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बिजनेस इकोनॉमिक्स का गहन अध्ययन

तो हमारे जो चैप्टर नंबर वन है उसका नाम था नेचर एंड स्कोप ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स ठीक है इसमें हम क्या-क्या अभी तक पढ़ चुके थे देखो सबसे पहले आपको बताया था इंट्रोडक्शन थोड़ा सा कि ऑइकोनोमिया वर्ड से डिराइवर हुआ और जिसका मतलब क्या था हाउसहोल्ड 19वीं शताब्दी तक हम इसको पॉलिटिकल इकोनॉमी के नाम से जानते थे और फादर ऑफ इकोनॉमिक्स का नाम था एडम स्मिथ जिन्होंने 1776 में एक किताब लिखी थी किताब का नाम क्या था वेल्थ ऑफ नेश फिर नैरो डेफिनेशन जो थी उसमें हम यह कहते थे इकोनॉमिक्स की कि ह्यूमन वांट्स अनलिमिटेड है लेकिन रिसोर्सेस लिमिटेड है पर मॉडर्न इकोनॉमिस्ट ने कहा कि यह डेफिनेशन बहुत छोटी है जबकि एक्चुअल में वास्तविकता में हमारी दिक्कतें और भी होती हैं फिर हमने एक सितारा लिखा था जिसमें यह बताया गया कि इकोनॉमिक्स की स्टडी करने से जरूरी नहीं है कि आप सारी समस्याओं का समाधान ढूंढ ले लेकिन आप इकोनॉमिक्स की स्टडी करने से कम से कम प्रॉब्लम को सही पर्सपेक्टिव से देखना शुरू कर सकते हैं फिर हम अपने मेन सेकंड पॉइंट में घुस गए थे जो सबसे बड़ा था कि बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या है तो इसमें मैंने आपको बताया था कि बिजनेस में हमें साउंड डिसीजन लेने होते हैं और इकोनॉमिक्स में हमें अलग-अलग थ्योरी और टेक्निक सिखाई जाती हैं और जब हम दोनों को जोड़ देते हैं या जब हम इकोनॉमिक्स को बिजनेस में अप्लाई करते हैं तो उसको कहते हैं अप्लाइड इकोनॉमिक्स है ना उसके बाद कितने बजे क्लास थी 115 तक आ जाओ भाई मैं अगली क्लास में घुसने नहीं दूंगा ठीक है उसके बाद फिर बिजनेस इकोनॉमिक्स के बारे में हमने कुछ नेचर वाले पॉइंट्स लिखे थे मजेदार मजेदार चटपटे कि बिजनेस इकोनॉमिक्स जो है वो साइंस है क्योंकि इसमें कॉज एंड इफेक्ट रिलेशन होता है बिजनेस इकोनॉमिक्स एक आर्ट है कला है क्योंकि बंदर के हाथ में तलवार तो दी जा सकती है लेकिन तलवार कैसे चलाई जाएगी वह हर कोई अलग-अलग अप्लाई करता है फिर बिजनेस इकोनॉमिक्स जो है वह माइक्रो इकोनॉमिक्स पर बेस्ड होती है बिजनेस इकोनॉमिक्स में मैक्रो इकोनॉमिक्स के भी कुछ एलिमेंट होते हैं बिजनेस इकोनॉमिक्स में हम मार्केट की थ्योरी का यूज करते हैं और बिजनेस इकोनॉमिक्स इज प्रगमेटिक यह वर्ड याद रखना है प्रगमेटिक का मतलब था प्रैक्टिकल बाकी बिजनेस इकोनॉमिक्स में बहुत डिसिप्लिन जुड़े हुए होते हैं इसीलिए इसको कहते हैं इंटर डिसिप्लिन और बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या होता है नॉर्मेटिव तो नॉर्मेटिव के बारे में कुछ बताइए नॉर्मेटिव का मतलब जज करता है सजेस्ट करता है क्या होना चाहिए यह बताता है वेरी गुड जिसको वेरीफाई नहीं कर सकते दोस्त एक पॉइंट बोला वही गलत तो इसको हम वेरीफाई नहीं कर सकते हैं है ना जैसे मैंने बोला बर्गर पिज्जा से बेहतर है तो यह आप वेरीफाई नहीं कर सकते क्योंकि यह तो सबका अलग हो सकता है तो नॉर्मेटिव का मतलब ये फिर हमने सब्जेक्ट मैटर भी लिखे थे बिजनेस इकोनॉमिक्स के कि भाई माइक्रो और मैक्रो जिसका मूल मुद्दा यह था कि माइक्रो में हम किसकी स्टडी करते हैं इंडिविजुअल यूनिट्स की और मैक्रो में हम किसकी स्टडी करते हैं ओवरऑल इकोनॉमी एज अ होल की पूरे की और स्कोप में आपको बताई थी समस्याएं इंटरनल इश्यूज हो सकते हैं मतलब हमारी कंपनी के अपने अंदर के और एक्सटर्नल इश्यूज हो सकते हैं बाहरी एनवायरमेंटल तो वह सब हमने एक लिस्ट बेसिकली लिख ली थी राइट यहां तक आपने लिख लिया होगा चलो तो उसके आगे से शुरू करते हैं आज की पढ़ाई एक छोटा सा टॉपिक से पहले शुरू करेंगे हम कि भाई इकोनॉमिक्स में और बिजनेस इकोनॉमिक्स में क्या अंतर होता है ठीक है यह भी एक छोटा सा टॉपिक है कि इकोनॉमिक्स में और बिजनेस इकोनॉमिक्स में क्या डिफरेंस होता है ठीक तो यह मैं आपके साथ डिस्कस करूंगा बस आप सुनते रहना आराम से लिखने की जरूरत नहीं बट आप इवॉल्व रहना मेरे साथ इकोनॉमिक्स और बिजनेस इकोनॉमिक्स में क्या डिफरेंस है चलो पहले अगर हम वैसे सोचे कि क्या डिफरेंस है तो दोनों में से चलो आप यह बताओ बड़ा कौन है और छोटा अगर आपसे पूछा जाए मतलब बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या है छो छोटा है वेरी गुड और इकोनॉमिक्स बड़ बड़ा है वेरी गुड तो जो इकोनॉमिक्स है वो तो अपने आप में एक संपूर्ण सब्जेक्ट है उसमें तो हम हर तरह की थ्योरिया पढ़ते हैं उसमें तो हम हर तरह की टेक्नीक पढ़ते हैं लेकिन उनमें से जो जो जो जो जो जो सिर्फ हम बिजनेस में अप्लाई करते हैं वो वाली कौन सी होती है बिजनेस इकोनॉमिक्स है ना तो बिजनेस इकोनॉमिक्स एक तरह से छोटा है तो अब देखो पहला मीनिंग दे रखा है कि मीनिंग क्या होता है इकोनॉमिक्स जो है और आप इसमें कीवर्ड्स अभी तो आपके पास शायद बुक नहीं होगी तो कोई बात नहीं मैं मार्क कर रहा हूं आप बाद में मार्क कर लेना चाहे घर जाके बिजनेस इकोनॉमिक्स जो होता है उसमें हम कुछ प्रिंसिपल्स क्या करते हैं फ्रेम करते हैं मतलब बनाते हैं है ना तो इकोनॉमिक्स में हमारा काम क्या होता है कुछ प्रिंसिपल्स बनाने का हा इकोनॉमिक प्रिंसिपल्स बनाने का कि कैसे समस्याए सॉल्व होंगी लेकिन बि इकोनॉमिक्स में हम बनाते नहीं है बन तो पहले ही चुकी हम क्या करते हैं अप्लाई करते हैं हा तो बिजनेस इकोनॉमिक्स में हम अप्लाई करते हैं जैसे मैथमेटिक्स में फार्मूला है ए प्स बी का होल स्क्वायर तो व हमने बनाया थोड़ी ना वो तो बना हुआ सदियों पहले लेकिन हम क्या करते हैं हम अप्लाई करते तो ऐसे ही इकोनॉमिक्स जो होता है व पॉलिसिया बना रहा है वो बनाता है लेकिन बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या करता है उनको अप्लाई करता है दूसरी चीज इकोनॉमिक्स का जो करैक्टर है मतलब उसके अंदर जो मिक्सचर है उसमें माइक्रो और मैक्रो दोनों ही कैरेक्टर्स होते हैं लेकिन जो बिजनेस इकोनॉमिक्स होता है क्योंकि हम बिजनेस में अप्लाई कर रहे हैं अपने बिजनेस में अप्लाई कर रहे हैं तो उसमें माइक्रो इकोनॉमिक ही मेन करैक्टर होता है क्योंकि जब हम अपने बिजनेस को चलाते हैं तो हम अपने बिजनेस की कॉस्ट की बात करेंगे हम अपने बिजनेस के प्रोडक्शन की बात करेंगे हम अपने बिजनेस के रे न की बात करेंगे हम पूरी इकोनॉमी एस अ होल की तो बात नहीं करने वाले हमें तो अपने बिजनेस से मतलब है तो बिजनेस इकोनॉमिक्स का कैरेक्टर जो होता है वो क्या होता है माइक्रो इकोनॉमिक मेन टास्क देखो इकोनॉमिक्स का मेन टास्क है सबकी इच्छाओं की पूर्ति करना है ना वो तो इकोनॉमिक्स है लेकिन बिजनेस इकोनॉमिक्स में तो हमारा फोकस सिर्फ किस पर होगा पर्टिकुलर बिजनेस पर मुझे तो अपने बिजनेस से मतलब है मैं तो चीजें अपने बिजनेस में अप्लाई करूंगा तो बिजनेस इकोनॉमिक्स में हम सिर्फ अपने बिजनेस पर ही फोकस करते हैं मुझे बाकी जनता से कोई मतलब नहीं है उसके बाद है नेचर नेचर भी देखो बहुत इंपोर्टेंट चीज इकोनॉमिक्स का नेचर जो होता है वो क्या होता है देखो पॉजिटिव भी और नॉर्मेटिव क्योंकि इकोनॉमिक्स में हमें यह भी बताते हैं कि फैक्ट क्या है और इकोनॉमिक्स में हमें यह भी बताते हैं कि क्या करना चाहिए दोनों चीजें बताते हैं लेकिन जो बिजनेस इकोनॉमिक्स है वह सिर्फ क्या होती है नॉर्मेटिव य तो हमने फीचर में भी लिखा था बिजनेस इकोनॉमिक्स क्या होता है सिर्फ न उसके बाद देखो स्कोप य तो आपने बताया था वाइडर कौन है इकोनॉमिक्स और नरो कौन है बिजनेस इन व छोटा है व सिर्फ बिजनेस की बात करता है इसी तरह ब्रांच इकोनॉमिक्स की एक ब्रांच है जिसको हम बिजनेस इकोनॉमिक्स कहते हैं है ना इट हैज अ बिजनेस इकोनॉमिक्स एज ब्रांच और बिजनेस इकोनॉमिक्स के बारे में लिखा है इट इज अ ब्रांच ऑफ इकोनॉमिक्स मतलब कि वो उसकी सिर्फ एक शाखा है तो जैसे एक बहुत बड़ा पेड़ होता है तो जो बहुत बड़ा पेड़ है वो तो इकोनॉमिक्स है उस बहुत बड़े पेड़ की जो एक शाखा है एक ब्रांच है वो बिजनेस इकोनॉमिक्स है तो यह हो गया पॉइंट उसके बाद कंसर्न विद कंसर्न वि विद का मतलब है कि इकोनॉमिक्स में हम किन चीजों पर फोकस करते हैं तो इसमें देखो लिखा है ऑल द थ्योरी इकोनॉमिक्स में हम सारी थ्योरिया पढ़ते हैं सब कुछ पढ़ते हैं प्रोडक्शन से लेकर कंजंक्शन इकोनॉमिक्स पढ़ते हैं तो उसमें हमारा सिर्फ फोकस किस पर रहता है प्रॉफिट वाली थ्योरिया पर क्योंकि हम तो बिजनेस चला रहे हैं हमें तो अपने बिजनेस के लिए क्या कमाना है सिर्फ प्रॉफिट कमाना है तो बिजनेस इकोनॉमिक्स में हम दूसरी सारी थोरिन करते हैं और मेन फोकस किस पर करते हैं प्रॉफिट पर एनालिसिस इवॉल्वड देखो एनालिसिस इवॉल्वड का मतलब है इकोनॉमिक्स में हम मैक्रो लेवल इश्यूज भी पढ़ते हैं देश में क्या हो रहा है देश का जीडीपी कितना है देश में एंप्लॉयमेंट कितना है लेकिन जब हम बिजनेस इकोनॉमिक्स पढ़ते हैं तो उसमें मुझे देश से तो कोई मतलब नहीं है मुझे तो सिर्फ किससे मतलब है अपने बिजनेस से मतलब है तो वहां पर हम सिर्फ अपने ही एनालिसिस पर फोकस करते हैं कि मेरी डिमांड क्या है मेरी सप्लाई क्या है प्रोडक्ट की मेरा प्रॉफिट क्या है तो वहां पर एनालिसिस हमारा माइक्रो ओरिएंटेड रहता है बाकी कंसंट्रेशन तो इसमें दे रखा है इट कंसंट्रेट्स ओनली ऑन इकोनॉमिक एस्पेक्ट्स ऑफ एनी बिजनेस प्रॉब्लम अब इकोनॉमिक्स में तो हम सिर्फ कौन से पहलू पर फोकस करते हैं सिर्फ इकोनॉमिक नजरिए पर फोकस करते हैं लेकिन जब हम बिजनेस चलाते हैं तो बिजनेस में तो इकोनॉमिक और नॉन इकोनॉमिक हर तरह की चीजें हो सकती हैं जैसे कोई नॉन इकोनॉमिक एग्जांपल देता हूं मान लो मेरी मैनेजर से आज लड़ाई हो गई और मैनेजर दो दिन तक कह रहा है मैं ऑफिस बंद करके रखूंगा तो यह मेरे बिजनेस को इफेक्ट करेगी बात लेकिन यह है तो एक नॉन इकोनॉमिक ट्रांजैक्शन है तो एक नॉन इकोनॉमिक एक्टिविटी तो जब हम बिजनेस चलाते हैं एक्चुअल बिजनेस में इवॉल्व होते हैं तब हमें इकोनॉमिक और नॉन इकोनॉमिक दोनों समस्याओं को जूझना पड़ता है तो बिजनेस िस जो है उसमें हम इकोनॉमिक और नॉन इकोनॉमिक दोनों तरह की समस्याओं को इवॉल्व करते हैं क्योंकि तब हम एक्चुअल में बिजनेस चला रहे हैं लेकिन जब हम पढ़ाई करते हैं जब हमने इकोनॉमिक्स की स्टडी करी तो उसमें थोड़ी ना यह सिखाते हैं कि मैनेजर से लड़ाई हो गई या आज दुकान में स्ट्राइक हो गई किसी भी रीजन से उसमें तो सिर्फ हमें क्या सिखाते हैं इकोनॉमिक एस्पेक्ट कि डिमांड सीख लो सप्लाई सीख लो प्रोडक्शन सीख लो रेवेन्यू सीख लो तो जब हम एक्चुअल बिजनेस करेंगे तो उसमें हमें इकोनॉमिक और नॉन इकोनॉमिक दोनों एस्पेक्ट्स को कवर करना पड़ता है और अंश इकोनॉमिक्स में शायद आपको पता ही हो बहुत सारी थ्योरिया कुछ अंश पर ही बेस्ड होती है जैसे आपने पढ़ा होगा शायद अगर आपको याद हो कंज्यूमर इज रैशनल है ना ऐसा हम एज्यूम करते हैं या कहीं कहीं हम एज्यूम करते हैं टेक्नोलॉजी विल नॉट चेंज या कहीं-कहीं हम एज्यूम करते हैं इनकम विल नॉट चेंज या कहीं कहीं हम अजूम करते हैं प्राइस विल नॉट चेंज तो इकोनॉमिक्स में हम बहुत सारी क्या करते हैं अंश बनाते हैं लेकिन जब हम बिजनेस इकोनॉमिक्स की बात करते हैं एक्चुअल में बिजनेस हम जब करते हैं तो ये सब अंश जो होती है ये सब क्या हो जाती है इनवैलिड क्योंकि एक्चुअल जीवन में क्या कभी ऐसा हो सकता है कि इनकम चेंज नहीं हो या एक्चुअल जीवन में क्या कभी ऐसा हो सकता है कि प्राइस चेंज नहीं हो रहा या एक्चुअल जीवन में कभी ऐसा हो सकता है कि टेक्नोलॉजी नहीं चेंज हो रही ये तो रोज बदलती है तो बिजनेस इकोनॉमिक्स में ये सब अंश जो है ये इनवैलिड हो जाती है यानी कि ब हो जाती तो यह एक मतलब बड़ा डिफरेंस है इकोनॉमिक्स में और बिजनेस इकोनॉमिक्स ठीक है तो आपको बेसिक आइडिया लग ग क्या हो तो यह मतलब एक छोटा सा डिफरेंशियल पॉइंट था बेसिकली बिजनेस इकोनॉमिक्स और इकोनॉमिक्स तो अब आप नए पेज पर मेरे साथ हेडिंग डालना इसी चैप्टर में जो हमारा सेकंड पोशन उसकी स्टडी करते हैं उसका नाम है बेसिक प्रॉब्लम्स ऑफ एन इकोनॉमी बेसिक प्रॉब्लम्स ऑफ एन इकोनॉमी कि भाई कुछ दिक्कतें हैं इकोनॉमी में और इसके ब्रैकेट में आप लिख लेना सेंट्रल प्रॉब्लम्स ऑफ इकोनॉमी सेंट्रल प्रॉब्लम्स ऑफ इकोनॉमी चलो तो सेंट्रल प्रॉब्लम्स जो है वह हम लिखते हैं इकोनॉमी की बेसिकली इस यूनिट में हमें क्या पढ़ना है मैं वो बताता हूं यह बहुत ही छोटा सा टॉपिक है मतलब इसके अंदर इसमें हम य प कि किसी भी इकोनॉमी में क्या समस्या होती है तो इंग्लिश बन गया प्रॉब्लम्स ऑफ इकोनॉमी अब जब हम प्रॉब्लम्स की बात करते हैं मुसीबतों की बात करते हैं तो फिर हमें क्या बताने पड़ते हैं उनके समाधान सॉल्यूशन भी बताने पड़ते हैं तो पहले हम पढ़ेंगे प्रॉब्लम्स क्या है फिर हम उनके सॉल्यूशंस बता देंगे बस फिर खत्म हो जाएगा तो इसमें हमको यह करना है तो पहले लेकिन हम प्रॉब्लम्स लिखते हैं कि प्रॉब्लम्स आखिर होती क्या ठीक है ना तो बताओ किसी को पता है कितनी प्रॉब्लम्स होती हैं इकोनॉमी में तो यह आपको कैसे पता पढ़ा था आपने बचपन में वेरी गुड हां बचपन में आज से 10 साल पहले जब आप क्लास 11थ में थे 10 साल तो हो गए ना आपको क्योंकि जिस हिसाब से आप पुरानी चीजें भूलते हैं तो मेरा यह मानना होता है कि आप एक कक्षा को पा साल लगाते तो उस हिसाब से 11वीं कक्षा को आपको कितने वर्ष हो गए 10 वर्ष हो ही गए ना जिस हिसाब से आप चीजें भूल जाते हैं उस हिसाब से मैं ऐसा मानता हूं कि आपको लगभग शायद 10 साल पहले आपको जो बातें पढ़ाई गई होंगी वह तो खैर तो सेंट्रल प्रॉब्लम जो इकोनॉमी की क्लास थ में हमको तीन सिखाई जाती थी परंतु अब हमको चार लिखनी है ना तो चार प्रॉब्लम्स हमें लिखनी है तो आप भी चार बायफर केशन कर सकते हो तो चार समस्याएं हैं है ना मैं नंबर डाल देता हूं वन टू थ्री और फोर ठीक है चार प्रॉब्लम्स हैं तो बस मेन मेन नाम आप लिख लो पहले पहली प्रॉब्लम है व्हाट टू प्रोड्यूस दूसरी प्रॉब्लम है हाउ टू प्रोड्यूस तीसरी प्रॉब्लम है फॉर हूम टू प्रोड्यूस और चौथी प्रॉब्लम है व्ट प्रोविजंस शुड बी मेड फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ व्ट प्रोविजंस शुड बी मेड फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ चार प्रॉब्लम्स है है व्ट टू प्रोड्यूस हाउ टू प्रोड्यूस फॉर हमम टू प्रोड्यूस और व्ट प्रोविजन शुड बी मेड फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ है ना तो मैं हाईलाइट कर देता हूं मेन मेन टर्म्स व्ट हाउ फॉर होम और प्रोविजंस तो बाकी मैं हिंदी में भी लिख देता हूं ताकि जिसको हिंदी में कंफर्टेबल लगे वह बच्चा लिख सकता है या समझ सकता है व्ट टू प्रोड्यूस का मतलब होता है क्या बनाएं है ना क्या और कितना क्या और कितना इस समस्या को इंग्लिश में कहते हैं व्हाट टू प्रोड्यूस क्या और कितना हाउ टू प्रोड्यूस का मतलब है कैसे बनाए कैसे फॉर हमम टू प्रोड्यूस का मतलब है किसके लिए बनाए किसके लिए ठीक है बाकी फोर्थ वाला भी बाद में बताऊंगा व्हाट टू प्रोड्यूस का मतलब है क्या बनाएं और कितना बनाएं हाउ टू प्रोड्यूस का मतलब है कैसे बनाएं और फॉर होम टू प्रोड्यूस का मतलब है किसके लिए बनाएं ठीक है तो पहले मैं इसका बेसिक समझाने के लिए बच्चे के साथ एक इनफॉर्मल एग्जांपल डिस्कस करता हूं वो आप मत लिखना बस सुनते रहना फनी एग्जांपल है बाद में मुद्दे की बात अलग से लिख पाऊंगा जैसे मान लेते हैं घर में हमारी मदर है लेट्स से ठीक है मदर के पास जो किचन में रिसोर्सेस होते हैं वो क्या होते हैं लिमिटेड ऐसा तो नहीं है कि भाई जितना चाहे उतना बन गया ऐसा तो नहीं होगा लिमिटेड चीजें होती है लिमिटेड चीनी होगी लिमिटेड आटा होगा लिमिटेड चावल होंगे लिमिटेड नमक होगा तो ऐसी इकोनॉमी के पास भी रिसोर्सेस जो है वो लिमिटेड रहते हैं तो अब मदर को पहली समस्या जो आती है वह यह आती है कि आज क्या बनाए आज क्या खाना बनेगा आज चावल बनाए आज रोटी बनाए आज दाल बनाए आज क्या बनाए तो पहली दिक्कत क्या है क्या बनाए रिसोर्सेस तो हैं लेकिन पहली दिक्कत क्या है क्या बनाए तो मान लेते मदर ने सोचा कि चलो ठीक है रोटी बनाएंगे आज तो जैसे ही यह सोचा कि क्या बनाए तुरंत दूसरी समस्या आती है कि कितनी रोटी बनाए 500 रोटी बनाए कि पांच रोटी बनाए यह भी तो एक दिक्कत है ना कि आप कितनी खाओगे मदर कैलकुलेट करेंगी अपनी कितनी खाएगी मदर कैलकुलेट करेंगी आज दो मेहमान एक्स्ट्रा आ रहे हैं तो ज्यादा बनेगी तो दूसरी समस्या आ गई कि भा रोटी बनेगी और कितनी बनेगी ये हो गई दो बातें अब मान लेते हैं मदर ने कहा चलो 10 रोटी बनाएंगे अब दिक्कत उसके बाद यह आती है कि हमारे घर में एक रोटी मेकर भी है मशीन भी है और नहीं तो मम्मी अपने हाथों से बनाएंगी तो मम्मी यह सोच रही है कि मैं रोटी कैसे बनाऊं रोटी मेकर से बनाऊं या हाथों से बनाऊ हाथों से बनाऊंगी तो थकान ज्यादा होगी रोटी मेकर से बनाऊंगी तो न नहीं होगी जल्दी बन जाएगी लेकिन रोटी मेकर से बनाऊंगी तो बिजली खर्च होगी हाथों से बनाऊंगी तो बिजली के पैसे बच जाएंगे तो मतलब कुछ ना कुछ कैलकुलेशन तो है ही भाई तो इसका मतलब यह क्या समस्या बन गई कि रोटी कैसे बनानी है तो मान लेते मम्मी ने सोचा चलो आज हम हाथों से रोटी बना लेते हैं तो मम्मी ने हाथों से रोटियां बनानी शुरू कर दी और 10 रोटियां बनके तैयार हो गई अब जो फाइनल दिक्कत आती है वो यह कि घर में मान लो तीन बेटे हैं बड़ा मंझला और छोटा तो अब यह 10 रोटियां किसको मिलेंगी यह रोटियां किसके लिए बनी है तो बताओ किसको कितनी रोटी मिलेगी साइज के हिसाब से तो बड़े को कितनी दे चार और मंजिले को तीन और छोटे को छोटे को दो तो फिर एक बच गई एक गाय को खिला देंगे 5 तीन दो ठीक है तो अब देखो अब आपने कहा पाती दो भाई क्या पता बड़े बेटे की खुराक कम हो वो छोड़ देगा और छोटा बेटा जो है वो क्रिकेट खेलता है उसको भूख ज्यादा लगती है वो कहता है दो से में तो मेरा पेट ही नहीं भरा तो ऐसा भी तो हो सकता है तो इकोनॉमी में भी ये दिक्कत आती है इकोनॉमी के पास जब चीज बन जाती है तो हो सकता है हम तो सोच रहे हैं सबको 10 पा तीन दो दे दो लेकिन दो वाला दुखी है कह रहा है मुझे तो कम मिला पांच वाला वेस्ट कर रहा है तो जैसे भारत देश में खाना होता फूड शादी में क्या होता है वेस्ट होता है बहुत सारा है ना और उधर गरीब के पास है नहीं तो यही चीज चीज तो हो गई तो यह दिक्कत तो है ही ना कि किसके लिए बनाए तो यही प्रॉब्लम इकोनॉमी में चलती है तो देखो यह जो फ्लो ऑफ दिक्कत हैं यह सेम फ्लो ऑफ दिक्कत इकोनॉमी में आती है सबसे पहले यह इकोनॉमी को सोचना पड़ता है कि क्या बनाए कितना बनाए नंबर वन फिर इकोनॉमी को सोचना पड़ता है कि कैसे बनाए नंबर टू और फिर इकोनॉमी को सोचना पड़ता है कि किसके लिए बनाए किसको मिलेगा बन तो रोटी तो बन गई लेकिन अब रोटी किसको कितनी देनी है यह भी एक दिक्कत है तो इन्हीं को अंग्रेजी में मतलब नाम दे दिया बस ये हमारी प्रॉब्लम्स बन गई इकोनॉमी के नजरिए से व्हाट टू प्रोड्यूस हाउ टू प्रोड्यूस और फॉर होम टू प्रोड्यूस तो इनमें हम एक-एक शब्द मतलब कुछ लिख लेते हैं कीवर्ड्स लिख लेते हैं फिर मैं आपको समझा दूंगा तो एक-एक एरो डाल के लिखना है बस आपको छोटा-छोटा इन तीनों के बारे में तो व्हाट टू प्रोड्यूस में जो इकोनॉमी के एंगल से दिक्कत है हमें वह लिखना है तो वह आप लिखना कंज्यूमर गुड और कैपिटल गुड कंज्यूमर गुड और कैपिटल गुड है ना अभी आप लिखो फिर मैं समझा दूंगा उसके बाद हाउ टू प्रोड्यूस में लिखना है लेबर इंटेंसिव टेक्नीक और कैपिटल इंटेंसिव टेक्नीक लेबर इंटेंसिव टेक्नीक और कैपिटल इंटेंसिव टेक्नीक और फॉर होम टू प्रोड्यूस में लिखना है च सेक्शन ऑफ सोसाइटी ब्रैकेट में लिख सकते हो रिच और पुअर ब्रैकेट क्लोज और इसमें एक शब्द और लिखना है इसको बोलते हैं डिस्ट्रीब्यूशन प्रॉब्लम इसको बोलते हैं डिस्ट्रीब्यूशन प्रॉब्लम तो आप पहले तीन कीवर्ड्स लिख लो ठीक है तो अब हम ये इकोनॉमी के एंगल से लिख रहे तो अब वो मम्मी वाला एग्जांपल रोटी वाला एग्जांपल तो ऐसे था लेकिन इकोनॉमी में जो एक्चुअल में प्रॉब्लम है वह यह है तो हम इकोनॉमी के नजरिए से मतलब अब डिस्कस कर लेते हैं इकोनॉमी को सबसे पहले यह सोचना पड़ता है कि क्या बनाना है अब क्या में दो दिक्कतें आती है कि या तो हम कंज्यूमर गुड बनाए कंज्यूमर गुड मतलब हो गए कैसे जो आप और मैं अपने मतलब डेली कंजमेट खरीदना है हमें एग खरीदना है हमें गाड़ी खरीदनी है हमें टीवी खरीदना है हमें कुछ भी खरीदना है एट्स तो जो कंज्यूमर सामान खरीदता है उन्हें क्या बोलते हैं कंज्यूमर बो अब अगर इकोनॉमी कंज्यूमर गुड बनाने लगे तो मुकेश अंबानी साहब नाराज हो जाएंगे कहेंगे अरे यह क्या बात हुई मुझे तो मशीन खरीदनी थी मुझे तो इक्विपमेंट्स चाहिए मुझे तो प्लांट्स चाहिए तो इसका मतलब प्रोड्यूसर क्या चाहेगा कैपिटल गुड्स भाई दोनों तरह के लोगों की डिमांड अलग होगी ना इकोनॉमी में मान लो हम बाजार गए तो हम तो क्या चाहेंगे कि य बाजार गए तो हमें ब्रेड मिल जाए मिल्क मिल जाए जूते मिल जाए अब पता चला आप बाजार गए बाजार में हर जगह आपको कहीं ना मिल्क मिल रहा है ना ब्रेड मिलरी हर जगह मशीने लगी हुई कि ले जाओ मशीन ले जाओ तो आप तो परेशान हो जाओगे तो इकोनॉमी को बड़ा यह सोचना पड़ता है कि हम कंज्यूमर के लिए गुड्स बनाए या प्रोड्यूसर के लिए गुड्स बनाए अगर सारे कंज्यूमर के लिए गुड्स बना दिए तो देश में प्रोडक्शन नहीं होगा सारे प्रोडक्शन के लिए गुड्स बना दिए तो फिर देश में लोग भूखे मर जाएंगे तो अब यह दिक्कत हो गई इकोनॉमी को तो कि भा क्या बनाना है तो समझ आ रहा है आपको इकोनॉमी की दिक्कत तो यह पहली दिक्कत है कि क्या बनाए व्हाट टू प्रोड्यूस तो समझ आ गया कंज्यूमर गुड और कपिट गुड तो यह हो गया मतलब पहली दिक्कत अब चलो मान लो इकोनॉमी ने सोच लिया कि यह बनाए वो बनाए सोच लिया अब दूसरी दिक्कत यह आएगी कि कैसे बनाए अगर हम मजदूरों का सहारा लेते हैं तो उस टेक्नीक को बोलते हैं लेबर इंटेंसिव टेक्नीक और अगर हम सब कुछ मशीनस से बनवा लेंगे तो उस टेक्नीक को बोलते हैं कैपिटल इंटेंसिव टेक्नीक तो दोनों के अपने फायदे नुकसान है मजदूर से बनाने में यह फायदा है कि देश में थोड़ा नौकरियां ज्यादा मिलेंगी मजदूरों को वह भी पैसे कमा पाएंगे वह भी अपनी रोजी रोटी कमा सकते हैं लेकिन उसमें ड्रॉबैक ये हो सकता है कि शायद गुड की क्वालिटी अच्छी ना हो जैसे मान लो कपड़े हैं कपड़े मशीन से बनके जब निकलेंगे है ना टेक्सटाइल इंडस्ट्री से तो बिल्कुल फाइन होंगे वही हाथ से मजदूर बना रहा है हैंडलूम इंडस्ट्री से ऐसे ऐसे करके तो शायद आपको कम अच्छे लगेंगे तो वो एक दिक्कत है लेकिन मशीन से अगर बनवाते हैं कपड़े तो फायदा क्वालिटी तो बहुत अच्छी होगी लेकिन कौन यह हो सकता है दिक्कत य हो सकती है कि फिर इससे एंप्लॉयमेंट कम हो जाएगा देश में क्योंकि सब कुछ एक मशीन कर रही है मजदूर बेचारा काम नहीं कर रहा तो इकोनॉमी को सोचना पड़ेगा ना इकोनॉमी के लिए कहीं ना कहीं य दिक्कत तो है ही इन सब दिक्कतों को चॉइस की प्रॉब्लम भी कहते हैं इन सब दिक्कतों को क्या भी कहते हैं चॉइस की दिक्कत है चॉइस का मतलब आपको चूज करना पड़ता है और यह आपके भी डे टू डे जीवन में दिक्कतें आती है अगर मान लो आपके पास दो शर्ट्स है आपको एक प्रॉब्लम आएगी की कौन सी पहन है या तो आपके पास एक ही शर्ट है तो फिर यह प्रॉब्लम नहीं आएगी तो प्रॉब्लम ऑफ चॉइस तभी आती है जब आपके पास एक से ज्यादा ऑप्शन हो और यह प्रॉब्लम आपको एग्जाम में भी आती है एग्जाम में कोई क्वेश्चन आया जिसमें चॉइस होती है तोब आपका टाइम वेस्ट भी होता है पहले पहला पढ़ोगे फिर दूसरा पढ़ोगे फिर सोचोगे मेरे को पहला अच्छे से आता है पहला करने बैठे उसमें फस गए तो लगेगा यह तो गड़बड़ हो गई अब दूसरा करता हूं अगर आएगा ही क्वेश्चन एक तो फिर आपकी प्रॉब्लम ऑफ चॉइस नहीं होगी फिर तो आपको पता है यही करना है जैसे मर्जी करो करो करो नहीं करो नहीं करो तो ये सब प्रॉब्लम्स जो है ये चॉइस की प्रॉब्लम्स है मतलब यह भी चॉइस करना है व भी चॉइस करना है और फाइनल प्रॉब्लम क्या है सबसे आखरी कि अब जो सामान बन गया अब जो प्रोडक्शन हो गया मान लो यह सब हमारे फाइनल डब्बे बन गए है ना यह फाइनल आउटपुट बन गया ठीक है अब आप विजुलाइज करना ये डब्बे बन गए अब इधर दो लोग खड़े हैं इनकी आंखों में चमक है कह रहे अरे वाह इतने दिनों से इसी का तो इंतजार था कि कब डब्बे बनेंगे अब यह डब्बे हमें मिलेंगे जैसे मम्मी ने रोटी बनाई तो बच्चों के आंखों में चमक आ जाती ना कि अरे बाप खाना मिलेगा तो ऐसे अब यह डब्बे तो बन गए प्रोडक्शन तो हो गई इकोनॉमी में लेकिन अब किसको कितने मिलेंगे अब यह सबसे बड़ी प्रॉब्लम है अगर सारे डब्बे रिच को दे दिए 100% डब्बे रिच को दे दिए पुअर को नहीं दिए तो क्या होगा मतलब तो बेचारे पुअर का एक्सप्लोइटेशन हो जाएगा मतलब ऐसे तो गलत हो जाएगा ऐसे तोर वो मर जाएंगे और अगर सारे पुअर को दे दिए और रिच को नहीं दिए तो क्या होगा तो रिच कहेगा चला लो देश अब देखना अगली बार मतलब फिर वो नाराज हो जाएगा मतलब दोनों में प्रो एंड कॉन तो है ही ना हम ऐसा तो कर नहीं सकते इसको दे इसको नहीं दिया या इसको दे दिया और उसको नहीं दिया अब आप कहोगे सर 5050 दे दो अगर 5050 भी दे दिया तो भी जरूरी तो नहीं कि सारे पुअर संतुष्ट हो जाएंगे है ना तो मतलब प्रॉब्लम तो है ही ना कहीं ना कहीं आप कुछ भी करोगे आपको गालिया तो सुननी पड़ेंगी आप कुछ भी डिस्ट्रीब्यूटर गलत हो गया चाहे रिच का चाहे पुअर का है तो इकोनॉमी के लिए प्रॉब्लम तो हो ही गई कि किसको डिस्ट्रीब्यूटर है तो इस प्रॉब्लम को इसीलिए डिस्ट्रीब्यूशन प्रॉब्लम कहते हैं कि मतलब यह प्रॉब्लम है कि इसको कितना देना है तो यह बन गया फॉर होम टू प्रोड्यूस तो आपको स्टोरी समझ आ गई सब बच्चों को क्लियर हो गया बिल्कुल ठीक है अब जो चौथा प्रॉब्लम लिखा है जो आपने 11थ में नहीं पढ़ा वो समझा देता हूं लास्ट है व्हाट प्रोविजन शुड बी मेड फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ तो पहले इसमें छोटा सा एक लिख लो कोने में एरो डाल के फिर मैं एक साथ आपको समझा दूंगा इसमें हमको छोटी सी लाइन लिखनी है हाउ मच सेविंग हाउ मच सेविंग एंड इन्वेस्टमेंट शुड बी मेड फॉर फ्यूचर प्रोग्रेस इसमें हाईलाइट कर लेना की वर्ड जो है वह है फ्यूचर प्रोग्रेस और अंडरलाइन या ब्लॉक बनाना सेविंग्स को और इन्वेस्टमेंट हाउ मच सेविंग एंड इन्वेस्टमेंट शुड बी मेड फॉर फ्यूचर प्रोग्रेस तो इसका हिंदी में तो मीनिंग बहुत सिंपल है कि कितनी से करें मतलब कितनी बचत करें कितना निवेश करें इन्वेस्ट करें क्यों करें बचत क्यों करें निवेश ताकि हम भविष्य में भी प्रोग्रेस कर सके फॉर फ्यूचर प्रोग्रेस तो अब यह जो प्रॉब्लम है यह शायद आपने नाम सुना हो सस्टेनेबल डेवलपमेंट सुना है तो एगजैक्टली वही है तो सस्टेनेबल डेवलपमेंट में क्या होता है कि अगर मान लो हम आज तो सब कुछ डेवलप कर ले आज सब कुछ अच्छा कर ले लेकिन पता चला 10 साल में हमारे सारे रिसोर्सेस खत्म हो गए तो जो अगली पीढ़ी आएगी या 10 20 साल बाद जो लोग आएंगे तो वह बेचारे फिर तो परेशान हो जाएंगे तो हमें डेवलप इस प्रकार से करना चाहिए ताकि हम कई वर्षों तक मतलब सस्टेन कर सके है ना बचा सके भविष्य को भी तो यही चीज इस प्रॉब्लम का नाम है कि हाउ मच व्ट प्रोविजन शुड बी मेड फॉर इकोनॉमिक ग्रोथ इसका मतलब है कि हम लंबे समय तक फ्यूचर में प्रोग्रेस करते रहे उसके लिए कितनी बचत और कितना निवेश करना जरूरी है यह भी इकोनॉमी की प्रॉब्लम है इकोनॉमी को सोचना पड़ता है कि भविष्य के लिए हम कितना सेव करें या भविष्य के लिए हम कितना इन्वेस्ट करें जैसे ये प्रॉब्लम आपको भी आएगी जब आप थोड़े बड़े हो जाओगे जब आप पैसे कमाओगे तो आपको ये प्रॉब्लम आएगी कि पैसे कितने सेव करूं ताकि फ्यूचर में मैं आगे ग्रो कर सक ऐसा तो नहीं है कि आज जितना कमाया आज सारा आज ही उड़ा के आ जाओगे शुरू में करोगे ऐसा लेकिन धीरे-धीरे ओवर अ पीरियड ऑफ टाइम जब आप मैचर होंगे तो यह प्रॉब्लम आपको लेनी पड़ेगी झेलनी पड़ेगी कि हाउ मच सेव शुड आई डू या हाउ मच इन्वेस्टमेंट शुड बी मेड फॉर फ्यूचर प्रोग्रेस तो ऐसी इकोनॉमी को भी सोचना पड़ता है तो समझ आ गई प्रॉब्लम तो क्लियर हो गई बिल्कुल अच्छे से तो यह बेसिकली मतलब हमारी प्रॉब्लम्स है है ना चलो तो अब प्रॉब्लम्स तो हमने सीख ली अब हमको क्या सीखना है सॉल्यूशन है ना चलो तो अब देखो बड़े ध्यान से अभी लिखना मत प्रॉब्लम तो मैंने आपको समझा द कि प्रॉब्लम क्या है कि आपको कोल्ड है प्रॉब्लम क्या है कि आपको खासी है प्रॉब्लम क्या है कि आपको फीवर है लेकिन डॉक्टर जो है इनका कोई यूनिवर्सल सॉल्यूशन नहीं बता सकता जनरल सॉल्यूशन होते हैं लेकिन फिर भी आप डॉक्टर के पास जाते हो डॉक्टर आपको देखता है डॉक्टर चेक करता है हर आदमी अगर बोले कि डॉक्टर साहब मुझे कोल्ड है तब भी डॉक्टर हर आदमी को अलग से देखेगा चेक करेगा और हो सकता है हर आदमी को दवाई में भी कुछ अलग चीज देगा चेंस देगा होता है ना ऐसे तो इसी तरह प्रॉब्लम तो पढ़ ली हमने कि भाई ये प्रॉब्लम्स है लेकिन इसका अगर मैं सॉल्यूशन बता दूं कि ये रहा सॉल्यूशन तो वो जरूरी नहीं है कि सब पर अप्लाई हो तो जैसे हर इंसान अलग है वैसे ही हर इकोनॉमी अलग होती है इंडिया एक अलग है यूएस एक अलग है अगर मैं इस प्रॉब्लम का सॉल्यूशन आपको बता दूं तो हो सकता है वो इंडिया में चल जाए यूएस में ना चले है ना या हो सकता है यूएस में चल जाए इंडिया में ना चले तो मैं ऐसे सॉल्यूशन बता दूं तो गलत हो जाएगा फिर तो तो मुझे इकोनॉमिस से सॉल्यूशन बताना पड़ेगा ना कि भाई अगर यूएस है तो यह करो इंडिया है तो यह करो है ना तो हम सॉल्यूशन पर अभी सीधा नहीं कूद सकते मैं सॉल्यूशन बताने को बता दूं लेकिन अगर सोल्यूशन बता दूंगा तो व गलत हो जाएंगे मतलब वो ठीक नहीं होंगे तो पहले मुझे यह बताना है कि दुनिया में इकोनोमिया कितनी होती क्योंकि हर इकोनॉमी के सॉल्यूशन अलग होते हैं तो कितनी इकोनॉमी होती है दुनिया के अंदर म मेन तो दो ही तरह की होती है तीसरी तो हमने बना दी है ना मिक्सड तो पहले हम इकोनोमिया समझेंगे तो हम पहले नए पेज पर एक स्टार डाल के हम पहले हेडिंग लिखेंगे हम सबसे पहले समझेंगे कैपिटल लि इकोनॉमी तो आप बड़ी बड़ी हेडिंग डाल सकते हो कैपिट लिस्ट इकोनॉमी तो इसके पहले एक दो दूसरे नाम है वो लिख लेते हैं ब्रैकेट में इसको कहा जाता है फ्री मार्केट इकोनॉमी है ना यह हम अभी थोड़ी देर में समझेंगे क्यों इसको कहा जाता है फ्री मार्केट इकोनॉमी और इसका बहुत ही फैंसी नाम भी है इसका फैंसी नाम है लेजेस फेयर एल ए आई डबल एस ई जड एफ ए आई आर ई सर जबान टेढ़ी हो गई बोलने के लिए बढ़या आपने सुना होगा आज से पाच साल पहले जब आप 12थ में होंगे शायद बिजनेस स्टडीज लीडरशिप के अंदर शायद सुना है नहीं सुना तो मतलब आपने ढंग से पढ़ाई नहीं करी लेजस फेयर तो क्या मतलब होता है वैसे लेजस फेयर वर्ड का वो वहां पर या क्या है इसका मतलब तो पहले तो इसी का मीनिंग लिख लेते हैं इसका मीनिंग है पॉलिसी ऑफ लीविंग थिंग्स टू टेक देयर ओन कोर्स पॉलिसी ऑफ लीविंग थिंग्स टू टेक केयर टू टेक देर ओन कोर्स सिंपल भाषा में जहां कोई आपको नियंत्रण करने वाला नहीं है आपको माता-पिता ने छोड़ दिया और कह दिया कि अब जो करना है करो और आप अपने जीन का नियंत्रण अपने हाथों में लेकर फुल इंडिपेंडेंट होकर स्वयं अपने सारे डिसीजन ले रहे हैं एक तरह से तो यह होता है ले है तो लीडरशिप स्टाइल भी होता है जिसमें लीडर को मतलब लीडर जो है व कहता है कि भैया जो करना है करो कोई नियंत्रण नहीं तो य कैपिट इकोनॉमी भी वही है तो पॉलिसी ऑफ लिविंग थिंग्स टू टेक देर ओन कोर्स मल चीज अपने आप चलती रहेंगी वह अपने आप चलती रहेंगी कोई कंट्रोल नहीं करेगा और इसको बोलते हैं कैपिटिस इकोनॉमी ठीक है ना तो हमें इसको बहुत डिटेल में इसके बारे में सब कुछ समझना सीखना है और एक एग्जांपल भी लिख लेते हैं कि कैपिटिस इकोनॉमी को मतलब थोड़ा सा आप किन इकोनॉमिस रिलेट कर सकते हो तो जैसे आप एग्जांपल में लिख सकते हो यूएस इकोनॉमी हालांकि प्रैक्टिकली कोई भी इकोनॉमी पूरी तरह से कैपिटिस नहीं हो ना ही सोशलिस्ट होती लेकिन य फिर भी थोड़ा क्लोज है तो इसीलिए एग्जांपल लिखे जाते हैं हालांकि यूएस भी मिक्सड इकोनॉमी है लेकिन फिर भी य थोड़ा सा कैपिट की तरफ झुकाव है तो इसलिए हम एग्जांपल में यूएस इकोनॉमी लिख देते हैं या आप साउथ कोरिया लिख सकते हैं हांगकांग लिख सकते हैं एटस तो इस तरह की इकोनोमिया जो है वो थोड़ा सा कैपिट वाला फ्लेवर रखती हैं बाकी जब हम ये इकोनॉमी पढ़ेंगे तो इसमें अब हमें पढ़ते समय अपने मन में यह सोचना है कि हम सब सेल्फिश लोग हैं हम सब कैसे लोग हैं सेल्फिश लोग है और हमारा जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य है वो क्या पैसे कमाने ठीक है हमारा जन्म हुआ है सिर्फ पैसे कमाने के लिए और हम सब सेल्फिश है है ना तो इसका एक एग्जांपल आपके साथ ऐसे ही शेयर करता हूं तो मान लो आप कहीं रास्ते में जा रहे हैं और आपको अचानक यहां एक 10 का नोट नीचे सड़क पर गिरा हुआ नजर आया और दूसरी तरफ एक आदमी को ट्रक कुचल के चला गया और वह मौत के लिए बस कुछ ही सासे ले रहा है उसको अस्पताल छोड़ना है आपको तो आप किधर भागेंगे तो आप किधर भागेंगे बताइए के नोट की तरफ ठीक है यह सोचना है ठीक है ये ऐसा नहीं कि मैं आपको शिक्षा दे रहा हूं ये ये मतलब कैपिटल इकोनॉमी की जब तक स्टडी चलेगी तो यह हमें सोचना है ठीक है ना चलो ठीक है तो अब हम स्टडी करते हैं कैपिटल की पूरी डिटेल में तो उसके लिए हम एक टेबुलर फॉर्मेट बनाएंगे बड़ा सा ठीक है जैसे मैं बना रहा हूं आप मेरे साथ साथ बनाना और इसमें हमें तीन कॉलम्स बनाने तीन कॉलम्स बनाने सबसे पहले हम फीचर्स पढ़ेंगे फिर मेरिटस पढ़ेंगे फिर डी मेरिटस पढ़ेंगे मतलब इस तरह से पूरी इकोनॉमी को हम अच्छे से डाइस सेक्ट करके एक एक बारीकी समझ लेंगे कि इसके फीचर क्या है इसके कुछ मेरिटस क्या है और डी मेरिट क्या है चलो तो पहले हम फीचर से शुरू करेंगे तो फीचर्स में लिखना है आपको नंबर वन राइट टू प्राइवेट प्रॉपर्टी राइट टू प्राइवेट प्रॉपर्टी तो राइट टू प्राइवेट प्रॉपर्टी में हाईलाइट कर लेते हैं याय मार्क कर लो आप प्राइवेट प्रॉपर्टी तो यह इसका सबसे पहला फीचर होता है राइट टू प्राइवेट प्रॉपर्टी इसका मतलब यह है बेसिकली कि यहां पर इस इकोनॉमी में यह अधिकार होता है कि जो भी रिसोर्सेस है या जो भी कह लो कंट्रोल है वह कहीं ना कहीं किसी प्राइवेट अंत्रप्रेनोर के पास होगा आपका अधिकार होगा कि आप अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी जितनी चाहे उतनी रख सकते हैं देश के अंदर जो रिसोर्सेस हैं वह किसी ना किसी प्राइवेट ओनर के पास होंगे क्योंकि इस इकोनॉमी में कोई कंट्रोल करने वाला सरकार नाम का चीज नहीं होती है तो इस इकोनॉमी में जो राइट है वोह क्या है टू प्राइवेट प्रॉपर्टी आप रख सकते हो आपके अधिकार होंगे और सारा कंट्रोल आप ही के पास होगा इसको बोलते हैं राइट टू प्राइवेट प्रॉपर्टी दूसरा फीचर है फ्रीडम ऑफ एंटरप्राइज फ्रीडम ऑफ एंटरप्राइज इसका मतलब है कि जब इस इकोनॉमी में कोई सरकार नहीं है कोई कंट्रोल करने वाला नहीं है जब आपके पेरेंट्स ने आपको कह दिया कि भाई अब आप इंडिपेंडेंट हो अब आप कुछ भी करो तो इसका मतलब आपको क्या मिल गया फ्रीडम आप कुछ भी कर सकते हो तो यही इसका फीचर है फ्रीडम ऑफ एंटरप्राइज एंटरप्राइज मतलब बिजनेस बिजनेस के पास फ्रीडम है तो इस इकोनॉमी में मान लो आपको अल्कोहल बेचना है तो आप बेच सकते हो कोई मना नहीं करेगा आपको सिगरेट बनाकर बेचना है आप बेच सकते हो कोई मना नहीं करेगा क्योंकि इस इकोनॉमी में कोई गवर्नमेंट नाम की चीज नहीं होती तो आपका पूरा फ्रीडम है आपका पूरा अधिक है आपको जो करना है कर सकते हो आपको बंदूक बनाकर बेचनी है बेच सकते हो आपको ड्रग्स बनाकर बेचने है बेच सकते हो कोई यहां पर कंट्रोल करने वाला नहीं है तीसरा फ्रीडम ऑफ इकोनॉमिक चॉइस फ्रीडम ऑफ इकोनॉमिक चॉइस इसी तरह ग्राहकों के पास भी फ्रीडम है कंज्यूमर के पास भी फ्रीडम है वो कुछ भी खरीद सकते हैं तो पता चला 5 साल का बच्चा अल्कोहल खरीदने जा रहा है कोई दिक्कत नहीं है दो साल का बच्चा गुटका खरीदने जा रहा है कोई दिक्कत नहीं है तो कंज्यूमर के पास भी इकोनॉमिक चॉइस है क्योंकि कोई सरकार ने तो रोक टोक यहां लगा नहीं रखी तो जिसको तो जैसे प्रोड्यूसर्स के पास फ्रीडम है कुछ भी बिजनेस करने की तो कंज्यूमर के पास भी इकोनॉमिक चॉइस है वो कुछ भी खरीदे उनकी अपनी चॉइस है कि भाई हमें जो लेना है हम ले सकते हैं उसके बाद नंबर फोर यह तो आपको पहले बता ही दिया था प्रॉफिट मोटिव इस इकोनॉमी में मोटिव एक ही है अल्टीमेटली वह है मुनाफा तो यह इकोनॉमी जो है यह प्रॉफिट मोटिव पर काम करती है क्योंकि कहीं ना कहीं हर प्रोड्यूसर यही चाहता है कि भाई हमें प्रॉफिट्स होने चाहिए हमें पैसे कमाने तो इकोनॉमी में जब सारे ही लोग यह सोचेंगे तो पूरी इकोनॉमी ही ड्रिवन बाय प्रॉफिट होगी सब मतलब सोच जब सबकी ऐसी होगी तो फिर इकोनॉमी भी प्रॉफिट ड्रिवन हो जाएगी तो वो एक बन गया प्रॉफिट मोटिव फिफ्थ फीचर कंज्यूमर सोवर निटी एस ओ वी ई आर ई आई जी एन आई टी वा कंज्यूमर सोवर निटी सोवर लिख के नटी ई आई जीी एन आई टी तो कंज्यूमर सोव निटी का क्या मतलब है कंज्यूमर का तो मतलब ग्राहक है ना ग्राहक और सोटी का मतलब होता है कि यह इकोनॉमी अपने ग्राहक को किंग मान द कि ग्राहक जो है भगवान है तो अगर ग्राहक आया दुकान पे उसने कहा कि भाई मुझे ड्रग्स चाहिए तो आप कहोगे ठीक है मैं लाके देता हूं तो मतलब आपको तो सामान बेचना है तो आपके लिए भगवान कौन है ग्राहक इस इकोनॉमी में आपको तो प्रॉफिट कमाना है तो जब आपका मोटिव है पैसे कमाने का तो आपके लिए भगवान कौन है या किंग कौन है ग्राहक कंज्यूमर तो इस इकोनॉमी में कंज्यूमर जो होता है मतलब वो किंग के समान है तो इसलिए इसको कहते हैं कंज्यूमर सोनि उसके बाद नंबर सिक्स कंपटीशन ब्रैकेट में आप लिख सकते हो हाई कंपटीशन ब्रैकेट में लिख सकते हो हाई अब यहां पर कंपटीशन बहुत है लेकिन इस इकोनॉमी में कंपटीशन बहुत होगा क्योंकि हम सबका मोटिव क्या है प्रॉफिट कमाना तो जितने भी दुकानदार हम काम कर रहे हैं हम सबका प्रॉफिट है प्रॉफिट कमाना तो फिर ऐसे में प्रतिस्पर्धा ज्यादा होगी ऐसे में कंपटीशन ज्यादा होगा मैं चाहूंगा मेरा सामान बिके आप चाहोगे आपका सामान बिके हर कोई चाहेगा कि मैं ज्यादा पैसे कमाऊ तो जब इस तरह की होड़ लगेगी तो इसका मतलब कंपटीशन भी फिर थोड़ा वहां पे ज्यादा होगा तो इस इकोनॉमी में कंपटीशन जो होता है वो थोड़ा हाई होता है उसके बाद सेवंथ फीचर ये हमने अभी पढ़ लिया था नो गवर्नमेंट यहां पर कोई कंट्रोलिंग अथॉरिटी नहीं होती यहां पर कोई सरकार नहीं होती तो इसको बोलते हैं नो गवर्मेंट उसके बाद नंबर ट आठवा फीचर आठवा फीचर होता है प्राइस आर डिटरमाइंड बाय मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई यह सबसे बड़ा फीचर है इस इकोनॉमी का कि यहां पर जो प्राइस होते हैं दाम होते हैं किसी भी चीज के वो सरकार नहीं बताती गवर्नमेंट तो क्योंकि होती नहीं है तो यहां पर जो प्राइस होते हैं इस इकोनॉमी के अंदर व डिमांड और सप्लाई से डिटरमाइंड होते हैं जिसको बोलते हैं मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई और वह कैसे होते हैं उसके लिए बहुत छोटा सा डायग्राम बना लो आप इसी के जस्ट नीचे जो हम आगे भी एक चैप्टर में पढ़ेंगे तो यह एक सप्लाई कर्व होता है और यह एक डिमांड कर्व होता है तो जहां पर दोनों इंटरसेक्ट करते हैं उस पॉइंट को इक्विलियम कहते तो इस तरह से हमारे को इकोनॉमी में प्राइस का पता चलता है तो इसे बोलते हैं मतलब मार्केट फोर्सेस ऑफ डिमांड एंड सप्लाई तो यह इकोनॉमी जो है वह इस प्रकार से प्राइस को फाइंड आउट करती है तो यह छोटा सा डायग्राम आप भी बना लो रेफरेंस के लिए तो क्लियर हो गया सारे फीचर ओके चलो तो ये आठ फीचर तो चले आगे अब हमें इनके फायदे लिखने कि चलो अच्छी बात है ये इकोनॉमी है फीचर्स तो देख लिए इस इकोनॉमी के फायदे क्या है अगर मान लो हम इस इकोनॉमी में होते या इस इकोनॉमी में अगर कोई भी है तो इस इकोनॉमी का फायदा क्या है तो लिखते हैं नंबर वन पहला फायदा है सेल्फ रेगुलेटिंग प्राइस मैकेनिज्म सेल्फ रेगुलेटिंग प्राइस मैकेनिज्म यह इसमें एक अच्छा बात अच्छी बात है सेल्फ रेगुलेटिंग प्राइस मैकेनिज्म कि मतलब अपने आप ही प्राइस जो है वह रेगुलेट हो रहा है कुछ सरकार को या किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं अपने आप डिमांड और अपने आप सप्लाई इंटरसेक्ट करते हैं तो अपने आप प्राइस जो है वो रेगुलेट हो रहा है कोई सरकार को देखना नहीं है किसी को यह सोचना नहीं है कि क्या है क्या नहीं है मार्केट जाएंगे अपने आप किसी भी चीज का दाम पूछेंगे तो पता लग जाएगा कि क्या चल रहा है तो प्राइस जो है व अपने आप यहां पर रेगुलेट हो रहे हैं तो यह एक फायदा है इस इकोनॉमी का सेकंड ग्रेटर एफिशिएंसी एंड इंसेंटिव टू टू वर्क ग्रेटर एफिशिएंसी एंड इंसेंटिव टू वर्क अब देखो अब हम सबका मोटिव क्या है प्रॉफिट वेरी गुड तो जब आपका भी मोटिव है प्रॉफिट कमाने का मेरा भी मोटिव प्रॉफिट कमाने का हम सबका मोटिव है प्रॉफिट कमाने का तो क्या आप जब अपना बिजनेस करोगे तो उसमें काम चोरी करोगे नहीं क्योंकि आपका मोटिव क्या है प्रॉफिट कमाना तो जब किसी भी व्यक्ति का इंसान का मोटिव होता है पैसे कमाने का प्रॉफिट कमाने का तो वह जुझारू पन से काम करता है एफिशिएंटली काम करेगा वह काम चोरी तो नहीं करेगा उ को पता है अगर काम चोरी करूंगा तो क्या होगा अपना ही नुकसान होगा तो क्योंकि यहां मोटिव ही प्रॉफिट है तो इसीलिए इकोनॉमी में हमें ग्रेटर एफिशिएंसी देखने को मिलती है ये इकोनॉमी जो है एफिशिएंट ज्यादा होती है यहां के लोग काम मेहनत से करते हैं क्योंकि इन सब लोगों की सोच क्या है पैसे कमाने तो पैसे कमाने तो एफिशिएंटली काम करना पड़ेगा और यही इनका काम करने का एक इंसेंटिव होता है इनको काम करने का मोटिवेशन क्या होता है कि पैसे कमाने तो इस इकोनॉमी में ये एक अच्छी बात है कि भाई मुझे लोगों को कहना नहीं पड़ेगा कि बच्चों काम करो आप खुद ही काम करोगे क्योंकि आप सबका मोटिव क्या है पैसे कमाने है प्रॉफिट कमाना है है ना तो ये एक अच्छी बात हो गई तीसरा मेरिट नंबर थ्री इकोनॉमिक ग्रोथ इज फास्टर इकोनॉमिक ग्रोथ इ फास्टर अब यूएस है है ना हमने एग्जांपल में भी लिखा तो यूएस की इकोनॉमिक ग्रोथ ज्यादा तेज है ज्यादा फास्ट है व इसीलिए क्योंकि वहां पर वो प्रॉफिट ड्रिवन इकोनॉमी है जब प्रॉफिट ड्रिवन इकोनॉमी होगी लोग मेहनत से काम करेंगे सारी ही जनता जब मेहनत से काम करेगी तो ओवरऑल इकोनॉमी की ग्रोथ भी क्या होगी फास्ट होगी है ना तो लोग जो देश की जनता होती है वह कितना अच्छा काम कर रही है उससे इकोनॉमी की ग्रोथ फास्ट या स्लो होगी तो यहां पर इकोनॉमिक ग्रोथ भी फास्ट होती है क्योंकि सब लोग अच्छे काम कर रहे हैं मेहनत से काम कर रहे हैं प्रॉफिट कमा रहे हैं प्रोडक्शन अ कर रहे फोर्थ और क्या मेरिट है ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन ऑफ रिसोर्सेस ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन ऑफ रिसोर्सेस अब इसका मतलब है कि जब हम सबका मोटिव है प्रॉफिट कमाने का है ना तो आप भी अपने बिजनेस में अपने रिसोर्सेस को वेस्ट करोगे या अच्छे से यूज करोगे अच्छे से यूज करोगे ना क्योंकि आपका मोटिव है पैसे कमाने तो जब हमारा मोटिव है पैसा अच्छा कमाना है प्रॉफिट कमाने का तो हर बिजनेसमैन अपने रिसोर्सेस को बिल्कुल तरीके से सोच समझ के ही यूज करेगा वेस्ट तो नहीं करेगा तो यह भी मतलब एक फायदा हो गया कि इकोनॉमी में रिसोर्सेस जो है वो बहुत अच्छे से यूज होते हैं ऑप्टिमम तरीके से यूज होते हैं क्योंकि सबकी सोच अपने रिसोर्स से पैसा कमाने की होती है और क्या फायदा होगा चलो एक आप ऐसी हिंट दे रहा हूं फिर दिमाग लगाओ अगर कंपटीशन हाई है तो इसका फायदा किसको मिलता है कंज्यूमर्स को बिल्कुल सही तो पांचवा बेनिफिट यही है कि कंज्यूमर्स आर बेनिफिटेड तो यहां पर कंज्यूमर्स को फायदा मिलता है क्योंकि हर कोई कंपीट कर रहा है तो हर कोई अपना सामान बेचना चाहता है तो कंज्यूमर को अच्छा सामान सस्ते में मिलेगा क्योंकि कंपटीशन बहुत ज्यादा है यही अगर कंपटीशन ना हो खाली मोनोपोली हो एक ही आदमी बेच रहा है सामान तो फिर तो वो महंगा बेचेगा लेकिन यहां पर इतने सारे प्रोड्यूसर्स हैं इतनी सारी शॉप्स हैं और सबको अच्छा करना है तो सबके बीच कंपटीशन इतना है तो ऐसे में ग्राहक का फायदा हो जा कंज्यूमर्स आर बेनिफिटेड उसके बाद नंबर सिक्स बेनिफिट वो हमने फीचर में लिख लिया था फ्रीडम ऑफ चॉइस तो यह एक अच्छा अच्छी बात है कि आपको आजादी रहती है यहां कुछ भी बनाने की कुछ भी खर्च करने की तो प्रोड्यूसर को भी आजादी है कंज्यूमर को भी आजादी है जो हमने फीचर में लिखा भी था फ्रीडम ऑफ चॉइस उसके बाद नंबर सेवन सातवा मेरिट क्या है इस इकोनॉमी का इट रिवार्ड्स मेन ऑफ इनिशिएटिव एंड पनिशेज इन एफिशिएंट इट रिवार्ड्स मैन ऑफ इनिशिएटिव एंड पनिश इनएफिशिएंट तो देखो यह इकोनॉमी जो है यह रिवर्ड भी देती है है ना रिवर्ड भी देती है और यह पनिशमेंट भी देती है पनिश भी करती है तो मान लो इस इकोनॉमी में हम सबका मान लो जन्म मान लो किसी कैपिटिस इकोनॉमी में होता तो उस इकोनॉमी में हमें रिवॉर्ड भी मिलता लेकिन रिवॉर्ड कब मिलता अगर हम मेन ऑफ इनिशिएटिव होते मतलब हम ऐसे व्यक्ति होते जो इनिशिएटिव करती है लेकिन अगर हम नाकारा होते अगर हम निकम्मे होते अगर हम कामचोर होते जैसे कि अभी हम हैं तो फिर ये इकोनॉमी क्या करेगी पनिश करेगी क्योंकि इस इकोनॉमी में नाकारा निगमों के लिए जगह नहीं है क्योंकि पूरी इकोनॉमी जो है वो तो प्रॉफिट ड्रिवन है अब आप बैठे हो हाथ पे हाथ रख के मैं तो 11:00 बजे सो के उठूंगा 2 बजे ऑफिस जाऊंगा 5:00 बजे आ जाऊंगा तो इसका मतलब फिर ये इकोनॉमी में आप पिछड़ जाओगे क्योंकि वहां पर बाकी लोग तो आगे निकल जाएंगे तो ये इकोनॉमी रिवॉर्ड भी देती है जो मैन ऑफ इनिशिएटिव है जो काम करते हैं अच्छे से और पनिश भी करती है जो इनफिट है तो यह अंग्रेजी है बस समझ आ गया क्या है इसका पॉइंट कमी नहीं उसके बाद एथ मेरिट लास्ट मेरिट डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क इज देयर डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क इज देर यह भी इकोनॉमी की एक अच्छी बात है कि यहां पर एक डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क मिलता है अब डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क का मतलब सबके पास राइट्स है सबके पास आजादी है भाई कोई नियंत्रण नहीं कर रहा अब मान लो कोई सरकार होती सरकार कहती व वहां नहीं जाना सरकार कहती काला रंग नहीं पहनना सरकार कहती काले रंग पर बैन है सरकार कहती लाओ रप मुझे दो तो इसका मतलब तो तानाशाही चल रही है या रूल्स हो गए तो जहां पर रूल्स ही रूल्स रूल्स ही रूल्स होंगे इसका मतलब वहां पर डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क कम हो गया लेकिन इस इकोनॉमी में सरकार तो कोई है नहीं तो डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क का मतलब है आजादी प्रोड्यूसर्स के पास भी पूरी आजादी है कंज्यूमर्स के पास भी पूरी आजादी है तो इसका मतलब कैसा फ्रेमवर्क है डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क है तो यह भी इस इकोनॉमी का एक मेरिट हो गया कि यहां पर कोई रूल्स नहीं है यहां पर कोई सरकार नहीं है तो यहां पर एक तरह से फ्रीडम है तो इसको बोलते हैं डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क तो क्लियर हो ग मेरिटस सारे पॉइंट्स अब चलते हैं डी मेरिट पर अब इस इकोनॉमी के नुकसान क्या है तो डी मेरिटस लिखते हैं सबसे पहला और सबसे बड़ा नुकसान है इन इक्वलिटी इस इकोनॉमी का जो सबसे बड़ा नुकसान है व है इन इक्वलिटी इसके नीचे आप लिख दल के टू क्लासेस ऑफ सोसाइटी यह समाज को दो हिस्सों में बांट देता है इस तरह की इकोनॉमी में फिर समाज बट जाता है अब कैसे बट जाता है दो क्लासेस ऑफ सोसाइटी कौन होते हैं यह देखो यह लोग तो खुश है इनके हाथ ऊपर है यह दुखी है इनके हाथ नीचे हैं तो ये इकोनॉमी समाज को दो हिस्सों में बांट देती है इनिक्वालिटी कर देती है कुछ को बहुत अच्छा मिल जाता है कुछ पीछे रह जाते हैं तो जिनको बहुत अच्छा मिल जाता है या जिनके हाथ ऊपर है उनको क्या बोलते हैं मतलब रिच कह देते हैं ना और जिनको नहीं मिल पाया उनको पुअर कह देते तो लेकिन हमें रिच और पुअर नहीं लिखना इसके शब्द कुछ और है नहीं नहीं नहीं इसके शब्द है हैव एच एवी ई एस हैव और उनका शब्द है हैव नॉट्स मन में रिच पुअर सोच लेना लेकिन एमसीक्यू क्वेश्चन के हिसाब से तो यह वर्ड होते हैं हैव और हैव नॉट्स हैव का मतलब है जिनके पास है और हैव नॉट्स मतलब जिनके पास नहीं है तो ये मतलब होता है ना मन में चाहे अमीर गरीब सोच लो लेकिन लिख वैसे ऑप्शन में नहीं आएगा तो हैव और हैव नॉट तो इस इकोनॉमी में बस यही एक बड़ी दिक्कत है मेन पहली कि यहां पर इन इक्वलिटी बहुत होती है इस इकोनॉमी में तो रिच जो है वो तो बहुत रिच हो जाएगा पुअर को एक्सप्लोइट करेंगे क्योंकि यहां पर सबका मोटिव पैसे कमाने का है सोशल वेलफेयर का तो है नहीं तो इस इकोनॉमी में इसीलिए इनिक्वालिटी ज्यादा होती है दूसरा डी मेरिट प्रॉपर्टी राइट्स ग्रेटर देन ह्यूमन राइट्स प्रॉपर्टी राइट्स ग्रेटर देन ह्यूमन राइट्स तो यह वही एग्जांपल जो आपको समझाया था कि एक तरफ र का नोट पड़ा हुआ है और एक तरफ इंसान मरने वाला है ठीक है तो आप किधर भागोगे किधर रप के नोट की तरफ भागोगे है ना तो देखो इसी बात को शब्दों में कैसे बयान किया गया है कि प्रॉपर्टी राइट्स यहां पर आपको चीजें ज्यादा प्यारी है ग्रेटर देन ह्यूमन राइट्स इंसान मरे उससे हमें कोई मतलब नहीं तो इसीलिए इस बात को क्या बोल दिया प्रॉपर्टी राइट्स ग्रेटर देन ह्य यह भी एक डी मेरिट हो गया उसके बाद नंबर थ्री तीसरा डी मेरिट डिमांड पैटर्न डिमांड पैटर्न डज नॉट रिप्रेजेंट रियल नीड्स ऑफ सोसाइटी इसको हाईलाइट कर लेते हैं डिमांड पैटर्न डज नॉट रिप्रेजेंट रियल नीड्स ऑफ सोसाइटी अब इस इकोनॉमी में आप डिमांड पैटर्न को देखकर कभी भी रियल नीड्स का पता नहीं लगा सकते अब इसका एग्जांपल दे देता हूं अब इस इकोनॉमी में डिमांड पैटर्न जो है वो क्या होगा ऐसी एक एग्जांपल ले लेता हूं अब मान लो यहां पर लोग क्या डिमांड कर रहे हैं भाई कोई कह रहा है मुझे कोकेन चाहिए हा ड्रग्स चाहिए कोई कह रहा है मुझे तो अल्कोहल चाहिए मतलब जो गंदी चीजें बेकार चीज वह ज्यादा आकर्षित लगती है ना तो यहां पर डिमांड पैटर्न क्या होगा इन सब चीजों का होगा लेट्स से क्योंकि यहां पर रोक टोक तो कोई है नहीं लेकिन अगर आप चीजों की डिमांड को देखोगे कि अच्छा यह तो सारे लोग अल्कोहल की डिमांड कर रहे हैं ये तो सारे लोग ड्रग्स की डिमांड कर रहे हैं तो क्या वाकई में वो रियल नीड्स है सोसाइटी की नहीं है ना वो रियल नीड्स तो नहीं है ना सोसाइटी की सोसाइटी की रियल नीड्स है कि इनको हॉस्पिटल्स मेडिसिंस अनाज यह चीजें चाहिए लेकिन इंसान इनकी डिमांड नहीं करता इस इकोनॉमी में डिमांड किन चीजों की होती है उल्टी चीजों की ज्यादा होती है क्योंकि रोक टोक कुछ नहीं है ना मतलब अगर कोई गरीब व्यक्ति भी होगा ना तो वो भी आटा या चावल ये नहीं खरीदना चाहेगा वो भी क्या चाहेगा ये सब चीज क्योंकि उसको पता है कोई रोकने वाला नहीं है कोई कहने वाला नहीं है कोई रूल्स नहीं है तो इस इकोनॉमी में जो डिमांड पैटर्न होती है वो समाज की सही जरूरत नहीं दिखा रही होती है ये पॉइंट है तो इस पॉइंट को इसलिए इंग्लिश में लिखा है कि डिमांड पैटर्न डज नॉट रिप्रेजेंट रियल नीड्स ऑफ सोसाइटी सोसाइटी की रियल नीड्स कुछ और होंगी लेकिन लोग डिमांड कुछ और कर रहे होंगे तो यहां पर मतलब इस इकोनॉमी में ये भी एक ड्र बैक है डी मेरिट है की डिमांड कुछ हो रही है पर रियल नीड्स कुछ और उसके बाद चौथा डी मेरिट यह आपके लिए खतरा है मतलब अगर आप कैपिटल इकोनॉमी में काम करते हो तो नो सिक्योरिटी ऑफ एंप्लॉयमेंट क्योंकि अगर आप कामचोर हो आप निकम में हो आप नाकारा हो तो सोशलिस्ट इकोनॉमी में तो चल जाएगा आप कह दोगे मैं तो सरकारी बाबू हूं मुझे तो कोई नौकरी से निकालेगा नहीं है ना लेकिन कैपिटल इकोनॉमी में वहां पर तो भैया प्रॉफिट ड्रिवन इकोनॉमी है तो आपने अगर काम चोरी करी आपने काम नहीं करा तो टाटा बाय तो इस इकोनॉमी में ये एक ड्रॉ बैक है कि भाई एंप्लॉयमेंट की सिक्योरिटी बहुत कम है ना के बराबर तो हर प्रोड्यूसर प्रॉफिट जो कमाना चाहता है वो उसी को नौकरी पर रखेगा जो उसके लिए अच्छे से मेहनत करे है ना कम ज्यादा एफर्ट में ज्यादा से ज्यादा प्रॉफिट कमा के देगा तो यहां पर नौकरी का भरोसा कुछ नहीं है सिक्योरिटी कुछ नहीं है कब किसको निकाल दें कब किसको रख ले थोड़ा रह सकता है नंबर पांच पांचवा डी मेरिट कंज्यूमर सोवर निटी फिर से वही शब्द लिखना है सोवर इटी एस ओ वी ई आर आई ई आई जी एन आई कंज्यूमर सोव निटी इज मिथ सर यह क्या कह रहे हो कंज्यूमर सोव निटी एक छलावा है तो सर अभी तो आप कह रहे थे कंज्यूमर भगवान है अभी उधर फीचर में जने लिखा था कंज्यूमर सवरे निटी तब हमने क्या लिखा था देखो कंज्यूमर सो कंज्यूमर क्या है किंग है कंज्यूमर भगवान है और अब हम यहां पर डी मेरिट में कह रहे हैं कि कंज्यूमर सोनि तो मात्र एक मिथ है छलावा है धोखा है ऐसा नहीं है तो आप बताओ ऐसा क्यों नहीं है मतलब आपकी आपके क्या सोच है इस कि थोड़ी देर पहले तो हमने इस इकोनॉमी को जितना अभी तक समझा हमने कहा कि कंज्यूमर किंग है जो वो खरीदना चाहता है वो खरीद सकता है आप जिस चीज की डिमांड करोगे मैं वही बनाऊंगा आप कह रहे हो कि सर हमें अल्कोहल चाहिए मैं वही बनाऊंगा आप कह रहे हो मुझे शूज लेने मैं वही बनाऊंगा तो आप किंग हो ये भी फीचर है लेकिन अब मैं कह रहा हूं कि ये जो किंग विंग वाली बात है ये तो एसी ए मित है तो इसका मैं बताता हूं रीजन क्या क्यों कहते हैं इस इकोनॉमी में क्योंकि मेरा और सबका मोटिव प्रॉफिट कमाने का है तो हम यहां पर सबसे ज्यादा धोखा भी कंज्यूमर को देते हैं हम यहां पर सबसे ज्यादा गलत सामान भी कंज्यूमर को बेचेंगे हम यहां पर अपने सामान में सबसे ज्यादा मिलावट करके भी कंज्यूमर को ही चेप चेप तो मतलब यहां पर हम मोटिव क कि पैसा कमाने का है तो हम सारा गंदा सामान सारी धांधली बाजी सारा धोखा भी किसको देंगे कंज्यूमर को देंगे तो इसीलिए इस बात को प्रूफ करने के लिए डी मेरिट की तरह लिखा गया कि कंज्यूमर सोनि तो मात्र एक मिथ है एक्चुअल में इस इकोनॉमी में तो उल्टा कंज्यूमर बहुत ज्यादा एक्सप्लोइट हो जाता है बहुत ज्यादा उनको धोखे मिलते हैं बहुत ज्यादा उनको मतलब एडल्टरेशन मिलता ऐसा हो जाता है तो इसीलिए य डी मेरिट की तरह य पर लिखवाया गया कि कंज्यूमर सरेटी क्या है एक मिथ समझ ग क्यों लिखवाया इस वजह से उसके बाद नंबर सिक्स और क्या डी मेरिट है और क्या नुकसान है इस इकोनॉमी का लेस ऑफ मेरिट गुड्स लेस ऑफ मेरिट गुड्स मेरिड गुड्स कौन से होते हैं जो समाज को ओवरऑल फायदा देते हैं समाज की भलाई के लिए एजुकेशन या हेल्थ यह लिखलो एजुकेशन या हेल्थ अब इस इकोनॉमी में ओबवियसली आपको क्या लगता है स्कूल्स खोलने पर ज्यादा फोकस होगा है ना नहीं उसमें प्रोड्यूसर को लगेगा कि प्रॉफिट नहीं है इसी तरह हेल्थ फैसिलिटी देने में भी उन्हें लगेगा कि प्रॉफिट नहीं है तो आमतौर पर ऐसी इकोनॉमिस्ट गुड्स थोड़े कम होते हैं क्योंकि सरकार तो कोई है नहीं तो यहां पर मेरिड गुड्स थोड़े से कम होते हैं कमी होते तो इसलिए इसको लिखा है लेस ऑफ उसके बाद सेवन डी मेरिट लास्ट इकोनॉमिक इनटेबन समिक इन स्टेबिलिटी एंड फॉर्मूलेशन ऑफ मोनोपोली एंड फॉर्मुले ऑफ मोनोपोली यह भी एक बहुत बड़ा डी मेरिट है इस तरह की इकोनॉमी का दो डी मेरिटस हो गए इनफैक्ट इकोनॉमिक इनटेबन न्यूज ऑब्जर्व करोगे तो यूएस में आपको ज्यादा इकोनॉमिक इंस्टेबिलिटी दिखेगी इंडिया में कम यूएस में आप सुनते हो जॉब से निकाल दिया बहुत सारे लोगों को इस तरह की न्यूज आप ज्यादा सुनते होंगे इंडिया में थोड़ा सा कम बूम आ गया रिसेशन आ गया यह सब चीजें यूरोपियन कंट्रीज में थोड़ा ज्यादा सुनते हो इंडिया में थोड़ा सा कंपेरटिवली कम है ना तो इन इस तरह की इकोनॉमी में इकोनॉमिक इंस्टेबिलिटी ज्यादा रहती है क्योंकि ये प्रॉफिट ड्रिवन इकोनॉमी है तो कभी बिजनेस अच्छा कर रहे हैं तो सब कुछ अच्छा चल रहा है लेकिन अगर खराब हुआ तो बहुत तेजी से खराब होगा मतलब ऊपर जाएंगे तो भी फास्ट नीचे जाएंगे तो भी फास्ट तो यहां पर इकोनॉमिक इंस्टेबिलिटी ज्यादा रहती है सरकार है नहीं जो कंट्रोल कर ले और फॉर्मुले ऑफ मोनोपोली फॉर्मुले ऑफ मोनोपोली का मतलब है कि भाई अब यहां पर हम सबका मोटिव तो प्रॉफिट कमाने का है तो यहां पर कई बार संगठन बन जाते हैं मोनोपोली बन जाती है मान लो इस पूरे मार्केट में सिर्फ चार दुकानदार है चार प्रोड्यूसर्स है तो ये चारों क्या करेंगे ये चारों सोचेंगे हम सब मिलकर एक हो जाते हैं और हम सब मिलकर जब एक हो जाएंगे तो मिलकर कस्टमर्स को चूना लगाएंगे और इनको जमकर लूटेंगे है ना यही होगा भाई अगर चारों अलग-अलग है तो फिर हो सकता है आपस में लड़े अब ये चारों क्या करते हैं चारों कहते हम सब मिलकर एक हो जाते हैं आपस में क्यों लड़ाई करनी और हम सब मिलकर इन सब कस्टमर को बेवकूफ बनाएंगे और इनको लूटेंगे मिलकर अब सरकार तो यहां है नहीं कौन रोकेगा भाई क्या आप मोनोपोली रोक लोगे नहीं सरकार तो है नहीं रूल्स कोई है नहीं तो ये एक दिक्कत होती है इस तरह की इकोनॉमी में कि मोनोपोलिस्ट तो अच्छे से कैपिट इकोनॉमी का पूरा समझ आया ना कि क्या है वो कर दो चलो तो अब नए पेज पर लिखते हैं दूसरे सितारा डाल के अब दूसरी तरह की इकोनॉमी लिख लेते तो इसमें आप सेकंड सितारा डाल के लिखना नए पेज पर अब है सोशलिस्ट इकोनॉमी सोशलिस्ट इकोनॉमी अब हम इस तरह की इकोनॉमी की पूरी स्टडी करते हैं सोशलिस्ट इकोनॉमी इसके भी कुछ दूसरे नाम है वो लिख लेते हैं एक होता है कमांड इकोनॉमी कमांड इकोनॉमी और एक होता है सेंट्रली प्लान इकोनॉमी यह इसके दूसरे नाम है सेंट्रली प्लान इकोनॉमी बाकी सोशलिस्ट इकोनॉमी जो है इसका य जो कांसेप्ट हम अभी पढ़ेंगे सोशलिस्ट इकोनॉमी य जो कांसेप्ट हम पढ़ेंगे यह बेसिकली दो लोगों ने प्रोपाउंडेड प्रोपाउंडेड का मतलब होता है एक तरह से मतलब इसके बारे में बताना लोगों को लिखना इसके बारे में यह डिस्कवर करना समझ लो प्रोपाउंडेड बाय दो लोगों ने करा था दोनों के नाम याद रखने तो प्रोपाउंडेड बाय दोनों का नाम याद रखना है हाईलाइट कर लेते हैं इसीलिए कार्ल मार्क्स कार्ल मार्क्स का नाम शायद आपने सुना हो कभी है ना इनकी कोई किताबें भी पढ़ते पढ़ते होंगे आप कहां सुना हा कार्ल मार्क्स क्योंकि इन्होंने किताब भी लिखी थी बिल्कुल सही कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो है ना कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एफ आर ई डी ई आर आई सी एंजल्स ई एन जीई एल एस तो यह जो सोशलिस्ट इकोनॉमी का फंडा हम मतलब पढ़ेंगे समझेंगे देखेंगे कि भैया तानाशाही एक तरह से कह सकते हो मतलब इसमें क्या होगा इसमें रूल्स होंगे इसमें बिल्कुल उसका उल्टा इसमें मतलब एक अथॉरिटी होगी है ना इसमें सबके ऊपर एक बैठा होगा बड़ा आदमी बॉस अथॉरिटी अब चाहे उसको आप सरकार नाम दे दो है ना इसके एग्जांपल्स अभी लिखवा देता हूं चलो बादल में कि भाई इस तरह की इकोनॉमी को अगर देखना हो थोड़ा सा क्लोजल तो आप देख सकते हो नॉर्थ कोरिया नॉर्थ कोरिया का तो शायद आपने सुना ही होगा है ना तो उसमें है ना रूल्स है भाई ये नहीं करना वो नहीं करना वो नहीं करना ये नहीं करना वो नहीं पहनना ये नहीं पहनना हर जगह के मलब 100 तरह के रूल्स है तो ऊपर एक बैठा है अथॉरिटी बैठी है है ना नॉर्थ कोरिया चाइना भी कह सकते हो आप क्लोज है थोड़ा-थोड़ा और अर्लिया यूएसएसआर अब तो खैर खत्म हो गया यूएसएसआर 1990 में टूट गए लेकिन मतलब जो पहले जो यूएसएसआर हुआ करता था वह भी एक तरह से यह इसी का उदाहरण है कि भैया अथॉरिटी है रूल है फॉलो करना है सबको और कार्ल मार्क्स वाली बात लिख लेते हैं एरो डाल के कि कार्ल मार्क्स भाई ने एक किताब लिखी थी तो वह हमें पता होना चाहिए इस किताब का नाम था कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो 1848 में तो यह नाम याद रखना है कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो थोड़े से कम होते हैं प्रियांशु भाई बाकी यूएस भी मिक्स्ड ही है वैसे तो मैंने बताया था वो तो एक फीचर है बस तो यह सब जो एग्जांपल्स ये सब जो फीचर्स हम पढ़ते हैं आप बहुत ज्यादा इसको दिल पर मत लगाना प्रैक्टिकली जरूरी नहीं कि सारे फीचर बिल्कुल फिट हो जाए हर इकोनॉमी में कई बार बच्चा एक बच्चे ने डाउट पूछा कि सर यूएस में तो एजुकेशन अच्छी है तो आप कैसे कह रहे थे कि यूएस में मेरिट गुड कम है तो ऐसा नहीं है कि हर एक फीचर बिल्कुल अब अब जो हम यहां नीचे पढ़ेंगे मान लो अब आप बिल्कुल एक एक फीचर को फिट करो कि अरे सर ये तो चाइना में तो हो नहीं रहा है ना या आप कह दो सर ये तो नॉर्थ कोरिया में हो नहीं रहा तो ऐसा नहीं है यह तो एक एक स्टडी है और ये जो एग्जांपल्स हम लिख रहे हैं ना नॉर्थ कोरिया चाइना ये क्लोज है इस और हो सकता है कुछ फीचर्स ही मैच करें कुछ ना करें तो ऐसा बिल्कुल दिल पर मत लगा लेना कि यह जो हम लिख रहे हैं बिल्कुल पत्थर की लकीर और सारी इनम से वर्ड बाय वर्ड मैच करेगा ऐसा नहीं है बट हा यह एक फीचर है कि इस तरह की इकोनोमिया में होता क्या है क्या हो सकता है किस तरह की बातें आपको देखने को मिलेंगी वह होगा बाकी अब हम इसकी स्टडी जब करेंगे तो एक माइंड सेट लेकर चलते हैं कि मान लो आप सड़क पर जा रहे हो ठीक है और एक आदमी के पैर में हल्की सी मोच आ गई और इधर 500 करोड़ रुपए रखे तो आप किधर भागोगे आपको उसकी मोच ठीक करने जाना है ठीक है उसके पैर की मोच ठीक करने के लिए उसको अस्पताल लेकर जाना है ठीक है तो क्लियर है भाइयों बहनों य यह सोचना है आपको तो तो इस इकोनॉमी में हम सबका मोटिव क्या है सोशल और प् वेलफेयर ठीक है हमें पैसों की कोई चिंता नहीं है मतलब हमारे पैसों की तरफ हमारा कोई मोह नहीं है क्योंकि पैसा सिर्फ हमारे लिए हाथ की मैल है और हमें पैसे की कोई जरूरत नहीं है हमारी सोच क्या है हमें हमारा जन्म क्यों हुआ है सिर्फ समाज की भलाई करने के लिए ठीक है यह हमारी सोच है चलो तो यही सोचना है तभी फीचर्स फिट बैठेंगे अगर सोच चेंज कर ली अपनी गंदी वाली ले आई वापस तो फीचर फिट नहीं होंगे फिर चलो तो वही करते हैं तो अब हम इस इकोनॉमी की स्टडी करते हैं तो अब आपके लिए बहुत आसान हो जाएगा क्योंकि अब आपने कैपिटिस पढ़ ली ना तो अब बिल्कुल उसके उल्टा उल्टा चलता रहेगा मोटा-मोटा तो आपको बड़ा इजी लगेगा तो फीचर्स मेरिटस और डी मेरिट फीचर्स मेरिटस और डी मेरिटस और वही टेबुलर फॉर्मेट बना लेना बड़ा सा तो पहले हम फीचर्स लिख लेंगे फिर उसके बाद उसी में से मेरिट डी मेरिट लिख लेे तो पहले फीचर्स में लिखते नंबर वन अब उसमें तो प्राइवेट प्रॉपर्टी था इसमें हमको लिखना है फीचर्स में पहला कलेक्टिव ओनरशिप कलेक्टिव ओनरशिप कलेक्टिव ओनरशिप का मतलब यह है कि यहां पर कभी भी सरकार क्योंकि यहां पर एक अथॉरिटी होती है वह कभी भी ऐसा नहीं होने देगी कि सारे रिसोर्स या सारा कंट्रोल किसी एक ओनर के पास हो इस इकोनॉमी में ऐसा होना मुश्किल है कि एक आदमी ही बहुत रिच है या दो आदमी ही बहुत रिच है जो ज्यादा ओनरशिप रख रहे हैं नहीं यहां पर सरकार क्योंकि मोटिव होता है कि भाई हमें समाज की भलाई रखनी है सबका मतलब ध्यान रखना है तो वह किसी एक को कभी भी बहुत ज्यादा अमीर नहीं करेंगे यहां पर हमारा मोटिव क्या होगा समाज की भलाई करनी है कि सबको समान रखें सबको मतलब बराबर रखें जितना हो सके तो यहां पर इसीलिए रिसोर्सेस जो होते हैं ओनरशिप जो होती है वो मिलजुलकर सभी को दी जाती यहां पर यह मतलब है कलेक्टिव ओनरशिप इस इकोनॉमी में समझ गए क्योंकि यहां का मोटिव पैसा कमाने का नहीं है यहां का मोटिव है समाज की भलाई करना और समाज की भलाई कब होगी जब सब लोग समान होंगे भेदभाव नहीं होगा तो इसको इसलिए बोलते हैं कलेक्टिव ओनरशिप दूसरा फीचर होता है इसमें इकोनॉमिक प्लानिंग यहां पर प्लानिंग की जाती है यहां पर प्लांस बनाए जाते फाइ ईयर प्लांस बनाए जाते हैं तो यहां पर इकोनॉमी को चलाने के लिए प्लानिंग की जाती है है ना तो आपने शायद सुना भी होगा इंडिया में भी करते हैं बहुत सारे कंट्रीज करते हैं इकोनॉमिक प्लानिंग तीसरा फीचर नो कंज्यूमर चॉइस अब वहां पर तो फ्रीडम थी कंज्यूमर के पास कुछ भी खरीद लो अब नॉर्थ कोरिया में जाओ खरीदो को है ना तो पता चल जाएगा क्योंकि वहां पर नहीं है चॉइस है ना तो ऐसी इकोनॉमी में जहां पर नियंत्रण रखा जाता है रूल्स बनाए जाते हैं एक सरकार है जो चीजें डिसाइड कर रही है पब्लिक के वेलफेयर के लिए तो फिर वह पब्लिक के वेलफेयर के लिए कभी भी गलत चीज या फ्रीडम नहीं देगी है ना तो यहां पर कंज्यूमर के पास चॉइस नहीं होती नो कंज्यूमर चॉइस फोर्थ फीचर रिलेटिवली इक्वल इनकम डिस्ट्रीब्यूशन रिलेटिवली इक्वल इनकम डिस्ट्रीब्यूशन तो सरकार का मोटिव है समाज की भलाई करना तो समाज की भलाई के लिए सरकार इनकम का डिस्ट्रीब्यूशन कैसा रखना चाहेगी इक्वल रखना चाहिए अमीर गरीब का भेदभाव कम होगा है ना फिथ मिनिमम [संगीत] रोल ऑफ प्राइस मैकेनिज्म मिनिमम रोल ऑफ प्राइस मैकेनिज्म प्राइस मैकेनिज्म का बिल्कुल कम से कम रोल होगा न्यूनतम रोल होगा और प्राइस मैकेनिज्म समझ गए क्या होता है वही ब्रैकेट में लिख लो मतलब डिमांड एंड सप्लाई जो आपने ऊपर बनाया था ना उसमें अब उसमें तो पूरा रोल होता है डिमांड एंड सप्लाई का यहां पर डिमांड एंड सप्लाई का बहुत कम रोल होता है क्योंकि यहां पर सारी चीजें सरकार डिसाइड करती है इस इकोनॉमी में तो यहां पर डिमांड सप्लाई के हिसाब से नहीं चलेगा क्योंकि अगर डिमांड सप्लाई पे छोड़ दिया फिर तो कंज्यूमर फिर से कहेगा मुझे कोकेन चाहिए या ड्रग्स चाहिए अल्कोहल तो यहां पर डिमांड सप्लाई का बहुत ना के बराबर रोल होता है प्राइस मैकेनिज्म बहुत कम होता है इस इकोनॉमी के अंदर सिक्स एब्सेंट ऑफ कंपटीशन इस इकोनॉमी में कंपटीशन भी नहीं होगा बताओ कंपटीशन क्यों नहीं होगा एक तो गवर्नमेंट का कंट्रोल रहता है और फिर जब हमारा मोटिव ही नहीं है प्रॉफिट का हम सब तो क्या सोच रहे हैं वेलफेयर करना है तो भाई जब हम सोच ही रहे हैं कि समाज की भलाई करनी है हमको तो हमारा तो जन्म इसलिए हुआ है तो अब ऐसे में क्या कंपीट करेंगे हम क्या प्रतिस्पर्धा करेंगे है ना भाई मान लो आपकी सोच ये हो जाए कि भाई मुझे पैसे तो कमाने ही नहीं है तो फिर आप कंपीट क्या ही करोगे किसी से कोई नहीं करोगे तो आपका फीलिंग कंपटीशन का होगा ही नहीं क्योंकि आपका मोटिव ही नहीं है व आपका मोटिव तो सोशल वेलफेयर का है और सेवंथ जो हमने पढ़ लिया ओबवियसली सोशल वेलफेयर मोटिव इस इकोनॉमी में जो मेन मोटिव होता है या ये जो इकोनॉमी है ये जो ड्रिवन होती है यह सोशल वेलफेयर मोटिव से ड्रिवन होती है तो यहां पर हमारा उद्देश्य है इकोनॉमी का जन कल्याण करने का कि भैया समाज की भलाई करनी है पैसे नहीं कमाने तो समझ आ गया फीचर तो फीचर इसमें यही सेवन फीचर्स है सिंपल अब इसके कुछ मेरिटस लिख लेते हैं इस इकोनॉमी में फायदा क्या है बताओ समझ आ गया कोई डाउट तो नहीं है ठीक ठीक है तो मेरिट बताओ एक ही एक बड़ा मेरिट बताओ इस इकोनॉमी का हां बिल्कुल सही तो एक तो हो गया इक्विटेबल डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ इस इकोनॉमी का यह फायदा है कि वेल्थ का डिस्ट्रीब्यूशन बराबर सा रहेगा अमीर गरीब में भेदभाव कम रहेगा क्योंकि य सबको बराबर लेकर चलती है सरकार सबको बराबर रखने की कोशिश करती है सरकार तो इसीलिए इनकम का डिस्ट्रीब्यूशन इक्वल सा रहेगा इक्विटेबल रहेगा दूसरा फायदा बैलेंस्ड इकोनॉमिक डेवलपमेंट बैलेंस्ड इकोनॉमिक डेवलपमेंट बैलेंसड इकोनॉमिक डेवलपमेंट का मतलब है कि जो डेवलपमेंट होगा वो बैलेंस्ड होगा यानी कि ऐसा नहीं है कि एक सेक्शन तो बहुत डेवलप कर गया अमीर बहुत अच्छे हो गए गरीब रह गए ऐसा नहीं होगा बैलेंस डेवलपमेंट का मतलब होता है जब समाज के हर सेक्शन ऑफ द सोसाइटी डेवलप करे तो उस डेवलपमेंट को कहते हैं बैलेंस डेवलपमेंट है ना तो क्लास में मतलब एक बच्चे के 100 आ गए 100 में से 100 बाकी 90 बच्चे फेल हो गए तो ये बैलेंस लप नहीं सब जने 75 मार्क्स ला रहे हैं पहले 40 लाते थे तो हम इसको कहेंगे बैलेंस डेवलप सेम चीज कंट्री और इकोनॉमी के अंदर है तो इस इकोनॉमी में डेवलपमेंट थोड़ा सा बैलेंस रहेगा तीसरा नो वेस्टेज ऑफ रिसोर्सेस नो वेस्टेज ऑफ रिसोर्सेस ऑन एडवर्टाइजमेंट इस इकोनॉमी में एड मेंट पर कोई वेस्ट नहीं करेगा रिसोर्स बताओ क्यों वेस्ट नहीं होगा एडवर्टाइजमेंट पर कोई रिसोर्स क्योंकि कोई प्रॉफिट मोटिव के लिए काम ही नहीं कर रहे अब हम एडवर्टाइज क्या करेंगे हम सबका मोटिव है समाज की भलाई करना तो हम क्या एडवर्टाइज करेंगे कि अगर आपके पैर में मोच आ गई तो मुझे बुलाना या अगर आपको दर्द हो तो मैं आऊंगा पहले तो हम क्या एडवर्टाइज करेंगे हमें को सामान तो बे नहीं ना पैसे कमाने तो इस इकोनॉमी में एडवर्टाइजमेंट का खर्चा नहीं होता या रिसोर्सेस बहुत कम वेस्ट होते हैं ऑन एडवर्टाइजमेंट क्योंकि हम प्रॉफिट मोटिव के लिए काम नहीं करते फोर्थ फायदा लेस अनम पलय मेंट एंड बिजनेस फ्लकचुएशंस लेस अनइंप्लॉयमेंट एंड बिजनेस फ्लक्ट एश उतार चढ़ाव तो इस इकोनॉमी में फायदा यह है कि बेरोजगारी कम होगी क्योंकि कोई नौकरी से तो निकालेगा नहीं और इसीलिए बिजनेस में भी उतार चढ़ाव कम होंगे क्योंकि यहां के लोगों की सोच ही क्या है कि बिजनेस कर रहे हैं तो अगर कर भी रहे हैं तो पैसे नहीं कमाने के लिए करना मोटिव ही अलग तो जो चल रहा है चलने दो जीवन शांति से चल रहा है चलने दो तो उठापटक कम होगी ऐसे है ना तो इसीलिए अन एंप्लॉयमेंट कम होगा बिजनेस फ्लुएंस कम होंगे पांचवा फायदा य आपके लिए अच्छी बात इंश्योर्स राइट टू वर्क एंड फ्रीडम फ्रॉम हंगर इंश्योर्स राइट टू वर्क एंड फ्रीडम फ्रॉम हंगर तो इस इकोनॉमी में क्योंकि हमें समाज की भलाई करनी है लोगों की भलाई करनी है तो यहां पर सरकार यह जरूर सोचेगी कि सबको काम मिले तो इंश्योर्स राइट टू वर्क तो चाहे आप नकारा भी हो तब भी सरकार आपको कुछ काम देगी और आपको भूखे नहीं मरने देगी तो इसीलिए फ्रीडम फ्रॉम हंगर तो इस इकोनॉमी में हर किसी का ध्यान रखा जाएगा कि भाई काम मिले और भूखा ना मरे तो इसीलिए यहां पर इस इकोनॉमी में फायदा है कि आपको काम भी मिलेगा उसका भी अधिकार मिलेगा और आप भूखे भी नहीं रहोगे फ्रीडम फ्रॉम हंगर और छठा फायदा भी लिख लेते हैं लेबरर्स आर प्रोटेक्टेड फ्रॉम एक्सप्लोइटेशन लेबरर्स आर प्रोटेक्टेड फ्रॉम एक्सप्लोइटेशन मजदूरों का शोषण कम होगा यहां पर कैपिट इकोनॉमी अगर सोचो दिमाग में तो कैपिट इस्ट इकोनॉमी में तो मजदूरों का शोषण बहुत होगा क्योंकि वहां पर तो मोटिव है प्रॉफिट कमाने का तो वहां पर तो मजदूर से 1415 घंटे काम करवाएंगे है ना शोषण करेंगे पैसे भी कम देंगे लेकिन इस इकोनॉमी में मजदूर जो है उनका शोषण काफी कम होगा क्योंकि मोटिव प्रॉफिट का नहीं है और उल्टा भलाई करने का सरकार भी सोचेगी कि इनका हमें अच्छा करना है तो इस इकोनॉमी में लेबरर्स का एक्सप्लोइटेशन कम तो क्लियर हो गए फायदे अब इसके कुछ नुकसान बताओ इस इकोनॉमी में इस इकोनॉमी का नुकसान क्या होगा हा इनएफिशिएंसी जब आपको पता चल जाएगा कि भाई खाने की चिंता नहीं काम की चिंता नहीं सरकार दे ही देगी तो आप क्या हो जाओगे नकारा निकम में इनएफिशिएंसी कॉमा और क्या हो जाएगा रेड टेपिस्म तो रेड टेपिस्म मतलब रेड मतलब क्या होता है लाल फीता शही हा लाल फीता शही मतलब बाबू के दफ्तर के चक्कर लगाते रहो बाबू कह रहा है पहले नोट रखो फाइल प उसके पास जाओ इसके पास जाओ परसों आना नर्सों आना सब यह लालफीताशाही होती रगी क्योंकि भाई बाबू को पता है कि भाई पैसे तो मिल नहीं है नौकरी से कोई निकाल नहीं सकता तो ऐसी इकोनॉमी में फिर यह सब बातें थोड़ा ज्यादा हो जाती है है ना यही कैपिट इकोनॉमी होती तो उसे डर होता भैया य कस्टमर आया ये कंप्लेन कर देगा तो नौकरी जाएगी अब इस इकोनॉमी में ना उसे नौकरी जाने का डर पैसे उसे पता है मिल ही जाने हैं तो वो इन वहां पे लाल फीता चाहिए रेड टेपिस्म चलता रहेगा कि उसके बाद जाओ इसके पास जाओ और वही तीसरा भी इसी का भाई है करप्शन तो इस इकोनॉमी में थोड़ा सा यह सब चीजें ज्यादा होती है एस कंपेयर टू कैपिट क्योंकि इसके फीचर इस तरह के हो गए क्योंकि सरकार है सरकार का नियंत्रण है तो सारे सरकारी बाबू ओबवियसली फिर क्या करेंगे यही सब करेंगे कहीं ना कहीं कहीं ना कहीं है तो इस इकोनॉमी में थोड़ा सा यह होने का मतलब डी मेरिट हो जाता है दूसरा डी मेरिट आपने फीचर में लिख रखा है लेस फ्रीडम ऑफ चॉइस यह डी मेरिट है कि भाई आपके पास चॉइस की थोड़ी कमी रहेगी आप यह नहीं खा सकते वो नहीं पहन सकते वहां नहीं जा सकते यह नहीं कर सकते वो नहीं कर सकते तो थोड़ा सा मतलब फ्रीडम जो है वो आपको यहां पर कम मिलेगी तो यह भी डी मेरिट है तीसरा डी मेरिट है नो इंसेंटिव फॉर हार्ड वर्क इन फॉर्म ऑफ प्रॉफिट नो इंसेंटिव फॉर हार्डवर्क इन फॉर्म ऑफ प्रॉफिट अब यह इकोनॉमी प्रॉफिट ड्रिवन तो है नहीं इस इकोनॉमी में तो सोच है भाई ठीक है समाज की सेवा करनी है अब आप मेहनती हो आप गलती से इस इकोनॉमी में पैदा हो गए आप 16 घंटे 15 घंटे काम कर रहे हो हार्ड वर्क कर रहे हो अच्छा काम कर रहे हो लेकिन यह इकोनॉमी आपको कोई ऐसा रिवर्ड नहीं देगी क्योंकि इकोनॉमी में आपके अकेले काम करने से तो क्या ही हो जाएगा या मतलब आप कर भी रहे हो काम अच्छा ज्यादा तो कोई इंसेंटिव नहीं है क्योंकि आपका मोटिव तो है नहीं पैसा ज्यादा कमाने का तो इस इकोनॉमी में रिवर्ड नहीं मिलेंगे आपको जितना कैपिट में मिलेंगे तो यह भी एक डी मेरिट हो गया नो इंसेंटिव फॉर हार्ड वर्क और इसी तरह चौथा डी मेरिट है एडमिनिस्टर्ड प्राइस एस्टड प्राइसेस एडमिनिस्टर्ड प्राइसेस का मतलब होता है कि हर चीज का जो दाम है हर प्रोडक्ट का जो प्राइस है वो गवर्नमेंट डिसाइड कर रही है निर्धारित होंगे तो यहां पर डिमांड सप्लाई से कुछ नहीं होगा तो हर दाम एडमिनिस्टर्ड है एडमिनिस्टर्ड मतलब गवर्नमेंट डिसाइड कर रही है तो यह भी कहीं बार डी मेरिट हो जाता है प्रोड्यूसर कहता है यार मैंने इतनी मेहनत से ये फोन बनाया और सरकार कह रही है इसको तो 00 में बेच दो तो दिक्कत हो जाती है डी मेरिट हो जाता है प्रोड्यूसर और पांचवा डी मेरिट हो इस पांच डी मेरिट है व है स्टेट मोनोपोली जो खतरनाक बात है स्टेट मोनोपोली अगर मान लो सरकार ही मोनोपोली बना ले सरकार हीय सोच लेगी चलो अब इन सबको बेवकूफ बनाएंगे लेट्स से तो जो अथॉरिटी है स्टेट स्टेट का मतलब यहां पर है जो अथॉरिटी है तो अगर वही मोनोपोली क्रिएट कर ले अपनी तो फिर मतलब एक डी मेरिट भी बन सकता है फिर यह इकोनॉमी खतरनाक हो सकती है है ना भाई जो ऊपर शासक है अगर वह सबके बारे में अच्छा सोच रहा है तो अच्छी बात है और अगर उसने उसने ही शासक ने सोच लिया स्टेट ने सोच लिया मोनोपोली क्रिएट कर लेते हैं तो फिर यह इकोनॉमी उतनी ही खतरनाक भी हो जाएगी क्योंकि इस इकोनॉमी में डेमोक्रेटिक फ्रेमवर्क तो है नहीं चॉइस तो किसी के पास है नहीं तो ये फिर डी मेरिड भी बन सकता है तो इसीलिए इसको बोलते हैं स्टेट मोनोपोली तो क्लियर हो ग पहले ठीक है तो प्रैक्टिकली तो हम ना कैपिट होते ना सोशलिस्ट होते तो अब हम एक बड़ा सा बादल बनाते हैं इसके नीचे कि एक्चुअल में या प्रैक्टिकली तो सारी इकोनोमिया कैसी इकोनोमिया होती है मिक्सड इनम मिक्स में कुछ भी नहीं लिखना तो मिक्सड इकोनॉमी तो बस आप बादल में लिखना पहले तो और मिक्सड इकोनॉमी का मतलब है कि इसमें कितने सेक्टर होते हैं तीन सेक्टर होते हैं तो प्रैक्टिकली सारी इकोनॉमी ऑलमोस्ट ऑलमोस्ट मिक्सड इकोनोमिया होती है तो यह अपने आप में कोई ऐसी इकोनॉमी नहीं कि अलग से कुछ हम पढ़ रहे हैं तो मिक्सड का मतलब होता है नीचे लिखेंगे भी कि इसमें कैपिट भी और सोशलिस्ट भी दोनों ही इनम के बेनिफिट्स होते हैं उनको मिला दिया जाता है तो व मिक्सड बन जाती है तो बस इसमें इसीलिए तीन सेक्टर पाए जाते हैं तो पहला लिख लेते हैं नाम प्राइवेट सेक्टर दूसरा पब्लिक सेक्टर और तीसरा कंबाइंड सेक्टर तो इसका मतलब समझा देता हूं तो प्राइवेट सेक्टर का मतलब तो क्या हो गया कि भाई मान लो कोई ऐसी कंपनी जिसमें 100% हिस्सेदारी किसकी है प्राइवेट सेक्टर मतलब किसी अंत्रप्रेनोर की है है ना वो हो गया प्राइवेट सेक्टर पब्लिक सेक्टर मतलब हो गया जिसमें मान लो 100% हिस्सेदारी किसकी है सरकार की गवर्नमेंट की और कंबाइन सेक्टर ऐसा हो गया कि कोई ऐसी ऐसा सेक्टर है जिसमें प्राइवेट भी है और थोड़ा सा सरकार का भी हिस्सा है तो वह कंबाइन सेक्टर हो गया तो यह इकोनॉमी को मिक्स्ड इकोनॉमी कहते हैं तो यहां पर प्राइवेट के पास भी पावर्स है कहीं कहीं पर सरकार के पास भी पावर्स हैं कुछ डिसीजन सरकार लेती है कुछ डिसीजंस मार्केट लेता है तो मतलब इसमें बस हमें एक ही लाइन लिखनी है इस इकोनॉमी के बारे में ना कोई फीचर लिखने ना कोई मेरिट लिखना ना कोई डीमेट लिखना क्यों नहीं लिखना क्योंकि लिखो कि मिक्स्ड इकोनॉमी का मतलब है बेनिफिट्स ऑफ कैपिट प्लस सोशलिस्ट तो मिक्सड इकोनॉमी अपने आप में मतलब कोई ऐसा नहीं कि कोई इकोनॉमी है यह तो एक हमारा अपना बनाया हुआ कांसेप्ट है कि कुछ फीचर्स हमने कैपिट के जो अच्छे लगे वो ले लिए कुछ फीचर जो सोशलिस्ट के अच्छे लगे वो ले लिए दोनों को कंबाइन कर दिया तो वह हम कह रहे हैं मिक्स है ना तो मिक्सड इकोनॉमी मतलब कोई टॉपिक की तरह मत समझना है तो सिंपली बस मिक्सचर है कैपिट का और सोशलिस्ट का लेकिन स्टडी के पर्सपेक्टिव से आप यही मानना कि दो तरह की इकोनोमिया होती है एक हो गई कैपिट और एक हो गई सोशलिस्ट है अच्छा अब मेन मुद्दा तो रही गया लास्ट मुद्दा तो हम कौन से सागर के अंदर गोते लगा रहे हैं हमें तो समस्याओं का समाधान मुझे तो समस्याओं का सोल्यूशन लिखवाना था मुझे तो यह लिखवाना है ना कि इन प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन क्या है वो तो बीच रास्ते में हम खो गए मैंने कहा था सॉल्यूशन तो मैं तब लिखवा आंगा पहले मैं यह तो बता दूं कि इकोनोमिया दो प्रकार की होती है क्योंकि सॉल्यूशन कैपिट में अलग है और सोशलिस्ट में अलग तो अब वो लिख लेते हैं सॉल्यूशन ताकि हम चैप्टर को समापन कर सके ना तभी तो सॉल्यूशन के बिना तो आप घर जाओगे तो आपको नींद ही नहीं आएगी रात को प्रॉब्लम तो बता दी सर ने अब प्रॉब्लम लेके घर आ गए हम अब सॉल्यूशन क्या है वो तो लिख ले तो बस छोटा सा सॉल्यूशन है हेडिंग डाल देते हैं सॉल्यूशंस टू सेंट्रल प्रॉब्लम्स कि भाई अब सॉल्यूशंस क्या है सर यह बताओ ना कि सेंट्रल प्रॉब्लम्स के सॉल्यूशंस क्या है तो इसके लिए हम एक बॉक्स बना लेते हैं पढ़ने देखने में अच्छा लगेगा तो हम इसमें सिर्फ तीन ही प्रॉब्लम के सॉल्यूशन बताते हैं चौथी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन जो है व हम नहीं बताते क्योंकि उसका कोई सॉल्यूशन ऐसे लिखने का नहीं है तो बस हम तीन ही प्रॉब्लम्स के सॉल्यूशन बताते हैं तो तीन प्रॉब्लम का मैं नाम लिख देता हूं पहली प्रॉब्लम कौन सी थी व्हाट टू प्रोड्यूस दूसरी प्रॉब्लम कौन सी थी हाउ टू प्रोड्यूस और तीसरी प्रॉब्लम कौन सी थी फॉर होम टू प्रोड्यूस है ना तो ये तो हो गई प्रॉब्लम अब सॉल्यूशन मैं लिखूंगा बीच में लिखूंगा अभी लेकिन किस इकोनॉमी में क्या सॉल्यूशन है इसलिए दो तरह की इकोनॉमी है तो मैं एक लिख लेता हूं कैपिट और एक लिख लेता हूं सोशलिस्ट तो हम अपने सॉल्यूशन बीच में लिखेंगे बस खत्म हो जाएगा फिर चैप्टर भी खत्म हो जाएगा हमें मेन तो यही पढ़ना था इसम प्रॉब्लम क्या है सोल्यूशन क्या है तो सोल्यूशन अभी बीच में लिख लेंगे लेकिन हा दोनों तरह की इकोनॉमी में सोल्यूशन अलग होते हैं कैपिटल में अलग होगा सोशलिस्ट में अलग होगा क्योंकि दोनों का सोच अलग है दोनों का मोटिव अलग है काम अलग तरह से रही तो पहले आप यह बना लो बक्सा चलो तो पहले हम कैपिट वाला सोचते हैं तो पहले हम अपनी स्टडी सॉल्यूशन लिखने के लिए पहले अपने माइंड में यही सोचते हैं कि वही कैपिट इकोनॉमी है तो क्या दिमाग में सोच रहे हैं हम कि हम सबका मोटिव क्या है प्रॉफिट कमाने का है ना वही सोच रखनी है तो अब मैं वन बाय वन प्रॉब्लम डिस्कस कर लेता हूं फिर सॉल्यूशन लिख लेंगे अब पहली प्रॉब्लम यह थी एक नमी के सामने की क्या बनाए क्या और कितना बनाए है ना तो क्या ही मान लो चलो क्या बनाए तो आप यह बताओ कैपिट इकोनॉमी क्या बनाएगी कैपिटल गुडस मशीने बनाएगी डिमांड जिसकी ज्यादा देखो मशीने आपने बना भी ठीक मान लो आपने बहुत सारी मशीने बना ग्राहक एक भी नहीं है क्या करोगे यह इकोनॉमी तो किस लिए काम कर प्रॉफिट के लिए तो यह इकोनॉमी तो पता है क्या बनाएगी जिस चीज की डिमांड आपने कहा सर कोकेन खरीदना है मैं वो बनाऊंगा आपने कहा सर जूते खरीदने मैं वो बनाऊंगा आपने कहा मुझे शर्ट खरीदनी है मैं वो बनाऊंगा क्योंकि यह इकोनॉमी का मोटिव क्या है प्रॉफिट कमाना तो यह इकोनॉमी क्या बनाएगी जो कंज्यूमर चाहता है म और सिंपल भाषा में बोलू ये इकोनॉमी क्या बनाएगी जो कंज्यूमर चाहता है तो यही इसका सॉल्यूशन है तो इसमें सॉल्यूशन लिखते हैं जी न बेसिस ऑफ कंज्यूमर्स प्रेफरेंस तो की वर्ड हो गए कंज्यूमर्स प्रेफर तो जो जनता चाहेगी यह इकोनॉमी वह बनाएगी सिंपल तो जो जनता चाहती है यह इकोनॉमी वह बनाती है ठीक है समझ आ [संगीत] गया अब दूसरी समस्या थी चलो वो तो सोच लिया क्या बनाएंगे कैसे बनाएगी मतलब कैपिटल इंटेंसिव या लेबर इंटेंसिव कैसे बनाएगी जिसमें कॉस्ट कम हो बिल्कुल सही क्योंकि इनका मोटिव तो पैसे कमाने का है तो अगर इन्ह लगता है मशीन से खर्चा कमा आएगा तो य मशीन से बनाएंगे अगर इह लगता है लेबर सस्ती है तो लेबर से बनवाए क्य इनका इन इस इकोनॉमी का मोटिव तो क्या है पैसे कमाने तो ये इस हिसाब से सोचेंगे कि मजदूर है मशीन है यह तो देखेंगे किसम कॉस्ट कम आए और यही आंसर है यही सोल्यूशन है तो लिख लेते हैं लीस्ट कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन यह उसी तरीके से बनवाए बनाएंगे जिसमें खर्चा सबसे कम आएगा तो जहां मजदूर सस्ता है तो मजदूर जहां मशीन सस्ता है तो मशीन तो इनको लीस्ट कॉस्ट कर प्रोडक्शन यह तो बहुत ही सिंपल है वैसे तो किसके लिए यह इकोनॉमी किसको गुड्स बेचने में इंटरेस्टेड होगी जिसके पास ज्यादा पैसे रिच ओबवियसली अब ये इकोनॉमी गरीब के लिए तो बनाएगी नहीं रप का नमक तो इनको तो क्या बनाने में मजा आएगा किसके लिए गुड्स बनाएगी इकोनॉमी तो अमीरों के लिए क्योंकि तभी पैसे कमा सकते हैं तो यही इसमें लिखना है तो इसमें हो गया किसके लिए बनाएगी तो इसका आंसर होता है हु हैव बाइंग कैपेसिटी वर्ड यही लिखना है मन में चाहे अमीर सोच लेना हु हैव बाइंग कैपेसिटी जिनके पास खरीदने की क्षमता होती है यह उसी के लिए गुड्स [संगीत] बनाएंगे तो देखो है ना अपना सिंपल सॉल्यूशन लेकिन यह सॉल्यूशन इस इकोनॉमी में तो नहीं चलेंगे नीचे वाली में है ना तो कैपिट के क्लियर हो गए कैसे करेगी काम वो ऐसे करेगी काम कैपिट इन अब सोच चेंज कर लेते हैं मतलब अब हम सोशलिस्ट बनके सोचते हैं कि भाई सरकार है एक और सरकार को समाज की भलाई करनी है यह वाली इकोनॉमी है तो इस इकोनॉमी में हमको सॉल्यूशन लिखना है कि भाई व्हाट टू प्रोड्यूस तो बताओ आप बच्चे की क्या बनाएगी इकोनॉमी जो और समाज के लिए क्या अच्छा है हॉस्पिटल हॉस्पिटल बनाएगी नेसेसिटी गुड्स बनाएगी लगजरी नहीं तो ये आपको कैसे पता तो इसमें यह इकोनॉमी क्या बनाएगी यह हमें नहीं पता तो इसका आंसर है इसका सॉल्यूशन है गवर्मेंट डिसाइड्स वो तो सरकार जो निर्धारित करेगी वो बनाएगी वो सरकार की मर्जी हमें क्या पता तो इस इकोनॉमी में क्योंकि कौन डिसाइड करता है गवर्नमेंट तो क्या बनाना है ये गवर्नमेंट डिसाइड करेगी अब कोई सोशलिस्ट इकोनॉमी ऐसी हो सकती है जहां की सरकार बोले नेसेसिटी गुड्स बनाओ कोई दूसरी सोशलिस्ट इकोनॉमी ऐसी हो सकती है जहां की सरकार बोले कि भाई कुछ और बना तो हर सोशलिस्ट इकोनॉमी की अपनी जो भी सरकार होगी वो डिसाइड करें कि क्या बनाना है क्योंकि यहां पर अथॉरिटी किसके पास है पावर किसके पास है सरकार के पास तो गवर्नमेंट डिसाइड्स क्या बनाए फिर कैसे बनाए हाउ टू प्रोड्यूस तो ये आपको कैसे पता ठीक है तो गलत आंसर है क्योंकि आपको कैसे पता कौन डिसाइड करेगा गवर्नमेंट डिसाइड तो हाउ टू प्रोड्यूस कैसे बनाना है यह तो उस सोशलिस्ट इकोनॉमी की जो अथॉरिटी है वो डिसाइड करेगी उनको लगता है मशीन सस्ती है और मशीन पर ज्यादा मजदूर काम करने को मिल जाएंगे तो तो उनको डिसाइड करना है उसे मशीन से बनवाए उन्हें लगता है हमारे य मजदूर सब नौकरी पर जाते हैं मान लो पहले से तो मशीन से बनवाए तो वह सरकार डिसाइड करेगी कि कैसे बनाना है फिर तीसरा है फॉर मम टू प्रोड्यूस किसके लिए बनाएंगे गुड्स यह इकोनॉमी दिमाग नहीं लगा रहे चलो तो समझदार हो गए आप तो किसके लिए बनाएगी वो भी गवर्नमेंट डिसाइड तो इस इकोनॉमी में हमारी कोई टेंशन नहीं सोशलिस्ट इकोनॉमी में क्योंकि सोशलिस्ट इकोनॉमी में एक ही अथॉरिटी है सरकार तो हर प्रॉब्लम का सलूशन कौन डिसाइड करता है सरकार गवर्नमेंट है ना तो सरकार को करना है हमें कोई दिमाग नहीं लगाना तो बस प्रॉब्लम हो गए और सलूशन हो क्लियर हो गई पूरी कहानी ठीक है तो बस आप इसको क्लोज कर सकते हो तो मतलब ये पूरा समाप्त हो गया सारी स्टोरी यही करनी न