Transcript for:
A poem on Love, Struggle, and Self-Reflection

शहर से बाहर रहूं शहर का प्यार भी हूं पुकारे हैं नाम अब लोग मशहूर भी हूं भी हूं घर की दीवार बनूं समझद से बाहर भी हूं अंधेरों में ख्वाब की तरह मैं दूर भी हूं बेमिसाल भी हूं और दिल की आवाज बनूं खुदा का निजाम जो हूं आई बहार जो लिखे अशार ये दिलो दिमाग में हूं सोच वो अब क्या ही कहूं मेरी एसास में तू आज फिर आई ना तू खामोश भी हूं खुददार भी हूं कहानी ये है दो आशिकों की सुन सकी ना पहले दिल की अब वो आशिक होगी मंजिल तुझको हासिल होगी याद आती होगी बेशक बातें फासिलों की मांगे तेरे पीछे छोड़े बस्ते दुनिया वाले मुझ पे हंसते बदले नहीं बदले रस्ते लोगों की नजर से बचते आखिर क्या ही करते सच गए आज भी लिखते सिर्फ सच पे ना बरसस्ते ना गरजते से ये सजा समझ के शाम और तेरे इंतजार में खड़े हो उसी के नारे खुद से जंगे सारी हार के बुलाना चाहते पर बुलाते कैसे तन्हाई में भी यादें हमेशा मेरा साथ दे आज फिर याद तेरी आ ही गई लौट के तू आई नहीं क्या ही देखूं तेरी तारीफ में तू आग जो बुझाई नहीं याद तेरी आई गई लौट के तू आई नहीं आज फिर तू ख्वाब आज फिर वही तस्वीर जो आज तक जलाई नहीं तेरे बिन ये कैसी जिंदगी सो गम बनी ये है जिंदगी ना उलझे हैं कभी ना ही उलझेंगे अभी क्या सिर्फ दिखावा है ये जिंदगी अब कोई जाने की भी ज़िद नहीं भरता नहीं है जख्मी दिल कभी कहानियां कुछ अनसुनी नहीं अनकही क्या अब तमाशा बन गई जिंदगी ये दुनिया मतलबी मैं फलसफी या पढ़ कभी वो बातें मन की वो समझे सरसरी गुजरे पल नहीं ये घर लगे उगर नहीं फक्र है खुद पे नहीं काटे तेरे पर कभी कल तक जो पास अब वो जा चुका है दूर तेरी आवाज सुन के आता था सुकून कर देना माफ अगर हो गई कोई भूल कर हुआ खाली वही मिट्टी वही धूल क्या मेरा कसूर क्या तेरा कसूर सब पूछे कुछ चाहिए मुझे चाहिए बस तू तू तू ही मेरी सांस जैसे तू ही है लहू सच कहूं तो तेरे बिन मैं अधूरा हूं याद तेरी आ ही गई लौट के तू आई नहीं क्या ही लिखूं तेरी तारीफ में तू आग जो बुझाई नहीं याद तेरी आई गई लौट के तू आई नहीं आज फिर दुहाब आज फिर वही तस्वीर जो आज तक जलाई नहीं