How did Ahoms defeat the mighty Mughals? Welcome to StudyIQ. मेरा नाम है आदेश सिंग्. दोस्तों, क्या कभी आपने सोचा है कि मुगल पूरे भारत पर कबजा करने के बावजूद कभी असैम को क्यों नहीं जीत पाए? जी हाँ, ये कहानी है उस Ahom Kingdom की जो 1615 से 1682 तक चला, जिसमें कभी मुगलों की जीत नहीं हुई.
इस लेक्चर में हम जानेंगे कि कैसे असैम के Ahom Kingdom ने बार मुगलों को हराया अये शुरुवात करते हैं अहोम्स के बैक्ग्राउंड से Who were Ahoms? 13th century में अहोम्स present day मेयनमार से ब्रह्मपुत्र वैली में आकर सेटल हुए शुरुवात में अहोम्स ने लोकल लोगों के साथ सेटल होने के बाद 16th century आते सदिया किंग्डम को हरा कर अपने एक किंग्डम जिसे अहोम्स किंग्डम कहा जाता है धीरे उन्होंने साउथ असैम के डिमासा एमपायर और वेस्ट असैम के बारो भुयार किंग्डम को हरा कर अपनी पावर को और बढ़ा लिया। लेकिन इसके साथ ही उन पर टर्क्स और अफगान रूलर्स के आकरमन होने लगे, जिसमें मुगल इन्वेजन सबसे प्रॉमिनेंट था। सबसे पहले हम मुगल और अहोम्स के बीच कॉंफलिक्ट का कारण जानने की कोशिश करते हैं। दोस्तों, वैसे तो इसके कई रीजन्स थे, लेकिन इसका प्राइमरी रीजन मुगल्स का अग्रेसिव इंपीरियलिजम था। जिसमें मुगल अहूम्स किंग्डम को हरा कर मुगल एमपायर का नौर्थ इस्ट तक एक्सपैंशन करना चाहते थे। इसके अलावा मुगल्स पॉलिटिकल सुप्रेमसी चाहते थे। यानि मुगल बादशाह की पसंद और नापसंद से असाम में किंग बने और वहां किंग बादशाह के ओर्डोस को फॉलो करे। आईए अब हम बात करते हैं कब और कैसे मुगलों ने अहूम्स पर अटाक किया। परस्ट अटाक बाई मुगल्स वैसे तो अहोम्स और मुगलों के बीच सकमिश 1613 से शुरू हो गई थी लेकिन असाम पर फर्स्ट ओर्गिनाइज्ड मुगल अटाक 1616 में मुगल फोर्सेज ने किया था जिसे बैटल आफ समधारा के नाम से जाना जाता है रतन सिंग नाम के एक अनौथराइज्ड मुगल ट्रेडर का अहोम् किंग्डम में पता चला अहोम्स ने उसकी इलीगल धन संपत्ती को फ्रीज कर लिया और उसे असाम से एक्सपेल कर दिया इससे मुगलों को युद्ध के लिए एक बहना मिल गया। अबू बकर और भूसना के राजा सत्रजीत के नेतरित्व में मुगल आमी ने असैम की एक पुरानी कैपिटल बारनगर की ओर मार्च किया और उसे ओक्यूपाई कर लिया। अचानक हुए इस हमले में छोटी सकरमिश के बाद अहुम हार गये। मुगल फोर्सेज एडवांस करती हुई इंपोर्टेंट भराली संगम तक पहुँच गयी। लेकिन एक महीने की तयारी के बाद अहुम्स ने मुगलों पर सर्प्राइज अटाक किया। समधारा के पास हुए इस अटाग में मुगल आर्मी को हैवी लॉस हुआ और वो वहां से रिट्रीट करने पर मजबूर हो गई। इस तरह मुगलों ने पहले असाम हमले में बुरी तरह मात खाई और उनकी सेन्य प्रतिष्ठा को भी सिग्निफिकेंट डैमेज हुआ। इसके बाद भी मुगलों के छोटे-छोटे हमले होते रहे, लेकिन अब हम बात करेंगे मुगलों के दूसरे बड़े अटाक की। सेकिन मेजर अटाक ओन अव होम्स पहली हार से 20 साल तक शांत रहने के बाद, एक बार फिर से 1636 में मुगल सेना ने असैम के कामरूप पर अटैक करके युद्ध की शुरुवात की इसमें शुरुवात में अहोम्स की हार हुई और अहोम किंडम को मुगल एमपायर में मिला लिया गया लेकिन 1638 आते फिर से पासा पलट गया और एक बेहतरीन तयारी के साथ अहोम्स ने वापसी की समधारा के पास एक बार फिर से भयंकर युद्ध हुआ इसमें अहोम के नेवी चीफ की मौत हो गई लेकिन अहोम्स ने ब्रेवरी से एक बार फिर से मुगल आर्मी को असैम से बाहर खदेर दिया इस युद्ध में दोनों ही पक्षों को भारी फाइनांचरल और ह्यूमन लॉस हुआ जिसकी वजह से दोनों पक्ष पीस ट्रीटी करने पर अग्री हुए ये पीस ट्रीटी फेबरुरी 1639 में मुगल कमांडर अलायार खान और अहूम जेनरल मोमाई तामुली बोरबरुआ के बीच हुई इसे ट्रीटी ओव असुरार के नाम से जानते हैं गोहाटी से शुरू होने वाला वेस्टर असाम मुगलों के हाथों चला गया, लेकिन उन्हें बाकी बचे हुए असाम पर अपना किसी भी तरह का क्लेम छोड़ना पड़ा. दोनों पक्षों में ट्रेड बिना किसी रुकावट के होने लगा.
थर्ड मेजर अटाक ओन अहोम्स दोस्तों 1648 में गोहाटी के मुगल कमांडर ने अहोम के निउली अपॉइंटेड किंग जै द्वज को बधाई संदेश भेजा। लेकिन जै द्वज ने बादशाह शाह जहां की बीमारी और मुगल एमपायर के वॉर अफ सिक्सेशन का फाइदा उठा कर, मुगलों को न केवल गोहाटी से खदेर दिया, बलकि मानस रिवर के पार तक उन्होंने मुगलों के धाका के आसपास के क्षेत्र को भी तबाह और बरबात कर दिया। वापस जाते वो कई मुगल सोल्जर्स को अपने साथ बंदी मना कर असैम ले गए। लेकिन वार अफ सिक्सेशन जीतने के बाद औरंग्जेब ने मीर जुमला को असैम पर अटै स्ट्रिटीजिकली इंपोर्टेंट पांडू और खजली शहर भी उसने आसानी से जीत लिये। दरसल मीर जुमला की ये इजी सक्सेस मुगल आर्मी की ब्रेवरी की वजह से कम और असैम आर्मी में डिस्सैटिस्फैक्शन के कारण ज्यादा थी। लेकिन जैसे ही मुगल आर्मी कालिया बोर तक पहुँची, असैम आर्मी को ये रियलाइज हो गया और फिर मीर जुमला को डेडली रेजिस्टेंस का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी पावर को सिमलुगड और समधारा में कॉंसेंट्रेट किया। लेकिन मुगल आर्मी नमबर्स में असैम आर्मी से बहुत अधिक थी। इसलिए असैम आर्मी को वहां से भागना पड़ा। इस जीत के बाद मीर जुमला ने अहूम कैपिटल घरगन्व पर अटैक किया। और अहूम किंग जैदवज को वहां से भागना पड़ा। उन्होंन मुगलों की आमी बेस धाका और मीर जुमला की आर्मी के बीच कम्यूनिकेशन एकडम कट गया। यही समय था जब मौसम का फायदा उठाते हुए अहूम्स ने मुगल आर्मी पर अटैक कर दिया। अहूम्स ने बड़ी तेजी से एक बार फिर से इस्टरन असैम पर वापस अ मुगल आर्मी ने एक बार फिर अहुम्स पर अटैक किया और इस बार किंग जैध्वज को पीस ट्रीटी करने पर मजबूर कर दिया 1663 में ट्रीटी ओफ घिलारी घाट साइन की गई जिसमें अहुम् किंग जैध्वज को मीर जुमला ने तीन लाख रुपए वार कॉंपेंसेशन और अपनी इकलोती बीटी को लेकिन इसी दोरान जैध्वज की मौत हो गई जैध्वज की मौत के बाद क्या हुआ? आईए जानते हैं नेक्स्ट सेक्शन में What happened after the death of Jai Dhoj? पहली installment Jai Dhoj ने मुगलों को दे दी, लेकिन Jai Dhoj के successor Chakra Dhoj ने treaty में decide हुए compensation को देने से इंकार कर दिया. 1665 में, Guwahati में मुगल फोजदार Syed Firoz Khan ने Ahom King को जब बचे हुए compensation के लिए letter लिखा, तो King Chakra Dhoj ने मुगल आर्मी को Assam से बाहर खदेडने का आदेश दे दिया, ये चौथा बड़ा अटाक था। अचानक हुए इस अटाक से मुगल आर्मी समल नहीं पाई और सिर्फ दो महिने में रिट्रीट करना पड़ा। एक बार फिर से असैम अहोम्स के अंडर में आ गया। इस हाड से नाराज औरंगजेब ने अहोम्स पर अम्बेर के राम सिंग क औरंगजेब ने मसले को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए अमबेर के राजा मिर्जा जैस सिंग के बेटे राम सिंग के नेतरित्व में एक बहुत बड़ी आर्मी भेजी। ये आर्मी संख्या में कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि इसमें 4000 मनसबदारी राम सिंग के 4000 सैनिक, 1500 औरंगजेब की ओर से दिये गए एडिशनल सैनिक, 18000 घोड़े पर सवार सैनिक, 30,000 पैदल सैनिक, 2000 आर्चर सैनिक, 21 राजपूत, ठाकुरों की सैन्य टुकडियां और 40 वार्शिप्स शामिल थे इसके अलावा कूच बेहार मुगलों की एक जागीर थी ये असैम के बहुत करीब है इसलिए वहां से भी लगभग 10-15,000 पैदल और घुर सवार सैनिकों ने मुगल आर्मी को जॉइंग किया टोटल संख्या अब लगभग 75,000 से 80,000 हो चुकी थी इतनी बड़ी आर्मी के सामने कम संख्या की अहोम आर्मी टिक नहीं पा रही थी तब अहोम्स के चीफ कमांडर लचित बोर फुकन ने फुल स्केल वार के बजाए गोरिला वारफेर की स्ट्रैटेजी बनाई। लचित बोरफुकन ने गोहाटी डिफेंड करने का निरणा लिया। यहाँ एक हिली एरिया था, जहां से मुगल आर्मी एंटर कर सकती थी। इस एरिया में लचित ने मिट्टी की दिवार बना दी और मुगल आर्मी को ब्रह्म पुत्रा का वाटर वेज चूज करने के लिए मजबूर कर दिया। लचित ये जानते थे कि मुगलों की नेवी बहुत वीख है और उसे पानी में युद्ध का एक्स्पीरियंस भी नहीं है और गोहाटी में दिवार के बाद। इस्ट में जाने का एक मात्र रूट ब्रह्मपुत्र नदी ही बचा था। सराई घाट में ब्रह्मपुत्र रिवर बहुत अधिक नैरो थी, जिसकी विड्ध लगभग एक किलोमीटर से भी कम थी। नेवी को रोकने के लिए ये एक आइ� इसके अलावा लचित ने राम सिंग को ये संदेश भेजवाया कि वो बहुत डरे हुए हैं और मुगलों से नेगोशियेट करना चाते हैं। उन्होंने नेगोशियेशन में राम सिंग को उलज़ाय रखा ताकि उनकी तयारी और बेहतर हो सके। और अंग्जेब ने भी इससे राम सिंग ने गुस्से में आकर गोहाटी की तरफ मार्च करना शुरू कर दिया। लेकिन उन्हें अहोम्स के गुरिला अटैक का लगातार सामना करना पड़ा। जैसे ही मुगल सैनिक किसी हीली एरिया में एंटर करते थे, वहां बैठे अहोम आर्मी के सोल्जर्स उन पर हमला करके वापस हिल्स में चुप जाते थे। लगातार मुगल सैनिकों का हरेस्मेंट होता रहा और धीरे उनकी संख्या कम होने लगी। मुगल आर्मी को सराई घाट के नैरो पाथ से गुआहाटी में घुसने का आदेश दिया और अहोम्स के लिए तो ये एक आइडियल कंडिशन थी ब्रह्मपुत्र रिवर में मुगल आर्मी को तीन तरफ से घेर लिया गया मुगल नेवी को तीन तरफ इताखुली हिल्स, कामाख्या हिल्स और अश्वक्रांत हिल्स की तरफ से एक साथ हमले का सामना करना पड़ा पानी में वीक होने और डेडली अहोम अटाग की वज़े से मुगल आर्मी ज्यादा देर मुकाबला नहीं कर सकी अयाश मुगल अड्मिरल मुनवर खान हुका पीते हुए मारा गया। उनके टॉप थ्री अड्मिरल्स के साथ ही चार हजार मुगल नेवी के सोल्जर्स भी मारे गये। बचे हुए मुगलों को मानस रिवर तक खदेर दिया गया। इस तरह अहूम्स की एक बहुत ही शांदार वोट हैपन्ड आफ्टर दे बैटल अफ सराईघाट बैटल अफ सराईघाट के करीब आठ साल बाद 1679 में अहोम किंग सुदोईफा के शासन काल में गोहाटी का कमांडर लालुक बारफुकन बना बंगाल के मुगल सुबेदार मुहम्मद आजम खान ने उसे सराईघाट के बदले में 4 लाख रुपए घूस आफर की साथी आजम ने असैम की गद्दी पर लालुक बारफुकन को बैठाने का भी प्रॉमिस कर दिया लालच में आगर लालुक ने सराइगाट पर कबजा करने के लिए आजम शाह को इन्वाइट किया और इस तरह बहुत आसानी से एक बार फिर से गोहाटी मुगलों के कबजे में आ चुका था लेकिन गहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त इसके बाद मुगलों और अहोम्स के बीच अंतिम युद्ध हुआ जिसमें हारने के बाद फिर कभी मुगलों ने असैम की ओर देखने का दुस्साहस नहीं किया आईए बात करते हैं बैटल आफ इताखुली की 1681 में गदाधर सिंग अहूम किंग बने। उन्होंने मार्च 1682 से ही मुगलों को गौहाटी से खदेडने के लिए युद्ध की तयारी शुरू कर दी। दिहिंगिया अलून बारबरुआ के नितरित्व में जून और जुलाई महिने में गौहाटी पर तीन तरफ से हमला करने का प्लान बनाया गया। गौहाटी पर ब्रह्मपुत्र नदी के नौर्थ बैंक, साउथ बैंक और नदी के पानी में नेवी से अटाक किया गया। लेकि कोई खास रिजिस्टेंस नहीं दिखा पाए उसके कई कारण थे जैसे ओरंगजेब का मराठों के साथ डेकन में एंगेज होना गवहाटी के फोजदार मनसूर खान का बीमार होना बेंगॉल में मुगलों का इस्ट इंडिया कामपनी के साथ डिस्प्यूट इन कारणों से ज्यादातर पोस्ट से मुगल बिना किसी रिजिस्टेंस के ही रिट्रीट कर गए एक मातर युद इताखुली में लडा गया जिसे बैटल आव इताखुली के नाम से जाना जाता है मुगल जेनरल अली अगबर ने सरानिया फोर्ट पर अटैक कर दिया, लेकिन इसमें उसे भारी नुकसान के बाद रिट्रीट करना पड़ा.
17th जुलाय 1682 को अहोम्ज ने इताखोली को घेर लिया. मुगल सेनिकों ने रिजिस्टंस किया, लेकिन वो हार को टाल नहीं सके. अकबर अली को रिट्रीट करके भागना पड़ा इताकुली फॉल के साथ ही अहुम्स ने मानस नदी तक अपना कबजा कर लिया इसके बाद मुगलों ने कभी असैम की तरफ कोई अटाक नहीं किया अहुम्स का ये किंडम 1826 तक चला जब फाइनली अहुम्स को हरा कर बृतिश एमपायर में मिला दिया गया कंक्लूजन दोस्तों आज भी बैटल अफ सराइगाट को पूरे नौर्थीस्ट में प्राउडली याद किया जाता है असैम के लूक गीतों में इस बैटल का वरणन होता है। सराई घाट में असैम आमी की विजए और लचित बोर फुकन की वीरता को याद करने के लिए, 24 नवेंबर को पूरे असैम में लचित दिवस मनाय जाता है। 1999 से National Defense Academy NDA के Best Passing Out Cadet को लचित बोर फुकन गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाता है। तो दोस्तों, ये था इंडियन हिस्ट्री का वो ग्लोरियस चैप्टर, जो कहीं न कहीं मेंस्ट्रीम हिस्ट्री से छिप जाता है। अहोम्स की बहादुरी और साहस आज भी हमें इंस्पायर करते हैं और आने वाले कई जेनरेशन्स इससे प्रेरणा लेते रहेंगे। Thank you and God bless.