता है हमारे शास्त्र परंपराओं में मिलता है चाहे वो आयुर्वेद हो गणित हो या हमारा लिंग्विस्टिक्स जो व्याकरण हो या शिक्षा हो या धातु शास्त्र हो कृषि शास्त्र हो यह सब में मिलता है हमको या नाट्य शस्त्र हो यह सब में मिलता है हमको य जिसमें पूरी परंपराएं चलती है और यह हमारे यह तो हो गई मार्ग परंपरा ऐसे ही देश परंपरा देशी परंपरा यानी कि हमारे जो गांव में और जंगलों में लोग जो ये करते हैं आर्ट फॉर्म्स है या डांस फॉर्म्स है या बहुत सार परंपराएं जो हम लोग जिस तरह से हम त्यौहार मनाते हैं उन सब में जो सम्मिलित होकर है उसी को हम भारतीय ज्ञान परंपरा बोलते हैं और इसमें यह भारतीय भाषाओं में है और भारतीय ज्ञान परंपरा इंग्लिश में नहीं है भारतीय भाषाओं में है और ये जो है य इसका जो भारतीयता का जो विविधता है वो जो दिखता है प्लूरलिटी जिसको बोलते हैं हम लोग ऑफ एक्सप्रेशन वो हमको हर जगह दिखता है और यह हर भारत का जो कल्चर है उसमें अंतर विहीन है और भारतीय भाषाओं से इसका एक्सप्रेशन होता है और बहुत सारे देश मार्ग परंपरा जो मिलकर बड़ी है यही भारत का भारतीय ज्ञान परंपरा है ज्ञान विज्ञान और जीवन दर्शन भारतीयों का है यह एक अच्छा प्रयास है मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन का भारत सरकार का वर्तमान क्या इसके पूर्व की सरकारों ने इस विषय में सोचा नहीं कि कितना आवश्यक है भारतीय ज्ञान परंपरा को स्थापित करना इसका एक पुनर संस्थापन करना इसका पुनर्जीवन देना इसको देखिए यह तो था कि हमारा अभी अगर पूरा माइंडसेट देखेंगे पूरा कोलोनियल माइंडसेट जो मैकल ने जो हमको बनाया था वही कंटिन्यू होते हुए आ रहा था तो लोगों ने सोचा ऐसा नहीं कि सोचा नहीं कुछ लोगों ने सोचा लेकिन इस तरह से प्रयास बहुत कम हुए हैं और शिक्षा मंत्रालय में भारतीय ज्ञान परंपरा विभाग को बनाना यह तो अभी बना है पहले तो कोई ऐसे विभाग नहीं था और लोग काम कर रहे थे ऐसा नहीं था कि बहुत सारे स्टॉल वर्ड्स थे वो लोग अपने स्तर पर काम कर रहे थे लेकिन बात यह होता है एक सोसाइटी में इंडिविजुअल लेवल प काम करना या छोटे-छोटे ऑर्गेनाइजेशन के लेवल पर काम करना वर्सेस पूरे भारत का सरकार की तरफ से काम करना ये अलग होता है क्योंकि वो भारत सरकार जब करेगी तो वो देश को दिशा देती है जब इंडिविजुअली करते हैं तो हम पर्सनल कैपेसिटी में करते हैं तो इस तरह से जो शिक्षा मंत्रालय में जो बना है यह बहुत ही यूनिक है और अभी बना है य उस सरकार की तरफ से जो बना और यह देखेंगे कि आप नेशनल एजुकेशन पॉलिसी है जो 2020 में आई थी उसमें भी यह रिफ्लेक्टेड है वो बोलते हैं कि इट इ रूटेड इन इंडिया क्योंकि हम विचार से बाहर वाले रहेंगे और डेवलप भी हो जाएंगे तो फिर भी हमारा व भारतीयता रहेगा ही नहीं भारतीयता तो उनको पहले रखना ही प मोदी सरकार की ये बहुत सुंदर एक पहल है बहुत अच्छी इंज जी जो काम कर रहे थे उन सबको आप लोगों ने संगठित कर दिया हां इनको एक सबको एक एक एक अंब्रेला मिले आए यहां पे और इससे जिससे कि ही सिर्फ भारत की ज्ञान परंपराएं फिर से स्थापित हो बल्कि देश को एक नई दिशा भी मिले हैं शामिल है ये बहुत आवश्यक है बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इसमें हम लोगों ने एक काम किया था जब डिवीजन में हम लोग आए थे तो हमने एक प्रण लिया था कि हम वहां पर बैठकर काम नहीं करेंगे देश में हर विद्वान विद्वान हमारे पास नहीं आएगा आचार्य शिष्य के पास नहीं आते हम अपने आप को शिष्य मानते हैं अभी भी शिष्य रहेंगे भी तो आचार्य शिष्य के पास नहीं आता शिष्य को ढूंढते हुए जाना पड़ता है तो हम लोग पूरे देश में बहुत सारे लोगों से जाकर वहां पर मिलकर अभी भी वो प्रयत्न चलते ही रहता है निरंतर चलता है प्रयास आई केस डिवीजन का कि हम लोग जाकर सबसे मिलके वहां क्या करना कर सकते हैं क्या कर रहे हैं और आगे इसको कैसे ले जा सकते हैं यह सबके बारे में हम वहां से सीख कर आते हैं और इंप्लीमेंट करते हैं उससे क्या होता है कि हमको पता चलता है कि क्या हो रहा है देश में और लोगों के साथ वो जुड़ाव और आत्मीयता बढ़ जाती है क्योंकि आचार्य आचार्य होते हैं जब वह देखते हैं कि हम लोग सिंसियर उनके पास जा रहे हैं तो हमको इतना उनसे सहयोग मिलता है लोगों से कि यह देखिए एक डिवीजन बनाकर 10 12 लोग हम लोग का आईकेस डिवीजन जो है 13 लोगों का डिवीजन है अभी 13 लोगों से यह काम नहीं होता है बिल्कुल यह काम पूरे देश का होता है और जब लोग जब इतनी सहायता करते हैं आप मेरा विश्वास कीजिए मैं किसी को भी फोन करता हूं तो कोई भी आचार्य है कोई भी गुरु है कोई भी बच्चा है बोलता हूं यह काम कर सकते हो क्या हमारे लिए तुरंत रेडी हो जाते हैं और काम करते हैं और क्योंकि उनको भी मालूम है कि ये देश का काम है य हमारा काम नहीं है किसी के पर्सनल काम नहीं है उसी तरह से मैं यहां पर एक और ये बात बोलना चाहूंगा कि बहुत बत लोगों को रहता है कि सरकार में जो है जो ब्यूरोक्रेट्स हैं वो ऐसे ही काम करते हैं कोई काम नहीं करता कुछ नहीं होता सरकार में काम हमारे डिवीजन के काम में हमको इतना सहयोग मिला राइट फ्रॉम सेक्रेटरी से लेकर जॉइंट सेक्रेटरी डेप्युटी सेक्रेटरी सब जो डायरेक्टर्स ये सब ने हमने हमारी इतनी सहायता की इसमें जब वो देख रहे थे कि हम सिंसियर काम कर रहे हैं तो उन्होंने पूरा जो सरकार का जो ये होता है तंत्र होता है वो हमको करने के लिए पूरा हेल्प करने के लिए पूरा रख दिया और पॉलिटिकली भी पूरा यह था कि वो लोग भी हमको चाहते थे कि इस तरह से काम हो जाए तो और एकेडमिकली भी बहुत सारे स्कॉलर्स जुड़ गए थे समाज से भी बहुत स लोग जुड़ गए थे तो जब सब जुड़ जाते हैं तो हमारा काम तो इजी होता है इसीलिए हमारा हम लोग डेजिग्नेशन भी कोऑर्डिनेटर है को संयोजक है काम नहीं करते काम तो समाज में हो रहा है भारतीयों में हो रहा है तो मैसिव प्रोजेक्ट है पूरा देश में जाना है और करना है तो उसके लिए क्वेश्चन क्या बनेंगे इतने सारे रीजनल लैंग्वेजेस है कैसे बनाना है क्योंकि वो एक डिजिटल लिविंग लाइब्रेरी बनाना चाहते हैं ये रहेगा कि मान लीजिए कोई गांव में गए और दो तीन घंटा वहां पर लोगों से बात किया उनके डायलग में बात करकर वह पूरा रिकॉर्ड करेंगे और गाइडेड क्वेश्चन होंगे कुछ कुछ गाइडिंग उसके लिए और एक जो 65 प्लस है उनके साथ बात करेंगे एक यूथ और सब लोग मिलकर बात करेंगे क्या चेंजेज देख रहे हैं वो लोग और क्या ऐसे करके बस थोड़ा सा वो एक स्नैपशॉट अगर हम भारत का लेना चाहते हैं तो कैसे लेंगे बहुत बढ़िया रहेगा कि ये सब में तीन-तीन घंटे का घंटों का वीडियोस व सब बना के रखेंगे वो तो एक कोर है जो पब्लिकली एक्सेसिबल नहीं रहेगा ये कोर रिसर्च के लिए देंगे हम लोग लेकिन इससे कुछ कुछ पुट्स बना सकते हैं एस एन एक्सरस मीडिया आर्टिकल्स निकलेंगे दोती मिनट का वीडियोस बना सकते हैं यह सब बनाकर फिर ये आइडिया है बहुत बढ़िया रिपोजिटरी बनाना पड़ेगा लोग चले जाएंगे तो फिर कहां मिलेगा बहुत ही आवश्यक है बहुत अ पूरा देश भर बनाना है तो उसके लिए तो उनके साथ अभी प्लानिंग का कुछ क्या करना है मीटिंग वो सब उसके बात करना था अरे वाह स यह तो आप लोग जो काम कर रहे तो बहुत ही अच्छा ब बहुत आवश्यक था अगर यह काम स्वतंत्रता के बाद शुरू हो गया होता तो आज हम लोग कहां होते कहां होते क्योंकि वो जो स्वतंत्रता के टाइम पे जो जनरेशन थी दे वर रूटेड भारतीस अंटच्ड सिस्टम में बहुत अच्छा उसके बाद 65 के बाद 65 70 के बाद तो डिक्लाइन शुरू हो गया बिल्कुल सही कह रहे हैं और फिर वो आइडियो जिकल सब्वर्जन हो गया वही हो गया ना कि वो धीरे-धीरे वो लोग बदले में आईडियोलॉजिकल य उसका वो हो गया प्रीनेस हो गया रार स्कॉलरशिप बीइंग द डिटरमिनेट ये हो गया तो फिर तो जाएगा ही इसलिए तो मेरी बहुत इच्छा थी कि आप आए यहां पेय ये ये हम लोग ने नया शुरू किया द चेंज मेकर्स है हा पीपल हु हैव ब्रॉट अपन चेंस अभी भारत की वर्तमान जो परिदृश्य है हा उसमें वो कौन लोग हैं तो सबसे पहले आप ही का नाम मेरे मन में आया कि बहुत है लेकिन वो कर तो हमने कहा कि हम लोग इसको जो है निश्चित रूप से जो ऐसे लोग हैं और क्या होना लोगों को प्रेरणा मिलेगी हां जब आपकी लाइफ जर्नी है आपका जो काम है आईएस के बारे में जब जानेंगे ना हम चाहते हैं और लोग ये इसको एक पीपल्स मूवमेंट बनाए बनाना पड़ेगा क्योंकि ये वी हैव टू मेक इट इन सच ए वे दैट इट इज ड्रिवन बाय द सोसाइटी नॉट बाय ए गवर्नमेंट और वन ऑर्गेनाइजेशन वो होना ही नहीं चाहिए भारत र इट एब्सल मेक भारत में लोग एक बार इंस्पायर हो जाएंगे हो गया फिर आपको कुछ करना नहीं पड़ेगा वो बात है वो बात है और फ यूनाइट भी हो जाते वो सब कुछ हो जाता है सब कुछ हो जाता है एंड दिस इ द टाइम यही समय है हम कर सकते अब देखिए 1835 में मैले ने अपना मिनट लेकर आया एंड ही कॉलोनाइज एजुकेशन सिस्टम ऑफ इंडियास एंड बाय 2035 वी शुड थिंक ऑफ डी कॉलोनाइजिंग इंडिया एजुकेशन बहुत बढ़ इसपे एक हमारी फिल्म है गुरु शिष्य परंपरा हा मैंने देखा देखा इसी में ही है हमको हम तो सोच रहे थे कि कैसे वापस वो जो गुरुकुल सिस्टम ऑफ एजुकेशन है गुरु शिष्य परंपरा है उसको कैसे पुनर संस्थापन करें कैसे उसको एक पुनर एक जागरण दे हम लोग है इस विषय में भी हम लोग बात करेंगे आज डेफिनेटली बहुत आवश्यक है बात करेंगे कि जब तक वो नहीं करेंगे तो हम लोग वल ऑलवेज बी प्लेइंग गेम ऑफ कैच अप स्टैंडर्ड्स बाहर सेट होंगे एब्सलूट हम स्टैंडर्ड सेट नहीं करेंगे तो कहां चलेगा बिल्कुल अगर मैं आपसे पूछूं मूर्ति जी की आईस क्यों आवश्यक है दुनिया में देखेंगे तो देर इ ए क्राइसिस ऑफ लीडरशिप टुडे वेदर इट बीन व्हाट एवर फील्ड यू लुक एट देर इ क्राइसिस अगर आप देखेंगे इकोनॉमिक्स में देखेंगे ऑफ कोर्स द कम्युनिस्ट एंड सोशलिस्ट सिस्टम डोंट वर्क ी नो वीर आल्सो सीइंग कैपिट मॉडल्स फेल इन मेनी वेज व्ट इज द भारत व्ट इज अल्टरनेटिव देर शुड बी सम अल्टरनेटिव एंड दिस इ वेर भारत कैन कम इन वि आवर कांसेप्ट ऑफ शुभ लाभ शून्य लाभ ऑफ कम्युनिज्म और शुद्ध लाभ ऑफ कैपिट जम च टॉक्स ऑफ ओनली प्रॉफिट मैक्सिमाइजेशन और जीरो प्रॉफिट सो वी आर टॉकिंग अबाउट शुभलाभ वेलफेयर ऑफ एवरी बडी विथ प्रॉफिट आई वांट प्रॉफिट बट आई आल्सो वांट द वेलफेयर ऑ सुला कांड ऑफ थॉट लीडरशिप ट वी कैन प्रोवाइड थिंक अबाउट हेल्थ डिसीज सेंट्रिक मॉडल्स ऑफ द करेंट मेडिकल फट च इ टॉकिंग अबाउट ट्रीटमेंट ऑफ डिसीज वे व्ट आयुर्वेदा टॉक अबाउट टॉक्स अबाउट स्वास्थ स्वास्थ्य रक्षणम देन इट टॉक्स अबाउट आतुर रोग सो प्रोटेक्ट द हेल्थ ऑफ द हेल्दी फर्स्ट ट शुड बी द फोकस द फोकस इ न प्रोटेक्टिंग द हेल्थ देन कमस ट्रीटमेंट ऑफ इफ इट इज डिसबैलेंस फ्रॉम दैट वेर एस अदर मॉडल इज फोकस ऑन डिसीज दैट इज अगेन द काइंड ऑफ लीडरशिप दैट वी कैन प्रोवाइड थिंक ऑफ द इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स द इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट रेजीम राइट नाउ वी आर पेटेंटिंग एवरीथिंग वी आर पेटेंटिंग टेक्नोलॉजीज व्हिच इ ओके वी आर पेटेंटिंग सेल्स प्लांट्स सीड वैराइटीज ऑल ऑफ दिस थिंग्स आर बींग पैटेंट टुडे एंड इन फैक्ट आई जस्ट रिसेंटली हर्ड देर पेटेंटिंग स्मेल्स टू व्हाट रिडिक एक्सटेंट विल वी गो विद दिस एंड इफ यू लुक एट इट वी आर पेटेंटिंग सम ऑफ द मोस्ट एसेंशियल मेडिसिंस व्हिच इज मेकिंग कि यह जो पूरा जो दवाइयां है वह पूरा अनअवेलेबल रहते हैं पूरे मोस्ट ऑफ द पुर के लिए गरीबों के लिए अवेलेबल नहीं रहता है एंड इस तरह का मेडिकल मेडिकेयर सिस्टम देखेंगे पूरा मेडिकल सिस्टम देखेंगे तो देयर इज अ बिग डिस्टिंक्शन वो अगर आपके पास पैसा है तो आपको ट्रीटमेंट मिलेगा नहीं तो नहीं मिलेगा इस तरह का कसा च कब तक चलेगा इस तरह का पेटेंटिंग रेजीम क्या ठीक है इसके ऊपर सोचने की जरूरत है और यह सोच मौलिक रूप से सोचना है इसमें दृष्टि की परिवर्तन की जरूरत है और वह परिवर्तन भारत ही दे सकता है देखिए एक और जो दृष्टि की बात कहीं है तो वो थोड़ा सा बात बोलना चाहूंगा हम लोग इंग्लिश में जानते हैं नॉलेज इज पावर बहुत फेमस कोटेशन होता है नॉलेज इज पावर तो नॉलेज किस लिए हमको पावर देता है दुनिया पर अधिकार करने के लिए नेचर पर कंट्रोल के लिए दिस इ डोमिनेंट वेस्टर्न फिलॉसफी भारत में क्या बोला गया है ही ज्ञाने स दृशम पवित्र महे विद्यते ज्ञान जैसा पवित्र चीज कुछ नहीं है क्यों ज्ञान क्यों चाहिए वह आपको प्यूरिफाई करता है आपको पवित्र करता है इसलिए चाहिए तो ज्ञान जो है दृष्टि जो है आत्म उद्धार के लिए था जबकि वहां दूसरे का शोषण के लिए है अगर आप उस दृष्टि से काम करेंगे नॉलेज पावर की दृष्टि से काम करेंगे तो देर विल बी इकोलॉजिकल क्राइसिस इकोनॉमिक क्राइसिस हेल्थ क्राइसिस पॉलिटिकल क्राइसिस ऑल ऑफ दोस थिंग्स विच य टेक्नोलॉजिक डेवलप हो गए हैं लेकिन उनमें इतनी बुद्धि नहीं है कि दोनों को लड़ना नहीं है एक दूसरे के ऊपर बम फेंक रहे हैं ब टेक्नोलॉजी का करेंगे क्या जब वो विवेक नहीं है तो तो आईएस की इस आधुनिक इस इस जगत में आधुनिक संदर्भ में क्या भूमिका हो सकती है क्या उसका उद्देश्य पहला ये है कि दृष्टि बदल बदलेगी दृष्टि बदलेगी तो बहुत सारे और उसके एज परव सान के रूप में कंसीक्वेंसेस बहुत सारे चीज बदलेंगे तो यह बहुत इंपॉर्टेंट आई केस का ये सबसे अहम मौलिक कंट्रीब्यूशन रहेगा कि दृष्टि बदलेंगे हम दूसरा उसका यह भी है कि उसके बहुत सारे लौकिक प्रयोजन है जैसे अभी मैं कुछ देर पहले कृषि की बात कर रहा था तो कृषि में जो हम लोग जो पारंपरिक कृषि से जो सीख सकते हैं वो आज भी प्रासंगिक है आज भी हमारे लिए यूजफुल है उसी तरह से वाटर मैनेजमेंट में हेल्थ में आयुर्वेदा सिद्धा यूनानी ये सब से जो हम लोग सीख सकते हैं ये बहुत सीख सकते उसी तरह से अगर आप बहुत सारे इवन जो तर्क शास्त्र से न्याय शास्त्र से कैसे लॉजिक को बनाया जाए यह यहां पर भी सोच सकते हैं अलग-अलग पर्सपेक्टिव्स मिलते हैं और अलग ये भी मिलते हैं इनफैक्ट एक अभी रिसेंटली एक आईआईटी बीएचयू में हमारे एक कोपी आई ने पब्लिश किया था पेपर जिसमें उन्होंने डिस्कवर किया कि जो नीलकंठ सोमाया जी का जो सीरीज का जो कन्वर्जेंस था वो 40 पर ज्यादा है कंपेरर टू द मेथड ट आर बीइंग यूज टुडे सो देर आर दिस काइंड ऑफ लौकिक प्रयोजन ट व कैन इमीडिएट गेट बट वो तो होगा ही होगा लेकिन उससे भी मौलिक है कि दृष्टि बदलेगी दृष्टि बदलेगी तो समाज बदलेगा ये दोनों इंपोर्टेंट कंट्रीब्यूशन है भारतीय जन पर जैसे भारत का जो सबसे उत्कृष्ट और जो अद्भुत दर्शन है आद वेदांत का अगर उसको लोग जान जाए तो भी दृष्टि बदल जाएगी बदल जाएगी जीवन का दृष्टिकोण बदल जाएगा देखिए आप अगर सोचे ईशा वासम सर्वम यच जग गतम जगत तो आप सब में आप परमात्मा को देखेंगे तो आप शोषण नहीं कर सकते बहुत सही बात है और एक दूसरे को बम नहीं फेंकें दूसरे प बम नहीं फेंकें दूसरे पेड़ को अनावश्यक होने से काटेंगे नहीं क्या बात क्योंकि उसी में दूसरे सेंटेंस में कहा गया था कि तेन तेन बंजी त्याग पूर्वक भोग करो ये नहीं बोला गया था कि भोग मत करो कुछ नहीं करो वो भी परसू करना है लेकिन लाभ हो शुभ के साथ उसी तरह से वो अद्वैत का जो हमारा सब में यह बोला जाता है ना जो नटराज स्वामी जो है वह एपिटोल है भारतीय चिंतन के क्योंकि देखिए अगर जस्ट लाइक डांस को डांसर से सेपरेट नहीं किया जा सकता एक संगीत को उसके संगीतकार से अलग नहीं किया जा सकता सृष्टि को सृष्टिकर्ता से अलग नहीं किया जा सकता यह भारतीय दृष्टि है सब में है सृष्टि स्थिति लया सब उन्हीं का विन्यास है वो उसी तरह से चल रहा है तो डांस डांसर कन बी सेपरेटेड डांसर रुक जाएगा तो डांस चला गया उन्ही में चला गया कहा चला गया उन्ही में चला गया कहां से आ रहा उन्ही से आ रहा है पूरी सृष्टि उसी तरह से यह भारतीय चिंतन अगर आ जाए तो शोषण होगा ही नहीं क्या बात है और जब यही आ जाए की तत्व मसी मात्मा ब्र सर्व अगर ये भाव लोग जीने लगे तो यह ये जो लिटी है और विभेद है यही समा हो जाए शुरू तो वहीं से होता है शुरू तो वही से कॉन्फ्लेट शुरू होता है लिटी से बिल्कुल सही बात है वहीं सेपट करेंगे हा बिल्कुल सही बात है और हमारे य ऐसा उत्कृष्ट दर्शन है तो यह दर्शन ही दृष्टि देगा दृष्टिकोण देगा विश्व को तो इसी को आगे लेके आना है देखिए हमारे जो वेद उपनिषद जिसमें यह दर्शन है वो गंगोत्री है उससे ज्ञान की गंगा बहते आती है हम पीते रहते हैं उसमें बाकी सब जुड़ते रहते हैं बट मूल स्रोत गंगोत्री है क्या बात है बहुत तो मूर्ति जी अभी तक आईएस ने जो भारत की जो सांस्कृतिक और जो वैज्ञानिक जो परंपरा है जो दृष्टि है जो आध्यात्मिक परंपरा है जो ज्ञान की परंपरा है उस परिदृश्य में अभी तक क्या-क्या आईएस ने किया है क्याक अभी तक का कार्य हुआ है क्याक योगदान है देखिए हमने अभी भारतीय ज्ञान परंपरा विभाग में तीन विषयों पर अपना पूरा दृष्टि केंद्रित किया है एक तो यह है कि भारतीय दृष्टि कैसे लाया जाए क्योंकि वो परिपेक्ष बहुत ही महत्त्वपूर्ण है उसके बिना यह नहीं हो सकता तो वो कैनवस है जिसके ऊपर हम लोग सब काम करते हैं दूसरा यह कि हमारे यहां परंपराएं थी परंपराएं हैं और परंपरा कभी भी कंटीन्यूअस होती है जिसमें हम नॉलेज प्रिजर्वेशन की बात करते हैं ट्रांसमिशन की बात करते हैं क्रिएशन की बात करते हैं तो यह परंपराएं है जो जिनको जीवंत रखना है जीवंत परंपराएं आगे कैसे ले जाएंगे विथ ऑल द मॉडर्न मेथड यह सब हम लोग काम इस पर दृष्टि देते हैं और तीसरा लौकिक प्रयोजन क्या है हम इस बात पर हम ज्यादा ध्यान देते हैं कि क्योंकि समाज की ये स्थिति है कि हम आध्यात्मिक की बात करेंगे तो ज्यादा उस पर महत्व नहीं है और बाकी समाज कर रहा है तो हम लौकिक प्रयोजन पर ज्यादा फोकस करते हैं तो कोई भी आईकेस डिवीजन का काम में लोग ये तीनों पर दृष्टि परंपरा और लौकिक प्रयोजन इन पर हम महत्व देते हुए आगे बढ़ाते हैं तो इसमें हमने बहुत सारे काम किए हैं इन द सेंस काम करने काको मौका मिला है फॉर एग्जांपल हमने अभी 53 सेंटर्स ओपन किए हैं आई केस सेंटर्स जहां पर इंटर डिसिप्लिन रिसर्च होता है और जो प्रासंगिक है सिर्फ शुष्क अ वो अर्थवा जो बोलते हैं उसमें फसते नहीं है उसका प्रासंगिकता क्या क्योंकि यह भी हमारे भारतीय ज्ञान परंपरा का एक मूल दृष्टिकोण है कि कोई भी काम करेंगे तो उसका प्रयोजन होना चाहिए तो सब में हम देखते हैं कि इसका प्रयोजन क्या है समाज के लिए या व्यक्ति के लिए या प्रकृति के लिए क्या प्रयोजन हो सकता है उस पर ये सेंटर्स में काम हो रहे हैं साथ ही साथ में कुछ 888 रिसर्च प्रोजेक्ट्स हैं करीब 90 रिसर्च प्रोजेक्ट्स है जहां पे अगेन कोर रिसर्च परंपरा में जो नॉलेज क्रिएशन की बात होती है वो यहां पे होती है इसमें और जो सेंटर्स है वहां पे नॉलेज क्रिएशन ट्रांसमिशन और एजुकेशन आउटरीच ये सब वहां पे काम करते हैं और उसी तरह से बच्चों को जोड़ना है तो मान लीजिए बहुत सारे बच्चों को लगता है कि मैंने आज यह लेक्चर सुना या यह वाले कोसी कोई स्कॉलर से यह बात सु बहुत अच्छा लग रहा है आगे क्या काम करना है तो हम ऐसे बच्चों को इंटर्नशिप देते हैं आई केस इंटर्नशिप्स तो जिससे कि वो जाकर स्कॉलर्स के साथ काम कर सकते हैं ऐसे मौके मिलते हैं तो अभी तक हमने कुछ 5000 पर्सन म ऑफ इंटर्नशिप हमने मिनिस्ट ऑफ एजुकेशन की तरफ से फंड किया है और फिर शिक्षक बहुत महत्त्वपूर्ण होता है कोई भी काम में हम कोई भी पॉलिसी बना ले कितने भी टेक्स्ट बुक्स लिख ले अगर शिक्षक ठीक से क्लास में नहीं पढ़ा पाएंगे तो फिर उसका कोई एंड रिजल्ट कुछ नहीं आएगा तो हमने फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम्स भी बहुत सारे शुरू किए यूजीसी के यूजीसी के साथ मिलकर हमने बहुत सारा काम किया है जिसमें हमने 1000 फैकल्टी को फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्रामस में ट्रेन किया है और करीब 200 मास्टर ट्रेनर्स तैयार किए हैं जो अभी जाकर यूजीसी के प्रोग्राम में 10000 फैकल्टी को ट्रेन करेंगे अगले साल में और फिर उसी तरह से करिकुलम में भी 5 पर आई केएस का जो है वो मैंडेटरी कर दिया है लेकर आना है और उसको हेल्प करने के लिए इंप्लीमेंट करने के लिए क्योंकि पॉलिसी बनाना एक है इंप्लीमेंट भी करना पड़ता है तो उसके लिए हमने हमारे सेंटर्स हैं रिसर्च प्रोजेक्ट्स हैं ऐसे और हमारे जो 53 सेंटर्स में शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र है जहां पे कोर्सेस बनाए जा रहे हैं बहुत सारे एक्सपर्ट्स को बोला करर अलग-अलग डिसिप्लिन में या मान लीजिए वास्तुशास्त्र है आर्किटेक्चर है या मैथमेटिक्स है या केमिस्ट्री है या संगीत और नाट्य शास्त्र इकोलॉजी है यह सब एरिया में इकोनॉमिक्स है पट पॉलिटिकल थरी है यह सब में भारतीय दृष्टि क्या था इसके ऊपर कोर्सेस बन रहे हैं जो इंटर डिसिप्लिन होंगे और बच्चों को पढ़ाए जाएंगे और ऐसे 120 कोर्सेस अभी बन रहे हैं यह सब जो है पूरे भारत के शिक्षकों के लिए अवेलेबल कर रहे हैं हम लोग और ये करिकुलम में कब तक आप आ पाएंगे ये को देखिए ये हायर एजुकेशन में तो ऑलरेडी आ चुका है और जो एनसीआरटी का जोभी करिकुलम रिवीजन चल रहे हैं एनपी के तहत उस धीरे-धीरे से हम लोग ला रहे हैं उनके साथ मिलकर काम करते हैं एक एनसीआरटी ने एक आईकेस का एक करिकुलम एरिया ग्रुप बनाया है जिसमें हम लोग सब मेंबर्स हैं और हम लोग उसमें कंट्रीब्यूट करते हैं तो उसमें भी धीरे-धीरे से आ रहा है क्योंकि यह हम लोगों को भारत के ज्ञान वैभव को बच्चों में तक पहुंचाना है और वह दृष्टिकोण लाना है तो यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है यह तो एक बहुत बड़ी एक जिम्मेदारी है आपके पे लेकिन इस गति से आपको लगता है कि ये चीजें इतने व्यापक रूप से यह संभव हो पाएंगी कि आपको लगता है कि और बड़ी टीम होनी चाहिए और थोड़ी सी और व्यवस्थाएं और अच्छी होनी चाहिए देखिए एक तो यह है कि अगर सिर्फ मेरे कंधों पर होता तो नहीं होता यह काम लेकिन सिर्फ मेरे कंधों पर नहीं है ये अभी हमारे पास 13 लोगों का टीम है बहुत अच्छे से काम करते हैं और थोड़ा सा बढ़ जाएगा तो ओबवियसली जिस तरह से जिस तर से हम लोगों ने पहले कल्पना की थी उससे बहुत ज्यादा इसका विस्तार हो रहा है तो ओबवियसली हम लोग सरकार भी सोच रही है कि इसको टीम को बढ़ाना है और बड़ा करना है तो जैसे जैसे बढ़ाएंगे उसके हिसाब से आगे भी लेकर जाएंगे इसको लेकिन यह है कि हम लोग इसमें सिर्फ फिर से वो एमफसा करना चाहूंगा कि हम लोग नेशनल कोऑर्डिनेटर हो मैं और कोऑर्डिनेटर्स है और असिस्टेंट कोऑर्डिनेटर हम कोऑर्डिनेट करते हैं समन्वयक है संयोजक है काम दूसरे पूरा समाज कर रहा है भारत का देश भारत का हर भारतीय कर रहा है क्या बात है तो आपने जैसे कहा कि आप कोऑर्डिनेटर है सब लोग मिलकर कर रहे हैं और हमें लगता है यही वैदिक संकल्प भी है संगम सवम स मना जानता यह बहुत ही सुंदर एक सोच है कि सब एक साथ मिलकर आगे बढ़े साथ चले एक जैसा सोचे य य यह भाव लाना बहुत आवश्यक है तो मूर्ति जी आगे मूविंग फॉरवर्ड अगर मैं आपसे पूछूं कि आईएस का विजन क्या है आने वाले समय के लिए और किस तरीके की योजना बना रहे हैं उस विजन को इंप्लीमेंट करने के लिए तो क्या कहेंगे आप आईकेस डिवीजन बना है यह मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन शिक्षा मंत्रालय के अंदर है चाहते हैं कि जो भारतीय ज्ञान परंपरा है वोह हर एक मिनिस्ट्री में हर एक डिपार्टमेंट में पहुंचे तो क्योंकि अलग-अलग विषय हैं सबके मान लीजिए जो मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर होगा उसका अलग परिपेक्ष होगा मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड वेलफेयर का अलग होगा लेबर का अलग होगा इंडस्ट्रीज का अलग होगा इस तरह से अलग-अलग डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी का अलग होगा इस तरह से हर एक डिपार्टमेंट को इसको ओन करने की जरूरत है अगर आप पूछेंगे कि लॉन्ग टर्म विजन क्या है तो मेरा यह विजन रहेगा एटलीस्ट आईकेस डिवीजन के लिए कि ये हम लोग जितना जल्दी बंद कर सकते हैं उतना जल्दी बंद करना क्योंकि इसकी जरूरत नहीं होनी चाहिए यह हमारा दुर्भाग्य है कि एक आईकेस डिवीजन है आप सोचिए कॉलोनियल लेगासी से हमारा उसके बाद हमारा दुर्भाग्य है कि हम लोग भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए एक विभाग बनाना पड़ रहा है क्योंकि इसको हम इतने भूल चुके हैं कि हमार हमको पता भी नहीं है कि भारतीय ज्ञान परंपरा क्या है हमको यह सोचकर आगे ले जाना है कि सब अगर भारती जानते हैं भारतीय ज्ञान परंपरा क्या है तो एक अलग विभाग की जरूरत नहीं है तो उस दृष्टि से मैं कह रहा हूं कि 10 साल बाद अगर हम लोग इस डिवीजन को रिडंडेंट कर पाए तो हम सक्सेसफुल है क्या बात है बहुत ही बढ़िया आपने कहा यह तो जीवन के जितने भी अलग-अलग पक्ष हैं उन सब में इंटीग्रेटेड होना चाहिए भारतीय चिंतन भारतीय परंपरा भारतीय ज्ञान परंपरा बिल्कुल आपने सही कहा तो वो जब लेकिन मुझे लग रहा है हम लोग कर पाएंगे वो लेकर आ जाएंगे लेकिन इसको को एक एक नई लॉ जलाने का एक नई जोत जगाने का प्रयास आईएस ने शुरू कर दिया है शुरू किया है और हो रहा अच्छे से हो रहा है जिस तरह से सहयोग मिल रहा है और जिस तरह से लोग काम कर रहे हैं देश इसके लिए तैयार है और काम कर रहे हैं लोग तो देखिए हमको एक जनरली बोलते हैं ना कि डेडलाइंस आर द बेस्ट मोटिवेट तो उस तरह से अगर हम सोचेंगे तो 18335 में मकल ने अपना मिनट किया था जिसमें पूरा एजुकेशन सिस्टम को उन्होंने कॉलोनाइज किया था उनकी सोच से अभी उसको डी कॉलोनाइज करने की बात आ रही है तो 200 साल बाद 2035 में अगर हमारा गोल रहेगा कि हम अपने एजुकेशन सिस्टम को डी कॉलोनाइज करेंगे तो जो भारत के हमारे प्रधानमंत्री जी का जो प्रण है पंच प्रण में एक है जो 205 207 तक जो हमको डी कॉलोनाइज करना है इंडियन माइंड को वो पॉसिबल रहेगा अगर 2035 तक हम लोग डिकॉलोनाइज करेंगे भारतीय एजुकेशन सिस्टम को बहुत सही कहा आपने वो तो अ उस दिशा में हम काम कर रहे हैं सो बहुत सही कहा आपने 1835 का जो इंग्लिश एजुकेशन एक्ट है उसने तो इतना नुकसान पहुंचाया नहीं कॉलोनाइज कर दिया एजुकेशन को अ बल्कि जो यहां की गुरु शिष्य परंपरा थी उसको विनट कर दिया है नष्ट कर दिया है और वो एक ट्रांजैक्शनल मॉडल बना है क्योंकि गुरु और शिष्य में जो रिलेशनशिप होता था वो कभी ट्रांजैक्शनल नहीं होता बहुत सुंदर अभी यह हो गया कि टीचर को आजकल हम इसलिए देख इस तरह से देखने लग गए हैं कि वह एक एंप्लॉई है उसका जॉब है वो पढ़ाना इंफॉर्मेशन ट्रांसफर करना मैं ट्रांसफर कंज्यूमर हूं इंफॉर्मेशन को लेने के लिए तो यह भाषा बहुत सारे एजुकेशन सेक्टर में भी आ गया है स्टूडेंट्स को कंज्यूमर बोला जाता है टीचर वो हो गया तो कंज्यूमर तो इ अ किंग क्लांट है क्लांट है उसको तो आपको रखना चाहिए अब हमारे यहां ऐसा नहीं था बिल्कुल तोव गुरु शिष्य परंपरा का ये रिलेशनशिप हो ही नहीं सकता है गुरु और शिष्य में एक यूटिलिटेरियन या उस तरह का रिलेशनशिप नहीं होगा वो तो उसके लिए दृष्टि बदलनी पड़ेगी जब तक हम आचार्यों को शिक्षक नहीं आचार्य नहीं समझेंगे और इसमें दोनों की रिस्पांसिबिलिटी है जिम्मेदारी है एक तो शिष्यों को भी समझना चाहिए कि आचार्य आचार्य होते हैं लेकिन आचार्य तब बनाए जाते तब शिक्षक को आचार्य नहीं बोला जाता जो आचरण करके अपने जीवन में उस तरह का जो इंस्पिरेशनल फिगर होंगे वही आचार्य बनेंगे तो शिक्षक के ऊपर भी यह रिस्पांसिबिलिटी है कि वह सिर्फ पैसों के लिए काम नहीं करें वह एक उससे भी बड़ा जो गोल है उसके लिए काम करें और स्टूडेंट्स के लिए भी यह जरूरी है कि वो इनको एक कांट्रेक्चुअल वो रिलेशनशिप ना दे और इसके लिए सोच बदलनी पड़ेगी बहुत सही कहा आपने बहुत सही कहा कोई ट्रांजेक्शन कोई रिलेशनशिप नहीं थी गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा उसके चरणों में समर्पण समर्पण और वो उसकी सेवा सेवा उसी से वो ट्रांसफर ऑफ नॉलेज होता था होता था और उसमें एक बहुत ही अच्छी सी एक परंपरा थी हमारी किसी को गुरु करने बोलने से पहले इस शिष्य को पूरा अधिकार रहता था कि गुरु को परख ले कितने भी परीक्षा है और गुरु का रिस्पांसिबिलिटी दायित्व ये रहता था कि उन सबसे निखर कर वो उभर कर आए लेकिन एक एक बार जब शिष्य ने किसी व्यक्ति को गुरु मान लिया तो पूरा समर्पण होता था बहुत सही तो यह विवेक और श्रद्धा दोनों मिलकर चलते थे तो इसीलिए आप देखेंगे य हमारे ये पुराने बात नहीं है अभी भी देखिए अगर राम कृष्ण परमहंस और विवेकानंद की बात तो वो शिष्य बनने से पहले उन्होंने कितनी परीक्षाएं दए राम कृष्ण परमहंस को उन्होंने राम कृष्ण परमहंस एक बार कहते हैं कि वो पैसे नहीं लेते थे छूते भी नहीं थे तो उन्होने के तकिया के चे पैसे लगा दिया उनका शरीर बाहर से देख रहे थे उस तरह से परीक्षा किया उन्होने लेकिन एक बार जब गुरु मान लिया तो समर्पण अब इतनी उन्मुक्त सोच विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है कि आप गुरु का भी परीक्षण कर और फिर उनको गुरु मानिए और गुरु मान लिया तो मान लिया मान लिया तो मान लिया फिर श्रद्धा बस सि श्रद्धा सिर्फ समर्पण चाहिए बिल्कुल सही तो यह सोच यह परंपरा लाने की बहुत जरूरत है आपने बहुत सही कहा देखिए मूर्ति जी मैं तो अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे अपने जीवन में एक बहुत महान गुरु मिले हैं य मेरे आध्यात्मिक गुरु थे और जैसा आपने कहा ना कि शुरू में संशय होता है वो होना भी चाहिए हो भी चाहि क्योंकि इसके लिए भी रामकृष्ण परमहंस ने एक कहानी बताई है उन्होने एक बार उनके साथ जो शिष्य थे उन्होंने बताया कि गुरुजी बहुत सारे ढोंगी गुरु होते हैं क्योंकि होते थे उसके पास अगर कोई शिष्य जाएगा तो क्या होगा तो उन्होंने बोला चलो चलते हैं नदी के पास जा रहे थे नहाने के लिए तो वहां देखा कि एक बहुत बड़ा मेंढक था और छोटा सा सांप था उसने इस मेंढक को उ गलने का कोशिश किया सो उसके मुंह में फंसा हुआ था अब बात ऐसी थी कि वह सांप छोटा था अब मेंढक बड़ा ना तो यह सांप के अंदर जाएगा और वो ना सांप इसको छोड़ेगा नहाकर वापस आ रहे थे तो भी यही देख रहे थे थे तो उन्होंने बोला शिष्य का ये हाल होगा और गुरु का भी य हाल होगा शिष्य को हैंडल कर नहीं पाएगा तो तो निकल नहीं सकता है और छोड़ भी नहीं सकता तो इसीलिए परखना बहुत जरूरी होता है क्या बात है बहुत सुंदर बहुत बढ़िया तो उसके बाद हो गया तो वही मैं आपको बता रहा था कि एक बार जब गुरु उनको मान लिया हमने वो स्वाभाविक रूप से वो भाव वो श्रद्धा वो समर्पण आया तो वो आजीवन हो गया आजीवन है और फिर तो उनकी कोई भी जो बात कहते तो वो एक आज्ञा होती थी एक आदेश होता था आदेश होता था उसम आप उसम अपना वो नहीं लगा सकते लगाए बुद्धि और उसम ये करें कि ना करें व सब कुछ नहीं क्योंकि देखिए गुरु और ऋषि इस देश में एक हमारी परंपराओं में गुरु का और ऋषि वाक्य का भगवान से भी ऊपर स्थ है हा क्योंकि ये हर परम हमारे उसमें हर जगह यह दिखता है क्योंकि यह माना जाता है कि क्योंकि उनके बातों में आपका श्रेयस ही उनका परम लक्ष्य होता है बिल्कुल वो उससे अलावा कुछ सोच ही नहीं सकते तो उनका उनका जो भी ऋषि वाक्य है गुरु वाक्य है माता-पिता के जो वाक्य वो ऐसे होते हैं कि वो आपके लिए आपका श्रेयस चाहते हैं और कुछ नहीं चाहते तो इसीलिए उनका वाक्य जो है आज्ञा होता है जैसे आप कह रहे थे बिल्कुल और ये जो मैंने अपने जीवन में जिसको महसूस किया बहुत गहराई से वो यह है कि गुरु और शिष्य के बीच का जो एक स्पिरिचुअल कनेक्शन है और जो एक आध्यात्मिक प्रेम है उससे बढ़ के जीवन में और कोई प्रेम नहीं है और एक चीज और हमने महसूस किया आज हमारे गुरु वो अपने भौतिक शरीर में नहीं है ब्रह्मलीन हो गए कई वर्ष हो गए लेकिन आज भी उनकी की उपस्थिति उनकी प्रेरणा वो आज भी निरंतर प्रतिदिन मैं महसूस करता हूं और कभी-कभी तो जैसे आके एक आदेश भी दे देते हैं या कोई प्रेरणा भी दे देते हैं कि यह करो इस दिशा में काम करो तो इट्स इन लाइफ एंड इन डेथ ल्स डेथ आल्सो क्योंकि वो देखिए अगर आप अद्वैत की तरफ देखेंगे तो वो तो है एवर प्रेजेंट एवर प्रेजेंट बिल्कुल तो और इक्ट बोला जाता है कि मां का प्रेम से ज्यादा गुरु प्रेम होता कक मां का प्रेम इस शरीर को और हमको संसार में बांधने के लिए तक सीमित रहता है गुरु का इसको तोड़ने का होता है क्या बात है बिल्कुल सही कहा वो ज्यादा प्रेम होता है बिल्कुल तो ये जो हम लोग कर पा रहे हैं जो प्राम का एक रेवोल्यूशन शुरू हुआ यह मैं हमेशा कहता हूं कि गुरु कृपा से हुआ उन्हीं की कृपा से उन्हीं के उन्हीं की प्रेरणा से उन्हीं के आदेश से हम भी अमेरिका से वापस भारत आए और ये संकल्प लेके आए कि उ उनका आदेश था कि भारत के लिए फिल्में बनानी है भारत की संस्कृति पर आधारित फिल्में बनानी है और वही हमने शुरू किया और इतना अच्छा कर रहे हैं और वही तो उनको उनके बस आदेश पर चलना मात्र है बाकी मार्ग प्रशस्त वही लोग करते वही हो जाता है वही वही वही मैंने अपने जीवन में इसको अनुभव किया मूर्ती जी भारत में बहुत से काम बहुत ही अच्छे काम हो रहे हैं हुए हैं जिसने जो वर्तमान परिदृश्य है उसको एकदम परिवर्तित कर दिया है इसमें आईएस का भी बहुत बड़ा योगदान है अपने आप में इंडिय ल सिस्टम का जो अक्सर लोगों को दिखाई नहीं देता तो आप हमको बताइए कि ऐसे कौन-कौन से वह अनजाने पक्ष है जो आईएस ने किए हैं भारत की महान ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में औरन कौ स चुनौतिया आपको कुसे का सामना करना पड़ा है जरा इसके विषय में बताइए देखिए ऐसे तो यह है कि अभी तो यह काम बस शुरू ही हुआ है क्योंकि यह शायद हमारे फॉर्मर प्रेसिडेंट जो अब्दुल कलाम जी है डॉक्ट अब्दुल कलाम जी ने कहा था कि इफ यू सेट ए गोल ट इ अची वेबल इन वन लाइफ टाइम इ टू लो लो बकल सेट गोल आर नॉट अची वेबल इन वन लाइफ टाइम यह भी ऐसा ही काम है कि इतना बृहत का है कि भारत जैसा सिविलाइजेशन को फिर रिजूवनेट करना स्पेशली नॉलेज परंपरा यहां जो है वो बहुत बड़ा काम होता है तो उसमें हम लोग एक सविधा बनकर जा रहे हैं यही हमारे लिए काफी है इसमें जिस तरह से देखिए इसमें यह होता है सबसे पहला यह होता है कि हमको इसमें विष्णु सहस्त्रनाम में बहुत अच्छी तरह से बोला जाता है सुव्रत सुमुख सूक्ष्म सुघोष सुखद सुरत तो पहले हमको जो उद्देश्य है हमारा संकल्प है वह व्रत जो है वह सुव्रत होना चाहिए अच्छा व्रत होना चाहिए क्या बात तो यह तो काम तो सूरत है ही उसके बाद हमको लोगों को सुमुख करना चाहिए क्योंकि जब तक हम लोग लोगों से मिलेंगे नहीं अच्छे से करेंगे नहीं तो वह सुमुख नहीं होंगे तो काम एक से नहीं होगा क्योंकि ब्रत कार्य है सुमुख सुव्रत सुमुख सूक्ष्म उसके बाद मिलकर सूक्ष्मता से सोचना चाहिए कि क्या करना है उसके बाद सुघोष उस काम को क्या करना है वह अच्छे से बोलना है वह फिर उसका जो रिजल्ट से जब काम होता है तो व सुखद होता है क्या बात है और उससे सुरत सब में सुरत बढ़ता है ये विष्णु सहस्त्रनाम में सात नामों में बोला जाता है सुत सुमुख सूक्ष्म सुघोष सुख सुत छ नाम बात है बहुत ये तो हमने इसी तरह से शुरू किया है तो इसमें बहुत सारे लोगों से मिलते हैं और अभी अक्रॉस मिस्ट्रीज अक्रॉस द स्टेट्स सबसे जाकर यूनिवर्सिटीज में स्कूल्स में एनजीओस में फाउंडेशन में ट्रस्ट में ऐसे लोगों से मिल मिलकर वो काम शुरू किया है तो इसमें देखिए बाधाएं तो ये भी आती है एक तो यह है कि जैसे अभी कहा था बड़ा मेंढक छोटा सांप यह भी काम होता है तो यह भी हमको विवेक थोड़ा देखना होता है कि परखना होता है सबको पहले किसको लेकर आए क्या करें कसके किसके साथ मिलकर काम करें क्योंकि जब तक परक नहीं तो काम नहीं कर सकते तो ये सब उसम तो थोड़ा सा सोचना तो पड़ता है काम करना होता है लेकिन हमारे लिए जो एडवाइजरी टीम्स है यह सब जो हमको अच्छे से एडवाइस करते हैं और हम लोग काम अच्छे से उससे कर पाते हैं और बाधाएं जो है वह तो देखिए बाधाएं तो स्वाभाविक है अच्छे काम में बाधाएं आना अनिवार्य है ये तो बोला ही जाता है शसी बहुनी तो यह तो होता ही है लेकिन हम अपना काम कर रहे हैं तो यह हो सकता है कि हमने हस छोड़ दिया लेकिन यह तो हमारा काम नहीं है बिल्कुल देश का काम है तो देश का काम है ऋषियों का काम है का काम ये जो ऋषियों का ऋण है हमारे ऊ पर इससे उऋण होने की प्रयास है बकुल सही अब जब वो प्रयास है तो हमने उनको गुरु मानकर चल रहे हैं तो उनके ऊपर डाल दिया हम कर रहे हैं जो होगा होगा आज नहीं तो कल ऐसे सुलझ भी जाते हैं ऐसे बहुत सारे समय पर हमको लगता है कि यह कैसे होगा होगा ही नहीं फिर थोड़ी एक दो दिन निराश होकर बैठ जाते हैं फिर पता नहीं कहां से कोई रास्ता निकल आता है और हो जाता है कुछ ना कुछ निकल जाता है हमारे गुरुजी एक कविता सुनाते थे उसकी चार पंक्ति आपको सुनाता हूं मुझे बड़ी प्रेरणा देती है यह कविता कि जीवन का सब छोड़ दिया है भार तुम्हारे हाथों में जीवन का सब छोड़ दिया है भार तुम्हारे हाथों में अब उत्थान पतन है मेरा भगवान तुम्हारे हाथों में हम में तुम में फर्क यही हम नर है तुम नारायण हो हम में तुम में फर्क यही हम नर है तुम नारायण हो और संसार के हाथों में हम है संसार तुम्हारे हाथों में क्या सही बात तो यही इसी भावना से काम करना चाहिए सब छोड़ देना चाहिए जिसने प्रेरित किया जिसने यहां तक पहुंचाया हमें अपना कर्तव्य कर्म करना है वो आगे भी दशा दिखा देखिए हमारे पूर्वजों ने भी कितने मुश्किल समय से उन लोगों ने अपनी परंपराओं को जीवंत रखा किसी ने देखिए अगर एक छोटा सा यह बताऊं उदाहरण दूं हमारे अभी राम मंदिर का 500 साल से अरे प्रयत्न कर रहे थे क्या संघर्ष इतने जनरेशन चले गए किसी ने देखा ही नहीं लेकिन आज हुआ और कितना बलिद प्राणों की आहुतियां जी लोगों ने बिल्कुल बिल्कुल सही कहा तो किसी ने देखा नहीं तो ये भी हो सकता है कि मैं नहीं देखूं लेकिन बाद में होगा बहुत स आप ऋषि वाक्य होगा ही होगा बिल्कुल सही राम मंदिर का बहुत अच्छा आपने उदाहरण दिया क्योंकि प्राच्य में भी राम मंदिर आंदोलन जो 500 वर्षों का रहा उसके ऊप एक फिल्म बना रहा है तो मुझे भी इस फिल्म के निर्माण के दौरान मुझे भी बहुत से ऐसे ऐसे पक्ष मालूम चले संघर्ष के जिसके विषय में किसी को पता ही नहीं था तो एक बहुत बृहद एक फिल्म का निर्माण हो रहा है जो संपूर्ण 500 वर्षों के राम आंदोलन के ऊपर आधारित है तो वही सही कहा कितने लोग चले गए उन्होंने देखा ही नहीं देखा ही नहीं लेकिन करते रहे प्रयास करते रहे संघर्ष करते रहे बहुत सही कहा आप आईएस के इस संकल्प को पूर्ण करने के लिए बहुत से लोगों से मिलते रहते हैं जैसा आपने कहा कि आप कोऑर्डिनेटर है काम तो बहुत से लोग करते हैं ऐसे विशिष्ट लोग जिनसे आप मिलते रहे हैं क्या कैसे इन लोगों से मिलकर भी आपको अंदर से एक बहुत आत्म शक्ति मिली आत्म बल मिला और आपको लगा कि यह सब कुछ संभव है एक विश्वास दृढ़ हो गया मैं इसके लिए दो तीन एग्जांपल देना चाहूंगा एक यह था कि मैं एक बार एक दक्षिण भारत में एक जगह गया था वहां पर एक के घर जाकर इनके घर जाकर देखा उनसे मिलने गया था वह ब बहुत बड़े विद्वान थे व है अभ भी है उनके घर गया तो उनके बारे में यह था कि वह 35 साल तक टेंपररी वर्कर रहे एक इंस्टिट्यूशन में और उन्होने सिर्फ वह 35 साल में बैठकर 000 रिटायरमेंट के टाइम पर उनका यह था रिटायरमेंट नहीं था मतलब वो अपना यह कर गए थे काम बंद कर दिया था क्योंकि और काम कर नहीं पा रहे थे 12000 के सैलरी में उन्होंने पूरा 35 साल पूरा उस छोटे से कुछ टेंपररी जॉब में रहकर मैनु स्क्रिप्ट के एडिटिंग किया सुबह से लेकर शाम तक बैठ के मनुस्क्रिप्ट बनाते थे प्रिजर्व करते थे और कुछ नहीं किया बस यह करते थे करते थे करते थे और कुछ नहीं चा चाहा कुछ नहीं मांगा वो भी उनको ऐसा भी नहीं था कि बहुत बड़ा ऑफिस मिल गयासे सीढ़ियों के नीचे उनको एक टेबल चेयर बनाकर बैठा गया था और फिर भी उन्होंने अपना यह नहीं छोड़ा काम किया क्या बात है ऐसे ऐसे महान लोग महान लोग थे और एक थे जो बाहर यूएस में उन्होंने मास्टर्स किया था और फिर उन्होंने योगा यह सब सीखा था फिर छोड़ दिया सब वापस आ गए और फिर अभी किसानों के साथ मिलकर काम करते हैं और वो हर जिला में जाकर तमिलनाडु का वहां के राइस वैराइटीज को लेकर उनको कैसे पारंपरिक तरीकों से बढ़ाना है कैसे उनका संरक्षण करना ये काम करते हैं और ऐसे बहुत सारे लोग हैं और एक छोटा सा एक ऑर्गेनाइजेशन है बेंगलुरु में वो लोग नाट्य शास्त्र को और शिल्प शास्त्र को कैसे जोड़कर उसको बाहर लेकर आ सकते हैं उसपे काम करते हैं और ये लोग जो है आई केएस डिवीजन हम लोग ज अभी वो हमारे आईकेस डिवीजन के सेंटर है उससे पहले वो लोग करीब 15 साल तक हर एक महीना वो खुद अपना मैगजीन निकालते थे इसको बढ़ाने के लिए बच्चों तक पहुंचाने के लिए किस तरह से कोई बहुत ज्यादा पैसे तो थे नहीं उनके पास तो वह लिखकर एक वो कंप्यूटर में उसका प्रिंट आउट निकाल के फोटो कॉपी करके उसको पोस्ट करते थे इतना काम खुद किया उन्होंने ऐसे लोग हैं जो श्रद्धा है जब उनको आईकेस डिवीजन का थोड़ा सा फंडिंग सपोर्ट मिल गया अभी उन्होंने 2 साल में कुछ 13 पुस्तक उन्होंने निकाले और करीब 50 स्टूडेंट्स को ऐसे ट्रेन किया जो अभी खुद बहुत बड़ एक्सपर्ट्स बन रहे हैं इस तरह के लोग जब देखते हैं तो बहुत प्रेरणा मिलती है बहुत बड़ी है बहुत ही अच्छा क्या बात है शायद ऐसे महान लोगों की वजह से ही हमारी संस्कृति आज तक जीवित और संरक्षित रही है निसंदेह और ये अनसंग हीरोज है अनसंग हीरोज है इनके बारे में लोग जानते कुछ लोगों ने उनका कभी ऐसे लोगों से जब मिलता हूं तो यह कभी नहीं पूछते कि इसमें हमारे लिए कुछ ऑनरियम मिलेगा क्या कभी नहीं पूछा ये लोग यह बोलते हैं कि यह पुस्तक है मैंने लिखा है संग्रह करके लिखा है इसका पब्लिशिंग हो जाएगा क्या ये पूछते हैं जिससे कि वो बाद तक पहुंचे उन्होंने उसपे ऐसा होगा कि उसम करीब 15 साल 10 साल लगा दिए होंगे उसको बनाने में पब्लिश करना है और कुछ नहीं चाहिए उ ऐसे महापुरुषों को वाकई नमन है उन्हीं के उससे चल रहा है बहुत सही कहा आपने उन्हीं से प्रेरणा मिलती होगी उन्हीं से प्रेरणा मिलती अभी तक सब कुछ संभावनाए जीवित है जीवित और ऐसे लोगों को देखने के बाद लगता है कि और सिर्फ ये बड़े लोग ही नहीं बच्चों में भी है ऐसे क्या बात है बहुत सारे बच्चे हैं जो अभी इवन अभी बैचलर्स मास्टर्स करके वो पूरा आई केएस में आना चाहते हैं और पूरा उन्होंने एक दो बच्चे हैं उन्होंने क्या किया सोचा कि कहानिया आजकल बोलते नहीं है कोई तो उन्होंने शुरू किया कहानियां बोलना बच्चों के लिए और वो बस उनका यही रहता है कि कहानिया कलेक्ट करेंगे और बच्चों को तक पहुंचाएंगे क्या बात है बहुत ही बढ़िया और कुछ लोग हैं यंग स्कॉलर जो अवधानम करके एक कला है आंध्रा में आंध्र प्रदेश में हां वो शतावधानी शतावधानी अष्टावधानी उसके लिए उन लोगों ने लगा दिया पूरा जीवन अपना क्या बात है बहुत सुंदर और क्वालिफिकेशन क्या है एक का पीएचडी है बायोटेक्नोलॉजी में एक एरो स्पेस इंजीनियर है यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से वो लोग आकर अभी अवधानम कर रहे हैं पूरा क्या बात है अब सोचिए उनको कोई भी बोइंग में या कहीं प नौकरी मिल सकता था कोई भी बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी किया हुआ है वो उसको कोई भी नौकरी दे दे लेकिन नहीं वो लोग यही करेंगे और कुछ बच्चे हैं जो आयुर्वेद के लिए कर रहे हैं क्या बात अब ऐसे बच्चे जिसको मतलब यंग है ये लोग 23 साल 24 साल के बच्चे हैं और ये पूरा भी अपना जीवन इसमें लगाएंगे और मैं इसी परिपेक्ष में यह पूछना चाहता था आपसे कि जो इस तरीके के हमारे दर्शकों में भी बहुत से युवा होंगे छात्र होंगे शोध करता होंगे इस तरीके से जो प्रेरित होंगे अंदर से कुछ ना कुछ करने के लिए अगर वह आई केस के मुख्य धारा की में अगर जुड़ना चाहे तो वह कैसे कर सकते हैं और उनको आप क्या सलाह देंगे कि वह क्या करें कैसे करें इस दिशा में आगे कैसे बढ़े देखिए एक तो यह है कि आई जो विषय है वह बहुत ही वाइड एरिया है तो उसमें से कुछ कुछ एरियाज उनको सिलेक्ट करना ज्यादा सही रहेगा और उन्होंने अगर कोई एक एरिया सिलेक्ट किया है तो उस एरिया में कोई भी एक्सपर्ट जो है उस सब्जेक्ट में जो एक्सपर्ट है वो हम ऑलरेडी वो हमारे आईकेस डिवीजन का वेबसाइट है आस इया ओजी उस पर जाकर देख सकते हैं कहां के पर क्या प्रोजेक्ट चल रहे हैं क्या रिसर्च सेंटर में क्या हो रहा है यह सब और हमको लिखेंगे तो हम उनको उन एक्सपर्ट से कांटेक्ट करने का वो काम हम देंगे उसके अलावा उनको यह भी सोचना है कि यह जो भारतीय ज्ञान परंपरा वो उस पर काम करेंगे तो उनके लिए यह रहेगा कि वह आगे जाकर अपना एक विशिष्ट वो बना सकते हैं करियर पाथ बन सकता है उनके लिए क्योंकि उससे जो है एक तो यह है कि मॉडर्न मेथड्स और भारतीय ज्ञान परंपरा को मिलाकर जब चलेंगे वो लोग आगे तो उससे उनका यूनिकनेक्ट इंडिया एक अलग ऐसा देश है जिसमें हम लोग चाइना का मॉडल कॉपी करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं हम लोग को अपना एक्सपोर्टर तो बनना है लेकिन ऐसा नहीं बनना है कि सिर्फ एक्सपोर्ट प डिपेंडेंट रहेंगे हमारा इंटरनल कंसंट भी बहुत ज्यादा रहेगा तो हम जब डिजाइन करते हैं मान लीजिए कोई भी चीज डिजाइन करते हैं या कोई ऐ डिजाइन कर रहे हैं या कोई प्रोडक्ट डिजाइन कर रहे हैं उसमें भारतीयता लानी होगी क्योंकि तभी हम लोग उसको कनेक्ट कर पाएंगे और तभी यहां का प्रॉब्लम हम लोग सॉल्व कर पाएंगे तो उस तरह से भारतीयता का अगर उनमें दृष्टि रहेगी तो बहुत वो उस तरह से तो रहेंगे सक्सेसफुल रहेंगे उनको अच्छा लगेगा कि इसम काम कर रहे हैं लौकिक भी उनका अर्थ का भी प्रॉफिट होगा यह मैं बताने का कोशिश कर रहा हूं कि उनका जो दो पुरुषार्थ है क्योंकि हमारा जो भारतीय ये है हम यह नहीं बोल रहे हैं किसी को कि हमको बोलता ही नहीं है भारतीय ज्ञान की आप सब कु छोड़कर सन्यासी बन जाए ये नहीं है हमको धर्म के साथ अर्थ और काम का दो पुरुषार्थ है उसको पसू करना है जैसे ततर उपनिषद में बोलते हैं ना कुशला प्रम श्रेया प्रयम करके बोलते हैं क्योंकि हमको वो करेंगे तो ही तो बाकी सब सोसाइटी को सपोर्ट कर सकते हैं तो ऐसे उनको यह सब करते हुए अन नक्ति है ना बंजता वाला कांसेप्ट तो इनको सब ये सब करने के लिए वो दृष्टि इंपोर्टेंट है और ये जो नॉलेज है वो प्रासंगिक होते हुए आगे जा सकते हैं य डिजाइन की बात कही मैंने आर्किटेक्चर में भी ऐसे ही है ऐसे ही उनका टेक्निकल फील्ड में भी होगा साइकोलॉजी और वो सब ह्यूमैनिटीज एरिया में उसमें तो अन एक्सप्लोड्स पर्सन इंक्वायरी जो हमारा जो भारतीय ज्ञान का जो अपरोक्षानुभूति जो है वो मूल आधार है वो ट्स अ वेरी डिफरेंट वे ऑफ लुकिंग एट थिंग्स बहुत सही कहा आपने और यही नहीं इवन बहुत कष्ट हुआ अभी हमको देख के जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट के जजेस ने स्वामी रामदेव की अनकंडीशनल अपोजी भी अस्वीकार कर दी और उन्होंने कहा कि वी विल रिप यू अ पार्ट देखिए य कॉलोनियल माइंडसेट कैसे अभी तक इस युग में भी हम इसको देख रहे प्रत्यक्ष सारे रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जजेस ने भी उसके अगस्ट लिखा वो लिखा है बहुत ब एक लोगों में भी आक्रोश है बहुत ब वो इसलिए क्योंकि स्वामी रामदेव का बहुत बड़ा काम योग को पुन स्थापित करने के लिए उस तरह की भाषा शोभा नहीं दे शोभा नहीं देती है रिप यू अर्ट एक सन्यासी को एक एक भगवा वेष में आपके सामने खड़ा है जो माफी मांग रहा है हम भी हम लोग भी तो पूछ सकते हैं 10 चीजें जिस पर क्यों नहीं प्रश्न उठाया और क्यों नहीं रिप पाट किया और लोगों को है कि नहीं तो हमारा कहने का मतलब है कि जो पारंपरिक जो हमारे शास्त्र है और आयुर्वेद तो एक उपवेद है उसको भी साथ लेकर चलना बहुत आवश्यक है सर्जरी के तो हम लोग समझना जरूरी समझ कर ले जाना जरूरी और इंटीग्रेट करना उसको मडन सो मडन साइंस को खारिज नहीं कर रहे मॉडर्न मेडिकल साइंस को वो आवश्यक लेकिन कहीं ना कहीं आधार भूत ज्ञान है ना इसमें यह तो हमारे कालिदास ने कहा था मानविका मित्रम में वो कहते हैं य अभी कालिदास कब के थे तो वो कहते हैं पुराण मिव साधु सर्वम नचाप काव्यम नमित संत परीक्षा चतर भजंते म पर प्रत्य बुद्धि य ल् ओल्ड गोल्ड वाला इंग्लिश वाला मेंटालिटी है हमारे यहां ये था कि पुराण इव साधु सर्व क्योंकि कुछ पुराना है वो साधु नहीं है वो अच्छा नहीं है नचाप काव्य न जो नया है उसको ऐसे ही बिना सोचे समझे डिस्का मत करो वो बोलते हैं संत परीक्षा चतर भजंते संत लोग जो है जो विद्वान है वो परीक्षा करके उसकी गुणगान करते हैं भजन करते हैं जबकि मोड़ द फूल्स पर प्रत्यय बुद्धि विल बी लेड बाय द ओपिनियन ऑफ अदर्स तो यह कालिदास ने कहा है हा कभ ये हमारी परंपराएं हैं प्रश्न करने की हमारी परंपरा है परखने की परंपरा है बहुत सही कहा आपने ओल्ड इ गोल्ड वाली हमारी परंपरा नहीं है नित्य नूतन परंपरा ज्ञान का नित्य न्यूतन करते रहना उसको य यह हमारी परंपरा आपने जो कहाना कि आयुर्वेद को मडन होता ही है अभी भी होता है और करना भी चाहिए यही भारती लेकिन हमारे कितनी दृष्टि से देखते हैं अपने पारंपरिक ज्ञान को और देखि कोई अगर उसके प्रणेता है तो उसको रिप अपार्ट कह रहे हैं कष्ट होता है देखिए वेस्टन पर्सपेक्टिव से ही देखेंगे तो यही कोनिल मेंटालिटी से देखेंगे तो ऐसे लगेगा न भारत मेड टिम ऑ पसीज सेंसरशिप एंड आइडियो कल सबमर्ज वी ऑल हैव सफर्ड अ [संगीत] लॉट लेट्स एंड इट नाउ वी ब्रिंग टू यू प्राम एन अनपोल जेटिक वीडियो प्लेटफॉर्म हिंदू प्रोटेक्ट यो फैमिली फम फल्स टव अबाउट [संगीत] भारत डॉक्युमेंट क्लास शो य न फ न पावर टू द हिंदू ब फ द कॉस्ट ऑफ वन कॉफी सब्सक्राइब नाउ हमको जो एक एक्स चीफ जस्टिस है सुप्रीम कोर्ट के उन्होंने बताया था कि उनके एक सीनियर जो कलीग जज है उन्होंने हमको बताया कि उनको जब बहुत ज्यादा कष्ट हुआ उनकी श्रीमती जी को बैक में और वो दुनिया के कोई डॉक्टर्स और मेडिकल साइंस उसको नहीं ट्रीट कर पाई तो किसी के कहने पर उनको उतना विश्वास लेकिन वो एक आयुर्वेदिक केरला में एक सेंटर में गए और वहां व पूर्ण रूप से उनको स्वास्थ्य लाभ हुआ तो उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि यह बहुत अद्भुत उत्कृष्ट एक विज्ञान है एक आयुर्वेद है एक शास्त्र है जिसकी पूरा शास्त्र है ये और जब देखिए ये दुर्भाग्य नहीं है तो क्या है यह कि चाइना जो है ट्रेडिशनल मेडिसिन को उस स्थान पर अपना ट्रेडिशनल मेडिसिन को उस स्थान पर रखता है और वहां पर नोबल प्राइजेस मिलते हैं बकुल क्योंकि वो अपने ट्रेडीशन प देखते हैं और हम यहां पर बोल रहे हैं इस तरह की भाषा कैसे संभव होगा लोगों को इस एमनेसिया से बाहर निकालना देखिए ये 1835 से शुरू हुआ है परंपरा को तोड़ा गया था वहां पे काटा गया था बेसिकली जो इंग्लिश को है जो एजुकेशन से जोड़ा गया था और एजुकेशन को एंप्लॉयमेंट से तो अभी यह हो गया कि इंग्लिश इज इक्वल टू एंप्लॉयमेंट जब तक यह काटेंगे नहीं तो नहीं होगा ये उसके लिए दृष्टि बदलनी पड़ेगी और भारतीय भाषाओ को प्रोत्साहन देना पड़ेगा क्योंकि आज भी हम इंक्लूसिव डेवलपमेंट की बात करते हैं तो व भारतीय ज्ञान परंपरा से ही पॉसिबल है भारतीय भाषाओं से ही पॉसिबल है क्योंकि देखिए आज भी 89 पर ऑफ इंडियंस भारतीय जो है वो इंग्लिश नहीं जानते हैं अगर इंक्लूसिव डेवलपमेंट की बात कर रहे हैं तो इंग्लिश में कैसे होगा जिसका फर्स्ट लैंग्वेज है वो लेस दन 01 पर या 02 पर है जिसका फर्स्ट लैंग्वेज इंग्लिश है इंग्लिश जिसका सेकंड लैंग्वेज है वो 45 पर हो सकते हैं अभी भी है तो भारतीय भाषाओं में हो भाषाओं में होना चाहिए भारतीय और भारतीय ज्ञान परंपरा भारतीय भाषाओं में है और इसको भाषाओं के माध्यम से हमारे परंपराओं के माध्यम से जब तक नहीं समझेंगे तो यह तो ऐसे ही होता रहेगा बहुत सही कहा आपने और एंप्लॉयमेंट एजुकेशन इंग्लिश इंग्लिश एक भाषा है लेकिन सिर्फ भाषा नहीं होता उसका सोच होता है जो लाइन सिविलाइजेशन का सोच होता है तो भारतीय भाषाओं के प्रयोजन से वो सिर्फ भाषा का परिवर्तन नहीं हो रहा है सोच का परिवर्तन हो रहा है सही और इसके लिए यह भी आवश्यक है कि संस्कृत भाषा का भी लोक व्यापी कारण हो संस्कृत भारतीय भाषा जो भी है सब से अच्छा है मतलब ये किसी में भी करेंगे तो काम हो जाएगा संस्कृत ओबवियसली शास्त्र परंपराएं जो है संस्कृत में है तमिल में है केरला स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स पूरा मलयालम में है इस तरह से भाषाओं में और इनफैक्ट नॉर्थईस्ट की भाषाए देखेंगे वो लिखित रूप में भी नहीं है पूरे मौखिक है और विविधता है और उसमें अभी हाल ही में मैं एक इनसे बात कर रहा था वाइस चांसलर से उन्होंने कहा कि वो मणिपुर यूनिवर्सिटी से है और वहां पर एक पूरा टेक्स्ट हम लोग तो संस्कृत में समरांगण सूत्रधार है यह सब जानते हैं जो आर्किटेक्चरल इंजीनियरिंग सिविल वास्तु के टेक्स्ट है ऐसे ही मैती टेक्स्ट में मैती भाषा में मणिपुर का जो मैती भाषा उसमें बैंबू आर्किटेक्चर कैसे बनाया जाए उसके ऊपर ग्रंथ है ओ अब सोचिए जानते भी नहीं है हम बस इंग्लिश ट्रांसलेशन चाहते हैं कम से कम अ अब आपके माध्यम से और आईकेस के प्रयास से ये बातें अब सब मेन स्ट्रीम में तो आएंगी जी हां हम लोग इसीलिए आईस डिवीजन में एक हमने एक पॉलिसी रखा कि हम सब चीजों को इंग्लिश में ट्रांसलेट नहीं करेंगे आपको अगर कालिदास का एक्सपर्ट बनना है तो आपको संस्कृत पढ़ के कालिदास का ओरिजिनल टेक्स्ट पढ़ना पड़ेगा जिस तरह से एक्सपेक्टेशन रहता है कि अगर मैं शेक्सपियर के लिटरेचर का एक्सपर्ट बनूंगा तो हिंदी ट्रांस वो इंग्लिश में पढ़ना पड़ेगा उसी तरह से इसको भाषा में पढ़ना उस यु की भाषा प प नहीं आती और हम लोग मार मार के पया और यही नहीं देखिए अगर आप यूके जाए इंग्लैंड जाए और अगर आपको देखना है मैं यह मेरा एक सुझाव है एक आपसे एक विनती है कि आप इसको ध्यान में रखें कि अग और आप अगर चाहे कि शेक्सपियर का प्ले आप देखना चाहे कोई उसका नाट्य रूपांतरण है तो आप जा सकते हैं स्ट्रैटफोर्ड 11 जाए और वहां पर जो ओरिजनल उसकी युग का जो ग्लोब थिएटर है व आज वैसे ही संरक्षित है आप उसमें जाएं और उसमें शेक्सपियर का कोई भी नाटक वहां पर अलग-अलग दिनों में उसका मंच होता उसको देखें और जिस स्वरूप में होता आया उस समय हुआ था शिक्स पीर के काल में आज भी वैसे ही है लेकिन भारत में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहां हम अगर चाहे कि हम जो भरत मुनि का नाट्य शास्त्र है अगर उसके अनुरूप अगर किसी नाटक का मंचन हो रहा है जसे कालिदास का हो रहा है तो एक हमारे पास कोई ऐसा एक स्थान नहीं है कोई ऐसा थिएटर नहीं है जहां उस मौलिक स्वरूप में उसका मंचन आज भी किया जा रहा हो कभी-कभी इधर उधर होते र लेकिन ऐसा एक स्थान तो इसको आप ध्यान में रखिए लेकिन देखिए एक वो तो है ये हम लोगों ने क्योंकि हमारे यहां इतने सारे आक्रमण यसे हुए थे तो जो बाकी जो यह सब थे इसमें हमने उसको छोड़ दिया था तो इसीलिए आपको कालिदास का जो नाटक है उस तरह से नहीं मिलेंगे आज कहीं कहीं मिल रहे हैं वह अलग बात है लेकिन उस व्यापकता से नहीं लेकिन हमने जाना कि दृष्टि बहुत मुख्य है और आज भी अगर आप मंदिर में जाएंगे उसी तरह से काशी विश्वनाथ मंदिर में उसी तरह से शिव जी का अभिषेक हो रहा है जिस तरह से 5000 साल पहले हुआ था या राम जी के टाइम पर हुआ था उसी तरह से होहा वो परंपराएं हमने हा संभाल के रखी है लेकिन अभी समय आ गया है कि सिर्फ आध्यात्मिक परंपरा नहीं लौकिक परंपराओं में भी हम उसको लेकर आए बिल्कुल सांस्कृतिक परंपरा संस्कृत परंपरा हमें लगता है सांस्कृतिक विकास की बहुत आवश्यक आर्थिक विकास के साथ हां क्योंकि वो दोनों साथ-साथ च देखिए ये बोला जाता है ना कि न वेस्टर्नर्स और इन अदर थॉट प्रोसेसेस पीपल बिकम रिच दे बिकम दे कंज्यूम मोर और भारत में य होता है कि वन दे बिकम रिच दे बिकम स्पिरिचुअल दे बिकम मोर आध्यात्मिक आप यह देखेंगे कि बहुत सारे सूरत में बहुत बड़े डायमंड के व्यापारी हैं 500 करोड़ 10 1000 करोड़ का व्यापार था एक दिन सब छोड़कर वो जैन मुनि बनकर चले गए सब ध्यान में दे दिया ऐसे भारत में ये होता है य वो दृष्टि है तो कहीं का ना कहीं हमने बचा के रखी है बिल्कुल मती जी मैंने देखा कि आप बहुत अच्छे संस्कृत भाषी भी है तो कैसे संस्कृत सीखी आपने और कैसे आप बताएंगे कि अगर हमारे दर्शकों में कोई कुछ लोग अगर आपसे प्रेरणा लेकर अगर सीखना चाहे संस्कृत तो क्यों आवश्यक है संस्कृत भी का भी थोड़ा ज्ञान होना कम से क कम एक उससे आपस में कम से कम हम समझ सके क्या बोला जा ता है आपने कहां सीखी संस्कृत देखिए एक तो यह था कि घर में मां और पिताजी कुछ ना कुछ तो सिखाते थे और फिर केंद्री विद्यालय का स्टूडेंट हूं मैं वहां पर संस्कृत रहता है एंड उससे सीखा उसके बाद फिर वो तो भाषा का थोड़ा सा परिज्ञान मिलता है लेकिन बोलने का परिज्ञान उतना वहां पे हो नहीं पाता है तो उसके लिए फिर वो जो बोलने का जो है वो तो भिक्षा है संस्कृत भारती का उन्होंने जो वो करते हैं पूरे विश्व पूरे विश्व भर में हर जगह जो उनका साप्ताहिक वो वीकेंड प्रोग्राम होते हैं और जहां पर लर्नर्स प्रोग्राम होता है जिसमें वो बोलते हैं कि आप कोई भी भारतीय भाषा जानते हैं तो आप संस्कृत सीख सकते हैं और जैसे जिस तरह से हम मातृभाषा सीखते हैं उसी तरह से वह भी सिखाते हैं उनका व्याकरण से शुरू नहीं करते वो क्योंकि व्याकरण से सीखने की पद्धति वेस्टर्न है पाश्चात्य है भारत की नहीं है भारत में पहले बताया जाता था फिर सीखते थे फिर व्याकरण सीखते थे व्याकरण अनिवार्य था सबके लिए अनिवार्य था लेकिन बाद में आता था पहले मातृभाषा आपने सोचिए आपकी मातृभाषा हिंदी है आपने व्याकरण तो नहीं पढ़ा पहले बच्चे को व्याकरण नहीं पढ ऐसे सीख जाता कभी नहीं सीख पाएगा फ पाएगा उसी तरह से अभी भी अगर हम अटक जाए लघु सिद्धांत में नहीं सीख पाए सहज भाव से जि तरह से मातृभाषा सीखते हैं उस तरह से सिखाते हैं तो ऐसे सीखना जरूरी है क्योंकि कोई भी मातृभाषा अगर भारतीय भाषा आप जानते हैं तो वो आधार बनता है क्योंकि बहुत सारा बहुत सारे भाषाओं का आधार तो संस्कृति है तो आप भी अपने बच्चों को इस दिशा में प्रेरित कर रहे हां पहले तो हम लोग घर में मातृभाषा ही बोलते हैं तेलुगु बहुत बढ़िया और कोई भाषा यूज करते उपयोग करते नहीं है और आजकल हिंदी भी आ गया है क्योंकि हम इंदौर में रहते हैं तो हिंदी भी आ गया है लेकिन ये दो भाषाए चलती और संस्कृत भी आप संस्कृत बीच बीच में चलते रहते है और श्लोक ये सब तो हा तो ये भी बहुत अच्छी बात आपने बताई है कि संस्कृत के श्लोक संस्कृत के स्तोत्र और बहुत सारे सुभाषित सुभाषित है देखिए आप इतने सारे उसमें प्रेरणा मिलती है कि आपको जब बचपन में अगर आप सीख लेंगे तो बाद में पता नहीं कब काम आएगा किस स्टेट में काम आएगा तो आपको इससे बहुत प्रेरणा मिलती है क्योंकि यह डिस्टिल्ड विजडम है जो हमारा सिविला तो यह सब बहुत यूजफुल है उस तरह से आप कोई भी एज के हो कोई भी स्टेज में हो कोई भी व्यवसाय में हो संस्कृत सीख सकते हैं क्या बात है इसमें कोई नहीं बड़ी अद्भुत भाषा है भाषा है बड़ी आनंद की अनुभूति होती है इसको पढ़ के इसको बोल रिसेंटली एक यह पेपर भी आया है उसमें उसको बोला गया है संस्कृत बोलने से मन पर उसका इंपैक्ट पड़ता है इसको बोला गया है संस्कृत इफेक्ट और इसमें यह बोला गया कि क्यक संस्कृत जो है जैसे मैथमेटिकल इक्वेशन होते हैं उस तरह से भाषा बनती है सेंटेंस का रचना उस तरह से होता है तो वो उसको बोला गया कि जो संस्कृत में बोल सकते हैं उसको बहुत सारे विषयों का ध्यान रखकर बोलना पड़ता है और वो सबकॉन्शियसली जब होता है तो मन का मन के शक्ति का विकास होता है और यह संस्कृत में बहुत ही प्रचुर है इसीलिए इसको संस्कृत इफेक्ट करके एक पेपर भी पब्लिश हुआ था और यह बहुत अभी बहुत सारे लिंग्विस्ट इसके ऊपर देख रहे हैं कि संस्कृत बोलने से क्या इंपैक्ट होता है इनफैक्ट आप अगर कुछ दिन संस्कृत में बोलेंगे यह बहुत बार होता था कि संस्कृत भारतीय का कुछ तीन दिन का वर्कशॉप है और वहां पर पूरा संस्कृत में ही चलता है आप भाषा जानते हैं या नहीं जानते उससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता सिर्फ संस्कृत में बोलेंगे और उससे क्या होता है वो तीन दिन बाद दूसरी भाषाओं में बोलने का मन भी नहीं करता है क्या बात है आप जब बोलेंगे तो उसी वो संस्कृत निकल जाता है क्या बात और ऐसे ही देखिए ऐसे ही भाषा हमारे तमिल भी है क्योंकि ये दोनों भाषाओं में ये है और संस्कृत में तो थोड़ा सा ज्यादा प्रचलित है लेकिन तमिल भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है ये दोनों भाषा तो आईकेस का कोई प्रयास है इस दिशा में संस्कृत को प्रधान रूप से आगे लाना ऐसे एक भाषा के ऊपर तो वैसे है नहीं क्योंकि एक भारतीय भाषा समिति करके एक शिक्षा मंत्रालय में दूसरा है वो भाषाओं के ऊपर फोकस करते हैं हम जो है भाषाओं तो हम लोग चाहिए ही चाहिए भारतीय भाषा लेकिन हम लोग ज्ञान परंपराओं पर ज्यादा फोकस करते हैं हमारे डिजन नो भारत वास मेड विक्टिम ऑफ कपरे सेंसरशिप एंड आईडियोलॉजिकल सबज वी ऑल हैव सफर्ड [संगीत] लट लेट्स एंड ट नाउ वी ब्रिंग टू यू प्राम एन अनटिक वीडियो प्लेटफॉर्म फ हिंदू प्रोटेक्ट यो फैमिली फ्रॉम फाल्स नेटिव्स अबाउट भारत डॉक्यूमेंट्री क्लासेस शोज ट यू विल नॉट फाइंड नम पावर टू द हिंदू बॉय फर द कॉस्ट ऑफ वन कॉफी सब्सक्राइब नाउ प्रम क एक बात जो मैं आपसे पूछना चाह रहा था कि जब भी इतने बड़े संकल्प को लेकर आगे बढ़ते हैं तो तो कभी कभी निराशा का भी सामना करना पड़ता है तो ऐसे क्षणों में जब आपको लगता है कि चीजें जैसा आपने सोचा था नहीं हो पा रही है कुछ अलग तरीके की चुनौती आ गई है या वधान आ गया है तो उस उन क्षणों में कहां से कैसे मोटिवेशन मिलता है कहां से किससे प्रेरणा मिलती है हमारे य होता य तो कहा कि मेरा काम तो है नहीं उ का है तो जो करना है वो करेंगे बाहर तो छोड़ दिया लेकिन हा ये तो टमेंट तो नर्मल है तो होता ही इतना बड़ा काम कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ तो होता रहता है तो एक प्रार्थना लोक में संस्कृत में एक छोटा सा व है एक सेंटेंस है बोलते प्राथर हे जननी तम करिम लोकम सुकम तम करि याम दुक प्राया सुबह उठकर जननी मां जग को धम आपकी प्रीति के लिए कर रहा हूं यह सबम करि लोका यात्रा य जो लोक में जो यात्रा है आप सुदुर है दुष्कर है मुश्किल तो है लेकिन मैं अपने लिए नहीं कर रहा आपकी प्रीति के लिए कर रहा देखना है जो देखो मुझे कुछ नहीं बस दो दिन होता है क्या बात है बहुत सुंदर विचार है फ बो क्या है ये लोक कुछ नहीं प्राथ हे जननी त प्रतम करिश्यामी लोक यात्रा सुकम क्या बात है यह तो एक मंत्र आपने दे दिया य को है अगर इस बस इसका स्मरण कर ले अगर मन में आपका विश्वास रहेगा तो हो जाएगा आपके जीवन के प्रारंभिक काल में कौन से रोल मॉडल्स थे आपके जिन्होने आपको बहुत इंस्पायर किया वो तो मडल्स तो चेंज होते रहेते रते होते भी तो सबसे बड़े तो मेरे लिए हनुमान जी है क्या बात है क्योंकि उन्होने वो अभी मे लिए रोल मॉडल ही है देखिए उन्होने वो एक भगवान का ऐसा स्वरूप है हनुमान जी का अवतार हैसे जिसमें शक्ति भी है ज्ञान भी है और कर्मठता भी और निस्वार्थ भी है और सेवा भी है और विवेक भी है और नीति भी है नीति भी है और आपको बहुत कम ऐसे अवतार मिलेंगे जिसमें सब समात है और आप देखेंगे इतनी शक्ति थी उनमें इतना ज्ञान था पूरा रामायण देख लीजिए सबने कुछ ना कुछ अपने लिए किया उन्होंने कुछ नहीं किया अपने लिए क्या बात है और बस राम के भक्त है वो य था उनके लिए तो वो मे लिए इंस्पिरेशन थे कभी भी बचपन से उसके बाद एक मेरे इंस्पिरेशन अभी भी है ये तो पोतना पोतना माथ जिन्होंने भागवत को तेलुगु में क्या बात है पहली बार लिखा था वो ऐसे थे जो वो भी किसान थे उनको बोला जाता था कि आपके हाथ में हल चले या कलम वो चले क्या बात है दोनों से सोना आता है अरे वाह उनके जीवन का एक बहुत ऐसा एक घटना है जो उसके बारे में वो लिखते हैं अवाद में वो एक श्लोक के रूप में लिखते हैं सरस्वती मां का प्रार्थना के रूप में लिखते हैं वो उ उ वो बोलते हैं कि मैं आपको कहीं बेचूंगा नहीं क्या बात है मां आपको मैं कहीं बेचूंगा नहीं ले जाकर क्या बात है उसी तरह से वो ज्ञान जो है वो बेचने के लिए नहीं है कुछ भी हो जाए क्या बात है बस सेवा के लिए है और यही अपनी अपनी सोच यही प्राचीन परंपरा नहीं हमा परंपरा है यही है तो इनसे इतना इंस्पिरेशन मिलता है कि उनको उनके ऊपर भी ऐसे ही बहुत सारे प्रेशर दिए गए थे य इधर से पैसे देंगे आपको राज बस उनका कुछ भी करना नहीं था उनको बस उसको य उनको ये एक सेंटेंस लिखना था कि यह काव्य जो है हमारे राजा को अर्पित है बस व नहीं लिख उन्होने बोला यह श्री राम का काव्य है क्योंकि श्रीराम ने उनको मुझे आज्ञा दी तो इसलिए लिख रहा हूं तो बोलते हैं लिखते भी है पलि भागवत प राम भद्र अने भ भर अ प मतलब बोलते हैं जो लिख रहा भागवत है इस तरह से लिखने के लिए श्री राम ने मुझे बोला है इस तरह से ही लिखूंगा और क्यों लिखूंगा और बात क्यों बोलूंगा वही करूंगा जो श्रीराम ने बोला तो ये उनके विचार में था य उन्होने भागवत में लिखा था ल व था तो उसके बाद जब राजा आए और बोला किलिए अर्पण करो तो उन्होंने मना कर दिया बोला ये तो रामाज्ञा से किया तो इसलिए पतना जो है मतना मत जो है मेरे लिए गुरु तुल्य है क्या बात और एक और है हमारा वामना अवतार यह भी मेरे लिए बहुत बड़ा इंस्पिरेशन रहा है अच्छा हा क्योंकि हम लोग वामना अवतार में कथा जिस तरह से चलती है वो तो ये चलती है कि भगवान विष्णु थे और राज बली थे जो बहुत बड़े धार्मिक थे बहुत बड़े भक्त थे विष्णु के वो भी भक्त थे तो उन्होंने इंद्र के ऊपर विजय पाया स्वर्ग पू त्रिलोक उनके आधीन में आ गया और बहुत बड़े दानी थे सबको दान करते थे और फिर सिद्धाश्रम में विष्णु ने वामन अवतार का वो लिया अवतार लिया वामन का अवतार लिया और फिर वो आकर इनसे तीन कदम मांगते हैं और दो कदम में पूरा नाप लेते और तीसरा कम उनके सिर पर लख उनको पाताल में भेज देते हैं यह कहानी है तो मे मन प्रश्न था कि इसके लिए य तो गलत किया ना विष्णु मूर्ति में कि एक भक्त के ऊपर जो भक्त था उसको अगर नारद से कहा कर भ देते की जाओ य राज जो है पूरा दे इ को दे देते तो कभी मना नहीं करते वो भक्त थे विष्णु के विष्णुमूर्ति को एक अवतार लेकर आना क्यों पड़ा यह आजकल हमारे इंटेलेक्चुअल के लिए बहुत पोर्टेंट है य इसलिए मैं यह बात बोल रहा हूं क्योंकि बली जो थे व विष्णु के भक्त थे वो उनके पास बहुत ज्यादा ऐश्वर्य था व राक्षस वंश में थे वो क्या करते थे पूरे उन्होने बहुत सारे स्कॉलर्स को देखा ब्राह्मणों को देखा ऋषियों को देखा लोगों को देखा जो बहुत बड़े स्कॉलर्स थे और देखा कि यह बहुत अच्छे कंडीशन में धन नहीं है इनके पास बहुत कम धन रहता था तो उन्होंने सोचा ऐसा तो नहीं होना चाहिए इनको मैं भरी दक्षिणा दूंगा ज्यादा दक्षिणा दूंगा और सबको बहुत ज्यादा ज्यादा दक्षिणा देते थे पूरे राज्य में पूरे सब जिसको भी देखते थे पूरा सोने से भर देते थे बोलते थे खुश ी आप स्कॉलर है आपको मुझे इतना पैसा देना है आपको यह करना है तो उस राज उनके पूरे राज्य में सिर्फ ये जो सिद्धाश्रम में ये जो परिवार था इन्होंने नहीं लिया था बाकी सबने लिया था इसका प्रॉब्लम क्या होगा आप सोचिए एक तो राक्षस वंश है प्रकृति भी है ये नहीं है लेकिन इनके बाद तो कोई ना कोई तो आएगा वैसे ही हुआ बाद में भी जो उस उतना दनी नहीं होगा उतना य सात्विक नहीं होगा यह तो आने का डर तो रहता ही है और इन्होंने एक मिसलेड सेंस ऑफ जनरो सिटी से सबको दे दिया अब देखिए अब जब तक स्कलर इंडिपेंडेंट रहता तो वो इनको प्रश्न उठा सकता था अब उन्होंने सबने भोरी दक्षिणा ली वो कोईन पर नहीं उठाएगा बहुत सही बात है बिल्कुल अब ये था धर्म संकट इसके लिए विष्णु को आना पड़ा कि देखिए आप यहां पर आपको एक भक्त का वो भी प्रोटेक्ट करना है इसमें किसी ने गलती नहीं की ना ब्राह्मण ने गलती की ना इने गलती की उस तरह से देखा जाए तो तो दिया उसम गलत क्या है उने लिया उसम गलत क्या है लेकिन धर्म संकट क्या था जिसके लिए अवतार लेना पड़ा विष्णुमूर्ति को ये था कि स्कॉलर्स अगर इंडिपेंडेंट नहीं रहेंगे सोसाइटी में क्या बात है तो धर्म का संकट होगा स्कॉलर्स हैव टू बी इंडिपेंडेंट और उसके लिए व वामन बन कर आए और जब वो आए इनके पास तो इनको अब ये देखिए मिसले सेंस ऑफ जनरो सिटी क्यों बोल रहा था मैं एक टू आया है तो उसको आप क्या देंगे तो यह बोलते हैं बली चक्रवर्ती बोलते हैं मेरे पास इतना ऐश्वर्य है इसलिए वो बोलते हैं सोना चाहिए क्या घोड़े चाहिए क्या अश्व चाहिए क्या कन्याएं चाहिए क्या क्या चाहिए बोलो दे देता हूं तुमको ये एक वट के लिए देने वाली चीज नहीं है सोना देने वो ब्रह्मचर्य आश्रम में है वो विद्यार्थी है विद्यार्थी को आप कन्या देंगे घोड़े देंगे अशु देंगे ये सब नहीं देना है इसलिए वापस वो बोलते भी है मुझे क्या चाहिए मुझे तो एक कमंडल चाहिए एक बैठने के लिए आसन चाहिए यही सब तो चाहिए मुझे ये सब क्या करूंगा करके वो बोल रिस देते तो बोलते क्या चाहिए मांगो तो बोलते तीन कदम चाहिए तीन कद में आप बैठकर अपना जप कर सकते हैं मुक्ति भी मिल सकती है उससे वो भी एक रीजन है तीन मांगते है इसलिए व खुश भी हो जाता है जो चाहिए दे देते और दिया भी तो क्या किया तो यह दोनों नाप लिया और तीसरा उनको फिर पाताल में भेज दिया लेकिन उनको बोला कि आप इंद्र बनोगे बाद में इंद्र दिया उनको अब देखिए इसमें क्या हुआ ना तो उनका गर्व भंग हो गया ना तो किसी का कुछ ये हुआ एकदम टैक्टिकली वेरी डिप्लोमेटिक भगवान विष्णु है सॉल्व दिस क्राइसिस ऑफ धर्म संकट ट केम बिकॉज कॉलर्स र नॉट इंडिपेंडेंट वा अ डेंजर ट स्कॉलर्स वड बिकम डिपेंडेंट ऑन द व्हाट एवर द डिस्पेंस इ स्कॉलर है टू बी इंडिपेंडेंट इसीलिए बोला जाता है हमारे शांति मंत्र में भी स्वस्थ प्रजा परिपालय मे दिस कंट्री रू बा प्रॉपर्ली य मार् म महिष य जो महिष है इस धरती के व न्याय के मार्ग चले लोका समस्ता काले देतो ब्राह्मणा संया ब्राह्मण यहा पर इंटेलेक्चुअल के लिए ड य किया गया है निर्भय होना चाहिए अनलेस निर्भय होकर अपनी सच की बात नहीं रखेंगे पक्ष नहीं रखेंगे धर्म की बात नहीं रखेंगे तो देश का उधार नहीं होगा उधार नहीं होगा इसलिए स्कल हैव टू बी इंडिपेंडेंट तो वामना अवतार का पूरा कांसेप्ट यह है कि व हैव टू हैव स्कलर र इंडिपेंडेंट हैव द स्पाइन टू स्पीक द ट्रुथ इसीलिए कालिदास भी बताते हैं प्रवता प्रकृति ताय प सरस्वती शति मता बोलते इस पृथ्वी के जो प्रत प्रक या जो भी र ल अर्थ वि द प्रकृति ता इ माइ प्रकृति का हित करे प्रकृति में पू आते हैं मनुष्य आते हैं पशु आते हैं एमेंट आता है पूरा आता है उसके हित के लिए काम करें और सरस्वती शता मता जो बहुत अच्छे पड़े हुए लोगों में जो सरस्वती है वो इन राजाओं से ज्यादा भारी हो यानी कि ये लोग सब ऐसे स्कॉलर्स की बात सुनते क्या बात है ये कालिदास ने कहा है बिल्कुल और और हमारे इतिहास के ग्रंथों में भी आप देखिए महाराज दशरथ जैसे शर राजा लेकिन गुरु कौन थे महर्षि वशिष्ठ वशिष्ठ रहते थे बाहर वहां रहते थे लेकिन पैलेस में र लेकिन उनका मार्गदर्शन उनका उनका जो है हर चीज में वो उनसे राय लेते थे उनका आशीर्वाद प्राप्त करते थे उनका जब अनुग्रह होता था आदेश होता त वो काम होता था और देखिए बालक राम लक्षमण को लेके चले गए अपने देख गुरु उक्षा द और एक बात कहते हैं वो गंगा जब पार करने के बात आता है तो वो राम श्री राम पूछते हैं प्रभु श्री राम पूछते हैं वाल्मीकि इनसे विश्वामित्र महर्षि से कैसे पार करें तो विश्वामित्र जी एक बहुत ही गहन और गंभीर वाक्य बताते बोलते हम उन मार्गों पर चलेंगे जहा ऋषिया चले थे पार करने के लिएने बोला उस मार्ग प चले ि ऋषियो दिखाया हुआ मार्ग पर चले क्या बात है उस कितनी ता है सोच एक तो ऊपर तोता है की से उधर से चलेंगे किया यही बात महाभारत में यने अपने उत्तर में कही थी [संगीत] महान बात है देखिए ये बहुत बड़ी बात है एक चीज जो मेरा सुझाव छोटा य भी है की करिकल में आप इतना सुंदर परिवर्तन ला रहे हैं कर आप काम कर करकम को उसम संत साहित्य भी अवश्य डाले आप लोग संतो के जीवन को पढ़ के जो प्र मिलती है व अत है अपने आप में सही है वो बहुत सही हैव महानतम य के संत है षि है उनके अगर विषय में बच्चे जानेंगे तो बहुत प्रेरित होंगे आगे चलके और पता नहीं कौन सी कहानी किस बच्चे को कब इलस करेगा सही बात है य बात बिल्कुल सही है मे जीवन में यही हुआ तो मुझे लगता है कि संत साहित्य अवश्य पढ़ना चाहिए अवश जानना चाहिए करिकुलम का पाठ होना चाहिए गीता करिकल का पाठ होना चाहिए भगवत गीता है बा कोली गीता पाठ कराता हू साथ बठ के और हमा में लोग है स गीता पाठ करते हैं पारायण करते ग्रंथों का और फिर शुरुआत होती है इसी से एक प्रश्न मेरे मन में आ रहा था कि आपके जीवन में आपने अपने दिनचर्या कैसी रहती है और ऐसी कौन-कौन सी चीजें है जो आपको लगता है जो अपने जीवन में आपने की जिससे आप एक आध्यात्मिक रूप से अपने जीवन में प्रेरित रहे तना बड़ा जो कार्य कर रहे हैं उसम आपको हमेशा आत्म बल मिला वो अपने जो युवा दर्शक है उनको हम आपके माध्यम से यह बताना चाहेंगे कि उनको क्या ऐसा जीवन में अवश्य करना चाहिए तो देखि ऐसे तो अभी इन प्रोग्रेस है ज तो खत्म तो ई नहीं साधक और तो कुछ नहीं व भी छोटा सा तो जो भी इसमें कर रहा था एक सबसे जो मुख्य विषय था वो था कि दिन में एटलीस्ट 15 मिनट रहे कुछ नहीं करना है बस थोड़ा हर दिन पूजा छोड़ना नहीं क्या बात है चाहे व 10 मिनट ही हो छोड़ना नहीं उसके लिए पिताजी बोलते हम न में भी हो खाना तो खा लेते जाए खा तो नहीं छोड़ते पू भी नहीं छोड़ना क्या बात है मिट सही ठीक है और वो मन क्या सिखाता है कि एक हमको एक प्रश्न उठाना सिखाता जो रमण मषि बोलते हैं मैं कौन हूं यह प्रश्न उठता है और जब व उठता है और मन में साधना करते थोड़ी देर बहुत ही हम अपने आप से कंफर्टेबल होते हैं बहुत सारे लोग जो य देखते हैं या कुछ और चीजों में एक्टिविटी ओवर एक्टिविटी भी हमको कम करना है ओवर एक्टिविटी हो जाता है व बहुत सारे लोग इसलिए इ करना चाहते हैं कि वो खुद से डरते हैं रइ कि जब आप हमारा भारतीय ज्ञान परंपरा ये सिखाता है कि आप अपने लिए रिस्पांसिबल है बहुत बड़ा पावर भी है और दायित्व भी है रिस्पांसिबिलिटी लेना पड़ता है खुद का और कोई बचाएगा नहीं हमको खुद बचाना पड़ेगा अपने आपको को वो धरे आत्मा आत्मानम ना आत्मानम अवसाद भगवत गीता आचार्य का वचन है ये खुद करना है तो हमको सोचना पड़ेगा खुद अपने लिए क्यों कर रहा हूं क्या कर रहा हूं और वो मोन में ही साथ उसका पॉसिबल है तो थोड़ी देर मन से सब कुछ बंद करके बात भी नहीं पढ़ना भी नहीं कुछ भी नहीं देखना सुना कु सो मत सुनि कुछ बैठ जा बस 10 मिनट 15 मिनट बैठ जाइए हो गया बहुत अी बाय करेंगे तो और कुछ नहीं करना और य और ये थोड़ा सा 10 मिनट का पूजा जिससे एटलीस्ट आपको भगवान है य उस दृष्टि में जाएंगे सबने दवव देखना है तो हो जाए आत्मशक्ति वही से मिलती है बाहर से नहीं मिलेगी अंदर से ही मिलेगी क्या बात है तो अग आने वाले हम अगर आपसे पूछे एक दशक में दो दशक में और जैसा की माननीय प्रधानमंत्री जी का संकल्प है ई दशक में 197 तक आपको क्या लगता है कि यह जो प्रयास है वाले सिस्टम का और आप लोग इसमें जो पूर्ण समर्पण के साथ लगे हैं ये किस तरीके से परिलक्षित होगा देखिए ये तो होना ही है क्योंकि मुझे लगता है कि यह काम किसी मनुष्य नहीं सो नहीं सोचा यह भगवान का संकल्प है यह होगा क्या बात है ये इसमें हम अपने आप को सौभाग्यशाली हमको मानना चाहिए कि हम इस ड्यूरेशन में हैं और इस काम में काम कर पा रहे हैं क्योंकि यह बहुत सारे जन्मों का सुकृत है जो हमको आशीर्वाद है जो मिल रहा है ऐसे काम करने का तो यह तो होगा ही होगा निमत मात्र भ स साच बकुल बस हम उस तरह से रहेंगे तो और भारत जो है अभी तो पहले विश्व गुरु था बीच में विश्व गुरु बना और अभी विश्व गुरु बनना है मतलब पहले विश्वस्य गुरु विश्व का गुरु था बीच में विश्वस्य गुरु विश्व जिसका गुरु बन गया था हम सब बाहर से सीखते थे अभी फिर से हमको विश्वस्य गुरु बनना है क्या बात है विश्व का गुरु फिर से बनना उसके लिए देखिए वो तो हम अपने आचरण से अपने दृष्टि से यही सबसे हम लोग विश्व गुरु बनेंगे हमने पहले देखि जब भारत का पीक यह था ग्लोरी पीरियड था उस टाइम पर हमने किसी को मार के काट के हमने किसी को अपना फिलोसोफी नहीं दिया हमने उनको व खुद प्रेरित होकर हमसे लिए क्योंकि य ऋषियों का मार्ग है यही भारत का दृष्टिकोण रहेगा और यही हमारा भारतीय ज्ञान परंपरा विभाग का जो ध वाक्य है भद्रा यामत तेमा जो उस तरह का लेटस स्ट्राइव फॉर द विजडम ट वर्क्स फर द वेलफेयर ऑफ ल यह काम करना पड़ेगा हमको और ीरे धीरे से हो जाएगा और उसमें ये होगा कि चिंतन दृष्टिकोण बदलेगा व जो दृष्टिकोण बदलेगा तो पूरा हार्मोनी सोसाइटल सरत जो है वो बढ़ेगा सोसाइटी में और वो विश्व का कल्याण के लिए होगा सिर्फ भारत का कल्याण ही नहीं होगा इससे पूरे दुनिया में कल्याण होगा और जो अशांति है असम है वो सब जाएंगी क्योंकि दृष्टि बदलेगी तो कार्य बदलेंगे कार्य बदलेंगे तो उसका फल भी बदलेगा और ये इसके लिए सब लोग जुड़े रहेंगे ये देखिए यह एक दिन में या एक साल में य होने वाला नहीं है इसको दशक लगेंगे क्योंकि इट लाइक जसे बोलते है ना ंग शिप टाइम लगेगा और इसको टंग शिप बहुत जल्दबाजी करेंगे तो डिस्टस भी है इस तरह से करते रहेंगे करते रहेंगे हो जाएगा कैन बेटर देन मी र की इट टे ल डिस्टेंस ल टाइम ट सकल बिल्कुल बिल्कुल सही कहा आपने एक बहुत विशाल जहाज है जिसको हमें धीरे-धीरे करके प्राकृतिक रूप से और भले उसम समय लगे और जो भी अवधि लगे उसके हिसाब से हम मोड़ना है प्राकृतिक रूप से इसको वापस लाना है और मुझे पूरी उमीद है आपके लिए प्रयास निश्चित रूप से जैसा आपने कहा हो नहीं है य होगा है ये होगा कि ये ऋषियों का वाक्य है का मार्ग है और भगवत संकल्प है और इसके लिए मैं एक उदाहरण दूंगा यह जगन्नाथ का रथ है जगन्नाथ का रथ मुश्किल से हिलता है एक बार चलना शुरू हुआ तो दुनिया में कोई शक्ति नहीं है जो उसको रोक सक क्या बात है अभी जगन्नाथ है बहुत अच्छी बात कही आपने जगन्नाथ रथ है ये बहुत ही अ और चला है और चल चुका है रोक नहीं सकता रोक सकता है और बस ये है कि जो भारत के करोड़ों करोड़ों लोग हैं उन सबको मिलके इस रत को घी सना है आगे बढ़ाना है इसमें अपना योगदान देना है नर नारायण है नारायण के डायरेक्शन में र काम कर रहे हैं बकुल चल रहा है बहुत ही अच्छा है अगर आपको ईश्वर एक ऐसी सुपर पावर दे एक पराशक्ति आपको मिले तो वो क्या चीज है भारत के लिए जिसको आप बहुत शीघ्रता से सबसे पहले करना चाहेंगे दृष्टि बदलना चाहूंगा बस दृष्टि बदलेगा तो सब बदलेगा भारत के लोगों की दृष्टि हमारे भारतीय दृष्टि सब केन में आना चाहिए वो होगा तो सब होगा क्या बात है वो न रामायण में जामवंत जो है वो बोलते हैं हनुमान जी के लिए वो इसका इंद्रजीत का युद्ध होता मेघनाथ का युद्ध होता है सब पड़े रहते हैं तो हनुमान जी और विभीषण ये दोनों वो मशाल लेकर चलते हैं देखते रहते हैं तो वहां पर सब गिरे हुए होते हैं सब चोट काकर गिरे हैं जावत के पास जाते हैं तो वो उठते हैं और वो बोलते विभीषण बोलते हैं मैं विभीषण आया हूं आप कैसे हैं तो जामवंत बोलते हैं अरे विभीषण आए हो हनुमान जी जिंदा है क्या तो वहां से हनुमान जी आते हैं और प्रणाम करके बोलते हैं मैं जिंदा हूं दादा तो विभीषण पूछते हैं आपने यह नहीं पूछा कि राम जिंदा है या लक्ष्मण जिंदा है या सुग्रीव है या नल है किसी के बारे में नहीं पूछा आपने सिर्फ हनुमान जी के बारे में पूछा क्यों तो बोलते हैं अगर वो है तो सब है वो नहीं है तो कुछ नहीं है से क्या बात है भगवत संकल्प हैका आशीर्वाद है चलेगा क्या दृष्टि है तो सब कुछ है और व दृष्टि लाना जरूरी है और हनुमान जी तो विवेक और बुद्धि के प्रतीक है वो बुद्धि होनी चाहिए व विवेक होना चाहिए क्या बात है और मेरा तो यशा मा हमरे पास दृष्टि बस आवरण एक है आगे व आवर अगर हट जाए चाहे वोल टाइम्स का दिया हु आवरण है उसको बस हटा दिया जाए तो अपने आप में अपने आप ही दृष्टि वो स्पष्ट हो जाएगी दृष्टि बात है इस आ से और अगर भारतीय अज्ञान के इस आवरण को इनोर के आवरण को हटा ले अपने आंखों के सामने से और वास्तविक रूप में वो पहचान ले कि वो कितनी एक महान संस्कृति का और कितनी महान सभ्यता के एक संवाहक है तो निश्चित रूप से भारत को विश्व में फिर से विश्व गुरु होने से स्थापित होने से कोई नहीं रोक सकता ईश्वर से प्रार्थना है मति जी कि आप और बुद्धि दे विवेक दे बल दे पराक्रम दे और ऐसे ही आप इस भगवत संकल्प में आगे ब रहे और लोगों को मार्गदर्शन मिले भारत की महान ज्ञान परंपराओं को पुन स्थापित करें ऋषियों की जो य अना काल से चलती आ रही ज्ञान की परंपरा है ये इसकी ल फिर से पूरे भारतीयों के हृदय में एक बार फिर जल जाए और आप हर तरीके से निश्चित रूप से सफल हो मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आपने अपने इतने सुंदर विचार हमारे साथ साझा किए धन्यवाद शलोक बोलना चाह प्रार्थना है व भी उसम बोलते हैं न जाना पद्यम न जाना गद्यम न जाना शब्द जाम मु चित्रका य मतलब था कि मैं पद नहीं जानता गद्य नहीं जानता शब्द नहीं जानता अर्थ भी नहीं जानता मे मुख से जो आ रहे हैं शब्द उसके प्रेरक है जो का हम सब में जो भगवान जो है उनके उससे ही चचन आ रहे हैं क्या बात है ब धन्यवाद तो आज ये हमारी परिचर्चा थी बहुत ही हमारे विशिष्ट अतिथि जो अद्भुत कार्य कर रहे हैं भारत की ज्ञान परपरा को फिर से पुन स्थापित करने की दिशा में आईएस के माध्यम से और जो वापस आए भारत मां की सेवा के लिए श्री गं मूर्ति जी के साथ और यह हमारी सीरीज है चेंज मेकर्स और निश्चित रूप से मूर्ति जी एक अपने आप में एक बहुत ही अद्भुत चेंज मेकर है मुझे पूर्ण विश्वास है कि जो लोग इसको देखेंगे वो आपकी जीवन यात्रा से और आपके कार्य से और आपकी योगदान से निश्चित रूप से प्रभावित होंगे प्रेरित होंगे और इन्हीं के मार्ग पर आगे चलेंगे धन्यवाद