को अधिक शक्तियां से डेडिकेशन से आज हम कक्षा दसवीं हिंदी और क्षितिज भाग 2 के पाठक्रम से आपके काव्य खंड का पाठ 2 पढ़ने जा रहे हैं इसका शीर्षक राम लक्ष्मण परशुराम संवाद और इसके कवि तुलसीदासजी इस पाठ में जो आपको चौपाया दी गई है वह आपके रामचरित्र मानस के बालकांड के अनुसार सीता स्वयंवर हो रहा था उसमें रामजी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते हुए उनका शिव धनुष टूट गया था उसके बाद जो परशुराम जी उन्हें यह समाचार मिलता है कि शिव धनुष टूट गया है तो वह बहुत क्रोधित हो जाते हैं उनको बहुत गुस्सा आ जाता है और जब सीता स्वयंवर में पहुंचते हैं और वहां पर शिव धनुष टूटा हुआ तो वह अपने आपे से बाहर हो जाते हैं अब राम जी जो है उसके बाद उन्हें बहुत ही सरलता से शांति से समझाते हैं विश्वामित्र जी उनको समझाते हैं उसके बाद जो है परशुराम जी राम जी की शक्ति की परीक्षा लेते हैं और फिर अंत में जो है उनका गुस्सा शांत हो जाता है अपने जो राम लक्ष्मण और परशुराम जी हैं उनके बीच में जो संवाद होता है या वार्तालाप होती है उसका जो प्रसंग है वह यहां पर प्रस्तुत किया गया है असल में पूरा जो प्रसंग है पूरे जो वार्तालाप है वह यहां पर आपको नहीं दी गई है केवल एक छोटा सा अंश है यहां पर दिखाया गया है यहां पर जो है परशुराम जी के जो क्रोध से भरे हुए वाक्य थे उनके उत्तर जो है लक्ष्मण जी किस तरह से उनका मजाक बनाते हुए उन पर व्यंग्य कसते हुए दे रहे थे इस चीज का यहां पर वर्णन है और इस प्रसंग की विशेषता क्या है यहां पर जो है लक्ष्मण जी का वीर रस देखने को मिलता है यानी उनकी वीरता देखने को मिलती है कि वह जो है किसी भी तरह से अपने आप को दूसरों के सामने एकदम से समर्पित नहीं करते हैं वह जो है अपनी पूरी बात बिल्कुल निडरता से सामने रखते हैं और परशुराम जी का जो है यहां पर हमें क्रोध देखने को मिलता है कि वह कितने क्रोधी स्वभाव के थे और राम जी जो है कितने शांत स्वभाव के थे यह सारी चीजें जो है हमें यहां पर प्रसन्न में देखने को मिलेगी है जो आपको चौपाइयां दी गई है तो ज्यादा समय व्यस्त करवाते हुए हम आते हैं अपने चैप्टर और देखते हैं कि सबसे पहले चौपाई में तुलसीदासजी ने क्या वर्णन किया है नाच संबोधनों बजे निहारा हो ही के ओं एक दास तुम्हारा आइए सूख कहा कहिए कि निर्मोही सुनि रिसाइ बोले मुनि को ही सेवकों जो करें सेवकाई अरे कर नियुक्त लड़ाई सुनहु राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा गांव बिहारी समाज झाल मोरे जैसे ही सब राजा सुनि मुनि बचन लखन मुस्काने बोले परसों उधर ही अब माने बहु धनुहीं स्टोरी लरिकाई कबहुं न असि रिस कहीं गुसाई यह धुनों पर ममता के ही ऋतु कि सुनि रिसाइ कहा कि गुरुकुल के तू अंत में यहां पर दोहा दिया गया है रेंद्र बालक काल बस बोलत तोहि न संभार दोनों ही समय त्रिपुरारी धन्नो विदित सकल संसार अब सबसे पहले हम यहां पर जो है कठिन शब्दों के शब्द जाएंगे उसके बाद जो है पंक्तियों के अर्थ जानेंगे इस पर जो है हम व्याख्या करेंगे कि आप किस तरह से इन पंक्तियों के अर्थ को एक्सप्लेन करते हैं किस तरह से बताते हैं कि यह पंक्तियां है वह किसने कही है इसके बारे में कही है और किस गांव के साथ कहीं है तो सबसे पहले हम जानते हैं इसके शब्दार्थों को यहां पर संभू कहा गया है शंभू अथवा शिव को यानी कि भगवान जी को कहा गया है धनुष को और भनियारा होता है तोड़ने वाला हो ही कहा गया है ही होगा को और क्यों कहा गया है कोई को आयसु कहां गया है आज्ञा के लिए और कहाई और अ यानी क्या कहिये यानि कहते हैं ना क्यों नहीं रिसाई यानि विरोध करना और को ही अर्थात क्रोधी अरे कर्मी यानि शत्रु का काम जैसे ही यानि जिसने सहसबाहु अर्थात् हजार भुजा ओं वाला बिलगांव यानि अलग होना चाहिए यानि छोड़कर जैसे ही यानि जाएंगे अब माने अपमान करना लरिकाई अर्थात बचपन में रिसर्च यानी क्रोध गोसाईं कहा जाता है स्वामी या महाराज को यह ही अर्थात इस भृगुकुल के तो अर्थात वृष गुरुकुल की पताका यानि परशुराम परशुराम जी को जो है वह गुरुकुल के तू भी कहा जाता है बालक यानि राजा का पुत्र त्रिपुरारी त्रिपुरारी कहा जाता है शिवजी को और विदित यानि जानता है सर्कल यानी जानता है 9th कल्याणी सारा यहां पर जो यह कठिन शब्द है इनके अर्थ आपको थोड़े से पता होने चाहिए तभी आप जो है पंक्तियों के अर्थ अच्छे से एक्सप्लेन कर पाएंगे तो अब जो है हम जान लेते हैं आपके इन पंक्तियों के अर्थ को दो पंक्तियां हैं नाथ संबोधनों मनिहारा अर्थात हे नाथ संबोधनों शिव के धनुष को निहारा तोड़ने वाला कोई ही होगा क्यों कोई एक दास तुम्हारा एक दास तुम्हारा यानि है नाथ शिव धनुष को तोड़ने वाला तुम्हारा कोई एक दास ही होगा आयसु कहिया किन्नुहि आज्ञा है आपकी स्किन मोह ही क्यों नहीं मुझे सुन रिसाई बोले मुनि को ही मुनि से कहा आप मुझे क्यों नहीं कहते यानि जो आपकी आज्ञा है आप यह कहीं सेवक यह राज सेवा करता है अरे करणी कार्स लराई शत्रुता का काम करके तो लड़ाई ही की जा सकती है सुनहु राम जेहि शिवधनु तोड़ा सुनो राम जिसने शिव धनुष तोड़ा है सहस्रबाहु संभव सो रिपु मोरा हजार भुजाओं वाला होते हुए भी वह मेरा रिपु यानि शत्रु है 100 विलगाव विहाई समाज झाल वह अलग हो जाए इस समाज से नाता मरेज यही सब राजा नहीं तो मरेंगे यहीं पर तब राजा सुनि मुनि बचन लखन मुस्काने सुनकर मुनि के वचन लक्ष्मण जी मुस्कुराने लगे बोले परसों उधर ही अब माने और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले बहुत उद्धव कि तोरी लरिकाई बहुत से धनुष तोड़े हैं हमने बचपन में कबहुं न असि किसी ने भी ऐसी इरिस कहीं गुसाई कि संत किसी ने भी हमें ऐसा गुस्सा नहीं दिखाया यह ईंधनों पर ममता के ही हेतु इसी धनुष पर आपके ममता क्यों है सुनि रिसाइ कहा मृदुल केतु जिस प्रकार से आप जो है गुस्सा दिखा रहे हैं रैप बालक प्लस बोलत तोहि न संभार कि बालक राजा के पुत्र कालवश तुम जो है क्या बोल रहे हो तुम्हें संभाल नहीं है तुम संभाल कर नहीं बोल पा रहे हो ही त्रिपुरारी धनु कि छोटे-मोटे धनुषों को भी तुम शिव के धनुष के समान कह रहे हो सकल संसार जिसको जो को जो है पूरा संसार जान आ रहा है तो यह थे इन पंक्तियों के अर्थ अब जो है हम व्याख्या के साथ जानेंगे कि इन पंक्तियों की व्याख्या करें तो इस तरह से आप इन पंक्तियों को एक्सप्लेन करें तो हम दोनों करके पंक्तियों को करेंगे ताकि आप और अच्छे से बिना किसी कष्ट के बिना किसी कठिनाई के जो हर एक शब्द को एक्सप्लेन कर पाएं तो दो पंक्तियां नाच संबोधनों निहारा ही के पास तुम्हारा कहीं सुनि मुनि को आप करेंगे सबसे पहले आप बताएंगे कि जो यह वर्णन किया गया है वह किसके लिए है इस वजह से और कौन कर रहा है तो आप इस तरह से अपने एक्सप्रेशन को शुरू करें कि श्री राम जी के द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने के कारण परशुराम क्रोधित हो जाते के कारण परशुराम जी की कोट हो जाते हैं तब उनके क्रोध को देखकर जब जनक के दरबार में सभी लोग भयभीत हो गए तो श्रीराम ने आगे बढ़कर परशुराम जी से कहा अब यहां पर यह सारी चीजें आपने क्यों बताई है क्योंकि अगर आप सीधा एक्सप्लेन करते हैं जैसे हमने अर्थ आपको सीधे बताएं कि पंक्तियों के अर्थ क्या है तो आपको समझ में नहीं आएगा कि कौन कह रहा है क्यों कह रहा है इसलिए कह रहा है और इस भाव में गहरा है तो सबसे पहले एक्सप्लेन करते हुए आपने बताया कारण कि कारण क्या था कि परशुराम जी है वह क्रोधित थे अब क्रोधित क्यों क्योंकि राम जी के द्वारा जो है शिव धनुष को तोड़ दिया गया था अब श्री राम जी जो है उनके क्रोध को शांत करने के लिए इन पंक्तियों को कह रहे थे क्योंकि जनक के दरबार में जो है जब परशुराम के क्रोध को सपने देखा तो डर गए थे तो श्री राम जी आगे बढ़कर परशुराम जी कहते कहते हैं फिर पंक्तियों को फोन करें कि अपने संबोधनों भनियारा कि नाथ भगवान शिव के धनुष को तोड़ने वाला कोई ही के एक दास तुम्हारा आपका कोई एक दास ही होगा अब देखिए यहां पर सीधे-सीधे राम जी यह नहीं कह रहे हैं कि शिव धनुष का खंडन उनके द्वारा हुआ है यहां पर वह जो है पहले परशुराम जी के क्रोध को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं कि जो शिव का धनुष टूटा है या तोड़ने वाला है वह आपका ही कोई दास होगा आगे वे कहते हैं आइए सूख कहा कहीं अ कि निर्मोही कि आपकी क्या आज्ञा है सुनि रिसाइ बोले मुनि को ही कि आप मुझसे क्यों नहीं कहते यानि आपकी क्या आज्ञा है आप मुझसे कहीं यह कौन कह रहा है श्री राम जी परशुराम जी से आगे की पत्तियां बेवकूफ तो जो करें सेवकाई अ रिकॉर्ड करनी कार्स सुनहु राम जेहि व्यवधानों तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा अब यहां पर राम के वचन सुनकर क्रोधित परशुराम जी बोले अब यहां पर देखिए राम जी तो चेहरे थे कि परशुराम जी का क्रोध शांत हो लेकिन परशुराम जी जो है राम जी के जो वचन है उनको सुनकर क्रोधित हो गए और वे बोले कि सेवकों सो जो करें सेवकाई कि सेवक वह कहलाता है जो सेवा का कार्य करता है अरे करणी कार्स लड़ाई कि शत्रुता का काम करके तो लड़ाई ही मोल ली जाती है यह कहने का तात्पर्य है कि आप किसी को कष्ट देकर जो है उसको खुशी नहीं दे सकते हैं यहां पर यह कहने का मतलब क्या था परशुराम जी का कि आप जो है धनुष तोड़ रहे हैं जिससे जो है परशुराम जी भावनात्मक तरीके से जुड़े हुए थे क्योंकि परशुराम जी जो है शिवजी को अपना गुरु म्यूजिक को आघात हुआ था जिससे उनको कष्ट पहुंचा था तो अब जो है जब राम उनको शांत करने की कोशिश कर रहे थे तब वह परशुराम जी ने यह कहा था कि सेवक कौन खिलाता है जो सेवा का कार्य करता है अब आप किसी को कष्ट पहुंचा रहे हैं तो वह सेवा नहीं होगी वह शत्रुता होगी और शत्रुता से लड़ाई ही की जा सकती है ना कि आप उससे सेवा की घटना कर सकते हैं आगे परशुराम जी कहते हैं सुनहु राम जेहि शिवधनु तोरा इहराम मेरी बात सुनो जैसे ही शिव धनुष तोड़ा जिसने भगवान शिवजी के इस धनुष को तोड़ा है सहज सुभाऊ सम सो रिपु मोरा बहुत सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है अर्थात जिसने भी भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है उसकी चाहे हजार भुजाएं हो वह फिर भी मेरा शत्रु है यह कहने का तात्पर्य यह है कि परशुराम जी यहां पर इतनी क्रोधित हुई कि अगर यह कहते हैं कि अगर जिसने यह धनुष तोड़ा है अगर उसकी हजार भुजाएं हैं फिर भी वे डरने वाला वड़ा है अगर उसकी हजार भुजाएं हैं फिर भी वे डरने वाले नहीं है वह फिर भी जो है उसे अपने चतरू ही कहेंगे आगे की पंक्तिया हैं सो बिलगाव बिहाई समाधान आता मरेज यही सब राजा सुनि मुनि बचन लखन मुस्काने बोले परसों उधर ही अब माने अब यहां पर जो है परशुराम जी आगे कहते हैं सो बिलगाव बिहारी समाजा अब यहां पर फिर वह यानी परशुराम जी राज्य सभा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि सो बिलगाव बिहारी समाज्ा की जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह व्यक्ति खुद ब खुद इस समाज से अलग हो जाए यानी वह जो है इससे पहले ही साइड हो जाए ना टावर जैसे ही सब राजा नहीं तो यहां उपस्थित सभी राजा मारे जाएंगे यह जो है परशुराम जी क्रोध में कह रहे हैं कि यहां पर जितने भी राजा है वह मारे जायेंगे अगर वह व्यक्ति सामने नहीं आता है सुनि मुनि बचन लखन मेहता सुनि मुनि बचन लखन अनुष्का ने परशुराम जी के इनका क्रोध अपने वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराए और बोले परसों उधर ही अब माने और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले अब देखिए कोई भी परशुराम जी के विरोध के कारण जो है सामने नहीं आ पा रहा है लेकिन लक्ष्मण जी जो है यहां पर उनके वचनों को सुनकर मुस्कुरा रहे हैं और वह जो है अपमान या अभिमान से भरे हुए शब्दों में जो है परशुराम जी से अब आगे बातचीत करेंगे क्या कहेंगे इस बहुत हनोई स्टोरी लरिकाई कबहुं न असि रिश्तों कि नहीं गुस्साएं यह धुनों पर ममता की ही तू सुनि रिसाइ कहा कि अब यहां पर जो है आप पूरी पति को पहले पढेंगे बहु धनुहीं लरिकाई नसीर ही गुसा गुसा प्ले करें कि है घुस आई थी कि बचपन में हमने ऐसे छोटे-छोटे है धनुष तोड़ डाले थे कबहुं न असि रिस कि नहीं किंतु ऐसा क्रोध तो कभी किसी ने नहीं किया और पंक्ति में भी आप पहले जो लास्ट कपल है उससे देखेंगे कि सुनि रिसाइ कहां भृगु के तू यानी जिस प्रकार आप जो है क्रोध कर रहे हैं यहीं पर ममता के ही हेतु इसी धनुष पर आपकी इतनी ममता क्यों है कि लक्ष्मण जी अब यहां पर जो है परशुराम जी का मजाक बनाते हुए कह रहे हैं कि हमने तो जो है बचपन में बहुत से धनुष तोड़े हैं लेकिन किसी ने हम पर इतना गुस्सा नहीं किया है तो आप जो है इस धन उसे इतने क्यों प्रेम कर रहे हैं क्यों इतने स्थलों से बंधे हुए हैं कि हमारे स्तन उसको तोड़े जाने पर जो है आप इतना क्रोध हम पर दिखा रहे हैं कि दौड़ने वाले को अपना शत्रु तक मान रहे हैं आगे जो है जिसे क्या कह रहे हैं रे बालक बस बोल तोहि न संभार ही अपने मित्र पुरारी धन्नो विदित सकल संसार यानि लक्ष्मण की व्यंग्य भरी बातें सुनकर परशुरामजी क्रोधित स्वर में बोले क्या बोलते हैं रैप बालक काल बस बोलत तोहि न संभार कि हे राजा के पुत्र मृत्यु के वश में होने से तुझे यह भी होश नहीं कि तू क्या बोल रहा है तोहि न संभार तू संभल कर नहीं बोल पा रहा है दोनों ही समय त्रिपुरारी धन वृद्धि सकल संसार बिधि सकल संसार को पहले एक्सप्लेन करेंगे कि समस्त विश्व में विख्यात हैं भगवान शिव का यह धनुष्य समय त्रिपुरारी धन्नो धन्नो ही इस तरह से पेंट करेंगे कि भगवान शिव का यह धनुष क्या तुझे बचपन में तोड़े हुए धनुष के समान है दिखाई देता है अब यहां पर देखिए जो लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातें थी जो लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातें थी उससे जो है परशुराम जी और ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं और वे कहते हैं एक तू जो है मृत्यु के वश में है यानी तुझे समझ में नहीं आ रहा है तो क्या बोल रहा है क्योंकि तुम जो है भगवान शिवजी के धनुष को दूसरे छोटे-छोटे धनुषों से कंपेयर कर रहे हो उसकी तुलना कर रहे हो तो यह थी कि आपकी पहली चौपाई इसका भावार्थ जान लेते हैं इस चपाती में परशुराम जी के क्रोध को दिखाया गया है जो अपने आराध्य भगवान शिव के धनुष के टूटने से अत्यंत दुखी है और धनुष को तोड़ने वाले को अपने शत्रुओं की तरह देख रहे हैं अब यहां पर यह सफाई दी गई है इससे हमें क्या पता चलता है कि जो परशुराम जी है वह अपने आराध्य शिव जी के धनुष के टूट जाने पर बहुत ज्यादा गुस्से में है लेकिन जो लक्ष्मण जी है वह उनका अपमान कर रहे हैं उन पर व्यंग्य कस रहे हैं आगे की चौपाई को जानते हैं दूसरी छुपा इस तरह से है लखन कहा हंसी हमरे जाना सुनहु देव धनुष समाना का छतीश लूज बूंद धन तोरे देखा रामनयन के भूरे व टूट रघुपतिहु न दोसू मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू बोले चेतई परसों की ओर आ रेट सुनिधि सुभाउ न मोरा बालक कुएं लिबिडो ना तो ही केवल मुनि जड़ जानहिं मोहित बाल ब्रह्मचारी अतिथि को ही विश्वविदित क्षत्रिय कुल दूं ओह भिन्नों कि नहीं विपुल बार महिदेव तरह बाहुक 6 निहारा परसों बिलोकु मम ओरा दिया गया है मातु पितु दिया गया है मातु पितहि जन अध्यक्ष किशोर गर्ग के भगत दलन पर सूमो रथी घोर अब यहां पर भी पहले हम इनके श्रद्धा जान लेते हैं फिर अर्थ और व्याख्याएं को देखेंगे सबसे पहले शब्दार्थों में देखिए हंसी यानि हंसकर सुकून यानि सुनो छति छति कहां गया है नुकसान को और जून यानि पुराना तोरे यानि तोड़ने में भूरे यानि धोखे में दोस्तों यानी दोष का आज अर्थात कारण रोसू अर्थात क्रोध चित्र यानि देखकर पर सूर्या ने फसाया कुल्हारी तक यानि दुष्ट और स्वभाव यानि स्वभाव बधों यानि वध करता हूं विश्वविद्यालय ने दुनिया में प्रसिद्ध कि नहीं कई बार विपुल बहुत मस्जिद एवं ब्राह्मणों को निहारा यानि काट डाला और महेश कुमार आया निराज कुमार अर्जुन रहा यानी गर्भ के अ ज्ञानी बच्चा दलन यानि कि चलने वाला और अतिथि गोरिया ने अत्यंत भयंकर अब इसके अर्थ जान लेते हैं पंक्तियों के लखन कहा हंसी हमारे जाना सुकदेव सब धनुष ज़माना अब यहां पर जो लक्ष्मण जी है वह हंसकर कहते हैं हमारे जाना कि मेरी समझ के अनुसार मुद्दा धनुष धनुष एक समान होते हैं तीन लाभु जून धनु तोरा कि इस धनुष के टूटने से क्या लाभ है तथा घृणा के श्रीराम की तरफ देख लक्ष्मण जी ने कहा टूट रघुपतिहु न दोसू रघुपति का यानि श्रीराम का कोई नहीं बिनु काज करिअ कत रोसू कि मुनि आप में कारण के ही विरोध कर रहे हैं बोले चीते परसों की ओर आर परशुराम जी अपने पास से की ओर देखकर बोले रे सठ अरे दुष्ट सुनने ही तुमने नहीं सुना सुभाष ना मोरा मेरे स्वभाव के बारे में यानि हे दुष्ट क्या तुमने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना बालकों बोले बधों नहीं तो ही मैं केवल बालक समझकर तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूं केवल मुनि जड़ जानहि मोही क्या तुम मुझे केवल मुनि ही जान रहे हो यानी कि मुझे केवल मुनि समझ रहे हो बाल ब्रह्मचारी अति को ही मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूं विश्वविद्यालय क्षत्रियों शुद्रों ही और पूरे विश्व में विख्यात द्रोही हूं या शत्रु भुजबल भूमि भूप भी नौकरी नहीं कई बार अपनी भुजाओं के बल से बू पूरी भूमि को भूप राजाओं के बिना कि नहीं कर दिया है नींबू अपनी भुजाओं के बल पर पूरी भूमि को कई बार जो है राजाओं के बिना कर दिया है राजाओं के रहित कर दिया है विपुल विपुल बार महिदेव विदीन ठेर कई बार जो है ब्राह्मणों को दान में दे दिया है सच बाहुक मुझे निहारा हजार भुजाओं को भी जो है मैंने काट डाला है परसों विलो को नहीं कुमारा ही राजकुमार मेरे पर से यानि कूड़े को देखो मातु पितहि जने सोच बस कृषि महेश किशोर कि है महेश कुमार है राजा के पुत्र माता-पिता को जो है तुम सोच में मत डालो चिंता में मत डालो गर्म नहा के ईयर भक्त दलन परसू मोर अति घोर मेरा यह फंसा अत्यंत क्रूर है इसके गर्जन से जो है गर्भ में बालक वो है गिर जाते हैं यानी स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है गर्भ में ही बच्चे जो है वह मर जाते हैं यह जो उनका पेशा है वह इतना भयंकर है अब जान लेते हैं कि आप इन पंक्तियों की व्याख्या किस तरह से करेंगे यहां पर भी हम दो दो पंक्तियां करके ही जो है बैठक करेंगे ताकि आप अच्छे से एक्सप्लेन कर पाएं पहली पसंद किया है लखन कहा हंसी हमारे जाना सुनहु देव सब धनुष ज़माना यानि व्याख्या करेंगे पहले लिखेंगे कि परशुराम जी का धनुष की ओर इतना प्रेम देखकर और उसके टूट जाने पर अत्यधिक क्रोधित होता हुआ देख कर लक्ष्मण जी हंसकर परशुराम जी से बोले क्या बोले मैं हमारे जाना मेरी समझ के अनुसार तो धनुष धनुष के समान ही होते हैं लाबू जून धनु तोरा रामनयन के अ लक्ष्मण श्री राम की ओर देखकर बोले कि इस धनुष के टूटने से क्या लाभ है तथा क्या हानि है यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है अब श्री राम जी की ओर क्यों देखा लक्ष्मण जी ने क्योंकि जो धनुष है वह श्री राम जी से टूटा था अगली पंक्तियां हैं छुआरे टूट रघुपतिहु न दोसू मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू श्री राम जी ने तो इसे केवल छुआ था छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू लेकिन यह धनुष को छूते ही टूट गया फिर इसमें श्री राम जी का क्या दोष है मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू मुनिवर आप तो बिना किसी कारण के विरोध कर रहे हैं कहने का क्या तात्पर्य है कहने का तात्पर्य यह है कि लक्ष्मण जी परशुराम जी के क्रोध को बेमतलब का मान रहे थे क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि उस धनुष के साथ परशुराम जी के क्या भाव जुड़े थे वह सिर्फ यहां पर तथा कह रहे थे कि श्री राम जी का यहां पर कोई दोष नहीं है क्योंकि उन्होंने केवल शिव धनुष को छुआ था और छूते ही जो है यह शिव धनुष टूट गया था बोले चितई परसों की ओर आ लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातें सुनकर परशुरामजी का क्रोध और क्रोध और बढ़ गया और वह अपने फरसे की ओर देखकर बोले कि रे सठ अरे दुष्ट सुने ही शुभ भावना मोरा कि क्या तूने मेरे स्वभाव के विषय में नहीं सुना है यानी परशुराम जी को यहां पर यह लग रहा था कि चोर लक्ष्मण जी है वह उनसे किस तरह से बात कर रहे हैं कैसे उनसे व्यंग्य भरी बातें कर रहे हैं क्या वह जो है उनके क्रोध से परिचित नहीं है इसलिए वह यहां पर लक्ष्मण जिसे कहते हैं कि अरे दुष्ट क्या तुझे मेरे स्वभाव के बारे में पता नहीं है कि मेरा स्वभाव कैसा है कि तू मुझसे इस तरह से व्यंग्य भरी बातें कर रहा है बालों बोली बधों नहीं तो ही मैं केवल बालक समझकर तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूं केवल मुनि जड़ जानहि मोही अरे मूर्ख क्या तू मुझे केवल एक मुनि समझता है बाल ब्रह्मचारी अति को ही मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का विश्वविदित व क्षत्रिय कुल द्रोही मैं पूरे विश्व में क्षत्रिय कुल के घोर शत्रु के रूप में प्रसिद्ध हूं अब यहां पर देखिए जब परशुराम जी लक्ष्मण जी से इस तरह से उत्तर मिल रहा था उन्हें तो उन्हें जो है बहुत ज्यादा क्रोध आ गया तो वह जो है अपने बारे में जो है लक्ष्मण जी को बता रहे थे कि तुम जो है केवल मुझे एक मुनि मात्र मत समझो मैं जो हूं बाल ब्रह्मचारी हूं और बहुत ही ज्यादा क्रोधित स्वभाव का हूं और पूरे संसार में जो है मुझे अ क्षत्रिय के शत्रु के रूप में जाना जाता है यानी क्षत्रिय कुल के घोर शत्रु के रूप अपने में प्रसिद्ध हूं कुछ भोज्य भूमि भूपभैरो कि नहीं विपिन बार महिदेव नदी ने मैंने अपने इन भुजाओं के बल से पृथ्वी को कई बार राजाओं से रहित करके विपुल बार महिदेव नदी ने उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया था बाहुक छेद निहारा परसों बिलों महेश कुमार महेश कुमार देवराज कुमार परसू बिलोकु मेरे इस फरसे को देख सहसबाहु भुज छेद निहारा जिससे मैंने सहस्त्रबाहु अर्थात हजारों लोगों की भुजाओं को काट डाला था अब यहां पर वो और ज्यादा अपने बारे में बता रहे हैं कि उन्होंने जो है कई बार इस पूरी धरती से सारे क्षत्रिय कुलों का नाश करके इस पूरी धरती को जो है कई बार ब्राह्मणों को दान में दे दिया था और ड्रिफ्ट सा वह देख रहे हैं उनके हाथ में वे जो है लक्ष्मी जिसे कहते हैं कि है राजकुमार यह देखो इस फरसे से जो है मैंने और बहुत सारे हजारों राजाओं के जो है बीजों को काट डाला था यानी वह अपने क्रोध के बारे में जो है उन्हें अवगत करवा रहे हैं मातु पितहि जनी सोच बस कर इसी क्रमश किशोर इन दरभंगा के अल्लन परसू मोर अति घोर महेश किशोर राजा के बाद लक्ष्मण मातु पितु जनहित सोच बस कृषि तू मुझ से भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डाल अर्थात अपनी मौत को ना बुला गर्म ना केयर भक्त दलन परसों मोर अति घोर मेरा फर्ज बहुत भयंकर है यह गर्भ में पल रहे बच्चों का भी नाश कर डालता है अर्थात मेरे पर से की गर्जना सुनकर गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि परशुराम जी लक्ष्मण जी को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्हें जब क्रोध आता है कि वे किसी बालक को भी मारने से नहीं हिचकिचाते हैं यहां पर जो परशुराम जी है वह अपने क्रोध से लक्ष्मण जी को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं वह यह है लक्ष्मण जी को डराने की कोशिश कर रहे हैं भावार्थ जान लेते हैं इस चौपाई का इस चौपाई में पर सुरावास जान लेते हैं इस चौपाई का इस चौपाई में परशुराम जी लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातों को सुनकर अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं किंतु वह लक्ष्मण जी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे जिस कारण वे लक्ष्मण जी को अपने क्रोध का परिचय देते हुए कहते हैं कि उनका फंसा बहुत भयंकर है जो गर्भ में पल रहे बच्चों का भी नाश कर डालता है कहने का तात्पर्य यह है कि परशुराम जी केवल उस व्यक्ति को सजा देना चाहते थे जिसने उनके आराध्य शिव जी के धनुष को तोड़ा था वह लक्ष्मण जी को बालक समझकर केवल अपने क्रोध का परिचय देते हैं यहां पर परशुराम जी जो है केवल उस व्यक्ति को महसूस कहना चाहते थे उस व्यक्ति को अपना शत्रु मान रहे थे जिसने जो है शिवजी के धनुष को तोड़ा है इसलिए जब लक्ष्मण जी व्यंग्य भरी बातें करके जो है उनका उत्साह बढ़ा रहे थे उनको क्रोधित हो कर रहे थे तो परशुराम जी जो है उन्हें डरा रहे थे ताकि वह जो है डर कर पीछे हट जाएं और वे जो है उस व्यक्ति उस व्यक्ति को सजा दे पाएं इस ने धनुष तोड़ा है अगला उपाय इस तरह से है बीसी लखनऊ बोले मृदु बानी नीसू महात्मा ने पुनि पुनि मोहि दिखाओ कुठारु चाहत उड़ावन फूंकी पहारू इहां कम्हड़ बतिया कोउ नाहीं जो तर्जनी देखि मर जाहीं देखिए थारो सरासन बाना में कछु कहा सहित अभिमाना भृगु सुत संभू जी ने बिलों की दो प्रभु कहुं रिसीव करो कि सुर महिसुर हरिजन अरुंधति आज हमारे स्कूल यहां पर ना सुराही बधाई पापू तरफ कीर्ति हारे इमारत रूपा पर तुम्हारे कोटी पुलिस चम्मच तुम्हारा व्यर्थ इधर-उधर नुकसान यह देखिए जो भी लोग ही अनुचित कहुं छमहु महामुनि अधीन सुनी सरोश आफ बंद करो शाम रघुबंसमनि बोले गिरा गंभीर यहां पर सबसे पहले पदार्थों को लेते हैं फिर इसके अर्थ जाएंगे और फिर करेंगे यहां पर हंसी का अर्थ अर्थात् कोमल मुनि अर्थात महामुनि भटियानी महान योद्धा अर्थात फंसा या फिर अ पहलू यानि पहाड़ अ यानी सीता फल और सिरहन कहां गया है धनुष-बाण अर्थात लेकिन ब्रिज भूषण त्यागी भृगुवंशी यानि परशुराम सांपों यानि सहन करना महिसुर यानी ब्राह्मण गाय अर्थात गाय सुराही अर्थात वीरता दिखाना मार दोस्तों यानी मार दो पार्थ पैर कोटी अर्थात करोड़ कुलिश यानि वृक्ष या फिर कठोर क्या हो शंभू यानि क्षमा करना धीर यानि धैर्यवान सरोश यानि क्रोध में भरकर गिरा यानि वाणी अब इसके बाद पंक्तियों के अर्थ लेते हैं फिर उसके बाद बैठक करेंगे हंसी लखनऊ बोले मृदु बानी यानि लक्ष्मण जी फंसकर अपने कोमल वाणी में बोले हो मुनीसु महावट मानी हे मुनिवर आप तो अपने आपको बड़ा योद्धा समझते हैं अपनी पुनि मोहि दिखाओ कुठारु बार-बार मुझे दिखा रहे हैं फसाया ने अपनी कुल्हाड़ी चाहत उड़ान फूंकी पहारू मुझे तो लगता है कि आप फूंक मारकर पहाड़ को बढ़ाना चाहते हैं इहां कम्हड़ बतिया कोउ न ही यहां पर कोई भी सीताफल अर्थात कूड़े के छोटे फल के समान नहीं जो आपकी तर्जनी उंगली देखते ही देखते ही थ्रू सरासन बाना फंसा बांध देख कर मैं कछु कहां सहित अभिमाना मैंने कुछ अभिमान के साथ आपसे कहा भृगु सुत समय जनेऊ बिलों कि रघुवंशी ब्राह्मण जानकर और जिन आंखों को देख कर जो कुछ कहुं और इस रो कि आपने जो कुछ कहा है अपने क्रोध को मैं रो बोल रहा हूं सूर्य देवता महेश्वर भ्रमण हरिसर हरी के जरिए यानी ईश्वर के भक्त आरू और गाय गाय हमारे यहां पर ना सुरई हमारे स्कूल में इन पर वीरता नहीं दिखाया करते बदले पापू इन का वध करने पर पाप लगता है अब कीर्ति अब कीर्ति हारी और इनसे हार जाने पर अप कीर्ति यानि अपयश या बदनामी होती है मार दूं पास पर यह तुम्हारे इसलिए आप अगर मारे भी तो हमें आपके पैर पकड़ने चाहिए कोटी पुलिस सिस्टम बच्चन तुम्हारा आपका 11 वचन को थी पुलिस करोड़ों वज्र के समान कठोर है व्यर्थ धरहु धनुष-बाण कुठारा व्यर्थ में ही आपने पर सा और धनुष बाण को धारण लिया हुआ है जो भी लोग की अनुचित कहुं महामुनि धीर आपके धनुष बाण और कुठार यानि पर से को देखकर अगर मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो हे मुनिवर हे धैर्यवान सुनी सरोश भृगु मुनि बोले गिरी गंभीर आप मुझे क्षमा कर दीजिए लक्ष्मण लक्ष्मण के यहां व्यंग्य वचन सुनकर महर्षि परशुराम के क्रोध में आकर गंभीर स्वर में बोलने लगे बोलने लगे वह आप अगली जाएंगे तो सबसे पहले जान लेते हैं कि करेंगे तो किस तरह से को करें लखनऊ बोले मृदु बानी मुनि साधु महात्माओं ने परशुराम के क्रोध से भरे वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी बहुत ही अधिक कोमल वाणी में फंसकर उन्हें दो पेश की है मुनिवर आप तो अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं महेश भट्ट मानी बड़ा योद्धा समझते हैं पुनि पुनि मोहि निखार कुठारु और आप बार-बार मुझे अपना फरसा यह कुल्हाड़ा दिखा रहे हैं चाहत उड़ावन सूखी पहारू मुझे तो ऐसा लगता है कि आप सूख से पढ़ाना चाहते हैं यानी लक्ष्मण जी अपने आप को पहाड़ बता रहे हैं और परशुराम जी के क्रोध को फूंक बता रहे हैं यहां पर यह बताना चाह रहे हैं कि परशुराम जी के क्रोध से उन पर कोई भी असर नहीं होने वाला है क्योंकि फूंक मारकर आप पहाड़ को नहीं हटा सकते हैं नहीं बढ़ा सकते हैं जी हां कुंभलगढ़ बटियां कोई नहीं परंतु हे मुनिवर यहां पर कोई भी सीताफल अर्थात उमड़े के छोटे फल के समान नहीं तर्जनी देखि मर जाहीं कि जो तर्जनी उंगली को देखते ही मर जाएं यहां पर लक्ष्मण जी ने यह क्यों कहा है कि तर्जनी उंगली देख कर ही मर जाएं क्योंकि परशुराम जी है वह क्रोधित होकर जो है सभा में अपनी तर्ज़नी उंगली दिखाकर जो है सब को भयभीत करने की कोशिश कर रहे थे सबको डरा रहे थे तो लक्ष्मण यहां पर उन पर व्यंग्य करते हैं कि तर्जनी उंगली उंगली दिखाकर जो है आप किसी को नहीं मार सकते हैं क्योंकि यहां पर सभी वीर योद्धा कोई भी है छोटा और कोमल नहीं देखिए चाकू सरासन बाना मैंने आपके हाथ में फंसा और धनुष-बाण देख कर ही मैं कुछ कह सहित अभिमान अभिमान पूर्वक आप से कुछ कहा था कहने का तात्पर्य है कि एक दूसरे से अभिमानपूर्वक कुछ कह सकता इसलिए जो लक्ष्मण जी है वह श्याम जिसे कहते हैं कि आपके हाथ में वुडन स्पून देखा परिस देखा इस वजह से मैंने आपसे अभिमान के साथ कुछ कहा था मैंने जो है आपका अपमान नहीं किया है हेलो व्युअर्स समय जने वह भीलों की जड़ों से तो आप एक भृगुवंशी ब्राह्मण जान पड़ते हैं इन्हें देख कर ही जो कुछ कहा सहूर इसरो की जो कुछ भी अपने क्रोध को रोक रहा हूं यहां पर देखिए लक्ष्मण जी भी परशुराम जी को टक्कर दे रहे हैं कि वह भी जो है अपने क्रोध को रोक रहे हैं क्योंकि लक्ष्मण जी ने भी जो है परशुराम जी के गले में जनेऊ देखा है जिससे उन्हें लगता है कि वह भृगुवंशी ब्राह्मण है और आगे कहते हैं सूर्य महेश्वर हरिजन अरुण भाई हमारे स्कूल यहां पर ना गुसाई कि हमारे स्कूल की यह परंपरा है कि हम सूर्यदेवता महिसुर ब्राह्मण भगवान के भक्त और गाय गाय इन सभी पर वीरता नहीं आया करते थे यहां पर क्या है कि लक्ष्मण परशुराम जी से कह रहे हैं कि मैं अपने गुस्से को कंट्रोल कर तु रोक रहा हूं क्योंकि हमारे स्कूल में भी जो है ब्राह्मणों पर वीरता नहीं दिखाते ब्राह्मणों पर हथियार नहीं उठाते और जिनको देखकर लगता है कि आप भृगुवंशी ब्राह्मण है इसलिए जो है मैं भी कि आप भृगुवंशी ब्राह्मण है इसलिए जो है मैं भी गुस्सा रोक रहा हूं पॉवर प्रकृति हारे मार अतः पा पर यह तुम्हारे क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और से हार जाने पर अप कृतित्व पिच बदनामी होती है इसलिए उम्र उथप्पा मारत हूं यानी आप मारे भी तो पापा पैर पर यह तुम्हारे हमें आपके पैर पकड़ने चाहिए अगर आप हमारे फिर भी हमें आपके पैर पकड़ने चाहिए क्योंकि आप भृगुवंशी ब्राह्मण को ठीक संवर्धन तुम्हारा अब यहां पर जो है लक्ष्मण जी और व्याख्या करते हैं कि महामुनि कोटी पुलिस चम्मच संभव तुम्हारा कि आपका तो 11 वचन ही करोड़ों व्रतों के समान कठोर है व्यर्थ धरु धरु बाण कुठारा व्यर्थ में ही आपने पर सा और धनुष-बाण धारण किया हुआ है कि आपने किए हुए हैं पर साधारण किया हुआ है वह आपने गलत धारण किया हुआ है क्योंकि आपके जो वचन है वही काफी है वहीं बहुत ज्यादा कठोर हैं जो भी लोग ही अनुचित कहुं समूह सुनिधि कि आपके धनुष-बाण कुठार यानि पर से को देखकर अगर मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो यहां पर भी देखे लक्ष्मण जी कैसे व्यंग्य कर रहे हैं कि अगर मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो आपके धनुष बाण और पर से को देखकर तो हे मुनि आप मुझे क्षमा कीजिए सुनी सरोश भृगु बंशी मुनि बोले गिरा गंभीर अब जो है लक्ष्मण जी के यहां व्यंग्य वचन सुनकर भृगुवंशी परशुराम क्रोध में आकर गंभीर स्वर में बोलने लगे अब क्या बोलने लगे वह आपको अगले ऑप्शन ए पता चलेगा उसके दो इस चौपाई का भावार्थ चैनल ढक परशुराम जी को अत्यधिक क्रोधित होकर अपने क्रोधित व्यवहार के बारे में बताते हुए देख कर लक्ष्मण जी इनका और अधिक अपमान करने लगे और उनके बताए तर्कों का खंडन करने लगे लक्ष्मण जी के ऐसा करने के कारण परशुराम जी और अधिक क्रोधित हो गए यहां पर इस चपाती में क्या था लक्ष्मण जी बी जो है उनके जो तर्क वह दे रहे थे वह सभी राजाओं को मारने की बात कर रहे थे अपने क्रोध को दिखा रहे थे तो लक्ष्मण जी ने भी जो है उन्हीं तर्कों को गलत साबित किया उल्टा बताया कि आप तो है अंगुली दिखाकर जो है दादाओं को नहीं मार सकते हैं क्योंकि यहां पर सभी वीर बैठे हैं कोई भी जो है बिना लड़े आपसे हार नहीं मानेगा और वह जो है अपने आप को भी क्रोधी स्वभाव वाला बता रहे हैं क्योंकि यह बताते हैं कि आपको जो है ब्राह्मण समझकर रोक रहा हूं जैसे परशुराम जी ने कहा था कि बालक समझकर वह अपने क्रोध को रोक रहे हैं और लक्ष्मण जी को बचा सकते हैं उसी तरह से यह लक्ष्मण जी उन पर उल्टा तंज करते हैं कि वह भी जो है अपने क्रोध को रोक रहे हैं क्योंकि उनके कुल पर जो है ब्राह्मण पर हाथ नहीं उठाया जाता या फिर शस्त्र नहीं उठाया जाता और परशुराम जी है उनके गले में जनेऊ जो है देखकर लक्ष्मण जी जो है उन्हें भृगु वंश ब्राह्मण कहते हैं जिस वजह से वह अपने गुस्से को रोके हुए हैं तो यहां पर जो है हमें पता चलता है परशुराम जी और लक्ष्मण जी दोनों ही जो है एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं अपने गुस्से में है मैं नेट पाई है वह कौशिक सुकंधर यह बाल कूर कुटिल काल बस निकल धातु भानु बंसल राकेश कलंकू निपट निरंकुस ऊ अवधू पर्सन कुएं का ब्लू हिंदी ड्यू टो पुट कार्स मोहि नाहीं जौं तुम्ह कहुं दुबारा कहीं प्रताप को बल्लू रोशनी हमारा लखन कहेऊ सुनि सुखु सुजसु तुम्हारा तुम ही अक्षत को बन नहीं पा रहा अपने मुहूर्त महिला अपनी कर्णी बार अनेक भांति बहु भरनी नहीं संतोष तप होंठों कहुं जनि रिस रॉकी दुसह दुख सह वीर प्रति तुम अधीर मन झाले गारी देत न पावहु सोभा है झाल सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु विदयमान रन पाई रिप्लेय कथित प्रतापु इस टिप्पणी की सबसे पहले हम शपथ लेते हैं फिर अर्थ जाएंगे और अंत में वे आ जाएंगे शब्दार्थों में कौशिक कहा गया है विश्वामित्र को सुनु अर्थात सुनिए मंदिर मूर्ख टिल्लू दुष्ट घायल को अर्थात घातक यानी खतरनाक पुनः सूर्यवंशी राकेस कलंकू यानि चंद्रमा का कलंक राकेश कहा जाता है चंद्रमा को इसलिए राकेस कलंकू चंद्रमा का कलंक निपट पूरी तरह से निरंकुश यू जिस पर किसी का वश नहीं लें और धूप नासमझ और शंकुओं शंकारहित माहिम यानि क्षण भर मे आखिरी अर्थात द्वोज चित्तौड़ व हट कहुं यानि हीरो को दुबारा यानि बचाना सुजसु यानी सूर्य अक्षत आपके रहते हुए उन पर अनपारा यानि दूसरा धरणी अर्थात काम वर्णी अर्थात वर्णन करना दूसरे व्यक्ति और सहायक जिसको सहन ना किया जा सके वीरव्रती यानि वीरता का व्रत धारण करने वाला और अथवा हानि रहित गारी अर्थात गाली और फिर कहा गया है शूरवीर को और समरण दोनों का अर्थ है युद्ध और प्रताप को अर्थात प्रताप की डींग मारना या अपनी प्रसिद्धि की बढ़ाई करना या अपने आपको बड़ा दिखाना तो यह थे इसके शब्दार्थ अब इस चपाती के अर्थ जान लेते हैं फिर हम व्याख्या करेंगे कौशिक सुकृत्य अनुबंध यह बालों कौशिक यानि विश्वामित्र जी सुनिए यह बालक मंद बुद्धि है यानी इस बालक को अकल नहीं घ्रेलू काल बस निकल धातु टिल्लू यानि यह जो है कुटिल है या फिर यह जो है आपके दुष्ट है यह काल के वश में होकर जो है अपने ही घातक बना हुआ है अपने ही के लिए खतरनाक है अनुबंध राकेश कुंवर भानु सूर्यवंशी राघवन को यह चंद्रमा के समान निपट निरंकुस अबुध उस पर्सन को निपट मूर्ख निर्णय सुविध प्रॉब्लम्स यानी जिसको अ कल ना हो और पर्सन कुंठित यह जो है वह इस तरह का घृत और इसको जो है भविष्य का कोई भी डब्लू हो ही क्षण मां ही यानि क्षण भर में यह काल का ग्रास होने वाला है यानी यह मरने वाला है कहां पुकारी खोरी मोहि नाहीं कहें पुकारी मैं अभी बता रहा हूं आखिरी महीना ही बाद में मुझे दोष मत दीजिए का यह तुम हट कहुं बुखारा यानि तुम अगर इसे बचाना चाहते हो कहीं प्रताप बल्लू रोशु हमारा इसे जो है मेरे प्रताप बल और क्रोध के बारे में बता दीजिए लेकिन कहेऊ सुनि सुजसु तुम्हारा लक्ष्मण कहते हैं मुनि आपके सूर्य को तुम्हारा ही अक्षत को बरनैं पारा यानी आप ही बता दीजिए आप वर्णन कर दीजिए कोई दूसरा वर्णन क्यों करें अपने होंठों आपने करनी है प्राणी मैं अपने आप अपने मुंह से आप अपनी करनी बता रहे हैं बार अनेक भांति बहु वर्णित अनेक विषय में अनेक बार अनेक प्रकार से वर्णन कर चुके हैं यानि अपने काम के बारे में नहीं संतोष तप न कछु कहुं यदि इतना भी संतोष नहीं है तो पुण्य कुछ कहिए यानि दोबारा से अपने बारे में कुछ बताइए जर्नी दूसरों की दोपहर दुख हों यानी इस तरह अपने क्रोध को रोककर रसायन दुख को सहन मत कीजिए यानि अपने आपको इतना दुख मत दीजिए अपने क्रोध को रोककर वीरव्रती तुम्ह धीरज शोभा यानी आप वीरता के व्रत को धारण करने वाले हैं धीर यानि धैर्यवान है और शोभा यानि शुभ रहित गारी देत न पावहु सोभा यानी आपको गाली देना आप में काली देना शोभा नहीं देता सूर समर करनी करहिं कहीं ना सहज वहीं आपु यानि जो शूरवीर होते हैं ख्याल में अपनी बड़ाई नहीं करते हैं विद्या माण पाये रिपोर्ट यानि अपने शत्रुओं को युद्ध में अपने सामने पाकर कार्यकत्री प्रतापु कायर ही जो है अपने प्रताप की झूठी प्रशंसा करते हैं अब जो है हम इसकी व्याख्या जाएंगे और व्याख्या भी हम दोनों पंक्तियों में जाएंगे ताकि आप अच्छे से एक्सप्लेन कर पाए अपनी प्रत्येक पंक्ति को पहली पंक्तियां कौशिक सुकंधर यह बाल कूर कुटिल काल बस निकल धातु भानु बंसल राकेश कलंकू निपट निरंकुस अबुध दुग्ध संघों अब यहां पर आपने इससे पहले जो चौपाई थी वहां पर आपने देखा था देखा था तु परशुराम जी है वह क्रोधित हो गए थे लक्ष्मण जी कि बातें सुनकर तो उसके बाद परशुराम जी ने क्या कहा अप इस तरह से एक्सप्लेन करेंगे लक्ष्मण की व्यंग्य भरी बातों को सुनकर परशुरामजी को और क्रोध आ गया और वह विश्वमित्र से बोले यहां पर कौशिक कौन है विश्वामित्र अब जो अ परशुराम जी हैं अब उन्हें लग रहा था कि वह जो है लक्ष्मण जी को समझा नहीं पा रहे हैं और ऐसा ना हो कि वह अपने क्रोध पर जो है अभियंत्रण ना कर पाएं और कुछ न कर बैठे इसलिए अब जो है वह विश्वामित्र जी से बोल रहे हैं तो क्या बोल रहे हैं कौशिक सुकंधर यह बालकों की विश्वमित्र यह बालक यानि जो लक्ष्मण बहुत खूब वृद्धि और लगता है यह जो है वह बिल्कुल कुल घालक तू और यह काल यानी मृत्यु के घाट यह बन रहा है भाइयों बंसल राकेश कलंकु है यह सूर्य वर्षीय बालक यानि जो और लक्ष्मण जी है वह किस कुल से बिलोंग करते थे यानी कि स्कूल से थे सूर्यवंशी तो यहां पर परशुराम जी क्या कह रहे हैं कि यह सूर्यवंशी सूर्यवंशी बालक राकेस कलंकू चंद्रमा पर लगे कलंक के समान है यहां पर जो परशुराम है वह बताना चाह रहे हैं कि लक्ष्मण है वह अपना जो यह सूर्यवंशी उनका चंद्रमा के कलंक के समान खूबसूरत उदाहरण तू यह बालक निपट निरंकुस अबुध है जिस पर नियंत्रण किया जा सकता है धूप यह इसे भविष्य का भान तक नहीं यहां पर जो परशुराम जी है वह अब विश्व मित्र के जरिए जो लक्ष्मण जी को समझाना रे अगली पंक्तियों अगले पंक्तियां तु काल कब शुरू हुई ही जन्मा ही कहो पुकारी खोरी मोहि नाहीं जौं तुम्ह कहुं द्वारा कही प्रताप बललुट हमारा हैं कालू हो ही माह यानी कि यह क्षण भर में काल का ग्रास हो जाएगा अर्थात क्षण भर में इसे मार डालूंगा कहउं पुकारि ही यह बात बता रहा हूं बाद में मुझे दोष मत दीजिए का या तुम्ह कहुं दोबारा यदि तुम इस बालक को बचाना चाहते हो तो कहीं प्रताप बलों रोशनी हमारा इसे मेरे प्रताप बल और क्रोध के बारे में बताकर अधिक बोलने से मना कर दीजिए अब यहां पर जो परशुराम जी है वह चीज को समझा रहे हैं या मित्र को समझा रहे हैं कि अगर आप जो है इस बाघ मेरे मैं बता दीजिए ताकि यह और ज्यादा बोल कर मुझे और ज्यादा क्रोध ना दिलाएं लखन का यह मुनि सुजसु तुम्हारा तुम हकीकत को बरनैं पारा अपने मुंह तुम्हारा आपने करणी बार अनेक भांति बहु भरनी अब लक्ष्मण इतने पर भी नहीं माने जब लक्ष्मण जी ने सुना कि अब परशुराम जी मित्र के जरिए जो उन्हें समझाना चाह रहे हैं तो फिर लक्ष्मण जी परशुराम को क्रोध दिलाते हुए बोले अब है लक्ष्मण और परशुराम जी को दूध पिलाते हुए कहते हैं क्या कहते हैं तुम्हारा कि मुनि व आपका सूर्य आपके रहते हुए उड़ ही को बरनैं पारा दूसरा कौन वर्णन कर सकता है अपने मुठिया उंधिया आप तो अपने ही मुंह से अपने उठाया आपने अपने आप तो अपने ही मुंह से अपने करनी और बार अनेक भांति बहु बनने अपने विषय में अनेक बार अनेक प्रकार से वर्णन कर चुके हैं अब यहां पर देखिए अब और ज्यादा करो दिला रहे हैं परशुराम जी को और उन्हें यह बताना चाह रहे हैं कि वह इस प्रकार से अपने मुंह मियां मिट्ठू हो गए हैं वह अपने बारे में जो है और भी ज्यादा बड़ा कर पहले से बोल चुके हैं तो अब जो है वह विश्वामित्र जी के जरिए क्या बताना चाहते हैं अगली पंक्तियों हैं नहीं संतोष उत्तर पुनि कछु कहत हउं रॉकी यह देख आह प्रति महाराज युधिष्ठिर शोभा गारी देत न पावहु सोभा यहां पर लक्ष्मण जी और आगे कहते हैं ना ही संतोष होता पुन अध्यक्ष इतना सब कुछ कहने के बाद भी आपको संतोष नहीं हुआ हो मगर इतनी करने पर भेजो मैं आपको अपने जो आप तारीफ कर रहे हैं अपनी प्रशंसा कर रहे हैं अगर आपको लगता है कि आप अभी भी उससे संतुष्ट नहीं है तो आप कुछ और कह दीजिए जाने रॉकी दूसरा हर दुख हों अपने क्रोध को रोककर असहाय या दुख को सहन मत कीजिए यानी आप अपने क्रोध को मत रोकिएगा और अपने आपको ज्यादा दुख सहन करने के लिए विवश मत कीजिए वीरव्रती तुम्हारा धीर अथवा आप वीरता का व्रत धारण करने वाले बिरयानी धैर्यवान और शोभा यानि शोकरहित गारी देत न पावहु सोभा को गाली देना शोभा नहीं देता है यहां पर लक्ष्मण जी है वह प्रकार से जो तंज कस रहे हैं परशुराम परशुराम के क्रोध को और अगली पंक्तियों और यहां पर जो है वह दो है और यह अभी जो है लक्ष्मण जी और ज्यादा किस तरह से परशुराम के क्रोध को बढ़ा रहे हैं सूर समर करनी करहिं कहीं ना जाना वहीं बापू विद्यामान रन पाई रिपोर्ट में कार्यरत ही प्रतापु यानि सूर्यमणि जो शूरवीर होते हैं कर ही कहीं ना व्यर्थ में अपनी बड़ाई नहीं करते जाना वहीं बापू बल्कि युद्धभूमि में अपनी वीरता को सिद्ध करते हैं विद्या बालन रख पाये रिपु शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर भी त्यौहार ही प्रताप अपने प्रताप की बातें करने वाला ही हो सकता अर्थात युद्ध में अपने शत्रुओं को सामने देख कर अपनी झूठी प्रशंसा करते हैं यहां पर देखिए जो लक्ष्मण जी है वह बहुत ज्यादा परशुराम जी पर व्यंग्य कर रहे हैं और परशुराम के क्रोध को शांत किया है कि लक्ष्मण जी जब परशुराम जी का अपमान किए जा रहे थे तब परशुरामजी ने लक्ष्मण जी को शांत करवाने के लिए विश्वामित्र जी से कहा क्योंकि परशुराम जी ने चाहते थे कि वे क्रोध में कुछ अनर्थ कर दें किंतु लक्ष्मण जी परशुराम जी पर व्यंग करते जा रहे थे इस चपाती से हमें यह भी ज्ञात होता है कि परशुराम जी का क्रोधित व्यवहार संपूर्ण संसार में विख्यात था किंतु लक्ष्मण जिस से अनजान थे और अनजाने में ही परशुराम जी के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे थे यानी जो लक्ष्मण जी है वह शायद उनके व्यवहार के बारे में अच्छी तरह से परिचित नहीं थे जिस वजह से वे उन पर व्यंग्य कसते जा रहे थे अग्ली चौपाई तुम हां तो एक आलू हक अपने इलावा बार-बार महिला घी वह अलावा लखन के बचन कठोरा पर सुधीर व नींद दोस्तों मोहे लागे भी कटवा दी बालकू वध जो को बालवीरों की बहुत में बचा अब यह घुमर निहार अभिशाप कौशिक कहा समिति अपराधू बांधों से उंधियू घर गिटार में अगर उनको ही आगे अपराधी गुरु ही उत्तरदायित्व छोड़ो बिंदु बार केवल कौशिक सिर्फ तुम्हारे ना यह क्वालिटी सुधार कठोरे लुटने को हुं दम तोड़ दिया गया है यदि हृदय हंसी मुनि चेहरे में अजहुं लाभ को पहले इसके श्रद्धा डालेंगे फिर अर्थ में कालू अर्थात या मृत्यु में कालू अर्थात किल या मृत्यु कर कोट आवाज लगाना या हासणा ओ दादी अर्थात देना कटवा दी अर्थात कड़वे वचन बोलने वाला जो यानी के योग्य मानने योग्य अर्थात बचा और मणिहार यानि मरने वाला ईंधन खर्च अर्थात दूध और बिरयानी जिसमें दया करुणा ना हो को ही यानि विरोधी गुरु ही अर्थात गुरु के ओर इन अर्थात ऋण से मुक्त श्रम थोड़े यानि थोड़े परिश्रम से और गांधी सुनो यानि गाधी का पुत्री अर्थात विश्वामित्र हीर यानी हरा ही हरा अ यानी लोहे से बनी युद्धकांड अर्थात तलवार लिखूंया यानि गन्ने से बनी हुई अजहुं अर्थात अब भी अब हम इस पर यानि पीड़ितों काल को फक्र मेरे लिए अब आ रहे हैं या निकाल को मेरे लिए बुला-बुलाकर ला रहे हैं बार-बार मोहि लागी बुलावा यानि बार-बार मेरे लिए बुला रहे हैं सुन्नत लखन के बचन कठोरा लक्ष्मण जी के कठोर वचनों को सुनकर परसों सुधीर वोहरा परशुराम का क्रोध और अधिक बढ़ गया और वह फिर से को घुमाकर हाथ ले आए अब चंद दोस्तों ही लोगों को अब मुझे कोई दोष नहीं दे वा चि ऊ रू यह कड़वा बोलने वाला बालक तू मरने वालों की संख्या चार बालक देख कर मैं बहुत बचा रहा था अब यह मारने यार भूख शांत अब है इसकी मृत्यु निकट आ गई और भ्रष्टाचार अब है इसकी मृत्यु निकट आ गई है तो उसे कहा छमिया अपराधों को चिन्ह यानी विश्वामित्र जी ने कहा कि अपराध को क्षमा किया जाए बाल दोस्तों गुनगुने साधु और साधु लोग जो है बालों के दोष या गुण नहीं गिनते खरगोन धार में अ किरण को ही मेरा यह दुष्ट फंसा है और मैं स्वयं तय आ रही हूं और बहुत बड़ा क्रोधी हूं आगे अपराधी शुरू हुई और मेरे आगे जो यह गुरु ही है उत्तर दे छोड़ो बिनु मारे यह उत्तर दे रहा है फिर मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूं केवल कौशिक सिर्फ तुम्हारे केवल तुम्हारे प्रेम के कारण विश्वामित्र जी को वे कह रहे हैं ना यह छोटी उठा कटोरे नहीं तो इस कठोर फैसले से इसे काट डालता गुरु ही गुरु ही यूरिन हो तो शहरे और थोड़े से श्रम में गुरु के इधर से मुक्त हो जाता गांधी सुनो तो हृदय हंसी की विश्वामित्र जी मन ही मन में हंसकर बोले मुनिहि सूजी मुनि जी को जो है हरा ही हरा सोच रहा है खांड लोहे से बनी हुई तलवार ना रुखमणी रगड़ने के रस से नहीं अजहुं न बूझ प्रभु जी यानी अभी भी जो है अनिभिज्ञ है अभी भी जो है इन्हें ज्ञात नहीं है अब इसके बारे में कहा गया है कि से कहा गया है और किस लिए कहा जाता है यह व्याख्या में अच्छे से एक्सप्लेन करेंगे तो व्यक्तियों में पहली दो पंक्तियां हैं तो कालू हां इलावा बार-बार मोहे लागी बुलावा तुरंत लखन के बचन कठोरा पर सुधीर व लक्ष्मण जी परशुराम जी के वचनों को सुन कर ऐसा लग रहा है मानो आप तो को आवा लगाकर बार-बार मोहि लागी बुलावा बार-बार जो है मेरे लिए बुला रहे हो सुन्नत लखन के बचन कठोरा लक्ष्मण जी के ऐसे कठोर वचन सुनते ही परसों सुधारि ढूंढ गोरा परशुराम जी का क्रोध और बढ़ गया उन्होंने अपने भयंकर पर से को घुमाकर अपने हाथ में ले लिया और बोले क्या बोले अब जानी देगी दोस्तों मोहिलों अब मुझे कोई दृष्टि नहीं देगा कटवा दी बालकों व जोगु इतने कड़वे वचन बोलने वाला यह बालक मारे जाने योग्य है या वध करने योग्य है बालों की बहुत मजबूत झालक देख कर मैंने बहुत बचाया अब यह उबरने हटाया अब यह होमर निहार भ्रष्टाचार लेकिन लगता है कि अब ही मृत्यु निकट आ गई है यानि जो परशुराम जी है अब वह जो है अपने गुस्से पर और ज्यादा कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं कौशिक कहा छमिया अपराधों परशुराम जी को क्रोधित होते देखकर विश्वामित्र जी बोले हे मुनिवर आप इसके अपराधों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि बाल तो इस गुनगुने साधु साधु लोग तो बालों के गुण और दोष की गिनती नहीं करते हैं और कोठार में अकुंरण को ही तब परशुरामजी ने क्रोधित होते हुए कहा कि यह मेरा दुष्ट फंसा है मैं स्वयं दया रहित और क्रोधित हु आगे अपराधी गुरु ही उस पर यह गुरुद्रोही मेरे सामने उत्तर दे छोड़ो बिनु मारे रहा हूं केवल कौशिक सिर तुम्हारे है विश्वमित्र सिर्फ तुम्हारे प्रेम के कारण है ना तो यह ही काटी कुठार कठोरे नहीं तो इसे इस कठोर पर से से काट कर गुरु ही यूरिन हो तो श्रम थोरे थोड़े ही परिश्रम से गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है यहां पर जो परशुराम जी है वह किस गुरु के ऋण की बात कर रहे हैं वह जो है वह शिवजी का धनुष व उसके लिए गांव रक्षा की जिम्मेदारी किसे दी गई थी परशुराम जी को और परशुराम जी शिवजी को अपना गुरु मानते थे अपना आराध्य मानते थे तो वह जो है यह कह रहे हैं यहां पर कि अगर जो है मैं विश्वामित्र जी आप से प्रेम नहीं करता आपको अच्छा नहीं मानता तो मैं जो है कब का इस बालक का धड़ अलग कर देता इसको मार देता और अपने गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता कि उनकी जो चीज है मैं उसकी रक्षा नहीं कर पाया लेकिन जिसने उसे ध्वस्त किया है मैं उसे के ऋण से मुक्त हो जाता कि उनकी जो चीज है मैं उसकी रक्षा नहीं कर पाया लेकिन जिसने उसे ध्वस्त किया है मैं उस की मां चुका हूं अगली पंक्तियों हैं गांधी सुनो कहा हृदय नसीम नहीं हरी अरे सुच परशुराम जी के वचन सुनकर विश्वामित्र जी ने मन ही मन में फंसकर सोचा कि मुनि परशुराम जी को हरा ही हरा सूझ रहा है हरा ही हरा सुन रहा है का अर्थ क्या है चारों ओर विजई होने के कारण यह राम और लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं यानि जो परशुराम जी है वह सारे क्षेत्रों को हरा चुके थे वह जो है अपने आपको बहुत ही बलशाली समझ रहे थे और यह देख रहे थे कि वह किसी भी क्षत्रिय को हरा सकते हैं इसलिए यहां पर विश्वामित्र जी ने कहा है कि मुनिवर को जो है अब हरा हीं हरा दिखाई दे रहा है अ या खांड ना मुख्य यमुना ब्रिज प्रभुजी मुनि अब भी बनी हुई तलवार गन्ने के रस की नहीं जो में लगाते ही जाए अर्थात श्री राम लक्ष्मण सामान्य वीर ना होकर बहुत पराक्रमी योद्धा है और जमुना ब्रिज अब्यूज परशुराम जी अभी भी इनकी साहस वीरता और क्षमता से अनभिज्ञ है वे इन्हें नहीं जानते हैं तो इस टिप्पणी का भावार्थ निकलता है इस चपाती से हमें पता चलता है कि लक्ष्मण जी निडर स्वभाव के और परशुराम जी जो आज तक सभी शत्रुओं पर विजय रहे हैं वह राम-लक्ष्मण को भी एक साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं जिस कारण विश्वामित्रजी उनकी अज्ञानता पर हंस रहे तो पता है कि राम और लक्ष्मण जो है वह साधारण क्षत्रिय नहीं लेकिन परशुराम के क्रोध में यह सारी चीजें भूल गए हैं जो केवल विरोध में अपने आराध्य शिव के धनुष को तोड़ने वाले अपने आराध्य शिव के धनुष को तोड़ने वाले को सजा देना चाहते हैं लेकिन उनके सामने खड़े हो गए हैं कि वे जो है उनसे उत्तर-प्रत्युत्तर किए जा रहे हैं जिससे परशुराम जी और राधा क्रोधित नेक्स्ट है वह है यह लखन मुनि शीलू तुम्हारा को नहीं जान विदित संसारा माता-पिता ही धुंध के गुरु रहा तो चूरू जिले के सौंसर हों हमरे ही माथे अखाड़ा दिन चली गई व्यास बड़बड़ा अब आने व्यवहारिक बोली तुरंत मीडिया थैली खोली सुनि बचन को सुधारा हाय सब सभा पुकारा लुट देखा बहुमूल्य विचार ज़रूर दूं ओह मिले न कबहुं शुभ रंग गाढ़े देवता उधर ही ना पड़े कुंचित कहइ सबु लोगू पुकारे रघु पति नहीं लखनऊ निवारण कि दोहा दिया गया है लखन उत्तरावर्ती सर्विस रिवॉल्वर को लुटेरों बढ़त देखी जल संवर्धन बोले रघुकुल भानु यहां पर पहले लेते हैं पदार्थों में सिलु अर्थात शील स्वभाव यानी शांत स्वभाव विदित अर्थात पता है या ज्ञात है युरिन अर्थात ऋण मुक्त जिस कारण मुक्त हो चुका हो अभय यानि हो गए निषेध भली प्रकार गुरु अर्थात गुरु कारण यानी मेरे ही बयां यानि हिसाब लगाने वाले को बिरयानी ब्राह्मण और भटियानी बड़े-बड़े योद्धा बीच देवता यानी ब्राह्मण शेयर नहीं यानि आंख के इशारे से दीवारें अर्थात मना किया कृष्ण अर्थात अग्नि और रघुकुल भानु अर्थात रघुकुल के सूर्य श्री रामचंद्र करेंगे कहीं लखन मुनि शीलू तुम्हारा अब लक्ष्मण जी और परशुराम जी को चढ़ाते हुए कहते हैं कि हे मुनि आपके पराक्रम को कौन नहीं जानता या आपके शेयर व्यवहार को कौन नहीं जानता कौन नहीं जान विदित संसारा बहुत सारा संसार जानता है सारे संसार में प्रसिद्ध है माता-पिताजी उर अभय ने के यानि माता पिता के ऋण से तो मुक्त हो चुके हैं गुरु रहा सो टू-डू जी के यानी गुरु का ऋण चुकाने की सोच रहे हैं जिसका आपके जी पर बड़ा बोझ है तो वो हमारे ही माथे अखाड़ा अब जो है मेरे ही माथे पर आप यह डालना चाहते हैं दिन चले गए बहुत दिन बीत गए ब्याज बड़बड़ा इसलिए जो है जो व्यास है वह बढ़ता जा रहा है अब अन्य अवयव वह रिया बोली अब बेहतर है कि आप किस आप किसी हिसाब करने वाले को बुलाएं और तुरंत देश मे खोली खोली और तुरंत जो है मैं थैली खोल दूंगा अर्थात आपका जो लिंग है वह चुका दूंगा सुनि बचन को सुधारा यह कठोर वचन सुनकर जो है अपना सुधार है फंसा है या कुल्हाड़ी है उसको पकड़ लिया हाय हाय सब सभा पुकारा और सारी सभा जो है हाय-हाय करके शोर मचाने लगी या हार जो है पूरी सभा में मच गया रघुबर परसों दिखाओ बहु मोहित कि बार-बार आप मुझे पर सा दिखा रहे हैं व्यभिचारी बचाई नृप्त रोहित क्षत्रिय राजाओं के शत्रु मैं आपको ब्राह्मण समझकर बार-बार बचा रहा हूं अब मिले ना कब हूं शुभ रंग गाढ़े लगता है आपको जो है युद्ध में कोई वीर नहीं शीघ्र एनरिच उस विद देवता उधर ही के बाड़े में ब्राह्मण देवता आप घर में घर में ही अपनी वीरता के कारण फुले नहीं समा रहे हैं अनुचित कहीं सब लोग पुकारे अनुचित कहा जा रहा है सब लोग पुकारने लगे रघु पति या नहीं लखनऊ निवारे रघुपति ने जो है नयनों के इशारों से यानि आंखों के इशारों से लक्ष्मण को मना किया लखन उत्तरावर्ती सर्विस रिवॉल्वर को उक्त किसानों यानि लक्ष्मण जी के उत्तर परशुराम जी की अग्नि में आहुति का काम कर रहे थे बढ़त देखी जल संवर्धन बोले रघुकुल यह सब बढ़ता हुआ देख कर ये परशुराम के क्रोध बढ़ता हुआ देख कर जिस तरह अग्नि को शांत करने के लिए जल की आवश्यकता होती है जल के समान अध्यक्ष श्री राम जी ने उनसे विनती जल्दी डर जो है हम इसके व्याख्या जान लेते हैं कि किस तरह से जो है आप इस शो करेंगे वह यू लखन मुनि शीलू तुम्हारा को नहीं जान विदित संसारा माता-पिता ही यूरिन भय ने गुरनूर रहा सोचु बढ़ जी के परशुराम जी के क्रोध से पूर्ण वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी ने परशुराम जी से कहा कि हे मुनिश्रेष्ठ सिलु तुम्हारा आपके पराक्रम को नहीं जान कौन नहीं जानता विदित संसारा बहुत सारे संसार में प्रसिद्ध है माता-पिताजी उन अभय ने के आपने अपने माता पिता का रिन तो चुका ही दिया है गुरु रहा सोचु बढ़ जी के और अपने गुरु का ऋण चुकाने की सोच रहे हैं जिसका आपके जी पर बड़ा बोझ है कहने का अर्थ यहां पर इन पंक्तियों का यह है कि लक्ष्मण जी जो है ऊपर शुरू चीकू व्यंग्य कस रहे हैं कि आपका स्वभाव बहुत ही शांत है जिसको पूरा संस्थाएं इसको पूरा संसार जानता है कि परशुराम जी का स्वभाव कैसा था क्रोधपूर्ण और यहां पर एक और विपत्ति कहते हैं कि आपने माता-पिता का ऋण चुका दिया है अब केवल गुरु कारण बाकी रह गया है ऐसा क्यों कहा क्योंकि परशुराम जी ने इससे पहले चौपाई में क्या कहा था कि अगर जो है यह बालक इसी तरह से उत्तर देता रहा तो मैं इसका वध करके जो है गुरु कारण कुछ ही परिश्रम में चुका दूंगा तो इसलिए जो है यहां पर लक्ष्मण जी ने इस बात पर भी व्यंग्य कसा है तो जनों हमारे ही माथे अखाड़ा दिन चली गई व्यूज बड़बड़ा अब आने या बयां बोली तुरंत देव थैली खोली सूजन तो हमारे ही माथे गाढ़ा और अब आप यह बात मेरे ही माथे डालना चाहते हैं यानी गुरु का ऋण उतारने कि आप मेरा वध करना चाहते हैं दिन चली गई बहुत दिन बीत गए दिन बीत गए व्यास बड़बड़ा इसलिए उस ऋण में व्यास बहुत बढ़ गया होगा अब आने या व्यवहारिक बोली बेहतर है कि आप किसी हिसाब करने वाले को बुला लीजिए तुरंत देव मैं थैली खोली मैं आपका ऋण चुकाने के लिए तुरंत लिए खोल दूंगा का यहां पर जो लक्ष्मण जी है वह परशुराम जी पर तंज कसा कि आपका जो भी तुरंत निकाल कर दूंगा पैसे लेकर आ चुका दूंगा आप केवल हिसाब करने वाले हैं उन्हें लीजिए कि आपका जो है वह रहता सुधारा हां सब पुकारा परसों विचार-धारा लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनकर परशुराम ने अब से पर्दा उठाया और लक्ष्मण पर आघात करने को दौड़ पड़े जहां एक ओर दौड़ पड़े और हां यह सब सभा पुकारा सारी सबा हाय पुकारने लगी भृगु परसों देखा वह मोहित इस पर लक्ष्मण जी बोले कि हे मुनिश्रेष्ठ आप मुझे बार-बार फंसा दिखा रहे हैं विचार गजेंद्र पुत्र रोहित दूं ओह यानि ही क्षत्रिय राजाओं के शत्रु विचार में आपको ब्राह्मण समझकर बचाई वह बार-बार बचा रहा हूं यहां पर लक्ष्मण जी क्यों कह रहे हैं क्योंकि इससे पहले सफेद जो परशुराम जी उन्होंने कहा था कि जो लक्ष्मण ने उन्हें बालक समझकर जो है वह बचा रहे हैं वरना वह उनका वध कर देते तो यहां पर जो लक्ष्मण जी हैं वह यहां पर फिर से तंज कस रहे हैं परशुराम जी की वह ब्राह्मण समझ कर उनको बचा रहे हैं वरना वह भी उन पर वार कर सकते हैं को मिले ना कब हो सुभट रंग गाढ़े विच देवता इधर ही उचित कहीं सब लोगों पुकारे रघु पति नहीं लखनु नेवारे मिले ना पड़े लक्ष्मण जी कहते हैं मुझे लगता है आपको कभी युद्ध के दौरान में वीर योद्धा नहीं मिले हैं देवता ब्राह्मण देवता के बड़े आप घर में ही अपनी वीरता के कारण खुले रहे हैं अर्थात अधिक खुश हो रहे हैं अनुचित कहइ सबु लोगू प्रकार लक्ष्मण जी के ऐसे वचन सुनकर सभा में उपस्थित सभी लोग यह अनुचित है यह अनुचित है कहकर पुकारने लगे रघु पति नहीं निभा रहे यह देख कर श्री राम जी ने लक्ष्मण जी को आंखों के इशारे से रोक दिया लक्ष्मण जी अब हद पार कर रहे थे वह परशुराम जी को कुछ भी कह रहे थे कि उन्हें अभी तक कि अ युद्ध में वीर योद्धा नहीं मिला है जिसके कारण वे केवल अपने घर वे केवल अपने घर में ही जो है यह सोच रहे हैं कि मैं सब को हराकर जो है बहुत ही शक्तिशाली हूं लेकिन यह बात जो है सभा में सभी लोग जानते थे कि परशुराम जी कितने क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति हैं और वे कितने पराक्रमी है तो सभी लोग जो है लक्ष्मण जी की यह अनुचित वचन सुनकर तो है कहने लगे कि यह अनुचित है यह अनुचित है और श्री राम जी को भी जो है ऐसा लग रहा था कि यह बात बहुत बढ़ रही है इसलिए उन्होंने जो है लक्ष्मण जी को आंखों के इशारों से रोक दिया लेकिन उत्तरावर्ती सर्विस रिवॉल्वर को शुक्राणुओं बढ़त देखी जल संवर्धन बोले रघुकुल भानु लक्ष्मण के उत्तर परशुराम की क्रोधाग्नि में आहुति के सदस्य कार्य कर रहे थे बढ़त देखिए इस किरदार को बढ़ते देख जल संवर्धन बोले रघुकुल भानू रघुवंशी सूर्य राम लक्ष्मण के वचनों के व्हिप क्विट जल के समान शांत करने वाले वचनों का प्रयोग परशुराम जी से लक्ष्मण को क्षमा करने की विनती करने लगे यानि श्री राम जो है वे जानते थे कि परशुराम जी कितने प्राणी है कि इतने क्रोधित स्वभाव के हैं इसलिए उन्होंने जो है लक्ष्मण को इशारे से चुप रहने के लिए कह दिया था और स्वयं जो है वह बिल्कुल शांत स्वभाव से जो है परशुराम जी से बात करने लग गए थे इस चौपाई का भावार्थ क्या है लक्ष्मण जी के प्रत्येक उत्तर प्रदेश राम जी की नियुक्ति के कार्य कर रहे थे श्री राम जी ने यह सब परशुराम का क्रोध अत्यधिक बढ़ चुका अग्नि को शांत करने के लिए जैसे जल की आवश्यकता होती है वैसे ही परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए श्री राम जी ने परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया है कि इतने विरोध स्वभाव के लक्ष्मण जी उस बिल्कुल विपरीत श्रीराम का स्वभाव अत्यंत शांत था यानी इस टिप्पणी से हमें पता चलता है कि जो श्री राम है वह कितने शांत स्वभाव के थे और परशुराम जी और लक्ष्मण जी दोनों ही जो है बहुत क्रोधी स्वभाव के थे यह था आपका अ चैप्टर टू जिसमें राम-लक्ष्मण और परशुराम-संवाद का जो है आपको एक छोटा सा अंश दिया गया था जिसमें परशुराम का क्रोध दिखाया गया है लक्ष्मण जी का दिखाया गया और साथ में राम जी के शांत स्वभाव का वर्णन किया गया तो आशा करते हैं कि आपको यह चैप्टर अच्छे से समझ आया होगा और एक पंक्ति जो है आप एक्सप्लेन करने में सक्षम होंगे इसी के साथ सब्जेक्ट की वीडियोस के लिए और चैप्टर की वीडियोस के लिए हमारे चैनल को सबस्क्राइब और ट्विटर पर फॉलो करे