अल्यूमिनियम बना सकते थे देखिए बात मैं आपसे कहने जा रहा हूँ वो ये कि हिंदुस्तान भी 2000 साल पहले 5000 साल पहले अल्यूमिनियम बना सकता था क्योंकि अल्यूमिनियम का रॉ मिटीरियल इस देश में भरपूर मात्रा में बॉक्साइट हिंदुस्तान में बॉक्साइट के खजाने भरे पड़े हैं करनाटक बहुत बड़ा भंडार तमिलनाडू, आंद्रप्रदेश, बॉक्साइट के बड़े भंडार हैं हम भी बना सकते थे अगर बॉक्साइट है तो एलुमिनियम बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है लेकिन हमने नहीं बनाया क्योंकि उसकी जरूरत नहीं थी हमको जरूरत थी मिट्टी की हांडी की इसलिए हमने मिट्टी की हांडी बनाई और उसी पर सारे रिसर्च और एक्सपरिमेंट किये इसलिए कुमहारों की एक पूरी की पूरी जमात इस देश में खड़ी की गई कि तुमको भाईया मिट्टी के ही बरतन बनाने है माने तुमसे बड़ा वैज्ञानिक कौन अब ये कुमार जो इतने बड़े वैज्ञानिक हैं इस देश के जो मिट्टी के बर्तन बना कर हजारों साल से दे रहे हैं हमारे स्वास्त की रक्षा करने के लिए हमने उनको नीची जाती बना दिया हम कैसे मूर्ख लोग वो नीचे कहां है जरा बताईए अगर प्रेशर कुकर की कंपनी जो बना रही है प्रेशर कुकर वो उचा आदमी है तो ये कुमार नीचा कैसे हो गया ये उचा नीचा हमने डाल दिया इस देश में ये उंचा नीचा कुछ तो अंग्रेजों ने डाला, कुछ अंग्रेजों के पहले जो मुसल्मान थे उनों ने डाला, और कुछ अंग्रेज और मुसल्मानों के जाने के बाद हम काले अंग्रेजों ने इसको ऐसा पक्का बना दिया कि कुमार इस देश में बैकवर्ड क्लास ह एक खास तरह की मिट्टी है, वही भर्तन बनाने में काम आती है। और एक खास तरह की मिट्टी है, जो हांडी बनाती है। दूसरे खास तरह की मिट्टी इसमें कुलड़ बनता है। तीसरे खास तरह की मिट्टी में कुछ और बनता है। ये तो बहुत बारीक और विज्ञान का काम है। ये सब कुमहार कर रहे हैं, हजारों साल से कर रहे हैं। बिना किसी युनिवर्सिटी में पढ़े हुए कर रहे हैं तो हमें तो वन्दन करना चाहिए उनके सामने नतमस्तक होना चाहिए कितने महान लोग हैं दुरभाग इसे सरकार की कैटेगरी में हैं वो बैकवर्ड क्लास में आते हैं इसलिए हमारे यहां या दूसरे मैटल के बर्तन का चलन कम है भगवान के लिए तो बनाते नहीं धातुओं के बर्तन में खाना नहीं बनता, सभी मंदिरों में भोजन और प्रसाद जाधातर मिट्टी के, तो आप भी कर लीजे ये काम, प्रेशर कुकर निकालिये, मिट्टी के हाणडी लियाईए, तो आप कहेंगे जी दाल देर में पकेगी, सिद्धान्ती वही है दाल का दाल को हाण्डी में रखके चड़ा दीजे, बाकी सब काम करते रहे, घंटे देड़ घंटे में पक जाएगी, उतार लीजे, फिर खा लीजे, घंटे देड़ घंटे में आपके जाडू, पोचा, दूसरे बर्तन साफ करना, कपड़े साफ करना, या जो भी काम करना है, पढ� बनाते समय, पकाते समय सूरी के प्रकाश से बंचित हो और पवन के इसपर्श से बंचित हो। ये तभी संभव है जब आप खुले बर्तन में खाना बनाएं तो पवन भी अंदर आएं और सूरी का प्रकाश की किरने भी अंदर आएं खुले बर्तन में। और वो खुला बर्तन सबसे अच्छा मिट्टी का हांडी। आप कहें जी मिट्टी की हांडी के बाद अगर कोई चीज है तो हमारे यहां एक मेटल बनता है जिसको आप लोग कहते हैं एलॉय है कासा। कांसा आपने सुना है देख शायद देखा भी हो कई इसी के घर में तो दूसरा सबसे अच्छा माना जाता है कांसा तीसरा सबसे अच्छा माना जाता है पीतल अब ये कांसे और पीतल में भी हमने काम कर लिया कि अरेहर की दाल को कांसे के बर्तन में पकाएं तो उसके सिर्फ 3 प्रतिशत माइक्रो न्यूट्रियन्ट कम होते हैं 97% मेंटेन रहते हैं तो 7 प्रतिशत कम होते हैं 93% बचे रहते हैं तो सिर्फ 7 प्रतिशत बचते हैं बाकी खतम होते हैं अब आप तै कर लीजे आपको लाइफ में क्वालिटी चाहिए तो आपको मिट्टी की हाडी की तरफ ही जाना क्वालिटी आफ लाइफ की अगर बात आप करेंगे माने जो खा रहे हैं वो पूरे शरीर में पोशक्ता दे ये लाइफ की क्वालिटी की बात आप करेंगे तो मिट्टी की हाण्डी की तरफ ही जाना पड़ेगा माने भारत की तरफ वापस लोटना पड़ेगा पिछले एक दो वर्षों में ये बातें गाओं में कहना शुरू किया है तो इसका परिणाम पता है क्या कि कुमहारों की इजद बढ़ गई है गाओं में गाओं वाले समझते हैं कि ये तो कोई बड़ा काम कर रहे हैं हमारे लिए और मैं मानता हूँ कि मेरे व्याख्यान के अगर कोई सार्थकता है तो वो ये कि कुमहारों की इजद इतनी बढ़ जाए कि वो पंडितों के बराबर आ जाएं बले वो मिट्टी के बरतन बना रहे हैं और मज़े की बात कि वो हाडी बना के आपको 20-25 रुपए नहीं दे रहे हैं प्रेशर कुकर तो 250-300 रुपए का है और सबसे मज़े की बात कि ये हाडी जब खतम होगी माने इसकी लाइफ पूरी हो जाएगी तो ये हाडी फिर मिट्टी में मिल जाएगी दुनिया में ऐसी कोई वस्तु नहीं है कोशिश करें अपने घर में थोड़ा परिवर्तन करें अब मैं आखरी बात जो आज की कह रहा हूं वो ये मैंने पिछले दो वर्षों में मैं होमियोपैथी की भी चिकित्सा करता हूं तो बहुत सारे पेशेंट मुझे फोन करते हैं राजि बाई ये तो मैंने कु कहने लगे राज़ी भई कौन करेगा ये सब मैंने कहा आपकी बीबी करेगी या आप करोगे अगर जिन्दगी चहिए तो जख मार के आप करोगे नहीं तो अमरीका जाओ, कनाडा जाओ, जर्मनी जाओ तो आप देख लो, तो जो गंभीर मरीज है जिनका यूनिट, शुगर यूनिट 480 के उपर है ऐसे सौ से जाधा पेश हैं। कुछ गुजरात में हैं, कुछ राजिस्थान में हैं और कुछ बंबई में। मैंने उनको कहा ध्यान से मिट्टी का बर्तन ले आओ और शुरू करो। अब बर्तन लाने में तकलीफ होई तो कुमार को ढूंढना पड़ा तो लेकिन मिल गया। बाजरी की रोटी बहुत अच्छी बनती है इस मिट्टी के तवे पे तो रोटी भी उसी की खा रहे हैं आठ महीने के बाद सबका शुगर टेस्ट किया है तो 480 यूनिट वाला अभी 180 यूनिट पे है बिना किसी मेडिसिन के बिना किसी इंजेक्शन के बिना किसी टॉनिक के कुछ लोगों को जादा परेशानते दवा नहीं डाली तो पेशन्ट को लग रहा है कि मैं दवा खा रहा हूँ दवा खा के अच्छा हो रहा हूँ मुझे मालूम है कि वो कोई दवा नहीं है वो प्लैसीबो है वो अच्छा हो रहा है उस मिट्टी की दाल खा के मिट्टी का चावल खा के मिट्टी की खिचडी खा के ये एक सूत्र पूरा होता है, साड़े आठ का समय हो गया है, आगे कल दूसरा सूत्र, तीसरा, ऐसे कर करके जो सबसे जरूरी पंद्रे है, वो पहले बताऊंगा, और उसके आगे बढ़ता जाएं, आभार, धन्यवाद. तो एक बार फिर हम राजी भाई को अब सुनेंगे और मेरी गुजारिश है कि आप जोरदार तालियों से उनका स्वागत करें ताली बजाएंगे तो आपके अंदर उर्जा का संचार होगा और हवा का स्पंदन आप महसूस करेंगे और वही हवा आपको मिट्टी के खुश्बू विखेरेगी और अब अपने सूत्रों को विखेरने आए हैं हमारे भाई राजीव दिक्षित जी, राजीव भाई ने मुझे कहा था कि व्याख्यान के दोरान अगर बाबुजी शोवाकान जी हमारे बगल में रहेंगे, तो एक आशिर्वाद मेरे इर्द्गिद मढ़ रहेगा, इसलिए उनसे गुजारिश है कि कृपया मंच पर आएं उन में से बहुत सारी बातें आपको याद होंगी, शायद आपने लिखी भी होंगी। मुझे कल एक जानकारी दी, बाबुजी ने, वो जानकारी आप सब तक पहुँचे, ये मेरी उनसे विंती है। उनोंने जानकारी दी कि एक बार वो, TBS ग्रुप है न, TBS, जो यहाँ का, चिन्नई का सबसे बड़ा ग्रुप है, और शायद भारत के सबसे बड़े ग्रुप में उनकी गिंती है। उनके घर वो भोजन करने गए थे, तो जरा बताएं। सभी भाई भावनों को नमस्कार आज से करीब 28 साल पहले जब प्रभावती देवी ट्रस्टन प्रभावती जय प्रकास का विन्याश हुआ था तो टीवियस्टी मलकाईन विस्की ट्रस्टी वनी थी और पहला मिटिंग उनी के घर में हुआ था जिसमें रामनात गोयन का म.एम राम स्वामी और महालिंगम जितने भी यहां के एलुमिनेरिस्ट थे, सभी हमारे ट्रस्टी हैं इस संस्तागे, तो उन्हीं के घर में पहले मिटिंग हुए थे, तो हमलों को खाने पर नमंतरन्त भी था, तो खाया तो मैंने कहा यह दाल बहुत स्वादिस्थ है जिसके तो मट्टी का बर्तन था, तो उनके घर में मट्टी का, मैंने कहा कि तब तो गैस बहुत खर्चा होता होगा, बला हाँ, गैस खर्चा होता है, लेकिन उसकी परवारने खाने में श्वाद आता है, यह है, वह है, बल उनके पास बायो गैस भी लगी भी थी, बार में, अभी भ क्योंकि हम भी जब दास्ताल के थे तो बिहार में हर घर में केवल मट्टी के दर्तम, रोटी भी बिलना से नहीं बिला जाता था, हाथ से हिसा पका करके और तवा जो होता था वो मट्टी का होता था, तो मेरे खासे गौंगाओं में पहले ही परचार था और इनोंने जो कहा त जो हजारों करोड के एमपायर का मालिक है, उनके घर में अगर मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल हो सकते हैं, तो आपके घर में भी हो सकते हैं। माने हमको ये बहाना ना मिले, कि मिलते नहीं है जी, समय बहुत लगता है जी, क्या उसको खटराक करने का, ये जो मन के अंदर की हमारी जो रुकावटे हैं, ये कभी नहीं आए, इस ग्रष्टी से सुधारन का बहुत महत्व है। और ये उधारन मैं हिंदुस्तान के ऐसे हजारों लोगों के बारे में बता सकता हूँ जिनको आप रोज अक्वारों में देखते हैं, नीज़ पेपर में देखते हैं, टीवी पे देखते हैं जादातर के घरों में मिट्टी के बर्तन्क रसोई में इस्तिमाल होते हैं एक बार मुझे भी मौका मिला उनकी धरम पत्नी श्रीमती कोकिला बेहन से बात करने का कि आप ये मिट्टी के तवे पे रोटी क्यों बनाती हैं ये तो पिछड़ेपन की निशानी है ये ऐसा मैंने जान बूच के बोला हम तो ऐसा मानते हैं कि आप अठारवी शताबदी में जा रहे हैं तो कोकिला बेर ने कहा कि जो कहें मुझे उसकी परवा नहीं, मुझे ये रोटी पसंद है और हमारे घर के सब लोगों को पसंद है इसलिए हम मिट्टी के बर्थन में ही रोटी बनाते हैं पूरे गुजरात में आप जाएंगे, राजिस्थान में जाएंगे, अभी भी एक दो नहीं, लाखों नहीं, करोडों लोग हैं जो मिट्टी के तवी पे रोटी बना रहे हैं और खा रहे हैं और मैं विनम्रू रूप से आपसे कहना चाहता हूँ कि वो आपसे जादा स्वस् अगर हमें अपना स्वास्त और तंदुरुस्ती बना के रखनी है, बचा के रखनी है, तो ये बातें आपको अपने जीवन में आचरण में उतारने की आवश्यक्ता है। और ये बातें अगर आपके आचरण में आती हैं, तो कितनी बड़ी चीज होती है इस देश में, कि अगर मालो हिंदुस्तान में 112 करोड लोग हैं, 112 करोड लोगों में 20 करोड परिवार हैं, 20 करोड परिवारों में 20 करोड रसोई घर हैं। अगर 20 करोड रसोई घर में मिट्टी का तवा आने लगे, तो 20 करोड तवा बनने लगेगा और लाखों कुमारों को रोजगारी मिल जाएगे, जो बेरोजगार बैठे हैं जिनके पास काम नहीं। सरकार के आंकडे हैं, लगबग 18 प्रतिशत कुमार हैं और कुमार जैसी जातियां हैं, 18 प्रतिशती ब्राम्मन हैं, तो इतने बड़े समाज को अगर रोजगार हम दे पाते हैं, तो बहुत बड़ी बात हैं, इसलिए अर्थव्यवस्था को भी मदद होती है, आपका स्वास् ये सबसे बड़ी बात मानी जाती है हम पता नहीं कहा से चिन्नई में आये हैं कोई बिहार से आया, कोई राजिस्थान से कोई गुजरात से, लेकिन अक्सर मन में आता है कि अपनी मिट्टी से जोड़े रहें, तो अपनी मिट्टी से चिन्नई जैसे शहर में जोड़े रहने का एकी रास्ता है कि आप इन मिट्टी के बनाए हुए बर्तनों से तो बहुत ही अच्छा है और मैंने कल जो बाते कही थी उनको एक मिनट में फिर से रिपीट करता हूँ कल मैंने एक ही सूत्र का आपके सामने विशलेशन किया था बागवट्ट रिशी का लिखा हुआ कि जिस भोजन को बनाते और पकाते समय पवन का इसपर्श और सूरी का प्रकाश ना मिले वो भोजन को कभी नहीं करना इस विशलेशन में से शुरू हुआ कि पवन का इसपर्श और सूरी का प्रकाश कहां नहीं मिलता तो सबसे पहली चीज निकल के आई प्रशर कुकर प्रेशर कुकर का खाना ना खाएं, कल मैंने बहुत विस्तार से बता दिया, आज सिर्फ दोहरा रहा हूँ याद रखने के लिए और उसके विकल्प के रूप में मैंने आपसे कहा मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाएं मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने के पीछे जो सबसे बड़ा वैज्ञानिक कारण है कि ये जो मिट्टी है, इसमें 18 तरहे के माइक्रो न्यूट्रियेंट्स हैं, ये बात हमेशा आप याद रखेगा कैल्शियम मिट्टी में है, आइरन मिट्टी में है सिलिकॉन मिट्टी में है, सलफर मिट्टी में है, आपके शरीर को हर दिन, हर दिन अठारे तरहे के सूक्षम पोशक तत्तों की जरूरत होती है, जिनको आप अलग-अलग भाषा में बोल देते हैं कि हमको प्रोटीन्स चाहिए, हमको विटेमिन्स चाहिए, हमको कार्बोहाइ कि आपको प्रोटीन की कमी हो गई है, प्रोटीन चाहिए, आपको कार्बोहाइडेट्स जादा चाहिए, आपको फैट्स जादा चाहिए तो ये जो कुछ भी चाहिए, इनको रसाइन शास्तर की भाषा में मैंने आपको समझाया कल और आज कह रहा हूँ कि ये अठारे तरह के सूख्षम कोशक तत्व हैं, जिनको मिल जाने से आपके भोजन को संपूनता मिलती है, माने भोजन पून होता है और संयोग से या प्रकर्ती के कुछ ऐसे लियम से ये सारे तत्व मिट्टी में हैं इसलिए मिट्टी के बर्तनों का उप्योग आपके लिए बहुती अच्छा है। दूसरा मैंने आपको कारण बताया था विज्ञान का, जिस वस्तु को खेत में, क्रशी भूमी में, पकने में जितना जादा समय लगता है, क्योंकि मैंने आपसे कहा, कि खेत की मिट्टी में अरहर की दाल खड़ी है, साथ आठ मेंने में तयार होती है। साथ आठ मेंने धीरे उसने प्रोटीन लिया। प्रोटीन के रूप में कुछ केमिकल्स उसने लिये मिट्टी से ये साथ आठ महीने तक लेते रहें अरहर की दाल के दाने उसकी जड़ों की मदद से तने की मदद से अब वो दाल तैयार हुई है तो उसको पकाने में भी समय लगना चाहिए जल्दी से आपने पका दिया तो उसके अंदर जो प्रोटीन्स गए हैं जो बहुत तरह के माइक्रो न्यूटिनेंट्स मिट्टी से अंदर गए हैं इनको बापस आपके शरीर में आने में संभवावना नहीं है वो तूटेंगे तो आपके लिए उप्योगी उत्ते नहीं होंगे मैंने आपसे कहा कि प्रेशर कोकर में बाश्क का दबाव इतना जादा होता है कि दाने तूटते हैं पकते नहीं हैं वो तूटते हैं वो सौफ्ट हो गए हैं, मुलायम हो गए हैं पकने से मतलब मैंने आपको बताया था कि उसके अंदर जो कुछ भी प्रकर्ती ने दी है पोशक्ता वो आपको मिलने की इस्थिती में आ गई या नहीं तब हम उसको कहते हैं कि ये पक गया है चाहे वो गेहू का दाना हो, चाहे अरेर का दाना हो या तूर का तो ये बात अगर आपके ध्यान में आती है कि पकना मतलब क्या होता है और उबलना मतलब क्या होता है एक शब्द है उबलना उबलना होता है प्रशर कुकर में पकना होता है मिट्टी की हांडी में क्योंकि मिट्टी की हांडी में धीरे पकती है हर चीज कारण क्या है? मिट्टी जो है ना उश्मा की कुचालक है आप मैसे जो विद्यारती हैं वो जानते हैं बैड कंडक्टर हैं उश्मा की कुचालक है मिट्टी को कोई चीज जल्दी उश्मा के रूप में मिलेगी नहीं धीरे ही धीरे मिलेगी तो धीरे ही धीरे फिर दाल पकेगी और दाल पकेगी तो धीरे उसके माइक्रो न्यूट्रिडेंट्स पानी के साथ आएंगे फिर आप वो खाईंगे तो आपके शरीर को पूरी पोशक्ता मिलेगी। और भगवान ने जो चीजे बनाई हैं, प्रकर्ती ने जो चीजे बनाई हैं, उनकी पोशक्ता आपको मिले इसके लिए बनाई। ये जो दाल बनी है न, आप अगर ध्यान से देखें, तो दाल का ऊप बीच का जो बचा हुआ हिस्सा है जिसको तना कहते हैं वो जानवर खा रहे हैं और अंत का बचा हुआ जो हिस्सा होता है जिसको जड कहते हैं वो धर्ती के लिए होता है, मिट्टी के लिए होता है प्रकर्ति ने बहुत सोच कर ये सब बनाया, भगवान ने बहुत सोच कर बनाया मनुष्य के लिए एक हिस्सा, उसमें से थोड़ा आप चाहें तो पक्षियों को भी खिला सकते हैं तो मनुष्य और पक्षियों के लिए एक हिस्सा, जानवरों के लिए दूसरा हिस्सा और प्रकर्ति की धर्ती या मिट्टी के लिए तीसरा हिस्सा हर एक फसल में यही देखेंगे आप तो जो आप के लिए बनाया है भगवान में वो बहुत सोच समझ कर बनाया है जो जानवरों के लिए है वो भी सोच समझ कर है और मिट्टी के लिए तो उसका अगर जीवन में फाइदा उठाएं तो बहुत अच्छा होगा जिसमें रखी हुई कोई भी वस्तु को सूरी का प्रकाश नहीं मिलेगा, पवन का इस्पर्श नहीं होगा.
आप जानते हैं कि रेफ्रिजरेटर जो काम करता है, उसके एक गुनियादी सिद्धान्त है. वो क्या सिद्धान्त है? आपके रूम का जो टेंपरेचर है, आपके कमरे का जो तापमान है, उससे नीचे का तापमान वो पैदा करेगा.
अब ये प्रकर्ती की मदद से नहीं हो सकता, क्योंकि प्रकर्ती की मदद से तो आपका रूम टेंपरेचर 30 डिग्री, 35 डिग्री या 22 डिग्री, 25 डिग्री है. तो प्रकर्ती के विरुद्ध जाकर उसको काम करना पड़ेगा तो उसके लिए कुछ एक्स्ट्रा एफर्ट्स लगेंगे तो ऐसी गैस रसायन शास्त्र में जो तापमान को कम करने में काम में आती हैं उन गैसों का इस्तेमाल रेफ्रिजरेटर करेगा और एक दो नहीं ऐसी बारे गैसों का इस्तेमाल रेफ्रिजरेटर करता है जिनको विज्ञान की भाषा में CFCs कहते हैं Chlorofluorocarbons जिसमें Chlorine भी है फ्लोरीन भी है और कार्बन डायोक्साइड अगर आप रसाइन शास्तर की डिक्षिनरी निकाल कर देखें आप मेंसे जिनों ने पढ़ा है केमिस्ट्री उनके लिए तो आसान है जिनों ने नहीं पढ़ा वो डिक्षिनरी निकाल कर देखें क्लोरीन क्लोरीन के सामने लिखा हुआ है जहर सीधे डिक्षिनरी देखें तो सामने लिखा हुआ है जहर और फिर फ्लोरीन देखें तो अत्यंत जहर और कार्बन डायोक्साइड तो जहर का बाप आप जानते हैं कि शरीर का ये जो स्वासो स्वास की क्रिया है प्राणायाम जिसको आप कहते हैं इसमें आप हमेशा कार्बन डायोक्साइड छोड़ते हैं ये क्यों छोड़ते हैं रख लीजे इसको अंदर अगर इससे इतना ही प्रेम है कि रेफ्रिजरेटर लाके आपने घर के सबसे अच्छे स्थान पर रखा है जो हर समय कार्बन डायोक्साइड से ही खेल र तो आप अंदर की कारवन अंदर ही रख लीजिए, बाहर मत छोड़िये, बहुत प्रेम है आपको इससे, तो आप मर शाम नहीं लगेगी, रात नहीं लगेगी, मिनिट में मर जाएं। इसलिए प्रकर्ती ने व्यवस्था ऐसी बनाई है, कि कार्बन डाई ओक्साइड जो आपको मार डालेगी, इसको बाहर निकालते रहना है। अब ये बाहर निकले, तो आप स्वस्थ रहें। रेफ्रिजरेटर छोड़ता है, CFC-1, गैस का नाम है CFC-1, CFC-2, CFC-3, ऐसी CFC-12 तर, बारे गैसे एक साथ छोड़ता है, 24 घंटे छोड़ता है, क्योंकि वो चालू है आपके घर में, अब इसमें आपने जो कुछ भी रखा है, वो सब इन गैसों के प्रभाव में आता है, आप बोलेंगे, जी हमने तो भोजन को ढखकर रखा है, कितना भी ढखकर रखी है, क्योंकि गैसों का असर इतना तीब रहे है, कि स्टील को तोड़के निकल जाने वाली गैस है स्टील के मोटे पट्टे को रख दीजे उससे निकल जाने वाली गैस है हाई प्रशर है तो अगर आप इतने सारे जहरिली गैसों से युप्त भोजन को दो गंटे, तीन गंटे, पाँच गंटे उसमें रखके फिर खा रहे हैं तो माफ कीजे आप भोजन नहीं, जहर ही खा रहे हैं बस जहर में अंतर इतना है कि एक जहर है तातकालिक और दूसरा है दीरगकालिक तो पाँच साथ साल में पता चला देगा, तातका लिखा है तो एक मिनट में आपको पता चल देगा तो इसलिए मेरी आपको विंती है कि आपके घर में रेफ्रिजरेटर अगर ले लिया है तो इसका इस्तेमाल कम करिए, सबसे अच्छा है बंद करिए और मेरी बात माने तो बेच दीजे, कोई भी सेकंड हेंड खरीद लेगा और नहीं बिटता तो लोहे के भाव में बेच दीजे तो भी आप फाइदे के सौधे में रहेंगे क्योंकि इसके रखे रहने से जो मन में लालच है लालच पता है क्या है? अगर ये है तो कुछ तो करो इसका अगर ये है तो कुछ तो करो इसका अगर ये है तो कुछ तो करो इसका तो कुछ तो के चक्कर में हम जबरजस्ती जादा खाना बनाते हैं सबेरे का शाम को शाम का अगले दिन सबेरे अगले दिन का शाम को ये चक्कर चलता रहता है और ये चक्कर में खाने का पोशक्ता का नाश होता रहता है और मैं आपको एक गिनम्रता पूर्वक दूसरी जानकारी देना चाहता हूँ कि रेफरिज रेटर का आविशकार हुआ तो उसके पीछे कारण क्या था हर वस्तु के आविशकार के पीछे कारण होता है तो इसका कारण था ठंडे देशों की इन देशों की आबो हवा आप जानते हैं कि ये ठंडे देश हैं और जादा से जादा प्लस में जाएं तो 15, 20 से minus 40 तक temperature का जो variation है, ये बहुत तकलीफ देने वाला variation है। आप कभी एक अनुमान करने के लिए एक प्रयोग करिये, मैंने किया था। मैंने एक प्रयोग किया था कि एक बार मैंने क्या किया, बरफ, बरफ का सिल्ली एक, दो, तीन, चारो तरफ से लगा कि मैं उसके बीच में लेट गया। तो 15 मिनट में मेरा शरीर अकड़ गया, 15 मिनट में। जबकि मैंने खूब प्राणायाम और ये सब किया, 15 मिनट में शरीर अकड़ गया और उस दिन मैंने मेरी बायो केमिस्ट्री को अब्जर्व किया तो मैं बहुती परिशान था फिर मैंने सोचना शुरू किया कि उन लोगों का क्या होता होगा जो इसी बरफ के तापमान में 6-6 महिने सोते हैं, रहते हैं, लेटते हैं 8-8 महिने धूत नहीं निकलती कनाडा में, अमेरिका में, यूरोप के देशों धूप नहीं निकलती, टेंप्रेचर नहीं होता, और यही परिस्थिती में उनको सोना पड़ता है, तो कितनी तकलीफें उनके शरीर को होती होंगी, और शरीर के साथ उनके भोजन को होती होंगी, क्योंकि शरीर भोजन से ही है, तो भोजन को ये सारी तकलीफें थोड़ी कम ह कुछ area हम ऐसा बनाए जिसको हम control कर सके हम जब चाहे temperature को बढ़ा सके घटा सके इसके लिए refrigerator बना तो ये उनकी मजबूरी में से निकली हुई machine है कोई उनोंने बहुत आगे progress करके ये बनाया ऐसा नहीं है उनकी मजबूरी है उस मजबूरी में से ये निकला और उनकी सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि allopathy में कई दवाएं ऐसी है जो जादा तापमान पे खतम हो जाती हैं बहुत सारी दवाएं एलोपेथी में ऐसी हैं जो हाई टेंप्रेचर पे भी खतम हो जाती हैं मने उन दवाओं का असर नहीं रहता लो टेंप्रेचर पे भी खतम हो जाती हैं तो उन दवाओं को रख पानी के लिए नहीं बना है, दाल रखने के लिए नहीं बना, सबजी रखने के लिए, दवाएं रखने के लिए बना, और आपको एक और जानकारी दूं को यूरोप में ये जब आविशकार किया सबसे पहले, तो मिलिटरी के लिए इसका उप्योग हुआ था, और मिलिटरी क इसके लिए ये फरिज आया ये हमारे लिए नहीं बना हिंदुस्तान के लिए तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं और यूरोप में एक दूसरी समस्या है आप जानते हैं कि जहां 6-8 महीने बरफ पड़ेगी वहां हर चीज जरूरत की समय पर नहीं मिलेगी माल लीजे ये जो सम बिंडी चाहिए नहीं मिलेगी, गाजर चाहिए, कुछ नहीं मिलेगा उनको बरफ मिलेगी, खालो तो खालो, नहीं तो उसको गरम करके पानी बना लो, और कुछ नहीं मिलेगा तो जो कुछ नहीं मिलेगा, उस कमें कुछ चीजों को स्टोर करके रखने के लिए रेफरिजरेटर है, जब मिल रहा है तो एकठा खरीदो, और स्टोर करके इसको रखना शुरू कर दो, अब गलती तो ये हो गई हम लोगों से कि बिना सोचे, समझे, विचार किये, उनकी नकल के साथ ये ले आया अपने घर में, और ऐसे लोगों के घर में भी ले आया, जो केमिस्ट्री बहुत अच्छे से जानते, जो क्लोरो, फ्लोरो, कार्बन्स को रोज पढ़ते हैं और पढ़ाते हैं, उनके ही घर में फ्रीज, मैं क तो कहते है समस्ती नहीं तो मैंने कहा फिर आप प्रोफेसर क्यों हो गए जो आप अपनी पत्नी को केमिस्ट्री नहीं समझा सके तो बच्चों को कैसे समझाएंगे आप अपने बच्चों को नहीं समझा सके दूसरों को कैसे समझाएंगे तो मुश्किल यह है कि हम विज्ञान पढ़ रहे हैं लेकिन वैज्ञानिक नहीं हो रहे हैं प्रकर्ती और विज्ञान के विरुद अगर कोई चीज सबसे खराब हमारे घर में है तो प्रेशर को कर के बाद यही है रेफरिजरेक्ट कि आप इसका रखा हुआ खाना मत खाये क्योंकि वो जहर हो जाता है तो आप बोलेंगे फिर क्या करें एक नियम बना लीजे अपने जीवन में जो हमारे दादा दादी नाना नानी के समय का बनाया हुआ है और शायद बागवट्ट ने भी ये नियम लिखा है बहुत रेखां कित करके बागवट्ट जी कहते हैं कि कोई भी खाना जो बना कोई भी खाना दाल बनी चावल बना रोटी बनी बनने के अड़तालीस मिनट के अंतर इसका उपभोग हो जाना चाहिए। ये दूसरा नियम, दूसरा सूत्र है। कोई भी खाना बना, बनने के अड़तालीस मिनट के अंदर उसका उपभोग, माने कंजम्शन हो जाना चाहिए। रोटी बनी, बन गई, अब अड़तालीस मिन� 48 मिनित में खा लीजे, दाल बन गई 48 मिनित में खा लीजे, खीर बन गई 48 मिनित में खा लीजे, सिवई बन गई 48 मिनित, ये 48 मिनित का चक्कर क्या?
48 मिनित, 40 मिनित भी नहीं, 50 मिनित भी नहीं, 48 मिनित. तो उन्होंने जितने कैल्कुलेशन किये हैं वो सब इसी तरह के हैं 42 मिनट अब ये जो मिनट है ये मैंने जोड़ा है बागवट्य जी ने लिखा है 48 पल हमारे यहां जो होता है न पल होता है छण होता है प्रतिपल होता है हमारे यहां जो समय की नापने की डिग्रियां है व समझता है पल समझता नहीं इसलिए मैंने इसमें जोड़ दिया हाला कि एक मिनट एक पल के बराबर नहीं है एक पल एक मिनट से थोड़ा कम है अगर बागवट्य जी के कैलकुलेशन मैं करूं तो एक मिनट का बावनमा हिस्सा एक पल है और बागवट्य जी कहते है कि लगब� तो जो बना हुआ भोजन है वो आप अटालीस मिनट में कर लीजे तो आपके लिए सबसे जादा पोशक्ता देने वाला है जो इसके बाद आप भोजन करें तो धीरे उसकी पोशक्ता कम होने लगती है अगर आपने छे गंटे के बाद किया बनने के बाद तो पोशक्ता गंटे के बाद और कम हो जाएगी, बारे गंटे के बाद बिल्कुल ना के बराबर और चौबीस गंटे के बाद तो खतम, बासी हो गया, बासी शब्द है न, ये बागवट जी का है, साड़े तीन अजार साल पहले ये शब्द था, बासी हो गया जी, और वो कहते हैं ये बास बागवट्ट जी ने एक बहुत अच्छे मज़े की बात लिखी है उन्होंने का भारत देश में 365 दिन का जो चक्र है एक वर्ष का इसमें एक ही दिन ऐसा है जिस दिन आप ये खा सकते हैं 364 दिन नहीं खा सकते हैं एक ही दिन खा सकते हैं और वो एक दिन का उन्होंने बहुत तो पता चला कि वो दिन हमारे देश में एक त्योहार आता है उसको मेरी मा कहती है बासोडा आप पता नहीं क्या कहते हैं एक ही त्योहार है अपने देश में जिस दिन हम बासी खाना ही खाते हैं और ये जो त्योहार है इस जो दिन पढ़ता है ये कार्तिक अगेन कूस महा के हिसाब से तब मेरे सबज में आया कि इस देश के त्योहारों के पीछे वैज्ञानिकता है। त्योहार ऐसे ही नहीं तैह हो गए हैं। इस दिन होली होगी, इस दिन दिवाली होगी, इस दिन ये होगा, इस दिन। इनके पीछे कुछ कैलकुलेशन है। बागवट्टी जी का कैलकुलेशन है कि शरीर में तीन दोश हैं, वो आप सब जानते हैं, वात, पित्त और कफ। तो वात, पित्त, कफ तीन दोश हैं, ये समान इस्थिती में रहें, तो आदमी हमेशा निरोगी रहता है। वात बढ़ गया, पित्त और कफ कम हो गया, पित्त बढ़ गया, वात और कफ कम हो गया, उपर नीचे हो, तब ही रोगी होते हैं आप, तब ही रोग पैदा होते हैं, तो एक दिन ऐसा आता है, 365 में से एक दिन ऐसा आता है, जिस दिन ये वात, पित्त, कफ की स्थिती बिल्कु क्योंकि जिस दिन ऐसी इस्तती आती है उस दिन शरीर को प्रोटीन नहीं चाहिए प्रोटीन बिलकुल नहीं चाहिए तो प्रोटीन सब खतम होगा तब जब खाना बहुत पुराना हो जाए तब मेरे समझ में आया कैसी वैज्ञानिकता है तो आप साल में एक ही दिन बासी भोजन कर सकते हैं अब आप देखो कि एक दिन के लिए फ्रिज लगेगा साल में तो 364 दिन की विजली क्यों खर्च करना हो सकता है और 364 दिन का इतना इस्थान क्यों घेर के रखना? चिन्नई में बहुत महङा है इस्थान, एक स्क्वेर फुट का क्या भाव है?
तीन हजार! तो फ्रिज अगर रखा है मालो 5-7 स्क्वेर फुट में, तो तीन हजार में पाँच का गुणा कर लो, पंधरे हजार रुपए रोज का खर्चा, एक तो दे दिया फ्रिज खरीदने में, और ये जिन्दगी भर इतना इस्थान घेर कर खड़ा है, जो इस्तेमाल नहीं हो रहा है, तो कितना घाटे का सोदा है? तो इस घाटे के सौदे को अपने जीवन में मत लाईए मेरी विंति है कि जिनोंने फ्रीज नहीं खरीदा है वो ना खरीदे जिनोंने खरीद लिया है वो धीरे इसका उप्योग कम करे एक दिन थोड़ा ऐसा आए कि उप्योग उसका बंद ही हो जाए तो आपके जीवन के लिए बहुत अच्छा है और आप जानते हैं कि आजकल वैज्ञानिक परिशान है कि क्लाइमेट चेंज हो रहा है सर्दी कम हो रही है सर्दी कम होने में और गर्मी बढ़ाने में जिन गैसों का सबसे बड़ा योगदान हैं वो ये ही गैसे हैं CFC-1, CFC-2, CFC-3, CFC-12 तो सारे दुनिया के देश परेशान हैं कि क्या करें, क्या करें अभी इंडोनेशिया के बाली द्वीप में साथ दिन का सम्मिलन हुआ अमेरिका, जर्मनी, भारत जैसे 156 देशों के राश्टुपती प्रधानमंत्री साथ दिन जख मार रहे थे ये ही बात के लिए कि बई CFC का प्रड़क्षन कम कैसे किया जाए तो इसमें थोड़ा आप भी सहकार कर दीजे ये प्रड़क्शन कम होने के लिए फ्रीज की ज़रूरत बंद करने की है तो ये प्रड़क्शन कम होगा तो इसलिए मैंने कल आपसे कहा था कि फ्रीज का भी खाना ना खाए समय का ध्यान रखें ये बात हमेशा याद रखें कि बना हुआ खाना 48 मिनित के अंदर खा लेना चाहिए अब ये 48 मिनित का जो कैलकुलेशन है आज बस इतनी सी बात और एक तीसरी बात जो मैंने कल आप से शुरू की थी, microwave oven, microwave oven भी कुछ इसी तरह का किस्सा है, इसमें भी temperature को आप control करते हैं, और microwave oven में कोई भी चीज़ आप जब रखते हैं न, गरम करने के लिए, तो वो चीज़ का, एक हिस्सा गरम होता है, पूरा नहीं होता, गरम होने के लिए हमारी जो कल्पना है वो चारो तरफ से एक साथ एक जैसा टेंप्रेचर आए, वो पानी ही कर सकता और कोई चीज़ नहीं है दुनिया, पानी गरम करके उसमें कोई चीज़ डाले तो सही गरम होती है, और माइक्र तो अब हमारे घर में क्या हुआ है वो मैं बिनमर्दा पूर्वकाफ से कहता हूँ आपने कुछ चीज़ों को status symbol बना रखा है वो बदल दीजे ये status symbol नहीं है ये मजबूरी की चीज़े है कहते न मजबूरी में हमने ये किया तो आप मान लीजे कि मजबूरी में फ्रिज लाया मजबूरी में microwave oven लाया मजबूरी में pressure cooker लाया ये कोई छाती ठोक के बताने की बात नहीं है कि मेरे घर में फ्रिज है या मेरे घर में microwave oven है, या मेरे घर में, आप इसको शरम से बताईए कि मैं क्या बताऊं, मेरी मजबूरी थी, उस दिन दिमाग कुछ फिर गया था, मेरा भिवेक शून्य हो गया था, तो मैंने मेरे खून पसिने की कमाई बरबाद कर दी और ये ले आया, तो ये इस तरह से कहन आप मेंसे कोई भी जेन समाच के लोग होंगे तो मेरी बात आपको बहुत जल्दी समझ में आएगी जितने भी जेन सादु संतें उनके मूँसे आप यही सुनेंगे पानी में 48 मिनट के बाद जीव राशी पैदा हो जाती है और वो जीव राशी फिर बढ़ती ही चली जाती है करुणों से अर्बों से खर्बों में चली जाती है तो जेन दर्शन ने इसको अहिंसा के साथ जोड़ा है और बागवर्त जी ने इसको स्वास्थ के साथ जोड़ा है मूल बात एक ही है शायद जैन दर्शन में अहिंसा से इसको इसलिए जोड़ा होगा कि धर्म से जाएगा जोड़कर तो जल्दी समझ में आएगा। बागबट जी ने इसको शरीर स्वास्त से जोड़ा है तो थोड़ा देर में समझ में आता है। क्योंकि हमारा चित और मन धर्म के प्रती थोड़ा आकरशित है क्योंकि हमारे डी एने में ऐसा है। भारत का जो डी एने है वो ऐसा ही है जिसमें धर्म की बात करो तो तुरंद समझ में आए विज्ञान थोड इसलिए इस देश में धार्मिक लोगों की पूजा होती है, वैज्ञानिकों को कोई पूछता नहीं है, वो ऐसे ही बिचारे घूमते रहते हैं, कभी आप जैसे लोग उनको माला वाला डालने तो ठीक हो गया, वरना इस देश के वैज्ञानिक कहां मरते हैं, कहां ख मेरे DNA का दोश है, आपके DNA का दोश है, क्योंकि DNA है साहे इस देश में, कभी मौका मिला तो इस पे बात करूँगा, कि गरम देशों का DNA और ठंडे देशों का DNA बिल्कुल अलग होता है, ये जो यूरोप और अमेरिका में रहने वाले लोग हैं न, इनका जो DNA है, और हमारा जो ह पूर्व से ही निकली, इसलाम भी पूर्व से निकला, हमारा हिंदू धर्म जिसको सनातन बानते ये भी पूर्व से निकला, पश्चन से कोई धर्म आज तक निकला ही नहीं, इसायत निकलने का इस्थान बैठलम है न, बैठलम, इस्राइल, वो पूर्व में है, इसायत के बा और वो 10 स्क्वेर फिट की जगे है बस हाँ, 10 स्क्वेर फिट की जगे में 33 करोड मर गए और छोड़ना नहीं चाहते ये मैं ले लूँ कि ये तू ले ये फिलिस्तीन का कि ये इज्राइल का तो ये फिलिस्तीन और इज्राइल यूरोप में नहीं है, एशिया में है और एशिया दुनिया के पूर्व में है तो सारे धर्म पूर्व से ही निकले हैं क्योंकि पूर्व का DNA कुछ इस तरह का है पश्चिम से धर्म निकला नहीं कोई क्योंकि DNA दूसरे तरह का है तो ये DNA का दोश है हम धर्म को मानते हैं इसलिए शायद जेन शास्त्रों में जेन आचारियों ने जेन संतों ने इसको धर्म से जोड़ दिया तो ये धर्म से जोड़ा हुआ विज्ञान की बात है इसको विज्ञान से पहले समझ कर धर्म में आप पालन करेंगे तो आपका विश्वास इस पर पक्का होगा इसलिए ये 48 मिनट याद रखें सम माताएं वेहने और भाई याद रखें भोजन पका तो 48 मिनट में हो ही जान गरम खाना खाओ, माने वो 48 विनिट के पहले हो जाए, गरम रोटी बना के खिलाओ, या गरम रोटी खाओ, आपको शायद मालूम नहीं है, आप मेंसे जो यूरोप और अमेरिका जाधा घूमते हैं, वो इस जाजा लगाएंगे कि गरम रोटी का महत्त क्या है क्योंकि यूरोप में नहीं मिलती अमेरिका में नहीं मिलती दुनिया के 56 देशों में गरम रोटी नहीं मिलती क्योंकि उसको बनाना नहीं जानता कोई दुनिया की आबादी 600 करोड है 600 करोड आबादी में 300 करोड महिलाएं 300 करोड पुरुष अगर मान लें तो 300 करोड महिलाओं में लगबख 250 करोड महिलाएं नहीं जानती कि गरम रोटी कैसे बनती है उनके पास गेहू का आटा है गेहू है गेहू का आटा भी है क्योंकि यूरोप के कई देशों में गेहू है अमेरिका में गेहू पैदा होता है कनाडा में भी गेहू पैदा होता है गेहू ठंडी की फसल है तो गेहू है गेहू का आटा भी है रोटी बनाना नहीं आता क्यों कोई यूनिवरसिटी नहीं है कोई कॉलेज नहीं है जो सिखाए इसको तो यूनिवरसिटी कॉलेज नहीं है और कोई मा नहीं है जो अपनी बेटी को सिखाए क्योंकि मा को नहीं आता तो बेटी को क्या सिखाए और हजारों लाखों सालों से वहाँ ये चक्कर चल रहा रोटी बनाना नहीं आता थोड़े दिन पहले हमारे पास एक दमपत्ती आए उन्होंने का मुझे भारत का गाउं देखना है तो हमने एक गाउं में भेज दिया संयोग से जिस गाउं में गए वहाँ शादी थी तो हमने का उसमें भी आप शामिल हो जाएगे तो भारत क्या है आपको जादा अच्छे से समझ में आएगा तो वो शादी में जब शामिल ह� ये सब कितना पैसा लेंगी, तो उनको कहा ये पैसा वैसा नहीं लेने वाले, तो ये कैसे हो सकता है, तो हमने कहा ये है, क्योंकि भारत कोपरेशन पर चलता है, कॉंपटीशन से नहीं चलता है ये देश हमारे समाज में कॉपरेशन है, कॉंपटीशन नहीं है, तो फिर वो फिनिश दंपती में जो महिला थी, वो सबसे ज़ादा इस बात को परिशान थी लेकर कि ये र अगर आप एक गोल चीज पर आपको बनाते हैं, तो आपको यह अजूबा है। और मैंने जब वो जा रहे थे तो पूछा आपको भारत में कौन सी चीज सबसे अच्छी तो उनका ये जो रोटी है गोल ये सबसे महतुपूर वस्तु है जिसकी वैल्यू हमारे लिए सबसे जादा है क्योंकि हम जानते नहीं ये कैसे बनती है और आपके घर में हर मा वेहन इ कितनी valuable चीज है गरम रोटी और उसको आप छोड़ कर ठंडी करके खाए तो ये आपका दुरभाग्य है सौभाग्य नहीं है तो रोटी को गरम ही खाए गरम ही खिलाए यूरोप में कोई किसी को खिलाता नहीं क्योंकि कोई बनाता बिचारे तीन महिने पुरानी कहते हैं पाव रोटी कहते हैं मैंने एक simple calculation किया था कि पाव रोटी बनने के बाद और खाने तक तीन नब्बे दिन निकल जाते हैं अमेरिका और यूरोप में पता है क्या कि गेहू हर जगे होता नहीं कुछ जगे होता तो गेहू बड़े ट्रक में भरके वहाँ तक जाता है जहाँ गेहू को पीसने वाली चक्कियां लगी हुई हैं फ्लोर मिल्स फिर जाकर उससे डबल रोटी बनती है फिर वहाँ से बनकर कहीं और जाती है फिर ऐसी चक्कर में 90 दिन निकल जाते हैं हमारे आयुरवेद शास्त्र में बागवट्ट जी कहते है कि आटे को जितना ताजा इस्तेमाल किया उतना ही बहतरीन है आटे के बारे में वो कहते हैं जितना ताजा इस्तेमाल किया उतना ही बहतरीन है रोटी के बारे में कहते हैं 48 मिनट के अंदर खा लेना चाहिए और पिसा हुआ आटा वो ये कहते हैं कि 15 दिन से जादा पुराना कभी भी मत खाना 15 दिन मैक्सिमम वो भी गेहूं के लि��� ये चना और मक्की और जुआरी इसके लिए तो साती दिन कहा हुआ साथ दिन से जादा पुराना नहीं खा सकते क्योंकि वो एक किस्सा है लग तो अब आप बोलेंगे जी ताजा आटा कहां से लाएं चक्की है जिन्दा बहर हिंदुस्तान में हजारों लाखों वर्षों से आटा ताजा बनाकर रोटी बनाने की परंपरा है कि नहीं जो माता हैं यहां बुजुर्ग हैं यह चक्की पे मैंने थोड़ा रिसर्च किया ये दुनिया की ऐसी अधुत मशीन है जो आपको ताजा आटा तो देती ही है आपके शरीर की स्वास्तिके लिए और आपके अंदर की माश पेशियों को हमेशा फ्लक्सिबल रखती है और हमारे घरों में ये जो चक्की चलाने का काम माताएं करती रही हैं मैंने इन माताओं प तो मैंने कहा आप गाउं की कुछ महिलाओं पर अध्यान करिये कि जो चक्की चलाती हैं इनके बारे में जरा पता करिये और जो चक्की नहीं चलाती पिसा हुआ राटा लाती हैं तो उनने कहा जो चक्की चलाने वाली माताएं हैं उनके गाउं में 90 माताएं हैं किसी को भी सि� नीद अच्छी आ रही है, डाइबिटीज नहीं है, हर्पर टेंशन नहीं है, ब्लड प्रेशर नहीं बढ़ा है, अड़तालीस पचास बीमारियां नहीं हैं, और जो माताएं पिसा हुआ आटा ला रही हैं, कैप्टन कुक, आईटीसी का, उनके घरों में डाइबिटीज भी ह तो उन्होंने मुझे समझाया, वो मेरे भी समझ में आया, आपको भी समझ में आया हम जब चक्की चलाते हैं, तो एक दिन चला के देखिये, तो आपको समझ में आया सबसे ज़ादा दबाओ पेट पे पड़ता है हाथ पे इतना नहीं है, पेट पे दबाओ है और मा के पेट में एक एक्स्ट्रा ओर्गन है, जो पिता के पेट में नहीं है, जिसको गर्भाशे कहते हैं चक्की चलाते समय सबसे ज़ादा जोर वही है और गर्भाशे के बारे में आयुरवेद के सारे रिसर्च और आधुनिक विज्ञान के सारे रिसर्च ये कहते हैं कि ये गर्भाशे के आसपास के एरिया में जितना हलन चलन हो उतनी इसकी फ्लक्सिबिलिटी है मुलाइमियत एलास्टिसिटी एक शब्द होता है अंग्रेजी में एलास्टिसिटी एलास्टिसिटी का मतलब जब चीज की जरूरत पड़े तो उसको तान देना जब जरूरत पड़े तो उसको संकुचित कर दे ये हमारे गर्भाशे का सबसे बड़ा गुण है इसी गुण के कारण बच्चे का जन्म होता है और ये गुण को बनाए रखने में सबसे बड़ी भुमिका है हलन चलन वहाँ आसपास माश पेशियां उनका हलन चलन रहे तो ये हलन चलन सबसे अच्छे तरीके से कि सिजेरियन डिलीवरी नहीं हो रही है क्योंकि गर्भाषय की इलास्टिसिटी मेंटेन है तो आसनी से बच्चा बाहर आ रहा है बिना किसी ऑपरेशन के तब मुझे ध्यान आया कि हमारी जो पुरानी माताएं हैं उनके आठाट दद्दस बच्चे होते थे कभी सुना नहीं या चावल पका के कोई चला गया हाँ ऐसे होता है तो हमने इस बात को जब ध्यान दिया तब मेरे मन में आया कि इसको थोड़ा और बड़ा रिसर्च करना चाहिए तो इसी चिन्नई में मेरे एक मित्र है उनकी पत्मी और वो मिलके 15-16 साल से इसी विशेपे काम कर रहे है कि बच्चे को बिना किसी डॉक्टर की मदद के या सीजर ओपरेशन के बाहर कैसे लाया जाए तो उनका 15-16 साल का रिसर्च ये कहता है कि ये सिर्फ चक्की की मदद से ही हो सकता है और आयुरवेद तो यहां तक कहता है कि मा का गर्ब सात्वे महिने तक चक्की चलाने की अनुमती देता है मा को सात्वे महिने तक चक्की चलवाई जा सकती है आठवे महिने में नहीं फिर उसको बंद कर देना अच्छा है कि वो बच्चा विना सीजर के हो और जो बच्चे विना सीजर के हैं उनके जीवन को आप देख लें और जो सिजेरियन है उनके जीवन को देख लें जमीन आस्मान का अंतर है। सीजर बच्चे जादा बीमार हैं समय पे बीमारियां हैं। जो बिना सीजर हैं, वो सब स्वस्थ हैं, दुरुस्थ हैं, तन दुरुस्थ हैं.
ब्रेन का डवलप्मेंट भी उनका अच्छा है, लॉजिक को डवलप करने की कैपिसिटी, कल्पना शीलता उनमें दूसरे बच्चों से जादा हैं. तो बागवट जी का सूत्र है, कि खाना बना तो 48 मिनट में खाएं, और खाना बनाने वाली जो वस्तुएं हैं, जिनमें सबसे महतुपूर है आटा, गेहु का आटा, 15 दिन से जादा पुराना ना खाएं. जवारी, बाजरी और मक्की का आटा साथ दिन से पुराना ना खाएं। और वो ये कहते हैं कि रोज का हो तो सबसे अच्छा। सुबह बनाएं और शाम को आटा इस्तेमाल हो जाएं तो वो सबसे अच्छा। ज्यादा दिन पुराना ना हो। अगर संभव हो तो एक चक्की ले लीजे, संभव हो तो। इससे कई फाइदे हैं। आपको सबसे बड़ा फाइदा तो यह है कि आपके घर में मा है, कोई बेहन है। दूसरा आपका वेट कम करने में बहुत मदद करेगी चक्की, अगर आपको एक्स्ट्रा वेट है और आप उसको लूज करना चाहते हैं, तो 15 मिनट सुबह चक्की चलाया परियाप्त है, 15 मिनट सुबह अगर आपने चलाया, तीन महिने बाद आप देखना, 12-13 किलो वजन कम ह तो असलियत में ही चला लो कुछ तो आटा तो मिलेगा कम से कम आटा तो निकलेगा बाई प्राड़क यहां तो कुछ निकल ही नहीं रहा है पस ऐसे चला अब आप बोलेंगे जी चक्की कहां मिलेगी चक्की अभी भी मिल रही है यहीं चिन्गई में मिलेगी पथ्थर बानाने वाले बहुत लोग इस देश में है जो अभी भी यह क कि राजी बई ये कोई खरीदता नहीं हम क्या करें हमारा सिल बट्टा भी कोई खरीदता नहीं चक्की भी कोई तो मैंने संकल्प लिया है कि मैं बिकवाओंगा आपकी चक्की हाँ और मैं उनका फोकट का मार्केटिंग मैनेजर हूँ वो मुझे कुछ एक पैसा नहीं देते महिलाएं भी चला सकते हैं, पुरुष भी चला सकते हैं, इसमें ऐसा कुछ भेदभाव नहीं है कि पुरुष ना चलाएं, महिलाएं चलाएं तो उनको थोड़ा एक्स्ट्रा गेन है, एक्स्ट्रा गेन माने आपको जो एक्स्ट्रा औरगन है बॉडी में तब आपको गर्भाशे के बहुत सारे कॉंप्लिकेशन शुरू होंगे सबसे बड़ा कॉंप्लिकेशन तो यही से शुरू होगा कि आपको मैनोपाइस पीरियट शुरू होगा मैनसी साइकिल आपकी बंद होगी, मैनोपाइस पीरियट शुरू होगा और उस पीरियट में जितने कॉंप्लिकेशन हो सकते हैं, वो बच्चे के जनम के समय भी नहीं होते कम अचानक से पसीदा आएगा पूरा शरीर पसीने से भर जाएगा फिर थोड़ी देर में ठंड लगना शुरू हो जाएगी फिर थोड़ी देर में तम तमा जाएगा चेहरा एकदम गर्मी, flashes समझ में नहीं आता किसी मा को कि अभी थोड़ी देर पहले पसीना था अभी इतनी गर्मी आ गई और अभी इतनी थंडी लगने लगी इतने variation होते हैं minute में variation होते हैं मन आपका इतना depression में चला जाएगा ये depression तनाओ मन में होगा, अवसाद मन में होगा और ऐसे complications बनते जाएंगे, कारण उसका एकी है कि कुछ hormones आपके शरीर में बनना बंद हो जाएंगे, वो आपके लिए बहुत ज़रूरी है, अब hormones बनेंगे ही नहीं तो फिर मुश्किल हैं ये सब आती हैं, तो भगवान की व् लेकिन बागवट्टी जी कहते हैं कि इनको कंट्रोल करके रखा जा सकता है। अब मैं तीसरे सूत्र पे आ रहा हूँ। तीसरा सूत्र विशेश रूप से माताओं बेहनों के लिए वो कह रहे हैं कि माताओं और बेहनों की मासिक धर्म बंद होने के बाद की जो अवस्था है तो कहते हैं कि कंट्रोल करके रखने में मा के रसोई घर के जो उपकरण हैं, उपकरण, इंस्ट्रुमेंट्स, इनकी मदद आप ले सकते हैं। पेट पे ही आता है। चक्की चलाने में भी सबसे ज़्यादा जोर पेट पे आ रहा है। तो रिशी मुनियों ने ये चक्की का आविशकार जब किया होगा और सिलबट्टे का आविशकार किया होगा तो किसी मा को ध्यान में रखकर ही किया होगा। ये पक्का है। अब नियमित रूप से आप सिलबट्टा चला रहे हैं और चक्की चला रहे हैं तो यूटरस के आसपास की जो माशपेशिया है वो हमेशा नरम और मुलाइम रहने ही वाली हैं तो आपके जिन्दगी के कॉंप्लिके आप उनको दवा खा के कम करें तो दवाओं के साइड इफेक्ट्स हैं जादा दवाओं के साइड इफेक्ट्स हैं कि मोटापा बढ़ेगा एक HRT टेक्निक है हार्मोन रिप्लेस्मेंट थेरेपी जादा