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राजस्थान की हस्तकला और चित्रकला

Nov 7, 2024

राजस्थान की हस्तकला और चित्रकला

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. हस्तकला के तीर्थ

    • जयपुर को हस्तकला का तीर्थ कहा जाता है।
    • बोरानाडा जोधपुर का महत्व।
  2. गोटा किनारी

    • महिलाओं की चुनरी और ओढ़नी पर गोटा किनारी होती है।
    • प्रमुख प्रकार: लंपा, लंपी, किरण, बांखड़ी।
    • खंडेला सीकर की गोटा किनारी प्रसिद्ध है।
  3. पैचवर्क

    • विभिन्न रंगों के कपड़ों को सिलकर बनाया जाता है।
    • शेखावाटी का पैचवर्क प्रसिद्ध है।
  4. गलिचे

    • गलिचा: दरी का छोटा रूप है।
    • जयपुर, टोंक, बीकानेर प्रमुख केंद्र।
    • बीकानेर और जयपुर की जेलों में कैदियों द्वारा गलिचे बनाए जाते हैं।
  5. दरियां

    • टांकला (नागौर), सालावास (जोधपुर), लवान (दौसा) की दरियां प्रसिद्ध हैं।
  6. नमदे

    • दरी और गलिचे के बीच का मिश्रण।
    • टोंक के नमदे प्रसिद्ध हैं।
  7. पड़ चित्रण

    • शाहपुरा (भीलवाड़ा) में जोशी परिवार के द्वारा किया जाता है।
    • देवी-देवताओं की चित्रण कला।
  8. पिछवाईयां

    • नाथद्वारा (राजसमंद) की प्रसिद्ध।
    • भगवान कृष्ण की लीलाओं पर आधारित चित्रण।
  9. मठन कला

    • बीकानेर की विशेष।
    • दीवारों पर देवी-देवताओं की चित्रकारी।
  10. थेवा कला

    • प्रतापगढ़ की प्रसिद्ध।
    • सोनी परिवार का योगदान।
  11. ब्लू पॉटरी

    • जयपुर में ज्यादा प्रसार।
    • राम सिंह द्वितीय के समय का स्वर्ण काल।
  12. मीनाकारी

    • जयपुर की प्रमुख कला।
    • सरदार कुदरत सिंह का योगदान।
  13. टेरीकोटा

    • मोलेला गाँव, नाथद्वारा।
    • मिट्टी के मटके व सामान बनाए जाते हैं।
  14. मिट्टी के बर्तन और खिलौने

    • बस्सी (चित्तौड़गढ़), बू (नागौर) में प्रसार।
  15. पगड़ी और वस्त्र

    • विभिन्न कार्यक्रमों के लिए विशेष पगड़ियाँ।
    • पुरुषों के वस्त्र: अंगरखी, जामा, चोगा।
    • महिलाओं के वस्त्र: साड़ी, घाघरा, कुर्ती, कांचली।
  16. आदिवासी वस्त्र

    • भील जनजाति: धेपाड़ा, खोईतू, पोतियो।
    • शहरिया जनजाति: पंच्छा, खप्टा, अंगरखी।
  17. आपुशन

    • महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग आभूषण।
    • सिर, कान, गला, कलाई, कमर, पैर, और ऊंट के आभूषण की विशेष चर्चा।

इस प्रकार की विस्तृत अध्ययन सामग्री और नोट्स परीक्षा की तैयारी के लिए अत्यंत उपयोगी होंगे।