जन्नती होगाई वह जो गुनाहगार है जाहिर है वो गुनाहों की माफी मांग के सुभान अल्लाह अल्लाह की रहमत से जन्नत में गया होगा हर चीज से मायूस हो जाओ लेकिन अल्लाह की रहमत से मायूस नहीं होना वैसे कभी-कभी यह कि इंसान चाह नहीं रहा होता लेकिन गुनाह हो जाता है उससे अल्लाह ताला सारे के सारे गुनाह माफ कर देगा क्यों माफ कर देगा बेशक वह है ही बहुत बख्शने वाला और हमेशा रहम करने वाला छोटे-छोटे गुनाह जो है हम तुम्हारे वैसे ही माफ कर देंगे तुम बड़े गुनाहों से तो बचो शेख मेरा तो ख्याल मायूस होने की जरूरत नहीं है नौजवानों को बिल्कुल निकल सकते हैं वह इंशाल्लाह इन गुनाहों से अजम भी करें तीन दफा सोच समझ के पढ़ नबी पाक सलाम ने फरमाया अल्ला ताला उसके सारे गुनाह माफ कर देता है चाहे वह मैदान जिहाद से फरार हुआ हो तो जितने साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स है वसे हल हो जाते तो अल्लाह की तरफ से देर नहीं है आपकी तरफ से देर है अल्लाह की तरफ से तो हर वक्त व खुला है मामला [संगीत] बिस्मिल्लाह रहमान रहीम अल्हम्दुलिल्लाह रब्बिल आलमीन अस्सलातो वस्सलाम अला रसूल करीम अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाही व बरकातहू वेलकम टू अ वेरी स्पेशल एपिसोड ऑफ द एमए पॉडकास्ट और अल्हम्दुलिल्लाह मुझे खुद शिद्दत से इंतजार रहता है कि कब शेख के साथ मैं एक नई एपिसोड करूं और काफी अरसे बाद माशाल्लाह शेख के साथ आज एक एपिसोड होने जा रही है और माशाल्लाह जो टॉपिक है वह भी बहुत दिल के मेरे करीब बहुत जबरदस्त टॉपिक जिसकी हम सबको जरूरत है तजक की जरूरत है अल्लाह सुभाना ताला से एक उम्मीद की जरूरत है सबको और जाहिर है कि बहुत से सवालात भी ऑडियंस के आते हैं इस टॉपिक से रिलेटेड कि सच्ची तौबा क्या है कैसे की जाए उसकी कंडीशंस क्या है तवक क्या है अल्लाह रब्बुल आलमीन के बारे में किस तरह से हम जो है वह अच्छा गुमान रखें वगैरह वगैरह यह सवालात होते हैं तो अल्हम्दुलिल्लाह हु बेटर देन शेख डॉक्टर माद लखवी अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्ला जी वालेकुम अलाम रहमतुल्ला श आप खैरियत से माशाला अल्लाह का शुक काफी टाइम बाद माशाल्लाह लेकिन य कि मुलाकात तो हमारी रहती है बट अल्हम्दुलिल्लाह मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आप इस वक्त मेरे साथ मौजूद हैं और टॉपिक शेख जैसे कि आपने सुना बड़ा जबरदस्त और इंपोर्टेंट टॉपिक तो स्ट्रेट में इंशाल्लाह सवाल की तरफ ही आता हूं शेख मैं गौर कर रहा था हजरत मूसा अल सलाम के वाक पे सूर कस में अल्लाह रब्बुल आलमीन ने उनकी लाइफ का एक बड़ा स्पेशल फेस बताया नबूवत से पहले के उनसे गुस्से में और गलती में एक बंदा जो है वह कत्ल हो गया तो उसके बाद फौरन उन्होंने अपने अंदर जो है वह एक डर महसूस किया और वह दुआ भी बल्कि दर्ज है कि उन्होंने कहा रब्बी इनी जलम तु नफसी फ फिरली और अल्लाह रब्बुल आलमीन ने बकायदा बताया कि हमने उसे माफ भी फरमाया तो शेख यह मैं गौर कर रहा था कि इतना उम्मीद वाला वाकया है कभी-कभी इंसान से कोई इतनी बड़ी गलती हो जाती है और यह अगर हम इस पर सोचे तो यह दुनियावी एंगल से तो बहुत बड़ी य गलती है यानी आज कोई इस तरह करें तो आप सोच कि वो कितनी टेंशन में आ जाएगा वह बंदा तो कभी-कभी इंसान से कुछ ऐसी कोताही कोई गलती हो जाती है कि वह भी सोच में पड़ जाता है मैंने किया क्या यह मुझसे क्या हुआ और फिर वह ओवर थिंकिंग करता है फिर बहुत ज्यादा कोसता है अपने आप को रिग्रेट में जाता है बहुत ज्यादा इंसान तो श इस वाकए को सामने रखते हुए ह्यूमन नफ्स को सामने रखते हुए कि वाकई इंसान से गुनाह हो जाते हैं गलती में कोताही में कुछ ऐसा हो जाता है जो बहुत कोई बड़ी चीज होती है फिर वो अल्लाह से माफी मांगता है अल्लाह माफ भी करता है तो यहीं से मैं स्टार्ट करने आऊंगा कि मूसा अले सलाम के वाकए से क्या-क्या हमें सबक जो है ना वो मिलते हैं बिस्मिल्लाह रहमान रहीम देखें गुनाह करना और गुनाह हो जाना इसमें फर्क है सही तो मूसा अल सलाम ने गुनाह किया नहीं था बिल्कुल सही बिल्कुल सही उनसे हो गया था हो गया इसलिए कि उनकी नियत तो हरगिज उनको उसको मारने की नहीं थी बिल्कुल सही और दूसरी बात यह है कि जो आला कत्ल था वो भी मारने वाला तो था ही नहीं सही सही तो आपने तो एक मुक्का मारा था और मुक्के से वो मर गया बिल्कुल ठीक तो अब मुक्का किसी को जब कोई भी शख्स मारता है तो कभी भीय आला कत्ल नहीं होता बिल्कुल ठीक बिल्कुल ठीक और इसलिए यह कहना कि हजरत मूसा अल सलाम ने उसको मारा था तो मारा तो था ही नहीं वो मर गया था नियत नहीं थी इसलिए जो है इसको अमल शैतान भी कहा कि उन्होंने कहा कि शैतान की तरफ से था ये मेरी तरफ से नहीं था ये शैतान की तरफ से लेकिन बहरहाल उन्होंने रन कहा अल्लाह ताला से माफी मांगी और अल्लाह ताला ने उसको माफ कर दिया और फिर काम भी यह मदीय में कुछ अरसा गुजारने के बाद यह वापस आए हैं और वापस आक फिरौन के दरबार में जब इन्होंने अपनी दावत का आगाज किया है तो फिरन ने उस वक्त जितनी बातों के बारे में हजरत मूसा अल सलाम को एहसान के तौर पर जतला या है उसमें एक बात यह भी कही कि आपने तो कत्ल कर दिया था और हमने जो है वो तूने आपने कत्ल किया और उस मौके पर भी हजरत मूसा अल सलाम ने कहा कि मैंने कत्ल नहीं किया तो शैतान की एक बात थी लिहाजा हजरत मूसा अल सलाम के इस वाक को इस बात की बुनियाद बना लेना कि कोई शख्स इस तरह की गलती करके बाद में माफी मांग ले तो ये गलती करना नहीं था बिल्कुल सही यह हुआ है और वह उसके अंदर ना इरादा कत्ल था ना आला कत्ल था बकुल स और ना ही इस तरह की सिचुएशन में कभी कोई कत्ल होता है इसलिए हजरत मूसा अल सलाम का कोई अमल वो था ही नहीं और उसको अल्लाह ताला ने मुफ भी कर दिया उन्होने माफी मांग ली और अल्ला ला कर दिया बिल्कुल सही अल्हम्दुलिल्लाह तो ये जो दुआ है शेख रबबी इनी जलम नफ फिरली यह दुआ वैसे भी मतलब बड़ी खूबसूरत दुआ है और इसमें जो आजी नजर आती है हालांकि यह बात क्लियर है कि मूसा अली सलाम की नियत नहीं थी और जाहिर है कि जैसे आपने कहा कि वो आला कतल भी नहीं था जाहिर है मुक्का जो था इसके बावजूद आप देखें वह कितनी आजी से अल्लाह रब्बुल आलमीन से तौबा इस्तग फार कर रहे हैं बल्कि डर से वह भाग भी जाते हैं उस जगह से एक फूजिटिव बन जाते हैं फिर वो यह दुआ भी आगे जाकर उनकी मिलती है रब्बी इनी जलम रबबी इनी लता इया फकीर तो यह शेख एक आम बंदे को देखें चले हमने यह तो सीख लिया इस वाकए से कि उनकी नियत नहीं थी और जाहिर है यही हमारा अकीदा है आपने बिल्कुल दुरुस्त की भी की अकी दे की लेकिन एक आम बंदा जो है वह जाहिर है उससे गुनाह हो भी जाता है नियत भी हो जाता है और वैसे कभी-कभी यह कि इंसान चाह नहीं रहा होता लेकिन गुनाह हो जाता है उससे तो उसको क्या अल्लाह रब्बुल आलमीन के हां किस तरह से तौबा इस्तग फार जो है व करनी चाहिए देखि आपने बड़ा एक ना धीमा सा फिकरा बोला भी हो जाता है जी हालाकि नियत नहीं होता गुनाह जो है देखि कुलो बनी आदम अगरचे नबी पाक सलाम ने फरमाया हर आदम का बेटा खता का है हर इंसान से खता हो जाती हैता बेहतरीन खता का व है जो वापस आ जाते हैं अब मसला यह है कि हो जाता है और कर लिया जाता है इसमें फर्क है नियत जो शख्स करेगा वो तो करेगा सही पहले नियत करेगा सही और फिर वो करेगा बिल्कुल ठीक लिहाजा गुनाह करने वाले और गुनाह जिनसे हो जाता है इन दोनों में फर्क है ठीक देखि जो शख्स गुनाह करता है अल्लाह ताला ने सूर निसा के अंदर भी इसकी वजाहत फरमाई है फर्क बताया कि कुछ लोग ऐसे हैं कि जिनसे गुनाह होता हैय कर वो फौरन तौबा करते हैं अल्ला अकबर अच्छा एक यह है कि वो गुनाह किए जाते हैं किए जाते हैं किए जाते हैं कि जब मौत करीब फिर वो कहते हैं कि अब मैं तौबा करता हूं उनकी तौबा अल्लाह कबूल नहीं करता अल्ला अब इन दोनों में फर्क क्या है फर्क वो नियत से करने का और हो जाने का है ठीक अच्छा जो शख्स नियत से गुनाह करता है मैं इनको कहा करता हूं कि ये स्याने गुनाहगार है अल्ला यानी सोच समझ कर गुनाह करते हैं और सोच समझ कर गुनाह करता है इंसान उस वक्त करता है जब इंसान अपने आप को मुश के साथ कंपेयर करता है और इंसान कहता है कि मुश में गुनाह हो रहे हैं तो ये मैं एक छोटा सा गुनाह कर लूंगा तो क्या फर्क पड़ता है जब आदमी यह सोच के गुनाह करता है हालांकि एक तो इंसान की इस्तता का किसी दूसरे की इंसान की इस्तता के साथ कंपेरिजन है ही नहीं बिल्कुल ठीक ला यकला नला जो है हर शख्स का इम्तिहान उसकी इस्ता के मुताबिक लिहाजा हो सकता है कि कोई दूसरा कोई बड़ा गुनाह करके भी बख्शा जाए और आपको छोटा सा गुनाह पकड़वा दे ये हो सकता है के साथ कंपैरिजन नहीं कर सकते आपकी ला इस्तता आपकी सलाहियत वो अलग है दूसरे की इस्तता और सलाहियत अलग है उसका इम्तहान उसकी इस्तता के मुताबिक आपका इम्तहान आपकी इस्ता लिहाजा इसकी कंपेरिजन आप कर नहीं सकते लेकिन जो गुनाह करते हैं वो आमतौर पे इसको बुनियाद बनाते हैं लो इतने बड़े-बड़े गुनाह कर रहे हैं हम इतना छोटा सा कर लेंगे यह जब सोच समझ के करते हैं तो इस कांसेप्ट से तौबा की आमतौर पर तौफीक नहीं मिलती अल्लाह उसकी वजह यह है कि आदमी सोच समझ के किया होता है कि कोई हर्ज नहीं है कि मैं कर लूंगा तो क्या हरज है उसको फिर तौबा की तरफ बिल उमू उसकी उसका ध्यान तवज्जो ही नहीं जाती क्योंकि उसने सोच के किया होता है क्या हर्ज है बिल्कुल ठीक दूसरे गुनाहगार वो हैं जिनसे हो जाता है वो उसने यह तय किया होता है कि या अल्लाह मैंने कोई गुनाह नहीं करना हम अल्लाह के साथ नियत सही उसने यह बात तय की होती है कि मैंने कोई गुनाह नहीं करना बिल्कुल ठीक गुनाह उससे भी हो जाता है सही बात क्योंकि कुल्लू बनी आद मखता यानी ऐसा तो हो नहीं सकता उससे गुनाह उससे गुनाह क्यों होता है दो वजू हात की बुनियाद पर होता है या जज्बात की मगलू बियत की वजह से या हालात की मगलू बियत की वजह से सही यानी वो उसके हालात ऐसे होते हैं कि जो उसको गुनाह की तरफ ले जाते हैं या फिर उसके जज्बात बाज औकात इंसान अपने जज्बात से मगलू हो जाता है और इंसान चल पड़ता है गुनाह की तरफ शवा से जबा अच्छा अब जब वो मगलू हुआ और मगलू हो से हालात की वजह से कोई कैफियत ऐसी बन गई कि वो गुनाह में वो इवॉल्व हो गया सही या फिर जज्बात ऐसे उसके ऊपर हावी हुए कि वो गुनाह में इवॉल्व हो गया ठीक उसका नतीजा यह होता है कि जूं ही हालात तब्दील हुए हम या जूं ही जज्बात ठंडे पड़े सही सही क्योंकि उसने तय यह किया होता है कि मैंने जिंदगी में कोई गुनाह नहीं करना अल्लाह तो अब जो ही हालात बदलेंगे जिस हालात की मगलू बियत की वजह से उसे गुनाह हुआ है तो फौरन उसको यह ख्याल आएगा कि या अल्लाह मैंने तो यह गुनाह नहीं करना था यह मुझसे क्या हो गया अल्लाह और इसी तरह जब उसके जज्बात ठंडे पड़ेंगे तो उसी वक्त उसको ख्याल आए होश आवास में आएगा तो कहेगा या अल्लाह मैंने तो ये नहीं करना था ये मैं मुझसे क्या हो गया ये है वो सुय करब कि फौरन वो तौबा कर लेते फिर उसको फौरन ख्याल आता कि मैं वो जो नदा मत और शर्मिंदगी उसको होती है वो जो पशेमानी उसको होती है ये नदा मत असल में अल्लाह को पसंद है क्या बात कि इंसान को नदा मत और शर्मिंदगी हो कि या अल्लाह मैं गुनाह कर बैठा हूं मैंने तो यह नहीं करना था और इसी तरह यह जो रब्ब इनी जलम तो नफसी वाली बात है या हजरत आदम अल सलाम की दुआ वाली बात है या वैसे भी नबी पाक सल्लल्लाह वसल्लम ने फरमाया कि एक आदमी गुनाह करता है और गुनाह करके फिर अल्लाह से बात करता है रनी अनब तो अल्लाह मैंने गुनाह किया है यानी इकरार य इकरार जो है यह बहुत यानी इकरार है इसके अंदर नदा मत है अल्लाह मैं गुनाह कर बैठा हूं और तू माफ करने वाला है तो मुझे माफ कर दे ये नदा मत और शर्मिंदगी जो तौबा की शराय में से भी है और यह वह नुक्ता है जो असल में अल्लाह ताला को पसंद है तो जिसके अंदर यह नदा मत और शर्मिंदगी आती है वो तौबा भी करता है अल्लाह ताला को पसंद भी आता है और अल्लाह को कितनी तौबा पसंद आती है उसके लिए तो वो हदीस है बड़ी मारूफ कि नबी अकरम सल्ला वसल्लम ने फरमाया कि अगर कोई शख्स जो है वो एक मिसाल दी आपने कि कोई शख्स जंगल में सफर कर रहा था सहरा के अंदर और सारा उसका सामान ऊंटनी पर लदा हुआ और उसने एक किसी दरख्त के नीचे सताने के लिए वोह ठहरा तो कुछ देर बाद उसकी आंख खुली तो उसका ऊंट गायब था सही सही जिसके ऊपर सारी उसकी गोया मता माल मता भी उसी प था सफर भी उसी प करना था अब लको दक सहरा है मीलों लंबा चौड़ा तो वो इधर-उधर देखता है उसको कुछ नजर नहीं आता तो उसका ख्याल यह है कि अब मैं अगर चलूंगा तो भी मौत है बैठा रहूंगा तो भी मौत है इसके अलावा कुछ नहीं तो जिंदगी से मायूस होक वो बैठ रहता है तो थोड़ी देर बाद फिर उस की आंख लगती है और उसको फिर उसकी आंख खुलती है तो देखता है कि ट सामने खड़ा है इतना खुश होता है वो कहता है अला अल्लाह तू मेरा बंदा और मैं तेरा रब और नबी पाक सलाम फरमाया के अन उसने यह जो उलट बात कही कहना था कि अल्लाह तू मेरा रब और मैं तेरा बंदा ये जो बात उलट कही नबी पाक स है उसने खुशी की शिद्दत की वजह से बात उलट की यानी उसको समझ नहीं आई इतना खुश था उसको समझ नहीं आई और वो ख खुशी की शिद्दत की वजह से उलट बात कर गया नबी पाक सलाम ने फरमाया उस शख्स को जितनी खुशी हुई है ना अल्लाह को अपने बंदे की तौबा से उससे ज्यादा खुशी होती है क्या बात है जी क्या बात है अब इसके बाद क्या बात बाकी रह जाती है सुभान अल्लाह बहुत बहुत पूर उम्मीद यह एक तो हदीस दूसरा माशाल्लाह समंदर को कूज में बंद करने वाली बात है कि जो शख्स आदतन और इंटेंशनली जाहिर है एक वह उस तरह से गुनाह करता है जैसे आपने कहा ना कि प्लान हो या आपने एक लज इस्तेमाल किया था कि अकल मंदी से कुछ इस तरह आपने कहा था मैंने कहा कि ये स्याने गुनाहगार सने गुग अल्ला अक अल्ला अक इनको अकल मत गुनाहगार कह ले च अल्ला अक तो वो आपने बड़ी खूबसूरती से बयान किया कि उसको तौफीक नहीं होती तौर पे तौफीक नहीं होती अल्लाह ताला तौफीक दे भी देता है बा लेकिन बिलम चकि उसने सोच समझ कर गुना किया होता इसको नदा मत नहीं एहसास ही नहीं बिल्कुल सही तो वो तौफीक भी नहीं होगी और दूसरा शख्स जो उसको तो नदा मत लाजिम होती है अल्ला अकबर जो ही वो जज्बात या हालात की मगलू बियत से बाहर निकलता है जैसे वो नॉर्मल स्टेट में आता है लाजिम उसको क्योंकि उसने अल्लाह से तय किया हु कि या अल्लाह मैंने गुनाह कोई नहीं करना होता उसके उससे भी गुनाह है हो सकता है अगले लमहे फिर गुनाह हो जाए सही सही हो सकता है अगले लमहे फिर गुना स लेकिन एक द उसको फौ वमत और शर्मिंदगी होती है बहुत बहुत पुर उम्मीद शेख यही जो सर आल इमरान में आयत नंबर 100 मेरे खल 33 ऑनवर्ड है अल्लाह ताला जन्नति हों की खूबियां बताते हुए कुछ खूबियां बयान करते हैं ना कि वो काजमीन गुस्से को पी जाते हैं लोगों को माफ करते हैं फिर यह कि वो जब उनसे कोई गुनाह हो जाए फश काम हो जाए तो व अल्लाह का जिक्र फौरन अल्लाह को याद करते हैं और कौन है जो अल्लाह के अलावा गुनाह जो है वो माफ कर सकता है तो यानी जन्नती होगा ई वो जो गुनाहगार है जाहिर है वो गुनाहों की माफी मांग के सुभान अल्लाह अल्लाह की रहमत से जन्नत में गया होगा क्योंकि शेख यह मैं इसलिए भी आपसे पूछ रहा हूं कि जिस दौर में हम रह रहे हैं नौजवान आपको पता है तरह-तरह के गुनाहों में मुब्तला है जैसे आपने कहा हम सब गुनाहगार हैं तो यह सवाल बार-बार आता है कि मैंने यह गुनाह किया तौबा की फिर रिपीट किया फिर तौबा की फिर रिपीट किया फिर तौबा की फिर रिपीट किया आखिर कब तक मतलब मैं क्या करूं उससे बार-बार ये बहुत कॉमन सवाल है मेरे इनबॉक्स में नौजवानों का तो यह कहीं ना कहीं व यह समझते हैं कि इसका मतलब है कि हमारी तौबा नहीं कबूल हो रही या यह क्या है कुछ ऐसी एडिक्शन हो चुकी है जैसे वोह एक हदीस मैंने शेख सुनी थी करेक्ट मी फाइम रंग कि अल्लाह जो है नाना उसको बार-बार तौबा करने वाले जो है तवा बीन बहुत पसंद है और और इसी हदीस में शायद यह भी था कि एक इंसान एक गुनाह से बार-बार जो है वो आजमाया जाता है तो ये मैं उन नौजवानों के लिए सिर्फ आपसे सवाल पूछ रहा हूं कि जो शायद मायूसी का शिकार हो चुके हैं जैसे कोई कहता है मैं खुल के आपसे पूछ लेता हूं कोई कहता है जी कि मुझे पोन की एडिक्शन है कहता है जी कि मैं बार-बार ये चीज देख लेता हूं और मुझ परे जज्बात हावी हो जाते हैं तो वो यह समझते हैं कि शायद हमारी तौबा नहीं कबूल हो रही इस वजह से हम बार-बार इसमें गिर रहे हैं तो वो क्या ऐसा करें कि देखि इसमें ना वैसे तो बहुत सारे पहलू हैं लेकिन मैं एक डायरेक्ट मैं इसकी बात कर लूं जी देखिए जब कोई शख्स तौबा करता है तो उसको तौबात नसू करनी चाहिए सही ठीक है तौबात नसूहा कुरान कहता है तौबात नसूहा सही तौबा असल में अमल है हम इस्तग फार कौल है हम तौबा अमल है जबरदस्त ठीक है लिहाजा तौबा का माना है वापस आना बिल्कुल और इस्तग फार का माना है अल्लाह से मगफिरत मांगना तो दोनों काम उसको करने पड़ेंगे अल्लाह अकबर एक तो वो यह काम करेगा जब उसको एहसास गुनाह है तो एक तो कहेगा या अल्लाह मुझे माफ कर बिल्कुल ठीक र फरली किसी भी कोई भी अल्फाज इस्तेमाल करे लेकिन वो एक तो अल्लाह ताला से माफी मांगे सही दूसरा काम वो ये करेगा वो वापस आ जाएगा तसला अल्लाह की तरफ वापस आ जाओ तौत नसूहा सच्ची तौबा कर ये तौत नसूहा क्या होती है इसको बाज लोगों ने तो कहा नसू जो है यह नसीहत खैर खाही से है हम यानी ऐसी तौबा होनी चाहिए कि इंसान अपने लिए खैर खवाई का इजहार करे कि उसके बाद वो गुनाह ना करे अल्लाह अ दूसरा तौबात नसूहा इस तबार से है कि एक अरबी में इस्लाह इस्तेमाल होती है असल नासे सही यानी शफाफ शहद हम तो तौबा इतनी शफाफ होनी चाहिए उसके अंदर कोई कंटेम नहीं होनी चाहिए जैसे शफाफ शहद होता है उस तरह की होनी चाहिए और तीसरा इसका मफू तौबा नसू के हवाले से कि नसा सौब एक लफ्ज इस्तेमाल होता है कि कपड़े को रफू करना कि जिसके अंदर कोई कट लग गया है सही सही तो उसको रफू करके वो कट जो है वो पूरा पुर कर देना क्या बात है तो गोया अब आपने जो तौबा करनी है वो इन तीनों में से किसी पहलू को कवर करती होगी तो वो तौबात नसूहा है अच्छा इसको एक इमाम बग अल रहमा ने एक हजरत माज बिन जबल रज अल्ला ताला के हवाले से एक रिवायत नकल की है मुझे नहीं पता उसकी जो ओरिजिनल जो उसकी सनद है उसकी इस्ना दी हैसियत क्या है लेकिन इमाम बग अल रामा ने नकल की है कि हजरत माज कहते हैं कि मैंने नबी पाक स से पूछा कि तौत नसू क्या होती है तो उन्होंने कहा कि तौबात नसू यह है कि अल्लाह से इस तरह से तौबा करना और इस तरह से नदा मत का इजहार करना कि जिस गुनाह के बारे में आप तौबा कर रहे हैं गुनाह के बारे में आपका अजम यह हो कि मैं कभी इस गुनाह की तरफ दोबारा नहीं लौटूंगा अल्ला जिस तरह जानवर के थन में से दूध निकल आता है और वो वापस कभी नहीं लौटता हा इस तरह से ये तय कर लेना कि मैं ये वापस कभी नहीं लौटूंगा ये मिसाल दी कि इस तरह से इंसान तय करे कि मैंने वापस नहीं लौटना तो वो तौबात नसू होती है सही अब अगर किसी ने तौबा की है जी और तौबा के बाद उसका अजम यही है और तौबा की चार शराय में एक शर्त वय डिटरमिनेशन और इस इरादे का इजहार करे अल्लाह य दोबारा कभी भी इस गुनाह की तरफ वापस नहीं आए अगर यह गुनाह की य जो तौबा की शराय में सारी शराय मौजूद है देख चार शराय सबसे पहली शर्त है बल्कि मैं यह कहूंगा कि यह दूसरी शर्त है इससे भी पहली शर्त यह है [संगीत] पहले य इंसान गुनाह से बाहर आए बिल्कुल ठीक गुनाह में मुलस होते हुए तौबा कबूल नहीं होती बिल्कुल यानी आप अगर किसी भी गुनाह में मुलस है और तबा तबा किए जा रहे तो उसका तो कोई फायदा नहीं गुना से पहली शर्त है उसम से बाहर निकल आए फिर इसको भी दूसरी शर्त आप करार दे उसके ऊपर उसको नदा मत हो माननी मैंने तो नहीं करना था हो गया तीसरी बात य यह अजम करे कि मैं दोबारा कभी भी इसमें वापस नहीं आऊंगा इस गुनाह के अंदर बकुल ठीक और उसमें उस मिसाल को ले लीजिए जो मुज बिन जबल रजला हदीस में है कि जिस तरह थन में दूध वापस नहीं जा सकता इस तरह से आप गुनाह की तरफ वापस नहीं जा ये अजम हो ये तस चौथी शर्त उस वक्त लागू होती है जब आपने किसी उस अमल के अंदर उस गुनाह के अंदर किसी आदमी का किसी फर्द का हक भी शामिल हो आपने किसी का हक मारा है तो जब तक आप उसका हक उसको वापस नहीं करेंगे आपकी तौबा कबूल नहीं होगी लिहाजा ये नहीं है कि आप सिर्फ अल्लाह से तौबा कर ले आपने किसी का माल चोरी किया है किसी को नुकसान पहुंचाया है अब अल्लाह से तौबा कर ले तो आपका गुनाह माफ हो जाएगा ऐसा नहीं होगा सही सही हुकूक उल इबाद जो हैं वो आपको पूरे करने पड़ेंगे बकुल ठीक फिर आप अल्लाह से माफी मांग ले बिल्कुल ठीक हां अगर किसी का अगर हक आप पूरा नहीं कर सकते आप उससे माफ करवा ले सही आप उससे माफ कर करवा ले कि मुझे माफ कर दे मैं नहीं पूरा कर सकता सही फिर आप अल्लाह से माफी मांगे अच्छा जब किसी ने तबतक की है और सच्ची तौबा की है तो वो तौबा है ही ऐसी कि उसके अंदर ये डिटरमिनेशन शामिल है कि मैं वापस नहीं जाऊंगा इस गुनाह की तरफ ऐसे ही ऐसे ही अगर ऐसी तौबा की है सही तो वो कबूल है इंशा अल्लाह सही और अगर वो तौबा करने के बाद हम उससे गुनाह चाहे अगले 5 मिनट बाद सरज द हो जाए हम हम हम ये अब उसका मामला नहीं है सही उसकी तौबा अगर इन सारी शराय के मुताबिक थी ठीक ठीक और उसमें यह अजम शामिल था कि मैंने सारी जिंदगी गुनाह नहीं करना हम हम अगर ये अजम शामिल था तो उसकी तौबा कबूल है बिल्कुल ठीक बिल्कुल ठीक अगर फिर उससे गुनाह हो गया तो जाहिर है वंस अगेन वो किसी हालात की मगलू बियत होगी या जज्बात की मगलू बियत होगी तो जब फिर गुनाह हुआ तो फिर उसके ऊपर वो उसी तौरा की तौबा फिर लागू होगी फिर होगी तो फिर वो तौबा कबूल हो जाएगी ये अमल अगर कोई शख्स दिन में 10 दफा भी करता है मुस्लिम शरीफ की हदीस है कि आदमी गुनाह करता है गुनाह करके फिर अल्लाह ताला से कहता है या अल्लाह मुझसे गुनाह हो गया है त मुझे माफ कर तो अल्ला ताला फरिश्तो से कहता है कि यह जो मेरा बंदा है इसने गुनाह किया है क्या इसको यकीन है कि मेरा एक रब है अल्लाह और इसको यकीन है कि मेरा रब माफ कर देगा और फरिश्ते कहते हैं या अल्ला यकीन उसको यकीन है इसीलिए तो आपसे माफी मांग रहा है अल्लाह ताला फरमाते है मैंने इसको माफ कर दिया क्या बात है अच्छा कुछ देर बाद फिर गुनाह कर लेता है फिर बैठ जाता है र अल्ला मुझसे गुनाह हो गया है तो फिर माफी मांगता है अल्ला मुझे माफ कर दे अल्लाह ताला फिर फरिश्तों को गवाह करके कह कहता है कि इसको यकीन है कि मेरा रब अब भी माफ कर देगा वाह वाह अल्लाह ताला फिर माफ कर देता है सुभान अल्लाह फिर थोड़ी देर बाद फिर उससे गुनाह हो जाता है सही अच्छा इस इसका मतलब गुनाह के दुबारा हो जाने के साथ इसका ताल्लुक नहीं है सही इसका ताल्लुक आपकी तौबा की क्वालिटी के साथ है सही कि आपने तौबा किस किस्म की की है अगर तौबा की क्वालिटी ठीक है तो गुनाह माफ है इंशाल्लाह इंशाल्लाह के मुस्लिम शरीफ की हदीस में आता है कि नबी पाक सला वसल्लम नेने फरमाया कि अल्लाह फरमाता है फिर कि अब मैंने इसको वैसे ही माफ कर दिया है ये गुनाह करता रहे तौबा करता रहे मैंने इसको वैसे ही माफ कर उसकी वजह पता है क्या है उसकी वजह यह है कि तौबा सिर्फ उस शख्स के लिए नहीं है कि जिसने गुनाह किया है तौबा असल में मोमिन की जिंदगी का महज है मोमिन की जिंदगी तौबा से अब अल्लाह के रसूल सलम का क्या गुनाह था नबी करीम सलाम फरमाते एक दिन में 7 से ज्यादा तौबा और इस्तग फार करता हूं और एक हदीस में फरमाया 100 दफा मैं तौबा और इस्तग फार करता हूं और तुम भी तौबा और इस्तग फार किया करो तो जब नबी पाक सल्ला सलम एक दिन में 100 दफा करते हैं तो हम किस बाग में हमें तो सारा दिन तौबा और इस्तग फार ही करते रहना चाहिए जब नबी पाक सला सलम करते हैं तो इसका मतलब है यह गुनाह की वजह से नहीं होती यह मोमिन की जिंदगी का एक मनहर होता है कि वह बार-बार अल्लाह ताला की तरफ वापस आता रहे उसकी तवज्जो इधर जाती है उसकी तवज्जो इधर जाती है वो वापस आए बार-बार अपनी अपना रुजू इलल्लाह ह हम और रजू इलाह को री इंशोर करता रहे और रिन्यू करता रहे बकुल और यह इंसान ये अल्लाह ताला ने ये तौबा का मनहर दिया है असल में जिसका जो इंसान की मोमिन की जिंदगी का मनहर है वगरना ऐसा नहीं है कि लाजमा तौबा करे पहले गुनाह करे फिर तौबा करे गुनाह ना भी हो तौबा करे और तौबा करता रहे और रजू इलल्लाह करता रहे लिहाजा जो सवाल आपने किया था उसमें यह है कि अगर किसी से गुनाह बार-बार होता है तो गुनाह की रेपुटेशन इंपॉर्टेंट नहीं है इंपॉर्टेंट है कि आपने जब तौबा की थी तो उस वक्त अल्लाह से क्या अजम किया था वाह बिल्कुल सही अगर उसकी क्वालिटी ठीक है तो तौबा इंशाल्लाह कबूल है सही और अगर उसमें बदनी थी हा कि ठीक है कोई बात नहीं एक दफा मैं माफ करवा लू फिर दोबारा देखते हैं अगर ये बद नीती थी उसकी पहली तौबा ही कबूल नहीं है रिपीटेशन की क्या बात है अल्ला उसकी पहली तौबा ही कबूल नहीं है अगर उसने बदती से की थी लिहा नेक के साथ की हुई पूरी शराय के साथ की हुई तौबा व इंशाल्लाह कबूल है अगरचे उससे थोड़ी देर बाद भी गुनाह हो जाए कुछ अरसे बाद फिर गुनाह हो जाए तो रेपुटेशन इंपोर्टेंट नहीं है तौबा की क्वालिटी अ है क्या बात है एक लफ्ज आपने बोला अजम शेख इसको थोड़ा सा मैं साइकोलॉजिकली भी थोड़ा ऑडियंस को चाहूंगा मैं एक्सप्लेन करूं साइकोलॉजी में भी बार-बार विल पावर का हम पढ़ते हैं बार-बार जिक्र है और पॉजिटिव साइकोलॉजी में आपको पता है कि इंसान के जो पॉजिटिव पहलू है उस के कैरेक्टर स्ट्रेंथ जो है उनको बहुत ज्यादा सामने लाया जाता है बजाय के मेंटल डिसऑर्डर्स को तो ये एक नई फील्ड है पॉजिटिव साइकोलॉजी तो उसमें विल पावर पूरा एक कांसेप्ट है और मैं अक्सर यूथ को ये कहता हूं कि यार देखो गोरों के पास तो ना ईमान है ना ही मतलब ये तौबा इस्तग फार का कोई तरीका है ना उनके पास कोई सजदा है ना अल्लाह से कोई राबता करने का तरीका जाहिर है उन विचारों से तो ये कांसेप्ट ही छीन लिया गया मेरा ख्याल है मेरा ख्याल है गोरों की बजाय लफ्ज साप ना चेंज कर रहे नन मुस्लिम नॉन मुस्लिम नॉन मुस्लिम ठीक बोरे तो एक नस्ल है ना उसम बहुत सारे मुसलमान हो सही बात सही बात बिल्कुल ठीक जजाकल्लाह इलाह के लिए बिल्कुल ठीक है तो मैं अक्सर य कहता हूं कि जो नॉन मुस्लिम है और मैं यही लफ्ज इस्तेमाल करूंगा तो फिर भी इसके बावजूद विल पावर की व बड़ी बात करते हैं और उनके कई ऐसे आपको सक्सेस स्टोरीज मिल जाएंगी जो कोई नशे में था टोटल नशे में यानी होपलेस सिचुएशन थी और नशा आपको पता है वो ऐसी चीज है कि उससे निकलना बहुत ही मुश्किल होता है बहुत ही मुश्किल होता है तो हमारे पास ऐसी सक्सेस स्टोरीज उनकी तरफ से भी आती है जो टोटल एक नशे वाली जिंदगी से अनपटवाड़ी दिया है इंसान को कि जिस चीज का वह अजम कर ले तो फिर अल्लाह की मदद भी ऊपर से शामिल हो तो शेख मेरा तो ख्याल मायूस होने की जरूरत नहीं है नौजवानों को बिल्कुल निकल सकते हैं वो इंशाल्लाह इन गुनाहों से अजम भी कर और जैसे आपने कहा कि क्वालिटी ऑफ तौबा बहुत मैटर करती है देखिए ये जो आपने मायूस होने की बात की ना जी इसमें मैं तीन बातें आप आपसे अर्ज करूंगा सबसे पहली बात तो यह है कि सूर जुमर की एक आयत है जिसको मुफस्सिर का ख्याल ये है कि कुरान पाक की सबसे ज्यादा उम्मीद अफजा आयत है क्या बात यानी उससे बड़ी कोई उम्मीद अफजा आयत और हो नहीं सकती जितनी ये आयत और वो क्या है या बाद हबीब सलम मेरे बंदों से कह दीजिए जिन्होंने अपनी जानों पर जुल्म किया है अब देखें इसमें तरज तब भी अजीब है अल्लाह ताला की तरफ से सुभान अल्लाह मेरे बंदों से अब उन्होने अपनी जानों पर जुल्म किया है व गुनाह किए बैठे हैं और अल्लाह ताला फरमाता है मेरे बंदे हैं अा उनको उनसे कह दीजिए क्या लाला अल्लाह की रहमत से मायूस ना हो क्यों ना मायूस मायूस हो अल्लाह ताला सारे के सारे गुनाह माफ कर देगा क्यों माफ कर देगा क्यों माफ कर देगा इ गफूर रहीम बेशक वह है ही बहुत बख्शने वाला और हमेशा रहम करने वा य उसकी इसलिए कर देगा क्यों कर देगा इसलिए कर देगा कि तुम्हें एक काम करना पड़ेगा ऐसे करो कि तुम अपने रब की तरफ झुक पड़ो व असले मल और अपने आप को उसके सामने सबमिट कर दो वसले मल अपना आप उसके सुपुर्द कर दो क्या बात अगर यह काम एक काम इंसान ने करना है कि अपने आप को अपने अल्लाह के सुपुर्द कर दे सही तो फिर वो सारे गुनाह माफ कर देगा फिर मायूस होने की क्या बात है सही देखि मायूसी जो है आप साइकोलॉजी पढ़ते हैं और साइकोलॉजी के तबार से इंसान जाहर है साइकोलॉजिकली इंसान के मुख्तलिफ कैफियत आती है इंसान लोगों से मायूस होता है इंसान सिचुएशन से मायूस होता है इंसान की मायूसी के लेवल्स भी बहुत हैं और उसकी कैफियत भी बहुत है बिल्कुल ठीक हर चीज से मायूस हो जाओ लेकिन अल्लाह की रहमत से मायूस नहीं होना क्या बात है और ये उस वक्त इंसान को समझ आती है बात की जब इंसान को दुनियावी सारी कैफियत सारे वसाय जवाब दे चुके हो बकल इसको आप रिलेट कर ले जो दूसरी बात मैं अर्ज कर रहा था इसको रिलेट कर ले हजरत याकूब अल सलाम की उस बात के साथ यूसुफ अल सलाम वैसे गुम हो गए सही रो रो के उन्होंने अपनी आंखें जो हैं वह सफेद कर ली है सही समझ नहीं आ रही क्या करूं अब उसके बाद जो है दूसरा बेटा वह भी गुम हो गया बिन यामीन बिन यामीन वो भी गुम हो गया अब उसके बाद जो बाकी बेटे हैं उनको देके कुछ जमा पूंजी देके भेजा के गल्ला ले आए अब वो जमा पूंजी भी खतम हो गई गल्ला लेने के लिए हा ठीक है सारे वसाय यानी सारे वसाय खत्म हो गए तो अब वो गए हैं बच्चे जाके अपने भाई से कहते हैं कि तू ना खैरात कर दे भीख मांग रहे हैं सही लेकिन जब वो जाने लगे हैं ना तो उनसे हजरत याकूब अली सलाम फरमा रहे हैं कि तुम ऐसे करो अब हालात तो बद से बदतर हो गए हैं हा तो उनसे फरमाते हैं कि तुम ऐसे करो जाके ना यूसुफ अल सलाम की तलाश करो हम यूसुफ को तलाश करो और यूसुफ और उसके भाई को तलाश करो ला तसला अल्लाह की रहमत से मायूस नहीं होना वा वाह यानी जिस चीज से हम मायूस है वो तो दुनियावी हालात है ना तो अल्लाह की रहमत से तो मायूस नहीं होना वाह और अल्लाह की रहमत से जो मायूस होते हैं वो तो वो खसा पाने वाले लोग मायूस होते हैं हम तो अल्लाह की रहमत से मायूस और उनको यह समझा के भेजते हैं कि अल्लाह की रहमत से मायूस नहीं होना कहने की बात यह है कि जब आप मायूस इंसान को हर तरह से यह अल्लाह की रहमत से मायूस नहीं होना यह उसी की समझ में बात आएगी जिसको अल्लाह ताला ने ईमान नसीब किया होगा जिसको अल्लाह पर ईमान होगा उसी की समझ में बात आएगी दूसरे शख्स की समझ में तो ये बात नहीं आती बकुल तो उस पर जब तक वह उसको अल्लाह ताला की तरफ से वह उम्मीद रखता है सही तो होप कभी खत्म नहीं होती क्या बात है या बात इट्स नेवर टू लेट आप जि मरहले पर भी है आपने जितने गुनाह कर लिए हैं अलदीना या अपने आप पर जितना भी जुल्म कर लिया 50 साल हो गए 60 साल हो गए कितनी उम्र गुजार लिए नबी पाक स जब नजा के वक्त यहां नखरे से आवाज नहीं निकलती ना उससे पहले पहले सारी तबा अला या खुला मैदान है और जब आपने तौबा कर ली उस वक्त कि पता क्या [संगीत] होगा अल्ला अ गुनाह से तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उसने गुनाह किया ही नहीं क्या बात फौरन ही खाता साफ क्लियर और गोया आप जीरो से स्टार्ट ले रहे हैं अला तो जब आप किसी भी वक्त किसी भी लमहे आपको यह ख्याल आ गया तो अल्लाह की तरफ से देर नहीं है आपकी तरफ से देर है अल्लाह की तरफ से तो हर वक्त वो खुला है मामला बिल्कुल सही ये जो तौबा है ना ये इतना बड़ा अमल है या यूं कह लीजिए कि इतना बड़ा ये इस्ते काक है ये पिछली उम्म तों में नहीं था सही और वो वाकया हम देख पढ़ते हैं हदीस के अंदर बुखारी शरीफ के अंदर य है वाकया के वो नबी पाक सलाम ने बताया कि एक शख्स ने 99 कत्ल किए थे जी हां वो क्या ढूंढ रहा था सही हल मिन तबन हां क्या कोई वापसी का रास्ता है बिल्कुल सही बिल्कुल सही वो हदीस के अल्फाज है जी हां वो पूछता था क्या उसके लिए कोई वापसी का रास्ता है तो फला किसी राहिब ने जा किसी राहिब का पता किसी ने बताया उसने राहिब जाके यही पूछा था ह क्या उसके लिए वापसी का रास्ता है तो कहता ला तेरे लिए वापसी का कोई रास्ता नहीं उसने उसको इसलिए कत्ल किया था कि उसने कहा था तेरे लिए वापसी का रास्ता कोई नहीं है तो 100 पूरे हो गए अच्छा 100 कत्ल करके लेकिन दिल में वो जो अर्ज थी ना वो फिर तड़पी और फिर वह पूछता फिरता था ह कोई है वापसी का रास्ता तो यह पूछता फिरता था कि उसके लिए वापसी का कोई रास्ता है तो फिर किसी आलिम का पता बताया गया और फिर आलिम ने व आगे फिर पूरी स्टोरी है कि आलिम ने कहा कि इत फला बस्ती चला जा और वहां प कुछ लोग हैं जो अल्लाह की बंदगी करते हैं तू भी जाक अल्लाह की बंदगी शुरू कर देला तू जाकर अल्लाह की बंदगी उनके साथ शुरू कर दे तेरे सारे गुनाह माफ हो जाएंगे अब यह देखें इसका मतलब य हुआ कि इंसान नेकी करेगा ना जी तो उसके गुनाह माफ हो जाएंगे कुरान ने उसूल दिया नात यत जो नेकिया है य गुनाहों को वैसे खत्म कर देती बिल्कुल ठीक बकुल एक श से गुनाह हुआ और नेकियों का मतलब सिर्फ नमाज पढ़ना नहीं है सारी इदात है एक श से गुनाह हुआ नबी पाक स के पास आया अल्ला के रसूल सलम मुझसे यह गुनाह हो गया आपने फरमाया जाक वालिदा की खिदमत कर तेरा गुना वो कहता अल्लाह के रसूल स मेरी वालिदा तो है ही नहीं फौत हो गई आपने फरमाया तेरी खाला है कहते हा खाला है आप फमा जाके खाला की खिदमत कर तेरे तेरा गुनाह अलाला माफ कर दे सुभानल्ला अब देखि ये कैसी कैपेसिटी है और कैसा कैसी गुंजाइश है जो हमारे लिए वापसी का रास्ता रखा है और ये ऐसे नहीं है मैं यह कहा करता हूं कि यह रहमतुल आलमीन का इंतखाब है और अल्लाह की रहमत है सही जो दरवाजा हमारे लिए तौबा का खुला है और उसकी भी तफसील नबी पाक सला सलम ने बताई कि एक दफा कुफा मक्का ने नबी करीम सला वसल्लम से यह ख्वाहिश की थी कि आप ना अल्लाह से दुआ करें जी कि ये सफा की पहाड़ी सोने की बन जाए अच्छा अगर यह पहाड़ी सोने की बन गई ना तो हम सारे मुसलमान हो जाएंगे सही अब नबी पाक सला वसल्लम का तो यही मतम नजर होता था कि सब लोग जो है जहन्नम से बचकर जन्नत में जाने वाले बन लिहाजा आपने फौरन अल्लाह से दुआ कर दी या अल्लाह सफा की पहाड़ी सोने की बना दे इस पर फिर एक फरिश्ता आया अच्छा और फरिश्ता आया और उसने आके नबी करीम सलम से कहा किला ताला सलाम अल्लाह ताला आपको सलाम कहते हैं य और अल्लाह ताला आपसे यह कहते हैं कि हबीब सलम अगर आप चाहते हैं इनता अगर आप चाहते हैं तो अस तो मैं यह सफा की पहाड़ी सोने की बना देता हूं अगर आप यही चाहते हैं तो बन जाएगी कोई मसला नहीं लेकिन एक बात याद रखें फन कफर मन सोने की पहाड़ी बन जाने के बाद भी अगर किसी ने कुफर किया उसको मैं वह अजाब करूंगा जो मैंने जहन्नम में कभी अजाब नहीं किया हो यानी मोजा मांग कर लेने के बाद फिर भी अगर कोई शख्स ईमान ना लाए उसके ऊपर तो शदीद तरीन अजब आता है एक बात दूसरा ऑप्शन दिया अल्लाह ताला ने और अल्लाह ताला दूसरा ऑप्शन य देता है ता हबीब अगर आप चाहे तो फिर य सोने की पहाड़ी ना [संगीत] ले मैं इनके लिए वापसी और रहमत का दरवाजा खुला रखता नबी करीम फरमाते बला बा अल्लारी उमत के वापसी और रहमत का दरवाजा खुला रख यह रहमत है और रहमतुल आलमीन का इंतखाब है कि हमारे लिए वापसी का दरवाजा खुला है और वापसी किस वक्त करनी है कब करनी है अल्लाह की तरफ से देर नहीं है ये देर हमारी तरफ से है तो फिर उसमें होपलेस कैसी मायूसी कैसी अल्लाह की तरफ से तो हमारी मौत से पहले पहले ये दरवाजा खुला है और हमको किसी भी वक्त इसको इस्तेमाल कर सकते हैं नहीं अगर इसको इस्तेमाल कर रहे इस ऑप्शन को तो हम नहीं इस्तेमाल कर रहे तरफ से कोई देर नहीं है अल्लाह अकबर शेख आपने हजरत यूसुफ अ सलाम की भी स्टोरी उसका तस्करा किया तो उसमें एक और बड़ी खूबसूरत बात पता लगती है कि युसफ अ सलाम का जो रवैया था अपने भाइयों के हवाले से कि यूसुफ अ सलाम ने भी उन्हें माफ किया तो किसी को माफ करने का क्या हदीस में हमें कुरान और हदीस में हमें इसके जो है वह क्या वो मिलते हैं फजीलत सुभान अल्लाह देखें आप ना इसको एक और वाक के साथ अटैच कर ले जी के जब वाक इफक हुआ है ना हजरत आयशा सिद्दीका रज अल्लाह ताला अहा पर बतान लगा बक तो उसमें जो लोग इवॉल्व थे उसमें एक मिस्ता बन उ सासा था जी हा जी और मिस्ता बिन उ सासा उन लोगों में से था जिनका वजीफा हजरत अबू बकर सिद्दीक रज अल्ला ने मुकर्रर किया ऐसे ही ऐसे ही अब हजरत अबू बकर सिद्दीक रज अल्लाह ताला ने तय कर लिया कि जब अल्लाह ताला ने कुरान में हजरत आयशा की बरात नाजिल फरमा दी हत आयशा रज अल्ला ताला अहा की तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रज अल्लाने तय कर लिया कि आइंदा मैं मिस्ता को वजीफा नहीं दूंगा अल्लाह अकबर तो अल्लाह ताला ने कुरान में ये फरमाया कि क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें माफ कर दे अल्लाह अकबर अल्लाह अक अगर तुम यह चाहते हो कि अल्लाह तुम्हें माफ कर दे तो फिर अल्लाह के बंदों को माफ कर दो वाह सिंपल इज दैट क्या बात है क्या बात है जब अल्लाह के बंदों को माफ करोगे तो फिर अल्लाह से माफी की तवको रखो क्या बात है और अगर आप अल्लाह के बंदों को माफ नहीं करते तो फिर अल्लाह से क्या तवको रखते हो कि अल्लाह ताला तुम्हें माफ करे सुभान अल्लाह तो ये तो है सीधा सादा सा कि आप लोगों को माफी देते रहेंगे तो इससे वो हमारे एक उस्ताद मोहतरम कहा करते थे के जब आदमी सुबह घर से निकले ना सही तो उसको दोनों जेब में माफियोसो जिसमें माफियां मांगनी है सही लिहाजा जहां थोड़ी सी गलती हो वहीं फौरन माफी मांग ले और जहां किसी से थोड़ी सी गलती हो व फौरन माफी दे दें ताकि शाम को जब वापस आए तो कोई चीज इसके जिम्मे ना हो और यह इस तरह का आदमी को तरीका का बनाना पड़ेगा वगरना अल्लाह से माफी मांगना अल्लाह से माफी मांगना आसान है माफी लेना मुश्किल है कि जब तक आप अपने आप को अपने डिटरमिनेशन के साथ जो पहले भी हमारी बात हुई कि तौबा की क्वालिटी का मसला है अल्लाह ताला की तरफ से मुफी दिए जाने का या तौबा की कबूलियत का कोई मसला नहीं क्या बात है क्या बात है और यह भी आपने बड़ी खूबसूरत बात की कि देखें दूसरों के काम आना जैसे वो नबी अकरम सल्ला वसल्लम ने उन सहाबी को कहा कि आप अपनी खाला की खिदमत करो वालिदा नहीं हयात तो खिदमत खल्क दूसरों के काम आना वह भी एक बड़ा क्विक जरिया है मेरा खल अल्लाह रब्बुल आलमीन की ख देख जब हम कहते हैं ना इल हसना कुरान कहता है हसना कि नेकियां गुनाहों को मिटा देती है तो उस नेकियों से मुराद यह नहीं है कि सिर्फ नमाज पढ़ना वो मिटा दे सही आप देखें सलात तौबा पढ़े दो रकत तौबा की नमाज पढ़े और अल्लाह ताला से माफी मांगे यह भी तरीका है जी लेकिन नेकियां वो है जो आप सारी दुनिया से जो जो आपकी जिंदगी के अंदर इवॉल्व है सबसे नेकी करते हैं उसमें हुकूक उल्लाह वाली नेकियां भी शामिल है उसमें हुकूक इबाद वाली नेकियां भी शामिल जब वो नेकियां करेंगे तो आप समझ ले कि तौबा उसके साथ जुड़ी हुई है अब आप उन नेकियों के साथ तौबा जुड़ी है नेकियां करना शुरू कर दें तो खुद बखुदा जी उस भी यही उनके साथ बंदगी शुरू कर दे कोई ना तो चिल्ला काटने के लिए कहा गया ना उसके लिए को खास जाके कहा कि उनके साथ जाके बंदगी शुरू कर दे तो गोया अल्लाह की बंदगी में हुकूक उल्ला भी आते हैं हुकूक इबाद भी आते हैं तो जब वो इंसान वो करना शुरू कर देता है तो इससे गुनाह माफ होते हैं शेख एक और वाकया हमें मिलता है कि एक शख्स नबी सलम की महफिल में आए सहाबी कहना मुनासिब होने कि वो जाहिर है मुसलमान ही थे उन्होने ने यह कहा कि मैंने एक गुनाह किया है और अगर मुझे सही से याद आ रहा है हदीस में लिबान यह है कि आई किड अ वुमन इस तरह के अल्फाज हैं तो उन्हें सहाबी ही कहेंगे जी बिल्कुल बिल्कुल बिल्कुल सहाबी हैं तो नबी सल्ल वसल्लम खामोश हो गए लिबान उसके बाद नमाज पढ़ी गई और नमाज के बाद वाकए में आता है कि आयत नाजिल हुई और नबी ने उसको ये बशारत दी कि आपका गुनाह अल्लाह ने माफ फरमा दिया ऐसा कुछ है नहीं वो हदीस बिल्कुल वाक है और लेकिन उसमें ऐसा है कि उसने अपने गुनाह का जिक्र किया ठीक है कि मैं इस तरह का गुनाह कर बैठा हूं तो नबी पाक सल्लाल उससे पूछा कि हमारे साथ नमाज पढ़ी है ठीक ठीक उसने कहा हां जी पढ़ी है आप फरमाया जा तेरा गुनाह माफ हो अल्ला अकबर अल्लाह अकबर सुभान अल्लाह तो इसके लिए नबी करीम सल्ला वसल्लम ने फरमाया जो दो नमाज के दरमियान गुनाह आते हैं जब आदमी नमाज पढ़ता है जी तो एक नमाज से दूसरी नमाज के दरमियान जो गुनाह आते हैं वो अल्लाह ताला माफ कर देता है सही देखिए प्यूरिफाई सही सही यानी एक जुमा पढ़ा है दूसरे जुमे तक एक रमजान से दूसरे रमजान तक एक उमरे से दूसरे उमरे तक एक हज से दूसरे हज तक अच्छा ये दरमियान में जितने गुनाह है ये जब अल्लाह ताला माफ कर देता है जो हदीस में आता है तो ये सगीरा गुनाह है सही छोटे गुनाह है जो बगैर तौबा के माफ हो जाते हैं बिल्कुल ठीक जो कबीरा गुनाह है हम ब के बिल्कुल सही बक और अगर उसमें किसी बंदे का हक इल्व है तो जब तक हक अदा ना किया जाए उस वकत तक माफ नहीं होते लेकिन सगीरा गुनाह जो छोटे-छोटे गुनाह है ये माफ हो जाते हैं लिहाजा जब कभी भी बात की जाती है कि नमाज से या रोजा रखने से गुनाह माफ हो गए ठीक और दरमियान में आने वाले गुनाह माफ हो गए तो इन गुनाहों का ताल्लुक सगीरा गुनाहों से है और वैसे भी अल्लाह ताला ने सूर निसा के अंदर और इसके अलावा आगे जाके 28 वें पारे में अल्लाह ताला ने दो जगह पे कम से कम कुरान में यह फरमाया है कि छोटे-छोटे गुनाह जो हैं हम तुम्हारे वैसे ही माफ कर देंगे तुम बड़े गुनाहों से तो बचो हां बड़े गुनाहों से तुम बच जाओ बिल्कुल ठीक छोटे गुनाह तो तुम्हारे वैसे ही माफ कर द सही सही इसलिए ये तो एक बड़ा शानदार सिस्टम है नबी करीम सने फरमाया तुम लोग जल रहे होते हो अब देखें नबी अकरम स सलम का कलाम वह है जिनको अल्लाह ने फरमाया अल्लाह ताला ने नबी पाक अल्ला ने मुझे जवा मुझे कलाम की जामत अता की यानी थोड़े अल्फाज से ज्यादा मफू निकलता है वो अल्लाह के नबी दोहरा रहे हैं ततर तुम जल रहे हो तुम जल रहे हो गोया गुनाहों की भट्टी में जल रहे फजर यहां तक कि तुम फजर की नमाज पढ़ लेते हो वो उसको धो डालती है फिर तुम निकलते हो तो फिर वही दुनिया है वही गुनाह है वही आंखें वही समात कहां कहा तुम फिर रहे हो और गुनाह हो रहे हैं शुक्र है आगे जोहर की नमाज का वक्त आ जाता है तुम जोहर की नमाज पढ़ते हो उसको धो डालती यहां इसी तरह नबी पाक सलाम ने पांचों नमाज का जिक्र किया फिर तुम गुनाहो की भट्टी में जल रहे होते हो आगे नमाज आ जाती है उसको धो डाल लेकिन जब इशा की नमाज की बात की ना तो आपने फरमाया के हता स था वो उसको धो डालती है उसके बाद आपने सु नहीं फरमाया आपने फ वाह फिर तुम सो जाते हो सुन फ फिर तुम सो जाते हो फिर तुम सो जाते हो फरमाया फिर कुछ नहीं लिखा जाता यानी फिर गोया व जो ततर हो रहा था गुनाह हो रहे थे वो गुनाह खत्म हो गए सोए हुए के आदमी का तो कुछ नहीं लिखा जाता वैसे भी नबी पाक स तीन किस्म के लोगों से कलम उठा लिया जाता है तो सोए हुए से कलम उठा लिया जाता तुम्हारे ऊपर कुछ नहीं लिखा जाता हता जब तक तुम जाग ना जाओ उस वक्त तक कुछ नहीं लिखा जाता अच्छा इसका मतलब यह है कि जो नहीं सोया इशा के बाद तो वो तो ततर तता हो रहा है तो यहां से एक बात मसला निकलता है कि हम जो इशा की नमाज पढ़ के जागते रहते हैं और 11 12 बजे तक जागते रहते हैं तो हम गुनाहों को समेट रहते हैं और गल र सो जाते हैं ये इतना बड़ा रिस्क लेते हैं इसलिए नबी पाक सलाम हजरत अबू हुरैर र अल्ला को फरमाया था कि अबू हुरैरा सोने से पहले वितर पढ़ना ना भूलना यह जो वितर है ये असल में रात की नमाज है ये इशा की नमाज नहीं है बकल बिल्कुल ऐसे ये रात की नमाज है तो जिस शख्स ने तो इशा के बाद फौरन सोना है वो तो ईशा के साथ पढ़ ले कि उसने सोना है उसके बाद तो जिसने नहीं सोना रात 11 11 12 बजे तक जागना है तो व फिर वितर ना पड़े ताकि वह अपने सोने से पहले वितर पड़े वह जो जितना कुछ तह तरक तह तरक हुआ हो उसको ग सला तहा कर दे और फिर आदमी सो जाए क्या बात है तो ये पफ ये पफ का निजाम है एक ततहीर का अमल है और ये अल्लाह ताला ने सिस्टम बना दिया है और इसी सिस्टम के तहत है कि बड़े गुनाहों से तुम बच जाओ छोटे अल्लाह ताला वैसे माफ कर देगा यानी श लॉटरी लगी हुई है और यह मतलब अल्लाह ताला हिदायत दे हमारे उन बहन भाई को जो नमाज ही नहीं पढ़ रहे यानी कितना बड़ा वो रिस्क ले रहे हैं सुभान अल्लाह और देखें मैं अक्सर कैलकुलेशन से शेख बताता हूं कि 1440 मिनट है दिन में तो एक नमाज मतलब 15 मिनट लगा लें आप अगर चले मस्जिद आप जा रहे हैं वैसे तो 10 मिनट में भी पढी जाती है मैक्सिमम 15 लगाले 2 मिनट 1440 मिनट का कितवा हिस्सा है यानी कि 67 पर ट्स इट हम क्या 67 पर इतने जबरदस्त अमल के लिए हमारे पास नहीं है कि जैसे आपने बताया कि प्यूरिफाई भी दे शेख चले यह तो तौबा की माशाल्लाह इस और ये सिर्फ नमाज नहीं सारी नेकियां सारी नेकियां बाद भी इसमें आता है लोगों की मदद करना आता है सुभान अल्लाह यह तो चले क्लियर हो गया कि अल्लाह के दरवाजे खुले हैं और अल्लाह तौबा कबूल करता है नाउ इट डिपेंड्स कि हमारी क्वालिटी ऑफ तौबा हमने कब हर तरफ से मुंह मोड़ और उसम ना सबमिशन की बात है ना सबमिशन की बात असलाम का माना होता है अपने आप को सबमिट कर दे झुक जाओ अ झुक जाओ मुति हो फरमाबरदार हो जाओ ये असल में कामिल सुपुर्दगी है बिल्कुल ठीक कंप्लीट सबमिशन है सही इसमें जब पार्शल सबमिशन होती है ना सही जुज सबमिशन कि मैं आधा काम अपनी मर्जी से करूंगा आधा अल्लाह की मर्जी से करूंगा ये जुवी सुपुर्दगी भी को पसंद नहीं है और सीजनल सुपुर्दगी भी अल्लाह को पसंद नहीं है अच्छा व नल मुसलमान रमजान मुसलमान या जुम्मा मुसलमान किसी दिन हो गया बाकी दिन छोड़ दिया किसी दिन कर लिया किसी दिन इसीलिए नबी पाक सला फरमाया अल्लाह को बेहतरीन जो अमल पसंद है वो वो है जो हमेशा किए जाए चाहे थोड़े हो मल का हिस्सा हो आप करें हमेशा करें थोड़ा अमल हो जैसा भी अल्लाह को पसंद है लिहाज अल्लाह ताला को कंप्लीट सबमिशन वाले मुसलमान पसंद है बकुल ठीक ना तो जुवी वाले पसंद है और ना ही सीजनल पसंद बिल्कुल ठीक जजाकल्लाह अब मेरा अगला सवाल शेख यह होगा कि एक बंदा यह कहे के मुझे बहुत नदा मत है बहुत नदा मत है यानी उसको यह तो पता है कि अल्लाह ने तो माफ चले कर दिया लेकिन उसके दिल से वह रिग्रेट फायर ऑफ रिग्रेट वो आग नहीं बजरी उसके अंदर से उसको नदा मत बहुत ज्यादा है जैसे कि मैं आपको यहां मिसाल दूं अगर वहशी की इफ आई एम करेक्ट कि वो जाहिर है उसके दिल में एक बड़ी नदा मत थी जब तक कि उसने मुसलमा कब को नहीं मार दिया था बल्कि नबी अकरम सला सल्लम के सामने भी जब वह आया था तो हमें यह वाकया मिलता है कि हमारे नबी स ने भी उसे कहा था कि आप चेहरा ढाब के मेरे पास आया करें गालिन शायद इसलिए था कि मुझे वह याद आ जाता है लमहा शायद इसलिए था तो यह रिग्रेट कभी कभी तो शेख अच्छा भी होता है पॉजिटिव रिग्रेट जो इंसान को बहुत बड़े-बड़े काम करवा देता है और वह उसकी एक फोर्स बन जाता है पावर बन जाता है वो रिग्रेट लेकिन एक बड़ा डिस्ट्रक्टिव रिग्रेट भी होता है अगर मैं साइकोलॉजी की नजर से देखता हूं जो इंसान को फिर अनप्रिटेंशस से क्या फील डर्टी मैं बहुत गंदा फील करता हूं मतलब मुझे नहीं अल्लाह माफ करेगा चले वह तो हमने साबित कर दिया अल्लाह तो माफ कर देगा लेकिन व कहना ये चाह रहे होते कि मैं ही अपने आप को नहीं माफ करूंगा इस रिग्रेट से शेख किस तरह से देखि सारी चीजें जो है ना जी ये जुड़ी हुई है उसी निजाम के तहत सही जिस निजाम को हम इस्लाम कहते हैं उसके साथ जुड़ी हुई है सही हजरत अमर बिनस रला के बारे में आता है कि जब वो मुसलमान होने लगे नबी करीम स के सामने हाथ बढ़ाया तो हाथ वापस खींच लिया सही तो नबी करीम सला सलम हैरान हुए कि पता नहीं इनको क्या हो गया सही तो कहते हैं कि पहले मुझे यह बताओ कि जो गुनाह मैंने किए हैं उनका क्या बनेगा तो नबी करीम सल्लल्लाहु अ वसल्लम ने फरमाया अल इस्लाम यद म मा कान कब सही इस्लाम जो है जब इस्लाम इंसान कबूल कर लेता है तो पहले के सारे गुनाह वो वैसे ही माफ हो जाते हैं सुन फिर आपने फरमाया हिजरत भी उन सारे गुनाहों को मिटा देती है जो उससे पहले होते हैं हिजरत के बारे में नबी करीम सला सलम का एक और फरमान है के अल मुहाजिर मन हाजर माला असल मुहाजिर वह है जो अल्लाह की मना करदा चीजों को छोड़ देता है सिर्फ वतन छोड़ना हिजरत करना नहीं होता अल्लाह की मना करदा चीजों को छोड़ना हिजरत है अच्छा जो शख्स यह हिजरत करे उससे उसके पिछले गुनाह सारे माफ हो गए बकुल लिहाजा यह जो सिस्टम है इस्लाम का इस निजाम के अंदर अल्लाह ताला ने ऐसी चीजें रखी हुई हैं कि वो पिछले गुनाह खुद बखुदा माफ होते चले जाते हैं बल्कि वो जो सूर फुरकान के अंदर अल्लाह ताला ने फरमाया कि तौबा करने तौबा तो इतना बड़ा टूल है इतना शानदार टूल अल्लाह ताला ने हमारे हाथ में पकड़ा दिया है तुमने जब इस्तेमाल करना है कर लो इस्तेमाल नहीं करते तो हम नहीं करते इतना शानदार टूल है कि वहां तो अल्लाह करीम ने यह फरमाया कि जो लोग तौबा करते हैं जी इला मन ताबा वामना जो वापस आ गया और उसने ईमान कबूल किया और उसने नेक अमल किए यानी वापस आके नेकिया शुरू कर दी उसके सिर्फ गुनाह माफ नहीं होते बल्कि फरमाया उला लाना इनके गुनाहों को अल्लाह ताला नेकियों में तब्दील कर देता है क्या बात जो सारी जिंदगी गुनाह किए थे अब वो नेकियां बन जाएंगे क्या बात है तो अंदाजा कीजिए जब अल्लाह की तरफ से इतना शानदार रिलीफ पैकेज है यानी इससे बड़ा रिलीफ पैकेज हो सकता ही नहीं हो सकता बिल्कुल बक कि आप जब कभी इस रिलीफ प पैकेज को इस्तेमाल करना चाहे तो आप कर लें ना करना चाहे तो आपकी मर्जी है तो फिर उसके बाद गिल्ट कैसा गिल्ट तो तब रहे अगर आपके तौबा करने के बावजूद गुना हो अगर आपके तौबा करने के बावजूद जब अल्लाह ताला गुनाह माफ कर देता हैला सारे के सारे गुनाह माफ कर देता है और फिर यह फरमा दिया नबी पाक सला ने तौबा करने वाला गुनाह से तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उसने गुनाह किया ही नहीं तो फिर गिल्ट कैसा तो ये गिल्ट वाली बात भी उन लोगों को हम कह सकते हैं जिनके दिलों में ईमान का मामला होता है या फिर यह हो सकता है जैसे नबी करीम स को कहा सामने ना आया कर उसका यह मतलब हरगिज नहीं कि वाशी का गुनाह मुफ नहीं है वाशी गुनाह वाशी का गुनाह माफ हुआ वाशी एक मुखलिस मुसलमान हुए और वो अल्लाह के रसूल सला वसल्लम के सहाबा किराम की जमात में शामिल हुए पाकीजा जमात में शामिल हुए और गुनाह माफ हुआ सही यह तो एक अलग बात थी कि नबी पाक सल्लल्लाहु वसल्लम को वह वाकया याद आ जाता था तो इसलिए आपने कहा कि आप मेरे सामने ना आओ तो उसका मतलब यह हरगिज नहीं है कि मुफी नहीं है माफी भी हुई और व फिर अल्लाह ताला ने उनसे व काम भी लिए बिल्कुल ऐ हम देखते हैं इसलिए यह कहना कि किसी भी मामले में गिल्ट बाकी रह जाता है कतन कोई गिल्ट बाकी नहीं रहता ना रहना चाहिए जिसका गिल्ट बाकी रहता है आप य यूं कह लीजिए कि अल्लाह और उसके रसूल सल्ला वसल्लम के बताए हुए निजाम पर जिसको एतमाद नहीं है उसका गिल्ट बाकी रहेगा एली और जिसको एतमाद है उसका तो कोई गिल्ट बाकी मैं यही आपसे पूछना था शेख कि फिर एक तो पॉजिटिव गिल्ट इस तरह हम कह सकते हैं कि चलो उसको एक रिग्रेट बार-बार तौबा करने पर मजबूर कर रहा है और वो मजीद अच्छे आमाल में बढ़ रहा बार-बार तौबा करना तो बहुत अच्छा है ये तो मोमिन की जिंदगी का महज है एक्ली एक्ली और कुछ रिग्रेट शेख कुछ लोगों को ना सीधा भी कर देते हैं यानी उनके साथ रहता है वो रिग्रेट और वो बारबार रिग्रेट उने ना फिर नेक अमल करने पर भी मजबूर करता देखिए रिग्रेट जो है ना यह तौबा के अमल का हिस्सा है सही सही वो जो अभी मैं अर्ज कर रहा था और आपने भी बताया र इलम मैंने अल्लाह अपनी जान पर जुल्म किया ये रिग्रेट हैट रमना अला हमने अपनी जानों पर जुल्म किया है तो ये और फिर रबबी इनी अनन अल्लाह मुझसे गुनाह हुआ है ये रिग्रेट है सही तरा भी है और रिग्रेट भी है कि मुझसे गुनाह हुआ है और उससे जब इंसान अपने गुनाह से माफी मांगता है तो फिर अल्लाह ताला उसको माफ कर देता बेशक तो हम यह कह सकते हैं कि जो नेगेटिव वाला गिल्ट एक हावी हुआ हु है आप पे कि वो जा ही नहीं रहा जा ही नहीं रहा तो यह भी मेरे ख्याल फिर अल्लाह की उस पर नहीं शक करना है कि ये आप यूं कह ले ये ईमान में कमजोरी के ला ईमान में कमजोरी अलामत बिल्कुल ईमान जिसका पाक है साफ है जिस शख्स को यह रिग्रेट नहीं जा रहा उसको बार-बार अल्लाह की तरफ ध्यान देना चाहिए अल्लाह ताला पर एतमाद करना चाहिए अल्लाह अल्लाह रबी ला ये बारबार कहना चाहिए और तवज्जो करके माना के ऊपर बारबार यह कहना चाहिए इंशाल्लाह आपसे पूछने वाला था कि यह एक फियर हावी है उसपे खौफ हावी हो चुका शैतान भी फिर बारबार उसे जाहिर है वो पिंच करता है बख्शने वाला जब अल्लाह है बद्दू एक आया था ना उसने आके नबी पाक सल्ला वसल्लम से पूछा हिसाब किसने लेना कयामत वाले दिन अल्लाह अकबर नबी करीम सलाम फरमाया अल्लाह ने वो खुश होता हुआ उछलता हुआ चला गया उसने कहा अगर अल्लाह ने हिसाब लेना तो फिर मैं तो बख्शा गया ओए होए हो तो देखिए गुमान चेक करें ये तो ईमान है अल्लाह ने जब हिसाब लेना है तो अल्लाह ताला तो मुझे माफ कर देगा झे न ईमान की ये कैफियत होगी तो इंशाल्लाह कोई मसला नहीं मैं आपसे श ये पूछना चाहता हूं कोई ऐसी दुआ बता दें इस फियर को ओवरकम करने की जैसे आपने एक तो ये अल्लाह अल्लाह रब्बी अल्ला और कुछ ऐसे कमात पता लग जाए जो दुआ करें तो ार है बहुत बड़ी चीज है ार इ फार के बहुत सारे कमात अदीस के अंदर आए एक है ार रली तुया बहुत शानदार ार कुराने मजीद में नहीं में एक अला लालाला बिल्कुल सही ये वाला जो है ला अंदाजा कीजिए के हदीस में कुरान में आता है कि जो शख्स मैदान जंग से फरार हो ना ओए होए उस पर अल्लाह का गजब नाजिल होता है सही यानी मैदान जंग से मैदान जिहाद से जो शख्स फरार हो उस पर अल्लाह का गजब नाजिल हो इस कदर उसने बड़ा जुर्म किया नबी करीम सलम फरमाते हैं कि जो शख्स सोच समझ कर तीन दफा यह पढ़ ले अरला ला इला इला हु तीन दफा सोच समझ के पढ़ नबी पाक सलाम ने फरमाया अल्लाह ताला उसके सारे गुनाह माफ कर देता है चाहे वो मैदान जिहाद से फरार हुआ हो अल्लाह अक आप अंदाजा करें पीछे बात क्या रह गई यानी इतना बड़ा अगर गुनाह उससे सरज हुआ है और वो अल्लाह से माफी मांगता है अला तीन दफा यह कहता है तो अल्लाह ताला उस सारे गुनाह माफ कर फिर हदीस में आता है के सुभान अल्लाह व बहम जो शख्स ये 100 दफा पढ़ता है सुभान अल्ला बस इतना सही और अल्लाह ताला उसके गुनाह माफ कर देता है चाहे समंदर की झाक के बराबर हो क्या यानी जितने भी गुनाह है अल्ला ताला माफ कर देता है तो ये इसी तरह जो अल्लानी मनार है जी जी यह सात दफा अगर कोई शख्स सुबह के वक्त पढ़ ले सातवा शाम के वक्त पढ़ ले अगर उस दिन में और उस रात में उसकी मौत आ जाए अल्ला ताला जन्नत अता फरमा देगा फिर सदल इस्तग फार है ये तो मैं समझता हूं शॉर्टकट्स है तो सदल इस्तग फार एक दफा पढ़ ले अल्ला र तो ये सात दफ ये एक दफा पढ़ ले दिन के किसी एक हिस्से में पढ़ ले उस दिन फौत हो गया तो इंशाल्लाह जन्नत में चला जाएगा रात के किसी एक हिस्से में एक दफा पढ़ ले तो उस रात फौत हो गया तो जन्नत में चला जाएगा तो गोया सुबह शाम के ये अकार में ये तो शॉर्टकट्स है अगर इंसान ये पढ़ ले सही बान को ख आते ली इन को ट खम नहीं होता या गिल्ट खत्म नहीं होता या आप कह लीजिए कि उसके वसवसे खत्म नहीं होते तो उसके लिए एक इलाज नबी करीम सलाम ने बताया व है ला हला वला कुवता इला बिल्लाह वाह बस इतना सही और इसको अगर 100 दफा कोई शख्स पढ़ ले लाला लाता इला बल्ला लेकिन पढ़ना कैसे है प इस तरह नहीं है कि आप बस पढ़ते जाए ये है क्या ला हौला वला कुवत इलाला असल में क्या है हौल का माना भी कुवत है और कुवत का माना भी कुवत है ला हौला वला कुवत यूं कह लीजिए ना कोई इजतिमा ताकत ना कोई इफिरा दी ताकत इल्ला बिल्लाह सिवाय अल्लाह के अला या ना गुनाह कर गुनाह छोड़ने की ताकत ना नेकी करने की ताकत इल्ला बिल्लाह यानी या तो एक को पॉजिटिव बना ले एक को नेगेटिव बना ले या एक को इजतिमा एक को इरादी अब अल्लाह के सामने इसको अपना मसला समझ के ना अपना जो भी मसला है वो सोचे और सोच के अपने अल्लाह के सुपुर्द कर दे या अल्लाह मेरी तो कोई ताकत नहीं ना इरादी ना इमाई इला बिल्लाह हां तू अता फरमाए ताकत तो हो सकती है यू मैं इसको कहता हूं यह बेबसी का कलमा है बेबस आदमी अपने अल्लाह के सामने बेबसी का इजहार करे इस कलमे के जरिए सही सही तो फिर यह नबी पाक सलाम ने फरमाया जिस शख्स ने कहा थाना मुझे वसवसे आते हैं जी आपने फरमाया ला हल लात इला बिल्लाह पढ़ कर तेरे वसवसे भी खत्म हो जाएंगे और इसके अलावा अल्लाह ताला तेरे 100 मसले हल कर देगा वाह वाह आप अंदाजा करें आप अंदाजा करें एक शख्स के 100 मसले होते नहीं है दो नहीं तो चार चार नहीं तो छ छ नहीं तो आठ इससे ज्यादा मसले तो किसी के होते ही नहीं तो ला हौला ला इला बिल्लाह पढ़ने से वसवसे भी दूर हो जाते हैं और इसके अलावा और वसवसे जब हदीस में इसका लफ्ज वसवसे आता है तो मैं इसका समझता हूं कि इससे मुराद साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स है तो जितने साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स है वो इससे हल हो जाते अल्लाह का जिक्र हर तबार से बेहतरीन है लेकिन बाज तो बिल्कुल ऐसे हैं जैसे वो तीर ब हद है क्या बात है ये शेख इसको जन्नत के खजनों में से भी बिल्कुल इसको ला हौल ला कु इल्ला बिल्लाह इसको नबी अकरम सलाम ने जन्नत के खजनों में से खजाना भी करार दिया और जिसको जन्नत का खजाना मिल जाए उसको और क्या चाहिए आपको शायद मैंने ये वाकया पहले सुनाया हो जी मेरे वालिद साहब रहमतुल्ला अल बहुत ज्यादा जिक्र किया करते थे जवानी में सही और हमारी दादी भी बताया करती थी कि यह मोहियुद्दीन बड़ा जिक्र किया करता था तो उसके मुख्तलिफ वो जंगल में चले जाते थे बाज कात अपने अपना उनका तो तरीका का था वालिद साहब ने खुद मुझे यह वाकया बताया वह कहते हैं कि मुझे एक दफा यह हदीस नजर से गुजरी कि जन्नत के खजनों में से खजाना है तो कहते मैंने उसके बाद बाकी सारा जिक्र जो है कम कर दिया अच्छा तो सबसे ज्यादा इसी को पढ़ा ला हौला ला क्या बात है कहते मैंने ये सोचा कि जिसको जन्नत का खजाना मिल जाए उसको और क्या चाहिए तो कहते मैंने सुबह शाम कसरत के साथ ला हल ला इला बलाह बस यही असल में ये बात वालिद साहब ने मुझे इस सवाल के जवाब में बताई थी कि वालिद साहब ने कभी भी दुनियावी तौर पर कोई कारोबार कोई जॉब नहीं की अच्छा ना कोई कारोबार किया ना कोई जॉब की सही सही 16 बहन भाई हम थे जिनको पाला है उन्होंने माशा माशाल्लाह तो मैंने एक दफ एक दफा उनसे पूछा था कि अब्बा जी आपको कभी जिंदगी में कारोबार करने का ख्याल नहीं आया अल्ला अ उन्होने कहा आया था उका कारोबार का ख्याल आया था जवानी में फिर उन्होंने ये वाकया बताया उन्होंने कहा जब ये मैं ला हौल ला कु इल्ला बिल्ला बहुत ज्यादा पढ़ता उससे पहले कहते हैं मैं सोचा करता था कि मैं कोई कारोबार कर लूं तिजारत कहते हैं मुझे बहुत पसंद थी इसलिए पसंद थी कि नबी पाक सल्ला सलम को तिजारत पसंद थी और इसलिए भी कि नबी पाक सल्लल्लाहु वसल ने फरमाया इसमें बहुत ज्यादा बरकत है सही कहते मैं सोचा करता था किया नहीं कभी सही तो जब ला हौल वला कुत इल्ला बिल्लाह मैंने बहुत ज्यादा पढ़ा हां तो कहते एक दफा ख्वाब में मुझे अल्लाह ताला ने दिखाया कि मेरा यूं करके धड़ जो है वो आधा कर दिया गया अच्छा आधा करके मुझसे अलग कर दिया गया अच्छा और मेरा आधा धड़ अलग हो गया लेकिन मैं बाकी का फिर भी मुकम्मल हूं हम यानी वो आधा धाड़ अलग कर दिया गया है और मैं फिर भी मुकम्मल हूं स और मुझे ख्वाब में ही बताया गया यह समझाया गया कि तेरी दुनिया हमने तुझसे अलग कर दी है ओए होए जन्नत मांगते थे ना अल्लाह अकबर तो हमने तुझसे तुम्हारी दुनिया अलग कर दी है तो वालिद साहब ये फरमाया करते थे कि उसके बाद मुझे जिंदगी में कारोबार करने का ख्याल भी नहीं आया अल्लाह उससे पहले ख्याल आता था किया तो पहले भी नहीं था सुभान अल्लाह उससे पहले ख्याल आता था उसके बाद कभी कारोबार करने का ख्याल भी नहीं आ क्या बात है यह काश के बातें हमें समझ लग जाए मैं बस एक और छोटा सा वाक आप ही की इस बात से याद आ गया खालिद बिन वलीद रजला ताला आई थिंक यह जो रोमियो के खिलाफ जंग थी उसमें वह अकेले ही निकल जाया करते थे और यह उनकी आदत थी अक्सर पेट्रोलिंग करने दुश्मन के खेमों तक पहुंच जाया करते थे देखते थे कि कितने हैं और क्या मामलात है वेपन री कौन सी है तो सहाबा ने उन्हें मना भी फरमाया कि आप जो है हमारे कमांडर है आप अकेले इस तरह निकल जाया करते हैं तो उन्होंने उस मौके पर एक बात की के क्या तुमने हदीस नहीं सुनी अल्लाह के नबी स ने फरमाया कि वो इंसान जो अल्लाह का जिक्र करता है और जो नहीं करता उसकी मिसाल जिंदा और मुर्दे की उन्होने कहा ये सारे मुर्दा है मैं जिंदा हूं मैं तो इसलिए वहां पहुंच गया श यह अगर हमारा बिलीफ बिल्ड हो जाए जिक्र ईमान की बात है और यह ईमान हमारा बिल्ड हो जाए तो मेरा खल सारे मसले हल है और बस ताम यहां पर करते हैं शेख जो आपने व बद्दू की बात बताई कि क्या उसका गुमान था अल्लाह रब्बुल आलमीन के बारे में उसने कहा कि मेरा हिसाब कौन लेगा तो अल्लाह के नबी ने कहा अल्लाह लेगा तो वो जंप मारता हुआ गया उसने कहा बस फिर तो फिर तो बख गया सुभान अल्लाह शेख अल्लाह आपको बहुत खुश रखे अल्लाह आपसे राजी हो आपका ये सबको मजबूत ईमान नसीब फमा आमीन आपकी सोच है य आपकी बातें इंशाल्लाह मुझे उम्मीद है लाखों नौजवानों के लिए उम्मीद बनेगी मुसलमानों के लिए उम्मीद बनेगी इंशाल्लाह हम सबके लिए उमी बनेल की आमीन आमीन अल्लाह हमसे कबूल करे बहुत शुक्रिया ज अलाम वालेकुम