हाय गाइज वेलकम बैक टू आवर चैनल सेंट्री शाला बाय सें सिटी आपका वेल्थ पार्टनर माय नेम इज अनुज एंड यू आर वाचिंग एनएम सीरीज 21 ए पास फॉर शर वीडियोस एनएम का जो पीएमएस डिस्ट्रीब्यूटर्स एग्जाम है उसकी वीडियोस हम बना रहे हैं और आज हम चैप्टर नंबर थ्री डिस्कस करने वाले हैं चैप्टर नंबर थ्री है इन्वेस्टिंग इन स्टॉक्स स्टॉक मार्केट में कैसे इन्वेस्टमेंट होती है चलिए देखते हैं कि आज इस चैप्टर में हम कौन-कौन से टॉपिक्स हैं जो कवर करेंगे सबसे पहले आ जाएगा आपका इन्वेस्टिंग इन स्टॉक में इक्विटी एज एन इन्वेस्टमेंट अपॉर्चुनिटी टाइप्स ऑफ रिस्क इवॉल्वड इन इक्विटी इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट ऑफ रिस्क थ्रू डायवर्सिफिकेशन द प्रोसेस ऑफ इक्विटी रिसर्च एंड स्टॉक सिलेक्शन और उसके बाद फंडामेंटल एंड टेक्निकल एनालिसिस ऑफ इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स सो आज हम इक्विटी के जितने भी एस्पेक्ट्स हैं वह सब कवर करने वाले हैं कि जो इक्विटी में इन्वेस्टमेंट्स है वह कैसे होती है इक्विटी में इन्वेस्टमेंट क्यों होती है इक्विटी में रिस्क क्या है डायवर्सिफिकेशन किसको बोलते हैं टेक्निकल एनालिसिस क्या है फंडामेंटल एनालिसिस क्या हैट स्टॉक को हम कैसे पिक कर सकते हैं कौन-कौन से रेशोसिनेशन है उसको करें और डिस इन्वेस्ट भी कर सकते हैं इन वेरियस इंस्ट्रूमेंट्स जो भी मार्केट में इंस्ट्रूमेंट्स ट्रेड होते हैं चाहे वह इक्विटी हो डेट हो जिसके पास भी इन्वेस्टमेंट है जिसके पास भी सरप्लस पैसा है वह उसमें इन्वेस्टमेंट कर सकता है और एट एनी पॉइंट ऑफ टाइम व उसको लिक्विडेट भी कर सकता है यानी कि उससे सेल भी कर सकता है लिक्विडिटी रेफर्स टू द मार्केटेबिलिटी मीनिंग एक्जिस्टेंस ऑफ सेलर्स न वन नीड टू बाय मतलब लिक्विडिटी का मतलब है जब किसी को भी सेल करना हो तो उसके लिए मार्केट में बायर अवेलेबल हो यानी कि जब आप कोई भी सिक्योरिटी बाय कर रहे हैं तो उसके लिए आपको सेलर चाहिए और जब आप कोई भी सिक्योरिटी को सेल करना चाहते हैं यानी कि लिक्विडेट करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको बायर चाहिए होता है तो यह सारा सिक्योरिटीज मार्केट आपको इनेबल करता है और दो तरीके से मार्केट में एक कंपनी पैसा उठा सकती है सबसे पहले इक्विटी के जरिए और दूसरा है डेट के जरिए हम दोनों चीजें समझेंगे आज का जो यह टॉपिक है वो सिर्फ इक्विटी पे बेस्ड है इक्विटी एज एन इन्वेस्टमेंट जब भी कोई कंपनी इशू करती है इक्विटी सिक्योरिटीज को सो दिस इज नॉट अ कांट्रेक्चुअल ऑब्लिगेशन टू रिपे द अमाउंट इट रिसीव फ्रॉम शेयर होल्डर्स मतलब जब हम एक इक्विटी में निवेश करते हैं सो यह कोई भी कांट्रेक्चुअल ऑब्लिगेशन नहीं होती है कंपनी को कि वो कोई भी आपको अमाउंट रिपे करेगी अपने शेयर होल्डर्स को आपने जो इक्विटी में इन्वेस्टमेंट किया है वो आपको एक तरीके से आपने उस कंपनी के बिजनेस में इन्वेस्टमेंट किया है उस उतने प्रतिशत के आप उस बिजनेस के मालिक हैं और बिजनेस के पार्टिसिपेशन में आपका हाथ है तो कहने का मतलब यह है कि कंपनी के जो प्रॉफिट्स होंगे उसमें आपका उसी परसेंटेज से आपको मिलेगा पार्ट और कंपनी के लॉसेस में भी आपकी भागीदारी है तो इसीलिए इक्विटी जो इन्वेस्टर्स है कंपनी कोई भी ऑब्लिगेशन नहीं है कंपनी को कि वह आपको कुछ कैश फ्लो दे या सीरीज ऑफ कैश फ्लो दे या कोई भी ऐसी पेमेंट डिफाइंड नहीं होती है इक्विटी इन्वेस्टर्स को वोटिंग राइट भी मिलते हैं और एक अगर काफी अच्छे अमाउंट ऑफ शेयर्स आप किसी भी कंपनी में होल्ड करते हैं सो आपको अपॉर्चुनिटी भी मिलती है कि आप उस कंपनी के बिजनेस में पार्टिसिपेट कर पाएं या उसकी मैनेजमेंट में पार्टिसिपेट कर पाएं इक्विटी में जो इक्विटी शेयर्स में जो इन्वेस्टर इन्वेस्ट करते हैं वह दो तरीके से अपने कैपिटल को चाहते हैं कि वो बढ़े सबसे पहला है कैपिटल एप्रिसिएशन उन्होंने जो पैसा लगाया है वह चाहते हैं कि उसमें थोड़ा सा एप्रिसिएशन हो जाए और दूसरा है डिविडेंड इनकम का कि वह जो पर्टिकुलर सिक्योरिटी है या वो जो शेयर है या वह कंपनी है वो उनको डिविडेंड भी दे और दोनों ही केसेस में कंपनी की तरफ से से कोई एश्योरेंस नहीं है एक इक्विटी इन्वेस्टर को कि कैपिटल एप्रिसिएशन भी मिलेगा या डिविडेंड इनकम भी मिलेगी यह सिर्फ और सिर्फ डिपेंड करता है कंपनी के ऊपर डिविडेंड पेमेंट डिपेंड करती है प्रॉफिटेबिलिटी ऑफ द कंपनी पे और कैपिटल जो एप्रिसिएशन है वह डिपेंड करता है मार्केट कंडीशंस पे कि किस तरीके से कंपनी ग्रो कर रही है और किस तरीके से कंपनी के अर्निंग्स बढ़ रही हैं ओवर द पीरियड ऑफ टाइम उस हिसाब से फिर कंपनी का शेयर प्राइस बढ़ता है और जो इन्वेस्टर्स हैं जिन्होंने इन्वेस्ट कि गया इक्विटी को उनको रिटर्न मिलता है और कंपनी के पास अगर एपल प्रॉफिट्स हैं डिस्ट्रीब्यूटर्स अ डिविडेंड भी दे सकती है तो इक्विटी इन्वेस्टर्स को सो कोई एश्योरेंस नहीं है बट इ इक्विटी इन्वेस्टमेंट इन्हीं दो चीजों के लिए होती है फर्स्ट इज कैपिटल एप्रिसिएशन एंड सेकंड इज डिविडेंड इनकम अब देखिए डेट में इन्वेस्टमेंट करके एक रिस्क फ्री एसेट में इन्वेस्टमेंट करके एक इन्वेस्टर रिस्क फ्री रेट कमा सकता है अगर उसको स्टेबल रिटर्न चाहिए या उसको कुछ उसको उतना रिस्क नहीं नहीं लेना है लेकिन अगर वह एक हाईयर रिटर्न की डिमांड कर रहा है सो हो सकता है कि फिर उसको एक एडिशनल रिस्क लेना पड़ेगा इक्विटी में सो वो जो एडिशनल रिस्क है उसका जो कंपनसेशन मिलेगा उसको फिर वो जो होगी इक्विटी में जो हमें रिटर्न मिलता है वह हमें उसी चीज का कंपनसेशन है रिस्क का कंपनसेशन मिलता है जो हमने इक्विटी में इन्वेस्टमेंट करके लिया है आप रिस्क फ्री एसेट में पैसा लगाइए आप डेट में पैसा लगा सकते हैं गवर्नमेंट ऑफ इंडिया सिक्योरिटी में पैसे लगा सकते हैं जहां पर रिस्क नहीं है और वहां पर आप एक रिस्क फ्री रेट लगा वहां पर आप एक रिस्क फ्री रेट कमा सकते हैं बट इफ यू आर सीकिंग हाईयर रिटर्न सो डेफिनेटली यू हैव टू इन्वेस्ट इन इक्विटी शेयर्स अब बात करते हैं डायवर्सिफिकेशन ऑफ रिस्क थ्रू इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स जो इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स हैं उसमें आपना हम रिस्क डायवर्सिफाई कैसे कर सकते हैं देखिए जो इक्विटी में हम डायवर्सिफाई डायवर्सिफिकेशन के जरिए अपना कुछ हद तक जो रिस्क है वो रिड्यूस कर सकते हैं डायवर्सिफिकेशन दोनों तरीके से की जा सकती है बोथ ऑन क्रॉस सेक्शनल एंड एज वेल एज ऑन टाइम सीरीज बेसिस तो क्रॉस सेक्शनल भी आप डायवर्सिफिकेशन कर सकते हैं एंड ऑन टाइम सीरीज बेसिस भी आप डायवर्सिफिकेशन कर सकते हैं डायवर्सिफिकेशन करने का हमारा सिर्फ एक ही पर्पस है कि रिस्क को रिड्यूस करना हम हमेशा रिस्क को रिड्यूस करने के लिए डायवर्सिफिकेशन करते हैं और उन बिजनेस में पैसा लगाते हैं तो जो जो एक दूसरे से लेस को रिलेटेड है मतलब कहा जाता है और दे इ व सेइंग इन अ फाइनेंस की डोंट पुट योर ओल एग्स इन वन बास्केट मतलब इसका मतलब है इक्विटी में अगर मैं बात करूं तो इक्विटी इन्वेस्टर एक इन्वेस्टर को सिर्फ एक ही बिजनेस में पैसा नहीं लगाना है बट अक्रॉस द सेक्टर्स एंड रीजंस में एक इन्वेस्टर इन्वेस्टमेंट कर सकता है और अपना रिस्क को मिटिगेट कर सकता है और वह एक तरीके से डिफरेंट डिफरेंट बिजनेसेस के शेयर्स होल्ड करके अपना जो रिस्क है वो डायवर्सिफाई कर सकता है तो राद पुटिंग योर ऑल एग्स या ऑल इन्वेस्टमेंट इन अ वन पर्टिकुलर सिक्योरिटी या वन पर्टिकुलर कंपनी एंड इन्वेस्टर जो भी इन्वेस्टर है ही हैज टू डायवर्सिफाई डायवर्सिफाई हिज पोर्टफोलियो और वो बहुत डिफरेंट डिफरेंट अक्रॉस ऑल द सेक्टर्स या अक्रॉस ऑल द बिजनेसेस वो अपना पैसा लगा सकता है इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स की मैं बात कर रहा हूं तो एक बिजनेस के थ्रू नहीं जाके आप काफी सारे बिजनेस में पैसा लगा सकते हैं और अपना पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कर सकते हैं यहां पे सिर्फ इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स की बात कर रहा हूं मैं और जब हम डायवर्सिफिकेशन की बात करते हैं सो डायवर्सिफिकेशन जो है वो कांसेप्ट है बिजनेस साइकिल्स का और काउंटर साइक्लिकल बिजनेस का मतलब आप इस टेबल के जरिए समझते हैं बिजनेस साइकिल जो दिखाई गई है इसमें डार्क लाइन के जरिए दिखाई गई है तो कुछ बिजनेस हो सकता है कि वह अपने पीक पे हैं और कुछ बिजनेस पीक पे नहीं है वह अपने बिल्कुल डाउन वर्ड्स चल रहे हैं जैसे कि इसमें ब्रोकन लाइन में दिया गया है कि कुछ बिजनेसेस ऊपर हैं अपने बिल्कुल पीक में है कंपनी बहुत अच्छा कर रही है और कुछ बिजनेसेस बिल्कुल अच्छा नहीं कर रहे हैं वह बहुत ही लोअर लेवल पर चल रहे हैं उनका काम जो बहुत ही लोअर पे है मतलब उनके प्रॉफिट्स नहीं बढ़ रहे हैं और कंपनी बहुत ही हार्ड टाइम से गुजर रही है सो यह जो प्रोडक्ट है यह बिजनेस है दे आर कॉल्ड काउंटर साइक्लिकल और डिफेंसिव बिजनेस और इन्हीं प्रोडक्ट्स और बिजनेसेस को हम काउंटर साइक्लिकल और डिफेंसिव बिजनेस कहते हैं कुछ बिजनेस ऐसे होते हैं जो रिसेशन से रिसेशन में अच्छा परफॉर्म करते हैं उनको रिसेशन प्रूफ बिजनेस कहा जाता है कुछ सेक्टर्स और कुछ कंट्रीज ऐसी होती हैं जो रिसेशन से बहुत पहले ही वापस आ जाते हैं रिसेशन खत्म होने से पहले ही या रिसेशन रिसेशन जब चल रहा होता है रिसेशन से बाहर बहुत जल्दी आ जाती हैं और कुछ सेक्टर ऐसा होता है जो रिसेशन में चल रहा होता है रिसेशन से बाहर आने में बहुत टाइम लगता है उनको अब बात करते हैं रिस्क ऑफ इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स अब बात करते हैं रिस्क ऑफ इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स कि जब हम इक्विटी में इन्वेस्टमेंट करते हैं तो हमें वो कौन-कौन से रिस्क है जिनको झेलना पड़ता है चलिए समझते हैं सबसे पहला रिस्क आ जाता है मार्केट रिस्क देखिए मार्केट रिस्क कैसे अराइज होता है मार्केट रिस्क अराइज होता है फ्लक्ट एश इन द प्राइस ऑफ इक्विटी शेयर्स मतलब कोई भी मूवमेंट है जो इक्विटी शेयर्स के जो इक्विटी की जो सिक्योरिटी है वो पर सेकंड उसके प्राइसेस चेंज होते हैं फ्लकचुएशन होते रहते हैं पूरे दिन डिमांड एंड सप्लाई कोई कोई एक इन्वेस्टर बाय करना चाहता है किसी शेयर को एक इन्वेस्टर सेल करना चाहता है और एट एनी पर्टिकुलर ट्रेडिंग सेशन अगर इन्वेस्टमेंट्स बाइंग ज्यादा है और सेलर कम है तो वो स्टॉक ऊपर भी जाता है और जिसमें सेलिंग प्रेशर ज्यादा है यानी कि सेलर्स ज्यादा है बाइंग कम है तो फिर वो सेल उसमें सेलिंग प्रेशर स्टॉक में ज्यादा होता है और अगर ड्यूरिंग द वोलेटाइल टाइम्स मार्केट में वोलेटाइल ज्यादा है कि मार्केट को नहीं समझ आ रहा है कि बाय करना है सेल करना है तो बहुत ही ज्यादा ऊपर नीचे उस पर्टिकुलर सिक्योरिटी में हो जाता है सो दिस इज कॉल्ड मार्केट रिस्क मार्केट का यही रिस्क है कि जो प्राइस जो है बहुत तेजी से फ्लकचुएट हो सकता है आपकी सिक्योरिटी का आपने हो सकता है बाय किया और बाय करते ही विदन सेकंड्स वो प्राइस आपका नीचे आ जाए हो सकता है ऊपर भी आ जाए बट यही प्राइस की जो इक्विटी मार्केट में यही ही जो प्राइस की जो वोलेट है वह एक इन्वेस्टर को झेलनी पड़ती है मार्केट का जो रिस्क है वह मेजर होता है बीटा से एंड बी मार्केट बीटा इज ऑलवेज वन मार्केट रिस्क कैन नॉट बी डायवर्सिफाइड अवे दो इट कैन बी हेज्ड जो मार्केट का रिस्क है इसको आप डायवर्सिफाई नहीं कर सकते हैं यह जो मार्केट का रिस्क है जैसे फॉर ए एग्जांपल इंटरेस्ट रेट रिस्क आप यह चीजें डायवर्सिफाई नहीं कर सकते हैं यह पूरी मार्केट के ऊपर होती है यह रिस्क एक बिजनेस या एक पर्टिकुलर या शेयर या एक पर्टिकुलर कंपनी इस रिस्क से नहीं बच सकती है अगर यह मार्केट रिस्क है तो सब कंपनियों पे बराबर चलेगा सेक्टर स्पेसिफिक रिस्क देखिए कुछ रिस्क होते हैं कुछ सेक्टर स्पेसिफिक रिस्क होते हैं और ये इस तरीके के रिस्क को हम डायवर्सिफाई कर सकते हैं इस तरीके के रिस्क को हम डायवर्सिफाई कैसे कर सकते हैं इस तरीके के जो रिस्क है उनको डायवर्सिफाई कर सकते हैं बाय स्टेइंग अवे ऑफ इन्वेस्टमेंट्स मतलब इन सेक्टर्स में इन्वेस्टमेंट ना करके हम एक तरीके से इनको डायवर्सिफाई कर सकते हैं सो कोई सेक्टर स्पेसिफिक रिस्क है जैसे कि फॉर एन एग्जांपल आईटी है आईटी इफ आईटी इज नॉट परफॉर्मिंग वेल जो इंफ्रास्ट्रक्चर जो इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनीज हैं जो हमारी आईटी कंपनीज हैं अगर वह अच्छा नहीं कर रही हैं और गोइंग फॉरवर्ड आपको लग रहा है कि गोइंग फॉर फॉर द नेक्स्ट फ्यू क्वार्टर्स उनकी अर्निंग्स अच्छी नहीं चलेंगी सो आप उस सेक्टर में ही इन्वेस्टमेंट मत कीजिए और जब आप उस सेक्टर में इन्वेस्टमेंट नहीं करेंगे तो ऑटोमेटिक आप उस जो सेक्टर स्पेसिफिक रिस्क से बच जाएंगे उसके बाद आप इकॉनमी के डिफरेंट और सेक्टर्स में भी पैसा लगा सकते हैं कंपनी स्पेसिफिक रिस्क जो रिस्क अराइज होता है कंपनी स्पेसिफिक फैक्टर्स से वो पार्ट होता है नॉन मार्केट रिस्क का तो जैसे मैंने आपको बताया मार्केट रिस्क जो पूरी मार्केट पे एज अ होल काम करेगा बट कंपनी स्पेसिफिक रिस्क सिर्फ एक कंपनी स्पेसिफिक के रहेगा एंड दैट इज अ पार्ट ऑफ नॉन मार्केट रिस्क एंड दीज रिस्क कैन बी डायवर्सिफाइड अवे बहुत ही हमें ध्यान देने की जरूरत है यहां पर कंपनी स्पेसिफिक रिस्क को हम डायवर्सिफाई कर सकते हैं दैट वो भी अप टू नल तक हम इसको जीरो तक भी कर सकते हैं कंपनी स्पेसिफिक रिस्क को कंपनी स्पेसिफिक रिस्क अराइज होता है डिफरेंट फैक्टर्स से जो कम अफेक्ट करते हैं परफॉर्मेंस ऑफ अ सिंगल कंपनी की कोई भी फैक्टर ऐसा है जो उस कंपनी की परफॉर्मेंस को इफेक्ट कर सकता है दीज आर कॉल्ड कंपनी स्पेसिफिक रिस्क अदर फर्म्स जो हैं उसकी जो पियर कंपनीज हैं दूसरी अ फॉर्म्स हैं वह इससे अफेक्ट नहीं होते हैं सो एक तरीके से दिस रिस्क कैन बी डायवर्सिफाइड अवे इन्वेस्टिंग इन टू शेयर्स ऑफ डिफरेंट कंपनीज तो हम यह कैसे डायवर्सिफाई कर सकते हैं इस रिस्क को कि जो उसकी डिफरेंट कंपनीज हैं उनकी जो पेयर कंपनीज है उसी सेक्टर की जो डिफरेंट कंपनीज है हम उसमें पैसा लगा के इस रिस्क को डायवर्सिफाई कर सकते हैं लिक्विडिटी रिस्क देखिए लिक्विडिटी रिस्क इज मेजर्ड बाय द इंपैक्ट कॉस्ट इंपैक्ट कॉस्ट क्या होता है जो आपका लोअर मार्केट इंपैक्ट इंप्लाइज द स्टॉक इज मोर लिक्विड जब एक स्टॉक बहुत ही लिक्विड होता है मतलब बहुत सारे बायर्स और सेलर्स अवेलेबल हैं उस स्टॉक में बहुत अच्छी ट्रेडिंग हो रही है तो उसमें देखा गया है कि एक तरीके से कि जो आपकी इंपैक्ट कॉस्ट है वह बहुत कम है और अगर बहुत एक स्टॉक बहुत ही लेस लिक्विड है थिनली ट्रेडेड है एक सिंगल ट्रेड ही उसको बहुत ही जो उसके कंसीडर प्राइस हैं उसके जो प्राइसेस हैं उसको कंसीडरेबली मूव कर देते हैं सो माना जाता है कि ऐसे प्राइसेस जो ऐसे स्टॉक्स हैं उन परे बहुत ही हाई इंपैक्ट कॉस्ट आती है अब बात करते हैं ओवरव्यू इक्विटी मार्केट्स के कि इक्विटी मार्केट्स होती क्या है कैसे इनमें इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं और इन्वेस्टमेंट करने के बेनिफिट्स क्या हैं देखिए इक्विटी मार्केट्स रिप्रेजेंट करती हैं आपकी ओनरशिप ऑन अ कंपनीज नेट एसेट्स आपने जितने प्रतिशत से जिस कंपनी के शेयर्स खरीदे हैं ऐसा माना जाता है कि उतने प्रतिशत से आप उस कंपनी को ओन करते हैं मतलब इफ यू आर बाइंग 51 पर ऑफ अ इक्विटीज ऑफ अ पर्टिकुलर कंपनी तो आपके पास 51 प्र उस कंपनी के शेयर हैं तो एक तरीके से आप उस कंपनी को ही ओन कर रहे हैं या आप उस कंपनी के माल मालि है ऐसा समझा जाता है सो इक्विटी हमेशा ही आपकी जो ओनरशिप है उसको दिखाता है नॉर्मल इक्विटी शेयर्स कंपनी इशू करती है और उसमें पार्टिसिपेट आप कर सकते हैं इक्विटी शेयर्स बाय कर सकते हैं और उतने प्रतिशत से आप कंपनी में हिस्सेदारी ले सकते हैं एक इन एडिशन टू द इक्विटी शेयर्स कुछ कंपनीज इशू करती हैं प्रेफरेंस शेयर्स को इक्विटी शेयर्स से आगे प्रेफरेंस शेयर्स होते हैं कुछ प्रेफरेंस शेयर्स को मैं आपको बता दूं जो इक्विटी शेयर्स हैं के ऊपर रैंक किया जाता है विद रिस्पेक्ट टू द पेमेंट ऑफ डिविडेंड्स एंड डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कंपनीज नेट एसेट्स इन केस ऑफ लिक्विडेशन भी मतलब जब कंपनी लिक्विडेट होती है इन केस ऑफ लिक्विडेशन जब कंपनी लिक्विडेशन की अगर नौबत आ गई है कंपनी की कंपनी को लिक्विडेट करना पड़ रहा है या कंपनी के पास सरप्लस प्रॉफिट्स हैं और उनको डिविडेंड्स पेमेंट करनी है तो सबसे पहले जो नंबर आएगा वह प्रेफरेंस शेयर होल्डर्स का आएगा औरन प्रेफरेंस शेयर होल्डर्स को इक्विटी शेयर्स होल्डर्स के ऊपर रैंक किया जाता है प्रेफरेंशियल होल्डर्स के पास जनरली वोटिंग राइट्स नहीं होते हैं जैसे कि इक्विटी शेयर होल्डर्स के पास होते हैं और कुछ इनकी जो कैरेक्टरिस्टिक है वो डेट सिक्योरिटी जैसी भी होती है बिकॉज यहां पर एक फिक्स डिविडेंड पेमेंट मिलती है लाइक और एक तरीके से सिमिलर टू इक्विटी शेयर्स की एक तरीके से इक्विटी शेयर्स की तरह ही प्रेफरेंस शेयर्स परपे चुअल हो सकते हैं इनमें जो डिविडेंड्स मिलते हैं वो कमले इि भी हो सकते हैं नॉन कमले इि भी हो सकते हैं कमले मतलब आपको डिविडेंड्स कमले होता जाएगा बिल्कुल एंड में मिलता है और नॉन कमले इि में आपको ड्यूरिंग द टाइम डिविडेंड्स टाइम टू टाइम डिविडेंड्स मिलते रहते हैं एक नॉन पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर्स में आपको डिविडेंड पे किया जाता है एक फिक्स्ड रेट से और वो डिटरमाइंड नहीं करता कंपनी की अर्निंग्स पे इन स्पाइट ऑफ द कंपनी कंपनीज अर्निंग्स आपको उसमें डिविडेंड दिया जाएगा और फिक्स्ड रेट से दिया जाएगा अगर वो प्रेफरेंशियल नॉन पार्टिसिपेटिंग है तो और जो पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर होल्डर्स हैं उनको यह राइट है कि कुछ स्पेसिफाइड डिविडेंड्स मिल सकते हैं प्लस एन एडिशनल डिविडेंड उनको मिलेगा बेस्ड ऑन सम प्री स्पेसिफाइड कंडीशन मतलब जो नॉर्मल डिविडेंड्स मिल रहे हैं वो तो मिलेंगे ही एज अ नॉन पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर होल्डर को जो मिलते हैं वह भी मिलेंगे प्लस जो पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर होल्डर्स हैं उनको कुछ प्री स्पेसिफाइड कंडीशन के हिसाब से एक एडिशनल डिविडेंड दिया जाता है और पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर्स जो है उनको लिक्विडेशन में भी प्रेफरेंस दी जाती है यानी कि उनको जो शेयर्स अगर सेल करने हैं सो उनको सेलिंग में भी प्रेफरेंस दी जाएगी पहले पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर होल्डर्स को सेल किया के शेयर्स को कंपनी लिक्विडेट करने का मौका देगी उसके बाद नॉन पार्टिसिपेटिंग प्रेफरेंस शेयर्स होंगे लिक्विडेट प्रेफरेंस शेयर्स कैन आल्सो बी कन्वर्टिबल आप प्रेफरेंस शेयर्स को क कन्वर्ट कर सकते हैं इक्विटीज में जो कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर्स हैं वह शेयर होल्डर्स को एंटाइटल करते हैं कि आप कुछ स्पेसिफाइड नंबर ऑफ इक्विटी शेयर्स उसमें ले सकते हैं क्योंकि प्रेफरेंस शेयर्स कुछ कैरेक्टर्स जो उनके होते हैं इक्विटी शेयर जैसे होते हैं एट द सेम टाइम उनमें कुछ डेट सिक्योरिटीज के भी होते हैं इसीलिए उनको बोला जाता है लाइक हाइब्रिड और ब्लेंडे सिक्योरिटीज क्योंकि सीरीज ऑफ डिविडेंड्स या सीरीज ऑफ पेमेंट्स इनमें एक तरीके से होती है प्रेफरेंस शेयर्स में सो ये इसलिए बोला जाता है कि वो एक तरीके से ब्लैंड है वो हाइब्रिड है वो थोड़ा सा इक्विटी की भी उनमें कैरेक्टरिस्टिक हैं और उनमें कैरेक्टरिस्टिक डेट की भी है अब समझते हैं इक्विटी रिसर्च एंड स्टॉक सिलेक्शन सो इक्विटी रिसर्च हमें कैसे करनी है स्टॉक सिलेक्शन हम कैसे कर सकते हैं हमने मन बना लिया कि हम इक्विटी में पैसा लगा सकते हैं लेकिन इक्विटी में कहां पे इन्वेस्टमेंट करना है कैसे हम एक स्टॉक को पिक कर सकते हैं कौन-कौन सी चीजें हैं जो हम ध्यान दे सकते हैं इक्विटी कु जो रिसर्च वर्क है वो कैसे कर सकते हैं चलिए समझते हैं देखिए बहुत सारी अपॉर्चुनिटी अवेलेबल होती हैं इन्वेस्टर्स के लिए इक्विटी मार्केट में इसीलिए जो इक्विटी रिसर्च और स्टॉक सिलेक्शन का जो प्रोसेस है वह बहुत ही इंपॉर्टेंट रोल प्ले करता है जब आपको एक स्टॉक को आइडेंटिफिकेशन का प्रोसेस और इक्विटी रिसर्च काफी काम आता है जहां इक्विटी रिसर्च में बहुत ही अच्छे तरीके से एनालिसिस होती है कंपनी की एनालिसिस होती है कंपनी के एनवायरमेंट की कंपनी के फाइनेंशियल नॉन फाइनेंशियल इंफॉर्मेशन देखी जाती है वहां पे डायनामिक्स ऑफ सेक्टर जो जिस कंपनी जिससे बिलोंग करती है वह देखा जाता है कंपनी के कंपट देखे जाते हैं इकोनॉमिक कंडीशंस वगैरह यह सारी चीजें जज की जाती हैं इक्विटी रिसर्च के जरिए देखिए इक्विटी रिसर्च करने का बेनिफिट क्या है हम रिसर्च क्यों कर रहे हैं जैसे कि मैंने आपको बताया एक जो आइडिया है बिहाइंड इक्विटी रिसर्च सो मेन पर्पस ऑफ इक्विटी रिसर्च या आइडिया बिहाइंड द इक्विटी रिसर्च यही है कि टू कम अप विद द इंट्रिसिक वैल्यू ऑफ़ द स्टॉक टू कंपेयर विद द मार्केट प्राइस मतलब हमें जो एक स्टॉक प्राइस की इंट्रिसिक वैल्यू पे पहुंचना है और फिर उसको कंपेयर करना है मार्केट प्राइस से और फिर हमें यह डिसाइड करना है वेदर वी वांट टू बाय होल्ड और सेल अ पर्टिकुलर सिक्योरिटी कि जो हमें इंट्रिसिक वैल्यू निकली है उस हिसाब से मार्केट प्राइस क्या चल रहा है और फिर हम इसको बाय करें सेल करें या होल्ड रखें बहुत सी फ्रेमवर्क्स हैं बहुत सी मेथोड हैं अवेलेबल फॉर स्टॉक सिलेक्शन कुछ एनालिस्ट फंडामेंटल एनालिसिस यूज यूज़ करते हैं कुछ टॉप डाउन अप्रोच यूज़ करते हैं कुछ बॉटम अप अप्रोच यूज़ करते हैं एनालिस्ट कुछ क्वांटिटेशन स्क्रीन्स करते हैं टेक्निकल इंडिकेटर्स यूज़ करते हैं स्टॉक सिलेक्शन के लिए सो यह सारी चीजें इ एक एनालिस्ट यूज़ कर सकता है इन सब इन सब चीजों के बारे में हम अभी आगे देखेंगे सबसे पहले हम बात करते हैं फंडामेंटल एनालिसिस की कि फंडामेंटल एनालिसिस करके हम स्टॉक के इंट्रिसिक वैल्यू पर कैसे पहुंच सकते हैं और फंडामेंटल एनालिसिस में वो कौन-कौन सी चीजें हैं कंपनी की जो हम देख सकते हैं चलिए समझते हैं फंडामेंटल एनालिसिस वो प्रोसेस है जिससे हम एक स्टॉक की इंट्रिसिक वैल्यू पे पहुंचेंगे यानी कि उस स्टॉक की पर्टिकुलर स्टॉक की डिटर इंट्रिसिक वैल्यू को हम डिटरमाइंड करेंगे और ये जो वैल्यूज हैं ये डिपेंड करती हैं बहुत सारे इकोनॉमिक फैक्टर्स पे जैसे कि फ्यूचर अर्निंग्स और कैश फ्लोज पूरा सारा जो इक्विटी में इन्वेस्टमेंट करने का जो यह खेल है जो यह पूरा सारा इक्विटी में जो इन्वेस्टमेंट करनी है वह सारी की सारी बेस्ड है आपकी फ्यूचर अर्निंग्स पे कंपनी की कैश फ्लोज पे इंटरेस्ट रेट्स पे और रिस्क वेरिएबल पे इन फैक्टर्स को एक एनालिस्ट एग्जामिन करता है और आफ्टर यह सारे के सारे फैक्टर्स जब एग्जामिन कर लेता है उसके बाद एक इंट्रिसिक वैल्यू ऑफ़ दस स्टॉक इज डिटरमाइंड यानी कि इंट्रिसिक वैल्यू जो है पर्टिकुलर स्टॉक की कि वो वहां पे पहुंचता है इन्वेस्टर को बाय करना चाहिए उस पर्टिकुलर स्टॉक को इफ द मार्केट प्राइस इज बिलो द इंट्रिसिक वैल्यू मतलब जो आपकी जो पर्टिकुलर इंट्रिसिक वैल्यू आई है और अगर मार्केट प्राइस उससे कम है फॉर एन एग्जांपल एक एग्जांपल के जरिए समझते हैं अगर आप एक आफ्टर योर एनालिसिस एक कंपनी का स्टॉक प्राइस आप आया है ₹1 और मार्केट में वो 80 ट्रेड कर रहा है तो इसका मतलब उसका प्राइस होना चाहिए ₹1 का आपकी वैल्युएशंस के हिसाब से लेकिन अभी वो मार्केट में ट्रेड कर रहा है ₹ इसका मतलब इट शुड बी बट इमीडिएट आपको विदाउट एनी हेसिटेशन उसको बाय कर लेना है और अगर मार्केट प्राइस इज अबोव द इंट्रेंस वैल्यू आपके ₹1 आपने निकाला है प्राइस और मार्केट में वो 120 ट्रेड कर रहा है तो एक्चुअल प्राइस उसका ₹1 होना चाहिए इस हिसाब से दैट शुड बी सोल्ड मतलब उस मार्केट उस मार्केट प्राइस में बहुत जल्दी से सेलिंग आ सकती है और वो अपनी इंट्रिसिक वैल्यू को अप्रोच कर सकता है सो हमेशा एक स्टॉक अपनी इंट्रिसिक वैल्यू को ही अप्रोच करना चाहिए उस हिसाब से दैट पर्टिकुलर सिक्योरिटी शुड बी सोल्ड सो एक तरीके से फंडामेंटल एनालिसिस के जरिए है एक पोर्टफोलियो मैनेजर या इन्वेस्टर यह पता लगा सकता है कि किस तरीके से उसको बाय करना है सेल करना है फंडामेंटल एनालिसिस इवॉल्व इकोनॉमिक एनालिसिस इंडस्ट्री एनालिसिस एंड कंपनी एनालिसिस तो तीन तरीके से एनालिसिस होती है फंडामेंटली सबसे पहले इकॉनमी को एनालाइज करते हैं इंडस्ट्री एनालाइज करते हैं कंपनी एनालाइज करते हैं लेकिन सबसे पहले हमें कौन सा एनालिसिस करना है वह हमें कैसे पता चलेगा वह हमें पता चलेगा जो फंड मैनेजर जो अप्रोच है उसकी जो जो पोर्टफोलियो बिल्डिंग अप्रोच है वेदर दैट इज टॉप डाउन अप्रोच और वेदर दैट इज बॉटम अप अप्रोच तो दैट डिपेंड्स ऑन अ फंड मैनेजर टू फंड मैनेजर कि वो एक स्टॉक के इंट्रिसिक वैल्यू निकालने के लिए या इन्वेस्टमेंट में एक पर्टिकुलर सिक्योरिटी को पिक करने के लिए कौन सी अप्रोच का इस्तेमाल करते हैं दो तरीके से होती हैं अप्रोचेबल है टॉप डाउन अप्रोच वर्सेस बॉटम अप्रोच दोनों समझते हैं क्या होती है देखिए जब हम टॉप डाउन अप्रोच की बात करते हैं तो सबसे पहले हम इकॉनमी की बात करते हैं इकनॉमिक एनालिसिस करेंगे फिर इंडस्ट्री प आएंगे और फिर कंपनी एनालिसिस होगा वहीं पर बॉटम अप्रोच में क्या होता है सबसे पहले फंड मैनेजर्स एक कंपनी को पिक करते हैं एक स्टॉक प्राइस को पिक करते हैं कंपनी को एनालाइज करते हैं फ्यूचर अर्निंग्स को एनालाइज करते हैं उसके उसके इंट्रिसिक वैल्यू निकालते हैं फिर उसको उसके पेयर्स से उसको कंपेयर करते हैं इंडस्ट्री का पूरा एनालिसिस करते हैं हाउ द इंडस्ट्री इज गोइंग हाउ द इंडस्ट्री इज गोइंग और गोइंग फॉरवर्ड किस तरीके से वो टोटल इकॉनमी में अपना कंट्रीब्यूशन दे सकती है और उसके बाद फिर लास्ट में इकनॉमिक एनालिसिस किया जाता है सो दैट इज द बॉटम ऑफ अप्रोच दोनों ही अपने दोनों ही ठीक है अप्रोच ज एक फंड मैनेजर कोई भी अप्रोच इस्तेमाल कर सकता है अब देखते हैं बाय साइड रिसर्च वर्सेस सेल साइड रिसर्च जो सेल साइड एनालिस्ट एनालिस्ट जो होते हैं वो वर्क करते हैं पर्टिकुलर फर्म्स के लिए कंपनीज के लिए जो उनको इन्वेस्टमेंट बैंकिंग सर्विसेस प्रोवाइड कराते हैं ब्रोकिंग सर्विसेस प्रोवाइड कराते हैं एडवाइजरी सर्विसेस प्रोवाइड कराते हैं फॉर देयर क्लाइंट्स सो वह अपनी रिसर्च रिपोर्ट्स कंपनीज पर इशू करते हैं और रिकमेंड करती हैं कि एक सिक्योरिटी को बाय करना है सेल करना है या होल्ड करना है और यह रिकमेंडेशंस इंक्लूड कैसे करते हैं एनालिसिस एनालिस्ट की एक्सपेक्टशंस कि कंपनी की अर्निंग्स कैसे ग्रो करेंगी फ्यूचर प्राइस जो परफॉर्मेंस जो प्राइस टारगेट है वह कैसे ग्रो करेगा उस हिसाब से फिर यह कंपनी की इंटेंस वैल्यू निकाल के आपको रिकमेंडेशंस देते हैं तो सेल साइड एनालिस्ट का काम होता है एडवाइजरी प्रोवाइड कराना ब्रोकिंग प्रोवाइड कराना और इन्वेस्टमेंट बैंकिंग सर्विसेस प्रोवाइड कराना वेयर ऑन द अदर साइड बाय साइड ऑन द अदर साइड जो बाय साइड के एनालिस्ट होते हैं वो वर्क करते हैं फॉर मनी मैनेजर्स जो पैसा इन्वेस्ट जो पैसा मैनेज कर रहे हैं यानी कि जैसे म्यूचुअल फंड्स हैं हेज फंड्स हैं पेंशन फंड्स है और पोर्टफोलियो मैनेजर्स दैट परचेस एंड सेल सिक्योरिटीज फॉर देर ओन इन्वेस्टमेंट अकाउंट्स ऑन बिहा ऑफ देयर क्लाइंट्स सो यह एनालिस्ट जनरेट स दज एनालिस्ट यह क्या करते हैं जनरेट करते हैं इन्वेस्टमेंट रिकमेंडेशंस फॉर देर इंटरनल कंजप्शन यूज बाय द फंड मैनेजर्स विद इन ऑर्गेनाइजेशन सो यह होते हैं बाय साइड एनालिस्ट अब आ जाते हैं स्टॉक एनालिसिस प्रोसेस पे कि किस तरीके से हम एक स्टॉक को एनालिसिस करते हैं वह प्रोसेस क्या है देखिए जो किसी भी मैंने आपको पहले भी बताया था जो भी इन्वेस्टमेंट है उसकी कैसे डिटरमाइंड होगा उस इन्वेस्टमेंट की वैल्यू को वो डिटरमाइंड होगी जो एक्सपेक्टेड कैश फ्लोज हैं और जो कंपनी के जो कैश फ्लोज आ रहे हैं और जो इन्वेस्टर जो एनएस की जो रिक्वायर्ड रेट ऑफ रिटर्न है यानी कि डिस्काउंटेड रेट पे है यानी कि फ्यूचर में जो कैश फ्लोज आ रहे हैं प्लस जो आज जो रिक्वायर्ड रेट ऑफ रिटर्न या उसको हम डिस्काउंटेड रेट भी बोलते हैं सो ये दोनों चीजें अ इन्वेस्टमेंट की जो वैल्यू है उसको डिटरमाइंड करने के लिए चाहिए होती है और जो यह जो कैश फ्लोज की जिसकी हम बात कर रहे हैं जनरली क्या होता है यह इन्फ्लुएंस होते हैं बहुत सारे इकोनॉमिक एनवायरमेंट पे मतलब बहुत सी चीजें ऐसी हैं जिसको यह एक्सपेक्टेड कैश फ्लोज एक्सपेक्टेड जो कैश फ्लोज हैं वो इन्फ्लुएंस करते हैं सो एक जो एनालिस्ट है उसको बहुत ही अच्छी अंडरस्टैंडिंग होनी चाहिए इकोनॉमिक वेरिएबल की और जो मैक्रो इकोनॉमिक एनालिसिस है वह आपको इन सब चीजों के बारे में बताता है कि सेक्टर्स के बारे में कंपनी एनालिसिस के बारे में कि किस तरीके से आप कर सकते हैं सो ऑब्जेक्टिव यही है स्टॉक एनालिसिस का कि आपको एक रिस्क और रिटर्न का डिसीजन लिया जाए देख के आपको रिस्क रिटर्न का डिसीजन आप ले मार्केट में इंडस्ट्री लेवल को कंपनी को फिर स्टॉक लेवल पे आप मार्केट लेवल पर फिर इंडस्ट्री पर और कंपनी लेवल पर एक स्टॉक को देखें और एक जो स्टॉक एनालिसिस है वही यही तीन स्टेप्स हैं उसमें इट रिक्वायर्स एनालिसिस ऑफ कंपनी एंड मार्केट समझ सबसे पहले अब समझते हैं कि इकोनॉमिक एनालिसिस क्या होता है इकोनॉमिक एनालिसिस फिर इंडस्ट्री एनालिसिस और फिर आपका कंपनी एनालिसिस आ जाएगा अब बात करते हैं इकोनॉमिक एनालिसिस की देखिए कुछ इकोनॉमिक एनालिसिस या कुछ मैक्रो इकोनॉमिक एनवायरमेंट ऐसे होते हैं जो इन्फ्लुएंस करते हैं सब इंडस्ट्रीज को या सारी कंपनीज को विद इन द इंडस्ट्री जितनी भी आपकी जो भी अ मार्केट्स हैं या जो भी आपका इंडस्ट्रीज हैं जो भी कंपनीज काम कर रही हैं जो भी मैक्रो इकोनॉमिक फैक्टर्स हैं वह कंपनी उनसे अफेक्ट होती है जो मोनेटरी पॉलिसीज हैं जो फिस्कल पॉलिसीज है वह आपके बिजनेस को काफी इन्फ्लुएंस कर सकते हैं और जैसे कि फॉर एन एग्जांपल अगर मैं बात करूं कुछ जो फिस्कल पॉलिसीज जो इनिशिएटिव हैं कंपनी अगर गवर्नमेंट के द्वारा लिए गए कुछ जैसे कि टैक्स में रिडक्शन कंपनी ने बोली है या कॉर्पोरेट टैक्स में रिडेंपशन कॉर्पोरेट टैक्स में रिड रिडक्शन कंपनी बोलती है बोला जाता है कि अगर अगर एक गवर्नमेंट बोलती है कि टैक्स में रिडक्शन होने वाला है या टैक्स को हम कॉर्पोरेट टैक्सेस को कम कर देंगे तो वो इनकरेज करता है आपकी कंपनीज को ग्रो करने के लिए क्योंकि कंपनी को कम टैक्स देना पड़ेगा और उनके पास ज्यादा पैसा बचेगा एंड देन दे कैन डिप्लॉयड मनी ऑन देयर ओन बिजनेस तो इस तरीके से एक छोटा सा लिया गया स्टेप भी टैक्स रिडक्शन का बहुत ही अच्छे से कंपनी की जो वैल्युएशंस है उसको बढ़ा सकता है सिमिलरली कुछ मोनेटरी पॉलिसी ऐसी होती हैं जो रिड्यूस करती हैं मनी सप्लाई को इकॉनमी में अफेक्टिंग द एक्स एक्सपेंशनरी प्लांस एंड वर्किंग कैपिटल रिक्वायरमेंट्स ऑफ द बिजनेस तो मार्केट में मोनेटरी पॉलिसी अगर इंटरेस्ट रेट्स गवर्नमेंट हाई कर देती है या जो आपके जो सेंट्रल बैंक्स हैं अगर वह हाई कर देते हैं तो फिर एक तरीके से जो प्रेशर आ जाता है आपका जो कैपिटल रिक्वायरमेंट्स लेने पे जो बिजनेसेस को जो कैपिटल रिक्वायरमेंट्स हैं वो वो नहीं ले पाते हैं ड्यू टू द हायर इंटरेस्ट रेट्स उनको आई उनको जो कैपिटल रिक्वायरमेंट्स हैं जो कैपिटल लिंग है वो उनको बहुत ही महंगा मिले इस वजह से वो अपने जो एक्सपेंशन जो प्लांस हैं उसको नहीं कर पाएंगे और थोड़ा सा वह अपने अपने जो उनकी वैल्युएशंस है और जो कंपनी के प्रॉफिट्स हैं वो इससे अफेक्ट हो सकते हैं सो एक थोरो मैक्रो इकोनॉमिक फोरकास्ट रिक्वायर्ड है जब आप एक वैल्यू करते हैं किसी भी सिक्योरिटी को या किसी भी सेक्टर को फर्म को इक्विटी को बहुत सी चीजें हैं यह सारी चीजें आप करके आप एक तरीके से फोरकास्ट कर सकते हैं और चीजें आप अपनी जो सेक्टर इकॉनमी को फॉर्म को इक्विटी को देखने के लिए कि किस तरीके से आपको उनको वैल्यू करना है सारी चीजें आपको देखनी पड़ेंगी देखिए बहुत ही इंपोर्टेंट चीज एक एनालिस्ट को जो करनी चाहिए वह एनालिस्ट जो और वो एनालिस्ट जनरली करते हैं व बहुत ही क्लोज वच करते हैं इकोनॉमिक स्टेटिस्टिक्स को जो गवर्नमेंट के द्वारा दिए जाते हैं चाहे वह आपका कोई भी इकॉनमी हो व आपकी डेवलप्ड इकॉनमी हो य आपकी डेवलपिंग इकॉनमी हो जो भी आपकी गवर्नमेंट कर रही है जो भी आपके सेंट ल बैंक जो भी कर रहा है इंटरेस्ट ट्स को लेके कोई भी उनका मूव है कोई भी उनका मूव है बहुत ही क्लोजल उसको वच करते हैं एनालिस्ट जो आपके इंडेक्स हैं जो इकोनॉमिक इंडिकेटर्स के जनरली जिसको इंडेक्स समझा जाता है सो जो इंडेक्स ऑफ इकोनॉमिक इंडिकेटर्स हैं जैसे कि आपका डब्ल्यू पीआई सीपीआई मंथली इंफ्लेशन इंडेक्सेस आपका जो इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंडेक्सेस हैं जीडीपी की ग्रोथ रेट है सो एक एनालिसिस इन इकोनॉमिक सार इन इकोनॉमिक सिनेरियो को बहुत ही अच्छे तरीके से देखता है इंटरेस्ट रेट्स की जो वोलेट है उसको भी देखेगा सो बहुत सी चीजें हैं जो एक एनालिस को देखनी पड़ती है जब वो एक मैक्रो इकोनॉमिक फोरकास्ट करने की कोशिश करते हैं उसके बाद आ जाता है इंडस्ट्री सेक्टर एनालिसिस अब क्या करते हैं इंडेक्स इंडस्ट्री को और एक पर्टिकुलर सेक्टर को हम एनालाइज करने की कोशिश करते हैं इंडस्ट्री एनालिसिस है बहुत ही इंटीग्रल पार्ट है जो हमारे त जो तीन स्टेप्स जो मैंने आपको बताए थे स्टेप्स ऑफ टॉप डाउन स्टॉक एनालिसिस सो अगर आप टॉप डाउन एनालिसिस कर रहे हैं तो सबसे पहले आपने जो इकॉनमी का एनालिसिस कर लिया मैक्रो इकोनॉमिक फैक्टर्स देखे हैं उसके बाद आपने एक इंडस्ट्री को पिक किया है और अब आप एक इंडस्ट्री पे आ गए हैं इंडस्ट्री या सेक्टर स्पेसिफिक एनालिसिस आप कर रहे हैं इंडस्ट्री एनालिसिस एक तरीके से आपको और हेल्प करता है आइडेंटिफिकेशन चांसेस हैं प्रॉफिट जो प्रॉफिटेबल अपॉर्चुनिटी कहां है और अनप्रॉफिटेबल अपॉर्चुनिटी कहां है सो एक तरीके से जो मैक्रो एनालिसिस उ इंडस्ट्री का किया है उसके बाद उसको पता चल जाता है कि कौन-कौन सी जो इंडस्ट्री है बिजनेस साइकिल से रिलेटेड है वह उस बिजनेस साइकिल में इन्वेस्टमेंट कर सकता है देखिए इंडस्ट्रीज की परफॉर्मेंस डिपेंड करता है कि वह बिजनेस साइकल की किस स्टेज में है मतलब डिफरेंट इंडस्ट्री जो परफॉर्म करती हैं डिफरेंटली इन डिफरेंट स्टेजेस ऑफ बिजनेस साइकिल बिजनेस साइकिल की डिफरेंट स्टेजेस में बहुत ही डिफरेंटली बिहेव कर सकती हैं कंपनीज ऑन द बेसिस ऑफ रिलेशनशिप कुछ मैं बताऊं तो आपको डिफरेंट शेयर्स विद द बिजनेस साइकिल इनको जो क्लासिफाई किया गया है वह साइक्लिकल एंड नॉन साइक्लिकल सेक्टर्स अ किया गया है फॉर एन एग्जांपल जो आपका बैंकिंग ऑन फाइनेंशियल सेक्टर है जनरली देखा गया है कि वो एंड ऑफ दी टुवर्ड्स द एंड ऑफ द रिसेशन वो ज्यादा अच्छा परफॉर्म करते हैं जब सेशन खत्म होने वाला होता है तो लोगों में जो बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर ग्रो करता है क्योंकि लोग आगे आते हैं बर छड़ के लोन लेने के लिए बैंकिंग सर्विसेस लेने के लिए और बैंकिंग एंड एनबीएफसी सेक्टर में एक तरीके से उछाल देखा जाता है एंड ड्यूरिंग द फेज ऑफ द रिकवरी आल्सो देखा गया है कि कंज्यूमर ड्यूरेबल जो है आपके जो कंज्यूमर ड्यूरेबल है जैसे कि जो कार जो कंज्यूमर जो जो भी चीजें कंज्यूम करते हैं जैसे कार्स हैं पर्सनल कंप्यूटर टर्स रेफ्रिजरेटर्स यह चीजें हैं यह बहुत ही अट्रैक्टिव इन्वेस्टमेंट हो जाती है तो जब रिकवरी फेज में होती है तो इन चीजों की डिमांड भी बर जाती है साइक्लिकल इंडस्ट्री क्या होता है अट्रैक्टिव इन्वेस्टमेंट्स हैं ड्यूरिंग द अर्ली स्टेजेस ऑफ एन इकोनॉमिक रिकवरी जब देखा गया है कि बहुत ही अर्ली स्टेजेस हैं इकोनॉमी की रिकवरी स्टार्ट हो गई है तो आप साइक्लिकल इंडस्ट्री में जा सकते हैं दीस सेक्टर्स एंप्लॉय हाई डिग्री ऑफ ऑपरेटिंग कॉस्ट और जब हम बिजनेस साइकिल के पीक में होते हैं तो इंफ्लेशन इंक्रीज हो जाता है एज डिमांड ओवरटेक सप्लाई मतलब डिमांड बहुत ज्यादा है और आपकी सप्लाई कम है इस वजह से जो इंफ्लेशन इंक्रीज होने लगता है जब आप बिजनेस साइकिल की पीक में होते हैं तो और इंफ्लेशन इंपैक्ट करता है डिफरेंट इंडस्ट्रीज को डिफरेंटली कुछ इंडस्ट्रीज ऐसी होती हैं जो आप ये इंफ्लेशन को पास ऑन कर देती हैं या जो अपने जो भी कॉस्ट है प्रोडक्शन की जो कॉस्ट है वह उनको डि कंज्यूमर को पास ऑन कर देती हैं एक पर्टिकुलर जो भी कमोडिटी है उसके प्राइसेस को इंक्रीज करके इसीलिए उनके के जो रेवेन्यू है वो अनअफेक्टेड रहते हैं और जो प्रॉफिट्स हैं वो रिमन अनअफेक्टेड रहते हैं इंफ्लेशन से तो क्योंकि उन्होंने पास ऑन कर दिया है ड्यूरिंग अ रिसेशन फेज आल्सो कुछ कंपनीज अच्छा करती हैं या कुछ जो इंडस्ट्रीज हैं वो दूसरी कंपनीज से अच्छा करती है डिफेंसिव इंडस्ट्रीज जैसे कि कंज्यूमर स्टेपल्स है फार्मास्यूटिकल्स एफएमसीजी ये सेक्टर्स ऐसे हैं जो रिसेशन में भी आपके काम करते हैं रिसेशन में भी फार्मास्यूटिकल्स एफएमसीजी ये देखा गया है कि सेक्टर्स में अच्छे से काम करते हैं इन टाइम्स में देखा गया है कि जो कंज्यूमर की जो स्पेंडिंग पावर है वह डिक्रीज हो जाती है बट स्टिल पीपल स्पेंड करते हैं जो नेसेसिटीज प जो एक नेसेसिटी है जो बेसिक नेसेसिटी है उस परे तो स्पेंड किया ही जाएगा सो इस तरीके से भी कुछ कंपनीज ऐसी हैं जो रिसेशन में भी अच्छा ठीक ठाक परफॉर्म करते हैं यह देखिए एनालिस्ट को देखना पड़ेगा कि कंपनी जो स्टेज है कंपनी किस स्टेज में है लाइफ साइकिल की उसी हिसाब से फिर वह कंपनी को अ पिक कर सकता है इस ग्राफ में देखिए सबसे पहले इंट्रोडक्शन है फिर ग्रोथ है फिर मैच्योरिटी है और फिर डिक्लाइन है समझते हैं कि इंट्रोडक्शन स्टेज में कौन क्या होता है ग्रोथ स्टेज क्या है मैच्योरिटी क्या है और फिर हम डिक्लाइन की तरफ चलेंगे सबसे पहले बात करते हैं इंट्रोडक्शन की देखिए इंट्रोडक्शन स्टेज वह स्टेज है कंपनी की जहां पर इंडस्ट्री बहुत ही एक मॉडेस्ट सेन वो एक्सपीरियंस करती है उनकी सेल अब स्टार्ट हो चुकी है उनका प्रोडक्ट मार्केट में आ चुका है थोड़ा सा बिकने भी लगा है लेकिन उनके पास जो बहुत ही स्मॉल प्रॉफिट्स है प्रॉफिट्स अभी आना शुरू नहीं हुए हैं उनका सिर्फ मार्केट में उनको अपनी जगह एस्टेब्लिश करनी है बिकना शुरू हो गया है लेकिन उनके जो मार्जिंस है वो बहुत कम है प्रॉफिट्स बहुत कम है क्योंकि हो सकता है कि बहुत कंपटीशन हाई हो इस केस में और जो मार्केट प्लेस है उस पर पर्टिकुलर प्रोडक्ट का उस इंडस्ट्री में हो सकता है बहुत स्मॉल हो इसलिए जनरली फर्म्स को इंडस्ट्री में देखा जाता है दे हैव अ हाई डेवलपमेंट कॉस्ट तो वहां पे उनकी जो डेवलपमेंट कॉस्ट बहुत हाई आ जाती है क्योंकि उनको अपना प्रोडक्ट भी मार्केट में एस्टेब्लिश करना है सो इसीलिए ये इंट्रोडक्शन फेज है इंडस्ट्री लाइफ साइकिल का अब दूसरा जो आ जाता है फेज वो है ग्रोथ का देखिए इस स्टेज में क्या हो रहा है ड्यूरिंग दिस स्टेज मार्केट ने आपका प्रोडक्ट को फुल्ली डेवलप कर दिया है प्रोडक्ट आपका बिकना शुरू हो गया है मार्केट में और जो आपकी सर्विसेस है वो इंडस्ट्री में इंडस्ट्री में रिकॉग्नाइज हो चुकी है इफ यूर इन दिस सर्विस तो आप एक तरीके से आपकी एस्टेब्लिशमेंट हो चुकी है इंडस्ट्री में और लोग काफी अट्रैक्टिव काफी अट्रैक्ट हो रहे हैं आपकी गुड्स एंड सर्विसेस को लेने के लिए आप देखेंगे कि जो नंबर ऑफ फॉर्म्स है इन द इंडस्ट्री इज लेस ड्यूरिंग दिस फेज जो यहां इस फेज में जब कंपनी ग्रोथ स्टोज में आ जाती है तो कंपनीज भी कम बचते हैं क्योंकि जब एक कंपनी स्टार्ट होती है तो बहुत सी कंपनीज देखा गया है कि इंट्रोडक्शन फेज में ही शटडाउन हो जाते हैं अगर आप ग्रोथ स्टेज में आपकी कंपनी आ गई है तो आप समझ लीजिए कि बहुत थोड़ा सा यहां पर कंपटीशन भी कम हो जाता है क्योंकि कंपनीज भी बहुत कम है और बहुत ही आपका कंपटीशन भी कम है और सबसे बड़ी बात जो प्रॉफिट मार्जिंस है स्टेज में वह जनरली हाई होते हैं आपके ड्यू टू द ग्रोथ आप यहां पर हाई ग्रोथ देखते हैं हाई पी देखते हैं हाई ईपीएस देखते हैं आपके सारे रेशो हाई होते हैं कंपनी के प्रॉफिट्स यहां पर काफी हाई होते हैं य दिस स्टेजेज फॉलो बाय मैच्योरिटी मैचोर इंडस्ट्री ग्रोथ इसके बाद फिर आपका आ जाता है रिटी अब आपका प्रोडक्ट मार्केट में बहुत अच्छे से बिक रहा है आपके प्रॉफिट मार्जिंस बहुत हाई हैं आपने बहुत अच्छा पैसा बना लिया है अब क्या अब आप एक मैच्योरिटी स्टेज में आ गए हैं मतलब यह एक तरीके से देखा जाता है कि लांगेस्ट फेज होता है एक लाइफ साइकिल का इंडस्ट्री का मतलब बहुत ही लंबे टाइम तक एक पर्टिकुलर कंपनी मेच्योरिटी वाले साइकिल में रह सकती है इसमें क्या होता है इस स्टे ज में ऐसा माना जाता है ऐसा देखा जाता है कि जो एक कंपनी की ग्रोथ रेट है उस इंडस्ट्री में वह नॉर्मली मैच करती है आपकी इकॉनमी की जो ग्रोथ रेट है मतलब जिस हिसाब से आपकी जो ग्रोथ रेट चल रही है ऑन दैट पर्टिकुलर कंपनी की वो उसी हिसाब से चलेगी जो आपकी इकॉनमी की ग्रोथ रेट चल रही है कंपटीशन इस स्टेज में देखा गया है कि हाई होता है और वो रिड्यूस कर देता है आपके प्रॉफिट मार्जिन को टू नॉर्मल लेवल्स क्योंकि यहां पर मैच्योरिटी हो सकता है काफी कंपनियां हो मैच्योरिटी की स्टेज में इस वजह से आपको अपने प्रॉफिट मार्जिन नॉर्मल लेवल्स पे लाने पड़ेंगे आप यहां पे हाई प्रॉफिट कमाने की कोशिश नहीं कर सकते एक मैच्योरिटी स्टेज में आपको सिर्फ और सिर्फ वो एक ग्रोथ मेंटेन करनी है और वो ग्रोथ मेंटेन करने के लिए आपके प्रॉफिट मार्जिंस थोड़ा सा रिड्यूस हो सकते हैं अब बात करते हैं डिक्लाइन की डिक्लेरेशन ऑफ ग्रोथ एंड डिक्लाइन देखिए वो कंपनी है या व स्टेज है जहां पर आपको सेल्स में आपकी जो डिमांड है व सेल्स जो है वह कम क हो जाएगी जो डिमांड है आपके प्रोडक्ट की वह कम हो जाएगी और आपके जो प्रॉफिट्स हैं मार्जिंस हैं वह आपको अंडर प्रेशर दिखेंगे या इवन बहुत सारी कंपनीज जो है नेगेटिव प्रॉफिट्स भी यहां पर देखती हैं सो एक तरीके से यहां पर आपका नेगेटिव फेज या डिक्लाइंग फेज शुरू हो जाता है सो यह चार अ मार्केट साइकिल जिसको या इंडस्ट्री लाइफ साइकिल आप बोल सकते हैं इंट्रोडक्शन ग्रोथ मैच्योरिटी एंड देन अ डिक्लाइन स्टेज अब बात करते हैं कंपनी एनालिसिस की हमने मैक्रो इकोनॉमिक एनालिसिस देखा हमने इंडस्ट्री एनालिसिस देखा अब कंपनी एनालिसिस पे आ जाते हैं और कंपनी एनालिसिस एक फाइनल स्टेप है हमारा टॉप डाउन अप्रोच में टू एनालाइज स्टॉक्स कि स्टॉक्स को जब हम एनालाइज करते हैं तो ये हमारा फाइनल स्टेप बन जाता है देखिए कंपनी एनालिसिस हमें चाहिए एक वैल्यू ऑफ स्टॉक निकालने के लिए कंपनी की जो वैल्यू है उसको निकालने के लिए पर्टिकुलर जो शेयर प्राइस है उसको निकालने के लिए उस हिसाब से उसके बहुत ही सारे कंपोनेंट्स हो सकते हैं जैसे कि हम फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स ऑफ अ कंपनी आप देख सकते हैं वो स्टार्टिंग पॉइंट हो सकता है एक एनालिसिस के लिए एनालिसिस ऑफ प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट हो सकता है बैलेंस शीट्स कैश फ्लो स्टेटमेंट्स कंपनी के जितने भी अकाउंट्स है वो हम देख सकते हैं फाइनेंशियल परफॉर्मेंस नंबर्स ऑफ कंपनी फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स में जो जो प्रोवाइड किया जाता है वो देख सकते हैं द रेश्योस ऑफ अ कंपनी हैव टू बी सीन कि किस तरीके से जो उनकी कंपनी की जो इंडस्ट्री ट्रेंड्स हैं हिस्टोरिक एवरेजेस हैं यह सारा देखते हुए अपन कंपनी के एनालिसिस कर सकते हैं और उसके स्टॉक प्राइस को पहुंच सकते हैं और यह बहुत ही इंपॉर्टेंट पार्ट है किसी भी कंपनी की के स्टॉक को एनालाइज करने के लिए कंपनी को एनालाइज करने के लिए कंपनी एनालिसिस एक और पार्ट है कंपनी एनालिसिस हमें यह भी बताता है कि आपको किस तरीके से कंपनी की जो कंपटिंग स्ट्रेटेजी हैं उसको भी हमें एनालाइज करना पड़ेगा एक कंपनी एक फॉलो कर सकती है डिफेंसिव स्ट्रेटेजी कंपनी देखिए दो स्ट्रेटेजी डिप्लॉयड फेंसिंग स्ट्रेटेजी होती है और एक अग्रेसिव स्ट्रेटजी होती है डिफेंसिव स्ट्रेटेजी में कंपनी अपने आप को इस तरीके से पोजीशन करती है कि जो उनके जो कंपीटेटिव फोर्सेस हैं वह सिर्फ और सिर्फ उनसे जो कैपेबिलिटीज है उनकी वह जो कंपट फोर्सेस हैं उनसे कम है यानी कि आपकी जो बेस्ट जो कंपनी है उस उस तक आप पहुंचने की कोशिश करते हैं लेकिन उनको बीट नहीं कर पाते लेकिन जो आप अग्रेसिव स्ट्रेटेजी जब आप यूज करते हैं तो उसमें क्या होता है फर्म अटेंप्ट करती है अपनी पूरी स्ट्रेंथ को कि आप एक कंपट फोर्सेस आप लेके आए यानी कि आप एक तरीके से जो आप बेंचमार्क सेट करें इंडस्ट्री में सो ये दो तरीके से कंपट स्ट्रेटेजी होती हैं तो कंपनी एनालिसिस आल्सो इवॉल्व एनालिसिस इट्स कंपट स्ट्रेटेजी तो कंपनी एनालिसिस में दो हम जब देखते हैं कंपनी की दो एनालिसिस भी हमें बहुत जरूरी देखनी होती है और जो माइकल पटर जो सजेस्ट करते हैं दो मेजर स्ट्रेटेजी उन्होंने बताई है पहली है कोस्ट लीडरशिप एंड दूसरी है डिफरेंशिएबल कोस्ट प्रोड्यूसर बनना होता है मतलब एक वो पर्टिकुलर फर्म चाहती है कि जो उनकी जो प्रोडक्शन कॉस्ट आए वह बहुत ही कम आए सबसे जो उनका जो प्रोडक्ट बन के आए उसकी कॉस्ट बहुत कम हो ताकि वह आगे अच्छे मार्जिन पर उसको बेच पाए और अच्छा प्रॉफिट कमा पाए इसीलिए द कोस्ट लीडर जो कोस्ट लीडर इन इट्स इंडस्ट्री सो वो एक तरीके से कोस्ट लीडर बनना चाहते हैं और कोस्ट एडवांटेजेस वेरी फ्रॉम इंडस्ट्री टू इंडस्ट्री तो यहां पर कोस्ट लीडरशिप में बस यह है कि कंपनी एक आपको लो कॉस्ट का प्रोडक्ट प्रोवाइड कराती है डिफरेंशिएबल ही अपने आप को बहुत ही यूनिकल प्रेजेंट इट्स पोजीशन करती है अमंग द इंडस्ट्री मतलब पॉसिबिलिटीज जो है उनकी डिफरेंशिएबल करती हैं फ्रॉम इंडस्ट्री टू इंडस्ट्री सबसे पहले हमें यह देखना पड़ेगा कि बिजनेस मॉडल क्या है एक पर्टिकुलर इंडस्ट्री का कंपनी क्या कर रही है कैसे कर रही है जो और कंपनी के कंज्यूमर्स क्या हैं कंज्यूमर्स जो प्रोडक्ट व बाय कर रहे हैं और सेल कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं और कंपनी जो है किस तरीके से अपने कस्टमर्स को सर्व कर रही है अब बात करते हैं एस्टिमेशन ऑफ इंट्रिसिक वैल्यू की कि कि किस तरीके से कि हम एक स्टॉक की इंट्रिसिक वैल्यू निकाल सकते हैं कौन-कौन से मेथड्स हैं जिसके जरिए हम स्टॉक की इंट्रिसिक वैल्यू को निकाल सकते हैं सबसे पहला आ जाता है डिस्काउंटेड कैश फ्लो मॉडल देखिए सबसे एप्रोप्रियेट कुलर जो शेयर प्राइस निकालने का उसकी इंट्रिसिक वैल्यू निकालने का है डिस्काउंटेड कैश फ्लो मॉडल जिसको हम डीसीएफ बोलते हैं वन ऑफ द मोस्ट एप्रोप्रियेट तो एक सिंपल मैथ्स बन जाता है प्रेजेंट वैल्यू निकालना और एक तरीके से पोटेंशियल वो वो माना जाएगा कि एक पोटेंशियल इन्वेस्टर आज कितना पैसा इन्वेस्ट करना चाह रहा है उसके बदले जो कैश फ्लोज या जो सीरीज ऑफ कैश फ्लोज उसको ओवर अ पीरियड ओवर अ पीरियड ऑफ टाइम मिलेंगे तो सिंपल टर्म्स में डिस्काउंटेड कैश फ्लो मेथड हमको यही बताता है अब सबसे बात आ जाती है कैश फ्लोज की देखो जब हम किसी अ कंपनी को वैल्यू करते हैं तो सबसे पहले जो कैश फ्लोज ही हैं जो आउटफ्लोज एंड इनफ्लोज सबसे इंपॉर्टेंट पार्ट है कि किस स्टेज में कितने इनफ्लोज हमें आए हैं क्या हमें एक्स क्या इनफ्लोज रहे हैं और क्या आउटफ्लोज रहे हैं बिजनेस के और जो डिस्काउंट रेट है किस तरीके से उन डिस्काउंट उन जो फ्यूचर कैश फ्लोस को हम आज डिस्काउंट करते हैं और आज की हम उसको प्रेजेंट वैल्यू निकाल देते हैं तो अगेन यह डिस्काउंटेड कैश फ्लो मेथड है टू प्रोजेक्ट अ बिजनेस अब देखा जाता है कि देयर आर टू वेज टू लुक एट द कैश फ्लोज ऑफ अ बिजनेस सबसे पहले हम दो तरीके से से एक तर कैश फ्लोज ऑफ बिजनेस को देखते हैं सबसे पहला होता है फ्री कैश फ्लो टू द फार्म जिसको हम एफसीएफ बोलते हैं वेर जो कैश फ्लोज जो है वह आपका जो जो कैश वेयर द कैश फ्लोज बिफोर एनी पेमेंट्स आर मेड ऑन द डेट आउटस्टैंडिंग आर टेकन इनटू कंसीडरेशन मतलब जब आपकी जो डेट की जो पेमेंट है वह आपने करी है उससे पहले की जो जितनी भी पेमेंट्स हैं यानी के आपने इसमें फर्म के लिए जो भी है वह आप जो आपकी कैश फ्लोज है पेमेंट करने से पहले के वह यूज करेंगे वह कंसीडर में लिए जाएंगे और दिस कैपिटल इज अवेलेबल फॉर ऑल कैपिटल कंट्रीब्यूटर्स बोथ इक्विटी एंड डेट फ फिर आई रिपीट जो कैश फ्लोज हैं बिफोर मेकिंग एनी पेमेंट ऑन डेट ऑब्लिगेशंस वही कैश फ्लोज लिए जाएंगे यानी कि आपको इंटरेस्ट पेमेंट यहां पर निकाल के कैश फ्लोज में से नहीं दिखाना है कोई भी इंटरेस्ट कुछ भी डिडेक्ट नहीं कर करना है व्हेन यू आर कंप्यूट कंप्यूटिंग एफसीएफएफ जो भी कैश फ्लोज हैं पूरा का पूरा वही एज इट इज आपका यूज़ किया जाएगा व्हेन यू आर कंपटिंग फ्री कैश फ्लो टू द फर्म बिकॉज़ यह दोनों कैपिटल्स के लिए होता है बहुत इक्विटी एंड डेट और दूसरा जो मेथड है कैश फ्लो का वो है वो है सिर्फ इक्विटी इन्वेस्टर्स के लिए अब क्या होता है इंटरेस्ट पेमेंट्स ऑन द डेट एप्लीकेशंस हम डिडक्ट कर देते हैं एफसीएफएफ से यानी जो फ्री कैश फ्लो टू द फार्म है उसमें से अगर आप इंटरेस्ट पेमेंट्स ऑन डेट है उसको डिडक्ट करके नेट बोरो इंग्स जितने भी आपने बोरो किया उसको ऐड कर देंगे तो आप पहुंचेंगे फ्री कैश फ्लो टू दी इक्विटी पे यानी कि एफसीएफ पे तो बिल्कुल ही सिंपल है फ्री कैश फ्लो फॉर इक्विटी में कंप्यूट किया जाएगा फ्री कैश फ्लो टू द फर्म लेस इंटरेस्ट प्लस नेट बोरोंग जो फ्री कैश फ्लो फॉर द इक्विटी है उसमें हम इंटरेस्ट हटा देंगे और नेट बोरोंग ऐड कर देंगे तो वह हमारा फ्री कैश फ्लो फॉर इक्विटी आ जाएगा अब बात करते हैं डिस्काउंट रेट की कौन से मेथड हम डिस्काउंट रेट के लिए यूज करेंगे चलिए समझते हैं टू कैलकुलेट द वैल्यू ऑफ फर्म अगर हम वैल्यू ऑफ फर्म निकाल रहे हैं यहां पर तो ध्यान रखिएगा एफसीएफएफ इज डिस्काउंटेड बाय द वेटेड एवरेज कॉस्ट ऑफ कैपिटल दैट कंसीडर्स बोथ डेट और इक्विटी तो जैसे कि हमने देखा जो एफसीएफएफ है फ्री कैश फ्लो टू द फर्म है वो दोनों के लिए होता है वो डेट और इक्विटी होल्डर्स दोनों के लिए होता है जिसमें हम इंटरेस्ट रेट्स की जो ऑब्लिगेशंस है वो माइनस करने से पहले के अ सीरीज ऑफ कैश फ्लोज लेते हैं उसी हिसाब में जब यहां पे हम कंसीडर करेंगे एफसीएफएफ निकालेंगे उसको हम डिस्काउंट करेंगे वेटेड एवरेज कॉस्ट ऑफ अ वेटेड एवरेज कॉस्ट ऑफ कैपिटल से जो हम कंसीडर करता है बोथ डेट और इक्विटी को और वेटेड एवरेज कॉस्ट ऑफ कैपिटल का फार्मूला है आपका कॉस्ट ऑफ इक्विटी मल्टीप्लाई बाय वेट ऑफ इक्विटी प्लस कॉस्ट ऑफ डेट मल्टीप्ला बाय वेट ऑफ डेट जो कॉस्ट ऑफ डेट निकालेंगे हम प्री टैक्स यानी कि वन माइनस जो भी उसकी टैक्स ट्रीटमेंट है वन माइनस उसका डिस्काउंटेड रेट है टैक्स का उसको माइनस करने के बाद यह आपका वर्किंग जो डब्लू ए ससी आ जाएगा व्हिच इज व्हिच इज कॉल्ड वेटेड एवरेज कॉस्ट ऑफ कैपिटल अब बात करते हैं टू कैलकुलेट द वेट ऑफ वैल्यू ऑफ इक्विटी अगर हम फ्री कैश फ्लो टू इक्विटी निकाल रहे हैं इज डिस्काउंटेड यूजिंग द कॉस्ट ऑफ इक्विटी तो इसमें कॉस्ट ऑफ इक्विटी मेथड लगेगा इसमें सीएपीएम मेथड लगेगा कैपिटल एसेट प्राइसिंग मॉडल इसमें हम लगेगा और जो एज पर द कैपिटल एसेट प्राइसिंग मॉडल कॉस्ट ऑफ इक्विटी कंप्यूट करने का फॉर्म फर्मूला है कॉस्ट ऑफ इक्विटीज रिस्क फ्री रेट प्लस बीटा मल्टीप्ला बाय रिस्क प्रीमियम यानी कि जो रिस्क फ्री रेट में हम बीटा को प्लस कर देंगे मल्टीप्लाई करने के बाद जो रिस्क फ्री जो मार्केट रिस्क प्रीमियम है उसको हम बीटा से मल्टीप्लाई करेंगे यानी कि जितना हमने एक्स्ट्रा कमाया रिस्क फ्री रेट से हम उसको बीटा से मल्टीप्लाई करके रिस्क फ्री रेट में ऐड कर देंगे तो यह हमारा कॉस्ट ऑफ इक्विटी आ जाएगा व्हिच इज अगेन अ नेसेसरी फॉर कंप्यूटिंग फ्री कैश फ्लो फॉर दी इक्विटी होल्डर्स तो एफसीएफई के लिए हम कॉस्ट ऑफ इक्विटी यूज करेंगे सीएपीएम मॉडल से सो यह हमें ध्यान देने की जरूरत है यहां पर एसेट बेस्ड वैल्युएशंस की बात करें तो कुछ बिजनेसेस जो है ना बहुत ही एसेट एक्सट्रीमली एसेट बेस्ड ओरिएंटेड होते हैं जैसे कि रियल एस्टेट है शिपिंग है एविएशन बिजनेस है और इसमें हमें कुछ नहीं करना है जो जो वैल्यू ऑफ बिजनेस है सब टपट कर देना है उसकी वैल्यू ऑफ लायबिलिटी को उसकी एसेट्स से मतलब लायबिलिटीज को माइनस लायबिलिटीज में से हम सारी एसेट्स निकाल देंगे तो वो आपकी वैल्युएशंस आ जाएंगी जिसको हम एसेट बेस्ड वैल्युएशंस बोलेंगे अब बात करते हैं पी रेशो की देखिए एनालिस्ट जो सबसे कॉमन जो स्टॉक मेजर यूज करते हैं वोह होता है प्राइस टू अर्निंग रेशो जिसको हम पी रेशो भी बोलते हैं प्राइस रेशो जो पी रेशो हमें कंप्यूट करने के लिए हम स्टॉक प्राइस को डिवाइड कर देंगे ईपीएस से यानी कि स्टॉक प्राइस डिवाइड बाय डी ईपीएस दैट इज आपका पी रेशो आ जाएगा फॉर एन एग्जांपल एक स्टॉक ट्रेड हो रहा है ₹1 पे और ईपीएस उसका पांच है तो पी इज 20 टाइम्स तो हिस्टोरिकल देखा गया है कि जो पी है आपका वोह करंट प्राइस डिवाइड बाय सम ऑफ द पीज ऑफ लास्ट फोर क्वार्टर्स सो हम हिस्टोरिकल पी निकालने के लिए जो लास्ट फोर क्वार्टर का जो ईपीएस है उनके सम को हम डिवाइड करते हैं मार्केट प्राइस से लेकिन अगर आपको लीडिंग पी निकालना है तो करंट स्टॉक प्राइस डिवाइड बाय सम ऑफ द ईपीएस एस्टिमेट्स फॉर द नेक्स्ट फोर क्वार्टर्स तो फॉरवर्ड पी निकालने के लिए आपको जो नेक्स्ट फोर क्वार्टर्स है उनका एस्टिमेटर पी आपको लेना पड़ेगा मार्केट प्राइस डिवाइडेड बाय दी एस्टीमेट ऑफ ईपीएस फॉर द नेक्स्ट फोर क्वार्टर्स वो आपका फॉरवर्ड ईपीएस आ जाएगा यहां पर देखो सिंपल सी बात है अब मानते हैं स्टॉक हमें ईपीएस बताता क्या है स्टॉक ईपीएस या स्टॉक का जो पी स्टॉक पी हमें बताता क्या है स्टॉक पी हमें बताता है कि हाउ मच एन इन्वेस्टर इज विलिंग टू पे पर रुपी ऑफ अर्निंग्स मतलब एक रुप कमाने के लिए उसको कितना पैसा देना पड़ रहा है तो अगर एक पी 0 का पी है इसका मतलब यह है कि इन्वेस्टर को 0 कमाने के लिए एक रप एक इन्वेस्टर को एक रप कमाने के लिए उसमें ₹ इन्वेस्ट करना ने पड़ेंगे सो इन्वेस्टर विलिंग टू पे र 10 फॉर एव्री ₹ ऑफ अर्निंग्स दैट द कंपनी जेनरेट्स सो दस इज दस दैट इज कॉल्ड प्राइस टू अर्निंग रेशो ये ये तो थे सारे फंडामेंटल एनालिसिस कि यह सारी चीजें हम करके हम स्टॉक की इंट्रेंस वैल्यू पे पहुंच सकते हैं अब बात करते हैं टेक्निकल एनालिसिस की देखिए टेक्निकल एनालिसिस भी शॉर्ट टर्म के लिए बहुत इंपॉर्टेंट है जो टेक्निकल एनालिसिस है उसमें कुछ पैटर्स होते हैं जो आपके टेक्निकल एनालिस्ट हैं वह को यह देखते हुए कि हिस्ट्री में जो प्राइसेस हैं वो कैसे मूव हुए हैं करंट जो प्राइसेस मूव कैसे हो रहे हैं जो प्राइस हैं किस तरीके से चल रहे हैं वॉल्यूम्स हैं जो चार्ट्स हैं ये सारी चीजें कंपनी ये सारी चीजें देखते हुए एक जो टेक्निकल एनालिस्ट है वो आपके स्टॉक प्राइस को पिक करने की कोशिश करता है जो र थ्री एसेंशियल एलिमेंट्स जो है हिस्ट्री ऑफ पास्ट प्राइसेस आपका वॉल्यूम डाटा जो ट्रेडिंग का है कितने वॉल्यूम से बाइंग आई है सेलिंग आई है और टाइम स्पैन ओवर अ पीरियड ऑफ टाइम सो ये सारा इस चीज का पार्ट है अब बात करते हैं कि एडवांटेजेस ऑफ टेक्निकल एनालिसिस देखिए यह आप इसमें क्या है ना आपको बहुत ही हैवली आपको फाइनेंशियल अकाउंट स्टेटमेंट्स पे रिलाई करने की जरूरत नहीं है जब आप टेक्निकल एनालिसिस कर रहे हैं आप सिर्फ और सिर्फ प्राइस वॉल्यूम को देख के जज कर सकते हैं कि हां बहुत ही बाइंग एक स्टॉक में काफी अच्छे लेवल से बाइंग आई है और बहुत ही अ बाइंग बहुत ही काफी वॉल्यूम्स के साथ बाय आए तो आप यह बोल सकते हो सिर्फ ट्र देख के ही चार्ट बोल देख देख के बता सकते हो कि हां फोन फॉरवर्ड इसका प्राइस और भी बढ़ सकता है क्योंकि इतनी जो हैवी बाइंग आई है इसका मतलब इतने इन्वेस्टर्स ने इसको बाय किया है तो वो कुछ ना कुछ व ऐसा देख रहे हैं गोइंग फॉरवर्ड जो इस कंपनी के स्टॉक प्राइसेस को बढ़ा सकता है सो काफी अच्छा है हम टेक्निकल एनालिसिस भी यूज करते हुए एक स्टॉक में हम इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं टेक्निकल कुछ इंडिकेटर्स हैं उनके बारे में बात करते हैं कुछ रूल्स हैं कुछ टेक्निकल इंडिकेटर्स हैं सबसे पहले आ जाता है ट्रेंड लाइन एनालिसिस फिर मूविंग एवरेजेस और बलेजर बैंड एनालिसिस देखिए ट्रेंड लाइन एनालिसिस सबसे पहले सिर्फ और आपको ट्रेंड लाइन में देख के यह पता चलता है कि आप बिल्कुल बाय पॉइंट पे हैं सेल पॉइंट पे हैं कहां एंट्री करनी है कहां एग्जिट करनी है यह ट्रेंड लाइन है कि कौन सा ट्रेंड मार्केट में फॉलो हो रहा है इस चार्ट को समझिए सबसे पहले डिक्लाइंग ट्रे चैनल था उसके बाद फिर बाय पॉइंट हुआ और धीरे-धीरे यह सारा का सारा ट्रेंड इसका ऊपर चलता रहा है जितने भी ऊपर गया नीचे आया ऊपर गया नीचे आया ऊपर गया नीचे आया तो बाइंग ज्यादा आ रही है सेलिंग कम इसको हम बोलेंगे बाय ट्रेंड जब मार्केट बढ़ती ज्यादा है गिरती कम है या 10 पर बढ़ी 2 पर गिरी फिर 10 पर बढ़ी 2 पर गिरी इसको जब तक ये ट्रेंड फॉलो हो रहा है दैट इज कॉल्ड अपट्रेंड उसके बाद देखिए पीक प पहुंचने के बाद फ्लैट ट्रेंड चला है मतलब पिछला लो भी नहीं तोड़ रहा है मार्केट और उसका अपना हाई भी नहीं तोड़ पा रहा है बहुत ही रेंज बाउंड ट्रेंड कर रहा है दैट इज कॉल्ड फ्लैट ट्रेंड और जब मार्केट प्रीवियस लो को ब्रेक करके नीचे जा रहा है और देखिए लो लो जिसको बोलते हैं लोअर लोज बनाता जा रहा है लोअर लोज हम बोलेंगे दैट इज कॉल्ड द डिक्लाइंग ट्रेंड तो वहां पर ये ट्रेंड आपका डिक्लाइन हो गया और फिर उसके बाद जो प्रीवियस बड़ा लो है वो उसके आसपास आ जाता है तो अगेन वो एंट्री पॉइंट बन जाता है तो एनालिसिस ज एक जो फंडा टेक्निकल एनालिसिस है वो इन चीजों को देख के एक स्टॉक प्राइस को पिक करने की कोशिश करते हैं मूविंग एवरेज एनालिसिस आ जाता है इसके बाद बहुत ही मोस्ट पॉपुलर टेक्निकल एनालिसिस इंडिकेटर है जिसमें हम 5 डेज 10 डेज 30 50 100 200 डेज की मूविंग एवरेजेस को कैलकुलेट करते हैं जब भी एवरेज प्राइस इन कैलकुलेट इन जो डेली एवरेजेस के डेज की एवरेजेस के पास आता है तो देखा गया है कि प्राइस मूवमेंट फास्ट होती है अगर आपका 50 डेज 100 डेज के पास आ गया है प्राइस नीचे आ गया है तो आप डिपेंड कर माना जाता है कि आप वहां पर थोड़ी बाइंग भी इनीशिएट कर सकते हैं बेंजर बैंड एनालिसिस बंजर बैंड एनालिसिस क्या है सिर्फ एक नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन है कि किस तरीके से हम कैलकुलेट करेंगे जो डेविएशन है मार्केट प्राइस मार्केट प्राइस की फ्रॉम द मूविंग एवरेजेस मतलब जो मूविंग एवरेज है और जो मार्केट प्राइस जो आज चल रहा है उनके बीच में कितना डिफरेंस है फॉर एन एग्जांपल अगर प्राइस गोल प्राइस जो स्टैंडर्ड डेविएशन है उनके मूविंग एवरेज के ऊपर चला जाता है आपका तो स्टॉक माइट बी कंसीडर्ड एज ओवर बोट स्टॉक को हम बोलते हैं कि ओवरबेट हो गया है और अगर प्राइस जो जो स्टैंडर्ड डेविएशन के जो नीचे अगर प्राइस गोज टू स्टैंडर्ड डेविएशन बिलो द मूविंग एवरेज तो जो स्टैंडर्ड डेविएशन जो प्राइस की है वो मूविंग एवरेज के नीचे चली गई है तो स्टॉक माइट बी रिगार्डेड एज ओवर सोल्ड सो ये हम तीन चीजें थी जो टेक्निकल एनालिसिस में काम करती हैं अंडरस्टैंडिंग कॉर्पोरेट गवर्नेंस देखिए कॉर्पोरेट गवर्नेंस आ जाता है कि किस तरीके से जो आपके कॉरपोरेट्स हैं वोह गवर्न किए जा रहे हैं क्या-क्या जो आपकी जो यह डिपेंड करता है कम गवर्नमेंट पे कि उस गवर्नमेंट एस्पेक्ट्स कैसे हैं रूल्स एंड रेगुलेशंस आ जाते हैं कांट्रैक्ट्स आ जाता है इंस्टीट्यूशंस क्या है स्टॉक एक्सचेंज जो लिस्ट ऑफ स्टैंडर्ड्स है ऑडिट प्रोसेस है कि और डिपेंड करता है कंट्री टू कंट्री टाइम टू टाइम कंपनी टाइम साइज ओनरशिप किस तरीके से आपकी जो गवर्नमेंट है वो आपकी जो प्रैक्टिस है वो फॉलो हो रही है कॉर्पोरेट जो प्रैक्टिसेस है वो कैसे फॉलो हो रही है कौन-कौन से टैक्स हैं ये डिपेंड करता है गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट कंट्री टू कंट्री सो आपको किस कहीं भी इन्वेस्टमेंट करने से पहले कॉर्पोरेट गवर्नेंस तो बहुत समझना पड़ेगा चलिए अब आ जाते हैं अपने क्वेश्चंस पे कुछ सैंपल क्वेश्चंस देखते हैं फर्स्ट डैश इंडस्ट्रीज राइज एंड फॉल वेरी क्लोजल फॉलो द जनरल इकोनॉमिक एक्टिविटीज इन कंपेरिजन टू अदर इंडस्ट्रीज साइक्लिकल कंज्यूमर स्टेपल्स डिफेंसिव और फाइनेंशियल तो हमने देखा जो साइक्लिकल इंडस्ट्रीज होती हैं वह बहुत ही क्लोजल फॉलो करती हैं जनरल इकोनॉमिक कंडीशंस को इन कंपेरिजन टू अदर कंट्रीज अब अंडर द टिपिकल अंपन दैट अ स्टॉक डिविडेंड विल ग्रो अ कांस्टेंट रेट व्हाट विल बी द इंट्रिसिक वैल्यू ऑफ d1 d3 k9 g6 तो इसमें हम सीधा सा फार्मूला लगा के सो d1 / बा k - g इसका फार्मूला बनेगा यानी कि 3 डिवा बाय आपका 9 - 3 3 आ जाएगा सो 3/3 एक तरीके से 100 इसकी वैल्यू आएगी तो इंट्रिसिक वैल्यू ऑफ द स्टॉक वुड बी 100 नाउ द थर्ड क्वेश्चन इज अंडर रिलेटिव वैल्युएशन टेक्निक्स वैल्यू ऑफ अ स्टॉक इज एस्टीमेट बेस्ड अपॉन इट्स करंट प्राइस रिलेटिव टू वेरिएबल कंसीडर्ड टू बी सिग्निफिकेंट इन वैल्युएशंस सच एज अर्निंग्स कैश फ्लो बुक वैल्यू जैसे कि हमने देखा एक एस्टिमेशन जो स्टॉक का है वो डिपेंड करता है अर्निंग्स पे कैश फ्लो पे बुक वैल्यू पे तो आंसर इज ऑल ऑफ द अबब डैश रेशो कंपेयर्स द प्राइस ऑफ द स्टॉक टू इट्स अर्निंग्स इ जनरेट बहुत ही अच्छे तरीके से बताया था पी रेशो पीवी रेशो प्राइस कैश फ्लो रेशो प्राइस सेल्स रेशो जो पी रेशो है आंसर इज ए तो पी रेशो कंपेयर करता है प्राइस स्टॉक को टू अर्निंग्स इट जेनरेट्स क्वेश्चन नंबर फाइव पे आते हैं मार्केट रिस्क रेफर्स टू द रिस्क इन इक्विटी इन्वेस्टमेंट अराइजिंग ड्यू टू अब बात करते हैं कि मार्केट रिस्क व बताने की कोशिश कर रहा है कि वह कौन सा होता है चलिए समझते हैं ए द प्राइस डायनेमिक्स इन द मार्केट क्रिएटेडटेड करते हैं गैप बिटवीन बुक वैल्यू एंड मार्केट वैल्यू द प्राइस डायनामिक क्रिएटेडटेड और प्राइस डायनेमिक्स टू गवर्नमेंट इंटरवेंशन स्टॉक मार्केट तो जो मार्केट का जो रिस्क है वह टोटली प्राइस पे डिपेंड करता है मैंने पहले ही बताया जो प्राइस में जो फ्लक्ट एशन हो रही है सो आंसर इज ए द प्राइस डायनेमिक्स इन द मार्केट क्रिएटेड्रॉअर्नेविगेटर कमेंट में बता सकते हैं हम ट्राई करेंगे वो वीडियो बनाने का और म्यूचुअल फंड से 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